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सामा य िह दी

2. वण–िवचार
िह दी भाषा म वण वह मूल विन है , िजसका िवभाजन नहीँ हो सकता। भाषा की विनय को िलखने हे तु उनके िलए कु छ िलिप–िच है ।ँ विनय के इ हीँ िलिप–िच को
‘वण’ कहा जाता है । वण भािषक विनय के िलिखत प होते है ।ँ िह दी म इ हीँ वण ँ को ‘अ र’ भी कहते है ।ँ इस कार विनय का स बंध जह भाषा के उ चारण प से
होता है , वहीँ वण ँ का स ब ध लेखन प से। िह दी भाषा म स पूण वण ँ के समूह को ‘वणमाला’ कहते है ।ँ िह दी वणमाला मे 44 वण है ँ िजसम 11 वर एवं 33 यंजन है ।ँ

♦ वर : वर वे वण है ँ िजनका उ चारण करते समय वायु िबना िकसी अवरोध या कावट के मुख से बाहर िनकलती है । वर 11 है –
ँ अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ,
औ।

य िप ‘ऋ’ को िलिखत प म वर माना जाता है िक तु आजकल िह दी म इसका उ चारण ‘िर’ के समान होता है । इसिलए ‘ऋ’ को वर की ेणी म सि मिलत नहीँ
िकया गया है ।

अं ेजी के भाव से ‘ऑ’ विन का िह दी म समावेश हो चुका है । यह िह दी के ‘आ’ तथा ‘ओ’ के बीच की विन है ।

• वर की मा ाएँ–

यंजन का उ चारण हमेशा वर के साथ िमलाकर िकया जाता है । इसीिलए वणमाला म उनको य त करने के िलए मा ा–िच की यव था की गई है । िह दी–वणमाला
म ‘अ’ से ‘औ’ तक कु ल यारह वर है ।ँ इनम ‘अ’ को छोड़कर शेष सभी वर के िलए मा ा–िच बनाए गए है ।ँ ये मा ाएँ िन िलिखत है –

वर–(मा ा)–उदाहरण
अ – (×) – क्+अ= क
आ – (◌ा) – क्+आ= का
इ – (ि◌) – क्+इ= िक
ई – (◌ी) – क्+ई= की
उ – (◌ु ) – क्+उ= कु
ऊ – (◌ू ) – क्+ऊ= कू
ऋ – (◌ृ ) – क्+ऋ= कृ
ए – (◌े ) – क्+ए= के
ऐ – (◌ै ) – क्+ऐ= कै
ओ – (◌ो) – क्+ओ= को
औ – (◌ौ) – क्+औ= कौ

िह दी वणमाला म ‘अ’ वर के िलए कोई मा ा–िच नहीँ होता य िक हर यंजन के उ चारण म ‘अ’ शािमल रहता है । ‘क’, ‘च’, ‘ट’ वण ँ का अथ है – ‘क्+अ=क’,
‘च्+अ=च’ तथा ‘ट्+अ=ट’। लेिकन जब यंजन को िबना ‘अ’ के िलखने की आव यकता होती है तब िह दी म इसकी अलग यव था है , जैसे–
• नीचे से गोलाई िलए वण ँ के नीचे हलंत लगा िदया जाता है –
ट् – अ ारह, द् – ग ा, ड् – अ डा।
• खड़ी पाई वाले वण ँ की खड़ी पाई हटा दी जाती है –
च – स चा, ब – िड बा, ल – िद ली।
• क्, फ् जैसे वण ँ म ‘हक
ु ’ हटा िदया जाता है –
क् – म ा, फ् – हफ़्ता।
• ‘र्’ के प को पिरवितत कर वण के ऊपर लगा िदया जाता है – क र् म=कम।

• अितिर त िच :–

उपयु त वण–िच के अलावा कु छ अ य विनय के िलए भी िह दी म अितिर त वण–िच का योग िकया जाता है । ये वण और विनय इस कार है –

