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Alankar (अलंकार )

Alankar (अलंकार )
अलंकार की पररभाषा, प्रकार, भेद और उदाहरण

अलंकार की पररभाषा

 काव्य की शोभा बढाने वाले तत्त्ों को अलंकार कहते हैं। अलंकार के चार भेद हैं-

1. शब्दालंकार,

2. अर्ाालंकार,

3. उभयालंकार और

4. पाश्चात्य अलंकार।

अलंकार का वििेचन

शब्दालंकार
काव्य में शब्दगत चमत्कार को शब्दालंकार कहते हैं। शब्दालंकार मुख्य रुप से सात हैं, जो
ननम्न प्रकार हैं-अनुप्रास, यमक, श्लेष, वक्रोक्ति, पुनरुक्तिप्रकाश, पुनरुक्तिवदाभास और
वीप्सा आनद।

1. अनुप्रास अलंकार

एक या अनेक वगों की पास-पास तर्ा क्रमानुसार आवृनि को ‘अनुप्रास अलंकार’ कहते हैं।
इसके पााँच भेद हैं-
(i) छे कानुप्रास जहााँ एक या अनेक वणों की एक ही क्रम में एक बार आवृनि हो वहााँ
छे कानुप्रास अलंकार होता है;

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जैसे-
“इस करुणा कनलत हृदय में,
अब नवकल रानगनी बजती”

यहााँ करुणा कनलत में छे कानुप्रास है।

(ii) वृत्यानुप्रास काव्य में पााँच वृनियााँ होती हैं-मधुरा, लनलता, प्रौढा, परुषा और भद्रा। कुछ
नवद्वानों ने तीन वृनियों को ही मान्यता दी है-उपनागररका, परुषा और कोमला। इन वृनियों
के अनुकूल वणा साम्य को वृत्यानुप्रास कहते हैं;

जैसे-
‘कंकन, नकंनकनन, नूपुर, धुनन, सुनन’

यहााँ पर ‘न’ की आवृनि पााँच बार हुई है और कोमला या मधुरा वृनि का पोषण हुआ है।
अत: यहााँ वृत्यानुप्रास है।

(iii) श्रुत्यनुप्रास जहााँ एक ही उच्चारण स्र्ान से बोले जाने वाले वषों की आवृनि होती है, वहााँ
श्रुत्यनुप्रास अलंकार होता है;

जैसे-
तुलसीदास सीदनत नननसनदन दे खत तुम्हार ननठु राई’

यहााँ ‘त’, ‘द’, ‘स’, ‘न’ एक ही उच्चारण स्र्ान (दन्त्य) से उच्चररत होने। वाले वषों की कई
बार आवृनि हुई है, अत: यहााँ श्रुत्यनुप्रास अलंकार है।

(iv) अन्त्यानुप्रास अलंकार जहााँ पद के अन्त के एक ही वणा और एक ही स्वर की आवृनि


हो, वहााँ अन्त्यानुप्रास अलंकार होता है;

जैसे-
“जय हनुमान ज्ञान गुन सागर।
जय कपीश नतहुाँ लोक उजागर”।

यहााँ दोनों पदों के अन्त में ‘आगर’ की आवृनि हुई है , अत: अन्त्यानुप्रास अलंकार है।

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(v) लाटानुप्रास जहााँ समानार्ाक शब्दों या वाक्ांशों की आवृनि हो परन्तु अर्ा में अन्तर हो,
वहााँ लाटानुप्रास अलंकार होता है;

जैसे-
“पूत सपूत, तो क्ों धन संचय?
पूत कपूत, तो क्ों धन संचय”?

