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नवल कशोर ेस, लखनउ, िसत बर, १९३१, भा पद, ३०८ तुलसी-संवत्
स पादक-रामसेवक ि पाठी
ाचीन आय इितहास का भौगोिलक आधार
[सािह याचाय ी च शेखर उपा याय,
याय बी. ए. (आनस), िवशारद]
(आरा, िबहार, १५-४-१९०५ से १२-७-१९७६ ई.)
भारतीय आय के ाचीन इितहास तथा भूगोल का अ ान, या तो हमारे आल य के कारण या हमारी ब मू य
ऐितहािसक पु तक के श ु ारा न हो जाने के कारण, अभी तक हम पूण िन य के साथ यह उ ोिषत करने
का अवसर नह देता क हमारी ाचीन आय सं कृ ित कस ेणी तक उस समय प च
ं चुक थी, िजस समय
आधुिनक न -स य रा का उदय तो कौन कहे, नाम व िनशान भी नह था ! अव य ही हमारे ाचीन इितहास
के अनुशीलन म योरपीय िव ान ने जो सहायता प च
ं ायी है, वह ब मू य है। िवदेशी होकर भी आज तक उन
लोग ने जो कु छ कया, वह आशातीत और हमारी आंख खोलने के िलये पया है। हमारा इितहास कु छ ी ाद
या िव मा द से मया दत नह ; यह तो सृि -सनातन और आधुिनक िव ान के मि त क पी अनुवी ण य क
दृि से बाहर है। सच पूछा जाय, तो आय का इितहास ही िव का इितहास है। आज तक यह कोई भी ठीक-ठीक
नह कह सकता क आय का स पूण इितहास िव क िव म डली को कब दृि गोचर होगा। योरपीय िव ान
ने अ धकार से िनकलने क युि हम बता दी है। अब तो हमारा कत है क अपने इितहास का देदी यमान िच
िव के सामने रख द। पा ा य िव ान क ायः यह धारणा रही है और है क भारतवासी आय इितहास िलखना
या सुरि त रखना नह जानते थे। यह िववाद, जो कसी भी भारतीय िव ान् को अस है, ब त दन से चला आ
रहा है। ाचीन इितहास के अनुशीलन के िलये ायः दो प रपाटी चल पड़ी ह, और ऐितहािसक त व का
प ीकरण भी ायः दो ज़दे-ज़दे माग से हो रहा है। पा ा य िव ान् अव य ही समय-िनधारण म अ य त संकोच
और ष
े बुि से काम लेते आये ह। यह आज िब कु ल िन ववाद है क हमारे आय ऋिष- वर सािह य, योितष,
िव ान, आयुवद आ द सम त कला म उस पूणता तक प च
ं चुके थे, जो आज भी योरप के िलये व वत् तीत
हो रही है। यह एक स य है, िजसे पहले तो नह , पर तु अब येक पा ा य िव ान् मु -क ठ से वीकार कर रहा
है। हाँ, समय िनधारण का बड़ा ही ज टल है, और वह भी इसिलये क हमारे पास ऐितहािसक माण का
अभाव-सा समझा जाता है। हमारे दय स ाट् बाल ग गाधर ितलक का ’ओरायन’ ग थ इस दशा म हम ब त
कु छ काश म ला चुका है। उनका िवचार एवं िन कष योितष, गिणत और वै दक ऋचा पर अवलि बत है। सच
तो यह है क िजस समय हम थे, उस समय हमारी जाित के िसवा संसार म और कोई भी स य जाित नह के
बराबर थी। हमारी ऐितहािसक ाचीनता म एक ऐितहािसक गौरव सि िहत है। आज "हम" हम नह , आज
ब तेरे हम हो गये और इसी हमाहमी म एक भारतीय इितहास ही नह , युत िव इितहास झगड़े क चीज़ बन
गया। संसार म आय और अनाय दो ही मु य जाितयां ह। आय क शाखाय- शाखाय इतनी बढ़ गयी ह क उस
अ धकार म इितहास के प े उलटना बड़ी िवकट सम या है। उस पर एक आ य यह क स पूण ाचीन इितहास
के मु यतः दो ही आधार ह-एक तो वै दक सािह य, और दूसरे भौगोिलक आधार पर पृ वी क िभ -िभ सतह
क खोज। दन- दन हमारे इितहास को नव-नव काश िमलता जा रहा है। आय-इितहास एक बुझौवल या
हेिलका के प म हम िमल रहा है। वै दक सािह य क ा यान का प दन- दन िवकिसत और ग भीर होता
जा रहा है। सच पूिछये तो वै दक सािह य संसार-मा का सािह य हो रहा है। इसम सभी समान प से दलच पी
ले रहे ह। कोई नह कह सकता क भिव य म हमारे आय इितहास का या प होगा तथा हमारा अ तर-रा ीय
स ब ध कै सा रहेगा। हमारा सम त सािह य िव का सािह य हो रहा है। कौन कह सकता है क हमारे दशन,
सािह य और इितहास एक दन िव मा के िलये दशन, सािह य और इितहास नह हो जायँगे ? िव आज उसी
क पुनरावृि कर रहा है, जो आय लोग कर चुके ह; और स भवतः वह प च
ँ ेगा, जहाँ हम एक बार प च
ँ कर
भटक से गये ह। यह एक ऐितहािसक स य है। यह एक दन सबके सामने आयेगा। इसी से कहा जाता है क
अ तर-रा ीय िमलन का एकमा आधार भारतवष होगा; य क उसक कुं जी इसी के हाथ म है।
हाँ, तो हमारा इितहास आज एक कार से माण के अभाव म Mythology सा बन गया है। पुराण ग प-सा
बन गया है और रामायण और महाभारत को पक का प िमल गया है ! यह हमारे िलये लाचारी और ल ा क
