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अभिव्यक्ति और माध्यम पुस्िक में से कवििा, कहानी

और नाटक की रचना पर आने िाले प्रश्न


विशेष – सिी विद्यार्थियों को यह ननर्दे श दर्दया जािा है कक आप सिी इन प्रश्नों को
पढने के साथ-साथ “अभिव्यक्ति और माध्यम” पुस्िक में पष्ृ ठ संख्या 105-125 पर
दर्दए गए कवििा, कहानी और नाटक की रचना पर भलखे गए िाग को पढ़ें |

नोट :- कवििा,कहानी और नाटक की रचना पर आधाररि पहला प्रश्न 3 अंक का िथा


ू रा प्रश्न 2 अंक का आएगा | इस िरह कुल भमलाकर 5 अंक के प्रश्न होगें |
र्दस

कवििा की रचना – कविता में मानि का संबंध बचपन से ही है | बचपन से ही हम

दादी-नानी की लोरी और बच्चों के खेलगीतों में कविता का प्रारं भिक स्िरूप पाते हैं | साथ में
प्रारं भिक कक्षाओं में बच्चों को बहुत सारे भििुगीत याद िी कराए जाते हैं | कविता हमारी
संिेदना और िािनाओं के ननकट है | कविता ले खन को ले क र विद्िानों के दो मत भमलते हैं –

 पहला – कु छ विद्िान मानते हैं कक कविता भलखने का कविता बताया या भसखाया नहीं
जा सकता |
 दस
ू रा – इस मत से भिन्न कु छ विद्िान मानते हैं कक जजस तरह चचत्रकला, संगीतकला
और नत्ृ यकला को सीखा जा सकता है, ठीक उसी तरह कविता भलखने की कला को िी
सीखा जा सकता है | विदे िों में तो कविता ले खन का प्रभिक्षण िी ददया जाता है |

कवििा ले खन ने उपकरण (आिश्यक सामग्री) –

1. शब्र्द – कविता भलखने के भलए सबसे महत्त्िपूणण सामग्री है िब्द | िब्दों के तालमेल

से ही कविताएँ बनती हैं | अंग्रेज ी कवि डब््यू. एच. ऑडे न के अनुसार कविता भलखें के भलए
पहले िब्दों से खेलना सीखें | हम दे खते हैं कक हमारी बचपन की बहुत सारी कविताएँ िब्दों
के खेल से उत्पन्न तुक बंदी मात्र हैं | िब्दों का यह खेल धीरे -धीरे हमें िब्दों को रखने क्रम,
िब्दों का उचचत प्रयोग आदद भसखाता है |

2. बबंब – बबंब िह िब्द चचत्र है, जो क्पना द्िारा ऐजन्िय अनुििों के आधार पर

ननभमणत होता है । कविता में साधारण िाषा से भिन्न बबंब िाषा का प्रयोग ककया जाता है |
कविता में सामान्य विषयों का िणणन िी कु छ अलग ढंग से बबंबों की सहायता से ककया जाता
है और हमारी संिेदना कविता को पढ़कर उस बबंब का सृज न हमारे मजस्तष्क में करती है |
िह बबंब हमें आनंददत करता है | जैसे गजानन माधि मुजततबोध की कविता “सहषण स्िीकारा
है” का यह –
जाने तया ररश्ता है, जाने तया नाता है |
जजतना िी उं डेलता हूँ, उतना िर आता है ||
ददल में तया झरना है
मीठे पानी का सोता है ||

इन पंजततयों में कवि अपनी बार-बार कोभिि करने पर िी अपनी प्रे भमका को न िूलने
का कारण अपने हृदय में जस्थत प्रे भमका के प्रनत प्रे म की तुलना झरने से की है | बबंब प्रयोग
का ही एक दस
ू रा नाम “चचत्रिाषा” है | कवि सुभमत्रानंदन पंत ने कविता में चचत्रिाषा या बबंबों
के प्रयोग पर बल ददया है तयोंकक चचत्रों या बबंबों का प्रिाि हमारे मन पर अचधक होता है |
कविता में सबसे पहले दृश्य बबंब और किर श्रव्य बबंब की संिािना तलािनी चादहए तयोंकक ये
बबंब पाठकों को आकृ ष्ट करते हैं | बबंब के पांच िे द हैं –

