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िवषय िह द

प्र नप सं. एवं शीषर्क P2: म यकाल न किवता-1


इकाई सं. एवं शीषर्क M19: महाकिव िव यापित का य-2
इकाई टै ग HND_P2_M19

िनमाता समह

प्रमख
ु अ वेषक प्रो. गर वर म
कुलपित, महा मा गांधी अंतररा ीय िहंदी िव विव यालय, वधार् (महारा ) 442001
ईमेल : misragirishwar@gmail.com
प्र नप सम वयक प्रो. कृ ण कुमार संह
अिध ठाता, सािह य िव यापीठ
महा मा गांधी अंतररा ीय िहंदी िव विव यालय, वधार् (महारा ) 442001
ईमेल : kks5260@gmail.com
इकाई लेखक प्रो. दे वशंकर नवीन
प्रोफेसर, भारतीय भाषा क , भाषा, सािह य एवं सं कृित अ ययन िव यापीठ
जवाहर लाल नेह िव विव यालय, नई िद ली
ईमेल : deoshankar@hotmail.com
इकाई समी क प्रो. सूयप्रसाद द त
प्रोफेसर (सेवािनव ृ त), िहंदी िवभाग, लखनऊ िव विव यालय, लखनऊ (उ.प्र)
ईमेल : suryadixit123@gmail.com
भाषा संपादक प्रो. स यकेतु
प्रोफेसर, िहंदी, लबरल अ ययन क , अंबेडकर िव विव यालय, िद ली 110006
ईमेल : satyaketu@aud.ac.in

पाठ का प्रा प
1. पाठ का उ े य
2. प्र तावना
3. गीितका य क पर परा
4. गीितका य और िव यापित पदावली
5. िव यापित पदावली का भाषा- श प
6. िव यापित-पदावली क गेयध मर्ता
7. िव यापित पदावली क लोकिप्रयता
8. िन कषर्

HND : िहंद P2 : म यकाल न किवता-1


M19: महाकिव िव यापित का य-2
1. पाठ का उ े य
इस पाठ के अ ययन के उपरा त आप-
• िह दी म गीितका य क पर परा से प रिचत ह गे।
• िव यापित पदावली क सरसता का आधार समझ सकगे।
• पदावली के सामािजक स दभर् से प रिचत ह गे।
• लोक-प्रच लत भाषा और िव यापित के रचना मक सरोकार क जानकारी हा सल सकगे।
• िव यापित पदावली क लोकिप्रयता और लेखक य दािय व से प रिचत हो सकगे।

2. प्र तावना
महाकिव िव यापित भारतीय सािह य के उन कृती रचनाकार म से ह, िजनक सजर्ना मकता रा या य म रहने के
बावजूद चारण-का य क ओर कभी उ मुख नहीं हुई। उनका रा -बोध, सं कृित-बोध, इितहास-बोध, और समाज-बोध
सदा उनको संचा लत करता रहा। उनके सामािजक सरोकार, रचना मक दािय व, नैितकता एवं िन ठा के प्रमाण,
पदावली के अलावा सं कृत और अवह म भी रिचत उनक कृितय म प ट िदखते ह। पर उ ह जन-जन तक
पहुँचाने का ेय उनक कोमलका त पदावली को जाता है । राजमहल से झोपड़ी तक, दे वमि दर से रं गशाला तक,
प्रणय-क से चौपाल तक उनके पद समान प से आज भी समा त ह। वय:सि ध, पूणय
र् ौवना, िवरहाकुल,
कामातुरा, कामद धा...सभी कोिट क नाियकाओं के नख शख वणर्न; मान, िवरह, मलन, भावो लास वणर्न; शव,
कृ ण, दग
ु ार्, गंगा के तुित-पद म किव ने सामािजक जीवन के यावहा रक व प को उजागर कया है । मैिथली म
रचे उनके सैकड़ पद के मल
ू िवषय राधाकृ ण प्रेमिवषयक ंग
ृ ार और शव, दग
ु ार्, गंगा आिद दे वी-दे वता क भि त
के ह; पर उनके कई भेदोपभेद ह, िजनम उनके भाषा-सािह य-संगीत-कला-सं कृित के ताि वक ान के संकेत
प ट िदखाई दे ते ह; साथ-साथ समाजसध
ु ार, रीित-नीित से स ब उनक धारणाएँ, एवं अनुरागमय जनसरोकार के
चम का रक व प िनद शर्त ह।

3. गीितका य क पर परा
महाकिव िव यापित को िह दी का प्रथम गीितका य का रचियता माना जाता है। प्राचीनकाल से प्रा य-पा चा य
िव व समाज वारा गीितका य क प रभाषा ि थर करने क चे टा के बावजूद कोई सवर्मा य प रभाषा तय नहीं हो
सक है । असल म गीितका य का सीधा स ब ध मानवीय संवेदना से है, िजसम इ छा, संवेग, भावना, आ मपरक
अनुभूितय के वहृ तर िव तार क बड़ी भू मका होती है । इनके असीम स भािवत फलक से मनु य वयं अन भ
रहता है; फर वह उसका सवर्मा य व प कैसे सिु नि चत करे ! पर गीितका य से मानव-जीवन क सहज अपे ाओं
को दे खते हुए यह समझ अव य बनती है क इसक स ता मनु य क प्रारि भक अनभ ु ूितय से जुड़ी हुई है और
अिधक प्राचीन उदाहरण नहीं मलने क ि थित म भारतीय प र य म इसका प्रार भ वैिदक यग ु से मानते ह।
वैिदक गीितय म इसके उदाहरण प टत: प रल त ह। प ट है क सहज-सुबोध भाषा म रिचत ला ल यपूण,र्
लया मक और गेयधम का य; िजसम रचनाकार क आ मानुभूित समह
ू परक भावनाओं के साथ तादा य थािपत
कर ले; गीितका य कहलाएगा। इस प्रसंग िदशा म हीगेल क राय उ लेखनीय है क गीितका य के रचियता जगत
के सारे त व को वयं म समािहत करता है , वैयि तक भाव के प्रभाव से इसे पूणत
र् : आ मसात करता है और इस
आ मपरकता को सुर त रखनेवाली शैली म अ भ य त करता है ।

