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िं ी
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पेपPAPER
र 1 2
1 2
स्र्र
स्वर (vowel) उि ध्वनियों को कहते हैं जो बबिा ककसी अन्य वर्ों की सहायता के
उच्चाररत ककये जाते हैं। स्वतंत्र रूप से बोिे जािे वािे वर्ण,स्वर कहिाते हैं। हहन्दी भाषा
में मि
ू रूप से ग्यारह स्वर होते हैं। अ,आ,इ,ई,उ,ऊ,ऋ,ए,ऐ,ओ,औ आहद। हहन्दी भाषा में
ऋ को आधा स्वर (अधणस्वर) मािा जाता है , अतः इसे स्वर में शालमि ककया गया है ।
अग्रस्र्र :- जजि स्वरों के उच्चारर् में जजह्वा का आगे का भाग सकिय होता है उसे अग्रिश्वर
कहते हैं। जैसे- ई ,ए,ऐ ,अ, इ
पश्चस्र्र :- जजि स्वरों के उच्चारर् में जजह्ववा का पीछे का भाग सकिय होता है उससे पश्च
स्वर कहा जाता है । जैसे- आ,उ,ऊ,ओ,औ,ऑ।
सिंर्ि
ृ स्र्र :- संवत
ृ का अर्ण होता है " कम िि
ु िा" अर्ाणत जजि स्वरों के उच्चारर् में मि
ु कम
िुिता है उन्हें संवत
ृ स्वर कहते हैं। जैसे-ई,ऊ
स्र् स्र्र :- जजि स्वरों के उच्चारर् में एक मात्रा का समय अर्ाणत कम समय िगता है । उन्हें
हस्व स्वर कहते हैं। जैसे- अ,इ,उ, ऋ।
दीघव स्र्र :- जजि स्वरों के उच्चारर् में 2 मात्राओं का या 1 मात्रा से अग्रधक का समय िगता है ,
उन्हें दीर्ण स्वर कहते हैं। जैसे- आ,ई,ऊ,ए,ऐ,ओ,औ।
िुप्ि स्र्र :- जजि स्वरों के उच्चारर् में दो मात्राओं से भी अग्रधक समय िगे िुप्त स्वर
कहिाते हैं। जैसे- ओ३म ्
स्र्र
हस्व स्वर अ,इ,उ, ऋ
दीर्ण स्वर आ,ई,ऊ,ए,ऐ,ओ,औ
अधण स्वर इ,उ आ,ऐ,औ
वत्तृ ाकार स्वर आ,उ,ऊ,ओ,औ
मिू स्वर अ,इ,उ,ऋ
अि स्वर इ, ई ,ए,ऐ,
मध्य स्वर अ
पश्च स्वर आ,उ,ऊ,ओ,औ,ऑ
संवतृ स्वर ई,ऊ
व्यिंजन
स्वरों की सहायता से बोिे जािे वािे वर्ण व्यंजि कहिाते हैं।
व्यिंजन के भेद
उच्चारर् की दृष्टट से व्यिंजन चार प्रकार के ोिे ैं।
1. स्पशण व्यंजि
2. अन्त:स्र् व्यंजि
3. उष्म व्यंजि
4. संयक्
ु त व्यंजि
क वगण में क ि ग र् ङ,
(2) अन्ि:स्थ व्यिंजन :- जजि वर्ों का उच्चारर् स्वरों और व्यंजिों के बीच जस्र्त हो उसे
अन्तःस्र् व्यंजि कहते हैं। यानि जजि व्यंजिों का उच्चारर् करते समय भीतर से बाहर की ओर
शजक्त िगती है
(3) उटम व्यिंजन :- जजि व्यंजिों के उच्चारर् में हवा के रगड़ िािे से ऊष्मा निकिती है उसे
उष्म व्यंजि कहते हैं।
श, ष, स, ह
(4) सिंयक्ट्
ु ि व्यिंजन :- दो व्यंजिों के मेि से बिा व्यंजि संयक्
ु त व्यंजि कहिाता है ।
सिंयक्ट्
ु ि व्यिंजन की सिंख्या चार ै ।
क्ष = क् + ष
त्र = त ् + र
ज्ञ = ज ् + ञ
श्र = श ् + र
अल्पप्रार्
म ाप्रार्।
2. म ाप्रार् :- जजि वर्ो के उच्चारर् में श्वास वायु अग्रधक मात्रा में मि
ु से बाहर निकिती है
उन्हें महाप्रार् ध्वनियााँ कहते है । प्रत्येक वगण का दस
ू रा और चौर्ा वर्ण (ि , र् , छ , झ आहद)
तर्ा श , ष , स , ह महाप्रार् है ।
ह द
िं ी के र्र्ो का उनके उच्चारर् स्थान के आिार पर र्गीकरर्
कण्ठ्य र्र्व:- जजि वर्ो का उच्चारर् कंठ से होता है। कंठ से उच्चाररत वर्ण जैसे - अ ,
आ (स्वर) , क, ि , ग, र्, ङ (व्यंजि) और ववसगण (:)
िािव्य र्र्व :- जजि वर्ो के उच्चारर् में जजहवा का मध्य भाग तािु से स्पशण करता है ।
उन्हें तािव्य वर्ण कहते है । तािु से उच्चाररत वर्ण जैसे - इ , ई(स्वर) , च, छ, ज, झ, ञ ,
य , श (व्यंजि)
मूर्दविन्य र्र्व :- जजि वर्ो के उच्चारर् मर्दू णधा से होता है। उन्हें मर्द
ू णधन्य वर्ण कहते है ।
मर्द
ू णधा से उच्चाररत वर्ण जैसे- ऋ (स्वर) , ट, ठ, ड, ढ, र्, र, ष (व्यंजि)
दन्त्य र्र्व :- जजि वर्ो के उच्चारर् में जजहवा का अि भाग दन्त से स्पशण करता है।
उन्हें दन्त्य वर्ण कहते है । दन्त से उच्चाररत वर्ण जैसे- ि ृ , त, र्, द, ध, ि, ि, स (सभी
व्यंजि)
ओट्य र्र्व :- जजि वर्ो के उच्चारर् में दोिों होठ स्पशण करते है। उन्हें ओष््य वर्ण
कहते है । ओष्ठ से उच्चाररत वर्ण जैसे- उ ,ऊ (स्वर) , प, फ, ब, भ, म (व्यंजि)
नालसक्ट्य र्र्व :- जजि वर्ो का उच्चारर् माँहु और िाक दोिों से होता है। उन्हें िालसक्य
वर्ण कहते है । िालसका से उच्चाररत वर्ण जैसे -अं , ङ, ञ , र् , ि , म
किंठिािव्य र्र्व :- जजि वर्ो के उच्चारर् में कंठ तर्ा तािु दोिों का सहयोग होता है।
उन्हें कंठतािव्य वर्ण कहते है । कंठ-तािु से उच्चाररत वर्ण जैसे -ए , ऐ
किंठोट्य र्र्व :- जजि वर्ो के उच्चारर् में कंठ तर्ा ओष्ठ दोिों का सहयोग होता है।
उन्हें कंठोष््य वर्ण कहते है । कंठ-ओष्ठ से उच्चाररत वर्ण जैसे - ओ , औ
दन्िोट्य र्र्व :- जजि वर्ो के उच्चारर् में दन्त तर्ा ओष्ठ दोिों का सहयोग होता
है । उन्हें दन्तोष््य वर्ण कहते है । दन्त-ओष्ठ से उच्चाररत वर्ण जैसे - व
र्त्स्यव र्र्व :- जजि अरबी-फ़ारसी वर्ो के उच्चारर् ऊपर वािे मसूड़ों के कठोरतम भाग
से होते है , उन्हें वत्स्यण वर्ण कहते है । वत्स्यण से उच्चाररत वर्ण जैसे - फ़ और ज़।
ष्जह्र्ामि
ू क र्र्व :- जजि अरबी -फ़ारसी वर्ो का उच्चारर् जजहवा के पीछे के भाग से
होता है । उन्हें जजह्वामि
ू क वर्ण कहते है । जजह्वामि
ू क से उच्चाररत वर्ण जैसे - क़ , ख़
और ग़।
अलिष्जह्र्ा/ काकल्य र्र्व :- जजि वर्ो के उच्चारर् में मि
ु िि
ु ा रहता है , तर्ा वायु
कंठ को िोिकर झटके से बाहर निकिती है । उन्हें अलिजजह्वा वर्ण या काकल्य वर्ण
कहते है । जैसे - ह।
3. मर्द
ू णधा (मर्द
ू णधन्य) - ऋ , ट वगण (ट ठ ड ढ र्) , र , ष
6. िालसका (िालसक्य) - अं , ङ, ञ , र् , ि , म
9. दन्त-ओष्ठ (दन्तोष््य) -व
र्ाक्ट्य
भावों और ववकारों को पूर्त
ण ः व्यक्त करिे वािे सार्णक शब्द समह
ू ों को वाक्य कहते हैं।
र्ाक्ट्य के अिंग
उर्ददे श्य
वर्िेय
उर्ददे श्य :- वाक्य में जजस व्यजक्त या वस्तु के सम्बन्ध में कुछ बताया जाता है ,उसे उर्ददे श्य
कहते है । उर्ददे श्य में कताण तर्ा उसका ववशेषर् होता है ।
जैसे :- सोहि िेि रहा है ।
इस वाक्य में सोहि उर्ददे श्य है क्योकक इसके बारे में कुछ बताया जा रहा है ।
वर्िेय :- उर्ददे श्य के ववषय में जो कुछ भी बताया जाता है , वह ववधेय होता है । इसमें किया कमण
तर्ा उिका ववस्तार होता है ।
उदाहरर् – ये कवव अच्छी कववताएं लििता है ।
इस वाक्य में ये कवव – उर्ददे श्य है , क्योंकक उसके ववषय में कुछ कहा जा रहा है ।
कववताएाँ लििता है – ववधेय है , क्योंकक इसमें वे बातें हैं, जो कवव के ववषय में कही गई हैं।
वर्िानर्ाचक र्ाक्ट्य :- वे वाक्य जजिमें किया के होिे या करिे की बात कही गई हो , उन्हें
ववधािवाचक वाक्य कहते हैं।
उदा रर्
सय
ू ण पूरब से निकिता है ।
बच्चे रोज ववर्दयािय जाते हैं।
ननषेिर्ाचक र्ाक्ट्य :- वे वाक्य जजिमें किया के ि होिे या ि करिे का बोध हो, उसे
निषेधवाचक वाक्य या िकारात्मक वाक्य कहते हैं।
उदा रर्
बच्चे रोज स्कूि िहीं जाते हैं।
हम अब र्म
ू िे िहीं जाएंगे।
प्रश्नर्ाचक र्ाक्ट्य :- जजि वाक्यों में प्रश्ि ककया जाता है ,उन्हें प्रश्िवाचक वाक्य कहते हैं।
उदा रर्
आज तम
ु िे क्या िाया ?
आजकि वह क्यों परे शाि रहते है ?
उदा रर्
यहद वह समय पर स्टे शि पहुाँच गया होता तो उसकी गाडी ि निकिती ।
अचे काम करोगे तो अच्छा ही फि लमिेगा ।
सिंदे र्ाचक र्ाक्ट्य :- जजि वाक्यों में संदेह या संभाविा पाई जाए,उन्हें संदेहवाचक वाक्य
कहते हैं।
उदा रर्
शायद आज बाररश हो जाए ।
अब तक भैया र्र पहुाँच चक
ु े होंगे।
इच्छार्ाचक र्ाक्ट्य :- जजि वाक्यों में वक्ता की इच्छा, कामिा, शुभकामिा, आशा, आशीवाणद
आहद के भाव प्रकट हों, उन्हें इच्छावाचक वाक्य कहते हैं।
उदा रर्
ईश्वर आपकी मिोकामिा पूरी करे ।
आपकी यात्रा मंगिमय हो।
आज्ञार्ाचक र्ाक्ट्य :- जजि वाक्यों से आज्ञा, अिरु ोध, आदे श, प्रार्णिा आहद के भाव प्रकट हों,
उन्हें आज्ञावाचक वाक्य कहते हैं।
उदा रर्
आप मेरे पास आकर बैहठये ।
कृपया आप यहााँ हस्ताक्षर कर दे ।
उदा रर्
वाह! इसे िा कर मजा आ गया ।
हाय! बेचारा भक
ू ा ही सो गया।
सिंयुक्ट्ि र्ाक्ट्य :- जजि वाक्यों में दो या दो से अग्रधक उपवाक्य ककंत,ु और, परं त,ु
तर्ा,अन्यर्ा या आहद समच्
ु चयबोधक अव्ययों से जुड़े हों, उन्हें संयुक्त वाक्य कहते हैं।
जैसे-
लमधिि र्ाक्ट्य की प चान :- लमश्र वाक्य में कक, जो-वह, जजसे-उसे, ऐसा-जो, वही-जजसे,
यहद-तो जैसे व्यग्रधरकर् योजक होते हैं।
कुछ उद ारर्
रे शमा इसलिए स्कूि िहीं गई क्योंकक वह बीमार है ।
जो ववर्दयार्ी पररश्रमी होता वह अवश्य सफि होता है ।
वपता जी िे कहा र्ा कक जल्दी र्र आ जािा।
ह द
िं ी की ध्र्ननयों के पारस्पररक अिंिर की जानकारी
ड़, ढ़ - इिका प्रयोग शब्दों के बीच में या अंत में ककया जाता है शरूु में िहीं ककया जाता है।
जैसे :- िड़िा , पढ़िा , सड़क , पेड़, गढ़िा , पढ़ाई । आहद
ड, ढ - इिका प्रयोग शब्द के शरूु में होता है । जैसे - डायरी , ढिाि , ढोिक आहद
ङ - एक पंचमाक्षर है जजसका उच्चारर् िाक से होता है इसका प्रयोग शब्दों के ऊपर बबंद ु के
रूप में होता । जैसे रङ्ग - रं ग, कङ्गि- कंगि
(•)अनस्ु र्ार के उच्चारर् में िाक से अग्रधक सााँस निकिती है और ि या म की ध्वनि आती
है ।जैसे – र्ण्ठटा - र्ंटा , सम्बन्ध - संबंध , आहद।
'ड' अल्पप्रार् तर्ा 'ढ' महाप्रार् ध्वनि है।
'ङ' और ञ ् का उच्चारर् स्वतंत्र वर्ण के रूप में िहीं होता है।
स- दिं ि- इसमें हमारी जजह्वा दााँतों के निचिे भाग को स्पशण करती है। जैसे :- सरि, समय,
सहज, सच
ू िा, आहद।
ष - मूिन्व य - जब जीभ तािु के पीछे वािे भाग से टकराती है तो उससे जो आवाज़
निकिती है तो उसे ही मध
ू ाण बोिते हैं। जैसे:- भाषा, भाषर्, ववशेष, आहद
र् - िािव्य - जब जजह्वा हमारे तािु से टकराती है तो उसे तािव्य कहते हैं। जैसे:-
शिजम, शरीर, लशक्षा, शरू
ु , आहद।
र् और ब का अिंिर
र्- एक दं तोष्ठ वर्ण है । इसका प्रयोग है जैसे- वविाश , वाक्य , वाचक, वह, आहद ।
ब- एक ओष्ठ वर्ण है ब का प्रयोग सामान्य शब्द में एवं उपसगण के रुप में भी इसका प्रयोग
होता है । जैसे- बाि ,बिवाि , बात आहद
'ब' र्र्व का प्रयोग संस्कृत में बहुत कम तर्ा हहन्दी में बहुत अग्रधक होता
न-का प्रयोग
अनुस्र्ार (•)
अिस्
ु वार स्वर के बाद आिे वािा व्यंजि है । इसकी ध्वनि िाक से निकिती है । हहंदी भाषा में
बबंद ु अिस्
ु वार (•) का प्रयोग ववलभन्ि जगहों पर होता है ।
अिस्
ु वार (•) का प्रयोग पंचम वर्ण ( ङ्, ञ ्, र् ्, ि ्, म ् - ये पंचमाक्षर कहिाते हैं) के स्र्ाि पर
ककया जाता है । जैसे -
गड्.गा - गंगा
चञ़्चि - चंचि
झण्ठडा - झंडा
गन्दा - गंदा
कम्पि - कंपि
अनस्
ु र्ार र्ब्द
संबंध, सन्
ु दर, संस्कृनत, संपूर्ण, आिंद आहद।
अनन
ु ालसक
अिि
ु ालसक स्वरों के उच्चारर् में माँह
ु से अग्रधक तर्ा िाक से बहुत कम सााँस निकिती है । इि
स्वरों पर चन्रबबन्द ु (ँाँ) का प्रयोग होता है जो की लशरोरे िा के ऊपर िगता है ।
जैसे - गााँवआाँि, कुआाँ, मााँ, आहद।
अनन
ु ालसक र्ब्द
चााँद, कााँच , अाँधेर, पहुाँच, ऊाँचाई, टााँग, पााँच, सााँस, माँहगाई, आहद
बबंद ु को हहंदी में अिस्ु वार और चंरबबंद ु को अििु ालसका कहा जाता है।
वर्राम धचन्
बोिते समय हम अपिे भावों को पूर्ण रूप से स्पष्ट करिे के लिए आवश्यकतािस
ु ार रुकते हैं।
यहद हम बबिा रुके बोिते चिे जाएाँ तो भाषा की अलभव्यजक्त पूर्ण रूप से िहीं हो पाती। इसमें
अर्ण भी अिग हो जाता है । यािी जो हम कहिा चाह रहे होते है वो सही से अलभव्यक्त िहीं हो
पाता। इस रुकावट को ही ववराम कहते हैं।
इस ववराम को प्रदलशणत करिे के लिए व्याकरर् में कुछ ग्रचह्ि निधाणररत ककए गए हैं, इन्हीं
ग्रचह्िों को ववराम-ग्रचह्ि कहते हैं।
जैसे-
इि दोिों वाक्यों को पढ़कर दे खिये कक बोिते समय बीच में रुकिा ककतिा आवश्यक है ।
उदा रर्
वह एक िेक इंसाि है ।
हम कि हदल्िी र्म
ू िे जाएगी ।
उदा रर्
मैं उसे पसंद करता हूाँ; वह मझ
ु से िफरत करता है ।
सय
ू ोदय हो गया; ग्रचड़ड़या चहकिे िगी और कमि खिि गए ।
अल्प वर्राम ( , )
जब पूर्ण ववराम से कम समय के लिए वाक्य के बीच में रुकिा पड़े, तो अल्पववराम ग्रचह्ि का
प्रयोग ककया जाता है ;
उदा रर्
भारत में गेहूाँ, चिा, बाजरा, मक्का, आहद बहुत सी फ़सिें उगाई जाती हैं।
वह ववर्दयािय ि जा सका, क्योंकक वह अस्वस्र् र्ा।
उदा रर्
क्या मैं तम्
ु हारे र्र आ सकता हूाँ?
