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िनमाता समह
ू
प्रमख
ु अ वेषक प्रो. गर वर म
कुलपित, महा मा गांधी अंतररा ीय िहंदी िव विव यालय, वधार् (महारा ) 442001
ईमेल : misragirishwar@gmail.com
प्र नप सम वयक प्रो. कृ ण कुमार संह
अिध ठाता, सािह य िव यापीठ
महा मा गांधी अंतररा ीय िहंदी िव विव यालय, वधार् (महारा ) 442001
ईमेल : kks5260@gmail.com
इकाई लेखक प्रो. दे वशंकर नवीन
प्रोफेसर, भारतीय भाषा क , भाषा, सािह य एवं सं कृित अ ययन िव यापीठ
जवाहर लाल नेह िव विव यालय, नई िद ली
ईमेल : deoshankar@hotmail.com
इकाई समी क प्रो. सूयप्रसाद द त
प्रोफेसर (सेवािनव ृ त), िहंदी िवभाग, लखनऊ िव विव यालय, लखनऊ (उ.प्र)
ईमेल : suryadixit123@gmail.com
भाषा संपादक प्रो. स यकेतु
प्रोफेसर, िहंदी, लबरल अ ययन क , अंबेडकर िव विव यालय, िद ली 110006
ईमेल : satyaketu@aud.ac.in
पाठ का प्रा प
1. पाठ का उ े य
2. प्र तावना
3. गीितका य क पर परा
4. गीितका य और िव यापित पदावली
5. िव यापित पदावली का भाषा- श प
6. िव यापित-पदावली क गेयध मर्ता
7. िव यापित पदावली क लोकिप्रयता
8. िन कषर्
2. प्र तावना
महाकिव िव यापित भारतीय सािह य के उन कृती रचनाकार म से ह, िजनक सजर्ना मकता रा या य म रहने के
बावजूद चारण-का य क ओर कभी उ मुख नहीं हुई। उनका रा -बोध, सं कृित-बोध, इितहास-बोध, और समाज-बोध
सदा उनको संचा लत करता रहा। उनके सामािजक सरोकार, रचना मक दािय व, नैितकता एवं िन ठा के प्रमाण,
पदावली के अलावा सं कृत और अवह म भी रिचत उनक कृितय म प ट िदखते ह। पर उ ह जन-जन तक
पहुँचाने का ेय उनक कोमलका त पदावली को जाता है । राजमहल से झोपड़ी तक, दे वमि दर से रं गशाला तक,
प्रणय-क से चौपाल तक उनके पद समान प से आज भी समा त ह। वय:सि ध, पूणय
र् ौवना, िवरहाकुल,
कामातुरा, कामद धा...सभी कोिट क नाियकाओं के नख शख वणर्न; मान, िवरह, मलन, भावो लास वणर्न; शव,
कृ ण, दग
ु ार्, गंगा के तुित-पद म किव ने सामािजक जीवन के यावहा रक व प को उजागर कया है । मैिथली म
रचे उनके सैकड़ पद के मल
ू िवषय राधाकृ ण प्रेमिवषयक ंग
ृ ार और शव, दग
ु ार्, गंगा आिद दे वी-दे वता क भि त
के ह; पर उनके कई भेदोपभेद ह, िजनम उनके भाषा-सािह य-संगीत-कला-सं कृित के ताि वक ान के संकेत
प ट िदखाई दे ते ह; साथ-साथ समाजसध
ु ार, रीित-नीित से स ब उनक धारणाएँ, एवं अनुरागमय जनसरोकार के
चम का रक व प िनद शर्त ह।
3. गीितका य क पर परा
महाकिव िव यापित को िह दी का प्रथम गीितका य का रचियता माना जाता है। प्राचीनकाल से प्रा य-पा चा य
िव व समाज वारा गीितका य क प रभाषा ि थर करने क चे टा के बावजूद कोई सवर्मा य प रभाषा तय नहीं हो
