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मानवीय मल्
ू यों का दस्तान ‘गोदान”: एक पुनपााठ
DR. K.JAYALAKSHMI
Associate Professor, Department of Languages,
VIT, Vellore, Tamilnadu 632014

साराांश : मुंशी प्रेमचुंद समग्र भारतीय साहित्य का प्रहतहिहित्व करिेवाले लेखक िैं, हिन्िोंिे अपिे साहित्य द्वारा ि के वल हिुंदी कथा

साहित्य को बहकक सम्पूर्ण भारतीय साहित्य को महिमामुंहित ककया िै | ििााँ यि मािा िाता िै कक साहित्य का सृिि मिोरुं िि के हलए

िोता िै विीं प्रेमचुंद अपिे साहित्य में यथाथण का हचत्रर् करते िैं | वे यथाथण के ठोस भावभूहम पर खड़े िोकर िीवि के सत्य को प्रस्तत

करते िैं िो समाि में व्याप्त िैं | उिके साहित्य भारतीय िि –िीवि की गाथा सिाती िै | ‘गोदाि’ एक भारतीय ककसाि की ऐसी करुर्

दस्ताि िै िो यगों बाद भी प्रासुंहगक िै| यि उपन्यास एक यगाुंतकारी औपन्याहसक कृ हत िै | साहित्य और समाि का प्रहतहबम्ब अपिी

पूर्णता में इसी उपन्यास में हुआ िै | िीवि के िर पिलू को इस उपन्यास में हचहत्रत ककया गया िै |

मूल शब्द: प्रेमचुंद , गोदाि, ककसाि, मािव मूकय

भूहमका: अपिे हिबुंि ‘मिष्य िी साहित्य का लक्ष्य िै’ में आ.िज़ारीप्रसाद हद्ववेदी का कििा िै “िो साहित्य अपिे आप के हलए हलखा

िाता िै उसकी क्या कीमत िै, मैं ििीं कि सकता, परन्त िो साहित्य मिष्य समाि को रोग – शोक, दाररद्र्य – अज्ञाि तथा परमखापेहित

से बचाकर उसमें आत्मबल का सुंचार करता िै वि हिश्चय िी अिय हिहि िै|” इस कथि की साथणकता िमें प्रेमचुंद की लेखिी में व्यक्त िो

िाता िै | अपिे चारों ओर िोिे वाले घटिाओं को सूक्ष्म रूप से हिररिर् कर, सामाहिक चेतिा को उसकी पूर्णत में पिः सृिि करिे का

स्तत्य प्रयास इन्िोंिे ककया |

अपिे कथासाहित्य में भारतीय समाि और सुंस्कृ हत को उसके पूर्णत के साथ प्रस्तत करिा िी इिका लक्ष्य था | प्रहसद्ध साहित्यकार

शैलेश मरटयािी िे अपिी एक पस्तक की भूहमका में हलखा िै कक “हलखिा कागज़ पर खेती करिा िै | इसकी व्याख्या इस प्रकार कर सकते

िैं कक मिष्य का सुंबुंि किीं ि किीं भूहम से िड़ी िै | इस भूहम के अन्नादात्ता ककसाि िै | प्रेमचुंद इन्िीं ककसािों को अपिे उपन्यास के

पात्र बिाकर िमारे समि उिकी समस्याओं को पेश करते िैं | प्रेमचुंद के समय की समस्यायें िर यग में प्रासुंहगक रिा िै | इसहलए

‘गोदाि’ आि भी भारतीय साहित्य का मिाकाव्य मािा िाता िै |


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प्रेमचुंद मिष्य के मि की गिराई में पैठकर उिकी भाविाओं का पररचय देते िैं | इन्िोंिे अपिे साहित्य को मािव िीवि से िोड़ा

िै | उिके मतािसार उपन्यास मािव चररत्र का हचत्र िै | मािव – चररत्र पर प्रकाश िालिा िी इिका मूल उद्देश्य िै | प्रेमचुंद मािव

चररत्रों का सूक्ष्म उद्घाटि द्वारा, मािवीय सुंवेदिा को कलात्मक अहभव्यहक्त प्रदाि करते िैं |

प्रस्ताविा : प्रेमचुंद साहित्य को पररभाहित करते हुए किते िैं “साहित्य की सवोत्तम पररभािा िीवि की आलोचिा िै |” गोदाि इसका

