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अलंकार और उसके भेद कक्षा 10

अलंकार की पररभाषा:– भाषा को शब्दों से सजाने का तरीका ही अलंकार कहलाता है ।

अलंकार ककतने प्रकार के होते हैं?

अलंकार दो प्रकार के होते हैं–


१. शब्दालंकार
२. अर्ाालंकार

शब्दालंकार के अंतर्ात 3 अलंकार आते हैं–


१. अनुप्रास अलंकार
२. यमक अलंकार
३. श्लेष अलंकार

३. श्लेष अलंकार– जब शब्द एक ही बार आए लेककन उसके अर्ा अलर्-अलर् ननकाले


जाएं, तो उसे श्लेष अलंकार कहते हैं।

जैसे:– “ जहां र्ांठ तहां रस नहीं,


यह जानत सब कोई ”

इसमें इसके दो अर्ा ननकल रहे हैं:–

१. र्न्ने में जहां र्ांठ होती है , वहां रस नहीं ननकलता।

२. जब दो लोर्ों की दोस्ती में र्ांठ आ जाती है , तब प्रेम का वह रस नहीं रह जाता।

इसी प्रकार आपको जहां भी ऐसे शब्द नजर आए तो आप वहां श्लेष अलंकार करें र्े।
२. अर्ाालंकार:– अर्ा अलंकार का अर्ा होता है , अर्ा के जररए अलंकार की पहचान करना।

अर्ाालंकार के चार भेद होते हैं–

१. उपमा अलंकार
२. रूपक अलंकार
३. उत्प्प्रेक्षा अलंकार
४. अनतशयोक्तत अलंकार

३. उत्प्प्रेक्षा अलंकार:– जब ककसी दो के बीच तुलना होती है , तो एक को उपमेय कहा


जाता है और दस
ू रे को उपमान।

जैसे:– पीपर पात सररस मन डोला

मन– उपमेय, पीपर पात– उपमान

क्जसकी तुलना हो रही है उसे उपमेय कहते हैं और क्जससे तुलना होती है उसे उपमान
कहते हैं।

जब उपमेय में उपमान की तुलना करते हुए कल्पना की जाने लर्े तो वहां पर उत्प्प्रेक्षा
अलंकार होता है ।

जैसे:– पाहुन ज्यों आए हों र्ांव में शहर के,


मेघ आए बडे बन– ठन के संवर के।

इसमें बादल की तुलना एक दामाद से की र्ई है , जो शहर से र्ांव में आया है ।

उत्प्प्रेक्षा अलंकार की पहचान करने का सरल तरीका है क्जस वातय में जानू, मान,ू
ननश्चय,ज्यों आए वहां उत्प्प्रेक्षा अलंकार होर्ा।
४. अनतशयोक्तत अलंकार:– जब कोई वर्ान बहुत बडा– चढाकर ककया जाए, तो उसे
अनतशयोक्तत अलंकार कहते हैं।

जैसे:– आर्े नददयां पडी अपार


घोडा कैसे उतरे पार, रार्ा ने सोचा इस पार तब तक चेतक र्ा उस पार।

इसमें इसका वर्ान बहुत बडा चढाकर ककया र्या है , इसललए यह अनतशयोक्तत अलंकार
होर्ा।

मानवीकरर् अलंकार की पररभाषा


जब प्राकृनतक वस्तुओं कैसे पेड,पौधे बादल आदद में मानवीय भावनाओं का वर्ान हो यानी
ननजीव चीज़ों में सजीव होना दशााया जाए तब वहां मानवीकरर् अलंकार आता है। जैसे:

मानवीकरर् अलंकार के उदाहरर् :


• फूल हँसे कललयाँ मस
ु काई।

जैसा कक ऊपर ददए र्ए उदाहरर् में ददया र्या है की फूल हंस रहे हैं एवं कललयाँ मस्
ु कुरा
रही हैं। जैसा की हम जानते हैं की हंसने एवं मस्
ु कुराने की कियाएं केवल मनष्ु य ही कर सकते
हैं प्राकृनतक चीज़ें नहीं।

