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Grammar (अलंकार)

17 Alankar in Hindi Grammar


MAY
2016 (अलंकार)
categories: Alankar

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Alankar in Hindi (अलंकार प रभाषा)

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‘अलंकार’ श द म ‘अलम् और ‘कार’ दो श द ह। ‘अलम्’ का अथ है, भूषण – जो अलंकृत
या भू षत करे, वह अलंकार है । अलंकार का का बा शोभाकारक धम है।

जस कार आभूषण कसी ी के नैस गक सौ दय को बढ़ा दे ते ह, उसी कार उपमा,


पक आ द अलंकार का क रसा मकता को बढ़ा दे त ह।
वा तव म
अलंकार
वाणी के
आभूषण ह।
इनक
सहायता से
अभ म
प ता, भाव

भावशीलता
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 तथा भाषा म
सौ दय आ
जाता है। प ता और भावो पादन के लए वाणी अलंकार क सहायता लेती है । इस लए
का म इनका मह वपूण थान है । का म रमणीयता और चम कार लाने के लए
अलंकार का योग आव यक तो है, पर अ नवाय नह ।

Alankar ke Bhed | अलंकार के भेद:

श द और अथ को भा वत करने के कारण अलंकार मु यत: दो कार के होते ह:

श दालंकार और अथालंकार

जो अलंकार श द और अथ दोन को भा वत करते ह, वे ‘उभयालंकार’ कहलाते ह ।

इस कार अलंकार के तीन भेद होते ह-

(1) श दालंकार (Shabdalankar)


(2) अथालंकार तथा (Ardhalankar)
(3) उभयालंकार (Ubhyalankar)

( 1 ) श दालंकार – जो अलंकार जब कसी वशेष श द क थ त म ही रहे और उस श द


के थान पर कोई पयायवाची श द रख दे ने से उसका अ त व न रहे, वह श दालंकार है।
ये अलंकार श दा त होकर शा दक चम कार का ही वशेष संव न करते ह। इसी वृ
के आधार पर इ ह श दालंकार कहा जाता है । इनके मुख भेद इस कार ह-

अनु ास अलंकार (Anupras Alankar)


यमक अलंकार (Yamak Alankar)
पुन अलंकार (Punrukti Alankar)
वी सा अलंकार (Vipsa Alankar)
व ो अलंकार (Vkrokti Alankar) तथा
ेष अलंकार (Shlesh Alankar) इ या द ।
(2)
अथालंकार–
जस श द से
जो अलंकार
स होता है
य द उस श द
के थान पर
उसका
समानाथ
श द रख दे ने
से भी वह
अलंकार
यथापूव बना
रहे, तो
अथालंकार कहलाता है ।

अथालंकार क सं या सवा धक है –
उपमा अलंकार (Upma Alankar)
अन वय अलंकार (Ananvay Alankar)
उपमेयोपमा अलंकार (Upmeyopma Alankar)
तीप अलंकार (Prtip Alankar)
पक अलंकार (Rupak Alankar)
ा तमान अलंकार (Bhrantiman Alankar)
संदेह अलंकार (Sandeh Alankar)
द पक अलंकार (Deepak Alankar)
उ े ा अलंकार (Utpreksha Alankar)
अप त अलंकार (Aphriti Alankar)
अ तशयो अलंकार (Atishyokti Alankar) इ या द

(3) उभयालंकार – इसे श दाथालंकार भी कहा जाता है । जैसा क ऊपर कहा जा चुका है
क जो अलंकार श द और अथ दोन के आ त रहकर दोन को भा वत करते ह, वे
उभयालंकार कहलाते ह । इस जा त के अलंकार क सं या सी मत है । संसृ तथा संकर
इसी जा त के अलंकार ह ।

कुछ मुख श दालंकार:

अनु ास अलंकार (Anupras Alankar)– वण क आवृ को अनु ास कहते ह।


आवृ का अथ है, हराना। इस अलंकार म कसी वण या ंजन क एक बार या अनेक
वण या ंजन क अनेक धार आवृ होती है ।

उदाहरण -वण क एक बार आवृ :


