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अलं कार

अलं कार का अर्थ है-आभूषण। अर्ाथत् सुं दरता बढाने के ललए प्रयुक्त होने वाले वे साधन
जो सौंदयथ में चार चााँ द लगा दे ते हैं। कववगण कववता रूपी कावमनी की शोभा बढाने हेतु
अलं कार नामक साधन का प्रयोग करते हैं। इसीललए कहा गया है-‘अलं करोवत इवत
अलं कार।’

.in
पररभाषा-काव्य में भाव तर्ा कला के सौन्दयथ को बढाने वाले उपकरण अलं कार
कहलाते हैं।

s
या

as
लजन गुण धमों द्वारा काव्य की शोभा बढाई जाती है, उन्हें अलं कार कहते हैं।

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अलं कार के भेद
rt
ce

काव्य में कभी अलग-अलग शब्दों के प्रयोग से सौंदयथ में वृवि की जाती है तो कभी अर्थ
में चमत्कार पैदा करके। इस आधार पर अलं कार के दो भेद होते हैं –
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(अ) शब्दालं कार-लजन अलं कारों के प्रयोग से शब्द में चमत्कार उत्पन्न होता है, वे
w

शब्दालं कार कहलाते हैं।


w

(ब) अर्ाालंकार-लजन अलं कारों के प्रयोग से अर्थ में चमत्कार उत्पन्न होता है, वे
w

शब्दालं कार कहलाते हैं।


©

शब्दालं कार के भेद

शब्दालं कार के ननम्न भेद हैं –

1. अनुप्रास अलं कार


2. यमक अलं कार

3. श्लेष अलं कार


4. वक्रोवक्त अलं कार

1. अनुप्रास अलं कार- जब काव्य में नकसी वणथ की आवृवि एक से अवधक बार होती है
अर्ाथत् कोई वणथ एक से अवधक बार आता है तो उसे अनुप्रास अलं कार कहते हैं; जैसे –

तरनन तनूजा तट तमाल तरुवर बहु छाए।

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यहााँ ‘त’ वणथ की आवृवि एक से अवधक बार हुई है। अतः यहााँ अनुप्रास अलं कार है।

s
अन्य उदाहरण –

as
रघुपति राघव राजाराम। पतिि पावन सीिाराम।

(‘र’ वणथ की आवृवि) cl


rt
ce

चारु चं द्र की चं चल ककरणें खेल रही हैं जल-र्ल में।


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(‘च’ वणथ की आवृवि)


w
w

मुतदि महीपति मं तदर आए।


w

(‘म’ वणथ की आवृवि)


©

मैया मोरी मैं नहह माखन खायो।

(‘म’ वणथ की आवृवि)


सठ सुधरहह सि सं गति पाई।

(‘स’ वणथ की आवृवि)

काललदी कूल कदं ब की डारन ।

(‘क’ वणथ की आवृवि)

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2. यमक अलं कार-जब काव्य में कोई शब्द एक से अवधक बार आए और उनके अर्थ

s
as
अलग-अलग हों तो उसे यमक अलं कार होता है; जैस-े

िीन बेर खािी र्ी वे िीन बेर खािी है ।


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उपयुथक्त पं वक्त में बेर शब्द दो बार आया परंतु इनके अर्थ हैं – समय, एक प्रकार का
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फल। इस तरह यहााँ यमक अलं कार है।
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अन्य उदाहरण –
w

कनक-कनक िे सौ गुनी मादकिा अधधकाय।


w

या खाए बौराए नर, वा पाए बौराय।।


w

यहााँ कनक शब्द के अर्थ हैं – सोना और धतूरा। अतः यहााँ यमक अलं कार है।
©

काली घटा का घमं ड घटा, नभ िारक मं डलवं द खखले।

यहााँ एक घटा का अर्थ है काली घटाएाँ और दूसरी घटा का अर्थ है – कम होना।


है कतव बेनी, बेनी व्याल की चुराई लीन्ही

यहााँ एक बेनी का आशय-कवव का नाम और दूसरे बेनी का अर्थ बाला की चोटी है।
अत: यमक अलं कार है।

