Professional Documents
Culture Documents
• सवनाम के साथ दो िवभि त िच होने पर पहला िवभि त िच सवनाम म िमलाकर िलखा जाएगा एवं दूसरा अलग िलखा जाएगा, जैसे–
आपके िलए, उसके िलए, इनम से, आपम से, हमम से आिद।
सवनाम और उसकी िवभि त के बीच ‘ही’ अथवा ‘तक’ आिद अ यय ह तो िवभि त सवनाम से अलग िलखी जायेगी, जैसे–
आप ही के िलए, आप तक को, मुझ तक को, उस ही के िलए।
• संयु त ि याओँ म सभी अंगभूत ि याओँ को अलग–अलग िलखा जाना चािहए, जैसे– जाया करता है , पढ़ा करता है , जा सकते हो, खा सकते हो, आिद।
• पूवकािलक यय ‘कर’ को ि या से िमलाकर िलखा जाता है , जैसे– सोकर, उठकर, गाकर, धोकर, िमलाकर, अपनाकर, खाकर, पीकर, आिद।
• समास म पद के बीच योजन िच (–) हाइफन लगाया जाना चािहए, जैसे– माता–िपता, राधा–कृ ण, िशव–पावती, बाप–बेटा, रात–िदन आिद।
• ‘तक’, ‘साथ’ आिद अ यय को पृथ क िलखा जाना चािहए, जैसे– मेरे साथ, हमारे साथ, यह तक, अब तक आिद।
• ‘जैसा’ तथा ‘सा’ आिद सा य वाचक के पहले योजक िच (–) का योग िकया जाना चािहए। जैसे– चाकू–सा, तीखा–सा, आप–सा, यारा–सा, क है या–सा आिद।
• जब वणमाला के िकसी वग के पंचम अ र के बाद उसी वग के थम चार वण ँ म से कोई वण हो तो पंचम वण के थान पर अनु वार (◌ं ) का योग होना चािहए। जैसे–
कंकर, गंगा, चंचल, ठं ड, नंदन, संप , अंत, संपादक आिद। परंतु जब नािस य यंजन (वग का पंचम वण) उसी वग के थम चार वण ँ के अलावा अ य िकसी वण के पहले
आता है तो उसके साथ उस पंचम वण का आधा प ही िलखा जाना चािहए। जैसे– प ा, स ाट, पु य, अ य, स माग, र य, ज म, अ वय, अ वेषण, ग ा, िन , स मान आिद
पर तु घ टा, ठ डा, िह दी आिद िलखना अशु है ।
• अ, ऊ एवं आ मा ा वाले वण ँ के साथ अनुनािसक िच (◌ँ ) को इसी च िब दु (◌ँ ) के प म िलखा जाना चािहए, जैसे– आँख, हँस, ज च, क च, अँगना, स स, ढ चा,
त त, दाय , बाय , ऊँट, हूँ, जूँ आिद। पर तु अ य मा ाओँ के साथ अनुनािसक िच को अनु वार (◌ं ) के प म िलखा जाता है , जैसे– मैँने, नहीँ, ढचा, खीँचना, दाय, बाय,
िसँचाई, ईँट आिद।
• सं कृत मूल के त सम श द की वतनी म सं कृत वाला प ही रखा जाना चािहए, पर तु कु छ श द के नीचे हल त (◌् ) लगाने का चलन िह दी म समा त हो चुका है ।
अतः उनके नीचे हल त न लगाया जाये, जैसे– महान, जगत, िव ान आिद। पर तु संिध या छ द को समझाने हे तु नीचे हल त लगाया जाएगा।
• अँ ेजी से िह दी म आये िजन श द म आधे ‘ओ’ (आ एवं ओ के बीच की विन ‘ऑ’) की विन का योग होता है , उनके ऊपर अ च िब दु लगानी चािहए, जैसे– बॉल,
कॉलेज, डॉ टर, कॉफी, हॉल, हॉि पटल आिद।
• सं कृत भाषा के ऐसे श द , िजनके आगे िवसग ( : ) लगता है , यिद िह दी म वे त सम प म यु त िकये जाएँ तो उनम िवसग लगाना चािहए, जैसे– दुःख, वा तः, फलतः,
ातः, अतः, मूल तः, ायः आिद। पर तु दुखद, अतएव आिद म िवसग का लोप हो गया है ।
• िवसग के प ात् श, ष, या स आये तो या तो िवसग को यथावत िलखा जाता है या उसके थान पर अगला वण अपना प हण कर लेता है । जैसे–