ह जनम लेते जगह म एक ही,
एक ही पौधा उ ह है पालता ।

इसक पहली प म ‘ज’ क एक बार आवृ तथा सरी प म ‘प’ क भी एक ही बार


आवृ ई है ।

एक वण क अनेक बार आवृ त :

‘तर न तनुजा तट-तमाल त वर ब छाए।’


इसम ‘त’ क अनेक बार आवृ ई है।

अनु ास म वणाँ क आवृ का भी एक नयम है । या तो वे श द के ारंभ म, या म य म


या अ त म आते ह, तभी अनु ास माने जायगे अ यथा नह ।

अनु ास अलंकार के तीन भेद ह –

(1) वृ यनु ास
(2) छे कानु ास तथा
(3) लाटानु ास ।

अनु ास अलंकार के कुछ और उदाहरण :

(क) दना त था थे दननाथ डू बते ।


सधेनु आते गृह वाल-बाल थे ।। (‘दन’ तथा ‘ल’ क आवृ )

(ख) मु दत महीप त मं दर आए । सेवक स चव सुमंत बुलाए ।


(‘म’ तथा ‘स’ क आवृ )

सबै सहायक सबल कै, कोउ न नबल सहाय ।


पवन जगावत आग को द प ह दे त बुझाय ।

कारज धीरे होतु है, काहे होत अधीर ।


समय पाय त वर फल, केतक स चौ नीर ।

(ड) बड़ सुख सार पाओल तुआ तीरे ।


छोडइत नकट नयन बह नीरे ।

(च) जे न म
ख हो ह
खारी,
तहह
वलोकत
पातक भारी ।
नज ख
ग र सम रज
क र जाना,
म क ख
रज मे
समाना ।

(छ) भुजी
तुम द पक
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बरे दन राती Rs. 301.00 (details + delivery)

(ज) माधव कत तोर करब। बड़ाई ।


उपमा तोहर कहब ककरा हम, क हत ँ अ धक लजाई ।

(झ) जय जय भारत-भू म-भवानी !


अमर ने भी तेरी म हमा बारंबार बखानी ।

(ज) फूली सरस ने दया रंग, मधु लेकर आ प ँचा, अनंग,


वधू-वसुधा पुल कत अंग अंग, ह वीर वेश म क तु कंत ।

(ट) अधर धरत ह र को परत होठ द ठ पट जो त ।


ह रत रंग क बाँसुरी इ धनुष त हो त ।

यमक अलंकार (Yamak Alankar)– साथक पर तु भ अथ का बोध करानेवाले श द


क मश: आवृ को यमक कहते ह । यमक श द का अथ है दो । अत: इस अलंकार म
एक ही श द का कम-से-कम दो बार योग आव यक है । यह योग दो बार से अ धक भी
हो सकता है।

उदाहरण-
(1 ) कनक कनक ते सौगुनी मादकता अ धकाई ।
उ ह खाये बौरात नर, इह पाये बौराई ।

इस दोहा म एक ‘कनक’ का अथ ‘सोना’ है, तो सरे ‘कनक’ का अथ ‘ धतूरा’ ।

(2) उधौ जोग जोग हम नाह । – इस पं म पहले ‘जोग’ का अथ ‘योग’ तथा सरे ‘जोग’
का अथ ‘यो य’ है।
एक ही श द का अनेक अथ म योग के उदाहरण :

(1) य ‘रसखा न’ वही रसखा न जु है रसखा न सो है रसखा न ।

(2) सारंग नयन बयन पु न सारंग सारंग तसु स धाने ।


सारंग उपर उगल ड सारंग के ल क रए मधुपाने ॥
ेष अलंकार (Shesh Alankar)– जब श द से अनेक अथ का बोध होता है,
तब वहाँ ेष अलंकार होता है । ‘ ’ श द का अथ है मला आ, चपका आ या सटा
आ । अत: श द का सामा य अथ होता है ऐसा श द, जसम अनेक अथ मले ए या
चपके ए ह ।

