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नवम अध्या्

नयाट््-सयाहित्

संस्कृ त भाषा में विपलु नाट्य-सावितय िै। नाट्य-्कृ वत में जीिन ्ी विवभनन अिस्ाओ ं
्ा अन् ु रण व्या जाता िै। दृशय्ावय िोने ्े ्ारण नाट्य ्ो रूप् भी ्िते िैं।
नाट्याचाययों ने दस प्र्ार ्े रूप् बतलाए िैं। इनमें सबसे उत्कृ ष्ट नाट् माना गया िै।
अत: प्राय: लोग नाट्य, रूप्, रूप और नाट् ्ा प्रयोग समान अ््थ में ्रते िैं। संस्कृ त
भाषा में बिुत प्राचीन ्ाल से रूप् वलखे जाते रिे िैं। यि परमपरा आज त् चल रिी
िै। वलखने ्े सा्-सा् बिुत से रूप्ों ्ा अवभनय भी िोता रिा िै। राजसभाओ ं में
विविष्ट अिसरों पर संस्कृ त रूप्ों ्ा अवभनय िोता ्ा। इसी प्र्ार ग्ामों और नगरों
में भी नाट्-मण्डवलयाँ जनता ्े मनोरंजन ्े वलए नाट् खेलती ्ीं। जन सामानय में
संस्कृ त ्ा प्रयोग विव्ल िो गया तब लो्-प्रचवलत भाषाओ ं में नाट् खेले जाने
लगे। आज वस्वत यि िो गई िै व् संस्कृ त नाट् विविष्ट त्ा प्रबद्ध ु िगयों ्े बीच िी
अवभनीत िोते िैं।
संस्कृ त रूप्ों ्ी उतपवति ्ै से िुई? इस पर पाश्ात्तय विद्ानों ने पतिु वल्ा नकृतय,
धावम्थ् नकृतय, िीर पजू ा, यनू ानी प्रभाि इतयावद वसद्धानत वदए िैं। भरत ने अपने नाट्यिास्त्र
में आखयान वदया िै व् ब्रह्ा ने ऋग्वेद से पाठ्य (संिाद), साम्वेद से गीत, यज्ु वेद से
अवभनय त्ा अथ््व्वेद से रस ले्र नाट्य-िेद नाम् नई विधा (वजसे पंचम िेद ्िा
गया) वि्वसत ्ी। विि और पाि्थती ने क्रमि: ताण्डि और लासय नाम् नकृतय ्ी
वयिस्ा ्र्े इस विद्ा ्ो समकृद्ध व्या। नाट्य िास्त्र ्े अनसु ार भरत ्े पत्ु ों और
विष्यों ने अपसराओ ं और गनधियों ्े सा् वमल्र अमकृतमन्न और वत्परु दाि नाम्
रूप्ों ्ा अवभनय व्या ्ा। ये िी प्र्म रूप् ्े। िसततु : संस्कृ त नाट्ों ्ी उतपवति
इसी देि में जनसामानय ्े मनोरंजन ्े वलए िुई िै।
नाट्यिास्त्र रूप्ों ्े समबनध में वयाप् विधान ्रता िै। इसमें रूप्ों ्े भेद,
््ा-िसत,ु पात्, रस, अवभनय, गीत, नकृतय, रंगमचं ्ी वयिस्ा, भाषा ्ा प्रयोग आवद

