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उपन्यास का विकास

अध्याय : उपन्यास का विकास


लेखक: डॉ. कुसम
ु लता
विभाग / विश्िविद्यालय: दौलतराम महाविद्यालय

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जीवन पर्यन्त शिक्षण संस्थान, दिल्ली ववश्वववद्र्ालर्
उपन्यास का विकास

परिचय/प्रस्तावना/ववषय प्रवेश

इस इकाई में हम उपन्यास के ववकास पि चचाा किें गे। उपन्यास में जीवन की सम्पूर्ाता का वचत्रर् होता है।
मानव जीवन से जुड़े ववविन्न प्रसंगों को कथानक का आधाि बनाकि उपन्यास का ताना-बाना बुना जाता है।
उपन्यास गद्य सावहत्य की एक प्रमुख ववधा है। यह ‘उप’ औि ‘न्यास’दो शब्दों से वमलकि बना है। ’उप’ का अथा
है समीप औि ‘न्यास’ का अथा है िखना। इस प्रकाि इसका अथा हुआ समीप िखना। उपन्यास हमािे जीवन के
समीप होता है। मुंशी प्रेमचंद ने स्वयं उपन्यास को मानव जीवन का वचत्र कहा है। प्रेमचंद ने हहदी उपन्यास को
नई परििाषा औि नया मोड़ ददया। यहााँ हम हहदी उपन्यास को ववविन्न कालों में वविावजत किके उसके
ववकास पि प्रकाश डालेंगे।

पाठ का उद्देश्य

 इस इकाई के द्वािा छात्रों को हहदी उपन्यास के ववकास से अवगत किाया जायेगा।


 हहदी का पहला उपन्यास दकसे माना जाता है इस पि िी चचाा की जाएगी।
 हहदी उपन्यास को ववविन्न कालो में बांटकि उसके ववकास पि ववस्ताि से प्रकाश डाला जाएगा।
 हहदी उपन्यास के क्षेत्र में प्रेमचंद का क्या महत्वपूर्ा योगदान है इसकी जानकािी िी छात्रों को दी
जाएगी।

उपन्यास का ववकास

उपन्यास हहदी गद्य सावहत्य की एक प्रमुख ववधा है। हहदी उपन्यास का उदय सन 1870 से माना जाता है। उपन्यास शब्द
दो शब्दों के योग से बना है ‘उप’ औि ‘न्यास ‘। उप का अथा है गौर् औि न्यास का अथा है स्थापना किना। उपन्यासकाि
इस सावहवत्यक ववधा द्वािा अपने ववचािों को की गौर् सृवि किता है। हहदी सावहत्य में उपन्यास का आवविााव उन्नीसवीं
शती के अंवतम दौि में हुआ। आधुवनक काल की ववकवसत गद्य ववधाओं में उपन्यास का महतवपूर्ा स्थान है। उन्नीसवीं
शती तक उपन्यास सावहत्य पूिे यूिोप में समृद्ध हो चुका था। जो िाितीय िाषाए सीधे तौि पि अंग्रेजी के संपका में थी
वहां इसका आिं ि हहदी से पहले हो गया था। बांगला औि मिाठी ये दोनों ही िाषाए अंग्रेजी के संपका में थी। बांगला में
शितचंद्र, बंदकमचंद्र, िहवद्रनाथ टैगोि आदद ने हहदी से पूवा ही उपन्यास लेखन आिं ि दकया। यूिोप, इटली, इं ग्लैंड में
महतवपूर्ा उपन्यासों की िचना हुई। अंग्रेजी औि बांग्ला उपन्यासों की लोकवप्रयता से हहदी सावहत्य में इस ववधा का श्री
गर्ेश हुआ। आचाया महावीि प्रसाद वद्ववेदी ने ‘सिस्वती ‘ में प्रकावशत एक वनबंध ‘उपन्यास –िहस्य’ में इस बात को
स्वीकाि दकया है दक उपन्यास के प्रचलन ,ववकास एवं सृजन का श्रेय पविमी देशों के लेखकों को ही है वजससे प्रेिर्ा
लेकि हहदी में में िी उपन्यास िचना की जाने लगी है।

हहदी के प्रथम मौवलक उपन्यास को लेकि प्रायः ववद्वानों में मतिेद िहा है। इस सम्बन्ध में वजन दो उपन्यासों को
लेकि ववद्वानों में मतिेद हैं वे है- श्रद्धािाम फु ल्लोिी कृ त िाग्यवती (सन 1877 ) तथा लाला श्रीवनवास दास कृ त पिीक्षा
गुरु (1882)। प्रथम उपन्यास में िाग्यवती के चरित्र में सद्व्यवहाि औि सेवा के महत्व पि बल देते हुए लेखक की
सुधािवादी प्रवृवत परिलवक्षत होती है। िाग्यवती अपनी वशक्षा के बल पि सामावजक अंधववश्वासों, पाखंडों, कु िीवतयों से

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अपने साथ –साथ समाज की िक्षा किती है। ’पिीक्षा गुरु ‘ के द्वािा समकालीन मध्य वगीय समाज औि उसकी समस्याओं
को वचवत्रत दकया गया है। इसमें िाितीय सभ्यता एवं संस्कृ वत को श्रेष्ठ प्रमावर्त किते हुए उपदेश वृवत का आधाि ग्रहर्
दकया गया है। ’पिीक्षा गुरु ‘को अवधकं स्ग ववद्वान वहन्दी का प्रथम उपन्यास मानते हैं। आचाया िामचंद्र शुक्ल ‘हहदी
सावहत्य का इवतहास ‘ पुस्तक में श्रीवनवास दास के ‘पिीक्षा गुरु’ को हहदी का प्रथम उपन्यास मानते है। दुसिे स्थान पि
वे श्रद्धािाम दफल्लौिी के उपन्यास िाग्यवती का वर्ान किते हैं। हहदी उपन्यास के क्षेत्र में क्ांवतकािी परिवतान दकया ।
इसवलए उन्हें आधाि मानकि उपन्यास के ववकासक्म को चाि वगों में बांटा जा सकता है-

(1.) प्रेमचंद पूवा युग का उपन्यास सावहत्य

(2.) प्रेमचंद युग का उपन्यास सावहत्य

(3.) प्रेमचंदोति युग का उपन्यास सावहत्य

(4.) समकालीन उपन्यास सावहत्य

(1.) प्रेमचंद पूवा युग का उपन्यास सावहत्य

प्रेमचंद पूवा युग के उपन्यासों के उद्देश्य की दृवि से दो िागों में िखा जा सकता है - १. शुद्ध मनोिं जन २मनोिं जन के साथ
सुधािवादी िावना । शुद्ध मनोिं जन प्रधान उपन्यासों में वतवलस्मी ,एय्यािी तथा जासूसी उपन्यास शावमल है।
सुधािवादी िावना से युक्त उपन्यासों मे सामावजक तथा ऐवतहावसक उपन्यासों को िखा जाता है। हहदी उपन्यासों का
प्रथम युग िाग्यवती के िचनाकाल 1877 ई. से आिं ि होता है। श्रद्धािाम दफल्लौिी कृ त िाग्यवती एक सामावजक
उपन्यास है, वजसकी नावयका अपनी बुवद्धमता का परिचय देते हुए अपना औि अपने परिवाि का जीवन सुखमय बनाती
है। िाितवषा की नारियों को गृहस्थ धमा की वशक्षा से अवगत किना िी इसका एक उद्देश्य है। श्रीवनवास दास कृ त
पिीक्षा गुरु उपन्यास िी उपदेशात्मक है। इसका नायक कु संगवत में पढकि अपने वास्तववक चरित्र से हाथ धो बैठता है।
उपन्यास के अंत में अपने वमत्र के प्रयास द्वािा वह पुनः अपना चरित्र अर्जजत किता है। इस युग में जासूसी औि वतलस्मी
उपन्यास वलखे गए वजनका उद्देश्य मनोिं जन था। पाठक बड़े शौक के साथ ऐसे उपन्यासों को पढते थे। वतलस्मी
घटनाओं के बीच में प्रेमकथाओं को जोड़कि इन उपन्यासों में वववचत्र घटनाओं की ििमाि होती थी। इनमें कौतुहल औि
िोमांच अवधक होता था। देवकीनंदन खत्री के ‘चंद्रकांता’, ‘चंद्रकांता संतवत’, ‘िूतनाथ’ इस दृवि से महत्वपूर्ा उपन्यास
हैं। गोपालिाम गहमिी के उपन्यासों ‘अद्िुत लाश’ , ‘गुप्तचि’, ‘बेकसूि की फांसी’ आदद उपन्यासों में जासूसी ,वतलस्मी व
एय्यािी के तत्व प्रमुख है। दकशोिीलाल गोस्वामी कृ त ‘वतलस्मी शीश महल’, िामलाल वमाा कृ त ‘पुतली महल’ इसी
कोरट के उपन्यास हैं।

