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ISBN : 978-93-89577-25-9

© अशोक कु मार पांडय



काशक : राजकमल काशन ा. िल.
1-बी, नेताजी सुभाष माग, द रयागंज
नई द ली-110 002
शाखाएँ : अशोक राजपथ, साइं स कॉलेज के सामने, पटना-800 006
पहली मंिज़ल, दरबारी िब डंग, महा मा गांधी माग, इलाहाबाद-211 001
36 ए, शे सिपयर सरणी, कोलकाता-700 017
वेबसाइट : www.rajkamalprakashan.com
ई-मेल : info@rajkamalprakashan.com
KASHMIR AUR KASHMIRI PANDIT
History by Ashok Kumar Pandey
इस पु तक के सवािधकार सुरि त ह। काशक क िलिखत अनुमित के िबना इसके कसी भी अंश को, फोटोकापी एवं
रकॉ डग सिहत इले ॉिनक अथवा मशीनी, कसी भी मा यम से अथवा ान के सं हण एवं पुन: योग क णाली
ारा, कसी भी प म, पुन पा दत अथवा संचा रत- सा रत नह कया जा सकता।
वेरा और माँ के िलए

भूिमका
अ याय-1
इितहास के पहले का इितहास : आ यान क राजनीित
अ याय-2
वणकाल का िमथक : िह दू राजा के काल म क मीरी ा ण
अ याय-3
क मीर म इ लाम : ा ण से क मीरी पंिडत तक का सफ़र
[1320-1819]
अ याय-4
बदलते समीकरण क सदी : िसख और डोगरा राज म क मीरी पंिडत
[1824-1924]
अ याय-5
बनते-िबखरते आ यान [1931-1934]
अ याय-6
सं मण काल म पंिडत समाज [1934-1947]
अ याय-7
िवभाजन, प रवतन और िवड बनाएँ : नये देश म नये समीकरण
[1947-1949]
अ याय-8
नया िनज़ाम पुरानी मुि कलात : देश, देश और क मीरी पंिडत
[1949-1982]
अ याय-9
नये चुनाव, पुरानी रवायत : आतंकवाद का नया दौर [1982-89]
अ याय-10
डर, ग़ सा, बे ख़ी और घर से बेघर क मीरी पंिडत [1989 और आगे]
अ याय-11
िज ह ने घर नह छोड़ा : घाटी म रह रहे क मीरी पंिडत
स दभ थ
अनु मिणका
काल- म
भूिमका
क मीर एक पहेली है तो क मीरी पंिडत पहेली के भीतर क पहेली। िजसे हम भारत क
मु यधारा कहते ह, ख़ास तौर पर िह दीभाषी समाज, उसके िलए क मीरी पंिडत का अथ
है : न बे के दशक म क मीर घाटी से िव थािपत िह दू या इितहास म सामा य ान क
कताब से राजतरं िगणी के लेखक क हण या फर रस िस ा त के ा याकार अिभनव
गु । इससे अिधक जानने-समझने क कोिशश कम-से-कम िह दी समाज म मुझे नह दखी
है। यह कताब उस पहेली क कु छ गुि थय को इितहास और वतमान के ोत से सुलझाने
क एक कोिशश का िह सा है।
इस मामले म क मीर कम-से-कम दि ण एिशया का वह इकलौता इलाक़ा है क
उसका इितहास िमथक य कथा से लेकर आधुिनक काल तक िलिखत प म उपल ध है।
सं कृ त, फ़ारसी, उदू और अं ेज़ी म क मीरी इितहास पर अकू त साम ी िबखरी पड़ी है।
आधुिनक काल म एक सम या त े होने के कारण सभी प ने अपने-अपने तरीक़े से
िलखा है, इितहास और वतमान को िववेिचत कया है, दुिनया भर के िव िव ालय म
शोध ए ह और टीवी-अख़बार क बहस तो ह ही। ऐसे म इस िवपुल साम ी से गुज़रते
ए एक स यक् दृि से इितहास और वतमान क िववेचना करना कसी भी लेखक के िलए
चुनौती ही हो सकती है। वैसे आ यजनक यह है क साठ के दशक म आई िजयालाल
कलाम क कताब के बाद क मीरी पंिडत पर अं ेज़ी म भी कोई ऐसी कताब नह आई
जो पूरे क मीरी इितहास म उनक लोके शन क िववेचना करे । आज के समय म इस
लोके शन क तलाश और मह वपूण है य क न बे के दशक के िव थापन के िसलिसले म
यह सवाल बेहद मह वपूण होकर उभरता है क आिख़र ऐसा य आ? वह कौन-सी
या थी िजसम क मीरी समाज के भीतर वह अंत बना िजसक वजह से घाटी म यह
घटना घटी? दुभा य से इस िववेचना क जगह आम तौर पर दो तरह के अितरे क से काम
चलाया जाता है। पहला यह क न बे से पहले तो सब एकदम ठीक-ठाक था और त कालीन
रा यपाल जगमोहन ने मुसलमान के सफ़ाए क योजना के तहत क मीरी पंिडत को
रातोरात क मीर से िनकलवा दया। दूसरा अितरे क यह क मुसलमान ने धा मक उ माद
के चलते पंिडत को बाहर िनकाल दया। पहला जहाँ क मीर से आनेवाले आ यान म
मु य तक क तरह इ तेमाल कया जाता है तो दूसरा िव थािपत पंिडत और दि णपंथी
िह दू लेखक के ही नह बि क धीरे -धीरे भारतीय म यवग के सहज बोध का िह सा बनता
चला गया है। ले कन, धा मक आ ह -पूव ह को अलग करके देख तो एक सामा य-सा
इितहासबोध आपको यह िसखाएगा क ण म घटनेवाली घटनाएँ अ सर इितहास के
ल बे अंत का िह सा होती ह। इितहास म कसी ‘ य ’ का जवाब अ सर इकहरा नह
होता बि क उसक कई-कई परत और उसके मूल म कई-कई वष तक सतह के नीचे घट
अ तः याएँ होती ह। मेरी कोिशश क मीर क ऐितहािसक या म िवकिसत ए
पंिडत-मुि लम स ब ध क पड़ताल और ख़ास तौर पर डोगरा काल और क मीर के भारत
से िवलय (accession) के बाद के राजनीितक-सामािजक समीकरण क रोशनी म उस
या क तलाश के म म क मीरी इितहास म पंिडत को लोके ट करने क है और उन
अंत क तलाश क , िजसक वजह से आधुिनक काल म मानव िव थापन क कु छ सबसे
भयावह घटना म से एक, क मीरी पंिडत के िव थापन क घटना घटी।
इस स दभ म आ यजनक यह है क जहाँ िव थािपत पंिडत के असं य आ यान
कताब से लेकर लेख और सं मरण क श ल म यहाँ-वहाँ आसानी से उपल ध ह, वह
उन पंिडत के बारे म कोई चचा नह िमलती जो न बे के दशक म घाटी से बाहर नह गए
और आज भी घाटी के िविभ े म रहते ह। एक बेहद सू म अ पसं यक आबादी के
प म वे अदृ य ह। डल, लाल चौक, गुलमग, सोनमग, पहलगाम जैसी जगह घूमकर
आनेवाले पयटक को तो वे नह ही नज़र आते, अ सर गुपकर रोड से बुलवाड के बीच
क मीर तलाश लेनेवाली मु यधारा क मीिडया क नज़र भी उन पर नह पड़ती। कई बार
ऐसा लगता है क उनका होना एक ख़लल जैसा है दोन अितरे क आ यान म, इसीिलए
ख़ास तौर पर िव थािपत क मीरी पंिडत के यहाँ भी आप उनका िज़ कह नह पाएँगे।
िनजी बातचीत म उनका िज़ आने पर अ सर वे बात टाल जाते ह। ले कन वे ह वहाँ—
अपनी तकलीफ़ , अपने अनुभव और अपनी उ मीद के साथ। क मीर या ा के दौरान
मने अलग-अलग इलाक़ म रह रहे क मीरी पंिडत से बातचीत क है।
इस कताब के िलए मने ाथिमक और ि तीयक ोत के साथ-साथ सं मरण ,
सािह य, लोक ुितय जैसे वैकि पक ोत का भी इ तेमाल कया है। इसके अलावा
िविभ क मीर या ा के दौरान मने अलग-अलग सामािजक पृ भूिम के लोग से
सा ा कार कये ह और थानीय तथा रा ीय अख़बार खंगाले ह। कोिशश के वल
राजनीितक इितहास िलखने क जगह पंिडत प र े य म क मीर क ऐितहािसक या
तलाशने और उसक राजनीितक-सामािजक िववेचना तुत करने क है। इस प म यह
कताब िजतनी क मीरी पंिडत क कहानी है, उतनी ही क मीर क भी।
इस कताब के िलए शोध-काय म क मीर के बाहर और भीतर के िम से मुझे
लगातार ब मू य सहयोग िमला है। भाई मोइउ ीन वानी ने न के वल समय-समय पर
कताब सुझा बि क क मीर या ा के दौरान उनसे ई ल बी वाताएँ मेरे िलए क मीर
और भारत के र त को समझने म ब त मददगार रह । जावेद लगातार साथ रहे, ह बा
कदल, रै नावारी जैसे पंिडत क रहाइश वाले इलाक़े घुमाते समय उनक मृितयाँ साथ
चलती रह और उ ह ने अनेक पंिडत िम से मुलाक़ात स भव क । कु मार वांचू और उनके
पु अिमत वांचू ने न के वल वहाँ रह रहे क मीरी पंिडत के स दभ म ल बी बात क बि क
क मीर के सामािजक-सां कृ ितक जीवन म उनक स यता मेरे िलए ‘क मी रयत’ को
समझने क एक खुली कताब थी। भारत वखलू ने स र के दशक से क मीरी राजनीित म
स य रह अपनी माँ खेमलता वखलू जी क अब अनुपल ध कताब क िनजी ित िजस
उदारता से उपल ध कराई, उसके ित आभार एक छोटा श द है। व र क मीरी किव
महाराज कृ ण स तोषी जी ने न के वल कई स पक उपल ध कराए, सोशल मीिडया पर मेरे
िलखे पर कु छ ज़ री असहमितयाँ दज करा बि क िपछली कताब पढ़कर जो ित या
दी, वह इस कताब को िलखने म ब त मददगार सािबत ई।
ो. लालबहादुर वमा, ो. पु षो म अ वाल, ो. हरबंश मुिखया, कु लदीप कु मार,
ो. एस इरफ़ान हबीब, उ वल भ ाचाय सिहत अनेक सुधीजन ने िपछली कताब और
समय-समय पर क मीर पर िलखे लेख आ द को पढ़कर िजस तरह हौसला बढ़ाया, उसने
इस कताब को िलखने क िह मत दी। राजकमल काशन ने इस कताब के ताव को
वीकार कर काशन के ित िनि तता दी और स पादक िम स यान द िन पम ारा
तय क गई डेडलाइं स के उ लंघन से जैसे मने उनके धैय क परी ा ली, उसके िलए माफ़
के साथ आभार भी। अशोक महे री जी का िवशेष आभार क कताब इतने कम समय म
छपकर पाठक तक प च ँ सक । सुजाता से पूरी कताब के दौरान चली बहस म न के वल
मा जनल पहचान के दृि कोण से इितहास को समझने क नई दृि िमलती रही बि क
अपने पूरे दृि कोण को प रमा जत करने म भी मदद िमली। या ा के दौरान उ ह ने
क मीरी मिहला से अलग से जो बातचीत क , उसने कई नये पहलू उ ा टत कये।
देवेश, अिभनव, वीण भाई, अ त, ि यांक, जग ाथ, आशीष, नौशाद, दीपक,
च दन, आ दल सिहत आग़ाज़ के सभी साथी हमेशा मेरे िलए बड़ा संबल रहे ह। अ त म,
ले कन आिख़री नह , उन पाठक का आभार िज ह ने यह भरोसा दया क िह दी म भी
पाठक क कोई कमी नह । मेरी पूरी कोिशश रही है क उनक उ मीद पर खरा उतर
सकूँ ।
—अशोक कु मार पांडेय
दस बर, 2019
नई द ली
अ याय-1

इितहास के पहले का इितहास


आ यान क राजनीित
एन ा न ज़ादगान-ए-िज़ दा दल
लालेह-ए-अहमर ये शान खािजल
त ब बीन-ओ-पु ता कार-ओ-स त कोश
अज़-िनगाह-ए-शान फरं ग अ दार खारोश
अ ल-ए-शान अज़ ख़ाक-ए-दामनगीर म त
मतला-ए-ऐन अ तरान क मीर म त
[िज़ दा दल ा ण के ये वा रस िजनके चमकते ए गाल लाल ूिलप को भी श म दा कर द।
मेहनती, प रप और उ कं ठा से भरी आँख वाले िजनक एक नज़र ही यूरोिपय को बेचैन कर देती
है। वे हमारी िव ोही धरती क पैदाइश ह। इन िसतार का आसमान हमारा क मीर है।]
—अ लामा इक़बाल1

िनयम तो यह है क कसी इलाक़े का इितहास उसके वतमान को बनाता है ले कन कोिशश


अ सर वतमान के सामािजक-राजनीितक समीकरण को सुलझाने या फर उलझाने या य
कह क अपने प को सही ठहराने के िलए इितहास को ही गढ़ने-बदलने-िबगाड़ने-सँवारने
क होती ह। क मीर जैसा इलाक़ा इस खेल से कै से बचा रह सकता है जहाँ का वतमान
भयावह राजनीितक-सामािजक-सां कृ ितक अंत से भरा आ है? क मीरी समाज का
एक अंत तो ऊपर दये अ लामा इक़बाल के उदाहरण से ही समझा सकता है—इक़बाल
क जड़ क मीरी पंिडत के उसी स ू प रवार से जुड़ी थ िजससे सर तेज बहादुर स ू थे।
अपनी इस िवरासत को लेकर उनम एक वाभािवक ग़ र था। ले कन वही इक़बाल
क मीरी मुसलमान क दुदशा को लेकर बार-बार िथत ही नह होते बि क 1931 के
आ दोलन म क मीरी मुसलमान के ित डोगरा राज के अ याचार का ज़बद त ितकार
भी करते ह2 और क मीरी पंिडत का एक िह सा उ ह खलनायक क तरह देखता है।3
इस अ त वरोध को समझने का दूसरा रा ता क मीर के ज म के अलग-अलग
िमथक य आ यान से गुज़रता है।
आम तौर पर जो िमथक य कथा िमलती है, उसका ोत है नीलमत पुराण। क हण ने
राजतरं िगणी म भी इसी को आधार बनाया है। इस कथा के अनुसार क प के आर भ से छः
म व तर * तक वहाँ सतीसर नामक िवशाल झील थी िजसम जलो व** नाम का एक
रा स रहता था िजसने झील के र क नाग को आतं कत कया आ था। ा के पौ
और मारीच के पु क यप ऋिष जब िहमालय क तीथया ा पर आए तो नाग के मुख
नील ने उनसे (जो उसके िपता भी थे) जलो व के अ याचार से मु कराने क ाथना
क । क यप ऋिष ने ा, िव णु और महेश से सहायता माँगी और उ ह ने झील को घेर
िलया ले कन जलो व को ा से यह वरदान ा था क जब तक वह पानी म है, उसे
कोई मार नह सकता। तो िव णु ने सहायता के िलए अन त को बुलाया िजसने झील के
चार ओर ि थत पहाड़ म छेद कर दया और इस तरह सतीसर का सारा पानी बह गया
और फर अपने च से जलो व का गला काट दया। क यप ऋिष ने नाग से इस हरी-
भरी धरती पर मानव को भी साथ रहने क अनुमित देने के िलए कहा ले कन नाग ने मनु
के पु मानव को यहाँ रहने क अनुमित देने से साफ़ इनकार कर दया। ोिधत क यप
ऋिष ने उ ह िपशाच के साथ रहने का ाप दया। नील के मा माँगने पर उ ह ने अपना
ाप कम कर दया और कहा क हर साल छः महीने के िलए िपशाच बालू के समु म चले
जाएँगे और इस अविध म मानव वहाँ रहगे। िव णु ने यह आशीवाद दया क घाटी म
िपशाच का िनवास के वल चार युग तक ही चलेगा। चार युग बीतने के बाद जब सभी
मानव छः महीने के िलए बाहर गए तो एक ा ण चं देव उनके साथ नह गया। उसने
िपशाच के अ याचार क िशकायत राजा नील से क और कहा क मानव को वहाँ
िव थापन के भय से मु होकर रहने क अनुमित दी जाए। राजा नील ने यह ाथना
मानते ए शत रखी क उ ह के शव ारा दये सभी िनदश मानने पड़गे। अगले छः महीने
चं देव नील के साथ महल म रहा और उसने नील से सभी रीित- रवाज सीखे। जब चै म
मानव लौटे तो उसने मानव के राजा वीरोदय को पूरी घटना बताई िजसे फर नील ने
सभी रीित- रवाज िसखाये िजनम से कु छ वै दक रीित- रवाज के अनु प थे और कु छ
क मीर के िलए अलग से।4 नीलमत पुराण नील ारा दी गई यही िश ाएँ और उसके ारा
सुनाया गया ‘इितहास’ है। इस क़ से का एक प दुगा के एक अवतार देवी शा रका के
‘माहा य’ म आता है जहाँ जलो व के अ याचार से पीिड़त देवता िशव क प ी सती से
ाथना करते ह। उनक आत पुकार सुनकर सती एक प ी का वेश धारण करके आती ह
और अपनी च च से एक प थर वहाँ िगरा देती ह जहाँ रा स रहते ह। वह प थर एक
िवशाल पवत म त दील हो जाता है िजससे दबकर रा स क मृ यु हो जाती है। यही पवत
हरी पवत के नाम से जाना जाता है, इस पहाड़ी के िशखर पर उ र-पि मी दशा म देवी
शा रका का िस मि दर है और एक िवशाल पाषाण त भ है िजस पर ीच बना है।5
दूसरी कहानी के लेखक बे दया-उद-दीन ह। िव सन उ ह शेख़ नू ीन मानते ह। इस
कहानी के अनुसार आदम सरनदीप से क मीर आया और अगले 1110 साल वहाँ
मुसलमान का शासन रहा। उन शासक क पूरी सूची भी दी गई है। उस शासन का अंत
ह रनंद राजा ारा मुि लम शासक को हराने के साथ आ िजसके वंशज ने लय तक
रा य कया। पानी घटने के बाद वहाँ तु क तान के एक क़बीले ने राज कया िजसके हज़रत
मूसा ने वहाँ के िनवािसय को एक ई र क आराधना करनी िसखाई। इस मा यता के
अनुसार, हज़रत मूसा क मृ यु क मीर म ई थी और उनक क़ अब भी क मीर म है।
इस क़ से म झील को सुखाने का उप म करनेवाला क यप नह अिपतु काशेफ़ या काशेब
नामक एक मुि लम िजन था जो सुलेमान का ग़लाम था। सुलेमान के कहने पर उसने
बारामूला के पहाड़ से पानी के िनकलने क राह बना दी। नीलमत पुराण जहाँ पानी के
िनकलने का कोई प माग नह बताता, वह इस कथा म बारामूला के पहाड़ का िज़
है।6
तीसरी कथा िस चीनी या ी वेनसांग सुनाते ह। इसके अनुसार, क मीर मूलतः एक
झील थी िजसम नाग रहते थे। जब बु उदयन के कु टल नाग को वश म करके हवाई माग
से (उड़ते ए) म य भारत क तरफ़ जा रहे थे तो क मीर के ऊपर से उड़ते ए उ ह ने
अपने िश य आनंद से कहा क ‘मेरी मृ यु के बाद एक अहत* म याि तक यहाँ लोग को
बसाकर एक देश क थापना करे गा और फर इस इलाक़े म बौ धम का सार करे गा।’
बु क मृ यु के 50 वष बाद आनंद के िश य म याि तक ने यह बात सुनी और स आ।
तब तक वह अहत हो चुका था। बु के कहे अनुसार वह क मीर गया और वहाँ एक जंगल
म अपनी पीठ बना ली। उसके चम कार से भािवत होकर नाग मुख ने उससे उसक
इ छा पूछी। म याि तक ने झील म अपने घुटन भर जगह माँगी, अथात इतनी सूखी जगह
िजसम वह समािध लगा सके । नाग ने उसक इ छा मान ली। म याि तक ने चम कार से
अपनी देह िवशाल कर ली और नाग ने झील का पूरा पानी सुखा दया। उसके बाद नाग
और उसके प रवार को उसने पुरानी झील के उ र-पि म म एक छोटी झील म बसा
दया। नाग ने म याि तक से यहाँ सदा-सवदा रहने क ाथना क ले कन म याि तक ने
कहा क यह अस भव है य क उसे ज द ही प रिनवाण ा करना है। नाग क
अ यथना पर म याि तक ने कहा क ‘जब तक यह देश बौ धम के असर म रहेगा, यहाँ
500 अहत रहगे और जब यहाँ बौ धम का असर ख़ म हो जाएगा, यह इलाक़ा फर से
झील बन जाएगा।’ इसके बाद उसने अपनी चम कारी शि से 500 बौ मठ बना दये
और फर अपने लोग क सेवा के िलए िवदेश से ग़लाम ले आया। उसके जाने के कु छ
समय बाद उन ग़लाम ने स ा पर क़ ज़ा कर िलया ले कन आसपास के रा य के लोग उ ह
कोई स मान नह देते और उ ह ख़रीदा आ कहते ह।7
क मीर का इितहास और उसके अनेक पाठ-कु पाठ इ ह अंत वरोध से संचािलत ह।
मज़ेदार है क जहाँ पहली कहानी अ सर उ धृत क जाती है, बाक़ दोन कहािनय का
कह उ लेख नह होता। आप देख तो तीन कहािनयाँ अपने-अपने धा मक खाँचे म क मीर
क उ पित को ढालने क कोिशश ह। आप देखगे क पहली कहानी म क मीर म मूल
िनवासी नाग और िपशाच क जगह वै दक िह दु के वेश और फर वहाँ उनके वच व
के प इशारे ह। ज़ािहर है क यह कथा वै दक वच व थािपत होने के दौर म िलखी गई
होगी और ऐसे ही बाक़ दोन कथाएँ बौ और इ लामी वच व के दौरान।
हालाँ क इन कथा का उपसंहार िलखे िबना बात पूरी नह होगी, जो िव ान के
सहारे ही िलखा जा सकता है।

बुज़होम उ खनन और वै ािनक सा य


1961 म आर भ ई बुज़होम क खुदाई से ा चीज़ क मीर के ागैितहािसक काल क
सबसे िव सनीय जानकारी का ोत ह। टी.एन. ख़ज़ांची क मीर म 1960 से 1970 के
बीच म भारतीय पुरात व सव ण क उस टीम के िनदेशक थे िजसने क मीर म बुज़होम म
पुरात व सव ण का काम शु कया। एम.के . कॉ ारा स पा दत कताब क मीर एंड
इ स पीपल म वह क मीर के ागैितहािसक युग के बारे म िव तार से बात करते ह। वह
बताते ह क 1935 म येल-कै ि ज ारा कराए गए संयु अ ययन म एच.डी.ई. टेरा, टी.
चा डन और टी.टी. पैटरसन ने क मीर म ‘करे वा फ़ॉमशन’ को लेकर रोचक िन कष
िनकाले। लाइ टसीन युग ( ितनूतन काल, िजसम च ान का िनमाण आ) के आरि भक
काल म जहाँ िहमालय जैसे पवत का िनमाण आ, वह क मीर म न दय , झील और
लेिशयर के आलोड़न से जो संरचनाएँ बन , उनम आधुिनक झेलम के आसपास बने करे वा
सबसे मह वपूण ह। क मीर घाटी का आधे से अिधक िह सा इसी करे वा से बना आ है।
दि ण पि म म इसक चौड़ाई 12.5 कलोमीटर से 25 कलोमीटर तक है और यह
शोिपयान से बारामूला के बीच लगभग 80 कलोमीटर तक फै ला आ है। इस अ ययन म
पाया गया क लाख वष पहले लेिशयर के िनमाण क या म इन झील का िनमाण
और फर संकुचन आ िजससे ये करे वा िन मत ए। बाद के दौर म झेलम नदी उभरी और
यह लगातार और गहरी होती गई। फल व प कटाव आ द के कारण झील का पानी बह
गया तथा वह थान मनु य के रहने यो य बन गया। बाद के भूगभशाि य क मा यता है
क वूलर, मानसबल, डल और अंचर जैसी झील उसी आ द-झील क अवशेष ह।8
ीनगर से कोई आठ कलोमीटर दूर बुज़होम क मीर म ा यह पहला नवपाषाण-
युगीन अवशेष है। क मीरी म बुज़ का मतलब है भुज या भोजप । बुज़होम यानी भोजप
का गाँव। इस खुदाई म भोजप के अनेक पेड़ के अवशेष पाए गए ह िजससे प है क ये
पेड़ यहाँ ब तायत म रहे ह गे। यह भी पाया गया क यहाँ के िनवािसय को जंगल और
पहािड़य से चुर मा ा म भोजन और जल क सुिवधा ा थी। यहाँ प थर पर िशकार
के िच भी पाए गए ह। यह गाँव ऊँचाई पर बसा आ था और ऐसा लगता है क इसी
वजह से यह सुरि त बचा रहा। इस खुदाई म ा अवशेष से यह िन कष िनकलता है क
इस काल म लोग ज़मीन के नीचे िम ी और टहिनय के घर बनाकर रहते थे और दीवार
पर िम ी का ला टर होता था जो ठं ड और गम से बचाव करने म सहायक था। आटा
पीसने क च और हि य तथा प थर के औज़ार आ द से िन कष िनकलता है क
क मीर म पहली मानवीय बि तयाँ 3000 सह ा दी ईसा-पूव से 1000 सह ा दी ईसा-
पूव पहले बसी थ । इस काल का मनु य भोजन एक करनेवाला तथा िशकारी था। हांगलू
(क मीरी िहरण) सबसे मह वपूण पशु था, य क वह न के वल मांस उपल ध कराता था
बि क उसक हि याँ और स ग भी हिथयार के प म उपयोगी थे। नवपाषाण युग क ये
बि तयाँ बुज़होम तक ही सीिमत नह थ और आगे इनका अि त व जयादेवी उदर,
िबजबेहरा के पास थाजीवोर, गुफ ाल, बेगागुंड, दादसर, ह रपा रगोम, ओ चीबाग,
पं गोम, पा पोर, से पूर और सो बर सिहत पुलवामा और अनंतनाग िज़ले के कई थान
पर भी पाया गया।
ले कन इन मनु य के धा मक िव ास को लेकर कोई िन कष नह िनकाला जा सका
है। ख़ज़ांची प कहते ह क ‘इस आरि भक काल म कसी संग ठत धा मक वहार का
कोई सबूत नह िमलता।’ ाचीन मानवीय बि तय म शव का िनराकरण जादू-टोने और
धा मक िव ास का अनुमान लगाने के िलए सबसे मुफ़ द मा यम होता है ले कन यहाँ
उस दौर म शव के िनराकरण क कोई िनयत व था नह दखती। यहाँ शव के
िनराकरण क एक प व था महापाषाण काल (Megalithic Period) आते-आते
िमलती है िजसम शव को दफ़नाया जाता है। मनु य के अलावा पशु क क़ िमली ह
िजनम सबसे मुख है कु ।े पुरात विवद का िन कष है क कु को उनके मािलक के
साथ ही घर के अहाते म दफ़नाया जाता था। ख़ज़ांची िति त पुरात विवद् ो. एि चन
के हवाले से बताते ह क ‘कु ा ऊपरी अमू नदी के िश का गुफ़ा सं कृ ित म लगभग दैवी
पशु था और अभी हाल तक इस े के िग यक, उ ची और गो दी लोग म मािलक के
शव के साथ उनके कु को दफ़न कये जाने क पर परा थी। उस समय के क मीरी लोग
का सां कृ ितक स पक चीन और स क सीमा पर बहनेवाली इस नदी के कनारे
रहनेवाले ागैितहािसक मनु य से होना सहज ही है। हालाँ क बाद म पूव हड़ पा और
हड़ पा काल के िनवािसय से इनके स पक के पया सा य भी िमलते ह। इस पर ब त
िव तार से बात करना तो िवषयांतर होगा ले कन इन वै ािनक खोज ने जैसा क ख़ज़ांची
कहते ह, ‘क मीर के िमथक य जनक क यप को ामक िस कर दया’9 ज़ािहर है, काशेफ़
तथा म याि तक को भी।
मज़ेदार यह है क आ यान के खेल म िव ान के इस ह त ेप को अ सर नज़रअंदाज़
कर दया जाता है।

क मीर म नाग जाित : कौन थे? थे या नह थे?


िमथक य कथा के एक अ य मह वपूण पा ‘नाग’ पर बात कये िबना बात पूरी नह
होगी। ख़ज़ांची नाग को ाचीन भारत म रहनेवाले अनाय क़बीले कहते ह।10 िमथक म
नाग क उपि थित, उनक रह या मकता और भारत जैसे देश म उनक अनेक जाितय
क उपि थित, आकार तथा मारक मता के कारण सहज है। अ य जानवर के िवपरीत
साँप को वश म करना आसान नह रहा होगा और सपदंश से होनेवाली मृ यु ने उनके ित
एक िविश भय पैदा कया ही होगा। उनका पूजा-पाठ और कु छ क़बील का टोटेम बन
जाना ही नह बि क उसे चम कार से जोड़ना वाभािवक ही रहा होगा ।
भारत म नागदेवता और नागवंश का िज़ क मीर तक सीिमत नह है। महाभारत के
आ दपव म नाग क उ पि को लेकर एक रोचक कथा है िजसके अनुसार नाग कदृ के पु
ह जब क उसक बहन िवनता के दो पु ह—अ ण, जो सूय का सारिथ है और ग ड़,
िजससे नाग क श ुता से हम प रिचत ह। कदृ और िवनता, दोन ही द जापित क
क या थ और उनका िववाह क यप ऋिष से आ था। ऋ वेद म तो नाग का िज़ नह
िमलता ले कन यजुवद और अथववेद म नाग का िज़ है। ाचीन बौ ंथ म भी नाग
का वणन ख़ूब िमलता है। छोटानागपुर का पूव राजप रवार अपनी उ पि पुंडरीक नामक
नाग से मानता है िजसने एक ा ण का प धारण करके बनारस के एक गु से ान
हािसल कया और उस गु पु ी पावती से याह कया। उन दोन से ज मा बालक
काला तर म नागपुर का राजा बना। ऐसी ही कथा मिणपुर के राजप रवार के बारे म भी
है। ब तर का राज-प रवार भी वयं को नागवंशी मानता था तो बंगाल म काय थ क
उ पि वासु क नाग से मानी जाती है। दि ण भारत म ित थान के राजा शािलवाहन
को नाग अन त का पु माना जाता है तो कोरमंडल के प लव वंश के थम राजा का ज म
एक चोल राजा क नागवंशी रानी से माना जाता है।11
क मीर म नीलमत पुराण को लगभग सभी इितहासकार ारा मह वपूण ोत क
तरह वीकार करने क वजह से यह सहज था क ाचीन काल म नाग क उपि थित को
आमतौर पर वीकार कया जाता है। क हण ने राजतरं िगणी म न के वल नीलमत पुराण
को एक ोत क तरह इ तेमाल कया है बि क उनके यहाँ नाग का िज़ बार-बार आया
है। काक ट वंश (िजसके िस राजा लिलता द य क क मीर के इितहास म ब त ित ा
है) क उ पि भी नागवंश से जोड़ी जाती है। वेरनाग, िवचरनाग, अनंतनाग और ऐसी
अनेक जगह के नाम के पीछे नाग से जुड़ी कथाएँ ह। असर यह क अबुल फ़ज़ल क
आईन-ए-अकबरी और जहाँगीर के सं मरण म भी नाग से जुड़ी कथाएँ िव तार से देखी
जा सकती ह।12 नाग इस तरह क मीर क लोक मृित का िह सा बनते चले गए, जैसा क
िवजेल कहते ह, क हण अपने पाठक के सम नाग को वैसे ही तुत करते ह, जैसे वे
क मीर के लोग क मृित म थे।13 वा टर लॉरस भी क मीर के िमथक य इितहास म
नाग और जलधारा क उपि थित को रे खां कत करते ए बताते ह क गाँव के लोग के
बीच बैठकर नाग क ख़ूबसूरत और रोचक कहािनयाँ सुनी जा सकती ह।14
ले कन िमथक के पार इस त य क पड़ताल ज़ री है क या नाग वा तव म क मीर
के ाचीन इितहास का िह सा थे या फर बाद म िलखे ंथ म इसे शािमल कर दया
गया? ख़ािलद बशीर अहमद अनेकानेक उ रण से यह सािबत करने का यास करते ह
क क मीर म नाग क उपि थित का कोई ामािणक सा य नह िमला है। बुज़होम और
गुफ ाल क ख़दाई म ऐसे कोई िभि िच या अ य सा य नह िमले ह तो दि ण क मीर
के िबजबेहरा के पास से थान क खुदाई म जहाँ बारहव सदी के िव णु क मू त के अवशेष
सिहत कई मह वपूण अवशेष िमले ह, नाग से जुड़ी कोई भी चीज़ नह पाई गई है जब क
इसी काल म देश के दूसरे िह स म नाग के मि दर तथा अ य सा य िमले ह। बशीर क
मा यता है क नीलमत पुराण के िलखे जाने का दौर वह है जब क मीर म बौ धम का
भाव ीण हो चुका था और शैव धम क ित ा हो रही थी। बौ िवहार को तोड़ा जा
रहा था और मि दर म त दील कया जा रहा था। वह बारामूला म पाँचव सदी क एक
बु ितमा को िशव क मू त म बदले जाने सिहत ऐसी कई घटना का हवाला देते ह।
ज़ािहर है, इस दौर म क मीर के आरि भक इितहास म िह दू धम का भाव थािपत करने
के िलए ज़ री था क उसे पुन न मत कया जाए। नीलमत पुराण इसी कोिशश का िह सा
था। इसे लोकभाषा क मीरी म नह बि क सं कृ त म िलखा गया था जो वै दक ा ण क
भाषा थी। इसी काल म जलाशय , पहाड़ , थान के नाम िह दू मा यता के अनुसार
रखा गया।15 क हण के यहाँ भी बौ धम और थानीय भाषा को लेकर ितर कार बार-
बार दखता है।
ले कन बशीर और क मीर म नाग क उपि थित से इनकार करनेवाले अ य िव ान
के अगर यह तक मान िलए जाएँ तो वेनसांग क कथा म नाग क उपि थित को कै से
िववेिचत कया जा सकता है? नीलमत पुराण के िलखे जाने क अविध छठी से आठव
शता दी के बीच मानी जाती है16 जब क वेनसांग भी इसी काल म (635 ई वी म) भारत
आया था। ज़ािहर है, यह क़ सा उसने या तो चीन म सुना होगा या क मीर म उपि थत
बौ से। इसिलए बशीर क बात से सहमत हो भी जाया जाए तो भी ऐसा लगता है क
क मीर म नाग को लेकर जन ुितयाँ उससे पहले से उपि थत रही ह गी। नीलमत पुराण
क कथा म व णत छः-छः महीन के आने-जाने के आधार पर ख़ज़ांची क मा यता है क
नाग और िपशाच घुमंतू जाितयाँ थ जो मौसम के अनुसार घाटी म आया-जाया करती
थ । िपशाच यहाँ जाड़ म आया करते थे और ग मय म नाग रहा करते थे जो जाड़ म
अपे ाकृ त गम जगह पर चले जाया करते थे। दोन के बीच संघष चलता रहता था ले कन
कालांतर म उनके बीच समझौता हो गया। वह इस संदभ म क मीर म जाड़ के आर भ म
िखचड़ी अमाव या और गड़ा बाटा (िजसम मछिलयाँ चढ़ाई जाती ह) और जाड़ के बीतने
पर िपशाच याण पव मनाये जाने का िज़ करते ह। वह नाग को क मीर का
मूलिनवासी मानते ह जब क िपशाच को म य एिशया का।17
ब त स भव है क नाग और िपशाच से बाद म आये आय का संघष आ हो और
नाग के साथ सहअि त व क कोई राह िनकली हो और फर अंततः आय सं कृ ित म
उनका िवलीनीकरण कर िलया गया हो! आम मा यता है क आय क एक शाखा ओ जस
(वतमान म तज़ा क तान, अफ़ग़ािन तान, तुकमेिन तान और उ बे क तान से बहने वाली
अमू द रया) और जै सेरे स (वतमान म क ग तान के यान शान पवत से िनकल कर
दि ण कज़ा क तान से होकर अराल नदी म िमलने वाली िसर द रया) क ओर जाते ए
अपने-अपने सािथय से अलग होकर क मीर म बस गई थी18 ले कन ख़ज़ांची क मीर के
संदभ म ‘आय’ पद को एक ‘िमसनॉमर’ कहते ह। उनक मा यता है क क मीर म आय
क उपि थित के कोई सा य नह िमले ह।19
यहाँ इस त य का उ लेख कर देना भी ज़ री है क क मीर का िज़ वै दक सािह य म
नह िमलता। ऋ वेद म म ाध नामक एक नदी का िज़ आता है िजसे क मीर म उ र से
दि ण क ओर बहनेवाली म व ान नामक नदी से जोड़ा जाता है ले कन इस पर पया
आशंका क गई है। अथवसंिहता म कु छ उ री क़बील , जैसे बि लका, म सा,
गांधारी और मुजावत का िज़ आता है ले कन क मीर म इनके रहने का कोई सा य नह
िमलता। ऐसा तीत होता है क ये क़बीले ग़ैर-आय े के थे। ा ण और पुराण म भी
िजन क़बील का िज़ िमलता है (गांधार, के काय, म और अ ब ), उनके भी क मीर म
रहने के कोई सा य नह िमलते। जो पहला िज़ क मीर का सं कृ त सािह य म आता है,
वह पािणिन के ाकरण और उस पर िलखी पतंजिल क टीका म है िजनका समय ईसा-
पूव छठी से चौथी शता दी के बीच माना जाता है। महाभारत म क मीर का िज़ कई
जगह है, ले कन िवदेशी ोत म क मीर का िज़ काफ पहले से दखाई देता है। 500
ईसा-पूव ीक भूगोलिवद् हेकेटस ने ‘का पाइरोस’ नामक एक शहर का िज़ कया है
िजसे आम तौर पर क मीर माना जाता है, हेरोडोटस (484-431 ईसा-पूव) ने भी उसी
शहर का िज़ ‘का पेटाइरोस’ के नाम से कया है। ीक भूगोलिवद् लेिडअस पोलेमी
(150 ईसा-पूव) ने बताया है क का पे रया रा य क राजधानी का पेरा थी।20 ये सारे
संदभ बताते ह क पि मी जगत क मीर से प रिचत था। इस आधार पर ओ जस के आय
के क मीर म पहले वेशवाली िथयरी को सही माना जा सकता है।
ऐसे म उपल ध त य से कोई अि तम िन कष तो िनकालना स भव नह ले कन जब
और जैसे भी वै दक धम ने यहाँ वेश कया, मूल-िनवािसय से उनका संघष यहाँ जाित-
व था म पाियत आ। यहाँ यह ग़ौरतलब है क क हण अपने ंथ म िजन नाग
राजा क बात करते ह, वे महाभारत म व णत िमथक य कथा से इस प म अलग ह
क उनम कसी तरह क चम कार क शि नह दखती, न ही वे आधे साँप और आधे
मनु य ह। उनका काय- वहार एकदम आम मनु य क तरह है। िवजेल ट पणी करते ह :
‘ऐसा लगता है क वे अपने िवषैले दाँत का इ तेमाल करना भूल चुके थे।21
इस स ब ध म हम यहाँ क मीर घाटी के सबसे नज़दीक ि थत पि म िहमालय के
नाग मि दर और ज मू के पास भ वाह के नाग मि दर को देख सकते ह। िवजेल बताते ह
क ये देवता अ सर थानीय देवता क तरह ह और इनक पूजा एक गाँव या एक इलाक़े
तक सीिमत है। इन मि दर क संरचना बेहद साधारण है और ये आम तौर पर देवदार के
घने जंगल के बीच और गाँव के क़रीब ि थत होते ह और कसी झरने या झील से स ब
होते ह। इनम नाग देवता को स करने के िलए गाना-बजाना होता है और चढ़ावे के प
म फू ल और धूप, अगरब ी का योग कया जाता है तथा कह -कह बकरे या भेड़ क बिल
भी चढ़ाई जाती है। इन मि दर म पुजारी का ा ण होना ज़ री नह था और अ सर
वह खेितहर जाितय से आ करता था। इन मि दर म एक रोचक भूिमका चेला क होती
थी जो होता तो पुजारी का सहायक था ले कन उसका मह व अिधक इसिलए था क
बरसात के न होने पर वह पूजा करता था िजससे उस पर देवता आते थे और वह बा रश के
स ब ध म भिव यवाणी करता था। देवता आने क इस या को ‘नचना’ कहा जाता
था। यह चेला कसी भी जाित का हो सकता था और कई बार यह किथत िनचली जाित का
होता था।22
ये िववरण प संकेत करते ह क नाग पूजा ा ण िवधान नह थी। ब त स भव है
क क मीर के नाग मि दर वहाँ वै दक धम क थापना के समय बौ मि दर क तरह ही
न कर दये गए ह और चूँ क वे अपने आकार- कार म बेहद साधारण थे तो उनके
अवशेष अब तक न िमल पाए ह !
जहाँ तक उनके िलखे सािह य के न िमलने का सवाल है तो इसे समझा जा सकता है
क वच वशाली वग के आ यान सं कृ त म िलखे गए और उनको संर ण भी िमला ले कन
लोकभाषा म िलखे सािह य को कु लीन ारा मा यता नह दी जाती थी तो क मीर म
थानीय भाषा म रिचत रचनाएँ उपेि त ई ह गी। संसाधनहीन मूल िनवािसय के िलए
उ ह सुरि त रख पाना भी आसान न होगा। इसिलए वही सािह य हम िमलता है जो
कु लीन वग ारा सं कृ त म रचा गया। यहाँ एक और त य रख देना समीचीन होगा।
राजतरं िगणी म क मीरी बोली का जो पहला और इकलौता िज़ आता है, वह च वमन
के समय उसके सुर डोम जाित के रं गा ारा एक शासक य कमचारी से ज़मीन के अपने
अिधकार प क माँग के समय आया है। ज़ािहर है, तब तक क मीरी वहाँ क जनभाषा
बन चुक होगी िजसका वहार अकु लीन वग करता होगा । यह वग अपनी सािहि यक-
सां कृ ितक अिभ ि भी अपनी लोकभाषा म ही करता होगा ले कन क मीरी म लल द
से पहले का कोई सािह य उपल ध नह है, इसक चचा भी जोनाराज के यहाँ नह िमलती
और यह सािह य ब त बाद म ढू ँढा जा सका था।23
या ा ण क मीर के मूलिनवासी ह?
बशीर अके ले नह ह जो नाग के अि त व को नकारते ह। आम तौर पर क मीरी पंिडत के
नैरेशन म यह बताया जाता है क क मीर म ा ण के अलावा कोई जाित नह थी और
ये ा ण कह और से नह आए थे बि क यह के मूल िनवासी थे, तो यह परो से नाग
के अि त व से अगर इनकार नह भी है तो उ ह मूलिनवासी क मा यता का नकार तो है
नह । उदाहरण के िलए 1996 से 1999 तक क मीरी एसोिसएशन के अ य तथा 1997 से
2000 तक आल इि डया क मीरी समाज के व र उपा य रहे िशया पो ट- ेजुएट
कॉलेज, लखनऊ से सेवािनवृ डॉ बैकु ठ नाथ शगा क मीरी ा ण को सर वती नदी के
कनारे रहने वाले संत-महा मा क संतान बताते ह जो क मीर म जाकर 2000 ईसा-पूव
बस गए थे। वह इ ह शु आय न ल का बताते ह और इनक उ पि भारतीय मानते ह।
इसी आधार पर वह दावा करते ह क क मीर म िसफ़ ा ण िनवास करते थे।24
ले कन इस दावे क बाक़ आलोचना को छोिड़ए, राजतरं िगणी का एक सावधान
पाठ भी इसे आधारहीन सािबत कर देता है। क हण न के वल अलग-अलग काल म भारत
के अलग-अलग इलाक़ से ा ण के क मीर म आगमन क बात करते ह बि क वहाँ
ह रजन (पेज 230), काय थ (पेज 246), बिनया (पेज 326), चांडाल (पेज 392), म लाह
(पेज 82, खंड 2)25 क उपि थित का भी प िज़ करते ह। आगे हम इस पर िव तार से
बात करगे ले कन यहाँ इतना तो कहा ही जा सकता है क क मीर म चातुव य का उ व
के वल ा ण के आगमन और उपि थित से तो स भव नह ही हो सकता था और इस बात
क पूरी स भावना है क वहाँ पहले से रह रहे मूलिनवािसय को ही िह दू धम म शािमल
करने के बाद इन जाितय से सि मिलत कया गया था। साथ ही अलग-अलग काल म
िवजेता राजा भी अपने साथ लोग को लेकर यहाँ आये थे िजसके ब त प माण
राजतरं िगणी म ह। वैसे शगा का यह दावा भी गोरखपुर िव िव ालय के एक सेिमनार म
ो. िशवाजी के दावे पर आधा रत है। वह इसके अलावा कोई माण तुत नह करते, न
ही उस शोधप का कोई पता- ठकाना बताते ह क कोई जाँच क जा सके । क मीर म
ा ण के वेश पर िव ान म पया मतिभ ता है और इसक िविभ िथयरीज और
क मीरी समाज म उनके लोके शन पर अगले अ याय म हम ब त िव तार से बात करगे।
यहाँ क मीर के सं कृ त सािह य के सबसे िति त िव ान अिभनवगु के उदाहरण से
इसे सं ेप म समझा जा सकता है। परा ंिशकािववरण म उ ह ने अपने पुरखे अि गु का
िज़ कया है िजनका ज म गंगा और यमुना के दोआब म ि थत अंतवदी नामक थान म
आ था। यह थान क ौज रा य म पड़ता था जहाँ के राजा यशोवमन को हराकर
लिलता द य मु पीड अि गु को क मीर ले आए थे और उ ह झेलम नदी के कनारे
शीतांशुमौिल मि दर के सामने एक हवेली और साथ म एक जागीर दी गई थी26 यह त य
क मीरी पंिडत के ‘मूलिनवासी’ होने के दावे पर ग भीर सवाल तो खड़े करता ही है, साथ
म वतमान के राजनीितक-सामािजक ं के चलते इितहास के आ यान को भािवत
करने क कोिशश क तरफ़ भी प इशारा करता है। इन ं का एक और भाव है जो
इस िवड बना को और गहरा करता है—ख़ज़ांची अपने पूव धृत लेख के अंत म क मीर
क तनावपूण राजनीितक ि थितय के कारण उ खनन के काम के आगे न बढ़ पाने पर
अफ़सोस करते ह—तब से अब तक हालात और बदतर ही होते गए ह।
इन बदतर हालात ने आ यान क राजनीित को लगातार और ज टल बनाया है और
ता कक िववेचना को अस भव।

_______________
* म व तर चार युग के 70 च के बराबर माना जाता है (चतुयुगैकस या म व तरिमहो यते)। कलयुग म 4 लाख 32
हज़ार वष, ापर म इसके दुगुन,े ेता म इसके ितगुने और सतयुग म इसके चार गुना वष होते ह। इस तरह एक च म
ितरालीस लाख बीस हज़ार वष ए।
** जलो व के ज म क कहानी भी मज़ेदार है। जब इ उस झील के कनारे ड़ा कर रहे थे तो सं ह नामक दै य क
नज़र शची पर पड़ी और उसका वीयपात हो गया जो झील म िगर गया। इ और सं ह म साल भर यु चला िजसम
सं ह मारा गया। उसके वीय से ही झील म एक बालक का ज म आ िजसका नाम जलो व रखा गया। उसका लालन-
पालन नाग ने ही कया (नीलमत पुराण, ोक 74-80)।
* बौ धम म अहत उसे कहा जाता है िजसने अि त व क यथाथ कृ ित का अ त ान ा कर िलया हो और िजसे
िनवाण क ाि हो चुक हो।
स दभ
1. देख, पेज 55, क मीर : ए पोिज़ग द िमथ िबहाइं ड द नैरे टव, ख़ािलद बशीर अहमद, सेज पि लके शन इं िडया
ाइवेट िलिमटेड, द ली, 2017
2. देख, वही, पेज 117-118
3. देख, वही, पेज 122
4. देख, पेज 35-276, नीलमत पुराण, डॉ. वेद कु मार घई, ज मू एंड क मीर एके डमी ऑफ़ आट, क चर एंड
ल वेजेज, ीनगर, 1968
5. देख, पेज 7, क मीर एंड इ स पीपल (स पादक : एम.के . कॉ), ए.पी.एच. पि ल शंग कॉप रे शन, नई द ली,
2004 म टी.एन. ख़ज़ांची का लेख अवर अ लए ट एंसे टस
6. देख, पेज 8-9, द िह दू िह ी ऑफ़ क मीर, एच.एच. िव सन, सुशील गु ा (इं िडया) ाइवेट िलिमटेड,
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7. देख, पेज 285-86, ऑन युवान वां स ेवेल इन इं िडया (629-645 ई वी), थामस वेटस, (सं) टी.ड यू. राइस
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8. देख, पेज 8-10, क मीर एंड इ स पीपल (स पादक : एम.के . कॉ), ए.पी.एच. पि ल शंग कॉप रे शन, नई द ली,
2004 म टी.एन. ख़ज़ांची का लेख अवर अ लए ट एंसे टस
9. देख वही, पेज 10-26
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11. देख, पेज 35-36, इं िडयन सपट लोर ऑर द नागाज़ इन िह दू लीजड एंड आट, जे.पी.एच. िवजेल, आथर
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14. देख, पेज 299, द वैली ऑफ़ क मीर, वा टर लारस, ऑ सफोड यूिनव सटी ेस, ल दन, 1895
15. देख, पेज 11-12, क मीर : ए पोिज़ग द िमथ िबहाइं ड द नैरे टव, ख़ािलद बशीर अहमद, सेज पि लके शन
इं िडया ाइवेट िलिमटेड, द ली, 2017
16. दे ख , नीलमत पुराण : अ ीफ़ सव, डॉ. वेद कु मार घई, ी परमान द रसच इं टी ूट, ीनगर, क मीर
(http://www.koausa.org/Glimpses/NilmataPurana.html) (आिख़री बार 14/09/2019 को देखा गया)
17. देख, पेज 37-38, क मीर एंड इ स पीपल (स पादक : एम.के . कॉ), ए.पी.एच. पि ल शंग कॉप रे शन, नई
द ली, 2004 म टी.एन. ख़ज़ांची का लेख अवर अ लए ट एंसे टस
18. देख, http://koausa.org/vitasta/2001/1.3.html, पेज 9, क मीर िबहाइं ड द वेल, एम.जे. अकबर, छठा
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19. देख, पेज 42, क मीर एंड इ स पीपल (स पादक : एम.के . कॉ), ए.पी.एच. पि ल शंग कॉप रे शन, नई द ली,
2004 म टी.एन. ख़ज़ांची का लेख अवर अ लए ट एंसे टस
20. देख, पेज 3-4 और 33, अल िह ी एंड क चर ऑफ़ क मीर, सुनील च रे , एिशया टक सोसायटी, कोलकाता,
1957
21. देख, पेज 247, इं िडयन सपट लोर ऑर द नागाज़ इन िह दू लीजड एंड आट, जे.पी.एच. िवजेल, आथर ो थेन,
ल दन, 1926
22. देख, वही, पेज 248-250
23. देख, पेज 15, क मीरी िलटरे चर, ज बी. काच , ए िह ी ऑफ़ इं िडयन िलटरे चर, स पादक : जान ग डा, खंड
8, ऑटो है व ज़, िव बाडेन, 1981
24. देख, क मीर एंड इ स पीपल, स पादक : एम. के . कॉ, ए.पी.एच. पि ल शंग कॉप रे शन, नई द ली, 2004 म डॉ
बैकुंठ नाथ शगा का लेख द जेने टक एिवडस
25. देख, राजतरं िगणी, अनुवाद : ुितदेव शा ी, िबहार रा भाषा प रषद्, पटना, 2016
26. देख, पेज 38, क चरल हेरीटेज ऑफ़ क मीरी पंिड स, (सं) एस एस तोशखानी और के वा रकू म रजनीश िम
का आलेख अिभनवगु एंड द शैवाईट ेडीशन इन शारदा देश, पटागन ेस
अ याय-2

वणकाल का िमथक
िह दू राजा के काल म क मीरी ा ण
राजदेव (1212-1235) के शासनकाल म कु छ ऐसे भ ( ा ण ) ने, िज ह ने पहले उसके
रा यािभषेक म सहायता क थी ले कन बाद म उसके हाथ अपमािनत ए थे, ष ं कर खस म से
कसी को उसक जगह ग ी पर िबठाना चाहा। राज़ खुल गया और राजदेव ने ा ण के िख़लाफ़
लूट और िवनाश का च चला दया। कई ा ण मार दये गए और बाक़ि◌य को िनममता से
कु चल दया गया। हालात ऐसे क पूरा ीनगर ‘ना भ ोहम’ (म भ यानी ा ण नह )ँ क
ची कार से गूँज उठा। यह इितहास म व णत ा ण के िख़लाफ़ पहला बड़ा हमला था।1
—िजयालाल कलाम

क मीरी पंिडत नेटवक क वेबसाइट पर ोफ़े सर के .एल. भान क एक कताब है : सेवेन


ए जोडस ऑफ़ पंिड स। जैसा क नाम से ही प है, इसम सात बार क मीरी पंिडत के
क मीर घाटी से िनकाले जाने क कथाएँ ह। इसम पहला वाक़या जुड़ता है 1314 म सैयद
अली हमदानी के आगमन से। भान के अनुसार, हमदानी ने सुलतान क़ु तुबु ीन को वश म
करके िह दु के उ पीड़न और धम-प रवतन को रा यनीित म त दील कर दया।2 भान
अपने इस दावे क पुि के िलए कसी ोत का िज़ नह करते—वजह प है। इस दावे
क पुि राजतरं िगणी के म म राजावलीपतक िलखने वाले जोनराज भी नह करते।
िजयालाल कलाम ने राजदेव के शासनकाल का उि लिखत संग जोनाराज के यहाँ से
िलया है।3 क हण के यहाँ गोपा द य ारा लहसुन खानेवाले और हो चुके ा ण को
देशिनकाला देकर देश के दूसरे भाग से ा ण को क मीर म बसाए जाने ( थम तरं ग,
ोक 342, 343); जयापीड़ ारा ा ण को दये गए अ हार वापस लेकर उनके
उ पीड़न, िजसके चलते कई ा ण मर गए, कई देश से पलाियत हो गए और कई ने
योपवेशन करके ाण याग दये (चतुथ तरं ग, ोक 625 से 638) और सं ामराजा के
समय उसके मं ी तुंग ारा ा ण क नृशंस ह या के चलते पलायन का िज़ आता है
(छठी तरं ग, ोक 336 से 347)। ले कन इन उ पीड़न और पलायन का िज़ भान के सात
पलायन म नह आता। इधर िलखे गए क मीरी पंिडत के इितहास म भी इन घटना का
कोई उ लेख नह होता जब क ‘सात पलायन’ क मीरी पंिडत समाज क मृितय म
थायी प से उपि थत है और इितहास क जगह ले चुक अिधक पना बन चुका है। यह
इितहास के िह दू और मुि लम बन जाने का ही ह है क एक आम वृि िह दू
शासनकाल को वणकाल और मुि लम शासक के काल को (ज़ैनुलआबदीन के अपवाद को
छोड़कर) बुरा घोिषत कर दये जाने क है या फर इसके ठीक उलट दूसरी तरफ़ बाक़ को
छोिड़ए, अफ़ग़ान काल को भी अ छा सािबत करने क कोिशश होती ह। इन सबके बीच से
एक संयत और सुसंगत ऐितहािसक नैरेशन गढ़ पाना एक बड़ी चुनौती है।

िह दू राजा का दौर और क मीरी ा ण


ोत और उनक िव सनीयता
जैसा क हमने पहले भी देखा है क क मीर के इितहास के ाचीनतम उपल ध ोत
नीलमत पुराण और राजतरं िगणी ह, तो इस अविध के इितहास के कसी परी ण के पहले
इन ोत क िव सनीयता पर बात कर लेना आव यक है। नीलमत पुराण के बारे म
हमने देखा क बुज़होम क खुदाई से ा िन कष इस िमथक य कथा क िव सनीयता पर
ग भीर खड़े करते ह। वैसे भी यह इितहास क कसी पु तक क जगह िमथक-कथा
अिधक है। इसके अलावा टेन का मानना है क >नीलमत पुराण ब त ख़राब हालत म
िमली थी िजसम हर तरह क रि याँ और पाठ स ब धी दोष ह और यह ब त स भव है
क बाद के समय म इसम चीज़ जोड़ी-घटाई गई ह । वह ोफ़े सर यूहलर के हवाले से
कहते ह क अपने वतमान प म यह छठी या सातव सदी से अिधक पुरानी नह हो
सकती। उनका मानना है क ये बदलाव पंिडत सािहबराम ारा तब कये गए थे जब
महाराजा रणबीर संह (1857-1885) ने उ ह मूल ंथ को काशन के िलए स पा दत
करने के िलए कहा था।4
राजतरं िगणी अपे ाकृ त अिधक ामािणक ोत है। 1148 ईसवी से 1150 ईसवी के
बीच िलखी गई यह कताब 1184 ईसा-पूव के गोन द तृतीय के समय से लेकर 1129
ईसवी म जयिस हा के समय तक के राजा क कथा है ले कन जैसा क इसके एक अनुवाद
क भूिमका म जवाहरलाल नेह िलखते ह : ‘मु यतः यह राजा , राजप रवार और
कु लीन वग क कहानी है, न क आम लोग क , जैसा क इसके नाम राजतरं िगणी अथात
राजा क तरं ग से प है। और इसके बावजूद यह राजा के कारनाम क कथा से कह
अिधक है। यह राजनीितक और सामािजक तथा एक हद तक आ थक सूचना का समृ
ख़ज़ाना है।’5 हालाँ क क हण इसके पहले के 1266 वष के 52 राजा का सं ेप म वणन
तो करते ह ले कन वह उनक कोई अविध नह देत;े दूसरे , उनम से वह िसफ़ 4 का नाम
लेते ह। पहले तरं ग के सोलहव ोक म वह िलखते ह : ‘पर परा के अभाव म 52 राजा
िव मृित म खो गए। उनम से 4 मेरे ारा नीलमत पुराण से तलाशे गए ह जो गोन द तथा
अ य ह।’6 असल म क हण चौथे तरं ग के ोक 703 तक कोई ितिथ नह देत।े उनके यहाँ
पहली प ितिथ 813-14 ईसवी क है। ज़ािहर है, उसके पहले के इितहास को लेकर वह
ख़द मुतमईन नह थे और िजन ोत क सहायता से उ ह ने उस काल का वणन कया है,
वे काल- म नह बताते।
िजयालाल कलाम काक ट वंश (627-753 ईसवी) के इितहास से तुलना मक प से
िव सनीय इितहास के युग क शु आत मानते ह।7 आर.सी. द का मानना है क
दुलभवधन (598 ईसवी) के बाद के क हण के इितहास पर कोई शक नह कया जा
सकता।8 एस.के . रे अशोक के पहले के काल के क हण के इितहास- वणन के बारे म कहते ह
क इस पर ब त भरोसा नह कया जा सकता।9 क हण ने िजतने ल बे दौर का क़ सा
िलखा है, उस पूरे दौर के सा ी तो वह हो नह सकते थे, न ही उस दौर का पूरा क़ सा
साझा मृितय के सहारे िलखा जा सकता है। उ ह ने ख़द िब हण और ेमे क कताब
के साथ अपने कई ोत िगनाये ह िजनम से अिधकतर अ ा य ह। रे ने उस दौर के िस
आ द क सहायता से छठी शता दी के बाद के राजा के इितहास क पड़ताल क है और
उनक प मा यता है क क हण ने इितहास के साथ पौरािणक कथा , ग प और
िमथक क िमलावट क है। वह एक उदाहरण रणा द य का देते ह िजसका शासनकाल
क हण ने 300 वष का बताया है। उनक मा यता है क हालाँ क सातव सदी से क हण
‘िमथक और पौरािणक कथा क मि म रोशनी से इितहास क प रोशनी’ क तरफ़
आते ह ले कन दसव सदी से ही इस इितहास पर पूरा भरोसा कया जा सकता है। उस
दौर क क हण क किमय को वह चीनी याि य तथा अल ब नी के सं मरण और
जोनाराज के उपसंहार से पूरा करते ह।10 क हण के उ े य और राजतरं िगणी क प ित
को लेकर टेन कहते ह—लेखक का उ े य क मीर म आरि भक काल से लेकर अपने समय
तक के राजा का एक कालानु म तुत करना था। वह (क हण) उन पौरािणक कथा
से आर भ करते ह जो ाचीनतम इितहास को लेकर देश क चिलत पर परा को
िन िपत करती ह। इसके बाद वह पुराने िलिखत रकाॅ स से बाद के राजवंश का नैरेशन
तुत करते ह और उसे एक कालानु म से थािपत करते ह। कताब का आिख़री िह सा,
जो अपने सार और ऐितहािसकता, दोन क दृि से मह वपूण है, ऐसी घटना का
वणन करता है िजसके या तो क हण सा ी ह या फर िज ह जीिवत साि य के हवाले से
पेश कया गया है। ये घटनाएँ कमोबेश एक वतं इितहास लेखक के दृि कोण से िलखी
गई ह और कसी भी तरह एक दरबारी किव क तरह तुितगायन नह ह।11 हालाँ क टेन
राजतरं िगणी क उपल ध पांडुिलिप म भी छेड़छाड़ आ द क आशंका भी करते ह।
ज़ािहर है क क मीर के ाचीन इितहास का कोई भी अ ययन करते ए न तो
राजतरं िगणी पर आँख मूँद कर भरोसा कया जा सकता है, न ही ख़ािलद अहमद बशीर क
तरह इसे सीधे-सीधे ख़ा रज़ कया जा सकता है। क हण ने मूलतः इसे ब ध का क
तरह िलखा है और उ ह ने इितहास के ख़ाली रह गए थान को भरने के िलए
क पनाशीलता का उपयोग कया है। इसके अलावा हम क हण क अपनी सामािजक
अवि थित को भी यान म रखना होगा। क हण शैव ा ण थे। उनके िपता च पक हष के
दरबार म उ पद थ और राजा के िव ासपा थे। उनका एक घरे लू सहयोगी मु ा उस
समय हष के साथ था जब उसक ह या ई थी और वहाँ से वह कसी तरह बच िनकला
था। वह उनके चाचा कनक भी हष के दरबार म उ पद पर थे और उनक मृ यु के बाद
सं यास लेकर बनारस चले गए थे।12 हालाँ क क हण के राजदरबार से स ब होने का
कोई माण नह िमलता ले कन यह प है क न के वल वह कु लीन वग से स ब थे
बि क राजदरबार के कई उ पद थ लोग से उनके य और क़रीबी स ब ध थे। इसिलए
जहाँ एक तरफ़ राजा का वणन करते समय उनके पास दरबारी लेखक क तरह
तुितगान क कोई मजबूरी नह थी और वह अपने समकालीन राजा जयिस हा और अपने
िपता के आ यदाता हष क आलोचना करने से भी नह चूकते। वह उनका वग तथा
जाित-च र एकदम प है—वह जनभाषा बोलनेवाले राजा शंकरवमन को लेकर कटु ह
तो ा ण के ािधकार को चुनौती को लेकर वह डामर और काय थ के ित
आलोचना मक भी ह। इसिलए उ ह पढ़ते ए एक सावधान दृि तो ज़ री है ले कन
छठी-सातव सदी म िलखे गए नीलमत पुराण और बारहव सदी म िलखी गई
राजतरं िगणी को पढ़ते ए हम उस दौर क सामािजक, सां कृ ितक और राजनीितक
संरचना के बारे म िनि त प से एक अनुमान लगा सकते ह। इन दोन ंथ क इस
समझ के साथ हम क मीर के आरि भक इितहास म ा ण क सामािजक-राजनीितक
अवि थित क एक िववेचना करने का यास करगे।

क मीर म ा ण का वेश और
मूल िनवासी होने का दावा
क मीर म ा ण के वेश को लेकर कोई एक सव वीकृ त िस ा त नह है। जहाँ एक
तरफ़ नीलमत पुराण म व णत पौरािणक कथा को आधार बनाकर क मीर के ा ण
को क यप ऋिष से जोड़ने क कोिशश होती है तो वह दूसरी तरफ़ उस दौर के इितहास,
क मीरी भाषा और अ य ोत के सहारे क मीर म ा ण के वेश को लेकर अनुमान
लगाये गए ह। सडर, शे रं ग के हवाले से कहते ह क ‘क मीर भारत म ा ण के सबसे
पुराने घर म से एक है, यह बात िबलाशक़ कही जा सकती है। म य एिशया से भारत के
मु यमाग पर अब ि थत होने के कारण यह वाभािवक था क आई आय जाित इस
ख़ूबसूरत थान को अपने िनवास के प म चुनती और यही कारण था क इसक पहािड़य
तथा घा टय म उनक पहली बसाहट ई।’ वह जाज कै पबेल, यूगल आ द के हवाले से
भी क मीरी ा ण के म य एिशया से आए आय होने क बात करते ह।13 पंिडत आन द
कौल ने भी कई हवाल से अपनी कताब म इसी िस ा त को मा यता दी है।14 एक दावा
इजराइल के एक भटके ए क़बीले के क मीर म बस जाने का है15 यहाँ इन दाव - ितदाव
के िव तार म जाना िवषयांतर होगा ले कन उपल ध ोत के आधार पर क मीर म आय
के म य एिशया से आकर बसने क बात सबसे ता कक लगती है। हालाँ क क मीरी पंिडत
क हािलया कताब म अ सर क मीरी पंिडत के म य एिशया क जगह भारत के
िविभ थान से क मीर म जाकर बसने क बात भी क जाती है। ये दावे आय के म य
एिशया से भारत आने के दावे को ख़ा रज कर उनके मूलतः भारत के ही होने के दि णपंथी
दाव के िह सा ह और ज़ािहर है क उ ह क तज़ पर क मीर को भारतीय रा क
ापक प रिध के भीतर रखकर मूलिनवासी के दावे को सािबत करने क यह कोिशश है।
हमने िपछले अ याय म डॉ. शगा का उदाहरण देखा है16 िजसे डॉ. िशबन के . काच भी
उ धृत करते ह।17
इस स दभ म क मीर क थानीय भाषा क मीरी को भी देखा जा सकता है िजसे आम
तौर पर भारतीय-ईरानी समूह क दा दक भाषा समूह का िह सा माना जाता है। इस
समूह क भाषा क मीर, पा क तान के उ री िह स , अफ़ग़ािन तान और ईरान म बोली
जाती है।18 इस भाषा म सं कृ त, फ़ारसी तथा उदू के श द का समावेश ऐितहािसक
या म होना वाभािवक ही था ले कन यह स भव है क मूल भाषा म य एिशया से
आए आय के साथ ही आई थी। भाषायी िववेचना के आधार पर रे एक दलच प िन कष
यह िनकालते ह क शायद नाग वहाँ के ाचीनतम िनवासी ह जो ज़ा नागर (आज के
िगलिगट-बाि ट तान इलाक़े म) म रहते थे और बु शा क भाषा बोलते थे। िपशाच आय
आ मणकारी थे और वे दा दक भाषा बोलते थे। सं कृ त-भाषी आय भारत से आए थे और
चूँ क अ ततः उनका वच व थािपत आ तो उ ह ने नीलमत पुराण म अपनी महानता
थािपत क है।19
क मीर के ा ण उ र भारतीय सार वत ा ण ह। भारत म ा ण का मु य
िवभाजन—पौरािणक काल से िव य पवत शृंखला को िवभाजक रे खा मानते ए—
दि णी िवड़ तथा उ री गौड़ ा ण का है। इन दोन क फर पाँच-पाँच उप ेिणयाँ ह
िजनम से एक सार वत ा ण क है। क मीर के अलावा पंजाब के कु छ े , राज थान
और क कण े आ द म सार वत ा ण पाए जाते ह। इस आधार पर यह मा यता है क
क मीर म ये इ ह थान से आकर बसे। कु े के पास पौरािणक नदी सर वती के
कनारे बसने के कारण इनका नाम सार वत पड़ा था, जहाँ से ये िविभ थान पर गए।20
ि गेिडयर र न कौल का भी मानना है क जो आय म य एिशया से आए थे, उनका एक
बड़ा िह सा सर वती नदी के कनारे बस गया और उसी आधार पर उ ह सार वत ा ण
कहा गया। काला तर म सर वती नदी के लगभग 2000 ईसा-पूव माग बदलने और सूखते
जाने के कारण ये क मीर सिहत देश के अनेक िह स म बस गए।21 हालाँ क क मीरी
ा ण बाक़ सार वत ा ण से ख़द को अलग मानते ए अपनी उ पि िव ा क देवी
सर वती से मानते ह। इसी आधार पर जाितमाला म सार वत ा ण को क मीरी
ा ण से अलग सूिचत कया गया था।22 पहचान को लेकर सावधानी और े ताबोध
क मीरी ा ण क मह वपूण एवं चा रि क िवशेषता है।
इस तरह क मीर म ा ण के थम वेश स ब धी कोई िन या मक बात करना
स भव नह ले कन जैसा क रे कहते ह, इस बात के पया सा य ह क क मीर म दूसरी
जगह से ा ण का ब त आरि भक काल से ही लगातार वास होता रहा है और
क मीरी ा ण का एक बड़ा िह सा इ ह अ वािसय से बनता है।23 राजतरं िगणी ऐसे
संग से भरी पड़ी है िजसम राजा ने अ य े से ा ण को क मीर म आमंि त
कया और बसाया। उनके यहाँ अ हार का िज़ पहले राजा गोन द से ही शु हो जाता
है। अ हार, क हण ज़मीन या गाँव क करमु जागीर के अथ म उपयोग करते ह जो
कसी ि या धा मक सं था को दी जाती है।24 क हण ने आरि भक पौरािणक राजा
के स दभ म अ हार ारा ज़मीन दये जाने का जो वणन कया है, िवज़ेल उसे थानीय
ा ण ारा ज़मीन पर अपनी दावेदारी मज़बूत करने क कोिशश क तरह देखते ह।
हालाँ क इन दाव को वह सही नह मानते ले कन इन अ हार के नाम म अ त निहत
नाम क िववेचना से इस िन कष पर प च ँ ते ह क इनम से कु छ नाम सं कृ त के क मीर म
वेश से पहले के ह।25
अभी इसे यह छोड़ते ए हम क हण के यहाँ क मीर म देश के दूसरे िह स से ा ण
के आकर बसने के िववरण पर यान के ि त करते ह। इस स दभ म ण शासक िमिहरकु ल
का क़ सा मज़ेदार है िजसने शैव धम तो अपनाया था ले कन क हण उसके अ याचार के
कारण उसक ख़ूब लानत-मलामत करते ह। िमिहरकु ल ने अपने ज म थान गांधार से
ा ण को बुलाया था और अ हार दये थे। क हण बताते ह क अके ले िवजये र म
ा ण को एक हज़ार अ हार दये गए थे। िमिहरकु ल से अ हार वीकार करनेवाले
ा ण को िनचले दज का समझा जाता था। इसके बाद लगभग 400 ईसा-पूव के राजा
गोपा द य के समय वै दक स यता के मूल े यानी आज के पि मी उ र देश और
ह रयाणा से ा ण को लाकर क मीर म बसाए जाने का िज़ आता है िज ह खोल,
खिगका, ह द ाम, क दपुरा और सामजस वि क अ हार म दये गए। उसके आयदेश के
ा ण को गोप पवत पर गोपा मठ के िलए अ हार देने का भी िज़ आता है िजसे
आज शंकराचाय पवत के नाम से जाना जाता है। गोपा द य ारा उन ा ण के
देशिनकाले क बात भी सामने आती है जो वै दक ा ण रीितय से भटक गए थे और
लहसुन आ द का सेवन करने लगे थे। इसके बाद भी लगातार ा ण को अ हार दये
जाने का िज़ आता है। इसी म म अि तम गु राजा ारा उ ैन के एक किव मातृगु
को क मीर का सूबेदार बनाकर भेजे जाने का िज़ आता है िजसके साथ उ ैन से कई
ा ण आए थे। कारकोटा वंश के सबसे िस शासक लिलता द य मु पीड (725 से 761
ईसवी) ारा क ौज िवजय के बाद वहाँ से सं कृ त के िव ान पंिडत —भवभूित,
वा पितराज तथा अि गु —को क मीर ले आने का िज़ है। हमने देखा है क िस
क मीरी िव ान अिभनवगु इ ह अि गु के वंशज थे।
आन द कौल क मीर म लगातार अ वािसय के आने के चार कारण बताते ह। पहला
यह क क मीर ाचीन काल से ान के एक के के प म उभरा। अलब नी और
वेनसांग के हवाले से वह बताते ह क उस दौर म क मीर सं कृ त ान का सबसे मुख
के था और यहाँ आकर कु छ वष सीखे िबना कसी को सं कृ त का आिधका रक िव ान
नह माना जाता था। वाभािवक है क इनम से एक िह सा वापस लौटकर नह जाता
होगा। दूसरा कारण क मीर का पहाड़ से िघरे होने और दुगम होने के कारण िवदेशी
आ मण से सुरि त होना था। यह उसे भारी राजनीितक उथल-पुथल से बचाकर
शाि तपूण जीवन के िलए उपयु थान बनाता था। तीसरा कारण कौल चीन और म य
एिशया से क मीर के राजनीितक स ब ध को बताते ह और चौथा कारण क मीर क
धरती का उपजाऊ होना था िजसके चलते वहाँ भोजन चुर मा ा म उपल ध हो जाता
था और समृि बनी रहती थी। वह इस स ब ध म दो सं कृ त कहावत का िज़ करते ह :
1. क मीरं यश यमः त अदानम भ यमः (हम क मीर जा सकते ह जहाँ भोजन चुर
मा ा म उपल ध है) और 2. य ि धा क यपे सुलभम (क मीर म भोजन और व सुलभ
है)।26 यह या बाद तक चलती रही है। मदान क मीर के दो अ य िह दू समुदाय क
बात करते ह—बूहर और पू रब। लॉरस के हवाले से वह बताते ह क बूहर असल म पंजाब
से ापार के िलए आया ख ी समुदाय है जब क पू रब पूव पंजाब से कई सदी पहले
आकर बसे ा ण ह। मदान का कहना है क वे क मीर क पंिडत सं कृ ित म पूरी तरह से
घुल-िमल गए ह।27 िवज़ेल बताते ह क बाहर से ा ण का आना अफ़ग़ान और िसख
शासक के दौर म भी जारी रहा। डोगरा शासन क थापना से पहले आए ा ण क मीरी
ा ण क जनसं या म घुल-िमल गए और क मीरी ा ण क यह मु तिलफ़
भौगोिलक तथा न ली संरचना मूल छह गो (द ा ेय, भार ाज, पालदेव, उपम यु,
मु ल और धौ यन) के 200 गो म िव ता रत हो जाने म पाियत होती है।28
साथ ही, क मीर से ा ण का भारत के अ य थान पर पलायन भी बेहद आरि भक
काल से देखने को िमलता है। जयापीड़ के समय पथ हो चुके ा ण के क मीर से
देशिनकाले का िज़ पहले ही आया है। क हण के यहाँ एक ा ण िवजयराजा का िज़
आता है जो क मीर म भयावह संकट (गढ़दुगत) के कारण बाहर जाने क बात करते ह।
मदुरै के दि ण म प लव राजा ारा बनवाए गए ित वले र मि दर के अिभलेख म
वहाँ क मीरी ा ण के बसने का प उ लेख है। बारहव सदी के नेपाल से ा एक
पांडुिलिप म क मीरी ा ण क वहाँ उपि थित का उ लेख है तो िवजयनगर सा ा य के
एक सेनापित ारा वहाँ 60 क मीरी ा ण के बसाए जाने का िज़ आता है। क हण ने
िजन िव हण का िज़ अपने ोत के प म कया है, वे क मीर से पलाियत होकर
चालु य स ाट िव मा द य ष म् के दरबार म थे29 तो एक और सफल वासी ा ण थे
सोथल, जो बारहव सदी म देविग र (वतमान दौलताबाद) के राजा —जै पाल और
िभ लण—के दरबार म शाही दरबार के मुख— ीकणािधप—थे।30 ब त बाद तक
क मीरी ा ण के भारतीय रजवाड़ म ऊँचे पद पर होने क सूचनाएँ िमलती ह तो
मुग़लकाल और ि टश काल म भी बड़ी सं या म क मीरी ा ण के द ली, लखनऊ,
लाहौर आ द जगह पर बसने के मूल कारण रोज़गार ही रहे ह, िजस पर आगे िव तार से
बात होगी। राजा के साथ सां कृ ितक आदान- दान के प म भी क मीरी ा ण के
गुजरात, के रल और नेपाल जैसी जगह पर जाकर बसने के माण िमलते ह। इसिलए यह
एक ग़लत समझदारी है क क मीर से जो भी ा ण बाहर गए, वे के वल मुि लम शासक
के अ याचार के कारण।

िह दू राजा के काल म ा ण क
सामािजक-राजनीितक अवि थित
क मीर म ा ण का ादुभाव वाभािवक प से वहाँ बौ धम के पतन और वै दक धम
क थापना से जुड़ा आ है। इस स ब ध म क हण के उस दौर के िववरण को सावधानी से
पढ़ना ज़ री है िजसक ऐितहािसकता ामािणक नह । यहाँ क हण ने क पना का ही
सहारा नह िलया है बि क क मीर म बौ धम पर वै दक सं कृ ित क िवजय और उसके
अनु प रा य- व था के उदय क एक बानगी भी दी है। अशोक के काल के तुर त बाद
वह उसके पु जालुक का जो शासन दखाते ह, वह इसका सबसे प उदाहरण है। क हण
ने उसे शूरवीर और यायि य शैव राजा बताया है िजसने का यकु ज तक अपने शासन का
िव तार कया। उनके अनुसार, जालुक ने ीनगरी और न दी े म मशः ये और
भूतेश मि दर का िनमाण कराया तथा क मीर म शैव धम क पुन थापना क । बौ के
ित उसका रवैया आर भ म दु मनाना था, बाद म वह बौ धम के ित सिह णु हो गया
था। इस स ब ध म राजतरं िगणी के थम तरं ग के 131 से 147व ोक म एक रोचक कथा
आती है। एक बार जब जालुक िवजये र मि दर म आराधना करने जा रहा था तो रा ते म
कृ यादेवी नामक एक कमज़ोर-सी मिहला ने उससे भोजन माँगा। उसने उसे मनचाहा
भोजन देने का आ ासन दया। इस पर उस मिहला ने मनु य के मांस क इ छा ज़ािहर
क । राजा ख़द अपनी देह से मांस देने को उ त आ तो मिहला ने उसे बोिधस व का एक
प बताकर शंसा क और बौ मठ के तोड़े जाने तथा बौ पर ए अ याचार क
िशकायत क । उससे भािवत होकर राजा ने बौ िवहार के पुन नमाण का वायदा कया
और उसके ही नाम पर िवहार का नाम कृ या म रखा तथा िवहार म उस मिहला क मू त
भी थािपत क । अब आप जालुक के शासन क व था देख तो क हण के अनुसार उसम
7 मं ी ( यायाधीश, कर िवभाग के मुख, कोषा य , सेनापित, राजदूत, पुजारी और
योितषी) तथा 18 िवभाग थे जो वै दक राजा के रा य के ल ण ह। हमने देखा है क
इसी म म उसने क ौज से ा ण को क मीर म बुलाया और अ हार दये। िसफ़
ा ण को ही नह बि क चार वण के लोग को जालुक ारा क मीर म बसाए जाने का
िज़ है। असल म क हण के यहाँ क मीर के उस दौर का इितहास, िजसक ऐितहािसकता
ामािणक नह है, और नीलमत पुराण के वणन क मीर म वै दक धम क थापना का
क़ सा है। नीलमत पुराण म वै दक धम के आधार पर रा य व था क िश ा तो है ही,
साथ म ा ण को अलग-अलग अवसर पर दये जानेवाले दान के िव तृत अनुदश े भी ह।
इस तरह भारत के कसी दूसरे इलाक़े क तरह यहाँ का इितहास भी, जैसा क
िजयालाल कलाम कहते ह, ा ण- ि य गठब धन का तथा एक-दूसरे के िहत क पू त
का इितहास है।31 क मीर म ि य उस प म थे या नह , इसे लेकर अलग-अलग मत ह
ले कन यहाँ सुिवधा के िलए राजनय वग और ा ण कहा जा सकता है। एक तरफ़
राजा ने ा ण को अ हार आ द देकर समाज म िविश थान दान कया और
दूसरी तरफ़ ा ण ने राजा के प म वैचा रक और सामािजक माहौल बनाया। इस
जुगलब दी से समाज म वै दक सं कृ ित और ा णवाद का वैचा रक वच व थािपत
आ। क मीर म ा ण का सीधा मुक़ाबला था बौ धम से। किन क के शासनकाल म
जब बौ धम रा यधम बना तो ज़ािहर था क ा ण ािधकार पर इसका असर पड़ता।
अिभम यु के शासनकाल म नागाजुन ने न के वल बड़ी सं या म लोग को बौ धम क
दी ा दी बि क ा ण को शा ाथ म परािजत भी कया। इसक प रणित ई एक
गृहयु म िजसम ा ण का नेतृ व कया च ाचाय ने। इस गृहयु म ा ण ने नागा
के साथ िमलकर बौ पर भयावह अ याचार कये। ले कन क मीर म बौ धम का भाव
इतनी आसानी से समा नह हो सकता था और इसक कोिशश लगातार जारी रह । नर
थम नामक राजा के दौर म क हण ने हज़ार बौ मठ को जलाने और बौ मठ से
स ब गाँव को ा ण को दये जाने का िज़ कया है। इसके बाद िमिहरकु ल और
गोपा द य जैसे राजा का समय आते-आते क मीर म वै दक धम का भाव बढ़ता गया
और पाँचव -छठी शता दी आते-आते हम वहाँ सामािजक-राजनीितक व था पर पूरी
तरह वै दक धम का भाव थािपत होते ए देखते ह।
वाभािवक था क बौ धम को ित थािपत करके घाटी म थािपत नई सामािजक-
राजनीितक व था म ा ण का उ तर थान होता। जैसा क रे कहते ह—िनि त तौर
पर ा ण क मीर म सबसे अिधक स मािनत और िवशेषािधकार- ा जाित थी।32
क मीर के सबसे िति त राजा काक ट वंश के लिलता द य के दरबार म िम शमन
नामक ा ण ऊँचे पद पर थे तो जयापीड़ के मं ी देवशमन थे और दामोदरगु उनके
सभासद थे। फा गुन भ ेमगु के दरबार म मं ी थे तो क हण के िपता च पक हष के
दरबार म उ पद थ थे। राजतरं िगणी म एक ा ण राजा यश कर (939-948 ईसवी) का
िज़ आता है तो क मीर के इितहास म िविश थान रखनेवाली रानी द ा भी काबुल के
ा ण शाही प रवार क थ ।33 उदाहरण क भीड़ लगाये िबना कहा जा सकता है क
िह दू राजा के काल म दरबार म ा ण का दबदबा था और इसिलए सामािजक-
आ थक जीवन म उनके िविश थान वाभािवक था। क हण न के वल बाहर से आकर
बसनेवाले बि क िश ा के िलए क मीर आनेवाले ा ण के िनवास आ द के िलए भी
राजा ारा अ हार दये जाने का उ लेख करते ह। इसके अलावा राजभवन के अनु ान
तथा धा मक सं कार के िलए जो ा ण िनयु थे, वे भी मूलतः उ वग म ही शािमल
थे। ा ण के सामािजक मह व का अ दाज़ा उनके िलए उपयोग कये जानेवाले िवशेषण
से लगाया जा सकता है। िवज़ेल िविभ ोत से इन िवशेषण का उ लेख करते ह—िव ,
ि ज, ि जनम, अ जनम, भूिमदेव, वसुधादेव आ द।34 इस सामािजक अवि थित का लाभ
उठाकर ा ण ने िश ा-दी ा को पूरा समय दया और उ लेखनीय उपलि ध भी हािसल
क । साथ ही क मीर के उस दौर म सं कृ त सािह य के सृजन का उ कष देखा जा सकता है।
सातव सदी म भीम भ , दामोदर गु , आठव सदी म ीर वामी, र ाकर, व लभ देव
(िज ह ने कािलदास क अिभनव शांकुतलम् का भा य िलखा); नौव सदी म म मट,
ेमे , सोमदेव से लेकर दसव सदी के िम हण, जय थ और यारहव सदी के क हण जैसे
सं कृ त के िव ान किवय -भा यकार क एक ल बी पर परा है, ले कन जैसा क हमने
पहले भी देखा है, थानीय भाषा के ंथ का कह कोई िज़ नह िमलता।
यहाँ ककर क मीर म िवकिसत शैव धम क थोड़ी चचा समीचीन होगी।

क मीरी शैव— यिभ ा-ि क- पंद दशन


क मीर म आठव -नौव शता दी म अपनी तरह का शैव दशन िवकिसत आ। मा यता है
क वै दककाल म शैव स दाय के के वल दो मत थे—पाशुपात और आगिमक। महाभारत
काल म इसके चार व प हो गए—शैव, पाशुपात, कालदमन या कालमुख और
कापािलक। काला तर म वै दककालीन पाशुपात के छह स दाय—पाशुपात, लघुलीश
पाशुपात, कापािलक, नाथ, गोर नाथ और रं गे र—िवकिसत ए और आगिमक के चार
िस ा त—शैव िस ा त, तिमल शैव, क मीर शैव और वीर शैव। आगिमक स दाय के
तहत िवकिसत क मीर शैव ही यिभ ा या ि क या पंद दशन कहलाता है।
क मीरी शैववाद व तुतः नौव और बारहव शता दी के बीच िवकिसत ई िविभ
अ त ै और तांि क धा मक पर परा का एक समु य है। ब त िव तार से इसक ा या
तो इस कताब के िवषय- े से बाहर क चीज़ होगी, ले कन इसके व प तथा उ व को
समझना क मीरी मानस को समझने के िलए उतना ही ज़ री है िजतना क सूफ़ वाद को।
क मीर मानस का िनमाण बौ , क मीर शैव तथा इ लाम क सूफ पर परा के सम वय
से िन मत आ है और इसके भाव वहाँ के सामािजक-राजनीितक जीवन पर प ह। तं
वैसे तो बेहद ज टल या है ले कन एक यय जो अिनवाय प से उसक हर पर परा
म उपि थत है, वह है शि का संधान। आ याि मक अथ म शि देवी ह, पु ष देव क
अधािगनी। शैव स दाय के िलए वह पावती ह। तांि क पर परा म शि का यह संधान
जाित, लंग, भोजन आ द के सामािजक िनयम के पार जाता है। अनेक तांि क याएँ
मशान म पूण क जाती ह। बौ धम के व यान स दाय म भी पंच मकार (म ,
मांस, म य, मु ा और मैथुन) क बात है। पंचमकार का फल महािनवाणतं के यारहव
पटल म इस तरह व णत है : ‘म पान करने से अ ै य और परामुि तथा मांस के भ ण
से सा ात् नारायण व का लाभ होता है। म य भ ण करते ही काली का दशन होता है।
मु ा के सेवन से िव णु- प ा होता है। मैथुन ारा साधक िशव के तु य होता है, इसम
संशय नह ।’
शा पर परा म जहाँ देवी एक वतं अिध ा ी ह, क मीर क अ त ै पर परा म वह
िशव के पराभौितक आ म म समािहत ह। िशव ‘शि मान’ ह िजनके उभय लंगी
महा ि व म पावती उनक अधािगनी के प म उपि थत ह। शैव दशन म शि का
माग िशव से होकर जाता है। तं पर परा म मैथुन ारा साधक वयं को िशव के तु य और
अपनी सहभािगनी को शि के तु य समझता है और इस तरह शि क ाि होती है।
ले कन िशव को उभय लंगी मान लेने पर तांि क पर परा क मैथुन क यह आव यकता
समा हो जाती है। यहाँ यह देखना मह वपूण होगा क क मीर म िभ अ त ै शैव
पर परा िवकिसत होने के सामािजक कारण या थे।
िव ान का मानना है क उ जाित के ा ण के बीच पंच मकार वाली तांि क
या का वीकृ त हो पाना अस भव था जहाँ जाित, लंग और भोजन के तमाम कु लीन
ब धन को यागना होता था, अतः इसे उनक पर परा और मा यता के अनु प
ढाला गया। एके रवादी क मीरी पंिडत के िलए पार प रक शैव दशन के सामंज य से
िनकला यह क मीरी शैव सवथा अनुकूल था। इसे सभी शैव दशन म सबसे अिधक
मानवीय और युि संगत35 कहा गया है तो इसीिलए क यह शैव धम को कु लीन आचरण
के अनु प ढाल देता है। साथ ही अब तक क मीर म अलग-अलग स दाय म बँटे कु लीन
ा ण को एक स दाय के तहत लाकर इसने उनके बीच एक दीघकालीन एकता भी
थािपत क । साथ ही बौ धम के सम एक अिधक मानवीय, अ हंसक तथा ता कक प
से आना भी शैव धम के िलए अ य त आव यक था। िलिखत बौ िस ा त को चुनौती
दाशिनक थापना से ही दी जा सकती थी। हालाँ क इसके बाद भी तांि क साधनाएँ
चलती रह ।
वसुगु क सूि य का संकलन प दका रका इसका पहला ामािणक थ माना
जाता है। इस स ब ध म आचाय ेमराज ने िशवसू म एक दलच प घटना का हवाला
दया है। उ ह ने िलखा है क भगवान् ीकं ठ ने वसुगु को व म वयं कट होकर
आदेश दया क क मीर म महादेविग र के एक िशलाखंड पर िशवसू उ क ण है। जाओ,
उसे समझो और उसका चार करो। यह व सच सािबत आ। जब वसुगु ने महादेव
िग र का सव ण कया तो उ ह एक िशला पर सतह र िशवसू उ क ण िमले, तब से इस
िशला को क मीर म लोग िशवपल (िशविशला) कहते ह। ज़ािहर है, ऐसे ‘ व ’ के िबना
वह ई रीय ािधकार कै से थािपत कया जा सकता था िजसके सहारे तमाम मत-
मता तर को एक साथ कर नया मत तािवत कया जाए? व क यह कथा
शंकराचाय से लेकर अनेक दाशिनक और राजा तक के यहाँ ऐसे ही चली आती है।
वसुगु के बाद उनके दो िश य —क लट तथा सोमान द—ने इस दशन को मज़बूत
वैचा रक आधार दया। क लट ने प दासव व क रचना क और सोमान द ने िशव दृि
एवं परात त िलखी। यह से इस दशन का नाम यिभ ा दशन पड़ा। यिभ ा ( ित
अिभ ान) अथात िशव जो परम शि ह, उनसे सा ा कार कर अहं िशवोि म क ि थित
ा करना। क लट शि को ा ांिडक प दन के प म प रभािषत करते ह। इसिलए
इस दशन का एक नाम ‘ पंद दशन’ भी है। ि क दशन कहे जाने के मूल म पशु (जीव),
पाश (ब धन) और पित (ई र) को इस दशन म िवशेष मह व दया जाना है।
सोमान द के िश य उ पलदेव ने यिभ ा दशन को ठोस अकादिमक आधार देने क
दशा म बेहद मह वपूण काय कया। उनक कृ ितयाँ यिभ ा दशन क आधारभूत
रचनाएँ मानी जाती ह। िशवदृि पर िलखी अपनी ट पणी ‘िशवदृि -वृि ’ के अलावा
उ ह ने सोमान द के काय को अिधक साफगोई से ा याियत करनेवाली कई रचनाएँ
िलख । उनके ंथ म सबसे िव तृत थ है ई र यिभ का रका। उ ह ने दाशिनक
अ ययन क एक यी भी िलखी िजसे िसि यी कहा जाता है। इसम शािमल ह
—‘ई रिसि , अजाद माि िसि और स ब धिसि ।’36
यिभ स दाय के सबसे उ ट िव ान अिभनव गु का ज म 950-960 ईसवी के
बीच आ था। उनक पु तक तं लोक एके रवादी दशन क इनसाइ लोपीिडया मानी
जाती है। माना जाता है उ ह ने कु ल 50 पु तक िलखी थ ले कन आज उनक कु ल 44
पु तक उपल ध ह िजनम तं लोक के अलावा तं सार और परमाथ सार उ लेखनीय ह।
वह शैव दशन म आभासवाद के णेता माने जाते ह िजसम उ ह ने ‘कु ल’ और ‘कम’ क
व थाएँ द ।37 उनका सबसे बड़ा योगदान है गैर-दाशिनक तांि क धमशा को एक
सुग ठत दाशिनक संरचना तुत करना। उ ह ने यिभ ा क ेिणय का उपयोग करके
इस तांि क िस ा त के िविभ पहलु तथा वहार एवं ि क पर परा से शैव तीक
के सहारे ि क दशन को एक मज़बूत ता कक आधार दान कया।38 िवल ण ितभा के
धनी अिभनवगु ने दशन के अलावा ाकरण, ना शा और का शा का िवशेष
अ ययन कया था और भरतमुिन के ना शा पर एक टीका भी िलखी थी। अिभनवगु
रस िस ा त के ा याकार थे। वह खर किव भी थे। पर तु क मीरी पर परा के इस
महान आचाय का नाम आ यजनक प से क हण क राजतरं िगणी म अनुपि थत है,
इसका एक कारण इनका कसी राजदरबार से स ब न होना हो सकता है।39 इस शृंखला
म अि तम मह वपूण नाम अिभनवगु के िश य ेमे का है। सं कृ त के अ य त िति त
किव ेमे ने अपने गु का काम आगे बढ़ाते ए अपनी पु तक यिभ ान दय म अ त ै
शैव पर परा के ंथ का सहज िव ेषण तुत कया तथा तांि क पर परा पर कई सुदीघ
भा य भी िलखे। क मीर म िवकिसत इस दशन ने क मीर जनजीवन पर ही नह अिपतु
पूरे दि ण एिशया क शैव-पर परा पर गहरा भाव डाला। नौव से बारहव सदी के बीच
बौ धम का भाव ीण होता गया और शैव दशन क मीर का सबसे भावी दशन बन
गया।
ले कन यहाँ दो तरह के सरलीकरण से बचना ज़ री है। पहला तो यह क पूरा का
पूरा ा ण समुदाय िह दू राजा के ज़माने म उ वग म शािमल था और दूसरा यह क
राजा और ा ण समुदाय के बीच कसी तरह का कोई अ त वरोध नह था।
रे िलखते ह क जहाँ ा ण का एक छोटा-सा वग सेना और राजनीित म ऊँचे पद
पर था, वह ा ण का ब तायत पूजापाठ और कमकांड से ा दि णा से जीवन-
यापन करता था। िजन पुजा रय को ज़मीन िमली थी, वे इससे भी आय ा करते थे।
मि दर से स ब गाँव से पुजा रय को राज व ा होता था। ले कन इसके साथ ही
राजतरं िगणी म मि दर से बाहर फू ल बेचनेवाले ा ण का िज़ है तो ेमे बताते ह
क कु छ ा ण मि दर म चढ़नेवाला साद फर से भ को बेच दया करते थे।40
ज़ािहर है, ा ण का यह तबका सामािजक तौर पर भले ऊँचे पायदान पर हो ले कन
आ थक तौर पर ब त समृ नह था। पूजा-पाठ और शासिनक सेवा के आधार पर
क मीरी ा ण म आ यह िवभाजन आगे चलकर और मज़बूत होना था तथा इसे शादी-
याह का आधार बना पदानु म को और मज़बूत करना था।

सामािजक संरचना
यहाँ त कालीन क मीर क सामािजक संरचना के बारे म थोड़ा समझ लेना बेहतर होगा।
राजतरं िगणी म कई और जाितय का िज़ है िजनम डोम (या डो ब), िनषाद, वपाक,
चांडाल, करात और कै वत जैसी किथत िनचली जाितय के साथ काय थ और डामर
जाितय का उ लेख आता है। रे िनषाद को क मीर के मूलिनवासी मानते ह। ये िशकार,
मछली पकड़ने और नाव चलाने का काम कया करते थे। करात ित बती-बम मूल के थे
और जंगल म रहकर िशकार आ द कया करते थे। वेनसांग ने अपने सं मरण म क मीर
म ाचीन काल से रहते चले आ रहे क -लो-तू नामक एक जाित का िज़ कया है जो
िनचली जाित के थे और बौ के िख़लाफ़ थे। रे इसे करात का िज़ ही मानते ह। डो ब
जाित के पेशे के बारे म कोई िन कष िनकालना मुि कल है। क हण ने एक जगह डो ब
लोग के िशकार करने का िज़ कया है तो कई जगह पर डो ब गायक क चचा है। अल
ब नी ने भी उ ह बाँसुरीवादक और गायक बताया है।41 राजतरं िगणी म च वमन (924-
935 ईसवी) के डो ब जाित के रं गा क दो बे टय —हा सी और नागलता—से शादी का
िज़ आता है। डामर साम त ने रानी का बिह कार कया और अ ततः च वमन क ह या
तब कर दी गई जब वह हा सी के क के शौचालय म था। क हण ने िलखा है क उसके
शव के साथ दु वहार कया गया और उसक रािनय ने मरने से पहले उसके घुटने तोड़
देने के िलए उकसाया। इस संग म क हण ने वपाक और डो ब को समानाथ के प म
योग कया है। वपाक कु का मांस खानेवाली जाित को कहा जाता था तो ज़ािहर है
क उनक जाित नीची मानी जाती थी। चांडाल एक और िनचली जाित थी जो यु क
जाित के प म जानी जाती है। उ ह एक ू र और भयावह यो ा के प म िचि त कया
गया है जो राजा के अंगर क क भूिमका िनभाते थे तथा कई जगह उनका ष ं के तहत
िवरोिधय के ह यार के प म भी िज़ आया है। रे बताते ह क भारत के अ य इलाक़ के
िवपरीत क मीर म ा ण और िन जाितय के बीच म य जाितय का िवकास नह
आ था।42 हालाँ क क हण के यहाँ दो समुदाय का उ लेख बार-बार आता है—पहला,
डामर और दूसरा, काय थ।
ाचीन क मीर म भी अ य इलाक़ क ही तरह उ पादन तीन ोत थे : कृ िष, ापार
और उ ोग। और वाभािवक है क इनसे जुड़े तीन वग काला तर म उभरे ह गे। क मीर म
ेि वग का िवकास भी आ था ले कन ऐसा लगता है क नौव -दसव सदी म इनका
कोई ख़ास भाव नह था और ये िवदेश से ापार क जगह क मीर म मौ क लेन-देन
के काम म ही संल थे।43 डामर और काय थ को लेकर भी ब त िव तार से कोई वणन
नह िमलता ले कन डामर का उ लेख साम ती मुख के प म ही आता है। डामर को
पहले उ री क मीर म रहनेवाले उप वी क़बीले के प म माना जाता था ले कन अब
आम मा यता है क डामर साम ती मुख के िलए उपयोग कया जानेवाला पद था जो
बाद म उप वी ि य या उनके समूह के समानाथ के प म योग कया जाने लगा।
ये ज़मीन के मािलक होते थे िजनके िहत वाभािवक प से उस समय के समृ
ापा रक वग से टकराते थे जो राजा के क़रीब थे। इस स दभ म लिलता द य के उस
आदेश को याद कया जा सकता है िजसम वह कहते ह क अगर ामीण और कृ षक लोग
को रोज़मरा क ज़ रत से अिधक आय ई तो वे भयावह डामर बन जाएँगे और राजा के
आदेश क अवहेलना शु कर दगे।44 डामर लिलता द य के बाद क मीर क राजनीित म
मह वपूण होकर उभरते ह और दसव सदी तक राजा के कमज़ोर होते जाने के साथ वे
दरबार म कं ग-मेकर क भूिमका म दखाई देते ह। च वमन ( 924-935 ईसवी) के
समय ताि न क़बीले के भय से राजा सं ाम नामक डामर के यहाँ शरण लेता है और
उसक सहायता से फर रा य हािसल करता है ले कन रा य हािसल करने के बाद जब वह
डामर क अवहेलना करना शु करता है तो यही डामर उसक ह या कर देते ह। लोहार
वंश का शासन थािपत होने के बाद डामर का असर लगातार बढ़ता आ दखता है। हष
के समय डामर पर िनयं ण क तमाम कोिशश दखाई देती ह ले कन अ ततः डामर क
सहायता से उ ल और सु सल हष क ह या करने म सफल ए। बारहव सदी तक वे बेहद
मज़बूत और समृ होकर उभरते ह और उनके राजप रवार से वैवािहक स ब ध के भी
उदाहरण िमलते ह। ज़ािहर है क कृ िष व था के मज़बूत होने के साथ-साथ कृ िष से
स ब यह वग मज़बूत होता तो वहाँ भूिमहीन कृ षक क आबादी भी बढ़ती और उनसे
राज व वसूल करनेवाले कमचारी वग क ताक़त भी। क मीर म यह काय काय थ वग के
हाथ म आया और ा ण ािधकार को चुनौती िमली काय थ जाित से। हालाँ क उस दौर
के आम कसान क ि थित का कोई उ लेख क हण के यहाँ नह आता ले कन ेमे के
िववरण से अ दाज़ लगाया जा सकता है क राजा, डामर और काय थ के दु म आम
कसान क ि थित बेहद दयनीय थी। वह िलखते ह क जहाँ दरबारी जन तली ई मछली
खाते ह, शराब पीते ह और इ -फु लेल लगाकर आन द करते ह, वह आम कसान जौ के
िछलके और उ ला (कड़वे वादवाली एक स ज़ी) खाकर जीवन गुज़ारते ह।45
सातव -आठव सदी म क मीर म काय थ वग का असर बढ़ना शु हो गया था।
वेनसांग ने इस वग को राजा का सलाहकार और कोष ब धक के प म व णत कया
है। वाभािवक है क ये भूिमकाएँ क मीर म उनके बढ़ते राजनीितक भाव का सबब बन
और ऐसे म वे ा ण के िलए बड़ी चुनौती बनकर उभरे ।46 जयापीड़ के समय काय थ
को उसके य देने से ा ण क नाराज़गी वाभािवक थी। क हण के यहाँ जयापीड़
ारा अ हार वापस लेने के कारण उससे नाराज़ ा ण के िशकायत करने पर जयापीड़
के मज़ाक़ उड़ाने और फर ा ण ारा उसे ाप देने से एक ख भे के राजा पर िगरने और
उसक मृ यु हो जाने का िज़ है (चौथी तरं ग, ोक 620-655)। ब त स भव है क
ा ण ने ष ं कर राजा क ह या करवा दी हो िजसे क हण इस प म तुत कर रहे
ह ! ेमे ने काय थ ारा राज व एक करने क या म ाचार और इस या
म आततायी राजा के अ याचार का सहभागी होने का वणन आता है।47 सडर क
मा यता है क काय थ ा ण ही थे और वे अपने रोज़गार के चलते काय थ कहलाए,48
हालाँ क राजतरं िगणी का एक सावधान पाठ इस िन कष पर ग भीर खड़े करता है।
यहाँ यह त य मह वपूण है क आगे चलकर क मीर म ा ण ने शाहमीरी के एक िह से,
मुग़लकाल और उसके बाद से राज व िवभाग म यही भूिमका िनभाई। अगर काय थ
ा ण ही होते तो उ ह इसी नाम से पुकारा जाता। साथ ही उ र भारत म म य जाितय
म शािमल काय थ जाित पार प रक प से राज व तथा ऐसे िवभाग म संल रही है
और ब त स भव है क क मीर म भी काय थ जाित ा ण से अलग एक म य जाित
रही हो।
इस तरह सरलीकरण से आगे िह दू राजा का काल क मीर म एक ा णवादी
समाज के प म कमोबेश उ ह ला िणक िवशेषता वाला था, जैसे भारत के दूसरे रा य
थे। ा ण स ा वग के िह सा होने के कारण वाभािवक प से समाज म बेहतर ि थित
म थे ले कन स ा वग के भीतर के ं से अ भािवत वे भी नह रहे। जब दूसरी जाितयाँ
मज़बूत तो उनके ािधकार को चुनौती िमली और जब उनक मह वाकां ाएँ राजा
के िहत से टकरा तो वाभािवक था क राजा उन पर कड़ी कायवािहयाँ करने से नह
चूके। इसी तरह ितकू ल राजा को रा ते से हटाने के िलए ा ण ने ष ं से लेकर
जादू-टोना तक का सहारा िलया। राजतरं िगणी म राजा तुंग के िख़लाफ़ उनके ष ं और
च पीड़ को जादू-टोने से मारने का उ लेख आता है िजसके चलते उसके पु तारापीड़ ने
ा ण क ह या करवाई हालाँ क ा ण उसक भी ह या कराने म सफल रहे।
इस स ब ध म एक मज़ेदार क़ से से बात ख़ म करना उस दौर के समाज म ा ण
के िवशेषािधकार और उससे उपजे ं क एक मानीखेज़ ंजना होगी :
ा ण ने अपनी माँग मनवाने के िलए ‘ योपवेशन’ का तरीक़ा अपनाया था। इसके तहत ा ण
आम तौर पर एक सभा थल ‘गोकु ल’ म एक होकर आमरण अनशन कया करते थे, हालाँ क यह
िनजी तर पर भी कया जा सकता था। राजा सु सल के समय म ा ण ने सेना ारा अ ोसुवा
अ हार को तहस-नहस करने का िवरोध शु कया और ज द ही अ हार- ा अ य ा ण इसम
शािमल हो गए। वे सभी राजनवा टका के िवजये र म आमरण अनशन पर बैठे। उनका नेतृ व
पुरोिहत प रषद के ओजान द कर रहे थे। गोकु ल का पूरा मैदान ा ण से भर गया और वा यं
बजने लगे। राजा के स देशवाहक ारा उ ह शा त कराए जाने क कोिशश हो रही थ ले कन
उ ह ने घमंड म चूर होकर कहा क जब तक वह ल बी दाढ़ी वाला (राजा सु सल) नह आता, यह
जारी रहेगा। इस पर नाराज़ होकर सेना ने उन पर हमला कर दया। पुरोिहत प रषद के सद य इस
पर सब छोड़कर भागे। जो थोड़े से वहाँ बच गए, उ ह सैिनक ने परे शान नह कया य क उ ह ने
अनशन ख़ म करने क घोषणा कर दी (तरं ग 9, ोक 939-40)।
तो इस ‘ वण काल’ म भी सब सुनहला ही नह था।
स दभ
1. देख, पेज 16, अ िह ी ऑफ़ क मीरी पंिड स, िजयालाल कलाम, उ पल पि लके शन, द ली, थम सं करण,
1951, संशोिधत सं करण, 2003
2. देख, http://www.ikashmir.net/exodus/chapteri.html (आिख़री बार 14/09/2019 को देखा गया)
3. देख, पेज 9-10, खंड 2, कं स ऑफ़ क मीर, जोगेश च द , पहला सं करण 1898, ई. एल. एम. ेस, कलक ा
4. देख, पेज 377, खंड 2, क हण क राजतरं िगणी, एम.ए. टेन, वे टिमिन टर, आ कबा ड कां टेबल एंड क पनी
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11. देख, पेज 4, खंड 2, क हण क राजतरं िगणी, एम.ए. टेन, वे टिमिन टर, आ कबा ड कां टेबल एंड क पनी
िलिमटेड, 1900
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राव) म माइकल िवज़ेल का लेख द क मीरी पंिड स : देयर अल िह ी, मनोहर पि लशस, द ली, 2008
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(आिख़री बार 14/09/2019 को देखा गया)
40. देख, पेज 85, वही
41. देख, पेज 85-86, वही,
42. देख, पेज 86, वही
43. देख, पेज 94, अल िह ी एंड क चर ऑफ़ क मीर, सुनील च रे , इं िडयन यूिज़यम, कलक ा, 1957
44. देख, पेज 9, अ िह ी ऑफ़ क मीरी पंिड स, िजयालाल कलाम, उ पल पि लके शन, द ली, ( थम सं करण,
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45. देख, पेज 92, अल िह ी एंड क चर ऑफ़ क मीर, सुनील च रे , इं िडयन यूिज़यम, कलक ा, 1957
46. देख, पेज 9-10, अ िह ी ऑफ़ क मीरी पंिड स, िजयालाल कलाम, उ पल पि लके शन, द ली, ( थम सं करण,
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47. देख, पेज 92, अल िह ी एंड क चर ऑफ़ क मीर, सुनील च रे , इं िडयन यूिज़यम, कलक ा, 1957
48. देख, पेज 15, द क मीरी ा ंस (पंिड स) अपटू 1930 : क चरल चज इन द िसटीज़ ऑफ़ नॉथ इं िडया, हेनरे ट
एम. सडर (िव क िसन मेिडसन िव िव ालय से कया गया शोध-काय)
अ याय-3

क मीर म इ लाम
ा ण से क मीरी पंिडत तक का सफ़र
[1320-1819]
क मीर क ग ी पर शाहमीर का बैठना रा य म वच व क लड़ाई म इ लामी ताक़त क जीत नह
थी, वा तव म यह जनता के वाधीनता संघष क जीत थी जो िह दू राजा के कु शासन से पीिड़त
थे। िह दू राजनीित एक गितरोध का िशकार हो चुक थी। इसम िवकास क सारी स भावनाएँ ख़ म
हो चुक थ । यह गितहीन हो चुका था, रत हो चुका था और मृत हो चुका था। इितहास ने बार-
बार उ ह नई शु आत का मौक़ा दया ले कन हर मौक़े पर वे अपनी जा को बेहतर शासन देने म
असफल रहे।1
— ेमनाथ बज़ाज़

दसव सदी आते-आते क मीर म राजा के पतन से अराजकता का माहौल आम हो गया


था। 883 ईसवी म अवि तवमन क मृ यु के बाद ग ी पर बैठे उसके पु शंकरवमन का
समय मि दर क लूट, बेहद ऊँचे कर से त जनता और क मीर म बेगार क शु आत का
है तो उसके बाद का समय ष ं और स ते ि लर जैसी घटना का है िजसम ह या,
से स, अवैध स ब ध और जनता पर भयावह अ याचार के क़ से ह िजन पर 993 ईसवी
म यश कर के राजा बनने पर रोक तो लगी ले कन हालात इतने िबगड़ चुके थे क जब
जलोदर से पीिड़त राजा मृ युशैया पर था तो उसने रानी के पु सं ामदेव को इसिलए
युवराज घोिषत नह कया क उसक नज़र म वह एक अवैध संतान था। अपने मं ी
पवगु क सलाह पर िजस भतीजे वणत को अपना वा रस घोिषत कया, वह अपने
बीमार चाचा का हाल पूछने भी उसके पास नह गया तो राजा ने ोिधत होकर उसे ब दी
बनाने का आदेश दया और सं ामदेव को रा य स पकर कसी मठ म चला गया। हालत
यह क उसक िनजी स पि ढाई सौ कलो सोने को उसके धानमं ी पवगु और अ य
मंि य ने लूट िलया और आपस म बँटवारा कर िलया। मठ म जब तीन दन तक उसक
वाभािवक मृ यु नह ई तो र तेदार , नौकर और वेि व ा ने ज़हर देकर उसक ह या
कर दी और महल लौट आए।2 ि टश काल म िलखी अपनी मह वपूण कताब म वा टर
लॉरस ने ट पणी क है क ‘जब जयिस हा का शासन समा आ तो क मीर शरािबय
और जुआ रय का अ ा था तथा ि य क दशा वैसी ही थी जैसी ऐसे म हो सकती थी।’3
िहमालय क मीर के िलए सुर ा क गारं टी तो था ले कन उ री भारत, काबुल और
क मीर के आसपास पि म एिशया म िजस तरह क हलचल हो रही थी, उससे इसका
अछू ता रह पाना ब त ल बे समय तक स भव नह था। रफ़ क़ अली िबन हािमद अल-
कू फ़ के चाचानामा के हवाले से बताते ह क च पीड (682-691) के समय मुह मद
अ फ़ नामक भाड़े का अरब सैिनक क मीर म शरणागत आ था और राजा ने उसे
शकलबार क जागीर दी थी जो उसके मरने के बाद जहम को िमली और उसने कई मि जद
भी बनवा । 713 ईसवी म मुह मद िबन क़ािसम ने मु तान िवजय के बाद क मीर क
तरफ़ बढ़ने क कोिशश क थी ले कन उसे ख़लीफ़ा अल वािलद थम ने वापस बुला िलया
था। 757 ईसवी म संध के अरब सूबेदार िहशम िबन अ उल तग़िलबी ने भी क मीर
घाटी पर क़ ज़े क असफल कोिशश क थी।4 सं ामराजा के रा यकाल म महमूद ग़ज़नी ने
1015 और 1021 म क मीर पर आ मण करने क कोिशश क ले कन मौसम का ग़लत
चुनाव करने के कारण लोहारकोट के क़ले से आगे बढ़ने म सफल नह आ।5 ले कन इससे
सबक लेने क जगह क मीरी राजा अपने भोग-िवलास म इस क़दर मस फ़ रहे क अन त
(1029-1064) ने राजदंड और अपना मुकुट भी एक िवदेशी ापारी के यहाँ िगरवी रख
दया था।6 उसके बाद के उ लेखनीय राजा हष को मि दर क लूटपाट, अिनयंि त यौन-
स ब ध और बेतहाशा कर के िलए ही याद कया जाता है। उसके समय म मुि लम
सैिनक के सेना म वेश क सूचना िमलती है। माक पोलो के या ा-सं मरण से भी यह
सूचना िमलती है क तेरहव सदी के अ त तक क मीर म मुसलमान क ब ती थी िजसके
बा शंदे कसाई का काम करते थे। हष के बाद के राजा के यहाँ तुक सैिनक के होने क
सूचना िमलती है।7 जयिस हा (1128-1155) के सेनापित संजपाल के साथ यवन सैिनक
के छावनी म जाने का िज़ आता है।8
शाहमीर और रं चन भी इसी तरह सहदेव (1286-1300) के समय क मीर आए थे। रं चन
(ला चेन र याल बू रन चेन) बौ था जो कु बलाई ख़ान क मौत के बाद ल ाख म मची
अफ़रा-तफ़री म अपने िपता और वहाँ कु बलाई ख़ान के ितिनिध लाचेन क ह या के बाद
अपनी छोटी-सी सेना के साथ जो-जी-ला दर से सोनमग घाटी पार कर गंगागीर म
सेनापित रामच के महल म शरणागत आ था। शाहमीर वात घाटी का िनवासी था
और कहा जाता है क एक रात उसे वाब आया क वह क मीर का शहंशाह बनेगा तो इस
िबना पर वह सप रवार ीनगर प च ँ गया और राजा के दरबार म उसने रामच से
िनकटता बनाई। राजा सहदेव ने उसे बारामूला के पास एक गाँव दावर कु नैल क जागीर दे
दी थी।9 काला तर म रं चन और शाहमीर अ छे िम बन गए।10 हालाँ क उसके संदभ म
महाभारत के अजुन के वंश11 से लेकर वात के शासक प रवार तक के होने क मा यताएँ
ह। इसी दौर म दा द तान से एक बौ लंकर चक अपने भाई से हारकर क मीर घाटी आ
गया था।12 चक को आगे क मीर म मह वपूण राजनीितक भूिमका िनभानी थी।
1320 ईसवी म जु चू (जोनाराज उसे दुलचा कहते ह और राजा कमसेना का सेनापित
बताते ह ले कन कमसेना के बारे म कोई मालूमात नह िमलती।)13 नामक मंगोल ने अपनी
िवशाल सेना के साथ क मीर पर आ मण कया। सहदेव ने पहले तो उसे लालच देने क
कोिशश क और इसके िलए ा ण तक से भारी कर वसूला गया ले कन जब जु चू नह
माना तो राजा अपने प रवार सिहत क तवार भाग गया। जु चू ने अगले आठ महीन तक
असहाय जा को बबरता से लूटा। जाड़ के आने पर जब खेत म कु छ नह रह गया तो
उसने वापस जाने का िनणय िलया। उसके सहयोिगय ने बारामूला और पाखली के उसी
रा ते से लौटने क सलाह दी िजससे वे आए थे, पर जु चू ने थानीय क़ै दय से सबसे छोटे
रा ते के बारे म पूछा। कहते ह क जु चू से उसक यादितय का बदला लेने के िलए
उ ह ने जान-बूझकर सबसे ख़तरनाक रा ते, बिनहाल दर, से जाने का सुझाव दया और
लौटते ए जु चू दवासर परगना क चोटी के पास अपने सैिनक , क़ै दय और लूट के
सामान के साथ बफ़ म दफ़न हो गया।14
जु चू के जाने के बाद सहदेव लौटा तो उसने क तवार के ग ी क़बीले के साथ ीनगर
पर क़ ज़े क कोिशश क ले कन रामच ने ख़द को राजा घोिषत कर दया। उसने लार के
अपने क़ले से उतर अ दरकोट पर क़ ज़ा कर िलया और सहदेव क सेना को हरा कर ग ी
पर बैठ गया। भय से पहाड़ म जा िछपी जनता जब वापस लौटी तो राजा के िलए उसके
मन म कोई स मान शेष न था। चार ओर ािह- ािह-सी मची थी। हालत यह क पहाड़ी
क़बील ने इसी बीच हमला कर दया और बचा-खुचा लूटने के साथ कई लोग को दास
बनाकर ले गए और इन सबके प रणाम व प अकाल क ि थित पैदा हो गई। जनता क
र ा के िलए वहाँ कोई नह था। उ ह ने ख़द अपनी सेनाएँ बनाकर इन क़बील का सामना
कया। रं चन ने इसका पूरा फ़ायदा उठाया। पहले तो उसने जनता का साथ दया और
फर शाहमीर तथा अपनी ल ाखी सेना क सहायता से सैिनक को व - ापारी के प
म धीरे -धीरे महल के अ दर भेजकर उिचत समय पर हमला कर रामच क ह या कर
दी। मौक़े क नज़ाकत को देखते ए सहदेव क बेटी कोटा ने िपता क ह या को मह व देने
क जगह क मीर क महारानी के पद को मह व दया और 6 अ टू बर, 1320 को रं चन
जब क मीर क ग ी पर बैठा तो कोटा उसक महारानी के प म उसके बगल म बैठी।
रं चन ने रामच के पु रावणच को रै ना क उपािध देकर लार परगना और ल ाख क
जागीर दे दी और इस तरह उसे अपना िम बना िलया।
रं चन के इ लाम अपनाने को लेकर जो िस क़ सा है, वह न के वल क मीर म
इ लामीकरण क तलवार के ज़ोर पर शु आत के िमथक को तोड़ता है बि क ा ण के
उस रवैये क तरफ़ भी इं िगत करता है िजसने क मीर म इ लामीकरण म मदद क । हमने
देखा है क िह दू राजा के आिख़री दौर म रा यस ा से ा ण के टकराव और राजा
ारा उ ह अलग-थलग करने क कोिशश के पया उदाहरण िमलते ह। राजदेव (1212-
1235) के समय ा ण पर अ याचार का जो क़ सा हमने पढ़ा है, उसक जड़ म
राजदरबार के ष ं म उनक भागीदारी है। सहदेव के समय भी ा ण पर करारोपण
और उ ह अलग-थलग करने क कोिशश का िज़ िमलता है।15 हष और शंकरवमन के
समय मि दर क लूट और अ हार ज़ त कये जाने क अनेक घटना का वणन क हण ने
कया है। जोनाराज बताते ह क रं चन िह दू धम अपनाना चाहता था ले कन उसके
ित बती बौ होने के कारण ा ण देव वामी ने उसे शैव धम म दीि त करने से इनकार
कर दया और उसके बाद शाहमीर के कहने पर वह मन क शाि त के िलए क मीर म रह
रहे एक सूफ़ संत बुलबुल शाह* से िमलने गया, िजनके भाव म उसने इ लाम अपना
िलया और सु तान सद ीन** के नाम से क मीर क ग ी पर बैठा।16 हालाँ क रफ़ क़
सिहत यादातर िव ान का मत है क उसके इस िनणय के पीछे पि म एिशया और
क मीर के आसपास के इलाक़ म इ लाम का बढ़ता भाव था17 ले कन जोनाराज का यह
कथन उनक अपनी समझ और मानिसकता का ोतक है और क मीरी ा ण के
क रपन क ओर इशारा तो करता ही है।
क मीर म इ लाम के आगमन के बावजूद तुर त ा ण के ािधकार पर कसी भाव
का माण नह िमलता बि क दरबार म उनके ष ं पहले क तरह चलते रहे। रं चन का
धान मं ी था तु ा िजसे हटाकर उसने ालराज को वह पद दया था। रं चन ने उसके
भाई क ह या भी करवा दी थी। इससे नाराज़ तु ा ने बदला लेने के िलए रं चन पर
जानलेवा हमला कया। रं चन बच तो गया और उसने तु ा से भयावह बदले भी िलये
ले कन यही घाव उसके िलए जानलेवा सािबत आ।18 यही नह , 1323 ईसवी म रं चन
क मृ यु के बाद ये दरबारी उसके अ पवय क बेटे को ग ी पर िबठाकर ख़द राज करने क
कोटारानी क योजना को िवफल कर सहदेव के भाई उदयनदेव को ग ी पर िबठाने और
कोटा को उससे शादी करने का िनणय लेने के िलए बा य करने म सफल रहे। उस समय
शाहमीर के साथ भ भी ण दरबार के ताक़तवर लोग म शािमल थे। तुक अचल के हमले*
के बाद पूरी तरह से िन भावी हो जाने के बाद जब 1338 ईसवी म उदयनदेव क मृ यु
ई तो कोटारानी ने भ भी ण को ही अपना धानमं ी िनयु कया था। शाहमीर ने भ
भी ण तथा अ य मंि य क ह या कर जब स ा पर क़ ज़ा कया और क मीर म शाहमीर
वंश क थापना ई तो भी आरि भक वष म दरबार म ा ण का वच व बना रहा और
सं कृ त दरबार क भाषा बनी रही।19 अली शेर के समय उसके मं ी ल मण भ का िज़
आता है जब क शहाबु ीन के मंि य म उदय ी और कोटा भ शािमल थे। उदय ी के
उ रािधकार क लड़ाई म क़ु तबु ीन के िख़लाफ़ ष ं करते पकड़े जाने, रानी के ह त ेप
से माफ़ कये जाने तथा फर धोखा दये जाने के बाद सुलतान ारा उसक ह या कये
जाने का िज़ आता है।20
वाभािवक तौर पर इ लामी शासन थािपत होने के बाद क मीर म मुि लम सूफ़
संत का आना शु हो गया था। बुलबुल शाह के बाद बुखारा से सैयद जलालउ ीन और
सैयद ताजु ीन और उनके छोटे भाई सैयद सैन िसमनानी सिहत कई बड़े सूफ़ संत इस
दौर म क मीर आए और वहाँ इ लाम का भाव धीरे -धीरे बढ़ने लगा।21 ले कन यह
या परवान चढ़ी सुलतान क़ु तुबु ीन के शासनकाल (1373-1389 ईसवी) के दौरान
1379 म सैयद अली हमदानी के दूसरी बार क मीर आने से। इस समय तक क मीर म
मुसलमान क सं या काफ़ कम थी। च द मि जद और लंगरख़ान के अलावा इ लामी
तीक का क मीर म कोई ख़ास चार न आ था। िह दु तथा मुसलमान के खान-पान
और रहन-सहन म कोई ख़ास अ तर नह था और दरबार म सुलतान भी क मीरी ढब के
कपड़े ही पहनते थे। श रया को लेकर भी कोई क रता नह थी। उदाहरण के िलए
त कालीन सुलतान ने दो सगी बहन से शादी क थी और अ लाउ ीनपुर के एक मि दर म
वह रोज़ अपने साथी मुसलमान के साथ जाया करता था तथा अकाल पड़ने पर उसने एक
य कया िजसम ा ण को काफ़ मा ा म दान-दि णा भी दी गई थी। ज़बरद ती धम
प रवतन या मि दर को तोड़ने क कोई घटना तब तक नह ई थी। आिधका रक प से
फ़ारसी और शारदा ( थानीय क मीरी भाषा क िलिप), दोन का योग होता था।22

हमदानी का भाव और इ लामीकरण के


आरि भक दौर म ा ण ािधकार
हमदानी के आने के बाद ि थितयाँ तेज़ी से बदल । 22 अ टू बर, 1314 को हमादान के
िति त अ वी सैयद के घराने म ज मे हमदानी के िपता सैयद शहाबु ीन हमादान के
सूबेदार थे। सैयद अली बचपन से ही राजनीित क जगह धमशा क ओर वृ ए और
अपने मामा तथा िति त सूफ़ िव ान सैयद अलाउ ीन से उ ह ने क़ु रान पढ़ी तथा
तस वुफ़ (रह यवाद) सीखा और फर उनके पीर शेख़ शरफ़ु ीन महमूद िबन अ दु लाह
म दकानी के िश य ए। इसके अलावा भी उस व त के कई सूफ़ िव ान से उ ह ने
तालीम हािसल क । तालीम ख़ म होने के बाद अपने गु शेख़ मु दकानी क सलाह पर
उ ह ने दुिनया भर म इ स या ाएँ क ,23 कई बार म ा गए, ले कन उनक सबसे
मह वपूण या ाएँ क मीर क तीन या ाएँ थ ।24 वह दौर हमदान और आसपास भारी
राजनीितक उथल-पुथल वाला था और 1370 तक तैमूर समरक द और बुखारा पर अपना
िनयं ण थािपत कर चुका था। अगले एक दशक म उसने हेरात, बा ख और ख़रासान पर
भी आिधप य कर िलया। राजनीितक स ा के साथ-साथ वह धा मक स ा भी चाहता था
और उसने सैयद से ख़द को ख़लीफा घोिषत करने क माँग क । ले कन हमदान और
स ज़वार के सैयद ने इसे नामंज़ूर कर दया तो वह उनका दु मन बन गया और हमदानी
के िलए वहाँ रहना सुरि त नह रह गया। इसिलए 1379 म उसने अपने छह सौ शािगद
के साथ क मीर का ख़ कया जहाँ सुलतान ने उनका खुले दल से वागत कया। ीनगर
म झेलम के दि णी कनारे पर उ ह अपना ख़ानकाह बनाने के िलए ज़मीन दी गई और
इस तरह ख़ानकाह-ए-मौला के नाम से क मीर म पहली ख़ानकाह का िनमाण आ। यह
ख़ानकाह आज भी क मीर म बेहद स मािनत है और बीसव सदी के पाँचव-छठे दशक तक
इसके मीरवायज़ (मीरवायज़ हमदानी) क मीर क राजनीित म भी मह वपूण भूिमका म
रहे। सु तान पर उसके भाव को इससे ही समझा जा सकता है क उसने उनम से एक को
तलाक़ देकर बड़ी बहन सूरा से फर से िनकाह कया। उसके ही भाव म उसने मुि लम
देश म पहने जानेवाली वेशभूषा अपनाई और अपने मुकुट के नीचे उसक दी ई एक
टोपी, क़ु लाह-ए-मुबारक, पहनने लगा। यह पर परा तब तक चली जब तक फ़तह शाह
क आिख़री इ छा के अनुसार इस टोपी को उनके साथ दफ़ना नह दया गया।25
हालाँ क सैयद अली हमदानी के समय तक बलपूवक धम प रवतन के माण नह
िमलते। उसका तरीक़ा आ याि मक बहस और चम कार वाला था। जाितगत ऊँच-नीच
म बँटे िह दू समाज म तं -मं का एक बार फर बोलबाला हो गया था। सूफ़ के अनुसार,
हमदानी ने चम कारी शि य के मामले म उस समय के िह दू योिगय को परा त कर
उनके स दाय को इ लाम म शािमल कया और फर उन स दाय ने अपने मि दर को
मि जद म बदल दया।26 हालाँ क रज़वी चम कार क इन कथा को तव ो नह देते।27
वह बताते ह क सुलतान के भाव का इ तेमाल करके उ ह ने काली मि दर को तुड़वाकर
अपनी ख़ानक़ाह* का िनमाण करवाया था और उनके िश य ने अ य कई मि दर को
व त कया था तथा बलपूवक धम प रवतन कराए थे। उ ह ने एक सुलहनामा भी िलखा
था िजसम सु तान के रा य म रह रहे िह दु के िलए नये मि दर के िनमाण पर रोक,
ित त मि दर के पुन नमाण पर रोक, मुि लम ापा रय को कने के िलए अपने घर
उपल ध कराना, मि दर म सूफ़ -संत को कने क इजाज़त देना, घोड़े पर जीन-काठी
सिहत सवारी न करने, तलवार-तीर रखने पर पाब दी, अपने धा मक रीित- रवाज
सावजिनक प से न करना, यहाँ तक क मृतक का शोक भी ऊँचे वर म न मनाना और
मुसलमान दास न ख़रीदने जैसी बात थ ।28 एम.आई. ख़ान रज़वी क बात को ख़ा रज
तो करते ह ले कन िसवाय इस आरोप के क उ ह ने उस समय के ाॅिनक स को जस का
तस वीकार कर िलया, कोई और तक नह देते।29 वह पा रमू यह तो बताते ह क
हमदानी ने अपनी ख़ानकाह बनाने के िलए झेलम के दि णी कनारे क वह जगह चुनी
जहाँ काली मि दर था, ले कन मि दर के वंस का कोई िज़ नह करते।30 ले कन एक
त य यह भी है क जब उसक नीितय के चलते क मीरी ा ण म अस तोष पनपा तो
सुलतान ने उसक सारी बात मानने से इनकार कर दया जो उसे नागवार गुज़रा और
अ ततः उसे क मीर छोड़कर जाना पड़ा।31 हालाँ क कु छ अ य िव ान के अनुसार वह
अपनी इ छा से गया था और सु तान को श रया स बि धत िनदश और परामश देने के
िलए अपने एक िश य मीर हाज़ी मुह मद को छोड़ गया था।32
यह वाभािवक था क सैयद और ा ण के बीच ािधकार का संघष िछड़ता।
िजयालाल कलाम सैयद को ा ण के समक मुि लम ा ण वग कहते ह।33 तैमूर के
अ याचार से तंग आकर अपने वतन से पलाियत सैयद के िलए क मीर एक शानदार
शरणगाह था और वहाँ का मुि लम सु तान ज़ािहर तौर पर उ ह अपने ािधकार क
थापना के िलए अनुकूल लगा होगा और यह ि थित अब तक क मीर क स ा के के म
रहे ा ण के िलए असुिवधाजनक होगी। धम वाभािवक प से वह आवरण बना
िजसके भीतर इस संघष के िविभ आयाम तय ए और यह भी वाभािवक था क सैयद
इसम लाभ क ि थित म होते। कलाम कहते ह क इस बात से इनकार नह कया जा
सकता क इस संघष क आ थक और राजनीितक दोन पृ भूिम थी ले कन यह फिलत
आ धा मक उ पीड़न के प म।34 यहाँ धा मक उ पीड़न भी दरअसल ा ण के
उ पीड़न के ही समानाथ है। कलाम सु तान शहाबु ीन के समय के िव ोह का िज़ करते
ए बताते ह क इस िव ोह म के वल ा ण ने िह सा िलया और बाक़ जाितयाँ इससे
अछू ती रह ।35 इन अ य जाितय का उ लेख इसके अलावा भी उ पीड़न के िसलिसले म
कह नह आता। आर.के . पा रमू ‘िह दु क इस कायरता’ पर ोभ जताते ह। वह कहते
ह क थोड़ा-ब त ितरोध ा ण ने कया ले कन बाक़ जाितय ने सं या म उनसे
अिधक होने के बावजूद कोई ितरोध नह कया। वह इसका कारण भी तलाशने क
कोिशश करते ह :
ले कन यह सब कह-सुन लेने के बाद यह वीकार करना होगा क क मीर म इ लाम एक महान
मुि दाता के प म आया। धीरे -धीरे इसने लोग क नैितक और सामािजक शि को पुन थािपत
कया। एक नई सामािजक व था और एक नये धम म जो सरल, सहज और सुबोध तथा
ावहा रक था, उ ह नया जीवन और नई शि िमली। इ लाम ने स दय पुरानी िवभाजनकारी
और िवघ टत करनेवाली सामािजक शि य को न कर दया। इसने बँटे ए समाज को ि थर तथा
एकजुट कया।36
ेमनाथ बज़ाज़ कहते ह :
मुसलमान का शासन के वल राजनीितक प से ही नह बि क बौि क और आ याि मक प से भी
वरदान था। इसने क मीर म इ लाम को लोकि य बनाया िजसने लोग के िवचार और जीवन के
ित पूरे दृि कोण को ांितकारी तरीक़े से बदल दया। राजनीित ने क मी रय को अमानवीय बना
दया था; इ लाम ने उ ह फर से मनु य बनाया।37