सक है । असल म गीितका य का सीधा स ब ध मानवीय संवेदना से है, िजसम इ छा, संवेग, भावना, आ मपरक
अनुभूितय के वहृ तर िव तार क बड़ी भू मका होती है । इनके असीम स भािवत फलक से मनु य वयं अन भ
रहता है; फर वह उसका सवर्मा य व प कैसे सिु नि चत करे ! पर गीितका य से मानव-जीवन क सहज अपे ाओं
को दे खते हुए यह समझ अव य बनती है क इसक स ता मनु य क प्रारि भक अनभ ु ूितय से जुड़ी हुई है और
अिधक प्राचीन उदाहरण नहीं मलने क ि थित म भारतीय प र य म इसका प्रार भ वैिदक यग ु से मानते ह।
वैिदक गीितय म इसके उदाहरण प टत: प रल त ह। प ट है क सहज-सुबोध भाषा म रिचत ला ल यपूण,र्
लया मक और गेयधम का य; िजसम रचनाकार क आ मानुभूित समह
ू परक भावनाओं के साथ तादा य थािपत
कर ले; गीितका य कहलाएगा। इस प्रसंग िदशा म हीगेल क राय उ लेखनीय है क गीितका य के रचियता जगत
के सारे त व को वयं म समािहत करता है , वैयि तक भाव के प्रभाव से इसे पूणत
र् : आ मसात करता है और इस
आ मपरकता को सुर त रखनेवाली शैली म अ भ य त करता है ।
राधा-कृ ण प्रेम िवषयक िविवध विृ तयाँ एवं ईश-भि त पदावली का मु य िवषय है । कुछ पद अ य लौ कक
यवहार के भी ह। उ लेखनीय है क िव यापित का युग न केवल मिथला के लए, बि क पूरे भारतीय जनपद के
लए सामािजक, आिथर्क और सां कृितक...हर ि ट से उथल-पुथल से भरा था। सल सलेवार आ मण के कारण
पूरा जनजीवन हर समय दहशत म पड़ा रहता था। िद ली से लेकर बंगाल तक क या ा म आ मणका रय और
आ ा त के जय-पराजय क तो अपनी ि थित थी, पर उस दहशत म सामा य नाग रक भी यवि थत नहीं रह
पाते थे। आ मण के लए जाते हुए उ साह म, और िवजयी होकर लौटते हुए उ लास म, अथवा िवफल लौटते हुए
हताशा म सैिनक कहाँ- कतना- कसको आहत करते थे, उ ह पता नहीं होता। पीढ़ी-दर-पीढ़ी अहंकार-तुि ट और
वचर् व- थापन के लए तरह-तरह के गठब धन बन रहे थे। साम त को भी तो अपनी अि मता कायम रखनी होती
थी। पर इसी बीच सािह य एवं कला के लए ठाँव-ठाँव जगह भी बनती जा रही थी। जाित- यव था और कठोर हो
रही थी, पर राजनीितक ि टकोण से उसम प रव तर्न क अपे ा दे खी जा रही थी। िह द-ू मुसलमान के बीच एक-
दस
ू रे को समझने क नई ि ट िवक सत हो रही थी। आिथर्क-सामािजक अपे ाओं के तहत दोन एक-दस
ू रे के करीब
आ रहे थे। कला-सािह य-सं कृित-धमर्-दशर्न स ब धी मा यताओं को लेकर दोन के बीच संवाद क बड़ी ज रत
आन पड़ी थी; िजसम सािह य क महती भू मका अिनवायर् थी।...ऐसे समय म िव यापित क अ य रचनाओं का जो
योगदान है, वह तो है ही, उनक पदावली ने प्रेम, भि त और नीित के सहारे बड़ा काम कया। पदला ल य, माधुय,र्
भाषा क सहजता, मोहक गेयध मर्ता से मु ध होकर समकालीन और अनुवत सािह य-कला प्रेमी एवं भ तजन
