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ागैितहािसक राज थान क वशेषताएँ

ऐितहािसक ोत तथा भारतीय स यता के वकास म राज थान का योगदान - कालीबंगा व आहड़ का
सां कृितक राज थान का योगदान - कालीबंगा वा आहड़ का सां कृितक मह व

मानव स यता का इितहास व तुत: मानव के वकास का इितहास है । इस दशा म जो मह वपूण खोज
हई
ु ह, उनके अनुसार ऐसा अनुमान कया जाता है क लगभग अ सी करोड़ वष पूव पृ वी पर जीवन के
िच कट होने लगे थे। मनु य अपने ार भक जीवन म पशुवत ् था। इस पशुवत ् जीवन से ऊपर उठने
के िलए उसने हजार वष िलए। मनु य के हजार वष के इस वकास का िल पब और मागत मा णक

n
इितहास ा नह ं ह। इसिलए इस युग के इितहासकार ने ागैितहािसक युग क सं ा द है ।
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ागैितहािसक युग के मानव ने अपने जीवन-यापन व जीवन र ा हे तु जन पदाथ से बने हिथयार व
औज़ार व अ य उपरकरण का योग कया था और व व भारत के विभ न भाग म अवशेष के प
म अथवा उ ख न के फल व प उपल ध हए
ु ह। उनके आधार पर ागैितहािसक काल को चार िमक
ah
सोपान म वभ कया जाता है :
(क) आ दम पाषाणकाल;
(ख) पूव पाषाणकाल;
(ग) उ र पाषाणकाल;
sh

(घ) धातुकाल; धातुकाल पुन: तीन भाग म बाट गये है :

(घ.१) ता युग;

(घ.२) कां य युग;

(घ.३) लौह युग;

राज थान के ागैितहािसक काल क मुख वशेषताएँ िन नां कत ह -

ागैितहािसक राज थान के ऐितहािसक ोत एवं वशेषताएँ :


राज थान म तर युग के ोत एवं वशेषताएँ :
राज थान म तर युगीन मानव के िनवास का पता उन उपल ध तर हिथयार व औज़ार से लगता है
जो वतमान म बांसवाड़ा, डू ँ गरपुर, उदयपुर, भीलवाड़ा, बूद
ं , कोटा, झालावाड़, जयपुर आ द जल म 'बनाल'
ग भीर , बेडच, बाधन तथा च बल न दय क घा टय व तटवत थान से उपल ध हए
ु ह। ये हिथयार व
औज़ार जनका योग तर युगीन मानव करते थे वे कटु ता या अ य त भ दे , भौ डे व अनगढ़ थे। इस
कार के अवशेष से ाि थल म िन नां कत उ लेखनीय ह :

(क)
ग भीर नद के तट पर िचतौड़गढ़ जले म नगर , खीट, यावर, खेड़ा, बड़ , अयनार, ऊणचा, दे वजड ,
ह सेजी सा खेड़ा, बूले खेड़ा आ द थान;
(ख)
च बल, और बामनीनद के तट पर भसर ड़गड़ व नगधार थान;
(ग)
बनास नद के तट पर भीलवड़ा जल म हमीरगढ़, व पगंज, मंड दया, बीगोद, जहाजपुर, खु टयास।

n
दे वली, मंगर प, द ु रया, गोगाखेड़ा, पुर, पटला, संद, कुग रया, िगलूड आ द थान;
(घ)
लूणी नद के तट पर जोधपुर म;
(च)
ee
गु हया और बाँड नद क घाट म िसंगार व पाली थान, मारवाड़ म पीच , भाँडेल, धनवासनी, स जता,
धनेर , भेटा दा, द ु दास, गोिलयो, पीपाड़, खीमसर, उ मेद-नगर आ द थान;
ah
(छ)
बनास नद के तट पर त जले म भुवाणा, ह रो, जग नाथपुरा, िलयालपुरा, प चर, तरावट, गोगासला,
भरनी, आ द थान;
(ज)
sh

गागारोन ( जला झालाबाड़), गो व दगढ़ (अजमेर ज़ले म सागरमती नद तट पर), कोकानी (कोटा ज़ले
म परवन नद तट पर), आ द अ य थान।

वशेषताएँ - भारतीय पुरात व का सव ण (१९५८-६०) के आधार पर स य काश व दशरथ शमा ने


उपयु ोत के आधार पर राज थान म तरयुगीन मानव क स यता पर काश डालते हए
ु कहा है क
" तर युगीन मानव का राज थान म आहार िशकार कए हए
ु बनैले जानवर का मांस आ द कृित ारा
उपजाए क़ंद, मूल, फल आ द थे। इस काल का मनु य अपने मृतक को जानवर प य और मछिलय
के िलए मैदान या पानी म फक दया करता था।"
राज थान म ागैितहािसक तर-धातु युग
तो
गोपीनाथ शमा ने राज थान म तर धातु युग के मुख ोत उख न से उपल ध दो के - कालीबंगा
तथा आहड़ का उ लेख करते हए
ु अपना मत य कया है क -"अब तक जो हमने राज थान के बारे म
जानने का माग ढू ँ ढ़ा वह तमपूण था। आगे चल कर मानव इन तर से आगे बढ़ा और राज थानी
स यता क गोधूली क आभा प दखाई दे ने लगी। ॠ वेद काल से शायद स दय पूव 'आहड़' (उदयपुर
के िनकट) तथा ष ती और सर वती (गंगानगर के िनकट) न दय के काँठे ( कनारे ) जीवन लहर मारता
हआ
ु दखाई दे ने लगा। इन काँठ पर मानव-सं कृित स य थी और कुछ अंश म हड़ पा तथा
मोहनजोदड़ो क स यता के समक तथा समकालीन सी थी। आज से पाँच छ: हज़ार वष पूव इन नद
घा टय म बसकर मानव पशु पालने, भा डे बनाने, खलौने तैयार करने, मकान-िनमाण करने आ द
कलाओं को जान गया था। इस सुंदर अतीत को समझने के िलए कालीबंगा व आधारपुर (आहड़) म
उपल ध साम ी का अ ययन करना होगा।"

कालीबंगा का सां कृितक मह व व राज थान का मानव स यता के वकास म योगदान :


सर वती तट पर कालीबंगा - राज थान के गंगानगर ज़ले म थत कालीबंगा थान पर उख न ारा
(१९६१ ई. के म य कए गए) २६ फ़ट ऊँची प मी थेड़ (ट ले) से ा अवशेष से व दत होता है क
लगभग ४५०० वष पूव यहाँ सर वती नद के कनारे हड़ पा कालीन स यता फल-फूल रह थी। कालीबंगा

n
गंगानगर ज़ले म सूरतगढ़ के िनकट थत है । यह थान ाचीन काल क नद सर वती (जो कालांतर
म सूख कर लु हो गई थी) के तट पर थत था। यह नद अब घ घर नद के प म है । सतलज उ र

थल था।
ee
राज थान म समा हत होती थी। सूरतगढ़ के िनकट नहर-भादरा
वंय िसंधु नद अपनी वशालता के कारण वषा ॠतु म समु
े म सर वती व
जैसा
ष ती का संगम
प धारण कर लेती थी
जो उसके नामकरण से प है । हमारे दे श भारत म "तृधर स यता" का मूलत: उ व वकास एवं सार
"स िस धव" दे श म हआ
ु तथा सर वती उप यका का उसम विश योगदान है । सर वती उप यका
ah
(घाट ) सर वती एवं ष ती के म य थत " वत" का प व दे श था जो मनु के अनुसार
"दे विनिमत" था। धनधा य से प रपूण इस े म वै दक ॠचाओं का उ ोधन भी हआ।
ु सर वती
(वतमान म घ घर) न दय म उ म थी तथा िग र से समु म वेश करती थी। ॠ वेद (स म म डल,
२/९५) म कहा गया है -"एकाचतत ् सर वती नद नाम शुिचयतौ। िगर य: आसमु ात।।" सतलज उ र
sh

राज थान म सर वती म समा हत होती थी।


सी.एप. ओ डन ( C.F. OLDEN ) ने ऐितहािसक और भौगोिलक त य के आधार पर बताया क घ घर
हकरा नद के घाट पर ॠ वेद म बहने वाली नद सर वती ' ष ती' थी। तब सतलज व यमुना न दयाँ
अपने वतमान पाट म वा हत न होकर घ घर व हसरा के पाट म बहती थीं।
महाभारत काल तक सर वती लु हो चुक थी और १३वीं शती तक सतलज, यास म िमल गई थी।
पानी क मा कम होने से सर वती रे तीले भाग म सूख गई थी। ओ डन महोदय के अनुसार सतलज
और यमुना के बीच कई छोट -बड़ न दयाँ िनकलती ह। इनम चौतंग, मारकंडा, सर वती आ द थी। ये
न दयाँ आज भी वषा ॠतु म वा हत होती ह। राज थान के िनकट ये न दयाँ िनकल कर एक बड़ नद
घ घर का प ले लेती ह। आग चलकर यह नद पा क तान म हकरा, वा हद, नारा नाम से जानी जाती
है । ये न दयाँ आज सूखी हई
ु ह - क तु इनका माग राज थान से लेकर करांची और पूव क छ क खाड़
तक दे खा जा सकता है ।
वाकणकर महाशय के अनुसार सर वती नद के तट पर २०० से अिधक नगर बसे थे, जो हड़ पाकालीन
ह। इस कारण इसे 'िसंधुघाट क स यता' के थान पर 'सर वती नद क स यता' कहना चा हए। मूलत:
घ घर-हकरा ह ाचीन सर वती नद थी जो सतलज और यमुना के संयु गुजरात त बहती थी जसका
पाट (चौड़ाई) पु नद से बढ़कर ८ क.मी. था। वाकणकर के अनुसार सर वती नद २ लाख ५०
हजार वष पूव नागौर, लूनासर, आिसयाँ, ड डवाना होते हए
ु लूणी से िमलती थी जहाँ से वह पूव म क छ
का रण नानूरण जल सरोवर होकर लोथल के िनकट संभात क काढ़ म िगरती थी, कंतु ४०,००० वष पूव
पहले भूचाल आया जसके कारण सर वती नद माग प रवतन कर घ घर नद के माग से होते हए

हनुमानगढ़ और सूरतगढ़ के बहावलपुर े म िसंधु नद के समाना तर बहती हई
ु क छ के मैदान म
समु से िमल जाती थी। महाभारत काल म कौरव-पा डव यु इसी के तट पर लड़ा गया। इसी काल म
सर वती के वलु होने पर यमुना गंगा म िमलने लगी।

कालीबंगा से ा ागैितहािसक हड़ पा (िसंधु घाट ) स यता के ोत के प म अवशेष :

१९२२ ई. म राखलदास बैनजी एवं दयाराम साहनी के नेतृ व म मोहनजोदड़ो एवं हड़ पा (अब पा क तान

n
म लरकाना जले म थत) के उ प न ारा हड़ पा या िसंधु घाट स यता के अवशेष िमले थे जनसे
४५०० वष पूव क ाचीन स यता का पता चला था। बाद म इस स यता के लगभग १०० के का पता
चला जनम राज थान का कालीबंगा
सं कृित का कालीबंगा तीसरा बड़ा नगर िस
े ee
अ य त मह वपूण है । मोहनजोदड़ो व हड़ पा के बाद हड़ पा
हआ
ु है । जसके एक ट ले के उ खनन ारा िन नां कत
अवशेष ोत के प म िमले ह जनक वशेषताएँ भारतीय स यता के वकास म उनका योगदान प
करती ह -
ah

(क) ताँबे के औज़ार व मूितयाँ


कालीबंगा म उ ख न से ा अवशेष म ताँबे (धातु) से िनिमत औज़ार, हिथयार व मूितयाँ िमली ह, जो
यह कट करती है क मानव तर युग से ता युग म वेश कर चुका था।
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(ख) अं कत मुहर
कालीबंगा से िसंधु घाट (हड़ पा) स यता क िम ट पर बनी मुहर िमली ह, जन पर वृषभ व अ य
पशुओं के िच व तृधव िल प म अं कत लेख है ज ह अभी तक पढ़ा नह ं जा सका है । वह िल प दाएँ से
बाएँ िलखी जाती थी।

(ग) ताँबे या िम ट क बनी मूितयाँ, पशु-प ी व मानव कृितयाँ


िमली ह जो मोहनजोदड़ो व हड़ पा के समान ह। पशुओं म बैल, बंदर व प य क मूितयाँ िमली ह जो
पशु-पालन, व कृ ष म बैल का उपयोग कया जाना कट करता है ।

(घ) तोल के बाट


प थर से बने तोलने के बाट का उपयोग करना मानव सीख गया था।
(च) बतन
िम ट के विभ न कार के छोटे -बड़े बतन भी ा हए
ु ह जन पर िच ांकन भी कया हआ
ु है । यह
कट करता है क बतन बनाने हे तु 'चा ' का योग होने लगा था तथा िच ांकन से कला मक वृ
य करता है ।

(छ) आभूषण
अनेक कार के ी व पु ष ारा यु होने वाले काँच, सीप, शंख, घ घ आ द से िनिमत आभूषण भी
िमल ह जैसे कंगन, चू ड़याँ आ द।

(ज) नगर िनयोजन


मोहनजोदड़ो व हड़ पा क भाँित कालीबंगा म भी सूय से तपी हई
ु ईट से बने मकान, दरवाज़े, चौड़
सड़क, कुएँ, नािलयाँ आ द पूव योजना के अनुसार िनिमत ह जो त कालीन मानव क नगर-िनयोजन,

n
सफ़ाई- यव था, पेयजल यव था आ द पर काश डालते ह।

(झ) कृ ष-काय संबध


कालीबंगा से ा
ं ी अवशेष
हल से अं कत रे खाएँ भी
ee
ा हई
ु ह जो यह िस करती ह क यहाँ का मानव कृ ष
काय भी करता था। इसक पु बैल व अ य पालतू पशुओं क मूितय से भी होती ह। बैल व बारहिसंघ
क अ थय भी ा हई
ु ह। बैलगाड़ के खलौने भी िमले ह।
ah

(ट) खलौने
धातु व िम ट के खलौने भी मोहनजोदड़ो व हड़ पा क भाँित यहाँ से ा हए
ु ह जो ब च के मनोरं जन
के ित आकषण कट करते ह।
sh

(ठ) धम संबध
ं ी अवशेष
मोहनजोदड़ो व हड़ पा क भाँित कालीबंगा से मातृदेवी क मूित नह ं िमली है । इसके थान पर
आयाताकार वतुलाकार व अंडाकार अ नवे दयाँ तथा बैल, बारिसंघे क ह डयाँ यह कट करती है क यहाँ
का मानव य म पशु-बिल भी दे ता था।

(ड) दग
ु ( कला)
िसंधु घाट स यता के अ य के ो से िभ न कालीबंगा म एक वशाल दग
ु के अवशेष भी िमले ह जो यहाँ
के मानव ारा अपनाए गए सुर ा मक उपाय का माण है ।

उपयु अवशेष के ोत के प म कालीबंगा व िसंधु-घाट स यता म अपना विश थान है । कुछ


पुरात वे ा तो सर वती तट पर बसे होने के कारण कालीबंगा स यता को 'सर वती घाट स यता' कहना
अिधक उपयु समझते ह य क यहाँ का मानव ागैितहािसक काल म हड़ पा स यता से भी कई
से उ नत था। खेती करने का ान होना, दग
ु बना कर सुर ा करना, य करना आ द इसी उ नत दशा
के सूचक ह। व तुत: कालीबंगा का ागैितहािसक स यता एवं सं कृित के वकास म यथे योगदान रहा
है ।

आहड़ का सां कृितक मह व

आहड़कालीन सं कृित क थित


राज थान म ाचीन मेवाड़ े का पुरात व क से अलग ह मह व है । इस े क न दय के तट
पर पाषाण कालीन ( तर युग) सं कृितय के अवशेष के अित र अनेक थान पर आहड़कालीन
सं कृितय के अवशेष भी पाए गए ह जनक पृथक वशेषता है । ाचीन मेवाड़ म आहड़ (उदयपुर) के
समान स यता का वकास मु यत: बनास और उसक सहायक न दय आहड़, बाग, प ड, बेड़च, ग भीर ,
कोठार , मानसी, खार व अ य छोट न दय के कनारे हआ
ु है इसिलए पुरात ववे ा इस स यता को

n
बनास घाट क स यता के नाम से भी पुकारते ह।
आहड़ को ाचीन काल म 'ता वती' (ताँबावती) नगर के नाम से भी पुकारा जाता रहा है । इसका कारण
यहाँ हए
ु ता
अवशेष िमल ह। जन
उपकरण का वकास ह है । अ य ee थान पर भी जहाँ ताँबा पाया गया है । इस सं कृित के
थान पर इस स यता के अवशेष िमले ह वे 'धूल कोट' के प म थे ज ह ने
ल बे समय तक स यता के अवशेष को अपने गभ म सुर त सँजोए रहता है ।
पुरात ववे ा हं समुख धीरजलाल सांकिलया महोदय के अनुसार तीन ओर से अरावली पवतमालाओं से
ah
राज थान का यह भाग बनास और उसक सहायक न दय तथा नाल के जल से पू रत वन-स पदा एवं
खिनज स पदा से भरपूर, उ म वषा व संतुिलत जलवायु से यु होने के कारण ाचीनकाल से ह
ागैितहािसक मानव का आवास- थल रहा है । उ ख न काय आहड़ म योजनाब प से १९५२-१९५६ के
म य राज थान के राजक य सं हालय एवं पुरात व वभाग के त कालीन अधीर क र चंद अ वाल ारा
sh

करवाया गया था।

आहड़ स यता के के व काल


ार भ म इस थान पर पाए गए अवशेष से आधार पर काबन - १४ को आधार मानते हए
ु इस स यता
का काल ईसा से पूव १२०० से १८०० वष माना गया। १९५६ के बाद भारतीय पुराता वक सव ण वभाग
ने बनास तथा उसक सहायक न दय के कनारे सव ण काय ार भ कया जसके फल व प उदयपुर,
िचतौड़गढ़, भीलवाड़ा, अजमेर तथा अ य ज़ल म भी लगभग ४० से अिधक थान पर आहड़ के
समकालीन स यता के अवशेष ा हए।

१९६० म बी.बी. लाल ने उदयपुर के द णो र म ७२ क.मी. दरू बनास के कनारे 'िगलूंड' म आहड़
समकालीन सं कृित के अवशेष को खोज िनकाला। बनास धार म आहड़कालीन सं कृित के अवशेष के
एक के बाद एक िनर तर िमलते रहने से े रत होकर १९६८ म सांगिलया महोदय के नेतृ व म वशाल
पैमाने पर सामू हक खोज का आयोजन कया गया। इस खोज हल म राज थान पुरात व वभाग के
त कालीन िनर क एस.पी. ीवा तव, आ◌ॅ े िलया के मेलबोन व व ालय के विलयम कुलीसेन, काजी,
िन सन तथा राज थान पुरात व वभाग के च वत वजयकुमार और स मिलत थे। इस दल ने अपने
शोध-सव ण से िस कया क आहड़ कालीन सं कृित के अवशेष राज थान के उदयपुर, िचतौड़गढ़,
भीलवाड़ा, अजमेर, ट क और जयपुर ज़ले म तो उपल ध है ह , साथ ह इसी के आधार पर राज थान के
पुरात व वभाग के कोटपूतली, नीम का थाना व गणे र म उ खनन काय कराया जहाँ O.C.P.B.R.P .
और N.B.P. िच त लाल व काले मटभा ड , सफ़ेद माँडने व िच त े वयर ा हए
ु ह। १९७९ िचतौड़गढ़
राजक य सं हालय के पर क क है यालाल मीणा ने पुन: बनास व उसक सहायक न दय के कनारे पर
आहड़कालीन सं कृित का शोध-सव ण कया जससे इन शोध-के क सं या लगभग ६० हो गई है ।
मीणा को सव ण म िच ौड़गढ़ के ' प ड' ाम म 'ताँबे' क ाचीन कु हाड़ िमली। भीलवाड़ा म भी
सव ण कया गया। इन के से विभ न कार के अनेक अवशेष उपल ध हए
ु है ।

ोत-साम ी अवशेष के आधार पर आहड़-सं कृित क वशेषताएँ :


उ खनन थल

n
आहड़, उदयपुर के िनकट वह क बा है जहाँ पर लगभग ४,००० वष पूव तर युगीन-मानव के रहने के
त य िमले ह। आहड़ के दो ट ल क डॉ. सांकिलया (पूना व व ालय) तथा राज थान सरकार ारा

बनने का के
ee
खुदाई क गई थी। आहड़ का एक अ य नाम 'ता वती' (ताँबानगर ) भी था जो यहाँ ताँबे के औज़ार के
मा णत होता है । १०वीं - ११वीं शता द म इसे 'आधारपुर' या 'आधारदग
ु ' के नाम से
जाना जाता था जसे थानीय भाषा म 'धूलकोट' कहा जाता था। ये 'धूलकोट' ाचीन नगर के अवशेष
को अपने गभ म िछपाए हए
ु थे। बड़ा 'धूलकोट' १५०० फ़ट ल बा और ४५ फ़ट ऊँचा है जससे खाइयाँ
ah
खोद कर कई अवशेष ा हए
ु ह तथा ब तय के कई तर िमल ह।

ब तय के तर
पहले तर म कुछ िम ट क द वार िम ट के बतन के टु कड़े तथा प थर के ढे र ा हए
ु ह। दसरे
ू तर
sh

क ब ती से जो थम तर पर ह बसी है , कुछ कूट कर तैयार क गई है द वार और िम ट के बतन के


टु कड़े िमले ह। तीसर ब ती म कुछ िच त बतन और उनका घर म योग होना मा णत होता है ।
चौथी ब ती के तर म एक बतन से दो ताँबे क कु हा ड़याँ िमली ह। इस कार इन तर पर उ रो र
चार और ब तय के तर िमले ह। जनम मकान बनाने क प ित, बतन बनाने क विध आ द म
प रवतन दखाई दे ता है । ये सभी तर एक-दसरे
ू तर पर बनते और बगड़ते गए जो हम आहड़ क
ऐितहािसकता समझने म बड़े सहायक ह। ये समूची ब तयाँ 'आहड़-नद क स यता' कह जाती ह।

विभ न ब तय के अवशेष
आहड़ क खुदाई म कई घर क थित का पता चला है । सबसे थम ब ती नद के ऊपर भाग क भूिम
पर बसी थी जस पर उ रो र ब तयाँ बनती चली गई। यहाँ के के मुलायम काले प थर से मकान
बनाए गए थे। नद के तट सेलाई गई िम ट से मकान को बनाया जाता था। यहाँ बड़े कमर क ल बाई
- चौड़ाई ३३ न ् २० फ़ट तक चौड़ होती थी। इनक छत बाँसे से ढक जाती थीं। मकान के फ़श को
काली िम ट के साथ नद का बालू को िमलाकर बनाया जाता था। कुछ मकान म २ या ३ चूहे और एक
मकान म तो ६ चूह क सं या भी दे खी गई। इससे पता चलता है क आहड़ म बड़े भा ड भी गड़े हए

िमले ह ज ह थानीय भाषा म 'गोर ' या 'कोठे ' कहा जाता है । इस सं या से ाचीन आहड़ क समृ
भी मा णत होती है ।
आहड़ के तीय काल क खुदाई म ताँबे क मू ाएँ और तीन मुहर ा हई
ु ह। इनम कुछ मु ाएँ अ प
ह कंतु एक मु ा म शूल खुदा हआ
ु है और दसर
ू म खड़ा हआ
ु 'अपोलो' है जसके हाथ म तीर तथा
तरकस ह। इस मु ा के कनारे यूनानी भाषा म कुछ िलखा हआ
ु है जससे इसका काल दसर
ू सद ईसा
पूव आँका जाता है । कई मकान क र ाथ फ टक प थर के बड़े टु कड़े काम म लाए जाते थे और उ ह ं
से प थर के औज़ार बनाए जाते थे। यहाँ क स यता के थम चरण से स ब धत तर के छ लने, छे द
करने तथा काटने के औज़ार पाए कुछ ऐसे औज़ार चतु कोण, गोल व बेडौल आकृित के िमले ह जो
आकार म छोटे ह क तु जनके एक या दो कनारे बड़े तेज दखाई दे ते ह।

औज़ार वा आभूषण

n
चार ओर उभरे तथा पैने कनार के उपकरण भी यहाँ िमले ह जो चमड़े या ह ड छ लने के योग म
लाए जाते होग। इसके अित र यहाँ से ा अवशेष म प थर के गोले िशलाएँ, गदाएँ, ओखिलयाँ आ द
भी िमले ह। मू यवान प थर जैसे गोमेद, ee
फ टक आ द से आहड़ िनवासी गोल म णयाँ बनाते थे। ऐसी
म णय के साथ काँच, प क -िम ट , सीप और ह ड के गोलाकार छे द वाले अंडे भी लाए जाते थे। इनको
सुर त करने हे तु िम ट के बतन या टोक रय का योग कया जाता था। इनका आभूषण बनाने म
उपयोग कया जाता था तथा ताबीज़ क तरह लटकाने के िलए कया जाता था। इनके ऊपर सजावट का
ah
काम भी कया जाता था। आधार म ये गोल, चपटे , चतु कोण व ष कोण होते थे। ये अवशेष आहड़
स यता के दसरे
ू चरण क ात होती है ।

मूितयाँ व पूजा-साम ी
sh

अ य अवशेष म चमड़े के टु कड़े , िम ट के पूजा-पा । चू ड़याँ तथा खलौने ह। पूजा-पा के कनारे ऊँचे
व नीचे होने से ात होता है क इनम द पक रखने क यव था क जाती थी। खलौन म बैल, हाथी,
च आद मुख है । ये अवशेष आहड़-स यता से समृ काल १८००ई. से पू. से १२०० ई.पू. से संब है ।
इस युग का मानव क ची िम ट के ढलवाँ छत वाले मकान बना कर रहता था तथा वह मांसाहार था
कंतु आगे चलकर वह गेहँू का आहार करने लगा था। इस काल म लौह धातु का योग कया जाने लगा
था।

कृ ष व बतन बनाने क कला


आहड़ स यता के लोग कृ ष से प रिचत थे। यहाँ से िमलने वाले बड़े -बड़े भा डे तथा अ न पीसने के
प थर मा णत करते ह क ये लोग अ न उ पादन करते थे और उसको पका कर खाते थे। एक बड़
कमरे म जो बड़ -बड़ भ टयाँ िमली ह वह सामू हक भोज क पु करती ह। इस भाग म वषा अिधक
होने और नद पास म होने से िसंचाई क सु वधा यह िस करती है क वहाँ भोजन साम ी भूत मा ा
म ा रह होगी। आहड़ के िनवािसय को बतन बनाने क कला आती थी। यहाँ से िम ट क कटो रयाँ,
रक बयाँ, त त रयाँ, याले, मटके, कलश आ द बड़ सं या म िमल ह। साधारणतया इन बतन को चाक
से बनाते थे जन पर िच ांकन उभर हई
ु िम ट क रे खा से कया जाता था और उसे ' लेज' करके
चमक ला बना दया जाता था। बैठक वाली त त रयाँ और पूजा म काम आने वाली धूपदािनयाँ ईरािनयन
शैली क बनती थी जनम हम आह ड़य का संबध
ं ईरानी गित विध से होने क स भावना कट होती है ।

मृतक का सं कार
मृतक सं कार के संबध
ं म आहड़ के उ ख न के ऊपर तर से पता चलता है क पहली व दसर
ू शता द
म मृतक को गाड़ा जाता था। मृतक के अ थ पंजर से ात होता है क उसे आभूषण स हत दफ़नाया
जाता था। उसका िसर उ र क ओर व पैर द ण म रखे जाते थे।
उपयु अवशेष पी ोत से ागैितहािसक काल क स यता एवं सं कृित क भाँित आहड़ सं कृित भी
ागैितहािसक कालीन सां कृितक वकास क मह वपूण क ड़याँ िस होती ह जनसे अनेक नवीन
जानका रयाँ िमलती ह।

n
राज थान : सातवीं शता द से तेरहवीं शता द
ee
ah
जब हम सातवीं से तेरहवी शता द के थाप य का पयवे ण करते ह तो हम पाते ह क वह एक नये
राजनीितक प र थती के अनु प ढल जाता है । इसी युग म अबुदांचल दे श म परमार, मेवाड़ और बाँगड
म गु हल, शाका भर म चौहान, ढू ँ ढ़ाड़ म क छपाट, जाँगल व म म राठौर, म य व राजगढ़ म गुजर
ितहार आ द रा य का उदय होता है । ये राजवेश बल और शौय को धानता दे ते थे और व तार क
sh

ओर अ सर थे। यह कारण है क इस काल क वा तुकला म श वकास तथा जातीय संगठन क


भावना प झलकती है । उदाहरणाथ नागदा चीखा, लो वा, अथूणा, चाटसू आ द क ब को घा टय पहाड़
या जंगल तथा रे िग तान से आ छा दत थान म बसाया गया और इनम वे सभी साधन जुटाएँ गये जो
यु कालीन थती म सुर ा के िलए उपयोगी िस हो सकते थे। इन क ब को राजक य िनवास का के
भी बनाया गया जससे राजवंश को आसपास के भाग पर अपना अिधकार था पत करने म कोई
क ठनाई न हो। इन क ब म राजक य अिधका रय के आवास तथा धमगु ओं के ठहरने क भी यव था
क गयी थी। नागदा, जो गु हल क राजधानी थी, अ छे प थर से मढ़ हई
ु सड़क और नािलय से
सुशोिभत थी।
वह सड़क आज बाघेला तालाब म िछपी हई
ु उस युग क दहाई
ु दे रह है । इस काल म नगर म ब तयां
कस कार वभा जत थीं और उनक योजना का स पूण ढ़ाँचा कैसा था उसका पूरा िच ण करना तो बड़ा
क ठन है परं तु इतना अव य कहा जा सकता है क नगर िनमाण म यु थाप य का मुख आधार
महाभारत, अथशा , कामसू , शु नीित, अपरा जता े छ आ द थ म दए गए िस ा त के अनु प
था। उदाहरणाथ नगर को परकोट तथा खाईय से सुर त रखने तथा राज साद को सुदरू भवन , मं दर
और उ ान से सुशोिभत करने पर बल दया जाता था। यथास भव ब तय को े के अनुसार बाँटा
जाता था। इन सां कृितक सू के अनुपालन हम म ययुगीन वा तुकला म दखाई दे ता है । उदाहरणाथ वैर
िसंह ने ११वीं शता द म आधार नगर के चार ओर परकोटे क यव था क थी। इं गदा नामक क बे म
ब तय को वण तथा यवसाय के अनुसार बसाया गया था। इसम ा ण के रहने के भाग को पुर
कहते थे। दे लवाड़ा म भी ब ती का बँटवारा यवसाय के अनु प कया गया था।

आमेर १६वीं शता द से १७वीं शता द तक कछवाह शासक के श का के था, जसे एक वशेष,
योजना के साथ बसाया गया था। दोन तरफ क पहा ड़य क ढ़लान पर हवेिलयाँ तथा उँ चे - ऊँचे भवन
बनाये गए थे और नीचे के समतल भाग म पानी के कु ड, मं दर, सड़क, बाजार आ द थे। पहाड़ रा त
को संकरा रखा गया था जससे सुर ा क यव था समुिचत प से हो सके। उँ ची पहा ड़य पर राजभवन
के िनमाण करवाया गया था, पर तु आगे के युग म जब आमेर म वकास क गुज
ं ाइश नह ं रह तो
कछवाहा शासक जयिसंह ने जयपुर नगर को खुले मैदान म चौहड़ योजना के अनु प बसाया और उसे

n
चार ओर द वार और परकोट से सुर त कया। नाहरगढ़ को सैिनक श से सुस जत कर स पूण
मैदानी भाग क चौकसी का ब धक बनाया गया। जगह - जगह जलाशय, आरामगृह, फ वारे , नािलयाँ -
ee
नहर,, चौड़ सड़क, चौपड़ आ द बनायी गई जनके नीमाण म मुगल तथा राजपूत
सम वय समावेिशत कया गया। जयपुर नगर क योजना भी यवसाय के अनु प ब तय क
थाप य का समुिचत
यव था
थी। १२ वीं शता द म जैसलमेर का िनमाण जंगल क समीपता और पानी क सु वधा को यान म
रखकर कया गया था। जैसलमेर अलग - अलग व तुओं के य - व य का के था। समूची योजना,
ah
जन जीवन और यापार क समृ के हत म थी।

अजमेर चौहान के समय समृ नगर म िगना जाता था। हसन िनजामी, अबुल फजल, सर टामस रो
आ द लेखक ने अजमेर क स प न अव था पर काफ काश डाला है । मालदे व ने अजमेर प रव क त
sh

करने म काफ योग दया। अकबर और शाहजहाँ ने इसे सुस जत करने म कोई कसर न रखी। मराठ
ओर अं ेज के शासनकाल तक अजमेर भवन - िनमाण, बाजार के यव था आ द वा ण य थती म
अपना अनूठापन रखता रहा है । दरगाह शर फ होने से और उसके िनकट पु कर होने से इसका धािमक
और सां कृितक मह व और अिधक बढ़ जाता है ।

बूद
ँ के थाप य म तथा उसके बसाने म पानी के ाचुय का बड़ा हाथ रहा है । जोधपुर और बीकानेर क
बसावर म गढ़ िनमाण, परकोटे भवन - िनमाण आ द भौगोिलक प र थय से स ब धत है । जोधपुर म
कह ं कह ं ऊँचा और ढ़ाल को ब तय को बसाने के उपयोग म लाया गया और सड़क तथा नािलय क
योजना उसके अनुकूल क गई। बीकानेर म समतल भूिम म यवसाय के अनुसार नगर को बाँटा गया था
तथा हाट और बाजार को यापा रक सु वधा के अनु प बनवाया गया। उदयपुर को झील के कनारे
घा टय के अनु प यवसाय के अनु प वचार से मुह ल म बाँटा गया। ब ती के बीच - बीच कह ं कह ं
खेत और बगीचे दे कर उसे अिधक आकृ बनाया गया। नगर के बसाने म ाकार, खाई तथा पहाड़
े णय का उपयोग कया गया। पहाड़ ढ़लान, चढ़ाव और उतार को यान म रखेत हए
ु सारे नगर को टे ढ़ा
- मेढ़ा इस तरह बसाया गया क म यकालीन उदयपुर क योजना म कह ं रा ते या चौपड़ क यव था
नह ं द ख पड़ती। नगर के म गाँव क वा तुकला िभ न है । गाँव नद के िनकट व कनारे िमलते ह,
उनको ल बे आकार म खुली ब ती के प म बसाया गया। पहाड़ इलाके के गाँव पहाड़ ढ़लान और कुछ
ऊँचा िलए हए
ु ह; उदाहरणाथ केलवाड़ा, सराड़ा आ द। पहाड़ और घने जंगल म आ दवािसय क
ब तयाँ छोटे - छोटे टे क रय पर दो - चार झोप ड़य के प म बसी िमलती ह, जनके चार ओर काँट
क बाड़ लगी रहती है जससे जंगली जानवर से सुर ा भी बनी रहती है । इस कार एक प रवार दसरे

प रवार से वलगता भी बनाये रखते ह। मेवात के ऐसे गाँव का ज जोहर ने पु तक"तज करात"म
कया है । रे िग तानी गाँव के पानी क सु वधा को यान म रखकर बसाया जाता है , इसीिलए बीकानेर
और जैसलमेर के गाँव के आगे"सर ' अथात जलाशय का योग बहधा
ु पाया जाता है , जैसे बीकानेर,
जेतसर, उदासर आ द। गाँव क वा तुकला म बड़ इकाई वाले मकान का मु य ार बना छत का होता
है या बड़े छ पर के बरामदे से जुड़ा होता है । बीच म खुला आंगन एवं पशुओं क शाल एवं िनवास - गृह
के क चे मकान होते ह ज ह केवल घास - फूस से छा दया जाया है , साधारण थती के ामीण एक

n
ह क चे मकान म गुजारा करते ह जो अ न सं ह, रसोईघर और पशु बाँधन के काम आता है । ऐसे
मकान के ार छोटे रहते ह जनम रोशनदान या खड़ कय का ावधान नह ं होता। जन - जीवन के
वकास के साथ राज थान म
हवादार मकान को बनवाने क
ामीण ee
थाप य क थती बदल रह है और रा य सरकार खुले, प के व
यव था जगह - जगह कर रह है । इसी तरह नगर के थाप य म भी
बड़ त
ु गित से बदलाव आ रहा है । ाचीन नगर म जो ामीण और नाग रक थाप य का सामंज य
था,वह वलीन ाय होता जा रहा है । इनम आधुिनक सं कृित ाचीनता के त व को कम करती जा रह
ah
है ।

राज थान म म हलाओं क थित


वष 2001 क जनगणना के अनुसार राज थान क कुल जनसं या 5 करोड़ 65 लाख म से 48 ितशत
sh

(लगभग 2 करोड़ 71 लाख) जनसं या म हलाओं क है । राज थान म म हलाओं क जनसं या दे श क


म हला जनसं या का 5.46 ितशत है । राज थान म वष 1991 क तुलना म वष 2001 म जनसं या
आिध य 1 करोड़ 20 लाख य रहा है । इस अविध म म हला जनसं या म वृ दर 29.34 रह वह ं
पु ष जनसं या म वृ दर 28.01 अं कत क गई। राज थान म िलंगानुपात वष 1991 क तुलना म वष
2001 म 910 से बढ़कर 922 म हलाए◌ॅ ित 1000 पु ष आंका गया है । वष 1901 से लेकर िलंगानुपात
क थित िन न कार रह है :–

उपरो तािलका से राज थान म िलंगानुपात वष 2001 म म हलाओं के प म रहा है । व तुत: 1951
और 2001 म िलंगानुपात वष 1901 से लेकर म हलाओं के प म रहा। ामीण े म अनुपात शहर
े क अपे ा अ छा रहा है । वष 1961 के प ात शहर े म िलंगानुपात म कमी आई है ।

इसके अित र 6 वष से कम आयु वग म 1991 क तुलना म 2001 म िलंगानुपात म कमी आई है । वष


1991 म जहॉं 6 वष से कम आयु वग म जहॉ 1000 लड़क क सं या पर 916 लड़ कया थी वह 2001
म घटकर 909 रह गई। 6 वष तक के आयु वग म िलंगानुपात म अंतर क थित िन न तािलकाओं से
अिधक प हो सकेगी–

तािलका 2 के अनुसार ामीण े क अपे ा शहर े म िलंगानुपात अिधक (22) रहा है । तािलका 3
से प है क अनुसूिचत जनजाितय के मुकाबले िलंगानुपात का अंतर सामा य तथा अनुसूिचत जाितवग
म अिधक रहा है । 6 वष तक के आयु वग म बढ़ते हए
ु िलंगानुपात के मु य कारण म एक ूण ह या
मानी जाती है । रा य सरकार ारा ूण ह या रोकने और लड़ कय का ज म और उनके जी वत रहने क
थित म सुधार लाने के वशेष यास कये गये ह। तथा प इस सम या का समाधान जन–जागृित और
जन सहयोग से ह संभव हो सकेगा।

जहॉ तक सा रता का है , उसम राज थान म 1991–2001 के दशक म काफ गित हई


ु है । सा रता

n
क दर वष 1991 म 38.55 थी जो 2001 म 61.03 हो गई। म हला सा रता क दर इस दौरान 1991 म
20.44 ितशत से बढ़कर 2001 म दगनी
ु से भी अिधक अथात 44.34 ितशत तक पहच
ु गई। ामीण
े म तो यह
सा रता दर 9.2 थी वह 2001 म 37.74 पर आ गई।
ee
गित आ यजनक ह मानी जा सकती है । जहॉं 1991 म ामीण े म म हला

परं तु केवल सा रता क दर बढ़ने से ह लड़ कय म िश ा का आिध य नह ं माना जा सकता जब तक


ah
क औपचा रक िश ा के मा यम से अिधक से अिधक लड़ कया िश ा ा नह ं करती। यह दे खने म
आया है क लड़क क अपे ा लड़ कयॉ अिधक सं या म बीच म कूल छोड़ दे ती है । लड़ कय म ॉप
आउट रे ट कम कए जाने क आव यकता है ।
sh

भारतीय सं वधान म 73व एवं 74व सं वधान संशोधन के मा यम से म हलाओं को पंचायत राज सं थाओं
और थानीय िनकाय म ितिनिध व के अिधक अवसर दान कए गए ह। इसके मा यम से म हलाओं
के िलए सश करण का माग श त होगा।

परं तु मानव वकास संकेतक (Human Development Indicator) क से राज थान म म हलाओं क
आिथक, सामा जक और वा य के े म सुधार क महा◌ी आव यकता है । रा ीय प रवार वा य
सव ण–3 (NFHS.3) के अनुसार राज थान म 15 से 49 वष क ववा हत म हलाओं म एिनिमया क दर
53.01 थी। जसम से 17.9 म हलाए गंभीर प से एिनिमया से पी ़डत थी। इसी रपोट के अनुसार 36.7
ितशत म हलाए ॉिनक एनज डे फिशएंसी (CED) से पी ़डत पाई गई। कुल म हलाओं म से 20.2
ितशत म हलाए ॉिनक एनज डे फिशएंसी (CED) और एिनिमया दोन से भा वत थी। जब क यह दर
रा ीय प रवार वा य सव ण–2 (NFHS-2) म 49 ितशत अं कत क गई थी। ब च म (3 वष तक
के) एिनिमया क दर NFHS.2 म 82 ितशत अं कत क गई थी जब क NFHS.3 म यह दर 79.06
अं कत क गई। 15 से 49 वष तक क गभवती म हलाओं म NFHS.3 के अनुसार एिनिमया का ितशत
61.2 पाया गया। 15 से 49 आयु वष क म हलाआ म कुपोषण का ितशत 33.6 अं कत कया गया है ।
म हलाओं के वा य क से यह थित गंभीर है और यह ं कारण है क राज थान म मातृ मृ यु
दर य प कम होकर 445 ित 1 लाख जी वत ज म(SRS-2004) अं कत क गई है तथा प यह दर
रा ीय औसत से कह ं अिधक है ।

राज थान क ामीण जनसं या शनै:–शनै: शहर क ओर उ मुख हो रह है । वष 1991 म ामीण


जनसं या का ितशत 78.95 ितशत था वह वष 2001 म घटकर 76.02 ितशत रह गया। यह इस
बात का ोतक है क आजा◌ी वका के कारण ामीण े से जनसं या का पलायन शहर े म हो
रहा है । इस कारण म हलाओं को कई कार क द कत का सामना करना पड़ता ह। इ ह सामा यत: दो
वग म बांटा जा सकता है :–(1) जहॉं म हलाये अपने प रवार के साथ शहर म बसती है उनके सामने
नवीन सामा जक और आिथक प र थित उ प न होती है ◌ै। क ची गंद ब तय म रहने क ववशता के
कारण अ व थकार वातवरण म जीवन यापन करना पड़ता है । इन प र थितय का उनके वा य पर

n
कु भाव पडने के साथ–साथ सां कृितक व सामा जक वरोधाभास का भाव भी पड़ता है । (2) दसरे
ू यद
म हला अपने गॉंव म रहती है तो उसे सम त काय (कृ ष संबध
ं ी, पशुपालन, पा रवा रक दे खभाल) अकेले
करने होते ह। अकेली म हला यौन ee
ताड़ना का िशकार भी आसानी से हो सकती है ।

राज थान म म हलाए कई सामा जक और आिथक वषमताओं से िसत है । बड़ सं या म बाल ववाह


होने के कारण कम आयु क लड़ कय को वकास और िश ा के पूरे अवसर नह ं िमल पाते
ah
(रा.पा. वा.स.–3 (NFHS-3) के अनुसार 20–24 वष आयुवग क लड़ कय म 57.01 ितशत का ववाह
18 वष क आयु पूण होने से पूव ह कर दया जाता है ) इससे कशोराव था म गभधारण के कारण
लड़ कय के वा य पर वपर त भाव पड़ता है । इसीिलए म हलाओं म एिनिमया के ल ण अिधक पाये
जाते ह। म हलाए अिधकांशत: अपने जीवन िनवाह के िलए पु ष पर आि त रहती है ।
sh

रा ीय प रवार वा य सव ण–3 के अनुसार राज थान म 46.03 ितशत ववा हत म हलाए पा रवार क
थित म सताई हई
ु अनुभव करती है । घरे लू तर पर म हलाआ के साथ द ु य हार, दहे ज के कारण
म हलाओं को सताया जाना और यौन शौषण ऐसी थितयॉं है जनके कारण म हलाए सामा य प से
जीवन–यापन करने म अपने आपको असमथ पाती है ।

राज थानी कल क थाप य कला

राज थान म भी महारा के समान कदम कदम पर कल और दग


ु िमलते ह। राज थान म लगभग हर
१० मील के बाद कोई न कोई दग
ु और कला अव य िमल जाएगा। चाहे राजा हो या साम त वह कले
को िनिध के प म समझता था। वे अपने िनवास के िलए, सुर ा के िलए, साम ी सं ह के िलए,
आ मण के समय अपनी जा को सुर त रखने के िलए, पशु धन को बचाये रखने के िलए और स प
को िछपाने के िलए कले बनवाते थे।

राज थान म कले के थाप य के वकास का थम सू कालीबंगा क खुदाई म िमलता है । उ र और


द णी धूल के ढ़े र को खोदने से प कये गए भाग स भवत: कले के भाग रहे है हाड़ोती, बागड़,
आमेर . आ द भाग म धूल आ द से आ छा दत द वार िमलीं है , वे भी इस ओर संकेत करती ह क कुछ
छोट - छोठ ब तय को सुर त रखने के िलए काँट क झा डयाँ बाहर क ओर लगा द जाती ह जो
ाचीनकालीन सुर ा - द वार के सरल प ह। इस पर परा को दे खते हए
ु लगता है क रे िग तानी भाग
म तथा पवतीय ा त म ाचीन मानव झा डयाँ लगाकर या खाइयाँ खोदकर सुर ा क यव था करता
था।
इस ाचीन काल से आगे बढ़ने पर जब हम मौय और गु तथा प रवितत युग म जाते ह तो हम कुछ
कल के व प के िन त आधार उपल ध होते ह। पीर सु तान और बड़ोपल म जो गंगानगर जले म ह
कल के अवशेष दखाई दे ते ह जनम सु ढ़ ाचीर, इमारत ार एवं गोल बुजç अनुमािनत क जाती ह।

n
िच ौड़ के अ तम छोर वाले भाग म सु ढ़ द वार के ख डहर ७ वीं शता द के कले के थाप य के
सा ी है । १३वीं शता द से आगे के युग तक तो कले बनाने क पर परा एक नया मोड़ लेती ह। इस
ee
काल म ऊँची - ऊँची पहा ड़य पर जो ऊपर चौड़ ह और जनम खेती के साधन ह , कले बनाने के
उपयोग म लाई जाने लगीं। िच ौड़, आबू, कु भलगढ़, मा डलगढ़ आ द थान के कले ाचीन काल के
थे। उनको फर से म यकालीन यु शैली के अनु प बना दया गया। उदारहणाथ, महाराजा कु भा ने
िच ौड़ कले क ाचीर, ार क ख
ंृ ला तथा बुजाç से अिधक सु ढ़ बनाया। कु भलगढ़ के कले पहाड़
ah

ंृ लाओं से िघरे हए
ु होने के कारण आकार ारा अिधक सुर त कया गया। कले के भीतर ऊँचे से ऊँचे
भाग का योग राज ासाद के िलए तथा नीचे से नीचे भाग को जलाशय के िलए और समतल भाग को
खेती के िलए रखा गया। बची हई
ु भूिम का उपयोग मं दर तथा मकान के िनमाण म कया गया। कले
के चार ओर द वार को नीचे गहरे पहाड़ ग ढ़े ऐसी थती म रखे गए क हमलावर फौजी का दग
ु म
sh

घुसना क ठन हो, द वार चौड़ और बड़े आकार क बनायी गयी जन पर कई घोड़े एक सात चल सके।
ाकार क द वार का ढ़ाल इस तरह रखा गया क उस पर सरलता से क ठन हो। अचलगढ़ तथा जोधपुर
के कले म चौड़ा भाग न होने के कारण पानी का ब ध कृ म टं कय से कया गया। इसी तरह जब
जालौर तथा नागौर के कले तुक व मुगल के अधीन हो गये तो उनम गोली चलाने तथा तोपखाने से
आ मण को रोकने क विध का योग कया गया। बीकानेर का कला समतल मैदान म होने से ऊँची
ाचीर बनाई गई और उसके चार ओर खाई का ब ध कया गया। यु काल म कले म फाटक को
ब द करके लड़ने के िलए यह कला बड़े उपयोग का था।

नाम, थान, थापना

राज थानी भाषा सा ह य एवं सं कृत अकादमी, बीकानेर 25 जनवर , 1983


राज थान जभाषा अकादमी,जयपुर, 19 जनवर 1986
राज थान ह द थ अकादमी, जयपुर, 15 जुलाई 1969
राज थान सं कृत अकादमी, जयपुर, 1981
अरबी फारसी शोध सं थान, ट क, दस बर 1978
राज थान िस धी अकादमी, जयपुर, 1979
व ा भवन सं थान, उदयपुर, 1931
राज थान सा ह य अकादमी उदयपुर, 23 जनवर 1958
राज थान अिभलेखागार, बीकानेर
पायन सं थान बो ं दा, जोधपुर, 1960
रवी रं गमंच, जयपुर, 15 अग त 1963
जयपुर कथक के , जयपुर, 1978
राज थान संगीत नाटक अकादमी, जोधपुर
पुरात व एवं सं हालय वभाग, जयपुर
राज थान कूल ऑफ आ स, जयपुर, 1866

n
राज थान लिलत कला अकादमी, जयपुर, 1957
राज थान ा य व ा ित ान, जोधपुर, 1950

राज थान के
ee
मुख एितहािसक एवं दशनीय
थल
ah

हवामहल - जयपुर
जंतर मंतर - जयपुर
गलता जी - जयपुर
जसवंत थड़ा - जोधपुर
sh

पटव क हवेली - जैसलमेर


सािलम िसंह क हवेली - जैसलमेर
रामगढ़ क हवेिलयां - जैसलमेर
नथमल क हवेली - जैसलमेर
चौरासी खंभ क छतर - बूद

रानी जी क बावड़ - बूद

ार बाग क छत रयाँ - बूद

वण या सुनहर कोठ - ट क
वजय त भ - िच ौड़
क ित त भ - िच ौड़
सूय मं दर - झालावाड़
ढाई दन का झ पड़ा - अजमेर
जल महल - जयपुर, ड ग व उदयपुर
अरथूना के ाचीन मं दर - बाँसवाड़ा
भांडासर जैन मं दर - बीकानेर
गैप सागर - डू ं गरपुर
बड़ला तारामंडल - जयपुर
कोलवी क गुफाएँ - झालावाड़
उ मेद भवन - जोधपुर
मंडोर - जोधपुर
भंड दे वरा मं दर - कोटा
स जनगढ़ - उदयपुर
आहड़ सं हालय - उदयपुर
हष मं दर - सीकर

n
ारकाधीश मं दर - कांकरोली राजसमंद
आभानेर मं दर - दौसा
स चया माता मं दर - ओिसयां जोधपुर
रानी प नी महल - िच ौड़गढ़
ee
सहे िलय क बाड़ - उदयपुर
कुंभलगढ़ - केलवाड़ा राजसमंद
ah
ा मं दर - पु कर
दे व सोमनाथ मं दर- डू ं गरपुर
फख न क दरगाह - गिलयाकोट, डू ं गरपुर
आमेर कला - आमेर, जयपुर
sh

रणकपुर जैन मं दर - सादड़ , पाली


सांविलया जी मं दर - मंड फया, िच ौड़गढ़
सास-बहू के ाचीन मं दर ( ाचीन नागदा रा य के मं दर) - कैलाशपुर , उदयपुर
जगत के ाचीन मं दर - जगत गाँव उदयपुर
ीनाथजी मं दर - नाथ ारा, राजसमंद
मीरा बाई का मं दर - मेड़तािसट , नागौर
बाबा रामदे व मं दर - पोकरण के पास रामदे वरा, जैसलमेर
नाकोड़ा पा नाथ मं दर - बालो रा के पास, जला बाड़मेर
दलवाड़ा जैन मं दर - माउं ट आबू
सालासर बालाजी - सालासर, चु
खाटू यामजी - खाटू गाँव सीकर
सोनीजी क निसयाँ - अजमेर
राज थान के मुख य व व उनके उपनाम
राज थान क राधा : मीराबाई
म को कला : गवर दे वी
भारत क मोनािलसा : बनी ठनी
राज थान क जलपर : र मा द ा
राज थान का कबीर : दाददयाल

राजपूताने का अबुल फजल : मुहणौत नैणसी
डं गल का है रॉस : पृ वीराज राठौड़
ह द घाट का शेर : महाराणा ताप
मेवाड़ का उ ारक : राणा ह मीर
प का रता का भी म पतामह : पं. झा बरमल शमा
मारवाड़ का ताप : राव चं सेन

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मेवाड़ का भी म पतामह : राणा चूड़ा
कलीयुग का कण : राव लूणकरण
राज थान का गाँधी : गोकुल भाई भ ट
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आधुिनक राज थान का िनमाता : मोहन लाल सुखा ड़या
वागड़ का गांधी : भोगीलाल पं या
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राज थान का आ दवािसय का मसीहा : मोतीलाल तेजावत
आधुिनक भारत का भागीरथ : महाराजा गंगा िसंह
गर ब नवाज : वाजा मोइनु न िच ती
राज थान का नृिसंह : संत दलभ
ु जी
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दा साहब : ह रभाऊ उपा याय


राज थान का लौहपु ष : दामोदर यास
राज थान का लोक नायक : जयनारायण यास
शेर-ए-राज थान : जयनारायण यास
गाँधीजी का पाँचवाँ पु : जमना लाल बजाज
राज थान म कसान आंदोलन के जनक : वजय िसंह पिथक

राज थान के िस पशु मेले


म लीनाथ पशु मेला - ितलवाड़ा, बाड़मेर
तेजाजी पशु मेला - परबतसर, नागौर
गोगामेड़ पशु मेला - गोगामेड़ हनुमानगढ़
जसवंत दशनी एवं पशु मेला - भरतपुर
गोमती सागर पशु मेला - झालरापाटन, झालावाड़
रामदे व पशु मेला - नागौर
काितक पशु मेला - पु कर
बहरोड पशु मेला - बहरोड, अलवर
चं भागा पशु मेला - झालरापाटन, झालावाड़
महािशवरा पशु मेला - करौली
बलदे व पशु मेला - मेड़ता िसट , नागौर

राज थान के पशु मेल से संबंिधत वशेष त य


राज थान का सबसे बड़ा रं गीन मेला - पु कर मेला
मु लम का सबसे बड़ा मेला - अजमेर का वाजा साहब का उस
जैिनय का सबसे बड़ा मेला - महावीरजी का मेला

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आ दवािसय का सबसे बड़ा मेला - बेणे र मेला
िसख का सबसे बड़ा मेला - साहबा मेला
जाँगल
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दे श का सबसे बड़ा मेला - कोलायत जी का मेला बीकानेर
मेरवाड़ा का सबसे बड़ा मेला - पु कर मेला
वृ से संबिं धत सबसे बड़ा मेला - खेजड़ली मेला, खेजड़ली जोधपुर
ah
हाड़ौती का सबसे बड़ा मेला - सीताबाड़ मेला
ह द ू जैन स ाव का मेला - ऋषभदे व जी का मेला, उदयपुर
म य दे श का सबसे बड़ा मेला - भतृह र मेला, अलवर
सां दाियक स ाव का सबसे बड़ा मेला - रामदे वरा मेला, जैसलमेर
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राज थान : सन ् 1857

1857 के समय राज थान के कई राजपूत टश सरकार के खलाफ़ थे। ये तािनय के शासन से संतु
नह ं थे जससे इनके मन म सरकार के खलाफ़ ांित के बीज उ प न होने लगे। इन लोग के साथ
आम जनता भी शािमल हो गई। राज थान के कई इलाक म इस व ोह क वाला भड़क थी जनम
िन न नाम उ लेखनीय ह।

नसीराबाद
सबसे पहले नसीराबाद म इस व ोह क शु आत हई
ु थी। इसके पीछे मु य कारण यह था क टश
सरकार ने अजमेर क 15वीं बंग़ाल इ फ़े को नसीराबाद भेज दया था य क सरकार को इस पर
व वास नह ं था। सरकार के इस िनणय से सभी सैिनक नाराज हो गये थे और उ ह ने टश सरकार के
खलाफ़ ांित का आगाज कर दया। इसके अित र टश सरकार ने ब बई के सैिनक को नसीराबाद
म बुलवाया और पूर सेना क जं◌ाच पड़ताल करने को कहा। टश सरकार ने नसीराबाद म कई तोपे
तैयार करवाई। इससे भी नसीराबाद के सैिनक नाराज हो गये और उ ह ने व ोह कर दया। सेना ने कई
तािनय को मौत के घाट उतार दया साथ ह साथ उनक स प को भी न कर दया। इन सैिनक
के साथ अ य लोग भी शािमल हो गये।

नीमच
नसीराबाद क घटना क खबर िमलते ह 3 जून 1857 को नीमच के व ो हय ने कई तािनय को मौत
के घाट उतार दया। फ़ल व प तािनय ने भी बदला लेने क योजना बनाई। उ ह ने 7 जून को नीमच
पर अपना अिधकार कर िलया। बाद म व ोह राज थान के दसरे
ू इलाक क तरफ़ बढ़ने लगे।

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जोधपुर
यहाँ के कुछ लोग राजा त त िसंह के शासन से थे। जसके कारण एक दन यहाँ के सैिनक ने इनके
खलाफ़ व ोह कर दया। उनके साथ आउवा के ee टश वरोधी कुशाल िसंह भी थे।
कुशाल िसंह का सामना करने के िलये ले टनट ह थकोट के साथ जोधपुर क सेना आई थी ले कन
कुशाल िसंह ने इन को परा त कर दया। बाद म तानी सेना ने आउवा के कले पर आ मण कया
ले कन उनको भी हार का मुँह दे खना पड़ा ले कन गे डयर हो स उस पराजय का बदला लेना चाहता था
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इसिलये उसने आउवा पर आ मण कया अब कुशाल िसंह ने कले को छोड़ दया और सलु बर चले गये।
कुछ दन बाद तािनय ने आउवा पर अिधकार कर िलया और वहा आतंक फ़ैलाया ।

मेवाड़
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मेवाड़ के सामंत तािनय व महाराणा से नाराज थे। इन साम त म आपसी फ़ूट भी थी । महाराणा ने
मेवाड़ के साम त को तािनय क सहायता करने क आ ा द । इसी समय सलु बर के रावत केसर
िसंह ने उदयपुर के महाराणा को चेतावनी द क य द आठ दन म उनके पर पराग़त अिधकार को
वीकार न कया गया तो वह उनके ित ं द को मेवाड़ का शासक बना दगे। सलु बर के रावत केसर
िसंह ने आउवा के ठाकुर कुशाल िसंह को अपने यहा यहा शरण द । इसी समय तां या टोपे ने राजपूताने
क ओर कूच कया। 1859 म नरवर के मान िसंह ने उसके साथ धोखा कया और उसे िगर तार कर
िलया। य प सामंत ने य प से टश सरकार का व ोह नह ं कया पर तु व ो हय को शरण
दे कर इस ांित म मह वपूण भूिमका िनभाई।

कोटा
टश अिधकार मेजर बटन ने कोटा के महाराजा को बताया यहां के दो चार टश वरोधी अिधका रय
को टश सरकार को स प दे ना चा हये। ले कन महाराजा ने इस काम म असमथता जताई तो तािनय
ने महाराजा पर आरोप लगाया क वह व ो हय से िमले हए
ु ह। इस बात क खबर िमलते ह सैिनक ने
मेजर बटन को मार डाला। व ो हय ने राजा के महल को घेर िलया, फ़र राजा ने करौली के शासक से
सैिनक सहायता मांगी। करौली के शासक ने सहयोग कया और व ो हय को महल के पीछे खदे ड़ा। इसी
समय जनरल एच.जी.राबटस अपनी सेना के साथ च बल नद के कनारे पहँ ◌ुचा। उसे दे खकर व ोह
कोटा से भाग गये।

रा य के अ य े म व ोह
इस व ोह म अलवर के कई नेताओ ने ह सा िलया। जयपुर म उ मान खां और साद ु ला खां ने व ोह
कर दया। ट क म सैिनक ने व ोह कर दया ओर नीमच के व ो हय को ट क आने का िनमं ण दया।
इ होने ट क के नवाब का घेरा डाल कर उनसे बकाया वेतन वसूल कया। इसी तरह बीकानेर के शासक ने
नाना साहब को सहायता का आ वासन दया था। और तां या टोपे क सहायता के िलये स हजार
घुड़सवार सैिनक भेजे। य प राज थान के अिधकांश शासक पूरे व ोह काल म तािनय के ित
वफ़ादार रहे , फ़र भी व ो हय के दबाव के कारण उ ह य -त व ो हय को समथन दान करना पड़ा।

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राज थान म व ोह का घटना म

.स. व ोहका थान व ोहक तार ख


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1 नसीराबाद 28 मई 1857
2 नीमच 3 जून 1857
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3 ए रनपुरा 21 अग त 1857
4 आउवा अग त 1857
5 दे वली छावनी जून 1857
6 भरतपुर 31 मई 1857
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7 अलवर 11 जूलाई 1857


8 धौलपुर अ टू बर 1857
9 टक जून 1857
10 कोटा 15 अ टू बर 1857
11 अजमेर क क य जेल 9 अग त 1857
12 जोधपुर ली जयन 8 िसत बर 1857

