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द य गोलोक धाम

गोलोक धाम दशन

1
गोलोक का वणन व तृत प से -

भगवान व णु ारा बताये माग का


अनुसरण कर दे वतागण ा ड के ऊपरी
भाग से करोड़ योजन ऊपर गोलोक धाम
म प च ं ।े गोलोक ा ड से बाहर और
तीन लोक से ऊपर है। उससे ऊपर सरा
कोई लोक नह है। ऊपर सब कु छ शू य
ही है। वह तक सृ क अं तम सीमा है।
गोलोकधाम परमा मा ीकृ ण के समान ही
न य है। यह भगवान ीकृ ण क इ ा
से न मत है। उसका कोई बा आधार
नह है। अ ाकृ त आकाश म त इस
े धाम को परमा मा ीकृ ण अपनी
योगश से ( बना आधार के ) वायु प
से धारण करते ह। उसक ल बाई-चौड़ाई

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तीन करोड़ योजन है वह सब ओर
म डलाकार फै ला आ है। परम महान
तेज ही उसका व प है।

लयकाल म वहां के वल ीकृ ण रहते ह


और सृ काल म वह गोप-गो पय से भरा
रहता है। गोलोक के नीचे पचास करोड़
योजन र द ण म वैकु ठ और वामभाग
म शवलोक है। वैकु ठ व शवलोक भी
गोलोक क तरह न य धाम ह। इन सबक
त कृ म व से बाहर है, ठ क उसी
तरह जैसे आ मा, आकाश और दशाएं
कृ म जगत से बाहर तथा न य ह।

वरजा नद से घरा आ शत ंृग पवत


गोलोक धाम का परकोटा है। ीवृ दावन

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से यु रास मंडल गोलोक धाम का
अलंकार है। जैसे कमल म क णका होती
है, उसी कार इन नद , पवत और वन
आ द के म यभाग म वह मनोहर
गोलोकधाम त त है। उस च मय
लोक क भू म द र नमयी है। उसके
सात दरवाजे ह। वह सात खाइय से घरा
आ है। उसके चार ओर लाख परकोटे
ह। र न के सार से बने व च ख े,
सी ढ़यां, म णमय दपण से जड़े कवाड़
और कलश, नाना कार के च , द
र न से र चत असं य भवन उस धाम क
शोभा को और बढ़ा दे ते ह।

यो गय को व म भी इस धाम का
दशन नह होता पर तु वै णव भ भगवान

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क कृ पा से उसको य दे खते और वहाँ
जाते ह। वहां आ थ ा ध, जरा, मृ यु,
शोक और भय का वेश नह है। मन,
च , बु , अहंकार, सोलह वकार तथा
मह व भी वहां वेश नह कर सकते फर
तीन गुण -सत्, रज, तम के वषय म तो
कहना ही या? वहां न काल क दाल
गलती है और न ही माया का कोई वश
चलता है फर माया के बाल-ब े तो वहां
जा ही कै से सकते ह। यह के वल मंगल
का धाम है जो सम त लोक म े तम
है। वहाँ कामदे व के समान
पलाव यवाली, यामसु दर के समान
व ह वाली ीकृ ण क पाषदा
ारपा लका का काम करती ह।

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जब दे वता ने गोलोक धाम म वेश
करना चाहा तो ारपा लका म मुख
पीले व पहने व हाथ म बत लए
शतच ानना सखी ने उ ह रोक दया और
पूछा-आप सब दे वता कस ा ड के
नवासी ह, बताएं। यह सुनकर दे वता
को ब त आ य आ क या अ य
ा ड भी ह, हमने तो उ ह कभी नह
दे खा। शतच ानना सखी ने उ ह बताया
यहां तो वरजा नद म करोड़ ाड
इधर-उधर लुढ़क रहे ह। उनम आप जैसे
ही दे वता वास करते ह। या आप लोग
अपना नाम-गांव भी नह जानते? इस
कार उपहास का पा बने सभी दे वता
चुपचाप खड़े रहे तब भगवान व णु ने

