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1 भारतदु की किवताओं म नवजागरण और रा ीय चेतना का समु िचत िवकास आ है, इस कथन का

सोदाहरण ा ा कीिजए।

उ र:-

सािह को समाज का दपण कहा जाता है । िकसी युग िवशे ष का राजनीितक, सामािजक और सां ृ ितक
वातावरण सािहे की रचना को आकार दे ता है । िह ी ससािह के काल म मुगल शासन ऐ , िवलािसता और
भोग-िवलास की ि से अपने चरमो ष पर था। क सरकार की तरह अवध, राज थान, बं देलखं ड आिद िहं दी
भाषी रा भी िवलािसता की कीचड़ म डूबे ए थे ।

किवता राजाओं, उनके जागीरदारों और दरबार तक ही सीिमत थी। जनता की भावनाओं और थितयों का
ितिनिध करने के बजाय, किव केवल संर कों का मनोरं जन करने के िलए उनकी चापलूसी करते ए किवता
रचकर उनकी शंसा करते रहे । इसिलए रीितकाल की शायरी को जनता से काट िदया गया।

1857 ई. के थम तं ता सं ाम के कुचले जाने के बाद ि िटश शासकों के अमानवीय अ ाचारों एवं आतं क के
फल प जनता म िनराशा, हताशा, िन यता, भय का वातावरण ा हो गया।

एक और इसाई िमशनरी ईसाई धम के चार म शािमल थे और दू सरी ओर महारानी िव ो रया के ई इं िडया


कंपनी के थान पर भारतीय सा ा ी बनने के बाद भी ि िटश औपिनवेिशक सा ा वादी शासक भारत का
आिथक शोषण कर रहे थे ।

यह भारत से था। इसिलए भारते ् यु ग के ायः सभी किवयों ने , जो िविभ प पि काओं के स ादक भी रहे और
िज ोंने जनता को यथाथ से अवगत कराना, उनम नई चेतना जगाना, ऑँख खोलना अपना कत समझा, फूंक
मारी।

जागरण के शं ख और उनकी रचनाओं को िनबंधों, ले खों म कािशत िकया। नाटकों और किवताओं के मा म से


नई चेतना का संचार िकया। भारतदु मंडल के सद , बालकृ भ , तापनारायण िम , अ काद ास,
ठाकुर जगमोहन िसं ह, राधाकृ गो ामी, ब ी नारायण चौथरी े मधन सभी की अपनी-अपनी पि कारएँ थी ं और
उनके मा म से वे पु नजगरण, समाज सुधार, राजनीितक चे तना और िवरोध का सं देश फैलाते थे ।

थािमक अं धिव ासों, पाखं डों, छु आछूत, ऊँच-नीच की भावना को उ ोंने आम जनता म नई जागू◌ृित पैदा करने
का सराहनीय काम िकया और सोई ईई या अथ-सु जनता ने हिथयार उठा िलए। उ ोंने आपसी मेल-िमलाप,
सौहाद, दे शभ , आजादी का मह बताकर दे शवािसयों को सही राह िदखाने का काम िकया।

इस नई चेतना का प रणाम यह आ िक िहं दी किवता िवषय, प, भाषा सभी रों पर एक नया प ले ने लगी।
राजदरबारों और समाजवादी वृि से मु होकर का दे श की सम ाओं को जन-जीवन से जोड़ने लगा।

सामािजक सुधार, धािमक अंधिव ासों का िवरोध, िढ़वािदता, पाखं ड, आडं बर और आिथक किठनाइयो ँ और
दे श की तं ता उनकी जा बन गई भारतदू इस े के अ णी सािह कार थे और उनसे रत होकर भारतदु
मंडल के अ किवयों ने इस काय म मह पूण भू िमका िनभाई।

इस कार भारते दु युग का का पर रागत का -प ित को ागकर अपने दे श, समाज और युग के ित


आलोचना क ि कोण अपनाकर नवजागरण का का बन गया ।
कुछ आलोचकों ने भारते दु यु ग के का म िववादा द रों को इं िगत कर डन किवयों की आलोचना की है।
उ यह अजीब लगता है िक भारतदु और उनके साथी किवयों ने महारानी िव ो रया, ि िटश गवनर लॉड लॉ रस,
लॉड मेयो, लॉ्ड रपन के बारे म लेख और किवताएँ िलखकर उनकी शंसा की है , अपनी ांजिल की है ।

भारते दू महारानी िव ो रया के पु एिडनबग और ि स ऑफ वे के ित आभार और शु भकामनाएं


करते ह। उनकी रचनाओं म चाटु का रता की महक है ,

जाके दरसिहत सदा नैन परत िपयास ।


सो मुख चंद िवलोिकह पूरी सब मन आस ।।

इन किवयों ने महारानी िव ो रया को ‘अथ की िव ो रया तक कह डाला है जो कमका ी किवयों की राजसी


ुित से कम नही ं है ।

शाही और िटश शासन के ित कृत ता करने वाले इन किवयों के कथनों को ठीक से समझने के िलए
महारानी िव ो रया के भारत की सा ा ी बनने से पहले और बाद की प र थितयों को समझना आव क है
1857 से पहले इस पर ई इं िडया कपनी का शासन था।

