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कक्षा 10

अलंकार
अलंकार रहित अलंकृ त

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अलंकार का अर्थ
• अलंकार' शब्द का शाब्दिक  अर्थ है – आभूषण, जेवर या गहना
अलंकार दो शब्दों से मिलकर बना होता है – अलम् + कार।
अलम् का अर्थ है -आभूषण /भूषण
कार का अर्थ है- कर्ता या करने वाला
*जिस प्रकार गहने पहनने से मनुष्य के शरीर की शोभा बढती है , उसी प्रकार काव्य के अलंकारो से काव्य की शोभा बढती है | अर्थात जो काव्य को अलंकृ त करे , वह अलंकार है |
*काव्य के शोभा कारक गुण –धर्मों को अलंकार कहते हैं|
अलंकार शब्द में संधि
म् + क से ज्ञ तक का कोई भी वर्ण हो (के वल म को छोड़कर ) तब म् अनुस्वार में बदल जाता है और अपने पूर्ववर्ती वर्ण पर लग जाता है-
अलं + कार = अलंकार (व्यंजन संधि)
अलंकार शब्द में प्रत्यय – ‘कार’ प्रत्यय है ,जिसका अर्थ होता है अलंकृ त करने वाला |
समास – अव्ययीभाव समास
जिसके द्वारा कोई वस्तु या विषय अलंकृ त किया जाए।
• सुशोभित करने वाला।
• काव्य की शोभा बढ़ाने वाले ।
• अलंकार के प्रवर्तक ‘आचार्य भामह’ को माना गया है| इन्होंने अपनी पुस्तक ‘काव्यालंकार’ में अलंकार का वर्णन किया है|
• ‘अलंकरोति इति अलंकारः –अर्थात जो अलंकृ त करता है, वही अलंकार है|

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काव्य की शोभा दो माध्यमों से बढ़ाई जाती
है- 1.शब्द
2.अर्थ
• इस प्रकार अलंकार के दो भेद होते हैं-

1.शब्दालंकार (शब्द+अलंकार)
2.अर्थालंकार (अर्थ+अलंकार)

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शब्दालंकार
• शब्दालंकार
• शब्दालंकार दो शब्दों से मिलकर बना होता है – शब्द + अलंकार
• जिस अलंकार में शब्दों को प्रयोग करने से चमत्कार उत्पन्न हो जाता है और उन शब्दों की जगह पर समानार्थी
शब्द को रखने से वो चमत्कार समाप्त हो जाये, वहाँ शब्दालंकार होता है।

• अथवा

• शब्द विशेष के रहने पर किसी अलंकार विशेष का चमत्कार बना रहे और न रहने पर अलंकार का अस्तित्व नष्ट हो
जाएं।
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जैसे
• कनक कनक ते सोगुनी ,मादकता अधिकाय |
वा खाये बौराए नर ,वा पाये बौराए|
कनक – धतूरा
कनक- सोना

रघुपति राघव राजा राम |

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शब्दालंकार के भेद

• शब्दालंकार के भेद :-
1.अनुप्रास अलंकार( वर्णों की आवृति )
2.यमक अलंकार (एक ही शब्द के भिन्न अर्थ)
3.श्लेष अलंकार (चिपकना )

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अर्थालंकार

काव्य में जहाँ अलंकार का सौन्दर्य अर्थ में निहित हो, वहाँ अर्थालंकार होता है।
इन अलंकारों में काव्य में प्रयुक्त किसी शब्द के स्थान पर उसका पर्याय या
समानार्थी शब्द रखने पर भी चमत्कार बना रहता है। 

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अर्थालंकार के भेद
• उपमा
• रूपक
• उत्प्रेक्षा
• अतिशयोक्ति
• मानवीकरण

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1.अनुप्रास अलंकार
• अनु + प्र + आस|
• यहाँ पर अनु का अर्थ है- पीछे
• प्र का अर्थ होता है – प्रकृ ष्ट रूप से।
• आस का अर्थ होता है – रखकर।
• एक ही क्रम में वर्णों का क्रमिक विन्यास।

• जब किसी वर्ण की बार – बार आवृत्ति हो तब जो चमत्कार होता है उसे अनुप्रास अलंकार कहते है।
• यह क्रम शब्द के आदि में भी हो सकते है और अंत में भी।
• जहां एक वर्ण को दूसरे वर्ण के पीछे क्रम में रखा जाता है वहां अनुप्रास अलंकार होता है।
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अनुप्रास अलंकार के उदाहरण
‘च’ वर्ण की आवृति ‘क’ वर्ण की आवृति ‘स’ वर्ण की आवृति

•चारु चन्द्र की •कालिंदी कू ल •सत्य सनेह


चंचल किरणे कदम की सील सुख
खेल रही है डारिन सागर
जल थल मे।
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यमक अलंकार

