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CBSE NCERT

Hindi Syllabus

आ प रचय |आरोह | ह रवंशराय ब न | क ा


12 वी ं| Hindi vyakhya Aatmparichay
Aroh Class 12

पहले आ प रचय
किव की िवचारधारा क पृ भूिम :

जब तक हमारा किव के िवचारों से प रचय न हो तब तक हम उसकी रचना के अथ, भाव और तीका क संदेश
तक नहीं प ं च सकते। अतः सबसे पहले हम ब न जी की िवचार-भूिम से प रिचत हो लेते ह।

ब न जी के का सृजन का समय िहं दी किवता के छायावादी युग के ठीक बाद का है । छायावादी किवता म जो
रोमानीपन है , भाषा म लािल के ित मोह है और जीवन के यथाथ के साथ जो िनरपे ता का भाव है , वह उन िदनों
ीण हो रहा था। किवता क नाओं के मनोरम संसार से ऊब कर जीवन की वा िवकता तक प ं चने के िलये
संघष कर रही थी।

दु िनया दो महायु ों की भीषण मारकाट और तबाही भोग चुकी थी। यु के कारण आम आदमी का दय बुरी तरह
िवकल था। आिथक संकटों का बोझ था। बाहर की िहं सा ने अंदर के मन को भी ल लुहान कर िदया था।

ऐसे म ब न जी अपनी किवता म भाषायी सरलता के साथ-साथ अिभ की सरलता को भी लेकर का


जगत म आये। उ ोंने सादगी के साथ सहजता के उपकरणों से किवता को रख और उसम मनु मन की िवकलता
को ुत िकया।

ब न जी की रचनाओं म गेयता का गुण अपनी धानता के साथ मौजूद है । हम रण रखना चािहये िक भारत
गीत, संगीत और रागों के ित अपनी गहरी आस रखने वाले इितहास का ामी है । मधुर लोकगीतों की पैठ
यहां के घरों म है । खेत म कठोर प र म करने वाला िकसान, िनधनता म जकड़ा आ िभ ुक और घरे लु कामकाज
म अपने को आकंठ डु बाये रखने वाली मिहलाओं के मुख से भी उनके काम के दौरान गीत झरा करते ह।

गीता क रचना की सं ेषणीयता अिधक होती है । यहां तुलसीदास की रामच रत मानस, सूरदास के पद और
कबीर, मीरां की रचनाय लोगों को जुबानी याद ह। वे उनका गायन करते ह। आ ा और मानस का गायन करने की
तो परं परा ही है । ब नजी ने भी गेयता की श म अपनी संवेदना को िपरोकर का रचनाएं कीं और उ किव
स ेलनों के ज रये लागों के मनों तक प ं चाने म अभूतपूव सफलता हािसल की थी।

उ ोंने अपने जीवन के यथाथ को किवता म ुत िकया और उसे आमजन का अनुभूत यथाथ बना िदया। उ ोंने
सूिफयाना भावभूिम को अपनाकर उसकी म ी और दाशिनकता को िहं दी किवता के संसार म वेश िदलाया।

ब न जी ने इस तरह िहं दी किवता के णयुग कहे जाने वाले ‘ गितवाद’ के िलये उवर ज़मीन तैयार की।
गीत का भाव प रचय :

किव की वैचा रक पृ भूिम को जान लेने के बाद आईये अब िजस किवता का हम पाठ और ा ा करने जा रहे ह,
उसका भाव प रचय ा कर ल। इससे हम रचना के और भी िनकट प ं च सकगे।

हम िजस संसार म जीवन जीते ह, उसका अपना तौर-तरीका होता हे । ब त से लोग उसी तौर-तरीके के आदी हा
जाते ह। उसी के वाह म बहते रहते ह। रचनाकार जो असल म सबसे पहले एक िवचारक होता है , वह संसार और
समाज की पारं प रक धारा के िव सोचता है । नया सेचता है । नया करना चाहता है । इसीिलये वह नया रचता ह
उसकी रचना म संसार से िभ धारा होने के कारण ही वह हमारे आकषण का कारण बनती है ।

इस तरह संसार म रहना भी किव के िलये आव क होता है और उससे िभ राह बनाना भी। यही भाव इस गीत का
धान र बनकर सामने आता है ।

आईये अब हम रचना म वेश कर-


सबसे पहले रचना का आदश पाठ करते ह-

म जग-जीवन का भार िलए िफरता ँ ,


िफर भी जीवन म ार िलए िफरता ँ ;
कर िदया िकसी ने झंकृत िजनको छूकर
म साँ सों के दो तार िलए िफरता ँ !

