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कथा ोत
बु च रत का कथानक, यात को ट का कथानक है।
बु के जीवन से स ब रखने वाली अनेक घटना
का वण एवं पठन य -त आज भी पाया जाता है।
बु च रत महाका का कथानक कस न त ोत से
लया गया है, इस का उ र पूणतः न त नह है।
बील के अनुसार अ घोष के इस का का आधार
महाप र नवाणसू था।[1] मै समूलर के अनुसर भी
बु च रत के कथानक का ोत महाप र नवाणसू ही
है।[2] क तु क थ के अनुसार बु च रत का आधार
बु के त भ भावना से यु हीनयान स दाय से
स ब त "ल लत व तर" नामक है।[3]
बु च रत के सग
बु च रत 28 सग म था जसम 14 सग तक बु के
ज म से बु व- ा त तक का वणन है। क तु
बु च रतम् मूल प म अपूण ही उपल है। 28 सग
म वर चत इस महाका के सरे सग से लेकर तेरहव
सग तक पूण प से तथा पहला एवं चौदहवाँ सग के
कु छ अंश ही मलते ह। थम सग के ार के सात
ोक और चतुदश सग के ब ीस से एक सौ बारह तक
(81 ोक) मूल म नह मलते ह। चौख बा सं कृ त
सीरीज तथा चौख बा व ाभवन क ेरणा से उन
ोक क रचना ी रामच दास ने क है। उ ह क
ेरणा से इस अंश का अनुवाद भी कया गया है। इस
महाका के शेष सग सं कृ त म उपल नह है।
15 से 28 सग क मूल सं कृ त त भारत म ब त
दन से अनुपल है। उसका अनुवाद त बती भाषा म
मला था। उसके आधार पर कसी चीनी व ान ने चीनी
भाषा म अनुवाद कया तथा आ सफोड व व ालय
से सं कृ त अ यापक डा टर जॉ सटन ने उसे अं ेजी म
लखा। इसका अनुवाद ीसूयनारायण चौधरी ने ह द
म कया है, जसको ी रामच दास ने सं कृ तप मय
का म प रणत कया है।
बु च रत के 28 सग म भगव सू त, संवेगो प ,
अ भ न मण, तपोवन वेश, अंतःपुर वलाप,
कु मारा वेषणम्, ेण भगमनम्, बु व ा त,
महा श याणा या मुख ह। थम तेरह सग के नाम
इस कार ह-[4]
1. भगव सू त,
2. अ तःपुर वहार
3. संवेगो प ः
4. ी वघातन
5. अ भ न मण
.छ दक नवतनम्
7. तपोवन वेशम्
.अ तःपुर वलाप
9. कु मारा वेषणम्
10. ेण भगमनम्
11. काम वगहणम्
12. आराडदशन
13. मार वजय
बु च रत क कथाव तु
थम सग …
तीय सग …
उसके रा य म के वल स या सय ने ही भ ावृ क ,
अ य कसी ने नह कया। उसका रा य चोर और श ु
से र हत था। सूयपु मनु के रा य क तरह उसके रा य
म उस बालक के ज म से हष का स चार आ, पाप का
नाश आ, धम व लत आ, कलुषता मट गयी।
चतुथ सग …
प चम सग …
जब राजकु मार को धैय नह आ तो राजा क आ ा
पाकर एक बार फर वन ा त म घूमने के उ े य से
बाहर नकला। वन-दशन के लोभ से और पृ वी के गुण
वशेष से आकृ होकर सु र वन के अ त क भू म क
ओर गया तथा जलतर क भाँ त वकृ त हल से जुतते
ए उसने पृ वी को दे खा। हल जुतने से तृण, कु शाय
छ - भ हो गयी थ । छोटे -छोटे क ड़े-मकोड़े मर कर
बछ गये थे। वैसे उस बसुधा को दे खकर अ य त शोक
कया, मानो वजन का बध आ हो। वहाँ वह ह रत तृण
यु सु दर प व भू म पर बैठा और व के ज म-मृ यु
क गवेषणा करते ए मन क एका ता के माग का
सहारा लया।
ष सग …
कु छ मु त म भगवान भा कर के उ दत हो जाने पर उस
नर े ने भागव का आ म दे खा। अ पीठ से उतरकर
उसको सहलाया और कहा 'तुमने मुझको पार कर दया।
इसके बाद न ध से छ दक से कहा, हे सौ य! तुमने
अपनी अतुलनीय भ मुझम दखाई, तु हारे इस
फलकामना र हत कम से म स तु ँ। अब तुम अ
लेकर लौट जाओ। इतना कहकर उसने अपना सब
आभूषण उतार कर उसको दे दया तथा द पक का काम