एक उत्तम उदािरर् िै | ‘गोदाि’ भारतीय ककसाि की गाथा िै िो विों से चले आ रिे ज़मींदारों, पूुंिीवाकदयों,साहूकारों द्वारा गरीबों की

शोिर् का पदाणफाश करता िै | इस उपन्यास में करीब पच्चीस पात्र िैं िो अपिी भूहमका बखूबी हिभाते िैं | उपन्यास की पृष्ठभूहम ग्राम

और शिर दोिों में व्याप्त िोकर चलती िै | िोरी, िहिया और उिके बच्चों पर मख्य कथा चलती िैं तो मेिता – मालती, राय –साबि,

गोहवन्दी, खन्ना आकद के प्रसुंग प्रासुंहगक कथाऍ िैं | प्रेमचुंद िे िोरी, िहिया, गोबर, रमािाथ को एक प्रतीक के रूप में प्रस्तत कर समाि

में मिष्य का सिी दस्तावेज़ प्रस्तत ककया िै | प्रेमचुंद अपिे देश के ककसािों की दयिीय हज़न्दगी का सीिा सािात्कार करते िैं और

‘गोदाि’ भारतीय ककसािों का ममणस्पशी, करुर् और त्रासद दस्तावेज़ बि िाता िै | इसमें िोरी समाि के उस हिम्न वगण का प्रतीक िै िो

आशाओं को हसुंचता िै और अपिे सपिों को यथाथण में बदलते हुए उसमें िीिा चािता िै |

प्रहसद्ध हिुंदी अलोचक िॉ. गुंगाप्रसाद हवमल िे इस उपन्यास को मिाकाव्यात्मक का दिाण प्रदाि ककया िै | उिके िी शब्दों में

“गोदाि सच्चे अथण में भारतीय ग्राम इकाई का और िगर इकाई का मिाकाव्य िै | यि मािवीय सुंघिण की कथा िै|”

िोरी भारतीय कृ िक िै िो गो पालि की अहभलािा हलए हुए चलता िै | यिी आि के मिष्य में गो ििीं बहकक ऐशो – आराम

के हवलास और भोग के वस्त िै | एक गो को अपिे द्वार पर देखिे की इच्छा में िोरी के िैसर्गणक गर्ों का स्वरुप हमलता िै | भारतीय

सुंस्कृ हत में गाय पालिे की इच्छा ककतिा प्रबल िै वि िोरी के शब्दों में व्यक्त िोता िै “गऊ िी तो द्वार की शोभा िै, सवेरे – सवेरे गऊ के

दशणि िो िाए तो क्या कििा | ि िािे कब यि साि पूरी िोगी, कब वि शभ कदि आएगा |” मािव मि की लालसा, स्वप्न और हचरकाल

से सुंहचत अहभलािा को प्रस्तत करिे से यि साहबत िो िाता िै कक मिष्य का यथाथण साहित्य से हिरुंतर िड़ा िै | वतणमाि समय में भी

िमारे चारों ओर िम एक िोरी को देखते िैं िो िोरी की तरि असहविाओं के अभाव में िीवि िीता िै और अपिे सपिों को साकार ििीं

कर पाता |

िोरी की हस्थहत का कारर् तो शोिक वगण िै िो उस समय िमींदार और सामुंतवाद िै तो आि राििीहतज्ञ और सरकार िैं |

िोरी मरते दम तक शोिर् का हशकार बिता िाता िै | इस अमािहिक शोिर् का हशकार मात्र िोरी ििीं बहकक उसका पूरा पररवार

झेलता िै | िब िोरी के गाय की मृत्य हविपाि से िो िाता िै तो पहलस की कचाल में िोरी फसता िै और उसे ररश्वत देिी पड़ती िै |

इसके हलए उसे मिािि से पैसा सूद पर लेिा पड़ता िै हिसका कई गिा वसूल उसे देिा पड़ता िै | झींगूर हसुंि, दातादीि, िोखेराम िैसे

पात्र ककसािों का शोिर् करते िैं | तत्कालीि शोिर् का सिीव हचत्र िी यिााँ हचहत्रत िै | आि भी िमारे समाि में यि शोिर् िोता िै |

अमीर को कोई कछ ििीं हबगड़ता पर ग़रीब िी िमेशा इसका हशकार िोता िै |

रायसािब, अमरपाल हसुंि , हमल माहलक खन्ना, दलाल आकद यिााँ व्यवस्था की कहियों के हिमाणता िैं | ये लोग अपिे िि अमीरी