उदाहरण-

‘र हमन’ पानी रा खये बन पानी सब सून।


पानी गये न उबरे, मोती, मानुस, चून ।

यहाँ एक ही श द ‘पानी’ का चमक, त ा और जल- ये तीन अथ ह, जनका त ब ध


मश: मोती, मनु य और चूना से होता है । अत: इस दोहा म ेष अलंकार है।

जो चाहो चटक न घटै , मैलो होय न म ।


रज राजस न छु वाइये, नेह चीकने च ।।

यहाँ ‘रज’ रजोगुण (अहंकार) तथा धूल और ‘नेह’ ेम ( नेह) तथा तेल ( न ध )- ये दो-
दो अथ दे ते ह । अत: यहाँ भी ेष अलंकार है ।

व ो त अलंकार (Vkroti Alankar)– य द व ा के कथन म उसके अ भ ेत अथ के


बदले ोता ेष या काकु से सरा अथ हण करे, तो व ो अलंकार होता है ।

व ो (व +उ ) का सहज अथ है- टे ढ़ा कथन ।

कहनेवाला कसी सरे अ भ ाय से जो कुछ कहे, सुननेवाला उसका सरा ही-व ा के


अ भ ाय से सवथा भ अथ समझ ले तो वहाँ व ो अलंकार होता है ।

ऐसी अव था दो कारण से संभव होती है-

(1) ेष क सहायता से तथा


(2) काकु क सहायता से ।

काकु का अथ है व न का वकार । काकु से कसी कथन के अथ म बड़ा भारी अ तर आ


जाता है। इसम व ा के वा य से अथात् क ठ व न क वशेषता से ोता ारा अ य अथ
क पत कर लया जाता है । इस कार जो व ो ेष के ारा होती है, उसे ेष
व ो तथा जो व ो काकु क सहायता से होती है, उसे काकु व ो कहते ह ।

ेष व ो त के दो भेद ह-
(1) सभग ेष व ो तथा
(2) अभग ेष व ो ।

उदाहरण (सभंग ेष व ो ):
अ य गौरवशा लनी, मा ननी, आज सुधा मत य बरसाती नह ?
नज का मनी को य, गौ अवशा अ लनी भी कभी क ह जाती कह ।’

इस छ द म ‘गौरवशा लनी’ पद को ‘गी’, ‘अवशा’ और ‘अ लनी’ म भंग करके ेषाथ


नकलता है ।

उदाहरण (अभंग ेष व ो ):
‘एक कबूतर दे ख हाथ म पूछा कहाँ अपर है ?
उसने कहा अपर कैसा ? उड़ है गया। सपर है ।
इस छ द म ‘अपर’ का अथ व ा के अनुसार ‘ सरा’ है, जब क ोता ने ेष क सहायता
से अपर का अथ ‘पर-र हत’ लया है ।

उदाहरण (काकु व ो ):

कोउ नृप हो ह हम ह का हानी । चेरी छाँ ड़ अब होब क रानी ।

इस छ द म काकु ारा यह समझाया जा रहा है क कसी के राजा बनने या न बनने से व ा


का कुछ भी बनने या बगड़नेवाला नह है। हा न-लाभ तो उसी को झेलना है, जससे यह
बात कही जा रही है ।

वी सा अलंकार (Vipsa Alankar)– आदर, घृणा, हष, शोक, व मया दबोधक भाव को
भावशाली प से करने के लए श द क पुनरावृ को वी सा अलंकार कहते ह।

उदाहरण :

‘री झ -री झ
रह स-रह स
हँसी-हँसी
उठे ,
साँसै भ र
आँसू भ र
कहत दई-दई

मो ह–मो ह
मोहन को मन
भयो राधामय
राधा मन
मो ह-मो ह
मोहन मयी-मयी । (दे व)

या, मधुर-मधुर मेरे द पक जल । (महादे वी)


मधुर-मधुर क आवृ म वी सा अलंकार है । पहले छ द सभी श द वी सा अलंकार के ही
उदाहरण ह ।

कुछ मुख अथालंकार :