बालकृ ष्र् िट्ट ने ‘नूतन ब्रह्मचािी’ औि ‘सौ अजान एक सुजान’ ,दकशोिीलाल गोस्वामी ने ‘िाजकु मािी’, ‘वत्रवेर्ी’, ‘आदशा
शती’ , ‘पुनजान्म’ आदद सामावजक उपन्यास वलखे। अयोध्याहसह का ‘ठे ठ हहदी का ठाठ’ , ‘अधवखला फू ल’, िाधाकृ ष्र्
गोस्वामी का ‘कल्प लता’ औि ‘ववधवा ववपवि’ प्रमुख सामावजक उपन्यास है। प्रेमचंद पूवा युग में तत्कालीन सामावजक
वास्तववकताओं का वर्ान किते हुए सन्देश-प्रधान सामावजक उपन्यासों की िचना की गई। इन उपन्यासों के कथानक में
समस्याओं के साथ –साथ समाधान िी ददए गए।

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उद्देश्यपिक इन उपन्यासों में िाधाकृ ष्र् दस कृ त ‘वनस्सहाय वहन्दू’ ,ठाकु ि जगमोहन कृ त ‘श्यामा स्वप्न’ िी प्रमुख है।

इस युग में ऐवतहावसक उपन्यासों की िचना िी की गई। िाितीय इवतहास के अतीत से कथावस्तु का चयन दकया गया।
इवतहास औि कल्पना के समन्वय द्वािा इन कथाओं को नया रूप ददया गया। ऐवतहावसक उपन्यासकािों में दकशोिीलाल
गोस्वामी ने ‘आदशा िमर्ी’ , ‘ह्रदय हारिर्ी’ , ‘तािाबाई’, ‘िवजया’, ‘पन्ना बाई’, ‘लखनऊ की कब्र’ आदद उपन्यास वलखे।
इनके अवतरिक्त गंगा प्रसाद गुप्त कृ त ‘पृथ्वी िाज िासो’, जयिामदास गुप्त कृ त ‘िं ग में िंग’, ‘मायािानी’, ‘कश्मीि का
पतन’, बृजनंदन सहाय कृ त ‘लाल चीन’ आदद प्रमुख है।

इस युग में बंगला ,मिाठी औि अंग्रेजी के उपन्यासों के अनुवाद िी हुए। लज्जािाम मेहता,िाधाकृ ष्र् दास ,रूप नािायर्
पाण्डेय ,कार्जतक प्रसाद खत्री आदद ने अनुवादक के रूप अन्य िाषाओाँ के उपन्यासों का अनुवाद दकया। प्रेमचंद पूवा युग के
उपन्यासों िावुकता, आदशा, िाितीय आदशा को प्रस्तुत दकया गया। प्रेमचंद पूवा उपन्यास को मनोिं जन के स्ति पि ऊाँचा
उठाया गया औि प्रेमचन्द युग में उपन्यास में िाषा की दृवि से प्रोदता आई।

(2.) प्रेमचंद युग का उपन्यास सावहत्य

प्रेमचंद के आगमन से हहदी उपन्यास के क्षेत्र में नए युग का सूत्रपात होता है। उपन्यासों को यथाथा के धिातल पि लाने का
श्रेय इस युग के उपन्यासकािों को जाता है। प्रेमचंद ने सामावजक –कु िीवतयों, िाष्ट्रीय िावनाओं, ग्रामीर् जीवन की
समस्याओं आदद का यथाथा वचत्रर् दकया है। यह युग उपन्यासों का प्रौढ़ युग कहा जाता है। उपन्यास के क्षेत्र में प्रेमचंद का
योगदान बहुमूल्य है। यही वजह है दक इस युग को प्रेमचंद युग िी कहा जाता है। यथाथावादी उपन्यासों का आिं ि प्रेमचंद
के ’सेवासदन’ से होता है। इससे पहले प्रेमचंद उदूा में वलखते थे। ’विदान’, ‘प्रेमा’, ‘सोजेवतन’ आदद िचनाये उदूा में
प्रकावशत हुई। प्रेमचन्द ने आदशोन्मुख यथाथावाद को अपनाकि उपन्यास िचना की। इन्होंने 1918 में ‘सेवासदन’की
िचना की। सामावजक अत्याचाि से पीवड़त नािी समाज के पतन औि वेश्यावृवत में सुधाि की समस्या का ववश्लेषर् दकया
है। प्रेमचंद वेश्यावृवत की समस्या को दहेज़ औि नािी अवशक्षा से जोड़कि देखते है। इन्होंने इस उपन्यास में ददखाया है
दक स्त्री वशक्षा के आिाव में दकस प्रकाि पूिा परिवाि टू टकि वबखि जाता है। प्रेमचंद ने वहन्दू-मुवस्लम समाज में व्याप्त
वेश्यावृवत की समस्या को नािी पिाधीनता से जोड़कि देखा है। पिन्तु उनके मनन में इन वस्त्रयों के प्रवत कोई घृर्ा िाव
नहीं है। इन्होंने ‘सेवासदन’ के बाद ‘प्रेमाश्रम’, ‘वनमाला’, ‘िं गिूवम’, ‘कायाकल्प’, ‘गबन’, ‘कमािूवम’, ‘गोदान’ उपन्यास
वलखे। मंगलसूत्र’ इनका अपूर्ा उपन्यास है। इन्होंने अपने उपन्यासों में व्यवहारिक िाषा का प्रयोग दकया। यही वजह है
दक पाठक को कहीं िी पढ़ने में बाधा महसूस नहीं होती है।

क्या आप जानते हैं ?