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विषयों ्े विसतकृत वनयम बतलाए गए िैं। इस्ा समय प्र्म िताबदी ई. प.ू से पिले माना
गया िै। इसमें वनयमों ्ी वयाप्ता देखते िुए ्िा जा स्ता िै व् बिुत प्राचीन ्ाल
में िी नाट् से समबद्ध विज्ान वि्वसत िो गया ्ा। इससे नाट्ों ्े पया्थप्त मात्ा में वलखे
जाने ्ा भी अनमु ान िोता िै। यिाँ ्ुछ प्रमख
ु ससं ्कृ त नाट्ों ्ा पररचय वदया जा रिा िै।
भयास के नयाटक
सन् 1912 ई. में टी. गणपवत िास्त्री ्ो वत्िेनद्रम (्े रल) में 13 रूप्ों ्ी प्रावप्त िुई,
वजनिें उनिोंने भास ्ी ्कृ वतयाँ बतला्र प्रवसद्ध व्या। इन रूप्ों ्ो 'भासनाट्चक्र'
्ा संयक्त ु नाम वदया गया। इस्े पिू ्थ त् भास ्ा नाम प्रवसद्ध संस्कृ त नाट््ार ्े रूप
में जाना जाता ्ा, व्नतु उन्ी ्कृ वतयाँ निीं वमली ्ीं। आरमभ में उन सभी रूप्ों ्ो
भास्कृ त मानने में विद्ानों ्ो आपवति िुई, व्नतु धीरे -धीरे यि वििाद समाप्त िो गया।
इन रूप्ों में परसपर इतना अवध् सामय पाया गया व् इनिें भासरवचत मानने में ्ोई
आपवति निीं िुई।
भास ्े ्ाल ्े विषय में वििाद िै। गणपवत िास्त्री ने उन्ा ्ाल तीसरी िताबदी
ई. प.ू माना िै। ्ुछ भारतीय विद्ान् उन्ा वस्वत्ाल 400 ई. प.ू त् ले जाते िैं।
अवधसखं य विद्ानों ्ा यि विचार िै व् भास ्ावलदास (ई.प.ू प्र्म िताबदी) ्े पिू ि्थ तती
िैं, कयोंव् ्ावलदास ने अपने नाट् मालव्कावगनिवमत्रम् में भास ्ा नाम समरण व्या िै।
भास ्ी रचनाओ ं ्ो चार भागों में बाँटा जाता िै। प्रविमा निाटक और अविषवेक
रामायण पर आवरित िैं। बालचरिि, पञचिात्र, मधयमवयायोग, दिू ्ाकय, दिू घटोतकच,
कर्विाि त्ा ऊरुिगं नाम् रूप् महािािि पर आवरित िैं। स्पनि्ास्दत्त त्ा
प्रविज्ायौगन्धिायर उदयन और ्ास्दत्ता ्ी प्रवसद्ध ््ा पर आवरित िैं। अव्मािक
और चारुदत्त ्व्पत रूप् िैं। इन रूप्ों में स्पनि्ास्दत्त सिा्थवध् विखयात िै।
नाट्य-्ला ्ी दृवष्ट से भी इस्ा मित्ति िै। भास ्े सभी रूप् नाट्य-्ला ्ी
वि्ासािस्ा ्े सचू ् िैं। भाषा ्ी सरलता, छोटे िाकयों ्ा प्रयोग, अवभनय ्ी
सगु मता, उवचत िासय-प्रयोग त्ा ्ला ्ी दृवष्ट से भास ्े नाट् बिुत मित्तिपणू ्थ िैं।
चारुदत्त चार अ् ं ों ्ा रूप् िै, जो बाद में िद्रू ् ्े मृच्छकवटक ्ी रचना ्ा आधार
बना। भास ्ी ््पना िवक्त त्ा ््ान् ्ो सजाने ्ा ्ौिल बिुत उत्कृ ष्ट िै। भास
्े रूप्ों में उस ्ाल ्ी सामावज् और सांस्कृ वत् सचू नाएँ पया्थप्त रूप से वमलती िैं।
इनमें पात्ों ्ा सजीि अ् ं न व्या गया िै त्ा रस ्ी योजना भी उत्कृ ष्ट रूप में िुई िै।
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कयाहिदयास के नयाटक
्ावलदास ने तीन नाट् वलखे ्े— मालव्कावगनिवमत्र, व्क्रमो््वशीय त्ा
अविज्ानिशाकुनिल। इनमें अवनतम नाट् संस्कृ त िाङ्मय में सि्थरिेष्ठ माना जाता िै।
• मयािहवकयाह्नहमत्र— यि ए् ऐवतिावस् नाट् िै, वजसमें िगंु िंिीय राजा
अव्नवमत् ्ा दासी ्े िेि में रिने िाली विदभ्थ-राज्ुमारी मालवि्ा ्े प्रवत प्रेम
िवण्थत िै। इसमें पाँच अ् ं िैं। अव्नवमत् ्ी मिारानी धाररणी िरणागत मालवि्ा
्ो अपना लेती िै और नकृतय आवद लवलत-्लाओ ं ्ी विक्ा वदलाती िै। राजा
अपने अनत:परु में उस्ा नकृतय देख्र म्ु ध िो उठता िै। अनत:परु में विरोध और
तनाि िोने पर भी विदषू ् ्ी सिायता से राजा और मालवि्ा ्ी भेंट िो जाती
िै। अनतत: मिारानी धाररणी अपने आप मालवि्ा ्ा िा् अव्नवमत् ्े िा् में
दे देती िै। इसमें अव्नवमत् ्े वपता पष्ु यवमत् ्े द्ारा व्ए गए अश्वमेध यज् ्ा भी
स् ं े त िै त्ा अव्नवमत् ्े पत्ु िसवु मत् ्ी यिनों पर विजय ्ा भी िण्थन िै। इस
नाट् में राजप्रासाद ्े प्रणय-ष्डयनत्ों ्ा सजीि वचत्ण िै। प्रेम-प्रपंच ्ी घटनाएँ
चभु ते संिादों और रसपणू ्थ विनोद से भरी िैं। ्ावलदास ्ी इस प्र्म नाट्य ्कृ वत में
उन्े ्लातम् वि्ास ्ा बीज वनवित िै।
• हवक्रमोव्वशी्— यि ्ावलदास ्ा दसू रा नाट् िै। इसमें राजा परुु रिा और
अपसरा उि्थिी ्ी प्रेम-््ा ्ा िण्थन िै। यि ््ा ऋग्वेद और ब्राह्ण-ग्न्ों में
भी आई िै। परमपरा से वमले िुए ््ान् ्ो ्ावलदास ने बडे ्ौिल से पाँच
अ् ं ों में फै लाया िै। परुु रिा सिग्थ ्ी अपसरा उि्थिी ्ो देख्र म्ु ध िो जाता िै
और उि्थिी ्ा भी नाय् ्े प्रवत अनरु ाग िोता िै। मिारानी राजा ्ो उि्थिी से
प्रेम ्रने ्ी अनमु वत देती िै और उि्थिी ्ो भी ए् िष्थ ्े वलए परुु रिा ्े सा्
रिने ्ी अनमु वत वमल जाती िै। चत्ु ्थ अ् ं में उि्थिी ए् लता ्े रूप में बदल
जाती िै। परुु रिा विलाप ्रता िै। राजा ्े प्रेम से प्रभावित िो्र इनद्र उि्थिी ्ो
आजीिन राजा ्े सा् रिने ्ी अनमु वत दे देते िैं। इस नाट् में �कृ�ार ्े संयोग
और विप्रलमभ दोनों रूपों ्ा अतयनत मावम्थ् प्रयोग िुआ िै। इसमें ्ावलदास ्ी
नाट्य्ला और ्ावय्ला भी अवध् वि्वसत वदखाई पडती िै। प्र्कृ वत ्ा
मानिीय भािों ्े सा् अवध् सामजं सय इसमें वदखाया गया िै। उदािरण ्े वलए
उि्थिी ्े लता-रूप में पररणत िो जाने पर मिाराज परुु रिा सामने बिती नदी ्ो िी
अपनी प्रेयसी समझ बैठते िैं और उनमादग्सत िो्र उस्ा िण्थन ्रते िैं।