रिी-रिी सोभा सब रति के शरीर की।

.in
यहााँ रती का अर्थ है – तननक-तननक अर्ाथत् सारी और रवत का अर्थ कामदेव की पत्नी
है। अतः यहााँ यमक अलं कार है।

s
as
नगन जडािी र्ी वे नगन जडािी है ।
cl
यहााँ नगन का अर्थ है – वस्त्रों के वबना, नग्न और दूसरे का अर्थ है हीरा-मोती आनद
rt
रत्न।
ce
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3. श्लेष अलं कार- श्लेष का अर्थ है- वचपका हुआ। अर्ाथत् एक शब्द के अनेक अर्थ
w

वचपके होते हैं। जब काव्य में कोई शब्द एक बार आए और उसके एक से अवधक अर्थ
प्रकट हो, तो उसे श्लेष अलं कार कहते हैं; जैसे –
w

रहहमन पानी रालिए वबन पानी सब सून।


w

पानी गए न ऊबरै, मोती, मानुष चून।।


©

यहााँ दूसरी पं वक्त में पानी शब्द एक बार आया है परंतु उसके अर्थ अलग-अलग प्रसं ग में
अलग-अलग हैं।

अन्य उदाहरण –
1. मधुबन की छाती को दे िो, सूिी इसकी नकतनी कललयााँ ।

यहााँ कललयााँ का अर्थ है-


फूल लिलने से पूवथ की अवस्था
यौवन आने से पहले की अवस्था

.in
2. चरन धरत चचता करत वचतवत चारों ओर।

s
सुबरन को िोजत, नफरत कवव, व्यलभचारी, चोर।

as
यहााँ सुबरन शब्द के एक से अवधक अर्थ हैं
cl
कवव के सं दभथ में इसका अर्थ सुं दर वणथ (शब्द), व्यलभचारी के सं दभथ में सुं दर रूप रंग और
rt
चोर के सं दभथ में इसका अर्थ सोना है।
ce
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3. मं गन को दे ि पट दे त बार-बार है।
w

यहााँ पर शब्द के दो अर्थ है- वस्त्र, दरवाजा।


w
w

4. मेरी भव बाधा हरो राधा नागरर सोय।


©

जा तन की झााँ ई परे श्याम हररत दुवत होय।।

यहााँ हररत शब्द के अर्थ हैं- हर्षषत (प्रसन्न होना) और हरे रंग का होना।

4. वक्रोधि अलं कार


लक्षण-जहााँ नकसी उवक्त का अर्थ जानते हुए कहने वाले के आशय से लभन्न ललया जाए,
वहााँ वक्रोवक्त अलं कार होता है; जैसे

“कौन िुम? हैं घनश्याम हम, िो बरसो ककि जाई।”

यहााँ राधा ने ‘घनश्याम’ का अर्थ जानते हुए भी श्रीकृष्ण न लगाकर बादल ललया है।
अतः यहााँ वक्रोवक्त अलं कार है।

.in
अर्ाालंकार के भेद

s
as
अर्ाथलंकार के ननम्न भेद हैं –
 उपमा अलं कार
 रूपक अलं कार cl
rt
 उत्प्रेक्षा अलं कार
ce

 अवतशयोवक्त अलं कार


 मानवीकरण अलं कार
.n

 अन्योवक्त अलं कार


w

 पुनरुवक्त अलं कार


w
w

1. उपमा अलं कार- जब काव्य में नकसी वस्तु या व्यवक्त की तुलना नकसी अत्यं त
प्रवसि वस्तु या व्यवक्त से की जाती है तो उसे उपमा अलं कार कहते हैं; जैस-े
©

पीपर पात सररस मन डोला।


यहााँ मन के डोलने की तुलना पीपल के पिे से की गई है।अतः यहााँ उपमा अलं कार
है।
उपमा अलं कार के अं ग-इस अलं कार के चार अं ग होते हैं –
उपमेय-लजसकी उपमा दी जाय। उपयुथक्त पं वक्त में मन उपमेय है।

