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बी.ए.एच.डी.सी.

सी – 14
खंड – 1
BAHDCC – 14
Block – 1

पाश्चात्य काव्यशास्त्र

प्लेटो और अरस्तु
इस पुस्तक की इकाई 1,2,3,4 और 5 की पाठ्य – सामाग्री मूल रूप से ओडिशा राज्य मुक्त
डिश्वडिद्यालय (ओसू) द्वारा प्रस्तुत की गई है।

The study material pertaining to Unit- 1,2,3,4 & 5 of this book has been
developed by Odisha State Open University (OSOU), Sambalpur Odisha
कला स्नातक (सम्मान) उपाडि काययक्रम (हहिंदी)

बी.ए.एच.िी.सी.सी – 14

पाश्चात्य काव्यशास्त्र

खिंि – 1
प्लेटो एििं अरस्तु

इकाई – 1 प्लेटो: पररचय, काव्य डसद्ािंत

इकाई – 2 प्लेटो: अनुकरण डसद्ािंत

इकाई – 3 अरस्तु का जीिन पररचय

इकाई - 4 अरस्तु का अनुकरण डसद्ािंत


इकाई – 5 अरस्तु: डिरे चन डसद्ािंत
कला स्नातक (सम्मान) उपाडि काययक्रम (हहिंदी)

प्लेटो एििं अरस्तु


मूलपाठ के लेखक
इकाई – 1 प्लेटो: पररचय, काव्य डसद्ािंत िॉ. सिंतोष डिश्नोई
सहायक प्रोफ़े सर
इकाई – 2 प्लेटो: अनुकरण डसद्ािंत हहिंदी डिभाग,
इकाई – 3 अरस्तु का जीिन पररचय तेजपुर कें द्रीय डिश्वडिद्यालय,
असम
इकाई – 4 अरस्तु का अनुकरण डसद्ािंत
इकाई – 5 अरस्तु: डिरे चन डसद्ािंत
सिंदभीकरण तथा सिंसोिन
िॉ. एच.ए. हुनगुद िं
सह आचायय, भाषा डिज्ञान एििं भाषा-प्रौद्योडगकी डिभाग,
महात्मा गााँिी अिंतरराष्ट्रीय हहिंदी डिश्वडिद्यालय, महाराष्ट्र
अलिंकरण
अडभषेक कु मार हसिंह
डशक्षण सलाहकार,
ओडिशा राज्य मुक्त डिश्वद्यालय

कु लसडचि, ओडिशा राज्य मुक्त डिश्वडिद्यालय, सम्बलपुर द्वारा प्रकाडशत


मुद्रण –

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इकाई – 1

प्लेटो : परिचय, काव्य सिद्ाांत

इकाई की रुपिेखा

1.0 उद्देश्य
1.1 प्रस्तावना
1.2 प्लेटो का जीवन परिचय
1.3 प्लेटो का लेखन-क्षेत्र
1.4 प्लेटो के दर्शन पि पूवश ग्रीक दार्शसनकों का प्रभाव
1.5 प्लेटो का काव्य-सचांतन
1.5.1 उपयोसितावादी दृसि
1.5.2 काव्य वास्तसवक जीवन िे दूि
1.5.3 स्मृसत काव्य का महत्व
1.5.4 युि का प्रभाव
1.6 सनष्कर्श
1.7 अभ्याि प्रश्न
1.8 िदां भश ग्रथ
ां िसू च
1.0 उद्देश्य

इस इकाई को पढ़कर छात्र-

 प्लेटो का साहिहयिक जीवन पररचि जान सकें गे।

 प्लेटो के काव्ि हचिंतन पर अपनी समझ हवकहसत कर पाएगिं ।े

1
 प्लेटो की काव्ि सिंबिंधी अवधारणा के बारे में जान सकें गे।

 प्लेटो के अनक
ु रण सिंबिंधी हवचारधारा के हवषि में समझ हवकहसत कर सकें गे।
 प्लेटो के हचिंतन का वैहिक पक्ष जान सकें गे।

1.1 प्रस्तावना

पाश्चायि दर्शन का जन्म मख्ु ित: ग्रीक से माना जाता िै। ग्रीस दार्शहनकों ने जड़-चेतन-जगत का हववेचन हकिा तथा उसके
पश्चात आयमा का हवश्ले षण हकिा। अतिं त: जड़ तथा आयमा के समन्वि का प्रिास हकिा गिा। ग्रीस दर्शन का मियव इस
बात से इहिं गत िोता िै हक इसके हबना पाश्चायि दर्शन को अपणू श िी किा जाएगा। सवशप्रथम वास्तहवक तौर पर हजस
दार्शहनक ने दर्शन के स्पष्ट हसद्ािंत तथा हवचार प्रकट हकए उसका नाम प्लेटो िै।

प्लेटो ग्रीस के एक ऐसे मिान दार्शहनक िुए िैं, हजनके हवचारों की झलक उनके बाद आए लगभग सभी दार्शहनकों के
हवचारों में देखने को हमलता िै। प्लेटो मिान दार्शहनक सक
ु रात के हर्ष्ि थे। जब सक
ु रात को मृयिदु डिं हदिा गिा तो प्लेटो
का प्रजातत्रिं र्ासन प्रणाली से हविास उ गिा। प्लेटो ने अनेक मियवपणू श पस्ु तकों की रचना की, हजनमें ‘एपोलॉजी’,
‘क्राइटो’, ‘प्रोटेगोरस’, ‘ररपहललक’ इयिाहद र्ाहमल िैं। प्लेटो के सबिं धिं में िि मियवपणू श बात िै हक उनको ‘पणू श ग्रीक’
की उपाहध दी गई, क्िोंहक उनके कािशकाल में ग्रीक दर्शन अपने चरम पर पिुचिं ा।

1.2 प्लेटो का जीवन परिचय

प्लेटो का जन्म एथेंस के समीपवती ईहजना द्वीप में िुआ था। उसका पररवार सामिंत का वगश था। उसके हपता अररस्टोन
तथा पेररक्टोन इहतिास प्रहसद् कुलीन नागररक थे। कुछ हवद्वानों के अनसु ार उनका जन्म एथिं ेंस के एक समृद् और
राजनैहतक पररवार में िुआ था। प्लेटो के जन्म स्थान और जन्म तारीख से सिंबिंहधत प्रामाहणक जानकारी अभी तक प्रात
निीं िुई िै। प्राचीन सत्रू ों के अनसु ार हवद्वानों का मानना िै हक उनका जन्म एथेंस में 429 िा 423 ईसा पवू श िुआ। प्लेटो
के प्रारहभभक जीवन और हर्क्षा के बारे में भी बिुत कम जानकारी उपललध िै। प्लेटो बचपन से िी काफी कुर्ाग्र थे और
बचपन से िी उनमें दार्शहनकों के गणु थे। उनके पररवार ने उन्िें वे सारी सहु वधाएँ प्रदान की जो उनकी सिी हदर्ा में

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परवररर् के हलए चाहिए थी। अपने समि के कुछ मिान हर्क्षकों ने प्लेटो को ग्रामर, सिंगीत, हजमनाहस्टक और
दार्शनर्ास्त्र की हर्क्षा दे थी। प्लेटो मल
ू त: दार्शहनक थे। इसके साथ िी वे िनू ान के प्रहसद् गहणतज्ञ भी थे। वे सक
ु रात के
हर्ष्ि एविं अरस्तू के गरुु थे। पहश्चम ज्ञान- जगत की दार्शहनक पृष्ठभहू म को तैिार करने में इन तीन दार्शहनकों (सक
ु रात,प्लेटो
और अरस्त)ू की त्रिी ने मियवपणू श भहू मका थी। प्लेटो को अफलातनू के नाम से जाना जाता िै। ऐसा किा जाता िै हक
सक
ु रात की मृयिु के बाद प्रजातत्रिं के प्रहत प्लेटो को घृणा िो गई। उन्िोंने मेगोरा, हमस्त्र, साएरीन, इटली और हससली
आहद देर्ों की िात्रा की। अतिं में एथेंस लौटे और पहश्चमी जगत में उच्च हर्क्षा के हलए पिली सस्िं था ‘एके डमी’ की
स्थापना का श्रेि भी प्लेटो को िी जाता िै। उन्िें दर्शन और गहणत के साथ साथ तकश र्ास्त्र एविं नीहतर्ास्त्र का भी अच्छा
ज्ञान था।

1.3 प्लेटो का लेखन-क्षेत्र

सक
ु रात के हर्ष्ि एविं अरस्तू के गरुु प्लेटो का जन्म सामतिं वगश में िुआ। दार्शहनक प्लेटो िनू ान के प्रहसद् गहणतज्ञ भी थे।
उनके लेखन में अनेक हवषिों का समावेर् िै, लेहकन सामान्ि दर्शन और नीहत र्ास्त्र में उनकी हदलचस्पी को उनके
लेखन में हवर्ेष रूप से देखा जा सकता िै। उनका मत था हक दार्शहनक मत वाले व्िहि बािरी सीमाओ िं और सौन्दिश,
सयि, एकता और न्िाि के सवोच आदर्श के बीच भेद कर सकते िैं। वे हलखते िैं कुछ लोग भौहतक दहु निा को तच्ु छ
मानते िैं और कुछ लोग इसी को अिहमित देते िैं। इस तरि वे र्रीर और आयमा में भेद को देखते िैं। उनका मत था हक
दार्शहनक मत वाले व्िहि बािरी सीमाओ िं और सौन्दिश, सयि, एकता और न्िाि के सवोच्ि आदर्श के बीच भेद कर
सकते िैं। उनका िि दर्शन भौहतक और मानहसक सीमाओ िं का सिंकेत भी देता िैं। हजससे एक उच्च आदर्श के प्रोयसािन
को बल हमलता िै।