बात है । भारतीय िव ान् इसी गु थी के सुलझाने का य कर रहे ह । िव र ीयुत् के . पी. जायसवाल ने,
िबहार और ओ रसा- रसच-सोसाइटी के जनल म , गग-संिहता के एक अ याय के आधार पर यह साफ-साफ
सािबत कर दया है क भारतवासी इितहास िलखना जानते थे, तथा गग के ऐितहािसक अ याय से हम ाचीन
राजवंश के इितहास तक िन व प च
ँ जा सकते ह । ब त िनकट-भिव य म महाभारत से आज तक का सुस ब
इितहास हमारे सामने आ जायगा, ऐसी आशा क जाती है। गग-संिहता का ऐितहािसक िववरण ीक िव ान के
उस ऐितहािसक िववरण से िमल जाता है , जो उ ह ने भारतवष के बारे म िलखा है । जायसवालजी का यह य
ऐितहािसक संसार म युगा तर पैदा कर सकता है । अपार सं कृ त-सािह य के अनुशीलन से ही हम अपने इितहास
क खोज करने म सफल मनोरथ हो सकते ह । लोकमा य ितलक हमारे पथ- दशक हो गये ह; अब हम आगे बढ़ना
है । हम इस लेख म भौगोिलक आधार पर भारत के ाचीन इितहास के द दशन कराने का य करना है । इस
स ब ध म उपिनषद्, पुराण और महाभारत के भौगोिलक वणन से हम ब त कु छ पता लग सकता है।
ीम ागवत म तो भूगोल का पूण ख़ाका ही ख चा गया है । इस लेख म म के वल भौगोिलक आधार पर यह िस
करने क कोिशश क ँ गा क आय लोग भारतवष म काबुल क ओर से न आकर का मीर क राह से आये और
िस धु-नदी के कनारे - कनारे आकर सारे पंजाब म बस गये । पंजाब से वे पि मो र क ओर बढ़ते-बढ़ते काबुल
नदी के आस-पास तक प च
ँ गये और वह पर आय क उस शाखा से उनक मुठभेड़ ई, जो ऑ सस-नदी के
पि मो र- देश Airya nem Vaejo (अ रयानम् वज) अथात् ’आयानां जः’ से आय क भारतीय शाखा से
िवलग हो गयी । उनका भारतीय आय से मतै य नह था, तथा वे भारतीय आय को देव-पूजक कहने लगे थे।
भारतीय आय उ ह ’असुर’ कह कर पुकारते थे । ऋ वेद म ’असुर’ श द का अथ वही नह है, जो आज समझा जाता
है। पहले ’असुं राित लाित ददाित इित असुरः’ अथात् देवता के अथ म ’असुर’ श द यु होता था। अब इसका अथ
हो गया है-’न सुरः असुरः’। इरानी आय से भारतीय आय क लड़ाई का मु य कारण बतलाना तो मुि कल है,
पर तु इतना कहा जा सकता है क इस ष
े का कारण कु छ तो आ थक और कु छ धा मक था । हम ऋ वेद म देखते
ह क आय के देव क सं या मशः बढ़ती जाती है। अवे ता म वै दक सािह य के ा ण भाग का कोई भी संकेत
नह िमलता। हाँ, ऋ वेद क भाँित िज दा-अवे ता म म और सू अव य िव मान ह। म का प उसम
’म न्’ है। पारिसय के पिव थ का नाम ’म - वे त’ है। अवे ता के देवता म- जो भारतीय आय से
िमलते-जुलते ह-िम , व ण, आयमन् और यमी (यम) है। वै दक सािह य म इधर आय ने दन- दन िवकास ा
कया। िवचार-धारा शा त प से बहती गयी।
भारतीय आय तथा पारिसय क भौगोिलक ि थित और आलोचना-अबआलोचना भारतीय तथा पारिसय क भौगोिलक
ि थित पर स यक् िवचार करके म यह प क ँ गा क कस तरह भारतीय सािह य म व णत भूगोल क प रपाटी
अवे ता के भूगोल से िभ है। पहले म सं ेप म वायु-पुराण म व णत ज बू ीप म आये देश क सूची देता -ँ
इदम् हैमवतं वष भारतं नाम िव ुतम्। हेमकू टं परं त मात् ना ा क पु षं मृतम्॥
नैषधं हेमकू टात् तु ह रवष तदु यते। ह रवषात् पर ैव मेरो त दलावृतम्॥
इलावृतात् परं नीलं र यकं नाम िव ुतम्। र यात् परं ेत िव ुतं तत् िहर मयम्॥
िहर मयात् परं चािप शृग ं वां तु कु ः मृतम्। (वायु पुराण)
(१) हैमवत् वष अथात् िस भारतवष, (२) उसके बाद हेमकू ट पवत है, िजसे क पु ष देश कहते ह, (३) हेमकू ट
के बाद नैषध है, िजसे ह रवष कहते ह, (४) ह रवष के बाद मे -पवत के उ र इलावृत है, (५) इलावृत के बाद
नील वष है, जो ’र यक’ नामसे िस है, (६) र यक के उ र ेत- देश है, िजसे िहर मय कहते ह और (७)
िहर मय के बाद शृंगवान् है, जो कु नाम से यात है।
इस कार ज बू ीप के अ तगत वायुपुराण के अनुसार सात देश ये। सात देश म सबसे उ र कु देश आ।
यह ’कु ’ कहाँ है सो ा डपुराण के िन -िलिखत ोक से प हो जाता है-
उ र य समु य समु ा ते च दि णे। कु रवः त त ष पु यं िस -िनषेिवतम्॥
यह कु उ रीय समु के दि ण क ओर बसा आ है। यहाँ िस पु ष रहते ह, िजनका नाम ’कु ’ है।
अव य ही यह कु उ रसागर के दि ण रहा होगा, जो उ र ुव के उ रीय वृ म बसा होगा। इससे लो.