नाटय-साहित्
नाट् य-साहित्य
य-साहित्य
य-साहित् 87

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• अहभज्यानशयाकुन्ति— यि ्ावलदास ्ा अमर नाट् िै, वजसने समसत ससं ार
्े लोगों ्ो प्रभावित व्या िै। इसमें सात अं् िै। दुष्यनत और ि्ुनतला
्ी प्रेम-््ा इसमें वचवत्त िै। दुष्यनत िवसतनापुर ्ा राजा िै त्ा ि्ुनतला
्णि मुवन ्े आरिम में पलने िाली ए् सनु दर ्नया िै। आरिम में दष्ु यनत ्णि
्ी अनपु वस्वत में ि्ुनतला से गानधि्थ वििाि ्रता िै। ्ुछ वदन ििाँ रि्र िि
राजधानी लौट जाता िै। जाते समय िि ि्ुनतला ्ो िीघ्र बल ु ा लेने ्ा िचन देता
िै, व्नतु दिु ा्थसा ्े द्ारा ि्ुनतला ्ो वदए गए िाप ्े ्ारण िि उस िचन ्ो
भल ू जाता िै। इधर ्णि आरिम में लौट्र गभ्थिती ि्ुनतला ्ो पवतगकृि भेजने
्ी तैयारी ्रते िैं। आरिम ्े सभी चेतन ि अचेतन पदा््थ इस दृशय से वया्ुल िैं।
चत्ु ्थ अ्ं में ि्ुनतला ्ी वबदाई ्ा यि दृशय उत्कृ ष्ट िै। दिु ा्थसा ्े िाप ्े ्ारण
दष्ु यनत ि्ुनतला ्ो पिचान निीं पाता। उस्े द्ारा दी गई अँगठू ी भी ि्ुनतला
खो च् ु ी िै। इसवलए पिचान ्ा ्ोई उपाय भी निीं रिता। अनतत: ि्ुनतला
मारीच आरिम में ले जाई जाती िै, जिाँ िि भरत नाम ्े पत्ु ्ो जनम देती िै। इधर
जब दष्ु यनत ्ो िि अँगठू ी वमल जाती िै तब सब ्ुछ समरण िो जाता िै। िि बिुत
पश्ातिाप ्रता िै। संयोगिि इनद्र ्ी सिायता ्र्े लौटते समय दष्ु यनत मारीच
आरिम में जाता िै और उस्ी ि्ुनतला त्ा भरत से भेंट िो जाती िै। इस प्र्ार
नाट् ्ी सख ु द समावप्त िोती िै। इस नाट् में ्ावलदास ्ी नाट्य्ला अपने
चरमोत्ष्थ पर पिुचँ ी िै। घटनाओ ं ्ा संयोजन, प्रेम ्ा क्रवम् वि्ास, प्र्कृ वत ्ा
मनोरम वचत्ण, ि्ुनतला ्ी विदाई ्ा ्ारुवण् दृशय, विदषू ् ्ा िासय, संिादों
्ी अवभवयंजना, �कृ�ार-रस ्ा य्ेष्ट वनष्पादन, दिु ा्थसा ्े िाप ्ी ््पना—ये
सभी वमल्र इस नाट् ्ो बिुत ऊँचाई पर पिुचँ ाते िैं। ्ावलदास उपमा ्ा
प्रयोग ्रने में अतयनत ्ुिल िैं।
भारतीय परमपरा में इस नाट् ्े चत्ु ्थ अ् ं ्ो और उस्े भी चार श्ो्ों ्ो रिेष्ठ
बतलाया गया िै।
्ावयेषु नाट्ं रमयं, तत् रमया ि्ुनतला।
तत्ावप च चत्ु थोऽङ््सतत् शलो्चतष्ु टयम।् ।
जम्थन मिा्वि गेटे ने इस नाट् ्ी बिुत प्रिसं ा ्ी िै व् िसनत ्ा पष्ु प और
ग्ीष्म ्ा फल यवद ए् सा् देखना िो, तो ि्ुनतला में देख।ें मानि-जीिन ्े मावम्थ्
पक्ों ्ा वनरूपण इसमें बिुत ्ुिलता से िुआ िै।

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अश्वघोष कया शयारिपुत्रप्रकिण
इस्े लेख् अश्वघोष (प्र्म िताबदी ई.) िैं। यि रूप् नौ अ् ं ों में वलखा गया ्ा।
इस्े ्ुछ अि ं ताल-पत्ों पर वलवखत मधय एविया में वमले िैं। इन पत्ों ्ो सं्वलत
्र्े प्रो. ्य्डू स्थ ने ित्थमान िताबदी ्े आरमभ में जम्थनी में इन्ा प्र्ािन व्या ्ा।
इसमें िाररपत्ु और मौद्गलायन द्ारा बौद्ध धम्थ सिी्ार व्ए जाने ्ी ््ा िै। आवं ि्
रूप से प्राप्त िोने ्े ्ारण इस्े ््ान् ्ा परू ा ज्ान तो निीं वमलता, व्नतु इस्े
विदषू ् ्ा प्रा्कृ त-प्रयोग, छनदों ्ा प्रयोग, नाट् ्ा अ् ं ों में विभाजन इतयावद तत्ति
संस्कृ त नाट्य-विज्ान ्े वि्ास ्ा सं्ेत देते िैं। इस नाट् ्े सा् दो अनय नाट्ों
्े भी खवण्डत अि ं वमले ्े। ्ुछ आधवु न् विद्ान् इनिें भी शारिपत्रु प्रकिर ्ा िी अि ं
मानते िैं। इसमें ्ीवत्थ, धकृवत आवद प्रती्ातम् पात्ों ्ा सि्थप्र्म प्रयोग िै। अश्वघोष ्े
इस नाट् में िैली ्ा संयम उन्े मिा्ावयों ्े समान िी वमलता िै।
शूद्रक कया मृच्छकहटक
िद्रू ्-रवचत मृच्छकवटक 10 अ् ं ों ्ा रूप् िै, वजसे प्र्रण नाम् भेद में रखा जाता
िै। प्र्रण में ््ािसतु ्व्पत और सामावज् िोती िै, राज्ीय िातािरण से यि दरू
रिती िै। वयापारजीिी ब्राह्ण चारुदति इस्ा नाय् िै, जो उदारता ्े ्ारण वनध्थन िो
गया िै। इस्ी नावय्ा िसनतसेना उजजवयनी ्ी प्रवसद्ध गवण्ा िै। िि चारुदति से प्रेम
्रती िै। उस्े प्रेम में उनमति राजा ्ा शयाल् (साला) ि्ार इस्ा विरोध ्रता िै।
िि िसनतसेना ्ा गला दबा देता िै और ितया ्े झठू े आरोप में चारुदति ्ो नयायालय
में पिुचँ ा देता िै, व्नतु िसनतसेना मरती निीं। इसी बीच राजविपलि िोता िै और पाल्
्े स्ान पर आय्थ् राजा बनता िै। अ्समात् िी जीवित िसनतसेना ्े िधयस्ान पर
उपवस्त िो जाने ्े ्ारण, चारुदति ्ो दी गई मकृतयदु ण्ड ्ी सजा समाप्त िो जाती िै और
रूप् ्ी सख ु ातम् पररणवत िोती िै।
चारुदति ्ा पत्ु रोिसेन वमट्ी ्ी गाडी ्ा वखलौना निीं चािता, सिण्थि्ट चािता
िै। नावय्ा िसनतसेना उस्ी गाडी पर अपने सोने ्े आभषू ण ्डाल देती िै। वमट्ी ्ी
गाडी ्ा ््ान् बिुत मावम्थ् िै। अत: इस रूप् ्ा नाम मृच्छकवटक (मकृत-् वमट्ी,
ि्वट्-वखलौने ्ी गाडी) पडा िै। यि प्र्रण वििद्ध ु सामावज् ््ािसतु पर आवरित
िै। इसवलए व्सी नगर ्े राजप् पर घटी घटनाओ ं ्ा इसमें य्ा््थ वचत् वमलता िै।

