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सोदाहरण ा ा कीिजए।
उ र:-
सािह को समाज का दपण कहा जाता है । िकसी युग िवशे ष का राजनीितक, सामािजक और सां ृ ितक
वातावरण सािहे की रचना को आकार दे ता है । िह ी ससािह के काल म मुगल शासन ऐ , िवलािसता और
भोग-िवलास की ि से अपने चरमो ष पर था। क सरकार की तरह अवध, राज थान, बं देलखं ड आिद िहं दी
भाषी रा भी िवलािसता की कीचड़ म डूबे ए थे ।
किवता राजाओं, उनके जागीरदारों और दरबार तक ही सीिमत थी। जनता की भावनाओं और थितयों का
ितिनिध करने के बजाय, किव केवल संर कों का मनोरं जन करने के िलए उनकी चापलूसी करते ए किवता
रचकर उनकी शंसा करते रहे । इसिलए रीितकाल की शायरी को जनता से काट िदया गया।
1857 ई. के थम तं ता सं ाम के कुचले जाने के बाद ि िटश शासकों के अमानवीय अ ाचारों एवं आतं क के
फल प जनता म िनराशा, हताशा, िन यता, भय का वातावरण ा हो गया।
यह भारत से था। इसिलए भारते ् यु ग के ायः सभी किवयों ने , जो िविभ प पि काओं के स ादक भी रहे और
िज ोंने जनता को यथाथ से अवगत कराना, उनम नई चेतना जगाना, ऑँख खोलना अपना कत समझा, फूंक
मारी।
थािमक अं धिव ासों, पाखं डों, छु आछूत, ऊँच-नीच की भावना को उ ोंने आम जनता म नई जागू◌ृित पैदा करने
का सराहनीय काम िकया और सोई ईई या अथ-सु जनता ने हिथयार उठा िलए। उ ोंने आपसी मेल-िमलाप,
सौहाद, दे शभ , आजादी का मह बताकर दे शवािसयों को सही राह िदखाने का काम िकया।
इस नई चेतना का प रणाम यह आ िक िहं दी किवता िवषय, प, भाषा सभी रों पर एक नया प ले ने लगी।
राजदरबारों और समाजवादी वृि से मु होकर का दे श की सम ाओं को जन-जीवन से जोड़ने लगा।
सामािजक सुधार, धािमक अंधिव ासों का िवरोध, िढ़वािदता, पाखं ड, आडं बर और आिथक किठनाइयो ँ और
दे श की तं ता उनकी जा बन गई भारतदू इस े के अ णी सािह कार थे और उनसे रत होकर भारतदु
मंडल के अ किवयों ने इस काय म मह पूण भू िमका िनभाई।
शाही और िटश शासन के ित कृत ता करने वाले इन किवयों के कथनों को ठीक से समझने के िलए
महारानी िव ो रया के भारत की सा ा ी बनने से पहले और बाद की प र थितयों को समझना आव क है
1857 से पहले इस पर ई इं िडया कपनी का शासन था।
यह एक ापा रक संगठन था और इसका एकमा उ् दे भारत के धन को लूटना था। उसे अपनी ितजोरी
भारतीयों के आिथक शोषण से भरनी थी।
महारानी िव ो रया ारा भारत म शासन की बागडोर संभालने के बाद, ि िटश शासन की नीित म बदलाव आया,
िजसका माण महारानी ारा 1858 म जारी घोषणाप से िमलता है , िजसम भारत की जनता को आ करने के
िलए कई वादे िकए गए थे और ारं भ म पढ़े -िलखे और सािह कार सभी का उन पर िव ास था।
महारानी िव ो रया के शासनकाल म भारत के िकसानों और आम लोगों को नवाबों, राजाओं, सामंतों, जमी ंदारों,
तालुकदारों के आतं क और शोषण से मु िमली, मुसलमानों के धमाितरण की नीित से होने वाले सामािजक क ों