ितलक क स मित को कोई आघात नह प च
ँ ता। पर तु यह होता है क इस कु और भरत-ख ड के कु म
या स ब ध है ? इसका समाधान म पीछे क ँ गा। तब तक यह देख लेना चािहये क इस कु का हमारे पुराण म
कै सा वणन आया है। प पुराण के िन िलिखत ोक अनाव यक नह कहे जा सकते-
उ रेण तु शृंग य समु ा ते ि जो माः। वषमैरावतं नाम त मात् शृग
ं वतः परम्॥
न तु त सूयगितः न जी यि त च मानवाः। च मा सन ो योितभूत इवावृतः॥
अथात्, शृंग के उ र समु के अ त म ऐरावत वष है, जहाँ ’ि ज म े ’ रहते ह। यह वष शृंगवान् के बाद है तथा
यहाँ पर न तो सूय क गित है, न मनु य जीण होते ह और स-न च मा शा त चमकते रहते ह।
यहाँ उ रतम देश कु न होकर ऐरावत हो गया है। क तु प पुराण के अनुसार उ र कु को इस मे और
नील के म य म पाते ह। जैस-े
दि णेन तु नील य मेरोः पा तथो रे । उ राः कु रवो िव ाः पु याः िस िनषेिवताः॥
इस ोक म हम ा डपुराण क छाया तो अव य पाते ह, पर तु कु यहाँ उ र-कु होकर, उ र- व
ु के
िनकटव देश से हटकर, मे और नील के म य म आ गया है। अव य ही यह आय के थाना त रत होने का
सूचक है। आय लोग म य-एिशआ क ओर बढ़ते आते ह और अपने ि य देश का नाम अपने साथ लेते आते ह, जो
म य-एिशआ से दि ण क ओर हटते-हटते, भरत-ख ड म कु -पा ाल के प म प रव तत हो गया है। यह म
उपसंहार म दखलाऊँगा। तब तक म अ य माण ारा यह िस क ँ गा क यही कु महाभारत म ह रवष म कस
कार आ गया है।
अजुन क िवजय-
िवजय-या ा और कु या उ रकु -महाभारत के सभा-पव म अजुन क िवजय-या ा के संग म भी
उ र-कु का उ लेख आया है। इसम उ र-कु लोग का ह रवष म रहना िस होता है। यह ह रवष अब उ रीय
ुव के समीपवत वृ के अ तगत नह है। यह ब त ही दि ण क ओर हटकर मानसरोवर के देश के उ र म
बतलाया जाता है। अजुन का िवजय म इस कार है-वह पहले (१) ेत पवत को पार कर क पु ष के रहने क
जगह पर अथात् क पु ष-वष म जाते ह, जो म
ु राजा के पु ारा रि त है। (२) तदन तर उ ह जीतकर और
उनसे कर ले गु क से रि त ’हाटक’ नाम के देश म चले गये। उ ह भी जीतकर वह मानसरोवर क ओर आगे बढ़
गये। (३) उधर हाटक देश के बाद मानसरोवर के िनकट ही ग धव का देश था। इस देश को भी जीतकर ग धव से
िति र- कि मष और म डू क-नामक घोड़े कर- व प उ ह ने हण कये। (४) इससे उ र जाने पर उ ह ह रवष
िमला। यहाँ महाकाय, महावीय ारपाल ने इनक गित अनुनय-िवनय करके रोक दी। उन लोग ने कहा क यहाँ
मनु य क गित नह , यहाँ उ र-कु के लोग रहते ह; यहाँ कु छ जीतने यो य चीज़ भी नह । यहाँ वेश करने पर
भी, हे पाथ, तु ह कु छ भी नज़र नह आयेगा और न मनु य तन से यहाँ कु छ दशनीय ही है। उन लोग ने पुनः पाथ
क मनोवा छा क जांच क । पाथ ने कहा क म के वल धमराज युिधि र के पा थव व का वीकार चाहता ।ँ
इसिलये युिधि र के िलये कर-प य क आव यकता है। यह सुनकर उन लोग ने द - द व , ौमािजन तथा
द आभरण दये।
स ेतपवतं वीरः समित य वीयवान्। देशं क पु षावासं म ु पु ेण रि तम्॥
महता सि पातेन ि या तकरे ण ह। अजय पा डव े ः करे चैनं यवेशयत्॥
तं िज वा हाटकं नाम देशं गु करि तम्। पाकशासनीव ः सहसै यः समासदत्॥
सरो मानसमासा हाटकानिभतः भुः। ग धवरि तं देशमजयत् पा डव ततः॥
त िति र कि मषान् म डू का यान् हयो मान्। लेभे स करम य तं ग धवनगरा दा॥
उ रं ह रवष तु स समासा पा डवः। इयेष जेतुं तं देशं पाकशासनन दनः॥
तत एनं महावीया महाकाया महाबला । ारपालाः समासा ा वचनम वु न्॥
पाथ नेदं वया श यं पुरं जेतुं कथ न । उपावत व क याण पया िमदम युत॥
न चा कि ेत मजुना दृ यते । उ राः कु रवो त े े गा यु ं वतते॥
िव ोऽिप िह कौ तेय नेह यिस क न । निह मानुषदेहन े श यम ािभवीि तुम्॥
... पा थव वं िचक षािम धमराज य धीमतः।..युिधि राय यि कि त् करप यं दीयताम्॥
ततो द ािन व ािण द ा याभरणािन च। ौमािजनािन द ािन त य ते ददुः करम्॥
(महाभारत, सभापव)
कािलदास और मेघदूत-कािलदास के बतलाये ये मेघ क राह म िमलने वाले ायः सभी नद-नदी, िग र और
नगर का पता आज चल गया है। कनखल यानी ह र ार तक या कै लाश तक तो हम मान जाते ह, पर तु इसके उ र
ग धव क नगरी अलकापुरी को हम कोरी क पना समझते ह। कम-से-कम हम इतना मानने को तैयार नह होते
क यह भी भौगोिलक स य है। अजुन ेत-पवत यानी िहमालय पार कर उ र क ओर बढ़े; पर तु इसे हम
किव-क पना से बढ़कर और कु छ मानने के िलये अभी तैयार नह । यह मेघ क राह तो और भी क पना है। पर तु
इसके पूव हम यह दखलाना चाहगे क बौ लोग कस कार िहमालय के उ र- देश से अपना स ब ध रखते ह।
िबहार-नेशनल-कालेज के ि ि सपल ीयुत् देवे नाथ सेन् एम्.ए., आई.ई.एस्. ने अपने
Trans-Himalayan-Reminiscences in Pali-literature नामक िनब ध म यह ब त ही अ छी तरह से
दखलाया है क बौ का भाव िहमालयो र- देश म ही इतना अिधक य पड़ा तथा बौ लोग मानसरोवर के
िनकटवत देश के ही इतने मे ी य ये । उ ह ने बौ जातक के आधार पर यह िस कया है क भारतीय