नाटय-साहित्
नाट् य-साहित्य
य-साहित्य
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इसमें चारुदति जैसे पात् ्े गणु ों पर म्ु ध िो्र िसनतसेना जैसी गवण्ा अपने वयिसाय
्ो छोड देती िै। दसू री ओर इसमें ि्ार जैसा खलनाय् भी िै, जो राजा ्ा साला
िोने ्े ्ारण अि् ं ारी िै और दष्टु ता ्रता रिता िै। इसमें जआु खेलने िाले जआ ु री,
घर में ्ाम ्रने िाली दासी, राजतनत् ्ी दगु ्थवत ्रने िाला राजा, चोरी ्र्े अपनी
प्रेवम्ा ्ो आभषू ण देने िाला प्रेमी, वमत् ्ी वनध्थनता में भी सा् देने िाला िासय-पात्
विदषू ्, पवतव्रता धतू ा (चारुदति ्ी पतनी) और धन से अवध् सद्गणु ों ्ी पजू ा ्रने
िाली गवण्ा िसनतसेना जैसे अने् पात् िैं, जो इस प्र्रण में रोच्ता और रोमांच
उतपनन ्रते िैं। अपने यगु ्े समाज और संस्कृ वत ्ो यि सजीि रूप में उपवस्त ्रने
िाला ए् क्रावनत्ारी रूप् िै।
मृच्छकवटक ्े लेख् िद्रू ् ्े वयवक्तति और ्ाल ्े विषय में बिुत वििाद िै।
इस्ी प्रसतािना में िद्रू ् ्े राजय ्रने और उस्ी मकृतयु ्ा भी उ्लेख िै। वनवश्त
रूप से यि प्रसतािना बाद में जोडी गई िै। िद्रू ् ्ो ्ुछ लोग ्ा्पवन् पात् मानते
िैं। सामानयत: तीसरी-चौ्ी िताबदी ई. ्े उजजैन ्ा वचत् अवं ्त िोने ्े ्ारण
मृच्छकवटक ्ी रचना इस ्ाल में मानी जा स्ती िै।
हवशयाखदत्त कया मुद्रयाियाक्षस
यि वििाखदति-रवचत सात अ् ं ों ्ा नाट् िै, जो राजनीवत् ््ान् से संबद्ध िै।
इस्ी ््ािसतु मौय्थ-िंि ्ी स्ापना से जडु ी िै। वििाखदति ्ा समय पाँचिी-छठी
िताबदी माना जाता िै। लेख् राजनीवत त्ा अने् िास्त्रों ्ा मिान् पवण्डत ्ा। इस
नाट् में चाणकय ्े द्ारा ननद-राजाओ ं ्े विधिंस ्ा िण्थन व्या गया िै। इस्े बाद
चनद्रगप्तु मौय्थ ्ो पाटवलपत्ु ्े वसंिासन पर बैठाया जाता िै। चाणकय सियं राजनीवत
से संनयास लेना चािता िै। इसवलए िि ननदों ्े भतू पिू ्थ मनत्ी राक्स ्ो चनद्रगप्तु ्ा
प्रधानमत्ं ी बनाने ्ा प्रयतन ्रता िै, व्नतु राक्स ननदों ्े प्रवत सिावमभवक्त रखता िै। िि
न चाणकय ्ो प्रवतवष्ठत िोते देखना चािता िै, न चनद्रगप्तु ्ो। िि मलय्े तु नाम् राजा
्े सा् वमल्र चनद्रगप्तु ्ो राजयचयतु ्रने ्ी योजना बनाता िै। इसवलए चाणकय ्ा
्ाम बिुत ्वठन िै, वफर भी िि अपनी ्ूटनीवत से राक्स ्ो असिाय बना देता िै,
वमत्ों से उसे पकृ््् ्र देता िै और अनतत: राक्स चनद्रगप्तु ्ा मनत्ी पद सिी्ार ्रने
्े वलए वििि िो जाता िै। चाणकय ्ी ्ूटनीवत में सिा्थवध् सिायता राक्स ्ी मद्रु ा
(मिु र ्े रूप में प्रयक्त
ु िोने िाली अँगठू ी) से वमलती िै, जो संयोगिि चाणकय ्े िा्

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लग जाती िै। यि मद्रु ा िी राक्स ्ी पराजय ्ा ्ारण बनती िै। इस्े आधार पर नाट्
्ा नाम्रण िुआ िै।
इस नाट् में चाणकय और राक्स ्ी ्ूटनीवतयों ्ा संघष्थ वदखाया गया िै। यि
परमपरा से िट्र वलखा गया नाट् िै, कयोंव् इसमें न ्ोई नावय्ा िै और न �कृंगार
रस िी िै। यिाँ राजनीवत् संघष्थ ्ी भवय क्रीडा िै, जिाँ दो परसपर विपक्ी राजनीवतज्
वभडे िुए िैं। राक्स ्ी पराजय इसवलए िोती िै व् िि भाि् ु और सिावमभक्त िै।
चाणकय उस्ी यो्यता पर म्ु ध िै। इसवलए सियं प्रधानमत्ं ी न बन्र िि राक्स ्ो िी
इस पद पर बैठाने ्े वलए प्रयतन ्रता िै। ससं ्कृ त ्े सभी नाट्ों ्ी अपेक्ा ््ान्
्ी सवु यिवस्त अवनिवत में यि नाट् आगे िै। घटनाएँ योजना ्े अनसु ार चलती िैं।
उनमें विलक्ण सजािट िै। अनत में राक्स ्ा मनत्ीपद सिी्ार ्रना सभी ्े वलए
लाभदाय् िोता िै; पाटवलपत्ु ्ा राजय, यो्य राजा और यो्य मनत्ी पा्र दृढ़ िोता िै।
इस प्र्ार चाणकय ्ा तयाग और राष्ट्रभवक्त भी इसमें प्रदवि्थत िै। इसमें प्रदवि्थत ्ूटनीवत
आज ्े यगु में भी अन् ु रणीय िै।
िष्व के रूपक
राजा िष्थ या िष्थिध्थन ्ा समय सातिीं िताबदी ई. ्ा पिू ा्थद्ध्थ िै। ये स्ाणिीश्वर (्ुरूक्ेत्
्े पास) ्े इवतिास प्रवसद्ध राजा ्े। उनिोंने बाण, मयरू आवद ्वियों ्ो आरिय वदया
्ा। इन्े समय में चीनी यात्ी ह्ेनसांग भारत आया ्ा। इनिोंने तीन रूप् वलखे, वजनमें
दो नावट्ाएँ िैं— वप्रयदवश्वका और ितनिा्ली त्ा ए् नाट् िै– नागाननद।
• हप्र्दहश्वकया— वप्रयदवश्वका और रतनािली ए् िी प्र्ार ्ी ््ािसतु पर
आवरित नावट्ाएँ िैं। प्रतये् में चार अ् ं िैं। दोनों ्े नाय् उदयन िैं, परनतु
नावय्ा पकृ्््-पकृ््् िैं। वप्रयदवश्वका नावट्ा में प्रेवम्ा ्ा नाम आरणय्ा िै, जो
बाद में वप्रयदवश्वका ्िी जाती िै। राजा उदयन मिारानी ्े भय से वछप-वछप्र
नावय्ा से वमलता िै। नावय्ा राजप्रासाद में िी िरणागत ्े रूप में रिती िै।
विदषू ् राजा ्े प्रेम-वयापार में सिाय् िोता िै।
• ितनयाविी— इस नावट्ा ्ी नावय्ा सागरर्ा िै, कयोंव् उस्ी रक्ा सागर से ्ी
गई ्ी। यिी बाद में ितनिा्ली ्िी जाती िै। उदयन ्ा चररत् धीरलवलत नाय् ्ा
िै, जो वनवश्नत, ्ला-प्रेमी त्ा सख ु जीिी िै। ऐसा प्रतीत िोता िै व् वप्रयदवश्वका

