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भाषा के प्रकार

भाषा के तीन प होते है-


(1)मौिखक भाषा
(2)िलिखत भाषा
(3)सांकेितक भाषा।
याकरण के अंग
भाषा के चार मुख्य अंग ह- वणर्, श द पद और वाक्य। इसिलए याकरण के मुख्यतः चार िवभाग ह-
(1) वणर्-िवचार
(2) श द-िवचार
(3) पद-िवचार
(4) वाक्य िवचार
(1) वणर् िवचार या अक्षर:- भाषा की उस छोटी विन (इकाई) को वणर् कहते है िजसके टुकड़े नही िकये सकते है।
जैसे- अ, ब, म, क, ल, प िद।
इसम वणर्माला, वण के भेद, उनके उ चारण, प्रयोग तथा संिध पर िवचार िकया जाता है।
(2) श द-िवचार:- वण के उस मेल को श द कहते है िजसका कुछ अथर् होता है।
जैसे- कमल, राके श, भोजन, पानी, कानपूर िद।
इसम श द-रचना, उनके भेद, श द-स पदा तथा उनके प्रयोग िद पर िवचार िकया जाता है।
(3) पद-िवचार:- इसम पद-भेद, पद- पा तर तथा उनके प्रयोग िद पर िवचार िकया जाता है।
(4) वाक्य-िवचार:- अनेक श द को िमलाकर वाक्य बनता है। ये श द िमलकर िकसी अथर् का ज्ञान कराते है।
जैसे- सब घूमने जाते है।
राजू िसनेमा देखता है।
इनम वाक्य व उसके अंग, पदबंध तथा िवराम िच िद पर िवचार िकया जाता है।
वणर् के भेद
िहंदी भाषा म वणर् दो प्रकार के होते है- (1) वर (vowel)
(2) यंजन (Consonant)
(1) वर (vowel) :- वे वणर् िजनके उ चारण म िकसी अ य वणर् की सहायता की व यकता नहीं होती, वर कहलाता है।
दूसरे श द म- िजन वण के उ चारण म फेफ़ड़ की वायु िबना के (अबाध गित से) मुख से िनकल जाए, उ ह वर कहते ह।
इसके उ चारण म कंठ, तालु का उपयोग होता है, जीभ, होठ का नहीं।
िहंदी वणर्माला म 16 वर है
जैसे- अ इ ई उ ऊ ए ऐ ओ औ अं अः ऋ ॠ ऌ ॡ।
वर के भेद
वर के दो भेद होते है-
(i) मूल वर (ii) संयुक्त वर
(i) मूल वर:- अ, , इ, ई, उ, ऊ, ए, ओ
(ii) सय
ं ुक्त वर:- ऐ (अ + ए) और औ (अ + ओ)
मूल वर के भेद
मूल वर के तीन भेद होते है-
(i) व वर (ii) दीघर् वर (iii) लुत वर
(i) व वर(Short Vowels):- िजन वर के उ चारण म कम समय लगता है उ ह व वर कहते है।
व वर चार होते है- अ उ ऋ।
'ऋ' की मात्रा (◌ृ) के प म लगाई जाती है तथा उ चारण 'िर' की तरह होता है।
(ii)दीघर् वर(Long Vowels):- वे वर िजनके उ चारण म व वर से दोगुना समय लगता है, वे दीघर् वर कहलाते ह।
सरल श द म- वर उ चारण म अिधक समय लगता है उ ह दीघर् वर कहते है।
दीघर् वर सात होते है- , ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ।
दीघर् वर दो श द के योग से बनते है।
जैसे- = (अ + अ)
ई= (इ + इ)
ऊ= (उ + उ)
ए= (अ + इ)
ऐ= (अ + ए)
ओ= (अ + उ)
औ= (अ + ओ)
(iii) लुत वर:- वे वर िजनके उ चारण म दीघर् वर से भी अिधक समय यानी तीन मात्राओ ं का समय लगता है, लुत वर
कहलाते ह।
सरल श द म- िजस वर के उ चारण म ितगुना समय लगे, उसे ' लुत' कहते ह।
इसका िच (ऽ) है। इसका प्रयोग अकसर पुकारते समय िकया जाता है। जैसे- सनु ोऽऽ, राऽऽम, ओऽऽम।्
िह दी म साधारणतः लुत का प्रयोग नहीं होता। वैिदक भाषा म लुत वर का प्रयोग अिधक हु है। इसे 'ित्रमाित्रक' वर भी
कहते ह।
अं, अः अयोगवाह कहलाते ह। वणर्माला म इनका थान वर के बाद और यंजन से पहले होता है। अं को अनु वार तथा अः
को िवसगर् कहा जाता है।
अनुनािसक, िनरनुनािसक, अनु वार और िवसगर्
अनुनािसक, िनरनुनािसक, अनु वार और िवसगर्- िह दी म वर का उ चारण अनुनािसक और िनरनुनािसक होता ह। अनु वार
और िवसर्ग यंजन ह, जो वर के बाद, वर से वतंत्र ते ह। इनके संकेतिच इस प्रकार ह।
अनुनािसक (◌ँ)- ऐसे वर का उ चारण नाक और मुँह से होता है और उ चारण म लघुता रहती है। जैसे- गाँव, दाँत, गँ न,
साँचा इ यािद।
अनु वार (◌ं)- यह वर के बाद नेवाला यंजन है, िजसकी विन नाक से िनकलती है। जैसे- अंगूर, अंगद, कंकन।
िनरनुनािसक- के वल मुँह से बोले जानेवाला स वर वण को िनरनुनािसक कहते ह। जैसे- इधर, उधर, प, अपना, घर इ यािद।
िवसगर् (◌ः)- अनु वार की तरह िवसगर् भी वर के बाद ता है। यह यंजन है और इसका उ चारण 'ह' की तरह होता है। सं कृत
म इसका काफी यवहार है। िह दी म अब इसका अभाव होता जा रहा है; िक तु त सम श द के प्रयोग म इसका ज भी उपयोग
होता है। जैसे- मनःकामना, पयःपान, अतः, वतः, दुःख इ यािद।
(2) यंजन (Consonant):- िजन वण को बोलने के िलए वर की सहायता लेनी पड़ती है उ ह यंजन कहते है।
दूसरे श दो म- यंजन उन वण को कहते ह, िजनके उ चारण म वर वण की सहायता ली जाती है।
जैसे- क, ख, ग, च, छ, त, थ, द, भ, म इ यािद।
'क' से िवसगर् ( : ) तक सभी वणर् यंजन ह। प्र येक यंजन के उ चारण म 'अ' की विन िछपी रहती है। 'अ' के िबना यंजन का
उ चारण स भव नहीं। जैसे- ख+् अ=ख, प+् अ =प। यंजन वह विन है, िजसके उ चारण म भीतर से ती हुई वायु मुख म कहीं-
न-कहीं, िकसी-न-िकसी प म, बािधत होती है। वरवणर् वतंत्र और यंजनवणर् वर पर ि त है। क् से ह् तक िह दी वणर्माला
म कुल 33 यंजन ह।
यंजन के प्रकार
यंजन तीन प्रकार के होते है-
(1) पशर् यंजन(Mutes)
(2)अ तः थ यंजन(Semivowels)
(3)उ म यंजन(Sibilants)
(1) पशर् यंजन(Mutes) :- पशर् का अथर् होता है -छूना। िजन यंजन का उ चारण करते समय जीभ मुँह के िकसी भाग जैसे-
क ठ, ताल,ु मूधार्, दाँत, अथवा होठ का पशर् करती है, उ ह पशर् यंजन कहते है।
दूसरे श दो म- ये क ठ, तालु, मूद्धार्, द त और ओ थान के पशर् से बोले जाते ह। इसी से इ ह पशर् यंजन कहते ह।
इ ह हम 'वगीर्य यंजन' भी कहते है; क्य िक ये उ चारण- थान की अलग-अलग एकता िलए हुए वग म िवभक्त ह।
ये 25 यंजन होते है
(1)कवगर्- क ख ग घ ङ ये क ठ का पशर् करते है।
(2)चवगर्- च छ ज झ ञ ये तालु का पशर् करते है।
(3)टवगर्- ट ठ ढ ण (ड़, ढ़) ये मूधार् का पशर् करते है।
(4)तवगर्- त थ द ध न ये दाँतो का पशर् करते है।
(5)पवगर्- प फ ब भ म ये होठ का पशर् करते है।
(2)अ तः थ यंजन(Semivowels) :- 'अ तः' का अथर् होता है- 'भीतर'। उ चारण के समय जो यंजन मुहँ के भीतर ही रहे उ ह
अ तः थ यंजन कहते है।
अ तः = म य/बीच, थ = ि थत। इन यंजन का उ चारण वर तथा यंजन के म य का-सा होता है। उ चारण के समय िज ा
मुख के िकसी भाग को पशर् नहीं करती।
ये यंजन चार होते है- य, र, ल, व। इनका उ चारण जीभ, ताल,ु दाँत और ओठ के पर पर सटाने से होता है, िक तु कहीं भी पूणर्
पशर् नहीं होता। अतः ये चार अ तः थ यंजन 'अद्धर् वर' कहलाते ह।
(3)उ म यंजन(Sibilants) :- उ म का अथर् होता है- गमर्। िजन वण के उ चारण के समय हवा मुँह के िविभ न भाग से टकराये
और साँस म गमीर् पैदा कर दे, उ ह उ म यंजन कहते है।
ऊ म = गमर्। इन यंजन के उ चारण के समय वायु मुख से रगड़ खाकर ऊ मा पैदा करती है यानी उ चारण के समय मुख से गमर्
हवा िनकलती है।
उ म यंजन का उ चारण एक प्रकार की रगड़ या घषर्ण से उ पत्र उ म वायु से होता ह।
ये भी चार यंजन होते है- श, ष, स, ह।
उ चारण थान के धार पर यंजन का वगीर्करण
यंजन का उ चारण करते समय हवा मुख के अलग-अलग भाग से टकराती है। उ चारण के अंग के धार पर यंजन का
वगीर्करण इस प्रकार है :
(i) कंठ्य (गले से) - क, ख, ग, घ, ङ
(ii) ताल य (कठोर तालु से) - च, छ, ज, झ, ञ, य, श
(iii) मूधर् य (कठोर तालु के अगले भाग से) - ट, ठ, , ढ, ण, ड़, ढ़, ष
(iv) दं य (दाँत से) - त, थ, द, ध, न
(v) व सर्य (दाँत के मूल से) - स, ज, र, ल
(vi) ओ य (दोन ह ठ से) - प, फ, ब, भ, म
(vii) दतं ौ य (िनचले ह ठ व ऊपरी दाँत से) - व, फ
(viii) वर यंत्र से - ह
ास (प्राण-वायु) की मात्रा के धार पर वणर्-भेद
प्राण का अथर् है वायु। यंजन का उ चारण करते समय बाहर ने वाली ास-वायु की मात्रा
के धार पर यंजन के दो भेद ह- (1) अ पप्राण (2) महाप्राण