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कहा- जस ा ड म भगवान पृ गभ का
अवतार आ है, तथा वराट पधारी
भगवान वामन के नख से जस ाड म
छ बन गया है, हम उसी से आए ह।
तब उन दे वता को गोलोकधाम म वेश
क आ ा मली। मन क ती ग त से
चलते ए सम त दे वता वरजा नद के
तट पर जा प चं ।े

वरजा नद - वरजा नद का तट
टकम ण के समान उ वल और
व तृत था। उस तट पर कह तो मूंग के
अंकुर दखाई दे रहे थे, तो कह
प रागम ण, कौ तुभम ण, इ नीलम ण,
मरकत म ण, यम तक म ण और

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वणमु ा क खान थ । उस नद म
उतरने के लए वै यम ण क सु दर
सी ढ़यां बनी थ । उस परम
आ यजनक तट को दे खकर सभी दे वता
नद के उस पार गए तो उ ह शत ृंग
पवत दखाई दया।

र नमयशत ृंग पवत- शत ृंग पवत द


पा रजात वृ , क पवृ और कामधेनु
ारा सब ओर से घरा था। यह पवत
चहारद वारी क तरह गोलोक के चार ओर
फै ला आ था। उसक ऊंचाई एक करोड़
योजन और ल बाई दस करोड़ योजन थी।
गोलोक का यह 'गोवधन पवत क पलता
के समुदाय से सुशो भत था। उसी के
शखर पर गोलाकार रासम डल है।

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रास मंडल-गोलोक धाम म द र न ारा
न मत च म डल के समान गोलाकार
रासम डल है, जसका व तार दस हजार
योजन है। वह फू ल से लदे ए पा रजात
वन से, सह क पवृ से और सकड़
पु पो ान से घरा आ है। उस
रासम डल म तीन करोड़ र न से बने
भवन ह, जहां र नमय द प काश दे ते ह
और नाना कार क भोगसाम ी सं चत
है। ेतधा य, व भ प लव , फल, वादल
और मंगल उस रासम डल क शोभा
बढ़ाते ह। चंदन, अग , क तूरी और
कुं कु मयु जल का वहां सब ओर
छड़काव आ है। रेशमी सूत म गुथ ं े ए
चंदन के प क बंदनवार और के ले के
ख ारा वह चार ओर से घरा आ

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था। पीले रंग क साड़ी व र नमय
आभूषण से वभू षत गोप कशो रयां उस
रासम डल को घेरे ए ह। ीरा धका के
चरणार व द क सेवा म लगे रहना ही
उनका मनोरथ है। रासम डल के सब ओर
मधु क और अमृत क बाब लयां ह।
अनेक रंग के कमल से सुशो भत
डा-सरोवर रासम डल को चार ओर से
घेरे ए ह, जनम असं य भ र के समूह
गूजं ते रहते ह। रासम डल म असं य
कुं ज-कु ट र ह जो रासम डल क शोभा को
और बढ़ा रहे ह। ीराधा क आ ा से
असं य गोपसु द रयां रासम डल क र ा
म नयु रहती ह। उस रासम डल को
दे खकर जब सब दे वता उस पवत क
सीमा से बाहर ए तब उ ह रमणीय
वृ दावन के दशन ए।

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वृ दावन- वृ दावन ी राधा माधव को
ब त य है। यह युगल व प का
डा ल है। वरजा नद के जल से
भीगी ई मंद-मंद वायु क पवृ के समूह
को छू कर क तूरी जैसी सुग त हो जाती
है। ऐसी सुग त वायु का श पाकर
मो तया, बेला, जूही, कु द, के तक ,
माधवीलता आ द लता के समूह मदम त
हो झूमते दखाई दे ते ह। सारा वन कद ब,
मंदार, च दन आ द सुग त पु प क
अलौ कक सुगध ं से भरा रहता है जन पर
मधुलोभी भौरे गुजं न करते फरते ह। इन
मर क गुज ं ार से सारा वृ दावन मुख रत
रहता है। ऐसे ही आम, नारंगी, कटहल,

