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कामशा

मानव जीवन के ल यभूत चार पु षाथ म "काम"


अ यतम पु षाथ माना जाता है। सं कृत भाषा म
उससे संब वशाल सा ह य व मान है।

व भ ज तु म संभोग का च ण (ऊपर) ; एक सु दर युवती का


व वध ा णय से संभोग का च ण (नीचे)
व वध ा णय स सभोग का च ण (नीच)

कामशा का इ तहास
कामशा का आधारपीठ है - मह ष वा यायनर चत
कामसू । सू शैली म नब , वा यायन का यह
महनीय ंथ वषय क ापकता और शैली क
ांजलता म अपनी समता नह रखता। मह ष
वा यायन इस शा म त ाता ही माने जा सकते
ह, उ ावक नह , य क उनसे ब त पहले इस शा
का उ व हो चुका था।

कामशा के इ तहास को हम तीन काल वभाग म


बाँट सकते ह - पूववा यायन काल, वा यान काल
तथा प ात ा यायन काल (वा यायन के बाद का
समय)।
पूववा यायन काल …

कहा जाता है, जाप त ने एक लाख अ याय म एक


वशाल ंथ का णयन कर कामशा का आंरभ
कया, परंतु कालांतर म मानव के क याण के लए
इसके सं ेप तुत कए गए। पौरा णक पंरपरा के
अनुसार महादे व क इ छा से "नंद " ने एक सह
अ याय म इसका सार अंश तैयार कया जसे और भी
उपयोगी बनाने के लए उ ालक मु न के पु ेतकेतु
ने पाँच सौ अ याय म उसे सं त बनाया। इसके
अन तर पांचाल बाभ ने तृतीयांश म इसक और भी
सं त कया—डेढ़ सौ अ याय तथा सात अ धकरण
म, कालांतर म सात महनीय आचाय ने येक
अ धकरण के ऊपर सात वतं ंथ का नमाण कया

(1) चारायण ने ंथ बनाया साधारण अ धकरण
पर,
(2) सुवणनाभ ने सां यो गक पर,
(3) घोटकमुख ने क या सं यु क पर,
(4) गोनद य ने भाया धका रक पर,
(5) गो णकापु ने पारदा रक पर,
(6) द क ने वै शक पर तथा
(7) कुचुमार ने औप नष दक पर।

इस पृथक् रचना का फल शा के चार के लए


हा नकारक स आ और मश: यह उ छ होने
लगा। फलत: वा यायन ने इन सात अ धकरण ंथ
का सारांश एक तुत कया और इस व श यास
का प रणत फल वा यायन कामसू आ। इस कार
वतमान कामसू क शता दय के सा ह यक
स ोग का पयवसान समझना चा हए, य प
परंपरया घो षत कामशा ीय ंथ के इस अनंत
णयन के व तार को वीकार करना क ठन है।

पूववा यायन काल के आचाय क रचना का


वशेष पता नह चलता। ा के मत का नदश बड़े
आदर के साथ वा यायन ने अपने ंथ म कया है।
घोटकमुख और गोनद य के मत कामशा और
अथशा म उ ल खत मलते है। केवल द क और
कु चमार के ंथ के अ त व का प रचय हम भली
भाँ त उपल ध है। आचाय द क क व च
जीवनकथा कामसू क जयमंगला ट का म है।
कु चमार र चत तं के पूणत: उपल ध न होने पर भी
हम उसके वषय से प रचत ह। इस तं म कामोपयोगी
औषध का वणन है जसका संबंध बृंहण, लेपन, व य
आद या से है। "कू चमारतं " का ह तलेख
म ास से उपल ध आ है जसे ंथकार "उप नषद्"
का नाम दे ता है और जस कारण उसम तपा दत
अ धकरण "औप नष दक" नाम से यात आ।

वा यायन काल (कामसू ) …

वा यायन का यह ंथ सू ा मक है। यह सात


अ धकरण , 36 अ याय तथा 64 करण म वभ
है। इसम च त भारतीय स यता के ऊपर गु त युग
क गहरी छाप है, उस युग का श स य
"नाग रक" के नाम से यहाँ दया गया है क कामसू
भारतीय समाजशा का एक मा य ंथर न बन गया
है। ंथ के णयन का उ े य है लोकया ा का नवाण,
न क राग क अ भव । इस ता पय क स के
लए वा यायन ने उ समा ध तथा चय का पालन
कर इस ंथ क रचना क —

