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नयाट््-सयाहित्
संस्कृ त भाषा में विपलु नाट्य-सावितय िै। नाट्य-्कृ वत में जीिन ्ी विवभनन अिस्ाओ ं
्ा अन् ु रण व्या जाता िै। दृशय्ावय िोने ्े ्ारण नाट्य ्ो रूप् भी ्िते िैं।
नाट्याचाययों ने दस प्र्ार ्े रूप् बतलाए िैं। इनमें सबसे उत्कृ ष्ट नाट् माना गया िै।
अत: प्राय: लोग नाट्य, रूप्, रूप और नाट् ्ा प्रयोग समान अ््थ में ्रते िैं। संस्कृ त
भाषा में बिुत प्राचीन ्ाल से रूप् वलखे जाते रिे िैं। यि परमपरा आज त् चल रिी
िै। वलखने ्े सा्-सा् बिुत से रूप्ों ्ा अवभनय भी िोता रिा िै। राजसभाओ ं में
विविष्ट अिसरों पर संस्कृ त रूप्ों ्ा अवभनय िोता ्ा। इसी प्र्ार ग्ामों और नगरों
में भी नाट्-मण्डवलयाँ जनता ्े मनोरंजन ्े वलए नाट् खेलती ्ीं। जन सामानय में
संस्कृ त ्ा प्रयोग विव्ल िो गया तब लो्-प्रचवलत भाषाओ ं में नाट् खेले जाने
लगे। आज वस्वत यि िो गई िै व् संस्कृ त नाट् विविष्ट त्ा प्रबद्ध ु िगयों ्े बीच िी
अवभनीत िोते िैं।
संस्कृ त रूप्ों ्ी उतपवति ्ै से िुई? इस पर पाश्ात्तय विद्ानों ने पतिु वल्ा नकृतय,
धावम्थ् नकृतय, िीर पजू ा, यनू ानी प्रभाि इतयावद वसद्धानत वदए िैं। भरत ने अपने नाट्यिास्त्र
में आखयान वदया िै व् ब्रह्ा ने ऋग्वेद से पाठ्य (संिाद), साम्वेद से गीत, यज्ु वेद से
अवभनय त्ा अथ््व्वेद से रस ले्र नाट्य-िेद नाम् नई विधा (वजसे पंचम िेद ्िा
गया) वि्वसत ्ी। विि और पाि्थती ने क्रमि: ताण्डि और लासय नाम् नकृतय ्ी
वयिस्ा ्र्े इस विद्ा ्ो समकृद्ध व्या। नाट्य िास्त्र ्े अनसु ार भरत ्े पत्ु ों और
विष्यों ने अपसराओ ं और गनधियों ्े सा् वमल्र अमकृतमन्न और वत्परु दाि नाम्
रूप्ों ्ा अवभनय व्या ्ा। ये िी प्र्म रूप् ्े। िसततु : संस्कृ त नाट्ों ्ी उतपवति
इसी देि में जनसामानय ्े मनोरंजन ्े वलए िुई िै।
नाट्यिास्त्र रूप्ों ्े समबनध में वयाप् विधान ्रता िै। इसमें रूप्ों ्े भेद,
््ा-िसत,ु पात्, रस, अवभनय, गीत, नकृतय, रंगमचं ्ी वयिस्ा, भाषा ्ा प्रयोग आवद
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