आपका क्या िाम है ?
वर्स्मयाधिबोिक धचह्न ( ! )
ववस्मयः आश्चयण, शोक, हषण आहद भावों को प्रकट करिे वािे शब्दों को ववस्मयाहद बोधक ग्रचह्ि
कहते हैं।
उदा रर्
वाह! हम यह मैच भी जीत गए।
अरे ! तम
ु यहााँ क्या कर रहे हो?
उदा रर्
िोकमान्य नतिक िे कहा र्ा, “स्वतंत्रता हमारा जन्मलसर्दध अग्रधकार है ।”
गांधी जी िे कहा है , “सत्य ही ईश्वर है ।”
ननदे र्क सच
ू क धचन् का प्रयोग ( ― )
निदे शक ग्रचन्ह का प्रयोग निम्ि जस्र्नतयों में होता है ।
उदा रर्
अक्षय–कहहए क्या बात है ?
निम्िलिखित प्रश्िों के उत्तर लिखिए–
राष्रीय स्वतंत्रता संिाम के सेिािी–भगतलसंह को कौि िहीं जािता।
योजक धचह्न का प्रयोग ( – )
इसका उपयोग दो शब्दों को जोड़िे में होता है । इसका प्रयोग र्दवंर्दव समास में ककया जाता है ।
उदा रर्
िेहा िेिते-िेिते ग्रगर गई।
रात-हदि
उदा रर्
भाषा के दो रूप हैं :– 1. मौलिक भाषा 2. लिखित भाषा
उपवर्राम का प्रयोग ( : )
इसका प्रयोग भी वववरर्-ग्रचह्ि की तरह ही होता है । ककसी के बारे में बतािे के लिए अर्ाणत
पररचय दे िे के लिए प्रयोग ककया जाता है ।
उदा रर्
िर्क
ु र्ा : िए यग
ु की मार
कामायिी : एक महाकाव्य
उदा रर् –
उत्तर
दे श
वर्िोम र्ब्द
जो शब्द ककसी दस
ू रे शब्द का उल्टा अर्ण बताते हैं, उन्हें वविोम शब्द या ववपरीतार्णक शब्द कहते
है । जैसे- सीधा - उल्टा , सही - गित, आय- व्यय, आजादी-गुिामी, िवीि- प्राचीि शब्द एक
दस
ू रे के उिटे अर्ण वािे शब्द है ।
अिि
ु ह वविह आजादी गुिामी
अिि
ु ोम प्रनतिोम आयात नियाणत
अवनि अम्बर
पयावयर्ाची र्ब्द / समानाथी र्ब्द
वे शब्द जजिका अर्ण एक समाि होता हैं पयाणयवाची शब्द कहिाते हैं । पयाणयवाची शब्द को हम
समािार्ी शब्द भी कहते है ।
कोमि - िाजक
ु , िरम , मद
ृ ु , सक
ु ु मार , मि
ु ायम।
दुःु ख - पीड़ा ,कष्ट , व्यर्ा , वेदिा , संताप , शोक , िेद , पीर, िेश ।
दि
ू - दग्ु ध , क्षीर , पय ।
पथ्
ृ र्ी - धरती ,धरा ,भू ,भलू म ,जमीि,वसध
ुं रा ,धरर्ी .
र्क्ष
ृ - पेड़ , पादप , ववटप , तरु , गाछ ।
राजा - िपृ , भप
ू , भप
ू ाि , िरे श , महीपनत , अविीपनत ।
समद्र
ु - सागर, पयोग्रध, उदग्रध , पारावार, िदीश ,जिग्रध ।
इिंद्र - दे वराज, सरु े न्र ,सरु पनत ,अमरे श ,दे वेन्र ,वासव ,सरु राज ,सरु े श .
िािाब - सरोवर, जिाशय, सर, पुष्कर, ह्रद, पर्दयाकर , पोिरा, जिवाि, सरसी,
नदी - तिज
ू ा, सररत, शौवालििी, स्रोतजस्विी, आपगा, कूिंकषा, तहटिी, सरर,
पर्न - वाय,ु हवा, समीर, वात, मारुत, अनिि, पवमाि, समीरर्, स्पशणि।
बादि - मेर्, र्ि, जिधर, जिद, वाररद, िीरद, सारं ग, पयोद, पयोधर।
बािू - रे त, बािक
ु ा, सैकत।
मोर - केक, किापी, िीिकंठ, लशिावि, सारं ग, ध्वजी, लशिी, मयरू , ितणकवप्रय।
मग
ृ - हहरर्, सारं ग, कृष्र्सार।
र्क्ष
ृ - तरू, अगम, पेड़, पादप, ववटप, गाछ, दरख्त, शािी, ववटप, रम
ु ।
असुर - यातध
ु ाि, निलशचर, रजिीचर, दिज
ु , दै त्य, तमचर, राक्षस, निशाचर,
अश्र् - हय, तरु ं ग, र्ोड़ा, र्ोटक, हरर, तुरग, वाजज, सैन्धव।
आनिंद - हषण, सि
ु , आमोद, मोद, प्रसन्िता, आह्राद, प्रमोद, उल्िास।
िक
ु ािंि र्ब्द
वे शब्द जजिके अंत में समाि तक
ु वािे शब्द हो अर्ाणत ् एक समाि िय वािे शब्द हो। जजि
शब्दों का अंत वािा अक्षर समाि होता है उन्हें तक
ु ांत शब्द कहते है । जैसे- सोता ,रोता,पोता
इसमें ’ता’ शब्द तक
ु ांत शब्द है । इि शब्दों से कववता का आिंद बढ़ जाता है और कववता में
रूकावट िहीं आती है और इसमें प्रवाह बिा रहता है ।
अन्य उद ारर्
पािी, रािी, िािी
अिुकािंि र्ब्द
ये शब्द बबिा तक
ु के होते है । इि शब्दों से बिी कववता में ध्वनियााँ परवनतणत होती रहती है ।
कववता ियबर्दध िहीं होती है ।
सिंज्ञा
ककसी प्रार्ी, वस्तु या स्र्ाि के िाम को संज्ञा कहते हैं। संज्ञा के प्रमुितः तीि भेद हैं
व्यष्क्ट्िर्ाचक सिंज्ञा
जो िाम ककसी ववशेष (एक) व्यजक्त,वस्तु या स्र्ाि का बोध कराते हैं उन्हें व्यजक्तवाचक संज्ञा
कहते हैं।
जैसे –
व्यष्क्ट्ियों के नाम
हदर्ाओिं के नाम
समद्र
ु ों के नाम
हदनों के नाम
म ीनों के नाम
त्यो ारों के नाम
नगरों, चौकों, सड़कों के नाम
दे र्ों के नाम
नहदयों के नाम
जानिर्ाचक सिंज्ञा
जो िाम ककसी एक ववशेष व्यजक्त, स्र्ाि या वस्तु का ि होकर पूरी जानत या समह
ू का बोध
कराए उसे जानतवाचक संज्ञा कहते हैं।
जैसे -
व्यजक्त – महहिा,पुरुष,बच्चा,यव
ु क,ककशोर ।
वस्तु – मेज,कुसी,पुस्तक,बतणि,गहिे ।
स्र्ाि – मैदाि,छत,रे ग्रगस्ताि,जंगि,शहर,गांव ।
पश-ु पक्षी – कौआ,र्ोड़ा,गाय,तोता,मोर ।
भार्र्ाचक सिंज्ञा
जो शब्द ककसी भाव, गुर्, दशा, अवस्र्ा आहद के िामों का बोध कराए, उन्हें भाववाचक संज्ञा
कहते हैं। जैसे प्रेम, िोध, दया, लमठास।
सर्वनाम
''जो शब्द संज्ञा के बदिे वाक्य में प्रयक्
ु त ककए जाते है , सवणिाम कहिाते है ।'' सवणिाम का
सभी िामो के लिए प्रयोग ककए जा सकते है । इसलिए इसे संज्ञा का प्रनतनिग्रध भी कहते है जैसे-
मैं, हम, तम
ु , आप, यह, वह, कोई, कुछ, कौि, क्या, जो, आहद।
वह अब कि आएगा।
तम
ु कि सवेरा ही चिे जािा।
पुरुषवाचक सवणिाम
निजवाचक सवणिाम
निश्चयवाचक सवणिाम
अनिश्चयवाचक सवणिाम
प्रश्िवाचक सवणिाम
संबंधवाचक सवणिाम
पुरूषर्ाचक सर्वनाम
पुरुषवाचक सवणिाम स्त्री या पुरूष के िाम के बदिे आते हैं। इसमें बोििे वािे, सि
ु िे वािे और
जजसके ववषय में बात होती है , उिके लिए प्रयोग में िाए जािे वािे सवणिाम पुरूषवाचक
सवणिाम कहिाते हैं।
1. उत्तम परू
ु ष 2. मध्यम परू
ु ष 3. अन्य परू
ु ष
उत्तम परू
ु ष :- जजि सवणिामों का प्रयोग बोििे या लिििे वािा व्यजक्त अपिे लिए करता है ,
उन्हें उत्तम पुरुष वाचक सवणिाम कहते हैं।
मध्यम परू
ु ष र्ाचक सर्वनाम के उदा रर्
तम
ु एक अच्छे इंसाि हो।
तम्
ु हारे दादा जी बीमार है ।
तम
ु िे िािा अच्छे से िाया ।
अन्य परू
ु ष :- जजि सवणिाम शब्दों का प्रयोग वक्ता या श्रोता ककसी अन्य व्यजक्त के लिए
करता है तो उसे अन्य पुरूषवाचक सवणिाम कहते हैं।
ननजर्ाचक सर्वनाम
जो सवणिाम कताण के सार् अपिा-पि दशाणिे के लिए ककए जाते हैं , उन्हें निजवाचक सवणिाम
कहते हैं।
जैसे- स्र्यिं, खद
ु , अपने आप इत्याहद।
वे िद
ु ही अपिा काम करते है ।
उसिे अपिे आप दःु ि हदया ।
वे कि सब
ु ह अपिे आप िौट आएंगे।
ननश्चयर्ाचक सर्वनाम
जजि सवणिाम शब्दों से ककसी निजश्चत वस्तु अर्वा व्यजक्त का बोध हो तो उन्हें निश्चयवाचक
सवणिाम कहते हैं।
वह मेरा दोस्त है ।
यह ककसाि है ।
यह मेरी कार है ।
वे समोसे मत िाओ ।
अननश्चयर्ाचक सर्वनाम
जजस सवणिाम शब्द से ककसी निजश्चत व्यजक्त वस्तु या र्टिा का बोध ि हो, उन्हें
अनिश्चयवाचक सवणिाम कहते है ।
प्रश्नर्ाचक सर्वनाम
जजि सवणिाम शब्दों से ककसी प्रार्ी, व्यजक्त, वस्तु आहद के ववषय में प्रश्ि ककया जाता है , उसे
प्रश्िवाचक सवणिाम कहते हैं।
तम्
ु हारा क्या िाम है ?
उसे कौि बुिा रहा है ?
फोि पर कौि बोि रहा है ?
तम
ु क्या िा रहे हो ?
सम्बन्िर्ाचक सर्वनाम
दो शब्दों में परस्पर सम्बन्ध का बोध करािे वािे शब्द, सम्बन्धवाचक सवणिाम कहिाते है ।
कक्रया
जजस शब्द से ककसी कायण के करिे या होिे का बोध हो, उन्हें किया कहते हैं |
जैसे –
जैसे –
लिि + िा = लिििा
चि = चि+ िा = चििा
पढ़ = पढ़+ िा = पढ़िा
कक्रया के भेद
सकमवक कक्रया
किया के सार् क्या, ककसे, ककसको शब्द िगाकर प्रश्ि करिे पर यहद उत्तर प्राप्त हो जाए तो
उसे सकमणक किया कहते हैं।
1. एककमणक किया
2. र्दववकमणक किया
1. एककमणक किया – जजस किया का एक कमण हो, उसे एककमणक किया कहते हैं।
2. र्दववकमणक किया – जजस किया में दो कमण हो उसे र्दववकमणक किया कहते हैं।
अकमवक कक्रया
जजस किया के सार् कमण िहीं होता है तर्ा किया का प्रभाव लसफ़ण कताण पर पड़ता है उसे अकमणक
किया कहते हैं|
जैसे - हीिा हं स रही है ।
बच्चा सो रहा है ।
किया से पहिे 'क्या', ककसे, ककसको शब्द िगाकर प्रश्ि करिे पर यहद उत्तर िहीं लमिता तो
किया अकमणक होती है ।
प्रश्ि करिे पर यहद उत्तर में “कताण" की प्राजप्त होती है तो भी किया अकमणक होती है ।
रचना के आिार पर
1. सामान्य किया
2. संयक्
ु त किया
3. िामधातु किया
4. प्रेरर्ार्णक किया
5. पव
ू क
ण ालिक किया
सामान्य कक्रया
जजस वाक्य में एक किया होती है उसे सामान्य किया कहते हैं।
रोहि सो गया।
सिंयुक्ट्ि कक्रया
नामिािु कक्रया
संज्ञा, सवणिाम और ववशेषर् शब्दों से बििे वािी कियाओं को िामधातु किया कहते हैं ।
शमण = शमाणिा
बात = बनतयािा
झूठ = झुठिािा
हार् = हग्रर्यािा
अपिा= अपिािा
िरम = िरमािा
गरम = गरमािा
तोतिा = तत
ु िािा
प्रेरर्ाथवक कक्रया
पर्
ू कव ालिक कक्रया
वर्र्ेषर्
संज्ञा या सवणिाम की ववशेषता बतािे वािे शब्द को ववशेषर् कहते हैं । जैसे - बड़ा, कािा,
िम्बा, दयाि,ु एक, दो, अच्छा, बुरा, मीठा, िट्टा, भारी, सद
ुं र आहद।
जजस संज्ञा या सवणिाम शब्द की ववशेषता बताई जाती है उसे ववशेष्य कहते है ।
वर्र्ेषर् के प्रकार
गर्
ु वाचक ववशेषर्
पररमार्वाचक ववशेषर्
संख्यावाचक ववशेषर्
सावणिालमक ववशेषर्
व्यजक्तवाचक ववशेषर्
गुर्र्ाचक वर्र्ेषर्
जजि ववशेषर् शब्दों से संज्ञा अर्वा सवणिाम शब्दों के गर्
ु , दोष, रं ग रूप, आकार, स्र्ाि,
समय, दशा, अवस्र्ा का बोध हो वह गुर्वाचक ववशेषर् कहिाते हैं।
जैस-े अच्छा, बरु ा, कायर, र्दधिमान, िाि, रा, नीिा, ििंबा,मीठा, खट्टा, आहद।
पररमार्र्ाचक वर्र्ेषर्
जजि ववशेषर् शब्दों से संज्ञा या सवणिाम की मात्रा अर्वा िाप तौि का बोध हो वह
पररमार्वाचक ववशेषर् कहिाते हैं।
सार्वनालमक वर्र्ेषर्
ऐसे सवणिाम शब्द जो संज्ञा से पहिे िगकर उस संज्ञा शब्द की ववशेषर् की तरह ववशेषता
बताते हैं, वे शब्द सावणिालमक ववशेषर् कहिाते हैं।
व्यष्क्ट्िर्ाचक वर्र्ेषर्
व्यजक्तवाचक संज्ञा शब्दों से बिे ववशेषर् को व्यजक्तवाचक ववशेषर् कहते हैं।
जैसे- मझ
ु े भारिीय खाना ब ु ि पसिंद ै । अक्षय जोिपरु ी जूिी प निा ैं
र्चन
र्चन के प्रकार
(1) एकर्चन (2) ब ु र्चन
एकर्चन :- संज्ञा के जजस रूप से एक व्यजक्त या एक वस्तु होिे का ज्ञाि हो, उसे एकवचि
कहते है ।
जैसे- स्त्री, र्ोड़ा, िदी, रुपया, िड़का, गाय, लसपाही, बच्चा, कपड़ा, माता, मािा, पुस्तक, टोपी,
बंदर, मोर आहद।
ब ु र्चन :- शब्द के जजस रूप से एक से अग्रधक व्यजक्त या वस्तु होिे का ज्ञाि हो, उसे
बहुवचि कहते है ।
जैसे- जस्त्रयााँ, र्ोड़े, िहदयााँ, रूपये, िड़के, गायें, कपड़े, टोवपयााँ, मािाएाँ, माताएाँ, पुस्तकें, वधए
ु ,ाँ
गुरुजि, रोहटयााँ, िताएाँ, बेटे आहद।
आदरर्ीय व्यजक्तयों के लिए सदै व बहुवचि का प्रयोग ककया जाता है । जैसे- पापाजी
कि मब
ंु ई जायेंगे।
संबर्दध दशाणिे वािी कुछ संज्ञायें एकवचि और बहुवचि में एक समाि रहती है । जैसे-
ताई, मामा, दादा, िािा, चाचा आहद।
रव्यसच
ू क संज्ञायें एकवचि में प्रयोग होती है । जैसे- पािी, तेि, र्ी, दध
ू आहद।
कुछ शब्द सदै व बहुवचि में प्रयोग ककये जाते है जैसे- दाम, दशणि, प्रार्, आाँसू आहद।
पजु ल्िंग ईकारान्त, उकारान्त और ऊकारान्त शब्द दोिों वचिों में समाि रहते है ।
जैसे- एक मनु ि -दस मनु ि, एक डाकू -दस डाकू, एक आदमी -दस आदमी आहद।
बड़प्पि हदिािे के लिए कभी -कभी वक्ता अपिे लिए 'मैं' के स्र्ाि पर 'हम' का प्रयोग
करता है जैसे- 'हमें ' याद िहीं कक हमिे कभी 'आपसे' ऐसा कहा हो।
व्यवहार में 'तम
ु ' के स्र्ाि पर 'आप' का प्रयोग करते हैं। जैसे-'आप' कि कहााँ गये र्े ?
