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अप्सरा साधना के लाभ।

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दिव्ाांगना रूपोज्ज्वला अप्सरा

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रूपोज्ज्वला अप्सरा तो सम्पूर्ण यौवन को शरीर में उतार दे ने की स्वाममनी है । सुन्दर,


पतला, छरहरा शरीर, मानो पुष्प की पंखुम़ियों को एकत्र करके बनाया गया हो, मिन
गुलाब की कोमल व नरम पंखुम़ियों पर अभी तक ओस की एक बूंद भी ढलकी न हो, िै से
उन्हें कोमलता से बां धकर एक नारी शरीर तै यार कर मदया गया हो और उसमें से िो सुगंध
प्रवामहत होती है वह असमय बूढे प़ि गए मन में नवीन चेतना भर दे ती है ......

भारतीय शास्त्ों में सौन्दयण को िीवन का उल्लास और उत्साह माना गया है , यमद मकसी
व्यक्ति के िीवन में सौन्दयण नहीं है , तो वह िीवन नीरस और बेिान हो िाता है । इसका
कारर् यह है मक हम सौन्दयण की पररभाषा ही भू ल चुके हैं , हम अपने िीवन में हं सना,
मुस्कराना ही भूल चुके हैं । हम धन के पीछे भागते हुए एक प्रकार से अर्ण -लोभी बन गये,
मिसकी विह से िीवन की अन्य वृमियां लु प्त सी हो गई हैं । ठीक इसी के मवपरीत िै सा
मक मैंने कहा, मक यमद हम अपने शास्त्ों को टटोलकर दे खें तो हमारे पूवणिों ने उन ऋमषयों
और दे वताओं ने सौन्दयण को अपने िीवन में एक मवमशष्ट स्थान मदया और उन अप्सराओं
की साधनाएं सम्पन्न कीं और उन्हें मसद्ध मकया मिनके द्वारा वे सौन्दयणमय, ते िक्तस्वता पूर्ण,
सम्पन्न बन सके।

इन मवमशष्ट अप्सराओं को मसद्ध करने के पीछे हमारे पूवणिों का मचंतन यह नहीं र्ा मक वे
अपने सामने एक नारी-शरीर उपक्तस्थत करके अपनी वासना को, कामोिेिना को शां त
कर सकें, अमपतु इनके माध्यम से उन्होंने िीवन में ऐश्वयण, धन-धान्य पूर्ण सौन्दयण आमद
प्राप्त कर, मवमशष्ट प्रमतमानों को समाि के सामने रखा, मिस सौन्दयण का अर्ण ही पूर्णता व
श्रेष्ठता दे ना है ।

अप्सरा और सौन्दयण दोनों एक दू सरे के पयाण य हैं , और मकसी भी अप्सरा के बारे में िानने
के मलए हमें सबसे पहले उसके अपूवण सौन्दयण को समझना आवश्यक है ।

सभी दे वताओं व ऋमषयों िै से - वमशष्ठ, मवश्वाममत्र, इन्द्र आमद ने इस सौन्दयण को अपने


िीवन में न केवल स्थान मदया, बक्ति एक महत्वपूर्ण स्थान मदया, मिससे साधारर् मानव
को भी उवणशी, मेनका, रम्भा आमद के साधनात्मक मचंतन को स्पष्ट कर उन्हें पूर्णता का
मागण मदखलाया िा सके िो िीवन में रस भर दे , सौन्दयण भर दे , और रस और सौन्दयण अगर
मकसी के िीवन में प्राप्त हो िाए, , तो वह िीवन सफल, श्रेष्ठ और अमद्वतीय कहलाता

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है ।

इसी सौन्दयण का एक और प्रमतमबम्ब हमारे सामने प्रस्तुत हुआ

है उस 'रूपोज्ज्वला अप्सरा' के माध्यम से मिसमें केवल लु भा ले ने के मलए एक अदा की


प्याली ही नहीं है अमपतु पूर्ण सौन्दयण का लबालब भरा िाम है , मिसे दे खने मात्र से ही कोई
व्यक्ति स्तब्ध और मनष्प्रार् हो िाए, ... और व्यक्ति ही नही ं दे वता भी मिसके सौन्दयण को
दे खकर मनष्प्रार् से हो िाएं । हां ! ऐसा ही वह अप्रमतम और अनूठा सौन्दयण, प्रेम और
आनन्द से लबालब भरा हुआ, िो मकसी को भी अपने अंग-प्रत्यगों के गठन से बां ध लें ,
स्तक्तम्भत कर दे उसे ।

इस सौन्दयण को दे खकर कौन नहीं अपने-आप को भुला बैठेगा? आपने रूप, रं ग, यौवन
और मादकता की तो कई झलमकयां दे खी होंगी आपने अपने िीवन में, ले मकन िो सौन्दयण
आं खों से ले कर मदल तक एक अक्स बनकर उतर िाए, उसी का नाम है रूपोज्ज्वला
अप्सरा ।

