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बु च रत

बु च रतम्, सं कृ त का महाका है। इसके रच यता


अ घोष ह। इसक रचनाकाल सरी शता द है। इसम
गौतम बु का जीवनच रत व णत है। इस महाका का
आर बु के गभाधान से तथा इसक प रण त
बु व- ा त म होती है। यह महाक भगवान बु के
संघषमय सफल जीवन का वल त, उ वल तथा मूत
च पट है। इसक कथा का प- व यास वा मी ककृ त
रामायण से मलता-जुलता है।
बु का पहला उपदे श, भारत, 11 व शता द

सन् 420 म धमर ा ने इसका चीनी भाषा म अनुवाद


कया तथा ७व एवं ८व शती म इसका अ य त शु
त बती अनुवाद कया गया। भा यवश यह महाका
मूल प म अपूण ही उपल है। 28 सग म वर चत
इस महाका के तीय से लेकर योदश सग तक तथा
थम एवं चतुदश सग के कु छ अंश ही मलते ह। इस
महाका के शेष सग सं कृ त म उपल नह है। इस
महाका के पूरे 28 सग का चीनी तथा त बती
अनुवाद अव य उपल है। इसका चीनी भाषा म
अनुवाद पांचव शता द के ार म 'धमर ', 'धम े '
अथवा 'धमा र' नामक कसी भारतीय व ान ने ही
कया था तथा त बती अनुवाद ९व शता द से पूववत
नह है।

कथा ोत
बु च रत का कथानक, यात को ट का कथानक है।
बु के जीवन से स ब रखने वाली अनेक घटना
का वण एवं पठन य -त आज भी पाया जाता है।
बु च रत महाका का कथानक कस न त ोत से
लया गया है, इस का उ र पूणतः न त नह है।
बील के अनुसार अ घोष के इस का का आधार
महाप र नवाणसू था।[1] मै समूलर के अनुसर भी
बु च रत के कथानक का ोत महाप र नवाणसू ही
है।[2] क तु क थ के अनुसार बु च रत का आधार
बु के त भ भावना से यु हीनयान स दाय से
स ब त "ल लत व तर" नामक है।[3]

व तुतः बु च रत क कथाव तु महाव तु, ल लत व तर,


नदानकथा तथा जातक कथा से अ य धक सा य
ा त करती है, कसी एक से नह ।

बु च रत के सग
बु च रत 28 सग म था जसम 14 सग तक बु के
ज म से बु व- ा त तक का वणन है। क तु
बु च रतम् मूल प म अपूण ही उपल है। 28 सग
म वर चत इस महाका के सरे सग से लेकर तेरहव
सग तक पूण प से तथा पहला एवं चौदहवाँ सग के
कु छ अंश ही मलते ह। थम सग के ार के सात
ोक और चतुदश सग के ब ीस से एक सौ बारह तक
(81 ोक) मूल म नह मलते ह। चौख बा सं कृ त
सीरीज तथा चौख बा व ाभवन क ेरणा से उन
ोक क रचना ी रामच दास ने क है। उ ह क
ेरणा से इस अंश का अनुवाद भी कया गया है। इस
महाका के शेष सग सं कृ त म उपल नह है।

15 से 28 सग क मूल सं कृ त त भारत म ब त
दन से अनुपल है। उसका अनुवाद त बती भाषा म
मला था। उसके आधार पर कसी चीनी व ान ने चीनी
भाषा म अनुवाद कया तथा आ सफोड व व ालय
से सं कृ त अ यापक डा टर जॉ सटन ने उसे अं ेजी म
लखा। इसका अनुवाद ीसूयनारायण चौधरी ने ह द
म कया है, जसको ी रामच दास ने सं कृ तप मय
का म प रणत कया है।
बु च रत के 28 सग म भगव सू त, संवेगो प ,
अ भ न मण, तपोवन वेश, अंतःपुर वलाप,
कु मारा वेषणम्, ेण भगमनम्, बु व ा त,
महा श याणा या मुख ह। थम तेरह सग के नाम
इस कार ह-[4]

1. भगव सू त,
2. अ तःपुर वहार
3. संवेगो प ः
4. ी वघातन
5. अ भ न मण
.छ दक नवतनम्
7. तपोवन वेशम्
.अ तःपुर वलाप
9. कु मारा वेषणम्
10. ेण भगमनम्
11. काम वगहणम्
12. आराडदशन
13. मार वजय

बु च रत क कथाव तु
थम सग …

"भगव सू तः" नामक इस सग क मह वपूण कथा बु


के ज म क है जसम बताया गया है क इ वाकु वंश
पी समु म शु ोदन नाम का शा य म एक राजा
आ उसक प नी का नाम माया था। रानी ने
लोकक याण के लए गभधारण कया। गभधारण के
बाद रानी ने व म अपने अ दर एक सफे द हाथी वेश
करते दे खा। एक दन रानी ने न दन वन स श लु बनी
वन म जाने क इ ा क । राजा रानी को लु बनी वन म
ले गया, वहां पु य न के आने पर एक बालक का
ज म आ। ज म होते ही वह बालक स त ष तारा क
तरह सात पग चला तथा ग ीर वर म बोला-
व क याण के लए एवं ान ा त के लए मने यह
ज म हण कया है, संसार म यह मेरा अ तम ज म है।
(बोधाय जातोऽ म जग ताथम या भवो प रयं
मामे त। -- बु च रत 1/15)। ा ण ने उस बालक के
स ब म वचार कया तथा राजा से कहा, "हे राजन !
यह आपका पु शुभ ल ण से यु है, यह समय आने
पर गुण का नधान होगा और बु म ऋ ष होगा
अथवा अ य त रा य ी ा त करेगा (द प भोऽयं
कनको वला , सुल णैय तु सम वतोऽ त।
न धगुणानां समये स म ता बु षभावं परमां यं वा॥--
बु०च० 1/34)। जस कार धातु म शु वण, पवत
म सुमे , जलाशय म समु , तारा म च मा तथा
अ नय म सूय े ह, उसी कार मनु य म आपका
पु े है।

यथा हर यं शु च धातुम ये मे गरीणां सरस समु ः।


तारासु च तपतां च सूयः पु तथा ते पदे षु वथः
॥ (बु च रत 1/37)
तब राजा को आ य आ क ा ण ारा क थत ये
गुण इसम कै से आयगे, जो पूवज म नह थे। तब
ा ण ने ब त ा त दे कर बताया क ऐसे ब त
ह, जो अपने से पूव कसी ने नह कया वो उन
लोग ने कर दया। उ होने वा मी क, जनका द का
उदाहरण दया और कहा क न तो अव ा ही माण
होती है और न वंश ही। संसार म कोई भी कह भी
े ता ा त कर सकता है य क राजा एवं ऋ षय
के पु ने वे कम कये जो उनके पूवज ने नह कया।
त मात् माणं न वयो न वंशः न क त् व च ह
े मुपै तलोके ।
रा ामृषीणां च ह ता न ता न कृ ता न पु ैरकृ ता न
पूवः ॥ (बु च रत 1/46)
इसके बाद राजा ने ा ण को स तापूवक,
स कारपूवक धन दया, इस उ े य से क वह (बालक)
राजा होवे और वृ ाव ा को ही बन को जाय। तद तर
मह ष अ सत, तपोबल से ज मा तकर का ज म आ,
ऐसा जानकर स म क ज ासा से शा यराज के घर
आये। राजा ने आसन पर बैठाकर पा ा य से उनक
पूजा क । मह ष अ सत अपने आने का योजन बताया,
"म आपके पू का दशन करने आया ँ, माग म ही मैने
सुना क बु व ा त के लए आपका पु उ प आ
है।" राजा ने धाई क गोद से बालक को मह ष क गोद
म दे दया। मह ष ने आ य से दे खा क उसके पैर म
च के च ह थे, अंगु लय , हाथ एवं पैर म रेखा का
जाल वछा आ था, भौह बाल से यु थ एवं
अ डकोश हाथी के समान सू म थे।

च ाङ् कपादं स ततो


मह षजालावन ानु लपा णपादम्।
सोण ुवं वारणव तकोशं स व मयं राजसुतं ददश ॥
(बु च रत 1/60)

इसके बाद मह ष अ सत ने राजा से उनके पु के वषय


म ब त सारी बात बताया क आपका पु अ य त
वल ण गुण वाला है और यह धम का राजा होगा, एवं
बु व ा त करके मोहपाश से बँधे ए ःख से पी ड़त
जगत् का ब न खोलेगा। इस कार मह ष अ सत
पु स ब ी नयत बात बताकर आकाश माग से जैसे
आये थे, वैसे ही चले गये।
राजा ने अपने रा य के सभी कै दय को छोड़ दया। पु
का जातक आ द सं कार करवाया। पु के मंगल के
लए जप, होम, दान आ द मांग लक कृ य कया और
उसके बाद मंगल शुभ मु त आने पर वहां से रा य म
वेश कया।

तीय सग …

"अ तःपुर वहार" नामक इस सग म बताया गया है क


उस पु के ज म से उस शा यराज के रा य म सारी
स याँ अनायास ा त होने लग । वह राजा त दन
धन-धा य, हॉथी-घोड़ से इस कार बढ़ने लगा जस
कार जल के वाह से नद बढ़ती है।

उसके रा य म के वल स या सय ने ही भ ावृ क ,
अ य कसी ने नह कया। उसका रा य चोर और श ु
से र हत था। सूयपु मनु के रा य क तरह उसके रा य
म उस बालक के ज म से हष का स चार आ, पाप का
नाश आ, धम व लत आ, कलुषता मट गयी।

बालक के ज म के कारण राजकु ल क ऐसी


सवाथ स ई क राजा ने उसका नाम 'सवाथ स '
रखा। उस बालक क माता माया दे वी अपने पु का
दे व ष स श वशाल भाव दे खकर उ प हष को न
स ाल सक , अतः नवास के लए वग चली गय । तब
माता के स श मौसी ने वशेष यार एवं भाव से सगे क
भाँ त उस दे वतु य बालक का पालन-पोषण कया।