उपमान-लजस प्रवसि वस्तु या व्यवक्त से उपमा दी जाती है।

समान धमा-उपमेय-उपमान की वह ववशेषता जो दोनों में एक समान है। उपयुथक्त

उदाहरण में ‘डोलना’ समान धमथ है।

वाचक शब्द-वे शब्द जो उपमेय और उपमान की समानता प्रकट करते हैं।

उपयुथक्त उदाहरण में ‘सररस’ वाचक शब्द है।

.in
सा, सम, सी, सररस, इव, समाना आनद कुछ अन्यवाचक शब्द है।

s
as
अन्य उदाहरण –

1. मुख मयं क सम मं जु मनोहर।


cl
rt
उपमेय – मुि
ce

उपमान – मयं क
.n

साधारण धमथ – मं जु मनोहर


वाचक शब्द – सम।
w
w

2. हाय! फूल-सी कोमल बच्ची हुई राख की ढे री र्ी।


w

उपमेय – बच्ची
©

उपमान – फूल
साधारण धमथ – कोमल
वाचक शब्द – सी

3. तनमाल िेरा नीर अमि-सम उत्तम है ।


उपमेय – नीर
उपमान – अमृत
साधरणधमथ – उिम
वाचक शब्द – सम

4. िब िो बहिा समय खशला-सा जम जाएगा।

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उपमेय – समय
उपमान – लशला

s
साधरण धमथ – जम (ठहर) जाना

as
वाचक शब्द – सा

cl
5. उषा सुनहले िीर बरसिी जयलक्ष्मी-सी उतदि हुई।
rt
उपमेय – उषा
ce

उपमान – जयलक्ष्मी
.n

साधारणधमथ – उनदत होना


वाचक शब्द – सी
w
w

6. बं दउँ कोमल कमल से जग जननी के पाँ व।


w

उपमेय – जगजननी के पैर


©

उपमान – कमल
साधारण धमथ – कोमल होना
वाचक शब्द – से
2. रूपक अलं कार-जब रूप-गुण की अत्यवधक समानता के कारण उपमेय पर उपमान
का भेदरहहत आरोप होता है तो उसे रूपक अलं कार कहते हैं।रूपक अलं कार में
उपमेय और उपमान में लभन्नता नही ीं रह जाती है; जैस-े
चरण कमल बं दी हरर राइ।
यहााँ हरर के चरणों (उपमेय) में कमल(उपमान) का आरोप है। अत: रूपक अलं कार है।

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अन्य उदाहरण –

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मुतन पद कमल बं तद दोउ भ्रािा।

as
मुनन के चरणों (उपमेय) पर कमल (उपमान) का आरोप।

भजमन चरण कँवल अतवनाशी।


cl
rt
ईश्वर के चरणों (उपमेय) पर काँवल (कमल) उपमान का आरोप।
ce
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बं द नही,ीं अब भी चलिे हैं तनयति नटी के कक्रयाकलाप।


प्रकृवत के कायथ व्यवहार (उपमेय) पर ननयवत नटी (उपमान) का आरोप।
w
w

ससधु-धबहं ग िरंग-पं ख को फडकाकर प्रतिक्षण में।


w

चसधु (उपमेय) पर ववहं ग (उपमान) का तर्ा तरंग (उपमेय) पर पं ि (उपमान) का


©

आरोप।

अं बर पनघट में डु बो िारा-घट ऊषा नागरी।


अं बर उपमेय) पर पनघट (उपमान) का तर्ा तारा (उपमेय) पर घट (उपमान) का
आरोप।
3. उत्प्प्रेक्षा अलं कार-जब उपमेय में गुण-धमथ की समानता के कारण उपमान की
सं भावना कर ली जाए, तो उसे उत्प्रेक्षा अलं कार कहते हैं; जैसे –
कहिी हुई यूँ उत्तरा के नेत्र जल से भर गए।
कहम कणों से पूणा मानों हो गए पं कज नए।।
यहााँ उिरा के जल (आाँ स)ू भरे नयनों (उपमेय) में हहमकणों से पररपूणथ कमल