यहााँ प्रर्म और नद्वतीय पंक्तियों में एक ही अर्ा वाले शब्दों का प्रयोग हुआ, है परन्तु प्रर्म
और नद्वतीय पंक्ति में अन्तर स्पष्ट है, अतः यहााँ लाटानुप्रास अलंकार है।

2. यमक अलंकार

जहााँ एक शब्द या शब्द समूह अनेक बार आए नकन्तु उनका अर्ा प्रत्येक बार नभन्न हो, वहााँ
यमक अलंकार होता है;

जैसे-
“जेते तुम तारे , तेते नभ में न तारे हैं”

यहााँ पर ‘तारे ’ शब्द दो बार आया है। प्रर्म का अर्ा ‘तारण करना’ या ‘उद्धार करना’ है और
नद्वतीय ‘तारे ’ का अर्ा ‘तारागण’ है, अतः यहााँ यमक अलंकार है।

3. श्लेष अलंकार

जहााँ एक ही शब्द के अनेक अर्ा ननकलते हैं, वहााँ श्लेष अलंकार होता है ;

जैसे-
“रनहमन पानी राक्तखए नबन पानी सब सून।
पानी गए न ऊबरै , मोती मानुष चून।।”

यहााँ ‘पानी’ के तीन अर्ा हैं—’काक्तन्त’, ‘आत्मसम्मान’ और ‘जल’, अत: यहााँ श्लेष अलंकार
है।

4. िक्रोक्ति अलंकार

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जहााँ पर विा द्वारा नभन्न अनभप्राय से व्यि नकए गए कर्न का श्रोता ‘श्लेष’ या ‘काकु’
द्वारा नभन्न अर्ा की कल्पना कर लेता है, वहााँ वक्रोक्ति अलंकार होता है। इसके दो भेद हैं-
श्लेष वक्रोक्ति और काकु वक्रोक्ति।

(i) श्लेष वक्रोक्ति जहााँ शब्द के श्लेषार्ा के द्वारा श्रोता विा के कर्न से नभन्न अर्ा अपनी
रुनच या पररक्तस्र्नत के अनुकूल अर्ा ग्रहण करता है, वहााँ श्लेष वक्रोक्ति अलंकार होता है;

जैसे-
“नगरजे तुव नभक्षु आज कहााँ गयो,
जाइ लखौ बनलराज के द्वारे ।
व नृत्य करै ननत ही नकत है,
ब्रज में सक्तख सूर-सुता के नकनारे ।
पशुपाल कहााँ? नमनल जाइ कहाँ,
वह चारत धेनु अरण्य माँझारे ।।”

(ii) काकु वक्रोक्ति जहााँ नकसी कर्न का कण्ठ की ध्वनन के कारण दू सरा __ अर्ा ननकलता
है, वहााँ काकु वक्रोक्ति अलंकार होता है;
जैसे-
“मैं सुकुमारर, नार् वन जोगू।
तुमनहं उनचत तप मो कहाँ भोगू।”

5. पुनरुक्तिप्रकाश

इस अलंकार में कर्न के सौन्दया के बहाने एक ही शब्द की आवृनि को पुनरुक्तिप्रकाश


कहते हैं;

जैसे-
“ठौर-ठौर नवहार करती सुन्दरी सुरनाररयााँ।”

यहााँ ‘ठौर-ठौर’ की आवृनि में पुनरुक्तिप्रकाश है। दोनों ‘ठौर’ का अर्ा एक ही . है परन्तु
पुनरुक्ति से कर्न में बल आ गया है।

6. पुनरुक्तििदाभास

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जहााँ कर्न में पुनरुक्ति का आभास होता है, वहााँ पुनरुक्तिवदाभास अलंकार होता है;

जैसे-
“पुनन निरर राम ननकट सो आई।”

यहााँ ‘पुनन’ और ‘निरर’ का समान अर्ा प्रतीत होता है, परन्तु पु नन का अर्ा -पुन: (निर) है
और ‘निरर’ का अर्ा-लौटकर होने से पुनरुक्तिावदाभास अलंकार है।

7. िीप्सा

जब नकसी कर्न में अत्यन्त आदर के सार् एक शब्द की अनेक बार आवृनि होती है तो वहााँ
वीप्सा अलंकार होता है;

जैसे-
“हा! हा!! इन्हें रोकन को टोक न लगावो तुम।”

यहााँ ‘हा!’ की पुनरुक्ति द्वारा गोनपयों का नवरह जननत आवेग व्यि होने से वीप्सा अलंकार
है।

