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िशवपुरी
या ा वृ तां त
छा का नाम :- िवनय ताप रघु वंशी
क ा :- १२ ‘अ’
क ा :- १२ ‘अ’
परी क
िवषय सूची
ा ह या ा वृतांत ५
या ा वृतांत का इितहास ६
या ा वृतांत के िस लेखक १०
ोत १६
ा ह या ा वृ तांत ?
ातं यो र युग
रा ल सांकृ ायन के बाद या ा-सािह म ब मुखी ितभा के धनी किव-कथाकार
अ ेय का नाम बड़े स ान से िलया जाता है। अ ेय अपने या ा-सािह को या ा-
सं रण कहना पसंद करते थे। इससे उनका आशय या ा-वृतांतों म सं रण का
समावेश कर दे ना था। उनका मानना था िक या ाएँ न केवल बाहर की जाती ह
ब वे हमारे अंदर की ओर भी की जाती ह। ‘अरे यायावर रहेगा याद’ (सन्
1953) और ‘एक बूँद सहसा उछली’ (सन् 1960) उनके ारा िल खत या ा-सािह
की िस कृितयाँ ह। ‘अरे यायावर रहे गा याद’ म उनके भारत मण का वणन है
और दू सरी पु क ‘एक बूँद सहसा उछली म’ उनकी िवदे शी या ाओं को श ब
िकया गया है। अ ेय के या ा-सािह की भाषा ग भाषा के नए मुकाम तक ले
जाती है।
आज़ादी के बाद िहं दी सािह म ब तायत से या ा-सािह का सृजन आ। अनेक
गितशील लेखकों ने इस िवधा को समृि◌ दान की। रामवृ बेनीपुरी कृत ‘पैरों
म पंख बाँधकर’ (सन् 1952) तथा ‘उड़ते चलो उड़ते चलो’, य पाल कृत ‘लोहे की
दीवार के दोनों ओर’ (सन् 1953), भगवतशरण उपा ाय कृत ‘कलक ा से पेिकंग
तक’ (सन् 1953) तथा ‘सागर की लहरों पर’ (सन् 1959), भाकर माचवे कृत ‘गोरी
नज़रों म हम’ (सन् 1964) उ ेखनीय ह।
िहं दी या ा-सािह के सं दभ म मोहन राकेश तथा िनमल वमा को भी बड़े ह ा र
माना जाता है। इ ोंने या ा-सािह को नए अथ से सम त िकया। मोहन राकेश
ारा िल खत ‘आ खरी च ान तक’ (सन् 1953) म दि ण भारत का िव ार से वणन
िकया गया है। दि ण भारतीय जीवन प ित के िविवध िब ों को इसम लेखक ने
यथावत ुत कर िदया है । इनके या ा-सािह की सबसे बड़ी िवशेषता यह है िक
इसम कहानी की-सी रोचकता और नाटक का-सा आकषण दे खा जा सकता है।
िनमल वमा ने ‘चीड़ों पर चाँ दनी’ (सन् 1964) म यूरोपीय जीवन के िच ों को उकेरा
है। िनमल वमा के या ा-सािह म न केवल अपने समय का वणन रहता है ब
इितहास और सं ृ ित के अनेक िबंदुओं को भी इसम अिभ िमलती है।
िवदे शी संदभ को भी उनके ग की सहजता बोिझल नहीं होने दे ती।
कोई भी लेखक अ ा लेखक तभी बनता है जब वह जीवन को समीप से दे खता है
और जीवन को समीप से दे खने का सबसे सरल मा म या ा करना है◌ै।
रचना क लेखन करने वाला हर ले खक अपने सािह म िकसी न िकसी प म
या ा-सािह का सृजन अव करता है। हमने उपयु संि िववरण म दे खा
िक िहं दी म या ा िवषयक चु र सािह उपल है । िहं दी ग के साथ-साथ इसने
भी पया िवकास िकया है । अिधकांश लेखकों ने इस िवधा को अपनी अिभ
का मा म बनाया है।
िह ी सािह म या ा वृता
िह ी सािह म या ा वृता एक आधु िनक ग िवधा के प म ीकृत है। िह ी
म या ा-वृ ा िलखने की पर रा का सू पात भारते दु से माना जाता है। इनके
या ावृ िवषयक रचनाएँ किववचनसुधा म कािशत होती थीं। रा ल
सां कृ ायन, अ ेय और नागाजुन को आधुिनक िहं दी सािह का ‘घुम ड़ बृहत यी’