उपमा अलंकार (Upma Alankar)– दो भ पदाथ म सा य- तपादन को उपमा


कहते ह । ‘उपमा’ का अथ है एक व तु के नकट सरी व तु को रखकर दोन म समानता
तपा दत करना । ‘उपमा’ श द का अथ ही है सा य, समानता तथा तु यता इ या द ।
अलंकार के सौ दय का मूल सा य म है, और यही कारण है क सा यमूलक अलंकार ही
धान ह । ‘उपमा’ इन सम त सा यमूलक अलंकार का भी ाण है, य क यह वत:
सा य है । उपमा अलंकार सवा धक ाचीन है । इसका योग ऋ वेद म भी मलता है ।

‘उपमा” अलंकार (Upma Alankar) के चार अंग होते ह –

एक वा य है- ‘मुख च मा-सा सु दर है ।’ इस वा य म ‘मुख’ क उपमा ‘च मा’ से द गयी


है, अत: यह वा य उपमा अलंकर का उदाहरण है । इस वा य म ‘मुख’ क सु दरता क
तुलना ‘च मा’ क सु दरता से क गयी है, अत: ‘मुख’ ‘उपमेय’ है, ‘च मा’ ‘उपमान’ है,
‘सा’ सा यवाचक है तथा ‘सु दर’ साध य या समान गुण-धम है, जो उपमेय (मुख) तथा
उपमान (च मा) दोन म समान प से व मान है। इस कार हम दे खते ह क उपमेय,
उपमान, सा यवाचक तथा साधारण धम (या समान गुण-धम)-ये उपमा अलंकार के चार
अंग ह।

उपमेय अलंकार (Upmey Alankar)– उपमेय का अथ है “उपमा दे ने के यो य’- जसक


समानता कसी सरी व तु से दखायी जाय । ऊपर के उदाहरण म ‘मुख’ उपमेय है ।

उपमान अलंकार (Upman Alankar) – उपमेय क उपमा जससे द जाती है-उपमेय


को जसके समान बताया या दखाया जाता है, उसे उंपमान कहते ह । उपयु उदाहरण म
‘च मा’ उपमान है ।

सा यवाचक अलंकार (Sadrishyavachak Alankar) – उपमेय और उपमान म


समानता बताने या दखाने के लए जस श द का योग कया जाता है, उसे सा यवाचक
कहते ह । उपयु उदाहरण म ‘सा’ सा यवाचक है। आव यकतानुसार सा, ऐसा, जैसा,
स श, समान, तु य इ या द म से कसी भी श द का योग सा यवाचक के लए कया जा
सकता है ।

साधारण धम (समान गुण-धम) अलंकार (Sadharan Dharm Alankar) – दो


व तु के बीच म समानता तपा दत करने के लए कसी ऐसे गुण या धम क सहायता
ली जाती है, जो दोन म वतमान हो । इसी गुण या धम को साधारण धम (या समान गुण-
धम) कहा जाता है । पूव उदाहरण म ‘सु दर’ साधारण धम है ।

‘उपमा” अलंकार के दो मुख भेद ह-


(1) पूण पमा अलंकार (Purnotma Alankar) तथा
(2) लु तोपमा अलंकार (Luptotma Alankar)

( 1 ) पूण पमा अलंकार (Purnotma Alankar)– जब उपमा के चार अंग का श दत:


उ लेख हो, तब पूणापमा होती है । ‘मुख च मा-सा सु दर है’ म पूणोपमा है, य क इसम
उपमा के चार अंग उपमेय (मुख), उपमान (च मा), साधारण धम (सु दर) तथा
सा यवाचक (सा) का श दत: कथन है ।

न न ल खत उदाहरण म भी पूणापमा है-

(i) सु न सुरस र सम पावन बानी ।


भई सनेह वकल सब रानी ।

(ii) राम-चरन-पंकज मन जासू ।


लुबुध मधुप इव तजै न पासू ।

(2) लु तोपमा अलंकार (Luptotma Alankar)– जहाँ उपमा के चार अंग म से कसी


एक (या अ धक) का श दत: कथन नह कया जाता, वहाँ लु तोपमा अलंकार होता है ।

उदाहरण- ‘सरद वमल बधु बदन सुहावन ।’