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ताड़, ना रयल, जामुन, बेर, खजूर, सुपारी,
आंवला, नीबू, के ला आ द के वृ समूह
उस वन क शोभा को और भी बढ़ा दे ते
ह।

वृ दावन के म य भाग म ब ीस वन से
यु एक नज नकुं ज' है जसका आंगन
अ यवट से अलंकृत है। प रागा द सात
कार क म णय से उसक द वार व फश
बने ह। र नमय अलंकार से सजी करोड़
गो पयां ी राधा क आ ा से उस वन
क र ा करती ह। साथ ही ीकृ ण के
समान प वाले व सु दर व व
आभूषण से सजे-धजे गोप उस वृ दावन
म इधर-उधर वचरण कर रहे थे। वहां
को ट-को ट पीली पूंछ वाली सव सा गौएं

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ह जनके स ग पर सोना मढ़ा है व द
आभूषण , घ ट व मंजीर से वभू षत ह।
नाना रंग वाली गाय म कोई उजली, कोई
काली, कोई पीली, कोई लाल, कोई तांबई
तो कोई चतकबरे रंग क ह। ध दे ने म
समु क तुलना करने वाली उन गाय के
शरीर पर गो पय के हाथ क हथे लय के
च (छापे) लगे ह। गाय के साथ उनके
छोटे -छोटे बछड़े भी ह जो चार तरफ
हरन क तरह छलांग लगा रहे ह। गाय
के झु ड म ही धम प सांड भी म ती म
इधर उधर घूम रहे थे। गौ क र ा
करने वाले गोपाल हाथ म बत व बांसुरी
लए ए ह व ीकृ ण के समान यामवण
ह। वे अ य त मधुर वर म भगवान
ीकृ ण क लीला का गान कर रहे थे।

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ऐसे रमणीय वृ दावन के दशन करते ए वे
दे वतागण गोलोकधाम म जा प ंच।े

गोलोक म कतने घर ह, यह कौन बता


सकता है? ीकृ ण क सेवा म लगे रहने
वाले गोप के र नज टत पचास करोड़
आ म ह जो व भ कार के भोग से
स ह। ीकृ ण के पाषद के दस
करोड़ आ म ह। पाषद म भी मुख वे
लोग जो ीकृ ण के समान ही प
बनाकर रहते ह, उनके एक करोड़ आ म
ह। ीरा धका म वशु भ रखने वाली
गोपांगना के ब ीस करोड़ व उनक
कक रय के दस करोड़ आ म ह।

भ के लए सुलभ गोलोक धाम

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सकड़ वष क तप या से प व ए
जो भ भूतल पर ीकृ ण क भ म
लीन ह, सोते-जागते हर समय अपने मन
को ीकृ ण म लगाए रहते ह, दन-रात
'राधाकृ ण ीकृ ण' क रट लगाए ए है,
नाम जपते ह, उनके कमबंधन न हो जाते
ह। ऐसे भ के लए गोलोक म ब त
सु दर नवास ान बने ए ह, जो उ म
म णर न से न मत व सम त भोगसाम ी
से स ह। ऐसे भवन क सं या सौ
करोड़ है।

थोड़ा आगे चलने पर दे वता को एक


अ यवट दखाई दया जसका व तार

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पांच योजन व ऊंचाई दस योजन है। उसम
सह तन और असं य शाखाएं थ ।
लाल-लाल पके फल से लदे उस वृ के
नीचे र नमय वे दकाएं बनी ई थी। उस
वृ के नीचे ीकृ ण के समान ही
पीता बरधारी, चंदन से अंग को सजाये
ए व र नमय आभूषण पहने गोप शशु
खेल रहे थे।

वहां से होते ए दे वतागण एक सु दर


राजमाग से होकर चले जो लालम णय से
न मत था और जसके दोन ओर र नमय
व ाम-म डप बने थे राजमाग पर
कुं कु म-के सर के जल का छड़काव कया
गया था। र नमय मंगल कलश व सह