.in
(उपमान) की सं भावना प्रकट की गई है। अतः उत्प्रेक्षा अलं कार है।
उत्प्रेक्षा अलं कार की पहचान-मनहुाँ , मानो, जानो, जनहुाँ , ज्यों, जनु आनद वाचक

s
शब्दों का प्रयोग होता है।

as
अन्य उदाहरण –
cl
rt
धाए धाम काम सब त्प्यागी। मनहुँ रं क तनधध लूटन लागी।
ce

यहााँ राम के रूप-सौंदयथ (उपमेय) में ननवध (उपमान) की सं भावना।


.n

दादुर धुतन चहुँ तदशा सुहाई।


w

बेद पढहह जनु बटु समुदाई ।।


w

यहााँ मेंढकों की आवाज (उपमेय) में ब्रह्मचारी समुदाय द्वारा वेद पढने की सं भावना
w

प्रकट की गई है।
©

दे खख रूप लोचन ललचाने। हरषे जनु तनजतनधध पकहचाने।।


यहााँ राम के रूप सौंदयथ (उपमेय) में ननवधयााँ (उपमान) की सं भावना प्रकट की गई
है।
अति कटु वचन कहि कैकेयी। मानहु लोन जरे पर दे ई ।
यहााँ कटु वचन से उत्पन्न पीडा (उपमेय) में जलने पर नमक वछडकने से हुए कष्ट की
सं भावना प्रकट की गई है।

चमचमाि चं चल नयन, धबच घूघट पर झीन।


मानहँ सुरसररिा तवमल, जल उछरि जुगमीन।।

.in
यहााँ घूघट के झीने परों से ढके दोनों नयनों (उपमेय) में गं गा जी में उछलती
युगलमीन (उपमान) की सं भावना प्रकट की गई है।

s
as
cl
4. अतिशयोधि अलं कार – जहााँ नकसी व्यवक्त, वस्तु आनद को गुण, रूप सौंदयथ आनद
का वणथन इतना बढा-चढाकर नकया जाए नक लजस पर ववश्वास करना कहठन हो, वहााँ
rt
अवतशयोवक्त अलं कार होता है; जैसे –
ce

एक तदन राम पिं ग उडाई। दे वलोक में पहुँ ची जाई।।


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यहााँ राम द्वारा पतं ग उडाने का वणथन तो ठीक है पर पतं ग का उडते-उडते स्वगथ में पहुाँ च
w

जाने का वणथन बहुत बढाकर नकया गया। इस पर ववश्वास करना कहठन हो रहा है।
w

अत: अवतशयोवक्त अलं कार।


w

अन्य उदाहरण –
©

दे ख लो साकेि नगरी है यही


स्वगा से धमलने गगन में जा रही।
यहााँ साकेत नगरी की तुलना स्वगथ की समृवि से करने का अवतशयोवक्तपूणथ वणथन
है।
हनूमान की पूँ छ में लगन न पाई आग।
धसगरी लं का जल गई, गए तनशाचर भाग।
हनुमान की पूाँ छ में आग लगाने से पूवथ ही सोने की लं का का जलकर राि होने का
अवतशयोवक्तपूणथ वणथन है।

.in
दे खख सुदामा की दीन दशा करुना कररके करुना तनधध रोए।
सुदामा की दररद्रावस्था को दे िकर कृष्ण का रोना और उनकी आाँ िों से इतने

s
आाँ सू वगरना नक उससे पैर धोने के वणथन में अवतशयोवक्त है। अतः अवतशयोवक्त

as
अलं कार है।

cl
rt
5. मानवीकरण अलं कार – जब जड पदार्ों और प्रकृवत के अं ग (नदी, पवथत, पेड,
ce

लताएाँ , झरने, हवा, पत्र्र, पक्षी) आनद पर मानवीय हक्रयाओ ीं का आरोप लगाया जाता
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है अर्ाथत् मनुष्य जैसा कायथ व्यवहार करता हुआ नदिाया जाता है तब वहााँ मानवीकरण
अलं कार होता है; जैसे –
w

