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Kamakhya-Kavach - Large - (MahabhagavatPuran) - V1-Learn-To Share
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ु से ॥
॥ श्री महा-कामाख्या कवचम्, श्री महाभागवत देवी-पराण (Learn)
ु नमः। ॐ नमः शशवाय।
ॐ गणेशाय नमः। ॐ श्री गरुवे
॥ श्री नारद उवाच ॥
कामरूपे महाक्षेत्र े काऽशिष्ठात्री* महेश्वरी । *=का-अशिष्ठात्री
शवद्यानाां दश-मूर्ततनाां तन्मे ब्रूशह महेश्वर ॥१॥
॥ श्री महादेव उवाच ॥
दशैवतै ा महाशवद्याः क्षेत्रस्था मशु न-सत्तम ।
सािकानाां शहतार्ााय जप-पूजा-फल-प्रदाः ॥२॥
कामाख्या काशलका देवी स्वयमाद्या* सनातनी । *= स्वयम्-आद्या
तस्ाः पाश्वे शस्थताश्चान्या नव-शवद्या महामते ॥३॥ *=शस्थताश्-च-अन्या
सवाशवद्याशिका* काली कामाख्या-रूशपणी यतः। *=सवाशवद्या-आशिका
ततस्ाां तत्र सम्पूज्य पूजशयत्वेष्टदेवताम्* ॥ *=पूजशयत्वा- इष्ट-देवताम्
इष्ट-मन्त्रां जपेद-भक्त्या
् शसद्ध-मन्त्रो भवेत्-तदा ॥३॥
ध्यायताां परमेशानीं कामाख्याां काशलकाां पराम्।
ु श्वरी ।
वामे तारा भगवती दशक्षणे भवने
अग्नौ त ु षोडशीशवद्या न ैरृत्याां भरै वी स्वयम्॥९॥
ु श्वरी ।
वामे तारा भगवती, दशक्षणे भवने
अग्नौ त ु षोडशी-शवद्या, न ैऋत्याां भ ैरवी स्वयम्॥९॥
ु ी।
वायव्ाां शिन्नमस्ा च पृष्ठतो बगलामख
ु
ऐशान्याां सन्दरी शवद्या चोर्ध्ामातङ्गनाशयका ॥१०॥
ु ी।
वायव्ाां शिन्नमस्ा च, पृष्ठ-तो बगलामख
ु
ऐशान्याां सन्दरी शवद्या, च-उर्ध्ा-मातङ्ग-नाशयका॥१०॥
याम्ाां िूमावती शवद्या महापीठस् नारद ।
ु भस्माचलमयः स्वयम्॥११॥
अिस्ाद्भगवानद्रो
याम्ाां िूमावती शवद्या महापीठस् नारद ।
ु भस्माचल-मयः स्वयम्॥११॥
अिस्ाद्-भगवानद्रो
ब्रह्मशवष्णमु ख
ु ाश्चान्ये देवाः शशक्तसमशिताः ।
*=ब्रह्म-शवष्ण-ु मख
ु ाश्-च-अन्ये देवाः शशक्त-समशिताः ।
॥ इशत ध्यान ॥
ु भ े ॥१२॥ *=सांशनशहतास्-तत्र = सांशनशहताःतत्र
सदा सांशनशहतास्त्र* पीठे लोके सदुला
तत्र सम्पूजयेद्-देवीं पशरवार-समशिताम्।
शवशवि ैरुपचारैश्च यर्ाशवभवशवस्रैः॥१३॥
* = शवशवि ैर्-उपचारैश्-च यर्ा-शवभव-शवस्रैः॥१३॥
इच्छन्-देव्ाः पराां प्रीसत, सद्-भक्त्या प्रयतो नरः।
ु नना*-शङ्का शवद्यते मशु न-सत्तम ॥१४॥
न पनजा ु नना
* पन-जा
शबल्व-पत्रां महादेव् ै यो दद्याद्-भशक्त-भाव-तः ।
स साक्षाच्छांकरो ज्ञेयः सवालोके श्वरेश्वरः ॥१५॥
*= स साक्षाच्-िांकरो ज्ञेयः सवा-लोके श्वरेश्वरः॥१५॥
*= स साक्षात्-शांकरो ज्ञेयः सवा-लोके श्वरेश्वरः॥१५॥