म ेह-सुरा का पान िकया करता ँ ,


म कभी न जग का ान िकया करता ँ ,
जग पूछ रहा उनको, जो जग की गाते,
म अपने मन का गान िकया करता ँ !

श ाथ : किवता को समझने की कुंजी है , सबसे पहले उसके किठन षटदों के अथ और ता य को जानना।

जग-जीवन = संसार म जीवनयापन की ि याएं । झंकृत = झनझनाने का संगीतमय र। ेह-सुरा = ेम की


शराब। पान = पीना। ान करना = परवाह करना। जग की गाते = संसार के चलन की शंसा करते। मन का गान
करना = अपने मौिलक िवचारों को रखना।

संदभ िकसे कहते ह? : किवता अथवा ग के अंश को ा ा के िलये जहां से िलया गया है , उस पा -पु क
का नाम, पाठ का शीशक और उसके रचनाकार की जानकारी दे ना ही संदभ कहलाता है ।

संदभ : ुत का ां श हमारी पा -पु क ‘आरोह, भाग-2’ म संकिलत किवता ‘आ प रचय’ से िलया गया
है । इसके रचनाकार िव ात किव डॉ ह रवंष राय ब न ह।

संग िकसे कहते ह? : िजस अंश को ा ा के िलये िलया गया है , उसम कौन सा िवचार, भाव या घटना का
वणन है , इसकी जानकारी दे ना ही संग कहलाता है ।

संग : किव इस का ां श म अपने और संसार के र तों का उद् घाटन कर रहे ह।

ा ा िकसे कहते ह? : िकसी किवता अथवा ग के अंश म िवचारों और भावों को सरलतम िविध से
समझाना ही ा ा करना कहलाता है ।
ा ा : किववर ब न जी इस किवतां श म अपने और संसार के म के र ों की िववेचना करते ए कहते ह
िक यह संसार िजसम म आया आ ं , उसका जीवन जीने का और जीवन के साथ वहार करने का अपना एक
पारं प रक ढं ग है । म उसकी इस शैली को अपने िलये अनुकूल नहीं पाता, इसिलये वह मेरे िलये भार प ही है ।
जीवन जीने के बारे म मेरे अपने मौिलक िवचार ह, परं तु म सां सा रक तरीकों का िनषेध भी नहीं करता, िलहाजा
अपने िसर पा लादे चलने के िलये िववश ं । बावजूद इसके म अपने जीवन म उसके ित नफरत नहीं, ार ही
रखता ं । मेरा जीवन िजन सां सों पर िनभर है , उसे अपनी संवेदना से झंकृत कर दे ना वाला ‘कोई’ मधुर
भी मुझे इसी संसार से उपल आ है । उसने जीवन को संगीत की मधुरता से भर िदया है ।

किव अपना आ प रचय दे ते ए कहते ह िक म इसी ा ेम की शराब को िपया करता ं । इसका नशा मुझे
अलौिकक आनंद से सराबोर कर दे ता है । इसम डूबे रहने के कारण म दु िनया के बारे म सोचता तक नहीं। इसी
कारण से दु िनया ने मुझे उपेि त कर रखा है । संसार का ऐसा चलन है िक जो उसके राग म अपना राग िमलाना
जानते ह, संसार केवल उनका ही आदर िकया करता है । मुझे भी उसके आदर की कहां दरकार है , म तो अपने मन
के गीतों को ही गाने म म ं।

का सौ ंदय ा है ? : किवतां श म रस, अलंकार, भाषा, भाव आिद के चम ार को का सौंदय कहा जाता है ।
इसे पद सौंदय, पद लािल , पद सौ व भी कहते ह।