यह एक ापा रक संगठन था और इसका एकमा उ् दे भारत के धन को लूटना था। उसे अपनी ितजोरी
भारतीयों के आिथक शोषण से भरनी थी।

महारानी िव ो रया ारा भारत म शासन की बागडोर संभालने के बाद, ि िटश शासन की नीित म बदलाव आया,
िजसका माण महारानी ारा 1858 म जारी घोषणाप से िमलता है , िजसम भारत की जनता को आ करने के
िलए कई वादे िकए गए थे और ारं भ म पढ़े -िलखे और सािह कार सभी का उन पर िव ास था।

इस घोषणाप म िशि त और यो भारतीयों को शासन म भारगीदार बनाने और उनकी थािमक मा ताओं म


ह े प न करने का भी वादा िकया गया था।

महारानी िव ो रया के शासनकाल म भारत के िकसानों और आम लोगों को नवाबों, राजाओं, सामंतों, जमी ंदारों,
तालुकदारों के आतं क और शोषण से मु िमली, मुसलमानों के धमाितरण की नीित से होने वाले सामािजक क ों
से उ मु िमली।

वे पहली बार रे लवे , टे ली ाफ, िबजली, ि ंिटं ग ेस और जीवन की अ सुख-सुिवधाओं को दे खकर चिकत रह
गए। ान- िव ान, नई तकनीक, नया शासन, धम के नाम पर प पात से मु ने भारतीयों के मन को
आकिथत िकया। दे श की आिथक थित को सुधारने के िलए पं जाब का कारी अिधिनयम और अवध का कारी
अिधिनयम जैसे कानू न बनाए गए। उ लगा िक अ ेजी शासन उनके िलए वरदान है ।

राजभ प रवार का सद होते ए भी उनका का केवल चाटु का रता नही ं है , शासकों का ु ितगीत नही ं है ,
अपनी परं परा पर भी गव करता है । रा ीय पहचान हािसल करने की ललक भी है , दे शवािसयों को गित के नए पथ
पर ले जाने की ललक भी है , िवशेष प से आिथक शोषण से िनभरता से मु पाने की ललक भी है ।

हां , उनकी वफादारी के पीछे उनका भोला-भाला िव ास है िक िटश शासन के इरादे सही ह उनका आ ासन
स ा है और वह अपनी बात रखगे। यिद उनका यह भोला-भाला िव ास गलत िनकला, तो उनकी दे शभ या
भारत के लोगों के ित उनकी भावना पर संदेह करना अनु िचत होगा।

समय बीतने के साथ-साथ जब ि िटश औपिनवे िशक सा वाद के रह उजागर ए तो उनके नापाक इरादों
की असिलयत उजागर हो गई। सुथारवादी नीित का पतन होने लगा और भारतद् यु ग के सािह कार यह समझने
लगे िक ि िटश शासकों ने सुधार के नाम पर जो। कुछ भी िकया है , रे ल-टे ली ाफ, िबजली की सुिवधा दी है , वह
भारत की जनता के िहत म नही ं है ।

ले िकन हम अपने सा ा वादी कदमों को और मजबूत करना होगा। भारतीयों को िश ा और सरकारी द रों म
िनचले पदों पर िनयु कर अपनी जड़ जमानी ह, भले ही आिथक शोषण नीित का प बदल गया हो, मूल प
से वे भी ई इं िडया कंपनी की तरह भारत को कंगाल, द र बनाना चाहते ह,

यहां के कारीगर-खासकर बनकरों और क े माल के ािमयों को ना कर वे अपने वािण और वसाय का


िव ार करने म लगे ह, वही ं उनम नई सोच, नई चेतना आई। वे समझ गए थे िक ि िटश सा ा वाद सामंतवाद
के साथ हाथ िमला कर लू ट -खसोट का पुराना खे ल खे ल रहा है और वह भारत की जनता का िहतैथी नही ं ब
ू र शोषक है ।

रा ीय चेतना के पु नजागरण और जा ित का एक अंग है अपनी गौरवशाली सं ृ ित का रण कराकर अपने दे श,


अपनी मातृ भूिम की पू जा करना, दे शवािसयों के दय से हीन भावना की गांठ को समा करना, पू वजों का
गु णगान कर उनके आ बल को मजबूत करना, वतमान दु दशा के कारणों को जान। उ दू र करने के उपाय
बताए और बताए। भारतद् युग का का इन सभी काय को सफलतापू वक पू रा करता है ।

सारां श यह है िक भारतद् अपनी भोली आ था के कारण ि िटश शासन की बातों, वचनों और आ ासनों पर िव ास
करते थे और भ की किवताएँ िलखते थे , ले िकन कुछ समय बाद मोहभं ग होने के बाद, वा िवकता को
पहचानने के बाद, उनकी राजनीितक समझ बदल गई और उ ोंने आलोचना की ि िटश सा ा वाद और उसकी
कूटनीित की ध यां उड़ाकर दे शवािसयों म नई चेतना जगाने का यास िकया।