अर्ाालंकार

 सानहत्य में अर्ागत चमत्कार को अर्ाालंकार कहते हैं। प्रमुख अर्ाालंकार मुख्य रुप से
तेरह हैं-उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा, भ्राक्तन्तमान, सन्दे ह, दृष्टान्त, अनतशयोक्ति, नवभावना,
अन्योक्ति, नवरोधाभास, नवशेषोक्ति, प्रतीप, अर्ाान्तरन्यास आनद।

1. उपमा

समान धमा के आधार पर जहााँ एक वस्तु की समानता या तुलना नकसी दू सरी वस्तु से की
जाती है, वहााँ उपमा अलंकार होता है। उपमा के चार अंग हैं

1. उपमेय वणानीय वस्तु नजसकी उपमा या समानता दी जाती है, उसे ‘उपमेय’ कहते हैं;
जैसे-उसका मुख चन्द्रमा के समान सुन्दर है। वाक् में ‘मुख’ की चन्द्रमा से समानता
बताई गई है, अत: मुख उपमेय है।

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2. उपमान नजससे उपमेय की समानता या तुलना की जाती है उसे उपमान कहते हैं;
जैसे-उपमेय (मुख) की समानता चन्द्रमा से की गई है, अतः चन्द्रमा उपमान है।

3. साधारण धमा नजस गुण के नलए उपमा दी जाती है, उसे साधारण धमा कहते हैं। उि
उदाहरण में सुन्दरता के नलए उपमा दी गई है , अत: सुन्दरता साधारण धमा है।

4. वाचक शब्द नजस शब्द के द्वारा उपमा दी जाती है, उसे वाचक शब्द कहते हैं।
उपयुाि उदाहरण में समान शब्द वाचक है। इसके अलावा ‘सी’, ‘सम’, ‘सररस’
सदृश शब्द उपमा के वाचक होते हैं। उपमा के तीन भेद हैं–पूणोपमा, लुप्तोपमा और
मालोपमा।

(क) पूणोपमा जहााँ उपमा के चारों अंग नवद्यमान हों वहााँ पूणोपमा अलंकार होता है ;

जैसे-
हररपद कोमल कमल से”

(ख) लुप्तोपमा जहााँ उपमा के एक या अनेक अंगों का अभाव हो वहााँ लुप्तोपमा अलंकार
होता है;

जैसे-
“पडी र्ी नबजली-सी नवकराल।
लपेटे र्े घन जैसे बाल”।

(ग) मालोपमा जहााँ नकसी कर्न में एक ही उपमेय के अनेक उपमान होते हैं वहााँ मालोपमा
अलंकार होता है।

जैसे-
“चन्द्रमा-सा काक्तन्तमय, मृदु कमल-सा कोमल महा
कुसुम-सा हाँसता हुआ, प्राणेश्वरी का मुख रहा।।”

2. रूपक

जहााँ उपमेय में उपमान का ननषेधरनहत आरोप हो अर्ाात् उपमेय और उपमान को एक


रूप कह नदया जाए, वहााँ रूपक अलंकार होता है;

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जैसे-
“बीती नवभावरी जाग री।
अम्बर-पनघट में डु बो रही तारा-घट ऊषा-नागरी”।

यहााँ अम्बर-पनघट, तारा-घट, ऊषा-नागरी में उपमेय उपमान एक हो गए हैं, अत: रूपक
अलंकार है।

3. उत्प्रेक्षा

जहााँ उपमेय में उपमान की सम्भावना व्यि की जाए वहााँ उत्प्रेक्षा अलंकार होता है। इसमें
जनु , मनु, मानो, जानो, इव, जैसे वाचक शब्दों का प्रयोग होता है। उत्प्रेक्षा के तीन भेद हैं-
वस्तूत्प्रेक्षा, हेतूत्प्रेक्षा और िलोत्प्रेक्षा।

(i) वस्तूत्प्रेक्षा जहााँ एक वस्तु में दू सरी वस्तु की सम्भावना की जाए वहााँ वस्तूत्प्रेक्षा होती है;

जैसे-
“उसका मुख मानो चन्द्रमा है।”

(ii) हेतृत्प्रेक्षा जब नकसी कर्न में अवास्तनवक कारण को कारण मान नलया जाए तो
हेतूत्प्रेक्षा होती है;