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M19: महाकिव िव यापित का य-2
गीितका य का य का सवार्िधक सहजतम प है । इसका स ब ध रचना मकता के सचेत बुि - यापार से कम,
अनुभूित- स दय के सहजो े क से अिधक रहा है ; इस लए मनु य जाित के प्रारि भक भाव के साथ ही इसका
उ व हुआ। इसम मानवीय भावनाओं के अथाह पटल क बहुफलक य गितकता, अनभ ु व, संवेग, कामना, इ छा-
अ भलाषा, भि त-प्रेम-वा स य, उ लास-अवसाद, अनरु ि त-िवरि त, अनुदेश-उपदे श, दहु ाई-धमक , आ वान-प्रित ा
आिद का जीव त और प्रभावकारी िच ण होता है। गेयध मर्ता के साथ-साथ सहजता, सं ि त पर उ े यमख
ु ी
सू ब ता एवं एकलता इसक अिनवायर् शत ह। अपनी इ हीं िव श टताओं के बलबूते गीितका य वणर्ना मक रचना
से पथ
ृ क पहचान बनाती है और प्र तुित के दौरान भावक-प्र तोता सवर् व भल
ू कर उस रचना क ि थित म खो जाते
ह। गीितका य क ज मभू म लोकजीवन ही है । मानव-स यता क शु आत म ही लोकजीवन क भावनाओं क
बहुिवध छिवय क गेय अ भ यि त के प म यह सावर्जिनक हुई। स भवत: इसी कारण लयब -छ दब होने क
अिनवायर्ता के बावजूद इस पर कोई शा ीय ब धन नहीं है ; इसके लय-छ द का कोई िनधार् रत-िनद शत िवधान
नहीं है । व त-ु श प-उ े य तीनो ही तर पर यह लोकजीवन क अ भ यि त और तोष क िच ता रखती है ।
उ लास क अ भ यि त, अवसाद क िव मिृ त, मबोध क िनविृ त...हर ि थित म गीितका य के कारक क तार्-
भो ता के प म त लीन रहते ह। वैिदक गीितय से शु होकर अब तक के सभी गीितका य म इन सभी भाव
क अ भ यि त के संकेत मलते ह। भारतीय वां मय म वैिदक युग से लेकर अब तक हुई गीित-रचना का म जो
भी रहा हो पर समकालीन समाज क धा मर्क, सामािजक, आिथर्क, राजनीितक प रि थितय के अनसु ार गीितका य
के वभाव म प रवतर्न होते रहे ह।

4. गीितका य और िव यापित पदावल


िव यापित क पदावली म गीितका य के सारे त व सम ता से मलते ह। वैिदक-युग से िव यापित तक गीितका य
भली-भाँित फला-फूला; यहाँ उस िवकास- म के िव तार म जाना अभी ट नहीं है । स भव है क शोध के दौरान
प्राचीन-अवार्चीन ोत से संक लत गीत िव यापित सं ह के कुल 889 पद के अलावा कुछ और पद सामने आ
जाएँ। मु यत: ये पद दो तरह के ह— ंग
ृ ा रक पद और भि त पद। इसके अलावा कुछ ऐसे पद भी ह, िजनम
प्रकृित, समाज, नीित, संगीत आिद जीवन-मू य को रे खां कत कया गया है। ंग
ृ ा रक पद म वय:सि ध,
नाियकाभेद, नख शख वणर्न, मलन-अ भसार, मान-मनुहार संयोग-िवयोग, िवरह-प्रवास आिद का िवल ण िच उकेरा
गया है। ऐसे पद क सं या साढ़े सात सौ से अिधक है। कहा जाता है क अपने िप्रय सखा राजा शव संह के
ितरोभाव (सन ् 1406) के बाद से महाकिव ने कोई ंग
ृ ा रक पद नहीं रचा। बाद के समय क उनक सारी ही
रचनाएँ भि त-प्रधान पद ह, या फर नीित, शा , धमर्, आचार से स बि धत ह। भि त-प्रधान पद क सं या
लगभग अ सी ह; िजनम शव-पावर्ती लीला, नचारी, राम-व दना, कृ ण-व दना, दग
ु ार्-काली-भैरिव-भवानी-जानक -गंगा
व दना आिद शा मल है । शेष पद म ऋत-ु वणर्न, बेमेल िववाह, सामािजक जीवन-प्रसंग, रीित-नीित-स भाषण- श ा
आिद रे खां कत है ।

तीन भाषाओं--सं कृत, अवह , मैिथली म नीित-धमर्, शा , आचार-िवचार से स ब िवषय पर दजर्न भर से