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नावट्ा ्ा संिोधन ्रने ्े वलए िष्थ ने रतनािली ्ी रचना ्ी ्ी। दोनों पर
्ावलदास ्े मालव्कावगनिवमत्र ्ा बिुत प्रभाि िै।
• नयागयाननद— यि दोनों से ््ान् और प्रभाि में वभनन िै। यि जीमतू िािन ्ी ््ा
से समबद्ध िै। इसमें पांच अ् ं िैं। इस्े पिू ा्थद्ध्थ में जीमतू िािन और मलयिती ्ी
प्रेम-््ा ्ा िण्थन िै, व्नतु उतिराद्ध्थ में जीमतू िािन ्े आतमतयाग ्ी ््ा िै। िि
गरुड से नाग ्ी रक्ा ्रता िै और िख ं चडू ्े स्ान पर सियं गरुड ्ा भक्य बनता
िै। गरुड उस्े तयाग से प्रसनन िो्र सभी नागों ्ो जीवित ्र देते िैं। इस प्र्ार यि
मिायान बौद्ध धम्थ ्े आदि्थ ्े अन् ु ू ल बोवधसत्ति ्ी ््ा ्ो नाट् ्े रूप में
प्रसततु ्रता िै। मानि-जावत ्ो अविसं ा ्ी विक्ा देना इस्ा उद्ेशय िै। इस नाट्
्ो िष्थ ने उस समय वलखा ्ा, जब िे बौद्ध मत सिी्ार ्र च् ु े ्े। बौद्धों ्े बीच
इस नाट् ्ा बिुत प्रचार रिा िै। नाट् द:ु खानत रूप धारण ्र लेता, व्नतु गौरी
देिी ्े वदवय प्रसाद ्ी ््ा ्े समािेि से सख ु ानत बन जाता िै।
िष्थ ने अपने रूप्ों ्ो सरल भाषा में प्रसादगणु से यक्त ु िैली में वलखा िै।
उनिोंने जिाँ नावट्ाओ ं में �कृंगार रस ्ी धारा बिायी िै, ििाँ निागानिनद में िानत रस ्ो
मखु य रस रखा िै। ्ला और ््ान् ्ी दृवष्ट से उत्कृ ष्ट न िोने पर भी ऐवतिावस् दृवष्ट
से िष्थ ्े रूप्ों ्ा मित्ति िै। नाट्य-संविधान ्ी दृवष्ट से ितनिा्ली बिुत मित्ति रखती
िै, कयोंव् ्ावयिासत् ्े आचाययों ने इस नावट्ा ्े अने् स्लों ्ो प्रचरु मात्ा में
उदािरण ्े रूप में प्रसततु व्या िै।
भवभूह्त के रूपक
भिभवू त ्ावलदास ्े बाद दसू रे उत्कृ ष्ट नाट््ार माने जाते िैं। सभी नाट््ारों ्ी
अपेक्ा उनिोंने अपने विषय में अवध् सचू ना दी िै। िे विदभ्थ-प्रदेि ्े वनिासी ्े। िे
यज्ु वेद ्ी तैवतिरीय िाखा ्े अधयेता ब्राह्ण-िंि में उतपनन िुए ्े। उन्ा दसू रा नाम
रिी्णठ ्ा। उन्ा समय 700 ई. ्े आसपास माना जाता िै। भिभवू त ्ई िास्त्रों ्े
पवण्डत त्ा अद्ुत िैली्ार ्े। इनिोंने तीन रूप् वलखे वजनमें महा्ीिचरिि और
उत्तििामचरिि राम ्ी ््ा पर आवरित नाट् िैं, मालिीमा्ध् प्र्रण िै।
• मियावीिचरि्त— इसमें सीता-वििाि से आरमभ ्र्े राजयावभषे् त् राम ्े
जीिन ्ी घटनाएँ सात अ् ं ों में िवण्थत िैं। इस्ा प्रमख
ु विषय िै राम ्ो नष्ट ्रने
्े वलए व्ए गए रािण ्े प्रयतनों ्ी विफलता त्ा राम ्ा स्ुिल अयोधया