जैसे-
“नपउ सो कहेव सन्दे सडा, हे भौंरा हे काग।
सो धनन नवरही जररमुई, तेनहक धुवााँ हम लाग”।।

यहााँ कौआ और भ्रमर के काले होने का वास्तनवक कारण नवरनहणी के नवरहानि में जल कर
मरने का धुवााँ नहीं हो सकता है निर भी उसे कारण माना गया है अत: हेतूत्प्रेक्षा अलंकार
है।

(iii) िलोत्प्रेक्षा जहााँ अवास्तनवक िल को वास्तनवक िल मान नलया जाए, वहााँ िलोत्प्रेक्षा
होती है;

जैसे-
“नानयका के चरणों की समानता प्राप्त करने के नलए कमल जल में तप रहा है।”
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यहााँ कमल का जल में तप करना स्वाभानवक है। चरणों की समानता प्राप्त करना वास्तनवक
िल नहीं है पर उसे मान नलया गया है, अतः यहााँ िलोत्प्रेक्षा है।

4. भ्राक्तिमान

जहााँ समानता के कारण एक वस्तु में नकसी दू सरी वस्तु का भ्रम हो, वहााँ भ्राक्तन्तमान
अलंकार होता है;

जैसे-
“पायाँ महावर दे न को नाइन बैठी आय।
निरर-निरर जानन महावरी, एडी मीडनत जाय।।”

यहााँ नाइन को एडी की स्वाभानवक लानलमा में महावर की काल्पननक प्रतीनत हो रही है,
अत: यहााँ भ्राक्तन्तमान अलंकार है।

5. सन्दे ह

जहााँ अनत सादृश्य के कारण उपमेय और उपमान में अननश्चय की क्तस्र्नत बनी रहे अर्ाात्
जब उपमेय में अन्य नकसी वस्तु का संशय उत्पन्न हो जाए, तो वहााँ सन्दे ह अलंकार होता है;

जैसे-
“सारी बीच नारी है या नारी बीच सारी है,
नक सारी की नारी है नक नारी की ही सारी।”

यहााँ उपमेय में उपमान का संशयात्मक ज्ञान है अतः यहााँ सन्दे ह अलंकार है। 6. दृष्टान्त जहााँ
नकसी बात को स्पष्ट करने के नलए सादृश्यमूलक दृष्टान्त प्रस्तुत नकया जाता है, वहााँ दृष्टान्त
अलंकार होता है;

जैसे-
“मन मलीन तन सुन्दर कैसे।
नवषरस भरा कनक घट जैसे।।”

यहााँ उपमेय वाक् और उपमान वाक् में नबम्ब-प्रनतनबम्ब का भाव है अतः यहााँ दृष्टान्त
अलंकार है।

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7. अविशयोक्ति

जहााँ नकसी नवषयवस्तु का उक्ति चमत्कार द्वारा लोकमयाादा के नवरुद्ध बढा-चढाकर वणान
नकया जाता है, वहााँ अनतशयोक्ति अलंकार होता है;

जैसे-
हनुमान की पूाँछ में, लगन न पाई आग।
सारी लंका जरर गई, गए ननशाचर भाग।”

यहााँ हनुमान की पूंछ में आग लगने के पहले ही सारी लंका का जलना और राक्षसों के भागने
का बढा-चढाकर वणान होने से अनतशयोक्ति अलंकार है।

8. विभािना

जहााँ कारण के नबना काया के होने का वणान हो, वहााँ नवभावना अलंकार होता है;

जैसे-
“नबनु पग चलइ सुनइ नबनु काना।
कर नबनु करम करै नवनध नाना।।
आनन रनहत सकल रस भोगी।
नबनु बानी विा बड जोगी।।”

यहााँ पैरों के नबना चलना, कानों के नबना सुनना, नबना हार्ों के नवनवध कमा करना, नबना मुख
के सभी रस भोग करना और वाणी के नबना विा होने का उल्लेख होने से नवभावना
अलंकार है।

9. अन्योक्ति

जहााँ नकसी वस्तु या व्यक्ति को लक्ष्य कर कही जाने वाली बात दू सरे के नलए कही जाए, वहााँ
अन्योक्ति अलंकार होता है;