- दुः + शासन = दुःशासन या दु शासन
- िनः + स देह = िनःस देह या िन स देह ।
• उ चारण दोष: कई े व भाषाओँ म, स–श, व–ब, न–ण आिद वण ँ म अथभेद नहीँ िकया जाता तथा इनके थान पर एक ही वण स, ब या न बोला जाता है जबिक िह दी म
इन वण ँ की अलग–अलग अथ–भेदक विनय है ।ँ अतः उ चारण दोष के कारण इनके लेखन म अशुि हो जाती है । जैसे–
अशु शु
कोिसस – कोिशश
सीदा – सीधा
सबी – सभी
सोर – शोर
अराम – आराम
पाणी – पानी
बबाल – बवाल
पाठसाला – पाठशाला
शब – शव
िनपुन – िनपुण
ान – ाण
बचन – वचन
यवहार – यवहार
रामायन – रामायण
गुन – गुण
• जह ‘श’ एवं ‘स’ एक साथ यु त होते है ँ वह ‘श’ पहले आयेगा एवं ‘स’ उसके बाद। जैसे– शासन, शंसा, नृशंस, शासक ।
इसी कार ‘श’ एवं ‘ष’ एक साथ आने पर पहले ‘श’ आयेगा िफर ‘ष’, जैसे– शोषण, शीषक, िवशेष, शेष, वेशभूषा, िवशेषण आिद।
• ‘स्’ के थान पर पूरा ‘स’ िलखने पर या ‘स’ के पहले िकसी अ र का मेल करने पर अशुि हो जाती है , जैसे– इ ी (शु होगा– ी), अ नान (शु होगा– नान),
परसपर अशु है जबिक शु है पर पर।
• अ र रचना की जानकारी का अभाव : देवनागरी िलिप म संयु त यंजन म दो यंजन िमलाकर िलखे जाते है ,ँ पर तु इनके िलखने म ुिट हो जाती है , जैसे–
अशु शु
आश वाद – आशीव द
िनमाण – िनम ण
पुन थापना – पुन थ पना
बहधु ा ‘र्’ के योग म अशुि होती है । जब ‘र्’ (रेफ़) िकसी अ र के ऊपर लगा हो तो वह उस अ र से पहले पढ़ा जाएगा। यिद हम सही उ चारण करगे तो अशुि का ान
हो जाता है । आशीव द म ‘र्’ , ‘वा’ से पहले बोला जायेगा– आशीर् वाद। इसी कार िनम ण म ‘र्’ का उ चारण ‘मा’ से पहले होता है , अतः ‘र्’ मा के ऊपर आयेगा।
• िजन श द म यंजन के साथ वर, ‘र्’ एवं आनुनािसक का मेल हो उनम उस अ र को िलखने की िविध है –
अ र वर र् अनु वार (◌ं )।
जैसे– त् ए र् अनु वार=शतँ
म् ओ र् अनु वार=कम ँ।
इसी कार और , धम ँ, परा म आिद को िलखा जाता है ।
• कोई, भाई, िमठाई, कई, ताई आिद श द को कोयी, भायी, िमठायी, तायी आिद िलखना अशु है । इसी कार अनुयायी, थायी, वाजपे यी श द को अनयाई, थाई, वाजपे ई
आिद प म िलखना भी अशु होता है ।
• सम् उपसग के बाद य, र, ल, व, श, स, ह आिद विन हो तो ‘म्’ को हमेशा अनु वार (◌ं ) के प म िलखते है ,ँ जैसे– संयम, संवाद, संल न, संसग, संहार, संरचना,
संर ण आिद। इ ह स शय, स हार, स वाद, स चना, स ल न, स ण आिद प म िलखना सदैव अशु होता है ।
• आनुनािसक श द म यिद ‘अ’ या ‘आ’ या ‘ऊ’ की मा ा वाले वण ँ म आनुनािसक विन (◌ँ ) आती है तो उसे हमेशा (◌ँ ) के प म ही िलखा जाना चािहए। जैसे– द त, पूँछ,
ऊँट, हूँ, प च, ह , च द, हँसी, ढ चा आिद पर तु जब वण के साथ अ य मा ा हो तो (◌ँ ) के थान पर अनु वार (◌ं ) का योग िकया जाता है , जैसे– फक, नहीँ, खीँचना,
ग द आिद।
• ‘ष’ वण केवल षट् (छह) से बने कु छ श द , यथा– ष कोण, षड़यं आिद के ारंभ म ही आता है । अ य श द के शु म ‘श’ िलखा जाता है । जैसे– शोषण, शासन, शेषनाग
आिद।