(1) अ पप्राण यंजन:- िजन वण के उ चारण म वायु की सामा य मात्रा रहती है और हकार जैसी विन बहुत ही कम होती है। वे
अ पप्राण कहलाते ह।
सरल श द म- िजन यंजन के उ चारण म ास-वायु कम मात्रा म बाहर िनकलती है, उ ह अ पप्राण कहते ह।
प्र येक वगर् का पहला, तीसरा और पाँचवाँ वणर् अ पप्राण यंजन ह।
जैसे- क, ग, ङ; ज, ञ; ट, , ण; त, द, न; प, ब, म,।
अ तः थ (य, र, ल, व ) भी अ पप्राण ही ह।
(2) महाप्राण यंजन :-िजनके उ चारण म 'हकार'-जैसी विन िवशेष प से रहती है और ास अिधक मात्रा म िनकलती ह। उ ह
महाप्राण कहते ह।
सरल श द म- िजन यंजन के उ चारण म ास-वायु अ पप्राण की तुलना म कुछ अिधक िनकलती है और 'ह' जैसी विन होती
है, उ ह महाप्राण कहते ह।
प्र येक वगर् का दूसरा और चौथा वणर् तथा सम त ऊ म वणर् महाप्राण ह।
जैसे- ख, घ; छ, झ; ठ, ढ; थ, ध; फ, भ और श, ष, स, ह।
सक्ष
ं ेप म अ पप्राण वण की अपेक्षा महाप्राण म प्राणवायु का उपयोग अिधक मपूवर्क करना पड़ता ह।
घोष और अघोष यंजन
घोष का अथर् है नाद या गूँज। वण के उ चारण म होने वाली विन की गूँज के धार पर वण के दो भेद ह- घोष और अघोष।
(1) घोष या सघोष यंजन:- नाद की ि से िजन यंजनवण के उ चारण म वर-ति त्रयाँ झंकृत होती ह, वे घोष कहलाते ह।
दूसरे श द म- िजन वण के उ चारण म गले के क पन से गूँज-सी होती है, उ ह घोष या सघोष कहते ह।
जैसे- ग, घ, ड़, ज, झ, ञ, , ढ, ण, द, ध, न, ब, भ, म, य, र, ल, व (वग के अंितम तीन वणर् और अंत थ यंजन) तथा सभी वर
घोष ह।
घोष विनय के उ चारण म वर-तंित्रयाँ पस म िमल जाती ह और वायु धक्का देते बाहर िनकलती है। फलतः झंकृित पैदा
होती है।
(2)अघोष यंजन:- नाद की ि से िजन यंजन वण के उ चारण म वर-ति त्रयाँ झंकृत नहीं होती ह, वे अघोष कहलाते ह।
दूसरे श द म- िजन वण के उ चारण म गले म क पन नहीं होता, उ ह अघोष कहते ह।
जैसे- क, ख, च, छ, ट, ठ, त, थ, प, फ (वग के पहले दो वणर्) तथा श, ष, स अघोष ह।
अघोष वण के उ चारण म वर-तंित्रयाँ पर पर नहीं िमलतीं। फलतः, वायु, सानी से िनकल जाती है।
सयं ुक्त यंजन, िद्व व यंजन, सयं ुक्ताक्षर
संयुक्त यंजन:- जो यंजन दो या दो से अिधक यंजन के मेल से बनते ह, वे सयं ुक्त यंजन कहलाते ह।
ये संख्या म चार ह :
क्ष = क् + ष + अ = क्ष (रक्षक, भक्षक, क्षोभ, क्षय)
त्र = त् + र् + अ = त्र (पित्रका, त्राण, सवर्त्र, ित्रकोण)
ज्ञ = ज् + ञ + अ = ज्ञ (सवर्ज्ञ, ज्ञाता, िवज्ञान, िवज्ञापन)
= श् + र् + अ = ( ीमती, म, पिर म, वण)
कुछ लोग ज् + ञ = ज्ञ का उ चारण 'ग्य' करते ह।
संयुक्त यंजन म पहला यंजन वर रिहत तथा दूसरा यंजन वर सिहत होता है।
िद्व व यंजन:- जब श द म एक ही वणर् दो बार िमलकर प्रयुक्त हो तब उसे िद्व व यंजन कहते ह।
जैसे- िब ली म 'ल' और पक्का म 'क' का िद्व व प्रयोग है।
िद्व व यंजन म भी पहला यंजन वर रिहत तथा दूसरा यंजन वर सिहत होता है।
संयुक्ताक्षर:- जब एक वर रिहत यंजन अ य वर सिहत यंजन से िमलता है, तब वह सयं ुक्ताक्षर कहलाता ह।
जैसे- क् + त = क्त = संयुक्त
स् + थ = थ = थान
स् + व = व = वाद
द् + ध = द्ध = शुद्ध
यहाँ दो अलग-अलग यंजन िमलकर कोई नया यंजन नहीं बनाते।
श द के भेद
अथर्, प्रयोग, उ पि , और यु पि की ि से श द के कई भेद है। इनका वणर्न िन न प्रकार है-
(1) अथर् की ि से श द-भेद
(i)साथकर् श द (ii) िनरथर्क श द
(i)साथर्क श द:- िजस वणर् समूह का प प से कोई अथर् िनकले, उसे 'साथर्क श द' कहते है।
जैसे- कमल, खटमल, रोटी, सेव िद।
(ii)िनरथर्क :- िजस वणर् समूह का कोई अथर् न िनकले, उसे िनरथर्क श द कहते है।
जैसे- राटी, िवठा, चीं, वाना, वोती िद।
साथर्क श द के अथर् होते है और िनरथर्क श द के अथर् नहीं होते। जैसे- 'पानी' साथर्क श द है और 'नीपा' िनरथर्क श द, क्य िक
इसका कोई अथर् नहीं।
(2) प्रयोग की ि से श द-भेद
श द के साथर्क मेल से वाक्य की रचना होती है। वाक्य के मेल से भाषा बनती है। श द भाषा की प्राणवायु होते ह। वाक्य म
श द का प्रयोग िकस प म िकया जाता है, इस धार पर हम श द को दो वग म बाँटते ह:
(i)िवकारी श द (ii)अिवकारी श द
(i)िवकारी श द :- िजन श द के प म िलंग, वचन, कारक के अनस ु ार पिरवतर्न का िवकार ता है, उ ह िवकारी श द कहते है।
इसे हम ऐसे भी कह सकते है- िवकार यानी पिरवतर्न। वे श द िजनम िलंग, वचन, कारक िद के कारण िवकार (पिरवतर्न)
जाता है, उ ह िवकारी श द कहते ह।
जैसे- िलंग- लड़का पढता है।....... लड़की पढ़ती है।
वचन- लड़का पढता है।........लड़के पढ़ते है।
कारक- लड़का पढता है।........ लड़के को पढ़ने दो।
िवकारी श द चार प्रकार के होते है-
(i) सज्ञ
ं ा (noun) (ii) सवर्नाम (pronoun) (iii) िवशेषण (adjective) (iv) िक्रया (verb)
(ii)अिवकारी श द :-िजन श द के प म कोई पिरवतर्न नही होता, उ ह अिवकारी श द कहते है।
दूसरे श द म- अ + िवकारी यानी िजनम पिरवतर्न न हो। ऐसे श द िजनम िलंग, वचन, कारक िद के कारण कोई पिरवतर्न नहीं
होता, अिवकारी श द कहलाते ह।
जैसे- पर तु, तथा, यिद, धीरे-धीरे, अिधक िद।
अिवकारी श द भी चार प्रकार के होते है-
(i)िक्रया-िवशेषण (Adverb)
(ii)स ब ध बोधक (Preposition)
(iii)समु चय बोधक(Conjunction)
(iv)िव मयािद बोधक(Interjection)
(3) उ पित की ि से श द-भेद
(i)त सम श द (ii )तद्भव श द (iii )देशज श द एवं (iv)िवदेशी श द।
(i) त सम श द :- सं कृत भाषा के वे श द जो िह दी म अपने वा तिवक प म प्रयुक्त होते है, उ ह त सम
श द कहते है।
दूसरे श द म- तत् (उसके ) + सम (समान) यानी वे श द जो सं कृत भाषा से िहंदी भाषा म िबना िकसी बदलाव (मूल प म) के ले
िलए गए ह, त सम श द कहलाते ह।
सरल श द म- िहदं ी म सं कृत के मूल श द को 'त सम' कहते है।
जैसे- किव, माता, िवद्या, नदी, फल, पु प, पु तक, पृ वी, क्षेत्र, कायर्, मृ यु िद।
(ii)तद्धव श द :- ऐसे श द, जो सं कृत और प्राकृत से िवकृत होकर िहदं ी म ये है, 'तदभव' कहलाते है।
दूसरे श द म- सं कृत भाषा के ऐसे श द, जो िबगड़कर अपने प को बदलकर िह दी म िमल गये है, 'तद्धव' श द कहलाते है।
तद् (उससे) + भव (होना) यानी जो श द सं कृत भाषा से थोड़े बदलाव के साथ िहदं ी म ए ह, वे तद्भव श द कहलाते ह।
(iii)देशज श द :- देश + ज अथार् त देश म ज मा। जो श द देश के िविभ न प्रदेश म प्रचिलत म बोल-चाल की भाषा से िहदं ी
म गए ह, वे देशज श द कहलाते ह।
दूसरे श द म- जो श द देश की िविभ न भाषाओ ं से िह दी म अपना िलये गये है, उ ह देशज श द कहते है।
सरल श द म- देश की बोलचाल म पाये जानेवाले श द 'देशज श द' कहलाते ह।
जैसे- िचिड़या, कटरा, कटोरा, िखरकी, जूता, िखचड़ी, पगड़ी, लोटा, ि िबया, तदु , कटरा, अ टा, ठे ठ, ठुमरी, खखरा, चसक,
फुनगी, गा िद।
देशज वे श द है, िजनकी यु पि का पता नही चलता। ये अपने ही देश म बोलचाल से बने है, इसिलए इ हे देशज कहते है।
हेमच द्र ने उन श द को 'देशी' कहा है, िजनकी यु पि िकसी सं कृत धातु या याकरण के िनयम से नहीं हुई। िवदेशी िवद्वान
जॉन बी स ने देशज श द को मुख्य प से अनायर् ोत से स बद्ध माना ह।
(iv)िवदेशी श द :-िवदेशी भाषाओ ं से िहंदी भाषा म ये श द को 'िवदेशी' श द' कहते है।
दूसरे श द म-जो श द िवदेिशय के सपं कर् म ने पर िवदेशी भाषा से िहंदी म ए, वे श द िवदेशी श द कहलाते ह।
सरल श द म- जो श द िवदेशी भाषाओ ं से िह दी म गये है, उ ह िवदेशी श द कहते है।
जकल िहदं ी भाषा म अनेक िवदेशी श द का प्रयोग िकया जाता है ; जैसे-
वाक्य के भाग
वाक्य के दो भेद होते है-
(1)उ े य (Subject)
(2)िवद्येय (Predicate)
(1)उ े य (Subject):-वाक्य म िजसके िवषय म कुछ कहा जाये उसे उ े य कहते ह।