पहश्चमी हवज्ञान, दर्शनर्ास्त्र और गहणत में पहश्चमी दहु निा में प्रहसद् िोने के साथ िी वे पहश्चमी धमश और साहियि के
सस्िं थापक भी थे। उसके समि में कहव को उपदेर्क, मागशदर्शक तथा सस्िं कृ हत का रक्षक माना जाता था। काव्ि के सदिं भश
में उनका मत था हक, ‘’कहवता जगत की अनक
ु ृ हत िै, जगत स्वििं अनक
ु ृ हत िै, अत: कहवता सयि से दोगनु ी दरू िै। वि
भावों को उद्वेहलत कर व्िहि को कुमागीगामी बनाती िै। अत: कहवता अनपु िोगी िै एविं कहव का मियव एक मोची से

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भी कम िै।“ प्लेटो की प्रमख
ु कृ हतिों में उनके सिंवाद हवर्ेष उल्लेखनीि िैं। प्लेटो ने 35 सविं ादों की रचना की िै। उनके
सिंवादों को तीन भागों में हवभाहजत हकिा जा सकता िै-

1. िुकिातकालीन िवां ाद - इसमें सक


ु रात की मृयिु से लेकर मेगारा पिुचँ ने तक की रचनाएिं िैं। इनमें प्रमख
ु िैं-हिप्पीिस,
माईनर, एपोलॉजी, हक्रटो, प्रोटागोरस आहद।
2. यात्रीकालीन िांवाद - इन सिंवादों पर सक
ु रात के साथ साथ ईहलिाई मत का भी कुछ प्रभाव िै। इस काल के सिंवाद
िै - क्लाईहसस, क्रेहटिस, जॉहजिस इयिाहद।
3. प्रौढ़कालीन िांवाद - इस काल के सिंवाद में हवज्ञानवाद की स्थापना मख्ु ि हवषि िै। इस काल के सिंवाद िै -
हवज्ञानवाद, हफलेब्रूस, हिमेिासश, ररपहललक और फ़ीडो आहद।

प्लेटो की रचनाओ िं में ‘द ररपहललक’, ‘द स्टेट्समैन’, ‘द लाग’, ‘इिोन’, ‘हसभपोहजिम’ आहद प्रमख
ु िैं।

1.4 प्लेटो के दर्शन पि पूवश ग्रीक दार्शसनकों का प्रभाव

प्लेटो के दर्शन पर उससे पिले के ग्रीक दार्शहनकों का पिाशत प्रभाव हदखता िै। इन दार्शहनकों में पामेनाइडीज़,
सक
ु रात, पाइथागोरस और िेराक्लाइिस प्रमख
ु िै। पामेनाइडीज़ ने अनभु हवक (Empirical) ज्ञान का खडिं न करते िुए
बहु द्वाद (Rationalism) का समथशन हकिा था और माना था के पररवतशन और अहनयिता(Temporality) से िि

अनभु व-जगत (एहभपररकल वल्डश) सत(् Real) निीं िै। वास्तहवक सत्ता तो मात्र एक हनयि (Eternal), र्ाित तथा
अपररवतशनीि (Immutable) सत् की िै। प्लेटो ने बहु द्वाद (Rationalism) को आधार बनािा, अहिं तम सत्ता अथाशत
प्रयिि (Idea) को हनयि भी किा। िालािंहक एक निीं किा। सिंभवत िै इसे समस्िा के कारण उसने हवहभन्न प्रहतिों को
एक सोपाहनक क्रम (िाइराकी) में व्िवहस्थत कर हदिा ताहक प्रयििों की बिुलता उसके दर्शन में समस्िा न
बने। पामेनाइडीज़ ने वस्तवु ाद (Realism) को अपनािा था हजसके अनसु ार ज्ञान के हवषि की वास्तहवक सत्ता िोती िै।
प्लेटो ने हसद्ािंत का हवकास करके सिंवाहदता हसद्ािंत (थ्िोरी ऑफ कॉररस्पान्डन्स) का हनमाशण हकिा हजसके अनसु ार
वास्तहवक ज्ञान वि िै हजस के अनरू
ु प वास्तहवकता सत्ता भी हवद्यमान िो। ध्िातव्ि िै हक इस हसद्ातिं का आगे चलकर
पिले अरस्तु ने तथा हफर कुछ अनभु ववाहदिो (Empircists) और वस्तवु ाहदिों (Realists) ने प्रिोग हकिा, िालाहिं क
इसके बीज प्लेटो में हदखते िैं।

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1.5 प्लेटो का काव्य-सचतां न

प्लेटो को पाश्चायि काव्िर्ास्त्र और सौन्दिशर्ास्त्र का जन्मदाता माना जाता िै। वास्तव में तो वि दार्शहनक थे। साहियि
हवषिक उसके हवचार प्राि: आनषु हिं णक िी िै। उनकी दृहष्ट काव्ि कें हित निीं थी। उनके हवचार के कें ि में परम सयि था।
‘ररपहललक’ में प्लेटो ने स्पष्ट किा हक भाव अथवा हवचार िी आधारभतू सयि िै। प्लेटो अनक
ु रण को समस्त कलाओ िं
की मौहलक हवर्ेषता मानते िैं। प्लेटो कला में ऐहिं िक ऐक्ि को अहनवािश र्तश के रूप में देखते थे। अथाशत कलाकार को
अपनी कृ हत के समस्त अगिं ों का हवन्िास एक हनहश्चत क्रम से पणू श सगिं हत के साथ करना चाहिए। प्लेटो की मान्िता िै हक
‘अच्छी काव्ि कृ हत के हनमाशण के हलए कहव को अपने हवषि का पणू श एविं स्पष्ट बोध िोना चाहिए और उसकी अहभव्िहि
में गहतर्ील िोजना बनानी चाहिए। इसी आधार पर उन्िोंने सिंगीतकला, हचत्राकला आहद को लहलत कलाओ िं के वगश
में रखा और उनका उद्देश्ि मनोरिंजन बतािा िै। दसू रा वगश उपिोगी कला को माना िै, हजसका उद्देश्ि व्िाविाररक उपिोग
िै। उनका मानना था हक िहद काव्ि का रूप, प्रेरणा, प्रभाव आहद व्िहि को मल
ू सयि से दरू ले जाएिं तो ऐसा काव्ि
सवशथा यिाज्ि िै।

1.5.1 उपयोितावादी दृसि

उनके अनसु ार कला के वल सुख-आनिंद िा दसू रे र्लदों में किे मनोरिंजन का साधन निीं िै। प्लेटो की उपिोहगतावादी
दृहष्ट के कारण इनके हलए काव्ि में प्रेम-पक्ष का कोई मियव निीं हदखाई देता। उन्िोंने कहविों से किा हक ऐसी काव्ि
रचना निीं करनी चाहिए जो न्िाि, सयि एविं सौन्दिश के हवरुद् िो। उसके हलए उन्िोंने प्रयिेक ज्ञान, व्िविार, वस्तु आहद
को सामाहजक उपिोहगता की दृहष्ट में परखा था। प्लेटो के कला-हवषिक दृहष्टकोण की हवर्ेषता िि िै हक वि भारतीि
हचतिं न के पिाशत अनक
ु ू ल और हनकट िै। ‘उपिोहगतावादी’ दृहष्टकोण भारतीि धारणा हर्व के अहत हनकट िै। काव्ि में
नाच-गाने, सगिं ीत आहद को वे मनोरिंजन का साधन मात्र मानते थे।

1.5.2 काव्य वास्तसवक जीवन िे दूि


प्लेटो का स्पष्ट मत था हक काव्ि हसफश करुणा आहद भावों का िी प्रचार करता िै। िहद काव्ि में आए ऐसे करुण भाव-
हवर्ेषों से िम भाव-हवह्वल िोते रिे तो अपने पर आए हकसी सिंकट का मक
ु ाबला कै से करें गे? उनका मानना था हक सिंकट
के समि रोना-धोना वास्तहवक जीवन में लज्जा की बात िोती िै। हफर भला काव्ि के नािक को हवलाप करता देख कै से
5
प्रर्सिं ा की जा सकती िै? वास्तहवक जीवन में इस तरि के भाव व्िि करने में िँसी का पात्र बनना पड़ता िै। एक तरि से
हजस पररिास-प्रवृहत का िम वास्तहवक जीवन में दमन करते िैं। उसका प्रहतरूप िी काव्ि में काव्ि में िोता िै।

1.5.3 स्तुसत काव्य का महत्व


प्लेटो का मानना था हक ईिर की स्तहु त और साधजु नों का गणु गान िी आदर्श राज्ि की कल्पना में ऐसी िी कहवता के
हलए जगि थी। वे ऐसे गीहत और मिाकाव्ि को राज्ि से बहिस्कृ त करना चािते थे जो हसफश आनदिं का उपाजशन करे ।
दरअसल प्लेटो काव्ि के आकषशण तयव से आर्हिं कत थे। िद्यहप वे काव्ि हवरोधी निीं थे। उनका मत था हक कोई काव्ि
आनदिं पणू श िोने के साथ-साथ राजनीहतक हवधानों और मानव-जीवन के हलए भी उपिोगी िोता िै तो उसका राज्ि में
स्वागत िोना चाहिए। िि तथ्ि िै हक प्लेटो से पवू श काव्ि के दो प्रिोजन माने जाते रिे िैं - एक आनदिं दसू रा हर्क्षा।

1.5.4 युि का प्रभाव

प्लेटो से पवू श कहव को मिान माना जाता था। उसे उपदेर्क, मागशदर्शक, सिंत, दरू दर्ी आहद माना जाता था। िोमर को
लोग कहव के कारण मिान हर्क्षक भी मानते थे। जबहक प्लेटो कलाओ िं के प्रहत अर्हि - आकषशक को राज्ि के
अहितकर मानते थे। दरअसल ईसा- पवू श पाँचवी र्ती के बाद के हिस्से में लोगों में र्ासन सधु ार का जबरदस्त उभार था।
प्लेटो के मानस पर भी अपने िगु की भवना का बिुत प्रभाव पड़ा। वे भी अपने एथेन्स और एथेन्सवाहसिों को आदर्श
नागररक बनाना चािते थे। उनके अनसु ार मनष्ु ि के दो धमश िैं - व्िहि के तौर पर उसे सयि प्राहत के हलए प्रिास करते
रिना चाहिए। दसू रा समाज के सदस्ि के तौर पर उसे सदाचारी िोना चाहिए। वे कहवता को उसी सीमा तक िी मियव देने
के पक्षकारी थे, हजस सीमा तक वि समाज के हलए हितकारी िो।