हरषाया िाल लाया पानी पराि भरके।


w

यहााँ मेहमान के आने पर तालाब द्वारा िुश होकर पानी लाने का कायथ करते हुए
w

नदिाया गया है। अतः यहााँ मानवीकरण अलं कार है।


©

अन्य उदाहरण –

हैं मसे भीगिी गेहँ की िरुणाई फूटी आिी है ।


यहााँ गेहाँ तरुणाई फूटने में मानवीय हक्रयाओ ीं का आरोप है।
यौवन में मािी मटरबेखल अखलयों से आँ ख लडािी है ।
मटरबेलल का सलियों से आाँ ि लडाने में मानवीय हक्रयाओ ीं का आरोप है।

लोने-लोने वे घने चने क्या बने-बने इठलािे हैं , हौले-हौले होली गा-गा धुं घरू
पर िाल बजािे हैं ।

.in
यहााँ चने पर होली गाने, सज-धजकर इतराने और ताल बजाने में मानवीय
हक्रयाओ ीं का आरोप है।

s
as
है वसुं धरा धबखेर दे िी मोिी सबके सोने पर।
रतव बटोर लेिा है उसको सदा सवेरा होने पर।
cl
यहााँ वसुं धरा द्वारा मोती वबिेरने और सूयथ द्वारा उसे सवेरे एकत्र कर लेने में
rt
मानवीय हक्रयाओ ीं का आरोप है।
ce
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6. अन्योधि अलं कार


w

लक्षण-जहााँ अप्रस्तुत कर्न के द्वारा प्रस्तुत अर्थ का बोध कराया जाये वहााँ अन्योवक्त
w

अलं कार होता है; जैसे


w

“माली आवि दे खकर, कखलयन करी पुकार।


©

फूले-फूले चुतन खलए, काखल हमारी बार।”

यहााँ पर बात तो अप्रस्तुत माली,कललयााँ , फूलों की कही गई है परन्तु बोध प्रस्तुत


वृिजनों और प्रौढजनों का कराया गया है।
6. पुनरुधि अलं कार
जब नकसी काव्य यह पं वक्त में एक ही शब्दों की ननरंतर आवृवि होती हो पर वहां अर्थ
की लभन्नता नही ीं होने के कारण वह पुनरुवक्त अलं कार माना जाता है।
साधारण अर्ों में समझे तो जब कवव भाव को रोचक बनाने के ललए, कर्न को
प्रभावशाली बनाने के ललए ,एक शब्द का अवधक बार समान अर्थ में प्रयोग करता है
वहां पुनरुवक्त अलं कार होता है।

.in
उदाहरण के ललए
सुबह-सुबह बच्चे काम पर जा रहे हैं।

s
उपरोक्त प्रसं ग में सुबह शब्द का अर्थ एक ही है जबनक यहां दो बार प्रयुक्त हुआ

as
है। यह काव्य की सुं दरता आनद को बढाने के ललए प्रयोग हुआ है लजससे अर्थ में

cl
लभन्नता नही ीं हो रही है। अतः यह पुनरुवक्त प्रकाश अलं कार माना जाएगा।
rt
शान्ि सरोवर का डर
ce

ककस इच्छा से लहरा कर


हो उठा चं चल – चं चल
.n

चं चल – चं चल शब्दों की आवृवि के कारण यहां पुनरुवक्त अलं कार होगा।


w

(पुनरुवक्त दो शब्दों के योग से बना है पुन्र+युवक्त अर्ाथत बार-बार एक ही शब्द की


w

आवृवि हो)
w

यमक अलं कार िर्ा पुनरुधि अलं कार में क्या अं िर है ?


©

दोनों अलं कारों के बीच समानता है ,दोनों अलं कार में शब्दों की बार-बार आवृवि होती है
ककतु एक सूक्ष्म अं तर इन दोनों में भेद उत्पन्न करता है।
यमक अलं कार के अं तगथ त शब्दों की दो या अवधक भार आवृवि होने पर उनके अर्थ की
लभन्नता होती है। जैसे –
कनक कनक िे सौ गुनी मादकिा अधधकाय
यहां कनक शब्द दो बार प्रयोग हुए हैं लजसमें एक का अर्थ स्वणा दूसरे का
अर्थ धिूरा है।
वही पुनरुवक्त प्रकाश अलं कार में शब्दों की आवृवि दो या अवधक बार होती है। जैस-े
आगे-आगे नाचिी गािी बयार चली
इसमें आगे शब्द दो बार प्रयोग हुआ है ककतु अर्थ की लभन्नता ना होने के कारण
पुनरुवक्त प्रकाश अलं कार है।