भाषा, भग
ू ोल, स प्रदाय, मा यता, जाित-धमर् के ब धन तोड़कर िव यापित के पद गाने लगे थे। उनका एक घोर
ंग
ृ ा रक पद है—' क कहब हे स ख आन द ओर, िचरिदने माधव मि दर मोर...' (हे स ख, बहुत िदन बाद माधव
मुझे अपने क म मले। म अपने उस आन द क कथा तु ह या सन ु ाऊँ!)। कहते ह क चैत य महाप्रभु इस पद
को गाते-गाते इस तरह िवभोर होते थे क मूछार् आ जाती थी।
भावो लास से भरे इस पद क हर पंि त म नाियका अपने िप्रयतम क उपि थित का सुख अलग-अलग इि य से
प्रा त कर रही है -- प िनहारती है, बोल सन
ु ती है, बस त क मादक ग ध पाती है, य नपव
ू क
र् ड़ा-सख
ु म लीन
होती है , र सकजन के रसभोग का अनुमान करती है। जािहर है क योजनाब ढं ग से अपने रचना-स धान म आगे
बढ़ रहे किव को उ े य क प्राि त हे तु िवल ण भाषा और अचूक तकनीक भी अपनानी था।
उ लेख मलता है क उ लास, नाग, रजनी, गीता छ द के िनमार्ता िव यापित ही ह; य क उनसे पूवर् के कसी
रचनाकार के यहाँ ये छ द नहीं िदखते। पर त य है क िव यापित ने बहुतायत म चौपई, चौपाई, सरसी, सार जैसे
छोटे छ द का भी प्रयोग कया है; बड़े छ द 'झूलना' का प्रयोग तो मा एक पद म हुआ है—
खन र खन महँिध भइ कछु अ ण नयन कइ, कपिट ध र मान स मान लेही
कुछ िगने-चुने पद म समानसवैया, ताटं क और वीर जैसे कुछ अपे ाकृत बड़े छ द प्रयु त हुए ह-
नािह करब वर हर िनरमोिहया, ब ता भ र तन वसन न ितनका, बघछल काँख तर रिहया।
बन बन फरिथ मसान जगाबिथ, घर आँगन ऊ बनौलि ह किहया
स भव है क पदावली क गीितध मर्ता के उ कषर् म छोटे छ द क प्रयिु त का िवशेष योगदान हो।
जनम होअए जन,ु जओं पुिन होइ। जुबती भए जनमए जनु कोइ।।
होइए जुबित जनु हो रसमि त। रसओ बझ
ु ए जनु हो कुलमि त।।
िनधन माँगओं बिह एक पए तोिह। िथरता िदहह अबसानहु मोिह।।
ी-जीवन क िववशता, आरोिपत मयार्दा, सहज उमंग, प्रेम-प्रसंग क एकिन ठता के सामािजक प र य से का य-
नाियका क पीड़ा इतनी घनीभत
ू है क यव
ु ाव था के उमंग-आवेग, प्रेम-अनरु ाग, वंश-मयार्दा के म ेनजर वह बेटी के
ज म को िनरथर्क कह बैठती है ; और अपने अवसान-काल तक के लए ई वर से िच त क िथरता माँगती है, अपने
लए एक स य और र सक प्रेमी माँगती है।
िन:संकोच कहा जा सकता है क िवल ण प्रतीक-योजना और सघन ब ब-िवधान वाली िव यापित पदावली
समकालीन जीवन- यव था का ऐसा अलबम है , िजसम लोकजीवन के सारे िच अपनी सू मता के साथ उपि थत
ह।
लोकजीवन क यावहा रकता, ला ल यपूणर् अथ कषर् एवं चम का रक सांगीितकता से भरे उनके पद आम जनजीवन
म अ य त लोकिप्रय हुए। परू े मिथला े के सं कार एवं आचारपरक रीित- रवाज म िव यापित के पद का
गायन नाग रक-प र य का अिनवायर् अंग बन गया। सिदय बाद लोकिप्रयता का वह मंजर आज भी जस का तस