जानतवाचक संज्ञायें दोिों ही वचिों में प्रयक्
ु त होती है । जैसे- (i) 'कुत्ता' भौंक रहा है । (ii)
'कुत्ते' भौंक रहे है ।
धातओ
ु ं का बोध करािे वािी जानतवाचक संज्ञायें एकवचि में ही प्रयुक्त होती है । जैसे-
'सोिा' महाँ गा है , 'चााँदी' सस्ती है ।
काि
काि से किया के संपन्ि होिे, उसके र्टिे, उसकी पूर्-ण अपूर्ण अवस्र्ा एवं जस्र्नत का पता
चिता है । कायण के करिे या होिे का समय बतािे वािी किया ही काि कहिाती है ।
जैसे –
काि के प्रकार
र्िवमान काि
भि
ू काि काि
भवर्टयकाि काि
र्िवमान काि
किया के जजस रूप से यह ज्ञात हो कक किया का होिा या करिा चि रहे समय में हो रहा है , उसे
वतणमाि काि कहते हैं।
उदा रर्: –
सोिू िािा िा रहा है ।
बच्चे सो रहे है ।
सामान्य र्िवमान काि -: किया के जजस रूप से उसके वतणमाि काि में सामान्य रूप से
होिे का बोध हो, उसे सामान्य काि कहते हैं;
उदा रर्
इि वाक्यों में कियाएाँ सामान्य रूप से वतणमाि काि में हो रही है । अत :ये सामान्य वतणमाि
काि की कियाएाँ हैं।
अपूर्व र्िवमान काि -: जब कायण वतणमाि काि में आरं भ होकर पूर्ण ि हुआ हो, उसे अपूर्ण
वतणमाि काि कहते हैं।
उदा रर्
पर्
ू व र्िवमान काि -: जब कायण वतणमाि समय में ही पर्
ू ण हो जाए,उसे पर्
ू ण वतणमाि काि
कहते हैं।
उदा रर्: –
इि वाक्यों में कायण वतणमाि समय में पूरा हो गया है ,ये पूर्ण वतणमाि काि की कियाएं हैं।
सिंहदनि र्िवमान काि -: जजस किया के वतणमाि काि में होिे के बारे में संदेह या
अनिश्चतता हो, उसे संहदग्ध वतणमाि काि कहते हैं।
उदा रर्-
इि वाक्यों में कियाओं के होिे में संदेह की जस्र्नत हैं, अत :ये संहदग्ध वतणमाि काि की
कियाएाँ हैं।
भूिकाि
बीते हुए समय में कायण होिे का बोध करािे वािी किया का रूप भत
ू काि कहिाता है ।
उदा रर्: –
मेरा दोस्त मब
ुं ई चिा गया ।
वपताजी िे र्र बिाया र्ा ।
भि
ू काि के प्रकार
सामान्य भि
ू काि
आसन्न भूिकाि
पूर्व भूिकाि
अपूर्व भूिकाि
सिंहदनि भूिकाि
े ि ु- े ि म
ु द भि
ू काि
सामान्य भि
ू काि :- किया के जजस रूप से काम के सामान्य रूप से बीते समय में परू ा होिे
का बोध हो, उसे सामान्य भत
ू काि कहते हैं।
उदा रर्
वपताजी िे हमें झि
ू ा झि
ु ाया ।
अध्यापक िे पाठ पढ़ाया।
उदा रर्
पर्
ू व भि
ू काि -: किया के जजस रूप से यह बोध हो कक काम को हुए बहुत समय बीत चक
ु ा है ,
उसे पूर्ण भत
ू काि कहते हैं।
उदा रर्: –
उदा रर्
सिंहदनि भूिकाि -: भत
ू काि की जजस किया के करिे या होिे में संदेह हो, उसे संहदग्ध
भत
ू काि कहते है ।
उदा रर्-
सि
ु ि
ै ा अपिा काम परू ा कर चक
ु ी होगी।
मेहमाि र्र पर पहुाँच चक
ु े होंगे ।
इि वाक्यों में कियाओं के भत
ू काि में होिे में संदेह है , अत :ये संहदग्ध भत
ू काि की कियाएाँ हैं।
े िु- े िम
ु द भि
ू काि -: भत
ू काि में एक किया के होिे या ि होिे पर दस
ू री किया का होिा
या ि होिा निभणर होता है , तो उसे हे त-ु हे तम
ु द भत
ू काि कहते हैं।
उदा रर्
यहद तम
ु पढ़ते तो अवश्य सफिता प्राप्त करते ।
यहद तम
ु जल्दी स्टे शि पर जाते तो गाडी जरूर लमिती ।
भवर्टयि ् काि
किया के जजस रूप से यह बोध हो कक किया आिे वािे समय में सम्पन्ि होगी, उसे भववष्यत ्
काि कहते हैं।
उदा रर्
हम कि र्म
ू िे जाएाँगे।
कि हमारे र्र मेहमाि आएंगे ।
इि वाक्यों में किया के आिे वािे समय में पूर्ण होिे की बात कही गई है , अत :ये भववष्यत ्
काि की कियाएं है ।
भवर्टयि काि के प्रकार
सामान्य भववष्यत काि
संभाव्य भववष्यत काि
हे त-ु हे तम
ु द भववष्यत काि
सामान्य भवर्टयि ् काि -: किया के जजस रूप से कायण का आिे वािे समय में सामान्य रूप
से होिे या करिे का बोध हो, उसे सामान्य भववष्यत ् काि कहते हैं।
उदा रर्
कि सब
ु ह बच्चे स्कूि जाएंगे ।
हम कफ़ल्म दे ििे जाएंगे।
इि वाक्यों में कियाएं भववष्यत ् में सामान्य रूप से संपन्ि होगी। अत :ये सामान्य भववष्यत ्
काि की कियाएाँ हैं।
सिंभाव्य भवर्टयि ् काि -: किया के जजस रूप से कायण के भववष्य में होिे की संभाविा हो
परं तु निजश्चत ि हो, उसे संभाव्य भववष्यत ् काि कहते हैं।
उदा रर्
े िु- े िम
ु द भवर्टयि ् काि -: इस काि के वाक्य में एक किया का होिा दस
ू री किया पर
निभणर होता है ; अर्ाणत किया ककसी अन्य किया के होिे पर ही संपन्ि होगी इसे हे त-ु हे तम
ु द
भववष्यत ् काि कहते हैं।
उदा रर्
यहद तम
ु पररश्रम करोगे तो अवश्य सफि होगे।
यहद भक
ू ं प ि होता तो सब कुछ ठीक रहता।
लििंग
संज्ञा के जजस रूप से ककसी वस्तु के पुरुषत्व या स्त्रीत्व का बोध होता है , उसे लिंग कहते हैं।
जैसे- पनत, पत्िी, रात, हदि, र्ोडा, र्ोड़ी, आहद
लििंग के प्रकार
पुष्ल्ििंग
स्त्रीलििंग
पुष्ल्ििंग
जजि शब्दों से पुरुष जानत का बोध होता है उन्हें पुजल्िंग शब्द कहते हैं जैसे: वपता, भाई, िड़का,
पेड़, लसंह, लशव, हिम
ु ाि, बैि आहद।
स्त्रीलििंग
जजि शब्दों से स्त्री जानत का बोध होता है उन्हें स्त्रीलिंग शब्द कहते हैं । जैसे: माता, बहि,
यमि
ु ा, गंगा, कुरसी, छड़ी, िारी बुआ, िड़की, िक्ष्मी, गाय
जि और थि भागों के नाम पुजल्िंग होते है। जैसे- र्र, दे श, सरोवर, सागर, िगर,
िाम आहद।
र्ारों, म ीनों, प ाड़ों, समुद्रों एर्िं ग्र ों के नाम पुजल्िंग होते हैं। जैसे-रवववार,
आषाढ़, हहमािय, अरब सांगर, मंगि िह आहद।
पेड़ों के नाम पजु ल्िंग होते हैं। जैसे- िीम, बबूि, सेब, बांस, बरगद, आम, मेहंदी,
सागवाि, ताड़,दे वदार, अशोक, सागौि आहद।
र्ा नों के नाम –तााँगा, बस, जहाज, स्कूटर, रक, इंजि तर्ा रॉकेट आहद। इसके
कुछ अपवाद है जैसे -– गाड़ी, मोटर।
सष्ब़्ियों के नाम– आि,ू हटंडा, कटहि, िीरा, बैंगि, टमाटर, प्याज़, अदरक, पेठा,
िींबू आहद। इसके कुछ अपवाद है जैसे -– तोरी, फिी, मूिी, गाजर।
ग्र -नक्षत्रों के नाम –सय
ू ,ण चंरमा, बुध, शि
ु , बहृ स्पनत, शनि आहद। इसमें अपवाद है
- पथ्ृ वी।
अनाजों और िािओ
ु िं के नाम पुजल्िंग होते हैं। जैसे- गेहूं, चावि, मक्का, बाजरा,
साबद
ू ािा, चिा, मटर, िोहा, तााँबा, सोिा, आहद।
रत्नों के नाम पजु ल्िंग होते हैं। जैसे- हीरा, पन्िा, िीिम, पि
ु राज, मोती आहद।
र्रीर के कुछ अिंग – अाँगुिी, आाँि, गदण ि, छाती, जीभ, जााँर्, किाई, हर्ेिी आहद।
सिंस्कृि के कुछ पुष्ल्ििंग र्ब्द हहन्दी में स्त्रीलिंग होते हैं। जैसे- वाय,ु सन्ताि,
आत्मा, वस्त,ु मत्ृ य,ु अजग्ि, महहमा, पस्
ु तक आहद।
ष्जन र्ब्दों में 'आई', 'र्ट' और ' ट' प्रत्यय िगा होता है वे प्रायः स्त्रीलिंग होते
हैं। जैसे- लसिाई, िटाई, चारपाई, र्बराहट, बिावट, सजावट, आहद।
पुष्ल्ििंग से स्त्रीलििंग बनाने के ननयम
1. आ प्रत्यय जोड़कर
पष्ु ल्ििंग – स्त्रीलििंग
अध्यक्ष – अध्यक्षा
अपराजजत – अपराजजता
वप्रय – वप्रया
अिज
ु – अिज
ु ा
मि
ू ण – मि
ू ाण
2. ई प्रत्यय जोड़कर
पुष्ल्ििंग – स्त्रीलििंग
हहरि – हहरिी
बेटा – बेटी
दे व – दे वी
3. नी प्रत्यय जोड़कर
पुष्ल्ििंग – स्त्रीलििंग
पनत – पत्िी
लसंह – लसंहिी
सरदार – सरदारिी
चोर – चोरिी
4. इन प्रत्यय जोड़कर
पष्ु ल्ििंग – स्त्रीलििंग
िाग – िाग्रगि
बार् – बानर्ि
िाती – िानति
लभिारी – लभिाररि
िह
ु ार – िह
ु ाररि
5. या प्रत्यय जोड़कर
पष्ु ल्ििंग – स्त्रीलििंग
बंदर – बंदररया
ड़डब्बा – ड़डबबया
गुड्डा – गुड़ड़या
अध्यापक – अध्यावपका
गायक – गानयका
सेवक – सेववका
उपसगव
उपसगण वे शब्दांश होते हैं, जो ककसी शब्द से पहिे जड़
ु कर उसके अर्ण में बदिाव िा दे ते हैं।
सु अच्छा, अग्रधक सज
ु ि, सग
ु म, सलु शक्षक्षत,
प्रत्यय
प्रत्यय ऐसे शब्दांश होते है जो ककसी भी सार्णक मि
ू शब्द के अंत में जुड़कर उसका अर्ण या
भाव बदि दे ते है ।
अन्य म त्र्पर्
ू व प्रत्यय
भि
ू िा + अक्कड = भि
ु क्कड
मीठा + आस = लमठास
िोहा + आर = िह
ु ार
बड़ा + आई = बडाई
हटक + आऊ = हटकाऊ
बबक + आऊ = बबकाऊ
दया + िु = दयािु
दस्
ु साहसी = दस
ु + साहस + ई
पररपर्
ू तण ा = परर + पर्
ू ण + ता
संपूर्त
ण ा = सम ् + पूर्ण + ता
अपराधी = अप + राध + ई
सम्मानित = सम ् + माि + इत
संरक्षक्षत = सम ् + रक्ष + इत
अपशक
ु िी = अप + शकुि + ई
निबणिता = निर + बि + ता
निभणयता = निर + भय + ता
आिौककक = आ + िोक + इक
अिैनतक = अ + िीनत + इक
पररपूर्त
ण ा = परर + पूर्ण + ता
कुकमी = कु + कमण + ई
अधालमणक = अ + धमण + इक
अिद
ु ारता = अि + उदार + ता
अनुकरर् र्ाचक दे र्ज र्ब्द :- जब ककसी वास्तु की वास्तववक ध्वनि को ध्याि में रिकर
शब्दों का निमाणर् ककया जाता है , तो वे अिक
ु रर् वाचक दे शज शब्द कहिाते हैं।
अनुकरर् रह ि दे र्ज र्ब्द :- वे शब्द जजिके निमाणर् की प्रकिया का पता िहीं होता है ,
उन्हें अिक
ु रर् रहहत दे शज शब्द कहते हैं।
जैसे - जत
ू ा, कटोरा, िोटा, खिड़की, हार्, चिा, बाजरा, र्ेवर, झण्ठडा, मक्
ु का, िकड़ी, ड़डबबया,
खिचड़ी, ग्रचड़ड़या, आहद।
अरबी र्ब्द
अजीब, अमीर, अक्ि, कदम, कमि, कजण, ककस्मत, ककिा, कसम, कीमत, कसरत, कुसी,
ककताब, कायदा, कानति, दक
ु ाि, दनु िया, दौित, दाि, दीि, ितीजा, िशा, िकद, िक़ि,
िहर, फ़कीर, फायदा, फैसिा, ख़त्म, ित, ख्याि, ख़राब, खिदमत, गरीब, गैर, जाहहि,
जजस्म, जिसा, जिाब, जवाब, जहाज, जालिम, जजि, हमिा, हवािात, हौसिा, आखिर,
आदत, आदमी, इिाम, इज्जत, ईमारत, इस्तीफ़ा, तादात, तरक्की, ताररि, तककया, तमाशा,
हदमाग, दवा, दावत, दफ्तर, दआ
ु , बहस, मह
ु ावरा, मदद, मजबूर, मामि
ू ी, मक़
ु दमा, मल्
ु क,
मौसम, मौका, मशहूर, मतिब, वकीि, शराब, है जा, आहद।
फारसी र्ब्द
आराम, आवारा, आमदिी, आवाज, उम्मीद, ककिारा, िुद, िामोश , िरगोश, गवाह,
ग्रगरफ्तार, गरम, गुिाब, चाँकू क, चेहरा, चाशिी, जजन्दगी, तेज, तीर, तिख्वाह, दीवार, दे हात,
दक
ु ाि, दरबार, दं गि, हदि, हदिेर, दरबार, दवा, िाव, पैदावार, पुि, पारा, बीमार, बेरहम
आहद।
िुकी र्ब्द
कािीि, कैंची, कुिी, कुकी, चेचक, उदण ,ू मग़
ु ि, काबू, चमचा, तोप, तमगा, तिाश, बेगम,
बहादरु , िाश, िफंगा, सौगात, सरु ाग आहद।
पि
ु ग
व ािी र्ब्द
आिमारी, बाल्टी, चाबी, फीता, तम्बाकू, इस्पात, कमीज, कमरा, काजू, गमिा, गोदाम, पादरी,
परात, गोभी, तौलिया, िीिाम, परत, मेज आहद।
अिंग्रेजी र्ब्द
ड्राइवर, पें लसि, पेि, िंबर, र्माणमीटर, पेरोि, आडणर, इंटर, इयररंग, कमीशि, कैम्प, क्वाटण र,
किकेट, गाडण, जेि, चेयरमैि, ट्यूशि, िोहटस, िसण, पाटी, प्िेट, इंजि, डॉक्टर, िािटे ि,
लसिेट, अस्पताि, पासणि, पाउडर, कॉिर, अफसर, कप्ताि, बोति, मीि, अपीि, इंच,
एजेंसी, कंपिी, कलमश्िर, क्िास, काउजन्सि, गजट, डायरी, ड़डप्टी आहद।
सिंकर र्ब्द
सिंकर र्ब्द :- ये वे शब्द होते है जो दो अिग - अिग भाषाओं के शब्दों को लमिाकर बिा
लिए गए हो।
जैसे :-
मह
ु ावरा – आाँिों में धूि झोंकिा
मह
ु ावरा – आिें फेर िेिा
मह
ु ावरा – आाँिे िाि करिा
अर्ण – िोध से दे ििा
मह
ु ावरा – गिे का हार होिा
ऊंट के मह
ुं में जीरा होिा – अग्रधक िुराक वािे को कम दे िा
एड़ी चोटी का जोर िगािा – बहुत प्रयास करिा
ओििी में लसर दे िा – जाि बूझकर मस
ु ीबत मोि िेिा
काठ का उल्िू होिा – मि
ू ण होिा
काि िड़े होिा – सावधाि हो जािा
सब्जबाग हदिािा – झठ
ू ी आशा दे िा
िोकोष्क्ट्ि
बहुत अग्रधक प्रचलित और िोगों के माँह
ु चढ़े वाक्य िोकोजक्त के तौर पर जािे जाते हैं। इि
वाक्यों में जिता के अिभ
ु व का निचोड़ या सार होता है ।
म त्र्पूर्व िोकोष्क्ट्ियााँ
अन्धों में कािा राजा - मि
ू ो में कुछ पढ़ा-लििा व्यजक्त
अब पछताए होत क्या जब ग्रचड़ड़यााँ चग
ु गई िेत - समय निकि जािे के पश्चात ् पछतािा
व्यर्ण होता है
अन्धा क्या चाहे दो आाँिें - मिचाही बात हो जािा
अंधेर िगरी चौपट राजा, टका सेर भाजी टका सेर िाजा - जहााँ मालिक मि
ू ण हो वहााँ सर्दगुर्ों
का आदर िहीं होता।
अक्ि के अंधे, गााँठ के परू े - बर्द
ु ग्रधहीि, ककन्तु धिवाि)
अपिे माँह
ु लमयााँ लमट्ठू - अपिी बड़ाई या प्रशंसा स्वयं करिे वािा
आ बैि मझ
ु े मार - स्वयं मस
ु ीबत मोि िेिा