से उ मु िमली।
वे पहली बार रे लवे , टे ली ाफ, िबजली, ि ंिटं ग ेस और जीवन की अ सुख-सुिवधाओं को दे खकर चिकत रह
गए। ान- िव ान, नई तकनीक, नया शासन, धम के नाम पर प पात से मु ने भारतीयों के मन को
आकिथत िकया। दे श की आिथक थित को सुधारने के िलए पं जाब का कारी अिधिनयम और अवध का कारी
अिधिनयम जैसे कानू न बनाए गए। उ लगा िक अ ेजी शासन उनके िलए वरदान है ।
राजभ प रवार का सद होते ए भी उनका का केवल चाटु का रता नही ं है , शासकों का ु ितगीत नही ं है ,
अपनी परं परा पर भी गव करता है । रा ीय पहचान हािसल करने की ललक भी है , दे शवािसयों को गित के नए पथ
पर ले जाने की ललक भी है , िवशेष प से आिथक शोषण से िनभरता से मु पाने की ललक भी है ।
हां , उनकी वफादारी के पीछे उनका भोला-भाला िव ास है िक िटश शासन के इरादे सही ह उनका आ ासन
स ा है और वह अपनी बात रखगे। यिद उनका यह भोला-भाला िव ास गलत िनकला, तो उनकी दे शभ या
भारत के लोगों के ित उनकी भावना पर संदेह करना अनु िचत होगा।
समय बीतने के साथ-साथ जब ि िटश औपिनवे िशक सा वाद के रह उजागर ए तो उनके नापाक इरादों
की असिलयत उजागर हो गई। सुथारवादी नीित का पतन होने लगा और भारतद् यु ग के सािह कार यह समझने
लगे िक ि िटश शासकों ने सुधार के नाम पर जो। कुछ भी िकया है , रे ल-टे ली ाफ, िबजली की सुिवधा दी है , वह
भारत की जनता के िहत म नही ं है ।
ले िकन हम अपने सा ा वादी कदमों को और मजबूत करना होगा। भारतीयों को िश ा और सरकारी द रों म
िनचले पदों पर िनयु कर अपनी जड़ जमानी ह, भले ही आिथक शोषण नीित का प बदल गया हो, मूल प
से वे भी ई इं िडया कंपनी की तरह भारत को कंगाल, द र बनाना चाहते ह,
सारां श यह है िक भारतद् अपनी भोली आ था के कारण ि िटश शासन की बातों, वचनों और आ ासनों पर िव ास
करते थे और भ की किवताएँ िलखते थे , ले िकन कुछ समय बाद मोहभं ग होने के बाद, वा िवकता को
पहचानने के बाद, उनकी राजनीितक समझ बदल गई और उ ोंने आलोचना की ि िटश सा ा वाद और उसकी
कूटनीित की ध यां उड़ाकर दे शवािसयों म नई चेतना जगाने का यास िकया।
उनके शु आती कारयों ने भले ही शाही भ का म पैदा िकया हो, ले िकन अंततः जब उनका मोहभंग हो गया,
तो उ ोंने दे श की दु दशा का ेय अ ेजी शासन और उसकी कूटनीित को िदया और जनता को अं ेजी शासन
और कूटनीित को जनता से जोड़ा।
इन किवयों ने िहं दी किवता को का के ित अपने कोण म एक नया मोड़ िदया, खड़ी बोली को का ा क
बनाने के यास म और कािमनी कािमनी को अिधक से अिधक अलंकृत करने के यास म भाव, भाषा, प -
िनयमन म ाितकारी प रवतन ए। पहले के किव सौ य का या तो थू ल प म िच ण करते थे या गणना क
शैली का आ य ले ते थे ।
िह ी छायावादी का के चार मुख ों म िनराला को दू सरा महान माना जाता है । अतः उनके का म
भाव और िश दोनों ि यों से छायावादी का के अनेक गु ण िमलते ह।