ऐसा अप्रमतम और अनूठा सौन्दयण, िो खींच ले चुम्बक की तरह अपनी ओर, सौन्दयण से भी
अमधक मादकता और मन को लु भा ले ने की कला अपने-आप में समाए, एक ऐसी अप्सरा,
मिससे हम अभी तक अपररमचत र्े , एक अप्रमतम सुन्दरी मिसे दे खकर रग-रग में तूफान
मचल उठे ।

'रूपोज्ज्वला अप्सरा ... िै सा इसका नाम है वैसा इसका सौन्दयण भी है , िो एक मनझण र झरने
की तरह एक अबाध गमत से बह रहा हो । व्यक्ति को या दे वता को पहली ही बार में बेसुध
कर दे ने वाला सौन्दयण, िो केवल और केवल मात्र रूपोज्ज्वला अप्सरा में ही है ।

सौन्दयण के समुद्र से उत्पन्न वह श्रेष्ठ रत्न, मिसके समान दू सरा कोई रत्न उत्पन्न ही नहीं हो
सका और यह सच ही तो है , ऐसे रत्न क्या बार-बार गढे िाते हैं ... नहीं, यह तो कभी-कभी
प्रकृमत के खिाने से अनायास प्राप्त हो िाने वाली वस्तु है और प्रकृमत के इस खिाने से,
सौन्दयण के इस खिाने से पूर्ण सौन्दयण की स्वाममनी केवल रूपोज्ज्वला अप्सरा ही हैं । > इस
पूर्णता को दे ने वाली है यह 'रूपोज्ज्वला अप्सरा मसक्तद्ध- साधना' िो अत्यंत ही दु लणभ और

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गोपनीय है । इस साधना को सम्पन्न करने से व्यक्ति के अन्दर स्वतः ही कायाकल्प की


प्रमिया आरम्भ होने लगती है ।

इस साधना को मसद्ध करने पर व्यक्ति मनमचंत और प्रसन्नमचि बना रहता है , उसके िीवन
में मानमसक तनाव व्याप्त नहीं होते , इस रूपोज्ज्वला अप्सरा साधना के माध्यम से उसे
मनचाहा स्वर्ण , द्रव्य, वस्त्, आभूषर् और अन्य भौमतक पदार्ण उपलब्ध होते रहते हैं , यही
नहीं, इस अप्सरा साधना को मसद्ध करने पर साधक इसे िो भी आज्ञा दे ता है वह उस
आज्ञा का तु रन्त पालन करती है , और इस प्रकार साधक अपनी आवश्यकता और
महत्वपूर्ण सभी मनोवां मछत इच्छाओं की पूमतण कर ले ता है ।

वैसे तो यह साधना मकसी भी पू मर्ण मा को सम्पन्न की िा सकती है मकन्तु मवशे ष शु भ मुहूतों


में सम्पन्न का मवशे ष फलदायी माना गया है । िैसे महा-मशव,होली,नवरामत्र,दीपावली ।
क्योंमक हर साधना को सम्पन्न करने के मलए शास्त्ों में एक मवशे ष समय मनधाण ररत मकया
िाता है मिससे मक साधक को उस साधना में शीघ्र ही सफलता प्राप्त हो सके।

साधना सामग्री - गुलाब पुष्प माला - 2, इत्र, अप्सरा यंत्र और रुद्राक्ष माला ।: साधना-मवमध

पूमर्ण मा की रामत्र में मकसी भी समय साधक इस साधना को सम्पन्न कर सकता है । साधक
को चामहए मक वह अत्यंत ही सुन्दर, सुसक्तित वस्त् पहनकर साधना-स्थल पर बैठ िाए,
इसमें मकसी भी प्रकार के वस्त्ों को धारर् मकया िा सकता है , िो सुन्दर और आकषणक
लगें।

इस साधना में आसन, मदशा आमद का इतना महत्व नहीं है , मितना मक व्यक्ति के उत्साह,
उमंग, सुमधुर सम्बन्ों की चेष्ठा और ममलन कामनाओं से भरे मन का है ।

सवणप्रर्म साधक एक बािोट पर पीला वस्त् मबछा दें मफर उस पर पुष्पों का आसन दे कर
मनमाां मकया हुआ अप्सरा यंत्र स्थामपत करें । इसके पचात् उसके पास रखी गुलाब की दो
मालाओं में से एक माला वह स्वयं धारर् कर ले तर्ा दू सरी माला अप्सरा यंत्र के सामने
रख दें ।

इसके पचात् यंत्र के समक्ष एक दीपक प्रज्वमलत कर दें , सुगक्तन्त अगरबिी भी िला दें ।

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यंत्र का पूिन कुंकुम, अक्षत, चन्दन से कर उस पर इत्र लगा दें । इसके पचात् इत्र की बूंद
दीपक में भी डाल दें , दीपक सम्पूर्ण साधना काल िलते रहना चामहए। इसी इत्र को साधक
अपने कप़िों पर भी लगा लें । उसके पचात् वह मंत्र िप आरम्भ कर दें ।