इसम सा यवाचक का कथन नह कया गया है ।

या, ‘दोन भैया मुखरा श हम लौट आके दखाओ।” ( य वास-ह रऔध)

इसम ‘वाचक’ तथा ‘ धम’ का कथन नह कया गया है, साथ ही उपमेय के धम क धानता
होने के कारण यहाँ ‘ पक” नह माना जायेगा। ‘ दखाओ’ श द मुख क धानता स
करता है। अत: इस पद म ‘वाचक-धमलु ता उपमा है।

पक अलंकार (Rupak Alankar) – उपमेय म उपमान के नषेधर हत आरोप को


पक अलंकार कहते ह।

इसम अ य धक समानता के कारण तुत (उपमेय) म अ तुत (उपमान) का आरोप करके


दोन म अ भ ता अथवा समानता दखायी जाती है । ‘ पक’ का कोशीय अथ हैएकता
अथवा अभेद क ती त ।

उदाहरण- ‘बीती वभावरी जाग री |

अ बर-पनघट म डु बो रही तारा-घट ऊषा-नागरी ।

यहाँ अ बर म पनघट, तारा म घट तथा ऊषा म नागरी (ना यका) का आरोप है, अत: इस
पं  म पक अलंकार है ।

पक अलंकार के तीन मु य भेद ह-


1. सांग पक,

2. नरंग पक तथा

3. पर प रत पक । ऊपर के उदाहरण म सांग पक अलंकार है ।

उ े ा अलंकार (Utpreksha Alankar) – जहाँ तुत म अ तुत क स भावना


होती है, वहाँ उ े ा अलंकार होता है । उपमा अलंकार क तरह उ े ा अलंकार म भी
कह वाचक श द रहता है और कह नह भी रहता है । इसके वाचक श द ह- मनु, इव,
मानो, जानो इ या द ।

जहाँ वाचक श द होता है, वहाँ वा या उ े ा होती है । जहाँ वाचक नह होता, वहाँ
तीयमाना या ग या उ े ा होती ।

उ े ा अलंकार के भी अनेक भेद- भेद ह । पर तु इसके तीन मु य भेद ह-

1. व तृ े ा अलंकार

2. फलो े ा अलंकार तथा

3. हेतृ े ा अलंकार ।

उदाहरण :

सोहत ओढे . पीतु पटु , याम सलौने गात ।

मनौ नीलम न सैल पर, आतपु परयो भात ॥

यहाँ पीता बरधारी ीकृ ण पर नीलम ण पवत पर ात:कालीन धूप का आरोप है। यहाँ
उ े ा अलंकार है ।

लता भवन ते गट भे ते ह अवसर दोउ भाइ ।


नकसे मनु जुग बमल बधु जलद पटल बलगाइ ॥

लता-भवन से दोन भाइय (राम-ल मण) के नकलने पर बादल के पटल (पदा) से दो


च मा के नकलने का आरोप है । अत: यहाँ भी उ े ा अलंकार है । इन दोन
उदाहरण म वाचक श द (मनी, मनु) का भी कथन है, अत: इनम वा या उ े ा है ।

अ तशयो अलंकार (Atishyokti Alankar) –अ तशयो का शा दक अथ है


अ तशय + उ अथात् बढ़ा-चढ़ाकर कया गया कथन । उपमेय को छपाकर उपमान के
साथ उसक आभ ता (या सम पता) क ती त कराना ही अ तशयो अलकार है ।
इसम उपमेय का नामो लेख तक नह कया जाता, अ पतु उपमान के ारा ही उसक ती त
कराई जाती है।

उदाहरण-

बाँधा था वधु को कसने, इन काली जंजीर से ।


म णवाले फ णय का मुख, य भरा आ हीर से ।

इन पं य म क व ने मो तय से भरी ई या क माँग का वणन कया है ।

वधु (च ) से मुख का, काली जंजीर से बाल का तथा म णवाले फ णय से मोती भरी माँग
क ती त होती है । इन पं य म उपमेय मुख, बाल तथा माँग का नामो लेख तक नह है ।
उपमान ( वधु, काली जंजीर तथा म णवाले फ णय ) से ही उपमेय क ती त होती है ।