प्लेटो की काव्ि- दृहष्ट अपने समि की रहचत काव्ि कृ हतिों के प्रभाव के कारण थी। वे इस बात से हचहिं तत रिते थे हक
जीवन में जो उदात्त िै, काव्ि में उसकी उपेक्षा िो रिी िै। िोमर के काव्ि से िी छाती पीटते, रोते नािक का उदािरण लेते
िुए वे अपनी बात स्पष्ट करते िैं हक वास्तहवक जीवन में इसे करने से िमारा हववेक िमें रोकता िै। ऐसा निीं िै हक प्लेटो
कहवता का परू ी तरि से हतरस्कार करना चािते थे। अहपतु वे अपनी आदर्श राज्ि की कल्पना में उस कहवता को स्थान
देना चािते थे, जो आदर्श व्िहियव का हचत्रण और हनमाशण करे । अपने िगु की जरूरत के अनसु ार वे काव्ि और कला

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को उसके बािरी सिंदु र रूप से निीं बहल्क उसके कल्िाणकारी रूप के कारण स्थान देना चािते थे। दरअसल उनकी दृहष्ट
वस्तपु रक थी हजसमें अपने समाज की हचन्ता का भाव हनहित था।

वे त्रासदी तथा कॉमेडी में अनप्रु िि


ु हवषिों को लेने के कारण इनकी हनिंदा करते थे। प्लेटो काव्ि जगत और िथाथश जगत
में अलगाव निीं कर पाए। हजसके कारण वे त्रासदी का सहृदि के मन पर पड़ने वाला व्िापक प्रभाव निीं देख पाए। प्लेटो
अनक
ु रण की बात करते िुए उसके रचनायमक-पक्ष की उपेक्षा करते िैं। उनके हलए अनक
ु रण एक िाहिं त्रक प्रहक्रिा िै। जो
जड़ िै तथा रचनायमकता से अलग िै।

त्रासदी और रस की भारतीि अवधारणा को साथ रखकर बिुत सी बातें स्पष्ट िो जाती िैं। त्रासदी को लेकर जो हचन्ताएँ
प्लेटो ने खड़ी की उनका उत्तर भारतीि मनीहषिों द्वारा रस की हस्थहत सख
ु ायमक तथा दख
ु ायमक दोनों मानने से हमलता
िै। भारतीि हचिंतकों ने स्पष्ट हकिा िै हक जब सब रसों को सख
ु ायमक बतािा जाता िै तो वि प्रतीहत के हवपरीत िै। काव्ि
के अहभनि में प्रात हवभाव आहद से उयपन्न िुआ करुण, रौि, बीभयस, आस्वादन करने वालों की कुछ अवणशणीि सी
क्लेर् दर्ा को उयपन्न कर देता िै। इसी तरि भिानक आहद दृश्िों से सामाहजक के मन घबरािट िोती िै। िहद सभी रस
सख
ु ायमक िोते तो सुख से हकसी को उद्वेग निीं िोता। काव्ि-हचिंतन करते समि रचना द्वारा प्रदत्त उदात्त भावों पर ध्िान
देना चाहिए।

1.6 सनष्कर्श

प्लेटो ने पिली बार काव्ि की सामाहजक उपिोहगता के प्रश्न को हवि के सामने रखा। उनकी आदर्श काव्ि की पररभाषा
में सामाहजक-कल्िाण का सवोपरर स्थान था। काव्ि की आलोचना के क्षेत्र में िि नैहतक आग्रि व्िापक प्रभाव रखता
िै। प्लेटो के बाद के लगभग सभी आलोचक जब आलोचना सामाहजकता, मनोहवज्ञान, नैहतकता आहद हवषिों पर जब
अपने हवचार रखते िैं तो प्लेटो की सामाहजकता उपादेिता का हसद्ािंत उनके हचिंतन के सामने रिता िै। उनके अनसु ार,
वास्तहवक सत्ता भौहतक निीं बहल्क आध्िाहयमक िै। इस प्रकार प्लेटो के हचतिं न का स्वरूप बिुत व्िापक िै। हजसका
प्रभाव व्िापक स्तर पर परू े हवि के हवचार जगत पर पड़ा।

7
1.7 अभ्याि प्रश्न

1. प्लेटो के जीवन पररचि पर हटप्पणी हलहखए?


2. प्लेटो के काव्ि-हचिंतन पर प्रकार् डाहलए?
3. िरू ोपीि काव्ि हचिंतन में अरस्तू का मियव बताइए?

1.8 िदां भश ग्रन्थ िसू च

 पाश्चायि काव्िर्ास्त्र - देवन्े िनाथ र्माश

 प्लेटो के काव्ि हसद्ािंत - डॉ. हनमशला जैन


 साहियि हसद्ािंत- रमाअवध हद्ववेदी

 पाश्चायि साहियि हचिंतन- हनमशला जैन,कुसमु बािंह िा

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इकाई – 2

प्लेटो : अनुकरण सिद्ाांत

इकाई की रुपरेखा
2.0 उद्देश्य
2.1 प्रस्तावना
2.2 प्लेटो का अनुकरण सिद्ाांत
2.2.1 अनक
ु रण की अवधारणा
2.2.2 प्लेटो के काव्य का प्रयोजन
2.2.3 काव्य सवरोधी दृसि
2.2.4 प्लेटो के मत का िार
2.3 सनष्कर्ष
2.4 अभ्याि प्रश्न
2.5 िांदर्ष ग्रांथ िसू ि

2.0 उद्देश्य

इस इकाई के अध्ययन के पश्चात छात्र -

 प्लेटो द्वारा दिए काव्य में अनक


ु रण दसद्ाांत को समझ
 प्लेटो का अपने दसद्ाांत में दिस काव्य सत्य का उद्घाटन दकया उससे पररदित हो सकें गे।

1
2.1 प्रस्तावना

यनू ान के महान िार्शदनक प्लेटो अपने समय के मौदलक दिांतन में के कारण काफी प्रदसद् हुए। उनके मत को उनके
अनक
ु रण दसद्ाांत में िेखते हैं। प्लेटो के मत से सत्य ‘प्रत्यय’ है। उस सत्य प्रत्यय का अनक
ु रण प्रकृ दत है और उस प्रकृ दत
का अनक
ु रण कलाकृ दत अथवा कदवता में प्रकट होता है। िो अतां र सत्य और असत्य के बीि है, ज्ञान और धारणा के
बीि है वही अदततत्व और आभास के बीि है। कला का तवभाव अनक
ु रणात्मक है अथाशत् असत्यमल
ू क है। अनक
ु रण
का अनक
ु रण होने के कारण कदवता सत्य से तीन गनु ा िरू हो िाती है।

2.2 प्लेटो का अनुकरण सिद्ाांत

2.3.1 अनक
ु रण की अवधारणा
प्लेटो के काव्य और कला सबां धां ी दसद्ातां को समझने के दलए उसका पलगां (बेड) का उिाहरण हमारी काफी सहायता
करता है। िब हम एक पलांग बनवाना िाहे तो एक आिर्श दित्र हमारे दविार( आइदडया) ख्याल या कल्पना में होता है।
दफर एक दित्र वह बनाता है दिसे दित्रकार उके रता है और दिसके आधार पर बढ़ई पलांग तैयार करता है। सत्य या
आिर्श तो व्यदि के दविार या आइदडया में है। इसदलए दिस वततु की रिना बढ़ई ने की है, वह दविार में अवदतथत
कृ दत से तीन सोपान िरू है। प्लेटो यह मानकर िला है दक ईश्वरीय या प्राकृ दतक सत्य का दित्र नई रिनात्मक कृ दत नहीं
है, यह तो सत्य की अनक
ु ृ दत है। दित्रकार या कदव द्वारा प्रतततु गल
ु ाब का दित्र प्राकृ दतक पष्ु प की अनक
ु ृ दत है यह वाततव
में पर-कृ दत या िसू रे की कृ दत है िो सत्य नहीं है।
All art iimitates nature..and
is thrice removed from reality
प्लेटो के अनसु ार आिर्श तो दविार या प्रत्यय (Idea) में दतथत है। इस प्रकार कलाकार उस आिर्श की अनक
ु ृ दत प्रतततु
करता है िो दविार में अवदतथत होता है। कलाकार सत्य का ही अनक
ु रण नहीं करता, यह तो अनक
ु रण का भी अनक
ु रण
प्रतततु करता है। इसीदलए कलाकार और कदव सत्य से तीन सोपान िरू होते हैं। अग्रां ेिी र्ब्ि ‘ आइदडया’ से बने
‘आइदडयल’ से बात अदधक तपष्ट हो िाती है। आइदडयल या आिर्श दविार का दवषय है।