करने वाली एक तेज वी म ण मुकुट से लेकर कहा क हे
छ दक इस म ण से राजा को बार बार णाम करते ए
कहना क यथाथ म वग क तृ णा से नह और न
वैरा य तथा ोध से अ पतु जरामरण नाश के लए म
तपोवन म आया ,ँ अतः इस कार नकलने वाले मेरे
लए शोक नह करना चा हए। ऐसी बात सुनकर छ दक
ने अ ु सत वाणी से उ र दया, हे वा मन्! ब ु
को क दे ने वाले आपके इस भाव से मेरा मन थत हो
रहा है। अतः हे महाबाहो! पु म उ क ठत ेम एवं वृ
राजा को आप इस कार न छोड़ जस कार ना तक
स म को छोड़ता है। पालन-पोषण वाली उस अपनी
सरी माता को भी उसी कार न छोड़ जैसे कृ त न
स कार को भुला दे ता है। हे े ! प त ता यशोधरा और
पु रा ल भी आपके ारा नह छोड़ा जाना चा हए।
और य द आपने सबको यागने का न य भी कया है
तो मुझे न छोड़। म सुम क तरह राम (आप)को
छोड़कर घर नह जाना चाहता।
स तम सग …
छ दक को वस जत कर, वन म व दता क इ ा
से, सवाथ स सह के समान शरीर क शोभा वाला,
आ म को आ ा त करके वह वहाँ प ँचा। आ म म
प ंचते ही सभी आ मवा सय का च उसक ओर
आकृ आ। सब लोग ने नर नमेष से उसको
दे खा। न ल बु तप वीय ने भी उसको उसी कार
दे खा, अपने मठो म वे उस समय नह गये।
मो ा भलाषी धीर उस कु मार ने वगा भलाषी पु यकम
जन से प रपूण उस आ म को तथा वहाँ क व वध
तप या को दे खते ए वचरण कया।
अ म सग …
नवम सग …
दशम सग …
वह राजकु मार म ी और पुरो हत को छोड़कर
चलायमान तरंग वाली गंगा को पार कर ल मी-स
भवन से यु राजगृह को गया। उसे दे खकर, जो सरी
ओर जा रहा था क गया; जो का आ था, पीछे -पीछे
गया; जो तेजी से जा रहा था, वह धीरे-धीरे चला; एवं जो
बैठा था, वह उठकर खड़ा हो गया। कसी ने हाथ से
उसक पूजा क , कसी ने स कार करके सर से णाम
कया, कसी ने य वचन से अ भन दन कया, उसक
पूजा कये बना कोई नह रहा। तब मगध राज के राजा
े ( ब बसार) ने महल से दे खा क बाहर वशाल
जनसमुदाय है, उसका कारण पूछा। तब एक राजपु ष
ने उसको बताया क यही व के ारा क थत मो
धमा भलाषी शा यराज का पु प र ाजक हो गया है।
लोग उसे दे ख रहे है। तब राजा ने कहा, पता लगाओ
कहाँ जा रहा है। वह पु ष "अ ा" कह कर उसके
पीछे -पीछे गया। वह भ ु े भ ा माँग रहा था। भ ा
म जो कु छ मल गया उसे लेकर पवत के पास एका त म
खाया और खाकर पा डव पवत पर चढ़ गया। उस
राजपु ष ने वहाँ से आकर राजा को बताया। राजा यह
सुनकर अनुचर के साथ वहाँ ान कया।
यायवे ा म व र उस कु मार के पास जाकर राजा ने
उससे आरो य पूछा। उसने भी राजा को आरो य बताया।
इसके बाद राजा ने उससे कहा क आपके कु ल से
पर रागत एवं परी त मेरी बड़ी ी त है। आपका कु ल
महान है। सूय से ार आ है। आपक अव ा नयी
है। यह शरीर भी दे द यमान है। कस कारण आपक
ग त भ ा म रमी, रा य म न रमी, आपका शरीर र
च दन लेप के समान है, काषाय के यो य नह , यह हाथ
जापालन के यो य है, भ ा के योगय नह । अतः हे
सौ य! य द पता से नेहवश पैतृक रा य परा म से नह
लेना चाहते तो मेरा ही आधा रा य भो गये। म यह बात
नेह से कह रहा ,ँ ऐ य के राग से नह । जबतक
वृ ाव ा नह आ जाती, तब तक वषयोपभोग क रये,
फर समय से धम क जए। बूढ़ा आदमी धम ा त कर
सकता है। कामोपभोग म बुढ़ापे क ग त नही होती।
अतः युवा के लए काम, म य के लए धन, एवं वृ के
लए धम कहते है।
एकादश सग …
ादश सग …
योदश सग …
चतुदश सग …
प चदश सग …
स तदश सग …
उ ीसवाँ सग …
बीसवाँ सग …