वह बालक शु ल प के च मा क तरह मशः बढ़ने


लगा। उस बालक ने बा याव ा को बताकर उ चत
समय म उपनयना द सं कार से व धवत सुसं कृ त
होकर ब त वष म सीखी जाने वाली अपने कु ल के
अनुसार व ा थोड़े ही दन म सीख ली।

वय कौमारमती य स यक् स ा य काले


तप कम।
अ पैरहो भब वषग या ज ाह व ाः वकु लानु पाः
॥ (बु च रतम् 2/24)
इसके बाद राजा ने वषय म उसक आस उ प
करने क इ ा से उसका ववाह यशोधरा नाम क
क या से स करा दया ता क बालक वन को न
जावे। मन को ु भत करने वाला कोई तकू ल य
यह बालक कसी तरह न दे ख सके , ऐसा वचार कर वह
राजा उस कु मार के लए महल के अ दर रहने क ही
आ ा दे ता था, बाहर घुमने क नह । इस कार वह
कु मार महल म ही य के मनोरम तूय, वीणा आ द
नाद के बीच वहार करने लगा। अनेक सु दर युव तय ने
अपने कटा एवं भू वलास से उसको रमाने का यास
कया। राजा ने उस कु मार क द घायु के लए अ न म
आ त एवं ा ण को गाय, वण इ या द दान दया।

उ म गुण वाली यशोधरा ने एक पु को ज म दया


जसका नाम रा के समान मुख होने के कारण रा ल
रखा गया। अब राजा को अपने वंश के व तार का पूण
व ास आ तथा जस कार पु ज म से स ता यी
थी, उसी कार पौ ज म से भी यी।

'मेरे ही समान मेरे पु


को भी अपने पु म ेम होव', इस
स ता से उस राजा ने यथासमय तत् तत् धम का
आचरण कया। स पु ष ारा से वत एवं वेद तपा दत
व वध धम का सेवन कया, एवं पु का मुख दे खकर
यह ाथना क क मेरा पु कसी भी कार वन न
जावे।
तृतीय सग …

"संवेगउ प :" नामक इस सग म महा मा बु के मन म


व भ कारण से वैरा य उ प होने क चचा क गयी
है। बताया गया है क कसी समय स ाथ ने वन के
वषय म सुना क कोमल तृण से स है और वहाँ के
वृ कोयल के ववाद से ववा दत ह तथा कमल के
तालाब से सुशो भत गीत से नब ह। इस कार जब
स ाथ ने य के य नगर के उ ान क सु दरता
सुनी तब राजकु मार ने बाहर जाने क इ ा क ।
राजकु मार के मनोगत भाव को जानकर राजा ने
वन वहारया ा क आ ा दे द । राजकु मार के मन म
रोगा द से पी ड़त य को दे खकर संवेग न उ प हो
जाय, अतः ऐसे लोग का माग म आवागमन रोक दया
गया। कमचा रय ने राजपथ से अ हीन , इ यहीन ,
वृ , रो गय एवं गरीब जन को परम शा त से हटाकर
माग को ब त सजाया।

य हीना वकले यां जीणातुराद न् कृ पणां


द ु।
ततः समु साय परेण सा ! शोभां परां राजपथ य
च ु ः॥ (बु च रत 3/5)
राजपथ के सज जाने पर राजा से आ ा लेकर
राजकु मार वण के आभूषण से अलङ् कृ त, चार अ
से संयु , कु शल सारथी वाले सुवणमय रथ पर सवार
ए। नगर के लोग ने उसका अ भन दन कया। याँ
उसको दे खने क इ ा से अटा रय पर चढ़ गय ।

राजमाग पर जाते समय राजकु मार को वन म जाने के


लए े रत करने हेतु शु ा धवास दे वयो न वशेष ने
एक वृ पु ष का नमाण कया। तब राजकु मार ने
जजर से उस को दे खकर त होते ए सारथी
से कहा-

हे सूत! यह कौन मनु य आया है। सफे द के श से


यु , हाँथ म लाठ पकड़े ए, भौह से आँखे ढं क ह,
श थलता के कारण शरीर झुका है। या यह वकार
है अथवा वभाव या अनायास ऐसा हो गया है?
क ऐष भो सूत नरोऽ युपेतः के शैः
सतैय वष ह तः ।
भूसंवृता ः श थलानता ः क व यैषा
कृ तय ा॥ (बु च रत ३/२८)
इस कार बु के ारा पूछे जाने पर दे वता के भाव
से बु मोह को ा त उस सारथी ने बना कु छ छपाये
उस अव ा के वषय म सब कु छ बता दया। सारथी ने
कहा, " प को न करने वाली, बल के लए वप
व प, शोक क जननी, आन द का नधन, मृ त का
नाश एवं इ य का श ु यह जराव ा है जसने इसे
तोड़ डाला है।

ऐसा कहे जानेपर राजकु मार ने सारथी से पूछा या यह


मुझे भी दोष होगा? तब सारथी ने कहा, "आयु मन! यह
कसी को नह छोड़ती, अतः आपको भी अव य ावी
है"। इस कार सुनकर वह कु मार उ न मन हो सारथी
से रथ लौटाने को कहा। सारथी ने रथ लौटाया और
महल म वेश कया। 'जरा-जरा' का च तन करते ए
जब राजकु मार को शा त नह आयी तब राजा क
आ ा से सरी बार भी पुनः उसी म से बाहर गया।
अन तर ा ध त सरे मनु य का भी माग म उसी दे व
ने नमाण कया। तब राजकु मार ने फर सारथी से पूछा
क सरे का आ य लेकर ः खत वर म जो माँ-माँ
च ला रहा है यह कौन है? तब सारथी ने बताया क हे
सौ य! रसा द धातु के कोप से बढ़ा आ रोग नामक
यह महान अनथ है, जसने इस समथ को भी पराधीन
कर दया है।

ततोऽ वी सार थर य सौ य धातु कोप भवः


वृ ः।
रोगा भधानः येमहाननथः श ोऽ प पेनैष
कृ तोऽ वत ः ॥ (बु च रत 3/421)
तदन तर राजकु मार के ारा पूछे जाने पर क यह रोग
इसी को आ है या सबको होता है, सारथी ने कहा क
यह रोग सबको होता है। इस कार के सारथी के वचन
को सुनकर उ नमन राजकु मार ने फर रथ लौटाने को
कहा और रथ लौटकर महल म वेश कया। राजकु मार
के लौटने पर राजा का मन ब त ः खत आ क कह
यह पु मुझे छोड़ न दे ।
राजा ने पुनः सारथी एवं रथ का प रवतन कर राजमाग
को सजवा कर सु ढ व ा कराकर भली कार से
माग का परी ण कर बाहर भेजा। फर उ ह
शु ा धवास दे व ने एक मृतक का नमाण कया। उस
मृतक को माग म जाते ए के वल राजकु मार एवं सारथी
ने दे खा, अ य कोई नह । तब राजकु मार ने सार थ से
पूछा क चार पु ष से ढोया जा रहा यह कौन है?
राजकु मार के पूछने पर दे व के ारा अ भभूत च वाले
सारथी ने न कहने यो य यह बात भी राजकु मार से कह
द क बु , इ य, ाण और गुण से वयु यह चेतन
र हत तृण या लकड़ी के समान कोई सदा के लए सो
गया ह, अभी तक ेमी वजन ने इसे पाला-पोसा, अब
छोड़ रहे ह। राजकु मार ने रथवाहक का यह वचन
सुनकर फर पूछा क यह सबको होता है या इसी का
'धम' है, तब सारथी ने बताया क सब ा णय का यही
अ तम कम है। उ म, म यम, नीच कोई भी हो, वनाश
सबका न त है।

ततः णेतावद त म त मै सव जाना मदम तकम।


हीन य म य य महा मनो वा सव य लोके नयतो
वनाशः॥ (बु च रत 3/59)
इस कार सारथी के कहने पर राजकु मार ने ग ीर वर
से बोला, " ा णय क यह मृ यु न त है, क तु भय को
छोड़कर लोग भूल कर रहे ह। मै समझता ँ क मनु य
का मन क ठन है, जो इस कार मृ युपथ पर चलते ए
भी सुखी ह। अतः हे सुत! यह वहार करने का समय
उपयु नह , रथ लौटाओ। वनाश को जानता आ भी
बु मान वप काल म वभोर कै से रह सकता है? इस
कार राजकु मार के कहने पर भी सूत ने रथ नह
लौटाया और राजा क आ ा से वशेष सु दरता से यु
न दनवन के सामन राजकु मार को पभष ड नामक बन
को ले गया।

चतुथ सग …

नगर क याँ नगर उ ान से बाहर नकलकर उस


राजपु के पास आय और कमल स श कर से वागत
क । य प वे यां उस राजकु मार को रागा भमुख
करने के उ े य से वहाँ आय थ , क तु उसके भाव से
न होकर कु छ बोल न सक , मा दे खती ही रह ।
तब ऐसा दे खकर पुरो हत पु उदायी ने कहा क आप
लोग सब कला को जानने वाली हो, भाव हण म
प डता हो, चातुय से स हो, अपने गुण से धानता
को ा त यी हो, य का तेज महान होता है। इस
कार कहते ए उदायी ने अनेक ा त दया। कहा क
य ने य के वषय म अन भ ऋ य ृ का भी
अपहरण कया। व ा म ने जो महान तप वी थे,
घृताची अ सरा से अप त होकर दस वष को एक दन
समझा। इस कार जब य ने ऐसे लोग को वकार
उ प करवाया तो यह सु दर एवं युवा राजपु या चीज
है। तुम लोग न त प से ऐसा य न करो जससे
राजा के वंश क शोभा यहाँ से वर होकर न जावे।
उदायी क ऐसी बात सुनकर य ने उस राजकु मार को
लुभाने के लए अनेक व श य न ार कया।
कसी ने लोकल ा छोड़ व ावरण शरीर से हटा दया,
तो कसी ने उसका चु बन कया। इस कार नाना कार
के हाव-भाव से भाव त करने का यास कया।
ले कन वह राजकु मार इस कार आकृ कये जाने पर
भी वच लत नह आ और धीर च से सोचन लगा-
या ये याँ यौवन को णक नही समझत , जसको
वृ ाव ा न कर दे गी। या ये कसी को रोग त नह
दे खत , जससे भय यागकर स ह। सब कु छ हर लेने
वाली मृ यु से ये अन भ ह तभी तो व एवं
उ े गर हत होकर खेलती और हँसती ह। कौन वृ रोगी
एवं मृतक को दे खकर ऐसे स रहेगा। जो ऐसे स
रहेगा वह न त ही अचेतन स श है। इस कार
यानम न होकर वह सोच रहा था क उदायी ने, जो
नी तशा का ाता था, उसको यानम न एवं वषय से
न ृह दे ख म ता पूवक बोला- म तु हारा म ँ,
म ता के नाते कु छ कहना चाहता ँ। अ हत म नषेध
करना, हत म नयु करना, वप म भी न छोड़ना ये
ही म के तीन ल ण ह।