है । जीवन-यापन के हर अवसर--ज म, नामकरण, मु डन, उपनयन, िववाह, पूजा-पाठ, लोको सव...हर ि थित के
गीत उनक पदावली म उपल ध ह। मैिथल जनजीवन का सं कारपरक कोई उ सव आज भी िव यापित के गीत के
बना स प न नहीं होता। रचनाकाल क सुिनि चत जानकारी उपल ध न होने के बावजूद कहा जा सकता है क ये
पद एक ल बे समय-फलक म रिचत ह। ओइनवार राजवंशीय िव भ न राजाओं एवं अ य लोग के िव द से उन
गीत के समय का यथासा य अनुमान कया जा सकता है। मिथला समेत पूरे पूवाचलीय प्रदे श --बंगाल, आसम एवं
उड़ीसा म वै णव सािह य के िवकास म भाव एवं भाषा माधुयर् के कारण िव यापित पदावली का अपूवर् योगदान रहा
है । वै णव भ त के प्रयास से इन गीत का प्रचार-प्रसार मथुरा-व ृ दावन तक हुआ।
शव संह के ितरोधान के बाद अनेक वष तक सां कृितक प से सम ृ े नेपाल क तराई, राजबनौली म रहकर
महाकिव िव यापित के रचनाकमर् के पूव लेख से प ट है क पहले से ही लोकिप्रयता हा सल कर चुके उनके गीत
वहाँ के जनमानस म और अिधक लोकिप्रय होने लगे। नेपाल राज दरबार पु तकालय म उपल ध पदावली उसी
आधुिनक काल म इस िदशा म बंगला वा .मय सबसे आगे िदखता है। प्राचीन का य-सं ह स ब धी जगब धु भ
क योजना महाजन पदावली के पहले ख ड म िव यापित के पद संक लत ह। शारदाचरण म ने इसका संकलन-
स पादन अ यच सरकार के सहयोग से कया, जो सन ् 1874 म प्रका शत हुआ। शारदाचरण म ने उसे
िव यापित पदावली नाम से सन ् 1878 म वत पु तक के प म प्रका शत करवाया।
बाद के िदन म शारदाचरण म क प्रेरणा एवं आिथर्क समथर्न से नगे नाथ गु त ने ‘िव यापित ठाकुरे र पदावली’
शीषर्क से 840 पद का िव श ट संकलन तैयार कया, जो सन ् 1909 म बंगीय सािह य प रषद वारा प्रका शत
हुआ। िव यापित पद-सं ह क िदशा म नगे नाथ गु त के संकलन म य यिप कई िु टयाँ ह, पर बखरे ोत से
बीन-बीनकर संकलन तैयार करने क िवल ण सूझ-बूझ और मेहनत के प्रित कृत ता- ापन परवत सधु ीजन का
दिय व बनता है । संकलन म उ ह ने ' मिथलार पद' उपशीषर्क से िजतने भी पद लए ह, उनम से कुछ ही उनके
वारा संक लत ह, अिधकांश पद शारदाचरण म के सहयोग से उ ह त कालीन दरभंगा महाराज रामे वर संह से
प्रा त हुए। व ृ ाव था के बावजूद कवी वर च दा झा के सहयोग हे तु उ ह ने िवन तापव
ू क
र् कृत ता ािपत क ।
नेपाल राजदरबार म उपल ध पदावली का उपयोग सवर्प्रथम उ ह ने ही कया। बंगला-वां मय क िव भ न पदाव लय
सिहत उ ह ने लोचनकृत रागतरं िगणी का उपयोग भी कया। तरौनी-पदावली (तरौनी तालप ) अब कहीं नहीं है ।
उसक मल
ू प्रित का उपयोग बस वे ही कर पाए। उसके बारे म जानने का एकमा आधार अब िव यापित ठाकुरे र
काला तर म उसके कई संशोिधत-प रवि र्त सं करण प्रका शत हुए। सन ् 1934 म अमू यचरण िव याभूषण ने