थम वतं ता सं ाम म राज थान

कोटा के शह द लाल जयदयाल

तािनय को भारत से बाहर िनकालने के िलए युगा द 4659 (सन ् 1857) म हआ


ु वतं ता का यु
भारत का थम वतं ता सं ाम कहा जाता है । दे खा जाए तो वतं ता के संघष क शु आत महाराणा
ह मीर िसंह ने क थी। वीर म वीरो म महाराणा ह मीर ने मु लम आ मणका रय का बढ़ाव काफ़
समय तक रोके रखा। व तुतः िससो दया वंश का पूरा इितहास ह भारत क वतं ता के िलए कए गए
संघष का इितहास है । ले कन तािनय के ख़लाफ़ पूरे भारत म एक साथ और योजनाब यु सन ्
1857 म लड़ा गया, इसीिलए इितहासकार ने इसे थम वतं ता सं ाम बताया।
ांित के इस महाय को धधकाने क योजना अजीमु ला खाँ तथा रं गोबापूजी ने लंदन म बनाई थी।
योजना बनाकर ये दोन उ कट रा -भ पेशवा के पास आए और उ ह इस अ ुत समर का नेतृ व करने
को कहा। सैिनक अिभयान के नायक के प म ता या टोपे को तय कया गया। संघष के िलए संगठन
खड़ा करने तथा जन-जागरण का काम पूरे दो साल तक कया गया।
मौलवी, पं डत और सं यासी पूरे दे श म ांित का संदेश दे ते हए
ु घूमने लगे। नाना साहब तीथ-या ा के
बहाने दे शी रजवाड़ म घूमकर उनका मन टटोलने लगे। आ हा के बोल, नाटक मंडिलयाँ और कठपुतिलय
के खेल के ारा वधम और वरा य का संदेश जन-जन म पहँु चाया जाने लगा। ांित का तीक लाल
रं ग का कमल सैिनक छाविनय म एक से दसरे
ू गाँव म घूमते पूरे दे श क या ा करने लगा। इतनी

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ज़बरद त तैयार के बाद संघष क प-रे खा बनी। यह सब काम इतनी सावधानी से हआ
ु क धूत
तािनय को भी इसका पता तोप का पहला गोला चलने के बाद ह लगा।

राज थान म पहली िचंगार


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इस अपूव ांित-य म राजस ा के सपूत ने भी अपनी सिमधा अ पत क । दे श के अ य क क तरह
राज थान म भी सैिनक छाविनय से ह वतं ता-सं ाम क शु आत हई।
ु उस समय तािनय ने
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राजपूताने म 6 सैिनक छाविनयाँ बना रखी थी। सबसे मुख छावनी थी नसीराबाद क । अ य छाविनयाँ
थी- नीमच, यावर, दे वली (ट क), ए रनपुरा (जोधपुर) तथा खैरवाड़ा (उदयपुर से 100 क.मी. दरू)। इ ह ं
छाविनय क सहायता से तािनय ने राजपूताना के लगभग सभी राजाओं को अपने वश म कर रखा
था। दो-चार राजघरान के अित र सभी राजवंश तािनय से संिध कर चुके थे और उनक जी हजूर म
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ह अपनी शान समझते थे। इन छाविनय म भारतीय सैिनक पया सं या म थे तथा र कमल और
रोट का संदेश उनके पास आ चुका था।
राजपूताने (राज थान) म ांित का व फोट 28 मई 1857 को हआ।
ु राज थान के इितहास म यह ितिथ
वणा र म िलखी जानी चा हए तथा हर साल इस दन उ सव मनाया जाना चा हए। इसी दन दोपहर
दो बजे नसीराबाद म तोप का एक गोला दाग़ कर ांितका रय ने यु का डं का बजा दया। संपण
ू दे श म
ांित क अ न जविलत करने के िलए 31 मई, र ववार का दन तय कया गया था, कंतु मेरठ म
10 मई को ह वातं य समर का शंख बज गया। द ली म ांितका रय ने तािनय के ख़लाफ़ श
उठा िलए। ये समाचार नसीराबाद क छावनी म भी पहँु चे तो यहाँ के ांित वीर भी ग़ुलामी का कलंक
धोने के िलए उठ खड़े हए।
ु नसीराबाद म मौजूद '15 वीं ने टव इ फे ' के जवान ने अ य भारतीय
िसपा हय को साथ लेकर तोपख़ाने पर क जा कर िलया। इनका नेतृ व ब तावर िसंह नाम के जवान कर
रहे थे। वहाँ मौजूद अँ ेज़ सै य अिधका रय ने अ ारोह सेना तथा लाइट इ फे को वतं ता सैिनक
पर हमला करने का आदे श दया। आदे श माने के थान पर दोन टु क ड़य के जवान ने अँ ेज़
अिधका रय पर ह बंदक
ू तान द । कनल यूबर तथा मेजर पाटवुड को वह ं ढे र कर दया गया।
ले टने ट लॉक तथा क ान हाड बुर तरह घायल हए।

छावनी का कमांडर गे डयर फेन वक वहाँ से भाग छूटा और उसने यावर म जाकर शरण ली. नसीराबाद
छावनी म अब भारतीय सैिनक ह बचे। वे सबके सब वातं य सैिनक के साथ हो गए। छावनी को तहस-
नहस कर वातं य सैिनक ने द ली क ओर कूच कया।

कमांडर गुरेस राम


नसीराबाद के वतं ता सं ाम का समाचार तुरंत-फुरत नीमच पहँु च गया। 3 जून क रात नसीराबाद से
तीन सौ क. मी. क दरू पर थत नीमच सैिनक छावनी म भी भारतीय सैिनको ने श उठा िलए। रात
11 बजे 7वीं ने टव इ फे के जवान ने तोप से दो गोले दागे। यह वातं य सैिनक के िलए संघष शु
करने का संकेत था। गोल क आवाज़ आते ह छावनी को घेर िलया गया तथा आग लगा द गई। नीमच
क़ले क र ा के िलए तैनात सैिनक टु कड़ भी वातं य-सैिनक के साथ हो गई। अँ ेज़ सैिनक
अिधका रय ने भागने म ह अपनी कुशल समझी। सरकार ख़ज़ाने पर ांितका रय का अिधकार हो गया।

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आ मणकार फ़रं िगय के व सामा य जनता तथा भारतीय सैिनक म काफ़ ग़ु सा था। इसके
बावजूद ांितका रय ने हं द-ू सं कृित क परं परा िनभाते हए
ु न तो यथ ह याकांड कए, नह ं अँ ेज़

सुर त
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म हलाओं व ब च को परे शान कया। नसीराबाद से भागे अँ ेज़ सैिनक अिधका रय के प रवार को
प से यावर पहँु चाने म भारतीय सैिनक व जनता ने पूर सहायता क । इस तरह नीमच से
िनकले अं ेज म हलाओं व ब च को डू ं गला गाँव के एक कसान ं गाराम ने शरण दान क और उनके
भोजन आ द क यव था क । ऐसे ह भागे दो अँ ेज़ डा टर को केसू दा गाँव के लोग ने शरण द ।
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इसके उलट जब वातं य सैिनक क हार होलने लगी तो तािनय ने उन पर तथा सामा य जनता पर
भीषण और बबर अ याचार कए।
नीमच के ांितका रय ने सूबेदार गुरेसराम को अपना कमांडर तय कया। सुदेर िसंह को गे डयर तथा
दो त मोह मद को गेड का मेजर तय कया। इनके नेतृ व म वातं य सैिनक ने दे वली को ओर कूच
sh

कया। रा त म िच ौड़, ह मीरगढ़ तथा बनेड़ा पड़ते थे। वातं य सेना ने तीन थान पर मौजूद अँ ेज़
सेना को मार भगाया तथा शाहपुरा पहँु चे। शाहपुरा के महाराज ने ांितका रय का खुले दल से वागत
कया। दो दन तक उनक आवभगत करने के बाद अ -श व धन दे कर शाहपुरा नरे श ने ांितका रय
को वदा कया। इसके बाद सैिनक िन बाहे डा पहँु चे, जहाँ क जनता तथा जागीरदार ने भी उनक दल
खोलकर आवभगत क ।

दे वली क सेना जंग म शािमल


दे वली तािनय क तीसर मह वपूण छावनी थी। नसीराबाद तथा नीमच म भारतीय सैिनक ारा श
उठा लेने के समाचार दे वली पहँु च गए थे, अतः अँ ेज़ पहले ह वहाँ से भाग छूटे । वहाँ मौजूद मह दपूर
गेड आज़ाद के सेनािनय क ती ा कर रह थी। िन बाहे ड़ा से जैसे ह भारतीय सेना दे वली पहँु ची, यह
गेड भी उनके साथ हो गई। उनका ल य अब ट क था, जहाँ का नवाब तािनय का प ठु बने हए
ु थे।
मु वा हनी ट क पहँु ची तो वहाँ क जनता उसके वागत के िलए उमड़ पड । ट क नवाब क सेना भी
ांितका रय के साथ हो गई। जनता ने नवाब को उसके महल म बंद कर वहाँ पहरा लगा दया।
भारतयीय सैिनक क श अब काफ़ बढ़ गई थी। उ सा हत होकर वह वशाल सेना आगरा क ओर बढ़
गई। रा त म पड़ने वाली अँ ेज़ फ़ौज को िशक त दे ते हए
ु सेना द ली पहँु च गई और फ़रं िगय पर
हमला कर दया।

कोटा के दो सपूत
1857 के वतं ता सं ाम का एक दःखद
ु प यह था क जहाँ राज थान क जनता और अपे ाकृत छोटे
ठकानेदार ने इस संघष म खुलकर फ़रं िगय का वरोध कया, वह ं अिधकांश राजघरान ने तािनय का
साथ दे कर इस वीर भूिम क परं परा को ठे स पहँु चाई।
कोटा के उस समय के महाराव क भी तािनय से संिध थी पर रा य क जनता फ़रं िगय को उखाड़
फकने पर उता थी। कोटा क सेना भी महाराव क संिध के कारण मन ह मन तािनय के ख़लाफ़ हो
गई थी। भारतीय सैिनक म आज़ाद क भावना इतनी बल थी क घ ् कोटा क ट जट ' नाम क वह
टु कड़ भी गोर के ख़लाफ़ हो गई, जसे तािनय ने ख़ास तौर पर अपनी सुर ा के िलए तैयार कया

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था। कोटा म मौजूद भारतीय सैिनक तथा जनता म आज़ाद क बल अ न जविलत करने वाले दे श
भ के मु य थे लाला जयदलाय तथा मेहराब खान। भारत माता के इन दोन सपूत के पास ांित का
ee
तीक घ ् र -कमल ' काफ़ पहले ह पहँु च चुका था तथा छाविनय म घ ् रोट ' के ज रये फ़रं िगय के
ख़लाफ़ उठ खड़े होने का संदेश भी भेजा जा चुका था।
गोकुल (मथुरा) के रहने वाले लाला जयदयाल को महाराव ने हाड़ौती एजसी के िलए अपना वक ल िनयु
कर रखा था। तािनय को 35 वष य लाला जी क गित विधय पर कुछ संदेह हो गया, अतः उ ह ने
ah
उनको पद से हटवा दया। जयदयाल अब सावधानी से जन-जागरण का काम करने लगे। इस बीच नीमच,
नसीराबाद और दे वली के संघष क सूचना कोटा पहँु च चुक थी। मेहराब खान रा य क सेना क एक
टु कड़ घ ् पायगा पलटन ' म रसालदार थे। सेना को ांित के िलए तैयार करने म मु य भूिमका मेहराब
खान क ह थी।
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कोटा म वरा य था पत हआ

15 अ टू बर 1857 को कोटा रा य क 'नारायण पलटन' तथा 'भवानी पलटन' के सभी सैिनक ने तोप व
अ य हिथयार लेकर कोटा म मौजूद अँ ेज़ सैिनक अिधकार मेजर बटन को घेर िलया। सं या म लगभग
तीन हज़ार वरा य सैिनक का नेतृ व लाला जयदयाल और मेहराब खान कर रहे थे। वातं य सेना ने
रे जीडसी (मेजर बटन का िनवास) पर गोलाबार शु कर द । संघष म मेजर बटन व उसके दोन पु
स हत कई अँ ेज़ मारे गए। रे जीडे सी पर अिधकार कर ांितका रयो ने रा य के भंडार, श ागार तथा
कोषागार पर क जा करते हए
ु पूरे रा य को तािनय से मु करा िलया। पूरे रा य क सेना, अिधकार
तथा अ य मुख य भी वरा य वधम ' के सेनािनय के साथ हो गए।
रा य के ह एक अ य नगर पाटन के कुछ मुख लोग तािनय से सहानुभूित रखते थे। वातं य
सैिनक ने पाटन पर तोप के गोले बरसाकर वहाँ मौजूद तािनय को हिथयार डालने को बा य कर
दया। अब पूरे राजतं पर लाला जयदयाल और मेहराब खान का िनयं ण था। छह मह न तक कोटा
रा य म वतं ता सैनािनय का ह अिधकार रहा।
इस बीच कोटा के महाराव ने करौली के शासन मदन िसंह से सहायता माँगी तथा वरा य सैिनक का
दमन करने को कहा। हमारे दे श का दभा
ु य रहा क वतं ता सं ाम के यो ाओं को अपने ह दे शवािसय
से यु करना पड़ा। करौली से प ह सौ सैिनक ने कोटा पर आ मण कर दया। उधर मेजर जनरल
राब स भी पाँच हज़ार से अिधक सेना के साथ कोटा पर चढ़ आया। राज थान और पंजाब के कुछ राज
घरान क सहायता से अँ ेज़ अब भारतीय यो ाओं पर हावी होने लगे थे।
वकट प र थित दे ख कर मेहराब खान तथा उनके सहयोगी द नदयाल िसंह ने वािलयर राज के एक
ठकाने सबलगढ के राजा गो व दराव व ठल से सहायता माँगी। पर लाला जयदयाल को कोई सहायता
िमलने से पहले ह मेजर जनरल राब स तथा करौली और गोटे परु क फ़ौज ने 25 माच 1858 को कोटा
को घेर िलया। पाँच दन तक भारतीय सैिनक तथा फ़रं िगय म घमासान यु हआ।
ु 30 माच को
तािनय को कोटा म घुसने म सफलता िमल गई। लाला जयदयाल के भाई हरदयाल यु म मारे गए
तथा मेहराब खान के भाई कर म खाँ को पकड़कर तािनय ने सरे आम फाँसी पर लटका दया।
लाला जयदयाल और मेहराब खान अपने सािथय के साथ कोटा से िनकलकर गागरोन पहँु चे। अँ ेज़ भी

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पीछा करते हए
ु वहाँ पहँु च गए तथा गागरोन के मेवाितय का बबरता से क ते आम कया। तािनय क
बबरता यह ं नह ं क , भँवर गढ़, बड़ कचेड़ , ददवाडा आ द थान पर भी नरसंहार तथा म हलाओं पर
अ याचार कए गए। उ सभी ee
थान के लोग ने पीछे हटते
तािनय ने इन ठकान के हर घर को लूटा और फ़सल म आग लगा द ।
वातं य-सैिनक क सहायता क थी।

दे शभ का बिलदान
ah
अब सभी थान पर वतं ता सेनािनय क हार हो रह थी। लाला जयदयाल तथा मेहराब खान भी अपने
सािथय के साथ अलग-अलग दशाओं म िनकल गए। अँ ेज़ लगातार उनका पीछा कर रहे थे। डे ढ़ साल
तक अं ज को चकमा दे ने के बाद दसंबर, 56 म गुड़ गाँव म मेहराब खान तािनय क पकड़ म आ
गए। उन पर दे वली म मुकदमा चलाया गया तथा मृ युदंड सुनाया गया।
sh

इस बीच लाला जयदयाल क िगर तार के िलए तािनय ने 12 हज़ार . के इनाम क घोषणा कर द
थी। जयदयाल उस समय फ़क़ र के वेश म अलवर रा य म िछपे हए
ु थे। पय के लालच म एक
दे श ोह ने लाला जी को धोखा दे कर िगर तार करवा दया। उन पर भी दे वली म ह मुकदमा चलाया
गया। 17 िसत बर 1860 को लाला जयदयाल और मेहराब खान को कोटा एजसी के बग़ल के पास उसी
थान पर फाँसी द गई जहाँ उ ह ने मेजर बटन का वध कया था। इस तरह दो उ कट दे शभ वतं ता
के यु म अपनी आहित
ु दे अमर हो गए। उनका यह बिलदान थान आज भी कोटा म मौजूद है पर
अभी तक उपे त पड़ा हआ
ु है ।

सन स ावन के सैनानी ठाकुर कुशाल िसंह

जस तरह से वीर कुँवर िसंह ने भारत क आज़ाद के िलए अपना रण-रं ग दखाया उसी तरह राज थान
म आउवा ठाकुर कुशाल िसंह ने भी अपनी अनुपम वीरता से तािनय का मान मदन करते हए
ु ांित के
इस महाय म अपनी आहित
ु द । पाली ज़ले का एक छोटा सा ठ◌ाकाना था घ ् आउवा ' , ले कन ठाकुर
कुशाल िसंह क मुख रा भ ने सन ् स ावन म आउवा को वातं य-संघष का एक मह वपूण क बना
दया। ठाकुर कुशाल िसंह तथा मारवाड़ का संघष थम वतं ता का एक व णम पृ है ।
जोधपुर के दे शभ महाराजा मान िसंह के सं यासी हो जाने के बाद तािनय ने अपने प ठु त त िसंह
को जोधपुर का राजा बना दया। त त िसंह ने तािनय क हर तरह से सहायता क । जोधपुर रा य उस
समय तािनय को हर साल सवा लाख पया दे ता था। इस धन से तािनय ने अपनी सुर ा के िलए
एक सेना बनाई, जसका नाम घ ् जोधपुर लीजन ' रखा गया। इस सेना क छावनी जोधपुर से कुछ दरू
ए रनपुरा म थी। अँ ेज़ सेना क राज थान क छह मुख छाविनय म यह भी एक थी। राज थान म
वाधीनता सं ाम क शु आत 28 मई, 1857 को नसीराबाद से हई
ु थी। इसके बाद नीमच और दे वली के
भारतीय सैिनक भी संघष म कूद चूके थे। अब बार थी ए रनपुरा के घ ् जोधपुर लीजन ' क , जसे
फ़रं िगय ने ख़ासकर अपनी सुर ा के िलए बनाया था।

n
सूबेदार गोजन िसंह का आबू पर हमला
जोधपुर के महाराज त त िसंह तािनय क कृपा से ह सुख भोग रहे थे, अतः वतं ता य क जवाला
भड़कते ह उ ह ने तुरंत ee
तािनय क सहायता करने क तैयार कर ली। जोधपुर क जनता अपने राजा
के इस आचरण से काफ़ ग़ु से म थी। रा य क सेना भी मन से वाधीनता सैनािनय के साथ थी तथा
घ ् जोधपुर लीजन ' भी सश ांित के महाय म कूद पड़ना चाहती थी। नसीराबाद छावनी म ांित क
शु आत होते ह जोधपुर-नरे श ने राजक य सेना क एक टु कड़ गोर क मदद के िलए अजमेर भेद द ।
ah
इस सेना ने तािनय का साथ दे ने से इं कार कर दया। कुशलराज िसंघवी ने सेनापित व म जोधपुर क
एक और सेना नसीराबाद के भारतीय सैिनक को दबाने के िलए भेजी गई। इस सेना ने भी तािनय का
साथ नह ं दया। ह डौन म जयपुर रा य क सेना भी जयपुर नरे श क अव ा करते हए
ु ांितकार
भारतीय सेना से िमल गई। इस सब घटनाओं का अं ेज क वशेष सेना घ ् जोधपुर लीजन ' पर भी
sh

असर पड़ा। इसके सैिनक ने वतं ता सं ाम म कूद पड़ने का िन य कर िलया।


अग त 1857 म इस 'लीजन ' क एक टु कड़ को रोवा ठाकुर के ख़लाफ़ अनादरा भेजा गया। इस टु कड़
के नायक हवलदार गोजन िसंह थे। रोवा ठाकुर पर आ मण के थान पर 21 अग त क सुबह तीन बजे
यह टु कड़ आबू पहाड़ पर चढ़ गई। उस समय आबू पवत पर काफ सं या म गोरे सैिनक मौजूद थे।
गोजन िसंह के नेतृ व म जोधपुर लीजन के वतं ता सैिनक ने दो तरफ़ से फ़रं िगय पर हमला कर
दया। सुबह के धुंधलके म हए
ु इस हमले से अँ ेज़ सैिनक म भगदड़ मच गई। आबू से तािनय को
भगा कर गोजन िसंह ए रनपुरा क और चल पड़े । गोजन िसंह के पहँु चते ह लीजन क घुड़सवार टु कड़
तथा पैदल सेना भी वरा य-सैिनक के साथ हो गई। तोपखाने पर भी मु -वा हनी का अिधकार हो
गया। ए रनपुरा छावनी के सैिनक ने मेहराब िसंह को अपना मु खया चुना। मेहराब िसंह को घ ् लीजन '
का जनरल मान कर यह सेना पाली क ओर चल पड़ ।

आउवा म वागत
आउवा म च पावत ठाकुर कुशाल िसंह काफ़ पहले से ह वदे शी (अँ ेज़ी) शासक के ख़लाफ़ संघष करने
का िन य कर चुके थ। अँ ेज़ उ ह फूट आँख भी नह ं सुहाते थे। नाना साहब पेशवा तथा ता या टोपे से
उनका संपक हो चूका था। पूरे राज थान म तािनय को धूल चटाने क एक यापक रणनीित ठाकुर
कुशाल िसंह ने बनाई थी।
सलू बर के रावत केसर िसंह के साथ िमलकर जो यूह-रचना उ ह ने क उसम य द अँ ेज़ फँस जाते तो
राज थान से उनका सफाया होना िन त था। बड़े राजघरान को छोड़कर सभी छोटे ठकान के सरदार
से ांित के दोन धुरधर क गु मं णा हई।
ु इन सभी ठकान के साथ घ ् जोधपुर लीजन ' को जोड़कर
कुशाल िसंह और केसर िसंह तािनय के ख़लाफ़ एक अजेय मोचब द करना चाहते थे।
इसीिलए जब जनरल मेहरबान िसंह क कमान म जोधपुर लीजन के जवान पाली के पास आउवा पहँु चे तो
ठाकुर कुशाल िसंह ने वातं य-सैिनक का क़ले म भ य वागत कया। इसी के साथ आसोप के ठाकुर
िशवनाथ िसंह, गूलर के ठाकुर बशन िसंह तथा आलयिनयावास के ठाकुर अजीत िसंह भी अपनी सेना
स हत आउवा आ गए। ला बया, ब तावास तथा दावास के जागीरदार भी अपने सैिनक के साथ आउवा
आ पहँु चे। सलू बर, पनगर, लासाणी तथा आसी द के वातं य-सैिनक भी वहाँ आकर तािनय से दो-

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दो हाथ करने क तैयार करने लगे। वाधीनता सैिनक क वशाल छावनी ह बन गया आउवा। द ली
गए सैिनक के अित र हर वातं ता- ेमी यो ा के पैर इस श क क ओर बढ़ने लगे। अब सभी
सैिनक ने िमलकर ठाकुर कुशाल िसंह को अपना ee मुख चुन िलया।

मॉक मेसन का सर काटा


आउवा म वाधीनता- सैिनक के जमाव से फ़रं गी िचंितत हो रहे थे अतः लोहे से लोहा काटने क
ah
कूटनीित पर अमल करते हए
ु उ ह ने जोधपुर नरे श को आउवा पर हमला करने का हु म दया। अनाड़िसंह
क अगुवाई म जोधपुर क एक वशाल सेना ने पाली से आउवा क ओर कूच कया। आउवा से पहले
अँ ेज़ सेनानायक ह थकोटा भी उससे िमला। 8 िसत बर को वरा य के सैिनक ने घ ् मारो फ़रं गी को '
तथा घ ् हर-हर महादे व ' के घोष के साथ इस सेना पर हमला कर दया। अनाड़िसंह तथा ह थकोट बुर
sh

तरह हारे । बथौड़ा के पास हए


ु इस यु म अनाड़ िसंह मारा गया और ह थकोट भाग खड़ा हआ।
ु जोधुपर
सेना को भार नुकसान उठाना पड़ा। इस सेना क दगित
ु का समाचार िमलते ह जाज लारस ने यावर म
एक सेना खड़ क तथा आउवा क ओर चल पड़ा। 18 िसत बर को फ़रं िगय क इस वशाल सेना ने
आउवा पर हमला कर दया। तािनय के आने क ख़बर लगते ह कुशाल िसंह क़ले से िनकले और
तािनय पर टू ट पड़े । चेलावास के पास घमासान यु हआ
ु तथा लारे स क करार हार हई।
ु मॉक मेसन
यु म मारा गया। ांितका रय ने उसका िसर काट कर उसका शव क़ले के दरवाज़े पर उलटा लटका
दया। इस यु म ठाकुर कुशाल िसंह तथा वातं य-वा हनी के वीर ने अ त
ू वीरता दखाई। आस-पास से
े म आज तक लोकगीत म इस यु को याद कया जाता है । एक लोकगीत इस कार है ढोल बाजे
चंग बाजै, भलो बाजे बाँ कयो।

एजट को मार कर, दरवाज़ा पर टाँ कयो।


झूझे आहवो
ू ये झूझो आहवो
ू , मु कां म ठाँव दया आहवो।

इस बीच ड सा क भारतीय सेनाएँ भी ांितका रय से िमल गई। ठाकुर कुशाल िसंह क यूह-रचना सफ़ल
होने लगी और तािनय के ख़लाफ़ एक मजूबत मोचा आउवा म बन गया। अब मु -वा हनी ने जोधपुर
को तािनय के चंगल
ु से छुड़ाने क योजना बनाई। उसी समय द ली म ांितका रय क थित
कमज़ोर होने के समाचार आउवा ठाकुर को िमले कुशल िसंह ने सभी मुख लोग के साथ फर से अपनी
यु -नीित पर वचार कया। सबक सहमित से तय हआ
ु क सेना का एक बड़ा भाग द ली के वाधीनता
सैिनक क सहायता के िलऐ भेजा जाए तथा शेष सेना आउवा म अपनी मोचब द मज़बूत कर ले। द ली
जाने वाली फ़ौज क समान आसोप ठाकुर िशवनाथ िसंह को स पी गई।
िशवनाथ िसंह आउवा से व रत गित से िनकले तथा रे वाड़ पर क जा कर िलया। उधर तािनय ने भी
मु वा हनी पर नज़र रखी हई
ु थी। नारनौल के पास गे डयर गेराड ने ांितका रय पर हमला कर
दया। अचानक हए
ु इस हमले से भारतीय सेना क मोचाब द टू ट गई। फर भी घमासान यु हआ
ु तथा
फ़रं िगय के कई मुख सेनानायक यु म मारे गए।

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बड़सू का भीषण सं ाम

पर हमला करने क
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जनवर म मु बई से एक अं ेज फौज सहायता के िलए अजमेर भेजी गई। अब कनल हो स ने आउवा
ह मत जुटाई। आस-पास के और सेना इक ठ कर कनल हो स अजमेर से रवाना
हआ।
ु 20 जनवर , 1858 को हो स ने ठाकुर कुशाल िसंह पर धावा बोला दया। दोन ओर से भीषण
गोला-बार शु हो गई। आउवा का कला वतं ता सं ाम के एक मजबूत तंभ के प म शान से खड़ा
ah
हआ
ु था। चार दन तक तािनय और मु वा हनी म मुठभेड़ चलती रह ं। तािनय के सैिनक बड़
सं या म हताहत हो रहे थे। यु क थित से िचंितत हो स ने अब कपट का सहारा िलया। आउवा के
कामदार और क़लेदार को भार धन दे कर कनल हो स ने उ ह अपनी ह सािथय क पीठ म छुरा घ पने
के िलए राज़ी कर िलया। एक रात क़लेदार ने क ल का दरवाजा खोल दया। दरवाज़ा खुलते ह अँ ेज़
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क़ले म घुस गए तथा सोते हए


ु ांितका रय को घेर िलया। फर भी वातं य यो ाओं ने बहादरु से यु
कया, पर अँ ेज़ क़ले पर अिधकार करने म सफल हो गए। पासा पटलते दे ख ठाकुर कुशाल िसंह यु
जार रखने के िलए दसरा
ू दरवाज़े से िनकल गए। उधर तािनय ने जीत के बाद बबरता क सार हद
पार कर द । उ ह ने आउवा को पुर तरह लूटा, नाग रक क ह याएँ क तथा मं दर को व त कर दया।
क़ले क िस महाकाली क मूित को अजमेर ले ज़ाया गया। यह मूित आज भी अजमेर के पुरानी मंड
थत सं हालय म मौजूद है ।
इसी के साथ कनल हो स ने सेना के एक ह से को ठाकुर कुशाल िसंह का पीछा करने को भेजा। रा ते
म िस रयाली ठाकुर ने अं ेज को रोका। दो दन के संघष के बाद अं ेज सेना आगे बढ़ तो बडसू के पास
कुशाल िसंह और ठाकुर िशवनाथ िसंह ने अं ेज को चुनौती द । उनके साथ ठाकुर बशन िसंह तथा ठाकुर
अजीत िसंह भी हो गए। बगड़ ठाकुर ने भी उसी समय अं ेज पर हमला बोल दया। चालीस दन तक
चले इस यु म कभी मु वाह नी तो कभी अं ेज का पलड़ा भार होता रहा। तभी और सेना आ जाने
से अं ेज क थित सुधर गई तथा वातं य-सैिनक क पराजय हई।
ु कोटा तथा आउवा म हई
ु हार से
राज थान म वातं य-सैिनक का अिभयान लगभग समा हो गया। आउवा ठाकुर कुशाल िसंह ने अभी
भी हार नह ं मानी थी। अब उ ह ने ता या टोपे से स पक करने का यास कया। ता या से उनका
स पक नह ं हो पाया तो वे मेवाड़ म कोठा रया के राव जोधिसंह के पास चले गए। कोठा रया से ह वे
अं ेज से छुट-पुट लड़ाईयाँ करते रहे ।

जन-नायक कुशाल िसंह


ठाकुर कुशालिसंह के संघष ने मारवाड़ का नाम भारतीय इितहास म पुनः उ वल कर दया। कुशाल िसंह
पूरे मारवाड़ म लोक य हो गए तथा पूरे े के लोग उ ह वतं ता सं ाम का नायक मानने लगे।
जनता का उ ह इतना सहयोग िमला था क लारस तथा हो स क सेनाओं पर रा ते म पड़ने वाले गाँव
के ामीण ने भी जहाँ मौक़ा िमला हमला कया। इस पूरे अिभयान म मु -वा हनी का नाना साहब
पेशवा और ता या टोपे से भी संपक बना हआ
ु था। इसीिलए द ली म वातं य-सेना क थित कमज़ोर
होने पर ठाकुर कुशाल िसंह ने सेना के बड़े भाग को द ली भेजा था। जनता ने इस संघष को वदे शी
आ ा ताओं के व कया जाने वाला वाधीनता संघष माना तथा इस संघष के नायक प म ठाकुर

n
कुशाल िसंह को लोक-गीत म अमर कर दया। उस समय के कई लोक-गीत तो आज भी लोक य ह।
होली के अवसर पर मारवाड़ म आउवा के सं ाम पर जो गीत गाया जाता है , उसक बानगी दे खये -

व णया वाली गोचर मांय कालौ लोग प ड़यौ ओ


ee
राजाजी रे भेळो तो फरं गी ल ड़यो ओ काली टोपी रो!
ah
हाँ रे काली टोपी रो। फरं गी फेलाव क धौ ओ काली टोपी रो!
बारली तोपां रा गोळा धूडगढ़ म लागे ओ मांयली तोपां रा गोळा त बू तोड़े ओ झ लै आउवौ! मांयली तोपां
तो झूटे, आडावली धूजै ओ आउवा वालौ नाथ तो सुगाली पूजै ओ झगड़ौ आद रयौ!
हां रे झगड़ौ आद रयो, आउवौ झगड़ा म बांकौ ओ झगडौ आद रयौ! राजाजी रा घेड़िलया काळां रै लारे दोड़ै
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ओ आउवौ रा घेड़ा तो पछाड़ तोड़े ओ झगड़ौ होवण दो!


हाँ रे झगड़ौ होवण दो, झगड़ा म थार जीत है ला ओ झगड़ौ होवण दो!

राज थानी धरती पर उ प न 1857 क ांित से संबिं धत अनेक लोक गीत-गाथाएँ िमलती ह। 1857 क
आजाद क पहली लडाई से पूव राज थान म जन लोग ने तािनय से ट कर ली उसम राज थान के
भरतपुर रयासत मुख थी। इसके साथ ह जोधपुर के राजा मानिसंह का च र भी रा ीयता से ओत- ोत
था। महाराव डू ं गरपुर जसवंत िसंह नरिसंहगढ़, राजकुंवर चैन िसंह, डू ं गजी जवारजी और उमरकोट के रतन
राणा, राव गोपाल िसंह खरवा के काय 1857 क ांित क भूिमका बने। भरतपुर के घेरे से संबिं धत
लोकगीत अभी भी होली के अवसर पर गाए जाते ह। जसके बोल म जनता का वरोध झलकता है -

गोरा हट जा!
राज भरतपुर के रे गोरा हट जा

भरतपुर गढ़ बंका रे गेरा हट जा।


यूं मत जाणै गोरा लड़ै बेटौ जाट के
ओ तो कुंवर लड़ै रे राजा दशरथ को गोरा हट जा।

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इसके साथ ह डु ं गरजी क गाथा बी क वय ने गाई है , जसके पद-पद म तािनय का वरोध है -

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सन ् स ावन सूं पैलीई, ए जोत जगावण वा ठा रहा।
आजाद बा ठै दवलैर , व ठर लौ का रखवाला हा।

इस जंगे आजाद क आहट लोक और क वय ने सुन ली थी इसीिलए महाराज मानिसंह के आि तक व


ah
बाँक दास ने िलखा था-

आयौ इं गरे ज मुलक है ऊपर आहं स लीथा खिच उरा,


ध णयं मरै नद धी धरती, ध णयां ऊभां गई धरा।
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इसी तरह मानिसंह से जोधपुर क संिध म सांभरझील तािनय के हड़प ली थी। उसक पीड़ा एक
लोकगीत म य हई
ु है -

हारौ राजा भो ठौ, सांभर तौ दे द नी रे


अँगरे ज नै हारौ राजा मो ठौ

बाँक दास ने त कालीन मारवाड़ के चौहटन ठकाने के ठाकुर क शंसा म गीत िलखा है , ज ह ने गोर
स ा के व तार को रोका था तथा वीरतापूवक लड़ते हए
ु ठाकुर याम िसंह चौहान शह द हए
ु थे-
हट वद जद नहर हो फ रया,
साद जसड़ा साथ िसपाइ,
मेर जद मंड बाहड़ मेरै,
गोरां सू रिचयौ गज गज-गाह।

डं गल के सु िस क व सूयम ल िम ण तो प िलखते ह-

जण बन भूल नजावता गदगवय िगडराज।


ितणबन जंबक
ु तारवड़ा, ऊधम मंडै आज।

अथात ् राज थानी पी जस वन म गडे , हाथी और सूकर िसंध के भय से भूलकर भी नह ं जाते थे आज


उस जंगल म अँ ज पी लोम ड़याँ और िसयार उ पात मचा रहे ह। ांितकार वीर 1857 के नायक
ता या टोपे के बारे म डं गल के क व शंकर दान सामोर का एक गीत दे ख -

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मचायौ हं द म आखी तइलकौ तांितय-मोटो,
घोम जेम घुमायो लंक म हणु घोर।
रचायौ ठं ती राजपूती रौ
ee
आखर जंग जंग म दखायौ सुवायौ अभाग जोर।
ah

शंकरदान सामोर ने ह 1857 क नाियका रानी ल मीबाई के िलए इस तरह अपने भाव य कए ह -

हयौ
ु जाण बेहाल, भाल हं दर मोम ठरे ।
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झगड़ौ िनज भुज झाल, िलछमी झांसी र लड़ ।

जोधपुर मारवाड़ म 1857 क ांित के अ दत


ू थे आऊवा के ठाकुर खुशाल िसंह, ज ह ने तािनय और
रयासत क सेना से जबरद त लोहा िलया था। जसे त कालीन क वय - महाक व सूय म ल िम ण,
िगरवरदान और ितलोकदान व शंकर दाने सामोर जैसे क वय ने अनेक डं गल गीत म बखाना है , परं तु
'भाऊवा' और ठाकुर खुशाल िसंह के बिलदान को लोकगीत म आज तक गाया जा रहा है -

व णया वाली गोचर मांय, रालौ प ड़यौ ओ


राजाजी रै मेलौ तो फरं गी ल ड़यौ ओ काली टोपी रो।
हां रै काली टोपी रो।
फरं गी फैलाव क धौ ओ काली टोपी रो।
इस संबध
ं म एक और लोकगीत य है , जसम तािनय संबध
ं ी उ ार व लोक धारणाएँ इतनी प है
क लोक क नफरत साफ दखाई दे ती है -

दे स म अंगरे ज आयो, कोई कांई चीजां लायो रे ।


फूट जाली भायां म, बेगार लायो रे काली टोपी रौ।
हां रे काली टोपी रो अंगेरज दे स म छाविनयां नांखै रे काली टोपी रौ।

आऊवा के यु म अँ ेज सेनापित मारा गया जसे गढ़ के दरवाजे पर टांग दया गया था, इसे एक
लोकगीत म इस तरह गाया गया है -

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ढोल बाजै, थाली बाजै, मेलौ बाजै बां कयौ
अजंट नै भार नै दरवाजै नां खयौ जूंझे आऊवौ।
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हां रे जूंझै आऊवौ, आऊवौ, मु का म चाव ओ। जूंझे आऊवौ।

1857 के संघष क वाणी राज थानी- कंगल क वता का अ त


ू अ याय है , जस पर रा को नाज है । इस
ah
लोकगीत के करण म एक लोकगीत क यह श दावली कतनी यं यपूण ह जो तािनय क वृितय
को समाने लाती ह-

िगट पट िगट पट बोली बोलै बातां मारै घूणा क


sh

मत मूडै लगाऔ ई नै मत बतलाऔ।

1857 के संघष के एक नायक का बखान एक फाग म इस तरह कया गया है -

दे खो मेड़ितया और डावै कांन मु क रे


बारै बरस दखा म रया आँख फुटक रे लौगो आऊवौ।
हां रे लेणौ आऊवौ, झगड़ां म थार जीत होती मो लेणौ आऊवौ।

और अंत म ये लोकगीत आज भी 1857 क याद दलाते ह-

मुजरौ ले बोनीं बाबिलया होली रं च राची।


मुजरौ ले लोनीं।
टोली रे ट कायत माथै थारा हाकम च ढ़या
ओ गोली रा लोगाड़ा भाई भाखर िमिलया हो झड़ झंगा म।

राज थानी, भोजपुर , मगह , मैिथली, बघेली, बुद


ं े ली, जी, मालवी, अवधी क तरह कुछ वाह धार बोली म
क वय ने 1857 के थम वतं ता सं ाम-सेनािनय के बिलदान को बड़ ा और भ के साथ
लोकगीत म उनके शौय गान कर मरण कया है । कुछवाहधर अथात ् िभ ड (म. .) अंचल क बोली म
आज तक चिलत कितपय लोकगीत य ह-

राखो पुरखन को स मान


इन भइया बाब को तिनक न जान ,

n
इन भइया बाबो को तिनक मान
गोरा आए इनक भूिम म
तेगन स काटे थो फरमान।
राखो पुरखन को स मान।
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भुतहाकछार जो बजत है
बलाव गाँव से जो लगत है
ah
मूंडन के ख रयान बनाए,
गोरा छोड़ गण मैदान।
वीर भूिम के वीर ह
भइया वीर भूिम के सूर ह
sh

भइया दल दहलाए जन गोरन के,


राखो आपन मान।
राखो पुरखन को स मान।

इसी कार होली के अवसर पर शह द के मारक पर ामीण जन अबीर लगाकर होली खेलते ह और
साज-बाज के साथ होली आनराय गीत गाते ह। उ नीसवीं सद के इस गीत को आप दे ख -

मैने ढू ढ़े चारहँु ओर म, बछुरे भइया न िमले,


कै भइया बन को गए हा ऽऽ
कै गए ससुराल,मने ढू ढ़े चारहँु ओर म...........।
ना भइया वन क गए न गए ससुराल।
मने ढू ँ ढ़े चरहँु ओर म.............।
घोड़ा बँधा न घुड़साल म हाऽऽ
ना खूँट टं गी तलवार मने ढू ढ़े चारहँु ओर म...........।
यु न म मइया गए सो भारत, माँ के मये दलार।

मने ढू ढ़े चारहँु ओर म, बछुरे भइया ना िमले।

राज थानी लोकनृ य

राज थान म चिलत लोकनृ य क व वधता का अंदाज इस बात से ह लगाया जा सकता है क वहां

n
िसफ म हलाओं और पु ष के ह नृ य नह ं ह, ब क ब च , कशोर- कशो रय और जवान लड़ कय के
ee
िलए भी अलग-अलग नृ य ह। छोटे ब च के नाच का नाम है 'खोदा', जब क कशोराव था के िलए
'छमछड़ '। इसके अलावा जवान, ले कन कुंवार लड़ कय का बड़ा ह सधा हआ
ु और बजली को भी मात
दे ने वाला च करदार नृ य है । 'चकर ' पर परा म इसका नाम 'राई' था, ले कन घाघरे क तेज गित व
घूमती-इठलाती चक रय के कारण इसे 'चकर ' कहा जाने लगा।
ah

राज थान कई मायन म दे श के दसरे


ू इलाक क तुलना म कुछ अलग सा और अनूठा है । बात चाहे
भूगोल या इितहास क हो, चाहे श और भ क हो अथवा फर कला या सं कृित क हो लोकरं ग क
जतनी व वधता यहां दे खने को िमलती है , शायद ह कह ं और िमले। राज थानी लोकनृ य क भी ऐसी
sh

ह समृ द पर परा है ।
लोक म चिलत इस अकूत साझी संपदा का संर ण करना, उसम साझेदार िनभाना बहत
ु ज र है । यह
लोक ह हमार मौ खक और त
ु -पर पराओं का ाचीन और मह वपूण मा मय रहा है । कहने, सुनने और
दे खने क पर पराएं इं य-गोचर ह। जो कुछ दे खा, सुना, छुआ, सूंघा और चखा जा सकता है , वह सब
कुछ इस लोक म ह समा हत है ।

इन लोक-पर पराओं का अहम ् पहलू है -स ेषण। यह स ेषण िसफ भाषा का ह नह ं, हाव-भाव का,
इशारे का, चे ा और नकल का, हं सी और दन का तथा मौन और मदद का भी होता है । भाषा से पहले
तो सं ेषण का मा यम संकेत ह था, जो इं सान के साथ आ दम काल से ह चला आया है । ऐसे अनेक
मा यम म नृ य इस ाचीन पर परा का सश और कला मक मा यम है । आज भी हमार साझी
अमू य और सामू हक वरासत के प म दे शभर म ये नृ य िश त के साथ मौजूद है ।

लोकनृ य समूह क रचनाएं ह और समूह क भागीदार ह इनका उ े य है । सामुदाियक प म ये फलते-


फूलते ह और अिभ य भी समूह म ह पाते ह। समूह म ह हर य नृ य रचता रहता है । कोई भी
य , समुदाय या कबीला ऐसा नह ं है क जहां नाच-गाना न हो। लोकनृ य म य तो म हलाएं और
पु ष िमल-जुलकर अपनी साझेदार िनभाते ह, बावजूद इसके कहना पड़े गा क इस साझी वरासत को
म हलाओं ने ह संभालकर रखा है । लोकनृ य क सुंदरता, व वधता और िनरं तरता को वहन करने म
म हलाएं पु ष से कह ं दो कदम आगे ह ह।
राज थान म चिलत लोकनृ य क व वधता का अंदाज इस बात से ह लगाया जा सकता है क वहां
िसफ म हलाओं और पु ष के ह नृ य नह ं ह, ब क ब च , कशोर- कशो रय और जवान लड़ कय के
िलए भी अलग-अलग नृ य ह। छोटे ब च के नाच का नाम है 'खोदा', जब क कशोराव था के िलए
'छमछड़ '। इसके अलावा जवान, ले कन कुंवार लड़ कय का बड़ा ह सधा हआ
ु और बजली को भी मात
दे ने वाला च करदार नृ य है । 'चकर ' पर परा म इसका नाम 'राई' था, ले कन घाघरे क तेज गित व
घूमती-इठलाती चक रय के कारण इसे 'चकर ' कहा जाने लगा।

n
इितहासपरक नृ य क पृ भूिम म कोई घटना वशेष या कोई पुराना संग जुड़ा होता है । पुरानी घटना या
कसी नायक वशेष को याद करते हए
ु ये नृ य अपने हाव-भाव, पहनावे और अंग-संचालन से वीरता और
बहादरु के भाव य ee
करते ह। ऐसे नृ य म इितहास भी जीवंत हो उठता है । 'आंगी-बांगी', 'मांडल का
नार' (शेर), 'तलवार क गैर', तथा 'घुड़ला' नामक ऐसे ह लोकनृ य है , जनम ऐितहािसक संग अथवा
नायक को फर से ित त करने का यास कया जाता है ।
ah
राज थानी लोकनृ य म मान-मनोवल के नृ य ह, तो उलाहन -िशकायत वाले नृ य भी है । जुलूस और
सवार वाले नृ य क तो छटा ह िनराली है । मेले-ठे ले और उ सव पव वाले नृ य के तेवर ह अलग है ।
यहां िशकार नृ य ह, तो नुगर -सुगर आ माओं को स न करने वाले नृ य भी ह। आदमी को स मो हत
कर मजबूर करने वाले नृ य ह, तो क र मा और कौतुक दखाने वाले अजूबे नृ य भी यहां ह। फसल से
sh

जुड़े लोकनृ य क बहार भी यहां कम नह ं है , तो कठपुतली-नृ य क तो कोई सीमा ह नह ं है ।

गीत-नृ य, गाथा-नृ य, नाटय-नृ य आ द अनेक प म ये लोकनृ य हमार अनुपम वरासत ह। इनम से


बहत
ु से नृ य क पहचान अथवा बनावट सीमावत दे श का असर िलए हए
ु ह। राज थानी नृ य म
'बम', 'डांग', 'रिसया' आ द पर ज-सं कृित क गहर छाप है , तो 'भवाई' जैसा नृ य गुजरात का नया ह
रं ग भर दे ता है । जसनाथी िस द का 'अ न', रावल का 'खेड़ा', कामड़ का 'तेराताली' आ द लोकनृ य
अपने नजद क अंचल से साझेदार िनभाते हए
ु इस कला को व तार दे ते ह।

लोकनृ य क एक शाखा घूमंतु जीवन जीने वाले नट और कालबेिलय के नृ य क है । ये लोग


ज मजात कलाकार होते ह और राज थान के अलावा दसरे
ू दे श म अपने नृ य- दशन से रोजी-रोट
कमाते ह। चौमासे के चार मह न को छोड़कर बाक समय म अपने डे र के साथ ये खानाबदोश लोग
दसर
ू जगह के िलए िनकल पड़ते ह। अलवर जले के कोई तेर सौ नट-प रवार इसी तरह सकड़ बरस से
यायावर जीवन के अ यासी बने हए
ु ह। इन प रवार क जवान बहू -बे टयां ह रयाणा, पंजाब, उ र दे श,
म य दे श आ द जगह मे जाकर शाद - याह या दसरे
ू उ सव पर अपनी कला का दशन करती है । यहां
सबके अपने-अपने यजमान और इलाके बंटे हए
ु ह, जहां से ये 'नेग' पाते ह। इस कार के डे रा-नृ य भारत
से बाहर भी ह, जहां वष पूव घूमते-घामते कलाकार वहां पहंु चकर डे र के प म बस गये।

शा ीय कलाओं क तरह लोकनृ य कसी घराने के मोहताज नह ं ह। ये अपने-आप म ह एक वशाल


घराना है । अनेक शा ीय कलाएं अपने मूल म लोक क धरोहर रह ह। लोक कलाओं के विभ न प से
ह शा ीय या िश कलाएं पैदा हई
ु ह। लोक क पकड़ से ढ ले होकर ये कला प शा के अंग बन गए।
य द शा ीय नृ य क ह बात क जाए, तो दे श भर म ऐसे कतने नृ य ह? सं या के हसाब से इनक
लोकनृ य से तुलना करना बेमानी ह होगी। शा ीय नृ य म भरतनाटयम, क थक, ओ डसी, म णपुर ,
कुिचपुड़ , मो हनीअ टम आ द-आ द ह। क थक नृ य के नाम से ह पता लगता है क कहने क मौ खक
पर परा यानी लोकगाथाओं क पर परा से ह यह नृ य िनकला होगा। इसी कार म णपुर (म णपुर),
ओ डसी (उड़ सा), मोहनीअ टम (केरल) आ द नृ य क विन से इनक थािनकता क उपज का संकेत

n
िमल जाता है । हमारे उ ताद संगीत म भी ऐसे अनेक उदाहरण ह, जहां राग के नाम ह इलाके वशेष के
साथ जुड़े हए
ु ह। राम जौनपुर (जौनपुर), राग मु तानी (मु तान), राग सोरठ (सौरा ), राग मालब
ee
(मालवा) आ द अनेक राग ह जो अपने-अपने लोक संगीत से रस खींचकर शा क दिनया
ु म ित त ह।

लोक के साथ शा क साझेदार क इस लंबी पर परा म कुछ अपवाद भी ह, जो लोग और शा के


म को उलट-पुलट दे ते ह। राज थान म 'गवर ' नामक लोकनृ य का इितहास इस से अजीबोगर ब
ah
ह कहा जायेगा। तीसर -चौथी सद म उदयपुर के पास उबे र मं दर का माहौल संगीत और नृ यमय था।
गौर -तांडव नामक शा ीय नृतय कालांतर म 'गवर ' नाम से भील आ दवािसय क जंदगी का कैसे
ह सा बन गया? इस बारे म भील म बडा दलच प िमथक चिलत है क कसी समय पं डत ने यह
नृ य सवा पये म उनके यहां िगरवी रख दया था, जसे वे आज तक वापस नह ं छुड़ा सके।
sh

आधुिनक व ान और टे नोलॉजी के असर से कुछ लोकनृ य क संरचनाओं म बदलाव भी आया है । कुछ


क पहचान धूिमल हई
ु है तो कुछ लोकनृ य अंतरा ीय तर क याित भी पा गए ह। कुछ ऐसे भी
लोकनृ य है जनका पर परागत नाम ह बदल कर दसरा
ू हो गया है । लोकनृ य क इस वपुल और
ाचीन वरासत को लोक ने अपनी साधना और लगन के बल पर लोकजीवन म, मनु य के जीवन म
उसका एक अंग बनाकर ित त कर दया है । ये लोकनृ य मनोरं जन करने वाली कोर कलाबाजी नह ं ह,
ब क ये इितहास, सं कृित, कला, दशन और कुल िमलाकर जीवनधिमता के वाहक ह। ये लोकनृ य हम
सभी के ह।

मारवाड़ के लोकवा
मानव जीवन संगीत से हमेशा से जुड़ा रहा है । संगीत मानव के वकास के साथ पग-पग पर उप थत
रहा है । वष ण दय को आ ला दत एवं िनराश मन को ितपल फु लत रखने वाले संगीत का
अ वभा य अंग है - व वध-वा यं । इन वा ने संगीत क भावो पादकता को प रविधत कया और
उसक संगीितकता म चार चाँद लगाए ह। भांित-भाँित के वा यं के सहयोगी वर से संगीत क
आकषण श भी वव क त हो जाती है ।

भारतीय संगीत म मारवाड़ म मारवाड़ के व वध पारं प रक लोक-वा अपना अनूठा थान रखते ह।
मधुरता, सरसता एवं व वधता के कारण आज इन वा ने रा ीय ह नह ं, अ पतु अंतरा ीय तर पर
अपनी पहचान कायम क है । कोई भी संगीत का रा ीय या अंतरा ीय समारोह या महो सव ऐसा नह ं
हआ
ु , जसम म दे श के इन लोकवा को ितिनध व न िमला है ।

n
मारवाड लोक-वा को संगीत क से पॉच भाग म वभा जत कया जा सकता है - यथातत, बतत,
सु षर, अनुब व धन। ताथ वा म दो कार के वा आते ह- अनुब व धन।

अनुब म चमडे से मढे वे वा


ee
आते ह, जो डं डे के आधात से बजते ह। इनम नगाडा, घूस
ं ा, ढोल, बंब, चंग
आ द मु य ह।
ah
लोहा, पीतल व कांसे के बने वाध को धन वाध कहा जाता है , जनम झांझ, मजीरा, करताल, मोरचंगण
ीमंडल आ द मुख ह।

तार के वाध म भी दो भेद ह- तत और वतत। तत वा म तार वाले वे साज आते ह, जो अंगिु लय या


sh

िमजराब से बजाते ह। इनम जंतर, रवाज, सुरमंडल, चौतारा व इकतारा है । वतत म गज से बजने वाले
वा सारं गी, सु कंरदा, रावणह था, िचकारा आ द मुख ह। सु षर वा म फूंक से बजने वाले वा , यथा-
सतारा, मुरली, अलगोजा, बां कया, नागफणी आ द।

उपरो वा का सं प रचया मक ववरण इस कार है -

ताल वा - राज थान के ताल वा म अनुब वा क बनावट तीन कार क है यथा -

वा जसके एक त खाल मढ जाती है तथा दसर


ू ओर का भाग खुला रहता है । इन वा म खंजर ,
चंग, डफ आ द मुख ह।
वे वा जनका घेरा लकड या लोहे क चादर का बना होता है एवं इनके दाऍ-बाऍ भाग खाल से मढे जाते
ह। जैसे मादल, ढोल, डे डम आ द।
वे वा जनका ऊपर भाग खाल से मढा जाता है तथा कटोर नुमा नीचे का भाग बंद रहता है । इनम
नगाडा, धूंस , दमामा, माटा आ द वा आते ह। इन वा क बनावट वादन प द इस कार है -
कमट, टामक बंब - इसका आकार लोहे क बड़ कङाह जैसा होता है , जो लोहे क प टय को जो कर
बनाया जाता है । इसका ऊपर भाग भस के चमड़े से मढा जाता है । खाल को चमड़े क तांत से खींचकर
पदे म लगी गोल िग गड़ लोहे का गोल घेरा से कसा जाता है । अनुब व घन वा म यह सबसे बडा व
भार होता है । ाचीन काल म यह रण े एवं दग
ु क ाचीर पर बजाया जाता था। इसे एक थान से
दसरे
ू थान पर ले िलए लकड़ के छोटे गाडू िलए का उपयोग कया जाता है । इसे बजाने के िलए वादक
लकड़ के दो डं डे का योग करते ह। वतमान म इसका चलन लगभग समा हो गया है । इसके वादन
के साथ नृ य व गायन दोन होते ह।
कुंड - यह आ दवासी जनजाित का य वा है , जो पाली, िसरोह एवं मेवा के आ दवासी े म बजाया
जाता है । िम ट के छोटे पा के उपर भाग पर बकरे क खाल मढ रहती है । इसका ऊपर भाग चार-छः
इं च तक होता है । कुंड के उपर भाग पर एक र सी या चमड़े क पटट लगी रहती है , जसे वादक गले
म डालकर खड़ा होकर बजाता है । वादन के िलए लकड़ के दो छोटे गुटक का योग कया जाता है ।

n
आ दवासी नृ य के साथ इसका वादन होता है ।
खंजर - लकड़ का छोटा-सा घेरा जसके एक ओर खाल मढ़ रहती है । एक हाथ म घेरा तथा दसरे
ू हाथ
ee
से वादन कया जाता है । केवल अंगिु लय और हथेली का भाग काम म िलया जाता है । घेरे पर मढ खाल
गोह या बकर क होती है । कालबेिलया जोगी, गायन व नृ य म इसका योग करते ह। वा के घेरे बडे -
छोटे भी होते है । घेरे पर झांझ को भी लगाया जाता है ।
चंग - एक लकड़ का गोल घेरा, जो भे या बकर क खाल से मढ़ा जाता है । एक हाथ म घेरे को थामा
ah
जाता है , दसरे
ू खुले हाथ से बजाया जाता है । थामने वाले हाथ का योग भी वादन म होता है । एक हाथ
से घेरे के कनारे पर तथा दसरे
ू से म यभाग म आघात कया जाता है । इस वा को समा यतः
होिलको सव पर बजाया जाता है ।
डम - यह मु य प से मदा रय व जादगर
ू ारा बजाया जाता है । डम के म य भाग म डोर बंघी
sh

रहती है , जसके दोनो कनार पर प थर के छोटे टु कड़े बंधे रहते ह। कलाई के संचालन से ये टु कड़े डम
के दोनो ओर मढ़ खाल पर आघात करते ह।
ड - लोहे के गोल घेरे पर बकरे क खाल चढ रहती है । यह खाल घेरे पर मढ़ नह ं जाती, ब क चमड़े
क ब य से नीचे क तरफ कसी रहती है । इसका वादन चंग क तरफ होता है । अंतर केवल इतना होता
है क चमडे क ब य को ढ़ ल व तनाव दे कर ऊँचा-नीचा कया जा सकता है ।
डे - यह बङा उम जैसा वा है । इसके दोन ओर चमङा मढ़ा रहता है , जो खोल से काफ ऊपर मडल
से जुङा रहता है । यह एक पतली और मुड़ हई
ु लकड़ से बजाया जाता है । इस पर एक ह हाथ से आघात
कया जाता है तथा दसरे
ू हाथ से डोर को दबाकर खाल को कसा या ढ ला कया जाता है । इस वा का
चु , बीकानेर तथा नागौर म अिधक चलन है । मु य प से माताजी, भै जी व गेगा जी क तुित पर
यह गायी जाती है ।
ढाक - यह भी डम और डे से िमलता-जुलता वा है , ले कन गोलाई व लंबाई डे से अिधक होती है ।
मु य प से यह वा गु जाित ारा गोढां (बगङावत क लोककथा) गाते समय बजाया जाता है ।
झालावाङा, कोटा व बूद
ँ म इस वा का अिधक चलन है । वादक बैठकर दोनो पैर के पंजो पर रखकर
एक भाग पतली डं ड ारा तथा दसरा
ू भाग हाथ क थाप से बजाते है ।
ढ़ोल - इसका धेरा लोहे क सीघी व पतली परत को आपस म जो कर बनाया जाता है । परत (प टय )
को आपस म जो ने के िलये लोहे व तांबे क क ल एक के बाद एक लगाई जाती है । धेरे के दोनो मुँह
बकरे क खाल से ढ़के जाते ह। मढ़े हए
ु चमड़े को कसरन के िलए डोर का योग कया जाता है । ढोल
को चढ़ाने और उतारने के िलए डोर म लोहे या पीतल के छ ले लगे रहते ह। ढोल का नर भाग डं डे से
तथा मादा भाग हाथ से बजाया जाता है । यह वा संपण
ू राज थान म योहार व मांगिलक अवसर पर
बजाया जाता है । राज थान म ढोली, िमरासी, सरगरा आ द जाितय के लोग ढोल बजाने का काय करते
ह। ढोल विभ अवसर पर अलग-अलग ढं ग से बजाया जाता है , यथा- कटक या बाह ढोल, घो चड़ रौ
ढोल, खु का रौ ढोल आ द।
ढोलक - यह आम, बीजा, शीशम, सागौन और नीम क लकड़ से बनता है । लकड़ को पोला करके दोन
मुख पर बकरे क खाल डो रय से कसी रहती है । डोर म छ ले रहते ह, जो ढोलक का वर िमलाने म
काम आते ह। यह गायन व नृ य के साथ बजायी जाती है । यह एक मुख लय वा है ।

n
तासा - तासा लोहे या िम ट क परात के आकार का होता है । इस पर बकरे क खाल मढ़ जाती है , जो
चमड़े क प टटय से कसी रहती है । गले म लटका कर दो पहली लकड़ क चप टय से इसे बजाया
जाता है ।
धूंसौ - इसका घेरा आम व फरास क लकड़
ee से बनता है । ाचीन समय म रण े के वा समूह म
इसका वादन कया जाता था। कह ं-कह ं बडे -बडे मं दर म भी इकसा वादन होता है । इसका ऊपर भाग
भस क खाल से मढ. दया जाता है । इसक लकड़ के दो बडे -डं डे से बजाया जाता है ।
ah
नगाङा - समान कार के दो लोहे के बड़े कटोरे , जनका ऊपर भाग भस क खाल से मढा जाता है ।
ाचीन काल म घोड़े , हाथी या ऊँट पर रख कर राजा क सवार के आगे बजाया जाता था। यह मु य-
मु य से मं दर म बजने वाला वा है । इन पर लकड़ के दो डं ड से आघात करके विन उ प करते ह।
नट क ढोलक - बेलनाकृत का क खोल पर मढा हआ
ु वा । नट व मादा क पु डय को दो मोटे डं डे से
sh