1. स्पिण बबंब – कृ ष्ण के िचन ग्रीष्म ऋतु में िीतल पिन की तरह आनंद दे रहे थे |
(जब कविता में िर्णणत विषय को हम अपनी क्पना से मानों छू कर अनुिि करें | जैसे
ऊपर ददए गए उदाहरण को पढ़कर हमारे मन में पिन की िीतलता का अनुिि होता है |)
2. स्िाद बबंब – दुयोधन के िचनों को कटु घूंट माने पी गए |
(जब कविता में िर्णणत विषय को हम अपनी क्पना से मानों चखकर अनुिि करें | जैसे
ऊपर ददए गए उदाहरण को पढ़कर हमारे मन में कड़िे पन का अनुिि एक क्षण के भलए
होता है |)
3. घ्राण बबंब – तुम्हारी इतनी इतनी अपािन हो चक
ु ी है मानों ककसी श्मिान में पड़ा कोई
दग
ु ध
ं युतत िि |
(जब कविता में िर्णणत विषय को हम अपनी क्पना से मानों सूंघकर अनुिि करें | जैसे
ऊपर ददए गए उदाहरण को पढ़कर हमारे मन में एक क्षण के भलए दुगध
ं की अनुिूनत होती
है |)
4. दृश्य बबंब – युद्ध क्षेत्र में अभिमन्यु ककसी भसंह िािक (िे र के बच्चे) की तरह कौरि
से ना के महारचथयों का संहार कर रहा था |
(जब कविता में िर्णणत विषय को हम अपनी क्पना से मानों दे खकर अनुिि करें | जैसे
ऊपर ददए गए उदाहरण को पढ़कर हमारे मन में भसंह िािक का दृश्य उिरता है |)
5. श्रव्य बबंब – माँ का पत्र पढ़कर मानों गज
ंू ने लगीं कानों में माँ की लोररयाँ |
(जब कविता में िर्णणत विषय को हम अपनी क्पना से मानों सुनकर अनुिि करें | जैसे
ऊपर ददए गए उदाहरण को पढ़कर हमारे मन में लोररयों के स्िरों की अनुिूनत होती है |
 बबंब की पररिाषा तथा बबंब के िे द परीक्षा में पूछे जा सकते हैं |
3. छं र्द – छं द (आतंररक लय) कविता का एक अननिायण तत्त्ि है | िस्तुतः छं द ही िह
तत्त्ि है, जो कविता को ले खन की अन्य विधाओं (गद्य,नाटक) आदद से अलग करता है | पहले
कविताएँ केिल छं दों में ही भलखी जाती थीं | ये छं द दोहे , चौपाई, सोरठा आदद हुआ करते थे
| इधर बीसिीं िताब्दी के उत्तराधण से छं दमुतत कविताएँ अचधकता से भलखी जाने लगी हैं | छं द
मुतत कविताओं के भलए िी अथण की लय का ननिाणह जरूरी है | छं द कविता की स्िािाविक
गनत के ननयमबद्ध रूप है । छं द कविता के भलए प्रिाि और संगीतात्मकता उत्पन्न करते
हैं । इसी के आधार पर कविता में यनत, विराम और उसकी पाठ गनत का ननधाणर ण िी होता है
। छं दमुतत कविता की रचना के भलए िी लय का होना अत्यािश्यक है |
कहानी की रचना – जहाँ ककसी घटना,पात्र अथिा समस्या का क्रमबद्ध ब्यौरा हो,