2
ईश्वर और सत्य एक ही तत्व के िो नाम थे इन िार्शदनकों की मख्ु य तथापना यही थी दक ईश्वर या सत्य एक है, उसके
अनेक रूप नहीं हो सकते। तत्कालीन काव्यों और नाटकों में ऐसी कथाओ ां की भरमार थी दिनमें दवदवध िेवता परतपर
ईष्याश, द्वेष िैसी िभु ाशवना से ग्रतत रहते तथा मनष्ु यों से भी छद्म पणू श व्यवहार करते थे। सत्य पर अदडग दवश्वास रखने वाले
इन िार्शदनकों ने बहुिवे वाि पर र्क
ां ा उठाईतथा इस प्रकार के सादहत्य की भत्सशना की। ऐथन्स दनवासी प्लेटो ने िार्शदनक
दितां न को प्रधानता िेने वाले अपने नगर की तपाटाश के बलर्ाली एवां यद्
ु कुर्ल नागररकों के हाथों परािय का अनभु व
दकया था इसदलए वह यह सोिने को बाध्य हो गया दक ऐथन्स के समाि में मल
ू भतू दनबशलता का कारण क्या है।” प्लेटो
की 8 प्रदसद् कृ दतयों में ररपदब्लक की ििाश सवाशदधक होती है।
वाततव में प्लेटो का मख्ु य उद्देश्य एक आिर्श राज्य की तथापना करना था, दिसे दित्रकार रांगो द्वारा दनदमशत करता है,
कदव र्ब्िों द्वारा। यह दित्र कलाकार या कदव द्वारा अनभु तू एक फूल की अनभु दू त है िबदक सवशश्रेष्ठ या आिर्श फूल तो
कहीं दविार या आइदडया में रहा करता है।
कलाकार और कदव प्रकृ दत की अनक
ु ृ दत या नकल दकया करते हैं इसीदलए उनकी रिना को ‘सत्य’ नहीं माना िा
सकता। वाततदवक सत्य तो ईश्वरीय है। कलाकार और कदव अपनी कल्पना द्वारा ऐसा दनमाशण करते हैं िो मल
ू सत्य से
बहुत िरू होता है।
इस प्रकार प्लेटो कभी कल्पना को कदव की दवदर्ष्ट प्रदतभा ना मानकर ऐसी कुवृदि के रूप में िेखता है िो कदव को
असत्य दित्रण के दलए प्रेररत करती है तथा मनष्ु यों में कुकमश को प्रोत्सादहत करती है। इसी कल्पना के सहारे कदव ऐसी
कृ दत की रिना करते हैं िो सत्य होती है, अर्भु भी। िसू रे र्ब्िों में वे कदवता को सत्य नहीं मानते।वे कलाकृ दत को
सृिनात्मक कृ दत ने मानकर कदव को मात्र अनक
ु रण किाश या नकलिी करार िेता है। िब प्लेटो से पछ
ू ा िाता है दक
होमर िैसे कदवयों का िोष क्या है? तो प्लेटो अपने दर्ष्यों से कहता है, “हमारा (सक
ु रात और उसके दर्ष्यों या सहधदमशयों
का)उद्देश्य एक आिर्श राज्य का दनमाशण करना है। सादहत्य की आलोिना या उसकी रिना से हमें कुछ लेना िेना नहीं
है। होमर एक महानतम कदव हो सकता है दकांतु हम उसे अपनी ररपदब्लक में कोई तथान नहीं िेंग।े ”
आदखर इन लेखकों का िोष क्या है? प्लेटो प्रखर तवर में उिर िेता है- वे झठू कहते हैं और यही नहीं वह एक बरु ा झठू
कहते हैं।”(They tell a lie and they tell a bad lie)। झठू तो इस कारण दक वे िो कुछ कहते हैं, वह वाततदवक
नहीं होता। वह काल्पदनक होता है, सत्य की अनक
ु ृ दत होता है। ‘बरु ा’ इसदलए दक उनके लेखन का बच्िों और यवु ाओ ां

3
के िररत्र पर बरु ा प्रभाव पड़ता है। प्लेटो को अपने राज्य या ररपदब्लक के दलए दिस प्रकार के सादहत्य की आवश्यकता
है, उसी को वे र्भु तवीकार करते हैं। क्या इन सभी लेखकों का सारा सादहत्य बदहष्कृ त माना िाएगा? प्लेटो इस प्रश्न का
उिर िेते हुए अपनी बात तपष्ट करते हैं। वह सादहत्य की परत के दलए उपयि
ु िाांिकताशओ ां की दनयदु ि करना िाहते हैं।
इनकी रिनाओ ां के ऐसे अर्
ां दिनमें सत्य अथाशत ईश्वर की प्राथशनाएां हो, या दफर ऐसे अांर् िो बच्िों के िररत्र पर र्भु
प्रभाव डालें, वही ररपदब्लक के दलए तवागत योग्य है।उपयशि
ु ििाश से यह तपष्ट होता है प्रेटो काव्य और कदवता को
अनक
ु रण या नकल (Imitation)मानता है। प्लेटो कदव की कल्पना र्दि को बरु ाई की िड़ मानता है क्योंदक कल्पना
के सहारे ही कलाकार और कदव मनगढ़तां कलाकृ दतयाां या कदवताएां गढ़ा करते हैं।
‘ररपदब्लक’ में प्लेटो ने तपष्ट कहा है दक भाव अथवा दविार ही आधारभतू सत्य है। काव्य की दृदष्ट से प्लेटो काव्य को
अनक
ु ृ दत की भी अनक
ु ृ दत मानते थे। दिसे मल
ू सत्य से दतगनु ा िरू मानते थे। ऐसा इसदलए भी हुआ क्योंदक वे अपने युग
की िार्शदनक दिांताओ ां के पररप्रेक्ष्य में काव्य की व्याख्या कर रहे थे। यही वह कारण है दक वे काव्य को अनक
ु ृ दत की भी
अनक
ु ृ दत का ििाश िेते दिखाई िेते हैं। प्लेटो अनक
ु रण को समतत कलाओ ां की मौदलक दवर्ेषता मानते थे। इस दृदष्ट से
प्लेटो की दृदष्ट में समतत कदव और कलाकार अनक
ु ारणकताश मात्र है। उनके अनसु ार अनक
ु रण वह प्रदकया है, िो वततओ
ु ां
को उनके यथाथश रूप यादन मल
ू में प्रतततु न करके आिर्श रूप में प्रतततु करती है इसदलए ही काव्य सत्य से िरू होता है।

प्लेटो ने अनक
ु रण और कला के ररश्ते पर दविार करते हुए कहा है दक बढ़ई उस अथों में मेज़ और पलांग की सृदष्ट नहीं
करता दिन अथों में ईश्वर करता है। कलाकार तो ईश्वर की सृदष्ट की अनक
ु ृ दत मात्र करता है। उनका मानना था दक सृदष्ट
की आकृ दत का मल
ू दनमाशता तो ईश्वर ही है। कलाकार तो मात्र इस सृदष्ट से अनक
ु रण करके अपना अनक
ु ायश करता है।
इस प्रकार भौदतक िगत द्वारा दकया गया सृिन परम सत्य नहीं हो सकता। ईश्वर की िेतना में पहले से उपदतथत प्रत्यय
या दविार रूप में दनदमशत आकृ दतयों का अनक
ु रण ही है। इस दृदष्ट से वे काव्य को मल
ू न मान कर अनक
ु ायश मानते थे। िो
मल
ू सृदष्ट से िरू होता है और दिसका ततर भी कम होता है।

एक प्रकार से प्लेटो अनक


ु रण की बात करते हुए उसके रिनात्मक - पक्ष की उपेक्षा करते हैं। उनके दलए अनक
ु रण एक
याांदत्रक प्रदिया है। िो िड़ है तथा रिनात्मकता से अलग है। उनके दलए रिनाकार तो दसफश ईश्वर है। िादहर तौर पर इस
तरह का अनक
ु रण अपेक्षाकृ त कमतर होगा। दिसे वे इस रूप में तपष्ट करते हैं - यदि कलाकार को उन वततुओ ां का सच्िा
ज्ञान भी होता, दिनका वह अनक
ु रण करता है तो अनक
ु रण के बिाय उनके करण अथाशत रिना में कहीं अदधक उत्साह
4
होता है। इस प्रकार प्लेटो होमर से लेकर अपने समय तक के कदवयों को सत्य से िरू , अनक
ु ताश की सांज्ञा िेता है। उनका
दविार था दक अनक
ु रण में दसद् होने के कारण कदव कई कलाओ ां के रांगों को ही अपने पिों और वाक्यों के रूप में सृदित
करता है। उसमें सांगीत आदि कलाओ ां का सांयोग हो िाता है और काव्य आकषशक प्रतीत लगने लगते हैं। वे मानते थे दक
यदि काव्य या रिना से उसका मोहक तत्व सांगीत आदि बाहर दनकाल दिया िाए तो वह प्रभावर्न्ू य हो िाती है। उनके
दलए अनक
ु रण मनोरांिन का ही एक रूप है। उसे वे गभां ीर कायश नहीं मानते।

2.2.2 प्लेटो के काव्य का प्रयोजन


1. सत्य का उद्घाटन
2. मानव कल्याण एवां राष्रोंत्थान
3. आनांि प्रिान करना
4. दर्क्षा िेना।
2.2.3 काव्य सवरोधी दृसि

1. नैदतक आधार
2. भावात्मक आधार
3. बौदद्क आधार
4. र्द्
ु उपयोदगतावािी
2.2.4 प्लेटो के अनक
ु रण सिद्ाांत के महत्वपण
ू ष पहलू (मत का िार )
प्लेटो के अनक
ु रण सबां धां ी दविारों का अध्ययन करने पर कुछ मल
ू बातें इस प्रकार दनकाल कर आती हैं -

 प्लेटो काव्य का महत्व उसी सीमा तक तवीकार करता है, िहाां तक वह गणराज्य के नागररकों में सत्य,सिािार की
भावना को प्रदतदष्ठत करने में सहायक हो।

 कला और सादहत्य की कसौटी उसके दलए ‘आनिां एवां सौंियश’ न होकर उपयोदगतावािी थी। वे कहते हैं -
“िमिमाती हुई तवणशिदटत अनपु योगी ढ़ाल से गोबर की उपयोगी टोकरी अदधक सिांु र है। उसके दविार से कदव
या दित्रकार का महत्व मोिी या बढ़ई से भी कम हैं, क्योंदक वह अनक
ु ृ दत मात्र प्रतततु करता है।“
5
 सत्य रूप तो के वल दविार रूप में अलौदकक िगत में ही है। काव्य दमथ्या िगत की दमथ्या अनक
ु ृ दत है। इस प्रकार
वह सत्य से िोगनु ा िरू है। कदवता अनक
ु ृ दत और सवशथा अनपु योगी है, इसदलए वह प्रर्सां नीय नहीं अदपतु िडां नीय
है।

 प्लेटो कहते हैं दक कदव अपनी रिना से लोगों की भावनाओ ां और वासनाओ ां को उद्वेदलत कर समाि में िबु शलता
और अनािार के पोषण का भी अपराध करता है। कदव अपनी कदवता से आनांि प्रिान करता है परांतु िरु ािार एवां
कुमागश की ओर प्रेररत करता है इसदलए राज्य में सव्ु यवतथा हेतु उसे राज्य से दनष्कादषत कर िेना िादहए।

 प्लेटो का मानना था दक दकसी समाि में सत्य, न्याय और सिािार की प्रदतष्ठा तभी सांभव है िब उस राज्य के
दनवासी वासनाओ ां और भावनाओ ां पर दनयत्रां ण रखते हुए दववेक एवां नीदत के अनसु ार आिरण करे ।

 प्लेटो कलाकार को अनक


ु ताश की भदू मका तक सीदमत रखते थे। वे कदव की तल
ु ना में एक दिदकत्सक, सैदनक या
प्रर्ासक का महत्व अदधक मानते हैं। वे िनु ौती िेते हुए होमर से पछ
ू ना िाहते हैं दक क्या कदवता दकसी को रोगमि

कर सकती है? क्या कदवता से कोई यद्
ु िीता िा सकता है? क्या कदवता से श्रेष्ठ र्ासन तथादपत दकया िा सकता
हैं?