.in
अभ्यास-प्रश्न

s
as
1. तनम्नखलखखि काव्य पं धियों में तनकहि अलं कारों के नाम खलखखए –
(i) आए महं ि बसं ि।
(ii) सेवक सधचव सुमंि बुलाए।
cl
rt
(iii) मेघ आए बडे बन-ठनके सँ वर के।
ce

(iv) पीपर पाि सररस मन डोला।


.n

(v) तनरपख होइके जे भजे सोई सं ि सुजान।


w

(vi) फूले तफरिे हों फूल स्वयं उड-उड वं िों से वं िों पर।
(vii) इस काले सं कट सागर पर मरने को क्यों मदमािी?
w

(viii) या मुरली मुरलीधर की अधरान धरी अधरा न धरौंगी। मनहु रं क तनधध लूटन
w

लागी।
©

(ix) मरकि तडब्बे-सा खुला ग्राम।


(x) पानी गए न उबरै मोिी, मानुष, चून।
(xi) सुनि जोग लागि है ऐसो ज्यों करुई ककडी।
(xii) कहमकर भी तनराश कर चला राि भी आली।
(xiii) बसौं ब्रज गोकुल गाँ व के ग्वारन ।
(xiv) ना जाने कब सुन मेरी पुकार, करे ं दे व भवसागर पार।
(xv) कूड कपड काया का तनकस्या।
(xvi) कोकटक ए कलधौि के धाम।
(xvii) िीन बेर खािी र्ी वे िीन बेर खािी हैं ।
(xviii) हार् फूल-सी कोमल बच्ची हुई राख की ढे री र्ी।
(xix) धाए काम-धाम सब त्प्यागी।

.in
(xx) बारे उखजयारो करै बढे अँ धेरो होय।
(xxi) काली-घटा का घमं ड घटा।

s
(xxii) मखमली पेकटयों-सी लटकीीं।

as
उिरः
(i) रूपक अलं कार
(ii) अनुप्रास अलं कार
cl
rt
(iii) मानवीकरण अलं कार
ce

(iv) उपमा अलं कार


.n

(v) अनुप्रास अलं कार


(vi) उत्प्रेक्षा अलं कार
w

(vii) रूपक अलं कार


w

(viii) श्लेष अलं कार


w

(ix) उपमा अलं कार


©

(x) श्लेष अलं कार


(xi) उत्प्रेक्षा अलं कार
(xii) मानवीकरण अलं कार
(xiii) अनुप्रास अलं कार
(xiv) रूपक अलं कार
(xv) अनुप्रास अलं कार
(xvi) अनुप्रास अलं कार
(xvii) यमक अलं कार
(xviii) उपमा अलं कार
(xix) उत्प्रेक्षा अलं कार
(xxx) श्लेष अलं कार

.in
(xxi) यमक अलं कार
(xxii) उपमा अलं कार

s
as
2. नीचे कुछ अलं कारों के नाम तदए गए हैं । उनके उदाहरण खलखखए –
(i) उपमा अलं कार
(ii) उत्प्प्रेक्षा अलं कार
cl
rt
(iii) रूपक अलं कार
ce

(iv) मानवीकरण अलं कार


.n

(v) श्लेष अलं कार


(vi) यमक अलं कार
w

(vii) मानवीकरण अलं कार


w

(viii) अतिशयोधि अलं कार


w

(ix) अनुप्रास अलं कार


©

(x) यमक अलं कार


उिरः
(i) तब तो बहता समय लशला-सा जम जाएगा
(ii) सोहत ओढे पीत पट स्याम सलोने गात।
मनहुाँ नील मलण शैल पर आतप पयो प्रभात।।
(iii) प्रीवत-नदी में पााँ व न बोरयो
(iv) हैं नकनारे कई पत्र्र पी रहे चुपचाप पानी। 88
(v) मं गन को दे िो पट बार-बार हैं।
(vi) तीन बेर िाती र्ी वे तीन बेर िाती है।
(vii) उषा सुनहले तीर बरसती जय लक्ष्मी-सी उनदत हुई।
(viii) पानी परात के हार् छु यो नहह नैनन के जलसो पग धोए।