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के ले के ख से उस पथ को दोन ओर
से सजाया गया था। झुंड-क -झुंड गो पकाएं
उस माग को घेरे खड़ी थ । कु छ र जाने
पर दे वता को गोपी शरोम ण ीकृ ण
ाणा धका ीराधा का नवास ान दखाई
दया।

ीराधा के अंत:पुर का वणन

ीराधा के अंत:पुर म वेश के लए


दे वता को सोलह ार पार करने पड़े
जो क उ म र न व म णय से न मत थे।
थम ार क र ा ारपाल वीरभानु कर
रहे थे उ ह ने भगवान ीकृ ण क आ ा
लेकर ही दे वता को थम ार से आगे
जाने दया। सरे ार पर च भानु हाथ म

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सोने का बत लए पांच लाख गोप के
साथ थे, तीसरे ार पर सूयभानु हाथ म
मुरली लए नौ लाख गोप स हत उप त
थे। चौथे ार पर हाथ म म णमय द ड
लए वसुभानु नौ लाख गोप के साथ,
पांचव ार पर हाथ म बत लए दे वभानु
दस लाख गो पय के साथ, छठे ार पर
श भानु दस लाख गो पय के साथ,
सातव ार पर र नभानु बारह लाख गोप
के साथ, आठव ार पर सुपा द ड व
बारह लाख गोप के साथ, नव ार पर
सुबल बारह लाख गोप के साथ पहरा दे
रहे थे। दसव ार पर सुदामा नामक गोप
जनका प ीकृ ण के ही समान था,
द ड लए बीस लाख गोप के साथ

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त त थे। यारहव ार पर जराज
ीदामा करोड़ गोप के साथ उप त थे,
ज ह ीराधा अपने पु के समान मानती
थ । उनक आ ा लेकर जब दे वे र आगे
गए तो आगे के तीन ार व का लक
अनुभव के समान अ तु , अ ुत,
अ तरमणीय व व ान के ारा भी
अवणनीय थे। उन तीन ार क र ा म
को ट-को ट गोपांगनाएं नयु थ । वे
सु द रय म भी परम सु दरी, प-यौवन से
स , र नाभरण से वभू षत,
सौभा यशा लनी व ीरा धका क या ह।
उ ह ने चंदन, अगु , क तूरी और कुं कु म से
अपना ृंगार कया आ था।

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सोलहवां ार सब ार म धान ी राधा
के अंतःपुर का ार था जसक र ा
ीराधा क ततीस (33) स खयां करती
थ । उन सबके प-यौवन व वेशभूषा,
अलंकार व गुण का वणन करना संभव
नह है।व ीराधा के ही समान उ वाली
उनक ततीस स खयां ह-सुशीला, श शकला,
यमुना, माधवी, र त, कद ब माला, कु ती,
जा वी, वयं भा, च मुखी, प मुखी ,
सा व ी, सुधा मुखी, शुभा, प ा, पा रजाता,
गौरी, सवमंगला, का लका, कमला, गा,
भारती, सर वती, गंगा, अ बका, मधुमती,
च ा, अपणा, सु दरी, कृ ण या, सती,
न दनी, और न दना। ीराधा क सेवा म

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रहने वाली गो पयां भी उ ह क तरह ह।
वे हाथ म ेत चंवर लए रहती ह। वहां
नाना कार का वेश धारण कए
गो पका म कोई हाथ से मृदंग बजा
रही थी, तो कोई वीणा-वादन कर रही थ ,
कोई करताल, तो कोई र नमयी कांजी
बजा रही थी, कु छ गो पकाएं नुपुर क
झनकार कर रह थ । ीराधा और
ीकृ ण के गुणगान स ब ी पद का
संगीत वहां सब ओर सुनाई पड़ता था।
क ह के माथे पर जल से भरे घड़े रखे
थे। कु छ नृ य का दशन कर रह थी।

इ नीलम ण और स री म णय से बना
यह ार पा रजात के पु प से सजा था।
उ ह छू कर बहने वाली वायु से वहां सव
द सुगध ं फै ली ई थी। ीराधा के उस