अिधक पु तक के प्रणेता िव यापित क लोकिप्रयता का आधार उनक पदावली है । पदावली क लोकिप्रयता का
आधार उसका िवषय-प्रसंग, भाषा-फलक, और रचना मक तकनीक है। िवशु लौ कक, यावहा रक और सामािजक
िवषय; जन-सुबोध भाषा और िवल ण गेयध मर्ता ने ही उनके पद को िवराट जनमानस म इतना आदर िदलाया।
पद के छ द सांगीितक प से इतने सधे हुए ह क कहीं सुर-ताल-लय का यित म नहीं आता। कोमलका त
पदावली क िवल ण सांगीितकता के कारण ही उ ह 'अ भनव जयदे व' कहा गया। जयदे व के गीत क भाँित ही

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M19: महाकिव िव यापित का य-2
िव यापित के पद संगीतब िवधान से प रपूणर् ह। सहज िव वास कया जा सकता है क उ ह गान-िव या म
महारत हा सल थी। वैसे लोचन किव कृत रागतरं िगणी म हुए उ लेख—सुमित सुतोदय ज मा जयत:
शव संहदे वेन/पि डतप्रवर किवशेखर िव यापतये तु स य त: --से ात होता है क राजा शव संह अपने रा य के
द कलािव सुमित के पु जयत को 'सुर' स ब धी सहयोग हे तु िव यापित के साथ कर िदया था। भावक को
जहाँ कहीं िव यापित के पद म छ द-भंग िदखता है, वहाँ उ ह विन के आगम से काम लेना चािहए, य क
सांगीितक प्रभाव से रचे गए पद म अ र और मा ा से अिधक मह ता विन क होती है।

राधा-कृ ण प्रेम िवषयक िविवध विृ तयाँ एवं ईश-भि त पदावली का मु य िवषय है । कुछ पद अ य लौ कक
यवहार के भी ह। उ लेखनीय है क िव यापित का युग न केवल मिथला के लए, बि क पूरे भारतीय जनपद के
लए सामािजक, आिथर्क और सां कृितक...हर ि ट से उथल-पुथल से भरा था। सल सलेवार आ मण के कारण
पूरा जनजीवन हर समय दहशत म पड़ा रहता था। िद ली से लेकर बंगाल तक क या ा म आ मणका रय और
आ ा त के जय-पराजय क तो अपनी ि थित थी, पर उस दहशत म सामा य नाग रक भी यवि थत नहीं रह
पाते थे। आ मण के लए जाते हुए उ साह म, और िवजयी होकर लौटते हुए उ लास म, अथवा िवफल लौटते हुए
हताशा म सैिनक कहाँ- कतना- कसको आहत करते थे, उ ह पता नहीं होता। पीढ़ी-दर-पीढ़ी अहंकार-तुि ट और
वचर् व- थापन के लए तरह-तरह के गठब धन बन रहे थे। साम त को भी तो अपनी अि मता कायम रखनी होती
थी। पर इसी बीच सािह य एवं कला के लए ठाँव-ठाँव जगह भी बनती जा रही थी। जाित- यव था और कठोर हो
रही थी, पर राजनीितक ि टकोण से उसम प रव तर्न क अपे ा दे खी जा रही थी। िह द-ू मुसलमान के बीच एक-
दस
ू रे को समझने क नई ि ट िवक सत हो रही थी। आिथर्क-सामािजक अपे ाओं के तहत दोन एक-दस
ू रे के करीब
आ रहे थे। कला-सािह य-सं कृित-धमर्-दशर्न स ब धी मा यताओं को लेकर दोन के बीच संवाद क बड़ी ज रत
आन पड़ी थी; िजसम सािह य क महती भू मका अिनवायर् थी।...ऐसे समय म िव यापित क अ य रचनाओं का जो
योगदान है, वह तो है ही, उनक पदावली ने प्रेम, भि त और नीित के सहारे बड़ा काम कया। पदला ल य, माधुय,र्
भाषा क सहजता, मोहक गेयध मर्ता से मु ध होकर समकालीन और अनुवत सािह य-कला प्रेमी एवं भ तजन
भाषा, भग
ू ोल, स प्रदाय, मा यता, जाित-धमर् के ब धन तोड़कर िव यापित के पद गाने लगे थे। उनका एक घोर
ंग
ृ ा रक पद है—' क कहब हे स ख आन द ओर, िचरिदने माधव मि दर मोर...' (हे स ख, बहुत िदन बाद माधव
मुझे अपने क म मले। म अपने उस आन द क कथा तु ह या सन ु ाऊँ!)। कहते ह क चैत य महाप्रभु इस पद
को गाते-गाते इस तरह िवभोर होते थे क मूछार् आ जाती थी।

उ लेखनीय है क चौदहवीं-प हवीं शता दी म मिथला उ तर भारत के सभी े म सां कृितक प से अ ग य


था। दरू -दरू से ानाकुल लोग का आवागमन वहाँ खूब होता था। इस आवागमन म सािह य, सं कृित,
आचार-िवचार, रहन-सहन का आदान-प्रदान होता था। जािहर तौर पर सौ दयर् और प्रेम के प्रित आकषर्ण-भाव सहज
विृ त है । इस विृ त के ममर् को प्रगितशीलता के उ नायक महाकिव िव यापित ने बड़ी सू मता से पकड़ा था।
परम ानी नीितकुशल िपता के साथ अ पवयस म ही राजदरबार म प्रिव ट हुए िव यापित एक तरफ ओइनवार वंश
के कई राजाओं क शासक य नीित दे खकर अनभ
ु व-स प न हुए, तो दस ू री तरफ समकालीन आिथर्क, राजनीितक,
शासक य प रि थितय म लोक के मनोभाव का भी सू मता से अवलोकन कर रहे थे। दरबार स पोिषत रचनाकार
होने के बावजूद चारणविृ त उनका वभाव न था। इितहास सा ी है क हर काल के बुि जीवी समकालीन समाज
और शासना य के िद दशर्क होते आए ह।