सरल श द म- िजसके बारे म कुछ बताया जाता है, उसे उ े य कहते ह।
जैसे- पूनम िकताब पढ़ती है। सिचन दौड़ता है।
इस वाक्य म पूनम और सिचन के िवषय म बताया गया है। अतः ये उ े य है। इसके अंतगर्त कतार् और कतार् का िव तार ता है
जैसे- 'पिर म करने वाला यिक्त' सदा सफल होता है। इस वाक्य म कतार् ( यिक्त) का िव तार 'पिर म करने वाला' है।
उ े य के भाग-
उ े य के दो भाग होते है-
(i) कतार्
(ii) कतार् का िवशेषण या कतार् से संबंिधत श द।
(2)िवद्येय (Predicate):- उ े य के िवषय म जो कुछ कहा जाता है, उसे िवद्येय कहते है।
जैसे- पूनम िकताब पढ़ती है।
इस वाक्य म 'िकताब पढ़ती' है िवधेय है क्य िक पूनम (उ े य )के िवषय म कहा गया है।
दूसरे श द म- वाक्य के कतार् (उ े य) को अलग करने के बाद वाक्य म जो कुछ भी शेष रह जाता है, वह िवधेय कहलाता है।
इसके अंतगर्त िवधेय का िव तार ता है। जैसे- लंबे-लंबे बाल वाली लड़की 'अभी-अभी एक ब चे के साथ दौड़ते हुए उधर गई'

इस वाक्य म िवधेय (गई) का िव तार 'अभी-अभी एक ब चे के साथ दौड़ते हुए उधर' है।
िवशेष- ज्ञासूचक वाक्य म िवद्येय तो होता है िक तु उ े य िछपा होता है।
जैसे- वहाँ जाओ। खड़े हो जाओ।
इन दोन वाक्य म िजसके िलए ज्ञा दी गयी है वह उ े य अथार्त 'वहाँ न जाने वाला '(तुम) और 'खड़े हो जाओ' (तुम या प)
अथार्त उ े य िदखाई नही पड़ता वरन िछपा हु है।
वाक्य के भेद
वाक्य के भेद- रचना के धार पर
रचना के धार पर वाक्य के तीन भेद होते है-
(i)साधरण वाक्य या सरल वाक्य (Simple Sentence)
(ii)िमि त वाक्य (Complex Sentence)
(iii)सय ं ुक्त वाक्य (Compound Sentence)
(i)साधरण वाक्य या सरल वाक्य:-िजन वाक्य म एक ही िक्रया होती है, और एक कतार् होता है, वे साधारण वाक्य कहलाते है।
दूसरे श द म- िजन वाक्य म के वल एक ही उ े य और एक ही िवधेय होता है, उ ह साधारण वाक्य या सरल वाक्य कहते ह।
इसम एक 'उ े य' और एक 'िवधेय' रहते ह। जैसे- 'िबजली चमकती है', 'पानी बरसा' ।
इन वाक्य म एक-एक उ े य, अथार्त कतार् और िवधेय, अथार्त िक्रया है। अतः, ये साधारण या सरल वाक्य ह।
(ii)िमि त वाक्य:-िजस वाक्य म एक से अिधक वाक्य िमले ह िक तु एक प्रधान उपवाक्य तथा शेष ि त उपवाक्य ह ,
िमि त वाक्य कहलाता है।
सरल श द म- िजस वाक्य म मुख्य उ े य और मुख्य िवधेय के अलावा एक या अिधक समािपका िक्रयाएँ ह , उसे 'िमि त
वाक्य' कहते ह।
जब दो ऐसे वाक्य िमल िजनम एक मुख्य उपवाक्य (Principal Clause) तथा एक गौण अथवा ि त उपवाक्य
(Subordinate Clause) हो, तब िम वाक्य बनता है। जैसे-
मेरा ढ़ िव ास है िक भारत जीतेगा।
सफल वही होता है जो पिर म करता है।
उपयर्ुक्त वाक्य म 'मेरा ढ़ िव ास है िक' तथा 'सफल वही होता है' मुख्य उपवाक्य ह और 'भारत जीतेगा' तथा 'जो पिर म
करता है' गौण उपवाक्य। इसिलए ये िम वाक्य ह।
(iii)संयुक्त वाक्य :-िजस वाक्य म दो या दो से अिधक उपवाक्य िमले ह , पर तु सभी वाक्य प्रधान हो तो ऐसे वाक्य को संयुक्त
वाक्य कहते है।
दूसरे श दो म- िजन वाक्य म दो या दो से अिधक सरल वाक्य योजक (और, एवं, तथा, या, अथवा, इसिलए, अतः, िफर भी,
तो, नहीं तो, िक तु, पर तु, लेिकन, पर िद) से जुड़े ह , उ ह संयुक्त वाक्य कहते है।
सरल श द म- िजस वाक्य म साधारण अथवा िम वाक्य का मेल सयं ोजक अवयव द्वारा होता है, उसे संयुक्त वाक्य कहते ह।
जैसे- वह सुबह गया और शाम को लौट या। िप्रय बोलो पर अस य नहीं। उसने बहुत पिर म िकया िक तु सफलता नहीं िमली।
संयुक्त वाक्य उस वाक्य-समूह को कहते ह, िजसम दो या दो से अिधक सरल वाक्य अथवा िम वाक्य अ यय द्वारा सयं ुक्त ह ।
इस प्रकार के वाक्य ल बे और पस म उलझे होते ह। जैसे- 'म रोटी खाकर लेटा िक पेट म ददर् होने लगा, और ददर् इतना बढ़ा िक
तुर त ॉक्टर को बुलाना पड़ा।' इस ल बे वाक्य म सयं ोजक 'और' है, िजसके द्वारा दो िम वाक्य को िमलाकर सयं ुक्त वाक्य
बनाया गया।
इसी प्रकार 'म या और वह गया' इस वाक्य म दो सरल वाक्य को जोड़नेवाला सयं ोजक 'और' है। यहाँ यह याद रखने की बात
है िक सयं ुक्त वाक्य म प्र येक वाक्य अपनी वत त्र स ा बनाये रखता है, वह एक-दूसरे पर ि त नहीं होता, के वल सयं ोजक
अ यय उन वत त्र वाक्य को िमलाते ह। इन मुख्य और वत त्र वाक्य को याकरण म 'समानािधकरण' उपवाक्य भी कहते ह।
वाक्य के भेद- अथर् के धार पर
अथर् के धार पर वाक्य मुख्य प से ठ प्रकार के होते है-
(i) सरल वाक्य (Affirmative Sentence)
(ii) िनषेधा मक वाक्य (Negative Semtence)
(iii) प्र वाचक वाक्य (Interrogative Sentence)
(iv) ज्ञावाचक वाक्य (Imperative Sentence)
(v) संकेतवाचक वाक्य (Conditional Sentence)
(vi) िव मयािदबोधक वाक्य (Exclamatory Sentence)
(vii) िवधानवाचक वाक्य (Assertive Sentence)
(viii) इ छावाचक वाक्य (IIIative Sentence)
(i)सरल वाक्य :-वे वाक्य िजनमे कोई बात साधरण ढंग से कही जाती है, सरल वाक्य कहलाते है।
जैसे- राम ने बाली को मारा। राधा खाना बना रही है।
(ii)िनषेधा मक वाक्य:-िजन वाक्य म िकसी काम के न होने या न करने का बोध हो उ ह िनषेधा मक वाक्य कहते है।
जैसे- ज वषार् नही होगी। म ज घर जाऊॅ गं ा।
(iii)प्र वाचक वाक्य:-वे वाक्य िजनम प्र पूछने का भाव प्रकट हो, प्र वाचक वाक्य कहलाते है।
जैसे- राम ने रावण को क्य मारा? तुम कहाँ रहते हो ?
(iv) ज्ञावाचक वाक्य :-िजन वाक्य से ज्ञा प्राथर्ना, उपदेश िद का ज्ञान होता है, उ ह ज्ञावाचक वाक्य कहते है।
जैसे- वषार् होने पर ही फसल होगी। पिर म करोगे तो फल िमलेगा ही। बड़ का स मान करो।
(v) संकेतवाचक वाक्य:- िजन वाक्य से श र् (संकेत) का बोध होता है यानी एक िक्रया का होना दूसरी िक्रया पर िनभर्र होता है,
उ ह संकेतवाचक वाक्य कहते है।
जैसे- यिद पिर म करोगे तो अव य सफल ह गे। िपताजी अभी ते तो अ छा होता। अगर वषार् होगी तो फसल भी होगी।
(vi)िव मयािदबोधक वाक्य:-िजन वाक्य म यर्, शोक, घण
ृ ा िद का भाव ज्ञात हो उ ह िव मयािदबोधक वाक्य कहते है।
जैसे- वाह! तुम गये। हाय! म लूट गया।
(vii) िवधानवाचक वाक्य:- िजन वाक्य म िक्रया के करने या होने की सूचना िमले, उ ह िवधानवाचक वाक्य कहते है।
जैसे- मने दूध िपया। वषार् हो रही है। राम पढ़ रहा है।
(viii) इ छावाचक वाक्य:- िजन वाक्य से इ छा, शीष एवं शुभकामना िद का ज्ञान होता है, उ ह इ छावाचक वाक्य कहते
है।
जैसे- तु हारा क याण हो। ज तो म के वल फल खाऊँ गा। भगवान तु ह लंबी उमर दे।
(5) पदक्रम - वाक्य म पद का एक िनि त क्रम होना चािहए। 'सुहावनी है रात होती चाँदनी' इसम पद का क्रम यवि थत न होने
से इसे वाक्य नहीं मानगे। इसे इस प्रकार होना चािहए- 'चाँदनी रात सुहावनी होती है'।
(6) अ वय - अ वय का अथर् है- मेल। वाक्य म िलंग, वचन, पु ष, काल, कारक िद का िक्रया के साथ ठीक-ठीक मेल होना
चािहए; जैसे- 'बालक और बािलकाएँ गई', इसम कतार् िक्रया अ वय ठीक नहीं है। अतः शुद्ध वाक्य होगा 'बालक और बािलकाएँ
गए'।
संज्ञा के भेद
संज्ञा के पाँच भेद होते है-
(1) यिक्तवाचक (Proper noun )
(2)जाितवाचक (Common noun)
(3)भाववाचक (Abstract noun)
(4)समूहवाचक (Collective noun)
(5)द्र यवाचक (Material noun)
(1) यिक्तवाचक संज्ञा:-िजस श द से िकसी िवशेष यिक्त, व तु या थान के नाम का बोध हो उसे यिक्तवाचक संज्ञा कहते ह।
जैसे-
यिक्त का नाम-रवीना, सोिनया गाँधी, याम, हिर, सुरेश, सिचन िद।
व तु का नाम- कार, टाटा चाय, कुरान, गीता रामायण िद।
थान का नाम-ताजमहल, कुतुबमीनार, जयपुर िद।
(2) जाितवाचक संज्ञा :- िजस श द से एक जाित के सभी प्रािणय अथवा व तुओ ं का बोध हो, उसे जाितवाचक संज्ञा कहते ह।