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लौट आना। नाट् ्ी ््ािसतु राम-रािण ्े बीच राजनीवत् ष्ड्यनत् ्े आधार
पर वि्वसत िुई िै। इसमें रािण ्ा मनत्ी मा्यिान् मित्तिपणू ्थ भवू म्ा वनभाता िै।
रािण ्ा राम ्े प्रवत क्रोध तभी से िै, जब उसे सीता और जन् द्ारा सीता ्े
िर ्े रूप में असिी्ार ्र वदया गया ्ा। अनय राक्सों ्े िध से रािण बौखला
उठता िै। परिरु ाम और बावल ्ी ््ाएँ राम ्ो नष्ट ्रने ्ी मा्यिान् ्ी
योजना ्ा अि ं िैं। राम ्ो िनिास वदलाने में मन्रा िेि में िपू ्थणखा ्ै ्े यी ्े
पास जाती िै। यि भी भिभवू त ्ी ््पना िै। अनत में रािण और मा्यिान् ्ी
यद्धु नीवत विफल िो जाती िै। इस नाट् में भिभवू त नाट््ार से अवध् ्वि ्े
रूप में प्र्ट िोते िैं। ्ौवट्य ्े अ््थिास्त्र ्े प्रभाि में रि्र भिभवू त ने इस्ी
रचना ्ी िै। इसवलए राजनीवत् ष्ड्यनत् और नाट्य्ला में सामजं सय निीं रि
पाया िै।
• मयाि्तीमयाधव— यि 10 अ् ं ों ्ा ए् प्र्रण िै। इसमें भरू रिसु ्ी पत्ु ी मालती
त्ा देिरात ्े पत्ु माधि ्े वििाि ्ी मखु य ््ा िै। दोनों ्े वििाि ्ा वनश्य
उन दोनों ्े वपता तभी ्र च् ु े ्े, जब िे सियं विद्ा्ती ्े, व्नतु िे अपनी योजना
्ाया्थवनित निीं ्र स्े ्े। ्ारण यि ्ा व् भरू रिसु वजस राजा ्ा मनत्ी ्ा, िि
राजा मालती ्ा वििाि अपने चचेरे भाई ननदन ्े सा् ्राना चािता ्ा। इसवलए
्ामनद्ी नाम् योवगनी ्ो मालती और माधि ्े वििाि ्ा भार वदया जाता िै।
इस्े सा्-सा् म्रनद और मदयवनत्ा ्ा प्रेम-प्रसंग भी चलता िै। यिाँ मखु य
प्रेमी गौण िो गए िैं और गौण प्रेमी अवध् रोच् िो गए िैं। मालती ्ा अपिरण
्ापावल्ों द्ारा व्या जाता िै और अघोरघणट नाम् ्ापावल् मालती ्ी
बवल देने ्ी तैयारी ्रता िै। संयोगिि माधि अघोरघणट ्ो मार्र मालती ्ो
बचा लेता िै। उन दोनों ्ा गप्तु वििाि िो जाता िै। उधर म्रनद ्ा मालती ्े िेि
में ननदन से वििाि ्राया जाता िै, वजससे नाट् में िासय-तत्ति ्ी सकृवष्ट िोती िै।
भिभवू त इस नाट् ्ी रचना में ्ामिास्त्र त्ा नाट्यिास्त्र ्े प्रभाि में ्े। इसीवलए
उनिोंने प्रेम ्ी सभी सक्ू म अिस्ाओ ं ्ा िण्थन व्या िै त्ा विवभनन रसों ्े पररपा्
्ा भी प्रयास व्या िै। इस नाट् में �कृंगार मखु य रस िै, व्नतु भयान्, अद्ुत, रौद्र
आवद रस भी य्ेष्ट िैं। शमिान, तावनत्् साधना आवद ्ा वनरूपण इसमें बिुत रोच्
और ्ावयातम् िै।

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• उत्तिियामचरि्त— यि भिभवू त ्ा सि्थरिष्ठे नाट् िै। उत्तिे ियामचरि्ते
भवभूह्तहव्वहशष््ते। इसमें राम ्े उतिरितती जीिन ्े ्रुण पक् ्ा नाट्य रूप
प्रसततु व्या गया िै। इसमें सात अ् ं िैं। रािण ्ो मार्र जब राम अयोधया
लौटते िैं, तब उन्े सख ु ्े वदन क्वण् रूप में आते िैं, कयोंव् िे गप्तु चर से सीता
्े विषय में लो्ापिाद सनु ते िैं। राम ्े आदेि से लक्मण सीता ्ो गगं ा तट पर
िन में छोड देते िैं। सीता गभ्थिती िैं। िि िा्मीव् ्े आरिम में पिुचँ जाती िैं,
जिाँ उन्े ्ुि और लि दो पत्ु िोते िैं। राम सीता ्े तयाग से भीतर-िी-भीतर
घटु ते रिते िैं, व्नतु अपने द:ु ख ्ो प्र्ट निीं ्र पाते। िमब् ू ्ा िध ्रने ्े
वलए िे दण्ड्ारणय पिुचँ ते िैं, जिाँ पचं िटी ्े दृशय ्ो देख्र विह्ल िो उठते
िैं। भिभवू त ने इस नाट् ्े तकृतीय अ् ं में छाया-दृशय ्ी योजना ्ी िै, वजसमें
सीता अदृशय राम ्ो देखती िै। राम ्ा भीतरी भाि यिाँ मक्त ु रूप से प्र्ट िोता
िै। राम अयोधया में अश्वमेध यज् ्रते िैं। यज् ्ा अश्व भ्रमण ्रते िुए िा्मीव्
्े आरिम में पिुचँ ता िै, जिाँ लि उसे प्ड लेता िै। लक्मण ्ा पत्ु चनद्र्े तु
अश्वरक्् िै, इसवलए लि से उस्ा यद्ध ु िोता िै। लि जकृमभास्त्र ्ा प्रयोग ्रता
िै, वजससे राम ्ी सेना सो जाती िै। राम सियं यद्ध ु भवू म में आ्र अपने पत्ु ों ्ो
पिचानते िैं। सप्तम अ् ं में अयोधया में िा्मीव् द्ारा रवचत रामविषय् नाट्
्ा अवभनय िोता िै, वजसमें सीता ्े पररतयाग ्े बाद ्ी घटनाएँ वदखाई जाती
िैं। नाट् ्े बीच नाट् ्ा यि प्रयोग गभ्थनाट् ्िलाता िै। इसमें सीता ्ो
लो्ापिाद से मक्त ु ्र्े राम से वमला वदया जाता िै। इस प्र्ार नाट् ्ी सख ु द
पररणवत िोती िै।
इस नाट् में भिभवू त ने नाट्य त्ा ्ावय ्ा अद्ुत सामजं सय वदखाया िै। इस
नाट् ्ा ््ान् ्रुण रस से भरा िै। इसमें वनमन ्ोवट ्ा िासय वब््ुल निीं िै।
अविज्ानिशाकुनिल में जिाँ आननद और सौनदय्थ ्ा िातािरण िै, ििाँ उत्तििामचरिि
गमभीर और ्ारुवण् िातािरण प्रसततु ्रता िै। इसवलए इस नाट् में िवण्थत प्र्कृ वत भी
भयािि और विसमय उतपनन ्रने िाली िै। गमभीरता, आधयावतम्ता और दामपतय-प्रेम
्ी उदातिता में भिभवू त अवद्तीय िैं।
अपने तीन रूप्ों में भिभवू त ए् योजना ्े अनसु ार ्ाम ्रते िैं। महा्ीिचरिि
जिाँ जीिन ्े प्र्म चरण से समबद्ध नाय् और नावय्ा ्ो चनु ्र िीर रस ्ो मखु य
रस बनाता िै, ििाँ मालिीमा्ध् नाय्-नावय्ा और �कृ�ार रस ्ो प्रमख ु ता देता िै।