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M19: महाकिव िव यापित का य-2
उनके ंग
ृ ा रक पद के प्रेम और सौ दयर्-िववेचन के आधार राधा-कृ ण का प्रेम है । िव यापित के राधा-कृ ण
अलौ कक नहीं ह, पूरी तरह लौ कक ह। उनके प्रेम- यापार के सारे प्रसंग सामा य नाग रक क तरह ह। पूरी
पदावली म प्रेम और सौ दयर् वणर्न के कसी िव द ु पर वे आ मलीन नहीं िदखते। हर पद म रस और रसभो ता
के ु ाई दे ते ह; या नायक-नाियका को प्रबोधन-उपदे श दे ते ह। पूरी
प म कसी न कसी राजा, सु तान क दह
पदावली म प्रेम- यापार के हर उप म—िवभाव, अनुभाव, दशर्न, वण, अनुरि त, स भाषण, मरण, अ भसार,
िवरह, वेदना, मलन, उ लास, सुरित-चचार्, सुरित-बाधा, आशा-िनराशा...या फर सौ दयर्-वणर्न के हर व प—
नाियकाभेद, वय:सि ध, स य: नाता, कामद धा, नवयौवना, प्रग भा, आ ढ़ा, वक या, परक या, नख शख वणर्न,
अ भसार, मान, िवद ध िवलास, वस त, िवरह, भावो लास, िवपरीत रित, न क-झ क, उपाल भ,... या फर प्राथर्ना,
नचारी, गंगा तुित,
ीकृ ण क तर्न, बाल िववाह ...को रे खां कत करते हुए िव यापित सतत तट थ ही िदखते ह।
पूरी पदावली म िव यापित भगव गीतोपदे श के कृ ण क तरह ल त होकर भी िन लर् त प्रतीत होते ह। हर समय वे
अपने नायक-नाियका के मनोभाव को रे खां कत कर एक स दे श दे ते हुए िदखते ह। जीवन म सौ दयर् और प्रेम के
े ठ प को रे खां कत करते हुए वे सभी पद म जीवन-मू य का स दे श दे ते प्रतीत होते ह। नाग रक मन से
हताशा मटाने और राजाओं, सु तान के दय म कोमलता भरने का इससे बेहतर उपाय स भवत: उस दौर म और
कुछ नहीं हो सकता था। इस लए िव यापित पदावली के अनश
ु ीलन क सव िचत प ित िच त प्रेम-प्रसंग और
सौ दयर्-िन पण म जीवन-मू य क तलाश होनी चािहए। आम नाग रक क तरह उनक नाियका िवरह म यिथत-
याकुल होती है , और नायक को मरण करती है , उ ह पाने का उ यम करती है, कसी तरह क अलौ ककता उनके
प्रेम को छूती तक नहीं। उ ह च दन-लेप भी िवष-वाण क तरह दाहक लगता है , गहने बोझ लगते ह, सपने म भी
कृ ण दशर्न नहीं दे त,े उ ह अपने जीने क ि थित शेष नहीं िदखती। अ त म किव नाियका को गण
ु वती बताकर
मलन क सा वना के साथ प्रबोधन दे ता है -
चानन भेल िवषम सर रे , भूषन भेल भारी।
सपनहुँ निह ह र आएल रे , गोकुल िगरधारी।।
...
च बदिन निह जीउित रे , बध लागत काहे ।।
मलन क ि थित म प्रेमातरु नाियका सवि य से सुखानुभव लेती है । एक ही पद म किव ने सख
ु का ऐसा सागर
उमड़ाया क सख
ू े काठ तक म रस आ जाए।
जनम अविध हम प िनहारल, नयन न ितरिपत भेल। ( प--आँख)
सेहो मधुर बोल वनिह सूनल, ुित पथ परस न गेल।। ( विन--कान)
कत मध-ु जा मिन रभस गमाओ ल, न बझ
ु ल कइसन के ल। (ग ध—नाक)
लाख लाख जुग िहअ िहअ राखल, तइयो िहअ जरिन गेल।। ( पशर्— वचा)
कत िवद ध जन रस अनुमोदए, अनुभव काहु न पेख।(रस—मन)

भावो लास से भरे इस पद क हर पंि त म नाियका अपने िप्रयतम क उपि थित का सुख अलग-अलग इि य से
प्रा त कर रही है -- प िनहारती है, बोल सन
ु ती है, बस त क मादक ग ध पाती है, य नपव
ू क
र् ड़ा-सख
ु म लीन
होती है , र सकजन के रसभोग का अनुमान करती है। जािहर है क योजनाब ढं ग से अपने रचना-स धान म आगे
बढ़ रहे किव को उ े य क प्राि त हे तु िवल ण भाषा और अचूक तकनीक भी अपनानी था।

