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तोता - अ ण पा डे य
उपो ात
ाितशा य िश ा वेदांग के अ तगत माने जाते ह ।
ाितशा य म भी वरवणािदय के उ चारण आिद िवषय
ितपािदत है ।
ऋ वेद का ाितशा य ऋ ाितशा य कहलाता है ।
ऋ ाितशा य के क ा शौनक ह ।
ऋ ाितशा य पर उ वट ने भा य भी िलखा है ।
ऋ ाितशा य का िवभाजन पटल म है , तथा कुल १८ पटल इस
थमह।
समाना र और स य र
यु मौ सो माणौ
सभी वग के ि तीय और चतु थ (कुल १०) वण सो म कहे जाते ह ।
जैसे – ख,घ,छ,झ,ठ,ढ,थ,ध,फ और भ ।
वरभि ः पू वभाग राङ्गम् –
वर के साथ रहने वाले र् और ल् पूवभाग म ि थत वर (अ र) के अङ्ग
होते ह । जैसे – अदिश ज हव और शतव शः इन दोन उदाहरण म र्
और ल् पूवा र अ के अङ्ग होते ह उसी तरह आि षेणः म ि थत र्
पूवभाग के वर आ का अङ्ग होता है ।
दीघ और व वरभि का काल
ाघीयसी साधमा ा –
दीघ वरभि अधमा ा (आधी मा ा ) वाली होती है। जैसे यु अदिश,
वन पतये शतव शः, किह, इ यािद ।
अध ना या –
अ य ( व ) वरभि आधे के आधे (१/४) मा ा वाली होती है ।
जैसे आि षेणः , व यान् ।
यिद उदाहरण म र् या ल् के बाद एक ही य जन आता हो तो वह दीघ
वरभि कहलाती है । और यिद र् या ल् के बाद दो या दो से यादा
य जन आते ह तो तो वह व वरभि कहलाती है ।
यम
अ यमोपदेशः-
क ठािद थान म यम का उपदे श िकया जाता है । यह चार कार के होते
ह–
१-अघोष अ प ाण – कँ, चँ, टँ, तँ और पँ ।
२ अघोष महा ाण – खँ, छँ , ठँ , थँ और फँ ।
३- सघोष अ प ाण – गँ ,जँ, डँ , दँ और बँ ।
४- सघोष महा ाण – घँ, झँ, ढँ , धँ और भँ ।
कुल िमलाकर २० वण यम सं क ह ।
र और संयोग
र सं ोऽनुनािसकः –
अनु नािसक वण र सं क ह जैसे – ङ, ञ, ण, न और म ।
संयोग तु य जनसि नपातः –
य जन वण का मे ल संयोग कहलाता है जैसे –
वि भािमषम्
गृ
ओकार आमि तजः गृ म् –
स बोधन के अ त म ि थत ओकार गृ कहलाता है । जैसे – भानो , िव णो
इ यािद ।
पदं चा यः अपू वपदा तग –
अ य पद म ि थत हो तथा समास से पूव या अ त म जो न हो ऐसा ओकार
गृ कहलाता है ।
अ मे यु मे वे अमी च गृ ाः –
अ मे, यु मे, वे और अमी ये चार भी गृ सं क होते ह ।
रिफत
उ मा रे फ प चमो नािम पूवः –
नािम ( अ और आ से िभ न वर वण ) के बाद आने वाले ऊ म वण
(ह,श,ष,स,अः,~क,~प,अं) म पांचव (िवसग) को रिफत कहते ह ।
जैसे - अि नरि म ज मना, पूव रहं शरदः
महोऽपोवजिमतरो यथो म् –
महः और अपः से िभ न अ अथवा आ के बाद आने वाले िवसग क रिफ़त सं ा
होती है ।
अ तोदा म तः –
अ तः पद यिद अ तोदा हो तो वह भी रिफत कहलाता है ।
ध यवादः