अ हतात् तषेध हते चानु वतनम्।


सने चाप र याग वधं म ं ल णम्॥ (बु च रत
4/64)

अतः म होने के नाते म कहता ँ क य के त


इस कार क उदासीनता तुम जैसे सु दर पु ष के
अनु प नह है। लभ वषय को पाकर तु हे उसक
अवहेलना नह करनी चा हए। इ ने भी गौतम प नी
अह या के साथ काम का सेवन कया। इसी कार
वृह त-ममता, पराशर-काली जैसे अनेक माण तुत
कर उदायी समझा रहा था क उदायी क बात सुनकर
राजकु मार ने उ र दया- म वषय क उपे ा नह
करता, संसार को तदा मक जानता ँ, क तु जगत् को
अ न य मानकर मेरा मन इसम नह रम रहा है।

नावजाना म वषयान् जाने लोकं तदा मकम्।


अ न यं तु जग म वा ना मेरमते मनः ॥
य द जरा, ा ध एवं मृ यु नह होते तो इस मनोहर
वषय म मेरा भी मन रमता। मै तो ज म, मृ यु और
ा ध से होने वाले भय को दे खकर अ य त भयातुर एवं
वकल ँ। अ न से जलते ए के समान जगत को दे खते
ए मुझे न शा त है न धैय ही। मृ यु, ा ध एवं जरा
व प मनु य य द मृ यु ा ध और प आ द वषय म
रमता है तो वह मृग प य के समान है।

इस कार जब कु मार ने काम-मूल को न करने वाली


न या मक बात कह , तब याँ सूय को अ तचल को
जाते दे ख अपने गुण तथा ेमलीला के न फल हो
जाने पर काम भाव को अपने म न कर ववश
होकर नगर को लौट गय । और राजकु मार भी ासाद म
वेश कया। ले कन राजा ने जब सुना क कु मार का
मन वषय म नह रमा, तो उसे ऐसे ख आ मानो
उसके दय म बाण चुभ गया हो। रा म उसे न द भी
नह आयी।

प चम सग …
जब राजकु मार को धैय नह आ तो राजा क आ ा
पाकर एक बार फर वन ा त म घूमने के उ े य से
बाहर नकला। वन-दशन के लोभ से और पृ वी के गुण
वशेष से आकृ होकर सु र वन के अ त क भू म क
ओर गया तथा जलतर क भाँ त वकृ त हल से जुतते
ए उसने पृ वी को दे खा। हल जुतने से तृण, कु शाय
छ - भ हो गयी थ । छोटे -छोटे क ड़े-मकोड़े मर कर
बछ गये थे। वैसे उस बसुधा को दे खकर अ य त शोक
कया, मानो वजन का बध आ हो। वहाँ वह ह रत तृण
यु सु दर प व भू म पर बैठा और व के ज म-मृ यु
क गवेषणा करते ए मन क एका ता के माग का
सहारा लया।

इसी समय सरे के ारा न दे खा जाता आ एक पु ष


भ ु वेष म उसके पास आया। राजपु ने उससे पूछा,
कहो कौन हो? तब उसने उससे कहा, "नर े ! ज म-
मृ यु से डरा आ म स यासी ँ तथा मो के लए
स यास लया ँ। न र जगत म मो क इ ा वाला म,
स क याणमय अ वनाशी पद खोज रहा ँ। नज
और पराये म समान बु होकर, वषय के राग- े ष से
र हत हो गया ँ। जहाँ कह , जो कु छ मल जाता है, वही
लेकर खा लेता ँ और आशार हत हो घूम रहा ँ। ऐसा
कहकर वह आकाश म उड़ गया। वह उसक मृ त
जगाने वाला दे व वशेष था। इस कार आकाश म उड़ते
उसे दे ख वह कु मार अ य त स और आ यच कत हो
घर को पुनः ान कया।

घर जाकर उसने राजा के पास जाकर करब णाम


कर बोला- "हे नरदे व! मुझे शुभ आ ा दे व, म मो के
लए स यास लेना चाहता ं य क एक दन इस
वशेष से अव य वयोग होगा।" इस कार क उसक
वाणी सुनकर राजा क त हो गया और अ ुपूण सजल
ने वाला होकर बोला- हे तात! इस बु को लौटाओ,
धमसेवन का तु हारा समय नह ह। थम अव ा म मन
च चल होने के कारण बु जन धमाचरण म ब त दोष
बताते ह। अतः तुम इस वैभवशाली ल मी का सेवन कर
सुखपूवक जीवन तीत करो। राजा क यह बात
सुनकर कु मार ने उ र दया- हे राजन! य द चार बात म
र क बन तो मै वन का आ य न लूँ। मेरा जीवन मरण
के लए न हो, रोग मेरे इस आरो य को न हरे, बुढ़ापा
यौवन को व त न करे और वप मेरी इस स
को न हरे।

न भवे मरणाय जी वतं न वहर वा य मदं च मे न


रोगः ।
न च यौवनमा पे रा मे न च स ममा
हरे प तः ॥ (बु च रत 5/35)
ऐसी अस व बात सुनकर राजा ने कहा, पु ! अ ा य
क कामना करने वाले का उपहास होता है। राजकु मार
ने कहा- हे पताजी! घर से मो क कामना वाले को
भागने से रोकना उ चत नह है।

पु का ऐसा न य सुनकर राजा ने र ा क वशेष


व ा क , और वषय भोग का उसके लए व श
वधान कया। राजकु मार ने अपने महल म वेश कया।
रा म युव तयाँ बाजे-गाजे के साथ उसके पास
उप त । तीत होता था मानो कसी दे व े के
पास अ सरा का झु ड आया हो। उन युव तय के
ारा लुभाने एवं बाजे बजाने पर भी वह नर े न तो
सुखी आ और न स ही। तब े दे व ने उसके
अ भ ाय को जानकर वहां सब मादा को एक साथ
न त तथा उनक मा चे ा को वकृ त कर दया।
य प उनके शरीर सु दर थे एवं वाणी मधुर थी, फर भी
अभ तरीके से सोने के कारण उनक आकृ तयाँ वकृ त
एवं चे ाय च चल थ , जसे दे खकर राजपु ने न दा
क । इस संसार म व नता का ऐसा वकराल तथा
अप व वभाव है, तथा प व ाभूषण से व चत पु ष
य के वषय म राग करता है।

इस कार सो रही उन य क न दा करते ए वे


राजकु मार महल के ऊपरी भाग से नचले भाग थम
क म आये। शी गामी अ र क को जगाकर क क
नामक या जा त वशेष अ को शी लाने के लए कहा
और कहा क मो पाने के लए यहाँ से जाने क मेरी
इ ा है। अ र क छ दक ने अ यमन क मन से ही
राजकु मार क आ ा को वीकार करते ए अ को
लाया। तब राजकु मार उस अ क पीठ पर चढ़कर
सहनाद करते ए कहा, "ज म एवं मृ यु का अ त दे खे
बना इस क पलव तु नगर म वेश नह क ँ गा। इस
कार उसक बात सुनकर दे वता ने स तापूवक
फु लत च से उसका मनोरथ स करने का
संक प कया। कु छ अ य दे वता ने अ न प धारण
करके उसे वफ ले माग म काश कया और वह घोड़ा
सूय क करण से आकाश के तारे म लन नह हो पाये
(अथात रात म ही) इतने ही समय म अनेक योजन र
नकल गया।

ष सग …

कु छ मु त म भगवान भा कर के उ दत हो जाने पर उस
नर े ने भागव का आ म दे खा। अ पीठ से उतरकर
उसको सहलाया और कहा 'तुमने मुझको पार कर दया।
इसके बाद न ध से छ दक से कहा, हे सौ य! तुमने
अपनी अतुलनीय भ मुझम दखाई, तु हारे इस
फलकामना र हत कम से म स तु ँ। अब तुम अ
लेकर लौट जाओ। इतना कहकर उसने अपना सब
आभूषण उतार कर उसको दे दया तथा द पक का काम
करने वाली एक तेज वी म ण मुकुट से लेकर कहा क हे
छ दक इस म ण से राजा को बार बार णाम करते ए
कहना क यथाथ म वग क तृ णा से नह और न
वैरा य तथा ोध से अ पतु जरामरण नाश के लए म
तपोवन म आया ,ँ अतः इस कार नकलने वाले मेरे
लए शोक नह करना चा हए। ऐसी बात सुनकर छ दक
ने अ ु सत वाणी से उ र दया, हे वा मन्! ब ु
को क दे ने वाले आपके इस भाव से मेरा मन थत हो
रहा है। अतः हे महाबाहो! पु म उ क ठत ेम एवं वृ
राजा को आप इस कार न छोड़ जस कार ना तक
स म को छोड़ता है। पालन-पोषण वाली उस अपनी
सरी माता को भी उसी कार न छोड़ जैसे कृ त न
स कार को भुला दे ता है। हे े ! प त ता यशोधरा और
पु रा ल भी आपके ारा नह छोड़ा जाना चा हए।
और य द आपने सबको यागने का न य भी कया है
तो मुझे न छोड़। म सुम क तरह राम (आप)को
छोड़कर घर नह जाना चाहता।