ब चा, जानवर, नदी, अ यापक, बाजार, गली, पहाड़, िखड़की, कूटर िद श द एक ही प्रकार प्राणी, व तु और थान का बोध
करा रहे ह। इसिलए ये 'जाितवाचक संज्ञा' ह।
(3)भाववाचक संज्ञा :-थकान, िमठास, बुढ़ापा, गरीबी, जादी, हँसी, चढ़ाई, साहस, वीरता िद श द-भाव, गुण, अव था
तथा िक्रया के यापार का बोध करा रहे ह। इसिलए ये 'भाववाचक संज्ञाएँ' ह।
इस प्रकार-
िजन श द से िकसी प्राणी या पदाथर् के गुण, भाव, वभाव या अव था का बोध होता है, उ ह भाववाचक सज्ञं ा कहते ह।
जैसे- उ साह, ईमानदारी, बचपन, िद । इन उदाहरण म 'उ साह' से मन का भाव है। 'ईमानदारी' से गुण का बोध होता
है। 'बचपन' जीवन की एक अव था या दशा को बताता है। अतः उ साह, ईमानदारी, बचपन, िद श द भाववाचक सज्ञं ाए ह।
(4)समूहवाचक सज्ञ ं ा :- िजस सज्ञं ा श द से व तुअ◌ो◌ं के समूह या समुदाय का बोध हो, उसे समूहवाचक सज्ञं ा कहते है।
जैसे- यिक्तय का समूह- भीड़, जनता, सभा, कक्षा; व तुओ ं का समूह- गु छा, कुंज, म ल, घौद।
(5)द्र यवाचक सज्ञ ं ा :-िजस सज्ञं ा से नाप-तौलवाली व तु का बोध हो, उसे द्र यवाचक सज्ञं ा कहते है।
दूसरे श द म- िजन सज्ञं ा श द से िकसी धातु, द्रव या पदाथर् का बोध हो, उ ह द्र यवाचक सज्ञं ा कहते है।
जैसे- ता बा, पीतल, चावल, घी, तेल, सोना, लोहा िद।
सवर्नाम (Pronoun)की पिरभाषा
िजन श द का प्रयोग सज्ञं ा के थान पर िकया जाता है, उ ह सवर्नाम कहते है।
दूसरे श द म- सवर्नाम उस िवकारी श द को कहते है, जो पवू ार्परसबं ध से िकसी भी सज्ञं ा के बदले ता है।
सरल श द म- सवर् (सब) नाम (सज्ञं ाओ)ं के बदले जो श द ते है, उ ह 'सवर्नाम' कहते ह।
सवर्नाम यानी सबके िलए नाम। इसका प्रयोग सज्ञं ा के थान पर िकया जाता है। इए देख, कै से? राधा सातवीं कक्षा म पढ़ती है।
वह पढ़ाई म बहुत तेज है। उसके सभी िमत्र उससे प्रस न रहते ह। वह कभी-भी वयं पर घमं नहीं करती। वह अपने माता-िपता का
दर करती है।
पने देखा िक ऊपर िलखे अनु छे द म राधा के थान पर वह, उसके , उससे, वयं, अपने िद श द का प्रयोग हु है। अतः ये
सभी श द सवर्नाम ह।
इस प्रकार,
संज्ञा के थान पर ने वाले श द को सवर्नाम कहते ह।
मै, तू, वह, प, कोई, यह, ये, वे, हम, तुम, कुछ, कौन, क्या, जो, सो, उसका िद सवर्नाम श द ह। अ य सवर्नाम श द भी
इ हीं श द से बने ह, जो िलंग, वचन, कारक की ि से अपना प बदलते ह; जैसे-
राधा नृ य करती है। राधा का गाना भी अ छा होता है। राधा गरीब की मदद करती है।
राधा नृ य करती है। उसका गाना भी अ छा होता है। वह गरीब की मदद करती है।
प- अपना, यह- इस, इसका, वह- उस, उसका।
अ य उदाहरण
(1)'सुभाष' एक िवद्याथीर् है।
(2)वह (सुभाष) रोज कूल जाता है।
(3)उसके (सभ ु ाष के ) पास सु दर ब ता है।
(4)उसे (सभ ु ाष को )घूमना बहुत पस द है।
उपयुक्त वाक्य म 'सुभाष' श द संज्ञा है तथा इसके थान पर वह, उसके , उसे श द संज्ञा (सुभाष) के थान पर प्रयोग िकये गए है।
इसिलए ये सवर्नाम है।
सज्ञं ा की अपेक्षा सवर्नाम की िवलक्षणता यह है िक सज्ञं ा से जहाँ उसी व तु का बोध होता है, िजसका वह (सज्ञं ा) नाम है, वहाँ
सवर्नाम म पवू ार्परस ब ध के अनुसार िकसी भी व तु का बोध होता है। 'लड़का' कहने से के वल लड़के का बोध होता है, घर,
सड़क िद का बोध नहीं होता; िक तु 'वह' कहने से पूवार्परस ब ध के अनुसार ही िकसी व तु का बोध होता है।
सवर्नाम के भेद
सवर्नाम के छ: भेद होते है-
(1)पु षवाचक सवर्नाम (Personal pronoun)
(2)िन यवाचक सवर्नाम (Demonstrative pronoun)
(3)अिन यवाचक सवर्नाम (Indefinite pronoun)
(4)सब ं ंधवाचक सवर्नाम (Relative Pronoun)
(5)प्र वाचक सवर्नाम (Interrogative Pronoun)
(6)िनजवाचक सवर्नाम (Reflexive Pronoun)
(1) पु षवाचक सवर्नाम:-िजन सवर्नाम श द से यिक्त का बोध होता है, उ ह पु षवाचक सवर्नाम कहते है।
दूसरे श द म- बोलने वाले, सनु ने वाले तथा िजसके िवषय म बात होती है, उनके िलए प्रयोग िकए जाने वाले सवर्नाम
पु षवाचक सवर्नाम कहलाते ह।
'पु षवाचक सवर्नाम' पु ष ( ी या पु ष) के नाम के बदले ते ह।
जैसे- म ता हू।ँ तुम जाते हो। वह भागता है।
उपयर्ुक्त वाक्य म 'म, तुम, वह' पु षवाचक सवर्नाम ह।
पु षवाचक सवर्नाम के प्रकार
पु षवाचक सवर्नाम तीन प्रकार के होते है-
(i)उ म पु षवाचक (ii)म यम पु षवाचक (iii)अ य पु षवाचक
(i)उ म पु षवाचक(First Person):-िजन सवर्नाम का प्रयोग बोलने वाला अपने िलए करता है, उ ह उ म पु षवाचक कहते
है।
जैसे- म, हमारा, हम, मुझको, हमारी, मने, मेरा, मुझे िद।
उदाहरण- म कूल जाऊँ गा।
हम मतदान नहीं करगे।
यह किवता मने िलखी है।
बािरश म हमारी पु तक भीग गई।
मने उसे धोखा नहीं िदया।
(ii) म यम पु षवाचक(Second Person) :-िजन सवर्नाम का प्रयोग सनु ने वाले के िलए िकया जाता है, उ ह म यम
पु षवाचक कहते है।
जैसे- तू, तुम, तु हे, प, तु हारे, तुमने, पने िद।
उदाहरण- तुमने गृहकायर् नहीं िकया है।
तुम सो जाओ।
तु हारे िपता जी क्या काम करते ह ?
तू घर देर से क्य पहुचँ ा?
तुमसे कुछ काम है।
(iii)अ य पु षवाचक (Third Person):-िजन सवर्नाम श द का प्रयोग िकसी अ य यिक्त के िलए िकया जाता है, उ ह अ य
पु षवाचक कहते है।
जैसे- वे, यह, वह, इनका, इ ह, उसे, उ ह ने, इनसे, उनसे िद।
उदाहरण- वे मैच नही खेलगे।
उ ह ने कमर कस ली है।
वह कल िवद्यालय नहीं या था।
उसे कुछ मत कहना।
उ ह रोको मत, जाने दो।
इनसे किहए, अपने घर जाएँ।
(2) िन यवाचक सवर्नाम:- सवर्नाम के िजस प से हमे िकसी बात या व तु का िन त प से बोध होता है, उसे िन यवाचक
सवर्नाम कहते है।
दूसरे श द म- िजस सवर्नाम से वक्ता के पास या दूर की िकसी व तु के िन चय का बोध होता है, उसे 'िन चयवाचक सवर्नाम'
कहते ह।
सरल श द म- जो सवर्नाम िन यपूवर्क िकसी व तु या यिक्त का बोध कराएँ, उसे िन यवाचक सवर्नाम कहते ह।
जैसे- यह, वह, ये, वे िद।
वाक्य म इनका प्रयोग देिखए-
तनुज का छोटा भाई या है। यह बहुत समझदार है।
िकशोर बाजार गया था, वह लौट या है।
उपयर्ुक्त वाक्य म 'यह' और 'वह' िकसी यिक्त का िन यपूवर्क बोध कराते ह, अतः ये िन यवाचक सवर्नाम ह।
(3) अिन यवाचक सवर्नाम:-िजस सवर्नाम श द से िकसी िनि त यिक्त या व तु का बोध न हो, उसे अिन यवाचक सवर्नाम
कहते है।
दूसरे श द म- जो सवर्नाम िकसी व तु या यिक्त की ओर ऐसे संकेत कर िक उनकी ि थित अिनि त या अ प रहे, उ ह
अिन यवाचक सवर्नाम कहते है।
जैसे- कोई, कुछ, िकसी िद।
वाक्य म इनका प्रयोग देिखए-
मोहन! ज कोई तुमसे िमलने या था।
पानी म कुछ िगर गया है।
यहाँ 'कोई' और 'कुछ' यिक्त और व तु का अिनि त बोध कराने वाले अिन यवाचक सवर्नाम ह।
(4)संबंधवाचक सवर्नाम :-िजन सवर्नाम श द का दूसरे सवर्नाम श द से संबंध ज्ञात हो तथा जो श द दो वाक्य को जोड़ते है,
उ ह सबं ंधवाचक सवर्नाम कहते है।
दूसरे श द म- जो सवर्नाम वाक्य म प्रयुक्त िकसी अ य सवर्नाम से स बंिधत ह , उ ह सबं ंधवाचक सवर्नाम कहते है।
जैसे- जो, िजसकी, सो, िजसने, जैसा, वैसा िद।
वाक्य म इनका प्रयोग देिखए-
जैसा करोगे, वैसा भरोगे।
िजसकी लाठी, उसकी भस।
उपयर्ुक्त वाक्य म 'वैसा' का स बंध 'जैसा' के साथ तथा 'उसकी' का स ब ध 'िजसकी' के साथ सदैव रहता है। अतः ये
संबंधवाचक सवर्नाम है।
(5)प्र वाचक सवर्नाम :-जो सवर्नाम श द सवाल पूछने के िलए प्रयुक्त होते है, उ ह प्र वाचक सवर्नाम कहते है।
सरल श द म- प्र करने के िलए िजन सवर्नाम का प्रयोग होता है, उ ह 'प्र वाचक सवर्नाम' कहते है।
जैसे- कौन, क्या, िकसने िद।
वाक्य म इनका प्रयोग देिखए-
टोकरी म क्या रखा है।
बाहर कौन खड़ा है।
तुम क्या खा रहे हो?
