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पञ्चम संस्करण (VER 5.

1)
॥श्रीहर िः ॥

॥ स्तर 1 - श्रीमद्भगवद्गीता शुद्ध उच्चारण मागगदर्शगका ॥


(यह मागगदर्शगका प्राथर्मक स्तर के भगवद्गीता प्रर्शक्षार्थगय ों के र्िये बनायी गयी है )

ह्रस्व एवों दीर्ग उच्चारण र्नयम -

• ह्रस्व अ, इ, उ, ऋ, िृ से बने अक्ष ों का उच्चा ण ह्रस्व (समय-एक काल) क ें , दीर्घ नहीों।


• दीर्घ आ, ई, ऊ, ॠ, ए, ऐ, ओ, औ इन अक्ष ों से बने सभी अक्ष ों का उच्चा ण दीर्घ (समय-द काल) क ें , ह्रस्व नहीों।

अनुस्वार उच्चारण र्नयम –

• अनुस्वा – ऐसा वणघ, ज स्व का अनुगमन क ता है अर्ाघ त् स्व के पश्चात् आता है औ जजसका उच्चा ण नाजसका
से जकया जाता है ।
• अनुनाजसक – ऐसा वणघ, जजसका उच्चा ण मुख औ नाजसका से जकया जाता है । यह पााँ च वगों का अन्तिम अर्ाघ त्
पााँ चवााँ वणघ ह ता है ।
• अनुस्वा का उच्चा ण अगले वणघ प जनभघ क ता है अर्ाघ त् वह अनुस्वा अगले वणघ के अनुसा पर वजतघत ह ता है ।

क वगग

• क्, ख्, ग्, र््, ङ् कण्ठ्य वणघ हैं , इनका उच्चा ण कण्ठ से ह ता है ।
• इस वगघ का अनुनाजसक 'ङ् ' है , अतिः इस वगघ के वणों से पहले आने वाले अनुस्वा का उच्चा ण 'ङ् ' क ें ।
जैसे - कोंकण (कङ्कण), पोंख (पङ् ख), गोंगा (गङ्गा), सोंर् (सङ्घ)
• ‘क्ष' सोंयुक्त वणघ है (क्+ष=क्ष), जजसमें 'क्' प्रर्म वणघ है , अत: 'क्ष' अक्ष से पहले आने वाले अनुस्वा का उच्चा ण
'ङ् ' ह गा। जैसे - सोंर्क्षप्त (सर्िप्त)

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च वगग

• च्, छ् , ज्, झ्, ञ् तालव्य वणघ हैं , इनका उच्चा ण तालू से ह ता है ।


• इस वगघ का अनुनाजसक 'ञ्' है , अतिः इस वगघ के वणों से पहले आने वाले अनुस्वा का उच्चा ण 'ञ्' क ें ।
जैसे - चोंचि (चञ्चि), पोंछी (पञ्छी), पोंजा (पञ्जा), राोंझा (राञ्झा)
• ’ज्ञ’ सोंयुक्त वणघ है (ज्+ञ=ज्ञ), जजसमें 'ज्' प्रर्म वणघ है , अत: 'ज्ञ' पूवघ आने वाले अनुस्वा का उच्चा ण 'ञ्'
ह गा। जैसे – इदों +ज्ञानम् = इदञ्ज्ञानम्

ट वगग

• ट् , ठ् , ड् , ढ् , ण् मूर्घन्य वणघ हैं , इनका उच्चा ण मूर्ाघ से ह ता है ।


• इस वगघ का अनुनाजसक 'ण्' है , अतिः इस वगघ के वणों से पहले आने वाले अनुस्वा का उच्चा ण 'ण्' क ें ।
जैसे - र्ोंटा (र्ण्टा), कोंठ (कण्ठ), पोंर्डत (पण्डित), षोंढ (षण्ढ)

त वगग

• त्, थ्, द् , ध्, न् दन्त्य वणघ हैं , इनका उच्चा ण दि से ह ता है।


• इस वगघ का अनुनाजसक 'न्' है, अतिः इस वगघ के वणों से पहले आने वाले अनुस्वा का उच्चा ण 'न्' क ें ।
जैसे - पोंत (पन्त), पोंथ (पन्थ), कोंद (कन्द), अोंध (अन्ध)

• ‘त्र’ सोंयुक्त वणघ है (त्+र=त्र), जजसमें 'त्' प्रर्म वणघ है अत: 'त्' से पूवघ आने वाले अनुस्वा का उच्चा ण 'न्'
ह गा। जैसे - तोंत्र (तन्त्र)

प वगग

• प्, फ्, ब्, भ्, म् ओष्ठ्य वणघ हैं , इनका उच्चा ण ओष्ठ से ह ता है ।
• इस वगघ का अनुनाजसक 'म्' है , अतिः इस वगघ के वणों से पहले आने वाले अनुस्वा का उच्चा ण 'म्' क ें ।
जैसे - चोंपा (चम्पा), इों फाि (इम्फाि), सोंबि (सम्बि), दों भ (दम्भ)