आधाितत कया जाता है । कभी-कभी मादा के िलए हाथ तथा नर के िलए डं डे का योग कया जात है ,
जो व ता िलए होता है । इसके साथ मु यतः बां कया का वादन भी होता है ।
पाबूजी के मोटे - िम ट के दो बड़े मटक के मुंह पर चमङा चढाया जाता है । चमड़े को मटके के मुँह
क कनार से िचपकाकर ऊपर डोर बांध द जाती है । दोन माट को अलग-अलग य बजाते ह। दोन
माट म एक नर व एक मादा होता है , तदनुसार दोन के वर भी अलग होते ह। माट पर पाबूजी व
माता जी के पावड़े गाए जाते है । इनका वादन हथेली व अंगिु लय से कया जाता है । मु य प से यह
वा जयपुर, बीकानेर व नागौर े म बजाया जाता है ।
भील क मादल - िम ट का बेलनाकार घेरा, जो कु हार ारा बनाया जाता है । घेरे के दोनो मुख पर
हरण या बकर क खाल चढाई जाती है । खाल को घेरे से िचपकाकर डोर से कस द जाती है , इसम
छ ले नह लगते। इसका एक भाग हाथ से व दसरा
ू भाग डं डे से बजाया जाता है । यह वा भील व
गरािसया आ दवासी जाितय ारा गायन, नृ य व गवर लोकना य के साथ बजाया जाता है ।
रावल क मादल - का खोलकर मढा हआ
ु वा । राज थानी लोकवा म यह एक ऐसा वा है , जसपर
पखावज क भांित ग ट का योग होता है । दोन ओर क चमड़े क पु य पर आटा लगाकर, वर
िमलाया जाता है । नर व मादा भाग हाथ से बजाए जाते ह। यह वा केवल चारण के रावल (चाचक) के
पास उपल ध है ।

धन वा - यह वा ायः ताल के िलए योग कए जाते ह। मुख वा क बनावट व आकार- कार इस


कार है -
करताल - आयताकार लकड़ के बीच म झांझ का फंसाया जाता है । हाथ के अंगठ
ू े म एक तथा अ य
अंगिु लय के साथ पकड़ िलया जाता है और इ ह पर पर आधा रत करके लय प म बजाया जाता है ।
मु य प से भ एवं धािमक संगीत म बजाया जाता है । मु य प से भ एवं धािमक संगीत म
इसका योग होता है ।
ख ताल - शीशम, रो हङा या खैर क लकड़ के चार अंगल
ु चौड़े दस अंगल
ु लंबे िचकने व पतले चार
टु कड़े । यह दोनो हाथ से बजायी जाती है तथा एक हाथ म दो अफकड़े रहते ह। इसके वादन म कट-कट
क वनी िनकलती है । लया मक धन वा जो मु य प से जोधपुर, बाडमर व जैसलमर े म

n
मांगणयार लंगा जाित के लोग बजाते ह।
धुरािलयो - बांस क आठ-दस अंगल
ु लंबी व पतली खप ची का बना वा । बजाते समय बॉस क खप ची
ee
को सावधानी पूवक छ लकर बीच के पतले भाग से जीभी िनकाली जाती है । जीभी के पछले भाग पर
धागा बंधा रहता है । जीभी को दांत के बीच रखकर मुखरं से वायु दे ते हए
ु दसरे
ू हाथ से धागे को तनाव
व ढ ल (धीरे -धीरे झटके) ारा विन उ प क जाती है । यहा वा कालबेिलया तथा गरे िसया जाित ारा
बजाया जाने वाला वा यं है ।
ah
झालर - यह मोट घंटा धातु क गोल थाली सी होती है । इसे डं डे से आघा दत कया जाता है । यह आरती
के समय मं दर म बजाई जाती है ।
झांझ - कांसे, तांबे व ज ते के िम ण से बने दो च ाकार चपटे टु कङ के म य भाग म छे द होता है ।
म य भाग के ग डे के छे द म छोर लगी रहती है । डोर म लगे कपड़े के गुटको को हाथ म पक कर
sh

पर पर आधाितत करके वादन कया जाता है । यह गायन व नृ य के साथ बजायी जाती है ।


मंजीरा - दो छोट गहर गोल िमि त धतु क बनी प टयॉ। इनका म य भाग याली के आकार का होता
है । म य भाग के ग ढे के छे द म डोर लगी रहती है । ये दोन हाथ से बजाए जाते ह, दोन हाथ म एक-
एक मंजीरा रहता है । पर पर आघात करने पर विन िनकलती है । मु य प से भ एवं धिमक संगीत
म इसका योग होता है । काम जाित क म हलाएँ मंजीर क ताल व लय के साथ तेरह ताल जोडती है ।
ी मंडल - कांसे के आठ या दस गोलाकार चपटे टु कङ । र सी ारा यह टु कड़े अलग-अलग समाना तर
लकड के टै ड पर बंधे होते ह। ीमंडल के सभी टु कडे के वर अलग-अलग होते ह। पतली लकड़ को
दो डं ड से आघात करके वादन कया जाता है । राज थानी लोक वा म इसे जलतरं ग कहा जा सकता है ।
मोरचंग - लोहे के े म म प के लाहे क जीभी होती है । दांत के बीच दबाकर, मुखरं से वायु दे ते हए

जीभी को अंगल
ु ी से आघा दत करते ह। वादन से लया मक वर िनकलते ह। यह वा चरवाह , घुम कङ
एवं आ दवािसय म वशेष प से चिलत वा है ।
भपंग - तूंबे के पदे पर पतली खाल मढ रहती है । खाल के म य म छे द करके तांत का तार िनकाला
जाता है । तांत के ऊपर िसरे पर लकड़ का गुटका लगता है । तांबे को बायीं बगल म दबाकर, तार को
बाएँ हाथ से तनाव दे ते हए
ु दा हने हाथ क नखवी से हार करने पर लया मक विन िनकलती है ।
भै जी के घुघ
ं - बड़े गोलाकार घुघ
ं , जो चमड़े क प ट पर बंधे रहते ह। यह प ट कमर पर बाँधी
जाती है । राज थान म इसका योग भै जी के भोप ारा होता है , जो कमर को हलाकर इन घुघ
ं ओं से
अनुरं जत विन िनकालते ह तथा साथ म गाते ह।
सु षर वा - राज थान म सु षर वा का व पीतल के बने होते ह। जसम मुख वा का प रचया मक
ववरण इस कार है -
अलगोजा - बांस के दस-बारह अंगल
ु लंबे टु कड़े , जनके िनचले िसरे पर चार छे द होते ह। दोन बांसु रय
को मुंह म लेकर दोन हाथ से बजाई जाती है , एक हाथ म एक-एक बांसुर रहती है । दोन बांसु रय के
तीन छे द पर अंगिु लयाँ रहती ह। यह वा चारवाह ारा कोटा, बूद
ं , भरतपुर व अलवर े म बजाया
जाता है ।
करणा - पीतल का बना दस-बारह फुट लंबा वा , जो ाचीन काल म वजय घोष म यु होता था।
कुछ मं दर म भी इसका वादन होता है । पछले भाग से ह ठ लगाकर फूँक दे ने पर विन िनकलती है ।

n
जोधप के मेहरानगढ़ सं हालय म रखा करणा वा सवािधक लंबा है ।
तुरह - पीतल का बना आठ-दस फुट लंबा वा , जसका मुख छोटा व आकृित न कदार होती है । ह ठ
लगाकर फुँकने पर तीखी
था।
विन िनकलती है । eeाचीन काल म दग
ु एवं यु थल म इसका वादन होता

नड़ - कगोर क लगभग एक मीटर लंबी पोली लकड़ , जसके िनचले िसरे पर चार छे द होते ह। इसका
वादन काफ क ठन है । वादक लंबी सांस खींखकर फेफङ म भरता है , बाद म न म फूँककर इसका वादन
ah
होता है । फूँक ठ क उसी ाकर द जाती है , जस कार कांच क शीशी बजायी जाती है । वादन के साथ
गायन भी कया जाता है । वा वा जैसलमेर म मु य प से बजाया जाता है ।
नागफणी - सपाकार पीतल का सु षर वा । वा के मुंह पर होठ ारा ताकत से फूँक दे ने पर इसका
वादन होता है । साधुओं का यह एक धािमक वा है तथा इसम से घोरा मक विन िनकलती है ।
sh

पूग
ं ी/बीण - तांबे के िनचले भाग म बाँस या लकड़ क दो जड़ हई
ु निलयाँ लगी रहती ह। दोनो निलय
म सरकंडे के प े क र ठ लगाई जाती है । तांबे के ऊपर िसरे को होठ के बीच रखकर फूँक ारा
अनु विनत कया जाता है ।
बां कया - पीतल का बना तुरह जैसा ह वा , ले कन इसका अ भाग गोल फाबेदार है । होठ के बीच
रखरकर फूंक दे ने पर तुड-तुड विन िनकलती है । यह वा मांगिलक पव पर बजाया जाता है । इसम
वर क सं या सीिमत होती है ।
मयंक - एक बकरे क संपण
ू खाल से बना वा , जसके दो त छे द रहते ह। एक छे द पर नली लगी
रहती है , वादक उसे मुंह म लेकर आव यकतानुसार हवा भरता है । दसरे
ू भाग पर दस-बारह अंगल
ु लंबी
लकड़ क चपट नली होती है । नली के ऊपर भाग पर छः तथा नीचे एक छे द होता है । बगल म लेकर
धीरे -धीर दबाने से इसका वादन होता है । जोगी जाित के लोग इस पर भजन व कथा गाते ह।
मुरला/मुरली - दो नािलय को एक लं बत तंबू म लगाकर लगातार वांस वा दत इस वा यं के तीन
भेद ह: - आगौर, मानसुर और टांक । छोट व पतली तूंबी पर िनिमत टांक मुरला या मुरली कहलाती है ।
ीकर म व अ लाद न लंगा, इस वा के याित ा कलाकार ह। बाड़म े म इस वा का अिधक
चलन है । इस पर दे शी राग-रागिनय क विभ न धुने बजायी जाती है ।
सतारा - दो बांसु रय को एक साथ िनरं तर वांस या ारा बजाया जाता है । एक बांसुर केवल िु त
के िलए तथा दसर
ू को वरा मक रचना के िलए काम म िलया जाता है । फर घी ऊब सूख लकड़ म
छे द करके इसे तैयार कया जाता है । दोन बांसु रय एक सी लंबाई होने पर पाबा जोड़ , एक लंबी और
एक छोट होने पर डोढ़ा जोङा एवं अलगोजा नाम से भी जाना जाता है । यह पूण संगीत वा है तथा
मु य प से चरवाह ारा इसका वादन होता है । यह वा मु यतया जोधपुर तथा बाड़मेर म बजाया जाता
है ।
िसंगा - सींग के आकार का पीपत क चछर का बना वा । पछले भाग म ह ठ लगाकर फूँक दे ने पर
बजता है । व तुतः यह सींग क अनु म पर बना वा है , जसका वादन जोगी व साधुओं ारा कया जाता
है ।
सुरगाई-सुरनाई - द र का यह वा ऊपर से पहला व आगे से फाबेदार होता है । इसके अनेक प
राज थान मे िमलते ह। आ दवासी े म ल का व अ य े म नफ र व टोटो भी होते ह। इसपर

n
खजूर या सरकंडे क प ी क र ढ लगाई जाती है । जसे ह ठ के बीच रखकर फूँक ारा अनु विनत कया
जाता है । मांगिलक अवसर पर वा दत यह वा भी िनरं तर वांस क या ारा बजाया जाता है । इसक
संगत नगारे के साथ क जाती है ।
तार वा (तत)
ee
इकतारा - यह वा ायः साधु-संत के हाथ म दे खा जा सकता है । इसका योग इनके ारा भजन के
समय कया जाता है । चपटे एवं गोलाकार तूंबे के म य भाग मे छे द करके उसम लगभग तीन फुट लंबा
ah
बाँस का डं डा लगा रहता है । बांस के डं डे के ऊपर िसरे से दो इं च छोडकर नीचे क ओर एक खूँट लगी
रहती है । तूंबे का ऊपर भाग पतली खाल से मढा होता है । खाल के म य भाग म लगी घोड़ के ऊपर से
एक तार िनकलता है , जो डं डे के ऊपर िसरे पर लगी खूंट म कसा जाता है । अंगिु लय ारा आघात करने
पर इसका वादन होता है ।
sh

चौतारा, तंदरा
ू , बीणा - संपण
ू राज थान म िनगुणी भ संगीत का िु त वलय वा । इसम पाँच तार होते
ह। बड़े आकार क तबली (कुंड ), जसे पतली लकड़ से ह आवृत कया जाता है । नाली लंबी होती है ।
इसे िमजराफ पहन कर बांये से दांए झंकृत कर के बजाया जाता है । झंकृत करने क या से लय व
वर दोन िमलते ह। मंडली व संगत म बजने वाला वा है , जो वर थान के िनधारण का काम भी
करता है ।
जंतर - नखवी से आघा रत तत ् वा । बीणा के आकार के अनुसार दो तूंबो पर एक डांड होती है । डांड के
अंितम भाग को लकड़ के अंकुडे के प म घोड़ का आकार दया जाता है । डांड के नीचे से मु ठ प म
पकडकर तार को नीचे से आघा दत कया है । इसम चौदह पद होते ह, ज ह मोम ारा लगाया जाता है ।
इसका ऊपर का ज मे कहलाता है , जो खङा रहता है । चार तार म से तीन तार पद के ऊपर से
िनकलते ह, चौथा तार पपैये का काम करता है , जो अंगठ
ू े से आघात हण करता है । इस वा का योग
बगङावत गाथा वाले गायक करते ह।
रवाज - यह वा केवल चारण के रावल (याचक) के पास उपल ध है , क तु अब इसे बजाने वाले एक
भी रावल नह ह। रावल जाित के लोग र मत (लोकना य) करते समय गायन के साथ इसका योग
करते थे। खाज का ऊपर आकार- कार कमायच से काफ िमलता-जुलता है । इस क गोलाकार तबली का
ऊपर भाग खाल से मढा है । इसम चार तांत के रोदे लगे होते ह। इ ह अंगिु लय क नख से आधा रत
करके बजाया जाता है ।
सुरम डल - इसम तार क छे अंगिु लय ारा क जाती है । गायक अपनी संगत के िलए इसे काम म
लाता है तथा वतं वादन भी करता है । यह मांगणयार गायक म ह चिलत लोकवा है ।
वतत ् वा

कमायचा - गज से बजने वाला वतत ् वा । आम, शीशम क लकड़ से गोलाकार तबली का ऊपर भाग
खाल से मढा होता है । जसम बकरे क खाल काम म ली जाती है । बाज के तीन मु य तार तांत के दो
रोदा लगते ह। तरब के सं या ११ से १५ तक होती है । इसका सांगीितक मह व यह है क तरब पर भी
गज का काय संभव है । यह वा बाडमर तथा जैसलमर म काफ चिलत है ।
गुजरातण सारं गी - यह छोट सारं गी का प है । बाज के चार तार (दो लोहे व दो तांत) होते ह। इसम

n
पाँच झारे व सात या नौ जीले (तरबे) होती ह। गज छोटा होता है , तथा उसका संचालन लय धान है ।
यह वा लंगा जाित के गायक म चिलत है , जो गायन के साथ बजाया जाता है ।
जोिगया सारं गी - जोगी गायक का ee
मुख वा । गज ारा वा दत वतत ् वा । इसके मु य बाज के तार
तांत के होते ह। तबली ह क तुन क लकड़ क बनी होती है । गज छोटा होता है । नागौर से लेकर
राज थान के पूव भाग तक चिलत है । जोगी जाित के गायक इस पर धािमक संगीत एवे लोकगाथाएँ
गाते ह।
ah
डे ढ पसली क सारं गी - गुजरातण सारं गी के समान छोट सारं गी, जसक तबली का एक भाग सपाट व
अ य भाग म व अथ गोलाकार। इसके मोरणे खड़े होते ह, जो डांड के पा म ह। मु य चार तार-दो
तांत व दो ट ल के तार का वर लते ह। जीले (तखे) आठ होती ह। कभी-कभी सतरह भी। यह वा
भीनमाल, िसवाणा े म ह द ू टोिलय के पास उपल ध है ।
sh

धानी सारं गी - जोिगया सारं गी का ह प। व तुतः तीन तांत का गज वा है । गज अपे ाकृत छोटा होता
है । इसम जील (तरब) के कुल आठ या छः तार होते ह। लोकगाथाओं के साथ बजने वाला वा ।
िसंधी सारं गी - लोक सारं िगय म सबसे वकिसत सारं गी है । इसका ढांचा टाली (शीशम) क लकड़ से
बनता है तथा तबली खाल से मढ रहती है । मु य बाज के चार तार होते ह- दो लोहे के दो तांत के।
आठ झारे और चौदह जील होती ह। लंगा जाित के गायक म चिलत है । बाडमेर व जैसलमेर े म
इसका वशेष चार है ।
सु रदा - सु कंरदा गज ारा वा दत वतत ् वा है । राज थान म इसका य सु षर वा क संगत म
कया जाता है , वशेषकर मुरली के साथ। सु कंरदा क संगत पर गाने का काय बलूिच तान व
अफगािन तान म होता है । मु य बाज के तार दो लोहे व एक तांत का होता है । ऊँचे वर पर ह िमलाया
जाता है । गज पर घुघ
ं लगे होते ह। गज का संचालन लया मक मुहावर पर होता है । यह वा मु यतया
सुरणइया लंग के हाथ म है । इसका ढाचा शीशम क लकड़ का होता है व तबली खाल से मढ होती है ।
रावणह था - यह पाबूजी क कथावाचक नायक जाित ारा बजाया जाता है । ना रयल के खोल से तबली
तथा बांस क लकड़ से डांड बनती है । छोट -सी तबली खाल से मढ जाती है । रावणह थे के दो मोरण
पर घोड क पूछ
ं के बाल व दस मोर णय के लोहे व पीतल के तार (तरब) लगे होते ह। घुघ
ं दार गज से
बजाया जात है । मु य प से पाबूजी क लोकगाथा गाने वाले नायक/भील का वा है ।
इन वा के अित र गरािसया व मेद का िचकारा, मटक , रबाब, दकाक
ु , अपंग िसंगी, भूंग ल, बगू,
पेली कानी आ द अनेक लोकवा राज थान के विभ न े म दे खने को िमलते ह। जनका मारवाड़

संगी धींगा-गवर का पव
राज थान के प मी भाग के जोधपुर, बीकानेर, जैसलमेर आ द े म
सुहािगन अखंड सुहाग क कामना के िलए धींगा गवर क पूजा करती है । यह पूजा सामा यत: गणगौर
पूजा के बाद चै शु ल तृतीय से वैसाख कृ ण प क तृतीया तक होती है । धींगा गवर का पव पित-प ी
के आपसी ेम का ोतक भी माना जाता है । गवर को वधवाएं व सुहािगन साथ-साथ पूजती ह, ले कन
कुंआर लड कय के िलए गवर पूजा िन ष है । गवर क सोलह दवसीय पूजा शु करने से पूव म हलाएं
मोह ले के कसी एक घर म द वार पर गवर का िच बनाती है । ये याँ घर क द वार पर क चे रं ग
से िशव, गजानन व बीच बीच म घाघर िसर पर उठाए ी के िच भी बनाती ह।

n
इन िच म मूषक, सूय व चं मा आ द के भी िच होते ह। इन िच के नीचे कूकड, माकडव तथा उसके
चार ब च के िच
घर म गवर क
ee
भी बनाए जाते ह या फर उनके िम ट से बने पुतले रखे जाते ह। इसके अलावा कई
ितमा भी बठाई जाती है । इस पव क पूजा का समापन बैसाख शु ल प क तीज क
रा को गवर माता के रातीजगा के साथ होता है । गवर पूजा म सोलह क सं या का अ यंत मह व है ।
पूजा के थान पर म हलाएँ सोलह क सं या म इक ठा होकर पूजा करती है तथा पूजन के प ात
ah
सोलह क सं या म ह एक साथ भोजन करती है । यह सं या घटाई-बढ़ाई नह ं जा सकती है ।धींगा गवर
के बारे म हालां क कोई त या मक जानकार उपल ध नह ं है ले कन कहा जाता है क धींगा गवर ईसर
जी के नाते आई हई
ु उपप ी थी। धींगा गवर पूजने वाली येक म हला 16 दन तक अपने-अपने हाथ
म 16 गांठ का डोरा बांधती ह। इसके बाद वे बार -बार से द वार पर बने िच क फूल, चावल, कुंकुम
sh

एवं फल चढ़ा कर पूजा-अचना करती ह। यह पूजा दोपहर म क जाती है । इसम गवर क मूित को
व ा द से सजा कर सोने के गहने भी पहनाए जाते ह। रतजगा म भोलावणी क जाती है । इसम यां
वशेष पार प रक गीत गाती हई
ु गवर को उठाकर समूह म चलती ह तथा अपने हाथ म बंधा 16 गाँठ
का धागा खोल कर गवर के बाँध दे ती ह। भोलावणी का यह उप म दे र रात तक होता है , जसम िसफ
औरत ह जाती ह।त म विश थान है ।

राज थानी लोकनृ य

राज थान म चिलत लोकनृ य क व वधता का अंदाज इस बात से ह लगाया जा सकता है क वहां
िसफ म हलाओं और पु ष के ह नृ य नह ं ह, ब क ब च , कशोर- कशो रय और जवान लड़ कय के
िलए भी अलग-अलग नृ य ह। छोटे ब च के नाच का नाम है 'खोदा', जब क कशोराव था के िलए
'छमछड़ '। इसके अलावा जवान, ले कन कुंवार लड़ कय का बड़ा ह सधा हआ
ु और बजली को भी मात
दे ने वाला च करदार नृ य है । 'चकर ' पर परा म इसका नाम 'राई' था, ले कन घाघरे क तेज गित व
घूमती-इठलाती चक रय के कारण इसे 'चकर ' कहा जाने लगा।

राज थान कई मायन म दे श के दसरे


ू इलाक क तुलना म कुछ अलग सा और अनूठा है । बात चाहे
भूगोल या इितहास क हो, चाहे श और भ क हो अथवा फर कला या सं कृित क हो लोकरं ग क
जतनी व वधता यहां दे खने को िमलती है , शायद ह कह ं और िमले। राज थानी लोकनृ य क भी ऐसी
ह समृ द पर परा है ।
लोक म चिलत इस अकूत साझी संपदा का संर ण करना, उसम साझेदार िनभाना बहत
ु ज र है । यह
लोक ह हमार मौ खक और त
ु -पर पराओं का ाचीन और मह वपूण मा मय रहा है । कहने, सुनने और
दे खने क पर पराएं इं य-गोचर ह। जो कुछ दे खा, सुना, छुआ, सूंघा और चखा जा सकता है , वह सब

n
कुछ इस लोक म ह समा हत है ।

इन लोक-पर पराओं का अहम ् पहलू है -स


इशारे का, चे ा और नकल का, हं सी और
ee
ेषण। यह स ेषण िसफ भाषा का ह नह ं, हाव-भाव का,
दन का तथा मौन और मदद का भी होता है । भाषा से पहले
तो सं ेषण का मा यम संकेत ह था, जो इं सान के साथ आ दम काल से ह चला आया है । ऐसे अनेक
मा यम म नृ य इस ाचीन पर परा का सश और कला मक मा यम है । आज भी हमार साझी
ah
अमू य और सामू हक वरासत के प म दे शभर म ये नृ य िश त के साथ मौजूद है ।

लोकनृ य समूह क रचनाएं ह और समूह क भागीदार ह इनका उ े य है । सामुदाियक प म ये फलते-


फूलते ह और अिभ य भी समूह म ह पाते ह। समूह म ह हर य नृ य रचता रहता है । कोई भी
sh

य , समुदाय या कबीला ऐसा नह ं है क जहां नाच-गाना न हो। लोकनृ य म य तो म हलाएं और


पु ष िमल-जुलकर अपनी साझेदार िनभाते ह, बावजूद इसके कहना पड़े गा क इस साझी वरासत को
म हलाओं ने ह संभालकर रखा है । लोकनृ य क सुंदरता, व वधता और िनरं तरता को वहन करने म
म हलाएं पु ष से कह ं दो कदम आगे ह ह।
राज थान म चिलत लोकनृ य क व वधता का अंदाज इस बात से ह लगाया जा सकता है क वहां
िसफ म हलाओं और पु ष के ह नृ य नह ं ह, ब क ब च , कशोर- कशो रय और जवान लड़ कय के
िलए भी अलग-अलग नृ य ह। छोटे ब च के नाच का नाम है 'खोदा', जब क कशोराव था के िलए
'छमछड़ '। इसके अलावा जवान, ले कन कुंवार लड़ कय का बड़ा ह सधा हआ
ु और बजली को भी मात
दे ने वाला च करदार नृ य है । 'चकर ' पर परा म इसका नाम 'राई' था, ले कन घाघरे क तेज गित व
घूमती-इठलाती चक रय के कारण इसे 'चकर ' कहा जाने लगा।

इितहासपरक नृ य क पृ भूिम म कोई घटना वशेष या कोई पुराना संग जुड़ा होता है । पुरानी घटना या
कसी नायक वशेष को याद करते हए
ु ये नृ य अपने हाव-भाव, पहनावे और अंग-संचालन से वीरता और
बहादरु के भाव य करते ह। ऐसे नृ य म इितहास भी जीवंत हो उठता है । 'आंगी-बांगी', 'मांडल का
नार' (शेर), 'तलवार क गैर', तथा 'घुड़ला' नामक ऐसे ह लोकनृ य है , जनम ऐितहािसक संग अथवा
नायक को फर से ित त करने का यास कया जाता है ।

राज थानी लोकनृ य म मान-मनोवल के नृ य ह, तो उलाहन -िशकायत वाले नृ य भी है । जुलूस और


सवार वाले नृ य क तो छटा ह िनराली है । मेले-ठे ले और उ सव पव वाले नृ य के तेवर ह अलग है ।
यहां िशकार नृ य ह, तो नुगर -सुगर आ माओं को स न करने वाले नृ य भी ह। आदमी को स मो हत
कर मजबूर करने वाले नृ य ह, तो क र मा और कौतुक दखाने वाले अजूबे नृ य भी यहां ह। फसल से
जुड़े लोकनृ य क बहार भी यहां कम नह ं है , तो कठपुतली-नृ य क तो कोई सीमा ह नह ं है ।

गीत-नृ य, गाथा-नृ य, नाटय-नृ य आ द अनेक प म ये लोकनृ य हमार अनुपम वरासत ह। इनम से


बहत
ु से नृ य क पहचान अथवा बनावट सीमावत दे श का असर िलए हए
ु ह। राज थानी नृ य म

n
'बम', 'डांग', 'रिसया' आ द पर ज-सं कृित क गहर छाप है , तो 'भवाई' जैसा नृ य गुजरात का नया ह
रं ग भर दे ता है । जसनाथी िस द का 'अ न', रावल का 'खेड़ा', कामड़ का 'तेराताली' आ द लोकनृ य
अपने नजद क अंचल से साझेदार िनभाते हए ee
ु इस कला को व तार दे ते ह।

लोकनृ य क एक शाखा घूमंतु जीवन जीने वाले नट और कालबेिलय के नृ य क है । ये लोग


ज मजात कलाकार होते ह और राज थान के अलावा दसरे
ू दे श म अपने नृ य- दशन से रोजी-रोट
ah
कमाते ह। चौमासे के चार मह न को छोड़कर बाक समय म अपने डे र के साथ ये खानाबदोश लोग
दसर
ू जगह के िलए िनकल पड़ते ह। अलवर जले के कोई तेर सौ नट-प रवार इसी तरह सकड़ बरस से
यायावर जीवन के अ यासी बने हए
ु ह। इन प रवार क जवान बहू -बे टयां ह रयाणा, पंजाब, उ र दे श,
म य दे श आ द जगह मे जाकर शाद - याह या दसरे
ू उ सव पर अपनी कला का दशन करती है । यहां
sh

सबके अपने-अपने यजमान और इलाके बंटे हए


ु ह, जहां से ये 'नेग' पाते ह। इस कार के डे रा-नृ य भारत
से बाहर भी ह, जहां वष पूव घूमते-घामते कलाकार वहां पहंु चकर डे र के प म बस गये।

शा ीय कलाओं क तरह लोकनृ य कसी घराने के मोहताज नह ं ह। ये अपने-आप म ह एक वशाल


घराना है । अनेक शा ीय कलाएं अपने मूल म लोक क धरोहर रह ह। लोक कलाओं के विभ न प से
ह शा ीय या िश कलाएं पैदा हई
ु ह। लोक क पकड़ से ढ ले होकर ये कला प शा के अंग बन गए।
य द शा ीय नृ य क ह बात क जाए, तो दे श भर म ऐसे कतने नृ य ह? सं या के हसाब से इनक
लोकनृ य से तुलना करना बेमानी ह होगी। शा ीय नृ य म भरतनाटयम, क थक, ओ डसी, म णपुर ,
कुिचपुड़ , मो हनीअ टम आ द-आ द ह। क थक नृ य के नाम से ह पता लगता है क कहने क मौ खक
पर परा यानी लोकगाथाओं क पर परा से ह यह नृ य िनकला होगा। इसी कार म णपुर (म णपुर),
ओ डसी (उड़ सा), मोहनीअ टम (केरल) आ द नृ य क विन से इनक थािनकता क उपज का संकेत
िमल जाता है । हमारे उ ताद संगीत म भी ऐसे अनेक उदाहरण ह, जहां राग के नाम ह इलाके वशेष के
साथ जुड़े हए
ु ह। राम जौनपुर (जौनपुर), राग मु तानी (मु तान), राग सोरठ (सौरा ), राग मालब
(मालवा) आ द अनेक राग ह जो अपने-अपने लोक संगीत से रस खींचकर शा क दिनया
ु म ित त ह।

लोक के साथ शा क साझेदार क इस लंबी पर परा म कुछ अपवाद भी ह, जो लोग और शा के


म को उलट-पुलट दे ते ह। राज थान म 'गवर ' नामक लोकनृ य का इितहास इस से अजीबोगर ब
ह कहा जायेगा। तीसर -चौथी सद म उदयपुर के पास उबे र मं दर का माहौल संगीत और नृ यमय था।
गौर -तांडव नामक शा ीय नृतय कालांतर म 'गवर ' नाम से भील आ दवािसय क जंदगी का कैसे
ह सा बन गया? इस बारे म भील म बडा दलच प िमथक चिलत है क कसी समय पं डत ने यह
नृ य सवा पये म उनके यहां िगरवी रख दया था, जसे वे आज तक वापस नह ं छुड़ा सके।

आधुिनक व ान और टे नोलॉजी के असर से कुछ लोकनृ य क संरचनाओं म बदलाव भी आया है । कुछ


क पहचान धूिमल हई
ु है तो कुछ लोकनृ य अंतरा ीय तर क याित भी पा गए ह। कुछ ऐसे भी
लोकनृ य है जनका पर परागत नाम ह बदल कर दसरा
ू हो गया है । लोकनृ य क इस वपुल और

n
ाचीन वरासत को लोक ने अपनी साधना और लगन के बल पर लोकजीवन म, मनु य के जीवन म
उसका एक अंग बनाकर ित त कर दया है । ये लोकनृ य मनोरं जन करने वाली कोर कलाबाजी नह ं ह,
ee
ब क ये इितहास, सं कृित, कला, दशन और कुल िमलाकर जीवनधिमता के वाहक ह। ये लोकनृ य हम
सभी के ह।

राज थान म कानून ारा सामा जक जीवन म सुधार


ah
१८वीं शता द म समाजम अनेक कु थाएँ या थीं, ज ह टश सरकार ने कानून बनाकर समा करने
का य कया।
sh

पर परागत थाओं का अ त

सती था - पृ भूिम
टश संर ण के प ात ् राज थाम म सती था समा ी क ओर अ सर थी। १८१८ के बाद जयपुर
राजघराने म, १८२५ के बाद बीकानेर राजघराने म एवं १८४३ के बाद जोधपुर घराने म कोई सती नह ं हई

थी। १८१३ ई० म अं ेज ने एक आदे श जार कया क कसी भी वधवा को मादक व तुएँ खलाकर
अचेत कर दे ने या उसके इ छा के व सती होने के िलए ववश करने पर द ड दया जाएगा।
सती था िनषेध कानून १८२९ ई० - जब राजाराम मोहन राय ने अपनी वधवा भाभी को सित होते हए

दे खा, तो उ ह ने इस अमानु षक था के व जबरद त आ दोलन ार भ कर दया। प रणाम व प
१८२९ ई० म गवनर जनरल विलयम बै टक ने सती था को गैर कानूनी घो षत कर दया और इसके
व कड़ा कानून बना दया।
सती था का अ त
जयपुर - (१८४५ ई०) इस समय जयपुर का शासक रामिसंह था, जसक आयु मा दस वष क थी।
अत: शासन का संचालन क िसल आफ र जै सी के हाथ म था, जसका अ य मे जान लडलो था। वह
बड़ा सुधारवाद था।
कनल क
ु ने िलखा है , 'इतने समय म भारतवष क कसी रयासत म इतने उ म सुधार नह ं हए
ु , जतने
जयपुर म मे लडलो के समय म हए
ु थे।'
ए० जी० जी० का खर ता ा होने के बाद लडलो ने अपनी क िसल के सहयोग से अग त, १८४५ ई० म
जयपुर रा य म घोषणा क क रा य क सीमाओं के भीतर सती होना या सित के िलए ेरणा दे ने वाले
य को अपराधी माना जाएगा। इस दशा म झलाय के ठाकुर भोपालिसंह ने मह वपूण योगदान दया।
उदयपुर - उदयपुर माहाराणा ढवाद वचार के होने का कारण सती था पर ितब ध लगाने के िलए
तैयार नह ं थे। िनर तर १६ वष तक अं ेज सरकार महाराणा से प यवहार जार करती रह । अ त म
ववश होकर उ ह ने आदे श जार करके अपने रा य म सती था पर ितब ध लगा दया।

n
जोधपुर - (१८६०) जोधपुर के शासक ने भी कई वष तक ए० जी० जी० के खर त पर कोई यान नह ं
दया। एक बार जोधपुर के शासक क उप थती म एक ी सती हो गयी। इस
ee
पर रे जीडे ट ने बड़े कठोर श द म ए० जी० जी० क िशकायत क । ए० जी० जी० ने यह प
जनल को भेज दया। महाराजा ने इसका जवाब दे ते हए
ु कहा क संवत ् १९०४ के बाद कोई म हला यहाँ
गवनर

पर सती नह ं हई
ु है । इसके बाद पुन: अं ेज सरकार तथा महाराजा के बीच प यवहार हआ।
ु अ त म
जोधपुर के माहाराणा ने १८६० ई० म अपने रा य म सती था पर ितब ध लगा दया।
ah
कोटा - (१८६२ ई०) १८६२ ई० म ए० जी० जी० ने पोिल टकल एजे ट के मा यम से कोटा के महाराज
रामिसंह के एक प के मा यम से सती था ब द करने का आदे श दया, तब से सती था ब द हो गई।
अलवर के शासक ने १८३० ई० म डू ं गरपूर, बांसवाड़ा एवं तापगढ़ के शासक ने १८४० ई० म सती था
को गैरकानूनी घो षत करते हए
ु इस पर ितब ध लगा दया। १८६२ ई० के बाद सम त राज थान म इस
sh

था के व आदे श जार हो गये थे। बीसवीं शता द म सती होने क दो घटनाएँ घ टत हई


ु ह।
उदाहरण व प कुछ वष पूव सीकर म पकुंवर नामक राजपूत म हला सती हो गयी थी, जसक सव
िनंदा क गई। आज सती था अतीत क बात बन चुक है ।
डा कनी वध बंद करने के सरकार य
१८४० ई० म टश सरकार का यान इस अ ध व ास क ओर गया। जब ए० जी० जी० ने पोिल टकल
ऐजे ट तथा रे जीडे ट के मा यम से राज थान के नरे श को इसको ब द करने के िलए खर ते भेजे।
१८५३ ई० म मेवाड़ भील कोर के एक सैिनक ने एक ी को डाकन होने के संदेह म मार डाला। इस पर
अजमेर के ए० जी० जी० ने इस था को समा करने हे तु भारत सरकार से िनवेदन कया। इसके यु र
म भारत सरकार ने ए० जी० जी० को िलखा क वह राज थान के सभी शासक को प िलखकर इस था
को गैर - कानूनी घो षत करने हे तु खर ता भेजे। इसके प रणाम व प उदयपुर के माहाराणा ने १८५३ ई०
म इस था को गैरकानूनी घो षत कर दया। उ ह ने घोषणा क क य द कोई भी य कसी भी ी को
डा कनी होने के स दे ह म उसे मार या जला दे गा, तो उसे अपराधी समझते हए
ु कठोर द ड दया जाएगा।
कोटा, जयपुर तथा अ य रा य ने भी इस दशा म उदयपुर का अनुसरण करते हए
ु कदम उठाया। कानून
बन जाने से यह था लगभग बंद हो गयी, पर इस संदभ म या धारणा जनमानस से अभी तक पूणत:
गयी नह ं है ।
क या वध को रोकने म अं ेजी अफसर के य
इस कु था का ओर भी अं ेज उ च अिधका रय का यान आक षत हआ।
ु एक अं ेज अिधकार ने जब
सव ण करवाया, तो उसे पता चला क मालवा तथा राजपूताने म ितवष २० हजार क याओं को ज म
लेते समय ह मार दया जाता है । जयपुर के महाराजा सवाई जयिसंह ने क या - वध क था बंद करने
का य कया था, पर तु इससे उ ह सफलता ा नह ं हई।
ु १७९५ ई० म क पनी सरकार ने एक
आदे श जार कया, जसके अनुसार क या वध को क या ह या के बराबर माना जाएगा और जो द ड
ह या के िलए द ड दया जाएगा,वह द ड इसके िलए भी दया जाएगा।
राज थान म सबसे पहले कै टन हॉल ने मेड़वाड़ा के मेड़ लोग क पंचायत म क या - वध ब द करवा
दया था, पर तु हाडौती के पोिलट कल ऐजे ट लारे स एवं व ज कसन ने १८३३ से १८३४ ई० के बीच
क या - वध को रोकने के स ब ध म सबसे अिधक शंसनीय काय कया था। सव थम १८३४ ई० म

n
कोटा रा य ने क या वध को गैरकानूनी घो षत करते हए
ु इस था पर ितब ध लगा दया गया। इसी
वष उदयपुर के महाराणा ने मीणा जाित के िलए क या - वध को गैर कानूनी घो षत कर दया। जनवर ,
ee
१८३७ म बीकानेर नरे श रतनिसंह ने अपने गया तीथ या ा म जाने से पूव अपने सरदार को यह कसम
दलावायी क वे क या-वध न करगे। इसी समय कनल सदरलै ड तथा मे थोरसबी ने इस वषय पर
राजपूत शासक से बातचीत क , पर तु कोई वशेष सफलता ा नह ं हई।
ु जोधपुर रा यके शासक ने
१८३९ ई० म क या - वध को रोकने के िलए कुछ िनयम बनाये थे। जयपुर रा य के शासक ने भी इस
ah
था को गैर कानूनी घो षत करते हए
ु इस पर ितब ध लगा दया। इससे ो सा हत होकर जोधपुर व
उदयपुर रा य ने १८४४ ई० म इस था को घो षत कर दया।
समािध मृ यु पर ितब ध
इस समय कई साधु योग ाण का तंभन करके जी वत समािध ले लेते थे। अथात ् अपने आप को
sh

जी वत अव था म भूिम म गड़वा दे ते थे। ए० जी० जी० के आ ह पर सभी राजपूत राजाओं ने अपने


रा य म इस था को गैर-कानूनी घो षत करते हए
ु ब द करवा दया।
याग था ब द
इस समय अं ेज पोिल टकल एजे ट ने चारण एवं भाट लोग के याग को भी सीिमत करने का य
कया। जयपुर के पोिल टकल एजे ट लडलो ने ठाकुर तथा चारण को समझाया और इस था के व
लोकमत उ प न कया। लडलो ने कोटा, जोधपुर एवं मेवाड़ के पोिल टकल एजे ट को भी इस दशा म
यास करने के िलए िलखा। १८४१ ई० म जोधपुर रा य म याग क िन न रािश िनधा रत क गयी -

मयादा
चारण भाट ढोली

१००० ० वा षक आय वाले जागीदार के िलए
२५ ० ९ ० ५ ०

भौिमया राजपूत (छोटे जागीरदार के िलए)
१० ० ५ ० x

सामा य राजपूत के िलए
५ ० ४ ० x
चारण तथा भाट का एक रयासत से दसर
ू रयासत म ववाह पर जाने पर ितब ध लगा दया गया।
दास था का अंत
१९वीं शता द के अंत म राज थान म ि य तथा क याओं का य - व य होता था। कई बार तो इस
कार के य - व य पर रा य कर भी वसूल करते थे। शाद म दहे ज म दे ने के िलए भी क याएँ
खर द जाती थीं। दासी तथा रखैल के प म रखने के िलए भी क याओं को खर दते थे। कई वे याएँ
अनैितक यवसाय करवाने के िलए भी क याओं को खर दती थीं। अकाल के समय माता - पता अपने

n
पु को भी बेच दे ते थे।
दाद ू पंथी अपने पंथ क सं या म वृ करने हे तु लड़के खर दते थे। दाद ू पंथी अ ववा हत होते थे। अत: वे
खर दे हए
ु ब चे को ह अपना िश य बनाते थे। आिथक
ब च को खर द लेते थे।
ee से समृ लोग नौकर क पूित के िलए गर ब

पर तु १८४७ म जयपुर सरकार ने एक कानून बनाकर इस था को गैरकानूनी घो षत कर दया। जोधपुर


सरकार ने इस कार का काय करने वाले य य को अपराधी घो षत कर दया और ऐसे य य को
ah
एक वष क जेल एवं २०० ० जुमाना करने का ावधान कया गया। कोटा म १८६२ ई० तक यह था
चलती रह । इसके बाद इस पर ितब ध लगा दया गया। १८६३ ई० म उदयपुर सरकार ने भी मानव
यापार को गैर कानूनी घो षत करते हए
ु इस पर ितब ध लगा दया। १९वीं शता द के अ त तक इस
कार के यापार लगभग समा हो गया, पर तु धौलपुर म इस कार क घटनाएँ आज भी घट जाती ह।
sh

िन कष
इस कार उपयु अ ययन के प ात ् अ त म िन कष प म कहा जा सकता है क १९वीं सद म इन
विभ न कानून ारा समाज म चिलत विभ न कुर ितय का अ त कया गया, जसके कारण आधुिनक
समाज का िनमाण स भव हो सका।

राज थानी सं कृ ित म दाद ू एवं राम नेह स दाय


का योगदान

म यकाल म राज थान म भी भ आ दोलन हआ


ु था, जसम दाद,ू मीरा तथा राम नेह के स त आ द
क मह वपूण भूिमका रह थी।
दाद ू : दाद ू एक महान स त थे। आचाय ितज, मोहन सेन, मोहिसन, फानी एवं व सन आ द व ान
का मानना है क वे जाित से धुिनया मुसलमान थे, पर तु दाद ू पंथी उनक जाित के बारे म मौन ह।
दाद ू का ज म १५४४ ई० म हआ
ु था। उनका पालन पोषण लोद राम नामक ा ण ने कया था। बचपन
म उनक शाद कर द गई, पर तु उनक आ या मकता के े म बहत
ु िच थी, अत: उ ह ने विभ न
धम के आड बर का ख डण कया एवं जीवनपय त अपने वचार का चार करते रहे । उनके िश य क
सं या म िनर तर वृ होती गई। अ त म १६०३ ई० म आमेर के पास नरायणा नामक थान पर उ ह ने
दे ह को छोड़ दया।
दाद ू के दाशिनक वचार :

दाद ू ने अपने वचार का य के मा यम से य कये ह।"दादवाणी


ू "एवं"दादजी
ू के दहा
ू "के मा यम से हम
इनके वचार के बारे म जानकार ा होती है । उ ह ने अपने वचार सरल भाषा म तुत कए ह।
उनका मानना है क ई र पर है एवं माया से दरू है । वह सवश मान है तथा जीव उसी का प है ,

n
क तु वह माया म िल रहता है , अत: उससे दरू हो जाता है । जीव कम से बँधा हआ
ु है , पर ा कम
से मु है । कम के ब धन से मु होकर जीव ई र को ा कर सकता है । इसके बाद आ मा व
परमा मा के बारे म कोई अ तर नह ं रह जाता। ee
दाद ू के अनुसार माया ह आ मा को परमा मा से दरू ले जाती है । कंचन तथा कािमनी माया के तीक ह।
उनका मानना था क सृ क उ प पृ वी, जल, वायु, आकाश तथा से हई
ु है । इनके अनुसार केवल
को छोड़कर शेष सभी िम है । दाद ू का मानना था क य द मनु य अपनी आ मा को शु कर ले, तो
ah
वह इसी जीवन म मो ा कर सकता है । उ ह ने गु के मह व पर बहत
ु बल दया। उनका मानना था
क गु के बना ान ा नह ं हो सकता तथा गु ह य को भी बना सकता है । शा त स य
स ु क कृपा से ह ा हो सकता है । उनके श द म : "दाद ू स गु ऐसा क जए, राम रस माता पार
उतारे पलक म, दरसन का दाता।"
sh

दाद ू के साधना के बारे म वचार :

दाद ू िनगुण के उपासक थे। उनके अनुसार अहं का प र याग, संयम, िनयम, साधु - संगित, ह र
मरण एवं अनत यान आ द साधना के स चे साधन ह। उनका मानना था क अहं कार का प र याग
कये बना ई र को ा नह ं कया जा सकता। मन क िनमलता के िलए उ ह ने वरह को साधन
बताया है । उनका मानना था क साधुओं क संगित से य का मन म लगा रहता है ।
दाद ू का यह भी कहना था क ह र मारक वचार के साथ - साथ आ त रक एवं मानिसक भी होना
चा हए। य द ह र नाम जपते - जपते ाण भी चले जाए, तो भी तप का तार नह ं टू टना चा हए।
दाद ू ने कहा क नाम माहा य सुनना, मरण करना साधना क थम अव था है । ऐसे जपना क उसे
दसरे
ू भी नह ं सुन सक, यह दसर
ू अव था है । दय म िच तन करना तीसर अव था है । पर तु जब रोम
- रोम म िच तन व जाप होने लगता है , तो चौथी अव था आती है , यह जीव तथा क एकता क
अव था है ।
डा० पेमाराम के अनुसार, "दाद ू ने ब हमुखी साधना के आड बर का ख डण कर अ तमुखी साधना पर बल
दया था।"
दाद ू के सामा जक वचार :

दाद ू ने समाज न चिलत ढ़ ग, पाख ड,आड बर, जात - पांत तथा वगभेद आ द बुराईय का जोरदार
ख डण कया है । उ ह ने तीथ या ा को ढकोसला बताते हए
ु कहा है क ई र येक य के मन म
िनवास करता है , अत: तीथ थान पर जाकर उसे ढू ँ ढ़ना एक ढ़कोसला मा है । उ ह ने कहा क िसर
मुंडाकर, जटा बढ़ाकर, व वध कार के व धारण करने से ई र ा नह ं होता। उनका कहना था क
म जदम जाना, नमाज पढ़ना एवं रोजे रखना भी यथ है । उ ह ने कहा क हमारे शर र म ह मं दर तथा
म जद व मान ह, अत: हम अ त: करण क उपासना करनी चा हए।
दाद ू व वध पूजा - प ितय के वरोधी थे। उनके अनुसार ई र एक है और उसके दरबार म मनु य -
मनु य के बीच कोई अ तर नह ं है । ह द ू और मुसलमान का वग भेद मानव िनिमत है , जसका कोई
मह व नह ं है । सभी जीवा माएँ एक ह ई र से उ प न होती ह, अत: वे एक ह प रवार क इकाईयाँ ह।

n
सभी के शर र म एक ह आ मा है । इसीिलए दाद ू ने ह द ू और मुसलमान के बाहर आड बर का ख डण
कया एवं दोन को अ त:करण क शु का उपदे श दया। दाद ू वनमता से अपनी बात कहते ह और
इनक शैली सरल तथा प ee
है । इसके वपर त कबीर के कहने म थोड़ उ ता दखाई दे ती है ।

दाद ू का भाव व दे न :
ah
"दाद ू ज म - लीली परची"तथा"स त गुण सागर"नामक थ से पता चलता है क दाद ू के िश य म
१५२ धान िश य थे, जनम से १०० वीतरागी थे अथात ् उ ह ने अपना एक भी िश य नह ं बनाया, जब क
शेष ५२ ने अपने - अपने त भ क थापना क । इस कार गु - िश य क पर परा आगे भी चलती
रह । ये त भ ह "दाद ू पंथी स दाय"के नाम से िस ह।
sh

दाद ू पंथ साधु अ ववा हत होते ह, और दाद ू ार म रहते ह। वे कसी गृह थ के लड़के को अपना िश य
बनाते ह, जससे उनके पंथ क पर परा आगे बढ़ती रहती है । दादपं
ू थी ितलक नह ं लगाते ह, गले म
माला नह ं पहनते ह, िसर पर चोट नह ं रखते ह और कसी मं दर म जाकर पूजा नह ं करते ह। वे अपने
दाद ू ार म दादजी
ू क वाणी नामक थ रखते ह तथा उसका वाचन अचन करते ह। दादपं
ू िथय म
मृ यु के बाद शव को न तो दफनाया जाता है और न ह जलाया जाता है , अ पतु शव को चारपाई पर
िलटाकर जंगल म रख दया जाता है , ता क पशु - प ी उससे अपना पेट भर सक।
इस कार दाद ू तथा उसके स दाय ने १६वीं शता द म राज थान म या सामा जक कुर ितय तथा
धािमक आड बर का ख डण कया, जससे नवजागृित उ प न हई।
ु दाद ू ने अपने उपदे श जन भाषा म
दये।। उ ह ने"ढू ँ ढाड़ "भाषा का योग कया, जो भूतपूव जयपुर रा य के जनसाधारण क बोलचाल क
भाषा थी।
डॉ० दशरथ शमा ने अपनी पु तक"राज थान का इितहास"म िलखा है ,"दाद ू पंथ म ेम एक ऐसा धागा है ,
जसम गर ब और अमीर एक साथ बांधे जा सकते ह और जसक एकसू ता व - क याण का माग
श त कर सकती है ।
राम नेह स दाय :

सु िस स त स तदास क िश य पर परा म स त द रयाबजी तथा स त रामचरण जी हए।


ु स त
रामचरण जी शाहपुरा क राम नेह शाखा के वतक थे, जब क स त द रयाबजी रै ण के राम नेह शाखा
के थे।

स त द रयाबजी :
इनका ज म जैतारण म १६७६ ई० म हआ
ु था। इनके गु का नाम स तदास था। इ ह ने कठोर साधना
करने के बाद अपने वचार का चार कया। उ ह ने गु को सव प र दे वता मानते हए
ु कहा क गु भ
के मा यम से ह मो ा कया जा सकता है । भ के सम त साधन एवं कमका ड म इ ह ने राम
के नाम को जपना ह सव े बतलाया तथा पुनज म के ब धन से मु पाने का सव े साधन माना।
उ ह ने राम श द म ह द ू - मु लम क सम वय क भावना का तीक बताया। उ ह ने कहा क

n
"रा"श द तो वयं भगवान राम का तीक है , जब क 'म' श द मुह मद साहब का तीक है । उ ह ने कहा
क गृह थ जीवन जीने वाला य भी कपट र हत साधना करते हए
ु मो ा कर सकता है । इसके
िलए गृह थ जीवन का
िनर तर राम नाम का जप कर
ee
याग करना आव यक नह ं है । द रयाबजी ने बताया है क कस
म लीन हो सकता है ।
कार य

स त द रयाबजी ने समाज म चिलत आड बर , ढय एवं अंध व ास का भी वरोध कया उनका


मानना था क तीथ या ा, नान, जप, तप, त, उपवास तथा हाध म माला लेने मा से को ा
ah
नह ं कया जा सकता। वे मूित पूजा तथा वण पूजा के घोर वरोधी थे। उ ह ने कहा क इ य सुख
द:ु खदायी है , अत: लोग को चा हए क वे राम नाम का मरण करते रह। उनका मानना था क वेद,
पुराण आ द िमत करने वाले ह। इस कार द रयाबजी ने राम भ का अनुपम चार कया।
स त रामचरण :
sh

स त रामचरण शाहपुरा क राम नेह क शाखा के वतक थे। उनका ज म १७१९ ई० म हआ


ु था। पहले
वे जयपुर नरे श के म ी बने, पर तु बाद म इ ह ने अचानक स यास हण कर िलया तथा स तदास के
िश य महाराज कृपाराम को उ ह ने अपना गु बना िलया। इ ह ने कठोर साधना क और अ त म
शाहपुरा म बस गये। इ ह ने यहाँ पर मठ था पत कया तथा रा य के विभ न भाग म राम ारे
बनवाये। इस कार वे अपने वचार तथा राम नाम का चार करते रहे ।

स त रामचरण ने भी मो ाि के िलए गु के मह व पर अिधक बल दया। उनके नाम को जपने से


मो ा कया जा सकता है । उ ह ने स संग पर वशेष बल दया। उनका मानना था क जस कार
गंगा के पानी म िमलने के बाद नाल का ग दा पानी भी प व हो जाता है , उसी कार मोहमाया म
िल य भी साधुओं क संगित से िनमल हो जाता है ।

रामचरण जी ने भी मूित पूजा, तीथ या ा, बहदे


ु वोपासना क या व य, ह द ू - मु लम भेदभाव तथा
साधुओं का कपटाचरण आ द बात का जोरदार वरोध कया। उनका मानना था क मं दर तथा म जद
दोन म ह तथा पूजा - पाठ, नमाज एवं तीथ या ा आ द ढ ग ह, अथात ् धािमक आड बर ह। वे भांग,
त बाकू एवं शराब के सेवन तथा मांस - भ ण के भी वरोधी थे।

राम नेह स त का भाव :

राम नेह स त ने राम - नाम के पावन म का चार करते हए


ु लोग को राम क भ का स दे श
पहँु चाया। उनक िश य पर परा के वकास के साथ - साथ थान - थान पर राम ार क थापना होती
गई। राम नेह साधु इ ह ं राम ार म िनवास करते ह तथा राम नाम को जपते रहते ह। वे आजीवन
चय का पालन करते ह। ह द ू प रवार के युवक तथा ब च को द ा दे कर िश य पर परा को आगे
बढ़ाते ह। ये िम ट का बतन म भोजन करते ह और लकड़ के कम डल से पानी पीते ह।

n
राम - नेह मूित पूजा नह ं करते ह, अ पतु गु ारे म अपने गु का िच अव य रखते ह और ात:काल
तथा सायंकाल को गु वाणी का पाठ करते ह। रामचरण स दाय म धािमक िन ा, अनुशासन, स य िन ा

करते ह। गु वाणी को बड़े


ee
तथा नैितक आचरण पर वशेष बल दया जाता है । वे मांस - भ ण नह ं करते ह, िसफ शाकाहार भोजन
ेम से गाया जाता है । इनक शाखाएँ अलग - अलग होते हए
ु भी इनका मूल
ोत एक समान है । अत: सभी शाखाओं, यव था तथा आचार - यवहार म एक पता दखाई दे ती है ।
ah

राज थान के सामा जक जीवन का आधुिनक करण


sh

राज थान म अं ेज के आगमन के साथ ह समाज के आधुिनक करण क या शु हो गयी थी :

आधुिनक समाज

अं ेज के स पक के कारण राज थान के चार वणाç के रहन - सहन एवं तर म भी अ तर आ गया।


राजपूत ने अब नौकर करना शु कर दया और नौकर ा करने के िलए िश ा ा करने लगे।
म यम वग के वकास ने ा ण के िलए चुनौती पैदा कर द , जससे उनक सव चता समा हो गयी।
इससे वै य के जीवन पर कोई भाव नह ं पड़ा। वे पहले से भी बड़े यापार बन गये। लेन - दे न तथा
यापार के अित र उ ह ने राजक य सेवाओं म आना ार भ कर दया। उ ह ने शासिनक और सैिनक
पद पर काय करना भी शु कर दया। ामीण वै य ने कृ ष का यवसाय अपना िलया था। यापार
होने के कारण उनका अं ेज से स पक था पत हआ
ु और धीरे - धीरे इस स पक ने घिन ता का प ले
िलया। कई इितहासकार का मानना है क राज थान म टश संर ण का सवािधक लाभ वै य वग को
ह ा हआ।
ु अं ेज के स पक के कारण उ ह राजनीितक े म वेश करने का अवसर ा
हआ
ु , जससे उ ह ने सामा जक े म भी अपनी ित ा बनाये रखने म सफलता ा क । पर तु अं ेजी
स पक के कारण शू के यवसाय तथा ित ा पर कोई भाव नह ं पड़ा। उ ह तो ईसाई पाद रय ने
अपने धम म द त करना आर भ कर दया। इस कार प है क जाितयाँ अपने मूल यवसाय को
छोड़ रह थीं तथा जाित के िनयम िशिथल होते जा रहे थे। इस कार पुरातन सं थाओं म प रवतन हो
रहा था।

वा टर कृत हतका रणी सभा

जनवर १८८९ ई० म अजमेर के कायवाहक ए० जी० जी० ारा इस सभा क थापना क गई थी। इस
सभा के पुराने सद य क सं या २० और नये सद य क सं या १४ थी। इस कमेट का नाम वा टर

n
कृत"राजपूत हतका रणी सभा"रखा गया।
सभा के सुधार

इसने इसके अित र


ee
वैसे इस सभा ने अपने काय 'मेवाड़ दे श हतैषनी सभा 'के अनु प ह चलाने का
िन न सुधार को अपनाया -
यास कया था, क तु

१. वा टर ने बहु ववाह था को पूणत: समा करने का सुझाव दया।


२. लड़क वाले ववाह से पूव लड़के वाल को नकद रािश तथा लड़के व उसके रशतेदार के िलए कपड़े
ah
एवं उपहार भेजते ह। लड़के वाले लड़क के िलए आभूषण एवं व आ द भेजते ह। वा टर ने इन दोन
थाओं को फजूलखच मानकर इ ह समा करने क िसफा रश क ।
३. वा टर ने लड़क व लड़के के ववाह क आयु को भी िनधा रत करने का सुझाव दया, ता क बाल
ववाह क था को रोका जा सके। उ ह ने लड़के के ववाह के िलए आयु १८ वष एवं लड़क के िलए १४
sh

वष िन त करने का सुझाव दया।

वा टर के सुधार क समी ा

वा टर के उपयु सुधार िन:संदेह अ छे थे तथा वे राजपूत के िलए भी हतकार थे, पर तु वा टर ने


राजपूत के सामा जक र ित - रवाज क जानकार कये बना ह इ ह लागू कर दया। उपरो बात
अलवर नरे श ने २४ जुलाई १९१७ को भारत सिचव को भेजे गये प म कह थी।

अत: इन सुधार को सफलता नह ं िमली। वा टर ने बहु ववाह एवं ट के के रवाज को समा कर दया,
जसके कारण उ च कुल क लड़ कय के िलए लड़का िमलना बहत
ु क ठन हो गया। उस समय एक
प रवार क ित ा इससे भी मापी जाती थी क उसक पु ी का ववाह कसके साथ हआ
ु है । इसिलए पु ी
का पता बहु - ववाह क परवाह नह ं करता था और अपनी पु ी के िलए ट के म भार धन दे कर भी
उ च वंशीय वर को ा करना चाहता था, पर तु वा टर इन सब बात से अनिभ था, अत: उसके ये
सुधार हतकार होते हए
ु भी परो प से राजपूत समाज म अनेक बुराइय के कारण बन गये।

वा टर ने ट के क था को समा करने का य कया था, जसके कारण ट का पहले से अिधक महं गा


हो गया था। अब लड़क के पता को ट के म अिधक धन खच करना पड़ता था। अब वह लड़के के पता
को गु प से अिधक धन तथा उपहार दे ने लगा।
र ते टू टने लग गये या स ब ध म कटु ता आने लग गयी थी
वैवा हक स ब ध म दलाल क भूिमका मह वपूण हो गई
उ च कुल क लड़ कय का स मान ससुराल म घटने लगा

राज थान क जूितयाँ

n
पाय संण पदपीठ पहनी खल उपांन।
जोड़ पानह जूितयॉ, कोटा रखी कुदान।।
ee
पगसुख पिनया पगरखी, पाप पोस पैजार।
मौजा मोचा मोचड़ा, पग पाखर पय चार।
ah
राज थान के िनवािसय ने अपना पहनावा, वेशभूषा, िशरो ाण व पगर खयाँ दे शकाल तथा भौगोिलक
प र थतय क आव यकता के अनु प ह अंगीकार कए ह। उन सबका पृथक-पृथक मह व है । यहाँ
विभ न जूितय का पृथक-पृथक पहनावा है तथा उनक जूितय क बनावट भी अलग-अलग है । इन
जूितय का उपयोग भी पर पराओं से मु नह ं है । जूितयाँ आम आदमी के य व क पहचान कराती
sh