क मीरी पंिडत क उस समय क ासदी को इस प म भी समझा जाना चािहए।


अपने िवशेषािधकार को सुरि त रखने के िलए समाज को िजस तरह उ ह ने खाँच म
बाँटकर शेष जाितय को हािशये पर डाल दया था, वाभािवक था क इस ासदी म उ ह
कोई सहयो ा या सहभो ा नह िमला। र नलाल हांगलू िलखते ह—ऐसे माहौल म
ा णवादी व था के पीिड़त ने कसी सीधे िवरोध क जगह इ लाम अपनाने को मूक
अ हंसक िव ोह क तरह िलया।38
ले कन जैसा क हीगेल कहते ह, इितहास यही िसखाता है क इितहास से कोई कु छ
नह सीखता। क मीर के इितहास को उसक िवड बना के साथ समझने क जगह िह दू-
मुि लम बना दया जाना दोन प को अ सर सुिवधाजनक लगता है तो सडर कहते ह :
इ लामी दौर का पंिडत इितहास अ सर एकरे खीय और असंगत लगता है। वतमान क ज़ रत ने
क मीरी पंिडत ारा अपने अतीत क ा या को िनधा रत कया है। जैसे-जैसे वतमान क ज़ रत
बदल , अतीत क समझ भी बदलती गई।
उ ीसव सदी के अ त म इस समुदाय के कई लोग ने पूव-स तनत काल को आदश काल क
तरह याद करना शु कर दया। वे यह भूल गए क कै से हष और जयापीड़ जैसे पूव-स तनत काल के
शासक ा ण के िख़लाफ़ हो गए थे; उनका उ पीड़न कया था और उ ह पलायन पर मजबूर कया
था। इसक जगह वे मुसलमान के आने के पहले के समय को एक ऐसे समय क तरह याद करते ह
जब ा ण को उनके िह दू राजा ारा एक धा मक समाज म एकसमान प से ईनाम दया
जाता था। इस तरह क सा दाियक मृित असल म इितहास के सही िन पण क जगह उ ीसव
सदी के आिख़री िह से म बढ़ते िह दू पुन थानवादी भावना क ोतक है।39
इ सव सदी आते-आते ख़ास तौर पर न बे के दशक म क मीर म शु ए हंसक
अलगाववादी आ दोलन और उस दौरान क मीरी पंिडत के पलायन के बाद दुभा य से
‘वतमान क ज़ रत’ और बड़ी तथा ज टल ई ह तो अतीत क ा या और एकांगी तथा
सा दाियक होती चली गई है। ज़ािहर है, िसक दर ‘बुतिशकन’ यानी मू तभंजक इसके
िलए सबसे मुफ़ द सहारा बनता।

मृितय और इितहास का ं
सु तान िसक दर और ज़ैनुल आबदीन
सु तान िसक दर क मीर के इितहास का सबसे िववा दत सु तान है—क मीर म तलवार
के ज़ोर से इ लाम क वच व थापना का तीक। जोनाराज िलखते ह—जनता का
सौभा य उनका साथ छोड़ गया, सु तान राजधम भूल गया और दन रात मू तयाँ तोड़ने म
आन द लेने लगा। आम तौर पर गितशील दृि कोण रखनेवाले पा रमू उससे स बि धत
अ याय का शीषक देते ह—‘आतंक का दौर’! कलाम िलखते ह—िसक दर और सैफ़-उद-
दीन, दोन ने क मीर से िह दु के उ मूलन और िह दु व के सभी िच न िमटा देने क
योजना बनाई40 तो ेमनाथ बज़ाज़ उसे ‘क मीर के इितहास का सबसे काला ध बा’
बताते ह।41 बाद के पंिडत आ यान म यह कटु ता और बढ़ती गई है। हालाँ क बज़ाज़
िसक दर क तीखी मलामत के बाद वीकार करते ह :
जैसे क िसक दर क नृशंसता कम नह थी क कई िह दू इितहासकार ने उसके अ याचार को सीमा
से अिधक बढ़ा-चढ़ा के िलखा है और ऐसा करते ए अपनी क पना को उड़ान क पूरी छू ट दी है।
इससे भी बुरा यह है क िसक दर के अ याचार के आधार पर सभी मुि लम शासक को दोषी
ठहराया जाता है और इ लाम को ही एक असिह णु धम के प म िचि त कया जाता है।42
तो दूसरी तरफ़ एम. डी. सूफ़ से लेकर ख़ािलद अहमद बशीर तक िसक दर ही नह ,
मीर हमदानी को भी लगभग सभी आरोप से बरी करके सारी िज़ मेदारी सुहा भ पर
डालने और उसक ख़ूिबयाँ िगनाने वाले इितहासकार क भी कोई कमी नह —ले कन
आम तौर पर इितहास का सच ऐसी अितय के बीच ही कह होता है।
िसक दर के समय क ऐितहािसक और उसक िविश ि थितय को एक बार देख लेना
बेहतर होगा। 1389 म जब क़ु तुब-उद-दीन क मृ यु के बाद उसक िह दू प ी सूरा का पु
शंकर* िसक दर के नाम से ग ी पर बैठा तो वह अभी अ पवय क ही था। रानी सूरा
उसक संरि का बन और राय मा े तथा साहक उस समय दरबार के सबसे ताक़तवर
मं ी थे। सूरा एक यो य, साहसी और मह वाकां ी मिहला मानी जाती है ले कन
ि थितयाँ कु छ ऐसी बन क सूरा और राय मा े ारा िसक दर के युवा होते-होते प रवार
के लगभग सभी अ य लोग क ह या करवा दी गई। िव ोह क आशंका से सूरा ने अपनी
सगी बेटी और दामाद क ह या करवा दी तो अ य त शि शाली हो चुके राय मा े ने
िसक दर के छोटे भाई हैबत और साहक क ह या करवा दी। उसक योजना िसक दर क
ह या कर स ा पर क़ ज़े क थी ले कन तब तक िसक दर स ा क चाल समझने यो य हो
चुका था और उसने स ा सँभालकर अपने नाम का ख़तबा पढ़वा िलया और िस े चलवा
दये। पा रमू का मानना है क सूरा ख़द वतं शासक बनना चाहती थी और राय मा े ने
इसीिलए उसके िव त साहक क ह या करवा दी थी। स ा सँभालने के बाद उसने राय
मा े पर िनयं ण के िलए उसे ल ाख पर आ मण के िलए भेजा। सुलतान का िवचार था
क राय मा े वहाँ मारा जाएगा ले कन वह िवजेता होकर ीनगर लौटा। बाद म सु तान
से उसके र ते और ख़राब हो गए तथा उसने िव ोह कर दया। िसक दर ने पहले तो
समझाने क कोिशश क फर न मानने पर ल ाराजा को सामने से हमला करने के िलए
भेजकर ख़द पीछे से हमला करने के िलए िनकल पड़ा। अपनी हार सुिनि त जान राय
मा े बिनहाल क तरफ से भाग िनकला पर तु बिनहाल के सरदार ने उसे िगर तार कर
िसक दर को स प दया। िसक दर ने उसक जान ब श कर कारावास म डाल दया जहाँ
कु छ ही समय बाद उसने ख़दकशी कर ली।
पा रमू का मानना है क अपने प रवार और साहक क ह या तथा राय मा े के
िव ासघात के बाद यह वाभािवक था क वह राय मशिवरे के िलए दरबार म सैयद के
पास जाता जो अपने रा य से पलाियत थे और राजनीित को ख़ूब समझते थे। उ ह अपनी
ित ा पुनः हािसल करनी थी और रा य पर वच व क़ायम करना था िजसक राह म
सबसे बड़ा रोड़ा पंिडत थे। उ ह ने इस युवा सु तान को अपने भाव म िलया और अपने
इ लामी िजहाद को अंजाम दया। इस समय तक दरबार म िबहाक सैयद का बोलबाला
हो चुका था। िबहाक सैयद मूलतः स ज़वार के थे और तैमूर से पराजय के बाद सैयद
मुह मद िबहाक के नेतृ व म क मीर आ गए थे। इसी दौर म (1393) सैयद हमदानी के पु
मीर सैयद मुह मद हमदानी (1372-1450) क मीर आए। मीर हमदानी अपने िपता क
मृ यु के बाद मा 12 साल क उ म िखलाफ़त हािसल कर धमगु बन गए थे। उनका
क मीर म आना और सुलतान के यहाँ उनके असर का बढ़ते जाना क मीर के इितहास म
एक मील का प थर है। सु तान ने मीर हमदानी का शानदार वागत कया, जागीर द
और उनके िलए ख़ानकाह बनवाई जो ख़ानकाह मौला के नाम से जानी जाती है। मीर
हमदानी पहले से मौजूद िबहाक सैयद के िलए भी आसानी से वीकाय थे। मीर हमदानी
ने सु तान को इ लाम क िश ा क एक कताब िलखकर भट क । अपने िपता के
िवपरीत मीर हमदानी इ लाम क थापना के िलए हर तरह क ज़ोर-ज़बरद ती का हामी
था या य कह क तब तक इसके िलए अनुकूल माहौल बन चुका था। क मीर म उसी समय
स य सैयद िहसारी जैसे सिह णु सू फ़य के िवपरीत उसने इ लामीकरण के िलए
िमशनरी ज बे से काम कये। उसके भाव म सबसे पहले आनेवाला था दरबार का ा ण
मं ी सुहा भ । प है क सैयद के भु व के बावजूद िसक दर के दरबार म ा ण मं ी
थे। हमदानी ने उसका धम प रवतन करवा मिलक सैफ़ु ीन का नाम दया और उसक बेटी
से िववाह कया। पहले िसक दर और फर फ़तेह शाह के समय सुहा भ उफ़ सैफ़ु ीन क
क मीर म धम प रवतन के स दभ म ज़ोर-ज़बरद ती क जो भयावह भूिमका है, उसे
लगभग हर इितहासकार ने दज कया है।
िसक दर क इन कायवािहय को दो िह स म बाँटा जा सकता है—मि दर का वंस
और ा ण का जबरन धम प रवतन। 1398 म तैमूर के भारत पर आ मण से पहले
िसक दर ने हमदानी के भाव के बावजूद जबरन धम प रवतन या मि दर के वंस से
परहेज़ ही कया था। तैमूर ने अपने पोते तम को फ़ौलाद बहादुर और जैन-उद-दीन के
साथ सु तान को अपनी अधीनता वीकारने के ताव के साथ द ली से क मीर भेजा।
तैमूर क ताक़त से आ ा त सु तान ने उनका शाही वागत कया और तैमूर क बादशाहत
को वीकार कया। अपनी तरफ से उसने मौलाना नू ीन ब खाशानी को वक ल के प
म तैमूर के पास भेजा और िभ बेर म उसके वागत के िलए उपि थत रहने का ताव
दया। ले कन जब 24 माच, 1399 को क मीर के ये दूत ज मू के पास प च ँ े तो तैमूर के
लालची मं ी ने उ ह तीस हज़ार घोड़े और एक लाख सोने के िस े पेश करने के िलए कहा।
यह ख़बर जब िभ बेर म ती ारत सु तान के पास प च ँ ी तो वह घबरा गया और क मीर
प च ँ कर कसी भी तरह इ तज़ाम क कोिशश म लग गया। हालाँ क तैमूर को जब यह पता
चला तो उसने मं ी को सज़ा दी और सु तान को 28 दन बाद कसी भी उपहार के िबना
िस धु नदी के कनारे िमलने क ताईद करने के िलए जैन-उद-दीन और सैयद मुह मद
मदनी से स देश िभजवाया। असल म तैमूर अपने रा य म कसी गड़बड़ी का स देश िमलने
के कारण तुर त लौट रहा था। ले कन यह स देश सु तान तक नह प च ँ ा और वह कसी
43
भी तरह उस धनरािश के ब ध के िलए परे शान था। इस परे शानी ने सैयद को क मीर
म िजहाद का मौक़ा दे दया। क मीर म हष के समय से ही आ थक संकट हल करने के िलए
मि दर और ितमा को व त करने क पर परा थी। सुहा भ और सैयद ने सुलतान
को इसके िलए राज़ी कया और मू तय को तोड़ने क जो या शु ई, वह मि दर के
वंस तक प च
ँ ी। जोनराज क मान तो कोई मि दर साबुत नह बचा था!
ले कन अगर त य क स यक् जाँच क जाए तो इस दावे म तमाम झोल दीखते ह। तुजुक-
ए-जहाँगीरी (1623) कहती है—‘क मीर म इ लाम के आगमन के पहले बने शानदार
मि दर अब भी खड़े ह और सभी प थर के बने ह।’ 1834-38 के बीच क मीर क या ा पर
आए िव ेट ने 1842 म िलखे अपने सं मरण म 70 से 80 मि दर क उपि थित क बात
क है।44 दस साल तक क मीर के शासक रहे िमज़ा हैदर दुग़लत ने अपनी कताब
तारीख़-ए-रसीदी म िलखा है :
क मीर के अचरज म सबसे पहली और सबसे शानदार चीज़ है उसके मि दर। क मीर के भीतर और
उसके आसपास डेढ़ सौ से अिधक मि दर ह। बाक़ दुिनया म ऐसी एक इमारत देखने या सुनने को
नह िमलती। कतना आ यजनक है क यहाँ डेढ़ सौ ऐसी ईमारत ह।
आईन-ए-अकबरी म अबुल फ़ज़ल कहते ह क उनम से कई एकदम सही तरीक़े से
संरि त ह।45 मोह मद इशाक ख़ान का मानना है क िसक दर के रा य म मि दर का
वंस तो आ था ले कन मातड और अवि तपुर के मि दर को बा द से तोड़े जाने क बात
इसिलए सच नह हो सकती क उस दौर म क मीर तक बा द प च ँ ा ही नह था। ये
मि दर भूक प म न ए थे।46 टेन भी भूक प जैसी घटना के क मीर म मि दर के
टू टने क वजह बताते ह।47 ज़ािहर है क जोनाराज ने अितशयोि पूण वणन कया है।
सवाल िसफ़ अितशयोि का नह , जैसा क सडर कहती ह :
िसक दर का दौर इसिलए क मीरी ा ण के इितहास और िमथक-कथा म ब त मह वपूण है,
के वल उसके िलए नह जो वा तव म घ टत आ था बि क उसके िलए भी, जो ‘याद कया जाता है।’
जबरन धम प रवतन, भयावह पलायन और ल बे िनवासन ने ख़द को समुदाय क सामूिहक मृित
पर अं कत कर िलया और बाद के वष म पंिडत को जब चयन करने के िलए कहा गया तो उनको
भािवत कया।48
इस तरह वा तिवकता कई-कई गुनी बड़ी और िवकराल होकर वा तिवक इितहास के
सम एक अिधकि पत (Hypothetical) इितहास बनती और फर भावी होती चली
जाती है। उस दौर के उ पीड़न के क़ से आसानी से क मीरी इितहास क कताब म िमल
जाते ह ले कन यहाँ पर सुहा भ पर थोड़ी बात कर लेना बेहतर होगा।
सुहा भ उफ़ सैफ़ु ीन एक ि से आगे एक अवधारणा क तरह सामने आता है।
फ़ र ता ह क जोनाराज, सूफ़ ह क कलाम—सभी ने उस दौर क बबरता के िलए
सुहा भ को िज़ मेदार बताया है। कलाम िलखते ह—िसक दर के दौर म एक सुहा भ
िजसने धमातरण के बाद अपना इ लामी नाम सैफ़-उद-दीन रख िलया था, नये धमात रत
लोग का नेता बन गया।49 एक नये धमात रत का ं दुहरा होता है : एक तरफ नये धम
के धमावलि बय के सम ख़द को उनसे भी अिधक सम पत सािबत करना है और दूसरी
तरफ़ उस घृणा का सामना करना है जो उसके पूव धम के मतावलंिबय के मन म उसके
िलए होती है। ‘नया मु ला याज़ यादा खाता है’ जैसी कहावत ऐसे ही बनी ह गी। सुहा
भ या उसके जैसे उन सभी क मीरी ा ण के िलए यह ं सतत उपि थत रहा होगा
और इसके हल के िलए सहज था क वे ा ण को धमप रवतन के िलए े रत भी करते
और बा य भी। जोनाराज उन ा ण क मलामत करते ह ‘िज ह ने सु तान क कृ पादृि
हािसल करने के िलए अपना धम बदल दया’, तो 1747 म कािशत वाक़यात-ए-क मीर
म इितहासकार वाज़ा मुह मद आज़म दीदमारी िलखते ह क ‘उस समय िज ह ने
इ लाम नह वीकार कया, उनका अपमान कया गया और उ ह जिज़या देने पर बा य
कया गया जब क िज ह ने धमातरण कर िलया उ ह इनाम-ओ-इक़राम देकर समृ कर
दया गया।’ इन ‘ ेरणा ’ पर अ सर कोई बात नह होती जब क ‘बा यता ’ पर
अ सर अितशयोि पूण बात क जाती ह। सडर क मा यता है क ा ण के एक बड़े
िह से ने इस इनाम-ओ-इक़राम के िलए धम प रवतन वीकार कया और स ा वग म
शािमल हो गए।50 धमातरण क इस या म मीर हमदानी या श सु ीन इराक़ जैसे
इ लािमक धमगु क या िसक दर या फ़तेह शाह जैसे सु तान क भूिमका को
नज़रअंदाज़ करना तो इितहास को झुठलाना होगा ले कन इन धमात रत ा ण क
भूिमका को कमतर करके आँकना भी इितहास के साथ वैसी ही बेईमानी होगी। शेख़
अ दु ला क मीरी पंिडत म चिलत शे’र का िज़ करते ह :
मुन अज़ बेगानागन हरिगज़ ना नालम
क बा मुन आंची कद आन आशना कद
[मुझे गैर से कोई िगला नह है/मेरी बद क़ मती क वजह मेरे अपने ह]

लल द और शेख़ नू ीन
क मीरी आ याि मकता का िनमाण और इ लामीकरण
इस दौर म क मीर के आ याि मक जगत क दो मुख प रघटना को यान म रखना
ज़ री है। शैव योिगनी लल द और क मीर म ऋिष सूफ़ पर परा के सं थापक शेख़
नू ीन या नु द ऋिष।
1317 से 1320 के बीच एक क मीरी ा ण प रवार म ज मी लल द के वाख और
कथा म हम त कालीन क मीरी िह दू समाज क िवकृ ितय और िवसंगितय का गहरा
प रचय पा सकते ह। वह एक तरफ़ त कालीन समाज म ी क दोयम दज क ि थितय
का िच ण करती ह तो दूसरी तरफ वह िह दू समाज म ा जाितगत भेदभाव, मू त-
पूजा और पाखंड के चलन का तीखा िवरोध करती नज़र आती ह।* शैव योिगनी लल का
मू तपूजा, आड बर और जाित था का िवरोध और तमाम ा णवादी कु रीित पर यह
हमला वहाँ के हमदानी के साथ आए सूफ़ आ दोलन और इ लामीकरण के िलए
पूवपी ठका बना। इसे समझने के िलए उस दौर के धम प रवतन को हम एक िभ
प र े य म देखना होगा।
धम का प रवतन व तुतः सां कृ ितक े ता क थापना और वच व का सवाल था,
एक नये धम के प म इ लाम के माननेवाल म एक िमशनरी ज बा तो था ही, अिधक से
अिधक लोग को मुसलमान बना लेने का साथ ही अपने तांि क तरीक़ और ा णवादी
आचार से िह दू धम उस समय ऐसी ि थित म प च ँ चुका था क ‘िह दू समाज हो
गया था। पु ष असिह णु, अ याश और पितत थे और ि याँ उससे बेहतर नह थ जैसा
उ ह ने उ ह बनाया था। जादू-टोने और चम कार क भरमार थी।51 हमने िपछले अ याय
म राजा के क़ स म समाज के पतन क इ तेहा देखी है। उस दौर म ि य क दशा
बेहद ख़राब थी और वे यावृि , नैितक ाचार, देवदासी था और सती था जैसी
व थाएँ उनके जीवन को नक बना रही थ । ऐसे म जब लल द मू तपूजा के खंडन,
एके रवाद और योग के तीन सरल आधार पर धम क थापना करती ह तो यह सूफ़
संत के िलए ब त सुिवधाजनक हो जाता है। पहली दो चीज़ तो थ ही इ लाम म, योग के
समक था सूफ़ समाज म चिलत ‘िज़ ’। इस तरह लल क िश ाएँ परो प से
इ लाम के िलए अनुकूल माहौल बनाने म सहायक । आम भाषा म मू तपूजा और
ा णवादी े ता का उनका िवरोध ा ण समाज को सुधारने क जगह इ लाम के
सार म सहायक िस 52
आ। इस प र े य म यह त य समझा जा सकता है क लल द
का िज़ जोनाराज, ीवर, शुक— कसी के यहाँ नह िमलता और पहली बार उ ह
इितहास म दज कया गया बाबा अली क 1563 म कािशत पु तक ताि करत-उल-
आफ़रीन म।
1377 म ज मे शेख़ नू ीन* के बारे म एक बेहद ंजना मक क़ सा लल द से जुड़ा
है। कहा जाता है क नू ीन, िजनका घर का नाम माँ-बाप ने नु द (सु दर और यो य)53
रखा था, ज म के तीन दन बाद भी अपनी माँ का दूध नह पी रहे थे, तब लल द आ
और बालक को गोद म उठाकर कहा—तुम ज म लेने से नह शरमाए, तो संसार के सुख-
आन द लेने से य शरमाते हो? उसके बाद बालक नु द ने लल द के तन से दूध क
पहली बूँद के साथ संसार के पहले सुख का आन द िलया। नवजात िशशु जब तृ आ तो
लल द ने उसक माँ को यह कहते ए लौटाया : ‘लो! मेरे उ रािधकारी का लालन-
पोषण करो।’ यह क़ सा लगभग हर कताब म लगभग इसी प म दज है। इस क़ से क
ामािणकता पर स देह के पया कारण ह ले कन इसक ंजना को समझे जाने क
ज़ रत है। जैसा क हमने देखा, शैव योिगनी लल द ा णवादी कमकांड पर तीखे
सवाल खड़े कर इ लाम क भावी सफलता के िलए माहौल बना चुक थ । क मीर म बेहद
मक़बूल लल क पर परा को नु द ऋिष से जोड़ना सहज ही था। शेख़ नू ीन ारा क मीर
म शु क गई सूफ़ इ लाम क ऋिष पर परा इस प म हमदानी या बाहर से आए अ य
सू फ़य से अलग थी क उनक जड़ क मीर क धरती म थ । अभी एक पीढ़ी पहले ही
उनके प रवार ने धम बदला था और उनक िश ा-दी ा साधारण होने के कारण उ ह ने
भी लल क ही तरह सरल और चिलत क मीरी भाषा म का -रचनाएँ क िज ह ने
क मीरी जन को गहरे भािवत कया। अबुल फ़ज़ल आइन-ए-अकबरी म िलखते ह :
इस देश (क मीर) म सबसे स मािनत लोग का वग ऋिषय का है। हालाँ क उ ह ने इबादत के
पार प रक तरीक़े (तक़लीद) नह छोड़े ह ले कन वे अपनी इबादत म स े ह। वे दूसरे धम के लोग
क भ सना नह करते। वे कामना से मु ह और दुिनयावी चीज़ क फ़ नह करते। वे सबक
भलाई के िलए आम तौर पर फलदार वृ लगाते ह। वे मांस नह खाते और शादी नह करते।54
इस तरह उनका वहार िह दू ऋिषय जैसा ही था और इ लाम के भीतर बराबरी
का जो वादा था, उसने वाभािवक तौर पर क मीर के ग़ैर- ा ण समाज को इ लाम के
ित आक षत कया। जहाँ सैयद ने क मीर के स ा वग को भािवत कया और समाज के
ऊपरी सं तर म इ लाम क थापना म भूिमका िनभाई, वह ऋिष पर परा ने समाज के
ामीण और िनचले सं तर म इ लाम को वीकाय बनाने म अपनी भूिमका िनभाई।
इस तरह हम देखते ह क क मीर के इ लामीकरण के कारण एकांगी नह बि क
ब आयामी ह। इस पूरी या म चौदहव सदी बीतते-बीतते क मीर एक इ लाम-ब ल
रा य म बदल गया और ा ण तथा िह दू समानाथ बनते चले गए। जहाँ िसक दर इस
कहानी म एक खलनायक क तरह इितहास और मृित म दज आ, वह उसका पु ज़ैनुल
आबदीन उस धा मक सिह णुता का तीक िजसे आधुिनक काल म क मी रयत के नाम से
जाना गया। ज़ैनुल आबदीन का दौर क मीर म ा ण के पुन थान का काल था। िजस
तरह िसक दर क भ सना म लगभग सभी पंिडत इितहासकार एकमत ह, वैसे ही ज़ैनुल
आबदीन क तारीफ़ म भी। उसके दरबारी जोनाराज कहते ह : ‘राजा सबको एक दृि से
देखता था। जैसे ापारी अपने बटखरे म कोई भेदभाव नह करता, राजा अपनी जा म
कोई भेद नह करता था।’ आन द कौल का कहना है : ‘उसने (ज़ैनुल आबदीन ने) ापक
और सिह णु दृि कोण पाया था और मानवता के क याण के भाव से संचािलत होकर उसने
समद शता और याय से इस कार रा य कया और जनता क भौितक समृि को बढ़ाने
के िलए ऐसे यास कये क कोई उसक तारीफ़ कये िबना नह रह सकता।’55 यह
लगभग हर क मीरी पंिडत के िलखे म ित विनत होता है। ज़ैनुल आबदीन ने िह दु और
बौ को भी अपने दरबार म जगह दी। िशव भ उसका िनजी िच क सक और
िव ासपा था िजससे अहम् मु पर वह अ सर सलाह िलया करता था। इसके अलावा
कपूर भ भी उसके क़रीबी िच क सक म शािमल थे। ि या भ उसक याय सभा का
अधी क था, िजसक सलाह पर उसने अपने िपता के समय िह दु पर लगाया आ
जि◌ज़या कर भावी प से समा कर दया था।56 जोनाराज ने िलखा है क ि या भ
क जब मृ यु ई तो सु तान ने ब त-सा धन दान कर इसका शोक मनाया। इसके अलावा
उसके दरबार म बौ ितलकाचाय और ा ण संहा तथा य भ सिहत अनेक ग़ैर-
मुि लम थे।57 इस तरह ा ण के िलए शासन के सभी तर पर भत के रा ते खुल गए।
शत बस यह थी क उ ह फ़ारसी सीखना होगा, जो अब राजभाषा थी।58

सामािजक प रवतन और ा ण समाज म समायोजन


उपजाितय का उदय
ज़ैनुल आबदीन ने िसक दर के समय क मीर छोड़कर चले गए ा ण को वापस बुलाया
और िजनका ज़बरद ती धम प रवतन करा दया गया था। उ ह पुनः अपने धम म लौटने
का अवसर दया। इन क़दम ने ा ण समाज को राहत तो दी ले कन उसके भीतर एक
हलचल भी पैदा क । अब तक एक सुरि त तथा अनुकूल समाज म सव पायदान पर
ि थत रहे पिव ता पर आधा रत े ता क मा यता से त ा ण समाज के िलए इन
प रवतन को वीकार करना आसान नह था और इसने समाज के भीतर आंत रक
िवभाजन को ज म दया। उदाहरण व प जो ा ण िसक दर के समय भी क मीर
छोड़कर नह गए, उ ह ‘मलमासी’ जब क ज़ैनुल आबदीन के समय लौट आए ा ण को
‘बनमासी’ कहा गया। हालाँ क दोन के बीच कोई ख़ास अ तर नह था िसवाय इसके क
ये योितष कै लडर के अलग-अलग प मानते थे।59 सडर क मीरी ा ण समुदाय क
सामूिहक मृित म दज ‘जूठी ह ी’ और ‘स ी ह ी’ जैसे िवभाजन का िज़ भी करती ह
जहाँ ज़ैनुल आबदीन के समय वापस लौटकर आए ा ण को ‘जूठी ह ी’ कहा गया।60
आन द कौल एक और िवभाजन क चचा करते ह। वह बताते ह क मुि लम शासन म
ा ण को यह कहा गया क या तो वे मृ युदड ं वीकार कर या फर मुि लम के हाथ का
पकाया भोजन हण कर। धम को यूनतम करने के िलए कु छ ा ण ने मुसलमान
ारा उबाला गया चावल खाने क सहमित दी। ा ण समाज ने इसक भ सना क और
जान न देने क कायरता के िलए उ ह अपमािनत करते ए ‘लेजी बट’ क सं ा दी। ‘लेजी’
क मीरी म हांडी को कहते ह।61 कौल न तो इसका कोई ोत देते ह, न ही कसी िवशेष
मुि लम शासक के दौर का िज़ करते ह। यही नह , क मीरी ा ण के प रवार और
गो -िवभाजन पर िलखी अपनी मह वपूण कताब म टी.एन. मदान भी इसका िज़ नह
करते।
िजयालाल कलाम के यहाँ हसन शाह के शासन के अि तम समय म सैयद ारा एक
मुिन के अपने े म िशकार से रोकने पर ा ण के बतन म िशकार जानवर के मांस
खाने तथा लूटपाट का िज़ आता है62 ले कन लेजी बट जैसी ेणी का नह । ब त स भव
है, यह क मीरी ा ण समाज क अिधकि पत सामूिहक मृित का िह सा हो। कौल एक
और ेणी पू रब या वु द का िज़ करते ह और उसके अवैध उ पि का या फर ा ण
ारा दूसरी जाितय के साथ वैवािहक स ब ध से पैदा आ बताते ह। लेजी और पू रब
ा ण के साथ शेष क मीरी ा ण का भोजन- वहार नह था।
ले कन सबसे ढ़ ेणी िवकिसत ई ा ण के फ़ारसी सीखने फल व प। सं कृ त
क जगह फ़ारसी के वेश और इसके सीखने क शासक य सेवा जैसी उ ेरणा से
पार प रक ा ण समाज म कु छ मूलभूत प रवतन वाभािवक थे। इस दौर म नई
व था से तालमेल िबठाने के िलए ा ण ने समाज को समायोिजत कया िजसने
ा ण समाज म एक नये ेणी-िवभाजन को ज म दया। इन प रवार के अिधकतर पु ष
सद य ने फ़ारसी सीखी और शासक य सेवा म कमचारी, अनुवादक, लक जैसे पद पर
थािपत ए जब क एक या दो ने सं कृ त तथा धम ंथ का अ ययन कया और पार प रक
धा मक काय म संल ए। पहली ेणी के ा ण को ‘कारकू न’ तथा दूसरी ेणी को
‘भाषा बट’ या ‘गोर’ (गु ) कहा गया।
कलाम का मानना है क बेटी के लड़के को सं कृ त तथा धमशा क िश ा दलाई
गई िजससे वह प रवार के धा मक सं कार कर सके । हालाँ क वह न तो इसका कोई कारण
देते ह, न ही यह बताते ह क इसक वजह से क मीर म कै से पैतृक गो -िवभाजन ए।
मदान क मा यता है क यह म-िवभाजन समाज म पेशागत आधार पर दो ेिणय
म िवकिसत आ और इसी या म गो म िवभािजत आ। सं कृ त और धमशा का
अ ययन कर पार प रक पेशा अपनाने वाल म से िज ह ने कमकांड करना नह चुना, उ ह
पंिडत या योितषी कहा गया। गोर एक सगो ीय समाज बना जब क योितषी वग म
अलग-अलग गो रहे। कारकू न और गोर का यह िवभाजन वतमान समय तक जारी है।
समय के साथ सं याबल और सामािजक-आ थक भाव के चलते कारकू न ा ण समाज
म सबसे भावी होते गए। कमकांड म संल तथा अि तम या आ द म दान-दि णा
वीकारने वाले गोर ा ण को अपिव माना गया और कारकू न वग के ा ण के साथ
उनके वैवािहक स ब ध नह होते, जब क योितषी और कारकू न वग के बीच इस तरह के
स ब ध होते ह।
आगे चलकर यह िवभाजन म और रहाइश के इलाक़े के आधार पर और ढ़ आ
तथा शहरी और ामीण समाज के बीच म यह उ ानु म थािपत आ। क मीरी ा ण
म ‘शारी रक म’ को लेकर वैसी ही वजना है, जैसी शेष भारत के अिधकांश ा ण
समाज म। ामीण समाज म शारी रक म से के वल अमीर ा ण पूरी तरह से मु हो
सकते थे हालाँ क 1965 म कये अपने शोध म मदान कहते ह क यह ब त सामा य प से
पाया जाता है क एक छोटा भू वामी क मीरी ा ण भी अपनी खेती ख़द नह करता
बि क बँटाईदार के भरोसे रहता है—भले इसके चलते वह ग़रीबी का जीवन जीने पर
मजबूर हो। हालाँ क ऐसे कई क मीरी ा ण ह जो अपनी खेती ख़द करते ह या दूसरे
ा ण के खेत बँटाई पर लेते ह या फर ीनगर जाकर रसोइये और घरे लू नौकर का
काम करते ह। ीनगर शासक य सेवा म संल ा ण का के बनता गया जहाँ तु छ
माने जानेवाले शारी रक म क कोई आव यकता नह थी। घरे लू तथा अ य काम के
िलए गाँव से िव थािपत ा ण तथा मुसलमान, दोन ही मौजूद थे। इसिलए वाभािवक
प से ीनगर के ा ण क सामािजक े ता थािपत होती चली गई। शासक य
नौक रयाँ धीरे -धीरे सामािजक े ता का तीक बनती ग और ससस म ा ण का
जाितगत पेशा ‘सरकारी नौकरी’ दज कया गया। सामािजक अनु म म इसके बाद
ापार और फर कृ िष-काय म संल लोग आए। ले कन भूिम-सुधार के बाद ामीण
भूिम वामी ा ण समुदाय से अित र ज़मीन िछन जाने के बाद इस वग का भाव और
भी कम हो गया तथा शासक य नौक रयाँ ही ा ण के सामािजक स मान ही नह ,
आजीिवका का भी इकलौता मुख संसाधन बनती ग ।63 आगे हम इसके ब आयामी
भाव को िव तार से देखगे।

ज़ैनुल आबदीन के बाद : उतार-चढ़ाव और समायोजन


ज़ैनुल आबदीन का समय शाहमीरी का उ ज़ था। समाज, राजनीित, अथ व था,
सािह य, सं कृ ित सिहत हर े म क मीर ऐितहािसक बुलंदी पर प च
ँ ा िजसम उसक
धमिनरपे नीितय क बड़ी भूिमका थी। पचास साल का उसका शासन क मीरी ा ण
समाज के िलए सुकून और ब आयामी गित का था तो उसके बाद का समय क मीरी
ा ण और क मीर, दोन के िलए उतार-चढ़ाव और उथल-पुथल भरा रहा। ज़ैनुल
आबदीन के बाद स ा म आए हैदर शाह के समय नीितयाँ बदल तो :
पंिडत का धैय जवाब दे गया और एक संग ठत प म वे उठ खड़े ए तथा कु छ उन मि जद को
आग लगा दी जो िसक दर ारा िगराए गए मि दर क साम ी से बने थे। इस िव ोह को तलवार से
कु चला गया; ब त से ा ण को नदी म डु बो दया गया और िनरं कुश लूटमार ई।64
ीवर बताते ह क ीनगर म एक बार फर ‘ना भ ोहम’ क चीख़-पुकार मच गई।
ले कन यह संघष मु यतः शासन म भागीदारी का संघष था। कलाम कहते ह :
‘यह समझना ग़लत होगा क इसम आम मुसलमान बड़ी सं या म ह यार के साथ शािमल ए।
संघष ऊपरी तर पर था अथात पंिडत को स ा से बाहर करने के िलए। यह सच है क ीनगर के
आम पंिडत को परे शानी उठानी पड़ी ले कन गाँव म र ते वैसे ही आ मीय बने रहे, जैसे ज़ैनुल
आबदीन के समय थे। वहाँ पंिडत अपना आम जीवन बद तूर चलाते रहे और पंिडत तथा शेख़
भाइय क तरह रहते रहे।65
इस ‘भाइय क तरह रहने’ को थोड़ा ठहरकर पढ़े जाने क ज़ रत है। फ़ारसी सीखने
तथा दरबार म दािख़ल होने से क मीरी ा ण समाज क संरचना म ही नह , वहार म
भी मूलभूत प रवतन आए थे। सडर कारकू न ा ण को ‘से यूलर पर परा’ का कहती ह,
य क बोलचाल, वेशभूषा और रहन-सहन म वे दरबार के दूसरे मुि लम सहयोिगय और
सािथय के क़रीब आते गए। क हण क पर परा के आिख़री इितहास लेखक शुक िलखते ह
क ‘मोह मद शाह (1484-1486) का समय आते-आते रीित- रवाज इस क़दर बदल गए थे
क शु िह दू वहार ग़ायब हो गया था। कु छ लोग अब मुसलमान के रीित- रवाज का
पालन करते ह और शा म व णत उन रवाज का पालन करने म शम महसूस करते ह
िजनका उनके दादा-परदादा पालन करते थे। चार वण के पु ष रा य म पहले िनयमपूवक
रहते ए उसे सुशोिभत करते थे ले कन काला तर म लोग ने धीरे -धीरे ख़ास दन को
नीलमत पुराण ारा बताए गए उ सव को मनाना ब द कर दया तो जो लोग अपने
रवाज भूल गए, उन पर बुरी आपदाएँ य न आएँ? किलयुग के भाव से सभी लोग एक
बराबर हो गए—अ छी-बुरी आदत, पढ़े-िलखे और भ , कलाकार या नीच। के वल एक
ितशत ा ण म आ मा बची है।’66 यही नह , क मीरी मुसलमान अपने वहार और
वेशभूषा आ द म बाक़ जगह के मुसलमान से काफ़ अलग थे। अपने पुराने धम के
आचार- वहार पूरी तरह से उ ह ने कभी नह छोड़े। इसी या का असर था क 1893
म िलखे अपने सं मरण म नाइट िलखते ह :
इस देश म दोन (िह दू और मुसलमान ) के बीच असल म अ तर बाहरी अिधक है और भीतरी कम।
दोन धम को माननेवाल म से कसी के पास अपने पुरख के धम पर गव करने के िलए कु छ नह
है। यादातर लोग के पुरखे धमात रत अगड़े या िपछड़े ह...। अब वे (क मीरी) न तो अ छे िह दू ह
और न ही अ छे मुसलमान। इसका एक प रणाम है क धा मक क रता कभी-कभी ही दखती है जब
िशया और सु ी िमलते ह।67
यह एक मज़ेदार त य है। क मीर म िशया का वेश होता है 1477 म श सु ीन
इराक़ के आगमन से। इराक़ का मु य उ े य क मीर म िशया स दाय का चार- सार
करना था। हालाँ क क मीर म िशया पहले से भी थे ले कन एच.ए. आ टर ने इराक़ को
भावी प से क मीर म िशया स दाय को लाने का ेय दया है।68 हसन शाह का वह
दौर शाहमीरी के अ त का था और क मीर म भयावह अराजकता पसरी थी। इराक़
खुरासान के शासक सु तान सैन िमज़ा के दूत के प म क मीर आया था और जब उसके
िशया स दाय के चार क ख़बर सु तान को िमली तो उसे क मीर से आठ साल के िलए
िन कािषत कर दया गया। इस बीच उसने दरबार के एक भावशाली साम त मूसा रै ना
को अपने भाव म ले िलया था। 1493 म जब इराक़ दूसरी बार क मीर आया तो कु छ ही
समय बाद मूसा रै ना वज़ीर-ए-आज़म बन गया। अगले नौ साल मूसा रै ना के साथ-साथ
श सु ीन इराक़ का भाव बढ़ते जाने के साल थे। मूसा ने उसके िलए ज़ादीबल म एक
ख़ानकाह का िनमाण कराया और जागीर अता क । श स चक के समथक क़ाज़ी चक,
सारं ग चक और मीर चक भी श सु ीन इराक़ के भाव म आ गए और िशया स दाय
अपना िलया।69 मूसा रै ना क सरपर ती म चले धमातरण अिभयान म श सु ीन ने िशया
स दाय के िमशनरी चार के िलए हर जायज़-नाजायज़ रा ता अपनाया, ज़ैनुल आबदीन
के समय के सारे सिह णु आदश को ताक पर रख दया गया, क मीरी पंिडत का तलवार
क नोक पर धम प रवतन कराया गया, अनेक मि दर को व त कर दया गया और
िजनम ीनगर और आसपास के 18 बड़े मि दर शािमल थे।70 ये नौ साल क मीरी ा ण
के िलए भयावह थे। ले कन इससे फै ले अस तोष क क़ मत मूसा रै ना को चुकानी पड़ी।71
मूसा रै ना के मरने के बाद कांता भ (िनमल कांत) नामक एक क मीर पंिडत ने उसके
समय म ए धमातरण को पलटने के िलए शुि अिभयान चलाया। अिधकतर धमात रत
लोग को पुनः िह दू बना िलया गया। ले कन इसके बाद दरबार म भावी ए काछी चक
ने इराक़ के साथ िमलकर भयानक दमन च चलाया। चूँ क पहली बार इराक़ के
सरपर त मूसा रै ना को अपद थ करने म ा ण क भूिमका थी तो इसका बदला िलया
गया और श सु ीन इराक़ के कहने पर उसने शुि से िह दू बने लोग को सबक िसखाने
का फ़ै सला िलया और 1518 म 800 से अिधक िह दू नेता को बेरहमी से क़ ल कर दया
गया और भय तथा आतंक के इस माहौल म बचे ए िह दु ने चुपचाप वापस इ लाम
अपना िलया।72 शुक िलखते ह—मुसलमान का जो दमन सैयद के समय शु आ था,
वह मूसा रै ना और क़ाज़ी चक के समय अपने अंजाम पर प च ँ ा दया गया।
1526 म श सु ीन इराक़ क जब मृ यु ई तो शाहमीर वंश अपने आिख़री दन िगन
रहा था और दरबार म ष ं का बोलबाला था। अ ततः 13 अग त, 1541 को एक मुग़ल
िमज़ा हैदर दुग़लत ने क मीर के शासन पर क़ ज़ा कया। आरि भक दौर म उसने न के वल
नाज़क शाह को पूरा स मान दया बि क क मीरी साम त के साथ भी ब त स ावनापूण
वहार कया। आ थावान सु ी होने के बावजूद उसने नूरबि शया स दाय और िशया
स दाय के साथ भी स मानजनक वहार कया और वह ज़ादीबल म श स इराक़ क
क़ पर भी जाया करता था।73 ले कन आगे ऐसे हालात बने क 1548 म उसने श सु ीन
इराक़ का ज़ादीबल ि थत मक़बरा ज़म दोज़ कर दया और अगले दो साल म उसके बेटे
तथा आ याि मक उ रािधकारी शेख़ दािनयाल तथा नूरबि शया स दाय के कई मुख
संत क बेरहमी से ह या करवा दी।
पा रमू ने तारीख़-ए-रशीदी के हवाले से िमज़ा को उ धृत करते ए िलखा है—इराक़
के कसी अनुयायी क िह मत नह थी क वह अपने धा मक िव ास के बारे म खुलकर
बोल सके । सब इससे इनकार करते थे य क उ ह पता था क ऐसा करने पर वे मेरे हाथ
से नह बचगे।74 श स इराक़ ने क़ाज़ी चक और अ दुल मा े क मदद से सा दाियक
वैमन य क जो िवषबेल बोई थी, वह अब ज़हरीला पेड़ बन चुक थी। इस दौर म िशया-
सुि य के बीच जो संघष शु आ, वह ल बे समय तक चला और क मीर क देह पर कई
िघनौने घाव दे गया।
इस पूरे दौर म ा ण क मीर के राजनीितक प रदृ य से ग़ायब दखाई देते ह।
उ ह ने अराजकता के इस माहौल म ख़द को अलग-थलग कर िलया था और ब त
सावधानी से काम िलया। उ ह ने कसी तरह के बखेड़े से ख़द को दूर रखा और कभी कसी
िववाद म नह पड़े। इसका अ दाज़ा एक यु का िववरण िलखते समय ीवर क
सावधानी से लगाया जा सकता है। वह कहते ह : ‘हािलया ितकू ल समय को यान म
रखते ए म इस हार का संि िववरण देने से भी बच रहा ।ँ ’75
इस दौर म ा ण ने क मीर के भीतर और बाहर ान-िव ान के े म स यता
को चुना। कलाम के शव पंिडत नामक किव और तकशा ी के कलक ा जाने और वहाँ
चैत य महा भु से भािवत होकर मथुरा म इस स दाय का मठ थािपत करने का िज़
करते ह। पंिडत पु षो म कौल क मीर म सं कृ त िसखाने वाली एक पीठ के अ य थे
जहाँ देश भर से बटु क आया करते थे।76
1561 से 1586 के बीच क मीर पर चक सा ा य के आिधप य के दौर म भी िशया-
सु ी िववाद चलते रहे। हालाँ क चक सु तान के िशया मतावलंबी होने क वजह से वह
िशया के िलए बेहतर समय था। सडर बताती ह क क मीरी ा ण उस समय रा य
शासन म भागीदार थे और सैन चक उनके याेहार म भागीदारी भी करता था।77
ले कन 35 साल क इस अविध म कोई ऐसी बड़ी घटना नह ई िजसका क मीर या
ा ण पर कोई दूरगामी भाव पड़ता।
मुग़ल शासन और ा ण
क मीर के इितहास म आम तौर पर मुग़ल के शासन को ग़लामी क शु आत माना जाता
है ले कन क मीरी पंिडत के इितहास म यह पुन ार के समय क तरह भी दज होता
है।78 इस अवधारणा को ज़रा ठहरकर समझना ज़ री है। अकबर ने चक सा ा य को
अपद थ करके स ा हािसल क थी तो यह सहज था क थानीय शासक वग तथा उसके
पूव सहयोिगय पर उसका अिव ास होता। जब चक के अ याचार से परे शान क मीर के
सु ी मुसलमान के ितिनिध शेख़ याकू ब सरफ और बाबा दाउद ख़ाक ने अकबर से
क मीर को चक से मु कराने का ताव दया तो उसम जो शत रखी गई थ , उनम
धा मक मामल म अह त ेप क नीित, कसी क मीरी िह दू या मुसलमान, मद या औरत
को ग़लाम न बनाने, क मी रय का उ पीड़न न करने के साथ-साथ यह शत भी थी क
‘पूव म क मीर म संकट पैदा करनेवाले कु लीन क देश के शासन म कोई भागीदारी नह
होगी।’ इसके बावजूद क मीर म अब भी पुराने ताक़तवर साम त मौजूद थे और िव ोह क
स भावनाएँ भी। असल म िव ोह क कोिशश भी और उ ह ब त कड़ाई से दबा दया
गया। मा यता है क अकबर क मीर म फरन (एक ढीला-ढाला ल बे कु रते जैसा िलबास)
और काँगड़ (काँगड़ी के िलए क मीरी श द, अँगीठी) लेकर आया और फरन पहनना तथा
इसके भीतर जाड़ म काँगड़ रखना अिनवाय कर दया। उसने हिथयार रखने पर भी
पाब दी लगा दी। इसका असर यह आ क एक यो ा क़ौम धीरे -धीरे यु करना भूल गई।
और एक व त म गज़नवी को हरानेवाली इस क़ौम को कालांतर म कायर घोिषत कर
दया गया। डोगरा या ि टश आम म इसके िलए कोई जगह नह बनी।79 वष तक
क मीर का भिव य तय करनेवाले शाहमीरी, चक, मा े, रै ना, मिलक, ब जैसे मुि लम
साम त प रवार अपनी ित ा खोकर देखते ही देखते क मीर के राजनीितक पटल से
ओझल और िव मृत हो गए।80
वह दूसरी तरफ़ ज़ैनुल आबदीन के बाद लगभग लगातार उपे ा और उ पीड़न के
िशकार ा ण के िलए यह एक अवसर क तरह सामने आया। क मीरी रा वाद का
िह सा बनने और पूव शासक के साथ ितब तता जताने क कोई वजह उनके पास नह
थी और एक समूह के प म उ ह ने अपे ाकृ त अिधक से यूलर नीितय वाले अकबर का
वागत कया। पंिडत शुक ने िलखा है क अकबर ने अपनी पहली या ा म ा ण को
वणमु ाएँ दान क । वह मातड भी गया और मोितय से सजी गाएँ ा ण को दान
क ।81 ा ण के पुनवास के िलए उ ह लगान-मु ज़मीन दी ग और इस भू-िवतरण क
िज़ मेदारी आ द य पंिडत को स पी गई। ा ण ारा िवत ता (झेलम) के ज म दन के
प म मनाये जानेवाली भा पद क योदशी को पूरे शहर म रोशनी करने के आदेश दये
और ख़द उ सव म शािमल आ। ले कन सबसे बड़ा क़दम था ा ण के िलए
अपमानजनक जिज़या क समाि ।82 जिज़या एक तरह का सुर ा टै स था जो सारी ग़ैर-
मुि लम जा पर लगाया जाता था य क उ ह सै य सेवा से बाहर रखा जाता था।*
ले कन जिज़या िह दु के िलए अपमानजनक था और यह उ ह अपने धा मक िव ास क
सज़ा जैसा लगता था। इसके अलावा इसका असर छोटे कमचा रय और अ य म यवग य
त व पर पड़ता था य क ग़रीब को जिज़या देना नह पड़ता था और इसक दर इतनी
कम थी क अमीर पर इसका असर होता नह था।83 इसिलए अकबर का जिज़या हटाना
ा ण का िव ास जीतने क कोिशश का िह सा था और बदले म ा ण ने उसे पूरा
सहयोग दया। शुक कहते ह— ा ण ने राजा को आशीवाद दया।84
इसके अलावा उ पद पर द ली से िनयुि करने के बावजूद स ा और शासन
चलाने के िलए थानीय लोग क आव यकता तो थी ही। ज़ैनुल आबदीन के बाद से ही
धीरे -धीरे राजनीित से बाहर हो चुके ा ण मुग़ल के िलए राजनीितक प से पूरी तरह
अहािनकारक थे और इसीिलए उ ह ने ‘अपने क मीरी वध मय से अिधक भरोसा
ा ण पर कया।’85 सडर कहती ह : ‘िह दु क भत मुग़ल नीित का एक सुसंगत
िह सा था।’86 फ़ारसी म द ता ा ण क अित र यो यता बनी और वे मुग़ल स ा क
मशीनरी का ज़ री िह सा बने। मुग़ल ारा शु कये गए सबसे मह वपूण काय भू-
आकलन और लगान िनधा रत करने के िलए जब द ली से क़ाज़ी नू लाह और क़ाज़ी
अली भेजे गए तो उनके सहयोग के िलए इस मामले के िवशेष माने गए पंिडत तोताराम
को चुना गया। हम देखते ह क इसके बाद से तमाम उथल-पुथल के बावजूद डोगरा शासन
तक और उसके बाद भी राज व िवभाग पर ा ण का दबदबा बना रहा। पंिडत
तोताराम क मीर के पहले मुग़ल सूबेदार िमज़ा यूसुफ़ ख़ान के पेशकार के पद तक प चँ ।े
यहाँ तक क सेना म क मीरी पंिडत को जगह ही नह दी गई बि क ऊँचे पद भी दये
गए। िसक दर के समय क मीर से पलायन कर गए ा ण प रवार के मे पंिडत को
जहाँगीर के समय म सेना म ऊँचा ओहदा और क मीर म जागीर दी ग । सूबेदार अली
मरदान ख़ान (1650-57) के समय के पंिडत महादेव को पेशकार बनाया गया। नूरजहाँ क
ि गत सुर ा क कमान भी एक क मीरी मी पंिडत के िज़ मे थी। मी पंिडत ने बाद
म जहाँगीर को एक बार महाबत ख़ान से बचाया था और इसके बाद उ ह क मीर म एक
बड़ी जागीर दी गई।87
इस दौर म मुग़ल शासक क नीितय का अ दाज़ा जहाँगीर के समय घटी एक घटना
से लगाया जा सकता है। जब सूबेदार क़ालीच ख़ान के समय िह दु ने जहाँगीर से अपने
उ पीड़न क िशकायत क तो उसने क़ालीच ख़ान को चेताया क ‘तु हारी िशकायत ब त
ह और तु ह चाहनेवाले ब त कम। बादल का पानी यासे लोग तक प च ँ ाओ या फर
अपना पद छोड़ दो।’ इसके अलावा उसने पंिडत ीकांत को िह दू मामल का यायाधीश
भी िनयु कया था िजससे िह दु को अपने धा मक मामल म पूरी आज़ादी िमल सके ।
आम तौर से औरं गज़ेब को िह दु का िवरोधी माना जाता है ले कन कलाम कहते ह :
यहाँ तक क औरं गज़ेब के शासनकाल म भी पंिडत ने देश म ब त ऊँचे पद हािसल कये और उ ह
मनसब दी ग । चौधरी महेश शंकर दास एक मनसबदार थे और ऐसा लगता है क वह बेहद अमीर
थे। उ ह ने िनशातबाग़ के पास एक शानदार बाग़ बनवाया था।88
सडर, अतहर अली के हवाले से, समाहार के प म कहती ह :
उ पद पर िह दु को िनयु करने के िख़लाफ़ सभी सै ाि तक िनणय के बावजूद वा तिवक
वहार म उसने मज़बूत शासन के िलए अपने कसी भी पूवज से अिधक िह दु को उ तर
मनसबदार के प म िनयु कया।89

‘बतलाश-ए-माश आमदम’ और
ा ण से क मीरी पंिडत तक क या ा
इसके अलावा पहली बार एक अिखल भारतीय सा ा य का िह सा बन जाने के बाद
क मीर के ा ण के िलए क मीर के बाहर जाकर अपने िलए नये अवसर तलाशना
आसान हो गया और उ ह ने इसका ख़ूब फ़ायदा उठाया। जब अपनी पहली या ा के बाद
अकबर द ली लौटा तो उसके साथ कई ा ण द ली और आगरा आ गए िजनम
सदान द कौल का नाम सव प र है। उ ह ल बा जीवन िमला था और वह जहाँगीर और
शाहजहाँ के समय भी मुग़ल दरबार म मह वपूण बने रहे। शाहजहाँ ने न के वल उ ह
जागीर और मनसब द बि क उ ह ‘इ माद-उल-स तनत’, ‘मुिश ल-मु क’, ‘िमज़ा राजा’
और ‘ग़म वार’ क उपािधयाँ दी थ । यह प रवार क मीर म ग़म वार प रवार के नाम से
जाना गया। क मीरी ा ण ने द ली, आगरा सिहत कई उ र भारतीय शहर म अपनी
बि तयाँ बना । अवध के नवाब आसफ़ु ौला के समय मु ला, स ,ू िशवपुरी, कचलू जैसे
िति त क मीरी ा ण प रवार उनके दरबार म शािमल ए। फ़ारसी भाषा का ान
और मुि लम सं कृ ित से प रचय ही नह बि क उसके साथ ल बे सहजीवन म उसके काफ़
सम प* हो जाने के कारण अपने उ र भारतीय सजाितय क तुलना म उनके िलए
शासन- व था का िह सा बनना और इ लामी समाज से सहज र ता बनाना आसान था।
क मीरी ा ण अपने वहार से ही नह , खान-पान म भी उ र भारतीय ा ण से
काफ़ अलग थे या य कह क धा मक समानता के बावजूद उनम सां कृ ितक अ तर गहरा
था। सबसे पहला अ तर तो यही था क जहाँ आम तौर से ामीण भारत म रहनेवाले उ र
भारतीय ा ण सं कृ त या थानीय भाषा म िन णात थे, वह क मीरी ा ण फ़ारसी
और सं कृ त म िन णात थे। साथ ही वे मांसाहारी थे और उनके शैव धम के तांि क रीित-
रवाज उ र भारत के ा ण के िलए अ वीकाय थे।90 1977 म कािशत सं मरण म
एक क मीरी पंिडत धनवंती रामाराव (हांडू) कहते ह क ‘वे पंजाब से उ री ा त (अब
उ र देश) तक उ र भारत के सभी िह स म बस गए ले कन कभी भी अपने नये गृह
देश के ा ण के साथ वा तव म जुड़ नह सके ।91
वाभािवक है क क मीर से आए ये ा ण अपनी अलग पहचान थािपत करने का
यास करते। मुह मद शाह (1719-1748) के ज़माने म क मीर से द ली आए पंिडत
जयराम भान को राजा क उपािध िमली थी। उ ह ने बादशाह से माँग क क क मीरी
ा ण को ‘ वाज़ा’ क जगह अलग से ‘क मीरी पंिडत’ के नाम से स बोिधत कया
जाए।92 मुह मद शाह ने उनक यह अज़ मान ली और उसके बाद से क मीर के ा ण
को क मीरी पंिडत कहे जाने का जो रवाज चला,93 वह अब तक जारी है।
बाद के कई िववरण म मुग़लकाल म क मीर से पंिडत के समतल मैदानी इलाक़ म आने
को िसक दर के समय से लेकर न बे के दशक तक के िव थापन से जोड़ते ए इसे मुि लम
शासक के अ याचार के कारण आ ‘पलायन’ बताते ह ले कन न तो िजयालाल कलाम
अपनी कताब म ऐसे कसी ‘पलायन’ का िज़ करते ह, न ही उस दौर के कसी िववरण
म ऐसा िमलता है। हमने अब तक िजन प रवार के क़ से देखे ह, वे सभी क मीर से बाहर
बेहतर भिव य के िलए मैदान म आए थे। इसम नेह प रवार का वह िस क़ सा भी
जोड़ा जा सकता है िजसके अनुसार फ़ क़िसयर के शासनकाल म पंिडत राजकौल द ली
आ गए थे और काला तर म उनका प रवार नेह प रवार* के प म जाना गया। सडर
िचि हत करती ह क क मीर से आए ये ा ण अपनी धा मक पहचान को बचाने के िलए
पुरोिहती या ऐसे कसी काय म नह अिपतु मुग़ल दरबार म नौक रय म गए तथा बनारस
जैसी धा मक जगह क अपे ा इ ह ने द ली, आगरा और इलाहाबाद जैसे स ा के को
चुना। वह लेिलफे ड को उ धृत करते ए कहते ह—यह (शासक य सेवा म भत ) एक
ऐसी सं कृ ित थी िजसम कोई पूव शत नह थी। इसम ब त सारे िह दू शािमल ए और
यादातर मुसलमान बाहर हो गए। शासन के िनचले तर पर ऐसे िह दु क सं या
बढ़ती गई िज ह ने ख़द को मुग़ल तरीक़े क वेशभूषा, आचरण, थाप य, प टंग, सािह य,
एथले टक यो यता और मनोरं जन के अनु प ढाल िलया था। क मीरी पंिडत इनम
शािमल थे।94 क मीरी पंिडत ने इस दौर म ही नह बि क अं ेज़ के आने के बाद भी
मैदानी इलाक़ म मह वपूण सफलताएँ हािसल क और शासक य सेवा म ही नह
अिपतु िविभ रजवाड़ म भी ऊँचे ओहदे हािसल कये। इस स ब ध म एक रोचक
उदाहरण जि टस माकडेय काटजू का है। एक सवाल के जवाब म वह कहते ह :

दो तरह के क मीरी पंिडत ह—क मीरी बोलनेवाले और क मीरी न बोलनेवाले। मेरे जैसे क मीरी न
बोलनेवाले क मीरी पंिडत वे ह िजनके पुरखे कोई 200 साल पहले क मीर से पलायन कर गए थे। ये
सभी क मीरी पंिडत िबलकु ल एक ही तरीक़े से पलाियत ए और वह यह क उ ह कसी रजवाड़े म
यानी क कसी महाराजा या नवाब के दरबार म नौकरी िमल गई (क मीरी पंिडत को ये नौक रयाँ
िमल ग य क वे उदू और फ़ारसी म उ ताद थे जो उन दन दरबार क भाषा होती थी)। पंिडत
नेह , तेज़ बहादुर स ू आ द सभी के पुरखे ऐसे ही क मीर से आए थे। क मीर छोड़ने के बाद वे
लगभग दो पी ढ़य म क मीरी भूल गए और अब के वल िह दी तथा अं ेज़ी जानते ह (मेरे िपता क
पीढ़ी के लोग उदू ब त अ छी तरह जानते थे जब क मेरी पीढ़ी के लोग भूल गए ह)। मेरा अनुमान है
क इनक सं या लगभग दो लाख है। मेरे अपने पुरखे पंिडत मंशा राम काटजू लगभग 200 साल
पहले क मीर से पलाियत ए थे और जौरा के नवाब के यहाँ उ ह नौकरी िमली। जौरा पि मी म य
देश के रतलाम िज़ले म है और राज थान का सीमावत है। मेरा प रवार मेरे बाबा डॉ. के .एन.
काटजू के उ र देश के इलाहाबाद म जाकर बस जाने के पहले कई पु त तक जौरा म रहा। मेरे
प रवार क ही तरह क मीरी न बोलनेवाले क मीरी पंिडत कसी उ पीड़न के चलते नह बि क
मैदान म नौकरी के अवसर के चलते पलाियत ए थे...। मेरे पुरखे पंिडत मंशा राम काटजू ने
कु े के पंडे के रिज टर म फ़ारसी म िलखा है : ‘बतलाश-ए-माश आमदम’ यानी म रोज़ी क
तलाश म आया ।ँ 95
सडर इसका समाहार करते ए कहते ह :
बाद क कहािनय म कहा गया क पंिडत मैदानी इलाक़ म इसिलए आए य क क मीर म उ ह
अपना ा ण व बचाना स भव नह लग रहा था। ले कन वे द ली और आगरा जैसी मुग़ल
राजधािनय म अिधक सहज थे, बनारस या याग जैसे धा मक शहर म नह । उ ह ने पूजापाठ क
जगह से यूलर रोज़गार अपनाए और फ़ारसी म वीणता हािसल क , सं कृ त (िजसे वे धीरे -धीरे
भूल गए) म नह ।96
ज़ािहर है क बेहतर रोज़गार के िलए ए पलायन को बदली ई प रि थितय म धम
से जोड़ने क कोिशश क गई।

मुग़ल शासन का ढलान और अफ़रा-तफ़री


औरं गज़ेब के बाद का दौर मुग़ल शासन के पतन का दौर था और द ली के कमज़ोर होने
का असर क मीर पर भी पड़ना ही था। इस दौर म क मीर म अ छे-बुरे सूबेदार का आना
और धम का फर एक बार असफलता का पदा बनना वाभािवक ही था। इन 45 साल
म 22 सूबेदार िनयु ए। ले कन इस दौर म एक नई पर परा शु ई—नायब सूबेदारी
क । सूबेदार क मीर म ख़द रहने क जगह ए सटी शासक क तरह शासन करते थे और
अपने ितिनिध को नायब सूबेदार के प म शासन चलाने के िलए अिधकृ त करते थे। इस
दौर म वहाँ कु ल 45 नायब सूबेदार िनयु कये गए थे। इन सूबेदार और नायब म एक-
एक थानीय क मीरी कु लीन भी शािमल थे—1738 म सूबेदार िनयु ए इनायत
उ लाह ख़ान ि तीय और 1751 म नायब सूबेदार बने मीर मुक़ म ख़ान। इनम से सबसे
ू र दौर अफरिसयाब ख़ान (1746-51) का माना जाता है ले कन के ीय स ा के िवघटन
के साथ-साथ क मीर म अराजकता के नये-नये मंज़र सामने आए। एक तरफ़ पुंछ और
मुज़ फ़राबाद के गूजर, बो बा और खाखा क़बील ने वतं होने क आकां ा के साथ
लगातार लूट-मार शु कर दी तो दूसरी तरफ़ खाने क व तु के दाम इस क़दर बढ़ गए
क चार तरफ़ ािह- ािह मच गई। कु ब धन के चलते बाढ़, अकाल और भूक प के दौर
म जनता को कोई राहत न िमल सक और िनरं तर आ मण के चलते ख़ास तौर से पंजाब
सूबे से ापार ठप हो गया और हज़ार लोग मारे गए तथा बड़ी सं या म लोग क मीर से
पलायन कर गए।97
इस दौर म ‘िह दु पर अ याचार’ के तमाम क़ से सुनाए जाते ह। यहाँ म िसफ़ एक
क़ सा उ धृत करना चा ग ँ ा—बहादुर शाह के समय क मीर का धम- मुख, शेख़-उल-
इ लाम िनयु आ माहतवी ख़ान सा दाियक मानिसकता का था, िजसने पंिडत के
ऊपर तमाम ितब ध लगा दये, यहाँ तक क उनके टीका लगाने को भी ितबि धत कर
दया गया और इसक अवमानना करने पर भारी जुमाने का ावधान कया। मुग़ल
शासनकाल म क मीरी पंिडत अपनी अ पसं या के बावजूद घाटी म काफ़ भावी समूह
बन चुके थे। ख़ास तौर पर राज व िवभाग म उनक भूिमका उसी समय से मह वपूण होने
लगी थी। उ ह ने िव ोह कर दया। सूफ़ ने इस घटना के पीछे भी एक पंिडत राज वकम
ारा माहतवी ख़ान से, जो एक बड़ा ज़म दार भी था, कसी िसलिसले म घूस क माँग
बताई है। ले कन वह इस िव ोह के कारण के प म ितब ध का कोई िज़ नह करते
जब क उनका और पा रमू का ोत एक ही है—1874 म कोलकाता से कािशत ख़फ
ख़ान क कताब मु ख़ाब उल लुबाब। ख़ैर, उ ह ने िव ोह कर दया और इसम उ ह
िशया का भी साथ िमला। फल व प माहतवी ख़ान और उसके दो बेट को िगर तार
कर 12 िसत बर, 1720 को उसक ह या कर दी गई। िज़ दा बचे उसके तीसरे पु
शरफ़ु ीन ने सु ी आबादी को साथ लेकर बदले क कायवाही शु क िजसम िशया को
ख़ास तौर पर बड़ा नुकसान उठाना पड़ा। ि थित बेहद ख़तरनाक हो गई। मीर अहमद ख़ान
इसे सँभाल नह पाया और अ ततः इनायतु लाह ख़ान को पद छोड़ना पड़ा। उसक जगह
िनयु ए सूबेदार अ दुस समद ख़ान ने अपने नायब अ दु लाह ख़ान देहबेदी के साथ
िमलकर ि थित पर िनयं ण पाया। शरफ़ु ीन क ह या कर दी गई तथा उसके 50 से
अिधक समथक को फाँसी दे दी गई। शाि त थािपत करने के बाद उसने पंिडत के ऊपर
लगे सारे ितब ध हटा दये और उनके साथ अ य त सौहादपूण वहार कया।98
साठ के दशक म क मीरी पंिडत ारा थािपत पि का ‘िमलचर’ म महाराज कृ ण
रै ना माहतवी ख़ान के ितब ध और उसके ारा आगजनी क घटना का िज़ तो करते ह
ले कन अ दुस समद ख़ान ारा शरफ़ु ीन क ह या और सभी ितब ध को हटाने क बात
नह करते।99 इसके बाद अबू बरक़त ख़ान के समय तो एक क मीरी पंिडत मुक दा राम
धर को पेशकार बनाया गया था100 ले कन रै ना इस घटना का िज़ तक नह करते।
ज़ािहर है, सभी ने इितहास से अपने-अपने काम क चीज़ िनकाल ली है।

पा भवानी : मदाने इितहास म फे िमिनन ह त ेप


दुभा य है क इितहास अ सर मद का इितहास बनकर रह जाता है। इसम औरत क
भागीदारी के िनशानात कह दज नह होते। कोटा रानी के बाद राजप रवार क कु छ
िगनी-चुनी मिहला के अलावा ऐसी मिहला का क मीरी इितहास म कोई िज़ नह
िमलता िज ह ने वहाँ क राजनीित को भािवत कया हो। घर क क़ै द के बाहर िसफ़ धम
एक ऐसा े था जहाँ उनके िलए कोई पेस बन सकता था। लल द के बाद िजस दूसरी
क मीरी पंिडत मिहला का िज़ आता है, वह ह— पा भवानी।
क मीर म मुग़ल शासन क थापना के समय ही ीनगर के सफा कदल म पंिडत
माधो धर के घर 1624 ईसवी को उनका ज म आ था। बचपन म उ ह रवाफ़ नाम दया
गया था, जो सं कृ त म पा का समानाथ है। देख तो पा भवानी क कहानी भी लल
द से ब त अलग नह है। एक िशि त िपता के घर पैदा होने और आरि भक िश ा-दी ा
के बावजूद के वल दस वष क उ म िववाह और फर वही ससुराल म ताने, उ पीड़न।
नाक़ािबल-ए-बदा त होने पर घर छोड़ भगवा धारण कर वह सं यासी हो ग । अपने िपता
से योग, वेदा त आ द क िश ा ली उ ह ने ले कन ान क यास नह बुझी। लल द के
वाख उनके दय के सबसे क़रीब प च ँ ।े साधु , फ़क़ र और दरवेश के यहाँ भटकती
रह । अ ततः उ ह लार म िमले सूफ़ संत शाह सा दक़ कल दर। उनसे शा ाथ करते पा
भवानी क ान क यास पूरी ई। उ ह ने भटकना छोड़ दया और मृ युपय त व कु र
नामक थान पर बस ग जहाँ पूरे क मीर से उनके िह दू और मुसलमान भ दशनाथ
आया करते थे। संवत 1777 म माघ माह के कृ ण प क स मी को 96 वष क उ म जब
उनक मृ यु ई तो शाह कल दर ने इसे एक फ़ारसी रोज़नामचे म दज कया। उनक मृित
म उस दन को ‘साहेब स मी’ का नाम दया गया और यह आज भी क मीरी पंिडत के
िलए एक पिव दन है। उनके स मान म इस धर प रवार को ‘साहेब धर’ कहा जाता है।
कहते ह क इससे पैदा ई ई या के कारण धर ा ण का दूसरा िह सा पा भवानी और
उनके भ को ‘आड बर करनेवाला’ कहकर अपमािनत करने लगा और जानबूझकर
साहेब स मी को मांस बनाकर खाया िजसके चलते उ ह ‘ फ़ धर’ कहा गया। अफ़ग़ान
शासन म ब त भावी रहे बीरबल धर इसी प रवार से थे। ख़ैर, समय के साथ यह िववाद
समा हो गया।101
क मीरी पंिडत क वेबसाइट कौसा डॉट ओआरजी पर शाह कल दर का कोई िज़ तो
नह है ले कन उनक मृ यु से जुड़ी एक कथा है जो बताती है क क मीरी मुसलमान म
उनक कतनी ित ा थी। िजस तरह लल द को लल आ रफ़ा कहा जाता था, वैसे ही
उ ह भी पा आ रफ़ा कहा जाता था और मुसलमान ने त कालीन मुग़ल सूबेदार से उ ह
इ लािमक िविध से दफ़नाने का आदेश ले िलया था। इससे दुखी होकर उनके भाई संसार
च द धर ने उनके शव के सामने ाथना क क इस अपमानजनक ि थित से उ ह बचाएँ।
पा भवानी कट और वहाँ उपि थत िह दू और मुि लम भ के सामने कहा क ‘वह
करो जो तु ह सही लगे। अपने मुि लम भाइय को रोटी और शीरनी देकर िवदा करो।’
उनका इशारा समझकर मुि लम भ चले गए ले कन जब िचता पर उनक देह ले जाने के
िलए कफ़न हटाया गया तो वहाँ के वल फू ल और प े िमले। कहते ह— पा भवानी
परमा मा म लीन हो ग ।102 यह कथा कबीर क याद दलाती है।
ेमनाथ बज़ाज़ उ ह दाशिनक से अिधक एक समाज-सुधारक मानते ह। उ ह ने शराबब दी
के साथ-साथ पशुबिल, गहने पहनने, ब िववाह, िभ ावृि आ द का िवरोध कया। इसके
अलावा उ ह ने धम और जाित के ब धन से ऊपर उठकर जीवन म वृह र उ े य क
ाि को ल य बनाने क िश ा दी। उनके अनुसार सभी धम एक ही ई र को ाि क
अलग-अलग राह ह। बज़ाज़ उ ह ‘धा मक मानवतावादी’ कहते ह।
िमथक य क़ स से परे पा भवानी क कथा एक तरफ़ क मीर म इस दौर तक दोन
धम के सं ेषण से िवकिसत ई उस सं कृ ित क प प रचायक है िजसम एक-दूसरे के
साधु , फ़क़ र का स मान और साझा ान क पर परा का िवकास आ तो दूसरी तरफ़
त कालीन समाज म ि य क ि थित का भी। लल द ह या क पा भवानी या उनके
कोई एक सदी बाद क अ नमाल, सबक कहािनयाँ लगभग एक जैसी ही ह।

अफ़ग़ान का दौर : अराजकता के बीच क मीरी पंिडत


क मीर पर अफ़ग़ान के क़ ज़े क पूवपी ठका िह दु तान पर ना दर शाह के हमले (1738-
39) के समय ही िलख दी गई थी। करनाल के यु के बाद भारी क़ मत वसूल कर उसने
मुह मद शाह को िह दु तान का ताज तो वापस कर दया ले कन काबुल और पेशावर को
उसने अपने सा ा य का िह सा बना िलया। उस दौरान क मीर म गृहयु जैसी ि थितयाँ
बन गई थ । जब ि थित काफ़ िबगड़ी और मुग़ल सूबेदार फख़ ौला जब उसे सँभालने म
नाकाम रहा तो उसक जगह इनायतु ला ख़ान क मीरी को सूबेदार बनाया गया।
फख़ ौला भागकर लाहौर चला गया और उसने पठान सेना के सहयोग से क मीर पर
क़ ज़ा करने का िन य कया। ना दर शाह ने सहायता भेजने म िहचक नह क और उसने
गूजर और पठान क सहायता से क मीर पर क़ ज़ा कर उसे ना दरशाही का िह सा
घोिषत करते ए ना दर शाह के नाम से ख़तबा पढ़वाकर तथा िस े ढलवाकर ख़द को
क मीर का सूबेदार घोिषत कर दया। हालाँ क क मी रय ने इसके िख़लाफ़ बग़ावत का
झंडा बुल द कया ले कन उसने इस िव ोह को दबा दया। अ ततः जब ना दरशाह से
मुग़ल बादशाह क सि ध ई तब इनायतु लाह ख़ान को फर से क मीर का सूबेदार
िनयु कया गया।103 सूफ़ ने पीर हसन शाह क तारीख़-ए-क मीर के हवाले से इस
वाक़ये क पुि क है और कहा है क 1739 म फ़ख़ ीन 40 दन के िलए अफ़ग़ान ना दर
शाह के ितिनिध के प म क मीर का सूबेदार रहा और फर समझौते के बाद उसने ग ी
छोड़ दी।104 फ़ौरी तौर पर अफ़ग़ान संकट टल गया ले कन दन-ब- दन कमज़ोर होते
मुग़ल शासन और उधर लगातार बढ़ती जा रही अफ़ग़ान मह वाकां ा के चलते क मीर
पर अफ़ग़ान का क़ ज़ा दीवार पर िलखी इबारत-सा प था।
के ीय शासन कमज़ोर होने के साथ-साथ क मीर के सूबेदार वतं भुस ा क तरह
वहार करने लगे थे। हालत यह क इनायतु लाह ख़ान के नायब सूबेदार अबू बरक़त
ख़ान ने गूजर क सहायता से उसके िख़लाफ़ िव ोह कर दया। जािमया मि जद के पास
का मैदान लाश से पट गया। अ ततः इनायतु लाह ख़ान मारा गया और अबू बरक़त ने
सूबेदारी पर क़ ज़ा कर िलया। फर बारामूला के थानेदार बाबर उ लाह ख़ान ने बरक़त के
िख़लाफ़ िव ोह कर दया। इस बार खाखा, बो बा, गूजर और क तवारी सैिनक उसके
साथ थे। चार तरफ़ अराजकता का माहौल बन गया। हालाँ क द ली से िनयु सूबेदार
अबू मंसूर ख़ान ने हालात पर काबू पाया, बाबर उ लाह ख़ान मारा गया और अबू बरक़त
को िगर तार कर द ली भेज दया गया ले कन यह शाि त भी ल बे समय तक नह चली
और 1748 म िनयु कये गए सूबेदार अफरिसयाब ख़ान के समय लूट-मार तथा
अराजकता अपने चरम पर प च ँ गई।105 मुग़ल का शासन कु लीन क मीरी मुसलमान के
िलए आम तौर पर ितकू ल था और वे स ा ित ान से अलग कर दये गए थे ले कन
इसी दौर म उनम से बड़ी सं या ापार क तरफ़ मुड़ी थी और मुग़ल सा ा य के साथ
जुड़ने के कारण ापार के िलए खुले नये अवसर का फ़ायदा उठाते ए क मीर म एक
मज़बूत ापारी वग िवकिसत हो गया था जो एक तरफ़ मुग़ल के ित दु मनाना ख़
रखता था तो दूसरी तरफ़ उन पंिडत के ित भी जो मुग़ल शासन म भावशाली होकर
उभरे थे।106 उसी दौर म कु छ ऐसे ही मुि लम कु लीन ने ना दर शाह क मृ यु के बाद
अफ़ग़ान स ा के मुख बने अहमद शाह दुरानी* को क मीर म अपना सूबेदार िनयु
करने का यौता देते ए ख़त िलखा ले कन यह ख़त अफरिसयाब ख़ान के हाथ म पड़ गया
तो इन क मीरी कु लीन ने िव ोह कर दया और मुग़ल शासक को नया सूबेदार िनयु
करने को कहा। नतीजतन, मीर मुक़ म कांठ को नया सूबेदार िनयु कया गया। ले कन
अफ़रा-तफ़री के इस माहौल म अबु बरक़त के साहबज़ादे अ दुल क़ािसम ने सूबेदारी पर
क़ ज़ा कर िलया। मीर मुक़ म ने वाज़ा ज़ािहर दीदमारी के साथ अहमद शाह दुरानी से
क मीर पर क़ ज़े क अपील क । उस व त अहमद शाह लाहौर म था और िह दु तान पर
आ मण क तैयारी कर रहा था। उसने अ दु लाह ख़ाँ इशाक़ अक़ासी के नेतृ व म एक बड़ी
सेना क मीर पर आ मण के िलए भेजी। पहले तो अ दुल क़ािसम ने उसे एक लाख पये
देकर समझौता करना चाहा ले कन जब बात नह बनी तो शोिपयान म दोन सेना के
बीच पं ह दन तक मुक़ाबला चला। अ ततः अ दुल क़ािसम का मुख िसपहसालार गुल
ख़ान खैबरी ग़ ारी कर गया और अक़ासी क सेना से जा िमला। क़ािसम को िगर तार कर
काबुल भेज दया गया और इस तरह 1753 म क मीर मुग़ल के हाथ से िनकलकर
अफ़ग़ान के क़ ज़े म चला गया।107
क मीर अफ़ग़ािन तान सा ा य के अिभ िह से से यादा एक अधीन थ रा य था108
और ख़द अ व था और अिनि तता से जूझते अफ़ग़ान शासक के िलए क मीर अपने
यु अिभयान के िलए लूटपाट का आसान िशकारगाह था। इन 67 साल म पाँच अफ़ग़ान
शासक, अहमद शाह दुरानी (1753-72), तैमूर शाह (1772-93), ज़मान शाह (1793-
1800) और शाह शूजा तथा महमूद शाह ए तथा क मीर म 29 सूबेदार और 14 नायब
सूबेदार (अफ़ग़ान दौर म इ ह ‘सािहबकार’ कहा गया) ए। उनम सबसे ल बा शासनकाल
(लगभग साढ़े आठ साल) 1753 म सूबेदार बने राजा सुखजीवन मल का रहा िज ह ने ख़द
को वतं राजा घोिषत कर दया था, जब क सबसे कम समय (3 महीन ) के िलए नू ीन
बमज़ाई और कफ़ायत ख़ान सूबेदार रहे।109 लॉरस िलखते ह :
वाथ लोग को सूबेदार बनाया गया, िज ह ने क मीर के ग़रीब लोग से िजतना धन कमा सकते
थे, कमाया। ज दी से ज दी उ ह धन कमाना था य क वे नह जानते थे, कब काबुल म कोई और
ज़ रतम द शासक का क़रीबी हो जाएगा और उसे सूबेदार िनयु कर दया जाएगा।110
वाभािवक है क यादातर इितहासकार क मीर म अफ़ग़ान के शासन को आम तौर
पर बेहद अराजक और बबर मानते ह। सोज़ एक ंजना म इसे समेटते ह : ‘कांठ और
दूसरे मह वपूण क मी रय ने सोचा था क अफ़ग़ान मुग़ल क तरह ह गे ले कन ज द ही
अक़ासी जु चू के समय का अ याचार वापस ले आया।’111 पाँच महीन तक क मीर को
बुरी तरह से लूटने के बाद एक करोड़ से अिधक पये और ढेर सारा माल-असबाब लेकर
जब वह अफ़ग़ािन तान लौटा तो अ दु ला ख़ान काबुली को सूबेदार तथा सुखजीवन मल
को सािहबकार* िनयु कया। यह त य न के वल अक़ासी के िह दु के ित भयावह
वहार क एक िवड बना रचता है बि क इसक िववेचना क मीर म अफ़ग़ान शासन के
दौरान िह दु के ित वहार को समझने म भी मदद करती है। अक़ासी क इस लूटपाट
से क मीरी जनता का कोई िह सा नह बचा था। वाभािवक है क मुग़लकाल म समृ
ए पंिडत और पंजाब तथा दीगर जगह से आकर क मीर म बसे ख ी इसका िशकार
होते। ले कन इस दौर को िह दु के िलए भयावह होते ए इस त य को अ सर िछपा
िलया जाता है क इस लूटपाट का िशकार वह मुि लम ापारी वग भी आ िजसने
अफ़ग़ान को क मीर आने का िनमं ण दया था। कलाम उस दौर के शायर मु ला अहमद
को उ धृत करते ह :
अफ़ग़ान के क मीर के दृ यपटल पर आते ही बाँसुरी क मीठी धुन ग़मज़दा म सय म बदल गई।
उप वी अफ़ग़ान ने अपनी ककश आवाज़ से क़यामत के दन जैसा भयानक मंज़र पैदा कर दया।
अफ़ग़ान ने जो कु छ कया, वह आपक आँख के सामने क़यामत के दन के सारे मंजर अपनी सारी
भयावहता म पेश कर देता है। अचानक िजस पल अकासी ने क मीर क ज़मीन पर क़दम रखे, एक
बला क मीर पर िघर आई।112
ज़ािहर है क अगर अफ़ग़ान शासन के वल िह दु के ित ू र होता तो एक मुि लम
शायर उसका ऐसा वणन नह कर रहा होता पर तु आन द कौल सिहत यादातर क मीरी
पंिडत आ यान म अफ़ग़ान शासन का िज़ करते ए िह दु के िव थापन क बात
लगातार तो आती है ले कन वह इस त य पर कोई यान नह देते क उसी दौर म क मीरी
मुसलमान भी िह दुकुश के इदिगद के पहाड़ी रा य और छोटे रजवाड़ म िव थािपत
होकर बस गए थे। उदाहरण के िलए िगलिगट म बड़ी सं या म मुि लम जाकर बसे और
वहाँ क जनसं या का सबसे बड़ा िह सा ह और िस धु घाटी के होदर म क मीरी
मुसलमान क एक छोटी-सी ब ती उसी दौर म बनी। इसी दौर म काँगड़ा और च बा म
कु छ क मीरी पंिडत जाकर बसे जो अठारहव सदी म वहाँ के रजवाड़ म मुख पद तक
प च ँ ।े सडर समाहार करते ए कहती ह :
क मीरी पंिडत समुदाय क सामूिहक मृित म अफ़ग़ान दौर क घटनाएँ कं िचत िवकृ त प म दज
ह िजनम आपदा को िसफ़ क मीरी पंिडत तक सीिमत कर दया गया है, जब क बाद के अिनि त
समय म पंिडत ारा अपनी ि थित मज़बूत करने के िलए अपने ारा ो सािहत कये गए
अ याचार क कोई बात नह होती। इन आपदा को दूसरे िह दु क नज़र म अपनी
ामािणकता सािबत करने के िलए और एक ऐसे समय म, जब अ तर-धा मक सिह णुता एक मू य
क तरह थािपत हो चुक थी, सा दाियकता को थािपत करने के िलए उपयोग कया गया।113
क मीर के इितहास लेखन म ये सामूिहक मृितयाँ बेहद मह वपूण भूिमका िनभाती ह,
ख़ास तौर पर न बे के बाद के दौर के क मीरी पंिडत आ यान म।
वाज़ा के वल चार महीने और सात दन सूबेदार रह पाया और एक िति त क मीरी
साम त अ दुल हसन ख़ाँ बांदे के सहयोग से सुखजीवन मल ने उसक और उसके दो बेट
क ह या करवा दी और क मीर क सूबेदारी पर क़ ज़ा कर िलया। बांदे को वज़ीर-ए-
आज़म बनाया गया। शु म दुरानी ने इसे अ यथा नह िलया और सुखजीवन मल को
मा यता भी दी ले कन कु छ समय बाद जब उसने एक बड़ी रािश क माँग क तो ऐसा कर
पाने म असमथ सुखजीवन मल ने बांदे क सलाह पर बग़ावत का झंडा बुल द कया और
दुरानी के ितिनिधय क सेना को एक िनणायक यु म हराकर क मीर का वतं शासक
बन बैठा। हालाँ क तकनीक प से ीनगर लौटकर उसने त कालीन मुग़ल बादशाह
आलमगीर ि तीय को क मीर का बादशाह और ख़द को सूबेदार घोिषत कया और बदले
म आलमगीर ने उसे ‘राजा’ क उपािध दी ले कन मुग़ल शासन उस समय जैसी कमज़ोर
ि थित म था, क मीर पर िनयं ण क कोई कोिशश उसके िलए अस भव थी। सुखजीवन
मल का समय क मीरी पंिडत के िलए अ छा समय माना जाता है। आगे चलकर बांदे और
सुखजीवन मल के स ब ध ख़राब होने पर क मीर म िति त होते जा रहे धर प रवार के
पंिडत महान द धर को धानमं ी बनाया गया। इसे क मीरी पंिडत क ित ा क तरह
िलया जाना वाभािवक ही है ले कन िजस त य क बात नह होती, वह यह क उसके
भाव म राजा ने अपनी धमिनरपे नीितयाँ बदल द । शु वार को जािमया मि जद म
नमाज़ पढ़ने और ईद-नौरोज़ मनानेवाले उस शायर राजा ने अजान और गोकशी पर
पाब दी लगवा दी। इसका सीधा प रणाम यह आ क मुि लम सैिनक ने िव ोह कर
दया, हालाँ क िसख और साँसी सैिनक के दम पर िव ोह दबा दया गया ले कन सबको
साथ लेकर चलने से जो मज़बूती उसने हािसल क थी, वह अब िबखर चुक थी। उधर
पानीपत म मराठ पर िनणायक जीत हािसल कर चुके अ दाली ने अगले ही साल (1762)
म नू ीन बमज़ाई के नेतृ व म सेना भेजी और सुखजीवन मल को भारी हार का सामना
करना पड़ा। ज मू के डोगरा शासक ुव देव ने भी इस यु म अ दाली क सेना क
सहायता क थी िजसके बदले उसे पंजाब म एक जागीर िमली थी।114 सुखजीवन मल को
िगर तार कर आँख िनकालकर काबुल ले जाया गया और वहाँ हाथी के पैर तले कु चलवा
दया गया।115
इसके बाद का अफ़ग़ान शासन का इितहास ष ं , ह या और लूट का एक ददनाक
अफ़साना है। मुग़लकाल म स ा ित ान , ख़ास तौर पर राज व िवभाग म बेहद भावी
होकर उभरे क मीरी पंिडत का अफ़ग़ान काल म भी इन िवभाग पर क़ ज़ा बना रहा।
सुखजीवन मल के अपद थ होने के बाद भी धर प रवार क ित ा पर कोई असर नह
पड़ा और कै लाश धर दुरानी के दरबार म ऊँचे पद पर गए तो उनके भतीजे बीरबल धर को
नू ीन ख़ान के समय म मीर मुक़ म कांठ के साथ वज़ीर बनाया गया। दोन क मीरी
वज़ीर के बीच कभी पटी नह और अ ततः कै लाश धर ने मीर मुक़ म क ह या करवा दी।
नतीजा फर से एक ख़ूनखराबा। लाल ख़ान खटक नामक एक ि ने स ा पर क़ ज़ा कर
िलया तो अ दाली ने ख़रम ख़ान को भेजा और लाल ख़ान हारकर भाग गया। ख़रम ने
बीरबल धर को अपना सािहबकार बनाया और क मीर म अमन-चैन का राज क़ायम करने
क कोिशश क ले कन उस दौर म स ा बनाये रखने के िलए ष ं का सामना
करनेवाली िजस चालाक क आव यकता थी, वह उसम नह थी। जब अपने िपता मीर
मुक़ म क ह या के बदले क आग म सुलगते मीर फ़क़ र उ लाह काँठ ने लाल ख़ान तथा
बो बा क़बीले के सरदार महमूद ख़ान के साथ िमलकर सोपोर म िव ोह कर दया तो वह
इसका सामना करने म असफल रहा और कै लाश धर तथा ख़रम ख़ान क ह या करके मीर
फ़क़ र उ लाह कांठ ने स ा पर क़ ज़ा कर िलया। अगले सात महीने उसके ितशोध के
भयावह महीने थे। पंिडत कै लाश धर के अपराध का बदला उसने क मीरी पंिडत से
िलया। उसने उन पर तमाम कर लाद दये, बुरी तरह से दु वहार कया और दो हज़ार से
अिधक क मीरी पंिडत को तलवार क नोक पर मुसलमान बनने पर मजबूर कया। स ा
के इस नशे के साथ-साथ वह सुरा-सुंदरी के नशे म भी डू बा और जब अ दाली ने नू ीन
बमज़ाई को क मीर पर फर से क़ ज़ा करने के िलए भेजा तो मामूली ितरोध के बाद वह
भागकर खाखा क़बीले के सरदार क शरण म चला गया जहाँ ज दी ही उसक मौत हो
गई।116
यहाँ यह देखना होगा क न तो क मीरी मुसलमान एक मोनोिलथ है, न ही क मीरी
पंिडत। फ़ारसी म ािव य हािसल कर पार प रक प से िशि त इन प रवार के वच व
को सारे क मीरी पंिडत के हालात का ितिनिध मानना उतना ही ग़लत होगा, िजतना
क च द मुि लम साम त प रवार के वच व को मुसलमान का वच व मान लेना। धम
और राजनीित के चोली-दामन के साथ के बीच आम िह दू और मुसलमान, दोन ही
अफ़ग़ान क लूट के िशकार होते रहे और अपनी ि थित मज़बूत करने के िलए ष ं म
िह सा लेने के साथ-साथ इन साम त ने शोषण क या म उनक पूरी मदद क । इसका
एक उदाहरण सबसे बबर माने जानेवाले सूबेदार म से एक वाज़ा करीम दाद ख़ान का
शासनकाल (1776-83) है।
वाज़ा करीम दाद ने सबसे पहले पंिडत और सुि य पर भयावह अ याचार
करनेवाले मीर फ़ािज़ल काँठ को क मीर के राजनीितक प रदृ य से हमेशा के िलए ख़ म
कया तो उसके बाद सीमावत इलाक़ के मुि लम शासक और ज मू के िह दू शासक को
हराकर अपना शासन सुरि त कया।117 इसके बाद शु ई उसक लूट! इस लूट म उसके
औज़ार बने असलम हरकारा और पंिडत दलाराम क़ु ली। और ज़रा लूट के िलए लगाये गए
इन कर पर ग़ौर क िजए—ज़र-ए-िनयाज़, जो मनसबदार पर लगा, ज़र-ए- बूबत जो
जागीरदार पर लगाया गया, ज़र-ए-ग़लत जो फलदार पेड़ पर लगा। इन कर को वसूलने
वाले कमचा रय को उसने ख़द छु पाया और उनक ह या का आरोप पंिडत समुदाय पर
लगाकर एक नया कर थोपा गया—ज़र-ए-दोज़ार। इसके साथ पचास हज़ार का जुमाना
भी लगाया गया। ले कन इसका कोई िवरोध करने क जगह उसके दीवान पंिडत दलाराम
क़ु ली ने उसे शॉल बुनकर पर एक नया कर—दाग़-प मीना—लगाने क सलाह दी।
हांिजय (नािवक ) को भी नह ब शा गया और उ या जडर को नज़रअ दाज़ करते ए
सब पर 75 दाम का कर लगाया गया जब क मुग़लकाल म वृ , युवा और ब को मशः
12, 60 और 36 दाम ही देने पड़ते थे। इस तरह कसान से लेकर जागीरदार तक कोई
ऐसा न बचा िजस पर कर न लगा हो। इस लूट का सीधा असर आम लोग पर ही पड़ना था
—शॉल उ ोग तबाही क तरफ़ बढ़ा, फलदार पेड़ क कटाई ई क लकड़ी बेचकर कर
दया जा सके , हांजी बबाद होने लगे। ज़र-ए-िनयाज़ और ज़र-ए- बूबत का बोझ भी
अ ततः आम कसान पर ही पड़ा। मनसबदार और जागीरदार ने इसक वसूली जनता
से ही क । क मीरी जनता क मेहनत क इस लूट के िख़लाफ़ कोई आवाज़ उठाने क जगह
थानीय मुि लम और पंिडत इस लूट म सहयोगी बनकर अपनी ि थित मज़बूत करते
रहे।118
पंिडत दलाराम क़ु ली के राजनीितक जीवन को देखना हमारी बात को समझने म और
मददगार होगा। करीम दाद के अ याचारी शासन म पेशकार जैसे मह वपूण पद पर रहे
पंिडत दलाराम उसके बेटे और अ याचार के मामले म करीम को भी पीछे छोड़ देनेवाले
आज़ाद ख़ान के समय (1783-85) मु यमं ी बने। तैमूर शाह ने उससे जब इस लूट के बदले
तीन लाख पये हजाना माँगा तो उसने िव ोह कर दया। तैमूर ने उसके ही भाइय को
उसे हराने के िलए भेजा ले कन आज़ाद ख़ान उ ह हराने म सफल रहा। इसके बाद उसने
अपने तीन दरबा रय —दीवान संह, शेख़ अ दुल नबी और इनायतु लाह ख़ान बांद— े क
ह या करवा दी ले कन दलाराम उसक गुडबुक म बने रहे। आज़ाद ख़ान के समय 3000
िसख को सेना म शािमल कया।119 इस बार तैमूर ने सैफ़ु ौला मदद ख़ान दुरानी को उसे
हराने के िलए भेजा। मदद ख़ान ने उसे हराया और मीरदाद ख़ान (1786-88) को स ा
स पकर चला गया। ले कन इस बदले ए माहौल म भी पंिडत दलाराम क़ु ली अपनी
ि थित बनाये रखने म सफल रहे और दीवान और मु य सलाहकार बनाये गए। तैमूर शाह
को पैसा भेजने के िलए मीरदाद ख़ान ने हर तरह का अ याचार कया। आम आदमी के
भोजन शाली (चावल) क क़ मत बेतहाशा बढ़ ग , नये-नये कर लगे। ज़रा-ज़रा-सी बात
पर िह दू और मुसलमान, दोन को ही मृ युदड ं दये गए। जनता ािह- ािह करती रही
ले कन पंिडत दलाराम क़ु ली अपनी क मीरी जनता का कोई सहयोग करने क जगह
मीरदाद क इस लूट म सहयोगी बने रहे। स ा म बने रहने के िलए उ ह ने िशया-सु ी
मामल को ख़ूब बढ़ावा दया और इसम सहयोग िमला हा फ़ज़ क़माल का। कभी ीनगर
के मु य उपदेशक रहे हा फ़ज़ क़माल को पहले तीन खलीफ़ा के िख़लाफ़ बोलने (तबरा)
के इलज़ाम म पद से हटा दया गया था। पंिडत दलाराम के सहयोग से उ ह ने फर
उपदेश देने शु कये और वही हरक़त दुहराई। सुि य म अस तोष फै ल गया और अ ततः
उ ह पकड़कर, बाल मुड़ाकर गधे पर िबठाकर ीनगर म घुमाया गया और फर ह त-
िचनार (अब ज़ूरी बाग़) के पास उनका िसर धड़ से अलग कर दया गया। फर ख़ानकाह
मु ला और जािमया मि जद के दरवाज़े ब द कर मुि़फ्तय ने नमाज़ रोककर िवरोध
कया और पंिडत दलाराम पर हमला कया। ले कन मीरदाद ने अपने इस सहयोगी क
र ा क और दंगा भड़काने के िलए मीर जाफ़र काँठ को जेल म ब द कर दया। इसके कु छ
दन बाद ही मीरदाद क वाभािवक मृ यु हो गई और जुमा ख़ान (1788) क मीर का
सूबेदार बना। जुमा ने मीर जाफ़र काँठ को रहा कर दया ले कन पंिडत दलाराम क़ु ली
इस बदलाव के बावजूद सूबेदार के ि य बने रहे। जुमा ख़ान के ज़माने म रा य का िहसाब-
कताब देने के िलए पंिडत दलाराम को काबुल भेजा गया। वहाँ दरबार म उनके और तैमूर
शाह के बीच क बातचीत का एक रोचक क़ सा है। तैमूर ने पूछा क ये ितलक य
लगाया है आपने? उ ह ने कहा, यह अिलफ़ है जो बताता है क ख़दा एक है। फर तैमूर ने
पूछा क तो कान पर ितलक य लगाया है? उ ह ने कहा, इ लाम म दो लोग क गवाही
ज़ री होती है तो ये दो ितलक उन दो गवाह का तीक ह। फर तैमूर ने गले पर कये
ितलक के बारे म पूछा तो उ ह ने कहा क यह बताता है क जो ख़दा के एक होने क बात
उन दो गवािहय के बावजूद नह मानता, उसे फाँसी पर लटका दए जाने का तीक है
यह।
अपनी हािज़रजवाबी से तैमूर को भािवत करके दलाराम ढेर ईनाम-ओ-इक़राम
लेकर वापस लौटे। चीज़ बद तूर चलती रह ।
जुमा ख़ान (1788-92) के समय म क मीरी इितहास क एक मह वपूण कविय ी
अ नमाल का िज़ आता है। ए.के . रहबर क िह ी ऑफ़ क मीरी िलटरे चर के अनुसार
उनका ज म 1738 म एक िति त प रवार म आ था। लल द, ह बा ख़ातून और पा
भवानी क तरह उनका भी बाल िववाह आ था, ले कन उनक शादी जुमा ख़ान के
दरबार के एक िति त दरबारी, ीनगर के रै नावाड़ी िनवासी, मुंशी भवानी दास खाच
से ई थी। खाच फ़ारसी के िति त िव ान् और किव थे। उ ह फ़ारसी म एक नई बहर
बहर-ए-तवील क शु आत का ेय दया जाता है। ले कन कु छ दन बाद ही भवानी दास
ने अपनी प ी को छोड़ दया। अ नमाल अपने िपता के घर लौट ग । उनक यह पीड़ा
किवता म ढल गई।120 उनक किवताएँ ह बा ख़ातून क पर परा म मानी जाती ह।
उ ह ने भी ह बा क ही तरह क मीरी भाषा म ‘लोल’ िलखे और इस पर परा क वह
आिख़री किव ह। अ नमाल के गीत म रह यवाद और धा मक अनुभव का सि म ण है।
पित से अलग होने के बाद उ ह ने करघे को जीने का सहारा बनाया और यह करघा एक
तीक क तरह लगातार उनके का म उपि थत है। यह भी एक रोचक त य है क ह बा
क ही तरह हाल म उ ह भी अनैितहािसक बताने क कोिशश ई ह।121 ख़ैर, अ नमाल का
क़ सा यह तो बताता ही है क पूरे साम ती युग म क मीर म ी क दशा कतनी दयनीय
थी। लल द और पा भवानी धम के पास ग तो उ ह देवी बना दया गया और ह बा
तथा अ नमाल ने िवरह और ेम क राह चुनी तो उ ह इितहास से ही ख़ा रज करने क
कोिशश ।
िशया-सु ी दंगे होते रहे, जनता कर के भार से दबी रही और सूबेदार बदलते रहे
ले कन पंिडत दलाराम क़ु ली का असर बद तूर तब तक बना रहा जब तक 1793 म
क मीर के सूबेदार बने मीर हज़ार ख़ान ने तैमूर शाह के बाद नये अफ़ग़ान शासक ज़मान
शाह से िव ोह कर सुि य को साथ लेने के िलए िशया और पंिडत िवरोधी नीितयाँ नह
अपना । पासे पलटे और अब तक काफ़ दु मन बना चुके पंिडत दलाराम क़ु ली का िसर
धड़ से अलग कर दया गया।122 स ा म रहकर सूबेदार ारा आम जनता क लूट का
औज़ार बने पंिडत दलाराम क़ु ली क ह या के बाद उनके िवरोिधय का क़हर आम
क मीरी पंिडत पर टू टा, अ याचार कये गए, जिज़या लगाया गया और एक तरफ़ लूट का
माल एक आ तो दूसरी तरफ़ मीर हज़ार ख़ान सुि य को स तु करने म सफल रहा।
िजयालाल कलाम जब क मीरी पंिडत का इितहास िलखते ह तो एक तरफ़ पंिडत
दलाराम क़ु ली को नायक बताते ह, दूसरी तरफ़ जनता के ऊपर ए इस अ याचार को
िसफ़ धम के आधार पर ा याियत करके अपने एजडे के प म तक जुटाते ह। इितहास के
त य के सेलेि टव उपयोग का भयावह उदाहरण तुत करते ए कलाम पंिडत
दलाराम क हािज़रजवाबी का तो िव तार से िज़ करते ह ले कन हा फ़ज़ क़माल और
दलाराम के र त पर कु छ न कहते ए उन पर ए हमले को बस अफ़वाह का प रणाम
बताते ह। वग य समझ और सामािजक अ त वरोध को उनके आदमक़द म देखे जाने क
जगह पूरे िवमश को िह दू बनाम मुसलमान बनाकर देखे जाने के िलए ऐसे ही फज़ वाड़े
क ज़ रत पड़ती है।
ख़ैर, अपनी सारी कोिशश के बावजूद मीर हज़ार ख़ान क मीर पर क़ ज़ा बनाये रखने
म सफल नह आ। उसका अ त भी बड़ी ंजना रचता है। उसने ख़द को ख़ानकाह मौला
म िछपा िलया क कोई मुसलमान उसके भीतर आकर उसे मारकर मि जद को अपिव
नह करे गा। ले कन रहमतु लाह ख़ान के सैिनक ने उसे मि जद से घसीटते ए िनकाला
और िगर तार कर िलया।123
पंिडत दलाराम क़ु ली के बाद क मीर क राजनीित म भावी आ पंिडत न दराम टीकू
जो काबुल म पहले वज़ीर वफ़ादार ख़ान के दीवान और फर जामन शाह के समय म मं ी
बने। उसके भाव का अ दाज़ इस बात से लगाया जा सकता है क जब सन् 1800 म
त कालीन सूबेदार अ दु ला ख़ान अ कोज़ाई का न दराम टीकू के भाई हरदास टीकू के
साथ—िजनक िज़ मेदारी क मीर से मालगुज़ारी वसूल कर नज़राना सीधे काबुल भेजना
था—िववाद आ तो ज़ामन शाह और वफ़ादार ख़ान ने अपने सूबेदार क जगह हरदास
टीकू का साथ दया और अ दु ला ख़ान को काबुल बुलाकर िगर तार कर िलया गया।
वफ़ादा रय का आलम यह क अ दु ला ख़ान के भाई अता मुह मद ख़ान अ कोज़ाई ने,
िजसे अ दु ला ने अपनी अनुपि थित म क मीर क सूबेदारी स पी थी, वफ़ादार ख़ान ारा
क मीर का सूबेदार बनाकर भेजे गए अपने तीसरे भाई वक ल ख़ान क यु म हराकर
ह या कर दी!
तो स ा और स पि क अंधी लूट के उस दौर म धम, र ते और ऐसी तमाम चीज़
हिथयार ज़ र बन ले कन स ा और स पि इन सब पर हर हाल म भारी रहे। काबुल म
भी स ा का तीखा संघष चल रहा था और इसका फ़ायदा उठाकर अता मुह मद ख़ान ने
ख़द को वतं घोिषत कर दया और ऐसे म ज़ािहर था क हरदास टीकू क जगह जेल म
होती। िजस स ा के िलए उसने जामन शाह से िव ोह कर दया, अपने सगे भाई क ह या
कर दी, उस पर वह हरदास टीकू जैसे ख़तरे को आज़ादी से कै से मँडराने देता? स ा के नशे
म वह पागल हो गया और उसक ऐयाशी का िशकार क मीरी लड़ कयाँ। हज़ार
लड़ कय का बला कार कया गया और हालात यहाँ तक प च ँ े क िपता ने अपनी
बे टय के िसर मुड़ाकर उनके चेहर पर कािलख मल दी क सूबेदार क नज़र-ए-बद से
उनको बचा सक।124
उधर काबुल म भी ष ं का बोलबाला था। 1801 म ज़ामन शाह को िगर तार कर
उसके भाई महमूद शाह ने उसक आँख िनकलवा ल । 1805 म तीसरे भाई शाह शूजा ने
महमूद शाह को अपद थ कर दया। इधर रणजीत संह पंजाब म लगातार मज़बूत हो रहे
थे। इन सबसे क मीर अ भािवत नह रह सकता था। महमूद शाह के स ा म आने के साथ
लौट आया अ दु ला ख़ान अ कोज़ाई शाह शूजा के स ा म आने के बाद अपद थ कया
गया और अता मुह मद ख़ान बकज़ाई (1806-13) क मीर का सूबेदार बना। उसने शाह
शूजा ारा भेजे गए मुह मद अकरम ख़ान और मीर अफज़ल ख़ान क सेना को हराकर
लगभग आज़ाद शासक क तरह क मीर पर राज कया। आ त रक संघष म परािजत
होकर शाह शूजा मु तान म रणजीत संह क शरण लेने को मजबूर आ तो अता मुह मद
ख़ान ने पंिडत न दराम टीकू क अगुवाई म एक ितिनिधमंडल मु तान भेजा िजसने शाह
शूजा को यक़ न दलाया क क मीर म उ ह बादशाह वाली इ ज़त िमलेगी। शाह शूजा
राज़ी होकर 27 िसत बर, 1813 म क मीर आया तो उसे शाही क़ै दी का ओहदा दे ह र
पवत के क़ले म नज़रब द कर दया गया। अगले ही दन अता मुह मद ख़ान ने ख़द को
क मीर का आज़ाद शासक घोिषत कर दया और पंिडत सहजराम स ू को अपना दीवान
िनयु कया।125 उसका शासन क मीर म शाि त और समृि के काल क तरह माना
जाता है। उसने नु द ऋिष के नाम से िस े ढलवाये,126 ह र पवत के अलावा सोपोर और
बारामूला म क़ले बनवाए, बारामूला म पुल बनवाया और क मीर को सुरि त करने के
िलए सेना को मज़बूत कया। उधर महमूद शाह को स ा तक प च ँ ाने वाले फ़तह मुह मद
ख़ान ने क मीर पर क़ ज़े क कोिशश जारी रख और उसने रणजीत संह से आठ लाख
पये* ित वष के नज़राने के बदले मदद हािसल क िज ह ने फ़तह मुह मद ख़ान के साथ
दीवान मुहकम च द के नेतृ व म सेना क मीर भेजी। अता मुह मद ख़ान परािजत आ तो
उसने शाह शूजा को रहा कर क मीर का शासक घोिषत कर दया ले कन इसका सेना
पर कोई उ साहव क असर नह आ। अ ततः कोिहनूर क क़ मत पर समझौता आ।
रणजीत संह को शाह क प ी से कोिहनूर िमला,** फ़तह मुह मद ख़ान से आठ लाख
पये िमले और शाह शूजा पर िनयं ण भी।*** तीन महीने तक क मीर क सूबेदारी
सँभालकर फ़तह मुह मद ख़ान दीवान न दराम के साथ काबुल लौट गया।
उसके बाद क मीर क स ा 1813 म सरदार आिज़म ख़ान के हाथ म आ गई िजसने
पंिडत सहज राम स *ू को दीवान और पंिडत हरदास टीकू को सािहबकार िनयु
कया।127 उधर फ़तह मुह मद ख़ान के अटक पर क़ ज़े क कोिशश और उसके ारा
नज़राने क दूसरी क़ त न भेजे जाने से नाराज़ रणजीत संह ने 1814 म जनरल दाल संह
के नेतृ व म एक बड़ी सेना क मीर पर क़ ज़े के िलए भेजी ले कन मौसम क मार के चलते
वह सेना परािजत ई और आिज़म ख़ान िवजेता क तरह ीनगर लौटा। उस यु और
काबुल म दीवान न दराम टीकू के उसे हटाने के ष ं क सूचना िमलने के बाद आिज़म
ख़ान चौक ा हो गया और उसने हरदास टीकू को पद से हटाया ही नह बि क िज़ दा जला
दया। इसके अलावा भी उ ह िजस-िजस पर ग़ ारी का शक था, उसका कड़ाई से दमन
कया िजनम िह दू और मुसलमान, दोन ही शािमल थे।128 एक तरफ़ लगातार ख़राब
मौसम और दूसरी तरफ़ अफ़ग़ान के कमज़ोर होने तथा रणजीत संह क एक के ीय स ा
के प म लगातार मज़बूत होते जाने के साथ क मीर का िसख के हाथ जाना अब समय
क बात रह गई थी। रणजीत संह क नज़र भी क मीर पर लगी ही ई थी।

अफ़ग़ान शासन का पतन


अफ़ग़ान के पतन का क़ सा त कालीन क मीरी राजनीित म पंिडत के वच व और
उनक भूिमका क ही नह बि क उस दौर क नैितकता , क मीरी पंिडत मानस और
वफ़ादारी/ग़ ारी के मानक क भी परत उघारता है।
आिज़म ख़ान के शासन के अि तम दौर म राज व िवभाग के तीन मुख अिधका रय
म से एक बीरबल धर (अ य दो थे िमज़ा पंिडत धर और सुखराम सुफाया) का िववाद आ
राज व क रािश को लेकर। धर को िपछले साल के राज व के एक लाख पये सरकारी
ख़ज़ाने म जमा कराने थे।* जब उ ह ने आनाकानी क तो आिज़म ख़ान ने कड़ाई करनी
शु क । बीरबल धर ने कोई चारा न देखकर महाराजा रणजीत संह क मदद लेने क
ठानी और अपना प रवार दूध के एक ापारी कु दुस गोज़री के यहाँ छोड़कर कु लगाम के
देवसर प च ँ ा जहाँ उसका पु पंिडत राजाकाक धर तहसीलदार था। वहाँ पर उ ह मिलक
साम त , मिलक कामदार और मिलक नामदार का साथ िमला और उन दोन ** तथा अपने
बेटे के साथ वह रणजीत संह से िमलने के अिभयान पर िनकला िजसम उसे ज मू के राजा
गुलाब संह का साथ िमला। गुलाब संह का भाई राजा यान संह महाराजा रणजीत संह
के दरबार म धानमं ी था। एम.जे. अकबर ने बीरबल धर क इस कायवाही को ‘बबर
अफ़ग़ान के िव िह दु का नह , क मी रय का िव ोह बताया है।’129 इधर बीरबल
धर के दामाद पंिडत ि लोक च द ने आिज़म ख़ान को इसक ख़बर कर दी। अब बीरबल
धर के प रवार पर क़हर टू टा। उसक प ी ने आ मह या कर ली और ब को िगर तार कर
काबुल भेज दया गया जहाँ उसका धम प रवतन करा दया गया। कु दुस गोज़री सिहत
बीरबल धर के सभी सहयोिगय क ह या कर दी गई। मिलक के घर जला दये गए और
िमज़ा पंिडत धर को उनके पद से हटा दया गया। ले कन जब आिज़म ख़ान को यह ख़बर
िमली क बीरबल धर रणजीत संह से िमलने म क़ामयाब हो गए ह तो उसे आस ख़तरे
का आभास हो गया और पंिडत सहजराम धर क सलाह पर पहले उसने अपने प रवार क
ि य को सहजराम धर के साथ ही काबुल भेज दया और फर वह अपने भाई ज बार
ख़ान को क मीर क िज़ मेदारी स पकर काबुल चला गया।130*** रणजीत संह ने इस
बार कोई क़सर नह छोड़ी। दीवान िमसर च द, सरदार ह र संह नलवा, सरदार वाला
संह और राजा गुलाब संह के साथ उ ह ने अपने राजकु मार खड़क संह के नेतृ व म तीस
हज़ार सैिनक क एक सेना क मीर पर िवजय के िलए भेजी। उधर नेपाल यु म पराजय
के बाद वहाँ से पलाियत ए गोरखा सैिनक और ज मू के राजा गुलाब संह का सहयोग
भी िसख सेना को िमला।131
ले कन एक अ त:कथा के िबना उस दौर को समझना मुि कल होगा। रणजीत संह ने
बीरबल धर पर कोई अंधा भरोसा नह कया था बि क उनके बेटे राजाकाक धर को
ज़मानत के तौर पर अपने पास रख िलया था। राजाकाक धर आगे जाकर डोगरा शासन के
दरबार म सव पद तक प च ँ ।े ख़ैर, दरे ल दर के पास ए यु म पठान सेना बुरी तरह
परािजत ई और ज बार ख़ान के ीनगर से पलायन के साथ ही 15 जून, 1819 को
क मीर अफ़ग़ान के हाथ से िसख के हाथ चला गया।132
इस तरह क मीर म इ लामी शासन का वह दौर समा आ या य कह क बाहरी
शासन का एक दौर समा आ। उस दौर म मुग़ल शासन के बाद से ही दरबार म पंिडत
का जो वच व हम देखते ह, उसके कारण क चचा पहले क गई है। यहाँ ककर एक त य
पर ग़ौर करना ज़ री है क यह वच व समाज म नह , दरबार म था। पंिडत या
मुसलमान को मोनोिलथ मान लेने का प रणाम यह होता है क दरबार म उनके मह व
को ही समाज म उनक ि थित के समक मान िलया जाता है। बड़ा सच यह है क वग य
िवभाजन धा मक िवभाजन क ही तरह एक मूलभूत त य है। जहाँ दरबार म स य
उ वग य ा ण और उनके समक उ वग य मुसलमान के बीच संघष चलता रहा,
वह ऐसा लगता है क ामीण इलाक़ और शहर के भी आम िह दू-मुसलमान के बीच
स ब ध सामा य ही रहे। अिधक से अिधक राज व वसूली का असर खेितहर समाज पर
पड़ना ही था िजसका सबसे बड़ा िह सा मुसलमान का ही था। अफ़ग़ान का शासनकाल
क मीर क लगातार लूट और फल व प द र होते चले जाने का काल था और उस लूट से
आम िह दू तथा मुसलमान दोन ही नह बचे, तो उस लूट म उ ह उ वग य मुसलमान
और पंिडत , दोन का भरपूर सहयोग िमला। लॉरस उस असर को बेहद मानीखेज़ तरीक़े
से समेटते ए कहते ह :
पठान के शैतानी शासन का ख़ा मा क मी रय के सभी वग के िलए बड़ी राहत का सबब रहा होगा
और कसान से अिधक यह राहत कसी के िलए नह हो सकती जो अफ़ग़ान सरदार के क़हर से
घाटी छोड़कर चले गए थे।133
ले कन यह राहत दीघजीवी नह रही य क इसके बाद आनेवाले िसख और डोगरा राज
म लगान को लेकर नीितयाँ ब त नह बदल । हमने देखा ही क अफ़ग़ान शासन के
आिख़री दौर म राज व िवभाग पूरी तरह पंिडत के क़ ज़े म आ गया था और यह आगे भी
जारी रहा। ऐसे म लगान वसूलने का काम पंिडत के हाथ म आया जब क लगान देनेवाले
कसान क ब सं या मुसलमान क थी। इस एक त य ने आगे के क मीरी इितहास म
बड़ी भूिमका िनभाई।

_______________
* बुलबुल शाह का असली नाम सैयद शरफ़ अल दीन था। वह सुहरावद स दाय के सूफ़ संत शाह िनमातु लाह वली
फ़ारसी के िश य थे और सहदेव के समय तु क तान से क मीर आ गए थे।
** सद ीन या सदर अल दीन का अथ है—इ लाम का नायक। यह नाम उसे बुलबुल शाह ने दया था।
* तुक अचल ने जब घाटी पर हमला कया तो उदयनदेव ल ाख भाग गया। कमान पूरी तरह से रानी और शाहमीर के
हाथ म आ गई। उ ह ने चतुराई से चाल चली और अचल को समपण का स देश भेज दया। इससे जब वह िनि त हो
गया और उसने सेना का एक िह सा वापस भेज दया तो रानी, उसके भाई रावणच , भ भी ण और शाहमीर ने सेना
एक कर उस पर हमला कया और बुरी तरह परा त कर िगर तार कर िलया। बीच चौराहे पर शाहमीर ने अचल का
िसर धड़ से अलग कर दया।
* यारहव सदी तक सूफ़ स दाय ने ख़द को बौ और ईसाई िभ ु के ही ढाँचे म ढाल िलया था और उनके मठ क
तरह ख़ानकाह बनवाने लगे थे (ए. यू. रफ़ क -xlvii)।
* पा रमू ने इितहासकार िनज़ामु ीन और फ़ र ता के हवाले से उसका नाम शंकर बताया है।
* लल द के जीवन और रचना के बारे म िव तार के िलए देख : लल द, जयालाल कौल, सािह य अकादमी,
द ली, 2012
* िव तार के िलए देख : ‘क मीरनामा : इितहास और समकाल’, अ याय 3
* िस ा त प म कसी ग़ैर-मुि लम को एक मुि लम रा य क तरफ़ से लड़ने क इजाज़त नह दी जा सकती इसिलए
उसे सेना के अनुर ण के िलए ग़ैर-मुि लम को कर देना ही चािहए। हालाँ क मुग़ल क सेना म राजपूत का होना बेहद
सामा य था तो जिज़या असल म िस ा त से अलग धा मक भेदभाव और ग़ैर-मुि लम के अपमान का ही ज़ रया था।
* पहले भी लाॅरस और नाइट को हमने क मीर के िह दु और मुसलमान म बाहरी तौर पर अ तर न होने क बात
करते देखा है। आईन-ए-अकबरी म अबुल फ़ज़ल ने जहाँगीर के हवाले से िलखा है क बाहर से ा ण को मुसलमान से
अलग नह पहचाना जा सकता है।
* नेह नामकरण को लेकर आम तौर पर जवाहर लाल नेह क आ मकथा के आधार पर नहर के कनारे बसने से जोड़ा
जाता है। ले कन एम.वाय. टग ने काफ़ शोध कर िस कया है क या तो नेह प रवार क मीर म नौ नामक गाँव से
आया था या वह नहर के काम से जुड़े रहने के कारण उनका नाम नेह पड़ गया होगा। बी.के . नेह ने भी अपनी
आ मकथा म लॉरस से ई मुलाक़ात का िज़ करते ए ऐसी स भावना क है और इस उपनाम के कु छ और लोग
का िज़ कया है िजनका उनके प रवार से कोई लेना-देना नह है। ीनगर के छानपोरा इलाक़े म मुझे भी एक नेह
द पती का िज़ िमला जो न बे के दशक के बाद भी क मीर म ही रहते थे। अब उस द पती क मृ यु हो चुक है और ब े
िवदेश म ह।
* मुशी ल हसन क कताब ‘द नेह ज’ से साभार
* अहमद शाह दुरानी हेरात के अ दाली क़बीले के पोपलाजाई वंश के सदोज़ाई शाखा के अ दुल ज़मान ख़ान का बेटा
था। अ दुल ज़मान ख़ान मु तान म आकर बस गए थे जहाँ 1722 या 1724 म अहमद शाह का ज म आ। अ दाली
(आ द-ए-अली यानी ख़लीफ़ा अली के नौकर) के उपनाम से जाने जानेवाले सदोज़ाई पहले िशया थे ले कन बाद म क र
सु ी हो गए। उ ह ने ना दर शाह के िख़लाफ़ बग़ावत क थी और अहमद शाह को उसके बड़े भाई ज़ि फ़कार के साथ
िगर तार कर िलया गया था। बाद म ना दर शाह ने उन दोन भाइय को रहा कर अपने साथ ले िलया। ज़ि फ़कार
हेरात के सूबेदार के ओहदे तक प च
ँ ा जहाँ एक यु म वह मारा गया और अहमद शाह ना दर शाह के िनजी टाफ़ म
शािमल आ। 9 जून, 1747 म जब ना दर शाह क ह या ई तो अहमद शाह ने कोिहनूर सिहत उसक संपि के बड़े
िह से पर क़ ज़ा कर िलया और अफ़ग़ान साम त ने उसे नया बादशाह चुना और कांधार क एक मि जद म उसक
ताजपोशी ई। दुरानी नाम उसे उसके पीर सािबर शाह ने दया था, िजसका अथ होता है : दुर-ए-दौराँ—ज़माने का
नगीना। ले कन अहमद शाह ने दुर-ए-दुरा को वरीयता दी िजसका मानी है—नगीन का नगीना। इस तरह अहमद शाह
अ दाली इितहास म अहमद शाह दुरानी के नाम से जाना गया और शाहानी दुरानी या दुरानी वंश का आर भ आ
(सूफ़ 298-99)।
* नायब सूबेदार, िजसके िलए मुग़ल शासन म आिधका रक नाम ‘कारगुज़ार’ था, उसे अब ‘सािहबकार’ कहा गया।
अफ़ग़ान शासक क सबसे अिधक िच अिधकतम कमाई म थी तो कु छ मह वपूण बदलाव राज व िवभाग म कये गए।
उस दौर म सािहबकार के बाद सबसे मह वपूण पद ‘पेशकार’ का था िजसक भूिमका आ थक ब धन क थी, हालाँ क
अ सर यह दोन पद आम तौर पर एक ही ि के पास आ करते थे।
* खुशवंत संह ने यह रािश 9 लाख पये बताई है (अ िह ी ऑफ़ िसख ल, खंड 1, पेज 229)।
** कोिहनूर का क़ सा भी रोचक है। मूलतः यह गोलकुं डा रा य म को लूर के पास 1665 के आसपास खान से िनकला
था िजसे मिलक जुमला ने शाहजहाँ को भट कया था। उस समय यह साढ़े 787 कै रे ट का था। शाहजहाँ ने इसे अपने मोर
मुकुट पर लगवाया था। बाद म औरं गज़ेब के समय ग़लत तरीक़े से सफ़ाई के कारण इसका वज़न साढ़े 319 कै रे ट का रह
गया। ऐसा लगता है क यह उस के ीय स ा का तीक बन गया िजसके हाथ म क मीर हो। ना दर शाह ने जब द ली
पर हमला कया तो उसक नज़र कोिहनूर को तलाश रही थी। हरम क एक नौकरानी से उसे यह राज़ पता चला क
मुह मद शाह ने उसे अपनी पगड़ी म िछपा िलया है तो जब समझौता होने के बाद उसने मुह मद शाह से पगड़ी बदल कर
दो ती प करने का ताव दया िजसे अ वीकार कर पाना मुह मद शाह के िलए स भव नह था। इस तरह 1739 म
वह अफ़ग़ान के हाथ चला गया और थोड़े दन बाद क मीर भी मुग़ल के हाथ से अफ़ग़ान के हाथ चला गया। वहाँ से
वह रणजीत संह के हाथ गया और उसके बाद क मीर पर िसख का क़ ज़ा आ। अ ततः 1849 म वह अं ेज़ के हाथ
चला गया (सूफ़ -326)।
*** शाह शूजा से काला तर म रणजीत संह ने उसका सारा धन, हीरे -जवाहरात छीन िलये और िगर तार कर िलया।
ले कन वह एक रात सुरंग बनाकर भाग िनकलने म सफल रहा और भटकता आ ि टश सीमा तक जा प च ँ ा। वहाँ जब
उसने अपना प रचय दया तो उ ह ने उसे दयापूवक शेष जीवन गुज़ारने के िलए स माननीय शरण दी (सूफ़ -328)।
* पा रमू ने सहजराम स ू के बारे म एक रोचक क़ से का उ लेख कया है। वह एक घोटाले म पकड़े गए तो सूबेदार
नािज़म ख़ान के यहाँ हािज़री लगी। तक-िवतक क जगह साफ़-साफ़ ग़लती मान ली। सूबेदार ईमानदारी से भािवत
आ पर सज़ा तो देनी ही थी। तो ऑ शन दया—या तो मुसलमान बन जाओ या फर सूली पर चढ़ो। सहजराम ने
इ लाम अपनाया पर कहा—मुसलमान बन के घाटी म नह रह पाऊँगा। उ ह िसयालकोट म एक बड़ा ओहदा दे दया।
बाद म उसी ख़ानदान म सर इक़बाल पैदा ए। शेख़ अ दु ला ने अपनी जीवनी म िज़ कया है क अ लामा इक़बाल
को अपने ‘स ’ू पर परा पर ब त अिभमान था (पेज 52, ले स ऑफ़ िचनार)। हालाँ क बशीर सिहत कई मह वपूण
इितहासकार ने इस बात से नाइ ेफ़ाक ज़ािहर क है क इक़बाल उनके प रवार से थे।
* इस घटना को लेकर अलग-अलग इितहासकार ने अलग-अलग िन कष दये ह। पा रमू, सूफ़ और पी.एन.के . बमजाई
का कहना है क छह साल से फ़सल ख़राब होने के कारण बीरबल धर के िलए वह रािश एक करना स भव नह था तो
मोह मद इशाक ख़ान (पसपेि टव ऑन क मीर) ने उसे सरकारी धन का ग़बन बताया है और मोह मद सुलतान पा पोरी
(क मीर इन चे स, पेज 5) इस सारी घटना को मुि लम अफ़ग़ान के िख़लाफ़ िह दू ष ं बताते ह।
** एम.जे. अकबर और बमजाई ने उनका नाम ज़ि फ़क़ार बताया है।
*** खुशवंत संह ने आिज़म ख़ान के काबुल लौटने क वजह फ़तह मुह मद ख़ान क मदद बताई है जो सही नह लगती।
इसी म म उ ह ने बीरबल धर को ज बार ख़ान के अ याचार से िव थािपत बताया है, जो त य पर आधा रत नह है
(अ िह ी ऑफ़ िस स, खंड 1, पेज 248)।
स दभ
1. देख, पेज 48, द िह ी ऑफ़ गल फ़ॉर डम इन क मीर : क चरल एंड पॉिल टकल, ेमनाथ बज़ाज़, क मीर
पि ल शंग क पनी, 1954
2. देख, पेज 29-40, क मीरनामा : इितहास और समकाल, अशोक कु मार पांडये , राजपाल एंड संज़, द ली, 2018
3. देख, पेज 189, द वैली ऑफ़ क मीर, वा टर लारस, ऑ सफ़ोड यूिनव सटी ेस, ल दन, 1895
4. देख, पेज 311, क मीर अंडर द सु ता स ऑफ़ शाह मीर डायन टी (1339-1561), ए. यू. रफ़ क़ , िह ी ऑफ़
िसिवलाइज़ेशन ऑफ़ स ल एिशया, स पादक : एम.एस. आिसमोव तथा सी ई बो वथ, खंड 4, भाग 1,
मोतीलाल बनारसीदास पि लशस ाइवेट िलिमटेड, द ली, 1997
5. देख, पेज 31, क मीर अंडर सु ता स, ोफ़े सर मोिहबुल हसन, आकार पि लके शन, द ली, 1994
6. देख, वही, पेज 311
7. देख, पेज 112, खंड 1, क हण क राजतरं िगणी, एम.ए. टेन, वे टिमिन टर, आ कबा ड कां टेबल एंड क पनी
िलिमटेड, 1900
8. देख, वही, खंड 2, पेज 175
9. देख, पेज 39, इकॉनमी ऑफ़ क मीर अंडर सु ता स, डाॅ. मंज़ूर अहमद, इं टरनेशल जनल ऑफ़ िह ी एंड
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10. देख, पेज 15, कं स ऑफ़ क मीर (अनुवाद : जोगेश च द ), पु तक 1, खंड 3, जोनराज, ई.एल.एम. ेस,
कलक ा, 1898
11. देख, पेज 311, िह ी ऑफ़ िसिवलाइज़ेशन ऑफ़ स ल एिशया, ए. यू. रफ़ क़ , स पादक : एम.एस. आिसमोव
तथा सी.ई. बो वथ, खंड 4, भाग 1, मोतीलाल बनारसीदास पि लशस ाइवेट िलिमटेड, द ली, 1997
12. देख, पेज 43-44, द िह ी ऑफ़ गल फ़ॉर डम इन क मीर : क चरल एंड पॉिल टकल, ेमनाथ बज़ाज़,
क मीर पि ल शंग क पनी, 1954
13. देख, पेज 312, िह ी ऑफ़ िसिवलाइज़ेशन ऑफ़ स ल एिशया, स पादक : एम.एस. आिसमोव तथा सी.ई.
बो वथ, खंड 4, भाग 1, मोतीलाल बनारसीदास पि लशस ाइवेट िलिमटेड, द ली, 1997
14. देख, पेज 36, क मीर अंडर सु ता स, मोिहबुल हसन, काशक : ईरान सोसायटी, 159-बी, धमत ला ीट,
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15. देख, पेज 312, िह ी ऑफ़ िसिवलाइज़ेशन ऑफ़ स ल एिशया, स पादक : एम.एस. आिसमोव तथा सी.ई.
बो वथ, खंड 4, भाग 1, मोतीलाल बनारसीदास पि लशस ाइवेट िलिमटेड, द ली, 1997
16. देख, पेज 20-21, कं स ऑफ़ क मीर (अनुवादक : जोगेश च द ), पु तक 1, खंड 3, जोनराज, ई.एल.एम.
ेस, कलक ा, 1898
17. देख, पेज 39-40, क मीरनामा : इितहास और समकाल, अशोक कु मार पांडय े , राजपाल एंड संज़, द ली, 2018
18. देख, पेज 40, क मीर अंडर सु ता स, मोिहबुल हसन, काशक : ईरान सोसायटी,159-बी, धमत ला ीट,
कलक ा, 1959
19. देख, पेज 130, खंड 1, क हण क राजतरं िगणी, एम.ए. टेन, वे टिमिन टर, आ कबा ड कां टेबल एंड क पनी
िलिमटेड, 1900
20. देख, पेज 48-52, क मीर अंडर सु ता स, मोिहबुल हसन, काशक : ईरान सोसायटी, 159-बी, धमत ला ीट,
कलक ा, 1959
21. देख, पेज 29, अ िह ी ऑफ़ क मीरी पंिड स, िजयालाल कलाम, उ पल पि लके शन, द ली, ( थम सं करण,
1951) संशोिधत सं करण, 2003
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23. देख,पेज 84, अ िह ी ऑफ़ क मीर, डॉ. जी.एम.डी. सूफ़ , खंड 1, लाइट एंड लाइफ़ पि लके शन, नई द ली,
1974
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कलक ा, 1959
25. देख, वही, पेज 106
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1974
27. देख, पेज 291-294, अ िह ी ऑफ़ सूफ़ म इन इं िडया, खंड 1, सैयद अतहर अ बास रज़वी, मुंशीलाल मनोहर
लाल पि लशस ाइवेट िलिमटेड,1978
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29. देख, पेज 26, क मीस ांज़ीशन टू इ लाम, ोफ़े सर इशाक़ ख़ान, मनोहर पि लशस, द ली, 1994
30. देख, पेज 103, ए िह ी ऑफ़ मुि लम ल इन क मीर, आर.के . पा रमू, पीपु स पि ल शंग हाउस, द ली,
1969
31. देख, पेज 310, िह ी ऑफ़ िसिवलाइज़ेशन ऑफ़ स ल एिशया, स पादक : एम.एस. आिसमोव तथा सी.ई.
बो वथ, खंड 4, भाग 1, मोतीलाल बनारसीदास पि लशस ाइवेट िलिमटेड, द ली, 1997
32. देख, पेज 57, क मीर अंडर सु ता स, मोिहबुल हसन, काशक : ईरान सोसायटी, 159-बी, धमत ला ीट,
कलक ा, 1959
33. देख, पेज 34, अ िह ी ऑफ़ क मीरी पंिड स, िजयालाल कलाम, उ पल पि लके शन, द ली, ( थम सं करण,
1951) संशोिधत सं करण, 2003
34. देख, वही, पेज 34
35. देख, वही, पेज 30
36. देख, पेज 432, ए िह ी ऑफ़ मुि लम ल इन क मीर, आर.के . पा रमू, पीपु स पि ल शंग हाउस, द ली,
1969
37. देख, पेज 49, द िह ी ऑफ़ गल फ़ॉर डम इन क मीर : क चरल एंड पॉिल टकल, ेमनाथ बज़ाज़, क मीर
पि ल शंग क पनी, द ली, 1954
38. देख, पेज 60, द टेट इन मेिडवेल क मीर, रतन लाल हंगलू, मनोहर लाल पि लके शन, द ली-2000
39. देख, पेज 19, द क मीरी ा ंस (पंिड स) अपटू 1930 : क चरल चज इन द िसटीज़ ऑफ़ नॉथ इं िडया, हेनरे ट
एम. सडर (िव क िसन मेिडसन िव िव ालय से कया गया शोध-काय)
40. देख, पेज 30, अ िह ी ऑफ़ क मीरी पंिड स, िजयालाल कलाम, उ पल पि लके शन, द ली, ( थम सं करण,
1951) संशोिधत सं करण, 2003
41. देख, पेज 55, द िह ी ऑफ़ गल फ़ॉर डम इन क मीर : क चरल एंड पॉिल टकल, ेमनाथ बज़ाज़, क मीर
पि ल शंग क पनी, द ली, 1954
42. देख, वही, पेज 56
43. म फू ज़ात ए तैमूरी से उ धृत पेज 36, द क मीरी ा ंस (पंिड स) अपटू 1930: क चरल चज इन द िसटीज़
ऑफ़ नॉथ इं िडया, हेनरे ट एम. सडर (िव क िसन मेिडसन िव िव ालय से कया गया शोध-काय)
44. देख, पेज 128, ए िह ी ऑफ़ मुि लम ल इन क मीर, आर.के . पा रमू, पीपु स पि ल शंग हाउस, द ली,
1969
45. देख,पेज 66, क मीर अंडर सु ता स, ोफ़े सर मोिहबुल हसन, आकार पि लके शन, द ली, 1994
46. देख, पेज 40, पसपेि टव ऑन क मीर, मोह मद इशाक ख़ान, गुलशन पि लशस, ीनगर, क मीर, 1983
47. देख, पेज 190, खंड 1, क हण क राजतरं िगणी, एम.ए. टेन, वे टिमिन टर, आ कबा ड कां टेबल एंड क पनी
िलिमटेड, 1900
48. देख, पेज 32, द क मीरी ा ंस (पंिड स) अपटू 1930 : क चरल चज इन द िसटीज़ ऑफ़ नॉथ इं िडया, हेनरे ट
एम. सडर (िव क िसन मेिडसन िव िव ालय से कया गया शोध-काय)
49. देख, पेज 30, अ िह ी ऑफ़ क मीरी पंिड स, िजयालाल कलाम, उ पल पि लके शन, द ली, ( थम सं करण,
1951) संशोिधत सं करण, 2003
50. देख, पेज 30, द क मीरी ा ंस (पंिड स) अपटू 1930 : क चरल चज इन द िसटीज़ ऑफ़ नॉथ इं िडया, हेनरे ट
एम. सडर (िव क िसन मेिडसन िव िव ालय से कया गया शोध-काय)
51. देख, पेज 108, ए िह ी ऑफ़ मुि लम ल इन क मीर, आर.के . पा रमू, पीपु स पि ल शंग हाउस, द ली,
1969
52. देख, पेज 12, पसपेि टव ऑन क मीर, मोह मद इशाक ख़ान, गुलशन पि लशस, ीनगर, क मीर, 1983
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54. देख, पेज 271, रफ़ क़ : सूफ म इन क मीर ॉम द फोट थ टू िस सटी थ सचुरी
55. पी.एन.के . बमज़ाई ारा उ धृत (पेज 329)
56. देख, पेज 103, क मीर अंडर सु ता स, मोिहबुल हसन, काशक : ईरान सोसायटी, 159-बी, धमत ला ीट,
कलक ा, 1959
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58. देख, पेज 28, क मीर िबहाइं ड द वेल, एम.जे. अकबर, रोली बु स, द ली, 2002
59. देख, पेज 17-18, फे िमली एंड कनिशप : अ टडी ऑफ़ द पंिड स ऑफ़ रल क मीर, टी.एन. मदान, ऑ सफ़ोड
इं िडया पेपरबै स, पाँचवाँ सं करण, द ली, 2016
60. देख, पेज 42, द क मीरी ा ंस (पंिड स) अपटू 1930 : क चरल चज इन द िसटीज़ ऑफ़ नॉथ इं िडया, हेनरे ट
एम. सडर (िव क िसन मेिडसन िव िव ालय से कया गया शोध-काय)
61. देख, पेज 22, द क मीरी पंिड स, पंिडत आन द कौल, थैकर, पंक एंड क पनी, कोलकाता, 1924
62. देख, पेज 57, अ िह ी ऑफ़ क मीरी पंिड स, िजयालाल कलाम, उ पल पि लके शन, द ली, ( थम सं करण,
1951) संशोिधत सं करण, 2003
63. देख, पेज 21-22, फे िमली एंड कनिशप : अ टडी ऑफ़ द पंिड स ऑफ़ रल क मीर, टी.एन. मदान, ऑ सफ़ोड
इं िडया पेपरबै स, पाँचवाँ सं करण, द ली, 2016
64. देख, पेज 50, अ िह ी ऑफ़ क मीरी पंिड स, िजयालाल कलाम, (पीर हसन शाह के हवाले से) उ पल
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1969
75. देख, पेज 56, अ िह ी ऑफ़ क मीरी पंिड स, िजयालाल कलाम (पीर हसन शाह के हवाले से), उ पल
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76. देख, वही, पेज 66
77. देख, पेज 53, द क मीरी ा ंस (पंिड स) अपटू 1930 : क चरल चज इन द िसटीज़ ऑफ़ नॉथ इं िडया, हेनरे ट
एम. सडर (िव क िसन मेिडसन िव िव ालय से कया गया शोध-काय)
78. देख, पेज 74, अ िह ी ऑफ़ क मीरी पंिड स, िजयालाल कलाम, उ पल पि लके शन, द ली, ( थम सं करण,
1951) संशोिधत सं करण, 2003
79. देख, पेज 31, टोफ़र ोडेन, अंडर ट डंग क मीर एंड क मीरीज़, ह ट एंड क पनी, ल दन, 2015
80. देख, पेज 80, अ िह ी ऑफ़ क मीरी पंिड स, िजयालाल कलाम, उ पल पि लके शन, द ली, ( थम सं करण,
1951) संशोिधत सं करण, 2003
81. देख, पेज 417, कं स ऑफ़ क मीर (अनुवादक : जोगेश च द ), खंड 3, शुक, ई.एल.एम. ेस, कलक ा, 1898
82. देख, वही, पेज 421
83. देख, पेज 127, पाट ज़ एंड पॉिल ट स एट द मुग़ल कोट 1707-1740, दूसरा सं करण, सतीश च ा, पीप स
पि ल शंग हाउस, द ली, 1972
84. देख, पेज 421, कं स ऑफ़ क मीर (अनुवादक : जोगेश च द ), खंड 3, शुक, ई.एल.एम. ेस, कलक ा, 1898
85. देख, पेज 75, अ िह ी ऑफ़ क मीरी पंिड स, िजयालाल कलाम, उ पल पि लके शन, द ली, ( थम सं करण,
1951) संशोिधत सं करण, 2003
86. देख, पेज 60, द क मीरी ा ंस (पंिड स) अपटू 1930 : क चरल चज इन द िसटीज़ ऑफ़ नॉथ इं िडया, हेनरे ट
एम. सडर (िव क िसन मेिडसन िव िव ालय से कया गया शोध-काय)
87. देख, पेज 568, द ले ज़ंग िचनार, शेख़ अ दु ला (अनुवाद : मोह मद अमीन), दूसरा सं करण, गुलशन बु स,
ीनगर-2016
88. देख, पेज 85, अ िह ी ऑफ़ क मीरी पंिड स, िजयालाल कलाम, उ पल पि लके शन, द ली, ( थम सं करण,
1951) संशोिधत सं करण, 2003
89. देख, पेज 60, द क मीरी ा ंस (पंिड स) अपटू 1930 : क चरल चज इन द िसटीज़ ऑफ़ नॉथ इं िडया, हेनरे ट
एम. सडर (िव क िसन मेिडसन िव िव ालय से कया गया शोध-काय)
90. देख, वही, पेज 62
91. देख, वही, पेज 66
92. देख, पेज 82, द क मीरी ा ंस (पंिड स) अपटू 1930 : क चरल चज इन द िसटीज़ ऑफ़ नॉथ इं िडया, हेनरे ट
एम. सडर (िव क िसन मेिडसन िव िव ालय से कया गया शोध-काय)
93. देख, पेज 85, अ िह ी ऑफ़ क मीरी पंिड स, िजयालाल कलाम, उ पल पि लके शन, द ली, ( थम सं करण,
1951) संशोिधत सं करण, 2003, सडर, 82
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95. देख, https://www.saddahaq.com/my-views-on-kashmir (आिख़री बार 14/09/2019 को देखा गया)
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98. देख, पेज 342, वही
99. http://ikashmir.net/mkraina/6.html (आिख़री बार 14/09/2019 को देखा गया)
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102. देख, http://koausa.org/Saints/RupaBhawani/article4.html (आिख़री बार 14/09/2019 को देखा गया)
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1969
104. देख, पेज 293, अ िह ी ऑफ़ क मीर, डॉ. जी.एम.डी. सूफ़ , खंड 1, लाइट एंड लाइफ़ पि लके शन, नई द ली,
1974
105. देख, पेज 345, ए िह ी ऑफ़ मुि लम ल इन क मीर, आर.के . पा रमू, पीपु स पि ल शंग हाउस, द ली,
1969
106. देख, पेज 106, अ िह ी ऑफ़ क मीरी पंिड स, िजयालाल कलाम, उ पल पि लके शन, द ली, थम सं करण,
1951, संशोिधत सं करण, 2003
107. देख, पेज 294, अ िह ी ऑफ़ क मीर, डॉ. जी.एम.डी. सूफ़ , खंड 1, लाइट एंड लाइफ़ पि लके शन, नई द ली,
1974
108. देख, पेज 83, द क मीरी ा ंस (पंिड स) अपटू 1930 : क चरल चज इन द िसटीज़ ऑफ़ नॉथ इं िडया, हेनरे ट
एम. सडर (िव क िसन मेिडसन िव िव ालय से कया गया शोध-काय)
109. देख , द इं टरनेशनल जनल ऑफ़ यूमेिनटीज़ एंड सोशल जि टस के खंड 4, अंक 1, जनवरी, 2016 म कािशत
ज़हीन के लेख क मीर अंडर द अफ़ग़ांस (1752-1819) म दी ई तािलका
110. देख, पेज 197, द वैली ऑफ़ क मीर, वा टर लॉरस, ऑ सफ़ोड यूिनव सटी ेस, ल दन, 1895
111. देख, पेज 120, क मीर : ि ल सेज़ ऑफ़ िह ी एंड द टोरी ऑफ़ गल, सैफ़ु ीन सोज़, पा पि लके शंस
इं िडया ाइवेट िलिमटेड, द ली, 2018
112. देख, पेज 110, अ िह ी ऑफ़ क मीरी पंिड स, िजयालाल कलाम, उ पल पि लके शन, द ली ( थम सं करण,
1951) संशोिधत सं करण, 2003
113. देख, पेज 87, द क मीरी ा ंस (पंिड स) अपटू 1930 : क चरल चज इन द िसटीज़ ऑफ़ नॉथ इं िडया, हेनरे ट
एम. सडर (िव क िसन मेिडसन िव िव ालय से कया गया शोध-काय)
114. देख, पेज 10, द फाउं डंग ऑफ़ द क मीर टेट : अ बायो ाफ़ ऑफ़ महाराजा गुलाब संह, के .एम. पिण र,
जाज एलन एंड उि वन िलिमटेड, ल दन, 1953
115. देख, पेज 354-55, ए िह ी ऑफ़ मुि लम ल इन क मीर, आर.के . पा रमू, पीपु स पि ल शंग हाउस, द ली,
1969
116. देख, वही, पेज 361
117. देख, वही, पेज 363
118. तारीख़-ए-हसन के ये हवाले द इं टरनेशनल जनल ऑफ़ यूमेिनटीज़ एंड सोशल जि टस के खंड 4, अंक 1,
जनवरी 2016 म कािशत ज़हीन के लेख क मीर अंडर द अफ़ग़ांस (1752-1819) से
119. देख, पेज 317, अ िह ी ऑफ़ क मीर, डॉ. जी.एम.डी. सूफ़ , खंड 1, लाइट एंड लाइफ़ पि लके शन, नई द ली,
1974
120. देख, पेज 176, डॉटस ऑफ़ िवत ता, ेमनाथ बज़ाज़, पा पोश पि लके शंस, द ली, 1959
121. देख, http://ikashmir.net/arnimal/article3.html (आिख़री बार 14/09/2019 को देखा गया)
122. देख, पेज 363-369, ए िह ी ऑफ़ मुि लम ल इन क मीर, आर.के . पा रमू, पीपु स पि ल शंग हाउस, द ली,
1969 और िजया लाल कलाम क कताब अ िह ी ऑफ़ क मीरी पंिड स का अ याय 18
123. देख, पेज 370, ए िह ी ऑफ़ मुि लम ल इन क मीर, आर.के . पा रमू, पीपु स पि ल शंग हाउस, द ली,
1969
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अ याय-4