अनु वार (◌ं ) – अंडा, सं या
अनुनािसक (◌ँ ) – आँख, च द
िवसग ( : ) – ातः, अतः
हल त (◌् ) – िच ी, जगत्
ड़, ढ़ ( . ) – लड़का, बूढ़ा।

इन वण िच म से ‘अनु वार’ तथा ‘िवसग’ को तो पर परागत वणमाला म ‘अं’ तथा ‘अः’ के प म िदखाया जाता रहा है । ‘हलंत’ को वणमाला म नहीँ िदखाया जाता
य िक यह वतं वण नहीँ है , केवल यंजन म वर–अभाव िदखाता है ।

उपयु त वण िच म अनु वार तो यंजन तथा वर दोन के साथ लगता है । िवसग तथा अनुनािसकता चूँिक वर के गुण है ँ अतः इनके िच केवल वर के साथ लगाए
जाते है ।ँ अनुनािसकता (◌ँ ) का िच ‘आ’ तथा िबना मा ा वाले वर के ऊपर लगाया जाता है और अ य मा ा वाले वर के ऊपर अनुनािसकता को िब दु से ही दश या जाता
है , जैसे–
1. ‘आ’ तथा िबना मा ा वाले वर– क च, आँख, ढ चा, म , च द, उँगली, बहएु ँ आिद।
2. मा ा वाले वर– िसँचाई, कचुए, ग द, म आिद।
3. िह दी म ातः, अतः आिद त सम श द म िवसग लगता है ।

• वर के भेद – मुखाकृित, ओ ाकृित, उ चारण–समय और उ चारण– थान के आधार पर वर के िन िलिखत भेद है ँ –

1. मुखाकृित के आधार पर वर का वग करण :


• अ वर – िजन वर के उ चारण म िज ा का आगे का भाग सि य रहता है , उ ह ‘अ वर’ कहते है ।ँ जैसे– अ, इ, ई, ए, ऐ।

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• प वर – िजन वर के उ चारण म िज ा का िपछला भाग सि य रहता है , उ ह ‘प वर’ कहते है ।ँ जैसे– आ, उ, ऊ, ओ, औ, ऑ।
ु । िजन वर के उ चारण म मुख कम खुल े, उ ह ‘संवृ वर’ कहते है ।ँ जैसे– ई, ऊ।
• संवृ वर – संवृ का अथ है , कम खुल ा हआ
• अ संवृ वर – िजन वर के उ चारण म मुख संवृ वर से थोड़ा अिधक खुल ता है , वे अ संवृ वर कहलाते है ।ँ जैसे– ए, ओ।
• िववृ वर – िववृ का अथ है , अिधक खुल ा हआु । िजन वर के उ चारण म मुख अिधक खुल ता है , उ ह िववृ वर कहते है ।ँ जैसे– आ।
• अ िववृत वर – िववृ वर से थोड़ा कम और अ संवृ से थोड़ा अिधक मुख खुल ने पर िजन वर का उ चारण होता है , उ ह अ िववृ वर कहते है ।ँ जैसे– ऐ, ऑ।

2. ओ ाकृित के आधार पर वर के दो भेद है ँ :


• वृ ाकार वर – इनके उ चारण म होठ का आकार गोल हो जाता है । जैसे– उ, ऊ, ओ, औ, ऑ।
• अवृ ाकार वर – िजन वर के उ चारण म ह ठ गोल न खुल कर िकसी अ य आकार म खुल , उ ह अवृ ाकार वर कहते है ।ँ जैसे– अ, आ, इ, ई, ए, ऐ।

3. उ चारण समय (मा ा) के आधार पर वर के दो भेद है ँ :