आम के आम गुठलियों के दाम - अग्रधक िाभ
आगे कुआाँ, पीछे िाई - दोिों तरफ ववपवत्त या परे शािी होिा
ऊाँट के माँह
ु में जीरा - जरूरत के अिस
ु ार चीज ि होिा
सष्न्ि
दो वर्ो या अक्षरों के मेि को संग्रध कहते है । जब दो वर्ण पास-पास आते हैं या लमिते हैं तो
उिमें पररवतणि हो जाता है । यह पररवतणि वािा मेि ही संग्रध कहिाता है ।
सिंधि िीन प्रकार की ोिी ैं :-
1. स्र्र सिंधि
2. व्यिंजन सिंधि
3. वर्सगव सिंधि
स्र्र सिंधि :- जब स्वर के सार् स्वर का मेि होता है तब जो पररवतणि होता है उसे स्वर संग्रध
कहते हैं।
वर्द
ृ ग्रध संग्रध क्या होती है :- जब ( अ , आ ) के सार् ( ए , ऐ ) हो तो ‘ ऐ ‘ बिता है और जब ( अ
, आ ) के सार् ( ओ , औ )हो तो ‘ औ ‘ बिता है । उसे वग्रृ ध संग्रध कहते हैं।
व्यिंजन सिंधि :- व्यंजि के सार् स्वर अर्वा व्यंजि के मेि से उस व्यंजि में जो रूपान्तरर्
होता है , उसे व्यंजि सजन्ध कहते हैं।
वर्सगव सष्न्ि :- ववसगण के सार् स्वर अर्वा व्यंजि का मेि होिे पर जो ववकार होता है , उसे
ववसगण सजन्ध कहते हैं।
मिः + अिक
ु ू ि = मिोिक
ु ू ि, दःु + साहस = दस्
ु साहस, पुिः + च = पुिश्च,
र्ाच्य
जजस किया के र्दवारा हमें यह पता चिता है कक वाक्य किया को मख्
ु य या मि
ू रूप से
चिािे वािा कौि है । अर्ाणत कमण,कताण भाव,या कोई अन्य र्टक है । उसे वाच्य कहते
है ।
1. किर्
वृ ाच्य :–
उद ारर् :- सग्रचि िे दध
ू पीया।
सीता गाती है ।
राम सो रहा है ।
2. कमवर्ाच्य :–
3. भार्र्ाच्य :–
किया के जजस रूप में भाव की प्रधािता होती है और किया का सीधा सम्बंध भाव से
होता है । उसे भाव वाच्य कहते है । यह केवि अकमणक किया के वाक्यों में ही प्रयक्
ु त
होता है ।
समास
जब दो या दो से अग्रधक शब्दों के मेि से िया शब्द बिता है तो इस प्रकिया को समास कहते है
इस प्रकार बिा शब्द सामालसक शब्द कहिाता है
1. अव्ययीभार् 2. ित्परु
ु ष 3. र्दवर्गु
अव्ययीभार् समास
जजि शब्दों के प्रारम्भ में उपसगण िगा हो उसे अव्ययीभाव समास कहते हैं। इसमें पहिा
पद(पूवण पद) प्रधाि होता है और वह अव्यय होता है । जैसे - यथा, ननर, आ, अन,ु प्र, प्रनि, आहद
आजीवि – जीवि-भर
प्रत्येक – हर एक
आमरर् – मत्ृ यु तक
यर्ािम – िम के अिस
ु ार
निस्संदेह – बबिा संदेह के
भरपूर – पूरा भर के
अव्यय :- जजि शब्दों पर लिंग, कारक, काि आहद से भी कोई प्रभाव ि पड़े
अर्ाणत जो अपररवनतणत रहें , वे शब्द अव्यय कहिाते हैं।
ित्पुरुष समास
तत्पुरुष समास वह होता है , जजसमें उत्तरपद प्रधाि होता है , अर्ाणत प्रर्म पद गौर् होता है एवं
उत्तर पद की प्रधािता होती है व समास करते वक़्त बीच की वर्भष्क्ट्ि का िोप हो जाता है ।
इस समास में आिे वािे कारक ग्रचन्हों को, से, के लिए, से, का/के/की, में , पर आहद का िोप
होता है ।
जैसे -
गगिचम्
ु बी - गगि को चम
ू िे वािा
2. करर् ित्पुरुष समास :- यह समास दो कारक ग्रचन्हों ‘से’ और ‘के र्दर्ारा’ के िोप से
बिता है ।
3. सम्प्रदान ित्पुरुष समास :- इस समास में कारक ग्रचन्ह ‘के लिए’ का िोप हो जाता है ।
जैसे: सत्यािह - सत्य के लिए आिह, प्रयोगशािा - प्रयोग के लिए शािा, रसोईर्र
- रसोई के लिए र्र, यज्ञशािा - यज्ञ के लिए शािा,
4. अपादान ित्पुरुष समास :- इस समास में अपादाि कारक के ग्रचन्ह ‘से’ का िोप हो
जाता है ।
जैसे:- जीविमक्
ु त - जीवि से मक्
ु त, ऋर्मक्
ु त - ऋर् से मक्
ु त,
रोगमक्
ु त - रोग से मक्
ु त, पापमक्
ु त - पाप से मक्
ु त,
बंधिमक्
ु त - बंधि से मक्
ु त, िेत्रहीि - िेत्र से हीि,
5.सम्बन्ि ित्पुरुष समास :- सम्बन्ध कारक के ग्रचन्ह ‘का’, ‘के’ व ‘की’ का िोप होता है
वहां सम्बन्ध तत्पुरुष समास होता है ।
भद
ू ाि - भू का दाि, पुष्पवषाण - पुष्पों की वषाण, उर्दयोगपनत - उर्दयोग का पनत,
सेिापनत - सेिा का पनत, राष्रगौरव : राष्र का गौरव, दे शरक्षा : दे श की रक्षा
6. अधिकरर् ित्परु
ु ष समास :- इस समास में कारक ग्रचन्ह ‘में ’ और ‘पर’ का िोप होता
है ।
जैसे:- िामवास : िाम में वास, गहृ प्रवेश : गहृ में प्रवेश,
जिसमाग्रध : जि में समाग्रध, जिज : जि में जन्मा,
र्दवर्गु समास
जजस शब्द में पहिा शब्द संख्या का आए वहां हमेशा र्दववगु समास होता है । परं तु इसके कुछ
अपवाद भी हैं जैसे - बत्रिेत्र, बत्रिोचि, चतभ
ु ज
ुण (ववष्र्ु), एकदं त (गर्ेश) चतरु ािि (ब्रह्मा),
दशािि(रावर्) , बत्रशि
ू ये सभी संख्यावाची होते हुए भी बहुब्रीहह समास है ।
र्दर्िंर्दर् समास
जजस समास में दोिो पद प्रधाि होते हैं, र्दवंर्दव समास कहिाता है । इस समास के वविह में
शब्दों के बीच से योजक ग्रचन्ह हटाकर ‘और’ जोड़ा जाता है ।
इस समास में सजम्मलित शब्दों में योजक ग्रचन्ह िगा होता है । इस समास में ऐसे शब्द
सजम्मलित है जजिमें दोिों शब्द ( पूवण और उत्तर पद) का बराबर महत्व है । जो एक दस
ू रे के
पूरक है । जैसे – रात हदि , राजा रािी , दाि रोटी, माता वपता आहद।
अन्य म त्र्पर्
ू व उद ारर्
सि
ु -दि
ु – सि
ु और दि
ु ऊाँचा-िीचा – ऊाँचा और िीचा
दध
ू -दही – दध
ू और दही दाि-चावि – दाि और चावि
ब ु ब्रीह समास
ऐसे शब्दों का मेि, जजिमें दोिो पद प्रधाि ि हो अर्ाणत जजसमें प्रयक्
ु त शब्द स्वयं प्रधाि ि
रहकर ककसी तीसरे शब्द की ओर संकेत करें या दोिों शब्द लमिकर एक ववशेष संज्ञा का अर्ण
दें , तो उसे ‘बहुब्रीहह समास’ कहते हैं। ये ‘योगरूढ़’ शब्द होते हैं। जैसे – दशािि - दश है
आिि (मि
ु ) जजसके अर्ाणत ् रावर्
कुछ म त्र्पर्
ू व उद ारर्
िीिकंठ – भगवाि लशव/ मोर पविपुत्र – हिम
ु ाि जी
कमविारय समास
वह समास जजसका पहिा पद ववशेषर् एवं दस
ू रा पद ववशेष्य होता है अर्वा पूवप
ण द एवं उत्तरपद
में उपमाि – उपमेय का सम्बन्ध मािा जाता है कमणधारय समास कहिाता है ।
इस समास का उत्तरपद प्रधाि होता है एवं ववगहृ करते समय दोिों पदों के बीच में ‘के सामान’, ‘ ै
जो’, में से ककसी एक शब्द का प्रयोग होता है ।
कुछ म त्र्पर्
ू व उद ारर्
र्िश्याम – बादि के समाि कािा
कािी लमचण – कािी है जो लमचण
सज्जि – सच्चा है जो जि
अििंकार
काव्यों की सद
ुं रता बढ़ािे वािे यंत्रों को ही अिंकार कहते हैं। जजस प्रकार मिष्ु य अपिी सद
ुं रता
बढ़ािे के लिए ववलभन्ि आभष
ू र्ों का प्रयोग करते हैं उसी तरह काव्यों की सद
ंु रता बढ़ािे के लिए
अिंकारों का उपयोग ककया जाता है ।
1. शब्दािंकार,
2. अर्ाणिक
ं ार,
3. उभयािंकार और
4. पाश्चात्य अिंकार।
मख्
ु य रूप से अििंकार के दो भेद ोिे ैं :
1. शब्दािंकार
2. अर्ाणिक
ं ार
र्ब्दाििंकार के भेद:
1. अिप्र
ु ास अिंकार
2. यमक अिंकार
3. श्िेष अिंकार
1. अनुप्रास अििंकार :- जब ककसी काव्य को सदुं र बिािे के लिए ककसी वर्ण की बार-बार
आवनृ त हो तो वह अिप्र
ु ास अिंकार कहिाता है । ककसी ववशेष वर्ण की आवनृ त से वाक्य सि
ु िे में
सद
ुं र िगता है । जैसे :-
इस उदाहरर् में ‘च’ वर्ण की आवनृ त हो रही है और आवनृ त से वाक्य का सौन्दयण बढ़ रहा है । अतः
यह अिप्र
ु ास अिंकार का उदाहरर् है ।
यहााँ ‘र्टा’ शब्द की आववृ त्त लभन्ि-लभन्ि अर्ण में हुई है । पहिे ‘र्टा’ शब्द ‘वषाणकाि’ में उड़िे
वािी ‘मेर्मािा’ के अर्ण में प्रयक्
ु त हुआ है और दस ू री बार ‘र्टा’ का अर्ण है ‘कम हुआ’। अतः यहााँ
यमक अिंकार है ।
3. श्िेष अििंकार :- श्िेष अिंकार ऊपर हदये गए दोिों अिंकारों से लभन्ि है । श्िेष अिंकार में
एक ही शब्द के ववलभन्ि अर्ण होते हैं। जैसे:
'रह मन पानी राखखए बबन पानी सब सन
ू ।
पानी गए न ऊबरे मोिी मानस चन
ू ।।'
इस दोहे में रहीम िे पािी को तीि अर्ों में प्रयोग ककया है । पािी का पहिा अर्ण मिुष्य के संदभण
में है जब इसका मतिब वविम्रता से है । रहीम कह रहे हैं कक मिष्ु य में हमेशा वविम्रता (पािी)
होिा चाहहए। पािी का दस
ू रा अर्ण आभा, तेज या चमक से है जजसके बबिा मोती का कोई मल्
ू य
िहीं।
अथावििंकार
अर्ाणिक
ं ार के भेद: अर्ाणिक
ं ार के मख्
ु यतः पााँच भेद होते हैं
1. उपमा अिंकार
2. रूपक अिंकार
3. उत्प्रेक्षा अिंकार
4. अनतशयोजक्त अिंकार
5. मािवीकरर् अिंकार
1. उपमा अििंकार :- जब दो लभन्ि वस्तओ
ु ं में समािता हदिाई जाती है , तब वहााँ उपमा
अिंकार होता है
उपमान - जजससे ति
ु िा की जाती है
र्ाचक र्ब्द - ति
ु िा का बोध करिे वािा शब्द
उदाहरर्:-
इस उदाहरर् में मि को पीपि के पत्ते कक तरह हहिता हुआ बताया जा रहा है । इस उदाहरर्
में ‘मि’ – उपमेय है , ‘पीपर पात’ – उपमाि है , ‘डोिा’ – साधारर् धमण है एवं ‘सररस’ (‘के
सामाि’) – वाचक शब्द है । जब दो वस्तओ
ु ं की उिके एक सामाि धमण की वजह से ति
ु िा की
जाती है तब वहां उपमा अिंकार होता है ।
इस उदाहरर् में चन्रमा एवं खििोिे में समािता ि हदिाकर चााँद को ही खििौिा बोि हदया गया
है । अतएव यह रूपक अिंकार होगा।
3. उत्प्रेक्षा अििंकार :- जहााँ उपमेय में उपमाि के होिे की संभाविा का वर्णि हो तब वहां
उत्प्रेक्षा अिंकार होता है । यहद पंजक्त में - मि,ु जि,ु जिहु, जािो, मािहु मािो, निश्चय, ईव,
ज्यों आहद आता है बहां उत्प्रेक्षा अिंकार होता है । जैसे:
इस उदाहरर् में किक का अर्ण धतरु ा है । कवव कहता है कक वह धतरू े को ऐसे िे चिा मािो कोई
लभक्षु सोिा िे जा रहा हो। काव्यांश में ‘ज्यों’ शब्द का इस्तेमाि हो रहा है एवं कनक –
उपमेय में स्र्र्व – उपमान के होिे कक कल्पिा हो रही है । इसलिए यह उदाहरर् उत्प्रेक्षा अिंकार
के अंतगणत आएगा।
4. अनिर्योष्क्ट्ि अििंकार :- जब ककसी बात का वर्णि बहुत बढ़ा-चढ़ाकर ककया जाए तब वहां
अनतशयोजक्त अिंकार होता है । जैसे :
आगे नहदयााँ पड़ी अपार, घोडा कैसे उिरे पार। रार्ा ने सोचा इस पार , िब िक चेिक था उस
पार।
इस उदाहरर् में चेतक की शजक्तयों व स्फूनतण का बहुत बढ़ा-चढ़ाकर वर्णि ककया गया है । अतएव
यहााँ पर अनतशयोजक्त अिंकार होगा।
इस उदाहरर् में फूिों के हं सिे का वर्णि ककया गया है जो मिष्ु य करते हैं अतएव यहााँ
मािवीकरर् अिंकार है ।
रस
ित्सम र्ब्द
तत्सम दो शब्दों से लमिकर बिा है – तत + सम तत का अर्ण है ‘उसके’ तर्ा सम का अर्ण है
‘समाि’ अतः तत्सम शब्द ऐसे शब्द होते हैं, जजन्हें संस्कृत भाषा से ‘ज्यों का त्यों’ बबिा ककसी
पररवतणि के हहंदी भाषा में शालमि कर लिया गया है ।
िर्दभर् र्ब्द
समय और पररजस्र्नत की वजह से तत्सम शब्दों में जो पररवतणि हुए हैं उन्हें तर्दभव शब्द कहते हैं।
संस्कृत के जो शब्द प्राकृत, अपभ्रंश, पुरािी हहन्दी आहद से गुजरिे के कारर् आज पररवनतणत रूप में
लमिते हैं, वे तर्दभव शब्द कहिाते हैं।
‘तर्दभव’ (तत ् + भव) शब्द का अर्ण है संस्कृत शब्दों को र्ोड़ा पररवनतणत करकर बिे शब्द।
ित्सम और िर्दभर् र्ब्दों को प चानने के ननयम :-
तत्सम शब्दों के अंत में ‘क्ष’ वर्ण आता है वहीं उसके तर्दभव रूप में ‘क्ष’ स्र्ाि में ‘ि’ या ‘छ’ वर्ण
का प्रयोग होता है ।
तत्सम शब्दों में जहां पर ‘व’ का प्रयोग होता है वहीं तर्दभव शब्द में ‘व’ की जगह ‘ब’ का प्रयोग
होता है ।
तत्सम शब्दों में ‘ष’ वर्ण का प्रयोग ककया जाता है।
तत्सम शब्दों में ‘ऋ’ की मात्रा का प्रयोग होता है। वहीं तर्दभव शब्दों में ‘र’ का प्रयोग ककया जाता
है ।
तत्सम शब्दों में जहां पर ‘श्र’ का प्रयोग होता है वहीं तर्दभव शब्द में ‘श्र’ की जगह ‘स’ का प्रयोग
होता है ।
तत्सम शब्दों में ‘ श ‘ का प्रयोग होता है और तर्दभव शब्दों में ‘ स ‘ का प्रयोग हो जाता है।
तत्सम शब्दों में ‘ र ‘ की मात्रा का प्रयोग होता है।
र्े र्ब्द जो अनेक र्ब्दों या र्ाक्ट्य के स्थान पर अकेिे ी प्रयोग ककये
जािे ैं।
आकाश को चम
ू िे वािा - गगिचब
ुं ी
चन्रमा के समाि मि
ु वािी - चंरमि
ु ी
जो दो भाषाएाँ जािता हो - दभ
ु ावषया
जो दस
ू रों पर उपकार करे - परोपकारी
जो मीठा बोिता हो - मद
ृ भ
ु ाषी
दस
ू रों से ईष्याण रििे वािा - ईष्याणिु
दस
ू रों का बुरा चाहिे वािा - कुहटि
परस्पर एक - दस
ू रे पर आग्रश्रत - अन्योन्याग्रश्रत
र्ब्द र्ुर्दधि
अर्र्द
ु ि रूप र्र्द
ु ि रूप अर्र्द