• संयु ता र म ‘ट्’ वग से पूव म हमेशा ‘ष्’ का योग िकया जाता है , चाहे मूल श द ‘श’ से बना हो, जैसे– सृि , ष , न , क , अ , ओ , कृ ण, िव णु आिद।
• ‘ श’ का योग सामा यतः न शा, िर शा, न श आिद श द म ही िकया जाता है , शेष सभी श द म ‘ ’ का योग िकया जाता है । जैसे– र ा, क ा, मता, स म, िश ा, द
आिद।
• ‘ ’ विन के उ चारण हे तु ‘ य’ िलिखत प म िन श द म ही यु त होता है – यारह, यो य, अयो य, भा य, रोग से बने श द जैसे–आरो य आिद म। इनके अलावा अ य
श द म ‘ ’ का योग करना सही होता है , जैसे– ान, अ ात, य , िवशेष , िव ान, वै ािनक आिद।
• िह दी भाषा सीखने के चार मु य सोपान है ँ – सुनना, बोलना, पढ़ना व िलखना। िह दी भाषा की िलिप देवनागरी है िजसकी धान िवशेषता है िक जैसे बोली जाती है वैसे ही
िलखी जाती है । अतः श द को िलखने से पहले उसकी वर– विन को समझकर िलखना समीचीन होगा। यिद ‘ए’ की विन आ रही है तो उसकी मा ा का योग कर। यिद
‘उ’ की विन आ रही है तो ‘उ’ की मा ा का योग कर।
1. भाषा (अ र या मा ा) स ब धी अशुि य :
अशु — शु
बृिटश – ि िटश
गुण – ि गुण
िरषी – ऋिष
बृ ा – ा
ब ध – बँध
पै ि क – पै तृक
जा ती – जागृित
ीय – ि य
ि – सृि
अती – अित
तै यार – तैयार
आव यकीय – आव यक
उपरो त – उपयु त
ोत – ोत
जाइये – जाइए
लाइये – लाइए
िलये – िलए
अनुगृह – अनु ह
अकाश – आकाश
असीस – आिशष
देिहक – दैिहक
किवयि – कविय ी
ि – दृि
घिन – घिन
यवहािरक – यावहािरक
रा ी – राि
ा ती – ाि त
सामथ – साम य
एकि त – एक
ईष – ई य
पु य – पु य
कृत ी – कृत
बिनता – विनता
िनिर ण – िनरी ण
पती – पित
आ – आकृ
सािमल – शािमल
मि त क – मि त क
िनसार – िनःसार
स मान – स मान
िह दु – िह दू
गु – गु
दा त – द त
चिहए – चािहए
थक – पृथ क्
पिर ा – परी ा
षोडषी – षोडशी
परीवार – पिरवार
परीचय – पिरचय
सौ दयता – सौ दय
अ ानता – अ ान
गरीमा – गिरमा
समाधी – समािध
बूड़ा – बूढ़ा
ऐ यता – ए य,एकता
पू यनीय – पूजनीय
पि – प ी
अतीशय – अितशय
संसािरक – स सािरक
शताि द – शता दी
िनरोग – नीरोग
दुकान – दूकान
द पित – द पती
अ तचतना – अ त ेतना
2. िलंग स ब धी अशुि य :
िह दी म िलँग स ब धी अशुि य ायः िदखाई देती है ।ँ इस दृि से िन बात का यान रखना चािहए—
(1) िवशेषण श द का िलँग सदैव िवशे य के समान होता है ।
(2) िदन , महीन , ह , पहाड़ , आिद के नाम पुि लंग म यु त होते है ,ँ िक तु ितिथय , भाषाओँ और निदय के नाम ीिलँग म योग िकये जाते है ।ँ
(3) ािणवाचक श द का िलँग अथ के अनुसार तथा अ ािणवाचक श द का िलँग यवहार के अनुसार होता है ।
(4) अनेक त सम श द िह दी म ीिलँग म यु त होते है ।ँ
- उदाहरण—
• दही बड़ी अ छी है । (बड़ा अ छा)
• आपने बड़ी अनु ह की। (बड़ा, िकया)
• मेरा कमीज उतार लाओ। (मेरी)
• लड़के और लड़िकय िच ला रहे है ।ँ (रही)
• कटोरे म दही जम गई। (गया)
• मेरा ससुराल जयपुर म है । (मेरी)
• महादेवी िवदुषी किव है ।ँ (कविय ी)
• आ मा अमर होता है । (होती)
• उसने एक हाथी जाती हईु देखी। (जाता हआ ु देखा)
• मन की मैल काटती है । (का, काटता)