• हृ व वर – िजन वर के उ चारण म एक मा ा का समय अथ त् सबसे कम समय लगता है , उ ह हृ व वर कहते है ।ँ जैसे– अ, इ, उ।
• दीघ वर – िजन वर के उ चारण म दो मा ाओँ का अथवा एक मा ा से अिधक समय लगता है , उ ह दीघ वर कहते है ।ँ जैसे– आ, ई, ऊ, ऐ, ओ, औ, ऑ।
( दीघ वर, हृ व वर के दीघ प न होकर वतं विनय है ।ँ )

4. उ चारण– थान के आधार पर वर के दो भेद िकए जा सकते है ँ :


• अनुनािसक वर – इन वर के उ चारण म विन मुख के साथ–साथ नािसका– ार से भी बाहर िनकलती है । अतः अनुनािसकता को कट करने के िलए िशरोरेखा के
ऊपर च िब दु (◌ँ ) का योग िकया जाता है । िक तु जब िशरोरेखा के ऊपर वर की मा ा भी लगी हो तो सुिवधा के िलए अथवा थानाभाव के कारण च िब दु की जगह
मा िब दु (◌ं ) िलखते है । जैसे– ब ट-ब ट।
• िनरनुनािसक वर – ये वे वर है ,ँ िजनकी उ चारण– विन केवल मुख से िनकलती है ।

अनुनािसक वर (◌ँ ) तथा अनु वार (◌ं ) म अ तर :

अनुनािसक तथा अनु वार मूल तः यंजन है ।ँ इनके योग से कहीँ–कहीँ अथ भेद हो ही जाता है । जैसे–
हँस – हँसना, हंस – एक प ी।

अनु वार का अथ है सदा वर का अनुसरण करने वाला। ‘अ’ अनु वार का ही हृ व प अनुनािसक ‘अँ’ है । त सम् श द म अनु वार लगता है तथा उनके त व प म
च िब दु लगता है । जैसे– दंत से द त।

िह दी म अनु वार एक नािस य यंजन है , िजसे (◌ं ) से िलखा जाता है । ायः इसे वर या यंजन के ऊपर लगाया जाता है । जैसे– अंक, अंगद, गंदा, पंकज, गंगा आिद।
इस विन का अपना कोई िनि त व प नहीँ होता। उ चारण इसके आगे आने वाले यंजन से भािवत होता है । जैसे– ‘न्’ के प म– गंगा, ‘म्’ के प म– संवाद।

अनुनािसकता वर का गुण है । वर का उ चारण करते समय वायु को केवल मुख से ही बाहर िनकाला जाता है । जब वायु को मुख के साथ–साथ नाक से भी बाहर
िनकाला जाए तो सभी वर अनुनािसक हो जाते है ।ँ अनुनािसकता का िच िह दी म (◌ं ) है , िक तु लेखन म कु छ वर पर च िब दु तथा कु छ पर िब दु लगाया जाता है ,
िजसके िन िनयम वीकार िकए गये है –

(अ) िजन वर अथवा उनकी मा ाओँ का कोई भी भाग यिद िशरोरेखा से बाहर नहीँ िनकलता है तो अनुनािसकता के िलए ‘च िब दु’ लगाया जाना चािहए। जैसे– कु आँ, ग व,
च द, स स, पूँछ, सूँघना आिद।
(ब) िजन वर अथवा उनकी मा ाओँ का कोई भी भाग िशरोरेखा के ऊपर िनकलता है तो वह अनुनािसकता को भी िब दु से ही िलखना चािहए। जैसे– गद, सौँफ, च च,
क पल आिद।

आजकल िह दी म सभी कार के वर पर अनुनािसकता के िलए िब दु ही लगाया जाना चािहए, पर तु वतनी के अनुसार जह अनुनािसकता के च िब दु से िलखने की
बात कही गई है , वह उसे च िब दु से ही िलखा जाना चािहए।