उसम कई नए पद जोड़कर प्रामा णक संकलन प्रका शत करवाया। तदप ु रा त खगे नाथ म और िवमान बहारी
मजूमदार ने बड़े मनोयोग से उसका संशोधन-संव र्न कया और उसक सुिचि तत भू मका लखी; सन ् 1952 म
शारदाचरण म के पु शरतकुमार म ने उसे प्रका शत करवाया। संकलन तैयार करते समय म -मजूमदार को
नेपाल सरकार से अनरु ोधपव
ू क
र् पदावली क प्रित माँगकर महामहोपा याय हरप्रसाद शा ी ने उपल ध करवाई थी।
बंगाल म प्रका शत कुल 933 पद क िव यापित पदावली का यह मह तम सं करण है । िव यापित-सािह य के कई
अनुवत अनुरािगय सिहत जन दन सहाय ' जव लभ' एवं रामव ृ बेनीपुरी को पद-सं ह के म म इन सं करण
से प्रभूत सहयोग एवं प्रेरणा मली। उ लेख संगत होगा क सन ् 1936 म काशीप्रसाद जयसवाल ने नेपाल दरबार
पु तकालय म यह प्रित दे खी, उ ह ने दरभंगा के त कालीन महाराजािधराज कामे वर संह के आिथर्क एवं
प्रशासिनक सहयोग से उसक प्रित लिप तैयार करवाकर पटना कॉलेज पु तकालय म रखवाने क यव था क ।
तदप
ु रा त भाषा-वै ािनक ि ट से िव लेषणपरक िवचार करते हुए यवि थत और सम ृ भू मका के साथ सुभ झा
ने नेपाल दरबार पु तकालय से प्रा त पदावली का प्रकाशन अं ेजी म ‘स स ऑफ िव यापित’ शीषर्क से करवाया।
उनके अनस
ु ार इसम 288 पद ह, िजनम 262 पद म ही िव यापित अथवा उनके कसी िव द का उ लेख है ।
इसके बाद सन ् 1961 म बहार रा भाषा प रष , पटना वारा नेपाल दरबार पु तकालय से प्रा त पदावली का
प्रकाशन िव यापित पदावली, पहला भाग शीषर्क से हुआ। पर जैसा क सहज स भा य था, यह य का य नहीं
छपा। इसका अहम कारण हुआ मूल पा डु लिप म जगह-जगह नहीं पढ़े जा सकने वाले श द। इस सम या के
कारण प टत: उन श द का अथर् प ट नहीं हो पाया। इस यवधान से उ प न दोष का शकार म -मजूमदार
और सभ
ु झा का संकलन भी है । पर, प रषद वारा प्रका शत पदावली म प र मपव
ू क
र् पाठ को शु प और
समीचीन अथर् दे ने क चे टा क गई है । बहार रा भाषा प रष , पटना वारा सन ् 1961 म प्रका शत िव यापित
पदावली, दस
ू रा भाग म रामभ पुर पदावली से प्रा त 95 पद, रागतरं िगणी से प्रा त 51 पद, और तरौनी पदावली से
प्रा त 230 पद संक लत ह।
8. िन कष
महाकिव िव यापित भारतीय सािह य के अनूठे रचनाकार ह। उनका जीवन और रचना-िवधान असं य द तकथाओं
से भरा पड़ा है । द तकथाओं के कारण उनका मू यांकन करते हुए कई बार लोग गलत िन पि त भी िनकाल लेते ह।
उनक जीवनानुभूित और कौशल क उपे ा करते हुए उनके रचना मक उ कषर् म कसी दै वीय शि त का प्रबल
योगदान समझने लगते ह। जन ुित है क वयं भगवान शव, उगना नाम से उनके िनजी सेवक के प म साथ
रहते थे। इन कं बदि तय से परे पदावली समेत उनक तमाम कृितय का स यक मू यांकन आव यक है ।