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आ यमय अ तःपुर के ार का अवलोकन
कर दे वता के मन म ीराधाकृ ण के
दशन क उ क ठा जाग उठ । उनके शरीर
म रोमांच हो आया और भ के उ े क से
आंख भर आ । ीकृ ण ाणा धका
ीराधा के अंत:पुर का सब कु छ
अ नवचनीय था। ीकृ ण ाणा धका
ीराधा के अंतःपुर का सब कु छ
अ नवचनीय था।

यह मनोहर भवन गोलाकार बना है और


इसका व तार बारह कोस का है। इसम
सौ भवन बने ए ह। यह चार ओर से
क पवृ से घरा है। ीराधाभवन इतने
ब मू य र न व न दय से न मत है क
उनक आभा व तेज से ही वह सदा
जगमगाता रहता है। यह अमू य
इ नीलम ण के ख से सुशो भत,

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र न न मत मंगल कलश से अलंकृत और
र नमयी वे दका से वभू षत है। व च
च ारा च त, मा ण य, मो तय व
हीर के हार से अलंकृत, र न क
सी ढ़य से शो भत, तथा र नमय द प से
का शत ीराधा का भवन तीन खाइय व
तीन गम ार से घरा है जसके येक
ार पर और भीतर सोलह लाख गो पयां
ी राधा क सेवा म रहती ह। ीराधा क
कक रय क शोभा भी अलौ कक है जो
तपाये ए वण के समान अंगकां त वाली,
र नमय अलंकार से अलंकृत व अ नशु
द व से शो भत ह।

फल, र न, स र, कुं कु म, पा रजात पु प


क माला , ेत चंवर, मोती-मा ण य क

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झालर, चंदन-प लव क ब दरवार,
चंदन-अगु -क तूरी जल का छड़काव,
फू ल क सुग से सुवा सत वायु और
ा ड म जतनी भी लभ व तुएं है-उन
सबसे उस ान को इतना वभू षत कया
गया था क वह सवथा अवणनीय,
अ न पत व अक पनीय है।

इस द नज नकुं ज (अंतःपुर) के भीतर


दे वता को एक तेजपुंज दखाई दया।
उसको णाम करने पर दे वता को उसम
हजार दल वाला एक ब त बड़ा कमल
दखाई दया। उसके ऊपर एक सोलह दल
का कमल है तथा उसके ऊपर भी एक
आठ दल वाला कमल है। उसके ऊपर
कौ तुभ न दय से ज ड़त तीन सी ढ़य

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वाला एक सहासन है, उसी पर भगवान
ी कृ ण ी रा धका जी के साथ
वराजमान ह।

म ण- न मत जगमग अ त ांगण ,
पु प-पराग से उ वल।
छह उ मय से वर हत वह वेद अ तशय
पु य ल।।
वेद के म णमय आंगन पर योगपीठ है
एक महान।
अ दल के अ ण कमल का उस पर
क रये सु दर यान।।
उसके म य वरा जत स मत न द-तनय
ीह र सान द।
द तमान नज द भा से स वता-सम
जो क णा-कं द।।

25
दे वता ने भगवान ीकृ ण के अ य त
मनोहर प को दे खा-उनका नूतन जलधर
के समान यामवण, फु ल लाल कमल
से तरछे ने , शरतच के समान नमल
मुख, दो भुजाएं, अधर पर म द मुसकान,
चंदन, क तूरी व कुं कु म से च चत अंग,
ीव स च व कौ तुभम ण भू षत
व ल, र नज ड़त करीट-हार-बाजूबंद,
आजानुल बनी वरमाला ये सब उनक
शोभा बढ़ाते ह। हाथ म कं गन ह जो
घूमती ई अ न (लुकारी) क शोभा बखेर
रहे ह। ी अंग पर द रेशमी अ य त
नमल पीता बर सुशो भत है, जसक