♦ यंजन :
िह दी भाषा म िजन विनय (वण ँ) का उ चारण करते हएु हमारी ास–वायु मुँह के िकसी भाग (तालु, ओ , द त, व स आिद) से टकराकर बाहर आती है , उ ह यंजन
कहते है ।ँ उदाहरणाथ– ‘क’ के उ चारण के समय क ठ म वायु का अवरोध होता है तथा ‘प’ के उ चारण म होठ के पास वायु का अवरोध होता है । अतः यंजन वे वण
( विनय ) है ,ँ िजनके उ चारण म मुँह म वायु के वाह म अवरोध ( कावट) उ प है ।
िह दी वणमाला म मूल तः 33 यंजन है ।ँ चार यंजन अरबी–फारसी के भाव से आए है ।ँ यंजन िन िलिखत है ँ –
क ख ग घ ङ (क–वग)
च छ ज झ ञ (च–वग)
ट ठ ड ढ ण (ट–वग)
त थ द ध न (त–वग)
प फ ब भ म (प–वग)
यरलव
शषह

• यंजन के भेद :
1. य और उ चारण थान के आधार पर यंजन के कार–
(i) पश यंजन – ये प चीस है – ँ
क वग – क, ख, ग, घ, ङ।
च वग – च, छ, ज, झ, ञ।
ट वग – ट, ठ, ड, ढ, ण।
त वग – त, थ, द, ध, न।
प वग – प, फ, ब, भ, म।
(ii) अंतः थ यंजन – ये चार है – ँ
य, र, ल, व।
(iii) ऊ म यंजन – ये चार है –

श, ष, स, ह।
(iv) लुंिठत यंजन – र।
(v) पाि क यंजन – ल।
(vi) अ य संघष – ख़, ग़, ज़, फ।
(vii) उि त यंजन – ड़ और ढ़।
ये दोन विनय िह दी म 'ड' और 'ढ' विनय से िवकिसत हईु है ।ँ िह दी म इनके अलावा ह, ह, (न, म, ल महा ाण प) भी नविवकिसत विनय है ।ँ इ ह न, म, ल के
साथ 'ह' िमलाकर िलखते है ।ँ
(viii) अनुनािसक यंजन – येक वग का प चवा वण–ङ् , ञ्, ण्, न्, म्। इनके थान पर अनु वार (◌ं ) व च िब दु (◌ँ ) का योग िकया जा सकता है ।
(ix) संयु त यंजन – दो िभ यंजन के मेल से बने यंजन, जो इस कार है – ँ
= क्+ष – क ा, र ा आिद।

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= त्+र – या ा, िम आिद।
= ज्+ञ – य , ान, आ ा आिद।
= श्+र – ी, ीमती, िमक आिद।
शृ = श+ऋ – शृंगार आिद।
= द्+य – िव ालय आिद।
त = क्+त – र त, भ त आिद।
= त्+त – वृ , उ र आिद।
= द्+द – र , भ ा आिद।
= द्+ध – बु , िस आिद।
= द्+व – ार, ि ज आिद।
= प्+र – मोद।
= न्+न – अ , स आिद।

2. वर–तंि य के आधार पर यंजन दो कार के है – ँ


(i) अघोष यंजन – येक वग का थम एवं ि तीय वण तथा श, ष एवं स।
इन यंजन के उ चारण के समय वर–तंि य पर पर इतनी दूर हट जाती है ँ िक पय त थान के कारण उनके बीच िनकलने वाली हवा िबना वर–तंि य से टकराए
और उनम िबना क पन िकए बाहर िनकल जाती है , इसिलए इ ह अघोष वण कहते है ।ँ
(ii) सघोष यंजन – येक वग का तीसरा, चौथा एवं प चवा वण, सभी अ तः थ तथा ‘ह’ वण।
इनके उ चारण के समय दोनो वर–तंि य इतनी िनकट आ जाती है ँ िक हवा वर–तंि य से रगड़ खाती हईु मुख िववर म वेश कर जाती है । वर–तंि य के साथ
रगड़ खाने से वण ँ म घोष व आ जाता है , इसिलए इ ह सघोष वण कहते है ।ँ

