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प रवतनशील िव म

भारत क रणनीित
सु यम जयशंकर
अनुवाद
दीपक नरश
मेर िपता
ी क. सु यम
और
मेर मागदशक
ी अरिवंदा आर. देव
को
समिपत
अनु म
तावना
1. अवध क सीख प रतु रणनीित का भय
2. िवचलन क कला एक समतलीय िव म संयु रा य अमे रका
3. ीक ण का िवक प एक उभरती ताकत क कटनीितक सं कित
4. िद ी क िढ़गत मा यताएँ इितहास क संशय का समाधान
5. ‘बाबूगीरी’ और जनमानस लोकमत और पा ा य भाव
6. िन जो-इिडयन िडफस उभरते चीन को साधने क यूह रचना
7. िनयित म देरी भारत, जापान और एिशयाई संतुलन
8. शांत भारतीय भारतीय समु ी- भुता का पुन थान
कोिवड क उपरांत उपसंहार
संदिभका
तावना
“बुि म ा यही ह िक बदलते िव क बदलती
शैिलय क लय म िनरतर चलते रह।”
—ित व ुवर
चार दशक क राजनियक अनुभव से गुजरने क उपरांत जब यह ात आ िक अब तक िजन मा यता पर हम
काम करते आए ह, आज उ ह सवाल क घेर म खड़ा िकया जा रहा ह तो यह स य हम िवचिलत कर गया। िकतु
इसका अथ यह नह था िक हमार सार अनुभव अचानक अ ासंिगक हो गए। इसक िवपरीत ऐसा लगा था िक िजन
लोग ने िपछले कई दशक का गंभीरतापूवक अ ययन िकया ह, वे भिव य का पूवानुमान लगाने म अिधक स म
थे, हालाँिक त य क आधार पर सच तक प च जाना आसान नह होता। यिद राजनीितक शु ता का दबाव एक
चुनौती ह तो बढ़ती ई िढ़गत मा यता का बोझ भी कम नह । इसी क समक एक किठनाई और ह—वै क
संदभ क पया समझ और साथ ही उसे देखने का एक िवशु रा वादी कोण। वैसे तो यह दुिवधा वतं ता
क बाद से ही लगातार बनी ई ह, िकतु रा वाद क दौर ने इसक गंभीरता और तेज कर दी ह। ये वह कछ मु े
ह, िज ह ने मुझे िपछले दो वष से य त रखा ह।
कई मायने म यह वाभािवक था िक म उन िवषय पर कछ िलखूँ, िजनक आसपास मेरा जीवन घूमता रहा ह।
एक अ कािशत पी-एच.डी. थीिसस और भारत-अमे रका परमाणु संिध क आंत रक इितहास क सम वत भाव ने
मेर आ मिव ास को कछ बल िदया। इस तरह वष 2018 म िवदेश सिचव क प म मेर कायकाल क समा
होने क प ा ‘इ टी ूट ऑफ साउथ एिशयन टडीज, िसंगापुर’ से फलोिशप िमलते ही मने इसक शु आत कर
दी थी। तदुपरांत इसक प तथा िवषय-व तु म यिद कोई बदलाव आ भी रह थे तो उसक मूल म तेजी से बदलते
वै क घटनाच का भाव ही था। जीवन क िकसी पड़ाव पर सं मरण जैसा कछ िलखने का िवचार आया भी
तो उसे यह सोचकर टाल िदया िक यह काय वे अ छी तरह से करते ह, जो अपने उ रदािय व से मु हो चुक
होते ह। मेरा यास ब क यह रहा िक समकालीन राजनीित पर, िविभ मंच पर पार प रक प रचचा क
मा यम से ऐसे तक-िवतक का िवकास हो; िजसे, जहाँ तक संभव हो, अिधक-से-अिधक साथक तथा िन प
बनाया जा सक।
इन चार दशक म िव को एक िशखर-िबंदु से देखना सचमुच लाभदायक रहा। इस कार, इसक जोिखम
तथा संभावना को िन प भाव से देखना संभव हो पाया। मा को म मेर राजनियक जीवन क ारिभक अनुभव ने
‘पावर पॉिलिट स’ क ब मू य सू समझाए—कछ तो संभवत: अ ायोिजत थे। अमे रका म मेरी चार कायाविधय
क दौरान एक ऐसे राजतं क ित िच जगी, िजसका आ मिव ास और लचीलापन अि तीय ह। जापान का एक
लंबा वास, पूव एिशया क सू म िवसंगितय तथा हमार उन पार प रक संबंध क शोध म बीता, िजसक संभािवत
मता को हम अब तक पूरी तरह आँक नह पाए ह। इसक साथ ही, िसंगापुर म बीता समय वै क गितिविधय
क साथ तालमेल बैठाने क मह व को समझाने वाला रहा। ाग तथा बुडापे ट क कायकाल ने इितहास क धारा
क ित सजग तथा संवेदनशील रहने क ेरणा दी। एक रोचक एवं किठन ीलंका दौरा ब मू य राजनीितक-सै य
अनुभव वाला रहा, परतु अनुभव क से सबसे मह वपूण कायकाल यिद कोई था तो वह चीन का कायकाल
रहा, जब 2009 म उसम आए ऐितहािसक मोड़ से म जुड़ा। वहाँ एक राजदूत, त प ा अमे रका म राजदूत और
िफर िवदेश सिचव क प म मने त कालीन वै क प रवतन को ब त समीप से देखा, हालाँिक कई वष तक
िविभ पद पर कायरत रहने क दौरान अपने वदेशी राजनीितक नेतृ व क साथ रह मेर तादा य का अनुभव
सव प र रहा—इसे श द म य करना किठन ह। रणनीितक ल य को प रभािषत करने का मह व, सव क
प रणाम क पहचान और राजनीित एवं नीित क पार प रक ि या का मू यांकन—इसक े उपल धयाँ
रह ।
िविभ घटना म क सम वय से, िवगत दो वष म यह पु तक िलखी जा सक । ‘िथंक टक’, ‘कॉ स’
अथवा ‘िबजनेस फोरम’ म िदए गए या यान इसक मूल अवयव ह। यापक तर पर ये सभी ासंिगक ह, िकतु
आव यकतानुसार इनम सामियक संवधन िकया गया ह। ‘अवध क सीख’—ऐसे कई अवसर पर क गई मेरी
िट पिणय का एक रचना मक प ह। ‘िवचलन क कला’—‘ओ लो एनज फोरम’, ‘द रायसीना डायलॉग’, ‘द
सर बानी यास फोरम’ और ‘सटर फॉर टिजक एंड इटरनेशनल टडीज’ म िदए गए मेर या यान का सार ह।
‘ ीक ण का िवक प’—‘सा फाउडशन, नई िद ी’ म य िकए गए मेर िवचार से संकिलत िकया गया ह।
‘िद ी क िढ़गत मा यताएँ’—चतुथ रामनाथ गोयनका मारक या यान का एक िव ता रत सं करण ह।
‘बाबूगीरी और जनमानस’—‘सट टीफस कॉलेज’, ‘द ह रटज फाउडशन’, ‘द यूिनविसटी ऑफ बिमघम’ एवं ‘द
अटलांिटक काउिसल’ म तुत क गई प रचचा का संकलन ह। ‘द िन जो-इिडयन िडफस’, िसंगापुर म िदए
गए एक या यान पर आधा रत ह। ‘िनयित म देरी’—‘द िद ी पॉिलसी ुप’, ‘इिडया फाउडशन’ तथा ‘द इिडया
इटरनेशनल सटर’ म क गई प रचचा का संकिलत प ह। ‘ शांत भारतीय’—‘द इिडया फाउडशन’ ारा
आयोिजत तीन ‘इिडयन ओशन कॉ स’ तथा एक ‘नेशनल मेरीटाइम फाउडशन’ क या यान ंखला म
अिभ य त य का संकलन ह। ‘कोिवड क उपरांत’—इसम पाँचव ‘रायसीना डॉयलॉग-2020’ से लेकर मेर
हाल क दु भाव को भी िनिहत िकया गया ह।
म उन सभी संगठन का आभारी , िज ह ने मुझे अपने िवचार को य करने का एक यथोिचत मंच िदया।
ोता क िति याएँ, वाद-संवाद क िवषय-व तु को और अिधक समृ करने म सहायक िस । यिद
कभी जानबूझकर इनक धार तेज क गई तो यह बस मन-म त क को एका करने क उ े य से ही क गई
होगी। यह िब कल प ह िक िचर-गितशील वै क प र थितयाँ वे मह वपूण कसौटी ह, िजन पर हमारी रा ीय
गित को परखा जाता ह। कोरोना क िवभीिषका इस स ाई क पु ही नह करती, ब क उन प रवतन क
आक मक आगमन क सूचना भी देती ह, िज ह िव कालांतर म देखेगा। इसक प रणाम क गंभीरता को यान
म रखते ए हम चािहए िक हम दलगत ओछी राजनीित से ऊपर उठकर इस िवषय पर साथक तथा िन प संवाद
कर।
म उन सभी लोग का ऋणी , िज ह ने इस पु तक क प रक पना, लेखन तथा समपण म अपना अमू य
सहयोग िदया, िवशेषकर मेरा िनिल प रवार, अरसे तक मुझे झेलते रह मेर िम तथा तक- ेमी मेर सहकम । मेरा
िवशेष आभार मेर अन य सहयोगी रािधका, गु , राजेश तथा रमेश को, िजनक िबना मेर इन िवचार को संभवतः
श द नह िमल पाते। चूँिक इस पु तक क नैया मेर अपने ही जीवन क िहचकोल से जुड़ी थी, मेर काशक ,
िवशेषकर कशन चोपड़ा ने अपने धैय क पतवार थामे रखी। आशा करता , उनक यह साहिसक सहनशीलता
पुर कत हो पाएगी।
1.
अवध क सीख प रतु रणनीित का भय
“शासन करने से िवमुख होने का कठोरतम दंड ह
िकसी अयो यतम से शािसत होना।”
— लेटो
स यिजत र क एक मश र िफ म ने कछ दशक पहले उस भारतीय प रतु मानिसकता को िसनेमा क परदे पर
उतारा था, िजसने दुिनया को समझने क इसक यापक नज रए को आकार िदया। िफ म म दो भारतीय नवाब जब
शतरज क िबसात पर एक-दूसर को शह-मात देने म य त थे, ि तानी ई ट इिडया कपनी ने चुपक-चुपक उनसे
अवध क संप स तनत हिथया ली। आज जब एक और वै क महाश का उदय हो रहा ह—और वह भी
भारत क िब कल पड़ोस म—तो यह देश एक बार िफर से इसक प रणाम को लेकर बेसुध नह रह सकता। कायदे
से तो चीन क उदय को भारत क ित पध वृि को धारदार करने क िलए एक ेरणादायी अवसर क तौर पर
देखा जाना चािहए, नह तो कम-से-कम वै क राजनीित क िदशा और हम पर पड़ने वाले इसक भाव पर एक
गंभीर िवमश क गुंजाइश तो बननी ही चािहए।
यह इसिलए ज री ह, य िक इसक समानांतर कई मह वपूण बदलाव आ रह ह। एक य तथा यापक
पुनसतुलन अब बढ़ती े ीय अ थरता, दु कर जोिखम मता, बल रा वाद तथा वै ीकरण क बिह कार क
आवरण म आ गया ह, लेिकन सबसे िवचारणीय प रवतन अमे रका का आशंिकत ख ह, जोिक एक लंबे व
तक समकालीन वै क यव था क बुिनयादी िस ांत का मे दंड रहा ह। चीन क उदय पर इसक िति या
समकालीन वै क राजनीित क िदशा को तय कर सकती ह। चूँिक वै क गितिविधयाँ इनक आंत रक
गितशीलता म पूरी तरह से आकिलत नह क जाती ह, इसिलए ऐसे प रवतन ाय: भारत म अनदेखे रह जाते ह। ये
हमारी िचंतन णाली पर िकस तरह से भाव डालते ह, यह भी िकसी िन त राजनीितक कथन क अनुप थित म
हमेशा प नह िकया जाता ह। इसिलए जबिक भारत वै क यव था म उभर रहा ह, इसे न कवल अपने िहत
को यादा प ता से देखने क आव यकता ह, ब क उसे भावी ढग से तुत करने क ज रत ह।
यह भारतीय क बीच एक ईमानदार संवाद को ो सािहत कर उस िदशा म योगदान देने का एक साथक य न
ह, िजसे दुिनया से छपाने क कोई वजह नह ह।
अंतररा ीय संबंध का मतलब अकसर दूसर देश क बार म हो सकता ह, लेिकन न तो इससे अनजान रहने से
और न ही इसक ित उदासीन होने से इसक भाव कम हो जाते ह। इसिलए इससे पहले िक घटनाएँ हम पर हावी
ह , उनका और िव ेषण बेहतर होता ह, लेिकन हमारा इितहास कछ और ही कहानी कहता ह, िजसे ‘पानीपत
िसं ोम’ म साफ देखा जा सकता ह, िजसम आ ांता और उनक आ मणकारी फौज को हमने िनणायक
लड़ाइय क िलए भारत क क म प चते ए देखा था। र ा मक रहने का यह दोषपूण िवक प उस मानिसकता
का प रचायक ह, जो िनिहताथ को समझने क बात तो जाने ही दीिजए, प रणाम को अ छी तरह से समझने म भी
नाकाम ह।
दूसर िव यु क प रणाम क ित त कालीन भारतीय उपे ा क गंभीर नतीजे आए। अगले एक दशक म
शीतयु को लेकर भारतीय रवैये ने पािक तान को, जोिक एक छोटा सा पड़ोसी मा था, दशक तक हमार बीच
क श -साम य क अंतर को साधने का अवसर दे िदया। ज मू-क मीर क एक िह से पर इसक अवैध क जे को
उसी तरह से कम करक आँका गया, जैसे—1971 म करारी हार क बाद इसक ितशोध क भावना को। चीन क
बार म समझ भी अपया रही ह। चाह 1949 क ांित का मह व हो या बाद म सा यवादी रा वाद क ती ता या
आिखरकार 1978 क उ व क िवशालता क । जैसे-जैसे भारत िव राजनीित क साथ यादा प रिचत होता गया,
स ा समीकरण को राजनीितक मािनयत समझने क गलती क जाने लगी। अप रहाय िनणय, जैसे िक परमाणु
श जैसे मु े, नतीजतन टाले जाते रह, िजनक भारी क मत चुकानी पड़ी। संयु रा सुर ा प रष म थायी
सीट क िलए समय रहते य न न करना एक और उदाहरण ह, िजस पर यापक तर पर बहस होती आई ह।
वै क गित क दौरान आिथक िवकास क मोच से मुँह फर लेने पर जो अवसर हमने गँवाए ह, उनका िक सा
िन त प से पहले भी कहा जा चुका ह। 1971 क बां लादेश जंग, 1991 क आिथक सुधार, 1998 क परमाणु
परी ण और 2005 क परमाणु डील ऐसे फसले थे, िजनम हम रणनीितक प से ए नुकसान क भरपाई करने
क कोिशश कर रह थे, लेिकन यह सम ता म हमारी खोई ई ित ा क भरपाई नह कर रही थी। ऐसा हाल ही
म संभव हो पाया ह, जब एक अिधक ढ़ संक पत राजनीित ने हठधिमता भर उसूल वाली शालीनता को पीछ
छोड़कर उस शू य को भरा ह।
िकसी संभािवत महाश का उदय सहज तौर पर िकसी बनी-बनाई वै क यव था म एक हलचल उ प
करने वाली घटना होती ह। अगर हम भूल गए ह तो यह इसिलए, य िक ऐसा आिखरी बार सोिवयत संघ क साथ
आ था, जब एक िव यु क िवभीिषका क चलते इसक उदय को अहिमयत नह िमल पाई थी। महाश य
और उनक अित छािदत सह-अ त व क बीच सं मण हमेशा ही जिटल रह ह। बीसव शता दी क पहले उ राध
म इ लड और अमे रका क बीच का स ावपूण सं मण कवल अपवाद ह, कोई िनयम नह , लेिकन जब समाज
अलग-अलग िस ांत पर बनते ह तो ित पधा क साथ पर पर सहयोग क बीच सुलह क संभावना अ यंत दु ह
हो जाती ह। असहमितय का मह व वाभािवक प से कम हो सकता ह, अगर िकसी रा का भाव अपे ाकत
कम ह। ऐसे म इसक कारवाइय का भाव मु य प से इसक नाग रक पर ही पड़ता ह। यह त य संभवत:
उपिनवेशकाल क त काल बाद क िव म यादा वीकाय था, जब ऐसे रा का साम य कम था, लेिकन जब
उ ह ने वै क मानदंड पर एक तर को ा कर िलया तो उ ह नजरअंदाज करना ब त मु कल हो गया।
समाज क बुिनयादी वभाव क ान को लेकर असमंजस म रहते ए अंतररा ीय संबंध क संचालन क भी
अपनी सीमा होती ह। यह भावी प से आज प प रलि त होता ह, जबिक राजनीितक अलगाव क ित सभी
क कोण एक-दूसर का समथन करते ह। ारिभक चरण म वै ीकरण ने, जोिक एक साथ रहने क एक
अिनवाय िववशता बन चुका था, अपने इन उभरते िवरोधाभास को कम कर िदया था। िफर भी कछ मामल म भू-
राजनीितक तनाव ने, उन देश म जो एक-दूसर क िलए आगे आते ह, एक मुखर रा वाद क प म अपनी जगह
बना ली ह। ती ित पध वातावरण आज क िव म संचालन श क प म अपेि त होना चािहए।
चीन क वै क मंच पर जोरदार आगमन क अपने अलग भाव पड़ ह। इनम से कछ तो दूसरी श य क
वाभािवक िव थापन क फल व प उपजे ह, लेिकन इन भाव का कछ अंश चीन क अपने मौिलक चा रि क
पहचान से भी जुड़ा ह। दूसर रा से िभ , जो एिशया म पहले िवकिसत ए, उनक मुकाबले प म नेतृ व वाली
वै क यव था म समायोिजत होना यादा मु कल ह। वा तिवकता यह ह िक वतमान समय क िव क दो
श शाली रा , जो कई वष तक एक-दूसर क राजनीितक िहत को पूरा करने म एक-दूसर क सहयोगी रह,
अब ऐसा नह कर रह।
भारत क िलए ऐसा प र य कई सारी रणनीितक चुनौितयाँ लेकर आया ह। द ता क साथ इन चुनौितय से
िनपटना एक अहम चुनौती होगी, िवशेषकर जब हमार अपने िहत क नज रए से ये कदम उठाए जाने ह । ऐसी
मानिसकता का िवकास, जो न कवल जवाब देने म स म हो, ब क वा तिवक प म लाभ उठाने म भी सफल
रह, नए भारत क त वीर गढ़ सकता ह। वतमान म, अमे रका िफर से रणनीितक कनवास पर अपनी पहचान म
नयापन लाने का य न कर रहा ह। िफलहाल इसक कोिशश मह म य वाद, यादा िनिल ता और ती
कटौती क ह। पुनगणना क यह कायिविध काफ किठन ह, य िक अतीत क इसक साम रक दाँव क प रणाम को
आसानी से बदला नह जा सकता। इसिलए हम अनुिचत यापार, अंधाधुंध अ वासन और कत न सहयोिगय जैसे
तमाम भावी िक से सुनते ह तथा हम बाजार तक प च, तकनीक साम य, सै य भु व और डॉलर का वच व
जैसे घटक, सम या क समाधान का रा ता नजर आते ह। वैसे अमे रक राजनीित भिव य म चाह िजस प म
देखने को िमले, उसक यादातर प रवतन दीघ अविध तक िटक रहने वाले ह। अमे रका-चीन का पार प रक
ग या मक संबंध, जो दोन देश क साथ िव राजनीित पर भी प भाव छोड़गा, भारतीय नीित िनधारण क
पृ भूिम होगी।
वै ीकरण का सौ य युग, िजसने चीन क ुत िवकास का मंच तैयार िकया था, उसका अंत आ चुका ह। िकस
भाँित यह दौर गुजरा, यह भी य प से मह वपूण ह, लेिकन इससे सबक या लेना ह, वह तो और भी यादा
अहम ह। भारत क िवकास क गित धीमी रही ह तथा इसे अभी और किठन दौर से गुजरना होगा। हम एक ऐसे
अशांत दौर म वेश कर गए ह, िजसम एक नए िक म क राजनीित का योग हो रहा ह। मु ा यह नह ह िक
या भारत क उदय का यह दौर जारी रहगा, य िक यह होना तो तय ह। सवाल यह ह िक भारी अिन तता क
इस युग म इसे मह म तरीक से कसे िकया जाए।
िफलहाल कई पुरातन और कछ क पनाशील नीितय क अित र , भारत क पास िवक प ब त सीिमत ह,
लेिकन इन सबम वै क िहत से साझेदा रयाँ एक अहम बदलाव ला सकती ह, हालाँिक इसका यादातर दायरा
प मी देश और स क इद-िगद घूमेगा, लेिकन चीन, जो अब दुिनया क दूसरी सबसे बड़ी अथ यव था ह,
उसे इस कार क आकलन म िकसी भी तरह नजरअंदाज नह िकया जा सकता। अिधक जोिखम उठाकर इन
सबको साधना आसान भले न हो, लेिकन िफर भी उससे कम पर बात बनती िदखाई नह देती। िदमाग क दाँव-पेच
म महारत हािसल करना और इनक भीतर क यूह-रचना को समझना, आज क गोपनीयता भरी दुिनया म और भी
यादा ज री ह। यह सब करने क िलए अहम ह िक हम इसक जिटल गितमयता क साथ कछ शत तय कर। तब
जाकर कह भारत नए युग म सफलतापूवक अपनी साम रक नीितय को संचािलत कर पाएगा।
िपछले कछ वष क घटनाएँ सामा य तरीक से हटकर घटी ह, िजससे वै क मामल क िदशा को लेकर
अपेि त संशय उ प आ ह। अमे रका और चीन दोन क ही मामल म चीज पूव अनुभव क दायर से बाहर
जाकर घिटत ई ह। पािक तान ने अपनी नीितय को लेकर मह म िनराशावादी सोच क हद को भी पार कर िदया
ह। भारत क दूसर पड़ोिसय ने भी कई बार अतीत क अपनी नीितय से इतर आचरण का दशन िकया ह।
बदलती ई भू-राजनीितक यव था का भाव भारत क नजदीक दायर म भी िदखाई दे रहा ह और िव ता रत
पड़ोस म भी। स क साथ भारत क संबंध को भावपूण रखने क िलए एक समिपत यास क आव यकता ह।
जापान ने अपनी तमाम प र थितज य िवषमता क बावजूद भी अवसर मुहया कराए ह। यूरोप क साथ हमार
संबंध और सु ढ़ ए ह, िकतु वहाँ क बढ़ती राजनीितक जिटलता को देखते ए और अिधक दूरदिशता क
आव यकता ह। समकालीन राजनीित क हमार अिधकतर िव ेषण पर िवचारधारा क ं क भी छाप रहती
ह। घटना क िदशा हम भले ही नापसंद हो, लेिकन इससे उनक वा तिवकता पर कोई असर नह पड़ता ह। उन
घटना क प कारण और भाव होते ह, िज ह वीकारना ही पड़ता ह। हमारा कोण चाह जो हो, बेहतर
यही होता ह िक हम उनका िव ेषण करने का यास कर, न िक उनको गलत सािबत करने का, जैसा िक
डॉन ड प क संदभ म ह।
िव म भु व रखने वाली ताकत जब अपने मूल िस ांत का पुनमू यांकन करती ह तो उसक भीषण प रणाम
होते ह। उसका भलीभाँित आकलन करना, होने वाले प रवतन क थािय व का अंदाजा दे देता ह। भारत क िलए
इस कायिविध क एक िवशेष भूिमका ह, य िक अमे रक आकलन इसक समसामियक उभार क समथन म
िदखाई देता ह। उसक कोण म आने वाला यह प रवतन वै क राजनीित और भारतीय िहत को िकस तरह
भािवत करगा, यह आज एक अहम सवाल ह। यह कोण दूसरी श य से इसक र त क गितशीलता क
साथ अभे प से जुड़ा ह। यापार और सुर ा को लेकर अमे रका का नया कोण िकसी भी भाँित अ ासंिगक
नह ह। पूववितय क साथ हमार अनुभव क तक को आधार बनाकर प शासन से यवहार करना एक गलती
होगी। नई ाथिमकताएँ आकार ले रही ह, ऐसे म उस काम को करते समय पुराने तौर-तरीक म प रवतन क
ज रत ह।
भारत क उदय को अप रहाय प से चीन क साथ तुलना का सामना करना पड़गा, य िक उसक तर क इससे
पहले ई ह। वै क सजगता पर इसक छाप, इसका सां कितक अवदान, इसका भू-राजनीितक मू य, आिथक
मोच पर इसका दशन, ये सार कारक इस तुलना म शािमल िकए जाएँग।े कवल दूसर क रणनीितक और
राजनियक कायनीितय का अनुकरण मा िकसी भी ऐसे समाज क िलए संवेदनशील प से यु संगत नह कहा
जा सकता, िजसका अतीत और कोण दोन िनतांत िभ ह । यह होते ए भी ऐसा ब त-कछ ह, जो भारत
चीन से सीख सकता ह। एक सुनहरा सबक वै क ासंिगकता का दशन करक िव पटल पर स मान अिजत
करने का उपयु तरीका ह। िसंगापुर क नेता ली ान यू ने एक बार यं या मक शंसा करते ए भारत क
तर क को यादा आ त करने वाला बताया था। आज का िव उस स मान को अिजत करने क िलए और
यादा सहमित क अपे ा कर सकता ह।
वैसे िवकास और थािय व क िलए और यादा ोत क राह देख रह िव म एक अवसर भी िछपा हो सकता
ह। लोकतांि क नीितयाँ, ब लतावादी समाज और बाजार-आधा रत आिथक यव था क चलते भारत सबक साथ
ही िवकास कर सकता ह, एकाक नह । इस आकषण क साथ भारत अपने िलए भावी तरीक से नए सहयोिगय
क तलाश कर सकता ह। एक समान मू य, जो उ ह एक साथ लाते ह, वे ब त मायने रखते ह, िजसक अहिमयत
एक ौ ोिगक संचािलत युग म िवशेष प से बढ़ जाती ह। वे उन इराद को आकार देते ह, जो जब मता क
साथ िमल जाते ह तो साम य क कित को ढ़ कर देते ह। अगर एक कम संदेह करता ह तो दूसर का साथ लेने
म अिधक उ साही रहता ह।
भू-राजनीित और श -संतुलन अंतररा ीय संबंध को सश करने वाले आधार ह। भारत क पास भी चाण य
नीित क परपरा रही ह, जो इनक मह व को रखांिकत करती ह। हमार िनकट अतीत क अगर कछ सबक ह तो वे
ये ह िक इन नीितय को वो मह व नह िमला, िजसका उ ह अिधकार था। 1950 क दौर क बांडग युग क अ ो-
एिशयन एकजुटता हम श शाली ताकत क क मत क याद िदलाती ह, लेिकन यह साम य क कमी से भी
यादा एक सोच क कमी को प रलि त करता ह। व तुतः हम एक ऐसी लीग म प च चुक ह, जहाँ अपने िहत
को सुरि त रखने क मता िवक प नह , ब क एक अनुमान ह। यह आकलन रा ीय साम य और बा संबंध
क िम ण से ही िकया जा सकता ह।
प तौर पर एक रा वादी िव म साम रक नीितयाँ ित पधा क मा यम से, िजतना अिधक हो सक, संबंध
से मह म लाभ हािसल करने का य न करगी, लेिकन िफर भी भारत क संदभ म एक िवशेष प र थित वृह र
यव था संतुलन को समथन क भी ह। हमार िवकास का मॉडल और राजनीितक कोण मूलभूत प से िनयम
आधा रत आचरण का समथन करते ह, इसिलए िन त प से भारत को वै क िहत और रा ीय िहत क बीच
सामंज य का नर िवकिसत करना ही पड़गा। असल चुनौती तो एक वृह र ब ुवीय और अश ब प ीय
िव म इसक सफलतापूवक संचालन क ह।
भारत क वै क नीितयाँ अतीत क तीन अहम बोझ ढो रही ह। पहला 1947 का िवभाजन, िजसने देश को
जनसां यक य और राजनीितक प से छोटा कर िदया। इसका अनचाहा प रणाम तुलना मक प म चीन को
एिशया म अपे ाकत अिधक साम रक मह व देने क प म आ। दूसरा, आिथक सुधार म देरी, जोिक चीन क
तुलना म डढ़ दशक बाद शु ई और यादा गहराई से देख तो यह अनेक दुिवधा से भरी होने क साथ ई ह।
पं ह वष क इस अंतराल ने भारत को सदैव नुकसान म बनाए रखा ह। तीसरा बोझ, भारत का आव यकता से
अिधक लंबा िखंचने वाला यू यर िवक प का काय म रहा ह। इसक चलते भारत को उस यू यर डोमेन म
अपना भाव हािसल करने म यादा प र म करना पड़ा, जो वह पहले बड़ी सरलता से ा कर सकता था।
अ छी बात यह ह िक कभी भी न होने क अपे ा िवलंब से ही सही, इस िदशा म काम हो रहा ह। 1947 क बाद
क हमारी गलितय पर और यादा आ ममंथन हम देश को बेहतर तरीक से आगे ले जाने म मददगार होगा। हम
इसक दायर को, छोड़ िदए गए िवक प तक ले जा सकते ह।
एक ऐसा देश, जो एक लंबे समय तक नुकसान क धरातल पर रहकर काम करता आया ह, वहाँ िकसी भी
कार क बदलाव का वागत खुले िदमाग से करना होता ह, हालाँिक सुदूर गित क नतीज को भले ही कमतर
नह आँका जा सकता, लेिकन वे जो हमार अ यंत करीबी दायर म होते ह, अपे ाकत यादा फायदे क पेशकश
करते ह। ‘नेबर ड फ ट’ क नीित का नज रया, जो उपमहा ीप म अिधक उदारता क साथ आिथक और
सामािजक संबंध क किड़य को पुनिनिमत करने क वकालत करता ह, भारत क िहत म काम कर सकता ह।
पड़ोस क इस भावना का िव तार पूव और प म दोन तरफ करना एक जैसा भावकारी ह। दि ण क समु ी
िव तार का हमार सुर ा-तं से एक करण हमारी वृह र कोण का एक और अहम त व ह। ऐसी नीितय का
एक साथ संचालन, भारत को िन नतर िदखाने वाले अतीत क यादातर कटनीितक नतीज को पलट सकता ह।
आिसयान का अपने सद य देश म सामंज य और क ीय साख पुन: ा करने क यास ने भारत क
अप रहायता उ प क ह। देखा जाए तो भारत-िवभाजन ने एिशया म श -संतुलन म जो अ यव था पैदा क ,
1945 क बाद जापान पर लगाई गई पाबंिदय से वो और बढ़ गई थी। इसिलए ‘नेबर ड फ ट’ वाली उस नीित क
सुर ा मक ख का भारतीय आकलन क िलए कछ िनिहताथ ह। वा तव म जब एिशया का संग आता ह तो
प रवतन उस मा ा म अभी भी पूरी तरह वा तिवकता से दूर ह। एक बात िनिववाद प से कही जा सकती ह िक
इससे भारत क िलए वेश- ार और यादा बढ़ ही ह, कम नह ए ह।
वैसे वतमान वै क प र य चाह िजतनी बेचैनी उ प करने वाला तीत होता हो, यह िपछले कछ दशक म
हािसल क गई गित पर परदा डालने वाला नह होना चािहए। इस गित क फल व प िविभ काय े क एक
वृहत दायर म आने वाले अनिगनत लोग क जीवन क गुणव ा म सुधार संभव आ ह। िन त प से भारतीय
लोग क भिव य क बेहतर होने क याशा करना तकसंगत समझा जाएगा। वे वै क अड़चन और अवरोध को
नजरअंदाज नह कर सकते, िकतु िकसी िनराशावादी कोण को वीकारने क िलए भी उनक पास कोई कारण
नह ह। इसक िवपरीत, हमारी घरलू प र थितय और अंतररा ीय थित ने नई संभावना क ार खोले ह। जो
िवक प हम उ प करगे, वही हमार िनणय को तय करने म हमारी मदद करगे।
यह हमार िलए एक ऐसा समय ह, जब हम अमे रका को ‘एंगेज’ कर चीन को ‘मैनेज’ कर, यूरोप से संबंध
बढ़ाएँ, स को आ त कर, जापान को हमार खेल म शािमल कर, पड़ोिसय क साथ जुड़ाव बढ़ाएँ, पड़ोस का
िव तार कर और पारप रक भरोसे वाले े का दायरा बढ़ाएँ। अवसर और खतर का जो िम ण इस अिन त
और अ थर िव म उपल ध ह, उसका आकलन करना आसान नह ह। संरचनागत प रवतन क साथ, िवशेषकर
यव था म कटौती और कानून क अनदेखी करते ए, यह करना तो और भी मु कल ह। आज ल य, रणनीित
और कौशल पूरी तरह से िभ ह। ऐसे म वै क िहत क नुकसान क बात परशान करने वाली हो सकती ह, पर
िफलहाल इसका कोई व रत िवक प भी नह ह।
ऐसी गितशील यव था क बीच एिशया म थायी संतुलन का सृजन करना भारत क सबसे पहली ाथिमकता
ह। कवल ब ुवीय एिशया ही ब ुवीय िव का माग श त कर सकता ह। इसक समानांतर मह वपूण यह भी
ह िक इससे लोबल िस टम क िलए भारत क अहिमयत काफ बढ़ जाएगी। हमारा यास शेष िव क साथ
अपारदिशता या दूरी बनाकर रखने क बजाय एक सुिवधाजनक तर कायम करना होना चािहए। हम िजन उभरती
ई वै क श य क साथ संबंध का ताना-बाना बुनना होगा, उनम वाभािवक प से संशय होगा। वै क
दािय व का वहन करना, एक रचना मक सहयोगी क भूिमका िनभाना और वयं क एक अलग य व को
सामने रखना—उस संशय क समाधान क त व ह। भारत क िलए बेहतर थित ह, अगर उसे िसफ स मान देने क
बजाय, पसंद भी िकया जाए।
तो वा तव म, इसका िवदेश नीित और उसक संचालन से या संबंध ह? सबसे पहले वै क िवरोधाभास से
उ प अवसर को पहचानकर और उनका दोहन करक रा ीय िहत को आगे बढ़ाने क आव यकता होगी। ऐसा
भारत रा ीय सुर ा और रा ीय अखंडता पर यादा यान देगा। यह आव यकतानुसार अपने िहत क िलए अपनी
थित को समायोिजत करने से नह िहचिकचाएगा। ऐसी मानिसकता अपनी साख बढ़ाने क िलए आपसी मेल-
िमलाप को भी धानता देगी, िजसक शु आत भारत से सट पड़ोिसय से होगी। इससे इसक आधारभूत सोच को
और अिधक अथ िमलेगा तथा साथ ही अपने िहत क संर ण क िलए कछ भी कर गुजरने क इ छाश जा त
होगी। वै क चेतना क एक प भाव डालने क मता इसे अगले तर पर ले जाएगी। यह वै क िवषय
और े ीय चुनौितय से िनपटने म यादा योगदान को ो साहन देगी। मानवीय सहायता और आपदा म
िति या (H.A.D.R.) ऐसा ही एक य मंच ह, जहाँ और यादा प प म इस भावना का दशन िकया जा
सकता ह।
िन य ही इसक कछ सै ांितक पहलू भी ह गे। अपनी कटनीितक पूव- ितब ता को इस चचा म उप थत
करना अंतररा ीय आिवभाव क ि या क बुिनयाद ह। इडो-पैिसिफक, ाड अथवा पहले ि स इसक
या या करने वाले उदाहरण ह। हमार ांड क अहिमयत, जो पहले से ही हमार यापार और सूचना-तकनीक
साम य क ज रए वयं को सािबत करती आई ह, उसका और आगे िव तार िकया जा सकता ह। कोरोना महामारी
ने अब भारत को दुिनया क औषिधशाला क प म थािपत िकया ह। सां कितक पहचान को भी इस ि या को
सश करने हतु मु यधारा म लाया जा सकता ह। िमसाल क तौर पर अंतररा ीय योग िदवस मनाया जाना और
पारप रक औषिधय क समथन का उ ेख यहाँ समीचीन ह। यहाँ तक िक अंतररा ीय समुदाय से अपनी भारतीय
भाषा म संवाद भी बदलते संतुलन का संकतक ह।
लेिकन इन संवधनकारी त व से यादा आधारभूत क पनाएँ मह वपूण ह, जो प रवतन म अहम भूिमका िनभा
सकती ह। हम 1945 क प ा वाले िव क सोच को सामा य समझकर उसक अनुसार ढल चुक ह और इस
सोच से पर िकसी भी िवचार को एक असामा य घटना ही मानते ह। वा तव म, हमारा वयं का ब लतावादी और
जिटल इितहास इस त य पर बल देता ह िक नैसिगक प म हमारा िव ब ुवीय ह। यह स ा क अनु योग म
िनिहत सीमा को भी उ ािटत करता ह। एक यवहार और िचंतन ि या, जो इसको दिशत करती ह, वही
दूसर क साथ यादा अनुकल संतुलन बनाना संभव कर सकती ह।
भारतीय नीित-िनधारक को वै क मामल पर उनक कोण म कठोर वा तिवकता क गुणव ा का
मू यांकन करने क आव यकता हो सकती ह। काफ हद तक यह वै क िवकास क चलते उनपर थोपी गई एक
बा यता ह। तकरीबन सभी सरहद क दायर म बढ़ता आ रा वाद अंतररा ीय संबंध क लेन-देन वाले व प
को प रभािषत कर रहा ह। यापार और कने टिवटी को दी जा रही अहिमयत अपनी पसंद तय करने क चलन को
सश कर रही ह। टस-से-मस न होने वाले ‘अमे रका फ ट’ और श शाली ‘चाइनीज ीम’ नए मानक
थािपत कर रह ह। िकसी भी थित म वैसे भी, स का फोकस, सोिवयत संघ क मुकाबले, ारभ से संकिचत ही
रहा ह। यहाँ तक िक यूरोप भी िकले वाली मानिसकता क चलते अपने िहत एवं मू य क बीच सही संतुलन को
पाने क िलए संघष कर रहा ह। रहा सवाल जापान का तो इसका िनरतर सतक रवैया वयं इसक कहानी कह रहा
ह। भारत क पास िवक प ब त सीिमत ह, िसवाय ‘जैसा देश, वैसा भेष’ वाला रवैया अ तयार करने क। वा तव
म, यह ऐसा बेहतर तरीक से कर भी सकता ह और शायद इस ि या म नए अवसर भी ढढ़ सक।
हालाँिक ांड िविश ीकरण क पीछ एक कारण भी ह, जो िवशेष प से बढ़ती ई मह वाकां ी श क िलए
बेहद अहम ह। भारत क संदभ म, यह इसक रा वाद क सकारा मक व प पर िनिमत होना चािहए। दुिनया को
यह मरण कराना अिनवाय ह िक हमने दूसर को तब भी आिथक सहयोग और िश ण उपल ध कराए, िजस दौर
म हमार वयं क संसाधन सीिमत थे। भारत क शेष िव क साथ भागीदारी क िव तार को महज मह वाकां ा क
च मे से देखने क बजाय कह अिधक गंभीर और गहन नज रए से देखा जाना चािहए। ‘सबका साथ, सबका
िवकास, सबका िव ास’ क अवधारणा िवदेश नीित क संग म भी उतनी ही मह वपूण ह, िजतना िक घरलू मोच
पर। शेष िव क साथ भागीदारी क बुिनयादी आकां ा को इसे यादा यापक प म प करना चािहए।
भारत और शेष िव क एक-दूसर क िलए या मायने ह, यह नज रया नए समीकरण क बनने क साथ
बदलता रहगा। उ तर तर पर जाती ई अथ यव था क एक अलग ासंिगकता होगी। इसका आशय रा ीय
मता क मह र िवकास, यापार करने क ि या का सरलीकरण, सबक िलए एक समान प रवेश क
सुिन तता और वै क िवकास क साथ आगे बढ़ने क बीच सही संतुलन साधने से ह। भारत और शेष िव क
बीच नए संतुलन अलग-अलग े म बनगे, कछ म तो िबना िकसी घषण क संभव ही नह , लेिकन अंतररा ीय
जनसमूह क पास भारत से हािसल करने क िलए िसफ आिथक लाभ क अलावा और भी ब त-कछ ह। भारत का
दशन तय करगा िक सतत िवकास क ल य क ा , जलवायु-प रवतन क चुनौितय का सामना, ट ोलॉजी
का उपयोग और ितभा क एक बड़ ोत क उपल धता सुिन त हो।
कवल इतना ही नह , लोकतांि क आचरण को लेकर वै क िव सनीयता क मजबूती भी ब त हद तक
भारत क आँकड़ पर िनभर करगी। इसक िलए भारत को आगामी वष म अपने मॉडल को वयं सफलतापूवक
आगे ले जाना होगा। जबिक बड़ी अथ यव था म अगली पीढ़ी म जो भी गित रहगी, उसक सू मतापूवक
िनगरानी क जाएगी। साथ ही, वै क ाथिमकता क िलए इसक ासंिगकता और भी यादा यान आकिषत
करगी। इस कायिविध क क म एक िव सनीय ‘मेक इन इिडया’ काय म क उपल धता सुिन त करानी
होगी, जो और यादा लचीले लोबल स लाई चेन म योगदान दे सक। उभरती ई ह रत ट ोलॉजी का एक ऐसे
पैमाने पर इ तेमाल, जो वै क तर पर अपनी अलग छाप छोड़ सक, कम मह वपूण नह होगा।
भारत िजन सामािजक-सां कितक प रवतन से गुजर रहा ह, वह भी इस संपूण मैि स म अहम कारक ह। युवा
आबादी से भरपूर भारत म वृहत तर क जाग कता आ मिव ास को बढ़ाने का काम कर रही ह। एक अिभलाषी
भारत रा ीय ल य क ा और िव पटल पर अपनी उप थित दज कराने को अप रहाय प म यादा
ाथिमकता देगा। बढ़ ए भरोसे क भावना से लैस भारत संभावना क खोज को कई िदशा म ले जाएगा।
इसिलए यह आव यक ह िक समकालीन अंतररा ीय घटना म इस िवकास को मा यता द और स मान कर।
एक भारतीय राजनियक क तौर पर अपने लंबे क रयर क दौरान मने िव को क पना से पर बदलते ए देखा
ह। मेरी पीढ़ी और उससे पहले क हमार क रयर क व र राजनियक को अमे रका, चीन और पािक तान क साथ
किठन अनुभव क भारी बोझ ढोने पड़। 1970 तक आते-आते ये तीन कारक सामूिहक प से भारतीय िहत क
िलए खतर क साझीदार बन चुक थे। मेर राजनियक जीवन क पूवाध पर दो भू-राजनीितक वा तिवकताएँ हावी
रह । एक शीतयु और दूसरा राजनीितक इ लाम का उदय। इन दोन क संयोग ने सोिवयत संघ क िवघटन को
ती कर िदया, जोिक भारत क िलए एक गंभीर प रणाम उ प करने वाली घटना रही। जबिक क रयर क उ राध
ने, हमार देश को ऐसे प रवतन एवं अ य कारक क साथ समायोजन करते देखा। इसने अमे रका क साथ हमार
गठबंधन को बुिनयादी प से प रवितत कर िदया और साथ ही हमार पूव म एक नई श उठ खड़ी ई, िजसक
वै क नतीजे सामने आए, लेिकन ऐसा नह िक िसफ दुिनया बदल रही ह, ब क भारतीय साम य, अिभलाषाएँ
और ाथिमकताएँ भी बदल रही ह।
यह सब िमलकर सोिवयत संघ कि त नीित से िभ -िभ श य क साथ गठजोड़ क िमक िवकास क प
म प रलि त । आिथक सुधार, परमाणु परी ण, 2005 क परमाणु संिध और रा ीय सुर ा को लेकर एक स त
रवैया इनम से कछ राजनियक मील क प थर रह ह। एक साथ िमलकर यह एक नीित-कि त कोण बनाने म
सहायक रहा, जो पुरातनपंथी सोच क आईने म देखना आसान नह रहा ह। अगर भारत ने पुनज िवत िकए गए
‘ ाड’ (QUAD) फोरम को अपनाया तो वह शंघाई कोऑपरशन ऑगनाइजेशन (SCO) क सद यता भी वीकार
क । स और चीन क साथ एक पुराना ि प ीय र ता अब एक ऐसे संगठन क साथ सह-अ त व म ह, िजसम
अमे रका और जापान साझीदार ह। य प से िवरोधाभासी िदखने वाले ये गठजोड़ वा तव म उस िव को
िन िपत करते ह, िजसम अब हम काम कर रह ह। उनको समझ पाना और संदेश का आदान- दान करना ब त
किठन ह, िवशेषकर उनको जो कटनीित क इस नए वा तुशा क जिटलता से जुड़ी शत को अपनाने को
तैयार नह ह। ऐसे अ थर िव म थित क िनधारण क अहिमयत बढ़ रही ह, जोिक अमे रका, चीन, यूरोपीय
संघ और स जैसी ित ं ी ताकत को एक ही समय म साधने क मह व क या या करता ह।
लेिकन जब भारतीय कायकलाप को भारत क वयं क िहत क नज रए से देखा जाता ह तो एक प पैटन
उभरना शु हो जाता ह। उनम, शेष िव ारा उपल ध कराए गए सभी िवक प का योग करक अपने ल य
और िहत का लगातार पीछा करते जाना, एक ह। चूँिक ायः इसका अथ एक अ ात धुंध से गुजरने जैसा ह,
इसिलए इस काम म िनणय-श और साहस दोन क आव यकता होती ह। हमार अतीत का भाव तो सदैव
बना रहगा, लेिकन अब उसक भूिमका हमार भिव य क िनणायक क नह ह। भिव य गढ़ने का अथ होगा—
जोिखम लेना और कायरता को कटनीित एवं अिनणय क थित को बुि म ा समझने से बचना।
कई मायने म िपछले पाँच वष म भारत क गित ने उन लोग को चिकत िकया ह, जो िव ेषण क पुराने पैमाने
से िनकलने म या तो असमथ रह या अिन छक। यह आशंका िक इसक अमे रका नीित एक शासन क नीितय
या दूसर क रा वाद पर आधा रत होगी, गलत सािबत हो चुक थी। भारत अहम मु पर कायम रहते ए भी चीन
क साथ संबंध बनाए रख सकता था, इस कोण को आसानी से समझा नह गया। स क साथ संबंध को
लेकर जो ढाँचागत आधार था, उसको कम करक आँका गया, जैसा िक समकालीन भारत क िलए यूरोप और
जापान क ासंिगकता को लेकर आ ह।
संभवत: सबसे मजबूत पूवधारणा अपने सबसे करीबी पड़ोिसय को लेकर रही। हर जिटल प र थित को एक
आघात क तौर पर पेश िकया गया और हर सुधार को भी शायद भारत ारा उठाए गए कदम से अलग एक
अप रहाय घटना क प म प रभािषत िकया गया। ऐसी थित म यह आ य क बात नह िक जो इलाक हमार
अिधकार े म थे, उनको िच ि त तक नह िकया गया।
पािक तान प प से सबसे बड़ी बहस का कारण रहा ह। भारत दो ती का हाथ बढ़ाते ए भी आतंकवाद क
घटना क िखलाफ कड़ी कारवाई कर सकता था। यह आपस म िवरोधाभासी त य नह थे, िसवाय उनक िलए
जो इसे िवरोधाभास क प म देखने पर अड़ थे। प तौर पर िभ -िभ कारवाइयाँ, िखलाड़ी और समय अलग
तरह क िति या क माँग करते ह। समकालीन चुनौितय , जैसे—आतंकवाद को ितिबंिबत करने क िलए
एजडा तय करना एक यावहा रक बुि का िवषय ह, न िक मनमानेपन का।
वे लोग, जो हमारी रा ीय सुर ा से जुड़ खतर क ऐितहािसक समझ से वािकफ ह, जािहर ह, अफगािन तान
क िचंता करगे। चाह हम इसका िज मेदार सा ा यवादी फलाव को माने या िफर सीधे तौर पर गलत िनणय कह,
वहाँ क मामले एक नाजुक हालात म आ गए ह, लेिकन यह भी सच ह िक घड़ी क सुइयाँ दो दशक पीछ सरकाई
नह जा सकत । इस अंतराल म भारत का जो योगदान रहा ह, उसक चलते यहाँ क मामल म इसको भी अपनी
एक भूिमका िनभानी ह और िजसक प रणाम व प इसका अपना एक ढ़ मत ह, िजसका मह व िकसी भी कार
से कम नह ह। इसिलए आव यक ह िक दूसर क किटल चाल का पिहया हम र दने न पाए। हमारी अहिमयत
दुिनया क उदारता क चलते नह , ब क हमारी साम य क चलते ह और हमारी भूिमका न कवल इसे दशाएगी,
ब क इसम शािमल दूसरी ताकत क साथ करीब से काम करना भी सुिन त करगी।
शासन का अनुभव िकसी भी िव ेषण क िव सनीयता को बढ़ा देता ह। आसान श द म कह तो कई चीज
क वकालत करना तो आसान होता ह, लेिकन उ ह करना यादा किठन। वा तव म, सटीक प से यही वह तक
था, िजसक आधार पर मेर िपता ने 1976 म अंतररा ीय संबंध क एक छा क मन म भारतीय िवदेश सेवा क
परी ा म बैठने क चाह पैदा कर दी थी। तब से यही सीखता आया िक एक महा देश म वा तिवक नीित
िविभ ाथिमकता पर समानांतर काम करने क ि या ह, िजनम से कई ाथिमकताएँ िवरोधाभासी भी हो
सकती ह। न तो उनसे बचकर और न ही उ ह सुर ा कवच पहनाकर उनक आपसी ख चतान से बचा जा सकता
ह। साथ ही महज चचा से काम नह चल सकता, िवक प भी चुनने पड़ते ह, िजनक अपनी एक क मत होती ह।
लेिकन िवक प से पहले साम य क चचा होती ह। यह घरलू चुनौितय से िनपटने क हमारी मता ह, िजसक
आधार पर िव पटल पर हमारी अहिमयत तय होगी। कम-से-कम अब हमारा यान सही मु पर कि त ह—
िडिजटलाइजेशन, औ ोगीकरण, शहरीकरण, ामीण िवकास, बुिनयादी ढाँचा और कौशल इ यािद। ‘स टनेबल
डवलपमट गो स’ क ा भारत क िलए वही काम कर सकती ह, जो ‘िमलेिनयम डवलपमट गो स’ ने चीन क
िलए िकया था।
आिथक मोच पर कछ फसले िलये जाएँग,े िजनको हमारी यापक रा ीय श को सीधे सहन करना होगा।
हमारा कछ े को लेकर कभी अ प, कभी अित संर णवादी दोन का रकॉड रहा ह। 1991 क बाद क
रणनीित िन त प से गुमराह हो चुक ह और जारी ड वॉर एवं कोरोना क बाद क रकवरी क ि या और
यादा सामियक कोण क िलए भावी बा यताएँ ह, जैसे यह राजनीितक ब ुवीय यव था को साधता ह, इसे
आिथक असंगित को भी साधने का य न करना होगा, िवशेषकर उन बड़ क को, िजनक इद-िगद इसका यापार
और िनवेश संकि त ह। लंबी छलाँग लगाने क िलए आतुर समाज क िलए ट ोलॉजी क भी अपनी एक िवशेष
आव यकता ह। आ ामक तैनाती किठन हो सकती ह, लेिकन इसक नतीजे ब त शानदार होते ह। अंतत: बाहरी
मोच पर नेतृ व करने क िलए घरलू मोच पर नतीजे देने क ज रत होगी।
चाह वह साम य क बात हो या भाव क , वै क श सोपान म ऊपर जाना भारत क गित का िसफ
घटक ह। हमार देश को इसक समानांतर कई और या ाएँ करनी ह। िपछले कई दशक म लोकतं क जड़ जैसे-
जैसे गहरी होती ग , हमने और यादा ामािणक विनयाँ सुनी ह। हमारी रा ीय सं कित म ये प रवतन, अ य
बदलाव क साथ राजनीित और मतदान क प रणाम से और भी यादा पु ए ह। इसी क साथ भारत का व प
एक स यतागत समाज से एक रा रा य म प रवितत हो रहा ह, िजसम हमार दैिनक जीवन क पहलु को
अनुशासन और औपचा रकता से प रिचत कराने वाली िवशेषता क क पना शािमल ह। इसक साथ ही इितहास
ारा नजरअंदाज सम याएँ भी ह—िवशेष प से िवभाजन—िजस पर एक नवीन िचंतन क आव यकता ह।
इसिलए इसक बढ़ते भाव से इतर िव को आज इस भारत क िलए अपनी सोच बदलने क ज रत ह।
आज जो अहम न हमार स मुख उप थत ह, वे उस वै क पुनसतुलन से जुड़ ह, जो अभी होने क ि या
म ह। या शेष िव भारत क िनयित प रभािषत करगा या िफर भारत अब यह काय वयं करगा। अवध का
उदाहरण आज तक इन दोन म पूवकिथत ि या का ही तीक ह, लेिकन अब अगर दूसरी वाली राह पर चलना
ह, तब इसका मतलब न कवल दूसरी श य क साथ, ब क वै क यव था क साथ भी नए संतुलन बनाने
ह गे। भारत आज ‘ वयं क खोज’ क या ा पर ह और अवध से िमली सीख इस या ा म एक प िदशा-सूचक
यं क तरह ह।