जजसमें पररिे ि हो, द्िंद्िात्मकता हो, कथा का क्रभमक विकास हो, चरम उत्कषण का बबंदु
(Climax) हो, उसे कहानी कहा जाता है | कहानी का इनतहास उतना ही पुर ाना है, जजतना
मानि सभ्यता का इनतहास | प्राचीन काल में कथािाचक गाँि और िहरों में जाकर युद्ध, प्रे म,
प्रनतिोध आदद के ककस्से गा-गाकर सुनाया करते थे | धीरे -धीरे इन ककस्सों में क्पनाओं का
िी भमश्रण हो गया | प्राचीन काल में कहानी संचार का सबसे बड़ा माध्यम थी | इस कारण से
सिी धमणप्रचारकों ने अपने भसद्धांत और विचारों के प्रचार के भलए इन्हीं कहाननयों का आश्रय
भलया | यहीं नहीं लोगों को भिक्षक्षत करने के भलए िी बहुत सी कहाननयाँ भलखीं गईं | “पंचतंत्र”
ऐसी ही भिक्षाप्रद कहाननयों का संग्रह है |

कहानी के ित्त्ि –
कथानक – कहानी का कें िीय बबंदु कथानक होता है | कहानी का िह संक्षक्षप्त रूप जजसमें

प्रारं ि से अंत तक की सिी घटनाओं और पात्रों का उ्ले ख ककया गया हो, कथानक कहलाता
है | यह कहा जा सकता है कक कथानक कहानी का प्रारं भिक नतिा है | जैसे मकान बनाने से
पहले एक प्रारं भिक नतिा कागज़ पर बनाया जाता है, ठीक िैसे ही कहानी भलखने से पहले
ले खक के मन में कहानी का कथानक ककसी घटना,जानकारी, अनुिि अथिा क्पना के रूप
में आता है | बाद में कहानीकार अपनी क्पना से इस कथानक को कहानी के रूप में बदलता
है | उदाहरण के भलए प्रे मचंद की कहानी ‘कफन’ दस-बारह पष्ृ ठों की कहानी है ले ककन इसका
कथानक दस-बारह पंजततयों में िी भलखा जा सकता है ।
घीसू और माधि गाँि के दो गरीब और आलसी ककसान हैं । बुचधया माधि की पत्नी है। िह
प्रसि-पीड़ा से कोठरी के अंदर तड़प रही है। कोठरी के बाहर घीसू और माधि अलाि में आलू
िूनकर खाने की तैयारी कर रहे हैं । बुचधया प्रसि-पीड़ा से मर जाती है । दोनों के पास उसका
किन खरीदने के पैसे नहीं हैं । िे गाँि के जमींदार के पास पैसे मांगने जाते हैं । जमींदार
पैसे दे दे ता है । गाँि के दस
ू रे संपन्न लोग िी पैसे दे ते हैं । उसके बाद घीसू और माधि
किन खरीदने बाजार जाते हैं पर किन खरीदने के बजाय उन पैसों की िराब पीते हैं । और
निे में मदहोि होकर गाना गाते मददरालय में चगर पड़ते हैं । इस प्रकार एक विस्तृत कहानी
का संक्षक्षप्त रूप कथानक होता है |

द्िंद्ि – द्िंद्ि कहानी का अननिायण तत्त्ि है | द्िंद्ि का अथण है - दो विचारधाराओं के

बीच संघषण या टकराि | द्िंद्ि ही कहानी को रोचकता प्रदान करने िाला तत्त्ि है | जजस कहानी
में द्िंद्ि जजतना सितत होगा, कहानी उतनी अचधक प्रिािी होगी | यह द्िंद्ि ही कहानी को
आगे बढाता हुआ कहानी के अंत तक बना रहता है |

र्दे शकाल या पररिेश - कहानी को प्रामार्णक और रोचक बनाने के भलए घटना,

पात्र और समस्या के दे िकाल की समझ बहुत आिश्यक है | उदाहरण के भलए यदद अस्पताल
का कथानक है, तो ले खक को अस्पताल का पूर ा पररिे ि, ध्िननयाँ, लोग, कायणप्रणाली, लोगों
के पारस्पररक संबंध आदद की जानकारी होना आिश्यक है | ले खक जब कथानक के आधार
पर कहानी को विस्तृत रूप दे ता है तो उसमें इन सिी जानकाररयों की बहुत आिश्यकता होती
है |