 काव्य को दमथ्या िगत की ऐसी दमथ्या अनक


ु ृ दत मानते थे, दिसकी सत्य से तीन गणु ी िरू ी है। काव्य का उत्स दिस
दविार से हुआ वह दविार रूप में अलौदकक िगत में पहले से दवद्यमान है।

 प्लेटो के अनसु ार मानव के व्यदित्व के तीन अतां ररक तत्व होते हैं -बौदद्क, ऊिशतवी एवां सतृष्ण। दिसे वे ईश्वरीय
मानते थे।

 काव्य दवरोधी होने के बावििू प्लेटो ने िेवताओ ां के स्त्रोत वाले काव्य और वीर परुु षों के गणु गान वाले अनक
ु रण
को श्रेष्ठ महत्वपणू श एवां उदित माना है।

6
2.3 सनष्कर्ष

कुल दमलाकर प्लेटो अनक


ु रण का दवरोध िो तरह से करते हैं - पहला िर्शन के आधार पर, िसू रा लोककल्याण या राज्य
के दहत को िेखते हुए। प्लेटो एक महान दिांतक और िार्शदनक हैं। काव्य के सांिभश में उन्होंने िो दविार व्यि दकए हैं, वे
आि तक सांिभशवान एवां दविारणीय हैं।

2.4 अभ्याि प्रश्न

1. प्लेटो के अनक
ु रण दसद्ाांत पर प्रकार् डादलए?
2. प्लेटो के काव्य दितां न की महत्वपणू श बातों का उल्लेख कीदिए?
3. प्लेटो के दविारों का बाि के िार्शदनकों पर पड़े प्रभावों का उल्लेख कीदिए?

2.5 िांदर्ष ग्रांथ िसू ि


 पाश्चात्य काव्यर्ास्त्र - िेवन्े रनाथ र्माश

 प्लेटो के काव्य दसद्ाांत - डॉ. दनमशला िैन

 सादहत्य दसद्ाांत- रमाअवध दद्ववेिी


 पाश्चात्य सादहत्य दितां न- दनमशला िैन,कुसमु बादां ठया

7
इकाई – 3
अरस्तू : जीवन पररचय

इकाई की रुपरेखा
3.0 उद्देश्य
3.1 प्रस्तावना
3.2 अरस्तू का जीवन पररचय
3.3 अरस्तू का काव्य चचिंतन
3.4 चनष्कर्ष
3.5 अभ्यास प्रश्न
3.6 सदिं र्ष ग्रथ
िं सचू च
3.0 उद्देश्य

इस इकाई को पढ़कर आप :

 अरस्तू का जीवन पररचय जान सकें गे।

 अरस्तू के काव्य चचतिं न पर अपनी समझ बढ़ा पाएगिं ।े

 अरस्तू के अनक
ु रण सबिं धिं ी चवचारों को समझ सकें गे।

1
3.1 प्रस्तावना

अरस्तू (374 ई.प.ू -322 ई. प.ू ) प्रचसद्ध यनू ानी दार्शचनक प्लेटो के चर्ष्य थे. पाश्चात्य ज्ञान-चवज्ञान के क्षेत्र में अरस्तू का
महान योगदान है, वे चसकिंदर महान के गरुु के रूप में चवख्यात है। अरस्तू ने चवचवध चवषयों पर लगभग 400 ग्रिंथों की
रचना की। उनके साचहत्य सिंबिंधी चवचारों का आधार उनके चलखे दो ग्रिंथ- Poetics (काव्यर्ास्त्र) और Rhetric (भाषा)।

प्लेटो के चचिंतन से पाश्चात्य काव्य चचिंतन की परिंपरा पर चवद्वान जान चवचार करते हैं। लेचकन सही अथों में अरस्तू से ही
पाश्चात्य काव्य चचिंतन की परिंपरा प्रारिंभ होती चदखाई देती हैं। अरस्तू प्लेटो के चर्ष्य, इनकी मान्यताओ िं ने काव्य जगत
का ध्यान आकृ ष्ट चकया। जबचक प्लेटो का चचतिं न राजनीचत एविं नौचतकता के बधिं न से बधिं ा हुआ था। इस सदिं भश में अरस्तू
के दो चसद्धातिं ों का स्मरण चकया जाता है- अनक
ु रण चसद्धातिं तथा चवरे चन चसद्धातिं ।

अरस्तू का मानना है चक कला प्रकृ चत को अनक


ु रण द्वारा पणू तश ा प्रदान करती है। वह कला को वस्तु जगत से ज्यादा सदिंु र
मानते थे। इसके चलए अरस्तू सभिं ाव्य रूप आदर्श रूप की कल्पना करते हैं। उनके चलए अनक
ु रण के वल स्थल
ू और
तथ्यपरक चचत्रण नहीं है। उसमें कचव की भावनाओ िं और कल्पनाओ िं का भी योग रहता है। देखा जाए तो पाश्चात्य
काव्यर्ास्त्र में अनक
ु रण चसद्धािंत का प्राय: वही स्थान है,जो भारतीय काव्यर्ास्त्र में रस चसद्धािंत का।

अरस्तू चवरे चन को त्रासदी से जोड़कर देखते हैं। उनके अनसु ार, साचहत्य में दख
ु ािंत नाटक का महत्व इसचलए है चक उसके
द्वारा मनोभावों का चवरे चन सफलतापवू क
श हो जाता है। अरस्तू के अनसु ार, त्रासदी दर्शकों के मन में करुणा एविं त्रास
(द:ु ख) की भावनाओ िं को उकसाकर उनका चवरे चन कर देती है। करुण एविं त्रास से आवेचर्त व्यचियों को ‘र्चु द्ध का
अनभु व’ प्रदान करने की प्रचिया है, जो अिंतत: आनिंद प्रदान करती है। इस पाठ में आपको अरस्तू के काव्य चचिंतन जैसे
त्रासदी और अनक
ु रण सिंबिंधी अवधारणा, अरस्तू तथा प्लेटो के अनक
ु रण सिंबिंधी चवचारों का तल
ु नात्मक अध्ययन,
अरस्तू के चचन्तन पर बचू र (s.h.butcher) की व्याख्या तथा भारतीय काव्यर्ास्त्र के अवधारणा अनचु मचत से अनक
ु रण
चसद्धािंत का तल
ु नात्मक चववेचन की जानकारी दी जा रही है।

2
3.2 अरस्तू का जीवन पररचय

अरस्तू का जन्म मकदनू ीया के स्तचगरा नामक नगर में 384 ई. प.ू हुआ था। उनके चपता चसकिंदर के चपतामह - अचमतिं ास
के दरबार में चचचकत्सक थे। प्रचतचित पररवार में जन्में अरस्तू बाल्यकाल से ही अत्यिंत मेधावी और कुर्ाग्र बचु द्ध के थे।
र्रू
ु से ही वे दार्शचनक स्वभाव के थे। वे प्रचसद्ध दार्शचनक प्लेटो के परमचप्रय चर्ष्य थे, चजन्हे प्लेटो अपने चवद्यापीठ का
मचस्तष्क भी कहा करते थे। उन्हें चसकिंदर महान का गरुु होने का भी गौरव प्राप्त है। प्रचचलत ज्ञान-चवज्ञान के लगभग सभी
क्षेत्रों पर उनका समान अचधकार था। अररतू ने एथेंस के समीप ‘अपोलो’ नामक स्थान पर ‘लीचसयसज’ नाम से अपना
एक चनजी चवद्यापीठ स्थाचपत भी चकया था। यही कारण है चक अररतू को पाश्चात्य ज्ञान-चवज्ञान की चवधाओ िं का आचद
आचायश माना जाता है। उनके दो ग्रथिं ों से उन्हें दचु नया में ख्याचत चमली।

पहला ‘तेखनेस ररतेररके स’ जो भाषण कला से सबिं चिं धत है। चजसका अनवु ाद ‘काव्यर्ास्त्र (poetics) चकया गया। यद्यचप
काव्यर्ास्त्र का यह ग्रथिं वृहत ग्रथिं न होकर एक छोटी-सी पचु स्तका के रूप में है, चजसमें सीधे कोई व्यवचस्थत -व्याख्याचयत
र्ास्त्रीय चसद्धािंत चनरूपण नहीं है। बचल्क ऐसा लगता है चक इस ग्रिंथ में उनके द्वारा अपने चवद्यापीठ में पढ़ाने के चलए तैयार
की गई पाठ्य सामग्री है। चजन्हें उनके चर्ष्यों ने सिंगहृ ीत कर चदया होगा। लेचकन कुल चमलाकर यह एक अत्यिंत महत्वपणू श
सिंदभश ग्रिंथ बनकर हम सबके सामने है।