आय का म े िहमालयो र- देश से कु छ नैस गक-सा था। हम उनके िनकाले ये िन कष को अ वीकार नह कर
सकते।
गग-
गग-संिहता और भारतीय इितहास-
इितहास महाभारत के प ात् के इितहास का द दशन गगाचाय ने अपनी
गग-संिहता म कया है। ऊपर िलखा जा चुका है क ीयुत के . पी. जायसवाल ने Behar & Orissa Research
Society के Journal म, गगसंिहता के ‘युग-पुराण’ नामक अ याय के आधार पर, कस कार जनमेजय से लेकर
ी ा द से दो शता दी पूव तक के इितहास का द दशन कराया है। गगाचाय ने कृ णा ( ौपदी) क मृ यु के बाद
से भारतीय इितहास िलखा है। उनके इितहास क प रपुि ाचीन मु ा , िवदेशी िव ान के रे कड तथा वत
माण से भी होती है। उ ह ने जनमेजय और ा ण के बीच वैमन य का िज कया है। दूसरी बात, जो
गग-संिहता से िव दत होती है, यह है क महाभारत के बाद धीरे -धीरे ा ण धम का के त िशला से हटकर
मगध के पाटिलपु म आ गया। जनमेजय क राजधानी त िशला है और उसक ा ण से श ुता है।
महाभारत के बाद वै दक धम-महाभारत
धम के बाद अव य ही ा ण धम यानी वै दक धम के िव आ दोलन
उठने का संकेत पाया जाता है। ऐसा य आ, यह उस समय का इितहास ही बतला सकता है। िह दू णाली के
अनुसार महाभारत का समय ी ा द से ३,००० वष के लगभग पहले माना जाता है और यह समय पाकर स य
भी सािबत हो सकता है। हम िव दत ही है क ी से पूव सातव शता दी के म य म बु देव और महावीर-जैन का
उदय आ। वभावतः इस धा मक ाि त के सफल होने म २,४०० वष का समय ब त नह है। वै दक काल से ही
हमारे धा मक िवचार म प रवतन होते आये ह और िह दू दशन के िमक िवकास का भी हम पता िमल जाता है।
तब वै दक काल के अनेके रवाद से (िजसम एके रवाद का बीज-वपन हो गया है) उपिनष काल के एके रवाद
तक हम आ जाते ह। एके रवाद के बाद हम वाद िमलता है, िजससे वेदा त क उ पि ई। इस वाद म
मायावाद सि मिलत है। संसार माया का जाल और ही एक स य समझा जाता है। पर तु इसी वाद और
मायावाद क धूम के बाद पु ष और कृ ित-वाद का आ दोलन जा त् हो जाता है। पु ष और माया कृ ित बन
जाती है। इस िवचार िवकास म पया समय लगा होगा। आते-आते सू काल म हम किपल का सां य-सू िमलता
है। य िप सां यका रका सां यधम के उदय के ब त दन के बाद एक िविश दशन के पम कट ई, तथािप
हम इसे कम-से-कम बौ धम से ५-६ सौ वष पूव समय देने म कोई आपि नह समझते। मैकडाने ड महोदय भी
ी ा द से १,००० वष पूव सां यधम का उदय होना तो कम-से-कम वीकार ही करते ह। सां य के आिधभौितक
धम को हम बौ या जैन के धम का मूल -कारण समझते ह। किपल अपने िवचार के कारण नाि तक समझे गये।
धीरे -धीरे ४०० वष तक नाि तकता का, जैसा क उस समय समझा गया, िवकास होता गया। इ ह चार-सौ वष
म चावाक आ द का भी ादुभाव आ। अथव-काल के बाद हम त -धम का भी सू पात होते देख पड़ता है।
धीरे -धीरे यह त वाद ज़ोर पकड़ता गया और वै दक धम का प िवकृ त होता गया। यही त वाद स भवतः
शा -धम का मूल-कारण रहा। गौतम बु के समय तक साधारण जनमानस म हसा का पूणतः चार हो गया
होगा।
महाभारत के बाद बौ कालीन इितहास का अदशन-परीि
अदशन त के पु जनमेजय के समय से ही ा ण के
िव दुभाव फै लने लगे, और यही कारण है क त िशला छोड़कर ा णधमावल बी आय मगध क ओर आ
गये। गग-संिहता के आचाय गगजी ा णधम का अनुयायी होने के कारण अव य ही बौ या उसके पूव के
इितहास का द दशन कराने से बाज़ आये से मालूम पड़ते ह। सच पूिछये, तो सं कृ त सािह य ही इस िवषय म
िब कु ल चुप है। वह अव य ही पर पर िव ोह और अशाि त का समय रहा होगा। गग के सामने अव य ही
ऐितहािसक थ मौजूद रहे ह गे; पर तु उन थ म नाि तक क कथा न िलखी गयी हो, यह स भव तीत होता
है। फलतः बौ सािह य के अनुशीलन के िबना भारतीय इितहास का पूरा पता नह पा सकते।
बौ जातक म िहमालयो र-
र- देश- फर भी हम स गानुसार बौ जातक म आये ए िहमालयो र- देश
का वणन करगे। य िप ये ग पवत् तीत होते ह, तथािप हम उ र कु के स े अि त व का पता पा जाते ह।
’िमिल दप ह’ म ’सागल’ नगर क उ र-कु से तुलना क है, जैस-े ’उ रकु संकासं स प स यं’। िवधुर पि डत
के जातक म भी हम उ र-कु के दि ण म ज बू ीप को पाते ह। मरण रखना चािहये क यहाँ पर ज बू ीप ख़ास
भारत समझा गया। जैस-े
पुरतो िवदेहे प स गोयािनये च प छतो क यो। ज बूदीप प स मिणि ह प स िनिम ं॥
इसके अन तर फर भी हम िन -िलिखत वा य िमलता है-
िवदेहिे त पु विवदेहं गोयािनयित अपरगोयािनदीपं; कु रयो ित उ रकु च दि णतो ज बूदीप ।
अथात् िवदेह पूव-िवदेह को, गोयािनय अपरगोयािन- ीप को, कु उ र-कु को और उसके दि ण ज बू ीप को
कहते ह। इससे उ र-कु का िहमालय से उ र होना िस आ। इस उ र-कु के बािस दे भी ज बू ीप (भारत के
अथ म) के बािस द से अ छे समझे गये ह। जैस-े
तीिह िभ खवे ठानेिह उ रकु का मनु सा देवे च ताव तसे अिधग हि त ज बूदीपके च मनु से। कतमेित तीिह ?