तदे तद् चयण परेण च समा धना।


व हतं लोकयावथ न रागाथ ऽ य सं व ध:॥ --
(कामसू , स तम अ धकरण, ोक 57)

ंथ सात अ धकरण म वभ है। थम अ धकरण


(साधारण) म शा का समु े श तथा नाग रक क
जीवनया ा का रोचक वणन है। तीय अ धकरण
(सां यो गक) र तशा का व तृत ववरण तुत
करता है। पूरे ंथ म यह सवा धक मह वशाली खंड है
जसके दस अ याय म र त ड़ा, आ लगन, चुंबन
आ द काम या का ापक और व तृत
तपादन हे। तृतीय अ धकरण (का यासं यु क) म
क या का वरण धान वषय है जससे संब ववाह
का भी उपादे य वणन यहाँ कया गया है। चतुथ
अ धकरण (भाया धका रक) म भाया का कत ,
सप नी के साथ उसका वहार तथा राजा के
अंत:पुर के व श वहार मश: व णत ह। पंचम
अ धकरण (पारदा रक) परदारा को वश म लाने का
वशद वणन करता है जसम ती के काय का एक
सवागपूण च हम यहाँ उपल ध होता है। ष
अ धकतरण (वै शक) म वे या , के आचरण,
याकलाप, ध नक को वश म करने के हथकंडे
आ द व णत ह। स तम अ धकरण (औप नष दक) का
वषय वै क शा से संब है। यहाँ उन औषध का
वणन है जनका योग और सेवन करने से शरीर के
दोन व तु क , शोभा और श क , वशेष
अ भवृ होती है। इस उपाय के वै क शा म
"बृ ययोग" कहा गया है।
रचना क से कामसू कौ ट य के "अथशा " के
समान है—चु त, गंभीर, अ पकाय होने पर भी वपुल
अथ से मं डत। दोन क शैली समान ही है —
सू ा मक; रचना के काल म भले ही अंतर है,
अथशा मौयकाल का और कामूसू सातवाहनकाल
अथवा गु तकाल का है।

कामसू के ऊपर चार ट काएँ ा त होती ह-

(1) जयमंगला णेता आचाय यशोधर है ज ह ने


वीसलदे व (1243-61) के रा यकाल म इसका
नमाण कया।
(2) कंदपचूडाम ण बघेलवंशी राजा रामचं के
पु वीरभ दे व ारा वर चत प ब ट का
(रचनाकाल सं. 1633 व मी अथात् सन् 1576
ई.)। यह थ वै जादवजी व मजी आचाय
ारा संपा दत/संशो धत हो कर मु बई के 'गुजराती
ेस' से सं. 1981 व मी अथात् सन् 1924 ई. म
का शत।
(3) ौढ या — काशी थ व ान् सव रशा के
श य भा कर नृ सह ारा 1788 ई. म न मत
ट का।
(4) कामसू ा या — म लदे व नामक व ान
ारा न मत ट का। इनम थम दोन का शत और
स ह, परंतु अं तम दोन ट काय अभी तक
अ का शत है।

कामसू के ऊपर ए का शत समालोचना मक


ंथ न न ह -

कामसू कालीन समाज एवं सं कृ त :- यह


थ डॉ॰ संकषण पाठ ारा वर चत एवं
चौख बा व ाभवन, वाराणसी से का शत है।
कामसू प रशीलन :- यह थ आचाय वाच प त
गैरोला वर चत ारा है।
कामसू का समाजशा ीय अ ययन :- यह
थ पं० दे वद शा ी ारा वर चत है।

प ा ा यायन काल …

म ययुग के लेखक ने कामशा के वषय म अनेक


ंथ का णयन कया। इनका मूल आ य वा यायन
का ही ंथर न है और र त ड़ा के वषय म नवीन
त य वशेष प से न व कए गए ह। ऐसे ंथकार
म क तपय क रचनाएँ या त ा त ह —