3.3 अरस्तू का काव्य चचतिं न

अरस्तू प्लेटो के चर्ष्य हैं लेचकन उनकी मान्यताएिं उनके गरुु से सवशथा चभन्न थी। अरस्तू ने महाकाव्य और त्रासदी के
स्वरूप का चवस्तृत चववेचन चकया और काव्य जगत को अनक
ु रण चसद्धािंत तथा चवरे चन चसद्धािंत नामक दो महत्वपणू श
चसद्धािंत चदए। अरस्तू ने काव्य चचन्तन को मख्ु यत: दो ृषचष्टयों से देखने का प्रयास चकया है। उन्होंने प्लेटो की मान्यताओ िं
का खडिं न करते हुए कहा चक कला प्रकृ चत का सृजनात्मक अनक
ु रण है और काव्य से श्रोताओ िं की दवु चशृ ियों का पोषण
नहीं, चवरे चन होता है।

काव्यर्ास्त्र की रचना के मल
ू में अरस्तू के उद्देश्य रहे हैं-

3
एक तो अपनी ृषचष्ट से यनू ानी काव्य का वस्तगु त चववेचन-चवश्लेषण- चनरूपण और दसू रा अपने गरुु प्लेटो द्वारा काव्य पर
चकए गए आक्षेपों का समाधान करना। अरस्तू ने चजन काव्यर्ास्त्र चसद्धािंतों का प्रचतपादन चकया, उनमें से तीन चसद्धािंत
चवर्ेष महत्व रखते हैं-

1. अनक
ु रण चसद्धािंत
2. त्रासदी - चवरे चन
3. चवरे चन चसद्धातिं

अपने 61 वषश के जीवनकाल में अरस्तू ने तकश र्ास्त्र, तत्वमीमािंर्ा, मनोचवज्ञान, राजनीचतर्ास्त्र, आचार-र्ास्त्र,
भौचतकर्ास्त्र, ज्योचतचवशज्ञान तथा साचहत्यर्ास्त्र जैसे चवषयों पर लगभग 400 ग्रथिं ों की रचना की थी।

काव्यालोचन

1. अरस्तू ने कचव की चनमाशण क्षमता पर तो बल चदया है पर जीवन के चवचभन्न अनभ


ु वों से चनचमशत कचव की अतिं श्चेता को
महत्व नहीं चदया है।
2. अरस्तू ने आतिं ररक अनभ
ु चू तयों के भी अनक
ु रण की बात की है, जबचक इनका अनक
ु रण चकया जाना असिंभव है।
3. डॉ. नगेंद्र के अनस
ु ार - “अररतू का ृषचष्टकोण अभावात्मक रहा है तथा त्रास और करुणा का चववेचन उसकी चरम
चसचद्ध रही है।

3.4 चनष्कर्ष

कह सकते हैं चक अररतू ने सवशप्रथम काव्य एविं कला की सचु नचश्चत और िमबद्ध व्याख्या की इसचलए उन्हें पाश्चात्य
काव्यर्ास्त्र का आचद आचायश कहा जाता है। उन्होंने काव्य कला को राजनीचत एविं नैचतकता के बिंधन से पृथक कर उसमें
सौन्दयश की प्रचतिा कर उसे काव्य चचिंतन के क्षेत्र में महत्वपूणश स्थान प्रदान चकया।

4
3.5 अभ्यास प्रश्न

1. अरस्तू के जीवन पररचय पर प्रकार् डाचलए?


2. अरस्तू का काव्य चचिंतन पर चटप्पणी चलचखए?
3. अरस्तू का काव्य चचिंतन के महत्व को रे खािंचकत कीचजए?

3.6 सदिं र्ष ग्रथ


िं सचू च
 साचहत्य चसद्धािंत - डॉ. रामअवध चद्ववेदी

 पाश्चात्य काव्यर्ास्त्र - डॉ. देवन्े द्रनाथ र्माश

 अरस्तू का काव्यर्ास्त्र - डॉ. नगेन्द्र

5
इकाई – 4
अरस्तू का अनुकरण सिद्ाांत

इकाई की रुपरेखा
4.0 उद्देश्य
4.1 प्रस्तावना
4.2 अरस्तू का अनक
ु रण सिद्ाांत
4.2.1 अनुकरण : अर्थ एवां स्वरूप
4.2.2 अनुकरण की प्रसिया
4.2.3 अनुकरण िबां ध
ां ी अवधारणा
4.2.4 अनुकरण सिद्ाांत का महत्व
4.2.5 आलोचकों की दृसि में अनुकरण सिद्ाांत
4.2.6 अनुकरण क्या, सकिका और कै िे?
4.2.7 रचनाकार और इसतहािकार अनक
ु रण सिद्ाांत के पररप्रेक्ष्य में
4.2.8 अनुकरण में कला और प्रकृसत का अत:िांबांध
4.2.9 अनुकूलन का अनुकरण
4.3 अनुकरण सिद्ाांत : िमग्र सवचार सबन्दु
4.4 अरस्तू तर्ा प्लेटो के अनुकरण िांबांधी सवचारों का तुलनात्मक अद्ययन
4.5 सनष्कर्थ
4.7 अभ्याि प्रश्न
4.8 िांदर्थ ग्रांर् िसू च

1
4.0 उद्देश्य

प्रस्ततु इकाई से छात्रों को -

 अरस्तू के अनक
ु रण के विषय में जानकारी प्राप्त होगी।
 अरस्तू अनक
ु रण की महत्ता से पररवित होंगे।

4.1 प्रस्तावना

अरस्तू का मानना है वक कला प्रकृ वत का अनक


ु रण है। िह प्रकृ वत को पणू तण ा प्रदान करती है। हम वकसी िस्तु को वजस
रूप में देखना िाहते हैं, उसे िह रूप कला ही देती हैं। अत: कला िस्तु जगत से ज्यादा सुंदु र है। काव्य प्रकृ वत को पणू तण ा
प्रदान करता है। कवि या कलाकार िस्तु को प्रतीयमान रूप में भी विवत्रत कर सकता है, सुंभाव्य रूप में भी और आदर्ण
रूप में भी। अत: अनक
ु रण के िल स्थल
ू और तथ्यपरक वित्रण नहीं है। उसमें कवि की भािनाओ ुं और कल्पनाओ ुं का
भी योग रहता है। अग्रुं ेजी का ‘इवमटेर्न’ र्ब्द नकल करने के अथण में प्रयक्त
ु होता है, परुंतु अरस्तू का अनक
ु रण वसद्ाुंत
का प्राय: िही स्थान है, जो भारतीय काव्यर्ास्त्र में रस वसद्ातुं का। अरस्तू अनक
ु रण को सभी कलाओ ुं का मल
ू मानते
हैं।

4.2 अरस्तू का अनुकरण सिद्ाांत

4.2.1 अनक
ु रण : अर्थ एवां स्वरूप

अनक
ु रण र्ब्द यनू ानी भाषा के ‘मीमेवसस’ (Mimesis) र्ब्द का वहन्दी पयाणय है । िस्ततु : वहन्दी में यह र्ब्द अग्रुं ेजी
भाषा के (Imitation) से रूपाुंतररत होकर आया है। अरस्तू से पिू ण प्लेटो ने अनक
ु रण वसद्ातुं का वििेिन वकया और
यह स्थावपत वकया वक काव्य व्याज्य है, क्योंवक ईश्वर ही सत्य है इसकी अनक
ु ृ वत सुंसार है और सुंसार की अनक
ु ृ वत काव्य
है। इस प्रकार काव्य अनक
ु रण का अनक
ु रण है। दसू रे र्ब्दों में -अनक
ु रण सदैि अधरू ा होता है अत: सुंसार अद्णसत्य है
और काव्य िौथाई तीन - िौथाई झठू है इसवलए व्याज्य है।

िस्ततु : प्लेटो ने अनक


ु रण का प्रयोग स्थल
ू अथण में वकया और इस आधार पर काव्य के तीन भेद वकए-

2
1. नाट्यात्मक काव्य
2. असत् काव्य और
3. सत् काव्य

अरस्तू ने भी अनक
ु रण के वसद्ाुंत को इसी रूप में वलया है, वकन्तु इसने अपनी कल्पना से इसमें नया रुंग भर वदया तथा
काव्य की महत्ता की पनु स्थाणवपत करने में महत्िपणू ण योगदान वदया।

अनक
ु रण र्ब्द का प्रयोग:
अरस्तू अनक
ु रण र्ब्द का प्रयोग वकस अथण में वकया इसकी व्याख्या उनके टीकाकार अपने-अपने ढुंग से करते है।
प्रोफे सर बिू र के अनसु ार - अरस्तू के द्वारा प्रयक्त
ु अनक
ु रण का अथण है सादृश्य, विधान के द्वारा मल
ू िस्तु का पनु राख्यान।
प्रोफे सर मरे ने बताया है, “अनक
ु रण अथण सजणना का अभाि नहीं अवपतु पनु सणजनण ा है।

अरस्तू ने काव्य को सौन्दयण दृवि से देखा और इसे दार्णवनक, राजनीवतक एिुं नीवतर्ास्त्र के बधुं न से मक्त
ु वकया। उनके
र्ब्दों में -“Art is the imitation of Nature” अथाणत कला प्रकृ वत की अनक
ु ृ वत है। प्रकृ वत से उसका अवभप्राय:
जगत के बाह्य गोिर रूप के साथ - साथ उसके आतुं ररक रूप (काम, क्रोध आवद मनोविकार) आवद से भी है।

अरस्तू ने हूबहू नकल को अनुकरण नहीं माना है। उनके अनुसार -“प्रकृ वत के अनेक दोष और प्रभाि भी अनक
ु ृ वत की
प्रवक्रया से कला द्वारा परू े वकए जाते हैं।“ उनके र्ब्दों में -

“Generally Art Partly completes what nature can not”

अिरक्रामी ने अरस्तू के तकण को स्पि करते हुए वलखा है-“यवद कविता प्रकृ वत का के िल दपणण होती तो हमें उससे कुछ
अवधक नहीं दे सकती थी जो प्रकृ वत देती है। पर तथ्य यह है वक कविता का आस्िादन इसवलए करते हैं, क्योंवक िह हमें
िह भी प्रदान करती है जो प्रकृ वत नहीं दे सकती है।“