2.
िवचलन क कला
एक समतलीय िव म संयु रा य अमे रका
“कभी-कभी एक छोटी लड़ाई हारकर आप महायु
जीतने का एक नया तरीका ढढ़ लेते ह।”
—डॉन ड प
अगर आप हमार समय क े ािनय क मान तो यह नह होना चािहए था। िपछले दो दशक से चीन िबना
लड़ जीत रहा ह और अमे रका िबना जीते लड़ रहा ह। यह बात हम कवल िकसी े िवशेष या मंच से जुड़
िन कष क िवषय म नह कर रह ह। इससे भी यादा यह आिथक िवकास, राजनीितक भाव और जीवन क
गुणव ा क िवषय म ह, िजसक फल व प इसी राह पर चलते ए अमे रका ने अपना िचर-प रिचत ‘आशावाद’
भी गँवा िदया। कछ तो इसक मू य क प म चुकाना था और इसक प रणित क प म 2016 क रा पित चुनाव
क नतीजे सामने आए। यह िन त प से इस नतीजे क अकली वजह नह थी, लेिकन महज इस इकलौते
चुनावी नतीजे क ज रए अंतररा ीय यव था का नायक ांितकारी हो गया। दूसरी तरफ, उभरती ई ताकत चीन
खुद को यथा थित या िफर अपने लाभकारी त व को बनाए रखने का जतन करता नजर आता ह।
दुिनया ऐसी असाधारण संभावना को देख रही ह, िजसम दो अ णी देश हर हाल म जीतने क िलए कछ भी और
उससे भी कह यादा करते िदखाई दे रह ह। उनक यवहार का पर पर और शेष िव पर भाव अब य
िदखाई पड़ रहा ह। अ य थितय म अमे रका शायद सौदेबाजी या िनपटने का तरीका अपनाता, लेिकन ितकल
धरातल पर यह अनुबंध क शत म बदलाव पर यादा यान कि त करता नजर आ रहा ह। समय क माँग यह ह
िक जो चीज इसक िहत क िलए लाभकारी न हो, उसे छोड़ िदया जाए। डील या समझौत को जारी रखने या न
रखने दोन क िवक प खुले रखे जा सकते ह। सव म िव ेषण तो यह कहता ह िक तमाम वै क महाश य
क एक-दूसर क साथ सामंज य थािपत करने क मता ही हमार समय का भिव य तय करगी, जब ऐसी
असंभा य प र थितयाँ, िजनका पूव आकलन तो असंभव लगता ह, लेिकन पीछ मुड़कर देखने पर वै क धरातल
पर उनका उदय अव यंभावी तीत होता ह तो यव था पांतरण क ि या से गुजरती ह।
ता कािलक यव था पर िनयं ण रखने वाली श क िलए ये बदलाव चेतावनी भर िदखाई देते ह। िवशेषकर
तब, जब हम प रपाटी से हटकर घटना पर यान कि त करते ह, लेिकन अंतररा ीय संबंध, सहमितय क
संक ण को मजबूत करने और असहमितय का बंधन करने का एक कला मक दािय व ह। इस तरह क गितशील
ि याएँ एक साथ सह-अ त व म रहते ए भी िनरतर िवकिसत होती रहगी। मह म थित म ये या तो सहयोग
या िफर संघष को ज म दगी, लेिकन पर पर-िनभर िव म यादातर संबंध क प रणित दोन थितय क कह
बीच म थर रहती ह। यहाँ तक िक पर पर ित ं ी रा क बीच भी सहमितय का संक ण कोई अनजानी बात
नह ह। सबसे संि उदाहरण क तौर पर थम िव यु क बाद अमे रका और जमनी तथा दूसर िव यु क
दौरान अमे रका और सोिवयत संघ क संबंध को देखा जा सकता ह। इसक िवपरीत, ि टन और अमे रका क बीच
ांस-अटलांिटक संबंध असाधारण प से भरोसेमंद सािबत ए ह। इनक बीच म कह ‘मेइजी पुन थापना’ क बाद
ि टन-जापान क भागीदारी आई, जो आधी सदी तक जारी रही। पहले 1950 क दशक म और आज क दौर म
िफर से चीन क स क साथ साझेदारी भी उ ेखनीय ह।
अमे रका-चीन क र ते, िजन पर आज पूर िव क ह, िपछले चार दशक से चलते आए ह। आधुिनक
युग म यह कोई छोटा समयांतराल नह ह। इस दौरान िकसको लाभ आ, यह एक ऐसा न ह, िजसका उ र
आज से दो दशक पहले िमलने वाले उ र से िभ हो सकता ह, लेिकन चूँिक यह इतना लंबा अंतराल ह, िजसे दो
पीिढ़य को िमला समय माना जा सकता ह, हम इसको सहज प से होने वाली घटना मान सकते ह। हम पूछते ह
िक संबंध म अब तनाव य ह, जबिक साथ ही हम आसानी से अचरज भी कर सकते ह िक िफर इतने लंबे समय
तक संबंध चलते य आए! लेिकन इन दोन न से अलग, शेष िव आज एक ऐसी यव था क ासंिगकता
पर िवमश म य त ह, िजसे िवकिसत तो थािपत-महाश य ने िकया, लेिकन उसका अ यंत बुि म ापूण
उपयोग एक उभरती ई श ने अपने िहत क पूित क िलए िकया।
िविश प से जैसे-जैसे संबंिधत प समतु यता क समीप प चने लगते ह, क वजस क संभावना धूिमल होने
लगती ह या वे ऐसा मानने लगते ह। यह चीन और अमे रका क साथ उतना ही सच ह, िजतना 1948 म चीन और
सोिवयत संघ या 1922 म इ लड और जापान क बीच था। एक साझा िवरोधी, जोिक एक साथ आने क िलए
उ रदायी बन सक, उसक अनुप थित भी प र थितय म प रवतन कर देती ह। जमनी और जापान क हार ने
अमे रका और सोिवयत संघ क संबंध क बा यता को ख म कर िदया। स का अपे ाकत कम मह व भी
अमे रका-चीन संबंथ म प रवतन का एक कारक रहा ह। इसक अलावा, जैसा िक अमे रका-यू.क. िवशेष संबंध
से जािहर ह, जहाँ सामािजक समानताएँ भी असाधारण प से जुड़ाव क ताकत हो सकती ह, वह असमानताएँ भी
उसी अनुपात म िवघटनकारी हो सकती ह। वतमान घटना को पसंद, वाँग या िफर अहकार क नतीजे क प म
देखना रोचक ह और यह सब सच भी हो सकता ह, लेिकन इससे अलग, यह कभी न ख म होने वाली अंतररा ीय
संबंध क एक ि या का िह सा भी ह।
2016 क घटनाएँ अपनी कित म अपवाद से भी यादा रह । हमार समय म दुिनया का सबसे श शाली रा
इतनी तेजी से अपना रा ता बदल लेगा, यह इतना मह वपूण ह िक इसका अितशयो पूण वणन मु कल ह। इस
त य क पहचान करते समय यह भी गौर करना ज री ह िक ऐसे बदलाव क घटनाएँ पूरी तरह से कोई नई नह
ह। ‘अमे रका फ ट’ का वयं का भी इितहास ह, िजसक अिधक िवरोधाभासी त व को उजागर कभी-कभी इसक
आलोचना क िलए भी िकया जाता ह। इसका अंतररा ीय दािय व क क मत पर अपने रा ीय िहत को
ाथिमकता देना भी कछ ऐसा ह, जो इस वैचा रक अलगाव को और बढ़ाता ह। िकसी का यह पूछना वाभािवक
हो सकता ह िक बन सांडस क िवदेश नीित कसी िदखाई देती? लेिकन अपने ारिभक सं करण म यह एक
वै क आकार वाला अमे रका नह था और यह एक वा तिवक अंतर ह।
स ने भी 1992 म सोिवयत संघ क िवघटन क तुरत बाद यही रा ता अपनाया था। कमोबेश दूसर देश भी, बड़
ह या छोट, यूनािधक प म यही रा ता अपनाते ह, भले ही वे ऐसा करने क बात वीकार न करते ह । यह सब
कवल मुख राजनीितक जनसां यक य क , उनक आिथक दशा को लेकर िति या से समझने यो य ह, िजसे
उ ह ने िव म होने वाले िवकास से जोड़कर देखा था। आसान श द म कह तो वै क आपूित ंखला को एक
आिथक संकट क प म समझा गया था और आ जन तथा आवाजाही को सां कितक।
वै ीकरण ने प मी देश म जो असुर ा क भावना उ प क ह, उसे समझना एिशया म कई लोग क िलए
मु कल ह। उ ह ने ले ट-राइट समीकरण को आगे बढ़ाया, िजससे रा वादी उ मीदवार को चुनावी सफलता म
मदद िमली। चूँिक अिधक िनरतरता यु लोबल इकोनॉमी क लाभ ने समाज और उनक बीच असमान िवतरण
को िन भावी कर िदया, इसिलए आज घटना म बदलने क साथ िजतनी घबराहट ह, उतना ही गु सा भी ह।
अमे रका म जब ‘डीप टट’ और ‘लाउड टट’ एक साथ आते ह तो संरचना मक प रवतन शु हो जाते ह।
जो घटना एक अ यािशत राजनीितक घटना क प म शु ई, उसने बीते तीन वष म खुद को कछ हद
तक मु यधारा म समािहत कर िलया ह। कोरोना संकट से भी पहले वै क आपूित ंखला क भाव और
तकनीक वच व ने बढ़ते वािण यक वैमन य को तेज धार दे दी थी। इस ित पधा म साख पर या लगा ह,
वह इस त य से रखांिकत होता ह िक कई मायन म यह वयं अवरोध क ही बार म ह। इसक फल व प
उ प होने वाली मताएँ और उनका प रिनयोजन, िबना िकसी अितरजना क, वै क भिव य क िदशा तय कर
सकती ह। इस तक का एक अंश िबग डटा क उपयोग क आसपास घूमता ह। उभरती ई मुख तकनीक पर
िनयं ण भी इसी क बराबर प रणाम देने वाला ह। नई होड़, कि म बुि म ा (आिटिफिशयल इटिलजस) और
एडवांस क यूिटग, ांटम इफोरमेशन और सिसंग, एिडिटव रोबोिट स और ेन-क यूटर इटरफस, एडवांस
मैट रय स, हाइपरसोिन स और बायोट ोलॉजी क े म ह। जो भी िवचलन, तकनीक को यादा बेहतर तरीक
से उपयोग म लाएगा, वह िव को यादा भािवत करगा। िव क बड़ी ताकत इसे उ रो र प ता क साथ
पहचान रही ह। अब जबिक यापा रक िववाद और अिधक गहन होते जा रह ह, िवशेषकर अमे रका, उन
मौिलक प से िनतांत िभ औ ोिगक नीितय पर िवचार कर सकता ह, जोिक इसक रा ीय सुर ा ज रत क
अनु प ह ।
जब नई श याँ उभर तो उ ह क समानांतर पूव- थािपत श य ारा उभरती ई श य क िवरोध क
योरीज भी सामने आ । पाटा-एथस तथा यू.क.-जमनी क बीच क िववाद का उदाहरण िदया गया, लेिकन यह
िकसी त य का मा एक प ह, जो िक पूव- ात िकसी िववाद से अिधक जिटल ह, हालाँिक माण इस बात
क भी ह, िजसम भु वशाली रा ने उभरती ई श य क सहायता क । 1950 क दशक म सोिवयत संघ
और 1970 क दशक से अमे रका का सहयोग पाने वाला चीन वयं इसका लाभाथ ह। स ाई यह ह िक यह
वैमन य न तो पूरी तरह संरचनागत ह और न ही पूविनधा रत। इितहास म हर तरह क उदाहरण िमल सकते ह।
िविभ श य , जैसे—अमे रका, यूरोपीय देश या िफर जापान, ने एक सामा य कारण बना िलया और यु क
राह चल पड़। यूरोप क भीतर संबंिधत देश ने भी यही रा ता अपनाया। िहत और प र थितय क तरह सं कित
क भी अपनी एक भूिमका होती ह, लेिकन अंितम िव ेषण का ता पय कल िमलाकर िसफ आकलन और
अपे ा से ह। ये दोन ही नेतृ व, पसंद और सामािजक संवेदना क यु पाद ह, वा तव म कछ भी अप रहाय
नह ह। चूँिक इनका सं ेपण अंतत: मानवीय कारक म होता ह, इसिलए मू य और आ थाएँ भी वै क
सम या को आकार देने म अपनी भूिमका िनभाती ह।
आज क दौर म संबंध म असहजता, रा क आपसी संबंध, राजनीित, समाज, कारोबार, आ था और बाजार
जैसे अहम मु पर मतभेद क चलते उपजती ह। इन मतभेद को वैय क वतं ता और सां थािनक
बा यता क िवषय म य िकया जाता ह। समाजशा अहम हो जाता ह, िवशेषकर जब एक बार वै क
अंश क प म मा य हो जाता ह। आज िव क जो थित ह, वह उसक मूल कारण म िनिहत ह। इसिलए एक
साझा आधार तैयार करना सबसे किठन राजनियक चुनौितय म से एक ह। यह एक बहस का िवषय हो सकता ह
िक या इन िवरोधाभास को थोड़ी और देर तक कशलतापूवक जारी रखा जा सकता था, लेिकन मुख रा क
राजनीितक नतीज ने वैसे भी इस न को अ ासंिगक बना िदया ह। अपने नए अवतार म चीन और अमे रका क
बीच यह ित ंि ता, िबना प नतीज क एक लंबी और किठन ित पधा बनने वाली ह। संभािवत प र य एक
अिन य क थित ह, जहाँ भू-राजनीित म थानांतरण तकनीक े क उपल धय से संयोिजत होती रहती ह।
एक नए लोबल पावर का उदय कभी भी आसान नह होता और एक यव था, जो सृजन क ती ा म ह, जब
तक आकार नह ले लेती, एक अ यव था क प म ही िदखाई देगी।
एक पर पर िनभर और अनुशािसत िव म ऐसी सम याएँ कवल तनाव पर वातालाप, सामंज य और सौदेबाजी
से ही सुलझ सकती ह। इस ि या म ब त-कछ इस पर िनभर करगा िक िकसको जड़ जमाने क सुिवधा िमलती
ह। एक अमे रका, जो सचेतन प से उ मू यव ा, िकतु अिधक संकिचत अथ यव था; एक रा वादी, िकतु
उ त व मौिलक तकनीक िनमाता; एक आ मिनभर, िकतु यादा श शाली सै य श बनना पसंद करता ह,
उसक ाथिमकता क अलग ही अथ ह गे। वैसे ऐसे भी वर ज र उठगे, जो सामंज य या तालमेल क गुंजाइश
का आ ह करगे। यहाँ तक िक अतीत क ओर लौटने क भी बात होगी, लेिकन इसी क साथ एक तीसरा िवक प
भी मौजूद ह, जो वतमान क रा ीय सुर ा नीितय को बनाए रखते ए गठबंधन क मू य को भी मह व देता ह।
इसिलए उथल-पुथल क सं कित, सुलह क कला का मागदशन करने म िकतनी सफल िस होगी, यह अभी
देखा जाना बाक ह।
इस अवरोधपूण िव म भारत अपने ल य को आगे बढ़ाने क िदशा म या कर सकता ह—यह ब त-कछ
इस बात पर िनभर करगा िक भारत िव पटल पर दो मु य नायक , अमे रका और चीन को कसे साध पाता ह। यह
पहला अवसर नह ह, जब भारत इस तरह क वा तिवकता क सम ह। शीतयु क दौरान भी अनेक जिटलता
क बावजूद हमने अपनी नीितय क िनधारण म वतं रवैया अपनाए रखा था। लक र का फक र बने रहने क
बजाय भारत ने तनावपूण अवसर पर ज रत क अनु प सामंज य बैठाया। 1962 म चीन क हमले क बाद इसने
अमे रका का भी ख िकया, यहाँ तक िक एयर कवर माँगने से भी नह िहचका। 1971 म अमे रका-चीन-
पािक तान क ितकड़ी क संभािवत प र य और गहराते बां लादेश संकट क दौरान इसने सोिवयत संघ क साथ
एक आभासी गठजोड़ को फलीभूत िकया। जब-जब संकट कम आ, भारत ने िफर से बीच का रा ता चुन िलया।
जैसे-जैसे स कमजोर आ और चीन उभरता गया, एक नए यु मक क संभावना बनते ए िदखाई दी। यह उभरते
ए नए पटल पर पूव क ल ण को थानांत रत करने क एक वाभािवक वृि थी, लेिकन 2005 क भारत-
अमे रका परमाणु संिध क बाद का युग यह िदखाता ह िक िकस तरह से अ यिधक सतकता ने अिधकािधक लाभ
ा करने क अवसर गँवा िदए।
वा तिवकता यह ह िक अतीत क ओर लौटना हमारी कमजोरी उजागर करता ह और आ मिव ास को दुबल
बना देता ह। यह जोिखम उठाने से बचने को ो सािहत करने क साथ-साथ नए अवसर का दोहन करने से रोकता
ह। अपने अ युदय क इस चरण म यह आव यक ह िक भारत दूसर क साथ सम वत हो अिधकतम लाभ उठाए।
ये सम वय, े और मु क आधार पर अलग हो सकते ह। जहाँ कह अपने िहत, अपेि त िदशा म जाते न
िदख, उन सम वय पर अिव ास करक उनको स यािपत करना ही ेय कर ह। चूँिक वै क अ थरता ब त
यापक ह, इसिलए भारत को हर अहम िकरदार क साथ यादा समकालीन संबंध मजबूत करने क चुनौती से
िनपटना होगा। एक संपूण संतुलन क ा इस बात पर िनभर करगी िक इन अलग-अलग संबंध म यह कसी
गित करता ह।
एक ऐसे िव म, जहाँ विहत पूरी तरह अनावृ ह, यादातर रा वे सबकछ करगे, जो उ ह करना ह, वह
भी कम-से-कम आवरण क साथ। ऐसे म जो भी संभािवत हो, भारत को उसक िलए वयं को तैयार रखना
होगा। इसे भावी होने क उन दाव क िलए तैयार रहना ह, जो स ा म अंतर, आिथक लाभ और कने टिवटी पर
िनभरता का दोहन करगे। इसका उपयु उ र एक ऐसे तक क साथ हो सकता ह, जो दूसर प को समझ आने
यो य हो। चाह जो हो, हम लोग तािकक ढग से यह अपे ा कर सकते ह िक जो श शाली ताकत ह, वे भी
संबंध को िबगाड़ने म एक सीिमत िच ही रखती ह। आिखरकार वे भी एक ब ुवीय और अिधकतम िवक प
वाले िव म संचालन करती ह। इसिलए भिव य यादा बदलती ई गितमयता क बीच मतभेद क बंधन और
थािय व क तलाश म ह और यह िबना सम या क आगमन क नह होगा, इसिलए रणनीितक प ता को
िवकिसत और भावी बनाना ही इसका समाधान ह। यहाँ तक िक ऐसे पड़ोसी, िजनक साथ गंभीर सम याएँ ह,
उनक साथ भी यह अपे ा रखी जानी चािहए िक एक यावहा रक समझौता उस क मत से कम ही रहगा, जो
किठन संबंध क चलते चुकानी पड़ती ह।
उसी समय यह भी यान रखना ह िक अतीत क ओर िखंचकर अवा तिवक लाभ का पीछा करने का जो
लोभन ह, उसका भी ितरोध िकया जाए। राजनीित का कोई भी गंभीर पेशेवर यह वीकार नह करगा िक पूवगामी
अवसर का लाभ उठाने को कभी पुर कत िकया जाएगा। भारत अपने नीितगत िवक प पर िकसी भी रा को
वीटो का अिधकार नह दे सकता। ऐसा िवशेषकर दुिनया म तब ह, जब सार अहम िकरदार अपने िवक प म
बदलाव क संभावनाएँ खुली रखने क कोिशश कर रह ह। न ही यह सुझाने का कोई आधार ह िक एक उदार
वै क भारत क पहचान िकसी भी प म उन शासन यव था ारा पुर कत क जाएगी, जो मूलभूत प से
ताकत को पहचानते ह। इसक िवपरीत जब िवक प योग क िलए उपल ध होते ह और जो समय-समय पर
वा तव म होते ह, तब स ाई का सामना होता ह। यह सभी देश पर लागू होता ह, यहाँ तक िक सहयोगी देश भी
सदैव सौदेबाजी क बेहतर शत क िलए संघष करते िदखाई दगे।
आज क इस अशांत दौर म लोबलाइजेशन क वे सां वनादायी मं , िजनक बार म हमने कछ वष पहले सुना था,
अब दूर क कौड़ी लगते ह। ुवीकरण अब ब त यापक हो चुका ह, चाह घरलू राजनीित हो या िफर अंतररा ीय
संबंध। अमे रका और चीन एक-दूसर क साथ जो कर रह ह, वह काफ दु ह ह, लेिकन शेष िव क साथ
उनका बताव जो दिशत करगा, वह और भी यादा भावकारी होगा। यह हमारी सोच म बदलाव लाएगा और
समय क साथ नई आदत और कोण को ज म देगा, जो चाहकर भी आसानी से कभी बदली नह जा सकगी।
हम म से कई उनका अनुकरण कर सकते ह। हो सकता ह िक कइय क पास िसवाय खीझने क और कोई िवक प
न हो, लेिकन इस तरह या उस तरह िति या सब दगे और जब धुआँ छटगा तो एक िभ वै क वा तु-संरचना
आकार लेना आरभ करगी।
नए समीकरण और झान पैदा ह गे। रा ीय िहत का एकिच होकर पीछा करने क वृि िव को यादा
ितयोगी, कम िनयम और बढ़ी ई अ थरता वाले बाजार क तरह िदखने जैसा बना देगी। फल व प प रणाम
और यादा ता कािलक एवं तरीका और यादा सुिनयोिजत होगा। एक साझा मंच पाने क िच घटने से संरचनाएँ
कमजोर ई ह। यूयॉक, िजनेवा और ुसे स अब िमलने क जगह भर ह। लाभ को और यादा सौदेबाजी क
लोकाचार म िव य त कर िदया गया और मोल-तोल करने वाले उसे अपनी लागत क साथ सीख रह ह। िव ास
म रण तेजी से होता आया ह, िवशेषकर उन रा क िलए, जो िकसी गठबंधन तं का िह सा ह। िनभरता अब
एक बढ़ता आ नवाचक िच ह और िम एवं सहयोगी अब दबाव से मु नह रह गए ह। वा तव म, हर
कोई उस ‘फयर गेम’ का िह सा ह, िजसम बड़ी समानताएँ भी छोट मतभेद को अनदेखा नह कर पात । जैसे-जैसे
रा वाद क धार े क बीच तेज होती जाती ह, वैसे-वैसे िहत का फलाव भी िभ िदशा म होता नजर आने
लगता ह। ‘ लैक एंड हाइट’ संबंध पुनप रभािषत होते ह, यहाँ तक िक ‘ ीन ऑन लू’ दु भाव राजनीितक े
म भी अपना दखल बना लेता ह।
लेिकन त य यह भी ह िक थर करने वाली ताकत भी काम पर लगी ह, कई सारी पूववत युग से। बाजार से
जुड़ी सतकता और संघष क अिन तता चरम ित पधा क ितबंधी कारक बनकर उभर ह। आिथक अंतिनभरता
भी राजनीितक जोिखम उठाने क मता पर बंिदश लगाती ह। वे होने वाले प रवतन का िनरतर ितवाद करगे और
देश-िवदेश म तीखे तक-िवतक क वजह बनगे। ऐसे म जब कई देश संक ण उ े य क िलए क सत चाल चल
रह ह गे तो कई देश कम पर भी समझौते करने को तैयार रहगे। एक उदार िव म इसे ब लवाद क िलए
मह वाकां ा पर ितबंध या िफर खुलेपन का बचाव माना जा सकता ह। बात जब संबंध और अिभलाषा क
आती ह तो िव ासवादी और संदेहवादी दोन एक ऐसे िबंदु पर प च सकते ह, जहाँ प रणाम अिन त होते ह।
इन सारी ख चतान और दबाव क बीच प ता तथा िनरपे ता दो ऐसे िवशेष गुण ह, िजनक कमी हमेशा खलेगी।
अभी हाल तक का दौर िन त प से िवपरीत िदशा वाला था। दुिनया अपने ि याकलाप को लेकर न कवल
यादा अंतसबंिधत थी, ब क अपनी सोच को लेकर भी आ त थी। हम सबने लोबल िवलेज क बात क थी
और अनेक कार क यावहा रक प म इसक प रणित होते भी देखा था। तकनीक वह सबसे शानदार तोहफा
थी, िजसे हमने हर गुजरते िदन क साथ हम सबको एक-दूसर क करीब लाते देखा था। िकसी भी चुनौती का पूव
िनधा रत समाधान—चाह वे यापार संवधन, पयावरण क चुनौितयाँ या िफर आतंकवाद से मुकाबला हो, साझा
यास क मा यम से ही रहा। चाह जो हो, अब वह बदलाव आरभ हो गया ह। ऐसा नह ह िक ‘ व’ पहले
अ त व म नह था, िकतु रा ीय और अंतररा ीय िहत को समझौते, ि या और काय णाली क एक नेटवक क
ज रए अनुकल बनाया जाता था। रा -रा य और अंतररा ीय िबरादरी क बीच िबचौिलए, गठबंधन, े ीय ढाँचा
या एक जैसी सोच वाले सहयोगी मौजूद रहते थे, लेिकन यह दुिनया 1945 से िनरतर िवकिसत होते ए भी
लोबलाइजेशन से मोहभंग और विणकवाद से नाराजगी क चलते उठ खड़ी ई ह। इसक तीन मुख आधार—
वै क बाजार तक प च, वै क आपूित ंखला और वै क ितभा क संचरण पर भरोसा—िज ह हमने
िबना माण क सही मान िलया था, ये सब दबाव म ह। इसक अलावा, िखलाड़ी बढ़ रह ह, जबिक िनयम कमजोर
हो रह ह। पुरानी यव था य प से बदल रही ह, िकतु नई यव था अभी भी लु ह।
एक ओर जहाँ रा क बीच क समीकरण गड़बड़ हो सकते ह, वह समाज क भीतर होने वाला मंथन भी कम
ासंिगक नह ह। अगर दुिनया वैसी नह रह गई ह, जैसी आ करती थी तो ऐसा इसिलए ह िक पुराने मापदंड अब
समा हो चुक ह। प म क दुिनया म भी कहानी गहरी आिथक असमानता, नौक रय पर दबाव, थर गुणव ा
वाला जीवन और बाहरी लोग पर आरोप तक िसमट गई। बढ़ता ए असंतोष, जो उपेि त छोड़ िदया गया, उसे
अंततः ‘ लैक वान इव स’ क ज रए आवाज िमली। े जट एक खतर क घंटी थी और प का चुनाव एक
वा तिवकता। चाह पोलड क नलसाज पर िनशाना, मै सको क अ वािसय का उपहास या िफर अ का क
शरणािथय क ताड़ना रही हो, राजनीित सां कितक खतर और आिथक रिजश क इद-िगद गितशील रही। ऐसा
करक इसने जािहर कर िदया िक थािपत अिभजा य वग क सोच पुरानी हो चुक ह। यह अचरज क बात नह िक
िवदेश नीित को लेकर उनक नज रए पर सवाल खड़ िकए जाने चािहए, चाह सामूिहक िहत क वकालत करनी हो
या िफर सामा य िहत पर तक-िवतक।
एक बार थािपत मानदंड से थान तय कर िदए गए तो िफर प ीकरण ढढ़ना ब त किठन नह था।
लोबलाइजेशन क अनौिच य एक तिड़त चालक क तरह उभर, िवशेषकर वे िह से जो दूसर क ओर मोड़ जा
सकते थे। बड़ तकनीक-िनयंता ती पांतरण क ि या से गुजरकर बड़ी उ मीद क जगह नया खतरा बनकर
उभर। नई कायसूिचय क उदय ने िन त प से पुराने िखलािड़य का इ तहान िलया, िजनका यह िव ास िक
स ा का समाजीकरण हो जाएगा, िहल गया। पूरी दुिनया म इसे राजनीितक रा वाद से आकार िदया जा रहा ह,
जोिक यथा थित को चुनौती दे रहा ह। िवकासशील िव , िवशेषकर एिशया, मजबूत वृि दर और उ
आकां ा क साथ एक िभ त वीर पेश कर सकता ह, लेिकन यह अभी भी पुनसतुलन क ि या म ह और
इसक कामयाबी का पूवाभास अभी ब त अप रप ह। चूँिक लोबलाइजेशन ने एिशया क यादातर देश को
अ छी तरह से फायदा प चाया, हमने यह गलत आकलन कर िलया िक इसका आशावाद सावभौिमक प से
साझा िकया गया, जब वै क अिभसरण कमजोर पड़ता ह तो हर जगह इसक िहमायत करने वाले क थित
कमजोर कर देता ह।
जैसे-जैसे अमे रका अपनी अहम अंतररा ीय ितब ता से पीछ हटता ह और गठबंधन कमजोर होते ह,
इससे उ प होने वाली बेचैनी हमारी सोच से कह यादा यापक हो सकती ह।
एक बार जब लोबलाइजेशन पर हमला होता ह तो इसक सभी पहलु पर दबाव बन जाता ह। वै ीकत
यापार का िवरोध िन य ही इसक संचालन िनयम को कमजोर करगा और इसक देखरख करने वाले सं थान
क किमयाँ उधेड़गा। इस कार का वै क कोण उन ितब ता पर भी असंतोष जािहर करगा, जो इसक
ता कािलक ल य को पूरा नह करती ह।
लोबलाइजेशन क राजनीितक यु र को अ वासन और रोजगार सुर ा पर यान कि त करना चािहए। ये वे
मु े ह, जो बेहद भावी प म प मी िनवाचक क िमजाज से मेल खाते ह, भले ही उनक आिथक तक सवाल
क घेर म ह , लेिकन परदेसी एक सुिवधाजनक बिल का बकरा ह, एक य क प म भी और एक आिथक
ित पध क प म भी और अगर उनक यापा रक काय णाली ऐसा करना आसान बनाती ह तो कट प म
ऐसा ही सही। प कोण वै क आपूित ंखला को ऐसे िचि त करता ह, जो नौक रय को अमे रका से बाहर
ले जा रही हो, यह उस तक को सवाल क घेर म लाता ह, िजस पर वै क यापार बरस तक िनभर रहा ह।
ट रफ का ताकतवर इ तेमाल अमे रक अथ यव था म अभी तक क उदार प च को संकिचत करता ह। आिथक
नीितयाँ और सामािजक दबाव मै युफ रग को अमे रका वापस लाना चाह रह ह। संवेदनशील ट ोलॉजी क े
म प मी दुिनया क चीन से जोड़ीदारी को समा करने क िलए भी य न गितशील ह। वे इसम िकतना सफल
ह गे, यह देखना अभी बाक ह।
वतमान अ थरता का दूसरा चालक लोबल मोिबिलटी का िवरोध ह। यह गितशीलता वयं म िवशेष ता क
सार और यादा कशल आिथक काय णाली का प रणाम ह। िफर भी इस किठन दौर म इसक सामािजक
पहलु क ित िव ेष बढ़ रहा ह। वैसे भी सां कितक अलगाव और आिथक संर णवाद दोन एक साथ अ त व
म रहते ह, लेिकन इन दबाव को समय क साथ गहरी जड़ जमा चुक यापार क वा तिवकता से संघष अव य
करना पड़गा।
पूरी तरह िवचार िकया जाए तो ितभा ट ोलॉजी क े म बढ़त क िलए पूव शत बनी रहगी और यही वह
चीज ह, जो भारत क थित को िब कल अलग बना सकती ह। यह य िदखने वाला अकला ोत ह, जो
कौशल को वै क अथ यव था का अंग बनने से पहले तैयार करता ह। ऐसे अनुकलन यो य ोत क आिथक
िवशेषताएँ उनक सामािजक और राजनीितक पहलु को मात दे देती ह। वै क ानाधा रत अथ यव था क िलए
वयं को यादा ासंिगक बनाना ही प प से भिव य म भारत क संबंध क कामयाबी क कजी ह।
इन सुधार का वै क यव था पर भाव अगली पीढ़ी तक िदखाई देने वाला ह। उसक कई आयाम ह गे,
िजनम से येक वयं म एक अ थरता का ोत होगा। सबसे प तो वह होगा, िजसम स ा का िवतरण और
अिधक फलने तथा गठबंधन क यव था धूिमल होने क साथ िव उ रो र प से ब ुवीय बनता जाएगा।
बढ़ती ई अथ यव था क साथ एक भारत या एक ाजील अपनी और अिधक भावी भूिमका क माँग करगे।
अमे रका क दूसर देश , उदाहरण क तौर पर स और को रया क ित सोच म बदलाव से जमनी तथा जापान
जैसे देश अ भािवत नह रह सकते। जैसे-जैसे आपसी तालमेल पर सवाल उठने शु ह गे; और भी यादा देश
अपनी वयं क राय और योजनाएँ बनाना शु कर दगे।
अंतररा ीय संबंध को लेकर एक अिधक रा वादी कोण िन त तौर पर कई काय े म ब प ीय
िनयम को अिववािदत प म कमजोर करगा। आिथक िहत और सं भुता संबंधी िचंता क संदभ म यह िवशेष
प से ती ण होगा। िव यापार संगठन क ि याशीलता को कमजोर करना अथवा समु क िनयम क
अवहलना करना, ये अ छ संकत नह ह। कम ब प वाद क साथ ब ुवीयता आने वाले समय क िलए और भी
अिधक किठन भिव य का संकत देती ह। इसका आशय दूसर को याग देना नह ह। इसक िवपरीत, अपेि त यह ह
िक संशोिधत ब प वाद म एक नई ऊजा का संचरण िकया जाए। वतमान काल-दोष यु यव था और इसक
पुराने एजड को बदलाव क िलए िनरतर े रत करना ज री होगा।
यह समझना भी आव यक ह िक यह मु ा यव था क बचाव या अ यव था को आमं ण देने क दो िवक प
क बीच चयन का नह ह, जब तक हम यह न पहचान ल िक यव था क आधारभूत त व कई भागीदार क िलए
अब उपयोगी िस नह हो रह, प रवतन को लेकर संशय क बादल छाए रहगे। यह िन त प म िनयम संबंिधत
वतमान अनुपालन को लेकर तक क भाषा तथा उसम िनिहत इराद को लेकर भी असहज न खड़ करगा और
मुख ताकत जब कवल चुने ए तक को आगे बढ़ाएँगी तो आम सहमित का बड़ा िह सा, जो ता कािलक थित
को संबल देता ह, कमजोर होने लगेगा।
संभावना यह भी ह िक उभरता िव , अपे ाकत सामूिहक सुर ा या यापक सहमित क अपने संचालक
िस ांत क प म श -संतुलन पर आि त हो जाए। इितहास दशाता ह िक ये तरीक ायः अ थर संतुलन
उ प करते ह। वै क घटना म म िम व श ु (Frenemies) क सं या म बढ़ोतरी िदखेगी। वे एक ऐसी
थित से उठकर आएँग,े जहाँ सहयोगी भी एक-दूसर क आलोचक ह गे या िफर ित पध एक साझा िहत तय
करने को बा य ह गे। एक यादा लेन-देन संबंधी लोकाचार ऐसे अलग-थलग रा क एक तदथ गुटबंदी को
ो सािहत करगा, िजनक िकसी िवशेष मु े पर साझा िहत ह गे। इसको गठबंधन ढाँचे से बाहर भी एक साथ
आकर काम करने क ज रत से बल िमलेगा। इन मेल-िमलाप का संयोजन े ीय और थानीय संतुलन को
उनक कामकाज पर कम वै क भाव क साथ और अिधक ो सािहत करगा।
वा तव म, वह अप रिचत े जहाँ अमे रका-चीन का संघष हम ले जाने वाला ह, वह दो समानांतर ांडो
का सामना करने जैसा ह। संभावना यह भी ह िक वे पहले भी अ त व म रह ह , सबसे िनकट समय म शीतयु
क दौरान, लेिकन वै ीकरण युग क अंतिनभरता और अंतवधन क साथ नह । प रणाम व प अलग-अलग े
म िभ िवक प और ित पध संपूरक आंिशक प से साझा िकए गए बुिनयाद पर िनभर रहगे। िव म क यह
थित ट ोलॉजी, वािण य और िव से लेकर कने टिवटी, सं थान और ि याकलाप समेत बढ़ते ए कई े
म प रलि त होगी। कई अहम िखलाड़ी भी वयं को इस कार क समानांतर अ त व वाले ि भाजन से जूझते ए
पाएँगे वे, िज ह दोष को मैनेज करना ह, जैसा िक हम म से यादातर करगे, उनक वयं क साम य क भी परी ा
होगी।
यिद चीन और प म क बीच संबंध और भी िवरोधा मक च र ले ले, एक मजबूत ि ुवीय िव क ओर
लौटना किठन होगा। इसक मुख वजह यह ह िक समूचा प र य ऐसा व प हण कर चुका ह, जो
अप रवतनीय ह। भारत समेत अ य देश वतं प से गितमान ह। दुिनया क बीस से यादा बड़ी अथ यव था
म आधी अब गैर-प मी ह, जब अंतररा ीय िनमाण कम मनमानी करने वाला हो, तकनीक का फलाव और
जनसां यक य िवभेद भी भाव क मह र सार म योगदान करगा। वा तिवकता यह ह िक अमे रका भले ही
कमजोर हो सकता हो, लेिकन चीन का उदय अभी भी प रप होने से ब त दूर ह और इन दोन ि या ने एक
साथ िमलकर दूसर देश क िलए काफ जगह बना दी ह। इनक आपसी ित ंि ता क चलते दोन क िलए तीसर
प क उपयोिगता ह। वा तव म, उनक आपसी गितमयता ब ुवीयता को ती गित से संचािलत कर सकती ह।
ऐसे म मा यिमक श याँ इसक लाभाथ हो सकती ह। स, ांस और यू.क. जैसे वे देश, जो पहले से ही
लाभ क थित म ह, उनको एक नया जीवन िमल सकता ह। भारत जैसे कछ देश एक सुधरी ई थित क
आकां ा कर सकते ह। जमनी जैसे दूसर देश स मिलत यास क मा यम से अपनी अहिमयत बढ़ाएँगे, लेिकन
यह ाजील और जापान क , तुक और ईरान क , सऊदी अरब, इडोनेिशया और ऑ िलया क भी दुिनया होगी,
जहाँ वे अपने दायर और उससे भी आगे बढ़कर यादा कछ भाव उ प कर सकगे। गठबंधन क अनुशासन का
कमजोर पड़ना आगे चलकर इस ि या को सुगम बनाएगा। एक यादा जिटल संरचना उभरकर सामने आएगी,
जोिक िभ दज क ित ंि ता, अिभसरण और सम वय से पहचानी जाएगी। यह काफ कछ फला आ चाइनीज
चेकस खेलने जैसा होगा, िजसम ऐसे िखलाड़ी भी शािमल रहगे, जो अभी तक खेल क िनयम पर बहस म उलझे
ह गे।
एक ब ुवीय िव , जोिक श य क संतुलन से संचािलत होता ह, जोिखम क िबना नह हो सकता।
िव यु क अपने अनुभव क बाद यूरोप तो िवशेष प से सजग ह। यहाँ तक िक भावशाली ताकत—पहले
अमे रका, स और अब चीन भी ऐसे संतुलन का िवशेष आक मकता क िलए समथन करता ह, न िक
सामा य प ित क प म। अतीत क अनुभव तो यह बताते ह िक अिनयंि त ितयोिगता े ीय और लोबल दोन
तर पर अकसर उलटी चाल सािबत हो सकती ह। इसी वजह से अंतररा ीय संबंध से टी नेट क प म सामूिहक
सुर ा पर िवचार करते ह। अगर यह हमेशा काम न आया तो यापक िवचार-िवमश क मा यम से ा िव तृत
सहमित लान-बी क तौर पर काम करती थी। वे देश, जो कमजोर िनयम वाली ब ुवीयता क संभावना से
सबसे यादा अशांत रह, वे वही देश ह, िज ह ने लंबे व तक गठबंधन क ढाँचे म काम िकया ह। वतं
िखलािड़य से इतर, यह वीकार करना उनक िलए समझने यो य किठन ह िक अंतिनभरता क अिनवायताएँ एक
अ छा िवक प ह। दूसर इस संभावना पर यादा तनाव क साथ िवचार कर सकते ह, लेिकन भारत शायद और
यादा खुले िदमाग से िवचार करगा।
एक य वादी िव का अथ ह िक ढ़ थित वाली यव था नए िखलािड़य क िलए यादा खुली ई ह।
दीघकािलक सामूिहक थितयाँ कम जड़ हो सकती ह। खेल का ा प भी, जो यादा ि प ीय रहता ह, सामंज य
बनाने क ओर झुकाव को मजबूत करता ह। यह सुर ा क काय े म िवशेष प से सािबत होता आया ह। चाह
यू यर डील हो, एन.एस.जी. क छट या िफर अफगािन तान अथवा मालाबार अ यास म भागीदारी, ये कदम
पुरातन समूह िचंतन से िभ यादा समसामियक यावहा रकता क ओर जाते िदखाई देते ह। इस यावहा रकता का
िव तार अब दूसर काय े म भी िकया जा सकता ह।
िभ राय रखने वाले िम और सहयोग करने वाले ित ं ी इस उभरती ई यव था क एक उ ेखनीय
यव था ह। दोन ही किमय क िभ पहलु को उजागर करते ह, जो एक अंतिनभर िव म िवक प क
वतं ता को सीिमत करते ह। रा वाद का उभार वृहद प म पहले वाले समूह क िलए िज मेदार ह, जबिक
वै क खतर दूसर को एक साथ लाते ह। अब तक हम देखते आए ह िक यादातर प मी िव , िवशेषकर
यूरोप ाइमेट चज जैसे मु पर अमे रका से िभ राय रखते ह। ांस-पैिसिफक साझेदारी और ना टा क
राजनीित यापार क प पाती भूिमका क उदाहरण थे। ऊजा नीित इसी क बराबरी का एक भावशाली े था, जो
यूरोप क स पर िनभरता क िव अमे रक आलोचना का हिथयार था, लेिकन अहम िवषय से भी इतर,
मानिसकता बदलने क साथ दो त होकर भी दु मन क तरह सोचने वाल क तादाद बढ़ी ह। यह धारणा िक
गठबंधन बोझ क तरह ह, वयं म मनमुटाव का एक कारण ह।
अंितम िव ेषण यह ह िक अमे रका क वै क प क वतमान यव था क उपादेयता सवाल क घेर म आ
गई ह। चाह जो हो, अतीत क तेजी अब भी उन देश क मेल को जीिवत रख सकती ह, जो वतमान यव था को
लेकर सहमत नह हो सकते। कोण म मतभेद होने क बावजूद परपराएँ एक साथ काम करने क वजह बनी रह
सकती ह, भले ही वे अ स ता क साथ ह । तथािप एक साझी िचंता क अिनवायता से एक िब कल िभ ेरणा
िमलती ह। हम आतंकवाद का मुकाबला करने म, समु ी सुर ा, परमाणु अ सार या िफर ाइमेट चज जैसे
वै क मु पर सुिवधानुसार बने गठबंधन को देख चुक ह। ये सब मु पर आधा रत ह और अिन छा क
बावजूद िफर से भावी हो सकते ह।
अगर गठबंधन क बीच िवभाजन िवकास का एक प था तो उनसे बाहर आना दूसरा। जैसे-जैसे दुिनया मह र
ब प वाद क िदशा म बढ़ी, प रणाम कि त सहयोग यादा आकषक िदखाई देने लगा। वे यादा बेहतर फोकस
और ितकल ितब ता क साथ भी अनुकल बनाए जा सकते थे। साझा दािय व क बढ़ती ई अिनवायता
औपचा रक ढाँचे क बाहर भी सराहनीय भाव रखने वाली थी। एिशया, खासतौर पर इस कार क पहल क िलए
उपयु था, य िक वहाँ पर े ीय ढाँचा सबसे कम िवकिसत आ था। आज भारत ऐसे ब प ीय रा क िलए
एक उ ोग नेतृ वकता क प म उभरा ह, य िक यह बचाव क यव था और उभरते ए र थान क
अिध हण का काम एक ही समय म करता ह।
सुर ा, राजनीित और िवकास क मु पर अलग-अलग ताकत क साथ काम करने क अवसर ने यह िदखाया
ह िक साझे योजन को यावहा रकता और क पना से बढ़ाया जा सकता ह। अिन त िव आंिशक समझौते
और सीिमत एजड से भरा पड़ा ह। इसका दुिवधापूण वभाव चुनौितय क िलए अनुकिलत लचीली यव था क
माँग करता ह। ये गितिविधयाँ आने वाले समय म न कवल और यादा यापक ह गी, ब क भारत से इतर रा
क िवदेश नीित म भी एक खास जगह बनाएँगी।
ब -िवक पीय िव िविभ तर पर उ रो र खुलता जा रहा ह। िन संदेह हम देख रह ह िक अपे ाकत बड़ी
ताकत अपने समूह म चुर अवसरवािदता क साथ एक-दूसर से पेश आ रही ह। अपने आचरण से वे शेष िव
को भी ऐसा करने क िलए ो सािहत कर रही ह। वै क संतुलन क इतनी तरलता को यान म रखते ए थानीय
समूह का आकार लेना इसका वयं का िवषय बन गया ह। खाड़ी देश म आ था, गवनस मॉडल, राजनीितक
िस ांत और श य क संतुलन सभी उपल ध प रवतनशील कारक क साथ एक ब कोणीय ित ंि ता जारी ह।
इससे कम जिटल उदाहरण शेष िव म िबखर पड़ ह।
जैसािक वे मु को उछालते ह, भारत क िलए यह यादा भावकारी ह िक वह दूरी बनाने क अपे ा संवाद
कायम कर। समसामियक कटनीित एक ही समय म ित ं ी प को सव क प रणाम क साथ डील करने को
सबसे यादा ाथिमकता देती ह। िन त प से एक कम संरिचत, िकतु उ ती ता वाले खेल म िखलािड़य पर
यादा दबाव रहता ह। यही कारण ह िक वै क श सोपान म ऊपर जाने का मू यांकन ितकल ाथिमकता
क सफलतापूवक बंधन क मता से िकया जाता ह।
वै क मंच पर भु व थािपत करना पहले क समय क अपे ा िब कल अलग ह, जब िव अपे ाकत
सरल था, श य का उदय भी उतना ही सरल था। भिव य रा ीय साम य, अंतररा ीय अवसर और नेतृ व क
गुणव ा क संयोजन से बनाए और िबगाड़ जाते थे। यु क मैदान म ायः उ तकनीक और काय णाली
िनणायक प रणाम देती थी। आज क समय म प रवतनशील कारक, जो श का संचालन और आकलन को
भािवत करते ह, और भी यादा ह। उनक पार प रक ि या भी काफ जिटल और कम पूवानुमेय ह। इसी क
समांतर उनका अनु योग एक िववश, वै ीकत और अ यो याि त िव म होता ह। फल व प भाव का
संचयन श क अपे ाकत अशोभनीय दशन म बदल जाता ह। रणनीित श क योग क अपे ा संसाधन का
भावी प रिनयोजन अिधक बन गई ह। ट ोलॉजी ने िव क श ीकरण अथवा साइबर ह त ेप जैसे िवक प
खोल िदए ह।
इसी समय दबाव क जगह लोभन और ो साहन का योग भी यादा आम होता ह। प रणाम व प रा का
उ थान िभ कार से होता ह, आव यक प से पांतरण क िविश ण क िबना। उदाहरण क तौर पर, 2009
का वै क आिथक संकट ऐसा ही एक उ ेखनीय थान-िबंदु ह, िजसक न तो उभरती ताकत चीन, न ही
इकलौते उपजाऊ मैदान क प म अमे रका सराहना करते ह।
रा क भाव म वृि यादा िबखरी ई और शायद कम िदखाई देने वाली हो सकती ह, लेिकन िफर भी यह
पूरी तरह से वा तिवक ह। कोई भी िव पटल पर चीन क भाव पर संदेह नह करता। भले ही उनक िलए यह
िचंतनीय नह िक यह भाव यापार अिधशेष का उपयोग करक ा िकया गया ह, न िक खून बहाकर। िव ीय
साधन , साम य का दशन और कने टिवटी प रयोजना ने ित ंि य से वा तिवक टकराव क िबना अपने
श - दशन क अवसर दान िकए ह।
बढ़ती मता का छपा आ यह खतरा कठोर ताकत को सहारा देना जारी रखे ए ह। यह इस बात क
या या करता ह िक य कछ रा उदाहरण व प अपने अतीत क संघष को इतना अिधक अलंकत करते ह।
भारत क मामले म भी एक मजबूत सै य श क थित को बनाए रखना और 1998 क परमाणु परी ण को
जारी रखना इसक तर क क राह म मील क प थर ह, लेिकन इसक वै क छिव समान प से Y2K क
चुनौितय पर इसक िति या, इसक उ वृि दर और इसक यापार ारा वै क अिध हण क कारण ह।
ताकत अब वयं भी िभ -िभ गुण को धारण करने से आती ह, िजनम से सब एक ही देश म नह पाए जाते।
अमे रका िव का लंबी अविध से तकनीक नेतृ वकता बना आ ह, लेिकन इस ट पर पीछ रहने क बावजूद
चीन ने अपनी िव ीय और वािण यक श का उपयोग करक नंबर दो क जगह हािसल कर ली। यूरोप क
अपने उ पाद क गुणव ा और औ ोिगक साम य क चलते ऊची साख ह, हालाँिक इसने अपने महा ीप से बाहर
भी ह त ेपवादी नीितय का सहारा िलया ह, लेिकन िफर भी इसे अपनी मता से कमतर दशन करने वाले क
प म देखा जाता ह। इसक िवपरीत, स ने अपनी दीघकािलक मता को ताजा िकया और कवल अपने बल
आ मिव ास क सहार खुद को एक अहम िखलाड़ी क प म तैयार कर िलया। इसिलए वै क श य का
पदसोपान म या ह, यह अब ायः वह आसान सवाल नह रह गया ह, िजसका जवाब िदया जा सक। चूँिक
इसक कई पहलू ह और यह थानीय तर पर यादा सि य रहता ह, हम िफर से ब प ीय, ब ित पध और
ब ित पधा वाले मैि स म प च जाते ह।
वै क क याण (Global Goods) का ावधान ही वह डोमेन ह, जो इन सार अवरोध से सबसे यादा भािवत
रहता ह। अमे रक िमत ययि ता और चीन क रा वाद ने इस बहस को ताजा कर िदया ह। यूरोप क दूर और
ि याकलाप भी घट गए ह। कछ और श याँ भी इस मंदी को वीकार कर आगे बढ़ ग । कवल भारत एक
अपवाद ह। एक वृहत वै क कारण हतु संसाधन क ितब ता क अिन छा अंतररा ीय संबंध क ित एक
संक ण कोण क संगित का ितफल ह। इस बहस को उदाहरण क िलए, अफगािन तान और म यपूव म
सैिनक क तैनाती जारी रखने क ितब ता क इद-िगद तैयार िकया जाता ह। या िफर हाल-िफलहाल कोरोना
महामारी से िनपटने क नाम पर, लेिकन यह उससे भी कह यादा जिटल ह, िजसक दायर म अंतररा ीय िनयम
क ित स मान अथवा गंभीर दुराचरण क िव िति या शािमल ह। उदाहरण क िलए, आतंकवाद जैसे सबसे
भयंकर क य क ित उदासीनता ने इसे िव क बड़ िह से म सामा य घटना क तरह देखे जाने क थित ला दी।
भारत क िन त प से इस संदभ म एक खास िशकायत रही ह।
बीते समय म िविभ तर पर अनेक कार क िनवारक उपाय का ेय अतीत क वै क यव था म
अनुशासन को िदया गया था। परमाणु अ सार िवशेष यह पु करगे िक गठबंधन का दबाव न होता तो कई और
देश ने परमाणु परी ण कर िलया होता। ब त-कछ मुख ताकत क अपनी वचनब ता पर िटक रहने क
िव सनीयता पर िनभर रहा ह। अगर वह ख म हो जाता ह तो कई देश क आकलन पर गहरा भाव डाल सकता
ह। ये खतर क नए आयाम , जैसे साइबर और पेस म भी तालमेल बैठाने म किठनाई उ प करगे। नया दशक
दुभा यवश कम उदार और इसिलए यादा असुरि त रहगा।
इस बात को यान म रखते ए भारत को िनकट भिव य म, िजसक परखा अभी बनने क ि या म ह,
सावधानीपूवक आगे बढ़ना होगा। कवल अमे रका और चीन ही नह , ब क अ य अ गामी देश भी यादा
रा वादी ह गे और दूसर क िलए जगह बनाएँगे। श का िवतरण यापक होना जारी रहगा और ब ुवीयता म
वृि होगी, लेिकन बड़ िखलािड़य क होने का अथ बेहतर िनयम का होना नह , ब क संभवतः इसक िवपरीत
होगा। जैसे-जैसे नई मताएँ और काय े उभरगे, वै क िनयम उनक साथ कदमताल बनाए रखने म संघष
करगे। ये बदलाव भारत जैसी उभरती ताकत क सामने चुनौितयाँ पेश करगे, जोिक िन त प से अिधक
पूवानुमान क थित को पसंद करगा, लेिकन अगर यह अिन तता को सँभाल सकता ह तो इसक गित क
र तार भी तेज हो सकती ह।
वै क राजनीित क अनेक तर पर श य क संतुलन तलाशे और ायः हािसल िकए जाएँग।े सहयोग क
उदार और यावहा रक यव था का सार भौगोिलक सीमा क पर भी होगा। कछ-एक समान िचय से बनी
ह गी, कई यादा अवसरवादी और िफर भी यादातर यव थाएँ इन दोन का िम ण ह गी। े ीय राजनीित और
थानीय संतुलन को अहिमयत िमलेगी।
प प से भारत को अिधक रचना मकता क साथ सहयोिगय क एक बड़ समु य को अपने साथ जोड़ना
होगा। वै ीकरण क बा यता से जूझ रहा सौदेबाजी का यह बाजार िम वत श ु (Frenemies) क तरह
सोचने वाल को भी लाएगा। उनम से कई िव , कने टिवटी अथवा ट ोलॉजी क नई िविधय का इ तेमाल
करगे। भारत को जहाँ तक संभव हो, रा क तर पर अथवा साझेदारी म उपयु िति या को तलाशना होगा।
इनम से हर मु ा वयं म एक चुनौती ह और इनका मैि स ही एक प रवतनशील िव म भारत का भिव य तय
करगा।
भारत उ रो र प से गित कर सकता था, जैसा िक यह अब तक करने का अ य त था। यव था म बदलाव
और नए समीकरण क बनने क बीच एक संतुिलत भूिमका िनभाने क आशा कर सकता था अथवा इसको िनभ क
होने और एजडा एवं नतीज को तय करने क ज रत थी। िकसी हद तक एक नेतृ वकारी भूिमका िनभाने क
भारतीय िहचिकचाहट अमे रका और सोिवयत संघ जैसी िवकट ताकत से जुड़ अनुभव से उ प होती ह, लेिकन
चीन ने यह िदखाया ह िक बड़ आकार एवं गितशील अथ यव था क बावजूद एक िवकासशील समाज इस दािय व
को वीकार करना शु कर सकता ह। ठीक इसी तरह भारत भी इसक पदिच पर चल सकता ह, िन त प
से अपनी र तार म, जैसा िक वा तव म आकिलत ह या संभवतः कई िचंतन समूह क आशा भी ह।
िदखावे वाली दुिनया भारत क िलए हमेशा लाभकारी सािबत ई ह, य िक मोचा खोलकर रखने वाली ताकत
इसक तर क का वागत करती रही ह। भारत क साथ काम करने म अमे रका क िच िपछले दो दशक से
य रही ह, जो अब और बढ़ गई ह। स एक िवशेषािधकार ा सहयोगी बना आ ह, िजसक साथ बदलती
ई प र थितय म भी भू-राजनीितक क वजस क मुख अहिमयत ह। इस त य ने दोन क आपसी र त को एक
अि तीय मजबूती दी ह। े जट क बाद एक अिधक अिन त यूरोप ने भारत को एिशया म थािय व और
िवकास क एक श क प म वीकारने क बढ़ती ई िच िवकिसत क ह। अपने तर पर चीन भारत को
एिशया क िवकास और श िवभाजन क वृहद पुनसतुलन म सहज प से शािमल मानता ह। जापान क िचंता
और िचय क िव तार ने एक िनतांत िभ व प वाले संबंध का आधार तैयार िकया ह। एिशयाई रा ,
िवशेषकर आिसयान और इडो-पैिसिफक एक अिधक ब ुवीय एिशया को आकार देने क भारतीय साम य को
देख रह ह। खाड़ी तक िव ता रत दूसर पड़ोसी े ने भी अपने यहाँ भारत क वापसी का वागत िकया ह। यह
सब करते ए भारत ने अ का और शेष राजनीितक दि ण (Global South) म भी अपने सहयोग क परपरागत
े को सुरि त रखा ह। वै क संदभ म श का अंतर जब संक ण आ तो सहयोग क संभावना का
िव तार हो गया ह। अगर िव ने भारत क अहिमयत म भागीदारी बढ़ा ली ह तो बदले म भारत भी इन संवेदना
का भरपूर इ तेमाल कर सकता ह।
िव यव था म भारत क उदय को यान से समझने क िलए आिथक और राजनीितक संभावना म सुधार
एक आव यक शत ह, लेिकन पया ता को एक अनुकल वातावरण, सही नेतृ व और फसले क आव यकता
होती ह, िजससे इसका लाभ उठाया जा सक और इन दो कारक क संदभ म होने वाले प रवतन ही ह, जो आज
भारत क आकां ा को यादा गंभीरता से लेने का सश दावा पेश करते ह। सही रणनीितक आकलन क िलए
अंतररा ीय लड कप म पांतरण क सटीक समझ क आव यकता होती ह। वै क और े ीय तर पर इसक
िवरोधाभास का उिचत मू यांकन गित क िलए अवसर क ार खोलता ह। हाल-िफलहाल इसक क म
अमे रका और चीन क गितमयता ह, लेिकन स क ढ़ता, जापान का िवक प और यूरोप का थािय व भी
ासंिगक ह। िवकासशील रा का ढीला-ढाला गठबंधन कछ भूिमका अदा करगा, य िप यह उ रो र प से
िचंितत करने वाले मु पर भेदभाव करता ह और जैसे-जैसे ब ुवीयता बढ़ती ह और अनुशासन का रण होता
ह, वा तव म यह ती े वाद ही ह, जो मुख वै क श य क िनयं ण से बाहर जाकर प रणाम दे सकता ह।
ब प वाद पीछ हट सकता ह, अगर िनयम तथा मानदंड और अिधक संवी ा क दायर म आते ह और परमानट-5
(अमे रका, स, चीन, यू.क. और ांस) क बीच सामंज य कमजोर होता ह। सामा यतः यह अिधक लचीलापन
और अपूवानुमेयता क ओर इिगत करता ह।
सै ांितक प म इस नई वा तिवकता का लाभािथय ारा वागत िकया जाना चािहए। आिखरकार एक और
यादा ब ुवीय िव क माँग को लेकर वे कई वष से दबाव जो बनाते आए ह। अब उस ब ुवीयता का
दािय व हमार ऊपर भी ह, इसक बा यताएँ एवं दािय व हम अपना बोध कराएँगे। रा को मु ा-आधा रत संबंध
को गढ़ना होगा, जो ायः उ ह िवपरीत िदशा म ख चते नजर आ सकते ह। एक साथ ब त सार काम को करते
ए अनेक सहयोिगय क साथ ितब ता क ितपूित करने हतु िविश कौशल क आव यकता होती ह।
क वजस तो कई सहयोिगय क साथ रहगा, िकतु अनु पता िकसी क साथ नह होगी। श क कई क क साथ
य त होने क िलए साझा मु क तलाश ही कटनीित क िवशेषता तय करगी। वही देश, िजसको अपने समक
समूह क साथ यूनतम सम याएँ रहगी, वही सव े बनने म सफल रहगा।
भारत को िजतना संभव हो, सभी िदशा म अपनी प च बनानी होगी और अपनी उपल धय को मह म करना
होगा। यह वृह र आकां ा मा क िवषय म नह ह; यह अतीत म रहने मा क िवषय म भी नह ह। पर पर
िवरोधाभासी प रवेश वाली इस दुिनया म भारत का ल य रणनीितक प से अपने उपयु थान क िनकट प चना
होना चािहए।
वै क राजनीित क िफसलती ई रत ही सदैव रा ीय िवक प क िलए िनधा रत संदभ बनती आई ह। उ र-
औपिनवेिशक युग, जो ि तीय िव यु क पीछ-पीछ आया, उसने भारत क अंतररा ीय िबरादरी म वापसी एक
सं भु रा क प म होते ए देखी। दूसर कई उपिनवेश से पहले वतं ता- ा क बाद इसने वै क मामल
म यादा समय तक अि म थित का लाभ उठाया। अगला बदलाव तब आया, जब भारत को पािक तान क
चालबाजी क फल व प चीन-अमे रका पुनमल का जवाब देना पड़ा था। ऐसा करने म सफल रहने क िलए इसे
एक अपेि त तर तक सोिवयत संघ क ओर झुकाव बनाना पड़ा, हालाँिक ऐसा करना उसे कई दशक तक काम
भी आता रहा, िकतु आिथक िववशता और एक ुवीयता क आरभ ने उसे आगे अनुकलन करने को बा य कर
िदया। 2005 क भारत-अमे रका परमाणु डील इस पुनअव थित का तीक थी, िजसने वै क यव था म भारत
क उभार क गित ती करने म मदद क । आज यह रा वयं को एक-दूसर दोराह पर पा रहा ह, जहाँ इस बार
िवक प कम प और जोिखम यादा जिटल ह। बढ़त क िलए यह अ याव यक ह िक िवचलन क भयावहता
का, िजसम अब अंतररा ीय यव था को घसीटा जा रहा ह, उपयु मू यांकन िकया जाए।
अपनी संभावना क िलए भारतीय को वयं पर आधुिनक इितहास क संपूण वाह म िवचार करना होगा।
वै क घटना क प र े य म रा ीय संभावना को बनाए रखना व-अवशोिषत समाज म आसानी से नह
आता ह। िफर भी वृहद प र य से अलग होने पर वे अपनी थित को गलत समझ सकते ह या िफर अपनी िनयित
क उपे ा कर सकते ह। भारत का वतमान आधुिनक करण एक कार क ंखला ह, िजसक जड़ जापान क
‘मेइजी र टोरशन’ तक जाती ह। तब भी भारतीय रा वािदय ने 1905 म स पर जापान क िवजय क शंसा
करते ए इसे एिशया क पुन थान का आरभ समझ िलया, लेिकन यह उस रा का सामािजक-आिथक पांतरण
था, जो वा तव म उसक अंतहीन कथा थी। सोिवयत संघ का िनमाण, पूव एिशया म ‘टाइगर’ अथ यव था का
उदय और आिसयान तथा अंततः चीन का उ थान—इन सबने शेष यूरिशया को उन मानदंड तक प चने क िलए
संघषरत देखा। इनम से हर गित का भारत पर उनका अपना भाव था, कभी-कभी ऐसा अनजाने म आ। स ाई
यह ह िक भारत इकलौता देश ह, िजसने इस अ यंत दु ह या ा को एक लोकतांि क मा यम से करने का
उ रदािय व उठाया ह, लेिकन राजनीित और समाजशा से इतर िपछली सदी क अंितम चतुथाश म इसक य न
यापक प म उ ह तरह क ल य और उ े य को दशाते ह, जो उस समय एिशया क रह थे। अगर कछ
िभ ता रही तो वह प रवतन क गंभीरता और ती ता म, जहाँ पर िवकासमूलक कोण ने कम यापक नतीजे
उ प िकए। इसिलए अब कवल कछ प रणामी अवरोध को ही संबोिधत िकया जा रहा ह।
िवदेश नीित अब िवचलन का आकलन करने और नई सूचना को व रत करने, मंद करने या यु र देने
वाली वृि य क ि या ह। कोरोना वायरस से उ प महामारी भी आगे चलकर एक जिटल कारक बन सकती
ह। जैसे-जैसे वै क व तु- यव था और उदार होती ह और भारत क वयं क साम य म वृि होती ह तो इसको
अतीत क अपे ा वयं क संवृि को यव थत करने क िलए यादा वतं ता िमलने वाली ह। इस ि या क
भी वाभािवक प से कछ खतर ह गे, िजसका सावधानीपूवक मू यांकन करने क आव यकता होगी। इस रणनीित
का बड़ा िह सा और अिधक अनुकल धरातल बनाने क इद-िगद घूमेगा। वै क संवाद को अपने प म मोड़ना
भी इसी समय आव यक ह। िकतु अंितम ल य, शायद िवशेष प से एक अ थर िव म, िब कल प ह—
ढर सार िम , कम श ु, िवशेष ित ा तथा अिधक भाव और इसे भारत क राह ‘The India Way’ चलकर ही
ा िकया जाना चािहए।