बदलते समीकरण क सदी


िसख और डोगरा राज म क मीरी पंिडत
[1824-1924]
िजस गाँव म हम के , वह आधा ख़ाली हो चुका था। जो थोड़े-से ामीण वहाँ बचे थे, वे द र ता क
मूरत लग रहे थे। अगर कु छ राहत नह िमली या व था म कोई बदलाव नह आ तो यह ब त
मुम कन है क इस इलाक़े म कोई भी न बचे। फर भी ज़मीन धान क खेती के िलए िबलकु ल मुफ़ द
लग रही थी। जो फ़सल लगी थी, वह अ छी थी। ले कन इन ग़रीब लोग को अपनी मेहनत का ब त
कम फल िमलनेवाला था य क कर वसूलने वाल क एक टु कड़ी गाँव म थी जो अपने मािलक
जवािहर मल के िलए उपज का 9/10वाँ िह सा वसूलने वाले थे।1
—िविलयम मूर ा ट
1824 म क मीर-या ा पर आया यूरोपीय या ी

े नाथ बज़ाज़ अपनी कताब ‘द िह ी ऑफ़ गल फ़ॉर डम इन क मीर’ म अफ़ग़ान



और िसख शासन को एक ही ेणी म रखते ए उस अ याय का नाम देते ह : ‘ ू रता के
अँधेरे साल’। उनका मानना है क काबुल क ही तरह लाहौर से भेजे गए सूबेदार का भी
इकलौता ल य अिधक से अिधक धन लूटना था िजसे महाराजा रणजीत संह को देकर वे
उनके ग़ से से बच सक।2 इस लूट के चलते आम लोग क हालत पहले क ही तरह बद से
बदतर होती गई ले कन इस समानता के बावजूद अ तर जो था, उसे िसख शासन के
एकदम आर भ म घटी एक घटना से समझा जा सकता है—क मीर पर क ज़े के बाद
दीवान मोतीच द के समय उसके एक िसपहसालार फू ला संह ने शाह हमादान क
ख़ानकाह को उड़ा देने के िलए झेलम नदी क दूसरी तरफ़ प थर मि जद के घाट पर तोप
लगवा दी थ , ले कन क मीर म शाह हमादान के मह व से प रिचत और उस िमली-जुली
सं कृ ित म पले-बढ़े बीरबल धर ने ह त ेप कर इस िनणय पर रोक लगवाई।3
ज़ािहर है क अफ़ग़ान के समय के लूट के तं के साथ जो बदली, वह थी धा मक
भेदभाव क वृि । िह दु क जगह िनशाने पर अब मुसलमान थे तो जािमया मि जद
म नमाज़ पर पाब दी लगा दी गई, प थर मि जद सिहत अनेक मि जद को सरकारी
स पि घोिषत कर दया गया और गोकशी को ितबि धत ही नह कया गया बि क
इसके िलए सज़ा-ए-मौत क तजवीज़ क गई और सैकड़ लोग को गोकशी के शक म क़ ल
कर दया गया। ऐसे तमाम कारण से सैकड़ मुि लम प रवार पलायन करके पंजाब, उ र
देश सिहत िह दु तान के अलग-अलग िह स म चले गए।4 यही नह , कसी िसख ारा
कसी क मीरी क ह या कर देने पर उस पर के वल 16 से 20 पये का जुमाना लगता था।
इस जुमाने से अगर मृतक िह दू आ तो उसे चार पये और मुसलमान आ तो दो पये
दये जाते थे।5
ले कन इस बदलाव के बावजूद जो एक चीज़ बद तूर जारी रही, वह थी स ा-
ित ान और ख़ास तौर पर राज व िवभाग पर क मीरी पंिडत का ािधकार। िसख
शासन क थापना म मुख भूिमका िनभानेवाले बीरबल धर को राज व िवभाग का
मुख बनाया गया। बीरबल धर के उ थान और पतन के क़ से से हम उस दौर क एक
और िवड बना को समझ सकते ह।
राज व िवभाग के मुख के प म बीरबल धर ने अपनी यो यता से महाराजा
रणजीत संह को बेहद भािवत कया तो महाराजा ने दशहरे के मौक़े पर उ ह ‘चोगा-
कलगी’ आ द का उपहार देकर स मािनत कया। दीवान मोतीराम के बाद क मीर के
सूबेदार बने ह र संह नलवा के समय भी बीरबल धर अपने पद पर बने रहे। इसी दौर म
महाराजा रणजीत संह ने उ ह क मीर के कु छ अ य मह वपूण दरबा रय के साथ लाहौर
बुलवाया जहाँ सोने के एक जोड़ी कड़े और िख़लअत देकर उ ह स मािनत कया गया। जब
वह ीनगर लौटे तो क मीरी दरबार के एक और मह वपूण सद य और उनके स ब धी
सहजराम धर के बेटे गणेश पंिडत धर ने उनक आवभगत क तैयारी क ई थी जहाँ
बीरबल धर ने कोई ख़ास उ साह नह दखाया। यही नह , उ ह मु तजीरी* के तहत िमले
कु छ गाँव वापस लेने के भी आदेश जारी कर दये। नाराज़ गणेश पंिडत धर ने बीरबल धर
के िख़लाफ़ ष ं शु कर दये और ह र संह नलवा के कान भरे । फल व प बीरबल धर
पहाड़ी क़बीलाई सरदार के साथ िमलकर िसख सा ा य को उखाड़ने क सािज़श करने के
आरोप म बख़ा त कर दये गए और उ ह लाहौर तलब कया गया। गणेश पंिडत धर
राज व िवभाग के मुख बनाये गए और उनके भाई रामजू धर को कामराज का शासक
िनयु कया गया। हालाँ क जाँच म सारे आरोप ग़लत पाए गए ले कन क मीर लौटने क
इजाज़त उ ह मोतीराम के दुबारा दीवान बनने पर ही िमली। ज द ही मोतीराम से भी
उनके र ते ख़राब हो गए और क मीर म िसख को आमंि त कर शासन तक प च ँ ाने वाले
पंिडत बीरबल धर को अफ़ग़ान के समय लगे ‘कोष म धाँधली’ का आरोप एक बार फर
झेलना पड़ा। इस बार उनके पास भागने के िलए कोई जगह नह थी और कभी क मीर क
राजनीित म सबसे मह वपूण तथा शि शाली रहे बीरबल धर क मृ यु कालकोठरी म
ई।6 इसके बाद गणेश पंिडत धर क मीर क स ा म मह वपूण होकर उभरे और उनका
भाव ल बे समय तक बना रहा।
यहाँ अगर एक िमनट ककर क पना कर क बीरबल धर आिज़म ख़ान के दौर म
क मीर से भागने म सफल न ए होते तो उनका अंजाम या इससे अलग होता? ले कन
तब इसे ‘िह दू-मुि लम’ मामले क तरह देखा जाता। बीरबल धर को क मीरी पंिडत
आ यान म सा दाियक भेदभाव का िशकार शहीद बताया जाता। ले कन चूँ क उनके
साथ यह वहार िसख शासन म एक िह दू ख ी के हाथ आ तो यह िसफ़ ‘दुभा यपूण
िवड बना’ क तरह दज होता है। नतीजा यह क िसख शासन क लूट का क़ सा उसके
िह दू समथक होने क या य कह, ग़ैर-मुसलमान होने क आड़ म िछपा दया जाता है और
वह दौर पंिडत ारा ‘काले अ याय ’ म शािमल नह कया जाता। इितहास क यह
सा दाियक ा या न िसख शासन के दौर म कसान तथा आमजन के भयावह शोषण
क िशना त करने देती है, न ही इसके उन दु भाव क िजसने क मीर को एक ऐसे
दयनीय रा य म त दील कर दया था जहाँ एक तरफ़ उ पादन के साधन का संकुचन और
िवनाश आ तो दूसरी तरफ़ नाग रक के वािभमान और आ मिव ास का पतन। इस लूट
का हवाला देते ए कलाम कहते ह :
कसान पर ब त यादा कर लगा दया गया था। कसानी करने से उ ह कोई आमदनी नह होती
थी। कु ब धन आम था िजसक वजह से अकाल पड़े और सच कहा जाए तो सैकड़ लोग क जान
ग तथा फर से अकाल पड़ा। शेर संह के शासनकाल म घाटी क आबादी आठ लाख से दो लाख रह
गई। नीितयाँ बनानेवाले शासक लाहौर से िनयु कये जाते थे जब क थानीय शासक य अमले
म मु यतः क मीरी पंिडत थे िजनको लाहौर दरबार का मज़बूत समथन था, जहाँ अनेक क मीरी
पंिडत ऊँचे पद पर थे। रणजीत संह ने एकािधक बार ाचा रय को सज़ा देकर हालात सुधारने
क कोिशश क ले कन चूँ क उनक ख़द क मा यता थी क क मीर पर ािधकार के िलए
क मी रय क चेतना का पूरी तरह से ग़लाम बने रहना ज़ री है इसिलए वह भी कोई ठोस हल
नह िनकाल पाए।7
आलम यह क स प क मीरी पंिडत और मुसलमान से नज़राने के नाम पर बड़ी
रक़म वसूली गई। कलाम बताते ह क के वल शेर संह के समय पंिडत से वसूले गए
नज़राने क कु ल रक़म थी साढ़े चार लाख पये! स प मुसलमान से भी जमकर वसूली
ई िजनम बड़ी सं या शॉल उ ोग से जुड़ी ई थी। नतीजतन कृ िष के साथ-साथ पहले से
तबाह क मीर का शॉल उ ोग भी इस लूट के चलते बबाद होने लगा। अिधकतर करघा
मािलक घाटी छोड़कर ज मू और पंजाब जैसी जगह पर चले गए और घाटी म करघ क
सं या 8,000 से घटकर 2,000 रह गई। इस पूरी या ने ग़रीबी, बेरोज़गारी और
तबाही क एक नई शृंखला को ज म दया िजसम रोज़गार के नाम पर िसफ़ सरकारी सेवा
रह गई, जहाँ तक प च ँ के वल क मीरी पंिडत के एक छोटे से िह से के िलए स भव थी।
स ा के क़रीब रहकर क मीरी पंिडत के एक वग ने इस लूट म पूरा-पूरा साथ दया तो
दूसरी तरफ़ राज व िवभाग म ऊपर से नीचे तक क़ ज़ा जमाए क मीरी पंिडत को अपनी
नौकरी बजाने के िलए कसान से वसूली का जो काम करना पड़ा, उसम वे कसान के
सम आततायी क तरह ही आए। कसान का ब सं यक मुसलमान का था तो दूर
ीनगर म बैठे िसख सा ा य के आका क जगह उ ह अपने य लुटेरे तो राज व
िवभाग क वसूली करनेवाले पंिडत कमचारी ही लगते। वसूली के िलए कस क़दर दबाव
था, इसे इस उदाहरण से समझा जा सकता है क 1833 म पाँच कारदार (सभी क मीरी
पंिडत) को 3,25,000 पय क वसूली का ल य दया गया।8 ज़ािहर है, यह पूरी रक़म
क मीर के मुसलमान कसान से वसूली गई। इस समीकरण ने ल बे दौर म जो वैमन य
पैदा कया, उसक अनेक झल कयाँ आप उस दौर और उसके बाद के दौर के लेखन म भी
पा सकते ह। लुटेरे राजा के दौर म कमचारी ईमानदार कै से हो सकते थे! मृद ु राय इस
या म शासक य े म िविभ तर पर ा ाचार का ब त िव तार से वणन
करती ह। इसक जड़ इतनी गहरी थ क जब शेख़ अ दु ला ने क मीर म ांितकारी भूिम-
सुधार लागू कया तो उसम भी पतली गिलयाँ िनकाल ली ग और कसान तक इसका
पूरा लाभ तो नह ही प च ँ ने दया गया। दूसरी तरफ़ क मीरी पंिडत का भी वह वग जो
स ा से नह जुड़ा था, इस लूट से बचा न रह सका। हमने देखा क स ा से जुड़े वग से भी
वसूिलयाँ और बीरबल धर के उदाहरण से यह समझा जा सकता है क उस वग को भी
वामी-िन ा पर शक होने क क़ मत चुकानी पड़ । लूट और अराजकता पर टके शासन
म उ तम तर पर ष ं सहज भी था ही।
एक और मह वपूण त य यह है क मुग़ल और अफ़ग़ान काल म ही बेहतर रोज़गार क
तलाश म मैदानी इलाक़ म चले गए क मीरी पंिडत ने धीरे -धीरे समाज म अपने िलए
भावी मकाम हािसल कर िलये थे और देसी राजा के साथ-साथ हवा का ख़ भाँपते
ए अं ेज़ से भी अ छे ता लुक़ात बना िलये थे। अपने शासिनक अनुभव और फ़ारसी के
ान के चलते ही नह बि क ‘बाहरी’ होने के चलते भी वे देसी राजा और अं ेज़ , दोन
के िलए मुफ़ द थे। उनके िलए थानीय ष ं से दूर वे िन ावान सेवक थे तो अपनी
ज़मीन छोड़कर आए पंिडत के िलए आगे बढ़ने का यही इकलौता रा ता था। इसी या
म वे क मीर पर िसख के क़ ज़े से पहले लाहौर दरबार तक प च ँ चुके थे।
सडर ऐसे ही एक क मीरी पंिडत गंगाराम का क़ सा सुनाते ह। गंगाराम के िपता
कशनदास मुग़लकाल म शासक य सेवा म पुजारी के प म थे और अफ़ग़ान शासन के
दौर म गंगाराम वािलयर म महादजी संिधया के यहाँ उनक सेना म कनल लुई ब कन के
अधीन थ काम करने लगे। अपनी िन ा और कायकु शलता से उ ह ने कनल को भािवत
कया और उनक भूिमका मह वपूण होती चली गई। महादजी के पु दौलतराव संिधया
जब अं ेज़ के िख़लाफ़ ए तो गंगाराम ने उनक नौकरी छोड़ दी और द ली के बाज़ार
सीताराम म एक भ मकान ख़रीदकर अगले दस साल वह अं ेज़ क सेवा म रहे। 1809
म जब अं ेज़ और महाराजा रणजीत संह के बीच अमृतसर सि ध ई तो पंिडत गंगाराम
ने ि टश ितिनिध डेिवड ऑ टरलोनी के सहायक क भूिमका िनभाई। चार साल बाद
रणजीत संह ने उ ह लाहौर आने का योता दया और दीवान गंगाराम शाही
अिभलेखागार के मुख ए। रणजीत संह क सम या थी क उस बदलते दौर म उनके
दरबार म िज़ मेदार पद पर कु लीन घरान के जो लोग थे, वे यो ा तो उ तम तर के थे
ले कन शासन और िहसाब- कताब के नये तौर-तरीक़ से उनका प रचय नह था। इसके
अलावा अं ेज़ से बातचीत तथा स पक करने के िलए भी पढ़े-िलखे लोग क ज़ रत थी
और िसख दरबार म अिधकतर क पढ़ाई-िलखाई भी बस ाथिमक तर क ई थी।
महाराजा ख़द अिशि त थे। साथ ही दरबार म ष ं आम थे और कसी पर भरोसा
करना मुि कल था। इसिलए गंगाराम लगातार दरबार म ब त मह वपूण होते चले गए।
उसी दौर म बनी पैदल सेना म थानीय िसख क भत म अ िच के कारण कई क मीरी
पंिडत को अवसर िमला और उनम से एक पंिडत ब ीनाथ कनल के पद तक गए। उनक
सफलता ने अ य क मीरी पंिडत को दरबार म आक षत कया तो गंगाराम क
वािमभि और यो यता ने महाराजा रणजीत संह के मन म क मीरी पंिडत के िलए
भरोसा भी पैदा कया। गंगाराम ने अपने कई प रिचत और र तेदार को लाहौर बुलाया,
दरबार म नौकरी दलवाई और धीरे -धीरे लाहौर दरबार म क मीरी पंिडत का
बोलबाला-सा हो गया। गंगाराम के पु अयो यादास, पंिडत भवानी दास, पंिडत
दयाराम, दीनानाथ मदान, हरीराम कौल, सहजराम ट कू और लाल कौल इनम सबसे
मह वपूण नाम ह। लाल कौल 1819 म रावल पंडी ि गेड के मुख के प म िसख क उस
सेना का सद य था िजसने क मीर पर हमला कया था ले कन क मीर िवजय के बाद भी
लाल कौल ने अपनी मातृभूिम म कोई पद हािसल करने क जगह मु तान का सूबेदार
होना चुना। अफ़ग़ान काल म मह वपूण पद पर रहे ट कू प रवार ने लाहौर और काबुल
क राह ली और खालसा दरबार म वेश कया। क मीर िवजय के बाद पंिडत का लाहौर
आवागमन वाभािवक प से बढ़ गया और दरबार म उनक सं या तथा भाव भी बढ़े।
ले कन पंिडत क यह िन ा ि नह , स ा के ित थी। 1839 म रणजीत संह क
मृ यु के बाद तमाम ष ं , ह या और उठा-पठक के बीच दीनानाथ उनके बाद पंजाब
क स ा म आए। खड़क संह, नौिनहाल संह, शेर संह और अ ततः दलीप संह के संर क
बने। लाहौर दरबार क घटती ित ा और कमज़ोर होती शि के बावजूद दीनानाथ का
तबा कम नह आ। पहले आं ल-िसख यु के बाद 1846 म अं ेज़ से ए समझौते पर
उ ह ने ह ता र कये और उसी साल लाहौर का शासन चलाने के िलए बनी आठ सद य
क संर ण सिमित के सद य भी रहे। जब खालसा दरबार पंजाब का िनय ण लगभग खो
चुका था तो दीनानाथ क अपनी जागीर क वा षक कमाई 47000 पये थी। 1849 के
दूसरे आं ल-िसख यु के बाद वह न के वल राजा क उपािध हािसल करते ह बि क 1857
म अपनी मृ यु तक अं ेज़ के िव त बने रहते ह।9 दीनानाथ का यह क़ सा उस समय
अनेक रजवाड़ म काम कर रहे पंिडत क ंजना है।
1846 के इस पहले आं ल-िसख यु के बाद क मीर के इितहास ने एक बड़ी करवट ली।
रणजीत संह के िसपहसालार रहे और िसख सेना के मुख ज मू के त कालीन राजा गुलाब
संह डोगरा ने अमृतसर समझौते म िसख सा ा य पर अं ेज़ ारा लगाये गए डेढ़ करोड़
के जुमाने का आधा िह सा चुकाकर बदले म ज मू, क मीर, िगलिगट, बाि ट तान और
ल ाख का शासन हािसल कया और इस तरह आधुिनक ज मू और क मीर रा य पहली
बार अि त व म आया। अमृतसर सि ध इस मामले म एकदम िविश थी क अ य रा य
से अं ेज़ क सि ध से उलट यहाँ अं ेज़ ने गुलाब संह और उनके पु ष उ रािधका रय
को यह रा य सदा-सवदा के िलए वतं और सावभौम अिधकार म दया था। यही नह ,
महाराजा को दूसरी िवदेशी शि य से कू टनीितक स ब ध रखने क भी आज़ादी थी और
ि टश सरकार क तरफ़ से कोई ह त ेप न करने का आ ासन। लाॅड हा डग के श द म
यह सि ध ि टश सरकार को महाराजा के मामल म यूनतम स भव ह त ेप करने क
अनुमित देती है।10 ले कन 75 लाख पये के बदले िमले ज मू-क मीर को सि ध का
स मान हर तरफ़ से नह िमला। क मीर छोड़ो आ दोलन के दौरान नारा दया गया :
‘अमृतसर बैनामा तोड़ दो/क मीर हमारा छोड़ दो’। गांधी इसे ‘सेल डीड’ कहते ह। वैसे,
िवरोिधय को छोड़ भी द तो उसी दौर म आिधका रक इ पी रयल ग़ज़े टयर ऑफ़ इं िडया
ने िलखा था—महाराजा गुलाब संह के बारे म कहा जाता है क...जब उ ह ने अपने नये
सौदे क मीर घाटी का सव कया।’11
इस नये रा य म क मीरी पंिडत के िलए नये अवसर थे तो नई चुनौितयाँ भी, साथ ही
आधुिनकता क ओर बढ़ते समय म वहाँ क मुि लम जनता के िलए भी नये हालात म नये
मरहले वाभािवक थे और इन दोन के अंत से उपजी एक नई सामािजक-राजनीितक
हक़ क़त ने दोन समुदाय के र त को नये तरह से प रभािषत भी कया और पाियत
भी।
डोगरा राज : नया न शा, पुरानी मुसीबत
1846 म िवदेशी राज क मीर के िलए नया नह था। ले कन डोगरा अजीब िवदेशी शासक थे जो ख़द
एक ताक़तवर स ा के ताबेदार थे जो उस समय तक पूरे भारत को अपने अिधकार म ले चुक थी।
इसके अलावा डोगरा उन परदेशी शासक क तरह भी नह थे जो पहले घाटी म आए और फर यह
बस गए, न ही द ली या लाहौर म रहकर सूबेदार के भरोसे शासन करनेवाल क तरह िजनका
घाटी या आसपास से कोई र ता नह रहा। डोगरा ने हमेशा ज मू को अपना घर समझा और
क मीर घाटी को िविजत देश। उ ह ने रा य म एक तरह के डोगरा सा ा यवाद क थापना क
िजसम डोगरा को ऊँची पदिवयाँ िमल और सभी ग़ैर-डोगरा समुदाय और वग को कमतर दजा
दया गया। इस तरह घाटी के लोग डोगरा सा ा यवाद के अधीन हो गए जो ख़द ि टश
महासा ा यवाद के ताबेदार क तरह काम कर रहे थे। हालाँ क डोगरा सा ा यवाद ने दुभा य,
दासता, भौितक और मानिसक पतन के अलावा कु छ नह दया ले कन दूसरा सा ा यवाद कु छ
फ़ायद के िबना नह आया। ि टश भु व म घाटी म पि मी िवचार और आधुिनकता का असर
पड़ा िजसने अ ततः लोग को आज़ादी और मुि का अपना ज मिस अिधकार माँगने के िलए
जा त कया।12
— ेमनाथ बज़ाज़
डोगरा शासन को क मीर के इितहास का आिख़री साम ती शासन होना था ले कन इस
आिख़र से पहले वह कई मामल म पहला शासन था। सबसे पहले तो यही क क मीर के
इितहास म पहली बार िगलिगट, बाि ट तान, ल ाख, क मीर घाटी, पुंछ और ज मू जैसे
इलाक़े एक शासिनक ईकाई का िह सा बने और आधुिनक ज मू और क मीर रा य
थािपत आ। 80,000 वग मील से अिधक े फल के इस रा य म आज के ज मू और
क मीर रा य के साथ-साथ ित बत और पामीर के भी िह से शािमल थे। 1950 म क मीर
िववाद के हल के िलए संयु रा ारा िनयु कये गए म य थ ओवन िन सन ने रा य
क संरचना पर ट पणी करते ए िलखा था : ‘ज मू और क मीर रा य वा तव म न तो
भौगोिलक प से, न ही जनसं या क दृि से, न ही आ थक प से एक इकाई है। यह एक
महाराजा क राजनीितक आिधप य म आए भूभाग का एक जमावड़ा है। यही बस एकता
है इसम।13 इस भूगोल का क मीर के इितहास पर भी असर पड़ना ही था। आगे हम देखगे
क कस तरह िगलिगट और बाि ट तान जैसे दुगम इलाक़ म सेना क तैनाती और रसद
आदक व था तथा सड़क-िनमाण आ द के िलए लगातार मज़दूर क जो ज़ रत पड़ी,
उसने घाटी म बेगार क व था को अमानवीय हद तक बढ़ा दया। दूसरा यह क पहली
बार ज मू के राजा का क मीर घाटी पर आिधप य आ। बाहरी तो िसख, अफ़ग़ान, मुग़ल
सभी थे ले कन डोगरा शासन एक ऐसा ‘बाहरी’ शासन था िजसका ऐितहािसक प से
घाटी के साथ जुड़ाव भी रहा था और जो सूबेदार के मा यम से नह अिपतु य तौर
पर क मीर पर शासन कर रहा था, तो पार प रक प से ज मू पर वच व रखनेवाली
घाटी के लोग के मानस के िलए डोगरा शासन का मनोवै ािनक भाव और घाटी के
लोग के ित ज मू के लोग का वहार पहले के शासन से अलग रहा और उसका असर
ज मू और घाटी के बीच अब तक चले आ रहे तनाव के प म देखा जा सकता है। एकदम
एक नई ि थित यह भी थी क एक िवदेशी ताक़त प रदृ य म बेहद भावी थी—अं ेज़!
यह इस मामले म भी अलग था जैसा क बज़ाज़ के उि लिखत उ रण म कहा गया है,
क मीर के इितहास म पहली बार ऐसी ि थित बनी क ब सं या मुसलमान थी, य
शासक िह दू था और एक तीसरी तथा सव ताक़त थी जो इन दोन से अलग धम क ही
नह थी बि क एक अलग सं कृ ित क भी थी और इस प म अकबर के बाद पहली बार
वह उस भारतीय उपमहा ीप का िह सा बना जो एक पि मी शासन के उपिनवेश के प
म सं मण के काल से गुज़र रहा था। इस तरह हम कह सकते ह क क मीर घाटी दोहरे
उपिनवेश म त दील हो गई। हालाँ क अमृतसर सि ध म ‘ि टश सरकार क महाराजा के
मामल म यूनतम स भव ह त ेप’ करने क बात थी ले कन ह त ेप क कोिशश रणवीर
संह के समय ही शु हो गई थ और तीसरे डोगरा शासक ताप संह का समय आते-आते
अं ेज़ का ह त ेप रीजट क िनयुि तक ही नह प च ँ ा बि क अपने शासनकाल के बड़े
िह से म अं ेज़ ने य तः शासन सँभाला और ताप संह के वल नाम के महाराजा बने
रहे। क मीर के आधुिनक इितहास म इन सब ‘पहले’ के त य ने मह वपूण भूिमका िनभाई
और क मीरी पंिडत का, इन सब ताक़त तथा इस बड़े रा य के मुसलमान के ही नह
बि क अ य िह दु के बरअ स लोके शन तय करने म भी।
इस नये रा य का थानिब दु था े ीय और धा मक असमानताएँ। एक जनप धर रा य
इन असमानता को लगातार कम करने और े ीय तथा धा मक सौहाद को बढ़ाने क
दशा म काम कर सकता था। ले कन गुलाब संह के िलए यह िविवधता राज व-वसूली क
स भावना के म ेनज़र िनराशाजनक थी। एक-ितहाई रा य पहाड़ था, एक-ितहाई पानी
और बचा आ इलाक़ा जागीर के प म अलग-अलग लोग के पास था।14 ऐसे म यह
वाभािवक था क इन िवषमता का उपयोग अपने िनिहत वाथ के अनुसार कया
जाता। नवनीता च ा बेहरा कहती ह—डोगरा राज क मी रय के िख़लाफ़ गहरे े ीय
पूव ह और मुसलमान के िख़लाफ़ धा मक पूव ह क कहानी है।15 इस दुहरे पूव ह का
सबसे बड़ा असर क मीरी मुसलमान पर पड़ना ही था ले कन क मीरी पंिडत के िलए भी
यह समय उतना अ छा नह था, िजतना अ सर इधर के आ यान म दखाया जाता है।
असल म, आम तौर पर, 1947 को क मीर सम या क शु आत का वष मानने क
राजनीितक दृि से हटकर ग़ौर से देख तो क मीरी समाज के भीतर वह ख चतान डोगरा
रा य क थापना के साथ शु होती है िजसने दोन समुदाय के बीच तनाव क वह
अनवरत शृंखला पैदा क िजसने एक तरफ़ दोन के मन म पूव ह भरे तो दूसरी तरफ़
धा मक क रता क वृि य को बढ़ावा दया। वह ज मू और घाटी ही नह बि क पुंछ,
ल ाख और उ री े के पहाड़ी इलाक़ के साथ भी िजस तरह का वहार आ, उसने
1947 के पहले, िवभाजन के समय और उसके बाद भी मह वपूण भूिमका िनभाई।
मृद ु राय के इस कथन से असहमत होने का कोई आधार नह है क ‘डोगरा शासक ने
क मीरी समाज के अ दर अपने सहयोगी क तलाश म मु यतः पंिडत पर भरोसा कया।
ले कन इसको सरलीकृ त करके यह मान लेना क इसका अथ क मीर म पंिडत के वच व
क थापना थी, ग़लत होगा।’ िजयालाल कलाम इस िवड बना का एक मानीखेज़ िच
तुत करते ह :
जब महाराज गुलाब संह क मीर प च ँ े तो एक क मीरी पंिडत ितलकच द मुंशी वहाँ धानमं ी थे।
उ ह इमानबादी दीवान के िलए जगह बनानी पड़ी, िजसने अपने लोग को मुख जगह पर िनयु
कया। ितलकच द मुंशी के साथ अ य पंिडत को भी दरबार से िनकाल दया गया। ले कन ामीण
शासन क मीरी पंिडत के पास रहा। उ ह ने ाम अिभलेख क देखभाल तथा कू ल म िश क का
काम कया।16
िबना इस त य का िज़ कये क मीरी पंिडत और डोगरा राज के बीच के स ब ध को
िसफ़ धम के आधार पर देखना अ सर एक ऐसी बायनरी बनाता है जो िव ेषण म आसान
तो है ले कन ामक है। क मीर के स दभ म ऐसी बायनरीज़ अकादिमक धोखाधड़ी नह
तो बेईमानी तो ह ही। जैसा क हमने देखा ही है, मुग़लकाल से ही क मीर म ा ण ने
शासक य सेवा , मु यतः राज व िवभाग म लगभग एकािधकार थािपत कर िलया था।
इसी काल म ा ण के बीच फ़ारसी पढ़े-िलखे कारकू न वग का उदय आ था जो
शासक य नौक रय और शहरी लोके शन के चलते ा ण समाज म सबसे मह वपूण होकर
उभरा था। इसिलए नौक रयाँ उसके जीवन और ित ा के मूल म थ । आन द कौल से
लेकर ेमनाथ बज़ाज़ तक ने इस बात पर ज़ोर दया है क पंिडत क िश ा-दी ा और
उनका पालन-पोषण इसी तरह से कया जाता था क वे शासक य नौक रय के यो य बन
सक। ेमनाथ बज़ाज़ िलखते ह : ‘पंिडत को बचपन से ही सरकारी नौकरी के िलए
िशि त कया जाता था। माएँ अपने ब को, पुरोिहत अपने यजमान को और बड़े-बूढ़े
जवान को यह आशीवाद दया करते थे क उ ह सरकार म नौकरी िमले, मोशन ह ।’17
कौल बताते ह : ‘क मीरी पंिडत शानदार लक होते ह...। कसी सरकारी द तर म उनक
िनयुि अ छी क़ मत क तरह मानी जाती थी। वे कला, िश प, उ ोग, कृ िष, शारी रक
म और ापार म उदासीन होते ह।’18 वह मुि लम समुदाय का बड़ा िह सा खेती, शाॅल
बुनाई, पेपरमैशे जैसे रोजगार से जुड़ा आ था और िश ा-दी ा के े म िपछड़ा आ
था। ह र संह के समय तक उसम कोई बड़ा प रवतन नह आ।19 उसने शासन और
ख़ास तौर पर राज व िवभाग म भावी क मीरी पंिडत क उस ामीण जनता के दमन
क ताक़त बढ़ा दी िजसका ब लांश मुसलमान का था।20 आगे हम इस पर और िव तार से
बात करगे।
इितहास के ोफ़े सर और भाजपा-पीडीपी सरकार म उपमु यमं ी रहे िनमल संह इस
दौर म राजक य कमचा रय के धा मक संघटन के बारे म आँकड़ क अनुपि थित का िज़
करते ह ले कन यह भी दावा करते ह क िनि त प से उसम हर धम के लोग ह गे! वह
कहते ह :
इस बात म कोई दो राय नह क पार प रक नौकरशाह क मीरी पंिडत क , उनके रा य के
कमचा रय म, गाँव के पटवारी से लेकर वज़ीर वज़ारत तक, सबसे बड़ी िह सेदारी थी। राज व
िवभाग म उनका पूण एकािधकार था। उसके बाद पंजाबी भी बड़ी सं या म िविभ नौक रय म
लगे थे। उनम से दीवान प रवार भी था िजसने गुलाब संह को अपने रा य पर अिधकार जमाने और
पकड़ मज़बूत करने म सहायता दी थी। इस प रवार को दीवान के पद के िलए स भािवत
उ मीदवार को पेश करने का िवशेषािधकार हािसल था।’...‘बड़ी सं या म मुसलमान भी गुलाब
संह क सेवा म थे...। मुसलमान जागीरदार क भी सं या काफ़ थी।’21
ले कन इस ‘बड़ी सं या’ का कोई माण न वह देते ह, न ही कह और िमलता है।
1873 म छपे अ गज़े टयर ऑफ़ क मीर म एिलसन बताते ह क 1860 म क मीर घाटी म
कु ल 45 जागीरदार थे िजनम िसफ़ 5 मुसलमान थे। एिलसन उसी वष म िविभ िवभाग
म िलिपक य पद पर 5572 क मीरी पंिडत के होने क सूचना देते ह जब क एक भी
मुसलमान उस पद पर नह था।22 इस बारे म अ य कसी ोत से आँकड़ क उपल धता
न होने के कारण प े तौर पर कु छ कहना तो स भव नह है ले कन रणजीत संह का समय
आते-आते जो त य सामने आते ह, उनसे दो चीज़ प ह : पहली तो यह क उन
मुसलमान म बड़ी सं या ज मू के मुि लम डोगरा राजपूत क थी और दूसरा यह क
घाटी के िजन थोड़े से मुसलमान को सरकारी सेवा म अवसर िमला था, उनम से
अिधकांश चौथी ेणी क नौक रय और सफाई आ द के काम म ही लगाये गए थे और कु छ
कु लीन सैयद तथा पीर प रवार के सद य को ऊँचे पद पर जगह दी गई थी। पंिडत, पीर
और सैयद अफ़ग़ान काल से ही शासक य सेवा म भावी भूिमका म थे और नये शासक
िनि त तौर पर उनके अनुभव का फ़ायदा उठाने के िलए उनक वािमभि हािसल
करना चाहते थे।23
पार प रक प से राज व िवभाग तथा अ य जगह पर नौकरी कर रहे क मीरी
पंिडत एक तो अपनी अ जत यो यता के चलते वाभािवक प से उन नौक रय के िलए
यो य थे; दूसरा, ब त प प से डोगरा शासक क नीितय म मुि लम िव षे था। ज मू
और क मीर क ग ी पर बैठने के बाद गुलाब संह ने कहा था : ‘म सभी धम के साथ
समान वहार क ँ गा ले कन मुसलमान के बीच कु छ ऐसे तौर-तरीक़े ह जो िह दु को
अपनी धा मक गितिविधय के स दभ म अि य लगते ह, उनक इजाज़त नह दी
जाएगी।’24 यह सामा य-सा लगनेवाला वा य तब असामा य बन जाता है जब हम उसे
इस त य के साथ जोड़कर देखते ह क यह लगभग 95 फ़ सदी मुि लम आबादी वाली घाटी
के िलए कहा जा रहा है और इसम उन िह दू वहार का कह िज़ नह िजससे कसी
मुसलमान को अपनी धा मक गितिविधय म द क़त हो सकती है। इस पूरी या म
गुलाब संह ने इस बात का यान रखा क मुसलमान के उ वग को एक हद तक स तु
रखा जाए।25 इस नीित के तहत जो पहला काम कया गया, वह अजान पर पाब दी को
हटाना था26 ले कन वह दूसरी तरफ़ रा य पीनल कोड क धारा-219 के तहत गो-ह या के
िलए मृ युदड
ं के ावधान को बाद म घटाकर 10 वष के और फर 7 वष के कारावास म
त दील कया गया।27 गाय को चोट प च ँ ाने का शक होने पर नाक-कान काटने से लेकर
अपराधी के बाल या फर उसका घर जला देने जैसी सज़ाएँ तजवीज़ क गई थ । क मीर
म काफ़ समय रहे टंडल िब को एक क़ सा सुनाते ह :
एक बार एक िह दू कमचारी ने एक ऐसे आदमी क ह या कर दी िजसने उसक प ी का अपमान
कया था। महाराजा ने उसे देश छोड़ देने का आदेश दया। इस पर उसने कहा क उस ि ने गो-
ह या क थी तो महाराजा ने उसे देश म ही रहने दया। ऐसे ही एक बार एक गाड़ी सवार ने िमशन
के एक लड़के को मार दया। जज ने उसे िबना कसी सज़ा के जाने दया। िनकलते ए उसक गाड़ी
एक गाय से टकरा गई तो लोग ने उसे गो-ह या के अपराध म मार देने क कोिशश क ।28
राजकु मार रणबीर संह गाय को लेकर अपने िपता से अिधक धमाध था और जब वह
राजकु मार ही था तो उसने एक ऐसी मिहला क जीभ कटवा दी थी िजसने अपने सूखने के
िलए डाले कपड़े फाड़ देने क वजह से गाय क िपटाई क थी! यही नह , जब गो-ह या के
अपराध म गुलाब संह ने एक ि को आजीवन कारावास क सज़ा दी तो इससे नाराज़
रणबीर संह ने जेल कमचा रय को उसके खाने म अिधक मा ा म नमक िमलाने को कहा
िजससे वह डीहाइ श े न से मर जाए। 1853 म राजकु मार के प म उसने िह दू और िसख
जनता से मुसलमान क मांस क दुकान क बिह कार क अपील क और िसख को मांस
क दुकान खोलने के िलए ो सािहत कया।29 क पना क जा सकती है क ऐसा
राजकु मार राजा बनने के बाद कस तरह क नीितयाँ अपनाएगा। रणबीर संह के बाद
ताप संह ने भी शासन सँभालने पर घोषणा तो सभी से एक समान वहार क क ,
ले कन न के वल उसके समय म सै य व अ य सावजिनक आयोजन पूरी तरह से िह दू रं ग म
रँ गे ए थे बि क ऐसा तीत होता है क अजान क अनुमित भी तब तक उतनी भावी
नह रह गई थी।
मृद ु राय 1897 म रणबीर संह पुरा तहसील के अरिनया गाँव क एक घटना का िज़
करती ह िजसम िह दु ने अजान देने से मुसलमान को रोका तो मुसलमान ने िव ोह
कर दया। अ त म रे िज़डट के ह त ेप से यह अनुमित िमली। वह 1913 म ताप संह
ारा अपने वज़ीर दीवान अमरनाथ को िलखे प का भी िज़ करती ह िजसम वह गो-
ह या क बढ़ती घटना पर िच ता जताते ए अपरािधय पर कड़ी कायवाही करने को
कहता है, जब क जाँच करने पर पाया गया क ऐसी कोई बढ़ो री नह ई थी ले कन
अफ़वाह का बाज़ार गम था। यहाँ उस दौर तक मुसलमान का अस तोष िव ोह म
प रणत होने का संकेत िमलता है।30 इन सबके बावजूद गो-ह या को लेकर डोगरा शासक
क नीितयाँ बद तूर जारी रह । 1920 के दशक म क मीर म 117 लोग जेल म ब द थे
िजसम से 97 मुि लम थे जो गोकशी के इलज़ाम म जेल म थे।31 देखा जाए तो उस दौर के
शासक म यह सा दाियक वृि ब त आम थी। इयान कोपलड ने हैदराबाद के िनज़ाम
और भोपाल के नवाब के शासन को भी िवध मय (यहाँ िह दु ) के ित अिधक
अ यायपूण बताया है। ज़ािहर है क ये नीितयाँ अपने सध मय को आ थक शोषण म
सहयोगी बनाने और उस पर पदा डालने के िलए काम आती थ तो काला तर म अं ेज़ ने
भी देसी शासक पर िनयं ण रखने के िलए इसका ख़ूब फ़ायदा उठाया और अ ततः ये
नीितयाँ देश म सा दाियक माहौल को और िवषा करने म सहायक बन ।
यहाँ एक और त य पर यान देना ज़ री है और वह है ज मू-क मीर के शासन म
लगातार डोगरा राजपूत का बढ़ता वच व। गुलाब संह के शासनकाल म क मीर घूमने
आए ि टश अिधकारी एल.बी. बाव रं ग ने िलखा :
गुलाब संह के शासनकाल म आम चलन यह था क उ तम पद पर अपने ख़ानदान के कसी डोगरा
राजपूत को िनयु कर अपने नाम पर ािधकार दया जाए और कमचारी तर पर क मीरी पंिडत
को िनयु कया जाए। डोगरा िव ासपा ले कन अनपढ़ होते थे और थानीय सयाने पंिडत क
मदद के िबना काम नह कर सकते थे।32
इस प रघटना का एक सीधा असर यह पड़ा क क मीरी पंिडत ऐसे सभी िनचले पद
पर ब तायत म िनयु कये गए थे िजनसे जनता का सीधा वा ता पड़ता था, जब क
िनणयकारी िनकाय म उपि थित डोगरा और पंजािबय क अिधक थी। अं ेज़ से ज मू
और क मीर का रा य ख़रीदने के बाद डोगरा शासक का सबसे अिधक ज़ोर कर एक
करने म था। िव तार म न जाते ए हम 1863 म क मीर क या ा पर आए कनल टारस
क इस बारे म ट पणी याद कर सकते ह :
ग़ैरवािजब कर और वसूली के मामले म गुलाब संह अपने पूवव तय से भी आगे गया। यह सच है
क पूवव तय ने भारी करारोपण कया था ले कन गुलाब संह ने लोग के ख़ून क आिख़री बूँद तक
चूस ली; पूवव तय ने धरती क उपज के बड़े िह से को, करघ के लाभांश को और िमक के म
को हंसक तरीक़े से छीन िलया था, ले कन इसने तो अपने ख़ज़ाने भरने के िलए उनक आिख़री
दमड़ी भी वसूल ली।33
क मीर घाटी म 85 ितशत आबादी कृ िष म संल थी और यह पूरी आबादी
मुसलमान क थी। िजस तरह क जागीरदारी और चकदारी क व था वहाँ लागू क
गई, उसने पहले से ही ग़रीबी और अराजकता क िशकार कृ षक आबादी क कमर तोड़
दी। इस जागीरदारी व था म कसान क दशा ग़लाम जैसी हो गई थी।34 रबी फ़सल
के िलए हर 32 ाक (वज़न क इकाई) म से 20 ाक सरकारी लगान था तो पौने दो ाक
इन कमचा रय के खाते म जाता था यानी कु ल लगान उपज के 65 फ़ सद के बराबर था
तो ख़रीफ़ फ़सल के िलए लगभग 74 फ़ सद!35 1887 म क मीर के भू-ब दोब त के िलए
भेजे गए ि टश अिधकारी ए. िव ेट ने इसे ‘रै यतवाड़ी व था के पतनशील प’ जैसा
कहा था।36
िसख शासन क उपे ा के बावजूद उस दौर तक क मीर घाटी म शॉल उ ोग ही सबसे
मह वपूण उ ोग था। 1805 म क मीर से शेष ि टश इं िडया के साथ कु ल ापार
1,41,757 पय का था और इसम शॉल का िह सा 90 फ़ सद से भी अिधक का था।37 इस
उ ोग म सौ फ़ सद मुसलमान थे। डोगरा शासन म इस पर िनयं ण रखने के िलए
‘दाग़शाली महकमा’ थािपत कया गया िजसम ऊपर से नीचे तक क मीरी पंिडत का
ब तायत था। राजाकाक धर को इसका मुख बनाया गया था िज ह ने शॉल से होनेवाली
कर क आय को चार लाख से बढ़ाकर बारह लाख कर दया।38 इसके िलए बुनकर पर
भारी कर लगाये गए। एक शॉल बफ़ (करघे पर शॉल बुनने वाले बुनकर) क मािसक आय
हद से हद सात से आठ पये होती थी िजसम से 5 पये उसे हर महीने कर के प म देना
पड़ता था। उसे अपना पेशा बदलने या क मीर छोड़ने क भी इजाज़त नह थी और अगर
कोई कसी तरह भागकर पंजाब या कह और जाने म सफल हो जाए तो दाग़शाली महकमे
के िसपाही उसके प रवारजन को िगर तार कर लेते थे।39 इन नीितय से परे शान
क मीरी बुनकर ने 1865 म िव ोह का झंडा बुल द कया और 29 अ ैल, 1865 को
बुनकर ने राजाकाक धर का पुतला जलाया। क मीर के त कालीन सूबेदार ने उनसे कड़ाई
से िनपटने का फ़ै सला कया और ीनगर से बजाय संह के नेतृ व म सेना भेजी िजसने
िनह थे बुनकर को घेरकर ब दूक़ और भाल से हमला कया। कई बुनकर मारे गए और
बाक़ ने जब भागने क कोिशश क तो हाज़ी रादर के पास दलदली नाले म डू बकर उनम
से कई क मौत हो गई। कम-से-कम 28 शव बाद म लोग ारा िनकाले गए, जब क सैकड़
घायल ए। जब यह ख़बर महाराजा के पास प च ँ ी तो उसने इसके और स त दमन का
फ़ै सला कया, दशन म भाग लेने वाल पर जुमाने लगाये गए और जुमाना न दे पाने क
हालत म उ ह जेल म डाल दया गया। उनम से दो शेख़ रसूल और अली बाबा जेल के
भीतर के अ याचार के चलते मर गए और बाक़ को ज मू क जेल म डाल दया गया।
भारत के वग-संघष के इितहास म यह िमक का पहला िव ोह था और इसने आगे
क मीर म आज़ादी क लड़ाई म ेरणा ोत का काम कया। इस िव ोह को इितहास म
‘खाँडवाव* िव ोह’ के नाम से जाना जाता है।40
नाइय और द ज़य के अलावा कोई े ऐसा नह था िजस पर कर न लगाये गए ह ।
इसके अलावा भी कई कर थे। प रवार म सद य क सं या के अनुसार रसूदारत था, फल
पर अलग से कर था, पशु कर था, ख र पर अलग से कर था, पु टू कर था िजसके तहत
आधे मू य पर एक क बल ितवष देना पड़ता था। गाय रखने पर घी क एक िनि त
मा ा देनी पड़ती थी। मु गयाँ रखने पर कर था, शहद पर कर था! ज़मीन बेचने पर उसके
मू य का एक-चौथाई कर के प म देना होता था। शादी करने के िलए एक पये का कर
था िजससे िह दु को मु रखा गया था। कोई मुसलमान अगर दूसरी या तीसरी शादी
करना चाहे तो उसके िलए भी एक िनि त धनरािश के भुगतान के बाद ही इजाज़त
िमलती थी। हांजी (नािवक) को 2 से 8 पये ितमाह का कर देना होता था। अंचर झील
के कनारे रहनेवाल को झील म उगनेवाली घास (िजसका योग दरी बुनने म कया
जाता था), मछली आ द के योग के िलए सालाना कर देना होता था। िजस क मीर म
चार तरफ़ जंगल म चुर मा ा म लकड़ी उपल ध थी, वहाँ धन के िलए भी भारी शु क
लगाया गया था! यहाँ तक क घोड़े बेचने पर भी कर था—मू य का आधा।* लगान और
कर का डर ऐसा था क चाहे वह ामीण िह दू हो या मुसलमान, िजनके पास थोड़ा-ब त
धन होता था, वे भी जानबूझकर ग दे और स ते कपड़े पहनते थे क कसी का रं दे क नज़र
न पड़ जाए!41
तकलीफ़ यह ख़ म नह होती थ । डोगरा शासन के दौरान क मीर म बेगार था
ब त बढ़ गई थी। बेगार से छू ट िसफ़ िह दु , िसख , पीरज़ादा , गोजर और उन
कसान को ही िमली थी जो उन अिधका रय के यहाँ काम करते थे, िज ह जागीर अता
ई थ ।42 ज़ािहर है क बेगार के िलए मजबूर िसफ़ ग़रीब ामीण मुसलमान ही कये जाते
थे। अपने या ा-सं मरण हेयर ी अ पायस मीट म नाइट िलखते ह :
िगलिगट रोड पर सामान ढोने के िलए कई हज़ार ामीण से हर साल बेगार कराया जाता था।
िगलिगट का नाम ही पूरे रा य म आतंक पैदा कर देता था। उ री सीमा पर सेना को अनाज प च
ँ ाने
के िलए एक ब त बड़ी यातायात सेवा क ज़ रत थी और क मीरी शासक के उन ग़रीब क
सुिवधा क िच ता तो दूर, जान तक क भी कोई िच ता नह थी िज ह उनके घर और प रवार
से महीन भयानक रा त पर भटकने के िलए मजबूर कया जाता था। वे भूख और यास से सड़क
पर िगर पड़ते और कपड़ क कमी के कारण सैकड़ लोग उन बफ़ ले दर म ठं ड से मर जाते थे। जब
कसी आदमी को बेगार के िलए पकड़ा जाता था तो उसके बीवी-ब े उससे िलपटकर ऐसे रोते थे,
जैसे अि तम िवदा दे रहे ह ! यादातर बेगार का काम गम के महीन म कया जाता था जब दर
खुल जाते थे। यही वह मौसम था जब खेत को उनक ज़ रत होती थी।43 और इस िवपदा से बचने
क राह भी ाचार से ही खुलते थे। बेगार से मुि के िलए अिधकारी कौिड़य के मोल कसान क
ज़मीन ख़रीद लेते थे और कसान अपनी ही ज़मीन पर आसामी बन जाता था। यही नह , आम
तरीक़ा यह था क अगर 10 बेगार क ज़ रत है तो पचास को चुना जाता था और शेष 40 को
बेगार से मुि के िलए उनसे 70 से 90 पये ित ि तक क वसूली क जाती थी।44
अब इस कर क वसूली करने, बेगार के िलए मज़दूर िचि नत करने, कर न दे पाने पर
िगर तार करने और सज़ा देने का काम था म य एवं िन तर के कमचा रय का िजसम
क मीरी पंिडत क ब तायत थी जब क कर देनेवाले कसान , शॉल बुनकर , नाव
खेनेवाल जैसे सभी पेश म लगभग सौ फ़ सद मुसलमान थे। इस तरह, क मीरी पंिडत जो
सरकारी लक और राज व कमचारी थे, उ पीड़क डोगरा रा य के दखाई देनेवाले
ितिनिध थे।45 शेख़ अ दु ला ने अपनी जीवनी म कर-वसूली के िलए एक बुनकर क
िपटाई करते पंिडत कमचारी के ितकार का िज़ कया है।
आम तौर पर इन कमचा रय क तन वाह ब त कम होती थी और रहन-सहन का
ऊँचा तर बनाये रखने के िलए ाचार एक समाज- वीकृ त तरीक़ा था। हर िवभाग म
जमकर ाचार था िजसका दु भाव वाभािवक प से आम क मीरी मुसलमान को
झेलना पड़ता था। ाचार को अपमानजनक नह माना जाता था बि क समाज म उसका
स मान था और सरकार कभी उस पर कायवाही नह करती थी। ेमनाथ बज़ाज़ एक
उदाहरण देते ह जहाँ महाराजा के एक वज़ीर को लगा क गाँव म हरकारे * ब त माल
बना रहे ह तो बजाय उ ह कोई सज़ा देने के उसने हरकार के मुख हरकारा ब शी को
शासन के ख़ज़ाने म एक बड़ी रक़म जमा कराने का आदेश दया।46 ज़ािहर है, इस रक़म क
वसूली भी ग़रीब ामीण से ही क गई होगी। नाइट एक घटना का िज़ करते ह जहाँ एक
मुि लम कसान को एक िह दू का रं दे ने बेहद कम मू य पर ज़मीन बेचने पर मजबूर कया
है। वह इसे ‘क मीरी शासन- व था का सबसे भयावह दुगुण’ बताते ह।47
आगे बढ़ने से पहले घाटी म मा 4 ितशत के आसपास आबादी वाले क मीरी पंिडत क
मानिसक बुनावट के बारे म ककर थोड़ा सोच लेना बेहतर होगा। हमने देखा है क
मुग़लकाल म पहली बार बाहरी शासन के आने के साथ ही यह संयोग पैदा आ क सधमा
होने के बावजूद मुग़ल ने थानीय मुसलमान पर भरोसा न करते ए दैनि दन
शासिनक सहयोगी के प म ा ण पर भरोसा कया। इस तरह बाहरी शासन जहाँ
थानीय मुसलमान को स ा से बाहर करनेवाली प रघटना बना, वह ल बे समय से
हािशये पर रहे क मीरी ा ण के िलए एक नया अवसर लेकर आया था। पार प रक प
से पढ़ाई-िलखाई करने और बौि क गितिविधय म संल इस वग ने इसके बाद ख़द को
लगातार शासक य नौक रय के िलए तैयार कया तो दूसरी तरफ़ अमूमन स ा से
टकराने क जगह उनके अनुसार अनुकूलन क कोिशश क । यह अनुकूलन खान-पान,
वेशभूषा और भाषा—हर तर पर आ। अपनी बेहद कम आबादी के चलते यह उनके िलए
अपने अि त व को बचाये रखने का इकलौता तरीक़ा था। िसख शासन आने के बाद इतना
और आ क धम के आधार पर जो भेदभाव उनके साथ होता था, वह मुसलमान के साथ
होने लगा। इस प रघटना ने उ ह एक आ मिव ास भी दया और हम देखते ह क बाद म
दये गए कई ापन म उ ह ने इस बात को रे खां कत कया क उनका और शासक का धम
एक है। यही नह , इस आ मिव ास ने उनके दिमत अिभमान को भी जीिवत कया और
वष से साझा रहे कई पूजा- थल को लेकर भी नये-नये िववाद शु ए िजनम पंिडत ने
*
मुि लम को बेदख़ल करने क कोिशश क । ले कन इस पूरी प रघटना का एक प यह
था क स ा के क़रीब रहने क कोिशश और िव ासपा दखाने के उ साह म उ ह ने
शासक वग के शोषण म पूरा साथ दया िजसका िशकार वाभािवक प से ग़रीब
मुसलमान आ। कम-से-कम उ पद पर बैठे पंिडत ने इस उ साह म मुसलमान के ित
िजस वैमन यता का प रचय दया, उसका एक उदाहरण डोगरा शासक रणबीर संह के
एक िस धानमं ी वज़ीर पु ू के 1877-79 के भयावह अकाल के दौरान दये गए
बयान म िमलता है। अितवषण से अनाज उ पादन न हो पाने के कारण और फर शासन
क कु व था के कारण इस भयानक अकाल म क मीर क आधी आबादी न हो गई थी।
ले कन इस महािवपदा म एक भी क मीरी पंिडत, िसख या डोगरा नह मारा गया था।
वज़ीर पु ू ने उस समय घोषणा क थी क ‘परे शानी क कोई बात नह है। अ छा होता,
ीनगर से रामबन (ज मू म ) तक एक भी मुसलमान िज़ दा नह बचता।’48
इस सबने एक तो क मीरी पंिडत और मुसलमान म य वैमन य पैदा कया और
दूसरे , राज व जैसे िवभाग म पंिडत के क़ ज़े ने मुसलमान के मन म यह अवधारणा पैदा
क क डोगरा राज म सभी शासक य पद पर क मीरी पंिडत ही ह और वे उनके शोषक
ह। नाइट अपने सं मरण म बार-बार उ पीड़क िह दू/पंिडत कमचा रय क बात करते ह
और उनके ित पल रहे ग़ से और नफ़रत क भी।49 यह मज़ेदार है क क मीर म
ब दोब त के िलए भेजे गए अिधकारी सर वा टर लॉरस भी यही भाव पैदा करते ह :
ा ण के पास, िज ह क मीरी पंिडत के नाम से जाना जाता था, स ा और ािधकार थे और
मुि लम कसान आलसी ा ण को सुख से रखने के िलए दन-रात मेहनत करने को मजबूर थे।
1889 म क मीर रा य कं गाल हो चुका था। वहाँ क उपजाऊ भूिम बंजर पड़ी थी तो सेना को
ज़बरद ती कसान से खेती कराने के िलए भेजा गया। इससे भी बुरा यह आ क सैिनक फ़सल
कटाई के समय फर लौटे। जब रा य को दये जानेवाला कर वसूल िलया गया तो सैिनक ने अपना
िह सा वसूला और जब ू र जाड़ा आया, तापमान शू य िड ी से भी नीचे चला गया तो उस बफ़ के
बीच उन मजबूर कसान के पास अपना पेट भरने के िलए अनाज नह बचा था।’50
वह इस िववरण म डोगरा शासन क नीितय और उ पद पर बैठे पंजाबी/डोगरा
अिधका रय का कोई िज़ न होना आ य पैदा करता है। वह इस त य का भी िज़ नह
करते क राज व िवभाग म िति त पीर और सैयद प रवार के सद य क भी एक
भावी उपि थित थी।51
इसके साथ एक और त य पर यान देना चािहए क िमक जाितय के धम प रवतन
कर लेने के कारण क मीरी ा ण मुसलमान के ऊपर अपने अनेक काम के िलए िनभर
था। नाई, धोबी, हांजी, दूिधया, मांस िव े ता, कृ िष मज़दूर, घरे लू िमक इ या द वे सभी
काम जो शेष भारत म नीची कहे जानेवाली जाितय ारा कये जाते थे, वे क मीर म
मुसलमान करते थे। ीनगर के जवाहर नगर म रह रहे कु मार वांचू ने मुझसे बातचीत
करते ए पनुन क मीर के पंिडत के िलए अलग रा य क माँग पर ट पणी करते ए कहा
क ‘िबना मुसलमान के पंिडत कै से रहगे? उ ह न स ज़ी उगाने आता है, न मांस काटने, न
लकड़ी काटने, फर अगर उनका अलग देश बन जाए तो कै से काम चलाएँग?े ’ ज़ािहर है
क कम-से-कम शहरी पंिडत और मुसलमान के बीच यह जो र ता बना वह एक हद तक
शेष भारत म सवण और दिलत के बीच के र त क तरह था जहाँ पंिडत पढ़े-िलखे
शासक य नौकरी करनेवाले वग क तरह सामने आते ह और मुसलमान का ब सं यक
अिशि त, ग़रीब और मज़दूरी करनेवाला। इस त य ने पंिडत के मन म ितभा और
यो यता का अहंकार और वह िवशेषािधकार का भाव भी भरा जो अमूमन हम सवण म
देखते ह। ले कन वहाँ उनके बरअ स सधमा दिलत /िपछड़ क जगह मुसलमान के होने
के कारण इस भाव ने दोन तरफ़ सा दाियक िव ष े को बढ़ाने म भूिमका िनभाई।
इसके अलावा डोगरा शासन म भयावह करारोपण और शोषक नीितय के चलते न
के वल खेती-बारी पर असर पड़ा बि क वे उ ोग भी धीरे -धीरे न हो गए, िज ह ने
मुसलमान के बड़े िह से को रोज़गार दया था। ेमनाथ बज़ाज़ कहते ह :
उ ोग क ि थित बद से बदतर हो गई...। डोगरा के शासन म क मीर के आ थक गित पर यह
एक िनराशाजनक ट पणी है क इतना बड़ा उ ोग जो लाख ग़रीब लोग को सहारा देता था और
कसान क एक बड़ी सं या को जाड़े के दन म थोड़ी आय उपल ध कराता था, जब खेती से कोई
आमदनी नह होती थी, 1925 आते-आते पूरी तरह से ख़ म हो गया। जो चरखा क मीर के हर घर
का एक ज़ री िह सा होता था, वह अब बड़ी मुि कल से दखाई देता है। क मीर क सरकार कहती
है क 1870 के ांस-जमनी यु के कारण इस उ ोग को ब त नुकसान प च ँ ा। ले कन यह बेकार
क बात है य क हम जानते ह क 1870 के पहले ही इस उ ोग के हालात बुरे हो चुके थे।
यादातर बुनकर इस सदी क शु आत म लाहौर, अमृतसर और आगरा जैसे कम मह वपूण के
पर जा चुके थे। शॉल अब उन मह वपूण व तु म नह रह गई थी िजनका िनयात इतनी मु ा
अ जत करा पाता क उसका िज़ सरकार क शासिनक रपोट म कया जाए। यह अगर सबसे बड़े
उ ोग का हाल था तो छोटे उ ोग क तो बात ही या! ताप संह के समय तक काग़ज़ बनाने का
काम पूरी तरह ख़ म हो चुका था। कपड़े बनाने का भी। चाँदी और पेपरमैशे का काम भी ढलान पर
था और िश पकार आ थक प से बेहद िनचले तर पर प च ँ गए थे। म िसफ़ इतना कह सकता ँ
क क मीर एक आ मिनभर रा य से एक ऐसा देश बन गया जो अपनी ज़ रत के िलए दूसर पर
िनभर था; क मीरी एक िनयातक रा से ऐसी आबादी म त दील हो गए जो दूसरे देश से भारी
मा ा म िनयात करते थे।52
1890 म रा य ने शॉल उ ोग से हाथ ख च िलया और दाग़शाली िवभाग ब द कर
दया।53 इन बबाद हो रहे उ ोग के बरअ स रोज़गार का इकलौता सहारा महाराजा
रणवीर संह ारा ीनगर म थािपत िस क फै टरी (रे शमख़ाना) थी और वहाँ भी
शासन म पंिडत का बोलबाला था। यहाँ यह भी जोड़ देना बेहतर होगा क कसानी म
मु यतः सु ी मुसलमान संल थे, जब क पेपरमैशे और शॉल बुनाई के काम म िमि क़यत
िशया क थी, मज़दूर सु ी।54 िनमल संह बताते ह क रा य का 85 फ़ सद राज व
सु ी मुसलमान से आता था।55
खेती- कसानी और उ ोग क बबादी के चलते क मीर म बड़े पैमाने पर गाँव से
शहर क ओर िव थापन आ। जैसे-जैसे लोग काम क तलाश म नगर और उपनगर म
इक े होने लगे तो न के वल खा ा पर दबाव बढ़ा बि क नौक रय के िलए संघष भी
सघन हो गया। 1931 के ससस म पाया गया क यादातर समुदाय अपने पैतृक कामकाज
नह कर रहे ह। इन िव थािपत समुदाय ने रे शमख़ाना और दूसरी जगह पर काम
तलाशने क कोिशश क ले कन उनक भी अपनी सीमाएँ थ । वाभािवक है क इन
हालात म रोज़गार क सम या बेहद ग भीर बनकर उभरती और नौक रयाँ क मीर के
सामािजक-राजनीितक जीवन म मह वपूण कारक बनकर उभर ।
आगे बढ़ने से पहले ठीक उसी दौर म आम क मीरी मुसलमान क मानिसकता को भी देख
लेना बेहतर होगा। मुग़ल के शासनकाल से ही आ मिव ास िजस तरह से तोड़कर उ ह
एक शािसत समुदाय म बदल दया था, उसी के चलते हम पाते ह क उस काल के
यादातर पि मी पयटक ने उनके िलए डरपोक, कायर, ु जैसी श दावली का योग
कया है। भयानक ग़रीबी और दमन से गुज़रते समाज के िलए यह वाभािवक ही था क
उसम एक तरफ़ भय घर कर लेता तो दूसरी तरफ़ स ा के दमन से बचने के िलए कु छ
चाला कयाँ। मसलन लगान चुकाना जब अस भव हो जाता तो उनके पास एक ही धमक
थी—गाँव छोड़कर भाग जाने क , य क लगान चुकाना पूरे गाँव क िज़ मेदारी थी और
अगर कु छ कसान खेती छोड़कर भाग जाते तो गाँव क उपज कम हो जाने से पटवारी के
िलए लगान वसूल कर पाना स भव न होता! िवदेशी पयटक से कु छ अित र वसूल लेना
उसके िलए आय का एक साधन था और ाचार म डू बे ए रा य म इसके िलए शम जैसी
कसी चीज़ क उपि थित य होती?
नाइट िलखते ह :
यह िनयम है क इस देश (क मीर) म पहली बार आनेवाले कसी अं ेज़ को इन िव सनीय
लगनेवाले ख़ूबसूरत क मी रय को, चालाक, ख़शनुमा और स य क मी रय को देखकर तभी तक
ब त ख़शी होती है जब तक क उसे यह न पता चल जाए क ये दुिनया के कु छ सबसे अधम लोग म
ह—ऐसे झूठे और धोखेबाज़ िज ह सुधारा नह जा सकता और अ य त िन को ट के धोखेबाज़...।
अकबर ने इन मद को फरन पहनने पर मजबूर कर दया था ता क इनक मदानगी ख़ म हो जाए
और ये औरत क तरह हो जाएँ। ऐसा लगता है क उसका यह तरीक़ा बेहद सफल रहा...। वह कई
मामल म एक मुि कल और िवरोधाभासी जीव है। उसे नापस द करने के िलए आपको उसे जानना
होगा। आपको यह देखना होगा क...मसलन एक शानदार, मज़बूत, दाढ़ी वाला आदमी अपने आधे
क़द के पंजाबी के सामने समपण कये ए है। वह पंजाबी उसके कान उमेठे जा रहा है िजसे वह एक
हाथ से सीधा कर सकता है, और वह शरारती ब े क तरह रोये जा रहा है, चीख़े जा रहा है और
अ ततः ज़मीन पर लोटकर उसके पाँव पकड़कर िगड़िगड़ा रहा है...। मुझे लगता है, क मीरी को
िपटना पस द है और इससे िनकलने वाली चीख़ म उसे मज़ा आता है। एक क मीरी कसी से भी
मार खा लेगा, यहाँ तक क कसी दूसरे क मीरी से भी।56
यह एक गोरे साहब क दृि है। वह ख़द मुग़ल, अफ़ग़ान , िसख और डोगरा क
पर परा म एक आ ा ता जाित से है, िजसे दुःख बस यह है क इतना शानदार इलाक़ा
अं ेज़ ने बेहद कम दाम म डोगरा शासक को बेच दया। वह इस ‘सच’ के पीछे का सच
नह देख सकता क स दय के उ पीड़न ने क मीरी जनता के नैितक साहस को लगातार
दिमत कर उसके भीतर के मनु य का आ मस मान मार दया था। आिख़र बेगार क दुखद
ि थितय का वणन करने के तुर त बाद वही नाइट कहते ह :
बेगार एक यायपूण और उपयोगी सं था है। कोई मुि कल नह आएगी अगर इसे सही तरीक़े से
संचािलत कया जाए और एक िविधसंगत व था क जाए। इसे एक झटके से ख़ म नह कया जा
सकता।57
मुि लम समुदाय का उ वग स ा के साथ साँठ-गाँठ कर सुिवधा का लाभ ले
रहा था ले कन यह िन वग िश ा और चेतना से वंिचत होकर ऐसी अधम हालत म प च ँ
गया था। ग़ौर से देिखए, एक सदी पहले आपको यही हालत शेष भारत म दिलत क
दखाई देगी हालाँ क दिलत क ि थित और बदतर थी य क उनके यहाँ तो कोई ऐसा
उ वग भी नह था। स दय क दासता से उपजी यह मानिसकता िजसम दासता को
वीकार कर िलया जाता है, ग़लामी मानिसक हो जाती है, दमन वाभािवक लगने लगता
है। बैरन कानबग इन ि थितय का बेहतर समाहार करते ह—म इसके पहले अनेक जगह
पर गया ँ ले कन मनु य क ि थित उतनी िनराशाजनक नह है िजतना क क मीर म।
यह िम के शासन म इजरायिलय क ि थित क याद दलाती है जहाँ वे अपने िनदयी
मािलक ारा रोज़ काम पर हाँके जाते थे।58 इन लाचार कु िलय के ित अं ेज़ का या
रवैया था, यह अ दाज़ा ि टश रे िज़डट क पद थापना के बाद 1891 म, जब वहाँ अं ेज़
का लगभग पूरी तरह से िनयं ण हो गया था, टे समैन म छपी एक रपोट से हो जाता है
:
क मीर के रे िज़डट कनल िन बत का सारा सामान (उसका थाना तरण ीनगर से मुरी होने पर)
महाराजा के िनजी रा ते से रा य के ख़च से भेजा गया जब क वह ख़द मुरी के रा ते से आया। जब
हम बेगार व था को इसके सबसे बुरे प म क मीर म फलते-फू लते ए देखते ह और यह देखते ह
क एक पूरे घर का माल-असबाब ढोने म सैकड़ ग़रीब को एक दन नह , ह त लगे ह गे तो यह
समझना मुि कल है क कनल िन बत जैसा अिधकारी इस तरह क सहायता कै से वीकार कर
सकता है? उसका इस तरह क मदद लेना ि टश पर परा के एकदम िवपरीत है। ले कन सैकड़
ग़रीब लोग क क़ मत पर यह सहायता लेना ाचार ही तो है। या कनल ने उन लोग को
भुगतान कया है िज ह ने उनके िलए काम कया? यह क मीर म कनल िन बत क इकलौती
कायवाही नह है िजस पर सवाल उठाया जा सकता है। ऐसा पहले भी आ है और इनम से कोई भी
कम अफ़सोसनाक नह है। यह अ सर देखा गया है क िजन राजा क िनगरानी के िलए रखा गया
है, ि टश अिधकारी उनसे एहसान लेते रहते ह। तो यह सब जानते ह क रे िज़डट महोदय
िसयालकोट म रहते ह िजसक सारी साज-स ा रा य के ख़च पर क गई है, य क रे िज़डट साहब
ीनगर म नह रहते। यहाँ तक क लाहौर म भी उ ह एक शानदार घर और घोड़ागाड़ी दया गया है
जब क राजधानी म रे जीडसी पर अकू त धन ख़च कया जाता है। उसके पहले के लोग भी इन दोष
म मुि तला थे ले कन इ ह उ मू य वाला बताया गया था इसीिलए उनका ब त वागत आ था।
वह ऐसी ग़लितय के ित अिधक सावधान हो सकते थे।59
क मी रय के इसी पददिलत वािभमान के म ेनज़र जब टंडल िब को ने ीनगर म
पहला िमशनरी वायज़ कू ल खोला तो उसका येय वा य रखा : In All things be
Man. हालाँ क िवड बना यह क इस कू ल के आरि भक दौर म और काफ़ बाद तक भी
मु यतः पंिडत छा का ही वच व रहा!60

नौक रय क राजनीित : मु क -ग़ैरमु क और िह दू-मुसलमान


आर ण क पूरी बहस को जब ग़रीबी से जोड़ा जाता है तो इस त य को दर कनार कर
दया जाता है क शासक य नौक रयाँ िसफ़ सुरि त रोज़गार नह होत बि क स ा म
भागीदारी और शि -संरचना म िह सेदारी होती ह। सरकारी कमचारी और अिधकारी
स ा क नीितय को लागू करानेवाले ही नह होते बि क उसके िनमाता और िनय ता भी
होते ह। इस तरह सकारा मक भेदभाव के प म आर ण उस समूह को सश कृ त करता
है जो ऐितहािसक सं या म भेदभाव के कारण इससे वंिचत रहा। अपनी अ य त अ प
सं या के बावजूद क मीरी पंिडत के राज व जैसे िवभाग पर क़ ज़े के कारण वे अपनी
आ थक ि थित सुदढ़ृ करने और सामािजक ि थित भावशाली बनाने म सफल ए थे
जब क घाटी के मुसलमान का बड़ा िह सा लगातार वंचना का िशकार आ। ले कन इस
एक त य के आसपास और भी ब त सारे त य ह िज ह समझे िबना क मीर घाटी म
नौक रय क राजनीित और उसके उस दीघकािलक भाव को समझना आसान नह होगा
िजसने 1947 के बाद ही नह बि क आज तक क मीर क शाि त और अशाि त म अपनी
बड़ी भूिमका बनाये रखी है।
ले कन नौक रय को लेकर यह एक सरलीकृ त समझ होगी क सभी पंिडत नौकरी म
थे और मुसलमान बाहर। पहली बात तो यही क पंिडत का शहर म रह रहा वग ही
नौक रय का उ मीदवार था और उसका मुक़ाबला घाटी के उ -वग य मुसलमान से था।
गाँव म पंिडत का एक बड़ा िह सा ऐसा था जो या तो खेितहर था या शहरी पंिडत के
यहाँ रसोइये या घरे लू सहायक जैसे काम करता था। टंडल िब को अपने सं मरण क मीर
इन सनलाइट एंड सनशेड म शासक य पंिडत कमचा रय का वणन करते ए उनके घर म
रहनेवाली र तेदार क उस फ़ौज का िज़ करते ह जो उनके सहायक के प म रहती है
और सड़क पर उनके पीछे ऐसे चलती है, जैसे बड़े अिधका रय के पीछे का रं दे चला करते
थे।61 क मीरी पंिडत के बीच वग य िवभाजन का एक उदाहरण 1950 म शेख़ अ दु ला
ारा कये गए भूिम-सुधार के आँकड़ से िमलता है। य देख तो कु ल िमलाकर 4 से 5
ितशत आबादी वाले क मीरी पंिडत के पास रा य क 30 ितशत ज़मीन क िमि क़यत
थी।62 ले कन इसे अलग-अलग करके देख तो के वल 27 पंिडत प रवार के पास 518,811
कनाल यानी लगभग 26244.4176 हे टेयर ज़मीन थी। इनम से 1,52,924 कनाल ज़मीन
िनजी िमि क़यत क थी, बाक़ तीन धा मक सं थान क और इसम से 23,718 कनाल
ज़मीन िसफ़ 3 बड़े पंिडत जागीरदार प रवार — यामसु दर लाल धर, बालकाक धर और
राजा उपे कृ ण कौल—के पास थी।63 ज़ािहर है, गाँव और क ब म ही नह , ीनगर म
रहनेवाला पंिडत का बड़ा तबक़ा भी म यवग य या िन म यवग य जीवन ही जी रहा
था। ले कन जैसा क दि ण एिशया के पढ़े-िलखे कु लीन वग पर ट पणी करते ए डोना ड
ई. ि मथ कहते ह :
‘नौक रय और स ा के िलए ितयोिगता म हर समुदाय के अं ेज़ी पढ़े-िलखे छोटे से िह से को
अपने बड़े धा मक समुदाय का साथ और सहयोग िमला। सरकारी नौक रय म भत समुदाय के
के वल एक छोटे से समुदाय को भािवत करती है ले कन उसके िलए ितयोिगता लगातार
सा दाियक वाथ और ित ा का सवाल बनती चली जाती है।’64
क मीर म भी काला तर म नौक रय क ितयोिगता सा दाियक आधार पर
िवभाजन का बड़ा आधार बनी और वैकि पक रोज़गार क अनुपि थित ने इसे एक ऐसा
ज टल बना दया क आज़ादी के पहले और बाद बने नये स ा समीकरण म यह
क मीर के भीतर रा वाद के िवकास को भािवत करनेवाला कारक बना।
डोगरा शासन के आरि भक काल म यह संघष ज मू के डोगरा और पंिडत के बीच
म ही था। कु लीन मुसलमान क ब त छोटी-सी सं या ही पढ़ी-िलखी थी और ब तायत
मुसलमान नौक रय के बारे म सोचने के भी क़ािबल नह थे। डोगरा क तुलना म घाटी
म अपनी बड़ी सं या और बेहतर िश ा-दी ा के कारण पंिडत ने बड़ी सं या म िनचले
तर क नौक रय पर क़ ज़ा कर िलया और कु छ मामल म ऊपर तक भी प च ँ ।े डोगरा
चूँ क महाराजा के स ब धी थे तो पहली बात तो यह क पंिडत एक सीमा से अिधक उनके
िख़लाफ़ नह जा सकते थे और दूसरे , जैसा क पहले ही कहा गया है, उ ह दरबार म ऊँची
जगह अमूमन िमल जाया करती थ , फर सेना तो लगभग उनके िलए आरि त थी ही।
ले कन इसी दौर म ख़ास तौर से पंजाब से लगातार लोग का क मीर के शासन म
शािमल कया जाना जारी रहा। क मीर म आधुिनक िश ा के सार क जगह बाहरी
लोग को भत करना डोगरा शासन के िलए अिधक अनुकूल था। ख़द क मीर म िश ा के
सार के िलए कोई बड़ी कोिशश नह क गई। िश ा के मामले म क मीर उन दन पूरे
भारतीय उपमहा ीप म सबसे पीछे था। 1891-92 म क मीर क पूरी जनसं या म िसफ़
1585 लड़के िश ण सं थान म पंजीकृ त थे िजसम 1327 पंिडत और 233 मुि लम लड़के
थे। मिहला क िश ा अभी दोन धम म लगभग अनुपि थत थी। अगर आँकड़ क बात
कर तो उस समय घाटी क आबादी के 7 ितशत पंिडत का 83 ितशत िश ा पर क़ ज़ा
था।
वा टर लॉरस ने इस ि थित के िलए दो तरह के कारण दये ह। पहला तो यह क रा य
सरकार िश ा को लेकर अपेि त प से ग भीर नह है। उसे लगता है क िजतनी िश ा
है, वह ब त है और अगर वे अिधक पढ़-िलख गए तो जनता म अस तोष फै लने का ख़तरा
है। यही नह , अगर यादा क मीरी पंिडत पढ़-िलख गए तो वे नौकरी के िलए भारत के
दूसरे िह स म जा सकते ह। दूसरा यह क आम तौर पर क मीर के ामीण मुसलमान
पार प रक िश ा लेना चाहते ह। वे िमशनरी या दूसरे कू ल क जगह मदरस म जाना
पस द करते ह।65 बज़ाज़ इस कारण को वीकार करते ए बताते ह क वष से स ा के
साथ साँठ-गाँठ करके ग़रीब मुसलमान को मूख बनानेवाले मु ला कभी नह चाहते थे क
मुसलमान पढ़- िलख जाएँ और उनके भाव से बाहर आ जाएँ। ले कन इस िपछड़ेपन क
असल िज़ मेदारी डोगरा शासक पर थी।66 वह इस या पर तीखी ट पणी करते ह :
मैदानी इलाक़ के अफ़सर के पीछे बाहरी लोग क क़तार अिधक से अिधक आय अ जत कर लेने के
इकलौते उ े य से क मीर म आती ग और जाते ए वे अपने र तेदार को छोड़ जाते थे ता क वे
लूट क इस या को जारी रख सक; और इस तरह शासिनक सेवा म एक उ ानु म बना
िजसक वजह से लाभ और स पि बाहरी लोग के हाथ म गई और थानीय लोग क आज़ादी
और ित ान िछन गए।67
ताप संह का समय आते-आते जब अं ेज़ ने न के वल क मीर म अपना रे िज़डट
िनयु कर दया बि क स ा के सभी उपादान पर लगभग य क़ ज़ा कर िलया तो इन
हालात म भी बदलाव आना ही था। शासिनक सुधार के नाम पर 1889 म फ़ारसी क
जगह उदू को दरबार और शासन क भाषा68 बना दया गया। यह 1835 म ई ट इं िडया
क पनी ारा फ़ारसी को आिधका रक प ाचार क भाषा के दज से मह म कर अं ेज़ी के
अिधकािधक योग क नीित के अनु प ही प रवतन था। इस प रवतन के बाद पंजािबय
का शासन म वेश और आसान हो गया जब क फ़ारसी पढ़नेवाले क मी रय के िलए
मुि कलात बढ़ ग । नाइट 1891 म पंजाबी और बंगाली मुलािज़म क उपि थित का िज़
करते ह और शासिनक सुधार करने के िलए अं ेज़ सरकार ारा डोगरा शासन के िलए
अपने अिधकारी भेजने का भी।69
1889 म जब ताप संह को अपद थ कर रा य को चलाने के िलए जो पहली टेट
काउं िसल बनाई गई, उसके मुख तो राजा अमर संह थे ले कन उसके सभी सद य रा य
के बाहर के थे। इसके अलावा इस काउं िसल म कोई मुि लम सद य नह था।70 इस
काउं िसल क प नीित िविभ िवभाग म ि टश भारत के अिधका रय को भरने क
थी िजनक तन वाह थानीय कमचा रय /अिधका रय क तुलना म ब त यादा, 1200
से 1500 पये तक थी।71 1901 तक ऐसे अिधका रय क सं या 37 हो गई थी िजसम 9
ि टश थे और बाक़ ि टश भारत के नाग रक। इन 28 लोग म से 20 िह दू, 5 मुि लम
और 2 िसख थे।72 इसके अलावा 17 अं ेज़, अ य यूरोपीय और अमे रकन अिधकारी भी
िविभ िवभाग म िनयु थे।73 1906 तक इस सूची म 11 और अिधकारी जुड़ गए और
इनम भी महज़ 4 मुसलमान थे।74 1908 म यह सं या बढ़कर 4575 हो गई जो उस समय
के सीिमत नौक रय के बरअ स ब त बड़ी थी। िसस यंगहसबड इस सं या को 70
बताते ह और रे शमख़ाना, पी. ड यू. डी., खनन, बाग़बानी, खेल, संर ण, म यपालन,
जंगलात और िबजली जैसे िवभाग पर इन अिधका रय का पूरा क़ ज़ा हो गया था।76
ज़ािहर है क लगातार मुसलमान के ख़ैर वाह बननेवाले ि टश शासन का मुसलमान
को शासन म भागीदारी देने का कोई इरादा नह था और इस भेदभाव का उपयोग उ ह ने
अ सर डोगरा शासक पर दबाव बनाने के िलए ही कया तथा रे िज़डट क िनयुि का
उपयोग वहाँ ि टश अिधका रय क सं या बढ़ाने म कया। रा य म शासिनक सुधार
के नाम पर बाहरी लोग को लगातार भरना ि टश औपिनवेिशक शासन क नीित थी।
रॉिबन जे बताते ह क ‘कई रा य म वा तिवक ताक़त नई नौकरशािहय के हाथ म
थी। ले कन इन नौकरशािहय को अ सर शु आत म रा य के बाहर के ि टश भारत के
लोग से भरा गया। थानीय कु लीन वग , भावशाली कसान और ापारी वग के पास
उस समय आव यक यो यता नह थी। ले कन अगर आधुिनक करण क या म अं ेज़ी
भाषा और आधुिनक िश ा क आव यकता थी तो इन वग के कु छ लोग हमेशा ही पढ़-
िलखकर नये पद पर िनयुि के िलए यो य हो सकते थे। िजन बाहरी लोग का िनयं ण
होता है, वे वाभािवक प से अपना और अपने ब का भिव य सुिनि त करते ह और
थानीय नौजवान के सरकारी नौक रय म घुसने क कोिशश को नाकाम करते ह।’ वह
इसके िलए ावणकोर का उदाहरण देते ह जहाँ सन 1800 म जब मराठा ा ण रे िज़डट
के साथ नौक रय म आए तो उ ह ने कई सरकारी रकॉड मराठी म रखने शु कर दये
जो तिमल लोग के िलए अनजानी भाषा थी।77 क मीर म ताप संह के समय शासन के
िलए बनाई गई काउं िसल के एक सद य ने सलाह दी थी क क मीर म कॉलेज खोले जाने
क कोई ज़ रत नह है।78 1909 म क मीर के रे िज़डट सर िसस यंगहसबड ने िलखा :
रा य के कमचा रय म यह िविश वृि है क क मीर क मी रय के िलए नह , ि टशस के िलए
तो और भी कम ले कन पंजािबय और अ य भारतीय के िलए पूरी तरह से आरि त कर दया
जाए।79
थानीय मुसलमान क िश ा और भत को लेकर शासन कतना ‘ग भीर’ था, यह
हम शाप कमीशन के ह से देख सकते ह। 1915 म ई दूसरी ज मू और क मीर क िश ा
सिमित क बैठक म यह ताव पास आ क मुि लम अिभजन सद य वाली एक कमेटी
बनाई जाए जो मुि लम िश ा पर एक योजना तुत करे । इसम ख़ानकाह-ए-मौला के
वाज़ा ग़लाम मोह मद साहब, दोन मीर वायज़, वाज़ा हसन न शब दी सिहत कई
मुख हि तयाँ शािमल थ । हालाँ क यह कमेटी कोई ताव नह पेश कर सक । इसी
बैठक म त कालीन िश ा मं ी दीवान िबशन दास ने रा य म िश ा के मामले म भारत
सरकार के और अिधक ह त ेप का ताव रखा िजसके फल व प 1916 म ताप संह ने
भारत सरकार के िश ा आयु िम टर शाप क अ य ता म एक कमीशन िनयु
कया।80 क मीर म मुसलमान क ि थित पर ट पणी करते ए इस कमीशन ने दज
कया : ‘क मीर का मुसलमान इतना ग़रीब है क वह अपने ब को कू ल नह भेज
पाता।’ शाप ने न के वल मुि लम छा और िश ण सं था के िलए वज़ीफ़े और अनुदान
क अनुशंसा क बि क मुसलमान क ब सं या के कृ िष म संल ता को देखते ए कृ िष
अिभयांि क , हाट क चर जैसी तकनीक िश ा पर िवशेष ज़ोर देने का ताव कया।
ले कन इन ताव को वीकार करने के बावजूद कभी लागू नह कया गया य क रा य
के मंि य ने इसम कोई िच नह ली। रपोट सरकारी काग़ज़ात के बीच दबी रही और
इसको िमली अहिमयत का अ दाज़ा हम इस बात से लगा सकते ह क पं ह साल बाद एक
आिधका रक जाँच कमेटी ने यह वीकार कया क ‘लगता नह है क कसी को भी एक
िश ा-िवशेष ारा पेश क गई रपोट क कृ ित के बारे म कु छ भी पता है।’81
बाहरी लोग को य देने क यह औपिनवेिशक नीित रजवाड़ म अपने िव त
लोग के सहारे अपने अनुकूल नीितय के िनमाण म सहज प से सहायक थी। बहरहाल
कु छ िति त क मीरी पंिडत क पहल पर िथयोसो फ़कल सोसायटी ने ीनगर म िह दू
कॉलेज (अब ी ताप कॉलेज) क थापना क ।82 इसके पहले 1864 म क मीर म चच
िमशनरी सोसायटी ारा क मीर म िडकल एसोिशएशन क थापना क गई थी ले कन
िमशनरी शै िणक गितिविधयाँ 1880 म जे. एच. नोवे स ारा शु क गई िजसे 1890 के
बाद टंडल े िब को ारा िवकिसत कया गया।83 यह कू ल आज भी टंडल े िब को एंड
मे लंसन ( वायज़) कू ल के नाम से ीनगर के िति त कू ल म शािमल है िजसके छा
म फ़ा क़ अ दुला से लेकर शाह फ़ै सल और आिमर उल-शफ़ ख़ान जैसे आई.ए.एस. टॉपस
शािमल ह। उस दौर म इस कू ल म मु यतः क मीरी पंिडत और िति त मुसलमान के
लड़के ही पढ़ते थे और कॉलेज क थापना के बाद 1911 म क मीरी पंिडत का पहला बैच
ैजुएट होकर िनकल चुका था।84 इसके अलावा बाहर से पढ़ाई करके भी क मीरी पंिडत
नौक रय के िलए यो यता हािसल कर चुके थे। तो, ज़ािहर था क इन बाहरी लोग के आने
का पहला असर उन क मीरी पंिडत पर पड़ता जो इन नौक रय के उ मीदवार थे।
इन हालात म क मीरी पंिडत ने लगातार िवरोध दज कराया। नौक रय क माँग को
लेकर क मीरी-ग़ैरक मीरी आ दोलन क शु आत कर दी। थानीय लोग को रोज़गार म
य देने को लेकर ापन दये गए। हम देखते ह क बाहरी लोग को य देने क इस
नीित के कारण इस तरह के आ दोलन कई रजवाड़ म ए। हैदराबाद म ‘मु क -ग़ैरमु क ’
आ दोलन आ, ावणकोर म ‘ ावणकोर ावणको रय के िलए’, मैसूर म ‘मैसूर मैसूर
वाल के िलए’ और को हापुर म ‘को हापुर ग़ैर- ा ण के िलए।’85 ले कन क मीर के
मामले म मज़ेदार यह था क अं ेज़ ने इस आ दोलन म पंिडत का साथ दया। कारण यह
क पंिडत के बरअ स जो पंजाबी थे, उन पर आय समाज का गहरा भाव था जो उन
दन पंजाब म बेहद भावी था। यह आ दोलन ि टश-िवरोधी था और अं ेज़ नह चाहते
थे क क मीर म ऐसे िवचार फै ल।86 इसी के चलते भारत सरकार ने एक प जारी कया
िजसम मु क लोग को ही नौकरी देने क बात थी ले कन इसम ‘मु क ’ क ब त अ प
प रभाषा थी। संघष जारी रहा और 1912 म पहली बार रा य नाग रक क प रभाषा तय
क गई िजसके अनुसार शासन से ‘इजाज़तनामा’ हािसल करके रा य नाग रक हो सकता
था। ले कन इससे भी ब त असर नह पड़ा, बाहरी लोग अब भी इजाज़तनामा हािसल
करके बड़ी सं या म रा य म आते रहे। िवरोध जारी रहा और अ ततः महाराजा ह र संह
के शासनकाल म 31 जनवरी, 1927 को एक मज़बूत ‘रा य उ रािधकार क़ानून’ बना
िजसके तहत महाराजा गुलाब संह के स ारोहण अथात िव मी संवत 1942 के पहले से
रा य म रह रहे और उसके बाद से लगातार रा य म िनवास कर रहे लोग को रा य का
नाग रक घोिषत कया गया। बाहरी लोग को क मीर म ज़मीन (कृ िष या ग़ैर-कृ िष दोन
ही) ख़रीदने पर रोक लगा दी गई। उनका नौक रयाँ पाना, वज़ीफ़ा पाना और कु छ मामल
म सरकारी ठे के पाना भी ितबि धत कर दया गया।87 इसके बाद बाहरी लोग का
क मीर म नौक रयाँ पाना या स पि ख़रीदना भावी प से क गया। काला तर म
यही क़ानून धारा 35-ए का आधार बना।
यहाँ यह िज़ करना ज़ री होगा क डोगरा राज म भी क मीरी पंिडत का िश ा और
नौकरी के िलए मैदानी इलाक़ म जाना लगातार जारी रहा। सडर ने ब त िव तार से
िविभ रजवाड़ म नौक रयाँ कर रहे पंिडत के बारे म िलखा है। इसके अलावा द ली म
रह रहे पंिडत के िलए 1792 म अजमेरी गेट के पास खुला द ली कॉलेज उ िश ा का
के बना। हालाँ क, यह कॉलेज मूलतः इ लािमक िश ा के िलए बना मदरसा था ले कन
1823 म ि टश सरकार ने इसके िलए अनुदान क अनुशंसा क और 1828 म यहाँ अं ेज़ी
क पढ़ाई शु हो गई। इसका मु य उ े य एक तरफ़ अं ेज़ी शासन के िलए देशी
कमचारी तैयारी करना था और दूसरी तरफ़ अं ेज़ी और देशी भाषा के बीच अनुवाद के
ज़ रये पुल तैयार करना था। जब इसम अं ेज़ी क पढ़ाई शु ई तो पहले बैच म के वल
छह छा थे िजनम दो क मीरी पंिडत थे—मोहनलाल ज़ शी और राम कशन ह सर।
क मीरी पंिडत ने इसका ख़ूब फ़ायदा उठाया और अं ेज़ी िश ा हािसल करके अ छी
नौक रयाँ हािसल क और अं ेज़ से नज़दीक भी। अयो या साद गुटू ‘हैरत’ और
राम कशन ह सर यह अिस टट ोफ़े सर बने जब क िशव नारायण मेरठ म अं ेज़ी के
ोफ़े सर बने, मोतीलाल काटजू सरकारी अनुवादक से पंजाब सरकार के मीर मुंशी बने।
उ ह ने फ़ारसी से कई मह वपूण ंथ सिहत सरकारी प का भी अनुवाद कया।
इनम से एक रोचक क़ सा है मोहनलाल ज़ शी का। मुग़ल दरबार के सबसे धनी
दरबा रय म से एक मिणराम ज़ शी के पौ मोहनलाल ने तीन साल क अपनी पढ़ाई के
दौरान कॉलेज क ब ध सिमित के एक सद य ेवेिलन से अ छे स ब ध बना िलये। जनल
ऑफ़ मोहनलाल (सं. ह रराम गु ा) क भूिमका म ेवेिलन िलखते ह क ‘मोहनलाल के
ि व म हमने भारत के पुन ार के महान उ े य के िलए हमारी यो यता को िस
कर दया है।88 1831 म उ ह क छ के सहायक रे िज़डट अले ज़डर ब स ने 1000 पये
सालाना तन वाह पर फ़ारसी का मुंशी िनयु कया। मोहनलाल ने एक शानदार और
रं गीन िज़ दगी जी। जवाहरलाल नेह अपनी आ मकथा म उनके िलए िलखते ह : ‘उ ह ने
पूरे म य एिशया और फ़ारस म मण कया और जहाँ गए वहाँ आम तौर पर उ वग म
एक शादी क । वह यूरोप गए और युवा महारानी िव टो रया से भी िमले।’ ले कन जैसा क
सडर कहती ह—न तो वह यूरोपीय भ जन क बराबरी म आ सके , न ही अपने ख़द के
समुदाय म। यूरोपीय आधुिनकता का भाव उ ह अपने समाज से दूर ले गया। मुसलमान
के साथ खान-पान, िह दू पूजा-प ितय क आलोचना, मु वहार बाज़ार सीताराम म
रह रहे उनके वजातीय पंिडत को रास नह आया और जब वह लौटे तो उनका कोई
वागत नह आ बि क एक तरह से उनका बिह कार कर दया। ेवेिलन को िलखे एक
प म वह िशकायत करते ह क मेरा समुदाय मेरा बिह कार कर रहा है और मेरे साथ
कोई दो त या र तेदार नह है। उ ह पंिडत के इलाक़े म घर तक नह िमला तो अं ेज़
क मदद से काली मि जद के पास उ ह ने एक कराया-मु घर िलया। उ ह ने स ब ध
सुधारने क कोिशश क , बाज़ार सीताराम के पास चूड़ीवाला बाज़ार म घर िलया ले कन
कोई फ़क़ नह पड़ा। क मीरी पंिडत क पि का बहार-ए-क मीर ने घोषणा क क शायद
मोहनलाल ने इ लाम अपना िलया है और अपना नाम आग़ा हसन जान रख िलया है।
क मीरी पंिडत के इितहास म मोहनलाल का कह नाम नह िलया जाता है। यहाँ तक क
आम तौर पर इं लड जानेवाले पहले क मीरी पंिडत के प म उ ह नह बि क 1884 म
इं लड गए पंिडत िबशन नारायण धर को याद कया जाता है जब क उनके पहले
मोहनलाल के अलावा एक और क मीरी पंिडत सूरज बल इं लड जा चुके थे। ले कन
उ ह ने वहाँ एक अं ेज़ मिहला से शादी कर ली थी और उन पर भी ईसाइयत अपना लेने
का आरोप लगा था। हालाँ क बाद म जब मोहनलाल एक ऐितहािसक ि व क तरह
उभरने लगे तो उनका िज़ होने लगा, ले कन तब उनके किथत ‘धमातरण’ क बात िछपा
दी गई।89
तो अं ेज़ या मुसलमान के यहाँ नौकरी करना एक बात थी ले कन उनसे स पक और
उनके भाव क एक तय सीमा थी िजसका उ लंघन स भव नह था। पहले बैच के दूसरे
छा राम कशन ह सर के प रवार जैसे अनेक प रवार ने इन सीमा के भीतर रहते ए
अं ेज़ से अपने स पक का भरपूर लाभ उठाया और समाज के भीतर-बाहर ित ा तथा
स प ता अ जत क । 1857 के ग़दर के बाद बाज़ार सीताराम से अनेक पंिडत को बाहर
िनकलना पड़ा ले कन इस पूरे व फ़े म पंिडत ने अलग-अलग रजवाड़ म अं ेज़ के ित
पूरी िन ा द शत करते ए िव ोह को दबाने म सहयोग दया और इस तरह अं ेज़ क
िनगाह म अ जत भरोसे ने उ ह अपनी सामािजक और आ थक ि थित को मज़बूत करने म
और मदद क । यही कारण है क नई सदी क शु आत म द ली, आगरा, लखनऊ,
इलाहाबाद, इ दौर सिहत अनेक जगह पर कई मह वपूण क मीरी पंिडत प रवार अं ेज़ी
शासन, यायपािलका और रजवाड़ म बेहद मह वपूण पद पर दखाई देते ह।90
ले कन क मीर के भीतर रह रहे पंिडत के संघष अलग थे।

पंिडत-समाज म सामािजक आ दोलन


यह स भव नह था क क मीरी पंिडत समाज के भीतर-बाहर से आ रही सामािजक
बदलाव क लहर से मु रह पाते। आधुिनक िश ा और देश भर म चल रहे आ दोलन ने
स दय से ब द क मीरी पंिडत-समाज पर गहरा असर डाला। टंडल िब को ने ीनगर म
एक ऐसी खुली नाली को ब द कराने क वा य िवभाग क कोिशश का िज़ कया है
िजसक वजह से लगातार लोग बीमार होते थे। वह बताते ह क क मीरी पंिडत ने उसका
िवरोध यह कहते ए कया क ‘स दय से हमारे पुरखे इसे इसी तरह से ही उपयोग करते
आए ह और हम भी ऐसा ही करते रहगे।’ वष क ग़लामी और उ पीड़क शासक क
उपि थित म शायद पर परा क यह चादर और धम का अिभमान ही उनके िलए
अवल बन था िजसके सहारे वे िवपयय का पूरा दौर िबता सके थे।
ले कन रा य के दरवाज़े खुलने के साथ और नई िश ा हािसल करने के बाद पंिडत-
समाज म ब त धीमी गित से प रवतन आने शु ए। असल म क मीरी ा ण क
पर पराएँ शेष भारत के पंिडत से काफ़ अलग थ । आज भी अिधकतर पूरिबहा और
िबहारी ा ण के घर म मांसाहार सामा य है तो पि मी उ र देश के ा ण के यहाँ
मांसाहार व जत! दि ण के ा ण और बंगाली ा ण का खानपान और बाक़
पर पराएँ एकदम अलग ह। ले कन क मीर म जो अ त वरोध पैदा आ, वह आय समाज
के आने से। पंजाब म पला-बढ़ा आय समाज न के वल एक िह दू समाज-सुधार आ दोलन था
बि क मुि लम-िवरोध तक प च ँ कर सा दाियक आ दोलन म बदल चुका था। एक तरफ़
तो यह क मीर म उन कमचा रय के साथ आया िज ह ताप संह के समय से ही
नौक रय म वरीयता दी गई थी तो दूसरी तरफ़ िश ा और नौकरी के िलए पंजाब
जानेवाले क मीरी पंिडत भी इससे भािवत ए। क मीर के भीतर इस अ त वरोध ने दो
तरीक़े से काम कया। सबसे पहले तो आय समाज ने अपने अनुयाियय के प म ‘क मीर
क मी रय के िलए’ आ दोलन का िवरोध कया और दूसरे , उसने पंिडत- समाज क मू य-
मा यता पर सवाल खड़े कये। अपने समाज-सुधार एजडे के तहत आय समाज ने
क मीरी पंिडत समाज म चिलत बाल िववाह और ि य क अिश ा का िवरोध कया
तो िवधवा िववाह का समथन। इसके साथ ही आय समाज ने पशु क ह या पर भी रोक
लगाने क कोिशश क । ज मू म शुि के नाम पर मुि लम तथा अ य धमावलि बय को
फर से िह दू बनाने क कोिशश भी ले कन तीखे िवरोध के चलते इसे रोकना पड़ा।91
घाटी म समाज-सुधार क दशा म सबसे मह वपूण नाम क यप ब धु का आता है।
1899 म नूरपुर गाँव म ज मे क यप ब धु का असली नाम ताराच द भ था। गाँव से
आरि भक और ीनगर से एं स क पढ़ाई करने के बाद उ ह राज व िवभाग म नौकरी
िमली। ले कन थोड़े दन बाद वह नौकरी छोड़कर लाहौर चले गए और वहाँ आय समाज
से जुड़ गए। जान द आ म के धान िव बंधु ने उ ह क यप ब धु नाम दया। क मीर
लौटकर उ ह ने राजनीित के साथ-साथ समाज-सुधार के काम भी शु कये। िवधवा
िववाह तथा उ ह आ थक मदद, शा दय तथा दूसरे धा मक आयोजन के ख़च म कमी,
ी िश ा आ द के िलए आ दोलन चलाना शु कया। इसम एक रोचक त य पहनावे को
लेकर था। क मीरी मिहलाएँ फरन पहनती थ और उसके भीतर कोई अ तव नह
पहनती थ । क यप ब धु और उनके सािथय ने इसक जगह साड़ी या सलवार सूट पहनने
का आ ह कया। इसने उ ह गितशील बनाया। 1930 म कु छ क मीरी पंिडत ने महाराजा
से बाक़ायदा माँग क थी क िवधवा िववाह को क़ानूनी जामा पहनाया जाए। उसी साल
ेमनाथ बज़ाज़ क अ य ता म इस माँग को लेकर ‘द े ट नटी’ नामक संगठन बनाया
गया था। 1928 म ही ज मू म ‘क मीरी िवमस वेलफे यर एसोिसएशन’ बना िजसम
क मीरी पंिडत ने भी भागीदारी क । 1931 म गांदरे बल म मिहला के सामािजक
उ थान के उ े य से ‘क मीरी पंिड स एि ल टमट एसोिसएशन’ बनाया गया। इसम
गांदरे बल के पो टमा टर पंिडत रामच कौल, सब-अिस टट सजन िनरं जन नाथ गंजू,
फारे ट गाड पंिडत िनरं जन नाथ सिहत िविभ सरकारी महकम के कमचारी शािमल
थे।92 देखा जाए तो इन सब पहलकदिमय म कसी क मीरी पंिडत मिहला क कोई
भागीदारी नह थी। असल म, इस ल बे दौर म कसी पंिडत मिहला का कोई िज़ नह
आता। इन यास का भी वैसे तो ब त िवरोध आ ले कन धीरे -धीरे ी िश ा और
िवधवा िववाह जैसे मामल म क मीरी पंिडत समाज पर सकारा मक असर पड़ा। हालाँ क
यह असर ल बे समय तक शहरी इलाक़ तक ही महदूद था।
क मीर म वैसे तो आय समाज े रत इन आ दोलन म ‘िह दू-मुि लम एकता’ क
बात भी क गई थ । ले कन इितहास क अपनी गित होती है और अपनी िवड बनाएँ।
मु क -ग़ैरमु क आ दोलन म मु य िह सेदारी पंिडत क थी। नौकरी उस समय तक उ ह
का मामला था य क िविभ कारण से िश ा के े म एक पीढ़ी िपछड़ गई। आम
क मीरी मुसलमान उस समय तक इस हालत म नह था क नौक रय के िलए
ितयोिगता कर सके । इसीिलए मुसलमान ने इस आ दोलन म कोई उ साह नह
दखाया। ले कन यह ि थित हमेशा ऐसी ही नह रह सकती थी। मुि लम समाज के कु छ
गितशील लोग और कु छ बाहरी मुि लम बुि जीिवय के यास से क मीर म
मुसलमान ने िश ा हािसल करना शु कया। बीसव सदी के अि तम वष तक क मीरी
मुसलमान न के वल थानीय िश ा सं थान बि क रा य के बाहर के िव िव ालय से भी
िडि याँ हािसल करनी शु कर दी थ । ले कन सरकार ने उ ह नौक रयाँ देने म कोई िच
नह दखाई। 1924 एक उथल-पुथल वाला साल रहा। सबसे पहले मुि लम समुदाय के
िशि त लोग ने काउं िसल के सम नौक रय म कम ितिनिध व क िशकायत क ।
ले कन कोई कायवाही नह ई। उस समय दये गए आँकड़े शासन म मुसलमान क
अ प भागीदारी क नज़ीर देते ह। इनके अनुसार क टम और ए साइज िडपाटमट म कोई
मुसलमान इं पे टर या सब-इं पे टर के पद पर नह था और के वल 6 मुसलमान
महालदार और एक मुसलमान लक था। जंगलात िवभाग के 414 कमचा रय म के वल
56 मुसलमान थे जब क 149 पंिडत सिहत कु ल 296 िह दू।93 इसी साल ग मय म
रे शमख़ाना के 5000 मज़दूर ने अपनी ख़राब माली हालत और शोषण के िख़लाफ़ आवाज़
उठाई और तन वाह बढ़ाने तथा एक लक क बख़ा तगी क माँग क । ये सभी मज़दूर
मुसलमान थे जब क इस सरकारी फै टरी के ब धन म सभी क मीरी पंिडत थे। 1907 म
थािपत यह फै टरी दुिनया म सबसे अिधक रे शम उ पादन करनेवाली फै टरी थी। यह
िव ोह आधुिनक भारत के इितहास म सबसे पहले कामगार िव ोह म से एक है। ब धन
ने तन वाह म तो मामूली वृि कर दी ले कन आ दोलन के नेता को िगर तार कर
िलया। इस पर मज़दूर ने ज़ूरीबाग़ म एक होकर िवरोध दशन शु कया तो ताप
संह क सेना ने उसका कड़ाई से दमन कया। हड़ताल के नेता को कड़ी सजाएँ दी
ग , उ पीड़न कया गया और कई नेता को मौत के घाट उतार दया गया तो कई
मज़दूर को झील म डु बो कर मार दया गया। इन सबके दौरान ि टश रे िज़डट वहाँ था
और उसने मज़दूर के िहत म कोई क़दम उठाने क जगह ताप संह को परो समथन ही
दया।94
इस घटना के कु छ दन बाद ही 1924 म क मीर आए वायसराय लाॅड री डंग को स पे
एक ापन म माँग क गई क रा य सेवा म मुसलमान को उिचत ितिनिध व दया
जाए, मुि लम कसान को ज़मीन का मािलकाना अिधकार दया जाए, मुसलमान क
िश ा क ि थित बेहतर बनाने के िलए उिचत क़दम उठाये जाएँ, बेगार था पूरी तरह से
ख़ म क जाए, सहकारी िवभाग के काय े को बढ़ाया जाए और सरकार के क़ ज़े क
सभी मि जद को मुसलमान को स पा जाए।95 इस ापन पर कई जागीरदार और दो
मीरवायज़ * सिहत कई मह वपूण लोग के ह ता र थे। ज़ािहर है क अपनी
सा ा यवादी आकां ा के बावजूद क मीरी मुसलमान के िलए ि टश शासन उ मीद
का के बना आ था और सुधार के दाव के बावजूद शोषक व थाएँ बद तूर जारी थ ।
इस माँगप क जाँच के िलए एक अं ेज़, एक िह दू और एक मुि लम सद य वाली कमेटी
बनाई गई िजसने यह रपोट दी क ये माँग िनराधार थ ,96 तो इस ापन पर ह ता र
करनेवाले जािमया मि जद के मीरवायज़ का नाम दरबा रय क सूची से काट दया गया,
उनक जागीर ज़ त कर ली ग । 1925 म सादु ीन शॉल को क मीर से िन कािषत कर
दया गया97 और उनके साहबज़ादे वाज़ा नूर शाह न शब दी को तहसीलदार के पद से
इ तीफ़ा देने पर मजबूर कया गया। आग़ा सैयद सैन जलाली को भी सरकारी पद
छोड़ना पड़ा और जागीर ज़ त । शेख़ अ दु ला उस समय लाहौर म थे जहाँ िन कािसत
नेता से उनक मुलाक़ात ई थी। बाद म शेख़ ने अपनी जीवनी म इस आ दोलन पर
ट पणी करते ए िलखा :
हालाँ क यह आ दोलन मह वपूण था ले कन इसने आम मुसलमान को अपने साथ नह िलया। उ ह
भरोसे म लेने या उनक सहानुभूित हािसल करने के िलए कु छ नह कया, इसिलए इसका जनता पर
कोई असर नह पड़ा।98
ि मथ के पूव धृत कथन को याद कर तो अभी तक यह छोटा-सा पढ़ा-िलखा वग
अपने साथ ापक जनता को जोड़ नह सका था। उसके िलए सामािजक-धा मक मु क
ज़ रत थी।
तेज़ी से बदलते इितहास म यह मौक़ा 1931 म आया।

_______________
* मु तजीर का शाि दक अथ है—पनाह चाहने वाला। यह एक तरह क प ेदारी क व था थी िजसम अपने िव त
लोग को गाँव म लगान वसूलने का हक़ दया जाता था।
* ‘खांडवाव’ िश ु बुनकर को कहा जाता है िज ह ने इस आ दोलन म सबसे बड़ी सं या म िह सा िलया था।
* िव तार के िलए देख, रॉबट थोप क कताब : क मीर िमसगवनमट : एन अकाउं ट ऑफ़ द इकोनाॅिमक एंड
पॉिल टकल ऑपरे शन ऑफ़ द पीपल ऑफ़ क मीर बाय द महाराजा’ज गवनमट।
* हरकारा या िज़लादार हर गाँव म िनयु कमचारी होता था िजसका मूल काम गाँव पर नज़र रखना और कसी िनयम
का उ लंघन होने पर ख़बर देना होता था। उनको गाँव क उपज का एक िह सा भुगतान के प म दया जाता था।
* िव तार के िलए मृद ु राय क पूव धृत कताब देिखए।
* पहले, मीरवायज़ जािमया मि जद और दूसरे , शाह हमदानी के खानकाह—ल बे समय तक इन दोन मीरवायज़ का
क मीर क राजनीित और समाज म लगभग एक जैसा स मान रहा। हालाँ क सूफ़ वाद का असर कम होने के साथ-साथ
मीरवायज़ हमदानी का भाव लगातार कम होता गया और आज मीरवायज़ के प म जािमया मि जद के मीरवायज़
को ही जाना जाता है।
स दभ
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90. देख, वही, पेज 184-188
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92. देख, वही, पेज 59 और http://www.koausa.org/Leaders/KashyapBandhu.html (आिख़री बार
14/09/2019 को देखा गया)
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94. देख, पेज 8, द टोरी ऑफ़ क मीर, ता रक़ अली, क मीर : द के स फ़ॉर डम, स पादक : पंकज िम , वस ,
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95. देख, पेज 28, डम गल इन क मीर, एफ़.एम. हसनैन, रीमा पि ल शंग हाउस, 1988, द ली
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97. देख, पेज 29, क मीर इन ू िसबल, पी.एन. बज़ाज़, पा पोश पि लके शन, द ली, 1968
98. देख, पेज 14, ले स ऑफ़ िचनार, शेख़ अ दु ला, अनुवाद : खुशवंत संह, पि वन, द ली, 1993
अ याय-5

बनते-िबखरते आ यान
[1931-1934]
ज मू और क मीर रा य अनेक ितकू ल प रि थितय से जूझ रहा है। मुसलमान क बड़ी जनसं या
पूरी तरह से अिशि त है। ग़रीबी और बेहद ख़राब आ थक हालात से जूझ रही है और शासन उनसे
मूक जानवर क तरह वहार करता है। सरकार और जनता के बीच कोई स पक नह है। जनता
क परे शािनय को सुनने के िलए कोई समुिचत अवसर नह है। ख़द शासिनक मशीनरी को नीचे से
ऊपर तक पूरी तरह से सुधारे जाने तथा आधुिनक और द बनाये जाने क आव यकता है। इसे
जनता क ज़ रत और परे शािनय के ित कोई संवेदना नह है।
पंिडत क मीर के बौि क समाज का िनमाण करते ह ले कन उनका भी इस प म दमन होता
था क न तो सेवा म उनको मह व दया जाता है, न ही उनक ऊजा का उपयोग ापार या
फै ट रय म कया जाता था। इस उपे ा का नतीजा यह आ क वे भी अस तु थे और यह एक
सम या थी िजसका समाधान आव यक था।
रा य म शायद ही कोई जनमत है। जहाँ तक ेस का सवाल है तो उस पर ावहा रक प से
पूरी तरह पाब दी है और इस वजह से रा य- शासन अपनी आलोचना से होनेवाले लाभ से वंिचत
है।1
—एि बयान मुखज
माच, 1929 म क मीर के िवदेश तथा
राजनीितक मामल के मं ी