उपयर्ुक्त वाक्य म 'क्या' और 'कौन' का प्रयोग प्र पूछने के िलए हु है। अतः ये प्र वाचक सवर्नाम है।
(6) िनजवाचक सवर्नाम :-'िनज' का अथर् होता है- अपना और 'वाचक' का अथर् होता है- बोध (ज्ञान) कराने वाला अथार् त
'िनजवाचक' का अथर् हु - अपनेपन का बोध कराना।
इस प्रकार,
िजन सवर्नाम श द का प्रयोग कतार् के साथ अपनेपन का ज्ञान कराने के िलए िकया जाए, उ ह िनजवाचक सवर्नाम कहते है।
जैसे- अपने प, िनजी, खुद िद।
' प' श द का प्रयोग पु षवाचक तथा िनजवाचक सवर्नाम-दोन म होता है।
उदाहरण-
प कल द तर नहीं गए थे। (म यम पु ष- दरसूचक)
प मेरे िपता ी बसंत िसहं ह। (अ य पु ष- दरसूचक-पिरचय देते समय)
ई र भी उ हीं का साथ देता है, जो अपनी मदद प करता है। (िनजवाचक सवर्नाम)
िक्रया के भेद
सरं चना या प्रयोग के धार पर िक्रया के भेद
सरं चना या प्रयोग के धार पर िक्रया के भेद इस प्रकार ह-
(1) सय ं ुक्त िक्रया
(2) नामधातु िक्रया
(3) प्रेरणाथर्क िक्रया
(4) पूवर्कािलक िक्रया
(5) मूल िक्रया
(6) नािमक िक्रया
(7) सम त िक्रया
(8) सहायक िक्रया
(1)सय ं ुक्त िक्रया (Compound Verb)- जो िक्रया दो या दो से अिधक धातुओ ं के मेल से बनती है, उसे सयं ुक्त िक्रया कहते ह।
दूसरे श द म- दो या दो से अिधक िक्रयाएँ िमलकर जब िकसी एक पूणर् िक्रया का बोध कराती ह, तो उ ह सयं ुक्त िक्रया कहते ह।
जैसे- ब चा िवद्यालय से लौट या
संयुक्त िक्रया के भेद
अथर् के अनस ु ार सयं ुक्त िक्रया के 11 मुख्य भेद है-
(i) र भबोधक- िजस सय ं ुक्त िक्रया से िक्रया के र भ होने का बोध होता है, उसे ' र भबोधक सयं ुक्त िक्रया' कहते ह।
जैसे- वह पढ़ने लगा, पानी बरसने लगा, राम खेलने लगा।
(ii) समाि बोधक- िजस संयुक्त िक्रया से मुख्य िक्रया की पूणर्ता, यापार की समाि का बोध हो, वह 'समाि बोधक संयुक्त
िक्रया' है।
जैसे- वह खा चुका है; वह पढ़ चुका है। धातु के गे 'चुकना' जोड़ने से समाि बोधक सयं ुक्त िक्रयाएँ बनती ह।
(iii) अवकाशबोधक- िजससे िक्रया को िन पत्र करने के िलए अवकाश का बोध हो, वह 'अवकाशबोधक सय ं ुक्त िक्रया' है।
जैसे- वह मुि कल से सोने पाया; जाने न पाया।
(iv) अनुमितबोधक- िजससे कायर् करने की अनुमित िदए जाने का बोध हो, वह 'अनुमितबोधक सय ं ुक्त िक्रया' है।
जैसे- मुझे जाने दो; मुझे बोलने दो। यह िक्रया 'देना' धातु के योग से बनती है।
(v) िन यताबोधक- िजससे कायर् की िन यता, उसके ब द न होने का भाव प्रकट हो, वह 'िन यताबोधक संयुक्त िक्रया' है।
जैसे- हवा चल रही है; पेड़ बढ़ता गया; तोता पढ़ता रहा। मुख्य िक्रया के गे 'जाना' या 'रहना' जोड़ने से िन यताबोधक सयं ुक्त
िक्रया बनती है।
(vi) व यकताबोधक- िजससे कायर् की व यकता या कतर् य का बोध हो, वह ' व यकताबोधक संयुक्त िक्रया' है।
जैसे- यह काम मुझे करना पड़ता है; तु ह यह काम करना चािहए। साधारण िक्रया के साथ 'पड़ना' 'होना' या 'चािहए' िक्रयाओ ं को
जोड़ने से व यकताबोधक सयं ुक्त िक्रयाएँ बनती ह।
(vii) िन चयबोधक- िजस सय ं ुक्त िक्रया से मुख्य िक्रया के यापार की िन चयता का बोध हो, उसे 'िन चयबोधक सयं ुक्त िक्रया'
कहते ह।
जैसे- वह बीच ही म बोल उठा; उसने कहा- म मार बैठूँगा, वह िगर पड़ा; अब दे ही ालो। इस प्रकार की िक्रयाओ ं म पण ू र्ता और
िन यता का भाव वतर्मान है।
(viii) इ छाबोधक- इससे िक्रया के करने की इ छा प्रकट होती है।
जैसे- वह घर ना चाहता है; म खाना चाहता हू।ँ िक्रया के साधारण प म 'चाहना' िक्रया जोड़ने से इ छाबोधक संयुक्त िक्रयाएँ
बनती ह।
(ix) अ यासबोधक- इससे िक्रया के करने के अ यास का बोध होता है। सामा य भूतकाल की िक्रया म 'करना' िक्रया लगाने से
अ यासबोधक सयं ुक्त िक्रयाएँ बनती ह।
जैसे- यह पढ़ा करता है; तुम िलखा करते हो; म खेला करता हू।ँ
(x) शिक्तबोधक- इससे कायर् करने की शिक्त का बोध होता है।
जैसे- म चल सकता हू,ँ वह बोल सकता है। इसम 'सकना' िक्रया जोड़ी जाती है।
(xi) पुन क्त संयुक्त िक्रया- जब दो समानाथर्क अथवा समान विनवाली िक्रयाओ ं का संयोग होता है, तब उ ह 'पुन क्त संयुक्त
िक्रया' कहते ह।
जैसे- वह पढ़ा-िलखा करता है; वह यहाँ प्रायः या-जाया करता है; पड़ोिसय से बराबर िमलते-जुलते रहो।
(2) नामधातु िक्रया (Nominal Verb)- संज्ञा अथवा िवशेषण के साथ िक्रया जोड़ने से जो सय
ं ुक्त िक्रया बनती है, उसे 'नामधातु
िक्रया' कहते ह।
जैसे- लुटेर ने जमीन हिथया ली। हम गरीब को अपनाना चािहए।
उपयर्ुक्त वाक्य म हिथयाना तथा अपनाना िक्रयाएँ ह और ये 'हाथ' संज्ञा तथा 'अपना' सवर्नाम से बनी ह। अतः ये नामधातु िक्रयाएँ
ह।
(3)प्रेरणाथर्क िक्रया (Causative Verb)-िजन िक्रयाओ से इस बात का बोध हो िक कतार् वयं कायर् न कर िकसी दूसरे को
कायर् करने के िलए प्रेिरत करता है, वे प्रेरणाथर्क िक्रया कहलाती है।
जैसे- काटना से कटवाना, करना से कराना।
एक अ य उदाहरण इस प्रकार है-
मािलक नौकर से कार साफ करवाता है।
अ यािपका छात्र से पाठ पढ़वाती ह।
उपयर्ुक्त वाक्य म मािलक तथा अ यािपका प्रेरणा देने वाले कतार् ह। नौकर तथा छात्र को प्रेिरत िकया जा रहा है। अतः उपयर्ुक्त
वाक्य म करवाता तथा पढ़वाती प्रेरणाथर्क िक्रयाएँ ह।
 प्रेरणाथर्क िक्रया म दो कतार् होते ह :
(1) प्रेरक कतार् -प्रेरणा देने वाला; जैसे- मािलक, अ यािपका िद।
(2) प्रेिरत कतार्-प्रेिरत होने वाला अथार्त िजसे प्रेरणा दी जा रही है; जैसे- नौकर, छात्र िद।
प्रेरणाथर्क िक्रया के प
प्रेरणाथर्क िक्रया के दो प ह :
(1) प्रथम प्रेरणाथर्क िक्रया
(2) िद्वतीय प्रेरणाथर्क िक्रया
(1) प्रथम प्रेरणाथर्क िक्रया
माँ पिरवार के िलए भोजन बनाती है।
जोकर सकर् स म खेल िदखाता है।
रानी अिनमेष को खाना िखलाती है।
नौकरानी ब चे को झूला झुलाती है।
इन वाक्य म कतार् प्रेरक बनकर प्रेरणा दे रहा है। अतः ये प्रथम प्रेरणाथर्क िक्रया के उदाहरण ह।
 सभी प्रेरणाथर्क िक्रयाएँ सकमर्क होती ह।
(2) िद्वतीय प्रेरणाथर्क िक्रया
माँ पुत्री से भोजन बनवाती है।
जोकर सकर् स म हाथी से करतब करवाता है।
रानी राधा से अिनमेष को खाना िखलवाती है।
माँ नौकरानी से ब चे को झूला झुलवाती है।
इन वाक्य म कतार् वयं कायर् न करके िकसी दूसरे को कायर् करने की प्रेरणा दे रहा है और दूसरे से कायर् करवा रहा है। अतः
यहाँ िद्वतीय प्रेरणाथर्क िक्रया है।
 प्रथम प्रेरणाथर्क और िद्वतीय प्रेरणाथर्क-दोन म िक्रयाएँ एक ही हो रही ह, पर तु उनको करने और
करवाने वाले कतार् अलग-अलग ह।
 प्रथम प्रेरणाथर्क िक्रया प्र यक्ष होती है तथा िद्वतीय प्रेरणाथर्क िक्रया अप्र यक्ष होती है।
याद रखने वाली बात यह है िक अकमर्क िक्रया प्रेरणाथर्क होने पर सकमर्क (कमर् लेनेवाली) हो जाती है। जैसे-
राम लजाता है।
वह राम को लजवाता है।
प्रेरणाथर्क िक्रयाएँ सकमर्क और अकमर्क दोन िक्रयाओ ं से बनती ह। ऐसी िक्रयाएँ हर ि थित म सकमर्क ही रहती ह। जैसे- मने
उसे हँसाया; मने उससे िकताब िलखवायी। पहले म कतार् अ य (कमर्) को हँसाता है और दूसरे म कतार् दूसरे को िकताब िलखने
को प्रेिरत करता है। इस प्रकार िह दी म प्रेरणाथर्क िक्रयाओ ं के दो प चलते ह। प्रथम म 'ना' का और िद्वतीय म 'वाना' का
प्रयोग होता है- हँसाना- हँसवाना।
प्रेरणाथर्क िक्रयाओ ं के कुछ अ य उदाहरण
मूल िक्रया प्रथम प्रेरणाथर्क िद्वतीय प्रेरणाथर्क
उठना उठाना उठवाना
उड़ना उड़ाना उड़वाना
चलना चलाना चलवाना
देना िदलाना िदलवाना
जीना िजलाना िजलवाना
िलखना िलखाना िलखवाना
जगना जगाना जगवाना
सोना सुलाना सुलवाना
पीना िपलाना िपलवाना
देना िदलाना िदलवाना
धोना धुलाना धुलवाना
रोना लाना लवाना
घूमना घुमाना घुमवाना
पढ़ना पढ़ाना पढ़वाना
देखना िदखाना िदखवाना