के बल पर इस व्यवस्था को अपिे ओर कर सकते िैं | बहुत साल पिले िो राििीहतक िल –चल िमें देखिे को हमला आि समय के साथ

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थोड़ा पररवतणि तो ज़रूर हुआ िै | सत्तािारीयों के िाथ आि की व्यवस्था हबकाऊ िी ििीं बहकक आि इन्िीं सत्तािारीयों के िाथ के

कठपत्तली िै व्यवस्था | बदला िै तो हसफण समय और पररहस्थहत |

िहिया एक ऐसी पात्र िै हिसके माध्यम से प्रेमचुंद िे एक सशक्त िारी पात्र को पाठकों के समि पेश ककया िै | िहिया अिपढ़

िै और गॉव में रििे वाली िै | िहिया िोरी की पत्नी िै िो िोरी की पत्नी िोिे के कारर् आर्थणक शोिर् की हशकार िै पर बौहद्धक और

िार्मणक आहभिात्य िीहतयों पर हवध्वुंस प्रिार करती िै | िब उसका बेटा गोबर झहिया को घर लाता िै तो वि सारी हबरादरी को ठोकर

मार कर अपिी घर की लाि को बिाई रखती िै | उसी प्रकार वि हिम्न िाहत की हसहलया को अपिे घर में आश्रय देती िै | िहिया प्रेमचुंद

की हििी उपलहब्ि िै और यि प्रेमचुंद की उपलहब्ि िै हिन्िोंिे अपिे व्यहक्त और वगण की सीमा का िी ििीं अपिी समय सीमा का भी

अहतक्रमर् ककया था | िहिया में िए यग का प्रखर बहद्धवाद िै | सामाहिक, आर्थणक व राििैहतक चेतिा से यक्त आि की िारी की

प्रखरता उस समय की अिपढ़ महिला िहिया में कदखाई देती िैं |”i अुंत में िब िोरी की मृत्य िोती िै तो िहिया िीहवत िै और अपिे

खूि – पसीिे की कमाई को दातादीि के िाथ देती िै | यिााँ पूुंिीवाद के हवकराल दोिों में हिस्पुंद िोती िाती िै िो भारतीय मिष्यता

का गोदाि करवा रिी िै | प्रेमचुंद की आस्था िहिया में िीहवत िै और मािवीय सुंघिण और हििीहविा िहिया में अमर िै |

आि की यवा पीढी में अकसर देखा िाता िै कक वि अपिे पढाई के बाद हवदेशों में िाकर बसिा चािता िै | पाश्चात्य सभ्यता से

प्रभाहवत िो विाुं के िीवि शैली से आकर्िणत िो सबकी झकाव उस तरफ िै | अगर देखा िाए तो ‘गोदाि’ का गोबर इसी ियी पीढ़ी का

प्रतीक िै िो यि समझता िै कक ििी व्यहक्त िी समाि में प्रहतष्ठा एवुं यश प्राप्त करता िै | अतः वि िगारीय िीवि से आकर्िणत िोकर

िौकरी के हलए शिर के तरफ िाता िै | पैसा कमािे के बाद वि उस व्यवस्था का भी हवरोि करता िै हिसमें उसका पूरा पररवार दबा

हुआ िै | प्रेमचुंद िे झहिया और गोबर के माध्यम से हविवा हववाि का समथणि ककया िै िो मािवीय सुंवेदिा का सशक्त उदािरर् िै

| मािवीय ररश्तों के बिते –हबगड़ते हचत्र इिके सुंबुंि में कदखाई देता िै | िम यि भी माि सकते िैं कक गोबर के माध्यम से िी पिले बार

साहित्य में लघ पररवार (nuclear family) का उदय हुआ | साथ िी हववाि िैसे पहवत्र बुंिि में िो लोप िोता िा रिा िै इसका भी

उदिारर् मेिता और मालती के प्रेम में अहभव्यक्त िै | प्रेमचुंद िे आि के यग में व्याप्त हलव – इि – ररलेशिहशप का उदिारर् इिके

माध्यम से हचहत्रत ककया िै | इस ियी सभ्यता का ज़िर कै से गााँवों की ओर व्याप्त िो रिा िै यि यिााँ दशाणया गया िै |

सोिा और रूपा िोरी और िहिया की बेरटयााँ िैं हििके माध्यम से देिि –प्रथा का हवरोि, मातादीि – हसलाया के माध्यम से

दहलत- चेतिा को मखररत करिा एवुं अुंतरिातीय हववाि का समथणि प्रेमचुंद िे ककया | ये सारे हविय वतणमाि यग में भी बहुचर्चणत िैं