3.
ीक ण का िवक प
एक उभरती ताकत क कटनीितक सं कित
“जो देश अपने अतीत का स मान नह करता,
उसका कोई भिव य नह ह।”
—गोथे
एक ब ुवीय िव , िजसम िम व श ु क उप थित, श का संतुलन और मू य म टकराव क थित
हो, आज क समय म वै क राजनीित क िलए चुनौती पेश कर सकता ह। हालाँिक देखा जाए तो िब कल ऐसी ही
प र थितयाँ भारत क एक कालखंड म उप थत रही थ , िजनका िच ण िवशेष प से एक भावशाली महाका य
म िकया गया ह। जैस-े जैसे भारत गित करगा, वाभािवक प से यह न उठगा िक इसक साम य का व प
या होगा? और कछ नह तो चीन क गित को लेकर िव क अनुभव ऐसी िज ासा को े रत करगे। यह वह
न ह, िजसे भारतीय को वयं अपने से भी पूछना चािहए। इसक उ र का एक अंश वयं भारत क इितहास और
परपरा म स िहत हो सकता ह।
अभी हाल ही तक प मी ितमान वै क मानदंड और मू य को िनधा रत करता आया ह। चीन 1945 क
युग क बाद गंभीरता क साथ अपनी गित क कहानी िलखने वाला पहला गैर-प मी ताकत रहा, िजसने अपनी
सां कितक िवरासत को अपने य व को गढ़ने और नैरिटव को आकार देने क िलए योग िकया। यह िन त
प से तािकक ह िक या भारत को भी इसी कार क अनुकलन का पालन करना चािहए? अगर आज भारत क
कोण को समझने म बाधाएँ ह तो यह अिधकांशतः इसक िचंतन ि या क अनदेखी करने क कारण
उपजी ह। इसिलए इसम आ य नह िक यादातर प मी वग ऐितहािसक प से हमार समाज को खा रज करता
आया ह। यह यान देने यो य बात ह िक भारतीय रणनीितक िचंतन णाली क टडड अमे रक प रचय म
महाभारत का उ ेख तक नह ह, जबिक वह महाका य आम भारतीय म त क को अ यंत गंभीरतापूवक भािवत
करता ह। क पना क िजए, या यह संभव होता िक प मी रणनीितक णािलय का इसी कार प रचय िदया जाए
और होमर क ‘इिलयड’ और मैिकयावेली क ‘द ि ंस!’ या चीन क संदभ म ‘ ी िकगड स’ को नजरअंदाज कर
िदया जाए? भारत क साथ ऐसा ह तो अब तक यह कमी हमारी सीिमत वै क अहिमयत क अपे ा वािचक
परपरा क चलते कम ह। इसम शोध और संशोधन क आव यकता ह, य िक यादा ब -सां कितक वीकित भी
ब ुवीय िव क एक पहचान ह, हालाँिक वतमान म जहाँ कई थितय का सामना भारत और िव स मिलत
प से कर रह ह, वहाँ उन दोन म सम पता भी ह और यही वो त य ह, जो शायद ही अब तक कभी कही गई
हो।
वै क पदसोपान म िनरतर ऊपर जाने क ि या क या या करते रहना भी अिनवाय ह। ाय: भारत क
गित को इस दायर म कद कर िदया जाता ह िक यह पूव श होगा या िफर प मी ताकत। यह उ ोष एक
यूरोकि त अवधारणा ह िक ब लवाद िवशु प से प मी िवशेषता ह। अनेकता और सह-अ त व क एक
लंबे इितहास क बूते पर भारत इस पूवधारणा को चुनौती देने म स म ह। एक दूसरा िवमश रा वाद और िव वाद
क इद-िगद घूमता ह। यहाँ भी दूसर कई रा ह, िज ह ये धारणाएँ िवपरीत या िवरोधाभासी लगती ह। ऐसे िव म
भारत इन दोन धारणा क साथ सामंज य बैठाने म अकला पड़ जाता ह। एक रा वादी भारत िव क साथ
कम नह , ब क और यादा जुड़ाव क अपे ा रखता ह।
लेिकन संभवतः जो त व हम शासन कला क अ य परपरा से अलग करता ह, वह ह—शासन और कटनीित
को लेकर हमारी शैली। भारत का इितहास यह िदखाता ह िक वह ‘िवनर ट स ऑल’ यानी ‘जो जीता सब उसका’
क प ित का अनुकरण िनवाचन क े म नह करता ह। न ही यहाँ इस धारणा को भरोसे लायक समझा जाता ह
िक प रणाम साधन को यायोिचत िस करता ह। इसक िवपरीत भारतीय िवचार िविश प से संयिमत और
सू म अंतर म सगुंिफत प रणाम क िन प ता को दशाता ह। भले ही इ ह यथाथ क धरातल पर अपेि त तर तक
उतार पाना संभव न हो, िकतु इससे ये अवधारणाएँ खा रज नह हो जात । यहाँ ल य और ि या दोन पर
कभी-कभी तो आ मसंदेह क थित तक िचंतन जारी रहता ह, लेिकन इसक मुख वजह ह—िवषम प र थितय
म भी सही िवक प को चुनने क िविश ता।
महाभारत िनिववाद प से शासन कला पर भारतीय िवचार का सबसे जीवंत ामािणक माग ह। यह ‘अथशा ’
क तरह शासन कला पर उपचारा मक िस ांत का सं ह नह ह, ब क वा तिवक जीवन क प र थितय और
उनम िनिहत िवक प का सजीव ढग से लेखा-जोखा तुत करता ह। एक महाका य क प म यह अ य
स यता क समक ीय रचना को न कवल अपने िव तार, ब क अपनी समृि और जिटलता म भी कनीय
िस करता ह। कत य-बोध क मह व और दािय व क शुिचता पर यान देने वाला यह महाका य मानवीय
दुबलता का भी आ यान ह। शासन कला क दुिवधाएँ पूर कथानक म या ह, िजनम जोिखम उठाना, िव ास
करना और याग अथवा बिलदान करना शािमल ह। नीितय को लागू करने हतु आव यक पु षाथ को प रभािषत
करता, संभवतः सबसे याितल ध खंड भगव ीता ही ह, लेिकन शा त राजनीित क कई अ य त व, जैसे—
सुिनयोिजत समझौते, सनक से भर िखलािड़य का इ तेमाल, स ा प रवतन का उप म और श -संतुलन क
सुिन तता भी मौजूद ह। उस कथा म हमारी सामियक िचंता का पुरातन प ितिबंिबत होता ह, िवशेषकर
ि प ीय असंतुलन का सामना करने क िलए बा प र थितय का लाभ उठाने का। रणनीितक ित पधा क
पुरातनपंथी और यव था पर स बाजी वाली सोच-िवचार को िनयंि त करने वाली तथा ान क श को मह व
देने क और अिधक समकालीन संक पना क साथ सह-अ त व म रहती ह।
यह उस ित पधा क पृ भूिम क िव िनिमत बहस और िनणय का लेखा-जोखा ह, जो एक संघष म
पांत रत होने क ि या से गुजरता ह। वै क राजनीितक थित िफलहाल कह भी उतनी िवनाशकारी नह ह।
िकतु ऐसा होते ए भी समानता क कई त व इसम ह, जो आज क दौर म िनणय लेने क िलए नसीहत से भर
पड़ ह। महाभारत क युग का भारत भी ब ुवीय था, िजसम मुख ताकत एक-दूसर को संतुिलत करती थ ,
लेिकन एक बार जब इसक दो मुख ुव क बीच ित पधा को रोका न जा सका तो दूसर को मजबूरन िकसी-
न-िकसी प का समथन करना पड़ा, हालाँिक आज इसक -ब- पुनरावृि का सुझाव देने क कोई वजह नह
ह, वह तरीका िजसम संबंिधत प ारा लागत और लाभ को तौला गया, वह रणनीित क सभी िव ािथय क िलए
िश ा द ह। लड कप क तरह उस समय िजन िवक प को चुना गया, उनक हमार समकालीन िव से भी कछ
समानताएँ ह। इन सबम यादा मह व ीक ण का ह, िज ह ने सही राह क चुनौितय से िनपटने क िलए रणनीितक
मागदशन, साम रक ऊजा और नीितगत ा उपल ध कराई।
महाभारत क सव े ात दुिवधा मुख नीितय को, अपेि त कम क आनुषंिगक प रणाम से हतो सािहत ए
िबना लागू करने क ढ़ता से संबंिधत ह। इसका उदाहरण िन त प से सबसे िनपुण पांडव यो ा अजुन का ह,
जब वह यु क मैदान म प चता ह। आ मिव ास क संकट क दौर से गुजरते ए वह अपने िहत क िव
एक बंधु-बांधव से लड़ने का ढ़ संक प नह जुटा पाता, हालाँिक अंततोग वा वह भगवा ीक ण ारा अपना
धम िनभाने क िलए राजी िकया जाता ह। उस दौरान अजुन क आचरण क अंतिनिहत पहलू ह, जो अंतररा ीय
संबंध म िखलाड़ी रा पर लागू होते ह। यह लागत-लाभ िव ेषण क अनादर का कोई सुझाव नह ह। िफर भी
कभी-कभी, जबिक एक रा ता होता भी ह, वह संक प क कमी या िफर क मत क डर से नह िलया जाता।
अजुन क िवपरीत, भारत म हम ात सुख क सां वना क बजाय अ ात डर से अिधक भयभीत रहते ह।
समकालीन संदभ म ‘सॉ ट टट’ यंजक एक रा क अपेि त उ रदािय व क िनवहन क अ मता या अिन छा
को दशाता ह। अजुन का उदाहरण िन त प से यह अ मता क थित नह थी और वही कभी-कभी भारत क
भी थित होती ह। उदाहरण क िलए, आतंकवाद क िखलाफ लंबे समय से जारी लड़ाई म हम ायः अपनी
क पनाशीलता क कमी और जोिखम उठाने क भय से मजबूर हो जाते ह। ऐसी सोच बदलनी शु भी हो सकती
ह, लेिकन इसक िलए आव यक ह िक संक प भी दूसर ारा पेश िकए गए तर का हो। अंततोग वा अजुन समर
े म एक स े यो ा क प म उतरता ह और उसक आ म-औिच य क उसी िववेक को वीकारना ज री ह।
ऐसा िसफ तभी होता ह, जब िकसी रा ीय अिभजा य वग क पास अपनी बुिनयादी सोच क एक बल और
मा य समझ होती ह, िजसे चुनौती िमलने पर वे एक कड़ा ख अपनाएँगे। इसिलए चाह सं भुता क अित मण का
िवषय हो या सीमा क उ ंघन का, प प से ितकार करने क मता अंतिनिहत आ मिव ास से ही आ
सकती ह। िविभ साधन से रा ीय िहत पर ढ़ रहना और कटनीितक ल य को संरि त रखना एक रा का
धम ह, जैसा िक यह वा तव म य क प म एक यो ा का धम था। इसे उस प रवेश म मह व िदए जाने क
आव यकता होती ह, जहाँ िनणय कभी-कभी रणनीित क अपे ा लोकि यता क मानदंड पर िलये जाते ह।
इसी संदभ म हमार सम उप थत सम या से िनपटने क िलए ज री इ छाश का आ ान भी ासंिगक
ह। इसक िलए उसक लागत को उजागर करते ए अपनी अकम यता को तकसंगत ठहराने क अपे ा नह क
जाती ह। हमने ायः ये सब तक सुन रखे ह िक यह ित ं ी इतना बड़ा ह िक इसे चुनौती नह दी जा सकती और
अंत म यही िवजयी होगा अथवा ायः यह िक इस पड़ोसी का वभाव ही आतंकवाद म िल रहना ह और हम
इसक साथ ही जीना सीखना होगा। यह भा य भरोसे बैठना ह, िजसे सुिचंितत िवचार का नाम दे िदया गया ह। अगर
अजुन क िवक प म एक संदेश ह तो वह यह ह िक हम अपने दािय व का सामना करना ह, चाह उसक प रणाम
िकतने भी दु कर य न ह । भारत क रा ीय सुर ा उ ेखनीय ढग से बेहतर हो गई होती, अगर इस संदेश को
और यादा बेहतर तरीक से आ मसा करक यवहार म लाया जाता।
महाभारत क समय का एक आयाम जहाँ पर साम रक भू- य वतमान िव क सा य ह, उन बंिदश क
संदभ म ह, जो ित ंि य पर भाव डालती ह। उस युग म ये मानवीय संवेदना क एक वृहद परपरा से उ प
ई थ । य प म उनसे िब कल िभ , जो आज क समय म लागू होती ह। आंिशक प से वे एक िव ास
से संचािलत होती थ िक अपने अंतिनिहत वभाव क कारण संघष सभी स मिलत प क िहत क िलए
िव वंसकारी होता ह। इसिलए कौरव क बुजुग क बीच और यहाँ तक िक वयं राजा युिध र क साथ इसे आरभ
करने क ित य अिन छा का भाव था। उनक भाई अजुन क साथ तो यह भावना रणभूिम म भी बनी ई थी,
लेिकन जैसे-जैसे अतीत क संबंध क संवेदनाएँ भिव य क िहत क आव यकता से टकराती ह, यह और
ती ण हो जाती ह। भी म िपतामह और गु ोणाचाय दोन अपने पूव िश य क िव रणभूिम म अपनी पूरी
साम य िदखाने क ित चुर अिन छा दशाते ह।
आज क बाधाएँ यावहा रक कम और ढाँचागत यादा ह। परमाणु अवरोध एक दहलीज क तरह ह। आिथक
अंतिनभरता संभवतः एक यादा िन या मक कारक ह, य िक वा तिवक संघष को अलग-थलग करक बाजार
तनाव पर िति या देने लगते ह। एक यादा तकनीक िव यादा असुरि त भी ह, भले ही इसने और अिधक
संभावनाएँ उ प क ह । िवक प क ंखला, जो पहले ब त अिधक खुली ई थ , समय बीतने क साथ
लगातार िसकड़ती चली ग । हमार खुद क मामले म संघष का पैमाना जो पहले आ करता था, अब वा तिवकता
म उनपर सोचा नह जा सकता। जबिक सभी रा य यव थाएँ वाभािवक प से सबसे िवषम प र थित क िलए
योजनाएँ बनाएँगी, वा तिवकता उ रो र प से तीखी िति या , संक ण संभावना और सीिमत इ तेमाल क
ह। यह सश और सम मता क िनमाण क आव यकता को समा नह कर देता, लेिकन यह फोकस
उस ‘माइड गेम’ को िवकिसत करने क आव यकता क तरफ तो मोड़ ही देता ह, जो संभािवत प र य क
िलए ासंिगक ह।
अगर कोई एक िवशेषता, जो उभरती ई श को अव य िवकिसत करनी चािहए, वह ह—उ रदािय व का
िनवहन। िजस तरह से आिखरकार अजुन ने क े म अ उठाए, वह न कवल कत य क ित समपण िदखाता
ह, ब क उसक धैय का भी प रचायक ह। इन अथ म वह एक अिन छक यो ा था। एक कार से ीक ण भी
कछ ऐसे ही थे। अपने चचेर भाई और ित ं ी िशशुपाल को िनणायक प से अंितम िति या देने से पहले
उसक सौ गलितय को मा करते रहने क स मित िश ा द ह। वै क अखाड़ म एक बढ़ती ई मता वाले
रा क िलए यह भी एक सबक ह। िवशेषकर ताकत, जैसे-जैसे बढ़ती जाती ह, उसका यायसंगत प से
िववेचन, आकलन और योग िकया जाना चािहए। अब तक भारत ने शायद ही कभी इस दुिवधा का सामना िकया
हो। हमार आधुिनक युग क यादातर संघष र ा मक लड़ाइयाँ रही ह, जहाँ उनका औिच य काफ हद तक वयं
िस ह, जैसा हाल क घटना ने िदखाया ह, हम उस रणनीितक धैय को पालने क आव यकता ह, जो
आधुिनक युग क िशशुपाल क िलए ज री ह। भारत को अपनी गित क इस चरण म गैर-िज मेदाराना वातालाप
क ज रत नह ह। ताकत का योग सदैव सुिवचा रत िवक प होना चािहए, ाथिमक िवक प कभी नह ।
अमे रका जैसी महाश ने भी इराक म इसे अपने अनुभव क मा यम से, इसक िवपरीत कोण रखने पर ए
नुकसान से पहचाना था। िव क मुख रा अपने श भंडार म िविभ हिथयार रखते ह और कद उपकरण
सामा यतः सबसे कम कारगर होते ह, लेिकन भावका रता को िकनार कर दीिजए तो भी उनका आकार भी कम
मह वपूण नह ह। वे जो िबना िवचार दूसर देश म श क इ तेमाल क वकालत करते ह, नुकसान ही करते ह।
ऐसी कारवाइयाँ, जैसा िक िश ा द महाका य हम बताता ह, ऐसा िवक प ह, जो आस खतर या आदतन
अपरािधय क िलए सुरि त रखी जाती ह।
यादातर रणनीितकार अंितम यु लड़ते ह, न िक ाथिमक लड़ाई। इस संदभ म अजुन ने यु शु होने से कछ
समय पहले अहम फसला िकया। वह और उसक ित ं ी चचेर भाई दुय धन एक सहयोगी क प म ीक ण का
समथन चाहने क िलए उनक राजधानी ारका प चे। अजुन बाद म प चे, लेिकन ीक ण ने उ ह जागने क बाद
पहले देखा, य िक वे पलंग पर पाँव क ओर बैठ थे। ीक ण क सेना और िनह थे ीक ण म से िकसी एक को
चुनने क न पर अजुन ने ीक ण को चुनकर दुय धन को आ यचिकत कर िदया। िन त प से ीक ण क
‘गेम चिजंग’ मता को भाँप लेने क उसक समझ उसक फसले का आधार थी।
एक सबक इसम भी िनिहत ह, जब हम रा ीय सुर ा म ित ंि ता को बढ़ाने पर िवचार करते ह, यादातर
यो ा क तरह दुय धन ने एक पुरातनपंथी तरीक से सोचा, लेिकन अजुन ने यह भी समझ िलया था िक इसम
लीक से हटकर या था। मता क थािपत े को नजरअंदाज िकए िबना यह अहम ह िक यह रा खुद को
उसक िलए बेहतर तैयार कर, िजसका िव को इतजार ह। यह आिटिफिशयल इटिलजस, रोबोिट स और डाटा
एनािलिट स अथवा सिसंग, एडवांस मैट रय स और सिवलांस क े म हो सकता ह। िवशेषकर अगर दूसर से
लाभ लेना कामयाबी का क ह तो यह लािजमी ह िक समकािलक और मता का पूव- ात मू यांकन िकया
जाए। अजुन ने ीक ण क मह ा को समझ िलया था, िजसे दुय धन नह समझ सका।
यह न कवल यापक त वीर को देखने म असफल रहने का मामला था, ब क वा तव म वयं क पास
उपल ध संसाधन क मता को नह समझ पाने का भी िवषय था। दुय धन ीक ण क मह व से अनजान था,
अ यथा उसने उ ह अ क िबना कम आँकने क भूल न क होती। मता क मह व को पूण पेण समझना
उतना ही अिनवाय ह, िजतना उनका िनमाण। पांडव का दशन प तौर पर दोन ही े म बेहतर रहा। आज
भारत को न कवल अपने पास उपल ध िवक प क गुणव ा पर यान देना ह, ब क इस पर भी फोकस करना ह
िक बेहतर तरीक से उनका उपयोग कसे िकया जाए।
रा क बीच संबंध उनक अंद नी नीितय क तरह िनयम और मानदंड से बँधे होते ह। अगर समय-समय पर
उनका अित मण होता भी ह तो भी हमेशा एक वृहद सामािजक अपे ा होती ह िक ये िसफ अपवाद ही बने रहगे।
सभी िखलाड़ी लाभ पाने क िलए था और परपरा का उपयोग करते ह और महाभारत भी इससे अलग नह
ह। धनुिव ा क गु ोण एक ितभाशाली िश य एकल य से गु -दि णा क सं कार परपरा म उसका अँगूठा माँग
लेते ह, अ यथा वह उनक ि य िश य अजुन से आगे िनकल सकता था। भगवा इ एक ा ण का वेश धारण
करक कौरव क सेनापित कण से उसक ाथना समा होने क प ा उसका अभे कवच और कान का
कडल माँग लेते ह, य िक यही वह समय था, जब वह दान देने से इनकार नह कर सकता था। अजुन ने ी को
रणभूिम म ढाल क प म इ तेमाल िकया, यह अ छी तरह जानते ए िक भी म लिगक संवेदनशीलता क चलते
यु र म आ मण नह करगे। एक ऐसी दुिनया, जो यापा रक िववाद , तकनीक क लड़ाइय और कने टिवटी
क मतभेद से िछ -िभ हो चुक ह, यह याद करना कछ हद तक सां वनापूण हो सकता ह िक िनयम-कायदे से
न चलने का भी एक लंबा इितहास रहा ह। अगर कछ ने यव था का अनुिचत अथवा अनपेि त लाभ उठाया तो
यह वह रा ता ह, िजससे पहले भी दूसर गुजर चुक ह।
महाभारत म आचार-संिहता क उ ंघन क ऐसे अनेक उदाहरण भर पड़ ह, जो घोर िनंदनीय ह। मु य पा
दुय धन का वध सीधे-सीधे कमर क नीचे चोट प चाकर िकया जाता ह। एक क बाद एक कौरव क सेनानायक
का वध, एक का ी को ढाल बनाकर, दूसर का श रख देने क उपरांत और तीसर का जमीन म धँसे रथ क
पिहए को िनकालने क दौरान िकया गया। वैय क यु क जमे-जमाए िनयम जोिखम बढ़ता देख नजरअंदाज
िकए जाते रह। अजुन क पु अिभम यु का वध कई सार िवरोिधय ारा एक साथ घेरकर, िजनम पीछ से हार भी
शािमल ह, िकया जाता ह। वयं उसक िपता अजुन िनयम को तोड़कर भू र वा पर हार करते ह, जब वह अपने
िचर ित ं ी स यािक क साथ यु म संल न था। ोण क पु अ थामा ने िपता क वध का ितशोध िजस कार
यु क अंत म सोते ए िवजेता का नरसंहार करक िकया, वह इस कार क िनयम-िव क य म सबसे
भयावह था।
ये उदाहरण िनयम क पालन क थित और उनका उ ंघन होने पर चुकाई जाने वाली क मत क गुण-दोष
का िववेचन करक एक िवमश क परखा तैयार करते ह। उनक और यादा समकालीन सं करण हर युग म
येक देश म पाए जा सकते ह। सभी ितबंध और बाधाएँ, जो िनयम से लागू होती ह, उनका पालन और दशन
अंतररा ीय संबंध म ब त मू यवान होता ह। आदतन उ ंघन करने वाल को, जब कभी वे िनयम का पालन
करते ह तब भी, कम ेय िमलता ह, जबिक कभी-कभार उ ंघन करने वाले िकसी ऐसे आचरण को हमेशा
यायोिचत ठहरा सकते ह। अनेक कार से यही कौरव और पांडव म अंतर भी था। अंतररा ीय कानून , समझौत
और तालमेल से बँधकर रहने का मह व िकसी सै ांितक बहस का िवषय नह ह। ताकतवर रा दूसर क िनणय
पर अपने िवक प और िहत को थोपने म य प से अिन छक होते ह। ताकत और कद बढ़ने क साथ यही
बात भारत पर भी लागू हो सकती ह। चाह जो भी हो, एक िनयम म बँधे और िज मेदार िखलाड़ी क प म समझे
जाने क लाभ को कम करक नह आँका जा सकता। हमने ऐसा होते तब देखा, जब परमाणु आकां ा को
समािव करने क िलए िव ने पािक तान क अपे ा भारत पर कह यादा भरोसा जताया। यहाँ तक िक यह
आगे भी जारी ह, जब ये मुख तकनीक िनयात ह तांतरण ताकत क समूह क सद यता चाह रह ह। समु ी े
पर दावे जैसे मामल म 2014 म बां लादेश को जो ‘आिब ल’ अवाड आ, उसको भारत ने वीकित दी, जबिक
2016 म दि ण चीन सागर म जो आ, वह इसक िब कल िवपरीत था।
िनयम क अनुसार खेलना खेल भावना का क िबंदु ह, िजनम िविभ रा एक-दूसर क सहभागी बनते ह।
दूसर क मानिसकता को समझना ायः वह चाभी ह, िजससे हम अनुमान लगाते ह िक वे िकतनी दूर तक साथ
चलगे और िकन कारण से वे साथ देने से पीछ हट जाएँगे। एक अपरपरागत िखलाड़ी क साम य एक यादा
परपरागत और िनयमब िखलाड़ी क संभािवत िति या क िवषय म सटीक िनणय लेने म ह। वयं को
बाधारिहत कारवाइय म शािमल रखते ए उनका रणकौशल दूसर प को उ मानदंड पर बनाए रखने म ह। इस
अंतर का फायदा उठाते रहने से िन त प से उ ह भावी बढ़त िमल जाती ह। ित ं ी भाइय कण और अजुन
क बीच िनणायक यु इस थित को ही िचि त करता ह, वा तव म यही त वीर कौरव क राजकमार दुय धन क
अंितम पल क भी ह। कण और दुय धन दोन अपने ित ंि य से उन मानदंड पर बने रहने क अपे ा करते ह,
िजनका उ ह ने वयं उ ंघन िकया था। पांडव क िलए ीक ण क ासंिगकता उनक दुिवधा क समाधान
और जब िनयम िशिथल हो जाते ह, उन थितय से िनपटने म उनका योगदान ह।
आधुिनक िव म खुले समाज का ऐसी चुनौितय से तब सामना होता ह, जब उनक सामने कम ईमानदार
ित ं ी होते ह। गैर-बराबरी क लड़ाई लड़ना ही उनका कम होता ह। सबसे यादा चरम थित आतंकवाद से
लड़ते समय उ प होती ह, खासकर तब जब उ ह रा य श य ारा समथन िमला होता ह, जैसे पहले भी दूसर
ने िन कष िनकाले ह, इसक जवाब आसान नह ह। िपछले दो दशक म भारत और पािक तान क बीच कटनीितक
य तता पर िवचार क िजए। एक आतंकवादी और एक पीिड़त क बीच नैितक समानता उ प करने क िलए
पािक तान परमाणु दहशत फलाने का कारोबार करता ह। इसक बाद हम हवाना और शम-अल-शेख म िमत होने
क गलती कर बैठते ह। इस तक म रणनीितक संयम य प म कवल पीिड़त पर लागू होता ह, अपराधी पर
नह । वा तव म, यहाँ तक िक एक कहानी यह भी गढ़ने क कोिशश ई िक खतरा उस समय नह बढ़ता, जब
पािक तान आतंकवादी घटना को अंजाम देता ह, लेिकन तब बढ़ जाता ह, जब भारत ऐसी घटना का जवाब
देता ह।
आ यजनक तो यह ह िक िकतन ने इस वाथ तक पर िव ास कर िलया, और उ मीद क िक भारत को
वाभािवक प से इसक पु करनी चािहए। ऐसे म इसे एक ि प ीय िववाद बनाए रखना असल चुनौती रही ह।
उरी और बालाकोट िति या क अहिमयत यही थी िक आिखरकार भारतीय नीित वयं क बार म तय कर
सकती थी, बजाय इसक िक पािक तान इसक जवाब का अनुकलन कर और कई मायने म ीक ण क भी यही
भूिमका पांडव क प म रही।
हालाँिक मानदंड से िवचलन कम देखने को िमलते ह, एक और जिटल मु ा छल-कपट क भूिमका का ह।
िन त प से ऐसा नह हो सकता िक िवदेश नीित और रा ीय सुर ा क डोमेन म होने वाली गितिविधयाँ सभी
संदभ म पारदश होनी चािहए। आिखरकार ो साहन, भय और जोड़-तोड़ मानवीय वभाव क अंग ह। भारतीय
रणनीितक िचंतन िवशेषकर कौिट य का लेखन राजनीितक चुनौितय से िनपटने क िलए साम, दाम, दंड, भेद क
मह व को रखांिकत करता ह। रणकौशल क जिटलताएँ थित क गंभीरता क समानुपात म बढ़ती ह। महाभारत म
हम ऐसा नैितक प से िववादा पद दो संग म देखते ह।
रणभूिम म हताशा क एक घड़ी म राजा युिध र को उनक एक अहम ित ं ी ोणाचाय का आ मबल ख म
करने हतु एक झूठी घोषणा करने क िलए राजी िकया जाता ह। इससे पहले जब अजुन क एक िनयत समय-सीमा
म एक श ु क वध क शपथ टटने वाली थी तो ीक ण ने सुर ा का ऐसा मजाल फलाया, िजसने िशकार बनने
वाले यो ा जय थ को घातक प रणाम क िलए सामने आने को ो सािहत िकया। दोन ही िवषय म कारवाई क
तरीक ने इसक भावना का उ ंघन िकया। इससे भी कह यादा घोर िनंदनीय थितयाँ वा तिवक जीवन म घिटत
हो चुक ह। आधुिनक िव क यादातर िवनाशक यु म से कई—इ लड म बोसवथ फ ड, जापान म
सेक गाहारा अथवा भारत म लासी—अंततोग वा छल-कपट से ही अंजाम तक प चे। यहाँ तक िक कभी-कभी
धोखेबाजी को र ा का वा ता देकर भी जायज ठहराया गया, जैसा िक जापानी आ यान ‘47 रोिनन’ क संग म
था।
िफर भी िव तो िनयम का अनुपालन और मानदंड क िनगरानी को ो सािहत करता ह। इसी वजह से जापान
ने पल हाबर पर आ मण से तुरत पहले औपचा रक प से यु का ऐलान कर िदया, िजससे िक यह नैितक और
तकनीक प से सही िदखाई दे, लेिकन समय रहते ऐसा कर पाने म इसक नाकामी रा पित जवे ट को
राजनीितक समथन जुटाने म ब त अिधक लाभकारी रही। िनयम से पलायन और उ ंघन को सही सािबत करने
क िलए नैरिटव ब त ज री होते ह और हर राजनीितक सं कित अपने वयं का सं करण पेश करती ह। आधुिनक
इितहास म इस काम म अं ेज संभवतः सव े थे। भारत क संदभ म उनक कहानी सुझाव क उस हद तक जा
सकती ह िक उ पीड़न पीिड़त क हक म था। दूसर ने सुिवधानुसार अपने वयं क इरादे प ीकरण चुन।े कई
मायन म नैितकता क उ तर को बनाए रखना यावहा रक राजनीित क असली परी ा ह।
रणनीितक छल, जैसा िक इसक प रभाषा से प ह, एक उ साख वाली पहल ह, िजसम सफल होने क
िलए एक िवशेष मानिसकता क आव यकता होती ह। सामा यतया िखलािड़य क एक बड़ी सं या म भागीदारी
और लंबे घटना म क साथ िबना पया आंत रक अनुशासन क इसे कर पाना किठन ह। महाभारत म कौरव ने
पांडव क िव इसका तीन बार य न िकया—पहली बार भीम को डबोने का यास, िफर पांडव को ला ागृह
म जलाकर मारने क चे ा और अंत म युिध र को जुए क कपटपूण खेल म हराने म। मूलभूत प से िनरकश
समाज इस संदभ म यादा द होते ह और आधुिनक िव म रा य-िनयं णवािदता और रणनीितक छल क
पर पर संबंध को नकारा नह जा सकता, हालाँिक इस े म लोकतांि क रा क मता म कमी का न
नह ह, िफर भी इसे भावी प म यवहार म लाने क िलए उ ह मजबूत और एकजुट सं था क आव यकता
अव य ह।
प मी अनुभव ने िदखाया ह िक जब उ े य म एकजुटता हो तो ऐसी पहलकदमी क शु आत और उसे
अमल म लाना सरल हो जाता ह, जब बात स, यूगो लािवया, लीिबया अथवा सी रया क आती ह तो ब त-कछ
ऐसा िकया गया, िजसक िवषय म चचा नह ई। इसक िवपरीत, इराक पर बहस काफ बँटी ई थी, िजसने कई
गड़ मुद उखाड़। यहाँ तक िक कई अवसर पर अफगािन तान क रणनीित को लेकर भी मतभेद सामने आए। भारत
क तमाम चुनौितय म से एक यह ह िक सं थागत प म इसक समझ पूरी तरह िवकिसत नह ह। ित ं ा मक
राजनीित इतनी असंगत ह िक संभवतः िनरतरता क नाम पर एक ही चीज ह िक जो लोग िवप म ह, वे िसफ
िवरोध करने क िलए िगने जा सकते ह। यह कथन और आशय क बीच क खाई को पाटना काफ किठन बना
देता ह।
चीन क इितहास और सं कित पर गहरी पकड़ रखने वाले हमार सव े िवशेष म से एक1 ने यह इिगत
िकया ह िक चीन ही वह समाज ह, िजसने छल-कपट को शासन कला क उ तम तर तक प चा िदया। ‘ ी
िकगडम’ महाका य म उन िवशेषता को िनरतर सराहा गया ह, जहाँ अनेक िनणायक लड़ाइय को ताकत क
बजाय चालबाजी से जीता गया ह। ‘बुक ऑफ ी’ क 36 चालबािजयाँ आगे भी माण ह िक इस कार क
तरीक चीन क लोकि य िचंतनधारा म िकतने गहर तक समािहत हो चुक ह। ‘समु लाँघने क िलए देवलोक को
चकमा देना’, यानी सामा य नजर से ओझल रहना या िफर ‘पूव म आवाज करक प म म हार करना’ इसक
सबसे यादा चिलत कहावत म से एक ह। ‘पेड़ पर झूठ बौर सजाना’ और ‘खाली िकले क रणनीित’ भी कम
नह ह। भारत से िभ , वह छल करने म न तो अपराध-बोध और न ही संदेह करता ह। वा तव म, एक कला क
तौर पर इसका गुणगान होता ह। कछ िव ेषक 2 ने तो यहाँ तक सुझाया ह िक चीन का अ यािशत उदय ब त
अिधक प म इसक सां कितक ल ण से आया ह।
इसक िवपरीत, भारत को अपनी घोिषत नीितय और वा तिवक ल य क बीच अंतराल से िनपटने म ही संघष
करना पड़ा। इसिलए 1950 म सीमा क भावी सुर ा क तैयारी करते ए चीन क साथ एिशयाई भाईचार क
संदेश को बनाए रखना किठन था। पािक तान क संदभ म, िवभाजन से गुजर लोग वाली ासद मृितय और एक
सनक -िवरोधी क वा तिवकता म सदैव लड़ाई होती आई ह। यहाँ तक िक ीलंका म भी शांित थापना क
जनादेश का ताकत क िनणायक इ तेमाल क साथ सामंज य बैठाना किठन था। िन संदेह दो पट रय वाले कथन
को वा तिवक ल य क साथ ऐसे प रवेश म लागू करना चुनौतीपूण ह, जहाँ थितयाँ बदलती रहती ह और उन
कथन म िवरोधाभास को लेकर सावजिनक प से सवाल उठाए जाते ह । संगिठत अिभजा य वग इस पर िनयं ण
पाने और रणनीितक छल को सफलतापूवक ि या वत करने म सव े होता ह। अपनी इ ह अ मता का
दोषी समाज उन ित त फायद म सहज हो सकता ह, िजनका वह अनजाने म आनंद उठाता ह।
महाका य म विणत संघष क उन िव मृत अहम यो ा म, िज ह ायः अपनी भूिमका क िलए पया ेय नह
िमला, एक थे सुशमा, िजनक नेतृ व वाले यो ा आज क पंजाब से आते थे। क क परपरागत सहयोगी होने क
साथ वे अजुन क ित भी एक िवशेष श ुता रखते थे। अजुन ने उ ह युिध र क रा यािभषेक समारोह क दौरान
हराया था। उनक एकिच श ुता पांडव क िलए ब त महगी पड़ी थी। कौरव क आग म लगातार घी डालते ए
उ ह ने पांडव को उनक िन कासन काल क दौरान िवरा सा ा य से िनकाल बाहर करने क यास म सहयोग
िकया था, लेिकन सबसे यादा नुकसान वे तब करते ह, जब कौरव ारा युिध र को जीिवत पकड़ने क यास म
वे अजुन को मृ युपयत यु क चुनौती दे देते ह, िजससे वह मु य रणभूिम से पर हट जाता ह। अजुन िवजयी तो हो
जाता ह, लेिकन उसका यह भटकाव उसक पु अिभम यु क मृ यु का कारण बनता ह, जो अकले कौरव क इस
यास का ितरोध कर सकता था। यहाँ पर सबक छोट िवरोिधय क खतर का ह, िजनक एकिच ता नुकसान
प चाने क िलए आ मघात क हद तक जाती ह।
ऐसे िवपि य क पीड़ा देने क मता को, भले ही वे कम आ मघाती य न ह , कम नह आँकना चािहए। एक
दूसरा ासंिगक उदाहरण िसंधु क राजा जय थ का ह, जो पांडव क साथ पूव क एक भीषण यु क प ा
अजुन क अनुप थित म मुकाबला करने क मता ा कर लेता ह। प रणाम व प अिभम यु क च यूह भेदने
क बाद जय थ उसे पांडव से िमलने वाली मदद रोकने म सफल रहा। वा तव म, ऐसे एक ही िबंदु पर कि त
ित ं ी ब त िवरले ही होते ह, लेिकन अगर वे जीवन क स ाई बन जाएँ तो उनपर िवशेष यान देने क
आव यकता होती ह। कई मायन म ये आज भारत-पािक तान क पर पर संबंध क थित दशाते ह।
1971 से वह देश भारत को नुकसान प चाने म हद से पार जा चुका ह, जबिक उसक वयं क यव था उ ह
श य ने खोखली कर दी ह, िजसे उसने पाला-पोसा था। भारत िन त प से अजुन क समाधान को दोहरा
नह सकता, लेिकन वह उनसे कछ उिचत नसीहत ले सकता ह। पािक तान को लेकर एक रणनीितक प ता, एक
अ छा थान िबंदु हो सकती ह। ऐसे ित ं ी को लेकर अंतब ध से ा ान को अव य पहचानना चािहए।
हमारा पड़ोसी कौन होगा, इसको तय नह िकया जा सकता, जैसे महाभारत म पांडव क पास ित ंि य क चयन
का िवक प नह था। भारत इस दुिवधा क पार कसे जाएगा?
इसका कोई व रत समाधान नह हो सकता और कोई भी भारतीय िति या इस असंभव मापदंड से नह मापी
जानी चािहए। इसिलए इसको वयं क समाधान क समु य क साथ आगे आना होगा। यह सुिन त करना िक
अब आतंकवािदय क संर ण क कोई गारटी नह रही, ऐसा ही एक कदम हो सकता ह। आतंकवादी क य क
िलए उ रदािय व सुिन त करना दूसरा कदम हो सकता ह। ‘समाधान क िलए लगे रहना वयं म एक समाधान
ह’—इस बचकानी याशा को पर हटाना आव यक ह। ि या कभी भी यवहार को दु त नह कर सकती।
सामा य कारोबार बहाल करने या संपक कायम करने से पािक तान का इनकार उसक इराद क िवषय म ब त-
कछ जािहर करता ह। वतमान म ऐसे ख का एक यावहा रक जवाब उसक साख को ध का प चाने क ि या
को िनरतर करते रहना हो सकता ह, जो कालांतर म उसे महगा सािबत होने वाला हो। नह तो पािक तान क साथ
एक सामा य पड़ोसी का बताव तभी िकया जा सकता ह, जब उसका आचरण इसक अनु प हो। तब तक भारत
को धैय, रचना मकता और ढ़ता क िम ण क उस तर को िदखाते रहना होगा, जोिक संभवत: अजुन को भी
भािवत करता।
अगर िभ कित क येक िवक प क एक क मत ह तो अिन य, ैधवृि और तट थता क भी क मत
होती ह। इस आ यान म अहिमयत रखने वाले िखलािड़य क तीन िवरोधाभासी कोण ह।
पहला कोण श य से जुड़ा ह, जो पांडव क मामा ह और िज ह छलपूवक िमत करक कौरव क प म
यु क िलए राजी कर िलया जाता ह, लेिकन छल तो एक दो-धारी तलवार ह और यही छल कौरव क सेनापित
कण का मनोबल खोखला भी कर देता ह, िजसक िलए श य एक अहम यु म सारथी ह। क ण क भाई बलराम
वा तव म तट थ ह, य िक उ ह ने दोन प को यु -कौशल िसखाया ह और जो यु से बाहर रहने का िनणय
कर उस दौरान एक लंबी तीथया ा पर चले जाते ह। वापस आने पर वे इसक नतीज से नाराज होते ह, लेिकन िफर
भी िकसी भी कार से इसे भािवत करने म असमथ ह। िवदभ का मी एक अ य उ ेखनीय यो ा ह, जोिक
यु से बाहर रहता ह, लेिकन एक िनतांत िभ कारण से। वह दोन प म अपनी अहिमयत को कछ यादा
आँकता ह और दोन ारा वीकार नह िकया जाता ह।
इनम से येक उदाहरण क समकालीन राजनीित म कछ ासंिगकता ह, िवशेषकर उस रा क िलए, िजसने
यापक वै क िवभाजन को समझने यो य साध रखा ह। भारत क गुटिनरपे नीित क अलग-अलग समय म
अलग-अलग पहलू रह ह, िजनम से कछ म ऐसी ही थितय क संयोजन क झलक िमलती ह। जहाँ हम
भागीदार नह रह ह, िफर भी प रणाम को भुगतने क िलए छोड़ िदए गए ह। कछ न पर हम सभी प को
नाखुश करने का खतरा उठाते ह। जहाँ हमने वृह र िवरोधाभास पर गुटबंदी क , ऐसा करने क हमारी अिन छा क
एक क मत भी चुकानी पड़ी ह।
स ा प रवतन तब से होते आए ह, जब से रा य अ त व म आए, भले ही यह वतमान पीढ़ी क सं ान म 2003
क इराक यु क कारण आया। कमजोर प ीकरण और अ यव थत प रणाम क चलते यह श द नकारा मक
अथ से लदा आ ह। िफर भी इस प रपाटी को नैितक कारण से ायः यायोिचत ठहराया जाता रहा। महाभारत म
सबसे यादा बताया जाने वाला उदाहरण क ण क संकत पर मगध क राजा जरासंध का वध था। उनको हटाना एक
ता कािलक चुनौती क अंत तथा युिध र क स ा बनने क राह म एक बड़ िवरोध को समा करने; दोन क
िलए आव यक था। क ण क कोण म यह एक पुरानी रिजश का िनपटारा था। इस य न म जो चीज यान देने
यो य ह, वह ह—इसक िदखावे वाली वजह : अ ानबे राजकमार क रहाई, िज ह अ यायपूण ढग से जरासंध ने
अपनी िहरासत म रखा था। यहाँ तक िक एक ता कािलक खतर क थित भी िव मान थी, य िक वह उन
राजकमार क सं या सौ होने पर उनक बिल चढ़ाने क बात कर रहा था।
यह ांत उस त य क अहिमयत भी समझाता ह, िजसे हम आज दि ण-दि ण सहयोग कहते ह, यानी
भावशाली क िव एकजुट होना। असुरि त और कमजोर का सहयोग सामूिहक राजनीित म िन य ही बल
मह व रखता ह। इसी क समानांतर वै क िहत क नाम पर एक रा ीय ल य को ा िकया जाता था। स ा
प रवतन अंतररा ीय संबंध क सबसे यादा िववादा पद पहलु म से एक ह, य िक वे य प से सं भुता
का उ ंघन करते ह, लेिकन अगर उ ह िकया जाना ज री हो तो इसका सव े तरीका ह—एक नैितक या या
क साथ करना, िजसक िव सनीयता हो। हो सकता ह िक इस िवशेष मामले म ऐसा रहा हो, लेिकन अभी हाल क
उदाहरण जैसे इराक क िवषय म यह कम स य तीत होता ह।
बाहरी प रवेश का लाभ उठाना स ा प रवतन क िस क का दूसरा पहलू ह। यहाँ कमजोर िखलाड़ी अपने लाभ
क िलए ताकतवर से या तो िवनती करता ह या उनसे चालाक से काम िनकलवाता ह। जैसे-जैसे संघष आगे बढ़ता
ह, ऐसी थितय क कोई कमी नह रहती, यान रह िक पांडव क िव सै य संतुलन 7:11 का था। सार
देवता का आ ान श शाली हिथयार और अपरपरागत मता को ा करने म िकया जाता ह। गठबंधन
बनाना और उनका िनवाह करना भाव डालने का एक ज रया हो सकता ह, लेिकन तकनीक तक प च और दूसर
क ान का इ तेमाल भी कम भावी नह ह। यह िवशेष प से मजबूत ित ंि य क िव एक रणनीितक
थित का वह मामला ह, िजस पर आज क भारत को यादा िचंतन क ज रत ह। वे जो यापक रा ीय श क
वकालत करते ह, िन त प से सही ह, लेिकन यह य जवाब ह। िजस चीज क उपे ा नह क जानी
चािहए, वह ह—दूसर क भाव और ताकत क इ तेमाल क कला।
आधुिनक इितहास ऐसी दमदार कहािनय से भरा पड़ा ह, िजसम ताकतवर देश महज इसी एक कमी से नाकाम
हो गए। उदाहरण क िलए, ‘िव हिमन जमनी’ क कमजोर रणनीित ने अनुकल श -संतुलन को भी दुबल कर
िदया। यह कौशल न कवल कमजोर और ऊपर उठने वाल क िलए ज री ह, ब क ताकतवर क िलए भी अपने
समथन क े को बनाए रखने और सामूिहक िति या को हतो सािहत करने क िलए आव यक ह। गलितय से
सीखना भी एक अनुपूरक कौशल ह, िजससे िक गलितय को दोहराया न जाए। महाभारत क सबसे बड़ी
िवडबना म से एक यह ह िक युिध र जो जुए क खेल म अपना राजपाट गँवा देता ह, इस खेल म इतनी
िनपुणता हािसल करता ह िक कालांतर म राजा िवरा क अधीन इसे अपनी आजीिवका बना लेता ह।
जहाँ पर पांडव ने अपने चचेर भाइय पर िनरतर बढ़त हािसल क , वह थी—कथानक को आकार देने और
िनयंि त करने क मता। उनक नैितक अव थित एक उ क पहचान का िशखर थी। उनक शूरवीरता, कलीनता
और उदारता ने उनक प क छिव िनखारने म मह वपूण भूिमका िनभाई। वीकाय प से वे कई अवसर पर
पीिड़त रह थे, लेिकन वयं को पीिड़त िदखाने क उनक मता भी कम नह थी। जंगल म आ उनका पालन-
पोषण जनधारणा बनाने म उ ह शु आती बढ़त िदला देता ह। ला ागृह म उनको जलाकर मारने का यास उ ह
चोट खाए प ी क प म तुत करता ह। रा य क अ यायपूण बँटवार को वीकार करना उस छिव को सु ढ़
करता ह। इ थ म सफलतापूवक एक रा य थािपत करना उनक रौनक और बढ़ा देता ह। उनक प नी ौपदी
क साथ आ घृिणत बताव उनक बदले क आग को कभी बुझने नह देता। मा टर ोक तो वह रहा, िजसम
उ ह ने यु क पूवसं या पर एक यु संगत सुलह क पेशकश करक कवल पाँच गाँव वीकार करने का ताव
िदया, िजससे समक लोग क सहानुभूित उनक प म आ जाए। उ नैितकता को हण करने और कथानक
को आकार देने, दोन क बीच यापक सह-संबंध होते ह। इसी कारणवश शीतयु क दौरान दोन प ने पूर जोश
क साथ तक क तीर चलाए।
एक ने लोकतं , िनजी वतं ता और बाजार यव था पर जोर िदया, जबिक दूसर ने सामािजक याय, साझा
िहत और सामूिहक क याण पर बल िदया। जैसे-जैसे चीन ने गित क , इसने शांितपूण च र और वृह र समृि
क िनिहताथ को रखांिकत िकया। िवकासशील देश ने गितिविधय क एक िव तृत ंखला म होने वाले
सकारा मक भेदभाव का सहारा लेकर अपनी सौदेबाजी क थित म सुधार िकया। सामा य तौर पर प मी िव ,
िवशेषकर यूरोपीय संघ वै क मु और उनक संर ण पर बल देकर वयं को एक नए प म सामने लाए,
हालाँिक वह चमक अब फ क पड़ती जा रही ह, य िक संक ण िहत ने वतमान सोच को भािवत िकया ह और
आिथक मोच पर लुभाने वाला लोकवाद हावी हो चुका ह। जैसे-जैसे चीन क मता बढ़ती ह, यह लोबल से
यूिनवसल क ओर जाने क चुनौती पेश कर सकता ह। अमे रका दूसर रा ते पर चल रहा ह, गठबंधन से जुड़ी
ितब ता को कमजोर करक और अंतररा ीय दािय व से मुँह फरकर। मजबूत रा ीय अ मता क
लोकाचार क राह चलते ए भारत को भी अपने समतु य ल य पर काम करना होगा। एक समाज, जो शी ही
सबसे सघन आबादी और मह वपूण आिथक आकार का हो जाएगा, उसका अपना संदेश प होना चािहए। उन
िदन जब यह दुबल था, समूह मानिसकता और असंिल ता एक सुिवधापूण थित थी, लेिकन समय बीतने क
साथ इसको जारी रखना उ रो र किठन होता जाएगा।
महाभारत म चलने वाले कथानक का एक पहलू भारत क सा ा य क बीच श -संतुलन का भी ह।
एकजुटता क िलए ायः र तेदारी करने का रा ता चुना जाता था, लेिकन वह वयं भी अकसर रा य क िहत से
उपजता था। पांचाल और म य सा ा य इसक दो अहम उदाहरण ह, जो पांडव क वाभािवक सहयोगी रह।
तनावज य थितयाँ भी अंतिनिहत झुकाव को उजागर करने म सहायक होती ह। इस तरह िन कासन क तेरहव वष
म िछपने क िलए उिचत थान क योजना बनाते समय पांडव उन सा ा य क पहचान करते ह, जो िम व ह।
इसी कार जरासंध को बाहर लाने क िलए रणनीित बनाते समय क ण न कवल कौरव से उसक नजदीक
उजागर करते ह, ब क उन सा ा य क भी सूची बनाते ह, जो उसक खा मे क उपरांत कमजोर हो जाएँग।े कई
कार से क े क मैदान क यु रखाएँ एक बेहद जिटल मैि स क पेचीदिगय को दशाती ह।
आज संतुलन पैदा करने और उसे बनाए रखने वाला वह वानुभूत बोध हमार देश म संभवतः कमतर हो गया ह।
अनेक कार क कारक ने वै क राजनीित म गहर उतरने को हतो सािहत कर िदया, जोिक इसक िलए बेहद
ज री था। उनम से कछ हमारी वयं क मता म कमी क प रचायक ह। जैसे-जैसे उनम सुधार होता ह,
आ मिव ास क तर म भी होना चािहए। अगर हम श क संतुलन म संशय रखते ह तो ऐसा इसिलए ह िक
िव यु तक आते-आते दुिनया ने इसे अिनयंि त ितयोिगता म बदलते देखा। शीतयु क अनुशासन ने भी एक
जड़ता पैदा क , िजसने ऐसी संभावना क मह व को कम कर िदया, जब वह ख म आ, अंतिनभरता और
वै ीकरण म एक यापक िव ास ने ऐसी सोच का िनराकरण कर िदया। वे सब अब यापक रा वाद, समतलीय
भू- य और िपघलते गठबंधन क युग म प रवितत हो रह ह।
यावहा रक राजनीित क ओर झुकाव नीित क नु ख क क मत और औिच य को भी सामने लाता ह। य िप
अिभम यु क मृ यु ासदपूण थी, यापक प र य म यह राजा को बचाने क एक यास म आ सापे नुकसान
था और भी यादा जानबूझकर िकया गया क य संभवतः उसक दादी कती का था, िजसने ला ागृह को आग क
हवाले करने से पहले अपने वयं क प रजन को मेहमान क एक समूह से बदल िदया था या िफर यु आरभ होने
पर अजुन क पु इरावन का बिलदान, जोिक िवजय क क मत क प म चुकाई जानी थी। संभवतः यु क दौरान
कण क अजेय श अ से भतीजे घटो कच का वध कम िवचिलत करने वाली थी, िजसने उसक चाचा अजुन
क िव इसक संभािवत योग क भूिमका तैयार कर दी। रा ीय िहत क संचालन क एक क मत होती ह और
उन फसल को लेना नेतृ व क िलए संभवतः सबसे दु कर दािय व होता ह।
पांडव एक करण क सबसे े उदाहरण ह। एक जिटल िपतृ व मूल क साथ अलग-अलग माता से उ प
संतान होकर भी उ ह ने आंत रक तनाव पर काबू पाते ए एक टीम क प म भलीभाँित काय िकया। उनक पास
पूरक यो यता क समु य थे, जो उनक संयोजन को िवशेष प से भावी बना देते थे। एकजुट होकर िनपुणता
क साथ काम करने क किठनाइय पर एक आदश क प म उ ह यादा िवचार-िवमश को े रत करना चािहए।
भारत इस सम या म ज रत से यादा उलझा आ ह, य िक हमारी िक मत म सामािजक ब लवाद और चरम
य वाद दोन िव मान ह। यह इस स ाई से यादा िवकट हो जाता ह िक यहाँ सीिमत शासिनक सुधार ही हो
पाए ह, अतएव मह र एक करण क आव यकता वा तव म ब त बल ह। संयु ता, सम वय और साझेदारी
सभी बड़ संगठन म जुड़ी ई चुनौितयाँ ह। वे तयशुदा यवहार , िनिहत वाथ और िभ पहचान से ही जूझती
रहती ह। ऊपरी तर पर रजामंद होना शायद ही कभी इसे वयं से काम करते ए प रणाम क ओर ले जाता ह।
थोड़ा-ब त यह सचेत हो सकता ह, लेिकन इितहास और अनुभव तो इसे िवपरीत िदशा म ही ले जाते ह। वा तव
म, बेहतर मताएँ िवकिसत करने क अलावा अलग-थलग ि या को ख म करना उतना ही अहम ह, िजतना
नीितय क ि या वयन क े म िकसी हठी सम या का व रत समाधान होता ह।
अगर भारत म हमने एक सम वया मक प र थित क साथ भी काम करने वाली पहचान ही बना ली ह तो ऐसा
इसिलए ह िक हमारा अतीत ऐसी िमसाल से भरा पड़ा ह, िजनक भारी क मत चुकानी पड़ी थी। य वाद को
और संचय करने क उ कठा से भी बढ़ाया जा सकता था, िजसक जड़ अभाव क थित म पहले से ही गहरी रही
ह। स ावादी यव था भी हमार समाज पर थोपी जा चुक ह। सबसे मह वपूण बात यह ह िक ि या क पालन पर
यान अिधक ह, प रणाम क िचंता पर कम। एक करण क कमी कई प म कट होती ह, लेिकन उन सभी
संभािवत अिभ य य म संशोधन करक ही भारतीय िवदेश नीित वा तव म बेहतर बदलाव ला सकती ह।
महाभारत कोण और िवक प का एक ऐसा आ यान ह, िजसका स मिलत भाव राजनीित को एक
िन त िदशा म आगे बढ़ाने का काम करता ह। उनम से येक समसामियक दौर क िलए कछ सीख देता ह।
िवशेष प से कौरव ितयोिगता को इसक चरम िबंदु तक धकलते जाते ह, िजससे उपजी िति या उनक िघनौनी
चाल क अनुकरण को भी उिचत ठहराती ह। इसक िवपरीत, पांडव अपनी एक छिव िवकिसत करते ह और
कटनीितक धैय का प रचय देते ह, प रणाम व प वे अपने से े ित ं ी को बेतरतीब चाल क ज रए आंिशक
प से परा त करने म समथ ह। कण गठबंधनज य अनुशासन को ुवीकरण क असर को दशाते ए सव े ढग
से अिभ य करता ह। भी म और ोण यव था क साथ खड़ हो सकते ह, लेिकन उनक दुिवधा उनक प को
महगी पड़ जाती ह। यह ुपद क थित क िवपरीत ह, िजसक एकिच ता एक सहयोगी क प म उनका मह व
बढ़ा देती ह। ि गत, जैसा िक पहले उ ेख हो चुका ह, इसका एक चरम सं करण ह। श य, बलराम और मा
गुटिनरपे से गैर-भागीदारी तक िभ -िभ रग ह और जहाँ तक बात कती क ह, सफलता क िलए उसक
भावना मक ितब ता ने संचालन लागत चुकाने से भी संकोच नह िकया।
जैसािक हम सब जानते ह, िन पक व प ीक ण ह। वे यापक फलक पर चीज को समझते ह। तदनु प
रणनीित क परखा तय करते ह और िनणायक ण म चातुयपूण समाधान तुत करते ह। उनक िवक प िदशा
तय करते ह, चाह यह संरचनागत प रवतन हो, भावना को आकार देना हो, छिव सु ढ़ करनी हो या कथानक
गढ़ने ह । जरासंध को ख म कर वे एक अिधक अनुकल श -संतुलन सुिन त करने म समथ ह। चाह यह
उनक वयं क उप थित क मा यम से हो अथवा उनक ारा तािवत बुि म ापूण सुझाव हो, वे झान को
पांडव क तरफ झुकाने म सहयोग करते ह। उनक कटनीितक संिध ताव एक तकसंगत श क संदेश को
रखांिकत करते ह, िजससे उनका प एक आहत प क प म नजर आए। जय थ, कण अथवा दुय धन क वध
जैसे अहम पल म वे ेरक और उिचत ठहराने वाले दोन ह। वे पांडव ारा संयम बरतते ए उ ह अपने समय क
ती ा करने और उस यु क िलए जो अप रहाय ह, आव यक मताएँ जुटाने क भी सलाह देते ह। उनक उपदेश
भले ही कारण क ित विन या सतकता क संदेश ह , लेिकन इसक साथ ही जहाँ आव यक हो, वहाँ ज री कदम
उठाने का भी आ ान ह। ऐसा नह िक वे तभी माग िदखाते ह, जब दूसर रा ते बंद हो जाते ह; सबसे मह वपूण
यह ह िक वे सही काम को पूण उ रदािय व क साथ संप करते ह।
महाभारत िजतना स ा का आ यान ह, उतना ही नैितकता का भी। यह ीक ण का अिभ ान ह, जो दोन
अिनवायता म सामंज य बैठा देता ह। जैसे-जैसे भारतीय मह वपूण योगदान क िलए तैयार हो रह ह, उ ह इस
उतार-चढ़ाव भर िव का सामना और वयं को तैयार करने क िलए अपनी वयं क परपरा पर भरोसा करना
होगा। यह िन त प से उस ‘इिडया’ म संभव ह, जो अब और यादा ‘भारत’ ह। एक ऐसे िव म जहाँ सब
एक-दूसर क िव ह, यह समय हमार िवक प तथा वयं अपने यु र क साथ आगे आने का ह। श का
नैितक प से बल होना ‘इिडया वे’ का एक व प ह।