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5. िव यापित पदावल का भाषा- श प
पदावली क भाषा मैिथली है । जािहर है क वह तुलना म आज क मैिथली से भ न है । पदावली लगभग सात सौ
वषर् परु ानी रचना है । इन पद का संकलन तीन भ न- भ न भािषक समाज मिथला, बंगाल, और नेपाल के
ल खत, मौ खक ोत से कया गया है । भािषक संरचना के गुणसू से प रिचत सभी लोग इस बात से सहमत
ह गे क रचनाकार से मु त हुई गेयधम रचना लोक-क ठ म वास करती हुई अनचाहे म भी कुछ-न-कुछ अपने मल

व प से भ न हो जाती है और फर संकलन तक आते-आते उसम थानीयता के कई अप रहायर् रं ग चढ़ जाते ह।
लोक-क ठ से संक लत साम ी का तो यह अिनवायर् िवधान है ! िव यापित पदावली इसका अपवाद नहीं है । चौदहवीं
से बीसवीं शता दी तक के सात सौ वष तक क या ा म िव भ न मा यम वारा प्रचा रत, प्रसा रत, संक लत इन
पद म कब-कहाँ और कनके कौशल से या जुड़ा, या छूटा, यह जान पाना मुि कल है । फर एक त य यह भी है
क इन पद के प्रारि भक संकलनक तार्ओं क मातभ
ृ ाषा मैिथली नहीं थी। रागतरं िगणी, तरौनी ताल-प के ल खत
प्रमाण के साथ-साथ च दा झा जैसे कुछ महान सं कृितसेिवय एवं कुछ सामा य नाग रक से उन मैिथलेतर
संकलनक तार्ओं को बेशक भरपूर सहयोग मला; पर चँू क उनक अपनी भाषा मैिथली नहीं थी, इस लए कई
विनय , श द , पद और स दभर्-संकेत को ल खत प म
य त करते हुए िन चय ही प रवतर्न आ गया होगा।
मैिथली और िह दी के िव वान ने जब उनका संकलन शु कया, तो उ ह ने अपने बुि -िववेक के उपयोग से
जनसुलभ और मैिथली, िह दी के प रवेश के अनुकूल पाठ बनाने का िवक प चुना। भाषा क सहजता ने ही इन
पद को उस दौड़ के जन-जन तक पहुँचाया, जाित-धमर्- लंग-वंश-ओहदा सबसे परे जन-जन के क ठ म बसाया,
रचना कोमलका त पदावली कहलाई, और रचनाकार ‘अ भनव जयदे व’, ‘किवक ठहार’, ‘किवशेखर’ कहलाए। इनक
रचना मक तकनीक ऐसी िवल ण और लोकाि त है क शा ीय प्र श ण से दी
त हुए बना भी अनरु ागी-जन
इ ह लोकगीत के िवधान म बड़े आराम से गाते हुए मु ध होते ह। इनके एक-एक पद कई-कई राग म गाए जाते
ह।

6. िव यापित-पदावल क गेयध मता


िव यापित-पदावली के अिधकांश पद के प्रार भ म एक छोटी पंि त होती है, गायन म उस पंि त क बार-बार
आविृ त होती है , इसे थायी या ुवपद, या टे क कहते ह। इसे छ दक भी कहते ह। कई पद म तो यह छ दक
पहली पंि त है , कुछ पद म दो पंि त के बाद है ।
उदाहरणाथर्--
क आरे ! नव यौवन अ भरामा ।
जत दे खल तत कहए न पा रअ, छओ अनप
ु म एक ठामा ।।
ह रन इ द ु अरिव द क रिन िहम, िपक बूझल अनुमानी ।
नयन बदन प रमल गित तन िच, अओ गित सुल लत बानी ।।
*** *** ***
कबरी-भय चाम र िग र-क दर, मुख-भय चाँद अकासे।
ह रिन नयन-भय, सर-भय को कल, गित-भय गज बनबासे।।
सु द र, कए मोिह सँभा स न जा स।
तुअ डर इह सब दरू िह पड़ाएल, तोह पुन कािह डरा स।।
च डीदास के यहाँ भी इसी तरह छ दक के दोन प्रयोग मलते ह। बाद के िदन म कबीरदास और सूरदास के यहाँ
पद के प्रार भ म मलते ह। रै दास एवं नानक के यहाँ दोन तरह के प्रयोग मलते ह।

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M19: महाकिव िव यापित का य-2
छ द-शा के आचाय ने छ द क दो कोिटयाँ िनर्धा रत क ह—व णर्क और मा क। िव यापित के सभी पद
मा क सम छ द म रिचत ह। अिधकांश पद क रचना एक ही छ द म हुई है ; पर कई पद म मि त छ द का
भी उपयोग हुआ है ; अथार्त ् दो-तीन या अिधक छ द के चरण का मेल कया गया है। लगभग स ह छ द—अहीर,
लीला, महानुभाव, चि डका, हाक ल, चौपई, चौपाई, चौबोला, प र, सुखदा, उ लास, पमाला, नाग, सरसी, सार,
मरहठामाधवी, झूलना आिद का वत प्रयोग; और अख ड, िनिध, श शवदना, मनोरम, क जल, रजनी, गीता,
गीितका, िव णुपद, ह रगीितका, ताटं क, वीरछ द, समान सवैया जैसे छ द के चरण को अ य छ द म जोड़कर
प्रयु त कया गया है ।