अमना च, अप र गहा, िनयतायुका, िवसेसभुजो।
अथात् तीन बात म उ र-कु के मनु य और ताव तस के देव ज बू ीप के मनु य से िभ ह। वे तीन कौन-कौन
सी ? वे िनमम ह यानी मायारिहत ह, प र ह नह लेत,े अमर ह तथा कोई िवशेष भोजन खाने वाले ह।
मानसरोवर या अनोत महासर-
महासर ीयुत देवे नाथ सेन ने ’पालीसु ’ के आधार पर अनोत महासर का
मानसरोवर होना सािबत कया है। पाली-सू म सात न दय का वणन पाया जाता है; जैसे-अनोत , सहपपात,
रथकार, क णमु ड, कु णाल, त और म दा कनी। िहमालय से िनकली न दयाँ गंगा, यमुना, अिचरावती, सरभू
और मही है। ’सरभू’ स भवतः सरयू और अिचरावती वै दक काल क सदानीरा है। मही उ र िबहार क एक
िस नदी है। अनोत का अथ अनवत है। सू के अनुसार यह झील उ र-कु म है; य क उ रकु म
बोिधस व और बौ िभ ु लोग िभ ाटन कर, अनोत दह म िव ाम करते थे।
क थ और मैकडाने ड क स मित-The
मित Uttar Kurus who play a mythical part in the epic and later
literature, are still a historical people in the ऐतरे य ा ण where they are located beyond
the Himalayas (परे ण िहमव तम्). In another passage, however, the country of the Uttar
Kurus is stated by Vashishtha Satyahavya to be a land of Gods (देव े ), but जान तािप
अ याराित was anxious to conquer it, so that it is still not wholly mythical.-Keith.
The territory of the Kuru Panchal is declared in the ऐतरे य ा ण to be the middle
country (म यदेश). A group of the Kuru people still remained further north-the Uttar Kurus
beyond the Hiamlayas. It appears from a passage of the शतपथ ा ण that the speech of
the Norherners-that is presumably the Norhern Kurus-and of the Kuru Panchal was
similar and regarded as specially pure. There seems little doubt that the Brahmanical
culture was developed in the country of the कु पा ाल and that it spread then east, south
and west-Macdonald.
प है क उ र-कु िहमालय के उ र म है और ऐतरे य ा ण के समय म यह एक ऐितहािसक देश रहा है,
जहाँ से और कु पा ाल से य स ब ध था। स भवतः कु पा ाल-िनवासी उ र-कु के ही वंशधर और शाखा
ह। इस उ र-कु का भौगोिलक िवकास हमारे इितहास के िलये परम आ यजनक और मह व क चीज़ है। इससे
आय का मशः उ रीय व ु के देश से आते-आते िस धु-नदी के तटव देश क राह से भारतवष अथात्
ज बू ीप म आना िस होता है। आय के िहमालय क तराई से आने के िलये कई माग हो सकते ह। यह का मीर
से ित बत (ि िव प) तक िव तीण है। इस संकटाप माग का संकेत हम ऋ वेद के सू से भलीभाँित िमल जाता
है। इरानी आय कहाँ से भारतीय आय से िवलग ये, यह आगे बतलाया जायगा। हमारा सािह य िहमालयो र
देश क पु य- मृितय से ओत ोत है। कभी कसी का यान काबुल क ओर नह गया। य ? यह हम उपसंहार
भाग म दखलाएँगे। वग के अि त व क धारणा हमारे मन से अभी तक नह गयी है। यह हमारी िवकट भूल
होगी, य द हम इस य ऐितहािसक त य को खुले दल से वीकार न कर।
बौ धम के िहमालयो र-
र- देश म चार का नैस गक कारण-दू
कारण सरी बात िजसे भूलने क साम य नह , यह है
क बौ धम का चार िहमालय से उ र ही ापक प म आ। इस नैस गक चार का मूल कारण भी नैस गक
हो सकता है। चीनी या ी फ़ािहयान और एनसांग के वणन इसके िलये पया ह। फ़ािहयान को, भारत म वेश के
पूव, खोटन आ द थान म बौ धम का पूणतः चार िमला। हीनयान-प थ के हज़ार िभ ु उ र क ओर गये।
शेनशेन म हीनयान और खोटन म महायान-स दाय का चार पाया गया। सव सं कृ त और पाली का बोलबाला
था। एनसांग को, जो गोबी (ओ किन अथात् अि ) क म भूिम से आया, भारतीय िलिप से ही िमलती-जुलती
िलिप गोबी के आसपास के देश म िमली। बु देव क मू त, संघाराम तथा अनेक मि दर भी िमले। वह अ ु से
होता आ आ सस क तराई म आया और वहाँ से ब ख़ चला गया। यह ब ख़ अपने मि दर क ब लता के कारण
राजगृह कहा जाता था। आ य नह , य द सर आरे ल टेन को खोटन क बालुका के अ दर सं कृ त और ाकृ त के गड़े
ए थ िमले। उधरके शहर के नाम तक सं कृ त और ाकृ तमय ह। ि ि सपल सेन के अनुसार यह भारतवष से
पूव तु क तान के पर पर-संसग का अचूक स भवनीय माण है। यह संसग वै दक स यता से भी पूव का होगा।
ईरानी आय क शाखा कब और कहाँ से अलग ई-अब ई हम अपनी ल य-पू त के िलये उन आय क ओर
पाठक का यान आक षत करते ह, जो भारतीय शाखा से अलग हो ईरान क ओर चले गये। हम ऊपर कह चुके
ह क भारतीय आय उस मरणातीत समय म अलग ए, जब उनके वै दक देवता क सं या ब त बढ़ने नह