4.
िद ी क िढ़गत मा यताएँ
इितहास क संशय का समाधान
“इितहास अतीत क घटना का एक ऐसा सं करण ह,
िजसे लोग क सहमित ा ह।”
—नेपोिलयन बोनापाट
अ बट आइ टीन को िवशेष तौर पर उनक ‘सापे ता क िस ांत’ (Theory of Relativity) क िलए जाना जाता
ह। अगर उ ह ने राजनीित िव ान म अपना भिव य चुना होता तो उतनी ही आसानी से एक ‘िवि ता क िस ांत’
क िलए याित ा कर लेत।े उनक उस मानिसक अव था क प रभाषा यह थी िक एक ही चीज को बार-बार
करना और हर बार िभ प रणाम क अपे ा करना। उसी का एक उप-िस ांत यह भी कहता ह िक एक ही चीज
को अलग-अलग प र थितय म िकया जाए और िफर एक जैसे प रणाम क याशा रखी जाए। वै क राजनीित
म उस ण क पहचान ज री हो जाती ह, जब लंबे समय से चिलत हमारी कई धारणाएँ खंिडत होने लगती ह।
अगर दुिनया बदल चुक ह तो हम तदनु प सोचने, वाता करने और काय णाली म शािमल होने क आव यकता
ह। कवल अतीत क डोर थामे बैठ रहना भिव य क िलए तैयार होने म िकसी भी तरह सहायक सािबत होने वाला
नह ह।
दुिनया न कवल बदल चुक ह, ब क वै क यव था भी एक सश पांतरण क दौर से गुजर रही ह।
अमे रक रा वाद, चीन का उदय, े जट का आ यान और वै क अथ यव था का पुनसतुलन— ायः प रवतन
क यादा नाटक य उदाहरण क तौर पर उ ृत िकए जाते ह। व तुत: ये त य इन ांत से कह यादा सव यापी
ह। हमने स, ईरान अथवा तुक क अतीत क सा ा य को यादा ऊजा और भाव क साथ िनकटवत े म
वापसी करते देखा ह। प म एिशया िव ोभ क थित म ह, यहाँ तक िक अपने असाधारण प से अ थर
मानदंड क ज रए भी। एिशया क िलए आिसयान क क ीयता अब उतनी नह रह गई, िजतनी कभी आ करती
थी। अ का म जनसां यक य और आिथक झान उस महा ीप को और अिधक खास बना रह ह। दि ण
अमे रका एक बार िफर से िवचार क रणभूिम बना आ ह।
लेिकन हम भूगोल और पुरातनपंथी राजनीित क दायर से बाहर भी बात कर रह ह। जो चीज स ा और रा ीय
ित ा को प रभािषत करती ह, अब समान नह रह गई ह। तकनीक, कने टिवटी और यापार अब नए संघष क
क म ह। एक और अिधक संयमी तथा अंतिनभर िव म ितयोिगता और यादा बुि म ा क साथ करने क
आव यकता ह। जैस-े जैसे ब प वाद कमजोर आ, वै क िहत भी और यादा िववाद म िघर गया। यहाँ तक
िक जलवायु-प रवतन भी एक कारक ह, जो आकिटक माग खुल जाने से भू-राजनीित म योगदान दे रहा ह और
कोरोना महामारी तो सभी याशा से ऊपर एक अपूवानुमेय घटक बन चुक ह। सं ेप म प रवतन, जैसा पहले
कभी नह रहा, अब हमार नजदीक ह।
यिद भू- य आज ब त अलग िदखाई दे रहा ह तो वैसा ही भारत क अहम सहयोगी भी कर रह ह। अमे रका
अथवा चीन क ासंिगकता पहले िकसी भी समय क मुकाबले कह यादा ह। स क साथ र त ने सभी
िवषमता को धता बताकर असंभव प से ढ़ रहने का काम कर िदखाया ह, लेिकन यह अपवाद ह, िनयम
नह । जापान हमार गिणत म अब एक अहम कारक बन चुका ह। ांस क अब एक संवेदनशील रणनीितक
सहयोगी क प म उभरने क साथ ही यूरोप क पुनश ध क ि या भी जारी ह। खाड़ी देश क साथ संबंध का
पुल अभूतपूव और भावी तरीक से तैयार िकया जा चुका ह। आिसयान से करीबी बढ़ी ह और ऑ िलया क
ासंिगकता और यादा य ई ह। एक िव ता रत पड़ोस क बल समझ प रलि त ई ह। अ का म यान
िवकास संबंधी मदद देने और नए दूतावास खोलने म कि त ह, जैसा िक राजनियक गितिविधय से प ह, हमारी
प च का दायरा दि ण अमे रका और करिबयाई देश से बढ़कर दि ण शांत े (South Pacific) और
बा टक देश तक प च चुका ह। सरहदी पड़ोस म अभूतपूव िनवेश आ ह, िजनक प रणाम अब िदखाई दे रह ह।
हमार वै क अनुबंध क पैमाने और ती ता को एक साथ रखकर देख तो इसे िकसी ऐसे य ारा पहचानना
भी किठन होगा, जो कछ वष पहले तक इससे िनपट रहा था।
जैसे-जैसे मु े और संबंध िभ होते जाएँगे, तक-िवतक भी बदलगे। इसिलए पहली सतकता तो िनरतरता क
ित आस से बचना ह, य िक ऐसी बदलती प र थित म इसक यादा मायने नह ह। िन त प से
अनवरत का अपना औिच य ह, िकतु इतना नह िक इससे मोिहत होकर इसे अप रवतनशील धारणा म जगह
दे दी जाए। इसक िवपरीत, यह कवल प रवतन क पहचान क मा यम से होता ह, जब हम अवसर का दोहन
करने क थित म होते ह। थानांत रत होती वै क गितमयता म रा ीय िहत का सो े य िनरतर खयाल
रखना आसान नह होता, पर इसे करने क आव यकता ह। पूवा ह और पूव धारणा को राह क कावट
बनने क अनुमित नह दी जा सकती। भारत क गित म वा तिवक बाधा अब दुिनया क अवरोध नह , ब क
िद ी क वे िढ़गत मा यताएँ ह, िज ह न िकए िबना वीकारा जाता रहा ह।
िभ -िभ प र थितय म िति या देने क मता िकसी भी रा क गित का अंग होती ह। लेिकन प रवतन
क यादातर घटक ढ़ मनोिव ान क संगृहीत बुि म ा या िफर ुवीकरण क आवेशपूण तक-िवतक का सामना
करते ह। भारत म हम श द और िवषय-व तु क ित अितशय लगाव देखते ह। ा प और ि याएँ ायः नतीज
क अपे ा अिधक मह वपूण समझी जाती ह। सौभा यवश अ-सतत राजनीित आज चिलत यवहार और अि य
कथानक को चुनौती देने म सहायक ह। िकसी नीित क थायी त व को आकलन म रखकर ही वह ऐसा कर पाती
ह। भारत क िवषय म यह गुंजाइश और िवक प को बढ़ाने क िलए संघषरत ह। महज यही वयं म अंितम ल य
नह ह, ब क इनका आशय घरलू जमीन पर मह र समृि , सीमा पर शांित, अपने नाग रक क सुर ा और
िवदेश म अपने भाव म वृि सुिन त करना ह।
िन य ही एक िवकिसत होते िव म और यादा सतत ल य को ा करने क िलए भी हमारी रा ीय
रणनीित िन ल नह हो सकती। हम यह अ छी तरह से जान गए ह, दुिनया ि ुवीय से एक ुवीय और अब
ब ुवीय म बदल चुक ह, लेिकन रणनीित म प रवतन को, इन सबसे भी यादा बदली ई प र थितय क िलए
और भी यादा मता , मह वाकां ा और उ रदािय व क ज रत को पूरा करने यो य होना होगा। इस
कार बदलते िव क सम होते समय हम उन मा यता और आकलन क पहचान करनी होगी, िज ह िनरतर
परखा और दोहराया जाना ह। ऐसा करने क िलए आधुिनक इितहास का सही ढग से अ ययन ब त ज री ह। यह
कायिविध ही अपने आप म यांि क प से िस ांत और अवधारणा को काम म लाने क अपे ा, पा रवेिशक
िति या क अिनवायता और उसक मू यांकन को ो सािहत कर सकती ह।
भारत ने जब समकालीन भू-राजनीित का िन प आकलन िकया था तो अपने िहत को भावी प से आगे
बढ़ा िदया था और इससे भी यादा चुनौितय क माँग पर अपने अतीत से संबंध तोड़ने से भी वह नह िहचका।
बल माण इस कोण का समथन करते ह। 1971 का बां लादेश यु , 1992 क आिथक और राजनीितक
पुनगठन, 1998 क परमाणु परी ण अथवा 2005 क भारत-अमे रका परमाणु डील, सीख देने वाली घटनाएँ ह।
वा तव म, यह कवल अवरोध क एक ंखला ही थी, िजसक मा यम से भारत अपने प म यह मह वपूण
बदलाव लाने म समथ हो पाया। इसक िवपरीत, बदलती प र थितय क बावजूद य प से िनरतर एक माग
पर चलते रहना, ायः इसे उ े य से भटकाव क ओर ले गया। िब कल यही थित 1950 क दशक म चीन
क साथ एक वृहत उ र औपिनवेिशक मोच का िह सा बनने क समय थी, जबिक सीमा िववाद और ित बत क
जिटलता क प म राजनीितक मतभेद गहर हो गए थे। पािक तान क साथ भी यही थित थी, जबिक यह
देश उ रो र आतंकवाद पर और अिधक िनभरता क ओर बढ़ रहा था। कछ हद तक यह िवमश यथाथ और
िन प समी ा क बार म ह। वा तव म, यह सुझाव भारतीय िवदेश नीित क एक िनरपे ऑिडट क ज रत क
ओर संकत करता ह।
भारत क अतीत म 1962 म चीन से िमली हार क ितकल उदाहरण भी दज ह या पािक तान क साथ 1965 क
जंग क तनाव भर पल, जहाँ नतीजे अंत तक संतुलन म ही अटक रह या िफर िवजय क वे पल, जैसे 1971 क
जीत, िजसने बां लादेश क अ त व क कहानी िलखी। हमार अतीत म ऐसे पया ि भाजन ह, जो सफलता
और िवफलता पर एक जोशीली बहस शु करा सकते ह। 1991 तक भू-राजनीित और अथ यव था क गलत
या या तथा उसक तुरत बाद क सुधारा मक नीितय म िवरोधाभास नजर आता ह। दो दशक का परमाणु
अिन तता का दौर 1998 क परी ण क नाटक यता क साथ ख म आ। 26/11 पर िति या का अभाव
उरी और बालाकोट ऑपरशंस से िकतना अलग ह।
चाह घटना म हो या झान, सब अपने पीछ जो सबक छोड़कर जाते ह, उनक समी ा क आव यकता होती
ह। अगर हम वतं भारत क या ा पर पीछ मुड़कर देखते ह तो इसक मता और भाव म वृि को आगे
कर इसक ारा गँवाए गए अवसर और दोष पर हम परदा नह डालना चािहए। िजन राह को नह चुना गया, हो
सकता ह िक वे संभवत: क पना क उड़ान ह , लेिकन समान प से यह एक ईमानदार आ ममंथन का िवषय
हो सकता ह। एक स ा जो आ म-सुधार को लेकर गंभीर ह, उसे ऐसे उप म से िझझकना नह चािहए।
आजादी क बाद भारतीय िवदेश नीित िकस कार िवकिसत ई? इसको समझने का सव े तरीका इसे छह
चरण म िवभािजत करक हो सकता ह, िजनम से येक एक िभ वै क रणनीितक प रवेश क िति या ह।
1946 से 1962 तक का पहला चरण आशावादी गुटिनरपे ता का युग माना जा सकता ह। इसक यव था ब त-
कछ ि ुवीय िव क थी, िजसक दो िसर अमे रका और सोिवयत संघ थे। भारत जब अपनी अथ यव था क
पुनिनमाण और अपनी अखंडता सुिन त कर रहा था, उसका उ े य िवक प पर ितबंध का ितवाद करना
और अपनी सं भुता को कमजोर होने से रोकना था। इसी क समानांतर ल य यह भी था िक औपिनवेिशक दासता
से मु पाने वाले रा म अ णी होने क चलते एिशया और अ का को और अिधक समान िव यव था क
तलाश म नेतृ व दान करना था। यह तीसरी दुिनया क एकजुटता क चरम यानी बांडग और बेल ेड का जमाना
था। इसने को रया और िवयतनाम से लेकर वेज और हगरी तक ऊजावान भारतीय राजनियक शैली का सा ा कार
िकया। कछ वष तक िव मंच पर हमारी थित आ त िदखाई दी। 1962 का चीन क साथ संघष न कवल
इस युग क अंत क ओर ले गया, ब क एक कार से भारत क ित ा को भी गहरा नुकसान प चाया।
1962 से 1971 का दशक यथाथवाद और पूव थित को ा करने का युग था। भारत ने संसाधन क कमी से
जूझते ए भी सुर ा और राजनीित संबंधी चुनौितय क यादा यावहा रक िवक प तैयार िकए। इसने रा ीय सुर ा
क िहत म गुटिनरपे ता से आगे बढ़कर यास िकया और प रणाम व प 1964 म अमे रका क साथ िडफस क
मु े पर एक यापक आपसी समझ िवकिसत क , िजसे अब लगभग भुला िदया गया ह। इस अ थर समय म
क मीर क मु े पर बाहरी दबाव, िवशेषकर अमे रका और इ लड से, बढ़ गया था। वै क संदभ तो ि ुवीय
बना रहा, िकतु इसने अमे रका और सोिवयत संघ क बीच अब सीिमत सहयोग उभरते ए भी देखा। दि ण एिशया
क वजस का एक िवशेष े बना रहा और भारतीय कटनीित को एक साथ कई महाश य का सामना करना
पड़ा था, जैसा इसने 1966 म ताशकद म िकया था। यह वह दौर भी था, जब राजनीितक उठापटक से लेकर
आिथक संकट तक तमाम घरलू मोच पर भी िवकट चुनौितयाँ थ , लेिकन हमार उ े य क से देखा जाए तो
मह व क बात यह रही िक हम एक उ तरीय तनाव क बावजूद िबना िकसी बड़ नुकसान क उस िचंताजनक
दौर से बाहर िनकल आए।
1971 से 1991 तक का तीसरा चरण एक वृह र भारतीय े ीय दावेदा रय का रहा। इसका आरभ बां लादेश
क अ त व म आने क साथ ही भारत-पािक तान क बराबरी क िनणायक समापन क साथ आ था, लेिकन
इसका अंत ीलंका म भारतीय शांित र ा सेना क साथ ए असफल योग से आ। 1971 क बाद पूरी तरह उलट
चुक रणनीितक प र य पर चीन-अमे रका क पुनमल क साथ ही समूचा प रवेश अब पूरी तरह िभ हो चुका था।
भारत-सोिवयत संिध करक एवं अंतररा ीय मु पर और अिधक सोिवयत समिथत ख अपनाकर भारत इस
चुनौती से िनपटने म लगा था। यह चरण िवशेष प से जिटल रहा, य िक अमे रका-चीन-पािक तान क धुरी, जो
इस समय अ त व म आई, उसने भारत क संभावना क िलए गंभीर खतर पैदा कर िदए, हालाँिक इसक कई
दूरगामी प रणाम होने वाले थे, लेिकन भारत क ख म यादा बदलाव कई दूसर कारक क चलते आए। इसक
घिन सहयोगी सोिवयत संघ का िवघटन और संब 1991 क आिथक संकट ने हम हमारी घरलू और िवदेश
नीित, दोन क मूल त व पर पुनिवचार को बा य कर िदया।
सोिवयत संघ का िवघटन और एक ‘एक ुवीय िव ’ क उदय ने चौथे चरण क तावना तैयार क । इसने
मु क एक वृहत ंखला क िलए भारत म एक अितवादी पुनिवचार को ो सािहत िकया और इसने अपना यान
रणनीितक वाय ता को संरि त करने क ओर कि त िकया। यिद भारत आिथक मोच पर शेष िव क िलए
अपने माग श त कर रहा था तो इसक झलक नई रणनीितक ाथिमकता और नज रए म भी िदखाई दे रही थी।
‘लुक ई ट’ क नीित वै क मामल पर भारत क बदले ए नज रए का सार तुत करती ह, िजसने इजराइल क
मु े पर भी इसक थित म अनुकलता होते देखी।
यह वह दौर था, जब भारत ने आगे बढ़कर अमे रका क साथ और यादा गहन साझेदारी क , लेिकन इसने ऐसा
संवेदनशील े म अपनी समानता को सुरि त रखते ए िकया। रणनीितक वाय ता क यह तलाश िवशेष
प से अपने परमाणु अ से जुड़ िवक प को सुरि त रखने पर थी, लेिकन इसक छाप यापार समझौत क
वाता पर भी प िदखाई दी। सदी का अंत आते-आते भारत काफ कछ कर चुका था, िजसक बाद अब वह
और ऊची छलाँग लगाने क िलए कदम उठाए। 1998 क बाद अब वह घोिषत तौर पर एक परमाणु श था,
1999 म कारिगल म पािक तान क सै य दु साहस को िफर से व त कर चुका था, वै क िहत क यो य पया
आिथक वृि उ प कर चुका था और एक ऐसे अमे रका को साध चुका था, जो एिशया म िवकास और
इ लािमक िढ़वाद क प रणाम पर और यादा यान कि त कर रहा था।
इस अिधकािधक ित पध प रवेश ने भारत क िलए संभावना क नए ार खोले, िवशेषकर तब, जब अमे रका
एक ुवीयता क उसी तर को बनाए रखने म असहज अनुभव कर रहा था। प रणाम व प भारत ने िभ िवषय
पर अलग-अलग श य क साथ काम करने क लाभ को पहचान िलया। यह पाँचवाँ चरण ह, जहाँ भारत ने
धीर-धीर एक संतुलनकारी श क भूिमका क िलए आव यक गुण अिजत कर िलये। िव पटल पर इसक
ासंिगकता बढ़ गई और वैसा ही प रणाम को आकार देने क इसक मता ने भी िकया। भारत-अमे रका परमाणु
करार और साथ ही प म क साथ बेहतर तालमेल म इसक झलक िदखाई पड़ती ह। उसी समय जलवायु-
प रवतन और यापार को लेकर भारत चीन क साथ एकमत हो सका था और ि स को एक अहम मंच क प म
मा यता देने म सहायक होते ए भी स क साथ संबंध को बचाकर रख पाया था। कई मायन म यह पाँचवाँ
चरण एक बार िफर से अवसर का दौर था, जहाँ भारत ने नई थितयाँ हािसल करते ए वै क मंच पर अपने
आप को आगे बढ़ाया।
2014 म छठ चरण क शु आत क िलए गणना को प रवितत करने हतु ढर सारी वैकािसक गितिविधयाँ एक
साथ आ ग । शु आत करने क िलए चीन ने और यादा र तार पकड़ी तथा दुिनया को इस र तार म िव य त होने
क िलए शत उ रो र किठन करता गया। चूँिक संतुलन क गितिविध प रवतन क युग क दौरान बेहतर तरीक से
काम करती ह, इसिलए जैसे-जैसे नई वा तिवकता ने जड़ जमा , यह अप रहाय प से धीमी कर दी गई। दूसर
िसर पर अमे रका का भाव डाँवाँडोल हो रहा था। इराक यु का दौर समा होने क बाद खतर और बढ़ गए,
िजससे इससे िनपटने म इ तेमाल होने वाले अमे रक संसाधन पर खच क सीमा को भी आगे बढ़ाना पड़ा।
अफगािन तान से वापसी का ऐलान और एिशया- शांत े म बढ़ती ई अ िच ने ता कािलक मु से हटकर
एक अलग ही संदेश िदए। अपने तर पर यूरोप इस बात क परवाह िकए बगैर िक राजनीितक अ ेयवाद क
अपनी क मत होगी, तेजी से अंतमुखी हो गया। उ रो र मह व पाने क जापान क य न, धीर-धीर ही सही, िनरतर
िदखाई दे रह थे। साल 2008 क आिथक संकट और वै क आिथक पुनसतुलन क पूण भाव ने भी कई मायन
म अपनी उप थित का एहसास कराया। जैसे-जैसे िव ने ताकत क िबखराव और यादा थानीय समीकरण को
आकार लेते देखा, यह तय होता गया िक हमारा सा ा कार अब ब ुवीयता से होने वाला ह। प तौर पर, इसने
भु ववादी ताकत क सीिमत समु य क साथ राजनीित क यवहार से अलग एक िनतांत िभ कोण क माँग
तुत क ।
इन बदलाव क प र े य म वै क स ा और गठबंधन का आकलन करक भारत और यादा ऊजावान
कटनीित क राह पर चल पड़ा। उसने ऐसा यह आ त होने क प ा िकया िक अब हम क वजस और मु
पर आधा रत समझौत वाले िव म वेश कर रह थे। यह सजगता वयं क मता क बढ़ती ई समझ क
साथ िवकिसत ई थी। इससे न कवल दूसर क सीमा का भान आ, ब क भारत से शेष िव क या
अपे ाएँ ह, यह भी िनकलकर सामने आया। वैसे तो हम लोग िव क अहम अथ यव था म से एक क प
म उभरकर आए ह, यह एक कारक ह, िफर भी वीकाय प म यह सबसे मह वपूण ह। लोबल ट ोलॉजी म
हमारी ितभा क ासंिगकता एक अ य कारक ह, िजसक आगे बढ़ने क पूरी संभावना ह। एक ऐसे समय म,
जबिक दुिनया यादा संकोची ह, बड़ दािय व क िनवहन क हमारी मता भी य ह। इसी तरह, अहम वै क
समझौत को आकार देने क हमारी त परता, जैसा िक जलवायु-प रवतन पर पे रस म आ समझौता, दि णी
गोलाध क देश क साथ िवकास म सहभािगता क िलए यादा संसाधन का िनवेश भी उ ेखनीय ह। यह भी कम
नह था िक िजस कार हमने वयं क े ीय दायर और िव ता रत पड़ोस से सामंज य थािपत िकया, उसक
िवपुल ित विन दूर तक गई।
इन छह चरण म से येक क अपने उतार-चढ़ाव रह थे। एक का अंत दूसर क आरभ का ोतक बन सका।
1971 क बां लादेश क लड़ाई और 1998 क परमाणु परी ण सकारा मक क य क ेणी म आते ह, लेिकन
नकारा मक प रणामदायी क य अहम प रवतन क बािधत वाह क िलए संभवतः यादा िज मेदार थे। 1962 म
चीन क िखलाफ पीछ हटना एक िमसाल थी। खाड़ी यु , सोिवयत संघ का िवघटन, 1991 म आिथक ठहराव और
घरलू िव ोभ का एक साथ आना जैसे घटना म का संयोजन, दूसरा उदाहरण ह। इसिलए भले ही अतीत को
लेकर िढ़वादी नह होना ह, लेिकन इसक साथ ही यह भी उतना ही ज री ह िक इसको खा रज भी नह करना ह।
यह भी महसूस करना अ यंत मह वपूण ह, य िक हमारी नीित म िनरतरता और प रवतन दोन क ही अंश उप थत
ह। सै ांितक प से हर एक चरण क क पना, पूववत चरण को नकारने अथवा उसका बा आकलन करने
वाले क अपे ा उसे आगे बढ़ाने वाले प म क जा सकती थी। इस कार वह वतं मानिसकता, िजसने
गुटिनरपे ता को आगे बढ़ाया और िफर हमार रणनीितक िनवेश का संर ण िकया, उसे आज ब -साझेदा रय क
मा यम से बेहतर तरीक से अिभ य िकया जा सकता ह।
िवदेश नीित क स र साल िन य ही ढर सार सबक देते ह, िवशेषकर जब हम भिव य क चुनौतीपूण राह क
िवषय म िवचार करते ह। समय और प रणाम दोन क संदभ म वे एक वृहत ंखला म फले िदखाई देते ह। हमार
दशन का एक िन प आकलन यह िदखाएगा िक जबिक कछ ित ंि य ने बेहतर कर िदखाया, हमने वयं भी
उतना खराब दशन नह िकया। कई चुनौितय को व त करते ए भारत ने अपनी एकता और अखंडता को
अ ु ण रखा। ये हम िकसी क ारा दी नह गई थ । जबिक हम यह देखते ह िक सोिवयत संघ और यूगो लािवया
जैसे वैिव यपूण समाज ऐसा करने म असफल रह। भले ही किष म कित पर हमारी िनभरता घट गई थी, लेिकन
औ ोिगक मता वाला एक आधुिनक समाज समय क साथ िवकिसत आ। र ा तैया रय म सुधार आ, साथ
ही उपकरण और तकनीक क अनेक ोत तक प च बना लेना कटनीित क अहम उपल ध रही।
िफर भी यह एक स ाई ह िक आजादी क स र साल म भी सीमा िववाद क हमार कई मसले अनसुलझे रह।
आिथक े क मानदंड पर हमारी थित अपने अतीत क तुलना म बेहतर तीत हो सकती ह। यह चीन और
दि ण-पूव एिशया से तुलना म थोड़ा िभ तीत हो सकता ह। इसिलए वा तव म जो अहिमयत रखता ह, वह ह
—अपने वयं क दशन क िवषय म एक खर बोध को िवकिसत करना। इसको िवकिसत करने म मू यांकन क
ि या सहायक हो सकती ह, लेिकन यह पूरी ईमानदारी क साथ उस युग क संदभ क प र े य म तय होनी
चािहए।
बल वतं ता क भावना हमारी नीितय क िवकास क ि या म एक अटट धागे क भाँित उप थत ह। अत:
यह संभवतः लाभकारी तीत होता ह िक हम गुटिनरपे ता को, एक अ तन समझ क साथ, आरभ कर। 1962 क
संघष तक भारत का यास उन दोन ही गुट से अिधकतम लाभ क ा का रहता था, जो शीतयु क उपज थे।
यह प म से आिथक और खा सहायता ा करने म और साथ-ही-साथ सोिवयत लॉक से औ ोगीकरण म
सहयोग हािसल करने म सफल रहा। अपनी सुर ा ज रत क िलए भारत ने दोन प तक आंिशक कामयाबी क
साथ प च बनाई थी और अंततोग वा सोिवयत संघ से अपेि त मताएँ हािसल क ।
य िप अिधक मह वाकां ा और कम िनरतरता क साथ िभ तरीक से चीन ने भी इसी तरह क चे ा क थी।
वा तव म, एक क ढ़ता का सामना दूसर क अवरोधक मता से हो गया। यह एक सावजिनक न ह िक या
एक प दूसर क तरीक को अपना सकता था? संभवतः ये उनक मूल च र क प रचायक थे। बीच का रा ता,
भारत क िलए न कवल एक नीितगत िवक प था, ब क इसने वैष यपूण संरचना मक तनाव को भी ितिबंिबत
िकया। प म क साथ भारत उ र-औपिनवेिशक आिथक, सामािजक और राजनीितक संबंध क एक यापक
नेटवक से जुड़ा था, लेिकन शीतयु क दबाव ने इस नजदीक को आव यकता से अिधक बढ़ने से रोक िदया।
सोिवयत संघ क साथ योजनाब आिथक ित प और औ ोिगक आकां ा ने एक उ साह पैदा कर िदया,
जोिक ब लवादी राजनीितक मा यता क िवपरीत संतुिलत था। जैस-े जैसे भारत अपने रा ीय एक करण को सु ढ़
करने क काम म आगे बढ़ा, दोन प ने अलग-अलग समय म इसक िहत को साधने म सहयोग िकया। सबसे
मह वपूण यह ह िक उ ह ने इसे अपना राजनीितक दायरा बढ़ाने म उस समय मदद क , जब ढर सार रा पुनः
वतं हो रह थे। इसने 1950 क दशक क दौरान भारत को वयं का एक डोमेन बनाने और छिव गढ़ने क िलए
नेतृ व का अवसर मुहया कराया।
यापक अवधारणा को नीितय , िहत और प रणाम म प रवितत करना सदैव आसान नह होता। गुटिनरपे ता
भी इस िनयम का अपवाद नह थी। भारत का प म क साथ तालमेल पूरी तरह से यूरोप कि त था और
अमे रक े ता क नई यव था क आव यकता पर उसका समुिचत यान नह था। यह पािक तान क
आिभजा य लॉबी ारा नए सुपर पावर से संबंध क उवरता बढ़ाने क सु ढ़ यास क िवपरीत था। वृह र वै क
धरातल पर अमे रका क साथ मतभेद ने भी पािक तान को उसका समथन और सश करने म उस हद तक मदद
क िक अंततोग वा 1965 क लड़ाई म वह रणनीितक प से उ तर थित म प च गया। वह दूसरी ओर
सोिवयत संघ क साथ राजनीितक संबंध शु होने से आरिभक सफलताएँ िमलने लग , िजनम ज मू-क मीर क
मु े पर संयु रा म िमलने वाला समथन भी शािमल ह, हालाँिक इस संबंध क सुर ा संबंधी आयाम को
खुलने म यादा व लगा। सोिवयत संघ क चीन क साथ वैचा रक संबंध तनाव क थित म भी जारी रहने क
फल व प 1962 क घटना म उसक भूिमका सीिमत ही रही।
एक िदलच प पहलू यह भी ह िक गुटिनरपे ता ने भारतीय कटनीित क ि प ीय और ब प ीय संतुलन पर भी
असर डाला। एक वै क य व गढ़ने क कोिशश कभी-कभार रा ीय िहत क संकचन क क मत पर ई।
अंतररा ीय भाव बढ़ाने का एक य यास अंततोग वा एक गंभीर भटकाव क प म अपने अंजाम तक
प चा। 1960 म नेह क पािक तान या ा क दौरान और पुनः 1962 म चीन क मोच पर थितय क िबगड़ने क
दौरान, अहम सद य क संयु रा ीय कत य क ित ितब ता अपने आप म भारतीय ाथिमकता क
बदतर हालत क कहानी कहते ह। स य का पल तो वा तव म 1962 का संघष वयं था, लेिकन इसक तैयारी
और उसका संचालन दोन , स ा को लेकर भारत क समझ क कमी क पु करते ह।
हम यह मान सकते ह िक 1962 तक होने वाली घटनाएँ पहले से िनयत थ । असल म ‘िव ासघात’ का नैरिटव
तो उ तम तर पर ई नीितगत असफलता क उ रदािय व क गंभीरता को कम करने क िलए बुना गया था और
इस कथानक ने इतनी गहरी जड़ जमा ल िक इसक बाद चीन को िवलेन बनाकर उसे इस दौर म भारत-चीन
संबंध क एक िनरपे िव ेषण क राह का रोड़ा बना िदया गया। सीमा पर दाव क प ीकरण से इतर भी कछ
मु े ह, िज ह चीन क सामने भारत क वृह र ख क संदभ म देखे जाने क ज रत ह।
भारतीय यव था क भीतर इस बात पर एक वा तिवक िवमश आ िक 1950 म ित बत म चीन क दखल क
प ा हम वे कदम उठाने चािहए थे, जो आज सामा य सरहद क प म मौजूदा थित क िलए िनणायक िस
होते। यह पूरी तरह से का पिनक मु ा नह ह, य िक इस िबंदु पर गंभीर सुझाव ब त व र नीित िनमाता ारा
तुत िकए गए थे। धानमं ी नेह को सरदार पटल ारा िलखा गया मश र प इसी आंत रक मंथन का िह सा
ह। िफर भी संभवतः ता कािलक घषण को बचाने क जो इ छा थी, उसक चलते िनणय यह आ िक ऐसी िकसी
भी थित का सामना करने को टाल िदया जाए।
उस समय चीन अंतररा ीय िबरादरी म और यादा एकाक था और ित बत क मु े पर भी उसक नीित इतनी
स त नह ई थी, जैसा इसने 1959 म िकया था। वयं मु े से भी कह यादा जो िनकलकर सामने आती ह, वह
किठन मसल को टालने क वृि ह। किठन फसल से बचना परमाणु िवक प क संदभ म भी उतना ही सच
रहा। यही मानिसकता 1962 क लड़ाई क दौरान िनणय िनमाण क ि या म सै य नेतृ व क भागीदारी सीिमत
रखने क िलए भी िज मेदार रही। प रणाम व प नाकामी का पहला संकत यह िमला िक सहयोग और सलाह क
िलए हम दूसर का मुँह देखने लगे।
1962 से भारत ने पूर एक दशक क िलए पूरी िढ़वािदता से वापसी क , हालाँिक वह आंिशक प से ही
सफल रहा। घरलू मोच पर भारत हार क सदमे से उबरता िदखाई िदया, साथ ही प म को उसक सहायता क
एवज म ज मू-क मीर क मु े पर पािक तान को भौगोिलक रयायत देने का िवरोध िकया। राजनीितक अ थरता
ने, िजसम उ रािधकार स पने क ि या भी शािमल ह, मानसून क असफलता से उ प आिथक संकट को बढ़ा
िदया। तिमलनाड से लेकर पंजाब तक घरलू राजनीितक आंदोलन ने आजादी क आरिभक वष म ा थािय व
क संदेश को नकार िदया। पूण प से अनुपयु नह होते ए भी हमारा देश एक ‘भयावह दशक’ म वेश करता
िदखाई िदया। दुिनया अभी भी वयं म पूरी तरह ि ुवीय थी, पर अब दोन महाश य क एक समान िच चीन
को रोकने क िलए काम करने पर बन चुक थी। उ ेखनीय प म भारत इस साझा यास क अहम क िबंदु म
से एक था, हालाँिक चीन क ट पर अपे ाकत थरता बनी रही—खासकर इसिलए य िक वह देश सां कितक
ांित क ि या म उतर चुका था—पािक तान का मोचा उ रो र खतरनाक होता गया, िजसक प रणित 1965
क संघष क प म ई। महाश य का गठजोड़ भारत को ताशकद म एक मु कल समझौते क िलए िववश
करने पर पूरी ताकत से काम कर रहा था। आिथक संकट िवकट हो चुका था और िवयतनाम क मु े पर अमे रक
दबाव बढ़ रहा था। साथ ही भारत ने भी स ारा पािक तान को िदए गए एक संदेश को देखा, जोिक उपमहा ीप
क वा तिवकता को लेकर इसक समझ का संकत था। यह दौर यथाथ क दो असाधारण घटना क साथ चरम
पर प चा, जोिक कारण और प रणाम दोन थ ।
पहली घटना, 1971 क दौरान अमे रका और चीन क मेल क , िजसे पािक तान को स िलयत देकर ा िकया
गया और िजसने बुिनयादी प से वै क रणनीितक प र य को बदल िदया। दूसरी, इससे य प से भािवत
होने वाले दो प क िति या रही, िजसक प रणित भारत-सोिवयत संिध क प म सामने आई। भारत क िलए
यह गुटिनरपे ता और साम रक सुर ा क म य एक समझौते क भाँित नजर आया। िन त प से इसको े रत
करने वाले कारक पािक तानी नेतृ व क वे फसले रह, जो अंततोग वा इसे भारत क साथ एक यु क ओर ले
गए। यह अनुमान लगाने क ती उ कठा जा त होती ह िक या अंतररा ीय कटनीित क किठन िदन म भारत ने
इतना कठोर फसला िलया होगा, हालाँिक हम यह कभी नह जान पाएँग,े लेिकन वा तिवकता यह ह िक 1971 क
लड़ाई ने 1962 क पलटवार क आंिशक प से भरपाई कर दी। इससे भी अहम यह िक पािक तान क साथ
समतु यता को ख म कर भारत ने वृह र े वाद क दौर क शु आत कर दी।
वा तव म, इस चरण ने 1962 से पहले क वृि को चुनौती दी और इसक िलए उसको संभवतः वयं
प रणाम से भी यादा मह व िमलना चािहए। 1965 म आरिभक लड़ाई को ज मू-क मीर से आगे ले जाने क
इ छा इसका एक उदाहरण था। यह एक ऐसा प र य नह था, िजसक िलए पािक तान ने समुिचत प से
तैयारी कर रखी थी। अपनी जमीन पर अपे ाकत बेहतर हिथयार क साथ पािक तानी सेना से िनपटना दूसरा
उदाहरण था। 1965 और 1971 दोन ही लड़ाइय म सेना को यादा छट और अपनी बात रखने क वीकित
िमली, िजससे दोन ही मामल म बेहतर नतीजे सामने आए। यही मामला 1967 म नाथू-ला म जवाबी कारवाई
क साथ भी रहा। 1971 म रणनीितयाँ सेना क इ तेमाल क तैया रय क िलए अित र प से यादा बेहतर
रह , िजनम सोिवयत संघ क साथ क गई वो संिध भी शािमल ह, िजसे उस समय एक िढ़वादी उपाय समझा
जाता था। अगर इन दोन िवरोधाभासी दौर से वतमान क िलए कछ सबक ह तो वे भारतीय रा ीय सुर ा तं
और टाली न जा सकने वाली चुनौितय से िनपटने क िचंतन ि या क बीच यापक तर पर पार प रक ैितज
सम वय क ह।
उसक बाद का समय, जोिक यु क मैदान म िनणायक नतीजे का रहा, 1971 म शु आ था। पािक तान का
िवभाजन, िजसक वयं म गंभीर प रणाम रह और िजनका असर पूर े म आज भी ख म नह आ ह। गैर-
इरादतन तरीक से जंग क दौरान अमे रका और चीन ारा आधे मन से क गई पािक तान क मदद ने कवल भारत
क ित ा म वृि ही क ह। िफर भी यह स ा क कित ह िक वह लगातार अपने फलक को यापक करती
रहती ह और िब कल यही काम भारत ने भी जंग क बाद क दौर म िकया। थोड़ से अंतराल म अमे रका क साथ
संबंध सुधारने क य न ए, िजसक चलते हनरी िकिसंजर 1973 म भारत दौर पर आए। िकिसंजर वयं भी इस
बात से भलीभाँित अवगत थे िक यह 1971 क घटना क बाद संतुलन िफर से साधने क िलए िकए जा रह य न
ह। इसिलए 1974 क परमाणु परी ण क बाद अमे रका क िति या बेहद शालीन रही। भारत क िलए इससे
यादा दु कर काय 1976 म चीन क साथ संबंध बहाल करने और पं ह वष क बाद वहाँ राजदूत भेजने क फसले
का रहा। दोन गितिविधय को िवक प क िव तार क तौर पर देखा जा सकता ह। भारत क दूर का िव तार
तीसर िवक प क प म यूरोप को तैयार करने क यास क प म देखा जा सकता ह। जगुआर, िमराज और
एच.डी.ड यू. पनड बय क अिध हण इसी ितर ा क माण ह। 1982 और 1985 म धानमं ी क अमे रका
या ा, साथ-ही-साथ हलक लड़ाक िवमान समेत र ा सहयोग क संभािवत बहाली, इससे आगे का संकत देते ह।
चीन क साथ सीमा संबंधी वाता 1981 म बहाल ई और नेतृ व तर क चचा क िशखर तक 1988 म प ची।
भारत क बढ़ते उ कष क शंख- विन सबसे पहले समीपवत पड़ोस म सुनाई पड़ी। सबसे अहम चुनौती
पािक तान था और 1972 म िशमला म भारत ने उदार होने का िनणय िकया। ऐसा नह था िक वयं सोिवयत संघ
या िफर अंतररा ीय िबरादरी क ओर से कोई दबाव नह था। इसम पािक तान क राजनीित क िदशा को आकार
देने क एक वाभािवक आकां ा भी थी, लेिकन उसक पास मौजूद िवक प क रोशनी म नतीज को देखकर
समकालीन पयवे क भी हरान रह गए। इसक नकारा मक प रणाम को सामने आने म व लगा, लेिकन अगर वे
आए भी तो भारत ने अपने िहत को लेकर अतीत क अपे ा अब यादा बलपूवक अपना दावा पेश िकया। बढ़ती
ई िचंता क बीच िसयािचन लेिशयर क मु े से िनपटने क िलए िनणायक कदम उठाए गए। ीलंका क साथ
जातीय संघष क िचंता को एक ऐसे समझौते म त दील िकया जाना था, िजसक गारटी इिडया ने दी थी, हालाँिक
यह एक अलग मु ा ह िक यह पहल उलटी पड़ गई, लेिकन इसका हलफनामा देना ही अपने आप म कम भरोसे
क बात नह थी, जब मालदीव पर भाड़ क लड़ाक ने हमला िकया तो भारत ने दूसरी श य क साथ बातचीत
करने क बाद वहाँ सैिनक भेजकर कारवाई का फसला करने का िनणय िलया। चाह दि ण एिशया क प र े य म
हो या चीन क, भारत रा ीय सुर ा से जुड़ अपने िहत को बचाने आगे आया। े से बाहर क नौसेना क िहद
महासागर म उप थित को सीिमत करने क िलए भी भारत ने एक राजनियक कपेन शु िकया। कल िमलाकर
भारत क छिव एक ऐसी उभरती ई े ीय श क ह, जो न कवल अपने िहत को लेकर र ा मक ह, ब क
एक उ रदायी पड़ोस बनाने को लेकर भी और यादा आशावादी ह।
यह कहना उिचत नह होगा िक इस चरण क दौरान सारी चीज भारत क अपे ा क अनुकल रह । हालाँिक
अग त 1975 म शेख मुजीबुरहमान क ढाका म ह या ने 1971 क उपल धय पर पानी फर िदया। शीतयु क
राजनीित और पािक तान ारा इ लािमक देश क इ तेमाल, इन दोन ने िमलकर 1975 म सुर ा प रष क चुनाव
म भारत का रा ता रोक िदया। 1979 म िवयतनाम पर चीन क हमले ने भारत क नीितय म सुधार को अ थायी
प से रोक िदया और संभवतः सुधार क जो गंभीर कोिशश होने क ि या म थ , उ ह कमजोर भी कर िदया।
अफगािन तान पर सोिवयत क जा और भी यादा जिटल सािबत आ, य िक इसने पािक तान क िलए अमे रक
सै य समथन का एक नया दौर ारभ कर िदया। वा तव म, यह दौर खासतौर पर िवनाशकारी सािबत आ, य िक
इसने बड़ पैमाने पर इ लािमक चरमपंथ को उभरने का मौका दे िदया। चीन-पािक तान गठजोड़, जोिक चीन क
सां कितक ांित क दौरान हािशए पर चला गया था, उसक भी वापसी हो गई। 1979 म काराकोरम हाइवे क
ज रए दोन देश क बीच सड़क माग का संपक, िमसाइल और यू यर े म गहन सहयोग तथा अफगािन तान
म कारवाई को लेकर दोन क बीच तालमेल इसक तीन मुख त व थे। इन सबक दु प रणाम भारत आज भी सह
रहा ह।
लगभग उतना ही मह वपूण चीन का पूव से टर क संदभ म सीमा िववाद संबंधी वाता पर अपनी थित
बदलने का फसला था। पािक तान क दोबारा से दु मनी शु करने और अफगािन तान पर प म क श ुता दोन
ने िमलकर देश से बाहर खािल तान आंदोलन क पनपने क िलए उवर जमीन तैयार कर दी। इसक समथन क ोत
क बात कर तो अफगािन तान म सोिवयत स क मौजूदगी ने इसक थित को और पेचीदा कर िदया, िजससे
िकसी हाल म उबरना कतई संभव नह था, जैसे ही सोिवयत संघ उस समय दबाव म आया, जब भारत भी दबाव
म था, दोन देश एक-दूसर क और करीब आ गए। भारत क िलए जो चीज एक वै क िवरोधाभास क भावी
प म दोहन से शु ई थी, उसका अंत कछ नतीज क गितरोधक बन जाने म आ।
1980 का दशक संभवतः 1960 क दशक क तुलना म और अिधक अंत दान करता ह, िवशेष प से
पांतरण क घटना का सा ी बनकर। इनम से तीन घटनाएँ िवशेष प से यान आकिषत करती ह। वै क
राजनीित क अ ययन क प म अफगािन तान, सै य अिभयान क चुनौती क प म ीलंका और िवरोधाभास का
लाभ उठाने क प म चीन। िबना िकसी संशय क यह कहा जा सकता ह िक इनम सबसे अहम अफगािन तान
िजहाद था। पीछ मुड़कर देख तो यह प तीत होता ह िक भारत यह आकलन करने म चूक गया िक प मी
देश अफगािन तान क लड़ाई का इ तेमाल सोिवयत संघ को नुकसान प चाने क िलए िकस हद तक करगे। इससे
भी आगे देख तो उनक बल समथन ने पािक तान क िलए अपने यू यर ो ाम को आगे बढ़ाने क रा ते खोल
िदए। इस बात पर बहस हो सकती ह िक भारत अगर हालात को सही तरीक से परख लेता तो भी इस मामले म
इसक िवक प न क बराबर थे, लेिकन इन घटना क दु प रणाम को पीछ छोड़ने म हमारी एक पूरी पीढ़ी तो लग
ही गई। आज इस त य म संतु का एक िवक प खोजा जा सकता ह िक पहले वाला िजहाद प मी देश को
परशान करने क िलए लौट आया ह, लेिकन इस दौर क रणनीितक नुकसान क पूरी या या किठन ह। जहाँ तक
बात सोिवयत संघ पर इसक िव वंसक भाव क ह तो यह वा तव म क पना से पर एक अ यािशत घटना थी,
िजसक होने का अनुमान तो उस युग क िद गज िव ेषक भी नह लगा पाए थे।
दूसरा मु ा, िजस पर अपेि त यान नह िदया गया, वह था— ीलंका म शांित यव था कायम करने म
ह त ेप। चंद बरस पहले ही अमे रका भी लेबनान म ऐसी ही थित का सामना कर चुका था। सवाल िवदेशी
जमीन पर सैिनक को उतारने का था। उगिलयाँ कई िदशा म उठाई जा सकती थ , िजनम थानीय कोण
और िचय क सीिमत समझ, तैयारी का अभाव, गु सूचना का अभाव और उ वाद क िखलाफ जवाबी
कारवाई का रणकौशल शािमल ह। िदलच प बात यह ह िक इसी दौर म भारतीय सुर ाबल ने पंजाब और ज मू-
क मीर म पृथकतावादी ताकत से लड़ने म अद य साहस और ढ़ संक प का प रचय िदया। जैसे-जैसे ये याद
धुँधली होती ह और िवदेशी जमीन पर सैिनक क तैनाती क माँग क पुनरावृि होती ह, यह अ याव यक ह िक
भारत इसक अिनवायता पर इसक िलए चुकाई जाने वाली क मत क साथ सावधानीपूवक िवचार कर।
चीन क उदय-गाथा भारत क िलए खासतौर पर िश ा द ह। 1970 क दशक क उ राध म यह सोिवयत संघ
क िखलाफ एक संयु मोचा गढ़ने क िलए कटनीितक मुिहम चला रहा था। यह बात 1971 म बां लादेश क
लड़ाई म यहाँ तक िक परो प म भी, उसक ह त ेप क अिन छा क िवपरीत थी, जबिक िन सन शासन भी
उससे दखल देने का आ ान कर रहा था। इस दौरान जो चीज बदली, वह थी—अमे रका और सोिवयत संबंध म
सहयोग क उन धाग को तोड़ने क इ छा, जो चीन क रणनीितक सार को संकिचत कर रही थी। इसिलए इसने
िवयतनाम और अफगािन तान दोन संघष को उस हद तक इ तेमाल िकया और इस तरह से प मी िनवेश क
वाह क िलए एक अनुकल राजनीितक प रवेश तैयार हो गया। इतना िक जब ितयानमेन (Tiananmen) क घटना
ई तो िवदेश म इस नुकसान को कमतर बताने वाले चीन क पया िहमायती मौजूद थे। सोिवयत संघ क िवघटन
से अपने रणनीितक उ े य से भी यादा हािसल होने क बाद चीन ने अपनी रणनीित बदल ली और दबाव म आ
रह स क साथ हो िलया। एक भारतीय क िलए, जो उस दौर का मू यांकन कर रहा ह, यह एक रोचक त य ह
िक एक ित ं ी, जो यादा बड़ जोिखम उठाने और रणनीितक प ता को बनाए रखने क िलए तैयार था, उसने
न कवल एक दशक पहले ही आिथक िवकास म शु आती बढ़त पा ली, ब क और यादा अनुकल भू-
राजनीितक संतुलन भी बना िलया, जो िफर से थरता क िलए काफ था।
य िप राजनीितक अिन तता और रा ीय ीणता क चलते 1960 क दशक को खतरनाक दशक क सं ा दी
गई, यही सं ा 1990 क दशक को भी दी जा सकती ह। 1991 क भुगतान संतुलन का संकट कवल वही सच
सामने लाया, जो िपछली पीढ़ी क नीितगत नतीज का संचय था। एक-चौथाई दशक क बाद उन घटना पर
उपल ध सािह य यापक प से घरलू चुनौितय पर ही फोकस करता ह। िवदेश नीित क थित, चाह जो हो, कम
पीड़ादायी नह थी और इसने उबरने का रा ता खोजने म ब त अिधक पटता और साहस क ज रत पड़ी। सोिवयत
संघ का िवघटन उस बुिनयादी तावना को कमजोर कर चुका था, िजससे भारतीय िवदेश नीित 1971 से संचािलत
हो रही थी, संभवतः 1955 से ही। उससे भी बदतर यह िक स िजसक राह पर तुरत बाद चलने लगा, उसने भी
लगभग पूरी तरह से प म पर यान कि त कर रखा था और कछ समय क िलए भारत से संबंध को काफ हद
तक कम कर िलया था। ऐसी थित म भारत क िति या काफ प रप थी। स क अहिमयत को बनाए रखते
ए, साथ ही चीन से भी संपक थािपत करते ए, इसने अमे रका क साथ और यादा गहन तालमेल क यव था
बनाई। इसी दौर म भारतीय अथ यव था को खोल िदया जाना भी प प से इन देश क साथ र त क िलए
सहायक आ।
िनरतर प रवतन क इस दौर म आिसयान ने एिशयाई अथ यव था क साथ भारत क आपसी संपक को सरल
बनाने म अहम भूिमका िनभाई और भारत क िलए िवदेश नीित क एक नई धुरी बनकर उभरा, िजससे उसक जड़
िहल गई थ । आिसयान क साथ बढ़ती ई भागीदारी और आिसयन रीजनल फोरम म भारत क शािमल होने क
दूरगामी प रणाम थे, िजसका अंदाजा भी उस दौर म लगाया नह जा सका था। इसने न कवल भारत क िचंतन
ि या को भािवत िकया, ब क जापान और दि ण को रया से र ते बढ़ाने क रा ते खोल िदए। कई मायन म
बंदोब ती क इस दौर ने एक ऐसे भारत क बुिनयाद रख दी, जो अंतररा ीय मामल म कई आयाम म बड़ी
सहजता से काम कर सकता था। जब भारत क िवदेश नीित क अिभधारणा पर सवाल उठाए जा रह थे और वह
एक किठन थित से बाहर आने क रा ते तलाश रहा था, संभव ह िक इस चरण ने इसक राह बनाई हो।
लेिकन यह समय बीतने क साथ यह रणनीितक वाय ता क एक वृहत योजना क प म िवकिसत आ।
िदलच प यह ह िक ऐसा तब आ, जब इसक शासन यव था वा तिवक तनाव म थी और इसको आंत रक प
से भी खतर का आभास हो चुका था। पहला तनाव परमाणु अ िवक प को लेकर था और आरिभक चुनौती िबना
सीधे टकराव क इसे जारी रखने क थी। िजस तरीक से यापक परमाणु परी ण ितबंध संिध का खाका तैयार
िकया गया था, उसक बाद भारत क पास अंततोग वा अपने परमाणु िवक प क अ यास क अलावा कोई रा ता
नह बचा।
ि स (TRIPS) और योटो ोटोकॉल पर सौदेबाजी क दौरान प मी देश क माँग से सा ा कार होने पर
आिथक और िवकास से जुड़ िहत क सुर ा को लेकर भी इसी तरह क चुनौितयाँ सामने आ । ज मू-क मीर म
िबगड़ते हालात भी एक घरलू मु े क प म इस नाजुक प र थित म भारत क थित को कमजोर कर रह थे।
इस मु े क अंतररा ीयकरण क यास और इस पर अमे रका क िचरकालीन थित म भयभीत करने वाले
बदलाव ने भी िचंताएँ बढ़ा द । उस पीढ़ी क नेतृ व को इस बात का ेय िदया जाना चािहए िक एक किठन थित
से वे ब त कशलतापूवक उबर पाए। कछ मामल म लंबी अविध से लंिबत िवषय म सुधार, जैसे इजराइल क
साथ संबंध और बेहतर करने क ि या, ने भी सहायता क । सामंज य और अ गामी सोच क गठजोड़ से दशक
क अंत तक भारत क थित म सुधार िदखाई देने लगा और ऐसा ही इसक अथ यव था म भी रहा। 1998 क
परमाणु परी ण और श ीकरण क घोषणा उ ेखनीय पड़ाव सािबत ए, य िक इसने न कवल िचरलंिबत
असमंजस का िनणायक हल दे िदया, ब क भिव य म बनने वाली एक खर नेतृ व श का गुण भी िवकिसत
कर िदया।
ऐसा करने म ई देरी से पािक तान को संतुलन बनाने का मौका तो िमला, लेिकन उस देश क राजनीितक और
आिथक कमजो रय ने उसक कोिशश को मह वहीन कर िदया। एक साल बाद, कारिगल संघष ने, पािक तान क
चुनौती को पुन: एक य उ रदािय व क भावना क साथ साधने का अवसर िदया। इसी दौर म इटरनेट
अथ यव था क सार ने अमे रका क साथ एक नया र ता बना िदया और भारत को वै क पटल पर एक
तकनीक श क प म ढ़ता से थािपत कर िदया। रा पित पुितन क स ा सँभालने क साथ ही स क
पुन थान क वादे ने शता दी क अंत तक भारत क िलए आशा का माग श त कर िदया।
इ क सव सदी क आरभ पर सबसे पहला अंतररा ीय संदभ एक ुवीयता क िनरतरता थी, हालाँिक परशािनय
क आरभ होने क संकत नजर आने शु हो गए थे। अमे रका क तकनीक भु व ने उभरती ई अथ यव था क
सतत िवकास को िन भावी कर िदया था। यह संभवतः वही त य था, िजसक वजह से अमे रका ने चीन क
व रत आिथक वृि और यापार अवसर का लाभ उठाने क अ ुत मता को कमतर समझ िलया था।
यूगो लािवया म संघष ने प मी ताकत को िफर से अपने ािधकार क मुहर लगाने का अवसर दे िदया था।
य प से यह उन दीघकालीन खतर क िलए था, जो उ ह ज दी ही िनशाना बनाते। यह अचरज क बात नह
ह िक इस दौर म भारत और अमे रका क र ते अ छी तरह से सुधर और उन मु को पीछ छोड़ने का इरादा
बना, जो उनक गित क राह म बाधा थे।
कारिगल क अनुभव ने दोन प क बीच िव ास क तर को बढ़ा िदया, िजसक प रणित 2004 म िनयात-
िनयं ण ितबंध को और सकारा मक प से सुलझाने क िलए ‘ने ट ट स इन टिजक पाटनरिशप’ (NSSP)
क प म ई। 2005 क इडो-यू.एस. परमाणु समझौते क प रणाम म, यह आरभ क तुलना म कम साहिसक
नजर आया, लेिकन इसने परमाणु मु े पर बड़ी संभावना क खोज क िदशा म एक अहम कदम बढ़ा िलया।
इन सबक बीच 11 िसतंबर क हमले और अफगािन तान म अमे रक सैिनक क वापसी से वै क यव था म
मह वपूण बदलाव आए। इस अवसर का लाभ भारत ने बड़ी चतुराई से उठाया और वयं को एक हमदद और
समझदार सहयोगी क प म पेश कर िदया, जो अमे रका क सुिवधा क अनुसार सहयोग को तैयार था। वयं
अमे रका म भारतीय समुदाय एच-1बी (H-1B) वीसा काय म क अंतगत िनरतर फलता-फलता रहा और उसने
अमे रक राजनीित म अपने िहत को महसूस कराने क मता हािसल कर ली। आतंकवाद और तकनीक, भारत-
अमे रका संबंध क दो ऐसे कारक रह ह, िज ह ने बदले म भारत क िलए नए गिलयार खोले। दोन ही मामल म
भारत सरकार क , अवसर को त परतापूवक लेने क मता क पहचान उतनी ही मह वपूण ह, िजतनी िक वयं म
ये घटनाएँ।
हालाँिक जैसे ही भारत ने अमे रका क साथ अभूतपूव पहल क शु आत क , संतुलन साधने क िलए इसने दूसरी
अहम श य क साथ संबंध म भी गित को तलाशना शु कर िदया। 2001 म स-चीन-भारत ुिपंग (RIC)
क शु आत, ि स (BRICS) क िलए एक नािभ-क बनाने जैसा ही कदम था। 2003 म चीन क साथ सीमा
वाता क िलए पेशल र ेजटिटव मैकिन म तैयार करना दूसरा ऐसा कदम रहा। 2005 म इससे आगे बढ़कर
‘ए ीमट ऑन पॉिलिटकल पैरामीटस एंड गाइिडग ि ंिसप स ऑन बाउ ी इ यू’ ने इससे आगे भी य न जारी रहने
का भरोसा िदलाया। सं ेप म ही सही, चीन क साथ एक मु यापार समझौते पर भी गंभीर वाता ई थी। ांस,
िजसने भारत क परमाणु परी ण पर P-5 देश से यादा सूझबूझ का प रचय िदया, क साथ संबंध र ा, परमाणु
और अंत र तीन े म तेजी से गाढ़ हो गए। इनम से तीन ही ड अगले डढ़ दशक तक जारी रहने वाले थे,
य िक भारत िभ -िभ मु पर, अलग-अलग िदशा म, अपने मह व क भाव को परखते ए वै क
नतीज को आकार देने क िलए संघष कर रहा था। यह इतने लंबे समय तक जारी रहा, य िक अमे रका क
सव े ता का, िव क दूसरी श य क साथ, इसक भाव क बराबर ित-संतुलन बना रहा, लेिकन जैसे-जैसे
अमे रक भु व घटा और चीन क श म तेजी से वृि ई, बदले ए भू- य ने पूवव काम करते रहना
उ रो र किठन कर िदया।
एक ऐसे दौर म, जब भारत एक प रवतनशील थित को साध रहा था, 2005 क भारत-अमे रका परमाणु डील
एक ऐसी गित थी, िजसका उ ेख िवशेष प से िकया जाना चािहए। ऐसा इसिलए, य िक इस करार ने उन
संबंध क गित क मुख अड़चन को हटा िदया और उस मुकाम तक प चने यो य बना िदया, जहाँ वो आज ह।
साथ ही, इसने भारत को लेकर दुिनया का नज रया भी बदल िदया और उस उ ित त थित म भी िन य ही
योगदान िदया, िजसे भारत आज ा कर चुका ह। सार यह ह िक इस समझौते ने परमाणु सहयोग क उन िनषेध
को पर हटा िदया, िजनका दूरगामी भाव भारत क र ा, तकनीक क दोहर उपयोग और अंत र सहयोग क े
म पड़ने वाला था। छट क प म इसने अमे रका को लेकर भारत क सोच म भी काफ हद तक प रवतन कर
िदया।
अमे रका क ओर से इस बात को लेकर संदेह कम था िक लोकतांि क और बाजार कि त भारत क साथ
मजबूत र ते बनाकर चलने म एिशया क बढ़ती ई ासंिगकता एक अहम कारक थी। इस िवषय पर हमार देश म
ई वे चचाएँ सबको मालूम ह, जो अमे रका क राजनीितक संदेह, परमाणु हिथयार काय म क िनिहताथ और ईरान
क साथ र त को लेकर दबाव क इद-िगद कि त थ । इस पहल क स त वभाव और िविधक ि या क
सहयोग से सामने आई अ यंत जिटल वाता क बावजूद भारत एक सफल प रणाम सुिन त करने म स म
आ। इसने परमाणु आपूितकता समूह (NSG) ारा एक अपवाद बनाने का माग श त िकया, िजसने भारत क
िवषय म एक अहम े म उस धारणा का ितवाद िकया, जो भारत को एक मु य मु े से अलग रहने वाले देश
क प म तुत करता था। अहम श क साथ र त म य िदखने वाले इस प रवतन ने वाभािवक प से
दूसर े म संबंध पर भी असर डाला। इसका तुरत लाभ िमला, य िक मुख यूरोपीय ताकत और स अपनी
वयं क वजह से हमार िलए मददगार थे। उस समय चीन क र ते भारत और अमे रका दोन क साथ पया
सहयोगा मक थे, य िक वह एन.एस.जी. म छट क फसले क िलए समथन चाह रहा था। कछ साल बाद, बदले
ए वै क समीकरण क िनतांत िभ प रणाम सामने आए।
अगर परमाणु-संिध ने संतुलन क लाभ को पहचान दी तो वह इसक प रणाम ने इस कायिविध क चुनौितय
को उजागर कर िदया। संतुलन बनाने क िलए सभी अहम संबंध को कायिविध क दौरान सकारा मक रखने क
आव यकता होती ह, िजससे एक का इ तेमाल दूसर से लाभ लेने म िकया जा सक। िजस ण वे धराशायी हो जाते
ह, वे दूसर क िलए अवरोध बन जाते ह। 2005 म परमाणु करार क िलए प रवेश, सावधानीपूवक एक मह वाकां ी
र ा ढाँचा, एक मु आकाश समझौता और मजबूत यापार क भावना क ज रए बनाया गया था। परमाणु करार
क बाद असै य परमाणु उ रदािय व का मु ा, अ यिधक सुर ा अपे ाएँ और दोन क बीच यापा रक मोच पर
होने वाले ितवाद ने आशावाद क माहौल को धूिमल कर िदया। ओबामा शासन ारा अफ-पाक यु े को
अ ोच िकए जाने और भारतीय राजनियक क अनुिचत िगर तारी से उपजे िववाद ने संबंध पर िख ता क छाया
डाल दी। िदसंबर 2013 म राजदूत का कायभार सँभालने क िलए अमे रका प चने पर मने खुद को िकसी उपल ध
को और मजबूती देने क बजाय ित िनयं ण करने म यादा य त पाया। माहौल म बदलाव िद ी म स ा
प रवतन क बाद शु आ, लेिकन संबंध क देखरख िकतनी अहिमयत रखती ह, यह एक सीखने वाला सबक ह,
दोन प क िलए।
यह कवल अमे रका क साथ भावना क आहत होने का न नह था, िजसने 2014 तक संतुलन को एक
किठन ि या बना िदया था, इसी कार का एक गंभीर संरचना मक प रवतन 2008-09 म वै क आिथक
संकट क साथ हो चुका था, हालाँिक बराक ओबामा क िनयु ए जाने ने आशा क एक िकरण पैदा क , लेिकन
इराक से फौज वापसी और अफगािन तान म तैनाती क वादे क साथ अमे रक स ा म काट-छाँट शु हो गई थी।
समय बीतने क साथ यह साफ िदखाई पड़ने लगा िक वै क चुनौितय से िनपटने का अमे रक इरादा अब वह
नह रह गया ह, जो पहले था। इसका भाव एिशया- शांत े म सबसे यादा प रलि त आ। 2009 क बाद
इसी समय बीिजंग म राजदूत क प म, चीन क अिधका रय और शासन यव था म अपनी गित क र तार को
लेकर बढ़ते ए आ मिव ास क भावना का म सा ा गवाह था। चीन म यव था प रवतन ने एक िभ युग क
शु आत क संकत िदए, जो िजतना उस देश क िलए अलग था, उतना ही शेष िव क साथ उसक संबंध क िलए
भी। इसी दौर म भारत क वयं क संबंध चीन क साथ और जिटल हो गए थे। पासपोट क बजाय अलग कागज पर
वीजा क मुहर लगाने का िववाद, सै य अनुबंध और सीमा म अनिधकत वेश इन सबने एक नए चरण क
शु आत का पूवाभास कराया। यह एक ऐसा समय भी था, जब भारत क सीमावत े म चीन क उप थित कछ
यादा ही िदखने लगी थी। य िप अमे रका और चीन क बीच संभािवत G-2 क अनुमान लगाए जाते रह, लेिकन
वा तिवकता यह थी िक अमे रका अब चीन को कछ यादा देने का इ छक नह था, जबिक चीन क अपे ाएँ
बढ़ी ई थ । घटना क होने क साथ-साथ भारत म राजनीितक प रवतन क चलते भी इस खेल म नए कारक
समािहत हो गए।
2014 तक वै क प र य ने भारत को अपनी िवदेश नीित क ल य को नए तरीक से संक पत करने क िलए
बा य कर िदया। सबसे पहले इसे अंतररा ीय मामल क िवशेषताएँ लि त करने वाली बढ़ी ई ब ुवीयता और
अिन तता क पहचान करना आव यक था। रा म वृहत कोण क बजाय संक ण मु पर एकजुट होने
क भावना आ गई थी। काफ हद तक वै क मामले अब िव -बाजार क भाँित नजर आ रह थे, जहाँ पूव
धारणा ने कम और लेन-देन ने यादा जगह बना ली थी।
इस पृ भूिम म भारत ने जानबूझकर अपनी पहचान बढ़ाने, सतकतापूवक अंतररा ीय स मेलन और वाता
को भािवत करने, सो े य ऊची साख वाले संपक िवकिसत करने एवं अनुबंध और संपक बनाने क िलए
मह वाकां ी िनवेश करने क शु आत क । इसका ाथिमक उ े य एिशया म अपनी थित को मजबूत करना
था, लेिकन इसी क समांतर भारत ने इस दायर से बाहर सोचने क भी य न िकए। एिशया म िन संदेह पड़ोिसय
को ाथिमकता िमली और 2014 म शपथ समारोह म उनक शीष नेतृ व को आमंि त करक इसने बदलाव को
लेकर िब कल प संदेश िदया। दि ण एिशया म भारत अब सकारा मक े वाद का समथक बन गया तथा
संपक और िवकास प रयोजना क बढ़ी ई ितब ता क मा यम से उसने इसे कट भी िकया। इसने पहचान
क राजनीित, िजसक जड़ इसक िनकटवत रा म गहरी रही ह, उसको भी अपनी गणना म शािमल तो िकया,
लेिकन यह उ मीद भी क िक ढाँचागत संपक दीघाविध म इसक भरपाई कर सकते ह। इस त य क साथ िक ये
सार रा लोकतांि क ह, चुनावी ि या और ित पध राजनीित से उपजे तनाव को भी साधना पड़ा।
जैसािक इसका पूवानुमान था, पािक तान ने सीमा पार आतंकवाद को जारी रखकर एक खास चुनौती तुत कर
दी। संपक थािपत करने क इसक ितरोध क साथ दोन प को देखने पर प ह िक इसे दि ण एिशया क
दूसर देश क समक नह रखा जा सकता। एक यादा िव ास से भर भारत ने दोन तरीक से अपनी ढ़ता
िदखाई ह—एक तरफ धानमं ी ारा िबना पूव-योजना क लाहौर या ा करक बंधु व बढ़ाने क इ छा तथा दूसरी
तरफ िनयं ण रखा और सरहद पार सै य कारवाई करक अपना ढ़ िन य, दोन तुत कर िदए। अफगािन तान
भी मनोवै ािनक और राजनीितक दोन तरीक से भारत क करीब लाया जा चुका ह। चाबहार प रयोजना और
अफगान सुर ाबल को सै य सहयोग का ावधान इसी नए नज रए को उ ािटत करते ह।
इसक बढ़ते ए िहत और आकां ा क प र े य म अब वृह र पड़ोस क भावना को भी बल िमला ह। जहाँ
तक दि ण-पूव एिशया क बात ह, ‘लुक-ई ट’ नीित को प रयोजना क ि या वयन पर बढ़ ए फोकस क
साथ ‘ए ट-ई ट’ म त दील कर अब और सश कर िदया गया ह। यह सामंज य एक और यादा मजबूत इरादे
क साथ अपने उ र-पूव क रा य म िवकास और बां लादेश क साथ संपक और बेहतर प च क सम वय क प
म थािपत िकया जा चुका ह। दि ण-पूव एिशया क साथ संबंध, एक वृहत सुर ा आयाम और उ तर प से
श शाली राजनीितक पहचान ा कर चुक ह। इसे 2018 क गणतं िदवस परड म सभी आिसयान देश क
नेता क उप थित से समझा जा सकता ह। दूसरी ओर खाड़ी देश क साथ अपे ाकत संक ण संबंध, जो पूव म
मु य प से ऊजा और समुदाय पर कि त थे, उनम भी सुर ा और राजनीित जैसे पहलु को जगह िमल गई ह।
खाड़ी देश म आपसी िवभाजन और ईरान क साथ उनक िववाद को देखते ए, इसक िलए भी यादा द ता क
आव यकता थी।
उ े यपूित क इसी भावना ने समु ी डोमेन क िलए एक कत कोण अपनाने का माग श त िकया। इसक
प रणित माच 2015 म ‘SAGAR’ िस ांत क प म ई, िजसने िहद महासागर ीपीय रा सिहत अ य क साथ
भी सश सहयोग क बुिनयाद रख दी।
हाल क वष म भारत ने स ह देश क साथ ‘ हाइट िशिपंग ए ीमट’ को पूणता तक प चाया ह। इनम आठ को
तटीय िनगरानी रडार क उपल धता, छह को नौसैिनक मता और समु ी अिधकार े क जाग कता हतु
एक कत संलयन क क थापना शािमल ह। इसने र ा क े म यारह देश को सुलभ ऋण सहायता का
िव तार, साथ ही यारह देश म िश ण दल क ितिनयु और एक बड़ी तादाद म िवदेशी सै य दल को
द ता िनमाण क पेशकश क ह। इसका जल सव ण सहयोग िहद महासागर म पाँच देश तक िव ता रत ह।
इसक तीन वािषक HADR अ यास ने िपछले पाँच वष म िफजी और यमन से लेकर मोजांिबक तक सात अहम
कारवाइय को अंजाम देने म मदद क ह। वा तिवकता यह ह िक समु ी नीित म भी भारत अिधकािधक सफलता
ा कर सकता ह। एक सरल माग, तकनीक का योग, सहयोिगय क वीकित और िमत यियता क ओर
झुकाव, सब एक साथ भावी ए ह। इन सबका िमला-जुला असर ब त ही यादा रहा ह, य िक अंतररा ीय
सहयोिगय क साथ काम करने से भावकारी प रणाम कई गुना बढ़ गए।
अ का भी ि ितज क बाहर उप थत एक पड़ोसी क प म देखा जाने लगा ह। अ ूबर 2015 का इिडया-
अ का फोरम सिमट अभूतपूव प से सभी 54 रा क भागीदारी का गवाह बना, िजनम से इकतालीस क
ितिनिध शीष नेतृ व क तर क थे। व र भारतीय नेतृ व क अ का दौर म तेजी से वृि ई और िवकास संबंधी
सहयोग और िश ण क गितिविधयाँ मजबूती क साथ तेज कर दी ग । अठारह अ क देश म नए दूतावास
खोलने का िनणय उन ाथिमकता क ओर संकत करता ह, जो इस े को अब ा हो रही ह। लैिटन
अमे रक देश, करिबयाई देश, शांत ीप समूह और ओशेिनया तक यादा प च अब दूर से िदखाई दे रही ह।
भारत इन अवसर से िकतना लाभ उठा सकता ह, इसका इतजार काफ हद तक इन िव ता रत संबंध पर िनभर
करगा।
दूसरी अहम ताकत क तरह भारत ने भी िवकास क े म सहयोग को अपने राजनियक टल-िकट क
मह वपूण यं क प म आजमाया ह और इसने ऐसा अपने वयं क अि तीय भारतीय अंदाज म िकया ह। कल
िमलाकर च सठ रा क 540 प रयोजना को इसने 300 ऋण सहायता क पेशकश क ह। िजनम से अिधकांश
ऋण सहायता और प रयोजनाएँ अ का क साथ ह—िफलहाल 321 प रयोजना क िलए 205 ऋण शािमल ह।
इसी क साथ वतमान म भारत क एिशया म 181 प रयोजनाएँ, लैिटन अमे रका और करिबयाई देश म 32 और
म य एिशया तथा ओशेिनया येक म तीन प रयोजनाएँ ह। ये सभी आरिभक वष म गुणा मक प से िव ता रत
क गई ह, िवशेष प से ऋण सहायता क आकार और प रयोजना क जिटलता को यान म रखते ए। उनक
योजना और उसका ि या वयन भी यादा एक कत य न और कड़ िनरी ण क फल व प और अिधक द ता
क साथ संप हो रहा ह। अनुदान सहायता का भुगतान ऋण सहायता से भी अिधक यापक ह, िजसक दायर म
दुिनया क लगभग सभी िवकासशील े आते ह। अ का वैसे भी आंिशक प से, संघष क साझा अतीत क
चलते उपजी एकता क ितिबंब क प म, िवशेष प से हमारा यान आकिषत करने वाला क रहा ह, लेिकन
यह रणनीित का भी पहलू ह, य िक अ का क गित से िव क ब ुवीयता म वृि होगी, जैसा िक पहले भी
दूसरी श य ने पाया ह, िवकास कि त ऐसी भागीदा रयाँ दीघकािलक संबंध का आधार बनती आई ह।
भारत समिथत अहम प रयोजना क दायर म सूडान, रवांडा, िजंबा वे और मलावी क िव ु े , मोजांिबक,
तंजािनया और गुयाना म जल, कोट-िड-आइवरी, गुआना और जांिबया म वा य, इथोिपया और घाना म श कर
संयं , िजबूती और रप लक ऑफ कांगो म सीमट और गांिबया और बु डी म सरकारी इमारत आती ह। वा तव
म, कई अ क देश म जो िविनमाण संयं हमने थािपत िकए ह, वे अपने आप म अि तीय ह। अ का म
भारतीय िहत का यह सतत िवकास, गहन िव ता रत प च और उ क तालमेल म भी ितिबंिबत होता ह। इस
महा ीप क 54 म से 51 रा ऐसी िवकास प रयोजना क भागीदार ह, जबिक िश ण म सम वय का लाभ
ितवष 10,000 अ क नाग रक को उपल ध कराया जाता ह। दो िडिजटल पहल भी अ का म ायोिगक प
म संचािलत हो रही ह—इ-िव ा भारती िडिजटल िड टस एजुकशन और इ-आरो य भारती िड टस ह थ। सहयोग
क भूिमका से भी आगे बढ़कर भारतीय िवदेश नीित का यह पहलू वै क मंच पर भारत क गितशील उ थान क
कहानी कह रहा ह।
अतीत क िश ा को अिभ ाय क पाँच टोक रय म रखकर देखा जा सकता ह। पहली, नीित म मह र
यथाथवाद क आव यकता से संबंिधत ह। िवशेष प से आशावादी गुटिनरपे ता क दौर म या िफर उसक बाद
भी, राजनियक गोचरता पर हमारा यान कभी-कभी हम कड़ी सुर ा क कट वा तिवकता क अनदेखी करने
क ओर ले गया। शु आती दौर म पािक तान क नीयत को समझने म ई भूल को संभवतः अनुभव क कमी
बताया जा सकता ह, लेिकन इसक एक दशक बाद भी सीमा को सुरि त रखने को ाथिमकता देने क अिन छा
क औिच य को सािबत कर पाना और भी यादा किठन ह। ऐसा नह ह िक 1962 क चुनौितय का अनुमान नह
था। इससे भी यादा कटनीित, जो िव राजनीित पर कि त थी, उसने इसे वह ाथिमकता नह दी, जो आव यक
थी, लेिकन कह -न-कह यह अंतिनिहत, लेिकन ढ़ िव ास था िक भारत क वै क मामल म ऊची साख
वै क उतार-चढ़ाव और ित पध राजनीित क िव एक र ा कवच क तरह थी। इसिलए कछ क मत
चुकाकर ही हम जान पाए िक नतीजे असल धरातल पर भी उतने ही तय िकए जा सकते ह, िजतने स मेलन म
और यादा िववश िव म दािखल होने क बावजूद यह आज भी एक ासंिगक रयायत ह।
िदलच प यह ह िक भारत, जब ज रत ई, बल योग करने से भी पीछ नह हटा। 1948 म हदराबाद और
1961 म गोवा इसक य उदाहरण ह, जैसा िक क मीर क साथ रहा, जब पािक तान ने आ मण िकया था,
लेिकन एक अिन छक श क इतनी मजबूत छिव गढ़कर रखने क बाद भी हम वयं क बुने ए कथानक म
उलझकर रह गए।
इसक चलते हमने शायद ही कभी सुर ा थितय क िलए एक िमशन क भावना से तैयारी क हो, जैसा िक
हमार कई ित ं ी दिशत करते आए ह। कड़ी ताकत क साथ असहजता, सेना क साथ उपयु सलाह-मशिवर
क अभाव म साफ िदखती थी, उ ेखनीय प म 1962 क यु क दौरान। आधी सदी क बाद चीफ ऑफ
िडफस टाफ क पद का सृजन यह दशाता ह िक हम िकतना लंबा सफर तय कर चुक ह। अतीत क वे फसले,
िज ह ने सुर ा पहलु क अनदेखी क , उनका भी अ ययन समीचीन ह। राजनियक गितिविधय पर अिधक जोर
देना दूसरी रा य यव था क यवहार को समझने म कमी का कारण बन गया। शीतयु को महज एक तक-
िवतक बनाकर देखा जा रहा था, जबिक स ाई ताकत क रता क कहानी कह रही थी। 1950 क दशक म इस
बात क भी कम जानकारी थी िक अपने उ र म हमारा सामना यु क अनुभव से जूझ चुक एक पड़ोसी से हो रहा
ह या िफर पाक अिधकत क मीर का साम रक मह व या ह। यह नज रया वै क मसल म उसक बाद भी जारी
रहा।
इसी तरह 1972 म िशमला म भारत ने पािक तान को लेकर एक सकारा मक कोण पर दाँव लगाने का
फसला िकया। िफर भी नतीजे क प म हम बदले क भावना से त पािक तान और िववाद म डबा ज मू-
क मीर िमला। आतंकवाद क समा क िलए पािक तान से बातचीत क बहाली म इतना लंबा समय लगना
अपने आप म एक कहानी कहता ह। इस तक क आकलन क िबना भी अंतररा ीय संबंध क िलए ठोस
वा तिवकता पर आधा रत एक कोण अपनाने क संभावना बनाई जा सकती ह।
इन िचंता क आिथक पहलू, दूसरी टोकरी का िह सा ह। यिद हम 1945 क बाद क सभी अहम आिथक
गित क कहािनय पर िवचार कर तो एक सामा य िवशेषता प रलि त होती ह। यह असाधारण यान देने क वह
वृि थी, जो रा ीय िवकास क िलए वै क प रवेश से लाभ उठाने क िलए रही थी। चीन ने उसे बड़
भावशाली ढग से सबसे पहले सोिवयत संघ क साथ, िफर अमे रका और प म क साथ िकया था। एिशयाई
‘टाइगर’ अथ यव था ने भी खुद को तैयार करने क िलए मशः जापान, िफर अमे रका और अब चीन का
अ छी तरह उपयोग िकया। ठीक इसी तरह भारत ने भी िपछले सात दशक म िविभ संबंध तक प च बनाई ह,
लेिकन हमेशा एक जैसी एकिन ा क साथ नह । िफर भी, भारत का अिधकांश औ ोगीकरण और दूसर े म
मता म िव तार, कटनीित से ा सहयोग क सीधी उपल ध रहा। इ पात, परमाणु उ ोग, उ िश ा और
क युिटग इसक कछ उदाहरण ह। ये 1991 क प ा सुधार क दौर और भारत क आिथक गु वाकषण क क
पूव क ओर सरकने से और भी यादा सही ठहराया जा सकता ह।
िफर भी कटनीित, रणनीित और आिथक साम य क बीच का अंतसबंध सदैव व प नह होता ह, जैसा िक
सुर ा क मामले म ह, जहाँ कारण और उसक भाव म फक करना ब त ज री होता ह।
अथ यव था कटनीित को चलाती ह, न िक कटनीित अथ यव था को। कछ लोग यह तक दगे िक 1990 क
दशक क सुधार और यादा उदार यव था ने कछ वष तक हम ब त अ छी तरह से लाभ प चाया, लेिकन जब
हमने इस यव था को दि ण-पूव और पूव एिशया क साथ मु यापार समझौत क प र े य म देखने का य न
िकया तो यह और यादा चुनौतीपूण हो गई। दोष चाह संरचना मक कठोरता, सीिमत ित पधा, अवसर का
अपया दोहन अथवा अनुिचत यवहार को िदया जाए, घाट का बढ़ता आ आँकड़ा कठोर वा तिवकता का
प रचायक ह। इससे भी यादा उनका घरलू उ ोग पर नकारा मक भाव िकसी से िछपा नह ह। चीन तो खासकर
मु यापार संिध (एफ.टी.ए.) क िबना ही यापार चुनौती पेश कर रहा ह।
वाभािवक प म, िवक प को े और दायर का िव तार करने क िलए, कई सार िखलािड़य को शािमल
करने क आव यकता होती ह। चूँिक एक आम धारणा अपनी वतं ता को सँजोए रखने को लेकर ह, इसिलए
वैचा रक प से तीसरी टोकरी, भारतीय िवदेश नीित का एक आयाम ह। ि ुवीय िव क पहले दशक म बेहतर
करने क प ा हम सभी मोच पर िपछड़ रह जाने से संबंिधत खतर को भी जान गए थे, जैसा िक भारत ने 1962
म देखा, दोन ही दुिनया क क पना आसान हो सकती ह, लेिकन वा तिवकता म दोन को साधना आसान नह ।
उसक बाद क दौर म एक ुव से दूरी बढ़ाने का मुआवजा भी दूसर प से अपने आप ही नह िमला। कभी-कभी
वै क प र थितयाँ आपसे एक प क ओर झुकने क माँग करती ह, जैसा िक 1971 म आ। ठीक वैसे ही,
जैसे चीन ने वयं 1950 और 1971 म िकया था। एक सामा य िनयम क प म अंतररा ीय यव था से यादा-
से- यादा दोहन करना यापक प र य पर िनभर करता ह और लाभ-हािन संतुलन शू य रहना पूव शत पूवानुमान
नह हो सकता। वा तव म एक परशान करने वाला प र य, िजसे भारत और चीन जैसे रा ने 1960 क दशक म
महसूस िकया था, वह था—महाश य का एक समान धरातल पर आ जाना। इसिलए दशक बाद भी G-2 क
चचा ने कई गुट म िफर से इतनी गहरी बेचैनी पैदा कर दी। संतुलन साधना एक नाजुक ि या ह, चाह पहले क
दौर क गुटिनरपे ता और रणनीितक वाय ता हो अथवा भिव य क कई सार संबंध ह , लेिकन एक ब ुवीय
िव म इससे बचकर भागा नह जा सकता। यह एक ऐसा खेल ह, जो इस समझ क साथ ही आ ामकता क
साथ पर खेला जा सकता ह और इसक एक मोच क गित दूसर मोच को भी मजबूत करती ह।
मनु य अ िशि त हो या काल- िमत, दोन क िलए िवरोधाभासी कोण क पीछ भागना य प से म
म डालने वाला हो सकता ह। िकस कार कोई ‘हाउडी मोदी’ जनसमूह क तुलना ‘माम ापुरम’ अथवा
‘ लािडवो तक सिमट’ से कर सकता ह? या िफर RIC ( स-इिडया-चीन) क तुलना JAI (जापान-अमे रका-
इिडया) से? अथवा ाड और SCO (शंघाई कोऑपरशन ऑगनाइजेशन) क तुलना? ईरान क सऊदी से अथवा
इजराइल क िफिल तीन से? इसका उ र ह—असमंजस क दायर से बाहर जाकर देखने क इ छा और
अिभसरण क एक वा तिवक दुिनया म वेश करना। इसे कलकलस क तरह देखने क ज रत ह, न िक कवल
अंकगिणत क तरह। वै क मामल का यह नया सं करण, पेशेवर और िव ेषक , दोन क िलए एक समान
चुनौती ह, लेिकन आगे जाने क िलए इससे पार पाना ज री होगा।
जोिखम उठाना कटनीित का एक अंतिनिहत प ह और यादातर नीितगत फसले इसी ि या क इद-िगद घूमते
ह। यह संतुलन साधने क िलए एक वाभािवक संल नक ह, जब हम इस चौथी टोकरी को देखते ह तो यह साफ
प रलि त होता ह िक कम जोिखम वाली िवदेश नीित कवल सीिमत प रणाम उ प करने वाली हो सकती ह। कई
अवसर पर जब भारत ने इस दायर से बाहर जाकर काम िकया तो कछ जोिखम क नतीजे, िमले कछ क नह ।
हमने अपने यापक कोण क आधारिशला ब त पहले 1946 म ही रख दी थी और समय यतीत होने क साथ
उस मवक को िवकिसत कर िलया। य िप भारत 1962 और 1971 म दबाव म आया था, इसने उन समझौत
को सीिमत कर िदया, जो इसे करने पड़ और जब भी उसे मौका िमला, उसने अपनी पूव क थित को वापस पाने
का य न िकया। अपनी गित या ा से गुजरने क दौरान इसने उभरते ए मु से िनपटने क िलए पुरानी
मा यता को अिनवाय प से छोड़ िबना नई संक पना और शत को सामने रखा। कल िमलाकर सम भाव
एक संतुिलत और म य-माग कोण का रहा, जो भारत का भाव बढ़ने क साथ यादा ामािणक होता चला
गया। इसे यान म रखते ए वा तिवकता यह ह िक वै क सीिढ़याँ चढ़ने क िलए बड़ फसल क आव यकता
होती ह, चाह यह पारप रक हो अथवा यू यर, राजनीितक या आिथक। सार जोिखम अिनवाय प से
भावशाली नह होते, उनम से कइय को िव त आकलन और ढ़ इराद क साथ प रणाम तक प चने क िलए
िदन- ितिदन नीित बंधन क साथ जारी रखना अपेि त होता ह। उनका सम भाव वै क थित म ब त बड़ा
उछाल दे सकता ह। एक हद तक, हम ऐसा होते आज देख भी रह ह।
पाँचव टोकरी ारिभक अव था क ओर वापसी क ह, छोट-छोट संकत से वै क भिव य का सही अनुमान
लगाना। सभी देश क िवदेश नीित वै क िवरोधाभास क पृ भूिम म तैयार होती ह। इनम अवसर और
बा यता , जोिखम और ितफल क आकलन को दशाते ह। यहाँ तक िक अगर हम अपनी ता कािलक थित
को भी दु त करना चाहते ह तो यापक भू- य का गलत आकलन भी हम महगा पड़ सकता ह। हमार खुद क
मामले म ज मू-क मीर पर संयु रा म जाना िन त प से एं लो-अमे रकन अलायंस क नीयत और
शीतयु क गंभीरता को समझने म भूल का नतीजा था। वष बाद चीन-सोिवयत संघ क बीच बढ़ते मतभेद को
लेकर हमारी शु आती जाग कता हमारी अपेि त समयाविध म प रप नह हो पाई। 1960, 1980 और िफर से
2001 क बाद हमने अमे रका और चीन क वै क रणनीित क िलए पािक तान क अहिमयत को कम आँकने
क भूल कर दी थी।
इसका अथ यह नह ह िक भारत को अपनी सफलताएँ ा नह । भारत-सोिवयत और कालांतर म भारत-
स संबंध हमारी वै क रणनीित का य माण ह। 1991 क बाद वैसा ही बंध हमारी नीित म अमे रका को
लेकर भी आ। इडो-सोिवयत संिध और भारत-अमे रका परमाणु करार दोन वै क मामल क िवशद अ ययन
क नतीजे थे। यही थित उन संशोधन क साथ भी रही, िज ह 1971 क बाद ए ुवीकरण से मु पाने क िलए
1973 म अमे रका और 1976 म चीन, दोन क संदभ म तुत िकया गया। वै क राजनीित क संरचना से उपजे
अवसर क पहचान भी जोिखम को कम कर सकती ह। उदाहरण क िलए, हमने 1988 क परमाणु परी ण क
बाद ांस क संदभ म देखा था। आज वै क राजनीित का मू यांकन करते व अमे रका-चीन िवरोधाभास क
एक समुिचत समझ, बढ़ती ब ुवीयता, कमजोर ब प वाद, वृहद आिथक और राजनीितक पुनसतुलन, े ीय
श य को और यादा मह व िमलने तथा अिभसरण क दुिनया का शािमल िकया जाना ज री हो गया ह। इनम
से येक आज क युग क नीितगत पहल को संचािलत करने वाला एक कारक बन चुका ह। चाह यह खाड़ी देश
तक हमारी प च हो, इडो-पैिसिफक का समथन हो अथवा यूरोप क साथ और यादा जोश से भरा जुड़ाव हो, वे
सब वृह र पुन थापन क एक पहलू को उजागर करते ह।
तो अब छठ चरण क िलए संभावनाएँ िकस ि या म ह? एक बदलती ई दुिनया प प से उनक िलए
यादा सि य रहने यो य ह, जो पीछ नह छटना चाहते। शु आत क िलए इनको समय क साथ चलती रहने वाली
एक सोच क आव यकता होती ह। िहत क एक सु प प रभाषा इसका अगला कदम होता ह और ढ़ िन य
क साथ उसका पीछा करना उसक बाद का कदम होता ह। उदाहरण क िलए, आज हम इसे अपने समु ी भूगोल
और SAGAR िस ांत क एक बेहतर समझ क प म देखते ह, जब कभी सुर ा चुनौितय से सामना आ ह, इस
नए भारत ने एक नए साहस क साथ जवाब भी िदया ह। वै क वाता म जलवायु-प रवतन, आतंकवाद,
कने टिवटी और समु ी सुर ा को आकार देने का इसका उ साह पहले ही अपना असर िदखा चुका ह। यमन,
नेपाल, इराक, ीलंका, मालदीव, िफजी और मोजांिबक म ए र यू ऑपरशन हमारी साम य और उ रदािय व
दोन क कहािनयाँ कहते ह। इसका अंतररा ीय संगठन म चुनाव जीतने का रकॉड एक और अहम दशन ह।
प रयोजना क ि या वयन क सुधर ए आँकड़ क साथ िवकास काय म सहयोग क िलए और अिधक पेशकश
क जा रही ह। हमार पड़ोसी देश और अ का इस बदलाव क पु करगे। भारत क ांिडग, अंतररा ीय योग
िदवस, अंतररा ीय सोलर अलायंस अथवा हाल ही क आपदा- ितरोधी गठबंधन जैसी यव था से और सश
हो चुक ह।
य िप िवदेश नीित क पूववत चरण म येक का एक साफ-सुथरा िववरण उपल ध ह, वतमान दौर को
वग कत करना अपे ाकत दु कर ह। इस चुनौती का एक अंश यह ह िक हम अभी तक एक मह वपूण सं ांित
काल क आरिभक चरण म ह। िनकट भिव य क परखा अभी तक प नह ह। इसका एक समाधान यह ह िक
भारतीय आकां ा क सहार एक खर नेतृ व श क प म उभरने क हमार ल य को इसे बताने क िलए
छोड़ िदया जाए। सम या यह ह िक दूसर इसे वा तिवकता क धरातल पर एक ल य क बजाय आगमन क एक
बयान क प म देखने क वृि रखते ह। गुटिनरपे ता का समथन करक शी ही लोकि य हो जाने क अपे ा
कभी-कभी ब -गठबंधन पर बोलने भर क चचा मा भी लाभ द होती ह। यह भागीदार न बनने या चचा से बचने
क पूववत थित क अपे ा यादा ऊजावान और सहभािगतापूण तीत होती ह। किठनाई यह भी ह िक यह
अवसरवादी भी तीत होती ह, जबिक भारत को वा तव म चातुयपूण सुिवधा ा करने क अपे ा रणनीितक
क वजस क तलाश ह। एक मजबूत और यावहा रक नीित कोण को पकड़कर रखने क िलए ‘पहले भारत’
क नीित को आगे रखना दूसरा तरीका हो सकता ह। यह सोच, दूसर देश िज ह ने और अिधक आ मकि त होने का
िनणय कर रखा ह, उनक साथ तुलना का िशकार हो सकती ह। भारत क संदभ म रा वाद, दरअसल इसे और
अिधक अंतररा ीयवाद क ओर ले गया। बढ़ती ई समृि और भाव भले ही एक िनरपे िववरण हो, लेिकन
पूरी तरह से यह कोई नारा नह ह। शायद हम यह वीकार करने क ज रत ह िक वै क अिन तता क इस
दौर म एक इकलौती कहावत हम थोड़ी देर क िलए बस िमत कर सकती ह।
जैसे-जैसे भारत अगले पायदान पर जाने क िलए संतुलन बनाकर तैयार ह, ऐसी िज ासाएँ िक या ऐसा करने म
हमने अपना ब मू य समय गँवा िदया, ायः अतीतो मुखी -जिनत तथा संदभ-िवहीन होती ह। िफर भी ये वे
मु े ह, िजन पर मनन िकया जा सकता था, िवशेषकर यिद हम प र थितय क अपे ा अपने िनणय क प रणाम
क बात करते। चीन क साथ हमार संबंध से हम ऐसी चचा क वाभािवक शु आत कर सकते ह। उदाहरण क
िलए, या भारत को 1950 म ही सीमा िववाद क सम या को सबसे ऊपर रख देना चािहए था? या 1962 क
यु को एक समझौते क ज रए उसी समय टाला जा सकता था, जब 1960 म चाउ-एन-लाइ भारत आए थे? या
अमे रका क साथ ारिभक वष म हमारा सां कितक िव ेष आपसी दूरी क भावना को बढ़ाने क वजह रहा?
आिथक मु पर संभवतः यादा सहमित इस बात क ह िक भारत को दरअसल अपनी अथ यव था को
आिसयान और चीन क तरह उस समय से एक दशक पहले ही खोल देना चािहए था, जब वा तव म उसे खोला
गया था। रणनीितक मोच पर वयं को एक परमाणु श घोिषत करने म, वष 1974 से 1998 क बीच यथ आ
समय, िव म सबसे दुभा यपूण थितय म एक कहा जाएगा। या हम कागजी िलखा-पढ़ी क गुलाम थे—एक
ऐसी खािसयत, जो 2005 क परमाणु करार को भी चौपट कर देने क करीब ले आई थी। पािक तान क साथ
संतुलन बनाना, एक ऐसा समाज, िजसक बार म माना जाता ह िक हम उसे अ छी तरह जानते ह, वह भी कई
सवाल खड़ करता ह।
ये पूरी तरह से सै ांितक प र थितयाँ नह ह और इस दावे क मह व को उ ािटत करती ह िक एक नेतृ व
श क प म उभरने क िलए यापक तर पर यावहा रकता क आव यकता होती ह। तदंतर इसे और अिधक
प र कत कथानक, जो भटकाव से बचने म मदद करते ह, क मा यम से सश िकया जा सकता ह। आिखरकार,
भले ही हमारा जोर सं भुता पर हो, पर इसने हमार नजदीक पड़ोस म हो रह मानवािधकार उ ंघन पर िति या
देने से हमको कभी नह रोका। न ही उन कदम ने हम कम ब प ीय सािबत िकया ह, जो भारत ने अपनी अखंडता
और े ीय सुर ा को सुिन त करने क िलए उठाए ह—चाह वह हदराबाद म ह , गोवा, ीलंका या िफर
मालदीव म रह ह ।
िचर थायी चुनौितय से िनपटने म मजबूत कोण वाभािवक प से बलतम होते ह। भारत क संदभ म यह
सबसे यादा पािक तान क मामले म िदखता ह, जैसे ही िचंतन ि या म बदलाव ह गे, एक बहस िछड़ जाएगी
और यही कई वष से होता आया ह। हालाँिक त य यह ह िक जब असल मु ा सीमा पार आतंकवाद को रोकना
बन चुका था, हमने कथानक को मु य प से िसफ वाता पर कि त कर िदया। िढ़याँ हर नए नज रए को
एक अनुिचत भटकाव समझती ह। िफर भी िपछले पाँच वष म एक अलग सहजता िवकिसत ई ह और सीमापार
आतंकवाद क मु े पर वै क संवाद और यादा गंभीर ए ह। आप कवल FATF को इस कथन क एक सबूत
क प म देख सकते ह। जैसे-जैसे हम ज मू-क मीर म पृथकतावाद से लड़ाई म िनणायक प से आगे बढ़ते ह,
इसक अंतररा ीयकरण क चचा और पािक तान क साथ हमार संबंध पर सवािलया िनशान लगने लगते ह। यह
अतीत क सोच ह, िजसका संबंध न तो भारत क साम य से ह, न देश क मनोदशा से और न ही सरकार क ढ़
संक प से। हमार आंत रक मामल पर िवदेश म क जाने वाली असंब िट पिणय को अंतररा ीयकरण क सं ा
नह दी जा सकती। पािक तान से अलग भारत को िमलने वाली ित ा और दोन क वा तिवकता म अंतर ऐसे
सवािलया िनशान लगाने वाले यास को व त कर देते ह। वा तिवकता म, यह भय और कछ नह , िन यता क
छ प म हलक सी सहमित भर ह। उनका उ े य, िववेकपूण या अनिभ तापूण हो, यथा थित को एक
वैधािनक प देना भर ह, जोिक अब इितहास क परत म िवलु हो चुका ह।
सात दशक क बाद भारत क िवदेश नीित क बैलस शीट एक िमली-जुली छिव तुत करती ह। रा ीय
िवकास िकसी भी आकलन क क म होता ह और इस नज रए से उलझना किठन ह िक अब तक हािसल गित
मह वपूण तो ह, लेिकन ‘पया ’ नह ह। समान दौर म चीन ने या हािसल िकया, उससे हमारी तुलना गंभीरता
क ओर ले जाने वाली ह। समूचे प र य का उिचत ढग से मू यांकन और उसक बाद अंतररा ीय थितय का
सामना ये दोन काम और बेहतर ढग से िकए जा सकते थे। इसक िवपरीत, अप रवतनीय िवदेश नीित क
सू य ने हमार दशन क एक िन प समी ा और समय रहते सुधारा मक कदम उठाने को हतो सािहत कर
िदया। िनरतर य न और िवमश, दोन ही उतने स त नह रह, िजतने एक उभरते ए िखलाड़ी क िलए होने
चािहए, जब इसे इितहास क िहचिकचाहट का साथ िमल गया तो इसने हम कभी अ वेिषत न िकए गए अवसर
और अचेतन प रणाम क ओर धकल िदया।
अब हम प रवतन क िशखर पर ह। य प म िव तृत होते ल य का पीछा और िवरोधाभास का िनराकरण,
दोन ही और अिधक आ मिव ास क साथ ा करने क य न हो रह ह। आकां ा को वा तिवकता म
बदलने क य न म जोिखम उठाना अंतिनिहत ह। वो रा , जो एक िदन खर नेतृ व श बनने क आकां ा
रखता ह—अशांत सीमा , असंघिटत े ीय प रवेश और अ प-अ वेिषत अवसर क साथ ऐसा करना जारी नह
रख सकता। एक बदलती वै क यव था क पास जाते ए यह हठधम नह हो सकता। वह िव , जो हमारी
ती ा म ह, हमसे न कवल नई सोच क अपे ा रखता ह, ब क अंततोग वा नए अनुकलन का भी। िढ़गत
मा यता को अपने पीछ छोड़ देना ही इस या ा का शुभारभ ह।