र्वर्शष्ट वगग

'क' से 'प' वगघ तक के व्योंजन ों से पहले आने वाले अनुस्वा का उच्चा कैसे क ें यह हमने दे खा। अब 'य' से 'ह' तक
प्रत्येक वणघ के पश्चात् आने वाले अनुस्वा ों का कैसे उच्चा ण क ें यह दे खते हैं । उच्चा ण स्पष्टता से समझ में आये, इस
हे तु क ष्ठक में वह अक्ष जलखे हैं । ध्यान हे , वास्तव में ये वणघ वहााँ नहीों हैं , केवल अनुस्वा के उच्चा ण की स्पष्टता
औ प्रार्जमक स्त के छात् ों के सुलभता हे तु उन्हें यहााँ जनजदघ ष्ट जकया गया है ।

पद के बीच में अनुस्वारयुक्त वणग के बाद आने वािे 'य' से 'ह' तक के उदाहरण

पद के बीच में आने वाले 'य' से 'ह' तक के अक्ष ों से पहले अनुस्वा युक्त अक्ष आने प , अनुस्वा का उच्चा ण
सानुनाजसक 'य्', 'ि्' अर्वा 'व्' ह ता है ।

2
• य- सोंयम [सों(य्)यम], सोंय जगता [सों(य्)य जगता], सोंयुक्त [सों(य्)युक्त]
• ि- सोंलग्न [सों(ल्)लग्न], सोंलाप [सों(ल्)लाप]
• व- सोंवाद [सों(व्)वाद], सोंवर्घन [सों(व्)वर्घन], सोंवेदना [सों(व्)वेदना]
• र- सों चना [सों(व्) चना], सों क्षण [सों(व्) क्षण], सों े खण [सों(व्) े खण]
• श/ष - सोंशय [सों(व्)शय], वोंश [वों(व्)श] , दों श [दों (व्)श], दों ष्टरा [दों (व्)ष्टरा], सोंश्रय [सों(व्)श्रय]
• स- कोंस [कों(व्)स], सोंसा [सों(व्)सा ], सोंसगघ [सों(व्)सगघ]

• ह- जसोंह [जसों(व्)ह], सोंहा [सों(व्)हा ], सोंजहता [सों(व्)जहता]

पद के अन्त में अनुस्वारयुक्त वणग के बाद आने वािे 'य' से 'ह' तक के उदाहरण

पद के अि में आने वाले अनुस्वा युक्त वणघ के बाद ‘य से ह’ वणघ आने प अनुस्वा का उच्चा ण 'म्' ह ता है ।

• य- र्र्म्ाघ मृतजमदों (म्) यर् क्तम् ● र - ल कजममों(म्) जव:


• ि– तद त्तमजवदाों(म्) ल कान् ● व - ध्यानों(म्) जवजशष्यते
• श/ष - इदों (म्) श ी म् ● स - एवों(म्) सतत
• ह- क्षयों(म्) जहों साम्

र्वसगग उच्चारण र्नयम –

र्नयम 1 : पोंण्डक्त के अोंत में आने वािे र्वसगग के उच्चारण –

जवसगघ भी जनत्य स्व के पश्चात् ही आता है। भगवद्गीता में पोंन्तक्त के अि में आने वाले जवसगों का उच्चा ण
कुछ 'ह्' जैसे जकया जाता है , स्व ों के अनुसा यह ह, हु, हे , र्ह आजद में पर वजतघत ह जाता है। उदाह ण -

र्वसगग का पूवग स्वर -


• यजद 'अ' है त जवसगघ का उच्चा ण 'ह/हा' जैसे ह गा। उदा. - सोंशय: - सोंशयह/सोंशयहा

• यजद 'आ' है त जवसगघ का उच्चा ण 'हा' जैसे ह गा। उदा. - रता: - रताहा
• यजद 'इ', 'ई', 'ऐ' हैं त जवसगघ का उच्चा ण 'र्ह' जैसे ह गा। उदा. - मर्त: - मर्तर्ह, धममैः - धममर्ह

• यजद 'उ', ’ऊ’, ‘औ’ हैं त जवसगघ का उच्चा ण 'हु' जैसे ह गा। उदा. - कुरु: - कुरुहु, गौ: - गौहु
• यजद 'ए' है त जवसगघ का उच्चा ण 'हे ' जैसे ह गा। उदा. - भूमे: - भूमेहे

• यजद 'ओ' है त जवसगघ का उच्चा ण 'ह ' जैसे ह गा। उदा. - मानापमानय : - मानापमानय ह

र्नयम 2 : कुछ र्वर्शष्ट वणों से पूवग आने वािे र्वसगग के उच्चारण –

द पद ों के बीच में आने वाले जवसगघ का उच्चा ण उसके आगे वाले वणघ के अनुसा ह ता है -
• यजद जवसगघ के पश्चात् 'क्' अर्वा 'ख्' यह वणघ आते हैं , त उस जवसगघ का उच्चा ण कुछ 'ख्' की त ह