मांत्र

ॐ श्र ां रूपोज्ज्वला वश्य मानाय श्र ां फट्

इस मंत्र का 51 माला िप करना होता है ।

यह साधना मवश्व की दु लणभ एवं महत्वपूर्ण साधना है । अगर व्यक्ति को अपने िीवन में वह
सभी कुछ पाना है , मिसे श्रेष्ठता कहते हैं , मदव्यता कहते हैं , सम्पूर्णता कहते हैं तो वह मात्र
रूपोज्ज्वला अप्सरा मसक्तद्ध साधना के माध्यम से ही संभव है । यह साधना अपने मादक,
प्रवीर्, वरदायक, शक्तियुि, अद् भुत प्रभाव से मसद्ध साधक को पूर्णता दे ने में समक्ष हैं ।

एक बार मे सफलता ना ममले तो अगली बार मफर से प्रयास करे दू सरी या तीसरी बार
अवश्य
सफलता ममल सकती है।

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2.उववशर अप्सरा साधना

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उवणशी एक प्रधान और प्रमुख अप्सरा है अगर आप उवणशी मसद्ध कर ले ते हो तो अन्य


अप्सरा खुद पर खुद मसद्ध हो िाती है
उवणशी का रूप बहुत ही सुंदर है , वह मचरयौवना है , वह 18 वषण की उम्र की युवती के समान
अल्ह़ि मदमस्त और यौवन रस से पररपूर्ण है । उवणशी का सारा शरीर एक खूबसूरती
सुन्दरता से पररपूर्ण रहता |
है , मिसको दे खकर व्यक्ति तो क्या, दे वता भी मोमहत हो िाते हैं । मवश्वाममत्र संमहता के
अनुसार गोरा अण्डाकार चेहरा, लम्बे और एम़ियों को छूते हुए घने श्याम केश, , गोरा रं ग
ऐसा, मक िै से स्वच्छ दू ध में केसर ममला दी हो, ब़िी-ब़िी की आँ खें
छोटी मचबुक, सुंदर और गुलाबी होंठ, आकषणक चेहरा और अमद्वतीय आभा से युि शरीर
... सब ममलाकर एक | ऐसा सौन्दयण िो हार् लगने पर मैला हो िाए। ऐसी ही सौन्दयण की
सम्राज्ञी उवणशी है |
मवश्वाममतर एक ऐसे ऋमष है मिन्हों ने सब से पे हली उवणशी अप्सरा को मसद्ध मकया र्ा ईस
के सम्बन्ी एक कर्ा आती है
मवश्वाममत्र ने िब यह सुना मक उवणशी इन्द्र के दरबार को सौन्दयण नृत्यां गना है , तो उन के मन
मे आया उवणशी मेरे आशमण मे भी उवणशी नृत्य करे । उन्होंने आज्ञा दी मक उवणशी मेरे आश्रम
में भी नृत्य करे ।
मवश्वाममत्र िी अपना संदेश इन्द्र तक पहुं चा मदया इन्द्र ने मना कर मदया यह मकसी भी प्रकार
से सम्भव नहीं है ।
मवश्वाममत्र तो हठी ऋमष र्े , उन्होंने आपनी मंत्र शक्ति द्वारा उवणशी को अपने आश्रम में
बुलाया और कहा - तु म्हें ठीक वैसा ही नृत्य करना होगा िै सा इन्द्र की सभा में तुम करती
हो।
| उवणशी ने ऐसा करने से मना कर मदया इन्द्रलोक चली गई।मवश्वाममत्र ने उसी क्षर् प्रमतज्ञा
की मक मैं तं त्र की रचना करू
ं गा तं त्र शक्ति से उवणशी को अपने आश्रम में बुला कर ,नृत्य
करवाऊंगा और इसी प्रमतज्ञा मक पररर्ाम से 'उवणशी तं त्र'। की रचना की हिारों मशष्यओ
के सामने उवणशी का नृत्य संपन्न करवाया
और मवश्वाममत्र िी मक बाद बहुत सारे साधको ने इस अप्सरा को मसद्ध मकया मिं दगी में सभी
भोगो को भोगा मवश्वाममत्र के बाद उनके मशष्य भूररश्रवा, मचन्मय, दे वसुत,गन्र, और यहां
तक मक दे वी मवश्रा और रत्नप्रभा ने भी उवणशी मसद्ध कर िीवन के सम्पूर्ण भोगों का भोग
मकया।

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गोरखनार् ने भी इस साधना के माध्यम से मचरयौवन प्राप्त मकया और गोरक्षपुर में उन्होंने


हिारों मशष्यों के सामने सदे ह उवणशी को बुलाकर अमद्वतीय नृत्य सम्पन्न करवाया। और भी
बहुत सारे साधको ने मसद्ध कर आपार धन दोलत को प्राप्त करा आप भी मिं दगी इस साधना
को संपन्न कर मिदगी का हर सुख पा सकते हो