5.
‘बाबूगीरी’ और जनमानस
लोकमत और पा ा य भाव
“भारत माता कई मायन म हम सबक माँ ह।”
—िवल डरट
राजनियक क िलए इसको पचा पाना मु कल हो सकता ह, लेिकन िवदेशी अवसर और जोिखम का अनुमान
लगाने क बात जब आती ह तो भारतीय गली-मोह ने लुिटयंस िद ी से बेहतर सूझ-बूझ का प रचय िदया ह।
उनक भू- थैितक समझ औपचा रक भले न हो, लेिकन वे अपने सहज ान से यह जान जाते ह िक िकसक साथ
यापार करना ह और कहाँ या ा करनी ह। उ वासन और िश ा को लेकर उनक राय भारतीय कटनीित म
नीितगत बदलाव से पहले ही तय हो जाती थी। पूर प रवेश को ही बदल देने वाली 9/11 क घटना को बस उतना
ही देखा गया, जो वह थी। रा क ती ण लोकि य छिव ने भी राजनियक जिटलता को आकिषत िकया ह।
आप चाह जो कह, लेिकन गली-मोह क पास भलीभाँित िवकिसत एक सहज बोध ह, िफर चाह वे स क बार
म हो या अमे रका, चीन या पािक तान क बार म।
कहने का आशय यह नह ह िक रा य स ा ारा सोच-समझकर िकया जाने वाला िवमश समाज क मनोभाव
से िन नतर ह, लेिकन यह भी एक वा तिवकता ह िक हम एक िभ दौर म वेश कर चुक ह, जहाँ सूचनाएँ,
तकनीक क उपकरण और सां कितक अ त व समकालीन रा वाद क संवाहक ह। समाज का जातं ीकरण, जो
आधारभूत राजनीित को और आगे लेकर आया, उसने भी इस ि या म योगदान िदया। इसिलए नीितय म घुमाव
और उनका सम अनुभव कभी-कभी समाज क आकां ा पर खरा उतरने क िलए जूझता नजर आता ह,
खासकर उन िवषय पर जहाँ आम राय को भी शािमल िकया जाता ह। आज चुनौती, सामािजक गितशीलता और
नीित-िनमाण क ि या म सही संतुलन साधने क ह। अिधकारी तं अब जनसमूह से अ भािवत नह रह सकते।
दोन क बीच सामंज य बनाने म अ मता कवल राजनीितक िव सनीयता क क मत पर ही हो सकती ह और
यह एक ऐसी प रघटना ह, िजसे हम िकतने सार दूसर देश म देख चुक ह। इस प र े य म भारत भी इस बदलाव
से मु नह ह। फल व प बदला आ िवमश अपे ाकत एक नए युग का संकत देता ह, िजसक पास अपनी
वयं क ेरक श याँ ह। नीितय क संदभ म भारतीय रा वाद को समािहत करना, जो आव यक प से
इितहास, पहचान, िहत और नीितय सबको एक साथ लेकर चल सक, एक जिटल काय ह। वािसय क िहत इस
जिटल मैि स क िलए अ ासंिगक नह ह। उन सबको, प म और पुरानी यव था, वा तव म चीन क गित से
जोड़कर देखना, एक संब न ह।
अितशयो पूण कथन क युग क सभी अिभमानी और मुखर कथन म से एक ‘इितहास का अंत’ का भी था।
इस घोषणा म आ मक संतोष एक यूरोप-कि त िव ेषण क दायर तक ही सीिमत था, िजसम एिशया म उस
समय चल या रहा था, इस त य क अनदेखी कर दी गई, लेिकन िफर भी हम लोग किथत प से अमे रका क
अगुआई म चल रह एक सावभौिमक एवं अ य वै क यव था को िनहार जा रह थे। चाह जो हो, उस समय
जो थायी यव था प रलि त हो रही थी, वह थी शी ही िवलु होने वाली अमे रक एक ुवीयता, जो कभी
अतीत म दूसरी ताकत क साथ थी। वृह र ित पधा मक भावना और राजनीित िनवाचन िव को पुन: एक
अिधक वाभािवक िविवधता क ओर ले गए। इस ि या म यह आभास आ िक फशन क तरह राजनीित क
दुिनया क भी अपने च होते ह। वै ीकरण क दशक बाद भी िजसे राजनीितक प से उिचत और आिथक प
से अप रहाय माना जाता रहा, आज हम वै क ि ितज पर रा वाद को नाटक य ढग से उभरते ए देख रह ह।
कछ तो ब त प र कत और िमक रह ह, जबिक अ य अ यािशत और असरदार। उन सबम येक, सां कितक
परपरा क एक वृहत अिभ य का अंश होते ए भी अपने समाज क िलए िभ और िवशेष ह।
संभव ह, जब डॉन ड प ने िसतंबर 2018 म संयु रा म देशभ क प म वै कता को अ वीकत
िकया तो ऐसा करते समय उ ह ने सामा यतया अपने प को बढ़ा-चढ़ाकर तुत िकया हो, लेिकन अंतिनिहत
वा तिवकता से मु पाना अ यंत दु कर होता ह, जैसा िक िनवाचन क नतीज ने तमाम देश म पु क ह, आज
झान क संकत और अिधक सां कितक पहचान तथा बढ़ ए रा वादी कथानक क प म ह। चाह यह
आकां ा म हो या िफर याकलता म, हम इितहास क समा क बजाय उसक ओर वापसी का सा ा कार
कर रह ह। चीन जैसे रा क संदभ म यह नई मता क िवकास का ितफल ह, लेिकन हम स, तुक और
ईरान जैसे देश को भी उनक यहाँ क प र थितय म कोई य अंतर आए िबना ही अपने भाव का उपयोग
करते देख रह ह। ऐसी प र थितय म रा वाद ही ‘ए स फ टर’ क तरह नजर आता ह। ये वै क झान घरलू
बहस म भी जगह पाते ह, जहाँ पर िव बंधु व को आजीिवका क संकट क िलए भी उतना ही उ रदायी बताया
जाता ह, िजतना पहचान क संकट क िलए। वा तव म, रा वाद को एक अवधारणा क प म िकस तरह समझा
जाता ह, यह उस समाज क िवषय म भी हम ब त-कछ बता देता ह।
यापक प म एिशया क मुकाबले प म इसक साथ कम सहज ह, जहाँ इसे आिथक गित क िलए एक
वाभािवक प रणाम समझा जाता ह। िन त प से प क आने क साथ ही यह बदलना शु हो गया ह, लेिकन
वह िवशेष ऐितहािसकता भी काम करती ह, जो इस बात क या या करती ह िक जमनी और जापान संकोच य
करते ह, जबिक स और तुक इस पर गव करते ह। चीन इसे एक राजनियक उपकरण क प म लंबे समय तक
योग करक भी इस खेल म देर से शािमल आ, लेिकन िवकासशील िव म, िवशेषकर उन देश क िलए
िज ह ने औपिनवेिशक शासन से मु पाकर वतं ता ा क ह, रा वाद क मायने वतं ता क अिभ य
तक ही ह। चाह आशावादी हो या नह , िभ प र थितय म राजनीित उसी रा ते उतरती जा रही ह—चाइना ी स,
े जट या अमे रका फ ट, िकसी को भी देख लीिजए। वै ीकरण, स ा क िव सनीयता और इितहास क ओर
वापसी क बीच संबंध सु प ह।
रा वाद क इस पुन थान क असल वा तिवकता यह ह िक वा तव म यह समाज को संगिठत करने का ब त
सश आधार रही ह। कई मौक पर इसने यापक और संक ण िन ा दोन को भािवत करने वाली पर पर
िवरोधी िवचारधारा को परा त िकया ह। ब रा ीय सा ा य ने रा वादी संवेदना से संघष िकया, पर
अिधकांश अवसर पर उ ह पीछ हटना पड़ा, लेिकन रा ीय सं थाएँ, िजनको रा क भीतरी मतभेद का सामना
करना पड़ा, सामा यतया जीत ग । प मी सा ा यवाद उनक पूव क उपिनवेश म रा वादी भावना क जागरण
क साथ ही अंततोग वा तबाह हो गया। वै क पैमाने पर सं ाितकािलक िवचारधारा क प म उसक जगह
सा यवाद ने ले ली। यह भी अंतत: असफल हो गया, जब समाजवाद ने रा ीय पहचान हािसल कर ली। सोिवयत
संघ और चीन क बीच और बाद म चीन और िवयतनाम क बीच फट पड़ना, रा वाद क िचर थायी आकषण क
ही पु करता ह।
आ था पर आधा रत आंदोलन ने भी रा ीय िवभाजन क बीच से रा ता बनाने क कोिशश क ह। ये
िफिल तीन जैसे औिच य का योग कर सकते ह या िफर बो या या अफगािन तान जैसे िवशेष उ े य क िलए
य न हो सकते ह। दायश-इ लािमक टट का उ व इसी मॉडल का प र कत प ह। ती भावना और
असाधारण प र थितय का प रणाम होने क चलते रा वाद अंतत: उ ह हमेशा क तरह िफर से सामा य थित म
वापस ले आता ह।
नए युग का वै ीकरण आधुिनक राजनीित क एक और मजबूत थित वाले संगठना मक िस ांत को खर
करने क य न का ितिनिध व करता ह, लेिकन चूँिक इसका आधार गहन ौ ोिगक बुिनयाद और मजबूत
आिथक िहत पर िटका ह, रा वाद क साथ इसका तनाव िनकट भिव य म जारी रहने वाला ह। ऐसी दोन
श शाली बुि संगत या या क बीच ितवाद कोई अ ाकितक बात नह ह। इसिलए दोन म से िकसी को भी
एक घटना क प म देखने क बजाय हम इ ह इितहास क धारा क प म देखना चािहए।
िभ -िभ माप और ा प वाला रा वाद वीकारा मक, िति या मक या िफर मा भावा मक हो सकता
ह। िव ास से भरी ेणी वै क श सोपान म बदलाव क वा तिवक और मनोवै ािनक नतीज को ितिबंिबत
करती ह। यह भारत और चीन जैसे रा क गित, एिशया जैसे महा ीप क उ ित और वै क यव था क
प रणामी पुनसतुलन ारा उ ािटत होती ह। यह अंतररा ीय बातचीत क िवषय और अिभ ाय दोन से ही कट
होता ह। यह तमाम अहम कॉ स और वाता म भी िदखाई पड़ता ह। वा तव म, यह राय िक अहम वै क
नेतृ वकता कौन ह, उनक संगिठत होने क िलए मंच क नए ा प—जैसे G-20 अथवा BRICS—इस वैकािसक
ि या का मह व दशाते ह। इतना ही नह , वै क एजडा वयं भी पहले क अपे ा और यादा वैिव यपूण िहत
को दशाते ए प रवतन क ि या से गुजर रहा ह। पे रस जलवायु-प रवतन संिध (Paris Climate Change
Accord) जैसी अहम वाता क नतीजे भी इस बदली ई वा तिवकता को उ ािटत कर रह ह। कछ वैसा ही
एिशयन इ ा र इ वे टमट बक या िफर इटरनेशनल सोलर अलायंस जैसी नविनिमत सं था क गठन से भी
आ ह।
अंतररा ीय मु ा कोष जैसी सं था म और अिधक िन प ितिनिध व क माँग और संयु रा म सुधार क
िलए बढ़ता दबाव कछ ऐसी ही अ य अिभ य याँ ह। यहाँ चीन सबसे बड़ा अवरोधक ह, य िक जापान, दि ण
को रया या िफर आिसयान क तरह इसक उदय को पुराने मवक म िव य त नह िकया जा सकता। भारत का
िवकास कवल बदलाव क िलए दबाव बढ़ाएगा। उनक अ य सभी मतभेद से िभ , एक और अिधक समकालीन
वै क यव था क माँग भारत और चीन दोन को एक ही पाले म तो रख ही देती ह।
वृहत रा वाद का दूसरा संवाहक इसक िब कल िवपरीत ह— यादा िवशेषािधकार ा समाज म पुनसतुलन
क िति या। उ पादन को दूसर देश म ले जाना और सघन वै क आपूित ंखला (Global Supply Chain) क
िनमाण ने अप रहाय प से प म पर असर डाला ह। इसक फल व प उपजे िव ेष को इस धारणा क मा यम
से और बढ़ाया जा चुका ह िक कछ ने इस वै क यापार यव था से अनुिचत लाभ उठाए ह। जैसे-जैसे
अ वािसय का वाह बढ़ता जाता ह, वे भी कछ िन त आय समूह को उनक ताकत कम होने क भावना से
भर देते ह। िवडबना यह ह िक यूरोप क ता कािलक संकट को इन घटना ने कम और यु त प र थितय क
कारण, िजसक िलए प म पर भी उगली उठती ह, वहाँ से आ रह शरणािथय ने यादा भड़काया। चाह जो हो,
लेिकन नतीजा अभी तक एक िमि त आिथक-सां कितक संर णवाद ही ह, िजसे ताकत राजनीितक आ था से
ही िमलती आई ह।
एक तीसरी ेणी उस सम भाव क ह, िजसम दुिनया भर क सां कितक अ मता ने िकतनी तेजी से एक-
दूसर से लाभ उठाया ह। इसक िलए अिभक का काम प म एिशया ने िकया ह और दूसर े ने समय आने
पर इस पर िति या दी ह। य िप इस ि या क कारण और भाव दोन पर हमेशा बहस क जा सकती ह,
स ाई यह ह िक इसम अंतर आया ह िक लोग वयं को कसे प रभािषत करते ह और दूसर क बार म या समझ
रखते ह। फल व प अ मता से जुड़ी यापक धारणाएँ चुनौती क दायर म आ गई ह। जैसे-जैसे इन वृि य
का संलयन आ, अथ यव था, राजनीित, सं कित, आ था और पहचान सब ग -म होती चली ग । िन त
प से यह अपनी वयं क गितमयता क साथ येक देश क िलए भी िभ होगी। हम वै कवादी एवं रा वादी
ताकत क बीच एक संिद ध सह-अ त व और थानांत रत होते समीकरण क याशा रखनी चािहए, य िक
इनम से कोई भी िटक नह सकता ह और इसक प रणाम व प जो दुिनया सामने होगी, वह िववाद से भरी होगी।
भारत भी उन लंबे चलन का अपवाद नह ह, िज ह ने रा वाद को मजबूत िकया ह। रा क भलाई और
सामूिहक प र य जैसे मसले पर आम नाग रक क भावनाएँ बेहद बल होती ह। वे न कवल उरी और बालाकोट
जैसी सिजकल ाइक या िफर सीमा पर होने वाली कारवाइय पर िति या देते ह, ब क यहाँ तक िक उ सुकता
भर िवषय , जैसे परमाणु आपूितकता समूह (NSG) क सद यता और अंतररा ीय िनकाय क सद यता पर भी राय
य करते ह। इसक अथ यव था म अनवरत वृि और शेष िव क साथ यादा कने टिवटी रखने वाली
आकां ा से भरी पीढ़ी इस ि या म धन देने का काम कर रही ह। बीतते वष क साथ, जैसे-जैसे िविवधता क
तमाम सू को सँजोते ए और अिधक सु ढ़ होती जड़ को ितिबंिबत करने वाली हमारी श -संरचना यापक
ई ह, तमाम सामािजक ताकत भी अपने काम म लगी ई ह।
भावना मक श द म कह तो रा वाद का एकता क भावना को और बल करने म य योगदान होता ह।
राजनीितक संदभ म यह उपरा ीय और अित-रा ीय दोन कार क चुनौितय से िनपटने म अपे ाकत अिधक
ढ़ संक प होने का ोतक ह। नीितय क संदभ म यह रा ीय साम य तथा इसक भाव को बढ़ाने पर जोर देता
ह। वतमान प र थितय म भारत क िलए सुर ा क िवशेष ासंिगकता ह। कल िमलाकर वा तिवकता यह ह िक
अिधक िव ास एवं यावहा रक रा -कि त कोण ही िव क समीप जाने म भावी ह। भारत क संदभ म
जो बात शेष िव क अ य श य से िभ िदखाई पड़ती ह, वह यह ह िक इसक रा वाद क समझ क मायने
‘िव बनाम हम’ क मानिसकता नह ह। हमारी ब लवािदता क अंतभूत िवशेषता क चलते वै क संपक क
साथ रा वाद का सामंज य बैठाने क प रपाटी चलती आई ह। पीिड़त होने क भावना से पर इसम थािपत
श य और उदीयमान श य क बीच एक सेतु बनने का साम य ह।
चूँिक रा वाद राजनीित और पहचान का एक संयोजन होता ह, इसिलए बात जब अपने करीबी पड़ोिसय क
आती ह तो भारत को दोन से जूझना पड़ता ह। इसका स यताज य भाव समकालीन राजनीितक सीमा से कह
यादा यापक ह, लेिकन नए रा वाद पुराने संबंध क अ त व क साथ आसानी से सहज नह हो सकते, िजसक
फल व प इसका अंतसबंध इसक समीपवत े और िव ता रत पड़ोिसय दोन क साथ उ ेखनीय प म
कमजोर रहा। इसिलए चुनौती यह ह िक एक खंिडत े का पुनिनमाण भी करना ह, साथ ही इसक भाव से बाहर
रहकर संबंध को भी बहाल करना ह। इनम से येक ि या ठीक तरह से होती ह तो दोन ल य पर पर सहायक
हो सकते ह, अ यथा अगर एक को भी अवरोध का सामना करना पड़ा तो यह अ यंत दु कर होगा।
जहाँ तक दि ण एिशया का संबंध ह तो यहाँ वाभािवक संवेदनशीलता क वजह साझी ऐितहािसक पृ भूिम
और िवभािजत सामािजक मानिसकता ह। इसक प रणाम व प उपजी सतकता कभी-कभी िदखाई भी पड़ती ह,
िवशेष प से अिभजा य वग क रवैये म। जैसे-जैसे भारत पूर समाज क साथ सम प म एक साझा कोण
िवकिसत करने का यास करता ह, उसे इस त य का िवशेष यान रखना होगा। इसिलए नजदीक सहयोग क िलए
अिधक ो साहन देते समय यापक आ ासन देने क आव यकता रहगी। भारत जैसे रा यतं को, अपने पूर े
क उ थान क िलए अपनी समृि को एक उठते ार क तरह िदखाने क खरता होनी चािहए। अथा अपेि त
उ तर तर तक यान देना और संसाधन उपल ध कराना, जोिक ‘नेबर ड फ ट’ म अंतिनिहत नीित रही ह।
पड़ोसी हर जगह चुनौती पेश करते ह और भारत भी अपने िह से क इस परशानी से अछता नह रह सकता।
ऐसे र त क िनरतरता बनाए रखने क िलए भारत को और यादा अंतसपक वाली संरचना म िनवेश करना
चािहए। यह उन सम या को कम करने म मदद कर सकता ह, जो अप रहाय प से समय-समय पर सामने
आएँगी। इनक पहचान करने क बाद यह भी ज री ह िक जहाँ भी वा तिवक सम याएँ ह, हम उनक अनदेखी
करक आगे बढ़ने का य न न कर। उदारता और ढ़ता दोन का कधे-से-कधा िमलाकर चलना ज री ह।
िपछले कछ वष म भारत ने वहाँ बेहतर िकया ह, जहाँ उसने अपने िहत को प तापूवक प रभािषत िकया ह
और अपने वयं क सहज बोध पर भरोसा िकया ह, जब भी बात एक े क संदभ म होती ह तो यह एक ऐसे
चुंबक क भूिमका भी िनभाता आया ह, िजसक इद-िगद ही वै क राय संघिनत होती आई ह। उन पड़ोिसय क
िलए, जो भारत क साथ और गहनता से जुड़ने को त पर ह, उनको एक सकारा मक जवाब देना भी इसका एक
सराहनीय कदम ह।
एक ऐसे समय म, जबिक यादातर अपने िहत क ितपूित संक णता से कर रह ह, िव क िवषय म एक
अिधक यापक रखना भारत क िलए लाभदायक ह। किठन प र थितय म आगे बढ़कर यह न कवल अपनी
मह र मता और िव ास को पहचान िदलाता ह, ब क एक उदार श क प म एक अि तीय ांड भी
िवकिसत करता ह। यह व प िव क उस पैमाने म िफट बैठता ह, जो भारतीय िवचारधारा म समावेिशत ह। यह
वयं को उस श क प म भी पुन थािपत कर सकता ह, जो मतभेद क बीच सेतु का काम कर।
इस नज रए का िवकास िपछले कछ वष म िनमाण क ि या म रहा ह। इसक अिभ य िवशेष प से
ाकितक आपदा क थित म क गई पहल से होती आई ह। इन गितिविधय ने, वृहत े म िकसी भी संकट
क घड़ी म सबसे पहले मदद का हाथ बढ़ाने वाले देश क प म तैयार रहने म, सहायता क ह। तनाव क थित
म जब कभी वै क साझा दािय व क जोिखम को आँकने क बात आई ह, िन य ही भारत ने अनवरत प से
उसम सहयोग दान िकया ह। अंतररा ीय कानून और मानदंड क ित घोिषत प से स मान य करने से
इसक भौितक उप थित को बल िमला ह। यह एक ऐसी थित ह, िजसे इसने िववािदत समाधान म एक उदाहरण
क प म पेश करक िव सनीय बनाया ह। वै क क याण क िलए योगदान करने वाला रा वाद छिव गढ़ने म
भी बेहद सहायक ह।
इितहास को देखते ए यह वाभािवक ह िक े म रा वाद का उदय िव क प मीकरण क ि या
को भािवत कर। यापक प म हमारा िव , प मी अवधारणा और मानदंड क ढाँचे म काम करता ह।
कम-से-कम एिशया म हम सां कितक आ मिव ास क साथ जुड़ ए आिथक िवकास क बात कर सकते ह।
दूसर महा ीप तो दूर-दूर तक इस थित क समीप नह ह। एिशया म भी तालमेल और दाव क संदभ म त वीर
काफ िमली-जुली ह। जापान, चीन और भारत क बीच तुलना यह जानने क िलए िदलच प रहगी िक कहाँ इन
समाज ने अनुकलन िकया और कहाँ इ ह ने वयं क थित पर भरोसा िकया। य िप प म क साथ आसान
या किठन दोन ही तरह क संबंध को दशाने क िलए इनम से येक ने पया सबूत क पेशकश क ह, लेिकन
िनणायक कारक सदैव मौजूदा राजनीित रही ह।
अपने आधुिनक करण क हर पायदान पर इन समाज ने प म क साथ अपने संबंध क गणना और पुनगणना
क ह, लेिकन जैसे-जैसे एिशया वै क मंच पर अपनी उप थित को और यादा महसूस कराता जा रहा ह, इनक
रा ीय अिभ य य को िनयं ण म रखना आसान नह ह। सीिमत राजनीितक बयान से आगे बढ़कर वे यापक
सामािजक और ऐितहािसक अिभ य बनते जा रह ह। छिव गढ़ने क ये ि याएँ िकस हद तक िवकिसत ह गी
और वै क तर पर एक सामा य आधार क तलाश पर इनका भाव या पड़गा, इसका अनुमान लगाना किठन
ह।
प म क साथ चीन का बताव अकसर उनक ताड़ना क सौ साल क पीड़ा क साथ नजर आता ह, िजसे
अब सामने रखकर वे अपने प को मजबूत करते ह, लेिकन िकसी को भी अगर िशकायत करनी चािहए तो वह
भारत ह, िजसने यूरोप ारा बला कार और लूट-मार क एक नह , दो सिदयाँ झेली ह। अपने समय क एक अ णी
अथ यव था क इस लूट-खसोट को आज भी एक यापक तर पर वीकारा जाना शेष ह। 2018 क एक शोध क
अनुसार, अकले ि टन ारा भारत से िजन संसाधन को लूटकर ले जाया गया, उसक अनुमािनत लागत आज क
क मत क अनुसार लगभग 45 ि िलयन डॉलर ह। वे आँकड़, जो यव थत प से लूट क तर को उ ािटत
करते, उ ह भी यूरोपीय कोण क अनुसार कमतर बना िदया गया।
वहाँ मौजूद माण सभी क िनरी ण क िलए उपल ध ह, कम-से-कम वे धरोहर, जो उनक पास िव मान ह
और िजनक मूल उ पि साफतौर पर भारत म ई ह। चाह जो भी हो, सा ा यवाद ने एक ऐसा इितहास बुना,
िजसे कई े म आज भी वीकार िकया जाता ह िक भारतीय क िलए अं ेजी शासन कई मायन म फायदेमंद
रहा था। िन त प से वा तिवक रकॉड बड़ पैमाने पर गरीबी पैदा करने, अफ म का कारोबार, गुलामी और
अकाल लाने का रहा ह। इितहास क इस काले अ याय पर ाय आज तक भी सीिमत ही रहा ह। इसक बजाय
इस युग का मिहमामंडन उनक सव ाथिमकता ह और उनक सं हालय बड़ गव से िनरतर उन कलाकितय क
नुमाइश करते ह, जो उनक नह ह।
िफर भी इस िवनाशकारी लूटपाट क िवषय म बढ़ती जाग कता क बावजूद भारतीय को इनसे कोई यादा
िशकवा नह ह। वह चीज, जो भारतीय को 1950-60 क चीन और 1930 क दशक क जापान से अलग पहचान
देती ह, वह यह ह िक इसने प म िवरोधी भावना को ज रया बनाकर कभी भी देशवािसय को संगिठत करने
का काम नह िकया। भारत और प म क बीच हमेशा तो नह , िकतु यापक प से तनावरिहत संबंध का
सौहादपूण इितहास भी उ ेखनीय ह। एक बार जब भारत ने इितहास को पर हटाकर राजनीित को जगह लेने का
अवसर दे िदया तो भारत और प म क बीच मू य और िहत क अिभसरण ने आकार लेना शु कर िदया।
आिखर उनक बीच साझा करने को ब त-कछ जो ह, िजसम शािमल ह—एक उदार लोकतांि क राजनीितक
मॉडल, एक जैसी शासन ि याएँ, एक िव सनीय बाजार यव था और ल ऑफ लॉ क िलए ितब ता। भारत
ने वाधीन होने क बाद भी अं ेजी बोलने वाली दुिनया से नजदीक संबंध बनाए रखने को ाथिमकता दी, इस
राजनीितक-सां कितक फसले क भी प रणाम हलक नह थे। उसक बाद बीतते वष क साथ राजनीित, सुर ा,
यापार, िनवेश, सेवाएँ, इनोवेशन, िश ा और िवकास म सहयोग को आ छािदत करने वाला एक मजबूत र ता बन
गया, िवशेषकर अमे रका और ि टन क साथ। इसे िसिवल सोसाइटी और सं थान क बीच गहन संपक से
पहचाना गया। प म क कई समाज का अंग बन चुका वृहत भारतीय वासी समुदाय भी इस र ते को और
मजबूती दान कर रहा ह।
भारत क िनकट अतीत क चुनौतीपूण ण म उसे प म से जो आिथक और साम रक सहयोग िमला, उसने भी
एक बड़ा अंतर पैदा िकया। िवशेष प से चीन क साथ, 1960 म सीमा पर संघष क बाद और अकाल क वष क
दौरान। िवकास संबंधी काय क िलए प मी देश और उनक ारा िनयंि त ब प ीय बक से िवकास संबंधी
सहायता पाने वाल म भारत सबसे बड़ा ा कता था। तीस वष पहले भारत जब सुधार क रथ पर सवार आ
और उ वृि दर को लेकर चला तो प मी देश इस राह म िफर से मददगार बने। उ ह ने उसक बाद
अंतररा ीय यव था म भारत क राजनीितक िहत को भी आगे बढ़ाया, िजसम भारत-अमे रका परमाणु करार और
िविभ िनयात िनयं क यव था म सद यता दान करने जैसे मा यम शािमल रह। आज क दौर क लंत
िवषय , जैसे—आतंकवाद, समु ी सुर ा अथवा कने टिवटी पर अब एक गहरी आपसी समझ िवकिसत हो चुक
ह। इस र ते ने अपनी उप थित को वै क मामल म ब त तेजी से अनुभव कराया ह, खासकर 9/11 क बाद।
यूरोपीय संघ, ि टन और अमे रका उन शीष आिथक सहयोिगय म ह, जो भारत क आधुिनक करण क िलए
आव यक पूँजी, तकनीक और सव े काय णािलय क ोत ह। संबंध क प रप ता उस ि प ीय वाह म
भी प रलि त होती ह, िजनक तहत भारतीय कपिनयाँ प मी अथ यव था म अहम िवदेशी िनवेशक क प म
उभर रही ह। संबंध क इस राजनीित ने र तार पकड़ ली ह। य िप भारत-अमे रका संबंध िवशेषकर हाल क वष
म प िवत आ ह, ‘तीसरा िवक प’ िजसका रणनीितक मु पर ‘यूरोप’ ने लंबे व तक ितिनिध व िकया ह,
उसक अहिमयत बढ़ी ह। इस संिचत गित ने आज भारत और प म क बीच एक उ तर का आ त भाव
जा त कर िदया ह।
संबंध क गित क सराहना करते समय हम यह सं ान म लेना चािहए िक संबंध क यह थित हमेशा ऐसी
नह थी। एक िन प पड़ताल उप-महा ीप क िवभाजन से शु होनी चािहए, िजसने भारत क भाव को ब त
कमजोर कर िदया था। भारत और पािक तान क बीच एक कि म तालमेल जानबूझकर पैदा िकया गया, जोिक
1971 म ही जाकर टट पाया। कई वष तक भारतीय समाज क भीतरी दरार क राजनीितक शोषण म भी िदलच पी
बनी रही। लोकतांि क वतं ता क नाम पर अलगाववादी िवचारधारा को लेकर उदार होना आज भी िचंता का
िवषय बना आ ह।
कछ वष पहले तक हमार पड़ोस क प म क साथ िनकटता ायः वहाँ क उन राजनीितक श य क साथ
थी, जोिक भारत क साथ यादा दूरी बनाए रखने क अवसर ढढ़ती रहती थ । अगर भारत क लोकतांि क मू य
का आज गुणगान हो रहा ह तो ऐसी थित हमेशा नह रही थी। इसक िवपरीत, इस उप-महा ीप म जो सै य शासन
यव थाएँ रह , उ ह िमसाल क तौर पर पेश िकया जाता रहा ह। यापक कोण यह था िक भारत खेल म बना
भी रह, साथ ही उसे िनयं ण म भी रख सक। एक अ थर और कमजोर भारत उतना ही अवांिछत था, िजतना एक
सश और गव से भरा आ। वा तव म, यह भारत क िलए गो डलॉ स नज रए का िह सा था, िजसम भारत को
न यादा िनबल होने देना था, न ही यादा सश होने देना था और यही प म क यादातर िवदेश कायालय क
भारत क िलए नीित रही थी और इसिलए हम िवरोधाभास क यह त वीर, जब 1962 क लड़ाई क बाद भारत
वा तव म नीचे चला गया था तो उस समय प म क सहयोगी रवैये और 1971 म बां लादेश क उदय क समय
भारत क स त दलील क बावजूद िवरोधा मक रवैये क प म देखते ह। इन दोन क बीच का दौर संबंध को
लगातार, िकतु सतकता क पैमाने पर य त रखने का रहा। इतना ही नह , भले ही इसक िवकास क िलए यापक
तर पर समथन रहा हो, लेिकन मु ा चाह भारत क औ ोगीकरण, सुर ा तं , परमाणु या अंत र मता क
िवकास का रहा हो या िफर अंतररा ीय भाव डालने वाली थितय क ा क य न का, सभी का समाधान
बुि म ापूण तरीक से ा िकया गया।
इन सब त य को इस तक से यु संगत ठहराने क य न ए िक शीतयु क समय भारत अपनी गुटिनरपे
नीित क चलते प म क साथ खड़ा नह आ था। यह िवचारणीय ह िक भारतीय तक इससे िब कल िभ ह
और पािक तान को लेकर प म क इसक साथ भेदभावपूण नीित ने इसे सोिवयत लॉक क करीब जाने पर
िववश कर िदया था। यह सब हालाँिक काफ हद तक बदल चुका ह और इसी क साथ वा तव म भारत क र ते
भी, प मी देश , िवशेषकर मह वपूण यूरोपीय देश क साथ सम प से बदल चुक ह।
लेिकन अभी भी कई मतभेद वाले मु े अ त व म ह, िजनक िलए दोन प को नीितय को जारी रखने क
आव यकता ह। आिथक और सामािजक न क एक ऐसी ंखला ह, िजस पर भारत और प म क िहत म
िनतांत िभ ता ह। कई तो ऐसी नीितय से जुड़ ह, जहाँ करोड़ का िहत दाँव पर लगा ह। जहाँ तक सवाल सा यता
और िन प ता का ह, वह भारत भी एक यापक िवकासशील वै क े क आवाज बुलंद करता ह। यह
यापार, जलवायु-प रवतन और बौि क संपदा क थितय म िदखाई पड़ता ह। चूँिक दोन प अपने िहत क
िलए मु े गढ़ने और ाथिमकताएँ तय करने क कोिशश करते ह, ये अंतिवरोध जारी रहगे। भारत क वै क
दि ण (Global South) लोबल साउथ म एक श शाली उवर े ह, िजसे उसे अपनी गित क साथ ही और
यादा िवकिसत करना होगा। यह दि ण-प मी ताकत क प म प मी देश क अपे ा से कह यादा
भावी होगा।
सुर ा और राजनीित क े म भारत को कई बार प म ारा जो पहल क जाती ह, उसका नुकसान भी
उठाना पड़ता ह। 1980 क दशक म अफगािन तान म िजहाद ने ज मू-क मीर म भी आतंकवाद क िलए धन का
काम िकया। अफगािन तान और प म एिशया क थितयाँ आज भी िचंता का एक िवषय ह। अगर कोण
एक जैसा नह ह तो अंत और ाथिमकता म भी बड़ा अंतर पैदा हो सकता ह। परमाणु सार को लेकर
प म का ईरान और उ र को रया पर कि त यान, पािक तान और ए. यू. खान क िनजी नेटवक क प रकथा
पर लीपापोती से िब कल िवपरीत िदखाई देता ह। नाग रक वतं ता और मानवािधकार क मु े पर भारत क पूव म
सै य शासन वाले याँमार पर तो उसी समय पाबंिदयाँ लगा दी गई थ , जबिक इसक प म म उसी तरह क
शासन यव था वाले पािक तान को सहयोगी बताकर वागत िकया गया, जब बात हमार दौर क भीषण ासिदय
क होती ह तो चाह वह चीन का अकाल हो अथवा बां लादेश और कबोिडया क नरसंहार ह , प म क
रणनीितक आकलनकता ने लोग क आ ोश क अनदेखी कर दी। पुरानी आदत इस बात क या या करती ह
िक आिखर वे देश, जो संयु रा शांित सेना म योगदान करते ह तो वहाँ क फसल म उनक उपे ा य होती
ह? अथवा आयरलड म एयर इिडया क िवमान को बम से उड़ाने क घटना को, चार साल बाद लॉकर बी क
ऊपर पैनएम क घटना से िब कल अलग तरीक से य देखा जाता ह? हम ऐसे समाज को देख चुक ह, जो
आतंकवाद क वकालत अिभ य क आजादी क नाम पर करते ह, लेिकन उनक या या बदल जाती ह, जब
इसक चलते वयं उनक सुर ा दाँव पर लग जाती ह।
इन उदाहरण से भारत और प म दोन अपने िलए सबक ले सकते ह। िव म होने वाले सभी प रवतन क
िलए भारत को प म क संिचत भाव को कम करक नह आँकना चािहए। प म को चािहए िक वह अपनी
ओर से इस त य को भी मा यता दे िक भारत एक िभ भूभाग और िभ इितहास क साथ अवत रत आ ह। िफर
भी दोन क िलए सामा य धरातल पर िव तार होने क बावजूद भी अप रहाय प से कछ मतभेद बने रहगे।
प म क अब तक क िटकाऊपन का रह य इसक भु व क दौर म िनरतर, िकतु ढ़ता क साथ थािपत िकए
गए सं था और काय णािलय क समु य ह। यथाथ म मानवीय गितिविध से जुड़ा ऐसा कोई काय े नह ह,
जो िकसी-न-िकसी कार से इसक ारा गढ़ा या यव थत न िकया गया हो। िनयम क समु य पूर िव क
िलए बनाए जाते ह, साथ-ही-साथ वै क साझा िहत (Global Commons) क िलए भी। ये उन कथानक ारा
ऊजा पाते ह, जो प म क िहत को पूरा करते ह और दूसर ित ंि य को हीन सािबत करते ह। सं था , स ा
ित ान , िनयमन और समझ क िम ण का मैि स इतना जिटल ह िक इनक िवक प तैयार करना वा तव म एक
िवकट चुनौती ह। चाह जो हो, जैसे-जैसे वै क श का पुनिवतरण गित करगा, इसका ऐसा होना अप रहाय
ह।
अगर मजबूत थित वाल को उभरते ए रा क साथ सामंज य बनाना ह तो मु ा कवल सीमा और कित
का नह ह। सबसे अहम यह ह िक िकसक साथ इन सबको ऐसा करना चािहए। चीन क साथ प म क
साझेदारी का तक ाथिमक प से पार प रक आिथक लाभ का रहा ह। अगर आज संबंध म तनाव ह तो वे
इसिलए ह, य िक पार प रकता सवाल क घेर म आ गई ह, लेिकन भारत का मामला थोड़ा अलग ह, य िक
यहाँ आिथक तक पर राजनीितक आवरण भी होता ह। इसका ब लवादी च र और जनसां यक य कोण
प म क यादा िनकट ह। फल व प भारत क आिथक वृि और राजनीितक साख आज यापक मह व क हो
चुक ह। इसक िवकास म िदया जाने वाला योगदान नवीन वै क रणनीितक संतुलन को आकार देने का िह सा हो
सकता ह। भारत क िलए भी यह याद रखना उ म होगा िक इितहास म दूसर देश ने भी यापक आकलन करने क
बाद ही कछ रा क साथ भागीदारी कर रखी थी।
यह कवल भारत क साम य ही नह ह, ब क प म क सापेि क िविश ता भी ह, जो प रवितत हो रही ह।
यिद िवशेष प से अमे रका और सम प म यूरोप ने अपनी धार मंद कर ली ह तो इसक वजह मशः
राजनीितक इ लाम और चीन को लेकर उनक गलत अनुमान का मायाजाल ह। इसम बढ़ोतरी करने वाली
सम याएँ उन आिथक, सामािजक, जनसां यक य और राजनीितक झान से उपजी ह, जो लंबे समय से बनने क
ि या म रही ह। प म म सामािजक झान भी यापक रा वाद और संक णता को बढ़ाते आए ह। आ वासन ने
आय म िवषमता को बढ़ावा देने वाली नीितय क साथ िमलकर लोबलाइजेशन क िव कथानक क िलए धन
का काम िकया ह। जैसे-जैसे सां कितक रा वाद क चुभन शु ई, प म भी इसक भाव म आ गया, ि टन
यूरोप को लेकर और अमे रका अपने गठबंधन क ितब ता को लेकर आ ामक प से मुखर हो गए।
जहाँ तक यूरोप का सवाल ह, यूरोजोन संकट क बाद वैसे भी वहाँ अनवरत वै क काट-छाँट होती आई ह।
एक यापक कदम उठाते ए यूरोप अपने िहत को मु यतः आिथक संबंध म प रभािषत करते ए एिशया से
राजनीितक प से पीछ हट गया, लेिकन िपछले दशक म प रवतन क गित इतनी तेज रही िक ज द ही इसे अपने
आप को र ा मक मु ा म लाना पड़ा, यहाँ तक िक घरलू मोच पर भी। लंबे समय से जो सुिवधाएँ अटलांिटक
गठबंधन देता आया था, वह भी अब सवाल क घेर म ह। इसिलए जो छिव हमार सामने ह, वह िव ोभ से भरी
और अ प ह। कई मु पर यूरोप और अमे रका क बीच दरार य िदखाई दे रही ह। यहाँ तक िक वष तक
आंत रक एकता को ो सािहत करने वाला यूरोप वयं भी बँटा आ िदखाई दे रहा ह। वा तव म, मु े अब उस
थित म प च चुक ह, जहाँ कोई भी आसानी से यह सवाल पूछ सकता ह िक या एकजुट प मी िव क
धारणा अब भी तकसंगत ह? इस ढाँचे को अखंिडत रखने वाले म य थ क भूिमका अमे रका िनभाता आया था।
चूँिक वह देश उ रो र अंतमुखी होता जा रहा ह, इसक व त होने का खतरा पैदा हो गया ह। इसिलए जो हम
देखने को िमल सकती ह, वह ह—प म क भीतर उभरती ई ब ुवीयता। ऐसा प म जब भारत क साथ
संल न होता ह या इसक िवपरीत होता ह तो यह उन अनुभव से िब कल अलग होगा, जब उनक एकजुटता
मजबूत थी।
भारत एक उभरती ई ताकत हो सकता ह, लेिकन प प से अभी इसे लंबा रा ता तय करना ह। िफर भी
समकालीन इितहास म ऐसे कई सबक ह, िजनसे यह सीख ले सकता ह। स ाई यह ह िक िपछले 150 वष म
गित क सबसे मनमोहक कहािनयाँ प म क सहयोग से ही िलखी गई ह। यही उ ीसव सदी और 1950 क
बाद जापान क , 1960 क दशक म दि ण को रया क , 1970 क दशक म आिसयान क और 1980 और उसक
बाद चीन क वा तिवकता रही ह। यहाँ तक िक 1920 म सोिवयत संघ म तेजी से औ ोगीकरण क िलए जमनी
एक यो य सहयोगी था। चीन क मामले म, इसने दोहरा जोिखम उठाकर दोहरा लाभ भी उठाया—1950 क दशक
म पहले सोिवयत संघ क साथ िमलकर और िफर 1980 म पाला बदलते ए प म क साथ होकर। यह कहने
क आव यकता नह ह िक प म ने ऐसा िबना िकसी िनजी एजड क नह िकया होगा, लेिकन इसक
सहयोिगय क िलए चुनौती िवक प क भावी सदुपयोग और प रणाम क सामंज य क ह।
भारत जो ा कर सकता ह, वह काफ हद तक प ह। प म क साथ एक मजबूत पाटनरिशप ब त
अिधक राजनीितक और आिथक लाभ क ओर ले जाएगी, हालाँिक दोन को ित पध े म भारतीय िन प ता
से साधना होगा। कवल ि ितज क उस पार देखने भर से चुर मा ा म ौ ोिगक अनु योग और मानव संसाधन
क भरपूर उपयोग क अवसर दोहन क िलए उपल ध हो जाते ह। वतमान म थोड़ तोड़-मरोड़ क चलते भले ही
वै ीकरण थोड़ तनाव म हो, लेिकन यह वयं को एक संशोिधत सं करण क प म अव य अवत रत करगा,
हालाँिक कछ आ मिव ास क साथ यह कहा जा सकता ह िक अथशा , ौ ोिगक और जनसां यक का
संयोजन भारत एवं प म को और करीब लाएगा, लेिकन वा तिवक अंतर राजनीित और मू य क ज रए बनाए
जाएँग।े इसे सही अनुपात म सफल बनाने क िलए भारत और प म दोन को एक-दूसर क वै क योजना म
पूरक होना होगा। भारत क िवकास को यापक प मी िहत म एक रणनीितक िवकास क प म प रक पत
करना एक िववेकपूण शुभारभ हो सकता ह। ऐसी सोच अमे रका और जापान म यादा वीकाय हो गई ह, लेिकन
यूरोप म इसे अभी और यादा िवकिसत होना ह।
आिथक नज रए से भी यह प म क िहत म होगा िक भारत तेजी से वै क माँग और आपूित क यापक ोत
क प म उभर, िजससे िकसी एक ही भू- े पर अ यिधक िनभरता कम हो सक। जैसे-जैसे और यादा
ौ ोिगक पर हमारी िनभरता बढ़गी, यह और भी अहम होने जा रहा ह। इस स य क साथ िक संसाधन और लागत
का अनुकलन यापार को िदशा देने वाला िस ांत बना रहगा, वै क यापार क िलए भारत क मानव संसाधन क
िवशेषताएँ समय क साथ और बढ़ने ही वाली ह, जब बात िडजाइिनंग और उ पादन क सहमित क आती ह तो
इसक बाजार-अथ यव था और उ रदायी शासनतं इसे एक सुरि त सहयोगी बनाता ह।
भारत क सफलता सुिन त करने म कई वृहत िस ांत भी िव य त ह, िज ह प म को िस करना ह। यह
इस बात को िस करगा िक लोकतांि क राजनीित और उ वृि वाली अथ यव था पर पर िवरोधी नह ह।
भारत क ब -आ था वाला समाज भी वै क थािय व म ब त अिधक योगदान कर रहा ह। वा तव म वही
ह, जो िढ़वािदता और चरमपंथ को भारत क प म से पूव म सार को रोकने म सुर ा दीवार का काम करता
ह, लेिकन इसक अपने सि यतावादी पहलू भी ह, जो प मी िव क िलए बढ़ते ए मह व वाले ह गे। िहद
महासागर म समु ी सुर ा अथवा एिशया म कने टिवटी बढ़ाने जैसे े क बात हो, इसका योगदान एक
मह वपूण बदलाव ला सकता ह। एच.ए.डी.आर. (HADR) का और अिधक दािय व उठाने क इ छा भी िपछले
कछ वष म साफ िदखाई दे रही ह। संवेदनशील ौ ोिगिकय क मु े पर इसक भागीदारी िनयात िनयं ण
यव था को और सश करती ह। इसक उप थित न कवल िविभ वै क पहल और वाता क
िव सनीयता बढ़ा देती ह, ब क अकसर, जैसा िक पे रस जलवायु-प रवतन स मेलन म आ, नतीज तक
प चने म भी मदद करती ह। एक प मी यव था क िलए, िजसे सश रहने क िलए आ ममंथन क
आव यकता होगी, भारत क साथ भागीदारी एक अ छा िवक प ह।
इन सबक भावी होने क िलए अनेक मह वपूण संबंध क व-समिथत प म एक साथ आने क भी
आव यकता होगी। इसम भारत क अमे रका, ि टन, यूरोप और जापान क साथ संबंध शािमल ह, जब बात
अमे रका क आती ह तो यह उ ेखनीय ह िक भारत ने हाल क वष म उ रो र ि या वयन क ज रए संबंध को
िनरतर सु ढ़ िकया ह। आगे क राह एक ऐसी ही समानता क तलाश करगी— ंटन क साथ ब लवाद और
यापार, बुश क साथ यह लोकतं और वै क रणनीित तथा ओबामा क साथ जलवायु-प रवतन और
चरमपंिथता। प क िनवाचन क बाद, ये ि प वाद, यापार और सुर ा अिभसरण ह। अगर अमे रक रा पित उन
शासन प ितय और पुरातनपंिथय क चंगुल म कम फसता ह, जो लंबे समय से नए सहयोिगय क साथ गित को
बािधत करते आए ह तो इसम भारत का ही लाभ ह। दुिनया को लेकर प क कोण से सहयोिगय ने अमे रका
को िनराश िकया ह और ित ंि य ने इसे ठगा ह, भारत भा यशाली ह िक वह दोन म से कोई नह ह।
भारत-अमे रका संबंध िन त प से प म तक भारत क सम प च का क िबंदु ह। अपने आरिभक चरण
म यापक नीितय को गढ़ने म ि टन क भूिमका ज रत से यादा बड़ी थी। प रणाम व प िवभाजन क प ा
क ब त से िवचार को िवदेश नीित पर अपना ख बताकर आगे बढ़ा िदया गया। िफर भी समय बीतने क साथ
अमे रक िहत ने और अिधक वाय आधार हािसल कर िलया, जो पूव म भारत क वयं क बढ़ते िनवेश से उपजे
अित यापन से मेल खाता था। आज भी भारत क पूव और प म क अिभसरण म यह अंतर िदखाई देता ह। ये
अंतर िजतने कम िकए जा सकगे, वही भारत क साथ बढ़ती ई प मी िनकटता को ितिबंिबत करगे।
जैसे ही अमे रका क साथ यह गो डलॉ स दौर अपने समापन तक प चा, संबंध को िव ता रत करने क यास
ने प रणाम देना आरभ कर िदया। संपक का िव तार और संवाद क सुिवधा जो आज ह, डढ़ दशक पहले उसक
क पना तक नह क जा सकती थी। संबंध क बलता को प क तौर पर जी2जी (G2G), बी2बी (B2B), पी2पी
(P2P), यहाँ तक िक टी2टी (T2T) ( ौ ोिगक -से- ौ ोिगक ) क प म आँका जा सकता ह। एक देश, िजसने
िपछले चार दशक म कोई सै य उपकरण नह खरीदा, आज कई मंच का संचालन करता ह। सामािजक संपक भी
िवशेष प से मजबूत ए ह, िजसे भारतीय छा क बड़ी सं या म मौजूदगी से संबल िमला ह। दोन देश म
आम नाग रक क भावना ब त सकारा मक ह और वासी भारतीय समुदाय एक असाधारण सेतु क भूिमका िनभाने
लगा ह, िजसका भाव िवशेष प से अमे रक कां ेस पर भी पड़ा ह।
य िप इस संबंध क भूिमका िन संदेह हमारी पीढ़ी क प रवतनकारी कथा रही ह, लेिकन यह इसक वयं क
चुनौितय क िबना नह ह। यह अंतररा ीय संबंध क कित म स िहत ह—कछ स रत होते भू-राजनीितक
प र े य से और कछ घरलू बा यता से। वतमान म यापार म कड़ा संघष और गितशीलता को लेकर िचंता
पर मह म यान देने क आव यकता ह, लेिकन उससे पर एक बड़ा मु ा संबंध क िनरतर देखरख का ह। भारत
को अमे रका म अपने मू य का एक कथानक बनाए रखना ह, चाह यह भू-राजनीित का संदभ हो, साझा चुनौितय
का हो, बाजार क आकषण का हो, ौ ोिगक य साम य का हो या िफर दािय व साझा करने का हो और इसका
अनुकलन ता कािलक रा पित क िहसाब से िकया जाना चािहए। अमे रक नीितय म िनरतरता क अभाव को देखते
ए यह भी आव यक ह िक उनक भागीदारी म िनरतर अ तन होती ाथिमकताएँ और उनसे उभरने वाले मु े
शािमल होते रह।
दुिनया वा तव म ब त िभ ह, लेिकन इसक आधारभूत िस ांत को पूरी तरह से पलटा नह गया ह। यह
िन त प से स य ह िक एिशया ने भावशाली तरीक से गित क ह तथा प म ने आिथक और राजनीितक
प से इसक िलए जगह भी छोड़ी ह। यूरोप, अमे रका क तो बात ही नह , प म को छोड़ने मा क क पना ही
गंभीर नादानी होगी। यह सुझाव देना िक एिशया क बढ़ते ए सकल घरलू उ पाद वयं को तेजी से रणनीितक
ताकत म बदल लगे, एक म ह। ऐसा आिथक िनयितवाद एक ेरणादायक गितिविध तो हो सकती ह, लेिकन
नीित-िनमाण म इसे एक आधार क प म शािमल नह िकया जा सकता। वा तिवकता यह ह िक मुख बाजार
और वह पूँजी भी, जो वृि क िलए आव यक ह, अभी भी प म म ह। इन सबसे बढ़कर प म लगातार
ौ ोिगक और नवो मेष का मुख ोत बना आ ह, भले ही इसका मह व कम हो रहा हो। वै क सं थाएँ
इसक आचार-िवचार म बँधी रहती ह, य िक मानक ायः वह िनधा रत िकए जाते ह। वै क सावजिनकता
(वै क साझा िहत ) यापक प म प म ारा ही िविनयिमत क जाती ह और इसका अ य भाव संभवतः
इसक य भाव से यादा बल ह।
संभवत: यह सच ह िक इसक आस मृ यु क घोषणाएँ इसिलए अप रप ह। सै य संतुलन इस वा तिवकता
को और मुखर प म कट करता ह। अगर कोई अमे रका को अलग कर भी दे, तब भी दुिनया भर क र ा-बजट
पर िजतना यय होता ह, उस पर यूरोप का खच ब त भारी पड़ता ह। उन यु पर गौर कर, जो िपछले 25 वष म
यूगो लािवया, अफगािन तान, इराक, लीिबया और सी रया म लड़ गए। कारण उनक चाह जो रह ह , लेिकन वे
सब बल- योग करने, सुधार क साथ बेहतर ौ ोिगक व उसका अनु योग करने तथा राजनीितक दबाव क योग
क प मता क प मी इ छा को भी देख चुक ह। अमे रका और यूरोप आज भी सै य और दोहर उपयोग
(dual-use) वाली ौ ोिगक क अ णी आपूितकता ह और यह महज संयोग नह ह िक वे ही िकसी भी े ीय
वाता म धान म य थ भी ह।
प म क साथ बेहतर तालमेल क मामले म भारत क पास सतक रहने क िलए समझने लायक तक भी ह, जो
हमार आहत इितहास को ितिबंिबत करते ह। नवीनतम उदाहरण 2003 म इराक म और 1979 क बाद
अफगिन तान म ए घटना म क भी ह, िजनसे हमार िनकटवत पड़ोस म ई प मी कारवाइय क याद जुड़ी
ह, लेिकन जैसे-जैसे संरचना मक प से एक अिधक अ यव थत िव म भारत आगे बढ़ता ह, यह एक िवरासत
का बढ़ता आ मामला हो जाता ह। िचंताएँ एक ऐसे युग से उपज रही थ , जब भारत कमजोर था और प म क
साथ संबंध क खाई ब त गहरी थी। दूसर रा वै क यव था क ुव थे और हमारा काम कम-से-कम
नुकसान क साथ उ ह साधना था। 1950 क दशक म जब भारत गुटिनरपे था, उस समय जो सही ठहराया जा
सकता था, संभवतः आज वैसी थित नह ह। इस बात पर अड़ रहना िक जोिखम तब से बदले नह ह, भारत क
उन मह वपूण उपल धय को िनर त करने जैसा होगा, जो 1990 क दशक से अब तक उसक खाते म संिचत ह।
यह दुिनया म य प से ई भारत क ित ा म वृि को कम करक आँकने जैसा भी होगा।
अतीत म हम सी.टी.बी.टी. या ि स जैसे मु पर साथ रहने या छोड़ने क बात पर एक रा ता चुनते थे। आज
भारत क पास दोन िवक प क चयन का साम य ह, जब आव यकता हो, प म क साथ आ मिव ास क साथ
काम करने का और जब इसक िहत पर आँच आए तो इनसे असहमत होने का भी। अफगािन तान, ईरान, स,
जलवायु-प रवतन, कने टिवटी और आतंकवाद ऐसे ही कछ ासंिगक उदाहरण ह, जब अ का जैसे े म
अवसर पैदा ए थे, तब भारत ने वयं अपना माग चुनने म कभी संकोच नह िकया। यह न कवल वयं क पड़ोस
म अपनी थितयाँ तय करने म त पर रहा ह, ब क इस दशन से अंतररा ीय समुदाय को भािवत करने क
मता भी रखता आया ह। ऐसा करना कई बार इसे असहज प से अकला बना सकता ह, लेिकन िफर भी यह
एक ऐसा सहयोगी ह, िजसका मह व ब प ीय िव म यादा बढ़ रहा ह।
भारतीय भिव य क ओर आशावादी नजर से देखते ह, जबिक उ ह यह नह भूलना चािहए िक आगे क राह म
अतीत क अवरोध भी ह, िजनसे पार पाना होता ह। य िप भारत ने थम तथा ि तीय िव यु म अित मह वपूण
योगदान िदए थे, िफर भी 1945 म इसको िविश भागीदार का दजा नह िमला और फल व प अनुप थत रहने
क क मत चुकाता रहा। इन यु म और कालांतर म शांित थापना करने वाली कारवाइय म इसक बिलदान को
रखांिकत करना, इसक दाव को और पु ता करने क य न का िह सा ह। कहने को तो एक और यादा
समकालीन वै क यव था पर ब त बात होती ह, लेिकन यह तय ह िक सु ढ़ थित वाली वै क श याँ
आसानी से अपनी िवशेषािधकार ा थितय को नह छोड़गी, भले ही वे िन नतर अंतररा ीय यव था क ओर
य न ले जाएँ। चाह परमाणु अ सार संिध हो या िफर अंतररा ीय यायालय म ितिनिध व का मु ा, वे
काय णािलयाँ और स ाएँ, जो 1945 से संचािलत ह, भारत पर नकारा मक भाव डालती ह।
1945 क यव था पर सवाल खड़ करना ज री ह, लेिकन यह काम इतना नाजुक ह िक बेहद सावधानी से
करना होगा। यह अ गामी प र े य को यान म रखकर िकया जाना चािहए, िजससे यह औपिनवेिशक दासता से
मु रा को भािवत कर सक, अ यथा इसक ऐितहािसक नतीज को पलटने वाली प गामी पहल बन जाने का
खतरा रहगा। जैसे-जैसे भारत अंतररा ीय यव था म ऊपर जाता ह, यह अपना वयं का कोण आगे बढ़ाएगा
और समय-समय पर प मी रा से सवाल भी पूछगा।
इस त य म िक भारत एक ि याशील लोकतं ह तथा यह सबसे चुनौतीपूण प र थितय म ित ािपत आ
था, इसक कित क े संकत िमलने चािहए। इस बात का कोई अथ नह ह िक यह ब लवाद हाल क
राजनीितक अनुभव से उपजा ह अथवा एक अंतिनिहत सां कितक गुण ह। यहाँ अतीत क दीघकािलक आँकड़
उपल ध ह, जो िनयम और कानून क ित अंतिनिहत आदर भावना को उ ािटत करते ह। िन य ही, यही वह
आ म-छिव ह, जो वयं म एक सश ेरणा ोत ह। अपने ि याकलाप और संदेश क मा यम से भारत ने
धैयपूवक एक दािय वपूण लोकतांि क श क छिव बनाई ह। कछ लोग भले ही ितवाद कर, लेिकन एक ऐसे
िव क िलए जो भिव य क िदशा को लेकर अिन त ह, यह एक समृ प रसंपि ह, लेिकन वा तिवकता
यह भी ह िक भारतीय राज यव था क उ व क साथ ही इसका सामािजक चा रि क गुण पहले क अपे ा तेजी
से उजागर आ ह। जैसे-जैसे यह वयं को यादा प ता क साथ प रभािषत करना शु करगा, वाता और
सामंज य ि या का एक अप रहाय दौर हमार सामने होगा। बीते वष म ई राजनीितक गित से उ प
िववेचना से यह संकत िमलता ह िक यह ि या आसान नह होगी। आिखर म यह कल िमलाकर पुनसतुलन क
बार म ही होगा, जैसा िक वै क मामल म रा वाद तेजी से कर रहा ह।
प म क साथ समकालीन संबंध क मूल म, हमार देश म ए बदलाव क समझ क आव यकता ह। इसक
िलए यह वीकारना ज री होगा िक प मी ढाँचे म ढले एक अिभजा य वग क ासंिगकता समा हो चली ह।
िढ़वािदता से पर जाकर देखना अब यादा यापक वीकित ा कर चुका ह और यूिनख सुर ा
स मेलन-2020 भावशाली तरीक से ‘वे टलेसनेस’ पर यान कि त करता ह। अपनी ओर से भारत को प मी
िव क िवषय म गहन समझ िवकिसत करते ए इस िचंता को लाभकारी अवसर म बदलना होगा। यवहार और
सं कित क अपे ा यह अब मू य और रणनीितय पर िनभर ह, जो भारत और प म को समीप ला सकते ह।
इनका भावी ढग से ि या वत होना उन सृजना मक त व म से एक होगा, जो वै क भू-प र य को आकार
दगे।