का सौ ंदय : 1 किवता की भाषा सरल और सहज है । इसी कारण वह सं ेषणीय भी है । सीधे दय तक प ं चती
है ।

2 किवता म शां त रस है ।

3 ‘ ेह-सुरा’, यहां पर किव ने ेम को ही षराब बनाकर ुम िकया है । इसी तरह ‘सां सों के दो तार’, म सां सों
को तार बना िदया है , अतः यहां पर पक अलंकार है ।

पक अलंकार िकसे कहते ह? : जहां पर उपमेय को ही उपमान बना िदया जाये वहां पर पक अलंकार होता है ।
उपमेय अथात िजसका वणन िकया जाये। यहां पर ‘ ेह’ का वणन िकया जा रहा है , तो वह आ उपमेय। उपमान
अथात िजसके साथ उसका प प रवतन कर जाये। यहां पर ‘सुरा’ उपमान है ।

धम या गुण िकसे कहते ह? : िजस गुण के आधार पर तुलना या समानता ि◌अखायी जा रही हो, उसे धम या गुण
कहते ह। जैसे िक यहां पर ेह और शराब म नशे समान गुण को दे खा गया है ।

िवशेष-

किव ने संसार और अपने िवचारों तथा शैली म िभ ता को अिभ िकया है ।

: (क) ‘जगजीवन का भार िलए िफरने’ से किव का ा आशय ह? ऐसे म भी वह ा कर लेता है ?

उ र : (क) ‘जगजीवन का भार िलए िफरने’ से किव का आशय यह है , िक संसार म रहने पर संसार के चलन को
सहना पड़ता है । आप अपनी तरह से एक कार का जीवन जीना चाहते ह, पर संसार का जीवन जीने का तरीका
उससे िभ होता है । दोनों म तालमेल नहीं बैठता और किव अपने को असहज महसूस करता है ।

इस पर भी किव संसार के ित अपने मन म कोई श ुता या नफरत नहीं रखता, वह अपने जीवन म ार िलये ए
घूमता है , तािक लोगों को ार दे सके।
न : (ख) ‘ ेह-सुरा’ से किव का ा आशय ह?

उ र : (ख) ‘ ेह-सुरा’ से किव का आशय यह है , िक लोग शराब पीकर मतवाले हो जाते ह, परं तु किव ेम के
नशे म डूबकर मतवाला बना आ है ।

न : (ग) आशय कीिजए ‘जग पूछ रहा उनको, जो जग की गाते’।

उ र : (ग) ‘जग पूछ रहा उनको, जो जग की गाते’ का आशय है , िक जो लोग संसार के चलन के अनु प हो जाते
ह, यह संसार उ ीं का आदर-स ान करता है ।

न : (घ) ‘साँ सों के तार’ से किव का ा ता य ह? आपके िवचार से उ िकसने झंकृत िकया होगा?

उ र : (घ) ‘साँ सों के तार’ से किव का ता य है , जीवन को बनाये रखने वाली सां स। तार की तरह उनम िनरं तरता
होती है । हमारे िवचार से किव के जीवन म जब उनकी ेयसी के ेम ने वेष िकया होगा, तो वे वीणा के तार की
तरह झंकृत हो गयी होंगी।

2.

म िनज उर के उ ार िलए िफरता ँ ,


म िनज उर के उपहार िलए िफरता ँ ;
है यह अपूण संसार न मुझको भाता
म ों का संसार िलए िफरता ँ ।

म जला दय म अि , दहा करता ँ ,


सुख-दु ख दोनों म म रहा करता ँ ;
जग भव-सागर तरने को नाव बनाए
म भव-मौजों पर म बहा करता ँ ।

श ाथ : उर = दय। उ ार = िदल के भाव। उपहार = भट। भाता = अ ा लगता। ों का संसार =


क नाओं की दु िनया। दहा = जला। भव-सागर = संसार पी समु । तरने = पार करने। मौजों = लहरों।

संदभ : ुत का ां श हमारी पा -पु क ‘आरोह, भाग-2’ म संकिलत किवता ‘आ प रचय’ से िलया गया
है । इसके रचनाकार िव ात किव डॉ ह रवंश राय ब न ह।