अ य का शत कामशा ीय थ
(क) नागरसव व (प ी ान कृत):- कलामम
ा ण व ान वासुदेव से सं े रत होकर बौ भ ु
प ी ान इस थ का णयन कया था। यह
थ ३१३ ोक एवं ३८ प र छे द म नब है।
यह थ दामोदर गु त के "कु नीमत" का नदश
करता है और "नाटकल णर नकोश" एवं
"शार्ंगधरप त" म वयं न द है। इस लए इनका
समय १०व शता द का अंत म वीकृत है।
(ख) अंनंगरंग (क याणम ल कृत):- मु लम
शासक लोद वंशावतंश अहमदखान के पु
लाडखान के कुतूहलाथ भूपमु न के पम स
कला वद ध क याणम ल ने इस थ का णयन
कया था। यह थ ४२० ोक एवं १० थल प
अ याय म नब है।
(ग) र तरह य (को कोक कृत) :- यह थ
कामसू के प ात सरा या तल ध थ है।
पर परा को कोक को क मीरी वीकारती है।
कामसू के सां यो गक, क यासं क,
भाया धका रक, पारदा रक एवं औप नष दक
अ धकरण के आधार पर पा रभ के पौ तथा
तेजोक के पु को कोक ारा र चत यह थ
५५५ ोक एवं १५ प र छे द म नब है। इनके
समय के बारे म इतना ही कहा जा सकता है क
को कोक ७व से १०व शता द के म य ए थे।
यह कृ त जनमानस म इतनी स ई
सवसाधारण कामशा के पयाय के पम
"कोकशा " नाम यात हो गया।
(घ) पंचसायक (क वशेखर यो तरी र कृत)
 :- म थलानरेश ह र सहदे व के सभाप डत
क वशेखर यो तरी र ने ाचीन कामशा ीय ंथ
के आधार हणकर इस ंथ का णयन कया।
३९६ ोक एवं ७ सायक प अ याय म नब
यह थ आलोचक म पया त लोक य रहा है।
आचाय यो तरी र का समय चतुदश शतक के
पूवाध म वीकृत है।
(ड) र तमंजरी (जयदे व कृत)  :- अपने लघुकाय
प म न मत यह ंथ आलोचक म पया त
लोक य रहा है। र तमंजरीकार जयदे व,
गीतगो व दकार जयदे व से पूणतः भ ह। यह
थ डॉ॰ संकषण पाठ ारा ह द भा य स हत
चौखंबा व ाभवन, वाराणसी से का शत है।
(च) मरद पका (मीननाथ कृत)  :- २१६ ोक
म नब यह ंथ ह द अनुवाद स हत चौखंबा
सं कृत सीरीज आ फस, वाराणसी से का शत है।
(छ) र तक लो लनी (सामराज द त कृत)  :-
दा णा य ब पुर दरकुलीन ा ण प रवार म
उ प एवं बु दे लख डनरेश ीमदान दराय के
सभाप डत आचाय सामराज द त ारा १९३
ोक म नब इस थ का णयन संवत १७३८
अथात १६८१ ई० म आ था। यह ंथ ह द
अनुवाद स हत चौखंबा सं कृत सीरीज आ फस,
वाराणसी से का शत है।
(ज) पौ रवसमन सजसू (राज ष पु रवा
कृत)  :-यह ंथ ह द अनुवाद स हत चौखंबा
सं कृत सीरीज आ फस, वाराणसी से का शत है।
(झ) काद बर वीकरणसू (राज ष पु रवा
कृत)  :-यह ंथ ह द अनुवाद स हत चौखंबा
सं कृत सीरीज आ फस, वाराणसी से का शत है।
(ट) शृंगारद पका या शृंगाररस ब धद पका
(ह रहर कृत) :- २९४ ोक एवं ४ प र छे द म
नब यह ंथ ह द अनुवाद स हत चौखंबा
सं कृत सीरीज आ फस, वाराणसी से का शत है।
(ठ) र तर नद पका ( ौढदे वराय कृत) :-
वजयनगर के महाराजा ी इ माद ौढदे वराय
(1422-48 ई.) णीत ४७६ ोक एवं ७
अ याय म नब यह ंथ ह द अनुवाद स हत
चौखंबा सं कृत सीरीज आ फस, वाराणसी से
का शत है। ी इ माद ौढदे वराय का समय
पंचदश शतक के पूवाध म वीकृत है।
(ड) के लकुतूहलम् (पं० मथुरा साद द त
कृत)  :- आधु नक व ान् पं० मथुरा साद द त
ारा ९४८ ोक एवं १६ तरंग प अ याय म
नब यह ंथ ह द अनुवाद स हत कृ णदास
अकादमी, वाराणसी से का शत है।