मुंशी प्रेमचंद की स्मृवत में िाितीय डाक की ओि से 31जुलाई 1980 को उनकी जन्मशती के अवसि पि
30 पैसे मूल्य की डाक रटकट जािी की।गोिखपुि के वजस स्कू ल में वे वशक्षक थे, वहां प्रेमचंद सावहत्य

संस्थान की स्थापना की गई है। प्रेमचंद के सेवासदन पि 1938 में सुब्रह्मण्यम ने दफल्म बनाई। गबन

(1966) औि गोदान (1963) पि िी दफल्में बनी।1980 में ‘वनमाला’ उपन्यास पि बना धािावावहक िी
काफी लोकवप्रय िहा।

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‘निममला’ उपन्यास पर बिा धारािाहहक भी काफी लोकविय रहा।
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प्रेमचंद सावहत्य को के वल मनोिं जन औि ववलावसता से जोड़कि नहीं देखते। वे उसी सावहत्य को खिा मानने के पक्षधि थे
वजसमे उच्च- हचतन,स्वाधीनता िाव,जीवन की सच्चाई हो। इनके उपन्यासों में िाितीय जन-जीवन का वचत्रर् है। प्रेमाश्रम
में िाितीय कृ षक जीवन से जुड़ी समस्याओं को दशााया है। वनमाला में अनमेल वववाह, दहेज़ की समस्या को ददखाया है।
िं गिूवम में समाज के ववविन्न वगों का एक साथ ववविन्न रूपों में वचत्रर् दकया है। देशी रियासतों का वब्ररटश साम्राज्य के
साथ वमलकि िाितीय जनता पि दकये जाने वाले अत्याचािों का ममास्पशी वर्ान दकया है। ‘कायाकल्प’ में जागीिदािी
प्रथा के नाम दकसानो पि दकये जाने वाले अत्याचािों ,रियासतों के उत्सव-त्योहािों पि की जाने वाली धन की बबाादी को
ववस्तािपूवाक बताया है। ‘प्रवतज्ञा’ में आया समाज की सुधािवादी दृवि औि सनातन वहन्दू दृवि के माध्यम से दो वविोधी
मूल्य दृवियों के द्वंद्व को दशााया है। समाज में ववधवा नािी का जीवन दकसी अविशाप से कम नहीं होता है। नािी जीवन से
जुड़ी इस गंिीि समस्या के ववविन्न पक्षों को इस उपन्यास के माध्यम से उठाया है। प्रेमचंद ने हि तिह से सुधािवादी दृवि
को अपनाकि उपन्यास िचना की है। ’गबन’ में िामनाथ के झूठे ददखावे,प्रदशानवप्रयता,छद्म का दुष्परिर्ाम उसके परिवाि
को िुगतना पड़ता है। इसमें पुनः उपन्यासकाि प्रेमचंद ने वेश्यावृवत का मूल कािर् अवशक्षा बताया है। ’कमािूवम’ में
इन्होंने सामावजक-िाजनैवतक स्ति पि व्याप्त अव्यवस्था को दशााया है। नािी-स्वतंत्रता के मागा में सामंतवादी मूल्य-दृवि
को बाधक मानते है। समाज में व्याप्त अछू त समस्या को िी उठाया है। गााँधीवादी ववचािधािा से प्रिाववत इनके उपन्यासों
में समावजक व्यवस्था में परिवतान की मााँगकी है।

इस युग के अन्य उपन्यासकािों ने िी सामावजक यथाथा का वचत्रर् दकया है। ववश्वम्ििनाथ कौवशक के उपन्यास
‘विखारिर्ी’ औि ‘मााँ’ में यथाथा के साथ –साथ आदशा िी समावहत है। ‘मााँ’ में एक मााँ के आदशा चरित्र के साथ –साथ
वेश्यावृवत की बुिाइयों को िी दशााया है। ’विखारिर्ी’ में िामनाथ औि जस्सी की प्रेमकथा के माध्यम से अंतजाातीय
वववाह की स्वीकृ वत को लेकि उत्त्पन्न समस्या औि समाज की मानवसकता को दशााया है। चतुिसेन शास्त्री ने यथाथावादी
ऐवतहावसक उपन्यासों की िचना की। ’ह्रदय की प्यास’, ’अमि अविलाषा’, ‘आत्मदाह’ इनके सामावजक उपन्यास है।
’वैशाली की नगिवधू’ ,’सोमनाथ’,हसहगढ़’ आदद इनके ऐवतहावसक उपन्यास हैं। वृन्दावन लाल वमाा ने
ऐवतहावसक,सामावजक उपन्यासों की िचना किके अपनी वववशि पहचान बनाई। ‘गड कुं डाि’, ‘झााँसी की िानी लक्ष्मी
बाई’, ’वविाटा की पवद्मनी’, ’मृगनयनी’, ’कचनाि’, आदद इनके प्रमुख ऐवतहावसक उपन्यास है। ’लग्न’, ‘अमि बेल’, कुं डली
चक् ‘’संगम’, ’प्रत्यागत’ आदद इनके प्रमुख सामावजक उपन्यास है। िावधका िमर् प्रसाद हसह कृ त ‘पुरुष औि नािी’, ’पूिब
औि पविम’, ’-िहीम’, ‘सूिदास’आदद उपन्यास आदशोन्मुख यथाथावाद से जुड़े हैं। िगवती प्रसाद वाजपेयी ने ‘मीठी
चुटकी’, ’वपपासा’, ‘वनमंत्रर्’आदद उपन्यासों के माध्यम से सामावजक संघषा को वार्ी दी। िाितीय नािी के ववववध रूपों

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को अपने उपन्यास सावहत्य द्वािा उषा देवी वमत्र ने नािी गुर्ों का परिचय ददया है। समाज द्वािा ववववध स्तिों पि
असमानता का वशकाि हुई नािी के जीवन में व्याप्त पीड़ा औि िोष को व्यक्त दकया है।

जयशंकि प्रसाद ने िी इस युग में दो उपन्यासों की िचना की है। वे है-‘कं काल’औि ‘वततली’। दोनों ही उपन्यासों में समाज
के उत्थान-पतन का वचत्रर् दकया है। गााँधीवादी ववचािधािा औि प्रगवतशील तत्व प्रेमचंद के उपन्यासों की ववशेषता है।
इस युग में उपन्यास की दो प्रकाि की शैवलयों का चलन हुआ वजन्हें प्रेमचंद शैली औि प्रसाद शैली कहा गया। दोनों
शैवलयों में मुख्या अंति िावना औि घटना को लेकि है। प्रेमचंद की शैली में घटना को प्रमुख स्थान ददया गे औि प्रसाद ने
मानव- मन के ववश्लेषर् पि जोि ददया गया है। इस समय तक हहदी उपन्यास का क्षेत्र व्यापक हो गया था औि मानवीय
संबंधों को उजागि किनेवाला एक महतवपूर्ा दस्तावेज बन गया था । प्रेमचंद औि प्रसाद ने सावहवत्यक िाषा को जीवन
से जोड़कि उपन्यास सावहत्य को नई ददशा दी। िाितीय समाज में व्याप्त समस्याओं पि गंिीिता से ववचाि किते हुए हुए
अपने िचना कौशल द्वािा पाठको के समक्ष िखा । प्रेमचंद युगीन उपन्यास सावहत्य में आदशावाद के साथ िावुकता व
िाितीय आदशा को प्रस्तुत दकया गया है।

(3.) प्रेमचंदोति युग का उपन्यास सावहत्य

यह युग उपन्यास सावहत्य की दृवि से अनूठा युग है। इस युग में कथानक ,घटनाक्म,िाव-ववचाि ,िाषा की दृवि से अनेक
परिवतान ददखाई ददए। मनोवैज्ञावनक, आंचवलक, प्रगवतवादी, ऐवतहावसक आदद ववविन्न ववषयों से सम्बंवधत उपन्यासों
की िचना की गई। इस युग के कई उपन्यासकाि ऐसे थे जो प्रेमचंद युग से ही उपन्यास सावहत्य में अपना योगदान दे िहे
थे।