3. ाण व के आधार पर यंजन के दो कार है ँ –


(i) अ प ाण – िजन विनय के उ चारण म ाण अथ त् वायु कम शि त के साथ बाहर िनकलती है , वे अ प ाण कहलाती है ।ँ येक वग का पहला, तीसरा और प चवा वण,
सभी अ तः थ यंजन (य, र, ल, व) तथा सभी वर अ प ाण है ।ँ
(ii) महा ाण – िजन विनय के उ चारण म अिधक ाण (वायु) अिधक शि त के साथ बाहर िनकलती है , वे महा ाण कहलाती है ।ँ येक वग का दूसरा और चौथा वण तथा
सभी ऊ म यंजन (श, ष, स, ह) महा ाण यंजन है ।ँ

• यंजन गु छ – जब दो या दो से अिधक यंजन एक साथ एक ास के झटके म बोले जाते है ,ँ तो उसको यंजन गु छ कहते है ।ँ
जैसे– टे शन, मारक, नान, तुित, प , फूित, कंध, याम, व , लेश, यारह, य िक, यारी, वारी, लािन आिद।

• िवसग (:) – िवसग का उ चारण ‘ ’ के समान होता है । जैसे– मनःि थित (मन ि थित), अतः (अत )। िवसग का योग केवल उ हीँ सं कृत श द म होता है , जो उसी
प म चिलत है ।ँ जैसे– ायः, संभवतः। सं कृत के 'दुःख' श द को िह दी म 'दुख' िलखा जाना वीकार कर िलया गया है ।

• उ चारण के आधार पर वण ँ के भेद :


फेफड़ से िनकलने वाली वायु मुख के िविभ भाग म िज ा (जीभ) का सहारा लेकर टकराती है िजससे िविभ वण ँ का उ चारण होता है । इस आधार पर वण ँ के
िन िलिखत भेद िकए छा सकते है – ँ
.सं. – नाम वण – उ चारण थान – वण विन का नाम
1. अ, आ, ऑ, क वग एवं िवसग (:) – क ठ – क य
2. इ, ई, च वग, य, श् – तालु – ताल य
3. ऋ, ट वग, र्, ष् – मू – मू य
4. त वग, ल्, स् – द त – द य
5. उ, ऊ, प वग – ओ – ओ य
6. अं, अँ, ङ् , ञ्, न्, ण्, म् – नािसका – नािस य
7. ए, ऐ – क ठ-तालु – क ठ-ताल य
8. ओ, औ – क ठ-ओ – क ठौ य
9. व, फ – द त-ओ – द तौ य
10. ह – वर-यं – अिल िज ा

• बलाघात – श द बोलते समय अ र िवशेष तथा वा य बोलते समय श द िवशेष पर जो बल पड़ता है , उसे बलाघात कहते है ।ँ बलाघात दो कार का होता है –(1) श द
बलाघात (2) वा य बलाघात।
(1) श द बलाघात – येक श द का उ चारण करते समय िकसी एक अ र पर अिधक बल िदया जाता है । जैसे–िगरा म ‘रा’ पर। िह दी भाषा म िकसी भी अ र पर यिद बल
िदया जाए तो इससे अथ भेद नहीँ होता तथा अथ अपने मूल प जैसा बना रहता है ।
(2) वा य बलाघात – िह दी म वा य बलाघात साथक है । एक ही वा य म श द िवशेष पर बल देने से अथ म पिरवतन आ जाता है । िजस श द पर बल िदया जाता है वह श द
िवशेषण श द के समान दूसर का िनवारण करता है । जैसे– 'कु सुम ने बाजार से आकर खाना खाया।'
उपयु त वा य म िजस श द पर भी जोर िदया जाएगा, उसी कार का अथ िनकलेगा। जैसे– ‘कु सुम’ श द पर जोर देते ही अथ िनकलता है िक कु सुम ने ही बाजार से
आकर खाना खाया। 'बाजार' पर जोर देने से अथ िनकलता है िक कु सुम ने बाजार से ही वापस आकर खाना खाया। इसी कार येक श द पर बल देने से उसका अलग अथ
िनकल आता है । श द िवशेष के बलाघात से वा य के अथ म पिरवतन आ जाता है । श द बलाघात का थान िनि त है िक तु वा य बलाघात का थान व ता पर िनभर करता
है , वह अपनी िजस बात पर बल देना चाहता है , उसे उसी प म तुत कर सकता है ।