जैसे-
“ननहं पराग ननहं मधुर मधु, ननहं नवकास एनह काल।
अली कली ही सो नबंध्यौ, आगे कौन हवाल।।”
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यहााँ पर अप्रस्तुत के वणान द्वारा प्रस्तुत का बोध कराया गया है अतः यहााँ अन्योक्ति अलंकार
है।

10. विरोधाभास

जहााँ वास्तनवक नवरोध न होने पर भी नवरोध का आभास हो वहााँ नवरोधाभास अलंकार होता
है;

जैसे-
“या अनुरागी नचि की, गनत सम्झै ननहं कोय।
ज्ों ज्ों बूडै स्याम रं ग, त्यों त्यों उज्ज्वल होय।।”

यहााँ पर श्याम (काला) रं ग में डूबने से उज्ज्वल होने का वणान है अतः यहााँ नवरोधाभास
अलंकार है।

11. विशेषोक्ति

जहााँ कारण के रहने पर भी काया नहीं होता है वहााँ नवशेषोक्ति अलंकार होता है;

जैसे-
“पानी नबच मीन नपयासी।
मोनह सुनन सुनन आवै हासी।।”

12. प्रिीप

प्रतीप का अर्ा है-‘उल्टा या नवपरीत’। जहााँ उपमेय का कर्न उपमान के रूप में तर्ा
उपमान का उपमेय के रूप में नकया जाता है, वहााँ प्रतीप अलंकार होता है;

जैसे-
“उतरर नहाए जमुन जल, जो शरीर सम स्याम”

यहााँ यमुना के श्याम जल की समानता रामचन्द्र के शरीर से दे कर उसे उपमेय बना नदया है,
अतः यहााँ प्रतीप अलंकार है।

13. अर्ाािरन्यास

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जहााँ नकसी सामान्य बात का नवशेष बात से तर्ा नवशेष बात का सामान्य बात से समर्ान
नकया जाए, वहााँ अर्ाान्तरन्यास अलंकार होता है;

जैसे-
“सबै सहायक सबल के, कोउ न ननबल सुहाय।
पवन जगावत आग को, दीपनहं दे त बुझाय।।”

उभयालंकार

 जो शब्द और अर्ा दोनों में चमत्कार की वृक्तद्ध करते हैं, उन्हें उभयालंकार कहते हैं।
इसके दो भेद हैं

(i) संकर जहााँ पर दो या अनधक अलंकार आपस में ‘नीर-क्षीर’ के समान सापेक्ष रूप से
घुले-नमले रहते हैं, वहााँ ‘संकर’ अलंकार होता है;

जैसे-
“नाक का मोती अधर की काक्तन्त से,
बीज दानडम का समझकर भ्राक्तन्त से।
दे खकर सहसा हुआ शुक मौन है,
सोचता है अन्य शुक यह कौन है?”

(ii) संसृनष्ट जहााँ दो अर्वा दो से अनधक अलंकार परस्पर नमलकर भी स्पष्ट रहें , वहााँ ‘संसृनष्ट’
अलंकार होता है;

जैसे
नतरती गृह वन मलय समीर,
सााँस, सुनध, स्वप्न, सुरनभ, सुखगान।
मार केशर-शर, मलय समीर,
ह्रदय हुलनसत कर पुलनकत प्राण।

पाश्चात्य अलंकार

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 नहन्दी सानहत्य पर पाश्चात्य प्रभाव पडने के िलस्वरूप पाश्चात्य अलंकारों का समावेश
हुआ है। प्रमुख पाश्चात्य अलंकार है-मानवीकरण, भावोक्ति, ध्वन्यात्मकता और नवरोध
चमत्कार। परीक्षा की दृनष्ट से मानवीकरण अलंकार ही महत्त्पूणा है, इसनलए यहााँ
उसी का नववरण नदया गया है। मानवीकरण जहााँ प्रकृनत पदार्ा अर्वा अमूता भावों
को मानव के रूप में नचनित नकया जाता है, वहााँ मानवीकरण अलंकार होता है;