छायावादी किवयों पर पलायनवादी होने और अपने समय के समाज को खा रज करने का इुठा आरोप लगाया गया
है । यह सच है िक छायावादी किवयों ने अिधकांशतः अपने सुख-दु ः ख की गत अनुभूितयों को ही अिभ
दी है , पर उनम दे शभ और दे श के ित उ रदािय की भावना भी कम नही ं थी।
िनराला ने ‘अपू वा ु त ‘तू तुंग िहमालय ंग और म चंचल गित सुरस रता’ किवताओं म भी आ ा और परमा ा
के अिव े संबंध की बात की है । उनका मानना है िक कण-कण म ई वु र का अ है , माया आवरण है और
इस कारण आ ा अपने को से पृथक मानती है ।
िनराला ने भी तीकों का भरपू र योग िकया है । उनकी ‘बादल राग’ और ‘तु लसीदास’ किवताएँ इस ि से
उ ेखनीय ह। छायावादी किवयों ने अलंकार के िलए अलं कार का योग नही ं िकया है । उ ोंने अलं कारों का
योग केवल े यो को अिधक भावी बनाने के िलए िकया है ।
अलं कार अलं कारों, उपमाओं, उपमाओं का सवािधक योग िकया गया है । िवशेषता यह है िक इनके पक नवीन
ह और सू तम भावों को करने म पूणतः समथ ह । उ ोंने िवधवा को ‘भगवान के मंिदर की पू जा’ और
‘दीपिशखा सी शीट’ कहकर उसकी पिव ता और पिव ता का संकेत िदया है ।
इसी कार जब सरोज के यौवनगम की तुलना वीणा पर गाये जाने वाले मलकी राग से की जाती है तो उनके यौवन
की कोमलता, माधु य और ग ीरता का पता चलता है । अ छायावादी किवयों से िभ उ ोंने प के े म
अनेक नए योग िकए ह। िनराला मु छं द का योग करने वाले थम किव ह।
1. बु जुआ वग, िजसके पास उ ादन के साधन जमीन िमल आिद है तथा जो अपनी आिथक थित से
अनुिचत लाभ उठाकर द् सरों का शोषण करता है ।
2. सवहारा, जो िक मजदू र वग है , िजसके पास केवल म श है , िजसे दु जुआ वग अपने फायदे के िलए
इ े माल करता है , जो
शोिषत है और जो जीवन भर अभाव म रहता है , गरीबी की पीड़ा झेलता है ।
मा का मानना है िक इन दोनों वरगों का संधष भारत म हमे शा से रहा है और यह तभी समा होगा जब सवहारा
बु जुआ वग पर िवजय ा करे गा।
बु जुआ वग को उखाड़ फेका जाएगा, समाज म कोई वगिभद नही ं होगा, वगिवहीन समाज की थापना होगी, जनता
का राज होगा। ऐसे आदश वग िवहीन समाज की थापना सम मानव जाित का ल होना चािहए और
सािह कारों को अपनी रचनाओं के मा म से ऐसे समाज की थापना म सहयोग करना चािहए।
1. वह उ ीडकों, शोषकों, पुंजीपितयों, दमन और शोषण के काले कारनामों को उजागर करता है , उनके
ित घृ णा, ोध, आ ोश करता है ।
4. आदश के यू टोिपया को छोड़कर यथाथ की कठोर भूिम पर िवचरण करने वाला सािह कार ही उसका
उ रदािय वहन कर सकता है ।
5. जनता को जगाने वाला सािह जनता की भाषा म िलखा जाना चािहए तािके वे उसे पढ़कर वा िवकता
को समझ सक और ांित के माग पर चलने की श का योग कर सके।
ं के तीखे तीरों से पूं जीवादी अथ व था को तबाह करने की कोिशश करता है । इसके िलए वह समाज म
ा कुरीितयों, िवसंगितयों, कु पताओं को सतह के नीचे िछपी सड़ां ध को िनदयतापूवक सामने लाते ह, तािक