मांत्र

ॐ श्रीम उवणशी आगछ आगछ स्वाहा ||

शु िवार से रामत्र के समय उिर मदशा की ओर मुख करके प्रारं भ करें ।


इस कायण के मलए सफेद वस्त् धारर् करें ।
मनमाां मकया हुआ अप्सरा यंत्र लें और इसे एक लक़िी के आसन पर रखें।
अप्सरा यंत्र के समक्ष शुद्ध घी का दीपक िलाएं ।
इस मंत्र का माला से उिर मदशा की ओर मुख करके 51 माला िाप करें ।
अप्सरा को प्रकट करने के मलए इस मंत्र का 14 मदनों तक िाप करें ।

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3. दिलोत्तमा अप्सरा साधना

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प्रकृमत के ऊिाण स्तर में मत्रदे वों और मत्रशक्तियों के बाद दे वताओं की उपक्तस्थमत मानी िाती
है मिनके मनोरं िन और कायण पूती हे तु कुछ सहामयकाएं हैं |इन्हें अप्सरा अर्वा परी के
नाम से िाना िाता है |इनका ऊिाण स्तर दे वताओं ,योमगमनयों ,भैरवों आमद के बाद का
होता है मकन्तु पृथ्वी की सतह की उिाण ओं से यह श्रेष्ठ होती हैं |इसकी उपक्तस्थमत स्वगण और
पृथ्वी दोनों पर हो सकती है |अप्सराओं की संख्या तो अनेक है मकन्तु उनमे कुछ मुख्य
अप्सराएं हैं |ऐसी ही एक मुख्य अप्सरा मतलोिमा है |मतलोिमा अप्सरा की मगनती भी श्रेष्ठ
अप्सराओं मे होती हैं । यह अप्सरा प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनो ही रुप मे साधक की सहायता
करती रहती हैं । यह साधना अनुभुत हैं। इस साधना को करने से सभी सुखो की प्राक्तप्त
होती हैं । इस साधना को शु रु करते ही एक – दो मदन में धीमी धीमी खुशबू का प्रवाह होने
लगता हैं ।यह खुशबू मतलोिमा के सामने होने की पूवण सुचना हैं । अप्सरा का प्रत्यक्षीकरर्
एक श्रमसाध्य कायण हैं। मेहनत बहुत ही िरुरी हैं । एक बार अप्सरा के प्रत्यक्षीकरर् के
बाद कुछ भी दु लणभ नहीं रह िाता, इसमे कोई दो राय नहीं हैं ।
पूिा सामग्री:- मसन्दु र, चावल, गुलाब पुष्प, चौकी, नैवैध, पीला आसन, धोती या कुताण
पेिामा, इत्र, िल पात्र मे िल, चम्मच, एक स्टील की र्ाली, मोली/कलावा, अगरबिी,एक
साफ कपडा बीच बीच मे हार् पोछने के मलए, दे शी घी का दीपक, (चन्दन, केशर, कुम्कुम,
अष्टगन् यह सभी मतलक के मलए))

मवमध :
साधक स्नान कर धुले वस्त् पहनकर, रात मे ठीक 10 बिे के बाद साधना शु रु करें । रोज़
मदन मे एक बार स्नान करना िरुरी है । मंत्र िाप मे कम्बल का आसन रखे और अप्सरा
और स्त्ी के प्रमत सम्मान आदर होना चामहए। अमवश्वास का साधना मे कोई स्थान नही है ।
साधना का समय एक ही रखने की कोमशश करनी चामहए। एक स्टील की प्लेट मे सारी
सामग्री रख ले ।साधना करते समय और मंत्र िप करते समय िमीन को स्पशण नही करते ।
माला को लाल या मकसी अन्य रं ग के कपडे से ढककर ही मंत्र िप करे या गौमुखी खरीदे
ले । मंत्र िप को अगुँठा और मध्यमा से ही करे ।

पूिन के मलए स्नान आमद से मनवृि होकर साफ-सुर्रे आसन पर पूवण या उिर मदशा में
मुंह करके बैठ िाएं । पूिन सामग्री अपने पास रख लें। बायें हार् मे िल ले कर, उसे दामहने

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हार् से ढक लें। मंत्रोच्चारर् के सार् िल को मसर, शरीर और पूिन सामग्री पर मछ़िक लें
या पुष्प से अपने को िल से मछडके।

(मनम्नमलक्तखत मंत्र बोलते हुए मशखा/चोटी को गांठ लगाये / स्पशण करे )

(अपने मार्े पर कुंकुम या चन्दन का मतलक करें )

(अपने सीधे हार् से आसन का कोना िल/कुम्कुम र्ोडा डाल दे ) और कहे

संकल्प:- दामहने हार् मे िल ले। मैं ……..अमुक……… गोत्र मे िन्मा,……… ………. यहाँ
आपके मपता का नाम………. ……… का पुत्र ………………………..यहाँ आपका
नाम…………………, मनवासी…………………..आपका पता………………………. आि सभी
दे वी-दे व्ताओं को साक्षी मानते हुए दे वी मतलोत्त्मा अप्सरा की पुिा, गण्पमत और गुरु िी
की पुिा दे वी मतलोत्त्मा अप्सरा के साक्षात दशणन की अमभलाषा और प्रे ममका रुप मे प्राक्तप्त
के मलए कर रहा हूँ मिससे दे वी मतलोत्त्मा अप्सरा प्रसन्न होकर दशण न दे और मेरी आज्ञा का
पालन करती रहें सार् ही सार् मुझे प्रेम, धन धान्य और सुख प्रदान करें । िल और सामग्री
को छो़ि दे ।
गर्पमत का पूिन करें ।