पात्र – कहानी के हर पात्र का अपना स्िरूप, स्ििाि और उद्दे श् य होता है | कहानीकार के

सामने पात्रों का स्िरूप जजतना स्पष्ट होगा, उतनी ही आसानी से िह पात्रों के चररत्रचचत्रण और
संिाद की रचना कर सकेगा | इस कारण पात्रों का अध्ययन कहानी की एक महत्त्िपूणण और
बुननयादी ितण है | दरअसल कहानीकार और उसके पात्रों के बीच ननकटतम संबंध होना चादहए
| ले खक को चादहए कक िह पात्रों के बारे में स्ियं न बताकर उनके कक्रयाकलापों और संिादों
के माध्यम से उनकी वििे षताएँ बताए |

संिार्द – कहानी में संिाद बहुत महत्त्िपूणण होते हैं | संिाद की बबना पात्र की क्पना मुजश्कल

है | संिाद ही कहानी को, पात्र को स्थावपत,विकभसत करते हैं और कहानी को गनत प्रदान करते
हैं , आगे बढाते हैं | जो घटना या प्रनतकक्रया कहानीकार होती हुई नहीं ददखा सकता, उसे संिादों
के माध्यम से सामने लाता है | इसभलए संिादों का महत्त्ि बराबर बना रहता है | पात्रों के
संिाद उनके स्ििाि और पूर ी पृष्ठिूभम के अनुकू ल होने चादहए | साथ ही संिाद पात्रों के
विश्िास, आदिों और जस्थनतयों के िी अनुकू ल होने चादहए | संिाद छोटे ,स्िािाविक और
उद्दे श् य के प्रनत सीधे लक्षक्षत होने चादहए | संिादों के अनािश्यक विस्तार से कहानी में झोल
आ जाता है |

तलाइमेतस – कथानक का चरम उत्कषण या अंत “तलाइमे तस” कहलाता है | कहानीकार

को चरम उत्कषण का चचत्रण बड़े ही ध्यानपूिणक करना चादहए | यदद कहानीकार अपने मन से
कहानी का कोई आग्रहपूणण अंत करता है, तो कहानी िाषण में बदल सकती है | सबसे अच्छा
यह है कक कहानीकार कहानी का चरम उत्कषण कु छ इस तरह से भलखे कक पाठक स्ियं सोचने
और ननणणय ले ने की ओर प्रे ररत हों |(कहने का आिय यह है कक कहानी के अंत में कोई ननणणय
न ददया जाए, बज्क कहानी का अंत ऐसा हो कक पाठक स्ियं सही या गलत का ननणणय कर
सकें)
नाटक की रचना – नाटक अपनी ननजी वििे षताओं के कारण सादहत्य की अन्य

विधाओं पूर ी तरह से अलग है | जहाँ सादहत्य की अन्य विधाएँ (कहानी,उपन्यास,कविता आदद)
भलर्खत रूप में ही अंनतम रूप को प्राप्त होती हैं , िहीं नाटक अपने भलर्खत रूप में मात्र एक
आयामी है | नाटक में संपूणणता तब आती है, जब उसका मंचन होता है | दस
ू रे िब्दों में
सादहत्य की दस
ू री विधाएँ मात्र पढने या किर सुनने की यात्रा तय करती हैं पर नाटक पढने ,
सुनने के साथ-साथ दे खने के तत्त्ि को िी अपने अंदर समे टे हुए है |