खाना िखलाना िखलवाना
(4) पूवर्कािलक िक्रया (Absolutive Verb)- िजस वाक्य म मुख्य िक्रया से पहले यिद कोई िक्रया हो जाए, तो वह
पूवर्कािलक िक्रया कहलाती ह।
दूसरे श द म- जब कतार् एक िक्रया समा कर उसी क्षण दूसरी िक्रया म प्रवृ होता है तब पहली िक्रया 'पूवर्कािलक'
कहलाती है।
जैसे- पुजारी ने नहाकर पूजा की
राखी ने घर पहुच ँ कर फोन िकया।
उपयर्ुक्त वाक्य म पूजा की तथा फोन िकया मुख्य िक्रयाएँ ह। इनसे पहले नहाकर, पहुच
ँ कर िक्रयाएँ हुई ह। अतः ये पूवर्कािलक
िक्रयाएँ ह।
 पूवर्कािलक का शाि दक अथर् है-पहले समय म हुई।
 पूवर्कािलक िक्रया मूल धातु म 'कर' अथवा 'करके ' लगाकर बनाई जाती ह; जैसे-
चोर सामान चुराकर भाग गया।
यिक्त ने भागकर बस पकड़ी।
छात्र ने पु तक से देखकर उ र िदया।
मने घर पहुच ँ कर चैन की साँस ली।
(5) मूल िक्रया- जो िक्रया एक ही धातु से बनी हो, न तो िकसी अ य धातु से यु प न हुई हो तथा न
ही एकािधक धातुओ ं के योग से बनी हो, उसे मूल िक्रया कहते ह।
चलना, पढ़ना, िलखना, ना, बैठना, रोना िद ऐसी ही िक्रयाएँ ह। वाक्य म इनका प्रयोग
देिखए-
उसने पत्र िलखा।
रमेश या।
(6) नािमक िक्रया - सज्ञं ा, िवशेषण िद श द के गे िक्रयाकर (Verbalizer) लगाने से
बनी िक्रया को नािमक िक्रया कहते ह।
जैसे- िदखाई देना, दािखल होना, सुनाई पड़ना िद िक्रया- प म देना, होना, पड़ना िद
िक्रयाकर ह। इसे िम िक्रया भी कहा जाता है।
(7) सम त िक्रया - जो िक्रया दो धातुओ ं के योग से स प न हो तथा िजसम दोन धातुओ ं का अथर्
बना रहे, उसे सम त िक्रया कहते ह।
खेल-कूद, उठ-बैठ, चल-िफर, मार-पीट, कह-सुन िद ऐसी ही िक्रयाएँ ह।
(8) सहायक िक्रया- मूल िक्रया के साथ प्रयुक्त होने वाली िक्रया को सहायक िक्रया कहते ह।
उदाहरण- वह िफसला।
वह िफसल गया।
वह िफसल गया है।
उपयर्ुक्त तीन वाक्य म 'िफसलना' मूल िक्रया है। पहले वाक्य म िक्रया एक श द की है- 'िफसला'।
दूसरे वाक्य म िक्रया दो श द की है- 'िफसल गया'। 'गया' सहायक िक्रया है। इसी प्रकार तीसरे
वाक्य म 'गया है' सहायक िक्रया है।
िह दी म चल, पड़, क, , जा, उठ, दे, बैठ, बन िद धातुओ ं का प्रयोग सहायक िक्रया के प
म भी होता है।
कमर् के धार पर िक्रया के भेद
कमर् की ि से िक्रया के िन निलिखत दो भेद होते ह :
(1)सकमर्क िक्रया(Transitive Verb)
(2)अकमर्क िक्रया(Intransitive Verb)
(1)सकमर्क िक्रया :-वाक्य म िजस िक्रया के साथ कमर् भी हो, तो उसे सकमर्क िक्रया कहते है।
इसे हम ऐसे भी कह सकते है- 'सकमर्क िक्रया' उसे कहते है, िजसका कमर् हो या िजसके साथ कमर् की स भावना हो, अथार्त िजस
िक्रया के यापार का संचालन तो कतार् से हो, पर िजसका फल या प्रभाव िकसी दूसरे यिक्त या व तु, अथार्त कमर् पर पड़े।
(2)अकमर्क िक्रया :-वाक्य म जब िक्रया के साथ कमर् नही होता तो उस िक्रया को अकमर्क िक्रया कहते है।
दूसरे श द म- िजन िक्रयाओ ं का यापार और फल कतार् पर हो, वे 'अकमर्क िक्रया' कहलाती ह।
अ + कमर्क अथार्त कमर् रिहत/कमर् के िबना। िजन िक्रयाओ ं के साथ कमर् न लगा हो तथा िक्रया का फल कतार् पर ही पड़े, उ ह
अकमर्क िक्रया कहते ह।
सकमर्क और अकमर्क िक्रयाओ ं की पहचान
सकमर्क और अकमर्क िक्रयाओ ं की पहचान 'क्या', 'िकसे' या 'िकसको' िद प करने से होती है। यिद कुछ उ र िमले, तो
समझना चािहए िक िक्रया सकमर्क है और यिद न िमले तो अकमर्क होगी।
जैसे-
(i) 'राम फल खाता है◌ै।'
प्र करने पर िक राम क्या खाता है, उ र िमलेगा फल। अतः 'खाना' िक्रया सकमर्क है।
(ii) 'सीमा रोती है।'
इसम प्र पूछा जाये िक 'क्या रोती है ?' तो कुछ भी उ र नहीं िमला। अतः इस वाक्य म रोना िक्रया अकमर्क है।
काल के भेद-
काल के तीन भेद होते है-
(1)वतर्मान काल (present Tense) - जो समय चल रहा है।
(2)भूतकाल(Past Tense) - जो समय बीत चुका है।
(3)भिव यत काल (Future Tense)- जो समय ने वाला है।
(1) वतर्मान काल:- िक्रया के िजस प से वतर्मान म चल रहे समय का बोध होता है, उसे वतर्मान काल कहते है।
जैसे- िपता जी समाचार सनु रहे ह।
पुजारी पूजा कर रहा है।
िप्रयंका कूल जाती ह।
उपयर्ुक्त वाक्य म िक्रया के वतर्मान समय म होने का पता चल रहा है। अतः ये सभी िक्रयाएँ वतर्मान काल की िक्रयाएँ ह।
वतर्मान कल की पहचान के िलए वाक्य के अ त म 'ता, ती, ते, है, ह' िद ते है।
वतर्मान काल के भेद
वतर्मान काल के पाँच भेद होते है-
(i)सामा य वतर्मानकाल
(ii)अपूणर् वतर्मानकाल
(iii)पूणर् वतर्मानकाल
(iv)संिदग्ध वतर्मानकाल
(v)त कािलक वतर्मानकाल
(vi)सभ ं ा य वतर्मानकाल
(i)सामा य वतर्मानकाल(Present Indefinite) :-िक्रया का वह प िजससे िक्रया का वतर्मानकाल म होना पाया जाय,
'सामा य वतर्मानकाल' कहलाता है।
दूसरे श द म- जो िक्रया वतर्मान म सामा य प से होती है, वह सामा य वतर्मान काल की िक्रया कहलाती है।
िक्रया के िजस प से सामा यतः यह प्रकट हो िक कायर् का समय वतर्मान म है, न कायर् के अपूणर् होने का सक
ं े त िमले न सदं ेह
का, वहाँ सामा य वतर्मान होता है।
जैसे- 'ब चा िखलौन से खेलता है'।
वाक्य म 'खेलना' प्र तुत समय म है, िक तु न तो वह अपूणर् है और न ही अिनि त, अतः यहाँ सामा य वतर्मान काल है।
कुछ अ य उदाहरण देिखए-
वह पु तक पढ़ता है।
माली पौध को पानी देता है।
(ii)अपूणर् वतर्मानकाल(Present Continuous):- िक्रया के िजस प से यह बोध हो िक वतर्मान काल म कायर् अभी पूणर् नहीं
हु , वह चल रहा है, उसे अपूणर् वतर्मान कहते ह।
उदाहरण के िलए- 'मोहन िवद्यालय जा रहा है'
वाक्य म जाने का कायर् अभी हो रहा है, मोहन िवद्यालय पहुच ँ ा नहीं है। अतः यहाँ अपूणर् वतर्मान है।
कुछ अ य उदाहरण देिखए-
वषार् हो रही है। अनुराग िलख रहा है।
(iii)पूणर् वतर्मानकाल(Present Perfect):- इससे वतर्मानकाल म कायर् की पूणर् िसिद्ध का बोध होता है।
जैसे- वह या है। सीता ने पु तक पढ़ी है।
(iv)सिं दग्ध वतर्मानकाल(Present Doubtful):- िजससे िक्रया के होने म स देह प्रकट हो, पर उसकी वतर्मानकाल म स देह न
हो। उसे सिं दग्ध वतर्मानकाल कहते ह।
सरल श द म- िजस िक्रया के वतर्मान समय म पण ू र् होने म सदं ेह हो, उसे सिं दग्ध वतर्मानकाल कहते ह।
जैसे- 'माँ खाना बना रही होगी। वाक्य म 'रही होगी' से खाना बनाने के कायर् को िनि त प से नहीं कहा गया, उसम सदं ेह की
ि थित बनी हुई है, अतः यहाँ सिं दग्ध वतर्मान है।
अ य उदाहरण-
राम पढ़ता होगा।
हलवाई िमठाई बनाता होगा।
ज िवद्यालय खुला होगा।
(v)त कािलक वतर्मानकाल:- िक्रया के िजस प से यह पता चलता है िक कायर् वतर्मानकाल म हो रही है उसे ता कािलक
वतर्मानकाल कहते ह।
जैसे- मै पढ़ रहा हू।ँ वह जा रहा है।
(vi)स भा य वतर्मानकाल :- इससे वतर्मानकाल म काम के पूरा होने की स भवना रहती है। उसे स भा य वतर्मानकाल कहते ह।
सभं ा य का अथर् होता है सभ ं ािवत या िजसके होने की सभ ं ावना हो।
जैसे- वह या है।
वह लौटा हो।
वह चलता हो।
उसने खाया हो।
(2)भूतकाल :- िक्रया के िजस प से बीते हुए समय का बोध होता है, उसे भूतकाल कहते है।
सरल श द म- िजससे िक्रया से कायर् की समाि का बोध हो, उसे भूतकाल की िक्रया कहते ह।
जैसे- वह खा चुका था; राम ने अपना पाठ याद िकया; मने पु तक पढ़ ली थी।
उपयर्ुक्त सभी वाक्य बीते हुए समय म िक्रया के होने का बोध करा रहे ह। अतः ये भूतकाल के वाक्य है।
भूतकाल को पहचानने के िलए वाक्य के अ त म 'था, थे, थी' िद ते ह।
भूतकाल के भेद
भूतकाल के छह भेद होते है-
(i)सामा य भूतकाल (Simple Past)
(ii) सन भूतकाल (Recent Past)
(iii)पूणर् भूतकाल (Complete Past)
(iv)अपूणर् भूतकाल (Incomplete Past)
(v)सिं दग्ध भूतकाल (Doubtful Past)