पायी थी। ’आयानां जः’ कहाँ है-इसका प ीकरण ही इन दोन शाखा के अि तम िमलन का इितहास होगा। वे
अव य ही उस समय िवलग ए, जब वे ’आयानां जः’ म रहते थे। सेन महोदय ने आ सस-नदी के कह
पि मो र- देश म इसका होना बतलाया है। अतएव यह कै ि पयन या क यप सागर के दि ण-पूवव ातम
कह हो सकता है। ज़े दावे ता के भौगोिलक वणन से यह बात प हो जायगी। क तु भौगोिलक वणन के पूव यह
िन य कर लेना उिचत है क आय के इस पर पर वैमन य का कारण या हो सकता है।
दित और अ दित क कथा तथा आय का पर पर संघष- ष- क यप ऋिष क दो पि य से दै य और आ द य
क उ पि क कथा सबको िव दत है। ब त स भव है, क यप-सागर के आसपास ही क यप ऋिष का रहना आ
हो। दै य और आ द य क कथा म देवासुर-संघष का आभास िमल जाता है। पारिसय के इ देव ज़ोरो टर को
ज़े दावे ता म ’मं न’ कहा गया है। आय के ाचीन इ देव पारसी और भारतीय आय के िबलकु ल एक ही ह।
ज़ोरो टर ने आय से मतभेद होते ही देव-पूजक आय के िव बग़ावत शु कर दी। ऋ वेद के ाचीन सू म सुर
और असुर क िभ ता न होने पर पीछे यह भेदभाव ब त बल हो गया है। असुर के िव देवदल और देवदल के
िव असुरदल पीछे कट हो गये ह। आ य तो यह है क िजस तरह फ़ारस यानी ईरान म देव का अथ रा स हो
गया है, उसी कार भारतवष म भी असुर का अथ रा स ही समझा जाता है ! मुसलमान के "िह दू" श द क
ा या म भी यही भेदभाव सि िहत पाया जाता है, िजसका अथ वे कु छ और ही करते ह। कम-से-कम इतना तो
िनि त है क भारतीय तथा पारसी आय कसी बड़ी बात को लेकर ही एक दूसरे से ज़दा ए। धा मक िवकास
अिधकतर भारतीय आय के ही ारा आ। इससे यह िन कष िनकाला जा सकता है क भारतीय शाखा का झुकाव
इस ओर अिधक था तथा उनक िवचारधारा दन- दन आगे क ओर बढ़ती गयी। चाहे ये दोन दल आ सस-नदी
के आस ा त से िवलग ए ह चाहे और कसी थान से, पर तु वे अलग ए िवकट वैमन य के बाद ! यह बात
तब और भी पु हो जाती है, जब हम देखते ह क दोन शाखा के माग दो हो गये। ईरानी शाखा को सहज माग
िमला और भारतीय शाखा को पहाड़ी देश क शरण लेनी पड़ी। ऋ वेद क एक-एक पंि से, पथ क दुगमता
दूर करने के िलये, एक आहभरी दीन ाथना कट होती है। भारत म आ जाने पर आय को ऐसी क ठनाई नह थी
क उ ह पग-पग पर अ याचारी श ु के नाश के िलये इ देव क दुहाई देनी पड़ती। अ याचार-ि य अ य शाखा
से हार मानकर ही इ ह यह माग पकड़ना पड़ा होगा।
अवे ता से भौगोिलक ान तथा उससे ईरानी शाखा के इितहास पर काश-यह िनि त करने के पूव क आय
लोग उ र क ओर से दि ण क ओर िहमालय के माग से आये और आयाव के कु े तक फै लते-फै लते अपने
ाचीन उ र-कु क मृित म कु े का उ ाटन ज बू ीप म कया, यह जान लेना ज री है क ईरानी शाखा
कस माग से यहाँ आकर बसी और काला तर म उसक ि थित और मनोवृि कै सी रही। अ र (असुर) म द ने, जो
ईरानी शाखा के ज़ोरो टर-स दाय के नायक थे, १६ देश बसाये थे, िजनम िन िलिखत देश का आधुिनक
देश से िमलान हो चुका है-
ज़े द-नाम आधुिनक नाम
१-आयानेम वेजो सं. आयानां जः (आ सस के िनकट)
२-सु ध (Sugdha) स ध (समरक द)
३-मौ (Mouru) मव (Marv)
४-ब धी (Bakhdhi) ब ख (Balkha)
५-हेरोयू (Haroyu) हेयर (Hare) या हेरात
६-ह तिह दु स िस धु (पंजाब)
(Fargard I, of the Vendidad)
ऊपर क तािलका से प है क ईरानी शाखा भारतीय शाखा से अलग हो पहले पहल ’आयानां जः’
(Aryanem vaejo) म ही रही। इसका अथ है क आय क भूिम। इस नामकरण से यह प है क वे भी
आय-श द क मृित म अपने वास थान का नाम रखना पस द करते थे। यह ज Vanguhi Daliya पर बसा आ
समझा जाता है। यह नदी आ सस-नदी के कह उ र-पि म क ओर थी। इसके बाद वे लोग मशः समरक द,
मव, ब ख, हेरात, काबुल और स िस धु अथात् पंजाब क ओर बढ़ते गये। इस भौगोिलक वणन म एक बात, िजस
पर हम िवचार करना है, यह है क िजस कार हमारे सािह य म मे या उ र-कु से आर भ कर क पु षवष
आ द होते ये िहमव त और ज बू ीप का िमक स ब वणन है, उसी कार और ठीक उसी कार ईरािनय क
गित का िसलिसला भी पाया जाता है। कसी भी सुधी को एक नज़र डालने से यह प त िव दत हो जाता है क
दोन शाखा के दो िभ -िभ माग ह; दो भौगोिलक स दाय ह; दोन के िवयोग के अन तर िभ -िभ देवता
ह ! एक बात और; ’आयानां जः’, Celestial Mountain ( वग य पवत)-िजसका नाम Thianshan भी
है-के ठीक िनकटव देश ह। दोन शाखा के िव ोह पर दृढ़ िव ास तब और भी हो जाता है, जब हम यह
देखते ह क इ , जो भारतीय शाखा के आरा य देव ह, पारिसय के िलये एक दुदा त दै य ह। ऋ वेद क ऋचाएँ