उ लेख मलता है क उ लास, नाग, रजनी, गीता छ द के िनमार्ता िव यापित ही ह; य क उनसे पूवर् के कसी
रचनाकार के यहाँ ये छ द नहीं िदखते। पर त य है क िव यापित ने बहुतायत म चौपई, चौपाई, सरसी, सार जैसे
छोटे छ द का भी प्रयोग कया है; बड़े छ द 'झूलना' का प्रयोग तो मा एक पद म हुआ है—
खन र खन महँिध भइ कछु अ ण नयन कइ, कपिट ध र मान स मान लेही

कुछ िगने-चुने पद म समानसवैया, ताटं क और वीर जैसे कुछ अपे ाकृत बड़े छ द प्रयु त हुए ह-
नािह करब वर हर िनरमोिहया, ब ता भ र तन वसन न ितनका, बघछल काँख तर रिहया।
बन बन फरिथ मसान जगाबिथ, घर आँगन ऊ बनौलि ह किहया
स भव है क पदावली क गीितध मर्ता के उ कषर् म छोटे छ द क प्रयिु त का िवशेष योगदान हो।
जनम होअए जन,ु जओं पुिन होइ। जुबती भए जनमए जनु कोइ।।
होइए जुबित जनु हो रसमि त। रसओ बझ
ु ए जनु हो कुलमि त।।
िनधन माँगओं बिह एक पए तोिह। िथरता िदहह अबसानहु मोिह।।
ी-जीवन क िववशता, आरोिपत मयार्दा, सहज उमंग, प्रेम-प्रसंग क एकिन ठता के सामािजक प र य से का य-
नाियका क पीड़ा इतनी घनीभत
ू है क यव
ु ाव था के उमंग-आवेग, प्रेम-अनरु ाग, वंश-मयार्दा के म ेनजर वह बेटी के
ज म को िनरथर्क कह बैठती है ; और अपने अवसान-काल तक के लए ई वर से िच त क िथरता माँगती है, अपने
लए एक स य और र सक प्रेमी माँगती है।

िन:संकोच कहा जा सकता है क िवल ण प्रतीक-योजना और सघन ब ब-िवधान वाली िव यापित पदावली
समकालीन जीवन- यव था का ऐसा अलबम है , िजसम लोकजीवन के सारे िच अपनी सू मता के साथ उपि थत
ह।

7. िव यापित पदावल क लोकिप्रयता


प्रा त पा डु लिपय के आधार पर िव यापित के पद का वग करण िन न ल खत सात ख ड म कया गया है—
• नेपाल पदावली,
• रामभ पुर पदावली,
• तरौनी पदावली,
• रागतरं िगणी,
• वै णव पदावली,

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• च दा झा संकलन,
• लोकक ठ से एक पदावली।
िवषय के आधार पर उनके पद को तीन कोिट म बाँटा जा सकता है—
• ंग
ृ ा रक पद,
• भि त पद,
• िविवध पद।
िव यापित के पद के संकलन म भारतीय मनीषा के कई े ठ अनुस धानवे ताओं ने अपना अमू य योगदान िदया
है । उनम से बाबू नगे नाथ गु त, शवपज
ू न सहाय, डॉ. ि यसर्न के अवदान के प्रित नतम तक होना हर
िव यापितप्रेमी का दािय व बनता है। बाद के िदन म रामव ृ बेनीपुरी और नागाजुन
र् ने भी कुछ चुने हुए पद का
अथर् सिहत संकलन कया।

लोकजीवन क यावहा रकता, ला ल यपूणर् अथ कषर् एवं चम का रक सांगीितकता से भरे उनके पद आम जनजीवन
म अ य त लोकिप्रय हुए। परू े मिथला े के सं कार एवं आचारपरक रीित- रवाज म िव यापित के पद का
गायन नाग रक-प र य का अिनवायर् अंग बन गया। सिदय बाद लोकिप्रयता का वह मंजर आज भी जस का तस
है । जीवन-यापन के हर अवसर--ज म, नामकरण, मु डन, उपनयन, िववाह, पूजा-पाठ, लोको सव...हर ि थित के
गीत उनक पदावली म उपल ध ह। मैिथल जनजीवन का सं कारपरक कोई उ सव आज भी िव यापित के गीत के
बना स प न नहीं होता। रचनाकाल क सुिनि चत जानकारी उपल ध न होने के बावजूद कहा जा सकता है क ये
पद एक ल बे समय-फलक म रिचत ह। ओइनवार राजवंशीय िव भ न राजाओं एवं अ य लोग के िव द से उन
गीत के समय का यथासा य अनुमान कया जा सकता है। मिथला समेत पूरे पूवाचलीय प्रदे श --बंगाल, आसम एवं
उड़ीसा म वै णव सािह य के िवकास म भाव एवं भाषा माधुयर् के कारण िव यापित पदावली का अपूवर् योगदान रहा
है । वै णव भ त के प्रयास से इन गीत का प्रचार-प्रसार मथुरा-व ृ दावन तक हुआ।

िव यापित के सम त पद के सं ह को ‘पदावली’ कहा जाता है । किवकृत ह त लिप या अ य प म भी पदावली