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उत्तििामचरिि में नाय्-नावय्ा ्ी प्रौढ़ािस्ा ्े ्ारण ्रुण रस ्ो चनु ा गया िै। इस
प्र्ार समपणू ्थ जीिन ्ो उनिोंने तीन नाट्ों में वयिवस्त व्या िै।
भट्टनयािया्ण कया वेणीसिं याि
इस्े लेख् भट्नारायण िैं। इन्ा समय सातिीं या आठिीं िताबदी ई. िै। भट्नारायण
बंगाल ्े राजा आवदिरू ्े द्ारा वनमवनत्त पाँच ्ानय्ुबज ब्राह्णों में से ए् ्े।
िेणीसिं ार छ: अ् ं ों ्ा िीर रस प्रधान नाट् िै। इस्ा ््ान् महािािि पर आवरित
िै। द:ु िासन द्ारा िा्ों से घसीट्र द्तू भिन में लाई गई द्रौपदी ्ी िेणी (खल ु े ्े ि)
्ा द:ु िासनिध ्े बाद भीम द्ारा रक्त-रंवजत िा्ों से बाँधा जाना इस नाट् ्ा मखु य
््ान् िै, वजससे इस्ा नाम्रण भी िुआ िै। भीम ने प्रवतज्ा ्ी ्ी व् वजस िेणी ्ो
द:ु िासन ने खींचा िै, उसे उसी ्े रक्त से रंवजत िा्ों से मैं बाँधगंू ा। बिुत बडा ््ान्
िो जाने से ्िीं-्िीं इस्ा सिरूप ््ातम् िो गया िै। भट्नारायण ने भीम, द्रौपदी,
्ण्थ त्ा अश्वत्ामा ्े चररत्-वचत्ण बिुत ्ुिलतापिू ्थ् व्ए िैं। नाट् ्े बीच में
दयु थोधन और भानमु ती ्े प्रेम ्ा दृशय बिुत प्रभािपणू ्थ िै, व्नतु विद्ानों ने नाट् ्े िीर
रस प्रधान िातािरण में इसे अनवु चत ्िा िै।
््ान् ्े संयोजन में नाट््ार ्ोई योगदान निीं ्र स्ा िै, व्नतु ्ुछ रोच्
और प्रभािपणू ्थ दृशय उसने अिशय वदए िैं। भट्नारायण ्ी िैली ओजोगणु से पररपणू ्थ
गौ्डी िै, वजसमें लमबे समास भरे िैं। िीर रस प्रधान िोने ्े ्ारण इस्ी बिुत प्रवसवद्ध
िै। नाट्यिावस्त्रयों ने इससे बिुत उद्धरण वदए िैं।
अन् नयाटक
संस्कृ त भाषा में वलखे गए नाट्ों ्ी संखया िजार से भी अवध् िै। इसमें प्रवतवदन िकृवद्ध
िोती जा रिी िै। रूप्ों ्े विवभनन भेदों ्ी रचना संस्कृ त में िोती रिी िै। इस प्र्ार
प्र्रण, भाण, प्रिसन, वयायोग इतयावद विविध रूप्ों ्ा लेखन िोता रिा िै। सिा्थवध्
प्रचवलत रूप् नाट् िी िै। संस्कृ त में ्ुछ नाट् प्रती्ातम् भी िैं, जो भािातम्
विषयों ्ो (जैसे— मोि, ्ाम, क्रोध, वििे्, िावनत, भवक्त) पात् बना्र वलखे गए
िैं। ऐसे नाट्ों में जयनत भट् (निीं िताबदी ई.) ्ा आगमडमबि अ्िा षणमिनिाटक,
्कृ ष्णवमरि (्यारििी िताबदी ई.) ्ा प्रबो्धचनद्ोदय, यि:पाल (तेरििीं िताबदी ई.)
्ा मोहिाजपिाजय, िेदानतदेवि् (चौदििीं िताबदी ई.) ्ा संकलपसयू योदय, ्ण्थपरू
(सोलििीं िताबदी ई.) ्ा चैिनयचनद्ोदय इतयावद प्रमख ु िैं।

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भट्नारायण ्े बाद वजतने नाट््ार िुए, उनिोंने प्राय: लक्ण-ग्न्ों ्े आधार पर
नाट् वलखे। इससे इस विधा ्ा सिाभावि् वि्ास समाप्त िो गया। ऐसे नाट््ारों में
मरु ारर (अनिघ्विाघ्), दामोदर वमरि (हनिमु ननिाटक), राजिेखर (बालिामायर, बालिािि,
कप्विू मञजिी त्ा व्द्धशालिवञजका इतयावद प्रमख ु िैं।
प्राचीन ्ाल ्े चार भाणों ्ा ए् संग्ि मद्रास से 1922 ई. में प्र्ावित िुआ ्ा।
इसमें िद्रू ् ्ा पद्मप्राभकृत्, िररुवच ्ी उियाविसारिका, ईश्वरदति ्ा ्धत्तू व्व ्टस्ं ाद
त्ा शयावमल् ्ा पादिावडिक भाण ्े। इनमें समाज ्े त्ा्व्त उचच-िग्थ ्ी
विरूपता त्ा वनमन-िग्थ ्ा सजीि और रोच् वचत्ण िै। सातिीं िताबदी ्े प्लि
नरे ि मिेनद्रविक्रम ्ा मत्तव्लासप्रहसनि तात्ावल् धावम्थ् पाखण्ड ्ा िण्थन
्रता िै। बारििीं िताबदी ई. ्े ितसराज ने छ: प्र्ार ्े रूप्ों ्ी रचना ्ी ्ी। ये
िैं— वकिािाज्वनिु ीय (वयायोग), रुवकमरीहिर (ईिामकृग), वत्रपिु दाह (व्डम), समद्ु मनथनि
(समि्ार), कप्विू चरिि (भाण) त्ा हासयचडू ामवर (प्रिसन)। इसी प्र्ार विवभनन यगु ों
में विवभनन प्र्ार ्े रूप् वलखे गए।
आधवु न् ्ाल में ससं ्कृ त नाट्ों ्े ््ान् में विविधता पाई जाती िै। मिापरुु षों
्ी जीिनी, प्रवसद्ध ऐवतिावस् घटनाएँ, राजनीवत् वयिस्ाएँ, सामावज् ्ुरीवतयाँ
इतयावद विविध विषयों ्े ््ान् नाट्ों में वलए जाते िैं।