इन ब श: का शत ंथ के अ त र कामशा क
अनेक अ का शत रचनाएँ उपल ध ह -

तंजोर के राजा शाहजी (1664-1710) क


शृंगारमंजरी;
न यान दनाथ णीत कामकौतुकम्,
र तनाथ च व तन् णीत कामकौमुद ,
जनादन ास णीत काम बोध,
केशव णीत काम ाभ्ऋत,
कु भकणमही (राणा कु भा) णीत
कामराजर तसार,
वरदाय णीत कामान द,
बु क शमा णीत का मनीकलाकोलाहल,
सबल सह णीत कामो लास,
अनंत क कामसमूह,
माधव सहदे व णीत कामो पनकौमुद ,
व ाधर णीत के लरह य,
कामराज णीत मदनोदयसारसं ह,
लभक व णीत मोहनामृत,
कृ णदास व णीत यो नमंजरी,
ह रहरच सूनु णीत र तदपण,
माधवदे वनरे णीत र तसार,
आचाय जग र णीत र सकसव व, आ द।

इन ंथ क रचना से इस शा क ापकता और
लोक यता का पता चलता है।
कामशा ीय रचनाएँ
कामशा से स ब धत थ[1]
थ का नाम नाम का अथ थकार संरचना कस थ का भा य शता द

अनंगद पका Die Leute des


Liebesgottes

अनंग तलक Das


Schönpflästerchen
des Liebesgottes

ई रक मत Das Liebesleben Interpretation des


großer Herren gleichnamigen
Paragraph im
Kamasutra

कलाशा Das Lehrbuch von सर वती


den Künsten

Kalavadatantra Das Lehrbuch von


der Theorie der
Künste

काम बोध[2] Das Erwachen des ास जनादन bezeichnet 2


Liebesgottes verschiedene Werke

कामर न Die Perle des न यनाथ


Liebesgottes

कामसमूह अन त 15.

क दपचूडाम ण Das Stirnjuwel des वीरभ दे व Umwandlung des


Liebesgottes Kamasutra in Arya-
Strophen

कौतुकमंजरी Die Wunderknospe unbekannter Autor Beschreibt das


Verhalten einer
Neuvermählten

मदनसंजीव न Die Beleberin des


Liebesgottes

प मु ावली Perlenschnur in घासीराम Rhetorisches Werk 17.


Versen

र तरह यद पका कांचीनाथ


र तरह यट क[3]

र तसव व Die Gesamtheit


der Liebeslust

मरकामद पका Die Leuchte des Visnvangiras


kämpfenden (auch Visnvangira,
Liebesgottes Visnvangera)

ी वलास Das Scherzen der दे े र


Frauen

कामशा के थ
कस
थ का नाम नाम का अथ थकार संरचना

म लदे व[4] कामस

अनंगरंग (auch Anunga Runga Bühne der Liebe König क याणम ल 10 अ याय र तरह
oder Kamaledhiplava)

अनंगशेखर[1] [5] Das Diadem des


Liebesgottes

बा ाक रका[6] बा

जनवा य[7] König Kallarasa र तरह


von कनाटक

जय दे वद शा ी कामस
(हद

जयमंला (auch सू भा य) यशोधर इ पाद कामस

काद बर वीकारणका रक[6] भरत

काद बर वीकरसू म्[6] [8] Pururava

काम द प[1] Die Leuchte des गुणाकर


Liebesgottes

काम बोध[9] ासजनादन अनंग

कामसमू[9] अन त कामस

कामसू Verse des मलंग वा यायन 36 अ याय


Verlangens

कामतं का म्[6] सूयवर

क दपचूडाम ण[10] Diadem des König वीरभ कामस


Liebesgottes (auch वीरभ दे व)

कु नीमत (auch कु नीमत)[11] Kashmiri-Dichter कामस


दामोदरगु त

मदनाणव[1] [5] Der Wogenschwall unbekannter


des Liebesgottes Autor

मानसो लास[12][13] (auch Glückliche König Fünf Bücher mit


Abhilashitartha Chintâmani, Gemütsverfassung, Bhulokamalla je 20 Kapitel; ein
Abhilashitachintamani, Geistige Someshvara Kamashastra
Abhilasitarthacintamani) Erfrischung oder Somadeva Kapitel, das
III der Châlukya Yoshidupabhoga
Dynastie von (oder
Kalyâni Yosidupabhoga)
(Genuss von
Frauen).