ु ि रूप र्र्द
ु ि रूप
अशीवाणद आशीवाणद परवाररक पाररवाररक
अिक
ु ुि अिक
ु ूि कोि कौि
जव
ु ती यव
ु ती ककरपा कृपा
शग
ंृ ाररकता - संदेश रासक
भष्क्ट्ि काि
आहदकाि के बाद आये इस यग
ु को पूवण मध्यकाि भी कहा जाता है । जजसकी समयावग्रध संवत ्
1343ई से संवत ् 1643ई तक की मािी जाती है । यह हहंदी साहहत्य (साहहजत्यक दो प्रकार के हैं-
धालमणक साहहत्य और िौककक साहहत्य) का श्रेष्ठ यग
ु है । जजसको जॉजण ग्रियसणि िे स्वर्णकाि,
श्यामसन्
ु दर दास िे स्वर्णयग
ु , आचायव राम चिंद्र र्क्ट्
ु ि िे भजक्त काि एवं हजारी प्रसाद र्दवववेदी
िे िोक जागरर् कहा। सम्पर्
ू ण साहहत्य के श्रेष्ठ कवव और उत्तम रचिाएं इसी में प्राप्त होती हैं।
सगर्
ु भष्क्ट्ि
रामाश्रयी शािा
कृष्र्ाश्रयी शािा
ननगर्
ुव भष्क्ट्ि
सन्त काव्य धारा इसे 'ज्ञािाश्रयी शािा' भी कहते हैं।
सफ
ू ी काव्य धारा सफ
ू ी काव्य को प्रेमाख्यािक काव्य, प्रेमगार्ा काव्य परम्परा,
प्रेममागी शािा भी कहा जाता है ।
रामाियी र्ाखा
ति
ु सीदास हहंदी साहहत्य के श्रेष्ठ कवव मािे जाते हैं। ये रामभजक्त शािा के प्रमि
ु कवव मािे
जाते है । ति
ु सीदास के मािस एवं केशव की रामचंहरका में सभी रस दे िे जा सकते हैं। रामभजक्त
के रलसक संप्रदाय के काव्य में श्रग
ं ृ ार रस को प्रमि
ु ता लमिी है । मख्
ु य रस यर्दयवप शांत रस ही
रहा। रामकाव्य में मख् ु त हुई है । ककंतु ब्रजभाषा भी इस काव्य का श्रग
ु यत: अवधी भाषा प्रयक् ं ृ ार
बिी है रामचररतमािस की अवधी प्रेमकाव्य की अवधी भाषा की अपेक्षा अग्रधक साहहजत्यक है ।
रामकाव्य की रचिा अग्रधकतर दोहा-चौपाई में हुई है
वर्नयपबत्रका ति
ु सीदास रग्रचत एक िंर् है । यह ब्रज भाषा में रग्रचत है । वविय पबत्रका में वविय
के पद है । ववियपबत्रका का एक िाम राम ववियाविी भी है । वविय पबत्रका में 21 रागों का प्रयोग
हुआ है । वविय पबत्रका का प्रमि
ु रस शांतरस है तर्ा इस रस का स्र्ाई भाव निवेद होता है ।
कृटर्ाियी र्ाखा
कृष्र्-काव्य-धारा के मख्
ु य प्रवतणक हैं- श्री वल्िभाचायण। उन्होंिे निम्बाकण, मध्व और
ववष्र्स्
ु वामी के आदशों को सामिे रिकर श्रीकृष्र् का प्रचार ककया। श्री वल्िभाचायण र्दवारा
प्रचाररत पुजष्टमागण में दीक्षक्षत होकर सरू दास आहद अष्टछाप के कववयों िे कृष्र्-भजक्त-साहहत्य
की रचिा की। वल्िभाचायण िे पुजष्टमागण का प्रचार-प्रसार ककया। जजसका अर्ण है - भगवाि
श्रीकृष्र् की भजक्त से उिकी कृपा और अिि
ु ह की प्राजप्त करिा
1. कबीर (1398-1518 ई.) - सािी, सबद, रमैिी। इि तीिों का संकिि 'बीजक' िाम से कबीर
के लशष्य धमणदास िे ककया।
3. गुरु िािक (1469-1538 ई.) - जपुजी, रहहरास, असा-दी-वार सोहहिा-गुरु िन्र् साहब में
िािक के पद संकलित हैं।
6. मिक
ू दास (1574-1682 ई.) - ज्ञािदीप, रतििाि, भजक्तवववेक, राम अवतार िीिा, धव
ु -
चररत।
7. सन्
ु दरदास - (1596-1689 ई.) ज्ञािसमद
ु , सन्
ु दर वविास ।
सिंिकाव्य की वर्र्ेषिाएाँ
1. निगर्
ुण ोपासिा, 2. बाह्याडम्बरों का िण्ठडि, 3. िारी ववषयक दृजष्टकोर्,
सफ
ू ी काव्य को प्रेमाख्यािक काव्य, प्रेमगार्ा काव्य परम्परा, प्रेममागी शािा भी कहा जाता है ।
मल्
ु िा दाउद चंदायि 1379 ई.
कुतब
ु ि मग
ृ ावती 1503 ई.
मंझि मधम
ु ािती 1545 ई.
िरू मह
ु म्मद इन्रावती 1744 ई.
सफ
ू ी काव्य की प्रमख
ु वर्र्ेषिाएाँ
1. रीनतबर्दध - जजन्होंिे िक्षर् िन्र् (रीनत िन्र्) लििकर रीनत निरूपर् ककया, जैसे-दे व,
केशवदास, ग्रचन्तामखर् आहद।
2. रीनतमक्
ु त-जो रीनत के बंधि से पूरी तरह मक्
ु त हैं, जैसे - र्िािन्द, बोधा, आिम, ठाकुर।
3. रीनत लसर्दध - जजन्हें रीनत की जािकारी र्ी, परन्तु उन्होंिे िक्षर् िन्र्। िहीं लििा, जैसे-
बबहारी। रीनतकाि के प्रनतनिग्रध कवव बबहारी हैं। उिके िन्र् का िाम है सतसई। बबहारी सतसई
का सम्पादि रत्िाकर िे 'बबहारी रत्िाकर' के िाम से ककया है । बबहारी सतसई के दोहों की कुि
संख्या 713 है ।
2. भष
ू र् - लशवराज भष
ू र्, छत्रसाि दशक, लशवाबाविी, अिंकार प्रकाश।
3. बबहारी - सतसई।
रीनिकािीन नाटक
ह द
िं ी के प्रलसर्दि कवर् एर्िं उनकी रचनाएाँ
बब ारी - सतसई
घनानिंद - सज
ु ाि सागर ,प्रेम पबत्रका ,प्रेम सरोवर ,ववयोग बोलि ,इश्कता
सय
ू क
व ािंि बत्रपाठी ननरािा - पररमि, ति
ु सीदास, अिालमका , कुकुरमत्त
ु ा, अखर्मा, बेिा
म ादे र्ी र्माव - निहार, रजश्म, िीरजा, दीपलशिा, सांध्यगीत, पर् के सार्ी
सुलमत्रानिंदन पन्ि - यग
ु वार्ी, वीर्ा किा और बूढा चााँद ,पल्िव ,गुंजि , ग्रचदं बरा ,उत्तरा
जगननक - परमािरासो
ह द
िं ी के नाटक और उनके िेखक
1. अंधेर िगरी – भारतें द ु हररश्चंर
2. अंधा यग
ु – धमणवीर भारती
3. एक और रोर्ाचायण – शंकर शेष
4. कबीरा िड़ा बाज़ार में – भीष्म साहिी
5. महाभोज – मन्िू भंडारी
6. कोटण माशणि – स्वदे श दीपक
7. अषाढ़ का एक हदि – मोहि राकेश
8. रामायर् महािाटक – प्रार्चंद चौहाि
9. कृष्र् सद
ु ामा िाटक – लशविंदि सहाय
10. ध्रव
ु स्वालमिी – जयशंकर प्रसाद
11. आषाढ़ का एक हदि – मोहि राकेश
12. बकरी – सवेश्वर दयाि सक्सेिा
ह द
िं ी की प्रमुख पबत्रकाएिं एिंर् उनके सिंपादक
1. कवव वचि सध
ु ा – भारतेन्द ु हररश्चन्र
2. हररश्चन्र मैगजीि – भारतेन्द ु हररश्चन्र
14. धमणयग
ु – धमणवीर भारती
15. साप्ताहहक हहन्दस्
ु ताि – मिोहर श्याम जोशी
भाषा अजवन
भाषा अजणि एक ऐसी प्रकिया है । जजसके अंतगणत बच्चा अपिे आस पास के वातावरर्, पररवार
में रहकर भाषा को सीिता है । वह दस
ू रो का अिक
ु रर् करके भाषा को सीिता है । यह एक
प्राकृनतक प्रककया है । इसके लिए कोई औपचाररक साधि की आवश्यकता िही पड़ती है । यह एक
प्रकार से मात ृ भाषा या क्षेत्रीय भाषा होती है ।
भाषा अधिगम
अग्रधगम का तात्पयण होता है सीििा। ककसी भी प्रकार के अग्रधगम की प्रकिया
जीविभर चिती रहती है । इसमें औपचाररक साधिों का प्रयोग ककया जाता है ।
भाषा अग्रधगम में नियम और व्याकरर् का प्रयोग ककया जाता है ।
इसे र्दववतीय भाषा के िाम से जािते है ।
अधिगम के प्रकार
चॉम्स्की के अनुसार– ‘‘भाषा अजणि की क्षमता बािकों में जन्मजात होती है और वह भाषा की
व्यवस्र्ा को पहचाििे की शजक्त के सार् पैदा होता है ।’’
जैसे :- पािी कहिे के सार्-सार् जब बच्चे को पािी हदया जाता है तो वह बच्चा धीरे - धीरे पािी
शब्द व पािी वस्तु के बीच सम्बन्ध स्र्ावपत करके उसे समझिे िगता है ।
अभ्यास का लसर्दिािंि:- ककसी भी चीज़ को सीििे के लिए अभ्यास सबसे महत्वपूर्ण होता है
क्यकंू क उसी से वह हमारे व्यवहार में आती है । भाषा प्रयोग के अग्रधक से अग्रधक अवसर लमििे से
बच्चों का भाषा ववकास जल्दी हो जाता है ।
आर्वृ त्त का लसर्दिािंि :- भाषा सीििे में आववृ त्त का बहुत महत्व है । सीिी हुई बात को जजतिा
अग्रधक दोहराया जाएगा वह उतिे ही अग्रधक दे र तक याद रहे गी। इसलिए भाषा लशक्षर् में
पुिराववृ त्त पर भी ववशेष ध्याि हदए जािे की आवश्यकता होती है ।
अनप
ु ाि और क्रम का लसर्दिािंि:- भाषा कौशि के चारो प्रारूपो (श्रवर्, वाचि, पठि एवं
िेिि) मे निपुर्ता के लिए अभ्यास िम मे समाि अिप
ु ात बिाये रििे पर जोर दे ता है ।
भाषा के कायव
भाषा मानर् वर्कास का मूि आिार ै :- भाषा की शजक्त के माध्यम से ही मिुष्य प्रगनत के
पर् पर अिसर हुआ है भाषा के अभाव में मिष्ु य ववचार िहीं कर सकता और ववचार के अभाव में
वह अपिे ज्ञाि ववज्ञाि के क्षेत्र में प्रगनत भी िहीं कर सकता है
ज्ञान की प्राष्प्ि में स ायक:- िये ज्ञाि की प्राजप्त के लिए भाषा बहुत ही आवश्यक हैं।
लर्क्षा प्राष्प्ि में स ायक:- लशक्षा प्राप्त करिे के लिए भाषा की आवश्यकता होती हैं।
भाषा मानर् सभ्यिा एर्िं सिंस्कृनि की प चान ै :- जैसे-जैसे मािव समाज िे अपिी भाषा
में प्रगनत की वैसे वैसे उसकी सभ्यता एवं संस्कृनत में ववकास हुआ है ज्ञाि ववज्ञाि के क्षेत्र में
प्रगनत हुई और श्रेष्ठ साहहत्य का भी सज
ृ ि हुआ है ।
ननगमन वर्धि :- इस पर्दधनत में ववर्दयाग्रर्णयों को पहिे नियमों का ज्ञाि हदया जाता है , कफर
उि नियमों को एक "उदाहरर्" दे कर समझाया जाता है । इस पर्दधनत को "लशक्षक-केंहरत" ववग्रध
कहा जाता है जजसमें लशक्षक सभी नियमों को पढ़ाता है ।
अनुकरर् वर्धि
इस ववग्रध में बािक अिक
ु रर् करके सीिता है इस लिए इस ववग्रध को अिक
ु रर् ववग्रध कहा जाता
है । इस ववग्रध में बािक अपिे लशक्षक का अिक
ु रर् (िकि) करके लिििा, पढ़िा व िवीि रचिा
करिा सीिता है । इस ववग्रध के अन्तगणत बािक लशक्षक के उच्चारर् को सि
ु कर वाचि करिा
सीिते हैं। पहिे लशक्षक बोिता है , कफर बच्चे उसका अिस
ु रर् करते है ।
व्याख्यान वर्धि
व्याख्याि ववग्रध में ककसी तथ्य , ववषय की व्याख्या की जाती है । व्याख्याि ववग्रध को लशक्षर् की
सबसे प्राचीि ववग्रध मािा जाता है । इस ववग्रध में लशक्षक की भलू मका प्रमि
ु होती है इसलिए इसे
लशक्षक केंहरत लशक्षर् ववग्रध मािी जाती है ।
अिग-अिग भावषक पष्ृ ठभलू मयों से होिे के कारर् बच्चों के शब्दों व उिके उच्चारर् में
लभन्िता पाई जाती है , इसलिए भावषक पष्ृ ठभलू म के आधार पर ककसी को पीछे िहीं छोड़ा
जा सकता। बच्चो की भाषा ववववधता को एक संसाधि के रूप में प्रयोग ककया जा सकता
है ।
इस बात के प्रमार् भी लमिे हैं कक र्दवव-भाषी बच्चों की वैचाररक क्षमता अन्य बच्चों की
ति
ु िा में अच्छी होती है ।
अधिक भीड़-भाड़ र्ािी कक्षाएाँ :- अग्रधक भीड़-भाड़ वािी कक्षाएाँ आमतौर पर लशक्षक
की भाषा को प्रभावी ढं ग से पढ़ािे की क्षमता को कम कर दे ती हैं और लशक्षाग्रर्णयों के भाषा
लशक्षर् को प्रभाववत करती है ।
अध्ययन सामग्री की कमी :- भाषा ववववधता वािी कक्षा में भाषा लशक्षर् के लिए
अध्ययि सामिी की कमी भी एक समस्या है ।
भाषा-कौर्ि
मिष्ु य एक सामाजजक प्रार्ी है और समाज में अन्य व्यजक्तयों से सम्प्रेषर् स्र्ावपत करिे के
लिए वह बोिकर या लििकर अपिे भावों एवं ववचारों को अलभव्यक्त करता है तर्ा सि
ु कर या
पढ़कर दस
ू रो के ववचारों को िहर् करता है । इस प्रकार भाषा के दो अलभव्यक्ट्िात्मक कौर्ि है
बोिना और लिखना इि दोिों माध्यम से हम अपिे ववचारो को अलभव्यक्त कर सकते है । और
भाषा के दो ही ग्र र्यात्मक कौर्ि है सन
ु ना और पढ़ना इि दोिों माध्यम से हम दस
ु रो के
ववचारो या उिकी बातो को िहर् कर सकते है । भाषा से सम्बजन्धत इि चारों कियाओं के प्रयोग
करिे की क्षमता को भाषा-कौशि कहा जाता है ।
इिका ववकास एवं इिमें दक्षता प्राप्त करिा ही भाषा लशक्षर् का उदे श्य है । भाषा लशक्षर् के लिए
आवश्यक चारों कौशि परस्पर एक-दस
ू रे से अन्ि:सम्बष्न्िि होते हैं। प्रत्येक कौशि का ववकास
ककसी ि ककसी रूप में एक-दस
ू रे पर निभणर करता है ।
भाषा के चारो कौशि क्रम से न ीिं सीिे जाते बजल्क सभी एक साथ सीिे जाते है । जैसे बच्चा
सि
ु िे के सार् - सार् बोििा भी सीिता है । और पढ़िे के सार् - सार् लिििा भी सीिता है ।
4. िेखन कौर्ि (लिखना) :- अपिे ववचारो या बातो को लििकर अलभव्यक्त करिा िेिि
कौशि कहिाता है । इस कौशि में भाषा को स्र्ानयत्व हदया जाता है और इसमें वतणिी या
शर्द
ु धता को अत्यग्रधक महत्व हदया जाता है ।
मल्
ु यािंकन के उर्ददे श्य
बच्चों में अपेक्षक्षत व्यवहार एवं आचरर् पररवतणि की जांच करिा।
बािको की योग्यताओं, कुशिताओं, रुग्रचयों आहद का पता िगािा एवं उिके अिस
ु ार
लशक्षर् ववग्रध को अपिािा।
इससे अध्ययि और अध्यापि दोिों का मापि कर सकते है ।
ववर्दयाग्रर्णयों के भाषायी कौशिों की प्रगनत का आकिि करिा।
बािको के चहुमि
ंु ी ववकास की निरन्तर गनत प्रदाि करता है ।
उपचारर्ात्मक लशक्षर् प्रदाि करिा ।
ववर्दयाग्रर्णयों का सतत मल्
ू यांकि करके भाषा लशक्षर् में आिे वािी कहठिाइयों को दरू
करिा।
बच्चो की अग्रधगम में होिे वािी कहठिाइयों का पता िगािा। और उन्हें दरू करिे की
सही रर्िीनत बिािा ।
मल्
ू यािंकन का म त्र्
लशक्षर् के उर्ददे श्यों की प्राजप्त में सहायक है!