नौक रय और ितिनिध व के िलए क मीरी मुसलमान क माँग और नये सामािजक-


राजनीितक आलोड़न ने क मीरी पंिडत समाज म खलबली-सी मचा दी। लगातार बढ़ती
बेरोज़गारी के बीच नौक रय क यह जंग दोन समुदाय के बीच एक शि - संघष (पॉवर
गल) म बदल गई। मु क -ग़ैरमु क संघष करते क मीरी पंिडत ने कभी नह सोचा था
क पंजािबय के बाद उनके मुक़ाबले के िलए ब सं यक मुसलमान खड़े हो जाएँग— े वे
मुसलमान, िज ह शै िणक यो यता म उ ह ने हमेशा ख़द से कमतर माना था। शेख़
अ दु ला ने िलखा है : ‘रा य नाग रक से उनका अिभधाथ के वल क मीरी पंिडत से था।
य क िसफ़ वही थे िज ह िश ा का लाभ िमला था और जो सरकारी नौकरी के िलए
यो य थे।’2
यह रोचक है क अपने आ दोलन को रा ीय आ दोलन का नाम देनेवाले पंिडत ने
मुसलमान ारा अपने अिधकार क माँग को ‘सा दाियक माँग’ बताया, कलाम और
बज़ाज़ जैसे गितशील पंिडत भी तमाम सहानुभूित के बावजूद इस वृि से बच नह
पाते। न बे के बाद के राजनीितक-बौि क िवमश म तो इस पूरे संघष को िह दू बनाम
मुसलमान म बदल दया गया है। रोचक है यह त य क कभी ‘मु क -ग़ैरमु क ’ आ दोलन
छेड़नेवाले पंिडत का एक िह सा आज 35-ए के हटाने पर ख़शी मनाता नज़र आता है तो
ज मू का वह डोगरा समाज भी, िजसे रा य उ रािधकार क़ानून का सबसे यादा फ़ौरी
लाभ आ था। अवधारणा पर आधा रत इसी इितहास-दृि का असर है क ऑवर मून हैज़
लड लॉ स म रा ल पंिडत 1931 के उभार को ‘एक सा दाियक घटना’ कहकर िनपटा
देते ह तो मीरा का त अपने उप यास एक कोई था कोई नह -सा म लांसी कमीशन क
िसफ़ा रश के बाद ए पंिडत के ‘रोटी आ दोलन’ क पृ भूिम म क मीरी पंिडत क
दुदशा पर तो बात करती ह ले कन 1931 क घटना का िज़ नह करत । आ य तो
कां ेस के बड़े नेता, क मीर म कै िबनेट मं ी और इि दरा गांधी के ल बे समय तक क़रीबी
रहे क मीरी पंिडत माखनलाल फोतेदार को पढ़कर होता है जो 1931 के आ दोलन को
याद करते ए बस इतना िज़ करते ह क अं ेज़ क शह पर महाराजा के िख़लाफ़
आ दोलन कर रहे थे!3 एक म यमाग माने जानेवाली और ल बे समय से के ीय स ा म
रही पाट से जुड़े ही नह बि क इि दरा गांधी जैसी धानमं ी के ल बे समय तक क़रीबी
और सिचव रहे ि के ‘राजनीितक सं मरण’ म इतनी बचकानी और पूव ह त
ट पणी असल म क मीर के राजनीितक-सामािजक जीवन के इस बेहद मह वपूण मोड़ क
पंिडत समुदाय क अिभकि पत सामूिहक मृित और अवधारणा से उपजी है। ऐसे ही डॉ.
भीमराव अ बेडकर क इस आ दोलन को लेकर जो समझ है, वह च काती ही नह , दुखी
भी करती है। वह कहते ह : ‘मुसलमान ने क मीर म ितिनिध सरकार के िलए संघष
इसिलए कया य क क मीर म ितिनिध सरकार से ता पय िह दू रा य से मुि लम
अवाम के िलए स ा ह ता तरण था।’4 वैसे तो पा क तान अथवा भारत के िवभाजन म
अ बेडकर आज़ादी क लड़ाई म मुसलमान के गौरवशाली योगदान* और िह दू-मुि लम
एकता के सारे आ यान को ही गौण बना देते ह ले कन उनका यह कथन ब त प बताता
है क क मीर के मामले म अ बेडकर क जानकारी कतनी कम या फर कतनी
पूव ह त है। उनका यह सरलीकरण िनज़ाम क स ा के िख़लाफ़ संघष करनेवाले
ितलंगाना आ दोलन म मुि लम ांितका रय के योगदान को ही नह नकारता बि क ख़ान
अ दुल ग फ़ार ख़ान के संघष को भी बड़ी आसानी से भुला देता है। जब से यूलर और
गितशील माने जानेवाले लोग ऐसे िवचार रखते थे तो अब भारतीय िह दु ववादी
दि णपंथ का िह सा हो चले पंिडत के आ यान का तो कहना ही या!
ले कन इस सवाल का जवाब तो आपको ढू ँढ़ना ही होगा क िजस घाटी म 85 ितशत
राज व देनेवाले, बेगार के िलए मजबूर, हर तरह के दमन के िशकार रा य क 96 फ़ सद
आबादी मुसलमान क थी, वहाँ अपने अिधकार क माँग के िलए सड़क पर कौन
उतरता? और जहाँ दमन और उपे ा का आधार धम था, वहाँ उस दौर म ितरोध म
एकता का आधार धम कै से नह बनता? इसम बाक़ देश के िलए मुसलमान को दिलत-
िपछड़े-आ दवासी से जोड़कर देिखए, शायद चीज़ बेहतर समझ आएँ। शेख़ अ दु ला एक
क़ सा सुनाते ह। 1938 म जब पंिडत जवाहरलाल नेह क मीर गए तो क मीरी पंिडत
से बातचीत म उ ह ने मुसलमान को सामािजक अछू त न समझने क अपील क । अगले
दन पंिडत का एक ितिनिधमंडल उनसे िमलने आया और कहा क आप मुसलमान को
अलग करने क बात करते ह ले कन हमारे यहाँ शा दय से मुसलमान ज़मीन पर पानी का
िछड़काव करते ह। नेह ने हँसकर कहा, ‘वे आपक शा दय म ज़मीन पर पानी िछड़क
सकते ह ले कन वे आपके साथ खाना नह खा सकते।5 जो भी हो, अब क मीर बदल रहा
था और पंिडत को इसम अपनी भूिमकाएँ तलाशनी थ ।
ह र संह : सं मण काल म सीिमत गितशीलता
1925 म ताप संह क मृ यु के बाद ग ी पर बैठे ह र संह डोगरा वंश के पहले ऐसे
शासक थे िजनक आधुिनक िश ा-दी ा ई थी और ताजपोशी के बाद िजस तरह क
घोषणाएँ उ ह ने क , वे पहली नज़र म उस दौर के िहसाब से ांितकारी नज़र आती ह—
म एक िह दू ँ ले कन अपनी जनता के शासक के प म मेरा एक ही धम है— याय। यही
नह , वह ईद के आयोजन म भी शािमल ए और 1928 म जब ीनगर शहर बाढ़ म डू ब
गया तो वह ख़द दौरे पर िनकले। वेकफ ड के हवाले से सराफ़ बताते ह क अपने शासन
के शु आती दौर म वह चमचागीरी के इतने िख़लाफ़ थे क उ ह ने एक सालाना िख़ताब
‘ख़शामदी ट टू’ तय कया था िजसके तहत ब द दरबार म हर साल सबसे बड़े चमचे को
चाँदी और काँसे के भीख माँगते ट टू क ितमा दी जाती थी।6 यही नह , राजितलक
समारोह म उ ह ने जो घोषणाएँ क थ , उनम ज मू और क मीर घाटी म 50-50 तथा
िगलिगट और ल ाख म 10-10 कू ल खोलने तथा इसके िनमाण के िलए लकड़ी जंगलात
महकमे से मु त दये जाने, खालसा ज़मीन को शामलात म देने, ज मू और घाटी म 3-3
चल िड पस रयाँ खोलने, तकनीक िश ा का बारामूला, अनंतनाग, लेह, क तवार,
सा बा, मीरपुर और भदरवाह तक िव तार करने, ीनगर म एक अ पताल खोलने, पीने
के पानी क व था के अलावा िववाह क यूनतम उ लड़क के िलए 18 और लड़ कय
के िलए 14 वष करने और ब के िलए टीकाकरण क व था शािमल थी। कृ िष राहत
अिधिनयम बनाया िजसने कसान को महाजन के चंगुल से आज़ाद होने म मदद क ।
अिनवाय िश ा के िलए िनयम बनाये िजससे ‘ज़बरी कू ल’ खुले और सभी के िलए ब
को कू ल भेजना ज़ री बना दया गया। 31 अ टू बर, 1932 को एक आिधका रक घोषणा
करके रा य के सभी मि दर को दिलत के िलए खोल दया। यह घोषणा गांधी के
आ दोलन से भी पहले ई थी और शायद देश म पहली। यह इतना ांितकारी िनणय था
क रघुनाथ मि दर के मु य पुजारी ने इसके िवरोध म इ तीफ़ा दे दया!7 ज़ािहर है,
शु आत शानदार थी और उ मीद जगाने वाली भी। ले कन न तो ह र संह अपने समय क
सीमा के पार जा सकते थे, न ही वह दुिनया भर म आ रहे बदलाव को अन त काल के
िलए क मीर से दूर रख सकते थे।
रा य उ रािधकार क़ानून बन जाने पर क मीरी पंिडत को लगा था क अब वे ऊँची
नौक रय म भी जगह बना पाएँग।े ले कन आ यह क पंजािबय और बाहरी लोग क
जगह िह दू डोगरा राजपूत ने ले ली। ेमनाथ बज़ाज़ कहते ह :
हालाँ क रा य नाग रकता क प रभाषा के वीकार ने दिमत जनता क उभरती ई चेतना क
उ मीद को एक हद तक पूरा कया ले कन इस बात के ल ण दखने लगे थे क यह सभी सम या
का हल नह हो सकता। राजकु मार क अिनयंि त तानाशाही एक दुधारी हिथयार क तरह थी। इस
बात म कोई दो राय नह है क रा य नाग रकता का क़ानून पास करके महाराजा ह र संह ने
बाहरी लोग का ाचार और भाई-भतीजावाद ख़ म कर दया था ले कन उनके ग ी पर बैठते ही
एक तरह का राजपूत कु लीनतं थािपत हो गया। औसत ितभा के राजपूत रा य के िविभ
िवभाग के मुख बन गए। सेना पूरी तरह डोगरा , ख़ास तौर पर राजपूत के िलए आरि त कर
दी गई और राजपि त पद पर साठ ितशत से अिधक डोगरा का क़ ज़ा हो गया। यह
अपमानजनक भेदभाव ज द ही असहनीय हो गया, अ प आवाज़ ितरोध म उठने लग ।8
यह दौर दुिनया भर म उथल-पुथल का था। तीस के दशक क म दी से क मीर भी
अछू ता नह रहा। ज़मीन और चावल क क़ मत ब त िगर ग और कसान भुखमरी क
कगार पर प च ँ गए। पि मी देश म ह तिश प क माँग िगरने से ापार मुि कल हो
गया और देसी बाज़ार इस कमी को पूरा कर पाने म असमथ थे। िश पकार कं गाली के
हालात म प च ँ गए।9
इस दौर म एक नई सम या भी क मीर म मह वपूण बन गई थी। भू-ब दोब त क
व था के बाद ऋण तता ब त बढ़ गई थी। लॉरस के भू-ब दोब त के पहले क मीर म
ामीण ऋण तता क सम या लगभग अनुपि थत थी। शेष भारत म भावी भूिमका
िनभानेवाले सा कार और बिनये क मीर के ामीण समाज म नह थे। इसक जगह सभी
बड़े गाँव म वानी या बाकल थे जो अ सर रोज़मरा का सामान बेचनेवाले छोटे दुकानदार
थे और ‘वाद’ व था के ज़ रये व त-ज़ रत पर कृ षक को ऋण दया करते थे। इ लामी
िस ा त के अनुसार याज नह िलया जाता था और कसान इसके बदले अनाज, फल
और क बल जैसी व तुएँ दया करते थे िजनका मू य बाज़ार भाव से कम लगाया जाता
था। कु छ गाँव म पंिडत भी इस वसाय म लगे ए थे ले कन लॉरस के अनुसार, गाँव म
कृ िष ऋण तता जैसी कोई ग भीर सम या नह थी10 ले कन भू-ब दोब त व था म
लगान का एक िह सा नक़द के प म देने क व था के बाद वहाँ ामीण अथ व था म
ऋण क सम या काफ़ बढ़ गई। 1926-27 तक 70 फ़ सदी से अिधक कसान ऋण क
सम या से त हो चुके थे। इस बीच वहाँ ऐसे िह दु का एक वग उग आया था जो बड़े
पैमाने पर इस धंधे म शािमल हो गए थे। यह बात इस त य से भी सािबत होती है क जब
1926-27 म ह र संह ने ऋण त कसान क सम या के म ेनज़र कृ षक सहायता
अिधिनयम बनाकर यह सुिनि त कया क कसी भी हाल म याज दर 50 फ़ सदी से
अिधक नह होना चािहए तो इसका सबसे तीखा िवरोध िह दु के दबदबे वाली ज मू
और क मीर ितरोध सिमित और िह दू युवक सभा ने यह कहते ए कया क ‘यह िह दू
समुदाय के िहत पर कु ठाराघात है और याय तथा बराबरी के िस ा त के ितकू ल है
य क यह एक समुदाय क क़ मत पर दूसरे को लाभ प च ँ ाता है।’ ज़ािहर है, क़ज़ के इस
मकड़जाल म फ़ायदा उठाने वाले थे िह दू समुदाय के ापारी और क़ज़ का जुआ आम
मुि लम कसान के क ध पर था। हालाँ क इस िनयम के बावजूद क मीरी कसान को
क़ज़ से मुि नह िमली। सा कार ने नये रा ते ढू ँढ़ िलये िजसम मूलधन को दुगुना करके
िलखा जाता था।11 इस दौर म गाँव से शहर क तरफ़ िव थापन भी बढ़ा और फल व प
शहरी जनसं या म तेज़ी से वृि ई। 1931 आते-आते जहाँ झेलम घाटी के येक शहर
क औसत जनसं या 15,510 हो गई, वह हर गाँव क औसत जनसं या के वल 377 रह
गई।12 नई अथ व था म मु ा का चलन बढ़ा और िनयात आधा रत उ ोग म बढ़ोतरी
होने से घाटी म सामािजक संतुलन भी बदला। औपिनवेिशक शासक क नज़र म
जनसं या म वृि क मीर म समृि का तीक थी, ले कन यह समृि क मीरी जनता तक
नह प च ँ ी। मज़दूरी बढ़ी ले कन शाली (धान) के दाम उससे कई गुना बढ़ गए। शॉल
ापा रय और जागीरदार वाले पुराने कु लीन वग का मह व कम हो गया ले कन इस नई
अ औपिनवेिशक व था म राज व िवभाग के कमचा रय का मह व कमोबेश पहले
जैसा बना रहा, जब क क मीर घाटी के उ तरीय शासक, िजनम िह दु और ख़ास
तौर पर डोगरा का वच व था, नये भू-कु लीन बन गए। कसान को, िजनक ब सं या
मुसलमान क थी, इस नई व था से कोई लाभ तो नह आ ले कन कसान अब
क मीर के िवमश म मह वपूण प से शािमल ए और उनक माँग आनेवाले समय के
आ दोलन म मह वपूण बनकर उभर ।13 ब दोब त के कारण रा य म अनाज पर
महाराजा का एकािधकार समा होने से, उनके मू य बाज़ार पर आधा रत ए, तो ि टश
अिधका रय क नज़र म यह उदार अथ व था क ओर बढ़ा आ क़दम ज़ र था ले कन
कमचा रय के असहयोग और त कालीन ि थितय के साथ मू य म वृि और शहर म
अनाज क अनुपल धता से कई बार संकट जैसी ि थित उ प ई और अ सर रा य को
अनाज क उपल धता सुिनि त कराने के िलए ह त ेप करना पड़ा। पहले िव यु के
कारण आई मुि कलात के चलते 1921 म तो एक भयावह अनाज-संकट आया। अनाज
िव य करनेवाले ‘ग लादार ’ के नये वग ने अनाज क क़ मत कई गुना बढ़ा द और
जमकर लाभ कमाया। इस अवसर पर शासन ने ह त ेप कया तो ि थित सुधरने के
बजाय िबगड़ती चली गई। शासिनक कमचा रय और ग लादार क लूट ने कसान क
रीढ़ तोड़ दी। 1921 म इस पर िनयं ण के िलए अनाज िनयं ण बोड बनाया गया िजसने
अनाज के अिधकतम मू य िनधा रत करने के साथ-साथ उसके समुिचत िवतरण के िलए
सहकारी टोर भी खोले ले कन जागीरदार , ग लादार और दलाल क िमलीभगत से
यह योजना भी अपना ल य नह ा कर सक । उ ोग धंध क ब दी से तबाह शहरी
ग़रीब के िलए राशन ारा दया जा रहा आठ ाक शाली एक बार म ख़रीद पाना स भव
नह आ तो उ ह ने अपने राशन टकट बेच दये और अ ततः इसका लाभ धिनक लोग
को िमला िज ह ने अनाज क जमाख़ोरी कर कालाबाज़ारी करनी शु कर दी। क मीरी
मुसलमान ने महाराजा से माँग क क ‘राशन कु ल जनसं या म समुदाय क िह सेदारी
के अनुसार बाँटा जाए’, साथ ही उ ह ने आरोप लगाया क ‘क मीरी पंिडत समुदाय अपने
मुि लम भाइय क क़ मत पर इस ि थित को अपने प म मोड़ने पर आमादा है।’14
इन नीितय के चलते अस तोष उपजना ही था और उसका िवरोध भी वाभािवक था।
शु आत उसी वग से होनी थी जो पढ़ा-िलखा था। देखा जाए तो डोगरा शासन के िख़लाफ़
घाटी म िव ोह का पहला वर एक क मीरी पंिडत हरगोपाल ने ही उठाया था। 1876 म
अितवृि के चलते क मीर म आए अकाल के दौरान य तो भारी तबाही मची थी ले कन
अिधका रय ने इस आपदा का उपयोग भी अपनी ितजोरी भरने म कया था। हरगोपाल
कौल ने इसक िशकायत त कालीन महाराजा रणबीर संह से क तो कई अिधकारी
बख़ा त ए।15 इसके बाद दरबार म उनके िख़लाफ़ ष ं शु हो गए और उन पर
आरोप लगाया गया क उ ह ने ही अं ेज़ से यह िशकायत क थी क कई लोग को उस
दौरान डु बो कर मार दया गया। इस आरोप म उ ह उनके भाई शािलगराम कौल के साथ
ज मू के ब फोट म तीन साल के कारावास क सज़ा दी गई। जेल म रहते ए हरगोपाल
कौल ने अपनी िस मसनवी गोपालनामा िलखी िजसम क मीर के हालात और दरबार
के ष ं का िव तार से वणन कया। उ ह ने राजनीितक व था पर ं य करते ए
एक और रचना िलखी—नर संह अवतार। सािलग राम ने भी दो मसनिवयाँ—सु दर बदनू
और ससी पु ू—िलख और दा तान-ए-जगत प का बड़ा िह सा भी।16 दोन भाई जेल
म सुरंग खोदकर भागने म सफल रहे17 और लाहौर जाकर रावी नाम का अख़बार
िनकाला। रावी के ब द हो जाने के बाद उ ह ने देश, रफ़ॉमर और पि लक यूज़ नाम से
अख़बार िनकाले।18 सािलगराम ने लाहौर से ही ख़ैर वाह-ए-क मीर नामक अख़बार
िनकाला। इसम क मीर के हालात पर तो बात होती थी ले कन मूलतः यह सनातन धम के
आदश क वकालत करता था। इसके साथ ही उ ह ने मू त-मंडन और धा रण उपदेश
नामक दो पुि तकाएँ भी िलख जो सनातन धम क ही ित ा थािपत करती थ । दोन
भाइय ने रणबीर संह के शासन क नीितय के िख़लाफ़ कई लेख िलखे19 ले कन ताप
संह के शासनकाल म वे वापस लौटे और िजस समय अं ेज़ ने ताप संह से स ा के सारे
अिधकार छीन िलये थे, पंिडत ने उनके प म देशभर म अिभयान चलाया। लाहौर से
गोपीनाथ कौल के स पादन म िनकलने वाले उदू अख़बार अख़बार-ए-आम ने इसम बड़ी
भूिमका िनभाई तो हरगोपाल कौल ने अपने अख़बार —रावी बेनज़ीर और सुबह-ए-
क मीर—म लगातार अं ेज़ी ष ं को बेपद कया।
1894 म हरगोपाल कौल ने ‘सनातन धम सभा’ क थापना क िजसका उ े य
‘समुदाय क सुर ा को मज़बूत करना और अपनी दिमत ित ा को हािसल करने के िलए
इसे पुनजा त करना’ था। उ ीसव सदी के अ त म क मीरी पंिडत के बीच अं ेज़ी िश ा
और पंजाब से आए आय समाजी आ दोलन का काफ़ भाव पड़ा था। पंिडत समाज म
ा कु रीितय को दूर करने के िलए इसी साल ‘समाज सुधाकर’ नाम का संगठन बनाया
गया। पंिडत सूरज काक म टू इस संगठन के मुख थे और हरगोपाल कौल सिचव।
अमरनाथ काक क इन दोन संगठन म बेहद मह वपूण भूिमका थी। इस संगठन ने
शा दय म अंधाधुंध ख़च, मांसाहार, बाल िववाह आ द के िख़लाफ़ और िवधवा िववाह के
प म अिभयान चलाया। इस अिभयान का क मीरी पंिडत समाज पर असर तो पड़ा
ले कन ज द ही क रपंथी पंिडत ने इसे बेअसर कर दया।20 असल म ये आ दोलन आय
समाज आ दोलन का मुक़ाबला करने के िलए शु कये गए थे ले कन अिधक शु ा ण
दखने के िलए उ ह ने मुि लम समाज से दूरी बनानी शु क तो क मीर का सामािजक
ताना-बाना और अिधक वैमन यपूण होना ही था।21 हालाँ क आय समाज क शाखा घाटी
म 1910 म ‘आयकु मार सभा’ के नाम से थािपत ई िजसम कई पंिडत भी शािमल ए।
इसका क मीरी समाज पर कोई गहरा असर तो नह पड़ा ले कन चूँ क आय समाजी ख़द
को रा वादी कहते थे और अं ेज़ के िख़लाफ़ थे, इसिलए क मीर म रा वाद का अथ न
के वल आय समाजी बि क िह दू तौर-तरीक़े भी थािपत ए। आय समाज क िह दू
पुन थानवादी नीितय ने मुसलमान को वाभािवक प से इस आ दोलन से दूर कर
दया। उनके िलए रा वाद का मतलब ‘िह दू रा वाद’ आ तो रा य क राजनीित पर
इसका गहरा असर होना ही था। आय समाज के भाव से उ प िह दू पुन थानवाद के
इस उभार ने मुसलमान को रा ीय आ दोलन से दूर कर दया।22
इसका सबसे िवड बनापूण उदाहरण िख़लाफ़त आ दोलन (1919-24) के समय देखा
गया था जब मूलतः पंिडत के नेतृ व म चले इस आ दोलन म मुसलमान ने ब त कम
सं या म भागीदारी क थी और ब सं या अं ेज़ के साथ खड़ी नज़र आई23 जब क पूरे
भारत के मुसलमान ने इसम ख़ूब बढ़-चढ़ के िह सा िलया था। वैसे न तो रा य म तब तक
कां ेस क कोई शाखा थी, न ही वहाँ िख़लाफ़त आ दोलन का व प बाक़ देश क तरह
बायकाट और असहयोग आ दोलन वाला था। इसक जगह वहाँ थानीय मु े मुख बने
और इस थम िव यु ो र काल म बढ़ी ई क़ मत के ितकार के तीक के प म
पंिडत ने ‘मांस क क़ मत म बढ़ोतरी के िख़लाफ़’ आ दोलन शु कया। साथ ही उ ह ने
िह दू-मुि लम एकता, गो-र ा, और क मीरी जनता के भाईचारे क ज़ रत पर ज़ोर
दया।24 1927 म जब कानपुर म आॅल इं िडया पीप स कॉ स क पहली बैठक ई तो
इसक सदारत एक क मीरी पंिडत मोहनलाल कौल ने क । मोहनलाल को ि टश रे िज़डट
क िशकायत पर रा य से िनकाल दया गया था। इस बैठक म पंिडत ारकानाथ खाच
भी थे और इसम रजवाड़ के िख़लाफ़ ताव पास कया गया था।25 कई छा ने
असहयोग आ दोलन म िह सा िलया तो लाला लाजपत राय के बुलावे पर डेढ़ सौ से
अिधक छा गोजरानवाला गए थे। जब मई, 1930 म महा मा गांधी को िगर तार कया
गया तो 6 मई, 1930 को हज़ार क मीरी पंिडत और िसख ने आिमर कदल म िवरोध
दशन कया। हड़ताल क गई और महाराजगंज म िवदेशी कपड़ क होली जलाई गई। 7
मई को छा ने कॉलेज म हड़ताल कर दी और फर से आिमर कदल पर एक ए। इस
दौरान ‘महा मा गांधी क जय’ के साथ-साथ ‘महाराजा बहादुर क जय’ के भी नारे
लगाये गए। ज़ािहर है, यहाँ िवरोध के वल अं ेज़ी सरकार का था।26 ले कन इन आ दोलन
म मुसलमान ने कोई भागीदारी नह क । रा य म दोन धम के बीच बढ़े वैमन य का
असर यह आ क रा य के मुसलमान अं ेज़ के क़रीब गए। िजयालाल कलाम बताते ह
क उसी दौर म उ ह ने और वाशालाल कौल ने सरकारी नीितय के िख़लाफ़ पंजाब के
अख़बार म लेख िलखे थे और ह तिलिखत पच तैयार करके बाँटे थे। यही नह , क मीर के
बाहर स पक थािपत होने के बाद वह पंजाब रयासती जािनयु मंडल के महासिचव
ए थे जो वहाँ के कामगार का संगठन था। लाहौर म रह रहे क मीरी पंिडत क यप ब धु
ने वहाँ वासी क मी रय के िलए लेबर बोड का गठन कया था। ये सभी वासी मज़दूर
मुसलमान थे। इस बोड ने द ली िनवासी क मीरी पंिडत यारे मोहन द ा ेय क सदारत
म एक बड़ी कॉ स कराई थी जो काफ़ असरकारी रही और सरकार ने अपना प रखने
के िलए बाक़ायदा सार िवभाग थािपत कया।27

मुि लम समाज म उथल-पुथल


मुि लम समाज भी ल बे समय तक इन बदलाव से अछू ता नह रह सकता था। 1921-31
के बीच िशि त युवक क सं या म वृि के िलहाज़ से क मीरी मुसलमान ने सभी
समुदाय क तुलना म सबसे ती वृि हािसल क । तब तक राजक य कामकाज क भाषा
बन चुक उदू-िशि त युवा क सं या म 9912 फ़ सद क वृि ई। हालाँ क यह वृि
मूलतः ीनगर और शहरी इलाक़ तक ही सीिमत थी। ले कन इसी गित से रोज़गार म
वृि न होने से िशि त म यह वृि बेरोज़गार क सं या क वृि म त दील ई। हालात
ऐसे थे क 1931 के ससस म अलग-अलग समुदाय के बेरोज़गार क गणना का ख़याल
छोड़ना पड़ा।28 देश के िविभ िव िव ालय म पढ़ते ए छा का िख़लाफ़त आ दोलन,
नमक स या ह और वाधीनता सं ाम क हलचल ने अपने तरीक़े से भािवत कया ही
था और अपने लोग के उ पीड़न के िख़लाफ़ लड़ने के िलए उनम एक िह मत भी दी थी।
रा य म संगठन बनाने या ेस क कोई आज़ादी न होने के कारण क मीर म तो
राजनीितक संगठन या अख़बार नह थािपत हो सके ले कन पंजाब म, जहाँ क मीरी
िव ा थय और वािसय क बड़ी सं या थी, इं क़लाब, िसयासत, सनराइज़, मुि लम
आउटलुक, फ़ा क़ और अफज़ाल जैसे कई अं ेज़ी और उदू अख़बार शु कये गए। 1896
म ही लाहौर म वासी क मी रय ारा ‘मजिलस क मीरी मुसलमान’ थािपत आ था।
1901 म ‘मुि लम क मीरी कॉ स’ क थापना ई और 1911 म इसे अिखल भारतीय
व प देते ए ‘आल इं िडया मुि लम कॉ स’ नाम दया गया। 1924 म इसने ीनगर म
अिधवेशन करने क अनुमित माँगी ले कन महाराजा ने अनुमित देने से इनकार कर दया।
अ लामा इक़बाल सिहत कई िति त लोग इससे जुड़े थे। इस संगठन ने क मीर के
आ दोलन म मह वपूण भूिमका िनभाई।29 पंजाब म पढ़नेवाले छा इनके स पक म आते
थे। शेख़ अ दु ला ने लाहौर म अपने छा जीवन म इनसे स पक का िव तार से िज़
कया है तो अलीगढ़ म पढ़ते ए गांधी और कां ेस के आ दोलन से स पक का। ज़ािहर है,
पंिडत छा क तरह ही क मीर से बाहर पढ़ने गए मुि लम छा भी नये िवचार अपने
साथ लेकर लौट रहे थे।
ऐसे ही कु छ िशि त बेरोज़गार युवक ने 1930 म ीनगर के फ़तेह कदल म मु ती
िज़याउ ीन के घर पर ‘री डंग म पाट ’ शु क िजसम वे साथ बैठकर देश-दुिनया और
अपनी सम या पर बहस कया करते थे। कु छ दन तक अनौपचा रक प से काम करने
के बाद मोह मद रज़ब को इसका अ य और शेख़ अ दु ला को महासिचव चुना गया। ये
युवक देश के अं ेज़ी और उदू अख़बार म क मीर के हालात पर प िलखा करते थे।30 इन
युवा म क़ाज़ी सैफ़ु ीन, पीरज़ादा ग़लाम रसूल, पीरज़ादा अहमद शाह, मु ती
जलालु ीन, ए. फ़जीली, हक म ग़लाम मुतज़ा, और मौलवी बशीर अहमद आ द शािमल
थे।31 शॉल उ ोग से जुड़े एक िन म यवग य प रवार म िपता क मौत के तीन महीने
बाद ज मे शेख़ अ दु ला अलीगढ़ िव िव ालय से रसायन शा म एम.एस-सी करके
आए थे ले कन ब त कोिशश के बावजूद उ ह बस इ लािमया हाई कू ल म 60 पये
ितमाह क मुद रसी िमल सक थी। री डंग म के युवा का सबसे बड़ा मु ा नौकरी
था।32
इससे पहले 1929 क ग मय म कु छ मॉडरे ट मुसलमान का एक समूह नौक रय म
मुसलमान के अिधक ितिनिध व के सवाल पर महाराजा ह र संह से िमलने गया िजसम
जनरल सम दर ख़ान और शेख़ अ दुल अज़ीज़ शािमल थे। एक आिधका रक रपोट के
मुतािबक़ महाराजा इस माँग से सहमत थे और उ ह ने िनजी प से नौक रय म 50
ितशत आर ण का भरोसा दया था। हालाँ क इस पर आगे कोई गित नह ई तो कु छ
कह पाना स भव नह है। इसके बाद ह र संह 1930 म गोलमेज़ स मेलन म भाग लेने
इं लड चले गए और अपनी अनुपि थित म शासन चलाने क िज़ मेदारी तीन सद य क
एक कै िबनेट को दे दी िजसम त कालीन धानमं ी जी.ई.सी. वेकफ ड, ग़ैर-क मीरी
िह दू पी.के . वाटल और एक डोगरा राजपूत जनरल जनक संह थे। इस कै िबनेट का सिचव
भी एक डोगरा राजपूत ठाकु र करतार संह था : यानी इसम एक भी क मीरी या
मुसलमान शािमल नह था। इस कै िबनेट के सद य के बीच श ुता और अिव ास इस
तर का था क वे एक दूसरे क जासूसी कराने से भी नह चूके। इसी कै िबनेट ने सरकारी
भ तय के िलए लोक सेवा भत बोड क थापना क । इस बोड ने राजपि त पद पर भत
के िलए कु छ िनयम बनाये िजसके तहत उ मीदवार को कु छ काग़ज़ात तुत करने थे और
एक ितयोगी परी ा देनी थी। यही नह , सं कृ त क परी ा पास करना आव यक बनाया
गया जब क फ़ारसी को शािमल नह कया गया। री डंग म के सद य ने ‘भत क इस
या का असल मक़सद मुसलमान क भत म रोड़े डालना’ बताते ए एक ापन
दया। 11 िसत बर को री डंग म के दो ितिनिध आमंि त कये गए। शेख़ अ दु ला
उनम से एक थे। बैठक म कै िबनेट के तीन सद य उपि थत थे ले कन बहस के बाद शेख़
अ दु ला के सुझाव को बोड ने पूरी तरह से अ वीकार कर दया। युवक रा य के गृहमं ी
आग़ा सैयद सैन से िमले ले कन उ ह ने अपनी मजबूरी कट करते ए कहा क इस
मामले म तो िश ा मं ी भी कु छ नह कर सकते थे। आ य क बात तो यह थी क उ ह
यह भी नह पता था क इस मामले म कै िबनेट ने युवक के ापन का या जवाब दया
था। ज़ािहर है, युवा को इससे गहरी िनराशा ई।33 चूँ क क मीर म अख़बार पर पूरी
तरह से पाब दी थी इसिलए अपनी बात लोग तक प च ँ ाने के िलए उ ह ने सभी मु े एक
पच म छापकर ीनगर म बँटवाये और नौक रय म मुसलमान क ि थित को लेख के प
म संकिलत कर लाहौर से िनकलने वाले अख़बार इं क़लाब म कािशत करवाया। यहाँ एक
और मह वपूण त य जोड़ दया जाना ज़ री है। ीनगर का कु लीन मुि लम वग इस
ापन क ख़बर िमलते ही चौक ा हो गया था और मुंशी असदु लाह वक ल, वाज़ा
अ दुल रहीम बांद,े िमज़ा ग़लाम मु तफ़ा और मु ती शरीफ़ु ीन जैसे रईस कै िबनेट के
सद य के सम यह कह आए थे क वे महाराजा के ित पूण प से िन ावान ह। यही
नह , उ ह ने ापन पर ह ता र करनेवाल के िख़लाफ़ कड़ी कायवाही क भी माँग क
थी।34
लगभग इसी समय ज मू म इ ह उ े य को लेकर ‘यंग मैन मुि लम एसोिसएशन’ भी
स य था। इसम क़ाजी गौहर रहमान, सैयद गुलज़ार सैन, अ लार खा सागर, ग़लाम
अहमद ग़ोरी और मौलवी हैदर शाह शािमल थे। जब एक दूसरे क कायवािहय क ख़बर
पंजाब के अख़बार के ज़ रये प च ँ तो इन दोन संगठन ने िमलकर काम करने का िन य
कया। क मीर म ग़लाम अहमद अशाई ने मुसलमान क सम या को उठाने के उ े य से
क मीर मुि लम एसोिसएशन बनाया था। शेख़ इस संगठन का भी िह सा बने और उ ह
संगठन का सिचव चुना गया तथा अशाई अ य बने। इसके सद य म हक म ग़लाम
मुतज़ा, वाज़ा अली शाह, हक म अली, वाज़ा मोह मद रज़ब, पीरज़ादा ग़लाम रसूल,
हक म ग़लाम सफ़दर, वाज़ा अहसान उ लाह आ द शािमल थे।35
जुलाई, 1931 क घटना पर जाने से पहले ककर एक ज़ री सवाल पर बात कर
लेते ह। हमने देखा है क घाटी म पंिडत और मुसलमान, दोन िबरादरी के पढ़े िलखे
युवा क सबसे बड़ी माँग थी—नौकरी। फर इस माँग को लेकर वे कोई संयु संघष
य नह िवकिसत कर सके ? यह सवाल इसिलए भी मह वपूण हो जाता है क नौक रय
म िज ह वरीयता दी जा रही थी, वे पहले पंजाबी और दूसरे , बाहरी लोग थे तो ह र संह
के समय म ज मू के डोगरा। यही नह , बड़ी सं या म अं ेज़ भी ऊँचे पद पर कािबज़ थे।
ऐसे ही सेना म भी घाटी के पंिडत और मुसलमान दोन को ही बाहर रखा गया था। तो
यह ब त वाभािवक लगता है क घाटी के दोन मुख समुदाय यह लड़ाई संयु प से
लड़ते। ले कन इसके ठीक िवपरीत हम देखते ह क दोन के बीच नौक रय म िह सेदारी
को लेकर तीखा संघष होता है। ग़ौर से देख तो इसके कारण क मीर के इितहास म है तो
दूसरी तरफ़ उस समय क राजनीितक-सामािजक हक़ क़त म। डोगरा के िख़लाफ़ कु छ
कहना सीधे महाराजा के िख़लाफ़ होता तो अं ेज़ क भत के िख़लाफ़ बोलना तो उस
समय बेहद ख़तरनाक हो सकता था। इसिलए स ासीन वग के ािधकार को वीकार
करते ए दोन को ही उनसे बची ई छोटी नौक रय म िह सेदारी क लड़ाई ही लड़नी
थी िजसम दोन एक दूसरे के ित ं ी बनकर सामने आए। दूसरी तरफ़ ल बे दौर म
पंिडत और मुसलमान के बीच जो र ता बना था, वह सहयोगी का नह था। जहाँ
क मीरी मुसलमान के िलए पंिडत स ा के शोषक तं का तीक था, वह पंिडत के िलए
अपनी मे रट का अहंकार उसे कु लीन मुि लम वग के साथ दो ताना स ब ध म तो सहज
रख सकता था ले कन आम मुसलमान को बराबरी क दृि से देखना स भव नह था।
क मीरी पंिडत के िलए शै िणक और शासिनक सेवा म दबदबा जैसे ज मिस
अिधकार था।36 वे यह वीकार ही नह कर सकते थे क मुसलमान उनके बराबर यो य हो
सकते ह या शासिनक सेवा म उनका कोई हक़ बनता है। इसे ग़ौर से देखने पर शेष
भारत म ग़ैर-दिलत और दिलत के बीच का र ता याद आना वाभािवक है जहाँ मे रट
क अवधारणा वा तिवक मे रट से अिधक मह वपूण हो जाती है। रा य उ रािधकार
क़ानून बन जाने के बाद रा य क सबऑ डनेट सेवा के िलिपक य पद पर पंिडत का
लगभग एकािधकार हो चुका था और वे मुसलमान को इसम िह सेदारी देने को कै से तैयार
हो सकते थे? इसिलए सहया ी क जगह क मीरी मुसलमान उनके िलए एक नये ित ं ी
क तरह ही सामने आता है। ‘क मी रयत’ और िह दू-मुि लम एकता क तमाम कहािनय
के बीच ेमनाथ बज़ाज़ का यह बताना आपको च कत कर सकता है क दोन समुदाय के
बीच कोई सामािजक सहकार नह था। वे एक दूसरे से दूर रहते थे और शायद ही उनके
बीच कोई संवाद था।37 मुसलमान म यह एक आम अवधारणा थी क पंिडत जानबूझकर
उ ह नौकरी और िश ा से बाहर रखने के िलए कोिशश करते ह।38 1929 म उ िश ा के
िलए िनयत 12 वज़ीफ़ म के वल 1 मुि लम छा को दया गया तो 1931 म नॉमल कू ल
म िश ण के िलए दये गए 205 वज़ीफ़ म मुसलमान को के वल 73 िमले।* ऐसे म
वाभािवक था, मुि लम युवा उपेि त महसूस करते और अलग से अपनी माँग उठाते।
आिख़र जहाँ लगभग 96 फ़ सद आबादी मुसलमान क थी और लगातार वंचना तथा
शोषण का िशकार थी, वहाँ ितरोध के िलए धम के अलावा और या आधार बन सकता
था?
आपको क मीर के इस दौर के इितहास क कसी भी कताब म कई-कई प े इन
उदाहरण से भरे िमलगे क बाहरी, िवशेष तौर पर लाहौर के ेस ने कै से क मीर म
‘सा दाियक उभार’ म भूिमका िनभाई। लाहौर के संगठन —अहम दया और अहरार
आ दोलन क भूिमका पर भी ल बी ा याएँ िमलगी,** ले कन इन सभी म इस त य को
नज़रअ दाज़ कर दया जाता है क पंिडत ने ‘क मीर क मी रय के िलए’ के आ दोलन के
समय भी बाहरी ेस का सहारा िलया था और आल इं िडया पीपु स कॉ स सिहत अनेक
‘बाहरी’ मंच का सहारा ही नह िलया गया था बि क क मीर से बाहर बसे पंिडत ने
इसम अपनी मह वपूण भूिमका भी िनभाई थी। आिख़र िजस रा य म ेस और राजनीितक
संगठन बनाने पर पाब दी हो, वहाँ आ दोलनका रय के पास और या रा ता हो सकता
था और जो रणनीित पंिडत के िलए सही थी, वह मुसलमान के िलए ग़लत कै से हो गई?
जहाँ एक वर से लाहौर से िनकलने वाले ज़म दार,*** िसयासत, इं क़लाब, अ फ़ाज़ और
लाहौर ाॅिनकल जैसे अख़बार को ‘मुि लम ेस’ कहा जाता है, वह लाहौर से ही
िनकलने वाले िमलाप, अमर और गु घंटाल को ‘िह दू ेस’ य नह कहा जाना चािहए?
अगर देखा जाए तो दोन म मौिलक फ़क़ बस इतना था क जहाँ पहली ेणी के अख़बार
महाराजा के िख़लाफ़ थे और मुि लम नज़ रये से बात करते थे, वह दूसरी ेणी के
अख़बार महाराजा के समथक और िह दू नज़ रये से बात करते थे। उदाहरण के िलए
िमलाप क दो रपो स को देखा जा सकता है िजसम वह शेख़ अ दु ला को ‘बदश ल
ि ’ कहता है जो सफाचट रहता है, पट पहनता है और बचा साका ढब क टोपी पहनता
है। ऐसे ही क मीर म चिलत एक कै लडर म शेख़ को क मीर का गांधी कहा जाने पर
उसक ट पणी थी : इसे ‘बचा साका’ कहा जाना चािहए—क मीर क शाि त का
िवनाशक।39 ले कन जहाँ मुि लम सा दाियकता के भाव पर बात क जाती है, वह
िह दू सा दाियक त व क भूिमका पर अ सर चु पी साध ली जाती है।* पैरी एंडरसन
अपनी कताब इं िडयन आइिडयाेलॉजी म उन दन के रा ीय आ दोलन म िजस िह दूवादी
वृि के गहरे भाव क बात करते ह, वह कम-से-कम क मीर के स दभ म साफ़ दखाई
देता है।
और ‘क मीर क मी रय के िलए’ का नारा आिख़र िसफ़ क मीरी पंिडत के िलए तो
नह हो सकता था? फर अगर घाटी म 95 ितशत और पूरे ज मू-क मीर म 76 ितशत
आबादी वाले मुसलमान अगर नौक रय म अपने िलए पचास फ़ सदी आर ण क माँग
कर रहे थे तो इसे सा दाियक माँग कै से कहा जा सकता है? हालाँ क ग़लाम नबी िगलकर
जैसे लोग भी थे जो इसे पूरी तरह धा मक मामला मानते थे और महाराजा को हटाकर
क मीर म कसी मुि लम सुलतान क ताजपोशी के प धर थे, ले कन उस समय उनका
भाव कु छ ख़ास नह था।40 उस दौर म पयाम-ए-सदाक़त नामक अख़बार म िलखे एक
लेख ‘हम या चाहते ह’ म शेख़ अ दु ला का िलखा देिखए :
हम इस धरती से ग़रीबी, बेरोज़गारी और अ याय का ख़ा मा करना चाहते ह। हम चाहते ह क कोई
कसी का ग़लाम न रहे और देश म शाि त बनी रहे। हम धम के बीच क सम याएँ समा करना
चाहते ह, ता क रा य म एक यायपूण व था चल सके । हम चाहते ह क महाराजा बहादुर का
शासन मज़बूत रहे िजससे बाहरी और भीतरी ख़तर का सामना कर सके । राजा और जा को िपता
और पु क तरह होना चािहए। सभी को भाइय क तरह रहना चािहए। यह तभी स भव है जब
दिमत मुसलमान को भी उसी तर पर प च ँ ाया जा सके जो अ य भाइय —पंिडत , डोगरा और
राजपूत —ने हािसल कया है। हम चाहते ह क रा य म महाराजा बहादुर का शासन जारी रहे।41
एक आदशवादी युवा के इस बयान म ‘दिमत मुसलमान ’ को ‘दिलत ’ से ित थािपत
करके देिखए तो यह बयान आपको सोशल जि टस का उदाहरण लगेगा। अगर नह लगता
है तो वाभािवक प म मूल बयान आपको सा दाियक लग सकता है। ले कन यह त य
तो अपनी जगह रहेगा ही। अगर रं ग दमन का कारण होगा तो रं गभेद के िख़लाफ़ लड़ाई म
एकता रं ग के आधार पर होगी। जाित दमन का आधार होगी तो इसके िख़लाफ़ संघष म
एकता का आधार जाित होगी। जडर दमन का आधार है तो फे िमिन म ने उसे एकता का
अिधकार बनाया। इसिलए धम के दमन का आधार होने पर यह वाभािवक था क धम
दमन के िवरोध का आधार बनता और यह भी वाभािवक था क सा दाियक िवभाजन
के गहराते जाने के उस दौर म सा दाियक ताक़त उसम ह त ेप करत और उसका
फ़ायदा भी उठात ।

1931 का आ दोलन : सा दाियक उभार या जन-आ दोलन?


1931 का आ दोलन क मीर के आधुिनक इितहास का वह मोड़ है जहाँ से आ यान म
प िवभाजन दखना शु हो जाता है। क मीरी पंिडत के त कालीन और ख़ास तौर पर
न बे के बाद के आ यान म ही जुलाई, 1931 के मह व और रे खांकन म काफ़ फ़क़ आ
जाता है। आप इसका अ दाज़ा इस बात से भी लगा सकते ह क जहाँ क मीरी मुसलमान
इसे ‘शहीद दवस’ के प म मनाते रहे ह, वह पंिडत ने इधर इसे ‘काला दवस’ के प
म मनाना शु कर दया है। इन आ यान म वे सू ह जो इसके बाद क मीर म अलग-
अलग तरह के रा वाद के िवकास और न बे का दशक आते-आते उस माहौल क
पूवपी ठका बने िजसके चलते घाटी यु े म प रणत हो गई और पंिडत को बड़ी सं या
म पलायन करना पड़ा। यह आ दोलन िजतना इितहास म है, उतना ही क मीर के
मुसलमान और पंिडत क सामूिहक मृितय और अवधारणा म भी। इस िववेचना के
पहले 1931 के घटना म को सं ेप म देख लेते ह।
अ ैल म ज मू म दो ऐसी घटनाएँ िज ह ने क मीर म सतह के नीचे पल रहे अस तोष
को हवा दे दी और साथ ही धा मक वृि क होने के कारण ये घटनाएँ घाटी के
मुसलमान के िलए एक वर म आवाज़ उठाने का बहाना भी बन । पहली घटना 29
अ ैल, 1931 को ज मू म ई। ईद के समारोह के दौरान जब इमाम ख़तबा पढ़ने लगे तो
खेमच द नामक एक पुिलस अिधकारी ने उ ह ऐसा करने से रोका, जब क ख़तबा पर परा
से हमेशा इस मौक़े पर पढ़ा जाता था। मुसलमान ने इसे अपने धा मक मामल म ह त ेप
क़रार दया और िवरोध दशन शु हो गए। अभी इस मु े क आग बुझी भी नह थी क
जुलाई म ज मू क पुिलस लाइन म एक और घटना घटी। ेमनाथ बज़ाज़ बताते ह क एक
िह दू हेड कां टेबल लाभोराम ने अपने अधीन थ एक मुि लम कां टेबल के समय से काम
पर न आने के कारण उसका िब तर उठाकर फक दया िजसम उसके िब तर म रखा
पंजसुरा (क़ु रान का एक िह सा) भी फं क गया।42 ले कन ख़तबा वाली घटना पर सभी
लेखक जहाँ एकराय ह, वह इस घटना को लेकर पया मतभेद है। हसनैन ने िब तर फकने
क घटना का िज़ न करते ए मुि लम कां टेबल के नमाज़ पढ़ते समय िह दू हेड
कां टेबल ारा क़ु रान (पंजसुरा नह ) फके जाने क बात कही है।43 एम.जे. अकबर ने
लाहौर के आल क मीर मुि लम कॉ स के सालाना जलसे से लौटते युवा के आ दोलन
के दौरान एक कां टेबल के क़ु रान फकने क बात कही है।44 शेख़ अ दु ला ने अपनी जीवनी
म िलखा है क लाभोराम ने अपने एक साथी के झोले से क़ु रान िनकालकर फाड़ दी।45 मृद ु
राय पुिलस िवभाग क त कालीन पाि क रपोट के हवाले से बताती ह क उस समय
अफ़वाह थी क एक िह दू पुिलस हेड कां टेबल ने अपने अधीन थ कां टेबल को नमाज़
पढ़ने से रोका और फर क़ु रान का अपमान कया गया। ले कन पाया गया क घटना को
ब त बढ़ा-चढ़ा कर बयान कया गया है।46
ऐसा लगता है क वे अफ़वाह कभी नह थम । ेस और छापेखाने पर पूरी तरह से
पाब दी के कारण लोग ने जो जाना, वह अफ़वाह या फर पंजाब से छपने वाले िह दू/
मुि लम अख़बार से ही जाना। आज़ादी के पहले और बाद म भी ेस पर िनय ण के
कारण अफ़वाह का क मीर म अलग ही मह व है। कहा जाता है क क मीर म ख़बर भले
ग़लत हो जाए, अफ़वाह सच होती ह। तो अफ़वाह का असर भी होना था और
सा दाियक ताक़त के िलए इसका फ़ायदा उठाना भी वाभािवक ही था। एक और त य
को यहाँ जान लेना आव यक है। गोलमेज़ स मेलन के दौरान ह र संह के भाषण ने
ि टश शासन को काफ़ च काया था। उ ह ने ख़द को पहला भारतीय ही नह बताया था
बि क कु छ ऐसी बात भी कही थ जो ि टश शासन के िलए सहनीय नह थ ।47 यही
नह , अपने शासक य वहार म ताप संह से उलट ि टश रे िज़डसी को वह मह व नह
देते थे। ज़ािहर है, अं ेज़ ऐसे वहार से नाख़श थे। इधर सिवनय अव ा आ दोलन से
बाहर रहे सा दाियक मुि लम संगठन उ ह कां ेस के िख़लाफ़ अपने त कालीन सहयोगी
के प म िमले थे। ेमनाथ बज़ाज़ सिहत कई लेखक का मानना है क अपनी इसी नीित
के तहत अं ेज़ ने न के वल इस आ दोलन को िनयंि त करने म समुिचत सहयोग ही नह
दया बि क ज मू-क मीर म सा दाियकता को बढ़ावा भी दया। यह भी सच है क देश
के अनेक िह स और ख़ास तौर पर पंजाब के िविभ संगठन और अख़बार ने इस
आ दोलन को भड़काने म अहम भूिमका िनभाई। यह कहना बलराज मधोक या फर उनके
वैचा रक सहयोिगय के िलए बेहद सुिवधाजनक भी है, ले कन या यह उन अ याचार
और सा दाियक नीितय क उपि थित म स भव था िजसक वजह से क मीरी
मुसलमान ख़द को लगातार उपेि त, पीिड़त और िह दू आबादी के स मुख भेदभाव से
िसत वहार का िशकार महसूस कर रहे थे? आिख़र इस सच को परदे के पीछे कै से भेजा
जा सकता है क अं ेज़ ने िजस चीज़ का फ़ायदा उठाया, वह थी—मुि लम समुदाय के
ित रा य क उपे ा और दमन क नीित?
ज मू क ख़बर जब ीनगर प च ँ ी तो दीवार ‘इ लाम ख़तरे म है’ के नारे से पट ग ।
जगह-जगह तक़रीर होने लग िजनम दोन मीरवायज़ साथ आए और शेख़ अ दु ला न
के वल जनता को मं मु ध कर देनेवाले एक शानदार व ा क तरह उभरे बि क इस
या म यह आ दोलन कु लीन वग के हाथ से िनकलकर युवा तक प च ँ गया और घाटी
के गाँव -क़ ब तक फै ल गया। घटना म िनणायक मोड़ तब आया जब ह र संह यूरोप
या ा से लौट आए और उ ह ने मुि लम ितिनिधय से सीधे बात करने का िन य कया।
ज मू के यंग मैन मुि लम एसोिसएशन क तरफ़ से िम ी याक़ू ब अली, सरदार ग़ौहर
रहमान, चौधरी ग़लाम अ बास और शेख़ अ दुल हमीद को ितिनिध चुना गया जब क
क मीर से ितिनिध चुनने के िलए 21 जून, 1931 को इस आ दोलन क सबसे बड़ी सभा
ख़ानकाह-ए-मौला म बुलाई गई। इस ऐितहािसक सभा म मीरवायज़ यूसुफ़ शाह भी
शािमल ए। कसी मीरवायज़, क मीर ने पहली बार ख़ानकाह-ए-मौला म वेश कया
था। इसम िशया, सु ी, अहम दया, हनफ़ , वहाबी सिहत मुि लम समाज के सभी तबके
शािमल ए। रा के ित वफ़ादारी क कसम खाई ग और सात ितिनिध चुने गए—
मीरवायज़ मौलाना यूसुफ़ शाह, मीरवायज़ हमदानी, वाज़ा सैद ु ीन शॉल, आग़ा सैयद
सैन शाह जलाली, वाज़ा ग़लाम अहमद अशाई, मुंशी शहाबु ीन और शेख़ अ दु ला।48
इस बैठक के बाद ितिनिधय ने सभा को स बोिधत कया। मौलाना यूसुफ़ शाह ने
मुसलमान के तमाम हक़-ओ- क़ू क के िलए िमलकर काम करने का आ वान कया तो शेख़
अ दु ला ने अपने इस पहले सावजिनक राजनीितक भाषण म मुसलमान के साथ-साथ
क मीर क िह दू जनता से भी अ याय के िख़लाफ़ इस संघष म साथ आने क अपील क ।
सभा समा होने ही वाली थी क एक ऐसी घटना घटी िजसने इस आ दोलन का चेहरा
बदल दया। अ दुल क़ा दर नामक एक ि अचानक मंच पर आया और उसने बेहद
भड़काने वाला सा दाियक भाषण देते ए ‘इ लाम ख़तरे म है’ के नारे के साथ महाराजा
के शासन को इ लाम-िवरोधी बताते ए ट का जवाब प थर से देने क अपील क और
ापन तथा माँगप को बेकार क बात बताते ए कहा क पिव क़ु रान के अपमान का
मसला ऐसी चीज़ से हल नह हो सकता। मुसलमान से अपने पैर पर खड़े होकर
हिथयार का मुक़ाबला ला ठय और प थर से करने क अपील करते ए उसने महाराजा
के महल क ओर इशारा कया और कहा क ‘अ याय, ू रता और ग़लामी के इस िनशान
को ने तनाबूद कर दो।’
उस माहौल म जब अभी रा य क ओर से एक लाठी भी नह चली थी, महाराजा ने
आ दोलन से सीधी बातचीत का ताव रखा था, इस तरह का भड़काऊ भाषण देनेवाला
कौन था यह? अ दुल क़ा दर? अ सर उसे कसी अं ेज़ अिधकारी के ख़ानसामे के प म
क मीर आए एक बाहरी ि क तरह पेश कया जाता रहा है ले कन हसनैन ने उसक
पृ भूिम के बारे म िव तार से िलखा है। ीनगर दंगा जाँच कमेटी के हवाले से वह बताते ह
क अ दुल क़ा दर दरअसल मौलाना अ दुल क़ा दर ग़ाज़ी था जो पैन-इ लािमक आ दोलन
के मौलाना जमाल-उद-दीन अ तारबादी उफ़ अफ़ग़ानी से जुड़े पठान प रवार से स ब
था। अफ़ग़ानी स जाने से पहले क मीर होते ए गया था।49 इसिलए ब त स भव है क
अं ेज़ी, उदू, फ़ारसी और अरबी जाननेवाले अ दुल क़ा दर का ि टश अिधकारी का
ख़ानसामा बनकर क मीर म वेश वहाँ उसक योजना का िह सा था। और यह योजना
उस समय पूरी होती भी नज़र आती है। अ दुल क़ा दर के भाषण के बाद इस आ दोलन का
व प पूरी तरह से बदल गया। अब तक बातचीत के िलए तुत ह र संह क सरकार ने
इस भाषण को राज ोह क ेणी म रखते ए 25 जून, 1931 को अ दुल क़ा दर को
िगर तार कर िलया। जब कोट म सुनवाई शु ई तो हज़ार लोग एक होने लगे। शाि त
व था पर ख़तरे को भाँपते ए िज़ला मिज ेट ने कोट क कायवाही जेल के भीतर करने
और उसे कै मरे म रकॉड करने का िनदश दया और लोग को वहाँ जमा होने से रोक दया
गया। महाराजा ने 9 जुलाई को जनता से शाि त बनाये रखने के िलए राजनीितक
कायवािहय को रोकने क अपील क ले कन अगले ही दन जािमया मि जद म एक
िवशाल सभा ई िजसम शेख़ अ दु ला ने कहा क अ दुल क़ा दर इ लाम क र ा के िलए
लड़ रहे ह और उ ह रहा कया जाना चािहए। 13 जुलाई, 1931 को ीनगर जेल के
भीतर अ दुल क़ा दर के मुक़दमे के दौरान शासन ने बड़ी सं या म पुिलस तैनात क । जेल
के बाहर बड़ी सं या म लोग एक होकर अ दुल क़ा दर क जगह ख़द को िगर तार करने
के नारे लगा रहे थे। सेशन जज ने जब भीड़ को जाने के िलए कहा तो लोग ने नमाज़ के
बाद जाने क बात कही। वाज़ा अ दुल ख़ािलक शोरा ने नमाज़ पढ़नी शु क तो उसी
समय पुिलस ने पाँच लोग को िगर तार कर िलया। अफ़रा-तफ़री मच गई और पुिलस ने
फाय रं ग शु कर दी। सबसे पहले मरने वाले थे वाज़ा अ दुल खािलक़ शोरा। नारे तेज़
हो गए और क मीर के इितहास म पहली बार प थरबाज़ी क घटना ई। बदले म पुिलस
ने लगातार गोिलयाँ चला , 22 लोग मारे गए और सैकड़ लोग घायल ए। शेख़ अ दु ला
ने इसक तुलना जािलयांवाला बाग़ कांड से क है। ले कन भीड़ का ग़ सा अब गोिलय ने
दबने वाला नह था। ू िसबल ऑफ़ क मीर म ेमनाथ बज़ाज़ ने िलखा है क मरनेवाल
म से कसी क भी पीठ पर गोली नह लगी थी। भागने क जगह भीड़ जेल म घुस गई और
वहाँ रखी चारपाइय पर शव को लेकर जािमया मि जद क तरफ़ चल पड़े।
यह से वह मोड़ शु होता है जहाँ से आधुिनक क मीर म आ यान क बायनरी शु
होती है। इस बात पर तो सभी एकमत ह क रा ते म तोड़-फोड़ और िह दू दुकान क लूट
क भी घटनाएँ । इितहास म सं या का अपना मह व होता है और नह भी होता है
ले कन ोपेगडा म सं या का मह व वयंिस है। अवधारणाएँ कै से समय के साथ बनते-
बनते ढ़ हो जाती ह, जुलाई, 1931 क यह प रघटना इसका ब त सटीक उदाहरण है।
इस घटना म सं या क राजनीित क मीर क राजनीित को और उसम आए
बदलाव को समझने म ब त मददगार होगी।
हसनैन ने एक य दश के हवाले से बताया है क महाराजगंज म ऐसी घटना नह
ई, ले कन शहर के दूसरे िह स म बीस-बाईस दुकान लूटी ग । शेख़ अ दु ला िलखते ह
क आ दोलनका रय ने िह दू दुकानदार से दुकान ब द कराने के िलए कहा और उनके
मना करने पर असामािजक त व ने लूट-पाट क घटना को अंजाम दया और बाद म
ि थित सामा य होने पर लूट का माल बरामद करके दुकानदार को लौटा दया गया।
रे िज़डट क त कालीन रपोट के अनुसार लूटपाट और आगजनी क घटना ीनगर के
महराजगंज इलाक़े म ई थी। ेमनाथ बज़ाज़ कहते ह क घर जलाए जाने, तोड़फोड़ और
मारपीट क इन घटना म तीन िह दू मारे गए और बड़ी सं या म लोग घायल ए।
हालाँ क उनका मानना है क यह काम जुलूस म शािमल कु छ गुंडा त व ारा कया गया
और बड़े नेता को य ही यह ख़बर िमली, इस पर क़ाबू करने क कोिशश क ग ।50 उस
घटना के समय क मीरी पंिडत राजनीित म बेहद स य िजयालाल कलाम के यहाँ इस
घटना पर बस एक चलती- फरती ट पणी है। उसी दौर म क मीरी पंिडत के मु पर
कलाम के साथ ही लगातार बाहरी अख़बार म िलख रहे और 1931 म ‘ए.पी.आई.’ और
‘रायटस’ के संवाददाता रहे वाशालाल कौल 1963 म कािशत अपनी कताब (संशोिधत
और संव धत सं करण) म इस घटना को फ़ु टनोट म बस इतनी सी जगह देते ह : ‘लूट और
आगजनी ई (दो दन बाद शहर म घूमते ए इन पंि य का लेखक भी इस ग़ से का
िशकार आ)।’51 1979 म छपी अपनी कताब म पृ वीनाथ ट कू भी लूट क घटना
का िज़ करते ह और मरनेवाले पंिडत क सं या 3 तथा घायल क सं या 163 बताते
ह।52 1974 म छपी कताब म बलराज मधोक इस सं या को ‘हज़ार ’ म प च ँ ा देते ह।53
ले कन न बे के दशक के बाद यह सं या ही नह बढ़ती जाती बि क इस घटना का मह व
भी बढ़ता जाता है और यह जैसे न बे के दशक म ए पंिडत के िव थापन क पूवपी ठका
भी बना दी जाती है। क मीर म मनाए जानेवाले ‘शहीद दवस’ के बरअ स यह ‘काला
दवस’ बन जाता है। ए.एन.आई. म 13 जुलाई, 2018 म छपे पनुन क मीर के बयान म इसे
‘संग ठत धा मक नरसंहार’ कहा गया तो इसी बयान के अमर उजाला म छपे िह से म
कहा गया : ‘13 जुलाई, 1931 को िह दु को खदेड़ने का काम शु हो गया। िवचरनाग,
महाराजगंज, ह र संह हाई ीट, बोहरी कदल और कनीकोट म हंसक घटनाएँ ।’
िह दू जनजागृित सिमित क वेबसाइट पर छपे इस बयान म कहा गया है : ‘13 जुलाई,
1931 का दन िह दू समुदाय और क मीर के महाराजा के िख़लाफ़ अं ेज़ के भड़कावे पर
रचे गए बड़े ष ं का तीक है और इसे ज मू-क मीर मुि लम कॉ स ारा अंजाम
दया गया था। इस दन लूट, आगजनी और ‘दज़न ’ िह दु क ह या ई। इस बयान म
पूरा आ यान बदलते ए कहा गया है क ‘िह दू समुदाय के िख़लाफ़ बड़े पैमाने पर ई
हंसा के चलते गोलीबारी ई, िजसम कु छ दंगाइय को जान से हाथ धोना पड़ा।54 ख़द को
मीिडया म क मीर ए सपट क तरह पेश करनेवाले सुशील पंिडत भी इसी आ यान को
आगे बढ़ाते ए 2015 म छपे एक लेख म इस सं या को ‘हज़ार ’ प च ँ ा देते ह, लाख क
लूट क बात करते ह और जेल प रसर म ई गोलीबारी म मारे गए लोग का त य िछपा
जाते ह। वह दंगे का े ‘बोहरी कदल से लेकर अली कदल तक’ िव तृत करते ह और
इसम सफा कदल, गंजी, ख़द और नवा कदल को शािमल कर देते ह।55 2014 म इसी दन
छपी ख़बर म पनुन क मीर के बयान म आिमर कदल का नाम भी उन जगह म शािमल है
जहाँ दंगे ए। इन सभी बयान म यह कहा गया क ‘1931 के बाद से ही क मीरी िह दू
इस दन को काला दवस के प म मनाते ह।’
त य यह है क क मीर से जुड़ी कसी मह वपूण कताब म—चाहे वह कसी मुि लम
लेखक क हो या फर क मीरी पंिडत क —तो छोिड़ए, न बे के दशक के पहले क िजतनी
रपो स म देख पाया, उसम इस दन को ‘काले दवस’ के प म मनाने का कोई िज़ नह
िमलता। ज़ािहर है, अगर ऐसा आ भी होगा तो पंिडत के ब त छोटे से कसी समूह म,
ब त छोटे तर पर ही, िजसे क़ािबल-ए-िज़ नह समझा गया होगा। हालाँ क
आ यजनक यह है क क मीर म स य रहे जनसंघी नेता बलराज मधोक क कताब म
भी इसका िज़ नह है! आ यान को िह दू-मुि लम बायनरी म बाँटने का ही खेल है क
साम ती महाराजा को भी िसफ़ ‘िह दू’ म र ूस कर दया जाता है। आिख़र कौन-सा
रजवाड़ा था जहाँ त कालीन राजा -सु तान -नवाब का िवरोध नह हो रहा था? और
हमने देखा है क रजवाड़ के आ दोलनका रय के संगठन ‘आल इं िडया पीप स कॉ स’
के पहले स मेलन क सदारत भी एक क मीरी पंिडत ने क थी और इसका सिचव भी एक
क मीरी पंिडत को ही चुना गया था। इस घटना के बाद भी अनेक क मीरी पंिडत राजतं
के िख़लाफ़ आ दोलनरत रहे थे। वैसे एक और मज़ेदार बात यह है क मधोक से लेकर
सुशील पंिडत तक इस आ दोलन को ‘मुि लम कॉ स’ का आ दोलन बताते ह, जब क
मुि लम कॉ स का गठन इस घटना के तीन महीने बाद अ टू बर म आ था!56 शायद
री डंग म के आ दोलनकारी कहने से इस सा दाियक बायनरी म कम वज़न पड़ता।
लगातार इसे लाहौर के मुि लम क रपंिथय के समथन के चलते सा दाियक कहते ए
यह त य भुला दया जाता है क लाहौर क िह दू महासभा ने इस घटना पर बयान देते
ए न के वल इसक भ सना क थी बि क ‘मुि लम ित यावा दय ’ का कारनामा बताते
ए भारत सरकार से इसके दमन तथा ‘िह दू समुदाय को अपने भाव का उपयोग कर
अख़बार म क मीर रा य के िख़लाफ़ ित यावा दय को बरहना करने क अपील’ क
थी। यही नह , महासभा ने इस मु े पर आम सभाएँ भी क थ और अपने जलस म ऐसे
अनेक बयान जारी कये थे।57
वैसे इसका दूसरा प भी उतना ही मह वपूण है। जी.एच. ख़ान बताते ह क भीड़ को
एक पंजाबी ापारी लाला भगत कशन च द ने बुरा-भला कहा और िववाद बढ़ा तो एक
मुि लम तांगावाला मारा गया। इसके बाद भीड़ ने उसक और उसके कु छ सािथय क
दुकान लूट ल । पंिडत ने साथ दया तो मामला बढ़ गया। इसके िलए वह ोत के प म
तारीख़-ए- रयात-ए-क मीर (ले. पीर मोह मद अफ़ज़ल म दूमी) का िज़ करते ह।58
ख़ािलद अहमद बशीर अपनी कताब म सािबत करते ह क ऐसा कु छ आ ही नह था
बि क क मीरी पंिडत ने झूठी िशकायत क थ , अपना माल िछपाकर चोरी कया आ
बता दया था और कु छ मुसलमान क भी ह या ई थी। इन सबको िस करने के िलए
वह लाहौर के मुि लम अख़बार को आधार बनाते ह जब क िह दू अख़बार म छपी ख़बर
को पूरी तरह िनराधार बताते ह और इसक काट म और कु छ नह , मुि लम अख़बार को
ही सा य क तरह तुत करते ह। फर अ ततः अ दुल मािजद ज़रगर के कहे को अि तम
स य क तरह तुत करते ह, जो न तो उस घटना के य दश थे, न ही अपने इस दावे
के प म कोई सबूत पेश करते ह क ‘उस दन कु छ भी नह आ था।’ यही नह , वह
शायद यह भूल जाते ह क ‘कु छ होने’ क ओर इशारा तो ख़द शेख़ अ दु ला कर चुके ह।59
उनके िलए यह सुिवधाजनक हो सकता है ले कन कोई भी िनरपे पाठक यह समझ सकता
है क दोन ही तरफ़ के अख़बार उस दौर म भी अपने-अपने प को सही सािबत करने के
िलए तब भी वैसे ही अफ़वाह फै ला रहे थे, जैसे आज दोन तरफ़ क वकालत करनेवाले
लेखक। तो 1931 क यह प रघटना अपने होने म िजतनी मह वपूण है, उससे अिधक उस
अवधारणा म है, जो क मीर म सा दाियक कशमकश बढ़ने के साथ ढ़ ही नह हो गई
बि क इितहास के प म परोसी जा रही है।
वैसे इस घटना का एक और प है—यह इलाक़ा मूलतः क मीरी पंिडत और पंजाबी िह दू
ापा रय का था। ये ापारी सूद पर धन देने का धंधा भी करते थे और भीड़ ने वे
काग़ज़ात लूटकर फाड़ डाले थे।60 यहाँ यह त य मह वपूण है क िवचरनाग मूलतः छोटे
कमचा रय और सूद पर क़ज़ देनेवाले पंिडत का इलाक़ा था। बाद म दलाल कमीशन को
दये गए बयान म वहाँ के एक िनवासी कै लाश बट ने कहा क ‘दंगाइय म मेरे कई
क़ज़दार थे।’ उ ह ने इस बात पर िवशेष यान दया क क़ज़ स ब धी काग़ज़ात पूरी तरह
से न कर दये जाएँ61 और बाद म लांसी कमीशन क जाँच म पाया गया क डोगरा सेना
ारा मुि लम दुकानदार और कु लीन के घर लूटे जाने क भी घटनाएँ ई थ ।
े नाथ बज़ाज़ सिहत यादातर समकालीन लेखक का मानना है क माहौल को सँभालने

म डोगरा शासन पूरी तरह नाकाम रहा। दलाल कमेटी ने पुिलस मुख को एक ‘अयो य
डोगरा’ अिधकारी कहा।62 दमन क कायवािहयाँ क ग , शेख़ अ दु ला सिहत 6 मुख
नेता और हज़ार आ दोलनका रय को जेल म डाल दया गया। अगले 19 दन क मीर
म आम हड़ताल रही। क मीर म शहर से लेकर गाँव तक सैकड़ िवरोध सभाएँ आयोिजत
िजनम मिहलाएँ और ब े भी शािमल ए। ीनगर से 26 मील दूर संगम म झेलम पर
बना पुल जला दया गया। हड़ताल ख़ म कराने क सरकार क हर कोिशश बेकार ई तो
अ ततः मीरवायज़ मोह मद यूसुफ़ शाह, वाज़ा नूर शाह न शब दी, ग़लाम अहमद
अशाई और मौलवी अ दु ला वक ल क सहायता ली गई। सरकार ने नेता क रहाई के
बदले उनसे भिव य म रा ोही कायवािहय म न शािमल होने का िलिखत आ ासन
माँगा। नेता के हौसले बढ़ चुके थे। उ ह ने िलखा— याय क माँग को िव ोह नह कहा
जा सकता। सरकार ने इसे ही काफ़ माना और इ स दन बाद शेख़ और अ य लोग को
रहा कर दया गया। 14 जुलाई को ही इन घटना क जाँच के िलए जि टस बरज़ोर
दलाल क अ य ता म तीन जज क एक कमेटी बनाई गई। इसी दौरान मौलाना अबुल
क़लाम आज़ाद क मीर आए और शेख़ अ दु ला से मुलाक़ात भी ई। तेज बहादुर स ू ने
भी क मीर आकर महाराजा से मुलाक़ात क और बड़ा दल रखकर उदार तरीक़ से इस
आ दोलन क माँग पर िवचार करने को कहा। महाराजा ने वेकफ ड को हटाकर एक
क मीरी पंिडत राजा ह रकृ ण कौल को क मीर का धानमं ी िनयु कया।

बाहरी हवाएँ, भीतरी बवंडर और बढ़ती दू रयाँ


क मीरी मुसलमान के समथन म लाहौर म अ लामा इक़बाल क सदारत म एक कमेटी
बनाई गई और 14 अग त को क मीर दवस घोिषत कर देश भर म ोपेगडा शु कर
दया गया। क मीर म पूरे दन क हड़ताल रही तो पंजाब क कई जगह —सूरत, िशमला,
द ली और ब बई—म आयोजन ए। अगले दन महाराजा से िमलकर एक ापन स पा
गया िजसम एक तरफ़ महाराजा के ित वामी-िन ा क गई तो दूसरी तरफ़ िह दू
अिधका रय और धानमं ी क िशकायत दज कराई ग । क मीरी पंिडत ने इसक तीखी
आलोचना क और एक िह दू धानमं ी को हटाने तथा महाराजा को कमज़ोर करने क
सािज़श बताया। अ ततः सैयद सर नवाब मेहर अली के ह त ेप से आ दोलनका रय और
शासन के बीच अ थायी सुलह ई िजसम आ दोलनका रय ने रा य म िन ा करते
ए आगे आ दोलन न करने का वादा कया और महाराजा ने आ दोलन के दौरान
िगर तार लोग को रहा करने तथा बख़ा त कमचा रय को बहाल करने का िनणय
िलया। क मीरी मुसलमान के बड़े वग ने इसे अपने नेता का समपण बताया तो पंिडत
ने ‘सा दाियक और गुंडा’ त व से सुलह करने तथा उनके समुदाय क सलाह न लेने पर
ोभ कट कया।63 उनके तीन ितिनिधय ने महाराजा को एक ापन स पा। उनम से
एक ेमनाथ बज़ाज़ बताते ह क धानमं ी ने उसका जो जवाब दया, उसम इसी बात
पर सवाल खड़े कर दये गए क ये तीन लोग समुदाय के ितिनिध ह! अपनी ही िबरादरी
के धानमं ी से यह उ मीद तो नह ही रही होगी। पंिडत ने इसके िख़लाफ़ आ दोलन
शु कर दया तो उनके मुख नेता क यप ब धु को िगर तार कर िलया गया। हालाँ क
आ दोलन ज द ही शा त हो गया और धानमं ी ने अपना जवाब वापस लेते ए कु छ
छोटी-मोटी माँग मान ल । मुसलमान ने इस घटना को पंिडत के छल क तरह िलया और
पहले से ही सा दाियक माहौल और बदतर हो गया।64 जी.एच. ख़ान इस दौरान क मीरी
पंिडत ारा भड़काऊ भाषण का िज़ करते ह ले कन इसके िलए हा फ़ज़ मोह मद
इ माइल क कसी अ कािशत डायरी का उ लेख करते ह, िजसे ढू ँढ़ और मािणत कर
पाना मेरे िलए स भव नह है।65
मुि लम समुदाय भी अ थायी सुलह के अमल से स तु नह था। 21 िसत बर को
इ लािमया हाई कू ल के सालाना जलसे के िलए च दा इक ा करते ए शेख़ अ दु ला को
िगर तार कर िलया गया। माहौल फर से तनावपूण हो गया। 24 िसत बर, 1931 को जो
आ, उसे 13 जुलाई का दुहराव जैसा ही कहा जा सकता है। लोग बड़ी सं या म देशी
हिथयार और मछली पकड़ने वाली बंसी लेकर सड़क पर उतर गए। बंसी को क मीरी म
नारचू कहते ह और इसी के नाम पर इसे ‘नारचू पलटन’ कहा जाता है।66 ले कन िपछली
ग़लितयाँ नह दुहराई ग । कसी िह दू को कोई नुकसान प च ँ ाना तो दूर बि क ज़ रत
पड़ने पर उ ह सुरि त थान पर प च ँ ाया गया और पो टर लगाये गए क मुसलमान
क िह दु से कोई दु मनी नह है बि क हमारा िजहाद महाराजा के शासन के िख़लाफ़
है।67 िह दू दुकानदार ने भी अपनी दुकान ब द रख । उन घटना के च मदीद ेमनाथ
बज़ाज़ का मानना है क यह आ दोलन सुिनयोिजत नह बि क वतः फू त था। ले कन
इससे शाि तपूवक िनपटने क जगह ीनगर म धारा 19-एल लगाकर व था सेना को
स प दी गई। यह क़ानून बमा सश िव ोह को दबाने के िलए बनाये गए एक क़ानून क
तज़ पर बना था। रा य सेना को स प दया गया, िसिवल शासन को भंग कर दया गया।
इस घटना क जाँच के िलए बनी िमडलटन कमेटी ने इस दौरान देश भर म भारी दमन के
यौरे दये ह। यारह दन बाद 5 अ टू बर को महाराजा के ज म दन पर यह धारा हटा दी
गई, आम माफ़ जारी क गई और दोन प से अपनी माँग रखने को कहा गया।
न के वल पंिडत बि क िसख , डोगरा और राजपूत ने भी माँगप भेज।े कलाम
अपने माँगप के एक िह से को उ धृत करते ए बताते ह क इस बीच पंिडत का नेतृ व
शेख़ अ दु ला और ब शी ग़लाम मोह मद के स पक म था। इस माँगप म कहा गया था
क ‘ये माँग दूसरे समुदाय से अलग एकदम सा दाियक नह ह। मुसलमान से ब त
पहले उ ह ने शासन के आधुिनक करण, िवधानमंडल और वतं ेस क माँग क थी। वे
अपने रा वाद से पीछे नह हट सकते। हाल म वे यादा नह बोलते रहे ह य क
‘मुसलमान के अपने दावे पूरी तरह से सा दाियक आधार पर और सा दाियक उ े य
वाले ह। क मीरी पंिडत कसी भी अ य समुदाय क ही तरह संवैधािनक सरकार के िलए
उ सुक ह ले कन वे उतना ही उ सुक इस बात के िलए भी ह क इसक संरचना
सा दाियकता नामक कसर से त न हो।’68 ेमनाथ बज़ाज़ इसका अगला िह सा
उ धृत करते ह : ‘हम नौक रय के मामले म यायपूण वहार और कसी के ित कोई
प पात नह चाहते; सेना म पंिडत क भत पर लगी रोक ख़ म होनी चािहए और उनके
सभी िशि त बेरोज़गार को नौकरी िमलनी चािहए य क यह रा य का फ़ज़ है क काम
करने के इ छु क हर बािलग़ पु ष को रोज़गार उपल ध कराए।’69 इस माँग का एक और
िह सा था िजसे वे दोन छोड़ देते ह : ‘अपने देश को सा दाियक िववाद का अ ा बनाये
जाने क जगह हम वतं ेस और ितिनिध व के अिधकार के िलए मंच के िबना काम
चलाना बेहतर समझते ह।’ 70
इस बयान म कई ऐसे मह वपूण िब दु ह जो पंिडत क त कालीन मानिसकता को
करते ह। पहली तो यही क मुसलमान क हर माँग को ‘सा दाियक’ क़रार कर वे
कसी तरह से नौक रय म उनके िलए आर ण क मुखािलफ़त कर रहे थे। अगर पंिडत
समुदाय अपने िलए सेना म भत और सभी बािलग़ युवा के िलए नौकरी क माँग को
सा दाियक नह अिपतु रा वादी कह रहा था तो मुसलमान क अपने िलए नौक रय
क माँग ‘सा दाियक’ कै से हो सकती है? िजयालाल कलाम ारा उ धृत िह सा पढ़ते
ए आप मे रट के उस गु र का एहसास कर सकते ह िजसके चलते पंिडत अवचेतन म
नौक रय और िवशेषािधकार पर मुसलमान के तुलना म अपने ािधकार का एहसास
भरा आ था तो आिख़री िह से म आप 1931 के आ दोलन के बाद मुसलमान के उभार से
घबराए ए मानस क उस आशंका को प रलि त कर सकते ह जो एक तािवत
िवधानमंडल म ब मत से डरकर महाराजा के शासन म अपने िलए िवशेषािधकार का
आकां ी है।
मुसलमान ने अपने माँगप म ाितिनिधक िवधानमंडल, धा मक वतं ता, ेस क
आज़ादी, सभी नाग रक को समान अिधकार, घाटी म सभी लोग को ज मू वाल क तरह
ही हिथयार रखने का अिधकार, महाराजा के ीवीपस पर िनयं ण के साथ-साथ
नौक रय म भत के िलए यूनतम यो यता िनधा रत करने और मुसलमान को सभी
नौक रय म स र फ़ सद आर ण देने क माँग थी। ऐसे ही िसख ने अपने माँगप म सेना
म भत के िलए रा य उ रािधकार क़ानून न लागू करने क माँग क थी। ज़ािहर है, सभी
समुदाय ने अपने-अपने िलए नौक रय और सुिवधा क माँग क थी जो वाभािवक भी
था। इनम से कसी को भी सा दाियक कहना उिचत नह होगा।
इन सभी माँग पर िवचार करने के िलए 12 नव बर, 1931 को महाराजा ने बी.जे.
लांसी क अ य ता म एक आयोग ग ठत कया। यह िनणय अं ेज़ी सरकार के दबाव म
िलया गया था और महाराजा भी शु म इसके समथन म नह थे। इसम चार नॉन-
ऑ फिशयल सद य चुने गए—घाटी से वाज़ा जी.ए. अशाई और पंिडत ेमनाथ बज़ाज़
तथा ज मू से चौधरी ग़लाम अ बास और लोकनाथ शमा। मुसलमान ने अपने माँगप म
गोकशी के क़ानून और धम प रवतन करनेवाले िह दु को स पि से बेदख़ल करनेवाले
क़ानून का िवरोध कया था िजसे िह दू समुदाय अपने धा मक मामल म दख़ल बता रहा
था। लांसी आयोग ने इसे अपनी कायसूची म शािमल कया तो ज मू म इसका काफ़
िवरोध आ।71 इस समय तक िह दू महासभा के त कालीन अ य डॉ. बी.एस. मुंजे
क मीर म काफ़ िच लेने लगे थे। आयोग को िलखे गए अपने प म उ ह ने िलखा क गो-
ह या क़ानून और िह दू उ रािधकार क़ानून के मामले म कोई ह त ेप नह होना चािहए
य क यह के वल एक रा य नह , पूरे देश का मामला है। 12 जनवरी को िह दु ने
आयोग का पूण बिह कार कर दया और घाटी के पंिडत ने बज़ाज़ से बाहर आने के िलए
कहा। बज़ाज़ तो नह माने ले कन 23 जनवरी को शमा इससे बाहर आ गए और आयोग ने
तीन ग़ैर-आिधका रक सद य के साथ ही अपनी कायवाही पूरी क । बज़ाज़ को पंिडत ने
ग ार घोिषत कर अपना ितिनिध मानने से इनकार कर दया।72 हालाँ क 22 माच को
आयोग क जो रपोट आई, उसम उ रािधकार क़ानून म कोई बदलाव नह कया गया।
असल म लगता है क पंिडत यह मानकर चल रहे थे क अं ेज़ के दबाव म बना यह
आयोग नौक रय के मामले म उनक नह सुनेगा। वह भीतर से जानते थे क अपने
ब मत, उपे ा और िपछड़ेपन के कारण मुसलमान क माँग जायज़ थ और लांसी
आयोग म उसे जगह िमलनेवाली थी। आ भी यही। इसी बीच कौल को हटाकर फ़रवरी,
1932 म महाराजा ने एक अं ेज़ लेि टनट कनल ई.जे.डी. कॉिवन को धानमं ी िनयु
कया तो पंिडत का यह शक और मज़बूत हो गया क कमीशन उनके िख़लाफ़ काम करे गा।
हालाँ क आयोग ने मुि लम पूजा थल क िमि क़यत, बेगार, भूिम सम या,
औ ोगीकरण सिहत अनेक मामल पर अपनी सं तुितयाँ दी थ ले कन असल बवाल
नौक रय को लेकर था। इस मामले म आयोग ने तीन मुख सं तुितयाँ क :

1. यूनतम यो यता अनाव यक प से ब त ऊँची नह तय क जानी चािहए।


2. सभी रि याँ भावी तरीक़े से िव ािपत क जानी चािहए और ऐसा ही वज़ीफ़ के
िलए भी करना चािहए।
3. इस बात के िलए भावी यास कये जाने चािहए क िनयुि य के िलए एक
व था हो और उसक िनगरानी के िलए एक ऐसी व था होनी चािहए क कसी
समुदाय के िहत भािवत न ह ।73

महाराजा ने िस ा त प म आयोग क सं तुितयाँ वीकार कर ल ले कन पंिडत


समाज को यह अपने िवशेषािधकार पर हमला लगा। उ ह ने सबसे बड़ा सवाल उठाया
‘यो यता’ का। यूनतम अहता तय करने के िख़लाफ़ उ ह ने तक दया क यह कै से
यायसंगत है क एक ैजुएट कसी पद पर न चुना जाए और हाई कू ल पास इसिलए चुन
िलया जाए क यूनतम अहता दसव पास ही है? यहाँ दो त य याद कर िलये जाने ज़ री
ह। पहला तो यह क हमने देखा है क डोगरा समुदाय के लगभग अनपढ़ लोग को भी
रा य म अ य त ऊँचे पद पर िबठाया गया था और इसका कोई िवरोध नह आ था।
दूसरा त य िनमल संह देते ह। वह बताते ह क ऐसे पद पर भी मुसलमान क सं या
बेहद कम थी िजनम शै िणक यो यता क कोई ख़ास ज़ रत नह थी। उदाहरण के िलए
1925-26 म रा य के तीन जंगलात िडिवज़न म कु ल 969 फ़ारे ट गाड थे िजनम िह दु
क सं या 62.5 ितशत और मुसलमान क 30 ितशत थी। क टम और ए साइज़
िवभाग म के वल 17 फ़ सद मुसलमान थे। उ पद पर तो यो यता क बात फर भी
समझी जा सकती है ले कन तीसरी-चौथी ेणी क नौक रय म मुसलमान के
ितिनिध व न होने को लेकर या तक दया जा सकता है!74 िनमल संह अपने शोध म
वीकार करते ह क नौक रय म मुसलमान क भागीदारी उनक यो यता के बरअ स भी
कम थी।75

रोटी आ दोलन : अलग रा य क पहली माँग


पंिडत ने इसके िख़लाफ़ आ दोलन शु कर दया। महाराजा के सम एक माँगप तुत
कया गया िजसम मे रट को सरकारी नौक रय म भत का आधार बनाये रखने, िह दु
के िलए िवशेष वज़ीफ़े और सुिवधाएँ, खेती के िलए ज़मीन तथा कृ षक का दजा, धमाथ फं ड
का उनक भलाई के िलए िव तार, उनक बेरोज़गारी क सम या दूर करने के िलए
उ ोग क थापना, सरकारी कू ल म लड़ कय क िश ा के िलए िह दी को मा यम के
प म लागू करने, सरकारी ठे क म उ ह वरीयता देन,े कसान सहायता क़ानून म बदलाव,
पिव दन पर मांस क िब पर रोक जैसी माँग शािमल थ ।76 जब इन माँग को कोई
तव ो नह िमली तो मई के महीने म ‘रोटी आ दोलन’ शु कया। इस आ दोलन म
गांधीवादी तरीक़े अपनाए गए िजसम द तर म िपके टंग क जाती और नारा लगाया
जाता क हमारी रो टयाँ िछन ग । वैसे मज़ेदार बात यह है क ज मू म तो रोटी मुख
भोजन था ले कन घाटी म रोटी कभी चलन म नह रही और उनका मु य भोजन चावल
ही रहा है। 5 मई को इसके िड टेटर पंिडत क यप ब धु को शीतलनाथ पर आपि जनक
भाषण देने के िलए िगर तार कर िलया गया। उसी दन दामोदर भ और वेदलाल वक ल
को भी िगर तार कर िलया गया। इसके बाद सभी िह दू दुकानदार ने हड़ताल कर दी और
ज द ही इसम पंिडत छा भी शािमल हो गए। सिचवालय तथा अकाउं टट जनरल के
द तर के सामने दशन कये गए तो इससे जुड़े छा को कॉलेज से िनकाल दया गया।
नतीजतन आ दोलन और भड़क गया। 20 मई को छा सिचवालय, िबजली िवभाग, खा
आपू त िवभाग, अकाउं टट जनरल आ द के द तर म घुस गए और फ़ाइल को िततर-
िबतर कर दया तथा कमचा रय के काम म बाधा प च ँ ाई। इन आ दोलनका रय को बत
से िपटाई और कारागार क सज़ा िमली। आ दोलन ढीला पड़ा तो ब ने कमान सँभाली।
‘बाल सभा’ के बैनर तले छोटी उ के कू ली पंिडत ब ने पूरे ीनगर म नारे बाज़ी और
दशन करने शु कर दये। हालाँ क इस पर भी ज द ही क़ाबू पा िलया गया और थाने म
िबठाने तथा बत से िपटाई जैसी सजाएँ दी ग ।77 शेख़ अ दु ला बताते ह क इस
आ दोलन के दौरान पंिडत के िलए कु लगाम इलाक़े म एक अलग रा य क माँग के िलए
महाराजा को प िलखा गया था।78 इस प म यह न बे के दशक के बाद शु ए ‘पनुन
क मीर’ क पूवपी ठका माना जा सकता है। वैसे एक पखवाड़े के भीतर ही यह आ दोलन
समा हो गया और इसके नेता ने संवैधािनक तरीक़ से सरकार के सम अपनी माँग
रखने हेतु शपथ-प तुत कर दया। इन माँग म एक का िज़ रोचक होगा। पंिडत ने
माँग क थी क सभी िशि त पंिडत को तीस साल क नौकरी क गारं टी दी जाए! तेज
बहादुर स ू ने क यप ब धु को िलखे प म कहा :
हालाँ क एक माँग ऐसी है जो एकदम नई है और मेरा यान उस पर गया य क ऐसी माँग पहले
कभी मेरे सामने नह आई है। एं लो-इं िडयन समुदाय क तज़ पर आप लोग ने यह माँग क है क
आपको तीस साल के रोज़गार क गारं टी दी जाए। अब एं लो-इं िडयन समुदाय क इस माँग पर
सरकार जो भी करे ले कन म आप लोग को बताना चाहता ँ क आपक इस माँग पर अ य
समुदाय क सहमित नह हो सकती। जहाँ तक मेरा सवाल है, मुझे यह माँग सै ाि तक प से
अनुिचत लगती है और इसका पूरा होना ब त मुि कल है।79
यहाँ यह बात भी प होती है क जहाँ शेख़ अ दु ला और उनके साथी सहयोग के
िलए अ लामा इक़बाल सिहत क मीर के बाहर के मुि लम समुदाय के पास जा रहे थे, तो
वह पंिडत तेज बहादुर स ू से लेकर िह दू महासभा तक के पास। गौरतलब है क इक़बाल
और स ,ू दोन क जड़ क मीर म थ । इसे बाहरी लोग क सािज़श के प म सरलीकृ त
करने क जगह हम दोन समुदाय क मानिसकता क रोशनी म देखना यादा मदद
करे गा। एक तरफ़ उपे ा और शोषण का िशकार मुि लम समुदाय था जो अपनी ब सं या
के बावजूद जारी वंचना से मुि के िलए रा य के बाहर सहयोिगय क तलाश म था तो
उस दौर म पंिडत के सबसे बड़े नेता क यप ब धु िह दू सभा, पटना को िलखे प म कह
रहे थे :
िजस तरह लांसी आयोग िह दू धम को नुकसान प च ँ ा रहा है, यह प है क मुसलमान को ख़श
करने के िलए यह देश से िह दु व क जड़ उखाड़ने के िलए मुतमईन है...आप लोग कृ पया अपनी
आवाज़ उठाकर पूरे िह दू समाज को आ दोिलत कर ता क वे लांसी आयोग क कायवािहय के
िख़लाफ़ उठ खड़े ह ।80
कभी अपनी िविश पहचान के संर ण के िलए अलग ‘क मीरी पंिडत’ पहचान क
माँग करनेवाले समाज का अपने रोज़गार के सबसे मुख साधन शासक य नौकरी के िछन
जाने और सामािजक भु व के कम होते जाने के भय से त पंिडत समाज क क मीर के
ब सं यक मुि लम समाज के बरअ स ख़द को अिखल भारतीय ब सं यक रा ीयता से
जोड़ने क यह कोिशश आपको 1947 के बाद और फर न बे के दशक के बाद और तेज़
दखाई देगी। इसी तलाश म पंिडत क जगह ा ण श द का योग फर से दखाई देना
शु होता है। ऐसे ही क मीर या ा के समय मुझे ह बा कदल के एक मकान पर ‘ ा ण
महामंडल’ का बोड िमला िजसका थापना-वष 1915 है।
हालाँ क लांसी आयोग के िख़लाफ़ इस आ दोलन का कोई ख़ास असर नह आ
ले कन बज़ाज़ के लांसी आयोग से बाहर न आने और उन जैसे अपे ाकृ त गितशील
युवा के असफल होने का सबसे बड़ा असर यह आ क पंिडत का नेतृ व इन
रौशन दमाग़ युवा के हाथ से िनकलकर सा दाियक त व के हाथ म आ गया।81 दूसरी
तरफ़ क रपंथी और कु लीन मुि लम समाज शेख़ अ दु ला से धीरे -धीरे दूर हो रहा था।
मीरवायज़ (जािमया मि जद) के समथक और शेख़ समथक क उस दौर म शु ई
लड़ाई तो ब त ल बी चली िजसम शेख़ समथक को ‘शेर’ और मीरवायज़ के समथक को
‘बकरा’ कहा गया। मीरवायज़ ने मुि लम कॉ स से ज द ही कनारा कर िलया। चूँ क
मीरवायज़ मौलाना यूसुफ़ डोगरा राज के ित शेख़ क तुलना म अिधक स दय दख रहे
थे तो पंिडत का सा दाियक धड़ा उनके साथ खड़ा आ।82 सहज ही था क दोन तरफ़
क दि णपंथी ताक़त इसका फ़ायदा उठात , तो क मीर िह दू महासभा से लेकर
अहम दया , अहरार और मुि लम लीग तक के खेल का िह सा बना।

कलाम ‘रोटी आ दोलन’ को कोई तव ो न देते ए िलखते ह क इसके बाद


मुसलमान ने ‘आल इं िडया मुि ल स कॉ स’ ग ठत क और पंिडत ने ‘पंिडत कॉ स।’
शेख़ अ दु ला ने मुि लम कॉ स के पहले जलसे क सदारत क और कलाम ने ‘पंिडत
कॉ स’ क ।83 आ यजनक है क ‘पंिडत कॉ स’ का अ सर कोई िज़ नह िमलता है।
वह आगे बताते ह क शेख़ अ दु ला ने ‘पंिडत कॉ स’ के जलसे म िह सा िलया था और
उनके व से ख़श हो उ ह माला पहनाकर वागत कया था। यहाँ ककर मुि लम
कॉ स के पहले सालाना जलसे म शेख़ अ दु ला के भाषण का एक िह सा देख लेना
बेहतर होगा :
मुि लम कॉ स सा दाियक संगठन नह है और इसका अि त व रा य म रहनेवाले सभी समुदाय
के िलए फ़ायदेम द होगा। हमने आ दोलन क शु आत म ही यह घोषणा क थी क क मीरी
आ दोलन एक सा दाियक आ दोलन नह है, बि क सारी जनता के परे शािनय को दूर करने के
िलए है। म अपने िह दू और िसख भाइय को यह आ त करना चाहता ँ क हम उनक मुि कलात
को भी वैसे ही दूर करने के िलए तैयार ह, जैसे हमने मुसलमान क मुसीबत को दूर कया है। हमारे
देश क गित तब तक स भव नह है जब तक हम आपस म स ावपूवक न रह। यह तभी स भव है
जब हम एक दूसरे के अिधकार का स मान कर।
असल म ऐसा लगता है क इस पूरी सामािजक-राजनीितक या म दोन प के
युवा और तुलना मक प से गितशील त व ने धीरे -धीरे यह महसूस करना शु कर
दया था क राजशाही म उ ह अपने पूरे हक़ कभी नह िमल सकते और िबना साझा संघष
के कोई बड़ी लड़ाई नह लड़ी जा सकती। िजयालाल कलाम इसे ‘रा वाद का
बीजारोपण’ कहते ह। इस या म दोन समुदाय के युवा का आपसी सहयोग और
सहकार बढ़ता आ दखता है िजसक प रणित 6 साल बाद मुि लम कॉ स के नेशनल
कॉ स म त दील होने म होनी थी। ले कन अभी कई इ तहान बाक़ थे।

_______________
* अं ेज़ के िख़लाफ़ भारतीय संघष म मुसलमान क भागीदार पर िव तार से जानने के िलए पाठक शाि तमोय रे ारा
िलिखत और इस लेखक ारा अनू दत आज़ादी क लड़ाई और भारतीय मुसलमान ( काशक : नेशनल बुक िडपो) पढ़
सकते ह।
* लांसी कमीशन क रपोट से
** पाठक ेमनाथ बज़ाज़ क इनसाइड क मीर या द िह ी ऑफ़ गल फ़ॉर डम इन क मीर : क चरल एंड
पॉिल टकल, िजयालाल कलाम, िनमल संह आ द क पूव धृत पु तक के अलावा मेरी कताब क मीरनामा : इितहास
और समकाल म इसे ब त िव तार से पढ़ सकते ह।
*** क मीर म ‘ज़म दार’ का अथ कसान से है, जब क उ र भारत म िज ह जम दार कहा जाता है, उसके समानाथ
वहाँ जागीरदार है।
* उदाहरण के िलए 1931 के आ दोलन के कारण क जाँच पर के ि त अपने बेहतरीन शोध ‘इमरजस ऑफ़ पॉिल टकल
अवेक नंग’ म यू.के . ज़ शी आ थक कारण से लेकर अं ेज़ क सािज़श के साथ-साथ मुि लम सा दाियकता पर भी
बात करते ह ले कन िह दू सा दाियक त व क भूिमका पर कोई बात नह करते।
स दभ
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80. देख, पेज 276-77, िह दू लस एंड मुि लम स ज़े स, मृद ु राय, परमानट लैक, द ली-2007 म उ धृत
81. देख, पेज 174, इनसाइड क मीर, ेमनाथ बज़ाज़, द क मीर पि ल शंग क पनी, ीनगर, 1941
82. देख, पेज 269, िह दू लस एंड मुि लम स ज़े स, मृद ु राय, परमानट लैक, 2007
83. देख, पेज 227, अ िह ी ऑफ़ क मीरी पंिड स, िजयालाल कलाम, उ पल पि लके शन, द ली, ( थम सं करण,
1951) संशोिधत सं करण, 2003
अ याय-6

सं मण काल म पंिडत समाज


[1934-1947]
कु छ मुसलमान यह ग़लत सोच रखते ह क रा य म रहनेवाले सभी 8 लाख ग़ैर-मुि लम ऐश-ओ-
आराम क िज़ दगी जीते ह। असल म, उनम से कु छ हज़ार ही अमीर ह बाक़ सभी आपक ही तरह
एक ग़ैर-िज़ मेदार सरकार के हाथ भारी कर , ऋण और भुखमरी के मारे ए ह। हम के वल 80
लाख मुसलमान के िलए िज़ मेदार सरकार क माँग नह कर रहे,बि क देश क सौ ितशत
जनता के िलए हमारी यह माँग है। इस तरह म बीस ितशत िसख, िह दू, बौ और दिलत जाितय
को इस संघष म साझेदारी के िलए आमं ण देता ।ँ 1
—शेख़ अ दु ला 1938 म

तूफ़ान ठहरने के बाद का मंज़र य तो बड़ा साफ़ लगता है ले कन धूल और गद क एक


परत-सी जम जाती है और तेज़ हवा और बा रश देखने क अ य त आँख को यह शाि त-
भरा दृ य देखने के िलए फर से समायोजन करना होता है। 1932 क मीर के इितहास म
ऐसे ही एक तूफ़ान क तरह से आया था िजसने वहाँ के सामािजक-राजनीितक जीवन को
िहलाकर रख दया था। अपनी अ य प आबादी के बावजूद पंिडत ने घाटी के सामािजक
और राजनीितक जीवन म अपनी मेधा और रा यस ा के अनु प ढलने क मता से जो
असर बनाया था, यह तय था क अब वह ल बे समय तक जारी नह रह सकता था; न ही
यह स भव था क खेती- कसानी म लगा मुि लम समुदाय दासता के उस भाव म सदा-
सवदा रहता िजसका वणन जी.एच. ख़ान जैसे लोग ने कया है। िजस दौर म भारत म
ि टश औपिनवेिशक स ा के िख़लाफ़ फ़ै सलाकु न लड़ाई लड़ी जा रही थी, स म ाि त
हो चुक थी और दुिनया भर म साम ती तथा औपिनवेिशक स ा से मुि -संघष चल
रहा था, यह स भव ही नह था क क मीर म यह व था अन तकाल तक बनी रहती।
शेख़ अ दु ला के नेतृ व म आ यह क क मीर म मुसलमान का नेतृ व कु लीन मीरवायज़
और जागीरदार के हाथ से िनकलकर शेख़, ब शी और सा दक़ जैसे उन युवा के हाथ म
आ गया जो ख़द उस जनता के बीच से आए थे और िजनका कोई राजनीितक िश ण भी
नह था। बीसव सदी के पहले दशक म िश ा के सार के चलते मुि लम समाज म जो एक
नया म यवग पैदा आ था, उससे िनकले ये युवा वाभािवक प से प रवतन के वाहक थे।
डोगरा शासन जहाँ छोटे से कु लीन मुि लम वग को आसानी से स तु रख सकता था, वह
इस म यवग क आकां ाएँ पूरा कर पाना उसके िलए स भव नह था और इस नये नेतृ व
ने अपना समथन उन कसान और िमक म तलाशा जो िह दू और मुि लम, दोन तरह
के कु लीन वग के िलए अब तक अ पृ य थे। इस पूरी या म धम एक बड़ा त व था। एक
तरफ़ यह एक ‘जोड़नेवाला त व’ बना य क क मीर म शासक भी िह दू था और शासन
के वे का रं दे भी, जो शोषण के तं का औज़ार बनते थे। दूसरी तरफ़, के वल मुसलमान को
साथ लेकर चलते ए यह मुि संघष जीता नह जा सकता था। देखा जाए तो ये दो पहलू
एक-दूसरे के ित िवरोधाभास भी पैदा करते ह। क मीर म सहयोग के िलए यह नया
मुि लम नेतृ व क मीरी पंिडत क ओर ही जा सकता था और ऐसा करते ही ज़ री था क
वह एकता के आधार को धम से बदलकर साम ती और औपिनवेिशक शासन से मु
करता। हालाँ क शेख़ अ दु ला ने 1931 के आ दोलन से पहले भी िह दु से साथ आने क
अपील क थी2 िजसे 1938 के मुि लम कॉ स म और प ता से दुहराते ए उ ह ने िह दू
और मुि लम ित यावादी वग को एक-सा बताते ए दमनकारी स ा के िख़लाफ़ मुि
क आकां ा रखनेवाले िह दु और िसख के एक साथ आने क ज़ रत पर बल दया था3
और हम नेशनल कॉ स के गठन से पहले ही िह दु और िसख के एक िह से का इस
नेतृ व के साथ सहकार देखते भी ह।4
ले कन इतनी सीधी लगनेवाली यह या इतनी सीधी थी नह । एक तरफ़ तो
पर परागत नेतृ व इतनी आसानी से अपना दावा छोड़नेवाला था नह , दूसरी तरफ़ यह
उ मीद थोड़ी यादा ही कही जाएगी क लांसी आयोग क रपोट के बाद अपने
िवशेषािधकार और नौक रय के खोने के भय से आ ामक आ पंिडत समाज मुसलमान
के साथ कोई साझा मोचा बनाता। यही नह , धम के शेर क सवारी के अपने िनयम होते
ह। इस पर चढ़ना तो आसान नह ही है, उतरना और भी मुि कल। शु आत म पंिडत को
अपने संघष म साथ आने क अपील करनेवाले शेख़ ने अपनी अपील का कोई असर न होने
के बाद 1931-32 के दौरान पूरी तरह से क मीरी पंिडत िवरोधी ख़ अपनाया था। गाँव
म क मीरी पंिडत के भु व के िख़लाफ़ संघष चलाते ए यह वाभािवक भी था। उस दौर
के उनके बयान म पंिडत को मुसलमान का दु मन, साँप से भी अिधक ख़तरनाक
बताया गया तो एक भाषण म उ ह बाहर िनकालने और जनता से उनसे बदला लेने क
बात भी थी।5 इसिलए जब 1935 के आसपास उनके सुर बदलते ह तो एक तरफ़ पंिडत के
िलए उन पर भरोसा करना आसान नह था तो दूसरी तरफ़ शेख़ के ित ं ी नेतृ व के
िलए भी मुि लम अवाम को यह समझाना आसान था क शेख़ बदल रहे ह। वैसे भी
एकताएँ कभी ि य क स द छा से नह होती, वे अगर होती ह तो ठोस सामािजक-
राजनीितक हक़ क़त के चलते।
उधर देश म कां ेस और मुि लम लीग क राजनीितक मह वाकां ा से भी क मीर
ब त दन तक दूर नह रह सकता था। ख़ास तौर पर मुि लम ब मत के चलते मुि लम
लीग के िलए तो क मीर बेहद मह वपूण था ही। तो इन सब च ूह से गुज़रती क मीरी
राजनीित ने वे समीकरण बनाये िजनक छाया , ितछाया से भारत, पा क तान और
ख़द क मीर आज तक मु नह हो पाया है।

बड़ा संघष और साथ आने क ज़ रत


1934-38 का दौर नवग ठत मुि लम कॉ स के िलए लांसी आयोग क िसफ़ा रश को
लागू कराने का दौर था। इस दौर म लांसी आयोग म िह दु के ितिनिध के प म
शािमल ए और फर उनक अपील के बावजूद आयोग से बाहर आने से इनकार करके
जात-बाहर ए पंिडत ेमनाथ बज़ाज़, दोन समुदाय के बीच पहली कड़ी बने। मज़ेदार
यह है क जहाँ उस समय लांसी आयोग म उनक भूिमका के चलते उ ह पंिडत-ब ल
इलाक़े से अपना घर छोड़ना पड़ा, शारी रक हंसाएँ झेलनी पड़ , वह ख़ास तौर पर न बे
के दशक के बाद से उनसे नफ़रत करनेवाले ऐसे मुि लम क रपंिथय क कोई कमी नह जो
उ ह मुि लम कॉ स को नेशनल कॉ स म बदलवाकर मुि लम आ दोलन को तोड़ने का
इलज़ाम लगाते ह।6 ले कन उस दौर म दोन समुदाय के बीच बने सहकार के बेहद
व तुिन कारण थे। पहली बात तो यही क लांसी आयोग क िसफ़ा रश िजस तरह लागू
, उससे न तो रा य शासन म भावी प से मुसलमान का कोई भु व थािपत
कया,7 न ही इन िसफ़ा रश के बाद नौकरी म आए मुि लम कमचा रय /अिधका रय का
आम जन के ित वहार कसान तथा आम मुसलमान को राहत दलाने वाला था। वे
भी अपने पूववत पंिडत क तरह और शोषक सािबत ए।8 जनता एक छोटे से वग
के नौकरी म आ जाने या फर साहब /मातहत का धम बदल जाने भर से स तु नह हो
सकती थी। उसक आकां ाएँ अब बढ़ चुक थ और अब वह ठोस प रवतन चाहती थी जो
उनके जीवन म बदलाव ला सके ।
जा-सभा इसक एक बड़ी वाहक हो सकती थी ले कन ब त ज द यह प हो गया
क उससे िजस ाितिनिधक मंच क उ मीद थी, वह उसे पूरा करने म सभा पूरी तरह से
अ म थी। इस सभा म सारे कायकारी अिधकार महाराजा के पास थे। कु ल 75 सद य होने
थे िजनम से के वल 33 सद य सीधे जनता ारा चुने जाने थे, 12 आिधका रक सद य होने
थे और 30 सद य महाराजा ारा मनोनीत। धा मक ितिनिध व के िस ा त से इन 33
सद य म से 21 मुसलमान, 10 िह दू और 2 िसख ितिनिध होने थे, ले कन प है क
ब मत मनोनीत और आिधका रक सद य का ही था। यही नह , इन चुनाव म वोट देने
का अिधकार भी िसफ़ पढ़े-िलखे या 400 पये ित वष से अिधक क आयवाले पु ष तक
ही सीिमत था। इस तरह 90 ितशत से अिधक क मीरी जनता इस जा-सभा के प र े
से बाहर थी।9 ज़ािहर है क इस जा-सभा के िलए मुि लम के िलए आरि त 19 सीट
जीतने* के बावजूद अपनी मज़ का कोई फ़ै सला करवा पाना अस भव था। इसके िलए उ ह
शेष चुने ए सद य क सहायता क ज़ रत थी। वैसे जा-सभा के भीतर एक मंच पर
साथ होने से एक फ़ायदा यह भी आ क इन अलग-अलग धा मक समुदाय के ितिनिधय
क मेल-मुलाक़ात स भव ई और एक संवाद थािपत आ।10 िसख ितिनिध सरदार बुध
संह के आमं ण पर शेख़ अ दु ला उनके साथ ज मू गए और वहाँ िह दु और िसख के
जीवन को क़रीब से देखा। उनक इस या ा पर ट पणी करते ए सरदार बुध संह ने
अपनी कताब जागीरशाही का पो ट माटम म िलखा है क जब शेख़ साहब ने वहाँ
मुि लम और ग़ैर-मुि लम क दुदशा देखी तो उनक आँख म आँसू आ गए और उ ह ने
कहा क वह सभी शोिषत के साथ खड़े ह गे तथा नेशनल कॉ स क थापना करगे।11
1935 क शु आत से ही इसके असर दखने लगे। मुि लम कॉ स ने उन पंिडत से
स ब ध सुधारने का िनणय िलया, जो उनके संघष म साथ आ सकते थे और इस तरह सभी
धम को साथ लेकर डोगरा राज के िख़लाफ़ संघष छेड़ना तय आ। शेख़ अ दु ला ने इसी
के तहत लोग को िशि त करने के िलए ेमनाथ बज़ाज़ के साथ िमलकर नई िमली ेस
क आज़ादी का लाभ उठाकर ‘हमदद’ नामक अख़बार िनकालना शु कया। इसका
लोकापण िस कां ेसी नेता सैफ़ु ीन कचलू ने कया। अपने भाषण म उ ह ने धम और
राजनीित के घालमेल क िन दा क और िह दू-मुि लम एकता क अपील। इस तरह घाटी
म पहली बार कां ेस क िवचारधारा प च ँ ी और हमदद इसका मुखप बना।12 साल भर
के बहस-मुबािहसे के बाद नव बर, 1935 म ीनगर म ए मुि लम कॉ स के सालाना
जलसे म सरदार बुध संह, िजयालाल कलाम और ेमनाथ बज़ाज़ को योता भेजा गया।
इस जलसे म सदर चुने गए ज मू के नेता और कॉ स म शेख़ के बाद सबसे मह वपूण माने
जानेवाले ग़लाम मोह मद अ बास ने िसख और िह दु से पुरानी कड़वाहट भुलाकर
रा य के लोग के आ थक और राजनीितक िहत क लड़ाई म मुि लम कॉ स के साथ आने
क अपील क ।13
िसख और पंिडत के एक िह से ने इस पहल का वागत कया। 1931 के आ दोलन के
बाद बाहर से िमलनेवाले समथन का उ साह आ दोलन के ख़ म होने के साथ धीरे -धीरे
ख़ म हो चुका था और दोन प जानते थे क उ ह ही साथ रहना सीखना है। एक-ितहाई
आबादी वाले िह दु म कम-से-कम घाटी के िसख और पंिडत के िलए यही बेहतर था
क मुि लम समुदाय से उ ह सुर ा का आ ासन िमले, साथ ही यह भी उनके स मुख प
था क डोगरा राज म अपने संवैधािनक अिधकार क लड़ाई वे भी मुसलमान से अलग
होकर नह कर सकते थे। इसिलए 1936 म जब मुि लम कॉ स ने ‘िज़ मेदार सरकार’ क
अपनी माँग को लेकर आ दोलन शु कया तो कॉ स के िनमं ण पर 8 मई के जलस म
िह दु तथा िसख क भागीदारी उसक आशा से बढ़कर रही।14 बज़ाज़ बताते ह क
ीनगर, पुंछ और ज मू* जैसी जगह पर इन आयोजन क आम सभा क अ य ता
ग़ैर-मुि लम ने क । बमजाई कहते ह क ‘एक स ी रा वादी पाट के िनमाण क
आव यकता लोग के बीच ‘िज़ मेदार सरकार दवस’ को लेकर शानदार उ साह से ही
महसूस ई।15 इस पूरी या म ेमनाथ बज़ाज़ लगातार गांधी और नेह के स पक म
थे िज ह ने क मीर म सभी समुदाय को िमलकर साम तवाद और उपिनवेश-िवरोधी
संघष चलाने क सलाह दी थी।
ले कन जा-सभा के भीतर िवरोध का पहला वर उठा सरदार बुध संह क ओर से
िज ह ने नव बर, 1936 को इसे एक ‘िखलौना िवधान सभा’ बताते ए इ तीफ़ा दे दया।
इसके बाद मुि लम कॉ स के सभी सद य ने 28 नव बर को जा-सभा से इ तीफ़ा दे
दया। सरदार बुध संह क मीर म सामािजक-आ थक सुधार क शु आत करनेवाले सबसे
पहले नेता थे। 1925 म ही उ ह ने रा य सरकार के उपायु पद से इ तीफ़ा देकर रा य
क पहली राजनीितक पाट , ‘ कसान मज़दूर पाट ’, का गठन कया था। उ ह ने इसके
पहले ही जलसे म बेगार था के िख़लाफ़ अिभयान चलाया था। इस जलसे को चौधरी
ग़लाम अ बास ने भी स बोिधत कया था और दोन ही िगर तार ए थे।16 1936 म
जी.एम. सा दक़ और ेमनाथ बज़ाज़ ने ‘ज मू एंड क मीर यूथ लीग’ क थापना क थी
िजसका उ े य धा मक भेदभाव के िबना देश क आज़ादी के िलए काम करना था।17 1937
म ब शी ग़लाम मोह मद और जी.एम. सा दक़ के नेतृ व म मज़दूर क एक बड़ी रै ली ई
िजसम सभी समुदाय के मज़दूर शािमल ए। उसे ेमनाथ बज़ाज़ ने भी स बोिधत
कया।18 ेड यूिनयन आ दोलन के नेता के प म सा दक़, ब शी, मोइनु ीन कारा के
साथ एन.एन. रै ना ने मुख भूिमका िनभाई।19 इसी साल कसान और मज़दूर को
संग ठत करने के िलए अग त के महीने म कसान और मज़दूर सभा क थापना ई।20
1938 म रा य म वाज़ा मोह मद उमर बट तथा पंिडत रघुनाथ वै णवी ने कां ेस पाट
क थापना क िजसम कु छ गितशील युवा शािमल ए ले कन यह मूलतः ीनगर तक
ही सीिमत रही।21 इसके पहले जा-सभा के चुनाव के तुर त बाद एक ‘िह दू ो ेिसव
पाट ’ का गठन आ था। यह पाट िह दू मुि लम एकता, िज़ मेदार सरकार का समथन
और ि टश उपिनवेशवाद क मुख़ालफ़त को ल य बनाया था।22 इस तरह क मीर म एक
ग़ैर-सा दाियक जनप धर राजनीितक दल के िनमाण के िलए व तुगत प रि थितयाँ
तैयार हो चुक थ । ज़ािहर है क क मीर म गितशील िवचारधारा अपने अलग-अलग
प म वेश कर रही थी और जगह भी बना रही थी और शेख़ अ दु ला इससे अछू ते नह
रह सकते थे। 1938 के अ त म ए मुि लम कॉ स के सालाना जलसे म शेख़ ने कहा :
हम चाहते ह क हमारे घर क व था के िलए हम आज़ाद ह और कसी िवदेशी या कोई
आ त रक तानाशाह हमारे वाभािवक ज मिस अिधकार म ह त ेप न करे । यही माँग ‘िज़ मेदार
सरकार’ क माँग है िजसके िलए हमने क़ु बािनयाँ दी ह और िजसे हम हर हाल म हािसल करगे। इस
‘िज़ मेदार सरकार’ को हािसल करने के िलए पहली शत है क जो रा य क वतमान व था ारा
ग़लाम और ग़रबत क िज़ दगी जीने के िलए मजबूर कर दये गए ह, इसम शािमल ह । वे लोग
कौन ह? वे के वल मुि लम या के वल िह दू या के वल िसख नह ह, न ही के वल अछू त या के वल बौ ह
बि क वे सभी ह, जो इस रा य म रहते ह।23
असल म क मीर म िमक आ दोलन अलग से िवकिसत होने क जगह मुि लम
कॉ स और फर नेशनल कॉ स के भीतर ही िवकिसत आ और इन आ दोलन ने दोन
समुदाय को क़रीब लाने म बड़ी भूिमका िनभाई। ले कन यह सोच लेना क इस पूरे दौर म
सा दाियक ताक़त शा त बैठी थ , सही नह होगा। हाईकोट ारा गोकशी क सज़ा 7
साल से घटाकर एक साल कर दये जाने के िख़लाफ़ ज मू के िह दु ने किवराज िव णु
गु ा के नेतृ व म हड़ताल कर दी। आग म घी डालने पंिडत मदन मोहन मालवीय भी प च ँ
गए। महाराजा ने िह दु क माँग वीकार करते ए सज़ा को फर से 7 साल करने का
फ़ै सला कया। इधर ीनगर म क मीरी पंिडत युवक सभा के अ य िशव नारायण
फ़ोतेदार ने बयान दया क ‘िह दू गाय क वैसे ही पूजा करते ह, जैसे मुसलमान मुह मद
साहब क ।’ इसे इ लाम का अपमान मानते ए मौलाना यूसुफ़ शाह ने 27 जून, 1937 को
एक मोचा िनकाला िजस पर पुिलस ने लाठी चाज कया। सैकड़ लोग घायल ए। बोहरी
कदल के पास पुिलस ने गोिलयाँ चला िजसम एक ि क मौत हो गई और कई लोग
घायल ए। मीरवायज़ को उनके कई सािथय के साथ िगर तार कर िलया गया। फोतेदार
क माफ़ के बावजूद ज मू और पुंछ म दंगे भड़क गए िज ह रोकने म शेख़ अ दु ला,
ेमनाथ बज़ाज़ और सरदार बुध संह ने मह वपूण भूिमका िनभाई।24 * िसख क शु से
ही क मीर म सा दाियक स ाव थािपत करने म मह वपूण भूिमका रही। 1932 के
तनावपूण माहौल म जब 22 िसत बर को कू ली ब ने ‘ वा य दवस’ के अवसर पर
जुलूस िनकाला तो कनी कदल के पास दोन समुदाय के छा म बवाल हो गया, मामला
बढ़ा और लूट तथा आगजनी तक जा प च ँ ा। नतीजा पूरे शहर म तनाव।
यहाँ ककर गोकशी के मामले पर एक ज़ री त य नोट कर लेना बेहतर होगा। िनमल
संह बताते ह क क मीर म गोकशी क कोई पर परा नह थी। वहाँ के मुसलमान भी
गोमांस नह खाते थे। ले कन िसख शासन और फर डोगरा शासन म पाब दी लगाने के
बाद गाय क ह याएँ िव ोह के प म , हालाँ क घाटी म ऐसी घटना क तादाद
बेहद कम थी।25
मुि लम कॉ स के भीतर भी ऐसी ताक़त क कोई कमी नह थी जो ऐसी पहल के
िख़लाफ़ थी और िह दु और िसख को कॉ स से दूर ही रखना चाहती थ । िज़ मेदार
सरकार दवस के अवसर पर िह दु और िसख को योता भेजे जाने के फ़ै सले को अमली
जामा पहनाने के िलए भी ल बी बहस चली थी। डी.एन. धर िलखते ह :
मुि लम कॉ स के भीतर नये िवचार ने संगठन म दरार बड़ी कर दी थ । मु लावाद ख़द को
थािपत करना चाहता था िजसे आधुिनक िवचार वाला युवा नेतृ व वीकार नह कर सकता था।
आपसी तकरार, आरोप- यारोप, एक दूसरे के िख़लाफ़ भाषणबाज़ी क प रणत मु लावाद को
कॉ स से बाहर का रा ता दखाने म ई।26
वह दूसरी तरफ़ क मीरी पंिडत युवक सभा और गोकशी आ दोलन क कोख से ज मी
ज मू क िह दू िसख नौजवान सभा ने इस आ दोलन म िह सा लेने से इनकार कर दया
था।27 क मीरी पंिडत के बीच सबसे अिधक भावी संगठन ‘िह दू युवक सभा’ के मुखप
मातड ने िलखा : ‘मुि लम कॉ स सा दाियक मुसलमान का संगठन है िजसका ज म
मुि लम अिधकार क र ा के िलए आ है...जब तक उसके सद य मुि लम कॉ स से
स ब ध तोड़कर एक रा ीय संगठन नह बना लेते, उनसे कसी संयु कायवाही क आशा
नह क जा सकती जब क ज मू क ‘राजपूत सभा’ ने इसका हल महाराजा बहादुर ारा
ही कया जाना स भव बताया।28 इसका जवाब देते ए सरदार बुध संह ने कहा :
यह सोचना पागलपन है क ‘िज़ मेदार सरकार’ क माँग कोई धा मक माँग है। कोई धा मक या
सा दाियक संगठन इस माँग को हािसल नह कर सकता। यह एक रा ीय माँग है और इसीिलए
सबक साझा माँग है।29
यह समय आते-आते शेख़ अ दु ला और मुि लम कॉ स क इस पहल के चलते
सरदार बुध संह और ेमनाथ बज़ाज़ ही नह , िजया लाल कलाम, क यप ब धु, रघुनाथ
वै णवी जैसे अनेक गितशील िह दू और िसख भी साम ती तानाशाही के िख़लाफ़ संयु
संघष क ज़ रत से मुतमईन होने लगे थे। ले कन यह कह पाना मुि कल है क ापक
पंिडत समाज पर इनका कतना असर था। जी.एच.ख़ान बताते ह क ग़ैर-मुि लम समाज
म इस दौर म ुवीकरण अिधक था और यादातर लोग ित यावा दय के प म थे।30

शेख़-नेह -क मीर-भारत : नये संघष, नई राह


1939 आते-आते शेख़ अ दु ला क जवाहरलाल नेह से मुलाक़ात हो चुक थी। क मीरी
पंिडत नेह क घाटी के पंिडत म कतनी ित ा थी, इसका अ दाज़ा इस बात से लगाया
जा सकता है क महाराजा को स पे गए ापन म क यप ब धु ने िलखा था क ‘पंिडत
नेह के आगे अं ेज़ थर-थर काँपते ह।’ 1937 म शेख़ उनसे तब िमले जब वह लाहौर से
उ र-पि म सीमांत देश क या ा पर जा रहे थे वे उनके साथ उ र-पि म सीमांत
देश म कई दन गुज़ारे । शेख़ िलखते ह :
पंिडत जी ने हमारे आ दोलन म िच दखाई और यह सलाह दी क हम अपनी सद यता हर
समुदाय के िलए खोल द। मने उ ह और बादशाह ख़ान को क मीर आने का योता दया। थोड़े समय
बाद, भारत म ‘द टेट पीप स कॉ स’ क थापना ई िजसके अ य जवाहरलाल थे। यह प
था क अगर क मीरी नेता को भारतीय रा ीय कां ेस का समथन चािहए तो उसे अपना नाम
बदल कर नेशनल कॉ स करना होगा।31
ले कन इसे दो ि य क दो ती का प रणाम या कसी क सदाशयता/स द छा का
प रणाम बताना अनैितहािसक दृि का प रचायक होगा। हमने क मीर म िवकिसत ई
व तुिन प रि थितयाँ देखी ही ह। शेख़ क मीर से बाहर िनकलकर यह देख पा रहे थे क
क मीर का संघष िसफ़ क मीर म लड़कर नह जीता जा सकता। डोगरा शासन को हटाए
िबना क मीर क जनता को उसके क से मुि नह दलाई जा सकती थी और डोगरा
शासन के िख़लाफ़ कसी संघष को ि टश-स ा एक सीमा से आगे नह जाने दे सकती थी।
इसीिलए वह लड़ाई अ ततः ि टश औपिनवेिशक शासन के िख़लाफ़ अिखल भारतीय
संघष का िह सा होनी थी। नेशनल कॉ स के पहले ही अिधवेशन के अ य ीय भाषण म
शेख़ अ दु ला ने कहा :
हमारा रा य उन 584 रयासत म से एक है िजनम 8 करोड़ लोग रहते ह। हमारा संघष एक बेहतर
जीवन के िलए उनके संघष का ही एक िह सा है। कोई ताक़त उन 8 करोड़ लोग को उतनी आज़ादी
लेने से नह रोक सकती िजतनी ि टश भारत के लोग को िमली है।32
इसके िलए उ ह चुनाव कां ेस और मुि लम लीग के बीच करना था। यह कहना भी
ज दबाज़ी होगी क शेख़ ने कां ेस को चुन िलया था। आिख़र जब िज ा पहली बार
क मीर आए तो शेख़ ने उनका वागत कया था। ले कन िज ा उस समय तक पा क तान
को लेकर इतने क र हो चुके थे क मुि लम कॉ स क सभा म खुलेआम उ ह ने शेख़ और
उनके समथक को गुंडा कहा तो शेख़ ने लगभग धमक वाले अ दाज़ उ ह िनयं ण रखने के
िलए कहा। असल म िसख शासन के दौरान पंजाबी साम त का जो ख़ौफ़ था, शेख़ उसे
बख़ूबी जानते थे। उ ह यह समझ आ रहा था क लीग पर िजन पंजाबी साम त का भु व
था, वह क मीर के कसान क मुि के सपने को कभी पूरा नह होने दगे जब क कां ेस
क उदारवादी लोकतांि क नीितय के तहत वह क मीर म गितशील सुधार को लेकर
आ त थे। उनका यह शक तब और मज़बूत आ जब 22 माच, 1940 म मुि लम लीग ने
अपने लाहौर अिधवेशन के दौरान आल इं िडया पीपु स कॉ स क तज़ पर ही आल
इं िडया टे स मुि लम लीग क थापना क । शेख़ अ दु ला इस अिधवेशन म अितिथ क
हैिसयत से शािमल ए। रािशद तासीर ने तहरीक-ए- रयत-ए-क मीर म यह मज़ेदार
त य बताया है क इस अिधवेशन म अ य चुने गए हैदराबाद के नवाब यारजंग ने अपने
भाषण म ‘िज़ मेदार सरकार’ क अवधारणा क वकालत तो क ले कन हैदराबाद को
इससे दूर रखने के िलए कहा। वहाँ से लौटकर शेख़ ने अलग-अलग जगह पर आयोिजत
अनेक सभा म लीग और उसक नीितय क तीखी आलोचना क । इन भाषण म उ ह ने
म यमाग ख़ अपनाते ए महाराजा को आ ासन दया क वह उनका शासन उखाड़
फकना नह चाहते ह बि क उनके अधीन एक िज़ मेदार सरकार चाहते ह। इसी दौरान
एसोिसएटेड ेस को दये गए बयान म उ ह ने न के वल मुि लम लीग के भारत िवभाजन
के ताव का िवरोध करते ए इसे अस भव बताया बि क मुसलमान को कां ेस के झंडे
तले आने क अपील भी क ।33 वैसे सावरकर िज ा क या ा के तुर त बाद 1944 म
ीनगर प च ँ े थे। क मीरी पंिडत क ‘युवक सभा’ क मी टंग म उ ह ने ‘िह दू रा ’ क
पूरी अवधारणा समझाई। युवक सभा के अ य पंिडत िशवनारायण फोतेदार ने उनसे
कहा : ‘हमारी पर परा धा मक सिह णुता और बंधु व क है। आपक बात हमारी पर परा
के िख़लाफ़ ह और क मीर के पंिडत आपक बात सुनने को तैयार नह ह।’34
1939 के मुि लम कॉ स के अिधवेशन म पाट का नाम बदलकर ‘नेशनल कॉ स’
करने का ताव पास आ। मौलाना आज़ाद ने कहा : ‘सनाल से पूरे अनंतनाग िज़ले के
खेत को पानी िमलता है। यह ख़श क़ मती है क अब इस मंच से बहनेवाली आज़ादी क
गंगा क मीर के चालीस लाख लोग क आज़ादी क यास बुझाएगी।’ जनता ने नारा
लगाया : ‘शेर-ए-क मीर का या इरशाद, िह दू मुि लम िसख इि हाद’। शेख़ अ दु ला ने
अपने अ य ीय भाषण म राजा ारा कये गए सुधार को रा य क जनता से धोखा
बताया और जनता क एकता पर ज़ोर देते ए िज़ मेदार शासन क माँग क । इस
ऐितहािसक अिधवेशन म ‘रा ीय माँग’ को अपने ताव के प म वीकार कर िलया
गया। ‘िज़ मेदार सरकार दवस’ के बाद शेख़ और बज़ाज़ पर नये धानमं ी गोपाल
वामी आयंगर ारा कड़ा रवैया अपनाने के चलते साझा संघष के िलए तैयार क गई इस
‘रा ीय माँग’ क ा टंग कमेटी म ग़लाम अहमद सा दक़, सरदार बुध संह, क यप ब धु,
िजयालाल कलाम, िमज़ा अफ़ज़ल बेग़ और ेमनाथ बज़ाज़ शािमल थे। नेशनल कॉ स
का िनशान चुना गया लाल झंडे पर हल का िनशान, जो रा य क कसान-ब ल जनता के
िलए ांितकारी प रवतन का तीक था।
झंडे क एक दलच प कहानी पाराशर सुनाते ह। नेशनल कॉ स के िनमाण के व त
क यप ब धु ने ताव दया क कां ेस के ितरं गे झंडे को ही नेशनल कॉ स का झंडा चुन
िलया जाए, और इसे वीकार भी कर िलया गया तथा और पाट के द तर ‘मुजािहद
मंिज़ल’ पर इसे फहराया भी गया। ले कन बाद म चौधरी ग़लाम मोह मद अ बास ने इस
बात का िवरोध कया। मामला पहली आमसभा म उठा तो ेमनाथ धर ने लाल झंडे पर
िचनार के प े का सुझाव दया िजसे सबने वीकार कर िलया। इसके बाद पुंछ के लाला
पलाल वक ल ने िचनार के प े क जगह हल का सुझाव दया और अ ततः इसे ही
वीकार कया गया। उसी दन सुख झंडे पर हल के िनशान वाला झंडा ‘मुजािहद मंिज़ल’*
पर फहराया गया35 और तब से वही नेशनल कॉ स का झंडा है।
अिधवेशन के अ त म शेख़ अ दु ला ने नेशनल कॉ स के तीन मुख उ े य घोिषत
कये : रा य के िविभ समुदाय के बीच एकता और स यिन ा को मज़बूत करना, नेशनल
कॉ स को रा य क जनता का संगठन बनाना और यह सुिनि त करना क नेशनल
कॉ स एक ऐसा संगठन हो िजसका संिवधान और काय म जनता के क याण के िलए
ह ।36 इन प रवतन के चलते आगे चलकर िह दू समाज के अनेक नेता ने नेशनल
कॉ स म भरोसा जताया। पूव म उि लिखत नाम के अलावा घाटी से एस.एल. सराफ़,
डॉ. एस.एन. पेिशन, डी.पी. धर और ज मू से आर.पी. सराफ़, ि लोचन द , िगरधारी
लाल डोगरा और बलराज पुरी जैसे नेता नेशनल कॉ स से जुड़।े 37
नेशनल कॉ स के िनमाण से लेकर आज़ादी के समय तक का व त क मीर क
राजनीित म उथल-पुथल का व त ही हो सकता था। शेख़ के इस िनणय से मुि लम
सा दाियक त व क नाराज़गी लािज़म थी। उन पर िह दु के हाथ िबक जाने से लेकर
कां ेस और ि टश एजट तक होने और ाचार का आरोप तो उन पर लगा ही, साथ ही
नेशनल कॉ स को चुनौती देने के िलए उनके कई पूव सहयोिगय ने अलग-अलग रा ते
चुन। एम.ए. सािबर, ग़ाज़ी अमानु लाह ख़ान, वाज़ा ग़लाम नबी, िमज़ा ग़लाम
मोइउ ीन, अ दुल अज़ीज़ मीरपुरी जैसे लोग ने ‘इ लाम ख़तरे म है’ का नारा बुल द
कया। सैयद आिशक़ सैन के नेतृ व म क मीर म मुि लम लीग क शाखा थािपत क
गई। मोह मद यूसुफ़ क़ु रै शी ने ‘मुि लम यंगमैन’ नाम का संगठन बनाया तो वाज़ा सदर-
उद-दीन मुज़ािहद ने ‘यंगमै स मुि लम एसोिसएशन’ बनाई। दोन प के बीच हंसक
झड़प तक ।38 1939 म मुि लम कॉ स के नेशनल कॉ स म बदलने का समथन
करनेवाले ग़लाम मुह मद अ बास ने भी मुि लम लीग के भाव म अगले ही साल मुि लम
कॉ स को जीिवत कर दया और न के वल आल इं िडया टे स मुि लम लीग के उस
अिधवेशन म क मीर के ितिनिध के तौर पर शािमल ए थे बि क जुलाई, 1941 म
उसक कायका रणी के सद य भी चुने गए थे।39 मीरवायज़ उनके साथ तो थे ही। इन
त व ने लगातार क मीरी मुसलमान के बीच शेख़ अ दु ला को कां ेस और िह दु के
एजट तथा ग ार क तरह बदनाम करने क कोिशश क । हालत यह क दूसरे िव यु के
दौरान अनंतनाग म ई कायसिमित क बैठक म कां ेस के बयान के समथन का ताव
पास कया गया तो उनके िवरोिधय ने ज़ोर-शोर से इसका इ तेमाल शेख़ को कां ेस का
िप ठू बताने म कया।40 अपनी जीवनी म शेख़ िलखते ह :
मुझे मुसलमान का िवरोध झेलना पड़ा। मज़िलस-ए-अहरार ने हमारे संगठन म घुस आए अपने कु छ
लोग के ज़ रये हमारा संगठन न करने क कोिशश क । ज मू म लोग नेशनल कॉ स छोड़ रहे थे।
हम िह दु और मुसलमान के पुरातनपंथी धड़ क दो च य के बीच िपस रहे थे।41
यहाँ यह बता देना भी ासंिगक होगा क िह दू-िसख नौजवान सभा ने भी नेशनल
कॉ स बनने से पहले एक बैठक बुलाकर यह चचा क थी क बेहतर इसम शािमल होना
होगा या एक नई पाट बनाना। बैठक बेनतीजा रही ले कन इन संगठन ने नेशनल कॉ स
से दूरी बनाये रखी।42
ऐसे समय म क मीरी पंिडत का ख़ या था? ेमनाथ बज़ाज़ ने द िह ी फ़ॉर
डम इन क मीर म कहा है क नेशनल कॉ स म आने के बावजूद क मीरी पंिडत का
अिधकांश िह सा हद से हद िह दू रा वादी ही बन सका था और नेशनल कॉ स के ज़ रये
ज द से ज द अपनी आकां ाएँ पूरी करना चाहता था।43 इस बयान को जस का तस
वीकार कर लेना सुिवधाजनक तो है ले कन बज़ाज़ के अितउ साही वभाव क रोशनी म
इसे ज़रा सावधानी से पढ़ा जाना बेहतर होगा। बेहतर हो क आगे बढ़ने से पहले
िवषयांतर के ख़तरे के साथ बज़ाज़ के बारे म थोड़ी बात कर ली जाए। बज़ाज़ का अपना
जीवन अ त वरोध से भरा रहा है। 1939 म नेशनल कॉ स बनते समय वह शेख़ के सबसे
बड़े झंडाबरदार नज़र आते ह। वह उ ह ‘क मीर संघष का सबसे बड़ा नायक’ ही नह
बताते बि क उ ह ‘क मीर का गांधी’ बताते ए एक पुि तका भी िलखते ह। जब कलाम
और क यप ब धु जैसे पंिडत ने शेख़ के िख़लाफ़ सा दाियक नीितय का आरोप लगाकर
पाट छोड़ी तब भी वह शेख़ के साथ रहे ले कन भाषा-िववाद के समय वह अचानक यह
टड लेते ह क ‘अब कायका रणी रा ीय नह रही’। इसके बाद वह एक श ु क तरह शेख़
पर हमला करते ह। उ ह सा दाियक बताते ह। यहाँ तक क वह नेह क भी कड़ी
आलोचना करते ह और कां ेस के साथ शेख़ के जाने को ‘ ाि त क राह से भटकाव’ बताते
ह। इनसाइड क मीर म वह अपने वेश के ठीक पहले तक शेख़ को सा दाियक बता ही
चुके ह तो ऐसा लगता है, शेख़ अ दु ला कोई डेढ़ साल जो उनक संगत म रहे, बस, उसी
दौर म वह खरे ांितकारी रहे! नेशनल कॉ स से िनकलने के तुर त बाद उनका ख़
वाकई आ यजनक है। वह वैसे तो एम.एन. रॉय के साथ जाकर ‘क मीर सोशिल ट पाट ’
का गठन करते ह ले कन अपने टड म वह पूरी तरह मुि लम लीग के साथ नज़र आते ह
और धा मक आधार पर क मीर के पा क तान म िवलय का समथन करते ह। 1947 म
भारत म क मीर के िवलय और क़बायली हमले को लेकर उनका रवैया यह है क
‘महाराजा ने कां ेस और क मीर के रा वा दय क मदद से ाि त के रथ क गित मोड़
दी।’ अब गांधी भी उनके िलए क मीर के आ मणकारी हो जाते ह। कभी िह दू मुि लम
एकता और क मीरी रा वाद के पैरोकार बज़ाज़ का यह ख़ न तो रा वादी है, न
अ तररा ीयतावादी। 1954 म िलखी द गल फ़ॉर िह ी ऑफ़ क मीर म उ ह ने शेख़
और दूसरे लोग क आलोचना से आगे बढ़कर जो िन दा क है, वह च काने वाली है। इस
तीखे भारत िवरोध के चलते शेख़ ने उ ह पहले जेल म रखा और फर क मीर से
िन कािसत कर दया। इस दौर म वह द ली आ गए और थोड़े दन तक यहाँ-वहाँ भटकने
के बाद हौजख़ास के अपने बँगले म रहे। शेख़ ने उन पर अं ेज़ का एजट होने का आरोप
लगाया था िजसे ट कू ने भी दुहराया है। मज़ेदार है क 1967 म िलखी क मीर इन
ू िसबल के लब म िलखते ह—मुझे यह वीकार करने म कोई िहचक नह है क जब
आज़ादी िमली तो मेरे िवचार से पा क तान म िवलय के अलावा क मीर के पास कोई
िवक प नह था। ले कन बाद क घटना ने मेरे िवचार बदल दये...। अगर घाटी
पा क तान के क़ ज़े म चली गई तो भारत क िवघटनकारी शि याँ तबाही मचा दगी।
इसिलए सुर ा तभी हो सकती है जब िनयं ण रे खा को ही क़ायम रखा जाए बि क इसे
अ तररा ीय सीमा बना दया जाए। अब वह धम को रा िनमाण का आधार भी नह
मानते। क मीर क राजनीित म उनक वापसी 1977 म होती है जब वह जनता पाट के
सद य बनकर शेख़ का िवरोध करने प च ँ ।े हालाँ क उनक उपि थित का कोई असर नह
पड़ा।
शेख़ अ दु ला ने अपनी जीवनी म बज़ाज़ पर लालची होने का आरोप लगाया है। शेख़
मीरवायज़ से लेकर मुि लम लीग के समथन और फर एम.एन. रॉय क पाट म जाने को
उनके इस लालच का माण बताते ह और द ली म उनके आलीशान बंगले ‘गश-ए-आग़र’
का िज़ करते ए कहते ह क पा क तान का समथन भी उ ह ने इसी वजह से कया और
फर जब वहाँ से स भावना ख़ म हो गई तो िवरोध करने लगे। ग़ािलब के िस शेर का
एक िह सा—‘कु छ नह है तो अदावत ही सही’—याद करते ए बज़ाज़ पर अपने
उपसंहार म शेख़ कहते ह :
उ ह ने मेरे बारे म अ सर िलखा है और हर बार जब वह यह करते ह तो अपनी िनजी पस द या
नापस द के नज़ रये से। कहते ह, एक रणनीित तभी सही है जब वह सफल हो। इसिलए बज़ाज़
अपने बयान अ सर ख़द ही बदल देते ह। ज़ािहर तौर पर वह जब राजनीित क जगह दूसरे िवषय
पर िलखते ह तब वह अपने सव े प म होते ह। इसीिलए 1976 म अपने िनजी मतभेद को अलग
रखते ए मने उ ह ज मू और क मीर क चरल एके डमी के अ य के प म ऑनरे री फ़े लो बनाया।
हमारे स पक 1976 तक कसी तरह बने रहे ले कन 1976 म जब उनके प रवार से जुड़े एक मामले
म शासिनक वजह से काम नह हो सका तो वह मुझसे बेहद नाराज़ हो गए और 1977 म मेरे
िख़लाफ़ ‘महान’ जनता पाट के साथ हो गए। तब वह जय काश नारायण, मोरारजी देसाई,
जगजीवन राम, अटल िबहारी बाजपेयी आ द के बारे म जीवन भर जो कहते रहे, वह सब भूल गए।
ले कन आ यूँ क वह मोचा असफल आ। बज़ाज़ ने रातोरात ीनगर से भागकर द ली म गश-ए-
आग़र म पनाह ली जहाँ से वह मेरे िख़लाफ़ झूठी रपोट के आधार पर कताब िलखते रहते ह और
इस तरह मुझसे अपनी दु मनी िनभाते रहते ह।44
बज़ाज़ का उदाहरण जानबूझकर मने इसिलए दया है क क मीर के इितहास के बेहद
ग भीर और ज़ री लेखक होने के कारण बज़ाज़ न के वल अ सर चचा म आते ह बि क कई
बार उ ह लगभग इकलौते गितशील क मीरी पंिडत क तरह पेश कया जाता है। 1947
के पहले पा क तान से िवलय के समथक और शेख़ तथा नेह क कटु आलोचना के कारण
क मीरी राजनीित का भी एक िह सा उ ह आदश क तरह पेश करता है या फर एक ‘ऐसे
ाि तकारी क तरह िजसे समझा नह गया।’45 शेख़ अ दु ला क आलोचना भी अके ली
नह । क मीर म उ ह ‘मुि लम आ दोलन को बहकाने वाले से लेकर पंिडत को धोखा
देनेवाले’ के प म याद करनेवाल क भी कोई कमी नह । इस पर बात करना तो
िवषयांतर होगा ले कन बाक़ सब अलग रख तो भी यह तो ब त प है क क मी रयत
का आ यान रचते ए अ सर उ ह और उन जैसे कु छ गितशील लोग को क मीरी
पंिडत के ितिनिध माना जाना बहस के िलए सुिवधाजनक तो है ले कन असल म यह
एक म है। बाक़ समाज क तरह पंिडत समाज म भी ऐसे लोग हमेशा ही अ पसं यक
रहे ले कन इसके ठीक िवपरीत यह सरलीकरण भी उतना ही ख़तरनाक होगा क पंिडत
समाज एक सा दाियक समाज था। ऐसे सरलीकरण से आगे क मीर का आम मुसलमान
और पंिडत बाक़ समाज क तरह ही अपने समय और अपने वाथ से संचािलत आम
लोग का समाज था/है िजसने वहाँ क ज टल व तुगत प रि थितय के अनुसार
ित याएँ द ।
इसीिलए न तो शेख़ अ दु ला अपने हालात से अछू ते रह सकते थे, न ही पंिडत। शेख़
क ताक़त थी मुि लम जनमत और वह उसे खोकर िन भावी हो जाते। वह दूसरी तरफ़
मुि लम लीग, कां ेस, डोगरा राजा और अं ेज़ के बीच बनते-िबगड़ते समीकरण के बीच
क मीरी पंिडत के िलए अपने भिव य क िच ता भी उतनी ही वाभािवक थी। एक
मुि लम रा म उनके िलए कोई भिव य नह हो सकता था तो ज़ािहर था क वे अपना
भिव य भारत और कां ेस म ढू ँढ़ते। नेशनल कॉ स उनके िलए इसीिलए मुफ़ द थी क
वह भारत और कां ेस के साथ खड़ी थी और जब-जब शेख़ मुि लम जनमत के समथन के
िलए अित र यास करते तो पंिडत के िलए ि थितयाँ सहज नह रह जाती थ ।