तब कु मार ने शोकसंत त छ दक क बात सुनकर इस


कार कहा, हे छ दक! मेरे वयोग स ब ी इस संताप
को छोड़ो। पृथक-पृथक जा त (यो न) वाले दे हधा रय म
वयोग होना एवं नानाभाव होना नयत है। मेरे वचार म
जैसे बादल मलकर फर वलग हो जाते ह, उसी कार
ा णय का भी वयोग होता है।

इसके बाद उसने क क को भी "हे क क! अ ुपात न


करो" ऐसा कहते ए सा वना दया और कृ पाण
नकालकर अपने मुकुट को काटा और आकाश म फक
दया। दे वता ने उस छ - भ मुकुट को आदर से
लेकर वग य साम ी से उसक पूजा क । तद तर प व
अ तःकरण वाला एक दे वता उसका अ भ ाय जानकर
शकारी के वेष म काषाय व धारण कर उसके पास
गया। राजकु मार ने कहा क हे सौ य, य द तु ह इस व
म ममता न हो तो यह मेरा व लेकर तुम हम यह व
दे दो। तब उस ाध ( शकारी) ने परम हष से अपना
व दे दया। कु मार ने काषाय व धारण कया और
ाध भी शु ल व लेकर द शरीर धारण कर वग
चला गया। इसके बाद कु मार और छ दक दोन
आ यच कत ए। काषाय व धारी कु मार ने छ दक
को लौटाकर आ म क ओर जाने वाले एक माग से चल
दया। छ दक वामी के इस वेष को दे खकर ब त
वलाप कया और घोड़े को लेकर के वल शरीर मा से
लौटा ले कन च से नह ।

स तम सग …
छ दक को वस जत कर, वन म व दता क इ ा
से, सवाथ स सह के समान शरीर क शोभा वाला,
आ म को आ ा त करके वह वहाँ प ँचा। आ म म
प ंचते ही सभी आ मवा सय का च उसक ओर
आकृ आ। सब लोग ने नर नमेष से उसको
दे खा। न ल बु तप वीय ने भी उसको उसी कार
दे खा, अपने मठो म वे उस समय नह गये।
मो ा भलाषी धीर उस कु मार ने वगा भलाषी पु यकम
जन से प रपूण उस आ म को तथा वहाँ क व वध
तप या को दे खते ए वचरण कया।

उस शा त कु मार ने उस तपोवन म तपोधन क तप या


के कार को दे खकर त व ान क इ ा से कहा- मेरा
यह थम आ म दशन है। म इस धम व ध को नह
जानता ँ अतः आपक जसके त यह वृ है, और
जो आपका न य है, मुझे बताव। तब तपो वहारी
जा त ने उससे तप या क वशेषताएँ एवं तप या
का फल बताया। उ ह ने कहा क- जल म जायमान
फल, क द, मूला द ही मु नय क आजी वका है। कु छ
लोग प ी क तरह चुन कर धा य का सेवन करते ह।
कु छ मृग क तरह तृण चरते ह, कु छ लोग अ न म दो
बार हवन करते ह। इस कार ब त काल म स चत
े तप से वग म जाते ह। इस कार इन वचन से
नर े को स तोष नह आ, वह म द वर से वगत ही
कहा क व वध कार क तप याएँ ःख प ह, और
तप या का मुख फल वग है, तथा सम त लोक
बदलते रहने वाले ह, अतः आ मवा सय का यह
प र म सचमुच म लघुफल के लए है। तप या क
परी ा करता आ उसने कु छ रा वहाँ नवास कया
और सं ेप म सभी तप को समझकर वहाँ से चल
दया। आ मवासी उसके पीछे -पीछे जाने लगे। उसम से
एक वृ ने अ य त आदर से कहा क, हे सौ य! आपके
आने से यह आ म भर गया, आप यहाँ से जाइए मत। ये
तपोधन आपको अपनी तप या का सहायक बनाना
चाहते ह। इस कार तप वीय के कहने पर उसने कहा
क आप सबका धम वग के लए है, क तु मेरी
अ भलाषा मो क है। इसी कारण से इस वन म रहने
क मेरी इ ा नह है य क वृ त से नवृ त धम भ
है।

तदन तर एक ज ने उसक ऐसी वचारधारा को


जानकर कहा क हे ! आपका न य सचमुच उदार
है जो क आपने युवाव ा म ही ज मगत दोष को
दे खा। अतः आपक बु न त ( ढ़) है, तो आप शी
व य को को जाँय। वहाँ पर अराड मु न नवास करते
ह। आप उनसे त वमाग सुनगे एवं च होने पर वीकार
भी करगे। ले कन मै समझता ँ क आपक बु उनक
बु का भी तर कार कर चली जाएगी। तब नृपा मज
"अ त उ म" ऐसा कहकर उन ऋ षय का अ भन दन
कर वहाँ से नकल गया, वे ऋ षगण भी तपोवन म वेश
कए।

अ म सग …

नर े के वन म चले जाने पर छ दक एवं क क अ


ने शोक रोकने का य न कया ले कन नह रोक पाये।
जस माग म वो एक रा म गये थे उसी माग से
वरहकातर यो आठ दन म लौटे । नगर म आते ही लोग
ने कु मार को न दे खकर आ य कया। कु छ लोग ने
ोधपूवक छ दक को खरी-खोट सुनाई। छ दक ने
लोग से कहा क इसम हमारा कोई दोष नही है, हम
लोग ने उनको नह छोड़ा, वे ही हम लोग को छोड़
दये। कु मार आये है, ऐसा जानकर नगर क याँ
अ ा रय पर चढ़ गय , क तु उनको न दे ख अ य त
ः खत । नगर म ःखपूण वातावरण हो गया।
पालन-पोषण करने वाली माता स श गौतमी क क को
खाली दे ख हत भ हो पृ वी पर गीर पड़ । अ य याँ
भी वैसे ही वलाप करने लग । यशोधरा जसके
अंग य काँप रहे थे, ोध से आँखे लाल हो गय थ ,
बोली- हे छ दक! एक साथ गये तुम तीन म से दो को
दे खकर मेरा मन काँप रहा है, हे नदय! ऐसा अशोभन
बैरी कम करके , और रो रहे हो, आँसू रोको, स चत हो
जाओ, ठ क ही कहा जाता है- मनु य का प डत श ु
अ ा होता है क तु मूख म अ ा नह होता। अपने
के म कहने वाले तुझ मूख ने इस कु ल का नाश कर
दया।

न य ही यह क क तुर भी अनथकारी है। जस


कार रात म सोने पर चोर, चोरी कर लेता है, वैसे ही
इसने भी मेरा सव व हर लया। इस कार क वलाप
एवं ःख भरी वाणी सुनकर छ दक ने कहा, "हे दे व!
इसम हम लोग को दोष नही दे ना चा हए, हम दोन
नद ष ह। इसम दै वी ेरणा ही तीत होती है। जस
समय राजकु मार बाहर नकलने लगे तब ार वयं ही
खुल गए, रा का अ कार न हो गया सभी दरवान
सो गये, कोई भी जागा नह । मैने चाह कर भी वपरीत
आचरण नह कर पाया। अतः हे नरदे व! इसके जाने के
त हम दोन का दोष नह ह, न मेरी इ ा से यह काय
आ, न इस क क क । वह तो दे वता क ेरणा से
हो गया।

इस कार इधर नगर म माता, प नी, सभी नगरवासी नर-


नारी वलाप कर रहे थे, तब तक राजा पु के मंगलपूवक
ा त के लए हवन पूजा द कम करके म दर से बाहर
आये। राजा भी क क और छ दक को दे ख मू छत हो
पृ वी पर गर पड़े। तब म ी और बृ पुरो हत ने राजा
को समझाया और राजा से आदे श ले उस नर े से
मलने के लए तथा समझाकर वापस लाने के लए उस
वन क ओर चल दया।

नवम सग …

म ी और पुरो हत दोन उस वन म भागव के आ म


प ंचकर भागव मु न से कये क हमलोग उसको
खोज रहे ह जो जरामृ यु के भय से आपके पास आया
था। वह राजपु कहाँ गया? तब भागव ने बताया क
इस धम को पुनज म द जानकर वह द घबा कु मार
अराड क ओर त व ान क ज ासा से चला गया। ऐसा
जानकर वे दोन म ी और पुरो हत उसी आ म क
ओर कु छ र चलने पर उस कु मार को दे ख वे दोन
उसके पास गये और आदरपूवक उसके पास बैठे। बैठने
के बाद पुरो हत ने उस राजकु मार से कहा, हे कु मार!
राजा ने तु हारे शोक के दय म चुभने पर ण भर के
लए पृ वी पर बेहोश होते ए आँसू प छकर जो कहा
वह सुनो- "धम के त तु हारा व ास है, यह जानता ँ।
यह तु हारा अव य ावी होनहार था, यह भी जानता ँ।
क तु असमय म तुमने वन का आ य लया है, अतः
अ न तु य शोका न से जल रहा ँ। हे धम य! मेरा
य करने के लए इस बु को यागो। चौथेपन म वन
को जाना। इस स ब म चौथेपन म बन जाने वाले
अनेक राजा का नाम गनाया गया है तथा गृह होने
पर भी मो ा त करने वाले जनका द का नाम गनाया
गया है।" इस कार पुरो हत ने माता गौतमी, यशोधरा,
पु रो हत सबके शोक ज य ःख का वणन राजा के
श द म कया क तु राजकु मार ने उनके वचन का उ र
दया और वन से घर लौटने को तैयार नह आ। उ ह ने
कहा, "धम के लए समय नह होता" और कहा क
वषय भोग के लए अकाल होता है, उसी कार
धनोपाजन म काल का वधान है। काल सदै व जगत को
ख चता है। मो के स ब म कोई न त काल नह
है।