नाटक रचना के महत्त्िपूणि ित्त्ि –

समय का बंधन – समय का बंधन नाटक की रचना पर परू ा असर डालता है अतः नाटक
िुरू से ले क र अंत तक एक ननजश्चत समय सीमा में पूर ा होना चादहए | नाटक में कथानक
चाहे िूतकाल से हो या िविष्यकाल से , मगर नाटक को हमे िा ितणमान काल में ही संयोजजत
करना होता है | नाटक में तीन अंक होते हैं इसभलए नाटक के पात्रों के चररत्रों और कथानक
को ध्यान से बांटने की जरूरत है |

शब्र्द अथिा िाषा – िैसे तो सादहत्य की सिी विधाओं में िब्द महत्त्िपूणण हैं | चकूं क
नाटक में हमारे सामने सारा कथानक घदटत होता है अतः नाटककार को चादहए कक नाटक की
िाषा अचधक से अचधक संक्षक्षप्त और सांकेनतक हो | िाषा िणणनात्मक न होकर कक्रयात्मक
अचधक हो | अच्छा नाटक िही होता है जो भलखे अथिा बोले गए िब्दों से ज्यादा िह ध्िननत
करे , जो बोला या बताया नहीं गया | नाटक का एक मौन,अंधकार अथिा ध्िनन-प्रिाि कहानी
या उपन्यास के बीस-पच्चीस पृष्ठों की बराबरी कर सकता है |

कथ्य - नाटक के भलए िी एक कथानक अथिा कथ्य की आिश्यकता होती है | यह बात


ध्यान दे ने योग्य है कक नाटक में उस कथानक का मंच पर मंचन होना है अतः नाटककार को
रचनाकार होने के साथ एक कु िल संपादक िी होना चादहए | पहले तो नाटककार को कथ्य के
अनुसार घटनाओं,जस्थनतयों अथिा दृश्यों का चुनाि करना होता है और किर उन्हें क्रम में रखकर
िन्
ू य से भिखर तक ले जाना होता है |

संिार्द - नाटक में संिाद के बबना काम ही नहीं चल सकता | नाटक में तनाि, उत्सुक ता,
रहस्य, रोमांच और अंत में उपसंहार अननिायण तत्त्ि हैं | इनके भलए आपस में विरोधी
विचारधाराओं का संिाद होना जरूरी होता है | यही कारण है कक नाटकों में नायक और
प्रनतनायक की पररक्पना आरं ि से ही की गई है | एक सितत नाटक के भलए आिश्यक है
कक संिाद िणणनात्मक न होकर कक्रयात्मक अथिा दृश्यात्मक हों | बोले जाने िाले संिादों से
िी ज्यादा उन संिादों की ओर ले जाना, जो बोले नहीं गए हैं | ऐसे अनकहे संिादों को अंग्रेज ी
में “सबटैतस्ट” कहते हैं | जजस नाटक में इस तत्त्ि की संिािना अचधक होगी, िह नाटक उतना
ही सिल होगा |

द्िंद्ि अथिा अस्िीकार – जब िी कोई दो चररत्र भमलते हैं तो उनमे विचारों का


आदान-प्रदान होता है और विचारों के इस आदान-प्रदान से टकराहट पैदा होती है | इस
टकराहट,द्िंद्ि या अस्िीकार को प्रकट करने का सितत माध्यम रं गमंच है | नाटक के पात्रों
में में यह अस्िीकार या असंतुजष्ट की जस्थनत बनी रहती है | जजस नाटक में यह असंतुजष्ट,
छटपटाहट, प्रनतरोध और अस्िीकार जजतना अचधक होगा, िह नाटक उतना ही गहरा और
सितत होगा |
कवििा, कहानी और नाटक की संरचना पर आधाररि कुछ प्रश्न
प्रश्न-(1) कवििा में छं र्द और लय का तया महत्ि है ?