भाषा-िववाद : िह दी-उदू यानी िह दू-मुसलमान और उपेि त क मीरी


ऐसे हालात पैदा होने का सबसे बड़ा बहाना बना—भाषा-िववाद। आयंगर क सलाह पर
ह र संह ने क मीर म देवनागरी िलिप िश ा के मा यम के प म योग म लाने के िलए
डॉ. ज़ा कर सैन क अ य ता म एक शै िणक पुनगठन कमेटी बनाई ले कन कमेटी ने
देवनागरी को िश ा के मा यम बनाये जाने के िवपरीत अनुशंसा क । महाराजा और
आयंगर ने कमेटी क अनुशंसा को दर कनार करते ए आदेश िनकाला क (1) सामा य
भाषा आसान उदू होगी ले कन िलखने और पढ़ने के िलए फ़ारसी और देवनागरी, दोन ही
िलिपय का योग होगा। िव ालय क कताब दोन ही िलिपय म कािशत ह गी, (2)
जहाँ 15 ितशत से अिधक छा दोन म से कसी एक िलिप को चुनगे, वहाँ के िश क के
िलए दोन ही िलिपयाँ जानना ज़ री होगा और (3) िव ालय के िश क के िलए दोन
िलिपय को जानना ज़ री होगा। न जाननेवाले िश क को एक वष के भीतर यह भाषा
सीखनी होगी तथा नई भ तय के िलए ये दोन भाषाएँ जानना अिनवाय होगा।46
28 दस बर, 1939 को मीरपुर म आयोिजत कायका रणी म यह ताव पास कया
गया क ‘िह दु तानी* को फ़ारसी या देवनागरी िलिप म लोक सेवा के गजेटेड
अिधका रय के िलए होनेवाली परी ा म अिनवाय िवषय क तरह अपनाया जाना
चािहए।’ देखा जाए तो यह शासन के आदेश से कु छ ख़ास अलग नह है। ले कन जब
मुि लम कॉ स क ओर से मीरवायज़ ने इसे शासन के िह दूकरण क कोिशश बताते ए
इ लाम-िवरोधी बताया तो नेशनल कॉ स का टड बदल गया। अपने भाषण म शेख़
अ दु ला ने न के वल इसे इ लाम-िवरोधी बताते ए तुर त वापस लेने क माँग क बि क
उ ह ने ईद िमलाद के अवसर पर कहा क इ लाम सूरज है और बाक़ धम िसतारे ।
िजयालाल कलाम और क यप ब धु ने कायका रणी म यह मु ा उठाया और शेख़ अ दु ला
के इससे पीछे हटने से इनकार करने तथा यह कहने पर क वह पहले और आिख़र म
मुसलमान ह, नेशनल कॉ स छोड़ दी,47 ** ेमनाथ बज़ाज़ ने भी इसी त य का िज़
कया है।48 हालाँ क िच लेखा ज़ शी के अनुसार, जवाहरलाल नेह क क मीर-या ा के
दौरान वागत सिमित के गठन म िववाद के चलते शेख़ अ दु ला से ई अनबन ही दोन के
नेशनल कॉ स छोड़ने क वजह थी।49
वैसे देखा जाए तो सरकार का यह क़दम सभी क मी रय के िलए द क़त-तलब था
य क देवनागरी न तो वहाँ के िह दु क प रिचत िलिप थी, न मुसलमान क । दोन
क आम बोलचाल क भाषा क मीरी के िलए इसम कोई जगह नह थी। देखा जाए तो
क मीरी भाषा नेशनल कॉ स ही नह , शासन और बाक़ सभी प के िवमश से बाहर
थी, हालाँ क मीरवायज़ ने यह ज़ र कहा था क अगर जनता क भाषा ही लागू करनी है
तो क मीरी को लागू करना चािहए। हमारी आम बोली क मीरी है और आम भाषा
फ़ारसी।50 फ़ारसी क जगह उदू लागू करने पर िवरोध का झंडा उठानेवाले क मीरी
पंिडत ने भी इस बार ऐसा कोई िवरोध नह कया और उनम से कु छ ने तो इसे अपना
खोया आ भाव थािपत करने का ज़ रया मानते ए िह दी प रषद और िह दू लीग
बनाकर ीनगर म िह दी पढ़ना िसखाने क कोिशश शु कर द ।51 * भाषा-नीित के इस
सा दाियक प का असर यह आ क आज भी क मीर म मुि लम देवनागरी िलिप से
अप रिचत ह और वह क मीर घाटी म िसफ़ बोलचाल क भाषा बनकर रह गई।

क मीर म नेह और गितशील पथ पर नेशनल कॉ स


एक मह वपूण घटना म म शेख़ के बुलावे पर 30 मई, 1940 को पंिडत नेह ख़ान अ दुल
ग फ़ार ख़ान, मोह मद यूनुस आ द के साथ ीनगर प च ँ े जहाँ नेशनल कॉ स ने उनका
ज़ोरदार वागत कया। छ ाबल से आिमर कदल तक नौका जुलूस िनकाला गया। अगले
दन ज़ूरी बाग़ म नेह तथा अ य नेता के वागत म एक बड़ी सभा ई। वागत
भाषण देते ए शेख़ ने नेह को ‘क मीर का शानदार बेटा’ बताया और िह दु तथा
मुसलमान क भारी उपि थित वाली भीड़ क ओर इशारा करके कहा क ‘बाहर के
अख़बार म हमारे आ दोलन को बदनाम कया जा रहा है, हम पर हमले कये जा रहे ह
ले कन यहाँ आप देख सकते ह क हमारा आ दोलन कनके िलए ह और हम कनके
ितिनिध ह।’ नेह ने जनता को अपना संघष जारी रखते ए कहा क रा य भारत से
अस ब नह रह सकते, न यहाँ कोई िह दू रा य बन सकता है, न मुि लम रा य और जो
भी सरकार बनेगी, वह भारतीय जनता क सरकार होगी। उ ह ने िह दु से अपना
सा दाियक दृि कोण छोड़कर नेशनल कॉ स म शािमल होने को कहा। ख़ान अ दुल
ग फ़ार ख़ान ने ख़द को क मीर का पड़ोसी बताते ए संघष म भागीदारी और बिलदान
क अपील क ।52
उस समय तक भारत और दुिनया म क यूिन ट िवचार क धमक प च ँ चुक थी। स
म क यूिन ट शासन क थापना के साथ ही एक समतावादी समाज का व दुिनया भर
के युवा को आक षत कर रहा था। ि टश शासक ारा बो शेिवक सािह य और
िवचार को ितबि धत करने क सारी कोिशश के बावजूद भारत म क यूिन ट िवचार
पाँव पसार रहा था। हमने देखा है क क मीर म कसान और मज़दूर के िलए संघष
करनेवाले कई संगठन और युवा नेशनल कॉ स म शािमल ए थे और अपने झंडे के िलए
ाि त का तीक लाल रं ग ही चुना गया था। शेख़ ख़द न तो मा सवादी थे, न ही उ ह ने
वामपंथ का कोई गहरा अ ययन कया था, ले कन समतावादी नीितय के ित उनका
झुकाव प था।53 1937 म शेख़ कह रहे थे :
िह दू और मुसलमान, दोन ही मज़दूर पूँजीवा दय के एक जैसे िशकार होते ह। हमारे वाधीनता
सं ाम के िपछले 6 साल म सबसे यादा बिलदान क मीर के मज़दूर वग ने ही दया है ले कन बदले
म उसे कु छ नह िमला। यह उन िशि त मुसलमान के िलए शम क बात है िज ह इस संघष के
चलते नौक रयाँ िमल गई ह, वे ग़रीब मुसलमान का कोई ख़याल नह करते। कसान और मज़दूर
रा य का ख़ज़ाना अपने ल और पसीने से भरते ह और दूसरे वह ख़च करते ह। बेरोज़गार िह दू भी
वैसे ही अपने ही समुदाय के पूँजीवा दय ारा कु चले जाते ह। बहरहाल, एक दन ये हालात नह
रहगे। अब वह व त ब त तेज़ी से क़रीब आ रहा है जब सभी मज़दूर और कसान का एक साझा
मंच बनाया जाएगा। इसिलए हम मज़दूर सभा और इसके नेता को हर मुम कन समथन दगे।54
यात क यूिन ट नेता फ़ै ज़ अहमद पारचा 1929 म क मीर म बस गए थे। 1931 म
पंिडत राधेनाथ कौल, 1937 म वाज़ा मोह मद अशरफ़ क मीर आ गए थे और 1937 म
एम.ए. फ़ा क़ क सहायता से ीनगर म युवा के बीच गितिविधयाँ शु कर दी थ ।
ज मू म क यूिन ट आ दोलन के नेता थे धनवंत र। इस समूह म स य युवा म ग़लाम
मोह मद सा दक़, पी.एन. जलाली, पीर या ा िस ीक़ , जे.एन. ज़ शी, डी.पी. धर और
हरनाम संह थे। 1940 म मोहत रमा महबूबा अहमद अली शाह और पंिडत िनरं जन नाथ
स य ए तथा फ़ज़ल इलाही क़ु बान क ीनगर या ा के दौरान पाट क भी थापना
क गई िजसका िज़ला सिचव ब शी ग़लाम मोह मद को बनाया गया, हालाँ क बाद म
पाट -िवरोधी गितिविधय के िलए उ ह िनकाल दया गया। उनके समूह म मोह मद
यूसुफ़ धर, मोतीलाल िम ी और कारनाथ धर शािमल थे। ये सभी नेशनल कॉ स म
शािमल ए और 1938-50 के बीच उसक नीितय को भािवत भी कया।55 आम तौर
पर यह मा यता है क वह ‘नया क मीर’ का द तावेज़ तैयार कराने म बी.पी.एल. बेदी क
बड़ी भूिमका थी जो स ा म आने के बाद नेशनल कॉ स का वैचा रक आधार बनी। 1943
म मीरपुर म ई नेशनल कॉ स के चौथे वा षक अिधवेशन म न के वल स का समथन
करते ए सी जनतांि क शि य के साथ एकजुटता द शत क गई और ि टश
सा ा यवाद के भारत क जनता को धा मक आधार पर बाँटने के यास क आलोचना क
गई बि क शेख़ अ दु ला ने प कहा क ‘कु छ चालाक लोग ‘इ लाम ख़तरे म है’ का नारा
लगाकर यान बाँटना चाहते ह जब क भारत क असली सम या धा मक नह , आ थक है।’
इसी अवसर पर उ ह ने अपना वह िस व दया जो उनके श ु के िलए हमला
करने का बहाना बना तो क मीर के साथ भारत के स ब ध का आधार भी। उ ह ने कहा :
एक मुसलमान क तरह हम भरोसा होना चािहए क िह दु तान हमारा घर है। हम इस ज़मीन से ही
ज मे ह और इसी म मरगे। िह दु तान हमारा मादर-ए-वतन है और यही हमारा मादर-ए-वतन
रहेगा। यह हमारा फ़ज़ है क अपने मादर-ए-वतन और अपने घर को ग़ैर-मुि कय से आज़ाद
कराएँ।56
इस अिधवेशन के थोड़े समय बाद ही जून, 1943 म िजयालाल कलाम और
िशवनारायण फोतेदार कायका रणी क बैठक म िवशेष आमंि त सद य के प म शािमल
ए और फर पाट म शािमल हो गए। बाद म पंिडत क यप ब धु भी पाट म लौट आए
और शेख़ के कहने पर पाट के आिधका रक मुखप िख़दमत के स पादक क िज़ मेदारी
सँभाल ली।57
अगली आधी सदी क मीर म नेशनल कॉ स के नेतृ व म घाटी के मुसलमान और पंिडत
ने एक तरफ़ साझा लड़ाई लड़ी तो ख़ास तौर पर ज मू म दोन तरफ़ क सा दाियकता ने
माहौल को ज़हरीला बनाने म कोई कसर नह छोड़ी। रा ीय वयंसेवक संघ से जुड़ी जा-
सभा (जो बाद म जनसंघ म बदल गई) ज मू म तो स य थी ही, घाटी क युवक सभा पर
भी उसका पूरा असर था। ले कन इन सबके बीच नेशनल कॉ स लगातार डोगरा राज के
साम ती शासन और ि टश सा ा यवाद के िख़लाफ़ िजयालाल कलाम, क यप ब धु,
डीपी धर, सरदार बुध संह, एन. एन. रै ना जैसे नेता को साथ लेकर तीखा संघष कर
रही थी। हमने देखा है क 1944 म िज ा को क मीर से अस तु और िनराश होकर
लौटना पड़ा था तो दूसरी तरफ़ शेख़ के िख़लाफ़ होने के बावजूद युवक सभा के अ य
िशवनारायण फोतेदार ने सावरकर को बैरंग लौटा दया था। 1946 म जब शेख़ अ दु ला
ने ‘क मीर छोड़ो’ का नारा दया तो इस लड़ाई म मुसलमान और पंिडत ने क धे से
क धा िमलाकर लड़ाई लड़ी।58 ‘क मीर छोड़ो’ आ दोलन के ताव म शेख़ ने कहा :
‘अिखल ज मू और क मीर नेशनल कॉ स ने हमेशा िह दू-मुि लम एकता का समथन
कया है और हमेशा इस बात को रे खां कत कया है क भारत क आज़ादी क राह म सबसे
बड़ा रोड़ा इन दो समुदाय के बीच अिव ास और दूरी है। इसिलए एकता के िलए कये
गए हर यास को हम पिव मानते ह। हम अपने दल क गहराई से िह दु तान के
िह दु और मुसलमान क एकता चाहते ह। अपने िववाद सुलझाना मुि लम लीग और
कां ेस का आपसी मसला है। भारत क आज़ादी रजवाड़ क आज़ादी के िलए आव यक
है।’59 जब नारा लगा—अमृतसर बैनामा तोड़ दो/क मीर हमारा छोड़ दो—तो शेख़
िगर तार ए। नेह उनका के स लड़ने ीनगर को िनकल पड़े। रा ते म ही उ ह रोककर
डाकबँगले म रात भर रखा गया तो देश भर म बवाल मच गया। िह दु तान टडड ने
िलखा :
क मीर के बौने यूहरर ज़रा-सी स ा और ताक़त के नशे म कु छ यादा ही डू ब गए ह। उ ह ने अपने
भयावह कु कम क पूँछ को पंिडत जवाहरलाल के िख़लाफ़ मूखतापूण ग़ से से िछपा िलया है
िजसक प रणित देश के ि य नेता क िगर तारी म ई है।
डी.डी. ठाकु र ह र संह क इस कायवाही को नेह के उनसे स ब ध ख़राब होने का
सबसे बड़ा कारण बताते ह और मानते ह क इस घटना ने भिव य क घटना पर गहरा
भाव डाला।60
नेह और शेख़ इस पूरे दौर म साथ रहे—दो त क तरह, कॉमरे ड क तरह और क मीर
म ‘शेर-ए-क मीर का या इरशाद/िह दू मुि लम िसख इि हाद’ का नारा लगता रहा...।
अब तक श ु समान था ले कन उस श ु के प रदृ य से दूर चले जाने के बाद बदलना इसे
आज़ादी के बाद था। इसम पंिडत को अपनी भूिमकाएँ भी िनभानी थ और अपना प भी
तय करना था।

_______________
* मुि लम कॉ स ने 20 सीट पर उ मीदवार खड़े कये थे ले कन एक का पचा तकनीक आधार पर ख़ा रज हो गया
था।
* कताब क िवषयव तु को यान म रखते ए मने ज मू और पुंछ म उस दौरान ए घटना म का िव तार म िज़ नह
कया है, हालाँ क उन इलाक़ म तीस के दशक और उसके बाद भी जो घटनाएँ , उ ह ने ज मू और क मीर क
ता कािलक और भावी राजनीित पर गहरा असर डाला। उ सुक पाठक मेरी कताब ‘क मीरनामा’ या फर ेमनाथ
बज़ाज़, जी.एच. ख़ान, एम.ऍफ़. हसनैन आ द क पूव धृत कताब पढ़ सकते ह।
* शेख़ अ दु ला ने िज़ कया है क िशव नारायण फोतेदार ने एक कताब िलखी िजसम हज़रत मुह मद के ित
घृणा पद ट पिणयाँ क ग ।
* ‘मुजािहद मंिज़ल’ झेलम कनारे हमदानी क ख़ानकाह के पीछे और प थर मि जद के ठीक सामने ि थत है। बाद म
नेशनल कॉ स का द तर यहाँ से ज़ीरो ि ज़ पर चला गया, हालाँ क उसका नाम भी ‘मुजािहद मंिज़ल’ ही रखा गया।
* यह अवधारणा गांधी क थी िजसम िह दू-उदू के आसान और आमफ़हम श द को एक साथ िमलाकर िह दु तानी
भाषा को भारत म चिलत कये जाने क बात थी।
** शेख़ का यह कथन बाद म िजयालाल कलाम के एक अग त, 1940 को ीनगर के अख़बार ‘अल इ लाह’ म छपे एक
बयान के आधार पर अ सर उ धृत कया जाता है। यह बयान उ ह ने नेशनल कॉ स छोड़ने के फ़ै सले को यायसंगत
बताने के िलए दया था। हालाँ क तीन साल बाद ही वह क यप ब धु और फोतेदार के साथ नेशनल कॉ स म लौट आए
थे।
* मुि लम संगठन और नेशनल कॉ स के तीखे िवरोध के बावजूद आयंगर और महाराजा ने यह नीित जारी रखी।
एम.डी. सूफ़ ने िलखा है क करण संह का समय आते-आते राजकाज म उदू क जगह सं कृ तिन िह दी भावी हो
चुक थी। शेरगढ़ी को राजगढ़ कहा जाने लगा। वज़ीर अमा य हो गए। शपथ हण, इरशाद और फ़रमान सं कृ तिन
िह दी म होने लगे थे। आर.एस. पंिडत के हवाले से सूफ़ िलखते ह क ह र संह के समय म जैसे ‘राजतरं िगणी’ क
पर परा जारी थी (सूफ़ 831)।
स दभ
1. देख, पेज-88, डम गल इन क मीर, एफ़.एम. हसनैन, रीमा पि ल शंग हाउस, 1988, द ली
2. देख, पेज 179, इनसाइड क मीर, ेमनाथ बज़ाज़, द क मीर पि ल शंग क पनी, ीनगर, 1941
3. देख, वही, पेज 193
4. देख, पेज 107, क मीर एंड द डम मूवमट, परमान द पाराशर, स प एंड संस, द ली, 2004
5. मृद ु राय ारा राजनीितक िवभाग के द तावेज़ से उ धृत, पेज 273, िह दू लस एंड मुि लम स ज़े स, मृद ु
राय, परमानट लैक, 2007
6. देख, िह दु तान टाइ स के 16 जुलाई, 2017 के अंक म कािशत पारोिमता घोष का लेख
7. देख, पेज 104, क मीर एंड द डम मूवमट, परमान द पाराशर, स प एंड संस, द ली, 2004
8. देख, पेज 187, इनसाइड क मीर, ेमनाथ बज़ाज़, द क मीर पि ल शंग क पनी, ीनगर, 1941
9. देख, पेज 29, पी.आई.डी. पा रमू, क मीर एंड शेर-ए-क मीर, अ रवो यूशन डीरे ड, िचनार पि लशस,
अहमदाबाद
10. देख, पेज 70, क मीर एंड पॉवर पॉिल ट स, पी.एन.के . बमज़ाई, गुलशन बु स, 2011 (पुन: काशन, पहला
सं करण, 1966)
11. यहाँ डम गल इन क मीर, एफ़.एम. हसनैन के पेज 83 से
12. देख, पेज 323, डम मूवमट इन क मीर, जी.एच. ख़ान, लाइफ़ एंड लाइट पि लशस, द ली, 1980
13. देख, पेज 107, क मीर एंड द डम मूवमट, परमान द पाराशर, स प एंड संस, द ली, 2004
14. देख, पेज 16, शेख़ मोह मद अ दु ला, एस.आर. ब शी, अनमोल पि लके शन ाइवेट िलिमटेड, द ली, 1998
15. देख, पेज 71, क मीर एंड पॉवर पॉिल ट स, पी.एन.के . बमज़ाई, गुलशन बु स, 2011 (पुन: काशन, पहला
सं करण, 1966)
16. देख, पेज 16, अ ॉस द लाइन ऑफ़ कं ोल, लव पुरी, कोलंिबया यूिनव सटी ेस, यूयॉक, 2012
17. देख, पेज 112, क मीर एंड द डम मूवमट, परमान द पाराशर, स प एंड संस, नई द ली, 2004
18. देख, पेज 16, शेख़ मोह मद अ दु ला, एस.आर. ब शी, अनमोल पि लके शन ाइवेट िलिमटेड, द ली, 1998
19. देख, पेज 65, डायनािम स ऑफ़ पॉिल टकल चज़ इन क मीर, किन क पि लशस, िड ी यूटस, द ली, 2001
20. देख, पेज 192, इनसाइड क मीर, ेमनाथ बज़ाज़, द क मीर पि ल शंग क पनी, ीनगर, 1941
21. देख, पेज-88, डम गल इन क मीर, एफ़.एम. हसनैन, रीमा पि ल शंग हाउस, 1988, द ली
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23. देख, पेज-88, डम गल इन क मीर, एफ़.एम. हसनैन, रीमा पि ल शंग हाउस, 1988, द ली
24. देख, वही, पेज 87
25. देख, पेज 53, इं टर क यूनल रलेशंस इन ज मू एंड क मीर (1846, 1931), िनमल के . संह, जे.के . बुक हाउस,
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26. देख, पेज 61, डायनािम स ऑफ़ पॉिल टकल चज़ इन क मीर, किन क पि लशस, िड ी यूटस, द ली, 2001
27. देख, पेज 119-20, क मीर एंड द डम मूवमट, परमान द पाराशर, स प एंड संस, नई द ली, 2004
28. देख, पेज 325, डम मूवमट इन क मीर, जी.एच. ख़ान, लाइफ़ एंड लाइट पि लशस, द ली, 1980
29. देख, वही, पेज 269
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31. देख, पेज 49, ले स ऑफ़ िचनार, शेख़ अ दु ला, अनुवाद : खुशवंत संह, पि वन, द ली, 1993
32. देख, पेज 65, डायनािम स ऑफ़ पॉिल टकल चज़ इन क मीर, डी.एन. धर, किन क पि लशर, िड ी यूटस,
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33. देख, पेज 208-09, अ याय 5, डोगरा राज एंड द गल फ़ॉर डम इन क मीर, मोह मद यूसुफ़ गनाई,
अ कािशत शोध ब ध, क मीर यूिनव सटी
34. देख, पेज 71, डायनािम स ऑफ़ पॉिल टकल चज़ इन क मीर, डी.एन. धर, किन क पि लशर, िड ी यूटस,
2001
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36. देख, पेज 199-200, अ याय 5, डोगरा राज एंड द गल फ़ॉर डम इन क मीर, मोह मद यूसुफ़ गनाई,
अ कािशत शोध ब ध, क मीर यूिनव सटी
37. देख, पेज 17, शेख़ मोह मद अ दु ला, एस.आर. ब शी, अनमोल पि लके शन ाइवेट िलिमटेड, द ली, 1998
38. देख, पेज 97, डम गल इन क मीर, एफ़.एम. हसनैन, रीमा पि ल शंग हाउस, 1988, द ली
39. देख, पेज 208-09, अ याय 5, डोगरा राज एंड द गल फ़ॉर डम इन क मीर, मोह मद यूसुफ़ गनाई,
अ कािशत शोध ब ध, क मीर यूिनव सटी
40. देख, पेज 21, शेख़ मोह मद अ दु ला, एस.आर. ब शी, अनमोल पि लके शन ाइवेट िलिमटेड, द ली, 1998
41. देख, पेज 51, ले स ऑफ़ िचनार, शेख़ अ दु ला, अनुवाद : खुशवंत संह, पि वन, द ली, 1993
42. देख, पेज 357, डम मूवमट इन क मीर, जी.एच. ख़ान, लाइफ़ एंड लाइट पि लशस, द ली, 1980
43. देख, पेज 176, द िह ी फ़ॉर डम इन क मीर, ेमनाथ बज़ाज़, क मीर पि ल शंग क पनी, द ली,1954
44. देख, पेज 159, द ले ज़ंग िचनार, शेख़ अ दु ला, अनुवाद : मोह मद अमीन, दूसरा सं करण, गुलशन बु स,
ीनगर, 2016
45. िह दु तान टाइ स के 16 जुलाई, 2017 के अंक म कािशत पारोिमता घोष का लेख
46. देख, पेज 181-186, डम गल इन क मीर, एफ़.एम. हसनैन, रीमा पि ल शंग हाउस, 1988, द ली
47. देख, पेज 545-46, खंड 1, कि मरीज़ फ़ाइट फ़ॉर डम, एम.वाय. सराफ़, फे रोजूंस िलिमटेड, लाहौर-1977
48. देख, पेज 181, द िह ी फ़ॉर डम इन क मीर, ेमनाथ बज़ाज़, क मीर पि ल शंग क पनी, द ली-1954
49. देख, पेज 266, िच लेखा जु शी, ल वज ऑफ़ िबलां गंग : इ लाम, रीज़नल आइड टटी एंड मे कं ग ऑफ़ क मीर,
परमानट लैक, दूसरा सं करण, 2015
50. देख, वही पेज 270-72
51. देख, वही, पेज 272
52. देख, पेज 107-08, डम गल इन क मीर, एफ़.एम. हसनैन, रीमा पि ल शंग हाउस, 1988, द ली
53. देख, पेज 23, शेख़ मोह मद अ दु ला, एस.आर. ब शी, अनमोल पि लके शन ाइवेट िलिमटेड, द ली, 1998
54. देख, पेज 61, डायनािम स ऑफ़ पॉिल टकल चज़ इन क मीर, डी.एन. धर, किन क पि लशर, िड ी यूटस,
2001
55. देख, पेज 111-12, डम गल इन क मीर, एफ़.एम. हसनैन, रीमा पि ल शंग हाउस, 1988, द ली
56. देख, वही, पेज 116
57. देख, पेज 228, अ याय 5, डोगरा राज एंड द गल फ़ॉर डम इन क मीर, मोह मद यूसुफ़ गनाई, अ कािशत
शोध ब ध, क मीर यूिनव सटी
58. देख, पेज 35, क मीर इन ू िसबल, ेमनाथ बज़ाज़, पा पोश पि लके शन, 1967
59. देख, पेज 253, अ याय 5, डोगरा राज एंड द गल फ़ॉर डम इन क मीर, मोह मद यूसुफ़ गनाई, अ कािशत
शोध ब ध, क मीर यूिनव सटी
60. देख, पेज 63, माय लाइफ◌़, डी.डी. ठाकु र, लेि सस नेि सस, गुडगाँव, 2017
अ याय-7

िवभाजन, प रवतन और िवड बनाएँ


नये देश म नये समीकरण
[1947-1949]
म यह सोचने के िलए बा य ँ क महाराजा और काक इस स भावना पर ब त ग भीरता से िवचार
कर रहे ह क य द भारत सरकार बनती है तो वह उसम शािमल नह ह गे। मुझे आशंका है क
महाराजा का दृि कोण यह है क एक बार जब ि टश सव स ा समा हो जाएगी तो क मीर
आज़ाद हो जाएगा और उसे अपने पैर पर खड़ा होना होगा। और यह क तब वफ़ादारी का सवाल
नह रह जाएगा और क मीर स सिहत कसी भी ताक़त के साथ समझौता करने के िलए आज़ाद
होगा।1
[14 नव बर, 1946 को त कालीन ि टश रे िज़डट ारा
वायसराय को भेजी गई रपोट से]

अं ेज़ के आने से पहले भारत नाम का कोई एक देश नह था। एक भूभाग था िजसक


सं कृ ितय म कई समान िब दु थे और जो छोटे-बड़े रयासत म बँटा था—और हर
रयासत का अपना एक अलग देश था। ले कन आज़ादी क ल बी लड़ाई क या म
भारतीय रा वाद का िवकास आ और एक देश क भावना बलवती ई। ज़ािहर है क यह
भी एकरे खीय नह हो सकता था। धा मक और भौगोिलक िविभ ता ने इसम एक
भूिमका िनभाई और अ ततः इस भूभाग का िह दु तान और पा क तान म बँटवारा आ।
कताब क िवषयव तु के िहसाब से भारतीय वाधीनता आ दोलन या फर बँटवारे का
िव तृत िववेचन तो िवषया तर होगा ले कन इस बँटवारे पर थोड़ी-सी बात करनी ज़ री
है।
बँटवारे के िजस आधार पर सबसे अिधक बात होती है, वह है धा मक आधार। ज़ािहर है,
मुि लम लीग ख़द को मुसलमान का रहनुमा लेम करती थी और पा क तान उसने
‘मुसलमान का देश’ के प म ही माँगा था। ले कन इसके बरअ स कां ेस ने कभी
‘िह दु का रहनुमा’ होने का दावा नह कया बि क वह हमेशा से ही हर धम और जाित
के ितिनिध व क बात करती रही। इसिलए भारत को ‘िह दु का देश’ लेम नह कया
गया। साफ़ कहा गया क यह एक लोकतांि क और से यूलर देश होगा िजसम सबके िलए
जगह होगी। ‘िह दु का देश’ का दावा रा ीय वयंसेवक संघ या फर िह दू महासभा
जैसे संगठन ने कया िजनक भारत के मुि -सं ाम म कोई भूिमका नह थी ले कन िह दू-
मुसलमान क इस बायनरी म वे अचानक मह वपूण ताक़त क तरह उभरे । बाक़ धम का
मामला ब त ज़ोर नह पकड़ सका य क पंजाब और पि मी भारत म िसख और
मुसलमान क पार प रक ित िं ता के कारण िह दु और िसख क एकता बनी और
मुसलमान अ य बना या कह, मुसलमान के िलए िसख और िह दू साझा अ य बने।
हालाँ क मज़बूत अकाली आ दोलन के भारत के साथ मतभेद आगे जाकर उभरे और अ सी
के दशक म िसख अलगाववाद क पंजाब और देश ने भारी क़ मत चुकाई। ईसाई वैसे भी
सं या म ब त कम और िबखरे ए थे इसिलए उनका सवाल कोई मह वपूण सवाल बन
नह सकता था, ख़ास तौर से तब जब अिधकांश ि टश नाग रक ने यहाँ बसने क जगह
लौटना तय कया। ले कन धम के साथ ही भूगोल का सवाल भी बेहद मह वपूण था।
इसीिलए हम देखते ह क पि म और पूरब म तो मुि लम-ब ल इलाक़ को पा क तान के
साथ जाने म कोई सम या नह ई ले कन हैदराबाद या जूनागढ़ जैसे इलाक़ के मुि लम
शासक के पा क तान समथक ख़ को कू टनीितक और सै य, दोन तर पर िन भावी
कर दया गया।
िस ा त प म देख तो रजवाड़ के सामने दो िवक प थे : भारत या पा क तान म
िवलय अथवा अपनी आज़ादी। यादातर रजवाड़े अपना शासन बनाये रखना चाहते थे
ले कन नये हालात म यह दूसरा िवक प िसफ़ काग़ज़ी था। हाउस ऑफ़ कॉमंस म जुलाई,
1947 म बोलते ए ि टश धानमं ी लीमट एटली ने यह उ मीद ज़ािहर क क
‘उिचत समय म सभी रजवाड़े इन दोन देश म से कसी एक देश म शािमल हो जाएँगे।’
आगे वह जोड़ते ह : ‘य द कोई शासक आज़ादी पर ब-िज़द है तो उसे मेरी सलाह यह होगी
क कु छ व त लीिजए और फर से सोिचए। मुझे उ मीद है क ज दी म ऐसा कोई िनणय
नह िलया जाएगा िजसे बदला न जा सके ।’ उसी महीने हाउस ऑफ़ लॉ स म बोलते ए
भारत के िलए से े टरी ऑफ़ टे स लॉड िल टोवेल ने कहा क ‘ि टश सरकार कसी भी
रा य के वतं अ तररा ीय अि त व को मा यता तािवत नह करती है।’ भारत म 25
जुलाई, 1947 को रजवाड़ के ितिनिधय क एक बैठक चै बर ऑफ़ ंसेज़ म बोलते ए
लॉड माउं टबेटन ने भौगोिलक बा यता को नज़रअ दाज़ करने के बरअ स उनको चेताते
ए कहा क ‘आप न तो उस जनता से भाग सकते ह िजसके क याण के िलए आप
िज़ मेदार ह और न ही उस देश क सरकार से—जो आपके पड़ोस म है।’2
अब दुय ग कह या संयोग, क मीर त कालीन भारतीय उपमहा ीप का इकलौता वह
इलाक़ा था जहाँ ये सारी िवड बनाएँ एकसाथ उपि थत थ । भौगोिलक प से देख तो
उसक सीमाएँ भारत और पा क तान, दोन से साझा थ । जनसं या का ब लांश मुि लम
था और शासक िह दू। इितहास के इस मोड़ पर शेख़ अ दु ला और महाराजा ह र संह के
साथ दो क मीरी पंिडत मह वपूण भूिमका म थे—आज़ाद िह दु तान के पहले
धानमं ी जवाहरलाल नेह और महाराजा ह र संह के धानमं ी रामच काक।
नेह के बारे म तो ख़ैर, बात होती ही है और आगे भी होगी ले कन काक के बारे म ब त
कम बात होती है। काक और क मीर क भावी ि थित को लेकर उनके नज़ रये पर थोड़ी-
सी बात कर लेना न के वल उस दौर और िवलय क बारी क़य को समझने के िलए बि क
उस इितहास क सीमा को समझने के िलए भी सुिवधाजनक होगा िजसे िह दू-मुि लम
बायनरी के सहारे तैयार कया जाता है।

रामच काक और सं मण काल का संकट


5 जून, 1893 को ज मे रामच काक ने ी ताप कॉलेज, ीनगर से ातक कया और
फर आ कयोलाॅिजकल सव ऑफ़ इं िडया के त कालीन महािनदेशक सर जॉन माशल से
अगले 5 साल तक पुरात व का िश ण िलया। इसके बाद उ ह ज मू और क मीर
नवग ठत पुरात व और शोध िवभाग का िनदेशक बनाया गया और साथ ही महाराजा के
समृ पु तकालय क िज़ मेदारी भी दी गई। अगले दस साल उ ह ने पुरात व के े म
उ लेखनीय काम कया। उनक कताब एंिशयंट मा यूम स ऑफ़ क मीर के पुराताि वक
ोत के आधार पर िलखी गई पहली और बेहद मह वपूण कताब है। 1937 म उ ह
शासन म लाया गया और वह मु य सिचव िनयु ए।3 1942-45 तक वह ह र संह के
मंि मंडल म िमिन टर इन वे टंग के हैिसयत से रहे और जून, 1945 म धानमं ी बनाये
गए। एक दशक से अिधक समय के डोगरा राज म धानमं ी पद तक प च ँ ने वाले वह
पहले और आिख़री क मीरी-भाषी क मीरी पंिडत थे। इसके पहले 30 के दशक म
धानमं ी रहे ह र कशन कौल पंजाब से लाए गए थे।4 ज़ािहर है, यह आधुिनक क मीरी
इितहास का सबसे उलझा आ और मह वपूण समय था और काक के िनणय क मीर के
भिव य के िनधारण म मह वपूण होने वाले थे।
अगर िह दू-मुि लम बायनरी म देख तो डोगरा राजपूत महाराजा और क मीरी पंिडत
धानमं ी के रहते िवलय का सबसे वाभािवक िवक प एक िह दू-ब ल देश भारत के
साथ िवलय। ले कन इितहास ऐसे सरलीकरण से नह चलता तो क़ सा काफ़ अलग है।
नेशनल कॉ स के ‘क मीर छोड़ो’ आ दोलन के दौरान क मीरी शासन के मुख काक
शेख़ क िगर तारी के िलए भी िज़ मेदार थे और फर शेख़ क वकालत के िलए ीनगर
आ रहे जवाहरलाल नेह को रोकने के िलए भी। नेह क िगर तारी का असर गहरा पड़ा
था और जब वायसराय ने ह र संह को इस कायवाही पर चेतावनी दी तो अपनी ग़लती
वीकार कर ह र संह ने काक को ब बई भेजा जहाँ उ ह ने सरदार पटेल से िमलकर माफ़
माँगी और नेह के देश म वेश पर ितब ध को समा कर दया गया। इसके बाद 24
जून को नेह शेख़ क पैरवी के िलए ीनगर प च ँ ।े ले कन सारी कोिशश के बावजूद 10
िसत बर, 1946 को शेख़ अ दु ला को देश ोह के अपराध म तीन भाषण के िलए तीन-
तीन साल का कारावास और पाँच-पाँच सौ का जुमाना लगाया गया। सरदार बुध संह
और मौलाना मसूदी सिहत सैकड़ अ य कायकता को भी कारावास क सज़ाएँ दी ग ।5
ज़ािहर है, काक और नेह एक दूसरे क गुडबुक म नह थे। वजह भी कोई िनजी नह हो
सकती थी। काक क िन ा और ितब ताएँ डोगरा राज के ित थ तो नेह क नये
बनते भारतीय गणरा य म, इसिलए उनके िलए बेहतर सहयोगी थे शेख़ अ दु ला। ह र
संह का मानना था क उनके पुरख क सि ध ि टश सा ा य से ई थी और उनक
िवदाई के बाद वाभािवक प से वह न के वल इस सि ध से आज़ाद हो जाएँगे बि क
क मीर पर उनका शासन का अिधकार भी अ ु ण रहेगा। वह न तो बदले ए रा ीय-
अ तररा ीय हालात को समझने क कोिशश कर पा रहे थे, न ही क मीरी जनता के उभार
को। हालाँ क उनके स मुख यह तो प था क भारत या पा क तान से दु मनी करके
क मीर का सुरि त रहना स भव नह , तो वह दोन देश से अ छे स ब ध बनाये रखने
क कोिशश कर रहे थे। काक के 1956 म िलखे एक ल बे नोट से उस समय के हालात और
ख़ास तौर पर काक और ह र संह के ख़ के बारे म पता चलता है। यह नोट त कालीन
रा य पुिलस मुख रचड पॉवेल के काग़ज़ात म ल दन क ि टश लाइ ेरी म उपल ध है।
हाल ही म कािशत कताब ज मू एंड क मीर : िडलेमा ऑफ़ ए सेशन म राजा रामन ने
यह पूरा नोट शािमल कया है। बदले ए हालात म िलखे इस नोट पर पूरी तरह भरोसा
करना तो एकदम सही नह होगा। यह स भव है ही क इसे काक ने ख़द को पाक-साफ़
सािबत करने के िलए िलखा हो, ले कन इसम कई एक ऐसे रोचक त य ह जो उस समय के
हालात को समझने म मदद करते ह।
काक कहते ह क ‘िवलय का मु ा दो बार उठा। पहली बार 1946 म, जब कै िबनेट
िमशन भारत आया और दूसरी बार 1947 म, जब आज़ादी िमली। दोन बार रा य का
टड एक ही था। रा य कसी भी हालत म िवलय नह चाहता था। इस नोट के अनुसार
भारत से िवलय को लेकर महाराजा और धानमं ी क राय एक ही थी और वह िवलय के
समथन म नह थी।’ काक के िलए इसका सबसे बड़ा कारण ‘रा य के मामलात म नेह
का रवैया’ था।6 यह रवैया ज़ािहर तौर पर शेख़ अ दु ला का समथन और क मीर म
लोकतांि क रा य क थापना था। काक के र ते पटेल से अ छे थे ले कन जब ब बई म
उनके बेटे दयाल भाई के घर पर उ ह ने मुलाक़ात क तो पटेल और गांधी, दोन ने ही उ ह
शेख़ को छोड़ने क सलाह दी, ले कन वह इसके िलए तैयार नह ए।
18 जून, 1947 को माउं टबेटन क ीनगर-या ा के दौरान ह र संह का वहार
उनके रवैये का प रचय देता है। चार दन क ती ा के बाद भी वह उनसे अके ले म नह
िमले। पूरे व त वह या तो बीमारी का बहाना करते रहे या फर इधर-उधर क बात।7
काक बताते ह क माउं टबेटन से उ ह ने प प से पूछा था—आप क मीर का कस
गणरा य म िवलय चाहते ह? माउं टबेटन ने जवाब दया—यह तो आपको तय करना है।
आप अपनी भौगोिलक अवि थित, राजनीितक अवि थित और जनता के धा मक संघटन
को यान म रखते ए फ़ै सला लीिजए। काक ने जवाब दया—इसका मतलब तो यह आ
क आप हम पा क तान म िवलय क सलाह दे रहे ह! यह हम नह कर सकते। और चूँ क
क मीर क हक़ क़त यह है इसिलए हम भारत से भी िवलय नह कर सकते। दूसरे अ फ़ाज़
म, चूँ क क मीर पा क तान से िवलय नह कर सकता है तो िह दु तान से भी िवलय नह
कर सकता।8 हालाँ क बडवुड का मानना है क रामच काक लगातार पा क तान के
स पक म थे और पा क तानी शासन उ ह लोभन दे रहा था।9 बलराज मधोक भी काक
के दावे को ब त मह व नह देते और ह र संह को भारत समथक सािबत करते ए
क मीर को वतं रखने के व को काक क मह वाकां ा का प रणाम बताते ह!10
ज़ािहर है, डोगर से भरी जा प रषद के समथक मधोक के िलए डोगरा राजा ह र संह
को भारत समथक बताना और एक क मीरी पंिडत काक को सारी गड़बड़ का िज़ मेदार
बता देना अपनी सा दाियक राजनीित के िलए अिधक सहज था। आिख़र, उस दौर म
जा प रषद और बाद म जनसंघ को घाटी के अ दर पंिडत म आधार बनाने म कोई
सफलता नह िमली थी और ज मू उनका गढ़ था। यहाँ एक मानीखेज़ त य यह है क जब
शेख़ ने क़बायली हमले के बाद काक को िगर तार कया तो ीनगर बार के क मीरी
पंिडत वक ल ने उनका के स लेने से भी मना कर दया और अ ततः उ ह एम.एल. क़ु रै शी
का सहारा लेना पड़ा।11
ब त बाद म 1984 म लैरी कॉिल स और डोमिनक लैिपयर को दये गए एक
सा ा कार म माउं टबेटन ने वीकार कया क उ ह ने ह र संह से कहा था क वह चाहते
ह क क मीर का पा क तान म िवलय हो य क वहाँ क ब सं य आबादी मुसलमान थी
ले कन ह र संह ने कहा क वह कसी क़ मत पर पा क तान से िवलय नह करगे ले कन
वह भारत से भी नह िमलना चाहते थे य क उ ह लगता था क शायद जनता इसे
वीकार न करे । माउं टबेटन उसी सा ा कार म बताते ह क ‘म ईमानदारी से क ग
ँ ा कम
चाहता था क क मीर का पा क तान से िवलय हो ले कन रे डि लफ़ ने क मीर का िवलय
भारत से स भव कराके हम बड़ी मुसीबत म डाल दया।12
असल म भौगोिलक िलहाज़ से भी देख तो क मीर के दो मुख स पक माग थे—वाया
लाहौर, रावल पंडी और मुरी से होकर मुज़ फ़राबाद तथा ीनगर और िसयालकोट, ज मू
तथा बिनहाल दर से होकर ीनगर। एक तीसरा रा ता गु दासपुर से था जो बेहद टू टा-
फू टा था। लाहौर और िसयालकोट का पा क तान म जाना तय था। ऐसे म बस गु दासपुर
से जानेवाला रा ता ही बचता था। जनसं या के िलहाज़ से गु दासपुर पर भी पा क तान
का हक़ बन सकता था। ले कन अ ततः रावी के सहारे गु दासपुर को दो िह स म कु छ इस
तरह बाँटा गया क क मीर से स पक का माग भारत म रह गया।13 वैसे, अं ेज़ी अफ़सर
और दूसरे मुख लोग के क मीर के पा क तान म िवलय के समथन क यह कोई अके ली
घटना नह थी। ओ र जंस ऑफ़ अ िड यूट : क मीर, 1947 म ेमशंकर झा बताते ह क
ज मू और क मीर के टेट फोसज़ के मुख मेजर जनरल काॅट ने िनजी प से महाराजा
पर दबाव बनाने क कोिशश क थी क वह प क तान के साथ िवलय कर ल।14 उस समय
के सबसे भावी अं ेज़ी अख़बार द टे समैन के स पादक इयान टीफस ने क़बायली
हमले के चलते महाराजा के िवलय-प पर ह ता र के तुर त बाद, भारतीय सेना के
क मीर म वेश का िवरोध करते ए, 28 अ टू बर, 1947 को िलखे अपने बेहद मह वपूण
स पादक य ‘ख़तरनाक चाल’ म कहा : ‘इस अ वाभािवक उलझन का ता कक िन कष तो
यह होना चािहए था क जूनागढ़ के शासक को और उिचत समय म हैदराबाद के शासक
को भारतीय संघ म शािमल होने के िलए मन बनाना चािहए था और क मीर को
पा क तान म शािमल होने के िलए,15 तो िगलिगट-बाि ट तान पर पा क तान का झंडा
उस समय िगलिगट काउट के मुख और इस प म महाराजा के वेतनभोगी मेजर ाउन
ने ही फहरवाया था। उसक भूिमका का मह व हम इसी त य से समझ सकते ह क
पा क तान ने उ ह मरणोपरांत ‘िसतारा-ए-पा क तान’ का स मान दया।16 इ लामाबाद
के ‘नेशनल इं ि ट ूट ऑफ़ िह टाॅ रकल एंड क चरल रसच’ के ोफ़े सर एमे रटस डॉ.
अहमद हसन दानी बताते ह क ज़ ं ा के मीर सिहत क मीरी सेना के अिधकतर
अिधका रय और भावी लोग के पा क तान के प म होने के बावजूद ‘िगलिगट का
भिव य मेजर िविलयम ाउन के हाथ म ही था।’17 अमानु ला ख़ान का मानना है क
ाउन का यह समथन उनक कसी िनजी पस दगी का प रणाम नह था बि क बड़े
ि टश ष ं का िह सा था। ि गेिडयर घंसारा संह के हवाले से वह बताते ह क
ीनगर म महाराजा से िमलने आए ज़ ं ा के मीर, िच ाल के राजा और िगलिगट
बाि ट तान के दीगर इलाक़ के मुख क एक बैठक सरदार इ ािहम से ई थी।
अमानु ला ख़ान पा क तानी कनल िमज़ा हसन ख़ान के हवाले से यह भी बताते ह क यह
बैठक ि टश अिधका रय ने कराई थी। िगलिगट-बाि ट तान के इस पूरे घटना म म
उ र-पि म सीमा ांत के ि टश गवनर सीधी िच ले रहे थे। उनका यह कहना है क
पा क तान से िवलय का फ़ै सला असल म भारत से उसके िवलय के काफ़ पहले ही ले
िलया गया था।18
ले कन आ यजनक है सरदार पटेल क क मीर को लेकर कम-से-कम आरि भक दौर
म अिन छा। एम.जे. अकबर ने माउं टबेटन के हवाले से ‘सड़े सेब ’ का एक क़ सा सुनाया
है िजसम वह माउं टबेटन से कहते ह क मुझे सभी 565 (उस समय भारत म रजवाड़ क
सं या) सेब चािहए ले कन माउं टबेटन के यह कहने पर क अगर म कु छ वापस लेना चा ँ
तो, वह कहते ह क हम 560 से भी काम चला लगे। क मीर इ ह 5 ‘सेब ’ म से था।
शायद इसीिलए 1947 के बाद जवाहरलाल ारा बार-बार यह यान दलाये जाने पर क
पा क तान क मीर पर क़ ज़ा करने के िलए कोई चाल चल सकता है, पटेल ने कोई तव ो
नह दया। इस स दभ म उनके सिचव वी.पी. मेनन पया इशारा करते ह :
पा क तान ने एक टड ि टल समझौता कया। ले कन हम इसके भाव को समझने के िलए व त
चाहते थे। हमने रा य को उसके हाल पर छोड़ दया। हमने महाराजा से िवलय के िलए नह कहा
जब क उस समय (िवभाजन के बाद) रे डि लफ़ अवाड के बाद रा य सड़क माग से िह दु तान से जुड़
गया था। जनसं या के संघटन के चलते वहाँ क अपनी िविश सम याएँ थ । यही नह , हम पहले
ही काफ़ कु छ िमल चुका था और अगर सच क ँ तो मेरे पास क मीर के बारे म सोचने का व त ही
नह था।19
यहाँ तक क जब महाराजा ने क़बायली हमले के बाद िवलय-प का ताव भेजा तो
भी पटेल का कहना था क ‘हम क मीर के मामले म नह उलझना चािहए। पहले ही हमारे
पास काफ़ रा य ह।’20 उस दौर म माउं टबेटन के सहयोगी रहे एलेन कै पबेल ने अपनी
कताब िमशन िवथ माउं टबेटन म िलखा है क ‘सरदार व लभ भाई पटेल के नेतृ व म
रा य से स बि धत मं ालय ने अपनी सीमा से बाहर जाकर ऐसी कोई कायवाही नह क
िजससे यह लगे क क मीर को भारत से जोड़ने के िलए कोई दबाव बनाया जा रहा है और
पा क तान को यह प स देश दया गया क अगर क मीर उसके साथ जाता है तो भारत
को कतई बुरा नह लगेगा।21 िवड बना ही है क आज क मीर को लेकर नेह को बार-
बार कठघरे म खड़ा कया जाता है और कहा जाता है क अगर पटेल क चलती तो क मीर
म कोई सम या नह होती, ले कन अगर इस िब दु पर पटेल क चलती तो शायद क मीर
कभी भारत का िह सा ही नह होता।
यहाँ ककर हम क मीर म नेशनल कॉ स सिहत अ य स य राजनीितक ताक़त के
ख़ को भी देख लेते ह। शेख़ अ दु ला इस बात को लेकर ब त प थे क बड़ी ताक़त से
िघरे एक छोटे-से देश के िलए अपनी आज़ादी बरक़रार रख पाना लगभग अस भव था। यह
तभी स भव था जब दोन ताक़त एक वतं क मीर के िलए सहमत ह और उसक
ि थरता क गारं टी द। यही नह , भारत और पा क तान के साथ िवलय का सवाल उनके
िलए सा दाियक सवाल नह था। उनक प मा यता थी क मुि लम लीग पर हमेशा
ही साम ती ताक़त का भु व रहेगा। ऐसे म ‘नया क मीर’ का दशन पा क तान के साथ
िमलकर कभी फलीभूत नह हो सकता था जब क एक से यूलर और लोकतांि क भारत म
इसे लागू करना स भव था।22 वह , भारतीय जनसंघ के पहले अवतार त कालीन आल
ज मू एंड क मीर रा य िह दू सभा ने मई, 1947 म महाराजा के ित अपनी िन ा दुहराते
ए एक ताव म कहा : ‘हम पूरी तरह महाराजा के साथ ह। वह िवलय के मु े पर जो
कर रहे ह या करगे, हम पूरी तरह उसके समथन म ह।’ इसी महीने म आल ज मू एंड
क मीर मुि लम कॉ स के कायकारी अ य चौधरी हमीदु ला ख़ान ने भी ऐसा ही ख़
अपनाते ए कहा क ‘महामिहम को तुर त क मीर को आज़ाद घोिषत कर देना चािहए
और रा य का संिवधान बनाने के िलए एक नई संिवधान सभा का गठन करना चािहए।’
उ ह ने एक आज़ाद और लोकतांि क क मीर के पहले संवैधािनक मुख के प म
महाराजा को मुि लम समुदाय के पूण सहयोग और समथन का आ ासन देते ए कहा क
अगर पा क तान सरकार कोई आ मण करती है तो रा य के मुसलमान पा क तान के
िख़लाफ़ हिथयार लेकर खड़े ह गे और अगर ज़ रत पड़ी तो भारत क मदद भी ली
जाएगी।23 इस बयान से साफ़ लगता है क पा क तान के आ मण क स भावना हवा
म थी। साथ ही यह भी प है क नेशनल कॉ स के अलावा उस समय तक क मीरी
राजनीित का कोई भी िह सा भारत म िवलय के िलए उ सािहत नह था। उस समय तक
तो मुि लम कॉ स भी पा क तान के साथ िवलय को लेकर कतई उ सािहत नह थी।
बलराज पुरी बताते ह क उस दौर म भारत का समथन करनेवाल को, िजनम वह ख़द
शािमल थे, िह दू क रपंथी धड़ा िह दू-िवरोधी और ग़ ार कहकर बुलाता था। भारत से
िवलय और शेख़ अ दु ला क रहाई क माँग करनेवाले मु कराज सराफ़ ारा स पा दत
अख़ बार रणबीर पर जून के महीने म पाब दी लगा दी गई।24 उस दौर म ज मू
िव िव ालय छा संघ के अ य रहे वेद भसीन बताते ह क 15 अग त के बाद ज मू म
महाराजा समथक जा-सभा और आर. एस. एस. ने ितरं गा नह बि क डोगरा राज का
झंडा फहराया था। बैनर लगाये गए थे िजन पर िलखा था : महाराजा ह र संह के अधीन
वतं -सं भु ज मू और क मीर, ल ाख, बाि ट तान देश। ख़ास तौर पर पंिडत ेमनाथ
डोगरा के नेतृ ववाली जा-सभा वहाँ इस अिभयान म स य थी। ज़ािहर तौर पर यह सब
महाराजा और उनके त कालीन धानमं ी काक के इशारे पर हो रहा था जो भारत के
साथ जुड़ना नह चाहते थे।25
िच लेखा ज़ शी सिहत कई लोग न के वल ‘क मीर छोड़ो’ आ दोलन को असफल
बताते ह बि क उनका दावा है क उस समय शेख़ क लोकि यता ब त कम हो गई थी।
मुि लम लीग भी लगातार यह दावा कर रही थी। ले कन वा तिवकता लाहौर से
िनकलनेवाले मुख अं ेज़ी अख़बार द डॉन क 30 अ टू बर, 1946 को अिभ इस कुं ठा
से ज़ािहर होती है—शेख़ अ दु ला ने जनता पर अपने भाव का ग़लत इ तेमाल कया।26
नेह शेख़ क इसी लोकि यता के भरोसे क मीर का भारत म िवलय चाहते थे।
ज़ािहर है क इस अिनि तता के साथ ह र संह ब त ल बे समय तक नह चल सकते
थे। चीज़ ब त तेज़ी से बदल रही थ और ऐसे म दोन देश से टडि टल समझौते करके
और शेख़ तथा नेशनल कॉ स के अ य नेता को जेल म रखकर क मीर को आज़ाद रखने
क काक क कोिशश बेहद नाकाफ़ थी। काक जुलाई म िज ा से भी िमले थे और िज ा ने
कहा था क अगर क मीर पा क तान म तुर त िवलय करता है तो उसे काफ़ फ़ायदा
होगा। ले कन काक के इनकार करने पर िज ा ने आ त कया था क जब तक क मीर
िह दु तान म िवलय नह करता, उ ह कोई सम या नह है।27
काक एक और मज़ेदार क़ सा सुनाते ह। महाराजा उन दन एक वामी संत देव के
भाव म थे। करण संह भी अपनी आ मकथा म इसका िज़ करते ह। वतं राजा के प
म ज मू और क मीर पर राज करने के उनके दवा वपन का एक और आधार था—राजगु
संतदेव क भिव यवाणी! काँगड़ा महाराजा क ससुराल थी और वहाँ के डोगरा राजपूत
और रानी के भाई ठाकु र निच त च द पर संतदेव ने अपना पूरा भाव जमा िलया था।
उसने भिव यवाणी क थी क ह र संह पूरे ज मू और क मीर के च वत स ाट बनगे28
तो महाराजा एक वतं डोग र तान क योजना बना रहे थे िजसम ज मू और क मीर के
साथ-साथ काँगड़ा और िहमाचल के कु छ और इलाक़े शािमल होने थे। काक ने इस योजना
म िच नह दखाई तो वह महाराजा क नज़र से उतर गए।29 हालाँ क काक के इन
नो स पर पूरी तरह भरोसा करना मुि कल है ले कन 1 अग त, 1947 को गांधी जी क
क मीर-या ा और शेख़ के खुले समथन के बाद शायद ह र संह क समझ म आ गया था
क फ़ै सले ज दी लेने पड़गे, तो बिल चढ़ी धानमं ी काक क । काक बताते ह क उ ह ही
नह , पूरे शासन को हटा दया गया। असल म शेख़ अ दु ला क रहाई म हो रही देरी
और क मीर क अिनि तता को देखकर जवाहरलाल नेह ख़द क मीर जाना चाहते थे।
ले कन हालात क नाज़क देखते ए माउं टबेटन नह चाहते थे क वह क मीर जाएँ और
कोई नया तनाव पैदा हो। महाराजा भी नेह क या ा को लेकर सशं कत थे। ऐसे म
माउं टबेटन के आ ह पर महा मा गांधी ने क मीर जाने का िनणय िलया।
काक को हटाने के बाद पहले महाराजा के र तेदार और राज व मं ी रहे 75 वष य
मेजर जनरल जनक संह कटोच को सेवािनवृि से वापस बुलाकर और फर तीन महीन
के भीतर ही सीमा-िनधारण के समय भारत के ितिनिध रहे पूव पंजाब के उ यायालय
के यायाधीश मेहरच द महाजन को धानमं ी िनयु कया गया। यह आम मा यता है
क महाजन के नाम का सुझाव भारत सरकार का था। यही नह , उस दौर म भारत के साथ
स पक बेहतर बनाने के िलए सड़क, टेली ाफ़ तथा रे ल माग को बेहतर बनाने के िलए
काम कया गया। िसत बर, 1947 के अ त म ज मू और क मीर क रा य सेना के मुख
काॅट के सेवािनवृ होने पर पटेल ने त कालीन र ा मं ी बलदेव संह से यह अनुशंसा क
क उसक जगह लेने के िलए भारतीय सेना के लेि टनट कनल क मीर संह कटोच को
भेजा जाए। प तौर पर यह िनयुि भारत के अपने िहत म भी थी और इसका वीकार
महाराजा क ओर से भारत क ओर बढ़ा आ क़दम था। इन क़दम से शेख़ अ दु ला से
िम ता के कारण कां ेस को अपना श ु समझनेवाले महाराजा के िलए यह प संकेत था
क शेख़ को क मीर क राजनीित म उिचत थान देकर भारत के साथ िवलय क दशा म
उनके िहत का भी पूरा यान रखा जाएगा।30 गांधी क या ा का मह व इस त य क
वजह से भी बढ़ जाता है क उसी दौरान िज ा भी लगातार क मीर आने क कोिशश कर
रहे थे। उ ह ने महाराजा को कई स देशे िभजवाये िजनम वा य-लाभ के कारण से
ीनगर आने क बात थी। ले कन महाराजा ने बड़ी िवन ता से यह कहते ए मना कर
दया क वह अभी इस ि थित म नह ह क एक मह वपूण पड़ोसी देश के रा य- मुख के
वागत के िलए आव यक व थाएँ कर सक।31
ज़ािहर है, ऐसे माहौल म काक ासंिगक नह रह गए थे। क़बीलाई हमले के बाद जब
ह र संह ने भारत म िवलय का फ़ै सला िलया और शासन को शेख़ अ दु ला के िज़ मे
छोड़ दया तो शेख़ ने काक को पा क तान समथक घोिषत कर उ ह के वल िगर तार ही
नह कया बि क उसके पहले मूँज क रि सय से बाँधकर ीनगर क गिलय म घुमाया
गया। 1983 म अनाम मौत मरने तक क मीर म चचा से बाहर रहे काक का िज़ अचानक
इधर फर से शु हो गया है। शेख़ के खलनायक बनने के साथ उ ह एक ऐसे क मीरी
पंिडत क तरह याद कये जाने क कोिशश ई है िजसने उस दौर म पा क तान का
समथन कया था,32 वह दूसरी तरफ़ आ यजनक लगता है क डोगरा राज के इस
इकलौते क मीरी-भाषी पंिडत धानमं ी को क मीरी पंिडत क कौसा जैसी वेबसाइट
पर नायक म शािमल नह कया जाता!

नये िनज़ाम म पंिडत और मुसलमान


िवलय के बाद के क मीरी पंिडत के िलए हालात नये थे और िबलकु ल अलग। एक तरफ़
उस डोगरा शासन का पतन हो चुका था िजससे वह धम के आधार पर ख़द को जोड़ पाते
थे और शेख़ अ दु ला के प म कोई साढ़े तीन सौ साल बाद क मीरी बोलनेवाला
मुसलमान क मीर क ग ी पर था तो दूसरी तरफ़ वह एक नये बने देश के ब सं यक
समाज के साथ ख़द को जोड़ सकते थे िजसका मुिखया एक क मीरी पंिडत था यानी एक
तरफ़ वे अपने रा य म अ पसं यक थे तो दूसरी तरफ़ एक ऐसे देश के नाग रक थे िजसके
ब सं यक का धम उनका भी धम था। भारत के इकलौते मुि लम-ब ल रा य और वह भी
पा क तान के सीमावत होने के कारण वहाँ के मुसलमान भी एक िविश ि थित म थे
और मुसलमान और पंिडत क इस िविश ता का असर उनके आपसी स ब ध तथा
भारत के साथ उनके भावी स ब ध पर पड़ना ही था। यही नह , डोगरा शासन के पतन
और ज मू और क मीर म एक क मीरी के स ा- मुख बनने के साथ ही ज मू तथा क मीर
घाटी के र त म भी बदलाव अव य भावी था। आिख़र क मीर को ज मू से जोड़नेवाली
इकलौती कड़ी डोगरा शासन था और अब तक ज मू का क मीर पर जो आिधप य था,
उसके समीकरण पलट चुके थे। क मी रय के िलए यह सैकड़ वष क ग़लामी से मुि
थी33 * तो ज मू वाल के िलए यह क मीर पर ज मू के डोगरा राज क समाि । वैसे तो
अब तक ज मू भी मुि लम ब ल इलाक़ा था ले कन िवभाजन के दौर म िजस तरह
आर.एस.एस. और ज मू म स य दि णपंथी ताक़त ने चार लाख के क़रीब मुसलमान
को ज मू छोड़ने पर मजबूर कया (इनम से आधे से अिधक मार दये गए),34 उसने ज मू
क डेमो ेफ बदल दी और पंजाब से आए शरणा थय के अित र सहयोग से ज मू धीरे -
धीरे िह दू क रपंथ के गढ़ म त दील हो गया। क मीर और ज मू के बीच हालात और
माहौल का अ तर देखने के िलए पी. एल.डी. बमज़ाई ारा व णत एक घटना का िज़
काफ़ होगा :
क़बायली हमलावर के अ याचार से पीिड़त होकर उनके क़ ज़े वाले इलाक़े से ब त सारे िसख और
िह दू घाटी म आ गए थे। बेघर और भूखे ये लोग ीनगर के िलए ख़तरनाक हो सकते थे। उ ह
अनंतनाग के कै प म रखा गया था। हालाँ क वहाँ भी कु छ अि य घटनाएँ तो नेशनल कॉ स के
इमरजसी शासन ने उ ह ज मू भेजने का इं तज़ाम कया। धन न होने से कसी मोटर का इं तज़ाम
अस भव था। अ ततः इमरजसी सरकार के कायकता के कहने पर कु छ मुि लम ताँगावाले वाले
इस जोिखम भरी या ा के िलए तैयार हो गए, जो सा दाियक दंग से त ज मू और आसपास के
इलाक़ से भली भाँित प रिचत थे। उ ह ने अपने याि य को सुरि त उनके गंत पर प च ँ ा दया
ले कन अफ़सोस, वापसी म सभी ताँगेवाल का क़ ल कर दया गया। 35

इन नये हालात म ज मू जहाँ कसी क मीरी मुसलमान से शािसत होने क जगह


ज दी से ज दी िह दू-ब ल भारत के साथ पूरी तरह जुड़ जाना चाहता था, वह शेख़
अ दु ला के नेतृ व म क मीर अपनी िविश पहचान को बचाए रखने के िलए वाय ता
क माँग कर रहा था। जो अनु छेद 370 क मी रय के िलए अपने वािभमान क तीक
बनी, उसका ज मू से पुरज़ोर िवरोध आ और यह या तथा इसका असर अब भी का
नह है।
क़बीलाई आ मण क आड़ म पा क तान का क मीर पर हमला* इन नये हालात क
पहली अि परी ा थी।
इस हमले के मुति लक दो त य का िज़ कर लेना बेहतर होगा। पहला तो जैसा क
क़बीलाई हमले क ख़बर िमलने पर उस समय पा क तान टाइ स के स पादक और
सु िस गितशील शायर फ़ै ज़ अहमद फ़ै ज़ ने िलखा : ‘हम देख सकते थे क सब खो दया
गया है...। यहाँ क मीर के पा क तान म िवलय क सारी स भावनाएँ ख़ म हो ग ।’36
ह र संह क सेना इस आ मण का मुक़ाबला करने म स म नह थी और िबना िवलय के
भारतीय मदद स भव नह थी तो आनन-फानन म िवलय-प पर ह ता र ए, शेख़ को
रहा कया गया और भारतीय सेना के आने तक नेशनल कॉ स क िमिलिशया ने
क़बायिलय का मुक़ाबला कया और अ ततः क मीर का एक िह सा तो पा क तान के
पास रह गया ले कन घाटी भारत के िह से म आई। यु िवराम के बाद 31 दस बर, 1948
को यह ‘सीज़फ़ायर लाइन बनी’ और फर िशमला-समझौते के बाद इसे ‘लाइन ऑफ़
कं ोल’ या ‘िनयं ण रे खा’ कहा गया। दूसरा मह वपूण त य था डोगरा सा ा य क स ा
क औपचा रक िवदाई। मेनन क सलाह पर 26 अ टू बर को महाराजा ह र संह ीनगर
से ज मू आ गए।* अपने साथ वह 48 िमिलटरी क म अपने सारे क़ मती सामान ले आए
िजसम हीरे -जवाहरात से लेकर प टं स और कालीन-गलीचे सब शािमल थे। यही नह , उस
समय जब क़बायली हमले का सामना करने के िलए गािड़य क लगातार ज़ रत थी, वह
अपने साथ क मीर का पे ोल का सारा कोटा लेते आए थे।37 इस तरह 1846 म गुलाब
संह के ज मू से ीनगर जाने के साथ आ डोगरा-वंश का सफ़र इस वापसी के साथ अपने
अि तम पड़ाव पर प च ँ गया। शायद उ ह एहसास था क अब लौटकर ीनगर म शासक
क तरह आना नह होगा इसिलए वह अपने साथ प रवार, र तेदार, धन-स पि और
क़ मती साज़-ओ-सामान लेकर चले थे। वह फर कभी लौटकर ीनगर नह गए और जब
20 जून, 1949 को उ ह स ा से औपचा रक प से बेदख़ल कर दया गया तो वह ब बई
चले गए जहाँ उनके ढेर यार-दो त और पस दीदा रे सकोस था। ीनगर छोड़ने से पहले
महाराजा ने एक अ त रम सरकार बनाकर शेख़ अ दु ला को उसक कमान स प दी थी।38
हालाँ क महाजन अब भी क मीर के धानमं ी थे ले कन शेख़ अ दु ला को शासन का
महािनदेशक बनाया गया और इस तरह शासन क पूरी िज़ मेदारी अब उन पर ही थी।39
इस व फ़े म एक और बड़ी घटना घट चुक थी। क मीर को िह दू-मुि लम एकता क
योगशाला क तरह देखनेवाले महा मा गांधी क 30 जनवरी, 1948 को द ली म िह दू
क रपंथी संगठन से जुड़े नाथूराम गोडसे ने ह या कर दी थी। उनके जाने के बाद कां ेस के
भीतर से यूल र म का एक बड़ा आधार ढह गया था। अपनी जीवनी म शेख़ गांधी को
बार-बार याद करते ह। शेख़ का गांधी के ित भरोसा इतना बड़ा था क उ ह हमेशा यह
लगता रहा क गांधी जीिवत होते तो उ ह िगर तार नह कया जा सकता था। यह घटना
देश म िह दू क रपंथ के मज़बूत और आ ामक होते जाने का भी सबूत थी िजसने
काला तर म क मीर क सामािजक-राजनीितक प रि थितय को अपनी तरह से भािवत
भी कया।

नई शु आत : शेख़ अ दु ला और आगे
राजतं क समाि के बाद नई शु आत शानदार ई थी। बबर क़बायिलय के िख़लाफ़
क मीरी पूरी ताक़त और एकता के साथ खड़े ए थे। नेशनल कॉ स क िमिलिशया म
सभी धम के पु ष और मिहलाएँ शािमल ई थ , संघष कया था और बिलदान दये थे।
19 वष य नेशनल कॉ स कायकता मक़बूल शेरवानी क कहानी तो बेहद िस है। उस
समय क मीर म उपि थत िव िस फ़ोटो ाफ़र मागरे ट बक हाइट ने अपने सं मरण म
इसे बेहद संजीदगी से दज कया है :
बारामूला म क़ बे के िनवािसय ने मुझे एक युवा दुकानदार के बारे म बताया िजसने धा मक
सिह णुता के अपने िव ास के िलए क़ु बानी दी थी। उसक शहादत लगभग काॅ वट क दीवार के
साये म ई और ालु क मी रय क नज़र म वह तेज़ी से संत का दजा हािसल कर रहे थे।
मीर मक़बूल शेरवानी लोकतांि क आ दोलन म शेख़ अ दु ला के साथी रहे थे और अ दु ला क
तरह उ ह ने भी जनता के अिधकार के संघष के िलए िह दू-मुि लम एकता क ज़ रत पर बल
दया था। क़ बे के लोग ने मुझे जो जानकारी दी, उसके अनुसार वह िनि त प से रॉिबन ड जैसे
होने चािहए िजसने कर क ऊँची दर न अदा कर पानेवाले कसान क लड़ाई लड़ी, कसी ग़रीब
को पीटती पुिलस से िभड़ गए और उनके शोषण के िख़लाफ़ जनता के संघष संग ठत कये।
जब हमलावर ने क मीर पर हमला कया और वहाँ के लोग को आतं कत कर दया तो
शेरवानी ने, िजसे घाटी के हर गली-कू चे के बारे म पता था, परदे के पीछे काम करना शु कया और
भारतीय सेना तथा नेशनल कॉ स क िमिलिशया क मदद का भरोसा दलाकर गाँव के लोग का
मनोबल बढ़ाते ए उ ह धम से ऊपर उठकर एकताब तरीक़े से ितकार करने के िलए े रत
कया। तीन बार उसने चतुराई से फै लाई गई अफ़वाह के सहारे लोभन देकर भारतीय सेना के
हाथ पड़वा दया ले कन चौथी बार वह िवफल ए और पकड़े गए। क़बायली उ ह क़ बे के चौराहे
पर राइफल क बट से पीटते ए एक सेब क दुकान के अहाते म ले गए। लोग के बीच शेरवानी क
लोकि यता से प रिचत हमलावर ने उ ह सावजिनक प से यह कहने के िलए कहा क पा क तान
ही मुसलमान के िलए सव े िवक प है। जब उ ह ने ऐसा करने से मना कर दया तो उ ह रि सय
से मारा गया। उनके हाथ दोन तरफ़ ॉस क तरह फै ले थे।
क़बायिलय ने इसके बाद जो कया, वह आ यजनक चीज़ थी। म नह जानती क इन बबर
ख़ानाबदोश ने ऐसी चीज़ कै से सोच ली! स भव है, उ ह यह ठीक ऊपर क पहाड़ी पर ि थत सट
जोसेफ़ के चैपल म लगी ईसामसीह क ितमा को देखकर सूझा हो। उ ह ने शेरवानी के हाथ के पंज
पर क ल ठ क द और उनके माथे पर टन के एक टु कड़े पर यह िलखकर िचपका दया क ‘एक
ग़ ार क सज़ा मौत है’।
एक बार फर शेरवानी चीख़े : ‘िह दू-मुि लम इि हाद िज़ दाबाद’ और क़बायिलय ने उनक
देह म चौदह गोिलयाँ उतार द ।40
शेरवानी क मीर म एक नायक क तरह िति त ए। भारतीय सेना हर साल उनक
वीरता को याद करती है। उनके नाम से बारामूला म एक मेमो रयल हॉल बनवाया गया
और फ स िडिवजन ने उन पर एक वृ िच भी बनाया है। मु कराज आन द ने उन पर
आधा रत एक उप यास िलखा है—‘डेथ ऑफ़ अ हीरो’, जो 1955 म कािशत आ। ऐसा
ही एक क़ सा बारामूला के मा टर अ दुल अज़ीज़ का है। जब क़बायिलय ने ग़ैर-मुि लम
औरत का बला कार करने क कोिशश क तो अ दुल अज़ीज़ ने क़ु रान हाथ म लेकर क़सम
खाई क उनके जीते-जी कोई उन औरत को छू भी नह पाएगा। ह यार ने अ ततः उ ह
भी मार डाला।41 क़बायिलय के इस आ मण म 274 िह दू, 343 मुसलमान और 7 ईसाई
मारे गए थे।42 बलराज मधोक इस हमले म डोगरा सैिनक के गुणगान के अलावा लगातार
यह बताते ह क क़बायिलय के हाथ एक मक़बूल शेरवानी के अलावा िसफ़ िह दू मारे
गए थे!43 सा दाियक अंध व के िशकार होकर वह न के वल अ दुल अज़ीज़ बि क उन
सैकड़ मुसलमान और िह दु को भूल जाते ह जो इस लड़ाई म क धे से क धा िमलाकर
लड़े थे। क मीर क पहली मिहला आई.ए.एस. सुधा कौल ने अपने सं मरण म अपने चाचा
क भागीदारी और पड़ोस के एक युवा पंिडत क इस संघष म शहादत का िज़ कया है।44
इस आ दोलन म मिहला क भी अलग से एक ि गेड बनी थी िजसम डा बेदी* सिहत
वामपंथ से जुड़ी ढेर मिहला के साथ सामा य मिहलाएँ भी जुड़ी थ ।45 इसे याद करते
ए हाइटहेड ने वाज़ा अहमद अ बास का कहा याद कया है : ‘यह वह व त था जब
लेखक अपनी कताब को जी रहे थे, और किव अपनी किवता के िलए मरने को तैयार
थे।’46
िजस दौर म पूरे भारत म िह दू-मुि लम दंगे हो रहे थे, उस समय क मीर म न तो कसी
पंिडत को अपनी ज़मीन छोड़नी पड़ी, न ही कसी तरह का सा दाियक तनाव झेलना
पड़ा। गांधी उन दन अपनी ाथना सभा म लगातार क मीर को एक उ मीद क
करण क तरह बता रहे थे।47 अपवाद ह गे ही, ले कन इस आरि भक दौर म क मी रय
म एक उ साह का माहौल था, ख़दमु तार होने का एहसास और भिव य से उ मीद। सुधा
कौल उस दौर का िज़ करते ए कहती ह :
...अब सब एक क मीरी मुि लम राजनीितक नेता के हाथ म था। हम शेख़ अ दु ला को ‘क मीर का
शेर’ कहते थे। वह शेर पा क तान क कोई परवाह न करते ए आज़ाद िह दु तान म शािमल आ।
स दय म पहली बार अब हमारे पास अपनी धरती का रा य- मुख था। ले कन शेख़ अ दु ला
िसफ़ इतने ही नह थे, वह एक लोकनायक थे िज ह ने भारतीय सेना को बुलाकर अपनी धरती को
क़बायिलय से बचाया था। थोड़े से उथल-पुथल भरे दन म हमने अ हंसक तौर से राजतं को
लोकतं से ित थािपत कर दया था। हमारे पास अपना लोकतांि क नेता था और अब हम
भारतीय गणतं का िह सा थे।48
ज़ािहर है, इसम ‘भारतीय गणतं का िह सा’ होना क मीरी पंिडत के िलए एक
अित र सुर ा और सुकून का मामला था। पा क तान से क मीर के िवलय क दशा म
उनके िलए उस दौर म पलायन ही एक रा ता हो सकता था, जैसा ज मू के मुसलमान या
फर मीरपुर के िह दु और िसख को करना पड़ा। िह दू बा य वाले भारतीय गणतं के
साथ वे अपनी धा मक पहचान के साथ जुड़ सकते थे, जुड़े भी ले कन उ ह ने अपनी
थानीय पहचान और िविश ता को भी बनाये रखा। शायद एक िविश इलाक़ाई सं कृ ित
वाले अ पसं यक समाज के िलए यह सबसे मुफ़ द ि थित हो सकती थी। यह एक िविश
ि थित थी जहाँ वह रा य के भीतर अ पसं यक थे ले कन देश के ब सं यक समुदाय का
िह सा थे। यह ि थित इसके अलावा िसफ़ पंजाब म थी जहाँ िह दू रा य के भीतर
अ पसं यक और देश के तर पर ब सं यक समुदाय के िह सा थे। हमने देखा क वहाँ भी
आगे चलकर अ सी के दशक म भयावह सम याएँ पैदा । इस ‘ थानीय पहचान और
िविश ता’ को बनाये रखना क मीरी मुसलमान के िलए भी उतना ही मह वपूण था
ले कन इस नये भारतीय गणतं क धा मक ब लता के म ेनज़र क मीर म ब सं यक
और देश म अ पसं यक क मीरी मुसलमान के िलए अपनी धा मक पहचान को लेकर एक
शक-सुबहा और भय वाभािवक था, ख़ास तौर से तब, जब अपने एकदम बग़ल ज मू म वे
िह दू सा दाियकता का भयानक खेल देख-सुन रहे थे। धा मक दंगे और सा दाियकता
नये नह थे ले कन बदली ई भौगोिलक-राजनीितक ि थितय म नये दि ण एिशया म
इनक गितक उ ह आसानी से भारतीय गणरा य के भीतर अपने भिव य के िलए
आशं कत कर सकती थी। इसीिलए पा क तान य कतना भी पराया हो ले कन धम एक
ऐसा कारक था जो क मीरी मुसलमान के िलए वह अजनिबयत पैदा नह करता था जो
क मीरी िह दू के मन म वाभािवक थी। इसका मतलब न िह दु तान से कोई नफ़रत थी,
न आजकल ज़ रत से यादा चिलत हो गया पद ‘देश ोह।’ यह उस दौर के राजनीितक
और सामािजक उथल-पुथल का सहज उ पाद थी जहाँ ‘िह दू’ भारत से और ‘मुसलमान’
पा क तान से जोड़ दया गया था और क मी रय के िलए तो लाहौर या रावल पंडी सहज
प से द ली या लखनऊ से अिधक प रिचत शहर थे। इस कशमकश और असमंजस को
मुि लम कॉ स के नेशनल कॉ स म बदलने के हामी और िह दू-मुि लम एकता के खर
समथक तथा क मीर के रा ीय किव माने जानेवाले महजूर क उस दौर क एक किवता म
देखा जा सकता है :
नेशनल कॉ स क दुकान से नमक ख़रीदने गया
कहा गया िह दु तान म शािमल हो जाओ
इसने मेरे पूरे वजूद को िहला दया
दल मेरा पा क तान के साथ है
िह दु तान पर क़ु बान मेरी ह मेरी जान
दल मेरा पा क तान के साथ है।* 49
इस किवता के िलए महजूर िगर तार भी ए थे ले कन इस कशमकश के बावजूद उस
दौर म कु ल िमलाकर क मीर के भीतर जो भाव बल था, उसे उसी दौर म िलखे महजूर के
इस शेर से समझा जा सकता है :
िह दू थामगे पतवार और मुसलमान च पू चलाएँगे
इस तरह साथ हम इस देश क नाव आगे ले जाएँग*े 50
असल म मुि -संघष के ल बे दौर म क मीर म तीन तरह के रा वाद िवकिसत ए :
पहला, ‘मुि लम रा वाद’ जो 1947 के दौर म कमज़ोर भले दख रहा हो ले कन उसक
जड़ गहरी थ । मुि लम कॉ स के नेशनल कॉ स म प रव तत होने के बावजूद
मीरवायज़ सिहत क मीर और ख़ास तौर पर ीनगर के जािमया मि जद के आसपास के
नये िवकिसत म यवग म इसका एक भाव था। मीरवायज़ तो क़बायली आ मण के पहले
ही उस इलाक़े म चले गए थे िजसे अब ‘पा क तान अिधकृ त क मीर’ कहा जाता है और
बाद म वहाँ के रा पित भी बने। उनके जाने के बाद उनके भतीजे को मीरवायज़ बनाया
गया। बाद के दौर म इस िवचारधारा का नेतृ व ‘जमा’त-ए-इ लामी, क मीर’ के हाथ म
रहा िजसने ख़द को पा क तान और भारत, दोन ही क जमा’त से अलग रखा और
क मीरी समाज म वही भूिमका िनभाई जो आर.एस.एस. ने उ र भारतीय या य कह,
भारतीय समाज म। दूसरा, ‘क मीरी रा वाद’ जो नेशनल कॉ स के इद-िगद िवकिसत
आ था और िजसने ‘क मी रयत’ नाम का एक नया पद िवकिसत कया, जो धा मक
पहचान के ऊपर इलाक़ाई पहचान को तरजीह देता था। अपनी कृ ित म वह काफ़ हद
तक कां ेस के समानांतर था जो समाजवाद के ित मोटा-मोटी झुकाव के बावजूद कसी
एक िवचार या धम के ित पूरी तरह से ितब होने क जगह ऐसे उदारवादी लोग का
एक ढीलाढाला ‘रा वादी’ संगठन था िजसम लगभग दि णपंथी से लेकर वामपंथी तक
शािमल थे ले कन िजसका नेतृ व ब सं यक धा मक समूह के हाथ म ही रहा। इन दो
रा वाद के साथ ‘िह दू रा वाद’ भी िवकिसत आ जो उस दौर म ब त साफ़ दखता तो
नह , ले कन ज मू म जा प रषद और जनसंघ के साथ ख़द को आब करता है और
रा ीय वयंसेवक संघ क िवचारधारा का पोषण करता है। यह रा वाद ख़द को ापक
अिखल भारतीय िह दू रा वाद के साथ धीरे -धीरे जोड़ता जाता है और न बे के दशक के
बाद पूरी तरह से ख़द को उसम समािहत कर देता है। हम देखगे क अपनी इलाक़ाई
पहचान और े ताबोध को िचि नत करने के िलए िजस ‘क मीरी पंिडत’ नाम को
हािसल कया गया था, उसे धीरे -धीरे ापक भारतीय पहचान म िमलाकर ‘ ा ण’ और
िह दू म त दील कया गया।
भारत से जुड़ने के बाद का क मीरी इितहास इ ह तीन के बीच क अ तः या का
इितहास है।

_______________
* 5 नव बर, 1951 को ज मू और क मीर िवधान सभा के पहले अिधवेशन म शेख़ अ दु ला का बयान।
* हालाँ क पा क तान लगातार इस हमले म अपना हाथ होने से इनकार करता रहा है ले कन अब इस बात के पया
सबूत ह क इस हमले म पा क तान क स ाधारी मुि लम लीग और सेना क भूिमका थी। उदाहरण के िलए बडवुड
िलखते ह : ‘कु छ भी हो, म कभी नह समझ पाया क इस सवाल (क़बायली आ मण म पा क तान क भूिमका) को
रह य बना देने म या बुि म ा है! पा क तान म मेरी अपनी जाँच से कु छ िन कष िनकलते ह। पहली बात यह क
कसी ि टश अफ़सर को इसक कोई जानकारी नह दी गई थी। असल म यह एक नीित बनाई गई थी क उनको अँधेरे
म रखा जाए ता क बाद म श मदगी न हो...। दूसरी यह क कु छ व र अिधकारी इस अिभ ाय को अ छी तरह जानते थे
और उ ह ने नज़रअंदाज़ कर दया...। अ त म यह क सीमांत देश के मु यमं ी ने, िजनका क मीर से पा रवा रक
स ब ध था, इसे अपना आशीवाद और अ ेय समथन दया था, िजसके िबना यह कायवाही स भव नह होती। ज़ािहर
तौर पर उनका मानना था क क़बायली हमला क मीर को पा क तान म िवलय करने पर मजबूर कर देगा।’ यही नह ,
पा क तानी सेना के लेि टनट जनरल गुल हसन ख़ान, जो उस समय पा क तानी सेना के कै टन और िज ा के ए.डी.सी.
रहे, 1993 म कािशत अपने सं मरण म िलखते ह : ‘क़ायदे आज़म ने अपनी सूझबूझ से 27 अ टू बर, 1947 को कराची
से लाहौर जाने का िनणय िलया। ज मू और क मीर से नज़दीक के अलावा लाहौर से वह धानमं ी िलयाक़त अली के
स पक म रह सकते थे जो उस समय र ा मं ी भी थे। पंजाब के रा यपाल सर िसस मंडे और धानमं ी के साथ एक
बैठक म क़ायदे आज़म ने िनयिमत सेना ारा क मीर पर क़ ज़े क अपनी योजना बताई थी’ और 1997 म िज ा पर
आयोिजत बी.बी.सी. के एक टेलीिवज़न काय म म शौक़त हयात ख़ान ने दावा कया क ‘क़बायिलय के हमले क
योजना को ख़द क़ायदे आज़म ने सं तुत कया था।’
* अ सर ह र संह के ीनगर से पलायन को लेकर ब त लानत-मलामत क जाती है। ले कन िव टो रया कोफ़ ड ने
महाराजा के एडीसी दीवान संह के हवाले से िलखा है क उ ह मेनन ने कहा : ‘ ीनगर म आपका रहना मूखतापूण
होगा। जब हमलावर इतने क़रीब ह, वे क़ ज़ा कर सकते ह और आपसे कोई भी बयान दलवा सकते ह,’ इसिलए राजा ने
ीनगर छोड़कर ज मू जाना तय कया ( पेज 54, क मीर इन काॅि ल ट)।
* इं लड म ज मी डा बेदी को ऑ सफ़ोड म पढ़ते ए एक भारतीय बी. पी. एल. बेदी से ेम आ और वामपंथ से
भािवत इस युगल ने भारतीय वाधीनता आ दोलन म िह सेदारी क । दोन लाहौर और क मीर म बेहद स य रहे
और शेख़ अ दु ला के क़रीबी। नेशनल कॉ स के ‘नया क मीर डो यूमट’ के िनमाण म ही नह बि क ‘क मीर छोड़ो’
आ दोलन म भी दोन क ब त मह वपूण भूिमका रही। एं यू हाइटहेड ने डा क बेहद रोचक और भावुक जीवनी
िलखी है—द लाइ स ऑफ़ डा।
* यहाँ उस दौर म क मीर क बदहाल अथ व था और ख़ास तौर पर नमक क कमी को भी समझा जा सकता है। नमक
राशन क दुकान पर िमलता था और उन दुकान का िनय ण नेशनल कॉ स के पास था।
* महजूर क दोन किवता का अं ेज़ी से अनुवाद मेरा
स दभ
1. देख, पेज 106, क मीर : अ िड यूटेड लेगेसी, एिलए टर लै ब, 1846-90, रॉ सफोड बु स, हटफोडशायर,
1991
2. देख, पेज 65, पा क तान ऑकु पाइड क मीर : द अनटो ड टोरी, स पादक : वीरे गु ा और आलोक बंसल,
इं टी यूट फ़ॉर िडफस टडीज़ एंड एनािलिसस, मानस काशन, द ली, 2016
3. https://www.boloji.com/articles/16343/author-of-independent-kashmir-rc-kak (आिख़री बार
14/09/2019 को देखा गया)
4. http://old.himalmag.com/component/content/article/66-forgotten-men-of-kashmir.html (आिख़री
बार 14/09/2019 को देखा गया)
5. देख, पेज 139, डम गल इन क मीर, एफ़.एम. हसनैन, रीमा पि ल शंग हाउस, 1988, द ली
6. देख, पेज 123, ज मू एंड क मीर : िडलेमा ऑफ़ ए सेशन, राधा राजन, वायस ऑफ़ इं िडया, दूसरा सं करण, नई
द ली, 2018
7. देख, पेज 45, पी.आई.डी. पा रमू, क मीर एंड शेर-ए-क मीर, अ रवो यूशन डीरे ड, िचनार पि लशस,
अहमदाबाद
8. देख, पेज 128, ज मू एंड क मीर : िडलेमा ऑफ़ ए सेशन, राधा राजन, वायस ऑफ़ इं िडया, दूसरा सं करण, नई
द ली, 2018
9. देख, पेज 46, टू नेशंस एंड क मीर, लाॅड टोफ़र बडवुड, रॉबट हेल िलिमटेड, ल दन, 1956
10. देख, पेज 42-43, बंग लंग इन क मीर, बलराज मधोक, िह द पॉके ट बु स, द ली, 1974
11. देख, पेज 39, इले शंस इन ज मू एंड क मीर, जी.एन. गौहर, मानस पि लके शंस, द ली, 2002
12. देख, पेज 37, माउं टबेटन एंड इं िडपडट इं िडया, लैरी कॉिल स और डोमिनक लैिपयर, िवकास पि ल शंग हाउस,
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अ याय-8

नया िनज़ाम पुरानी मुि कलात


देश, देश और क मीरी पंिडत
[1949-1982]
इस रा य का कोई मुसलमान चाहे वह स ा के बाहर हो या स ा म, अपराधी है। अगर िडफ़स ऑफ़
इं िडया क़ानून या दूसरे काले क़ानून म यहाँ का मुसलमान हज़ार म िगर तार हो या सैकड़
फाय रं ग म मार दये जाएँ तो इतने बड़े देश म कोई इस अ याचार के िख़लाफ़ आवाज़ नह उठाएगा
ले कन अगर एक हा कम कसी ग़ैर-मुि लम को नाराज़ भी कर दे तो भारत क पूरी िह दू जनता
उसके िख़लाफ़ खड़ी हो जाएगी।
—ग़लाम मोह मद सा दक़
1967 म परमे री हांडू मामले के बाद
अगर सरकार पंिडत के साथ स मानजनक वहार नह कर सकती तो इसे हमारे िव थापन के
िलए व था करनी चािहए...हम मर जाएँगे ले कन अपने पुरख क ज़मीन नह छोड़गे।
—माखन लाल हरकारा1
परमे री हांडू मामले पर बनी
क मीरी िह दू ए शन कमेटी के एक नेता

आज़ादी और डोगरा राज क िवदाई के साथ क मीर ने एक नये युग म वेश कया। एक
तरफ़ क मीर क ग ी पर चक सा ा य के अ त के तीन सदी से भी अिधक समय के बाद
कोई क मीरी बैठा था तो दूसरी तरफ़ अब क मीर औपचा रक प से और अपनी सहमित
से भारत का िह सा था। ज़ािहर है, इस िह सा होने म भी वह िविश था। अनु छेद 370
उसे िविश बनाती थी। यहाँ इस पर िव तार से बात करना िवषया तर होगा ले कन कम-
से-कम उस दौर म 370 को लेकर क मीर घाटी के भीतर पंिडत और मुसलमान , दोन म
ही पूरी सहमित दखाई देती है। 35-ए तो बीस के दशक म चले पंिडत के आ दोलन
‘क मीर क मी रय के िलए’ से हािसल कये गए ‘रा य उ रािधकार क़ानून’ का ही नया
प था िजसम क मीरी नौक रयाँ और ज़मीन क मी रय के िलए ही आरि त क गई थ ।
इ लामी िनज़ाम क माँग करनेवाली ‘मुि लम कॉ स’ के अिधकांश बड़े नेता पा क तान
अिधकृ त क मीर म चले गए थे और ‘िह दू-मुि लम इ ेहाद’ का नारा लगानेवाली नेशनल
कॉ स स ा म थी।
चालीस के दशक म बना ‘नया क मीर द तावेज़’* नये शासन के िलए पथ दशक था
और सबसे पहले ज़ोर दया गया ‘भूिम-सुधार’ पर। अपनी जीवनी म शेख़ अ दु ला िलखते
ह:
हमारे शोषण क सबसे प िनशानी देखी जा सकती है हमारे कसान के प म जो दन-रात खेत
म खटता है और जब अनाज पक जाता है तो जागीरदार आकर सारा अनाज ले जाता है और उसे
भूख मरने के िलए छोड़ जाता है। इसक वजह से यादातर कसान जाड़ म पहाड़ और मैदान म
चले जाते थे जहाँ मेहनत करके वे अपने िलए भोजन जुटा पाते थे। हालात को सुधारने के िलए हमने
भूिम-सुधार पर यान दया िजसक संक पना हमने अपने सां थािनक और आ थक संिवधान ‘नया
क मीर’ म क थी।2
बी.एन. जलाली ‘नया क मीर’ के बारे म कहते ह क यह ‘सोिवयत डॉ यूमट का
कॉबन कॉपी’ था3 ले कन क यूिन ट से शेख़ के र ते मज़ेदार थे। जी.एम. सा दक़, ब शी
ग़लाम मोह मद और एन. एन. रै ना वामपंथी राजनीित से के वल भािवत ही नह थे
बि क बेहद स य भी थे। सा दक़ तो ए.आई.एस.एफ़. के पटना स मलेन म िवशेष अितिथ
के प म भी बुलाए गए थे। 1936 म भारत म गितशील लेखक संगठन के गठन के बाद
क मीर म भी इसक इकाई ग ठत ई थी। इससे जुड़े एक मुख लेखक थे ेमनाथ
परदेसी।4 1942 म क मीर म क यूिन ट ने अपने सािह य के चार- सार के िलए एक
दुकान खोली थी और 1945 तक वहाँ पीपु स डेली क ढाई सौ से अिधक ितयाँ िबकती
थ । रै ना घाटी के भीतर क यूिन ट के नेता थे, ले कन सी.पी.आई. ने उ ह वहाँ अलग काम
करने क जगह नेशनल कॉ स के साथ काम करने के िलए कहा। शेख़, िजनका मु य
आधार कसान और बुनकर सिहत िन वग य क मीरी थे, क यूिन ट िवचारधारा के
आ थक प से सहज भािवत ए और इसीिलए ‘नया क मीर’ जैसा संिवधान उनके
अनुकूल था। ले कन शेख़ के िलए सीधे-सीधे उनसे र ता रखना मुि कल था। एक वजह तो
यही रही होगी क शेख़ क यूिन ट के नाि तकता के िवचार से सहमत नह हो सकते थे,
आिख़र क़ु रान क आयत उनके भाषण का एक ज़ री िह सा होती थ । इसके अलावा,
1942 के दौरान शेख़ ने क यूिन ट के ‘एंटी फ़ािस ट टू ड स ं ट’ का खुला समथन
इसिलए नह कया क उन दन कां ेस और सी.पी.आई. के र ते दो ताना नह थे और
शेख़ कां ेस को नाराज़ नह कर सकते थे।5
हालाँ क क मीर के क यूिन ट आ दोलन के मह वपूण करदार रहे पीर गयासु ीन
बताते ह क 1942 म लाहौर के क यूिन ट नेता फ़ज़ल इलाही क़ु बान क सदारत म ई
एक बैठक म, लेिनन क थीिसस के अनुसार, यह िनणय िलया गया था क अलग पाट
बनाने क जगह नेशनल कॉ स के सा ा यवाद िवरोधी आ दोलन से जुड़ा जाए।6
जलाली इसका एक और मज़ेदार कारण बताते ह। उ ह ने कभी अपनी आवाज़ ऊँची करके
नारा नह लगाया क हम क यूिन ट ह, हालाँ क सब जानते थे, यहाँ तक क शेख़ साहब
भी जानते थे ले कन हम शेख़ साहब को ग़लत जगह छेड़ना नह चाहते थे य क वह
कसी अ य समाना तर राजनीितक गितिविध को लेकर बेहद संवेदनशील थे।7 क मीर ने
शेख़ साहब क इस वृि क भी भारी क़ मत चुकाई है। गौहर संिवधान सभा के चुनाव
म नेशनल कॉ स ारा सभी 75 सीट ‘जीत’ लेने पर गौहर ट पणी करते ए कहते ह :
अगर भारतीय क यूिन ट पाट उ रा वाद से ऊपर उठकर इस मह वपूण ऐितहािसक मोड़ पर
क मीर के मनोिव ान का फ़ायदा उठाती और िव क यूिन ट आ दोलन के प म तथा कामगार
वग के िहत म खड़ी होती तो वह इस राजनीितक शू य को भर सकती थी। हालाँ क पाट का कोई
जनाधार नह था ले कन ठीक-ठाक कै डर था। उस समय शायद वह कोई सीट नह जीत पाती ले कन
एक शानदार भारत-समथक और जनप धर ताक़त क तरह उभर सकती थी।8
जब शेख़ ने क मीर का शासन सँभाला तो आ थक मोच पर संकट और बड़े थे। भूिम-
सुधार पर नज़र डालने से पहले थोड़ा उन संकट को देख लेना ज़ री होगा, िजनक
वजह से भूिम-सुधार ने क मीरी समाज पर यादा गहरा और ब आयामी असर डाला।
क़बायली हमल और उसके बाद चले यु ने क मीर म भारी तबाही मचा दी थी। 1950 म
जारी एक आिधका रक रपोट के अनुसार इसम 42,136 लोग बेघर हो गए थे, डेढ़ करोड़
से अिधक क स पि याँ न हो गई थ और 50 लाख के क़रीब जानवर का नुकसान आ
था। साथ ही, कोई 300 शै िणक सं थाएँ इस हमले से भािवत । यही नह ,
पा क तान से क मीर को जोड़नेवाली झेलम घाटी रोड क़बायिलय के हाथ म पड़ने और
उनके ारा सभी स पक माग तोड़ दये जाने से क मीर का िवदेश ापार लगभग ठप हो
गया।
1947-48 म िपछले 25 साल का सबसे भयानक जाड़ा पड़ा और उसने ि थितय को
और बदतर बना दया। इन सबके चलते पयटक ने क मीर का ख़ नह कया और पहले
से बदहाल अथ व था और बदहाल होती गई। िवदेशी माँग ठप होने से कारीगर के िलए
मुि कल पैदा हो गई तो आव यक साम ी क आपू त ब द होने से जनता को बड़ी
परे शािनय का सामना करना पड़ा9 िजसक एक बानगी िपछले अ याय के अ त म महजूर
क किवता म इं िगत ‘नमक क कमी’ के प म आपने देखी है। तनावपूण ि थितयाँ शु म
क मीर म िनवेश क राह म बाधा बन ,10 मामला संयु रा म प च ँ ने के बाद क मीर
लगातार िवदेशी िनगाह म रहा और पा क तान का परो - य ह त ेप भी लगातार
रहा िजसक वजह से भारत के के ीय नेतृ व के िलए क मीर हमेशा एक संवेदनशील
मसला बना रहा। इन सबने िमलकर क मीर म गवनस को लगातार मुि कल बनाया।
भूिम-सुधार और उनके भाव को इस रोशनी म भी देखा जाना ज़ री है।

भूिम-सुधार : दुधारी तलवार


स ा म आने के बाद शेख़ अ दु ला क सरकार ने एक झटके म मुआफ़ दार * और
मु र वार ** को िमलने वाली सुिवधाएँ समा कर द ।11 1950 म लाये गए ‘िबग लडेड
ए टे स अबोिलशन ए ट’ (ख़ा मा-ए-चकदारी) के तहत :
(1) भूिम क अिधकतम सीमा 182 कै नाल (22.75 हे टेयर) तय कर दी गई। इसम
बाग़ान , चरागाह , जलाऊ और न जोतने यो य बेकार भूिम को शािमल नह कया
गया।
(2) बँटाई पर खेती करनेवाले कसान को ज़मीन का मािलकाना हक़ दया गया।
(3) िजन कसान को ज़मीन उपल ध कराई गई, उनके िलए 160 कै नाल क सीमा
िनधा रत क गई िजसम पहले से मािलकाने क ज़मीन भी शािमल थी।
(4) मुआवज़े के सवाल पर पहले यह व था दी गई क रा य क िवधान सभा इसे बाद
म तय करे गी। िवधान सभा म फ़ै सला िलया गया क कसी तरह का मुआवज़ा नह
दया जाएगा। इस तरह ज मू और क मीर भारत का इकलौता रा य बन गया जहाँ
बड़े ज़म दार को ज़मीन के बदले कोई मुआवज़ा नह दया गया।
(5) पुंछ े के सभी ग़ैर-मौ सी का तकार को उनक ज़मीन का मािलकाना हक़ दे
दया गया।
(6) ऊधमपुर म िशकार के िलए आरि त क गई ज़मीन का आर ण समा कर दया
गया और कसान को उन ज़मीन पर खेती करने क अनुमित दी गई।
(7) िशकार के िनयम म बदलाव करके जंगल के आसपास के गाँव के कसान को उन
जंगली जानवर पर गोली चलाने के अिधकार दये गए जो उनक खेती को नुकसान
प चँ ाते थे और
(8) 13 अ ैल, 1947 के बाद ज़मीन के अ तरण के सभी आदेश और िड य को अमा य
घोिषत कर दया गया ता क इस क़ानून क मूल भावना से िखलवाड़ न हो सके ।
इसके अलावा 1953 म रा य सरकार ने मुआवज़ा क व था ख़ म कर दी और
कसान को अपना अित र अनाज अपनी इ छा से बेचने क आज़ादी दे दी।12 इसी के
साथ लगान क दर आधे से एक-ितहाई कर दी गई। ऋण माफ़ के िलए ऋण समाधान
यायालय बनाये गए और एक ही झटके म कु ल ऋण 80 ितशत घटाकर 2.4 िमिलयन से
1.2 िमिलयन पये कर दया गया।13
भूिम-सुधार के िलए शेख़ क ता इसी बात से समझी जा सकती है क इ ह लागू
करने से पहले उ ह ने िवधान सभा के गठन या चुनाव क ती ा भी नह क थी और यह
घोषणा लाल चौक क आम सभा म ई। घाटी क कसान-ब ल मुि लम जनता के िलए ये
क़दम ांितकारी प रवतन लानेवाला था। एक झटके म वे उन ज़मीन के मािलक बन गए
थे िजन पर वष से वह दूसर के िलए मेहनत करते आ रहे थे। इसने नये भारतीय रा य के
ित क मीरी कसान के मन म एक भरोसा भी पैदा कया। शेख़ को यह डर था क
पंजाबी जागीरदार के भाववाला पा क तान उनके उस ‘नये क मीर’ के सपने को कभी
पूरा नह करे गा िजसम जोतनेवाले को ज़मीन देने और एक बराबरी वाला समाज िन मत
करने का वाब देखा गया था।14 1947 के पहले भी शेख़ कई बार यह कह चुके थे क
पा क तान का िह सा होते ए भूिम-सुधार स भव नह ह गे, इस क़दम से उ ह ने इस
बात के दूसरे िह से को सही सािबत कया क भारत के साथ होते ए इस सपने को पूरा
कया जा सकता है। ेखर बताते ह क ‘क मी रय क ब सं या इन सुधार से
लाभाि वत ई है और उनम से कई ने, िजनसे लेखक ने सा ा कार कया, उ ह ने
पा क तान के ित, जहाँ ऐसा कोई भूिम-सुधार नह आ, अपना भय ज़ािहर कया क
उससे िमलने पर हाल म उ ह िमली ज़मीन जागीरदार को वापस दी जा सकती ह या
‘नया क मीर’ के और ावधान लागू करना अस भव हो जाएगा।15 भूिम-सुधार के भाव
पर ब त िव तार से जाने क जगह हम पचास के दशक म भारत म भूिम-सुधार का
अ ययन करने आए कृ िष अथशा ी डेिनयल थोनर के िन कष देखे जा सकते ह :
क मीर म भूिम-सुधार ने जागीर ख़ म कर द और सभी बड़े जागीरदार क ि थित कमज़ोर कर
दी। इसने ख़ास तौर पर उन ि य को लाभ प च ँ ाया जो गाँव म पहले से अपे ाकृ त अिधक
भावी और समृ थे। इसने छोटे बँटाईदार और भूिमहीन मज़दूर को सबसे कम लाभ प च ँ ाया जो
गाँव म सबसे बड़ी सं या म थे। जागीरदार को मुआवज़ा न देकर क मीर उस आ थक बोझ से बच
गया था जो भारत के अनेक रा य के िलए बेहद क ठन सािबत आ। क मीर म भूिम-सुधार के
सम भाव को समझने के िलए इसे वहाँ के गाँव के रोज़-ब-रोज़ के जीवन के स दभ म देखना
होगा।16
ले कन, इस या म िजन वग क ज़मीन िछन गई थ , उनक ित या वाभािवक
प से अलग होनी थी। सुमा ा बोस िलखते ह :
ामीण क मीर के पांतरण के दूरगामी राजनीितक भाव थे। सैकड़ हज़ार नये सश कृ त
कसान प रवार इस पांतरण के मुख कारक शेख़ अ दु ला को मसीहा मानने लगे। लाल पृ भूिम
म कसान के मुख औज़ार हल के पीले िनशान वाला नेशनल कॉ स का झंडा मु कसान के
बीच उनके अिडग समथन को प दखाता था। हालाँ क ज मू के कु छ इलाक़ म भूिम-सुधार के
लागू होने से एक दृढ़ सामािजक-राजनीितक ित या का आ दोलन शु आ जो अब भी जारी
है।’17

एजाज़ अशरफ़ वानी उ धृत तो बोस को ही करते ह ले कन उसम ‘क मीरी पंिडत ’


को जोड़ देते ह।18 शेख़ अपनी जीवनी म इसे लेकर काफ़ त ख़ नज़र आते ह—न के वल
िह दू जागीरदार के ित बि क पटेल के ित भी, जो इन सुधार के स त िख़लाफ़ थे। शेख़
बताते ह क इसका मु य कारण था क उ ह यह बताया गया था क ये सुधार मु यतः ग़ैर-
मुि लम को भािवत करगे।19 ज मू म इसके िवरोध क एक बानगी करण संह ारा 22
दस बर, 1952 को जवाहरलाल नेह को भेजे गए नोट ज मू के हालात म िमलती है।
आ थक ि थितय पर ट पणी करते ए वह िलखते ह :
दुभा य से ‘द िबग लडेड ए टे स अबािलशन ए ट’ ज मू ांत म स तोषजनक नह सािबत आ
है...। रा य क नीित कसान के प म है—चाहे वह सही हो या ग़लत। नतीजतन िजनके पास
ज़मीन है, वे पूरी तरह न हो गए ह। उ ह कोई मुआवज़ा नह दया गया है और व तुतः उनके पास
कोई ज़मीन नह बची है िजससे वे अपने प रवार को िखला सक। छोटे जागीरदार, िजनम से
अिधकतर राजपूत ह, उन पर सबसे बुरा असर है य क उनके पास कोई बचत नह है और जो पूरी
तरह से ज़मीन पर िनभर ह।20
इस रपोट म 182 कै नाल क सीमा को ज मू के िलए अनुपयु होने का तक देते ए
वह ज मू के िलए अलग मापदंड क माँग भी करते ह। वैसे करण संह और नेह के
प ाचार को ग़ौर से पढ़ते ए यह ब त साफ़ देखा जा सकता है क करण संह लगातार
शेख़ क िशकायत कर रहे ह (उदाहरण के िलए देख पेज 19, 39, 86, 95)। पूव धृत नोट
म वह डोगरा-िवरोधी नीितय को ज मू-िवरोधी बताते ह (पेज 78) और अपने िलए सारी
उ राज मुख िनयु कये जाने (पेज 37) तथा पूव डोगरा राज क सेना को अपने
िनयं ण म रखने क माँग करते (पेज 9) नज़र आते ह। वैसे करण संह ख़द अपनी ज़मीन
को बचाने के िलए ज मू-क मीर सरकार से मुक़दमे म फँ से थे। डल झील और च माशाही
के कनार पर उनक काफ़ ज़मीन थी िजसे रा य सरकार ने इस अिधिनयम के तहत
अित र बताकर ज़ त कर िलया था जब क वह इसे बाग़ान बताकर अपना हक़ जता रहे
थे।21 मीर क़ािसम मानते ह क द ली और शेख़ के बीच अिव ास भूिम-सुधार के बाद
ही शु आ।22
त य को देख तो इस आरोप म कोई दम नह लगता क भूिम-सुधार िह दू-िवरोधी थे।
ज मू-क मीर म उस दौर म 233 मुि लम जागीरदार थे तो 173 ग़ैर-मुि लम जागीरदार
ले कन 467 मुकररी मुसलमान के समक 1860 ग़ैर-मुि लम मुकररी थे। एक और
आँकड़ा इस पूरे प रदृ य को समझने म मददगार हो सकता है। घाटी के भीतर 100 कै नाल
से अिधक ज़मीन के मािलक म 8408 ग़ैर-मुि लम थे तो 82748 मुि लम। अब अगर इसके
साथ 100 कै नाल से कम ज़मीन वाले कसान का धमवार िवभाजन देख ल तो व तुि थित
ठीक से समझी जा सकती है। 2,60,541 मुि लम कसान ऐसे थे िजनके पास 100 कै नाल से
कम ज़मीन थी जब क के वल 18,692 ग़ैर-मुि लम कसान ऐसे थे िजनके पास 100 कै नाल
से कम ज़मीन थी।23 घाटी म उस समय लगभग 4 ितशत ग़ैर-मुि लम और 96 ितशत
मुि लम आबादी को यान म रख तो हालात ब त साफ़ हो जाते ह। डोगरा राज म ख़ास
तौर पर वजातीय डोगरा को िजस तरह लाभ प च ँ ाया गया था, उससे ज मू े म
ज़मीन क िमि क़यत वाभािवक प से उनके पास ही थी। इन सुधार क या का
िह सा रहे मीर क़ािसम अपनी जीवनी माय लाइफ एंड टाइ स म बताते ह क ज मू म इस
सुधार से ह रजन को ब त फ़ायदा आ था। ेखर बताते ह क कु ल सात लाख
लाभा थय म से ढाई लाख ज मू े के दिलत थे।24 ले कन ज़ािहर तौर पर उ वग को
ही धम का ितिनिध मान िलया जाता है या य कह क उ वग ही धम का फ़ायदा उठा
पाता है तो क मीरी पंिडत और डोगरा राजपूत जागीरदार के नुकसान को िह दु का
नुकसान सािबत कर देना कोई अ वाभािवक नह था।
यह त य मह वपूण है क भूिम-सुधार म जा प रषद से जुड़े अनेक लोग क ज़मीन
गई थी और चूँ क क़ज़ देने के धंधे म भी वे ही थे तो क़ज़ माफ़ का नुकसान भी उ ह ही
आ था जब क इसके लाभाथ ग़रीब और वंिचत लोग थे। नतीजतन पहले तो उ ह ने
डोगरा शासन को बनाये रखने क कोिशश क ले कन वह अब स भव नह था तो भारतीय
संिवधान के अ दर स पि के अिधकार के तहत इसे चुनौती देने क कोिशश क गई ले कन
अनु छेद 370 के कारण यह भी स भव नह आ िजसके तहत भारतीय संिवधान का यह
ावधान वहाँ लागू नह होता था। इसके िवरोध म उ ह ने एक तरफ़ संिवधान सभा के
चुनाव का बिह कार कया तो दूसरी तरफ़ चुनाव के बाद उसे ‘ज मू के िह दु के स दभ
म ग़ैर- ाितिनिधक’ बताया। शेख़ के ित उनक नफ़रत का एक उदाहरण शेख़ ारा
मुखज को िलखे एक ख़त म िमलता है। उ ह ने उसम जा प रषद क कायका रणी के
सद य ऋिष कु मार कौशल के एक बयान का िज़ कया है क हम शेख़ अ दु ला और
नेशनल कॉ स के अ य कायकता को ख़ म कर दगे। हम उनका ख़ून चूस लगे। हम इस
सरकार को जड़ से उखाड़ दगे और क मीर भेज दगे। यह राज हम पस द नह ।25 फ़रवरी,
1952 के आर भ म और फर नव बर- दस बर, 1953 तथा माच, 1953 के अ त म
‘डायरे ट ए शन’ का आ वान कया गया। आ यजनक है क यह श दावली सीधे िज ा
से ली गई थी। उस दौरान ज मू और क मीर रा य के झंडे का िवरोध करते ए, 370 का
िवरोध करते ए, ज मू और क मीर के भारत म पूण िवलय क माँग करते ए ज मू म
लूटपाट और हंसा क भयानक घटनाएँ ।26 1965 म जब एक सा ा कार म शिब तान
उदू डाइजे ट के एक प कार ने शेख़ अ दु ला से पूछा क 1953 म नेह से उनके स ब ध
य ख़राब ए तो वह बताते ह क ‘जागीरदारी के ख़ा मे और कसान के ऋण-माफ़ को
अंजाम दया गया तो नुकसान िह दू-मुसलमान, दोन ही तरह के जागीरदार का आ
ले कन िह दू जागीरदार के सीधे द ली से स पक थे और इसे िह दू-िवरोधी सािबत कर
दया गया जो बेहद दुभा यपूण था...। मुझे ि टश एजट, क यूिन ट एजट और अमे रक
एजट कहा गया। एक ष ं के तहत मुझे िगर तार कर िलया गया।’27
हालाँ क भूिम-सुधार और ऋण-माफ़ का असर क मीरी पंिडत के उस समूह पर तो
पड़ा ही था िजसके पास बड़ी ज़मीन और जागीर थ । सुधा कौल अपने सं मरण म याद
करती ह क कै से कसान के अपनी ज़मीन का मािलक बनने के बाद गाँव से अनाज लाद के
आनेवाले गध क सं या कम होकर बस दो-तीन रह गई ह।28 मुझसे बातचीत म घाटी म
रह रहे क मीरी पंिडत के संगठन क मीरी पंिडत संघष सिमित के नेता संजय ट कू ने
कज़-माफ़ के कारण अपने सुर के 87,000 पये डू ब जाने क बात बताई। ऐसे ही
क मीर के एक िति त प रवार से ता लुक़ रखनेवाली डॉ. िवमला धर ने भी भूिम-सुधार
के चलते अपने एक चाचा के आ थक नुकसान का िज़ कया। कु छ बड़े पंिडत जागीरदार
के नुकसान के बारे म हम पहले पढ़ चुके ह। ज़ािहर है क बड़े भूपित और सूद के धंधे म लगे
पंिडत को इस या म नुकसान आ ही होगा, फर भी िवरोध क इस पूरी या म
क मीरी पंिडत क सीधी भागीदारी तो कह नह दखती ले कन ज मू म इस
सा दाियक तनाव, यामा साद मुखज क ीनगर म मृ यु और उसके बाद क घटना
से वे अछू ते नह रह सकते थे। भूिम-सुधार के मनोवै ािनक असर का अ दाज़ा इसी बात से
लगाया जा सकता है क ख़द को क मीर के समाजवाद का ितिनिध घोिषत करनेवाले
ेमनाथ बज़ाज़ भूिम-सुधार के िख़लाफ़ कसी ता कक णाली क जगह एकदम
भावना मक िवरोध दज कराते ए पंिडत क ज़मीन िछन जाने का दुःख करते ह।
वह बताते ह क घाटी के भीतर 30 ितशत ज़मीन पंिडत क थ ले कन यह बताना भूल
जाते ह क जहाँ आबादी के वल 4 फ़ सद हो, वहाँ 30 फ़ सद ज़मीन पर क़ ज़ा समाजवाद
के कस िस ा त से यायसंगत था? ख़द क मीरी कसान क बदहाली के क़ से बखान
चुके बज़ाज़ जब यह कहते ह क ‘भूिम-सुधार से क मीरी पंिडत सड़क पर आ गए’, तो न
के वल वह एक ग़लत त य दे रहे ह बि क सारे समाजवाद को कचन गाडन म धके लकर
जा प रषद क भाषा बोलते लग रहे ह। ऐसे ही जब नौक रय के अभाव म 8000
क मीरी पंिडत के पलायन क बात करते ए वह कहते ह क ‘इनम से अिधकांश ब त
ज दी मर जाएँगे’29 तो वह न के वल शेख़ के िवरोध म अंधे होकर यह भूल रहे ह क
आज़ादी के बाद क मीर से ही नह , देश के अनेक भाग से महानगर म नौकरी के िलए
भारी सं या म पलायन आ है बि क यह भी क इितहास म नौकरी क तलाश म क मीरी
पंिडत पहले भी मैदान तक आए थे। वैसे वह ख़द 1947 म पा क तान-समथन के कारण
िन कािसत होने के बाद द ली म एक ल बा जीवन जीकर अ सी के दशक म दुिनया-ए-
फ़ानी से िवदा ए। यह और भी आ यजनक है क बज़ाज़ दिलत (मूल पु तक म
ह रजन ) के बारे म बात करते ए भूिम-सुधार का िज़ तक नह करते!30 ख़ैर, वह एक
मह वपूण थापना यह देते ह क शेख़ जब कां ेस के साथ रहे तभी पंिडत ने उनका खुला
समथन कया31 और ज मू और क मीर के िह दु ने शेख़ का नेतृ व तब ही पूरी तरह
वीकार कया जब शेख़ ने क़बायली हमले के मुक़ाबले के िलए भारतीय सेना को आमंि त
कया।32 नई द ली म 2 िसत बर, 2003 को क मीरी पंिडत पर ई कॉ स क रपोट
क स पादक अवंित भाटी िलखती ह :
यह कायवाही (भूिम-सुधार) हालाँ क अपने-आपम यायसंगत और शानदार थी ले कन उन पंिडत
के िलए एक बड़ा आघात थी जो बड़े जागीरदार थे या िजनक आजीिवका खेती थी। इस अिधिनयम
का अथ था—ज़मीन उनसे ले ली ग और कसान को स प दी ग , िजनका बड़ा िह सा ब सं यक
समुदाय से था...। इस िवशेष मामले म ब सं यक समुदाय के जागीरदार ने धा मक भावना का
दोहन करके अपने कसान से जाली समझौते कये और अपनी ज़मीन बचा ल । अ पसं यक
समुदाय कु छ नह कर पाया। इस तरह 1950 के दशक म ही क मीरी पंिडत के दमाग़ म एक
अलगाव का भाव जड़ जमाने लगा।33
हालाँ क भाटी ब सं यक ारा अपनी ज़मीन बचा लेने के दावे के समथन म कोई
सा य नह देत ले कन यह तो लगता ही है क भूिम-सुधार के बाद शेख़ के ित यह
स मान और समपण समा होने लगा। इस स दभ म बलराज मधोक को पढ़ना रोचक है।
वह शेख़ अ दु ला को क यूनल नह ठहराते बि क क यूिन ट या क यूिन ट के भाव म
काम करनेवाला बताते ह।34 वह जा प रषद के आ दोलन को उिचत ठहराते ए भूिम-
सुधार का नाम नह लेते बि क ‘नया क मीर द तावेज़ के अंधाधुंध लागू करने को’
डोगरा और िह दु के िख़लाफ़ क गई कायवाही बताते ह।35 ज़ािहर है, उस दौर म
नया क मीर द तावेज़ से िसफ़ दो चीज़ ही लागू क गई थ : भूिम-सुधार और क़ज़-माफ़ !
हमने देखा है क इसी समय करण संह भी नेह से शेख़ क िशकायत करते ए ऐसे ही
आरोप लगा रहे थे और जा प रषद क वकालत कर रहे थे!36

एक देश म दो िवधान : कह पर िनगाह, कह पर िनशाना


गांधी क ह या के बाद अलग-थलग पड़ चुके िह दु ववादी दि णपंथ के िलए आज़ाद
िह दु तान का इकलौता मुि लम-ब ल देश क मीर ख़द को ासंिगक बनाने के िलए
सबसे मुफ़ द ज़ रया बना और यामा साद मुखज तथा मधोक ने जा प रषद के साथ
ख़द को झ क दया। चूँ क, 370 के कारण ही भारतीय संिवधान के ‘स पि के अिधकार’
का क़ानून लागू कर मुआवज़ा दलाने क उ मीद ख़ म ई थी इसिलए भूिम-सुधार के
िवरोध क जगह 370 का िवरोध शु कया गया। आिख़र आ थक मोच से अिधक
ताक़तवर धम का मु ा होता है और देशभि अ सर वह सबसे मज़बूत आड़ होती है
िजसके पीछे आ थक शोषण क णाली को जीिवत रखा जा सकता है तो संिवधान सभा म
370 पर कोई आपि न करनेवाले यामा साद ‘एक देश म दो िवधान/नह चलेगा’ के
नारे के साथ अपने 3 सांसद के साथ देशभि के िह दु व आइकन बनकर उभरे । शेख़ और
नेह से ल बी ख़त-ओ- कताबत के बाद* 1953 के मई महीने म उ ह ने टकराव का रा ता
चुना था तो वह क मीर के मु े को रा ीय बनाने के िलए ही था। उस मु े पर जनसंघ के
साथ खड़े ए अकाली नेता मा टर तारा संह का क मीर को लेकर जो टड है, वह उस
दौर म सा दाियक शि य के क मीर को लेकर रवैये को तो बताता ही है, साथ ही यह
समझने म मदद करता है क शेख़ अ दु ला और क मीर के लोग रा य क वाय ता को
लेकर इतने संवेदनशील य रहे ह। लखनऊ के एक भाषण म मा टर तारा संह कहते ह :
क मीर पा क तान का है। यह एक मुि लम रा य है। ले कन म इस पर दावा उस स पि के बदले
करता ँ जो र यूज़ी पि मी पा क तान म छोड़ आए ह। क मीरी मुसलमान को पा क तान भेज
देना चािहए जहाँ के वे असल म ह।37
मुखज से जुड़े घटना म पर लौट तो पूव धृत इं टर ू म शेख़ बताते ह क भारत
सरकार ने क मीर को यु े घोिषत कर िडफस ऑफ़ इं िडया ल के तहत क मीर म
आवागमन पर पाब दी लगा दी थी। मुखज को डल के पास िनशात बाग़ के एक िनजी घर
म रखा गया था। शेख़ इसके िलए त कालीन गृहमं ी ब शी ग़लाम मोह मद और जेल
तथा िच क सा मं ी यामलाल सराफ़ को िज़ मेदार बताते ह, हालाँ क धानमं ी के प
म सामूिहक िज़ मेदारी से इनकार भी नह करते। वह बताते ह क यामा साद मुखज
क मृ यु के बाद उ ह ने उनके िनजी िच क सक बी.सी. रॉय को क मीर आकर जाँच का
ताव भी दया ले कन रॉय नह आए।38
मुखज क मृ यु दयाघात से ई थी। वह दयरोग से त थे और उनके िलए
क मीर का मौसम एकदम ठीक नह था। मधोक को पढ़कर लगता है क योजना
बनानेवाल को यह लगा था क उ ह ज मू क सीमा पर भारतीय सेना ारा िगर तार
कर द ली लाया जाएगा ले कन उनक िगर तारी क मीर म होने से ऐसा नह हो पाया।
हालाँ क मधोक बताते ह क मुखज के साथ उनके एक िनजी िच क सक वै गु द भी
थे।39 मुखज के जीवनीकार तथागत रॉय बताते ह क उनके दािहने पैर म लगातार दद था
और उनक भूख ख़ म हो गई थी। 19 जून क रात उ ह सीने म दद और तेज़ बुख़ार क
िशकायत ई तो डॉ. अली मोह मद और अमरनाथ रै ना को भेजा गया। ले कन ज़ािहर
तौर पर ‘ े टोमाइिसन’ देने का गुनाह अली मोह मद के माथे मढ़ा गया। वैसे मुखज क
िज़द पर उ ह एक िह दू नस भी उपल ध कराई गई थी िजसक सुनाई गई किथत कहानी
म भी यह प है क उसने आिख़री इं जे शन दया था और तिबयत िबगड़ने पर डॉ टर
ज़ शी तुर त प च ँ े थे! हालाँ क अगले तीन दन के घटना म को रॉय काफ़ नाटक य
तरीक़े से पेश करते ह ले कन यह प लगता है क मुखज क मृ यु दयाघात से ई थी।
ष ं कथाएँ ब त-सी बनाई गई ह िजसम एक पंिडत क भिव यवाणी से लेकर 20
जुलाई को संघ के मुखप ऑगनाइजर क वह रपोट भी शािमल है िजसम कोई ोत नह
दया गया है। रॉय यह अलग से िलखते ह क ीनगर से कोलकाता भेजे जाते समय इस
बात का िवशेष यान रखा गया क मुखज क मृत देह कसी मुसलमान से न छू जाए!40
ख़ैर, नेह के शासनकाल म भारत के िवदेश सिचव रहे वाय.एस. गुंडिे वया बताते ह क
जहाँ क मीर के ांितकारी भूिम-सुधार से नेह ख़श थे, वह पटेल इसको लेकर नाराज़
थे। शेख़ को लेकर उनक नाराज़गी और ह र संह के साथ सहानुभूित ब त प थी।
इसका सबसे बड़ा उदाहरण उस व त इं टेलीजस िवभाग म सहायक िनदेशक बी.एन.
मिलक क कताब माई इयस िवथ नेह —क मीर पढ़ते िमलता है। वह िलखते ह :
शेख़ अ दु ला के िनजी बातचीत म दु मनाना ख़ अपनाने क रपोट लगातार द ली प च ँ रही थ
—कु छ इं टेलीजस यूरो को, कु छ सीधे धानमं ी और गृहमं ी को, और हालात बेहद पेचीदा बने
ए थे। धानमं ी और गृहमं ी ने क मीर के हालात का वतं जायज़ा लेने के िलए अलग-अलग
लोग को भेजा ले कन उनक रपोट अ सर मनोगत होती थ । धानमं ी ारा भेजे गए लोग आम
तौर पर शेख़ के प म रपोट देते थे और गृहमं ी के भेजे गए लोग उनके िवरोध म। इसके अलावा
बड़ी सं या म क मीरी पंिडत और ज मू के डोगरा, िजनक सीधी प च ँ धानमं ी और गृहमं ी तक
थी, अपने िवचार प चँ ा रहे थे जो आम तौर पर शेख़ के िख़लाफ़ होते थे...। गृहमं ी और धानमं ी,
दोन इस बात को लेकर उ सुक थे क क मीर क वा तिवक ि थित का एक आकलन होना चािहए।
मुझे यह अ ययन करके अपनी रपोट पेश करने को कहा गया।
म अग त,1949 के अ त म क मीर गया और लगभग 10 दन वहाँ का...। म तीन-चार बार
शेख़ अ दु ला से िमला और ब शी ग़लाम मोह मद, जी.एम. सा दक़, शामलाल सराफ़ और डी.पी.
धर सिहत अ य नेता से भी िमला। म बड़ी सं या म आिधका रक और अनािधका रक, दोन तरह
के दूसरे िह दू और मुि लम लोग से भी िमला। म मेजर जनरल िथमैया से िमला और हम उरी
से टर के कई िमिलटरी पो स पर गए...दो बार शेख़ अ दु ला ने अपने घर खाने के िलए बुलाया
जहाँ म उनक बेगम और बे टय से िमला तथा और भी दूसरे लोग से। हमने ख़ूब बात क और मुझे
कहना पड़ेगा क शेख़ अ दु ला ने इस या ा म मुझ पर ब त अ छा भाव डाला।
मुझे यह एहसास आ क ज मू और क मीर के भारत म िवलय का िनणय कसी ज दबाज़ी म
नह िलया गया था और प रि थितय के दबाव म नह था; लोग िजतना समझते थे, उससे कह
अिधक उनक गहरी िवचारधारा मक एकता भारत और भारत के नेता से थी...। शेख़ अ दु ला
पंिडत नेह क िम ता और िवचार क एकता के िलए ईमानदार भाव रखते थे जब क एम.ए.
िज ा के ित उनके भाव के वल भय, अिव ास और घृणा का था...।
मने भारत-क मीर र ते के बारे म दूसरे नेता से बात क , ख़ास तौर पर ब शी ग़लाम
मोह मद और डी.पी. धर से। उस समय उ ह इस बात पर कोई शक नह था क शेख़ के िवचार
भारत के ित ईमानदार थे और भारत के प म उनके अपने िवचार भी उतने ही सुदढ़ृ थे, हालाँ क
वे वैसे मज़बूत िवचारधारा मक आधार पर नह थे। उस समय युवराज को भी, िजनसे मने िव तृत
बातचीत क , शेख़ अ दु ला पर कोई शक नह था हालाँ क वह अपने िपता के साथ ए वहार को
लेकर ख़श नह थे...।
द ली लौटकर मने एक इ ह आधार पर एक रपोट बनाई और अपने िनदेशक को भेजी
िज ह ने इसे गृह सिचव एच.वी. आयंगर को भेज दया। गृह सिचव ने इसे धानमं ी और गृहमं ी
को। म इस बात से अवगत नह था, न ही इस त य से क धानमं ी ने इस रपोट को क मीर क
वतमान ि थित का एक िन प आकलन माना था और इसक ितयाँ िवदेश म सभी भारतीय
दूतावास तथा संयु रा म भारत के ितिनिध को भेज दया था।
सरदार व लभ भाई पटेल ख़श नह थे। मेरी यह रपोट प तः उनके क मीर के स दभ म और
ख़ास तौर पर शेख़ के बारे म िवचार के िवपरीत थी। उ ह शक था क शेख़ ईमानदार नह थे और
नेह को बहका रहे थे तथा इस बात से ख़श नह थे क इस रपोट को इतने बड़े पैमाने पर सा रत
कया गया...।
अगले दन मुझे सरदार से िमलने के िलए समन कया गया। वह बीमार थे और िब तर पर लेटे
ए थे। काफ़ देर तक वह मुझे देखते रहे। फर उ ह ने मुझसे पूछा क या ये रपोट मने िलखी है?
मने ‘हाँ’ म जवाब दया। उ ह ने मुझसे पूछा क मने उनसे बात कये िबना जवाहरलाल को य
भेज दी? मने उ ह बताया क मने यह रपोट िनदेशक को दी थी...। सरदार ने फर कहा क वह आम
तौर पर क मीर के हालात और ख़ास तौर पर शेख़ अ दु ला के मेरे आकलन से सहमत नह थे। फर
सरदार ने मुझे शेख़ अ दु ला के बारे म अपने िवचार बताए। उनको लगता था क शेख़ अ दु ला
अ ततः जवाहरलाल नेह और भारत को नीचा दखाएँगे और अपने असली रं ग म आएँगे। ह र संह
के ित उनक िन ु रता उनके महाराजा होने कारण नह बि क डोगरा होने के कारण है और वे
डोगरा को भारत के ब सं यक समाज के साथ जोड़कर देखते ह...। उ ह ने कहा क मुझे ज द ही
अपनी ग़लती का एहसास होगा और इसके साथ ही मुझे इस रपोट को िलखने म कये गए म के
िलए बधाई भी दी। यह सरदार क महानता थी। मेरे िवचार से असहमत होते ए भी उ ह ने इसे
करने के मेरे अिधकार का स मान कया। यहाँ हमारी मुलाक़ात समा ई। मुझे आई.बी. से
िनकाला नह गया और ज द ही मुझे लगभग 30 व र पर वरीयता देकर ो त कर िनदेशक बना
दया गया।
उस दन म यह सोचता आ अपने द तर लौटा क या मने वाकई क मीर के आकलन म
ग़लती क और या सरदार ने जो कहा, वह सचमुच सही था?41
अ सर उ धृत कये जानेवाला यह लंबा उ रण ब त ग़ौर से पढ़े जाने क ज़ रत है।
मिलक ने क मीर म शेख़ अ दु ला, युवराज करण संह, िथमैया और क मीर के लगभग
सभी वग के बारे म बात करके शेख़ के बारे म जो राय बनाई थी, वह पटेल के पूव ह के
आगे मह वपूण नह रह गई। पटेल डोगरा शासन को एक साम ती ढाँचे क तरह नह
बि क एक िह दू राजा क तरह देख रहे थे और शेख़ को उसके एक मुि लम ित ं ी क
तरह। मिलक अपने इस आकलन म शेख़ और नेह के बीच िजस िवचारधारा मक एकता
क बात कर रहे थे, पटेल उसके बाहर थे। यह िवचारधारा मक एकता दो तर पर थी :
पहली तो भूिम-सुधार जैसे ाि तकारी बदलाव के िलए कसान और िमक के ित
ितब ता। यह आ यजनक नह है क भूिम-सुधार ख़द कां ेस के एजडे म आज़ादी क
लड़ाई के दौरान ब त ऊपर रहे ले कन आज़ादी के बाद एक तो इनके ित कोई िवशेष
उ साह नह दखाया गया और दूसरे , जहाँ यह आधी-अधूरी लागू भी ई, वहाँ भारी रक़म
मुआवज़े के प म देने के कारण सामािजक समता के े म कु छ िवशेष करने क जगह
राजक य ख़ज़ाने पर बोझ अिधक बनी। वह जनसंघ जैसे संगठन को लेकर नेह और
शेख़, दोन क ही समझ एक जैसी थी। नेह ने 1964 म एक आिधका रक बैठक के दौरान
प कहा था क भारत को ख़तरा वामपंथ से नह बि क िह दु ववादी दि णपंथी संगठन
से है। वामपंथ ऐसा या दे सकता है जो हम नह दे सकते? शेख़ के भी जनसंघ को लेकर
यही िवचार थे।42 ले कन उस दौर म न के वल पटेल बि क कां ेस के भीतर दि णपंथी
नेता क एक बड़ी सं या थी िजनके मन म जनसंघ और आर.एस.एस. को लेकर एक
सॉ ट कॉनर था। 1949-50 के बीच कां ेस के भीतर क सा दाियक लॉबी ने अपना
भाव काफ़ बढ़ा िलया। धानमं ी पद उसक प च ँ से बाहर था ले कन उनके इद-िगद
घेरा बनाया जा सकता था। 21 जून, 1948 को माउं टबेटन क िवदाई के बाद नेह ने सी.
राजगोपालाचारी को गवनर जनरल बनाया, जब क वह उ ह पहला रा पित भी बनाना
चाहते थे। ले कन पटेल के नेतृ व म कां ेस संसदीय दल ने राजे साद को रा पित
*
बनवा दया। नतीजतन जब िह दू कोड िबल लाया गया तो सरदार पटेल और
सा दाियक ताक़त के साथ राजे साद ने भी उसक राह म रोड़े अटकाए।43 इसके
बाद पु षो म दास टंडन कां ेस के अ य चुने गए िज ह नेह ने खुले तौर पर
सा दाियक कहा था। टंडन के अ य चुने जाने पर नेह ने बयान देकर कहा था क ‘इस
िनणय से सा दाियक और ित यावादी ताक़त खुलेआम ख़िशयाँ मना रही ह।’44 ऐसे
म पटेल को लेकर शेख़ क आशंका और उसके कारण बेहद प थे। िवभाजन के समय
रजवाड़ के भारत म िवलय म उनक मह वपूण भूिमका पर कोई सवाल नह खड़ा कया
जा सकता ले कन इस या म उनक सा दाियक भूिमका का िज़ अ सर
नज़रअ दाज़ कर दया जाता है। ान पांडय े ने अपनी कताब रमे ब रं ग पाट शन म
ऐसी एक घटना का िज़ कया है। वह बताते ह क अलवर टेट के एक पूव कै टन ने
बताया क ‘म तब अलवर के महाराज तेज संह का ए.डी.सी. था। यह तय कया गया था
क अलवर को मुसलमान से ख़ाली कर दया जाए। आदेश सरदार पटेल के यहाँ से आए
थे। हमने सबको मार डाला। एक-एक मुसलमान को।45 शेख़ अ दु ला ने भी अपनी जीवनी
म 5 नव बर, 1947 को ज मू म ए मुसलमान के ह याकांड के ठीक एक दन पहले
सरदार पटेल के ज मू म होने और महाराजा, महाजन तथा र ामं ी बलदेव संह क बैठक
का िज़ कया है। सच जो भी हो ले कन पटेल और शेख़ के बीच का यह अिव ास
लगातार बढ़ता गया और अ ततः वे ि थितयाँ बन िजनम शेख़ िगर तार ए। शेख़ िलखते
ह:
सरदार पटेल ने के ीय गु चर और सेना क गु चर एजिसय का उपयोग जवाहरलाल के मन म
स देह पैदा करने के िलए कया। ब शी ग़लाम मोह मद, करण संह और डी.पी. धर ने उनका हर
तरह से सहयोग कया। वे इि दरा गांधी, फ़ रोज़ गांधी, िवजयल मी पंिडत और एम.ओ. मथाई का
भरोसा जीतने म सफल रहे।46 इसके पहले वह नेह के िनजी सिचव पंिडत ारका नाथ खाच ,
काशीनाथ बमज़ाई और ि गेिडयर बी.एच. कौल (तीन क मीरी पंिडत) पर नेह को उनके
िख़लाफ़ भड़काने का आरोप लगाते ह।47
करण संह के नेह से प ाचार का िज़ हम पहले ही कर चुके ह िजसम साफ़ नज़र
आता है क ब त सफ़ाई और सावधानी से वह नेह के मन म शेख़ के िलए ज़हर भरने क
कोिशश कर रहे ह। ारकानाथ खाच क सि द ध भूिमका क बात िति त क मीरी
िव ान आग़ा अशरफ़ अली भी करते ह।48
तो जो रपोट नेह के िलए पूरी दुिनया म सा रत करने यो य थी, पटेल के िलए वह
अपनी योजना के ितकू ल थी और बावजूद इसके रपोट बनानेवाले मिलक को 30 से
अिधक व र पर वरीयता देकर ो ित दे दी। पटेल क इस ‘महानता’ का जो भाव
मिलक पर पड़ा था, वह अ पजीवी नह था। इस घटना के बाद शेख़ को लेकर उनके
आकलन और उनके िनदेशक बनने के बाद आई.बी. का रवैया, दोन पूरी तरह बदले ए
नज़र आते ह। गुंडिे वया बताते ह क मिलक का उ े य इसके बाद शेख़ और उनके लोग को
पूरी तरह न कर देना रह गया था। मिलक और गृह मं ालय ने शेख़ को भारत का श ु
बनने पर बा य कर दया। वह िलखते ह :
ऐसा लगता है क खेल एक िवनीत किन इं टेलीजस अिधकारी को क मीर भेजकर शु आ
िजसका काम वैसे तो रा य म पा क तानी गितिविधय पर नज़र रखना था ले कन असल म शेख़
अ दु ला क जासूसी करना था। शेख़ को इस आई.बी. अिधकारी क गितिविधय का पता चला तो
नेह क सहायता से ज दी ही उसे बाहर िनकाल दया गया। ले कन गृह मं ालय का इं टेलीजस
यूरो इतनी आसानी से माननेवाला नह था। उनका इकलौता ल य यह था क क मीर से आनेवाली
िविभ रपोट नेह और कां ेस क नज़र म शेख़ के ित स देह पैदा कर और उनका दूसरा उ े य
शेख़ के समथक के बीच मतभेद पैदा करना था। वे धीरे -धीरे सफल ए और जब दूसरी बार शेख़ ने
िशकायत क तो नेह ने वैसा उ र नह दया...। दि णपंथी ोपेगडा, कानाफू सी ारा दु चार
और राजनीितक धोखेबाज़ी तथा इन सबको ‘इं टेलीजस रपोट ’ ारा, जो गृह मं ालय म पहले
स पा दत क जाती थ और फर धानमं ी को भेजी जाती थ , पूरी तरह से समथन ने मनचाहा
असर दखाया। 1953 क जुलाई आते-आते नेह के दमाग़ को पया िवषा कया जा चुका था।
शेख़ अ दु ला क बख़ा तगी— गृह मं ालय के ‘ ित यावादी त व ’ ारा िबग टेट अबोिलशन
ए ट के ‘कोई मुआवज़ा नह ’ वाले िह से क क मीरी संिवधान ारा सं तुित के पहले ही—उ ह
स ा से बाहर करने क सािज़श थी।49
इन घटना का िव तार एक बार पाठक को िवषया तर लग सकता है, ले कन मुझे
यह इसिलए ज़ री लगा क अ सर िह दू-मुि लम, देशभि -देश ोिहता जैसे सरलीकरण
म समेट दी जानेवाली इन प रघटना के पीछे गहरे और अ सर बेहद उलझे समाजा थक
त य होते ह। क मीर के मामल म मुि लम ब ल होने के कारण सरलीकरण म फँ सना
और भी आसान होता है और कम-से-कम क मीरी पंिडत के स दभ म अ सर यही कया
गया है। ले कन एक सही और स पूण समझ के िलए इन सामािजक-आ थक त य को
सां कृ ितक पहलू के साथ रखकर देखना होगा।
शेख़ क िगर तारी और ब शी का िवकासवाद
द ली के भरोसे क मीरी पंिडत
मुखज क मृ यु के कोई दो महीने बाद ई शेख़ क बख़ा तगी और िगर तारी क मीर के
आधुिनक इितहास का एक बेहद मह वपूण और घुमावदार मोड़ है। पहले उस घटना का
संि िववरण।
8 अग त को शेख़ अचानक गुलमग चले गए। आई.बी. ने द ली को ख़बर भेजी क वह
वहाँ कसी पा क तानी एजट से िमलने गए ह। यह त य कभी सािबत नह हो पाया
ले कन उस समय यह उनक िगर तारी का आधार बना। सदर-ए- रयासत करण संह ने
उसी शाम शेख़ को बख़ा त कर ब शी ग़लाम मोह मद को सरकार बनाने के िलए
आमंि त कया और आधी रात को शेख़ को िगर तार करने के िलए आदेश जारी कये।
डी.आई.जी. एल. डी, ठाकु र के नेतृ व म पुिलस बल गुलमग भेजा गया। जब तक शेख़ क
िगर तारी क ख़बर नह आई, ब शी शपथ- हण के िलए तैयार नह ए। आिख़रकार
शेख़ क िगर तारी क ख़बर आने पर 9 तारीख़ को तड़के ब शी ग़लाम मोह मद ने
क मीर के दूसरे धानमं ी पद क शपथ ली और सूरज िनकलते-िनकलते क मीर क
सड़क पर िवरोध- दशन शु हो गए।50 ‘ब शी मुदाबाद’ के नारे लगाती भीड़ क मीर
क सड़क पर उतरी तो सरकार ने उसका ू र दमन कया। ीनगर और क तवार म
पुिलस फाय रं ग ई िजसम सरकार क ओर से 60 लोग के मरने का दावा कया गया
जब क शेख़ ने यह सं या हज़ार से अिधक बताई। बड़े पैमाने पर िगर ता रयाँ िजनम
क यप ब धु, ग़लाम मोह मद शाह, ज मू और क मीर िव िव ालय के कु लसिचव ग़लाम
मोह मद अशाई, सूचना िनदेशक जानक नाथ ज़ शी, याम लाल कौल सिहत अनेक
मह वपूण लोग शािमल थे। िमज़ा अफ़ज़ल बेग़ और सोफ़ मोह मद अकबर को शेख़ के
साथ ही िगर तार कया गया था।51
यहाँ दो बात मह वपूण ह—पहली तो यह क शेख़ क िगर तारी के साथ क मीरी
पंिडत के भी कई मुख नेता िगर तार ए थे। इसिलए कहा जा सकता है क इसे िह दू-
मुसलमान क तरह, कम-से-कम घाटी म नह देखा जा सकता, ले कन ऐसे िन कष तक
प च ँ ने से पहले यह हमेशा यान म रखना चािहए क राजनीितक कारण से पंिडत भले
उन नेता को समथन दे रहे ह , जो नेशनल कॉ स म थे, ले कन इन नेता को पंिडत
समुदाय का ितिनिध मान लेना सही नह होगा। दूसरा, जैसा क गुंडिे वया बताते ह, इस
िगर तारी का ेय लेने क भीड़ लगी ई थी। मिलक तो ख़ैर इसका ेय लेते ही ह,
त कालीन मंि मंडल म खा मं ी रहे अिजत साद जैन भी इसका ेय लेते ह और
जनरल बी.एम. कौल भी। यह भी मह वपूण है क इन सबने अपने दावे नेह क मृ यु के
बाद ही कये।52 गुंडिे वया का मानना है क नेह इस िगर तारी और बख़ा तगी के खेल म
शािमल नह थे, ले कन इसे वीकार कर पाना मुि कल है क उस दौर म िबना नेह को
भरोसे म िलये शेख़ को िगर तार करने क िह मत कसी म थी। नेह ने 28 जून को शेख़
को िलखे प म िलखा था :
मेरे िलए क मीर का सवाल के वल ता कक मामला नह बि क भावना मक मामला भी है। अब तक
मने आपसे दो ती और आप पर भरोसे के आधार पर काम कया है और आपसे भी यही उ मीद क
है। यह यायसंगत है या नह , यह आपको तय करना है। ि गत र ते रा ीय मामल म मायने
नह रखते और फर भी उनका अथ है और वे अ तर पैदा कर सकते ह।53