हिसका शुंखिाद प्रेमचुंद िे अपिे यग में िी ककया िै | गोबर के माध्यम से बेरोज़गारी की समस्या को उठाया गया िै | इस 21 वीं

शताब्दी में भी इसका कोई िल ििीं हुआ िै | आि भी िम देखते िैं की कै से मिदूर अुंतर राज्यों में िाकर िौकरी करता िै | तब भी

शोिर् िोता था और आि भी शोिर् िो रिा िै | गोबर िैसे यवा प्रहतहिहि िर काल से समाि में हवद्यमाि िैं िो अपिे ऊपर िोिे वाले

अत्याचारों के हखलाफ़ आवाज़ उठाते िैं | िमं की समस्या और अहशिा की समस्या िम िोरी िैसे पात्र में देख सकते िैं िो रुकढ़यों एवुं

परम्पराओं का अाँिा भक्त िै | अपिी इसी अहशिा के कारर् वि वास्तहवकता को समझता ििीं | वतणमाि समय में भी अगर देखा िाये

तो कई िगिों पर यि समस्या िज़र आते िैं ििााँ अहशहित वगण इस प्रकार के िाल में फस िाते िैं |

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इि सभी समस्याओं को प्रस्तत कर प्रेमचुंद समाि में लप्त िोते हुए मािवीय सुंवेदिा को हिसप्रकार िमारे सामिे रखते िैं वि

आि भी िमारे चारों ओर कदखाई देता िै | दो पीकढ़यों की परस्पर हवरोिी हवचारिारा, उिकी परस्पर हवरोिी आस्थाओं के बारे में कोई

उस ज़मािे में सोच भी ििीं सकता था, क्योंकक उस ज़मािे में बाप – बेटे का , मााँ –बेटी का, पहत – पत्नी का, सास- बहु का ररश्ता बहुत

िी गिरा था | कििे का अहभप्राय यि ििीं कक आि ये ररश्ते पूर्ण रूप से िष्ट िो गए िैं लेककि आि बदलते पररहस्थहत, िीवि शैली इि

ररश्तों के बीच दरार पैदा करते हुए कदखाई पड़ते िैं |

ये सारी समस्यायें आि भी समाि में हवद्यामाि िै िो उस समय से मेल खाती िै | यि मािवीय सुंघिण की गाथा वतणमाि में भी

मािवीय मूकयों को रोपिे का मित्त्वपूर्ण कायण कर रिी िै | गरीबी से िूझता हुआ ककसाि वगण , ऋर् से त्रस्त ककसाि, शोिर् का हशकार

ककसाि, हविवा हववाि, दिेज़ प्रथा, अिमेल हववाि, दहलत चेतिा इस उपन्यास के प्रमख मद्दे रिे िैं िो आि के वतणमाि िीवि में भी

प्रासुंहगक िै | हिि बातों को 80 साल पिले प्रेमचुंद िे अपिे साहित्य के माध्यम से प्रस्तत ककया िै वि आि भी िमारे समाि में दृहष्टगोचर

िै |

हिष्किण : िम कि सकते िैं कक प्रेमचुंद अतीत के खुंििरों में ििीं भटके , उन्िोंिे वतणमाि में िी सूक्ष्मतः झाुंककर शाश्वत मािव मूकयों को

उद्घारटत करिे एवुं उन्िें व्यविार िगत में पररहर्त की | उन्िोंिे अपिे यग के मािव चररत्र की अच्छाईयों एवुं बराईयों का समग्र उद्घाटि

ककया | उन्िोंिे शाश्वत मािव – मूकयों को परखिे, अुंककत और रहित करिे का सतत् प्रयास ककया िो आि भी सलभ िै | इसहलए गोदाि

के सन्दभण में िम इस उहक्त को सिी ठिरा सकते िैं की “हितेि सि सहितुं” यािे साहित्य विी िै हिससे मािव – हित का सुंपादि िो |

सन्दभण ग्रुंथ सूची

i
प्रेमचंद की नारी दृष्टि, डॉ शाशशमुददराज,अनुशीलन, 1983 प.ृ 46
2. हं सराज रहबर, प्रेमचंद जीवन कला और कृततत्तत्तव, आत्तमाराम एंड संस, ददल्ली 1962.
3. डॉ शेख अब्दल
ु वहाब, प्रेमचंद मनन और मंथन, स्वाक्षर प्रकाशन, नए ददल्ली, 2018.

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