मनोवैज्ञावनक उपन्यास

जैनेन्द्र का पदापार् उपन्यास के क्षेत्र में प्रेमचंद युग से ही हो गया था। इन्होंने मनोवैज्ञावनक उपन्यासों की िचना की ।
’पिख’, ’सुनीता’, ’कल्यार्ी’, सुखदा’, ’त्यागपत्र’ ’, जय-वधान’ आदद इनके प्रमुख उपन्यास हैं। इनके उपन्यासों में व्यवक्त
के जीवन से जुड़े तनाव,अंतद्वंद्व,कुं ठा आदद मानवसक प्रवृवतयों को उजागि दकया गया है। इस युग के उपन्यास सावहत्य के
ववकास में कथा व वशल्प की दृवि से गवत आई । जैनेन्द्र ने समाज में स्त्री जीवन से जुड़े वविन्न घटना प्रसंगों के जरिये
उसके स्वतंत्र अवस्तत्व की मााँगकी है। घि के बाहि-िीति नािी दकस तनाव से जूझते हुए आत्मपीडा को िोगती है इसका
बड़े मनोवैज्ञावनक ढंग से वर्ान दकया है। इलाचंद्र जोशी के उपन्यासों में जीवन की मनोवैज्ञावनक ढंग से व्याख्या की गई
है। इनके उपन्यासों में ववषय क्षेत्र की व्यापकता के साथ-साथ ववचाि पक्ष की प्रधानता है। ’लज्जा’’,संन्यासी’, ‘पिदे की
िानी’, प्रेत औि चाय’, ‘मुवक्तपथ’, ‘वनवाावसत’, ‘जहाज का पंछी’, ‘वजप्सी’ आदद इनके प्रमुख उपन्यास हैं। इन्होंने
उपन्यासों द्वािा व्यवक्तक पीड़ा औि मानवसक द्वंद्व को प्रस्तुत दकया है। एक अथाहीन िटकन, काम–कुं ठा, दैवहक संबंध,
हीनता-ग्रंवथ, ववविन्न मनोववकृ वतयों को आधाि बनाकि इन्होंने उपन्यास िचना की है। मनोवैज्ञावनक उपन्यासकािों में
सवच्चदानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ का नाम प्रमुख है। इनके उपन्यास मनोवैज्ञावनक होने के साथ-साथ दाशावनकता, प्रकृ वतवाद,
असामावजकता का पुट िी वलए हुए है। ’शेखि एक जीवनी’, ‘नदी के द्वीप ‘, अपने-अपने अजनबी’ इनके उपन्यास है।
इनके उपन्यासों में यौन प्रवृवतयों का वचत्रर् होने के कािर् किी- किी आलोचकों द्वािा इनके उपन्यासों का वविोध िी
दकया गया। ’शेखि एक जीवनी’ ने उपन्यास सावहत्य को नया मोड़ ददया। इस उपन्यास की िूवमका में ही अज्ञेय ने वलखा
है दक शेखि ‘बच्चा’या ‘बड़ा’ आदमी नहीं लेदकन एक जागरूक स्वतंत्र औि ‘घोि इमानदाि’व्यवक्त है। ’नदी के द्वीप ‘ इनका
दूसिा महत्वपूर्ा उपन्यास है। इसे स्वयं उपन्यासकाि ने चाि संवेदनाओं का अध्धयन मात्र कहा है। इसमें चाि पात्र िुवन,

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चंद्र्माधव ,िे खा औि गोिा का चरित्र वमलता-जुलता होते हुए िी ववषमता वलए हुए है। डा. िामववलास शमाा ने अज्ञेय के
चरित्रों को ववदेशी सावहत्यकािों की अनुकृवत माना है।

डा. देविाज के ‘पथ की खोज’, ‘बाहि िीति’, िोड़े औि पत्थि’, अजय की डायिी’, मैं वे औि आप’, ‘दूसिा सूत्र’ आदद
उपन्यास हैं। इन्होंने पुरुष की स्त्री के प्रवत अहमवादी दृवि,व्यवक्त स्वातंत्र्य,पिम्पिागत वववाह संस्था से उत्पन्न कुं ठा औि
वनिाशा आदद ववषयों को आधाि बनाकि उपन्यास िचना की है । धमावीि िािती ने ‘गुनाहों का देवता’ औि ‘सूिज का
सातवााँ घोड़ा’ उपन्यास वलखा। इनका पहला उपन्यास युवा वगा में वजतना चर्जचत िहा उतना गंिीि पाठको के बीच
नहीं। वजह थी उसके कथानक में िोमानी उपकिर्ों का अवतशय प्रयोग। ’सूिज का सातवां घोड़ा’ में सूिज के छः घोड़ो
समेत िथ को जजाि ददखाकि उन्होंने सातवें घोड़े के आने की उम्मीद में आशावान दृवि िखी है। यह सातवााँ घोड़ा ही मध्य
वगा को मोहिंग की वस्थवत से सुिवक्षत बाहि वनकलेगा।

इसी पिं पिा में लक्ष्मीनािायर् लाल का ‘धिती की आाँखे’, ‘बाया का घोंसला’, ‘काले फू ल का पौधा’, निे श मेहता का
‘डू बता मस्तूल ‘ प्रिाकि माचवे का ‘द्वािा औि सांचा’, वगिधि गोपाल का ‘चांदनी के खंडहि’, िाित िूषर् अग्रवाल का
‘लौटती लहिों की बांसुिी’ लक्ष्मीकांत वमाा का ‘खाली कु सी की आत्मा’ औि ‘टेिीकोटा ‘ उपन्यास आते हैं।

सांस्कृ वतक ,एवतहावसक उपन्यास

इस कड़ी में वृन्दावन लाल वमाा कृ त ‘गढ़कुं डाि’, ‘वविाटा की पवद्मनी’, ‘मृगनयनी’, ‘झााँसी की िानी’ है। इन्होंने ववविन्न
नािी पत्रों के माध्यम से स्त्री-गरिमा का बखान, सामंतवाद की िाित में ऐवतहावसक िूवमका, जजाि होती पिम्पिाआएाँ
,िाष्ट्रीय मुवक्त आन्दोलन आदद ववषयों को लेकि उपन्यास िचना की। आचाया चतुिसेन शास्त्री ने ‘वैशाली की नगिवधू’,
वयं िक्षामः ‘, ‘सोमनाथ’ जैसे उपन्यासों को वलए ऐवतहावसक कथा को आधाि बनाया। बोध धमा, वहन्दू धमा व महमूद
गजनवी मानव-जावत के प्रवत गहिी संवेदना को व्यक्त दकया है। आचाया हजािी प्रसाद वद्ववेदी के उपन्यासों में इवतहास
औि संस्कृ वत का अद्िुत सवम्मश्रर् देखने को वमलता है। ’बार्िट्ट की आत्मकथा’, ‘चारुचन्द्रलेख’, ‘पुननावा’, ‘अनामदास
का पोथा’ उपन्यासों के माध्यम से िाित की सामावजक ,धार्जमक,िाजवनवतक,सांस्कृ वतक परिवस्थवतयों का सजीव वचत्रर्
दकया है। वद्ववेदीजी ने अतीत के सन्दिा में वतामान वस्तवथयों को पहचानने का प्रयत्न दकया है। इवतहास औि वतामान को
जोड़ते हुए इन्होंने मानवतावादी दृविकोर् को अपनाया है। इनके उपन्यासों में इनका पांवडत्य स्पि ददखाई देता है।
वशवप्रसाद वमश्र रूद्र ने ‘बहती गंगा’ में वनम्न ,मध्यम वगीय पात्रों के माध्यम से काशी के दो सौ वषों के सांस्कृ वतक व
सावहवत्यक इवतहास को प्रस्तुत दकया है। िाजीव सक्सेना ने ‘पार्ीपुत्री सोमा’ के माध्यम से दो जीवन दृवियों औि
जीवन-मूल्यों के बीच उत्पन्न तनाव को िे खांदकत दकया है। यह उपन्यास सोमा,दक्ष औि ववश्वदेव इन तीन पात्रों पि
के वन्द्रत है। वशवप्रसाद हसह ने ‘नीला चााँद ‘ में ऐवतहावसक पृष्ठिूवम को सांप्रदावयक िं ग में िं गा ददखाया है। इन्होंने
वहदुवादी दृवि अपनाते हुए मुसलमानों औि तुकों के िाित पि होने वाले अत्याचािों को आधाि बनाकि उपन्यास वलखा
है। िांगेय िाघव का ‘लवखमा की आाँखें’, ‘महायात्रा गाथा’ िी ऐवतहावसक उपन्यास की श्रेर्ी में आते हैं।