उनके शु आती कारयों ने भले ही शाही भ का म पैदा िकया हो, ले िकन अंततः जब उनका मोहभंग हो गया,
तो उ ोंने दे श की दु दशा का ेय अ ेजी शासन और उसकी कूटनीित को िदया और जनता को अं ेजी शासन
और कूटनीित को जनता से जोड़ा।

भारतदु ने अपने जीवन के आरं भ म जग राथपुरी और बं गाल की या ा की थी और इस या ा के दौरान वे बं गाल के


इन मन यों के िवचारों से भािवत ए। उ ोंने अपने गितशील िवचारों से पहचान बनाई।

उ खुलकर ीकार िकया और उ ी ं के कारण िहं दी भाषी े म पु जागरण का काश आ और उसका


काश थीरे -धीरे सव फैल गया। दू सरी और पुनजागरण की इस धारा को आयसमाज के िवचारों तथा थािमक एवं
सामािजक सुधार से जुड़े आ ोलन से बल िमला।
भारतदु अ ी तरह समझते थे िक भारत की दु दशा के तीन कारण ह।

1. सा ा वादी शोषक िटश शासन,

2. सावजिनक िढ़वाद, धािमक अंधिव ास, सामािजक रीित - रवाज,

3. अ ानता, अिश ा, िम ा अिभमान, आल , िन यता, कत के ित उदासीनता, दे शवािसयों की


कायरता।

उ ोंने अपनी किवताओं के मा म से यथाथ को उजागर कर एक नई चेतना जगाने का यास िकया है । इस


कार उ ोंने जनिहत म एक ापक आ ोलन चलाया और आम जनता तक अपना संदेश प ं चाने के िलए
नाटकों की शै ली पहे ली मुक रस, लोकगीत कजली, िवरहा, चां चर, छै नी, खे मता, िवदे शी आिद का योग िकया।
उनका सािह पु नजागरण का संदेश दे ता है । अतः उसे पुनजागरण का अ दू त कहना उिचत है।
2 छायावादी किवता म िनराला के मह को रे खांिकत कीिजए।

उ र। छायावादी का को वेदी के प वाद और नैितकतावाद के िव द् धु िव ोह का का कहा गया है ।


छायावादी किवयों ने थू ल पर सू का िच ण िकया है , ोंिक उनकी ि बिह ुखी न होकर अ मु खी थी और
उ ोंने अपने का म समाज से अिधक अपने गत सुख-दु ः ख की अिभ की है ।

इन किवयों ने िहं दी किवता को का के ित अपने कोण म एक नया मोड़ िदया, खड़ी बोली को का ा क
बनाने के यास म और कािमनी कािमनी को अिधक से अिधक अलंकृत करने के यास म भाव, भाषा, प -
िनयमन म ाितकारी प रवतन ए। पहले के किव सौ य का या तो थू ल प म िच ण करते थे या गणना क
शैली का आ य ले ते थे ।

छायावादी किव ने वासनामय सी य से दू र सु सौ य का िच ण िकया और भारतीय मनीिथयों के दाशिनक


िस ा ों से भािवत होकर भी अपने का म दशन का संचार िकया, िजसके फल प यह का कही ं -कही ं
रह मय भी हो गया है ।

यु ग की सामािजक और राजनीितक थित से भािवत इन किवयों का ◌ृ दय िवषादपूण और िनराश था। इसिलए


उनके का म िनराशा और िवषाद की भावना मुख है ।

िह ी छायावादी का के चार मुख ों म िनराला को दू सरा महान माना जाता है । अतः उनके का म
भाव और िश दोनों ि यों से छायावादी का के अनेक गु ण िमलते ह।

छायावादी का आ िन का है। इसम किवयों ने आ -सा ा ार का कोण रखा है। इसी ओर


संकेत करते ए िनराला ने िलखा है मैने शैली अपना ली है है िक उ ोंने अपनी किवता म अपनी गत
था, मानिसक था एवं अ म संघष को िकया है । उनका जीवन शु से अंत तक गरीबी और दु ख म से
एक था।

प रवार म प ी और पु ी की असामियक मृ ु ने उनके दय को गहरा आधात प ँ चाया दू सरी ओर समकालीन


किवयों, आलोचको, काशकों और संपादकों ने भी उनके साथ अ ाय िकया समाज के हारों से भी उसका दय
ट् टा था। इसिलए उनके का म दु ख और पीड़ा के र मुख ह ‘सरोज ृ ित, ‘राम की श पू जा’ और ुट
गीतों म हर जगह पुरानी यादों का र सुनाई दे ता है । उ ोंने ‘सरोज ृ ित’ म दो थानों पर आ ािन और
आ िनंदा की अिभ की है ।

दु ः ख ही जीवन की कथा रही


ा क ँ आज जो नहीं कही।

राम की -पूजा’ म राम के मा म से वे अपनी ही असफलता और पीड़ा को करते ह,

िचकू जीवन जो पाता ही आया िवरोध


िधक् साधन िजसका सदा ही िकया शोध

छायावादी का के मुख िवषय सौ य-िच ण और े मानुभूित ह। पहले के किवयों ने ं गार रस का का िलखते