• अनुतान – भाषा के बोलने म जो आरोह–अवरोह (उतार–चढ़ाव) होता है , वही अनुतान कहलाता है । िह दी म सुर बदलने से वा य का अथ बदल जाता है ।

• संगम – एक ही श द की दो विनय के बीच उ चारण म िकए जाने वाले िणक िवराम को संगम कहते है ।ँ संगम की ि थित से बलाघात म भी अ तर आ जाता है । दो िभ
थान पर संगम से दो िभ अथ सामने आते है ।ँ जैसे–
मनका = माला का मोती,
मन–का = मन से संबिं धत भाव।
जलसा = उ सव,
जल–सा = पानी के समान।

• ुितमूल क (य/व) – कु छ श द म य, व मूल श द की संरचना म नहीँ होते, केवल सुनाई देते है ।ँ जह य, व का योग िवक प से होता है , वह न िकया जाए अथ त् नई–नयी,
गए–गये आिद प म से केवल वर वाले प को मानक माना जाए। इसी कार िजन श द मे ‘य’ ही मूल विन हो वह ‘य’ का योग िकया जाना चािहए न िक ‘ वर’ का।
जैसे– पये, थायी, अ ययीभाव।

• हाइफन (–) – भाषा म प लेखन हे तु हाइफ़न का योग िकया जाता है । हाइफ़न का योग िन ि थितय म होता है –
1. समास म पद के बीच हाइफ़न अव य लगाया जाए।
जैसे–िदन–रात, सुख–दुःख, राजा–रानी, आना–जाना, देख–भाल आिद।
2. ‘सा’ के पहले हाइफ़न अव य लगाना चािहए। जैसे–

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कोयल–सी मीठी बोली।
तुम–सा नहीँ देखा।
च द–सा मुखड़ा आिद।

• आगत विनय का लेखन:


कु छ ऐसे श द, जो मूल प से अरबी–फारसी, अं ेजी आिद भाषाओँ के है ,ँ िक तु िह दी म इस कार अपना िलए गए है ँ िक वे अब िह दी के अंग बन गए है ।ँ उ ह िह दी की
कृित के अनुसार िलख सकते है ।ँ जैसे–बाग, कलम, कु रान, फैसला, आिद जबिक मूल प म इस कार िलखा जाता है –बाग़, क़लम, क़ु रान, फ़ैसला, आिद। यिद उ चारण
का अ तर दिशत करना हो तो इस कार िलखा जाएगा–सजा/सज़ा, खाना/ख़ाना आिद।

• दो–दो प वाले श द :
िह दी के कु छ श द ऐसे है ,ँ िजनके दो–दो प चिलत है ।ँ िव ान ने दोन ही प को मा यता दान कर दी है । जैसे–
गरमी-गम , बरफ-बफ, गरदन-गदन, भरती-भत , सरदी-सद , कु रसी-कु स , फु रसत-फु सत, बरतन-बतन, बरताव-बत व, मरजी-मज आिद।

• हल् िच (◌् ) – सं कृत से आए त सम् श द को उसी प म िलखना चािहए, जैसे वे श द सं कृत म िलखे जाते है ,ँ िक तु आजकल िह दी म िलखते समय उनका हल्
िच लु त हो गया है । जैसे–भगवान, महान, जगत, ीमान आिद।

• विन पिरवतन – सं कृत मूल क श द की वतनी को य का य हण करना चािहए। जैसे– हीत, दिशनी, दृ य, आिद योग अशु है ।ँ इनके शु ँ गृहीत,
प है –
दशनी, य आिद।