बच्चों को अध्ययि की ओर अिलसत करता है ।
बच्चों की कमजोररयों को जाििे में सहायक होता है ।
बच्चों की प्रगनत में सहायक है ।
शैक्षक्षक व व्यावसानयक मागणदशणि में सहायक है ।
मूल्यािंकन के प्रकार
रचनात्मक/ननमावर्ात्मक मूल्यािंकन :- बच्चों की िगातार प्रनतपुजष्ट (Feedback) के लिए
रचिात्मक मल्
ू यांकि सहायक है । रचिात्मक मल्
ू यांकि से अध्यापक पढाते समय यह जााँच
करते है कक बच्चो िे ज्ञाि को ककतिा अजजणत ककया है । रचिात्मक मल्
ू यांकि पाठ के बीच में से
ककया जाता है ।
पोटव फोलियो
C.C.E. में सतत का अर्ण है कक बच्चो के सीििे मैं कहााँ - कहााँ कमी रह गई है जजसके आधार
पर सीििे में सध
ु ार के लिए लशक्षक उग्रचत समय पर आवश्यक कदम उठा सकता है सार् में यह
भी पता िगा सकता है कक बच्चा सीििे में कहााँ कहठिाई का अिभ
ु व कर रहा है ।
C.C.E. के दस
ु रे र्टक समि मल्
ू यांकि का अर्ण बच्चे में सवाणगीर् प्रगनत के बारे में जािकारी
प्राप्त करिे से है ।
उपचारात्मक लर्क्षर्
उपचारात्मक लशक्षर् निदािात्मक परीक्षर् के बाद आता है क्योंकक िैदानिक परीक्षर् के र्दवारा
पहिे छात्रों की अग्रधगम में होिे वािी कहठिाइयों की जािकारी प्राप्त की जाती है और उसके
बाद उपचारात्मक लशक्षर् के र्दवारा उन्हें दरू करिे का प्रयास ककया जाता है ।
कक्रया स ायक लर्क्षर् सामग्री :– किया सहायक लशक्षर् सामिी के र्दवारा प्राप्त
ज्ञाि वास्तववक होता है । इिके र्दवारा िई िई चीजों का अध्ययि ककया जाता है । इससे
बािकों को व्यजक्तगत अिभ
ु व की प्राजप्त होती है ।
इसके उदाहरर् है :
ऐनतहालसक स्र्िों का भ्रमर् करिा।
ककसी उर्दयाि का भ्रमर् करिा।
ककसी संिहािय का भ्रमर् करिा।
गर्दयािंर् - पर्दयािंर्
गर्दयािंर्
म सािंस्कृनिक अष्स्मिा की बाि ककिनी ी करें ; परिं पराओिं का अर्मल्
ू यन ु आ ै ,
आस्थाओिं का क्षरर् ु आ ै । कड़र्ा सच िो य ै कक म बौर्दधिक दासिा स्र्ीकार कर र े
ैं, पष्श्चम के सािंस्कृनिक उपननर्ेर् बन र े ैं। मारी नई सिंस्कृनि अनुकरर् की सिंस्कृनि
ै । म आिुननकिा के झूठे प्रनिमान अपनािे जा र े ैं। प्रनिटठा की अिंिी प्रनिस्पिाव में
जो अपना ै उसे खोकर छर्दम आिुननकिा की धगरफ्ि में आिे जा र े ैं। सिंस्कृनि की
ननयिंत्रक र्ष्क्ट्ियों के क्षीर् ो जाने के कारर् म हदनरलमि ो र े ैं। मारा समाज ी
अन्य-ननदे लर्ि ोिा जा र ा ै । वर्ज्ञापन और प्रसार के सूक्ष्म यिंत्र मारी मानलसकिा
बदि र े ैं। उनमें सम्मो न की र्ष्क्ट्ि ै , र्र्ीकरर् की भी।
अिंििुः इस सिंस्कृनि के फैिार् का पररर्ाम क्ट्या ोगा? य गिंभीर धचिंिा का वर्षय ै ।
मारे सीलमि सिंसािनों का घोर अपव्यय ो र ा ै । जीर्न की गुर्र्त्ता आिू के धचप्स से
न ीिं सुिरिी। न ब ु वर्ज्ञावपि र्ीिि पेयों से। भिे ी र्े अिंिरावटरीय ों। पी़िा और बगवर
ककिने ी आिुननक ों, ैं र्े कूड़ा-खार्दय। समाज में र्गों की दरू ी बढ़ र ी ै , सामाष्जक
सरोकारों में कमी आ र ी ै । जीर्न स्िर का य बढ़िा अिंिर आक्रोर् और अर्ािंनि को
जन्म दे र ा ै । जैस-े जैसे हदखार्े की य सिंस्कृनि फैिेगी, सामाष्जक अर्ािंनि भी बढ़े गी।
मारी सािंस्कृनिक अष्स्मिा का ह्रास िो ो ी र ा ै , म िक्ष्य-रम से भी पीडड़ि ैं।
वर्कास के वर्राट उर्ददे श्य पीछे ट र े ैं, म झूठी िुटटी के िात्कालिक िक्ष्यों का पीछा
कर र े ैं। मयावदाएिं टूट र ी ैं, नैनिक मानदिं ड ढीिे पड़ र े ैं। व्यष्क्ट्ि-केंहद्रकिा बढ़ र ी ै ,
स्र्ाथव परमाथव पर ार्ी ो र ा ै । भोग की आकािंक्षाएिं आसमान को छू र ी ैं। ककस बबिंद ु
पर रुकेगी य दौड़?
2. आज के उपभोक्ट्िार्ादी यग
ु में ककस प्राकर की सिंस्कृनि का वर्कास ो र ा ै ? अनच्
ु छे द के
आिार पर बिाएिं।
(क) हदखार्े की सिंस्कृनि (ि) प्रनतस्पधाण की संस्कृनत
3. 'वर्िालसिा की र्स्िओ
ु िं से आजकि बाजार भरा पड़ा ै । इस र्ाक्ट्य में कक्रया वर्र्ेषर् ै
(क) वविालसता (ि) बाजार (ग) आजकि (र्) भरा
ANS : 3
6. उपयक्ट्
ुव ि अनच्
ु छे द में ननम्नलिखखि में से ककस खार्दय पदाथव को कूड़ा-खार्दय की िेर्ी में न ीिं
रखा गया ै ?
(क) पीज़ा (ि) बगणर (ग) पनीर (र्) आिू के ग्रचप्स
ANS : 3
7. आज समाज में वर्लभन्न र्गों के जीर्न स्िर में बढ़िा अिंिर ककसको जन्म दे र ा ै ?
(क) आिोश (ि) अशांनत (ग) उपयक्
ुण त दोिों (र्) हदिावा
ANS : 4
गर्दयािंर्
जीर्न में ब ु ि अन्िकार ै और अन्िकार की ी भााँनि अर्भ
ु और अनीनि ै । कुछ िोग
इस अन्िकार को स्र्ीकार कर िेिे ैं और िब उनके भीिर जो प्रकार् िक प ु ाँ चने और
पाने की आकािंक्षा थी, र् क्रमर्: क्षीर् ोिी जािी ै । मैं अन्िकार की इस स्र्ीकृनि को
मनुटय का सबसे बड़ा पाप क िा ू ाँ । य मनुटय का स्र्यिं अपने प्रनि ककया गया अपराि
ै । उसके दस
ू रों के प्रनि ककए गए अपरािों का जन्म इस मूि पाप से ी ोिा ै । य
स्मरर् र े कक जो व्यष्क्ट्ि अपने ी प्रनि इस पाप को न ीिं करिा ै , र् ककसी के भी प्रनि
कोई पाप न ीिं कर सकिा ै । ककन्िु कुछ िोग अन्िकार के स्र्ीकार से बचने के लिए उसके
अस्र्ीकार में िग जािे ैं। उनका जीर्न अन्िकार के ननषेि का ी सिि उपक्रम बन
जािा ै ।
3. जब व्यष्क्ट्ि स्र्यिं के प्रनि ककए गए अन्याय, र्ोषर् के वर्रुर्दि आर्ाज न ीिं उठािा, िो
(1) इससे दस
ू रों के प्रनत अन्याय, शोषर् को बढ़ावा लमिता है
(2) वह केवि अपिे प्रनत अन्याय करता है
5. इस गर्दयािंर् का मख्
ु य उर्ददे श्य ै
(1) अन्धकार और प्रकाश की व्याख्या करिा
(2) अन्याय और बुराइयों को दरू करिे के लिए प्रेररत करिा
(3) तरह-तरह के िोगों की ववशेषताएाँ बतािा
पर्दयािंर् 8
अन्िकार की गु ा सरीखी उन आाँखों से डरिा ै मन
भरा दरू िक उनमें दारुर् दै न्य दुःु ख का नीरर् रोदन।
र् स्र्ािीन ककसान र ा, अलभमान भरा आाँखों में इस का
छोड़ उसे माँझिार आज सिंसार कगार सदृर् ब खखसका।
ि रािे र्े खेि दृगों में ु आ बेदखि र् अब ष्जन से
ाँ सिी थी उसके जीर्न की ररयािी ष्जनके िन
ृ -िन
ृ से।
आाँखों ी में घूमा करिा र् उसकी आाँखों का िारा
कारकुनों की िाठी से जो गया जर्ानी ी में मारा।
बबना दर्ादपवन के घरनी स्र्रग चिी-आाँखें आिी भर
दे ख-रे ख के बबना दिमाँ ी बबहटया दो हदन बाद गई मर।
1. उपयक्ट्
ुव ि पर्दयािंर् में कवर् ने ककरर्ों का मानर्ीकरर् करिे ु ए उससे की िर धचबत्रि
ककया ै ।
(क) िवयव
ु ती (ि) िई-िवेिी दल्
ु हि (ग) मां (र्) इिमें से कोई िहीं
ANS : 2
5. उपयक्ट्
ुव ि पर्दयािंर् में कवर् ने र्र्वन ककया ै
(क) गांव की सद
ुं रता का (ि) दल्
ु हि की ववदाई का
(ग) हरे -भरे िेतों का (र्) सरू ज की पहिी ककरर्ों के प्रभाव का
ANS : 4
(c) दोिों ओर मस
ु ीबत (d) बीच में निकि भागिा
ANS : C
Q.110. प्रकाशि वषण की दृजष्ट से डॉ. हररवंश राय बच्चि की रचिाओं का सही अिि
ु म है -
(a) मधश
ु ािा, मधब
ु ािा, मधक
ु िश, निशा निमन्त्रर्
(b) मधक
ु िश, मधब
ु ािा, मधश
ु ािा, निशा निमन्त्रर्
(c) मधब
ु ािा, मधश
ु ािा, निशा निमन्त्रर्, मधक
ु िश
(d) निशा निमन्त्रर्, मधब
ु ािा, मधक
ु िश, मधश
ु ािा
ANS : A
Q.111. 'र्ोंसिे में ग्रचड़ड़या है ' में कौि-सा कारक है ?
(a) सम्बन्ध (b) अपादाि (c) अग्रधकरर् (d) सम्प्रदाि
ANS : C
Q.112. 'िाक रगड़िा' का क्या अर्ण है ?
(a) िाक में चोट िगिा (b) इज्जत दे िा
(c) दीितापूवक
ण प्रार्णिा करिा (d) चापिस
ू ी करिा
ANS : C
Q.113. 'ग्रचन्तामखर्' ककसका निबन्ध संिह है ?
(a) बािमक
ु ु न्द गुप्त (b) हजारी प्रसाद र्दवववेदी
(b) लशवराज भष
ू र् - भष
ू र्
(c) शब्द रसायि - दे व
(d) उर्दधव शतक - भारतेन्द ु हररश्चन्र
ANS : D
Q.14. निम्ि में से कौि-सा यग्ु म गित है ?
(a) मट्
ु ठी गरम करिा - ररश्वत दे िा
(b) पात्रािस
ु ार बच्चों र्दवारा अलभिय से सीििे की प्रकिया में तेजी आती है ।
(c) बच्चों पर ववपरीत प्रभाव पड़ता है ।
(d) आप हमारे र्र आिा चाहते हैं, तो आइए; ठहरिा चाहते है तो ठहररए।
ANS : A
Q.37. 'सीस' का तत्सम रूप क्या है ?
(a) शीशा (b) शीषण (c) लसरा (d) शीषणक
ANS : B
Q.38. हहन्दी भाषा में ककतिी बोलियााँ हैं?
(a) 15 (b) 25 (c) 18 (d) 22
ANS : C
Q.39. 'वीरों का कैसा हो वसन्त' कववता ककसिे लििी है ?
(a) सलु मत्रा कुमारी चौहाि (b) सभ
ु रा कुमारी चौहाि
(c) मािििाि चतव
ु े दी (d) रामधारी लसंह ‘हदिकर’
ANS : B
Q.40. 'अधण-स्वर' हैं-
(a) य, व (b) इ, उ (c) ऋ, िु (d) ऋ, ष
ANS : A
Q.41. 'दोहा' में ककतिी मात्राएाँ होती हैं?
(a) चौबीस (b) छब्बीस (c) अट्ठाइस (d) तीस
ANS : A
Q.42. 'मग
ृ ावती' ककसकी रचिा है ?
(a) उसमाि (b) मंझि (c) कुतब
ु ि (d) जायसी
ANS : C
Q.43. 'ऋग्वेद' का सजन्ध-ववच्छे द क्या है ?
(a) ऋक् + वेद (b) ऋ+ वेद (c) ऋग + वेद (d) ऋ + गवेद
ANS : A
Q.44. शर्दु ध वतणिी का चयि कीजजए-
(a) अस्प्रस्यता (b) अस्पष्ृ यता (c) अस्पश्ृ यता (d) अस्प्रश्यता
ANS : C
Q.45. कौि-सा शब्द लभन्ि अर्ण और प्रकृनत का है ?
(a) सिाति (b) ग्रचरं ति (c) शाश्वत (d) अधि
ु ाति
ANS : D
Q.46. निम्िलिखित में से कौि-सी व्याकरर् और वतणिी से शर्दु ध भाषा कहिाती है ?
(a) साहहजत्यक भाषा (b) प्रांजि भाषा (c) व्याकरखर्क भाषा (d) मािक भाषा
ANS : D
Q.47. त्र, ज्ञ, श्र क्या है ?
(a) स्वर (b) व्यंजि (c) अयोगवाह (d) संयक्
ु त व्यंजि
ANS : D
Q.48. सामान्य रूप से ककसका प्रयोग तत्सम शब्दों में होता है ?