पुरो हत के बाद म ी ने भी ब त दशनयु वा य के


ारा और मो तथा वग का वणन, पुनज म का वणन,
करते ए उसको समझाने का य न कया। ले कन वह
नर े लौटने को तैयार नह आ और कहा क म
व लत अ न म वेश कर लूँगा क तु असफल होकर
घर म वेश नह क ँ गा। और ऐसी त ाकर उठकर
वहाँ से एक ओर चल दया। तब म ी और पुरो हत
दोन उसके ढ़ वचार सुनकर ःखी ए एवं लानमुख
रोते ए कु छ र उसके पीछे -पीछे गये। फर हताश
होकर शनैःशनैः नगर क ही ओर चलने लगे।

दशम सग …
वह राजकु मार म ी और पुरो हत को छोड़कर
चलायमान तरंग वाली गंगा को पार कर ल मी-स
भवन से यु राजगृह को गया। उसे दे खकर, जो सरी
ओर जा रहा था क गया; जो का आ था, पीछे -पीछे
गया; जो तेजी से जा रहा था, वह धीरे-धीरे चला; एवं जो
बैठा था, वह उठकर खड़ा हो गया। कसी ने हाथ से
उसक पूजा क , कसी ने स कार करके सर से णाम
कया, कसी ने य वचन से अ भन दन कया, उसक
पूजा कये बना कोई नह रहा। तब मगध राज के राजा
े ( ब बसार) ने महल से दे खा क बाहर वशाल
जनसमुदाय है, उसका कारण पूछा। तब एक राजपु ष
ने उसको बताया क यही व के ारा क थत मो
धमा भलाषी शा यराज का पु प र ाजक हो गया है।
लोग उसे दे ख रहे है। तब राजा ने कहा, पता लगाओ
कहाँ जा रहा है। वह पु ष "अ ा" कह कर उसके
पीछे -पीछे गया। वह भ ु े भ ा माँग रहा था। भ ा
म जो कु छ मल गया उसे लेकर पवत के पास एका त म
खाया और खाकर पा डव पवत पर चढ़ गया। उस
राजपु ष ने वहाँ से आकर राजा को बताया। राजा यह
सुनकर अनुचर के साथ वहाँ ान कया।
यायवे ा म व र उस कु मार के पास जाकर राजा ने
उससे आरो य पूछा। उसने भी राजा को आरो य बताया।
इसके बाद राजा ने उससे कहा क आपके कु ल से
पर रागत एवं परी त मेरी बड़ी ी त है। आपका कु ल
महान है। सूय से ार आ है। आपक अव ा नयी
है। यह शरीर भी दे द यमान है। कस कारण आपक
ग त भ ा म रमी, रा य म न रमी, आपका शरीर र
च दन लेप के समान है, काषाय के यो य नह , यह हाथ
जापालन के यो य है, भ ा के योगय नह । अतः हे
सौ य! य द पता से नेहवश पैतृक रा य परा म से नह
लेना चाहते तो मेरा ही आधा रा य भो गये। म यह बात
नेह से कह रहा ,ँ ऐ य के राग से नह । जबतक
वृ ाव ा नह आ जाती, तब तक वषयोपभोग क रये,
फर समय से धम क जए। बूढ़ा आदमी धम ा त कर
सकता है। कामोपभोग म बुढ़ापे क ग त नही होती।
अतः युवा के लए काम, म य के लए धन, एवं वृ के
लए धम कहते है।

य द आपको धम ही करना है, तो य क जए। य


करना आपका कु लधम है। राजा ष लोग य के ारा
उसी ग त को ा त ए, जस ग त को क ठन तप या के
ारा मह षगण।

एकादश सग …

इस कार जब मगधराज ब बसार ने ऐसी बात कही


तब ु शा य े ने इस कार कहा- " वशाल
च वंश म उ प आपके लए ऐसा कहना आ यजनक
नह , य क हे म कामी! वशु वहार वाले आपक
म के प म ऐसी भावना है। संसार म जो मनु य धन
ीण होने पर म के समान सहायक होते ह, उ ह को
म अपनी बु के अनुसार म समझता ँ। स
क बढ़ती म कौन म नह होता? हे राजन!
म ता एवं स नता के कारण मेरे त आपका जो यह
न य आ है, इस वषय म म ता से ही म अनुनय
क ँ गा। म जरा एवं मृ यु का भय जानकर मो क
इ ा से इस धम क शरण म आया ँ। पहले अशुभ के
हेतु भूत काम को, फर बाद म रोते ए ब ु को
छोड़कर आया ँ। म वषधर से उतना नह डरता, और
न आकाश से गरे ए व से, और न वायु म त
अ न से, जतना क वषय से डरता ँ। काम अ न य
ह, ान प धन के चोर है, माया स श ह, एवं संसार म
उसक आशा करने पर भी मनु य के मन को मोह म
डाल दे ते ह। फर य द अ दर र हो तो या कहना।
कामा न याः कु शलाथ चौरा र ा माया स शा
लोके ।
आशा यमाना अ प मोहय त च ं नृणां क
पुनरा मसं ाः ॥ (बु च रतम् ११/९)
इस संसार म ाणी को काम से तृ त नह होती। इस
स ब म मा ाता, न ष इ या द राजा का उदाहरण
दया और कहा क इनको भी तृ त नह यी। काम
मनु य को नाश को ा त कराता है। इस स ब म कहा
क कौरव, वृ ण, अ क, सु द-उपसु द जस काम के
चलते न हो गये, उस काम म कस आ मवान को सुख
होगा। गीत से हरण बध के लए फु सलाये जाते ह, प
के न म पतंगे अ न म गरते है। मांस के लए मछली
लोहे का कांटा लील जाती है। अतः वषय का फल
वप है। अतः क याण एवं मंगलमय काय म यु
आ मै बहकाया नह जा सकता ँ। म व का मरण
करके आप मुझसे बार बार यह कह क आप अपनी
त ा पालन कर। जस पद म न जरा, न भय, न रोग, न
ज म, न मृ यु और न ा ध है- उसको ही म परम
पु षाथ मानता ँ। जसम बार-बार कम नह करना
पड़ता। आपने जो कहा क "वृ ाव ा क ती ा
करो", नई अव ा म वकार होता है- यह भी न त
नह , य क ब धा दे खा गया है वृ ाव ा म अधीरता
एवं युवाव ा म धैय रहता है। जब वनाश का समय
अ न त है तब ऐसा जानकर क याण चाहने वाला
वृ ाव ा क ती ा य करे? आपने जो कहा
"कु लो चत य करो"। उन य के लए नम कार है। म
ऐसा सुख नह चाहता जो सर को ःख दे कर कए
जाते है। मनु य को सर को ःख दे कर सुख ा त क
कामना नह करनी चा हए।
हे राजन! यहाँ से म शी ही मो वाद अराड मु न के
दशन क इ ा से जा रहा ँ। आपका क याण हो। मेरे
इस स य न ु र वचन को मा कर। तब राजा बड़े
अनुराग से हाथ जोड़कर कहा, आप अपना अ भ
न व न ा त कर और मेरे ऊपर भी अनुक ा कर। तब
"वैसा ही हो" इस कार कह कर वहां से वह वै तर
आ म को गया और राजा भी ग र ज को ान
कया।

ादश सग …

वह इ वाकु वंश का च मा अराड मु न के आ म म


गया। मु न ने उसको आदरपूवक बैठाया तथा कहा क
श य को अ तरह जान लेने के बाद शा का वणन
कया जाता है ले कन म तु हारे उ ोग से स ँ और
तु हारी परी ा नह क ँ गा। तब कु मार के ेमपूवक
आ ह करने पर मु न ने कृ त, वकृ त, अहंकार, बु ,
प च महाभूत, े , े , मोह, माया, स दे ह,
अ भस लव, ान, अ ान, वषाद इ या द का शा
री त से उपदे श कया। मु न ने बताया क " ा, ोता,
ाता, काय एवं कारण मै ही ँ" - ऐसा मानता आ
संसार म भटकता है। ये ही पुनज म के हेतु ह।
हेतु के अभाव म फल का अभाव होता है। बु मान को
चार बात अ तरह जाननी चा हए- तबु , अ यु ,
एवं अ । े इनको अ तरह जानता है।
अतः वह अ र पद पाता है। इसी लए वाद
ब मचय का आचरण करते ह। इस कार अराड ने
और मो क भी ा या क और कहा क मने आपको
मो और उपाय भी बताया, य द आपक च हो तो
हण कर। क तु यह अराड का धम जानकर
स तु नह आ। "यह धम अपूण है" - ऐसा जानकर
वहाँ से चला गया। वह वशेष जानने क इ ा से उ क
के आ म म गया क तु आ मा को वीकार करने के
कारण उसका भी दाश नक वचार उसने हण नह
कया। इसके बाद क याण क इ ा से न य करके
वह राज ऋ ष गय के पास नगरी नामक आ म गया
तथा आन द पाने वाला मु न ने नैर ना नद के तट पर
नवास कया। वहाँ उसने पाँच भु ु को दे खा।
तदन तर वह नराहार रह कर छः वष तक कर तप
करते ए अपने को कृ श कया। संसार से डरने वाला वह
मु न "क ठन तप या से स य ही शरीर को थ क
होता है" - ऐसा सोचते ए वचार कया, यह धम न
वैरा य दे सकता है, न बोध, न मु । इस कार च तन
कर वह कु छ खाने क इ ा कया और नैर ना नद
के तट से धीरे-धीरे ऊपर चढ़ा।

उसी समय दे वता से े रत गोपराज क क या


न दबाला वहाँ आयी और स ता पूवक उनको पायस
दलवाया। पाँच भ ु ने उसे ' त भ ' समझकर छोड़
दया। तब बोध पाने के लए न य करके वह एक
अ मूल म न य के साथ गया। उसी समय गजराज
के समान परा मी 'काल' नामक महासप ने "बो ध
ा त के लए आया है" ऐसा जानकर उसक तु त क ।
तब भुज े के ारा तु त कये जाने पर "जब तक
कृ ताथ नह हो जाऊँगा तब तक पृ वी पर इस आसन
को नह तो गँ ा" ऐसा न य करके उ म अचल एवं
सोये ए सप के फण के समान प डाकार पयङ् क
आसन उस महावृ के मूल म बाँधा।