सामावजक यथाथावादी उपन्यास

सामावजक यथाथावादी उपन्यासों में जीवन के यथाथा का वचत्रर् होता है। प्रेमचंद युग के उपन्यासों में िी सामावजक
यथाथा का वचत्रर् हुआ पिन्तु वह आदशोन्मुख यथाथावाद के दायिे से बाहि नहीं वनकल पाया। प्रेमचंद एक ऐसे समाज का
स्वप्न देखते थे जहााँ पुिानी सड़ी-गली मान्यताएाँ, पिम्पिाएाँ समाज के ववकास में बाधा न उत्पन्न किे । इन्होंने सामावजक
समस्याओं का वचत्रर् किके उनके सुधाि का िास्ता िी पाठकों को ददखाया। ठीक उसी तिह प्रेमचंदोति युग में सामावजक
यथाथा की पृष्ठिूवम पि उपन्यास िचना की गई। पाण्डेय बेचन शमाा ‘उग्र’ के ‘चााँद हसीनो के खतूत’, ‘ददल्ली का दलाल ‘,

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उपन्यास का विकास

बुधुवा की बेटी’,’शिाबी’,’ सिकाि तुम्हािी आाँखों में’, ‘कााँटा’ आदद उपन्यास हैं। इन्होंने प्रेमचंद युगीन समस्याओं से
समाज को जूझते ददखाया है। वहन्दू-मुवस्लम वैमनस्य ,वेश्यावृवत,पुरुष मानवसकता,चारिवत्रक पतन आदद समस्याओं से
अपने पात्रों को जूझते ददखाया है। वनिाला ने ‘अप्सिा’, ‘अलका’, ‘प्रिावती’, वनरुपमा’, ‘कु वल्लिाट, वबल्लेसुि बकरिहा’
आदद उपन्यास वलखे हैं। अप्सिा की नावयका एक वेश्या पुत्री है। उसके शोिा से अलका बनने तक उसने दकन सामावजक
समस्याओं का सामना दकया उसे वनिाला ने यथाथा के धिातल पि लाकि प्रस्तुत दकया है। अन्य उपन्यासों मे िी नािी-
मुवक्त,ग्राम-समाज की रूदढ़यों आदद को लेकि उपन्यास िचना की। िगवती चिर् वमाा ने ‘पतन’, वचत्रलेखा’, ‘तीन वषा’,
‘तेदे –मेढे िास्ते’, ‘िूले वबसिे वचत्र’, सबहह नचावत िाम गोसाईं’ आदद उपन्यास वलखे। अपने उपन्यासों में इन्होंने
स्वतंत्रता –प्रावप्त के बाद के िाित की िाजवनवतक,सामावजक परिवस्थवतयों को उजागि दकया है। उपेन्द्र नाथ अश्क ने ‘गमा
िाख’,’बड़ी-बड़ी आाँखे’, पत्थि-अल-पत्थि’,’ वनवमषा’, ‘शहि में घूमता आइना’, ‘बंधों न नाव इस ठांव’, आदद उपन्यास
वलखे हैं। इनके उपन्यासों में यथाथा का वचत्रर् है। इन्होंने मध्यवगीय समाज का वचत्रर् किके उस समाज में व्याप्त
कु प्रवृवतयों औि दवमत इच्छाओं का वचत्रर् है। अमृतलाल नागि ने िी कई उपन्यास वलखे। ’महाकाल’, ‘सेठ बांकेमल’,
‘बूंद औि समुद्र’, ‘शतिं ज के मोहिे ’, ‘नाच्यो बहुत गोपाल’, ‘ये कोठे वावलयां’, ‘सुहाग के नुपुि’ उपन्यासों में समाज के
ववववध रूपों को दशााया है। इन्होंने समाज औि व्यवक्त दोनों को बिाबि महत्व ददया है। ‘बूंद औि समुद्र’ में एक
सावहत्यकाि के द्वंद्व को ददखाया है। ’महाकाल’ में अकाल की वविीवषका का मार्जमक वचत्रर् दकया है। दवलत-मेहति
समाज से जुड़ी कथा को आधाि बनाकि ‘नाच्यो बहुत गोपाल’ की िचना की। ववष्र्ु प्रिाकि ने ‘तट के बंधन’, ‘स्वप्नमयी’,
दपार् का व्यवक्त’, ‘कोई तो’ उपन्यासों में नािी-जीवन से जुड़ी समस्याओं पि प्रकाश डालते हुए उन पि गहिी हचता व्यक्त
की है।

निे श मेहता ने ‘डू बते मस्तूल’, ‘यह पथ बंधु था’, ‘उििकथा’ उपन्यासों में यथाथा रूप में जीवन के ववविन्न रूपों का वचत्रर्
समाजवादी दृवि से दकया है। ‘डू बते मस्तूल’ की नावयका िं जना के जीवन में कई पुरुष आते हैं पिन्तु उसे वह सच्चा प्रेम
नहीं वमलता वजसकी तलाश उसे वषों से थी। ’यह पथ बंधु था’ में निे श मेहता ने नािी की वतल-वतलकि जीने की वस्थवत
का बड़ा संवेदनशील व मार्जमक वचत्रर् दकया है। चन्द्र दकिर् सौनिे क्सा ने ‘चन्दन चांदनी’ में लेवखका ने कामकाजी
मवहलाओं की परिवाि औि समाज में दोहिी िूवमका की औि इं वगत दकया है। इन्होंने ददखाया है दक दकस प्रकाि इस
दोहिे दावयत्वबोध में उसे कई तिह के संघषों का सामना किना पड़ता है। इस प्रकाि यह देखा जा सकता है दक प्रेमचंदोति
सामावजक उपन्यासों में आर्जथक शोषर्,धार्जमक-सामावजक रुददओं,आधुवनक जीवन के परिवतानशील समाज का ह्रास
,नािी –शोषर् आदद ववविन्न ववषयों पि उपन्यास वलखे गए।

प्रगवतवादी उपन्यास

हहदी सावहत्य के क्षेत्र में प्रगवतवाद सवाहािा के प्रवत सहानुिूवत,पूंजीवाद के प्रवत आक्ोश, सामावजक ववषमताओं पि
प्रहाि किने के परिर्ाम स्वरुप आया। पूंजीवाद औि सवाहािा का संघषा इस ववचािधािा के मूल में था। काव्य के क्षेत्र में
तो प्रगवतवादी कववयों ने जमकि वलखा। उपन्यास सावहत्य िी इससे अछू ता नहीं है। प्रगवतवादी उपन्यासकािों में
यशपाल,िाहुल सांकृत्यायन,नागाजुान,िैिव प्रसाद गुप्त,िांगेय िाघव,िीष्म सहनी,अमृत िाय आदद प्रमुख है। प्रगवतवादी
सावहत्यकािों ने जीवन का ववश्लेषर् माक्सावादी दृविकोर् से दकया। यशपाल ने ‘दादा कामिे ड’, ‘देशद्रोही’, ‘ददव्या’, ‘पाटी
कामिे ड’, ‘बािह घंटे’, झूठा -सच’, मेिी तेिी उसकी बात’ आदद उपन्यास वलखे। इनके उपन्यासों में पूंजीपवत वगा ,िाित
वविाजन की त्रासदी,िाजनीवतक आन्दोलन,समाज में नािी की वस्तथी आदद का वचत्रर् वमलता है। इनके उपन्यासों में
समाजवादी ,प्रगवतवादी जीवन दशान है। िाहुल सांकृत्यायन ने यथाथा रूप में जीवन के ववविन्न पक्षों का वचत्रर् दकया है।
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उपन्यास का विकास