समय ेम के भौितक प पर अिधक बल िदया था। उनकी ेम- भावना वासनायु थी, अतः उ ोंने ी- सौ य
का िच ण करते ए कील-िशख प ित का आ य लेकर ी-दे ह के अंगों का कामुक िच ण िकया है । छायावाद
किव िनराला ने े म की भावना का उदा ीकरण िकया है ।
पर ु बाद म े म और ं गार के गीतों म पािथव, भौितक, अलं कार के थान पर िच य (आ ा क) प िमलता
है , अलंकार भाव को आ ा क ंग दे िदया गया है । तन की अपे ा मन पर बल िदया गया है ; “(ि य) यािमनी
जागी’ किवता म ी के सोंदय और ेम को दशन का श दे कर उदा िकया गया है ।

कृित के आि त प के िच हम या तो वै िदक सू ों म िमलते ह या िफर कािलदास और भवभू ित आिद के


का ों म। उसके बाद लं बे समय तक या तो कृित किवयों के िलए उपे ि त रही या िफर उ ोंने उसे े रक पम
िचि त िकया। रीितकाल तक यही थित थी।

ि वेदी युग के का म कृित का थू ल प म िच ण िकया गया है । छायावादी किवयों ने कृित को सजीव,


सजीव, चेतना से पू ण और मनु के सुख-दु ख म सहभागी मानते ए िचि त िकया है । िनराला के कृित-िच की
िवशेषता यह है िक उ ोंने कृित को चेतना से प रपूण समझकर उसका सजीव िच ण िकया है । आप भी दे खए
उनकी खू बसूरती को दे खते ए उनकी यह त ीर।

छायावादी किवयों पर पलायनवादी होने और अपने समय के समाज को खा रज करने का इुठा आरोप लगाया गया
है । यह सच है िक छायावादी किवयों ने अिधकांशतः अपने सुख-दु ः ख की गत अनुभूितयों को ही अिभ
दी है , पर उनम दे शभ और दे श के ित उ रदािय की भावना भी कम नही ं थी।

िनराला ने पौरािणक संग पर आधा रत ‘राम की श पू जा म अनेक थानों पर रा को उ ोधन दे ने का यास


िकया है । जब जा वान् ने राम से मौिलक प से श की क ना करने का आ ह िकया, तो िनराला का आशय
यह था िक गांधीजी के अिहं सा आं दोलन की िवफलता को दे खते ए भारतीयों को श अ् िजत करनी चािहए।

उस श के बल पर ही िवदे शी शासन को जड़ से उखाड़ना होगा। इस किवता म रावण ि िटश शासन का तीक


है और अरधीनता की बे िड़यों को तोड़ने को आतु र भारतीय जनता के राम अ े त दशन से भािवत छायावादी
किवयों ने बीच-बीच म रह वादी प यो ँ भी िलखी ह।

िनराला ने ‘अपू वा ु त ‘तू तुंग िहमालय ंग और म चंचल गित सुरस रता’ किवताओं म भी आ ा और परमा ा
के अिव े संबंध की बात की है । उनका मानना है िक कण-कण म ई वु र का अ है , माया आवरण है और
इस कारण आ ा अपने को से पृथक मानती है ।

िनराला ने भी तीकों का भरपू र योग िकया है । उनकी ‘बादल राग’ और ‘तु लसीदास’ किवताएँ इस ि से
उ ेखनीय ह। छायावादी किवयों ने अलंकार के िलए अलं कार का योग नही ं िकया है । उ ोंने अलं कारों का
योग केवल े यो को अिधक भावी बनाने के िलए िकया है ।

अलं कार अलं कारों, उपमाओं, उपमाओं का सवािधक योग िकया गया है । िवशेषता यह है िक इनके पक नवीन
ह और सू तम भावों को करने म पूणतः समथ ह । उ ोंने िवधवा को ‘भगवान के मंिदर की पू जा’ और
‘दीपिशखा सी शीट’ कहकर उसकी पिव ता और पिव ता का संकेत िदया है ।

इसी कार जब सरोज के यौवनगम की तुलना वीणा पर गाये जाने वाले मलकी राग से की जाती है तो उनके यौवन
की कोमलता, माधु य और ग ीरता का पता चलता है । अ छायावादी किवयों से िभ उ ोंने प के े म
अनेक नए योग िकए ह। िनराला मु छं द का योग करने वाले थम किव ह।

3 नागाजुन के का म अं तिनिहत गितवादी जीवनबोध पर काश डािलए।


राजनीित म मा वाद ा है , सािह म गितवाद कहलाता है। गितशील लेखकों ने अपने लेखन म मा सवादी
िस ां तों, िवशे ष कर समाज और अथ व था पर मा स के िवचारों को अपनाया है । मा स का मानना है िक समाज
म केवल दो वग ह:

1. बु जुआ वग, िजसके पास उ ादन के साधन जमीन िमल आिद है तथा जो अपनी आिथक थित से
अनुिचत लाभ उठाकर द् सरों का शोषण करता है ।