हम उ पहचान सक और उनके िवनाश के िलए कुछ कर सके ।
िहंदी की छायावादी किवता के जवाब म और उसके खलाफ गितशील किवता का ज आ। अतएव िवषय की
ि से ही नही ं अिपतु भाषा-शैली और का -िश की ि से भी गितशील का मधु मय मूद् श ावली और
अलं कृत शै ली म न होकर सवसाधारण के िलए िलखा जाता है ।
उ ोंने केवल लय को ान म रखते ए अपनी बात को ऐसी भाषा और छं दों म ु त िकया है िक उनका
आ ान अिधक से अिधक भावी और सुलभ हो सके।
अतः यह कहा जा सकता है िक नागाजुन की भाषा भानुवितनी है , इसम अिधकांशतः सहजता और सरलता है ; यह
एक ध भाषा है । उनकी किवता म बस एक बात खटकती है , कही-ं कही ं उनका लहजा चार वाला भी हो गया है ,
ले िकन ऐसी जगह कम ह।
यिद ितब ता है तो केवल आम जनता की भलाई के िलए है इसिलए वे चीनी आ मण पर ह, जबिक ितब ता
दू सरों की भलाई के िलए है । उ ोंने अपना गु ा खुलकर जािहर िकया।
उनकी साधना ‘तारा स क’ से शु होती है और ‘चां द का मुंह टे ड़ा है ’ म अपनी चरम सीमा पर प ंचती है ।
उनकी का भाषा त व श ावली के योग की ओर िनर र अ सर होती रही है । ‘तारस क’ की किवताओं म
छायावादी पदावली, िच ा कता और रह वाद का र है ।
मु बोध की का भाषा की सबसे बड़ी िवशे षता है िवषय और भाव के अनु प श ावली का योग, लोक
श ावली का योग जहाँ ामीण े से संबंिधत, वहाँ ◌ं समान श सबसे िवन , कुलीन और नाग रक भावना से
जुड़े ए ह। मु बोध लोकताि क िवचारधारा के किव ह, इसिलए त रव श ों के मा म से ही उ ोंने एक
महान के थान पर एक सामा अिकंचन की ित ा थािपत की है ।
दे खए आम आदमी की ाित की यह त ीर, ल र, कंटोप, कंदील, िसयाह लसी, अकुलायो आिद अनेक श
उनकी का भाषा को लोकजीवन से जोड़ते ह धू ल -ध र, भभड़, िगर न, द ीदार, हे टा, फफोला आिद की
का भाषा भी ऐसे ही श ह नगरीय संवेदनाओं का िच ण करते समय उसकी भाषा का ख बदल जाता है ,
उसका श चयन जैसे टकला आिद भी इस तरह बदल जाता है िक संग और कहानी सहज ही यथाथ बन जाती
है ।
समान श द क दे ते ह, उनकी का भाषा के गौरव को कलु िषत करते ह। पर ु कुल िमलाकर उनकी
का भाषा भावों को करने म पूणतः समथ है , ोंिक वह उनके हाव-भाव और ब िवध भाव के अनुसार
बदलती रहती है ।
डॉ. राजनारायण मौय के श ों म, “वह कभी-कभी सं ृ तकृत सामािजक पदावली के अलं कृत अलं कूत माग से
गु जरती ह। कभी – कभी अरबी-फारसी और उदू के नाजुक लचीले हाथों को पकड़कर चलती ह।
ला िणक िवशेषणों से यु और शानदार श किव की कमीशन के ल ण के िलए अिनवाय साधन ह कोमल अहं
अ वेदना, िम ता वनवासी समीर, िशली भू त गितयों का िहम, िव ह व था, आ ज अनुभव, िशशु जैसे
योग किवता को दु ब ध बना दे ते ह।
मु बोध के का म संगीत की मनाही है , इसिलए उनके छं दों म यित गित को कायम नही ं रखा गया है । उ ोंने
अपनी लं बी किवताएँ अिधकतर मु छं द म िलखी ं।