योदश सग …

राज ष वंश म उ प होने वाले उस मह ष के मो के


लए वहाँ त ा पूवक बैठ जाने पर संसार तो स
आ क तु स म का श ु मार भयभीत आ। कामदे व
के व म, हष एवं दप तीन पु तथा अर त, ी त एवं
तृषा तीन क याय ह। अपने पु और क या के ारा
ख मन का कारण पूछ जाने पर वह कहा क यह मु न
न य का कवच एवं स य प धनुष धारण कर
बु प बाण तान कर हमारे वषय को जीतना चाहता
है। अतः मुझे यही ःख है।

इस कार अपने ख का कारण बताकर वह कामदे व,


पु प, धनुष एवं संसार को मो हत करने वाले पाँच वाण
का हार कया क तु उस मु न ने उसक उपे ाकर द ।
तब कामदे व अपने पु एवं पु य को आगे कर हार
कया, इसक परवाह मु न के ारा न क गयी।
आ यच कत मार अपनी सेना का मरण कर उसक
शा त को भंग करने का ब त ही यास कया जससे
संसार म स म य के बीच ःखमय वातावरण हो गया।
क तु इस कार कामदे व के ारा ता कये जाने पर
आकाश से एक जीव वशेष ने आकाशवाणी के मा यम
से कहा, "हे कामदे व! थ पर म मत करो। ह यारापन
छोड़ो, शा त हो जाओ। तुम इसे उसी कार नह डगा
सकते हो जस कार सुमे को हवा।" तब उसका वचन
सुनकर वह मार महामु न क अचलता दे ख न फल
यास वाला होकर वहाँ से चला गया। उसक सेना भी
वहाँ से लौट गयी। इस कार मार के सेना स हत चले
जाने एवं मु न क वजय होने पर आकाश से सुग त
जल यु पु प वृ यी।

चतुदश सग …

इसके बाद उस यान नपुण ने मार क सेना को धैय एवं


शा त से जीतकर परमत व जानने क इ ा से यान
लगाया तथा सब कार क यान व धय म पूण भुता
ा त करके थम हर म अपने पूव ज म क पर रा
का मरण कया। अमुक ान म म अमुक था। वहाँ से
गरकर यहाँ आया- इस कार हजार ज म को मानो
य अनुभव करते ए मरण कया। तीय हर
आने पर उस मु न ने द च ु पाया। तब उसने उस
द च ु से अ खल व को दे खा। उसने दे खा क
नभचर ारा नभचारी एवं जलचर ारा जलचारी तथा
लचर ारा लचारी पर र सताये जाते ह।

इस कार वचार कर वह महामु न संसार के ःख के


कारण एवं उसके वरोध का स यक ान ा त कया।
तदन तर उस मु न ने पूव त ा के अनुसार संसार म
शा त के उपदे श क इ ा क । तब उस मु न के पास दो
वगवासी दे वता आये और महामु न को संसार म उपदे श
करने के लए े रत कर चले गये। तब मु न ने जगत क
मु के लए अपना मन लगाया। दशा के दे वता
ने आकर उस मु न को भ ा पा दये। मु न ने स ता
पूवक उन सबको एक कर लया। उस समय जाते ए
का फले के दो सेठ ने उनक पूजा कर थम भ ा
कराया। मु न ने धम हण करने म समथ अराड एवं
उ क को दव त जानकर पाँच भ ु का मरण
कया और भीमरथ क य मनोहर ध य नगरी को जाने
लगे। तब मु न ने काशी जाने क इ ा क और बो ध
वृ के ऊपर अपना शरीर घुमाकर सु ढ एवं शुभ
डाली।

प चदश सग …

जब महा मा बु काशी जाने लगे तब माग म कसी


अ तःशु भ ु ने हाथ जोड़कर कहा, "हे सौ य! आप
दे द यामान तेज से त ववे ा क तरह शोभा पा रहे ह,
आप न य ही इ य पर वा म व ा त कर चुके ह।
आपका या नाम है? कस गु से यह उ म स पाये
है? तब भगवान ने बताया, "न मेरा कोई गु है, न
स माननीय है, और न न दनीय है। मैने नवाण ा त
कया है। मुझे धम का वामी जानो। धमभेरी बजाने के
लए म काशी जा रहा ँ। न सुख के लए, न यश के लए
अ पतु आत क र ा के लए। त प ात् वह भ ु मन
ही मन शंसा करता आ अपने ग त को चल दया
और महा मा बु वहाँ से काशी जाकर महानाम,
अ जत, वा प, कौ ड य एवं भ जत नामक ये पाँच
भ ु जहाँ थे, वहाँ गये। ये लोग उनको दे खकर कहने
लगे बु आ रहा है, तप है, हम लोग इसका स कार
नह करगे। ले कन भगवान के आने पर वे लोग श य
भाव को ा त हो गये ले कन नाम लेकर बोलना नही
छोड़े। तब सुगत ने उ ह श ाचार एवं धम का उपदे श
दया, और पूछा क या तुम लोग को ान ा त आ।
तब मु नय ने कहा, "हाँ हम सबको अव य ान ा त
आ।" उन लोग ने उनक भू र-भू र शंसा क ।
षोडश सग …

इसके बाद उस सुगत ने मु नय को द त कया।


तदन तर यशनाम कु लपु , जसके मन म सोई य
को दे खकर ोभ उ प आ था, महा मा बु ने उसको
उपदे श दे कर उसके साथ 54 य को द त कया
और वचरण करने का आदे श दया तथा "म गया को
जाता "ँ ऐसा कहकर वयं भी चल दया। वहाँ से
जाकर सुगत ने मु न े का यप को दे खा। सुगत के
नवास यो य भू म क याचना करने पर का यप ने
ई यावश मार डालने क इ ा से वह अ नशाला द
जसम करला सप रहता था। उस महासप ने शा त बैठे
उसको दे खकर वष क वालाय उगली, फर भी न
जलने पर वह महासप आ यच कत हो णाम कया।
आ म के लोग म कोलाहल आ- "गौतम मर गया",
ले कन ातःकाल होने पर सुगत ने का य को भ ा पा
म वह सप लाकर दखाया। का यप आ यच कत हो
गया। महा मा बु ने का यप क बुराइय को उपदे श-
जल से धोकर उसे प व कया। का यप का मत
प रव तत होते दे खकर औ ब व भी अपने 900
श य के साथ सौगत धम वीकार कया। गय और नद
का यप के दो छोटे भाई भी इस धम को वीकार कये।
गय-शीष नामक पहाड़ पर सुगत ने तीन का य ब ु
स हत अपने श य को नवाण का उपदे श कया। इसके
बाद सुगत अपने पूव वचन के अनुसार तीन का यप के
साथ मगध रा य को कृ ताथ करने के लए राजगृह
पधारे। सुगत को आते दे ख मगधराज ने आगे बढ़
नगरवा सय के साथ वागत कया। का यप को श ता
ा त दे ख नगरवा सय म आ य आ। सुगत के
आदे शानुार का यप ने नगरवा सय के सामने "म
श यता ा त कर लया ँ, यही धम े है" ऐसा कह
आकाश म उड़ गया। वह कह बजली क तरह चमका,
कह बादल क तरह बरषा, कभी एक ही साथ दोन
काम कया। इस कार यह न य होने के बाद क यह
गौतम ही सव े धम है, महा मा बु ने धम का
उपदे श कया। इस कार मगध राज तथा सभी नगर
वासी उस उपदे शामृत का पानकर कृ ताथ हो परमपद को
ा त कये।

स तदश सग …

राजा व बसार ने वेणु वन म नवास के लए बु ने


नवेदन कया। महा मा बु उस वन म शा त च हो
रहने लगे। एक दन अ जत नामक जते य भ ु
भ ा के लए नगर म गया। रा ते म जाते ए उस भ ु
को दे खकर शार ती पु का पलेय स यासी ने ब त से
श य के साथ उससे कहा- हे सौ य! तु हारे इस नवीन
वेष को दे खकर मेरा मन आ य म है। आपका गु
कौनहै? उसक श ा या है? तब अ जत ने कहा मेरे
गु महा मा बु ह। उनक श ा म भली कार नह
बता सकता य क म अभी नया ँ ले कन सं ेप म
सुनो। इस कार कह उस अ जत ने सभी धम को
कारण से उ प होने वाला तथा नरोध और नरोध माग
क ा या क । पहली बार ऐसा सुन वह ा ण े
बड़ा भा वत आ। अ जत ने अपने धम का उपदे श
कया। वह ा ण उसके साथ सुगत के पास आया।
अ जत ने इनका प रचय बता योजन कहा। तदन तर
सुगत ने भी धम का उपदे श कया। अ जत और
मौ यायन ये दोनेा मु न को णाम कर मशः नै तक
पद को ा त कये। एक और का यपवंशीय धनी ा ण
अपनी प नी और स का यागकर शरणागत हण
क।
अ ादश सग …

कोशल दे श का सुद नाम का व यात राजा मु न के


नवास को जनकर उनके पास आया। और द ड क
भां त गरकर णाम कया। मु न ने कहा हे राजन! तुम
नै क पद पाने के अ धकारी हो। जगत म बार बार
ज म, जरा एवं मृ यु के ःख को दे खते ए मु के लए
य नशील हो जाओ। इस कार सुगत ने राजा को
उपदे श दया। राजा उपदे श से परमपद का लाभ ा त
कर मु न से वन भाव से बोला, "हे मानद! म अपनी
ाव ती म आपके नवास के लए वहार (मठ) बनवाना
चाहता ँ। अतः आप मुझ द न पर कृ पाकर वहाँ नवास
कर हम कृ ताथ कर। इस कार राजा के कहने पर मु न
ने कहा, "जो अ दान दे ता है वह बल दे ता है, जो व
दे ता है वह सौ दय दे ता है, क तु जो मु नय को नवास
दे ता है वह 'सब कार का दान कर दया' ऐसा कहलाता
है। इस कार वह वीकृ त दान क । वीकृ त पाकर
स राजा उप त य के साथ वहाँ से चला गया। राजा ने
जेतवन म जाकर जेत से खरीदने क इ ा से ाथना
क । दे ने क न इ ा वाला जेत बहार क बात सुन
तैयार हो गया। राजा ने वपुल धन दे कर उस वन को
खरीदकर शी ही उप त य के नदशन म बहार नमाण
ार करा दया। वह वहार उस राजा के श क ,
उसके वैभव क , एवं उसके ान क , क त के समान
आ।

