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Class 12 Hindi Aroh Chapter 3 Summary किवता के बहाने,

बात सीधी थी पर

किवता के बहाने, बात सीधी थी पर किवता का सारांश

श्री कुँ वर नारायण की इस किवता की रचना मकता और उसम िछपी अपार ऊजा को प्रितपािदत करने म स म है।
किवता के िलए श दों : । का संबंध सारे जड़-चेतन से है। यह अतीत, वतमान और भिव य से जुड़ी हुई है। इसकी
यापकता अपार है। इसकी कोई सीमा नहीं है। । यह िकसी प्रकार के बंधन म बँधती नहीं। इसके िलए न तो भाषा का
कोई बंधन है और न ही समय का। ‘किवता के बहाने’ नामक किवता | आकार म छोटी है पर भाव म बहुत बड़ी है। आज

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का समय मशीनीकरण और यांित्रकता का है िजसम सवत्र भाग-दौड़ है। मनु य का मन :

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इस बात से आशंिकत रहता है िक या किवता रहेगी या िमट जाएगी। या किवता अि त वहीन हो जाएगी ? किव ने इसे
एक यात्रा माना। – है जो िचिड़या, फूल से लेकर ब चे तक है। िचिड़या की उड़ान सीिमत है, पर किवता की उड़ान तो
असीिमत है। भला िचिड़या की उड़ान ।

किवता जैसी कैसे हो सकती है। किवता के पंख तो सब जगह उसे ले जा सकते ह पर िचिड़या के पंखों म ऐसा बल कहाँ
है! किवता :
का िखलना फल के िखलने का बहाना तो हो सकता है पर फल का िखलना किवता जैसा नहीं हो सकता। फ – कु छ ही
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देर बाद मुरझा जाता है लेिकन किवता तो भावों की महक लेकर िबना मुरझाए सदैव प्रभाव डालती रहती है। किवता तो
ब चों के – खेल के समान है िजसकी कोई सीमा ही नहीं है। जैसे ब चों के सपनों की कोई सीमा नहीं, वे भिव य की ओर
उड़ान भरते ह वै से ही किवता भी श दों का ऐसा अनठू ा खेल है िजस पर िकसी का कोई बंधन नहीं है। किवता का ेतर्
सीमा-रिहत है। वह िकसी भी सीमा से – पार िनकली हुई राह म आने वाले सभी बंधनों को तोड़ कर आगे बढ़ जाती है।

बात सीधी थी पर किवता का सारांश

‘बात सीधी थी पर’ किवता म कुँ वर नारायण ने यह प ट िकया है िक जब भी किव कोई रचना करने लगता है तो उसे
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अपनी बात को सहज भाव से कह देना चािहए, न िक तक-जाल म उलझाकर अपनी बात को उलझा देना चािहए।
आडंबरपूण श दावली से यु त रचना कभी भी प्रभावशील तथा प्रशंसनीय नहीं होती। इसके िलए किव ने पच का
उदाहरण िदया है।

पच को यिद सहजता से पेचकस से कसा जाए वह कस जाती है। यिद उसके साथ जबरद ती की जाए तो उसकी चूिड़याँ
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िघस कर मर जाती ह और उसे ठोंककर वहीं दबाना पड़ता है। इसी प्रकार से अपनी अिभ यि त म यिद किव सहज भाषा
का प्रयोग नहीं करता तो उसकी रचना प्रभावो पादक नहीं बन पाती। सही बात को सही श दों के मा यम से कहने से ही
रचना प्रभावशाली बनती है।

किवता के बहाने, बात सीधी थी पर किव पिरचय

किव-पिरचय जीवन-पिरचय-कुँ वर नारायण आधुिनक िहंदी सािह य म नई किवता के प्रमुख किव माने जाते ह। इनका
अ ेय के तारस तक’ म मह वपूण थान है। इनका ज म उ र प्रदेश के फैजाबाद िजले म 19 िसतंबर, 0 1927 को हुआ
था। इनकी प्रारंिभक िश ा थानीय कूल म हुई। इ होंने लखनऊ िव विव ालय से उ च o िश ा ग्रहण की। कु छ
िदनों तक ‘युग चेतना’ नामक प्रिस सािहि यक मािसक पित्रका का संपादन िकया।

ये एक भ्रमणशील यि त थे। इ होंने चेको लोवािकया, पोलड, स, चीन आिद देशों का भ्रमण िकया। रचनाएँ- श्री
कुँ वर नारायण अ ेय ारा संपािदत तीसरे स तक के प्रमुख किव ह। ये बहुमख
ु ी प्रितभा के धनी सािह यकार ह। इ होंने
सािह य की अनेक िवधाओं पर सफल लेखनी चलाई है, लेिकन एक किव प म अिधक प्रिस हुए ह। इनकी प्रमुख

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रचनाएँ िन निलिखत ह
(i) का य-संगर् ह-चक् र यूह (1956), पिरवे श : हम-तुम, अपने सामने, कोई
दूसरा नहीं, इन िदनों आिद।
(ii) प्रबंध का य-आ मजयी।
(iii) कहानी संगर् ह-आकारों के आस-पास।
(iv) समी ा-आज और आज से पहले।
(v) सा ा कार-मेरे सा ा कार।