संग : किव इस का ां श म संसार के ित अपने िवचारों और भावनाओं को अिभ कर रहे ह।

ा ा : किव के दय म उनके अपने मौिलक िवचार ह। वे उ करने के िलये ाकुल रहते ह। उनके
पास संसार को दे ने के िलये अनोखे और अनुपम उपहार ह, वे उ संसार को भट कर दे ने के िलये उ ाह से भरे
ए ह।

उनके सामने जैसा संसार है , उसम उ अधूरापन िदखायी दे ता है । इसी अधूरेपन के कारण यह दु िनया उ अ ी
नहीं लगती। वे उसके अधूरेपन को दू र करना चाहते ह। उनके मन म एक नये और संपूण संसार के बारे म ब त सी
क नाएं ह। किव चाहते ह िक अपनी क नाओं को साकार कर बेहतर दु िनया रच।
किव का कहना है िक अपूण संसार को दे खकर वे दु खी रहते ह। एक आग सी उनके अंदर सदै व जला करती है ।
इस आग को जलाने वाला कोई और नहीं, यं वही ह। अथात् चाहते तो जैसी दु िनया है , उसे वैसी ही ीकार कर
चैन से रह सकते थे, पर उसम बदलाव लाने की इ ाओं ने उ ाकुल कर रखा है । उनके जीवन म अ लोगों
की तरह ही सुख और दु ख दोनों ही ह, पर किव सुख म अहं कारी नहीं होते और दु ख म िवचिलत नहीं हो जाते। दोन
म ही एक कार की म ी का अनुभव करते ह।

वे कहते ह िक लोग संसार पी समु को पार करने के िलये नाव बनाना चाह तो बनाय। इससे मो पाना चाह तो
पाय। इससे छु टकारा पाना चाह तो इसके िलये वे तं ह। पर म तो इस संसार को, अपने िलये अनुकूल होने पर
भी, उसे स ही मानता ं । वह मेरे िलये िम ा नहीं है । इसीिलये म संसार की लहरों पर ही रहना चाहता ं । रहना
ही नहीं चाहता, ब लहरों पर रहकर अपने को म ी से भरा आ भी पाता ं ।

पद लािल :
1 इस का ां श म शां त रस है ।
2 ‘भव-सागर’ और ‘भव-मौजों’ म पक अलंकार है ।
3 किव की का -भाषा म वाह और भाव दोनों ही ह।

िवषेश : किव संसार को अधूरा अपने िलये अनुकूल महसूस नहीं करते, परं तु उससे मु भी नहीं पाना चाहते।

: (क) किव के ह्◌दय म कौन-सी अि जल रही ह? वह िथत ों है ?

उ र : किव के दय म संसार म प रवतन लाने के िवचारों की अि जल रही है । वह संसार के अधूरेपन के कारण


िथत है ।

: (ख) ‘िनज उर के उ ार व उपहार’ से किव का ा ता य ह? कीिजए

उ र : (ख) ‘िनज उर के उ ार’ से किव का ता य यह है िक वे अपने दय म मौिलक िवचार रखते ह। ’िनज उर


के उपहार’ से ता य यह है िक किव अपने िवचारों से संसार म नये प रवतन लाना चाहते ह और अपने ेम को
संसार म बाँ टना चाहते ह।

न : (ग) किव को संसार अ ा ों नहीं लगता?

उ र : (ग) किव को संसार इसिलए अ ा नहीं लगता, ोंिक उसके ि कोण के अनुसार संसार अधूरा है । उसम
ब त सी असमानताएं , िनधनता और तकलीफ ह।

3.
म यौवन का उ ाद िलए िफरता ँ ,
उ ादों म अवसाद िलए िफरता ँ ;
जो मुझको बाहर हँ सा, लाती भीतर,
म, हाय, िकसी की याद िलए िफरता ँ !

कर य िमटे सब, स िकसी ने जाना?