है । उसके सामा जक तर, धम, आिथक थित, परगना आ द क पहचान जानने वाले लोग उसक
जूितय को दे खकर कर लेते ह। यहाँ तक क र ित- रवाज और मयादाओं क ल मणरे खा भी जूितय से
आंक जाती है ।
पावरल छणी पादका
ु , जूती जबरो जाण।
चवो उपानन मोचड़ , ाण हता पहचान।।
राज थान म जूितय के िलए कई नाम व उपनाम चिलत ह जो इस कार ह: - पग र का, पादकाएँ
ु ,
जूितयाँ, कांटारखी (कांटे से र ा करने वाली), लपतरो, जूतड़, जूतीड़, खाहड़ा, जरबो, (मेवाड़ म), िलतड़ा
(फटे हए
ु जूते), जोड़ा, खेटर, ठे ठर (जैसलमेर म), मोजड़ , िलकतर, जूत, लपटा, पनोती इ या द।
राजा, महाराजा और जागीरदार क जूितयाँ मखमल, जर , मोती तथा अमू य र से ज ड़त होती थीं।
शाद के समय जब मोची द ू हे के िलए वशेष जूितयाँ लाता था, तो उसे ब दोली कहा जाता था। इसके
बदले म उसे नेग दया जाता था। जागीर के समय जागीरदार एवं उनके प रवार के सद य के िलए गाँव
का मोची जूितयाँ बनाकर लाता था। उसके बदले म उसे पे टया ( गहू या बाजर ) दया जाता था ।
जरकस जर रे समी जांभौ, रतना साज सजावै।
म णयां जड़ मोचड़ चरणां, जोयां ह बण आवै।।
शाद - याह के समय जूितयाँ हास - प रहास करने का साधन बनती ह तथा जीजा - साली इस कार
क हँ सी- ठठोली के ारा जाने-अनजाने एक दसरे
ू के वभाव तथा उनके धैय इ या द से प रिचत होते ह।
शाद के प ात ् द ू हा-द ु हन दे वताओं को धोकने जाते ह, तो उनसे मजाक करने के िलए म हलाएँ एक
आले म द ु हन क जूितय को पिलया ओढ़ाकर रख दे ती ह और म हलाएँ द ू हे के हाथ से ना रयल
वढ़वाती ह और वहाँ उसके माथा नमन करती ह। कभी-कभी द ू हे क जूितयाँ िछपाकर साली नेग वसूल
करती है । द ू हन अपने बड़ के सामने जूितयाँ पहनकर नह ं वलती ह। मयादा के अनुसार बड़ के सामने
नंगे पाँव ह वलना होता है । म हलाएँ घर म मद क उप थित का अनुमान योढ़ पर उसक जूितय को
दे खकर ह लगाती ह। ऐसा व ास भी है नई द ू हन, जो पीहर के घर से जूती पहनकर आती है , उसे
ज द पहनकर फाड़ने का यास करती है , य क ऐसी मा यता है क उसक जूितयाँ फटने से पीहर का
कज उतरता है ।
मेह बना धरती तरसै, मेहड़ हवण
ु दै ।

n
मोच ड़याँ गणावूं मुखमलर मेहड़ो हवण
ु दै ।।
जोधपुर के रावट महाराज तो जूितय के इतने शौक न थे क वे अपनी मखमली जूितय पर खरे मोती

जूितय के संबध
ं म और भी अनेक
ee
एवं ह रे -प ने लगवाते थे। वे इसके िलए व यात भी थे।
कार के रवाज एवं पर पराएँ रह ं ह। यहाँ ऐसी मा यता है क जब
पु के पैर म पता क जूितयाँ बराबर आनी लगे, तब उसे बराबर का दजा दे दे ना चा हए।
जब कसी द ु खयार म हला के पीहर या मायके म कोई जी वत नह ं बचता है , तो कहा जाता है क उसके
ah
िलए पगरखी उतारने क कोई ठौड़ अब नह ं रह है ।
कसी अहसान क चरम सीमा को वीकार करने के िलए यहाँ आम बोलचाल म कहा जाता है क म
अपनी खाल के जूते भी आपको पहनाऊँ तो भी आपका अहसान नह ं उतार सकता हँू ।
घुड़ला सईयां द सै य न ठांण।
sh

ना रे पगाणे भँवरजी श मोचड़ा।।


पुराने जमाने म कई नामी चोर रात म चोर करने के िलए कसी अ य क जूितयाँ पहनकर चोर करने
जाता था और चोर करके उसक जूितयाँ वापस रख दे ता था। इस कार पागी (पदिच ह के पारखी)
जूितय के िनशान दे खकर उसी को पकड़ते थे, जसक जूितयाँ चोर ने यु क थीं। कसी अपराध के
सा बत होने पर गाँववाले अपराधी को जूत क माला पहनाते तथा उसे गधे पर बैठाकर पूरे गाँव म घुमाते
थे। उसके िलए यह सबसे बड़ बेइ जती मानी जाती थी।
बुर न से बचाने के िलए आज भी फट -फूट जूती घर के ऊपर लटकाई जाती है । िमरगी का दौरा पड़ने
पर अ ानवश आज भी रोगी को जूितयाँ सुंघाते ह। कई बार रे िग तान म पानी रखने का बतन उपल ध
न होने पर जूती म पानी भरकर कई आव यक काय िनपटाते ह। यह योग केवल अप रहाय प र थतय
म ह कया जाता है । कई बार भेड़ क जटा काटने के िलए उसे सुलाना पड़ता है । ऐसा करते समय खार
लोग अपनी जूती उसक आँख पर उ ट रख दे ते ह और भड़ भय व आँख के सामने अंधेरा पाकर
िन ज त होकर पड़ रहती है ।
राजा-रजवाड़ म च चदार जूितयाँ पहनने का रवाज चिलत रहा है , जनसे चलने पर करड़-करड़ क
आवाज आना रौब का िच ह माना जाता था। शाद शुदा ि याँ रं गीन, कशीदे एवं जर वाली पगर खयाँ
पहनी ह पर तु वधवाएँ िसफ काले चमड़े क साद जूितयाँ ह पहन सकती ह। जनानी पगर खयाँ क एड़
सदा मुड़ हई
ु रहती ह। चौधर एवं रबार म हलाएँ क से वाली एड़ क जूितयाँ भी पहनती ह।
बाड़मेर और जैसलमेर के िस धी मुसलमान क ि याँ मोटे तले, छोटे पंजे एवं रं गीन फू द वाली जूितयाँ
पहनती ह। इन जूितय को शहर क मोलांगी ि याँ तो पहनकर चल भी नह ं सकतीं।
यहाँ य द कोई जूितय को चुराकर ले जावे, तो अ छा माना जाता है । इस समय यह कहकर मन को
समझाया जाता है क मेर पनोती उतर गई। शिन र क दशा लगने पर दे शा तर को अ य दोन के
साथ-साथ शिनवार को जूितयाँ भी द जाती ह, ता क उस दशा का थाना तरण दे शा तर पर हो जाए।
भड़ - बकर चराने वाले दे वदािसय क जूितयाँ बहत
ु कम फटती है , य क वे लोग यादातर अपने जोड़
को लकड़ म अटकाकर क धे पर लेकर घूमते ह। य द उ ह जंगल म पेड़ क छाया के नीचे आराम
करना हो तो वे उनको िसरहाने रखकर सोते ह। वैसे यह भी मा यता है क अगर कसी य को नींद
म बुरे सपने आएँ तो उसे जूितयाँ िसरहाने रखकर सोना चा हए। ऐसा करने से बुरे सपने नह ं आते ह।

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यह भी मा यता है क कसी के घर से कोई अितिथ थान कर रहा हो तो उसे वापस आते व जूते
अथवा जूितयाँ इ या द लाने के िलए नह ं कहना चा हए।
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पाँव म पहनने वाली जूितय को बाल म सजाकर सुहाग क अ य व तुओं के साथ पडले के साथ द ू हे
क तरफ से द ु हन को भेजी जाती है । उसम चूड़ा, नथ, ितम णया और िस दरू के साथ जूितय का
जर दार जोड़ा भी होता है , ज ह फेर के समय पहनाया जाता है ।
मुगल के जमाने क न कदार जर वाली जूितयाँ सली-शाह के नाम से मशहर
ू हई।
ु आज भी नवाबी
ah
घरान म ये नाम कहे -सुने जाते ह।
मनु य खाली हाथ संसार से वदा हो जाता है । शव को दाहसं कार के समय जब ले जाया जाता है , तब
(चाहे राजा हो या रं क) उसे नई पगड़ , धोती और कुता इ या द पहनाए जाते ह, पर तु उसके पाँव नंगे ह
रहते ह। भगवान के घर वदा करते समय अमीर-गर ब कसी को भी जूितयाँ नह ं पहनाई जाती है । मृ यु
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के प ात ् ा ण को जब धािमक र ित- रवाज के अनुसार सुख सेज दान म द जाती है , तो अ य


आव यक व तुओं के साथ जूितय का दान भी दया जाता है ।
मारवाड़ म जूितय से संबिं धत अनेक कार के मुहावरे भी चिलत ह। जैसे - जूता पड़ना, जूता खाना,
जूता बरसाना, जूितयाँ उठाणी, जूितयाँ काख म राखणी, जूतां र मन म आणे, जूतां रा भूत बातां सूं नीं
मानै, जूत जरकावणा, हार जाणै जूती, जूती जेड़ तेल आ द-आ द।
इस कार चमड़े क ये पादकाएँ
ु वष का सफर तय करके आज भी अपने बदले हए
ु प म ज दा है ।
महाभारत काल म पाँच पितय वाली ौपद के क म कसी भाई क उप थित का पता अ य भाईय
क बाहर पड़ हई
ु मोज ड़य से ह चलता था। मोज ड़य को दे खकर अ य भाई ौपद के क म वेश
नह ं करते थे। यहाँ जूितयाँ एक मयादा रे खा का काम करती है ।
जूितय क दशा दे खकर उनके जानकार लोग जुितयाँ पहनने वाले य के संबध
ं म भ व यवाणी तक
करते थे। उसक चाल-ढाल, वभाव, वीरता तथा कायरता का अनुमान वे जूितयाँ दे खकर ह कर िलया
करते थे।
मानव य - य स यता के सोपान पार करता गया, य - य भोग - वलास क साम ी म भी बढ़ो र
होती गई। उसका पहनावा ह उसक सामा जक थित, तबे एवं पद क उ चता का प रचायक बनता
गया। येक जाित एवं धम के य का िसर से पाँव तक अपना अलग ह पहनावा होता था, जो अब
लगभग समा हो चुका है । आज कसी का पहनावा, पगर खयाँ तथा उसक वेष-भूषा दे खकर उस य
का सह प रचय नह ं हो सकता है । आज पगर खय को पहनना कसी पर परा से बंिधत नह ं है , पर तु
यदा-कदा वे हम पुराने रवाज क याद ज र ताजा कर दे ती ह। आज भी अपने प रजन क शव को कंधे
पर ले जाते व बहत
ु से लोग जूितयाँ नह ं पहनते ह तथा मशान तक नंगे पाँव जाते ह। इस कार
कभी-कभी हमार ाचीन सं कृित जूितय के बहाने यदा-कदा जहाँ-तहाँ न आती है , जो आधुिनकता क
होड़ म अब लु ाय हो रह ं ह।

१८५७ क ांित म राज थानी शासक क भूिमका

१८५७ म राज थान ांित के पूव जहाँ राज थान म अनेक शासक टश भ थे, वह ं राजपूत साम त

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का एक वग टश सरकार का वरोध कर रहा था। अत: उसने अपने वाथ के वशीभूत होकर अं ेज के

होती है क राज थान क जनता म भी
ee
व ोह कर दया। इस अवसर पर उ ह जनता का समथन भी
टश सा ा य के व
ा हआ।
ु इससे इस बात क पु
असंतोष क भावनाएं व मान थी।

व लव का सू पात - राज थान म नसीराबाद म सव थम व लव का सू पात हआ


ु , जसके मुख कारण
ah
िन निल खत थे -
(१) ए.जी.जी. (एजे ट टू गवनर जनरल) ने अजमेर म थत १५वीं बंगाल इ फै को अ व ास के
कारण नसीराबाद भेज दया था, जसके कारण सैिनक म असंतोष के कारण नसीराबाद भेज दया था,
जसके कारण सैिनक म असंतोष उ प न हो गया।
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(२) अं ेज ने फ ट ब बई लांसस के सैनक से नसीराबाद म ग त लगवाना ाप भ कर दया व बा द


भर तौप तैयार करवाई, जसके कारण सैिनक म असंतोष या हो गया।
(३) २८ मई, १८५७ ई. को ने टव इ फै के सैिनक ने नसीराबाद म व ोह कर दया। अ य टु क ड़याँ
भी उनके समथन म आ गयी। उ ह ने कई अं ेज को मार डाला तथा उनके घर जला दए। उसके बाद
व ोह सैिनक ने द ली क ओर थान कया।
नीमच म व ोह
३ जून, १८५७ ई. को नीमच के सैिनक ने व ोह कर दया और अनेक अं ोज को मार डाला। वे नीमच
से रवाना हो गए और िच ोड़गढ़, ह मीरगढ़, बनेड़, शाहपुरा, िन बाहे ड़ा, दे वली, ट क तथा आगरा तक होते
हए
ु द ली पहंु चे सभी थान पर जनता ने व ोह सैिनक का वागत कया। ८ जून, १८५७ ई. को
क पनी सरकार ने नीमच पर अिधकार कर िलया। इस समय मेवाड़ के सैिनक म भी असंतोष फैल रहा
था, पर तु क ान शावस ने सूझबूझ का प रचय दया, जसके कारण वहाँ व ोह नहो सका।

जोधपुर म व ोह
जोधपुर के शासक त तिसंह के व वहाँ के जागीरदार म घोर असंतोष या था। इन वरोिधय का
नेतृ व आउवा का ठाकुर कुशाल िसंह कर रहा था। २१ अग त १८५७ ई. को जोधपुर ली जयन को सैिनक
टु कड़ ने व ोह कर दया। चूं क कुशाल िसंह अं ेज का वरोधी था अत: उसने इन व ोह को अपने
साथ िमला िलया।
इस पर कुशाल िसंह का सामना करने हे तु िल टनेट ह थकोट के नेतृ व म जोधपुर क राजक य फौज
आई, जसे कुशाल िसंह ने ८ िसत बर, १८५७ ई. को आउवा के िनकट परा त कया। त प ात ् जाज
लारे स ने १८ िसत बर १८५७ को आउवा के कले पर आ मण कया और व ो हय को वहां से खदे ड़
दया। क तु व ो हय के हाथ वह बुर तरह परा जत हआ।
ु इसी जोधपुर का पोिल टकल एजे ट क ान
म क मेसन व ो हय के हाथ मारा गया।
इस पराजय का बदला लेने के िलए गे डयर हो स ने एक सेना के साथ थान कया और २० जनवर
१८५८ ई. को उसने आउवा पर आ मण कर दया। इस समय तक व ोह सैिनक द ली म पहँु च चुके थे
तथा अं ोज ने आसोप गूलर तथा आल णयावास क जागीर पर अिधकार कर िलया था। जब कुशल िसंह

n
को वजय क कोई उ मीद नह ं रह तो उसने आउवा के कले का बार अपने छोटे भाई पृ वीिसंह को स प
दया और वह सलु बर चला गया। १५ दन के संघष के बाद अं ेज ने आउवा पर अिधकार कर िलया।

को न कर दया। आउवा से ा
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अं ेज ने आउवा पर अिधकार करने के बाद पूरे गाँव को बुर तरह लूटा एवं वहाँ के मं दर तथा मूितय
गोला-बा द का योग आउवा के केिल को व त करने म कया गया।
अं ेज ने आउवा के िनवािसय पर बहत
ु भयंकर अ याचार कए।
ah
मेवाड़ के अ य व ोह
इस समय मेवाड़ के साम त म अं ेज तथा महाराणा के व भयंकर असंतोष व मान था इस समय
सामंत म आपसी संघष क आशंका बनी हई
ु थी। अत: क ान शावस को मेवाड़ म पोिल टकल एजे ट
िनयु कया गया। महाराणा ने कहा क य द मेवाड़ म व ोह भड़कता है , तो सभी साम त अं ेज क
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सहायता के िलए अपनी सेना तैयार रखे। उ ह ने नीमच से भागकर आए हए


ु अं ेज को अपने यहाँ शरण
द।
जनता म अं ेज के व घोर अस तोष क भावना या थी। क ान शावस ने मेवाड़, कोटा तथा बू द
क राजक य सेनाओं के सहयोग से नीमच पर अिधकार कर िलया। इसी समय सलु बर के रावत केसर
िसंह ने उदयपुर के महाराणा को चेतावनी द क य द आठ दन म उसके पर परागत अिधकार को
वीकार न कया गया तो वह उसके ित द को मेवाड़ का शासक बना दे गा।।
सलु बर के रावत ने आउवा के ठाकुर कुशाल िसंह तथा बनेड़ के व ो हय को अपने यहाँ शरण द ।
कोठ रया के रावत जोधिसंह ने भी अपने यहाँ व ो हय को शरण द ।
इसी समय २३ जून, १८५८ ई. को ता यां टोपे अलीपुर के यु म परा जत हआ
ु उसके बाद वह भागकर
राजपूताने क ओर गया। ता यां टोपे भीलवाड़ा म भी अं ोज के हाथ परा जत हआ।
ु उसके बाद वह
कोठ रया क तरफ गया। वहां के रावत ने उसक खा साम ी क सहायता क । सलु बर के रावत ने भी
उसे रसद क सहायता द तथा जनरल यूटर ने जब तक गोलीबार करने क धमक न दे द , तब तक
उसे रसद क सहायता न द ।
अ त म अ ल
ै , १८५९ ई. म नरवर के राजपूत, जागीरदार मानिसंह ने ता यां टोपे के साथ धोखा कया,
जसके कारण ता यां टोपे को िगर तार कर िलया। इस कार १८५७ के व लव के समय य प मेवाड़ के
साम त ने य प से अं ेज के व कोई व ोह नह ं कया था। तथा प व ो हय को शरण तथा
सहायता दे कर अ य प से व ोह के दौरान मह वपूण भूिमका िनभाई थी।

कोटा म व ोह
मेजर बटन ने कोटा क सेना क सहायता से नीमच पर अिधकार कर िलया और इसके बाद वह कोटा
लौट आया। यहाँ आने के बाद उसने कोटा के महाराव को दो-चार अिधका रय पर व ोह का आरोप
लगाया व महाराव से माँग क क उन व ो हय को अं ेज को स प दया जाए। इस पर महाराव ने
असमथता य करते हए
ु कहा क वे अिधकार उसके िनयं ण म नह ं है । इस पर अं ेज ने कोटा के
महाराव पर यह आरोप लगाया क वह व ो हय से िमला हआ
ु है ।
इस बात क सूचना सैिनक को िमलने पर उ ह ने व ोह कर दया और मे बटन को मार डाला।

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व ो हय ने कोटा के महाराव का महल घेर िलया, जससे उसक थित अ य त दयनीय हो गयी। उसने
ए.जी.जी. को प के मा यम से सम त घटना क जानकार भेजी पर तु प व ो हय के हाथ म पड़

शासक से सैिनक सहायता ा


ee
गया। कोटा के महाराव पर दबाव िनर तर बढ़ता गया। महाराव ने अपने महल क र ा हे तु करौली के
क व उनके सहयोग से वह व ो हय को महल से पीछे खदे ड़ने म सफल
हए।
ु इसी समय मे जनरल एच. जी. रॉवटस ५,५०० सैिनको के साथ २२ माच, १८५८ को च बल नद के
उ र कनारे पर आ पहँु चा, जसे दे खकर व ोह कोटा से भाग खड़े हए।

ah
व ोह कोटा से भागकर गागरौन गए, जहाँ मेवाती भी उनसे आकर िमल गए। महाराव ने अपनी सेना
भेजी, जसने मेवाितय का िनदयतापूवक क ल कर दया। पर तु व ोह वहां से भंवरगढ़ चले गए। वहां
क जनता ने उनको रसद क सहायता द , पर तु अं ेज उनका पीछा करते हए
ु भंवरगढ़ पहंु च गए। इस
पर वहां क जनता ने कसी भी कार क सहायता दे ने से इ कार कर दया।
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अ य रा य म व ोह
व ोह के दौरान भरतपुर क सेना ने भी व ोह कर िलया। स पूण व ोह काल म भरतपुर अशा त बना
रहा तथा वहां क गू तथा मेवाती जनता ने व ोह म खुलकर भाग िलया। अलवर म कई नेताओं ने
व ोह कर दया और वहां क गू जनता ने भी व ोह के दौरान खुलकर अपने असंतोष को य कया।
धौलपुर रयासत पर भी व ो हय का काफ दबाव रहा। अ टू बर १८५७ म वािलयर तथा इ दौर के
व ोह सैिनक धौलपुर आ पहंु च। वहां के अनेक सैिनक तथा पदािधकार भी उनसे जाकर िमल गए।
व ो हय ने धौलपुर के शासक पर दबाव डालकर तोप ा क और उनक सहायता से आगरा पर
आ मण कर दया था। अ त म प टयाला के शासक ारा सेना भेजने पर धौलपुर म यव था था पत
हो सक थी।
इसी कार जयपुर म उ मान खाँ और साद ु लाखाँ ने व ोह कर दया गया। इसी तरह ट क म सैिनक ने
व ोह कर दया और नीमच के व ो हय को ट क आने का िनम ण दया। इ ह ने ट क के नवाब का
घेरा डालकर उससे बकाया वेतन वसूल कया। इसी कार बीकानेर के शासक ने नाना साहब को सहायता
का आ ासन दया था। और ता यां टोपे क सहायता के िलए दस हजार घुड़सवार सैिनक भेजे थे।
इस कार य प राज थान के अिधकांश शासक स पूण व ोह काल के दौरान अं ेज के ित वफादार
रहे । तथा प व ो हय के दबाव के कारण उ ह य -त व ो हय को समथन दान कया।

व ो हय क असफलता के कारण
राज थान म व ोह क असफलता के मुख कारण िन निल खत थे -
(१) दे शी शासक अदरदश
ू थे, वे अं ेज के भ थे, अत: उ ह ने व ो हय का साथ नह ं दया।
(२) व ो हय का कोई िन त नेता नह ं था इसके अित र उनम एकता तथा संगठन का भी अभाव था।
(३) व ोह रणकौशल म अं ेज के समान द नह ं थे।
व ोह के प रणाम
व ोह के दौरान दे शी शासक ारा अं ेज क सहायता क गयी थी, अत: व ोह के दमन के बाद अं ेज
ने उ ह उपािधयाँ और पुर कृत कया। चूँ क व लव मु य प से साम त ने कया था, अत: व लव क

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समाि के बाद अं ेज ने विभ न तर क के मा यम से साम त क श को न करने का िन य
कया। व ोह काल के दौरान अं ेज को अपनी सेना को एक थान से दसरे
ू थान पर भेजने म काफ
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असु वधा का सामना करना पड़ा था। अत: व लव के बाद १८६५ ई. म जयपुर और अजमेर होती हई
ड सा क तथा नसीराबाद से िच ौड़ होकर नीमच जाने वाली सड़क का िनमाण करवाया गया।

व लव के बाद राज थान के पर परागत सामा जक ढांचे म भी प रवतन हआ।


ु व लव के दमन के बाद
आधुिनक िश ा का सार कया गया और सम त रा य म अं ेजी िनयम को या वत कया गया,
ah
जसके कारण ा ण का मह व कम हो गया। इस व ोह से जनता म एक नवीन चेतना व जागृित
उ प न हई।
ु इस कार व ोह के प रणाम बड़े मह वपूण थे।

व ोह का व प
sh

ी नाथूराम खड़गावत के अनुसार ""इस व लव म साधारण जनता ने भी य अथवा परो प से


भाग िलया था।''

राज थान का एक करण

स ा प रव न क दशा म सरकार क शु आती नीितयाँ

१ िसत बर १९३९ को तीय व यु आर भ होने के कुछ स ाह प ात ् ह भारत के यु म वेश क


घोषणा कर द गई। वायसराय लाड िलनिलथग ने भारत को संघ बनाने क टश सा ा य क नीित को
दहराया
ु तथा दे शी शासक को आ ासन दे ते हए
ु स धय और समझौत क श का स मान करने का
उ रदािय व अपने ऊपर िलया। नरे -मडल ने भावी रयासतो क वाय ता क मांग को दहराया।
ु यु के
नाजुक दौर म पहँु च जाने पर चै बरलेन के थान पर सर व ट चिचल क रा ीय सरकार का गठन
हआ।
ु वायसराय के अग त ताव म नवीन-सं वधान के प रक पना क बात कह गयी।

चिचल ने १९४२ म संवध


ै ािनक गितरोध को समा करने हे तु- स को भारत भेजा। स योजना म
दे शी शासक क अवहे लना कर द गई। दे शी शासक के स ब ध म कहा गया क उ हे केवल जनता के
अनुपात म ह ितिनिध व उपल ध होगा था नवीन प र थितय म इन रा य के साथ कसी नवीन
संिध क यव था करनी होगी। दे शी रयासत ने समाना तर वंत संघ बनाने क इ छा कट क
जब क स क योजना म भारतीय संघ के िनमाण कर ताव था।

२४ अ टू बर १९४३ को लाड वेवल ने गवनर जनरल पद का भार स भाला। उ होने यु के समय दे शी


रयासत का समथन तथा सहयोग ा करने के िलए उ हे यह आ ासन दया क सरकार कोई भी

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राजनैितक िनणय लेते समय उनके हत और अिधकार क उपे ा नह ं करे गी। यु के िनणायक दौर म
भोपाल के नवाब को नरे - म डल का चांसलर िनवािचत कया गया। वे छोटे रा य के सहयोग से दे शी
रयासत को दे श क राजनीित म तृतीय श
घोषणा क गई। नरे
ee
-म डल को स बोिधत करते हए
बनाना चाहते थे। १५ जून १९४५ को ठवेवल योजना' क
ु कहा गया क येक रा य म राजनैितक थरता,
पया आिथक साधन तथा जनता क ितिनिधय क रा य शासन म भावशाली भूिमका आव यक है ।
य द कोई रा य इन शत को पुरा नह ं कर सकता तो उसे कसी बड़ इकाई के साथ िमल जाना चा हए
ah
अथवा छोटे -छोटे रा य को िमलाकर बड़े रा य क थापना करनी चा हए।

इ लड क मजदरदलीय
ू सरकार ने १९४६ म के वनेट िमशन भारत भेजा। िमशन ने दे शी रयासत को
आ ासन दया क टश सरकार रयासत क सहमित के बना राजनैितक शासिनक स ब ध म
sh

प रव न नह ं करे गी। १६ मई १९४६ को िमशन ने अपनी संवध


ै ािनक योजना घो षत क जस म रयासत
के स ब ध म प कहा गया क टश सरकार के पास जो भुस ा है वह उसके हटते ह दे शी शासक
को िमल जाएगी तथा दे शी शासक भारतीय या कसी भी संघ म सा मिलत होने या न होने के िलए
वतं होगे। दे शी रयासत ने इसे वीकार कर िलया। िमशन क घोषणा के अनुसार नरे -मंडल ने
रा य क एक वाता सिमित रयासती के स ब ध म दे श के राजनैितक दल म समझौते के िलए
भोपाल के नवाब क अ य ता म इसे ग ठत कया।

१९३९ म अ खल भारतीय रयासती जा प रषद के लुिधयाना अिधवेशन म नेह ने अ य ीय भाषण म


अं ेज के साथ क गई संिधय को मानने से इं कार कर दया तथा दे शी रयासत को ह समा घो षत
कर दया। यह प कया गया क वे ह रयासत यो य शासिनक इकाइयां मानी जा सकती है जसक
जनसं या कम से कम २० लाख तथा राज कम से कम ५० लाख पये हो।

रयासत को या तो आपस म िमल जाना चा हए या समीपवत रयासत अथवा ा त म स मिलत हो


जाना चा हए। इस अिधवेशन म राजपूताना क सभी रयासत को एक वग म रखा गया। बाद म
रयासती जा प रषद ने नेह क अ य ता म उदयपुर अिधवेशन म २० लाख के थान पर ५० लाख
जनसं या तथा ५० लाख राज के थान पर ३ करोड़ वा षक आय स ब धी वचार दये गये। रयासती
जा प रषद क राजपूताना शाखा क कायका रणी ने ताव पा रत कया क राजपूताना क कोई भी
रयासत आधुिनक गितशील रा य क सु वधा उपल ध नह कर सकती इसिलए सभी रयासत को
अजमेर-मेरवाड़ा ा त म िमलाकर एक इकाई बना दया जाना चा हए। जवाहर लाल नेह ने रयासती
जा-प रषद के वािलयर अिधवेशन म यह मह वपूण घोषणा क , क जो दे शी रयासत सं वधान सभा म
भाग नह ं लेगी, उसे श ु रयासत समझा जाएगा। फरवर , १९४७ म टश सरकार ने घोषणा क , क
यद अ ल
ै के अिधवेशन तक दे शी रयासत के ितिनिध सं वधान-सभा म नह ं पहँु चे तो रयासत के
हत को ित होगी। शासकगण जनता को अिधकार न दे कर अपनी िनरं कुशता को बनाये रखने के िलए
मांगे रख रहे थे।

n
अ खल भारतीय रयासती जा प रषद - ने नरे -म डल को दे शी- रयासत का ितिनिध व करने के
अिधकार को चुनौती द थी।

२० फरवर , १९४७ को इं गलैड़ के


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धानमं ी एटली ने ऐितहािसक घोषणा क , क जुन १९४८ तक भारत के
स ा का ह ता तरण हो जाएगा।
बीकानेर के शासक का को और दे खो नीित का वरोध
ah
दे शी शासक म सं वधान सभा म वेश के पर मतभेद था। बीकानेर के शासक सादलिसं
ू ह ने भोपाल
के नवाब क ठ को एवं दे खो' नीित का वरोध कया। उ होने इस नीित को आ मघाती बताया तथा दे शी
शासक को रयासत म उ रदायी सरकार क थापना क आव यकता पर बल दया। इस राजनैितक
प र थित पर जादईु असर पड़ा तया नरे -म डल क थायी-सिमित से कई शासको ने यागप दे
sh

दया।
माउ ट बेटन योजना
लाड माउ टबेटन ने भारत आने के प ात ् ह ता तरण क योजना बनाई। उ होने घोषणा क क १५
अग त १९४७ को दो वतं रा , भारत व पा क तान क थापना होगी तथा दे शी रयासत को वतं ता
होगी क वे चाहे तो भारत या पा क तान म स मिलत हो या वयं का वतं अ त व बनाये रखे।
वायसराय के संवध
ै ािनक सलाहकार वी. पी. मेनन ने िनणायक भूिमका िनभाई। रा ीय नेताओं तथा
सरकार अिधका रय से वचार- वमश कर ५ जून १९४७ को माउ टबेटन ने अलग से रयासती वभाग क
थापना क । सरदार पटे ल उसके कायकार मं ी तथा वी.पी. मेनन सिचव बनाये गये।
एक करण म पटे ल क भूिमका
५ जूलाई १९४७ को सरदार पटे ल ने रयासत के ित नीित को प करते हए
ु कहा क रयासत को
तीन वषय सुर ा, वदे शा तथा संचार- यव था के आधार पर भारतीय संघ म स मिलत कया जाएगा।
धीरे -धीरे बहत
ु -सी दे शी रयासत के शासक भोपाल के नवाब से अलग हो गये तथा इस कार नव था पत
रयासती वभाग क योजना को सफलता िमली। १५ अग त १९४७ तक है दराबाद, क मीर तथा जूनागढ़
को छोड़कर शेष भारतीय रयासत भारत संघ म स मिलत हो गयी। दे शी रयासत का वलय वतं
भारत क पहली उपला ध थी तथा िन ववाद प से पटे ल का इसम वशेष योगदान था।
कोटा म विभ न राजपूताना रयासत के धानमं ी क बैठक
१५ जून १९४६ को कोटा के धानमं ी ने राजपूताना के विभ न दे शी रयासत के धानमं य क बैठक
का सुझाव दया। इस बैठक म राजपूताना संघ के िनमाण पर वचार- वमश कया गया। राजपूताना के
रयासत ने यह महसूस कया क अगर इस अवसर पर वे एक नह ं हए
ु तो आिथक तथा औधौिगक
वकास म पछड़ जाऐगे। इसिलये यह िन कष िनकाला गया क राजपूताना का भू-भाग, जसका
ऐितहािसक
मह व है , जसक एक सं कृित ह और जस के सामा य सामा जक र ित- रवाज समान है , एक होकर
एक भावशाली संघ क थापना करे । यह भी सुझाव दया गया क यह संघ द णी तथा द ण-प मी
सीमा पर थत रयासत का भी वागत करे गी।

n
इस रपोट म दये गये सुझाव को राजपूताना के शासक ने, वशेषकर बड़ रयासत ने वीकार नह ं
कया। उ हे भय था क ऐसे संघ क थापना से भारत म उनके रा य वलु हो जाऐगे। बीकानेर के

तर तक शासन को
ee
धानमं ी के. एम. प ण कर क मा यता थी क बड़ रयासत के पास इतने साधन है क वे
वयं दे ख सकती है और चला सकती है । बीकानेर, जयपुर, जोधपुर और उदयपुर
ा तीय

क रयासत वयं अपने साधन को वकिसत कर सकती है । वे उ च िश ा एवं उ च यायालय के


कोण से भी राज थान संघ के िनमाण को उिचत नह ं मानते थे। उनके अनुसार इस म वै ािनक और
ah
कायकारणी के े म कोई वशेष लाभ नह ं हो सकता।

राज थान िनमाण क या ज टल थी। राजपूताना म उस समय १९ सलामी रयासत तथा तीन गैर
सलामी रयासत थी। इनक अपनी पर पराएँ थी। शासक म राजतं क ती भावना थी। इन
sh

प र थितय ने समझौत क या को धीमा तो कर दया था ले कन सभी तरह के वरोधो व मता तर


के बावजुद राज थान के एक करण क या चरणब प से शु हो चुक थी। िन:स दे ह वतं ता-
प ात ् वभाजन के अवसर पर भड़क हई
ु सा दाियक आग म इसे और आसान बना दया।
राज थान संघ का िनमाण
राज थान संघ के िनमाण हे तु अनेक ताव रखे गये। मेवाड़ के शासक भूपाल िसंह के अनुसार जो
रयासत आिथक कोण से पछड़ हई
ु थी, वे वंत भारत म अपना मह व बनाये नह ं रख सकेगी।
अत: रयासत को अपने सभी साधन एक कर दे ने चा हए। उनक साथक कोिशश से एक ताव पा रत
हआ
ु जसके अ तगत राज थान संघ (राज थान युिनयन) क योजना वीकार कर ली गयी। जयपुर,
जोधपुर तथा बीकानेर आ द बड़ रयासत को छोड़कर उदयपुर के महाराणा, बूद
ं के राव राजा, कोटा के
महाराज, डू ं गरपुर के महारावल, वजयनगर, करौली, तापगढ़, रतलाम, बांसवाड़ा और करानगढ़ के
महाराजा, झालावाड़ के महाराजा, शाहपुर के राजािधराज, जैसलमेर के महाराजकुमार, ईडर के महाराजा के
ितिनिध, पालनपुर के नवाब तथा दाँता के महाराणा ने िस ा त प से राज थान यूिनयन क थापना
का िनणय िलया। २५ माच १९४८ को इसके िनमाण क औपचा रकता पुर हो गयी। जयपुर, जोधपुर तथा
बीकानेर के धानमं य को भी आमं त कया गया ता क स पूण राज थान यूिनयन का िनमाण संभव
हो सके।
अलवर का भारत संघ म वलय
ु डॉ. एन. वी. खरे को
अलवर के शासक ने ह द ू महासभा को अिधक मह व दे ते हए धानमं ी िनयु
कर दया। डॉ. खरे कां ेस वरोधी थे। गाँधी जी क ह या के बाद के छानबीन से यह बात सामने आयी
क उनके ह यारे कसी न कसी प से अलवर से जुड़े थे। उनक ह या का षडयं अलवर म ह रचा
गया था। तथा डॉ. खरे का इसके पीछे स य हाथ था। डॉ. खरे क िनयु तथा गाँधी जी को ह या ने
भारत सरकार को अलवर रा य म ह त ेप करने का अवसर दान कया तथा भारत सरकार ने उसके
शासन को अपने अधीन कर लेने का िन य कया। भारत सरकार ने वी. पी. मेनन को प र थितय का
अ ययन हे तु अलवर भेजा। मेनन के सुझाव से डॉ. खरे को पद से हटा दया गया तथा सी. एन.
वकटाचाय को शासक के प म िनयु कर दया गया।
भरतपुर का भारत-संघ म वलय

n
भारत सरकार भरतपुर रा य क भारत वरोधी तथा प पातपूण नीितय से खुश नह ं थी।
भरतपुर के महाराजा ने १५ अग त को व ता दवस नह ं मनाया।
अपने रा य के समाचार प ee
को रा ीय नेताओं क आलोचना क अनुमित द ।
जानबुझकर मुसलमान को सताने क नीित अपनाई।
रा य म अ -श िनमाण का कारखाना था पत कया। यह समझौते के व था। ये अ -श जाट
और रा ीय वयं सेवक संघ के कायक ाओं बीच बाँटे गये तथा इस तरह रा य ने सा दाियक
ah
गित विधय म भाग िलया।
जाट का प लेते हए
ु कई अ य जाितय के ित अ छा रवैया नह ं अपनाया।
सैिनको को िनयं त व अनुशािसत करने म असफल रहे ।
राजनैितक अ थरता तथा तनाव के कारण भरतपुर के महाराजा को फरवर १०, १९४८ को द ली बुलाया
sh

गया तथा सुझाव दया गया क वे भरतपुर रा य का शासन भारत सरकार के अधीन कर दे । १४ फरवर
१९४८ को रायबहादरु सूरजमल के नेतृ व म रा य के मं ीमंडल ने यागप दे दया तथा एस. एन. स ू
को भरतपुर रा य का शासक िनयु कया गया। बाद म भरतपुर के शासक को आरोप मु कर दया
गया।
म य -संघ (म य युिनयन) काल िनमाण
भारत सरकार म अलवर, भरपुर, धौलपुर तथा कसौली को िमलाकर एक संघ बनाने का िन य कया।
फरवर २७ १९४८ को स ब रा य के शासक को द ली बुलाया गया तथा उनके सामने यह ताव
रखा गया। संघ को भ व य म राज थान संघ म स मिलत करने क बात प कर द गई।

चू क महाभारत काल म यह े म य- े के नाम से जाना जाता था अत: म य-संघ का नाम


ता वत कया गया। चू क अलवर और भरतपुर के शासक के व जाँच चल रह थी अत: धौलपुर के
महाराजा उदय मानिसंह को, जो सबसे वृ थे राज मुख बनाया गया। राजधानी अलवर रखी गई। माच
१८, १९४८ को भारत सरकार के व र मं ी नरह र व णु गाडिगल ने इस संघ का उदघाटन कया।
इस नये रा य का े फल कर ब ३०,००० वग क. मी., जनसं या लगभग १९ लाख तथा आय लगभग
१.८३ करोड़ पये थी। चारो रयासत के शासन को िमलाकर उसे भारत सरकार ारा िनयु एक
शासन के अधीन कर दया गया। सेना, पुिलस, कानून- यव था एवं राजनीितक वभाग सीधे शासक के
हाथ म दे दये गये।

भरतपुर शासक के छोटे भाई राजा मानिसंह ने भरतपुर के वलय के वरोध म थानीय जाट समुदाय को
िमलाकर उ आ दोलन शु कया। म य-संघ क थापना से पूव भरतपुर म सरकार- वरोधी आ दोलन
भी हए
ु ले कन उनपर उिचत समय अ वल ब िनयं ण ा कर िलया गया।
संयु राज थान संघ का िनमाण
३ माच १९४८ को कोटा, बूद
ँ , झालावाड़, ट क डू ं गरपुर बांसवाड़ा, तापगढ़, कशानगढ़ तथा शाहपुरा
रयासत को िमलाकर संयु राज थान संघ के िनमाण का ताव रखा गया। रयासती वभाग क नीित

n
के अ तगत उदयपुर अपना वतं अ त व बनाये रखने का अिधकार था। द वान रामामूित और उदयपुर
के महाराणा ने रयासती वभाग के ताव का वरोध कया अत: उदयपुर के बना संयु राज थान
रा य के िनमाण का फैसला कया गया। ee
संयु राज थान म कोटा सबसे बड़ रयासत थी अत: रयासती वभाग के िनणयानुसार राज मुख का
पद कोटा के महाराव भीमिसंह को दया गया। यह ताव बूद
ं के महाराव बहादरिसं
ु ह को मा य नह ं था।
ah
वंश पर परा के अनुसार कोटा के महाराव बूद
ं के महाराव के छुटभैया थे। बूद
ं के महाराव ने उदयपुर
जाकर महाराणा से ाथना क क वे इस नये रा य म स मिलत हो जाते है तो राज मुख बन जाऐंगे
तथा सम या का समाधान हो जाएगा, ले कन सफलता नह ं िमली। कोटा के महाराव को राज मुख बनाने
का ताव बूद
ँ को वीकार करना पड़ा। माच २५, १९४८ को वी. एन. गाडिगल ने संयु राज थान संघ
sh

का उ ाटन कया। इस संघ का े फल १७,००० वग मील, जनसं या कर ब २४ लाख तथा राज दो करोड़
था।

बाद म राजनैितक बदलाव व जनता के वरोध के कारण उदयपुर के महाराणा ने संघ म स मिलत होने
का इ छा य क । इसके बदले म उ ह अनेक रयासत व भ े दये गये। महाराणा भूपालिसंह को
राज मुख बनाने का िनणय िलया गया तथा उदयपुर को संयु राज थान क राजधानी बनाई गई। कोटा
के मह व को बनाये रखने के िलए एरोना टकल कॉलेज, फॉरे ट कूल, पुिलस े िनंग रे ज तथा अ य
सं थान के कोटा म ह बने रहने का कोटा के महाराव का आ ह वीकार कर िलया गया। यह भी िन य
कया गया क कोटा के महाराव व र उपराज मुख तथा बूद
ं और डू ं गरपुर के शासक किन उपराज मुख
ह गे। अ ल
ै १८, १९४८ को पं. जवाहरलाल नेह ने इसका उ ाटन कया। मा ण यलाल वमा को मु यमं ी
तथा गोकुललाल असावा को उप-मु यमं ी बनाया गया।
वृह राज थान का िनमाण
संयु राज थान संघ के िनमाण के बाद भारत सरकार ने अपना यान जयपुर, जोधपुर तथा बीकानेर क
ओर के त कया अ खल भारतीय दे शी रयासत लोक प रष क राजपूताना ा तीय सभा ने जनवर
२०, १९४८ को ताव पा रत कर राज थान क सभी रयासत को िमलाकर वृह राज थान के िनमाण
क मांग क । इसी बीच समाजवाद दल ने वृह राज थान के िनमाण कर नारा दया। अ खल भारतीय
तर पर ठराज थान आ दोलन सिमित' क थापना क गई।

भारत सरकार क इन रा य के ित वशेष िच ता उनक भौगोिलक थित के कारण भी था। जयपुर के


अित र अ य रयासत क सीमाएँ पा क तान से जुड़ हई
ु थी। ये रयासत आिथक कोण से भी
पछड़ हई
ु थी। अत: अ ततोग वा अनेक बैठक के प ात ् वी. पी. मेनन इन शासक को वलय के िलए
मनाने म सफल हो गये। उदयपुर के महाराणा को महाराज मुख तथा जयपुर नरे श को राज मुख बनाया
गया।
वृह र राज थान क थापना
म य संघ के िनमाण के समय वहाँ के शासक को प बता दया गया था क राज थान संघ के

n
िनमाण के बाद म य-संघ को उसम िमला दया जाएगा। म य-संघ क रयासत म इस पर
मतभेद था। अलवर और कसौली राज थान संघ म िमलना चाहते थे वह भरतपुर और धौलपुर भाषा के
आधार पर संयु
मानते हए
ु चार
ee
ा त म िमलना चाहते थे। भारत सरकार ने शंकर राव दे व सिमित क िसफा रश को
रयासत को १५ मई १९४९ को राज थान संघ म िमला दया। जनवर २६, १९५० को
िसरोह रयासत भी वृह र राज थान म स मिलत हो गयी।
ah
अब तक वतं भारत म जो संघ बने थे राज थान उनम सबसे बड़ा था। इसका े फल १,२८,४२९ वग
मील था। जनसं या लगभग १५३ लाख तथा वा षक राज १८ करोड़ था। दे श कां ेस ने सवस मित से
ह रालाल शा ी को नेता चुना तथा माच ३०, १९४९ को उ हे धानमं ी पद क शपथ दलवाई गई। जयपुर
के महाराजा सवाई मानिसंह को राज मुख तथा कोटा के महाराव भीमसींह को उपराज मुख िनयु कया
sh

गया।

बाद म रा य पुनगठन आयोग ने इकलौते बचे अजमेर के वतं अ त व को वीकार नह ं कया तथा
अजमेर तथा माउ ट आबू को राज थान म िमला दे ने क िसफा रश क । इस कार राज थान के िनमाण
क कया माच, १९४७ म ार भ हई
ु थी, नवंबर १, १९५६ को समा हई।
ु अब राज थान का े फल
१,३२, २१२ वगमील हो गया तथा यह दे श का तीसरा बड़ा ा त बन गया। राज मुख तथा उपराज मुख
के पद को समा कर गवनर के पद का सृजन कया गया। नवंबर १, १९५६ को सरदार गु मुख
िनहालिसंह को थम गवनर के प म िनयु कया गया। मोहनलाल सुखा ड़या नवंबर १९५४ से जुलाई
१९७१ तक मु यमं ी के उ रदािय व को पुरा करते रहे ।
मारवाड़ (जोधपुर) को वलय स बंधी जा टलताएँ व उसका समाधान
मोह मद अली ज ना मारवाड़ (जोधपुर) क रयासत को पा क तान म िमलाना चाहता था। जोधपुर के
शासक हनव त िसंह जो कां ेस- वरोधी माने जाते थे, पा क तान म स मिलत होकर अपनी वतं ता का
व न दे ख रहे थे। अग त १९४७ म वे धौलपुर के महाराजा तथा भोपाल के नवाब क मदद से ज ना से
य गत प से िमले। महाराजा क ज ना से ब दरगाह क सु वधा, रे लवे का अिधकार, अनाज तथा
शा के आयात आ द के वषय म बातचीत हई।
ु ज ना ने उ हे हर तरह क श को पुरा करने का
आ ासन दया। ले कन बातचीत के दौरान ह उ होने यह महसूस कया क एक ह द ू शासक ह द ू
रयासत को मुसलमान के साथ शािमल कर रहा है । इस बारे म वे और सोचना चाहते थे।

भोपाल के नवाब के भाव म आकर महाराजा हनव त िसंह ने उदयपुर के महाराणा से भी पा क तान म
स मिलत होने का आ ह कया। ले कन उ होने उनके आ ह को ठु कराते हए
ु महाराजा हनव तिसंह को
पा क तान म न िमलने के िलए पुन: वचार करने को मजबूर कर दया।

पा क तान म स मिलत होने के पर जोधपुर का वातावरण द ू षत तथा तनावपूण हो चुका था।


महाराजा ने महसुस कया क यादातर जागीरदार तथा वहाँ क जनता पा क तान म वलय के ब कुल
व है । माउ टबेटन ने भी महाराजा को प श द म समझाया क धम के आधार पर बँटे दे शो म

n
मु लम रयासत न होते हए
ु भी पा क तान म िमलने के िनणय से सा दाियक ित या हो सकती है ।
सरदार पटे ल भी कसी क मत पर जोधपुर को पा क तान म िमलते हए
ु नह ं दे खना चाहते थे। अत:
उ होने जोधपुर के महाराजा क शत को ee
वीकार कर िलया जसके अनुसार

महाराजा सा दाियक ित या हो सकती है । सरदार पटे ल भी कसी क मत पर जोधपुर को पा क तान


म िमलते हए
ु नह ं दे खना चाहते थे। अत: उ होने जोधपुर के महाराजा क शत को वीकार कर िलया
ah
जसके अनुसार
महाराजा बना कसी कावट के शा का आयात कर सकगे।
अकाल त इलाक म खाधा न क सतत ् आपूित क जाएगी।
महाराजा ारा जोधपुर रे लवे लाइन को क छ रा य के ब दरगाह तक िमलाने म कोई कावट नह ं पैदा
sh

क जाएगी।
पर तु मारवाड़ के कुछ जागीरदार अभी तक वलय का वरोध कर रहे थे। वे मारवाड़ को एक वतं
रा य के प म दे खना चाहते थे ले कन महाराजा हनव त िसंह ने समय को पहचानते हए
ु भारत-संघ के
वलयप पर अग त ९, १९४७ को ह ता र कर दये। इस समय तक यह बात प रप हो चुका था क
मारवाड़ का राज थान संघ म वलय होगा यो क मारवाड़, भाषा व सं कृित क से अपने पड़ोसी
रा य से सा य रखता था।
िसरोह क वलय स बंधी सम याएँ व समाधान
िसरोह का शासक नाबािलग था। वहाँ के शासन ब ध क दे खभाल दोवागढ़ क महारानी क अ य ता
म एजे सी कॉउ सल कर रह थी। उ रािधकार के पर भी ववाद था। िसरोह राजपूताने क अ य
रयासत के समान ठराजपूताना एजे सी' के अ तगत आती थी। दे श क वतं ता के कुछ समय प ात ्
रयासती वभाग ने िसरोह को राजपूताना एजे सी से हटा कर ठवे टन इ डया ए ड गुजराज टे स
एजे सी' के अधीन कर दया था। िसरोह क जनता ने रयासती वभाग के िनणय का वरोध कया।
िसरोह का वक ल संघ भी इस िनणय के खलाफ था।
गोकुलभाई भ जो राज थान कां ेस कमेट के अ य होने के साथ साथ दोवागढ़ महारानी के सलाहकार
भी थे, ने िसरोह को त काल के शािसत रा य के प म ले लेने का सुझाव दया। नव बर ८, १९४८ को
एक समझौते के अ तगत िसरोह को के शािसत रा य बना दया गया।

गुजराती समाज चाहता था क िसरोह का वलय बंबई म हो माउ ट आबू पर परा तथा इितहास क
से गुजराती स यता से जुड़ा है । दसर
ू तरफ राजपूताना क जनता का तक था क िसरोह क अिधकांश
जनता गुजराती नह ं ब क राज थानी भाषा बोलती है । राजपूताना के अनेक शासक ने अपने िनवास हे तु
आबू म अनेक वशाल भवन का िनमाण कराया है ।

सरदार पटे ल ने चतुराई से िसरोह रा य का वभाजन कर दया जसके अनुसार आबूरोड और दलवाड़ा
तहसील बंबई म तथा शेष रा य को राज थान म िमला दया गया।

n
इस िनणय के व िसरोह म आ दोलन शु हो गया जसम गोकुलभाई भ तथा बलव त िसंह मेहता
ee
क मह वपूण भागीदार थी। ले कन सरदार पटे ल ने अपनी काय कुशलता व कुटनीित से वलय स बंधी
सम याओं का हल कर दया।
राज थान के ववाह लोकानुरंजन
राहल
ु तो गा रया
ah
जीवन म शाद - ववाह "वाह' बनकर आते ह। इन दन जो चहल-पहल, राग-रं ग, साज- ग
ंृ ार, ठाट-बाट व
कई कार के मनोरं जन दे खने को िमलते ह, उतने अ य मांगिलक अवसर पर कम दे खने को िमलते ह।
ववाह होने के बहत
ु पहले ह बड़े जोर-शोर व भरपूर उ साह से तैया रयाँ शु हो जाती है । आसपास क
तथा दरू बसी सभी नूता णएं (स ब धी औरत) बुलाई जाती ह। पीलो गोबर से घर के आँगन लेपे जाते
sh

ह। पांडु से ऊमाड़ से बनी वारा कूंची क सहायता से व वध कार के आकार- कार के मांडने मांडे जाते
ह। इन मांडन म चौक, जलेबी, फूलड़ आ द के वशेष नाम उ लेखनीय ह। आंगन के चार ओर द पक
क श ल के मांडने बनाए जाते ह। हड़मची से रग आंगन पर इन मांडन क चमक दे खते ह बनती है ।
घर से बाहर हाथी, घोड़े , ऊँट (ढोला-माखण), गणेशजी, छड़ दार, पतंग उड़ाता हआ
ु पु ष तथा भौजाई के
कांटा िनकालता हआ
ु दे वर आ द के व वध िचतराम िच त कराएँ जाते ह। औरं त महद से व वध मांडन
म अपने हाथ मांडती ह। इन मांडन म पाँच फूल, सुपार का झाड़, नौ बजणी, सोलह बजणी, बारह
बजणी, तोपखाना, चूंदड़, कटमा फूल तथा दली चोक जैसे मांडने अिधक चिलत ह। इन बूट
ं म सड़क,
बा ट , सपं, श करपारा तथा पये के बूट अ यिधक लोक य ह।

औरत के माथे पर ग द क सहायता से बाल क िम डएं िचपकाई जाती ह, चोट के आंट बांधी जाती
है । घाघर म प ट दार, झालरदार, माजादार, लहरगोरादार, भागरदार, प यांदार तथा पचाल-अ सी प ने
के घाघरे पहने जाते ह। सा ड़य म घनक, लह रया, चूंदड़, घाट जैसी सा ड़य से ग
ंृ ार कया जाता है ।
आजकल तो तारा, कटोरा, प यां, रसगु ला, पखुं ड़यां, जलेबी तथा ट वाली आ द कई एक सा ड़यां
दे खने म आती ह। कुछ भी हो, ववाह क शोभा बढ़ाने वाली औरत ह तो होती ह। संगानुसार अलग-
अलग संग के गीत इनके को कल क ठ से वत: फूट पड़ते ह। औरत अपने घर क सार िच ताएं,
सम याएं तथा काम-ध धे छोड़कर िन ज त हो याह शा दय म आती ह। जमाई- याई तथा बाराितय
को गािलयां गाकर वे उ ह मन के जो उ ार-उ माद होते ह, सुना दे ती ह। इन अवसर पर ह क -फु क
गािलयां भी उनके मुँह से सुनाई दे ती ह, जो इसी खुशी तथा फुलझड़ का काम करती ह।
ववाह क सार तैया रयां इ ह ं औरत पर िनभर रहती ह। पापड़, बड़ , छाछबड़ , छावड़ आ द बनाए जाते
ह। गेहंू का रवा तथा चने क दाल आ द सब औरत ह बनाती ह। गेहंू बीनने-हे तु पास-पड़ोस क औरत
को भी तेड़ा दे दया जाता ह। ऐसे अवसर पर भी उनके गल से गीत वत: बरस पड़ते ह। जससे
मनोरं जन तो होता ह है साथ ह क ठन से क ठन तथा बहत
ु सारा काम भी वे बना थकान महसूस कए
शी ह समा कर लेती ह। गेहूं बीनते (साफ करते) समय बना-बनी के कई एक सु दर रं गीन गीत के
अलावा भाईली तथा घूघर जैसे गीत भी गाए जाते ह। मधुर व रय वर म वर िमलाकर जब -
हां जी बना आजो हारे दादा सा रे दे श,

n
घणी ने छ व सूं आजो परणवा जी हाराज।
हां ए बनी क यो थारा दादा सा रो दे श,
कणी ने दरवाजे आवां परणवाजी
हां जी बना आमा-सामा सूरज सामी पोल,
हाराज। ee
हसती घूमै छै हारै बारणै जी हारा राज,
घोड़ला घूमै छै हारे बारणै जी हारा राज।
ah

सामू हक प से गाती ह, तब लगता है गीत-बोल क बहार इ तथा प रय के दे शे के रागरं ग को भी


मात कए जा रह है । ववाह के अवसर पर "आमा-सामा सूरज सामी पोल पोल' तथा "हसती घूमै छै
हारे बारणे' जैसे गीत क क पना कतनी सरस, सुखद एवं अिभराम है ।
sh

आवो बनाजी गो ां ललूष


काय म थाणो जीव बनीजी।
कोटे हारो सासरो जी कांई,
बूद
ं हारो पीर बनीजी।
सैल करो अजमेर ....
जैपरु हार भाईलीजी का ,
बीच म हार जीव बनीं जी
सैल करो अजमेर ...