• हाथी का सूंड केले के समान होता है । (की, होती)
• सीताजी वन को गए। (गयीँ)
• िव ान ी (िवदुषी ी)
• गुणवान मिहला (गुणवती मिहला)
• माघ की महीना (माघ का महीना)
• मूितमान् क णा (मूितमयी क णा)
• आग का लपट (आग की लपट)
• मेरा शपथ (मेरी शपथ)
• गंगा का धारा (गंगा की धारा)
• च मा की म डल (च मा का म डल)।
3.समास स ब धी अशुि य :
दो या दो से अिधक पद का समास करने पर यय का उिचत योग न करने से जो श द बनता है , उसम कभी–कभी अशुि रह जाती है । जैसे –
अशु — शु
िदवाराि – िदवारा
िनरपराधी – िनरपराध
ऋषीजन – ऋिषजन
णीमा – ािणमा
वामीभ त – वािमभ त
िपताभि त – िपतृभि त
महाराजा – महाराज
ाताजन – ातृजन
दुराव था – दुरव था
वामीिहत – वािमिहत
नवरा ा – नवरा
4.संिध स ब धी अशुि य :
अशु — शु
उपरो त – उपयु त
सदोपदेश – सदुपदेश
वयवृ – वयोवृ
सदेव – सदैव
अ यािधक – अ यिधक
स मुख – स मुख
उधृत – उ तृ
मनहर – मनोहर
अधतल – अध तल
आश वाद – आशीव द
दुराव था – दुरव था
6. यय–उपसग स ब धी अशुि य :
अशु — शु
सौ दयता – सौ दय
लाघवता – लाघव
गौरवता – गौरव
चातुयता – चातुय
ऐ यता – ऐ य
साम यता – साम य
सौज यता – सौज य
औदायता – औदाय
मनु य वता – मनु य व
अिभ – अभी
बेिफजूल – िफजूल
िमठासता – िमठास
अ ानता – अ ान
भूगौिलक – भौगोिलक
इितहािसक – ऐितहािसक
िनरस – नीरस
7. वचन स ब धी अशुि य :
(1) िह दी म बहतु –से श द का योग सदैव बहवु चन म होता है , ऐसे श द है —
ँ ह ता र, ाण, दशन, आँसू, होश आिद।
(2) वा य म ‘या’ , ‘अथवा’ का योग करने पर ि या एकवचन होती है । लेिकन ‘और’ , ‘एवं’ , ‘तथा’ का योग करने पर ि या बहवु चन होती है ।
(3) आदरसूचक श द का योग सदैव बहवु चन म होता है ।
उदाहरणाथ—
1. दो चादर खरीद लाया। (चादर)
2. एक चटाइय िबछा दो। (चटाई)
3. मेरा ाण संकट म है । (मेरे, है )ँ
4. आज मैँने महा मा का दशन िकया। (के, िकये)
5. आज मेरा मामा आये। (मेरे)
6. फूल की माला गूँथ ो। (फूल )
7. यह ह ता र िकसका है ? (ये, िकसके, है )ँ
8. िवनोद, रमेश और रहीम पढ़ रहा है । (रहे है )ँ
अ य उदाहरण—
अशु — शु
ीय – ि य
माताय – माताओँ
नािरओँ – नािरय
अनेक – अनेक
बहतु – बहत ु
मुिनओँ – मुिनय
सब – सब
िव ाथ य – िव ािथय
ब धुए ँ – ब धुओँ
दाद – दादाओँ
सभीओँ – सभी
नदीओँ – निदय
8. कारक स ब धी अशुि य :
अ. – राम घर नहीँ है ।
शु. – राम घर पर नहीँ है ।
अ. – अपने घर साफ रखो।
शु. – अपने घर को साफ रखो।
अ. – उसको काम को करने दो।
शु. – उसे काम करने दो।
अ. – आठ बजने को प ह िमनट है ।ँ
शु. – आठ बजने म प ह िमनट है ।ँ
अ. – मुझे अपने काम को करना है ।
शु. – मुझे अपना काम करना है ।
अ. – यह बहत ु से लोग रहते है ।ँ
शु. – यह बहत ु लोग रहते है ।ँ
9.श द– म स ब धी अशुि य :
अ. – वह पु तक है पढ़ता।
शु. – वह पु तक पढ़ता है ।
अ. – आजाद हआ ु था यह देश सन् 1947 म।
शु. – यह देश सन् 1947 म आजाद हआ ु था।
अ. – ‘पृ वीराज रासो’ रचना च वरदाई की है ।
शु. – च वरदाई की रचना ‘पृ वीराज रासो’ है ।
• सामा य िह दी
♦ होम पे ज
तुित:–
मोद खेदड़