2. सवहारा, जो िक मजदू र वग है , िजसके पास केवल म श है , िजसे दु जुआ वग अपने फायदे के िलए
इ े माल करता है , जो
शोिषत है और जो जीवन भर अभाव म रहता है , गरीबी की पीड़ा झेलता है ।

मा का मानना है िक इन दोनों वरगों का संधष भारत म हमे शा से रहा है और यह तभी समा होगा जब सवहारा
बु जुआ वग पर िवजय ा करे गा।

बु जुआ वग को उखाड़ फेका जाएगा, समाज म कोई वगिभद नही ं होगा, वगिवहीन समाज की थापना होगी, जनता
का राज होगा। ऐसे आदश वग िवहीन समाज की थापना सम मानव जाित का ल होना चािहए और
सािह कारों को अपनी रचनाओं के मा म से ऐसे समाज की थापना म सहयोग करना चािहए।

इस ल की पू ित म सािह ही सहायक हो सकता है , िजसकी िन िल खत िवशेषताएँ ह:

1. वह उ ीडकों, शोषकों, पुंजीपितयों, दमन और शोषण के काले कारनामों को उजागर करता है , उनके
ित घृ णा, ोध, आ ोश करता है ।

2. सवहारा वग को शोिषत वग के ित सहानुभूित उ करनी चािहए, उनकी आिथक दु दशा और उन पर


हो रहे अ ाय और अ ाचारों का वणन इस कार करना चािहए िक पाठकों का दय क णा से िवत
हो जाए।

3. सवहारा वग म अपने अिधकारों के ित चेतना जा त करना। उसे उसकी श और सामथ का बोध


कराएं और उसे उस श का
उपयोग करने के िलए े रत कर और शोषण व दमन के खलाफ ांित का आ ान करे ।

4. आदश के यू टोिपया को छोड़कर यथाथ की कठोर भूिम पर िवचरण करने वाला सािह कार ही उसका
उ रदािय वहन कर सकता है ।

5. जनता को जगाने वाला सािह जनता की भाषा म िलखा जाना चािहए तािके वे उसे पढ़कर वा िवकता
को समझ सक और ांित के माग पर चलने की श का योग कर सके।

1936 ई. के आसपास िहं दी म गितशील िवचारधारा का आगमन आ, जब लखनऊ म ेमचंद की अ ता म


‘ गितशील लेखक संघ’ की पहली बै ठक ई। धीरे धीरे गितशील या गितशील िवचारथारा और गितशील
सािह श शाली होता गया।

िहंदी गितशील का को िवकिसत, समृ और सश बनाने म नागाज


् ु न का यौगदान मह पूण है । वह जनता
के किव ह। एक गरीब, दिलत िकसान प रवार म ज । नागाज
् ुन, िज ोंने जीवन भर संधथ िकया और किठनाइयों
का सामना िकया, गरीबों, शोिषतों, िकसानों, मजदू रों के दद और पीड़ा के ित स ी भावना रखते ह और उनके
ित स ी सहानुभूित रखते ह, और उ ोंने उनके दु ख और दद को िकया उनके सभी काय , ग और प
म।
बलपूवक िकया। उनम न तो यं को कुलीन िदखाने की ललक है , न वे दशनशा के रह ों को सुलझाने
का यास करते ह और न ही दाशिनक िस वातों को का म अनुवािदत करने का। ऐसे सािह कार ह जो िमटाने
के िलए कलम का इ े माल करते ह।

सवहारा वग का यह ितिनिध किव अपनी रचनाओं म दू सरे शोिषत वग की यातनाओं का दय िवदारक िच ण


करता है । दू सरी ओर शोषण के िलए उ रदायी श यों के ित कठोर होकर उन पर िनदयतापूवक आ मण
करता है ।

ं के तीखे तीरों से पूं जीवादी अथ व था को तबाह करने की कोिशश करता है । इसके िलए वह समाज म
ा कुरीितयों, िवसंगितयों, कु पताओं को सतह के नीचे िछपी सड़ां ध को िनदयतापूवक सामने लाते ह, तािक
हम उ पहचान सक और उनके िवनाश के िलए कुछ कर सके ।

िहंदी की छायावादी किवता के जवाब म और उसके खलाफ गितशील किवता का ज आ। अतएव िवषय की
ि से ही नही ं अिपतु भाषा-शैली और का -िश की ि से भी गितशील का मधु मय मूद् श ावली और
अलं कृत शै ली म न होकर सवसाधारण के िलए िलखा जाता है ।

यहाँ श ावली बोलचाल की है , मुहावरों का योग आ है और किव ं के मा म से अपने आशय को


करने म पू णतया सफल है । उ ोंने पारं प रक छं दों का योग नही ं िकया है और न ही उ ोंने योगवादी किवयों
की तरह छं दों का योग िकया है ।

उ ोंने केवल लय को ान म रखते ए अपनी बात को ऐसी भाषा और छं दों म ु त िकया है िक उनका
आ ान अिधक से अिधक भावी और सुलभ हो सके।