क स पण
ू र् प्रामा णक प्रित उपल ध न होने क ि थित म उनके पद क कुल सुिनि चत सं या बताना किठन है ।
महे नाथ दब
ू े वारा स पािदत शोधसप न संकलन 'गीत िव यापित' म िव यापित के अवह म रिचत दो पद
सिहत कुल 891 पद संक लत ह। उ ह ने मिथला के दो िनकटवत भूख ड—बंगाल और नेपाल म भी महाकिव क
लोकिप्रयता के ोत को खँगाला है। नेपाल राज दरबार पु तकालय म उपल ध पदावली, बंगला वा .मय के
पदामत
ृ समु , पदक पत , संक तर्नामत
ृ , क तर्नान द आिद म संक लत पद; मिथला म प्रच लत प्राचीन
मह वपूणर् सं ह —रामभ पुर पदावली, रागतरं िगणी, तरौनी के तालप म संक लत पद; मिथला के लोकक ठ म
जीिवत गीत; और महामहोपा याय हरप्रसाद शा ी, जॉजर् ि यसर्न, नगे नाथ गु त, खगे नाथ म , िवमान बहारी
मजुमदार, जन दन सहाय, सुभ झा, शवन दन ठाकुर जैसे िव यापित-सािह य के िव श ट अ वेषक के योगदान
का बोधपूणर् उपयोग कया है। सम त ोत के िव लेषणपरक सहयोग के साथ स पािदत यह संकलन िव यापित
वा .मय के अ येताओं के लए आकर थ है ।

शव संह के ितरोधान के बाद अनेक वष तक सां कृितक प से सम ृ े नेपाल क तराई, राजबनौली म रहकर
महाकिव िव यापित के रचनाकमर् के पूव लेख से प ट है क पहले से ही लोकिप्रयता हा सल कर चुके उनके गीत
वहाँ के जनमानस म और अिधक लोकिप्रय होने लगे। नेपाल राज दरबार पु तकालय म उपल ध पदावली उसी

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लोकिप्रयता का प रणाम है, य यिप उस दौर तक आते-आते िव यापित ंग
ृ ा रक पद लखना छोड़ चुके थे। बंगाल
म उनके पद क लोकिप्रयता के कई कारण म से सवार्िधक उ लेखनीय है चैत य महाप्रभु एवं उनक श य-
पर परा क कृ ण-भि त म िव यापित के पद के गायन क पर परा। वहाँ िव यापित के पद वै णव-भजन क
तरह गाए जाते थे। इस तरह िव यापित के पद-सं ह हे तु उपल ध प्राचीन संसाधन-- नेपाल राज दरबार पु तकालय
से उपल ध पदावली; बंगला-वा .मय के संकलन णदागीतिच ताम ण, पदामत
ृ समु , पदक पत , संक तर्नामत
ृ ,
क तर्ना द; मिथला म उपल ध रामभ पुर पदावली, रागतरं िगणी, तरौनी ताल-प अथवा तरौनी पदावली ह।
आधुिनक काल के सम त संकलनक तार्ओं ने इन धरोहर के अलावा लोक-क ठ को भी आधार बनाया, िजनके
प्रमख
ु ोत बंगवासी कृ ण-भ त और मैिथल-समाज हुए।

आधुिनक काल म इस िदशा म बंगला वा .मय सबसे आगे िदखता है। प्राचीन का य-सं ह स ब धी जगब धु भ
क योजना महाजन पदावली के पहले ख ड म िव यापित के पद संक लत ह। शारदाचरण म ने इसका संकलन-
स पादन अ यच सरकार के सहयोग से कया, जो सन ् 1874 म प्रका शत हुआ। शारदाचरण म ने उसे
िव यापित पदावली नाम से सन ् 1878 म वत पु तक के प म प्रका शत करवाया।

सन ् 1882 म ए शयािटक सोसाइटी ऑफ बंगाल वारा प्रका शत एन इ ोड शन टु द मैिथली ल े चर ऑफ नॉथर्


बहार, क टे िनंग ए ामर, टोमेथी ए ड वोके लरी मैिथली भाषा एवं सािह य के े म जॉजर् अ ाहम ि यसर्न
का अमू य योगदान है। इसम ि यसर्न ने द पोए स ऑफ िव यापित ठाकुर शीषर्क से एक यवि थत भू मका के
साथ िव यापित के 82 गीत संक लत कए। उ लेखनीय है क उस समय तक अ यच सरकार और शारदाचरण
म वारा स पािदत पदावली का प्रकाशन हो चुका था; पर उन दोन संकलन के सवधानीपूवक
र् अवलोकन के
बावजूद ि यसर्न को पाँच-छह से अिधक पद म िव यापित के पद होने क अथर्व ता नहीं िदखी, अ तु उ ह ने
उनम से इतने ही पद संक लत कए; शेष पद का संकलन उ ह ने लोक-क ठ से कया। महे नाथ दब
ू े उनम से
77 पद क प्रामा णकता असि द ध मानते ह। बाबू जन दन सहाय ' जव लभ' वारा संक लत-स पािदत सं ह
मैिथल को कल िव यापित सन ् 1909 म आरा नागरी प्रचा रणी सभा ने प्रका शत कया। उ ह ने संकलन के दौरान
पदक पत , पदामत
ृ समु आिद अनेक प्राचीन संकलन का सहयोग लया था, साथ ही अनेक पद उ ह ने मैिथल-
लोक-क ठ से भी एक कया।