जैसे-
“नदवसावसान का समय, मेघमय आसमान से उतर रही है।
वह संध्या-सुन्दरी परी-सी, धीरे -धीरे -धीरे ।”

यहााँ संध्या को सुन्दर परी के रूप में नचनित नकया गया है, अत: यहााँ मानवीकरण अलंकार
है।

***************
अलंकार मध्यान्तर प्रश्नावला
प्रश्न 1.
‘सन्दे सनन मधुबन-कूप भरे ’ में कौन-सा अलंकार है? (उिराखण्ड समूह-ग भती परीक्षा
2014)
(a) उपमा (b) अनतशयोक्ति (c) अनुप्रास (d) इनमें से कोई नहीं
उिर :
(a) उपमा

प्रश्न 2.
‘काली घटा का घमण्ड घटा’ उपरोि पंक्ति (राजस्व नवभाग उ.प्र. लेखपाल भती परीक्षा
20।ऽ)
(a) रूपक (b) यमक (c) उपमा (d) उत्प्रेक्षा
उिर :
(b) यमक

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प्रश्न 3.
“अम्बर-पनघट में डु बो रही, तारा-घट ऊषा-नागरी’ में कौन-सा अलंकार है? (राजस्व
नवभाग, उ.प्र. लेखपाल भती परीक्षा 2015)
(a) श्लेष (b) रूपक (c) उपमा (d) अनुप्रास
उिर :
(b) रूपक

प्रश्न 4.
‘उनदत उदय-नगरर मंच पर रघुबर बाल पतंग’ में कौन-सा अलंकार है? (छिीसगढ नसनवल
सेवा प्रारक्तम्भक परीक्षा 2013)
(a) उपमा (b) रूपक (c) उत्प्रेक्षा (d) भ्राक्तन्तमान
उिर :
(a) उपमा

प्रश्न 5.
‘क्तखली हुई हवा आई निरकी सी आई, चली गई पंक्ति में अलं (यू.पी.एस.एस.सी. कननष्ठ
सहायक परीक्षा 2015)
(a) सम्भावना (b) उत्प्रेक्षा (c) उपमा (d) अनुप्रास
उिर :
(c) उपमा

प्रश्न 6.
“पापी मनुज भी आज मुख से, राम नाम ननकालते’ इस काव्य पंक्ति में अलंकार है
(यू.पी.एस.एस.सी. कननष्ठ सहायक परीक्षा 2015)
(a) नवभावना (b) उदाहरण (c) नवरोधाभास (d) दृष्टान्त
उिर :
(c) नवरोधाभास

प्रश्न 7.
“नदवसावसान का समय मेघमय आसमान से उतर रही है वह संध्या सुन्दरी परी-सी धीरे -

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धीरे -धीरे ।” उपरोि पंक्तियों में अलंकार है (उप-ननरीक्षक सीधी भती परीक्षा 2014)
(a) उपमा (b) रूपक (c) यमक (d) इनमें से कोई नहीं
उिर :
(d) इनमें से कोई नहीं

प्रश्न 8.
“तरनन तनूजा तट तमाल तरुवर बहु छाए।” उपरोि पंक्तियों में कौन-सा अलंकार है?
(उप-ननरीक्षक सीधी भती परीक्षा 2014)
(a) यमक (b) उत्प्रेक्षा (c) उपमा (d) अनुप्रास
उिर :
(d) अनुप्रास

प्रश्न 9.
‘अब रही गुलाब में अपत कटीली डार।’ उपरोि पंक्ति में अलंकार है (उप-ननरीक्षक सीधी
भती परीक्षा 2014)
(a) रूपक (b) यमक (c) अन्योक्ति (d) पुनरुक्ति
उिर :
(c) अन्योक्ति

प्रश्न 10.
“पट-पीत मानहुाँ तनडत रुनच, सुनच नौनम जनक सुतावरं ।” उपरोि पंक्ति में अलंकार है
(उप-ननरीक्षक सीधी भती परीक्षा 2014)
(a) उपमा (b) रूपक (c) उत्प्रेक्षा (d) उदाहरण
उिर :
(c) उत्प्रेक्षा

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