इस प म उ ह ने 3 जुलाई को शेख़ को द ली बुलाया था ले कन शेख़ ने ब शी


ग़लाम मोह मद और िमज़ा अफ़ज़ल बेग को भेज दया। 29 जून को करण संह को िलखे
प म उ ह ने इस प का िज़ कया है। 9 अग त को िलखे प म करण संह ने शेख़ क
िगर तारी और बख़ा तगी के बारे म औपचा रक प से िव तार से िलखा है और उसी
दन एक और अनौपचा रक प िलखा है िजसम ि गत तौर पर इस बारे म कु छ बात
ह। 10 अग त को िलखे नेह के जवाब म कोई ऐसी बात नह है िजससे ऐसा लगे क वह
शेख़ क िगर तारी से सदमे म ह या आ यच कत ह । ऐसा लगता है क वह इस घटना
को पहले से ही अ छी तरह से जानते थे।54 ले कन िजस तरह नेह क मृ यु के बाद
‘खुलासे’ कये गए, उससे प है क यह कसी ष ं का िह सा नह था। शेख़ के बारे म
नकारा मक रपो स से बनी छिव के आधार पर नेह ने एक फ़ै सला िलया था, यह कहना
भी ब त सही नह होगा। सैफ़ु ीन सोज़ उस दौर के लोक सभा सद य अंसार हरवानी के
हवाले से बताते ह क ‘नेह ने पूरी तरह से अपने िख़लाफ़ हो चुक कै िबनेट के इस फ़ै सले
को अिन छापूवक वीकार कया था। यह एक ऐसी ि थित थी जब नेह अपनी ही
कै िबनेट म हार गए थे, हालाँ क उ ह ने चेतावनी दी थी क इसके िवनाशकारी भाव
ह गे।’55
अब पूण ब मत क एक सरकार को िसफ़ कु छ मंि य के समथन वापस लेने से ऐसा
फ़ै सला सही था या ग़लत, यह फ़ै सला म पाठक पर छोड़ता — ँ इस सूचना के साथ क
शेख़ पर लगे आरोप कभी िस नह ए।
शेख़ क िगर तारी क मी रय के िलए जैसे एक भरोसे के टू टने क तरह थी। यहाँ
‘क मी रय ’ कहते ए इसे पंिडत/मुसलमान के टम म समझना तो ग़लत होगा ले कन
जहाँ नेशनल कॉ स से जुड़े क यप ब धु जैसे कु छ पंिडत नेता उनके साथ थे और उसी से
जुड़े ब शी, सा दक़, क़ािसम, धर जैसे कु छ नेता िख़लाफ़, वह आम पंिडत और
मुसलमान म इसक ित या अलग थी। एक बात तो प कही जा सकती है क घाटी
का आम मुसलमान शेख़ क िगर तारी से नाराज़ था। ेखर ने क मी रय से 1951 म ई
बातचीत का हवाला देते ए बताया है क क मीरी मुसलमान म पा क तान को लेकर
एक झुकाव तो था ले कन इसके साथ एक मज़बूत भाव यह भी था क िजधर शेख़ जाएँग,े
उधर ही हम भी जाएँगे।56 ले कन या यही आम पंिडत के बारे म कहा जा सकता है?
इसके प माण िमलना लगभग अस भव है ले कन कह -कह ऐसे संकेत िमलते ह क
पंिडत का एक िह सा इसे लेकर ख़श था। शेख़ क नितनी और िस लेिखका नायला
अली ख़ान ारा स पा दत कताब म मोह मद इशाक ख़ान याद करते ह क शेख़ क
िगर तारी क ख़बर रे िडयो पर आने पर उनके पड़ोसी थु सू प रवार म ख़िशयाँ मनाई जा
रही थ । ख़ान कहते ह क मुसलमान क ब सं या ने शेख़ का साथ दया जब क िह दु
क ब सं या ने द ली का और इस िभ राजनीितक दृि कोण के चलते दोन के बीच एक
दुराव पैदा आ और मुसलमान के एक िह से म भारत-िवरोधी भाव...। शेख़ क
िगर तारी के बाद क मीर के आम मुसलमान के बीच यह अवधारणा बनी क अगर वह
िज ा क बात मानते और एक का फ़र जवाहरलाल के साथ नह जाते तो उ ह अपने ही
सािथय से यूँ धोखा न खाना पड़ता।57 यहाँ ककर बज़ाज़ का पूव धृत े ण, ‘शेख़ जब
कां ेस के साथ रहे तभी पंिडत ने उनका खुला समथन कया’, याद कर तो ख़ान क बात
पर भरोसा न करने का कोई कारण नज़र नह आता। सैफ़ु ीन सोज़ कई हवाले देकर बताते
ह क उस दौर म स ा हािसल करने के िलए ब शी ने जा प रषद से हाथ िमला िलया था
और उसक सभा म भाषण दे रहे थे। ज़ािहर है, एक तरफ़ द ली सरकार और दूसरी
तरफ़ िह दु के समथन म ब शी अपनी सुर ा देख रहे थे तो पंिडत के िलए यह
वाभािवक था क वे ब शी और द ली के साथ खड़े होते। ख़ान आगे कहते ह, क मीरी
पंिडत के नेह और उनके वफ़ादार ब शी के ित समथन ने क मीरी उ े य के िलए
उनक िव सनीयता पर सवािलया िनशान लगा दया।58
ब शी ग़लाम मोह मद ह या फर उनके बाद स ा म आए ग़लाम मोह मद सा दक़
(बीच म ब त थोड़े समय के िलए स ा म आए श सु ीन का िज़ इसिलए नह कर रहा
क उनका कायकाल मो-ए-मुक़ स क चोरी और बरामदगी के अलावा कसी घटना के
िलए नह जाना जाता। उस घटना पर बात होगी), उस समय तक, इस आरि भक समथन
के बावजूद, क मीरी पंिडत क नाराज़गी बद तूर जारी रही। इसम कोई भारत के ित
वफ़ादारी वग़ैरह ढू ँढ़ ले तो तो ठीक है ले कन असल म इसके मूल म थी िश ा और
नौक रय म िह सेदारी और संसाधन पर क़ ज़े क लड़ाई। ब शी के कायकाल क थोड़ी-
सी िववेचना इस पूरी प रघटना को समझने म मददगार होगी।
शेख़ के पहले शासनकाल म दूसरी बात के अित र शासन क दो ला िणकताएँ
िचि हत क जा सकती ह : पहली, शासन म मुि लम समाज क भागीदारी बढ़ाने का
यास और दूसरा, यथास भव क मीर को आ मिनभर बनाने तथा भारत सरकार से
यूनतम सहायता लेने क नीित। पहली नीित के चलते राजपि त पद पर मुसलमान क
सं या 1947 के 30 ितशत से बढ़कर 1953 म 50 ितशत हो गई और सौ साल के बाद
मुसलमान को नेशनल िमिलिशया के प म सै य बल म शािमल होने का अवसर िमला।
ले कन मुसलमान को उनक जनसं या के अनु प शासन म भागीदारी देने क इन
कोिशश ने घाटी म सामािजक तनाव पैदा कया और पंिडत ने इसे ‘सा दाियक नीित’
बताकर अपने साथ अ याय क सं ा दी। शेख़ बताते ह क हमेशा क तरह इस बात क
िशकायत भी द ली क गई और पटेल ने इस बारे म कई बार सवाल पूछे, ले कन जब उ ह
जनसं या के अनुपात और सेवा म भागीदारी के अनुपात के बारे म िव तार से आँकड़े
उपल ध कराए गए तो वह आ यच कत रह गए और बोले, िशकायत तो मुसलमान को
करनी चािहए थी।59 इस म म शेख़ अपना जो जवाब दज करते ह, वह इस तनाव को
समझने के िलए मानीखेज़ है : ‘शायद िह दू यह समझते ह क के के वल उनके िहत क
र ा के िलए है और उसे मुसलमान के मु े पर चुप रहना चािहए।’ डोगरा राज म
िमलनेवाले िवशेषािधकार क र ा के िलए पंिडत ने के क ओर देखना शु कया।
इसम प का रता और के ीय शासिनक सेवा म उ तर पद पर आसीन क मीरी
पंिडत ने भरपूर मदद भी क । इसका एक मज़ेदार प तब दखता है जब पंिडत क
नाराज़गी पर ब शी ग़लाम मोह मद ित या देते ए कहते ह—मने या- या नह
कया भारत के िलए और फर भी िह दू मुझसे ख़श नह ह।60
दूसरी नीित के असर ब आयामी थे। शेख़ क ाथिमकता क मीर क वाय ता को
बनाये रखना था इसिलए उ ह ने भारत के साथ आ थक स ब ध को बनाने म कोई
उ साह नह दखाया। ले कन क़बीलाई आ मण और िवभाजन के बाद तहस-नहस ई
क मीरी अथ व था को खड़ा करने के िलए और िवकास के उन सपन को ज़मीनी
हक़ क़त बनाने के िलए पैस क ज़ रत थी, िजनका ‘नया क मीर’ के तहत वायदा कया
गया था। ऐसे म एक ही तरीक़ा बचता था क तरह-तरह के टै स लगाये जाएँ। वाभािवक
प से यह क़दम जनता के बीच अलोकि य सािबत होना था और इसका दूसरा असर
क़ मत पर पड़ना था। अब भी शासिनक हलका मोटे तौर पर महाराजा के समय वाला
ही था और ाचार का बोलबाला था तो दूसरी तरफ़ ज मू म जा-सभा के आ दोलन
और लगातार उपि थत तनाव के कारण कसी तरह का िनवेश भी स भव नह था। इन
सबक वजह से वे हालात पैदा ए िजनक वजह से वानी शेख़ के पहले शासनकाल पर
ट पणी करते ए उ ह ‘अ छे संघषकारी ले कन असफल शासक’ कहते ह।
ब शी ग़लाम मोह मद ने इसके ठीक िवपरीत भारत से क मीर के आ थक एक करण
और के के सहयोग से क मीर के सवागीण िवकास क नीित अपनाई। वानी इसे ‘आ थक
तरीक़ा’61 कहते ह तो ब शी-काल पर मह वपूण शोध करनेवाली हसफ़ा कं जवाल इसे
‘िवकासवाद’ का नाम देती ह।62 शेख़ क िगर तारी से नाराज़ क मीरी जनता के िलए
ब शी के समय िवकास के दरवाज़े खोल दये गए और िश ा, वा य, मूलभूत ढाँचे,
उ ोग, प रवहन, पयटन सिहत सभी े म ज़बरद त िनवेश आ। ब त िव तार म
जाने क जगह दो उदाहरण दे देने काफ़ ह गे। सुधा कौल अपने सं मरण म कहती ह क
‘के वल ग भीर प से िवकलांग लड़ कयाँ कॉलेज नह जाती थ य क सरकारी कू ल
और कॉलेज म िश ा िनःशु क थी’63 तो दूसरी तरफ़ ब शी को क मीरी जनता ारा
दया गया नाम—ख़ािलद-ए-क मीर64 यानी क मीर का िनमाता। इस दौर म खेल ,
सं कृ ितकम आ द को भी ख़ूब बढ़ावा दया गया और समाजवादी-से यूलर िश ा और
सं कृ ित के िव तार के िलए कई नीितयाँ बनाई ग । यहाँ यह याद कर लेना भी उिचत
होगा क भारत के साथ एक करण क इस या म अनु छेद 370 म भी काफ़ बदलाव
कये गए। 1956 म रा य क संिवधान सभा ने रा य का संिवधान पास कर दया िजसम
ज मू और क मीर के भारत का अिभ िह सा होने क बात प तौर पर थी। ऑिडट,
क टम, चुनाव आयोग, उ तम यायालय सिहत अनेक के सरकार के िवभाग का
काय े क मीर तक िव तृत कर दया गया। भारतीय संसद के क मीर के स दभ म क़ानून
बनाने के प र े को बढ़ा दया गया, भारत से आने वाली व तु पर क टम ख़ म कर
दया गया और 1958 म के ीय शासिनक तथा पुिलस सेवा के अिधका रय क क मीर
म िनयुि क अनुमित दे दी गई।65
ले कन इस दौर म भी सामािजक तनाव पर रोक नह लग सक । िव तार म जाने से पहले
सुधा कौल के सं मरण से एक क़ सा देख लेते ह। वह बताती ह क उनके नाना क
अचानक मृ यु हो गई जो उ सरकारी अिधकारी थे। ‘एक िवशाल पु ष-आकृ ित, चौखट
पर हाथ रखे, दरवाज़े पर थी और मिहला के कमरे म वेश कये िबना उसने नानी से
कहा—बहन, िह मत रिखए। आपके पित मेरे भाई जैसे थे। मने आपके ईमानदार पित के
िलए एक पशन तय कर दी है।’ कसी भी दृि से रा य के मुख का यह आचरण कसी
नाग रक के िलए स मान बढ़ानेवाला होगा और उस मुख के िवशाल दय का प रचायक
भी। ले कन सुधा कौल इस ण भावुक या िवनीत होने क जगह इसी म म आगे िलखती
ह : ‘ फर क मीर के धानमं ी कमचा रय और सहायक क भीड़ के साथ चले गए। वह
अब सरकार के मुख ह, ले कन वह एक दाई (िमडवाइफ) के बेटे थे। अपने अिधकतर
सहयोिगय क तरह वह भी मुि लम थे, ले कन उस समय कसी को यह ख़याल नह
आया। यह के वल बाद म याद करने पर रोचक लगा।’66
तारीफ़ का एक श द नह ! कृ त ता का एक भाव नह ! भावुकता का एक क़तरा नह !
ऐसे िवषम समय म भी अपनी े ता का अहंकार िबलकु ल उस जाितवादी अहंकार के
समक नह लगता आपको जो शेष भारत म दिलत के सम ग़ैर-दिलत , िवशेषकर
ा ण म पाया जाता है? जो उ से उ पद पर प च ँ े दिलत के ित कसी भी तरह का
स मान रख पाने म अ म होता है?
यह घटना मने उस वृि के एक तीक के प म ली है िजसने क मीर क नई
स ाइय के सम क मीरी पंिडत के एक बड़े िह से को कभी सहज नह होने दया। चूँ क
यहाँ जाित क जगह धम उपि थत था तो मुि लम ब सं यक को ज़रा-सा लाभ प च ँ ाने
वाली कसी भी नीित को सा दाियक क़रार देते ए द ली क तरफ़ ‘ याय’ के िलए
गुहार लगाई गई।
ब शी ग़लाम मोह मद के समय उ िश ण सं थान म वेश के िलए घाटी म 70
फ़ सद सीट मुसलमान और 30 फ़ सद सीट ग़ैर-मुसलमान के िलए तो ज मू म 70 फ़ सद
सीट ग़ैर-मुसलमान तथा 30 फ़ सद सीट मुसलमान के िलए आरि त क ग । यही नीित
सेवा म भत के िलए भी अपनाई गई। इसका आधार यह था क घाटी के अ दर
मुसलमान शै िणक और सामािजक प से िपछड़े ह जब क ज मू म यह दजा िह दु का
है। अगर जनसं या के आधार पर देख तो 4 ितशत क मीरी पंिडत और लगभग एक
ितशत िसख के िलए 30 ितशत सीट उनके अनुपात से कह अिधक थ जब क 40
ितशत से अिधक आबादी के बावजूद ज मू म के वल 30 फ़ सद सीट मुसलमान क
जनां कक भागीदारी क तुलना म कम थी। ले कन क मीरी पंिडत ने इसे अपने साथ
भेदभाव बताते ए तुर त इसका िवरोध करना शु कर दया। यह घृणा कतनी गहरी थी,
इसे समझने के िलए मोहनलाल कौल को उ धृत कया जा सकता है :
वह और के वल वह थे िज ह ने आम मुसलमान के अनुसार, उ ह धूल से उठाकर साफ़ कया और
चमकदार कपड़ म सजा दया। घाटी का हर कोना मुि लम ातक से भर गया और उ ह ीनगर
के िश ण के म िश ण म िड लोमा करने के िलए भर दया गया जहाँ से अपने कोस पूरा करने
के बाद वे मे रट और बुज़ग क मीरी िह दू िश क के दाव को दर कनार कर तुर त कू ल के
हेडमा टर बना दये जाते थे।67
िजस घाटी म 95 ितशत मुसलमान थे, उसम ‘कोने-कोने म मुि लम ातक’ दखना
या फर उ ह ‘धूल से उठाकर झाड़-प छ कर सु दर कपड़े पहना देना’ कसी लोकतांि क
समाज म अपराध कै से हो सकता है? लगातार इसे सा दाियक कहते ए मोहनलाल कौल
दरअसल ख़द उस े ताबोध वाली वच ववादी सा दाियक दृि से पीिड़त ह जो शेष
भारत म दिलत और क मीर म मुसलमान के उ थान से अपने िवशेषािधकार िछन जाने
क कुं ठा िछपा नह पाती। मज़ेदार बात यह है क मे रट का हवाला देने के बावजूद जब
यह मामला उ यायालय म गया तो तक ‘शै िणक यो यता’ बनाम ‘व र ता’ का दया
गया यानी िड लोमा क शै िणक यो यता क जगह सेवाकाल क ल बाई के आधार पर
पदो ित क माँग क गई। ि लोक नाथ बनाम ज मू और क मीर सरकार के इस मामले म
भारतीय संिवधान म अ पसं यक के आर ण क व था न होने के आधार पर फ़ै सला
दया गया और सा दक़ सरकार के समय एक ि थित ऐसी आई जब हर कू ल म एक
मुि लम ‘यो यता’ के आधार पर और एक पंिडत ‘व र ता’ के आधार पर हेडमा टर
िनयु कया गया।68 एक िवड बना यह भी क कभी ‘सा दाियक’ आधार पर आर ण
का िवरोध करनेवाले पंिडत ने आगे चलकर ‘अ पसं यक’ होने के आधार पर अपने िलए
आर ण क माँग क !69
ब शी काल म दो और मह वपूण प रघटना ने क मीर क राजनीित म मह वपूण
भूिमका िनभाई। पहली तो यह क सरकारी िश ण सं थान म से यूलर िश ा और
सं कृ ित को बढ़ावा देने क नीित को क रपंथी मुि लम धड़े ने इ लामी सं कृ ित पर हार
माना और जमात-ए-इ लामी, ज मू और क मीर* ने इ लामी ढब क िश ा देने के िलए
घाटी म बड़ी सं या म कू ल खोले।70 जमात के कू ल ने क मीरी समाज के
रे िडकलाइजेशन म एक बड़ी भूिमका िनभाई है िजस पर आगे बात क जाएगी। इसे आप
भारत म रा ीय वयंसेवक संघ ारा खोले गए सर वती िशशु मि दर के समक रखकर
देख सकते ह। वह दूसरी तरफ़ उदू को राजभाषा बनाने पर पंिडत ने ‘इ लामीकरण’ का
आरोप लगाया। देखा जाए तो उदू या देवनागरी क मीर म कसी क भाषा नह थी। शेख़
अ दु ला के समय क मीरी को कामकाज और िश ा के मा यम क भाषा बनाने के िलए
वै ािनक प देने क िज़ मेदारी के साथ एक कमेटी बनाई गई थी ले कन इसे िह दु और
मुसलमान म से कसी का समथन नह िमला। हमने देखा है क अं ेज़ के समय ही उदू को
सरकारी कामकाज क भाषा बना दया गया था और अिधकतर क मीरी पंिडत फ़ारसी के
बाद उदू म िन णात भी हो गए थे। ले कन भाषा-िववाद के दौर म उदू को मुसलमान क
तथा िह दी को िह दु क भाषा मान लेने के साथ यह िववाद लगभग वाभािवक ही था
िजसने एक ख़ास तरह के सामािजक तनाव को ज म दया। पंिडत का िह दी के प म
खड़ा होना शेष भारतीय ब सं यक वग के साथ जुड़ने के एक उप म के प म भी देखा
जाना चािहए। इस िववाद को िव तार से कुं जवाल के पूव धृत शोध-काय म देखा जा
सकता है।
इस तरह हम देखते ह क सामािजक और आ थक े म ज़बरद त िवकास के चलते
ऊपरी तौर पर तो क मीर म शाि त- व था थािपत करने म ब शी सफल रहे ले कन
सतह के नीचे तनाव िवकिसत होते रहे। ाचार, चुनाव म बड़े पैमाने पर धाँधली और
‘पीस ि गेड’ जैसी िनजी सेना क गुंडागद से िवरोिधय को चुप कराने के आरोप के
बावजूद उनका शासनकाल क मीर म शाि त और गित वाला माना जाता है। इस दौर म
शहरी े म एक छोटे से गितशील तबक़े का िवकास आ ले कन िह दु और
मुसलमान , दोन के बीच सा दाियक त व ने अपना भाव िव ता रत कया। शेख़ क
िगर तारी के बाद िमज़ा अफ़ज़ल बेग़ के नेतृ व म बने ‘ लेिबसाइट ं ट’ क भूिमका
पा क तान-समथक और अलगाववादी ही रही, हालाँ क ब शी इसे एक हद तक क़ाबू म
रखने म सफल रहे। ले कन िति त क मीरी प कार वाज़ा सनाउ लाह बट ने इस ओर
पया इशारा कया है क ‘िजस तीसरे मोच पर वह सफल रहे, वह था क मीर म भारत-
िवरोधी चार को िज़ दा रखना। वह जानते थे क अगर भारत के िख़लाफ़ संघष कर रही
ताक़त कमज़ोर तो इससे उनक स ा कमज़ोर हो जाएगी...। इस बात से सचेत भारत
सरकार पर दबाव बनाये रखने के िलए उ ह ने लेिबसाइट ं ट और पॉिल टकल कॉ स
के कु छ लोग को गोपनीय तरीक़े से आ थक सहायता देना जारी रखा।71
ले कन 1958 म शेख़ क रहाई पर िजस गमजोशी से क मीरी जनता ने उनका वागत
कया, वह ब शी के िलए आघात प च ँ ाने वाला था। साफ़ था क आ थक आकां ा क
पू त के बावजूद जनता म वाय ता के ित आकषण कम नह आ था। ब शी क
सफलता से ख़श नेह के िलए भी यह क मीर-सम या के थायी समाधान के बारे म
पुन वचार का िवषय था। सौ दन के भीतर उ ह ने शेख़ को दुबारा िगर तार कर िलया
ले कन अब ब शी द ली के ब त काम के नह रहे थे और वाय ता के मु े पर और
अिधक समझौता करने को तैयार नह थे, तो कामराज लान के तहत उनका इ तीफ़ा
लेकर ग़लाम मोह मद सा दक़ को स ा स पने क कोिशश क गई। हालाँ क िवधान सभा
म अपने ब मत के चलते ब शी अपने क़रीबी वाज़ा श सु ीन को धानमं ी बनवाने म
सफल रहे ले कन श सु ीन को ग ी पर िबठाकर राज करने क ब शी क योजना ल बी
नह चल सक । उनके ग ी पर बैठने के ढाई महीन के भीतर ही 27 दस बर, 1963 को
ीनगर क हज़रतबल मि जद से हज़रत मुह मद साहब के पिव बाल (मो-ए-मु दस) के
ग़ायब होने क घटना ने क मीर क राजनीित को उलट-पलट दया।* क मीरी शासन म
उ पद पर रहे ग़लाम अहमद इसे ब शी क राजनीित ख़ म करने के िलए रची डी.पी.
धर क सािज़श बताते ह। द ली के बेहद क़रीबी रहे धर शेख़ क बख़ा तगी म भी स य
थे। उनका मानना है क यह एक तीर से दो िशकार करने क सािज़श थी—एक तरफ़
हज़रतबल मि जद का मह व ख़ म हो जाता जहाँ मुसलमान बड़ी सं या म एक होते थे;
दूसरे , ब शी क राजनीित ख़ म हो जाती। वह बताते ह क जानबूझकर इधर-उधर ऐसे
इशारे कये गए क ब शी का इस घटना म हाथ था। ले कन योजना बनानेवाले यह नह
समझ पाए थे क मामला हाथ से िनकल जाएगा।72
इसी उथल-पुथल के बाद घाटी म जनसंघ क थापना ई। 1 जून, 1964 को ीनगर
म रामजी घड़ीसाज़ के घर पर ऋिष कु मार कौशल के िनदशन म इसक एडहाक कमेटी
बनी िजसम ि लोक नाथ धर और टीकालाल टपलू शािमल थे।73 यहाँ एक रोचक त य
यह है क सा दक़ ने मु यमं ी रहते जो चुनाव ‘लड़ा’, उसम उनके िख़लाफ़ पचा िसफ़ एक
क मीरी पंिडत म टू ने जनसंघ उ मीदवार के प म भरा था िजसके जीतने क कोई
उ मीद नह थी, ले कन गौहर बताते ह क सा दक़ ने उसका पचा भी ख़ा रज करवा
दया।74

ग़लाम मोह मद सा दक़ का दौर : सतह के ऊपर उभरते तनाव


इस घटना ने क मीर के भीतर और बाहर िजस तरह का उबाल पैदा कया, उसने नेह को
सशं कत ही नह कया बि क यह सोचने पर मजबूर कर दया क क मीर सम या इस
तरह सुलझने वाली नह और इसके िलए ग भीर यास करने पड़गे। कै िबनेट कमेटी क
एक बैठक म उ ह ने कहा क अगर 15 साल क आज़ादी के बाद भी लोग सरकार के
िख़लाफ़ इस तरह उठ खड़े हो सकते ह तो िनि त प म हमारी क मीरी नीित म कोई
मूलभूत ग़लती है। कु छ दन पहले पड़े दल के दौरे और चीन यु म हार के बाद शायद
नेह क मीर-सम या को अपने जीते-जी हल कर देना चाहते थे। ग़लाम मोह मद सा दक़
को क मीर के चौथे धानमं ी क शपथ दलाई गई। 5 अ ैल, 1964 को सा दक़ ने शेख़
अ दु ला पर लगा ष ं का आरोप वापस लेने क घोषणा कर दी और 8 तारीख़ को शेख़
अपने चौदह सािथय के साथ रहा कर दये गए। नेह उ ह तुर त द ली बुलाना चाहते
थे ले कन शेख़ पहले क मीर क जनता के बीच जाना चाहते थे। िमज़ा अफ़ज़ल बेग़ और
फ़ा क़ अ दु ला के साथ वह 29 अ ैल को द ली प च ँ े तो एक बार फर नेह के घर पर
ही के । नेह ने शेख़ से बात करने के िलए अपने िनजी सिचव गुंडिे वया, बद ीन
तैयबजी और जी. पाथसारथी को िनयु कया। अ दु ला के वर अब पहले िजतने त ख़
नह थे। 23 मई को शेख़ पा क तान प चँ े तो माना जाता है क नेह ने क मीर म थायी
शाि त का कोई ताव भेजा था। एम.जे. अकबर का मानना है क यह भारत, पा क तान
और क मीर के कसी फ़े डरे शन का ताव था। अयूब ख़ान ने भी अपनी कताब स एंड
नॉट मा टस म इसका िज़ कया है ले कन शेख़ ने नेह ारा भेजे गए ऐसे कसी ताव
से इनकार कया है।75 पा क तान ने पहले तो शेख़ क या ा को लेकर ब त उ साह
दखाया ले कन जब उ ह ने अपने सावजिनक व म भारत क से यूलर पर परा का
िज़ कया तो सुर बदल गए। 26 मई शेख़ क मीर को लेकर नेह और अयूब क बातचीत
क योजना पर अयूब क सहमित लेने म सफल ए। 27 क सुबह नेह क सहमित और
उनक मृ यु क ख़बर एक साथ कराची प च ँ ी।76 आँसु से भरे शेख़ जब अपने िम को
आिख़री िवदाई देने लौटे तो शायद क मीरी-सम या के कसी फ़ौरी समाधान क उनक
उ मीद भी ख़ म हो चुक थ ।
नेह के बाद स ा म आए लालबहादुर शा ी ने क मीर-सम या के कसी समाधान क
जगह अपना यान एक करण क या को तेज़ करने म लगाया और सा दक़ ने इसम
भरपूर साथ दया। शेख़ अपनी जीवनी म इसके िलए त कालीन गृह मं ी गुलज़ारी लाल
न दा को िज़ मेदार ठहराते ह। भारी जनिवरोध के बावजूद एक के बाद एक प रवतन
लाकर देश क वाय ता को लगातार कम कया गया िजसम जनसंघ और क यूिन ट
पाट , दोन क सहमित थी। भारतीय संिवधान का अनु छेद 356 और 357 अब क मीर के
स दभ म भी लागू होना था यानी के रा य सरकार को अपद थ कर सकता था। भिव य
म इसका जमकर योग आ। रा य क िवधान सभा ारा अपना सदर-ए- रयासत चुनने
क आज़ादी ख़ म कर बाक़ रा य क तरह के ारा नािमत ि क िनयुि का
िनयम बनाया गया और धानमं ी तथा सदर-ए- रयासत क जगह बाक़ रा य जैसे
मु यमं ी और रा यपाल के स बोधन तय कये गए। सा दक़ अपने इस उ साह म थोड़ा
अिधक ही आगे िनकल गए और अब नेशनल कॉ स ज मू और क मीर देश कां ेस
कमेटी म त दील कर दी गई। इस तरह क मीर म पहली ‘कां ेस सरकार’ बनी। ब शी अब
िवरोध के नेता थे और उ ह ने सा दक़ क सरकार के िख़लाफ़ अिव ास ताव लाने का
िनणय िलया तो उ ह िगर तार कर उसी जेल म डाल दया गया जहाँ 11 साल पहले
उ ह ने शेख़ को ब द कया था। वहाँ उ ह दल का दौरा पड़ा और ज द ही उ ह रहा कर
दया गया।77
घाटी ही नह , इस प रघटना के िवरोध म पा क तान अिधकृ त क मीर म भी िवरोध
दशन ए। शेख़ अ दु ला और उनके लेिबसाइट ं ट ने इसका तीखा िवरोध कया। नेह
के न होने पर अब शेख़ के िलए ब त उ मीद थ भी नह , तो आज़ादी क अपनी माँग को
और तेज़ कर दया। कां ेस के मुि लम सद य के बायकाट क अपील क गई और लोग ने
उनके यहाँ शादी- याह, धा मक आयोजन और दफ़न-कफ़न म जाना ब द कर दया। इस
दौर म पहली बार शेख़ अ दु ला ने हज या ा पर जाने का तय कया। भारत सरकार ने
इसके िलए अनुमित दे दी। शेख़ अपनी बेगम और िमज़ा अफ़ज़ल के साथ हज के साथ
यूरोप और पि म एिशया के दौरे पर िनकल गए। इस या ा के दौरान उ ह ने न अ जीयस
म चाऊ एन लाई से मुलाक़ात क ।78 अकबर बताते ह क इस मुलाक़ात क व था
पा क तान के त कालीन िवदेश मं ी ज़ि फ़कार अली भु ो ने कराई थी। इस मुलाक़ात के
बाद चाऊ एन लाई ने क मीर क आज़ादी के समथन म बयान दया और शेख़ अ दु ला ने
उसका वागत कया। शेख़ ने पि मी मीिडया म कु छ लेख भी िलखे। यह सब भारत
सरकार के नाराज़ होने के िलए काफ़ था और लालबहादुर शा ी ने स त क़दम उठाने का
िनणय िलया। शेख़ को तुर त लौटने के िनदश जारी कये गए और उनका पालन न करने
पर पासपोट ज़ त करने क धमक । आम चचा थी क शेख़ लौटगे नह ले कन वह लौटे
और 8 मई, 1965 को शेख़ अ दु ला िमज़ा अफ़ज़ल बेग़ के साथ िगर तार कर िलये गए।
शेख़ ने हमेशा यही कहा क चाऊ एन लाई से उनक मुलाक़ात महज़ एक इ ेफ़ाक थी।79
इस बीच क मीर म सब सामा य नह था। ऐसा लगता है क ब शी के समय सतह पर
पलता तनाव धीरे -धीरे अलग-अलग प म सामने आ रहा था। एक तरफ़ लगातार
द ली के थानीय राजनीित म ह त ेप और चुनाव म धाँधली के सहारे एक पाट के
राजनीित म अ ेय ािधकार का मामला, नेशनल कॉ स के कां ेस म त दील कर दये
जाने के साथ जनता क लोकतांि क आकां ाएँ ही दिमत नह क गई थ बि क क मीर के
मुि -संघष के तीक को ही ख़ म कर दया गया था, तो दूसरी तरफ़ क मीरी जनता को
सि सडी और सुिवधा के ज़ रये ख़श रखने क कोिशश का खोखलापन प हो चुका
था। इन सबके साथ वज़ीर-ए-आज़म और सदर-ए- रयासत को मु यमं ी और रा यपाल
से ित थािपत करने और 370 को लगातार कमज़ोर करते जाने को लेकर उपजे अस तोष
के चलते सा दक़ क अपे ाकृ त िलबरल और ईमानदार सरकार भी क मीर म हालात को
सामा य रख पाने म सफल नह ई। दूसरी ओर इस अस तोष का फ़ायदा उठाने क
कोिशश पा क तान ने भी क । भारत म घुसपै ठय को भेजकर क मीर को ‘मु ’ कराने
क योजना को ‘ऑपरे शन िज ा टर’ का नाम दया गया। ले कन क मीरी जनता भले शेख़
क िगर तारी से नाराज़ हो, वह पा क तान के साथ नह थी। घुसपै ठय को क मीरी
जनता से कोई मदद नह िमली। अहमद बताते ह क नेशनल कॉ स के कायकता ने
घुसपै ठय क िनशानदेही कर उ ह पकड़वाने म सहयोग कया।80 असल म प क तान क
यह पूरी योजना इस मा यता पर आधा रत थी क पा क तान के आ मण के समय क मीर
म एक खुला जनिव ोह होगा और इसके िलए उसे कु छ लोग से आ ासन भी िमला था।
पुंछ और राजौरी म उसे समथन िमला भी ले कन घाटी म कसी जनिव ोह क जगह जब
उसे क मीरी जनता से भारी असहयोग िमला तो पा क तानी सेना यु शु होने से पहले
ही हार गई थी।81 सुधा कौल भी अपने सं मरण म प दज करती ह—घुसपै ठय को
कोई सहयोगी नह िमले।82 जब 3 िसत बर को पा क तानी सेना ने छ ब के पास
अ तररा ीय सीमा पार क तो भारत ने 5 िसत बर को पंजाब म दूसरा मोचा खोल दया
और अ ततः 23 िसत बर को संयु रा सुर ा प रषद् के ह त ेप से यु िवराम आ और
पा क तान को क मीर से अपनी सेनाएँ वापस बुलानी पड़ । इस यु का समाहार करते
ए अमे रका क लाइ ेरी ऑफ़ कां ेस ने िलखा है :
यह यु सै य दृि कोण से अिन णत था; दोन प के पास एक दूसरे के े थे और दोन ने एक
दूसरे के सैिनक को ब दी बनाया था। ज़ािहर तौर पर पा क तान को नुकसान यादा आ था—20
एयर ा ट, 200 ट स और 3800 सैिनक। पा क तान क सेना भारतीय दबाव झेलने म सफल रही
थी ले कन यु अगर जारी रहता तो उसे और नुकसान होता और अ ततः पा क तान क हार होती।
यादातर पा क तानी अपने यु क मता के अित आ मिव ास क िश ा पाकर बड़े ए होते ह
और ‘िह दू भारत’ से अपने देश क सै य पराजय क स भावना वीकार नह कर सकते थे इसिलए
अपनी हार के िलए उ ह ने अयूब ख़ान और उनक सरकार को दोष दया।83
इस यु के बाद ताशक द-समझौता आ िजसम दोन देश ने एक दूसरे क क़ ज़ा क
ई ज़मीन लौटा दी। क मीर के अस तोष का फ़ायदा उठाकर भारत को दो टु कड़ म बाँटने
के अपने इरादे म पा क तान बुरी तरह नाक़ामयाब आ। समझौते के तुर त बाद
लालबहादुर शा ी क तिबयत ख़राब ई और एक िवजेता क तरह स गए शा ी
ितरं गे म िलपटे लौटे। िवजय क ख़शी म उ म देश अपने धानमं ी के शोक म डू ब गया।
इधर क मीर म ब शी के समय नौक रय म मुसलमान के िलए कोटा तय करने को लेकर
पंिडत का िवरोध सा दक़ के मु यमंि व काल म एक बड़े आ दोलन म त दील हो गया।
मोहनलाल कौल एक तरफ़ पंिडत के िलए 30 ितशत कोटे को उनके साथ
सा दाियक ताक़त का अ याय बताते ह तो दूसरी तरफ़ आरोप लगाते ह क इ लािमक
यूरो े सी ने पंिडत को उनके कोटे के दािख़ले और नौक रयाँ भी नह द ।84 अहमद इस
आ दोलन के पीछे भी डी.पी. धर का हाथ बताते ह। वह एक घटना का िज़ करते ह जब
मुि लम लड़क का एक समूह सा दक़ के पास यह िशकायत लेकर आया क क मीरी पंिडत
लड़क ने मुि लम घर पर िनशान बना दये ह और सी.आर.पी. तथा बी.एस.एफ. क
सहायता से उन पर हमला करवाने वाले ह।85 अब इस घटना म िजतनी भी स ाई हो
ले कन यह दोन समुदाय के बीच लगातार बढ़ते अिव ास के बारे म तो बताता ही है।
इस वृि का एक और उदाहरण जय काश नारायण के सहयोगी आर.के . पा टल क 6
िसत बर, 1966 को भेजी क मीर क एक रपोट म िमलता है जहाँ वह शेख़ अ दु ला से
बातचीत और उनक रहाई के ताव पर पंिडत क ित या बताते ए कहते ह :
क मीरी पंिडत वग क आम ित या थी क इस या ा (शेख़ अ दु ला क क मीर-या ा) क
अनुमित नह दी जानी चािहए थी। इससे कसी उ े य क पू त होने क स भावना नह है। शेख़
अ दु ला के िवचार म प रवतन क कोई उ मीद नह है। उनसे बातचीत करना कसी मतलब का
नह है। वह एक सूखा बादल ह िजससे बा रश क कोई उ मीद नह । यह वग स त स ा का समथन
करता है और महसूस करता है क घाटी म मुि लम अिभमत को मनाया जाना स भव नह है। वे
के वल एक मज़बूत शासन को समझ सकते ह और भारत सरकार को यही करना चािहए। म आपको
मातड* क एक क टंग भेज रहा ँ िजसम ऐसे िवचार ह।86
एक अ पसं यक समाज के प म सुर ा और मह व के िलए उनका घाटी के बाहर
ज मू और द ली क तरफ़ देखना वाभािवक तो था ले कन शेख़ और घाटी के मुसलमान
के ित 1966 क यह सोच च काती है। कड़ा शासन! यानी भारत सरकार को शेख़ से
बातचीत करने या फर मुि लम समुदाय से बातचीत करने या उनक माँग पर सोच-
िवचार करने क जगह वहाँ स ती का योग करना चािहए! अब 95 फ़ सद मुि लम
आबादी म यह थानीय पुिलस ारा तो स भव नह था, इसिलए यह सीधे-सीधे सेना को
आमं ण जैसा ही लगता है यानी घाटी क 4-5 फ़ सद आबादी या य कह क उस 4-5
फ़ सद आबादी का एक िह सा द ली के साथ िमलकर 95 फ़ सद आबादी को डंडे के ज़ोर
से िनयंि त करना चाहता था! इस सोच को या कहा जाना चािहए और इस सोच के
दूरगामी असर या ए ह गे? ज़ािहर है क भारतीय सेना और द ली क स ा पर यह
भरोसा उ ह ताक़त का एहसास भले कराए ले कन यह त य उ ह घाटी के ब सं यक
मुसलमान से दूर करने के िलए भी िज़ मेदार होना ही था, जैसा क ख़ान कह रहे ह। देख
तो सेना का अथ दोन समुदाय के िलए अलग-अलग था। जहाँ पंिडत समुदाय के िलए
सेना उनक शि या उनके िहत क ितिनिध थी, वह ापक मुि लम समुदाय के िलए
दमन का तीक। इस उदाहरण म मातड िजस ‘मज़बूत शासन’ क बात कर रहा है, वह
अ ततः ब सं यक अिभमत का दमन ही तो है। दुभा य यह क घाटी म सै य ह त ेप भी
लगातार बढ़ा ही तो वह दोन समुदाय के बीच काला तर म दू रयाँ बढ़ाने म अ य
तौर पर िज़ मेदार आ ही।

परमे री हांडू मामला : सड़क पर उतरा िववाद


दोन समुदाय के बीच यह तनाव 28 जुलाई, 1967 म एक घटना के बहाने अपने चरम पर
प च
ँ गया जब क मीरी पंिडत क रहाइश वाले रै नावारी के जोगी लंकर इलाक़े क
िनवासी परमे री हांडू नामक एक क मीरी पंिडत लड़क ने धम बदलकर ीनगर के
सहकारी िडपाटमटल टोर ‘अपना बाज़ार’ म अपने एक सहकम ग़लाम रसूल काँठ से
शादी कर ली। धम प रवतन 20 जुलाई को आ था और यह शादी क मीर के मु ती
आज़म ने करवाई थी। हालाँ क क मीर म अंतरधा मक िववाह ब त चिलत नह रहे और
इसके पहले और बाद म भी अनेक ऐसे िववाह ए ह; पर तु इस िववाह ने क मीर के
सामािजक-राजनीितक जीवन म बवाल मचा दया। एक दन बाद उसने ि तीय अित र
मुंसफ को अपने धम प रवतन और िववाह का शपथ-प तुत कया िजसम कहा गया था
क उसने यह िववाह अपनी इ छा से कया है। अलग धम क लड़क से शादी करने क
वजह से लड़के के िपता ने उ ह साथ रखने से इनकार कया और वे दूसरी जगह रहने लगे।
3 अग त को लड़क क माँ ने रै नावाड़ी के पुिलस थाने म अपहरण क आशंका करते
ए िशकायत दज करवाई क उनक लड़क 17 वष क नाबािलग़ है और सुबह 11 बजे से
ग़ायब है। अगले दन लड़क ने जुमे क नमाज़ जािमया मि जद म अदा क और अपने
धम-प रवतन तथा िववाह क घोषणा करते ए नैितक समथन क माँग क । उधर माँ क
िशकायत पर मामला दज करके लड़क को महाराजगंज थाने ले जाया गया और वहाँ
लड़क के मामा, माँ और कु छ व र पंिडत ने उसे समझाने क नाकाम कोिशश क । बशीर
बताते ह क मामला त कालीन डी.आई.जी. पुिलस डी.एन. कौल के कहने पर दज कया
गया था। वहाँ से उसे खा यार थाने म ले जाया गया और वहाँ ि लोक नाथ धर के नेतृ व
म जनसंघ से जुड़े पंिडत ने दो बार उससे मुलाक़ात क । ले कन लड़क अपनी िज़द पर
अड़ी रही और अ ततः उसे अपने पित के साथ जाने दया गया। इस बार उसक ससुराल म
उसका वागत आ। जाँच म यह भी पाया गया क लड़क बािलग़ है।87
सामा यतः मामला यहाँ ख़ म हो जाना चािहए था, ले कन दो लोग के बीच का यह
मामला ज द ही सड़क पर आ गया जब लड़क को घर भेजने क जगह अदालत म पेश
करने क माँग को लेकर पंिडत समाज सड़क पर आ गया। पुिलस ने सफ़ाई दी क लड़क
को उसक माँ, मामा, ि लोक नाथ म टू (अ य सुधार सिमित) आ द के कहने पर
यायालय म पेश नह कया गया है। उनके आ ह पर उ ह लड़क को समझाने का पया
समय दया गया और जब वह नह मानी तो उसे आज़ाद कर दया गया। ले कन इससे
अस तु पंिडत ने िवरोध करना शु कया और पूरे ीनगर म अनेक िवरोध दशन ए,
हड़ताल क ग और कई लोग क जान गई। ेमनाथ बज़ाज़ बताते ह क पंिडत
संवाददाता ने इसक बड़ी-बड़ी रपो स रा ीय मीिडया म भेज और मामला ‘मुि लम
लड़के ारा िह दू लड़क के अपहरण’ का बना दया गया। मोहनलाल कौल अपने आ यान
म डी.आई.जी. पुिलस डी.एन. कौल का कह िज़ नह करते और बताते ह क लड़क क
माँ को अके ले म नह िमलने दया गया। वह मामले के यायालय म जाने का भी िज़ नह
करते और मामले को रै नावाड़ी इलाक़े से पहले महाराजगंज और फर खा यार जैसे
मुि लम-ब ल इलाक़ के थान म ले जाने पर भी सवाल उठाते ह।88 हालाँ क बशीर
बताते ह क धमातरण और िववाह को र करने के िलए लड़क क माँ ने यायालय म
मामला दज कया जहाँ पंिडत समुदाय के िजया लाल चौधरी, मधुसूदन काक, ीकांत
ट कू और एस.एल. कौल जैसे िति त वक ल ने पैरवी क । कहा गया क लड़क ने
‘भयानक द र ता’ के कारण नौकरी क थी और आरोपी अपहरणकता ने ‘कुँ आरी से स
गल पर दबाव बनाने के िलए सभी कु टल तरीक़े अपनाए थे।’ टोर के मैनेजर पर भी
लड़के के सहयोग का आरोप लगाया गया।
इधर शीतलनाथ पंिडत के आ दोलन का के बना। 7 अग त को ई पहली सभा म
ज मू-क मीर िवधान प रषद के त कालीन अ य पंिडत िशव नारायण फोतेदार ने कहा :
‘इस बात का ख़तरा है क हालात और िबगड़ सकते ह और इसका असर भारत म भी पड़
सकता है।’ असल म ऐसा लगता है क यह पूरा आ दोलन मो-ए-मु दस के आ दोलन के
तज़ पर चलाने और इसे देश भर म फै लाकर शि दशन ारा सरकार पर दबाव बनाने
क कोिशश क गई। अगले ही दन ग ठत ‘क मीरी िह दू ए शन कमेटी’ के नाम पर ग़ौर
करने क ज़ रत है। एक तरफ़ यह मो-ए-मु दस के दौरान बनी कमेटी के नाम के ही तज़
पर है दूसरी तरफ़ इसे ‘पंिडत’ न कह कर ‘िह दू ए शन कमेटी’ कहा गया। ज़ािहर तौर पर
यह भारत के ापक िह दू समुदाय को आक षत करने के िलए था। घोषणा क गई क
‘अ पसं यक होने का मतलब यह नह क हम कमज़ोर ह और भारत हमारे साथ है’—यह
बयान क मीरी पंिडत क उस मानिसकता को साफ़ बताता है िजसके तहत रा य म
अ पसं यक होने के एहसास क ितपू त देश क ब सं या के साथ जुड़कर क जा सकती
थी। 13 अग त को जनसंघ के बैनर पर सभा ई तो इसम द ली, आं देश और दीगर
जगह से िह दू महासभा के नेता प च ँ ।े 16 अग त को पंिडत छा ने जुलूस िनकाला। 21
अग त को एक मि जद पर भावनाएँ भड़काने वाले पो टर लगाये गए तो मामला िबगड़ा
22 अग त को बलराज मधोक के आने के बाद। मधोक ने मुसलमान को पा क तान चले
जाने जैसी भड़काऊ बात क तो अब तक इस आ दोलन से दूर रहे मुि लम नेतृ व का
स य हो जाना वाभािवक था। इस पूरे दौर म शेख़ अ दु ला िगर तार थे तो लेिबसाइट
ं ट के नेता बेग़ नज़रब द। मुि लम नेतृ व अब तक शा त रहने तथा इसे िनजी मामला
बताकर राजनीित न करने जैसी सलाह दे रहा था ले कन 22 तारीख़ के बाद दोन तरफ़ से
आ दोलन तेज़ हो गया। मिहलाएँ भी सड़क पर उतर आ । एक तरफ़ से नारा लगा :
‘हमारी बहन को वापस करो’, तो दूसरी तरफ़ से : ‘इिडयट मधोक मुदाबाद’। अफ़वाह
तेज़ । घर और दुकान जल । आँसू गैस और लाठी चाज म दो पंिडत क मृ यु हो गई
और दोन तरफ़ के कई लोग घायल ए। मृत पंिडत क शव-या ाएँ िनकाली ग तो िजस
तरह क हंसा और दशन ए, वे हाल के दन म आतंकवा दय क शव-या ा के साथ
होनेवाली राजनीित के क़रीब लगते ह। इसी दौरान क मीर म पहली बार पुिलसवाल क
राइफल लूटने क घटना ई तो कई सारे बाहरी लोग क िशना त क गई, जो हंसा
फै लाने के उ े य से आए थे। थानीय इं जीिनय रं ग कॉलेज के मुि लम छा ने आरोप
लगाया क पंिडत छा ने अपने कमर म सश जनसंघी कायकता को जगह दी है तो
झेलम के दो कनार पर खड़े होकर िह दु और मुसलमान के बीच गाली-गलौज ई,
वह शायद क मीरी इितहास म पहली थी। देश भर म पंिडत ने ताव पास कये तो
ज मू म मामला िह दू-मुि लम बनना ही था। पाँच मुि लम लड़ कय के अपहरण क ख़बर
फै ली और कु ल िमलाकर ि थित बेहद िव फोटक हो गई। ज़ािहर है क इस पूरी प रघटना
को दोन समुदाय के आपसी अिव ास के भयावह तरीक़े से सतह पर आ जाने क तरह
देखा जाना चािहए।
इसम दो घटना पर थोड़ा यान देना रोचक होगा। आ दोलन के दौरान क मीरी
िह दू ए शन कमेटी के मंच से बोलते ए माखन लाल हरकारा ने कहा : ‘अगर सरकार
क मीरी पंिडत के साथ स मानजनक वहार नह करती तो उसे पंिडत को घाटी से
िनकालने क व था करनी चािहए।’ पलायन क यह पहली धमक है जो आज़ादी के
बाद सुनाई देती है। आगे हम देखगे क यह धमक बार-बार दुहराई गई। दूसरा त य
संवाददाता से जुड़ा है। बशीर बताते ह क पे याॅट को छोड़कर सभी रा ीय अख़बार
के घाटी म संवाददाता क मीरी पंिडत थे। बज़ाज़ िव तार म बताते ह क इसका असर यह
आ क आम तौर पर शेष भारत के मामल म से यूलर ख़ अपनाने वाले अख़बार भी
क मीर क इस घटना के बारे म एकतरफ़ा रपो टग कर रहे थे। यह प रघटना रे खां कत
क जानी चािहए। क मीर म प का रता पर पंिडत के इस क़ ज़े का, रा ीय अख़बार क
ख़बर और इसी म म क मीर के बारे म शेष भारत क अवधारणा पर गहरा असर पड़ा
है। यही ि थित कमोबेश आल इं िडया रे िडयो और फर दूरदशन क भी रही।
क़रीब एक महीने चले इस तनाव का अ त भी नाटक य तरीक़े से आ। आदतन
िशकायत द ली लेकर प च ँ े पंिडत नेता को उ मीद नह थी क इि दरा गांधी उ ह इस
क़दर डाँटगी। क मीरी पंिडत से भरे इि दरा जी के सिचवालय और ख़द उनक क मीरी
पंिडत पृ भूिम के चलते उ ह उ मीद यही रही होगी क वहाँ से समथन िमलेगा। ले कन
लगता यह है क इि दरा के क़रीबी और क मीर मामल म द ली के आँख-कान रहे
त कालीन सरकार म व र मं ी डी.पी. धर इस आ दोलन से ख़श नह थे। हालाँ क इसी
बीच उ ह ने ‘मु यमं ी क नीितय से अस तु होकर’ इ तीफ़ा दे दया और फर ‘िम
के दबाव’ म वापस भी ले िलया।89 जनसंघ क चाल वह समझ रहे थे और इसीिलए हम
देखते ह क िवधान सभा के बाहर और भीतर उनक कोई भूिमका दखती नह है। स भव
है, उ ह ने इि दरा गांधी को जो रपो टग क हो, यह उसका ही असर हो! इसीिलए जब
गृहमं ी वाय.बी. च हाण ीनगर प च ँ े तो थोड़े नाज़-नखरे के बाद दोन प के बीच
सुलह जैसी ि थित बनी और आ दोलन वापस ले िलया गया। सा दक़ सरकार ने जाँच के
िलए दो कमे टयाँ भी बना ले कन बाद म न ही उनका कोई पता चला और न यायालय
म ही मामला ल बा चला। आ दोलन जब वापस िलया गया तो उस समय यायालय म
गवाह के बयान दज कये जाने थे ले कन पंिडत समुदाय ने मामले को आगे न चलाने का
िनणय िलया।90
1967 म ही एक और घटना ई थी। ज मू और क मीर हाईकोट म एक क मीरी मुि लम
जज को जूिनयर जज क तरह शािमल करने क या शु ई थी। अब तक कोई भी
क मीरी मुसलमान हाई कोट म इस पद पर नह प चँ ा था और उस समय तीन जज म से
एक ग़ैर-क मीरी (मु य यायाधीश), एक क मीरी पंिडत और एक ज मू के थे। व र तम
िजला और सेशन जज िमयाँ जलालु ीन का नाम इसके िलए तािवत कया गया ले कन
पंिडत जज जे.एन. भ ने इस पर आपि क और स भव नह होने दया। सा दक़ ने यह
मामला उन दन ई आल इं िडया इं टी ेशन कॉ स म इि दरा गांधी के सम भी उठाया
था।91 लगभग एक दशक बाद जलालु ीन 1978 म ज मू और क मीर के पहले क मीरी
मुि लम मु य यायाधीश बन सके ।
हालाँ क इसका कोई बड़ा त कालीन भाव नह आ ले कन जािहर है क इस पूरी
प रघटना को दोन समुदाय के आपसी अिव ास के भयावह तरीक़े से सतह पर आ जाने
क तरह देखा जाना चािहए, िजसका फ़ायदा वाभािवक प से दोन तरफ़ के
सा दाियक त व ने उठाया और सतह के नीचे यह अिव ास घटने क जगह लगातार
बढ़ता चला गया।
िव थािपत पंिडत के संगठन पनुन क मीर ारा आयोिजत बलराज मधोक क
जय ती के यू ूब पर उपल ध वीिडयोज़ म इसके नेता और ितिनिधय क मधोक को
दी गई ांजिलय और उनसे जुड़ी मृितय को सुनते ऐसा लगता है क मधोक क
स यता और पंिडत के बीच उनका असर लगातार बढ़ता गया था। ऐसे ही एक वीिडयो
म अि शेखर नामक व ा उस दौर म गाँव म ा मधोक के िजस ख़ौफ़ क बात करते ह,
वह अिव सनीय लगने के बावजूद स र और अ सी के दशक म पंिडत के बीच मधोक के
भाव को तो बताता ही है। इस वीिडयो म िजस तरह ‘श ु ’ के भय क बात वह इस
स दभ म करते ह, उसे सुनते ए एक सू म अ पसं यक समाज क शि क तलाश म
दि णपंथ म ढू ँढ़ा गया अवल बन और उसके एक िह से म ब सं यक वग के िलए गहरी
नफ़रत को भी समझने म मदद िमल सकती है।92
1968 म जी.एम. सा दक़ ने इि दरा गांधी से िशकायत क थी : ‘अगर म आपसे क ँ
क सुर ा के िलहाज़ से सेना क एक और क पनी क ज़ रत है तो आप तुर त भेज दगी
ले कन अगर म दो फै ट रय के िलए क ँ तो आप बीस कारण िगना दगी क ऐसा नह
कया जा सकता। ऐसे म आप बताइए क हमारे युवा या करगे?’ ज मू और क मीर के
उ ोग के िवकास के िलए दी गई यादातर सुिवधा का उपयोग ज मू े म हो जाता
था।93 ऐसे म सरकारी नौक रय को लेकर वह मारा-मारी समझी जा सकती है जहाँ त य
से अिधक अवधारणाएँ मह वपूण हो जाती ह।
नौक रय म ितिनिध व के मामले म च हाण से पंिडत क िशकायत के जवाब म
स पे गए िववरण के अनुसार उस समय कु ल 2,252 राजपि त पद म से 924 मुसलमान
के पास थे और 638 क मीरी पंिडत के पास। इस तरह अगर देख तो ज मू और क मीर म
कु ल िमलाकर 68 फ़ सद आबादी वाले मुसलमान के पास 40 ितशत पद थे जब क 1.5
फ़ सद आबादी वाले पंिडत के पास 28 ितशत से अिधक। अगर िह दू-मुि लम के स दभ
म देख तो 32 फ़ सद िसख-िह दू आबादी 60 फ़ सद राजपि त पद पर कािबज़ थी। 1966
म 45 मुि लम उ मीदवार राजपि त पद पर िनयु कये गए थे जब क 91 ग़ैर-मुि लम।
इं जीिनय रं ग कॉलेज क सीट म 77 सीट मुसलमान को िमली थ तो 66 पंिडत को और
67 ज मू के अ य िह दु को। इसे पंिडत या िह दु के ित अ यायपूण कहा जाना
चािहए या मुसलमान के , यह फ़ै सला पाठक पर। इस मु े पर बनी एक जाँच सिमित ने
अपनी रपोट म कहा क ‘हालाँ क नौक रय म मुसलमान क सं या म लगातार वृि
ई है ले कन अब भी जनसं या म अपनी भागीदारी क तुलना म नौक रय म उनका
ितिनिध व काफ़ कम है। वह नौक रय म पंिडत क सं या म कमी आई है ले कन अब
भी उनक भागीदारी उनक जनसं या के अनुपात से कह अिधक है।94 इसी दौर म बनी
गजे गडकर कमेटी ने ल ाख जैसे े के िपछड़ेपन को यान म रखते ए े ीय
असंतुलन दूर करने के स दभ म कई िसफ़ा रश क िज ह सा दक़ सरकार ने वीकार कर
िलया। ि लोक नाथ एवं अ य बनाम ज मू क मीर रा य मामले म उ तम यायालय के
फ़ै सले के बाद 3 फ़रवरी, 1969 म वज़ीर कमेटी बनाई गई िजसने 29 नव बर, 1969 को
अपनी रपोट पेश क । सा दक़ सरकार ने इसे वीकार करते ए 1 मई, 1970 को नई
आर ण नीित घोिषत क िजसके तहत दिलत को 8 ितशत और िपछड़ को 42 ितशत
(िजसम 2 ितशत ल ाख के िलए था) आर ण दया गया। इसी म म रा य सरकार म
भ तय के िलए टेट सबा डनेट सेवा चयन आयोग तथा िज़ला शासन म भत के िलए
िज़ला चयन आयोग बनाया। साथ म शै िणक सं था म भी इसी आधार पर दािख़ले के
नये िनयम बनाये गए।
असल म, ब शी सरकार म िश ा का जो चौतरफ़ा िव तार आ, उसक वजह से वहाँ
उ िश ा- ा युवा का एक नया वग पैदा आ िजसक आकां ाएँ अब नई थ ।
क मीर क तनावपूण ि थितय और िविश भौगोिलक ि थितय के कारण वहाँ
औ ोिगक िवकास क सीमाएँ वाभािवक ह, इसीिलए राजक य पूँजीवाद के उस दौर म
भी क मीर म ऐसे उ ोग-धंधे नह लग सके िजससे युवा को बड़े पैमाने पर
स मानजनक रोज़गार िमल सके । इसिलए ले-दे कर सरकारी नौक रयाँ ही बचती ह जहाँ
ा ाचार क स भावना के साथ एक बेहतर सामािजक-आ थक ि थित पाई जा
सकती थी। इसिलए नौक रय म िह सेदारी का संघष उसी तरह धा मक ुवीकरण म
प रणत आ जैसा हमने तीस के दशक और उसके बाद के समय म देखा था। लगातार
चुनाव म धाँधली* ने इसके साथ िमलकर युवा के अस तोष को बढ़ाने म मह वपूण
भूिमका िनभाई। यहाँ यह बता देना ासंिगक होगा क क मीर म पहला आतंकवादी
संगठन ‘अल फ़तेह’ इसी दौर म 1968 के अ त म बना था िजसका नेतृ व ग़लाम रसूल
जहाँगीर के हाथ म था और िजसम फ़ज़ल हक़ क़ु रै शी जैसे लोग शािमल थे िज ह ने बाद म
रयत के िनमाण म मह वपूण भूिमका िनभाई। राव फ़रमान अली 1965 के यु के बाद
क मीरी युवक क नई पीढ़ी म मोहभंग और आतंकवादी आ दोलन क शु आत के बारे म
कु छ बेहद मह वपूण जानकारी देते ह।95 डेिवड देवदास अपनी कताब द टोरी ऑफ़
क मीर म ऐसे ही एक युवक को लेकर न बे के आतंकवाद का पूरा ताना-बाना बुनते ह
िजसके िपता इतने पैस का जुगाड़ करने म असफल रहे क मं ी को देकर मेिडकल म
दािख़ला करा सके । लेिबसाइट ं ट से लेकर ऐसे संगठन और ि य का वजूद और
मह व क मीर म हमेशा बना रहा िज ह पा क तान से लगातार मदद िमलती रही और
ख़ास तौर से क मीरी म यवग के एक िह से म पा क तान को लेकर एक समथन और
रोमांच हमेशा रहा। इस स दभ म अहमद पा क तान अिधकृ त क मीर के रा पित रहे
मीरवायज़ यूसुफ़ शाह का एक मज़ेदार बयान कोट करते ह :
अगर जनमत-सं ह हो जाए तो पा क तान के क़ ज़े वाले सारे लोग भारत को वोट दगे और घाटी के
लोग पा क तान को। वजह यह है क वहाँ वाल ने पा क तान क हक़ क़त जान ली है, यहाँ वाल
को अभी नह पता।96

क मीर समझौता, शेख़ क वापसी और आगे


11 दस बर, 1971 को सा दक़ ने चंडीगढ़ म जब आिख़री साँस ली तो उसके पहले वह
शेख़ से स ब ध सुधारने क कोिशश कर रहे थे और लेिबसाइट ं ट को पंचायत के चुनाव
म भाग लेने क इजाज़त दी गई थी। असल म, मो-ए-मु दस आ दोलन के दौरान ही शेख़
क रहाई क जो माँग उठी थी, वह लगातार तेज़ हो रही थी। भारत म जय काश
नारायण सिहत अनेक मह वपूण नेता लगातार शेख़ को रहा करने क माँग कर रहे थे।
1968 म वह रहा कर दये गए और उसी साल क मीर म उ ह ने क मीर पर िविभ
धारा के लोग के संवाद के िलए एक ‘क मीर टेट पीप स क वशन’ भी आयोिजत
कया िजसम सा दक़ ने कोई अड़ंगा नह डाला।97
12 दस बर, 1971 को चंडीगढ़ के एक अ पताल म ग़लाम मोह मद सा दक़ ने 50
वष क आयु म आिख़री साँस ली और अगले दन सैयद मीर क़ािसम को क मीर के
मु यमं ी पद क शपथ दलाई गई। मीर क़ािसम ने छह महीने के भीतर नये चुनाव कराने
का िनणय िलया तो लेिबसाइट ं ट इसम िह सा लेना चाहता था। इस पूरे घटना म पर
मीर क़ािसम को पढ़ लेना रोचक होगा :
जब वाज़ा ग़लाम मोइउ ीन कारा शेख़ से िमलने द ली जा रहे थे तो म उनसे ज मू म से िमला।
उ ह ने मुझसे कहा क वह शेख़ को चुनाव म भाग लेने के िलए मनाएँग।े
ले कन मने सोचा क ऐसे समय पर जब के शेख़ अ दु ला से फर से बातचीत शु करना
चाहता है, चुनाव म लेिबसाइट ं ट क भागीदारी मामले को ज टल बनाएगी। कारण यह क
अगर चुनाव साफ़-सुथरे ए तो ं ट क जीत तय थी और एक िवजेता प के प म ं ट एक मज़बूत
ि थित से बात करे गा। यह बात ीमती गांधी को िखजा देगी और स भव है क वह शेख़ से बातचीत
करने का इरादा ही छोड़ द। यह के और ज मू और क मीर सरकार के बीच टकराव को और
बढ़ाएगा। मने क़ारा को सलाह दी क वह शेख़ को चुनाव लड़ने के िलए न कह और वादा कया क
अगर चुनाव के बाद मु यमं ी बना तो म शेख़ से शाि त-वाता फर से शु क ँ गा...। वह बिज़द थे
तो क मीर के ापक िहत म मने उ ह िगर तार करवा दया...। मने बेगम अ दु ला के क मीर म
घुसने पर भी ितब ध लगा दया।
इस बीच जमात-ए-इ लामी क मीर के भारत के िवलय के अि तम होने पर म फै ला रहा था।
मने इसके नेता से कहा क म उ ह चुनाव नह लड़ने दूग
ँ ा य क वे क मीर के भारत म िवलय को
वीकार नह करते। ले कन उनके नेता ने कहा क ऐसा नह है, वे भारत के संिवधान क शपथ
लगे।
मने जमात के चुनाव लड़ने पर ितब ध के मसले पर फ़ोन पर इि दरा गांधी से भी सलाह ली।
ीमती गांधी ने कहा—ना। यह बाक़ देश म हालात को उनके िलए मुि कल करे गा य क
आर.एस.एस. जैसे सा दाियक संगठन को भी ितबि धत करना पड़ेगा। उन पर वैसे ही दबाव है
आर.एस.एस. को ितबि धत करने का। मने कहा—दोन को ितबि धत कर दीिजए। उ ह ने कहा
—नह ।98
तो भारत और पा क तान के बीच क ख चतान ने क मीर म लोकतं क प रभाषा
को ही जैसे बदल दया था। मीर अब तक के मु यमंि य म इस मामले म शायद सबसे
प थे। वह ‘अल फ़तेह’ के युवा लड़क को तो एक और मौक़ा दे सकते थे ले कन भारत
और क मीर के िवलय पर सवाल उठानेवाल को लेकर कोई छू ट देने को नह तैयार थे।
ले कन के क मजबू रयाँ ऐसी थ क शेख़ को चुनाव से पहले ज मू जाते समय िगर तार
कर िलया गया और जमात ने चुनाव म िह सा िलया। चुनाव वैसे ही ए, जैसे होते आए थे
और मीर क़ािसम फर से मु यमं ी चुने गए तो उ ह ने अपना वादा िनभाया।
असल म इन सबके बीच जो सबसे मह वपूण घटना ई थी, वह थी 1972 के यु म
भारत क जीत, पा क तान का िवभाजन और िशमला समझौता।* इन सबने पा क तान
क ओर उ मीद से देखने वाल को व ती तौर पर िनराश कर दया। अब न जनमत-सं ह
या आज़ादी क माँग भावी रह गई थी और न ही उनके िलए क मीर म राजनीित कर
पाना स भव था। बलराज पुरी बताते ह क बां लादेश यु के पहले उ ह ने अ दु ला से
कहा था क एक तरफ़ भारत सरकार को मुसलमान के समथन क ज़ रत है और वह
भारतीय उपमहा ीप म मुसलमान के सबसे बड़े नेता ह तो दूसरी तरफ़ भारत क
बां लादेश-नीित का समथन करके वह क मीर के िलए भी बां लादेश जैसी उदार नीित क
माँग कर सकते ह।99 ले कन उस समय शेख़ अ दु ला इसके िलए तैयार नह ए। इस यु
म भारत क िवजय ने न के वल पा क तान क तुलना म भारत क सै य ताक़त क े ता
थािपत क बि क ि रा वाद के उस िस ा त को भी ग़लत सािबत कया िजसके अनुसार
रा सां कृ ितक नह , एक धा मक इकाई था।
वह एक तरफ़, भारत सरकार के ऊपर शेख़ को रहा करने के िलए लगातार दबाव
बन रहा था (जय काश नारायण के अलावा 163 संसद सद य ने शेख़ को रहा करने तथा
बातचीत करने क माँग क थी) तो दूसरी तरफ़ अब शेख़ भी बातचीत कर कोई राह
िनकालने के िलए उ सुक थे। अपनी आ मकथा म वह कहते ह :
मने के सरकार को आ त कया क िवलय को लेकर हमारा आपसे कोई मतभेद नह है। हम
के वल यह चाहते ह क अनु छेद 370 अपने मूल प म लागू क जाए। मने कहा क म इि दरा गांधी
से बातचीत करने को तैयार ।ँ उनके मु य सिचव पी.एन. ह सर मुझसे िमलने आए और एक ितिथ
तय क गई। हमारी बातचीत ब त उपयोगी रही। लेिबसाइट ं ट से ितब ध हटा दये गए और
मुझे, मेरी प ी तथा िमज़ा मोह मद अफ़ज़ल बेग़ को क मीर म वेश करने क अनुमित दी गई। 5
जून, 1972 को मुझे रहा कर दया गया।100
दो वष क लगातार बातचीत के बाद दोन प के बीच सहमित बनी और 13
नव बर, 1974 को शेख़ अ दु ला के ितिनिध िमज़ा मोह मद अफ़ज़ल बेग़ तथा भारत
सरकार के ितिनिध जी. पाथसारथी ने ‘क मीर समझौते’ पर ह ता र कये। इस
समझौते के अनुसार ज मू और क मीर रा य को भारत का िह सा माना गया और यह तय
पाया गया क क मीर का शासन अनु छेद 370 के अनुसार ही चलता रहेगा। भारत
सरकार ने इस अनु छेद म कये गए कु छ संशोधन को वापस लेने पर सहानुभूितपूवक
िवचार करने का आ ासन भी दया।101 शेख़ इसे अपने राजनीितक आ दोलन का नया
दौर बताते ह102 तो इि दरा गांधी ने लोकसभा म कहा : ‘समझौते म अ त निहत क़ानूनी
दाँवपच से अिधक बड़ा हािसल वह है िजसे शेख़ अ दु ला ने दािय व और ‘भरोसे क
पुन थापना’ कहा है। हम िव ास है क हमने आपसी सहकार के िलए एक मज़बूत न व
रखी है।103 शेख़ का मु य ज़ोर वज़ीर-ए-आज़म और सदर-ए- रयासत का ओहदा वापस
लागू करने और अनु छेद 370 को 1953 के तर पर वापस लाना था ले कन हक़ क़त यह
क उ ह इनम से कु छ नह िमला। असल म, ऐसा लगता है क ल बे संघष म शेख़ थक गए
थे और उनका प रवार अब येन-के न- कारे ण स ा म आना चाहता था।104 इस पूरी
या म क मीरी राजनीित के मै कयावैली* कहे जानेवाले डी.पी. धर क भूिमका
मह वपूण रही। हमने देखा है क धर 1953 म शेख़ को ग ी से हटाने म और उसके बाद भी
क मीर क राजनीित म बेहद मह वपूण भूिमका िनभाते रहे ह।
सनाउ लाह बट एक घटना का िज़ करते ह जब द ली के डी.पी. धर को रा य के
कसी भी दूसरे नेता से अिधक मह व दये जाने के कारण रा य कां ेस म बवाल शु ए
और सा दक़ इसे लेकर काफ़ नाराज़ भी थे। के सभी मह वपूण मामल पर िसफ़ डी.पी.
धर से ही सलाह-मशिवरा करता था और सा दक़ ारा उनसे गृह मं ालय ले िलये जाने के
बाद भी रा य क गोपनीय सूचनाएँ उनके माफ़त द ली प च ँ जाया करती थ । रा य
शासन का बड़ा िह सा भी धर के ही क़रीब था य क असली स ा उ ह के हाथ म थी।
धर ने द ली म कां ेस पाट म एक ख़ास प च ँ बना ली थी और उनके ुप म मीर
क़ािसम, ग़लाम रसूल कार, मु ती मोह मद सईद और अ य थे।105 हालाँ क इि दरा गांधी
ने इस ुप के सा दक़ को हटाकर क़ािसम को मु यमं ी बनाने क कोिशश को अमली
जामा नह पहनाने दया ले कन ऐसा लगता है क धर क भूिमका कं गमेकर क भले न
हो ले कन इसके ब त क़रीब रही है। उनके मह व का अ दाज़ा इस बात से भी लगाया जा
सकता है क जहाँ शेख़ अ दु ला ने 1953 म अपनी बख़ा तगी के िलए ब शी और सा दक़
को कभी माफ़ नह कया तथा उनक मौत पर उनके प रवार को औपचा रक शोक स देश
भी नह भेजा, वह ष ं के तीसरे भागीदार धर क 12 जून, 1975 को ई मृ यु के बाद
उ ह ने एक आिधका रक शोकसभा आयोिजत क िजसम वह फू ट-फू टकर रोए।106 मृ यु के
समय धर सोिवयत संघ म भारत के राजदूत थे और इस भूिमका म भारत-सोिवयत संघ
मै ी सि ध कराकर एक शानदार भूिमका िनभा चुके थे।
लेिबसाइट ं ट क राजनीित जनमत-सं ह क माँग पर टक ई थी और हालाँ क
वह अब भी िह दू-मुि लम इ ेहाद का नारा लगा रहा था ले कन उसक नीितयाँ सीधे-
सीधे पा क तान समथक थ । 1955 म थािपत होने के बाद से ही उसने क मीरी
मानिसकता म ‘आ मिनणय’ के भाव को गहरे भरा था और जो आज़ादी का नारा बुल द
कया था, उसका सीधा-सादा अथ था—पा क तान म िवलय।
वानी उस दौर म चिलत एक वनवुन* का िज़ करते ह िजसम हरी पगड़ी और
पा क तान के ग़ाज़ी के आने का िज़ है। ं ट से जुड़े लोग का दमन और शेख़ तथा बेग़ क
लगातार िगर ता रय ने क मीरी जनता के बीच उनक जो बिलदानी छिव बनाई थी,
उसने इसक वीकायता और लोकि यता म वृि ही क थी। ं ट के नेता िमज़ा अफ़ज़ल
बेग़ थे ले कन उसके पीछे मू त तो शेख़ क ही थी। क मीर म इस दौरान शेख़ क छिव
उसी ‘मुि दाता’ ग़ाज़ी क बनाई गई। रहाई और क मीर समझौते के बीच शेख़ के
समझौते के नाम पर समपण के आरोप के चलते ए िवरोध दशन के जवाब म शेख़
लगातार जनता के बीच पा क तान का तो नह ले कन जनमत-सं ह के अिधकार का वादा
कर रहे थे।107 ज़ािहर है क भारत सरकार तो इस पर राज़ी नह ही हो सकती थी और
यु म हार तथा िवभाजन के बाद प क तान से कसी सहारे क उ मीद शेख़ को हो नह
सकती थी। इसिलए शेख़ ने लेिबसाइट ं ट को भंग करने का िनणय िलया और नेशनल
कॉ स को पुनज िवत कया। इसके बाद क जो उनक राजनीित थी, वह अपने पूरे
िवतान म भारत-समथक रही, भले बीच-बीच म जनमत-सं ह, अिधक वाय ता आ द
क बात होती रही ले कन शेख़ के समय तक राजनीित ऐसे ही चलती रही।
ले कन यहाँ दो त य पर ग़ौर कया जाना ज़ री होगा :
1. लेिबसाइट ं ट ने क मीरी जनता के मन म जो भाव भरे थे और िजन युवा को
इसने आज़ादी/जनमत-सं ह के सपने दखाए थे, वे शेख़ के मु यमं ी बन जाने भर से
स तु कै से हो सकते थे—वह भी तब, जब द ली ने शेख़ क लगभग कोई माँग
वीकार नह क थी?**
2. जब हम यहाँ ‘क मीरी जनता’ कह रहे ह तो उसम क मीरी पंिडत कै से शािमल हो
सकते थे? उस ‘आज़ादी’ म क मीरी पंिडत कै से शािमल हो सकते थे िजसम इसका
मानी ‘पा क तान से िवलय’ बना दया गया था?

इन दोन त य ने आगे क मीर के राजनीितक-सामािजक जीवन पर गहरा असर डाला


िजसे हम अगले अ याय म िव तार से देखगे।

स ा म शेख़ और उसके आगे (1975-82)


‘क मीर समझौते’ का सबसे बड़ा असर यह आ क मीर क़ािसम को शेख़ अ दु ला के
िलए ग ी छोड़नी पड़ी। यह भी शायद क मीर क राजनीित म ही स भव था क िबना
कसी पाट या िबना कसी िवधायक के शेख़ अ दु ला उस कां ेस के समथन से 25
फ़रवरी, 1975 को मु यमं ी बने िजसके दो मुख नेता ग़लाम रसूल कार और मु ती
मोह मद सईद खुलेआम इसके िख़लाफ़ थे तो मीर क़ािसम इसे लेकर असहज थे और
अ दुल ग़नी लोन यह आहट िमलने पर मंि मंडल से इ तीफ़ा दे चुके थे।108 शेख़ ने
मंि मंडल म िसफ़ 3 लोग शािमल कये : घाटी से िमज़ा अफ़ज़ल बेग़, ल ाख से सोनम
ाबू और ज मू से डी.डी. ठाकु र। एक रोचक त य यह है क बेग़ के अलावा बाक़ दोन का
अब तक राजनीित से कोई लेना-देना नह रहा था। ाबू मंगोिलया म भारत के राजदूत थे
और ठाकु र हाईकोट म जज। इसका कारण बताते ए उ ह ने जो कहा, वह मज़ेदार है—
मुझे रा य म िसफ़ तीन ईमानदार लोग िमले और मने तीन को मंि मंडल म शािमल कर
िलया। एक और रोचक त य डी.डी. ठाकु र बताते ह—पूव सदर-ए- रयासत और उस समय
उधमपुर के सांसद करण संह शेख़ अ दु ला के इस शपथ- हण समारोह म शािमल नह
ए थे!109
ख़ैर, यह व था ब त दन चली नह । आपातकाल के बाद ए चुनाव म स ा से
बाहर हो चुक ीमती गांधी देश कां ेस के नेता के दबाव म आ ग । मु ती क नज़र
मु यमं ी पद पर थी। मंि प रषद के सवाल पर कां ेस अ य के प म शेख़ पर
ाचार और नाकामी का आरोप लगाकर समथन वापस ले िलया तथा सरकार बनाने का
दावा पेश कर दया। ले कन शेख़ ने ज मू और क मीर के संिवधान क धारा 53 के तहत
िमले अिधकार का उपयोग करते ए तुर त िवधान सभा भंग करने तथा नये चुनाव कराने
क माँग क । द ली क स ा बदलने के साथ के का रवैया भी बदल गया और मु ती क
उ मीद पर पानी फे रते ए रा यपाल एल.के . झा ने िवधान सभा भंग कराकर नये चुनाव
कराने क घोषणा कर दी।110
1977 म क मीर िवधान सभा के िलए ए चुनाव क मीर के इितहास म कई मानी म
बेहद मह वपूण रहे। इस बार कां ेस और नेशनल कॉ स के सम एक और पाट खड़ी
क गई—जनता पाट ! यह एकदम ‘कह का ट, कह का रोड़ा’ क तज़ पर बनी थी।
लगभग िनि य पड़े मोिहउ ीन कारा ने क मीर म जनता पाट क थापना क । थापना
समारोह म जनसंघ के टीका लाल टपलू, लेिबसाइट ं ट म रहे ग़लाम रसूल कोचक और
भावशाली मोटर ाइवस एसोिसएशन के अ य भी मौजूद थे। लोक सभा चुनाव क
जीत से उ सािहत जनता पाट शेख़-िवरोधी सभी कार के त व को एक मंच पर लाकर
क मीर म सफलता पाना चाहती थी। मौलाना मसूदी, मीरवायज़ मौलाना फ़ा क़,
मौलाना अ बास अंसारी, अ दुल ग़नी लोन, ग़लाम अहमद मीर ही नह बि क द ली और
ब बई म बसे ेमनाथ बज़ाज़ तथा अली मोह मद तारक भी शेख़ के िख़लाफ़ मोचा खोलने
क मीर आ गए। मौलाना मसूदी को जनता पाट क कमान स पी गई।111 जमात-ए-
इ लामी और जनसंघ, दोन का शेख़ के िख़लाफ़ जनता पाट के साथ आ जाना रोचक भी
था और कम से कम चार के दौरान संघष काँटे का लग रहा था। शेख़ के िख़लाफ़ हर तरह
के आरोप लगाये गए और जनता को हर तरह के लोभन देने क कोिशश क गई। हालत
यह थी क पूव जनसंघी ही नह , त कालीन गृहमं ी चरण संह भी अनु छेद 370 हटाने
का आ ासन दे रहे थे,112 तो दूसरे कई मह वपूण नेता इसे जारी रखने क कसम खा रहे
थे।113 जनता क बढ़-चढ़ कर िह सेदारी और रा य के राजनीितक नेतृ व के हर िह से से
उ मीदवार क भागीदारी के कारण कु छ लोग मानते ह क रा य म ए सबसे साफ़-सुथरे
चुनाव थे।114 शेख़ को दल का दौरा पड़ा और अ ततः 76 सीट म से 47 सीट पर नेशनल
कॉ स को जीत िमली। जनता पाट को 16 सीट पर जीत िमली िजनम 13 ज मू क थ
और कां ेस को के वल 11 सीट। चुनाव के बाद अपने पहले सावजिनक भाषण म ीनगर
के पोलो ाउं ड म एक ई तीन लाख से अिधक जनता को स बोिधत करते ए शेख़ ने
इक़बाल का शेर पढ़ा : जब इ क़ िसखाता है आदाब ख़द आगाही/खुलते ह ग़लाम पर
असरार-ए-शहंशाही। 9 जुलाई, 1977 को शेख़ ने क मीर के मु यमं ी पद क शपथ
ली।115
ले कन 1953 के वज़ीर-ए-आज़म शेख़ अ दु ला और 1975 और 1977 के मु यमं ी
शेख़ अ दु ला म ब त फ़क़ आ चुका था। अब भी वह पीढ़ी थी क मीर म िजसने उस दौर
के शेर-ए-क मीर को और उसके संघष को देखा था ले कन एक नई पीढ़ी इस बीच जवान
हो चुक थी िजसक आकां ाएँ अलग थ । तब क मीर क वाय ता के िलए नेह से
टकराकर जेल और िनवासन के िलए तैयार शेख़ अब इि दरा के सामने डरे ए थे और स ा
म बने रहना उनक पहली ाथिमकता थी। अहमद ने ऐसी अनेक घटना का िज़ कया
है जहाँ इि दरा गांधी ने सावजिनक प से उनका अपमान कया था। क मीर समझौते के
तुर त बाद द ली के एक अं ेज़ी अख़बार म छपा एक काटू न इस बदलाव को बख़ूबी
बताता है िजसम शेख़ एक बूढ़े शेर के प म दखाए गए ह िजनके दांत उनके जबड़ से
िनकालकर शीशे के एक जार म रखे ए ह और इि दरा गांधी उनके सामने चाबुक िलये
खड़ी ह। शीषक कहता है, अब ये दहाड़ सकते ह ले कन काट नह सकते। उ ह दन
ीनगर टाइ स म छपे क मीर के सबसे िति त काटू िन ट बशीर अहमद बशीर ने एक
काटू न म शेख़ अ दु ला को अपनी ेडमाक काराकु ल टोपी सिहत अपना िसर हाथ म
लेकर इि दरा गांधी के सामने मुकुट पहनाए जाने के िलए झुके दखाया गया है। ज़ािहर है
क इस समझौते को क मीरी जनता का एक िह सा शेख़ के समपण क तरह देख रहा था।
देश कां ेस के भीतर उ ह लेकर जो अस तोष था, वह े ीय अस तोष से िमल-जुलकर
ल ाख म हंसक आ दोलन म बदल चुका था तो उनके स ा म आने के बाद ही घाटी म
पंिडत का एक आ दोलन आ— क तवार तथा राजौरी इलाक़ म अलग-अलग मु पर
आ दोलन ए तो ज मू म रसाई को िज़ले बनाने क माँग को लेकर शु आ भाजपा का
आ दोलन अनु छेद 370 हटाने क माँग म बदल गया। अहमद कहते ह—इन सब
आ दोलन को द ली का शह था और शेख़ एक नपुंसक ग़ से के अलावा कु छ नह कर पा
रहे थे।
शेख़ के ये दोन शासनकाल बाक़ चीज़ के साथ जमात-ए-इ लामी पर ितब ध और
उसके कायकता के स त दमन के िलए याद कये जाते ह। उ ह ने जमात के कू ल को
ब द कर दया और उसके कायकता को बड़े पैमाने पर िगर तार कर िलया। इसी दौरान
उ ह ने वह पि लक से टी अिधिनयम (पी.एस.ए.) पास करवाया िजसका बाद म 1990 के
दशक के दौरान जम के योग कया गया और फर 370 हटाने के बाद उनके ही पु
फ़ा क़ अ दु ला के िख़लाफ़ भी। ले कन इसके पीछे सा दाियकता से मुक़ाबले का ज बा
उतना नह था िजतना रा य म एक वैकि पक राजनीितक ताक़त को उभरने से रोकने क
कोिशश। इन कोिशश ने भी जनता म आ ोश और अस तोष के पनपने म ही मदद क ।116
दल के दौरे के बाद कमज़ोर होते जा रहे शेख़ अपने आिख़री दौर म उ ह वृि य के
िशकार ए जो भारतीय उपमहा ीप म आम ह। ाचार के आरोप लगे उन पर और
अपने प रवार के भीतर स ा-सू रखने क योजना के साथ उ भर साथ रहे िमज़ा
अफ़ज़ल बेग़ को पाट से िनकाल दया गया िजसके बाद दामाद गुल शाह तथा बेटे फ़ा क़
अ दु ला के बीच एक बेहद िछछले तर का स ा-संघष शु आ। इसके िव तार म जाना
तो यहाँ उिचत नह होगा, ले कन उस व त क मीर के रा यपाल रहे बी.के . नेह क एक
ट पणी पूरी ि थित क ंजना करती है :
द ली म एक व र क मीरी अिधकारी ने सारे हालात इन अ फ़ाज़ म बयान कये—बाप वृ और
जजर हो चुका है, दामाद एक गुंडा है और बेटा मूख। हम अभागे क मी रय के पास कोई चयन नह
है।117
डी.डी. ठाकु र अपनी जीवनी माई लाइफ़ म ब त िव तार से उ रािधकार क इस
लड़ाई म चली ख चतान के बीच फ़ा क़ के प म अपनी भूिमका का सगव और सुदीघ
बयान करते ह और बी.के . नेह अपनी जीवनी म उसक ताक़ द भी करते ह। हालाँ क
अहमद का मानना है क ठाकु र अपने जुगाड़ म लगे थे। कािसम ने भी शेख़ को फ़ा क़ के
प म तैयार करने क कोिशश का िज़ कया है, अहमद िजसक ताक़ द करते ह। इस
उठा-पठक म आिख़रश: जीत फ़ा क़ क ई। शेख़ ने एक खुली सभा म उ ह अपना
उ रािधकार घोिषत कया और 8 िसत बर, 1982 को जब उ ह ने आिख़री साँस ली तो
उसके तुर त बाद फ़ा क़ को मु यमं ी पद क शपथ दलाई गई।
कु छ शेख़ के संघष के ित स मान और कु छ क मीरी जनता क न ज़ पर पकड़ क
राजनीित क इस उठा-पठक ने क मीर के भीतर िजस तरह का अस तोष पैदा कया था,
वह शेख़ के समय तक एक हद तक काबू म रहा ले कन उनक िवदाई के बाद इसका सतह
के ऊपर आना लािज़मी था। अ सी और न बे के दशक का क़ सा इसी अस तोष के
फु टन, दोन समुदाय पर उनके असर तथा उसके राजनीितक तथा सामािजक भाव
का है िजसक प रणित क मीर ही नह , भारतीय उपमहा ीप क सबसे बड़ी ास दय म
से एक—क मीरी पंिडत के पलायन म ई।

_______________
* बी.पी.एल. बेदी, डा बेदी सिहत नेशनल कॉ स के वामपंथी धड़े को यह डॉ यूमट तैयार करने का ेय दया जाता
है। यह डॉ यूमट दो िह स म है : रा य का संिवधान और रा ीय आ थक योजना। संिवधान को 7 िह स म बाँटा गया है
: नाग रकता, रा ीय िवधान सभा, मंि मंडल, शासक, याय, थानीय शासन और रा ीय भाषा। जनता को ेस क
बैठक करने तथा संगठन बनाने और धरने दशन क आज़ादी सुिनि त क गई। क़ानून ारा सभी को सै य िश ण देने
तथा क़ानून ारा सै य बल गठन के साथ सभी नाग रक को काम का अिधकार सुिनि त करने क बात कही गई। धम
का भेदभाव न करते ए यह संिवधान सभी नाग रक को िश ा, वा य और सुर ा के साथ सावि क मतदान
अिधकार के तहत रा य क िवधान सभा का चुनाव सुिनि त करने क गारं टी देता है। इस संिवधान क एक बड़ी ख़ूबी
मिहला को वोट देने, चुनाव लड़ने तथा िश ा क व था है। थानीय शासन के िलए इसम जनता ारा चुनी
जनपंचायत क व था है। भाषा के सवाल पर जहाँ क मीरी, डोगरी, बा टी, दादरी, पंजाबी, िह दी और उदू को
रा य क भाषाएँ बनाया गया, वह उदू को स पक भाषा का दजा देने क बात कही गई।
रा ीय आ थक योजना को उ पादन, प रवहन, िवतरण, जनसुिवधा तथा मु ा और िव म िवभािजत कया गया।
इनका उ े य जनता को एक उिचत जीवन तर सुिनि त करना था। कृ िष से स बि धत योजना म जागीरदारी था
समा कर ज़मीन जोतने वाले को देना और जंगल को जनता के िनयं ण म लाना था। रा ीय कृ िष योजना को लागू
करने के िलए रा ीय कृ िष काउं िसल क थापना का ताव कया गया। रा य के आ थक संसाधन पर जनता का
अिधकार दया गया तो एक रा ीय लोक वा य काउं िसल बनाकर जनता के िलए वा य और रा ीय िश ा
काउं िसल बनाकर ाइमरी से उ िश ा तक और तकनीक िश ा का संजाल थािपत करने क बात क गई िजसम
िबना कसी धा मक, लिगक और इलाक़ाई भेदभाव के सबके िलए िश ा सुिनि त करने क बात क गई। यही नह ,
रा ीय गृहिनमाण काउं िसल बनाकर लोग को घर उपल ध कराने, रे िडयो टेशन, ि़फ म इं ड ी और कला तथा सं कृ ित
सं था बनाने जैसे ताव शािमल थे। इसक ाथिमकताएँ इसम संल तीन चाटर से समझी जा सकती ह जो कसान ,
मज़दूर और मिहला से स ब थे। यह क मीर म ही नह , दि ण एिशया के त कालीन माहौल म भी एक आगे बढ़ा
आ क़दम और इस प म िनि त प से ांितकारी था। इसका अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है क मुि लम
लीग तो छोिड़ए कां ेस म भी कई नेता इसके िख़लाफ़ थे। के वल नेह ने इसका समथन कया। घाटी म आम तौर से
इससे समथन िमला ले कन क मीरी पंिडत के दि णपंथी संगठन युवक सभा और दि णपंथी मुसलमान के संगठन
मुि लम कॉ स ने इसका िवरोध कया था (देख, पाचमट ऑफ़ क मीर म गुल मोह मद वानी का लेख—‘पॉिल टकल
एसशन ऑफ़ क मीरी आइड टटी’, पेज 129)।
* मुआफ़ धा मक और ग़ैर-धा मक, दोन तरह क होती थी। धा मक मुआ फ़य म भू-राज व का एक-ितहाई
मुआफ़ दार ारा नक़द म िलया जाता था और दो-ितहाई व तु के प म। ग़ैर-धा मक मुआ फ़य के िलए पूरा भू-राज व
नक़द या व तु प म ली जा सकती थी। सरकार ने ग़ैर-धा मक मुआ फ़य को पूरी तरह ख़ म कर दया और धा मक
मुआ फ़य के िलए व तु के प म लगान वसूलने पर रोक लगा दी।
** िज ह रा य से पशन िमलती थी।
* नेह -शेख़-मुखज क यह ख़तो- कताबत आकाइव डॉट ओआरजी पर उपल ध है।
* िह दू कोड िबल और उस पर चले िववाद को गहराई से समझने के िलए पाठक िच ा िस हा क कताब ‘िडबे टंग
पै याक : द िह दू कोड िबल कं ोवस इन इं िडया’, 1941-56, काशक : ओ.यू.पी. इं िडया-2012 पढ़ सकते ह।
* जमात-ए-इ लामी िह द क थापना मौलाना अबुल अल मौदूदी ने 1941 म इ लामी नैितकता और िश ा के
सार के िलए कया था। मौदूदी औरं गाबाद से 1947 म पा क तान चले गए और 1972 तक जमात-ए-इ लामी,
पा क तान के आिमर रहे। जमात-ए-इ लामी, ज मू और क मीर क थापना 1953 म मौलाना अहरार और ग़लाम
रसूल अ दु ला ने क थी और इसका अलग संिवधान बनाया गया था। 1974 म इसक एक शाखा पा क तान अिधकृ त
क मीर म थािपत क गई। पा क तानी लेखक आ रफ़ जमाल का मानना है क यह उस े म से यूलर िवचार के
सार को रोकने के िलए क गई थी। आज़ाद क मीर कहे जानेवाले इलाक़े म आज़ादी समथक छा संगठन के बीच
समाजवादी िवचार ब त तेज़ी से चिलत ए थे। 1980 म िजया ने अफ़ग़ािन तान म सोिवयत संघ के िव अमे रक
ायोिजत यु म िह सेदारी का फ़ै सला कया तो इसके िलए िमलने वाली अ तररा ीय सहायता का बड़ा िह सा क मीर
म आतंकवादी कायवाही के िलए युवक के िश ण पर ख़च करने का िनणय िलया। इसी योजना के तहत 10 जून, 1980
को जमात-ए-इ लामी ने अपने एक नेता को िहज़बुल मुजािहदीन का नेता बनाया। जमात ने िहज़बुल को
िवचारधारा मक दशािनदश, आ थक संसाधन और कै डर उपल ध कराए। न बे के दशक म उसने एक पि का ‘जेहाद-ए-
क मीर’ का काशन शु कया और मोह मद यूसुफ़ शाह उफ़ सैयद सला ीन को इसका आिमर (कमांडर) बनाया।
जमात के छा संगठन जमात-ए-तुलबा के कई कायकता िहज़बुल मुजािहदीन म शािमल ए। िहज़बुल क स यता और
भाव बढ़ने से पा क तान अिधकृ त क मीर और भारतीय क मीर म भी आज़ादी समथक तहरीक का असर कम आ।
* 27 दस बर, 1963 को हज़रतबल मि जद म रखा मोह मद साहब क दाढ़ी का पिव बाल अचानक ग़ायब हो गया।
सुबह जब यह ख़बर आम ई तो क मीर म जैसे भूचाल आ गया। वतः फू त तरीक़े से हज़ार लोग सड़क पर आ गए
और आम हड़ताल हो गई। अफ़वाह का बाज़ार गम हो गया और उनम से एक अफ़वाह यह थी क ब शी साहब वह
बाल अपनी बीमार माँ के िलए ले गए ह। त कालीन धानमं ी श सु ीन का न तो जनता म कोई भाव था और न ही
कोई शासिनक अनुभव। जनता के ग़ से को देखते ए कोई कायवाही करने क जगह उ ह ने ख़द को घर म क़ै द कर
िलया। पा क तान रे िडयो और वहाँ के नेता ने इस माहौल का फ़ायदा उठाने और उसे भड़काने म कोई क़सर नह
छोड़ी। बाल क बरामदगी के िलए आ दोलन चलाने हेतु मौलवी मोह मद सईद मसूदी क अ य ता म एक ए शन
कमेटी बनाई गई िजसम मीरवायज़ मौलवी फ़ा क़ और फ़ा क़ अ दु ला सद य थे। रा य सरकार क अकम यता और
हालात क गंभीरता को देखते ए नेह ने बी.एन. मिलक को ीनगर भेजा जहाँ ब शी क िगर तारी के साथ-साथ
शेख़ क रहाई क भी माँग उठने लगी थी। हंसा क आग बांगलादेश (त कालीन पूव पा क तान) और कोलकाता तक
प च ँ गई। 4 जनवरी को ब शी ीनगर से ज मू चले आए और करण संह ज मू से ीनगर। करण संह हज़रतबल प च ँ े
तो जनता ने उनका ज़ोरदार वागत कया। करण संह ने सभी मं दर म मो-ए-मुक़ स क बरामदगी के िलए ाथनाएँ
आयोिजत करवा । द ली श सु ीन को हटाकर मीर क़ािसम को ग ी पर िबठाना चाहती थी ले कन मीर इसके िलए
तैयार नह थे। चार जनवरी क रात म मिलक और आई. जी. पुिलस एल.डी. ठाकु र ने मो-ए-मुक़ स ढू ँढ़ िनकाला,
हालाँ क चुरानेवाले का नाम सावजिनक नह कया गया। ले कन हालात सामा य 3 फ़रवरी को ही हो सके जब लाल
बहादुर शा ी, श सु ीन और मिलक क उपि थित म ए शन कमेटी क ओर से फ़क़ र मीराक़ शाह ने इसका िनरी ण
करके ‘अल हक़’ (यह सही है) क घोषणा क ।
* ीनगर से िनकलने वाला अख़बार जो पंिडत का मुखप जैसा माना जाता था।
* क मीर म आज़ादी के बाद से ही चुनाव म धाँधली एक बड़ा मु ा रहा। एक तरफ़ नेशनल कॉ स के अलावा कसी
और पाट को पैर नह जमाने दये गए तो दूसरी तरफ़ िजन लोग ने चुनाव लड़ने क कोिशश क , उनके पच ख़ा रज
करवा दये जाते। हालत यह क 4 माच, 1962 को नेह ने ब शी ग़लाम मोह मद को भेजे एक स देश म कहा :
दरअसल, अगर आप कु छ सीट ामािणक िवप ी उ मीदवार से हार जाते तो यह आपक ि थित को और अिधक
मज़बूत कर देता।’ क मीर के एक िति त वक ल ग़लाम नबी हाग बताते ह क उन दन इन चुने ए िवधायक को
रट नग ऑ फसर अ दुल ख़ािलक़ मिलक के नाम पर ‘मेड बाय खािलक़’ कहा जाता था। खािलक़ कसी भी ितकड़म से
िवप ी उ मीदवार के पच ख़ा रज करा देने म मािहर था (िव तार के िलए देख, अ याय 16, क मीरनामा)।
* 1972 के चुनाव होने से पहले पा क तान म एक बड़ा राजनीितक संकट पैदा आ। वहाँ ए चुनाव म शेख़
मुजीबुरहमान क पाट अवामी लीग ने पूव पा क तान क 169 म से 167 सीट जीत और इस तरह पा क तान क 313
सीट वाली नेशनल असे बली म ब मत हािसल कया। ले कन ज़ि फ़कार अली भु ो सिहत पि मी पा क तान के
नेता ने उ ह स ा स पने से इनकार कर दया और इसक जगह दो धानमंि य क व था का ताव कया। इसके
पहले भी वाज़ा नज़ीमु ीन, मुह मद अली बोगरा और सैन शहीद सुहरावद जैसे पूव बंगाल के धानमंि य को भी
पि मी पा क तान के राजनेता ने बख़ा त कर दया था। जनरल याहया ख़ान ने बंगािलय का दमन शु कया और
भु ो ने इसम साथ दया।
बांगलादेश क िनवािसत सरकार कलक ा म बनी। लाख र यूज़ी पि म बंगाल म आ गए और अ ततः िनवािसत
बंगाली नेता के इसरार पर भारतीय सेना ने मुि दाता के प म उसका वागत कया। पा क तानी सेना ने समपण
कर दया और दस बर, 1971 म बां लादेश का िनमाण आ। भारत और पा क तान के बीच यह पहला िनणायक यु
था िजसके प रणाम व प पा क तान दो िह स म बँट गया। हालाँ क इस यु म क मीर कोई मु ा नह था ले कन इस
पराजय ने न के वल पा क तानी स ा ित ान का मनोबल तोड़ने का काम कया बि क शेख़ सिहत क मीर के नेता
पर भी गहरा असर डाला। जून, 1972 म भारत और पा क तान के बीच िशमला समझौता आ िजसम क मीर मामले
को ि प ीय बातचीत से सुलझाने और सि ध रे खा को िनयं ण रे खा के प म वीकार करने पर सहमित ई।
* िनकोलो मै कयावैली पं हव सदी के इटािलयन राजनीित , इितहासकार व नाटककार थे िज ह आधुिनक राजनीित
िव ान का िपता कहा जा सकता है। अपने नाटक ‘द ंस’ म उ ह ने िजस तरह क अनैितक राजनीित का ताव दया
है, उसके चलते इस तरह क राजनीित के स दभ म ‘मै कयावैिलयन’ कहा जाता है।
* क मीर म शा दय के समय मिहला के समूह ारा गाए जानेवाला गीत। यह गीत कु छ इस तरह से है—स ज़
द तरस नबी चुअई राज़ी; पा क तानुक ग़ाज़ी आव (नबी ख़श ह तु हारी हरी पगड़ी से। तु ह देखकर ऐसा लगता है क
पा क तान से ग़ाज़ी आया है)। मज़ेदार त य यह क जब मोरार जी देसाई मीरवायज़ से िमलने आए तो उनके वागत म
भी यही गाया गया।
** उदाहरण के िलए तीस के दशक से ही शेख़ के साथ रहे व र नेता सोफ़ अहमद अकबर ने कहा—यह धोखा है,
पितत आ मसमपण है और िव ासघाती कारवाई है।
स दभ
1. दोन उदाहरण ख़ािलद अहमद बशीर क कताब क मीर : ए पोिज़ग द िमथ िबहाइं ड नैरे टव के पेज 196 और
183 से
2. देख, पेज 338, द ले जंग िचनार, शेख़ मोह मद अ दु ला, अनुवादक : मोह मद अमीन, दूसरा सं करण, गुलशन
बु स, ीनगर, 2016
3. देख, पेज 163, लाइ ज़ ऑफ़ े डा, एं यू हाइटहेड, पी कं ग टाइगर, द ली, 2019
4. देख, पेज 111, अ िह ी ऑफ़ क मीरी िलटरे चर, टी.एन. रै ना, सािह य अकादमी, द ली, 2002
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6. देख, पेज 55, क यूिन ट मूवमट इन क मीर, पीर गयासु ीन, जे.के . बुक हाउस, ज मू
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69. देख, https://www.greaterkashmir.com/news/jammu/pandits-seek-reservation-in-kas-ias/ (आिख़री
बार 14/09/2019 को देखा गया)
70. देख, पेज 142, िब डंग अ यू क मीर : ब शी ग़लाम मोह मद एंड द पॉिल ट स ऑफ़ टेट फ़ॉमशन इन अ
िड यूटेड टे रटरी (1953-63), हसफ़ा कं जवाल, िमिशगन यूिनव सटी म तुत एक शोध-िनबंध
71. देख, पेज 69, क मीर इन ले स, सनाउ लाह बट, अली मोह मद एंड संस, 1981
72. देख, पेज 99-100, माई इयस िवथ शेख़ मोह मद अ दु ला, ग़लाम अहमद, गुलशन बु स, 2008
73. देख, पेज सं या 170, क मीर : एि पोज़ंग द िमथ िबहाइं ड नैरे टव, ख़ािलद अहमद बशीर, सेज इं िडया,
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74. देख, पेज 283, इले शंस इन क मीर, जी.एन. गौहर, मानस पि लके शन, द ली, 2002
75. देख, पेज 154, ले स ऑफ़ िचनार, शेख़ अ दु ला, शेख़ अ दु ला, अनुवाद : खुशवंत संह, पि वन, द ली,
1993
76. देख, पेज 153-54, क मीर : िबहाइं ड द वेल, एम.जे. अकबर, 197-69, क मीर एंड शेर-ए-क मीर : आ
रवो यूशन डीरे ड, पी.एल.डी. पा रमू
77. देख, पेज 156, ले स ऑफ़ िचनार, शेख़ अ दु ला, शेख़ अ दु ला, अनुवाद : खुशवंत संह, पि वन, द ली,
1993
78. देख, पेज 32, क मीर : इं सरजसी एंड आ टर, बलराज पुरी, ओ रयट लॉ गमैन ाइवेट िलिमटेड, तीसरा
सं करण, द ली, 2008
79. इस मामले म िव तार के िलए वीण वामी क कताब इं िडया पा क तान एंड सी े ट िजहाद पढ़ सकते ह,
लेज़, ल दन, 2007
80. देख, पेज 107, माई इयस िवथ शेख़ मोह मद अ दु ला, ग़लाम अहमद, गुलशन बु स, 2008
81. िव तार के िलए देख, पेज 270-74, क मीर एंड पॉवर पॉिल ट स : ॉम लेक स सेस टू ताशक द, पी.एन.के .
बमजाई, गुलशन बु स, ीनगर, 2011
82. देख, पेज 127, द टाइगर लेडीज़, सुधा कौल, र ,ू बो टन, 2002
83. देख, पेज 160, क मीर एंड शेर-ए-क मीर : अ रवो यूशन डीरे ड, पी.एल.डी. पा रमू, िचनार पि ल शंग,
अहमदाबाद, 2012
84. देख, https://www.ikashmir.net/pastpresent/chapter12.html (आिख़री बार 14/09/2019 को देखा गया)
85. देख, पेज 107, माई इयस िवथ शेख़ मोह मद अ दु ला, ग़लाम अहमद, गुलशन बु स, 2008
86. देख, पेज 173, जे.पी. ऑन क मीर, बलराज पुरी, ान पि ल शंग हाउस, नई द ली, 2005
87. देख, पेज 171-72, क मीर : एि पोज़ंग द िमथ िबहाइं ड नैरे टव, ख़ािलद अहमद बशीर, सेज इं िडया, द ली,
2017
88. देख, https://www.ikashmir.net/pastpresent/chapter12.html (आिख़री बार 14/09/2019 को देखा गया)
89. देख, पेज 124, ले स इन क मीर, सैयद सनाउ लाह बट, अली मोह मद एंड संस, ीनगर, 1981
90. मामले को िव तार से देखने के िलए ख़ािलद अहमद बशीर, ेमनाथ बज़ाज़ और मोहन लाल कौल क पूव धृत
कताब देख।
91. देख, पेज 136, इले शंस इन क मीर, जी.एन. गौहर, मानस पि लके शन, द ली, 2002
92. देख, http://youtube.be/jCF4Mi1sQfl (आिख़री बार 2 अग त को देखा गया)
93. देख, पेज 114, क मीर इन काॅि ल ट : इं िडया, पा क तान एंड द अनएं डंग वार, िव टो रया कोफ़ ड,
आई.बी. टा रस एंड क पनी िलिमटेड, ल दन, 2003
94. देख, पेज 235-36, हाट हैपे स टू गवनस इन क मीर, एजाज़ अशरफ़ वानी, ऑ सफ़ोड यूिनव सटी ेस, नई
द ली, 2019
95. देख, िह ी ऑफ़ आ ड ग स इन क मीर, राव फ़रमान अली, जे. के . बु स, नई द ली, 2017
96. देख, पेज 132, माई इयस िवथ शेख़ मोह मद अ दु ला, ग़लाम अहमद, गुलशन बु स, 2008
97. देख, पेज 233, हाट हैपे स टू गवनस इन क मीर, एजाज़ अशरफ़ वानी, ऑ सफ़ोड यूिनव सटी ेस, नई द ली,
2019
98. देख, पेज 132, माई लाइफ़ एंड माई टाइ स, सैयद मीर क़ािसम, अलाइड पि लशस िलिमटेड, द ली, 1992
99. देख, पेज 29, क मीर आ टर इं सरजसी, बलराज पुरी, ओ रयट लॉ गमैन ाइवेट िलिमटेड, तीसरा सं करण,
द ली, 2008
100. देख, पेज 164, ले स ऑफ़ िचनार, शेख़ अ दु ला, शेख़ अ दु ला, अनुवाद : खुशवंत संह, पि वन, द ली,
1993
101. देख, पेज 37, क मीर आ टर इं सरजसी, बलराज पुरी, ओ रयट लॉ गमैन ाइवेट िलिमटेड, तीसरा सं करण,
द ली, 2008
102. देख, पेज 164, ले स ऑफ़ िचनार, शेख़ अ दु ला, शेख़ अ दु ला, अनुवाद : खुशवंत संह, पि वन, द ली,
1993
103. देख, पेज 189, क मीर : िबहाइं ड द वेल, एम.जे. अकबर, रोली बु स, छठा सं करण, द ली, 2011
104. देख, पेज 42, माई इयस िवथ शेख़ मोह मद अ दु ला, ग़लाम अहमद, गुलशन बु स, 2008
105. देख, पेज 119, ले स इन क मीर, सैयद सनाउ लाह बट, अली मोह मद एंड संस, ीनगर, 1981
106. देख, वही, पेज 209
107. देख, पेज 275, हाट हैपे स टू गवनस इन क मीर, एजाज़ अशरफ़ वानी, ऑ सफ़ोड यूिनव सटी ेस, नई द ली,
2019
108. देख, पेज 42, माई इयस िवथ शेख़ मोह मद अ दु ला, ग़लाम अहमद, गुलशन बु स, 2008
109. देख, पेज 183, माई लाइफ़, डी.डी. ठाकु र, लेि सस-नेि सस, गुड़गाँव, 2017
110. देख, पेज 189, क मीर : िबहाइं ड द वेल, एम.जे. अकबर, रोली बु स, छठा सं करण, द ली, 2011
111. देख, पेज 201-202, क मीर एंड शेर-ए-क मीर : अ रवो यूशन डीरे ड, पी.एल.डी. पा रमू, िचनार पि ल शंग,
अहमदाबाद, 2012
112. देख, पेज 191, क मीर : िबहाइं ड द वेल, एम.जे. अकबर, रोली बु स, छठा सं करण, द ली, 2011
113. देख, पेज 207, क मीर एंड शेर-ए-क मीर : अ रवो यूशन डीरे ड, पी.एल.डी. पा रमू, िचनार पि ल शंग,
अहमदाबाद, 2012
114. देख, पेज 48-49, माई क मीर : डाइं ग ऑफ़ द लाइट, वज़ाहत हबीबु लाह, पि वन बु स, द ली, 2014
115. देख, पेज 213, क मीर एंड शेर-ए-क मीर : अ रवो यूशन डीरे ड, पी.एल.डी. पा रमू, िचनार पि ल शंग,
अहमदाबाद, 2012
116. देख, पेज 75, माई इयस िवथ शेख़ मोह मद अ दु ला, ग़लाम अहमद, गुलशन बु स, 2008
117. देख, पेज 669, नाइस गाइज़ फिनश सेकंड, बी.के . नेह , पि वन, द ली, 199
अ याय-9

नये चुनाव, पुरानी रवायत


आतंकवाद का नया दौर
[1982-1989]
1983 से 1987 का इितहास पहले इि दरा गांधी और फर राजीव गांधी क अभूतपूव राजनीितक
ग़लितय और फ़ा क़ अ दु ला क अप रप ता से क मीर सम या को पुनज िवत करने का इितहास
है। इस दशक के दौरान भारत ने क मीर म बढ़ी ई आ ामकता के साथ ह त ेप कया, चुनी ई
सरकार को बख़ा त कया, आपात ि थित लागू क , नम और कठोर रा यपाल भेज।े 1
—ता रक अली, ‘द टोरी ऑफ़ क मीर’ म

ज मू और क मीर के त कालीन रा यपाल बी.के . नेह कहते ह : ‘फ़ा क़ क मीरी जनता


ारा चुने गए पहले ऐसे मु यमं ी थे जो ख़द को पूरी तरह भारतीय मानते थे, जो
पा क तान के ित िनरपे नह थे बि क पा क तान-िवरोधी थे और िज ह ने अपने िपता
से उलट ऊँचे वर म यह घोषणा क थी क क मीर का भारत म िवलय अि तम है और
क मीर भारत का अिभ िह सा है।’2 अ तररा ीय तर पर देख तो—इ लामाबाद का
यान कह और था और भारत 1980 के दशक म क मीर सम या का एक सौहादपूण हल
कर सकता था तो यह दौर क मीर सम या के हल के िलए सबसे मुफ़ द दौर होना चािहए
था3 ले कन जैसा क बलराजपुरी कहते ह : ‘क मीर सम या को दुबारा िज़ दा करने के
िलए असाधारण ितभा क आव यकता थी।’4 क मीर सम या को सुलझाने के िलए वहाँ
लोकतांि क पेस का सृजन करने क जगह उ ह नीितय को और कड़ाई से लागू कया
गया िज ह ने वहाँ यह भाव बनाया था क क मीरी जनमत का द ली क नज़र म कोई
स मान नह । नतीजा यह क सम या सुलझने क जगह और उलझती चली गई। क मीर म
अलग-अलग तर पर अस तोष लगातार बढ़ता गया िजससे अ ततः पा क तान-पर त
सा दाियक ताक़त को अपने एजडे के िव तार म मदद िमली और जैसा क ख़ान बताते
ह, ब दूक़ के असर और ब दूक़ के भय से ‘िजहाद’ क एक ऐसी प रभाषा लगातार फै लाई
और आम क मीरी के ज़ेहन म पैब त क गई जो सतही, िवकृ त और ामक थी; िजसम
लोग को भरोसा दलाया गया क वे ‘ ा ण फ़ासीवाद’ और ‘िह दू सा ा यवाद’ के
िशकार ह और िजहाद ‘िनज़ाम-ए-मु तफ़ा’ बनाकर इससे मुि दलाएगा।5 एक
ईमानदार लोकतांि क या के अभाव म बने और नाकारा शासन-तं ने इस
ोपेगडा पर लोग को भरोसा कर लेने के िलए अनुकूल ि थितयाँ उपल ध करा ।
जैसा क हमने देखा है, क मीर म 1953 म शेख़ क िगर तारी के बाद से ही
आ मिनणय के अिधकार और जनमत-सं ह को लेकर लगातार एक माहौल बनाया गया
और इसके बरअ स लोकतं क जगह द ली-के ि त नीितय पर आधा रत स ा-तं
िन मत आ िजसम कसी िवप को िवकिसत नह होने दया गया। ऐसे म धाँधली वाले
चुनाव के सहारे द ली के समथन से बनी सरकार के ित अस तोष सीधे द ली के
िख़लाफ़ ग़ से म त दील होता गया। ब शी के समय से ही िश ा का जो िव तार आ था,
उसने रोज़गार के अवसर म उस गित से िव तार न होने के कारण जो बेरोज़गार क फ़ौज
खड़ी क , उसम जमात-ए-इ लामी के कू ल से पढ़े और उनके धा मक िवचार से भािवत
युवा क अ छी-ख़ासी िह सेदारी थी। यह जो नया म यवग बना था, उसक आकां ाएँ
नई थ , ले कन न तो सरकार इस वग क समाजा थक आकां ाएँ पूरी करने के िलए
शहराती हाइट कॉलर रोज़गार के नये अवसर का सृजन कर पा रही थी, न ही उन
राजनीितक आकां ा का िजनके िलए वैकि पक राजनीितक दल और साफ़-सुथरे चुनाव
ज़ री थे। ज मू और क मीर क गुल शाह मंि मंडल क सद य रही खेमलता वखलू 1972
म चुनाव चार अिभयान का अनुभव साझा करते ए बताती ह क िशि त युवा सिहत
समाज के बड़े िह से म बेरोज़गारी और ग़ैर-बराबरी को लेकर गहरा अस तोष था और
रा य सरकार इसके िलए िज़ मेदारी के के क ध पर डाल दया करती थ िजसक वजह
से के के ित लोग म जो अस तोष पनप रहा था, उसका फ़ायदा जमात-ए-इ लामी ने
उठाया। जमात ‘िनज़ाम-ए-मु तफ़ा’ (ख़दा का शासन/इ लामी शासन) थािपत करने को
अपना उ े य घोिषत करती थी और इसे ग़रीबी, बेरोज़गारी सिहत सभी सम या का
इकलौता हल बताती थी। धा मक क रवादी सं था का आदशवाद ख़ास तौर पर
म यवग को अपनी तरह से भािवत करता है। उसके इस ोपेगडा का ख़ास तौर पर िश ा
हािसल कर गाँव से शहर म आए युवा पर गहरा असर पड़ा था िजनक आकां ाएँ
बेहतर रोज़गार पाने क थ ले कन जो िश ा-दी ा हािसल करने के बाद भी ीनगर म
पले-बढ़े युवा के सम एक तरह का हीनताबोध महसूस करता था।6
हम देखते ह क 1965 के बाद से ही क मीर म अलगाववादी आ दोलन क आहट
सुनाई देने लगी थ । अल फ़तेह का िज़ पहले आया है। इस संगठन के लोग को
पा क तान म िश ण िमला था। साठ के दशक म ही पा क तान अिधकृ त क मीर म
अमानु ला ख़ान, मक़बूल ब और दूसरे कई लोग ने िमलकर ‘ लेिबसाइट ं ट’ नाम क
पाट बनाई। इसका बेग़ के नेतृ व वाले ‘ लेिबसाइट ं ट’ से कोई लेना-देना नह था। यह
पाट भारत और पा क तान, दोन से क मीर के िवलय के िख़लाफ़ थी तथा भारतीय और
पा क तान अिधकृ त क मीर क आज़ादी क माँग करती थी। इस पाट के सश वंग का
नाम ‘ज मू एंड क मीर नेशनल िलबरे शन ं ट’ रखा गया। यह संगठन अ जी रया के
सश संघष से ेरणा लेता था। अमानु ला ख़ान िगलिगट का रहनेवाला था और मक़बूल
ब कु पवाड़ा का। 1958 म ब पहली बार िनय ण रे खा पार करके पाक अिधकृ त क मीर
म गया और जून, 1966 म लौटकर घाटी आया। अगले चार महीने उसने थानीय युवक
को े नंग देने और संगठन को िव तार देने म लगाया। 14 िसत बर, 1966 को अपने कु छ
सािथय के साथ हंदवारा के कु िनयाल म उसक पुिलस बल से मुठभेड़ ई िजसम उसका
एक साथी औरं गज़ेब मारा गया। इस मुठभेड़ म थानीय ाइम ांच के इं पे टर अमर
च द भी मारे गए। ब तथा उसके एक साथी काला ख़ान को िगर तार कर िलया गया,
मुक़दमा चला और उसे सज़ा-ए-मौत दी गई। ले कन अगले ही साल वह एक सुरंग बनाकर
जेल से बाहर िनकलने और फर सीमा पार करके पा क तान प च ँ जाने म सफल रहा।7
हािशम क़ु रै शी के िपता ख़लील क़ु रै शी मोइउ ीन कारा के पॉिल टकल कॉ स के सद य
थे। 1969 म 15 साल के हािशम क मुलाक़ात पेशावर म ब से ई और वह क मीर क
आज़ादी के िवचार से भािवत आ। ब ने उसे भारत म गोपनीय से स बनाने क
िज़ मेदारी दी। 1970 क कसी रात खाना खाते ए ब ने िवमान अपहरण क कोई ख़बर
सुनी और उसे यह अ तररा ीय समुदाय का यान ख चने के िलए मुफ़ द तरीक़ा लगा।
चार महीने उसका िश ण 1947 म ज मू से पलाियत और ब के सहयोगी डॉ. फ़ा क़
हैदर के साले और पा क तानी एयरफोस के पूव पायलट जावेद मंट के साथ आ।
अग त, 1970 म वह ज मू के दि ण िसयालकोट-शकरगढ़ से टर से भारत लौटा तो उसके
पास एक िप तौल और एक ेनेड था तथा िवमान अपहरण क योजना। वह बी.एस.ऍफ़.
ारा पकड़ा गया। जाँच-पड़ताल ई ले कन स देह का लाभ देते ए न के वल उसे छोड़
दया गया बि क उसक सुनाई कहानी पर भरोसा करते ए उसके ‘कि पत’ दो सािथय
को पकड़ने म कवर क तरह काम करने के िलए ीनगर एयरपोट पर एक सब-इं पे टर के
तौर पर काम करने क िज़ मेवारी भी दे दी। हािशम ने अपने चचेरे भाई अशराफ़ को भी
तैयार कया तथा एक नकली वाइं ट टू -टू क िप तौल और लकड़ी के ेनेड के सहारे वे 30
जनवरी, 1971 को ीनगर-ज मू- द ली माग के गंगा नामक फ़ोकर एफ़-27 िवमान का
अपहरण करने म सफल रहे। िवमान लाहौर ले जाया गया जहाँ पा क तान के त कालीन
िवदेश मं ी भु ो दोन अपहरणकता का वागत करने प च ँ ।े याि य को िवमान से
उतार कर भु ो ने अपने साथ लंच कराया। पा क तान से राजनीितक शरण तथा भारत से
लगभग दो दज़न जे.के .एन.एल.एफ़. कायकता को रहा करने क माँग क गई। अ ततः
सभी या ी रहा कर भारत भेज दये गए और िवमान को जला दया गया। भारत ने अपने
वायु े को पा क तानी िवमान के िलए ितबंिधत कर दया। इसका एक फ़ायदा यह
आ क बां लादेश यु के समय पा क तानी िवमान बां लादेश नह प च ँ सके ।
पा क तान ने इस घटना को भारतीय सािज़श क़रार देते ए दोन अपहरणकता सिहत
मक़बूल ब , डॉ टर हैदर तथा दो सौ से अिधक जे.के .एन.एल.एफ़. कायकता को
िगर तार कर िलया। इस घटना के बाद प क तान ने लेिबसाइट ं ट और
जे.के .एन.एल.एफ़., दोन को ितबि धत कर दया।8 मक़बूल ब 1976 म भारत लौट
आया। इसी साल एक बक डकै ती क कोिशश म उसने एक बक लक क ह या कर दी और
पकड़ा गया। ब क िगर तारी के बाद अमानु ला ख़ान इं लड चला गया। वह 1977 म
वहाँ पहले से स य क मीर िलबरे शन आम 9 से जुड़ गया। इस संगठन ने अपनी पहली
कायवाही के प म 4 फ़रवरी, 1984 को ल दन के ब मघम इलाक़े से भारतीय राजनियक
रवी महा े को तब अगवा कर िलया जब वह अपनी बेटी के िलए ज म दन का के क
लेकर लौट रहे थे। अपहरणकता ने एक िमिलयन डॉलर क फरौती और मक़बूल ब क
रहाई क माँग क । अभी बातचीत ठीक से शु भी नह ई थी क 6 फ़रवरी को महा े
क गोिलय से बंधी लाश ब मघम के पास एलम रॉक नामक जगह पर पाई गई जहाँ
मीरपुरी लोग ब तायत म रहते ह।10 यह ब के िलए भी च काने वाली बात थी* य क
उसने रा पित के यहाँ मा-यािचका लगाई ई थी। 8 फ़रवरी को रा पित ने उसक
मा-यािचका ख़ा रज कर दी और इसके तुर त बाद 10 फ़रवरी को यायाधीश नीलका त
गंजू ने उसे सज़ा-ए-मौत सुनाई। अगले ही दन उसे फाँसी देकर ितहाड़ जेल म दफ़ना दया
गया। मक़बूल ब इस घटना से पहले क मीर म मक़बूल नह था ले कन उसक फाँसी ने
उसे हीरो बना दया। कु पवाड़ा म बाज़ार ब द करा दये गए। ीनगर म उसक ग़ायबाना
नमाज़ म इि दरा गांधी और फ़ा क़ के िख़लाफ़ नारे लगे। त कालीन िवधायक और
भारतीय अिधरा य म ही क मीर के िलए अिधक वाय ता के समथक अ दुल ग़नी लोन
ने कहा—क मीर के िवलय के सवाल पर मक़बूल पहला शहीद है। के सरकार और रा य
क फ़ा क़ सरकार ने उसे शहीद बना दया।11 न बे के दशक के आतंकवादी आ दोलन के
श बीर शाह से अशफ़ाक़ तक युवा उसे आदश क तरह देखते ह और उसक फाँसी का दन
क मीर म हर साल ‘शहीद दवस’ के प म मनाया जाता है।
‘क मीर समझौते’ म शेख़ के समपण और फर उसके बाद लेिबसाइट ं ट के भंग कर
दये जाने के बाद उससे जुड़े उन हज़ार कायकता के िलए मोहभंग क ही ि थित बनी
िजनके मानस म ‘आ मिनणय’ का अिधकार मूलभूत क मीरी आ मस मान क तरह भरा
गया था। शेख के मु यधारा म लौटने के साथ वे सब नह लौट आए थे। सोफ़ मोह मद
अकबर के नेतृ व म ं ट के एक ुप ने ख़द को महाज़-ए-आज़ादी के नाम से ख़द को
संग ठत कया।12 1947 से ही पा क तान के िलए क मीर का सवाल नाक के सवाल जैसा
रहा और उसने इन अस तोष को भुनाने क पूरी कोिशश क । जमा’त-ए-इ लामी, ज मू
और क मीर अपने मुखप ‘अज़ान’ और अपने छा संगठन ‘जमा’त-ए-तुलबा’ और
मिहला के संगठन ‘दु तरान-ए-िम लत’* के सहयोग से क मीर म िजस इ लामी जेहाद
का सार कर रहे थे, वह अपने तरीक़े से पैन इ लािमक सै ाि तक से पा क तान समथक
भावना का ही चार था और साथ म क मीर के पार प रक सूफ़ इ लाम के बरअ स
सऊदी तरीक़े के वहाबी इ लाम का।13 ले कन इन सबके बावजूद क मीरी पंिडत के
िख़लाफ़ कसी य हंसक घटना का कोई िज़ 1986 से पहले नह िमलता। हालाँ क
जमा’त के असर म क मीर म जो शु ीकरण क या चली, उसके चलते शराब क
दुकान को ज़बरद ती ब द कराने जैसी घटनाएँ ई थ । ऐसी ही एक घटना म 9 माच,
1981 को अन तनाग म बड़े पैमाने पर भीड़ ने शराब क दुकान को लूट िलया। इन सभी
दुकान के मािलक क मीरी पंिडत थे तो वखलू मानती ह क जमा’त ने एक तरफ़ िह दु
को भय त कया तो दूसरी तरफ़ शेख़ क सरकार क छिव भी ख़राब क । इस घटना के
बाद जमा’त के लोग के साथ नेशनल कॉ स और कां ेस के लोग क झड़प भी ई।14
पा क तान के त कालीन धानमं ी भु ो को िज़या-उल-हक़ ारा फाँसी दये जाने के बाद
भी नेशनल कॉ स और जमा’त के लोग के बीच तीखी झड़प ई थ और इनम जमा’त
से जुड़े 1200 से अिधक घर, 65 पु तकालय और 45 कू ल को जला दया गया था।15
ले कन दमन के बावजूद जमा’त का असर लगातार बढ़ता गया और वखलू बताती ह क
उसने शासक य कमचा रय म ही नह , नेशनल कॉ स और कां ेस जैसी पा टय के
भीतर भी पैठ बना ली थी। 1986 तक इसम 10,000 के क़रीब क र कायकता और
25,000 िस पेथाइजर थे तथा इसका भाव लगभग 50,000 लोग पर था।16
ले कन जब 1986 म आज़ादी के बाद िह दु के िव पहली कायवाही ई तो इसम
जमा’त या कसी प क तान समथक पाट का हाथ होने को लेकर एकमत नह है। इस
घटना पर आने से पहले उस दौर म क मीर क राजनीितक उठक-पठक को समझ लेना
ज़ री होगा।