शत्र-पत्रां शबल्व-पत्रां त ु ब्रह्म-शवष्ण-ु शशवािकम्*। *=शशव-आिकम्
यदािकशमदां सवं जगत्स्थावरजङ्गमम्॥१६॥
*=यद्-आिकम्-इदां सवं जगत्-स्थावर-जङ्गमम्॥१६॥
Kamakhya-Kavach-BhagvatPuran e2Learn By VRakesh
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।। अङग-न्यास ।।
त्राां हृदयाय नम:, त्रीं हशरसे स्वाहा, त्रांू हशखायै वषट,
त्रैं कवचाय हम, त्रौं नेत्र-त्रयाय वौषट, त्र: अस्त्राय र्ट ।
महादेव जी बोले- हे नारद ,सरु श्रेष्ठ ! भगवती कामाख्या का परम गोपनीय, महाभय को दरू
करने वाला तर्ा सवथमङगल-दायक वह कवच सहु नये ।२७।
हजसकी कृ पा तर्ा स्मरण मात्र से सभी योहगनी, डाहकनीगण, हवघ्नकारी रािहसयाां तर्ा
बाधा उत्पन्न करने वाले ।२८।
अन्य उपद्रव, भख
ू , प्यास, हनद्रा तर्ा उत्पन्न हवघ्नदायक साधक को देखते ही दरू से ही
पलायन कर जाते हैं ।२९।
इस कवच के प्रभाव से मनष्ु य भय रहहत, तेजस्वी तर्ा भैरवतल्ु य हो जाता है।
जप, होम आहद कमों में समासक्त मन वाले भक्त की मत्रां -तत्रां ों में हसहद्घ हनहवथघ्न हो जाती है
।३०।
मख
ु ां सौम्यमख
ु ी पातु ग्रीवाां रितु पावथती ।
हजह्वा रितु मे देवी हजह्वाललनभीषणा ।३७।
भगवती सौम्यमख ु ी मख
ु की, देवी पावथती ग्रीवा (गदथन) की और
हजह्वाललन भीषणा देवी मेरी हजह्वा (जीभ) की रिा करें ।३७।
अवयाहताज्ञ: स भवेत्सवथहवद्याहवशारद:।
सवथत्र लभते सौख्यां मगां लां तु हदनेहदने ।४८।
वह साधक अमोघ आज्ञावाला होकर सभी हवद्याओ ां में प्रवीण हो जाता है, तर्ा वह सभी
जगह हदनोंहदन मङगल और सख ु प्राप्त करता है ।४८।
|| General Information ||
विशेष –
To repeat kavach 3/11/21/51/101 - repeat only Main Part .
विशेष -
माता कामाख्या अवत-सौम्य और अवत-उग्र (दोनो) विद्या में हैं।
यह तन्त्र-मन्त्र-यन्त्र में एक बहुत ही उच्च कोवि की शवि हैं ।
अतः उनके वकसी भी पजू ा, पाठ मन्त्र-जप इत्यावद में, किच पाठ अिश्य करना चावहये ।
यह कामाख्या किच वकसी भी अन्त्य-दश-महाविद्या-माता, चवन्त्िका , दर्ु ाा, यविणी ,
अप्सरा आवद की पजू ा-साधन-जप-मे भी श्रद्धा से पाठ करके अपनी सरु िा वनवित कर
सकते है ।
नोि-
कुछ कवठन शब्द * को वचवन्त्हत करके , उसे "-" से सरल वकया है,
और मलू शब्द के साथ नजदीक ही रखा र्या है,
साधक लोर् दोनो शब्दों को एक ही जर्ह पर देख कर तल ु नात्मक पाठ कर सकें ।
कुछ ही शब्दों का सही तरह से सवं ध-विच्छे द, करने का का प्रयास वकया र्या है ।
अर्र कुछ र्लती/रवु ि हो तो, िमा प्राथी हूँ ।