अतः यह कहा जा सकता है िक नागाजुन की भाषा भानुवितनी है , इसम अिधकांशतः सहजता और सरलता है ; यह
एक ध भाषा है । उनकी किवता म बस एक बात खटकती है , कही-ं कही ं उनका लहजा चार वाला भी हो गया है ,
ले िकन ऐसी जगह कम ह।

सारां श यह है िक नागाजुन िहं दी गितशील का के बल ह ा र ह और अ गितशील किवयों के साथ


उनकी िवशेषता यह है िक वे न तो कट ह, न मा वाद के अंध अनुयायी और सा वाद के पूण समथक ह, वे
ितब किव नही ं ह।

यिद ितब ता है तो केवल आम जनता की भलाई के िलए है इसिलए वे चीनी आ मण पर ह, जबिक ितब ता
दू सरों की भलाई के िलए है । उ ोंने अपना गु ा खुलकर जािहर िकया।

4 मु बोध की का भाषा का वै िश बताइए।

अ े य के अनुसार किव होने के िलए आव क है िक वह साथक श ों का साधक हो । इस ि से मु बोध एक


किव ह, ोंिक उनका जीवन अथ की खोज है , उनका मु शोध और सरोकार अ् थ ा करना रहा है । उनकी
साधना साथक अथ ा करने की रही है ।

उनकी साधना ‘तारा स क’ से शु होती है और ‘चां द का मुंह टे ड़ा है ’ म अपनी चरम सीमा पर प ंचती है ।
उनकी का भाषा त व श ावली के योग की ओर िनर र अ सर होती रही है । ‘तारस क’ की किवताओं म
छायावादी पदावली, िच ा कता और रह वाद का र है ।

घनी रात, बादल रम िझम ह, िदशा मूक, िन वना र।


ापक अंधकार म िसकुड़ी सोई नर की ब ी, भयकर।।
समानाथ श ों का योग छायावादी का शैली की िवशेषता रही है । यह िवशे षता मु बोध के ारं िभक काय
म प से िदखाई दे ती है । इसके िवपरीत ‘छं द का मुठ टे ड़ा है म त व श ों का योग अिधक मा ा म
िमलता है ।

मु बोध की का भाषा की सबसे बड़ी िवशे षता है िवषय और भाव के अनु प श ावली का योग, लोक
श ावली का योग जहाँ ामीण े से संबंिधत, वहाँ ◌ं समान श सबसे िवन , कुलीन और नाग रक भावना से
जुड़े ए ह। मु बोध लोकताि क िवचारधारा के किव ह, इसिलए त रव श ों के मा म से ही उ ोंने एक
महान के थान पर एक सामा अिकंचन की ित ा थािपत की है ।

दे खए आम आदमी की ाित की यह त ीर, ल र, कंटोप, कंदील, िसयाह लसी, अकुलायो आिद अनेक श
उनकी का भाषा को लोकजीवन से जोड़ते ह धू ल -ध र, भभड़, िगर न, द ीदार, हे टा, फफोला आिद की
का भाषा भी ऐसे ही श ह नगरीय संवेदनाओं का िच ण करते समय उसकी भाषा का ख बदल जाता है ,
उसका श चयन जैसे टकला आिद भी इस तरह बदल जाता है िक संग और कहानी सहज ही यथाथ बन जाती
है ।

वा व म मु बोध का उ े अपने का को रह वादी बनाना नही ं था, ब हठयोगी अ ा को अथ और


संदभ दे कर अपनी बात को भावशाली बनाना था। अपनी का भावना को सटीक और सश बनाने के िलए
उ जो भी श उिचत लगे , उ ोंने अपना िलया।

यही कारण है िक उ ोंने त म त व, अं ेजी, अरबी-फारसी के अित र मराठी की संरचना अपनाते ए न ,


गजर, पुर, हकल दीया आिद मराठी श ों का योग िकया है और िहे ी को व ी, बादलयु र जैसे नए श
िदए ह ।

समान श द क दे ते ह, उनकी का भाषा के गौरव को कलु िषत करते ह। पर ु कुल िमलाकर उनकी
का भाषा भावों को करने म पूणतः समथ है , ोंिक वह उनके हाव-भाव और ब िवध भाव के अनुसार
बदलती रहती है ।

डॉ. राजनारायण मौय के श ों म, “वह कभी-कभी सं ृ तकृत सामािजक पदावली के अलं कृत अलं कूत माग से
गु जरती ह। कभी – कभी अरबी-फारसी और उदू के नाजुक लचीले हाथों को पकड़कर चलती ह।

मु बोध की का भाषा म िच ांकन की अ त मता है । श दर श िच म रं ग भरता है और भाव की इकाई


पूण होते ही िच भी सजीव हो उठता है । हर त ीर म चेतना झॉकती है और भावना दु लारती है ।

ला िणक िवशेषणों से यु और शानदार श किव की कमीशन के ल ण के िलए अिनवाय साधन ह कोमल अहं
अ वेदना, िम ता वनवासी समीर, िशली भू त गितयों का िहम, िव ह व था, आ ज अनुभव, िशशु जैसे
योग किवता को दु ब ध बना दे ते ह।