सािहि यक िवशेषताएँ-
कुँ वर नारायण का का य संबंधी दृि टकोण अ यंत उ च एवं श्रे ठ है। तीसरे
स तक म कुँ वर नारायण ने जो व त य ० िदया है उसके आधार पर उनकी भ य-
दृि ट को बखबू ी समझा जा सकता है। उनकी का य-चेतना अ यंत उ म है।

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उनके सािह य की प्रमुख िवशेषताएँ िन निलिखत ह

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(i) वै ािनक दृि टकोण-कुँ वर नारायण एक भ्रमणशील यि त ह। उनकी इसी भ्रमणशीलता तथा पा चा य सािह य के
अ ययन के फल व प किवता के प्रित इनका वै ािनक दृि टकोण है। उ होंने अपने का य म वै ािनक दृि टकोण को
प्रमुखता प्रदान की है। उ होंने वै ािनक दृि टकोण को प ट करते हुए कहा है िक ‘यह वह दृि ट है जो सिह णु और
उदार मनोवृि से जुड़ी हुई है। वै ािनक दृि ट जीवन को िकसी पूवाग्रह से पंग ु करके नहीं देखती, बि क उसके प्रित
एक बहुमख ु ी सतकता बरतती है।’

(ii) िवचार प की प्रधानता-कुँ वर नारायण का सािह य जहाँ एक ओर वै ािनक दृि टकोण से ओत-प्रोत है, वहीं दूसरी
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ओर उसम िवचार प की भी प्रधानता है। इसी प्रधानता के कारण वे किवता को कोरी भावुकता का पयाय नहीं मानते।
उ होंने अपने का य म िवचारों को अिधक मह व िदया है, उसके बा आकषण पर नहीं। यही कारण है िक इनकी किवता
गंभीरता िलए हुए ह।

(iii) प्रतीका मकता-किव ने अपनी संवेदना को अिभ य त करने के िलए प्रतीका मकता का सहारा िलया है। उनका
चक् र यूह का यसंगर् ह एक प्रतीका मक रचना है िजसम किव ने समकालीन सम याओं म डूबे मानव को िवघटनकारी
सात महारिथयों से िघरे हुए अिभम यु के प म िचित्रत िकया है।
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(iv) नगरीय संवेदना का िचत्रण-कुँ वर नारायण को नगरीय संवेदना का किव माना जाता है। यह प उनके का य म
प ट झलकता है। उ होंने नगर तथा महानगरीय स यता का अपने का य म यथाथ िचत्रण िकया है।

(v) सामािजक िचत्रण-कुँ वर नारायण जी सामािजक चेतना से ओत-प्रोत किव ह। उ होंने अपनी रचनाओं म
समकालीन समाज की। यथाथ झाँकी प्र तुत की है। ‘आ मजयी’ प्रबंध का य म निचकेता के िमथक के मा यम से
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उ होंने सामािजक जीवन का सजीव िचत्रांकन िकया है। सामािजक रहन-सहन, उहापोह आिद का इनके का य म यथाथ
िचत्रण हुआ है।

(vi) मानवतावाद-कुँ वर नारायण के का य म मानवतावादी िवराट भावना के दशन भी होते ह। उ होंने वै ािनक युग की
भागदौड़ म फँसे सामा य जन-जीवन का िचत्रण िकया है। ‘चक् र यूह’ का य संगर् ह म किव ने समकालीन मानव को
िवघटनकारी सात-सात महारिथयों से िघरे हुए अिभम यु के प म िचित्रत िकया है।

(vii) भाषा-शैल ी-भाषा और िवषय की िविवधता कुँ वर नारायण की किवताओं के िवशेष ग ुण ह। उ होंने िवषय-िविवधता के
साथ साथ अनेक भाषाओं का प्रयोग भी िकया है। उनके का य की प्रमुख भाषा सािहि यक खड़ी बोली है िजसम
अंगर् ेजी, उदू, फ़ारसी, त सम और त व श दावली का प्रयोग है। उनकी शैल ी िवषयानु प है जो अ यंत गंभीर,
िवचारा मक तथा प्रतीका मक है।

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(viii) अलंकार-कुँ वर जी के सािह य म िवचारों की प्रधानता है इसिलए सौंदय की ओर इनका यान कम ही गया है।
इनके का य म अलंकारों का वाभािवक प्रयोग हुआ है। अनुप्रास, यमक, उपमा, पदमैतर् ी, वरमैतर् ी, पक आिद
अलंकारों का प्रयोग हुआ है। . मु तक छंद का प्रयोग है। िबंब योजना अ यंत सुंदर एवं सटीक है। िन कष प म हम
कह सकते ह िक कुँ वर नारायण आधुिनक िहंदी सािह य के प्रमुख किव ह। उनका सािहि यक दृि टकोण अ यंत
वै ािनक है, अतः उनका आधुिनक का यधारा म प्रमुख थान है।

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