(vi)हेतुहेतुमद् भूत (Conditional Past)
(i)सामा य भूतकाल(Simple Past):- िजससे भूतकाल की िक्रया के िवशेष समय का ज्ञान न हो, उसे सामा य भूतकाल कहते
ह।
दूसरे श द म-िक्रया के िजस प से काम के सामा य प से बीते समय म पूरा होने का बोध हो, उसे सामा य भूतकाल कहते ह।
जैसे- मोहन या।
सीता गयी।
ीराम ने रावण को मारा
उपयर्ुक्त वाक्य की िक्रयाएँ बीते हुए समय म पूरी हो गई। अतः ये सामा य भूतकाल की िक्रयाएँ ह।
(ii) स न भूतकाल(Recent Past):-िक्रया के िजस प से यह पता चले िक िक्रया अभी कुछ समय पहले ही पूणर् हुई है, उसे
स न भूतकाल कहते ह।
इससे िक्रया की समाि िनकट भूत म या त काल ही सूिचत होती है।
जैसे- मैने म खाया ह।
म अभी सोकर उठी हू।ँ
अ यािपका पढ़ाकर ई ह।
उपयर्ुक्त वाक्य की िक्रयाएँ अभी-अभी पूणर् हुई ह। इसिलए ये स न भूतकाल की िक्रयाएँ ह।
(iii)पूणर् भूतकाल(Complete Past):- िक्रया के उस प को पूणर् भूत कहते है, िजससे िक्रया की समाि के समय का प
बोध होता है िक िक्रया को समा हुए काफी समय बीता है।
दूसरे श द म- िक्रया के िजस प से यह ज्ञात हो िक कायर् पहले ही पूरा हो चुका है, उसे पूणर् भूतकाल कहते ह।
जैसे- उसने याम को मारा था।
अंग्रेज ने भारत पर राज िकया था।
महादेवी वमार् ने सं मरण िलखे थे।
उपयर्ुक्त वाक्य म िक्रयाएँ अपने भूतकाल म पूणर् हो चुकी थीं। अतः ये पूणर् भूतकाल की िक्रयाएँ ह।
पूणर् भूतकाल म िक्रया के साथ 'था, थी, थे, चुका था, चुकी थी, चुके थे िद लगता है।
(iv)अपूणर् भूतकाल(Incomplete Past):- िजस िक्रया से यह ज्ञात हो िक भूतकाल म कायर् स प न नहीं हु था - अभी चल
रहा था, उसे अपूणर् भूत कहते ह।
जैसे- सुरेश गीत गा रहा था।
रीता सो रही थी।
उपयर्ुक्त वाक्य म िक्रयाएँ से कायर् के अतीत म रंभ होकर, अभी पूरा न होने का पता चल रहा है। अतः ये अपूणर् भूतकाल की
िक्रयाएँ ह।
(v)सिं दग्ध भूतकाल(Doubtful Past):- भूतकाल की िजस िक्रया से कायर् होने म अिनि तता अथवा सदं ेह प्रकट हो, उसे
सिं दग्ध भूतकाल कहते है।
इसम यह स देह बना रहता है िक भूतकाल म कायर् पूरा हु या नही।
जैसे- तू गाया होगा।
बस छूट गई होगी।
दुकान बंद हो चुकी होगी।
उपयर्ुक्त वाक्य की िक्रयाएँ से भूतकाल म काम पूरा होने म संदेह का पता चलता है। अतः ये संिदग्ध भूतकाल की िक्रयाएँ ह।
(vi)हेतुहेतुमद् भूतकाल(Conditional Past):- यिद भूतकाल म एक िक्रया के होने या न होने पर दूसरी िक्रया का होना या न
होना िनभर्र करता है, तो वह हेतुहेतुमद् भूतकाल िक्रया कहलाती है।
'हेतु' का अथर् है कारण। जहाँ भूतकाल म िकसी कायर् के न हो सकने का वणर्न कारण के साथ दो वाक्य म िदया गया हो, वहाँ
हेतुहेतुमद् भूतकाल होता है।
इससे यह पता चलता है िक िक्रया भूतकाल म होनेवाली थी, पर िकसी कारण न हो सका।
यिद तुमने पिर म िकया होता, तो पास हो जाते।
यिद वषार् होती, तो फसल अ छी होती।
उपयर्ुक्त वाक्य की िक्रयाएँ एक-दूसरे पर िनभर्र ह। पहली िक्रया के न होने पर दूसरी िक्रया भी पूरी नहीं होती है। अतः ये हेतुहेतुमद्
भूतकाल की िक्रयाएँ ह।
(3)भिव यत काल:-भिव य म होनेवाली िक्रया को भिव यतकाल की िक्रया कहते है।
दूसरे श दो म- िक्रया के िजस प से काम का ने वाले समय म करना या होना प्रकट हो, उसे भिव यतकाल कहते है।
जैसे- वह कल घर जाएगा।
हम सकर् स देखने जायगे।
िकसान खेत म बीज बोयेगा।
उपयर्ुक्त वाक्य की िक्रयाएँ से पता चलता है िक ये सब कायर् ने वाले समय म पूरे ह गे। अतः ये भिव यत काल की िक्रयाएँ ह।
भिव यत काल की पहचान के िलए वाक्य के अ त म 'गा, गी, गे' िद ते है।
भिव यत काल के भेद
भिव यतकाल के तीन भेद होते है-
(i)सामा य भिव यत काल
(ii)स भा य भिव यत काल
(iii)हेतुहेतुमद्भिव य भिव यत काल
(i)सामा य भिव यत काल :- िक्रया के िजस प से उसके भिव य म सामा य ढंग से होने का पता चलता है, उसे सामा य
भिव यत काल कहते ह।
इससे यह प्रकट होता है िक िक्रया सामा यतः भिव य म होगी।
जैसे- ब चे कै रमबो र् खेलगे।
वह घर जायेगा।
दीपक अख़बार बेचेगा।
उपयर्ुक्त वाक्य म िक्रयाएँ भिव य म सामा य प से काम के होने की सूचना दे रही ह। अतः ये सामा य भिव यत काल की िक्रयाएँ
ह।
(ii)स भा य भिव यत काल:-िक्रया के िजस प से उसके भिव य म होने की सभ ं ावना का पता चलता है, उसे स भा य भिव यत
काल कहते ह।
िजससे भिव य म िकसी कायर् के होने की स भावना हो।
जैसे- शायद चोर पकड़ा जाए।
परीक्षा म शायद मुझे अ छे अंक प्रा ह ।
हो सकता है िक म कल वहाँ जाऊँ ।
उपयर्ुक्त वाक्य म िक्रयाओ ं के भिव य म होने की सभ
ं ावना है। ये पण
ू र् प से ह गी, ऐसा िनि त नहीं होता। अतः ये स भा य
भिव यत काल की िक्रयाएँ ह।
(iii)हेतुहेतुमद्भिव य भिव यत काल:- िक्रया के िजस प से एक कायर् का पूरा होना दूसरी ने वाले समय की िक्रया पर िनभर्र हो
उसे हेतुहेतुमद्भिव य भिव य काल कहते है।
जैसे- वह ये तो मै जाऊ।
वह कमाये तो म खाऊँ ।
जो कमाए सो खाए।
वह पढ़ेगा तो सफल होगा।
िवशेषण(Adjective) की पिरभाषा
जो श द संज्ञा या सवर्नाम श द की िवशेषता बताते है उ ह िवशेषण कहते है।
इसे हम ऐसे भी कह सकते है- जो िकसी संज्ञा की िवशेषता (गुण, धमर् िद )बताये उसे िवशेषण कहते है।
दूसरे श द म- िवशेषण एक ऐसा िवकारी श द है, जो हर हालत म संज्ञा या सवर्नाम की िवशेषता बताता है।
सरल श द म- जो श द सज्ञं ा के अथर् की सीमा को िनधार्िरत करे, उसे िवशेषण कहते ह।
जैसे- यह भूरी गाय है, म खट्टे है।
उपयुक्त वाक्य म 'भूरी' और 'खट्टे' श द गाय और म (संज्ञा )की िवशेषता बता रहे है। इसिलए ये श द िवशेषण है।
इसका अथर् यह है िक िवशेषणरिहत संज्ञा से िजस व तु का बोध होता है, िवशेषण लगने पर उसका अथर् िसिमत हो जाता है। जैसे-
'घोड़ा', संज्ञा से घोड़ा-जाित के सभी प्रािणय का बोध होता है, पर 'काला घोड़ा' कहने से के वल काले घोड़े का बोध होता है,
सभी तरह के घोड़ का नहीं।
यहाँ 'काला' िवशेषण से 'घोड़ा' सज्ञं ा की याि मयार्िदत (िसिमत) हो गयी है। कुछ वैयाकरण ने िवशेषण को सज्ञं ा का एक
उपभेद माना है; क्य िक िवशेषण भी व तु का परोक्ष नाम है। लेिकन, ऐसा मानना ठीक नहीं; क्य िक िवशेषण का उपयोग सज्ञं ा के
िबना नहीं हो सकता।
िवशेषण व तु का व प प करता है। इसका प्रयोग व तु को सजीव एवं मूितर्मंत करता है। िवशेषण सज्ञं ा के भूषण ह।
सटीक िवशेषण के प्रयोग से सज्ञं ा उसी प्रकार िवभूिषत होती है, िजस प्रकार भूषण के प्रयोग से कोई पसी। िवशेषण भाषा
को सजीव, प्रवाहमय एवं प्रभावशाली बनाने के बड़े ही समथर् उपकरण है।
िवशेषण हमारी अनेक िजज्ञासाओ ं का समाधान करते ह, अनेक प्र के उ र देते ह। जैसे- कै सा दमी ? बुरा दमी, भला
दमी िद। कौन िवद्याथीर् ? पहला िवद्याथीर्, दूसरा िवद्याथीर् िद। िकतने लड़के ? पाँच लड़के , सात लड़के िद। कहाँ के
िसपाही ? भारतीय िसपाही, सी िसपाही िद।
िवशे य- िवशेषण श द िजस संज्ञा या सवर्नाम की िवशेषता बताते ह, वे िवशे य कहलाते ह।
दूसरे श द म- िवशेषण से िजस श द की िवशेषता प्रकट की जाती है, उसे िवशे य कहते है।
जैसे- 'अ छा िवद्याथीर् िपता की ज्ञा का पालन करता है' म 'िवद्याथीर्' िवशे य है, क्य िक 'अ छा' िवशेषण इसी की िवशेषता
बताता है।
प्रिवशेषण- जो श द िवशेषण की िवशेषता बताते है, वे प्रिवशेषण कहलाते है।
जैसे- यह लड़की बहुत अ छी है।
मै पूणर् व थ हु।ँ
उपयर्ुक्त वाक्य म 'बहुत' 'पण
ू र्' श द 'अ छी' तथा ' व थ' (िवशेषण )की िवशेषता बता रहे है, इसिलए ये श द प्रिवशेषण है।
िवशेषण के प्रकार
िवशेषण िन निलिखत पाँच प्रकार होते है -
(1)गुणवाचक िवशेषण (Qualitative Adjective)
(2)सख्ं यावाचक िवशेषण ((Numeral Adjective)