इसक सा ी ह। इ , िजनके आय लोग बड़े कृ त ह, बारबार अपनी वीरता क शंसा सुनते ह। उ ह ने असुर
का दल-बल न कर आय क सहायता क है। देव और असुर क लड़ाई म वह सदा अ सर रहते ह। इ इह
वग य पवत पर रहते थे। सुमे -पवत का िनदश हम Thianshan या Celestial या वग य पवत म िमल
जाता है। अव य ही सुर और असुर का यह घोर यु ईरान के पूव सीमा- ा त म आ होगा। Vendidad के
वणनानुसार मव (Merv) पापपूण और न - हो गया था। इसी कार िनशय (Nisaya) जो मव और ब ख के
अ तगत था, पाप और नाि तकता का प रपोषक था, हेरात अ ुपात और िवकल वेदना से प रत था; और
Vaekereta या काबुल म बुतपर ती बढ़ रही थी, तथा क रस प (Keresaspa) देवपूजक बन गये थे।
ये दोन शाखाय कब और कहाँ अलग , इसका ठीक-ठीक अंदाज़ा करना क ठन है; पर तु इतना अनुमान
कया जा सकता है क आ सस के दि ण और िथयानशान या मे -पवत-माला के िनकटवत देश म कह इनके
दो दल ए। इ भारतीय शाखा के मुख जान पड़ते ह। अ रम द के नेतृ व म दूसरा दल रहा होगा। एक का दूसरे
को िवधम समझना तथा एक का दूसरे के इ देव को दै य बनाना धा मक असिह णुता क पराका ा है। अ तु,
ज़े दा अवे ता ’आयानां जः’ से मव, ब ख, ईरान, काबुल और स िस धु का िनदश देता है। इससे यही िन कष
िनकाल सकते ह क ईरानी शाखा यानी पारसी, आय से िवलग हो, ईरान क अिध यका को तय करते ए काबुल
क राह से स िस धु तक फै ल गये। भारतीय शाखा भी काबुल क राह से आयी, यह अ य त ही स देहा पद
िस ा त है। जब हम देखते ह क ज़े दावे ता अपने भूगोल का मानिच इस कार ख चता है तथा वै दक सािह य
का काबुल से ही अपना बयान ार भ कर पूव क ओर बढ़ता है, तब हम दो ही िन कष पर प च
ँ सकते ह- एक तो
यह क आय लोग के स िस धु से ही दो दल हो गये और ईरानी शाखा स िस धु से पि मो र- देश क ओर बढ़
चली। और, दूसरे यह क भारतीय शाखा उ र क ओर से सीधे िस धु-नदी क राह से आयी तथा स िस धु म
फै लकर पूव क ओर बढ़ने लगी। इसी बीच म, जब क पामीर, काराकोरम और िस धु के माग से काबुल तक फै ल
गयी, ईरानी शाखा भी पूव िन द माग से काबुल तक फै ल गयी। स भवतः यहाँ फर उनक ईरािनय से मुठभेड़
हो गयी। दोन शाखा का ल य स िस धु क ओर ही था, यह एक स देह क बात हो सकती है; पर तु हम ज़रा
अिधक िवचार करके देखते ह, तो साफ़ कट हो जाता है क दोन दल के िव तार के िलये दूसरा कोई े नह था।
िथयानशान के पूव थोड़ी ही दूर पर गोबी क म भूिम दीख पड़ती है। उस समय इस म भूिम का या प था, सो
तो ठीक-ठीक नह कहा जा सकता; पर तु या तो यह समु था या जैसा कु छ भूत विवशारद का कथन है, या यह
पहाड़ी-धूस रत च ान क रािश थी। भूत ववे ा का कथन है क साइबे रया िजस अव था म आज है, उसी
अव था म कभी म य-एिशया का यह भाग रहा होगा। साइबे रया म ाचीन कालीन वन के िच न िमलते ह और
ऐसा अनुमान कया जाता है क कसी समय इसक आबोहवा ऐसी थी क मनु य यहाँ रह सकते थे। ता पय यह
क भारतीय शाखा को िसवा मानसरोवर से जाकर ित बत तक फै लने के दूसरा कोई चारा नह था। स भवतः वे
भारतवष म एक ही बार नह आये, अिपतु समय समय पर अपनी सुिवधानुसार आते रहे।
ऋ वेद के सू म ईरान क अिध यका या काबुल के पि मी देश का आभासन िमलकर िहमालयो र- र- देश
क मृित का आभास िमलता है-ऋ वेद के अ ययन से इस बात का पता चल जायगा क िजन ाकृ ितक दृ य को
देखकर आय-ऋिष म मु ध हो अपनी सरल प रमा जत किवता क अंजिल सम पत करते थे, वे ाकृ ितक दृ य
िहमव त के इस पार या उस पार ही सुलभ ह। उन तुितपूण किवता म वे कृ ित का दृ य ख चते तथा अपने
मंगल और िवभव क अ यथना करते ह। लोकमा य िजन सू या ऋचा के आधार पर आय को
िहमालयो र- देश के आ द-िनवासी बताते ह, वे सू उनक मृित के जीते जागते िच ह। स भवतः आज कोई
भी लो. ितलक के िस ा त का ख डन सफलतापूवक नह कर सकता। चाहे आय पहले-पहल उ र व
ु के
िनकटवत वृ के िनवासी रहे ह चाहे और इधर आकर साइबे रया के मैदान म बसे ह , यह वीकार करना ही
पड़ेगा क वे आये उसी दशा से और अ त तक, आयावत म बस जाने तक, अपनी पु य- मृित को ताज़ा रखते गये।
उ र-कु के भौगोिलक िनदश से यह प ही कट हो जाता है क आय लोग अ त तक ’कु ’ श द से म
े रखते
गये। आय का यह ऐितहािसक और भौगोिलक िसलिसला ठीक उतना ही स य है, िजतना उनका ाकृ ितक दृ य
का मनन कर दशन और योितष-शा का िवकास करना। ऋ वेद के कौन सू कब रचे गये, यह सि द ध होने पर
भी यह कहा जा सकता है क कौन सा सू कस िवषय को िन द कर रहा है। हम नीचे उन सू को देते ह,
िजनक ा या ितलक के बाद सभी वै दक िव ान् करने लगे ह-
अमी य ऋ ा िनिहतास उ ा न ं ददृशे कु हिचत् दवेयःु ?