(a) स (b) ष (c) श (d) कोई िहीं
ANS : A
Q.49. 'छ' और 'क्ष' में मख्
ु य अंतर क्या है ?
(a) चंरो + दय (b) चंर + उदय (c) चंर + दय (d) चंरा + उदय
ANS : B
Q.56. 'जगन्िार्' में कौि-सी सजन्ध है ?
(a) यर् ् स्वर सजन्ध (b) गुर् स्वर सजन्ध (c) ववसगण सजन्ध (d) व्यंजि सजन्ध
ANS : D
Q.57. रात-हदि में प्रयक्
ु त समास है -
(a) महादे वी वमाण (b) जयशंकर प्रसाद (c) सलु मत्रािंदि पंत (d) प्रेमचन्द
ANS : C
Q.59. 'आाँस'ू ककस िेिक की रचिा है ?
(c) 'ष' वर्ण उच्चारर् में िहीं है , पर िेिि में है । (d) सभी कर्ि सही हैं।
ANS : D
ANS : A
Q.76. मात्राएाँ ककतिी प्रकार की होती हैं ?
(a) ित
ृ (b) अित
ृ (c) वि (d) वत्त
ृ
ANS : B
Q.78. समाि तक
ु वािे शब्द हैं -
(a) पाँछ
ू , भत
ू (b) पाँछ
ू , माँछ
ू (c) पाँछ
ू , मोक्ष (d) पाँछ
ू , सींग
ANS : B
(a) शस्त्र + अर्ण (b) शास्त्र + अर्ण (c) श + स्त्रार्ण (d) शा + स्त्रार्ण
ANS : B
Q.81. 'महै श्वयण' में कौि-सी सजन्ध है ?
(c) गर्
ु स्वर सजन्ध (d) वर्द
ृ ग्रध स्वर सजन्ध
ANS : D
ANS : B
ANS : C
ANS : C
ANS : B
Q.86. 'पवि' शब्द का सजन्ध-ववच्छे द होगा
(a) प + वि (b) पव + अि (c) पो + अि (d) पव + ि
ANS : C
Q.87. निम्ि में से ककस समहू में सभी शब्द तत्सम हैं?
(a) शकणरा, पवि, ज्येष्ठ, अजग्ि (b) काष्ठ, र्त
ृ , र्ोड़ा, कारीगर
(c) ओष्ठ, ककताब, िािी, चाकू (d) निष्ठुर, चम्मच, हार्ी, कायण
ANS : A
Q.88. 'सरि' या 'साधारर्' वाक्य ककसे कहते हैं?
(a) जो छोटा हो
(c) गर्
ु स्वर सजन्ध (d) वर्द
ृ ग्रध स्वर सजन्ध
ANS : A
Q.106. 'एकैक' का सजन्ध ववच्छे द है -
(a) अज्ञेय (b) मैग्रर्िीशरर् गप्ु त (c) रामकुमार वमाण (d) जयशंकर प्रसाद
ANS : B
Q.110. 'िूहटयों पर टाँ गे िोग' ककसकी कृनत है ?
(d) उपयक्
ुण त में से सभी
ANS : D
Q.124. अिस्ु वार का प्रयोग ककस वर्ण के स्र्ाि पर ककया जाता है ?
(a) उत्तम पुरुष (b) अन्य पुरुष (c) मध्यम पुरुष (d) इिमें से कोई िहीं
ANS : A
Q.128. उपसगण एवं प्रत्यय दोिों के योग से बिा शब्द है –
(a) इत + आहद (b) इनत + आहद (c) इत्या + हद (d) इती + आहद
ANS : D
Q.130. 'मैंिे पुस्तक पढ़ी।' इस वाक्य में है -
(a) जजि तत्सम शब्दों में 'र्' होता है , उिके तर्दभव के रूप में 'र्’ के स्र्ाि पर 'ि'
प्रयक्
ु त होता है ।
(a) जीमत
ू (b) अंबुज (c) िीरद (d) परजन्य
ANS : B
Q.150. निश्चयवाचक सवणिाम कौि-सा है ?
(a) प्रेमचन्द (b) जयशंकर प्रसाद (c) मैग्रर्िीशरर् गप्ु त (d) श्याम सन्
ु दर दास
ANS : B
Q.4. संस्कृत के वे शब्द, जो हहन्दी में बबिा ककसी पररवतणि के प्रयुक्त होते हैं, कहिाते हैं
(a) संस्कृत (b) तर्दभव (c) तत्सम (d) दे शज
ANS : C
Q.5. निम्ि में अव्यय है
(a) समाज (b) िण्ठड (c) एक (d) व्यवस्र्ा
ANS : C
Q.6. 'ईश्वर तम्ु हें सफिता प्रदाि करे ।' यह वाक्य है
(a) संकेतवाचक (b) ववधािवाचक (c) इच्छावाचक (d) ववस्मयवाचक
ANS : C
Q.7. 'ढ' का उच्चारर् स्र्ाि है
(a) कण्ठठ (b) तािु (c) मूधाण (d) दन्त
ANS : C
Q.8. हहन्दी में कारक के ववभजक्तयों सहहत ककतिे भेद मािे जाते हैं?
(a) 8 (b) 14 (c) 7 (d) 10
ANS : A
Q.9. संयक्
ु त व्यंजि 'क्ष' की ध्वनियााँ हैं –
(a) क् + अ + ष (b) क् + अ + श (c) क् + अ + छ (d) क् + अ + स ्
ANS : A
Q.10. स्वर्ण शब्द है -
(a) तत्सम (b) तर्दभव (c) दे शज (d) ववदे शी
ANS : A
Q.11. जब ककसी समास में दोिों शब्द प्रधाि हों तो उसको कहते
(a) र्दवन्र्दव समास (b) र्दववगु समास (c) प्रधाि समास (d) तत्परु
ु ष समास
ANS : A
Q.12. कौि-सा शब्द स्त्रीलिंग िहीं है ?
(a) सेवा (b) भाषा (c) प्रयोग (d) हहन्दी
ANS : C
Q.13. 'धिुष्टं कार' का सजन्ध-ववच्छे द होगा –
(a) धिष
ु + टं कार (b) धिस
ु + टं कार (c) धिःु + टं कार (d) धि
ु श + टं कार
ANS : C
Q.14. 'निभणय' का सजन्ध - ववच्छे द है –
(a) नि + भय (b) नि+ रभय (c) निः + भय (d) नि+ भय
ANS : C
Q.15. 'यामा' ककसकी रचिा है ?
(a) भवािी प्रसाद लमश्र (b) महादे वी वमाण (c) अज्ञेय (d) मजु क्तबोध
ANS : B
Q.16. भाषा लशक्षर् में 'बहुमि
ु ी प्रयास' का अलभप्राय है
(a) आगमि ववग्रध का प्रयोग (b) तकिीक का प्रयोग
(c) सभी ववषयों के लशक्षर् में भाषा पर बि (d) अिेक अध्यापकों र्दवारा भाषा का लशक्षर्
ANS : C
PAPER – 2
Q.1. 'ववर्दयार्ी' में कौि-सी सजन्ध है ?
(1) दीर्ण सजन्ध (2) वर्द
ृ ग्रध सजन्ध (3) गुर् सजन्ध (4) यर् सजन्ध
ANS : 1
Q.2. 'सईु ' का तत्सम रूप क्या है ?
(1) सज्
ु जा (2) सग्रू च (3) सिाई (4) सच
ू ी
ANS : 2
Q.3. 'पंकज' में कौि-सा समास है ?
(1) र्दवन्र्दव (2) र्दववगु (3) कमणधारय (4) बहुव्रीहह
ANS : 4
Q.4. निम्िलिखित में वाचि लशक्षर् की ववग्रध िहीं है ।
(1) ध्वनि साम्य ववग्रध (2) अिध्
ु वनि ववग्रध
(3) व्याख्या ववग्रध (4) समवेत पाठ ववग्रध
ANS : 3
Q.5. सफ
ू ी सन्तों की शैिी है
(1) मलसणया (2) मसिवी (3) गज़ि (4) तजम
ुण ा
ANS : 2
Q.6. कौि-सा वाक्य शर्दु ध है ?
(1) िेतों में िम्बे-िम्बे र्ास उग आए
(2) परशरु ाम के िोधाजग्ि िे क्षबत्रयों को जिा हदया
(3) गलियों को चौड़ा करिा आवश्यक है
(4) वक्ष
ृ ों पर कोयि कूक रही है
ANS : 3
Q.7. 'ग्रचरं ति' शब्द का वविोम निम्िलिखित में से कौि-सा होगा?
(1) सिाति (2) अववजच्छन्ि (3) शाश्वत (4) िश्वर
ANS : 4
Q.8. निम्िलिखित में से शर्दु ध वतणिी वािे शब्द का चयि कीजजए।
(1) रष्टा (2) रचइता (3) शस
ु ुप्त (4) सष्ृ टा
ANS : 1
Q.9. 'अत्याचार' शब्द में उपसगण है
(1) आ (2) अत ् (3) अनत (4) अत्यु
ANS : 3
Q.10. 'हदग्गज' का सजन्ध-ववच्छे द क्या है ?
(1) हदक् + गज (2) हदः + गज (3) हदग ् + गज (4) हदग ् + अगज
ANS : 1
Q.11. 'आाँि का अन्धा िाम ियिसि
ु ' िोकोजक्त का क्या अर्ण है ?
(1) आाँि की रोशिी जािा (2) िामकरर् करिा
(3) गुर् के ववरुर्दध िाम का होिा (4) सन्तष्ु ट होिा
ANS : 3
Q.12. िोकोजक्त और उसके अलभप्राय का कौि-सा जोड़ा गित है ?
(1) कढ़ाही से ग्रगरा, चल्
ू हे में पड़ा - एक आपवत्त से छूटकर दस
ू री ववपवत्त में पड़िा
(2) र्ी भी िाओ और पगड़ी भी रक्िो - इतिा िचण करा कक इज्जत बिी रहे
(3) ओस चाटे प्यास िहीं बुझती - बड़े काम के लिए ववश प्रयत्ि की जरूरत होती है
(4) काठ की हााँडी बार-बार चल्
ू हे पर िहीं चढ़ती - काठ का हााँड़ी बार-बार जि जाती है ।
ANS : 4
Q.13. वतणिी के अिस
ु ार शर्द
ु ध शब्द का चयि कीजजए।
(1) पूज्यिीय (2) पूजिीय (3) पुज्यिीय (4) पुजिीय
ANS : 2
Q.14. िड़का पेड़ से ग्रगरा।
उपरोक्त वाक्य का कारक बताइए।
(1) सम्प्रदाि कारक (2) कमण कारक (3) अपादाि कारक (4) कारर् कारक
ANS : 3
Q.15. 'निगर्
ुण ' का सजन्ध-ववच्छे द होगा-
(1) निर + गर्
ु (2) नि + गर्
ु (3) निः + गर्
ु (4) निर + गर्
ू
ANS : 3
Q.16. जो शब्द 'धि' का पयाणयवाची िहीं है उसे चनु िए
(1) रव्य (2) रव (3) सम्पदा (4) दौित
ANS : 2
Q.17. 'दस्ु साहस' शब्द का उपसगण चनु िए -
(1) दस
ु ् (2) दरु (3) द ु (4) स
ANS : 1
Q.18. 'चन्रमा' का पयाणयवाची शब्द चनु िए
(1) निशाकर (2) निशाचर (3) तरखर् (4) कृशािु
ANS : 1
Q.19. निम्िलिखित में योगरूढ़ शब्द चनु िए –
(1) पीि (2) चिपाखर् (3) दध
ू वािा (4) िैि
ANS : 2
Q.20. 'चन्दायि' के रचनयता हैं
(1) मलिक मोहम्मद जायसी (2) कुतब
ु ि (3) मंझि (4) मल्
ु िा दाऊद
ANS : 4
Q.21. 'अपिे-अपिे वपंजरे ' आत्मकर्ा ककसकी है ?
(1) ओमप्रकाश वाल्मीकक (2) मोहिदास िैलमशराय
(3) जयप्रकाश कदण म (4) श्योराज लसंह 'बेचि
ै '
ANS : 2
Q.22. “ववभावािभ
ु ावव्यलभचाररसंयोगादरसनिष्पनतः" सत्र
ू ककसका है ?
(1) भरतमनु ि (2) कुन्तक (3) वामि (4) क्षेमेन्र
ANS : 1
Q.23. निम्िलिखित में से ‘तत्सम' शब्द है
(1) ऊाँट (2) काठ (3) दग्ु ध (4) काम
ANS : 3
Q.24. ताजमहि ..." का अर्दभत
ु िमि
ू ा है । ररक्त स्र्ाि की पनू तण ककस शब्द से होगी?
(1) लशल्पकिा (2) मनू तणकिा (3) ग्रचत्रकिा (4) स्र्ापत्यकिा
ANS : 4
Q.25. निम्िलिखित पंजक्तयों में कौि-सा अिंकार है ?
'फूिे कास सकि महह छाई। जिु बरसा ररतु प्रकट बुढ़ाई।।'
(1) उपमा (2) उत्प्रेक्षा (3) रूपक (4) श्िेष
ANS : 2
Q.26. “हम दीवािों की क्या हस्ती है आज यहााँ कि वहााँ चिे" ककसकी पंजक्तयााँ हैं?
(1) िरे न्र शमाण (2) हररवंश राय बच्चि
(3) बािकृष्र् शमाण 'िवीि' (4) भगवतीचरर् वमाण
ANS : 4
Q.27. 'वह बहुत अच्छा िड़का है ' वाक्य में 'वह' कौि-सा सवणिाम है ?
(1) निजवाचक (2) सम्बन्धवाचक (3) अनिश्चयवाचक (4) निश्चयवाचक
ANS : 4
Q.28. 'बार्' का पयाणयवाची िहीं है ।
(1) लशिीमि
ु (2) सारं ग (3) आशग
ु (4) ववलशि
ANS : 2
Q.29. निम्िलिखित में से कौि-सा सही है ?
I. अिस्
ु वार पूर्ण अिि
ु ालसक ध्वनि है ।
II. वगण का पंचमाक्षर अिि
ु ालसक होता है ।
III. अिि
ु ालसक के उच्चारर् के दौराि िाक से बहुत कम सााँस निकिती है और माँह
ु से अग्रधक।
(1) केवि III (2) केवि I (3) I और II (4) I, II और III
ANS : 4
Q.30. 'लसर पर सवार रहिा' महु ावरे का अर्ण है
(1) पीछे पड़िा (2) मरिे-मारिे पर उतारू होिा (3) भाग जािा (4) बाधक होिा
ANS : 1
Q.31. 'आयष्ु माि' का स्त्रीलिंग क्या है ?
(1) आयष्ु मती (2) आयष्ु यमयी (3) आयष
ु ी (4) आयष्ु मयी
ANS : 1
Q.32. “बबि र्िस्याम धाम-धाम ब्रज मण्ठडि में , उधौ नित बसनत बहार बरसा की है ।" इस
पंजक्त में प्रयक्
ु त अिंकार है
(1) रूपक (2) श्िेष (3) यमक (4) उपमा
ANS : 2
Q.33. 'िई कववता' पबत्रका का प्रकाशि कहााँ से आरम्भ हुआ?
(1) इिाहाबाद (2) िििऊ (3) किकत्ता (4) हदल्िी
ANS : 1
Q.34. ककस दृश्य-उपकरर् में पारदशी (रांसपरे न्सी) का प्रयोग होता है ?
(1) ओवरहै ड प्रक्षेपक (प्रोजेक्टर) में
(2) स्िाइड प्रक्षेपक (प्रोजेक्टर) में
ANS : 1
Q.71. कवव केशवदास की कौि - सी कृनत अपिे वण्ठयण - ववषय की अपेक्षा छन्दों की ववववधता
में भटक गई िगती है ?
(1) रामचजन्रका (2) कवववप्रया (3) रलसकवप्रया (4) रति बाविी
ANS : 1
Q.72. निम्िलिखित में से ‘दन्तव्य' वर्ण है ।
(1) ट् (2) च ् (3) त ् (4) उ
ANS : 3
Q.73. "उपकार को ि माििे वािा’’ वाक्यांश के लिए सही शब्द है
(1) कृतघ्ि (2) उपकारी (3) कृतज्ञ (4) अपकारी
ANS : 1
Q.74. 'अन्या से अिन्या' ककसकी रचिा है ?
(1) मैत्रेयी पुष्पा (2) मद
ृ ि
ु ा गगण (3) कृष्र्ा सोबती (4) प्रभा िेताि
ANS : 4
Q.75. 'हहन्दी िई चाि में ढिी' कर्ि ककसका है ?
(1) हजारी प्रसाद र्दवववेदी (2) भारतेन्द ु हररश्चन्र
(3) रामचन्र शक्
ु ि (4) िगेन्र
ANS : 2
Q.76. दााँत और जीभ के स्पशण से बोिे जािे वािे वर्ण को क्या कहते हैं?
(1) दन्तव्य (2) कण्ठठोष््य (3) दन्तोष््य (4) दन्त्य
ANS : 4
Q.77. निम्ि में भाव वाच्य का उदाहरर् है
I. उससे बैठा िहीं जाता। II. राम से िाया िहीं जाता।
III. राम पत्र लििता है । IV. सीता पस्
ु तक पढ़ती है ।
कूट
(1) I, II और IV (2) I, II, III और IV (3) I, II और III (4) I और II
ANS : 4
Q.78. ककस शब्द में तत्पुरुष समास है ?
(1) दौड़धप
ू (2) बत्रभव
ु ि (3) पीताम्बर (4) मधुमक्िी
ANS : 4
Q.79. 'वह र्दवार-र्दवार भीि मााँगता चिता है ' वाक्य में कौि-सा कारक है ?