बाद के िदन म शारदाचरण म क प्रेरणा एवं आिथर्क समथर्न से नगे नाथ गु त ने ‘िव यापित ठाकुरे र पदावली’
शीषर्क से 840 पद का िव श ट संकलन तैयार कया, जो सन ् 1909 म बंगीय सािह य प रषद वारा प्रका शत
हुआ। िव यापित पद-सं ह क िदशा म नगे नाथ गु त के संकलन म य यिप कई िु टयाँ ह, पर बखरे ोत से
बीन-बीनकर संकलन तैयार करने क िवल ण सूझ-बूझ और मेहनत के प्रित कृत ता- ापन परवत सधु ीजन का
दिय व बनता है । संकलन म उ ह ने ' मिथलार पद' उपशीषर्क से िजतने भी पद लए ह, उनम से कुछ ही उनके
वारा संक लत ह, अिधकांश पद शारदाचरण म के सहयोग से उ ह त कालीन दरभंगा महाराज रामे वर संह से
प्रा त हुए। व ृ ाव था के बावजूद कवी वर च दा झा के सहयोग हे तु उ ह ने िवन तापव
ू क
र् कृत ता ािपत क ।
नेपाल राजदरबार म उपल ध पदावली का उपयोग सवर्प्रथम उ ह ने ही कया। बंगला-वां मय क िव भ न पदाव लय
सिहत उ ह ने लोचनकृत रागतरं िगणी का उपयोग भी कया। तरौनी-पदावली (तरौनी तालप ) अब कहीं नहीं है ।
उसक मल
ू प्रित का उपयोग बस वे ही कर पाए। उसके बारे म जानने का एकमा आधार अब िव यापित ठाकुरे र

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पदावली ही है । उ ह ने मिथला और बंगाल के लोकक ठ म बसे िव यापित के मह वपूणर् पद को भी अपने
संकलन म समािव ट कया।

काला तर म उसके कई संशोिधत-प रवि र्त सं करण प्रका शत हुए। सन ् 1934 म अमू यचरण िव याभूषण ने
उसम कई नए पद जोड़कर प्रामा णक संकलन प्रका शत करवाया। तदप ु रा त खगे नाथ म और िवमान बहारी
मजूमदार ने बड़े मनोयोग से उसका संशोधन-संव र्न कया और उसक सुिचि तत भू मका लखी; सन ् 1952 म
शारदाचरण म के पु शरतकुमार म ने उसे प्रका शत करवाया। संकलन तैयार करते समय म -मजूमदार को
नेपाल सरकार से अनरु ोधपव
ू क
र् पदावली क प्रित माँगकर महामहोपा याय हरप्रसाद शा ी ने उपल ध करवाई थी।
बंगाल म प्रका शत कुल 933 पद क िव यापित पदावली का यह मह तम सं करण है । िव यापित-सािह य के कई
अनुवत अनुरािगय सिहत जन दन सहाय ' जव लभ' एवं रामव ृ बेनीपुरी को पद-सं ह के म म इन सं करण
से प्रभूत सहयोग एवं प्रेरणा मली। उ लेख संगत होगा क सन ् 1936 म काशीप्रसाद जयसवाल ने नेपाल दरबार
पु तकालय म यह प्रित दे खी, उ ह ने दरभंगा के त कालीन महाराजािधराज कामे वर संह के आिथर्क एवं
प्रशासिनक सहयोग से उसक प्रित लिप तैयार करवाकर पटना कॉलेज पु तकालय म रखवाने क यव था क ।

तदप
ु रा त भाषा-वै ािनक ि ट से िव लेषणपरक िवचार करते हुए यवि थत और सम ृ भू मका के साथ सुभ झा
ने नेपाल दरबार पु तकालय से प्रा त पदावली का प्रकाशन अं ेजी म ‘स स ऑफ िव यापित’ शीषर्क से करवाया।
उनके अनस
ु ार इसम 288 पद ह, िजनम 262 पद म ही िव यापित अथवा उनके कसी िव द का उ लेख है ।

इसके बाद सन ् 1961 म बहार रा भाषा प रष , पटना वारा नेपाल दरबार पु तकालय से प्रा त पदावली का
प्रकाशन िव यापित पदावली, पहला भाग शीषर्क से हुआ। पर जैसा क सहज स भा य था, यह य का य नहीं
छपा। इसका अहम कारण हुआ मूल पा डु लिप म जगह-जगह नहीं पढ़े जा सकने वाले श द। इस सम या के
कारण प टत: उन श द का अथर् प ट नहीं हो पाया। इस यवधान से उ प न दोष का शकार म -मजूमदार
और सभ
ु झा का संकलन भी है । पर, प रषद वारा प्रका शत पदावली म प र मपव
ू क
र् पाठ को शु प और
समीचीन अथर् दे ने क चे टा क गई है । बहार रा भाषा प रष , पटना वारा सन ् 1961 म प्रका शत िव यापित
पदावली, दस
ू रा भाग म रामभ पुर पदावली से प्रा त 95 पद, रागतरं िगणी से प्रा त 51 पद, और तरौनी पदावली से
प्रा त 230 पद संक लत ह।

8. िन कष
महाकिव िव यापित भारतीय सािह य के अनूठे रचनाकार ह। उनका जीवन और रचना-िवधान असं य द तकथाओं
से भरा पड़ा है । द तकथाओं के कारण उनका मू यांकन करते हुए कई बार लोग गलत िन पि त भी िनकाल लेते ह।
उनक जीवनानुभूित और कौशल क उपे ा करते हुए उनके रचना मक उ कषर् म कसी दै वीय शि त का प्रबल
योगदान समझने लगते ह। जन ुित है क वयं भगवान शव, उगना नाम से उनके िनजी सेवक के प म साथ
रहते थे। इन कं बदि तय से परे पदावली समेत उनक तमाम कृितय का स यक मू यांकन आव यक है ।

HND : िहंद P2 : म यकाल न किवता-1


M19: महाकिव िव यापित का य-2

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