हाथी-घोड़ से सजी बारात आने वाली है , दादा-सा के ऊंचे-नीचे महल पर से सभी बरात दे खगी, बारात म
कौन-कौन बेवाई जी होग, कतने जा ये (बाराती) होग और कैसे सज-धजकर आ रह होग। बारात कोई
मामूली तो है नह ं, दोन ह घर अपने आप म स प न जो ह -
दादा सारा ऊंचा - नीचा मेल,
पाना ओ फूलां छाई रया जी।
ओजी जां चढ़ दे खूं बरात,
बरात दे यां भात रांधूं मात रांधंजी।

तथा -
हाथीड़ा हजार लाया
घोड़ला पचाल लाया
ओजी जा या रो छै यो नी पार
याईड़ा ने कुण जाणे कूण जाणे जी।

हजार हाथी तथा पचास घोड़ो के साथ बाराितय क सं या तो इतनी है क िगनने म भी नह ं आ रह है ।


इन हाथी, घोड़ तथा बाराितय के िलए अलग-अलग यव था का कतना सुंदर एवं वभा वक वणन है

n
यथा -
ह ती ने ठाणे बांधूं
घोड़ला ने पाइगे बांधूं
ओजी जा या ने दो जानी वासो
ee
बेवाइड़ा ने खची बांध , खची बांध जी।
ah
यह नह ं उनके खाने-पीने क बात भी गीत म प अं कत है -
हसती ने लूंद दे सां
घोड़ला ने दाण दे सां
ओजी जा या ने खांड ने भात
sh

बेवाईड़ा ने मांड पावो, मांड पावो जी।

बेवाई तो इसी यो य है क उ ह श कर - चावल न खलाकर चावल का केवल मांड ह पलाया जाए।


शाद के व वध संग पर बेवाई स ब धी व वध गाल गाई जाती ह, जनम िश हा य, िश यं य के
साथ-साथ िश मनोरं जन क मा ा धान प म दे खने म आती ह। ये गीत खाली गाने के िलए नह ं होते
ह, ब क दल बहलाव के साथ-साथ कई खर -खोट बात भी इनके ज रए गाई, सुनाई जाती ह। जैसे -
ओ सासु गाल मत द जे
ह तो पाली पंपोली मोट क द
हारे ह रया बागां र कोयल
हारे राय आंगण रो रम यो
हारे कर क रया र बींट
ह तो खाजा दे ई न खलाई
ओ सासु - ................
इसी कार -
हार बाई पीसे नह ं
हार बाई पोवै नह ं
औजी पा यूड़ा भरतनी जाए जी
घीय यां हार लाड़लीजी लाड़ली।

इसिलए -
थाणी बाई पीसेला
थाणी पाई पोवेला
ओजी पाणीला हँ स-हँ स जाय
माता तो हार डोकर जी, डोकर जी

n
ओजी डोकर रे टोकया बंधाव
घीयड़ हार लाड़ली छै लाड़ली जी।

वाली बात भी वे प
ee
प से कह सुनाती ह। बना लागलपेट के बात, बोली और घूघ
ं ट ारा बात वे
प यता नह ं कह पाती ह। वह बात वे इन गीत के मा यम से सुना दे ती ह, घूघर गीत म -
वीराई पा केर तोलड़ मंगाव
ah
गारा ओ केर ढांकणींआ
वीरारे गा केर घूघर रं दाड़ो
खाओ केर लापसी
sh

ननद भौजाई क वैमन यता आपसी खटपट तथा अनबन का सु दर सजीव िच ण िमलता है -
बाईए द जे - द जे अवरे ओ सवरे सेर
बा नणदल रो घर टालजे
बाईए नावीड़ा र नार बजड़ गवाँर
बा नणदल द द घूघर

एक बार मना करने पर भी नाई क गंवा औरत ने नणदल के वहाँ जाकर आ खर लेणा दे ह दया।
नणदल के ित उसक ऐसा वैमन यता क उसने शी ह वहां म घूघर लाने क बात प क कर ली।
यतम -
लीड़ली सी घोड़ पलाड़
बे यारे चा या ओ पामणा

रा ते म ह ब हन िमल गई। भाई ने सारा हाल ब हन को कह सुनाया। ब हन ने कहा -


घूघर ह बालूड़ा समझाय
कटाती ओ लांवा घूघर

घूघर तो मने ब च को खला द है , अब कहां से लाऊ भाई? मुझे ऐसा या पता था क पीछे से ऐसी
बात बनेगी। नह ं तो घूघर का या माजना? अभी ह म घूघर बनाकर भेजती हँू । उसने तो नाइन के
साथ भेजी पर तु म तो अपने यतम के साथ भेजूंगी -
◌ं वीरारे सोना केर तोलड़ मंगा
हारे राय पा केर ढांकणीं
वीरारे मो यां केर घूघर रं ना
हारे लालां केर लापसी
वीरारे थे मोकली थारे ना वीड़ा रे
हंू मोकलूं हारा घर-धणी।

n
यहां कमी कस बात क है ? यहां तो -
सुसरा सारे भ रयारे भ डार
हंू नत ह राधूं घूघर
ee
वीरारे थारे लाग चमची रो चून
हारे ओ आगा डोड़ सो
ah

कहकर अपनी भावज को शाप प म "" हार भावज वीजो नगरे रे गड़ '' जैसा शाप दे बैठती है । भाई के
ित मन म कसी भी कार क कलु षत भावना नह ं है । भाई के िलए तो ""वी यो-वी य नगर रा
राज'' जैसी मंगल कामना करती है -
sh

"वीरारे वी यो-वी यो संमद रया रा पाल


हार भावज जल र डे ढ़ क '

उसे इस बात का प ाताप ज र है क मेर भावज ऐसी िनकली है जसने घूघर तक वापस मंगवाई है ।
अ त म वह यह कहकर अपने भाई को वदा करती है क
""बीरारे करजो करजो नगर रो राज
हार भावज टांटे टे गड़ ''

राज थानी गाथाओं म वेश-भूषा वणन व लोक


व ास
राज थानी भाषाएँ समाज का राज थानी ितिनिध व करती है । राज थानी र ित, यवहार, वेशभूषा एवं
सां कृितक पर पराएँ इनम सुर त है । तुत लेख म राज थानी गाथाओं म व णत वेशभूषा एवं लेख
व ास पर वचार कया गया है ।
गाथाएँ राज थानी सं कृित क ितिनिध है । राज थानी र ित- यवहार, वेश-भूषा एवं पर पराओं का वणन
िमलता है । तुत लेख म राज थानी वेशभूषा वणन एवं लोक िन ास पर वचार कया गया है । गाथाओं
म राज थानी वेशभूषा का सु दर वणन िमलता है । ी व पु ष दोन ह सु दर वेश धारण करते ह।
लगभग सभी गाथाओं म यह वणन िमलता है । ि याँ क ट से नीचे घाघरा धारण करती है , शर र पर
द णी चीर ओढ़ती है , व पर आँगी, जसे राज थान म कांचली कहते ह, यह आगे कुच पर आ जाती
है और पीछे पीठ पर डोर से कसी जाती है ।
घाघरे के घेर का एक प दे खए -
घ म घ मंतइ - घाघरे , उ य जाण गमंद,
मा चाली म दरे , झीणे बादल चंद।

n
माना गूजर क वेशभूषा का वणन राज थानी नार क वेशभूषा का ितिनिध व करता है -
नीचे पहरयो घूम घाघर , ऊपर दखणी चीर।
हरे पाट क आंगी पहर , भई द ली ने भीर।।
राज थानी वेशभूषा म लह रये का मह वपूण
ee
थान है । ावण के मास म वशेष प से लह रये का रं ग
िनखरात है , ि याँ इसे बहत
ु चाव से धारण करती ह -
गोरे कंचन गात पर अंिगया रं ग अनार।
ah
लगो सोहे लचकतो, लह रयो लफादार।।
अं ेजी म जसे " यूट' (suit) कहते है , राज थानी म उसे "बेस' कहा जाता है । उसम "लहं गा' और
"लूगड़ ' का रं ग एक-सा होता है । इस पर जर और मोितय का काम होता है , यह जर का बेस कहलाता
है ।
sh

कोई आंगी तो पहरोजी बाई जी रे शम पाट क


परहोजी पहरोजी बेस थे जर को भोला बाइजी
ओढो जी ओढ़ो दखढ़ चीर हारा बाइजीओ
िनहालदे सु तान गाथा म भी ी वेशभूषा का वणन अनेक थान पर आता है । उदाहरण -
""िसर पर लाल रं ग का यालू धारण कया, तथा गुजराती लहं गा पहना। इस कार सज-धज कर मा
डोले म बैठ और साथ म उसने दािसय को ले िलया''#◌़
पु ष वेशभूषा भी राज थान म बहत
ु रं गीली है । शीश पर "साफा' इसका रं ग कसूमली गुलाबी, केस रया
अथवा लह रया रं ग का होता है । क ट म धोती और शर र पर कसा हआ
ु व । तेजाजी गाथा म इस
वेशभूषा का वणन है -
क ड़या जी क ड़यां किसयो क मर बंध कवंर तेजै जी,
कोई कांधे तो डारय है रे वो लाल कनार धोितय ।
कमरयां लाल लपेटो बांधो दपटो
ु बूट
ँ दार
आभूषण वणन

राज थान म ी और पु ष ह आभूषण पहनते ह। ि य के ३२ आभूषण का उ लेख गाथाओं म आया


है । ये आभूषण इस कार ह -

मांग म ि यां मोती जड़ "राखड़ ' पहनती है । केशो पर मांग के दोन ओर "दामणी' पहनती है ।
गज मो यां र दामणी, मुखड़े सोभा दे त।
जाणे तारा पांत िमल, रा यौ च द लपेट।।

नाक म नथ धारण क जाती है , जो र जड़ रहती है -


"कोई नथली तो पहरो बाइजी रतन जड़ाव क '

n
गले म ि याँ "नौसर' हार धारण करती है , भुजाओं पर बाजूब द। िनहालदे सु तान गाथा म इसका
उ लेख है - ee
""गले म नौसर हार पहना, बाजूब द धारण कया,
माँग मोितय से भर , माथे पर बंद लगाई।''
ah
आँख म पतला-पतला काजल लगाया जाता है -
""झीणूं-झीणूं काजिलय थे घालो भोला बाईजी''

राज थान म सौभा यवती ि याँ बिछए पहनती ह -


sh

""कोई पग यां तो पहरोजी थे,


बिछया रम झम बाजणाँ।''

कान म राज थानी नार ल ग धारण करती है । इस कार गाथाओं म नार के आभूषण का वणन िमलता
है ।

लोक व ास

गाथाओं म शकुन-अपशकुन पर वचार कया गया है , जैसा क पहले भी संकेत कया जा चुका है ।
योित षय का समाज म बहत
ु स मान था। या ा म जाने से पूव, कसी शुभ काय के समार भ के पूव
योित षय ारा न दे खकर योगायोग का वचार कराया जाता था। गाथा के आधार पर कुछ शकुन
तथा अपशकुन यहाँ दए जा रहे ह। य प उस कार के वचार मानव-म त क क उस अव था को
दखलाते ह, जब तक बु का वकास नह होता, मनु य येक भय उ प न करने वाली बात पर ृ ा
करने लगता है । वह अ ध व ास से आ ा त हो जाता है । पर इन अ ध व ास के पीछे एक पर परा
होती है । िनता त मूखतापूण तो ये नह ं होते, कभी-कभी संयोगवश ये स य भी िस होते ह और तब
मनु य का व ास इनम और भी ढ़ हो जाता है ।
या ा के समय कसी का अ प
ु ात करना अशुभ माना गया है । पाबूजी गाथा म पाबूजी के वदा होते समय
दे वल चारणी अ प
ु ात करती है -
कोई आसूंडा रलकावै छै वा ऊबी दे वल चारणी
कोई चढ़ती जाना नैये थे सूणं कसूंणा य करो।

और इस अपशकुन का प रणाम हआ
ु पाबूजी क मृ यु। या ा के समय माग म सपं का बाय आना अशुभ
माना जाता था। पाबूजी क बारात के आगे सपं आ गया था -
""मारग म दे य छै आड़ो कालो वािसक नाग''

n
इसी कार िसंहनी का माग रोकना भी अशुभ कारण है -
ee
""कोई कसड़ै तो सूणां पर रै , यो िसघनी मारग रो कयो''

िसहनी को माग म दे खकर योितषी ने कहा क अब, पाबूजी को आगे न बढ़ना चा हए। लौट आना ह
जीवन उिचत होगा, पर तु इसम पाबूजी ने अपना अपमान समझा, वे गए और आधे ववाह म उठना
ah
पड़ा।
या ा के समय य द अ पीछे पैर र खे तो उसे अशुभ माना जाता था और यह मानते थे क या ा म ाण
पर संकट आ जाता है । या ा के सामने से वधवा ा णी का आना अिन कारक मानते थे -
""कोई गुवाड़ म भी जाती रै िमली वदवा बामणी''
sh

तेजाती को ससुराल जाते समय िन निल खत अपशकुन हए


ु और प रणामत: उ ह मृ यु का ास बनना
पड़ा, जस प ी से िमलने वे इतने उ साहपूवक गए थे, उससे भी िमलन न हो सका।
तीजै जी तीजै सूंण िमली
प णहार र ित बावड़ती रै
कोई बाड़ा म िम यौ छै रे गाड़ो सूकै काठ को
अगणै जी अगणै रोया सामा याल रै
कोई कांकण म रोई छै रे
बा कालै मुं क फोकर
कोई बाई वी भुवानी
बा बैठ िमली बबूल पर

या ा के समय स मुख जलह न घठक िलए आती पिनहार का िमलना अशुभ समझा जाता है । शु क का
का दशन, रोता हआ
ु गीदड़, रोती हई
ु लोमड़ , तथा बबूल पर बैठ सोन-िचड़ नाश के सूचक माने गए ह।
इन अपशकुन क भी उपे ा करके जो बढ़ जाता था वह तेजा जी क भाँित न हो जाता था, ऐसी
मा यता थी।
ि य के दा हने अंग के फकड़ने को अशुभ माना जाता था। पाबूजी गाथा म सोढ जी क दा हनी आँख
फड़कती है , वे अशुभ क आशंका से ख न हो जाती है -
घांणी तो फड़क छै राम सोढ़ जी र आँख
कोई सीमा तो फूक छै वा कालै मुख को कोयली

"बगड़ावत' गाथा म वणकार का स मुख आना (या ा के समय: भी अशुभ समझा गया है )।

शकु न / शगुन

n
या ा के समय गदभ का बांयी ओर बोलना शुभ समझा जाता है । इसी कार कोचर का दांयी ओर बोलना
शुभ है । भात योतने के िलए जब मा क सवार चली तो उसे बहत
ु अ छे शकुन हए
ु , कोचर दांयी तरफ
ee
बोलने लगी, खर बांयी ओर पर तु "िनहालदे सु तान' म एक
ओर कोचर का बोलना शुभ माना जाता था, जब क उपयु
थान पर तीतर का दांयी ओर और बांयी
उ रण म कोचर को दांयी ओर बोलना शुभ
बतलाया गया है ।
ah
दांयी ओर तीतर तथा बांयी ओर कोचर बोल रह थी। िनहालदे ने इन अ छे शकुन को दे खकर कहा।

माग म सपं का दा हनी ओर िमलना शुभ कारक माना गया है । ी के बाय अंग का फड़कना शुभ एवं
मंगलकारक माना गया है । "ढोला मा ' गाथा म मा के पूछने पर चावणी कहती है -
sh

जांघ फ खै कर फुरै , कर फर अहर फुरं त,


नािभमंडल जब फुरै , तो पव बेग िमलतं।

या ा के समय ज बुक ग
ंृ ाल का बाय बोलना भी शुभ माना गया है -

""हे प डत क लड़क तुम जो कह रह , वह झूठ है । कोचर दा हनी बोली है और ज बुक ग


ंृ ाल बाय
बोले ह। मने शकुन पर भली भांित वचार कया है ।''

कसी काय के िलए जाते हए


ु राजपूत य द सामने आते हए
ु सुअर को मार ले तो अपना काय िस हआ

समझते ह। "बगड़ावत का य' म इस कार का वणन िमलता है । उपयु प य म राज थानी लोक-
व ास पर वचार कया गयाहै । ये व ास पर परा से राज थानी समाज म चिलत है और आज भी
ामीणजन म पाए जाते ह। इन व ास क पृ भूिम म युग का अनुभव है और जनता इनसे आगे आने
वाली घटनाओं का संकेत पाने म व ास करती है ।
१८५७ क ांित म राज थानी शासक क भूिमका

१८५७ म राज थान ांित के पूव जहाँ राज थान म अनेक शासक टश भ थे, वह ं राजपूत साम त
का एक वग टश सरकार का वरोध कर रहा था। अत: उसने अपने वाथ के वशीभूत होकर अं ेज के
व व ोह कर दया। इस अवसर पर उ ह जनता का समथन भी ा हआ।
ु इससे इस बात क पु
होती है क राज थान क जनता म भी टश सा ा य के व असंतोष क भावनाएं व मान थी।

व लव का सू पात - राज थान म नसीराबाद म सव थम व लव का सू पात हआ


ु , जसके मुख कारण
िन निल खत थे -
(१) ए.जी.जी. (एजे ट टू गवनर जनरल) ने अजमेर म थत १५वीं बंगाल इ फै को अ व ास के
कारण नसीराबाद भेज दया था, जसके कारण सैिनक म असंतोष के कारण नसीराबाद भेज दया था,

n
जसके कारण सैिनक म असंतोष उ प न हो गया।
ee
(२) अं ेज ने फ ट ब बई लांसस के सैनक से नसीराबाद म ग त लगवाना
भर तौप तैयार करवाई, जसके कारण सैिनक म असंतोष या हो गया।
ाप भ कर दया व बा द

(३) २८ मई, १८५७ ई. को ने टव इ फै के सैिनक ने नसीराबाद म व ोह कर दया। अ य टु क ड़याँ


भी उनके समथन म आ गयी। उ ह ने कई अं ेज को मार डाला तथा उनके घर जला दए। उसके बाद
ah
व ोह सैिनक ने द ली क ओर थान कया।
नीमच म व ोह
३ जून, १८५७ ई. को नीमच के सैिनक ने व ोह कर दया और अनेक अं ोज को मार डाला। वे नीमच
से रवाना हो गए और िच ोड़गढ़, ह मीरगढ़, बनेड़, शाहपुरा, िन बाहे ड़ा, दे वली, ट क तथा आगरा तक होते
sh

हए
ु द ली पहंु चे सभी थान पर जनता ने व ोह सैिनक का वागत कया। ८ जून, १८५७ ई. को
क पनी सरकार ने नीमच पर अिधकार कर िलया। इस समय मेवाड़ के सैिनक म भी असंतोष फैल रहा
था, पर तु क ान शावस ने सूझबूझ का प रचय दया, जसके कारण वहाँ व ोह नहो सका।

जोधपुर म व ोह
जोधपुर के शासक त तिसंह के व वहाँ के जागीरदार म घोर असंतोष या था। इन वरोिधय का
नेतृ व आउवा का ठाकुर कुशाल िसंह कर रहा था। २१ अग त १८५७ ई. को जोधपुर ली जयन को सैिनक
टु कड़ ने व ोह कर दया। चूं क कुशाल िसंह अं ेज का वरोधी था अत: उसने इन व ोह को अपने
साथ िमला िलया।
इस पर कुशाल िसंह का सामना करने हे तु िल टनेट ह थकोट के नेतृ व म जोधपुर क राजक य फौज
आई, जसे कुशाल िसंह ने ८ िसत बर, १८५७ ई. को आउवा के िनकट परा त कया। त प ात ् जाज
लारे स ने १८ िसत बर १८५७ को आउवा के कले पर आ मण कया और व ो हय को वहां से खदे ड़
दया। क तु व ो हय के हाथ वह बुर तरह परा जत हआ।
ु इसी जोधपुर का पोिल टकल एजे ट क ान
म क मेसन व ो हय के हाथ मारा गया।
इस पराजय का बदला लेने के िलए गे डयर हो स ने एक सेना के साथ थान कया और २० जनवर
१८५८ ई. को उसने आउवा पर आ मण कर दया। इस समय तक व ोह सैिनक द ली म पहँु च चुके थे
तथा अं ोज ने आसोप गूलर तथा आल णयावास क जागीर पर अिधकार कर िलया था। जब कुशल िसंह
को वजय क कोई उ मीद नह ं रह तो उसने आउवा के कले का बार अपने छोटे भाई पृ वीिसंह को स प
दया और वह सलु बर चला गया। १५ दन के संघष के बाद अं ेज ने आउवा पर अिधकार कर िलया।
अं ेज ने आउवा पर अिधकार करने के बाद पूरे गाँव को बुर तरह लूटा एवं वहाँ के मं दर तथा मूितय
को न कर दया। आउवा से ा गोला-बा द का योग आउवा के केिल को व त करने म कया गया।
अं ेज ने आउवा के िनवािसय पर बहत
ु भयंकर अ याचार कए।

मेवाड़ के अ य व ोह
इस समय मेवाड़ के साम त म अं ेज तथा महाराणा के व भयंकर असंतोष व मान था इस समय

n
सामंत म आपसी संघष क आशंका बनी हई
ु थी। अत: क ान शावस को मेवाड़ म पोिल टकल एजे ट
िनयु कया गया। महाराणा ने कहा क य द मेवाड़ म व ोह भड़कता है , तो सभी साम त अं ेज क

द।
ee
सहायता के िलए अपनी सेना तैयार रखे। उ ह ने नीमच से भागकर आए हए
ु अं ेज को अपने यहाँ शरण

जनता म अं ेज के व घोर अस तोष क भावना या थी। क ान शावस ने मेवाड़, कोटा तथा बू द


क राजक य सेनाओं के सहयोग से नीमच पर अिधकार कर िलया। इसी समय सलु बर के रावत केसर
ah
िसंह ने उदयपुर के महाराणा को चेतावनी द क य द आठ दन म उसके पर परागत अिधकार को
वीकार न कया गया तो वह उसके ित द को मेवाड़ का शासक बना दे गा।।
सलु बर के रावत ने आउवा के ठाकुर कुशाल िसंह तथा बनेड़ के व ो हय को अपने यहाँ शरण द ।
कोठ रया के रावत जोधिसंह ने भी अपने यहाँ व ो हय को शरण द ।
sh

इसी समय २३ जून, १८५८ ई. को ता यां टोपे अलीपुर के यु म परा जत हआ


ु उसके बाद वह भागकर
राजपूताने क ओर गया। ता यां टोपे भीलवाड़ा म भी अं ोज के हाथ परा जत हआ।
ु उसके बाद वह
कोठ रया क तरफ गया। वहां के रावत ने उसक खा साम ी क सहायता क । सलु बर के रावत ने भी
उसे रसद क सहायता द तथा जनरल यूटर ने जब तक गोलीबार करने क धमक न दे द , तब तक
उसे रसद क सहायता न द ।
अ त म अ ल
ै , १८५९ ई. म नरवर के राजपूत, जागीरदार मानिसंह ने ता यां टोपे के साथ धोखा कया,
जसके कारण ता यां टोपे को िगर तार कर िलया। इस कार १८५७ के व लव के समय य प मेवाड़ के
साम त ने य प से अं ेज के व कोई व ोह नह ं कया था। तथा प व ो हय को शरण तथा
सहायता दे कर अ य प से व ोह के दौरान मह वपूण भूिमका िनभाई थी।

कोटा म व ोह
मेजर बटन ने कोटा क सेना क सहायता से नीमच पर अिधकार कर िलया और इसके बाद वह कोटा
लौट आया। यहाँ आने के बाद उसने कोटा के महाराव को दो-चार अिधका रय पर व ोह का आरोप
लगाया व महाराव से माँग क क उन व ो हय को अं ेज को स प दया जाए। इस पर महाराव ने
असमथता य करते हए
ु कहा क वे अिधकार उसके िनयं ण म नह ं है । इस पर अं ेज ने कोटा के
महाराव पर यह आरोप लगाया क वह व ो हय से िमला हआ
ु है ।
इस बात क सूचना सैिनक को िमलने पर उ ह ने व ोह कर दया और मे बटन को मार डाला।
व ो हय ने कोटा के महाराव का महल घेर िलया, जससे उसक थित अ य त दयनीय हो गयी। उसने
ए.जी.जी. को प के मा यम से सम त घटना क जानकार भेजी पर तु प व ो हय के हाथ म पड़
गया। कोटा के महाराव पर दबाव िनर तर बढ़ता गया। महाराव ने अपने महल क र ा हे तु करौली के
शासक से सैिनक सहायता ा क व उनके सहयोग से वह व ो हय को महल से पीछे खदे ड़ने म सफल
हए।
ु इसी समय मे जनरल एच. जी. रॉवटस ५,५०० सैिनको के साथ २२ माच, १८५८ को च बल नद के
उ र कनारे पर आ पहँु चा, जसे दे खकर व ोह कोटा से भाग खड़े हए।

व ोह कोटा से भागकर गागरौन गए, जहाँ मेवाती भी उनसे आकर िमल गए। महाराव ने अपनी सेना
भेजी, जसने मेवाितय का िनदयतापूवक क ल कर दया। पर तु व ोह वहां से भंवरगढ़ चले गए। वहां

n
क जनता ने उनको रसद क सहायता द , पर तु अं ेज उनका पीछा करते हए
ु भंवरगढ़ पहंु च गए। इस
पर वहां क जनता ने कसी भी कार क सहायता दे ने से इ कार कर दया।

अ य रा य म व ोह
ee
व ोह के दौरान भरतपुर क सेना ने भी व ोह कर िलया। स पूण व ोह काल म भरतपुर अशा त बना
रहा तथा वहां क गू तथा मेवाती जनता ने व ोह म खुलकर भाग िलया। अलवर म कई नेताओं ने
ah
व ोह कर दया और वहां क गू जनता ने भी व ोह के दौरान खुलकर अपने असंतोष को य कया।
धौलपुर रयासत पर भी व ो हय का काफ दबाव रहा। अ टू बर १८५७ म वािलयर तथा इ दौर के
व ोह सैिनक धौलपुर आ पहंु च। वहां के अनेक सैिनक तथा पदािधकार भी उनसे जाकर िमल गए।
व ो हय ने धौलपुर के शासक पर दबाव डालकर तोप ा क और उनक सहायता से आगरा पर
sh

आ मण कर दया था। अ त म प टयाला के शासक ारा सेना भेजने पर धौलपुर म यव था था पत


हो सक थी।
इसी कार जयपुर म उ मान खाँ और साद ु लाखाँ ने व ोह कर दया गया। इसी तरह ट क म सैिनक ने
व ोह कर दया और नीमच के व ो हय को ट क आने का िनम ण दया। इ ह ने ट क के नवाब का
घेरा डालकर उससे बकाया वेतन वसूल कया। इसी कार बीकानेर के शासक ने नाना साहब को सहायता
का आ ासन दया था। और ता यां टोपे क सहायता के िलए दस हजार घुड़सवार सैिनक भेजे थे।
इस कार य प राज थान के अिधकांश शासक स पूण व ोह काल के दौरान अं ेज के ित वफादार
रहे । तथा प व ो हय के दबाव के कारण उ ह य -त व ो हय को समथन दान कया।

व ो हय क असफलता के कारण
राज थान म व ोह क असफलता के मुख कारण िन निल खत थे -
(१) दे शी शासक अदरदश
ू थे, वे अं ेज के भ थे, अत: उ ह ने व ो हय का साथ नह ं दया।
(२) व ो हय का कोई िन त नेता नह ं था इसके अित र उनम एकता तथा संगठन का भी अभाव था।
(३) व ोह रणकौशल म अं ेज के समान द नह ं थे।
व ोह के प रणाम
व ोह के दौरान दे शी शासक ारा अं ेज क सहायता क गयी थी, अत: व ोह के दमन के बाद अं ेज
ने उ ह उपािधयाँ और पुर कृत कया। चूँ क व लव मु य प से साम त ने कया था, अत: व लव क
समाि के बाद अं ेज ने विभ न तर क के मा यम से साम त क श को न करने का िन य
कया। व ोह काल के दौरान अं ेज को अपनी सेना को एक थान से दसरे
ू थान पर भेजने म काफ
असु वधा का सामना करना पड़ा था। अत: व लव के बाद १८६५ ई. म जयपुर और अजमेर होती हई

ड सा क तथा नसीराबाद से िच ौड़ होकर नीमच जाने वाली सड़क का िनमाण करवाया गया।
व लव के बाद राज थान के पर परागत सामा जक ढांचे म भी प रवतन हआ।
ु व लव के दमन के बाद
आधुिनक िश ा का सार कया गया और सम त रा य म अं ेजी िनयम को या वत कया गया,
जसके कारण ा ण का मह व कम हो गया। इस व ोह से जनता म एक नवीन चेतना व जागृित
उ प न हई।
ु इस कार व ोह के प रणाम बड़े मह वपूण थे।

n
व ोह का व प

भाग िलया था।''


ee
ी नाथूराम खड़गावत के अनुसार ""इस व लव म साधारण जनता ने भी य अथवा परो प से

राज थान म अं ेजी िश ा का वकास


ah

ऐितहािसक पृ भूिम
अठाहरवीं शता द तक राज थान म ाचीन भारतीय िश ा यव था ह चिलत थी। रा य क ओर से
sh

िश क को अनुदार दया जाता था।

उ नीसवीं शता द के ार भ म िश ा

थान पाठशालाएँ रपोटकता ोत


१ जोधपुर ९४ िन सन जोधपुर एजसी रपोट, रै रा १४
२ जयपुर ११० क
ु ज.ए. र., पैरा १७
३ कोटा असं य बेनन हाडौती ए. र., पैरा ३
४ भरतपुर असं य वा टर भ.ए. र., पैरा २५
५ अलवर १०१ हे िम टन अ.ए. र., पैरा ३१
६ िसरोह ३८ लेक िस.ए. र., पैरा २
७ अजमेर-मेरवाड़ा ११३
-
अजमेर मेरवाड़ा रपोट, पैरा १७

इस काल म िश ा का मा यम सं कृत तथा फारसी भाषा था। वधाथ को वेश दे ने के िलए कोई
िन त िनयम नह ं था। िश ा पर यय होने वाली रािश को दान या पु य का काय माना जाता है ।

अं ेजी िश ा का ार भ

ईसाई िमशनर ईसाई धम के चार हे तु अं ेजी को िश ा का मा यम बनाना चाहते थे, जब क अं ेज


अिधकार बातचीत एवं प यवहार के माग म आने वाली क ठनाईय को दरू करने के िलए िश ा का
मा यम अं ेजी बनाना चाहते थे।
राज थान म अं ेजी िश ा सव थम अजमेर-मेरवाड़ा े से ार भ हई।
ु यहां ीरामपुर के बै ट ट

n
चारक डॉ. विलयम केर के पु जेवजकेर को भेजा गया। उसने रे जीडट आ◌ॅ टर क सहायता से
अजमेर एवं पु कर म कूल खोले। इसके बाद केकड़ तथा िभनाय म कूल क थापना क गई। इन
ee
कूल म िसफ धािमक िश ा द जाती थी, अत: १९३१ ई. म ये सारे कूल बंद हो गये।
लाड मैकाले ने १८३५ ई. म अं ेजी को िश ा का मा यम बना दया, इसिलए िश ा के व प म
प रवतन आना वाभा वक था। माच १८३६ ई. म बंगाल सरकार के अ तगत "जनरल कमेट आ◌ॅफ
प लक इ स शन' ने अजमेर म पहला सरकार कूल खोला, पर तु १८४३ ई. म इसे भी बंद कर दया
ah
गया। १८४२ ई. म अलवर के शासक ब नेिसंह ने अलवर म एक अं ेजी कूल क थापना क । जसे
१८७० ई. म हाई कूल बना दया गया। १८४२ म भरतपुर म था पत अं ेजी कूल ने भी गित क ।

अं ेजी िश ा का वकास -
sh

जयपुर - जयपुर म अं ेजी िश ा का बहत


ु वकास हआ।
ु वहाँ के शासक रामिसंह ने १८४४ ई. म जयपुर
म "महाराजा कूल' क थापना क , जो आगे चलकर "महाराजा कॉलेज' के नाम से िस हआ।
ु १८६६
म इसम ८०० छा पड़ते थे। १९०० ई. म पो ट ड ी कॉलेज बना दया गया।
१८६१ ई. म जयपुर म मे डकल कॉलेज क थापना क गई। इस कॉलेज से ६ वष म मा १२ छा ह
सफलता ा कर सके। इसके बाद १८६७ ई. म मे डकल कॉलेज बंद हो गया।
अजमेर - टॉमसन क रपोट के आधार पर १८४८ म अजमेर म पुन: सरकार कूल क थापना क गई।
यह कूल धीरे -धीरे वकास करता गया और १८६९ म इसे ड ी कॉलेज बना दया गया।
होड़ौती - बू द के शासक रामिसंह ने १८६३ ई. म एक अं ेजी कूल क थापना क । झालावाड़ के
शासक ने भी पाटन तथा छावनी म अं ेजी कूल था पत कये, क तु कोटा के शासक ने आिथक
क ठनाई के कारम राजक य यय पर अं ेजी कूल खोलने म असमथता य क।
जोधपुर - १८६७ म राव राजा मोती िसंह ने कुछ ित त नाग रक क सहायता से जोधपुर म एक
अं ेजी कूल क थापना क , जसे बाद म सरकार ने अपने िनयं ण म ले िलया और उसका नाम
"दरबार कूल' रखा। बाद म इसे ड ी कॉलेज बनाकर इसका नाम "जसव त कॉलेज' रखा। यहाँ १८८७ म
काय थ ने "सर ताप हाई कूल', १८९६ म ओसवाल महाजन ने "सरदार िम डल कूल' और १८९८ म
य मािलय ने " ी सुमेर सैनी िम डल कूल' क थापना क ।
बीकानेर - १८८५ म बीकानेर म एक अं ेजी कूल क थापना क गयी, जसे बाद म हाई कूल बना
दया और इलाहाबाद व व ालय से स ब कर दया गया।
उदयपुर - उदयपुर के महाराणा क अं ेजी िश ा के ित कोई िच नह ं थी। महाराणा श भूिसंह (१८६१-
७४) जब नाबािलक थे, तब ईडन ने उदयपुर नगर के सम त पाठशालाओं को िमलाकर "श भूर
पाठशाला' के नाम से एक बड़े कूल क थापना क १८६५ से इसम अं ेजी िश ा द जाने लगी। १८८५
म इसे हाई कूल बना दया गया।
१९वीं शता द के अंितम वष म डू ं गरपुर, बांसवाड़ा तथा तापगढ़ जैसे छोटे रा य म भी अं ेजी कूल
था पत कये गए।
राजपूत क िश ा

n
राजपूत शासक क िच अं ेजी िश ा के ित नह ं थी। उनका मानना था क अं ेजी जीवकोपाजन का
एक साधन मा है । अत: वे अपने पु को अं ेजी कूल म िन न वग के लड़क के साथ भेजने के
व थे। ऐसी
करने का िन य कया। १८६६
ee
थित म अं ेज अिधका रय ने साम त पु के िलए अलग से विश
म सरदार तथा राजपूत के लड़क के िलए जयपुर म "नो ब स
कूल था पत
कूल'
क थापना क गई, पर तु १८६९ ई. तक इसम पढ़ने वाले व ािथय क सं या मा २२ थी।
१८७१ ई. म ठाकुर के पु हे तु अलवर म एक पृथक कूल क थापना क गई। १८७५ म जोधपुर रा य
ah
म "पाउलेट नो ब स कूल' क थापना क गई। सामा य राजपूत के िलए १८९६ ई. म "एिलिगन
राजपूत कूल' क थापना क गई। १८७७ म उदयपुर म सरदार के पु हे तु "श भुर पाठशाला' म एक
वशेष क ा ार भ क गयी। १८९३ ई. म बीकानेर म "वा टर नो ब स कूल' कायम कया गया।
इस कार शासक ने अपने सामंत म अं ेजी िश ा के ित िच उ प न करने का य कया। इन
sh

कूल का पा य म सावजिनक कूल से िभ न रखा गया था।

शासक क िश ा म अं ेज सरकार क ची

जब राज थान पर टश संर ण था पत हो गया, तब से ह अं ेज ने राजपूत शासक एवं उनके पु


के िलए अं ेज ने िश ा क आव यकता एवं मह व का अनुभव कर िलया था। एस स ब ध म उ ह ने
कोई िन त नीित नह ं अपनाई, अ पतु अवसर के अनुकूल काय करना उपयु समझा।
१८३६ ई. म जयपु नरे श रामिसंह क िश ा के िलए क पनी के िनदशक ने गवनर जनरल को िन तृत
िनदश भेजे थे। इसी कार भरतपुर के जसव त िसंह, अलवर के िशवदान िसंह एवं उदयपुर के श भूिसंह
क िश ा म अं ेज सरकार ने वशेष िच ली थी।
१८५७ के व ोह के समय राजपूत शासक क वामी भ पूण प से प हो गयी थी, अत: टश
सरकार ने राजपूत शासक क वामी भ और आ ाका रता क भावना को और ढ़ करने के िलए
अं ेजी िश ा पर बल दे ने का िन य कया। मेयो कॉलेज इसी भावना का प रणाम था।
मेयो कॉलेज - भरतपुर के त कालीन पोली टकल एजे ट वा टर ने सव थम ए.जी.जी कनल क टं ग को
यह सुझाव दया था क राजपूत शासक और बड़े साम त के पु के िलए एक पृथक कॉलेज क थापना
क जाए। क टं ग ने यह सुझाव गवनर जनरल लाड मेयो के स मुख तुत कर दया। लाड मेयो क
हािथक इ छा थी क इं लै ड "ईस कॉलेज' के समान राज थान म भी कॉलेज क थापना कर द जाए।
अत: इसे क टं ग का ताव िचकर लगा।
१८७० ई. म अजमेर म एक वशेष दरबार आयो जत कया गया, जसम राज थान के मुख राजा,
महाराजाओं व सरदार ने भाग िलया। इसम लाड मेयो ने अजमेर म एक विश कॉलेज क थापना क ।
लाड मेयो ने उ ह यह व ास दलाया क अं ेज उनके हतैषी है , अत: उ ह भी चा हए क वे टश
सा ा य क अपनी यो यतानुसार सेवा कर व अं ेज के सर ण म ह सह दशा म आगे बढ़े ।
राजपूत शासक ने मेयो के कॉलेज खोलने के ताव का वागत कया और उसके िनमाण के िलए यथा
श आिथक सहयोग भी कया। अ टू बर १८७५ ई. म मेय कॉलेज क थापना हई
ु और इस कॉलेज म

n
वेश लेने वाला थम छा अलवर नरे श मंगलिसंह था।
७ नव बर, १८८५ ई. को डफ रन ने मेयो कॉलेज के मु य भवन का उ ाचन कया। इस कॉलेज के
ee
ांगण म जयपु, जोधपुर, उदयपुर, कोटा, भरतपुर, बीकानेर, झालावाड़, अलवर एवं ट क आ द रा य के
शासक ने अपनी िनजी छा ावास बनवाये।
मेयो कॉलेज क थापना का मु य उ े य राजपूत रा य के भावी शासक म टश शासक के ित
वामी भ तथा आ ाका रता क भावना को ढ़ करना था। इस उ े य क पूित के िलए कॉलेज म
ah
पढ़ने वाले छा को को व ा, बु , तक शैली, रहन-सहन, खानपान तथा आचार- वचार आ द से
अं ेज बनाने का य कया गया। उनम अं ेजी राज एवं मा यताओं के ित अगाध ृ ा तथा भ क
भावना भर जानी लगी। उ ह भारतीय सं कृित से िभ न वातावरण म पो षत कया जाने लगा। फर भी
इसका पा य म सामा य कूल के पा य म से अिधक िभ न नह ं था। यहाँ िश ा का मु य उ े य
sh

नौकर दलवाना था। इसके व शासक म असंतोष फैला, य क वे ऐसी िश ा के प म नह ं थे।


अत: १९वीं शता द के अंत तक पा य म के वषय पर ववाद चलता रहा।
मेयो कॉलेज के कारण अं ेज अिधका रय को राजपूत रा य के भावी शासक के साथ घुलिमल जाने का
अवसर ा हआ।
ु इसके अित र कॉलेज म आयो जत विभ न समारोह के अवसर भी दान कया।
कॉलेज क थापना के समय और उसके कुछ समय बाद मेयो कॉलेज क काफ ित ा थी, क तु धीरे -
धीरे छा ावास का वातावरण द ू षत होने के कारण कॉलेज क ित ा िगरने लगी।
ी िश ा - १८६६ ई. म ी िश ा हे तु सव थम भरतपुर, जयपुर और उदयपुर म सरकार कूल क
थापना क गई।
उदयपुर के कूल के ार भ म १३ छा ाएँ तथा दो िश काएँ थीं। जयपुर के म हला कूल के िलए १८६७
ई. म कलक ा से ीमती ओगलद न को बुलवाकर धा या पका िनयु कया गया।
उसने इन कूल को तीन दज म वभ कया। थम दज म केवल ार भक ान क जानकार , ताय
एवं तृतीय दज म भूगोल, साधान ग णत एवं िसलाई क जानकार दे ने क यव था क गई। १८८७ ई. म
जोधपुर तथा १८८८ ई. म भरतपुर म भी म हला कूल खोले गए। उ नीसवीं शता द के अ त तक
विभ न रा य म म हला कूल एवं पढ़ने वाली छा ाओं क थित इस कार थी।

रा य का नाम कूल क सं या अ ययनरत छा ाएँ


जयपुर ९ ६९५
बीकानेर १ १५७
कोटा ४ १११
झालावाड़ १ २७
टक ५ ७५
भरतपुर ३ १०५
उदयपुर १ १२५
जोधपुर १ ४९

n
करौली १ १२
उपयु कूल म उ च िश ा के िलए कोई यव था नह ं थी। छा ाओं को िलखाई-पढ़ाई, ार भक ग णत

िश ा के ित सावजिनक
ee
एवं िसलाई क िश ा द जाती थी। उस समय समाज म बाल- ववाह, यो य िश
िच का अभाव आ द ऐसे कारण थे, जनक वजह से
काओं का अभाव एवं
ी िश ा के े म

पया गित न हो सक ।
िमशन कूल - यूनाइटे ड े बटे रयन िमशन अपने धम चार काय म िमशन िश ा को एक मु य साधन
ah
मानता था, अत: िमशन के क थापना के कुछ मह न बाद अग त, १८६० म रे . कूल ेड ने यावर
म थम िमशल कूल था पत कया। इनम एक थानीय धम प रवितत ाह ण बाबू िचंताराम ने
मह वपूण सहयोग दया। इस कूल म उद ू व ह द के साथ-साथ अं ेजी िश ा भी द जाती थी। इस
कूल ने काफ लोक यता ा क । यहाँ तक क सरकार ने यावर म था पत सरकार कूल को ब द
sh

कर दया। पर तु बाद म इस कूल म ह रजन लड़क को भी वेश दे दया। अत: दो-ितहाई ह द ू छा


ने इस कूल को छोड़ दया।
माच, १८६२ म िमशल ने अजमेर कूल क थापना क । थानीय पं डत ने कूल म ह रजन लड़क को
वेश न दे ने क मांग क । उनक इस मांग को िमशन ने मानने से इ कार कर दया। पं डत के वरोध
के बावजूद भी िमशन ारा था पत अजमेर के कूल ने संतोषजनक गित क । इसका मु य कारम यह
था क िमशन ने कूल का समय ात: काल का रखा। ता क नौकर पेसा वग के लोग को िश ा ा
करने का अवसर िमल सके एवं वे अिधक से अिधक कूल म वेश लेने के िलए आकृ ह।
इसके बाद िमशन कूल क सं यां म िनर तर वृ होने लगी। १८६२, १८६४ व १८७१, १८७२ म
नसीराबाद, टोड़ागढ़, दे वली एवं जयपुर म कूल खोले गए। १८७६ म सांभर और फुलेरा तथा १८७७ म
अलवर म िमशल कूल था पत कये गए। १८८३ म बांद कुई, १८८५ म जोधपुर एवं उदयपुर तथा १८८९
म कोटा म िमशन ारा कूल था पत कये गए।
िमशन ने लड़ कय क िश ा के िलए भी कूल खोलो। १८६२ म ार भक पढ़ाई-िलखाई के साथ-साथ
िसलाई, बुनाई एवं कसीदे का काम भी िसखाया जाता था। १८६३ ई. म ीमती फिल स ने अजमेर म
एक ग स कूल क थापना क । जसे काफ लोक यता िमली। इस कूल के संचालक ने नगर के
ओसवार, जैन प रवार क ि य से घिन संबध
ं था पत कए और उनम िश ा के िलए जाग कता
उ प न क।
१८६४ ई. म िमशन ने यावर नगर म अपनी िलयो ेस था पत क , जसम पा य पु तक व धािमक
सा ह य को छापा जाता था।

िन कष - उ नीसवीं सद के अ त म राज थान म अं ेजी िश ा के सार के िलए शासक , उ च


जाितय , ित त नाग रक , अं ेज अिधका रय एवं ईसाई धम चारक आ द सभी ने सराहनीय योगदान
दया। यवसायी तथा नौकर पेशा वग ने अं ेजी िश ा के मा यम से आगे बढ़ने एवं अं ेज का कृपापा
बनने के लोभन से उसका वागत कया। इसिलए बीसवीं सद म अं ेज िश ा का सार हो गया।

राज थान म रं गकम


n
पर परा, गित और
ee
व प
राज थान म द य-कला (परफौ कमग आट) और लोकना यो क एक समूह पर परा रह है । यहाँ रं गमंच
क पर परा भी लोकगाथाओं व लोकवाताओं क ह भाँित ाचीन है । बगड़ावत (दे वनारायण) क महागाथा,
ah
पाबूजी, गोगाजी, तेजाजी, ढोला-मा सैणी बीजान द, रामू चनणा, जेठवा ऊजली, मूमल महे , बाघो
भारमली तथा दरपदावतार
ु इ या द ऐसी अनेक कथाएँ ह। ये लोकवाताएँ गाथाएँ तथा आ यान, ेम व
सौ दय तथा शौय व जीवट से भरे पड़े ह। इनका िनयिमत इितहास प तो ईसा क सोहलवीं सद से
िमलता है , पर तु इन गाथाओं के रण म दे श, काल व प र थित के अनुसार वभा वक िभ नता भी
sh

दखाई दे ती है । लोक ना य म "तुरा कलंगी' कम-से-कम ५०० वष पुराना है । मेवाड़ के दो पीर संत ने
जनके नाम शाहअली, और तु कनगीर थे "तुराकलंगी' क रचना क । बीकानेर क "र मत' क अपनी
यार ह वशेषता है , जो उसे कुचामनी और िचड़ावा के याल से अलग करती है । बीकानेर म लगभग
१०० वष से चली आ रह लोक य लोकका य क ित प ा म से ह "र मत' का िनकास ढू ं ढ़ा जा
सकता है । राज थान के आ दवासी भील क सं कृित ने लोककलाओं तथा लोक ना य क पर परा के
वकास व संर ण एवं संवधन म बहत
ु योग दया है । उ ह ने अपने र ित- रवाज के मा यम से रं गमंच के
लोक ना य प को भी िनर तर जी वत रखा है । अरावली पवत ख
ंृ लाओं म बसे भील ितवष मानसून
क समाि पर कर ब चालीस दन का एक बड़ा समारोह आयो जत करते ह, जसम अनेक कार के नृ य
और नाटक आ द स प न कए जाते ह। ये समारोह "गवर ' यौहार के नाम से जाने जाते ह और यह
भील समुदाय क ाचीन सं कृित एवं रं गमंचीय पर परा के आज तक भी नए-ए प हण कर समृ
होने का संदेश दे ते ह।

राज थान क सं कृित ाचीन होने के साथ-साथ जीव त भी है । मब ता एवं अपने पुननवीकरण क ये
दो आधारभूत श याँ इसम अंतिन हत ह। ये दो श याँ इसे आज के लगातार प रवतनशील समाज क
ज रत के अनु प साथक बनाती है । असाधारण यवहा रक बु क धरोहर िलए सवसाधारण, लोकजन
क सावजिनक चेतना म उभरने वाले महान वचार का जो प उभरता है , उसे यह ाणवान लोक व
आ दम सं कृित सहज ह हण करके आ मसात ् कर लेती है । राज थान के विभ न े म चिलत
लोक ना य और उ ह स प न करने वाली लोक मंडिलय क यह श है ।
राज थान म साम तवाद काल म रा या य के लोक ना य एवं अ य दशन कलाओं को लगातार
पोषण िमला है , वे संम ृ भी हई।
ु उस समय का दरबार माहौल द य कलाओं के तथा लोक ना य के
वकास के िलए अ य त अनुकूल था। राज दरबार म इनके ित िच होने से विभ न रा य के साम त
वग इन कलाओं से भली भाँित प रिचत होते थे। जब क दरबारो मुख होने के कारण आमजन को ये
कलाएँ बहधा
ु दे खने को नह ं िमलती थी। इसिलए आम लोग म इनके ित गहर िच नह ं हो सक व
केवल लोक समाज क पेशेवर जाितय तक ह ये कलाएँ सीिमत रह गई। राजा-महाराजाओं के दै िनक,
मािसक, वा षक मनो वनोद के िलए होने वाले पेशेवर जाितय ारा स प न ये लोकना य आमजन दे ख

n
भी नह ं सकते थे। य क राजा-महाराजा तथा साम त इ ह नीची नजर से दे खते थे। म यकाल म यह
वृित वशेष प से वकिसत हो गई व गाँव तक म भी फैल गई। ढ़ जाित था के वकिसत हो जाने

वग म इसी म यवत साम ती


ee
से लोकना य दिलत जाित या िन न वग के मनोरं जन का साधन रह गई और यह कारण था क उ च
था के कारण लोक ना य के ित एक ह न भावना पैदा हो गई। इस
तरह लोकना य आमजन क स प बना रहा। और यह उनक सामा जक मामुदाियक भावनाओं क
अिभ य का मा यम भी बनी रह ।
ah
राज थान को लोक ना य क व वध पो क से तीन ेत म बांटा जा सकता है -
१. उदयपुर, डू ँ गरपुर, कोटा, झालावाड़ और िसरोह के पवतीय े ,
२. जोधपुर, बीकानेर, बाड़मेर तथा जैसलमेर के रे िग तानी े ,
३. राज थान का पूवाचल, जसम शेखावट , जयपुर, अलवर, भरतपुर तथा धौलपुर आ द ांत ह।
sh

सामुदाियक मनोरं जन क से पहाड़ इलाके बहत


ु अिधक समृ ह, य क इनके भीतर भील , मीण ,
वनराज , सह रय और िगरािसय क रं गमय सं कृित बखर बड़ है । इनका सहज वाभा वक ाकृितक
प रवेश तथा ाकृितक दे वी-दे वताओं म इनक अटू ट िन ा ह इनके जीव त पय त नृ य , ना य तथा
रं गीन प रधान म डू बी सां कृितक अिभ य का कारण है । यह उनके नृ य, ना य, संगीत एवं मेले के
अवसर पर उ प न होने वाली सामुदाियक भावना का तीक बनकर सामने आती है ।
राज थान के म थलीय े म जनसं या बहत
ु कम है और वहां क साधारण जनता को अपनी जी वका
िनवाह के िलए क ठन प र म करना पड़ता है । इन े म मनोरं जन का काय सरगड़ा, नट, िनरासी, भाट
व भा ड नामक पेशेवर जनजाितय के लोग करते ह। ये लोग वांग, लोक ना य को जमाने क नयी
ज रत के मुता बक ढाल कर लोग का मनोरं जन करने म िनपुण होते ह। ऐसे काय ाय: ये भा ड
(लोक ना य का चिलत ाचीन प) के मा यम से करते ह। इनके वातालाप पूर तौर पर यं य वनोद
धान होते ह और लोग को हँ सा-हँ साकर लोट-पोट कर दे ते ह।
राज थान का पूवाचन, वशेषतौर पर शेखावट का इलाका याल क पर परागत लोक ना य शैली के िलए
व यात है । याल राज थान के लोक ना य क सबसे लोक य व ा है । इसको जनता के सम मंिचत
करने वाली पेशेवर जाितय या ना य म डिलय के िलए कमाई के चुर साधन है । व इस अँचल म
कृित भी इन ना यकिमय के ित इतनी ू र नह ं है जतनी जैसलमेर, बाड़मेर के रे िग तानी इलाक म
है । कठपुतली, भाट, कामड़ घोड़ , नतक व भोपे आ द लोक ना य के व वध प को िनयिमत प से
आज जनता से सम तुत कर अपनी जी वका आसानी से चला रहे ह। इनको स प न करने वाली
पेशेवर जाितय , समूह तथा म डिलय के मा यम से ह ये लोकना य प अपना िनर तर वकास कर
रहा है । जसम लोक रं गमंच आज भी अपना भाव कायम कए हए
ु है । अलवर, भरतपुर े के लोक
ना य म राज थान, ह रयाणा और उ र दे श क लोक सं कृितय का िमला-जुला प भी दे खने को
िमलता है ।
राज थान के सीमावत इलाके, जैसे धौलपुर, सवाईमाधोपुर, ड ग उ र दे श से जुड़े होने के कारण वहाँ क
सं कृित से अछूते नह ं रह सकते और रासलीलाएँ, रामलीला, रिसया, याल एवं नौटं क आ द लोक ना य
पर प त: जभूिम क सं कृित का भाव प झलकता है । ऐसा लगता है जैसे यहाँ राज थान व ज
े क लोक सं कृितयाँ गलब हयाँ डाले ह ।

n
राज थान म लोक ना य के िन नां कत प व मान ह। ये लोक ना य इन े के लोग के मनोरं जन
क आव यकता से पैदा हए
ु ह और इ ह ने यहाँ के जनजीवन के लोकाचार म अपना थान बना िलया है ।

याल
ee
१८वीं शता द के ार भ से ह राज थान म लोक ना य के िनयिमत प से स प न होने के माण
ah
िमलते ह। इ ह याल कहा जाता था। इन याल क वषय-व तु पौरा णक या कसी पुरा यान से जुड़
होती है । इनम ऐितहािसक त व भी होते ह तथा उस जमाने के लोक य वीरा यान आ द होते ह।
भौगोिलक अ तर के कारण इन याल ने भी प र थित के अनुसार अलग-अलग प हण कर िलए।
इन याल के खास है , कुचामनी याल, शेखावट याल, माँची याल तथा हाथरसी याल। ये सभी
sh

याल बोिलय म ह अलग नह ं है । ब क इनम शैलीगत िभ नता भी है । जहाँ कुछ याल म संगीत क
मह ा भी है दसर
ू म नाटक, नृ य और गीत का ाधा य है । गीत ाय: लोकगीत पर आधा रत है या
शा ीय संगीत पर। लोकगीत एवं शा ीय संगीत का भेद याल को गाने वाले वशेष ना यकार पर ह
आधा रत होता है । अगर लोकना यकार शा ीय संगीत का जानकार है तो वह याल संगीत धान होगा।
य द खलाड़ अिभनेता नृ य का जानकार हआ
ु तो याल नृ य धान होगा। इन याल म से कुछे क क
वशेषताएँ इस कार है ।

कुचामनी याल - व यात लोक ना यकार ारा इसका वतन कया गया इसने चिलत याल पर परा
म अपनी शैली का समावेश कया। इस शैली क वशेषताएँ िन निल खत है -
अ) इसका प आपेरा जैसा है ।
ब) गीत (लोकगीत ) क धानता है ।
स) लय के अनुसार ह नृ य के कदम क ताल बंधी है ।
द) खुले मंच (ओपन एयर) म इसे स प न कया जाता है ।
इसक कुछ अ य वशेषताएँ भी है । यथा -
(१) सरल भाषा,
(२) सीधी बोधग य लोक य धुन का योग,
(३) अिभनय क कुछ सू म भाविभ य याँ, तथा
(४) सामा जक यं य पर आधा रत कथाव तु का चुनाव।
ल छ राम - खुद एक अ छे नतक और लेखक थे। उ ह ने १० याल क रचना क , जनम चाँद
नीलिगर , राव रड़मल तथा मीरा मंगल मु य है । उनके पास अपनी खुद क नृ य म डली थी, जो वह
पेशेवर नृ य के िलए भी उपयोग करते थे। याल सांयकाल से शु होकर सुबह तक चलता है और उसे
दे खने के िलए दरू-दराज के इलाक से आते ह। य प राम के िनधन को ६५ साल हो गए ह, पर उनके
याल राज थान के सभी े म आज भी दखाए जाते ह। ी चर का अिभनय पु ष पा ह करते ह।
याल म संगत के िलए ढोल वादक, शहनाई वादक व सारं गी वादक मु य प से सहयोगी होते ह। गीत
बहत
ु ऊँचे वर म गाये जाते ह और इ ह ाय: नृतक ह गाते ह। इन नृतक क गाते समय साँस टू ट

n
जाने क पूित मंच पर बैठे दसरे
ू सहगायक करते ह। इन दन याल शैली के मुख वतक उगमराज
खलाड़ है ।

शेखावट
ee
याल - नानूराम इस शैली के मु य खलाड़ रहे ह। उनका वगवास ६५ साल पहले हआ
ु , फर
वे अपने पीछे वच रत याल क एक धरोहर छोड़ गए ह। उनम से कुछ िन निल खत है -
(१) ह रराझाँ (२) हर च (३) भतृह र (४) जयदे व कलाली (५) ढोला मरवड़ और (६) आ हादे व।
ah
नानूराम िचड़ावा के िनवासी थे, और मुसलमान थे। क तु सभी जाित के लोग उनका बडडा स मान करते
थे। अपनी कला के िलए वे आज भी सभी स दाय म याद कए जाते है । उनके यो यतम िश य म
दिलया
ू राणा का नाम िलया जाता है , जो उपयु सभी याल अपने भतीजे के साथ खेला करते ह।
sh

(१) अ छा पद संचालन,
(२) पूण स े षत हो सके उस शैली, भाषा और मु ा म गीत गायन,
(३) वा वृ द क उिचत संगत, जनम ाय: हारमोिनयम, सारं गी, शहनाई, बाँसुर , न कारा तथा ढोलक
का योग करते ह।
दिलया
ु राणा क मृ यु के बाद उनके पु सोहन लाल तथा पोते ब सी बनारसी आज तक भी साल म
आठ मह न तक इन याल का अखाड़ा लगाते ह। दिलया
ू राणा, ज ह गुजरे अिधक असा नह ं हआ
ु , ी
चर क भूिमका बड़ कुशलता से िनभाते थे और यह म उ ह ने ८० वष क अव था तक जार रखा।
वे जतने अ छे गायक थे उतने ह अ छे नृतक भी थे। शेखावट के पूरे इलाके म दिलया
ू के याल बहत

लोक य है । उनके याल के गीतमय संवाद उ ह सा ह यक तथा रं गमंच के बहत
ु अनुकूल बनाते ह।
इस इलाके के हजार लाख लोग इन याल को िनशु क दे खते ह और अपना मनोरं जन करते ह। दिलया

राणा के प रवार के लोग ह इन याल म होने वाले यय का िनजी तौर पर वहन करते ह और
खला ड़य को वयं पा र िमक भी दे ते ह। इन याल के खलाड़ ाय: िमरासी, ढोली और सरगड़ाओं म
से ह होते ह। पर तु जो अ य जाित के लोग इसम शर क होना चाह तो उन पर कोई पाबंद नह ं है । यह
बात वशेष उ लेखनीय है क इन जाितय के अलावा भी अ य गैर-पेशेवर जाित के लोग केवल
मनो वनोद के िलए बी इन याल को अपने तर पर भी स प न करते ह।
जयपुर याल - य प सभी याल क कृित िमलती-जुलती है , पर तु जयपुर याल क कुछ अपनी
वशेषता है जो इस कार है ।
(१) ी पा क भूिमका भी ि याँ िनभाती ह।
(२) जयपुर याल म नए योग क महती संभावनाएँ ह।
(३) यह शैली ढ़ नह ं है । मु है तथा लचीली है ।
(४) इसम अखबार , क वता, संगीत, नृ य तथा गान व अिभनय का सुंदर समानुपाितक समावेश है ।
गु णजन याल के कलाकार जयपुर याल म ह सा िलया करते थे। इस शैली के कुछ लोक य याल
िन नां कत है -
(१) जोगी-जोगन (२) कान-गूजर (३) िमयाँ-बीबू (४) पठान, और (५) रसीली त बोलन।
सन ् १९८१ म याल भारमली के क य पर नयी शैली म एक नाटक िलखा गया। इसके लेखक राज थान

n
के योगवाद नाटककार हमीद ु ला है । यह नाटक राज थान के अलावा है दराबाद, बगलोर, चै नई, मु बई,
द ली और लखनऊ आ द थान पर खोला गया। इसके बहरंु गी लोक वातावरण के कारण इसे सभी
थल पर पस द कया गया तथा कुछ
तुरा कलंगी
ee
ांतीय भाषाओं म इसका अनुवाद भी हआ।

याल मेवाड़ के शाह अली और तुकनगीर नाम के दो संत पीर ने ४०० वष पहले इसक
रचना क और इसे यह नाम दया। तुरा को महादे व "िशव' और "कलंगी' को "पावती' का तीक माना
जाता है । तुकनगीर "तुरा' के प कार थे तथा शाह अली "कलंगी' के। इन दोन खला ड़य ने "तुराकलंगी'
ah
के मा यम से "िशवश ' के वचार को लोक जीवन तक पहँु चाया। इनके चार का मु य मा यम
का यमय सरं चनाएँ थी, ज ह लोक समाज म "दं गल' के नाम से जाना जाता है । ये "दं गल' जब भी
आयो जत होते ह, तो दोन प के खला ड़य को बुलाया जाता है और फर इनम पहर-दर-पहर
का या मक संवाद होते ह। इन का या मक संवाद के िनत नए-नए प हण करने से िशव श दशन
sh

का लोक जगत म उ च तर य का या मक संवाद चलन म आया है ।


"तुरा कलंगी' का याल बहत
ु लोक य हआ
ु है और यह स पूण राज थान म खेला जाता है । इसका
व तार म य दे श तक भी है । "तुरा कलंगी' स ब धी सबसे पहले केले गए याल का नाम "तुरा कलंगी
का याल' था।
तुरा कलंगी के शेष च र ाय: वह होते ह जो अ य याल के होते ह। फर भी िन निल खत विश
बात इसक उ लेखनीय है -

(अ) इसक कृित गैर यावसाियक क क है ।


(ब) इसम रं गमंच क भरपूर सजावट क जाती है ।
(स) नृ य क कदम ताल सरल होती है ।
(द) लया सम गायन जो, क वता के बोल जैसा ह होता है ।
(ई) यह एक ऐसा लोकना य है जसम दशक अिधक भाग लेते थे।
े म आकर स प न करते ह। यह समारोह मानसून क समाि के अवसर पर कया जाता है । इस
समारोह का प रं गमंचीय ह है , यह सां कृितक, कला मक एवं रं गमंचीय अिभनय तीन ह से
अ य त समृ लोकना य शैली है । भील जैसे आ दम कबील ारा सभी से उ कृ यह आयोजन
व मय म डाल दे ता है ।
राज थान क आ दम जाितय म से एक भील जाित ने इस े म अ य त ाचीनकाल से िनवास कया
हआ
ु है । इनक शौयपूण गाथाएँ, इनक रं गीनी सं कृित क धरोहर है । ह द ू पुराण गाथाओं के स म ण
से बना भील समुदाय का यह गवर लोकना य इस आ दम समुदाय क ऐितहािसक पर परा को उजागर
करता है और सामुदाियक सीमाओं के बाहर जाकर िचरकाल क पर पराओं के अंगीकरण का यह अपने
आप म एक सु दर ा त बन गया है ।
अग त के मह ने म र ाब धन के दसरे
ू दन भील व भोपा जाित के लोग कसी मं दर के आगे इक ठे
होते ह, और दे वी "गवर ' का आ वान करते ह वे उसे अपना अित य हण करने क मनौती करते है ।
धा य बीज ितमा पर फककर चढ़ाए जाते ह। य द ये ितमा के दा हनी और िगर जाते ह तो इसे माता
"गवर ' क वीकृित माना जाता है , पर तु बाँयी ओर िगरने पर इसे दे वी क "मनाह ' माना जाता है । अब

n
य द दे वी का उ र हाँ म है तो यापक तर पर समारोह क तैया रयाँ शु हो जाती है । लकड़ के मुखौट ,
आ दम मेकअप का साजो-सामान, जवाहरात, वेशभूषा तथा रं गमंच क साम ी सभी समारोह के िलए
एक क जाती है । ee
म दर के सामने समारोह के िन पादन के िलए बांस गाढ़ दया जाता है तथा ित दन कई कार के
पार प रक लोक ना य मय दशकगण के स मुख ख
ंृ लाब प म तुत कए जाते ह। के म गाड़ा
गया ल ठा इस ना य का आधार ब द ु होता है । यह सांसा रक लोग के दे वतागण के बीच के जं शन के
ah
प म काय करता है । जब दे वी क आ मा इस ल ठे से नीचे आती है तो खला ड़य के साथ दशक भी
अिभभूत हो जाते ह।
"तुरा कलंगी' के मु य के है , घोसू डा, िच ौड़, िन बाहे ड़ा तथा नीमच (म य दे श) इन थान म
"तुरा कलंगी' के सव े कलाकार दए ह, जैसे चेतराम, घोसू डा का हमीद बेग एवं संवाद , जब पायल
sh

ताराच द तथा ठाकुर ओंकार िसंह आ द। इन तुराकलंगी खला ड़य म "सोनी जयदयाल' बहत
ु ह व यात
एवं ितभाशाली था। उसके याल आज भी लोक य ह। उसक मृ यु के बाद भी इन े के लोग उसके
बोल एवं संवाद को बहत
ु इ जत दे ते ह।
"तुरा कलंगी' के याल म २० फ ल ऊँचाई के दो अलग मंच आमने-सामने बनाए जाते ह। इस याल के
दो मु य खलाड़ अपने-अपने मंच पर आते है , ये मंच सुंदर ढ़ं ग से सजे होते ह। इ ह फूल-प य तथा
िच कार से, छ ज आ द से अलंकृत कया जाता है । इसके संवाद को "बोल' क सं ा द जाती है और
ये का य मक होते ह। इस याल के दो बोल बानगी के तौर पर नीचे दए जाते ह -
सवाल तुरा : महादे व वकराल प ले, जोत च मा न पड़
पावती और गंगा लड़ती इन दोन म कौन बड़ ?