6.
िन जो-इिडयन िडफस
उभरते चीन को साधने क यूह रचना
“बुि मान य लड़ाई से पहले ही जीत हािसल कर लेता ह।
लड़कर जीतने क िनयित से अ ानी जूझते ह।”
—चु ग िलयांग
भारत और चीन क एक साथ िमलकर काम करने का साम य एिशयाई शता दी को िनधा रत कर सकता ह,
लेिकन साथ ही उनक मतभेद ऐसा करने से भी उ ह रोक सकते ह। वाद और चुनौितय क इस संयोजन क
बावजूद भी उनक आपसी संबंध बेशक हमार समय क सबसे प रणामदायी संबंध म एक ह। शेष िव चीन क
उ ेखनीय उ थान क सराहना करता होगा, लेिकन भारत इसक िब कल समीप िनकटतम पड़ोसी होने क नाते
इसे ब त िनकट से अनुभव करता ह। इसक रणनीितक गणना म लंबे समय से चीन क एक अहम भूिमका रही
ह और आज इसका मह व पहले से कह यादा ह। ये दो ऐसी स यतागत रा य यव थाएँ ह, िजनक आधुिनक
रा य म पांतरण क लगभग समानांतर या ा संघष से मु नह रही ह। चीन को सही तरीक से समझना भारत
क भिव य क संभावना क िलए ब त अहम ह। यही कारण ह िक संबंध पर िवमश, िवशु प से पारप रक
पूव-धारणा और तय तक क दायर से बाहर जाकर भी, होने चािहए।
भारत और चीन क र ते, इितहास और भूगोल दोन क चलते, कई िविभ वा तिवकता से जूझते आए ह।
उनका सुदूर और िनकट अतीत का संदभ, आधुिनक इितहास और समकालीन राजनीित, उनक ित पी, िकतु
िभ गित और उनका उभरता आ भिव य, कल िमलाकर ये एक ऐसे जिटल मैि स क रचना करते ह, िजसम
िव क उ सुकता बढ़ रही ह। इस र ते क िविभ प क बीच संतुलन ही इसका सम च र िनधा रत करगा।
पहली वा तिवकता सिदय क मजबूत बौि क, धािमक और यापा रक संबंध से ता ुक रखती ह। वा तव म
यह एक ‘िस क ट’ का युग था, एक ऐसा युग जो अंतभदी, ब लवादी और पर पर समृि करने वाला था।
िविवध रा ते इस ट का िह सा थे, जो दो स यता क क ीय थल को जोड़ते थे। इसक ेरक श िवचार
और यापार का सश स म ण था। इस युग क अिधकांश चरण म बौ धम वह वाहन रहा, जो ब त से
याि य क िलए इस ट क िव ाम थल से िहत क ितपूित का मा यम बना। आज क िशनिजयांग (Xinjiang)
म थत कचे (Kuche) और खोतान (Khotan), भारत से जाने वाल क िलए मु य क थे, जो उस समय क
चीन का क आ करते थे। िस क ट पर पड़ने वाले इन सा ा य क शासक क नाम सं कत भाषा म थे, जो
भारत से उनक संबंध क पु करते ह। यहाँ तक िक तीसरी शता दी म बड़ी सं या म भारतीय प रवार डन आंग
(Dunhuang) म बस चुक थे और उतना ही आकषण का क रा ते म पड़ने वाले बौ िवहार होते थे। आरभ म
क मीर साझा ान का मु य क था, कालांतर म िजसने नालंदा क महा िव िव ालय का माग श त िकया,
हालाँिक यह भारत और चीन क बीच मु य माग था, लेिकन यह एकमा रा ता नह था। पु घाटी, िचंदिवन
(Chindwin) और इराव ी (Irrawaddy) पूव संपक माग थे और अ वेषक झांग यान (Zhang Quian) क
ऐितहािसक वृ ांत से भारत से िसचुआन तक जाने वाली एक दि णी िस क रोड क भी पु ई थी। इसक
अलावा, पहले टोनिकन (Tonkin) िफर कटन (Canton) से होते ए एक समु ी माग भी था, जो सीधे ाय ीपीय
भारत से जुड़ता था। ताइवान क दूसरी ओर सुदूर पूव म फिजयान (Fujian) तट तक भारतीय मंिदर क उप थित
चीन क साथ हमार िव तृत संपक क मह व को रखांिकत करती ह।
इस गहर सां कितक जुड़ाव क सजीव छिवयाँ चीन क अहम सां कितक थल , जैसे—डन आंग
(Dunhuang) गुफाएँ और लुवोयांग (Luoyang) क हाइट हॉस टपल म भी देखने को िमलती ह। संपक क यह
परपरा वाभािवक प से मानवीय अिभ य य म भी देखने को िमलती ह—क यपमतंग और धमर ा जैसे िभ ु
िजसका मा यम बने, जो भारतीय शा को लुवोयांग लेकर आए; कमारजीव, िज ह ने ब त सार बौ सू को
चीनी भाषा म उपल ध कराया और ध म/बोिधधम, जो शाओिलन परपरा से जुड़ा ह। इितहास क दो िस चीनी
या ी फा ान (Fa-Xian) और ेनसांग (Xuan-Zang) क भारत या ाएँ उस दौर क चीन म हमारी अहिमयत
को दशाती ह। उस समय का आपसी यापार गहन शोध का िवषय रहा ह और यह ऐसे लोग क िलए संतोष द हो
सकता ह, जो यह मानते ह िक इस यापार यव था म संतुलन क एक अलग ही सम या रही थी। ऐसा कहा
जाता ह िक छठी शता दी आते-आते, वहाँ भारतीय संगीत इतना लोकि य हो चुका था िक इस पर आंिशक प से
पाबंदी लगाने क िलए शाही फरमान जारी िकया गया। जो लोग यह तक देते ह िक दोन देश क बीच उपयोगी
संपक और लाभकारी सह-अ त व क सुदीघ परपरा रही ह, आँकड़ भी िन त प से उनक दाव क पु
करते ह, लेिकन दोन सं कितयाँ ऐितहािसक प से िकस कार एक-दूसर को भािवत िकए रह सकती ह, यह
त य लोकि य कथानक म काफ पीछ छट गया।
चीन को लेकर न तो भारतीय क मानिसकता और न ही संपक को लेकर जाग कता म कोई िवशेष िच रही
थी। इतना ही नह , इन संबंध क शंसक भी ब त कम थे। इसक एक वजह दूसर से संबंध क जानका रयाँ
सँजोने क मौिखक परपरा भी हो सकती ह। इसी क साथ यह एक ऐसे आ मकि त समाज का ितिबंब भी हो
सकती ह, िजसक िलए जो पीछ छट गए, वे मह वहीन थे और जो आए भी, वे नाममा क रह। चीन क िलए यह
भारतीय नज रया यादातर िव क नज रए क िवपरीत ह और िजसे समझना चीन क िलए भी आसान नह । आज
भारतीय िफ म क लोकि यता और पयटन क ो साहन क साथ संबंध क इस दौर म उन तक प चा जा सकता
ह।
िनकट अतीत क ारिभक िदन म कछ आशा जगी थी, िजसक िवषय म िव यात िव ा पी.सी. बागची3 ने
उ ेख िकया ह िक ि तीय िव यु का अनुभव दो ऐसे देश को करीब लाएगा, जो अपना साझा अतीत लगभग
भूल चुक थे। यह रोचक बात ह िक चीन क अिभजा य वग को 1949 से पहले भारत क इितहास क अ छी तरह
जानकारी थी। यह कहा जाता ह िक चेयरमेन माओ ने 1950 म भारतीय राजदूत को वयं यह लोकि य कहावत
याद िदलाई थी िक चीनी लोग जो अपने जीवन म अ छा काम करते ह, उ ह भारत म पुनज म िमलता ह। ‘वे टन
हवे स’ और भगवा बु क ज मभूिम क धारणाएँ चीनी समाज म गहराई तक समाई ई ह, जैसा िक हनसांग क
या ा-वृ ांत म ‘जन ऑफ द वे ट’ क कथाएँ मश र थ । उसी समय एक नैरिटव यह भी बन चुका था िक
भारत का समाज वाभािवक प से ुिटपूण और सामंज य क कमी से िसत ह। चीन क रा वादी भावना ने
भारत को ित पध िवचारधारा क अपने वयं क अनुकरण से बेखबर प मी उदारवाद से समझौता करते
पाया।
िफर भी उपिनवेश िवरोधी भावना ने चीन क त कालीन नेतृ व को भारत क आजादी का मजबूत और िनरतर
प धर बनाए रखा। यह समथन ि टन, खासकर िवं टन चिचल, क साथ र ते िबगड़ने क हद तक जारी था।
भारत ारा दूसर िव यु क दौरान सहायक सै य अ क भूिमका िनभाने और दुगम िहमालय म आपूित क
जीवन-रखा बनकर उभरना इस संबंध क भावना को बढ़ाने वाला सािबत आ, हालाँिक 1949 क बाद इस त य
का मह व घट गया, िकतु शोिषत समुदाय क नए दल ातृ व क इस भावना को आगे बढ़ाते रह। दूसर िव यु
क दौरान एक िचिक सक य िमशन का नेतृ व कर रह एक भारतीय वामपंथी डॉ. कोटिनस क कहानी को दोन
समाज म लोकि यता िमली। भारतीय रा वादी किव रव नाथ टगोर क चीन या ा भी उनक जापानी सा ा यवाद
िवरोधी रवैये क चलते सकारा मक राजनीितक तीक बन गई। समकालीन द तावेज वा तव म इससे कह अिधक
िमि त अनुभव क ओर इशारा करते ह, िकतु इितहास तो अकसर राजनीित से आ छािदत रहा ह।
वतं ता क बाद का वह दौर, िजसने तृतीय िव क आधारिशला रखी और बांडग स मेलन को आलोिकत
िकया, उन संबंध क चरमो कष पर था। इस अवधारणा ने अपनी चमक पूर एक दशक तक बनाए रखी, य िक
बंधु व को सँभाले रखना दोन देश क िलए राजनीितक प से लाभकारी िस होने वाला था। सा ा यवाद िवरोधी
इसक धारणा उस ए ो-एिशयन एकजुटता से मेल खाती थी, िजसे 1955 म कॉ स ने प म क संदभ म उनक
थित क मजबूती को ो सािहत करने क िलए दिशत िकया था। ऐसा ही एक ि प ीय संवाद क ज रए भी आ,
िजसने भारतीय को माओवादी चीन क िलए वा तिवकता से पर यादा नरम कोण रखने को ो सािहत िकया।
इितहास म एक जैसे अनुभव से गुजरने क भावना ने अंतररा ीय मंच पर िमलकर काम करने और भारत को
प म क िव चीन क तरफदारी करने म मदद क । इसक संयु रा म पीपु स रप लक ऑफ चाइना
(पी.आर.सी.) क ितिनिध व क िलए िनरतर प लेना उ ेखनीय ह, लेिकन िवडबना यह ह िक सुर ा प रष म
भारत क थायी सद यता क िलए समथन देने क बारी आने पर चीन ने ऐसी उदारता नह िदखाई। भारत, को रया
और िवयतनाम दोन यु क दौरान चीन क िलए उपयोगी रहा। यहाँ तक िक को रया यु म चीन भी उतरने क
तैयारी कर रहा ह, अमे रका को यह जानकारी भी बीिजंग म भारतीय राजदूत क ज रए प चाई गई थी। जापानी
शांित संिध जैसी वै क वाता म चीन क संदभ म भारत क थित इसक आकलन को उ ािटत करती ह।
1950 का दशक िन त प से दोन देश क बीच सौहादपूण संबंध का रहा और दोन देश क नेता क
एक साथ त वीर इसक मजबूती जािहर करती ह। दोन देश का यह र ता िन त प से चीन क िलए, जो भारत
क मुकाबले राजनियक प से यादा अलग-थलग था, यादा उपयोगी िस आ। एक तरह से देख तो बढ़ते ए
सीमा िववाद क बावजूद भारत संबंध क इस दौर म यादा भरोसा करने वाला सािबत आ, हालाँिक दोन क रा
म पांतरण क ि या क दौरान भीतर-ही-भीतर उपज रह तनाव भी अपनी जगह बनाते जा रह थे। इसे पूरी तरह
से अंतत: चीन-सोिवयत िववादा पद संबंध म उजागर होना था, िजसने चीन क नेतृ व को इस तरह से ो सािहत
िकया, िजसे कवल वामपंथी ही समझ सकते ह। यह दौर तब जाकर ख म आ, जब ये सार मु े एक साथ
िनणायक थित म प चे।
य िप यह सकारा मक सं करण राजनीितक सुिवधा क िलए लाभकारी हो सकता ह, लेिकन यह इस दौर क उन
मा यता को समा नह करता ह, िजनक जड़ गहरी हो चुक ह। चीनी रा वाद ने एक तुलना मक इितहास
िवकिसत कर िलया था, िजसक अनुसार कमजो रयाँ भारतीय समाज क पहचान थ , िजसम अब लोकतं को
प प से अनुशासन और धैय क कमी क प म िचि त करने वाला कोण जोड़ िदया गया। िवकास क
राह पर अपनी अलग-अलग या ाएँ शु करने वाले दो समाज क बीच एक सहज संतुलन बनाने म ये प र य
िकसी तरह से सहायक नह थे, लेिकन वा तिवकता का दूसरा समु य अ यंत मह वपूण ह, य िक जब कभी
तालमेल बनाने क पार प रक इ छा हो तो इसका सहारा िलया जा सकता ह। वा तव म ि स (BRICS) और
शंघाई सहयोग संगठन (SCO) जैसे मंच पर साथ आना इस दौर क याद िदलाने वाला वही कदम ह। अपने सभी
पार प रक मु क बावजूद भारत और चीन दोन म, अवचेतन प म ही सही, यह धारणा बनी ई ह िक वे
कह -न-कह एक थािपत प मी यव था से भी संघष कर रह ह। वे दोन अपने-अपने इितहास क इस
सकारा मक नज रए को जब भी उनक िलए सुिवधाजनक हो, आसानी से उपयोग म ला सकते ह।
अगर कोई इितहास ह, जो वा तव म मायने रखता ह तो वह ह आज का इितहास और अगर बेबाक से कह तो
यह कोई आसान िवरासत नह ह। वा तिवकता का यह तीसरा समु य, संबंध क किठन प को समेट ह,
य िक संबंध क ारिभक त णाई किठन सुर ा और ित पध राजनीित म गुम हो गई। यह अप रहाय था िक जैसे
ही भारत और चीन अपनी सीमाएँ तय करते ए वतं रा बनकर उभरगे, उनको एक-दूसर क साथ सम वय क
शत पर काम करना होगा। ऐसा न होने पर िकसी समझौते पर प च पाना एक चुनौती सािबत होता, लेिकन जैसे-
जैसे यह सम या ित बत को लेकर चीन क बंधन, सोिवयत संघ क साथ इसक िववाद और आंत रक कलह क
साथ उलझती चली गई, घटना म पूरी तरह से पलट गया।
आिखरकार मु ा न तो सीमा पर बेहतर दाव का था, न ही ऐितहािसक सा य का। न ही वा तव म कोई
एकाक घटना, चाह वे िकतनी भी गंभीर रही ह , संघष क वजह ह। यह सह-अ त व म पनपती, चीन क
आंत रक, चीन और भारत क तथा चीन एवं सोिवयत संघ क राजनीित का वह दौर था, िजसने नेह क ित चीन
क नज रए से िब कल िभ एक संघष क परखा तैयार क । नेह ने वयं इसे अनुभव िकया था, जब उ ह ने
कट प से यह वीकार िकया था िक चीन क साथ सम या े ीय सीमा िववाद से कह यादा दबदबा कायम
करने क ह। संभवतः उ ह ने श क योग क िलए ात य, स ा क िति या क ती ता को आँकने म भारी
भूल कर दी थी या िफर ‘आधारभूत स ाई’ का वह कोण, िजसे तक म उलझे समाज क िलए समझ पाना
बेहद किठन था।
सीमा िववाद तक ले जाने वाले इस दौर क फसले वयं म एक किठन उप म ह, लेिकन वह पहलू, िजसक
गंभीरता से समी ा क आव यकता ह, वह यह ह िक अगर सीमा वाता 1950 म ारभ क गई होती तो या भारत
क िलए लाभदायक होती या िफर या वा तव म 1954 म ित बत पर समझौता तक पर आशा क जीत रहा। छह
दशक पहले िलये गए फसल का असर दोन प आज तक महसूस करते ह।
भारतीय नज रए से देख तो उस दौर क राजनीितक और सै य घटना ने चीन क ित एक गंभीर अिव ास
पैदा कर िदया था। इस धारणा क गंभीरता अब भी लोग क मन म कम नह ई ह और िजसे अकसर होने वाले
नए िववाद से और भी हवा िमलती रहती ह। िपछले दो दशक म श का अंतर बढ़ने क साथ यह मानिसकता
संबंध पर िफर से असर डालने लगी ह। चीन क लोग शायद यह महसूस नह करते िक 1962 क जंग का भारतीय
लोग क िदलो-िदमाग पर िकतना गहरा असर रहा ह। इसी तरह भारतीय जनमानस क पास भी चीज को भूलकर
आगे बढ़ने क वह मता नह ह, िजसका दशन चीन क लोग ने स और िवयतनाम क साथ चीन क िववाद
क बाद िकया था। 1962 क लड़ाई म हार िसफ भारत क ही नह , ब क आपसी र त क भी हो गई थी। सीमा
पर होने वाला हर नया िववाद उन याद को ताजा कर जाता ह, िज ह अब तक धुँधला हो जाना चािहए था, लेिकन
वा तव म वे लोग क मन म अब भी ताजा ह।
आधुिनक संबंध म कछ किठनाइयाँ ित बत को लेकर चीन क बंधन और उस पर भारत क िति या क
आकलन से भी उपज । सावजिनक माण भी इस कथन का समथन करते ह िक हालात इस तरह से िबगड़,
िजसका अनुमान दोन ही देश नह लगा सक थे। इसिलए इसम कोई संदेह नह िक आगे आने वाली आशंका ने
सीमा क मु े पर दोन प को ख स त करने को िववश िकया। तब से नेतृ व ने एक सहनशील रवैया देखा ह,
िजसक दूसर प से उ मीद भी नह थी।
आपसी संबंध पर घरलू राजनीित का जिटल भाव िन त प से कवल चीनी प तक सीिमत नह था। भारत
म भी कटनीितक िवक प, जनमानस और राजनीितक भावना का ार आने क साथ, उ रो र संक ण हो चले
थे। आज क पीढ़ी यह जानकर हरान होगी िक संघष से िनपटने क दौरान फसले लेने म इसने िकस हद तक दखल
िदया। 1960 म धानमं ी झोउ एनलाई (Zhou Enlai) क भारत या ा पर एक नजर डालना िवशेष प से
ानवधक रहगा।
दूसरा अहम मसला, िजसने इस दौर क िवचार को गढ़ा, वह पािक तान क साथ चीन क र त का था। इस
मै ी क शु आत पर एक नजर डालना ज री ह, य िक अतीत क समझ इसक भिव य म झाँकने क िलए
अंत का काम करती ह। इन संबंध का एक आिधका रक िववेचन4* यह न खड़ करता ह िक य एक
संबंध, िजसम सां कितक समानता अथवा समान मू य का जुड़ाव पूरी तरह अनुप थत था—जोिक सामा यतया
गठबंधन क बुिनयाद होता ह—समय क थपेड़ और वै क प रवतन से अछता रहा। इसका उ र भी िवचारणीय
ह। िन त प से श असंतुलन को देखते ए भारत क साथ र त को साधने क िलए पािक तान को चीन क
स त आव यकता ह। िवशेषकर तब, जब प मी ताकत ने उसक इस उ े य क िलए अ िच िदखाई ह। बदले
म चीन पािक तान का उपयोग वयं को एक े ीय श से वै क श बनाने म कर सकता ह। यह न कवल
भारत को दि ण एिशया तक सीिमत रखने म मददगार ह, ब क उसक इ लािमक देश तक प च भी आसान
करता ह। जैसे-जैसे समय गुजरा, नए कारण पैदा होते रह, िज ह ने इस र ते क ता कािलक ासंिगकता को बनाए
रखा। अफगािन तान म साझा िदलच पी एक वजह रही तो समु ी े से जुड़ी मह वाकां ाएँ दूसरी।
यिद भारत को इन सबक होने का आभास नह आ, जो इसे पहले हो पाया था तो यह एक उ त िव क
आदश ल य को ‘बैलस ऑफ पावर’ क ाथिमक िस ांत से अिधक मह व देने का ही प रणाम था। यह
दोहराना िदलच प ह िक 1962 म जब भारत क साथ संघष गहर हो गए थे, तब भी चीन-पाक आपसी संबंध म
गमजोशी भर रह थे। एक बार जब ऐसा हो गया तो पािक तान ने इस आपसी िनकटता का पूरा लाभ ज मू-क मीर
म भारत क आधी-अधूरी कारवाइय क चलते बने अवसर से उठाया। संबंध म िवकास क ती ता को समझने क
िलए यह उ ेखनीय ह िक 1959 क आिखर तक जब भारत का चीन क साथ पहला अहम टकराव आ,
रा पित अयूब खान भी े ीय चीनी घुसपैठ रोकने क बात कर रह थे, लेिकन 1962 क शु आत तक दोन देश
उनक वा तिवक िमलन थल क चचा कर रह थे और 1963 म पािक तान ने भारतीय प र े चीन को स प
िदया। उसी समय यह दो प मी गठबंधन SEATO और CENTO का गो ड काड मबर था। इसने पेशावर म एक
अमे रक बेस भी बनाने िदया और प मी खुिफया कारवाइय म गहर तक शािमल था। एक समय क बाद यह
गठबंधन बड़ जोिखम और दु साहसपूण नीितगत कारवाइय क कहानी बन गया, लेिकन 1963 म ए
ह तानांतरण क बाद चीन क सोच बुिनयादी प से बदल गई। सहयोग गहर हो गए और यहाँ तक िक 1965
और 1971 म भारत क साथ जंग क दौरान पािक तान ने चीनी सहयोग क कछ िदवा व न भी देख डाले।
उनक संबंध क समकालीन दौर ने ऐसे तमाम मु को आगे बढ़ते ए देखा। भारत म लंबे समय से यह बहस
होती आई ह िक चीन उसक बार म या नज रया रखता ह। पािक तान इस गणना का उ र तुत करता ह, लेिकन
यह िचंता 1980 क दशक क अंत तक कम हो गई, जब भारत और चीन दोन अतीत क दरार को भरने पर यान
कि त कर रह थे। 1962 क यु क बाद 14 वष लगे, तब कह जाकर 1976 म राजदूत तर क र ते पुनः
थािपत ए। इसक बाद भी 1988 म भारतीय धानमं ी राजीव गांधी क चीन क या ा करने तक म 12 साल
और लग गए। फोकस सामा य संबंध बहाल करने और सीमा पर थरता कायम करने पर रहा और यादातर ल य
अगले दशक तक हािसल भी हो गए। 1993 और 1996 म िकए गए अमन और शांित समझौते (Peace and
Tranquility Agreement) इन ल य क तािकक प रणित तक क ि या क अनुपालन का ितिनिध व करते
थे।
दोन देश क िलए 1988 तक क घटनाएँ एक दीघकािलक संशोधन क ि या रह । 1980 क दशक क
दौरान भारत ने अमे रका क साथ अपने संबंध म सुधार कर िलया था और अफगािन तान पर सोिवयत हमले क
ितकल िति या को लेकर िचंितत था। अमे रका क साथ पािक तान क संबंध का पुनगठन इसक िहत को
िनणायक प से गहर तक भािवत करने वाला था। य िप अफगान िजहाद म करीबी प से शािमल चीन यह गौर
कर रहा था िक दुबल नेतृ व क साथ सोिवयत संघ लगातार कमजोर पड़ता जा रहा ह। इस प र थित म सुधर ए
ि प ीय संबंध भारत और चीन दोन क िहत म रहने वाले थे, य िक दोन म से कोई दूसर को भु व थािपत
करने वाले ित ं ी क प म नह देख रहा था। आिथक प से दोन समाज यापक प म बराबरी क तर पर
थे, हालाँिक चीन क पास कछ अंतिनिहत साम य था, िजसका उपयोग होना अभी बाक था। राजनीितक प से
िन त तौर पर चीन क पास एक प बढ़त थी, आंिशक प से 1962 क नतीज क चलते और साथ ही
प म क साथ इसका गठबंधन, िजसका लाभ भी अब इसे िमलने लगा था। िफर भी यह एक ठड पड़ और
संकट त संबंध क िलए अहम संभावना का िमलन था। इसक बाद क घटनाएँ यह भी उ ािटत करने वाली
थ िक यह भी भारत ारा व तु थित को समझने म क ग बड़ी चूक म से एक थी।
1960 क दशक क शु आती घटना ने संबंध क भू-राजनीितक कित को सामने ला िदया, जोिक
िवचारधारा मक मतभेद से और गंभीर ई। चीन ने पहले ही पािक तान क साथ तेजी से संबंध जोड़कर भारत क
ित अपनी कठोर वा तिवक राजनीित का प रचय दे िदया था। उसक एक-चौथाई सदी क बाद भारत और
सोिवयत संघ क संबंध िवकिसत ए थे, जैसा िक वा तव म चीन-पािक तान और चीन-अमे रका गठजोड़ क साथ
भी रहा। पहली नजर म ऐसा लग सकता ह िक 1970 क दशक क म य तक एक संतुलन थािपत हो चुका था,
िजसने भारत और चीन क आपसी संबंध को आगे बढ़ने क िलए हरी झंडी दे दी थी, लेिकन एक वाभािवक
संतुलन को बनने देने क अपे ा चीन ने एक ऐसा नीितगत कदम उठाया, जो कई मायन म अभूतपूव था। जो इसने
िकया, वह सही तरीक से एक ऐसे ‘िविश उपहार’ क प म ही प रभािषत िकया जा सकता ह, जो आधुिनक
दौर म एक रा दूसर को दे सकता ह।
परमाणु हिथयार बनाने म सहयोग उस समय तक कवल अमे रका ारा ि टन को, सोिवयत संघ ारा चीन को
(आधे रा ते म ही रोका गया) और ांस ारा इजराइल को ही मुहया कराया गया था। यह छोटी सी सूची
उ ािटत करती ह िक उस समय तक अंतररा ीय संबंध म िकतने दुलभ तरीक से, िन त प से सकारा मक
वजह से, सहयोग का यह िवक प यवहार म लाया जाता था। तक यह ह िक चीन का यह कदम 1963 क
ल य क अनु प था िक पािक तान का इ तेमाल भारत को एक सीिमत दायर म ही बनाए रखने क िलए िकया
जाए, लेिकन इस क य क इतनी भारी क मत ही इस न का जवाब ह िक भारत क चीन क गणना म या
अहिमयत ह?
इसका भारत क नीितय और भारतीय क मानिसकता पर गहरा असर पड़ने वाला था। मह वपूण यह भी ह
िक चीन-पािक तान परमाणु सहयोग लगभग उसी समय शु आ, िजस व भारत और चीन ने राजदूत- तर
क संबंध क पुन थापना शु क । अिधक श शाली सहयोगी ारा अपे ाकत कमजोर सहयोगी क िचंता
को कम करते जाने क अिनवायता पािक तान क संदभ म चीन क सोच का िह सा िनरतर बनी रही, जैसे ही यह
गठजोड़ एक गंभीर तर तक प च गया, चीन क परमाणु ौ ोिगक उस देश को ह तानांत रत कर दी गई,
जबिक ठीक उसी समय चीन-भारत सीमा वाता का दौर भी शु िकया गया था। यह िसलिसला आगे भी जारी
रहा। राजीव गांधी क चीन या ा क तुरत बाद पािक तान को िमसाइल स पने का काम आ। यहाँ तक िक
अफवाह यह भी उड़ी िक चीन ने पािक तान क िलए अपनी जमीन पर एक परमाणु परी ण भी िकया। यह
कहानी जारी रही और तीसर प क प म उ र को रया क एं ी ने इसक जिटल संरचना म और वृि कर दी।
मु क िवरासत का यह समु य एक बोझ ह, िजसका भार भारत और चीन क आपसी संबंध आज तक ढो
रह ह। इ ह ने न कवल अतीत को आकार िदया, ब क वतमान और भिव य को भािवत करने वाले कारक भी
बने रह। उनक िनिहताथ को नकारते रहने से कछ भी हािसल नह होने वाला ह। वे जो इन संबंध को आगे बढ़ाने
क िलए ितब ह, उ ह वा तिवकता को वीकार करक एक वृह र ल य क िहत म उन वा तिवकता पर
अ छी तरह से काम करना होगा। एक जिटल इितहास का ईमानदार मू यांकन ही इस बोझ से मु िदला सकता
ह।
य िप एक संघष क बाद अमन और चैन क बहाली कोई छोटी उपल ध नह थी, िकतु संबंध सुधरने क
साथ ही सीमा से जुड़ सवाल को भी यादा अहिमयत िमलने लगी। समझने वाली बात यह ह िक इसे संबंध को
पूरी तरह सामा य करने और िव क संदभ म दोन देश क साम य म वृि करने वाला समाधान समझा गया।
िफर भी दोन प ा अवसर का पूरा लाभ उठाने से चूक गए। िवदेश मं ी अटल िबहारी वाजपेयी ने 1979 म
एक ईमानदार पहल क थी, लेिकन िवयतनाम पर चीन क आ मण क चलते उसे अपेि त मह व नह िदया
गया। उसक बाद वयं डग िजआओिपंग (Deng Xiaoping) ारा कई अवसर पर ऐसा करने क इ छा जािहर
क गई, िकतु उसे कभी वा तिवकता क धरातल पर नह उतारा गया। जो भी हो, चीन क आधुिनक करण क
र तार पकड़ने और भारत क घरलू सम या म उलझकर रह जाने पर उस देश ने अपनी नीितय म कछ ठोस
प रवतन िकए। पूव से टर को मुख िववािदत े बताते ए चीन ने वापस 1962 क संघष से पहले झोउ
एनलाई (Zhou Enlai) और उसक बाद डग िजआओिपंग (Deng Xiaoping) वाली थित को अपना िलया।
सीमा वाता क िलए इसक दीघकािलक िनिहताथ थे। य िप सीमा समझौते क िलए राजनीितक मानक और
िनदशक िस ांत पर अंततः 2005 म यापक योजना बन गई, िकतु इस बदले ए फोकस ने एक नई पहली को
ज म दे िदया।
शीतयु का अंत होते ही सीमा िववाद और पािक तान क साथ परमाणु सहयोग क बावजूद पूरा राजनीितक
प रवेश ही बेहतरी क िलए बदल गया। 1998 म भारत क अंततः परमाणु परी ण क घटना क बावजूद सामा य
संबंध बहाली क कोिशश ने र तार पकड़ ली। 2003 तक पेशल र जटिटव मेकिन म ने सीमा िववाद िनपटार
क िलए एक िनणायक इ छा जािहर कर दी थी। सीमा वाता पर थोड़ी गित और यापार को लेकर उ मीद का
तर भी बढ़ गया। चीन को एक रणनीितक साझेदार का दजा दे िदया गया, यहाँ तक िक मु यापार समझौते क
संभावना पर भी गंभीरता से िवचार होने लगा। जलवायु-प रवतन और दोहा राउड क यापार वाता ने वै क
मंच पर समान येय क जमीन तैयार कर दी। 2006 म शु ई ि स क ि या ने एक गैर-प म जुड़ाव क
पु क , सं ेप म कह तो भारतीय कटनीित अपना सव े दशन करती नजर आई।
हालाँिक बड़ी घटना क भाव वाले इस दौर म िफर भी कछ संकत िव मान थे। 1998 म भारत क परमाणु
परी ण क जोरदार िनंदा करने अमे रका और चीन दोन साथ आए, लेिकन ऐसा आगे नह हो पाया, य िक
कशल भारतीय कटनीित ने अमे रका क साथ खुद ही समझौता कर िलया, हालाँिक ंटन क दूसर कायकाल क
दौरान इसने जी-2 जैसी यव था बनाने म चीन क िहत को ो सािहत िकया, िवशेषकर दि ण एिशया क संदभ म।
यह तरीका ओबामा शासन क दौरान पुन: नजर आया और संयोग से इस बार उ ह अमे रक अिधका रय क
समूह क साथ। िवडबना यह ह िक 1960 क दशक म यही चीन इस तरह क श क बड़ ठकदार क समूह का
िवरोध िकया करता था।
सम प म दि णी एिशया म चीन क िहत भी इस दौर म बढ़ गए, जैसे िक याँमार क साथ इसक संबंध
बढ़। साल 2008 म समु ी लुटर पर लगाम लगाने क नाम पर इसने िहद महासागर म भी ग त लगाने का काम
शु कर िदया। पािक तान और ीलंका म बंदरगाह क िनमाण क अपने मायने थे। यह सब करते ए इसक
उ आिधक वृि दर ने उस पड़ोसी क साथ इसक श -संतुलन का अंतराल और बढ़ा िदया, जो अपनी
सुधार संबंधी ितब ता पर आधे-अधूर मन से काम कर रहा था।
वष 2009 चीन क वतमान गित म ांितकारी प रवतन लाने वाला िस आ। वै क िव ीय संकट,
अमे रक शासन म बदलाव और इराक यु क नतीज ने अब इसको वयं क ताकत िदखाने से रोकने वाले
अवरोध को िन य कर िदया था, लेिकन सावधानी बरतने क पुरानी आदत और अनुभव क चलते कछ हद
तक 2012 तक इसने ऐसा करने से वयं को रोक भी रखा। उसी दौरान राजदूत क प म बीिजंग प चकर म इस
नए आ मिव ास क बल अिभ य य का य अनुभव कर चुका था। यह नीितय , प अिभ य य और
राजनीितक भाव-भंिगमा —सभी म िदखाई दे रहा था। सभी रा पर भी इसका असर पड़ता िदखाई दे रहा था,
हालाँिक िभ -िभ प म। आिसयान देश ने दि णी चीन सागर म हलचल और उसक साथ े ीय ढाँचे को
लेकर उसक रवैये म आने वाला बदलाव देखा। जापान क साथ े ीय िववाद पर फोकस और यादा बढ़ गया
था। अमे रका को भी सुर ा और आिथक िवषय क एक पूरी ंखला को लेकर चुनौती से गुजरना पड़ा था। स
क साथ समीकरण चीन क प म झुक गए थे और यूरोजोन संकट ने एक जिटल बाजार म वेश को आसान बना
िदया था। ब प ीय सहयोग क बावजूद इस दौर म भारत को भी दोन ि प ीय चुनौितय का सामना करना पड़ा।
भले ही दोन देश ने तमाम अंतररा ीय प रषद म साझा येय बनाना जारी रखा, पर टपलर वीजा क नाम पर
मुहर लगाने और सीमा पर घुसपैठ, ये दोन ही मु े खबर म छाए रह। 18व पाट कां ेस क साथ भारत क र ते
शेष िव क साथ चीन क र त क भाँित नए युग म वेश कर गए।
1976 म जब धानमं ी इिदरा गांधी ारा आपसी र ते सामा य िकए गए थे तो संबंध म आिथक प
वाभािवक प से यूनतम था। यहाँ तक िक जब एक दशक बाद राजीव गांधी ने चीन का दौरा िकया, तब भी
इसका आिथक प नाम मा का था। चीन क वयं क ऊजा मु यतः िवकिसत देश पर खच हो रही थी, जहाँ से
वह पूँजी और ौ ोिगक आयात कर रहा था और बदले म बाजार तक क उनक प च को और बढ़ा रहा था,
लेिकन जैसे-जैसे चीन क अथ यव था बढ़ी और भारतीय अथ यव था भी उदार ई, यापार क िलए अवसर का
दोहन ती ता से होने लगा। दो वष म पचास गुना वृि क साथ यापार क आँकड़ उनक कहानी वयं कह सकते
ह। िन त प से िव यापार संघ म चीन क एं ी ने बड़ा अंतर ला िदया, जैसा िक वा तव म भारत क
तर क क कारण बढ़ती ई माँग ने िकया था। भारतीय बाजार क गहन प से ित पध कित, जो क मत को
लेकर ब त सजग रहती ह, उसक चलते चीन से आयात को एक बढ़त िमल गई। यह बुिनयादी संरचना-िनमाण क
मामले म काम आया, खासकर िव ु उ पादन और दूरसंचार क े म, जहाँ इसक साथ उ ह आकषक िव ीय
मदद भी मुहया कराई गई।
भारतीय यव था ने उन अपेि त मानदंड और िविनयमन को िवकिसत नह िकया, जोिक आमतौर पर िकसी
अथ यव था क खुलने क साथ ही होते ह। इससे चीनी उ पाद को इस हद तक बाजार म प च िमल गई िक इसने
भारतीय उ ोग क अनेक े को खोखला कर िदया। दुभा यवश वह दूसरी तरफ बदले म भारतीय प म ऐसा
कछ भी होता िदखाई नह िदया, यहाँ तक िक फामा और आई.टी. से टर म भी नह , िजसम भारत क एक वै क
साख ह। नतीजतन भारत का चीन से आयात उसक िनयात क चार गुने से भी यादा हो चला ह।
भारत म चीन क साथ आरिभक िदन म और यादा यापार क िलए िकए गए ो साहन ने अब इसक एकतरफा
होने को लेकर गहरा आ ोश पैदा कर िदया ह। यह अब नीितयाँ तय करने वाल तक सीिमत नह ह, ब क उ ोग
जग और आम जनता क राय पर भी असर डाल रहा ह। यह मु ा बड़ी चचा पर भी नकारा मक असर डालने
वाला रहा। इसिलए यह एक ऐसी चुनौती ह, िजसक िनपटने का इतजार नह िकया जा सकता या तो वयं क िलए
अथवा इसक बढ़ ए मह व क चलते। इसका कोई बना-बनाया हल िदखाई नह दे रहा, िकतु इससे असंतु क
यथा थित को उिचत नह ठहराया जा सकता। भारत म नैसिगक मता का दशन और िडिजटलीकरण करने
क जुड़वा बा यताएँ इन मु को आने वाले समय म और यादा धारदार बना सकती ह।
देखा जाए तो भारत और चीन क बीच एक गहर आिथक सहयोग क संभावना ब त जिटल ह। एक तरफ िव
क दो वृह र अथ यव थाएँ एक-दूसर क साथ और यादा यापार कर सकती ह, खासकर आपूित- ंखला
को यान म रखकर तो वह दूसरी तरफ इसे इनक सापेि क मूलभूत सामािजक-आिथक बनावट क भाव से
बचाकर रखना किठन ह। ऐसा नह ह िक ित पध ोत को यापार बढ़ाने अथवा इ ा र या िफर दूसरी
मता को बनाने क िलए काम म नह लाया जा सकता ह। आिखरकार चीन ने वयं भी जापान और प म क
सहयोग से ही यह सब िकया था, लेिकन भारतीय िनयं ण कम भावी ह और वा तव म ऐसे स ते आयात वयं
इसक घरलू मता क वृि को ीण कर देते ह। इतना ही नह , चीन क तरह भारत ौ ोिगक को आ मसा
करक अपनी वयं क तकनीक िवकिसत करने का कौशल भी नह िदखा पाया ह। इसिलए िनकट भिव य म भी
यह एक अवांछनीय मु ा बना रहगा। शेष िव क तरह भारत को भी ऐसे पूँजीवादी रा क ा प क साथ
सामंज य बैठाने म किठनाई हो रही ह, िजसका कोई पूव उदाहरण उपल ध नह ह।
1963 क बाद से चीन ने भारतीय उपमहा ीप को लेकर अपना कोण बेहतर कर िलया ह। जैसे-जैसे इसक
आिथक श और राजनीितक भाव म वृि ई, भारत क पड़ोसी े म इसक मौजूदगी भी अपने सभी
िनिहताथ क साथ बढ़ती रही। एक ऐसे रा क िलए, जो वयं क प रिध म ए िवकास क ित इतना संवेदनशील
ह, उसने समान प र थित वाले दूसर रा क वाभािवक िचंता पर यान देने म ब त कम िच िदखाई।
पािक तान क साथ संबंध म तथाकिथत चीन-पािक तान आिथक गिलयार (CPEC) क शु आत क साथ ही
अचानक ही ब त बड़ा प रवतन हो गया। इस तथाकिथत कॉ रडोर, जोिक घोिषत प से भारतीय सं भुता का
उ ंघन करता ह, इसे और यादा अ वीकाय बना देता ह, हालाँिक चीन और पािक तान क बीच सहयोग कोई
हाल ही का िवषय नह ह, िफर भी इसे पािक तान क कारगुजा रय क बचाव म योग नह िकया जा सकता। शेष
अंतररा ीय समुदाय क नज रए से अलग, व-घोिषत आतंकवािदय पर ितबंध लगाने क ि या को इसक ारा
अव करने का काम जारी ह। यह एक ऐसा संदेश ह, िजसे भारत म वाभािवक प से पसंद नह िकया जाता
ह। कभी तो यह तीत होता ह िक पािक तान क इस िवकत पहचान क साथ जुड़ाव क क मत एक धूिमल
ित ा ही हो सकती ह, जब तक ऐसा नह होता, संभवतः इन करतूत क काली छाया र त पर बनी रहगी।
एक और अिधक श शाली चीन क श ुता वाभािवक प से इसक िनकट क अिधकतर पड़ोिसय ारा
महसूस क जाएगी। यादातर मामल म यह भारत क प रिध भी ह। भारत और चीन क बीच संतुलन कवल
ि प ीय तर पर हािसल नह िकया जा सकता। यह कई कार से एक बड़ भू-प र य पर भी साधा जाएगा।
भारत क िलए इसका अथ कने टिवटी और िवकास संबंधी प रयोजना जैसे े म अपनी भूिमका को बढ़ाने को
लेकर ह। इसक तरकश म भौगोिलक प र य, सं कित और सामािजक संपक क श शाली तीर ह। इसक
रणनीित क वा तिवक परी ा तो यह होगी िक वह इन अ का े तम तरीक से उपयोग कसे करता ह।
िन य ही िकसी भी िति या का अनुमान इस अनुभव क बाद ही लगाया जा सकता ह िक बड़ी
मह वाकां ा और मता क यवहार क पैटन का आमतौर पर कसा भाव होता ह। इसिलए भारत को भी
लीक से हटकर सोचते ए अपने िनवेश क सुर ा क िलए और यादा रचना मक उपाय क खोज करनी होगी।
आज अगर भारत म पहले से अलग हटकर कछ करने क चाह पैदा ई ह तो वह अिधकांशतः इसी धारणा क
उपज ह। िदलच प यह ह िक इस मायने म भारत क वाधीनता क समझ भी दोहन िकए जाने क दायर म आ
जाती ह। ऐसे म सावधान करने वाले संदेश, जो इितहास म जानबूझकर डाले गए ह, असुरि त महसूस करने वाले
तमाम घटक को असहज कर सकते ह। इसिलए यह आव यक ह िक भारत अपने िहत क बार म एक प
नज रया रखे और अपने िवक प को उसी क अनु प तैयार कर। देखा जाए तो चीन क समकालीन राजनीित
ज रत से कह यादा सबक देती ह। कई मौक पर इसने अपनी गित को आगे बढ़ाने क िलए अलग-अलग
िवकिसत ताकत क साथ समझदारी भरा तालमेल िकया। िकतु भारत जैसे देश क िलए, िजसम अिधक िनरतरता
और सतकता राजनीित म चा रि क गुण क प म िव मान ह, इसका अनुकरण करना आसान नह ह। िफर भी
यह सम या िस ांत क अपे ा यवहार प म हल हो सकती ह।
यहाँ तक िक 1971 म जब भारत सोिवयत संघ क करीब आया, इसने ऐसी एक भू-राजनीितक गितिविध चीन-
अमे रका पुनमल क िति या क प म काय िकया। भारत-सोिवयत संिध करक इसने समझौते क बजाय अपने
कारवाई करने क अिधकार को सुरि त कर िलया। आज एक नई भू-राजनीितक चुनौती, ब ुवीयता क उदय क
प म सामने ह। यह िन त प से 1971 जैसी भीषण िति या क माँग नह करता ह, िकतु िन त प से
भारत क िवक प और समझ क िव तार को ो सािहत करता ह। इसका ल य एक बेहतर संतुलन बनाने क साथ
अिभस रत िहत क साथ िमलकर काम करना ह, जैसा िक चीन ने वयं इसका दशन िकया ह, दूसर क साथ
िमलकर काम करना तर क क उछाल क िलए बेहद ज री ह। कवल वे ही, िजनम आ मिव ास क कमी ह,
इस बुि म ा को लेकर संशय म रहगे। यह ज री ह िक भारत वयं को या अपने िवक प को सीिमत न कर, न
तो िकसी झाँसे म, न ही िकसी कार क दबाव म।
एक उभरता आ चीन एिशया को या संभवतः पूर िव को अपने ‘आिकट रल िवजन’ क अनु प ढालना
चाहता ह। इसक यादातर अहम योजनाएँ एकप ीय उ म ह। द बे ट एंड रोड इनीिशएिटव (BRI) इसक रा ीय
उ े य को पूरा करने वाली नजर आती ह और इसक साथ सजग प से सहयोग कवल उनक िलए ही संभव ह,
जो उन ल य क साथ क वजस क प रक पना कर सकते ह । मु ा कवल वयं म कने टिवटी का नह ह;
इसम औपिनवेिशक इितहास से िवकत हो चुक महा ीप म साफतौर पर नजर आने वाली इसक कमी का ह। भारत
ने देश क भीतर, अपने दि ण एिशयाई और समु ी प रिध म, दि ण-पूव एिशया को और प म एिशया और
उसक आगे भी ऐसे उप म क एक पूरी ंखला को सहयोग िदया ह। लेिकन ये सब परामश-कि त यास ह, जो
िक यापक प से वीकाय वािण यक िस ांत और ल य पर आधा रत ह। भारत को एिशयन इ ा र
इवे टमट बक और ि स (BRICS), यू डवलपमट बक क कने टिवटी योगदान से कोई िद कत नह ह। चीन
क इन दोन ही सं थान म अहम भूिमका ह।
जब मानदंड और पारदिशता को नजरअंदाज िकया जाता ह और वह भी एक सीिमत एजड क िलए, तो िचंता
होना वाभािवक ह। मई 2017 म भारत ने कने टिवटी पर लोबल िडबेट म अि म पहल क । इसने सावजिनक
प से उ ोिषत िकया िक कने टिवटी क यास सावभौिमक प से वीकाय अंतररा ीय मानदंड , सुशासन,
कानून का शासन, खुलापन, पारदिशता और समानता पर आधा रत होने चािहए। उ ह ऐसी प रयोजना से बचने
क िलए, जो समुदाय पर असुरि त ऋण क बोझ डालती ह , िव ीय उ रदािय व क िस ांत का भी पालन करना
होगा। उ ह संतुिलत पा र थितक तथा पयावरण सुर ा एवं संर ण मानदंड , प रयोजना लागत का पारदश
मू यांकन और थानीय समुदाय ारा बनाई गई संपदा क संचालन और रखरखाव को मदद करने वाला कौशल
एवं ौ ोिगक का ह तानांतरण भी बरकरार रखना चािहए। इतना ही नह , भारत ने इस पर भी जोर िदया िक
कने टिवटी प रयोजना को इस तरह से आगे बढ़ाया जाए, जो रा क सं भुता और े ीय अखंडता का
स मान कर। प ह िक तथाकिथत चीन-पािक तान आिधक गिलयार को लेकर उपजी िचंता और इसक
प रिध क अनुभव क चलते भारत को यह टड लेना पड़ा। तब से कने टिवटी को लेकर वै क संवाद ब त
यापक हो गया ह और जो अिधकांशतः भारत क सोच को लेकर ही आगे बढ़ा ह।
वा तव म, ये भारत और चीन क बीच वा तिवकता क िनणायक समु य ह, जो अहम होने जा रह ह—जब
चीन वा तव म वै क श बन रहा ह और ठीक उसी समय भारत वै क मामल म एक बड़ी भूिमका िनभाने
क ओर बढ़ रहा ह। अपनी आकां ा और िहत म तालमेल क िलए दोन देश क नेतृ वकता म प रप ता
क साथ-साथ खर राजनियक कौशल क आव यकता होगी। ऐितहािसक मु क बने-बनाए समु य, िवशेष
प से सीमा पर मतभेद, संभवतः संबंध क कित पर असर डालते रहगे। समय बीतने क साथ ही उनका चीन
को लेकर जनमानस क नज रए पर असर और बढ़ ही रहा ह, लेिकन इस गणना म कछ नए कारक, िजनम कछ
यादा, कछ कम उदार, भी वेश कर सकते ह। ब त-कछ इस पर िनभर करगा िक िकतनी सजगता और
भावशीलता क साथ दोन देश संबंध को और यादा सकारा मक डोमेन म ले जाते ह। जो बेहतर तरीक से यह
देख पा रह ह िक दाँव पर या लगा आ ह, वे िन त प से ऐसे यास का समथन करगे।
एक-दूसर क वृह र उपल धय को लेकर सहज रहना दोन देश क िलए आसान नह होगा, जैसे चीन दि ण
एिशया म अपनी अहिमयत को बढ़ाना चाहता ह, मशः भारत भी वैसा ही दि ण-पूव एिशया और पूव एिशया म
करगा। अपनी कित क अनु प समु ी डोमेन को िवशेष प से ऐसी गितिविधय क िलए इ तेमाल िकया जाएगा।
भारत चीन को कवल उ र िदशा म देखने का अ य त ह, दि ण म उसक मौजूदगी क अलग ही मायने ह गे,
लेिकन यह एक ऐसा इलाका भी ह, जहाँ भारत कछ भौगोिलक, ऐितहािसक और सां कितक बढ़त रखता ह।
जैसे-जैसे दोन गित करते ह, इनका संबंध, िभ वृि दर और असमान शु आत क बावजूद, ब त-कछ
एक-दूसर क रवैये को लेकर बनाई गई धारणा पर िनभर करगा। इसका सबसे बुिनयादी पहलू ऐसी सम भावना
होगी िक या इनम से येक एक-दूसर क उ थान क साथ पया प से सहज ह। भारत क नज रए से, संयु
रा सुर ा प रष म इसक थायी सद यता क िलए चीन िकतना उदार रहगा, यह भी एक कारक होगा।
िवषयाधा रत वाता क अवसर इसका जवाब मुहया करा सकते ह। परमाणु आपूितकता समूह (NSG) क
सद यता एक दूसरा सूचक ह, एक दूसरा सूचक ह, जो एक ौ ोिगक य िखलाड़ी क प म भारत क आगमन
तथा एक अयो य मवक को पीछ छोड़ अपने, दोन को ही ितिबंिबत करता ह। जैसे-जैसे नई स ाएँ,
ि यािविधयाँ और प र थितयाँ उभरगी, ऐसे अनेक अवसर सामने आएँगे।
जब दोन देश अपने संकिचत रा ीय िहत क दायर से बाहर जाकर सोचते ह, तभी वे अिधक संतुिलत िव
बनाने क अपने यास म वा तव म संकि त हो पाते ह। तब वह चाह एक श शाली और थर स क बात हो
और अिधक िवक प वाला अ का हो अथवा उनक िविवधता म क रपंिथय को अपनी जगह बनाने से रोकना
हो, उनक िहत का अित यापन हो जाता ह। अंतररा ीय सौदेबाजी म कई बार वे दोन वयं को बहस क एक ही
पाले म पाते ह। जून 2017 म जब दोन देश क नेता अ ताना म िमले थे, तब इस बात पर सहमित बनी थी िक
वै क अिन तता क दौर म भारत-चीन संबंध थािय व का कारक ह और उनक संबंध म भारत और चीन को
चािहए िक मतभेद को कभी भी िववाद नह बनने द। इसने यह जािहर िकया िक तमाम िभ ता क बावजूद
उनक बीच एक रणनीितक प रप ता काम करती ह। इस एहसास क प रणित 2018 क वुहान और 2019 क
चे ई सिमट म ई, जब दोन आयोजन चमक-दमक से दूर िवशु यथाथ क धरातल पर ए। दोन देश ने उनक
और िव क भिव य पर ब त-कछ इितहास क समझ को म ेनजर रखते ए चचा क । इसिलए िव को
आशा करनी चािहए िक यह नज रया पारप रक दायर से बाहर जाकर भी रा त क तलाश कर सकगा।
चीन का श शाली उ थान उन ब त सार कारक म से एक ह, जो और अिधक वै क अिन तता क ओर
ले गया। जैसे-जैसे इस दौर क राजनीित िवकिसत ई, दोन म से िकसी देश ने दूसर को उनक िव मोहरा बनने
देने म िदलच पी नह िदखाई। आगे भी ऐसा सुिन त करना उनक वयं क नीितय पर िनभर करगा। एक िचंता
यह भी ह िक शेष िव से अलग, भारत क गित, उससे पाँच गुना तेजी से बढ़ रह चीन क सामने आंिशक प
से लु हो रही ह। यह सुिन त करना भारत पर िनभर करता ह िक उसक बढ़ ए साम य को अपेि त मह व
िमले। वुहान और चे ई म जो बात और से अलग थी, वह कवल तालमेल क ती ता ही नह , ब क िवकिसत
होती वै क पृ भूिम क प र े य म उनका समायोजन भी था, िजसम इन दोन क इतनी अहम भूिमका थी। भारत
और चीन क नेतृ व क बीच भू-राजनीितक प र य पर संवाद कई दशक पहले ही थम गया था। इसक िफर से
शु आत एक अलग भिव य का भी संकत हो सकता ह।
जब भारत चीन क गित का आकलन करक इसक अपनी उपल धय से तुलना करता ह तो इसे इस तुलना म
संभावना को लेकर िनरपे रहना चािहए। शु आत करने क िलए तो हमार देश म क र राजनीितक
बयानबािजयाँ समय-समय पर चाह जो सुझाव देती ह , दोन देश क यापक रा ीय साम य म ब त अंतर ह।
हम अब भी गहरी मताएँ िवकिसत करनी ह, मानव िवकास सूचकांक ा करना ह अथवा गित क िलए वे
प र थितयाँ बनानी ह, जो चीन ने चार दशक पहले बना ली थ । इसक िवपरीत, हमने औ ोगीकरण को किठन
बना िदया और अभी हाल तक अपेि त तर क साम य और कौशल िवकिसत करने पर पया यान नह देते
थे। वै क मामल क िलए और अिधक ासंिगक भारत, वै क अथ यव था म वह खुलापन हािसल नह कर
पाएगा, जो चीन को ा आ था, मसलन 2006 म जब दोन क ित य आय समान थी, न ही यह वै क
पूँजीवाद क साथ उस तरह क सघनता हािसल कर पाएगा, जो अतीत म चीन ने क थी।
इसक साथ ही राजनीितक कारक का भी एक समु य ह, िजसका सं ान लेने क आव यकता ह। अपनी पूरी
गित क दौरान चीन को न तो ताकतवर और न ही िवकासशील रा क ओर से िकसी दबाव का सामना करना
पड़ा। सोिवयत संघ क चुनौती 1980 म मंद पड़ गई और प म म येन आन मन (Tiananmen) को लेकर
उपजी िचंता ने अित र मुनाफ क िलए अपने कदम पीछ ख च िलये। इसिलए कम-से-कम राजनीितक प
से तो इसने अभी हाल तक अ छी दौड़ लगा ली ह। चीन क गित क पीछ चल रह भारत को इस तरह क सुिवधा
नह ह। इसक सामने अपने पूववत क उ क उदाहरण का दबाव ह, जो चीन पर नह था और वह पूववत एक
ऐसी पड़ोसी श ह, िजसक साथ िहत क अित यापन क अनेक े उप थत ह। इसी क साथ यह भी ासंिगक
हो गया ह िक दुिनया अतीत क तुलना म अब श -संतुलन बदलने को लेकर यादा सतक हो गई ह, इसिलए
भारत को इ ह क बीच से अपना रा ता बनाना ह। वयं क िलए कम अपे ा रखने क साथ हमार िलए आगे क
चढ़ाई भी किठन ह।
परशानी भर ि प ीय इितहास और अब एक जिटल वै क संदभ क साथ भारत क चुनौती अब एक यादा
श शाली पड़ोसी क साथ तालमेल बनाते ए अपनी वयं क गित सुिन त करने क ह। ऐसा करने म हम
अपनी ओर से यह समझ बनाए रखनी होगी िक संतुलन तलाशने क यह मुिहम एक अंतहीन ि या ह। हो सकता
ह िक कछ मु े सहज प से ज द समाधान तक प च जाएँ, िकतु बाक क साथ ऐसा न हो। मौजूदा हालात
बदल सकते ह और रणनीितक गणना पर कवल चीन का एकािधकार नह रहना चािहए और न ही पहल करने
क आकां ा पर, जब भी परखे जाने क बात हो तो आव यक ह िक खुद क फसल पर कायम रहा जाए। यह
अनुभव मनोवै ािनक प से कमजोर न समझे जाने क अहिमयत भी िसखाता ह, साथ ही अपनी े ीय सं भुता
का अित मण भी अवरोिधत करता ह।
भारत-चीन संबंध हमेशा बड़ संदभ को गणना म शािमल करगे, जब भी वे संतुलन थािपत करने क ओर बढ़ते
ह। वै क घटनाएँ न कवल चीन क सम रवैये को, ब क खासतौर पर भारत क ित इसक बताव को भी तय
करती ह। वतमान म यह संदभ वै क संघष और यव थत मतभेद से भरा आ ह। इसिलए भारत क िलए
आव यक ह िक वह चीन क साथ संबंध को साधते रहने क साथ-साथ इस बड़ फलक पर िनगाह िनरतर बनाए
रखे। बातचीत क शत तय करते समय हमने अकसर हम हािन प चाने वाला, वा तिवकता और िलिखत-िवषय-
व तु क बीच क संघष को देखा ह। वाता क ऐितहािसक आँकड़ म से कछ इसको मािणत करते ह िक कसे
चीन ने वयं को यादा गुंजाइश मुहया कराने क िलए अ प ता का सहारा िलया। उसी समय नीितय म अहम
प रवतन भी अमल म ला िदए गए, तािक अतीत को खा रज िकया जा सक। अपनी िचंता पर दूसर प से
ि या क आड़ लेकर सहमित पाना इस खेल का एक पहलू रहा ह, हालाँिक बदले म पार प रक ितब ता
पाने म भारत अकसर पीछ रह गया। आज संबंध क बुिनयादी रखा एकदम प ह—अगर िपछले तीन दशक
क गित को व त नह करना ह तो सीमा पर अमन और शांित हर हाल म बनी रहनी चािहए। सरहद और संबंध
क भिव य को अलग करक नह देखा जा सकता।
अगर नई जमीन तैयार करनी ह तो बहीखाते क सकारा मक पहलू पर ब त-कछ करना होगा, लेिकन ज री यह
भी होगा िक अ थरता बढ़ाने वाली एकप ीय कारवाइय को भी बािधत िकया जाए, हालाँिक सरहद का िवषय
ब त पहले ही क ीय मु े क पहचान हािसल कर चुका ह, वै क राजनीित क सम गणना म उनक
गितिविधयाँ तथा िहत क ासंिगकता और यादा रहगी। हम यहाँ अंतररा ीय राजनीित म रा क सामा य
पार प रक संपक और संतुलन थािपत करने वाले यादा कि त यास क बीच फक करने क आव यकता ह,
जब श क तक को वा तिवकता क च मे से देखा जाता ह तो चीन अपने उ े य को आगे बढ़ाएगा और
अपनी बढ़त का फायदा उठाएगा। बदले म भारत को भी िनरपे िकतु भावी ढग से िति या देनी होगी,
िवशेषकर चुनौतीपूण प र थितय से सामना होने पर। हम हमेशा यह मानते आए ह िक एक यादा सतत संबंध
वाभािवक प से यादा थायी ह गे। हािलया झान इस धारणा को मजबूत करते ह िक िकसी भी प को घाट म
नह िदखना चािहए, ब क एक-दूसर क िदमाग म यादा अहिमयत क गुंजाइश बनाने क िलए संघष करना
चािहए।
भारत इकलौता देश नह ह, जो मह वपूण ढग से अिधक श शाली चीन क साथ हालात क मुतािबक समझौते
पर यान कि त कर रहा ह। दरअसल पूरा िव ऐसा कर रहा ह। लगभग हर देश तालमेल क शत को अपने
तरीक से पुन यव थत कर रहा ह। अगर कोई साझा कोण ह तो वह इसक साथ-साथ उनक आंत रक प से
मताएँ मजबूत करने, बा भू- य का मू यांकन और चीन क साथ समझदारी भर तालमेल का ह। इस पूरी
कवायद म भारत का अपने आकार, थित, मता , इितहास और सं कित क चलते िवशेष दजा रहगा।
ब ुवीयता और पार प रकता क दोन देश ारा वीकायता, जो वृहत वै क संतुलन क बुिनयाद पर िटक ह,
और यादा थर भारत-चीन संबंध क कजी ह।
नवंबर 1949 म सरदार पटल और पंिडत नेह क बीच चीन क ित हमार रवैये पर िवचार का एक िस
आदान- दान आ था। तब से ब त-कछ बदल चुका ह, जो अिधकांशतः भारत को हािन प चाने वाला रहा।
अहम मु — े वा तिवकता बनाम आशावाद और ि प वाद बनाम वै कवाद—आज भी उतने ही ासंिगक बने
ए ह, िजतने तब थे। यह आसान नह ह िक समय बीतने क साथ एक िववेकपूण संतुलन बन ही जाए, लेिकन
अतीत हम यह भी बताता ह िक अगर हम िसयासत और बाधा से ऊपर उठ जाएँ तो रणनीित और दूरदिशता क
िलए गुंजाइश हमेशा बनी रहती ह। उससे भी यादा िव म आज िकसी भी संबंध म दूरगामी नज रया सदैव बनाए
रखना होगा।
शतरज क िबसात पर ‘इिडयन िडफस’ उनक िलए एक बेहतरीन शु आत होती ह, िज ह काले मोहर क साथ
खेलना होता ह। वे अपने संकिचत रा ीय िहत क दायर से बाहर जाकर सोचते ह। वा तव म, काले मोहर क
साथ खेलना मानक भारतीय रणनीित का िह सा रहा ह। ‘अरोन िन जोिव ज’ (Aron Nimzowitsch) ने एक सदी
पहले इस खेल को जो िदया था, उसम जिटल होते जीवन क िलए भी सीखने को ब त-कछ ह। उ ह ने अपने इस
िस ‘िन जो इिडयन िडफस’ क कशल यूह-रचना म काले मोहर को बढ़त दे दी; और सबक इसी म िनिहत
ह।