‘जय यौधेय’, ‘जीने के वलए’, ‘सेनापवत’, ‘मधुि स्वप्न ’, ‘ददवोदास’, ‘ववस्मृत यात्री’ प्रमुख है। इन्होंने अपने उपन्यासों के
माध्यम से समाजवादी देशों की उपलवब्ध का बखान ,एक नए समाज का नव –वनमाार्,समाज में व्याप्त ववषमता के प्रवत
ववद्रोह दशााया है। नागाजुान ने ‘िवतनाथ की चची’, ‘बलचनामा’, ‘बाबा बटेसिनाथ’, ‘दुखमोचन’, ‘वरुर् के बेटे’, ‘हीिक
जयंती’, ‘जमवनया के बाबा’ आदद उपन्यासों की िचना की। वगा-संघषा,जजाि होती रुवडया औि उनके ववरुद्ध ववद्रोह,स्त्री
पात्रों से जुड़ी समस्याएाँ आदद ववषयों को कथा के वलए आधाि बनाकि इन्होंने उपन्यास िचना की है। िैिव प्रसाद गुप्त
प्रमुख प्रगवतवादी लेखक है। इन्होंने प्रगवतवादी सावहत्य की मूल प्रवृवतयों को पूिी संवेदना के साथ उपन्यास ववधा में
ढाला है। ‘शोले’, ‘मशाल’, ‘जंजीिे औि नया आदमी’, ‘काहलदी’, ‘सिी मैय्या का चौिा’, ‘िाग्य देवता’ आदद उल्लेखनीय
उपन्यास हैं। इन उपन्यासों का मुख्य ववषय जमींदािी व्यवस्था में जनता पि दकये जाने वाले अत्याचािों को मार्जमक ढंग
से अविव्यवक्त दी है। इन्होंने सामंती व्यवस्था में पूंजीपवत औि मजदूि वगा के संघषा को वार्ी दी है। िांगेय िाघव ने
‘घिोंदे’, ‘हुजुि’, ‘सीधा-साधा िास्ता’, ‘कब तक पुकारू’,’धिती मेिा घि’, ‘मुदों का टीला’, ‘अाँधिे े के जुगनू’, ‘ित्ना की बात’,
‘लवखमा की आाँखे’ आदद उपन्यासों के माध्यम से समाज को कई रूपों में अनेक समस्याओं से जूझते ददखाया है। एक
ववचािशील लेखक होने के नाते उन्होंने अपने किाव्य का वनवााह बखूबी दकया है। अमृतिाय ने ‘नागफनी का देश’, ‘सुख-
दुःख’, ‘धुाँआ’, ‘बीज’ िचनाओं के माध्यम से व्यंग्य रूप में वे शासन- तंत्र की हनदा किते हैं। िीष्म सहानी ने अपने
उपन्यासों को सामावजक सन्दिों से जोड़कि कथा का रूप ददया है। इन्होंने पुरुष प्रधान समाज में नािी उत्पीडन की
समस्या को उठाया है। ‘झिोखे’, ‘कुं तों’, ‘कवड़यााँ’, ‘तमस’, ‘बसंती’ आदद इनके उपन्यास हैं।

आाँचवलक उपन्यास

हहदी उपन्यास के क्षेत्र में आंचवलकता की पिम्पिा का आिं ि सन 1950 में हुआ। इस पिं पिा का प्रथम उपन्यास
फर्ीश्वि नाथ’ िे र्ु’ कृ त ‘मैला आाँचल ‘ है। दकसी अंचल या प्रदेश ववशेष के ग्रामीर् वाताविर् एवं लोक-संस्कृ वत का
वचत्रर् किने वाले उपन्यास आाँचवलक उपन्यास कहलाते हैं। ’मैला आाँचल’ में िे र्ु ने जमींदाि- दकसान के संघषा को
ददखाया है। लेखक ने इस उपन्यास में वबहाि के ‘पूर्जर्या’वजले के एक गॉंव ‘मीिगंज’को आधाि बनाकि उपन्यास कथानक
का ताना-बाना बुना है। ‘पिती परिकथा’ में इन्होंने स्वतंत्र िाित से जुड़ी ववविन्न समस्याओं की औि पाठकों का ध्यान
आकर्जषत दकया है जैसे-जमींदािी प्रथा के अंत, नेताओं की स्वाथा-पिायर्ता, िूवमदान आदद। ‘दीघातमा’, ‘जुलुस’, ‘दकतने
चौिाहे’ इनके अन्य उपन्यास है।

िाही मासूम िजा के ‘आधा गााँव’, ‘वहम्मत जौनपुिी’, ‘ओस की बूंद’, ‘ददल एक सादा कागज’ आदद उपन्यास हैं। िाम
दिश वमश्र ‘पानी के प्राचीि’, ‘जल टू टता हुआ’ में ऐसे गॉंव से जुड़ी समस्याओं को कथा के वलए चुना जो सीधे पानी से
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उपन्यास का विकास

जुड़ी है। जहााँ बाढ़ अपना तांडव ददखाती है। ’सूखता हुआ तालाब ‘ में इन्होंने ग्रामीर् जीवन की ववकृ वतयों को उजागि
दकया है। उदय शंकि िट्ट ने ‘सागि लहिे औि मनुष्य’में समुन्द्र तट पि िहनेवाले मछु आिों के जीवन औि उससे जुड़े
ववविन्न पहलुओं पि प्रकाश डाला है। वववेकी िाय कृ त ‘बबूल’, ‘पुरुष पुिार्’, ‘श्वेत-पत्र’,’मंगल िवन’, ‘समि शेष है’ आदद
आंचवलक उपन्यास है। े मरटयानी ने कु माउं नी जीवन पि ‘हौलदाि’, ‘चौथी मुठ्ठी’ वलखा।
शैलश िाजेन्द्र अवस्थी
आददवासी कबीलाई समाज पि ‘सूिज दकिर् की छॉव’, ‘जंगल के फू ल’ उपन्यास की िचना की। अंचल ववशेष की सािी
ववशेषताओं को आाँचवलक उपन्यासों के माध्यम से प्रस्तुत दकया गया। ऐसे उपन्यासों में िहन-सहन,िाषा,आचाि-ववचाि
आदद सिी का वर्ान अंचल ववशेष के अनुसाि दकया गया है।

(4.) स्वातंत्र्योति व समकालीन उपन्यास सावहत्य

स्वतंत्रता प्रावप्त के बाद उपन्यास के क्षेत्र मे ठीक उसी तिह से बदलाव आया जैसे स्वातंत्र्योति िाित की परिवस्थवतयों में
बदलाव आया। हहदी उपन्यासों की नवीनतम धािा को प्रयोगवादी उपन्यास या आधुवनकता बोध के उपन्यास कहा जा
सकता है। औद्योवगकीकिर्, भ्रि-व्यवस्था, बदलते परिवेश, यांवत्रक सभ्यता के दुष्परिर्ाम, महानगिीय जीवन,
अके लापन, वनिाशा, घोि अवसाद, तनाव आदद ववषयों एवं िावों से जुड़कि हहदी उपन्यास की वस्तु औि प्रदक्या नवीन
होती गई। स्वतंत्रता के बाद िाित के सम्मुख कु छ औि तिह की नई चुनौवतयााँ सामने आयीं। वनमाल वमाा के उपन्यास ‘वे
दीन’ में यूिोप के एक नगि का वचत्रर् है। इसमें महायूद्ध के बाद नगि में फै ले अके लेपन को बड़ी संवेदनशीलता के साथ
अविव्यक्त दकया है। ’लाल टीन की छत ‘, ‘एक वचथड़ा सुख’, ‘िात का रिपोटाि’ इनके अन्य उपन्यास हैं। शिद देवड़ा के
‘टू टती इकाइयााँ’ में दो नारियों औि एक पुरुष के वत्रकोर् को नए ढंग से िखा गया है। गजानन माधव मुवक्तबोध का
‘ववपात्र’ में मध्य वगीय युवा के िटकाव को दशााता है। िाजेन्द्र यादव के ‘प्रेत बोलते हैं’, ‘सािा आकाश’, ‘उखड़े हुए लोग’,
‘शह औि मात’, ‘अनदेखे –अनजाने पुल’ आधुवनक जीवन के परिवतानशील जीवन मूल्यों को उद्घारटत किते है। श्री लाल
शुक्ल का उपन्यास ‘िाग दिबािी’ इनकी ख्यावत का आधाि है। ’पहला पड़ाव’, ‘मकान’, ‘सीमाए टू टती हैं’ इनके अन्य
उपन्यास हैं।

क्या आप जानते हैं?