िखलंदड़ फ़ा क़, द ली का दख़ल और
घाटी म पहला सा दाियक तनाव
स ा म आने के बाद फ़ा क़ के रवैये म कोई ख़ास फ़क नह आया और उनका वह िखलंदड़
वभाव अलग-अलग प म सामने आता रहा िजसका िज़ लगभग हर जगह िमल जाता
है। ले कन इसका सबसे बड़ा उदाहरण उ ह ने शपथ- हण के अगले ही दन दया जब एक
िवशाल जनसभा म मंच पर बैठे अपने िपता के सभी मंि य को ‘चोर’ बताते ए बख़ा त
कर दया। इनम उनके वह डी.डी. ठाकु र भी थे िज ह ने उ ह मु यमं ी बनाने म मह वपूण
भूिमका िनभाई थी और उनके जीजा और ित ं ी ग़लाम मोह मद शाह उफ़ गुल शाह भी
िजनक शासन म गहरी पकड़ थी। िजन नये मंि य को शपथ दलाई गई, उनम से
अिधकतर अपने पूवव तय क तुलना म कम यो य थे और उनम से कम-से-कम एक
खु लमखु ला था और कसी भी तरह से ईमानदार नह कहा जा सकता था...। उनम
से एक यारे लाल हांडू नामक क मीरी पंिडत था जो ज दी ही फ़ा क़ के दमाग़ पर छा
गया और उनके िनदशक, िम और दाशिनक क भूिमका म आ गया।17 ज़ािहर है क इस
तरह उ ह ने एक साथ ढेर भावशाली दु मन बना िलये। राजनीित म पगे-पके अनुभवी
लोग मौक़ा िमलते ही पीठ म छु रा भ कने को तैयार रहते ह तो आपका एक अप रप
क़दम उनको पया मौक़े दे सकता है, और फ़ा क़ ने ऐसे कई मौक़े दये।
स ा म आने के बाद फ़ा क़ ने अपनी सरकार को वैधािनकता दान करने के िलए
ज द चुनाव कराने का फ़ै सला कया तो इि दरा गांधी चाहती थ क नेशनल कॉ स और
कां ेस िमलकर चुनाव लड़। क मीर म शासन का िह सा बने रहने क कां ेस क यह िज़द
समझना वाकई मुि कल है। बेगम अ दु ला इसके िलए राज़ी न 18 तो ये चुनाव दोन
पा टय के बीच तनाव का सबब बन गए। फ़ा क़ ने नेशनल कॉ स के पार प रक
ित ं ी रहे मीरवायज़ फ़ा क़ से हाथ िमला िलया। ‘डबल फ़ा क़’ के िलए ीनगर म तो
ख़ूब नारे लगे ले कन द ली से लेकर देश भर म उन पर सा दाियकता से लेकर भारत-
िवरोधी होने के आरोप च पां कये गए। यही नह , इस समझौते ने क मीर म मुि लम
वोट का ुवीकरण कया तो ज मू म िह दू वोट का ुवीकरण* कां ेस के प म आ।
इि दरा गांधी ने इसे ित ा का सवाल बना िलया था तो उ ह ने क मीर म जम कर
सभाएँ क । तीखे चुनाव चार के बीच एक दुभा यपूण घटना म इक़बाल पाक म इि दरा
जी क अि तम सभा के दौरान कु छ युवा ने अपने फरन उठाकर अ ील तरीक़े से
दशन कया।19 आरोप नेशनल कॉ स पर लगा। ठाकु र कहते ह क इस सभा ने फ़ा क़
और ीमती गांधी के म य यु क रे खा ख च दी।20 हालाँ क उस सभा म उपि थत रह
तवलीन संह इस घटना के होने पर ही शंका करती ह21 तो त कालीन रा यपाल
बी.के . नेह का मानना है, यह कु छ गुंडा त व का काम था और फ़ा क़ ऐसा कर ही नह
सकते थे।22
इन चुनाव म कां ेस को ज मू म 26 सीट तथा 30.1 फ़ सदी वोट िमले ले कन घाटी
म कोई उ लेखनीय सफलता नह िमली, वह नेशनल कॉ स न के वल घाटी म अपनी
पकड़ बनाये रखने म सफल ई बि क ज मू म भी उसने िपछली बार से एक सीट अिधक
जीती और 46 सीट के साथ ब मत हािसल कया। भीम संह क पथस पाट और अ दुल
ग़नी लोन क पीपु स कॉ स को एक-एक सीट पर सफलता िमली और बाक़ दो सीट
िनदिलय के खाते म ग । नेशनल कॉ स और कां ेस के बीच िह दू और मुि लम वोट के
ुवीकरण का असर यह आ क न तो भाजपा ज मू े म कोई सीट जीत सक , न
जमात-ए-इ लामी घाटी म।23
चुनाव क जीत से उ सािहत फ़ा क़ ने इससे कोई सबक सीखने क जगह चुनाव के
बाद और कड़ा रवैया अपनाया तो के और रा य के बीच तनाव अपने चरम पर प च ँ ने
लगा। इि दरा गांधी वैसे भी िवरोिधय के ित कसी िवशेष सिह णुता के िलए नह जानी
जात , फर क मीर के मामले म यह उ मीद तो वैसे भी यादा होती। फ़ा क़ ने अपने
िपता क क मीर म के ि त रहने और के से अ छे स ब ध बनाये रखने क नीित को
यागकर ीनगर क जािमया मि जद म घोषणा क क ‘म उनसे (कां ेस से) देश क हर
गली, हर नु ड़ पर लड़ूग ँ ा। मेरी परी ा पूरी ई। ले कन उ ह ज दी ही देश भर म
मतदाता का सामना करना है और देखते ह क वे कै से उनका सामना करते ह।’ 1984 के
लोक सभा चुनाव नज़दीक थे और फ़ा क़ िवप ी दल के साथ हो िलये। 1983 म ए
चुनाव म कां ेस ने दि ण म आं देश और कनाटक म मुँह क खाई। एन.टी. रामाराव
ने िवप ी एकता मज़बूत करने के िलए 28 मई, 1983 को िवजयवाड़ा म 14 मुख िवप ी
नेता क रै ली बुलाई िजसम फ़ा क़ भी शािमल ए। यही नह , 5-7 अ टू बर को उ ह ने
ीनगर म के -रा य र त को लेकर 17 ग़ैर-कां ेसी पा टय का एक स मेलन भी
कया। इि दरा गांधी के िलए यह एक आघात जैसा था।24
तवलीन संह िलखती ह—अगर फ़ा क़ को इस चुनाव के बाद राज करने दया जाता
तो घटनाएँ अलग तरह से घटत । वह इतने अग भीर थे, राजनीितक प से इतने हलके
क ब त दन तक लोकि य नह बने रह सकते थे।25 देख तो देश के बाक़ िह स म यह
आम था। सरकार चुनी जाती थ , फर अलोकि य होकर स ा से बाहर हो जाती थ । यह
लोग को कम-से-कम राजनीितक सश करण का एहसास तो कराता ही है। ले कन,
रा य और के म कां ेस ने िवप ी क भूिमका िनभाने क जगह, फ़ा क़ के स ा म आने
के अगले ही दन से उनक बख़ा तगी के िलए कोिशश करनी शु कर द । बी.के . नेह
बताते ह क तीन लोग द ली के मुख सलाहकार थे— अ ण नेह , मु ती मोह मद
सईद और माखनलाल फोतेदार। अ ण नेह को कसी भी तरह फ़ा क़ सरकार िगराने
क िज़ मेदारी दी गई थी, सईद रा य कां ेस के मुख और कां ेस के वफ़ादार िसपाही थे
और िजनक नज़र मु यमं ी क कु स पर थी। ले कन सबसे मज़ेदार मामला था
माखनलाल फोतेदार का जो कसी आिधका रक पद पर न होते ए भी इि दरा गांधी पर
गहरा भाव रखते थे। क मीरी पंिडत माखनलाल फोतेदार क कु ल राजनीितक पूँजी
डी.पी. धर क कृ पा से ‘जीता’ गया एक िवधान सभा चुनाव और उपमं ी का पद था।
ले कन उनक असली पूँजी थी इि दरा गांधी के ित अ ेय िन ा। वह रायबरे ली के
चुनाव म इि दरा गांधी के चुनाव एजट बने और उनक जीवनी द िचनार ली ज़ पढ़ते ए
उस पूरी या को समझा जा सकता है िजसम एक जनाधारिवहीन नेता द ली के स ा
के म मह वपूण ही नह बनता बि क क मीर जैसे मह वपूण रा य का भिव य तय
करता है।
फ़ा क़ का खेल तब िबगड़ना शु आ जब उ ह ने डी.डी. ठाकु र पर लगे ाचार के
आरोप क जाँच जि टस आई.के . कोतवाल से कराने का िन य कया िजनसे ठाकु र क
वैमन यता जगज़ािहर थी। राजनीित छोड़कर द ली म उ तम यायालय म वकालत
करने आ चुके ठाकु र के ित फ़ा क़ का यह ख़ समझना तब और मुि कल है जब ठाकु र
अपनी आ मकथा म ख़द इस त य को वीकार करते ह क द ली म फ़ा क़ ने उ ह अपना
आवास उपल ध कराया था। इस घटना के बाद ठाकु र फर से क मीर क राजनीित म
स य ए26 और उस गुल शाह के साथ फ़ा क़ को अपद थ करने के खेल म शािमल हो
गए िजनसे उनक कभी नह बनी थी। फ़ा क़ िवरोिधय को एक बड़ा मौक़ा िमला
ीनगर म 13 अ टू बर, 1983 को ए वे ट इं डीज़ और भारत के एक दवसीय मैच के
दौरान। वखलू िलखती ह :
अमर संह लब मैदान पर 75 लाख पये ख़च करके एक टेिडयम बनवाया गया था। बड़ी सं या म
लोग मैच देखने आए ए थे। रा य के के ट एसोिसएशन के अ य होने के नाते डॉ. फ़ा क़ ने
इसम गहरी िच ली थी। दशक म शहर के िव िव ालय, कॉलेज और े ीय इं जीिनय रं ग
कॉलेज के िव ाथ अ छी-ख़ासी सं या म थे।
जैसे-जैसे मैच आगे बढ़ा, भारतीय टीम के िखलािड़य को एक बेहद ितकू ल भीड़ का सामना
करना पड़ा। ये लोग अिधकतर जमा’त-ए-तुलबा के युवा छा थे िज ह ने माहौल ख़राब करना तय
कर िलया था। उ ह ने भारतीय िखलािड़य पर जूते और कू ड़ा फककर उनका अपमान कया। उ ह ने
चाँद-तारे वाले हरे झंडे फहराए...। घरे लू टीम के सद य बुरी तरह परे शान हो गए और वे खेल छोड़
देना चाहते थे ले कन डॉ. फ़ा क़ ने िनजी तौर पर ह त ेप कया और खेल जारी रखने के िलए
िनवेदन कया। एक बड़ी दुघटना टल गई ले कन नुकसान पहले ही हो चुका था।27
इस घटना का िज़ उस समय भारतीय टीम के सद य सुनील गाव कर ने अपनी
आ मकथा रं स एंड यूस म भी कया है। दूरदशन पर सा रत हो रहे इस मैच म घटी
घटनाएँ पूरे देश ने देख । चूँ क जमा’त का झंडा पा क तानी झंडे से िमलता-जुलता है तो
रा ीय ेस म पा क तानी झंडे फहराए जाने क ख़बर फ़ै ल गई। दूरदशन और आल इं िडया
रे िडयो पर भी ीनगर म क़ानून व था क ि थित के िबगड़ने क ख़बर नमक-िमच
लगाकर परोसी ग ।
बी.के . नेह पर फ़ा क़ क बख़ा तगी के िलए दबाव बनाये गए ले कन जब वह इस
खेल म नह शािमल ए तो उ ह हटाकर अ ैल, 1984 म जगमोहन को रा यपाल बनाकर
ीनगर भेजा गया। शाह के साथ जो 13 िवधायक फ़ा क़ के िख़लाफ़ जगमोहन के पास
प च ँ ,े उनम खेमलता वखलू भी थ । बी.के . नेह इस पर अचरज जताते ए बताते ह क
वखलू कस तरह उनसे कहा करती थ क अगर गुल शाह स ा म आए तो िह दु का
जीवन और उनक स पि असुरि त हो जाएँगे और यहाँ तक क द ली जाकर इि दरा
गांधी के सामने घुटन पर बैठकर िगडिगड़ाई थ क अगर उ ह क मीर के िह दु के ित
सहानुभूित है तो गुल शाह को मु यमं ी बनवाने क कोिशश न कर!28 ात है क
ीमती वखलू को फ़ा क़ के कायकाल म नेह ने िवधान प रषद म मिहला के िलए
सुरि त सीट म से एक पर नािमत कया था। वखलू भी अपनी द ली-या ा और ीमती
गांधी से फ़ा क़ के प म अपनी मुलाक़ात का िज़ करती ह, हालाँ क ज़ािहर तौर पर
उनके दये ए िववरण अलग ह। शाह ने सभी 13 िवधायक को कै िबनेट मं ी बना दया।
31 जुलाई को हंगामाखेज़ माहौल म शाह ने ब मत सािबत कर दया और क मीर के
इितहास म शायद सबसे सरकार अगले ढाई साल स ा म रही। शाह काे क मीरी
जनता का तीखा िवरोध झेलना पड़ा। स ा के पहले 90 दन म 72 दन तक क यू लगा
रहा और जनता ने इसे ‘गुल-ए-क यू’ का नाम दया। गुल शाह के जमा’त से गहरे स ब ध
थे और धम के ित उनका ख़ क रपंथी था। अहमद, शाह ारा सिचवालय सिहत अ य
कायालय म मि जद बनवाए जाने का िज़ करते ह। पुरी का मानना है क इसने क मीर
म इ लामी और ज मू म िह दू क रपंथ को बढ़ावा दया।29 अहमद बताते ह क उन दन
क मीर म ाचार इस क़दर हावी था क क मी रय ने उनक सरकार को ‘गुल शाह
और चालीस चोर’ का नाम दया था।30
इस बीच 31 अ टू बर, 1984 को इि दरा गांधी अपने ही अंगर क क गोिलय क
िशकार । देश ने िसख के िख़लाफ़ सा दाियक ह या का एक भयानक दौर देखा और
राजीव गांधी अभूतपूव ब मत से देश के धानमं ी बने। गुल शाह ने इस दौरान सबसे
बड़ी ग़लती क ीनगर लोक सभा से बेगम अ दु ला के िख़लाफ़ अपने बेटे मुज़ फ़र शाह
को टकट देकर। चुनाव म शाह को िजताने के िलए पूरी रा य मशीनरी लगा दी गई
ले कन अ ततः जीत बेगम क ई। इस चुनाव ने बेगम अ दु ला और फ़ा क़ क
लोकि यता सािबत कर दी और इधर फ़ा क़ ने स ा म वापसी के िलए अपने बचपन के
िम राजीव से मेलजोल क कोिशश शु कर द । जनवरी, 1985 म राजीव और फ़ा क़
क मुलाक़ात ई और बफ़ िपघलनी शु ई तो गुल शाह क िवदाई लगभग तय थी।
ले कन गुल शाह क िवदाई से पहले ही आज़ादी के बाद क मीर के आधुिनक इितहास
म पहली बार िह दु के िव सा दाियक हंसा क घटना ई। अयो या म राम मि दर
का ताला खुलने क घटना के बाद फ़रवरी, 1986 म अन तनाग िज़ले म ई इस
सा दाियक हंसा क घटना म कई मि दर और पंिडत के घर को ित प च ँ ाई गई।
जी.एम. शाह के साथ पाट छोड़नेवाले ग़लाम मोह मद मीर के मुतािबक़ : ‘क मीरी
पंिडत के िख़लाफ़ असुर ा का माहौल बनाया गया था। मु ती साहब इसके पीछे थे।’
िव थािपत क मीरी पंिडत के संगठन पनुन क मीर के अ य अजय कु मार चं ू का भी
मानना है क इन दंग के पीछे मु ती थे। उनका कहना है क कां ेस ने इसक जाँच के िलए
एक सिमित भी बनाई थी ले कन उसक रपोट सावजिनक नह क गई। इन सबके पीछे
मु ती क मह वाकां ा थी।31 इस घटना के बाद पंिडत नेता ने एक बार फर सरकार
पर अनदेखी का आरोप लगाते ए क मीर से िव थापन क अपील क । बलराज पुरी इस
घटना के बाद मौलाना अ दुल रहमान और बचन संह पंछी के साथ वहाँ गए थे और
शाि त यास म शािमल ए थे। वह बताते ह क इन घटना के लेकर जब उ ह ने लोग
से बात क तो लुक भवानी म उन लोग क अपील पर मुि लम समुदाय से दस हज़ार पये
मि दर के पुन नमाण के िलए एक कये गए। वह बताते ह क पंिडत ने उ ह बताया क
मुसलमान का दय-प रवतन हो जाने के बाद ही उ ह ने घाटी छोड़कर जाने का िनणय
बदल दया।32 पुरी और वानी, दोन ही यह रे खां कत करते ह क इसम जमा’त का कोई
हाथ नह था (पुरी-39, वानी-313) जब क वखलू (308) और धर इसम जमा’त के भी
शािमल होने क ओर इशारा करते ह। ले कन ठाकु र इसका एक प और बताते ह क
उनके कहने के बावजूद शाह इस घटना के बाद अन तनाग यह कहते ए नह गए थे क
यह ज मू म मुसलमान के िव ई हंसा क ित या थी।33
वखलू इस घटना के बाद उन इलाक़ म गई थ । वह बताती ह :
म उन गाँव के थानीय लोग , युवा , बुज़ग , सामुदाियक नेता और मिहला से िमली।
हालाँ क बड़ी सं या म मि दर और घर जलाए गए थे ले कन लोग उन घटना को लेकर काफ़
दुखी और श म दा थे। कई िह दु ने वीकार कया क उनके पड़ोिसय ने अपनी जान ख़तरे म
डालकर गुंड को उन पर अ याचार करने से रोका था।
वह यह भी बताती ह क इस दौरान ीनगर म मि दर और मि जद पर भड़काऊ
पो टस लगाने क घटनाएँ भी ई थ और इस घटना के बाद िह दू सरकारी कमचारी
िवरोध म मॉस कै ज़अल लीव पर चले गए थे और अगले दन शहर पूरी तरह से ब द रहा
था।34
मु ती को शायद यह उ मीद थी क यह घटना डाँवाँडोल शाह सरकार क ताबूत म
आिख़री क ल सािबत होगी तो कां ेस के स ा म आने क ि थित म उ ह मौक़ा िमल
सकता है।35 वखलू और ठाकु र को पढ़ते ए लगता है क शाह सरकार म शािमल उन दोन
सिहत कई लोग कां ेस के बेहद क़रीब थे तो यह उ मीद ब त असंगत भी नह थी। ले कन
जब 7 माच, 1986 को जी.एम. शाह क सरकार बख़ा त कर दी गई तो उ ह मौक़ा देने क
जगह आज़ादी के बाद पहली बार क मीर म रा पित शासन लगा दया गया। जगमोहन
अगले छह महीने क मीर के शासक रहे। राजीव गांधी ने कां ेस-नेशनल कॉ स
गठब धन का ताव रखा और इस बार फ़ा क़ अ ततः इसके िलए राज़ी हो गए।36
बलराज पुरी िलखते ह : ‘फ़ा क़ क देशभि पर से स देह ज द ही दूर हो गए और
य ही उ ह ने िवप से स ब ध तोड़कर कां ेस से स ब ध सुधार िलये, उ ह देशभि का
माणप जारी कर दया गया।37 रा पित शासन के दौरान जगमोहन के शासन को आम
तौर पर सभी ने ईमानदार और द बताया है ले कन वखलू एक मज़ेदार त य देती ह क
ाचार-िवरोधी अिभयान म जगमोहन ने कई व र इं जीिनयर को बख़ा त कर दया।
उनम से अिधकांश क मीरी पंिडत थे।38 हालाँ क इसी दौरान कई ऐसे िनणय िलये गए
िजसने उन पर इ लाम-िवरोधी होने का ठ पा लगाया, िजसका गहरा असर 1990 म
उनक दुबारा िनयुि के बाद देखा गया।

नये चुनाव : पुरानी धाँधली


1987 के चुनाव म राजीव-फ़ा क़ समझौते के तहत दोन पा टय ने िमलकर लड़ने का
तय कया था। ले कन इन चुनाव म इस गठब धन के सामने एक एकदम नई तरह क
ताक़त थी—मुि लम यूनाइटेड ं ट। इसम सैयद अली शाह गीलानी क जमात-ए-
इ लामी, अ दुल ग़नी लोन क पीप स लीग और मीरवायज़ क अवामी ए शन कमेटी के
साथ-साथ उ मत-ए-इ लामी, जमीयत-ए-अहल-ए-हदीस, अंजुमन-तहफु ज़-उल-इ लाम,
इि हाद-उल-मुसलमीन, मुि लम इ लाइज़ एसोिशएसन जैसे छोटे-छोटे समूह भी
शािमल थे। इ लामी और जनमत-सं ह समथक पा टय और समूह का यह अ ेला
संगठन उस दौर म क मीरी समाज और राजनीित म ा अस तोष को आवाज़ दे रहा
था। वानी इसे एक ‘अ -िव ासपा ’ (Semi-Loyalist) कहते ह। ं ट क रै िलय म लोग
बड़ी सं या म आ रहे थे और ं ट ाचार, मुनाफ़ाख़ोरी, जमाख़ोरी, कालाबाज़ारी िमटाने
और इनके अपरािधय को कड़े दंड देने के वादे कर रहा था तो सबको नौकरी देने और
उ ोग धंधे लगाने के भी।39
यहाँ थोड़ा ककर उन हालात पर ग़ौर कर लेते ह िजनक वजह से एम.यू.एफ़. उभरा
और उसे इस क़दर लोकि यता िमली। कु छ कारण तो हमने पहले देखे ही ह। फ़ा क़
अ दु ला ने अपनी बख़ा तगी के बाद जो कहा था, वह क मीर के लोकतं का एक भयावह
सच है : ‘कोई भी जो क मीर का मु यमं ी बनना चाहता है, द ली के साथ स ा क
साझेदारी कये िबना नह बना सकता।’ 1953 के बाद से ही द ली ने ज मू और क मीर
क स ा पर िजस तरह परो - य िनय ण बनाये रखा और चुनाव म धाँधली के
ज़ रये अपनी कठपुतली सरकार बना और िगरा , उसने वहाँ क जनता म लोकतांि क
तरीक़ से स ा प रवतन क उ मीद ख़ म कर दी थ । यहाँ एक क़ सा याद कया जा
सकता है। सा दक़ के समय उ ह ग ी से हटाने क माँग करते कु छ िवधायक इि दरा जी से
िमलने गए। इि दरा गांधी उनसे सहमत नह थ तो उ ह फटकारते ए कहा : ‘आपक
कोई हैिसयत नह है क आप जनता क बात करो य क आप जनता के चुने ए
ितिनिध नह हो। रा य सरकार और चुनाव आयोग के कमचा रय को आपको िजताने के
िलए अनिगनत धाँधली करनी पड़ती है।’40 पहले शेख़ और फर फ़ा क़ के समपण ने
नेशनल कॉ स से जनता के एक िह से का मोह ख़ म कर दया था। एम.यू.एफ़. ऐसे म
उनके सामने एक ऐसी पाट क तरह सामने आई थी जो पूरी तरह से थानीय थी। दूसरे ,
क मीर म इन कठपुतली सरकार के दौर म ाचार िजस तरह बढ़ा था, उनसे जनता
वाभािवक प से त थी। फ़ा क़ और कां ेस क सरकार का अनुभव जनता को था
ले कन एम.यू.एफ़. िजस तरह इ लामी आदश के सहारे ाचार, बेरोज़गारी और
कालाबाज़ारी जैसी सम या को दूर करने और अपरािधय को सज़ा दलाने क बात कर
रहा था, उसका एक धमिन समाज म लोग को भािवत करना वाभािवक था। तीसरे
कारक पर हम पहले भी काफ़ बात कर चुके ह। इस ल बे दौर म क मीर म जनमत-सं ह
समथक भावनाएँ िवकिसत ई थ । यह ं ट अपनी ‘अ िव ासपा ता’ म उसे एक
अिभ ि देता था।
ले कन एम.यू.एफ़. क इस लोकि यता से डरकर फ़ा क़ ने जो कया, उसने क मीर
को एक ऐसे दौर म धके ल दया जहाँ से वापसी क कोई राह अब तक नह िनकल सक है।
दबाव म ए गठब धन के चलते ये चुनाव अपने-आपम िवड बना से भरे ए थे।
फ़ा क़ को बख़ा तगी के ष ं कारी मु ती मोह मद सईद से बदला लेना था। मु ती को
मु यमं ी पद अपने हाथ से िनकल जाने का अफ़सोस था ले कन दल से फ़ा क़ को कभी
अपना नेता न मान पाने के बावजूद उ ह चार करना था। इस चार क एक बानगी
वीण ड थी देते ह। तब कां ेस क व र नेता रह नज़मा हेपतु ला क उपि थित म
अनंतनाग के ख़ानबल म चुनाव चार के दौरान कां ेस के िलए वोट माँगते ए मु ती ने
अपनी जेब से क़लम िनकाला और लगातार उसे एक हाथ से दूसरे हाथ म घुमाते रहे और
अपना ख़ाली हाथ का पिनक दाढ़ी पर फराते रहे—क़लम-दवात मुि लम यूनाइटेड ं ट
का चुनाव िच न था और इसके उ मीदवार क ल बी दाढ़ी थी।41 इन सब गहमागहमी के
बीच िपछले दो अपे ाकृ त साफ़-सुथरे चुनाव के अनुभव के साथ लोकतं म भागीदारी के
िलए इन उ मीद के साथ जनता ने इस चुनाव म बढ़-चढ़ कर िह सा िलया।42
ले कन इन चुनाव म धाँधली क हर सीमा पार हो गई। िव तार म जाने क जगह
अ सर उ धृत कये जानेवाला एक उदाहरण ले लेते ह िजसक ंजना इस चुनाव और
उसके प रणाम को समझने के िलए काफ़ होगी। ीनगर के आिमर कदल से मोह मद
यूसुफ़ शाह मुि लम यूनाइटेड ं ट के उ मीदवार थे। बेिमना िड ी कॉलेज म मतगणना
शु ई। इसके पहले दो चुनाव म हार चुके मोह मद यूसुफ़ शाह लगातार आगे चल रहे
थे। झान से प था क यूसुफ़ शाह इन चुनाव म बड़े अ तर से जीत रहे ह। नेशनल
कॉ स के मोइउ ीन शाह इस क़दर िनराश ए क मतगणना के बीच से ही उठकर घर
चले गए। ले कन थोड़ी देर बाद मतगणना अिधकारी ने उ ह वापस बुलवाया और िवजयी
घोिषत कर दया! जनता सड़क पर आ गई और िवरोध शु हो गया तो पुिलस ने यूसुफ़
शाह और उनके एजट को िगर तार कर िलया। अगले 20 महीने दोन िबना कसी के स के
जेल म रहे : मोह मद यूसुफ़ शाह जेल से िनकलने के बाद सैयद सला ीन के नाम से
जाना गया और उसके एजट का नाम था यासीन मिलक।43 एक दूसरी घटना का िज़ उस
समय के ीय पयवे क रहे जी.एन. गौहर करते ह :
बडगाम म नेशनल कॉ स के उ मीदवार क जीत तय थी ले कन उ मीदवार ख़द सशं कत था और
कोई जोिख़म नह उठाना चाहता था। जब म गणना- थल पर गया तो वहाँ तीखी बहस चल रही
थी। बडगाम के उपायु और वह उ मीदवार मु य मतगणना अिधकारी पर दबाव डाल रहे थे
ले कन वह अिधकारी जो एक क मीरी पंिडत था, इस बात के िलए तैयार नह था और उसने ग़ से
से कहा : ‘अगर एम.यू.एफ़. रा िवरोधी, क रपंथी और सा दाियक संगठन है तो उसे चुनाव लड़ने
क इजाज़त ही य दी? राजीव और फ़ा क़ को उनके चुनाव लड़ने पर ितब ध लगा देना चािहए
था। ले कन म तो एक अमानतदार ।ँ ’ बाद म मु य मतगणना अिधकारी को क़ानून- व था के
अित र सिचव हमीदु लाह ख़ान का फ़ोन आ गया और धाँधली ई जब क उसक कोई ज़ रत थी
नह ।44
इस तरह ‘रा िहत’ म ई इन धाँधिलय के बाद नेशनल कॉ स और कां ेस
गठब धन इन चुनाव म 63 सीट जीतने म सफल रहा जब क एम.यू.एफ़. 31 ितशत
वोट के बावजूद कु ल चार सीट जीत सका िजनम से एक सैयद अली शाह गीलानी क सीट
भी थी। गीलानी क िवधान सभा चुनाव म यह तीसरी जीत थी। इसके बाद उ ह ने कसी
चुनाव म िह सा नह िलया।45 वैसे गौहर का मानना है क अगर धाँधली नह ई होती
तो भी इन चुनाव म ं ट अिधकतम 20-22 सीट जीत सकता था और इस तरह उसे एक
िवप ी दल का दजा भी नह िमलता।46
हालाँ क इितहास म य होता तो या होता, नह चलता। ले कन अगर इस मोड़ पर
ककर सोच क अगर ये चुनाव साफ़-सुथरे होने दये गए होते तो या होता? तो कई
मह वपूण त य सामने आते ह। पहला तो यही क यह प हो जाता क इस सबके
बावजूद ज मू-क मीर क अिधकांश जनता से यूलर और भारत समथक दल के साथ है।
दूसरा यह क िवधान सभा म एम.यू.एफ़. का वह ुप एक दबाव समूह क तरह काम
करता और उसे जनता के बीच भी उसी ईमानदारी से काम करना पड़ता िजसका उसने
वादा कया था, अगर यह कर पाता तो दूसरी पा टय पर भी वैसा करने का दबाव बनता
और नह कर पाता तो लोग को उनके वाद पर जो ना-एतबारी पैदा होती, वह ऐसी
ताक़त पर भरोसा और कम करती।
मूसा रज़ा क कताब का एक दलच प क़ सा इस बात को समझने के िलए बेहद
मुफ़ द है। वह बताते ह क गीलानी सिहत एम.यू.एफ़. के कु छ नेता उनके पास यह
िशकायत लेकर आए क मेिडकल कॉलेज और अ य जगह पर दािख़ले के िलए नेशनल
कॉ स के लोग के कोटे तय ह। हम उनका िवरोध करने नह आए ले कन हम चाहते ह
क आप मु यमं ी से कह क हमारे लोग के िलए भी कोटे तय होने चािहए।47 ज़ािहर है,
यह ‘ईमानदारी’ नक़ाब हो सकती थी, चेहरा नह । ो. वानी इसे ही सू ब प म कहते
ह— व था-िवरोधी ताक़त को—स ा के गलन पा म गला देने क जगह—लोकतं से
वंचना ने इन अ -िव ासपा समूह को स पूण िव ोिहय म त दील कर दया।48
तीसरा और सबसे मह वपूण यह क जनता का भारतीय लोकतं म भरोसा बढ़ता। वैसे
यह भी सोचा जा सकता है क अगर कां ेस ने फ़ा क़ पर समझौते का दबाव न डाला
होता तो या हो सकता था? इसका जवाब त कालीन डी.आई.जी. ए.एम. वटाली अपने
सं मरण क मीर इं ितफादा म देते ए कहते ह :
1988 म कां ेस कायकता क एक ब द कमरे म ई बैठक म, जहाँ म भी उपि थत था, राजीव
गांधी ने नेशनल कॉ स के साथ चुनाव-पूव समझौते को ग़लत माना िजसने से यूलर और
उदारवादी ताक़त के िलए राजनीितक पेस संकुिचत कर क रपंथी ताक़त को मज़बूत कर दया
था।49
चुनाव के बाद क ि थित पर वखलू क ट पणी मानीखेज़ है :
हालाँ क एम.यू.एफ़. चुनाव हार गई ले कन उ ह अपने उ े य के िलए ब त-सी जनता क
सहानुभूित िमली। हर तरफ़ लोग चुनाव म धाँधली के बारे म बात कर रहे थे। लोग का िन कष था
क राजीव और डॉ. फ़ा क़ ने जानबूझकर ऐसी ापक धाँधली से उनके वोट का अिधकार छीना है।
न के वल उ ह ने लोकतं का गला घ टा बि क उसे दफ़न कर दया। हर घर, हर द तर और हर गली
म एम.यू.एफ़. क तारीफ़ हो रही थी।
लोग क अवधारणा बनने लगी क ख़राब शासन, चुनाव म धाँधली भारत के साथ जुड़ने क
वजह से है। उ ह लगा क अगर वे आज़ाद होते या एक इ लामी देश होते तो ऐसी सम याएँ नह
होत । इ लामी क़ानून के तहत कोई चोरी, कोई ाचार, कोई सूदख़ोरी और कोई कालाबाज़ारी
नह होती। सबके पास खाने-पहनने के िलए पया होता और कोई िबना नौकरी के नह होता। इस
तरह के ोपेगडा के साथ एम.यू.एफ़. लोग को आक षत करने के िलए मैदान म था।
भारत म िवलय य और कै से आ, इसके िलए एम.यू.एफ़. शेख़ अ दु ला और नेशनल कॉ स
पर इ ज़ाम लगा रहा था।50
इन चुनाव म पयवे क रहे जी.एन. गौहर एक और मह वपूण त य क तरफ़ इशारा
करते ह :
आिमर कदल और ह बा कदल का स दभ भी मह वपूण है जहाँ से स ाधारी पाट के मं ी
मोिहउ ीन शाह और यारे लाल हांडू चुनाव लड़ रहे थे। ये दोन मं ी चुनाव हार रहे थे ले कन न
के वल उ ह ग़लत तरीक़े से िजताया गया बि क जीतने के बाद उ ह ने एम.यू.एफ़. के कायकता का
थान म उ पीड़न करवाया। आ यजनक प से सबसे स य युवा इन दो े के चुनाव म स य
थे य क ये े शहर ( ीनगर) क धड़कन थे। अगर फ़ा क़-राजीव समझौते ने इन दो े म भी
साफ़-सुथरे चुनाव करवाए होते तो शायद हिथयारब द आ दोलन कु छ वष तक टाला जा सकता
था।51
आतंकवाद का दौर शु होने के बाद अनंतनाग म पी.एल. हांडू का घर जला दया
गया।52

सतह के ऊपर अस तोष


आतंकवाद के नये दौर क शु आत
न बे के दशक म क मीर घाटी म आतंकवाद का जो दौर आ, उसे अ सर 1987 के चुनाव
क धाँधली का प रणाम बताया जाता है। टाइ मंग के िलहाज़ से देख तो यह सरलीकरण
सही लग भी सकता है क 1987 म चुनाव म धाँधली ई और 1989 से हंसक घटना
क शु आत हो गई। ले कन इितहास म रातोरात सतह पर आ जानेवाली घटना के पीछे
अ सर ब त ल बे दौर तक सतह के नीचे चली अ तः याएँ होती ह। वैसे भी क मीर म
चुनावी धाँधली नई नह थी बि क 1977 के पहले तक के चुनाव म तो यह एकदम आम
आ करती थी। ले कन इस बार इस या ने सतह के नीचे पल रहे अस तोष को उबाल
कर उस िब दु तक प च ँ ा दया जहाँ िव फोट अव यंभावी था। एक बेहतर शासन और
प रप राजनेता इसे एक हद तक िनयंि त कर सकता था ले कन फ़ा क़ इसम नाकाम
ए। कां ेस और नेशनल कॉ स का तालमेल-िवहीन गठब धन न तो रा य के त कालीन
हालात को समझ पाने म स म था, न ही उसके पास इससे िनबटने के िलए कोई नीयत या
नीित थी।
ग़लितय क शु आत एकदम शु से ही ई। इन चुनाव के तुर त बाद एम.यू.एफ़. के
बड़े नेता क िगर ता रयाँ और उ पीड़न शु हो गए। बदनुमा हक़ क़त ज दी ही सतह
पर आ गई। इसे ि य और नेता के ग़ से भरी ित या म अिभ ि िमली।53
उसी साल क मीर म बाढ़ आई और फ़ा क़ सरकार पर अनदेखी का आरोप लगा। अ टू बर
म फ़ा क़ ने दरबार ीनगर से ज मू ले जाने क डोगरा काल से चली आ रही पर परा पर
रोक लगाने का फ़ै सला कया तो ज मू म बीजेपी ने बवाल मचा दया। दबाव बढ़ा तो यह
िनणय वापस ले िलया। अब बारी क मीर क थी। कहा गया क यह क मीर का अपमान है
और ज मू शा त आ तो क मीर म एम.यू.एफ़. के लोग के ारा हंगामा शु हो गया! इस
बीच मु ती कां ेस छोड़कर वी.पी. संह क जनमोचा म शािमल हो गए थे और अब
खुलकर फ़ा क़ सरकार के िख़लाफ़ मोचा ले रहे थे। जनवरी, 1988 म मीरवायज़ मौलाना
फ़ा क़ ने 370 के अित मण से लेकर सरकार क अ मता तक का आरोप लगाते ए खुली
िच ी िलखकर स ब ध तोड़ िलया। फर अचानक घाटी म मटन के दाम इतने बढ़ गए क
लोग ने मटन का बिह कार कर दया। दाम कम करने क कोिशश नाकाम तो आरोप
*
लगा क फ़ा क़ ने कोठे दार से पैसे खाए ह। मुहरम के मौक़े पर िशया-सु ी तनाव क
आशंका से डाउनटाउन म क यू लगाया गया तो कोई सीधी हंसा क घटना तो नह ई
ले कन माहौल म तनाव ा हो गया। राशन क दुकान से िमलनेवाले आटे म िशकायत
आ तो अफ़वाह फै ल गई क इसे खानेवाल के बाल झड़ जाएँगे और सरकार के िवरोध म
बेकरी वाल ने अपनी दुकान ब द कर ल । 13 जनवरी को गु परब के अवसर पर ज मू म
जुलूस िनकला तो भारत-िवरोधी और खािल तान समथक नारे लगने लगे और अचानक
हंसा शु हो गई िजसम कई लोग मारे गए और स पि का भी नुकसान आ। फ़रवरी म
सलमान दी क सैटिनक वसस को लेकर घाटी म ब द का आ वान आ तो पुिलस और
जनता के बीच हंसक झड़प , आँसू गैस के गोले छोड़े गए और हवा म गोिलयाँ चल ।54
10 जून को िबजली क अिनयिमत आपू त तथा दर म बढ़ोतरी के िख़लाफ़ ीनगर म एक
वतः फू त जुलूस सड़क पर िनकल आया। पुिलस ने गोिलयाँ चला और तीन लोग मारे
गए। घटना क जाँच क माँग ठु कराते ए सरकार ने इसके पीछे देशिवरोधी ताक़त के
होने का आरोप लगाया। 15 जून को पूरी घाटी म ब द का ऐलान कया गया जो सफल
रहा।55
थोड़ा ककर देख तो यह समय रा ीय और अ तररा ीय तर पर भी उथल-पुथल
वाला था। 7 अग त को पा क तान के रा पित िज़या-उल-हक़ क एक िवमान-दुघटना म
मृ यु हो गई तो घाटी के कु छ िह स म शोक मनाया गया। हमने देखा है क जब िज़या ने
भु ो को फाँसी दी थी तो भी घाटी म उबाल आया था और तब नेशनल कॉ स के
कायकता ने जमा’त के लोग के घर और कू ल पर हमला कया था। ले कन अब
जमा’त मज़बूत हो चुक थी और िज़या के धा मक क रपंथ का िस ा त उसके क़रीब ही
नह था बि क िज़या के दौर म क मीर क ‘मुि ’ के िलए जो योजनाएँ बनाई गई थ ,
जमा’त उसक परो भागीदार भी थी56 तो उनक मौत पर शोक के आयोजन लािज़म थे।
यह क मीर के बदले ए हालात का भी ोतक था। उधर ईरान म इ लामी ांित के जनक
आयतु लाह खुमैनी क 3 जून, 1989 को मृ यु हो चुक थी और सैन अली म तज़ेरी और
अली खोमेनी के बीच तनाव शु हो चुका था। इसी दौर म सोिवयत संघ ने अफ़ग़ािन तान
से अपनी सेनाएँ वापस बुलानी शु कर दी थ और क मीर म चचा थी क जब सोिवयत
संघ अफ़ग़ािन तान से अपनी सेना हटा सकता है तो भारत क मीर से य नह ?57
यूगो लािवया क घटना ने इस सवाल को और भावी बना दया। उधर पूरे अ सी के
दशक म चला खािल तान आ दोलन अभी भी पूरी तरह से शा त नह आ था और पंजाब
म दबाव बढ़ने पर इससे जुड़े काफ़ लोग ने क मीर म शरण ली थी िजनक गितिविधयाँ
गाहे-ब-गाहे ज मू-क मीर म सामने आ रही थ । राजीव गांधी सरकार से वी.पी. संह के
इ तीफ़े और बोफोस मामले म ाचार के आरोप के चलते देश म तेज़ी से राजनीितक
माहौल बदल रहा था। लोक सभा चुनाव के बाद 1989 म वी पी संह के नेतृ व म एक
गठब धन सरकार स ा म आई थी िजसे वाम और भाजपा, दोन ही समथन दे रहे थे तो
इसी दौर म देश म िह दूवादी दि णपंथ का असर बढ़ने लगा था िजसक प रणित अ ततः
1991 म बाबरी मि जद िव वंस म ई।
ि थित कतनी िव फोटक थी, इसका अ दाज़ा लगाने के िलए एक घटना का िज़
काफ़ होगा—1989 म आतंकवादी घटना के शु होने के कु छ ही व त पहले ीनगर के
रीगल िसनेमा म ‘लायन ऑफ़ िडज़ट’ लगी थी िजसम एंथनी न ने लीिबया के गु र ला
ांितकारी ओमर मु तार क भूिमका िनभाई थी जो इटली के औपिनवेिशक शासन के
िख़लाफ़ संघष करते ए शहीद ए थे। इस ि़फ म को देखकर क मी रय म भारत के
िख़लाफ़ संघष क ऐसी ेरणा जागी क सड़क पर भारी सं या म दशन होने लगे और
सरकार को इसे ितबि धत करना पड़ा।58
जुलाई, 1988 म ीनगर के टेली ाफ़ तथा टीवी टेशन पर बम फका गया ले कन िनशाना
चूक गया। यह क मीर म अपने तरह क पहली आतंकवादी घटना थी। इसके बाद से पूरी
घाटी भारत-िवरोधी नार से पट गई। 14 अग त को पा क तान का वतं ता दवस
मनाया गया जब क 15 अग त को ब द का ऐलान कया गया और काले झंडे दखाए गए
और इस तरह क मीर घाटी हंसक आ दोलन के एक भयावह दौर म वेश कर गई।
िसत बर के महीने म रा य पुिलस के डी.आई.जी. ए.एम. वटाली के घर पर बम फका गया
तो हालाँ क वह बच गए और हमलावर एजाज़ अहमद दार मारा गया ले कन तय था क
यह आग आसानी से बुझने वाली नह । बशीर एक बेहद सनसनीखेज़ त य बताते ह क
1988 क शु आत म ही आल इं िडया क मीरी पंिडत कॉ स के अ य एच.एन. ज टू ने
एक ेस कॉ स म पंिडत के ‘ख़ामोश िव थापन’ का िज़ करते ए बताया था क
नौक रय के अवसर न होने के कारण पंिडत लगातार क मीर से बाहर जा रहे ह और अगर
हालात नह सुधरे तो सभी डेढ़ लाख पंिडत क मीर छोड़ने पर मजबूर ह गे।59 हालाँ क
वह इसके िलए कोई कािशत स दभ देने क जगह इस ेस कॉ स को टेली ाफ़ और
बी.बी.सी. के िलए कवर कर रहे यूसुफ़ जमील और मु तार अहमद से ई बातचीत का
हवाला देते ह तो इसक जाँच कर पाना मेरे िलए स भव नह ।
ऐसे म फ़ा क़ ने प रप ता से काम लेने क जगह बचकानी अधीरता दखाई। उ ह ने
घोषणा क : ‘म उन लोग को िज़ दा क़ म गाड़ दूग ँ ा जो मज़हबी भावनाएँ भड़काने क
कोिशश कर रहे ह’, ‘म अपने राजनीितक दु मन क टाँग तुड़वा दूग ँ ा’, ‘भारत सरकार
मेरे साथ है। म लाख लोग को जेल म डाल सकता ’ँ , ‘देश-िवरोधी त व को पा क तान
फं कवा दूग
ँ ा।’ वह दूसरी तरफ़ वह क मीरी युवा क बेरोज़गारी क बात भी कर रहे
थे। राजीव के साथ ए समझौते के समय वादा क गई सहायता न िमलने क िशकायत
कर रहे थे। के सरकार म क मीरी मुसलमान के ितिनिध व न होने का सवाल उठा रहे
थे। इसम एक तरह का िव म था और एक असहायता भी। बलराज पुरी कहते ह क
फ़ा क़ क सम या यह थी क वह रा य क जनता नह , द ली क िच ता कर रहे थे।
यून के स पादक वी.एन. नारायण ने िलखा क ‘ ीनगर म आम मा यता थी क वह
द ली के आदेश के िबना सरकार नह चला सकते और िवड बना यह क वह द ली क
मदद के बावजूद सरकार नह चला पा रहे थे।’ आ दोलन को दबाने के िलए
सी.आर.पी.एफ़. मँगाई गई। फ़ा क़ अब ज मू और क मीर पुिलस क जगह के ीय बल
पर अिधक भरोसा कर रहे थे।60
वटाली पर हमले के बाद दबाव बढ़ा तो यासीन मिलक पा क तान अिधकृ त क मीर
चला गया। पा क तान क मीर के इस आ दोलन को खुलकर हर तरह का समथन दे रहा
था।* ह र संह हाई ीट पर मेिडकल उपकरण क दुकान चलाने वाले पकृ ण कौल
कहते ह—आतंकवाद मेरे दरवाज़े से शु आ। वह बताते ह क उन दन खुलेआम बस
‘ पंडी- पंडी, रावल पंडी’ का नारा लगाती थ और क मीरी लड़के उनम भर-भर के
आतंकवादी िश ण के िलए पा क तान जाते थे। मागरमल बाग़ ि थत उनके घर के
सामने बटमालू इलाक़े के लड़क और सेना म झड़प होती थ । िति त क मीरी
फ़ोटोजनिल ट जावेद शाह ने मुझसे बातचीत म बताया क कै से उस दौर म पा क तान से
लौटनेवाली बस के साथ इलाक़ के युवा क बाक़ायदा िल ट होती थी और वे चुन-चुन
कर 16 साल से अिधक उ क युवा को े नंग के िलए किथत आज़ाद क मीर म ले
जाया करते थे। ीनगर क सड़क पर खुलेआम ये आतंकवादी ब दूक़ लेकर घूमा करते थे।
ज़ािहर है, शासन पूरी तरह पंगु हो चुका था और उसे कु छ पता नह था क हो या रहा
है। उस समय टंडल िब को के कू ल के छा रहे अिमत वांचू बताते ह क कै से इन संगठन
के लोग खुलेआम कू ल म आया करते थे और आठव -दसव म पढ़नेवाले लड़क के पास
ेनेड और िप तौल आ करती थ । शासन क इस पंगुता का अ दाज़ा एक उदाहरण से
लगाया जा सकता है—18 अग त, 1989 को अ लाह टाइगस नामक एक ुप के मुख
एयर माशल नूर ख़ान ने थानीय समाचारप के मा यम से िसनेमा घर और
शराबख़ान पर ितब ध का आदेश जारी कया। इसका असर भी आ। बाद म जब ज मू-
क मीर िलबरे शन ं ट के लोग ने उसका अपहरण कया तो पता चला क उसके पास एक
िप तौल भी नह थी!61 वटाली िलखते ह :
क मीरी युवा के िनयं ण रे खा के पार करने क गितिविधय के बारे म न तो आई.बी., न रॉ या
सेना या बी.एस.एफ़. ने रा य सरकार या के सरकार को कोई इ ला दी। सभी एजिसयाँ िनयं ण
रे खा पर हो रही कायवािहय और घाटी म फै लते आतंकवाद से अनजान तीत होती थ । यह माना
जाता है क इसी वजह से इं टेिलजस यूरो जैसी िति त रा ीय एजसी इस बात से अनजान थी क
क मीरी युवा िनयं ण-रे खा के पार जाकर हिथयार और िश ण ा कर रहे थे और स ब
एजिसयाँ अपना काम करने क जगह रा य सरकार ारा अपने दलीय वाथ क पू त के िलए
उपयोग क जा रही थ ...। िगर तार आतंकवा दय से िमली सूचना के आधार पर जुलाई, 1989 म
रा यपाल क अ य ता म एक उ - तरीय बैठक म इस बाबत रपोट बनाई गई थी क िनयं ण
रे खा पर घूस देकर लोग को आने-जाने दया जा रहा है। 1988 म क मीर के एक िवधायक ने
पा क तान अिधकृ त क मीर म क मीरी युवा के िश ण और उनक घुसपैठ के बारे म बताया था
िजसके आधार पर धानमं ी ने एक नोट बनवाकर इं टेिलजस यूरो के मुख को िभजवाया था,
ले कन इसे ग भीरता से नह िलया गया। यह इतनी मह वपूण रपोट के साथ टालमटोल वाला वह
रवैया है जो रा ीय सुर ा का भार सँभाल रही एजसी पर भारी पड़ा।62
सरकार ने िवधान सभा के ी मकालीन स म वीकार कया क जनवरी, 1989 से
लेकर जुलाई, 1999 के बीच 72 धमाके ए थे िजनम पाँच लोग मारे गए थे और बावन
लोग घायल ए थे। एक सौ स ावन लोग िगर तार ए थे िजनम अ सी ने पा क तान या
पा क तान अिधकृ त क मीर म िश ण िलया था और 77 लोग ऐसे थे िज ह ने हंसा म
परो प से सहयोग कया था। िगर तार लोग म से 23 को ईद के अवसर पर पैरोल पर
रहा कया गया था ले कन उनम से कोई नह लौटा और माना जा रहा है क यादातर
सीमा पार चले गए। इस मामले क कोई जाँच नह ई।63
ऐसा लगता है क क मीर के मामल को क़ानून- व था का मामला मानकर ग भीरता से
न लेने क यह पुरानी आदत इस बार द ली को ब त महँगी पड़ी। रा य सरकार क नाक
के नीचे ीनगर क गिलय म बस खुलेआम युवा को पा क तान लेकर जा रही थ ,
सीमा पार से िश ण और हिथयार लेकर लड़के लौट रहे थे और सरकार को कु छ ख़बर
नह थी तो डाउनटाउन से गुपकर रोड* क बढ़ती ई दूरी के बारे म अ दाज़ लगाया जा
सकता है। शासन के इस नाकारे पन ने आतंकवाद को फलने-फू लने के अवसर उपल ध
कराए और 1989 के जाड़ के आते-आते हालात बद से बदतर होते चले गए।

_______________
* दुलत का कहना है क यह िज़या-उल-हक़ क चाल हो सकती है। हािशम क़ु रै शी ने भी अपने सा ा कार म कहा है क
इस कायवाही क योजना अमानु ला ख़ान ने बनाई थी।
* माच, 1987 म आिशया अ दराबी ने दु तरान-ए-फ़ाितमा का गठन कया था िजसे आगे चलकर दु तरान-ए-िम लत
कहा जाने लगा।
* इस सा दाियक तनाव का कारण बना ‘ज मू एंड क मीर ांट ऑफ़ परिमट फ़ॉर रसेटलमट इन (ऑर परमानट
रटन टू ) द टेट िबल’ (सं ेप म ‘ रसेटलमट िबल’)। शेख़ अ दु ला ारा तुत और ज मू और क मीर िवधान सभा
ारा पा रत इस िबल का उ े य 14 मई, 1954 के पहले क मीर से बाहर गए कसी क मीरी नाग रक या उसके वा रस
(प ी या िवधवा) को भारतीय तथा ज मू और क मीर के संिवधान के ित िन ा क शपथ लेने पर क मीर लौटने का
अिधकार देता था। इस िबल को लेकर िववाद पहले भी आ था। िवधान सभा के भीतर कां ेस और अवामी ए शन
कमेटी के अलावा सभी दल के सद य ने इस पर असहमित ज़ािहर क थी। भारतीय जनता पाट इसे ‘उप वी क़ानून’
कह रही थी तो जनता पाट के त कालीन महासिचव सैयद शहाबु ीन ने कहा क ‘यह क़ानून क सरकार के नाग रकता
दान करने के एकल अिधकार का उ लंघन है।’ कां ेस के डॉ. करण संह ने इस िबल को ‘भयानक संभावना से भरा
आ’ बताया था। असल म इस क़ानून के बाद सबसे बड़ा ख़तरा पा क तान अिधकृ त क मीर से भारत-िवरोधी त व के
आने का था तो एक भय 1947 के बाद ज मू म बसे िव थािपत का भी था क वहाँ से पलाियत मुसलमान क जो
स पि याँ उ ह दी गई ह, वे उनके लौटने पर िछन जाएँगी। इस िबल को िवधान सभा म पास हो जाने के बावजूद रा य
के त कालीन रा यपाल बी.के . नेह क सहमित नह िमली थी और एक तरह से यह ठं डे ब ते म ही पड़ा था। ले कन
फ़ा क़ के शपथ- हण के नौव दन ही रा यपाल ने इसे वापस कर दया और िबल को दोबारा पेश कया गया। टकराव
एकदम सुिनि त था। िवधान सभा म कां ेस के व र नेता मंगतराम ने ‘शाि त और धीरज’ से इस पर िवचार करने क
अपील क और फ़ा क़ ने इसे 4 अ टू बर तक के िलए टाल दया। इस बीच फ़ा क़ द ली गए और इं दरा गांधी से
मुलाक़ात के दौरान एक फ़ामूला िनकला िजसके तहत 4 अ टू बर को यह िबल िवधान सभा म पास कया गया ले कन
साथ ही फ़ा क़ ने घोषणा क क जब तक सु ीम कोट इस स ब ध म फ़ै सला नह सुना देता तब तक यह िबल वैध नह
माना जाएगा। यह मामला उसके बाद से अब तक सु ीम कोट म लंिबत है। चुनाव म इसे नेशनल कॉ स और कां ेस,
दोन ने मु ा बनाया।
* घाटी म मीट के बड़े वसायी
* क मीर म आतंकवादी संगठन के उ व, कायवािहय और पा क तान से स पक के बारे म िव तार से समझने के िलए
पाठक कनल वेद काश क ‘टेर र म इन नॉथ इं िडया : ज मू एंड क मीर एंड द पंजाब’ पढ़ सकते ह और संगठन के
भीतर क उठा-पठक समझने के िलए डेिवड देवदास क ‘द टोरी ऑफ़ क मीर’।
* जहाँ क मीर शासन से जुड़े उ ािधका रय और मु यमं ी सिहत सभी बड़े नेता के बंगले ह।
स दभ
1. देख, पेज 22, क मीर : द के स फ़ॉर डम (स पादक : पंकज िम ा) म ता रक़ अली का लेख द टोरी ऑफ़
क मीर, वस , ल दन, 2011
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3. देख, पेज 22, क मीर : द के स फ़ॉर डम (स पादक : पंकज िम ा) म ता रक़ अली का लेख द टोरी ऑफ़
क मीर, वस , ल दन, 2011
4. देख, पेज 37, क मीर आ टर इं सरजसी, बलराज पुरी, ओ रयट लॉ गमैन ाइवेट िलिमटेड, तीसरा सं करण,
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5. देख, पेज 23-24, नायला अली ख़ान ारा स पा दत पाचमट ऑफ़ क मीर म एम.आई. ख़ान का लेख इवो यूशन
ऑफ़ माई आइड टटी, प ेव मैकिमलन, यूयाॅक, 2012
6. देख, पेज 7-10, क मीर : िबहाइं ड द हाइट कटन, खेमलता वखलू और ओ.पी. वखलू, कोणाक पि लशस ा.
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7. देख, पेज 114-15, क मीर इन काॅि ल ट : इं िडया, पा क तान एंड द अनएं डंग वार, िव टो रया कोफ़ ड,
आई.बी. टा रस एंड क पनी िलिमटेड, ल दन, 2003
8. देख, पेज 107-108, क मीर द बाजपेयी इयस, ए.एस. दुलत, हापर कॉिल स पि लशस, नोएडा, 2015
9. देख, पेज 70, अ ॉस द लाइन ऑफ़ कं ोल : इनसाइड पा क तान, एडिमिन टड क मीर, लव पुरी, कोलंिबया
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10. देख, 6 फ़रवरी, 1984 का यूयाॅक टाइ स, http://www.nytimes.com/1984/02/06/world/british-find-the-
body-of-indian-diplomat-who-was-abducted.html (आिख़री बार 14/09/2019 को देखा गया)
11. देख, 29 फ़रवरी, 1984 के इं िडया टु ड◌े म सुिमत िम ा का लेख।
12. देख, https://www.greaterkashmir.com/news/kashmir/mahaz-e-azadi-remembers-zehgeer/ (आिख़री
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13. देख, पेज 204-205, डायनािम स ऑफ़ पॉिल टकल चज इन क मीर, डी.एन. धर, किन क पि लशस, द ली,
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29. देख, पेज 38, क मीर : इं सरजसी एंड आ टर, बलराज पुरी, तीसरा सं करण, ओ रयट लांगमैन, द ली, 2008
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33. देख, पेज 370, माई लाइफ◌़, डी.डी. ठाकु र, लेि सस-नेि सस, द ली, 2017
34. देख, पेज 307-10, क मीर : िबहाइं ड द हाइट कटन, खेमलता वखलू और ओ.पी. वखलू, कोणाक पि लशस ा.
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36. देख, पेज 211-12, क मीर : िबहाइं ड द वेल, एम.जे. अकबर, रोली बु स, छठा सं करण, द ली, 2011
37. देख, पेज 37, क मीर आ टर इं सरजसी, बलराज पुरी, ओ रयट लॉ गमैन ाइवेट िलिमटेड, तीसरा सं करण,
द ली, 2008
38. देख, पेज 315, क मीर : िबहाइं ड द हाइट कटन, खेमलता वखलू और ओ.पी. वखलू, कोणाक पि लशस ा.
िलिमटेड, द ली, 1997
39. देख, वही, पेज 320
40. देख, पेज 75, इले शंस इन ज मू एंड क मीर, जी.एन. गौहर, मानस पि लके शन, द ली, 2002
41. देख, 2 अग त, 2011 को अल जज़ीरा म छपा वज़ाहत अहमद का लेख र ेशन एंड रे िस टस इन क मीर
http://www.aljazeera.com/indepth/spotlight/kashmirtheforgottenconflict/2011/07/2011726122116677591.html
(आिख़री बार 14/09/2019 को देखा गया)
42. देख, पेज 48, क मीर : स ऑफ़ कॉि ल ट पाथ टू पीस, सुमां ा बोस, हावड यूिनव सटी ेस, ल दन, 2003
43. देख, वही पेज 49
44. देख, पेज 119, इले शंस इन ज मू एंड क मीर, जी.एन. गौहर, मानस पि लके शन, द ली, 2002
45. देख, पेज 54, क मीर : रे ज़ एंड रीजन, गौहर गीलानी, पा, द ली, 2019
46. देख, वही, पेज 122
47. देख, पेज 90-91, क मीर : द लड ऑफ़ र ेट, मूसा रज़ा, सी ने ट, चे ई, 2019
48. देख, पेज 328, हाट हैपे स टू गवनस इन क मीर, एजाज़ अशरफ़ वानी, ऑ सफ़ोड यूिनव सटी ेस, नई द ली,
2019
49. वानी ारा पेज 328 पर उ धृत
50. देख, पेज 324, क मीर : िबहाइं ड द हाइट कटन, खेमलता वखलू और ओ.पी. वखलू, कोणाक पि लशस ा.
िलिमटेड, द ली, 1997
51. देख, पेज 121, इले शंस इन क मीर, जी.एच. वानी, मानस पि लके शन, द ली, 2012
52. देख, पेज 356, क मीर : िबहाइं ड द हाइट कटन, खेमलता वखलू और ओ.पी. वखलू, कोणाक पि लशस ा.
िलिमटेड, द ली, 1997
53. देख, पेज 163, माई ोजेन टबुलस इन क मीर, जगमोहन, एलाइड पि लशर िलिमटेड, द ली, 1991
54. देख, पेज 329-50, क मीर : िबहाइं ड द हाइट कटन, खेमलता वखलू और ओ.पी. वखलू, कोणाक पि लशस ा.
िलिमटेड, द ली, 1997
55. देख, पेज 60-61, क मीर : इं सरजसी एंड आ टर, बलराज पुरी, ओ रयट लॉ गमैन ाइवेट िलिमटेड, तीसरा
सं करण, द ली, 2008
56. देख, पेज 199-202, डायनािम स ऑफ़ पॉिल टकल चज इन क मीर, डी.एन. धर, किन क पि लशस, द ली,
2001
57. देख, पेज 350, क मीर : िबहाइं ड द हाइट कटन, खेमलता वखलू और ओ.पी. वखलू, कोणाक पि लशस ा.
िलिमटेड, द ली, 1997
58. देख, पेज 54, क मीर : रे ज़ एंड रीजन, गौहर गीलानी, पा, द ली, 2019
59. देख, पेज 225, क मीर : ए सपो ज़ंग द िमथ िबहाइं ड नैरे टव, ख़ािलद अहमद बशीर, सेज, द ली, 2017
60. देख, पेज 60-61, क मीर : इं सरजसी एंड आ टर, बलराज पुरी, ओ रयट लॉ गमैन ाइवेट िलिमटेड, तीसरा
सं करण, द ली, 2008
61. देख, पेज 62, क मीर : रे ज़ एंड रीज़न, गौहर गीलानी, पा, द ली, 2019
62. एजाज़ अशरफ़ वानी ारा उ धृत, पेज 342-43
63. देख, पेज 207, डायनािम स ऑफ़ पॉिल टकल चज इन क मीर, डी.एन. धर, किन क पि लशस, द ली, 2001
अ याय-10

डर, ग़ सा, बे ख़ी और घर से बेघर क मीरी पंिडत


[1989 और आगे]
जब भारत म क रपंथी िह दू िवचारधारा उठान पर थी और जमा’त का पा क तान क मदद से
क मीर म भाव बढ़ रहा था तो दो अफ़वाह क मीर म, ख़ास तौर पर शहरी सा दाियक वग म,
लोकि य हो रही थ । एक तरफ़ अफ़वाह यह थी क अगर क मी रय ने भारत सरकार के िख़लाफ़
आज़ादी के िलए यु छेड़ा तो पा क तान उसम पूरी तरह से साथ देगा और अगर एक भी आज़ादी
का यो ा मारा गया तो सारे क मीरी पंिडत को एक पल म ख़ म कर दया जाएगा; इसी तरह
इसके मुक़ाबले म दूसरी अफ़वाह यह थी क अगर एक भी क मीरी पंिडत मारा गया तो बाक़ देश
के िह दू क मीर के एक-एक मुसलमान को ख़ म कर दगे। दोन ही सही सािबत नह ।1
— ो. र नलाल हांगलू

ि थितयाँ लगातार बेक़ाबू होती जा रही थ और शासन इसके बरअ स कोई रचना मक
पहल करने म नाकाम था। शेख़ क भरपूर आलोचना के बावजूद यासीन ने एक जगह
वीकारा है क शेख़ अ दु ला क मीर म पैदा ए सबसे बड़े नेता ह। वे उनसे ेरणा भी ले
रहे थे। 1989 क ग मय म जे.के .एल.एफ़. ने ‘क मीर छोड़ो’ का नारा भी दया। बस,
सम या यह थी क जहाँ शेख़ के सामने गांधी जैसा मॉडल था और ‘नया क मीर’ जैसा
वि थत तथा जनप धर सपना, वह जे.के .एल.एफ़. के पास आज़ादी के नारे को
हक़ क़त म बदलने के िलए िसफ़ पा क तान से िमले एके 47 जैसे हिथयार और ह या का
िश ण थे। िवड बना यह क पा क तान अिधकृ त क मीर म ग़लाम नबी िगलकर के
ज़माने से ही क मीर क आज़ादी क बात करनेवाल के दमन का इितहास जानते ए
जे.के .एल.एफ़. उसी के सहारे आज़ादी के सपने बुन रहा था; या फर मुम कन है क इन
युवा को ग़ से के नशे म इितहास पढ़ने का मौक़ा ही न िमला हो वरना वे समझते क
ऑपरे शन टोपाज़ या भारत को हज़ार ज़ म देने क पा क तानी नीित कसी तरह से
क मीर को पा क तान म शािमल करने क नीित है और वे ‘आज़ादी’ जैसी कोई छू ट देने
को तैयार नह । ज द ही जे.के .एल.एफ़. को भी प रणाम भुगतने पड़े, ले कन उसके पहले वे
क मीर म ब दूक़ ला चुके थे। ह या का जो िसलिसला उस दौर म शु आ, भारत और
क मीर के अप रप राजनीितक नेतृ व के चलते वह एक ऐसे हंसक च ूह म फँ सता
चला गया, िजससे बाहर िनकलना आज तक मुम कन नह आ, और इसक क़ मत सबको
चुकानी पड़ी—ब दूक़ उठाए लोग को, बेगुनाह पंिडत को और बेगुनाह मुसलमान को
भी।
माहौल सुधारने के िलए सरकार ने जुलाई म पा क तान से लौटते ए पकड़े गए ऐसे 72
लोग को रहा कर दया िजन पर कोई ग भीर आरोप नह थे। ले कन इसका भी उलटा
असर आ और अगले ही दन सी.आर.पी.एफ़. कै प पर हमला आ और तीन जवान को
मार दया गया।2 21 अग त, 1989 को ीनगर म पहली राजनीितक ह या ई िजसम
नेशनल कॉ स के एक लॉक अ य मोह मद यूसुफ़ हलवाई को गोली मार दी गई।
सरकार ने मामले क ग भीरता को समझने और ग भीर क़दम उठाने क जगह ेस को
िनयंि त करनेवाला ज मू और क मीर पेशल पॉवर ( ेस) िबल ज दबाज़ी म िवधान
सभा म पेश कर दया। नतीज़ा एक और हड़ताल। फर 14 िसत बर को ह बा कदल म
घाटी के भाजपा अ य और वक ल टीका लाल टपलू तथा 4 नव बर को मक़बूल ब को
फाँसी क सज़ा देनेवाले यायाधीश नीलकांत गंजू क भी ह या कर दी गई। ह या क
िज़ मेदारी जे.के .एल.एफ़. ने ली और दावा कया क ये ह याएँ कसी धा मक कारण से
नह बि क राजनीितक कारण से क गई ह। ले कन इन ह या ने पंिडत के बीच
अस तोष और भय, दोन पैदा कये।3 असल म देखा जाए तो राजनीितक ह याएँ उस दौर
म लगातार ई थ । 1990-92 के बीच नेशनल कॉ स के पूव मंि य िह माउ ीन बांद,े
मोह मद अताउ लाह सुहरावद और अ दुल ग़नी वीराँ, िवधान सभा के पूव अ य वाली
अहमद बट, पूव िवधायक मोहमद सुभान बट, पीर मोह मद शफ़ , शेख़ मंज़ूर, अ दुल
रािशद दार, नािज़र अहमद वानी, ग़लाम क़ा दर मीर, अ दुल मािजद बांद,े नेशनल
कॉ स से जुड़े ग़लाम मोह मद बांद,े अनवर ख़ान, अ दुल ज बार, ग़लाम अहमद क़ारा,
ग़लाम रसूल ल टू, ग़लाम मोह मद वानी, मोह मद यूसुफ़ गनाई, मोह मद अ दुल मीर
और कई बड़े ापा रय , जनता दल के ग़लाम क़ादरी और ग़लाम रसूल ऋिष, धा मक
नेता मु ती जलालु ीन, शेख़ अ दु ला के भतीजे शेख़ सा दक़ क ह याएँ अलग-अलग
आतंकवादी ुप ने कर दी थ । यही नह , कां ेस नेता ग़लाम नबी आज़ाद के साले त सदुग
सैन का अपहरण कया गया था और फर उनके ससुर हाजी मोह मद अ दु ला के घर पर
बम से हमला आ था। 1992 म त कालीन गृह रा य मं ी राजेश पायलट के कारवाँ पर
हमला आ था तो 1994 म मु ती मोह मद सईद के घर पर।4 इसके अलावा कां ेस के
नेता मोह मद शफ़ क़ु रै शी के घर पर भी हमला आ था।5 गूजर समुदाय के सबसे
िति त नेता क़ाज़ी िनसार अहमद क ह या भी उसी दौर म ई तो रा य क क यूिन ट
पाट के पूव महासिचव अ दुल स ार रं जूर, क मीर िव िव ालय के कु लपित ो. मुशीर-
उल-हक़ और उनके सहायक, िति त सजन और जे.के .एल.एफ़. के आइिडयोलाग माने
जानेवाले डॉ. अ दुल अहद गु जैसे सैकड़ लोग भी उसी दौर म मारे गए।6 भारतीय रा य
के िख़लाफ़ यु म आतंकवा दय के िलए राजनीितक कायकता पहला िनशाना होने ही थे
ले कन इस म म पंिडत नेता क ह या ने अ पसं यक वग के भीतर एक असुर ा का
भाव पैदा कया। इसे राजनीितक कायकता क ह या क जगह मुसलमान ारा क मीरी
पंिडत क ह या क तरह देखा गया।
उधर, अमानु ला ख़ान 1989 क शु आत म ल दन से पा क तान चला आया था और
इस बार पा क तान म उसका वागत आ था। अपने क़ ज़े वाले क मीर को पा क तान ने
क मीरी लड़क के िश ण के िलए इ तेमाल कया और जे.के .एल.एफ़. को हिथयार तथा
धन मुहयै ा कराए। घाटी म जे.के .एल.एफ़. क पुन थापना हािमद शेख़, अशफ़ाक मािजद
वानी, जावेद अहमद मीर और यासीन मिलक ने क थी िजसे उनके नाम के पहले अ र के
आधार पर हाजी (HAJY)* ुप कहा जाता था। उस दौर म जे.के .एल.एफ़. का असर और
ख़ौफ़ इसी बात से समझा जा सकता है क जब 1989 म राजीव गांधी ने देश के लोक सभा
चुनाव के साथ क मीर म भी चुनाव कराने के िनणय िलये तो जे.के .एल.एफ़. के बिह कार
क घोषणा के चलते बारामूला म एक भी वोट नह पड़ा, सोपोर म पाँच वोट पड़े। ीनगर
म नेशनल कॉ स के अलावा कसी और पाट से कसी ने पचा ही नह भरा!7
एक स प ापारी प रवार म ज मे इस ुप के पहले कमांडर अशफ़ाक़ क पढ़ाई-
िलखाई क मीर के सबसे िति त टंडल िब को कू ल और फर ी ताप कॉलेज और
क मीर िव िव ालय म ई थी। टंडल िब को म पढ़ते ए ही वह सागर और आज़म
इं कलाबी** के स पक म आ गया था और उसी क ेरणा से उसने इन तीन के अलावा
मु ताक़-उल-इ लाम, शौक़त ब शी, इरशाद अहमद आ द के साथ इ लािमक टू डट लीग
बनाई थी जो आगे चलकर ज मू-क मीर िलबरे शन ं ट म बदल गई।8 इन सभी ने 1987 के
चुनाव म एम.यू.एफ़. के िलए काम कया था और चुनाव के बाद जब एम.यू.एफ़. के
लोग क िगर तारी शु ई तो 24 माच को अशफ़ाक़ भी िगर तार कर िलया गया। नौ
महीने बाद वह पैरोल पर रहा आ और शादी के अगले ही दन पा क तान िनकल गया।
जाने के एक दन पहले शादी म नेशनल कॉ स के व र नेता मोिहउ ीन शाह के यह
कहने पर क सरकार के िख़लाफ़ हो रहे दशन िनरथक ह, उसने कहा था क क मीर क
सरकार ने दो ग़लितयाँ क ह : पहली, भारत म िवलय करके और दूसरी, मुझे पैरोल पर
छोड़कर।9
क मीर म बनी बायनरीज़ म अ सर जे.के .एल.एफ़. को ‘से यूलर’ संगठन कहा जाता है।10
यह इस मानी म सुिवधाजनक हो सकता है क यह इकलौता संगठन है जो भारत और
पा क तान से अलग एक आज़ाद क मीर क बात करता है, और इसने लगातार सभी
स दाय के ितिनिध व का दावा कया, जब क इसके अलावा सभी संगठन के िलए
आज़ादी का नारा पा क तान म िवलय का पयायवाची है और सभी ने इ लामी तीक का
इ तेमाल कया। ले कन या इतने भर से जे.के .एल.एफ़. को एक ‘से यूलर संगठन’ कहना
उिचत होगा? हमने देखा है क घाटी म यह संगठन ‘इ लामी टू डट लीग’ से िनकला था
और 1987 के चुनाव म इ लामी पा टय और संगठन के अ ेला ुप मुि लम यूनाइटेड
ं ट के साथ था। ज़ािहर है, इसक ेरणाएँ से यूलर नह , इ लामी थ । ले कन इसे िसफ़
इ लािमक कहा जाना भी एक सरलीकरण होगा। क मीर िड पैच म छपे पूव धृत लेख म
िज़ है क 14 साल क उ म अशफ़ाक़ ने शेख़ अ दु ला क शवया ा म जाने से मना कर
दया था। गौहर गीलानी इस आ दोलन पर बात करते ए इसे द ली समझौते से उपजे
ग़ से क प रणित बताते ह। 1987 के चुनाव म नेशनल कॉ स और कां ेस के गठब धन
पर राजीव गांधी क बाद क ित या हमने पढ़ी है। कह न कह वह चुनाव द ली
समथक और थानीय भावना के बीच का चुनाव हो चुका था तो जनता का उसे िजस
तरह का समथन िमला, उसके बारे म हम पहले ही पढ़ चुके ह। असल म, लोकतं से
वंचना ने क मीर म जो अस तोष पैदा कया और शेख़ अ दु ला के समय से ही कसी भी
िवप को, यहाँ तक क वामपंथी और समाजवादी दल को भी, नह पनपने देने के कारण
जो शू य भरता चला गया, उसे जमा’त और दूसरी इ लामी ताक़त ने धीरे -धीरे भर
दया। द ली ारा रा य क स ा और राजनीित के िनयं ण, असंतुिलत िवकास,
ाचार और िवरोध क आवाज़ के ू र दमन के इस माहौल म इन ताक़त के िलए इस
या को ‘भारतीय िह दू सा ा यवाद’ का ‘मुि लम क मीर’ पर दमन सािबत कर दया
जाना सहज था और ऐसे म से यूलर े ीय क मीरी अि मता या क मी रयत क जगह
मुि लम अि मता के क मीरी रा वाद ने ले ली। यहाँ जे.के .एल.एफ़. को लेकर डेिवड
देवदास के े ण को देख लेना रोचक होगा :
...इ लामी रे ट रक का न ली सफाए को िछपाने के िलए उपयोग कया गया, ले कन पंिडत क
ह या न गूगा के पैन-इ लािमक लोग ने क , न श बीर शाह के पा क तािनय ने, न गीलानी के
क रवा दय ने। यह ह या जे.के .एल.एफ़. के रा वा दय ने क । अशफ़ाक़ के सबसे िव त लोग म
से एक फ़ा क़ दार उफ़ िब ा कराटे ने बाद म वीकार कया क उसने अके ले 47 पंिडत क ह या
क है।...1990 का सा दाियक िव ष े एक ू र वा तिवकता है। िपछले जाड़ क कई रात म
अशफ़ाक़ यासीन के पास बैठकर गाता था—एस बनाव पा क तान, बटाव तुए बटनावेऊ सान
(इसे हम पा क तान बनाएँगे िजसम पंिडत नह ह गे, के वल पंिडत मिहलाएँ ह गी)। उसके िपता
याद करते ह क वह हािमद और जावेद के साथ कामुक तरीक़े से इस मूखतापूण गाने को गाता था।
पंिडत के िख़लाफ़ क मीरी मुसलमान का सामािजक-आ थक अस तोष डेढ़ स दय से था।
आसान है क 1990 क इस पितत ू रता के िलए अ सी के दशक के इ लामी क रपंथ को िज़ मेदार
ठहराया जाए ले कन यह त य क इसे जे.के .एल.एफ़. ारा अंजाम दया गया है, बताता है क
पंिडत के िख़लाफ़ अस तोष सीमा पार कर चुका था।11
डेिवड के इस े ण को ब त ग़ौर से पढ़े जाने क ज़ रत है। यह तो प है क
जे.के .एल.एफ़. को बस इस मानी म ‘से यूलर’ कहा जा सकता है क वह सीधे पा क तान
म िवलय क बात करने क जगह ‘आज़ाद क मीर’ क बात करता था। हालाँ क वखलू ने
बाद के दौर म जे.के .एल.एफ़. के से यूलर वहार को िचि नत कया है िजसम राशन क
दुकान पर क़ ज़े के बाद दोन समुदाय को बराबरी से अनाज बाँटे जाने आ द का िज़ है।
ले कन फर ऐसे म ‘इसे पा क तान बनाएँग’े को कै से देखा जाए? इसके आधार पर
जे.के .एल.एफ़. को पा क तान समथक मान लेना तो ज दबाज़ी होगी, ख़ास तौर पर इस
त य क रोशनी म क क मीर म आतंकवाद का असर गहरा होते ही पा क तान ने
जे.के .एल.एफ़. क जगह ‘िहज़बुल मुजािहदीन’ को इसक कमान ही नह स पी बि क
िहज़बुल और जे.के .एल.एफ़. के बीच ख़ूनी संघष आ और अ ततः जे.एक.एल.एफ़. का
पूरी तरह सफ़ाया हो गया।12 मुख नेता होने के बावजूद अशफ़ाक़ ं ट का आइिडयोलाग
नह कहा जा सकता। ऐसे तमाम युवा उस समय जे.के .एल.एफ़. से ही जुड़े थे जो भारत के
िख़लाफ़ हिथयारब द संघष के हामी थे। बाद म जब पा क तान समथक त व हावी ए तो
उनम से कई ने पाले बदल िलये। अशफ़ाक़ उसके पहले ही सुर ा बल के हाथ मारा गया।
दूसरा यह कहना क िहज़बुल या दूसरे लोग ने पंिडत को नह मारा, अपने-आप म ब त
सही व नह । ऐसे म जे.के .एल.एफ़. का असर ख़ म हो जाने के बाद न दीमाग और
वंधामा सिहत ई अनेक घटना को कै से ा याियत कया जा सके गा? उदाहरण के
िलए ीनगर म ही 17 जून, 1990 को जे.एल. गंजू और उनके प रवार क तथा 14
अ टू बर, 1990 को यामलाल कौल तथा उनके प रवार के चार सद य सिहत 2 अ य
पंिडत क ह या पा क तान समथक अल-उमर मुजािहदीन ने क थी जब क िहज़बुल के
लोग ने 5 दस बर, 1992 को दयनाथ वांचू क ह या क थी। 10 अ ैल, 1993 को लाल
चौक ि थत सनातन धमशाला और अखाड़ा भवन को जला दया था और इसके अलावा
भी अलग-अलग घटना म कई पंिडत को मारा गया था।13 अनेक लोग ने इस बात का
िज़ कया है क जनवरी म कु छ पंिडत के घर पर जो पच लगाये गए थे या फर थानीय
अख़बार म क मीर छोड़ देने क जो धम कयाँ दी गई थ , वे िहज़बुल मुजािहदीन के
लेटरपैड पर थ । ऐसे ही अगर यह कहा जाए क जे.के .एल.एफ़. या दूसरे संगठन ने िसफ़
पंिडत को मारा तो इसे कै से ा याियत कया जाएगा क पहला हमला क मीर के
डी.आई.जी. एम.ए. वटाली पर आ था और पहली ह या 21 अग त, 1989 को नेशनल
कॉ स के नेता मोह मद यूसुफ़ हलवाई क ई थी, 3 जून को उनके भाई गुलशन वटाली
क ह या कर दी गई?14 कई बार कु छ नया कहने क कोिशश म कये गए सरलीकरण
िववेचना को भटका देते ह।
उस नारे या गीत का दूसरा भाग बेहद आपि जनक है और बताता है क कस तरह
िवचारधाराहीन आ दोलन म फै ली अराजकता सा दाियक नफ़रत से िमल-जुलकर उसे
‘पितत ू रता ’ तक प च ँ ा देती है। ले कन या इसे ‘न ली सफाया’ कहना सही होगा?
यह पद न बे के बाद के िव थािपत क मीरी पंिडत आ यान म भी अ सर सुना जाता है,
हालाँ क वखलू अपनी कताब म इसका कह िज़ नह करत । घाटी म मुसलमान क
आबादी कोई 95 फ़ सद थी और पंिडत आबादी साढ़े चार फ़ सद। अगर सारे मुसलमान
उस व त न ली सफाए के इरादे से आ दोलन म शािमल ए होते तो या मंज़र होता, उसे
सोचा जा सकता है। यहाँ यह िज़ कर देना उिचत होगा क िव थापन क या 1997
तक चली और इस पूरे व फ़े म पंिडत के कोई 800 प रवार ने घाटी न छोड़ने का िनणय
िलया, उनम खेमलता वखलू भी शािमल थ । इन पंिडत का आ यान अगले अ याय म
िव तार से दज कया गया है।
असल म इस ‘पितत ू रता’ के कारण का कोई सरलीकरण ामक ही होगा। क मीर
के इितहास को खंगालते ए हमने देखा है क दोन समुदाय के बीच िववाद और पंिडत
के िवशेषािधकार को लेकर क मीरी मुसलमान म और ख़ास तौर पर आज़ादी के बाद
नौक रय और स ा म मुसलमान के लगातार बढ़ते भाव को लेकर पंिडत म अस तोष
ब त प था और परमे री हांडू मामले जैसे कई मामल म समय-समय पर सामने आता
रहा। ले कन इसके बावजूद इस पूरे दौर म एक ऐसी घटना सामने नह आती है िजसम
मुसलमान क भीड़ ने पंिडत के साथ हंसा क हो, जब क घाटी म पंिडत आबादी कसी
एक इलाक़े म के ि त नह थी बि क वे पूरी घाटी म ब सं यक मुसलमान के साथ िमली-
जुली बि तय म रहते थे। यह पूरी या और गहरी तथा िव तृत िववेचना क माँग
करती है, िजसका यास अगले खंड म कया जाएगा।

िबया सईद का अपहरण और आतंकवाद का दूसरा चरण


ह या, अपहरण और बला कार क आज़ादी
िबया सईद के अपहरण के बाद क मीर म आतंकवाद दूसरे चरण म वेश कर गया। 2
दस बर, 1989 को जनता दल क सरकार म मु ती मोह मद सईद गृहमं ी बने थे और
इस पद तक प चँ नेवाले वह पहले क मीरी थे। आम हालात म यह एक सकारा मक स देश
हो सकता था ले कन अब शायद ब त देर हो चुक थी और भारत के ित अपने अ ेय
लगाव के कारण मु ती ‘आज़ादी’ के नार से झूमती क मीरी जनता के िलए ि य नह हो
सकते थे। वखलू बताती ह क कां ेस से इ तीफ़ा देने के बाद जब मु ती अनंतनाग प चँ े तो
लोग को उ मीद थी क वह भारत-िवरोधी बात करगे ले कन ाचार के िख़लाफ़ बोलते
ए मु ती ने भारत के िव एक श द नह कहा। स भव है, िबया सईद का अपहरण
कर जे.के .एल.एफ़. भारत सरकार को सीधी चुनौती भी देना चाहता हो! तो मु ती के
शपथ हण के ठीक चार दन बाद 8 दस बर को पौने चार बजे के आसपास लल द
अ पताल से घर लौटते ए मु ती मोह मद सईद क मँझली बेटी डॉ. िबया सईद को
िमनी बस से उतारकर एक मा ित कार म डालकर सोपोर ले जाया गया। सोपोर
सीमावत इलाक़े म है और उन दन लगभग मुि े जैसा बन गया था।15 इस अपहरण
से हड़क प मच गया। एक अिववािहत लड़क के अपहरण जैसे ग़ैर-इ लामी कारनामे को
लेकर घाटी म लोग म एक नाराज़गी भी थी। िबया क रहाई के बदले पहले 3 और
फर 5 आतंकवा दय क रहाई क माँग क गई। उस समय क मीर म आई.बी. के मुख
रहे दुलत का मानना है क उस व त िबया को िबना कसी सौदेबाज़ी के भी छु ड़ाया जा
सकता था और इसम थानीय लोग तथा नेतृ व भी मदद कर रहा था। फ़ा क़ अ दु ला
कसी सूरत म रहाई के िलए तैयार नह थे ले कन मु ती प रवार सरकारी कोिशश से
स तु नह था और वे पा रवा रक िम और इलाहाबाद उ यायालय के त कालीन
यायाधीश मोतीलाल भ के ज़ रये आतंकवा दय से सीधे स पक करने क कोिशश कर
रहे थे।16 त कालीन मु य सिचव मूसा रज़ा ने भी इस त य क पुि क है क उ ह जि टस
भ से स पक करने के िलए कहा गया था।17 ले कन 13 दस बर को द ली से दो के ीय
मं ी इ दर कु मार गुजराल और आ रफ़ मोह मद ख़ान ीनगर प च ँ े और फ़ा क़ को
धमक दी गई क अगर वह नह माने तो उनक सरकार को बख़ा त कर दया जाएगा।18
इसके बाद फ़ा क़ क इस चेतावनी के बावजूद क अगर आतंकवा दय को रहा कया
गया तो क मीर म इसक भारी क़ मत चुकानी पड़ेगी, हािमद शेख़, शेर ख़ान, नूर
मोह मद, मोह मद अ ताफ़ और जावेद अहमद को रहा कर दया गया। इस बार फ़ा क़
सही थे।19 वजाहत हबीबु लाह का भी मानना है क द ली क नई सरकार दबाव म झुक
गई और फ़ा क़ क सलाह को कनारे कर दया गया।20 डॉन के कराची सं करण ने िलखा
: ‘यह एक ब दरघुड़क थी जो काम कर गई।’21
इस घटना के बाद से आतंकवा दय का मनोबल बढ़ना वाभािवक था। इसके बाद
अपहरण और बदले म रहाइय क कई घटनाएँ । 6 अ ैल, 1990 को क मीर
िव िव ालय के उपकु लपित मुशीर उल हक़ तथा उनके िनजी सिचव अ दुल ग़नी और
ीनगर के एच.एम.टी. के जनरल मैनेजर एच.एल. खेरा का अपहरण कर िलया गया।
रा य सरकार ने इस बार बदले म आतंकवा दय को रहा करने से मना कया तो तीन क
ह या कर दी गई। अग त, 1991 म जब ीनगर के दौरे पर आए भारतीय तेल िनगम के
कायकारी िनदेशक के दोरई वामी का अपहरण आ तो सरकार ने फर पाँच
आतंकवा दय को छोड़ दया।22 अ दुल ग़नी लोन क बेटी शबनम लोन23 और 27
फ़रवरी, 1991 को सैफ़ु ीन सोज़ क बेटी नाहीद सोज़ का भी अपहरण कया गया,
हालाँ क इन दोन मामल म ब त शोर नह मचा और आसानी से रहाई हो गई। सोज़
बताते ह क उ ह ने इस बाबत कसी चार क जगह सीधे त कालीन धानमं ी
च शेखर से बात क और उ ह ने सीधे नवाज़ शरीफ़ को फ़ोन कर इ वान-उल-मुसलमीन
नामक संगठन क क़ै द से नाहीद को छु ड़वा िलया।24 पूव मं ी खेमलता वखलू और उनके
पित ओ.पी. वखलू का भी अपहरण आ था और सेना ने उ ह 51 दन बाद रहा करवा
िलया था।25 एक और अपहरण आ था मेिडकल कॉलेज के ोफ़े सर और लोकि य
िच क सक डॉ. एस.एन. धर का। डॉ. धर ने अपने सं मरण म िव तार से अल-उमर क क़ै द
म ीनगर से अनंतनाग और सीमावत े के िविभ ठकान पर िबताए गए समय के
बारे म ब त िनरपे होकर िलखा है िजसम वह उन अलग-अलग प रवार के , िजनम वह
रहे तथा अल-उमर के अलग-अलग उ और प रवेश के मुजािहदीन के मा यम से
त कालीन क मीरी समाज म आलोड़न को भी ब त संवेदनशीलता से दज करते ह। उनके
साथ दो ग़ैर-क मीरी, क मीर िव िव ालय के भौितक के ोफ़े सर वमा तथा
इं जीिनय रं ग कॉलेज के ोफ़े सर राही भी इस ल बी क़ै द म थे तथा आिखरी दौर म एक
िनदलीय िवधायक मक़बूल दार का पु श बीर भी शािमल था िजसे इन सबके साथ छोड़ा
नह गया।26 डॉ. धर खेमलता वखलू के भाई ह और अपहरण के बावजूद दोन प रवार ने
ीनगर नह छोड़ा। अ टू बर, 2019 म उनक प ी डॉ. िवमला धर से राजबाग़ ि थत
उनके घर और ीमती वखलू से बछवारा ि थत उनके आवास पर मेरी मुलाक़ात ई थी।
असल म, उस दौर म आतंकवा दय ने भारत सरकार से जुड़ी हर सं था पर हमला
कया। इस अवधारणा को समझने के िलए एक उदाहरण सरकारी सूचना मा यम का ले
लेते ह। 13 फ़रवरी, 1990 को दूरदशन ीनगर के िनदेशक लासा कौल क ह या का िज़
आपको हर कह िमल जाएगा। ले कन यह सरकारी सूचना मा यम से जुड़े कसी ि क
पहली घटना नह थी। 1 माच, 1990 को रे िडयो क मीर के सहायक टेशन िनदेशक
पी.एन. हांडू क ह या ई। इन घटना के बाद बड़ी सं या म िवभाग के अिधकतर
कमचा रय को, िजनम मु यत: क मीर से बाहर के कमचारी और क मीरी पंिडत शािमल
थे, ज मू भेज दया गया। िह दू-मुि लम के तक से इसके बाद रे िडयो से जुड़े लोग क
ह याएँ क जानी चािहए थ य क उनम कोई पंिडत नह बचा था। ले कन 2 अ टू बर,
1993 को जमात-उल-मुजिहदीन नामक संगठन ारा समाचार वाचक पर ितब ध लगा
देने के बावजूद समाचार वाचन करनेवाले मोह मद शफ़ बट फ़ रयाद क ह या कर दी
गई। उसी साल 25 नव बर को दूरदशन के , ीनगर पर रॉके ट से हमला आ तो एक
ग़ैर-क मीरी इं जीिनयर एस.पी. संह इसक चपेट म आ गए। एक ह ते बाद 2 दस बर
को आतंकवा दय ने संवाददाता श सु ीन सिहत समाचार से शन के 5 कमचा रय का
अपहरण कर िलया। दो दन बाद जमात-उल-मुजािहदीन और महाज़-ए-आज़ादी ने
दूरदशन और आकाशवाणी को आतंकवाद-िवरोधी समाचार सा रत न करने क
चेतावनी दी और फर 19 दस बर को टेशन से बाहर िनकलते ए एक कै जुअल आ ट ट
मुह मद सैन जफ़र का अपहरण कर िलया, बाद म उनक गोिलय से बंधी लाश िमली।
26 दस बर को रे िडयो क मीर के सहायक टेशन िनदेशक सलामदीन पर हमला आ। 1
जुलाई, 1994 को देर रात रे िडयो और दूरदशन पर फर से रॉके ट हमला आ और एक
ह ते बाद इसे फर दुहराया गया। 26 अ ैल, 2003 को कु छ आतंकवा दय ने िव फोटक
से भरी कार रे िडयो टेशन के मु य ार के पास िभड़ा कर अ दर घुसने क कोिशश क तो
मुठभेड़ म तीन आतंकवादी और दो सुर ा अिधकारी मारे गए। 15 मई, 1999 को िहज़बुल
मुजािहदीन ने रे िडयो क मीर पर बेहद मक़बूल ‘सुबह-ए-क मीर’ नामक काय म को
रोकने के िलए टेशन िनदेशक फ़ै याज़ शहरयार को धमक दी। शहरयार साहब ने अपने
और इस काय म के ो ूसस डॉ. रफ़ क़ मसूदी, ग़लाम नबी वानी, ख़साना जबीन,
सतीश िवमल और बशारत बुख़ारी पर ख़तरे को देखते ए पुिलस और उ ािधका रय को
प िलखे। कोई जवाब न िमलने पर 19 मई को यह काय म थिगत कर दया गया। इसके
अलावा टेशन से जुड़ी दो िलिपक वीणा िशशु और बंटी भान हंसा म फँ सने से घायल हो
ग तो दो दैिनक वेतनभोगी मेहराजु ीन और अ दुल रशीद बम िव फ़ोट म मारे गए।27
16 अ टू बर, 1992 को संयु िनदेशक, सूचना सैयद ग़लाम नबी का अपहरण कर िलया
गया और चार दन बाद जब उनक लाश िमली तो उस पर टाॅचर के िनशान थे।28
ज़ािहर है क दु मनी कसी ि से नह बि क सरकारी सूचना मा यम से थी। ेस
काउं िसल ऑफ़ इं िडया ने अपनी एक रपट म िलखा :
जैसे-जैसे आ दोलन गिलय म फै ला, आतंकवा दय ने और अिधक कवरे ज माँगनी शु कर दी।
1990 क शु आत म रा पित शासन लगने के बाद और अिधक ितब धा मक नीितयाँ लागू ।
जुलाई, 1988 म दूरदशन के , ीनगर के बाहर िव फ़ोट आ।29
वह एक यु जैसी ि थित थी। क मीर क सड़क आज़ादी के नार से गूँज रही थ और
लाख लोग लगातार सड़क पर आ रहे थे। ऐसे म ोपेगडा एक बड़ा हिथयार होता है। भ
ब त िव तार से बताते ह क उस दौर म रे िडयो पा क तान भी लगातार भारत-िवरोधी
ोपेगडा म लगा आ था। इसिलए इस ोपेगडा का मुक़ाबला करने के िलए दूरदशन और
आकाशवाणी ऐसे व त म और यादा मानीखेज़ थे जब िनजी समाचार चैनल क आज
जैसी भीड़ नह थी। ये सं थाएँ भारत के िलए आतंकवाद के िवरोध म जनमत बनाने तथा
सरकार क नीितयाँ लोग तक प च ँ ाने के िलए बेहद मह वपूण मा यम थे और ठीक इसी
कारण से आतंकवा दय के िलए उतने ही ख़तरनाक थे तो इससे जुड़े लोग को धमक
देकर, मारकर तथा इस पर बार-बार हमले करके न के वल वे इसका भाव कम करना
चाहते थे बि क अपना वच व भी थािपत करना चाहते थे। इस ोपेगडा यु का एक
उदाहरण हम इसे और आसानी से समझने म मदद करे गा :
िहज़बुल मुजािहदीन ने एक बयान जारी करके कहा : ‘दूरदशन ीनगर ने रे िडयो क मीर से ‘रे िडयो
हमारा क मीर’ नामक काय म शु कया। यह ह रिनवास, ीनगर से संचािलत होता था और
इसका उ े य क मीर म चल रहे संघष के उ े य को नुकसान प चँ ाना तथा आतंकवादी संगठन के
बीच मनमुटाव पैदा करना है।’ इसम दो कै ज़अल कमचा रय —रमेश मरह ा और रजनी—पर यह
आरोप लगाया गया क उ ह िवशेष प से इसके िलए तैयार कया गया है और उ ह ग भीर नतीज़
क धमक दी। डरे ए कमचा रय ने उदू अख़बार रोज़नामचा आफ़ताब म बयान जारी करके माफ़
माँगी। रजनी ने तुर त नौकरी छोड़ दी और वह बच ग । रमेश का अपहरण कर िलया गया और
उ ह ग भीर प से घायल कर दया गया, हालाँ क वह भी बच गए और उनक नौकरी प करके
थाना तरण कठु आ कर दया गया।30
और इस अ याचार से कोई नह बचा। उदू के यादातर अख़बार ने समपण कर दया
था और वे आतंकवादी संगठन के बयान -ब- छाप रहे थे ले कन जब उदू सा ािहक
अलसफ़ा के स पादक शाबान वक ल ने कु छ आतंकवादी कायवािहय क आलोचना क तो
23 माच, 1991 को गोली मारकर उनक ह या कर दी गई।31 इस पूरे दौर म दोन तरफ़ के
दबाव के बीच जान गँवाने वाले प कार क —शाबान वक ल से शुजात बुखारी तक—
ल बी सूची है।
अहमदाबाद म रह रहे क मीरी पंिडत पी.एल.डी. पा रमू िलखते ह :
िह दू, मुि लम और िसख के भावशाली सद य क चयिनत ह याएँ भय फै लाने और वैचा रक
मतभेद का गला घ टने के िलए क ग । दूसरा उ े य अथ व था, ेस, यायपािलका और
शासन को बेकार कर देना था। 1989 से आतंकवा दय क यह रणनीित रही है।...कोई भी ि
जो रा य के ािधकार का ितिनिध था, आतंकवा दय के उ े य के ित सहमत नह था और इस
तरह सम या के शाि तपूण समाधान क तरफ़ लोग क सोच को मोड़ सकता था और आतंकवाद
तथा पा क तान क योजना के िख़लाफ़ था, िनशाना बन गया।32
इस कड़ी म सबसे पहले ह याएँ मुख़िबर क । मुख़िबर यानी एक तरफ़ तो
इं टेिलजस एजिसय के लोग, िजनका काम ही जासूसी करना था और दूसरी ओर वे लोग,
जो सीधे नौकरी तो नह करते ले कन इ फॉमर के प म अलग-अलग एजिसय के िलए
सूचनाएँ प च ँ ाते थे। यह तं कै से काम करता था, इसका एक उदाहरण मोना भान देती ह।
वह बताती ह क उनक माँ के अ पताल म एक ि ने उनसे स पक कया और पूछा क
या वह अ पताल के आस-पास होनेवाली घटना क हर ह ते सूचना दे सकती ह?
उसने बताया क इसके बदले उ ह हर महीने दो हजार पये दये जाएँगे और अगर
सूचनाएँ काम क तो और अिधक पैसे िमल सकते ह। उसने बताया क वह रॉ के िलए
काम करता है। उनक माँ ने यह काम करने से मना कर दया। भान बताती ह क न बे के
दशक से पहले भी रा य ने यहाँ के लोग को आपस म एक-दूसरे के िख़लाफ़ करने के िलए
अपने इं टेिलजस नेटवक म शािमल कया था।33
उस दौर म क मीर म आई.बी. के मुख ए.एस. दुलत बताते ह :
आई.बी. क मीर के भीतर सबसे स य, सबसे ख़ौफ़नाक और सबसे बदनाम एजसी थी।
आई.एस.आई.*, जो ख़द एक जासूसी सं था थी और अफ़ग़ािन तान म ताक़तवर सोिवयत संघ को
हराकर िजसका हौसला बुल द था, जानती थी क क मीर पर अपनी पकड़ बनाये रखने म भारत
सरकार के िलए आई.बी. कतनी मह वपूण थी; उसने आतंकवा दय से आई.बी. को िनशाना बनाने
के िलए कहा। ाउं ड म आई.बी. के अिधकतर अिधकारी क मीरी पंिडत थे और वे आसान िशकार
बने। हालाँ क िजस पहले आई.बी. अिधकारी को गोली लगी, वह िबहार से थे—आर.एन.पी. संह। 9
जनवरी को बडगाम म कशन गोपाल मारे गए, 15 जनवरी को एम.एल. भान नौगाम म और 12
फ़रवरी को ीनगर म टी.के . राज़दान।34
अब एक सवाल तुर त हमारे दमाग़ म आ सकता है क आिख़र आई.बी. म ‘अिधकतर
क मीरी पंिडत’ य थे? स भव है क इसका भारतीय सुर ा एजिसयाँ ऐसे गोपनीय
काय के िलए क मीर जैसी संवेदनशील जगह पर क मीरी पंिडत पर अिधक भरोसा
करती ह ! कारण जो भी हो, इसका ख़ािमयाज़ा उ ह भुगतना पड़ा। ज़ािहर है क मुख़िबर
म भी बड़ी सं या क मीरी पंिडत क ही थी, साथ ही एक जो यह अवधारणा बनी ई थी
क क मीरी पंिडत क िन ा भारत के ित है और हमने देखा है क इसके िनमाण के ठोस
आधार भी थे, उसने भी इस शंका को बल दया ही होगा। तो मुख़िबरी के शक म जो लोग
मारे गए, उनम भी बड़ी सं या पंिडत क ही थी। इ दु भूषण ज़ शी ने 20 अ ैल, 1990 को
सरला भ नामक एक मिहला क आतंकवा दय ारा क गई ह या के बारे म बताया है।
एक मेिडकल कॉलेज म नस सरला क बला कार के बाद ह या मुख़िबर होने के शक म क
गई थी। इस ह या के बाद अनंतनाग के उनके गाँव के सभी पंिडत प रवार घाटी से पलायन
कर गए। इसी लेख म ज़ शी गाँव के पड़ोसी मुि लम प रवार को आतंकवा दय ारा दी
गई धम कय के बारे म भी िज़ करते ह िजसके बाद कोई उस प रवार क मदद करने
नह आया। ज़ािहर है क क मीरी जनता के बीच के स ाव को ख़ म करने क हर स भव
कोिशश क जा रही थी।35 शोिपयान के बृजनाथ कौल, उनक प ी और बहन, ज मू-
क मीर पुिलस सी.आई.डी. के चु ी लाल साहा, अनंतनाग के रटायड धानाचाय
सवान द ेमी और टेलीफ़ोन िवभाग म कायरत उनके पु वीरे कौल, ीनगर म कृ िष
िवभाग के फ़ ड ऑ फ़सर अशोक कु मार क़ाज़ी, डॉ. िशबेन कौल और उनके प रवार के
तीन सद य , पो ट-टेली ाफ़ िवभाग के बी.के . गंजू, बांदीपुरा क िग रजा ट कू, सोपोर
क बबली रै ना, ाण गंजू, अछबल क आशा कौल, सोहन लाल बा सिहत अनेक लोग
क ू र ह याएँ इसी शक म क ग । ज़ािहर है, इनम से सब तो मुख़िबर नह ही थे। यही
नह , मिहला के साथ ू रता और बला कार क भी घटनाएँ ।36
धर िलखते ह : ‘क मीरी पंिडत क ह या क ऐसी सैकड़ घटनाएँ ले कन उ ह ने
37
अपने उन सह-ध मय को भी नह छोड़ा िज ह ने उनका िवरोध कया।’ शाबान वक ल
सिहत रे िडयो, दूरदशन तथा सूचना तं से जुड़े अनेक मुसलमान क ह या हमने पहले ही
देखी है। अ सी साल के मौलाना मसूदी को मार दया गया य क उ ह ने मो-ए-मु दस
मामले म बाल के सही होने क गवाही दी थी। 1989 के दस बर के महीने म ए.एस.आई.
मु तफ़ा क़ादरी, डी.एस.पी. ओ.एन. वाटल और अली मोह मद वागलू क ह या कर दी
गई। िबया सईद के अपहरण क तीखी आलोचना करनेवाली आयशा अमीन के घर पर
बम फका गया और कई यूटी पालर और कू ल को बम से उड़ा दया गया।38 23 माच,
1990 को शोिपयान म क यूिन ट पाट के पूव रा य सिचव अ दुल स ार गंजूर क ह या
इसिलए कर दी गई क उनक िवचारधारा इ लाम-िवरोधी थी। एम.यू.एफ़. के िनमाता
म से एक रहे दि णी क मीर के मीरवायज़ डॉ. क़ाज़ी िनसार अहमद को इसिलए मार
दया गया क वह िहज़बुल मुजािहदीन के क रपंथ के िख़लाफ़ थे। जे.के .एल.एफ़. के
आइिडयोलाग कहे जानेवाले डॉ. अ दुल अहद गु को मार दया गया तो बारहव क
छा ा सािजदा सैन, 17 साल क रफ़ का बानो, कु पवाड़ा क तीन बहन —बा ता,
फ़ाितमा और सरवर—और उनके भाई परवेज़, शमीना परवीन, कु पवाड़ा के ही
कमालु ीन के प रवार क तीन मिहला , दुधमुँहे ब और तीन अ य सद य सिहत,
ीनगर क शािबदा परवीन आ द क ह याएँ कर दी ग । इनम से कई मिहला के साथ
ू रतापूवक बला कार भी कया गया।39 आम लोग क इन ह या के पीछे भी मुख़िबर
होने का ही आरोप मुख था।
उस दौर का समाहार खेमलता वखलू ीनगर म घटी एक घटना से करती ह :
ीनगर के पुराने इलाक़े म एक ददनाक घटना ई। एक अठारह साल के लड़के ने अपनी चाची को
िप तौल दखाकर बहादुरी दखाते ए घोषणा क : ‘देखो, यह हिथयार लेकर हम आज़ादी जीतने
जा रहे ह।’ उसक चाची हँसी और बोली, ‘चुप रहो। तेरे जैसे ब त हीरो देखे ह। इस िप तौल से तुम
आज़ादी जीतोगे?’ उस नौजवान लड़के को यह सुनकर ब त ग़ सा आया। उसने िबना कु छ सोचे
िबचारी चाची क जाँघ म गोली मार दी और कहा, ‘इसे नक़ली समझने क कभी िह मत भी नह
करना।’40
तो यह पागलपन था िजसने क मीर म ‘आज़ादी’ क कमान सँभाली!
इस बीच एक और बड़ी घटना ई थी िजसका अ देशा आपको डॉ. अ दुल अहद तथा
मीरवायज़ दि ण क मीर क ह या के िववरण पढ़ते ए लग गया होगा। ब त ज द
पा क तान ने ‘भारत और पा क तान से अलग आज़ाद ज मू और क मीर’ का वाब देखने
वाले जे.के .एल.एफ़. से हाथ ख च िलये और उसक जगह क मीर के पा क तान म िवलय
क वकालत करनेवाले िहज़बुल मुजािहदीन को आ थक तथा नैितक मदद देनी शु कर
दी। 1992 म जब जे.के .एल.एफ़. ने पा क तान अिधकृ त क मीर से िनयं ण रे खा पार कर
भारतीय क मीर तक जुलूस िनकालने क योजना बनाई तो पा क तानी सेना ने उ ह ऐसा
नह करने दया।41 जे.के .एल.एफ़. के ‘क मीर बनेगा ख़दमु तार’ के बरअ स िहज़बुल का
नारा था : ‘क मीर बनेगा पा क तान।’ क मीर म उस दौर म िह ब का सबसे भावी नेता
था—अ दुल मािजद डार। डार ने 1980 के दशक म अपना एक संगठन तहरीक-ए-जेहाद-
ए-क मीर बनाया था िजसको 1990 के अ त म िहज़बुल मुजािहदीन म िमला दया
गया।42 पा क तान ने जे.के .एल.एफ़. को समथन देना ही नह ब द कया बि क आज़ादी
समथक कै प म तोड़-फोड़ कर युवक को िहज़बुल क तरफ़ जाने के िलए े रत भी कया।
पाक-अिधकृ त क मीर से लेकर आज़ाद क मीर तक म िह ब के आतंकवा दय ने आज़ादी
समथक मह वपूण राजनीितक तथा धा मक लोग क ही नह बि क जे.के .एल.एफ़. के
लोग क भी ह याएँ क ।43 प रणाम व प यह संगठन कमज़ोर होता गया तथा अपनी
नेतृ वकारी भूिमका खोने लगा।44 पा रमू बताते ह क मीरवायज़ तथा बाद म अ दुल ग़नी
लोन क ह या म िहज़बुल मुजािहदीन का हाथ होने क बात रयत के एक बड़े नेता ने
खुलेआम वीकार क थी।
भारतीय सेना को चुनौती देने के िलए ज द ही पा क तान ने अपने देश के अलावा
अफ़ग़ािन तान, सूडान, लेबनान, तुक और सऊदी अरब से ‘दो त मुजािहद ’ को क मीर
भेजना शु कर दया। ये आतंकवादी तीन मुख संगठन के ज़ रये क मीर म काम कर रहे
थे—हरकत-उल-मुजािहदीन, ल कर ए तैयबा और जैश ए मोह मद—िजनका मु यालय
पा क तान या पा क तान अिधकृ त क मीर म था। उस दौरान क मीर म 80 से अिधक
संगठन स य थे, िजनम जे.के .एल.एफ़. के अलावा लगभग सभी क मीर के पा क तान म
िवलय के समथक थे।45 क मीरी मुजािहद क मदद के उ े य से आए इन आतंकवा दय ने
ज द ही पूरे आ दोलन को अपने क़ ज़े म ले िलया। इसके असर ब आयामी थे। इन लड़ाक
के िलए क मीर क आज़ादी कसी ऐितहािसक व क पू त नह हो सकती थी। उनके
िलए यह इ लािमक िव बनाने क िव ापी जंग का िह सा था। क मीर का िविश
सामािजक-सां कृ ितक-धा मक वहार उनके िलए िह दु के भाव म आई िवकृ ित थी।
क र वहाबी इ लाम को माननेवाले इन लड़ाक के िलए क मीर क सूफ़ पर परा
इ लाम-िवरोधी थी और मज़ार बुतपर ती।46 िव तार म न जाते ए हम माच, 1995 म
पा क तान के उ र-पि मी सीमा- ा त म दुकानदार रहे आतंकवादी हा न ख़ान उफ़
म त गुल* के ारे शरीफ़ पर क़ ज़े को याद कर सकते ह। शेख़-उल-आलम नु द ऋिष क
इस ख़ानकाह को अपिव करने क बात कोई क मीरी सोच भी नह सकता। एक तरफ़
आज़ादी के उ े य को कनारे कर देना और दूसरी तरफ़ क मीरी सं कृ ित म पनपे इ लाम
क जगह एक क रपंथी इ लािमक सं कृ ित को थोपने के इस यास से क मीरी अ भािवत
तो नह रह पाए ले कन इस आ दोलन के िलए जो एक वतः फू त समथन पैदा आ था,
वह धीरे -धीरे छीजने लगा। द नेशन के पूव धृत लेख म अरशद मिलक कहते ह :
पा क तान ने एक जाल बुना जो दलदल म बदल गया और अ ततः उसने क मीर म चिलत
आज़ादी क भावना को कु चल दया। यह वह िब दु था जहाँ क मीर का सश िव ोह आज़ादी के
राजनीितक िवचार से अिभला िणक प से ितगामी धा मक क रपंथी शोर म पांत रत हो
गया।47
अराजकता के उस माहौल म ब त-से समाज-िवरोधी त व भी, िज ह सोज़ फे क
मुजािहद कहते ह, उसम शािमल ए िजनका उ े य के वल ि गत लाभ था।48
पा क तान से आ रहे हिथयार और पैस क ब दरबाँट म ख़ूनख़राबे ए और कू का पर
जैसे योग भी, जहाँ आरोप है क भारतीय सेना ने काउं टर इं सरजसी के योग के प म
शह दी। इन सबका नतीजा आ क 1996 आते-आते लोग का ब दूक़ सं कृ ित और
बग़ावत क स भावना से मोह म हो गया और अनेक पूव आतंकवा दय ने या तो
हिथयार डाल दये या फर िहज़बुल मुजािहदीन से सुर ा या बदला लेने के िलए भारतीय
काउं टर इं सरजसी कायवािहय का िह सा बन गए।49 अब क मीरी जनता कई-कई पाट
म िपस रही थी। मिहला के बला कार से लेकर लूट-पाट तक क घटनाएँ । सबा सैन
ने ऐसी कई घटना का िज़ कया है िजनम से एक का उ रण इसे समझने के िलए
मानीखेज़ होगा। ीनगर के पास मालबल म रहनेवाली एक िवधवा मुि लम मिहला के
यहाँ शरण माँगने आए एक आतंकवादी ने उसका बला कार कया। फर वह लगातार आने
लगा। जब उसके र तेदार को पता चला तो कसी तरह से उस मिहला को वहाँ से बाहर
ले जाकर उसक शादी करवाई गई।50 वह बताती ह क कभी िजहा दय के वागत म गाए
जानेवाले वनवुन म अब उ ह ब दुआएँ दी जाने लग । एक व र प कार ने उनसे कहा
क ‘यह हमारी सबसे बड़ी ग़लती थी क हमने उ ह फ़ र ता समझा’51 तो ऐसे
आपरािधक त व के सहारे चल रहे आ दोलन म सा दाियक आधार पर ह याएँ और यौन
अ याचार क घटनाएँ होनी ही थ ।
नि दता ह सर िव तार से बताती ह क कै से वहाँ वामपंथी और समाजवादी ताक़त
का सफाया कर दया गया िजससे आ दोलन को कोई वैचा रक धार दे पानेवाली ताक़त
नह बच । वह कहती ह—दूसरे यह क चाहे जे.के .एल.एफ़. हो या िह ब, दोन कसी
सै ाि तक िवचारधारा से संचािलत नह थे। इ लाम जनता से उ ह जोड़ने का बड़ा
हिथयार बना।52 आज़ादी के नारे के अलावा भिव य क कोई योजना, रणनीित और व
िवकिसत नह कये गए। सारा ग़ सा ब दूक़ क नाल म िसमटकर रह जाने का प रणाम
यह आ क बेहतर ब दूक़ के सामने इसे दम तोड़ देना पड़ा। इसी उ साह और सं म म
क मीरी पंिडत को डराने-धमकाने क कोिशश ने िव जनमत को तो इस आ दोलन से
दूर कया ही, साथ ही भारत के भीतर भी ख़द से सहानुभूित रखनेवाले लोग को दूर
कया।
पा क तान समथक आतंकवा दय क इन कायवािहय के बाद यादातर पूव-
हिथयारब द आज़ादी समथक थानीय नेता ने हिथयार छोड़कर माच, 1993 म आल
पाट रयत कॉ स बना िलया तो 1994 म रहा होने के बाद यासीन मिलक ने हिथयार
छोड़ दये और जे.के .एल.एफ़. ने शाि तपूण तरीक़े से आज़ादी के िलए संघष क बात करनी
शु क । रयत क मीर के ितिनिध होने के दावे के बावजूद घाटी के बाहर ही नह
बि क इस दौर म घाटी के भीतर भी कोई मह वपूण ताक़त क तरह उभर पाने म सफल
नह रही।53

क मीरी पंिडत का िव थापन : घर से बेघर


जनवरी, 1990 क मीर के इितहास म एक भयावह वष क शु आत लेकर आई थी।
अनुभवहीन वी.पी. संह सरकार क मीर को लेकर कोई पहलक़दमी करने क ि थित म
नह दख रही थी तो देश के गृहमं ी मु ती मोह मद सईद और क मीर के त कालीन
मु यमं ी फ़ा क़ अ दु ला के बीच जो स ब ध थे, उनम कटु ता के अलावा कु छ नह था।
मु ती क मह वाकां ा द ली म गृह मं ालय नह , ीनगर म मु यमं ी िनवास था।
क मीर म आई.बी. के मुख दुलत फ़ा क़ के ि य थे तो मु ती उन पर भरोसा नह करते
थे। वी.पी. संह का ख़द का क मीर का अनुभव िपछले चुनाव चार से अिधक नह था तो
रा ीय मोचा सरकार भाजपा के समथन पर टक थी िजसका समथन-आधार घाटी के
मुसलमान नह , ज मू के िह दू थे। इन सब संगितय -िवसंगितय ने िमलकर क मीर के
रा यपाल पद के िलए भाजपा क पस द जगमोहन को चुना। जगमोहन और फ़ा क़ के
र त से पाठक प रिचत ह। मु ती जानते थे क जगमोहन के रा यपाल बनने का मतलब
था फ़ा क़ का इ तीफ़ा और ऐसे म क मीर के मु यमं ी बनने का उनका सपना पूरा हो
सकता था। भाजपा जानती थी क जगमोहन क मीर म स ती से दमन क नीित अपनाएँगे
और यह सा दाियक ुवीकरण के िलए मुफ़ द होगा जब क शायद वी.पी. संह उस व त
कु छ जानने-समझने क कोिशश ही नह कर रहे थे तो मु ती का िनणय उनके िलए काफ़
था। उस दौरान क मीर के मु य सिचव रहे मूसा रज़ा ने अपने सं मरण म मु ती से अपनी
मुलाक़ात का िज़ कया है िजसम मु ती ने जगमोहन को भेजने पर उनक आपि के
जवाब म कहा :
म फ़ा क़ को बचपन से जानता ।ँ वह कभी ग भीर राजनीितक नेता नह रहे। वह एक ए सीडटल
मु यमं ी ह। उ ह िज़ दगी के ऐश-ओ-आराम इतने ज़ री ह क मुझे नह लगता क वह इ तीफ़ा
दगे। एक बार जब हम जगमोहन क िनयुि कर दगे तो उ ह मोटरसाइकल और जहाज़ दे दगे। वह
म त रहगे और अपनी िज़ दगी के मज़े लगे। वह ख़श रहगे और जगमोहन वा तिवक शासिनक
िज़ मेदा रयाँ सँभालगे।54
मूसा मु ती के इस आकलन से भी सहमत नह थे क फ़ा क़ राजनीित म ग भीर नह
और उनक मा यता थी क एक लोकतांि क सरकार का क मीर म होना एक बफर का
काम करे गा।55 ख़ैर, मु ती क फ़ा क़ के इ तीफ़े को लेकर सोच भी ग़लत सािबत ई ही।
क मीरी नेता के द ली के सहारे िनजी वाथ के िलए िलये गए ऐसे अदूरदश िनणय
ने क मीर और भारत, दोन को इसके पहले और इसके बाद भी ऐसे ज़ म दये जो धीरे -
धीरे नासूर म बदलते गए। कां ेस और नेशनल कॉ स, दोन ने इस िनणय का िवरोध
कया।56 ले कन अ ततः जब िनणय हो ही गया तो फ़ा क़ ने इ तीफ़ा दे दया और इं लड
चले गए। अकबर िलखते ह—उनक मु ा कु छ ऐसी थी : उ ह हर बात का दोष दया जा
रहा है। ठीक है, अब वह जा रहे ह और बाक़ सब लोग अपने-अपने समाधान आज़मा ल।
उ ह ने कहा क देखता ,ँ आज़ादी क यह लड़ाई उ ह कहाँ ले जाती है। चूँ क वह आज़ादी
के समथन म नह ह, इसिलए वह जा रहे ह। कसी ने उनके इ तीफ़ा देने के बाद उनसे
कहा क क मीर के लोग उनसे ख़श नह ह, तो फ़ा क़ ने जवाब दया, ‘म भी उनसे
नाख़श ।ँ ’57
उन क़ाितल जाड़ म क मीर के हालात क बानगी उस दौर पर िलखी हर कताब म
िमल जाएगी ले कन दुलत से अिधक िव सनीय कसका बयान हो सकता है :
1989-90 के जाड़ म ीनगर एक भयानक भुतहा शहर जैसा था जो यु के तांडव का आर भ देख
रहा था। िबया सईद के अपहरण ने बग़ावत का बाँध खोल दया। ह याएँ रोज़मरा क चीज़ बन
ग । बमबाज़ी और फाय रं ग अब मु यमं ी के आवास के पास के सबसे सुरि त इलाक़ म भी होने
लगी थी। क म ब दूक़ लहराते ए युवा कट े के पास दखाई देने लगे थे। आतंकवा दय ारा
शहर के के ीय इलाक़ म िमिलटरी परे ड होते थे। क मी रय को भरोसा था क वे अब मुि के
मुहाने पर ह। कइय ने तो अपनी घिड़याँ पा क तान के समय से िमला ली थ । पा क तानी जासूस
के िलए यह शानदार व त था। इस व त कोई कसी पर भरोसा नह करता था।
रा य सरकार ज मू म थी; शहर म इं टेिलजस सं था को छोड़कर शायद ही कह कोई के ीय
कमचारी बचा था।58
यहाँ ककर देख तो ऐसे हालात म कसी शासक के पास िवक प भी कतने थे!
ले कन जगमोहन के साथ सम या यह थी क उ ह क मीर म मुि लम-िवरोधी माना जाता
था। इमरजसी के दौरान द ली म मुि लम बि तय को हटाने से लेकर पहली बार
रा यपाल रहते ए फ़ा क़ क बख़ा तगी से लेकर िह दू योहार पर मांस क िब
रोकने जैसे अपने िनणय से जगमोहन ने इसे अ जत कया था और उन पर रा यपाल
शासन के दौरान भ तय म पंिडत के ित प पात करने के आरोप लगे थे59 तो ऐसे समय
म उ ह रा यपाल िनयु करना असल म एक रणनीितक भूल थी। इस तरह एक क मीरी
मुि लम को गृहमं ी बनाकर क मीरी जनता का भरोसा जीतने क क़वायद जगमोहन के
रा यपाल बनाये जाने के साथ ही िसर के बल खड़ी हो गई।60 अगर उनक जगह कसी
अ य ि को भेजा गया होता तो शायद तुर त वैसी ित या नह होती, जैसी
जगमोहन के आने पर ई। 18 को उनके रा यपाल चुने जाने क घोषणा ई, 19 जनवरी
को उ ह ने ज मू म काय हण कया और उसी दन अ सैिनक बल ने घर-घर क तलाशी
लेनी शु कर दी। उ ह भािवत करने के िलए सी.आर.पी.एफ़. के महािनदेशक जोिग दर
संह ने उसी दन रात म ीनगर के डाउनटाउन से लगभग 300 युवा को िगर तार कर
िलया। अशोक धर बताते ह क तलाशी के दौरान पुराने शहर के छोटा बाज़ार इलाक़े म
कु छ मिहला के साथ सुर ा बल के दु वहार से लोग भड़के ए थे िजसके चलते 20
जनवरी क रात को पूरे शहर म उ दशन ए।61 यह क मीर क सबसे कु यात रात थी।
पूरा ीनगर िवरोध म सड़क पर आ गया और बदहवासी म चीख़-पुकार मच गई।62
उस रात का जुलूस खेमलता वखलू के घर के सामने से भी गुज़रा था। उ ह ने ब त
िव तार से उस दृ य और अपनी मनोदशा का वणन कया है :
ीनगर ने अपने स दय के रं ग-िबरं गे इितहास म ब त-सी घटनाएँ देखी ह, ले कन 21 जनवरी,
1990* क रात दुिनया क सबसे ख़ूबसूरत घाटी क मीर म रह रहे लोग ल बे व त तक नह भुला
सकगे...। उस दन चीज़ अलग थ । हर चेहरे पर डर आशंका और उ मीद थ । म डर और ता से
भरी ई थी। कसी भी व त, कसी भी ण कु छ भी हो सकता था। अचानक हर तरफ़ से तेज़
आवाज़ उठने लग । पूरा वातावरण भयिमि त ग़ से से भरी इनसानी आवाज़ के िव फ़ोट से दहल
गया।
उस सद अँधेरी रात के आसमान से ित विनत होते लोग क भारी भीड़ से सबसे ऊँची
आवाज़ म उठते नारे थे। फ़ोन के लगातार बजने से जैसे हमारी धड़कन क जाती थ । इतना गहरा
था हमारा डर क जैसे मौत क देवी महाकाली का बुलावा हो! फ़ोन उठाते ए मेरे हाथ काँप रहे थे।
एक डरा आ युवक शहर के भीतरी िह से से फ़ोन कर रहा था। उसक आवाज़ डर, परे शानी और
ता से काँप रही थी। उसक आवाज़ साफ़ सुनाई नह दे रही थी ले कन जो कु छ सुनाई दया, वह
यह था : ‘सािहब, हम यहाँ ज़ैनदार मोह ले म रहते ह। हम मौत के जबड़े म फँ से ह। लीज़, पुिलस
कं ोल म म फ़ोन कर दीिजए। नीचे गली म लोग का सम दर है। वे भयानक नारे लगा रहे ह। हम
मरने वाले ह।’
मने पुिलस कं ोल म म स पक करने क कोिशश क । उनके टेलीफ़ोन डेड पड़े थे। कु छ बजे
ले कन कसी ने उठाया नह ...।
इस बीच कई जुलूस म लोग क एक बड़ी भीड़ हमारी गली म भी आ गई। वे नारे लगा रहे थे
जो हमारे कान और दमाग़ म बम क तरह फू ट रहे थे। हम यह महसूस करके काँप रहे थे क लोग
क यह भीड़ दरवाज़े को तोड़कर हमारे क पाउं ड म घुस जाएगी और घर को तहस-नहस कर देगी...।
कई ह त से लगातार बढ़ती ई धम कयाँ और ोपेगडा अिनयंि त और भावना मक प से
उ ेिजत भीड़ से ऐसी हरक़त क आशंका जगा रही थी। कसी भी स भावना से इनकार नह कया
जा सकता था य क उस व त शासन चरमरा चुका था और क़ानून- व था बनाये रखने क
अपनी ाथिमक िज़ मेदारी छोड़ चुका था।
लोग क ु भीड़ यमराज क तरह थी। ऐसी थ उस व त हमारी असुर ा क भावनाएँ। हम
अपना िववेक और सोचने-समझने क मता खो चुके थे। ऐसा लग रहा था, हम जड़ होकर जम गए
थे...। हम जैसे डर के देवता के हाथ क कठपुतिलयाँ थे।
‘अ लाह-ओ-अकबर! इं िडयन डॉ स, गो बैक! हम या चाहते, आज़ादी’— ये वे अंगार जैसे
नारे थे, िज ह भीड़ लगा रही थी। जब भीड़ हमारे घर के सामने कु छ देर के िलए क तो ये नारे और
तेज़ हो गए।
हम घर के भीतर डर से जैसे जम गए। सारे दरवाज़े-िखड़ कयाँ ब द कर दये और बि याँ बुझा
द । हम ाथना कर रहे थे क हे माँ दुगा, हे माँ अ बा, कृ पा करके रोक दो यह बबादी का खेल...।
थोड़ी देर बाद हमारे घर के सामने क भीड़ ने चलना शु कर दया और शाि तपूवक चले गए...।
पूरा शहर चीख़ से गूँज रहा था। भारत के िख़लाफ़ ये नारे देशभ जनता के सीने म एक ज़ म क
तरह चुभ रहे थे। एक तरफ़ उ ह मृ यु और िवनाश का डर था और दूसरी तरफ़ लोग को भयानक
ग़ सा था।63
शहर म क यू लगा दया गया था ले कन 21 जनवरी फर जुलूस िनकला िजस पर
अ सैिनक बल ने गौ कदल पर फाय रं ग क । बड़ी सं या म लोग मारे गए। आिधका रक
आँकड़ा 35 का था ले कन मानवािधकार सं था ने 50 से 100 लोग के मरने क बात क
है। उस व त क मीर म द गा जयन के संवाददाता के प म मौजूद िविलयम डेल र पल ने
कहा क जुलूस शाि तपूण था64 जब क वखलू बताती ह, जुलूस म आतंकवादी शािमल थे
िज ह ने पहले गोिलयाँ चलाई थ । जो भी हो, ले कन गौ कदल क लाश ने लोग म और
अिधक ग़ सा भर दया गया था। नतीजा अगली रात एक और जुलूस।
इस पूरे आ यान म दो श द बार-बार सुनाई देते ह—डर और ग़ सा। इ ह दोन ने
िमलकर न बे के दशक क वह भयावह शु आत क िजसम क मीरी पंिडत को क मीर
छोड़कर अपने ही देश म शरणाथ बनने पर मजबूर कया और क मीरी मुसलमान को
दमन, हंसा और िड टोिपया के गहरे और अ तहीन दलदल म धके ल दया।