7.
िनयित म देरी
भारत, जापान और एिशयाई संतुलन
“जीत क पल से ऐन पहले अपने ह मेट क डो रयाँ कस ल।”
—टोकगावा इयासू
एिशया का भिव य काफ हद तक अमे रक कोण, चीन क ताकत, स का मह व, आिसयान का समूहवाद,
िमिडल ई ट क अ थरता और भारत क उदय से तय हो रहा ह। यिद िकसी को पया मह व नह िमला ह तो वह
ह—जापान क उप थित। जापान क रणनीितक प से पीछ हटने और भारत क िवभाजन ने एिशया म श -
संतुलन को िवषम कर िदया। प मी ताकत भले ही इन दोन प रवतन क िलए िज मेदार ह , लेिकन वह भी अब,
वयं क िहत म पुनगणना करने लगी ह।
दो ब त सू म कारक ह, जो एिशया म एक िब कल िभ प र य बना सकते ह—पहला ह, रणनीितक
आकलन म िवशाल ौ ोिगक य साम य वाली एक बड़ी अथ यव था को लाते ए भिव य म जापान का ख।
दूसरा ह, को रयाई ाय ीप म अ थरता, जो दीघकािलक धारणा को पलट सकता ह। दोन ही पहले उभरते ए
चीन क ताकत क दबाव म थे, लेिकन अब वे अमे रका क नए ख का भी जवाब दे सकते ह। भारत क िलए
पहले का सीधा भाव पड़गा, िकतु दूसरा भी कम ासंिगक नह होगा। इन दोन क बीच म हम पूव एिशया क
भाव को भी देख सकते ह, जो चीन क भाव क दायर से बाहर ह।
मु ा कवल श क आकलन का ही नह , मानिसकता का भी ह, जब मु ा सापेि क सुर ा से जुड़ी
प र थितय पर यान देने का रहा तो न तो भारत, न ही जापान ने ऐितहािसक प से कभी एक-दूसर पर यान
िदया। िफर भी समसामियक बड़ मु पर आज दोन ही एक जैसा सोचते ह, खासकर िपछले कछ वष से। यह
श य क वाह पर भी उतना ही लागू होता ह, िजतना श य क अभाव पर। इसिलए, जो रणनीित सजग प
से पैदा नह कर पाई, एक अिन त िव क अिनयिमतता ने उसे भलीभाँित कर िदया। वै क सामा यता क
संर ण और वै क क याण म योगदान को लेकर एक साझा िहत दो िनतांत िभ शासन यव था क बीच
सहयोग का मा यम बन गया। दोन रा म यह संवेदना िक अपने महा ीप क िनयित तय करने म एक-दूसर क
मदद करने क िसवा और कोई िवक प नह ह, अब नए संबंध क ेरक श बन गई ह।
इितहास क भूली-िबसरी िट पिणय म 1904-05 म जापानी और ि िटश राजनियक क बीच स क धमक
क िव सै य सहयोग क बातचीत का उ ेख ह। कछ अं ेज ने यह उ मीद क थी िक इससे जापानी सै य
दल को भारत भेजने का रा ता खुलेगा, लेिकन ि िटश नौसेना क सहायता क बदले इस तरह क सै य वचनब ता
क संभावना कभी साकार नह ई, य िक जापािनय ने सुशीमा (Sushima) क समु ी यु म िसय को
िनणायक प से परािजत कर िदया, लेिकन जो नह आ, वह अंतररा ीय संबंध क कायकारी िस ांत क ांत
क साथ या या तो करता ही ह, जैसा िक दो सा ा यवादी श याँ, यू.क. और जापान, जो िव तार कर रह सी
सा ा य क िनशाने पर थ , दोन ने िहत क क वजस को लेकर पर पर समझ िवकिसत कर ली, जो 1860 क
दशक से लेकर 1920 क दशक तक बनी रही। इस दौर ने आपसी सहयोग क कछ और अवसर देख,े िजसम
1915 म िसंगापुर म भारतीय िव ोह को कचलने क िलए जापानी नौसैिनक को भेजा गया, हालाँिक उस समय
भारत म औपचा रक प से एक जापानी सै य ितिनिध भी तैनात था, िजनम से कछ अताशे कालांतर म यु मोच
पर अ णी जनरल भी बने। ारभ म जापान ि िटश सा ा य क भावना को िकसी भी कार से आहत नह
करना चाहता था और उसक िव िकसी भी कार क संबंध बनाने वाले ताव को िनर त कर देता था। इस
साझी बुिनयाद क िखसकने क बाद ही यह एिशयाई ांितका रय क गितिविधय का क बन पाया। इन भावना
क अंश 1945 क बाद भी िव मान थे, जब उनक सेना ने दि ण-पूव एिशया म सा ा य क पुन थापना क
यास म सहयोग िकया। रणनीितक तक क समी ा क अनुसार इस िनकटता को जारी रखना चािहए था,
लेिकन ऐसा नह आ और इसी म एिशयाई सुर ा क अनेक िविश ता म से एक िनिहत ह।
आधुिनक भारत-जापान संबंध क गैर-रणनीितक कित क वजह आ ममंथन क लायक ह। य िक यादा क
उ मीद तो दूर, एिशया म िपछले सात दशक क तमाम उतार-चढ़ाव म, इन दोन देश क बीच नीितय क आदान-
दान का इितहास अ यंत सीिमत रहा ह। शासन यव था म यह दूरी, िजसक नैसिगक िहत म सम वय िवपरीत
तरीक से तय होने चािहए, उस वाभािवक प से समझ म नह आ पाएगी, लेिकन हम यह याद रखना चािहए िक
शीतयु क युग म शानदार रणनीित भू-राजनीित को पछाड़ सकती थी। जापान अमे रक सुर ा गठबंधन म ख चा
जा चुका था, जबिक भारत ने गुटिनरपे ता का रा ता चुना, िवशेषकर भारत क सोिवयत खेमे म जाने क बाद, दोन
देश क शीतयु क िवपरीत प म होने क भावना ढ़ ई। प तः 1950 क दशक क उ राध म एक संि
दौर रहा, जब कछ जुड़ाव नजर आया था, लेिकन 1962 क चीन सीमा यु म भारत क हार से जापान म इसक
ित ा अ यंत कम हो गई। वह देश 1971 क बाद चीन को साधने म लगे प मी गठजोड़ का िह सा था और
इस त य ने भारत तथा जापान को और भी यादा दूर कर िदया। दोन ने ही अलग-अलग मायन म चीन क िलए
एक आकषण पाल रखा था। यह भी चीन पर यान कि त करने क िलए दोन क एक-दूसर से पृथ रहने क
वजह रही।
सं कित, जापान क िलए हमेशा से चीन क ित िखंचाव क वजह रही। यु क प ा िखंचाव क वजह
ितशोध क भावना भी रही। यादितय क िलए ाय का भी क िबंदु था और उसक तुरत बाद यह एक ऐसा
चुंबक बन गया, िजसने बाहर संभावनाएँ तलाश रह जापानी कारोबा रय को आकिषत कर िलया। भारत क िलए
तब तक यह औपिनवेशीकरण क बाद आपसी भाईचार का मसला था, जब तक े ीय मतभेद ने इसे जारी रखना
किठन नह कर िदया। साझी भू-सीमा क िववशताएँ वयं म सघन संपक का बल कारक थ । एक ारिभक युग
म जहाँ प मी देश भारत क अखंडता को कमजोर करने म लगे थे, चीन को यादा सराहनीय से देखा
जाता था। प म ने चीन को जो अित र मह व दे रखा था, उसने भी िन त ही भारत और जापान क सोच को
भािवत िकया था।
भले ही वष तक चीन ने भारत और जापान दोन को िभ उपाय से अपनी ओर आकिषत कर रखा हो, लेिकन
वे दोन देश, दूसर िनकटवत पड़ोिसय से, िजनसे संबंध खासतौर पर िबगड़ ए थे और भी यादा य त रखे जा
रह थे। एक क पास पािक तान था, दूसर क पास उ र को रया। फल व प जापान और भारत ने, भले दूर से ही
सही, अपनी िचंता से िघर रहने क बावजूद स ावपूण ढग से सह-अ त व को कायम रखा। दोन म से िकसी
ने दूसर को समाधान ढढ़ने क उनक यास म साथ देते नह देखा, जब तक िक िन त प से श -संतुलन क
िखसकने से उपजे अ थर िव क चुनौितयाँ इतनी िवशाल नह हो ग िक उ ह सम या को ही पुनप रभािषत
करना पड़ा।
एक-चौथाई सदी पहले जब भारत ने ‘पूव’ क ओर अिधक यान देना शु िकया तो यह इसक िवदेश नीित म
गहन सुधार क शु आत थी। प मी दुरा ह, जो इसक औपिनवेिशक अतीत का प रणाम था, वह ता कािलक
वै क प र य क चलते मजबूत हो चुका था। दो महाश याँ—अमे रका और सोिवयत संघ दोन ही उस
प मी िव का चेहरा थे, भले ही दोन ित पध श य का ितिनिध व करते थे। यूरोप ने भी भारतीय सोच म
एक अहम जगह बना ली थी और प म का यह सामूिहक भाव राजनीित, अथ यव था और सुर ा सभी म
प रलि त होता था। चाह जो हो, 1991 क संकट ने भारत क िवकास क मॉडल को बदल िदया और इसे
अपे ाकत हाल म उपजी एिशयाई आिथक िवकास यव था क ओर अिधक यान देने वाला बना िदया।
आिसयान ने इस नए िसं ोम म वेश क राह को आसान और इसक सं थान ने इस िभ संसार म भारत क
समाजीकरण को सुगम बना िदया।
तब से भारत का दि ण-पूव एिशया और पूव एिशया से संपक िनरतर बढ़ा ह। सरकार चाह जो रही ह , जापान,
दि ण को रया और चीन क साथ इसका आिथक सहयोग भी यापक आ ह। यह एक ऐसा दौर भी था, जब
आमतौर पर एिशया और िवशेष प से चीन को यादा वै क मह व िमल रहा था। बाद म अमे रक श का
पुन थापन और जापान का िफर से आगमन भी गणना म शािमल िकए जाने वाले कारक बन गए थे। भारत म जो
आिथक सुधार आरभ आ था, वह इन राजनीितक बदलाव म भी उ रो र एक कारक बनता रहा और कालांतर म
एक रणनीित क तरह सामने आया। चाह कोई गितिविध हो, लेन-देन हो, चुनौितयाँ अथवा यान रखने क बात हो,
भारत क िलए गु वाकषण का क पूव क ओर ब त अिधक िखसक गया ह। यह इडो-पैिसिफक क एक
यावहा रक िस ांत क आव यकता को भी समझाता ह। भारत सदैव भारत रहा ह, िकतु एिशया होने का इसका
आधुिनक बोध ई ट क ओर यान देकर और उस िदशा म काम करक और यादा बल प से िवकिसत हो गया
ह।
‘लुिकग ई ट’ क शैली िन य ही एक िनयत िदशा क ओर संकत करती ह, िकतु अब यह एक रणनीितक
िवशेषता बन चुक ह। शु आत म यह कई दशक क अपे ाकत अिनयंि त गित क प ा शेष िव क िलए
और खुलापन लाने क भारत क अिभ य थी। चूँिक 1990 क दशक म हमारी आरिभक साझेदा रयाँ आिसयान
क सद य देश क साथ थ , इसने संबंध म गित होने क साथ ही एक िवशेष अथ अिजत कर िलया। समय बीतने
क साथ इस े से और यादा कने टिवटी बनाने क िलए यास िकए—वा तिवक, वचुअल और इसक उदार
सं करण क साथ। आिसयान क साथ भारत क जुड़ाव क छाया आिसयान कि त मंच पर भारत क भागीदारी म
भी िदखाई पड़ती ह। इस कार यापार, िनवेश और आिथक प रवतन का एक एजडा अपे ाकत तेजी से िवकिसत
होता चला गया। इसक बाद इसका दायरा आिसयान से बाहर जापान, रप लक ऑफ को रया और चीन तक
या हो गया। पहले दोन क साथ भारत ने मु यापार समझौता िकया, जबिक चीन क साथ यापार क प रमाण
म नाटक य प से वृि ई। हाल क वष म यह प च ऑ िलया और पैिसिफक ीपीय देश तक बन चुक ह।
फल व प भारत क िवदेश नीित एक ऐसी प च और आयाम को हािसल कर चुक ह, जो इससे पहले उसक
पास कभी नह रही, जब बात अथशा , ौ ोिगक , सुर ा, रणनीित या सं कित क आती ह तो इस बदलाव क
गहराई को पूव देश क मन-म त क म भारत क बढ़ी ई साख क ज रए अनुभव िकया जा सकता ह।
भारत क वै क अव थित क िलए पूव देश क ासंिगकता िनरतर बढ़ती रही ह, यह और ती ता से बढ़
जाती ह, जब इसक अहम श य क साम य और भाव म गुणा मक प रवतन होते ह। चीन क साथ ऐसा पहले
ही हो चुका ह और इसको महसूस िकया जाना शु भी हो गया ह। जापान क साथ ऐसा प र य अभी शैशव
अव था म ही ह।
1945 से उस देश ने अपनी सुर ा- को अिधकांशतः अपने अमे रक गठबंधन क ज रत क अनु प ही
आगे बढ़ाया ह। यह गितमयता चीन क िलए जापानी सहयोग और िनवेश को भी तकसंगत ठहराती ह। य िप
वािण यक कारण और यु ोपरांत क ितब ताएँ भी अहम कारक थ । िकतु िजतना चीन आज करता ह, उसक
मुकाबले अमे रक यापार घाट म यादा बड़ अनुपात म उ रदािय व आने क उपरांत 1980 क दशक म जापान ने
अपने कदम पीछ ख च िलये थे। साथ ही इसने अपनी अपे ा को गठबंधन क संरचना क भीतर सजग प से
अनुशािसत रखने का िवक प चुना, लेिकन 1987 म सोिवयत संघ को पीछ छोड़ते ए दूसरी सबसे बड़ी
अथ यव था बनने क बाद 2010 म इसे यह जगह चीन क िलए छोड़नी पड़ी।
इसक मनोवै ािनक और रणनीितक दोन िनिहताथ रह ह। उभरती ई श य से सबसे यादा भािवत पड़ोसी
होते ह और जापान भी इसका अपवाद नह रहा। महा ीपीय और े ीय थरता सुिन त करने क इसक िच,
आज वै क साझा िहत (GLOBAL COMMONS) को मजबूत करने क इसक आकां ा से दब गई ह। जैसे-
जैसे यह वृहत दािय व का वहन करते ए अिधक भागीदा रयाँ बनाता ह, यह अपने ता कािलक अतीत से बाहर
आता जा रहा ह। जापान क इस िमक िवकास म, पूव एिशया से कह आगे तक जाने का वाथ िनिहत ह।
इसका आशय अहम ताकत क यव था म एक उ ेणी क ौ ोिगक श क आगमन जैसा रहगा।
यापार को लेकर इसक सजगता क चलते जापान अपने आिथक ल य पर अित र प से यान देता ह, जो
दूसरी अहम ताकत ारा िकए जाने वाले यास से कह यादा ह। चूँिक यापार इसक पुनजागरण का ाथिमक
ेरक ह, यह तकसंगत प से इसक रणनीितक गणना पर हावी रहता ह। अगर भारत जैसा देश अपनी सुर ा-
ज रत को साधने म त पर ह तो जापान क वैसी भूिमका आिथक े म यादा उभरकर सामने आती ह। िवशेष
प से वै क आपूित ंखला पर दबाव और उभरती ई ौ ोिगिकय पर िनयं ण क चलते। यह आसानी से
नह होने जा रहा, जापान क स मुख, िजतना संभव हो सक, इन खाइय को पाटने क चुनौती रहगी।
जािहर ह, इसक राजनीितक रणनीित, अमे रका को अपने गठबंधन सहयोगी क प म ाथिमकता देते ए
अिधकांशतः इ ह यास क समानांतर चलती ह। कछ हद तक जापान क थित सै ांितक प से शेष एिशया क
जैसी ही ह। यह भी ब ुवीय रणनीित म उलझा ह, जो अब पूरी तरह से दूसर पर िनभर नह ह और न ही इसक
आसपास हो रही गित से अनिभ ह। अगर एक नया एिशयाई संतुलन िनिमत करना ह तो जापान को उस पहल से
बाहर नह रखा जा सकता। यिद आिसयान क क ीयता पर सवाल खड़ िकए जाते ह तो उसका समथन करना और
िजसे बनाने म जापान ने इतनी मदद क , उसे मूक रहकर मा एक समूह क प म देखते रहना किठन ह।
कने टिवटी का ो साहन अथवा समु ी गितिविधय क सुर ा, अब वे मु े नह रह गए ह, िजनको लेकर संशय
रखा जा सकता ह। ऐसी प र थितयाँ ही जापान और भारत को एक-दूसर को रणनीितक प से अ वेिषत करने क
ओर ले ग ।
हालाँिक यह एक सुदूर संभावना तीत होती ह, लेिकन भारत क समान आव यकताएँ इसे जापान को लेकर
और अिधक गंभीरता से िवचार करने पर बा य करती ह। जापान क साथ ऐसे सहयोग क अपार आिथक तथा
सुर ा संभावनाएँ उपल ध ह, यह नई िद ी ारा भलीभाँित वीकारा जा चुका ह। आिथक मोच पर चुनौती,
आिधका रक िवकास सहयोग क दायर से बाहर िनकलकर और अिधक वा तिवक यापार और िनवेश क ओर
यान देने क थी। जापानी कपिनयाँ लंबे समय से भारत क साथ सां कितक अंतर क बात करती आई ह और इसे
उस ाथिमकता क िवपरीत बताया था, जो उ ह दि ण-पूव एिशया और चीन म दी जाती ह। पहले से मौजूद
थानीय कारोबार, कानून पर िटक रा य यव था और िवदेशी िखलािड़य का प लेते समय संवेदनशीलता, ये
सब िमलकर भारत म तर क दूभर कर देती ह। इसिलए भारत म एक यापक जापानी पहचान को यहाँ क
यव था म समािहत कर लेना हमेशा से एक चुनौती रही ह।
हो सकता ह िक दोन देश क बीच लंबे समय से बेहद स ावपूण संबंध रह ह , लेिकन यह संबंध आकां ा
म तो िशिथल, िकतु बयानबािजय म काफ आगे रह। जहाँ तक राजनीित और सुर ा का सवाल ह, एक ऐसा
जापान जो बड़ी ढ़ता से अमे रक गठबंधन से जुड़ा था, अतीत म उसक साथ तालमेल करना आसान नह था।
एक तो यह वयं ही िमतभाषी था, वह इसक अमे रक जुड़ाव ने इस दूरी को और बढ़ा िदया। दोन ही प र थितय
को आज साधा जा रहा ह और इसक आरिभक ितफल भी आने लगे ह। यवसाय करने क सुगमता (Ease of
doing business) और िवशेष प से जापानी कपिनय क ज रत को पूरा करने क भी उ साहजनक प रणाम
आए ह। साधन का समुिचत उपयोग मह वपूण नतीजे पाने क िलए मा पहला कदम होता ह। इसी तरह अमे रका
क साथ भारत क संबंध क बढ़ती समीपता, भारत-जापान संबंध म बाधक होने क बजाय सहायक ही िस ई
ह। वा तव म भारत, जापान और अमे रका क एक ि प ीय मवक म िमलकर काय करने क मता, बदलते
ए एिशया क बदलते ए राजनीितक भू- य क घटक म से एक ह।
भारत क नज रए से जापान क साथ करीबी र ते रखने क कई फायदे ह। शु आत तो यह से हो जाती ह िक यह
भारत को दि ण एिशया क दायर से बाहर ले जाता ह, जहाँ तक, यह आजादी क बाद से ही सीिमत रहा ह। यह
इसे दि ण-पूव एिशया से भी आगे क राह िदखाता ह, जोिक वहाँ तक ह, जहाँ तक ‘लुक ई ट पॉिलसी’ ले जाती
ह। पूव एिशया म यह एक साझेदार ह, जो भारत को वहाँ काम करने को ो सािहत करता ह और बदले म इडो-
पैिसिफक को वा तिवकता म बदलने क िलए िहद महासागर म अपनी मौजूदगी भी बनाए रखता ह, हालाँिक
जापान इस य न क िलए आव यक ह, पर दि ण को रया जैसे दूसरा रा क भी ासंिगकता बनी रह सकती ह।
आिसयान और इसक अलग-अलग सद य-रा क भूिमका एक सेतु क तरह िब कल प ह।
क वजट ताकत क साथ काम करने का एक दूसरा पहलू बंधनमु यव था बनाने वाली समकालीन
आव यकता ह। जहाँ एिशया क बात ह, इसक िलए कछ देश को आगे आकर समु ी सुर ा और कने टिवटी
जैसे े म यादा उ रदािय व सँभालने क ज रत ह। िन त प से जापान संबंध का सीधे तौर पर सबसे
अिधक लाभ भारत क वृि क र तार ती करने म िमलने वाला योगदान ह। जापान क मु य धारा को यह
िव ास िदलाना आव यक ह िक वृहत और समथवान भारतीय अथ यव था कवल यापार का अवसर मा नह ,
ब क एक रणनीितक बढ़त भी ह। भारतीय प क िलए अनुकल प र थितयाँ तैयार करने क चुनौती ह, िजससे
िनकट भिव य म इसे वा तिवकता क धरातल पर उतारा जा सक।
हालाँिक यह सब ता कािलक राजनीित क िववशताएँ ह, यह भी उिचत ह िक संबंध पर इितहास क दीघकािलक
प र े य म िवचार िकया जाए। दोन देश म एक नई पीढ़ी ने संबंध को गढ़ने क िलए पहले क अ यावहा रक
राजनीित क अपे ा एक और यादा वीकाय माग ढढ़ िनकाला ह। जापान का वा तिवक स मान यूरिशया म
इसक सुिव यात ‘आधुिनक करण क े नेतृ व’ वाली पहचान म िनिहत ह। इसक उदाहरण और अनुभव ने
दूसर देश को भी इसका अनुकरण करने को े रत िकया ह, िजसम जापान ने वयं सहयोग भी िकया ह। अगर यह
वा तव म भारत म भी उस जोश को पैदा कर सकता तो भारत म प रवतन क संभावनाएँ सही अथ म यापक हो
जात । इसने हाल क वष म अिधकतम मह व अिजत िकया ह, य िक इस एजड म भागीदारी क िलए प म क
मता घटी ह। भारत भले ही जापान क रणनीितक नज रए म एक कारक न हो, लेिकन यह एक लाभाथ तो हो ही
सकता ह। कवल जापान क भागीदारी ही वा तव म एक ब ुवीय एिशया को साकार करगी।
भारतीय राजनीित म जापान इस मायने म िविश ह िक इसक साथ संबंध को हमेशा दलगत राजनीित से ऊपर
उठकर स मान िमलता आया ह। इसिलए आगे बढ़कर इस संबंध को और सु ढ़ करने से, िवदेश नीित क पहल
पर िवभाजनकारी भाव पड़ने क संभावना न क बराबर ह। क म एक क बाद एक आने वाली सरकार और
यादातर रा य सरकार ने जापान क साथ संबंध का लाभ उठाने म िच िदखाई ह। ताजा संबंध क बुिनयाद वष
2000 म धानमं ी मोदी क भारत या ा से रखी गई थी। इस पहल ने वष 1998 म भारत क परमाणु परी ण पर
जापान क िति या से उपजी कटता को पीछ छोड़ िदया। एक बार जब प रवेश प नजर आने लगा तो दोन ही
प सहयोग मजबूत करने म जुट गए। िपछले दो दशक म इस संबंध का व प काफ बदल चुका ह और इसम
‘हाड एंड सॉ ट इ ा र’ म िवकास संबंधी सहयोग क यादा यापक ितब ताएँ शािमल ह। वष 1991 म
भुगतान संतुलन संकट क दौरान भारत क उबरने म जापान क सहयोग क एक अहम भूिमका थी। यहाँ तक िक
हाल ही म वष 2018 क मु ा िविनमय करार का असर एक आिथक सहयोगी क प म इसक अप रहायता क
मह व को रखांिकत करता ह।
हालाँिक इन संबंध क आिथक िवषय का दायरा काफ बढ़ चुका ह, लेिकन मूलभूत प रवतन भारत और जापान
क बीच राजनीित र त म आई गमाहट रही ह। वे रा जो कछ दशक पूव एक-दूसर को वै क मामल म
वैक पक ित प क प म देखते थे, अब बदली ई प र थितय म साझे िहत का दायरा बढ़ा रह ह। ि प ीय
मोच पर इ ह ने वाता क एक ंखला और काय णाली क पहल क ह, जो नीितय क क वजस को
सुिवधाजनक बनाती ह। िसिवल यू यर एनज सहयोग और र ा उपकरण जैसे संवेदनशील े म समझौते पर
प चने क मता उनक संबंध म बढ़ती सहजता का प रचायक ह।
दोन देश ारा गंभीर सै य अ यास का ितवष होने वाला संचालन िकसी भी से कोई साधारण बात नह
ह। जापान का एक सहयोगी होना वा तव म एक असाधारण गित ह। राजनीितक िववाद से हटकर, इसे भारत म
यापक थािय व और सुर ा म योगदान देने वाला समझा जाता ह। वष 2019 म सै ांितक प से सहमित पा
चुक ‘लॉिज ट स ए सचज ए ीमट’ क प रणित इन संबंध को एक नई ऊचाई तक ले जाने क मता रखती ह।
एक-दूसर क े ीय िचंता पर उनक यापक ितसंवेदनशीलता सावजिनक प से कट क जा चुक ह।
परमाणु अ सार, आतंकवाद क िव कारवाई और समु ी सुर ा से जुड़ िहत म आज यादा प सम वय
िदखाई पड़ता ह। संयु रा सुर ा प रष क संरचना म संशोधन क अपे ा करने वाला दु कर अनुभव उ ह
एक-दूसर क और समीप ले आया ह। सहयोग क ि ितज अब िव तृत हो चुक ह, उनका दायरा अब तीसर देश
तक प च चुका ह। संभवतः सबसे उ ेखनीय त य यह ह िक जापान हमारी कई साहसी कटनीितक पहल ,
िजसम ॉड (QUAD) एक 2+2 िवदेश-र ा संवाद और ऑ िलया क साथ एक ि प ीय संवाद म भी शािमल
ह।
शायद ही िकसी ने यह अनुमान लगाया हो िक इस संबंध का राजनीितक पहलू अंत म आिथक प क ओर ही
ले जाएगा। इसका मतलब यह नह ह िक बाद वाले क र तार वा तव म मंद पड़ चुक ह। पारप रक प से
जापान ने आिधका रक िवकास सहायता (ODA) बनाया था, जो इसक रणनीित का सबसे अहम अंग ह। इसका भी
उ ेखनीय ढग से िव तार हो चुका ह और वा तव म ये ओ.डी.ए. प रयोजनाएँ आज क दौर म देश म सबसे
सफलतापूवक ि या वत क जा रही प रयोजना म स मिलत ह। शहरी बंधन म आमूल-चूल प रवतन लाने
वाली मे ो प रयोजनाएँ और औ ोिगक उ पादन को कई गुना बढ़ा देने वाली िद ी-मुंबई इड यल कॉ रडोर इस
साथक पहल क प रणाम ह। शेष मालवाहक और औ ोिगक गिलयार क परखा अभी बन रही ह तथा भारत क
लॉिज ट स संबंधी अवरोध को संबोिधत करने क िलए उनका मह व अहम ह।
यापा रक मोच पर भी जापानी कपिनय क भारत म मौजूदगी म प बढ़त िदखाई देती रही ह। साथ ही, जो
पहले से मौजूद ह, उनक थित और भी मजबूत ई ह। उनक उपल ध प रवेश म भी मह वपूण सुधार होते आए
ह, िजनम उनक रहन-सहन क थितय और या ा क सुगमता क िलए गुणा मक पहल शािमल ह। इससे भी
अहम बात यह ह िक दोन देश, जापानी आव यकता क अनुसार कौशल और िश ण क गुणव ा बढ़ाने पर
भी काम करते रह ह। औ ोिगक टाउनिशप, िश ण सं थान, भाषा क और िवशेष िव ीय सहायता सुिवधा
पर सहमित हो चुक ह। उनका ती एवं भावी तरीक से ि या वयन होने म भारत म जापानी यापार क वृि क
सफलता िनिहत ह। य िवदेशी िनवेश और आिधका रक िवकास सहायता (ODA) क नीितय का तालमेल दोन
प को लाभ प चाने वाले नए रा ते खोल सकता ह। भारत क उ र-पूव े और उसे बां लादेश और याँमार
तक बढ़ाने वाली कने टिवटी संबंधी पहल को बढ़ावा देने क िलए ‘ए ट ई ट फोरम’ क थापना एक
उ ेखनीय गित रही। यह आिथक सोच क एक वृहत रणनीितक नीित क प म प रप होने का प रचायक ह।
जापान क भारतीय अथ यव था और समाज म िन त प से दीघकािलक उप थित रही ह, लेिकन ढाई
दशक पहले जो अवसर सामने आए, वो उनक अित-सतकता और हमारी वयं क अिन तता क चलते
अपेि त िति या नह जगा सक। दूसरी वृि शील अथ यव था ारा क जाने वाली ित पध माँग भी एक
कारक रह । इन सबक बावजूद जापान भारतीय अथ यव था म होने वाले अहम ौ ोिगक य सुधार का सू धार
बना रहा। िपछली पीढ़ी क भारतीय इस बात को याद करगे िक कसे मा ित सुजुक कार ने न कवल यातायात,
ब क उनक जीवन-शैली को भी िकतना बदल िदया था। अगली पीढ़ी शायद यही िद ी मे ो रल ोजे ट क बार
म अनुभव करगी। जापान का मूल मह व, अथ यव था क सभी े पर भाव डालने तथा नए उ म और
साम य को िवकिसत करने म सहयोग करने क उसक मता म िनिहत ह। चीन और आिसयान देश क तरह
भारत उसे भावी तरीक से उपयोग म ला पाएगा अथवा नह , यह देखना अभी शेष ह।
एिशया क गिणत म जापान क िवशेषता म उ रो र वृि न कवल बढ़ ए साम य क तदथ मह वपूण ह,
ब क यादा आ त करने वाली भी ह। दोन रा लोकतं , सिह णुता, ब लवाद और खुले समाज क ित
साझी ितब ता रखते ह। उनक एक जैसी परपराएँ भी इस जुड़ाव को मजबूत करती ह। जापान को भारत एक ऐसे
भागीदार क प म देखता ह, जो इडो-पैिसिफक और उसक बा े म भी शांिति य, उदार, समतुलनीय,
थायी और िविध-आधा रत यव था क िलए ितब ह। िहत और मू य का यह संयोजन आज क वजस का
एक बल आधार ह। दोन देश क बीच िहत क ंखला को देखते ए यह कहना समीचीन होगा िक ये संबंध
ि प ीय पहलू से ब त आगे आ गए ह। उनका े ीय ित छदन, सावभौम सुर ा, कने टिवटी म सहयोग और
तीसर देश म िहत म सामंज य क प म सहयोग का ोत बनेगा।
वै क तर पर भारत और जापान जलवायु-प रवतन, आतंकवाद और पुरानी वै क यव था म सुधार क
िलए सहयोग कर सकते ह। दोन एक-दूसर क संवेदनशीलता म िकस हद तक शािमल होते ह, यही बदलते
संबंध क कसौटी रहगी। अपनी ओर से जापान को अपनी सुलभता क दायर से बाहर आकर एिशया क
वा तिवकता क सम होना होगा। ऐसे भारत क साथ बेहतर तालमेल ि प ीय संवाद क ज रए ही हो सकता
ह। िवकास क समझ पैदा करना इसक लाभ क िलए आव यक ह, जो िन त प से भारत क समान िचंता
क ित समथन बढ़ाने से ही आएगा। संयु रा म सुधार क यास म भागीदारी क साथ-साथ इसे उनक साथ
भी मुखर होना पड़गा, जो इस प रवतन का िवरोध करते ह। भारत क िलए मह वपूण बात यह ह िक वह अपे ा
को इस लचीलेपन क साथ िच ि त कर, िजसम जापान क अपनी िववशता और सं कित का भी यान रखा
जा सक। भले ही दोन देश आपसी संबंध को िव ता रत करने क िलए ब त-कछ करने जा रह ह, लेिकन यह
अपने आप नह होने वाला। यहाँ सचेत रहने क आव यकता ह, य िक यह बात भी िविदत ह िक जापान भी िव
को उ ह संदभ म देख सकता ह, जैसा हम देखते ह। स ाई यह ह िक हम एक अिधक सतक समाज से यवहार
कर रह ह, िजसक साथ िकसी िनणय पर प चने क िलए यादा सहमित क आव यकता रहगी।
िफर भी, चुनौितयाँ कवल हमार समाज क िभ वभाव तक सीिमत नह ह। यापार का िव तार करना िन य
ही सबसे अहम ल य ह। भारत क आव यकता, वैधािनक प रवेश का सतत अनुकलन, जापान क िविश
आव यकता का यान तथा आवंिटत साधन क मह वाकां ी उपयोग को जारी रखने क ह। इनम से कोई भी
शासन णाली यव था म अंतिनिहत नह होती ह, जहाँ वृि अकसर वयं क अतीत क िव ही मानदंड बनने
क रहती आई हो। भारतीय को अपने य न क िनरतरता दिशत करनी होगी, जो आमतौर पर जापान क साथ
संब ह। जापान से थोड़ा अिधक जोिखम उठाने और उिचत अनुपात म वृि क िलए अिधक ितब ता दिशत
करने क अपे ा रहगी। इस पहल क ो साहन म िजतना अिधक िवलंब होगा, इसका मू य उतना ही अिधक
चुकाना पड़गा। भारत यादा अनुकल प र थितयाँ तैयार कर, इसक ती ा क बजाय जापानी कपिनय को वयं
को ढालने क िलए और अिधक यास करना होगा। इस हद तक िक भारतीयता क कछ ल ण को भी आ मसा
करना होगा, जो उ ह यहाँ क प रवेश म सहज होने म सहयोग करगा।
राजनीितक अखाड़ म दोन ही लाभ-हािन क दाँव लगाने का यास कर सकते ह, लेिकन ज री नह िक दोन
क मु े और तर समान ह । एक ब ुवीय िव म िकसी भी िवक प को बंद करने म दोन म िकसी क िच
नह ह, खासकर अपने करीबी पड़ोस क िवक प। वा तिवक जीवन म एक-दूसर पर संदेह िकए िबना उसका
ि या वयन कसे करना ह, इसका यान रखना होगा। यहाँ तक िक कने टिवटी जैसे मु े पर भी देखा जाए तो
दोन देश क िववशताएँ िभ ह। संवाद म भी एक िनरतरता क आव यकता ह, िवशेषकर, कम क वजस क
मु पर। जापान को भी नई यव था और श -संतुलन म होने वाले बदलाव को गणना म शािमल करना
होगा, उन कारक क अित र जो पहले से ही यव था म जुड़ी ई ह। ऐसे िव म थािपत प मी िहत क
यव था क दायर से बाहर देखने क इसक मता क भी परी ा होगी। ढ़ता क साथ आपसी िहत पर िव ास
रखने वाला कोण ही इस र ते को ऊचाइय तक ले जा सकगा।
हालाँिक यह िन त तौर पर ऐसा र ता ह, िजसका अतीत इसक भिव य क कसौटी नह ह, िफर भी इसक
ता कािलक अतीत क कछ सबक ऐसे ह, िजनको जानना ज री ह। अपने संबंध क यादातर दौर म दोन देश
अ यािशत प से एक-दूसर क ित उदार रह ह। जहाँ तक भारत का सवाल ह तो इसने वष 1905 म जापान क
स पर िवजय को एिशयाई पुन थान क आरभ क प म देखा। उसक बाद इसका उपिनवेशवाद िवरोधी योगदान
भारत क िलए य प से भावी रहा। आज भी भारत क आम जनता जापान को नेताजी सुभाषचं बोस क
कहानी से जुड़ी एक वा तिवकता क प म देखती ह। इसक बाद क दौर ने इस िवरासत को आगे बढ़ाने का ही
काम िकया। भारत ने टो यो ि यूनल पर अपना एक वतं ख कायम िकया और ज टस राधािवनोद पाल एक
ऐसा नाम ह, जो अब भी कई े म ापूवक गूँजता रहता ह। यिद ितपूित क माफ और एिशयाई खेल म
जापान का वेश, भारत क अि तीय कोण का माण रह तो इसक िविनमय म जापान ारा पूरी तरह येन ऋण
म िव तार और सतत आिथक सहयोग क प म चुकाया भी गया। यह एक ऐसा संबंध ह, जो अिधकांशत: भारत
म जापान क छिव और उदारता क लोकि यता पर आि त होते ए हमेशा सकारा मक रहा ह, िवशेषकर
आधुिनकता और परपरा क बीच एक सेतु थािपत करने म इसका योगदान।
जहाँ तक भारत क जापान म छिव का सवाल ह, इसक कई पहलू ह—बौ धम क उ म क प म इसक
बौि क परपरा से लगाव और इसक समृ सं कित, लेिकन ये सब धीमी वृि दर और सीिमत सामािजक-
आिथक प रवतन क प रिध म कद रह। इसिलए जब पहली गंभीर परी ा 1998 क परमाणु परी ण क प म ई
तो र ते बुरी तरह से लड़खड़ा गए। इसक सही या या जापान क उस ैधता म िनिहत ह, जहाँ उसे अपने
एिशयाई च र और प मी िहत म संतुलन से साधना पड़ता ह।
उस समय जापान परमाणु अ सार पर न कवल प मी नैरिटव क बहाव म आया, ब क भारत-पािक तान क
उ ेख क साथ ज मू-क मीर का िव ेषण भी जोड़ िदया। फलत: जापान संयु रा सुर ा प रष ताव
सं या 1172 समेत भारत क िव कदम उठाने का समथन करने वाले मुख तावक म स मिलत हो गया।
इस दौर का उ ेख करना आव यक ह, य िक इसम संबंध क भिव य क िदशा िनधा रत करने वाले सूचक
िव मान ह, जब भारत और जापान ने एक-दूसर क साथ प मी म य थता क िबना तालमेल बनाया था तो
उनक वृि सकारा मक थी। जापान को यह अव य देखना चािहए िक वष 1998 क नतीजे म प मी देश और
चीन अंतत: िकतने यावहा रक बने रह। इसिलए भू-राजनीित क समझ क कशा ता िन त प से भारत क साथ
संबंध को िवकिसत करने म सहायक िस होगी।
भारत और जापान वीकाय प से दो िभ समाज ह, िजनका वयं का िभ इितहास, सामािजक प रवेश और
सं कित ह। अतीत म अंतररा ीय राजनीित क ख चतान क दबाव क कारण उनक बीच अंतर पर बल िदया गया
था, हालाँिक उनक बीच कोई उ ेखनीय मतभेद का इितहास भी नह रहा ह, लेिकन िफर भी एक मूलभूत
कायसूची िवकिसत करने म बरस लग गए। उनक रहन-सहन क सं कित, राजनीितक लोकाचार और िहत को
साधने क मानिसकता, ये सब िब कल िभ ह, लेिकन साझा िहत, मू य क समानता और वै क उ रदािय व
दू रयाँ पाटने क िलए कायरत ह। कवल सरकार ही नह , ब क जापान का यावसाियक वग भी एक सश भारत
का मह व समझ रहा ह। दोन देश गहन यास क मा यम से संबंध का एक साझा धरातल िवकिसत करने म जुट
ह और उस िदशा म अपे ा से बढ़कर नतीजे भी िमले ह। यही वजह ह िक चंद वष म ही इसे एिशया म सबसे
वाभािवक रणनीितक समीकरण क प म पहचाना जाने लगा ह। चुनौती अब इसे सबसे अिधक थािय व दान
करने क ह और इससे भी बढ़कर, िकसी और अहम संबंध क तरह यहाँ भी सही समय का मह व सबसे यादा
ह।
जापान क इितहास से भी कई सबक िमलते ह, जो एिशया क साथ-साथ भारत क भिव य क िलए भी अवरोध
बन सकते ह। मेइजी युग क बाद से इस देश ने हमेशा अंतररा ीय प रवेश का लाभ उठाया ह। इसने वै क
श -संतुलन पर िति या भी दी ह, साथ ही अपनी थित म सुधार क िलए हमेशा सहयोगी भी तलाश िलये ह।
वह परपरा िन त प से जारी ह। असल म जापान क पास भी भारत संबंधी एक इितहास ह और वै क
अवरोध हटने क साथ ही इसक तक सामने आ सकते ह। शीतयु क समा और अमे रका क साथ इसका
गठजोड़ इस संदभ म ासंिगक हो सकते ह। वष 1945 क बाद जापान ने दुिनया क सामने हार नह मानी, ब क
आिथक साधन क सहार साख हािसल करने का रा ता चुना। उसने िजन धारणा क बुिनयाद पर यह काम
िकया, वह आज पूरी तरह से मा य नह हो सकती। िकतु प रवतन को अंगीकार करने वाले इितहास और
प र थितज य बा यता क चलते, इसका िफर से ऐसा करना संभव हो सकता ह।
भले ही जापान म बदलाव क िलए सबसे यादा संभावनाएँ ह, लेिकन आिसयान भारत क िलए ‘पूव का ार’
बना आ ह। देखा जाए तो जैसे-जैसे यह उस िदशा म गित करता ह, इसक कोण क बुिनयादी सू िनरतर
ताजगी पाते ए रखांिकत होने चािहए। इस े से भारत ने ब त-कछ सीखा ह और सीख रहा ह। भले ही
आिसयान देश अपने े ीय एक करण और रा ीय गित क साथ तेजी से आगे बढ़ ह , लेिकन िकसी और समूह
क मुकाबले आिसयान ने वृहत वै क प रवेश क साथ अिधक सतत अनुकलन िकया ह। अपने गठन क बाद से
ही आिसयान ने इस े म उ र-औपिनवेिशक युग क कई िवमश को पीछ छोड़ िदया। इसने ब त ही िनपुणता क
साथ वयं को शीतयु क दौर से बाहर िनकाला और एक उ आिथक वृि दर वाले युग म ले गया, जो दूसर
क िलए एक आदश ह। वष 1997 म एिशयाई आिथक संकट क मार झेलने क बाद भी इसने पूव एिशया
स मेलन क ि या क ज रए अपने पाँव पसारना जारी रखा। इसक सभी सद य ने यादा उदार वै क आिथक
संरचना का लाभ उठाया और काफ हद तक वष 2008 क संकट से भी पार िनकल आए।
िफर भी आज वे ढर सार तनाव से जूझ रह ह और उनक िलए यह मह वपूण ह िक भारत समाधान का एक
िह सा ह। जो चुनौितयाँ उनक सामने ह, उनम नए श -संतुलन, यादा राजनीितक अ थरता, िनयम और
मानदंड क मु े, अिन त भू-आिथक दशाएँ, आंत रक सामंज य क न और यहाँ तक िक संभवतः एिशया क
भिव य क िलए आिसयान क क ीयता शािमल ह।
इसिलए सुर ा, कने टिवटी म वृि और यापार म बढ़ोतरी जैसे आयाम को शािमल करते ए इस समूह क
साथ सामंज य को िव तार देने क िलए भारत क पास यह सबसे सही अवसर ह, लेिकन इससे भी बढ़कर भारत क
रणनीितक िहत यह आ त भी करते ह िक आिसयान क क ीयता को भले ही मजबूत न िकया जा सक तो भी
वह संरि त रह। इसिलए इसक सभी ि प ीय और े ीय साम य को इसी िदशा म इ तेमाल करना होगा। इसक
अलावा इडो-पैिसिफक जैसी नई संक पना क आगे आने क साथ यह भी सुिन त करना ज री ह िक
आिसयान इनक साथ सहज रह। उ ह इस बात क िलए भी राजी िकया जाना चािहए िक एक बड़ी प रिध वाला
रणनीितक े उ ह सै ांितक और िन त प से इसक क ीयता म और यादा वृि करगा। इसी कार से
ाड (QUAD) और ि प ीय तं को भी य प से आिसयान क उ य क समथन म देखा जाना चािहए।
काफ हद तक उस उ े य से सतत संकत देते रहना आज क समय क माँग ह।
आिसयान-भारत सहयोग क कहानी वष 1992 म िसंगापुर िशखर स मेलन से आरभ ई थी, कालांतर म वष
1996 म भारत को पूण प से सहयोगी व ा, वष 2002 म िशखर स मेलन सहयोगी और वष 2012 म
रणनीितक साझीदार का दजा हािसल आ। इसक रजत जयंती क अवसर पर िवशेष मरण समारोह मनाने
आिसयान क सभी दस रा क नेता वष 2018 म राजधानी िद ी म आयोिजत होने वाले गणतं िदवस समारोह
म पधार। यह अपने आप म एक संदेश होने क साथ यह भी संकत देता ह िक इस अविध म संबंध म भरपूर वृि
हो चुक थी। ऐितहािसक और सां कितक प से भारत और दि ण-पूव एिशया क संपक बेहद गहर और गाढ़
रह ह। साझी िवरासत और सं कित क अिभ य याँ समूचे े म िदखाई देती ह। देखा जाए तो भारतीय स यता
क अ त व क सव े जीवंत उदाहरण म से कई सिदय से वह मौजूद ह।
और यादा आधुिनक दौर क बात कर तो उनक िनयित वै क राजनीितक धारा क ज रए िफर से जुड़
चुक ह, िजसने भारत को पूर प र य म वापस ला खड़ा िकया ह। िसंगापुर वा तव म एक उ ेखनीय उदाहरण ह
िक िकस कार दूसर िव यु क दौरान दि ण-पूव एिशया म समकालीन भारत का भिव य गढ़ा गया था। उसक
बाद क वष म जैसे ही इन सब देश को आजादी िमली, अपनी-अपनी रा ीय संभावना को सँवारने क िलए
आिसयान देश ने सहयोग और ित पधा शु कर दी और भारत यादा िवभाजनकारी ताकत क तुलना म इन
सबक िलए सहमित का क बना।
1992 म वा तव म जो बदल गया वो यह था िक एक संबंध जो काफ हद तक स ावपूण लेिकन औसत प
से ऊजावान था, वह अब अचानक नव आिथक अिनवायता क चलते अ यिधक ऊजा से भर गया। इसक
अलावा इसे पहल करने वाली नीितय क एक ंखला, िजसम कई मु यापार समझौते शािमल थे, उनक मा यम
से भी आगे बढ़ाया गया। िसंगापुर क मु य क बनने क साथ ही आिसयान और भारत क बीच िनवेश और यापार
का वाह िनरतर बढ़ता रहा ह। इस े क कारोबार क भारतीय अथ यव था म एक अहम थित ह और िजसका
दायरा दूरसंचार और उ यन से लेकर लॉिज ट स, सड़क िनमाण, औ ोिगक पाक और िव तक क अनेक
गितिविधय तक या ह। जबिक बदले म भारतीय कपिनय क ऊजा, कमोिडटीज, िविनमाण और बिकग से टर
म उप थित ह। भारत और दि ण-पूव एिशया क बीच कने टिवटी का िव तार इन सहयोग का संचालन और
प रणाम दोन ही ह। वा तव म िपछले ढाई दशक म भारत और आिसयान क बीच अंतर- वेश और यातायात
इतना सघन रहा ह िक यादातर भारतीय सहज प से इस े को अपने पड़ोस का िव तार समझते ह।
ये संबंध पूरी तरह से आिथक और सां कितक आयाम से आगे िनकल आए ह। भारत और आिसयान क बीच
तीस तं थािपत ए, िजसम एक वािषक िशखर स मेलन और सात मं ी तर क संवाद शािमल ह। भारतीय
नज रए से आिसयान एिशया पैिसिफक े क सुर ा ढाँचे म क ीय थान रखता ह। यह िवशु प से भारत का
सोचा-समझा नज रया ह, य िक आिसयान, जो े क सां कितक, वािण यक और भौितक संपक का तीक ह,
वह अपने से बाहर क दुिनया क यापक िहत को दशाने और उनक बीच स ाव रखने क भी अि तीय मता
रखता ह। इसे अिसयान े ीय मंच (ARF) क काय णाली म हम पहले ही देख चुक ह, िजसका भारत वष 1996
म सद य बना था। आिसयान क मह व को वृहत महा ीपीय थािय व क िलए तब और भी सराहा गया, जब उसने
पूव एिशया िशखर स मेलन ि या क अवधारणा क और उसे ि या वत भी िकया। भारत इसक आरिभक
सद य म से एक था और यह स मेलन अब भारत क वािषक राजनियक कलडर म एक मह वपूण काय म रहता
ह। इसक अलावा, इसे र ा मंि य क ए.डी.एम.एम. (ADMM) लस क बैठक म भी काफ अहिमयत िमली।
इतना ही नह , संरचनागत ि या को उतनी ही मजबूती अनौपचा रक और तदथ बैठक से भी िमली। आज
भारत िजन यव था क साथ काय करता ह, उनम एिशया म पायरसी से िनपटने क िलए आर.ई.सी.ए.ए.पी.
(ReCAAP) समझौता और एक फनल टट क प म मल का जलडम म य और िसंगापुर म सहयोग
काय णाली शािमल ह। े ीय सहयोग को आिसयान क सभी सद य और वा तव म ई.ए.एस. (EAS) क साथ भी
िकए गए ि प ीय र ा और सुर ा समझौत क एक वृहत ंखला से भी मजबूती िमली। चूँिक आिसयान का
तरीका आपसी सहमित और मृदुभािषता का रहता ह, इसिलए कई बार यह िजन मू य को हमार सामने लाता ह,
उसे अकसर कम करक आँका जाता ह।
सहका रता को कट करने वाली यह गाथा िजतनी उ ेखनीय ह, इसका असली मह व वा तव म कह यादा
गहरी मह ा म िनिहत ह, जो वष 1991 क बाद क युग म भारतीय रा य यव था म सुधार क िलए रहा था। कछ
वष पहले वष 1991 क आिथक सुधार पर पु तक क एक बाढ़-सी आ गई थी, िजनम से कछ धानमं ी
नरिस हा राव क इद-िगद कि त थ । उन घटना क मह व पर बहस करने क िलए भारत म यह एक वाभािवक
अवसर था। िवदेश नीित क नज रए से इसे देखने पर यह िनकलकर सामने आया िक भारतीय नीित-िनमाता क
िचंतन ि या को आकार देने म आिसयान और िसंगापुर ने िवशेष प से अहम भूिमका अदा क थी। भारत क
िलए यह एक ऐसा मंच था, जो िव क साथ यादा िव तृत प से तालमेल करने, िवचार को परखने,
कोण का आदान- दान करने और ितसूचना पाने का मा यम था। इस े क पथ- दशक को बदलते ए
भारत म सुनने क िलए यादा तैयार लोग िमले। उनक परामश और अनुभव ने भारत को अनजान रा त पर आगे
बढ़ने क िलए मागदशक क भूिमका िनभाई।
इसिलए एक तरह से यह कज चुकाने का अवसर था, जब वष 2015 म िसंगापुर क पूव धानमं ी ली कआन
यू क अंितम सं कार काय म म स मिलत होने धानमं ी नर मोदी वयं प चे थे। आज भारत म होने वाले
प रवतन ब त गहन और यापक ह। मै युफ रग का िव तार करने, इ ा र को बदलने और मानव संसाधन
क गुणव ा बढ़ाने क िलए ढ़ संक प क साथ य न िकए जा रह ह। अथ यव था क औपचा रकरण क गित
ती कर दी गई ह, जोिक वा तव म इसक काय मता क बाधा को हटाने का काम ह। यह सुगमता से काम
करने क अनुकल प र थितय को तैयार करने क ितब ता से दिशत होती ह। यादातर बदलाव संक ण
आिथक नीितय से पर ह और इनम अलग-अलग प रमाण म सामािजक प रवतन भी शािमल ह। फल व प हम
यापक जन-समथन जुटाने क िलए जाग कता अिभयान और ो साहन क यास भी देख चुक ह। कम-से-कम
इनम से कछ तो आिसयान क राजनीितक सं कित से प रिचत ह गे।
ारभ म आिसयान क साथ संबंध म बढ़ोतरी को भारत म ‘लुक ई ट’ नीित क तौर पर दरशाया गया था, लेिकन
इसे आगे ले जाने क हमारी गंभीरता क पु क िलए, िवशेष प से वा तिवक कने टिवटी प रयोजना क
मा यम से, कछ वष पूव इसे ‘ए ट ई ट’ क प म पांत रत कर िदया गया। ये बदलाव इसक बढ़ते ए सुर ा
मामल म भी िदखाई पड़, हालाँिक नाम चाह जो हो, यह संबंध वा तव म अपने पूव म थत िव को लेकर
भारत क भू-राजनीितक कोण म आए गंभीर प रवतन को भी ितिबंिबत करता ह। दि ण-पूव एिशया क साथ
संपक और सहयोग ने भारत क िलए इससे पूर िव क ार खोल िदए। यह लगभग वही समय था, जब भारत
यादा ही गंभीरता से जापान, दि ण को रया और चीन क साथ तालमेल क संभावनाएँ ढढ़ रहा था। इसम कोई
संदेह नह िक आिसयान ही इसका मा यम था—मनोवै ािनक, राजनीितक तथा यावहा रक प से भी। उसक बाद
क वष म जब हम ई ट एिशया िशखर स मेलन ि या म शािमल ए, भारत क तालमेल बनाने का यह रा ता
और भी आगे बढ़ गया और अब इसका िव तार ऑ िलया, यूजीलड और यहाँ तक िक पैिसिफक ीप तक ह।
वा तिवकता यह ह िक आिसयान क िबना एिशया-पैिसिफक का इडो-पैिसिफक म बदलाव कभी संभव नह होता।
िपछले ढाई दशक म ई गित ने यह िदखाया ह िक भारत-आिसयान संबंध ने व तुत: उन िवचार , िहत और
श य को उजागर िकया ह, िजनका हम म से िकसी को भी उस समय तक अनुमान भी नह था। सबसे बुिनयादी
तर पर आिसयान क साथ संबंध ने समाज और उतनी ही नीित-िनमाण को लेकर भारतीय मानिसकता को बदलने
म योगदान िदया ह। प च और संपक ने नजदीिकय का लाभ उठाते ए नई अपे ाएँ और अिभलाषाएँ पैदा कर
ल । इनम से कई आज भारतीय राजनीित क गितिविधय और िवमश म साफ नजर आती ह।
आिथक सुधार क िलए ो सािहत करने से िब कल िभ , आिसयान ने ढर सार िवषय पर भी भारतीय िचंतन
को भािवत िकया ह। थमत:, इसने भारत क बा करण को काफ हद तक सुगम िकया। वा तव म, िवदेश म
भारतीय िनवेश क थम लहर दि ण-पूव एिशया से ही शु ई। िसंगापुर इसका एक जीवंत उदाहरण ह।
आिसयान क साथ सहभािगता और उसक फल व प यापार और संसाधन क ोत ने समु क मह ा भी काफ
हद तक बढ़ा दी ह। आज एक संतुिलत और एक कत िहद महासागर नीित यापक प से आिसयान क साथ इसक
संबंध क अनुभव से िनधा रत होती ह। इस पार प रक संपक का, े ीयता को लेकर भारत क वयं क सोच पर
भी, लाभकारी भाव रहा ह। यह अब सजग प से यह सुिन त करना चाहता ह िक इसक पड़ोसी भी इसक
गित और समृि का लाभ उठा सक। भारत ारा समिथत े ीय िविनमाण प रयोजनाएँ इस िदशा म इसक गंभीर
यास का संकत ह।
आिसयान को इस बात का भी ेय िदया जा सकता था िक इसने भारत क इस समझ को बढ़ाने म मदद क िक
िवदेश म रह रह भारतीय मूल क लोग िव क साथ इसक संबंध म या भूिमका िनभा सकते ह। वा तव म,
वािसय क तुलना म संपक-तं और संबंध जोड़ने वाले कछ बेहतर उदाहरण भी मौजूद ह। उदाहरण क िलए,
भारत क ऐितहािसक संपक और िहत को िफर से जा त करने म दि ण-पूव एिशया क ेरक भूिमका भी कछ
कम नह ह। नालंदा क संक पना, जैसा िक हम आज जानते ह, मूल प से िसंगापुर म शु ई थी। तभी से यह
बौ धम क इितहास और िवरासत क यापक भारतीय पहचान को समािव करने वाले तथा लोग क आपसी
संपक को ो सािहत करने वाले एक क क प म उभरकर सामने आया।
अतीत म भारत क पूव म थत िवषम दुिनया इसक रणनीितक ि ितज क िलए दूर क कौड़ी थी, जब दोन
िव टकराए, जैसा िक 1960 क दशक क आरभ म आ था तो यह भारत क िलए लाभ क बजाय यादा
जोिखम वाला रहा, लेिकन आिसयान क साथ तालमेल ने समाजीकरण क एक ि या शु कर दी जहाँ भारत क
िहत, पूव िदशा म िनरतर िवकिसत होते गए। इसको और ती करने क िलए भारत और इसक पूव सहयोिगय ,
दोन को अपनी सुिवधा े से बाहर आना होगा। जहाँ ऐसे िहत को मू य का समथन िमलता ह, वहाँ िहत क
संगित होना सुिन त ह। रा क पारप रक कोण समकालीन िचंता क साथ और अिधक सहज हो पाएँगे,
यह देखना अभी शेष ह। िवशेषकर, भारत और जापान, य िक दोन को अभी मानिसकता क एक लंबी दूरी तय
करनी ह। भारत क व रत समाधान को जापान क िनरतरता क साथ सामंज य बैठाने क िलए, सतत य न से,
उ े य क एक ठोस समझ क आव यकता रहगी। इस संबंध क परी ा अनिभ ता और दूरी से िनपटने म होगी,
जो असहमित और किठनाई जैसी सामा य सम या से िब कल िभ ह। जापान िजस नज रए से भारत को देखता
ह, उसम राजनीित का ही भु व ह और इसक कई अथ ह। वा तिवकता तो यह ह िक झंड क पीछ चलने वाला
और कोई नह , ब क यापार ह। अगर नोएडा और नागोया (NAGOYA) का वा तव म िमलन होता ह तो यह
एिशया क इितहास म नए अ याय जोड़गा और तब इस महा ीपीय गाथा म एक और मोड़ आ सकता ह, जो िक
कई लोग क अनुमान से कम पूविनधा रत होगा।।

8.
शांत भारतीय
भारतीय समु ी- भुता का पुन थान
“समंदर क िकनार खड़ होकर लहर को िनहारने मा से
आप कभी समंदर पार नह कर सकते।”
—रव नाथ टगोर
जैसे-जैसे दुिनया बदल रही ह, यह वाभािवक प से नई संक पना और पा रभािषक श द को गढ़कर सामने
लाएगी। 'इडो-पैिसिफक' वै क रणनीितक श दकोश म जुड़ने वाले सबसे नए श द म से एक ह। चूँिक डॉन ड
प ने इस श द को 2017 क एपेक िशखर स मेलन म यु िकया था और ‘यू.एस. पैिसिफक कमांड’ का नाम
बदलकर ‘इडो-पैिसिफक’ कर िदया गया था, अमे रक समझते ह िक उ ह ने इस श द का आिव कार िकया।
जापािनय का मानना ह िक इसका ेय वा तव म उ ह जाना चािहए। हो भी य न, आिखर धानमं ी िशंजो आबे
ने लगभग एक दशक पहले भारतीय संस म ‘दो समंदर क संगम’ क बात क थी। भारतीय वयं भी पीछ हटना
नह चाहते, उनका दावा ह िक इडो-पैिसिफक श द उनक नौसेना म इन सबसे भी पहले य हो चुका ह और
अपने िवदेश मं ालय म एक समिपत भाग बनाकर भारत ने अपने लगाव क दावे क पु ही कर दी ह।
ऑ िलयाई भी इस पर दावा करने वाल क सूची म ऊपर ही ह और इडोनेिशया क नेतृ व वाले आिसयान ने भी
अब एक इडो-पैिसिफक कोण तुत कर िदया ह। शु तावादी इसका ेय 1930 क एक जमन रणनीितकार
काल हाउशोफर (Karl Haushofer) को दे सकते ह, हालाँिक उनका प र े य एक यूरिशयन रणनीितकार क जैसा
था। अब इसका िव ेषणा मक पहलू चाह जो हो, इडो-पैिसिफक का अ त व आज मु य प से पेशेवर क
आ ह क कारण ह, जैसा िक हम कहते ह, समु का वातावरण बदल रहा ह और इडो-पैिसिफक कल का
पूवानुमान नह , ब क वा तव म बीते कल क वा तिवकता ह।
दुिनया म चीज घूमकर वापस आती ह। यहाँ इस त य पर गौर करना ज री ह िक रॉयल नेवी ने दशक तक
इडो-पैिसिफक कोण पर इस श द का साफतौर पर योग िकए िबना काम िकया। इसिलए आज, जैसा िक
कछ ताकत िसफ चाहती ह, कछ योजनाएँ बनाती ह, एकाध तैया रयाँ करती ह और अ य िचंतन करती ह, इस
िवमश क नाम पर दावेदारी क दायर से बाहर िनकालकर उसे आगे बढ़ाने वाली प ता क ज रत ह। श द-
िव ान को इस त य को धुँधला नह करने देना चािहए िक बदलते घटना म हर गुजरते िदन क साथ इस
अवधारणा को और अिधक समृ करते जा रह ह। वाभािवक प से इडो-पैिसिफक का अथ अलग-अलग
श य क िलए अलग-अलग चीज ह, लेिकन यह िनिववाद प से उन सबक िलए एक ाथिमकता ह। भारत क
िलए यह ‘ए ट ई ट’ क प रिध से बाहर एक तािकक कदम और दि ण-एिशया क सीमा का िव तार ह। जापान
क िलए िहद महासागर म गितिविध इसक उ रो र साम रक गित का अंग ह। अमे रका क िलए एक एक कत
प र य इसक नए ख क क क ओर झुक िवषय को साधने का मा यम ह। अपनी ओर से स इसे सुदूर पूव
को लेकर अपनी नई पहल क िह से क प म देख सकता ह। यूरोप क िलए यह उस े म वापसी का िवषय ह,
जहाँ से उसको लौटना पड़ा था और चीन क िलए िवशेषकर यह साख दाँव पर लगे होने जैसा ह, य िक एक
वै क श क प म इसक पहचान क िलए समु ी भुता पूव-अनुबंध ह।
यह िन संदेह इस ‘ ेट गेम’ क समकालीन सं करण क वह रणभूिम ह, जो न से पर ह और जहाँ िभ -
िभ अपे ाएँ िलये ब त सार यो ा अपने रणनीितक कौशल का दशन करते रह ह। पार प रक समानता क
उनक यास और ित पधा क समझ िवशेष मह व रखगे, य िक ये वै क जीवन-रखा को भािवत करगे।
हो सकता ह िक इडो-पैिसिफक एक रणनीितक अवधारणा क प म चलन म अब आया ह, लेिकन यह
सिदय से एक आिथक और सां कितक वा तिवकता रहा ह। हो भी य नह , भारतीय और अरब ने चीन क पूव
तट तक अपने कदम क िनशान छोड़ रखे ह, जैसा दि ण-पूव एिशया क लोग ने अ का म िकया था। व तुतः
यह वा तिवकता अब ब त दूर िब कल नह ह और समु क िनबाधता ने इसम वेश होने वाली प मी
श य क भूख को बढ़ाया ही ह। ि िटश सा ा य ने इडो-पैिसिफक क वयं क सं करण को संचािलत िकया,
जो न तो मु था, न ही उदार। इसक संसाधन और िहत , दोन का मानिसक िच ण उ ीसव और बीसव सदी
क तमाम घटना क या या करते ए एक एक कत े म स रत िदखाई देता था।
बदले म दूसरी श य ने भु व का रा ता अपनाया। यिद भारतीय सै य-दल ने बॉ सर िव ोह म लड़ाई लड़ी
तो जापानी भी िसंगापुर और बमा तक आए। इतना ही नह , यह एं लो-अमे रकन गठबंधन ारा भारत से िकए जा
रह भीषण यूह रचना का प रणाम था, िजसने वष 1942 क बाद चीन को जापान क िव लड़ाई म बनाए रखा।
इडो-पैिसिफक का आरिभक युग वष 1945 तक जारी रहा, जो ि िटश और अमे रक सेना क इस े म
उप थित से प होता ह। यु क बाद भारतीय सै य दल को जापान म चुगोक और िशकोक क सात ांत म
तैनात िकया गया तथा 2/5 गोरखा द ते को टो यो क शाही महल क सुर ा म लगाया गया था। इसक बाद ि टन
पर अमे रका क वै क प से हावी हो जाने से भारतीय और पैिसिफक खेमे अलग हो गए। इससे आिधप य का
क पैिसिफक क ओर िखसक गया, िजसे बाद म चीन क ांित और को रया यु से मजबूती िमली। जहाँ तक
ि टन क बात ह, भारत क आजादी और खाड़ी देश को छोड़कर पीछ हटने क िनणय ने इसक िहत को प म
क ओर मोड़ िदया। इसका प रणाम यह रहा िक िनरतरता ने संकिचत होते े का माग श त िकया, िज ह सै य
िनयंि त अिधकार े क प म सु ढ़ िकया गया। इडो-पैिसिफक उतना ही हमारा अतीत ह, िजतना िक यह
हमारा भिव य ह। इसिलए यह रणनीितक प से िकतना यवहाय ह िक यह आज क राजनीित पर िनभर करगा,
जैसा िक अतीत म आ था।
हमार उ े य क िलए आव यक यह ह िक ठीक उसी कार जैसे वष 1945 क बाद अमे रक भु व ने इडो-
पैिसिफक को अ त वहीन कर िदया था, अमे रका से सामंज य अब इसे िफर से गढ़ने म सहायक हो सकता ह।
यह वयं अपने आप ही नह हो सकता ह, य िक कछ और भी वचािलत ि याएँ उसी िदशा म आगे बढ़ रही
ह। इनम चीन क मह वाकां ाएँ, भारत क िहत, जापान का ख, ऑ िलया का भरोसा और आिसयान क
सजगता स मिलत ह। गठबंधन क तरह रणनीितक संक पनाएँ भी समयानुसार िति या देती ह और इडो-
पैिसिफक क िलए वह ण िफर से आ गया ह।
जैसािक आज िव म होने वाले अ य प रवतन क साथ ह, इडो-पैिसिफक क िलए भी उ ेरक का काम
अमे रका क ख म बदलाव और चीन क उ थान ने िकया ह। चूँिक पहला कारक मु यत: िति यावादी ह,
इसिलए यह िव ेषण दूसर क इद-िगद रखना यादा समझदारी होगी। एक दशक पहले चीन ने अपने भिव य म
समु ी श क भूिमका को लेकर सावजिनक और मुखर बहस क थी। इसका कछ िह सा एक परपरागत
रणनीितक दुिवधा को भी लेकर था, जो इसक पूव समु -तट और इसक पार कई ीप ंखला क प रसीमन
से जुड़ा था, लेिकन वष 2009 तक एक यादा यापक खोज हो गई, िजसने इस बहस को समािहत कर िलया।
चीनी नीित-िनमाता ने पहले ही यह अनुमान लगा िलया था िक यिद उस देश को एक वै क श क प
म उभरना ह तो उसे समु श बनने क िलए बा य होना पड़गा। आगामी बहस ने एक ऐितहािसक परपरा को
चुपचाप पूरी तरह से पलट िदया। उस अथ म 2012 न कवल इसक राजनीितक नेतृ व, ब क इसक साम रक
सोच म भी बदलाव का साल रहा।
वै क बदलाव क िहद महासागर पर भाव से भारत भी नह बच सका। इसक अव थित क म आ जाने से
इस देश को एक अनूठी पहचान िमलती ह। िफर भी इस रणनीितक लाभ को इतना अिधक सहज समझा गया िक
इसका समु ी दोहन सदैव औसत से नीचे रहा। जैसे-जैसे नौसैिनक गितिविधयाँ बढ़ती चली ग , भारत को भी
कने टिवटी क अवसर क िलए जूझना पड़ा, िजनक समु ी िनिहताथ थे। एक ताकतवर देश क िलए, िजसका
सुर ा दायरा पहले से ही िव ता रत हो रहा था, अब इसका उ े य महासागरीय यव था पर नजर िटकाना था।
इस चुनौती क कित भी नई तरह क ह, य िक इसका ब त-कछ िह सा वै क साझा िहत (GLOBAL
COMMONS) क नाम पर जारी रहता ह। इस थित का समाधान अप रहाय प से मता म वृि , संतुलन
बनाने म और सहयोग को ो सािहत करने म था। भारत क िलए तकसंगत तो यही ह िक यह उनक साथ िमलकर
काम कर, जो इसक भाव को वीकार कर, इसक िलए बड़ी भूिमका को ो साहन द और इसक ि याकलाप क
साथ सहज रह।
जैसे िक हर अहम श का वयं का प र े य होता ह, कभी-कभी उनका नैरिटव िभ हो सकता ह, हालाँिक
भारत क िलए इसका अथ, दूसर क भंिगमा पर आधा रत अिनवायता पर िति या देते ए भी िनरतर अपनी
गित क राह सुिन त करना ह। पूव एिशया िशखर स मेलन भारत को पहले ही िहद महासागर से पर इडो-
पैिसिफक तक ले गया था। शांत महासागर म इसक ि प ीय, ि प ीय और ब प ीय नौसैिनक अ यास म
भागीदारी इसका अपना मह व दशाती ह। इसक अथ यव था का िनरतर बा करण और पूव क ओर फोकस
इसको समु ी सुर ा और कशलता क िलए संवेदनशील बना देता ह। इसिलए इडो-पैिसिफक का वैचा रक
प ीकरण भारत क बढ़ते िहत क आसपास कि त ह। यह वै क साझा िहत (GLOBAL COMMONS) म
योगदान देने वाली एक यव था का पालन करने वाली श होने क अपनी आ मधारणा तले दबा आ ह। इसक
बुिनयादी िहत भले ही िहद महासागर से जुड़ ह , लेिकन इससे बाहर जाकर उप थित का संकत एक यापक दायर
म शांित यव था को भी सुिन त करगा। चूँिक समु ी गितिविधयाँ सार संतुलन पर एक गहरा भाव डालती ह,
इसिलए भारत क भागीदारी एिशया म थरता बनाए रखने म भी काम आएगी।
हालाँिक इसका अिधकतर यान अपने िहत क िव तार पर ही कि त ह, पर भारत जहाँ वा तव म कछ हटकर
कर सकता ह, वह िहद महासागर ही ह। यह न कवल इसक भाव का वाभािवक े ह, ब क ऐसा समु ी े
भी ह, जो सुर ा क से भी अ यंत भावी ह। यहाँ भारत का ढ़ व प उसक अपने मह व म वृि करता ह
और सुदूर पूव तक एक भ य वागत भी सुिन त करता ह। भारत क िलए इडो-पैिसिफक पर अपना मत प
रखने क िलए आव यक ह िक वह िहद महासागर क रणनीित पर अिधक कशलतापूवक काम कर। वष तक
बदलती ई वा तिवकता क अनदेखी करने क बाद भारत को यह स ाई वीकारनी पड़ी थी िक अब और
अिधक श याँ सागर क नीचे सि य ह। वष 2015 म, यह वीकारो पहले एक कत समु ी कोण का
ढाँचा तैयार करने क ओर ले गई, िजसक प रणित य प म ‘सागर’ (SAGAR) (Security and Growth for
All in the Region) क प म ई। सहयोग बढ़ाने और अपनी मता का वृहत क याण क िलए उपयोग करना
भारत को लाभा वत करगा।
इस धारणा पर आधा रत कोण क चार मौिलक उ े य ह—पहला, हमारी मु यभूिम और ीप क सुर ा,
हमार िहत का संर ण, एक िव सनीय, सुरि त और संतुिलत िहद महासागर तथा दूसर क िलए हमारी मता
क उपल धता ह। दूसरा, हमार समु ी तटवत पड़ोिसय क साथ गहराता आिथक और सुर ा सहयोग और उनक
मता म वृि करना ह। तीसरा, शांित और सुर ा क िलए सामूिहक यास और सहयोग को बढ़ावा देने एवं
आपात थितय म व रत कारवाई क िवचार से े रत ह एवं चौथा, े क िलए और अिधक एक कत एवं
सहयोगा मक भिव य क माँग करता ह, जो सतत िवकास का संवधन कर सक। ‘सागर’ (SAGAR), ती सि य
और प रणाम-कि त एक ऐसे भारतीय कोण को आगे बढ़ाता ह, जो सहयोिगय क अपे ा पर खरा उतरते
ए अपने भाव म वृि कर। इसे, आंत रक े क संपक और श शाली े वाद, समु ी योगदान एवं समथन
और िव ता रत पड़ोस क संक पना म पांत रत िकया गया ह। यह एक खर सुर ा दाता क प म
उ रदािय व सँभालने क उ भावना क साथ आता ह। इसका भाव प रयोजना , अ णी सि यता और
गितिविधय म अिधक िदखाई देता ह।
वृहद समु ी रणनीित क िलए तय ाथिमकता का एक संकलन होता ह, जो संकि त वृ क प म भलीभाँित
प रलि त होता ह। इसका मूल, देश क िलए एक समु ी संरचना, ीपीय प रसंपि य का िवकास, िनकटवत
पड़ोिसय से कने टिवटी और िदन- ितिदन काम म लाई जाने वाली मताएँ होती ह। ‘नेबर ड फ ट’ क इसक
नीित क संदभ म, वे पहल जो सामुि क भाव रखती ह, उनक िवशेष ासंिगकता होती ह। अगले वृ म भारत क
समु ी सीमा क बाहर का े और इसक िनकटवत ीपीय पड़ोसी जैसे— ीलंका, मालदीव, मॉरीशस और
सेशे स शािमल ह। अिधकतम मह व भूतल पर िव ता रत पड़ोस से कने टिवटी क पुनसचालन का ह, य िक
भारतीय मता क िलए यापक तर पर अपने िह से क समु ी सुर ा पर उनका भाव साफ िदखाई देता ह।
वा तिवक चुनौती इसक बाद आती ह—जब एक समुदाय क प म िहद महासागर को पुनज िवत करना हो, जो
अपने ऐितहािसक और सां कितक आधार पर आि त हो। िहद महासागर प र े म यह कवल सहयोग ही ह, िजसे
आधार बनाकर भारत अपनी सीमा से बाहर क घटना को भी मह वपूण ढग से भािवत करने क आशा कर
सकता ह। महासागर को अिधक िनबाध और सहयोग- े बनाया जाए, यह न कवल एक यापक े ीय उ े य
ह, ब क यह भारत क क ीयता को समृ करने वाला मं भी मािणत होगा। ये चुनौितयाँ यिद वभाव और
मह व म िभ भी ह, तो भी इन पर समानांतर यान देने क आव यकता ह, य िक इ ह वयं को साधने वाला
बनना ह। सबसे बाहरी प रवृ भारत को पैिसिफक क ओर ले जाता ह, जहाँ एक कि त झुकाव वाले िहत को
साधते ए मूलभूत सुर ा भी सुिन त करनी ह और साथ ही एक थर बा प रिध को भी ो सािहत करना ह।
इस संदभ म नीितय का आदान- दान, साम य का अ यास और सहयोग क काय णाली िवकिसत करने क काय
जारी ह। यह इन वृ क पर पर ि या ह, जो न कवल भारत क सामुि क भिव य को, ब क इसक यापक
साम रक कोण को भी िनधा रत करगी।
‘ए ट ई ट पॉिलसी’ और वृहत सामुि क गितिविधयाँ भारत को, औपिनवेिशक युग म न हो चुक इसक पूव-
तटीय बंदरगाह को पुनज िवत करने क ओर भी ले जा रही ह, लेिकन इनक अव थित का पूण लाभ लेने क िलए
यह ज री ह िक समु ी सुिवधा क कने टिवटी को भारत क सीमा से आगे बढ़ाया जाए। इस संदभ म
बां लादेश और याँमार, दोन क पास ब त अिधक संभावनाएँ ह। ‘लाइन ऑफ िडट’ क ज रए कने टिवटी और
िविनमाण प रयोजना क उप म पहले से ही सि य ह, हालाँिक िस वे बंदरगाह क िलए कलादान प रयोजना
और थाईलड क िलए ि प ीय हाइवे दोन ही याँमार क िलए बड़ी प रयोजनाएँ ह, बंगाल क खाड़ी क पार संपक
क िव तार क भी पया संभावनाएँ ह।
इसक अपनी सीमा क भीतर भी अनेक िवक प उपल ध ह, जो भारत अपने समु ी भाव को ती करने क
िलए उपयोग कर सकता ह। अंडमान-िनकोबार ीप समूह को िवकिसत करना इस संदभ म िन त प से सबसे
मुख रहगा। हम वयं से यह न करते रहना चािहए िक दूसर देश ने इतनी अ छी भौगोिलक थित वाले थान
का उपयोग कसे िकया होगा? चाह ‘ए ट ई ट’ हो, ‘सागर (SAGAR)’, ‘नेबर ड फ ट’ या िफर ‘इडो-
पैिसिफक’, रणनीित क शु आत घर से होती ह और यह वहाँ वा तिवक अथ म फलती-फलती ह। यह ही हमारी
गंभीरता क परी ा होगी।
दूसरी प र थितय म साक (SAARC) को िफर से ऊजावान बनाना भारत क िवदेश नीित क अहम
ाथिमकता म से एक होनी चािहए। दि ण एिशया िन त प से िव क सबसे कम एक कत े म से
एक ह और िहद महासागर क क म थत होने क कारण इसक िशिथलता का उस यापक े पर सीधा भाव
पड़ता ह। इतना ही नह , कने टिवटी थािपत करने और यापार क िव तार क से भी यहाँ श त अवसर
िदखाई पड़ते ह, भले ही एक देश अपनी अवांछनीय अकड़ से े रत हो, मूलभूत एजड का िवरोध करते ए पर पर
सहयोग क आव यकता को कम आँकता हो। इसिलए भारत सभी ि प ीय और ब प ीय सि यता क
ता कािलक आव यकता पर ब त यान देता ह। अंतत: अपे ा यही रहगी िक इस े तथा अ य े म भी शांित
बनी रह। इन सबक बीच, बंगाल क खाड़ी पर यान देते ए िबम टक (BIMSTEC) जैसे िवक प को भी
िवकिसत करना होगा।
िव ता रत पड़ोस क भावना को बलता देना, खोए ए गौरव को िफर से पाने क भारत क यास का िह सा
ह। इसका सां कितक आधार, चाह वह दि ण-पूव एिशया म हो, खाड़ी क देश म हो या िफर म य एिशया म,
इतना प िदखता ह िक इसे मािणत करने क आव यकता ब त कम पड़ती ह। यहाँ तक िक यापार, िनवेश
और यातायात क भाव से इसका आिथक आधार भी धीर-धीर बढ़ रहा ह। िजस चीज क वा तव म कमी रही,
वह थी कने टिवटी, िजसको सु ढ़ बनाने का काम सात दशक पहले बािधत कर िदया गया था। इसका भावी
समाधान खोजने म महासागर वा तिवक भूिमका िनभा सकता ह।
इसक कई ऐितहािसक गाथा म िहद महासागर का उ ेख, इसक आर-पार फले िव तृत भौगोिलक े क
बड़ी आबादी क िलए एक राजमाग क प म िमलता ह। यह मह वपूण भूिमका एक बार िफर दोहराई जा सकती
ह, यिद इसक गु वाकषण का क सुिवधा दान करने का एक आकषक ोत बन सक। इसक िलए व तु
और मानव संसाधन का सुगम आवागमन न कवल भारत क भीतर, ब क इसक समीपवत पड़ोिसय और उससे
आगे भी सुिन त िकया जाए। यह मा संयोग नह ह िक उ क कने टिवटी भारतीय िवदेश नीित क कई
अ णी सि यता क क म ह। ांस-नेशनल हाइवे िनमाण, ब - ित पीय यातायात ताव, रलवे
आधुिनक करण, अंतदशीय जलमाग, तटीय पोत-प रवहन और बंदरगाह क िवकास क ित बढ़ती ितब ता
इसक मह व को दिशत करती ह। वा तव म, उ म लॉिज ट स भारत क अपने पड़ोिसय तक प च बनाने क
भावशाली िवषय-व तु बन गई ह।
भारत का प म क साथ अनुभव कम सकारा मक रहा ह और इसक कारण भलीभाँित सविविदत ह। इस बात
क होते ए भी ईरान क साथ चाबहार प रयोजना और इससे अफगािन तान क िलए िमलने वाली समु ी प च एक
मह वपूण शु आत ह। यूरिशया क िलए एक ांिजट कॉ रडोर क प म ईरान से जुड़ी संभावना का पया
दोहन िकया जा सकता ह। इसी तरह का, अंतररा ीय उ र-पूव यातायात गिलयारा भी ह, जो स और यूरोप क
िलए प रवहन को सुगम बना सकता ह। साथ ही ‘अ गाबात समझौता’ भी ह, जो िहद महासागर को म य एिशया
से जोड़ सकता ह। आने वाले समय म खाड़ी देश और प म एिशया म होने वाले बदलाव और अिधक िवक प
तुत कर सकते ह।
िहद महासागर क रणनीित का वाभािवक अथ अपने समु ी पड़ोिसय को अिधक मह व देना ह, जैसा िक ऐसे
मामल म सामा यतः होता ही ह, इितहास और सामािजकता दोन क लाभ एक साथ िमल जाते ह। ीलंका,
मालदीव, मॉरीशस और सेशे स क साथ संबंध को गढ़ने क ि या को राजनीितक यता, यापक सहयोग और
अिधक प रयोजना क मा यम से कट िकया जाता ह। इसक अलावा यापार, पयटन, इ ा र, प रवेश,
समु ी अथ यव था और सुर ा को लेकर भी एक एक कत कोण उभरकर सामने आ रहा ह। भारत इन देश
क साम य बढ़ाने क िदशा म भी भागीदारी करता रहा ह, िजसक अंतगत रडार, तटीय िनगरानी उपकरण, जलयान
एवं एयर ा ट उपल ध कराना और समु ी आधारभूत संरचना क थापना स मिलत ह। सहयोग का े आज
असै य और यावसाियक जहाज से संबंिधत आधुिनक जानका रय का आदान- दान, समु ी अथ यव था,
आपदा पर िति या, समु ी लूटपाट क रोकथाम, आतंकवाद िवरोधी उपाय और साथ ही समु िव ान जैसे
िवषय तक फल चुका ह। इन देश क िलए यह देखना काफ आ त करने वाला रहा िक कोरोना महामारी म
िकस कार भारत इनक सहायता क िलए ढ़ता क साथ डटा रहा।
भारत क सुर ा-िहत क िलए समु ी िवषय को लेकर इन पर पर संबंध क मह व को बढ़ा-चढ़ाकर नह
बताया जा सकता। अंतत: यही वह क क ह, जहाँ से भारत एक वृह र अिखल भारतीय महासागरीय संरचना को
प देने म सहयोग दे सकता ह। इसिलए यह सुिन त करना ब त मह वपूण ह िक ये समीपवत े भारत क
िहत क ित संवेदनशील बने रह। यह भी अपे ा रहगी िक िहद महासागर कड़ी ित पधा क रणभूिम न बनने
पाए। ीपीय देश क पास अपनी संवेदनशीलता तो रहगी ही, उनक अपनी गणनाएँ भी ह गी। उनको िमलने वाले
अवसर से, हालाँिक वे सबसे बेहतर लाभ पाने का य न कर सकते ह, िफर भी राजनीितक सुिवधा, आिथक
सहयोग और सां कितक जुड़ाव क भी अपने अथ रहगे। शांित, समृि , सुर ा और थािय व का उ रदािय व
मुख प से थानीय श य क कोण पर िटका ह। उनक सामूिहक सोच और सहयोगा मक कारवाई वृहत
सामुदाियक जाग कता का आधार ह। इसक समथन का सबसे बल तक महासागर क इितहास म िनिहत ह।
िहद महासागर क ‘दुिनया’ कभी आव यक एकता से स त आ करती थी, जो समु ी यापार क आपसी
तालमेल पर िटक ई थी। हम यह भी ात ह िक ाकितक और प रवतनशील सीमा क बावजूद यह वा तव म
एक आ मिनभर यव था थी, जोिक दूसरी समु ी यव था से िब कल हटकर थी।
सां कितक भाव क साथ समु ी यापार का मेल पूर महासागर क मानिच पर फला आ था। इसक
फल व प परपराएँ, आचरण, आ थाएँ और वािण य ने एक आभासी कने टिवटी पैदा कर दी, िजसने दू रय को
समािहत कर िलया। िफर भी, इितहास क इस गाथा को अंतररा ीय संबंध क वा तिवकता क िलए भी रा ता
छोड़ना था, य िक यूरोपीय लोग क आगमन ने महासागर और इसक तटीय े को खंिडत कर िदया था। उ र
उपिनवेशवादी िव ने नए रा और त प ा े ीय पहचान बनाने शु कर िदए, िजसने महासागर को पहले से
और समृ कर िदया। इसक अलावा, िहद महासागर क तटीय े क िविश आिथक गितिविध और सां कितक
वृि य का भाव, हमेशा भीतरी मु य भूिम तक नह प च सका। शायद इसी गंभीरता क अभाव क कारण एक
समूचा पा र थितक तं रणनीितक प से घटकर मा एक जलीय े बनकर रह गया। अिधकांशत: सामािजक,
आिथक और भू-राजनीित कारक का आपसी तनाव इस थित क िलए उ रदायी रहा। आज जब भू-राजनीितक
प र य नाटक य प से बदल रहा ह, िहद महासागर इससे भािवत ए िबना नह रह सकता।
महासागर क िवकास को समझ तो िहद महासागर को हजार वष क सं कित का लाभ िमलता रहा ह। भले ही
इसक आधारभूत आिथक गितिविधयाँ सीधे मौसम च क कित पर आि त रहती थ , इ ह परपरा ारा भी
आगे बढ़ाया गया। फल व प महासागर ने अपनी वयं क िवशेष पहचान िवकिसत कर ली, जोिक गितशीलता,
वीकित और अंत वेश पर आधा रत थी। ये ऐितहािसक िवरासत, इसक िव तार क सुदूरवत बाली क िहदू मंिदर
और िमसॉन (My Son) से लेकर चीन क फिजयान (Fujian) तट पर थत चगचो (Zhengzhou) तक; अचे
(Aceh) क अरब समुदाय और पूव ीलंका म या िफर मेडागा कर क वाकवाक (Waqwaq) म बसने वाल
तक िदखाई देती ह। वा तव म, वै क झान क कछ और भी असाधारण उदाहरण ह, जो े ीयता क थानीय
पहचान क मा यम से िदखते ए बोध होते ह। इतने युग बाद इन परपरा व धरोहर क अवशेष उस िवशालता
को कवल आंिशक प से ित विनत कर पाते ह, जो बताती ह िक िकसी समय यह िकतनी भ य रही होगी। जो
कहानी वे अब भी सुनाया करते ह, वह इस बात का माण ह िक िहद महासागर का सम लोकाचार सह-अ त व
और सामंज य का था, जहाँ िविवधता क िलए स मान, यापार क ो साहन म सहज प म अंतिनिहत था। इसक
अपनी पहचान और इसक अ छी समझ को पुनज िवत करने क िलए िहद महासागर क इस ब रगे व प को
समझना और सजोना ब त अिधक मह वपूण ह।
ब लवाद और सम वयता, महासागर क वे िविश ऐितहािसक गुण ह, िज ह उदारतावाद ने भी बलता दी ह।
इसक बार म यिद हम यानपूवक सोच तो िहद महासागर अं ेजी बोलने वाला सबसे सघन जनसं या वाला जलीय
े ह, जो अटलांिटक महासागर से भी बड़ा ह। िन संदेह औपिनवेिशक युग ने इस महासागरीय समुदाय क ित
तो ब त कर दी, लेिकन अपने पीछ अंतररा ीय मानदंड और िविध क शासन का समथन करने वाले सं थान ,
यवहार और मू य को भी छोड़ गया। आज पुरातन और आधुिनक इितहास, दोन का संयोजन, अपने वयं क
पहचान कराने वाले एक अिधक समकालीन े को िवकिसत करने का आधार उपल ध कराता ह।
लेिकन इसक परपरा और आकां ा क बावजूद वा तिवकता यही ह िक िहद महासागर क एकजुटता
अपने आप म प नह ह। इसक कारण ब त जिटल ह और शोध करने यो य ह। आंिशक प से यह बा
श य ारा इस े क परो िवघटन िकए जाने का प रणाम था। औपिनवेिशक भु व ने अपने शासिनक
अिधकार े क अंतगत युग क वाभािवक संपक और आवागमन को कि म बाधा उ प करक श हीन कर
िदया। थानीय समु ी यापार और साम य क िसकड़ने क साथ उनक िवशेषता ने महासागर और उसक तटीय
समाज क बीच अलगाव को बढ़ाना शु कर िदया।
जैसे-जैसे समु ी गितिविधय क ये अंतिनिहत थाएँ यूरोपीय लोग क उप थित क चलते कम होती ग , इस
िव तृत वै क साझा िहत (GLOBAL COMMONS) का सि य प से यमान अंश भी ब त छोटा रह गया।
महासागर क सं कित पर भारत क भा य का भाव सबसे बड़ी बाधा बनकर सामने आया। औपिनवेिशक शासन
क दौरान, िवभाजन ने इसक भाव म कमी को और बढ़ा िदया। प च और मह व दोन क कोण से महासागर
का अ त व मह वहीन बनकर रह गया। कवल इतना ही नह , उ र औपिनवेिशक युग म आधुिनक रा -रा य क
उ व ने पुन: े ीयता पर इतना अिधक बल िदया िक इसने े ीय और अंतर- े ीय सहयोग क बहाव को और
कम कर िदया। फल व प िहद महासागर को अटलांिटक और शांत महासागर क तुलना म वा तिवक प से
कम संब ता यो य माना गया। यहाँ तक िक इसक छोट िह से, बंगाल क खाड़ी या िफर अरब सागर को
मेिडटरिनयन और करिबयन या िफर उ री ुव सागर क तरह एक सं कित सँजोने वाले प म भी मा यता नह
िमली। िवशेष प से, जब िवपरीत िहत वाली श शाली ताकत इसक िवरोध म खड़ी ह , तब उसे िफर से बनाना
आसान नह होगा।
दूसर े क तरह िहद महासागर को भी और अिधक समाधान अपने भीतर ही ढढ़ने ह गे। उस िदशा म एक
मह वपूण कदम, जो पहचान को अपे ाकत अिधक प प म उजागर करने म सहायक हो सक, उस
कने टिवटी को बनाने का हो सकता ह। इसक, अतीत वाले मानसून-संचािलत पहचान क ओर लौटना, िन त
प से अिधक यावहा रक नह होगा, हालाँिक हम उदार कने टिवटी क आकषण को कछ कम नह आँकना
चािहए। सम या यह ह िक िपछले पाँच दशक म तटीय देश म से येक ने िकसी-न-िकसी े ीय समूह क साथ
अपने संबंध थािपत कर िलये ह, कछ ने तो एक से भी अिधक समूह क साथ। महासागर से गुजरते ए हम
संि नाम क एक ंखला देखने को िमलती ह, जो इसक िवभ होने को मािणत करती ह, इनम
एस.ए.डी.सी. (SADC), जी.सी.सी. (GCC), साक (SAARC), िब सटक (BIMSTEC), आिसयान (ASEAN),
ई.ए.एस. (EAS) इ यािद मुख ह। इसिलए रा और े को एक कत िहद महासागर क िलए काम करने को
ो सािहत करना इतना आसान नह ह। कोई भी संभवतः िवरोध का सामना नह कर, पर ऐसा करने का उ साह
कछ म ही िदख पाएगा।
इन समूह म पर पर और अिधक बंधु व को बढ़ावा देना भी कटनीितक तर पर वयं ही इस िदशा म योगदान
करगा। आपसी सीमा को भौितक प से जोड़ना भी सहायक िस हो सकता ह। भारत- याँमार सीमा इसका
एक अ छा उदाहरण ह, जहाँ साक आिसयान से िमलता ह। भू-तलीय संपक िन त प से आव यक ह, पर हम
यह भी वीकार करना होगा िक समु ी अवसंरचना का अश होना भी, अिधकांशतः िहद महासागर क इस दशा
क िलए उ रदायी ह। इसक तटीय े का िवकास भी कम मह वपूण नह ह। िहद महासागर क किमय म कछ
योगदान इसक तटीय सं कित क संक णता का भी था। एिशया म जैसे-जैसे रा ीय समाज का उदय होता
गया, महासागर से मनोवै ािनक दूरी भी और संक ण होती गई। तटीय अथ यव थाएँ उ रो र प से समु ी यापार
से संब हो गई ह। अब यह प िदखाई पड़ता ह िक उनक मूलभूत ढाँचे का िवकास िहद महासागर क मह व
को बढ़ाने म एक ‘गेम चजर’ क भूिमका िनभा सकता ह।
वै क यापार और िवकास क िलए िहद महासागर क क ीयता का अनुभव कोई नई बात नह ह। व तुतः यह
िव क संपूण महासागरीय े का बीस ितशत भाग ह और लगभग 70,000 िकलोमीटर समु ी तट रखा तक
फला आ ह, लेिकन िव तार से भी अिधक यह भौगोिलक थित का िवषय ह। चाह हम े को बाजार समझ या
उ पादन क क , एिशयाई अथ यव था क पुन थान क साथ, मा उ पाद क प रवहन को अिधक मह व िदया
गया। फल व प ाकितक संसाधन का वाह भी इस महासागर क साथ िवकिसत होता रहा। यह अब िव क
दो-ितहाई समु ी तेल कारोबार क िलए उ रदायी ह। िव क चालीस ितशत से अिधक जनसं या इस महासागर
क आसपास रहती ह। िव क एक-ितहाई िवशालकाय काग और इसक आधे कटनर का सुचा प से और
िनबाध यातायात सुिन त करना कोई साधारण दािय व का काम नह ह। समय बीतने क साथ इसे उ रो र
सामूिहक वभाव भी दिशत करना होगा।
भारत इस चुनौती को गंभीरता से लेता ह और अपने दािय व को पूरी तरह िनभाने को तैयार ह। हमने अपने कछ
समीपवत पड़ोिसय क साथ असैिनक जलयान क आवागमन संबंधी सूचना क अि म आदान- दान क िलए
‘ हाइट िशिपंग ए ीमट’ तथा तटीय एवं िविश आिथक े (EEZ) क िनगरानी क िलए सहयोग करने का काम
भी आरभ कर िदया ह। भारत समु ी सुर ा क िलए आर.ई.सी.ए.ए.पी. (ReCAAP) और एस.ओ.एम.एस. 10 तं
(SOMS 10 Mechanism) जैसी यव था म भी स मिलत होता ह। हमने अपने पूव और प मी दोन ओर
समु ी द युता से िनपटने म भी सि य भूिमका िनभाई ह। इस े म अदन क खाड़ी और दूसर समु ी माग पर
द युता रोकने क िलए ग त का काम वष 2008 से संचािलत िकया गया ह। भारतीय नौसेना ने समु ी द युता रोकने
वाले लगभग पचास र क अिभयान चलाए ह। कल िमलाकर, इस े म इसने समु ी सुर ा म अभूतपूव योगदान
िदया ह। यह िदसंबर 2015 म उ सतकता े को सीिमत करने म सफल रहा, िजसक चलते जलयान प रवहन
बीमा क लागत म भी कमी आई ह।
िहद महासागर म सुर ा चुनौितय का सामना हर ितभागी अपने अनुसार करता ह। भारत क संदभ म, इसे
िविभ ासंिगक े ीय िनकाय से जो श िमलती ह, वह िन य ही इसक रा ीय साम य का प रणाम ह।
भारत िवशेष प से, े ीय संगठन आिसयान को एक ऊचे तर और यापक मंच क मा यता देता ह। िनकटवत
पड़ोस म भारत, ीलंका और मालदीव क साथ ि प ीय संवाद कर रहा ह। जहाँ तक नौसैिनक िहत क बात ह,
पतीस देश क ‘िहद महासागर नौसेना संगो ी’ (IONS) क िपछले दशक म अनवरत वृि अ यंत उ साहजनक
रही ह। यह समु ी िवषय पर एक साझी समझ को ो सािहत करने, े ीय समु ी सुर ा बढ़ाने, साम य को
अिधकािधक बल बनाने, सहयोगा मक तं थािपत करने, अंतर-संचालन िवकिसत करने और व रत िति या
उपल ध कराने म लाभकारी िस आ ह।
नीित से आगे बढ़कर यिद दशन पर यान द तो प ह िक साझा सुर ा ल य क िलए नौसेना का संयु
अ यास थरता लाने म सफल िस आ ह। भारत िसंगापुर, ीलंका, ांस, ऑ िलया तथा अ य देश क साथ
कई ि प ीय अ यास म भाग लेता ह। इसक साथ ही हम अमे रका और जापान क साथ भी मालाबार समूह क
अ यास म भागीदार ह। भारत ने िहद महासागर क कछ ीपीय रा को नौसैिनक उपकरण क आपूित क ह,
िश ण िदया ह और समु िव ान संबंधी सेवाएँ भी संचािलत क ह। इसका समु ी ि ितज आज प प से
पूव अ का क सहयोिगय तक िव तृत ह।
िहद महासागर म एक सामुदाियक पहचान को पुनज िवत करना एक किठन काय ह। अपने संरचना मक
व प म अिधक िवषय-व तु और ऊची पहचान क िलए इसे ‘िहद महासागर प रिध संघ’ (Indian Ocean
Rim Association) जैसे सामुि क मंच क आव यकता रहगी। पर वह एक अ यंत जिटल चुनौती से िनपटने क
िलए संभवतः अिधक औपचा रक तरीका होगा। िभ ऐितहािसक पृ भूिम वाले अनेक रा को एक साझा
समु ी े क आसपास संगिठत करने क िलए सां थािनक और अनौपचा रक दोन कार क िनदान क
आव यकता होती ह। बस एक बार हम उनक बार म उस िदशा म सोचना शु कर द, य िक मूलभूत िह से तो
अ त व म रहते ही ह।
यिद यह त य सवमा य ह तो वह यह िक इस अिन त दुिनया म गठबंधन क िवशेषता घटती जा रही ह। यह
भी प प रलि त होता ह िक भाव दशन क िलए पुरातनपंथी ित ंि ता का थान और अिधक उपयु
ित पधा ने ले िलया ह। आज भिव य ऐसे देश को साथ लेने का ह, िजनक िहत समान ह या िफर एक-दूसर
को आ छािदत करते ह । इसका आशय यह ह—अिधक वतं िवचार क साथ एजडा तय करना और संवाद
थािपत करना। साथ ही इस बात क समझ रखना िक गित क िलए हर सहयोगी या करने क यो यता रखता ह।
नौसैिनक अ यास , इ ा र संबंधी रणनीितक िवमश म पहले से ही ये संकत िमलते ह।
थरता और यव था मा मता क बल पर नह बनाए जा सकते। इसे िविध क अनुशासन ारा संतुिलत
िकया जाना चािहए, जैसे इस मामले म ‘यूनाइटड नेशंस क वशंस ऑन द लॉ ऑफ द सी’ (UNCLOS) क ित
िन ा, िजसे ‘इिडयन ओशन रम एसोिसएशन’ (IORA) ने सामुि क यव था क िलए एक संिवधान क प म
मा यता दी ह। उ रो र वै ीकत िव म समु ी यापार क मह व को समझते ए भारत, नौप रवहन और वायु
े को सीमारिहत बनाते ए उड़ान क वतं ता, िनिव न वािण य का समथन करता ह, जो अंतररा ीय िविध
क िस ांत पर आधा रत ह और िजनको UNCLOS म िवशेष मह व िदया गया ह। भारत का यह भी मानना ह िक
रा को आपसी िववाद िबना भय अथवा बल योग क शांितपूण ढग से सुलझाने चािहए और ऐसी गितिविधय को
संचािलत करते समय आ मसंयम का प रचय देना चािहए, जो िववाद को जिटल बनाकर या बढ़ाकर शांित और
थरता को हािन प चाने वाली हो सकती ह। बंदरगाह को जोड़ने वाले नौप रवहन क माग शांित, थरता, समृि
और िवकास क िलए ब त मह वपूण ह। UNCLOS क एक सद य रा क प म भारत ने सभी प से अपील
क ह िक वे उस परपरा का सव स मान कर, जो समु और महासागर क अंतररा ीय वैधािनक यव था को
थािपत करती ह। हमारा भी यही मत ह िक पूरक VII यायािधकरण और इसक िनणय को वयं UNCLOS क
भाग-XV म मा यता दी जाए।
यिद िहद महासागर को अब वै क राजनीितक वाता म मुख थान हण करना ह तो इसे IORA को और
आगे िवकिसत करना होगा। लगभग दो दशक से इस िनकाय ने सम वया मक लोकाचार बनाने क िलए कई सारी
िविवधता म सामंज य थािपत िकया ह। यह े ीय सहयोग क िलए एक सामा य आधार बनाने और साझा िहत
को िवकिसत करने क अवसर भी उपल ध कराता ह। यह यापार, अकादिमक सं था , िव ान और सद य
रा क लोग क पर पर संपक को भी ो सािहत करता ह। भारत इस े म अपने ि प ीय संबंध का िव तार
करते ए इस प रधीय संघ को बनाने क ित िन ावान ह। वह इसक सार और आगे इसक गितिविधय , अ य
ऊजा और समु ी अथ यव था से लेकर समु ी कशलता और सुर ा, जल िव ान और वृहद सं थानीकरण एवं
िथंक टक नेटविकग तक म तेजी को एक उपल ध क प म देखता ह।
िहद महासागर क इितहास और परपरा को देखते ए यह पूरी तरह से उपयु तीत होता ह िक इसक
तालमेल को आगे बढ़ाने वाले गंभीर यास को, इसक एकता और पहचान क मु को संबोिधत करना होगा।
हम िहद महासागर क आर-पार फले उन आ वासी प रवार क संबंध का पूरा लाभ उठाना चािहए, जो इसक
इितहास का मह वपूण अंग ह, लेिकन इसे और अिधक सि य कदम उठाने क भी आव यकता ह। ‘ ोजे ट
मौसम’, िजसका नामकरण िहद महासागर क एक िविश वायु तं पर आधा रत ह, इस े क वभावगत ल ण
म िच को कट करता ह।
यह प रयोजना सं कित, वािण य और धािमक अंतसपक पर पुराता वक और ऐितहािसक शोध को बढ़ावा देती
ह। यह ान क पर पर आदान- दान, नेटविकग और काशन को आगे बढ़ाने का ोत बन गई ह। यिद यह
महासागर क पहचान को पुनज िवत करने क िलए समकालीन पहल का एक उदाहरण ह तो दूसर कई और भी
अनुपूरक पहल ह, जो समान उ े य क िलए काय करती ह। आयुवद और योग जैसे पारप रक ान और प ितय
म िचय को बढ़ाकर, बौ धम और सूफ वाद जैसे मत क इितहास-या ा म उ सुकता को पुनजा त कर या
िफर मानव संपदा क आदान- दान क िलए नालंदा और रामायण जैसे श शाली तीक का उपयोग करक हम
चरणब तरीक से एक ऐसे पा र थितक तं क चेतना म वृि कर रह ह, जो कभी अपनी जीवंतता म सुरि त
थी।
प त: ब त-कछ इस पर िनभर करता ह िक एिशया म कने टिवटी क संभावनाएँ कसा व प हण करगी।
आज ढर सार कोण और आगे बढ़ने क अवसर ह, जो इस े क रा को िवक प दान करते ह। यह
समझा जा सकता ह िक इनम से कई उपल ध सभी अवसर का भरपूर लाभ लेना चाहगे।
लेिकन िपछले दशक क अनुभव इस संदभ म प रप और सुिवचा रत िनणय लेने क मह व को रखांिकत करते
ह। यिद कने टिवटी को कोई िवशेष रणनीितक ल य ा नह करना ह तो इस बात का ठोस आ ासन
आव यक ह िक प रयोजना का योग दबाव बनाने क िलए नह िकया जाएगा। इसी कार, लाभ प चाने म
असमथ रहने वाली प रयोजनाएँ भी ऐसी थित वाली संभावना को ज म देती ह। ऐसे अवसर पर यह ब त
ज री ह िक सं भुता का स मान हो और िववािदत िवषय को पर रखा जाए। कने टिवटी क िनिहताथ उसी अथ म
साथक ह, जब वह वाह क ैितज फलाव को यापक बनाए, न िक उसे िदशा देने का य न कर।
िहद महासागर क लोकाचार क कित परामश ह और दीघकािलक अविध म जन-कि त सि यता और
प रयोजना क बने रहने क संभावना अिधक रहगी। चूँिक हम कने टिवटी को सदैव थूल प म देखने क
अ य त ह, इसिलए हम यह नह भूलना चािहए िक इसका एक उदार प भी ह, जो कम मह वपूण नह ह।
नाग रक का पर पर संपक, धािमक या ाएँ और आदान- दान, परपरागत धरोहर का संर ण और सां कितक
चार- सार ये सब वे भावी त य ह, जो समाज क बीच बंधु व क समझ को बढ़ाने म योगदान कर सकते ह।
इसिलए यह आव यक ह िक हम कने टिवटी क चुनौती से िनपटने म एक सम कोण बनाकर रख, जो
समुदाय कि त हो, न िक लेन-देन िवषयक और िजसक ाथिमक संचालन श सबक क याण क उ े य म
िनिहत हो।
िहद महासागर का कोई भी िव ेषण, िवकास को इसक पराका ा तक प चाए िबना पूरा नह होगा—चाह वे
अ का क पूव तट ह या शांत महासागरीय ीप। शांत महासागरीय ीप िशखर स मेलन को बनाए रखने और
हमार तालमेल और िवकास प रयोजना का िव तार, जलवायु औिच य क हमार साझा उ े य को मूत प देने
क िलए आव यक ह। इसी तरह अ का म भारत क गितिविधय को भी वह मह व नह िमला ह, िजसक वे
अिधकारी ह। दशन से बचना भी आंिशक प से इसका कारण रहा ह। िहद महासागर क प रिध म थत वे पूव
अ क देश, िजनक साथ हमारा दीघकािलक ऐितहािसक संपक और आ मीय लगाव रहा ह, उनक साथ इडो-
पैिसिफक िवमश क िलए हमार संबंध िवशेष प से समीचीन ह।
िहद महासागर का संदभ समाज, सं कित और वािण य से संबंिधत ह। इसक जिटल संरचना और सू म तंतु
क सराहना इसक िवकास और पुन थान क िलए अिनवाय ह। इसे उदारता क साथ आगे बढ़ाने क आव यकता
ह, न िक यापा रक कोण से। इसको एक सहयोगी का तर देना होगा, न िक ित ं ी का। भु व जमाने वाले
नह , ब क अंतिनभरता वाले उ े य को अपनाना होगा। भले ही मानसून अब यह तय न कर िक जहाज कब
या ा पर जाएँ, िफर भी इसक लय अरब लोग क जीवन म या ह। महासागर अब एक िमलन- े और
सं कितय क िमलाने वाले माग क प म अपने िलए एक नई ित ा ा कर रहा ह। समय आ रहा ह िक यह
वयं क पहचान क साथ वापस लौट, जोिक इडो-पैिसिफक क संभावना क िलए अ यंत आव यक ह।
इसको योग म लाने क िलए भारत को योगदान करने वाला कोण अपनाना होगा, जो दूसर का सहयोगी
बनकर उनक मता का िवकास और िहत क सुर ा कर सक। दूसरा यह िक इस ि या म चाह यह
ि प ीय हो या े ीय, साझा समु ी लाम क संदभ म भी इसे अपनी भूिमका एक परामश देने वाले क ही रखनी
चािहए। यापक दािय व क वे छापूवक िनवहन का संक प भी जारी रखना होगा। व तुतः यह हमारी
गौरवशाली संयु रा शांितर क परपरा का सामुि क सं करण ह। इसी क साथ अंतररा ीय िनयम और
मानदंड क ित स मान का संदेश देना भी वहाँ आव यक ह, जहाँ भारत का आचरण कथन से ऊपर उठकर
अपनी उ त छिव थािपत करने म समथ ह। गैर- े ीय श य को िति या देने और अंतर- े ीय श य
क साथ नए समीकरण साधने से ही एक नई और उभरती ई वा तु-संरचना को साकार िकया जा सकगा। अनेक
सहयोिगय क साथ आपसी समझ को बनाए रखने पर अिधक यान देना होगा, िजससे अिधक वैिव यपूण
संतुलन उभर सक। आिसयान को इडो-पैिसिफक म उसक मह व को लेकर आ त रखना िवशेष प से
अहम ह, य िक अतीत म उसी समूह ने सभी गंभीर े ीय बहस को आगे बढ़ाया ह। यावहा रक और
सै ांितक दोन प म यह इसक क ीयता को बढ़ाने का एक अवसर ह।
इडो-पैिसिफक े को लेकर भारत क कोण क अगर सव म अिभ य कोई हो सकती ह तो वह वष
2018 म िसंगापुर म शांगरी-ला डायलॉग क दौरान धानमं ी मोदी क संबोधन म रही थी। यह िवजन एक ऐसे
मु , खुले और समावेशी े का था, जहाँ दो महासागर को जोड़ने वाला दि ण-पूव एिशया, क म था। इसक
िव ास का आधार एक साझा िनयम-आधा रत यव था थी, जो वैय क प से सभी रा पर लागू होने क
साथ-साथ वै क साझा िहत पर भी लागू होती थी। इसका आशय यह ह िक सभी रा को साझा समु ी और
वायु े का अंतररा ीय कानून क अंतगत एक समान उपयोग का अिधकार ह। प रवहन क वतं ता, िनिव न
वािण यक गितिविध और िववाद का शांितपूण िनपटारा भी सुिन त िकया जाना ह। इस िवजन का आिथक पहलू
सबक िलए एक समान तरीय काय े का था, जबिक कने टिवटी सं भुता, पारदिशता, यावहा रकता और
िनरतरता क िलए िव ास तथा स मान क मह व को रखांिकत करती ह। सार यह ह िक यह आ ान, सहयोग क
सौ य भावना रखने वाले एिशया क िलए था, न िक ित ंि ता क उ माद वाले महा ीप क िलए।
इडो-पैिसिफक का भिव य पार प रक प से िनरतर ि याशील श य क एक जिटल ंखला म िनिहत ह।
आज अंतररा ीय संबंध क अ य कई व प क साथ इससे भी जुड़ कई प न ह। भारत क िलए चीन क
साथ संबंध और प म क साथ भागीदारी म यह एक अहम त व होगा। स क साथ नई संभावना क ार
खोले जा सकते ह, िजसक समु ी िहत आकिटक वािण य क संभावना क मूत होने क साथ ही बढ़ सकते ह।
जापान, आिसयान और ऑ िलया क साथ संबंध म भी प तः इडो-पैिसिफक क मह व को कम नह िकया जा
सकता।
हो सकता ह िक दो शता दी पूव महासागर वै क राजनीित को तय करता रहा हो और कालांतर म अपना
मह व खो बैठा हो,, जब एक वै क श धरातल पर उदय होती िदखाई दे रही थी, तब संभवत: इसक कमी
को एक कारक क प म हमने वै क मामल म बढ़ा-चढ़ाकर देखा हो। वहाँ कई सारी रणनीितयाँ काम कर रही
ह, कछ तो य होती ह और कछ कम य ह। सहमित िबंदु िथएटर क उस संवेदनशीलता से जुड़ा ह, जो
इसक पूववितय क िमलने से िफर से जा त हो रही ह। यह वाभािवक ह िक एक वै क यव था म बदलाव क
साथ एक नई चचा शु हो जाए।
प मी पा रभािषक श दावली लंबे समय से सामने रही ह। चीन ने ‘बे ट एंड रोड इनीिशएिटव’ क साथ ही
‘मानवता क साझा भिव य क समुदाय’ वाले एक नए तरह क यापक श संबंध क वकालत क ह। भारत का
िव क संदभ म कोण परामशदायी, लोकतांि क और यायसंगत ह, िकतु इसे और अिधक प अिभ य
क आव यकता होगी। जहाँ तक बात इडो-पैिसिफक क ह, हम श दाविलय म फरबदल को भी आ मसा कर
लगे, ठीक उसी तरह जैसे हमने श य क थानांतरण और उनक िनिहताथ को समािहत कर िलया था।