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ध्या्तव् हिनदु
♦ रूप् दृशय-्ावय ्ा ए् नाम िै वजस्े दस प्र्ार िैं। रूप् ्े दस प्र्ारों में
नाट् सबसे प्रमख ु िै।
♦ आचाय्थ भरत ने नाट्यिास्त्र ्ी उतपवति ्े समबनध में अने् पौरावण् मतों ्ो
सिी्ार व्या िै। भरत मवु न ्े अनसु ार ब्रह्ा ने नाट्य िेद ्ो उतपनन व्या और
िङ््र त्ा पाि्थती ने इसे समकृद्ध व्या।
♦ टी. गणपवत िास्त्री ने भास ्े तेरि नाट्ों ्ी खोज ्ी। वजस्ा विभाजन चार
भागों में व्या गया िै—
(्) रामायण पर आवरित— 1. प्रवतमा 2. अवभषे्
(ख) मिाभारत पर आवरित— 1. बालचररत 2. पञचरात्
3. मधयमवयायोग 4. दतू िाकय
5. दतू घटोत्च 6. ्ण्थभार
7. ऊरुभगं
(ग) उदयन ्ी ््ा पर आवरित 1. सिपनिासिदति
2. प्रवतज्ायौगनधरायण
(घ) ्व्पत रूप् 1. अविमार् 2. चारुदति
♦ ्ावलदास ्े तीन प्रमख ु नाट् िैं— मालाव्कावगनिवमत्र, व्क्रमो््वशीय और
अविज्ानिशाकुनिल
♦ अश्वघोष ्े द्ारा रवचत िाररपत्ु प्र्रण में िाररपत्ु और मौद्गलायन ्े द्ारा बौद्ध
धम्थ सिी्ार व्ए जाने ्ी ््ा िै।
♦ िद्रू ्-रवचत मृच्छकवटक दस अ् ं ों ्ा सामावज् रूप् िै।
♦ वििाखदति द्ारा रवचत मद्ु ािाक्षस सात अ् ं ों ्ा राजनीवत् नाट् िै।
♦ िष्थ ने तीन रूप् वलखे ्े, वजसमें दो नावट्ाएँ— वप्रयदवश्वका और ितनिा्ली त्ा
ए् नाट् निागानिनद िै।
♦ भिभवू त ने तीन रूप् वलखे िैं, वजनमें महा्ीिचरिि और उत्तििामचरिि राम ्ी
््ा पर आवरित नाट् िैं और मालिीमा्ध् प्र्रण िै।
♦ भट्नारायण ने ्वेरीसहं ाि ्ी रचना ्ी वजस्ी विषयिसतु मिाभारत पर आधाररत िै।
♦ संस्कृ त भाषा में अनय नाट्ों ्ी संखया िजार से अवध् िै।

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अभ्यास-प्रश्न

प्र. 1. रूप् व्से ्िते िैं? उस्े भेदों ्ा उ्लेख ्ीवजए।


प्र. 2. रूप्ों में नाट् ्ा स्ान बताइए।
प्र. 3. ससं ्कृ त नाट् ्ा उद्ि ्ै से िुआ?
प्र. 4. नाट्यिास्त्र ्ा लेख् ्ौन िै?
प्र. 5. रूप्ों ्ी उतपवति ्े समबनध में भरतमवु न ने कया ्िा िै?
प्र. 6. शारिपत्रु प्रकिर ्ो व्स ््ा ्े आधार पर वलखा गया?
प्र. 7. भास ्े सिा्थवध् प्रवसद्ध नाट् ्ा नाम वलवखए।
प्र. 8. मृच्छकवटक व्स प्र्ार ्ा रूप् माना जाता िै? उस्ी ््ािसतु ्ा आधार कया िै?
प्र. 9. ्ावलदास ने व्तने नाट् वलखे िैं? उन्े नाम वलवखए।
प्र. 10. ्ावलदास ्ा ्ौन-सा नाट् सारे संसार में प्रवसद्ध िै और कयों?
प्र. 11. मद्ु ािाक्षस नाट् ्ी रचना व्सने ्ी? इसमें व्न पात्ों ्े बीच सघं ष्थ िुआ?
प्र. 12. अनय नाट्ों और मद्ु ािाक्षस में कया अनतर िै?
प्र. 13. भिभवू त ्ौन ्े? उन्ी प्रवसवद्ध ्ा ्ारण बताइए।
प्र. 14. उत्तििामचरिि में कया िण्थन व्या गया िै? उसमें व्तने अ्ं िैं?
प्र. 15. वटपपणी वलवखए—
(्) गभ्थनाट्
(ख) लि और ्ुि
(ग) चद्रं ्े तु
(घ) िा्मीव्
प्र. 16. िष्थिद्ध्थन ्ी सभा में ्ौन-्ौन ्वि ्े?
प्र. 17. वप्रयदवश्वका और ितनिा्ली नावट्ाएँ व्सने वलखीं?
प्र. 18. भट्नारायण व्स समय में िुए? उन्ा ्ौन-सा नाट् प्रवसद्ध िै?
प्र. 19. नीचे वलखे नाट्ों ्े लेख्ों ्े नाम वलवखए—
(्) प्रबोधचनद्रोदय
(ख) मोिराजपराजय
(ग) वप्रयदवि्थ्ा
(घ) अनघ्थराघि
(ङ) सं््पसयू थोदय
(च) िनमु ननाट्
प्र. 20. राजिेखर ्ी रचनाएँ ्ौन-्ौन सी िैं?
प्र. 21. ितसराज ने व्तने प्र्ार ्े रूप्ों ्ी रचना ्ी ्ी?
प्र. 22. आधवु न् संस्कृ त नाट्ों ्े ््ान् व्न विषयों पर आधाररत िैं? सपष्ट ्ीवजए।

98 संस्‍कृ त साहित्य — परिच्य

2022-23

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