गुरु पुिन कर लें कम से कम गुरु मंत्र की चार माला करें या िै सा आपके गुरु का आदे श
हो।

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का 21 बार िप कर ले।
अब अप्सरा का ध्यान करें और सोचे की वो आपके सामने हैं । दोनो हार्ो को ममलाकर
और फैलाकर कुछ नमाि पढने की तरफ बना लो। सार् ही सार्

मंत्र का 21 बार उचारर् करते हुए एक एक गुलाब र्ाली मे चढाते िाये। अब सोचो मक
अप्सरा आ चुकी हैं। हे सुन्दरी तु म तीनो लोकों को मोहने वाली हो तुम्हारी दे ह गोरे गोरे
रं ग के कारर् अतयंत चमकती हुई हैं । तुम नें अनेको अनोखे अनोखे गहने पहने हुये और
बहुत ही सुन्दर और अनोखे वस्त् को पहना हुआ हैं । आप िै सी सुन्दरी अपने साधक की
समस्त मनोकामना को पुरी करने मे िरा सी भी दे री नही करती। ऐसी मवमचत्र सुन्दरी
मतलोिमा अप्सरा को मेरा कोमट कोमट प्रर्ाम।

इन गुलाबो के सभी गन् से मतलक करे । और स्वयँ को भी मतलक कर लें ।

गुलाब का इत्र चढाये : गन्म समपणयामम ॐ मतलोत्त्मा अप्सरायै नमः


मफर चावल (मबना टु टे) : अक्षतान् समपणयामम ॐ मतलोत्त्मा अप्सरायै नमः
पुष्प : पुष्पामर् समपणयामम ॐ मतलोत्त्मा अप्सरायै नमः
अगरबिी : धूपम् आघ्रापयामम ॐ मतलोत्त्मा अप्सरायै नमः
दीपक (दे शी घी का) : दीपकं दशणयामम ॐ मतलोत्त्मा अप्सरायै नमः ममठाई से पुिा करें ।:
नैवेद्यं मनवेदयामम ॐ मतलोत्त्मा अप्सरायै नमः मफर पुिा सामप्त होने पर सभी ममठाई को
स्वयँ ही ग्रहर् कर लें।
पहले एक मीठा पान (पान, इलायची, लोंग, गुलाकन्द का) अप्सरा को अक्तप्तण करे और स्वयँ
खाये। इस मंत्र की स्फामटक की माला से 51 माला िपे और ऐसा 11 मदन करनी हैं ।

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मांत्र:-

ॐ श्र ां दिलोत्तमे आगच्छ आगच्छ स्वाहा |


“Om Shreem Tilotame Aagach Aagach Swaha”

यहाँ दे वी को मंत्र िप सममपणत कर दें । क्षमा याचना कर सकते हैं । िप के बाद मे यह


माला को पुिा स्थान पर ही रख दें । मंत्र िाप के बाद आसन पर ही पाँ च ममनट आराम
करें ।

ॐ गुरुर्ब्णह्मा गुरुमवणष्ुः गुरुदे वो महे श्वरः । गुरुः साक्षात पर र्ब्ह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥ ॐ श्री
गुरु चरर्कमले भ्यो नमः ।

यमद कर सके तो पहले की भां मत पुिन करें और अंत मे पुिन गुरु को सममपणत कर दे ।
अंमतम मदन िब अप्सरा दशण न दे तो मफर ममठाई इत्र आमद अमपणत करे और प्रसन्न होने पर
अपने मन के अनुसार वचन ले ने की कोमशश कर सकते हैं । पुिा के अंत मे एक चम्मच
िल आसन के नीचे िरुर डाल दें और आसन को प्रर्ाम कर ही उठें ।

साधना में आवश्यक मनयम -


प्रमतमदन स्नान अवश्य करें |शु द्ध -पमवत्र रहें ,मन से भी और कमण से भी चूंमक साधना शु रू
होते ही इन शक्तियों को और इसकी सहायक शक्तियों को पता चलता है तर्ा आपकी
गमतमवमध की मनगरानी शु रू हो िाती है |मात्र मनयत समय िप करने से कोई शक्ति नहीं
आने वाली |वह यह िरुर दे खती है की आप पात्र हैं या नहीं |र्ब्ह्मचरी रहना परम िरुरी
होता हैं |