.in
(ix) सठ सुधरहह सतसाँ गवत पाई। पारस परस कुधातु सुहाई।
(x) कहै कवव बेनी-बेनी व्याल की चुराई लीन्ही।ीं

s
as
तवखभन्न परीक्षाओ ीं में पूछे गए

cl
1. तनम्नखलखखि काव्य पं धियों में तनकहि अलं कार भेद बिाइए
rt
(i) नयन िेरे मीन-से हैं ।
ce

(ii) मखमल की झुल पडा, हार्ी-सा टीला।


.n

(iii) आए महं ि वसं ि।


(iv) यह दे खखए अरववद से खशशु बं द कैसे सो रहे ।
w

(v) दग पग पोंछन को करे भूषण पायं दाज।


w

(vi) दुख है जीवन के िरुफूल।


w

(vii) एक रम्य उपवन र्ा, नं दन वन-सा सुं दर


©

(viii) िेरी बरछी में बर छीने है खलन के।


(ix) चारु चं द्र की चं चल ककरणें खेल रही हैं जल-र्ल में।
(x) अं बर-पनघट में डू बो रही घट िारा ऊषा नागरी।
(xi) मखमली पेकटयाँ -सी लटकी, छीधमयाँ धछपाए बीज लडी।
(xii) मजबूि खशला-सी दढ छािी।
(xiii) रघुपति राघव राजाराम।
(xiv) कोकटक ए कलधौि के धाम करील के कंु जन ऊपर बारौं।
(xv) कढि सार् ही िे, ख्यान अधस ररपु िन से प्रान
(xvi) खखले हजारों चाँ द िुम्हारे नयनों के आकाश में।
(xvii) घेर घेर घोर गगन धाराधर ओ।
(xviii) राणा ने सोचा इस पार, िब िक चेिक र्ा उस पार।

.in
(xix) पानी गए न ऊबरै मोिी मानुष चून
(xx) जो नि हुआ, वह मि हुआ ज्यों वं ि से झरकर कुसुम।

s
उिरः

as
(i) उपमा अलं कार
(ii) उपमा अलं कार
(iii) रूपक अलं कार
cl
rt
(iv) उपमा अलं कार
ce

(v) रूपक अलं कार


.n

(vi) रूपक अलं कार


(vii) उपमा अलं कार
w

(viii) यमक अलं कार


w

(ix) अनुप्रास अलं कार


w

(x) रूपक एवं मानवीकरण अलं कार


©

(xi) उपमा अलं कार


(xii) उपमा अलं कार
(xii) अनुप्रास अलं कार
(xiv) अनुप्रास अलं कार
(xv) अवतशयोवक्त अलं कार
(xvi) रूपक अलं कार
(xvii) अनुप्रास अलं कार
(xviii) अवतशयोवक्त अलं कार
(xix) श्लेष अलं कार
(xx) उत्प्रेक्षा अलं कार

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2. तनम्नखलखखि काव्य पं धियों में तनकहि अलं कार भेद बिाइए
(i) गं गा िेरा नीर अमि सम उत्तम है ।

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(ii) सुरखभि सुं दर सुखद सुमन िुझ पर झरिे हैं ।

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(iii) चरण कमल बं दौ हरर राइ।

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(iv) मधुवन की छािी को दे खो सूखी इसकी ककिनी कखलयाँ ।
(v) एक तदन राम पिं ग उडाई। दे वलोक में पहुँ ची जाई॥
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(vi) बीिी तवभावरी जाग री,
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अं बर पनघट में डु बो रही


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िारा-घट ऊषा नागरी


(vii) तनमाल िेरा नीर अमि सम उत्तम है
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(viii) पद्माविी सब सखखन्ह बुलाई।


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मनु फुलवारर सबै चखल आई॥


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