(3)पिरमाणवाचक िवशेषण (Quantitative Adjective)
(4)सक ं े तवाचक या सावर्नािमक िवशेषण (Demonstractive Adjective)
(5) यिक्तवाचक िवशेषण (Proper Adjective)
(6)सब ं ंधवाचक िवशेषण(Relative Adjective)
(1)गुणवाचक िवशेषण :- वे िवशेषण श द जो सज्ञ ं ा या सवर्नाम श द के गुण-दोष, प-रंग, कार, वाद, दशा, अव था, थान
िद की िवशेषता प्रकट करते ह, गुणवाचक िवशेषण कहलाते है।
(2)सख् ं यावाचक िवशेषण:- वे िवशेषण श द जो सज्ञं ा अथवा सवर्नाम की सख्
ं या का बोध कराते ह, सख्
ं यावाचक िवशेषण
कहलाते ह।
दूसरे श द म- वह िवशेषण, जो अपने िवशे य की िनि त या अिनि त सख् ं याओ ं का बोध कराए, 'संख्यावाचक िवशेषण'
कहलाता है।
जैसे-
'पाँच' घोड़े दौड़ते ह।
सात िवद्याथीर् पढ़ते ह।
इन वाक्य म 'पाँच' और 'सात' संख्यावाचक िवशेषण ह, क्य िक इनसे 'घोड़े' और 'िवद्याथीर्' की संख्या संबंधी िवशेषता का
ज्ञान होता है।
सख्
ं यावाचक िवशेषण के भेद
संख्यावाचक िवशेषण के दो भेद होते है-
(i)िनि त सख्
ं यावाचक िवशेषण
(ii)अिनि त संख्यावाचक िवशेषण
(i)िनि त सख्ं यावाचक िवशेषण :- वे िवशेषण श द जो िवशे य की िनि त सख्
ं या का बोध कराते ह,
िनि त संख्यावाचक िवशेषण कहलाते ह।
सरल श द म- िजससे िकसी िनि चत संख्या का ज्ञान हो, वह िनि त सख्ं यावाचक िवशेषण है।
जैसे- एक, दो ठ, चौगुना, सातवाँ िद।
3)पिरमाणवाचक िवशेषण :- िजन िवशेषण श द से िकसी व तु के माप-तौल संबंधी िवशेषता का बोध होता है, वे
पिरमाणवाचक िवशेषण कहलाते ह।
दूसरे श द म- वह िवशेषण जो अपने िवशे य की िनि त अथवा अिनि त मात्रा (पिरमाण) का बोध कराए, पिरमाणवाचक
िवशेषण कहलाता है।(5) यिक्तवाचक
िवशेषण:-िजन िवशेषण श द की रचना यिक्तवाचक संज्ञा से होती है, उ ह यिक्तवाचक िवशेषण कहते है।
दूसरे श द म- ऐसे श द जो असल म सज्ञं ा के भेद यिक्तवाचक सज्ञं ा से बने होते ह एवं िवशेषण श द की रचना करते ह, वे
यिक्तवाचक िवशेषण कहलाते ह।
जैसे- इलाहाबाद से इलाहाबादी
(6)सब ं ंधवाचक िवशेषण :- जो िवशेषण िकसी व तु की िवशेषताएँ दूसरी व तु के सबं ंध म बताता है, उ ह सबं ंधवाचक िवशेषण
कहते ह।
इस तरह के िवशेषण संज्ञा, िक्रयािवशेषण तथा िक्रया से बनते ह। जैसे- ' न द' से न दमय (' न द' संज्ञा से), बाहरी ('बाहर'
िक्रयािवशेषण से), खुला ('खुलना' िक्रया से)।
संबंधवाचक िवशेषण से सूिचत होता है-
(क) व तु का ल य- जंगी जहाज। यापारी बेड़ा।
िवशे य और िवशेषण म स ब ध
िवशेषण सज्ञं ा अथवा सवर्नाम की िवशेषता बताता है और िजस सज्ञं ा या सवर्नाम की िवशेषता बतायी जाती है, उसे िवशे य कहते
ह।
वाक्य म िवशेषण का प्रयोग दो प्रकार से होता है- कभी िवशेषण िवशे य के पहले ता है और कभी िवशे य के बाद।
प्रयोग की ि से िवशेषण के भेद
प्रयोग की ि से िवशेषण के दो भेद है-
(1) िवशे य-िवशेषण (2) िवधेय-िवशेषण
(1) िवशे य-िवशेष- जो िवशेषण िवशे य के पहले ये, वह िवशे य-िवशेष होता ह।
जैसे- रमेश 'चंचल' बालक है। सुनीता 'सश ु ील' लड़की है।
इन वाक्य म 'चंचल' और 'सुशील' क्रमशः बालक और लड़की के िवशेषण ह, जो संज्ञाओ ं (िवशे य) के पहले ये ह।
(2) िवधेय-िवशेषण- जो िवशेषण िवशे य और िक्रया के बीच ये, वहाँ िवधेय-िवशेषण होता ह।
जैसे- मेरा कु ा 'काला' ह। मेरा लड़का ' लसी' है। इन वाक्य म 'काला' और ' लसी' ऐसे िवशेषण ह,
जो क्रमशः 'कु ा'(संज्ञा) और 'है'(िक्रया) तथा 'लड़का'(संज्ञा) और 'है'(िक्रया) के बीच ये ह।
न श द के प म िलंग, वचन, कारक िद के कारण कोई पिरवतर्न नही होता है उ ह अ यय (अ + यय) या अिवकारी श द
कहते है ।
इसे हम ऐसे भी कह सकते है- 'अ यय' ऐसे श द को कहते ह, िजसके प म िलंग, वचन, पु ष, कारक इ यािद के कारण कोई
िवकार उ पत्र नही होता। ऐसे श द हर ि थित म अपने मूल प म बने रहते है। चूँिक अ यय का पा तर नहीं होता, इसिलए ऐसे
श द अिवकारी होते ह। इनका यय नहीं होता, अतः ये अ यय ह।
जैसे- जब, तब, अभी, उधर, वहाँ, इधर, कब, क्य , वाह, ह, ठीक, अरे, और, तथा, एवं, िक तु, पर तु, बि क, इसिलए, अतः,
अतएव, चूँिक, अव य, अथार्त इ यािद।
अ यय के भेद
अ यय िन निलिखत चार प्रकार के होते है -
(1) िक्रयािवशेषण (Adverb)
(2) संबंधबोधक (Preposition)
(3) समु चयबोधक (Conjunction)
(4) िव मयािदबोधक (Interjection)
(1) िक्रयािवशेषण :- िजन श द से िक्रया, िवशेषण या दूसरे िक्रयािवशेषण की िवशेषता प्रकट हो, उ ह 'िक्रयािवशेषण' कहते है।
दूसरे श दो म- जो श द िक्रया की िवशेषता बतलाते है, उ ह िक्रया िवशेषण कहा जाता है।
जैसे- राम धीरे-धीरे टहलता है; राम वहाँ टहलता है; राम अभी टहलता है।
उपसगर् की पिरभाषा (Prefixes)
उपसगर् उस श दांश या अ यय को कहते है, जो िकसी श द के पहले कर उसका िवशेष अथर् प्रकट करता है।
दूसरे श द म- ''उपसगर् वह श दांश या अ यय है, जो िकसी श द के रंभ म जुड़कर उसके अथर् म (मूल श द के अथर् म)
िवशेषता ला दे या उसका अथर् ही बदल दे।'' वे उपसगर् कहलाते है।
जैसे- प्रिसद्ध, अिभमान, िवनाश, उपकार।
इनमे कमशः 'प्र', 'अिभ', 'िव' और 'उप' उपसगर् है।
प्र यय (Suffix)की पिरभाषा
जो श दांश, श द के अंत म जुड़कर अथर् म पिरवतर्न लाये, प्र यय कहलाते है।
दूसरे अथर् म- श द िनमार्ण के िलए श द के अंत म जो श दांश जोड़े जाते ह, वे प्र यय कहलाते ह।
प्र यय दो श द से बना है- प्रित+अय। 'प्रित' का अथर् 'साथ म, 'पर बाद म' है और 'अय' का अथर् 'चलनेवाला' है। अतएव,
'प्र यय' का अथर् है 'श द के साथ, पर बाद म चलनेवाला या लगनेवाला। प्र यय उपसग की तरह अिवकारी श दांश है, जो
श द के बाद जोड़े जाते है।
जैसे- पाठक, शिक्त, भलाई, मनु यता िद। 'पठ' और 'शक' धातुओ ं से क्रमशः 'अक' एवं 'ित' प्र यय लगाने पर
पठ + अक= पाठक और शक + ित= 'शिक्त' श द बनते ह। 'भलाई' और 'मनु यता' श द भी 'भला' श द म ' ई' तथा 'मनु य'
श द म 'ता' प्र यय लगाने पर बने ह।
संिध िव छे द की पिरभाषा-
संिध म पद को मूल प म पथ ृ क कर देना संिध िव छे द है◌◌
ै ै। जैसे- धनादेश = धन + देश
यहाँ पर कुछ प्रचिलत संिध िव छे द को िदया जा रहा है, जो की िवद्यािथर्य के बड़े काम एगी।

मुहावरा
िवलोम
अनेकाथीर् श द
अनेक श द के िलए एक श द
वा य (Voice) की पिरभाषा
िक्रया के उस पिरवतर्न को वा य कहते ह, िजसके द्वारा इस बात का बोध होता है िक वाक्य के अ तगर्त कतार्, कमर् या भाव म से
िकसकी प्रधानता है।
दूसरे श द म- िक्रया के िजस पा तर से यह ज्ञात हो िक वाक्य म प्रयुक्त िक्रया का प्रधान िवषय कतार्, कमर् अथवा भाव है, उसे
वा य कहते ह।
इनम िकसी के अनुसार िक्रया के पु ष, वचन िद ए ह।
इस पिरभाषा के अनुसार वाक्य म िक्रया के िलंग, वचन चाहे तो कतार् के अनुसार ह गे अथवा कमर् के अनस ु ार अथवा भाव के
अनुसार।
वा य के भेद
उपयर्ुक्त प्रयोग के अनुसार वा य के तीन भेद ह-
(1) कतर्व ृ ा य (Active Voice)
(2) कमर्वा य (Passive Voice)
(3) भाववा य (Impersonal Voice)
(1) कतर्व
ृ ा य (Active Voice)- िक्रया के उस पा तर को कतर्वृ ा य कहते ह, िजससे वाक्य म कतार् की प्रधानता का बोध हो।
सरल श द म- िक्रया के िजस प म कतार् प्रधान हो, उसे कतर्वृ ा य कहते ह।
उदाहरण के िलए-
रमेश के ला खाता है।
िदनेश पु तक पढ़ता है।
उक्त वाक्य म कतार् प्रधान है तथा उ हीं के िलए 'खाता है' तथा 'पढ़ता है' िक्रयाओ ं का िवधान हु है, इसिलए यहाँ कतर्वृ ा य है।
(2) कमर्वा य (Passive Voice)- िक्रया के उस पा तर को कमर्वा य कहते ह, िजससे वाक्य म कमर् की प्रधानता का बोध हो।
सरल श द म- िक्रया के िजस प म कमर् प्रधान हो, उसे कमर्वा य कहते ह।
उदाहरण के िलए-
किवय द्वारा किवताएँ िलखी गई।

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