भोिन: में मां स, शराब, अन्डा, नशे , तम्बाकू, ताममसक भोिन आमद सभी से ज्यादा से
ज्यादा दु र रहना हैं । इनका प्रयोग मना ही हैं । केवल साक्तत्वक भोिन ही करें क्योंमक यह
काम भावना को भडकाने का काम करते हैं। मंत्र िप के समय नींद् , आलस्य, उबासी,
छी ंक, र्ू कना, डरना, मलं ग को हार् लगाना, सेल फोन को पास रखना, िप को पहले मदन
मनधाररत संख्या से कम-ज्यादा िपना, गा-गा कर िपना, धीमे-धीमे िपना, बहुत् ही ज्यादा

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ते ि-तेि िपना, मसर महलाते रहना, स्वयं महलते रहना, हार्-पैंर फैलाकर िप करना यह
सब कायण मना हैं । बहुत ही गम्भीरता से मंत्र िप करना हैं ।

यमद आपको िप समय पैर बदलने की िरुरत हो तो माला पुरी होने के बाद ही पैरों को
बदल सकते हैं या र्ोडा सा आराम कर सकते हैं ले मकन मंत्र िप बन्द ना करें । साधना के
समय वो एक दे वी मात्र ही हैं और आप साधक हैं । इनसे सदै व आदर से बात करनी
चामहए। समस्त अप्सराएँ वाक मसद्ध होती हैं । मकसी भी साधना को सीधे ही करने नही
बैठना चामहए। उससे पहले आपको अपना कुछ अभ्यास करना चामहए। मंत्रो का उचारर्
कैसे करना है यह भी िान ले ना चामहए और बार बार बोलकर अभ्यास कर ले ना चामहए।
ऐसा करने पर अप्सरा िरुर मसंद्ध होती हैं | साधना से मकसी को नु कसान पहुँ चाने पर
साधना शक्ति स्वयँ ही समाप्त होने लगती हैं । इसमलए अपनी साधना की रक्षा करनी
चामहए। मकसी को अपनी शक्ति का प्रदशण न नहीं करना चामहए।

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4.मेनका अप्सरा मांत्र साधना

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यह उल्लेख दकया गया है दक मेनका ने ऋदि दवश्वादमत्र कर


िपस्या भँंांग कर। मेनका को स्वगव कर सबसे सुन्दर अप्सरा
माना जािा था।

मेनका वृिणश् (ऋग्वेि १-५१-१३) अथवा कश्यप और प्राधा


(महाभारि आदिपवव, ६८-६७) कर पुत्रर िथा ऊणवयु नामक गांधवव
कर पत्नर थर।

अजुवन के जन्म समारोह िथा स्वागि में इसने नृत्य दकया था।
अपूवव सुांिरर होने से पृिि् इस पर मोदहि गया दजससे द्रुपि
नामक पुत्र उत्पन्न हुआ।

मेनका :
मेनका ने अपने रूप और स ांियव से िपस्या में लरन दवश्वादमत्र का
िप भांग कर दिया। दवश्वादमत्र सब कुछ छोड़कर मेनका के हर
प्रेम में डूब गए। मेनका से दवश्वादमत्र ने दववाह कर दलया और
मेनका से दवश्वादमत्र को एक सुन्दर कन्या प्राप्त हुई दजसका नाम
शकांु िला रखा गया। शकांु िला छोटर हर थर, िभर एक दिन
मेनका उसे और दवश्वादमत्र को छोड़कर दफर से इां द्रलोक चलर
गई। इसर पुत्रर का आगे चलकर सम्राट िु ष्यांि से प्रेम दववाह
हुआ, दजनसे उन्हें पुत्र कर प्राप्तप्त हुई। यहर पुत्र राजा भरि थे।

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इां द्र ने दवश्वादमत्र को िप भ्रष्ट करने के दलये इसे भेजा था दजसमे


यह सफल हुई और इसने एक कन्या को जन्म दिया। उसे यह
मादलनर िट पर छोड़कर स्वगव चलर गई। शकुन पदियोां द्वारा
रदिि एवां पादलि होने के कारण महदिव कण्व ने उस कन्या को
शकुन्तला नाम दिया जो कालान्तर में िु ष्यन्त कर पत्नर और भरि
कर मािा बनर।

पूजन के दलए स्नान आदि से दनवृत्त होकर साफ-सुथरे आसन पर


पूवव या उत्तर दिशा में मुांह करके बैठ जाएां । पूजन सामग्रर अपने
पास रख लें। बायें हाथ मे जल लेकर, उसे िादहने हाथ से ढ़क
लें। मांत्रोच्चारण के साथ जल को दसर, शररर और पूजन अप्सरा
मेनका समाग्रर पर दछड़क लें या पुष्प से अपने को जल से
दछडके।

ॐ अपदवत्रः पदवत्रो वा सवाववस्ाां गिोऽदप वा। यः स्मरे ि्


पुण्डररकािां स बाह्याभ्यन्तरः शुदचः ॥
(दनम्नदलप्तखि मांत्र बोलिे हुए दशखा/चोटर को गाांठ लगाये / स्पशव
करे )
ॐ दचद्रूदपदण महामाये! दिव्िेजः समप्तििे। दिष्ठ िे दव!
दशखामध्ये िेजोवृप्तधां कुरुष्व मे॥
(अपने माथे पर कांु कुम या चन्दन का दिलक करें )
ॐ चन्दनस्य महत्पुण्यां, पदवत्रां पापनाशनम्। आपिाां हरिे दनत्यां,
लक्ष्मरप्तिष्ठदि सवविा॥