अ यो – जब कोई बात सीधे-सीधे न कहकर घुमा- फराकर कही जाती है, तब वहाँ
अ यो त अलंकार होता है । अ यो त को ही पयायो त के नाम से भी जाना जाता है । इसम
व ा को जो कुछ भी कहना होता है, उसे सीधे-सादे ढं ग से प प से न कहकर घुमा-
फराकर कहा जाता है । जैसे- कसी आग तुक से जब यह कहा जाता है’आपने कैसे कृपा
क ?’ तब व ा का अभी अथ यह पूछना होता है क ‘आप कस मतलब से आये ह ?’

उदाहरण-

न ह पराग नह मधुर मधु न ह वकास इ ह काल ।


अली कली ही स बं यौ, आगे कौन हवाल ।

इस दोहे म कली और भवरे के मा यम से नव ववा हत राजा जय सह को अपने कत का


मरण कराया गया है ।

‘तुलसी अवल ब न और कछू ल रका के ह भाँ त जआइह जू ।


ब मा रये मो ह बना पग धोये ह नाथ न नाव चढ़ाइह जू ॥

इन प य म केवट का इ ाथ कारा तर से आ है, अत: यहाँ भी अ यो त है ।

उपमेयोपमा अलंकार (Upmeyopma Alankar)– उपमेयोपमा म उपमेय और उपमान


क एक- सरे से उपमा द जाती है। जैस-े मुख-सा च और च -सा मुख है।’ इस वा य
म मुख और च पर पर एक- सरे के उपमेय तथा उपमान ह । उदाहरण-

1. तौ मुख सोहत है स स सो अ सोहत है स स तो मुख जैसो ।

2. सु दर न द कशोर से सु दर न द कशोर ।

3. अब य प बल भारत है, पर भारत के सम भारत है ।

तव तूपमा अलंकार (Prativastupma Alankar) – इस अलंकार म अ त न हत


समानता वाले दो वा य म एक सामा य धम का अलग श द म कथन कया जाता है । इसे
इस कार भी कहा जा सकता है क तव तूपमा म एक ही साधारण धम क , उपमान
वा य और उपमेय वा य- दोन वा य म दो बार थ त होती है । तव तूपमा का शा दक
अथ है- तव तु अथात् येक वा य के अथ म उपमा (सा य या समानता) हो । इस
अलंकार म दो वा य रहते ह, एक उपमेय वा य तथा सरा उपमान वा य, पर तु इन दोन
वा य म सा य का प कथन नह होता, वह ं जत होता है । इन दोन वा य म
साधारण धम एक ही होता है, पर तु उसे अलग-अलग ढं ग से कहा जाता है । उदाहरण-

‘राजत मुख मृ बा न स , लसत सुधा स च द ।


नझर स नीको सु ग र, मद स भली गय द ।

यहाँ ‘राजत’ और ‘लसत’, ‘नीको’ और ‘भलो’ समान धम अलग-अलग श द म कहे गये ह ।

‘चटक न छाँड़त घटत , स जन नेह गँभीर ।


फ को परे न ब फटे , रं यो चोल रग चीर ।

यहाँ ‘चटक न छाँडत’ तथा ‘फ को परै न ‘ म केवल श द का ही अ तर है, दोन के अथ म


समानता है । अत: यहाँ भी तव तूपमा है ।

ांत अलंकार (Drishtant Alankar) – इस अलंकार म उपमेय तथा उपमान, दोन


वा य म उपमान, उपमेय तथा साधारण धम का ब ब- त ब ब-भाव झलकता है । ।
उदाहरण-

‘ नर ख प नंदलाल को, ग न चै न ह आन ।
त ज पयूष कोऊ करत, कटु औष ध को पान ।’

यहाँ थम ( ब ब) वा य का त ब ब सरे वा य म झलकता है ! जन ऑख ने न दलाल


को दे ख लया है, उ ह भला और कोई अ छा कैसे लग सकता है ? या अमृत (पीयूष) को
याग कर कोई कड़वी (कटु ) औष ध (दवा) पस द करेगा ?