अत: अनक
ु रण को मात्र नकल नहीं कहा जा सकता। अनक
ु रण वसद्ाुंत से इवतहासकार और कवि का भेद भी स्पि हो
जाता है। इवतहासकार तो उसका िणणन करता है जो घवटत हो िक
ु ा है वकन्तु कवि उसका िणणन करता है जो घवटत हो
सकता है। इसवलए काव्य रूप अपेक्षाकृ त अवधक भव्य हैं। िस्ततु : कलाजन्य आनुंद अनक
ु ृ वतजन्य आनुंद ही है।

3
4.2.2 अनुकरण की प्रसिया
अरस्तू के अनसु ार कवि िस्तुओ ुं को यथावस्थत रूप में िवणणत नहीं करता अवपतु उनके यवु क्तयक्त
ु (तकण पणू )ण सुंभाव्य रूप
में िवणणत करता है। इस प्रकार की मानि जीिन के स्थायी तत्ि की अवभव्यवक्त के वलए िस्तु के सत्य का बवलदान भी
कर सकता है और उसमें पररितणन भी कर सकता है। काव्य में वजस मानि का वित्रण होता है िह सामान्य से अच्छा भी
हो सकता है और बरु ा भी अथिा यथाथण भी हो सकता है। िस्ततु : कवि सहृदय के आनदुं के वलए यह पररितणन करता हैं
क्योंवक ऐसा करने से कवि को आनदुं वमलता है।

अरस्तू के अनसु ार, अनक


ु रण का विषय जीिन का बाह्य पक्ष नहीं है, अवपतु इसका प्रभाि क्षेत्र अतुं जणगत तक व्याप्त है।
अरस्तू काव्य के वलए ‘िस्तु कै सी है’ की अपेक्षा ‘िस्तु कै सी होनी िावहए’ पर अवधक बल देता है।

नोट :
अनक
ु रण वसद्ाुंत का विरोध क्रोिे (Croce) के सहजानभु वू त वसद्ाुंत से भी है, क्योंवक क्रोिे के अनसु ार - कला मल

रूप में कलाकार के मन में घवटत होती है और िह सहजानभु वू त है जबवक अरस्तू के अनसु ार िह कल्पनातीत है।

4.2.3 अरस्तू की अनुकरण िांबांधी अवधारणा

विद्वान अरस्तू के अनक


ु रण वसद्ाुंत को स्तर पर प्लेटो के अनक
ु रण वसद्ाुंत की प्रवतवक्रया मानते हैं। अरस्तू के अनक
ु रण
वसद्ाुंत पर इस पररप्रेक्ष्य में वििार वकया जाए तो यह उसका िैिाररक स्तर पर विकास लगता है। अरस्तू का अनक
ु रण
वसद्ाुंत पनु रण िना के समािेर् की बात करता है। उनके अनुसार, अनक
ु रण हूबहू नकल नहीं है बवल्क पनु : प्रस्तवु तकरण
है वजसमें पनु रण िना भी र्ावमल होती है। अनक
ु रण के द्वारा कलाकार सािणभौम को पहिानकर उसे सरल तथा इवुं ियरूप
से पनु : रूपागत करने का प्रयत्न करता है। अरस्तू कलाकार को यह छूट देते हैं वक िे प्रवतयमान, सुंभाव्य अथिा आदर्ण
तीनों में से वकसी का भी अनक
ु रण करने के वलए स्ितुंत्र हैं। रिनाकार रिना को अपनी सिुं दे ना, ज्ञान, कल्पना, आदर्ण
आवद के द्वारा अपणू ण को पणू ण बनाता है।

4
4.2.4 अनुकरण के सिद्ाांत का महत्व
अरस्तू ने काव्य-वििेिन को महत्ि वदया। िे अपने गरुु प्लेटो की तरह काव्य तथा अन्य कलाओ ुं को अनक
ु ृ वत व्यापार
दर्णन से सुंबुंध होने के कारण कम नहीं मानते थे। अरस्तू ने उसे मात्र काव्य और सृवि के सुंबुंध में ग्रहण करने के पक्षधर
थे। इसके वलए िे अनक
ु रण का अथण और उसकी ध्िवनयों को पररिवतणत करते हैं। अरस्तू भी प्लेटो के समान वित्र और
काव्य को स्पि रूप से अनक
ु रण-मल
ू क कहते हैं। अरस्तू काव्य में त्रासदी को सिाणवधक महत्िपणू ण काव्य के रूप में मानते
हैं, उनका समस्त काव्य-वििेिन त्रासदी के वििेिन के सदुं भण में हुआ है। त्रासदी में अनक
ु रण की प्रधानता मानी जाती
है, अत: अरस्तू के काव्य-वििेिन में अनक
ु रण की प्रधानता होना स्िाभाविक है।

4.2.5 आलोचकों की दृसि में अनुकरण सिद्ाांत

आलोिकों ने अरस्तू की व्याख्या करते हुए, यह बात प्रवतपावदत की है वक िे अनक


ु रण का प्रयोग प्लेटों की भाुंवत स्थल
ू ,
यथाित और प्रवतकृ वत के सुंदभण में नहीं करते। इस सुंदभण में प्रो. बिू र का मत है वक अरस्तू के अनक
ु रण के अथण से -
सादृश्य विधान अथिा मल
ू का पनु रुत्पादन तो कर सकती है लेवकन यथाित नहीं अवपतु जैसी िह इवुं ियों को प्रतीत
होती है िैसी करती है।

अनक
ु रण के सुंदभण में यॉट्स का मत है वक -“अपने पणू ण अथण में अनक
ु रण का आर्य जैसे प्रभाि का उत्पादन, जो वकसी
वस्थवत, अनभु वू त तथा व्यवक्त के र्द्
ु प्रकृ वत रूप से उत्पन्न होता है। “िस्ततु : इनके अनसु ार अनक
ु रण का अथण है-
“आत्मावभव्युंजन से वभन्न जीिन का अनभु वू त का पनु : सृजन।“

प्रो. वगलबटण मरे ने यनू ानी र्ब्द “पॉयतेस (कताण या रिवयता) को आधार मानकर अनक
ु रण की व्यत्ु पवत्तपरक व्याख्या
प्रस्ततु की है। उनके अनसु ार कवि र्ब्द के पयाणय में ही अनक
ु रण की धारणा वनवहत है, वकन्तु अनक
ु रण का अथण सृजन
का अभाि नहीं।

स्कॉट जेम्स के अनसु ार “अरस्तू के काव्यर्ास्त्र में अनक


ु रण से अवभप्राय: है सावहत्य में जीिन का िस्तपु रक अक
ुं न,
वजसे हम अपनी भाषा में जीिन का कल्पनात्मक पनु वनणमाणण भी कह सकते हैं।“

प्रवसद् आलोिक डॉ. नगेन्ि सृजन और अनक


ु रण में भेद मानते हैं। काव्य में िस्तओ
ु ुं के ममण को आकषणक रीवत से
उद्घावटत करना कवि- कमण है। इसके दो पक्ष हैं - िस्तु के ममण का दर्णन और उसकी र्ब्दों अवभयवक्त ये दोनों पक्ष अवभन्न
5
हैं। काव्य दोनों की समवन्ित वक्रया है, अनक
ु रण नहीं। कवि की प्रवतभा कारवयत्री है अनक
ु ारवयत्री नहीं। कवि लौवकक
पदाथों के मावमणक रूप का उद्घाटन करता है। इसी से काव्य निवनमाणण है, सृजन है, अनक
ु रण नहीं। िस्तुत: कवि में
अनभु ि में अपना दृविकोण जोड़ देता है और यही दृविकोण सृजन-तत्ि है। इसी से अनक
ु रण र्ब्द का अथण विस्तार हो
गया है।

4.2.6 अनक
ु रण क्या, सकिका और कै िे?
अरस्तू के अनसु ार, अनक
ु रण में तीन प्रकार की िस्तओ
ु ुं में से कोई एक हो सकती है-

 िस्तएु ँ (यथाथण) अथाणत जैसे िे थीं या हैं (प्रतीयमान)

 िस्तएु ँ (कवल्पत) यथाथण अथाणत जैसी िे कही या समझी जाती हैं (सभुं ाव्य)

 िस्तएु ँ (सभुं ाव्य यथाथण) अथाणत वजसे िे होनी िावहए (आदर्ण रूप)

रिनाकर को यह तय करने की स्ितत्रुं ता है वक िह िस्तु या विषय को उस रूप में विवत्रत करे जैसे िह उसको एवन्िक
जगत में महससू होती है अथिा भविष्य में प्रतीत हो सकती है या होनी िावहए। ऐसे में कवि की भािना और कल्पना
के योगदान को नकारा नहीं जा सकता इसवलए अनक
ु रण को नकल मात्र नहीं माना जा सकता।

4.2.7 रचनाकार और इसतहािकार अनुकरण सिद्ाांत के पररप्रेक्ष्य में

अरस्तू के अनसु ार, कवि और इवतहासकार में िास्तविक भेद यह है वक इवतहासकार उसका िणणन करता है जो घवटत हो
िक
ु ा है और कवि उसका िणणन करता है जो घवटत हो सकता है। वजस कारण काव्य में दार्णवनकता अवधक होती है और
उसका स्िरूप इवतहास से भव्यतर और व्यापक हो जाता है। इसे स्पिता देने के वलए िे एक अतुं र की ओर भी सुंकेत,
अरस्तू करते हैं। िे कहते हैं वक काव्य सािणभौम की अवभव्यवक्त है और इवतहास विर्ेष की। इवतहास की घटनाएुं देर्-
काल की सीमा से बन्धकर वसफण अपने अलग और विवर्ि रूप में हमारे सामने आती हैं, जबवक काव्य गथँू े तथ्य के रूप
में अपने सािणभौवमक रूप में अवभव्यक्त होता है। इसी कारण उसकी परु ािृवत्त सुंभि हो पाती है।