कोिवड क उपरांत
उपसंहार
“िव एक यायामशाला ह, जहाँ हम सब
वयं को सश बनाने आए ह।”
— वामी िववेकानंद
वैसे भी जब हमारी दुिनया चुर अवरोध, बढ़ते रा वाद, ती तर होती ित पधा और िनयम एवं शासन
यव था पर उठते न क युग क ओर बढ़ती ई तीत हो रही थी, तब एक वायरस आ धमका, िजसने पहले
वुहान को व त िकया और िफर पूरी दुिनया को िनगलने िनकल पड़ा। िवशाल सं या म ई मृ यु क अित र ,
इस िवभीिषका म लाख लोग ने अपनी आजीिवका गँवा दी। ऐसे समाज, जो अपने भिव य को लेकर आ त थे,
िवकास क उनक सपने भी देखते-ही-देखते व त हो गए। कवल भारत म ही नह , पूर िव भर म ऐसे ब त सार
लोग, जो शी ही गरीबी-रखा से ऊपर आ गए होते, उ ह थोड़ी और लंबी ती ा करनी होगी। यह सब उस एक
महामारी क चलते ह, िजसक बार म उनको ब त कम जानकारी ह और उस पर उनका िनयं ण न क बराबर ह।
इसक भीषण दु भाव को देखते ए ऐसा नह लगता िक इस असाधारण घटना को दुिनया इतनी आसानी से पचा
पाएगी। इस पर उन तक को धार देने वाली बहस का अंबार लग चुका ह, जो पहले से ही चचा म थे। फल व प
इसक गित, जो पहले से ही तेज थी, अब और ती हो जाएगी। भू-राजनीित और भू-अथ यव था म होने वाले
और अिधक संघष क कारण वै क िवरोधाभास और खुलकर सामने आएँग।े उथल-पुथल भर हमार इस युग क
कई िवशेषताएँ संभवतः आगे अिधक बल तथा िविधमा य भी हो जाएँगी। पहले से ही जिटल इस िव म िविवध
धारणाएँ पैदा ह गी।
यह महामारी िजस तरह एक दावानल बनकर आई, उसने अमे रका और चीन क पार प रक टकराव म िलत
अ न का काय िकया, जैसा िक आज य िदखता ह, इनक आपसी संबंध पहले से ही मह वाकां ा , संक प
और िहत क मु पर आपस म उलझे ए थे। रा ीय सुर ा का क होने क कारण, आिथक सुर ा क अमे रक
कोण ने ौ ोिगक य मता को बढ़ाने क साथ-साथ यापार को स ते म और कम लागत वाले देश से
संचािलत करने क (Offshoring Practices) गितिविधय और वै क आपूित- ंखला पर दबाव बना िदया
था। अब कोरोना महामारी क बाद वा य सुर ा क भी एक और परत अलग से इस पर चढ़ गई ह। महामारी क
दौरान दवा , मा क, िनजी सुर ा उपकरण और परी ण िकट क उपल धता क मु े ने दुिनया भर म रा ीय
अ मता को सावजिनक प से उजागर कर िदया। इसिलए महामारी क बाद क दौर क भावनाएँ यावसाियक
िनणय को िकतना भािवत करगी, िवशेष प से वै क आपूित ंखला को, यह वाभािवक िचंता रहगी।
अमे रकन सोच म आए एक बदलाव क अनुसार, उसे सामािजक ताने-बाने और औ ोिगक मता क क मत
पर िनपुणता अिजत करना तथा लाभ कमाने क एकांगी सोच वीकाय नह ह। यह उसक आज क शासक य े
क बाहर भी िदखाई देता ह, िवशेषकर या ा म कावट और वा य संबंधी अिन तता भर इस प रवेश म
िवदेश म कारोबार करने क आपदा और बढ़ गई ह। इसी समय अगर नीितगत अिन तता भी बढ़ जाती ह तो इस
िव पर दबाव ब त अिधक बढ़ जाएगा।
हालाँिक नीितगत िवमश म य संभावना क तुलना म यापार क जड़ अकसर कह यादा गहरी होती ह,
इस त य को अ वीकार नह िकया जा सकता िक इस िवभीिषका क बाद का िव िब कल अलग होगा। कम-
से-कम, तुलना मक प से हम अिधक अ-वै ीकरण, े वाद, वतं िनणय व व-िनभरता और अपे ाकत
छोटी आपूित ंखलाएँ देखगे। जैसे-जैसे उनक िवषय म िवचार-िवमश म जोश बढ़ता जाएगा, इस बात का
िदखावा भी कम होने लगेगा िक हम राजनीितक भाव वाली एक समानांतर दुिनया क भी चचा कर रह ह।
कारोबार कभी भी इससे जुड़ी राजनीित क िबना नह होता ह और ौ ोिगक ने अब इसे और जिटल बना िदया ह।
महामारी ने इसे और धारदार बना िदया ह। एक वै ीकत अथ यव था म लागत, जोिखम तथा लचीलेपन का
तुलना मक िववेचन और अिधक उ ेगपूण तक म बदल चुका ह। यह न कवल भौगोिलक िनभरता , ब क
आंचिलक े पर भी यान कि त करता ह। फल व प आिथक े म रणनीितक वाय ता को लेकर और
अिधक जाग कता बनने लगी ह। इसी क समांतर िव सनीय सहयोिगय क संक पना ौ ोिगक क े से पर
और यापक व प हण कर चुक ह। र ा और पया ता क प रिध बढ़ने क साथ ही उसक आसपास या
राजनीितक अथ का े भी उतना ही िव तृत होता जाएगा। इस संदभ म शासन क कित से जुड़ वाद-िववाद भी
और अिधक प प म सामने आ गए ह। फल व प अलग-अलग े म समानांतर यूिनवस क संभावना
और बल हो सकती ह। चाह जो भी हो, ये सब वा तव म अलगाव को उस गंभीर तर तक बढ़ावा दगे, िजसका
अनुमान लगाना किठन ह। यापार पर िनभरता भी वयं म एक संवेदनशील िवषय बनता जा रहा ह। अंितम दशक
क अंतगत कई अवसर पर हम इसे दबाव िबंदु क प म यु होते देख चुक ह। यिद ायः इसक पुनरावृि
होने लगती ह तो यह यापार संबंध क रणनीितक कित क ित और अिधक सावधान रहने क िलए े रत करगा।
पहले से सबल श य क ांितकारी वभाव और उभरती ई श य ारा ता कािलक थित क चुिनंदा त व
को बचाने क य न क िवरोधाभास का उ ेख पहले ही हो चुका ह। दबाव क बढ़ने क साथ ित ंि ता और
गंभीर हो सकती ह, िजससे नए प सामने आ सकते ह। पहले से ही नई श क उदय को शांितपूण उदय कहकर
चा रत करने क बजाय ‘वु फ वा रयस’ क आगमन क घोषणा म बदला जा चुका ह। हम हर तरफ इससे भी
ब त अिधक होता िदखाई पड़ सकता ह। कई मायन म वायरस क बाद वै क मामल म भूिमका का बदलना
और भी यादा च काने वाला रहगा। पीिड़त होने क भावना भी य प से जगह बदलती नजर आ रही ह। इसी
तरह भु व को लेकर िनभरता और असुर ा संबंधी िचंताएँ भी बदलाव से गुजरती िदखाई दे रही ह।
अगर वायरस ने मतभेद को और ती एवं अथ यव था का और राजनीति करण कर िदया ह तो व-िहत पर
भी इसका भाव कम नह ह। कोरोना रा वाद इसका नया अवतार ह। महामारी क समय हम रा को अपने
वा य ल य को ा करने क य न क दौरान, दूसर क क याण क अनदेखी करते ए देख चुक ह। कछ ने
तो खुलेआम अपनी आिथक श का योग िकया, जबिक दूसर ने े ीय एकजुटता को ताक पर रख िदया। कछ
अपवाद तो अव य ह, पर वे इस यवहार क यापक वृि क भरपाई करने क िलए पया नह थे। अब उसका
कारण अिधकतर, वायरस क कोप से पैदा ए भय को माना जा सकता ह, लेिकन वा तव म इसने जो उजागर
िकया, वह यह था िक अंतररा ीय संबंध को िकस कार यु िकया जाता ह। सतत तनाव क इस युग म यिद
सामूिहक य न दबाव पड़ते ही िशिथल पड़ जाते ह तो िन त प से उनक सफलता संिद ध ह।
यह हम ब प वाद क थित क ओर लेकर आता ह। चूँिक यह अवसर का लाभ उठाने क िलए भावी प
से आगे नह बढ़ पाया, इसिलए इसने शायद ही अपने कद म वृि क हो। उस डोमेन म बात जब िववाद से
हटकर एजडा िन त करने अथवा िदशा तय करने क आई तो ऐसे म भावी नेतृ व क उप थित नग य थी। यह
हम सचेत करता ह िक ब प वाद क गुणव ा अंततः इस बात पर िनभर करती ह िक मुख श य क बीच
साझा सहमित िकस अनुपात तक ह, जैसा िक हम ात ह, िपछले कछ समय से इसी क कमी का अनुभव सबसे
अिधक आ ह। फल व प िनकाय और एजड, साझा धरातल बनने क बजाय वयं म श दशन का िवषय
बनकर रह गए। वाता म भािवत करने वाले सं थान पर अिधक यान देने क कारण रा ीय िहत और वै क
क याण क बीच संतुलन साधना अिधक किठन हो गया ह। फल व प ब प वाद लाभाथ रहगा, य िक अब
इसक पास उ े य और समानता ह, जोिक ब पा वाद म नह िमल पाई थी। ितरोध मता से लैस आपूित
ंखला का ल य, िवशेषकर वा य क े म, इसक बढ़ते ए एजड म अ छी तरह से संल न िकया जा सकता
ह।
ब प वाद को छोड़ भी द, तो भी हाल क घटना क चलते वै ीकरण को लेकर हमारी समझ भी बदल गई
ह। अब तक सामा य कोण यह रहा ह िक इसे सामूिहक पसंद क प रणित क प म देखने क बजाय ब ल
रा ीय िहत क बीच संतुलन क तौर पर देखा जाता था। इसक आिथक प र े य, यापार और िनवेश को
ाथिमकता देते ए, बल प से भावी थे, लेिकन जैसा िक जलवायु-प रवतन अथवा आतंकवाद क मु क
साथ था, महामारी ने यह मािणत कर िदया ह िक कई सार मु े ऐसे ह, िजनसे कोई भी दूर नह भाग सकता। ऐसी
वा तिवकताएँ िकसी गणना या बातचीत का िवषय नह हो सकत , य िक इनक अ त व को िवभािजत करक
देखना संभव नह । यिद िव को सही सीख लेनी ह तो इस अनुभव म वै क मु पर बहस को िफर से गढ़ने
का साम य मौजूद ह, लेिकन ऐसा होने क िलए यह अिनवाय ह िक इस तरह क न पर आज क दौर म जो
िववाद क ोत ह, उनपर तक क िलए और अिधक साझा धरातल ढढ़ा जाए।
संभवतः महामारी का सबसे अ यािशत भाव उन लोग क राजनीितक भा य पर पड़ा, जो उन समाज म थे,
जो इसक चपेट म सबसे यादा आए। यह कहने क आव यकता नह ह िक जो स ा पर िवराजमान ह, उनका
मू यांकन महामारी से िनपटने क गुणव ा क आधार पर िकया जाएगा और बदले म वह उनक ारा गढ़ उन
कथानक से भािवत हो सकता ह। हम यह तो जानते ही ह िक कोरोना महामारी क चलते अथ यव था का जो
िवनाश आ ह, उसने मूल प से पूववत राजनीितक गणना को बदलकर रख िदया ह, लेिकन िफर भी, उनको
आकलन म रखना चािहए, य िक कछ िचंतन ि याएँ समकालीन िवमश को गढ़ने वाल से भी आगे बढ़कर
बनी रह सकती ह। अतीत म आसानी से लौटने क याशा, वा तिवकता म कभी भी भलीभाँित बल नह रही।
कोरोना वायरस ने संभवतः इसे और भी अिधक किठन बना िदया ह।
तो इन सबक बीच भारत कहाँ खड़ा ह? यह एक ऐसी राज यव था ह, जो वै क अ थरता क दौर म
थािय व को सु ढ़ करगी और भरोसा बढ़ाएगी। इसका भाव वै क पुनसतुलन म योगदान करगा और
राजनीितक अथवा आिथक ब ुवीयता क छिव को आकार देगा। वै क दि ण रा (Global South) से इसक
ठोस संबंध यह सुिन त करने क िलए मह वपूण ह िक िवकास क ाथिमकता और नैसिगक याय क
अवहलना न हो। संशोिधत ब पा वाद क बल समथक क प म, अपे ाकत खर रा वादी युग म भी, यह
यथाथवादी सामूिहक य न का समथन कर सकता ह। एक स य-सौ य श क प म वै क मंच पर इसक
वापसी, इितहास क लौटने का एक लंत उदाहरण होगी।
भारत का दशन आज यह भी िदखाता ह िक लोकतं का सार, िव ास एवं आ था क उदार
अिभ य य क ओर ले जा सकता ह। शासन क अनदेखी क िशकार चुनौितय से िनपटने म ये अिभ य याँ,
ढ़ संक प क साथ िमलकर अप रहाय प से नए संवाद को ज म दगी। साथ ही, सामािजक िवकास क े म
भारत क गित, इसे वै क- ानाधा रत अथ यव था क िव सनीय कौशल का मु य ोत बनाने क मता
रखती ह। ये वे कछ कारक ह, जो अप रहाय प से भारत क गित म काम करगे, य िक िव उन समायोजन
को देख रहा ह, जो भारत क उदय क साथ अिनवाय प से घिटत होगा। वे एक-दूसर से िजस कार तालमेल
बनाएँगे, वह िववशता और अिभसरण क एक िम ण को िदखाएगा, चाह वे िवषय भू-राजनीित, ौ ोिगक ,
बाजार या िफर सं कित ही य न ह ।
वाभािवक ह िक भारत भी उस वै क प रवेश क यापक झान से गढ़ा जाएगा, िजसे कोरोना वायरस और
उ करगा, लेिकन उससे कह अिधक, इसे महामारी क अ यंत य दश प रणाम को यान म रखने क
आव यकता ह। इसका िवनाशकारी भाव, वाभािवक प से रा ीय पुन थान क रणनीित क माँग करता ह
और यह बदले म हमार िवकास मॉडल क िलए एक मूलभूत पुनिवचार चाहगी। वतमान आिथक ढाँचे ने हमारी
मै युफ रग मता को िजस तरह खोखला कर िदया ह, उसे देखते ए यह अव यंभावी ही था। मु यापार
समझौत क संदभ म वै क अथ यव था को और गंभीरतापूवक ितब करने क हमारी तैया रय क पया ता
को लेकर एक बहस पहले से ही चल रही थी। जो बात य थी, वह यह थी िक हमार सहयोिगय क कई नीित-
जिनत दु ंताएँ िबना िकसी िवमश क धरी-क -धरी रह ग । संरचनागत बढ़त रखने वाल क िव ित पधा
करना किठन रहा ह, जैसा िक बढ़ते यापार घाट से मािणत होता ह। िबना उिचत सुधार क ि या से गुजर, उसी
रा ते पर आगे बढ़ते रहने क प आशय ह। इसक प रणाम सीधे तौर पर रोजगार और सामािजक थरता से जुड़
ह। यह िवरोधाभासी ह िक जो लोग भारत से और खुले होने का आ ह कर रह ह, वे वयं इसक ित ब त
संवेदनशील ह। इसिलए पुन थान क एक रणनीित अ यंत सावधानी क साथ तैयार करने क आव यकता ह।
तालमेल अथवा ितब ता पर हम कछ भी िवक प चुन, दोन ही प र थितय म कछ त य ऐसे ह, िज ह हम यूँ
ही अनदेखा नह कर सकते।
जैसािक भारत अतीत म अनुभव कर चुका ह, आिथक रणनीितय का सामंज य न कवल इसक वयं क रा ीय
िहत , अिपतु वै क िहत क साथ भी होना चािहए। यिद हम साथक ढग से िव क साथ सामंज य बनाकर नह
चल पाए, जैसा िक वष 1991 तक आ तो उनका सँभल पाना ब त किठन होगा। तीन दशक बाद भारत क
मताएँ, ित पधा और यापार दबाव म ह, िकतु इस बार िनतांत िभ कारण से। 1991 क बाद का यह िव ास
िक वदेश म अपने वयं क कारोबार को खड़ा करने क िलए हम िवदेश म दूसर क लागत पर भरोसा कर सकते
ह—इसका भारी मू य ह। सबसे कम बोली लगाने क था और लाभांश ढढ़ने क चंड भूख म घरलू मता
को ित त कर िदया गया। यहाँ तक िक दूसर क द ता ने ित पधा को ो सािहत करने क बजाय, वा तव
म आगामी सुधार पर ही िवराम लगा िदया। यह िवडबना ह िक बाहर का खुलापन, नवाचार को हतो सािहत और
सृजना मकता को िवन करक वदेश म िवकासहीनता लेकर आया। देश म सू म, लघु और म यम उ ोग
(MSME's) को इस ित क मार को सबसे अिधक झेलना पड़ा। महामारी भले ही वा य सुर ा से जुड़ी
कमजो रय को काश म लाई हो, लेिकन साथ ही इसने इस यापक रणनीितक आ मसंतोष को भी उ ािटत कर
िदया। दूसर े को भी इसी तरह क उनक वयं क बाधा से जूझना पड़ा। चाह ये अनुिचत लाभ ह , िजसका
आनंद ित ं ी उठाते ह अथवा बराबरी क ित पधा का अभाव, हम नीितय को वा तिवकता , न िक उ ेजक
वा पटता क आधार पर तय करना होगा। इसिलए वे प च जो हम देते ह और वे यव थाएँ, िजनम हम सहभागी
होते ह, उनका इनम सं ान लेना अ याव यक ह।
यिद हम समी ा करनी ह तो यह इस बोध क साथ आरभ क जा सकती ह िक यह िव हमारी अपे ा से कह
अिधक संर णवादी और एकप ीय रहा ह। हमार यापार क आँकड़ अपनी कहानी वयं सुना रह ह। ऐसी
प र थितय म, वष 1991 क बाद क मं को ही जपते रहने का कोई अथ नह ह। इसिलए रा ीय और वै क
दोन ही प र थितयाँ, आ मिनभरता पर और अिधक बल देने क सलाह देती ह। ऐसा नीितगत कोण उन
यास को ो सािहत करगा, जो अिधक व-उ पादक और व-िनभर ह गे। इसक वयं क दशन से ही नवो मेष
और सृजना मकता और अिधक बढ़गी। घरलू मोच पर जब इसका वयं का उ पादन े होगा, तभी िवदेशी मोच
पर भारत आिथक अंतर पैदा कर सकता ह। इसिलए ‘मेक इन इिडया’ पर और अिधक जोर, प तः न कवल
भारत, ब क िव क िलए भी ह।
हम अपने वयं क िहत का और भी अिधक यान रखना तथा उनका समथन करना होगा, तािक वै क
ित पधा म भाग ले सक और िन त तौर पर, हमारा घरलू बाजार उनक िलए खुला नह छोड़ देना ह, जो अपने
दरवाजे हमार िलए ढ़ता से बंद रखते ह। जहाँ पर भारत क शु आत देर से ई ह, वहाँ उसक अपेि त गित पाने
क िलए आव यक उपाय को नीितय म अव य स मिलत करना चािहए और इ ह अव य ही, आ ामक प से
रोजगार, कौशल, नवाचार और वािण यीकरण को ो सािहत करना चािहए, जैसा िक अ य रा य यव थाएँ करती
ह, संवेदनशील े क समथन म खड़ होने म कभी भी संकोच नह करना चािहए। वे संक ण आिथक िहत, जो
नीितय क उपे ा कर आगे बढ़ जाते ह, ब त क क याण क सामने िटक नह सकते। यह िनरकशता को बढ़ावा
देने का मामला नह ह, ब क एक वृहद साम य िनमाण, जोिक यापक रा ीय श का क ह, क िलए
तािकक य न ह। समसामियक दौर प प से इस प म ह िक येक रा क पास अंतररा ीय िबसात पर
खेलने क िलए अपने पासे होने चािहए, बड़ रा क पास तो िवशेष प से।
जैसे-जैसे िव अिधक वैिव य क ओर बढ़ता ह, वै क मू य ंखला म भागीदारी म वृि का मामला आगे
और सु ढ़ होता जाएगा। भारत और यादा उ े यपूण ढग से इस िदशा म आगे बढ़ सकता ह, लेिकन भारत को
अपनी घरलू मता को मजबूत करक उसक साथ इसे संतुिलत भी करना होगा। एक अिधक समथ भारत, जो
आ मिनभरता म वृि क चलते उभरकर सामने आएगा, उसक पास और को देने क िलए भी िन त प से
ब त-कछ होगा। वा तव म, िव से िवमुख होने क बजाय भारत अब और अिधक भागीदारी क िलए तुत ह,
अपे ाकत अ छी तैयारी क साथ। आिखर हो भी य न, आ मिनभर भारत का सह-अ त व ‘वसुधैव कटबक ’
(सम त िव एक प रवार ह) क साथ ही तो ह।
अशांत िव क बीच भारत का उ कष, अिधकांशतः वयं को दूसर से अलग िदखा पाने क उसक यो यता
पर िनभर करगा। कोरोना क बाद का िव , वै क क याण म अपे ाकत अिधक िगरावट देखने वाला ह।
इसिलए ज द यु र देने वाले और उदार सहयोिगय क माँग बढ़ने वाली ह। यह महामारी क दौरान िदखती थी
और भारतीय आचरण म इसक संकत िनिहत ह िक आगे यह िकस कार िवकिसत हो सकती ह। एक कदम आगे
बढ़कर 120 रा को दवाएँ उपल ध कराना, िजसम दो-ितहाई अनुदान क प म देना, एक मायने म
अंतररा ीयवाद का प संदेश था। उसी दौरान चार िचिक सक य सेवा दल मालदीव, कवैत, मॉरीशस और
कॉमोरोस म भी तैनात िकए गए। ऐसा करक भारत ने न कवल िव क औषिधशाला होने क अपनी
िव सनीयता को थािपत िकया, ब क वा य सुर ा दाता क अपनी भूिमका का भी सफल िनवहन िकया।
इसी क समांतर यह भी साफ िदखाई देता ह िक वृहत भारतीय मताएँ एक सजग रणनीित का िह सा बनकर
वै क मामल म अपनी उप थित महसूस कराती रहगी।
िपछले कछ वष म हम वै क िवमश म योगदान देने और अंतररा ीय प रणाम म अंतर लाने म समथ, बढ़ती
ई भारतीय मता का दशन देख चुक ह। हमने मह वपूण ढग से कने टिवटी क बहस को िदशा दी और चुर
प रयोजना क मा यम से उसे पु ता िकया, िजसक प रिध म हमार समीपवत पड़ोसी भी स मिलत थे।
आतंकवाद क िव हमार एकिन आंदोलन क सहायता से हम इस मु े को अहम वै क मंच पर सबक
म लाने म सफल रह। जहाँ तक समु ी सुर ा और एच.ए.डी.आर. (HADR) क प र थितय का न ह,
भारत एक अहम िखलाड़ी बनकर उभरा ह, िवशेष प से िहद महासागर म।
राजनीितक तर पर इितहास क दुिवधा पर काबू पाने म हमार आ मिव ास ने नए आयाम क ार खोले ह।
रणनीितक प ता ने उसक यादा भावी दोहन म मदद क ह। कल िमलाकर भारतीय आभामंडल अनेकानेक
तरीक से वयं को य प म आलोिकत िकए ए ह। अ का म हमारी उप थित य प से बढ़ी ह और
वैसा ही कई दूसर े म भी आ ह, जहाँ हमार िपछले संबंध कमजोर थे। सच तो यह ह िक मह वपूण सामंज य
और गहर सहयोग का यह संयोजन, जोिक महा ीप क पार तक िव तृत ह, हम एक वै क मानिसकता क िलए
तैयार करता ह। िव भले ही एक नए दशक क दहलीज पर खड़ा हो, लेिकन भारत अपने वयं क उ व क
अगले चरण क िलए पूरी तरह तैयार ह।
िजस िव म वेश क ओर हम अ सर ह, वह गहन तक-िवतक का िवषय ह। इसे राजनीितक, आिथक और
ौ ोिगक म पांतरणीय बदलाव ारा आगे और जिटल बनाया गया। वष 1945 क बाद क पुरानी यव था क
अधोमुखी, ीण होती उपयोिगता से समझौता करना वयं म किठन काय ह। उन त व को पूरी तरह पहचान पाना,
जो िनमाणाधीन यव था क संवाहक ह, अब भी अपे ाकत बड़ी चुनौती ह। िविभ आयाम क मा यता पर
देश-िवदेश म सवाल खड़ िकए जा रह ह। िफलहाल िजस पर हमारी आम सहमित बन सकती ह, वह यह ह िक
िव एक वा तिवक पांतरण क ि या क म य म ह और िजस ओर हम अ सर ह, वह िदशा- ान हमारी
वयं क ाथिमकता , िहत , कोण और आशा से भािवत ह।
‘भारत क रणनीित’ का व प, िवशेषकर अब, एक परहज करने वाले क बजाय मूत प देने वाले अथवा
िनणायक भूिमका िनभाने वाले का रहगा। यह जलवायु-प रवतन और कने टिवटी जैसी बहस म पहले ही
प रलि त हो चुका ह। वै क दि ण क एक आदश वाहक क अपनी भूिमका को संपु बनाए रखते ए, भारत
को एक यायसंगत और िन प श भी बने रहना होगा। घरलू मोच पर यह न कवल िवकास संबंधी चुनौितय
को और अिधक भावी ढग से संबोिधत करगा, ब क एक आधुिनक समाज और रा रा य क िविश ता को
भी तेजी से अिजत करगा और अंत म, ‘भारत क रणनीित’ अपने ांड को बढ़ते ए आ मिव ास क साथ
अिभ य करगी, चाह यह इसक स यतागत िवशेषता म हो अथवा इसक समकालीन उपल धय म।
आ मिनभरता क कोण को सफल होने क िलए ढ़ आ मिव ास क गहरी समझ का साथ होना ब त
ज री ह। भारत ने िपछले कछ वष म, िजस उ क िनणायक मता क साथ िविभ चुनौितय को संबोिधत
िकया ह, इस बात क पु क िलए पया आधार देता ह। कोरोनाकाल क बाद क य वादी आचरण वाले
िव म इस मनोवृि क अब और अिधक आव यकता होगी। उनम से कछ हमारी वयं क ाथिमकताएँ तय
करने और वयं क ल य िनधा रत करने क मता क प म कट क जाएँगी, लेिकन एक ित पध िव का
दबाव भी रहगा, जो क वजस और लेन-देन क दायर से बाहर होगा। एक रा य यव था को, जो एक वतं
लोकाचार म इतने गहर तक डबी ई ह, अपने िहत को आगे बढ़ाने क िवक प को गढ़ने क कला वाभािवक
प से आनी चािहए। अतीत म, भले ही इसने हम बाहर रखा हो, लेिकन आज यह अ छा मानदंड हो सकता ह।
जब अ य समाज हम अिधक स मान क से देखते ह तो समकालीन मुख मु पर भारत क संभािवत
कोण क समी ा, इसका एक वाभािवक ितफल होता ह। उस संदभ म हमारा उ र—और हमारा आचरण
भी—यह प रभािषत करगा िक ‘भारत क रणनीित’ या ह, जब दूसर हम एक मॉडल क प म थािपत करने का
य न करगे, तुलनाएँ अप रहाय प से क जाएँगी, लेिकन जैसा हमारी मता क उपयोग क साथ ह, हमार
िवक प क चयन क भी कछ पूववत उदाहरण ह गे। हमारा नैरिटव गढ़ते समय आचार-िवचार, सं कित और
इितहास भी यु र का कछ िह सा बन सकते ह, लेिकन कछ े और भी ह, जो ासंिगक ह। भारत आज क
वैचा रक संघष से बच नह सकता, चाह वे िकतने भी जिटल य न ह । िढ़वादी मा यता और कोण को
चुनौती देना हमेशा िववादा पद रहगा, िवशेषकर जब नैितकता का ेय अतीत को देकर प रवतन को असुरि त
िदखाया जाता ह। हाल म ख ची गई कछ प रखाएँ, हालाँिक कोरोना-प ा िव ारा तुत क गई नई
चुनौितय क कारण मंद पड़ चुक ह; लेिकन अपनी ओर से, अित र आ मिव ास से भर भारत को, इसे एक
वृहत वै क पुनसतुलन का िह सा समझकर इन सब बहस को सहजता से वीकार करना चािहए।
अंतररा ीय संबंध क अ य आयाम क तरह भारत क उ ित भी एक अंतहीन कथा ह। यह हमेशा सहज प
से अनावृ नह भी हो सकती ह, कभी-कभी उन वजह से िजन पर हमारा िनयं ण नह ह। पर हर पीढ़ी यह
मशाल अगली पीढ़ी को स प जाती ह, आशा वत हो, कछ अिधक दी लौ क साथ। इस ि या म, जब हम
भिव य का िनमाण कर रह ह , हम िनरतर अपने अतीत का सुधार करते रहना होगा, अतः ठोस नीित-िनमाण, अपने
अनुकलतम समय म भी समी ा और योजना दोन का एक अ यास ह, हालाँिक जब हम एक चुनौती क िलए
तैयार होते ह, जो पूणतः अभूतपूव ह तो कोरोनाकाल का अनुभव हम एक असाधारण मू य देता ह। हम म से कोई
भी अभी-अभी घटी उस िवभीिषका क भयावह प का पूवानुमान नह लगा सकता था, िजसक दु भाव अब तक
अनाव रत होते जा रह ह। कौन, िकस हद तक महामारी क चपेट म आएगा और कौन इससे उबरगा और िफर
सँभल जाएगा, यह अब भी एक य - न ह, लेिकन इतनी असाधारण अिन तता क बावजूद भारत को एक ऐसे
गेम लान क साथ बने रहना होगा, जो आज भी मा य हो। हो सकता ह िक इसक घटक यादा जिटल और
चुनौितयाँ और अिधक िन सािहत करने वाली ह , लेिकन एक बल ित पध भावना और एक खर रणनीितक
समझ िन त प से हम अ छी थित म लाकर खड़ा करगी।
िन त प से दुिनया आज वैसी नह रह गई ह, जैसी वह अभी हाल तक थी। अपने सम भाव क कारण
कोरोना वायरस वष 1945 क बाद क सबसे अिधक प रणािमक वै क घटना हो सकती ह। ता कािलक प म,
वृहद भौगोिलक तर पर नीितय क बदलाव म ो साहन क कारण यह वै क अशांित म वृि करगी। िव एक
ऐसे िवरोधाभास का सामना करगा, िजसम वह उसी यव था म बदलाव लाना चाहगा, िजसम वह अभी तक गहर
समाया आ ह। कछ ने इस कला म पहले ही िनपुणता ा कर ली ह, जबिक अ य अभी भी जूझ रह ह। अब,
जबिक हम सब अपने राजनीितक गिणत अलग-अलग तरीक से हल करगे, पहले से कह अिधक िवखंिडत,
िबखरा आ और जिटल भिव य हमारी ती ा म ह।
ऐसी वै क गणना म भारत का मह व साफ िदखाई देता ह। वायरस क बाद संभवतः इसम और भी अिधक
बढ़ोतरी होगी। तो इसे समय का संकत मान लेते ह िक िव ने हाथ जोड़कर ‘नम ते’ कहने वाले भारतीय
अिभवादन क उ आचरण क खोज कर ली।

संदिभका

अंतररा ीयकरण 100, 115
अंतररा ीय यायालय 138
अंतररा ीय योग िदवस 26, 113
अंतररा ीय संबंध 18, 36, 42, 48
अंतररा ीय समुदाय 26, 137, 157
अिन तता और रा ीय 99
अ सार 49, 52, 138, 175, 179
अफगािन तान 30, 48, 52, 71, 89, 97, 98, 99, 101, 104, 105, 122, 130, 136, 137, 150, 151, 196
अ का 44, 54, 83, 84, 87, 106, 107, 108, 113, 137, 160, 190, 202, 205, 219
अिभसरण 44, 48
अमे रका फ ट 26, 37, 121
अथशा 62, 133, 171
अलगाव 19, 37, 45, 199, 213
अ गाबात समझौता 196
अ थरता 17, 40, 42, 45, 94, 163, 167, 181, 215


आतंकवाद 29, 43, 49, 52, 64, 69, 86, 102, 105, 109, 113, 115, 128, 130, 131, 137, 175, 177, 197, 214, 218
आिधका रक िवकास सहायता 176
आबे, िशंजो189
आधुिनक करण 56, 126, 128, 153, 174, 196
आपूित- ंखला 156, 212
आिसयान 24, 54, 56, 83, 84, 99, 106, 114, 123, 133, 154, 167, 170, 171, 172, 173, 177, 180, 181, 182, 183, 184, 185, 186,
189, 191, 200, 201, 206, 207


इटरनेट अथ यव था 101
इिडयन ओशन कॉ स 11
इिडया फाउडशन 11
इडोनेिशया 48, 189
इडो-पैिसिफक 25, 54, 113, 170, 173, 177, 181, 185, 189, 190, 191, 192, 193, 195, 205, 206, 207
इराक 66, 71, 75, 89, 104, 113, 136, 137, 154
इ लाम 28, 132


ईरान 48, 83, 103, 106, 111, 120, 130, 137, 196


ऊजावान कटनीित 90


ऋण सहायता 106, 107


एक ुवीयता 56, 89, 101, 120
एक करण 24, 78, 79, 92, 181
ए ट ई ट फोरम 176
एयर इिडया 131
एिशयाई भाईचार क संदेश 72
एिशयाई संतुलन 13, 165, 172


ऐितहािसक िवरासत 198


ओबामा 103, 104, 135, 154


कारिगल 88, 101
कटनीित 28, 29, 50, 55, 62, 87, 90, 91, 93, 94, 108, 109, 110, 111, 119, 154
कौिट य 70
योटो ोटोकॉल 100
ाड 25, 28, 111, 181
यान, झांग 144
े ीयता 185, 198, 199


खान, ए. यू. 130
खािल तान आंदोलन 97


गांधी, इिदरा 155
गांधी, राजीव 150, 152, 155
गोवा 108, 115


घटो कच 78
घरलू राजनीित 42, 149
घाना 107


चीन और अमे रका 36, 39
चीन का उदय 47, 83
चीन क सां कितक ांित 97
चीन क साथ एिशयाई भाईचार 72
चीनी रा वाद 147
चुनौितयाँ 19, 43, 53, 79, 87, 100, 169, 170, 178, 181, 194, 221


छल-कपट 70, 72


जगुआर 96
ज मू-क मीर 18, 92, 94, 95, 98, 100, 109, 112, 115, 130, 150, 179
जय थ 70, 73, 80
जलवायु-प रवतन 27, 84, 89, 90, 113 122, 130, 134, 135, 137, 153, 177, 214, 219
जातीय संघष 96
जापानी शांित संिध 146
िजनेवा 42
जोिखम वाली िवदेश नीित 111


टगोर, रव नाथ 146, 187
प, डॉन ड 21, 33, 120, 189
ि स 101, 139


डोमेन 23, 52, 70, 92, 106, 159, 160, 214


ढाका 97


ताशकद 87, 94
ित बत 86, 93, 148, 149
तीसरी दुिनया क एकजुटता 87
तुक 48, 83, 120, 121


थाईलड 195


दि ण एिशया 87, 96, 105, 125, 149, 154, 160, 173, 195
दि ण को रया 100, 123, 133, 170, 173, 185
दि ण चीन सागर 69
दि ण-दि ण सहयोग 75
दि ण-पूव एिशया 91, 105, 106, 158, 160, 168, 170, 173, 182, 184, 185, 186, 190, 195, 206
दुय धन 66, 67, 69, 79, 80
कोण 19, 21, 22, 23, 24, 26, 28, 29, 31, 42, 44, 45 46, 49, 52, 56, 61, 66, 74, 75, 79, 86, 90, 98, 104, 106, 109, 111, 114,
115, 124, 125, 127, 129, 130, 132, 135, 138, 146, 147, 148, 156, 163, 167, 178, 179, 181, 184, 186, 189, 193, 194, 197, 199,
204, 205, 206, 207, 211, 214, 217, 219, 220
ि तीय िव यु 55, 138, 145


धनुिव ा 67
ुवीकरण 42, 79, 85 112


ना टा 49
नालंदा 144, 186, 204
िन सन शासन 98
िन जो-इिडयन िडफस 11, 13, 141


पटल, सरदार 93, 163
परमाणु अ सार संिध 138
परमाणु आपूितकता समूह 103, 124, 160
परमाणु परी ण 18, 28, 52, 86, 90, 95, 100, 152, 153
प मी उदारवाद 145
प मीकरण 126
पहचान 10, 19, 20, 26, 37, 38, 41, 46, 62, 76, 77, 79, 83, 84, 85, 89, 102, 103, 104, 105, 106, 112, 120, 121, 123, 124, 125,
126, 127, 147, 157, 163, 173, 174, 186, 190, 192, 198, 199, 200, 202, 204, 205, 219
पानीपत िसं ोम 18
पाल, राधािवनोद 179
पुनसतुलन 17, 31, 44, 54, 83, 89, 112, 122, 123, 139, 215, 220
पे रस 90, 122, 134
ितयोिगता 48, 78, 79, 84
ित पध 17, 19, 45, 46, 47, 89, 105, 108, 133, 145, 148, 155, 156, 170, 176, 220, 221
य िवदेशी िनवेश 176
थम िव यु 36
सार 45, 47, 53, 99, 101, 131, 203, 205, 215


िफिल तीन 111, 122
ांस 47, 55, 84, 102, 112, 152, 202


बां लादेश 18, 40, 69, 86, 88, 90, 98, 106, 129, 130, 176, 195
बां लादेश यु 86
बां लादेश संकट 40
ब ुवीय एिशया 25, 54, 174
ब ुवीयता 46, 47, 48, 52, 54, 55, 90, 104, 107, 112, 133, 158, 163, 215
ब प वाद 46, 49, 55, 84, 112, 213, 214
ब पा वाद 214, 215
ब लवाद 43, 62, 79, 135, 138, 177, 198
बांडग युग 22
बांडग स मेलन 146
बागची, पी.सी. 145
बाजार-अथ यव था 134
बालाकोट 69, 86, 124
बाहरी दबाव 87
बीिजंग 104, 146, 154
बु डी 107
बुश 135
बे ट एंड रोड इनीिशएिटव 158, 207
बोस, नेताजी सुभाषचं 179
ाजील 46, 48
ि स 25, 89, 102, 147, 153, 158
ि तानी ई ट इिडया कपनी 17

भारत क भागीदारी 171, 193
भारत क िवभाजन 167
भारत-चीन संबंध 160, 162
भारतीय िवदेश नीित 79, 86, 87, 99, 108, 110, 196
भूगोल 83, 113, 143
भू-राजनीित 23, 39, 84, 85, 86, 136, 168, 180, 198, 211, 215


म य एिशया 107, 195, 196
मलावी 107
महाभारत 61, 62, 63, 65, 67, 68, 70, 71, 73, 75, 76, 77, 79, 80
मॉरीशस 194, 196, 218
मालदीव 96, 113, 115, 194, 196, 201, 218
मुजीबुरहमान, शेख 97
मेक इन इिडया काय म 27
मोदी, धानमं ी 174, 206
मोदी, हाउडी 111
याँमार 131, 154, 176, 195, 200


यमन 106, 113
यूगो लािवया 71, 91, 101, 136
यूरोपीय संघ 29, 77, 128
ली कआन यू 184


रणनीितक श दकोश 189
राजनीित 9, 10, 11, 17, 18, 20, 21, 22, 31, 39, 41, 42, 44, 49, 50, 53, 55, 56, 61, 63, 71, 74, 75, 78, 79, 83, 84, 85, 86, 87, 90,
96, 97, 101, 105, 106, 108, 112, 119, 120, 121, 122, 123, 124, 126, 127, 128, 130, 133, 134, 136, 143, 146, 148, 149, 151,
157, 158, 161, 163, 168, 170, 173, 174, 175, 180, 185, 186, 191, 198, 207, 211, 212, 215
रायसीना डायलॉग 10
रा वाद 9, 17, 18, 19, 26, 29, 42, 44, 49, 52, 62, 78, 83, 114, 119, 120, 121, 122, 123, 124, 126, 132, 139, 147, 211, 213
जवे ट 71


ला, नाथू 95
लीिबया 71, 136
लुक ई ट पॉिलसी 173


वाजपेयी, अटल िबहारी 153
वा तिवकता 19, 21, 24, 40, 44, 47, 55, 65, 72, 94, 95, 104, 106, 108, 109, 110, 111, 113, 115, 116, 119, 120, 121, 122, 124,
133, 136, 138, 143, 146, 153, 162, 163, 164, 173, 174, 179, 185, 186, 189, 190, 199, 215
िवयतनाम 87, 94, 97, 99, 121, 146, 149, 153
िव ीय संकट 154
िवदेश नीित 25, 27, 37, 44, 50, 56, 70, 79, 86, 87, 88, 91, 99, 100, 104, 108, 110, 111, 112, 113, 115, 116, 135, 170, 171, 174,
184, 195, 196
िवभाजन 23, 24, 31, 49, 54, 72, 74, 95, 106, 129, 135, 167, 199
िवभािजत 87, 125, 214
िवरा , राजा 76
िवरोधाभास 29, 86, 97, 129, 211, 213, 221
िव हिमन 76
िववेकानंद 209
िव यापार संगठन 46
िव सनीयता 27, 30, 52, 75, 119, 121, 134, 218
वै क 9, 10, 11, 17, 18, 19, 20, 21, 22, 23, 24, 25, 26, 27, 28, 31, 35, 37, 38, 39, 40, 41, 42, 43, 44, 45, 46, 47, 49, 50, 51,
52, 53, 54, 55, 56, 57, 61, 62, 63, 66, 74, 75, 77, 78, 83, 84, 87, 88, 89, 90, 92, 93, 94, 97, 101, 102, 103, 104, 108, 109,
110, 111, 112, 113, 114, 115, 116, 120, 121, 122, 123, 124, 125, 126, 127, 128, 130, 131, 132, 133, 134, 135, 136, 137, 138,
139, 147, 149, 153, 154, 155, 159, 160, 161, 162, 163, 167, 170, 171, 172, 175, 177, 180, 181, 182, 189, 190, 191, 192, 198,
199, 200, 203, 206, 207, 211, 212, 213, 214, 215, 216, 217, 218, 219, 220, 221
वै क रणनीित 112, 135
वै ीकरण 17, 19, 20, 37, 47, 53, 78, 120, 121, 122, 133, 212, 214
यापार 20, 21, 25, 26, 27, 31, 43, 44, 45, 46, 49, 51, 84, 88, 89, 101, 102, 103, 110, 119, 123, 128, 130, 134, 135, 136, 143,
144, 153, 155, 156, 171, 172, 174, 176, 178, 181, 182, 185, 186, 195, 196, 197, 198, 200, 203, 211, 212, 213, 214, 216, 217


शंघाई सहयोग संगठन 147
शहरीकरण 30
शालीनता 18
िशशुपाल 66
शीतयु 18, 28, 40, 47, 77, 78, 91, 92, 97, 109, 112, 129, 153, 168, 169, 180, 181
ीलंका 10, 72, 88, 96, 97, 98, 113, 115, 154, 194, 196, 198, 201, 202


संतुलन 13, 22, 23, 24, 25, 26, 27, 31, 41, 46, 48, 50, 53, 61, 63, 75, 76, 77, 78, 80, 86, 89, 95, 99, 101, 102, 103, 104, 110,
111, 114, 119, 132, 136, 143, 144, 147, 151, 154, 157, 158, 162, 163, 164, 165, 167, 169, 172, 175, 178, 179, 180, 181, 192,
206, 214
सं भुता 46, 64, 75, 87, 115, 157, 159, 162, 204, 206
संयु रा 18, 92, 112, 120, 122, 131, 146, 160, 175, 177, 179, 206
संयु रा सुर ा प रष 18, 160, 175, 179
संरचना 42, 48, 112, 124, 152, 155, 171, 175, 181, 194, 197, 205, 206
संवेदनशीलता 67, 125, 173, 177, 197, 207
सकारा मक भेदभाव 77
समीकरण 42, 43, 155, 180, 206
समु ी 13, 24, 49, 69, 106, 113, 128, 134, 144, 150, 154, 158, 160, 168, 172, 174, 175, 187, 190, 191, 192, 193, 194, 195, 196,
197, 199, 200, 201, 202, 203, 206, 207, 218
समु ी अवसंरचना 200
सांडस, बन 37
सा ा यवाद 121, 127, 146
िसंगापुर िशखर 182
िसयािचन लेिशयर 96
िस क रोड 144
सीमा पार आतंकवाद 105, 115
सेशे स 194, 196
सोिवयत संघ 19, 26, 28, 36, 37, 38, 40, 53, 55, 56, 87, 88, 90, 91, 92, 95, 96, 97, 98, 99, 109, 112, 121, 133, 148, 151, 152,
158, 161, 170, 171
वाय ता 88, 100, 111, 212

िहद महासागर 96, 106, 134, 154, 173, 185, 190, 192, 193, 194, 195, 196, 197, 198, 199, 200, 201, 202, 203, 204, 205, 218
हनरी िकिसंजर 95
हदराबाद 108, 115
❑❑❑
Notes
[←1]
याम सरन, ‘चायना इन द 21व सचुरी’ ि तीय वािषक क. सु यम या यान, इिडया इटरनेशनल सटर, नई िद ी, 2012
[←2]
माइकल िप सबरी, ‘द ह ड ईयर मैराथन’ ( यूयॉक : हनरी हो ट, 2015)
[←3]
* पी.सी. बागची, ‘इिडया एंड चाइना : ए थाउजड ईयस ऑफ क चरल रलेशंस’ (नई िद ी : मुंशीराम मनोहरलाल, 2008)
[←4]
एं यू मॉल, ‘द चाइना-पािक तान ए सस : एिशयाज यू िजयोपॉिलिट स’ (लंदन : ह ट, 2015)

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