नादान वहीं ह, हाय, जहाँ पर दाना!
िफर मूढ़ न ा जग, जो इस पर भी सीखे?
म सीख रहा ँ , सीखा ान भुलाना !
श ाथ : यौवन = जवानी। उ ाद = पागलपन। अवसाद = उदासी, खेद। य = यास। नादान = नासमझ,
अनाड़ी। दाना = चतुर, ानी। मूढ़ = मूख।

संदभ : ुत का ां श हमारी पा -पु क ‘आरोह, भाग-2’ म संकिलत किवता ‘आ प रचय’ से िलया गया
है । इसके रचनाकार िव ात किव डॉ ह रवंश राय ब न ह।

संग : किव इस का ां ष म िकसी अनाम की यादों और संसार की दशाओं का िववरण ुत कर रहे ह।

ा ा : किव कहते ह िक वे अपने अंदर युवाव था की जो िवषेश उमंग होती है , दसे सदै व ही साथ िलये रहते ह।
पर उमंग म भी ेम की उदािसयां ह। इसके कारएा वे दु िनया को िदखाने के िलये खुया रहा करते ह, परं तु अंदर ही
अंदर रोया करते ह। इसका कारण है िक उनके दय म िकसी ि यजन की ृितयां बसी ई ह।

वे कहते ह िक इस संसार म जीवन के स को जानने की कोिशश कर-कर के लोग िमट गये, परं तु कोई भी स
को नहीं जान सका। असल म जहां पर अपने को ानी समझने वाले लोग होते ह, वही नादान भी होते ह। ऐसे म उस
संसार को मूख ही कहना चािहये, जो सीखने के यासों म लगा हो। म तो जो ान पा चुका ं उसे भी भुला दे ना
चाहता ं । आानी बने रहने म ादा सुकून है ।

पद सौ व

1 का ां श म ृंगार और शां त रस ह।

2. ‘उ ादों म अवसाद’, ‘बाहर हं सा, लाती अंदर’, ‘नादान वहीं ह, हाय, जहाँ पर दाना!’ और ‘म सीख रहा ँ ,
सीखा ान भुलाना!’ म िवरोधाभास अलंकार है ।

िवरोधाभास अलंकार िकसे कहते ह? िवरोधाभास अलंकार वहां होता है , जहां पर एक साथ दो पर र िवरोधी
िवचार िकये गये हों।

3 भाशा म लािल और गीता कता है ।

4 ‘कर य िमटे सब, स िकसी ने जाना?’ म दाशिनक भाव सू बनकर आया है ।

िवषेश : का ां श म किव के दाशिनक भाव अिभ ए ह। वे इस स का उद् घाटन करते ह िक जो ानी ह,


असल म वही सबसे बड़े नादान लोग ह।

: (क) ‘यौवन का उ ाद’ का ता य बताइए।

उ र : (क) किव म यौवन का उ ाद अथात् उमंग भरी ई है । दसका एक नशा सा है । कुछ नया कर गुजरने की
बेताबी है ।

न : (ख) किव की मनः थित कैसी है ?

उ र : (ख) किव की मनः थित ऐसी है िक वह अंदर से दु खी है और िदखावे के िलये उसे अपने को खुष दिशत
करना पड़ता है । यह एक िवरोधाभासी दशा है ।

न : (ग) ‘नादान‘ कौन है तथा ों?


उ र : (ग) जो लोग यं को ानी समझते ह, असल म वही लोग नादान ह। वे नादान इसिलये ह, ोंिक वे नहीं
जानते िक असली ान ा है ?

न : (घ) संसार के बारे म किव ा कह रहा ह?

उ र : (घ) किव संसार के बारे म कहता है िक यह संसार मूख है , ोंिक वह इस त के बावजूद सीखना चाहता
है िक जो ानी ह, असल म वही नादान लोग ह।

न : (ड) किव सीखे ान की ों भूला रहा है ?

उ र : (ड) किव सीखे ान को इसिलये भुला रहा है , ोंिक उसके अनुसार सीखा आ ान ही, अ ानी बना रहा
है । िजसे हम ान समझे बैठे ह, वह अ ान है । सम ान ा है , अभी इसे ही जानना शेष है ।

4
म और, और जग और, कहाँ का नाता,
म बना-बना िकतने जग रोज िमटाता;
जग िजस पृ ी पर जोड़ा करता वैभव,
म ित पग से उस पृ ी को ठु कराता!