उ ीसवाँ सग …

ान के ारा अनेक शा को जीतकर महा मा बु


राजगृह से अपने पता के नगर म गये। पु के आने का
समाचार सुनकर राजा नगरवा सय के साथ आया।
काषाय व म दे ख राजा को बड़ा ःख आ। जब बु
ने दे खा क मेरे पता मुझे पु ही मानते ह, तब यो तुर त
योग बल से आकाश म उड़ गये। वहां वो कह बजली
क तरह चमके , कह मेघ क तरह बरषे। सब लोग
आ यच कत हो गये। आकाश म त हो उ ह ने
उपदे श दया। राजा से कहा क हे राजन! पु शोक
यागकर धमान द ा त कर। उस समय ब त से लोग ने
घर यागने का न य कया। अनेक राजकु मार कृ मल,
न द, उपन द, अ न , आन द, दे वद , उपा ल तथा
राजा शु ोदन भी भाइय पर रा यभार छोड़ सौगत मत
को हण कया। उन द त तथा पुरवा सय के साथ
बु नगर म गये। नगर क याँ वलाप करते ए उ ह
दे ख रही थ ले कन बु अनास भाव से भ ा लेकर
य ोध वन को चले गये।

बीसवाँ सग …
महा मा बु क पलव तु म कु छ समय नवास करके
सेन जत के र य नगर म गये, वहाँ से जेतवन को गये।
वहाँ राजा सुद ने कलश म जल लेकर, तथागत क
पूजा कर, जेतवन उ ह दे दया। उस समय दशन क
इ ा से राजा सेन जत वहाँ आया ओर णाम कर
कहा, हे दया सधो! मुझ अधम को नर तर आपका दशन
होता रहे। हे साधो! म राग और राजधम से अ य त
पी ड़त ँ। इस कार सेन जत क बात सुन, बु ने
उसको उपदे श दया तथा कहा, "स म म मन लगाओ,
साधु का स संग करो।" इस कार मु न का उपदे श
हण कर रा य को न र समझकर वह राजा ाव ती
को लोटे गया।

प डत एवं राजा के अनुरोध पर सौगत चम कार


दखाते ए आकाश म सूय क तरह उ दत ए। इस
कार आ यजनक श य का दशन कर महा मा
बु अपनी माता को धम क द ा दे ने के लए वग
चले गये। वहाँ द ा दे कर उ ह ने चातुमास कया एवं
दे व से भ ा हण कर फर पृ वी क ओर ान
कया।

इ क सवाँ सग …

वग म अपनी माता तथा दे व को द ा दे ने के बाद


तथागत ने अ य द ा पाने यो य लोग को द त करने
के लए पृ वी पर मण कया। मण म अनेक
राजा , य और ा ण को अपने धम म द त
कया जससे उनक त ा ब त बढ़ गयी। बु क इस
बृ को दे ख ई यावश दे वद संघ म फू ट डाल दया।
उनको मार डालने क इ ा से एक हाथी, जो मतवाला
था, को ललकारा। लोग म हाहाकार मच गया, ले कन
वह मतवाला होथी सुगत के पास जाकर शा त हो गया।
सुगत ने उसके म तक पर हाथ फे रा। सुगत ने गंधार
नगर म रहनेवाले एक वषधर को भी वषहीन और
जते य बना दया। इस कार मु न ने अजातश ु
आ द अनेक राजा नर-ना रय को द त एवं अ त
चम कार कर संसार म एक नयी धमधारा वा हत क ।
दे वद न दत काय कर वगहणा को ा त आ।

बाइसवाँ सग …

महा मा बु कु छ समय बाद राजगृह से पाट लपु को


आये। मगधराज के मं ी वषकार के ारा ल वय के
लए न मत एक कले म दे वता ारा वग से धन
लाये जाते तुए दे खकर बु ने उसे " व म यह मुख
नगर होगा", ऐसा कहा। वषकार ने व धवत उनक पूजा
क । वहाँ से ये ग ा के कनारे आये। जस ार से
नकले उस ार का नम गौतम ार आ। वो मु न अपने
योग बल से ग ा के उस पार आकाश माग से चले गये।
उस ान का नाम गौतम तीथ आ। वह से कु ट ाम
म जाकर शम धम का उपदे श कर नद ाम को गये, वह
से वैशाली नगरी म जाकर आ पाली के उपवन म कु छ
दन ठहरे। मु न आगमन का समाचार सुनकर आ पाली
दशन हेतु यहाँ आयी। आ पाली को आते दे ख अपने
श य को उपदे श दया क बल के मन को पी ड़त
करने वाली आ पाली आ रही है। अतः तुम लोग बोध
पी औष ध से वयं को संयत करके ान म र हो
जाओ। इस कार उपदे श करते ही आ पाली आ गयी।
मु न को णाम कर वह हाथ जोड़ बैठ गयी। मु न ने
कहा, "युवा य म धम क ज ाषा ब त क ठनाई से
होती है, वैठो"। फर धम का उपदे श कया।

तेइसवाँ सग …
तदन तर आ पाली के घर चले जाने पर मु न आगमन
का समाचार सुनकर ल वय ने वहाँ दशन हेतु
पधारा। जाकर ल वय ने णाम कर भू म पर
आसन हण कया। उनका राजा सहासन पर। तब
महा मा बु ने स हो ज म, जरा, मृ यु आ द
महा ा ध से मु पाने के लए त व ान प द
औष ध दान कया। ल वय ने णाम कर घर ले
जाने क उ सुकता से नवेदन कया। ले कन "आ पाली
को बचन दे चुका "ँ ऐसा कह मु न ने आ पाली का
आ त य वीकार कया। वहाँ से चातुमास त के बाद
सव मु न पुनः वैशाली लौट आये और मकट नामक
सरोवर के तट पर बैठ गये। वहाँ वृ मूल म बैठे मु न को
दे खकर मार उनके पास आकर बोला, "हे मु न! नैर ना
के तट पर मैने कहा था अब आपका काय समा त हो
चुका है। नवाण म मन लगाइये। तब आपने कहा था,
जब तक पा पय का उ ार न कर लू,ँ तब तक नह ।
अब तो नवाण ल। तब मु न ने कहा, "आज से तीसरे
महीने म नवाण लूंगा। सोचो मत। मार वहाँ से चला
गया। इसके बाद मु न ने दे ह से वायु को ख चकर च म
लाकर च को ाण म समाधान करके ाण को योग से
जोड़ दया। उस समय पहाड़ स हत पृ वी हल गयी।
तब मु न ने ऐसा सं ोभ दे ख कहा, "अब म भयव न
दे ने वाली आयु से नकल चुका ँ।"

चौबीसवाँ सग …

आन द उस भूक को दे खकर काँप गया और सव से


कारण पूछा। तब महामु न ने कहा मेरा भूलोक का
नवास समा त हो चुका है। भूक का यही कारण है।
अब मेरी आयु मा तीन महीने शेष है। ऐसा सुनकर
आन द को ममाघात जैसा शोक आ। तब बु ने कहा,
"म शरीर रखूँ या यागू,ँ दोन मेरे लए समान है। बु ,
धम मू त होता है, म य दे ह से तु ह या लाभ?" ऐसा
कहते ए ब वध उपदे श दया। ऐसा उपदे श दे ने के
बाद शी ही यह वृता त सुनकर ल व वहाँ पधारे।
तब मु न ने ल वय को समझाया, "समय पर सूय भी
आकाश से गर जाता है, दे वलोक से दे वता भी गरते ह,
सैकड़ इ समा त हो गये। यहाँ सदा कोई रहने वाला
नही है।" ऐसा समझाते ए तथा धमरत रहने का उपदे श
दे कर मु न ने ल वय को घर जाने के लए कहा। तब
वो ल व पराधीन होकर स त त शरीर मृतक के
समान घर लौटे ।

प ीसवाँ सग …

महा मा बु को नवाण क इ ा से वैशाली छोड़कर


चल दे ने पर ल वय के राजा सह ने ब त वलाप
कये। महा मा बु ने पीछे मुड़कर कहा, "हे भाई, हे
वैशाली! इस ज म म म पुनः नह दे खूँगा। ऐसा कह पीछे
आते ए सबको लौटने को कहा और यहाँ से वो महा मा
भोगवती नगरी को गये। वहाँ कु छ ण क कर अनुचर
को कु छ उपदे श दया। तदन तर महा मा बु पावापुरी
को गये। वहाँ म ल ने उनका वागत कया। यहाँ
दया न ध ने चु द के घर अ तम भोजन कया। वहाँ से
चु द को उपदे श दे कर वे कु शीनगर को गये। वह
हर यवती नद म नानकर बु ने आन द से "शयन
ान रचो" ऐसा आदे श दया। तब उस ान म नवाण
मु ा म बैठकर नर े ने कहा, "आन द! अब मेरे अ तम
समय म दशन के लए मेरे भ म ल को भी सूचना
कर दो जससे वो बाद म प ाताप न कर।" इस कार
म ल को बुलाकर महा मा बु ने अपना अ तम
उपदे श दया तथा आल य छोड़कर वनय यु धम का
आचरण करने को कहा। इस कार म ल समूह मु न क
वाणी से बोध ा त कर वषाद मन घर को आये।
छ बीसवाँ सग …