6
4.2.8 अनुकरण में कला और प्रकृसत का अांत:िांबांध
कला का स्िभाि ही है, प्रकृ वत की अनक
ु ृ वत करना। यही कला और अनक
ु रण दोनों तत्िों के वििेिन का मल
ू सत्रू है।
यहाँ प्रकृ वत से तात्पयण जीिन के समग्र रूप अथाणत आतुं ररक और बाहरी दोनों रूपों के समािेर् से है। कलाकार का विषय
वसफण वदखाई देने िाली िस्तएु ँ न होकर उनमें वनवहत प्रकृ वत- वनयम से भी है। उनके अनसु ार, अनक
ु रण में प्रकृ वत के इन
अभािों को कला के द्वारा ही परू ा वकया जा सकता है। एक तरह से कलाकार या रिनाकर प्रकृ वत से अपने वलए रिना
सामग्री लेता है। वजसे रिनाकार की काव्य क्षमता नई सुंभािना देती हैं।

इस तरह काव्य- कला प्रकृ वत की सृजन - प्रवक्रया का अनक


ु रण करते हुए प्रकृ वत के अधरू े कायण को पणू ण करती है। अरस्तू
के अनक
ु रण को इसी रूप में समझना िावहए।

4.2.9 अनुकूलन का अनुकरण

अरस्तू का वििार है वक “वजन िस्तओ


ु ुं का प्रत्यक्ष दर्णन हमें द:ु ख देता है, उनका अनक
ु रण द्वारा प्रस्ततु रूप हमें आनुंद
प्रदान करता है। डरािने जानिर देखने से हमें डर लगता है, वकन्तु उनका अनक
ु ू ल रूप हमें आनुंद प्राप्त करता है।“ िुंवू क
अनक
ु रण परू ी तरह यथाथण का िस्तपु रक अक
ुं न नहीं होता बवल्क उसके साथ भािात्मक और कल्पनात्मक भी होता है।
अत: अनक
ु रण में स्ियुं को आनुंद देने का तत्ि भी होता है। साथ में आत्म-तत्ि का प्रकार्न वनवहत रहता है,क्योंवक
आनुंद की उपलवब्ध के वलए आत्मतत्ि का प्रकार्न भी होना िावहए। अनक
ु रण में वजन विषयों का वििेिन होता है िे
सभी स्थल
ू ि सक्ष्ू म होते हुए भी अनक
ु ायण हैं, परस्थ हैं। उनकी वस्थवत अनक
ु रण करने िाले से बाहर होती है। अत:
अनक
ु रण को व्यवक्तपरक अनुभवू त के अभाि में र्द्
ु आत्मावभव्युंजन की कोवट में नहीं रखा जा सकता।

4.3 अनुकरण सिद्ाांत : िमग्र सवचार-सबन्दु


 प्लेटो ने काव्य र्ास्त्र को दर्णनर्ास्त्र ि राजनीवतर्ास्त्र के साथ जोड़कर िवणणत वकया है, जबवक अरस्तू ने काव्यर्ास्त्र
की स्ितुंत्र रूप से समीक्षा की है।
 कविता जगत की अनक
ु ृ वत है तथा अनक
ु रण मनष्ु य की मल
ू प्रिृवत्त है।
 अनक
ु रण से हम वर्क्षा वमलती है। बालक अपने से बड़ों की वक्रयाएुं तथा उसका अनुकरण करके ही सीखता है।

7
 अनक
ु रण की प्रवक्रया आनुंददायक है। हम अनक
ु ृ त िस्तु में मल
ू का सादृश्य देखकर आनुंद प्राप्त करते हैं।
 अनक
ु रण के माध्यम से भयमल
ू क या त्रासमल
ू क िस्तु को भी इस प्रकार वकया जा सकता है वजससे आनुंद की प्रावप्त
हो।

 अरस्तू ने काव्य की समीक्षा स्ितुंत्र रूप से की है प्लेटो की भाुंवत दर्णन राजनीवत के िश्मे से उसे नहीं देखा।

 अरस्तू ने अनक
ु रण को नया अथण प्रदान वकया, वजससे कला को स्ितुंत्र अवस्तत्ि वमला। सुंदु र को वर्ि से अवधक
विस्तृत माना है।

 अरस्तू के अनसु ार, कवि के अनसु रण का विषय कमण-रत मनष्ु य है। मनष्ु य बाह्य जीिन के साथ ही मानवसक स्तर भी
वक्रयार्ील होता है। कवि इसे अपनी रिनात्मक कल्पना द्वारा ही मतू ण या विवत्रत कार सकता है। उसे नकल या स्थल

अनक
ु रण कहकर कम नहीं ठहराया जा सकता। इसी के द्वारा कवि अपणू तण ा को पणू तण ा करता है।
 अरस्तू ने कवि की वनमाणण क्षमता पर तो बल वदया है पर जीिन के विवभन्न अनभु िों से वनवमणवत कवि की अन्तश्चेतना
को महत्ि नहीं वदया है।

 अरस्तू ने स्पि कर वदया वक कवि और वित्रकार के कला माध्यम अलग- अलग हैं। वित्रकार रूप और रुंग के माध्यम
से अनक
ु रण करता है, जबवक कवि भाषा, लय और सामजुं स्य के माध्यम से।
 अनक
ु रण की प्रवक्रया आनदुं दायक होती है। हम अनक
ु ू ल िस्तु में मल
ू का सादृश्य देखकर ही आनदुं की प्रावप्त करते
हैं।

4.4 अरस्तू तर्ा प्लेटो के अनुकरण िांबांधी सवचारों का तुलनात्मक अध्ययन

प्लेटो अरस्तू के गरुु थे, उनका प्रभाि अरस्तू पर पड़ना स्िाभाविक है। जरूरी नहीं वक यह प्रभाि वकसी वसद्ातुं को आगे
बढ़ाने के वलए हो। वसद्ाुंत पर विुंतनकार उस पर प्रवतवक्रया देना भी एक प्रकार का प्रभाि ही है। इस दृवि से अरस्तू का
अनक
ु रण वसद्ाुंत एक स्तर पर प्लेटो के अनक
ु रण वसद्ाुंत की रिनात्मक प्रवतवक्रया है। एक तरह से यह उसका विकास
भी कहा जा सकता है।

8
अरस्तू ने जब काव्य-वििेिन वकया तब उनके सामने प्लेटो का काव्य-वििेिन विद्यमान था। अरस्तू ने अपने वििेिन को
प्लेटो के वििारों से वनधाणररत होने नहीं वदया। प्लेटो की दृवि दर्णनावित थी तो अरस्तू की काव्यावित थी। अरस्तू ने लगभग
दो हजार िषों तक पाश्चात्य काव्य-विुंतन पर र्ासन वकया। प्लेटो के मत के अनसु ार, अनक
ु ृ वत व्यापार दर्णन से सबुंवधत
होने के कारण एक हीन व्यापार है, अरस्तू ने उसे के िल काव्य और सृवि के सुंदभण में ही ग्रहण वकया। अरस्तू ने प्लेटो के
समान ही वित्र, सगुं ीत और सावहत्य पर एक साथ वििार वकया है। अरस्तू ने प्लेटो के समान ही वित्र, सगुं ीत और सावहत्य
पर एक साथ वििार वकया है। प्लेटो ने अनक
ु ृ वत होने के कारण काव्य को हीन वसद् वकया तो अरस्तू ने अनक
ु रण-वसद्ातुं
के आधार पर ही काव्य के उत्कषण का प्रवतपादन वकया है।

प्लेटो अनक
ु रण को एक धावमणक और हीन व्यापार मानते हैं। अरस्तू उसे हीन मानते अनक
ु रण में वनमाणण के व्यापार को
भी समाविि करना िाहते। प्लेटो ने अनक
ु रण का प्रयोग मल
ू सत्य और सृवि तथा सृवि और काव्य दोनों के सुंदभण में वकया
था। अरस्तू ने उसका प्रयोग सृवि एिुं काव्य के के के सुंदभण में वकया है।

4.5 सनष्कर्थ

समग्रत: अरस्तू ने अनक


ु रण वसद्ाुंत को प्लेटो की अपेक्षा निीन अथण प्रदान वकए। इसमें ‘वर्िम’् की अपेक्षा ‘सुंदु रम’्
पर बल वदया, उसे दार्णवनकों और नीवतयों के िुंगु ल से पृथक वकया। अरस्तू काव्य को प्रकृ वत का अनक
ु रण मानकर
िला है। इसवलए डॉ. नगेन्ि के अनसु ार -“अरस्तू का दृविकोण अभािात्मक रहा है और त्रास और करुणा का विके िन
उसकी िरम वसवद् रही है।“

अरस्तू ने कवि की वनमाणण क्षमता पर तो बल वदया है, पर जीिन के विवभन्न अनभु िों से वनवमणत कवि को अन्तश्चेतना को
महत्ि प्रदान नहीं वकया। उसके वसद्ाुंत में एक कमी यह भी वक िह आतुं ररक अनभु िों के भी अनक
ु रण की बात करता
है। अनक
ु रण का इतना विस्तार नहीं हो सकता बस यहाँ उसके वसद्ाुंत की सीमा है

9
4.6 अभ्याि प्रश्न

1. अरस्तू के काव्य सुंबुंधी अिधारणा की ििाण कीवजए।


2. अरस्तू की अनक
ु रण सुंबुंधी अिधारणा का पररिय दीवजए।
3. अरस्तू तथा प्लेटो के अनक
ु रण सुंबुंधी वििारों का तल
ु नात्मक वििेिन कीवजए।
4. अरस्तू के अनक
ु रण वसद्ाुंत पर भारतीय अनवु मवत वसद्ाुंत की तल
ु नात्मक व्याख्या कीवजए।

4.7 िांदर्थ ग्रांर्


 सावहत्य वसद्ाुंत - डॉ. रामअिध वद्विेदी

 पाश्चात्य काव्यर्ास्त्र - डॉ. देिन्े िनाथ र्माण

 अरस्तू का काव्यर्ास्त्र - डॉ. नगेन्ि

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