म िनज रोदन म राग िलए िफरता ँ ,


शीतल वाणी म आग िलए िफरता ँ ;
हों िजस पर भूपों के ासाद िनछावर,
म वह खंडहर का भाग िलए िफरता ँ ।

श ाथ : नाता = संबंध। वैभव = समृ । पग = पैर। रोदन = रोना। राग = ेम। आग = जोश। भूपों = राजाओं।
ासाद = महल। िनछावर = लुटाना। खडहर = इमारत । भाग = िह ा।

संदभ : ुत का ां श हमारी पा -पु क ‘आरोह, भाग-2’ म संकिलत किवता ‘आ प रचय’ से िलया गया
है । इसके रचनाकार िव ात किव डॉ ह रवंश राय ब न ह।

संग : किव इस का ां श म अपने और संसार के बीच के अंतर को कर रहे ह।

ा ा : किव कहते ह िक म अलग िक का आदमी ं जबिक यह दु िनया मुझसे िभ कार की है । इसिलये


इसके साथ मेरा कोई नाता संभव ही नहीं है । म अपनी क ना के रोज ही ब त से संसार बनाता और िमटाता ं ।
यह दु िनया धरती पर िनत सुख और समृ के साधनों को जुटाने म है , और म ं िक अपने पैरों की ठोकर से
ऐसी धरती को ही ितिदन ठु कराया करता ं ।

अथात् धन-दौलत के पीछे भागने वाली दु िनया किव को ीकार नहीं है । वह तो उसे ठु कराते रहते ह।

किव कहते है िक म जब दन करता ं , तब उसम म ेम की अिवरल धारा रहा करती है । मेरी वाणी भले ही षीतल
हो, िकंतु वह उन श ों का उ ारण करती है , िजनम आग होती है । संसार की िवसंगितयों को जला डालने की
उसम मता है । य िप मेरा दय एक इमारत की तरह है , िफर भी वह ऐसे ेम की इमारत है , िजस पर
स ाटों के आलीशान महल भी लुटाये जा सक। ता य यह िक ेम की ंस भी महल की तुलना म अिधक मू वान
है ।
पद सौ ंदय :

1 का ां श म िवयोग ंगार रस का आभास है । पृ भूिम है ।

2 ‘रोदन म राग’ और ‘शीतल वाणी म आग’ म िवरोधाभास अलंकार है ।

3 ‘बना-बना’ म पुन काश अलंकार है ।

पुन काश अलंकार िकसे कहते ह? जहां पर एक ही श एक से अिधक बार , एक ही अथ म आये उसे
पुन काश अलंकार कहते ह।

4 ‘म और, और जग और’ की म यमक अलंकार है ।

यमक अलंकार िकसे कहते ह? जहां पर एक ही श की आवृि बार-बार हो, परं तु हर बार उसका अथ हो,
वहां पर यमक अलंकार होता है ।

िवशेष : किव ने अपनी िविश थित का िच ण िकया है ।

प्◌ा न : (क) किव और संसार के बीच ा संबंध ह?

उ र : (क) किव और संसार के बीच एक तरह का िवरोधाभासी संबंध है । वह संसार म रहकर भी संसार से
असहमत है ।

प्◌ा न : (ख) किव और संसार के बीच ा िवरोधी थित ह?

उ र : (ख) किव और संसार के बीच िवरोधी थित यह है िक जहां संसार सं ह की वृि से संचािलत है , वहीं
किव सं ह के खलाफ िवचार रखते ह।

प्◌ा न : (ग) ‘शीतल वाणी म’ आग िलए िफरता ँ ’ -से किव का ा ता य है ?

उ र : (ग) उ पं से ता य यह है िक किव की वाणी शीतल है , परं तु उसकी अंतरा ा म प रवतन की


ालाएं ह।

प्◌ा न : (घ) किव के पास ऐसा ा है , िजस पर राजाओं के िवशाल महल भी ौछावर हों?