• पूवकािलक यय ‘कर’ – पूवकािलक यय ‘कर’ सदैव ि या के साथ िमलाकर ही िलखा जाना चािहए। जैसे– खा–पीकर, नहा–धोकर, मर–मरकर, जा–जाकर, पढ़कर,
िलखकर, रो–रोकर आिद।

• वण ँ के मानक प – अ, ऋ, ख, छ, झ, ण, ध, भ, , श, । वण ँ के मानक प का ही योग करना चािहए। लेखन म िशरोरेखा का योग अव य करना चािहए।

• िह दी श द–कोश म श द का म –
िह दी श द–कोश म श द का म िविभ वण ँ के िन म के अनुसार है –
अं, अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ, क, , ख, ग, घ, च, छ, ज, , झ, ट, ठ, ड, ढ, त, , थ, द, ध, न, प, फ, ब, भ, म, य, र, ल, व, श, ष, स, ह ।
इस कार श द–कोश म सव थम ‘अं’ या ‘अँ’ से ारंभ होने वाले श द होते है ँ और अ त म ‘ह’ से ारंभ होने वाले श द। येक श द से ारंभ होने वाले श द भी हजार की
सं या म होते है ,ँ अतः श द–कोश म उनका म–िव यास िविभ वर की मा ाओँ के अ म म होता है –
◌ं ◌ँ ◌ा ि◌ ◌ी ◌ु ◌ू ◌ृ ◌े ◌ै ◌ो ◌ौ ।
• उदाहरण –
1. आधा वण उस वण की ‘औ’ की मा ा के बाद आता है । जैसे– कटौती के बाद क र, करौ के बाद कक, कसौ के बाद क त, कौ तु के बाद य, य के बाद ं ... ...
ल... व आिद।
2. ‘◌ृ ’ की मा ा ‘ऊ’ की मा ा वाले वण के बाद आती है । जैसे– कूक, कूल के बाद कृत।
3. ‘ ’ वण आधे ‘क्’ के बाद आता है । जैसे– ि वँटल के बाद ण।
4. ‘ ’ अ र ‘जौ’ के अंितम श द के बाद आता है । जैसे– जौहरी के बाद ात।
5. ‘ ’ अ र ‘ यौ’ के बाद आयेगा। जैसे– यौहार के बाद य।
6. ‘ ’ अ र ‘ यो’ के बाद आयेगा य िक =श्*र है तथा ‘र’ श द–कोश म ‘य’ के बाद आता है ।
7. ‘ ’ अ र ‘दौ’ के बाद आता है । जैसे– दौिह ी के बाद िु त।
8. अ र ‘रौ’ के बाद आता है । जैसे– सरौता के बाद सकस एवं करौना के बाद कक।
9. अ र िकसी भी यंजन के ‘य’ के साथ संयु त अ र के अंितम श द के बाद आता है । जैसे– योसार के बाद कट, यारह के बाद ंथ , ौ के बाद व एवं यौरा के बाद
श।
इस कार येक वण के सव थम अनु वार (◌ं ) या च िब दु (◌ँ ) वाले श द आते है ँ िफर उनका म मशः अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ की मा ा के
अनुसार होता है । ‘औ’ की मा ा के बाद आधे अ र से ारंभ होने वाले श द िदये होते है ।ँ उदाहरणाथ– ‘क’ से ारंभ होने वाले श द का म िन कार रहे गा–
कं, क, क , िकँ, िक, कीँ, कु ं, कु , कूं, कू, कृं, क, के, कैँ, कै, क , को, कौँ, कौ, क् (आधा क) – या, ं द, म आिद।

येक श द म थम अ र के बाद आने वाले ि तीय, तृतीय आिद अ र का म भी उपयु त कार से ही होगा।

♦♦♦

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• सामा य िह दी
♦ होम पे ज

तुित:–

मोद खेदड़

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