जवाब कलंगी : िम सायर करते हो, बात करते हो बड़ -बड़


पावती और गंगा दोन बतलाओं कस रोज लड़ ?
गवर

मेवाड़ म भीलो का यह सामुदाियक गीत ना य अ य त िच ाकषक एवं पार प रक र ित- रवाज से यु


है । इसम योग कए जाने क बहत
ु स भावनाएँ ह। इसका सांगीितक लय गीता मक प योग के
अनुकूल है । गवर का संचालन एवं िनयं ण संगीत ारा होता है ।
जैसा क पहले बताया गया है , अरावली े म रहने वाले भील, येक वष ४० दन का गवर समारोह
उदयपुर शहर के आसपास के े म आकर स प न करते ह। यह समारोह मानसून क समाि के
अवसर पर कया जाता है । इस समारोह का प रं गमंचीय ह है , यह सां कृितक, कला मक एवं रं गमंचीय
अिभनय तीन ह से अ य त समृ लोक ना यशैली है । भील जैसे आ दम कबील ारा सभी से
उ कृ यह आयोजन व मय म डाल दे ता है ।
राज थान क आ दम जाितय म से एक भील जाित ने इस े म अ य त ाचीनकाल से िनवास कया
हआ
ु है । इनक शौयपूण गाथाएँ, इनक रं गीन सं कृित क धरोहर है । ह द ू पुराण गाथाओं के स म ण

n
से बना भील समुदाय का यह गवर लोकना य इस आ दम समुदाय क ऐितहािसक पर परा को उजागर
करता है व सामुदाियक सीमाओं के बाहर जाकर िचरकाल क पर पराओं के अंगीकरण का यह अपने आप
म एक सु दर ा त बन गया है ।
अग त के मह ने म र ाब धन के दसरे

ee
दन भील व भोपा जाित के लोग कसी मं दर के आगे इक ठे
होते ह और दे वी "गवर " का आ वान करते ह, वे उसे अपना आित य हण करने क मनौती करते ह।
धा य बीज ितमा पर फककर चढ़ाए जाते ह। यदे ये ितमा के दा हनी ओर िगर जाते ह तो इसे माता
ah
"गवर ' क वीकृित माना जाता है , पर तु बांयी और िगरने पर इसे दे वी क "मनाह ' मानी जाती है । अब
य द दे वी का उ र हाँ म है तो यापक तर पर साजो-सामान, जवाहरात, वेशभूषा तथा रं गमंच क
साम ी सभी समारोह के िलए एक क जाती है ।
गवर क कथा म कथानक या सहकथानक मब नह ं होते, पर तु फर भी मूल गाथा से इनका
sh

स ब ध होता है और उसके साथ तारत य दकाना ह इनका ल य है । ये बखरे हए


ु कथानक यु ,
पराजय, मृ यु तथा अ तत: जीवा मा के पुनज वत हो उठने से स ब होते ह। यह पुनज वन दे वी क
कृपा से िमलता हआ
ु दखलाया जाता है ।
"नेशनल कूल आ◌ॅफ ामा' से द त भानु भारती ने "पशु गाय ी' नाम का एक ना य अनेक बार
मंिचत कया है । यह योग अपनी कला मक अिभ यंजना के िलए व है । इस ना य व ा का मा यम
इतना जीवंत है क इसे िश ा और वकास के काय म से भी जोड़ जो सकता है । गवर के नवीन
पा तरण क से भानु भारती के "पशु गाय ी' का अपना मह व है ।
गवर क मु य वशेषताएँ िन निन खत ह -
(१) जुलाई, अग त के मह ने म "बू ढया दे न' क पूजा के अवसर पर "गवर ' स प न कया जाता है ।
(२) भील अपना घर छोड़कर सामुदाियक समारोह के वचार से बंधकर "गवर ' म भाग लेने आते ह और
४० दन तक लगातर वह ं रहते ह।
(३) गवर सुबह से शाम तक ित दन चलता रहता है ।
(४) इनम भाग लेने वाले नतक, अिभनेता और गायक सभी उ साह व उ लास से भरे होते ह।
गवर के कुछ मु य संग है - दे वी अ बड़, बादशाह क सवार , िम यावड़, बनजारा, खाड़िलया भूत थात
शेर सूअर क लड़ाई। ये सभी संग तीकाथक ह।
र मत

बीकानेर क र मत का अपना अलग ह रं ग है । ये कुचामन, िचड़ावा और शेखावट के " याल ' से


िभ न होती है । १०० वष पूव बीकानेर े म होली एवं सावन आ द के अवसर पर होने वाली लोक का य-
ितयोिगताओं से ह उनका उ व हआ
ु है । कुछ लोक क वय ने राज थान के सु व यात लोक - नायक
एवं महापु ष पर का य रचनाएँ क थीं, ये रचनाएँ ऐितहािसक एवं धािमक लोक च र पर रची गयीं।
इ ह ं रचनाओं को रं गमंच के ऊपर मंिचत कर दया गया। इन र मत के रचियताओं के नाम इस कार
ह -
(१) मनीराम यास
(२) तुलसी राम

n
(३) फागू महाराज
(४) सूआ महाराज
(५) तेज क व (जैसलमेर ) ee
यहाँ यह उ लेख कर दे ना आव यक है क तेज क व जैसलमेर रं गमंच के ांितकार कायकता थे। सन ्
१९३८ म ज मे इस क व ने र मत का अखाड़ा ीकृ ण क पनी के नाम से चालू कया। सन ् १९४३ म
उ ह ने " वतं बावनी' क रचना क और उसे महा मा गाँधी को भट कर द । टश सरकार ने इस पर
ah
िनगरानी रखी और उनक िगर तार का वार ट जार कर दया। जब तेज क व को वार ट क सूचना
िमली, वह पुिलस किम र के घर गये और अपनी ओज वी वाणी मे कहा -

किम र खोल दरवाजा, हम भी जेल जाना है ,


sh

ह द तेरा है न तेरे बाप का


हमार मातृभूिम पर लगाया ब द खाना है ।
इससे िस होता है क र मत और याल के खलाड़ िसफ मनोरं जक नह ं थे, ब क वे समाज म हो
रह ांित के ित पूर तरह से जाग क भी थे। र मत क खुच उ लेखनीय बात िन नां कत ह -
(१) र मत शु होने से पहले र मत के मु य कलाकार मंच पर ह आकर बैठ जाते ह, ता क हरे क दशक
उ ह अपनी वेशभूषा और मेक-अप म दे ख सके। संवाद वशेष गायक ारा गाए जाते ह, जो मंच पर ह
बैठे होते ह। और मु य च र उन गायक ारा गाये जाने वाले संवाद को नृ य और अिभनय करते हए

वयं भी बोलते जाते ह।
(२) र मत म मु य वा नगाड़ा तथा ढोलक होते ह।
(३) कोई रं गमंचीय साज-स जा नह ं होती। मंच का धरातल थोड़ा-सा ऊँचा बनाया जाता है । जो मु य
गीत गाये जाते ह उनका स ब ध िन नां कत वषय से है -
चौमासा - वषा ॠतु का वणन,
लावणी - दे वी-दे वताओं क पूजा से स बंिधत गीत,
गणपित वंदना - गणपित क व दना
रामदे वजी का भजन - र मत शु होने से पहले रामदे वजी का भजन गाया जाता है ।
र मत क सबसे उ लेखनीय वशेषता उसक सा ह यकता है । वा वादक व संगत करने वाले कलाकाल
र मत म वयं मनोरं जन का वशेष साधन बन जाते ह और लोक समाज म इस वा ज द सा जय क
बहत
ु इ जत होती है ।
र मत के शेष त व शेखावट याल से मेल खाते ह। फक इतना ह रहता है क जहाँ शेखावट याल
पेशेवर याल क िगनती म आ गए ह, र मत आज भी सामुदाियक और लोकना य का ह प िलए है ।
इसम कसी भी जाित का य भाग ले सकता है ।
र मत के कुछ व यात खला ड़य के नाम इस कार है - वग य ी रामगोपाल जी मेहता, सा सेवग,
गंगादास सेवग, सूरज काना सेनग, जीतमल और गीड़ोजी। ये सभी बीकाने के ह। गीडोजी अपने समय के
व यात नगाड़ावादक रहे ह।
बीकानेर के अलावा र मत पोकरण, फलौद , जैसलमेर और आस-पड़ोस के े म खेली जाती ह। इन

n
र मत म ज ह ने बहत
ु लोक याित अ जत क है वे ह - र मत पूरन भ क , मोरहवज क , डू ं गजी
जवाहर जी क , राजा ह रशच और गोपीच द भरथर क ।
तमाशा ee
जयपुर म तमाशे क गौरवशाली पर परा है । यह लोकना य १९वीं शती के पूव म यकाल म महाराज
तापिसंह के काल म शु हआ।
ु इसके खलाड़ इस तमाशे को लेकर दे श के सुदरू द णी भाग से या ा
ah
करते हए
ु पहँु च गये। यह प रवार भ प रवार कहलाता है । इस प रवार के लोग ने ह तमाशा िथयेटर के
प म जयपुर याल और ुवपद गायक का समावेश कया।
पं. बंशीधर भ इसके मु खया थे। इ ह जयपुर राजघराने का भी संर ण िमला। यह प रवार आज भी
व मान ह और यह प रवार पर परागत विध से आज भी तमासा का लोक मंचन करता है । इस प रवार
sh

म उ ताद पर परा फूल जी भ ारा था पत हई।


ु फूलजी भ अपनी ुवपद गायक के िलए िस थे। इस
समय गोपीकृ ण भ जो "गोपीजी' के नाम से जाने जाते ह। इस पर परा के उ ताद है । वे आज भी
"तमाशा' का हर साल आयोजन करते ह। इस प रवार म वासुदेव भ एक अ छे रं गमंच अिभनेता तथा
गायक ह और वे इस पर परा को जी वत रखने म स य ह। वासुदेव भ "गोपीजी' के चचेरे भाई ह।
गोपीच द तथा "ह र रांझा' इनके ारा खेले जाने वाले "तमाशे' ह। ये तमासे आज भी लोक य ह। तमासे
क मु य-मु य वशेषताएँ िन निल खत ह -
(१) भ ट प रवार ारा तुत "तमाशा' महारा के तमाशे से िभ न ह।
(२) संवाद का यमय है तथा इ ह राग-रागिनय म िनब करके तुत कया जाता है ।
(३) "तमाशा' खुले मंच पर होता है , इसे "अखाड़ा' कहा जाता है ।
(४) इस भ प रवार ारा २५० वष पूव क इस पर परागत लोकना य शैली का दशन आज तक
लगातार हर साल कया जाता है ।
(५) सार संगीत रचनाएँ राग-रागिनय म िनब है ।
(६) संगीत, नृ य और गायन, इन तीन क "तमाशे' म धानता है ।
(७) िसनेमा व ट .वी. के इस युग म भी दशक के बीच "तमाशा' आज भी अ यिधक लोक य ह।
वांग

लोकना य प म एक पर परा " वांग' क भी है । शा दक से इसका अथ है कसी वशेष,


ऐितहािसक, पौरा णक, लोक िस या समाज म व यात च र या दे वी दे वता क नकल म मेकअप
करना व वेशभूषा पहनना। कुछ जनजाित के लोग तो वांग करने का पेशा अपनाए हए
ु ह। यह एक ऐसी
व ा है जसे एक ह च र स प न करता है ।
पर तु आधुिनक सार- चार के मा यम के वकिसत हो जाने से यह तमासे का लोकना य प शहर से
दरू गाँव क धरोहर रह गया है और इसे केवल शाद - याह तथा यौहार के अवसर पर ह दखलाया जाता
है ।

फड़

n
फड़ भोप ारा खेली जाती है । ये भोप ज द -ज द एक थान से दसरे
ू थान तक चले जाते ह।

लेकर फड़ के पास नाचती-गाती हई


ee
िच त फड़ को द क के सामने खड़ा तान दया जाता है । भोपा गायक क प ी या सहयोिगनी, लोलटे न
ु पहँु चती है और वह जस अंश का गायन करती है , डं ड़ से उसे बजाती
है । भोपा अपने य वा "रावण ह या' को बजाता हआ
ु वंय भी नाचता-गाता रहता है । यह नृ य गान
समूह के प म होता है । दशकगण फड़ के य से एवं सहवत अिभनय से बहत
ु भा वत होते ह और
ah
अपने प रवार के िलए इसे दे खना, वष क शुभ घटना मानते ह।
फड़ से स ब धत दो लोक य िच गीत कथाएँ पाबूजी व दे वनारायण जी क फड़े ह ह। पाबूजी राठौड़
जाित के महान लोक नायक हए
ु है । इनका समय आज से ७०० वष पूव था। उनक गाथा के आज भी
राज थान म हजार -लाख शंसक ह। उनके अनुयायी भी हजार क सं या म ह। पाबूजी को कुटु ब के
sh

दे वता के प म पूजा जाता है और उनक वीरता के गीत चारण और भाट ारा गाए जाते ह। मारवाड़ के
भोप ने पाबूजी क वीरता के स ब ध म तृकड़ लोकगीत रच डाले ह और पाबूजी क शौयगाथा आज भी
लोक समाज म गायी जाती है । एक खास क वता, जो पाबूज के भोप के नाम से जाना जाता है । उ ह ने
पाबूजी क फड़ के गीत को अिभनय के साथ गाने क एक वशेष शैली वकिसत कर ली है ।
पाबूजी क फड़ लगभग ३० फ ट ल बी तथा ५ फ ट चौड़ होती है । इसम पाबूजी के जीवन च र शैली के
िच म अनुपात रं ग एवं रं ग एवं फलक संयोजन के ज रए तुत करता है । इस फड़ को एक बांस म
लपेट कर रखा जाता है , और यह भोपा जाित के लोग के साथ धरोहर के प म तथा ज वका साधन के
प म भी चलता रहता है । पाबूजी क दै वी श म व ास करने वाले लोग ाय: इ ह िनमं म दे कर
बुलाते ह। य क वे जानते ह क इससे उनके बाल-ब च क बीमा रयाँ तथा प रवार क भूत- ेत जैसी
बाधाएँ दरू हो जाएँगी।
पाबूजी के अलावा दसर
ू लोक य फड़ "दे वनारायण जी क फड़' है । दे वनारायण जी भी सोलंक राजपूत
के पाबूजी क तरह वीर नायक थे। दे वनारायण जी क फड़ के गीत, दे वनारायण जी के भोप ारा गाएं
जात ह। ये भोपे गूजर जाित के ह। "ज तर' नामक िस लोकवा पर "भोपा' इस फड़ क धुन बजाते
ह। राज थान म भोप के कई कार ह। वे ाय: "रावण ह या' अपंग तथा ज तर नामक वा का योग
करते ह। ये भूिमह न होत है और अपनी जी वका के िलए उ ह फड़ो के दरसाव पर ह िनभर रहना पड़ता
है । ितवष वजय दशमी (दशहरा) के मौके पर रोणीचा के पास कोड़मदे गाँव म एक बड़ा मेला लगता है ।
यह पाबूजी का मूल थान है । यहाँ आकर भ गण हजार क सं या म उ ह द
ंृ ाजिल अ पत करते ह।
इस मौके पर हजार फड़ गायक भी एक हो जाते ह और सब िमलकर सामू हक प से पाबूजी क गीत
गाते ह।

लीला

लीला का कथा पुराण या पुरा यान से ली जाता है । इ ह "रासधार ' और "गरािसय ' क े णय म
बांटा जा सकता है । इन लीलाओं म धम और लोकाचार क धानता होती है । आज के जमाने म इस
लोकना य को करने वाले दल म डल बहत
ु सीिमत सं या म रह गये ह, जो बचे-खुचे दल या म डिलयां

n
ह वे रामलीला या िसफ 'रासलीलाएँ' ह करते ह।

नौटं क ee
भरतपुर तथा धौलपुर म न थाराम क म डली ारा नौटं गी का खेल दखाया जाता है । इसके अलावा
अ य अखाड़े भी ह। ये अखाड़े अपनी-अपनी क पिनय के िनजी नाम से जाने जाते ह। नौटं क के नाटक
ah
के प म बहत
ु ह लोक य है और ाय: याह, शाद , सामाजीक समारोह, मेल तथा लोको सव के मौके
पर ाय: नौटं क का खेल करवाया जाता है ।

भवाई
sh

गुजरात क सीमा से सटे हए


ु राज थान के े म "भवाई' नामक नृ य ना टका बहत
ु ह लोक य है ।
अपने वभाव से ह यह नृ य नाटक यवसाियक क का है और अनेक मह वपूण तकनीक प है ।
"भवाई' करने वाले अपने "यजमान ' या सर क के पास ितवष जाते ह और उनका वहाँ हा दक वागत
होता है ।
इस शैली पर आधा रत तथा एक नाटक "ज मा ओडन' है , जसे भारत के बाहर लंदन व जमनी म खेला
गया। यह नाटक शा ता गाँधी ारा िलखा गया। इसके उ लेखनीय प िन नां कत है -
(१) सगाजी एवं सगीजी के प म भोपा-भोपी कुछ अ य वनोद , वदषक
ू चर के साथ इस ना य को
स प न करते ह। इसका संचालन सू धार करता है ।
(२) इसक कथा आम आदमी के संघष से स ब धत है यह उ च व िन न वग के वग संघष को बताता
है ।
उपयु लोकना य प के अलावा राज थान म क पय रं गमचीय लोक ना य त व का भोपाओं तथा
त स बधी जनजाितय के कुछ य वशेष म दशन, कुटु ब पर परा के प म भी दे खने को िमलता
है । इनम कुछे क रासधार है , कुछ बह पीये तथा भा ड है ।
भोपा

भोपे पेशेवर पुजार होते ह। उनका मु य पेशा कसी म दर म दे वता के आगे नाचना-गाना होता है या
फर ये भोप अपने संर क (धाताओं) के दरवाजे पर जाकर भी अपना पेशेवर गाना व नृ य दखाते ह।
गाना, बजाना, नाचना आ द के साथ व वध कार के नटबाजी के करतब भी ये भोपो लोग दखाया करते
ह। ये अित र काय उ ह अपनी रोजी-रोट को कायम रखने के िलए ह करना पड़ता है । ये अपनी-अपनी
कला म मा हर होते ह और अपने दे वता के ित उनम अगाध ृ ा होती है तथा वे अपने दे वी-दे वता क
दै वक व चम कार श म ह व ास करते ह।

पाबूजी व रामदे व जी क भोप का ववरण तो पहले दया जा चुका है , दसरे


ू कार के भोपे िन नां कत ह
-

n
(१) गोगा जी का भोपा - छठ शता द म द े ना के ठाकुर गोरखनाथ के चेले हो गए। यह ठाकुर बहादरु
वीर नायक थे तथा उ ह ने आ ामणका रय के व तृकड़ो गाय व गर ब क र ा करके ह या से
बचाया था। तभी से इनक पूजा महान संत के ee प म होने लगी। तबी से गोगाजी के भोपे गौ,
के स बंध म कए गए गोगोजी के शौयपूम काय क गाथा गाते आ रहे ह। ये भोपे "डे ' नामक वा यं
ा ण र ा

बजाते ह। और उँ गली या छोट से लकड़ पर पहले अपने वा के प म बजाई जाने वाली थाली (जो
ाय: कांसे क होती है ) को तेजी से घुमेते है । फर ऊपर हवा म उछाल कर वापस लकड़ पर या उँ गली
ah
पर थाम लेते ह। दे खने यो य बात यह है क सब नृ य गान क चलती हई
ु लय ताल म ह होता है । ये
भोपे नृ य गान ाय: समूह म ह करते ह। भोपाओं का मु खया, जसके दे वता घट म आया हआ
ु माना
जाता है । नाचते और गाते व ह अनेक सांप को अपने गले म लपेटता उतारता रहता है । गोगामेड़ म
भा या भादरा (बीकानेर) नामक थान पर हर वष गोगाजी का मेला गोपा मी के अवसर पर लगता है ।
sh

इसम हजार क तादाद म ृ ालु भ क भीड़ जमा होती है । जो गोगाजी के ित अपनी ृ ा अपंण
करने आते ह। उनके नृ य आन दाितरे क के नृ य हआ
ु करते ह। ये "माठ' नामक ढोल क विन के साथ
नाचते गाते ह। इस वशाल "माठ' नामक ढोल क विन के साथ नाचते गाते, अपनी रं गीन वेशभूषा म
सजे ये भोपे, एक अभूतपूव नजारा तुत करते ह। भोप क मु ांए बी नटबाजी के करतब पर टक
होती है । इनके गान म भ का पश होता है और ये गीत असीम ृ ा व भ भाव से गाए जाते ह।

(२) माता जी का भोपा - ये भोपे माता जी के भ पुजार होते ह। ये करणीमाता तथा सीकर क
जीणमाता क चम कारपूण दै वक श म आ था रखते ह। इन भोप क वशेष उ लेखनीय बात यह है
क ये द ू हे क वेशभूषा पहनते ह। अपने नट करतब को करते हए
ु ये यदाकदा अपनी जीभ म सुई तक
घुसेड़ दे ते ह। ये जीणमाता एवं करणीमाता के मेल के अवसर पर सामू हक प से एक होते ह।

(३) भै जी का भोपा - ये भ जी के पुजार होते ह। इनक वेशभूषा साधारण होती है । ये अपनी वेशभूषा
म साधारम तेल उड़े ल दे ते ह, ता क वे िचकने दख सके। वे अपना चेहरा राख से पोत लेते ह और अपने
माथे तथा चेहरे पर बहत
ु सारा िस दरू भी लगा लेते ह। और अपने हाथ म शूल धारण कर लेते ह।
और "म क का बाजा' नामक वा मुँह से बजाते ह। ये समूह म नृ य नह ं करते ह।

रासधार

रासधार का सामा य अथ है वह य जो रासलीला करता है । जो भगवान कृ ण के जीवर च र पर


आधा रत होती है । पर तु कलाकार म इस लोकना य म अनेक और कथाएँ भी जुड़ गयी। सबसे वहला
रासधार नाटक लगभग ८० वष पहले मेवाड़ के मोतीलाल जाट ारा िलखा गया। रासधा रय क लोक
नृ य ना य शैली याल एवं अ य लोक ना य से सवथा िभ न है । यह विश शैली उदयपुर तथा आस-
पड़ोस के े म भी आज चिलत है और स पूण इलाके म इसका सार है । इसके मु य रिसया, बैरागी
साधु लोग है । मूल प म "रसधार ' लोक नृ य ना टका ह थी, जसम रिसय के अलावा सभी उप थत
जन स नतापूवक भाग लेते थे। पर तु धीरे -धीरे यह खास पेशे के लोग क धरोहर हो गया। ज ह ने

n
इसे अपनी जी वका िनवाह का आधार बना िलया और इ ह ं लोग ने यवसाियक आय का साधन बनाने
के िलए अपनी म डिलयाँ तथा समूह बना िलए।
अ य लोक नृ य ना टकाओं से रसधार ee
व ा अनेक य से िभ न है । सबसे मु य बात तो यह है क
इसम कसी अखाड़े या मंच के िनमाण क ज रत नह ं होती। रास म मु य कथाएँ रामसीला, कृ णलीला,
ह रशच नागजी व मोर वज क ह ह। गाँव के चौराह पर रासधार नाटक दे खने को िमलते ह। लोग
सैकड़ो क भीड़ म दे खने के िलए इक ठे होते ह। गीत ाय: अनिलखे होतो ह और रिसय को मौ खक
ah
याद होते ह। नृ य व गीत गाते हए
ु सार कथा या यान कर द जाती है । गाँव के लोग इस नृ य
ना टका को मु त म दे खते ह। ामीण समाज ह इनके रहने, खाने-पीने आ द क यव था करता है व
पा र िमक भी दे ता है । क तु अब यह लोक नृ य ना टका क व ा लु होती जा रह है ।
sh

बह पये

सारे राज थान म बह पये िमलते ह। ये अपना प और अिभनय आ द च र के अनुसार बदलने म


मा हर होते ह। अपने "मेकअप' और वेषभूषा क सहायता से वे ाय: वह लगने लग जाते ह, जसके प
क नकल वह करते ह। कसी गाँव म आ जाने पर वे बहत
ु दन तक बाल-वृ , नर-ना रय का मनोरं जन
करते रहते ह, ये ाय: शाद - याह या मेल के अवसर पर गाँव म पहँु चते ह। ये अपनी नकलची कला म
द होते ह और ये गाँव के धनी-मानी लोगो क नकल करते रहते ह। गाँव के बोहरा, शेठजी, बिनया
आ द इनके मु य जीवन पा ह। बह पया क कला राज थान क अपनी वशेष कला है । क तु आज के
वकिसत तकनीक समाज म इनका भाव लगातार घटता ह जा रहा है । इस वलु ाय: कला का सबसे
नामी कलाकार केलवा का पशुराम है । जानक लाल बह पया भी राज थान म िस है और उसने भारत
उ सव म राज थान का ितिनिध व भी कया है ।

भा ड
राजाओं के काल म भा ड म डिलयाँ राज थान म बहत
ु अिधक लोक य थी। ये राजा महाराजा तथा
साम त ारा संर त थे। जयपुर, कोटा, बूद
ं , झालावाड़ तथा उदयपुर म अब तक भी भा ड म डिलयाँ
मौजूद ह। अब तक वे िसफ शाद - याह तथा धिनक जन क गोठ म ह दखाई दे ती है । मनोरं जन के
आधुिनक साधन के वकिसत हो जाने के बावजूद इन म डिलय क मनोरं जन क पार प रक मता का
कोई सानी नह ं दखता, पर तु अब बहत
ु ने संगीत के वा वृ द म नौकर करली है । ये भा ड लोग
राजाओं के जमाने म राजाओं के बहत
ु िनकट के य हआ
ु करते थे।

पारसी िथयेटर

इस शता द के ाथिमक चरण म हमारे दे श म एक नये ह क क रं गमंचीय कला का वकास हआ


ु ,
जसका नाम "पारसी िथयेटर' था। य प यह ववादा पद है । पर तु इस शैली के अिधकार व ान यह

n
मानते ह क इस शैली का वकास इं लैड म वकिसत "शे सपी रयन िथयेटर' से ह भा वत होकर हआ।

इस कला के विश त व िन नां कत ह -
(१) अिभनेताओं
(२) नाटक का िन त कथा मक व प
ee
ारा मुखमु ाओं तथा हावभाव का यापक प से दशन,

(३) बोलचाल तथा संवाद क एक खास क क शैली।


पारसी िथयेटर शैली ने तीसरे दशक म राज थान के रं गकिमय पर भी पूरा भाव डाला। जयपुर और
ah
अलवर म महबूब हसन नामक य ने पारसी शैली के अनेक नाटक मंिचत कये। उसने इस शैली म
िलखे आगा ह द क मीर के अनेक नाटक को खेला। यापक भाव को जमाने वाले इन नाटक को
खेलने क दशा म यह महबूब हसन का य गत यास था, जसे राजा-महाराजा तथा क ह ं साम त
का आिथक संर ण भी न िमला। इसी कारण उसे इन नाटक को टकट लगाकर दिशत करना पड़ा। उन
sh

दन कुछ रा य म राजाओं ारा बनवाए गए उनके अपने िथयेटर हआ


ु करते थे तथा उ ह संचािलत
करने के िलए अलग वभाग इ या द होते थे और पारसी िथयेटर पर रा या य से अलग काम क इन
चे ाओं को दे खकर यह प लगता है क दशन कलाओं (जैसे नृ य नाटक आ द) का आयोजन िनमाण
एवं िनदशन वतं प से भी कया जाना ार भ हो चुका था।
यहाँ यह अ य त रोचक त य है क दशन कलाओं के सुसंग ठत वभाग क रचना बहत
ु पहले से ह
होनी शु हो गई थी। राजा-महाराजाओं ारा पो षत कला वभाग एवं गु णजन खान के अलावा भी िनजी
तौर पर जनता के सहयोग एवं समथन से भी उ ह ं दन बहत
ु -सी क पिनयाँ, म डल व िथयेटर ु स
नाटक का िनमाण करते थे।
जयपुर म रा य ारा संचािलत इस महकम को "गु णजन खाना' कहा जाता था। सवाई जयिसंह तीय ने
जब जयपुर रा य क थापना क तभी से गु णजनखाने को राजा क सीधी दे ख-रे ख म उनके इस िनजी
वभाग क थापना हई।
ु इस गु णजनखाने के महकम के स ब ध म िमलने वाले रकाड म राज थान म
स हवीं व अठाहरवीं शती म दशन कलाओं के संर ण एवं वकास का त या मक लेखा-जोखा तुत
करने क से बहत
ु ह मह वपूण है । इन दशन कलाओं को दो भाग म बांटा गया। एक "पर परा' से
स ब धत तथा दसरा
ू "सं कृित' से स ब धत। पर परा जो हम पीढ़ दर पीढ़ क वरासत के प म
िमलती है , उसम "घरान ' का वशेष मह व होता है । जो कौटु बक या उ ताद क कला मक विश ता
का स मान, र ा तथा वकास करते ह। पार प रक ान क जीव त ख
ंृ ला होने से पर परा म गु -
िश य, उ ताद-शािगद क भी अिनवाय कढ़ होती है । उ ह ं के मा यम से इस वरासत को लगातार आने
वाली पी ढयाँ ा करती ह। यह ऐसी सीढ़ होती है , जससे दशन कलाएँ अवत रत होती है । इ ह ं
कलाओं का सं कार तथा संशोधन "सं कृित' के प म अिभ य पाता है । जसका सीधा अथ है
वशु करण तथा सं कार। दशन कलाएँ सदा से ह सां कृितक पर परा का अंग रह है । पर परा के
अ तगत "घराना' वंशगत कला को ोतक है । पर तु साथ ह साथ, उस वंश से इस कला क िश ा ा
करने वाले य या समुदाय को भी इसी के अ तगत पाया जा सकता है ।
विभ न रा य म िथयेटर रं गमंच क रचना हो जाने के फर व प, जैसा क राम काश िथयेटर क
थापना जयपुर म होना तथा ऐसी ह अ य रं गशालाओं, िथयेटर भवन का िनमाण झालावाड़ म होना
और शनै: शनै इन दशन कलाओं से स ब धत, रा या ेय से अलग, मंच ेमी आम जनता का ह सा

n
लेना कम मह व क बात नह ं है । रा या य क पकड़ इन रं ग भवन पर ढ़ ली पड़ते जाने एवं जनता
ारा यापक तर पर इनम अपने काय म को स प न करने के यास, रं गकिमय म उ साहव न का
ee
कारण भी रहा और उ ह ने उसी उ साह म अनेक क के नाटक का मंचन इन भवन म कया। एक
समय ऐसा था जब पारसी िथयेटर ने रं गमंच पर अपना पूण अिधकार ह कायम कर िलया था। और यह
वच उस समय तक लगातार बना रहा जब तक क उसका थान "िसनेमा' ने नह ं ले िलया। फर भी
आज तक पारसी िथयेटर का उपनगर एवं छोटे नगर म भाव िसनेमा के बावजूद बना है ।
ah
राज थान म मा णकलाल डाँगी तथा क है या ला पँवार पारसी िथयेटर के व यात रं गकम रहे ।
गणपतलाल डाँगी जो मा णकलाल के स ब धी थे, वे इस पर परा का १९९३ तक िनवाह करते रहे ।
क है या लाल पँवार ने सन ् १९४२ म "शाहजहाँ िथये कल क पनी' म नौकर कर ली और वहाँ उ ह ने
राज थान क लोक कथाओं पर आधा रत अनेक नाटक अिभमंिचत कये। इनम से कुछे क के नाम ह,
sh

"रामू चनणा', "ढोला मा ' तथा "चुनर '।


वे राज थान लौट आए और उ ह न वहाँ नाथ ारा क "म धर िथये कल क पनी' म नौकर कर ली। यहाँ
उ ह ने "सीता वनवास', "कृ ण-सुदामा' तथा अ य नाटक म स य प से भाग िलया, उ ह ने बाद म
अपनी खुद क एक क पनी कलक ा म था पत क जसका नाम पँवार िथयेटर था और वे अभी तक
उसम स य ह।
सन ् १९७७ म ए. . स सेना, जो एक अ छे अिभनेता है , ने खुद "यहद
ू क लड़क ' का अिभमंचन
कया। यह नाटक आगा ह न क मीर का िलखा है । इसक शैली पारसी िथयेटर क है । इनके ारा पारसी
िथयेटर शैली को नयी अिभनय शैली के अनुकूल बदलने के भी छुटपुट यास कए गए।
इसी दौरान आकाशवाली जयप ने भी मंच के कुछ कलाकार दए और अनेक रे डयो नाटक यहाँ से
सा रत हए
ु , जनम ओमिशव पुर , सुधा, मोहन मह ष, न दलाल, प चू कपूर, गोवधन, असरानी आ द
अनेक िस रं गकम कलाकार काश म आए।
१९५७ म राज थान सरकार ने संगीत नाटक अकादमी क थापना क ता क रा य म संगीत, नाटक तथा
अ य रं गमंच पर दशन यो य कलाओं का पूण वकास हो सके। उसी के अ तगत नयी रं गशालाएँ
राज थान म बनी। जनम रवी मंच (जयपुर), भारतीय लोक कला म डल (उदयपुर) के भवन
उ लेखनीय ह। दे वीलाल सामर ने राज थान क लोक कलाओं तथा लोक ना य शैली के व वध प को
मंिचत करने तथा ो सा हत करने का एक सं था के प म काय कया। इ ह ने लोक कला का एक
सं हालय भी बनाया।
राज थान म रं गमचीय कला का सातव व आठव दशक म बहत
ु वकास हआ।
ु नेशनल िथयेटर जाइन कर
लेने के बाद ओमिशव पुर एवं मोहन मह ष ने जयपुर म नये नाटक से स ब कायशालाएं बनाई। इसके
अलावा राज थान कमचा रय तथा िनजी रं गकिमय के दल ने भी नये नाटक का मंचन कया, जसम
ह मीद ु ला कृत द र दे (सरताज माथुर ारा िनदिशत) तथा एक मु ा और ( वयं हमीद ु ला ारा
िनदिशत) जयपुर म खेले गए। हमीद ु ला को नाटक के िलए रा ीय पुर कार भी िमले।
म ण मधुकर के नाटक "खेला पालेमपुर' तथा एस. गंधव भी काफ लोक य नाटक रहे , इनम लोक त व
एवं नयी शैली का सम य िमलता है । इसी दौरान राज थान व व ालय के " ामा वभाग' म भानु
भारती के िनदशन म मृ छ क टका, जसना ओडना आ द नाटक कये गए। इस वभाग का संचालन इन

n
दन वजय माथुर कर रहे ह।
आधुिनक भारतीय रं गमंच क से जयपुर का अपनी विश थान है । जयपुर म इस समय िलखे गए
ee
सभी आधुिनक नाटक का मंचन हो चुका है । जयपुर रं गमंच क जो
सरताज माथुर, ड . एन. शैली, हमीद ु ला, वासुदेव भ ट, पृ वीनाथ जु सी,
मुख ना य ितमाएँ ह, उनम
वग य एच. पी. स सेना तथा
एहतराम नकवी आ द के नामो लेख कये जा सकते ह। रजवान जसने उ मान के बहत
ु से नये नाटक
िलखे ह तथा वयं भी मंिचत कए ह।
ah
जयपुर म हए
ु रं गमंचीय नाटक के वकास का भाव उदयपुर, जोधपुर एवं बीकानेर म भी पड़ा और इन
दे श म भी अनेक नये नाटक का सफल मंचन कया गया।
पायन सं थान बो दा म के य संगीत नाटक अकादमी के त वाधान म सु िस रं गकम हबीब
तनवीर के िनदशन म एक कायशाला का आयोजन कुछ दन पूव हआ।
ु इसम रं गकम क लोकज य
sh

वृितय तथा उनका आधुिनक ना यलेखन शैिलय म पा तरण पर लाभकार वचार वमश हआ।
ु इसम
दशन कलाओं के मु य अिधव ा कोमल कोठार ने भी िशरकत क ।
राज थान म नये ना य िनदशक िनमाताओं म मंगल स सेना, रजवान, जह र उ मान, क यूम अली
बोहरा, मदनमोहन माथुर, अजुनदास चारण तथा राजन द आ द सं थाब प म काय कर रहे ह। जयपुर
म मूित, कला संगम, क चरल सोसाइट आ◌ॅफ राज थान, राज थान सिचवालय लब, अिभस रका,
संकेत, अमे योर आ ट ट एसोिसएशन रं गशाला, िु त मंडल मु य ह।
इस कार राज थान म रं गमंच क से जो मह वपूण काय हआ
ु है , उसम सुफल से ह नयी रं ग
ितमाएँ दन - दन काश म आती जा रह है । रा य सरकार ने हाल म एक सां कृितक वभाग क रचना
क है , और ऐसी अपे ा है क इस वभाग क मदद से राज थान क रं ग ेमी जनता तथा रं गकिमय को
समुिचत ो साहन तथा स बल िमलेगा और रा य सरकार दे श म रं गमंचीय कला को लोक य बनाने व
दशन कलाओं को लगातार सभी य से प रपु करने म अपनी महती भूिमका िनभाएगी।
राज थान म जा मंडल आ दोलन
राज थान म जा मंडल आ दोलन राजनीितक जागरण एवं दे श म गाँधी जी के नेतृ व म चल रहे वतं
संघष का प रणाम था। इसक पृ भूिम राज थान रा य म चल रहे कृषक आ दोलन थे। कृ षक आ दोलन
उस यापक अस तोष के अंग थे, जो चिलत राजनीितक और आिथक ढांचे म व मान था। कृषक ने
विभ न आ दोलन के मा यम से उस समय के ठकानेदार और जागीरदार के अ याचार को तथा कृ ष
संबध
ं म आये वचार को प करने म मह वपूण भूिमका िनभाई। जागीरदार यव था उस पैतक
ृ वाद
व प को छोड़कर शोषणा मक व प ले चुक थी। चिलत यव था म अस तोष यापक था। इसिलए
१९२० ई. के प ात ् राजनीितक अिधकार और सामा जक सुधार से संबिं धत सं थाओं क थापना हई।

इन सं थाओं ने मौिलक अिधकार से वंिचत होने क थित क अिधक चचा क । राज थान के विभ न
रा य म जाम डल आ दोलन का वकास सं प से िन न कार है ।

मेवाड़

n
कसान और भी आ दोलन का वतं ता सं ाम से सीधा स ब ध नह ं था, फर भी ये जनचेतना के मु य
ee
आधार बने। इन आ दोलन ने ऐसी सु ढ़ आधारिशला रखी, जस पर
शु आती दौर म रा ीय कां ेस दे शी रयासत के
जामंडल आ दोलन खड़ा हो सका।
ित उदासीन रह । पर तु ह रपुरा अिधवेशन म कां ेस
क नीित म प रवतन आया। रयासती जनता को भी अपने-अपने रा य म संगठन िनमाण करने तथा
अपने अिधकार के िलए आ दोलन करने क छूट दे द । उसी वष (१९३८ ई. म) मेवाड़ म संग ठत
ah
राजनीितक आ दोलन क शु आत हो गयी। इस नई जन-जागृित के जनक थे, बजोिलया आ दोलन म
पिथक जी के सहायक ी मा ण यलाल वमा। २५ अ ल
ै , १९३८ को वमाजी ने उदयपुर म कायक ाओं क
बैठक कर जामंडल का वधान वीकृत कराया। बलव त िसंह मेहता, भूरेलाल और मा ण यलाल वमा
मशः अ य , उपा य तथा महामं ी पद पर मनोनीत हए।
ु इस समय मेवाड़ म महाराणा भोपाल िसंह
sh

का शासन था। जामंडल क थापना के साथ ह इसे गैर-कानूनी घो षत कर दया गया और आ दोलन
चारक के व अनुशासिनक कायवा हयाँ क जाने लगी। वमा जी को भी रा य से िन कािसत कर
दया गया। तब, वमा जी ने अजमेर म मेवाड़ जाम डल का कायालय था पत कया तथा मेवाड़ म
जाम डल पर ितबंध हटाने क मांग क गई।
२८ िसत बर १९३८ को ेमनारायण माथुर को मेवाड़ से िन कािसत करने पर जाम डल ने उदयपुर म
स या ह कया। रा य सरकार ने कायक ाओं को िगर तार कर मेवाड़ से िनकाल दया। २ फरवर , १९३९
को मा ण यलाल वमा को मेवाड़ क सीमा म लाकर िगर तार कर उ ह यातनाएँ द गई। गाँधी जी ने
अपने प ह रजन म इसक िन दा क । वमा जी को कु भलगढ़ कले म ब द रखा गया, क तु
जाम डल ारा अकाल सेवा सिमित क थापना कर राहत काय करने पर वमा को रहा कर दया गया
और स या ह थिगत हो गया।
वमाजी के नेतृ व म एक जाम डल का ितिनिध म डल मेवाड़ के धानमं ी सर ट . वजय राघवाचाय
से िमला तथा २२ फरवर , १९४१ को जाम डल पर ितब ध हटा दया गया। जाम डल क शाखाएँ
रा य भर म था पत क गई तथा वमाजी क अ य ता म जाम डल का थम अिघवेशन उदयपुर म
हआ
ु जसम आचाय कृपलानी व ीमती वजयल मी पं डत भी आए। अिधवेशन म मेवाड़ म उ रदायी
शासन क थापना तथा जनता के ितिनिधय वाली वधानसभा क माँग क गई।
तीय व यु म अं ेज ने भारत को भी यु म स मिलत कर िलया। ८ अग त, १९४२ को ब बई म
कां ेस महा सिमित के अिधवेशन म गाँधी जी ने टश भारत के िलए नया नारा - अं ेज भारत छोड़ो
तथा दे शी रा य के िलए राजा लोग, अं ेज का साथ छोड़ो नारा दया। मा ण यलाल वमा मेवाड़
जाम डल के ितिनिध के प म इसम स मिलत हए।
ु २० अग त १९४२ को जाम डल क ओर से
वमाजी ने महाराणा को अं ेज से नाता तोड़ने का अ ट मेटम दया, क तु उनक िगर तार के बाद
रा य यापी स या ह शु हो गया। १९४४ म सभी कायकता जेल से रहा हो गये, क तु राजनीितक
गितरोध बना रहा।
३१ दस बर, १९४५ को उदयपुर म पं. जवाहरलाल नेह क अ य ता म अ खल भारतीय दे शी रा य
लोक प रषद का अिधवेशन हआ।
ु मेवाड़ सरकार ने वधान िनमा ी सिमित का गठन कर जाम डल के
सद य भी उसम शािमल कये। सिमित क रपोट के अनुसार रा य मं मंडल म जाम डल के मनोनीत

n
दो सद य मोहनलाल सुखा ड़या व ह रालाल कोठार िलए गये। महाराणा के नए वैधािनक सलाहकार के.
एम. मुंशी ने रा य का नया वधान तैयार कया, जसे २३ मई, १९४७ को लागू कर दया गया। ११

को िस ा ततः वीकार कर िलया। नए


ee
अ ू बर, १९४६ को इस वधान म संशोधन कए गए। ७ माच, १९४८ को महाराणा ने
धानमं ी सर रामामूित ने इसम सहयोग दया।
जाम डल क माँग
जाम डल ने
धानम ी पद के िलए ो. ेमनारायण माथुर को नामजद कया, जसे वीकार कर िलया गया। ११
अ ल
ै को महाराणा ने राज थान यूिनयन म मेवाड़ के वलय को वीकार कर िलया। १८ अ ल
ै , १९४८ को
ah
पं. नेह ने उदयपुर म नविनिमत संयु राज थान का उ ाटन कया। महाराणा राज मुख बने तथा
मा ण यलाल वमा धानमं ी बन गये।
मारवाड़ (जोधपुर)
sh

जयनारायण यास के नेतृ व म मारवाड़ हतका रणी सभा ने जोधपुर म उ रदायी शासन क माँग क
तथा दो पु तक - जैसे मारवाड़ क अव था और पोपनबाई क पोल कािशत क , जसम रा य सरकार
क आलोचना क गई थी। जयनारायण यास व आन दराज सुराणा को ब द बनाकर रा य सरकार ने
दमनच चलाया। १९३१ म इन नेताओं को रहा कर दया गया। स वनय अव ा आंदोलन आरं भ होने पर
इन नेताओं ने जोधपुर युवक लीग का गठन कया और वदे शी का चार व हड़ताल क ं। नेताओं को पुनः
ब द बना कर मारवाड़ हतका रणी सभा को अवैध घो षत कर दया गया।
डॉ. एम. एस. जैन के अनुसार - इस वातावरण म भी १९३४ म जाम डल क थापना क गई। इसका
ल य रा य म उ रदायी शासन क थापना और रा य म लौ कक अिधकार क र ा करना था।
ए.आई.एस.पी.सी. के अ य होने के नाते जवाहर लाल नेह माच, १९३६ म रा य म राजनीितक थित
क जानकार ा करने के िलए जोधपुर आए। अपने सावजिनक भाषण म उ ह ने रा य क जनता को
नैितक समथन दया और रा य के संघष को अं ेजी सा ा य के व भारतीय वाधीनता संघष का एक
अंग घो षत कया। सन ् १९३८ म ह रपुरा काँ ेस अिधवेशन म पा रत एक ताव के अनुसार अब दे शी के
बाद से रयासत म उ रदायी सरकार क थापना हे तु वशु राजनीितक संगठन बनने लगे। १६ मई
१९३८ को जोधपुर के सावजिनक कायक ाओं ने मारवाड़ लोक प रषद क नींव डाली। इस सं था का
उ े य था, महाराजा जोधपुर क छ छाया म उ रदायी शासन क थापना करना।
फरवर , १९३९ म जयनारायण यास पर रा य सरकार ने सारे ितब ध हटा िलए और उ ह रा य म
वेश क इजाजत द । उ ह रा य सरकार ारा ग ठत सलाहकार म डल का सद य बनाया गया। इसी वष
अकाल के समय लोक प रष राहत काय करने के कारण लोक य हई।
ु क तु इससे भयभीत होकर
रा य सरकार ने पुनः गैर कानूनी घो षत कर, इसके कायक ाओं को ब द कर दमनकार नीित अपनाई,
जसक गाँधी जी ने भी ह रजन म भ सना क । जसव तराज मेहता के यास से लोकप रष व सरकार
के बीच समझौता हो गया। जोधपुर म नगरपािलका के चुनाव म लोक प रष का बहमत
ु हो गया और
यासजी अ य चुने गए। िसत बर १९४१ म सलाहकार प रषद के चुनाव का लोकप रष ने ब ह कार
कर धानमं ी डोना डफ ड को हटाकर उ रदायी सरकार क माँग क व आ दोलन शु कर दया।
सरकार ने प रष के कायकताओं को ब द बना िलया।

n
९ अग त १९४२ को भारत छोड़ो आ दोलन िछड़ जाने पर, मारवाड़ म भी आ दोलन तेज हो गया।
सरकार ने आ दोलनका रय को ब द बनाया। यास जी को २८ मई, १९४४ को जेल से रहा कर दया।
ee
१९४७ म महाराजा उ मेद िसंह क मृ यु के बाद हनुव त िसंह नवाब भोपाल व धौलपुर नरे श से िमल कर
जोधपुर को पा क तान म िमलाना चाहते थे, जसके िलए ज ना रयासत दे ना चाहता था। मेवाड़ के
महाराणा ने पा क तान म िमलने क हनुव त िसंह क पेशकश ठु करा दे ने पर, भारतीय संघ म शािमल
होना वीकार कया एवं Instrument of Accession पर ह ता र कर दए। जोधपुर पहँु च कर महाराजा ने
ah
साम त का अपना मं मंडल बनाया, जसका जोधपुर क जनता ने बल वरोध कया। अंततः
जयनारायण यास के नेतृ व म मं म डल बना, जसम लोक प रष का बहमत
ु था। ३० माच, १९४९ को
जयपुर म सरदार व लभ भाई पटे ल ने राज थान यूिनयन का उ ाटन कया, जसम जोधपुर का वलय
हो गया।
sh

जयपुर

जयपुर रा य म जनजागृित का आर भ अजुनलाल सेठ ारा कया गया था। सेठ जमनालाल बजाज ने
(जो सीकर के िनवासी थे), १९२६ म जयपुर म चखा संघ क थापना क , जसके कायक ाओं ने
राजनीितक आ दोलन म स य भाग िलया। बी. एल. पानगड़या के श द म सन ् १९३६-३७ म जयपुर
रा य जा म डल का पुनगठन हआ।
ु इस काय के िलए वन थली से ह रालाल शा ी को आम त कया
गया और उ ह जा म डल का धानमं ी बनाया गया। जाम डल के सभापित सु िस एडवोकेट ी
िचरं जीलाल िम बनाए गये। १९४८ म जा म डल का पहला अिधवेशन जयपुर म हआ।
ु इसके अ यथ
सेठ जमनालाल बजाज थे। १ फरवर १९३८ को बजाज को िगर तार करने पर, जाम डल ने संघष छे ड़
दया, मुख कायक ा िगर तार कर िलए गए। ७ अग त, १९३९ को समझौता हआ
ु , जसके अनुसार
जाम डल क नाग रक अिधकार क माँग वीकार कर ली गई व सभी कायक ा जेल से रहा कर दये
गये।
८-९ अग त, १९४२ को भारत छोड़ो आ दोलन आर भ हो गया। ह रालाल शा ी व जयपुर के धानमं ी
िमजा इ माइल म एक अिल खत समझौता हो गया, जसके अनुसार शा ी ने भारत छोड़ो आ दोलन म
जयपुर स मिलत नह ं कया, क तु जाम डल के एक वग ने जसके नेता बाबा ह र , रामकरण
जोशी, दौलतराम भंडार व हं स ड . राय थे। आजाद मोचा कायम कर आ दोलन चलाया और ब द बने,
क तु जयपुर महाराजा ने उ ह रहा कर वधान सभा व ितिनिध सभा क थापना क । जयपुर म
पी.ई.एन. काँ ु ◌े◌ंस हई
ु , जसम पं. नेह भी आए, जनके आ ह पर आजाद मोचा भंग कर दया गया।
१५ मई, १९४६ को जाम डल के ितिनिध के प म दे वी शंकर ितवार को मं मंडल म स मिलत
कया गया। २७ माच, १९४७ को नया मं मंडल बना, जसम ७ सद य म से ४ सद य जाम डल के व
२ जागीरदार वग के थे।
नव बर, १९४८ म जयपुर महाराजा राज थान म िमलने को सहमत हो गये, जसक राजधानी जयपुर व
महाराजा राज मुख बने। ी ह रालाल शा ी पुनग ठत राज थान के मु यमं ी पद पर आसीन हए।
ु ७

n
अ ल
ै , १९४९ को जयपुर राज थान का एक अंग बन गया।
बीकानेर

राजनीितक आ दोलन श कया। प रष


ee
१२ जुलाई, १९४२ को बीकानेर के एडवोकेट रघुवर दयाल गोयल ने रा य जा-प रष
का उ े य महाराजा क छाया म उ रदायी शासन क
क थापना कर
थापना
करना था। महाराजा गंगा िसंह ने १९४२ म गोयल को िगर तार कर िनवािसत कर दया। इस पाबंद को
तोड़कर बीकानेर म वेश करने पर गोयल को पुनः िगर तार कर पुनः बंद बनाया। दस बर, १९४२ म
ah
बीकानेर म झ डा स या ह हआ
ु , जसम जा प रष के कायक ाओं को द डत कया गया।
गंगा िसंह के बाद नये महाराजा शादलिसं
ू ह ने फरवर , १९४३ म राजनीितक ब दय को रहा कर दया,
क तु जा प रष को मा यता न दे कर गोयल को ब द बना िलया व ११ जून, १९४५ को िनवािसत कर
दया। जून, १९४५ म दध
ू बखारा कसान आ दोलन चला, जसके आ दोलनका रय को ब द बनाया गया।
sh

२५ जून, १९४६ को रघुवर दयाल गोयल को पुनः ब द बनाया गया। ३० जून को रायिसंह नगर म जा
प रष का स मेलन हआ।
ु ३१ अग त, १९४६ को महाराजा ने रा य म शासन सुधार हे तु दो सिमितयाँ
सं वधान व िनवाचन े बनाने हे तु िनयु क । १६ माच, १९४८ को जा प रष व रा य सरकार के बीच
समझौता हो गया, कंतु प रष ारा समझौता ठु कराने के बाद गितरोध हो गया। ७ अग त १९४७ को
महाराजा ने बीकानेर के राज थान म वलय पर ह ता र कर दये। ३० माच, १९४९ को बीकानेर वृह
राज थान का अंग बन गया।
अलवर
९३८ म अलवर जाम डल क थापना हई।
ु भोलानाथ मा टर ने रा य सेवा याग कर जाम डल का
काय कया। तीय महायु म रा य म यु के िलए चंदे एक त करने का वरोध कया गया व फरवर ,
१९४६ म खेड़ा मंगलिसंह ने जमींदार के जु म के व जाम डल का स मेलन कया। आंदोलन चला व
कायक ा बंद बनाए गए। ह रालाल शा ी क म य थता से समझौता हआ
ु व बंद रहा कए गए।
अलवर म सां दाियक दं गे हए
ु , जसके िलए अलवर के धानमं ी एन.वी.खरे , हं द ू महासभा से संबिं धत
होने के कारण उ रदायी थे। ३० फरवर , १९४८ को महा मा गाँधी क ह या के ष यं का रय को अलवर
म संर ण दए जाने पर, ७ फरवर , १९४८ को अलवर के महाराणा तेजिसंह धानमं ी खरे को द ली म
भारत सरकार ने रोक िलया व शासन भारत सरकार ने अपने हाथ म ले िलया। भरतपुर म भी ऐसा ह
कया गया। १८ माच, १९४८ को म य संघ का िनमाण कर अलवर, भरतपुर, करौली व धौलपुर को उसम
स मिलत कया गया।
भरतपुर
१९३८ म भरतपुर म कशनलाल जोशी, गोपीलाल यादव, मा टर आ द य व युगल कशोर चतुवद ने जा
म डल क थापना क । फतेहपुर सीकर म पूव राज थान का राजनीितक स मेलन हआ
ु व रा य सरकार
को जा म डल को मा यता दे ने का अ ट मेटम दया। अ ल
ै , १९३९ म स या ह कया गया, जसम
कायक ा बंद बनाए गए। २५ अ टू बर, १९३९ को समझौता हआ
ु व जा म डल का नाम बदल कर जा-
प रष रखा गया। दस बर, १९४० म जय नारायण यास क अ य ता म भरतपुर म राजनीितक
स मेलन हआ।
ु अग त, १९४२ के भारत छोड़ो आंदोलन के साथ ह रा य म आंदोलन हआ
ु , जसम पुनः
कायक ा िगर तार हए
ु , कंतु बाढ़ के राहत काय म जाप रष ने स य सहयोग दया। भरतपुर के

n
द वान के.पी.एस मैनन ने िनवािचत सद य क बहमत
ु वाली वधानसभा बनाना वीकार कर, बंद नेताओं
को रहा कर दया। १९४३ म ितिनिध सिमित के चुनाव म प रष के सद य बहमत
ु म चुने गए,
ee
जसके जुगल कशोर चतुवद नेता चुने गए, कंतु गितरोध होने पर १९४५ म प रष
का ब ह कार कर दया। १९४७ म बेगार वरोधी आंदोलन चला, कंतु १५ अग त के पूव सभी बंद
ने ितिनिध सिमित
रहा
कर दए गए। गाँधी ह या कांड के कारण भरतपुर का शासन फरवर , १९४८ म भारत सरकार ने अपने
हाथ म ले िलया। १८ माच, १९४८ को भरतपुरम य संघ म स मिलत हो गया व ३० माच, १९४९ को
ah
वृह राज थान का अंग बन गया।
धौलपुर
धौलपुर म जन जागृित का अ दत
ू यमुना साद वमा था, जसने आचार-सुधारणी सभा व आय समाज
क थापना क । १९१८ म आय समाज ने स या ह कया। धौलपुर नरे श राणा उदयभानु िसंह नर म डल
sh

का भावशाली सद य व ित यावाद था। उसने जोधपुर नरे श हनुमंत िसंह को पा क तान म िमलने
को उकसाया, कंतु लॉड माउ ट बेटन और वी.पी.मेनन ने इस षडयं को वफल कर दया। २८ माच,
१९४८ को धौलपुर म य संघ म शािमल हो गया।
करौली
मुँशी लोक चं माथुर ने १९३८ म करौली म रा य सेवक संघ तथा थानीय काँ ेस क थापना क ।
१९३९ म माथुर ने जा म डल क थापना क । १९४२ म अग त- ांित म क याण साद गु ा को बंद
बनाया गया। १९४६ म जा म डल स य हआ।
ु करौली के शासक गणेशपाल ने १८ माच, १९४८ म
म य संघ म करौली को स मिलत कर दया तथा १५ मई, १९४९ को राज थान म वलय करा दया।
बूद

बूद
ँ बरड़ े म मवाड़ म बजौिलया और बगू कसान आंदोलन का भाव हआ।
ु पं. नानूराम शमा के
नेतृ व म १९२६ म बैठ बेगार, लाग-बाग और लगान क ऊँची दर का वरोध आंदोलन चला। िन यानंद
सागर को जन- आंदोलन म भाग लेने पर बूद
ँ के शासक रघुवीर िसंह ने रा य से िनवािसत कया व
उसक संप ज त कर ली। िन यानंद को १९४२ के रा ीय आंदोलन म भाग लेने के कारण बूद
ँ जेल म
४ वष बंद रखा गया। िन यानंद के पु ॠ षद व प ी स यभामा भी रा ीय आंदोलन म भाग लेते थे।
१९४४ म ह रमोहन माथुर क अ य ता म बूद
ँ लोक प रष क थापना हई
ु , जसके मं ी बृज सुंदर
शमा बने। १९४५ म बूद
ँ शासक ई रिसंह क मृ यु के बाद बहादरिसं
ु ह ग पर बैठे, ज ह ने १९४६ म
िन यानंद क िनवासन आ ा र कर द व वधान प रष व लोक य मं म डल बनाने क घोषणा क ,
कंतु प रष ने मं म डल म अ य वग के लोग के िलए जाने के कारण स मिलत होने से इं कार कर
दया। माच, १९४८ म बूद
ँ का वलय संयु राज थान म हो गया।
कोटा
कोटा के ांितकार ठा. केसर िसंह बारहट व उनके भाई जोरावरिसंह व पु तापिसंह का उ लेख पूव म
कया जा चुका है । १९३४ म पं. नानूराम शमा, अ कंभत ह र हमसुखलाल िम ल ने हाड़ौती जाम डल क
थापना क । १९३८ म कोटा रा य जाम डल क थापना हई
ु , जसका थम अिधवेशन नयनूराम शमा
क अ य ता म माँगरौल म हआ।
ु १९४१ म नयनूराम शमा क ह या हो जाने के बाद जाम डल का
नेतृ व अिभ न ह र ने कया।

n
सन ् १९४२ के भारत छोड़ो आंदोलन म कोटा के अिभ न ह र, शंभूदयाल स सेना वेणी माधव, बागमल
बाँ ठया और मोतीलाल जैन िगर तार हए।
ु जन- आंदोलन और भड़का तथा जनता ने शहर कोतवाली पर

कोटा महाराव
ee
रा ीय झंडा फहरा दया। पुिलस को बैरक म बंद कर दया व नगर पर जनता का अिधकार हो गया।
ारा दमन न करने के आ ासन पर जनता ने महाराव को शासन स पा। जा म डल के
कायक ा रहा कर दए। दे श क वतं ता के बाद १९४७ म महाराव ने लोक य मं म डल बनाने का
िनणय िलया। २५ माच, १९४८ को कोटा संयु राज थान म वलीन हो गया, जसके राज मुख कोटा के
ah
महाराव भीमिसंह बने तथा शाहपुरा के गोकुललाल असावा धानमं ी बने, कंतु मेवाड़ के संयु राज थान
म शािमल होने पर राज मुख महाराणा भूपालिसंह बने व कोटा नरे श उपराज मुख बने तथा राजधानी
उदयपुर व मु यमं ी मा ण यलाल वमा बने। कोटा के अिभ न ह र मं म डल म िलए गए। २९ माच,
१९४९ को वृहत ् राज थान म कोटा का अ य रा य के साथ वलय हो गया, जसक राजधानी जयपुर
sh

बनी।
डू ँ गरपुर
डू ँ गरपुर म भोगीलाल पा या ने १९४४ म जा म डल का गठन कया। अ ल
ै , १९४६ म पा या को जन-
आंदोलन म भाग लेने पर बंद बनाया गया। अ य कायक ा म ह रदे व जोशी व गौर शंकर उपा याय को
रा य से िन कािसत कर दया गया, जसके कारण रा य म हड़ताल हई
ु व पा या ने जेल म आमरण
अनशन कया। पा या को रहा कर दया गया व अ य के िन कासन आदे श र कए गए। जून, १९४७
म पुनः आंदोलन करने पर पा या िगर तार हए
ु , क तु भील के आंदोलन करने पर उ ह छोड़ दया
गया। महाराव ल मणिसंह ने लोक य मं म डल बनाया, जसम जाम डल के ितिनिध गौर शंकर
उपा याय व भीखा भाई मं ी बने। बाद म डू ँ गरपुर का वलय संयु राज थान म हो गया।
बाँसवाड़ा
१९४४ म बाँसवाड़ा के शासक चं वीर िसंह व द वान डॉ. मोहन िसंह मेहता थे। जा म डल क थापना
धूलजी भाई व भूप वेद के य से हई
ु , जसने उ रदायी शासन क माँग क । रा य ने कुछ शासन-
सुधार क घोषणा क व धारा-सभा के चुनाव कराए, जसके जा म डल के ितिनिध बहमत
ु से जीते।
जाम डल ने अपनी बहमत
ु वाली सरकार बनाने हे तु आंदोलन चलाया। अंत म महारावल ने जा म डल
क माँग वीकृत कर १८ अ ल
ै , १९४८ को भूप वेद को मु यमं ी बनाया। माच, १९४९ म महारावल ने
संयु राज थान के वलय-प पर ह ता र कर दए।
तापगढ़
१९३१ म तापगढ़ म वदे श आंदोलन चला, जसके कायक ाओं मा टर रामलाल, राधा व लभ सोमानी व
रतनलाल को बंद बनाया गया। १९३६ म ठ कर बघा क ेरणा से रा य म अमृतलाल पायक ने ह रजन
सेवा सिमित क थापना क । पायक ने ह १९४६ म जा म डल क थापना क । दे श के आजाद होने के
बाद तापगढ़ म लोक य मं म डल बना, जसम जाम डल के ितिनिध पायक मं ी बने। अ ल
ै ,
१९४८ म तापगढ़ संयु राज थान का अंग बन गया।
कुशलगढ़
बाँसवाड़ा के द ण- प म म एक ठकाना (चीफिशप) कुशलगढ़ था, जसके कायक ा ी डोशी, भारत
छोड़ो आंदोलन म भाग लेने के कारण जेल गए। उ ह ने १९४० म जाम डल क थापना क । १९४६ म

n
प नालाल वेद जा म डल के अ य बने। १९४८ म कुशलगढ़ म लोक य मं म डल बना और १९४९
म संयु राज थान का अंग बन गया।
शाहपुरा ee
शाहपुरा के शासक उ मेदिसंह के समय रा य म रा ीय आंदोलन चला। १९३८ म मा ण यलाल वमा ने
शाहपुरा म जाम डल क थापना क । १९४२ के भारत छोड़ो आंदोलन के समय जा म डल ने शासक
को अं ेज से संबध
ं तोड़ने क माँग क । रमेशचं ओझा, लादराम
ू यास व ल मीनारायण काँ टया बंद
ah
बनाए गए। शाहपुरा के ो. गोकुललाल असादा पहले से ह अजमेर म बंद थे। १९४६ म ब दय को रहा
कर शाहपुरा के शासक सुदशनदे व ने गोकुललाल असावा क अ य ता म नया वधान तैयार कराया, जसे
१४ अग त, १९४७ को रा य म लागू कर दया गया व असावा के नेतृ व म लोक य सरकार क थापना
क । पहले शाहपुरा व कशनगढ़ को अजमेर म िमलाने का िनणय कया गया था, कंतु जनता के वरोध
sh