उत्तर-: छं द और लय कविता के अननिायण तत्त्ि है है। छं द कविता की स्िािाविक गनत के


ननयमबद्ध रूप है ।छं द कविता के भलए प्रिाि और संगीतात्मकता उत्पन्न करते हैं । इसी
के आधार पर कविता में यनत, विराम और उसकी पाठ गनत का ननधाणर ण िी होता है । छं दमुतत
कविता की रचना के भलए िी लय का होना अत्यािश्यक है ।

प्रश्न-(2)कहानी का नाट्य रूपांिरण करिे समय ककन-ककन बािों का ध्यान रखना चादहए ?

उत्तर-: कहानी में संिाद नहीं होते हैं और नाटक संिाद के आधार पर आगे बढ़ता है इसभलए
कहानी में संिाद का समािे ि करना जरूरी है।

*कहानी का नाट्य रूपांतर करने से पहले उसका कथानक बनाना बहुत जरूरी है।

* नाटक में हर एक पात्र का विकास कहानी जैसे आगे बढ़ती है िैसे होता है ,इसभलए कहानी
का नाट्य रूपांतरण करते ितत पात्र का चररत्र चचत्रण करना बहुत जरूरी होता है.।

* कहानी की विस्तत
ृ कथािस्तु को समय और स्थान के आधार पर वििाजजत करना ।

* कथािस्तु का अलग -अलग दृश्यों में वििाजन करना ।

प्रश्न-(3) कहानी और नाटक में तया समानिा होिी है ?

उत्तर-: कहानी और नाटक में कथानक होता है

* कहानी और नाटक दोनों में उद्दे श्य होता है

* कहानी और नाटक में प्रारम्ि, मध्य ि अंत होता है

* कहानी ि नाटक समान विषय पर भलखे हो सकते हैं

कहानी और नाटक में पात्र, पररिे ि तथा संिाद होते हैं ।

* कहानी ि नाटक व्यजतत के मनोिािों, विचारों ि सोच को प्रकट करने क ा माध्यम हो सकते
है ।

प्रश्न-(4) कवििा की रचना के भलए शब्र्द ककिना आिश्यक है ?

उत्तर-: कविता की अनजानी दुननया को जानने का सबसे पहला साधन िब्द है

* िब्दों के साथ खेलते खेलते कविता की रचना की जा सकती है ।

* एक िब्द अपने िीतर अने क अथण समे टे हुए होता है ।


* प्रनतिा को ननखारने के भलए िब्दों का सहारा ले ना आिश्यक होता है ।

प्रश्न-(5) कहानी की रचना में पात्रों के चररत्र र्चत्रण का महत्ि भलखखए ?

अथिा

कहानी की रचना में पात्रों की िूभमका स्पष्ट कीक्जए ?

उत्तर - कथानक को आगे बढ़ाने के भलए पात्रों का होना आिश्यक है ।

1. दे िकाल, स्थान तथा पररिे ि के अनुसार पात्रों का का चररत्र चचत्रण करने से कथानक को
समझना आसान होता है।
2. हर पात्र का अपना एक स्िरूप, स्ििाि और उद्दे श् य होता है जजसका चचत्रण करने से
श्रोताओं या पाठकों को कथानक के साथ जोड़कर रखा जा सकता है ।
3. कहानी के पात्रों के माध्यम से कहानीकार अपने उद्दे श् य को प्राप्त करने में सिल होता
है ।
4. पात्रों के परस्पर संिाद के माध्यम से कथानक को गनत प्राप्त होती है ।
5. पात्रों के प्रिािी चररत्र चचत्रण से कहानीकार श्रोताओं के मन पर अभमट छाप छोड़ सकता
है ।

प्रश्न-(6) कहानी की रचना में कथानक का महत्ि स्पष्ट कीक्जए ?