उ र : (घ) किव के पास ेम की इमारत के खंडहर ह। स े ेम की टू टी-फूटी इमारत की ित ा इतनी अिधक


होती है , िक राजाओं के िवशाल महल भी उस पर ौछावर हो जाय।

5.
म रोया, इसको तुम कहते हो गाना,
म फूट पडा, तुम कहते, छं द बनाना;
ों किव कहकर संसार मुझे अपनाए,
म दु िनया का ँ एक नया दीवाना।
म दीवानों का वेश िलए िफरता ँ ,
म मादकता िनःशेष िलए िफरता ं ;
िजसको सुनकर ज़ग झूम, झुके, लहराए,
म मरती का संदेश िलए िफरता ं ।

श ाथ : फूट पड़ा = िव ल होकर रोना। दीवाना = जुनूनी, उ । मादकता = म ी। िनःशेष = जो कभी


समा न हो।

संदभ : ुत का ां श हमारी पा -पु क ‘आरोह, भाग-2’ म संकिलत किवता ‘आ प रचय’ से िलया गया
है । इसके रचनाकार िव ात किव डॉ ह रवंश राय ब न ह।

संग : किव इस का ां ष म अपनी सूिफयाना म ी के भावों को अिभ कर रहे ह।

ा ा : ब न जी अपनी किवता म कहते ह िक जब मने अपने पीड़ाजिनत दन को जब अिभ िकया तो


लोगों ने उसे मेरा गीत गाना िन िपत िकया। इसी तरह जब आं त रक पीड़ा से म िव ल हो गया, तो उसे छं द
िनमाण माना गया। मुझे इस बात पर आपि है िक संसार मुझे किव माने। वा िवकता तो यह है िक संसार म अब
तक िजतने भी दीवाने आये ह, म उनसे अलग एक नयी ही िक का दीवाना ं । आपने म म ।

ब न जी आगे कहते ह िक इस दु िनया म म दीवानों का वेश बनाये घूमता ं । म अपनी भावनाओं और िवचारों की
कभी भी ख न होने वाली मादकता िलये ं । म अपनी इसी म ी के ऐसे पैगाम लेकर िनकला ं , िजसे सुनकर
संसार झूमने लगेगा। मेरे संदेशों के सामने झुक जायेगा अथात् उनका ागत करे गा। और िफर उस म ी को
अपनाकर नाचेगा।

का सौ ंदय

1 थम पद की पहली तीन पं यों म िवरोधाभास अलंकार है ।

2‘ ों किव कहकर संसार मुझे अपनाये’, म िनषेध है । ब न जी किव की बजाय एक दीवाना या कलंदर
कहलाना चाहते ह।

3‘ ों किव कहकर’ म अनु ास अलंकार है । यहां पर ‘क’ वण की आवृि 3 बार ई है ।

अनु ास अलंकार : जहां पर एक ही वण की आवृि दो या दो से अिधक बार हो, वहां पर अनु ास अलंकार होता
है ।

4 किव ने सरल और सहज का -भाषा का योग िकया है ।

5 पदों म शां त रस है ।

िवशेष : इन पदों म सूिफयाना दशन को ुत िकया है ।

: (क) किव के रोने और फूट पड़ने को ससार ा समझता ह?

उ र : किव के दन को गाना और फूट पड़ने को संसार छं द बनाना समझता है ।


: (ख) किव यं को ा कहलना पसंद करता ह और ों?

उ र : (ख) किव यं को दीवाना कहलाना पसंद करता है , ोंिक उसकी किवताओं म म ी और सूिफयाना
दशन है ।

: (ग) किव की मनोदशा कैसी ह?

उ र : (ग) किव की मनोदशा दीवानों जैसी है । वह सूिफयाना म ी म चूर है ।

: (घ) किव संसार को ा संदेश दे ना चाहता ह? वह संसार पर उसकी कैसी िति या की आषा करता है ?

उ र : (घ) किव संसार को ेम की म ी का संदेश दे ना चाहता है । किव को आशा है िक इस संदेश से संसार झूम
उठे गा, आदर करे गा और आ क आनंद से लहरायेगा।

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िदन ज ी-ज ी ढलता है ! डॉ ह रवंशराय ब न class 12 aroh CBSE NCERT

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rajendra / September 11, 2018 / Aaroh Book class 12, aatmparichye poem, harivanshrai bacchan
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