के कारण उसे र कर २५ माच, १९४८ म शाहपुरा का वलय संयु राज थान म हो गया।
कशनगढ़
१९४७ म कशनगढ़ क ग पर सुमेरिसंह बैठा। दे श आजाद होने के पूव ह कशनगढ़ महाराजा ने
भारतीय संघ म स मिलत होने के संिध प पर ह ता र कर दए। पहले कशनगढ़ को अजमेर म
िमलाने का ताव था, कंतु १५ अ ल
ै , १९४८ को उसका वलय वृह राज थान म हो गया।
जैसलमेर
जैसलमेर म १९३८ म िशवशंकर गोपा, जीतमल जगाशी, मदनलाल पुरो हत, मदनलाल जगाणी व लाल
चं जोशी ने लोक-प रष क थापना क । रा य के शासक ने दमन-च चलाया। रा य म िनवािसत
सागरमल गोपा जब अपने पता क मृ यु के बाद जैसलमेर आए, तो उ ह बंद बना कर जेल म यातनाएँ
द गई, जसके कारण ४ अ ल
ै , १९४६ को उनक मृ यु हो गई। अ.भा.दे शी रा य लोक प रष के अ य
पं.नेह ने इस घटना क कटु आलोचना क तथा जोधपुर लोक प रष के कायक ा जयनारायण यास
जैसलमेर आए, जससे जाम डल का आंदोलन तेज हआ।

अग त, १९४७ म महारावल जैसलमेर पा क तान म शािमल होने के िलए जोधपुर के शासक हनुवत
ं िसंह
के साथ ज ना से बात करने द ली गए, कंतु वी.पी.मेनन व लॉड माउ ट बेटन ने इस ष यं को वफल
कर दया और ३० माच, १९४९ को जैसलमेर का वलय राज थान म हो गया।
िसरोह
िसरोह के कुछ कायक ाओं ने बंबई म १९३४ म जा म डल क थापना क , जसका उ े य िसरोह के
शासक व प रामिसंह क छ छाया म एक उ रदायी सरकार क थापना करना था। २३ जनवर , १९३९
को गोकुल भाई भ ने िसरोह म जा मंडल क थापना क और आंदोलन चलाया, जसम कायक ा बंद
बनाए गए। १९४२ क अग त ांित म भी िसरोह म आंदोलन चला। १९४६ म तेजिसंह िसरोह क ग
पर बैठा, कंतु जनता ारा आंदोजन करने पर अभयिसंह को ग पर बैठाया गया। ५ अग त, १९४७ को
आबू पवत िसरोह को वापस लौटा दया गया और मं म डल म जाम डल का ितिनिध जवाहरमल
िसंधी को शािमल कया गया।

राज थान म राजनीितक जागृित

n
ee
१८५७ ई० के व ोह के दमन के बावजूद जनता म टश वरोधी भावनाओं का दमन न कया जा सका।
१९वीं शता द के अ त म तथा २०वीं शता द म राज थान म ती गित से राजनीितक चेतना का वकास
हआ
ु , जसके मुख कारण िन निलखीत थे -
ah
राज थान म राजनीितक जागृित के कारण
कसान म या अस तोष और उनके आ दोलन
इस समय जागीरदार ारा कसान पर बहत
ु अ याचार कया जा रहा था। सारं गधरदास के अनुसार,
'जीवन और मृ यु के अलावा अ य सभी बात म जागीरदार लोग अपनी जा के वा त वक शासक थे
sh

तथा वे अपनी जा पर मनमाना अ याचार करते थे।'


कसान के अस तोष के कारण - (क) जागीरदार कसान पर बहत
ु अ याचार कर रहे थे। डॉ० एम०
एस० जैन के अनुसार , ' जागीरदार क बढ़ती हई
ु वलािसता का यय कसान पर लाद दया गया। (ख)
इस समय कृ ष भूिम क माँग म वृ होने के कारण जागीरदार का शोषण भी बढ़ता जा रहा था।

बजौिलया का कृ षक आ दोलन - बजौिलया क जागीर मेवाड़ के अधीन

थी तथा यहाँ के कसान म जागीरदार का शोषण के व भयंकर अस तोष या था। अत: उ ह ने


नानजी पटे ल एवं साधु सीताराम के नेतृ व म आ दोलन छे ड़ दया। जागीरदार तथा मेवाड़ के महाराजा ने
इस आ दोलन को कुचलने के िलए बहत
ु अ याचार कये, पर तु उ ह असफलता ह हाथ लगी। १९१५ ई०
म वजय िसंह पिथक ने आ दोलन का नेतृ व स भाल िलया। धीरे - धीरे बजौिलया के आ दोलन ने
इतना उ प धारण कर िलया क रा ीय तर पर उसक चचा क जाने लगी। वहाँ के कसान ने
अं ेज के सम अपनी माँग रखी तथा उसक गाँधीजी का नैितक समथन भी ा कर िलया।
सरकार को इस आ दोलन म स क बे शे वक आ दोलन क छ व दखने लगी। अत: उसने १९२२ ई० म
बजौिलया के कसान से समझौता कर िलया, पर तु यह समझौता थाई िस नह ं हआ।
ु १९३१ ई० म
कसान ने शा तपूण तर के से पुन: आ दोलन ार भ कर दया। सेठ जमनालाल बजाज एवं
मा ण यलाल भी इस आ दोलन से जुड़गये थे तथा आ दोलन ने अ खल भारतीय सम या का प ले
िलया था।
जमनालाल बजाज ने उदयपुर के महाराजा से आ दोलन के बारे म बातचीत क , जसके कारण जपलाई ,
१९३१ ई० को समझौता हो गया, पर तु सरकार ने कसान के उनक जमीन वापस नह ं द । १९४१ ई० म
कसान को उनक जमीन लौटा द गयीं, जसके कारण यह आ दोलन समा हो गया।
बगू का कसान आ दोलन - बजौिलया आ दोलन से े रत होकर बगू के कसान ने भी १९२१ ई० म
आ दोलन छे ड़ दया। जागीरदार ने हं सा मक साधन के ारा इस आ दोलन को िनममतापूवक कुचलने
का यास कया, पर तु इससे आ दोलन और ती गित से भड़क उठा। भारतीय समाचार प ने कसान
पर कये जा रहे अ याचार के सामाचार को मुखता से छापा , जसके कारण यह आ दोलन सु कखय

n
म आ गया। इससे घबराकर वहाँ के जागीरदार ने कसान से समझौता कर िलया।

भोमट का भील आ दोलन - १९१८ ई० म मेवाड़ सरकार के


ee शासिनक सुधार के

व भोमट के भील ने आ दोलन छे ड़ दया। गो व द गु ने भील म एकता था पत करने का यास


कया। मोतीलाल तेजावत ने भील आ दोलन का नेतृ व कया, जसके कारण इस आ दोलन ने और जोर
पकड़ िलया। भील ने लागत तथा बेगार करने से इनकार कर दया। सरकार ने आ दोलन को कुचलने के
ah
िलए दमन - च का सहारा िलया, क तु उसे सफलता नह ं िमली। इस आ दोलन से भील को अनेक
सु वधाएँ ा हई।
ु सरकार ने अनेक य के बाद १९२९ ई० म तेजावत को िगर तार कर िलया तथा
१९३६ ई० म रहा कर दया।

मारवाड़ म कसान आ दोलन


sh

मारवाड़ म भी कसान पर बहत


ु अ याचार होता था। १९२३ ई० म जयनारायण यास ने 'मारवाड़
हतकार सभा' का गठन कया और कसान को आ दोलन करने हे तु े रत कया, पर तु सरकार ने
'मारवाड़ हतकार सभा' को गैर - कानूनी सं था घो षत कर दया। अब कयान आ दोलन का नेतृ व
मारवाड़ लोक प रषद ने अपने हाथ म ले िलया। इस सं था ने कसान को आ दोलन हे तु ो सा हत
कया।
सरकार ने कसान आ दोलन को यान म रखते हए
ु मारवाड़ कसान सभा नामक सं था का गठन कया,
पर तु उसे सफलता ा नह ं हई।
ु अब सरकार ने आ दोलन का दमन करने हे तु दमन क नीती का
सहारा िलया, पर तु उससे भी कोई लाभ नह ं हआ।
ु च डावल तथा िनमाज नामक गाँव के कसान पर
िनममता पूवक अ याचार कये गये तथा डाबरा म अनेक कसान को िनदयता पूवक मार दया गया।
इससे स पूण दे श म उ ेजना क लहर फैल गई, क तु सरकार ने इसके िलए कसान को उ रदायी
ठहराया। आजाद के बाद भी जागीरदार कुछ समय तक कसान पर अ याचार करते रहे , पर तु रा य म
लोक य सरकार के गठन के बाद कसान को खातेदार के अिधकार िमल गये।
अं ेजी िश ा का सार
अं ेजी िश ा के सार ने भी राजनीितक चेतना के वकास म मह वपूण योगदान दया। डॉ० एम० एस०
जैन के अनुसार '१९३१ म सम त राज थान म एक ितशत से भी कम लोग अं ेजी बोलते - जानते थे।'
अं ेजी बोलने वाल का यह ितशत कम होते हए
ु भी अ य त मह वपूण िस हआ।
ु आधुिनक ढ़ं ग से
िश त ये लोग सरकार नौकर क ाि के इ छुक थे, पर तु राजक य सेवा म िनयु भाई -
भतीजावाद के आधार पर द जाती थी। अत: िश त वग के लोग म अस तोष फैलना वाभा वक ह
था। ये िश क वत ता तथा समानता का पाठ पढ़ चुके थे अत:उनम िनर तर राजनीितक चेतना के
वकास होता चला गया।
समाचार - प एवं सा ह य का योगदान
१८८५ ई० म 'राजपूताना गजट' एवं १८८९म 'राज थान समाचार 'नामक समाचार प का काशन ार भ
हआ।
ु इनमे टश सरकार के काय क खुला आम आलोचना क जाती थी, अत: सरकार ने इन पर
ितब ध लगा दया। वजयिसंह पिथक ने 'राज थान केसर ' नामक समाचार प का काशन ार भ

n
कया। इसम टश साशन के काय क कटु आलोचना क जाती थी। अत: सरकार ने इस पर ितब ध
लगा दया। १९२३ ई० म कािशत 'त ण राज थान ने सरकार दमन का जोरदार वरोध कया, जसके

सा ह यकार ने भी समाचार प
ee
कारण जनता म ती गित से रा ीयता क भावना का संचार हआ।

क भाँित जनता म रा ीय चेतना उ प न करने का य कया। केसर
िसंह बारहठ क क वताएँ रा ीय भावनाओं से ओत - ोत थीं। राज थान के िस इितहासकार एवं
महाक व सूयम ल िम ण ने 'वीर सतसई' नामक थ क रचना क , जससे यहाँ के भी शासक
ah
कंपकंपायमान हो उठे । इसके अित र जयनारायण यास क क वताओं एवं पं डत ह रालाल शा ी के
गीत से भी जनता म अभूतपूव राजनीितक चेतना जागृत हई।

म यम वग का योगदान
म यम वग ने भी जनता म राजनीितक जागृित उ प न करने म सराहनीय योगदान दया। जोधपुर के
sh

जयनारायण यास, बजौिलया के वजय िसंह पिथक एवं जयपुर के पं० ह रालाल शा ी आ द म यम वग
के ितिनधी थे, ज ह ने आ दोलन को गित दान क । इस वग का मु य उ े य जनता म राजनीितक
तथा रा ीय चेतना का वकास करना था।
आधुिनक िश ा के सार से म यम वग के िश त नवयुवक जात , रा वाद और वत ता के महान
आदश से प रिचत हए।
ु इसके बाद उ ह ने टश शासन क आधार - त भ साम ती यव था, जो
म यकाल से भारत म चली आ रह थी, को उखाड़ फकने का िन य कया।
आय समाज का भाव
आय समाज के सं थापक वामी दयान द सर वती ह द ू धम, समाज एवं रा के पु थान के िलए
य शील थे। उ ह ने राज थान क विभ न रयासत क या ा क और वहाँ के शासक तथा जनता के
सम चार बात रखीं - वधम, वरा य, वदे शी एवं वभाषा। राज थान के विभ न नगर म भी आय
समाज क शाखाएँ था पत हो चुक थीं। वामीजी ने १८८३ ई० म परोपका रणी सभा नामक सं था क
थापना क । उ ह ने कहा क वे ह दओं
ू को एकता के सू म बांधना चाहते ह और राजाओं को स माग
पर लाना चाहते ह। यह नह ं, उ ह ने वशासन पर भी बल दया है । उनक िश ाओं से राज थान के
लोग सामा जक तथा धािमक आव यकताओं क अनुभूित करने लगे और राजनैितक सुधार के ित भी
जाग क हए।
ु इस कार वामी दयान द सर वती और बाद म आयसमाज ने राज थान म रा वाद और
राजनैितक चेतना क आधारिशला रखी।
थम व यु का भाव
थम व यु के दौरान सम त राजपूत रा य ने टश शासन क हरस भव सहायता क । जब
राजपूत सैिनक व के अ य दे श म यु करने गये, तो वहाँ क वत ता के नये वचार तथा आदश
से अ यिधक भा वत हए।
ु वदे श लौटने पर उ ह ने अपने िम , पड़ोिसय तथा अ य लोग को अपने
अनुभव के बारे म बता कर उनम वत ता क भावना जव लत कर द । थम व यु म अपार
धनरािश खच हई
ु , अत: उसने आ दोलन का माग अपना िलया।
पड़ोसी ा त का भाव
पड़ोसी ा त म उमड़ती हई
ु रा ीयता क भावना का भी राज थान पर बहत
ु भाव पड़ा। इस समय
म यम वग ने टश सरकार क कटु आलोचना करते हए
ु विभ न ा त म अनेक संघ का िनमाण

n
कया। पा ा य िश ा के लाभ उठा चुक राजपूत रा य क जनता ने रा ीय पथ पर चलने का िन य
कया। टश अिधका रय ने भी यह अनुभव कया क टश ा त म जस तरह से वरा य के िलए
संघष चल रहा है , उसका
भी समय के साथ - साथ रा
ee
भाव दे शी रयासत क जनता पर भी पड़े गा और अनुदार वचारधारा वाले लोग
क मूलधारा म घुल - िमल जायगे।
ा तका रय क गित विधय का भाव
राज थान के ा तका रय ने भी राजनीितक चेतना उ प न करने क दशा म मह वपूण योगदान दया।
ah
राज थान के िस ा तका रय म अजुनलाल सेठ , केसर िसंह बारहठ, राव गोपाल िसंह, वजय िसंह
पिथक एवं रामनारायण चौधर आ द मुख थे। यामजी कृ ण वमा ने राज थान म ा तका रय के
िलए पृ भूिम तैयार कर द थी।
राज थान म राजनीितक चेतना का वकास
sh

१८८८ ई० म इलाहाबाद म काँ ेस का अिधवेशन हआ


ु था, जसम अजमेर के ितिनिध म डल ने भाग
िलया था। १८८५ ई० म अजमेर से 'राज थान गजट 'व १८८९ म ' राज थान समाचार 'नामक समाचार
प का काशन ार भ हआ
ु , क तु टश सरकार क आलोचना करने के कारण सरकार ने शी ह
इन पर ितब ध लगा दया। १९०५ ई० म बंगाल वभाजन के समय सारे दे श म वदे शी आ दोलन
ार भ हआ
ु उस समय राज थान म भी थान - थान पर वदे शी व तुओं पर बल दे ते हए
ु वदे शी
व तुओं का ब ह कार कया गया। १९१९ ई० म अजुनलाल सेठ , केसर िसंह बारहठ एवं वजय िसंह द पक
ने िमलकर 'राज थान सेवा संघ' नामक सं था क थापना क । इस सं था ने राजनीितक चेतना के
वकास म मह वपूण योगदान दया। 'राज थान केसर 'तथा 'त ण राज थान' नामक समाचार प ने
रा ीयता क भावना उ प न करने क दशा म जो सहयोग कया उसे भुलाया नह ं जा सकता।
१९१९ म राज थान - म य भारत सभा नामक सं था का गठन कया गया, जसने पाँच वष तक काफ
मह वपूण काय कया। इस सं था ने अपनी गित विधय के मा यम से राज थान क जनता म रा ीय
चेतना जागृत करने का मह वपूण यास कया।
राज थानी िच कला : एक प रचय

भारतीय िच कला म राज थानी िच कला का विश थान है , उसका अपना एक अलग व प है । यहाँ
क इस स प न िच कला के तरफ हमारा यान सव थम िस कला व आन दकंटका कुमार वामी ने
अपनी पु तक ठराजपूत पे टग' के मा यम से दलाया। कुछ उपल ध िच के आधार पर कुमार वामी
तथा ाउन जैसे व ान ने यह धारणा बनाई क राज थानी शैली, राजपूत शैली है तथा नाथ ारा शैली के
िच उदयपुर शैली के ह। प रणाम व प राज थानी शैली का वतं अ त व बहत
ु दन तक वीकार
नह ं कया जा सका। इसके अलावा खंडालवाला क रचना ठलीवस ाम राज थान (माग, भाग- ध ्, सं या
३, १९५२) ने पहली बार व ान का यान यहाँ क िच कला क उन खास पहलुओं क तरफ खींचा जो
इन पर प मुगल भाव को दशाता है ।

n
वा तव म राज थानी शैली, जसे शु
अप ंश शैली से हआ।

ee
म राजपूत शैली के प म जाना गया, का
समया तर म व ान क गवेषणाओं से राज थानी शैली के ये िच
ादभाव
ु १५ वीं शती म
चुर मा ा म
उपल ध होने लगे।
ah
इन िच कृितय पर कसी एक वग वशेष का सम प म भाव पड़ना यवहा रक नह ं जान पड़ता।
धीरे -धीरे यह बात मा णत होती गई क राज थानी शैली को राजपूत शैली म समावेिशत नह ं कया जा
सकता वरण इसके अ तगत अनेक शैिलय का सम वय कया जा सकता है । धीरे -धीरे राज थानी
िच कला क एक शैली के बाद दसर
ू शैली अपने कुछ े ीय भाव व उनपर मुगल के आंिशक भाव
sh

को िलए, वतं प से अपना पहचान बनाने म सफल हो गयी। इनको हम विभ न नाम जैसे मेवाड़
शैली, मारवाड़ शैली, बूद
ं शैली, कशानगढ़ शैली, जयपुर शैली, अलवर शैली, कोटा शैली, बीकानेर शैली,
नाथ ारा शैली आ द के प म जाना जाता है । उ णयारा तथा आमेर क उपशैिलयाँ भी अ त व म आयी
जो उसी े क चिलत शैिलय का पा तर है ।

राज थानी िच कला क वशेषताएँ

राज थानी िच कला अपनी कुछ खास वशेषताओं क वज़ह से जानी जाती है ।

ाचीनता

ाचीनकाल के भ नावशेष तथा त णकला, मु ा कला तथा मूितकला के कुछ एक नमून ारा यह प
है क राज थान म ारं िभक ऐितहािसक काल से ह िच कला का एक स प न प रहा है । व. से. पूव
के कुछ राज थानी िस क पर अं कत मनु य, पशु, प ी, सूय, च , धनुष, बाण, तूप, बोिध म,
वा तक, ज पवत, नद आ द तीक से यहाँ क िच कला क ाचीनता प होती है । वीर संवत ् ८४
का बाड़ली-िशलालेख तथा व. सं. पूव तीसर शता द के मा यिमक नगर के दो िशलालेख से भी
संकेितत है क राज थान म बहत
ु पहले से ह िच कला का समृ प रहा है । बैराट, रं गमहल तथा आहड़
से ा साम ी पर वृ ावली, रे खावली तथा रे खाओं का अंकन इसके वैभवशाली िच कला के अ य सा य
है ।
कला मकता

राज थान भारतीय इितहास के राजनीितक उथल-पुथल से बहत


ु समय तक बचा रहा है अत: यह अपनी
ाचीनता, कला मकता तथा मौिलकता को बहत
ु हद तक संजोए रखने म दसरे
ू जगह के अपे ाकृत
यादा सफल रहा है । इसके अलावा यहाँ का शासक वग भी सदै व से कला ेमी रहा है । उ होने राज थान
को वीरभूिम तथा यु भूिम के अित र ठकथा क सरसता से आ ला वत भूिम' होने का सौभा य भी

n
दान कया। इसक कला मकता म अज ता शैली का भाव दखता है जो िन:संदेह ाचीन तथा यापक
है । बाद म मुगल शैली का भाव पड़ने से इसे नये प म भी वीकृती िमल गई।

रं गा मकता
ee
चटक ले रं गो का योग राज थानी िच कला क अपनी वशेषता है । यादातर लाल तथा पीले रं ग का
ah
चलन है । ऐसे रं गो का योग यहाँ के िच कथा को एक नया व प दे ते है , नई सु दरता दान करते है ।

व वधता
sh

राज थान म िच कला क विभ न शैिलयाँ अपना अलग पहचान बनाती है । सभी शैिलय क कुछ अपनी
वशेषताएँ है जो इ हे दसर
ू से अलग करती है । थानीय िभ नताएँ, व वध जीवन शैली तथा अलग
अलग भौगोिलक प र थितयाँ इन शैिलय को एक-दसरे
ू से अलग करती है । ले कन फर भी इनम एक
तरह का सम वय भी दे खने को िमलता है ।

वषय-व तु

इस कोण से राज थानी िच कला को वशु प से भारतीय िच कला कहा जा सकता है । यह भारतीय
जन-जीवन के विभ न रं गो क वषा करता है । वषय-व तु क व वधता ने यहाँ क िच कला शैिलय को
एक उ कृ व प दान कया। िच कार के वषय-व तु म समय के साथ ह एक िमक प रव न दे खने
को िमलता है । शु के वषय म नायक-नाियका तथा ीकृ ण के च र -िच ण क धानता रह ले कन
बाद म यह कला धािमक िच के अंकन से उठकर व वध भाव को फु टत करती हई
ु सामा जक
जीवन का ितिनिध व करने लगी। यहाँ के िच म आिथक समृ क चमक के साथ-साथ दोन क
कला है । िशकार के िच , हािथय का यु , नत कय का अंकन, राजसी य य के छ व िच , पतंग
उड़ाती, कबूतर उड़ाती तथा िशकार करती हई
ु ि याँ, होली, पनघट व याऊ के य के िच ण म यहाँ के
कलाकार ने पूण सफलता के साथ जीवन के उ साह तथा उ लास को दशाया है ।

बारहमासा के िच म विभ न मह न के आधार पर कृित के बदलते व प को अं कत कर, सूय दय के


रा मवण राग भैरव के साथ वीणा िलए नार ह रण स हत दशाकर तथा संगीत का आल बन लेकर मेघ
का व प बताकर कलाकार ने अपने संगीत- ेम तथा कृित- ेम का मानव- प के साथ प रचय दया है ।
इन िच के अवलोकन से यह प हो जाता है क कथा, सा ह य व संगीत म कोई िभ न अिभ य
नह ं है । कृित क गंध, पु ष का वीर व तथा वहाँ के रं गीन उ लासपूण सं कृित अनूठे ढं ग से अं कत
है ।

ी -सु दरता

n
राज थानी िच कला म भारतीय नार को अित सु दर प म तुत कया गया है । कमल क तरह बड़ -
बड़ आँखे, लहराते हए
ऊँगिलयाँ आ द ी-सु दरता को
ee
ु बाल, पारदश कपड़ो से झाक रहे बड़े -बड़े तन, पतली कमर, ल बी तथा घुमावदार
मुखता से इं िगत करते है । इन िच से ि य ारा यु विभ न
उपल ध सोने तथा चाँद के आभूषण सु दरता को चार चाँद लगा दे ते है । आभूषण के अलावा उनक
विभ न भंिगमाएँ, काय-कलाप तथा े वशेष के पहनावे िच कला म एक वा त वकता का आभास दे ते
ah
है ।
राज थानी िच कला का आर भ

राज थानी िच कला अपनी ाचीनता के िलए जाना जाता है । अनेक ाचीन सा य िन:सदे ह इसके
sh

वैभवशाली आ त व क पु करते ह। जब राज थान क िच कला अपने ारं िभक दौर से गु रह थी तब


अज ता परं परा भारत क िच कार म एक नवजीवन का संचार कर रह थी। अरब आ मण के झपेट
से बचने के िलए अनेक कलाकार गुजरात, लाट आ द ा त को छोड़कर दे श के अ य भाग म बसने लगे
थे। जो िच कार इधर आये थे उ होने अज ता पर परा क शैली को थानीय शौिलय म वाभा वकता के
साथ सम वत कया। उनके त वावधान म अनेक िच पट तथा िच त थ
ं बनने लगे जनम
िनशीथचू ण, ष शलाकापु षच रत, नेिमनाथच रत, कथास र सागर, उ रा ययन सु , क पसू तथा
कालककथा वशेष प से उ लेखनीय ह। अज ता पर परा के गुजराती िच कार सव थम मेवाड़ तथा
मारवाड़ म पहँु चे। इस सम वय से िच कार क मौिलक विध म एक नवीनता का संचार हआ
ु जसे मडोर
ार के गोवधन-धारण तथा बाडौली तथा नागदा गाँव क मूितकला म सहज ह दे खा जा सकता है ।
राज थान क सम वत शैली के त वावधान म अनेक जैन- थ
ं िच त कये गये। शु आती अवधारणा थी
क इ ह जैन साधुओं ने ह िच त कया है अत: इसे ठजैन शैली' कहा जाने लगा ले कन बाद म पता
चला क इन थ
ं को जैने र िच कार ने भी तैयार कया है तथा कुछ अ य धािमक थ
ं जैसे
बालगोपाल तुित, दगास
ु शती, गीतगो वंद आ द भी इसी शैली म िच त कये गये ह तो जैन शैली के
नाम क सभी चीनता म स दे ह य कया गया। जब थम बार अनेक ऐसे जैन थ
ं गुजरात से ा
हए
ु तब इसे ठगुजरात शैली' कहा जाने लगा। ले कन शी ह गुजरात के अलावा प म भारत के अ य
ह स म दखे तब इसे प म भारतीय शैली नाम दया गया। बाद म इसी शैली के िच मालवा,
गढ़मांडू, जौनपुर, नेपाल आ द अप मीय भाग म चुरता से िमलने लगे तब इसके नाम को पुन: बदलने
क आव यकता महसूस क गई। उस समय का सा ह य को अप ंश सा ह य कहा जाता है । िच कला भी
उस काल और व प से अप ंश सा ह य से मेल खाती दखाई दे ती है अत: इस शैली को ठअप ंश शैली'
कहा जाने लगा तथा शैली क यापकता क मयादा क र ा हो सक । इस शैली को लोग चाहे जस नाम
से पुकारे इस बात म कोई संदेह नह ं क इस शैली के िच म गुजरात तथा राज थान म कोई भेद नह ं
था। वागड़ तथा छ पन के भाग म गुजरात से आये कलाकार "सोमपुरा" कहलाते है । महाराणा कु भा के
समय का िश पी मंडन गुजरात से ह आकर यहाँ बसा था। उसका नाम आज भी राज थानी कला म एक
स मािनत थान रखता है । इस शैली का समय ११ वीं शता द से १५ वीं शता द तक माना जाता है ।
इसी का वकिसत प व मान का राज थानी िच कार माना जाता है ।

n
चू क इसका ादभाव
ु अप ंश शैली से हआ
ु है अत: इनके वषय म कोई खास अ तर नह ं पाया जाता पर
वधान तथा आलेखन स बंधी कुछ बात म अ तर है ।
क सवाच म आँख एक च म हो गई तथा आकृित अंकन क
ee ारं िभक राज थानी शैली के
ढब ता से वतं
प म अप ंश शैली
होकर कलाकार ने एक
नई सां कृितक ा त को ज म दया। िच इकहरे कागज के थान पर बसली (कई कागज को िचपका
कर बनाई गई तह) पर अं कत होने लगे। अप ंश के लाल, पीले तथा नीले रं ग के साथ-साथ अ य रं गो
ah
का भी समावेश हआ।
ु वषय-व तु म व वधता आ गई। सामा जक जीवन को िच त कया जाने लगा
ले कन उसक मौिलकता को अ ु ण रखने क कोिशश क गई। दसरे
ू श द म राज थानी शैली अप ंश
शैली का ह एक नवीन प है जो ९ वी.-१० वीं. शती से कुछ वशेष कारणवश अवनित क ओर चली गई
थी।
sh

ारं िभक राज थानी िच क उ कृ ता १५४० ई. के आसपास िच त थ


ं जस म मृगावती, लौरच दा,
चौरपंचािशका तथा गीतगो व द मुख ह, पृ पर अं कत ह। इसके अलावा रागमाला तथा भागवत के पृ
इसक उ कृ ता के प रचायक ह। मालवा के रिसक या (१६३४ ई.) से राज थानी िच कार म राजसी
माण का शु आत हआ।

इन िच के सौदय से मुगल भी भा वत हए।


ु बादशाह अकबर ने कई ह द ु िच कार को अपने शाह
दरबा रय के समुह म स मिलत कया राजपुत से वैवा हत स ब ध था पत हो जाने के कारण दोन के
िच शैिलय म पर पर आदान- दान हआ।
ु राज थानी कलाकार ने मुगल िच से वचा का गुलाबी रं ग
हण कया जो कशनगढ़ शैली म प गोचर होता है ।

दसर
ू तरफ मुगल ने राज थानी शैली क भाँित वा तु का अपने िच म योग कया। इसके अलावा
िच भूिम म गहराई दशाकर नवीन पृ भूिम तैयार कर िच को सुचा प से संयो जत कया। १६ वी.
से १८ वी. व १९ वी. शती तक कला क एक अनुपम धारा सू म िमिनयेचर प म कागज पर अं कत
होती रह । इसके अित र िभ -िच ण पर परा को भी राज थानी कलाकार ने नव-जीवन दया।

हाल के वष म राज थानी श द का इ तेमाल व तृत प रपे म होने लगा है । कुछ व ान के मतानुसार
राज थानी िच कला क सीमारे खा राज थान तक ह सीिमत न रहकर मालवा तथा म य भारत तक फैला
हआ
ु है ।

मारवाड़ शैली

इस शैली का वकास जोधपुर, बीकानेर, नागौर आ द थान म मुखता से हआ।


ु मेवाड़ क भाँित, उसी
काल म मारवाड़ म भी अज ता पर परा क िच कला का भाव पड़ा। तारानाथ के अनुसार इस शैली का
स ब ध ग
ंृ ार से है जसने थानीय तथा अज ता पर परा के सामंज य ारा मारवाड़ शैली को ज म

n
दया।

मंडोर के
यह िस
ार क कला तथा ६८७ ई. के िशवनाग ee ारा िनिमत धातु क एक मूित जो अब पंडवाड़ा म है
करती है क िच कला तथा मूितकला दोन म मारवाड़ इस समय तक अ छ गित कर चुका
था। लगभग १००० ई. से १५०० ई. के बीच इस शैली म अनेक जैन थ
ं को िच त कया गया। इस युग
के कुछ ताड़प , भोजप आ द पर िच त क प सू व अ य थ
ं क ितयाँ जोधपुर पु तक काश
ah
तथा जैसलमेर जैन भंडार म सुर त ह।

इस काल के प ात ् कुछ समय तक मारवाड़ पर मेवाड़ का राजनीितक भु व रहा। महाराणा मोकल के


काल से लेकर राणा सांगा के समय तक मारवाड़ म मेवाड़ शैली के िच बनते रहे । बाद म मालदे व का
sh

सैिनक भु व (१५३१-३६ ई.) इस भाव को कम कर मारवाड़ शैली को फर एक वतं प दया। यह


मालदे व क सैिनक िच क अिभ य , चोखेला महल, जोधपुर क ब लय एवं छ के िच से प
है । इसम ठराम-रावण यु ' तथा ठस शती' के अनेक य को भी िच त कया गया है । चेहर क
बनावट भावपूण दखायी गई है । १५९१ म मारवाड़ शैली म बनी उ रा ययनसू का िच ण बड़ौदा
सं हालय म सुर त है ।

जब मारवाड़ का स ब ध मुगल से बढ़ा तो मारवाड़ शैली म मुगल शैली के त वो क वृ हई।


ु १६१० ई.
म बने भागवत के िच ण म हम पाते है क अजुन कृ ण क वेषभूषा मुगली है पर तु उनके चेहर क
बनावट थानीय है । इसी कार गो पय क वेषभूषा मारवाड़ ढं ग क है पर तु उसके गले के आभुषण
मुगल ढं ग के है । औरं गजेब व अजीत िसंह के काल म मुगल वषय को भी धानता द जाने लगी।
वजय िसंह और मान िसंह के काल म भ रस तथा ग
ंृ ाररस के िच अिधक तैयार कये गये जसम
ठनाथच र ' ठभागवत', शुकनािसक च र , पंचतं आद मुख ह।
इस शैली म लाल तथा पीले रं गो का यापक योग है जो थानीय वशेषता है ले कन बार क कपड़ का
योग गु बद तथा नोकदार जामा का िच ण मुगली है । इस शैली म पु ष व ि याँ गठ ले आकार क
रहती है । पु ष के गलमु छ तथा ऊँची पगड़ दखाई जाती है तथा ि य के व म लाल रं ग के फुदने
का योग कया जाता है । १८ वीं सद से सामा जक जीवन के हर पहलू के िच यादा िमलने लगते है ।
उदाहरणाथ पंचतं तथा शुकनािसक च र आ द म कु हार, धोबी, मजदरू, लकड़हारा, िचड़ मार, नाई,
िभ ती, सुनार, सौदागर, पिनहार , वाला, माली, कसान आ द का िच ण िमलता है । इन िच म सुनहरे
रं ग को योग मुगल शैली से भा वत है ।

कशनगढ़ शैली

जोधपुर से वंशीय स ब ध होने तथा जयपुर से िनकट होते हए


ु भी कशनगढ़ म एक वतं शैली का
वकास हआ।
ु सु दरता क से इस शैली के िच व - व यात ह। अ य थान क भाँित यहाँ भी

n
ाचीन काल से िच बनते रहे । कशानगढ़ रा य के सं थापक कशन िसंह कृ ण के अन योपासक थे।
इसके प ात ् सहसमल, जगमल व पिसंह ने यहाँ शासन कया। मानिसंह व राजिसंह (१७०६-४८) ने यहाँ
ee
क कलाशैली के पु कल सहयोग दया। पर तु कशानगढ़ शैली का समृ काल राजिसंह के पु
िसंह (१६९९-१७६४) से जो नागर दारा के नाम से आिधक व यात ह, से आरं भ होता है । नागर दारा क
साम त

शैली म वै णव धम के ित ा, िच कला के ित अिभ िच तथा अपनी ेयसी ठवणी-ठणी' से ेम का


िच ण मह वपूण है । क व दय साव त िसंह नाियका वणी-ठणी से े रत होकर अपना रा य छोड़ ठवणी-
ah
ठणी' को साथ लेकर वृ दावन म आकर बस गये और नागर उपनाम से नागर स मुचय क रचना क ।
नागर दास क वै णव धम म इतनी ा थी और उनका गाियका वणी ठणी से ेम उस को ट का था क
वे अपने पार प रक ेम म राधाकृ ण क अनुभूित करने लगे थे। उनदोन के िच इसी भाव को य
करते है । िच त सुकोमला वणी-ठणी को ठभारतीय मोनािलसा' नाम से अिभ हत कया गया। का यसं ह
sh

के आधार पर िच के सृजन कर ेय नागर दास के ह समकालीन कलाकार िनहालच द को है । ठवणी-


ठणी' म को कल कंठ नाियका क द घ नािसका, कजरारे नयन, कपोल पर फैले केशरािश के सात
दखलाया गया है । इस कार इस शैली म हम कला, ेम और भ का सवाणीण सामंज य पाते है ।
िनहालच द के अलावा सूरजमल इस समय का मुख िच कार था। अ य शैिलय क तरह इस शैली म
भी ठगीत-गो व द' का िच ण हआ।

इस शैली के चेहरे ल बे, कद ल बा तथा नाक नुक ली रहती है । नार नवयौवना, ल जा से झुका पतली व
ल बी है । धनुषाकार ू-रे खा, खंजन के स श नयन तथा गौरवण है । अधर पतले व हगुली रं ग के ह।
हाथ मेहंद से रचे तथा महावर से रचे पैर है । नाक म मोती से यु नथ पहने, उ च व थल पर
पारदश छपी चु नी पहने प यौवना सौदय क पराका ा है । नायक पारदशक जामे मे खेत ९ मूंिगया
पगड़ पहने ेम का आहवान से करता है । मानव प के साथ कृित भी सफलता से अं कत है । थानीय
गोदोला तालाब तथा कशनगढ़ के नगर को दरू से दखाया जाना इस शैली क अ य वशेषता है । िच
को गुलाबी व हरे छ ंटदार हािशय से बाँधा गया है । िच म दखती वेषभूषा फ खिसयर कालीन है । इन
वशेषताओं को हम वृ क घनी प ावली अ टािलकाओं तथा दरवार जीवन क रात क झां कय , सांझी
के िच ो तथा नागर दास से स ब वृ दावन के िच म दे ख सकते है ।

बीकानेर शैली

मारवाड़ शैली से स बंिधत बीकानेर शैली का समृ प अनूपिसंह के शासन काल म िमलता है । उस
समय के िस कलाकार म रामलाल, अजीरजा, हसन आ द के नाम वशेषत प से उ लेखनीय ह। इस
शैली म पंजाब क कलम का भाव भी दे खा गया है य क अपनी भौगोिलक थित के कारण बीकानेर
उ र दे श से भा वत रहा है । ले कन द ण से अपे तया दरू होने के बाबजूद यहाँ फ वार , दरबार के
दखाव आ द म द ण शैली का भाव िमलता है य क यहाँ के शासक क िनयु द ण म बहत

समय तक रह ।

हाड़ौती शैली/बूद
ं व कोटा शैली

n
राज थानी िच कला को बूद
ं व कोटा िच शैली ने भी अनूठे रं ग से यु विमण संयोजन दान कया है ।
ारं िभक काल म राजनीितक कारण से बूद
है । इस थित को प य करने वाले िच
ee
ं कला पर मेवाड़ शैली का भाव प प से प रल
म रागमाला (१६२५ ई.) तथा भैरवी रािगनी उ लेखनीय
त होता

है ।
ah
इस शैली का वकास राव सुरजन िसंह (१५५४-८५) के समय के आर भ हो जाता है । उ होने मुगल का
भु व वीकार कर िलया था अत: धीरे -धीरे िच कला क प ित म एक नया मोड़ आना शु हो जाता है ।
द पक राग तथा भैरव रािगनी के िच राव रतन िसंह (१६०७-३१) के समय म िनिमत हए।
ु राव रतन
िसंह चू क जहाँगीर का कृ पा पा था, तथा उसके बाद राव माधो िसंह के काल म जो शाहजहाँ के भाव
sh

म था, िच कला के े म भी मुगल भाव िनर तर बढ़ता गया। िच म बाग, फ वारे , फूल क
कतार, तार भर राते आ द का समावेश मुगल ढं ग से कया जाने लगा। भाव िसंह (१६५८-८१) भी का य
व कला ेमी शासक था। राग- रािगिनय का िच ण इनके समय म हआ।
ु राजा अिन के समय द ण
यु के फल व प बूद
ं शैली म द ण कला के त व का स मिलत हआ।
ु बूद
ं शैली के उ नयन म यहाँ
के शासक राव राजाराम िसंह (१८२१-८९) का अभूतपूव सहयोग रहा। बूद
ं महल के ठछ महल' नामक
को म उ होने िभ -िच ो का िनमाण करवाया।

बूद
ं िच म पटोला , नुक ली नाक, मोटे गाल, छोटे कद तथा लाल पीले रं ग क ाचुयता थानीय
वशेषताओं का ोतक है जब क गु बद का योग और बार क कपड़ का अंकन मुगली है । ि य क
वेशगुषा मेवाड़ शैली क है । वे काले रं ग के लहगे व लाल चुनर म ह। पु षाकृितयाँ नील व गौर वण म
-पु ह, दाढ़ व मूँछो से यु चेहरा भार िचबुक वाला है । वा तुिच ण कृित के म य है । घुमावदार
छत रय व लाल पद से यु वातायन बहत
ु सु दर तीत होते ह। केल के कुज अ तराल को समृ करते
ह।
बूद
ं िच का वैभव िच शाला, बड़े महाराज का महल, दग बर जैन गं दर, बूद
ं कोतवाली, अ य कई
हवेिलय तथा बाव ड़य म बखरा हआ
ु है ।

कोटा म भी राजनीितक वतं ता से नवीन शैली का आर भ होता है । व लभ स दाय जसका भाव


यहाँ १८ वीं शती के ार भक चरण म पड़ा, म राधा कृ ण का अंकन वशेष प से हआ।
ु पर तु कोटा
शैली अपनी वतं अ त व न रखकर बूद
ं शैली का ह अनुकरण करती है । उदाहरणाथ जािलम िसंह क
हवेली म िच त नाियका हू-ब-हू बूद
ं नाियका क नकल कह जा सकती है । आगे चलकर भी कोटा शैली
बूद
ं शैली से अलग न हो सक । कोटा के कला ेमी शासक उ मेद िसंह (१७७१-१८२०) क िशकार म
अ यिधक िच थी अत: उसके काल म िशकार से स ब िच अिधक िनिमत हए।
ु आ ामक चीता व
राजा उ मेद िसंह का िशकार करते हए
ु िच बहत
ु सजीव है । िच म कृित क सधनता जंगल का
भयावह य उप थत करती है । कोटा के उ म िच दे वताजी क हवेली, झालाजी क हवेली व राजमहल

n
से ा होते ह।

ढू ं ढ़ार शैली / जयपुर शैली ee


जयपुर शैली का वकास आमेर शैली से हआ।
ु मुगल शैली के भाव का आिध य इस शैली क वशेषता
है । जयपुर के महाराजाओं पर मुगल जीवन तथा नीित क छाप वशेष प से रह है । अकबर के आमेर के
ah
राजा भारमल क पु ी से ववाहोपरा त स ब ध म और गाढ़ता आयी।

शु आती िच पर परा भाऊपुरा रै नबाल क छवर , भारभल क छवर (कािलयादमन, म लयो ा), आमेर
महल व वैराट क छत रय म िभ य पर (वंशी बजाते कृ ण) तथा कागज पर ा होती है । बाद म
sh

राजा जयिसंह (१६२१-६७) तथा सवाई जयिसंह (१६९९-१७४३) ने इस शैली को य दया। राजा सवाई
जयिसंह ने अपने दरबार म मोह मद शाह व सा हबराम िचतेरो को य दया। इन कलाकार ने सु दर
य , िच व पशु-प य क लड़ाई स बंधी अनेक बड़े आकार के िच बनाए। सवाई माधो िसंह थम
(१७५०-६७) के समय म अलंकरण म रं ग न भरकर मोती, लाख व लक ड़याँ क म णय को िचपकाकर
िच ण काय हआ।
ु इसी समय माधोिनवास, िससो दनी महल, गलता मं दर व िसट पैलेस म सु दर िभित
िच का िनमाण हआ।
ु सवाई ताप िसंह (१७७९-१८०३) जो वयं पु माग क व थे, के समय म कृ ण
लीला, नाियका भेद, राग-रािगनी, ॠतुवणन, भागवतपुराण, दगास
ु सती से स बंिधत िच सृ जत हए।

महाराज जगतिसंह के समय म पु डर क हवेली के िभ िच , व - िस ठकृ ण का गोवधन-धारण'
नामक िच रासम डल के िच का िनमाण हआ।
ु पोथीखाने के आसावर रािगणी के िच व उसी मंडल
के अ य राग के िच म थानीय शैली क धानता दखाई दे ती है । कलाकार ने आसावर रािगणी के
िच म शबर के केश , उसके अ प कपड़ , आभूषण और च दन के वृ के िच ण म जयपुर शैली क
वा त वकता को िनभाया है । इसी तरह पोथीखाना के १७ वीं शता द के ठभागवत' िच म जो लाहोरे के
एक ख ी ारा तैयार करवाये गये थे, थानीय वशेषताओं का अ छा द दशन है । १८ वीं शाता द क
ठभागवत' म रं ग क चटक मुगली है । िच म ा रका का िच ण जयपुर नगर क रचना के आधार पर
कया गया है और कृ ण-अजुन क वेषभूषा मुगली है । १९ वीं शता द के उ राध म जयपुर शैली पर
पा ा य भाव पड़ना शु हो जाता है । जयपुर शैली के िच गाितमय रे खाओं से मु , शा त दायक वणा
म अं कत है । आकृितयाँ क भरभार होते हए
ु भी चेहरे भावयु है । मुगल भाव से िच म छाया, काश
व परदा का मु योग हआ
ु है । आकृितयाँ सामा य कद क ह। आभूषण म मुगल भाव प दखायी
दे ता है । ि य क वेशभूषा म भी मुगल भाव प है । उनके अधोव म घेरदार घाघरा ऊपर से बाँधा
जाता है और पायजामा तथा छोट ओढ़नी पहनाई जाती है जो मुगल पर परा के अनुकूल है । पैरो म
पायजेब व जुितयाँ है । चेहर को िचकनाहट और गौरवण फारसी शैली के अनुकूल है । वह अपने भाव मोटे
अधर से य करती है । पु ष के िसर पर पगड़ ,घेरदार चु नट जामा, ढ़ ली मोर के पाजाम, पैर म
ल बी नोक क जूितयाँ ह।

आज भी जयपुर म हाथी-दाँत पर लघु िच व बारह-मासा आ द का िच ण कर उसे िनयात कया जाता

n
है । िभ िच ण परं परा भी अभी अ त व म है ।

अलवर शैली ee
यह शैली मुगल शैली तथा जयपुर शैली का स म ण माना जा सकता है । यह िच औरं गजेब के काल से
लेकर बाद के मुगल कालीन स ाट तथा क पनी काल तक चुर सं या म िमलते ह। जब औरं गजेब ने
ah
अपने दरबार से सभी कला मक वृ य का ितर कार करना शु कया ते राज थान क तरफ आने वाले
कलाकार का थम दल अलवर म आ टका, य क क मुगल दरबार से यह िनकटतम रा य था। उस
े म मुगल शैली का भाव वैसे तो पहले से ह था, पर इस थित म यह भाव और भी बढ़ गया।
sh

इस शैली म राजपूती वैभव, वलािसता, रामलीला, िशव आ द का अंकन हआ


ु है । न कय के िथरकन से
यु िच बहतायक
ु म िनिमत हए।
ु मु य प से िच ण काय ोल व हाथी-दाँत क प टय पर हआ।

कुछ व ान ने उपयु शैिलय के अित र कुछ अ य शौिलय के भी अ त व को वीकार कया है । ये
शैिलयाँ मु य तथा थानीय भाव के कारण मु य शैिलयाँ से कुछ अलग पहचान बनाती है ।

आमेर शैली

अ य दे शी रयासत से आमेर का इितहास अलग रहा है । यहाँ क िच कार म तुक तथा मुगल भाव
अिधक द खते है जो इसे एक वतं थान दे ती है ।

उ णयारा शैली

अपनी आँख क खास बनावट के कारण यह शैली जयपुर शैली से थोड़ अलग है । इसम आँखे इस तरह
बनाई जाती थी मानो उसे त वीर पर जमा कर बनाया गया हो।

डू ं गरपूर उपशैली

इस शैली म पु ष के चेहरे मेवाड़ शैली से ब कुल िभ न है और पंगड़ का ब धेज भी अटपट से मेल


नह ं खाता। ि य क वेषभूषा म भी बागड़ पन है ।

दे वगढ़ उपशैली

दे वगढ़ म बड सं या म ऐसे िच िमले ह जनम मारवाड़ और मेवाड़ कलम का समावेश है । यह

n
िभ नता वशेषत: भौगोिलक थित के कारण दे खी गई है ।

भारतीय रा ीय आ दोलन म राज थान क भूिमका ee


१८५७ ई० के व लव म राज थान के राजा - महाराजाओं ने अं ेज का सहयोग कया था। अत: अं ेज
ने राज थानी शासक क सहायता से वप व को िनममतापूवक कुचल दया। इतना होने पर भी टश
ah
वरोधी भावनाएँ नह ं कुचली जा सक ं। व लव क समाि के बाद सुधार के नाम पर पोिल टकल एजे ट
ने राज थानी शासक के साथ आ त रक मामल म ह त ेप करना आर भ कर दया , जसके ग भीर
प रणाम हए।
ु व लव के बाद राज थान के शासक ने अपने - अपने रा य म शासिनक, सामा जक
और आिथक सुधार कए और अं ेजी िश ा का सार कया, जसके कारण राज थान म राजनीितक
sh

चेतना जागृत हई।


ु इस राजनीितक जागृित के वकास म वामी दयान द सर वती का योगदान
अ व मणीय रहा। १८८३ ई० म वामी दयान द ने उदयपुर म परोपका रणी सभा क थापना क , जो
कुछ समय बाद अजमेर थाना त रत कर द गई। इसके सद य म शाहपूरा का शासक, उदयपुर के
द वान यामजी कृ ण वमा और महादे व गो व द रानाडे मुख थे। वामी दयान द ने १८६५ ई० म
राज थान क या ा के दौरान शासक से जो बातचीत क , उसम मु यत: चार बात पर बल दया गया -
वधम, वरा य, वदे शी और वभाषा। वामी जी क िश ाओं से राज थान म राजनीितक चेतना का
वकास हआ
ु तथा टश वरोधी भावनाओं का ादभाव
ु हआ।

१८८५ ई० म भारतीय रा ीय कां ेस क थापना हई


ु , जसने भारत के रा ीय आ दोलन का नेतृ व कया
था। धीरे - धीरे कां ेस का भाव राज थान म बढ़ने लगा, तो १८८७ म राजक य महा व ालय अजमेर के
कुछ छा ने िमलकर एक कां ेस कमेट क थापना क । १८८८ ई०म कां ेस का जो इलाहाबाद ( याग)
म अिधवेशन हआ
ु , उसम पहली बार अजमेर का ितिनिध व गोपीनाथ माथुर और कृ णलाल ने कया।
इस समय राज थान म प का रता भी आर भ हई।
ु उदयपुर म 'स जन क ित, सुधारक' नामक समाचार
प कािशत हआ
ु जो पा क था। १८८५ म अजमेर से 'राज थान टाइ स' और उसका ह द सं करण
'राज थान प का' का काशन आर भ हआ।

इन समाचार प ने जनता म रा ीय चेतना जागृत करने म अ छा योगदान दया। प रणाम व प दो वष
बाद ह टश सरकार ने इन दोन समाचार प के काशन पर ितब ध लगा दया। इसके स पादक
ब शी ल मणदास पर मुकदमा चलाकर डे ढ़ वष के कारावास क सजा द गई। १८८९ ई० म मु शी
समरथदास चारण ने 'राज थान समाचार 'का काशन शु कया।
राज थान म अजमेर प का रता का के बना और राज थान क जनता म रा ीय चेतना जागृत करता
रहा। दभा
ु य से राज थानी शासक ने राज थान क जनता म राजनीितक जागृित को पस द नह ं कया।
उ ह यह भय था क राजनीितक जागृित का वकास होने पर उनके रा य क जनता भी अिधकार क
मांग करे गी, जससे उनके िनरं कुश शासन को खतरा उ प न हो जाएगा।
राज थान म वदे शी आ दोलन

n
१९०५ ई० म लाड कजन ने बंगाल का वभाजन कर दया। इस वभाजन के व रा ीय आ दोलन उठ
खड़ा हआ।
ु इस आ दोलन के दौरान वदे शी योग और वदे शी व तुओं का ब ह कार कया गया। इस
कार बंगाल वभाजन के व
राज थान म
जो ee
वदे शी आ दोलन आर भ हआ
ु , उससे राज थान अछूता नह ं रहा।
वदे शी आ दोलन का आर भ िसरोह , डू ं गरपूर और मेवाड़ म हआ।
ु िसरोह म 'स प सभा'
नामक एक सं था था पत क गई। वामी गो व दिगर के नेतृ व म वदे शी व तुओं का ब ह कार कया
गया और नाग रक से शराब छोड़ने और अपने राजनीितक अिधकार के िलए संधष करने का आ वान
ah
कया।स प सभा क गित विधय से टश सरकार का िच तत होना वाभा वक था। अत: १९०८ म
टश सरकार ने एक आदे श जार कर स प सभा को गैरकानूनी घो षत कर दया और राज थानी
शासक से कहा गया क वे अपने - अपने रा य म वदे शी आ दोलन को कुचल द। फल व प सभी
शासक ने अपने - अपने रा य म आदे श जार कये क कसी कार के ा तकार संगठन म शािमल
sh

होना या ा तकार सा ह य पढ़ना या रखना बना सरकार के अनुमित के कसी भी सावजिनक सभा म
उप थत होना द डनीय अपराध है । यह नह ं, आय समाज के सा ह य को भी ज त करने के आदे श जार
कये गये। राज थान के सम त रा य म टश वरोधी चार पर ितब ध लगा दया गया। इस कार
सरकार क दमन कार नीित के फल व प आ दोलन समा हो गया।
राज थान म ा तकार आ दोलन
विभ न कार के ितब ध के बावजूद राज थान म ा तकार आ दोलन प ल वत होने लगा। उ र
भारत म कायरत अनेक ा तकार दल से राज थान के ा तका रय का स ब ध था। यामजी कृ ण
वमा, वामी दयान द सर वती के िश य थे। उ ह ने आ◌ॅ सफोड व व ालय म बी० ए० क पर ा पास
कर अजमेर म वकालत शु क और बाद म वे मेवाड़ रा य के द वान िनयु हए।
ु यामजी कृ ण वमा
महान ् ा तकार थे और वरा य तथा वदे शी व तुओं के क टर समथक थे। १८९७ म महारा के पूना
नगर म दो अं ेज अिधका रय - रे ड एवं आय टर ् क ह या करके दामोदर चापलेकर ने ा त क
बगुल बजा दया था। सरकार को यह स दे ह था क इस घटना म यामजी कृ ण वमा का भी हाथ था।
क तु वे कसी तरह बचकर इं लै ड पहँु च गये, जहाँ उ ह ने 'इ डया हाऊस' क थापना क और
ा तकार गित विधय का संचालन कया। इस कार उ ह ने राज थान म ा तकार आ दोलन क
आधारशीला रखी। राज थान म ा तका रय का नेतृ व अजुनलाल सेठ , केसर िसंह बारहठ और राव
गोपालिसंह ने कया।
अजुनलाल सेठ
अजुनलाल सेठ का ज म ९ िसत बर, १८८० ई० को जयपुर म एक जैन प रवार म हआ
ु था। १९०२ म
उ ह ने इलाहाबाद से बी० ए० क पर ा पास क । इसके बाद वह चौमू के ठाकुर दे वीिसंह के िश क
िनयु हए।
ु इसके बाद उ ह ने लोग को राजनीितक िश ा दे ने के िलए जयपुर म व मान व ालय क
थापना क । य प से वह एक धािमक व ालय था, क तु वा तव म यहाँ ा तका रय को
िश ण दया जाता था। इस व ालय म न केवल राज थान से, ब क दे श के अ य भाग से भी
ा तकार िश ण लेने आते थे। धीरे - धीरे अजुनलाल सेठ का कूल राज थान म ा तका रय क
गित विधय का अ डा बन गया। ा तकार आ दोलन को चलाने के िलए धन क आव यकता थी। अत:
अजुनलाल सेठ ने मुगल सराय थत एक धनी महं त क ह या कर उसका धन ा करने क योजना

n
बनाई। सेठ ने व मान व ालय के िश क व णुद के नेतृ व म चार व ािथय को बनारस भेजा। इस
दल ने २० माच, १९१३ ई० को मह त और उसके नौकर क ह या कर द , ले कन दभा
ु य से उनके हाथ

उनम से एक छा
ee
कुछ भी नह ं लगा। ह याका ड म भाग लेने वाले सभी ा तका रय को िगर तार कर िलया गया और
मोतीच द को फाँसी दे द गयी और व णुद को आजीवन कारावास क सजा द गई।
सबूत के अभाव म सेठ को िगर तार नह ं कया जा सका।
२३ दस बर, १९१२ को भारत के गवनर जनरल लाड हा कडग का जुलूस द ली म जब चाँदनी चौक से
ah
गुजरा, तभी उस पर बम फका गया। सामा यत: यह माना जाता है क बम फकने वाले िस
ा तकार रास बहार बोस थे, क तु वा तव म यह बम राज थान के ा तकार ठाकुर जोरावरिसंह
बारहठ ने बुका ओढ़कर चाँदनी चौक म थत मारवाड़ लाइ ेर से फका था। हा कडग बमका ड के
िसलिसले म जो य ब द बनाये गये, उनम राज थान के मुख ा तकार बाल मुकु द, मोतीच द
sh

और व णुद भी थे। इस मुकदमे म मुख बर ी अमीरच द ने अपनी गवाह दे ते समय यह रह यो ाटन


कया क षडय क योजना अजुनलाल सेठ के ारा तैयार क गई थी। अत: सेठ को िगर तार कर
िलया गया। सेठ के खलाफ कोई सबूत न िमलने से उ ह सजा तो नह ं द जा सक , फर भी बना
मुकदमा चलाये सेठ को जेल म ब द रखा गया। बाद म ५ अग त, १९१४ ई० को जयपुर महाराजा के
आदे श से उ ह पाँच वष के कारावास क सजा दे द गई। सरकार को भय था क जयपुर जेल म सेठ क
उप थती से जयपुर क शा त और यव था खतरे म पड़ सकती है , इसिलये सेठ को बे लोर (म ास)
जेल म भेज दया गया।
वहाँ उ ह ने राजनीितक कै दय के साथ कये जाने वाले द ु यवहार के खलाफ ७० दन क भूख हड़ताल
रखी। १९२० म जब राजनीितक ब दय को मादान दया गया, तो सेठ को भी मु कर दया गया।
जेल से मु होने के बाद ी सेठ का काय थल अजमेर हो गया। यहाँ उनके पास िस ा तकार
च शेखर आजाद और उनके दल के लोग मागदशन के िलए आया करते थे। सेठ ने मेरठ ष य का ड
के अिभयु शौकत उ मानी और काकोर केस के फरार अिभयु अशफाक उ ला खाँ को अपने यहाँ शरण
द थी। गाँधीवाद - खाद वाद कां ेिसय के ष य के कारण वे कां ेस से अलग हो गये। उनक आिथक
थित बड़ खराब थी। अत: उ ह ने अपना जीवन िनवाह करने के िलए अजमेर म ह वाजा मोइनु न
िच ती क दरगाह म मुसलमान ब च को अरबी, फारसी पढ़ाना आर भ कर दया और वह ं २३ दस बर
क , १९४१ ई० को उनका दे हा त हो गया। दरगाह के लोग ने उ ह मुसलमान समझकर क म दफना
दया। व तुत: राज थान म राजनीितक चेतना जागृत करने वाल म अजुनलाल सेठ अ ग य माने जा
सकते ह।
केसर िसंह बारहठ
केसर िसंह बारहठ का ज म २१ नव बर, १८७२ ई० म कोटा म एक ित त चारण प रवार म हआ
ु था।
इनके पता का नाम कृ णिसंह था, जो उदयपुर रयासत के म ी थे। केसर िसंह पर वामी दयान द
सर वती के वचार का बड़ा भाव पड़ा। फर भी उनका स पक अजमेर म यामजी कृ ण वमा से हआ
ु ,
जो ा तकार वचार के थे। केसर िसंह, वयं सं कृत, योितष, वेदा त, इितहास एवं राजनीित के
उ चकोट के व ान थे और डं गल तथा खड़ बोली म अ छ का य रचना करते थे। उ ह ने कोटा म एक
ा तकार दल क थापना क ; जनम डॉ० गु द ल मीनारायण और ह रालाल लहर मुख थे। केसर

n
िसंह क इ छा थी क वरा य ाि के िलए बंगाल क गु ा तकार सिमितय क भाँित राज थान
म भी ा तकार संगठन क थापना क जाये, ले कन इस कार के संगठन के िलए धन क
आव यकता थी। अत: डकैती एवं ह या ee
ारा धन ा करने क योजना बनाई गई। जोधपुर के धिनक
यारे लाल साधु को ब नाथ क या ा के बहाने कोटा लाया गया और २५ जून, १६१२ ई० को उसक ह या
कर द गई। पुिलस इस स ब ध म कसी भी ा तकार को न पकड़ सक , ले कन रामकरण ारा
केसर िसंह को गु भाषा म िलखा हआ
ु प पुिलस के हाथ लग गया। फलत: केसर िसंह बारहठ, ह रालाल
ah
ला हर , रामकरण और ह रालाल जालोर आ द को ब द बनाकर मुकदमा चलाया गया। केसर िसंह,
ह रालाल ला हर और रामकरण को २० - २० वष के कारावास क सजा द गई, जब क एक अ य
ा तकार ह रालाल जालोर को ७ वष कारावास का द ड दया गया।
केसर िसंह का पु तापिसंह भी िस ा तकार था। तापिसंह ने भारत सरकार के गृह सद य
sh

ं ◌ैडोक क ह या करने क योजना बनाई, क तु िन त समय पर ं ◌ैडोक के न पहँु चने के कारण यह