उनका श - िववरण भावावेश के वाह म इस कार िव है िक मनोगत अथराि श ों का अथ िन म न


केवल पा रत हो गया है , अिपतु उसके संवेदना क ल भी दे खे गए ह।

मु बोध के का म संगीत की मनाही है , इसिलए उनके छं दों म यित गित को कायम नही ं रखा गया है । उ ोंने
अपनी लं बी किवताएँ अिधकतर मु छं द म िलखी ं।
िहंदी म छं दों को तोड़ने का यास िनराला से शु होता है , लेिकन िनराला जैसे किवयों ने अपने मु छं दों म
संगीत और लय का प र ाग नही ं िकया इसके िवपरीत मु ितबोध
् का मु हछं द लयब ता से सवथा मु है ,
उनके ‘तार स क के का ों म तुक िमलता है ।

ले िकन अं त म उनकी किवता तुकांत हो गई है । इसम का ा कता है । व ुतः मु बोध ने भाषा के नाटीकरण से
अपने प बनाने का काम िलया है , उनकी किवताएँ संगीता क नही ं नाटकीय है ।

उपयु िवशेषण न िमलने पर वह या तो नए िवशेषण का आिव ार कर लेता है या िकसी अ िवशेषण म


िवशेषण की जड़ जोड़ दे ता है , िजससे वा व म वह अपने भाव को ब त सटीक और श शाली तरीके से
कर सके, जैसे फुसफुसाहट ह ी, पफुसफुसाती सािजश िकरनीली मूितयां
् , अ ारी चां दनी, सांवलाई िकरण,
गली की सािड़यों चहचहाती, ठं ड का अंधेरा आिद। उ ोंने भदे स’ श ों का योग तु ता, ु द्ता आिद को इं िगत
करने के िलए िकया है ।

मुहावरों और लोको यों के योग ने भी उनकी का भाषा को समृ िकया है । मुहावरे भाषा को सौंदयबोध के
साथ-साथ अथ म गं भीर बनाते ह। और अपने आप म का की एक इकाई तीत होते ह।

जब तारे िसफ साथ दे ते,


पर नहीं हाथ दे ते पल भर।

त मश का योग कम श ों म अ थ छटा उप थत करता है ,

पाऊ म नए-नए सहचर सकमक सत्-िचत् -वेदना – भा र।

यहाँ अंितम पं म यु समान श ावली कुछ ही श ों म सािथयों के ल ण कट करती है , ऐसे िम जो


वा िवकता की पीड़ा सहकर सूय की तरह जल रहे ह, इसके िवपरीत ‘स ता-उ ुख, वैय कृत, ‘तिदलता’।

5 (क) चचा हमारी भी कभी संसार म सव थी,


वह सदगु णं की कीित मानो एक और कल थी।
इस दु दशा का म भी ा हम कुछ ान था?
ा इस पतन ही को हमारा वह अतुल उ ान था?
उ त रहा होगा कभी जो हो रहा अवनत अभी,
जो हो रहा उ त अभी, अवनत रहा होगा कभी।
हँ सते थम जो प ह, तम-पंक म फँसते वही,
मु रझे पड़े रहते कुमुद जो अंत म हँ◌ंसते वही।।

उ र:-

ुत किवता मै िथलीशरण गु ारा रिचत है । इन पं यों के मा म से किव ने दे श के सुनहरे और गौरवशाली


अतीत को याद करने के साथ-साथ वतमान पतन और ददशा पर दु ख िकया है और दे शवािसयों को सावधान
रहने का संकेत िदया है ।

किव कहता है िक एक समय था जब हम संसार भर म िस थे । हमारे गुणों और ान के सामने सारा िव वु


नतम क था। अदालत म हर कोई हमारे गु णों का बखान करता था, लेिकन आज हम उस पराधीनता के कारण
ददशा म ह, िजसके बारे म हमने कभी सोचा था।

ा ाः -
ा हमारे मन म कभी ऐसा िवचार आया है िक हम अपने आप को इतना हीन समझगे ? हमने जो यश पाया था, वह
इस पतन की दशा म जाना था? आज हमारा दे श जो इतना हीन, कमजोर और लाचार है , कभी इतना उ त था िक
दु िनया हमारे सामने झुकती थी।

किव कह रहा है िक िजस कार कमल के पहले खले ए प े अँचेरे की कीच म थै स


ँ जाते ह, उसी कार ान का
घम करने वाले भी शी न हो जाते ह और जो फूल अंत म मुरझा जाते ह वे है स
ँ ते ह अ्थात् गंभीर और थै यवान
लोग।

वे ही अंत म सफलता ा करते ह। इसिलए हे दे शवािसयों, िनराश मत होइए। चैय और साहस के साथ प र थित
का सामना कर, हम अपना खोया आ गौरव अव वापस िमलेगा।

(ख) पशु नही ं, वीर तुम,


समर-शूर ूर नही ं,
काल-च म दबे
आज तुम राजकँु वर! – समर-सरताज
पर, ा है सब माया है – माया है,
मु हो सदा ही तुम,
बाधा-िवहीन ब छ ों,
डूबे आन मस दान प
महाम ऋिषयो ं का
अणुओ ं परमाणुओ ं म फूंका आ।