अथां तर यास अलंकार (Athantarnyas Alankar)– इस अलंकार म साध य और


वैध य क से सामा य का वशेष ारा और वशेष का सामा य ारा समथन कया
जाता है । अथात् कारण से काय का तथा काय से कारण का जहाँ समथन हो, वहाँ
अथां तर यास अलंकार होता है । उदाहरण-
‘र हमन नीच कुसंग स , लगत कलंक न का ह ।
ध कलारी कर लखै, को मद जाने ना ह ।’

यहाँ सामा य (नीच कुसंग) का ‘ ध कलारी’ के वशेष संग से समथन है और ‘लगत’ तथा
‘जाने’ दोन याएँ साध य से कही गयी ह ।

उ लेख अलंकार (Ullekh Alankar)– जहाँ कसी एक व तु को अनेक प म हण


कया जाय, तो उसके इस कार अनेक प म कथन को उ लेख कहा जायेगा । एक व तु
का, ाता के भेद के कारण अथवा वषयभेद के कारण, अनेक प म वणन कया जाना
उ लेख अलंकार है । उदाहरण-

‘व म थ तुम स धु अन त एक सुर म सम त संगीत ।

एक क लका म अ खल वस त धरा पर थ तुम वग पुनीत ।’

का लग अलंकार (Kavyaling Alankar)– का म कसी बात को स करने के


लए जहाँ यु अथवा कारण का कथन करके उसका समथन कया जाय, वहाँ का लग
अलंकार होता है ।

उदाहरण-

‘मेरी भव बाधा हरौ, राधा नाग र सोय ।


जा तन क झाँई परै, याम ह रत त होय ।’

यहाँ शंसा क समथता का कारण सरे वा य म कहा गया है ।

‘ याम गौर क म कह बखानी । गरा अनयन नयन बनु बानी ॥”

इसम पूवा का समथन उ रा के वा याथ म तुत यु के ारा कया गया है।

वरोधाभास अलंकार (Virodhabhas Alankar)– जस वणन म व तुत: वरोध न


रहने पर भी वरोध का आभास हो, उसम वरोधाभास अलंकार होता है । उदाहरण-

‘आग ँ
जससे
ढू लकते ब
हमजल के ।
शू य ँ
जसम बछे
ह पाँवड़े
पलक ।’

‘आग’ से
हमजल ब
का ढू लकना
तथा ‘शू य’ म
पलक-पाँवड़
का बछना
दोन म
वरोधाभास है

‘पर अथाह
पानी रखता है
यह सूखा-सा
गा ।’
यहाँ ‘सूख-े से
गा का अथाह पानी रखना’ वरोध का सूचक है, अत: यहाँ वरोधाभास है।

वभावो त अलंकार (Svabhavokti Alankar) – जो व तु जैसी हो उसका ठ क-ठ क


वैसा ही वणन वभावो

अलंकार कहलाता है । इस वणन को पढ़ते या सुनते ही पाठक या ोता के सम व णत


व तु साकार उप थत हो जाती है । उदाहरण–

सीस मुकुट क ट काछनी, कर मुरली उर माल ।


इ ह बा नक मो मन बसौ, सदा बहारीलाल ।

यहाँ ‘ बहारीलाल’ ीकृ ण के प का वाभा वक वणन है ।

सखव त चलन जसोदा मैया ।


अरबराई कर पा न गहावत, डगमगाई धरनी धरे पैया ।

यहाँ भी माता-पु का सहज वाभा वक वणन है, अत: यह वभावो है ।

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हद ाकरण | सं ा | सवनाम | वशेषण | या | या वशेषण | वा य | अ य | लग |
वचन | कारक | काल | उपसग | यय | समास | सं ध | पुन | श द वचार |
पयायवाची श द | अनेक श द के लए एक श द | हद कहावत | हद मुहावरे | अलंकार |
छं द | रस

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