े ी सवहत 15 अन्य िाितीय िाषाओाँ में अनुवाद हो चुका


श्री लाल शुक्ल के उपन्यास ‘िाग दिबािी’ का अंग्रज
है।इन्होने एक जासूसी उपन्यास ‘आदमी का जहि’ िी वलखा जो वहन्दुस्तान साप्तावहक पवत्रका में लगाताि
प्रकावशत हुआ।इन्हें सावहत्य अकादमी पुिस्काि के साथ सन 2008 में पद्म िूषर् से िी सम्मावनत दकया गया।

कृ शन बलदेव वैद ने ‘उसका बचपन’, ‘नसिीन’, ‘ददा ला दवा’, ‘नि-नािी’ उपन्यास वलखकि समाज की रुग्न मानवसकता,
ववसंगवतबोध, नािी के जीवन में व्याप्त असहजता को आधुवनक सन्दिों से जोड़कि व्यक्त दकया है। िाजकमल चौधिी ने
वजस प्रकाि अपने काव्य में परिवाि, प्रेम ,दाम्पत्य को बेमानी माना है ठीक उसी प्रकाि उपन्यास में िी। ’नदी बहती थी’,
‘एक अनाि:एक बीमाि’, ’मुगी खाना’, ‘मछली मिी हुई’, ‘देहगाथा’ इसी तिह के उपन्यास हैं। इसी पिं पिा में मोहन

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उपन्यास का विकास

िाके श का ‘अाँधेिे बंध कमिे ’, महेंद्र िाल का ‘एक पवत के नोट्स’ , ‘ममता कावलया का ‘बेघि’, ‘मवर् मधुकि का ‘सफ़े द
मेमने’ औि कृ ष्र्ा सोबती का ‘सूिजमुखी अाँधेिे में’, ‘हजदगीनामा’, ‘ददलोदावनश’ आते हैं। उषा वप्रयंवदा का’ पचपन खम्बे
लाल दीवािे ’ , ‘जय यात्रा’, ‘रुकोगी नहीं िावधका’ िाितीय नािी की दुववधा का वचत्रर् किता है। नावयका िाित से
ववदेश जाती है औि दफि ववदेश से िाित आती है। वह संस्कृ वतयों के बदलाव में खुद को असहज महसूस किती है। न
चाहते हुए िी वह अके लेपन में जीती है। वगरिधि गोपाल का उपन्यास ‘कं दील औि कु हासे’ नगि-बोध से जुड़ा हुआ है।
इसका नायक सुिेन्द्र कुं ठा, िटकाव औि अवनवित हजदगी को िोगता है। मन्नू िंडािी के ‘एक इं च मुस्कान’,
‘महािोज’,’आपका बंटी’ ये तीन उपन्यास हैं। इनमे से पहला िाजेंद्र यादव के साथ सहयोगी उपन्यास है। उपन्यास
‘आपका बंटी’ का बंटी माता-वपता के अलगाव की पीड़ा को अके ले महसूस किते हुए एक फालतू सामान की तिह हो जाता
है। उसका अके लापन गहिी संवेदना जागृत किता है। प्रेमचंद युग से पूवा उपन्यासों में चरित्र की प्रधानता नही थी।
प्रेमचंद ने पात्रों को सहज,सजीव औि स्वािाववक बनाया। प्रेमचंदोति युग में यह पक्ष औि प्रधान होता गया। सामान्य
मनुष्य के जीवन से जुड़ी छोटी-बड़ी समस्याओं को उपन्यास के कथानक के वलए चुना गया। इसी कड़ी में वशव प्रसाद हसह
के ‘अलग-अलग वैतिर्ी’, ‘गली आगे मुडती है’, ‘औित’, ‘मंजुवशमा’ हैं। माकं डेय ने ‘अवग्नबीज’ द्वािा कांग्रेसी-शासन के
मोहिंग की वस्थवत को दशााया है। हृदयेश ने ‘एक कहानी अंतहीन’, ‘पुनजान्म’, ‘सफ़े द घोड़ा काला सवाि’, ‘हत्या’ आदद
उपन्यास वलखकि न्याय व्यवस्था, धमा औि संस्कृ वत, वशक्षा संस्थाओं आदद ववषयों को उठाया।

जगदीश चन्द्र माथुि के उपन्यासों में एक नई जीवन दृवि वमलती है। ’यादों का पहाड़’, ‘आधा पुल’, ‘मुठ्ठी िि
कांकि’, ‘किी न छोड़े खेत’, ‘धिती धन न अपना’ इनके प्रमुख उपन्यास है। वगरििाज दकशोि ने ‘लोग’, ‘ढाई घि’,
‘वचवडया घि’, ‘यात्राएं’, ‘प्रस्ताववत्’ आदद उपन्यासों में इनका िचनात्मक कौशल वनखि कि आया है।
सामावजक,िाजवनवतक, आर्जथक हि दृवि से समाज की बुवनयादी समस्याओं को जांच-पिखकि उपन्यास िचना की।

समकालीन दौि में उपिोक्तावाद,साम्प्रदावयकता,वनम्न मध्यम वगीय जीवन,आददवासी जीवन का तनाव,नािी-


मुवक्त,वपतृ-सतात्मक समाज में नािी का दायिा ,ददग्भ्रवमत युवा पीडी,पारिवारिक ववघटन,पलायन आदद ऐसे अनेक
ववषय है वजन से जुड़कि समकालीन उपन्यास सावहत्य औि तीव्र गवत से बड़ा। असगि वजाहत का ‘सात आसमान’ दो
पीवड़यों के आपसी टकिाव पि आधारित है। इस तिह के अन्य उपन्यास िी हैं-कामतानाथ का ‘काल-कथा’, ववद्यासागि
नोरटयाल का ‘सूिज सबका है’, अलका सिावगी का ‘कवलकथा-वाया बाइपास’। मायानंद वमश्र के ‘प्रथम शैल पुत्री’, औि
‘मंत्रपुत्र’ प्रागैवतहावसक उपन्यास हैं औि ‘पुिोवहत’ तथा ‘स्त्रीधन’ उिि वैददककाल के प्राचीनकालीन उपन्यास हैं। ववनोद
कु माि शुक्ल कृ त ‘नौकि की कमीज’ एक क्लका की ददनचयाा पि आधारित है। इसमें इन्होंने वनम्न मध्यमवगीय घुटन
,पीड़ा,द्वंद्व,असुिक्षा का िाव को अविव्यवक्त दी है। अब्दुल वबवस्मल्लाह का ‘झीनी झीनी बीनी बदरिया’ बनािस के
बुनकि समाज को लेकि वलखा गया। यह साडी बुनने वाले जुलाहों के करठन संघषा को दशााता है। वचत्रा मुद्गल ने ‘आाँवा’
में श्रवमक वगा की गला काट प्रवतस्पधााओं ,स्वाथा-वसवध्ध हेतु पूज
ं ी के प्रलोिनों को गहिी संवेदना के साथ व्यक्त दकया है।
एक औित की बहुस्तिीय ,जरटल लड़ाई को नािी-ववमशा के रूप में आधाि ददया है। िववन्द्र वमाा अपने उपन्यास ‘जवाहि
नगि’ में 1975-77 के आपातकाल औि मध्यवगीय पतनशीलता का वचत्रर् है। ‘वनन्यानबे’ उपन्यास में िववन्द्र ने ददखाया
है दक मूल्य ववघटन के दौि में दकस प्रकाि मयाादा,सम्बन्ध,नीवत,संस्काि सिी कु छ वबखि जाता है। एक परिवाि के
वबखिने में हजदगी से जुड़े एक-एक पल को उपन्यासकाि ने जीवंत दकया है।

