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अलंकार

अलंकार का अर्थ
‘अलंकार शब्दों की रचना दो शब्दों के
मेल से हुई है - ‘अलं’ तथा ‘कार’ ‘अलं’
का अथथ है ‘शोभा’ या ‘सौंदयथ’ | ‘कार’
शब्द ‘कर’ धातु से बना रूप है
जिसका अथथ है ‘करने वाला’ | इस
तरह अलंकार शब्द का अथथ हुआ
‘शोभा करने वाला |
विभिन्न विद्िानों द्िारा अलंकार
की पररिाषा
• आचार्थ िामह-
शब्द और अथथ की ववचचत्रता या वैशशष्ट्य अलंकार
है |
• आचार्थ दं डी-
काव्य की शोभा बढ़ाने वाले धमथ (तत्व) ही अलंकार
है |
• आचार्थ रामचंद्र शक्
ु ल-
वर्थन करने की चमत्कारपूर्थ शैशलयााँ ही अलंकार
है |
अलंकार के लक्षण
✓काव्र् में चमत्कार लाना |
✓काव्र् की शोिा बढ़ाना |
✓काव्र् में सौंदर्थ प्रदान करना |

✓काव्र् को अधिक आकवषथत बनाना |


✓काव्र् को अधिक विभशष्ट बनाना |
✓काव्र् को अधिक प्रिािशाली बनाना |
अलंकार के मुख्र्तः दो िेद होते ह
शब्दालंकार अर्ाथलंकार
• शब्दालंकार: काव्य में िहााँ • ‘अथाथलंकार’:अथथद्वारा
शब्दों के ववशशष्टट प्रयोग से उत्पन्न सौन्दयथ पर कायथ
चमत्कार उत्पन्न होता है , करते हैं | िहााँ काव्य का
वहााँ ‘शब्दालंकार’ की सत्ता सौंदयथ शब्द ववशेष पर
होती है | शब्दालंकारों का आचित न रहकर अथथ (भाव)
अजततत्व ‘शब्द-ववशेष’ के पर ननभथर हो वहााँ अथाथलक ं ार
कारर् होता है | होता है |
शब्दालंकारों के िेद
• अनप्रु ास अलंकार –ककसी कववता में समान वर्ों
की आवनृ त होती है या समान वर्थ बार-बार आते
हैं, तो वहााँ अनप्र
ु ास अलंकार होता है |
• वर्ों की आवनृ त शब्दों के आरं भ, मध्य या अंत
के वर्ों के रूप में , अथाथत ककसी भी रूप में हो
सकती है | िैसे-
➢ मोर मक ु ु ट मकराकृत कंु डल, अरुन नतलक ददए
भाल (‘म’ वर्थ की आववृ त्त)
➢ छोरटी है गोरटी या चोरटी अहीर की (‘र’ वर्थ की
आववृ त्त)
र्मक अलंकार
• िहााँ एक शब्द की आववृ त्त एक से अचधक बार
होती है और हर बार उसका अथथ शभन्न होता
है , वहााँ ‘यमक’ अलंकार होता है |
• िैसे-
➢तू मोहन के उरबसी, है उरबसी सामान |
➢बापू को कर ननत दरू -दरू ,
हर बरस, बरस ददन आता है |
श्लेष अलंकार
• ‘श्लेष’ शब्द का अर्थ ह ‘धचपकना’
• जहााँ ककसी एक ही शब्द में एक से अधिक अर्थ
धचपके होते हैं, िहााँ ‘श्लेष’ अलंकार होता ह |
• जसे-
➢ ‘सबु रन को ढाँ ढ़त किरत, कवि, व्र्भिचारी, चोर’
➢ मिब ु न की छाती को दे खो, सखी इसकी ककतनी
‘कभलर्ााँ’
अर्ाथलंकारों के िेद
रुपक अलंकार
• ‘रुपक’ अलंकार वहााँ होता है िहााँ ‘प्रततत
ु ’ और
• ‘अप्रतततु ’ में बहुत अचधक समानता होने के कारर्
दोनों को एक समझ शलया िाता है या
‘उपमेय’ पर ‘उपमान’ का आरोप ककया िाता है |
िैसे- ‘चरर् कमल बंदौ हरर राई’( कमल रूपी चरर्:
उपमेय = चरर्,उपमान= कमल)
‘ववष-बार् बंदू से छूटें गे’ (ववष रूपी
बार्:उपमेय=बार्,उपमान=ववष)
उत्प्रेक्षा अलंकार
• िहााँ प्रततत ु पर अप्रततत ु की या ‘उपमेय’ पर ‘उपमान’ की
संभावना की िाती है , वहााँ ‘उत्प्रेक्षा अलंकार’ होता है |
• उत्प्रेक्षा अलंकार में संभावना करने के शलए प्राय: ‘मानो’ ,
‘मनहु’ ‘िानो’ , िनहु’ , ‘ज्यों’ ,िनु’ आदद वाचक शब्दों का
प्रयोग ककया िाता है |िैसे-
➢ उस काल मारे क्रोध के तनु कााँ उनका लगा,
मानो हवा के िोर से बहता हुआ सागर िगा |
➢ ‘पद्मावती सब सखी बल ु ाई,मनु फुलबारर सबै चशलआई|’
➢ ‘शमटा मोद,ु मन भए मलीने
ववचध ननचध दीन लेत िनु छीन्हे |’
अततशर्ोक्क्त अलंकार :
• ‘अनतशयोजतत’ शब्द दो शब्दों से शमलकर बना है -’अनतशय’
तथा ‘उजतत’ अथाथत ऐसी उजतत िो अनतशयता के साथ कही
गई हो या बढ़ा-चढ़ाकर कही गई हो |
• इस तरह कववता में िब ‘प्रततत ु ’ या ‘उपमेय’ का वर्थन
बहुत बढ़ा-चढ़ाकर अनतशयपूर्थ ढं ग से ककया िाता है , वहााँ
‘अनतशयोजतत’ अलंकार होता है |
• िैसे-
➢ आगे नददया पड़ी अपार, घोडा कैसे उतरे पार |
रार्ा ने सोचा इस पार, तब तक चेतक था उस पार ||
➢ मैं रोया परदे स में, भीगा मााँ का प्यार |
दखु ने दखु से बात की बबन चच्टी बबन तारर ||
मानिीकरण अलंकार
• ‘मानिीकरण’ शब्द का अर्थ ह ‘ककसी को मानि बना दे ना |’

• िस्तुतः काव्र् में कवि जब प्रकृतत िणथन करता ह, तोह प्रकृतत


को इस रूप में धचत्रित करता ह, जसे िह कोई ‘मानि’ र्ा
‘मानिी’ हो | ऐसे स्र्लों पर ‘मानिीकरण’ अलंकार होता ह |
• जसे-

➢ उषा सुनहले तीर बरसाती जर्लक्ष्मी सी उददत हुई उिर


पराक्जत काल रात्रि िी जल मैं अंततनथदहत हुई |
➢ मेघ आर्े बड़े बन-ठन के संिर के |
िन्र्िाद

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