िहंदी म छं दों को तोड़ने का यास िनराला से शु होता है , लेिकन िनराला जैसे किवयों ने अपने मु छं दों म
संगीत और लय का प र ाग नही ं िकया इसके िवपरीत मु ितबोध
् का मु हछं द लयब ता से सवथा मु है ,
उनके ‘तार स क के का ों म तुक िमलता है ।
ले िकन अं त म उनकी किवता तुकांत हो गई है । इसम का ा कता है । व ुतः मु बोध ने भाषा के नाटीकरण से
अपने प बनाने का काम िलया है , उनकी किवताएँ संगीता क नही ं नाटकीय है ।
मुहावरों और लोको यों के योग ने भी उनकी का भाषा को समृ िकया है । मुहावरे भाषा को सौंदयबोध के
साथ-साथ अथ म गं भीर बनाते ह। और अपने आप म का की एक इकाई तीत होते ह।
उ र:-
ा ाः -
ा हमारे मन म कभी ऐसा िवचार आया है िक हम अपने आप को इतना हीन समझगे ? हमने जो यश पाया था, वह
इस पतन की दशा म जाना था? आज हमारा दे श जो इतना हीन, कमजोर और लाचार है , कभी इतना उ त था िक
दु िनया हमारे सामने झुकती थी।
वे ही अंत म सफलता ा करते ह। इसिलए हे दे शवािसयों, िनराश मत होइए। चैय और साहस के साथ प र थित
का सामना कर, हम अपना खोया आ गौरव अव वापस िमलेगा।
ुत किवता िनराला की किवता ‘जागो िफर एक बार’ से उ त है । किव युवाओं म दे शभ और वीरता जगाने
का यास कर रहा है ।
ा ा:-
इन पं यों म किव भारतीयों को उनकी श की याद िदलाता है और कहता है िक तुम पशु नही ं, यु म बीरता
िदखाने वाले वीर यो ा हो, तुम ू र नही ं हो, तु म ाय के िलए वीरता िदखाने वाले हो।
जो मनु के िलए सुखद और मु दायक ह, इसिलए भारत के लोगों, आप हमेशा महान रहे ह, आपके मन म
कायरता और वासना के ित मोह दोनों ही भावनाएँ न होने वालीह, इसिलए आप ा के प है , यह सारा संसार
आपके चरणों की धू ल से कम नही ं है ।
िवशेष ‘जागो िफर एक बार’ किवता एक संबोधन गीत है । किव इस गीत के मा म से भारतीय यु वाओं को
संबोिधत कर उनके परा म को जगाने का यास कर रहा है ।
(ग) यह दीप अकेला ेह भरा
है गव भरा मदमाता, पर इसको भी पं को दे दो।
यह जन है : गाता गीत िज िफर और कौन गाये गा?
पनडु ा : ये मोती स े पिफर कौन कृती लाये गा?
यह सिमधा : ऐसी आग हठीला िबरला सु लगाये गा।
यह अि तीय : यह मे रा यह म यं िवसिजत :
यह दीप, अकेला, ेह भरा
है गव भरा मदमाता, पर इस को भी पं को दे दो।
ा ाः -
िजसे कोई और नहीं बना सकता। यह एक गोताखोर की तरह है जो िवचार के मोती एक करता है और वापस
लाता है। िजसे और कोई नही ं चुन सकता अथात िजस कार एक गोताखोर पानी म कूदकर मोती चुन ले ता है उसी
कार यह भी इतना कुशल है िक िवचारों के मोती चुन लेता है ।
यह तो वह गोताखोर है जो भावों के सागर की गहराई म जाकर सुंदर कृितयों के प म मोती दू ं ढ़ता है और िफर
उसे कौन खोजेगा। यह य य है अथात् ऐसी जलती ई अिम अनेकों म से एक-एक को एक-एक को कािशत
कर सकेगा। यह अनु पम है , इसके समान दू सरा कोई नही ं है , यह मेरा है । अथात इसम यं का बोध है ।