महा मा बु क पलव तु म कु छ समय नवास करके
सेन जत के र य नगर म गये, वहाँ से जेतवन को गये।
वहाँ राजा सुद ने कलश म जल लेकर, तथागत क
पूजा कर, जेतवन उ ह दे दया। उस समय दशन क
इ ा से राजा सेन जत वहाँ आया ओर णाम कर
कहा, हे दया सधो! मुझ अधम को नर तर आपका दशन
होता रहे। हे साधो! म राग और राजधम से अ य त
पी ड़त ँ। इस कार सेन जत क बात सुन, बु ने
उसको उपदे श दया तथा कहा, "स म म मन लगाओ,
साधु का स संग करो।" इस कार मु न का उपदे श
हण कर रा य को न र समझकर वह राजा ाव ती
को लोटे गया।
इ क सवाँ सग …
बाइसवाँ सग …
तेइसवाँ सग …
तदन तर आ पाली के घर चले जाने पर मु न आगमन
का समाचार सुनकर ल वय ने वहाँ दशन हेतु
पधारा। जाकर ल वय ने णाम कर भू म पर
आसन हण कया। उनका राजा सहासन पर। तब
महा मा बु ने स हो ज म, जरा, मृ यु आ द
महा ा ध से मु पाने के लए त व ान प द
औष ध दान कया। ल वय ने णाम कर घर ले
जाने क उ सुकता से नवेदन कया। ले कन "आ पाली
को बचन दे चुका "ँ ऐसा कह मु न ने आ पाली का
आ त य वीकार कया। वहाँ से चातुमास त के बाद
सव मु न पुनः वैशाली लौट आये और मकट नामक
सरोवर के तट पर बैठ गये। वहाँ वृ मूल म बैठे मु न को
दे खकर मार उनके पास आकर बोला, "हे मु न! नैर ना
के तट पर मैने कहा था अब आपका काय समा त हो
चुका है। नवाण म मन लगाइये। तब आपने कहा था,
जब तक पा पय का उ ार न कर लू,ँ तब तक नह ।
अब तो नवाण ल। तब मु न ने कहा, "आज से तीसरे
महीने म नवाण लूंगा। सोचो मत। मार वहाँ से चला
गया। इसके बाद मु न ने दे ह से वायु को ख चकर च म
लाकर च को ाण म समाधान करके ाण को योग से
जोड़ दया। उस समय पहाड़ स हत पृ वी हल गयी।
तब मु न ने ऐसा सं ोभ दे ख कहा, "अब म भयव न
दे ने वाली आयु से नकल चुका ँ।"
चौबीसवाँ सग …
प ीसवाँ सग …
स ाइसवाँ सग …
अ ाइसवाँ सग …
बु च रत म ा त ऐ तहा सक साम ी
बु च रत एक अ य त ही मह वपूण है। इसम
जगह-जगह अनेक ऐ तहा सक त य उपल होते ह।
इस का आधार ही एक इ तहास स का
जीवनच रत है। ीम ागवत भी क लयुग के स वृ
होने पर, बु को व णु के भावी अवतार के नाम से
'बौधावतार' घो षत कर भ व यवाणी करता है-
ह के अनुसार भी व णु के अवतार, स ,
अ तीय, वल ण तभा स महा मा बु के वणन
के साथ ही इस म क व ारा रामायण, महाभारत
एवं पुराण एवं पा ल सा ह य आ द म ा त अनेक
ऐ तहा सक महापु ष , राजा एवं ऋ षय का उ लेख
संकेत प म ा त होता है।
वैरा य का कारण
बु के वैरा य ा त का कारण था? इसका उ र
राजकु मार के थम वहार के समय माग म जाते ए
वृ को दे खकर सारथी से पूछा गया शन और सारथी
ारा दया गया उ र म मल सकता है-
स दभ
1. S. Beal, Fo,sho,haig-tsan-kuig,
intro.P.XXXII
2. से े ड बु स आफ द इ ट, भाग-14 पृ0-32
3. बु ट फला पृ0-227
4. "बु च रत" . मूल से 25 अ ैल 2016 को
पुराले खत. अ भगमन त थ 23 दसंबर 2012.
बाहरी क ड़याँ
बु च रत (संगणक कृ त बौ सं कृ त पटकम्)
बु च रत (दे वनागरी म)
बु च रतम् (दे वनागरी म, व क ोत)
बु च रत (रामचं शु ल ारा ह द भावानुवाद)
Cowell's edition in Roman characters
with supplements from Johnson's
edition
Cowell's text and translation (verse by
verse)
Cowell's translation (only)
Buddhist Studies: Buddhacarita
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