क ना है। ध्यान हे उच्चा ण 'ख्' की त ह क ना है 'ख्' नहीों।


जैसे- मैत्र: करुण एव च – मैत्र:(ख्) करुण एव च

3
• यजद जवसगघ के पश्चात् 'प्' अर्वा 'फ्' यह वणघ आते हैं , त उस जवसगघ का उच्चा ण कुछ 'फ्' की त ह

क ना है। ध्यान हे उच्चा ण 'फ्' की त ह क ना है 'फ्' नहीों।


जैसे - तत: पदों तत्पररमार्गगतव्यम् – तत:(फ्) पदों तत्पररमार्गगतव्यम्

• जवसगघ के पश्चात् यजद 'स्', 'श्' अर्वा 'ष्' ये वणघ आते हैं , त उस जवसगघ का उच्चा ण क्रमशिः 'स्', 'श्'
औ 'ष्' की त ह ह ता है । उदाह ण - य मद्भक्तैः स मे र्प्रयैः = य मद्भक्तस्स मे र्प्रयैः

ऊर्ध्गमूिमधैः शाखम् = ऊर्ध्गमूिमधश्शाखम्


मनैः षष्ठानीण्डियार्ण = मनष्षष्ठानीण्डियार्ण

र्वशेष र्नयम : यजद जवसगघ के पश्चात् 'क्ष' वणघ आता है , त उस जवसगघ का उच्चा ण जनयम 1 की भााँजत ह,
र्ह, हु, हे हेगा। उदाह ण - तेजैः क्षमा = तेजह क्षमा

र्वसगग सण्डन्ध र्नयम

सन्ति क ते समय भगवद्गीता में कई स्र्ान ों प जवसगघ का पर वतघन र् , स्, श्, ष् आजद में ह ता दीखता है

यह पर वतघन जवसगघ सन्ति के जनयम के का ण ह ते हैं , वह बहुत जवस्तृत हैं इसजलये उनक आगे के स्त ों
प समझाया जायेगा, अभी आप पीडीऍफ़ में जहााँ जैसा पर वतघन जदया है , उसका वैसा अभ्यास क ें ।

उदाह ण - बुण्डद्ध: य – बुण्डद्धयो, परय पेता: ते – परय पेतास्ते, वेदै: च – वेदैश्च

यहाों अवधेय है र्क र्वसगग के पश्चात् उपर क्त वणों के अर्तररक्त र्कसी भी वणग के आने पर र्वसगग
का उच्चारण र्नयम -1 की भाोंर्त ह, हु, हे, र्ह आर्द ह गा |

अवग्रह(ऽ) - अवग्रह (ऽ) एक जचह्न ज सों जर् के का ण हुए 'अका (अ)' के लॉप क दशाघ ता है । वस्तु त:
इसका क ई जवशे ष उच्चा ण नहीों ह ता। केवल जवग्रह के समय अर्घभेद न ह इसजलए इसका प्रय ग
जकया जाता है । जैसे - प्रयाणकाले+अजप - प्रयाणकालेऽजप

आघात उच्चारण र्नयम


• जकसी स्र्ान प सोंयुक्त वणघ (द व्योंजन ों का सोंय ग) आने प उसके पहले आने वाले स्व प आर्ात
दे ना चाजहए अर्ाघत् सोंयुक्त वणघ के प्रर्म वणघ का जित्व(द बा पढ़ना) क ना चाजहये। जहााँ आर्ात आना

चाजहये वहााँ सोंकेत हे तु प्रत्येक श्ल क में वणों के ऊप '||' जचह्न जदया गया है ।
जैसे - क्ष(क्+ष), त्र(त्+र), ज्ञ(ज्+ञ), त्य(त्+य ), व्य(व् +य) आजद सोंयुक्त वणघ हैं ।

उदाह ण - मव्यक्तम् = मव् + व्यक् + क्तम् मे र्प्रयैः = मेप् + र्प्रयैः


• यजद जकसी व्योंजन का स्व के सार् सोंय ग ह त वह सोंयुक्त वणघ नहीों ह ता इसजलये वहााँ आर्ात भी

नहीों ह गा। उदाह ण - 'ऋ' एक स्व है अतिः 'र्वसृजाम्यहम्' में 'सृ'='स्+ऋ' में 'सृ' से पूवघ 'र्व' प
आर्ात नहीों ह गा। सोंयुक्त वणघ से पूवघ स्व प ही आर्ात जदया जाता है जकसी व्योंजन, अनुस्वा या

जवसगघ प नहीों। उदाह ण - 'वासुदेवों(म्) व्रजर्प्रयम्' में 'व्र' सोंयुक्त ह ने प भी पूवघ में अनुस्वा ह ने से
आर्ात नहीों आयेगा।

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संस्कृत भाषा में वर्णों के उच्चारों के लिये मुख के लवलभन्न स्थानों का प्रयोग होता है। इस लचत्र में
वर्णों के उच्चारर्ण स्थानों को दर्ााया जा रहा है। लनयत स्थान का प्रयोग करके हम हमारे उच्चारों
को अलिक से अलिक र्ुद्ध बना सकते हैं। संस्कृत भाषा लकतनी वैज्ञालनक और समद्ध
ृ है इसको
लनम्न लचत्र से जाना जा सकता है।

||इजत ||

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