ुत किवता िनराला की किवता ‘जागो िफर एक बार’ से उ त है । किव युवाओं म दे शभ और वीरता जगाने
का यास कर रहा है ।

ा ा:-

इन पं यों म किव भारतीयों को उनकी श की याद िदलाता है और कहता है िक तुम पशु नही ं, यु म बीरता
िदखाने वाले वीर यो ा हो, तुम ू र नही ं हो, तु म ाय के िलए वीरता िदखाने वाले हो।

आप काल के च म दबे राजकुमार और रणभू िम के े यो ा ह, पर आप ऐसे ों ह ? नैितकता माया का बंधन


है और आप इससे सदा मु रहे ह । जैसे यित, िवराम, लघु और गु आिद िनयमों के ब न से मु अथात् मुत

छं द किवताएँ भावपू ण लगती ह, उसी कार सां सा रकता से मु होकर आप सदा स वदानंद म लीन रहते ह, वह
है , परम , इस दे श के कण-कण म ऋिषयों के महामं परमाणुओं म ा ह,

जो मनु के िलए सुखद और मु दायक ह, इसिलए भारत के लोगों, आप हमेशा महान रहे ह, आपके मन म
कायरता और वासना के ित मोह दोनों ही भावनाएँ न होने वालीह, इसिलए आप ा के प है , यह सारा संसार
आपके चरणों की धू ल से कम नही ं है ।

अथ वह यह है िक आप ई वुर की रचना के सबसे श शाली ाणी ह, इसिलए आप अपनी श को पहचान


और िफर से जाग।

िवशेष ‘जागो िफर एक बार’ किवता एक संबोधन गीत है । किव इस गीत के मा म से भारतीय यु वाओं को
संबोिधत कर उनके परा म को जगाने का यास कर रहा है ।
(ग) यह दीप अकेला ेह भरा
है गव भरा मदमाता, पर इसको भी पं को दे दो।
यह जन है : गाता गीत िज िफर और कौन गाये गा?
पनडु ा : ये मोती स े पिफर कौन कृती लाये गा?
यह सिमधा : ऐसी आग हठीला िबरला सु लगाये गा।
यह अि तीय : यह मे रा यह म यं िवसिजत :
यह दीप, अकेला, ेह भरा
है गव भरा मदमाता, पर इस को भी पं को दे दो।

ये प यो ँ अजे यता की किवता ये दीप अकेला से उ त ह। वह अ ानी को मह दे ते ए उसे समाज म


एक पहचान िदलाना चाहते थे , उसे समाज से जोड़ना चाहते थे । उनकी ि म मानवता मनु और समाज के
स ों का मू ल िब दु है , दीये के मा म से मानवता की बात करना चाहते थे ।

ा ाः -

जो दीपक के प म होता है वह ेह या ते ल से भरा होता है . वह थोड़ा घमंडी भी है , ले िकन वह ब त खु श


है , ले िकन उसे भी समाज की रे खा के ित समपण कर दे ना चािहए। तािक वह समाज के काम आ सके और
उसका जीवन साथक हो सके वह एक ऐसे श स ह, जो अनोखे गानों की रचना करते ह।

िजसे कोई और नहीं बना सकता। यह एक गोताखोर की तरह है जो िवचार के मोती एक करता है और वापस
लाता है। िजसे और कोई नही ं चुन सकता अथात िजस कार एक गोताखोर पानी म कूदकर मोती चुन ले ता है उसी
कार यह भी इतना कुशल है िक िवचारों के मोती चुन लेता है ।

यह ितभावान उस लकड़ी के समान ह, जो वातावरण म शु ता फैलाने के िलए यं को जलाती है । यानी


इस जैसा कोई नही ं है जो अपने िवचारों से ां ित की आग लगा सके। म इस दीपक के मा म से खु द को
समाज को समिपत कर रहा ं । किव कहता है िक यह दीया ेह, ेम और वा से भरा है पर अकेला है ।

अथात जो पु ष है उसम अिभमान, अहं कार और भी ब त कुछ है । आप श यों से भरे ह। तािक वह शे खी


बधारता रहे । इसिलए अनेक श यां होते ए भी यह अकेला है , हम इसे समाज म शािमल करना चािहए तािक
इसकी श यों से रा का क ाण हो सके। दे शिहत का गीत गाने वाला यही है , अगर इसे समाज म शािमल नही ं
िकया जाएगा तो ऐसे मथु र गीत कौन गाएगा।

यह तो वह गोताखोर है जो भावों के सागर की गहराई म जाकर सुंदर कृितयों के प म मोती दू ं ढ़ता है और िफर
उसे कौन खोजेगा। यह य य है अथात् ऐसी जलती ई अिम अनेकों म से एक-एक को एक-एक को कािशत
कर सकेगा। यह अनु पम है , इसके समान दू सरा कोई नही ं है , यह मेरा है । अथात इसम यं का बोध है ।

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