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(अपने सरधे हाथ से आसन का कोना जल/कुम्कुम थोडा डाल िे )


और कहे
ॐ पृथ्वर! त्वया धृिा लोका िे दव! त्वां दवष्णुना धृिा। त्वां च धारय
माां िे दव! पदवत्रां कुरु चासनम्॥

सांकल्प:- िादहने हाथ मे जल ले। मैं ……..अमुक……… गोत्र मे


जन्मा,……… ………. यहाँ आपके दपिा का नाम……….
……… का पुत्र ………………………..यहाँ आपका
नाम…………………, दनवासर…………………..आपका
पिा………………………. आज सभर िे वर-िे व्िाओां को सािर
मानिे हुए िे वर मेनका अप्सरा कर पुजा, गण्पदि और गुरु जर कर
पुजा िे वर मेनका अप्सरा के सािाि िशवन कर अदभलािा और
प्रेदमका रुप मे प्राप्तप्त के दलए कर रहा हँ दजससे िे वर मेनका
अप्सरा प्रसन्न होकर िशवन िे और मेरर आज्ञा का पालन करिर
रहें साथ हर साथ मुझे प्रेम, धन धान्य और सुख प्रिान करें । जल
और सामग्रर को छोड़ िे ।

गणपदि का पूजन करें । मांत्र –

ओम गां गणपत्ये नमः

ॐ गुरुर्ब्वह्मा गुरुदववष्णुः गुरुिे वो महे श्वरः । गुरुः सािाि पर र्ब्ह्म


िस्मै श्रगुरवे नमः ॥

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ॐ श्र गुरु चरणकमलेभ्यो नमः । ॐ श्र गुरवे नमः ।


आवाहयादम, स्ापयादम, ध्यायादम।

गुरु पुजन कर लें कम से कम गुरु मांत्र कर चार माला करें या


जैसा आपके गुरु का आिे श हो।

सवव मांगल माांगल्ये दशवे सवावथवसादधके। शरण्ये त्रयांबके ग रर


नारायदण नमोअिुिे ॐ श्र गायत्र्यै नमः ।

ॐ दसप्तध बुप्तधसदहिाय श्रमन्महागणादध पिये नमः । ॐ


लक्ष्मरनारायणाभ्याां नमः ।

ॐ उमामहे श्वराभ्याां नमः ।

ॐ वाणरदहरण्यगभावभ्याां नमः । ॐ शचरपुरन्दराभ्याां नमः ।

ॐ सवेभ्यो िे वेभ्यो नमः ।

ॐ सवेभ्यो र्ब्ाह्मणेभ्यो नमः ।

ॐ भ्रां भैरवाय नमः का 21 बार जप कर ले।

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अब अप्सरा का ध्यान करें और सोचे कर वो आपके सामने हैं ।


िोनो हाथो को दमलाकर और फैलाकर कुछ बना लो। साथ हर
साथ
“ॐ ह्र ां श्र ां क्र ां श्र ां मेनका अप्सरा आगच्छ आगच्छ स्वाहा”
मांत्र का 21 बार उचारण करिे हुए एक एक गुलाब थालर मे रक्खे
अप्सरा यांत्र पर चढािे जायें

अब सोचो दक अप्सरा आ चुकर हैं। हे सुन्दरर िुम िरनो लोकोां को


मोहने वालर हो िुम्हारर िे ह गोरे गोरे रां ग के कारण अियांि
चमकिर हुई हैं । िुम नें अनेको अनोखे अनोखे गहने पहने हुये
और बहुि हर सुन्दर और अनोखे वस्त्र को पहना हुआ हैं । आप
जैसर सुन्दरर अपने साधक कर समि मनोकामना को पुरर करने
मे जरा सर भर िे रर नहर करिर। ऐसर दवदचत्र सुन्दरर दिलोत्तमा
अप्सरा को मेरा कोदट कोदट प्रणाम।

इन गुलाबो के सभर गन्ध से दिलक करे । और स्वयँ को भर


दिलक कर लें।
ॐ अपूवव स न्दयायै, अप्सरायै दसधये नमः ।

मोलर/कलवा चढाये :
वस्त्रम् समपवयादम ॐ मेनका अप्सरायै नमः
गुलाब का इत्र चढाये : गन्धम समपवयादम ॐ मेनका अप्सरायै
नमः

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दफर चावल (दबना टु टे) : अििान् समपवयादम ॐ मेनका


अप्सरायै नमः
पुष्प : पुष्पादण समपवयादम ॐ मेनका अप्सरायै नमः
अगरबत्तर : धूपम् आघ्रापयादम ॐ मेनका अप्सरायै नमः
िरपक (िे शर घर का) : िरपकां िशवयादम ॐ मेनका अप्सरायै नमः
दमठाई से पुजा करें ।:
नैवेद्यां दनवेियादम ॐ मेनका अप्सरायै नमः