अतः यह उदाहरर् मानवीकरर् अलंकार के अंतर्ात आएर्ा।

• मेघ आये बडे बन-ठन के संवर के।


ऊपर के उदाहरर् में ददया र्या है कक बादल बडे सज कर आये लेककन ये सब कियाएं तो
मनष्ु य कक होती हैं न कक बादलों की। अतएव यह उदाहरर् मानवीकरर् अलंकार के अंतर्ात
आएर्ा।

अतः यह उदाहरर् मानवीकरर् अलंकार के अंतर्ात आएर्ा।

• मेघमय आसमान से उतर रही है संध्या सन्


ु दरी परी सी धीरे धीरे धीरे |

ऊपर दी र्यी पंक्ततयों में बताया र्या है कक संध्या सुन्दर परी की तरह धीरे धीरे आसमान से
नीचे उतर रही है।इस वातय में संध्या कक तुलना एक सुन्दर परी से की है । तब यह मानवीकरर्
अलंकार होता है।

अतएव यह उदाहरर् मानवीकरर् अलंकार के अंतर्ात आएर्ा।

• उषा सन
ु हरे तीर बरसाती, जय लक्ष्मी-सी उददत हुई।

ऊपर ददए र्ए उदाहरर् में उषा यानी भोर को सुनहरे तीर बरसाती हुई नानयका के रूप में
ददखाया जा रहा है। यहाँ भी ननजीवों में मानवीय भावनाओं का होना ददख रहा है। तब यह
मानवीकरर् अलंकार होता है।

अतः यहाँ पर यह उदाहरर् भी मानवीकरर् अलंकार के अंतर्ात ही आएर्ा।

मानवीकरर् अलंकार के अन्य उदाहरर्:


• कललयाँ दरवाज़े खोल खोल जब झुरमट
ु में मस्
ु काती हैं।

जैसा कक आप ऊपर ददए र्ए उदाहरर् में दे ख सकते हैं कललयों को दरवाज़े खोल खोल कर
झुरमुट में मुस्कुराते हुए वर्र्ात ककया र्या है । तब यह मानवीकरर् अलंकार होता है।

अतएव यह उदाहरर् मानवीकरर् अलंकार के अंतर्ात आएर्ा।

• जर्ी वनस्पनतयाँ अलसाई मह


ु धोया शीतल जल से।

ऊपर ददए र्ए उदाहरर् में बताया र्या है कक वनस्पनतयाँ जार्ी कफर अलसाई ओर शीतल यानी
ठन्डे जल से उन्होंने मह
ु धोया। अतः यहाँ मानवीकरर् अलंकार है.
अतएव यह उदाहरर् मानवीकरर् अलंकार के अंतर्ात आएर्ा।

• सार्र के उर पर नाच-नाच करती हैं लहरें मधुर र्ान।

जैसा कक आप ऊपर ददए र्ए उदाहरर् में दे ख सकते हैं कक लहरों को नाचता हुआ व र्ाता हुआ
वर्र्ात ककया है। अतः यह उदाहरर् मानवीकरर् अलंकार के अंतर्ात आएर्ा।

• लोने-लोने वे घने चने तया बने-बने इठलाते हैं, हौले-हौले होली र्ा-र्ा धुंघरू पर ताल बजाते हैं।

ऊपर ददए र्ए उदाहरर् में जैसा की आप दे ख सकते है ,यहाँ चने पर होली र्ाने, सज-धजकर
इतराने और ताल बजाने में मानवीय कियाओं का आरोप है।

है वसुंधरा बबखेर दे ती मोती सबके सोने पर। रवव बटोर लेता है उसको सदा सवेरा होने पर।

जैसा कक आप ऊपर ददए र्ए उदाहरर् में दे ख सकते हैं कक यहाँ वसुंधरा द्वारा मोती बबखेरने
और सूया द्वारा उसे सवेरे एकत्र कर लेने में मानवीय कियाओं का आरोप है । अतः यह उदाहरर्
मानवीकरर् अलंकार के अंतर्ात आएर्ा।

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