• यमक शब्द का अर्थ होता है – दो। जब एक ही शब्द एक से ज्यादा बार प्रयोग हो पर हर


बार अर्थ अलग-अलग हो, तो वहाँ पर यमक अलंकार होता है।

• प्रत्येक शब्द के अर्थ प्रसंगवश भेद ( भिन्नता) विद्यमान होता है

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यमक अलंकार उदहारण

• जेते तुम तारे, तेतै • काली घटा का घमंड .माला फे रत जग गया ,फिरा
घटा न मन का फे र |
नभ में न तारे कर का मनका डारि दे ,मन
का मनका फे र |

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श्लेष अलंकार
• जहाँ पर कोई एक शब्द एक ही बार आये पर उसके अर्थ अलग अलग निकलें वहाँ पर श्लेष अलंकार होता है।
• एक ही शब्द में कई अर्थ चिपके हो।

• उदहारण
• रहिमन पानी राखिए बिन पानी सब सून।
पानी गए न उबरै मोती मानस चून।।

• मोती = पानी (चमक)


• मनुष्य = पानी (इज्ज़त, प्रतिष्ठा)
• चूना या आटा = पानी
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जैसे
• कर कमल –सा कोमल

• मैया मै तो चंद्र-खिलौना लैहों

• मुख मानो चंद्रमा है

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उदाहरण
• भूषण बिनु न विरजाई, कविता वनिता मित्र|
• भूषण- 1.कविता के लिए अलंकार
2.वनिता के लिए गहना
3. मित्र के लिए गुण

• जे रहीम गति दीप की, कु ल कपूत गति सोय ।बारे उजियारो करै, बढ़े अंघेरो होय।

• मेरी भव बाधा हरो राधा नागरि सोय। जा तन की झाँई परे श्याम हरित दुति होय।
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उपमा अलंकार

उपमा अलंकार:– उपमा का सरल अर्थ होता है तुलना। जब दो वस्तुओं या व्यक्ति


 

की तुलना उनके एक जैसे स्वभाव की वजह से होती है , तो इसे उपमा अलंकार कहते हैं।
जैसे:– पीपर पात सरिस मन डोला
इसमें राजा दशरथ का मन पीपर पात यानी
पीपल के पत्ते की तरह डोल रहा है । ऐसे में आप उपमा अलंकार करें गे।

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रूपक अलंकार

• . रूपक अलंकार:– जब दो व्यक्ति या वस्तुओं को एक समान बताया जाता है, तो उसे रूपक अलंकार कहते हैं।

जैसे:–१. मैया मैं तो चंद्र खिलौना लेहों

इसका अर्थ है मां मुझे तो चंद्र खिलौना चाहिए। ऐसे स्थान पर आप रूपक अलंकार का उपयोग करेंगे।

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• सीधी चलते राह जो, रहते सदा निशंक|

• जो करते विप्लव, उन्हें, ‘हरि’ का है आतंक|

• जो घनीभूत पीड़ा थी मस्तक में स्मृति सी छाई। दुर्दिन में आंसू बनकर आज बरसने आई ।

• रावण सर सरोज बनचारी। चलि रघुवीर सिलीमुख।

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उत्प्रेक्षा अलंकार
• जब किसी दो के बीच तुलना होती है, तो एक को उपमेय कहा जाता है और दूसरे को उपमान।

जैसे:– पीपर पात सरिस मन डोला

मन– उपमेय, पीपर पात– उपमान

जिसकी तुलना हो रही है उसे उपमेय कहते हैं और जिससे तुलना होती है उसे उपमान कहते हैं।

जब उपमेय में उपमान की तुलना करते हुए कल्पना की जाने लगे तो वहां पर उत्प्रेक्षा अलंकार होता है।

जैसे:– पाहुन ज्यों आए हों गांव में शहर के ,


मेघ आए बड़े बन– ठन के संवर के ।

इसमें बादल की तुलना एक दामाद से की गई है, जो शहर से गांव में आया है।

उत्प्रेक्षा अलंकार की पहचान करने का सरल तरीका है जिस वाक्य में जानू, मानू, निश्चय,ज्यों आए वहां उत्प्रेक्षा अलंकार होगा

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अतिशयोक्ति अलंकार
• जब कोई वर्णन बहुत बड़ा– चढ़ाकर किया जाए, तो उसे अतिशयोक्ति अलंकार कहते हैं।

जैसे:– आगे नदियां पड़ी अपार


घोड़ा कै से उतरे पार, राणा ने सोचा इस पार तब तक चेतक था उस पार।

इसमें इसका वर्णन बहुत बड़ा चढ़ाकर किया गया है, इसलिए यह अतिशयोक्ति अलंकार
होगा।

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मानवीकरण अलंकार 
• जहां जड़ प्रकृ ति में मानवीय क्रियाओं तथा भावनाओं का आरोप हो वहां मानवीकरण अलंकार होता है।
• उदहारण
• नदी-तट से लौटती गंगा नहा कर

• सुवासित भीगी हवाएं सदा पावन। ।

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धन्यवाद
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