(1) सम्बन्ध (2) सम्बोधि (3) अग्रधकरर् (4) अपादाि
ANS : 3
Q.80. "बीती ववभावरी जागरी अम्बर पिर्ट में डुबो रही तारार्ट उषा िागरी” पंजक्त में कौि-
सा अिंकार है ?
(1) यमक (2) उपमा (3) रूपक (4) उत्प्रेक्षा
ANS : 3
Q.81. वाचि के समय पस्
ु तक की आाँिों से दरू ी होिी चाहहए।
(1) 9 इंच (2) 10 इंच (3) 11 इंच (4) 12 इंच
ANS : 4
Q.82. 'चरर्-कमि बन्दौं हररराई।'
उपरोक्त पंजक्त में अिंकार है
(1) उत्प्रेक्षा (2) यमक (3) रूपक (4) उपमा
ANS : 3
Q.83. 'कमण कारक' का ग्रचह्ि है
(1) िे (2) से, र्दवारा (3) को (4) को, के लिए, हे तु
ANS : 3
Q.84. 'अजातशत्र'ु में कौि-सा समास है ?
(1) तत्पुरुष (2) र्दवन्र्दव (3) कमणधारय (4) बहुब्रीहह
ANS : 4
Q.85. 'एक माँहु दो बात' महु ावरे का अर्ण है ।
(1) अत्यग्रधक बातें करिा (2) बहुत कम बोििा
(3) अपिी बात से पिट जािा (4) बात बिािा
ANS : 3
Q.86. प्रर्म ‘तारसप्तक' का प्रकाशि वषण है
(1) 1943 (2) 1938 (3) 1954 (4) 1941
ANS : 1
Q.87. 'मेरी नतब्बत - यात्रा' के रचिाकार कौि हैं?
(1) श्री राम शमाण (2) बिारसीदास चतव
ु े दी
(3) महादे वी वमाण (4) राहुि सांकृत्यायि
ANS : 4
Q.88. निम्ि में ककस शब्द में उपसगण का प्रयोग हुआ है ?
(1) लििाई (2) हानिकारक (3) उपकार (4) अपिापि
ANS : 3
Q.89. मक
ू होइ बाचाि पंगु चढ़इ ग्रगररबर गहि। जासु कृपााँ सो दयाि रवउ सकि कलि मि
दहि।।
प्रस्तत
ु पंजक्तयों में कौि-सा छन्द है ?
(1) सोरठा (2) चौपाई (3) दोहा (4) बरवै
ANS : 1
Q.90. भाषा लशक्षर् के अन्तगणत वतणिी सम्बन्धी त्रहु टयों का निवारर् करिा चाहहए
(1) वतणिी का शर्द
ु ध उच्चारर् एवं िेिि अभ्यास करवाकर (2) त्रहु टयों का प्रकार ग्रगिाकर
(3) वतणिी के बारे में कुछ बातें बताकर (4) त्रहु टयों की उपेक्षा कर
ANS : 1
Q.91. सरस्वती पबत्रका के सम्पादक कौि र्े?
(1) भारतेन्द ु हररश्चन्र (2) बािकृष्र् भट्ट
(3) महावीरप्रसाद र्दवववेदी (4) बािमक
ु ु न्द गुप्त
ANS : 3
Q.92. 'वह र्ोड़ा बीमार है ' - इस वाक्य में र्ोड़ा' में कौि - सा किया-ववशेषर् है ?
(1) पररमार्वाचक किया-ववशेषर् (2) कािवाचक किया-ववशेषर्
Q.112. महात्मा गााँधी में अमल्ू य गुर् र्े। इस वाक्य में 'अमल्ू य' शब्द है –
(1) ववशेषर् (2) संज्ञा (3) सवणिाम (4) किया
ANS : 1
Q.113. 'इदन्िमम ्' रचिा ककसकी है ?
(1) ममता कालिया (2) मन्िू भण्ठडारी (3) ग्रचत्रा मर्द
ु गि (4) मैत्रेयी पुष्पा
ANS : 4
Q.114. िाटक लशक्षर् की उपयक्
ु त ववग्रध है
(1) कक्ष अलभिय प्रर्ािी (2) रं गमंच प्रर्ािी
(3) अर्णबोध प्रर्ािी (4) व्याख्या प्रर्ािी
ANS : 1
Q.115. हहन्दी शब्दकोष में अं ककस वर्ण से पहिे आता है ?
(1) औ (2) अ (3) अः (4) आ
ANS : 2
Q.116. 'वपता' कहािी के िेिक कौि हैं?
(1) शेिर जोशी (2) उषा वप्रयंवदा (3) उदयप्रकाश (4) ज्ञािरं जि
ANS : 4
Q.117. उपचारात्मक लशक्षर् का आधार निम्ि में से कौि-सा है ?
(1) व्याख्याि परीक्षर् (2) निदािात्मक परीक्षर्
(3) पा्य-पुस्तक परीक्षर् (4) स्व-परीक्षर्
ANS : 2
Q.118. तत्सम और तर्दभव का कौि-सा यग्ु म सही है ?
(1) कहाणट - कड़ाह (2) कवपत्र् – कैर्ा (3) कुक्षक्ष - कोि (4) अष्ठ - आठ
ANS : 3
Q.119. 'चााँदिी चौक' में कौि-सी संज्ञा है ?
(1) रव्यवाचक (2) भाववाचक (3) व्यजक्तवाचक (4) जानतवाचक
ANS : 3
Q.120. 'उर्दववग्ि' का सजन्ध-ववच्छे द क्या है ?
(1) उद + हदन्ि (2) उत + ववन्ि (3) उत ् + ववग्ि (4) उत + हदग्ि
ANS : 3
Q.121. मौि पठि के ववषय में धारर्ा है
(1) इसमें पठि की गनत धीमी हो जाती है
(2) एकािग्रचत्त होकर पढ़िे का अभ्यास होता है
(3) बािमक
ु ु न्द गुप्त (4) सरदार पूर्ण लसंह
ANS : 2
Q.137. निम्िलिखित यग्ु मों में से कौि-सा गित है ?
(1) रास्ता िापिा - आकिि करिा
(2) रग-रग जाििा - अच्छी तरह से पररग्रचत होिा
Q.141. 'जजसका जन्म पहिे हुआ हो', इसके लिए एक शब्द, जो उपयक्
ु त हो, लिखिए।
(1) अिज
ु (2) र्दववज (3) अिज (4) सवणज्ञ
ANS : 3
Q.142. निम्िलिखित में से कौि-सा शब्द 'कमि' का पयाणयवाची शब्द िहीं है ?
(1) सरोज (2) अरववन्द (3) सलिि (4) पंकज
ANS : 3
Q.143. 'र्ड़ु सवार' शब्द निम्ि में से क्या है ?
(1) रुढ़ शब्द (2) योगरूढ़ शब्द (3) यौग्रगक शब्द (4) निरर्णक शब्द
ANS : 3
Q.144. 'यर्ाशीघ्र' शब्द का समास बताइए -
(1) अव्ययीभाव (2) र्दवन्र्दव (3) कमणधारय (4) तत्परु
ु ष
ANS : 1
Q.145. 'र्दवववेदी यग
ु ' िामकरर् ककया गया है
(1) आचायण हजारी प्रसाद र्दवववेदी के िाम पर (2) शाजन्तवप्रय र्दवववेदी के िाम पर
(3) महावीर प्रसाद र्दवववेदी के िाम पर (4) सोहििाि र्दवववेदी के िाम पर
ANS : 3
Q.146. 'गोदाि' उपन्यास की कर्ावस्तु की कसावट में कमी आई है
(1) बहुत कम चररत्रों को शालमि करिे से
D. भक्तमाि 4. तुिसीदास
कूट
ABCD ABCD
(1) 2 3 4 1 (2) 4 3 2 1
(3) 3 4 2 1 (4) 1 2 3 4
ANS : 3
(1) तत + ग्रधत (2) तद + हहत ् (3) तत ् + हहत (4) तर्द + ग्रधत
ANS : 3
Q.1. अयोगवाह कहा जाता है
(1) ववसगण को (2) महाप्रार् को (3) संयक्
ु त व्यंजि को (4) अल्पप्रार् को
ANS : 1
Q.2. 'तर्ैव' शब्द का सजन्ध-ववच्छे द है ।
(1) तर् + एव (2) तर्े + एव (3) तर्ा + ऐव (4) तर्ा + एव
ANS : 4
Q.3. मख्
ु य किया के अर्ण को स्पष्ट करिे वािी किया होती है
(1) सहायक किया (2) प्रेरर्ार्णक किया (3) िामबोधक (4) िामधातु
ANS : 1
Q.4. 'अन्धा-कुआाँ' िाटक के िेिक हैं
(1) मोहि राकेश (2) ववष्र्ु प्रभाकर
(3) वर्द
ृ ग्रध स्वर सजन्ध (4) यर् ् स्वर सजन्ध
ANS : 2
Q.35. 'उपकूि' में कौि-सा समास है ?
(1) र्दवन्र्दव (2) र्दववगु (3) अव्ययीभाव (4) तत्पुरुष
ANS : 3
Q.36. निम्िलिखित में कौि-सा वाक्य शर्दु ध है ?
(1) उसिे मझ
ु े पास आिे के लिए कहा (2) उसिे मझ
ु से पास आिे को कहा
(3) उसिे मझ
ु े पास आिे को कहा (4) उसिे मेरे को पास आिे के लिए कहा
ANS : 3
Q.37. वे कर्ि जो आपसी व्यवहार में सामान्य रूप से प्रयक्
ु त होते हैं, उन्हें कहते हैं
(1) अिौपचाररक कर्ि (2) औपचाररक कर्ि
(3) बोििा, पढ़िा, श्रवर् करिा, लिििा (4) श्रवर् करिा, पढ़िा, बोििा, लिििा
ANS : 2
Q.41. 'तर्दभव' पबत्रका कहााँ से प्रकालशत होती है ?
(1) बिारस (2) हदल्िी (3) िििऊ (4) जबिपुर
ANS : 3
Q.42. “राम िे सरु े श के सार् लमत्रता का निवाणह ककया” इसमें भाववाचक संज्ञा है
(1) राम (2) सरु े श (3) निवाणह (4) लमत्रता
ANS : 4
Q.43. बबिु पग चिै सुिै बबिु कािा, कर बबिु कमण करै ववग्रध िािा।
उपरोक्त पंजक्तयों में प्रयक्
ु त अिंकार है
(1) ववभाविा (2) ववशेषोजक्त (3) असंगनत (4) दृष्टान्त
ANS : 1
Q.44. अयोगवाह कहा जाता है
(1) महाप्रार् को (2) अिस्
ु वार एवं ववसगण को
(3) संयक्
ु त व्यंजि को (4) अल्पप्रार् को
ANS : 2
Q.45. निम्िलिखित में अलभवत्ृ यात्मक उर्ददे श्य है
(1) स्वािभ
ु त
ू ववचारों व भावों को अलभव्यक्त करिा (2) साहहत्य का रसास्वादि करिा
(3) धैयप
ण ूवक
ण सि
ु िा (4) भाषा और साहहत्य में रुग्रच
ANS : 1
Q.46. 'उड्डयि' के सजन्ध-ववच्छे द का सही ववकल्प कौि-सा है ?
(1) उड + डयि (2) उच्च + डयि (3) उत ् + डयि (4) उड + डयि
ANS : 3
Q.47. जब छात्र लशक्षक की भाषा का अिक
ु रर् करे , तो उसे कहते है
(1) अिक
ु रर् का लसर्दधान्त (2) कियाशीिता का लसर्दधान्त
(3) प्रयत्ि का लसर्दधान्त (4) अभ्यास का लसर्दधान्त
ANS : 1
Q.48. 'गुप्त' का वविोम क्या है ?
(1) भक्
ु त (2) प्रकट (3) मक्
ु त (4) लिप्त
ANS : 2
Q.49. वाक्य और उसके भेद से सम्बजन्धत कौि-सा जोड़ा गित है ?
(1) जो प्रर्म आएगा वह पुरस्कार पाएगा - लमश्र वाक्य
(2) िेता िे भाषर् हदया और चिा गया - संयक्
ु त वाक्य
(3) बच्चे िाश्ता करके ववर्दयािय गए - सरि वाक्य
(1) कताण कारक (2) करर् कारक (3) सम्प्रदाि कारक (4) कमण कारक
ANS : 4
Q.53. 'अलभशाप' शब्द में उपसगण चनु िए -
(1) अनत (2) अग्रध (3) आ (4) अलभ
ANS : 4
Q.54. एक-दस
ू रे से लभन्ि-लभन्ि, िए-िए ववचारों एवं रचिा शैलियों के जो सात कवव
प्रयोगवाद के कवव के रूप में प्रलसर्दध हुए, उिकी कववताओं के संिह का सही िाम र्ा
(1) पहिा तार सप्तक (2) प्रर्म तार सप्तक (3) तार शप्तक (4) तार सप्तक
ANS : 4
Q.55. आदशण हहन्दी लशक्षक के लिए आवश्यक है
(1) व्याकरर् का ज्ञाि होिा (2) हहन्दी साहहत्य का ज्ञाि होिा
(3) शर्द
ु ध उच्चारर् करािा (4) उपरोक्त सभी
ANS : 4
Q.56. हहन्दी शब्दकोष में पहिे आिे वािा शब्द है
(1) वक्त (2) वरक (3) वि (4) वगण
ANS : 1
Q.57. 'िेिक' शब्द के अन्त में कौि-सा प्रत्यय िगा हुआ है ?
(1) क (2) इक (3) आक (4) अक
ANS : 4
Q.58. निम्िलिखित ध्वनियों की निहदण ष्ट ववशेषताओं में कौि-सा अशर्दु ध है ?
(1) च-तािव्य, महाप्रार् (2) म-ओष््य, सर्ोष
(3) त-अल्पप्रार्, दन्त्य (4) ि-महाप्रार्, कण्ठ्य
ANS : 1
Q.59. निम्िलिखित शब्दों में ककसमें उपसगण का निदे श अशर्दु ध है ?
(1) निम ् + अजज्जत = निमजज्जत (2) उत ् + िीव = उर्दिीव
(3) अध + सेरा = अधसेरा (4) नि + िरा = नििरा
ANS : 1
Q.60. सम
ु ेलित कीजजए सच
ू ी
सच
ू ीI सच
ू ी II
A. तिवार 1. वक्ष
ृ
B. टे ढ़ा 2. प्रवीर्
C. तरु 3. वि
D. पटु 4. कृपार्
कूट
ABCD ABCD
(1) 4 3 1 2 (2) 3 4 2 1
(3) 2 1 3 4 (4) 1 2 3 4
ANS : 1
Q.61. 'तोड़िे ही होंगे मठ और गढ़ सब’-ककसकी पंजक्त है ?
(1) निरािा (2) िागाजि
ुण (3) रर्व
ु ीर सहाय (4) मजु क्तबोध
ANS : 4
Q.62. 'मधलु िका' जयशंकर प्रसाद की ककस कहािी की पात्र है ?
(1) आकाशदीप (2) इन्रजाि (3) गुण्ठडा (4) पुरस्कार
ANS : 4
Q.63. 'कपरू ' शब्द है
(1) तत्सम (2) तर्दभव (3) दे शज (4) ववदे शज
ANS : 2
Q.64. 'ककसी बात का गढ़
ू रहस्य जाििे वािा' वाक्य के लिए एक शब्द क्या होगा?
(1) ममणज्ञ (2) सवु वज्ञ (3) ववर्दवाि ् (4) निगढ़
ू
ANS : 1
Q.65. 'त्याग-पत्र' उपन्यास के उपन्यासकार कौि हैं?
(1) यशपाि (2) जैिेन्र (3) अज्ञेय (4) उपेन्रिार् अश्क
ANS : 2
Q.66. वगों के उस समहू को, जजससे कोई निजश्चत अर्ण निकिता हो, कहा जाता है
(1) शब्द (2) वर्ण (3) वर्ण - समह
ू (4) वक्तव्य
ANS : 1
Q.67. प्रार्लमक स्तर पर कववता-लशक्षर् उपयोगी िहीं होगा
(1) जजसे छात्र सरिता से समझ सकें
(4) जजिमें िीनत, हास्य, वीरता, दे शभजक्त जैसी भाविाएाँ निहहत हों
ANS : 3
Q.68. उपन्यास एंव वववेच्य ववषयवस्तु की दृजष्ट से असंगत यग्ु म है
(1) वरदाि - रजवाड़ों की दालसयों की समस्याओं पर।
(2) सेवासदि - गखर्का समस्या एवं वववाह से सम्बजन्धत समस्या पर।
(1) िागाजि
ुण (2) हदिकर (3) अज्ञेय (4) निरािा
ANS : 2
Q.75. 'अधरों में राग अमन्द वपए, अिकों में मियज बन्द ककए, तू अब तक सोई है आिी।
आाँिों में भरे ववहाग री।' पंजक्त में कौि-सा रस है ?
(1) करुर् हिा (2) शान्त (3) श्रग
ं ृ ार (4) वात्सल्य
ANS : 3
Q.76. मैग्रर्िीशरर् गुप्त िे िहीं लििा है
(1) साकेत (2) कामायिी (3) जयरर् वध (4) यशोधरा
ANS : 2
Q.77. निम्ि में से ककस पबत्रका का सम्बन्ध इिाहाबाद से है ?
(1) ब्राह्मर् (2) हहन्दी प्रदीप (3) समन्वय (4) माधरु ी
ANS : 2
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