इसके बाद 'सुभ ' नाम का एक द डी मु न को दे खने


के लए आया और कहा- " नवाण के अ तम ण म
मु न को म दे खने के लए आया ँ। क तु 'यह धम पूछने
के बहाने बाद- ववाद न कर दे ', इस आशंका से आन द
ने दशन से रोक दया। तब लोग के आशय को जानने
वाले मु न ने कहा, "हे आन द! उसको मत रोको"। मु न
के कहने पर वह दशन हेतु समीप गया और कहा, हे
कृ पापुंज! सभी दाश नक से भ आप अपना माग
हमको बताय। तब बु ने उसको आरो य माग को
ा याकर के बताया। तब उस व ने बु मत को
जानकर पूव मत का प र याग कर उस उ म म को
वीकार कया और गु के नवाण के पहले ही ाण
याग दया। सं कार के ाता मु न ने श य को उसका
अ तम सं कार करने को आदे श दया। इसके बाद
महा मा बु ने अपने जाने के बाद अपने उपदे श को ही
े मानकर तदनुसार आचरण करने को कह अपना वह
शरीर यान व ध के सहारे छोड़ दया और सदा के लए
शा त हो गये।

स ाइसवाँ सग …

जब महा मा बु सदा के लए शा त हो गये तब म ल


ने उनके पा थव शरीर को वणमयी श वका म रखा,
और उस श वका को क े पर रख नगर ार से नकल
कर हर यवती नद के पार मुकुट चै य के नीचे सु दर
चता रचा। उस समय आकाश से दे वता ने सु दर
न दन वन के पु प क वषा क , ग व ने नृ य गीता द
कया। कु छ लोग ने मु न के तो का पाठ कया। इस
कार चता पर शरीर रखकर तीन बार आग लगाने पर
भी चता नह जली य क उनका श य क यप दशन
के लए आ रहा था। जब वह आया तब उसके दशन के
बाद चता वयं जल उठ । अ न ने मु न के चम, मांस
आ द जला दये ले कन ह य को नह जला पाये।
म ल ने उन ह य को धोकर वण कलश म रखकर
अपने सु दर नगर म ा पत कया।

अ ाइसवाँ सग …

कु छ समय बाद पड़ोसी राजा के त म ल से उस


मु न क धातु को लेने के लए आये। क तु म ल ारा
दे ना अ वीकार कर दे ने पर वे त राजा से जाकर
कहे। तब सात राजा का समूह म ल पर चढ़ाई कर
दया। उसी समय ' ोण' नाम का एक ा ण आया और
उनको समझाया। तब राजा ने कहा, "हम तो शा त
चाहते ही ह ले कन ये म ल नह चाहते।" तब उस
ा ण ने राजा से कहने के बाद म ल के पास
जाकर उनको भी समझाया। म ल तैयार हो ये। म ल ने
उस धातु का आठ भाग कया। सात भाग सात राजा
को दया तथा एक भाग अपने ले लया। राजा ने उस
धातु से सात तूप बनवाया। इस ोण ा ण ने अपने
दे श म तूप बनवाने के लए के वल घट ले लया तथा
पसल मु न ने भ के कारण के वल भ म लया। इस
तरह पृ वी पर धातुग भत आठ, घटग भत नवाँ एवं
भ मग भत दसवाँ - ये दस तूप बने।

कु छ समय बाद पाँच भ ु ने एक गो ी कर आन द


को न त कर तथागत के उपदे श को फर हराने के
लए कहा, जससे वे उपदे श के प म त त
कए गए। इसके बाद काला तर म धम य अशोक का
ज म आ। कु शल अशोक ने उन सात तूप से मु न क
धातु लेकर एक दन के अ दर अ सी हजार तूप म
मशः ा पत कया। रामपुर म आठवाँ तूप था, जहाँ
व ासी सप ारा उसक र ा होती थी, उससे कोई भी
धातु न ले सका। रा य के व वध सुखोपभोग होने पर
भी घर म रहते ए वशु च अशोक ने उ म धम
लाभ कया। इस कार जस कसी ने मु न का पूजन
कया, करता है, करेगा, वह अव य उ म फल पाया,
पाता है और पायेगा। जी वत मु न को नम कार कर जो
फल लोग पाते थे, वही फल धातु-पूजा से पावगे- इसम
संशय नह है।

बु च रत म ा त ऐ तहा सक साम ी
बु च रत एक अ य त ही मह वपूण है। इसम
जगह-जगह अनेक ऐ तहा सक त य उपल होते ह।
इस का आधार ही एक इ तहास स का
जीवनच रत है। ीम ागवत भी क लयुग के स वृ
होने पर, बु को व णु के भावी अवतार के नाम से
'बौधावतार' घो षत कर भ व यवाणी करता है-

ततः कलौ स वृ े स मोहाय सुर षाम्।


बु ना ना जनसुतः क कटे षु भ व य त॥
तथा बौध धम क भ ता होने पर भी आज भी अनेक
तय म सनातन धम के कमका ड म संक प लेते
समय "बौधावतरे" (बौ ावतार म) बोला जाता है।
अथात बु को भी व णु के अवतार से पृथक् नह
कया जा सकता। गीतगो व द तो म भी- "के शव धृत
बु शरीरं जय जगद श हरे" ऐसा गान कया गया है
जससे ये व णु के अवतार स होते ह।

ह के अनुसार भी व णु के अवतार, स ,
अ तीय, वल ण तभा स महा मा बु के वणन
के साथ ही इस म क व ारा रामायण, महाभारत
एवं पुराण एवं पा ल सा ह य आ द म ा त अनेक
ऐ तहा सक महापु ष , राजा एवं ऋ षय का उ लेख
संकेत प म ा त होता है।

वैरा य का कारण
बु के वैरा य ा त का कारण था? इसका उ र
राजकु मार के थम वहार के समय माग म जाते ए
वृ को दे खकर सारथी से पूछा गया शन और सारथी
ारा दया गया उ र म मल सकता है-

क एष भोः सूत! नरोऽ युपेतः ? के शैः


सतैय वष ह तः।
ूसंवृता ः श थलानतांगः , क व यैषा
कृ तय ा ॥ बु च. ३-२८
(हे सार थ! सफे द बाल से यु , लाठ पर टके
ए हाथ वाला, भ ह से ढके ए ने वाला, ढ ले
और झुके ए अंग वाला, सामने आया आ यह
मनु य कौन है? या यह वकार है अथवा
वाभा वक प है अथवा यह कोई संयोग है?)
सारथी ने इसका समु चत उ र दया-

प य ह ी सनं बल य, शोक य यो न नधनं


रतीनाम्।
नाशः मृतीनां रपु र याणाम् एषा जरा नाम ययैष
भ नः ॥ बु च. ३-३०
(यह प का वनाश करने वाला, बल के लए
संकट व प, ःख क उ प का मूल कारण,
कामसुख को समा त करने वाला, मृ त को न
करने वाला, इ य का श ु बुढ़ापा है, जसके
ारा यह पु ष टू ट गया है।)
सारथी ने पुनः कहा-
पीतं नेना प पयः शशु वे, कालेन भूयः
प रमृ मु ाम्।
मेण भू वा च युवा वपु मान्, मेण तेनैव जरामुपेतः
॥ बु च. ३-३१
( न य ही इसने भी बचपन म ध पीया है, समय
के अनुसार पृ वी पर लोट लगायी है और म से
सु दर शरीर वाला युवा होकर उसी म म बुढ़ापे
को ा त कया है। ता पय यह है क इस (वृ )
क ऐसी अव ा अक मात् ही नह हो गयी है,
वरन् एक न त कम-ज म, बा याव ा,
युवाव ा, ौढ़ाव ा, अधेड़ाव ा, वृ ाव ा के
अनुसार ई है।)
जब राजकु मार तीय वहार पर बाहर नकले तब उ ह
दे वता ने एक रोगी मनु य का सृजन कर उनके सामने
दशाया। उसे दे खकर गौतम ने सूत से पूछा-
ू ोदरः ासचल रीरः तांसबा ः

कृ शपा डु गा ः।
अ बे त वाचं क णं ुवाणः परं समा य नरः क
एषः? ॥
(मोटे पेट वाला, साँस लेने से काँपते ए शरीर
वाला, झुके ए ढ ले क े और भुजा वाला, बल
और पीले शरीर वाला, सरे का सहारा लेकर 'हाय
माता!' इस कार के क णापूण वचन कहता आ
यह मनु य कौन है?)
तब सूत ने उनसे कहा, " रोगा भधानः सुमहाननथः"
इ त। (रोग त होना महान अनथ है।)

राजकु मार के तृतीय वहार के समय दे वता ने एक


नया य तुत कया जसम एक मृत मनु य के शव
को चार मनु य उठा कर ले जा रहे थे। राजकु मार ने
पूछा, ये चार लोग या ले जा रहे ह? सूत ने उ र दया-
बु य ाणगुणै वयु ः सु तो वसं ः
तृणका भूतः।
संव य संर य च य नव ः या यै य यत एष
कोऽ प॥
(बु , इ य , पुराण और गुण से बछु ड़ा आ
महा न ा म सोया आ, चेतना से शू य, तृण और
का के समान नज व, यह कोई (मृत मनु य)
य न करने वाले य और अ य लोग के ारा
अ तरह बाँधकर और भली-भाँ त र ा करके
(सदा के लए) छोड़ा जा रहा है।)

यह सुनकर गौतम का मन ख से भर गया।

स दभ
1. S. Beal, Fo,sho,haig-tsan-kuig,
intro.P.XXXII
2. से े ड बु स आफ द इ ट, भाग-14 पृ0-32
3. बु ट फला पृ0-227
4. "बु च रत" . मूल से 25 अ ैल 2016 को
पुराले खत. अ भगमन त थ 23 दसंबर 2012.
बाहरी क ड़याँ
बु च रत (संगणक कृ त बौ सं कृ त पटकम्)
बु च रत (दे वनागरी म)
बु च रतम् (दे वनागरी म, व क ोत)
बु च रत (रामचं शु ल ारा ह द भावानुवाद)
Cowell's edition in Roman characters
with supplements from Johnson's
edition
Cowell's text and translation (verse by
verse)
Cowell's translation (only)
Buddhist Studies: Buddhacarita

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title=बु च रत&oldid=4931391" से लया गया

Last edited 8 months ago by रो हत साव27

साम ी CC BY-SA 3.0 के अधीन है जब तक अलग से उ लेख


ना कया गया हो।

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