1. कथानक कहानी का केंिीय बबंदु होता है ।


2. कथानक कहानी का िह संक्षक्षप्त रूप है जजसमें प्रारं ि से अंत तक कहानी की सिी
घटनाओं और पात्रों का उ्ले ख ककया गया हो ।
3. कथानक कहानी का एक प्रारं भिक नतिा होता है ।जजस प्रकार मकान बनाने से पहले एक
प्रारं भिक नतिा तैयार ककया जाता है ठीक उसी तरह कहानी को पूर ा स्िरूप दे ने के भलए
कथानक का आधार के रूप में उपयोग ककया जाता है ।
4. कथानक के माध्यम से कहानीकार पात्र, पररिे ि, संिाद, द्िंद्ि इत्यादद के बारे में विस्तार
से सोच सकता है ।
5. तथा कहानीकार अपने उद्दे श्य को प्राप्त करने के भलए आिश्यकतानुसार कहानी के पात्र
स्थान पररिे ि इत्यादद में पररितणन कर सकता है |

प्रश्न-(7) कहानी रचना में संिार्द का महत्ि तया है ?

1. कहानी में पात्रों के संिाद बहुत महत्िपूणण होते हैं ।


2. संिाद के बबना पात्र की क्पना मुजश्कल है ।
3. संिाद ही कहानी में पात्रों ि कहानी को गनत प्रदान करके आगे बढ़ाते हैं ।
4. कहानी में जो घटना या प्रनतकक्रया कहानीकार होती हुई नहीं ददखा सकता उसे संिादों के
माध्यम से सामने लाया जाता है ।
5. संिाद पात्रों के स्ििाि और पष्ृ ठिूभम के अनुकू ल होने चादहए जजससे पात्र स्िािाविक
लग सकें तथा अपना गहरा प्रिाि श्रोताओं एिं पाठकों पर छोड़ सकें ।

प्रश्न-(8) कहानी में कथानक तया है उर्दाहरण र्दे क र समझाइए ?

कहानी का केंिीय बबंदु कथानक होता है । कथानक कहानी का िह संक्षक्षप्त रूप है जजसमें
प्रारं ि से अंत तक कहानी की सिी घटनाओं और पात्रों का उ्ले ख ककया गया हो । उदाहरण
के भलए प्रे मचंद की कहानी ‘कफन’ दस-बारह पृष्ठों की कहानी है ले ककन इसका कथानक दस-
बारह पंजततयों में िी भलखा जा सकता है ।

घीसू और माधि गाँि के दो गरीब और आलसी ककसान हैं । बुचधया माधि की पत्नी है। िह
प्रसि-पीड़ा से कोठरी के अंदर तड़प रही है। कोठरी के बाहर घीसू और माधि अलाि में आलू
िूनकर खाने की तैयारी कर रहे हैं । बुचधया प्रसि-पीड़ा से मर जाती है । दोनों के पास उसका
किन खरीदने के पैसे नहीं हैं । िे गाँि के जमींदार के पास पैसे मांगने जाते हैं । जमींदार
पैसे दे दे ता है । गाँि के दस
ू रे संपन्न लोग िी पैसे दे ते हैं । उसके बाद घीसू और माधि
किन खरीदने बाजार जाते हैं पर किन खरीदने के बजाय उन पैसों की िराब पीते हैं । और
निे में मदहोि होकर गाना गाते मददरालय में चगर पड़ते हैं । इस प्रकार एक विस्तृत कहानी
का संक्षक्षप्त रूप कथानक होता है |

प्रश्न-(9) नाटक सादहत्य की अन्य विधाओं से अलग कैसे हैं ?

1. नाटक को मंच पर प्रस्तुत ककया जाता है अतः यह दृश्य से जु ड़ी हुई विधा है ।


2. नाटक ले खक, ननदे िक, पात्र, दिणक तथा श्रोताओं ि अन्य कई लोगों से जु ड़ा होता है ।
3. नाटक में अभिने ता, मंच-सज्जा, संगीत और प्रकाि व्यिस्था का वििे ष महत्ि होता है|
4. नाटक को एक ही समय और एक ही स्थान पर दिणक ों के सामने प्रस्तुत ककया जा
सकता है इसे बीच में अधरू ा नहीं छोड़ा जा सकता ।
5. नाटक का आनंद पढ़कर नहीं दे खकर ही प्राप्त ककया जा सकता हैं

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