26
का त तपाये ए सुवण-क -सी है। ललाट
पर तलक है जो चार ओर चंदन से और
बीच म कुं कु म ब से बनाया आ है।
सर म कनेर के पु प के आभूषण ह।
म तक पर मयूर प शोभा पा रहा है।
ी अंग पर ृंगार के प म रंग- बरंगे
बेल-बूट क रचना हो रही है। व : ल
पर कमल क माला झूल रही है जस पर
मर गुजं ार कर रहे ह। उनके चंचल ने
ीराधा क ओर लगे ह। भगवान ीकृ ण
के वामभाग म वरा जत ी राधा के कं धे
पर उनक बांयी भुजा सुशो भत है।
भगवान ने अपने दा हने पैर को टे ढ़ा कर
रखा है और हाथ म बांसुरी को धारण कर
रखा है। वे र नमय सहासन पर
वराजमान ह जस पर र नमय छ तना
है। उनके य सखा वालबाल ेत चंवर

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लए सदा उनक सेवा म त पर रहते ह।
सु दर वेषवाली गो पयां माला व चंदन से
उनका ृंगार करती ह। वे म द-म द
मु कराते रहते ह। और वे गो पयां
कटा पूण चतवन से उनक ओर नहारती
रहती ह।

सबके आ दकारण वे वे ामय पधारी


भगवान सदै व न य कशोर ह। क तूरी,
कुं कु म, ग , चंदन, वा, अ त, पा रजात
पु प तथा वरजा के नमल जल से उ ह
न य अ य दया जाता है। राग-रा ग नयां
भी मू तमान होकर वा य और मुख से
उ ह मधुर संगीत सुनाती ह। वे रासम डल
म वरा जत रासे र, परमान ददाता,
सव स व प, मंगलकारी, मंगलमय,

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मंगलदाता और आ दपु ष ह। ब त-से
नाम ारा उ ह को पुकारा जाता है। ऐसा
उ कृ प धारण करने वाले भगवान
ीकृ ण वै णव के परम आरा य ह। वे
सम त कारण के कारण, सम त स दा
के दाता, सवजीवन और सव र ह।

वहां ीराधारानी र नमय सहासन पर


वराजमान होती ह। लाख गो पयां उनक
सेवा म रहती ह। ेत च ा के समान
उनक गौरका त है, अ ण औ ओर
अधर अपनी ला लमा से पह रए के फू ल
क ला लमा को परा जत कर रहे थे। वे
अमू य र नज टत व ाभूषण पहने, बांये
हाथ म र नमय दपण तथा दा हने म सु दर
र नमय कमल धारण करती ह। उनके

29
ललाट पर अनार के फू ल क भां त लाल
स र और माथे पर क तूरी-चंदन के सु दर
ब उनक शोभा को और बढ़ा रहे ह।
गाल पर व भ मंगल (कुं कु म, चंदन
आ द) से प ावली क रचना क गई है।
सर पर घुंघराले बाल का जूड़ा मालती
क माला व वे णय से अलंकृत है। वे
उ म र न से बनी वनमाला, पा रजात
पु प क माला, नुक ली ना सक म
गजमु ा क बुलाक, हार, के यूर, कं गन
आ द पहने ए ह। द शंख के बने ए
व च रमणीय आभूषण भी उनके ी
अंग को वभू षत कर रहे ह। उनके दोन
चरण कमल क भा को छ ने लेते थे
जनम उ ह ने ब मू य र न के बने ए
पाशक ( बछु ए) पहने ए ह। उनके

30
अंग-अंग से लाव य छटक रहा है।
म द-म द मुसकराते ए वे यतम ीकृ ण
को तरछ चतवन से नहार रह ह। यह
युगल व प आठ द स खय व
ीदामा आ द आठ गोपाल के ारा
से वत ह।

अ सखी करत सदा सेवा परम अन य।


ीराधा-माधव युगल क , कर नज जीवन
ध य।।
इनके चरण-सरोज म बार बार नाम।
क ना कर द ीजुगल-पद-रज-र त
अ भराम ।।

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