कहा जाता है।
भारते दु ने िविभ थलों की या ा की और अपने अनु भवों को साझा िकया। या ा
वृतां त के प म उनके कुछ सं रण ह- सरयू पार की या ा, लखनऊ की या ा,
ह र ार की या ा। भारतदु युग म ही कुछ लेखकों के ारा िवदे श या ा के वृतां त
भी िलखे गए। इसी कार ि वेदी युग म भी िविभ या ा वृता िलखे गए ीधर
पाठक की दे हरादू न , िशमला या ा। ामी स दे व प र ाजक की "मेरी कैलाश
या ा", अमे रका मण आिद। सबसे मह पूण या ावृता लेखक रा ल
सां कृ ायन माने जाते ह। उ ोंने िविभ दे शों की या ा की और या ा म आने वाली
कहािनयों को बताने के साथ-साथ उस थान िवशेष िक ाकृितक संपदा, सां ृ ितक
तथा ऐितहािसक घटनाओं को भी बारी-बारी से ुत िकया जैसे- िक र दे श म,
दािजिलंग प रचय, या ा के प े आिद। बाद म चलकर अ ेय ने अपनी या ा वृतां त
के ारा िवदे शी अनुभवों को भी एक भी एक कहानीकार की रोचकता और या ी
के रोमांचक के साथ ु त िकया है। "एक बूंद सहसा उछली" म यूरोप और
अमे रका की या ाओं को ुत िकया है। मोहन राकेश ने अपनी या ा वृता
"आ खरी च ान" म दि ण भारत की या ाओं का वणन िकया है। िनमल वमा ने
"चीड़ों पर चां दनी" नामक या ा वृतां त म अपने यूरोप या ा का वणन िकया है। इस
या ा वृतांग म वे वहां के इितहास, दशन और सं ृ ित से सीधा संवाद करते ह।
उनके या ा म संवेदनशीलता के साथ साथ बौ क गहराई का भी अनुभव होता ह
l
िस या ा वृ तांत ले खक
१. रा ल सां कृ ायन
िक र के दे श म:-
'िक र दे श म' िहमाचल दे श म ित त सीमा पर सतलुज
नदी की उप का म बसे सुर इलाक़े िक ौर की या ा-
कथा है.
यह या ा उ ोंने साल 1948 म की थी. मूल श 'िक र'
है, इसिलए रा लजी सव इसी नाम का योग करते ह.
कभी बस और घोड़े के सहारे और कभी कई दफ़ा पैदल
भी की गई या ा का वणन करते ए रा लजी े के
इितहास, भूगोल, वन ित, लोक-सं ृ ित आिद अनेक
पहलुओं की जानकारी जुटाते ह.
िकताब का सबसे िदलच पहलू वह है जहां वे अपने जैसे घुम ड़ों की खोज
कर उनका संि जीवन-च रत भी िलखते ह.
उ एक ऐसा या ी िमला जो पां च बार कैलाश-मानसरोवर हो आया था. उसने
सै कड़ों या ाएं कीं और डाकुओं ही नहीं, मौत से दो-चार आ और बच आया.
पु क का अंितम िह ा सू चनाओं से भरा है, जहां वो िक ौर के अतीत, लोक-का
और उसका िहं दी अनुवाद, िक र भाषा का ाकरण और श ावली समझाते हl
वो ा से गंगा:-
वो ा से गंगा , रा ल सांकृ ायन की िस का िनक
कृित है। यह मातृ स ा क समाज म ी के बच की
बेजोड़ रचना हैl यह रा ल सांकृ ायन ारा िलखी गई
बीस का िनक कहािनयों का सं ह है। इसकी कहािनयाँ
आठ हजार वष तथा दस हजार िकलोमीटर की प रिध म
बँधी ई ह। इस कार हम कह सकते ह िक यह
कहािनयाँ भारोपीय मानवों की स ता के िवकास की पूरी
कड़ी को सामने रखने म स म ह। 6000 ई से .पू.1942
ईतक के कालखंड म मानव समाज के ऐितहािसक ., आिथक एवं राजनीितक
अ यन को रा ल सां कृ ायन ने इस कहानीसं ह म बाँधने का यास िकया है। -
हालांिक यह पूरी तरह का िनक हैl
२. स दानंद हीरानंद वा ायन 'अ ेय'
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