योजना सफल न हो सक । तापिसंह के नाम िगर तार का वार ट िनकल गया, ले कन वह है दराबाद
चला गया और एक अ पताल म क पाउ डर बन गया। पर तु पुिलस भय से पुन: राज थान आ गया,
क तु जोधपुर के पास आसानाडा टे शन पर टे शन मा टर ने उ ह धोखे से पकड़वा दया। तापिसंह को
पकड़कर टश सरकार का गु चर वभाग बहत
ु स न हआ।
ु उनको बरे ली जेल म रखा गया। बरे ली जेल
म गु चर वभाग के िनदे शक लीवलै ड ने तापिसंह को भाँित-भाँित के लोभन दये और ा तकार
दल का भेद जानने क कोिशश क । इतना ह नह ं तापिसंह को तरह-तरह क यातनाएँ भी द ग ,
पर तु तापिसंह टस से मस नह ं हआ।
ु िनदयी अं ेज सरकार ने उ ह सता-सता कर मार डाला, पर तु
ा तका रय के स ब ध म कंिचत भेद भी न जान सक । केसर िसंह को हजार बाग ( बहार) जेल म
रखा गया। बाद म कोटा लाया गया। १९१९ म अ य राजनीितक ब दय के साथ केसर िसंह को भी जेल
से मु कर दया गया। राज थान म जागृित उ प न करने वाल म केसर िसंह बारहठ का नाम आज भी
ा से िलया जाता है ।
राव गोपालिसंह
अजमेर - मेरवाड़ा म खरवा ठकाने के राव गोपालिसंह राज थान के ा तकार आ दोलन से घिन प
से स ब धत थे। कृ णा िम स िल० यावर के सेठ दामोदर राठ उनके सहयोगी थे और वे ा तका रय
को आिथक सहायता दे ते थे। राव गोपालिसंह, भूपिसंह (जो बाद म वजयिसंह पिथक के नाम से िस
हआ
ु ) क सहायता से ा तका रय के िलये अ - श क यव था करते थे। राव गोपालिसंह का बंगाल
के िस ा तकार रास बहार बोस तथा केसर िसंह से भी स पक था। कोटा के साधु ह याका ड के
िसलिसले म सरकार को इस ा तकार दल के बारे म जानकार िमली थी। इस समय एजे ट गवनर ने
राव को ा तकार दल से दरू रहने क चेतावनी द , पर तु राव पर इस चेतावनी का कोई भाव नह ं
पड़ा। थम व यु के दौरान रास बहार बोस और सतीशच सा याल ने उ र भारत म सश ा त
क योजना बनाई थी, राव गोपालिसंह उस योजना से घिन प से स ब धत थे। इस योजनाके अनुसार
यह िन य कया गया क मु तान, लाहौर एवं मेरठ के सैिनक रास बहार बोस क सहायता करगे और
जोधपुर तथा बीकानेर के सैिनक रामगोपाल िसंह के नेतृ व म अजमेर पर आ मण कर दगे, ले कन
ा तका रय के एक सहयोगी मा ण यलाल ने इस योजना क सूचना पुिलस को दे द । अत: योजना

n
वफल हो गई।
टश सरकार ने २६ जून, १९१५ को राव गोपालिसंह को २४ घ टे के अ दर - अ दर खरवा छोड़ने को
ee
आदे श दया और यह भी कहा क टाडगढ़ पहँु चने पर ३६ घ टे के अ दर अपने आने क सूचना
तहसीलदार को दे । यह आदे श दया गया क टाडगढ़ िनवास के दौरान बना तहसीलदार क अनुमित के
वह कसी भी य से स पक नह ं कर सकगे और उनके सभी प उ ह तहसीलदार के ारा दये
जायगे। दन म एक बार तहसीलदार के सम उप थत होना पड़े गा। इतना ह नह ं, वे बना तहसीलदार
ah
क अनुमित के टाडगढ़ क सीमा से बाहर नह ं जा सकगे। इस आदे श के िमलने पर राव गोपालिसंह
टाडगढ़ के िलये रवाना हए।
ु रवाना होते समय उ ह ने अपने पु गणपतिसंह को यह बहमू
ु य सीख द
क - "अपने दे श के ित वफादार रहना"।
१० जुलाई, १९१५ को राव गोपालिसंह टाडगढ़ के कले से भाग िनकले। अग त १९१५ म कशनगढ़ के पास
sh

सलामाबाद म पुिलस ने उ ह िगर तार करने का य कया, तो उ ह ने कड़ा मुकाबला कया। १९


अग त, १९१५ को सलामाबाद के एक िशव म दर म राव ने पुिलस के सम आ म - समपंण कर दया।
राव ने इस आ ासन पर आ म - समपंण कर दया क उ ह राजनीितक अिभयु माना जायेगा। इसके
बाद राव गोपालिसंह को दो वष के कारावास का द ड दया गया और कुछ समय बाद उ ह शाहजहाँपरु
( बहार) थत जेल म भेज जया गया। राव गोपालिसंह वत ता के अन य ेमी थे। वे हर दे श के
िलये हर कार का याग और बिलदान करने को तैयार थे। सरकार ने उनक जागीर खरवा को ज त कर
िलया, ले कन उ ह ने अपने जीवनकाल म सरकार के सामने अपना िसर कभी नह ं झुकाया।
रामनारायण चौधर
अजमेर के रामनारायण चौधर भी राज थान के ा तकार आ दोलन से घिन प से स ब धत थे,
जनका भारत के गृह सद य ं ◌ैडोक क ह या क असफल योजना म हाथ था। तापिसंह बारहठ
भागकर है दःराबाद (िस ध) गये। पुिलस उनके पीछे पड़ हई
ु थी, तब रामनारायण चौधर उ ह सुर त
थान पर लाने के िलये िस ध क ओर रवाना हए।
ु तापिसंह बारहठ वहाँ से राज थान आये और जोधपुर
के िनकट आसानाड़ा के टे शन मा टर से िमलने के िलये ठहर गये य क वह उ ह ं के दल का सद य
था। जस समय तापिसंह आसानाड़ा रे लवे टे शन पहँु चे, तभी यह तय कया गया क रामनारायण चौधर
बीकानेर म उनक ती ा करे गा। जब तापिसंह बारहठ बीकानेर नह ं पहँु चे, तो रामनारायण चौधर ने
टे शन मा टर को एक प िलखा। यह प पुिलस के हाथ पड़ गया और सी० आई० ड ० इ सपै टर
मगनराज यास पुिलस को लेकर चौधर को िगर तार करने के िलए बीकानेर पहँु चे। रामनारायण चौधर
पुिलस क िनगाह से बचकर जयपुर पहँु च गये और साँभर के कृ ण सोढ़ानी नामक एक ा तकार के
साथ गु प से रहने लगे। जब तापिसंह को पाँच वष क सजा दे द गई, तो रामनारायण चौधर अपने
िनवास थान नीम का थाना लौट आये, ले कन सी० आई० ड ० इ सपै टर मगनराज यास को गोली से
मारने क योजना बनाई, जो सफल नह ं हो सक । इसके बाद रामनारायण चौधर रामगढ़ शेखावट के एक
िम डल कूल म अ यापक हो गये और वहाँ ा तकार दल संग ठत कया। रामनारायण चौधर आजीवन
वत ता सं ाम के एक आदश यो ा रहे ।

n
दग
ु का राज थान के प र े य म एक प रचय

भारतवष म ऐसे दो ह रा य ह जहां पग-पग पर दग


ee
ु िमलते ह। ये दो रा य राज थान और महारा है ।
य द हम राज थान के एक ह से से दसरे
ू भाग म पदया ा कर तो हम लगभग येक १० मील के बाद
कोई न कोई दग
ु अव य िमल जाएगा। दग
ु को कले के नाम से भी जाना जाता है । चाहे राजा हो या
ah
सामंत, वह दग
ु को अिनवाय मानता था। राजा अथवा सामंत दग
ु का िनमाण साम रक, शासिनक एवं
सुर ा क से कराते थे। दग
ु म सामा यत: राजा व सेिनक रहते थे तथा आम जनता दग
ु के बाहर
ब तय म। मूलत: इन दग
ु का िनमाण राजा अपने िनवास के िलए, साम ी सं ह के िलए, आ मण के
समय अपनी जा को सुर त रखने के िलए, पशुधन को बचाने के िलए तथा संपित को िछपाने के िलए
sh

कया करते थे।


राज थान म दग
ु के िनमाण का इितहास काफ पुराना है जसके माण कालीबंगा क खुदाई म ा हए

ह। मुसलमान के आगमन तक पहाड़ पर दग
ु का िनमाण शु हो चुका था। अजयपाल ने अजमेर म
तारागढ़ का दग
ु बनवाकर इस ओर एक मह वपूण कदम उठाया। ये दग
ु ऊँची और चौड़ पहा ड़य पर
बनते थे जनम खेती भी हो सकती थी। कले के ऊँचे भाग पर मं दर एवं राज साद बनाए जाते थे। दग

के िनचले भाग म तालाब व समतल भूिम पर खेती होती थी। दग
ु के चारो तरफ ऊँची एवं चौड़ द वार
बनाई जाती थी। आप के समय के िलए बड़े -बड़े भंडार गृह बनाये जाते थे जनम अनाज जमा कया जा
सके।

दग
ु के िनमाण म राज थान ने भारतीय दगकला
ु क परं परा का िनवाह कया है । िनमाण कला क
से दग
ु को अलग-अलग वग म वग कृत कया गया है । अथात अलग-अलग उ े य क पूित के िलए
विभ न कार के दग
ु का िनमाण होता है । इन विभ न कार के दग
ु का उ लेख करते हए
ु कौ ट य ने
छ: कार के दग
ु बताए है । उसने कहा है क राजा को चा हए क वह अपने रा य क सीमाओं पर यु
क से दग
ु का िनमाण करे । रा य क र ा के िलए "औ दक दग
ु " (पानी के म य थत दग

अथवा चार ओर जल यु नहर के म य थत दग
ु ) व पवत दग
ु अथवा िग र दग
ु (जो कसी पहाड़ पर
थत हो) का िनमाण कया जाय। आपातकालीन थित म शरण लेने हे तु "ध वन दग
ु " (रे िग थान म
िनिमत दग
ु ) तथा वन दग
ु (व य दे श म थत) का िनमाण कया जाय। इसी कार मनु मृित तथा
माक डे य पुराण म भी दग
ु के ाय: इ ह ं कार क चचा क गई है । राज थान के शासक एवं सामंतो
ने इसी दग
ु परं परा का िनवाह कया है ।

मारवाड़ के दग
ु और सुर ा यव था

७वीं शता द तक राज थान म अनेक राजपूत राजवंश का उदय हआ।


ु इनम मुख राजवंश गहलोत,
ितहार, चौहान, भाट , परमार, सोलंक , तंवर और राठौड़ आ द थे। इन वंश क राजधािनयां सु ढ़ दग
ु म
थीं। इनके सीमा दे श क पहा ड़याँ भी ाय: व वध कार के दग
ु म सुर त थीं।

n
राज थान का व तृत भू-भाग ाचीनकाल म नागबंशीय राजपूत के आधीन था। नागौर दग
ु के िनमाता
नागबंशी य थे। िनकु भ सूयवंशी
म इनका राज थान म वेश हआ।

ee
य थे और वयं को इ वाकु क संतान मानते थे। १३वीं शता द
इ ह ने अपनी भूिम क र ाथ सु ढ़ दग
ु का िनमाण करवाया। इनका
सव म दग
ु अलवर है ।
ah
तेरहवीं शता द के बाद राज थान म दग
ु बनाने क पर परा ने एक नवीन मोड़ िलया। इसकाल म ऊँची-
ऊँची पहा ड़याँ, जो ऊपर से चौड़ थीं और जसम कृ ष तथा िसंचाई के साधन उपल ध थे, कले बनाने के
उपयोग मे लायी जाने लगीं। नवीन दग
ु के िनमाण के साथ ह ाचीन दग
ु का भी नवीनीकरण करवाया
जाने लगा। िच ौड़, आबू, कु भलगढ़, मा डलगढ़ आ द थान के पुराने कल को म ययुगीन थाप य
sh

कला के आधार पर एवं नवीन यु शैली को यान म रखकर पुनिनिमत करवाया गया। महराणा कु भा ने
िच ौड़ दग
ु क ाचीर, वेश- ार एवं बुजाç को अिधक सु ढ़ बनवाया। कु भलगढ़ दग
ु के भीतर ऊँचे से
ऊँचे भाग का योग राज साद के िलए तथा नीचे के भाग को जलाशय के िलए यु कया गया।
कु भलगढ़ दग
ु के चार ओर द वार चौड़ एवं बड़े आकार क बनवाई गई। जन दग
ु म जलाशय के िलए
यव था नह ं थी, वहां पानी के कृ म जलाशय बनवाये गये। म यकाल के राजपूत सै य- बंध म दग

का वशेष मह व था। येक राजपूत राजा कले और गढ़ बनवाने म पूर िच लेता था। ये दग
ु सैिनक
के तो होते ह थे, साथ ह साथ इनम राजा का िनवास थान भी होता था। ितहार नरे श कले
बनवाने म और उनक साम रक मह ा पहचानने म बहत
ु कुशल थे। जालौर, म ड़ोर तथा वािलयर दग

इसके माण ह। चौहान के तारागढ़, हांसी, िसरसा, समाना, नागौर, िसवाना तथा नाडौल के दग
ु इसके
सा ी ह क चौहान शासक भी दग
ु एवं उनक साम रक मह ा के ित सजग थे।

चालु य के दग
ु चौहान के स मान साम रक मह व के नह ं थे। उनके दग
ु पहा ड़य पर बनाए गए थे
और उनके चार ओर खाइयां हआ
ु करती थीं। ये दग
ु बहत
ु यादा ल बे, चौड़े भू-भाग पर बनाये जाते थे।
अजयगढ़, मिनयागढ़, कािलंजर, महोबा एवं नार गढ़ आ द चंदेल राजाओं के मुख दग
ु थे। जब तक
प लेदार तोप का अ व कार नह हआ
ु था और उसके ारा आधा कोस क दरू से मारकर दग
ु क ाचीर
एवं तटबंध को धराशायी नह कया जा सकता था। तब तक ये दग
ु राजपूत सै य श एवं बंध क
से मह वपूण बने रहे और आ मणकार ऐसे दग
ु को धोखे के बल पर ह जीत पाए।

म ड़ोर दग

म ड़ोर जोधपुर क थापना से पूव मारवाड़ क राजधानी थी। म ड़ोर का नाम ाचीन काल म मांड यपुर
था, जो मा ड य ॠ ष के नाम पर पड़ा था। घ टयाला से ा िशलालेख से ात होता है क म डोर दग

का िनमाण ७वीं शता द के पूव हो चुका था। िशलालेख के अनुसार ा ण ह रच के पु ने म डोर
पर अिधकार कर िलया तथा ६२३ ई० म उ ह ने इसके चार ओर द वार बनवाई।

n
म डोर दग
ु के अवशेष आज भी व मान ह। यह दग
ु एक पहाड़ के िशखर पर थत था, जसक ऊँचाई
३०० से ३५० फुट थी। यह दग
ु आज खंड़हर हो चुका है । कुछ ख डहर के नीचे पड़ा है तथा कुछ वघ टत
अव था म है । वघ टत अव था म व मान दग
पूरा आकलन नह
ee
ु को दे खकर य प उसक वा त वक िनमाण विध का
कया जा सकता तथा प इस वषय म कुछ अनुमान अव य लगाया जा सकता है ।
पहाड़ पर थत इस दग
ु के चार ओर पाषाण िनिमत द वार थी। दग
ु म वेश करने के िलए एक मु य
माग था। दग
ु क पोल पर लकड़ से िनिमत वशाल दरवाजा था। दग
ु के शासक के िनवास के िलए
ah
महल, भ डार, सामंतो व अिधका रय के भवन आ द बने हए
ु थे। जस माग ारा नीचे से पहाड़ के ऊपर
कले तक पहँु चा जाता था वह उबड़-खाबड़ था। कले क ाचीर म जगह-जगह चौकोर िछ बने हए
ु थे।
म ड़ोर को दग
ु साम रक सुर ा क से ता कालीन समय म काफ सु ढ़ एवं मह वपूण समझा जाता
था। इसके कारण श ु क सेना को पहाड़ पर अचानक चढ़ाई करने म काफ क ठनाईय का सामना करना
sh

पड़ता था। दग
ु म वेश- ार इस तरह से िनिमत कए गए थे क उ ह तोड़ना श ु के िलए असंभव सा
था। कले म पानी क या यव था होती थी जससे आ मण के समय सैिनक एवं र क को जल क
कमी का सामना नह करना पड़े ।
इस दग
ु क ाचीर चौड़ एवं सु ढ़ थी। दग
ु के पास ह एक वशाल जलाशय का िनमाण करवाया गया
था। इस जलाशय क सी ढय पर नाहरदे व नाम अं कत है जो म ड़ोर का अंितम परमार शासक था। दग

क द वार पहाड़ के शीष भाग से ऊपर उठ हई
ु थीं। बीच के समु नत भाग पर वशाल महल बने थे जो
नीचे के मैदान पर छाये हए
ु थे। म ड़ोर दग
ु के बुज गोलाकार न होकर अिधकांशत: चौकोर थे, जैसे क
अ य ाचीन दग
ु म म ड़ोर दग
ु ७८३ ई० तक प रहार शासक के अिधकार म रहा। इसके बाद नाड़ोल के
चौहान शासक रामपाल ने म ड़ोर दग
ु पर अिधकार कर िलया था। १२२७ ई० म गुलाम वंश के शासक
इ तुतिनश ने म ड़ोर पर अिधकार कर िलया। य प प रहार शासक ने तुक आ ांताओं का डट कर
सामना कया पर अंतत: म ड़ोर तुक के हाथ चला गया। ले कन तुक आ मणकार म ड़ोर को ल बे
समय तक अपने अिधकार म नह रख सके एंव दग
ु पर पुन: ितहार का अिधकार हो गया। १२९४ ई०
म फरोज खलजी ने प रहार को परा जत कर म ड़ोर दग
ु अिधकृत कर िलया, परं तु १३९५ ई० म
प रहार क इं दा शाखा ने दग
ु पर पुन: अिधकार कर िलया। इ द ने इस दग
ु को चूंडा राठौड़ को स प
दया जो एक मह वाकां ी शासक था। उसने आस-पास के कई दे श को अपने अिधकार म कर िलया।
१३९६ ई० म गुजरात के फौजदार जफर खाँ ने म ड़ोर पर आ मण कया। एक वष के िनरं तर घेरे के
उपरांत भी जफर खाँ को मंडोर पर अिधकार करने म सफलता नह िमली और उसे ववश होकर घेरा
उठाना पड़ा। १४५३ ई० म राव जोधा ने म डोर दग
ु पर आ मण कया। उसने मरवाड़ क राजधानी
म डोर से थाना त रत करके जोधपुर ले जाने का िनणय िलया। राजधानी हटने के कारण म ड़ोर दग

धीरे -धीरे वीरान होकर खंडहर म त द ल हो गया।

जालौर दग

जालौर दग
ु मारवाड़ का सु ढ़ गढ़ है । इसे परमार ने बनवाया था। यह दग
ु मश: परमार , चौहन और
राठौड़ के आधीन रहा। यह राज थान म ह नह अ पतु सारे दे श म अपनी ाचीनता, सु ढ़ता और

n
सोनगरा चौहान के अतुल शौय के कारण िस रहा है ।
जालौर जले का पूव और द णी भाग पहाड़ शृंखला से आवृत है । इस पहाड़ ख
ंृ ला पर उस काल म
सघन वनावली छायी हई
ु थी। अरावली क ee


ंृ ला जले क पूव सीमा के साथ-साथ चली गई है तथा
इसक सबसे ऊँची चोट ३२५३ फुट ऊँची है । इसक दसर शाखा जालौर के के भाग म फैली है जो
२४०८ फुट ऊँची है । इस ख
ंृ ला का नाम सोनिग र है । सोनिग र पवत पर ह जालौर का वशाल दग

व मान है । ाचीन िशलालेख म जालौर का नाम जाबालीपुर और कले का नाम सुवणिग र िमलता है ।
ah
सुवणिग र श द का अप ंश प सोनलगढ़ हो गया और इसी से यहां के चौहान सोनगरा कहलाए।
जहां जालौर दग
ु क थित है उस थान पर सोनिग र क ऊँचाई २४०८ फुट है । यहां पहाड़ के शीष भाग
पर ८०० गज ल बा और ४०० गज चौड़ा समतल मैदान है । इस मैदान के चार ओर वशाल बुजाç और
सु ढ़ ाचीर से घेर कर दग
ु का िनमाण कया गया है । गोल ब द ु के आकार म दग
ु क रचना है जसके
sh

दोन पा भाग म सीधी मोचा ब द यु पहाड़ पं है । दग


ु म वेश करने के िलए एक टे ढ़ा-मेढ़ा
रा ता पहाड़ पर जाता है । अनेक सुद घ िशलाओं क प र मा करता हआ
ु यह माग कले के थम ार
तक पहँु चता है । कले का थम ार बड़ा सु दर है । नीचे के अ त: पा ाç पर र क के िनवास थल ह।
सामने क तोप क मार से बचने के िलए एक वशाल ाचीर धूमकर इस ार को सामने से ढक दे ती है ।
यह द वार २५ फुट ऊँची एंव १५ फुट चौड़ है । इस ार के एक ओर मोटा बुज और दसर
ू ओर ाचीर का
भाग है । यहां से दोन ओर द वार से िघरा हआ
ु कले का माग ऊपर क ओर बढ़ता है । य - य आगे
बढ़ते ह नीचे क गहराई अिधक होती जाती है । इन ाचीर के पास िम ट के ऊँचे थल बने हए
ु ह जन
पर रखी तोप से आ मणका रय पर मार क जाती थी। ाचीर क चौड़ाई यहां १५-२० फुट तक हो
जाती है ।
इस सुर त माग पर लगभग आधा मील चढ़ने के बाद कले का दसरा
ू दरवाजा गोचर होता है । इस
दरवाजे का यु कला क कोण से वशेष मह व है । दसरे
ू दरवाजे से आगे कले का तीसरा और मु य
ार है । यह ार दसरे
ू ार से वशालतर है । इसके दरवाजे भी अिधक मजबूत ह। यहां से रा ते के दोन
ओर साथ चलने वाली ाचीर ख
ं ला कई भाग म वभ होकर गोलाकार सुद घ पवत दे श को समेटती
हई
ु फैल जाती है । तीसरे व चौथे ार के म य क भूिम बड़ सुर त है । ाचीर क एक पं तो बांई
ओर से ऊपर उठकर पहाड़ के शीष भाग को छू लेती है तथा दसर
ू दा हनी ओर घूमकर मैदान पर छाई
हई
ु चो टय को समेटकर च ाकार घूमकर थम ाचीर क पं से आ िमलती है । यहां थान- थान पर
वशाल एंव व वध कार के बुज बनाए गए ह। कुछ वतं बुज ाचीर से अलग ह। दोन क ओर
गहराई ऊपर से दे खने पर भयावह लगती है ।
जालौर दग
ु का िनमाण परमार राजाओं ने १०वीं शता द म करवाया था। प मी राज थान म परमारो क
श उस समय चरम सीमा पर थी। धारावष परमार बड़ा श शाली था। उसके िशलालेख से, जो जालौर
से ा हए
ु ह, अनुमान लगाया जाता है क इस दग
ु का िनमाण उसी ने करवाया था।
व तुकला क से कले का िनमाण ह द ु शैली से हआ
ु है । परं तु इसके वशाल ांगण म एक ओर
मुसलमान संत मिलक शाह क म जद है ।
जालौर दग
ु म जल के अतुल भंड़ार ह। सैिनक के आवास बने हए
ु ह। दग
ु के िनमाण क वशेषता के
कारण तोप क बाहर से क गई मार से कले के अ त: भाग को जरा भी हािन नह पहँु ची है । कले म

n
इधर-उधर तोप बखर पड़ ह। ये तोप वगत संघषमय युग क याद ताजा करतीं है ।
१२वीं शता द तक जालौर दग
ु अपने िनमाता परमार के अिधकार म रहा। १२वीं शता द म गुजरात के

भु व
ee
सोलं कय ने जालौर पर आ मण करके परमार को कुचल दया और परमार ने िस राज जयिसंह का
वीकार कर िलया। िस राज क मृ यु के बाद क क पाल चौहान ने दग
ु को घेर िलया। कई माह
के कठोर ितरोध के बाद क क पाल इस दग
ु पर अपना अिधकार करने म सफल रहा। क क पाल के
प ात समर िसंह और उदयिसंह जालौर के शासक हए।
ु उदय िसंह ने जालौर म १२०५ ई० से १२४९ ई०
ah
तक शासन कया।
गुलाम वंश के शासक इ तुतिमश ने १२११ से १२१६ के बीच जालौर पर आ मण कया। वह काफ लंबे
समय तक दग
ु का घेरा डाले रहा। उदय िसंह ने वीरता के साथ दग
ु क र ा क पंरतु अ तोग वा उसे
इ तुतिमश के सामने हिथयार डालने पड़े । इ लतुतिमश के साथ जो मु लम इितहासकार इस घेरे म
sh

मौजूद थे, उ ह ने दग
ु के बारे म अपनी राय कट करते हए
ु कहा है क यह अ यिधक सु ढ़ दग
ु है ,
जनके दरवाज को खोलना आ मणका रय के िलए असंभव सा है ।
जालौर के कले क सैिनक उपयोिगता के कारण सोनगरा चौहान ने उसे अपने रा य क राजधानी बना
रखा था। इस दग
ु के कारण यहां के शासक अपने आपको बड़ा बलवान मानते थे। जब का हड़दे व यहां का
शासक था, तब १३०५ ई० म अलाउ न खलजी ने जालौर पर आ मण कया। अलाउ न ने अपनी सेना
गुल-ए-ब ह त नामक दासी के नेतृ व म भेजी थी। यह सेना क हड़दे व का मुकाबला करने म असमथ रह
और उसे परा जत होना पड़ा। इस पराजय से दखी
ु होकर अलाउ न ने १३११ ई० म एक वशाल सेना
कमालु न के नेतृ व म भेजी ले कन यह सेना भी दग
ु पर अिधकार करने म असमथ रह । दग
ु म अथाह
जल का भंड़ार एंव रसद आ द क पूण यव था होने के कारण राजपूत सैिनक लंबे समय तक ितरोध
करने म स म रहते थे। साथ ह इस दग
ु क मजबूत बनावट के कारण इसे भेदना द ु कर काय था। दो
बार क असफलता के बाद भी अलाउ न ने जालौर दग
ु पर अिधकार का यास जार रखा तथा इसके
चार ओर घेरा डाल दया। ता कालीन ोत से ात होता है क जब राजपूत अपने ाण क बाजी लगा
कर दग
ु क र ा कर रहे थे, व म नामक एक धोखेबाज ने सु तान ारा दए गए लोभन म श ुओं को
दग
ु म वेश करने का गु माग बता दया। जससे श ु सेना दग
ु के भीतर वेश कर गई। क हड़दे व व
उसके सैिनक ने वीरता के साथ खलजी क सेना का मुकाबला कया और क हड़दे व इस संघष म वीर
गित को ा हआ।
ु क हड़दे व क मृ यु के प ात भी जालौर के चौहान ने ह मत नह हार और पुन:
संग ठत होकर क हड़दे व के पु वीरमदे व के नेतृ व म संघष जार रखा परं तु मु ठ भर राजपूत रसद क
कमी हो जाने के कारण श ुओं को यादा दे र तक रोक नह सके। वीरमदे व ने पेट म कटार भ ककर
मृ यु का वरण कया। इस संपण
ू घटना का उ लेख अखेराज चौहान के एक आि त लेखक पदमनाथ ने
"क हड़दे व बंध" नामक थ
ं म कया है ।
महाराणा कुंभा के काल (१४३३ ई० से १४६८ ई०) म राज थान म जालौर और नागौर मु लम शासन के
के थे। १५५९ ई० म मारवाड़ के राठौड़ शासक मालदे व ने आ मण कर जालौर दग
ु को अ प समय के
िलए अपने अिधकार म ले िलया। १६१७ ई० म मारवाड़ के ह शासक गजिसंह ने इस पर पुन: अिधकार
कर िलया।
१८वीं शता द के अंितम चरण म जब मारवाड़ रा य के राज िसंहासन के को लेकर महाराजा जसवंत

n
िसंह एंव भीम िसंह के म य संघष चल रहा था तब महाराजा मानिसंह वष तक जालौर दग
ु म रहे ।
इस कार १९वीं शता द म भी जालौर दग
ु मारवाड़ रा य का एक ह सा था। मारवाड़ रा य के इितहास
म जालौर दग
ु जहां एक तरफ अपने
भी मह वपूण रहा है ।
ee
थाप य के कारण व यात रहा है वह ं साम रक व सैिनक से

जोधपुर दग

ah

मेहरानगढ़ दग
ु , जोधपुर
sh

मारवाड़ के राठौड़ क क क और वीरता तथा मान-मयादा का तीक जोधपुर दग


ु का िनमाण राव जोधा
ने करवाया था। रा यिभषेक के समय राठौड़ राव जोधा क राजधानी मंड़ोर म थी, परं तु साम रक व
सैिनक से म डोर के असुर त होने के कारण जोधा ने नवीन दग
ु एंव नगर क थापना का िन य
कर िलया। दग
ु क पहाड़ के तीन ओर नगर व तार हे तु समतल थान है , वहां नगर बसा हआ
ु है । इसी
से उ ह ने पहाड़ ख
ंृ ला के इस छोर पर दग
ु िनमाण का काय आरं भ करवाया। यह काय वृ ल न,
वाित न , ये सु द ११, शिनवार संवत ् १५१५ दनांक १२ मई, १४५९ को आरं भ हआ।

शहर के समतल भाग से ४०० फुट ऊँची पहाड़ पर अव थत जोधपुर दग
ु चार ओर फैले व तृत मैदान
को अिधकृत कए हए
ु है । पहाड़ क ऊँचाई कम होने के कारण ऊँची-ऊँची वशाल ाचीर के बीच द घकार
बुजç बनवाई गई ह तथा पहाड़ को चार ओर से काफ ऊँचाई तक तराशा गया है जससे कले क सुर ा
म वृ हो। महल के भाग म ऊँचाई १२० फुट ह रह गई है । कले का वशाल उ नत ाचीर २० फुट से
१२० फुट तक ऊँची है जसके म य गोल और चौकोर बुजç बनी हई
ु ह। इनक मोटाई १२ फुट से ७० फुट
तक रखी गयी है । ाचीर ने १५०० फुट लंबी तथा ७५० फुट चौड़ भूिम को घेर रखा है । पहाड़ क चोट
पर बनी मजबूत द वार के शीष भाग पर तोप के मोच बने ह। यहां कई वशाल सीधी उठ हई
ु बुजç खड़
क गई ह। ाय: छ: कलोमीटर का भू-भाग इस यव था से सुर त है ।
नीचे के समतल मैदान से एक टे ढ़ा-मेढ़ा रा ता ऊपर क ओर जाता है । इस रा ते ारा कुछ घुमाव पार
करने पर कले का वशाल फाटक वाला थम सु ढ़ दरवाजा आता है । आगे चलकर छ: दरवाजे और ह।
१७०७ ई० म महाराजा अजीतिसंह ने मुगल पर अपनी वजय के मारक के प म फतेहपोल का िनमाण
करवाया था। अमृतपोल का िनमाण राव मालदे व ने करवाया, और महाराजा मानिसंह ने १८०६ ई० म
जयपोल का िनमाण करवाया था। "राव जोधा का फलसा' कले का अंितम ार है । लोहापोल पर कुछ वीर
रम णय के छाप लगे हए
ु है जो उनके सती होने के मारक के प म आज भी व मान ह।
कले क ाचीर के नीचे दो तालाब ह जहाँ से सेना जल ा करती थी। कले के म य म एक कुंड है जो
९० फुट गहरा है तथा इसे पहाड़ क च टान के म य खोदकर बनाया गया था। कले के अ त: भाग म
शानदार अ टािलकाओं और साद का समूह है जो व तु कला का उ कृ नमूमा है । लाल प थर से
िनिमत ये साद व तुकला के उ म उदाहरण ह। इन साद का िनमाण समय-समय पर होने के कारण
इनम विभ न व तु शैिलय का समावेश अपने आप हो गया है । उ कृ कलाकृितय से अलंकृत प थर क

n
काट हई
ु जािलयाँ से सजे हए
ु ये ासाद कला के उ म नमूने है । कले क ओर वाले पा भाग क ाचीर
वशेष प से मोट और ऊँची है । बुजाç क प रिध यह ं सवािधक है । इस ाचीर के शीष भाग पर लगी
भीमकाय तोप अब भी कले क र ा के त पर
भवानी नामक तोप बहत
ु बड़ और भार ह।
ee तीत होती ह। इन तोप म कालका, कल कला और

राजपूत के इितहास म राढौड़ अपनी वीरता और शौय के िलए बडे िस रहे ह। जोधपुर दग
ु पर
आ मण का ांरभ राव बीकाजी के समय हआ।
ु राव जोधा ने बीकाजी को वतं शासक वीकार कर
ah
उ हे छ व चंबर दे ने क बात कह थी, परं तु जोधा क मृ यु के बाद उनके उ रािधकार सूरिसंह ने ये
व तुएं बीकाजी को नह द । फलत: बीकाजी ने जोधपुर पर चढ़ाई कर द । मारवाड़ रा य के आ त रक
कलह के प रणाम व प मुगल को मारवाड़ पर अिधकार करने का अवसर िमला। मालदे व के समय
१५४४ ई० म शेरशाह सूर ने जोधपुर पर आ मण कर दया। य प कलेदार बरजांग ितलोकसी ने बड़
sh

बहादरु से दग
ु क र ा करने का य कया, फर भी शेरशाह दग
ु पर अिधकार करने म सफल हो गया।
ले कन मालदे व ने श संग ठत करके पुन: दग
ु पर अपना अिधकार था पत कर िलया।
मालदे व क मृ यु के बाद मारवाड़ रा य म उ रािधकार के को लेकर संघष िछड़ गया एंव यह रा य
आंत रक कलह म डू ब गया। इससे जोधपुर क श काफ ीण हो गई। अब मुगल ने जोधपुर पर
अिधकार करने के उ े य से व.स. १६२१ के चै माह म हसै
ु न कुली खाँ के नेतृ व म सेना भेजी। राव
च सेन ने चार लाख पये दे कर संिध कर ली तथा मुगल सेना वापस लौट गई। ले कन मुगल ने
जोधपुर पर पुन: आ मण कर दया। इस आ मण के समय राव च सेन ने ६६० सैिनक स हत कले
म रहकर र ा मक यु कया। ले कन वह श शाली मुगल सेना का सामना लंबे समय तक नह कर
पाया। अत: उसने मुगल से संिध कर जोधपुर दग
ु उ ह स प दया। अकबर के काम म मोटा राजा उदय
िसंह ने मुगल का भु व वीकार कर िलया। अत: जोधपुर दग
ु उसे लौटा दया गया।

िसवाना दग

िसवाना का दग
ु जोधपुर से ५४ मील प म क ओर है । इसके पूव म नागौर, प म म मालानी, उ र म
पचपदरा और द ण म जालौर है । वैसे तो यह दग
ु चार ओर रे तीले भाग से िघरा हआ
ु है परं तु इसके
साथ-साथ यहां छ पन के पहाड़ का िसलिसला पुव-प म क सीध म ४८ मील तक फैला हआ
ु है । इस
पहाड़ िसलिसले के अंतगत हलदे र का पहाड़ सबसे ऊँचा है , जस पर िसवाना का सु ढ़ दग
ु बना है ।
िसवाना के दग
ु का बड़ा गौरवशाली इितहास है । ारं भ म यह दे श पंवार के आधीन था। इस वंश म वीर
नारायण बड़ा तापी शासक हआ।
ु उसी ने िसवाना दग
ु को बनवाया था। तद तर यह दग
ु चौहान के
अिधकार म आ गया। जब अलाउ न ने गुजरात और मालवा को अपने अिधकार म िलया, तो इन ांत
म आवागमन के माग को सुर त रखने के िलए यह आव यक हो गया था क वह माग म पड़ने वाले
दग
ु पर भी िनयं ण करे । इस नीित के अनुसार उसने िच ौड़ तथा रणथ भौर को अपने अिधकार म कर
िलया। परं तु मारवाड़ से इन ांत म जाने के माग तब तक सुर त नह हो सकते थे जब तक जलौर
और िसवाना के दग
ु पर इसका अिधकार नह हो जाता। इस समय िसवाना चौहान शासक शीतलदे व के
िनयं ण म था। सीतलदे व ने िच ौड़ तथा रणथ भौर जैसे सु ढ़ दग
ु को खलजी श के सामने

n
धराशायी होते हए
ु दे खा था। इस कारण उसके मन म भय तो था, परं तु उसने िसवाना के दग
ु क
वतं ता को बनाए रखने क कामना भी थी। वह बना यु लड़े कल को श ुओं के हाथ म स प दे ना
अपने वंश, परं परा और स मान के व
कया था एवं उसक धाक सारे राज थान म जमी हई
ee
समझता था। उसने कई राव और रावत को यु
ु थी। अत: उसके िलए बना यु
म परा त
लड़े खल जय को
दग
ु स प दे ना असंभव था।
जब अलाउ न ने दे खा क बना यु के कले पर अिधकार था पत करना संभव नह है तो उसने २
ah
जुलाई १३०८ ई० को एक बड़ सेना कले को जीतने के िलए भेजी। इस सेना ने कले को चार ओर से
घेर िलया। शाह सेना के द णी पा को दग
ु के पूव और प म क तरफ लगा दया एंव वाम पा को
उ र क ओर। इन दोन पा ाç के म य मिलक कमलु न के नेतृ व म एक सैिनक टु कड़ रखी गई।
राजपूत सैिनक भी श ुओं का मुकाबला करने के िलए कले के बुजाç पर आ डटे । जब श ुओं ने मजनीक
sh

से ेपा क बौछार शु क तो राजपूत सैिनक ने अपने तीर , गोफन तथा तेल मे भीगे व म आग
लगाकर श ु सेना पर फकना ारं भ कया। जब शाह सेना के कुछ दल कले क द वार पर चढ़ने का
यास करते तो राजपूत सैिनक उनके य को वफल बना दे ते थे। लंबे समय तक शाह सेना को
राजपूत पर वजय ा करने का कोई अवसर नह िमला। इस अविध म श ुओं को बड़ छित उठानी
पड़ तथा उसके सेना नायक नाहर खाँ को अपने ाण गंवाने पड़े । जब मु लम सेना कई माह तक दग

पर अिधकार म असमथ रह तो वंय अलाउ न एक वशाल सेना लेकर आ गया। उसने पूर सै य श
के साथ दग
ु का घेरा डाल दया। अब तक लंबे संघष के कारण दग
ु म रसद का आभाव हो गया था। जब
सवनाश िनकट दखाई दे ने लगा तो राजपूत सैिनक ने दग
ु के दरवाजे खोलकर शाह सेना पर धावा बोल
दया। वीर राजपूत श ुओं पर टु ट पड़े और एक-एक करके वीरोिचत गित को ा हए।
ु सीतल दे व भी एक
वीर यो ा क तरह मारा गया। दग
ु पर अिधकार करने के बाद अलाउ न ने कमालु न को इसका सूबेदार
िनयु कया।
जब अलाउ न के बाद खल जय क श कमजोर पड़ने लगी तो राव म लीनाथ के भाई राठौड़ जैतमल
ने इस दग
ु पर क जा कर िलया और कई वष तक जैतमलोत क इस दग
ु पर भुता बनी रह । जब
मालदे व मारवाड़ का शासक बना तो उसने िसवाना दग
ु को अपने अिधकार म ले िलया। यहां उसने
म लम आ मणका रय का मुकाबला करने के िलए यु ोपयोगी साम ी को जुटाया। अकबर के समय राव
च सेन ने िसवाना दग
ु म रहकर बहत
ु समय तक मुगल सेनाओं का मुकाबला कया। परं तु अंत म
च सेन को िसवाना छोड़कर पहाड़ म जाना पड़ा। अकबर ने अपने पो षत के दल को बढ़ाने के िलए इस
दग
ु को राठौड़ रायमलोत को दे दया। ले कन जब जसबंत िसंह क मृ यु के प ात ् मारवाड़ म वतं ता
सं ाम आरं भ हआ
ु तो िसवाना क तरफ भी सैिनक अिभयान आरं भ हो गए। इस तरह मारवाड़ के
इितहास के साथ िसवाना के शौय क कहानी जुड़ हई
ु है ।

नागौर दग

मारवाड़ के थल दग
ु म नागौर दग
ु बड़ा मह वपूण है । मारवाड़ के अ य वशाल दग
ु ाय: पहाड़
ऊँचाईय पर थत है । भूिम पर िनिमत दसरा
ू ऐसा कोई दग
ु नह ं है जो ढ़ता म नागौर का मुकाबला

n
कर सके। के य थान पर थत होने के कारण इस दग
ु पर िनरं तर हमले होते रहे । अत: इसक र ा
यव था भी समय-समय पर ढ़तर क जाती रह ।
नागौर का
नागवंशीय
ee
ाचीन नाम अ हछ पुर बताया जाता है जसे जांगल जनपद क राजधानी माना जाता था। यहां
य ने कर ब दो हजार वष तक शासन कया। उ ह आगे चलकर परमार ने िनकाल दया।
पृ वीराज चौहान के पता सोमे र के एक सामंत ने व०सं० १२११ क वैशाख सुद २ को नागौर दग
ु क
नींव रखी। राज थान के अ य दग
ु क तरह इसे पहाड़ पर नह , साधारण ऊँचाई के थल भाग पर
ah
बनाया गया। इसके िनमाण क एक वशेषता है क बाहर से छोड़ा हआ
ु तोप का गोला ाचीर को पार कर
कले के महल को कोई नुकसान नह पहँु चा सकता य प महल ाचीर से ऊपर उठे हए
ु ह।
नागौर का मु य ार बड़ा भ य है । इस ार पर वशाल लोहे के सीखच वाले फाटक लगे हए
ु ह। दरवाजे
के दोन ओर वशाल बुज और धनुषाकार शीष भाग पर तीन ार वाले झरोखे बने हए
ु ह। यहां से आगे
sh

कले का दसरा
ू वशाल दरवाजा है । उसके बाद ६० ड ी का कोण बनाता तीसरा वशाल दरवाजा है । इन
दोन दरवाज के बीच का भाग धूधस कहलाता है । नागौर दग
ु का धूधस व तु िनमाण का उ कृ नमूना
है । थम ाचीर पं कले के थम ार से ह दोन ओर घूम जाती है । अ यािधक मोट और ऊँची इस
५००० फुट लंबी द वार म २८ वशाल बुज बने हए
ु ह। कले का परकोटा दहरा
ु बना है । एक गहर जलपूण
खाई थम ाचीर के चार ओर बनी हई
ु थी। महाराजा कुंभा ने एक बार इस खाई को पाट दया था, पर
इसे पुन: ठ क करवा दया गया। ाचीर के चार कोन पर बनी बुजाç क ऊँचाई १५० फुट के लगभग है ।
तीसरे परकोटे को पार करने पर कले का अ त: भाग आ जाता है । कले के ६ दरवाजे है जो िसराई पोल,
बचली पोल, कचहर पोल, सूरज पोल, धूषी पोल एंव राज पोल के नाम से जाने जाते ह। कले के द ण
भाग म एक म जद है । इस म जद पर एक िशलालेख उ क ण है । इस म जद को शाँहजहां ने बनवाया
था।
के य थल पर होने के कारण इस दग
ु को बार-बार मुगल के आ मण का िशकार होना पड़ा। सन ्
१३९९ ई० म म डोर के राव चूंड़ा ने इस पर अिधकार कर िलया। महाराणा कुंभा ने भी दो बार नागौर पर
बड़े जबरद त आ मण कए थे। कु भा के आ मण सफल रहे एंव इस दग
ु पर इनका अिधकार हो गया।
मारवाड़ के शासक ब तिसंह के समय इस दग
ु का पुनिनमाण करवाया गया। उ ह ने कले क सुर ा
यव था को मजबूत कया। मराठ ने भी इसी दग
ु पर कई आ मण कए। महाराणा वजयिसंह को
मराठ के हमले से बचने के िलए कई माह तक दग
ु म रहना पड़ा था।
दग
ु क यव था

मारवाड़ के येक दग
ु का सव च अिधकार दगा
ु य होता था। १२वीं शता द से पहले कोटपाल नामक
अिधकार दग
ु का मुख होता था। मुगल काल के बाद इसी पद को कलेदार नाम से जाना जाने लगा।
इस अिधकार के पास सश सेना होता थी जो रात को कले क िनगरानी करती थी। कले के चार
तरफ भार एंव ह क बंदक
ू से लैस जवान होते थे। जब भारत म मुगल अपनी बंदक
ू श के साथ आए
तो इन कल क मह ा कम हो गयी। मुगल के पास भार तोप थी जनसे कले क द वार को आसानी
से तोड़ा जा सकता था। मारवाड़ के शासक ने तोप से कल क सुर ा के िलए कले के चार तरफ
खाइयां खुदवानी ारं भ क । इन खाईय म बा द भर द जाती थी। जब कभी श ु सेना का आ मण होता

n
तो बा द म आग लगा द जाती थी जससे श ु कले म नह वेश कर पाता था।
म यकाल म मारवाड़ के शासक ने गढ़ झालना कला का वकास कया। कले पर श ु का अिधकार होते

होती थी। बड़े अ -श


ee
दे ख शासक व सैिनक पहाड़ या जंगल म भाग जाते थे जहां पर तोप से आ मण होने क संभावना नह
को लेकर इन पहा ड़य पर श ु का चढ़ना संभव नह था।
दग
ु का मुख अिधकार
ah
साम रक से दग
ु का वशेष मह व होने के कारण दग
ु शासन म दगपाल
ु अथवा कलेदार का वशेष
थान होता था। कलेदार राजा का व ास पा होता था। उस पर कले क र ा एंव संपण
ू यव था का
दािय व होता था। मुस रफ नामक अिधकार कलेदार के िनयं ण म होता था। कले म कायरत सैिनक
का ववरण रखना, उनके अ -श क जाँच करना एंव उ ह आव यकतानुसार नए अ -श दान करना
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मस रफ के मुख काय थे।


हाजर बह से ा होता है क जस े म दग
ु थत होता था और जहां वशेष खांप क जागीरे अिधक
होती थीं, वहां उस खांप के य य को दग
ु र ा के िलए नह लगाया जाता था। जोधपुर दग
ु क र ा के
िलए चौहान व राठौड़ क सेवाएं कम ली जाती थी। ऐसा व ोह क संभावना को कम करने के िलए
कया जाता था।
दग
ु का उपयोग

सुर ा मक यु दग
ु म रहकर ह कये जाते थे। बाहर आ मण के समय य द श ुदल अिधक श शाली
होता था तो खुले मैदान म यु करना अ हतकर सम कर राजा दग
ु म सेना स हत शरण ले लेते थे और
दग
ु के ार बंद करवा दे ते थे। जब शासक कल म सुर त रहते हए
ु श ु का मुकाबला करता था तो इस
यु को "गढ़ झालण " कहा जाता था।
मारवाड़ के अिधकांश दग
ु का उपयोग शासक अपने आवास व सुर ा मक यु के िलए करते थे। यु से
पूव दग
ु म रसद आ द क यव था कर ली जाती थी। दग
ु म भ ड़ार होते थे जनका उपयोग आपातकाल
म कया जाता था। अनाज, तेल, घास, अ -श और रसद आ द का भंड़ारण कया जाता था।
महाराजा मानिसंह के काल म कृ णाकुमार ववाद को लेकर जयपुर क सेनाओं ने जोधपुर दग
ु को घेर
िलया। अत: उसने दग
ु के भीतर रह कर जयपुर सेना का मुकाबला करने का िन य कया। जयपुर क
सेना ने १३ मई १८०७ को दग
ु सेना पर बल आ मण कया। क तु दग
ु र क ने दग
ु पर श ुओं का
अिधकार नह होने दया।
दग
ु म अ -श िनमाण के कारखाने होते थे। मारवाड़ के इन दग
ु का उपयोग भगोड़े शासक व सैिनक
को शरण दे ने के िलए भी कया जाता था।
दग
ु क र ा के िलए श ु पर आग और गम तेल फेकना, बा द जलाना आ द उपाय भी काम म िलये
जाते थे। १८०७ म जयपुर सेना ने जोधपुर दग
ु का घेरा डाला था तो उस समय जोधपुर के महाराजा
मानिसंह ने तीन मन तेल गरम करवा कर उसे फतेहपोल से नीचे डलवाया था जससे जयपुर क सेना के
बहत
ु से सैिनक जल गए तथा उ ह ने घेरा उठा िलया।

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राज थान क जनजाितयाँ ee
राज थान क आबाद का एक बहत
ु बड़ा भाग जनजाितय का है । जनजाितय म भील, मीणा, गरािसया,
डामोर, एवं सह रया आ द आते ह। रा य के अजमेर, जयपुर, सवाई माधोपुर, उदयपुर, िच ौड़गढ़, अलवर
व कोटा म ७० ितशत मीणा जाित के लोग रहते ह, जो जनजाित म आते ह। बांसवाड़ा, डू ं गरपुर, िसरोह
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व पाली जले म बसे हए
ु ह। डू ं गरपुर जले के सीलमवाड़ा तथा बांसवाड़ा जले क आ नदपुर पंचायत
सिमितय म डामोर जनजाित के लोग रहते ह।

भील जनजाित
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भील वड़ के बीलु श द का पा तरण है , जसका अथ होता है धनुष। चूँ क इस जनजाित के लोग


िशकार के िलए तथा जंगली जानवर व अपने वरोिधय से र ा हे तु धनुष बाण का योग करते ह,
इसिलए इ ह भील के नाम से स बोिधत कया गया। ये लोग अपने को शंकर भगवान क संतान मानते
ह। इस जाित के उ प क दा तान इनके चारण, भाट तथा ढोली सुनाया करते ह।
इस समुदाय के लोग ूर वभाव के थे, पर तु इनम व छ जीवन जीने क लालसा थी। अत: उ ह ने
जनजाित के समूह से अपने को अलग कर िलया। ये लोग बहादरु तो होते ह ह साथ ह ववेक भी ह।
बदलती हई
ु प र थितय म यह जनजाित अपने रहन - सहन के ढ़ं ग म बहत
ु कम प रवतन कर पायी।
अ य जाितय के स पक के कारण धीरे - धीरे उनक वंशावली म भी प रवतन आने लगे। भील क
सामा जक यव था म वर वधू के चयन म लड़के व लड़क को पूण वत ता है । पित क सबसे अमू य
स प उसक प ी होती है । भील जाित के सामा जक जीवन म गमेती या मुखी सभी सं कार म थम
नाग रक क भूिमका िनभाता है । ज म से मृ यु तक क सम त र म गमेती स प न करवाता है और
पा रवा रक ववाद को िनपटाने म भी उसके परामश का स मान कया जाता है ।
भील जाित के लोग अपने घर पर शराब बनाने क कला म िनपुण होते ह। मृ यु के अित र इनका कोई
भी सामा जक समारोह शराब के साथ ह स प न होता है । इनम ववाह क अनेक र म ह। जैसे - हाटा-
पाटा (अदला बदली)। अपने इ छा से अपने पित को छोड़ दे ना इनम चिलत है , वधवा ववाह भी।

मीणा जनजाित
महाक व यामलदास ने िलखा है क उदयपुर जले के मेवल े म मीण क उ प हई
ु थी और ये
अपनी बहादरु के बल पर भीलवाड़ा जले के जहाजपुर एवं मा डलगढ़ े म बस गए। येलोग अपनी
उ प पृ वीराज चौहान से मानते ह। ये अपने एक पूवज-माला जुझार का बहत
ु अिधक स मान करते ह।
मीणा स पूण राज थान म फैले हए
ु ह। इितहास के अनुसार आमेर पर सुसावत मीण का शासन था।
यह बात बू द तथा दे व रया ( तापगढ़) रयासत के शासक के बारे म कहा जा सकता है ।

अलवर जले के गजे टयर के अनुसार जयपुर के एक बहत


ु बड़े भू-भाग म मीण का शासन रहा है । मीणा
३२ गो और दो भाग म वभ हआ
ु करता था -

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१) जमींदार या कृषक मीणा
२) चौक दार अथवा शासक मीणा
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कृषक मीणा अ छे कृषक समूह का नेतृ व करता था। जब क चौक दार उ च वग के समूह से स ब ध
रखते थे। इसिलए ये कृषक मीणा समूह म ज म लेने वाली लड़क से ववाह तो कर लेते ह, पर तु
अपनी लड़क का ववाह कृषक मीणा समूह के लड़के से कभी नह ं करते थे। इितहास इस बात का गवाह
है क चौक दार वग य मीणाओं ने कृ ष का यवसाय शु कया, तब वे अपनी कुलीनता एवं है िसयत खो
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बैठे। इस कार वे कृषक वग य समूह मीणा समूह से जा िमले।

चौक दार मीण के वीरता के कारनाम द ण भारत तक िस है । ऐसा कहा जाता है क ये लोग कसी
एक बहादरु के नेतृ व म सुदरू द ण म है दराबाद तक जाते थे और वहाँ डकैती जाते थे और अ य
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प से ठगी करता थे। ठगी अथवा लूट के माल से ये अपने आस - पास के गाँव के लोग क सहायता
करते थे। उसी वजह से लुटेरे होते हए
ु भी ये अपने समूह म काफ लोक य थे। बहसं
ु यक वग अपने
आस - पास के इलाक म ह चोर और डकैती का काम कया करते थे। लोग आतं कत होकर इनके
समूह को अपना गाँव स प दे ते थे और इ ह बहत
ु बड़ रकम अनौपचा रक प से कर के प म दे दे ते
थे। उनके द ु साहसपूण काय से महाराजा वजयिसंह बहत
ु तंग हो गये और इनपर ितब ध लागू कर
दया। अ छे आचरण वाले लोग उन चौक दार मीणीं के साथ ववाह एवं हु के पानी के संबध
ं से परहे ज
रखने लगे।

उ र पूव राज थान के मीण वयं को द णी राज थान के मीण से अलग मानते ह। यह भावना
खासकर तापगढ़ का मीण म दे खने को िमलती है । वा त वक थित यह है क उ र - पूव राज थान
के मीणा म भी दे खने को िमलती है । रहन - सहन तथा आचार - सं हता तथा आचार - वचार क क
से यह समाज क मु य धारा से जुड़ गया। ववाह स ब ध एवं सामा जक र त का इनका अपना
अलग दायरा है ।
गरािसया जनजाित
गरािसया जनजाित के लोग मु य प से उदयपुर जले के आमेर े , खेरवाड़ा पंचायत सिमती, कोटड़ा,
फलािसया, गोगु दा एवं िसरोह जले के प डवारा तथा आबू रोड़ तथा पाली जले के बाली े म बसे
हए
ु ह। ये गोगु दा (दे वला) को अपनी उ प मानते ह, पर तु आिथक कारण से ये लोग डू ं गरपुर,
बांसवाड़ा, पाली तथा कोटा जल म जाकर बस गये ह। मीण के समान गरािसया भी वयं को राजपूत
वंश का मानते ह। लोक कथाओं के अनुसार गरािसया जनजाित के लोग यह मानते ह क ये पूव म
अयो या के िनवासी थे और भगवान रामच के वंशज थे। उनके पूवज वहाँ से बैराठ (जयपुर) चले गये
और यहाँ पर शासन कया, जहाँ उनके गरािसया राजा कोठोर को कसी मुगल बादशाह के हाथ मृ यु हो
गयी। ये लोग मानते ह क उनक गौ बापा रावल क स तान से उ प न हई
ु थीं। इनम डामोर, चौहान,
वा दया, राईदरा एवं ह रावत आ द गो होते ह। ये गो भील तथा मीणा जाित म भी पाये जाते ह।

रहन - सहन तथा वेश - भूषा क से गरािसया जनजाित क अपनी एक अलग पहचान है । गरािसया

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ि याँ रं गीन घाघरा पहनती ह ।वे अपने तन - बदन को पूण प से ढं क दे ती ह तथा चाँद , पीतल व
अ युिमिनयम के असं य गहने पहनती ह। ये सभी जनजाितय ववाह को वीकार करते ह। वर प को
दापा दे ना पड़ता है । पहले दापे क रािश १६
हो गया है । बहु ववाह का भी चलन ह। उसी
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पये मा थी, जो अब बढ़कर ढ़ाई - तीन हजार
कार गमेती अनमेल ववाह अपने उ से बहत
ु कम उ
पया तक

क लड़क से ववाह करते ह।


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गरािसया जनजाित के लोग गणगौर का योहार मनाते ह। यह था द ण राज थान क अ य जाितय
म भी चिलत नह ं है । मेवाड़ म होनेवाले गणगौर क पूजा से ये काफ भा वत ह। 'गवर नृ य' गौर
पूजा से भी इस बात क पु होती है क ये अ बा दे वी के उपासक ह। गरािसया घूमर नृ य के भी
शौक न हआ
ु करते ह। इनेक आचार - वचार तथा खान - पान आ द अ य जाितय सो बहत
ु िमलते -
sh

जुलते ह। ये लोग भील, मीणा, डामोर को अपने से काफ नीचा मानते ह, अत: उनसे वैवा हक स ब ध
नह ं रखते ह।
डामोर जनजाित
यह जनजाित डू ं गरपुर जले क सीमलवाड़ा पंचायत सिमित के द ण - प मी के (गुदावाड़ा - डू ं का
आ द गांव म) के त है । बांसवाड़ा एवं उदयपुर जले म भी इस जनजाित के लोग रहते ह। परमार गो
क डामोर जनजाित के लोग का यह मानना है क उनक उ प राजपूत राजा के वंश से हई
ु जब क
सोसौ दया गो के डामोर अपने को िच ौड़ रा य के िससौ दया वंश से मानते ह। राठौर, चौहान, सोलंक ,
मालीवाड़ तथा बा रया आ द गो को डामोर अपने को उ च वग का मानते ह। गुजरात के चौहान अवं
परमार वंश का सरदार पा रवा रक कलह से तंग आकर राज थान म बस गये और धीरे - धीरे उ ह ने
थानीय डामोर से वैवा हक स ब ध था पत कर िलए। ये लोग कालांतर म िन न वग के डामोर
कहलाए। गुजरात म भी भार सं या म अनेक गो के डामोर रहते ह। एक कंवद ती के अनुसार, डोम
जाित के घर का पानी पी लेने वाले राजपूत सरदार के वंशज मूलतया डामोर जनजाित म िगने गये।
भील क अपे ा डामोर अपने तन क शु ता का वशेष मह व रखते ह। इनके अ य सं कार व र ित
रवाज, सामा जक यव था मीणा व भील जनजाित से काफ िमलते जुलते ह। इनके भाषा व रहन सहन
म गुजरात का काफ भाव दे खने को िमलता है । ये सब खू बयां िमला - जुला कर डामोर को एक अलग
पहचान दे ने म सफल रह है ।
सह रया जनजाित
सह रया जनजाित राज थान के लोग सबसे डरपोक एवं पछड़ हई
ु ह। ये लोग मु यत: शाहदाब,
कशनगढ़ (कोटा) पंचायत सिमितय म िनवास करते ह। सह रया श द सहारा से बना है जसका अथ
रे िग तान होता है । इनका ज म सहारा के रिग तान म हआ
ु माना जाता है । मुगल आ मण से त
होकर ये लोग भाग गए और झूम खेती करने लगे।

सह रया के प चास गो ह। इनम चौहान और डो डया गो राजपूत गो से िमलते ह। ये समूह वयं को


राजपूत क वो संतान ह जो कभी गाय को मार कर उसका मांस खा गये।

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सहा रया जाित के लोग थायी वैवा हक जीवन को स मान क से दे खते ह। य प नाता था

था, आजकल आिथक व कोतवाल के मामल के


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ववा हता एवं कुंवार दोन मानते ह। अतीत म नाता था के िलए ि य को शार रक द ड दया जाता
ारा सुलटा िलया जाता है ।

अ य समाज म जो थान मु खया का होता है , पटे ल का होता है , वह थान सह रया समाज म कोतवाल
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का होता है । इस जाित के लोग ह द ू यौहार और दे वी दे वताओं से जुड़े धािमक उ सव मनोते ह, ये लोग
तेजाजी को आरा य के प म वशेष तौर पर मानते ह। तेजाजी क मृित म भंवरगढ़म एक मेला लगता
है जसे इस जनजाित के लोग बड़े ह उ साह व ा से दे खते ह। ये लोग अपनी पर परा से उठकर
ि य के साथ िमल - जुलकर नाचते गाते ह राई नृ य का आयोजन करते ह, होली के बाद के दन म ये
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स प न होता है ।

इनके सघन गाँव दे खने को िमलते ह। ये िछतरे छतर नुमा घर म िनवास करते ह। इनका एक सामू हक
घर भी होता है जहां वे पंचायत आ द का भी आयोजन करते ह। इसे वे 'बंगला' कहते ह। एक ह गाँव के
लोग के घर के समूह को इनक भाषा म 'थोक' कहा जाता है । इसे ह अ य जाित समूह फला भी कहते
ह।

िन कष
राज थान क ये पाँच जनजाितयाँ अपने सामा जक तथा आिथक जीवन के विश पहलुओं पर काश
डालते ह। इनके येक जनजाित समूह अपने को राजपूत वंश से जोड़ते ह। इनक बहादरु तथा
लड़ाकुपना भी राजपूत से काफ िमलती जुलती ह ।इनक खान - पान तथा मयादा य समाज से
िमलता है । इन त य के आधार पर यह कहा जा सकता है क इन सबका - भील, मीणा, गरािसया,
डामोर तथा सह रया क उ प एक ह वंश से हई
ु होगी। साथ ह इनके मू य पर ह द ू भाव प प
से दखता है ।

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