नगरसव व (auch नगरसव व)[14] भ ुप ी (auch 38 अ याय काम


Padmasri, (बौ
Padmashrijnana) र तरस

नमके लकौतुकसंवादः[6] द डी

पंचशायक [6] [14] Fünf Pfeile (des Maithila 5 Kapitel, 600 Ratir
Liebes Gottes) Jyotrishvara Verse
Kavishekhara
(auch
Jyotirîshvara,
Jyotirisha,
Jyotirishvar,
Jyotirisvara)

Paururavasamanasijasutram[6] जयकृ णद त
[15]

ौढ या (या वा यायन सू वृ )[4] भा कर नृ सह (oder कामस


Narasimha)

Rasamanjari (auch Knospe der Liebe Bhânudatta 3 Kapitel


Rasmanjari)[16] Misîra (Provinz
Tirhoot, Sohn
des Dichter-
Brahmanen
Ganeshwar)

र तक लो लनी[17] Fluss der Liebe द त समराज

र तमंजरीi Blumenstrauß der Jayadeva (auch 125 Verse Sma


Liebeslust Jaydev)

र तरह य (या कोकशा ) Geheimnisse der को कोक 800 Verse, 15


Liebe Abschnitte

Ratirahasyavyakhya[18] Ramacandrasuri Ratir

र तरमण Freuden der स नागाजुअ 527 Verse, 11


ehelichen Liebe Abschnitte, 1
Addendum

र तर न द पका Erklärung der ौढ दे वराज, 485 ोक, 7 र तरह


Kleinodien der वजयनगर के अ याय
Liebe महाराजा oder
Immadi
Paudhadevaray

र तसार[1] Due Quintessenz


der Liebeslust

र तशा म्[1] [19] नागाजुन्

र तशा Gattenliebe unbekannter 272 ोक


Autor

समयमातृका[20] Ksemendra Kam

शृंगाररस ब धद पका (auch Die Leuchte für die Kumara Harihara


Ratirahasyavyakhya)[6] [1] [21] verschiedenen
Arten von Liebe

शृंगारद पका[22] ह रहर

मरद पका (auch Licht der Liebe Minanatha (auch 175 Verse र तरह
Katsyamahadeva, Kadra)[1] Kadra, Rudra,
Garga)

मर द पका[23] Illustrationen der गुणाकर, Sohn von 400 Verse


Liebe Vachaspati

मरत व का शका[1] [5] Die Beleuchtung Revanaradhya


des Wesens der
Liebe

शृंगारमंजरी[24][25] Das Bouquet der Saint Akbar Shah


sexuellen
Vergnügungen
सू वृ Naringha Shastri कामस

वा यायनसू सार[1] [22] Die Quintessenz ेमे कामस


der Lehrsätze des
Vatsyayana

इ ह भी दे ख
काम
कामसू
र तरह य
मरद पका
भारत का ल गक इ तहास

बाहरी क ड़याँ
डॉ॰ संकषण पाठ का आलेख – सं कृत
वा य म कामशा क पर परा भाग (1) , भाग
(2) , भाग (3) , भाग (4) , भाग (5) , भाग (6) ,
भाग (7)
कामसू , काद बरी वीकरणसू मंजरी, कु नीमत,
पंचसायक तथा मरद पका पढ़/डाउनलोड कर
ाचीन भारत के कला मक वनोद (हजारी साद
वेद )

स दभ
1. स दभ ु ट: <ref> का गलत योग;
Schmidt नाम के संदभ म जानकारी
नह है।
2. स दभ ु ट: <ref> का गलत योग;
KokaShastra नाम के संदभ म
जानकारी नह है।
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Rasamanjari नाम के संदभ म
जानकारी नह है।
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Ratikallolini नाम के संदभ म
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22. Mai 2009. |accessdate= म
त थ ाचल का मान जाँच (मदद)

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