दफर पुजा सामप्त होने पर सभर दमठाई को स्वयँ हर ग्रहण कर


लें।

पहले एक मरठा पान (पान, इलायचर, लोांग, गुलाकन्द का)


अप्सरा को अप्तप्तव करे और स्वयँ खाये। इस मांत्र कर अप्सरा
माला कर माला से 51 माला जपे और ऐसा 21 दिन करनर हैं ।
दनम्नदलप्तखि मांत्र का जाप करें

मांत्र -:

िे वर को मांत्र जप समदपवि कर िें ।

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िमा याचना कर सकिे हैं । जप के बाि मे यह माला को पुजा


स्ान पर हर रख िें । मांत्र जाप के बाि आसन पर हर पाँच दमनट
आराम करें ।

“ॐ गुरुर्ब्वह्मा गुरुदववष्णुः गुरुिे वो महे श्वरः । गुरुः सािाि पर र्ब्ह्म


िस्मै श्रगुरवे नमः ॥ ॐ श्र गुरु चरणकमलेभ्यो नमः । ”

यदि कर सके िो पहले कर भाांदि पुजन करें और अांि मे पुजन


गुरु को समदपवि कर िे । अांदिम दिन जब अप्सरा िशवन िे िो
दफर दमठाई इत्र आदि अदपवि करे और प्रसन्न होने पर अपने मन
के अनुसार वचन लेने कर कोदशश कर सकिे हैं । पुजा के अांि मे
एक चम्मच जल आसन के नरचे जरुर डाल िें और आसन को
प्रणाम कर हर उठें ।

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5.लरलाविर अप्सरा साधना

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अप्सराएां प्रकृदि कर ऊजाव शप्तियाँ हैं दजनके गुणोां के आधार पर


इनके नाम और प्रदसप्तध हैं |यह िे विाओां कर सहायक शप्तियाँ
हैं जो योदगदनयोां ,भैरवोां के िर के नरचे कर शप्तियाँ हैं और
पृथ्वर िथा स्वगव के िे विाओां के बरच समान सम्बन्ध रख सकिर
हैं |मुख्य अप्सराओां के अदिररि अनेक अप्सराएां भर हैं जो
अलग अलग गुणोां के कारण दभन्न कायव सम्पन्न करिर हैं
|लरलाविर अप्सरा भर इनमे से हर एक है |इनकर प्रकृदि प्रेम -
स हाद्रव और शाप्तन्त कर है |दजस व्प्ति के वैवादहक, पाररवाररक,
सामादजक जरवन में क्ेश व िनाव कर प्तस्दि उत्पन्न हो, इस
साधना के प्रभाव से उनके वैवादहक, पाररवाररक व सामादजक
जरवन में प्रेम स हािव कर प्तस्दियाां उत्पन्न हो जािर हैं यह एक
दवशेि साधना है ,दजसको दसफव चांद्रग्रहण पर हर शुरू दकया जा
सकिा है |लरलाविर साधना करने से जरवन मे ँ प्रेम स ँियव रस
और अांनि प्राप्त होिा है ।दकिने हर रुदि ,राजा , िाांदत्रक वेदिक
काल से हर ऐसर साधना करिे आ रहे है और इनका उल्लेख
हमारे शास्त्रोां में दमलिा है |

दवधर:-
दसधर के बाि लरलाविर अप्सरा को जब भर बुलाना है िो बस 21
,11 बार मांत्र जाप कर ले वह िुरन्त आपके सामने होगर।एक बाि
चद्रग्रहण आरां भ के समय मांत्र जाप दकया जाए िो चांद्रग्रहण
खािम होिे होिे अपसरा िशवन िे गर।

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गुलाब का िो माला,दमठाई और कुछ फल अप्सरा दचत्र के


सामने रख कर प्रदिदिन साधना करे ।अगर प्रदिदिन िस हजार
जाप दकया जाए िो साधना 21 दिन के अांिर पुणव हो जािा है ।

मांत्र –
।। ॐ हां हां लरलाविर कामेश्वरर अप्सरा प्रत्यिां दसप्तध हां हां फट् ।।

सि् गुरु िे व Dr.Narayan Dutt Srimali जर के कृपा के कारण हर आपको ये


साधना ये प्राप्त हुई है

दजन साधको का गुरु मांत्र का 1.5 लाख जाप पुरा हुआ है

उन्हर साधको को साधना कर अनुमदि है। पहले गुरु मांत्र का अनुष्ठान पुरा
करे उसके बाि हर साधना करे । अन्यथा नहर।

मकसी भी अप्सरा साधना करने से पहले दे ह रक्षा, घेरा मंत्र का प्रयोग करना
अमनवायण है

आपको िो अप्सरा साधना ये प्रदान की है


उस साधना मे शक्ति से कोर्से वचन ले?

दे ह रक्षा मंत्र कोनसा है ?

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घेरा मंत्र कोनसा है ?

गु रु पूिन कैसे करे ?

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