चन्द्रकान्ता ने ‘अथाान्ति’, ‘बाकी सब खैरियत है’, औि ‘ऐलान गली वजन्दा है’ उपन्यास वलखे। पहले दो
उपन्यासों में जीवन से जुड़े ववविन्न खट्टे-मीठे अनुिव हैं। ‘ऐलान गली वजन्दा है’ में कश्मीिी समाज की अच्छाइयों –
बुिाइयों को उजागि दकया है। यह उपन्यास मध्य वगीय जीवन के ववववध आयामों को दशााता है। अमिकांत कृ त ‘इन्ही

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उपन्यास का विकास

हवथयािों से’ उपन्यास बवलया क्षेत्र की जीवन- ववववधता समेटे हुए है। 1942 के ‘िाित छोड़ो आन्दोलन’ को आधाि
बनाकि वलखे गए इस उपन्यास में जनान्दोलन औि जनक्ांवत को वार्ी दी।

हहदी उपन्यास सावहत्य में नािी-ववमशा को चिमसीमा तक पहुाँचाने वाली मवहला लेवखकाओं की िूवमका
वनःसंदेह सिाहनीय है। वचत्रा मुद्गल (आंवा),प्रिा खेतान (वछन्नमस्ता), मृदल
ु ा गगा (कठगुलाब), मैत्रेयी पुष्पा
(चाक,इदन्नमम), गीतांजवल श्री (वतिोवहत)के उपन्यासों में नािी अवस्मता से जुड़े ववविन्न मुद्दों को उठाया गया है।
िाितीय समाज में नािी पि पुरुष सिा हावीहै। वहिोगवाद,अन्याय,शोषर् का वशकाि बनती है। वजसके परिर्ामस्वरुप
वह किी-किी ववद्रोह कि बैठती है। पंकज वबि का उपन्यास ‘उस वचवडया का नाम’ पुरुष प्रधान समाज में नािी की मौन
वस्थवत को दशााता है। मृर्ाल पाण्डेय ‘पटिं गपुि पुिार्’ में िी यही वर्जर्त है दक दकस प्रकाि नािी अपने अवधकािों से
वंवचत है।

िगवानदास मोिवाल (काला पहाड़), दूधनाथ हसह (आवखिी कलाम,हमािा शहि उस बिस ), तेवजन्दि(काला
पादिी ), कमलेश्वि (दकतने पादकस्तान ), जगदीश चन्द्र (निक कुं ड), निें द्र कोहली (तोड़ो कािा तोड़ो )वगरििाज दकशोि
(पहला वगिवमरटया ), संजीव (सूत्रधाि) आदद उपन्यासकािों ने वतामान सन्दिों में उपन्यास को सामान्य जीवन के प्रसंगों
से जोड़कि समाज के समक्ष ववविन्न प्रश्न िखे है। इन प्रश्नों का हल उपन्यासकािों ने अपने उपन्यासों के अंत में ददखाया िी
है औि पाठक वगा को सोचने के वलए प्रेरित िी दकया है। आज उपन्यास का कथ्य जीवन के इतने किीब है दक वह दकसी
न दकसी रूप में हि व्यवक्त की समस्या से जुड़ा महसूस होता है। हहदी उपन्यास सावहत्य ने आधुवनक युग तक आते-आते
जो आशातीत प्रगवत की है वह वनःसंदेह सिाहनीय है।

सन्दिा ग्रन्थ-सूची

हहदी सावहत्य का इवतहास : िामचंद्र शुक्ल

हहदी सावहत्य का इवतहास : सं. डा. नगेन्द्र

लघु उििीय प्रश्न

1. इनमे से कौन-सा उपन्यास प्रेमचंद का नहीं है?


क.गबन ख.गोदान ग.कल्यार्ी घ.िं गिूवम

2. इनमे से कौन-सा उपन्यास आाँचवलक है?

क.पिख ख.मैला आाँचल ग.गुनाहों का देवता घ.आपका बंटी

3. ‘झूठा-सच’ उपन्यास के िचनाकाि कौंन हैं?

क.इलाचंद जोशी ख.प्रिाकि माचवे ग.यशपाल घ.कृ ष्र्ा सोबती

4. िामचंद्र शुक्ल ने हहदी का प्रथम उपन्यास दकसे माना?

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जीवन पर्यन्त शिक्षण संस्थान, दिल्ली ववश्वववद्र्ालर्
उपन्यास का विकास

क. िाग्यवती ख.ठे ठ हहदी का ठाठ ग.पिीक्षा गुरु घ.नूतन ब्रह्मचािी

5.’शेखि एक जीवनी’ दकसका उपन्यास है?

क. जनेन्द्र ख. अज्ञेय ग.िाजेन्द्र यादव घ.मन्नू िंडािी

उिि -1.ग , 2. ख , 3.ग , 4.ग 5.ख

वनम्नवलवखत प्रश्नों के सही/ गलत में उिि दीवजये।

1’.चंद्रकांता ‘ देवकी नंदन खत्री की िचना है। सही/गलत

2.जयशंकि प्रसाद ने 4 उपन्यास वलखे। सही/गलत

3.फर्ीश्विनाथ िे र्ु आाँचवलक उपन्यासकाि थे। सही/गलत

4.‘ठे ठ हहदी का ठाठ’ अयोध्याहसह उपाध्याय हरिओध द्वािा वलवखत उपन्यास नहीं है। सही/गलत

5.एक पवत के नोट्स ‘ ममता कावलया का उपन्यास है। सही/गलत

उिि- 1.सही , 2.गलत , 3.सही, 4.गलत , 5.गलत

रिक्त स्थान िरिए

1.’चंद्रकांता’_______उपन्यासकाि का उपन्यास है। (देवकी नंदन खत्री/गोपालिाम गहमिी)

2.प्रेमचंद के उपन्यास _______ववचािधािा से प्रिाववत हैं। (माक्सावादी/गांधीवादी)

3.वृन्दावन लाल वमाा _______ उपन्यासकाि हैं। (सामावजक/ऐवतहावसक)

4.’कं काल’ औि ‘वततली’_______के उपन्यास है। (जैनेन्द्र कु माि/जयशंकि प्रसाद)

5.इलाचंद्र जोशी ने _______उपन्यास वलखे । (मनोवैज्ञावनक/आाँचवलक)

उिि -1.देवकीनंदन खत्री, 2.गांधीवादी , 3.ऐवतहावसक , 4.जयशंकि प्रसाद , 5.मनोवैज्ञावनक

दीघा उििीय प्रश्न

1.हहदी उपन्यास की ववकास यात्रा पि प्रकाश डावलए।

2.प्रेमचंदोति हहदी-उपन्यास सावहत्य के ववकास पि प्रकाश डावलए।

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जीवन पर्यन्त शिक्षण संस्थान, दिल्ली ववश्वववद्र्ालर्

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