अद् वधािन व ण य तािन िवचाकशत् च मा न मेित।
अथात् वे ऋ (स ष), जो उ गगन-म डल म ि थत ह, रात म देखे जाते ह। वे दन म कहाँ चले जाते ह ? व ण
के काम को कोई अ वीकार नह कर सकता। उ ह क आ ा से च मा रात म चा दनी देते ह।
यह ऋचा उस समय बनी होगी, जब आय लोग उ र- ुव के देश से हटकर ब त इधर आ गये ह गे। ितलक
महोदय ने ऋचा के बल पर यह दखलाया है क वे जहाँ रहते थे, वहाँ एक ही तारा (उ र- ुव) बराबर
कािशत था, जहाँ दन कम और रात ब त बड़ी होती थी। यह उ रीय देश का िच है। उपयु ऋचा वह
बनी , जहाँ दन-रात म से होते रहे ह गे, और च मा का भी उदय होता होगा।
पवेपयि त पवतान् िविव ि त वन पतीन्। ो आरत म तो दुमदा इव देवासः सवथा िवशा॥
अथात् पवत को िहलाते ए, वृ को िगराते ए, हे म तो ! तुम मदम देव क भाँित अबाध प से चलते हो।
दासप ीरिहगोपा अित त् िन ा आपःपिणनेव गावः।
अपां िवलमिप िहतं यदासीत् वृ ं जघ वा अप तत् ववार॥
अथात् पिण ारािछपायी गाय क भाँित जल वृ ा ारा जो उनके पित और वामी ह, रोक दया गया। इ ने
वृ ा का वध कया और माग व छ कर दया, िजससे पानी बह गया, जो वृ ा ारा रोक दया गया था।
उपयु वणन ऋिषय का आंख देखा है। वृ ा का अथ मेघ है। ायः पहाड़ी न दयाँ, जो ब धा सूखी रहती ह,
वषा होने पर ज़ोर से उमड़कर बहने लगती ह। दूसरी ऋचा से पहाड़ी तूफ़ान से होनेवाला वृ -क पन साफ़-साफ़
नज़र के सामने आ जाता है। यह दृ य प नद क समभूिम पर स भव नह । यह उस समय क मृित है, िजस समय
आय िहमालयो र पहाड़ी देश म रहते ह गे।
एक दूसरी ऋचा जो ऋ वेद के ि तीय म डल के १५व सू म है, प कर देती है क आय लोग िस धु नदी के
उ म थान, का मीर के पूव र- देश, मानसरोवर के िनकट, पास से पंजाब म आये। यह ऋचा िन िलिखत है-
सोद ं िस धुम रणात् मिह वा व ेणान उषसः संिपपेव।
अजवसो जिवनीिभः िववृ न् सोम य ता मद इ कार॥
अथात् इ ने अपनी मह ा से िस धु-नदी को उ र क ओर बहा दया तथा उषा के रथ को अपनी बल ती सेना
से िनबल कर दया। इ यह तब करते ह, जब वह सोम मद से म हो जाते ह। िस धु-नदी अपने उ म- थान
मानसरोवर से का मीर तक उ र-मुँह होकर बहती है; का मीर के बाद दि ण-पि म-मुखी होकर बहती है।
स भवतः इ ने पहाड़ी दुगम माग को काटकर, िस धु-नदी के संक ण माग को िव तीण कर उ र क ओर नदी क
धारा व छ द कर दी हो। इससे आय का माग ब त सुगम हो गया होगा। यह मत िन िलिखत ऋचा से और भी
दृढ़ हो जाता है-
इ य नु वीयािण वोचं यािन चकार थमािन व ी।
अहन् अिह म वप ततद व णा अिभनत् प वतानाम्। (ऋ.मं. १/३२/१)
अथात् इ के उन पु षाथपूण काय का वणन क ँ गा िजनको उ ह ने पहले-पहल कया। उ ह ने अिह यानी मेघ
को मारा; (अपः) जल को नीचे लाये और पवत को जलमाग बनाने के िनिम काटा (अिभनत्)।
इसके बाद ही इसी सू क आठव ऋचा इस कार है-
नदं न िभ ममुया शयानं मनो हाणा अितयि त आपः।
याः िचत् वृ ो मिहना पयित त् ासामिहः य सुतः शीबभूव॥ (१/३२/८)
अथात् ठीक िजस कार नदी ढहे ए कगार पर उमड़कर बहती है, उसी कार स जल पड़े ए वृ (बादल)
पर बह रहा है। िजस वृ ा ने अपनी शि से जल को जीते-जी रोक र खा था, वही (आज) उनके पैर तले पड़ा आ
है।
यह दृ य पहाड़ी देश के दृ य का मरण दलाता है। वषा होने के समय काले-काले बादल के झु ड और पंि याँ,
िबजली क चमक, तड़क-भड़क के साथ गजन और अ त म वृि पात होने पर जल क अटू ट धारा तथा मेघ का
लोप ! ऐसे मनोरम दयाकषक दृ य को देखकर-िजसम मेघ पहाड़ के िसर पर अ ा जमाये रहते ह और बरस
जाने पर य -त हलके होकर िवलीन हो जाते ह-आय का यह िच ख चना िबलकु ल वाभािवक है। ऐसी ऋचाय
चुर मा ा म िमलती ह।
तुलना मक अ ययन के िलये ईरानी शाखा का गित म दया जाता है-
इरानी आय का वायुपुराण पवत ेणी महाभारत बौ जातक और
गित म Korasea कु कु वष ऐतरे य ा ण
सु ध (समरक द) र यक ेत
िहमवान्