डर
पंिडत का डर बेवजह नह था। अ पसं यक समाज के मनोिव ान म डर का एक अंश तो
होता ही है। फर िजस तरह क मीरी पंिडत क ह या ई थी, उससे डर पैदा होना ही था।
ख़ास तौर से तब, जब टीकालाल टपलू, लासा कौल और नीलकांत गंजू जैसे मह वपूण
लोग आतंक के िशकार ए, तो जो पहला भाव बना, वह यही क एक तो पंिडत िनशाने
पर ह और दूसरे यह क उनक सुर ा करने म भारत स म नह था। क मीरी पंिडत के
िलए शि के ोत भारत क सुर ा क आ ि त का टू टना एक अिधक गहरा आघात था
और वाभािवक प से इन जुलूस ने उस भय को और बढ़ा दया। यह यान रखना
चािहए क उस व त तक ीनगर म सेना नह प च ँ ी थी और अ सैिनक बल भी अपया
थे। यह सच है क के ीय सेवा म अपनी बड़ी सं या के कारण आतंकवाद के भारत-
िवरोधी अिभयान का िशकार पंिडत ए ले कन एक प यह भी था क आ दोलन म
सा दाियक वृि य के चलते कई बार क मीरी पंिडत िसफ़ इसिलए मारे गए क वे
पंिडत थे। िब ा कराटे का क़ सा हमने सुना है और उसके नेता अशफ़ाक़ का भी। नाम न
ज़ािहर करने क शत पर एक क मीरी मुि लम िम ने मुझे बताया क उनके मुह ले म य
ही खेल-खेल म मानिसक प से िवकलांग एक पंिडत को गोली मार दी गई थी। जहाँ
ब दूक़ िखलौन क तरह बँटी ई थ और ‘आज़ादी’ के नाम पर कोई भी पा क तान से
पैसे और हिथयार हािसल कर मुजािहद का िख़ताब हािसल कर एक नया संगठन खड़ा कर
ले रहा था, वहाँ वष के तनाव और सा दाियक िव ष े ही नह , िनजी दु मिनय के चलते
भी ऐसा होना नामुम कन तो या, वाभािवक-सा ही था। नतीजा—और अिधक डर!
इस डर के और भी रं ग थे। अनंतनाग के पास वलरहामा गाँव म रह रहे रतनलाल
तलाशी बताते ह क 1989 म माहौल ब त ख़राब हो गया था ले कन पास के कोलर गाँव
म कां ेस के एक बड़े नेता थे ग़लाम नबी। उनके रहते आसपास के गाँव के पंिडत सुरि त
महसूस करते थे। उनक ह या कर दी गई तो पंिडत ने गाँव छोड़ने का िनणय िलया,
जब क गाँव म न कोई पंिडत मारा गया था, न ही कोई दु वहार आ था।
यहाँ से डर का एक और प नज़र आता है और एक बड़े सवाल का जवाब ढू ँढ़ने म
मदद भी िमलती है। मारे पंिडत ही नह , मुसलमान भी जा रहे थे तो डर उस तरफ़ भी था।
अब भारतीय सेना से अिधक डर मुजािहद के नाम पर ब दूक़ लहराते गुंड से था।65
उदाहरण हमने पहले भी देखे ह, फ़लहाल अगर आिधका रक आँकड़ * को ही सही मान ल
तो क मीर म आतंकवाद के 11 वष (1990 से अ ैल 2011) के बीच कु ल 43,460 लोग
मारे गए िजनम नाग रक क सं या 16,686 थी। इनम आतंकवा दय के हाथ मारे गए
क मीरी पंिडत क आिधका रक सं या 319 है।66 लाश का गिणत िनकालना एक ू र
काम है, ले कन तक जैसे िन ु र े म इसके िबना काम भी नह चलता। अगर ितशत
िनकाल तो आिधका रक आँकड़ के मुतािबक़ कु ल नाग रक ह या म क मीरी पंिडत का
ितशत 0.734 आता है; जनसं या म उनक भागीदारी से कम। ज़ािहर है, मौत का डर
उस तरफ़ भी कम नह था। सरला भ क ह या के मामले म ज़ शी ने बताया है क
गाँववाल को प धमक दी गई थी क कसी क मदद न कर, तो वह डर आप समझ
सकते ह िजसने उ ह रोका, जो मदद करना चाहते थे। फर भी ऐसे अनेक उदाहरण यहाँ-
वहाँ िबखरे िमल जाते ह जहाँ पड़ोिसय ने सही समय पर सूचनाएँ द , रोकने क कोिशश
क । उ र क मीर के त मग के पास कुं जर वूसान गाँव क पंच रह आशा देवी ने बताया
क जब उनके गाँव के समृ पंिडत उ ह सूिचत कये िबना गाँव छोड़कर चले गए, तो
अगले दन गाँव के मुसलमान ने उनसे गाँव म ही कने क अपील क और भरोसा
दलाया क वे उ ह हर तरह से सुरि त रखगे। इस घटना के कोई दस साल बाद 2011 के
पंचायत चुनाव म वह एक मुि लम मिहला उ मीदवार को हराकर पंच चुनी ग ।
रतनलाल तलाशी ने भी बताया क जब अपने चाचा क बीमारी क वजह से ज मू जा रहे
अपने बाक़ प रवार के साथ वह नह गए तो गाँव के मुि लम पड़ोिसय ने उ ह भरोसा
दलाया क उनक सुर ा अब उनक िज़ मेवारी है और वह भरोसा आज तक क़ायम है।
संजय ट कू बताते ह क उनके घर पर भी पो टस लगाये गए थे िजनम क मीर छोड़ देने
क धमक थी। उ ह ने पड़ोिसय से स पक कया और सभी ने िमलकर उनसे कने के िलए
कहा। एक भु भोगी क मीरी पंिडत ओ.एन. ि शल कहते ह क 1989 के अ त म जब
घाटी म आतंकवाद क शु आत ई तो आम तौर पर मुसलमान ने पड़ोसी, िम या
सहकम के प म अपने पंिडत भाइय से अपने घर न छोड़ने को कहा और उ ह सुर ा
उपल ध कराई। कई मुसलमान ने उ ह अपने घर म जगह दी क वे आतंकवा दय से बच
सक। ऐसी घटनाएँ भी ह जब मुि लम मिहलाएँ पंिडत क र ा के िलए दरवाज़े पर अड़
ग ।67 ऐसा ही अनुभव अनंतनाग से न बे के दशक म पलाियत ए ो. मनोहर लाल
ट कू का भी है। वह बताते ह क उनक प ी इतना डर गई थ क उ ह ने क मीर छोड़ने
का फ़ै सला िलया जब क उनके मुि लम पड़ोसी यह िबलकु ल नह चाहते थे क वह घर
छोड़।68
जब क इसके िवपरीत िवचार रखनेवाल क भी कोई कमी नह है। ख़ािलद बशीर ने
अपनी कताब म दीप मैगज़ीन का उदाहरण दया है िजनका मानना है क उस दौर म
सारा मामला ‘हम’ और ‘वे’ का हो गया था और मुसलमान से मदद नह िमली। नि दता
ह सर क कताब म क मीर के ेड यूिनयन नेता स पत काश का िज़ है िज ह
धम कयाँ दी ग और घर छोड़ना पड़ा। ह सर बताती ह क जब वे बाद म उनके साथ
रै नावारी का अपना घर देखने गए तो पड़ोस से कई मुसलमान वहाँ आ गए और उनका
रवैया कतई दो ताना नह था।
कसी भी समय म िह दू और मुसलमान मोनोिलथ नह होते। अ छे-बुरे लोग,
से यूलर-सा दाियक लोग दोन ही तरफ़ होते ह और यह एकदम ज़ री नह क उस
समय सभी पंिडत का अनुभव एक जैसा रहा हो या फर सभी मुसलमान का अनुभव एक
जैसा रहा हो। ले कन इतना तो कहा ही जा सकता है क अगर दु मनाना भाव रखनेवाले
लोग थे तो ऐसे लोग क भी कोई कमी नह थी िज ह ने उन िवपरीत प रि थितय म भी
अपने पंिडत पड़ोिसय और सहयोिगय का साथ दया। इसका एक मा मक उदाहरण
जानी-मानी लेिखका, िश ािवद् और उस दौर म क मीर के एक कॉलेज क धानाचाय
रह नीरजा म टू के सं मरण म िमलता है। वह बताती ह क जब क मीरी पंिडत घाटी
छोड़कर जा रहे थे तो उ ह ने वहाँ कने का फ़ै सला कया। एक शादी क पाट म उनक
पुरानी दो त िमली और उसने कहा क अगर वे घाटी छोड़ने के बारे म सोच रही ह तो वह
उनका मकान ख़रीदना चाहगी, वह दूसरी तरफ़ जब िहज़बुल के आतंकवा दय ने उनके
पित का अपहरण करने क कोिशश क तो उनके ाइवर अ दुल ग़नी ने कसी तरह उनके
भागने म मदद क । इस अपराध के िलए बाद म आतंकवा दय ने उसे उठा िलया और जब
उससे पूछा क उसने एक पंिडत क मदद य क तो गनी ने कहा क ‘मने उनका नमक
खाया है और ऐसा कै से हो सकता है क मुसीबत म म उनक मदद न क ँ ?’ यही नह ,
उनके पड़ोसी भी उनके पित के साथ आए। इस सं मरण का अ त एक भयावह ंजना से
होता है—नीरजा और उनका प रवार उ भर ीनगर म रहा था। उनक िज़ दगी दो त
के एक नेटवक के इद-िगद घूमती थी िजसम हर धम के लोग थे। फर भी अब उ ह हर
कसी के इराद पर शक था। आतंकवाद के वष ने भरोसा कर पाने क मता को बुरी
तरह बबाद कर दया था।69 गीलानी कहते ह—जहाँ आपके पुरखे सैकड़ साल से रहते
आए ह, उसे छोड़ना ददनाक है। वहाँ रहना शायद और भयावह था। िव थापन ने
मुसलमान और पंिडत के बीच स दय पुराना ब धन और क मीर के सामािजक ताने-बाने
को बुरी तरह से न कर दया।70
अशोक धर उस दौर म मुसलमान क मानिसक-भौितक अवि थित का सटीक
आकलन करते ह :
कई क मीरी नह समझ पा रहे थे क कै से वहार कर। एक तरफ़ कु छ लोग के िलए वतं क मीर
क छिव एक स मोहक सा य लग रही थी तो दूसरी तरफ़ वे इतने डरे ए थे क अपनी ख़द क
िज़ दगी के बारे म कु छ कहने या कसी और क मदद करने क ि थित म नह थे।71
इन सबका असर यह आ क दोन समुदाय के बीच संवाद क जगह भी ख़ म
और वजह भी िसमटती ग । क मीर म लोग से िमलते-जुलते जो मेरा अनुभव रहा है,
उसम एक बड़े िह से म पंिडत के िव थापन को लेकर एक अपराधबोध-सा दखा है तो
एक िशकायत-भरा लहज़ा भी। गौहर गीलानी इस पूरी या को बड़ी सहजता से समेटते
ह:
म मानता ँ क कु ल िमलाकर घाटी के मुसलमान कसी हद तक िज़ मेदार थे। म यह भी मानता ँ
क पंिडत समुदाय अपने िव थापन के िलए एक हद तक ख़द भी िज़ मेदार है, इस साधारण-सी
वजह से क तब तक दोन समुदाय राजनीितक और िवचारधारा मक िवभेद के बावजूद भाईचारे ,
मेलजोल, धा मक सिह णुता और दो ती के शानदार ब धन के एक ऐसे माहौल म जीते थे िजससे
कसी को भी ई या हो सकती थी...। ऐसा लगता है क पंिडत कह रहे ह—अगर हमने घाटी छोड़ी
तो तुमने हम वापस य नह बुलाया? बस, हम एक या दो फ़ोन कर लेते और हम लौट आते। और
मुि लम कहते ह—तुमने तब य छोड़ा हमारा साथ जब हालात मुि कल थे? या तु ह भी हमारी
तरह मुि कल हालात का सामना नह करना चािहए था? या तु ह यह नह रहना चािहए था?72
एक बार कॉनि ल ट ज़ोन म बदलने के बाद क मीर के इितहास और वतमान क कम
ही चीज़ बचती ह िजनको लेकर कोई एकराय हो, मौत क सं या भी। वहाँ सबका अपना-
अपना टेक है, तो सच का कोई एक जैसा चेहरा ढू ँढ़ पाना मुि कल है। जहाँ तक इस दौर म
मारे गए पंिडत क सं या का सवाल है, ट कू बताते ह क ‘धम कयाँ और हंसा तो
क मीर म आम है। िपछले 20 साल म क मीरी पंिडत के िख़लाफ़ चार बड़ी घटनाएँ
ले कन जैसा पलाियत क मीरी पंिडत कहते ह, सामूिहक ह या या जेनोसाइड जैसा कु छ
नह है। उनका मानना है क पंिडत संगठन ारा िपछले बीस साल म 3000 या 4000
िह दु क ह या क बात दु चार है। वह सरकारी आँकड़े 319 से भी सहमत नह ह और
वा तिवक सं या 650 बताते ह। वह कहते ह, 650 कोई छोटी सं या नह है। हर जान
क़ मती है। ले कन हम आँकड़े सही रखने चािहए।73
ऐसे ही घाटी छोड़कर जानेवाले पंिडत क सं या पर भी कोई एकमत नह है।
क मीरी पंिडत समूह और कु छ िह दू दि णपंथी यह सं या चार लाख से सात लाख तक
बताते ह।74 ले कन यह सं या वा तिवक सं या से ब त अिधक है। असल म क मीरी
पंिडत क आिख़री िगनती 1941 म ई थी और उसी से 1990 का अनुमान लगाया जाता
है।75 इसम 1990 से पहले रोज़गार तथा अ य कारण से क मीर छोड़कर चले गए
क मीरी पंिडत क सं या घटाई नह जाती। पी.एल.डी. पा रमू ने 1947-50 के बीच
क मीर छोड़कर गए पंिडत क सं या कु ल पंिडत आबादी का 20% बताया है।76
िच लेखा ज़ शी ने इस िव थापन क वजह नेशनल कॉ स ारा लागू कये गए भूिम-
सुधार को बताया है।77 इसके बाद भी क मीरी पंिडत का नौक रय आ द के िलए क मीर
से िव थापन जारी रहा। इसका एक उदाहरण अनुपम खेर ह िजनके िपता साठ के दशक म
नौकरी के िसलिसले म िशमला आ गए थे। सुमां ा बोस ने यह सं या एक लाख बताई
है।78 राजनीित िव ानी अले ज़डर इवांस िव थािपत पंिडत क सं या डेढ़ लाख से एक
लाख साठ हज़ार बताते ह।79 पा रमू यह सं या ढाई लाख बताते ह।80 सी.आई.ए. ने एक
रपोट म यह सं या तीन लाख बताई है।81 िव टो रया कोफ़ ड यह सं या 1,40,000
बताती ह।82 अगर 1981 क जनगणना से देख तो पूरे क मीर म िह दु (िजसम पंिडत
के अलावा अ य भी शािमल थे) क सं या 1,24,078 थी। यह सं या कु ल जनसं या क
3.96 फ़ सदी थी। अगर िपछले दशक क िह दु क जनसं या वृि -दर 6.75 ितशत को
देख तो यह सं या 1,32,453 आती है। इसम से पलायन न करनेवाले लगभग 8000
क मीरी पंिडत क सं या घटा दी जाए तो यह सं या लगभग 1,24,453 आएगी।83 वह
भी तब, जब मान िलया जाए क िपछले दशक म नौक रय आ द के िलए एक भी पंिडत
घाटी से बाहर नह गया। एक मह वपूण त य अनंतनाग के त कालीन किम र वजाहत
हबीबु लाह क मीरी पंिडत संघष सिमित ीनगर क 7 अ ैल, 2010 ेस रलीज़ के
हवाले से बताते ह क लगभग 3000 क मीरी पंिडत प रवार ि थितय के सामा य होने के
बाद 1998 के आसपास क मीर से पलाियत ए थे।84 इसक जड़ म शायद वंधामा म
क मीरी पंिडत क ह या रही होगी।
यहाँ एक और त य का उ लेख करना समीचीन होगा। पा रमू ने बताया है क उसी समय
लगभग पचास हज़ार मुसलमान ने घाटी छोड़ी।85 सीमा काज़ी यूमन राइट वाच क
एक रपट के हवाले से बताती ह क 1989 के बाद से पा क तान म 38,000 शरणाथ
क मीर से प च ँ े थे। के ले महमूद ने अपनी मुज़ फ़राबाद या ा म पाया क सैकड़
मुसलमान को मारकर झेलम म बहा दया गया था। इन त य को साथ लेकर वह भी उस
दौर म सेना और सुर ा बल के अ याचार से 48,000 मुसलमान के िव थापन क बात
कहती ह। इन र यूिजय ने सुर ा बल ारा िपटाई, बला कार और लूट तक के आरोप
लगाये ह।86 हांगलू भी बताते ह क उस दौर म बड़ी सं या म ऐसे मुसलमान ने पलायन
क राह चुनी िजन पर मुख़िबर होने का ठ पा लगाया गया था।87 अफ़सोस क 1947 के
ज मू-नरसंहार क तरह इस िव थापन पर भी कोई बात नह होती।
ले कन या इस डर को दूर करने क कोिशश नह क जानी चािहए थ ?
इस सवाल का जवाब हम इस भयावह घटना क िज़ मेदा रयाँ तय करने के म म
शासन क ओर भी ले जाता है और कु छ ज़ री िब दु पर िव तार से चचा क माँग
करता है।
इस मामले म दो अितरे क दृि कोण ह। पहले के अनुसार, यह पूरी तरह से जगमोहन
क योजना थी क पंिडत को घाटी से बाहर िनकाल िलया जाए जब क दूसरे के अनुसार,
जगमोहन इसके िलए कतई िज़ मेदार नह थे और यह पूरी तरह से आतंकवादी संगठन
या मुसलमान क सािज़श थी। उदाहरण के िलए यारे लाल कौल के अनुसार, पंिडत का
घाटी छोड़ने के कारण पूरी तरह से मुसलमान क सा दाियक धम कयाँ थ । मि जद से
लोग को धम कयाँ दी ग । कु छ मुसलमान और आतंकवादी चाहते थे क पंिडत घाटी
छोड़ द।88 पूव सेना अिधकारी और र ा िवशेष मा फ़ रज़ा भी इसे ‘न ली सफाए क
सोची-समझी नीित’ बताते ह।89 यह आ यान रा ल पंिडत सिहत अिधकतर िव थािपत
क मीरी पंिडत क कताब म ही नह बि क भारतीय म यवग के बड़े िह से म भी
भावी है। जगमोहन ने अपनी कताब द ोज़ेन टबुलस म इन आरोप का जवाब देने क
कोिशश ही क है, हालाँ क उन जवाब म ल बे-ल बे आ यान अिधक ह और जवाब
लगभग अनुपि थत।
दूसरा दृि कोण यह है क क मीरी पंिडत को घाटी से बाहर िनकालकर घाटी म दमन
क योजना जगमोहन क थी। इस दृि कोण का समथन करनेवाल म घाटी के मुि लम
और बुि जीवी ही नह , अनेक िव थािपत पंिडत और बुि जीवी भी शािमल ह। इस पर
हम थोड़ा िव तार से बात करगे।
क मीर टाइ स क स पादक अनुराधा भसीन पूछती ह— य के वल दो दन म सारा
प रदृ य बदल गया? य ‘इ लामी आतंकवाद’ अचानक डरावना बन गया य क
ह याएँ तो महीन से चल रही थ ?90 यह सवाल बड़ा है। आिख़र 19 जनवरी, 1990 और
20 जनवरी, 1990 को ही क मीरी पंिडत ने इतनी बड़ी सं या म घाटी य छोड़ी?
इसका एक कारण बताया जाता है क उन दोन रात को जुलूस िनकले थे और मि जद से
घोषणा भी ई। ले कन जैसा क ज मू-क मीर के मु य सिचव रहे िवजय बकाया कहते ह
क जो हज़ार लोग उन रात को सड़क पर आए थे, उ ह ने एक भी पंिडत ि या घर
को कोई नुकसान नह प च ँ ाया था।91 खेमलता वखलू के पूव धृत सं मरण म भी न तो
कसी धमक वाले नारे का िज़ है, न ही घर या कसी ि पर कसी हमले का।

ग़ सा
हालाँ क एक बात तो िनि त प से समझी जानी चािहए क आतंकवादी गितिविधयाँ
बढ़ने और उ ह िनय ण करने के म म सुर ा बल क यादितय से क मीरी
मुसलमान के एक िह से म ग़ सा बढ़ने से पंिडत के भीतर एक भय का मनोभाव (Fear
Psychosis) भरा। यह एक त य है क जगमोहन के आने के साथ ही इस ग़ से और
अस तोष म एकदम से उछाल आया और अिधक से अिधक लोग जुलूस म शािमल होने
लगे। एम.जे. अकबर इसे और प करते ह—19 जनवरी के पहले तक आज़ादी के िलए
जनता का समथन अ य था, 19 जनवरी के बाद य हो गया।92 उस दौर म टाइम
लाइफ यूज़ स वस, टो यो के यूरो चीफ़ एडवड डेसमंड बताते ह क ‘जनवरी, 1990 तक
जे.के .एल.एफ़. ब त भावी ताक़त नह थी...और क मीर के बाहर इसे ब त कम तव ो
िमली थी। क मीर के भीतर भी शहरी म यवग अगर इसका िवरोधी नह था तो काफ़ हद
तक ऊहापोह म था य क उसे अपनी अ जत धन-स पि , फलते-फू लते पयटन उ ोग
और शाि त को खोने का डर था...हालाँ क युवा वग म बेरोज़गारी को लेकर ग़ सा था और
आम मा यता थी क फ़ा क़ ह और द ली के हाथ म खेल रहे ह। ले कन इसका यह
अथ िबलकु ल नह था क लोग एक जोिख़म-भरे िव ोह के िलए तैयार थे...। िबया सईद
क रहाई के बाद जे.के .एल.एफ़. के लोग ने जुलूस िनकाला। सुर ा बल ने उस पर गोली
चलाई और कई लोग मारे गए। उसी समय पुिलस और सी.आर.पी.एफ़. ने ीनगर के
इलाक़ म बड़े पैमाने पर तलाशी शु कर दी। जनता का ितरोध दूना हो गया—इस बार
पुिलस और सी.आर.पी.एफ़. ारा तलाशी के दौरान बला कार, टॉचर और चोरी के किथत
आरोप के कारण। इसक वजह से 21 और 22 जनवरी को जुलूस िनकले, िजन पर
गोलीबारी से 130 लोग क जान चली गई। कु छ मामल म य द शय ने
सी.आर.पी.एफ़. के लोग को घायल लोग को मारते देखा और सी.आर.पी.एफ़. क इस
ू रता के कारण पुिलस वाल म ग़ सा भर गया। कु छ हड़ताल पर चले गए और कु छ उनसे
िभड़ गए।’ इसी लेख म वह ज मू और क मीर के मु य सिचव रहे अशोक जेटली को
उ धृत करते ए कहते ह : ‘जगमोहन ने पाँच महीने म वह कर दया जो आतंकवादी पाँच
साल म नह कर पाते।’93 माच और अ ैल, 1990 म क मीर गए जि टस वी.एम. ताकु डे,
जि टस रा जंदर स र, बलराज पुरी और िश ािवद् अमरीक संह क टीम ने पाया :
वा तिवकता यह है क हाल के महीन म, ख़ास तौर से जनवरी, 1990 म जगमोहन के आने के बाद,
भयावह दमना मक कायवािहय से घाटी क सारी मुि लम आबादी भारत से कट गई है, और उनका
यह अलगाव अब कड़वाहट तथा ग़ से म बदल गया है।94
असल म जगमोहन ने पहले ही दन से आतंकवा दय क जगह जैसे क मीरी
मुसलमान से यु छेड़ दया था। अपने सावजिनक बयान म भी उ ह ने शाि त क कसी
अपील क जगह धमक क भाषा अपनाई। 20 जनवरी को दूरदशन से उ ह ने स देश
ँ ा।’95 19 फ़रवरी को उ ह ने िवधान सभा भंग
दया : ‘सुधर जाओ वरना म ठीक कर दूग
क और उस समय िवधान सभा के सद य गीलानी, अ दुल ग़नी लोन, अ दुल ग़नी बट,
अ बास अंसारी और क़ाज़ी िनसार को िगर तार कर िलया। मई म उ ह ने कहा :
आज क मीर म हर मुसलमान आतंकवादी है। सभी भारत से अलग होना चाहते ह। म ीनगर
दूरदशन के काय म म हेर-फे र इसिलए कर रहा ँ क हर कोई आतंकवादी है...। हालात इतने
िव फोटक ह क म इस राजभवन से बाहर नह जा सकता। ले कन मेरे पास हर िमनट क ख़बर है।
क मीर के िलए बुलेट ही एक हल है। जब तक सारे आतंकवादी नह मारे जाएँग,े क मीर म शाि त
नह लौटेगी।96
इस बयान को ज़रा ग़ौर से प ढ़ए—अब, ‘हर मुसलमान आतंकवादी है’ और ‘जब तक
सारे आतंकवादी नह मारे जाएँगे, क मीर म शाि त नह लौटेगी।’ यानी घाटी म शाि त
के िलए वहाँ के हर मुसलमान को मार डालना था! इस दृि कोण के साथ काम कर रहे
शासक के िलए यह स भव ही नह था क वह आतंकवाद से असहमत या उसके िशकार
क मी रय को साथ लेकर एक तरफ़ शासन को मज़बूत करता तो दूसरी तरफ़ ताक़त का
समुिचत योग करते ए आतंकवा दय का मुक़ाबला करता। हमने देखा है क न के वल
नेशनल कॉ स, कां ेस और जनता दल जैसी मु यधारा क पा टय के लोग
आतंकवा दय के िशकार हो रहे थे बि क िहज़बुल मुजािहदीन के आने के बाद आज़ादी-
समथक और पा क तान-समथक तहरीक के बीच भी तनाव पैदा आ था। सारे
मुसलमान को दु मन और दमन को इकलौता हिथयार मान लेने का प रणाम यह क इन
अ त वरोध का उपयोग कर उ ह कमज़ोर करने क जगह जगमोहन क नीितय ने इन
पर पदा डालकर उ ह एक होने और अपनी ताक़त बढ़ाने का मौक़ा दया। इसका सबसे
बड़ा उदाहरण है मीरवायज़ मौलवी फ़ा क़ क ह या के बाद उनका रवैया, िजसके बाद
अ ततः उ ह क मीर से जाना पड़ा।
21 मई, 1990 को मीरवायज़ क ह या कर दी गई। मीरवायज़ ने िबया सईद के
अपहरण को इ लाम-िवरोधी बताया था। उस समय क मीर मामल के के ीय मं ी जॉज
फनाडीज़ से मुलाक़ात क थी और कसी भी तरह क सुर ा लेने से इनकार कर दया था।
पा क तानी ेस का एक िह सा उ ह भारत का दलाल कह रहा था। जनता का स देह
िहज़बुल मुजािहदीन पर था और उनके अनुयाियय म इसे लेकर भारी रोष था।97 उस
व त तो कसी ने िहज़बुल का नाम नह िलया ले कन बीस साल बाद रयत के एक बड़े
नेता ने सावजिनक प से यह बात कही।* मीरवायज़ के जनाज़े के जुलूस म हज़ार लोग
शािमल ए। मु य सिचव आर.के . ठ र ने जगमोहन को क मीर के इस सबसे बड़े धा मक
नेता क मृ यु पर ख़द जाने या कसी व र अिधकारी को भेजकर रा य सरकार क ओर
से क़ पर फू ल चढ़ाने क सलाह दी। ले कन जगमोहन नह माने। यही नह , उ ह ने जुलूस
के रा ते और जुलूस पर ितब ध को लेकर भी कु छ म पैदा करनेवाले िनदश दये। इ ह
म के चलते ज मू-क मीर के व र पुिलस अिधकारी अ ला ब श के नेतृ व म पुिलस के
एक दल और अ सैिनक बल क एक टु कड़ी ने जुलूस पर तब गोलीबारी शु कर दी जब
वह अपने गंत मीरवायज़ मंिज़ल प च ँ ने ही वाला था। हताहत का आिधका रक आँकड़ा
27 था, भारतीय ेस ने मरने वाल क सं या 47 बताई और बी.बी.सी. ने 100। रउफ़
अहमद नामक एक युवा िपता पर तनी ब दूक़ देख सामने आ गया तो उसक देह म 28
गोिलयाँ िमल ! आलम यह क दो गोिलयाँ मीरवायज़ के शव को भी लग । 1998 तक यह
के स जाँच के दायरे म रहा और फर यह कहकर ब द कर दया गया क कोई भी आरोपी
पहचाना नह जा सका।98 क मीर म ई इन आपरािधक कायवािहय का एक ासद पहलू
यह भी है क चाहे पंिडत मरे ह या मुसलमान, अपरािधय को आम तौर पर कोई सज़ा
नह िमली।
इस तरह एक मौक़ा खो दया गया। जहाँ एक रणनीित के तहत सरकार मीरवायज़ क
क़ पर फू ल चढ़ाकर िह ब के ित जनता के ग़ से को भड़का सकती थी और अपने िलए
थोड़ी सहानुभूित पैदा कर आतंकवादी आ दोलन को कमज़ोर कर सकती थी, वहाँ सारा
ग़ सा अपनी तरफ़ मोड़ िलया गया।
कोफ ड िलखती ह—ह या के िख़लाफ़ ग़ से को सरकार के िख़लाफ़ िह टी रया म
बदल दया गया।99 जहाँ सारी दुिनया िह ब पर सवाल उठाकर माहौल बदल सकती थी,
वह अ तररा ीय ेस इस बबर घटना क तीखी आलोचना से भर गया और भारतीय ेस
जगमोहन क आलोचना से। बुश सरकार ने अपना िवशेष दूत भेजकर भारत से सेना के
योग म संयम करने का स देश िभजवाया तो रा य शासन के 137 कमचा रय ने
खुलेआम इस घटना क आलोचना क ।100 देशभि के नाम ऐसी मूखतापूण कायवाही
अ ततः देश के िख़लाफ़ जाती ही है।
यहाँ एक और मह वपूण बात जोड़ी जानी ज़ री है। द ली म 2003 म ई क मीरी
पंिडत क कॉ स म अशोक भान ने कहा : ‘जब हमने क मीर छोड़ा तो िसफ़ दो लोग थे,
िज ह ने इसका िवरोध कया—मीरवायज़ मौलवी फ़ा क़ और फ़ा क़ अ दु ला। इसके
अलावा राजनीितक जगत से कसी ने कु छ नह कहा।’101
इस डर और ग़ से क अ तः या ने जो माहौल बनाया, उसक एक बड़ी िज़ मेदारी
जगमोहन क बनती ही है। ‘डर’ और ‘गु से’—दोन म से कसी एक को अलग करके देखने
क कोिशश इकहरे िन कष तक प च ँ ने के िलए अिभश है।
साथ ही, योजना हो न हो, ले कन इस बात के तो पया माण ह क उ ह ने इस
िव थापन को रोकने के िलए वह कोिशश नह क , जो क जानी चािहए थी। बलराज पुरी
बताते ह क उस दौर म संयु सिमित बनाई गई थी िजसका उ े य क मीरी पंिडत का
पलायन रोकना था। इसम क मीर के पूव मु य यायाधीश मु ती बहाउ ीन फ़ा क़ ,
एच.एन. ज टू और ग़लाम नबी हा ू थे। कई मुि लम नेता , राजनीितक नेता और
आतंकवादी संगठन तक ने क मीरी पंिडत से पलायन न करने क अपील क । ले कन
ज टू ख़द ही ज मू चले गए। उ ह ने बाद म बताया क इस कमेटी के बनने के तुर त बाद
ही रा यपाल ने एक डी.एस.पी. को ज मू के हवाई टकट के साथ भेजा और ज मू म एक
घर दलाने का आ ासन देते ए तुर त ज मू चले जाने के िलए कहा...सरकार ने ऐसी
कोिशश को कोई मह व नह दया। उसी समय नये-नये आतंकवादी संगठन भी उभर रहे
थे जो सा दाियक घृणा फै ला रहे थे। पंिडत को डरानेवाले पो टर लगाये गए, धम कयाँ
दी ग और इस समुदाय के कु छ लोग क बेवजह ह या क गई। दोन समुदाय के
सा दाियक त व ने इस माहौल का पूरा फ़ायदा उठाया और अ ततः क मीरी पंिडत
घाटी से पलाियत होने पर मजबूर ए।102 ऐसे ही िन कष अकबर ने भी दये ह।103
‘कमेटी फ़ॉर इिनिशए टव ऑन क मीर’ क जुलाई, 1990 क रपोट क मीर इि जंड म
नातीपुरा, ीनगर म रह रहे एक क मीरी पंिडत ने कहा क ‘इस इलाक़े के कु छ लोग ने
दबाव म क मीर छोड़ा। एक क मीरी पंिडत नेता एच.एन. ज टू लोग से कह रहे थे क
अ ैल तक सभी पंिडत को घाटी छोड़ देना है। मने क मीर नह छोड़ा। डरे तो यहाँ सभी
ह ले कन हमारी मिहला के साथ कोई ऐसी घटना नह ई।’ 18 िसत बर, 1990 को
थानीय उदू अख़बार अफ़साना म छपे एक प म के .एल. कौल ने िलखा : ‘पंिडत से कहा
गया था क सरकार क मीर म एक लाख मुसलमान को मारना चाहती है िजससे
आतंकवाद का ख़ा मा हो सके । पंिडत को कहा गया क उ ह मु त राशन,घर, नौक रयाँ
आ द सुिवधाएँ दी जाएँगी। उ ह यह कहा गया क नरसंहार ख़ म हो जाने के बाद उ ह
वापस लाया जाएगा।’104 मेहबूब म दूमी का 27 िसत बर, 2016 को ेटर क मीर म एक
लेख कािशत आ है िजसम उ ह ने 22 िसत बर, 1990 को कु छ िति त िव थािपत
क मीरी पंिडत का उस समय क मीर के मुख दैिनक अख़बार को िलखा एक प अपनी
ट पणी के साथ दया है। मेरे आ ह पर उ ह ने उस प क पी.डी.एफ़. मुझे 17 अ टू बर,
2018 को मेल पर उपल ध करवाई। अं ेज़ी म िलखे इस प पर बृजनाथ भान, एम.एल.
धर, के .एल.कॉ, चु ी लाल रै ना, मोती लाल माम, अशोक कौल, एम.एल. मुंशी, बी.एन.
गंज,ू पु कर नाथ कौल, कमल रै ना, जी.एन. द तरी सिहत 23 पंिडत के ह ता र ह। इस
प म कहा गया है क ‘यह प है क समुदाय के कु छ वघोिषत नेता और अ य
िनिहत वाथ वाले कु छ लोग को जगमोहन ारा बिल का बकरा बनाया गया था िजसम
आडवाणी, वाजपेयी, मु ती और जगमोहन क मु य भूिमका थी। इसम एच.एन. ज टू को
‘मेकैिनक से नेता बना दलाल’ और ‘फ़ा क़ अ दु ला का िप प’ कहा गया है िजसने
पंिडत से िवनती क क वे क मीर छोड़ द और यह धम क र ा तथा अखंड भारत के
व के िलए ब त ज़ री है।’105 संजय ट कू बताते ह क उस दौर म क मीरी पंिडत के
एक ितिनिधमंडल ने जगमोहन से िमलकर अपनी सुर ा के िलए गुहार लगाई थी,
ले कन जगमोहन सुर ा उपल ध कराने क जगह ज मू जाने पर ज़ोर दे रहे थे।
तवलीन संह कहती ह : ‘कई मुसलमान यह आरोप लगाते ह क जगमोहन ने क मीरी
पंिडत को घाटी छोड़ने के िलए े रत कया। यह सच हो या नह , ले कन यह तो सच ही
है क जगमोहन के क मीर म आने के कु छ दन के भीतर वे समूह म घाटी छोड़ गए और
इस बात के पया सबूत ह क जाने के िलए संसाधन भी उपल ध कराये गए।’ वह आगे
कहती ह : ‘अजीब अफ़वाह थ और उन पर भरोसा करना मुि कल था ले कन उन पर
लोग आम तौर पर भरोसा करते थे क जगमोहन का मामला गड़बड़ है। सोपोर के मु य
बाज़ार म मेरे गाइड के प म चल रहे युवा के एक समूह ने मुझे एक िह दू दुकानदार
जय कशन से िमलवाया िजसने घबराते ए मुझसे कहा क यादातर िह दू जगमोहन के
आदेश पर रात के अँधेरे म चले गए ह ले कन वह नह गया य क उसे नह लगता क उसे
अपने मुसलमान पड़ोिसय से कोई ख़तरा है।’106 मुझसे बातचीत म रतनलाल तलाशी
सिहत कई पंिडत ने जगमोहन और ज टू क भूिमका क पुि क है। तलाशी बताते ह क
उनके गाँव के लोग को 2-2 हज़ार पये दये गए थे और साथ म ज मू म अ छी रहाइश
और नौकरी का वादा। वज़ाहत हबीबु लाह बताते ह क उ ह ने जगमोहन से दूरदशन पर
क मीरी पंिडत से एक अपील करने को कहा था क वे यहाँ सुरि त महसूस कर और
सरकार उनक पूरी सुर ा उपल ध कराएगी, ले कन जगमोहन ने मना कर दया। इसक
जगह अपने सारण म उ ह ने कहा क ‘पंिडत क सुर ा के िलए र यूज़ी कै प बनाये
जा रहे ह। जो पंिडत डरा आ महसूस कर, वे इन कै प म जा सकते ह। जो कमचारी घाटी
छोड़कर जाएँग,े उ ह तन वाह िमलती रहगी।’ ज़ािहर है, इन घोषणा ने पंिडत को
पलायन के िलए े रत कया।107 ो. नीरजा म टू ने दस बर, 2012 म गोवा आ स एंड
िलटरे चर फे ि टवल म बोलते ए कहा—उस समय क सरकार ने क मीरी पंिडत म
सुर ा का भाव भरने क जगह उ ह क मीर छोड़ने देने क आसान राह चुनी, और न के वल
उ ह घर छोड़ने दया बि क एक तरह से उ ह इसक सुिवधा दी यानी एक तरह क
र त।108
इन िववरण म इतने उतार-चढ़ाव ह और िनजी अनुभव से लेकर ितब ता तक के
इतने िविवध और िवरोधाभासी आयाम ह क कसी एक तरह क चीज़ को लेकर इकहरा
आ यान रच देना उनके िलए तो लड़ाई का िह सा जैसा हो सकता है िजनके क मीर क
इस कशमकश म टेक ह ले कन हमारे िलए यह तसवीर का एक पहलू देखने जैसा होगा।
न बे के दशक म ए पंिडत के पलायन-िव थापन के िलए आतंकवादी उभार,
सा दाियक तनाव, शासिनक रवैया और वे ऐितहािसक-सां कृ ितक-सामािजक
सं याएँ िज़ मेदार ह िज ह ने उन प रि थितय का िनमाण कया था िजसके म ेनज़र
वह धारणा बनी िजसक अिभ ि शहनाज़ बशीर के इस बयान म होती है क ‘लोग
को लगता था क क मीरी पंिडत हमेशा ही बाहरी शासक वग के साथ रहे।’109 इसम वे
सं याएँ भी शािमल ह िजनसे भारत क मी रय के एक िह से के िलए बाहरी रहा और वे
भी, िजनसे क मीर का राजनीितक संघष धा मक बनकर सामने आया। यह एक भयावह
ि थित थी। इस प रघटना का सार-सं ेप करते ए मृद ु राय कहती ह :
हालाँ क इस बात के कोई संकेत नह ह क क मीरी पंिडत को वहाँ से िनकालने क सरकार क
कोई सोची-समझी योजना थी ले कन इस बात के पूरे संकेत ह क सरकार ने पंिडत का पलायन
रोकने क पूरी कोिशश नह क ।
वा तिवकता शायद इन सब त व (धम कयाँ, ह याएँ, सरकार क ओर से सुर ा का आ ासन
न होना आ द) के संयोजन से बनती है। जो बात यथास भव प े तौर पर कही जा सकती ह, वह यह
क क मीरी पंिडत ने िनि त प से अपनी सुर ा पर ख़तरा महसूस कया होगा—या तो तुर त के
िलए या फर भिव य म अपने प रवार और स पि के सुरि त न होने क ।
ये भाव हर प रवार और हर ि के िलए अलग-अलग ह गे। ले कन अगर उ ह ऐसा ख़तरा
नह महसूस आ होता तो यह िववेिचत कर पाना बेहद मुि कल है क कै से इतनी बड़ी सं या म
उ ह ने वह थान छोड़ दया जो स दय से उनका वतन था।110
िजस घटना से म इस िह से का अ त करना चा ग ँ ा, वह इस पूरी प रघटना का एक
उपसंहार कर सकती है—सुर ा बल ने 1993 म 22 अ टू बर को अनंतनाग के िबजबेहरा
म एक शाि तपूण रै ली पर गोिलयाँ चला । चालीस से अिधक नाग रक मारे गए और डेढ़
सौ से अिधक लोग घायल ए। इनम एक 13 साल का कमलजी कौल नामक क मीरी
पंिडत लड़का भी था। इसके बाद कमल के प रवार ने क मीर छोड़ दया।111
पंिडत के पास क मीर छोड़कर जवाहर टनल से इस पार आने का एक िवक प
उपल ध करा दया गया था; या शायद वह हमेशा से था। मुसलमान को वह रहना था
और आतंकवा दय तथा सुर ा बल के दो पाट के बीच िपसना था। वे अगर इस तरफ़
आए भी तो उनका वागत नह था। वे हमेशा सि द ध क तरह देखे गए। इसके सैकड़
उदाहरण आपको यहाँ-वहाँ िमल जाएँग।े यह हक़ क़त क मीर क भयावह ासदी का एक
अनकहा क़ सा ज़ र है ले कन इसे दर कनार करके क मीर क हक़ क़त को नह समझा
जा सकता। हांगलू कहते ह—हालाँ क यह भी कहानी का एक िह सा है ले कन अ सर इस
पर कसी का यान नह जाता।

िव थापन के बाद : डर से अपमान तक


िजस एक चीज़ पर कोई िववाद नह हो सकता, वह है िव थापन के बाद पंिडत ारा
झेली गई भयावह ासदी। उस दौर म सारे आ ासन के बावजूद ज मू या द ली म
उनका भी वागत नह कया था। उ ह ज मू के बाहरी इलाक़ म मुथी कै प, ांसपोट
नगर, पुखू कै प, टेिडयम कै प, िझरनी कै प, नागरोटा कै प, िम ीवाला कै प और
भटाबािलयाँ कै प म जगह दी गई। क मीर के खुले वातावरण से आए लोग के िलए डेढ़
कमर के ब द मकान म िबना क ह सुिवधा के रहना ासद था िजसका शारी रक
और मनोवै ािनक के साथ-साथ सां कृ ितक असर भी आ। र न लाल हांगलू बताते ह :
जब क मीरी पंिडत ज मू प च ँ े, इस त य के बावजूद क उनक उपि थित ने उस े क भौितक
सं कृ ित का उ यन कया, उनका बेहद ितकू ल वागत आ। म दो उदाहरण देता — ँ तेज़ ग मय
म भी छोटे-छोटे कू ल जानेवाले ब को उन कै नवास टट म रहना पड़ता था जो अमरनाथ याि य
के िलए बनाये गए थे। यह कहना बेकार है क ज मू का े भी उसी रा य सरकार (नोट—
रा यपाल शासन म जगमोहन के तहत) के अधीन था ले कन िव थािपत क मीरी पंिडत के साथ जो
वहार कया गया, वह िन दनीय था। आज तक ज मू म यह सुना जाता है क पंिडत इधर ग दगी
फै लाते ह, इस तरह के अनेक उदाहरण ह। यह बताता है क ज मू कस हद तक क मीर क
ब लतावादी या ब -सं कृ ितवादी सं कृ ित का वागत कर रहा था...। अगर आतंकवाद ने क मीरी
पंिडत को िनराश कया था तो िव थापन के बाद का ज मू का समय भी ब त कटु रहा था। इसके
चलते ब त-से पंिडत को लगा क िव थापन का िनणय ब त बड़ी भूल थी।112
ख़ािलद बशीर िलखते ह :
घाटी छोड़ने के कारण जो भी रहे ह , जब वे ज मू प चँ े तो एक वि थत अराजकता उनक
ती ा म थी। जाने क कोई और जगह नह थी तो इस समुदाय ने भयावह शारी रक और
मनोवै ािनक पीड़ाएँ झेल । वे एक ऐसे वातावरण म गए जो मौसम और सं कृ ित, दोन के िलहाज़
से उनके अनु प नह था। एक आरामदायक िज़ दगी से टट और तंग मकान म रहने क मजबूरी ने
उनक ि थित को क णा पद बना दया। बड़े प रवार को एक कमरे म रहना पड़ा जहाँ औरत ठीक
से कपड़े भी नह बदल सकती थ ।113
पंिडत ारा क मीरी अख़बार को िलखे गए पूव धृत प का आिख़री िह सा भी उन
मुि कल हालात का बयान करता है िजनका सामना ज मू म क मीरी पंिडत को करना
पड़ा। वह ख़त बताता है क िजन लोग ने पहले ही ज मू म व था कर ली थी, वे तो
ठीक-ठाक थे और ऐसे लोग िजनके पास क मीर म ही कोई स पि नह थी, वे ज मू म
छोटे मकान पाकर भी ख़श थे और सबसे अिधक सा दाियक बात कर रहे थे ले कन सबसे
परे शान और दुखी वे लोग थे जो ीनगर और दूसरी जगह से अ छे-ख़ासे घर छोड़कर
आए थे।114 यह एक नज़ रया हो सकता है, ले कन जो बड़ा सच बनता है, उसम ब त सारे
कारक शािमल ह। अपनी जड़ से उखड़कर जाना कसी भी समुदाय के कसी भी सद य के
िलए एक ासदी के अलावा या हो सकता है, ख़ास कर तब, जब यह िनणय उनका ख़द
का न होकर भय और मजबूरी म िलया गया हो?
हालाँ क यहाँ यह बता देना ासंिगक होगा क क मीरी िव थािपत पंिडत को
िमलनेवाला ित माह मुआवज़ा भारत म अब तक कसी िव थापन के िलए दये गए
मुआवज़े से अिधक है।115 समय-समय पर इसे बढ़ाया भी गया, आिख़री बार उमर
अ दु ला के शासनकाल म। 2008 म आतंकवाद म मारे गए लोग को 5 लाख पये क
सहायता तथा ितपूरक नौकरी देने का आदेश दया गया।116 2015 म नक़द राहत ित
ि 1500 पये से बढ़ाकर 2500 पये कर दी गई। एक प रवार के िलए अिधकतम
रािश 10,000 पये तय क गई।117 2015 म ही क मीरी िव थािपत के िलए 3000
अित र नौक रय और 6000 आवास देने के िलए 2000 करोड़ का पैकेज अनुमो दत
कया गया।118 इसके अलावा द ली म द ली शासन, एम.सी.डी., एन.डी.एम.सी. के
कू ल और के ीय िव ालय म वेश के िलए सुिवधाएँ और द ली िव िव ालय म
दािख़ले के िलए आर ण जैसी सुिवधाएँ दी ग तथा सरकारी आई.टी.आई. सं थान म
एक ितशत सीट आरि त क ग । महारा म िड ी और िड लोमा, दोन तर पर
तकनीक सं थान म आर ण दया गया और क मीरी छा के दािख़ले िबना डोमेसाइल
स ट फके ट लेने का ावधान कया गया। म य देश म हर तकनीक सं थान म हर तर
पर एक सीट िव थािपत क मीरी पंिडत के िलए आरि त क गई। पंजाब म कू ल तर
पर उनके िलए मु त िश ा का ावधान कया गया तो गुजरात और राज थान म मेिडकल
छा को माइ ेशन क सुिवधा दी गई तथा क मीरी छा के दािख़ले िबना डोमेसाइल
स ट फके ट लेने का ावधान कया गया।119
ख़ािलद बशीर कै प म रह चुक श म ा के हवाले से पंिडत मिहला क उन
ास दय क तरफ़ यान दलाते ह जो अ सर हमारे मदाना आ यान म जगह पाने से
चूक जाती ह। ज मू क भयावह ग मय म नहाना और िन यकम भी मिहला के िलए
एक भयावह सम या थी। दुिनया भर के मद क िनगाह तो ख़ैर थ ही। उनके िलए
अपमानजनक स बोधन गढ़े गए और यौन-उ पीड़न क भी छोटी-बड़ी घटनाएँ । डॉ.
िवमला धर क आँख यह बताते-बताते भर गई थ क जब ज मू म उ ह ने एक कु ितया को
देहजूर* पहनाकर भगाते लोग को ‘पंिडतानी जा रही है’ का शोर मचाते देखा। नतीजा
मनोवै ािनक सम याएँ। ज मू और क मीर सरकार क िच क सीय पुनवास िवभाग क
वष 2000 क रपोट बताती है क इन मिहला म 76 ितशत अलग-अलग तरह के
एं जाइटी िडसऑडर, फोिबया और पैिनक अटैक से त थ तो 20 ितशत मिहला को
अिन ा और ि व-स ब धी सम याएँ थ । उनम एक बड़ी सं या िड ेशन और नशे क
िशकार मिहला क भी थी। मानिसक-शारी रक सम या का असर इसी से समझा जा
सकता है क िव थापन के बाद मनोपाज क उ कम हो गई थी और 36 ितशत
मिहला का मेनोपाज 40 क उ से पहले ही हो गया था। इसम एक-चौथाई क उ तो
34 वष से भी कम थी। इसका असर उनक जनन- मता पर भी नकारा मक प से
पड़ा।120 ब को तो इसका िशकार होना ही था। इस पूरी या म क मीर के कु ल ब
के चार से पाँच फ़ सदी यतीम ए थे िजसम क मीरी पंिडत ब े भी शािमल थे ही। जीजी
पॉल बताते ह क इन हालात म माँ-बाप खो चुके ब के अपने र तेदार के हाथ
उ पीड़न के िलए कई मामले सामने आए। 1990-97 के बीच 800 से अिधक पंिडत ब को
िव थापन के चलते मनोवै ािनक सम या का सामना करना पड़ा और 8 से 10 साल के
ब म नकारा मक भाव और तनाव क सम या पाई गई।121
यह वही पीढ़ी है जो आज ौढ़ हो चुक है और िजसका बड़ा िह सा आज दि णपंथ
का सबसे मुखर व ा है। यह वह पीढ़ी है िजसने अपनी आँख खोलने के साथ क मीर म
तेज़ आवाज़ म उठते नारे सुने ह, घर से कू ल तक मश म क तरह उगे आतंकवादी
संगठन देखे ह, हथगोले और ब दूक़ देखी ह, सा दाियक तनाव देखे ह और िव थापन क
पीड़ा झेली है; िजनका बचपन क मीर क ख़शनुमा वा दय म नह , िव थािपत लोग के
िलए बने कै प म अड़ोस-पड़ोस के दद भरे आ यान सुनते गुज़रा है। इसके बरअ स
क मीर म उसी दौर म बड़ी ई पीढ़ी है िजसके श दकोश म क यू, हड़ताल, कासो,
मुठभेड़, इ काउं टर, ेनेड शािमल होते गए ह, िज ह ने अपने पड़ोस और कू ल -कॉलेज म
पंिडत को नह —बस, अपने सहध मय को देखा है, सुर ा बल के अ याचार के क़ से
सुने ह और क मीर से बाहर गए क मी रय के साथ ए दु वहार क ख़बर सुनी ह। एक
तरफ़ जनवरी, 1990 क रात ह, बंधामा है, न दी ाम है तो दूसरी तरफ़ आ सपा है,
कु नान पोषपुरा है, मािछल है, गौ कदल है, पैलेट गन ह और सुर ा बल तथा पुिलस के
दमन के हज़ार क़ से। पुरानी पीढ़ी क मृितय म इन कटु घटना के साथ सहअि त व
भी है ले कन इस पीढ़ी के पास जो है, वह बस, यही कटु ता। इसने क मीर के वतमान को
और ज टल बनाया है। िनताशा कौल ल दन म रहनेवाली क मीरी पंिडत ह िजनके
प रवार ने न बे के दशक म घाटी छोड़ी थी। वह कहती ह :
भारतीय सेना के दशक के क मीर म दमन को (िवरोध दशन करनेवाल क ह याएँ, ज़ब रया
गुमशुदगी, आपातकालीन अिधकार, ग़ैरक़ानूनी ताड़ना और बला कार, युवा को पैलेट गन से
अंधा करना) वहाँ के ब सं यक समाज ने झेला है जो मुि लम ह और अ सर उ ह ऐसा मुि लम होने
के चलते ही झेलना पड़ा है। उसने एक राजनीितक िववाद का सा दाियक करण कर दया है।
हालाँ क क मीरी िह दु और मुसलमान क पुरानी पीढ़ी को याद है क सहअि त व कै सा था
—भले यह िह दु को जाित और धम के आधार पर िमले ािधकार के चलते ग़ैर-बराबर शत पर
था, ले कन आज का युवा अ सर माज़ी से अप रिचत है।
अगर आप बाबरी िव वंस के बाद र यूज़ी कै प म पले-बढ़े एक क मीरी िह दू ह या एक
क मीरी मुि लम ह और भारत के िख़लाफ़ यु म अपने दो त और प रवार खोये ह तो बुरहान वानी
के नाम पर आपक ित या आम तौर पर एक ऐसी समझ होगी िजससे न के वल आपक राजनीित
प रभािषत होती है बि क आपक धा मक पहचान भी।
वे युवा क मीरी िज ह ने घाटी म सहअि त व नह देखा है, वे क मीरी िह दु को
िह दु ववादी ताक़त के िह से के प म देखते ह (ठीक वैसा, जैसा भारतीय मीिडया दखाना चाहता
है) या फर वा तिवक संघष से एक थ का िवकषण (जैसा क ितरोध के लड़ाक ारा बताया
जाता है जो इस लड़ाई को इ लामी िव ोह के प म दखा रहे भारतीय बयान के ित प ह)।122
इस लगातार बढ़ते अप रचय और संवादहीनता तथा घाटी पर दोन समुदाय के
अपने-अपने दाव के बीच देश और दुिनया म लगातार मज़बूत होते दि णपंथी
सामािजक-राजनीितक वातावरण म अपनी-अपनी अिभकि पत सामुदाियक मृित या
कह, अपने-अपने परसे शन को यथाथ क तरह तुत कये जाने ने क मीर सम या को
नये तरीक़ से उलझा दया है। इस किथत पो ट थ या परा-स य के समय म एक तरफ़
िव थािपत पंिडत के दि णपंथी समूह के व ा के वीिडयोज़ और हा सेप ह जहाँ
क मीर के इितहास को मुसलमान के िह दु पर अ याचार के आ यान म बदले जाने को
‘स य’ क तरह लगातार चा रत कया जाता है तो दूसरी तरफ़ घाटी से आनेवाले उतने
ही ज़हरीले वीिडयोज़ और हा सेप ह िजसम इसका ितआ यान तुत कया जाता है।
परसे शन क इस लड़ाई का एक प कठु आ म एक ब ी के बला कार के बाद क
बयानबािज़य और जुलूस म दखा तो दूसरा अभी 370 हटाने और रा य को दो के
शािसत देश म बदल देने के फ़ै सले के बाद एक तरफ़ क यू और दूसरी तरफ़ ज के
माहौल म। घाटी म बेहद स य सामािजक कायकता अिमत वांचू कहते ह : ‘अगर उस
समय म ज मू चला गया होता तो शायद म भी उतना ही क यूनल हो गया होता।’
इन सबके बीच िव थापन के बाद क पीढ़ी क साग रका क़ सू जैसी मुखर और
जीवट वाली प कार और घर छोड़ने क दा ण मृितय के बावजूद मुसीबत म पड़े
क मीरी छा के प म खड़े होनेवाले अिभनेता रा ल भ जैसे पंिडत , गौहर गीलानी
और शहनाज़ बशीर जैसे मुखर लेखक और क मीर समाज के भीतर ख़ामोशी से काम
करते ए िव थािपत और वहाँ रह रहे पंिडत क कहािनयाँ दज करनेवाले जावेद शाह
जैसे प कार और नाग रक ही नह , ऐसे अनेक ग़ैर-क मीरी प कार , लेखक और आम
लोग से ही थोड़ी उ मीद जगती है जो क मीरी जनता क संवेदना के साथ जुड़ने क
कोिशश ही नह कर रहे बि क उनक मुसीबत को लगातार मज़बूती से दज भी कर रहे ह।
जब द ली और ीनगर, दोन ही जगह राजनीित लगभग असफल हो चुक है तो शायद
जनता से जनता का स पक ही जवाहर टनल के उस पार और इस पार के बीच कोई पुल
बना सकता है।

_______________
* हालाँ क डेिवड का कहना है क यह HAJI ुप है। अशफ़ाक़ का नाम दरअसल इशफाक़ था और यासीन का मूल नाम
असलम था। वेद गु ा ने भी इशफाक़ ही िलखा है ले कन बाक़ जगह पर अशफ़ाक़ आया है। वैसे इशफाक़ क मीर म
काफ़ चिलत नाम है।
** आज़म इं कलाबी द ली समझौते के बाद सोफ़ मोह मद अकबर क ‘महाज़-ए-आज़ादी’ से जुड़ा था जो मूलतः
जमा’त के संगठन ‘अवामी महाज़’ का नया नाम था। इसके पहले वह अल-फ़तेह से भी जुड़ा रहा और उन पहले क मीरी
आतंकवा दय म से एक है जो सीमा-पार से िश ण और हिथयार लेकर लौटे थे। 1987 के चुनाव के बाद उसे भी जेल
म डाला गया ले कन रहा होने पर 22 जनवरी, 1988 को उसने एकतरफ़ा यु िवराम घोिषत कया, हालाँ क इसका
उपयोग उसने भूिमगत प से नये युवा क भत के िलए कया। पा क तान समथक त व के आ दोलन म दबदबे के
बाद वह 1992 म ल दन भाग गया और फर वहाँ से लौटकर 1993 म पा क तान म रहकर क मीर क आज़ादी के िलए
अिभयान चलाने लगा। उसका टड पा क तानी शासन को नागवार गुज़रा और 1995 म उसे पा क तान छोड़ने पर
मजबूर कर दया गया। भारत आकर 16 जनवरी, 1995 को उसने हिथयार का रा ता छोड़ने क घोषणा क और
फ़लहाल गंभीर बीमारी म वह अलग-थलग जीवन जी रहा है (िव तार के िलए पूव धृत डेिवड देवदास क पु तक द
टोरी ऑफ़ क मीर देख और इं टरनेशनल जनल ऑफ़ सोशल साइं सेज के खंड 5, अंक 1, म छपा ग़लाम रसूल भ का लेख
ोफ़ाइल एंड पॉिल टकल आइिडयोलोजी ऑफ़ आज़म इ क़लाबी, 29-33 माच, 2016)।
* पा क तान क गु चर सं था
* इस क़ से क उपकथा यह क 2014 म म त गुल का नाम आिख़री बार पा क तान के पेशावर म ि़फदाइन हमल के
स दभ म सुना गया और इसके बाद िहज़बुल मुजािहदीन ने घोषणा क क उसे 2001 म ही संगठन से िनकाला जा चुका
है (http://www.hindustantimes.com/india/once-a-poster-boy-of-kashmir-militancy-mast-gul-declared-
villain-by-hizbul/story-c3OAie2h2mK0F0oHlgNZiM.html)।
* वखलू इसी म म अगले दन गौ कदल फाय रं ग का िज़ करती ह जो 21 जनवरी को ई थी। इसिलए लगता है क
वह 20 जनवरी क रात क ही बात कर रही ह।
* अनिधका रक ोत , मानवािधकार संगठन आ द के दावे दोन तरफ़ क आिधका रक सं या से कई-कई गुना ह।
* अगले अ याय म देख
* िववािहत क मीरी पंिडत मिहला के कान म पहने जानेवाला आभूषण
स दभ
1. देख, पेज 54, क मी रयत : द वायस ऑफ़ द पा ट िमसक यूड, र न लाल हांगलू, पाचमट ऑफ़ क मीर,
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2. देख, पेज 80, माई क मीर द डाइं ग ऑफ़ द लाइट, वजाहत हबीबु लाह, पि वन बु स, द ली, 2014
3. देख, वही, पेज 64
4. देख, अ याय 1 और 2, टेर र म इन नॉथ इं िडया : ज मू एंड क मीर एंड द पंजाब, वेद काश, क पाज़
पि लके शन, द ली, 2008
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6. देख, पेज 210-11, डायनािम स ऑफ़ पॉिल टकल चज इन क मीर, डी.एन. धर, किन क पि लशस, द ली,
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अहमदाबाद, 2012
8. देख, http://kashmirdispatch.com/2013/07/30/july-31-1988-the-day-armed-struggle-began-in-
kashmir/117151/(आिख़री बार 14/09/2019 को देखा गया)
9. देख, http://kashmirdispatch.com/2011/03/30/ishfaq-majid-the-raw-clay-of-
resistance/102536/(आिख़री बार 14/09/2019 को देखा गया)
10. देख, https://www.bbc.com/news/world-asia-18738906 (आिख़री बार 14/09/2019 को देखा गया)
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43. देख, 2 अग त, 2011 को अल ज़ज़ीरा म छपा सुमा ा बोस का लेख द इवो यूशन ऑफ़ क मीरी रे िस टस
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45. देख, पेज 172, क मीर : ि ल पसेज ऑफ़ िह ी एंड द टोरी ऑफ़ गल, सैफ़ु ीन सोज, पा, द ली, 2018
46. देख, पेज 68-69, िबटवीन डेमो े सी & नेशन : जडर एंड िमिलटेराइजेशन इन क मीर, सीमा काज़ी, वीमेन
अनिलिमटेड, द ली, 2009
47. देख, 15 फ़रवरी, 2016 को द नेशन म छपा अरशद मिलक का लेख हाई िडड आ ड इं सरजसी ‘फे ल’ इन
क मीर?
48. देख, पेज 175, क मीर : ि ल पसेज ऑफ़ िह ी एंड द टोरी ऑफ़ गल, सैफ़ु ीन सोज, पा, द ली, 2018
49. देख, 2 अग त, 2011 को अल ज़ज़ीरा म छपा सुमा ा बोस का लेख द इवो यूशन ऑफ़ क मीरी रे िस टस
50. देख, पेज 156, फा ट लाइं स ऑफ़ िह ी : द इं िडया पेपस (स पादक : उमा च वत ) म शबा सैन का लेख
से सुअल वायलस एंड इ यूिनटी, ज़बान बु स, द ली, 2016
51. देख, वही, पेज 154
52. देख, पेज 142-43, द मेनी फे सेज़ ऑफ़ क मीरी नेशनिल म, नि दता ह सर, पी कं ग टाइगस, द ली, 2015
53. देख, पेज 69, िबटवीन डेमो े सी एंड नेशन : जडर एंड िमिलटेराइजेशन इन क मीर, सीमा काज़ी, वीमेन
अनिलिमटेड, द ली, 2009
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55. देख, वही, पेज 162
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57. देख, पेज 218, क मीर : िबहाइं ड द वेल, एम.जे. अकबर, रोली बु स, छठा सं करण, द ली, 2011
58. देख, पेज 60, क मीर द बाजपेयी इयस, ए.एस. दुलत, हापर कॉिल स पि लशस, नोएडा, 2015
59. देख, पेज 243-44, अ िडजोलेशन कॉ ड पीस (स पादक : अतहर िज़या और जावेद इक़बाल भट) म ख़ािलद मीर
का लेख द वनल इं टर यूड, 1989, हापर कॉिल स इं िडया, नोएडा, 2019
60. देख, पेज 82, माई क मीर द डाइं ग ऑफ़ द लाइट, वजाहत हबीबु लाह, पि वन बु स, द ली, 2014
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िलिमटेड, द ली, 1997
64. देख, पेज 192, क मीर : रे ज़ एंड रीज़न, गौहर गीलानी, पा, द ली, 2019
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66. मानवािधकार आयोग क रपोट से गौहर गीलानी ारा पेज 155 पर उ धृत
67. ख़ािलद अहमद बशीर ारा ओ.एन. ि शल क कताब क मीरी पंिड स एट द ॉसरो स ऑफ़ िह ी और से
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68. देख, https://pdfslide।us/documents/mn-tickoo-on-migration.html (आिख़री बार 14/09/2019 को देखा
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73. http://www.aljazeera.com/indepth/spotlight/kashmirtheforgottenconflict/2011/07/201176134818984961.html
74. देख, पनुन क मीर क वेबसाइट http://panunkashmir|org/ (आिख़री बार 14/09/2019 को देखा गया)
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परमानट लैक, दूसरा सं करण, 2015
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ाइवेट िलिमटेड, द ली, 2017
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अहमदाबाद, 2012
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अ याय-11

िज ह ने घर नह छोड़ा
घाटी म रह रहे क मीरी पंिडत
ना। मुझे डर नह लगा। पूरे दो साल मने सोचा क पंिडत भाग य रहे ह! मेरा बेटा ब त परे शान
था ले कन मुझे कोई डर नह लगा य क म तमाम आतंकवादी लड़क को जानती थी। उनम से कई
मेरे हाथ ही पैदा ए थे...। मुझे दुःख आ उनके हिथयार उठाने का...। जो वे कर रहे ह, वह ग़लत है
ले कन रा य क सरकार और द ली के रवैये और क मीर पर उनक ग़लत नीितय ने सािबत
कया है क जब एक देश अपने युवा क ि़फ नह करता तो वे िव ोह म उठ खड़े ह गे और
हिथयार उठा लगे। क मीर एक ऐसी जगह है जहाँ स दय या पी ढ़य से हम ग़लाम ह। जब म ‘हम’
कहती ँ तो म इसम शािमल ।ँ 1947 के बाद से के सरकार क ग़लत नीितय ने इसे बबाद कर
दया है। जब म यहाँ आई तो मने अपने पित से पूछा क क मीरी इतने कायर य ह? वे ये सब य
बदा त करते ह? इसके िख़लाफ़ खड़े य नह होते? उ ह यह महसूस भी नह होता क वे कस
क़दर वंचना के िशकार ह। वह मुझसे कहते थे, क मीरी म कहते ह : ‘अगर हम लड़ नह सकते तो
या भाग भी नह सकते?’ हम पी ढ़य से ग़लाम रहे ह।
—डॉ. जगत मोिहनी

कहानी वांचू प रवार से शु करना चाहता ।ँ क मीर का इितहास पढ़ते दयनाथ वांचू
के नाम से प रिचत आ। 25 मई, 1925 को ीनगर के ह बा कदल के मािलयार म एक
म यवग य प रवार म ज मे वांचू छा जीवन म ही डोगरा शासन के िख़लाफ़ आज़ादी क
लड़ाई म शािमल हो गए थे और दो बार जेल हो आए थे। ‘क मीर छोड़ो’ आ दोलन म
उ ह एक साल क जेल ई थी। एस.पी. कॉलेज से ातक क परी ा पास कर उ ह ने
समाजसेवा के िलए रे ड ॉस सोसायटी चुनी और ज मू-क मीर म व र िच क सक के
साथ िमलकर अनेक योजनाएँ लागू करवाने म मुख भूिमका िनभाई, फर 1952 म
ीनगर नगरपािलका म मुलािज़म ए। वहाँ ेड यूिनयन गितिविधय के चलते सफ़ाई
कमचा रय क यूिनयन बनवाई और उनके अिधकार क लड़ाई लड़ी। जब उनक बात
का सरकार पर कोई असर नह पड़ा तो सफ़ाई कमचा रय के साथ सिचवालय पर उ ह ने
बड़ा दशन कया। वहाँ जब कमचा रय ने शहर क सारी ग दगी डाल दी तो शासन
चेता और न के वल िसर पर मैला ढोने क पर परा ख़ म ई बि क िनयिमत नौकरी से
लेकर इं योरस तक क सुिवधाएँ िमल । बटमालू म सफ़ाई कामगार के ब के िलए कू ल
खोला और इसके बाद उ ह ने ‘ ीनगर यूिनिसपल इ लाइज़ यूिनयन’ ग ठत क िजसक
शाखाएँ पूरे देश म फै ली थ । यह एटक से जुड़ी यूिनयन थी। वांचू काला तर म
महासिचव बने और इं डो-यू.एस.एस.आर. डिशप सोसायटी सिहत कई सं था म
मह वपूण भूिमकाएँ िनभा । इसके साथ ही उ ह ने साठ के दशक म समाज के ग़रीब वग
के िलए एक कं यूमर सोसायटी बनाई जो नो ॉ फट, नो लॉस के आधार पर उिचत मू य
पर लोग को ज़ रयात के सामान उपल ध कराती थी। 1989 म जब क मीर म
आतंकवाद शु आ तो क मीर छोड़ने क जगह उ ह ने वहाँ सुर ा बल ारा
क मी रय के मानवािधकार के हनन के मु े पर लड़ाई छेड़ दी। 65 साल के होते ए भी
वे उन मुि कल हालात म घर से िनकलकर दूर-दराज के गाँव म जाते, पुिलस और सुर ा
बल ारा ग़ैर-क़ानूनी तरीक़े से िगर तार कये और मार दये लोग के आँकड़े जुटाते और
हेिबयस कापस मुक़दमे दायर कर उनका िहसाब माँगते। बलराज पुरी िलखते ह क
क मीर म मानवािधकार उ लंघन के द तावेज़ीकरण का काम िजतनी िन प ता और
िजतने वि थत तरीक़े से दयनाथ वांचू ने कया, उतना कसी और ने नह ।
उस व त के हालात पर वांचू कतने खर थे, यह उनके इस बयान से समझा जा
सकता है :
यहाँ खुला दमन है। आज बीजेपी और आर.एस.एस. लॉबी खुलेआम कह रहे ह क जगमोहन को
उ ह ने भेजा है। क मीर पर कोई प सरकारी नीित नह है। नेशनल कॉ स और कां ेस के लोग
भाग गए ह। िवप को ख़ म कर दया गया है। म यमा गय के िख़लाफ़ वारं ट जारी कये गए ह।
राजनीितक कारवाइयाँ ितबि धत कर दी गई ह तो सरकार बात कससे करे गी? आज मु ती, जॉज
फनाडीज़, वी.पी. संह और रा यपाल अलग-अलग भाषा म बात कर रहे ह। मु ती ज मू म कहते ह
क क मीरी पंिडत को वापस भेजा जाएगा ले कन जगमोहन वहाँ उनके राशन काड क िमयाद
बढ़ा देते ह। ेस नोट राजभवन म तैयार कये जाते ह और वे सीधे दूरदशन और आल इं िडया रे िडयो
पर जाते ह। त य को तोड़ा-मरोड़ा जा रहा है। एक पूरी बारात क ह या कर दी गई ले कन आप
इसे अख़बार म नह पाएँगे य क इस ख़बर को फै लने नह दया जाएगा।’1
वह िविभ देश के दूतावास , धानमंि य और रा पित को मानवािधकार के हनन
के बारे म प िलख रहे थे और वहाँ आकर क मीर के ज़मीनी हालात को देखने क अपील
कर रहे थे। वह पहले ि थे िज ह ने कु नान पोषपुरा मामले म बला कार पीिड़त के
मामले दज कराए थे। अ पसं यक क मदद के िलए उ ह ने ‘िह दू वेलफे यर फोरम’ भी
बनाई थी जहाँ वह भय त अ पसं यक समुदाय क सहायता के िलए सदा त पर रहते
थे। ज़ािहर है, सरकार उ ह पस द नह करती थ । आज के दौर म भी तो ऐसे लोग को
एंटी नेशनल कहे जाने का चलन है ही।
5 दस बर, 1992 को जब अयो या म िह दूवादी ताक़त ने बाबरी मि जद के चार
ओर घेरा डाला आ था, ीनगर के जवाहरनगर और करण नगर के बीच का क़ सा
मु तसर-सा है। तीन लोग आए—दो ऑटो म और एक कू टर पर। उस दन दयनाथ जी
जोड़ के दद से परे शान थे ले कन जब उ ह बताया गया क एक सफ़ाई कमचारी के बेटे को
पुिलस उठा ले गई है तो वह िनःशंक ऑटो म बैठकर चल दये। आधे घंटे बाद जब सवा दस
बजे घर का फ़ोन बजा तो उनके पु कु मार वांचू के िलए ही नह , कसी के िलए भी
भरोसा करना मुि कल था क वह अब दुिनया म नह रहे। देखते-देखते ख़बर आग क तरह
फै ल गई। अगले दन जब अयो या म बाबरी मि जद तबाह क जा रही थी तो दयनाथ
जी के घर के सामने लाख लोग का जूम उ ह ांजिल देने प च
ँ ा। प रवार को लगा
क शवया ा िनकालने पर लोग का ग़ सा बाहर आ सकता है तो घर के पास डी.ए.वी.
कू ल के मैदान म उनक अि तम या क गई। उस जगह पर ही उनक समािध बनी ई
है। यूयाॅक टाइ स म पी.एम. वरदराजन ने िलखा—5 दस बर को जब अयो या म िह दू
क रपंथ और फ़ज़ रा वाद क ताक़त के अयो या क मि जद पर हमले के एक दन
पहले क मीर के सबसे मुख मानवतावादी दयनाथ वांचू क तीन अनजान
ब दूक़धा रय ने ह या कर दी।2 यूमन राइ स वाच क एक रपोट म आरोप लगाया
गया है क वांचू क ह या त कालीन रा यपाल िगरीश स सेना के कहने पर एक भारतीय
अिधकारी ारा करवाई गई थी य क वे ग़ैरक़ानूनी ह या के अनेक मामल क पैरवी
अ तररा ीय सं था म कर रहे थे3 ले कन नि दता ह सर का मानना है क उनक ह या
आतंकवा दय ने क य क वे नह चाहते थे क कोई पंिडत क मीर के ितिनिध के प
म सामने आए।4 ऐसे लोग सबके अि य होने के िलए अिभश ह शायद। उनक ह या के
जुम म आिशक़ सैन फ़क़तू उफ़ डॉ. क़ािसम को 1993 म आजीवन कारावास क सज़ा ई
और उसके बाद से वह जेल म है। संगवश बताता चलूँ, फ़क़तू दु तरान-ए-िम लत क
लीडर आिशया अ दराबी का पित है।5

कहानी यहाँ ख़ म नह ई। असल म तो यह जानने के बाद मेरी उ कं ठा बढ़ी थी क


इस घटना के बाद वांचू प रवार वहाँ है या नह , और अगर है तो या सोचता है और आज
के क मीर म उनक या भूिमका है? 2017 के अ टू बर म क मीर गया तो बस इतना पता
था क वह प रवार जवाहर नगर म रहता है तो वहाँ प च ँ कर य ही कसी से पूछा...।
आ य, वे सीधे उनके घर ले गए जहाँ दवा क एक फै टरी के संचालक उनके पु कु मार
वांचू से मुलाक़ात ई।
कु मार साहब शु आत जवाहर नगर से ही करते ह—‘यहाँ 480 घर थे और उनम से
400 घर पंिडत के थे। अब शायद उनम साढ़े तीन सौ घर िबक गए। जब गए थे तो अपने
हमसाय को चाभी दे गए थे। यादातर लोग चले गए। एक फयर साइकोिसस थी। दो
तरह क बात होती ह। एक तो यह क सारे मुसलमान िख़लाफ़ हो गए थे। ले कन यह सही
नह है। असल म खेल पॉिल टकल था। पॉिल ट स ने मारा सबको। सौ साल पहले जो
माहौल था, वह अब कह नह है। हर क मीरी ने दुःख उठाए। 1984 याद क िजए, आप तो
नह शािमल थे उसम? आम िह दू तो शािमल नह था? जो लोग गए, वे भी उस ण के
ग़ से म गए ले कन उसके िलए राजनीित िज़ मेदार है। आज मुसलमान म आप एक िग ट
पाएँगे। क मीर से िह दु तान और पा क तान, दोन का लाभ है। आप पर िनभर करता है।
आप एजडा लेकर बात करगे तो अपने िहसाब से जवाब िनकाल लगे, जैसा चैनल वाले
करते ह। ले कन स ाई जाननी है तो सबसे िमिलए, उनका दद सुिनए।’ अचानक उ ह ने
एक सवाल पूछा, ‘आप बता सकते ह क वह ब दा कौन था िजसने क मीर क सम या को
सही प र े य म समझा है िपछले बीस-तीस साल म?’ मने कु छ नाम िलये। उ ह ने
मु कु राकर कहा : ‘जनरल मुशरफ़। उसने िबलकु ल सही समझा था। अटल िबहारी
बाजपेयी के समय म बात बढ़ी थी। समाधान वही है, लाइन ऑफ़ कं ोल को थायी बना
दया जाए। देिखए, िसफ़ बीजेपी इस सम या को हल कर सकती है और ऐसे िनणय पर
मुहर लगा सकती है। कां ेस ने ऐसा िनणय िलया तो बीजेपी के लोग इसे िह दू-िवरोधी
बताने लगगे और बवाल हो जाएगा। अब वे या करगे, यह देखना होगा।
मज़ेदार बात यह है क लगभग उसी समय क मीर के मुख अलगाववादी नेता
श बीर शाह भी कह रहे थे क इस सम या को िसफ़ बीजेपी हल कर सकती है।6 अ टू बर,
2019 म मने कु मार साहब से दुबारा यह सवाल पूछा तो उनका जवाब वही था। हालाँ क
इस बार वह थोड़े िमत लग रहे थे। उनका मानना था क अनु छेद 370 हटाने और रा य
को के शािसत देश म बदलने के पीछे भारत-पा क तान और अमे रका का कोई िमला-
जुला गेम लान है और सरकार यह िनणय ज दी ही वापस ले लेगी। जेल के भीतर श बीर
या सोचते ह, यह जानने का कोई तरीक़ा मेरे पास नह है।
कु मार साहब आगे कहते ह— लेिबसाइट का जहाँ तक सवाल है, आप सोिचए, मान
लीिजए, 65 ितशत लोग पा क तान चुन और 35 ितशत लोग िह दु तान को तो या
होगा? अगर ज मू-क मीर पा क तान म चला गया तो वे 35 ितशत लोग िव ोह कर दगे
और सम या फर वह क वह चली जाएगी। हम आज़ाद क मीर या िगलिगट-
बाि ट तान के िलए लड़गे और वहाँ के लोग यह बोल द, हम पा क तान के साथ ख़श ह,
फर आप या करगे? क़ ज़ा हो भी गया तो नई सम या शु हो जाएगी। दूसरी सम या
यह है क ज मू के लोग को साथ लेने क कोिशश नह क गई। जब तक ऐसा रहेगा, कु छ
िह से ख़द को उपेि त महसूस करगे, शाि त नह होगी। सबसे अ छा होता क भारत और
पा क तान लाइन ऑफ़ कं ोल को थायी मान लेते और ज मू तथा क मीर म 370 के
तहत जो वाय ता का वादा कया गया था, उसे लागू कया जाता। उसम ज मू के िलए
भी बात होनी चािहए। द क़त यह है क लड़के मर रहे ह और लोग लाश पर राजनीित
करते ह। जो अपने ब े खोते ह, उ ह पता है क यह दद या होता है। न बे नह होता
अगर इतनी राजनीित नह होती। पंिडत भी िह सा बने उस राजनीित का। ग़लती उनक
भी है। आज ‘पनुन क मीर’* दि णपंथी राजनीित का एक िखलौना बन गया है। वे अलग
रा य मानते ह। चलो, मान लो, उनको अलग रा य िमल गया। फर? हमारे लोग न बेकरी
चला सकते ह, न चावल उगा सकते ह, न मेकैिनक बन सकते ह। अलग ज़मीन िमलने पर
घर बना सकते हो आप। समाज सबसे िमलकर बनता है।’
म कु मार साहब से कु छ िनजी सवाल पूछता ँ तो हँसकर कहते ह, ‘यहाँ से जाने का
मतलब तो वांचू साहब के िस ा त के िख़लाफ़ जाना होता। नुकसान तो सबका आ है।
पूरे क मीर का। सबसे बड़ा नुकसान क चर का है। क मीर म भाषा एक जोड़नेवाली चीज़
है। जो लोग बाहर चले गए, उनके ब े भूल रहे ह इसे। अब वे अपने योहार उस तरह नह
मना सकते, जैसे यहाँ मनाते थे। कई लोग पछताते ह। यहाँ भी ब त थोड़े-से लोग बचे ह।
जो ह, उनके 99 फ़ सद र तेदार बाहर ह। शादी- याह या कोई योहार पड़ता है तो लोग
क कमी खलती है। मुि कल है कह पाना क वे लौटगे या नह । मुझे लगता है, ज़ र
लौटगे। जड़ से कटकर नह रहा जा सकता। ले कन सब इस पर िनभर करता है क हालात
कै से ह गे।’ फर वह अपने बेटे अिमत वांचू क सामािजक-सां कृ ितक स यता के बारे
म बताने लगे।
अिमत से मुलाक़ात एक साल बाद ीनगर म और फर ‘समाना तर सािह य उ सव,
जयपुर’ म ई। िजस कमरे म हम बैठे ह, वहाँ दीवार पर वांचू साहब के साथ अिमत क
तसवीर लगी है। कु मार साहब क प ी ने बताया क अिमत बेहद क़रीब थे अपने बाबा के ।
यह तसवीर िजसम आज के अिमत अपने बाबा के साथ ह, तैयार करवाई गई और अिमत
के ज म दन पर उ ह भट दी गई। अिमत से बात करने और जानने के बाद लगा क वाकई
मू य पी ढ़य तक कै से सफ़र करते ह।
संजय ट कू का 17 अग त, 2019 के टेली ाफ़ म एक बयान आया है। संजय न बे के
दशक म पंिडत के सामूिहक पलायन-िव थापन के बाद घाटी म रह रहे पंिडत के नेता
म से ह। उनके संगठन ‘ज मू-क मीर पंिडत संघष सिमित’ का द तर ीनगर के
गणप यार मि दर म है जहाँ अ सर रिववार को अलग-अलग इलाक़ से पंिडत के
ितिनिध आते ह और अपनी सम या पर बात करते ह। मेरी द ली और ीनगर म
संजय से कई बार मुलाक़ात और ल बी-ल बी बात हो चुक ह तो जानता ँ क वह िबना
लाग-लपेट के सीधी और िनभय बात करनेवाल म से ह। द ली म जब पहली बार िमले
तो थोड़ी देर बात करने के बाद बोले, ‘ ीनगर आइए, वहाँ के बारे म वह होगी बात। आप
लोग द ली म बैठकर ीनगर को जान लेना चाहते ह! द ली से क मी रय क िशकायत
सरकार तक महदूद नह ह। ख़ैर, टेली ाफ़ म छपे बयान म ट कू एकदम प कहते ह :
‘म बता रहा ँ क आगे बेहद मुि कल दन आनेवाले ह। आतंकवाद के उन शु आती दन से भी
भयावह जब पंिडत को घाटी छोड़नी पड़ी थी। 370 हटाने के कदम ने इस सम या को और 100
साल के िलए बढ़ा दया है। धा मक िवभाजन को और तीखा कर दया है और लोग क सहन-शि
को कम कर दया है। हम यहाँ पॉिल टकल टागट हो सकते ह और मुम कन है, अगले तीन या पाँच
साल म आप संजय ट कू को यहाँ न देख। इस बार हम मानिसक प से पलायन के िलए तैयार हो
चुके ह।’7
इस बयान के कु छ दन बाद जब म िबना सूचना दये उनके घर प च ँ ा तो उनक
पहली ित या थी, ‘ द ली वाल को तो बस क मीर म मुि कल आने का इं तज़ार रहता
है क यहाँ आएँ और हेडलाइं स ले जाएँ।’ ठहाक के साथ उड़ गई यह िशकायत है तो
ग भीर। बाक़ देश के लोग हालात सामा य होने क ती ा करते ह क क मीर म पयटन
कर सक और मीिडया हालात िबगड़ने क क हेडलाइन जुगाड़ सक। बहरहाल, संजय
अपने बयान पर क़ायम थे।
दयनाथ वांचू क मीरी पंिडत के उस समूह से थे जो गितशील था और सा दाियक
िवभाजन के पार अपनी क मीरी पहचान को घाटी के िह दु और मुसलमान , दोन से
जोड़कर देखता था। आप चाह तो सुिवधा के िलए इसे ‘क मी रयत’ कह सकते ह। यह
समूह छोटा ज़ र था ले कन इसका घाटी म और बाहर भी एक भाव था। ब शी ग़लाम
मोह मद और ग़लाम मोह मद सा दक़ के समय िजस तरह धमिनरपे िश ा और समाज
पर ज़ोर दया गया, वह ऐसे पंिडत के िलए मुफ़ द था और उसका उपयोग उ ह ने
सामािजक-सां कृ ितक े म कया भी। हालाँ क इसके भी पीछे जाएँ तो क मीरी पंिडत
के बीच ऐसे लोग भी िमलते ह िज ह आप अपनी सुिवधा से अितवादी या फर
लोकतांि क कह सकते ह। ेमनाथ बज़ाज़ का उदाहरण आपने देखा है। इस फे ह र त म
दूसरा मह वपूण नाम पंिडत रघुनाथ वै णवी का है। बज़ाज़ क तरह वै णवी भी जनमत-
सं ह के समथक रहे। उनका िज़ हम पहले भी पढ़ चुके ह। उ ह ने 1938 म ज मू और
क मीर म कां ेस क थापना क थी, फर 1939 म जब नेशनल कॉ स बनी तो नेह
क सलाह से उ ह ने इस संगठन को उसम ही िमला दया। इसके पहले एक छा के प म
वह 1937 म इलाहाबाद से क़ानून क पढ़ाई करते ए यूपी िसिवल िलबट यूिनयन से जुड़
गए थे। 1941 से 1943 के बीच वह नेशनल कॉ स क कायसिमित म रहे ले कन फर
शेख़ से वैचा रक मतभेद होने के बाद अलग हो गए और 1947 के बाद क मीर के एक
शाि तपूण, यथाथपरक तथा यायसंगत हल क बात करते रहे। जब मोइउ ीन कारा ने
शेख़ से अलग होकर पॉिल टकल कॉ स बनाई तो वै णवी 1953 से 1964 तक इसके
उपा य रहे। अपने राजनीितक टड के िलए उ ह ने कोई सात साल जेल म गुज़ारे । 1977
म जब कारा जनसंघ के समथन वाली जनता पाट म शािमल ए तो वै णवी ने िनराश
होकर पाट छोड़ दी। 1989 म जब आतंकवाद शु आ तो वह अपनी बेटी डॉ. पू णमा
भान वै णवी के पास उधमपुर म थे और 22 नव बर, 1996 को अपनी मृ यु तक वह रहे।
उनक नाितन मोना भान नाना के संघष और क मीरी समाज म उनक उपे ा का
िव तार से वणन करती ह। पंिडत समाज म वै णवी को अछू त क तरह देखा जाता था,
ले कन वह अपने िवचार पर अिडग रहे। उन दन मोना ीनगर के कू ल म थ और
आज़ादी के जुलूस म शािमल ई थ ।8 यह सुनने म थोड़ा आ यजनक लग सकता है क
िजन जुलूस को इ लािमक कहा जाता रहा है, मोना भान उनम शािमल ई थ । वह
बताती ह क वे जुलूस आज़ादी के िलए थे और आज़ादी तो हर क मीरी के िलए थी।
मनोहर लाल ट कू भी, िजनका स दभ हमने िपछले अ याय म िलया है, पूछते ह क जब
पूरा क मीर आज़ादी क माँग पर सड़क पर था तो क मीरी पंिडत ने क मीर छोड़ने क
जगह उस लड़ाई म िह सेदारी य नह क ? वह एक और मह वपूण बात कहते ह—
क मीर का मु ा क मीरी बोलने वाल का है। इसम ज मू, ल ाख और दूसरी जगह को
शािमल करने से सारी सम याएँ पैदा ई ह।9 उनका सवाल आपको कै सा लगता है, यह
आपक लोके शन पर िनभर है। एक भारतीय के प म यह मेरे र गटे खड़ा कर सकता है
ले कन एक क मीरी के िलए यह अलग हो सकता है। म इसे थोड़े अलग तरीक़े से देखने क
कोिशश कर रहा — ँ अगर 1947 के पहले से ही सा दाियक आधार पर िवभािजत
िवचार क तरह एक दूसरे के सामने आने क जगह क मीर के सभी नाग रक ने अपनी
क मीरी पहचान को वरीयता देते ए एक जैसी राह चुनी होती, तो? दूसरा िह सा बेहद
बहसतलब है। जहाँ घाटी के भीतर पंिडत और मुसलमान क सं कृ ित साझा थी, वहाँ
उनका र ता ज मू, ल ाख, मुज़ फ़राबाद या िगलिगट-बाि ट तान से कभी सहज नह
था। अमृतसर सि ध से अि त व म आया ज मू और क मीर कभी एक ऐसी इकाई नह बन
पाया िजसे साझा सं कृ ित वाली इकाई कहा जाए। यही नह , डोगरा शासन क नीितय ने
इन े के भीतर एक तरह क ित िं ता रखने क जो लगातार कोिशश क , उसका ह
यह आ क 1947 के बाद से ही ल ाख, ज मू और क मीर लगातार एक-दूसरे के िवरोध
म खड़े नजर आते ह। 5 अग त, 2019 को रा य को दो िह स म बाँटने के बाद भी ज मू
और घाटी के बीच का वैचा रक अ तर साफ़ दख रहा है। िव थािपत पंिडत का बड़ा
समूह ज मू क सा दाियक ताक़त से इस हद तक िमल-जुल चुका है क कठु आ बला कार
जैसे मु पर भी अपरािधय के प म टड लेनेवाल क कोई कमी नह । यह अलगाव
क मीर के भिव य को कस तरह भािवत करे गा, यह देखना होगा।

खेमलता वखलू का क़ सा हमने पढ़ा ही है। 1991 म अपहरण के बाद भी उ ह ने


क मीर नह छोड़ा और सामािजक-राजनीितक काय म आज भी स य ह। उनसे
अ टू बर, 2019 म बछवारा ि थत उनके आवास पर मुलाक़ात ई। ल बे समय से कां ेस म
स य रही वखलू बताती ह क अब वह सामािजक े म काम करना चाहती ह। न बे के
दशक के आतंकवाद और पंिडत के िव थापन पर उनसे जो ल बी बात ई उनम कमोबेश
वही बात थ िज ह उनक कताब से पहले भी मने उ धृत कया है। 370 को हटाने को
लेकर वह सरकार के समथन म नज़र आ । उनका मानना है क ‘वतमान तनाव न बे जैसे
िव फोट म नह बदलेगा। ले कन रा य को के शािसत देश बनाने के फ़ै सले को लेकर वह
ख़ासी आलोचना मक ह। उनका मानना था क जब छ ीसगढ़ और झारखंड जैसे छोटे
े फल के रा य ह तो ज मू और क मीर को के शािसत देश म बदलना एकदम ग़लत
िनणय है और उसे शी वापस लेना चािहए।’ यह हमारी मुलाक़ात उनक भाभी और
वग य डॉ. एस.एन. धर क प ी तथा सामािजक कायकता डॉ. िवमला धर से ई।
एस.एन. धर का िज़ पहले आया है जो मेिडकल कॉलेज के ोफ़े सर और घाटी के िति त
िच क सक थे और िजनका न बे के दशक म अल-उमर ने अपहरण कर िलया था। अगले
दन डॉ. धर के राजबाग़ ि थत आवास पर हमारी उनसे िव तृत बातचीत ई। िवमला धर
भी 370 हटाए जाने को लेकर आशाि वत ह। वह फ़ा क़ अ दु ला जैसे नेता को लेकर
काफ़ कटु ह और जनवरी, 1990 म िनकले जुलूस के िलए नेशनल कॉ स को िज़ मेदार
ठहराती ह। यहाँ इस त य का िज़ कर देना समीचीन होगा क वखलू और िवमला धर,
दोन ही ीनगर म अके ली रहती ह। दोन ही के पु -पुि याँ घाटी और देश के बाहर ह।
यह ि थित कु छेक िन वग य पंिडत प रवार को छोड़ द तो घाटी म रह रहे सभी पंिडत
क है जहाँ िसफ़ पित-प ी घाटी म ह और अगली पीढ़ी घाटी से बाहर जा चुक है।
छानपोरा म भी हम ो. रै ना द पती िमले िजनके पु िवदेश म रहते ह। इसी इलाक़े म
एक नेह द पती का भी िज़ िमला िजसके मुिखया क दो साल पहले मृ यु हो चुक है
और अब वहाँ कोई नह है। संजय ट पणी करते ह—उनका क मीर म अब कोई टेक नह
है।
एक क़ सा डॉ. जगत मोिहनी का है। लाहौर के कं ग एडवड मेिडकल कॉलेज म पढ़ते
ए अपने सहपाठी डॉ. कार नाथ थु सू से शादी करके 1947 म वह ीनगर आ गई थ ।
डॉ. साहब क पहली प ी क मृ यु हो चुक थी और उ ह क मृित म दोन ने िमलकर
बबरशाह इलाक़े म ‘र न रानी अ पताल’ खोला। संजय ट कू भी उसी इलाक़े म रहते ह
जहाँ अब के वल 4 पंिडत के प रवार बचे ह। वह आधुिनक सुिवधा से लैस क मीर का
पहला अ पताल था। जगत मोिहनी ने एक तरफ़ िच क सा के े म तो दूसरी तरफ़
समाज-सेवा के े म, िवशेष तौर पर मिहला से जुड़े मु पर जम के काम कया। तीन
कमर से ‘िव भारती’ कू ल शु कया िजसक एक शाखा नोएडा म खोली गई िजसे
सँभालने उनके बेटे अशोक थु सू द ली आ गए थे। राजनीित म भी थोड़े समय स य
रह । पहले कां ेस म रह और फर 1977 म जनता पाट म शािमल । 1977 के चुनाव
म वह ह बा कदल से याशी थ और नेशनल कॉ स के लोग ने उन पर हमला भी
कया था। इि दरा गांधी से िनजी स ब ध थे उनके । बताती ह क ‘उनके दादा और मेरे
नाना भाई थे। उनसे कहा एक बार क आप लोग हमारी सुनते य नह ? हम आपके अपने
लोग ह और आप सारी ग़लत नीितयाँ लागू करती ह और हम ीनगर क सरकार के
रहमोकरम पर छोड़ देती ह। इि दरा जी कहने लग —हमने यह कया, हमने वह कया।
मने कहा—आप हवाई जहाज़ म उड़ती ह न, आप ज़मीन म रगते साँप और िब छु को
नह देख पात । उ ह बुरा लगा ले कन म सच कह रही थी।’
ीनगर आने के बाद वह यह क होकर रह ग । जब आई थ तो लोग उ ह कू री
(िब टया) कहते थे, फर ‘बहन जी’ और फर ‘म मी जी’।
1988 म कारनाथ जी क मृ यु हो गई। ले कन जब आतंकवाद शु आ तो अपने
प रवार क आशंका के बावजूद क मीर म ही रहने का फ़ै सला कया। वह कहती ह
—‘ना। मुझे डर नह लगा। पूरे दो साल मने सोचा क पंिडत भाग य रहे ह?’ मेरा बेटा
ब त परे शान था ले कन मुझे कोई डर नह लगा य क म तमाम आतंकवादी लड़क को
जानती थी। उनम से कई मेरे हाथ ही पैदा ए थे...। मुझे दुःख आ उनके हिथयार उठाने
का...। जो वे कर रहे ह, वह ग़लत है ले कन रा य क सरकार और द ली के रवैये और
क मीर पर उनक ग़लत नीितय ने सािबत कया है क जब एक देश अपने युवा क
ि़फ नह करता तो वे िव ोह म उठ खड़े ह गे और हिथयार उठा लगे। क मीर एक ऐसी
जगह है जहाँ स दय या पी ढ़य से हम ग़लाम ह। जब म ‘हम’ कहती ँ तो म इसम
शािमल ।ँ 1947 के बाद से के सरकार क ग़लत नीितय ने इसे बबाद कर दया है।
जब म यहाँ आई तो मने अपने पित से पूछा क क मीरी इतने कायर य ह? वे ये सब य
बदा त करते ह? इसके िख़लाफ़ खड़े य नह होते? उ ह यह महसूस भी नह होता क वे
कस क़दर वंचना के िशकार ह! वह मुझसे कहते थे, क मीरी म कहते ह—‘अगर हम लड़
नह सकते तो या भाग भी नह सकते?’ हम पी ढ़य से ग़लाम रहे ह।’
ले कन एक तरफ़ उ ह क मीर न छोड़ने के अपने िनणय पर कोई पछतावा नह है तो
दूसरी तरफ़ वह अलगाववा दय क इस बात से भी सहमत नह ह क क मीर म
आतंकवाद कोई आज़ादी क लड़ाई का आ दोलन था। वह कहती ह—अगर यह आज़ादी
का आ दोलन होता तो म ख़द उसम ख़शी-ख़शी शािमल हो जाती। ले कन उ ह पा क तान
ने आतंकवाद के िलए उकसाया था, पैसे देकर फँ साया। जब इतनी ग़रीबी होगी और
रोज़गार नह होगा तो और या होगा?
पंिडत के लौटने के मामले म उनक राय अलग है—जो यहाँ से गए, वे बगलोर,
द ली, मु बई, जयपुर जैसी जगह पर बस गए ह। उ ह अ छी नौक रयाँ िमल गई ह, ब े
वह पढ़-िलख रहे ह, वहाँ क भाषा सीख ली है। वे यहाँ य लौटगे?10 शायद यही सच
यहाँ रह रहे कु छ वयोवृ द पितय क संतान का है िज ह देश म या देश के बाहर
शानदार रोज़गार अवसर ा हो गए ह।
आिख़री दोन बात बेहद गौरतलब ह। आज़ादी क लड़ाई म क मीरी पंिडत शािमल
हो सकते थे, ले कन पा क तान ायोिजत आतंकवाद का वे कै से िह सा बन सकते थे?
अगर ‘क मीर बनेगा ख़दमु तार’ के साथ पंिडत क ह याएँ करने क जगह
िवचारधारा मक तर पर काम आ होता तो मुम कन था क गितशील क मीरी पंिडत
का एक िह सा उसम अपनी तरह से भागीदारी करता, ले कन इ लामी नार और ‘क मीर
बनेगा पा क तान’ के साथ पंिडत के शािमल होने क उ मीद तो यादती होगी ही, उनसे
भी जो शु से क मीरी वाय ता या आज़ादी के समथक रहे थे।
आिख़री बात एक अजीब से उलझे सवाल के कई जवाब म से एक है। क मीरी पंिडत
क वापसी भारतीय राजनीित म एक बड़ा मु ा है। ब त-सी बहस वह से शु होती ह
और ख़ म भी। िव थापन क ासदी का याय िव थािपत का स मानजनक पुनवास ही
हो सकता है। ले कन इस याय क राह म कई बाधाएँ ह तो कई मोड़ भी। यह सवाल
अ सर पूछा जाता है क या पंिडत लौटगे? एक सवाल इसके साथ ही जुड़ा आ है— या
वे वापस लौटना चाहते ह? डॉ. जगत मोिहनी का 2012 म दया गया जवाब इसके तमाम
जवाब म से एक है। 30 साल पहले क मीर से िनकलकर देश और दुिनया के तमाम शहर
म बस चुके पंिडत न के वल वहाँ रच-बस चुके ह बि क उनक अगली पी ढ़य ने वह भाषा
लगभग खो दी है जो उनक क मीरी पहचान का सबसे बड़ा िह सा थी। पुरानी पीढ़ी के
लोग लौटना चाहते ह—घाटी का जीवन उ ह याद है। वहाँ के अनेक लोग से संवाद है, उस
संवाद क भाषा है और वे मृितयाँ ह िजनम सा दाियक सहि त व है, आपसी स मान
और ेह है। कु छ लोग लौटे भी।
एक कहानी पु करनाथ गंजू क है िज ह ने िव थापन के छह साल बाद लौटकर फर से
लकड़ी का अपना कारख़ाना शु कया, तो एक कहानी 26 साल बाद क मीर लौटकर
कू ल खोलने वाले खाच प रवार क भी।11 रौशन लाल बावा 1990 म क मीर छोड़ने के
29 साल बाद 1 मई, 2019 को ीनगर लौटे और जैनाकदल म दुकानदार ने द तारब दी
करके उनका वागत कया। उ ह लौटने के िलए क मीर म िविभ समुदाय के बीच मेल-
िमलाप कराने क कोिशश कर रहे उनके बेटे स दीप मावा ने े रत कया था।12 लौटने के
3 महीन के भीतर ही एक बार फर क मीर को क यू जैसी ि थित म पाकर वह जाने या
सोच रहे ह गे!
अपने आिख़री समय म क मीर लौटने का फ़ै सला रौशन लाल जी के िलए आसान हो
सकता था ले कन देश-िवदेश म नौक रयाँ कर रहे युवा के िलए यह वा तव म कतना
स भव होगा, वह भी तब, जब वहाँ लगातार तनाव बने ए ह, कहना मुि कल है। पूव
वाइस एडिमरल किपल काक ख़द को बीस ितशत उदारवादी पंिडत म से एक मानते ह।
इस सवाल के जवाब म उ ह ने कहा :
वे क मीरी पंिडत जो िच ला-िच ला कर लौटने क बात करते ह, वे 1990-91 म ब े थे। आज
िह दु तान के अलग-अलग िह स म थायी तौर पर काम करते ह। वे अपनी नौक रयाँ छोड़कर य
आएँगे? उनके नार म िव ास करना ग़लत होगा। नारे हक़ क़त से अलग होते ह। ये लोग कहते ह, वे
घाटी लौटकर आना चाहते ह। उनके दादा वहाँ नौक रयाँ करते थे। उनके दादा अब रहे नह । उनके
िपता क मीर के बाहर नौक रयाँ करते ह। भारतीय रा य ने क मीरी पंिडत के िलए घाटी म पया
नौक रय का इं तज़ाम कया नह । जीिवका के साधन और रहने क जगह क मीरी पंिडत के लौटने
से गहरे जुड़ी ई चीज़ ह।13
370 हटने के बाद क मीर के बाहर रह रहे पंिडत ने ज मू से ल दन तक ज मनाया।
ले कन टेली ाफ़ के उस सा ा कार म ट कू कहते ह क यह वहाँ रह रहे पंिडत के िलए
मुि कल बढ़ाने वाला तो है ही, साथ म इस फ़ै सले के बाद पंिडत क वापसी क कोई भी
स भावना और धूिमल हो गई है। वैसे लौटने क एक और कथा है—मनमोहन संह के
समय जब धानमं ी राहत पैकेज के तहत क मीरी पंिडत के िलए नौक रय क व था
क गई तो कोई पाँच से छह हज़ार पंिडत क मीर लौटे। उनके िलए ीनगर के पास
बडगाम, अनंतनाग सिहत कई जगह पर ांिज़ट कॉलोिनयाँ बनाई गई ह। इनम से कु छ
कॉलोिनय म कई पंिडत से मुलाक़ात ई िजन पर आगे बात होगी। ांिज़ट काॅलोिनय म
रहनेवाले कु छ लोग ने तो शहर म कराये के मकान ले िलये ले कन यादातर दो बेड म
वाले इन मकान म ही रहते ह और अ सर छु य म ज मू चले जाते ह। इस बार भी जब
5 अग त, 2019 को हालात िबगड़े तो इनम से बड़ी सं या म लोग ज मू चले गए। ले कन
नौक रयाँ क मीर म हमेशा से एक बड़ा मु ा रही ह। िनजी े है नह । जो था, वह बबाद
हो रहा है। शासन म गहरे पैठा ाचार एक अलग सम या है और कु ल िमलाकर नई
नौक रय का सृजन एक बड़ी सम या बनी ई है। ऐसे म कोई लौट भी आए तो, ग़ािलब से
मुआफ़ के साथ—रहेगा ीनगर म मगर खाएगा या?
370 हटने के बाद िनजी िनवेश बढ़ने क बात हो रही ह, ले कन िनजी िनवेश के िलए
लीज पर ज़मीन लेने क सुिवधा तो शेख़ अ दु ला के समय से रही है। 2018 के माच महीने
म द ली म पी. एच. डी. चै बर ऑफ़ कॉमस ने ज मू और क मीर म िनजी िनवेश बढ़ाने
के िलए एक बैठक कराई तो उसम क मीर के त कालीन िव मं ी और जाने-माने
अथशा ी हसीब ाबू आए थे। म उस काय म म था। ाबू ने कहा क क मीर एक ऐसा
इलाक़ा है िजसके बारे म बताने क कोई ज़ रत नह । यह एक ‘सो ड आउट’ डेि टनेशन
है। सम या बस अशाि त है। हालात ठीक रह तो अपने-आप िनवेश होगा। हालाँ क इसी
काय म म क मीर सम या को ‘राजनीितक नह , सामािजक’ कहने के कारण उ ह कु स
खोनी पड़ी, ले कन क मीर म िनवेश के बारे म उनका आकलन आज भी उतना ही सही है।
370 के साथ या िबना 370 के , क मीर म िनवेश तभी स भव है जब शाि त हो। लगभग
यही क मीरी पंिडत क वापसी या वहाँ रह रहे क मीरी पंिडत के थािय व क भी शत
है।

बेवकू फ़ थे हम उफ़ क मीर म अब कसी का कोई भिव य नह


2018 के नव बर म मेरी मुलाक़ात प कृ ण कौल से ई। उनसे जब मने पूछा क आपने
क मीर य नह छोड़ा तो ह क मु कु राहट के साथ बोले, ‘बेवकू फ़ थे न हम,’ और फर
हँस पड़े। ीनगर के सबसे त बाज़ार म से एक ह र संह ीट पर उनक मेिडकल
उपकरण क दुकान है। वैसे यहाँ ककर एक और बात कर लेने म कोई हज़ नह । एक
आरोप अ सर सुना जाता है क पंिडत के पलायन के बाद क मीर म गिलय , सड़क ,
शहर आ द के नाम बदल दये गए ह। अपनी अनेक या ा म घाटी के अलग-अलग
क़ ब म घूमते मुझे तो ऐसा नह लगा। आिख़री डोगरा महाराजा ह र संह के समय
बनवाई गई ह र संह ीट अब भी ह र संह ीट है। उनके चाचा ताप संह के नाम पर
बने कॉलेज का नाम अब भी उ ह के नाम पर है— ी ताप संह कॉलेज। अमर संह
कॉलेज भी है। ी ताप हायर सेकंडरी कू ल भी और ी महाराजा ह र संह अ पताल
भी। जवाहरनगर, करण नगर, महाराजगंज, मुंशी बाग़, देवी आँगन, रै नावारी, िवचर
नाग, गणप यार, शीतलनाथ, जोगी लंकर जैसे नाम तो वही के वही ह ीनगर म।
अवि तपुरा, सं ामपुरा, म न, नारायण बाग़, भ काली गणेश बल, जोगी घाट जैसे कतने
ही नाम मुझे क मीर के अलग-अलग इलाक़ म घूमते िमले और चाहे दो पंिडत रह गए ह ,
उनके मुह ल को आज भी भट पुरा ही कहा जाता है। डॉ. िवमला धर ने भी यह आरोप
दुहराया ले कन हमारे पूछने पर वह अनंतनाग के अलावा कोई नाम नह ले सक । हालाँ क
बशीर ने ब त िव तार से बताया है क अनंतनाग का िज़ कसी ाचीन ंथ म नह
िमलता। यहाँ तक क इस नाम का िज़ लॉरस या आन द कौल के यहाँ भी नह आता और
दोन इस इलाक़े को इ लामाबाद ही कहते ह। 1915 म सर बेडन े पावेल ारा िलखी गई
मेमरीज़ ऑफ़ इं िडया म भी इसे इ लामाबाद ही कहा गया है। इ लामाबाद नामकरण के
पीछे आम मा यता है क यह नाम मुग़लकाल म 1663 म सूबेदार रहे इ लाम ख़ान ने दया
था और डोगरा काल म इसे बदलकर अनंतनाग कर दया गया था।14 हालाँ क क मीर
वाच पर छपे एक लेख म एम.जे. इ लाम का मानना है क यह नाम ब शी ग़लाम
मोह मद के समय बदला गया।15 वैसे, आज भी अनंतनाग ही इस िज़ले का आिधका रक
नाम है ले कन थानीय लोग म इ लामाबाद नाम चिलत है।

ख़ैर, प कृ ण कौल पर लौटते ह। मेरा सवाल उनको मृितय म ले गया था। बताने
लगे क संयु प रवार था उनका। िपता के बड़े भाई घर के मुिखया। ेह ऐसा क मै क
के फॉम म िपता क जगह उनका नाम िलखवा आए। िश क प रिचत थे तो सही कया।
1989 म जब बलवा शु आ तो मागरमल बाग़ के उनके तीन मंिज़ले मकान से ज़रा दूर
ही बस लगती थ िजनम लड़के पा क तान जाते थे। जे.के .एल.एफ़. के कतने ही कमांडर
को बचपन से देखा था उ ह ने। हािमद शेख़, अशफ़ाक़ वानी, यासीन मिलक—सब
आसपास रहते थे। रोज़ ‘ए शन’ होते थे। कौल कहते ह—कु ल 8-10 लड़के ही थे उस समय
िमिलटट। ले कन जब छोड़ा गया िबया सईद को तो उ ह इतना मिहमामंिडत कया गया
क झुंड के झुंड लड़के पा क तान जाने लगे।
ले कन न जाने क असल वजह यह थी क ताया-ताई बुज़ग थे और कह न जाने क
िज़द पर अड़े थे। माँ-िपता-बहन—सब लोग गए। ले कन उनक देखभाल के िलए वह क
गए। 1994 म शादी ई। ससुराल के लोग पलायन कर ज मू म बसे ए थे। प ी से सगाई
के समय कहा क अगर परे शानी हो क मीर लौटने म तो म मना कर दूग ँ ा। वह सोपोर से
गई थ डेढ़ साल पहले ही। उ ह ने देखा नह था वह दौर इसिलए शायद वह डर नह था
उनम। ले कन शादी के बाद उ ह ने भी ब त झेला। उसी साल उनका अपहरण हो गया
था। हालाँ क जब घर के हालात बताए तो छोड़ दया गया। वह हँसते ए कहते ह—उस
व त ग़ज़ब हाल था। कह चार लड़के इक ा ए। ‘अल’ के आगे कु छ भी िलख के पच
छपवा ली और बन गया संगठन। पैसे कमाने का ज़ रया बन गया था। अपहरणकता उनसे
एक लाख पया महीने क ोटे शन फ स माँग रहे थे।
2016 म भी जब बुरहान वानी क मौत के बाद माहौल ख़राब आ तो कु छ उप िवय
ने घर म आग लगाने क कोिशश क ले कन सफल नह ए। दो ब े ह। बारहव तक यह
पढ़े, अब एक द ली म पढ़ता है, दूसरा पूना म। क मीर म यह चलन आम है। म िजतने
पंिडत प रवार से िमला, अिधकतर के ब े बाहर पढ़ते ह, रयत से जुड़े फ़ज़ल-हक़
अंसारी के लड़के द ली म पढ़ते ह। वहाँ रहनेवाले कई म यवग य मुि लम िम के यहाँ
भी मने यही पाया। कारण वही जो कौल कहते ह—क मीर म कसी का भिव य नह ।
कौल बताते ह क ‘सुर ा अब कोई सम या नह है और असुरि त तो यहाँ सब ह।
न बे के शु आती साल म लगता था डर ले कन अब डर नह लगता। ले कन क मीर म
कसी का कोई भिव य नह है। मानिसक शाि त कसी को नह है।’ मुझे जावेद शाह क
बात याद आई—‘क मीर म इन दो दशक से अिधक के तनाव ने कसी को नॉमल नह
रहने दया है।’ जब मने और कसी तरह क परे शानी के बारे म पूछा तो उ ह ने एक घटना
बताई—उनका टेट रे िज़डट का काग़ज़ खो गया था। जब बनवाने गए तो पूछा गया क
वह ज मू य नह गए! काफ़ दौड़ाया फर दस हज़ार पये माँगे। भेदभाव होता है
िह दु के साथ।’ हालाँ क ाचार के मामले म क मीर म शायद ही कसी से िबना पैसा
माँगे काम होता ले कन वह सवाल चोट प च ँ ाने वाला है ही। और यह सवाल क मीर म
रह गए पंिडत से बार-बार पूछा जाता है—क मीर म भी, ज मू म भी और कई बार
प रवार म भी। साथ ही अके ले पड़ जाने का एक दुःख है जो क मीर म रह रहे लगभग
सभी पंिडत म साझा है। तीज- योहार , शादी- याह म र तेदार क कमी खलती है।
िव थापन ने समुदाय के प म क मीरी पंिडत के अि त व को ही जैसे ख़तरे म डाल दया
है। जो बाहर ह, वे उन रीित- रवाज को नह िनभा सकते जो पर परा से चले आ रहे थे
और जो नह गए, वे अपने र तेदार , वजातीय बांधव के अभाव म उन रीित- रवाज
को िनभाना मुि कल पाते ह। वह बाहर गए पंिडत क नई पीढ़ी के अ तजातीय िववाह
पर भी िच ता जताते ह और कहते ह—यह चलता रहा तो क मीरी पंिडत समुदाय का
अि त व ज द ही ख़ म हो जाएगा।
कु मार साहब क तरह कौल भी ‘पनुन क मीर’ के अलग रा य बनाने क बात को
बेवकू फ़ बताते ह और कारण वही देते ह—‘पंिडत समाज िमडल लास का समाज है।
नाई से लेकर धोबी तक के िलए हम मुसलमान पर आि त थे। आज िजनसे भाग रहे ह,
कल अलग रा य बना तो उ ह बुलाना पड़ेगा।’ भिव य को लेकर क मीर म कोई आ त
नह ले कन कौल कहते ह क पहले भी पंिडत लौटे ह, अब भी लौटगे। एक-दो के आने से
कु छ नह होगा। पचीस-पचास हज़ार लौटगे तभी कोई फ़क़ पड़ेगा। ले कन कब और कै से,
यह कहना मुि कल है। फर लौटकर रहगे कहाँ? घर तो रहे नह अब। जब गए तो अपने
पड़ोसी मुसलमान को चाभी दे गए थे। सबको उ मीद थी क दो-एक साल म हालात
सामा य हो जाएँग।े 1994-95 तक घर सही-सलामत थे। पड़ोिसय ने ख़याल रखा।
हालात िबगड़े तो पुिलस हम यहाँ से डल गेट के पास होटल म ले गई। तब 5-6 प रवार थे
इलाक़े म। एक-एक प रवार को एक-एक कमरा िमला और कचन कॉमन। दुकान-धंधा सब
ब द। उस समय लगा क ऐसे यहाँ रहने से बेहतर है, ज मू चले जाएँ। काफ़ लोग चले भी
गए। ले कन फर कसी तरह से टल गया और यह रह गए। इस दौर के बाद सबको समझ
आ गया क पंिडत का लौटना अब मुम कन नह । काफ़ लोग ने मकान बेच दये। पंिडत
के मकान ख़रीदना एक धंधे जैसे बन गया। िजतनी बाज़ार क़ मत थी उसके ितहाई पर
लोग ने मकान बेचे। चोरी वग़ैरह क भी घटनाएँ । िमिलटट भी हाइड आउट क तरह
उपयोग करते थे इनका। तो अब ीनगर म यादातर मकान िबक चुके ह। इसिलए जो
बाहर 4-5 लाख महीने कमा रहे ह, वे य लौटगे यहाँ?
उ री क मीर के रहनेवाले और ीनगर म संचाई िवभाग म काम करनेवाले रिव
धर* भी कहते ह, न जाकर बेवकू फ़ क । उनके िपता ने जाने से मना कर दया था।
पड़ोिसय ने भी कहा था कने को। अ ततः कना पड़ा। सुर ा का मामला वह भी गौण
बताते ह ले कन भेदभाव क बात करते ह। पंिडत के िलए नौकरी नह यहाँ। ब े छोटे ह
तो यह पढ़ रहे ह ले कन बड़े होने पर बाहर भेजना पड़ेगा। पनुन क मीर क माँग पर
हँसते ए कहते ह—यह सब पॉिल ट स है।
वैसे पलायन का एक असर तो यह भी पड़ा क ज मू और क मीर क राजनीित से
पंिडत बाहर हो गए। न बे से पहले ह बा कदल और रै नावारी, दो जगह थ जहाँ िवधान
सभा चुनाव म पंिडत मत काफ़ थे। इसके अलावा माखनलाल फोतेदार जैसे लोग दि णी
इलाक़ से भी जीते थे, जहाँ पंिडत क अ छी-ख़ासी आबादी थी। यहाँ यह जान लेना भी
रोचक होगा क ह बा कदल से भाजपा के टीकालाल टपलू कभी चुनाव नह जीत सके ।
यहाँ तक क उनक ह या के बाद जब 1996 म उनक प ी सरला टपलू चुनाव लड़ तो
वह भी नेशनल कॉ स के यारे लाल हांडू से हार गई थ । इसके अलावा िवधान प रषद
म भी खेमलता वखलू जैसे कई लोग समय-समय पर मनोनीत होते ही थे। ले कन पलायन
के बाद ीनगर या घाटी से कसी पाट ने कसी पंिडत को टकट नह दया तो ज मू म
उनके नाम पर राजनीित करनेवाले दल ने भी कसी पंिडत को िवधान सभा तक भेजने म
कोई िच नह दखाई। 2002 म आिख़री बार ह बा कदल से एक क मीरी पंिडत रमन
म टू ने चुनाव जीता।16 आज नेशनल कॉ स म स य और फ़ा क़ अ दु ला के
राजनीितक सलाहकार पूव यूरो े ट िवजय बकाया के अलावा कोई क मीरी पंिडत रा य
क राजनीित म मुख भूिमका म नह दखता। कम-से-कम नेशनल कॉ स, पीडीपी या
कां ेस यह तो कर ही सकती थी क तीक के तौर पर ही सही, इन इलाक़ से कसी पंिडत
को टकट दया जाता। इसके अलावा पंिडत के िलए िवधान सभा म मनोनयन भी कये
जा सकते थे, ता क इस समुदाय के मु े िवधान सभा म उठाए जा सक। ले कन इ ह
छोिड़ए, दन-रात क मीरी पंिडत क बात करनेवाली बीजेपी ने भी रा य और के क
स ा म रहते इस बारे म कोई पहल नह क ।
ऐसे म त मग के कुं जर वुसन गाँव म मुि लम-ब ल वाड से पंच का चुनाव जीतने वाली
आशा देवी का मामला िवशेष है ही। 2018 के नव बर क सुबह हम जब उनके घर प च ँ े
तो कहवा के साथ उ ह ने रोटी और मूली का साग िखलाया। मूली का उतना वा द साग
मने कभी नह खाया था। उनके घर प च ँ कर सच कह तो आ य आ। पंच सुनकर लगा
था—आलीशान न सही, एक शानदार घर तो होगा ही। ले कन वह दो-तीन कमर का
अध-प ा मकान था। सामने छोटा-सा खेत और कु छ पेड़। जब हम प च ँ े तो उनके पित
अपने बाग़ीचे म जा रहे थे और आशा जी घरे लू काम म लगी थ । ज म भदरवाह म आ
था उनका एक बेहद ग़रीब घर म। शादी लगभग उसी समय जब बवाल शु आ क मीर
म। पहला सवाल वही पूछा मने क आप लोग य नह गए। जो कहानी सुनाई उ ह ने वह
सच का एक नया रं ग दखाने वाली है।

जब हर जगह से पंिडत के पलायन क ख़बर आ तो उनके गाँव के पंिडत ने भी बैठक


क । तय आ क अभी जाने क ज़ रत नह । जब जाएँगे, सब इक े जाएँग।े अगले दन
सोकर उठ तो मालूम चला क गाँव के जो स प प रवार थे, वे रात म चुपचाप िनकल
िलए। आशा जी हँसते ए कहती ह—‘उ ह ने अपना इं तज़ाम कर िलया था। सोचा होगा,
हमको साथ लेकर गए तो बोझ पड़ेगा।’ तीन प रवार रह गए। गाँव वाल को जब बाक़
लोग के जाने क ख़बर िमली तो आए और कहा क आप लोग कह मत जाइए, यहाँ हम ह
और आप लोग को कु छ नह होगा। आशा जी बताती ह क उसके पहले भी कोई घटना
नह ई थी और बाद म भी अब तक कोई घटना नह ई है।
उनके घर के पास ही दो तीन-मंिज़ला मकान ह िजनम पंिडत प रवार रहा करते थे।
एक पुिलस म थे और दूसरे सरकारी कू ल म िश क। अब घर ख़ाली पड़े ह। एक म पुिलस
के लोग रहते ह। हमने बात क तो उनम से एक पुिलसवाला पुंछ का था और दूसरा ज मू
का। कई गाँव के ख़ाली घर म हमने पुिलसवाले देखे थे। कु छ म िबहार और यूपी से आए
मज़दूर रहते ह। आशा देवी के दो लड़के ह, एक ज मू-क मीर पुिलस म और दूसरा
अमे रका म रह रहे जया और महाराज कृ ण राज़दान के फाउं डेशन से जुड़ा है। यह
फाउं डेशन घाटी म पुराने मि दर के संर ण और ित त मि दर के िनमाण के काम म
लगा है। इसके सहयोग से आशा देवी ने गाँव म एक मि दर भी बनवाया है। उनके अलावा
दो और प रवार ह िजनसे उ ह ने हम िमलवाया। दोन लोग नौकरी करते ह और ब े
कू ल म पढ़ रहे ह। यह एक और सूचना िमली हम, जो च का देनेवाली थी। आशा जी गाँव
के ाइमरी कू ल म तदथ चपरासी का काम करती ह और तन वाह िमलती है के वल 75
पये ितमाह! उ ह ने बताया क घाटी म कोई 5,000 लोग इसी तन वाह पर नौकरी
प हो जाने क उ मीद से वष से लगे ए ह।
न बे के दशक म आतंकवाद से सबसे अिधक भािवत आ था क मीर का उ री
इलाक़ा। पा क तान अिधकृ त क मीर से आतंकवा दय का आना-जाना होता था तो यह
वाभािवक ही था। बुरहान वानी क मौत के बाद क मीर म आतंकवाद का जो दौर शु
आ, उससे सबसे अिधक भािवत दि णी क मीर आ है। गौहर गीलानी क हाल म आई
कताब रे ज़ एंड रीजन पढ़ते ए आप इसके कारण और ापकता के बारे म और िव तार
से जान सकते ह। न बे के दशक के पहले दि ण क मीर पंिडत का गढ़ रहा है। ीनगर से
पुराने रा ते से अनंतनाग जाते ए पहले अवि तपुरा पड़ता है, फर म न। अवि तपुरा
शहर महाराजा अवि तवमन (855-883) ने बसाया था। झेलम के कनारे िशव का मि दर
बनवाया गया था—अवि त वामी मि दर। लिलता द य ने भी यहाँ एक मि दर बनवाया
था। दोन मि दर के भ ावशेष क देखभाल अब आ कयोलाॅिजकल िवभाग ारा क
जाती है। अब ब त थोड़े से लोग बचे ह। मु य माग पर मुझे रै ना जनरल टोर दखा।
ले कन रै ना साहब यादा बात करने के िलए तैयार नह थे। सूय मि दर के पहले ही एक
कै पस म गु ारा और मि दर ह। म न से कोई पाँच-छह कलोमीटर आगे चढ़ाई पर है
मातड का सूय मि दर। पूरे क मीर म आपको िशव के मि दर िमलगे। ले कन शैव धम के
के म सूय का यह इकलौता मि दर है। काक ट वंश के महान शासक लिलता द य
मु पीड का महान शाहकार। अपने समय म यह िव के सबसे बड़े चस म से एक था।
चूने के प थर क चौकोर ट से बना। िनयिमत अ तराल पर 84 त भ और उनके
बीचोबीच भ मि दर। िशखर पर सूय क करण के वेश के िलए झरोखा। बताते ह क
मि दर ऐसा बना था क करण सूय क ितमा से पराव तत हो पूरे इलाके को रौशन कर
देती थ । मि दर क बाहरी दीवार पर साल के 364 दन के िलए 364 देवी-देवता क
मू तयाँ। सामने गंगा, यमुना, सर वती और िव णु क ितमाएँ उ क ण ह। मि दर के
सामने एक कुं ड िजसम जल एक होता था और साथ म हवनकुं ड। हमारे गाइड सािहल
ीनगर म इितहास के छा ह। वह बताते ह क अब भी क मीरी पंिडत वहाँ साल म एक
बार हवन करते ह। मि दर आ कयोलॉजी िवभाग के पास है और रनोवेशन का काम चल
रहा है। वह पास म एक ख भे पर क मीरी भाषा क शारदा िलिप म कु छ िलखा है।
सािहल बताते ह क यह मि दर का इितहास है। आठव सदी का यह मि दर भूक प का
िशकार होकर खँडहर म त दील हो चुका है ले कन इसक भ ता अब भी दूर से ही
महसूस क जा सकती है।
पहलगाम जाते ए रा ते म िल र नदी पड़ती है और थोड़ा अ दर जाकर वलरहामा
गाँव म तीन पंिडत प रवार रहते ह। नव बर, 2018 म हम प च ँ े रतनलाल तलाशी के
घर। आम म यवग य घर। बाहर दो दुकान िजनम से एक म वह कराने क दुकान चलाते
ह। उस दन ब द के आ वान के कारण दुकान ब द थी तो िमयाँ-बीवी खेत म काम कर
रहे थे। घर से लगा कचन गाडन जैसा खेत िजसम सेब के कु छ पेड़ और ॉबेरी के अलावा
साग-सि जयाँ लगी थ । ख़बर िमलते ही उ साह से भागे ए आए। हाथ िमलाया और
बैठक म ले गए। पार प रक क मीरी घर क बैठक म फन चर क कोई जगह नह होती।
एक साधारण-सी दरी और दीवार से टकने के िलए कु शन। रतनलाल सीधे मु े पर आते ह
—‘सम या 1986 से शु ई। राममि दर का दरवाज़ा खोला गया तो यहाँ पहले क यूनल
दंगे ए। उसी समय मि दर जलाए गए, कु छ घर भी। कु छ क मीरी पंिडत क भी ह या
ई।’ मने रोककर पूछा क उन दंग का आरोप तो मु ती मोह मद सईद पर लगा था। एक
फ क हँसी के साथ शिश कहती ह, ‘अब हम या पता, कसने कराया था ले कन ए तो
थे।’ रतनलाल बताते ह—1989 म माहौल ख़राब हो गया था। फर भी लोग जाने के बारे
म नह सोच रहे थे। ले कन पास के गाँव म ग़लाम नबी कोलर क ह या के बाद डर का
माहौल बन गया। ग़लाम नबी कां ेस के बड़े नेता थे। इि दरा गांधी के क़रीबी रहे थे। उनके
रहते हम सुरि त महसूस करते थे। उनक ह या के बाद लगा, कसी को भी मारा जा
सकता है। जगमोहन ने दो-दो हज़ार पये दये और ज मू म बसाने क बात क तो लोग
िनकलने को तैयार हो गए। इस गाँव म 32 पंिडत प रवार थे। अब के वल 4 रह गए ह।
यादातर टीचर थे। कु छ िबजनेस करते थे और खेती भी थी। मने फर टोका—िसफ़ दो
हज़ार के िलए ऐसे लोग तो घर नह छोड़गे। रतनलाल फ क हँसी हँसते ह—1989 म दो
हज़ार मामूली रक़म नह थी। फर डर था ही। म तो ब ा था। मेरे अंकल ने कहा—िजएँगे
तो यह , मरना होगा तो यह मर जाएँग।े गाँव म कसी पंिडत को नह मारा गया था, न
कोई और घटना ई थी। वह नह गए। इतने साल म हम भी सुरि त ह। एक बेटा है, वह
बारहव करके अहमदाबाद चला गया इं जीिनय रं ग करने। बेटी ज मू से कॉलेज कर रही
है।

म फर से पूछता —
ँ ज मू और दीगर जगह पर जो पंिडत रह रहे ह, वे तो ब त तरह
क बात करते ह। देश भर म फै लाया जाता है क क मीर म एक भी मि दर नह बचा है।
सब जला दये गए। वह थोड़ा उ ेिजत से हो उठते ह—ज मू वाल का तो काम है यह। वे
तो कहग ही। आपको बताऊँ क बाहर से जो िमिलटट आते ह, उ ह भी यही कहकर भेजा
जाता है क क मीर म मुसलमान को अजान नह करने दी जाती। जब वह यहाँ आता है तो
देखता है, सब झूठ है। 1986 के बाद यहाँ तो कोई मि दर नह जलाया गया। आप हमारे
गाँव म जाकर देख लो। पुराना मि दर है। अब भी पूजा-पाठ होती है। म शिश से मुख़ाितब
होता ,ँ ‘आपको लगता है, ये लोग लौटकर आएँग?े ’ वह मु कु राती ह। वही फ क
मु कु राहट, ‘जो गए, वे बूढ़े हो गए ह। ब े सब ज मू, द ली, अहमदाबाद म सेटल हो
गए। यहाँ के लड़के ही रोज़गार के िलए बाहर जा रहे ह। वहाँ से कौन लौटेगा अब? ब त से
लोग ने खेत-मक़ान—सब बेच दये। िजनके ह, वे आते ह कभी-कभार। क़ ज़े नह ए
यहाँ। सब सुरि त ह। ले कन यहाँ आकर करगे या?’
मि दर का क़ सा क मीर म पुराना है। 1986 से ही िह दु ववादी दि णपंथ क मीर
म मि दर के तोड़े और जलाए जाने क बात करता रहा है और इसका उपयोग एक तरफ़
से यूलर प क मलामत करने म, तो दूसरी तरफ़ बाबरी जैसी घटना को यायसंगत
ठहराने म कया जाता रहा है। 1993 क शु आत म ह रं दर बावेजा ने क मीर म मि दर
क ि थित को लेकर एक मह वपूण रपोट क थी जो 28 फ़रवरी, 1993 को इं िडया टु डे म
‘डैमे जंग लाइज’ के नाम से छपी थी। बावेजा बताती ह क फ़रवरी, 1991 म लालकृ ण
आडवाणी ने कहा—वे सभी पा टयाँ जो बाबरी मि जद बचाने को अपना फ़ज़ मानती ह,
क मीर म तोड़े गए 55 मि दर के बारे म कु छ नह कहत । कु छ समय बाद उ ह ने यह
सं या 40 कर दी। भाजपा महासिचव के दारनाथ साहनी ने एक सूची उपल ध कराई और
कहा क इसम वे मि दर ह जो 1986 के बाद तोड़े गए, जब क उपा य के .आर. मलकानी
का कहना है क इसम वे मि दर ह जो 1989 के बाद मुि लम क रपंिथय ारा तोड़े गए।
बीजेपी का के ीय नेतृ व 1986 म तोड़े गए 46 मि दर क सूची देता है जब क भाजपा के
ही ज मू कायालय से 82 मि दर क सूची जारी ई और 1991 म एक व र
आर.एस.एस. नेता ने प कार बी.जी. वग स को 1989 के बाद तोड़े गए 62 मि दर क
सूची दी। मज़ेदार यह है क कई मि दर के नाम इन दोन सूिचय म ह। अब जो मि दर
1986 म तोड़े गए थे, वे 1989 के बाद दुबारा कै से टू ट सकते थे? इसके बाद मदनलाल
खुराना ने 52 मि दर क एक सूची जारी क िजसके बारे म दावा कया गया क वे 6
दस बर, 1992 को बाबरी मि जद के तोड़े जाने क ित या म तोड़े गए ह।

इं िडया टु डे ने भाजपा क सूची के 23 मि दर का दौरा कया तो पाया क इनम के वल


बारामूला म दो मि दर तोड़े गए ह—शैलपु ी और भैरव मि दर। बाक़ सभी मि दर
सुरि त पाए गए जहाँ पूजा-पाठ चल रहा था। उस सूची म बताया गया था क तुलमुला
का खीर भवानी मि दर रॉके ट से उड़ा दया गया है। अब 2018 तक तो कई बार म ख़द
खीर भवानी मि दर जा चुका ँ जहाँ ये अ मी को अब भी मेला लगता है िजसम
हज़ार क सं या म क मीरी पंिडत आते ह। ऐसे ही ीनगर के बडशाह चौक पर ि थत
दशनामी अखाड़ा के आग म जलकर ख़ाक हो जाने क बात क गई थी जब क अब भी यह
से अमरनाथ क वा षक या ा शु होती है। ह बा कदल का गणप यार मि दर भी पूरी
तरह सुरि त है। बावेजा बताती ह क िजन गाँव म एक-दो पंिडत प रवार रह गए थे,
वहाँ भी मि दर सुरि त थे। मने अपनी या ा म ऐसे कई मि दर देखे और उनका यथा थान
िज़ आया ही है। अगर मि दर के न करने क कोई ापक योजना होती तो सोिचए
सुदरू गाँव के ये अरि त मि दर न करना कौन सा मुि कल काम था?
असल म इस चार के िलए त कालीन गृह रा यमं ी एम.एम. जैकब के 3 माच, 1992
के संसद म एक के उ र म दये बयान को आधार बनाया गया िजसम उ ह ने 1989-
91 के बीच 38 पूजा थल के ित त होने का िज़ कया था। ले कन पूरा सच यह था
क इसम से यादातर थान आतंकवा दय और सुर ा बल के बीच ॉस फाय रं ग म न
ए थे और इस 38 म से 16 मि जद या मि जद से जुड़ी स पि याँ थ । जहाँ तक 1986 म
मि दर के तोड़े जाने का सवाल है तो इसम कोई दो राय नह क उस समय घर और
मि दर जलाए गए थे ले कन जैसा क पहले भी िज़ कया गया है, न िसफ़ इस घटना के
बाद गुल शाह क सरकार गई बि क थानीय लोग और बलराज पुरी जैसे लोग के
सहयोग से इन मि दर का पुन नमाण भी करवा दया गया था। बावेजा भी इसक त दीक
करती ह। इस रपोट के बाद जब आडवाणी जी से उ ह ने पूछा तो उ ह ने कहा—मुझे सही
सं या नह पता। ले कन सं या मह वपूण नह । 40 नह तो 39 होगा या 38। दुभा य से
इसम से कोई सं या सही नह ।17

अभी हाल म सरकार ने ज मू और क मीर म पचास हज़ार मि दर के पुन ार क


घोषणा क है। इस बारे म सवाल पूछने पर कु मार वांचू हँसते ह—घाटी म कसी भी समय
मि दर क सं या हद से हद डेढ़ सौ रही है। इतने मि दर क ज़ रत या है? इनम पूजा
कौन करे गा? ले कन संजय इसे महज ोपेगडा नह मानते। वह बताते ह, आर.एस.एस.
ब त पहले से इसक योजना बना रहा था। यह योजना घाटी म लगभग बीस हज़ार
मि दर म बाहरी पुजा रय के सहारे यहाँ एक लाख बाहरी ा ण को बसाना है। ले कन
यह काग़ज़ पर िजतना आसान लगता है उतना है नह । मि दर दूर-दराज के इलाक़ म
ह गे या गाँव म और ऐसे म माहौल ख़राब होता है तो वे सबसे आसान िनशाना बनगे।
नतीजा के वल क मीर को नह , पूरे देश को भुगतना पड़ेगा। क मीरी पंिडत संघष मि दर
सिमित ने घाटी म मि दर का सव कया था और पाया क वहाँ कु ल 184 मि दर ह। यहाँ
संजय ीनगर के कु छ मि दर म दूसरे देश से आए पुजा रय ारा राज व िवभाग के
साथ साठ-गाँठ कर मि दर क स पि याँ बेचने का भी िज़ करते ह। इसे लेकर उ ह ने
लंबा अिभयान चलाया था और मि दर क देख-रे ख तथा ब धन क िज़ मेदारी थानीय
पंिडत को देने क माँग क थी। ले कन यहाँ एक और पच है—ज मू और क मीर के
अिधकतर मि दर धमाथ ट के अधीन ह और इस पर िनय ण है डोगरा वंश के
राजकु मार करण संह का! करण संह यह क़ ज़ा छोड़ने को तैयार नह ।
उनके घर के ठीक बग़ल म एक ितमंिज़ला घर है। शिश जी बताती ह क यह ैलो य
नाथ जी का घर था। वह टीचर थे। 1989 म चले गए वह। मने पूछा, लौटकर कभी नह
आए? जवाब उनके एक मुि लम पड़ोसी ने दया जो हमारे साथ हो िलये थे, ‘ ैलो य नाथ
जी आते ह कभी-कभी। िपछले साल खीर भवानी के मेले म आए थे तो यहाँ भी आए थे।
हमने कसी घर को नह छु आ। देिखए, अखरोट के दर त भी साबुत ह सब। ताला भी उ ह
का लगाया आ है।’ थोड़ा-सा आगे जाकर गाँव का मि दर है। गाँव के बीच म एक छोटा-
सा मि दर है। सामने एक मज़बूत दर त। भीतर िशव लंग के अगल-बग़ल हनुमान और
दुगा सिहत अनेक तसवीर। शिश बताती ह क वही यहाँ साफ़-सफ़ाई वग़ैरह कर जाती ह।
थोड़ी दूर पर एक घर है। प ा और बड़ा। सामने गाय बँधी है और चावल के बोरे रखे ह।
बाउं ी पर लकड़ी क बाड़ है और उसी का दरवाज़ा िजसे खोलकर हम भीतर चले गए।
यह चाँद रै ना का घर है। उनसे भी थोड़ी-सी बात होती है। बताते ह क 1989 म नह जाने
का िनणय िलया था और उसका कोई पछतावा नह । ठीक-ठाक खेितहर ह और बेटा रा य
सरकार म नौकर। रा ते म कु छ और ख़ाली घर थे। एक जला आ घर भी था। शिश इशारे
से दखाती ह उसे। रतनलाल मि दर दखाते ह उ साह से और कहते ह क मुझे माल
अनंतनाग से लाना होता है और आसपास सभी मुसलमान ही ह ले कन कोई परे शानी नह
ई। लौटते ए शिश सुजाता के साथ थोड़ा अलग चल रही थ । बाद म सुजाता ने बताया
क बेहद धीमी आवाज़ म उनसे शिश बोल —‘मुसलमान का कोई भरोसा नह है।’
एक क़ सा प कु मार रै ना का है। 1990 म उनका पूरा प रवार ज मू चला गया।
जाने य उ ह छोड़ दया गया! पुराने-से घर के साथ वह अके ले रह गए। जावेद शाह उ ह
अपने घर ले आए तो बड़ा िवरोध आ। ले कन जावेद अड़े रहे। अब तीस साल से प उस
प रवार के सद य ह। बीच म पड़ोिसय ने उन पर धम प रवतन के िलए भी दबाव डाला,
ले कन जावेद ने इसका तीखा िवरोध कया। प रवार वाल ने मकान बेच दया ले कन
प को उसम से कोई िह सा नह िमला। जीवन बीमा िनगम के एजट के प म काम
करनेवाले प से जब अ टू बर, 2019 म मुलाक़ात ई तो अग त के बाद से काम-काज
ठ प था और वह प रवार म भतीिजय के साथ त।
क मीर म कोई नैरेशन आिख़री नह और कोई नैरेशन ि थर नह है।

पंिडत कॉलोनी : रहवासी या मेहमान?


वष 2000 के आसपास क मीर म पंिडत क वापसी के िलए कोिशश शु और
सुरि त आवास के िलए कु छ ांिज़ट होम बनवाए गए िज ह आम तौर पर ‘पंिडत
कॉलोनी’ कहा जाता है। ीनगर से बडगाम जाते समय शेखपुरा म पहला ांिज़ट कै प
बना। देखने म यह देश के कसी भी इलाक़े म बनी सरकारी कॉलनी जैसा लगता है। वैसे ही
पीले रं ग से पुती तीन मंिज़ला इमारत। यहाँ हमारी मुलाक़ात प कार मनोहर ललगामी से
होती है। ललगामी आकाशवाणी से जुड़े ह और एक उदू अख़बार से भी। वह बताते ह क
यह सरकारी िमि क़यत क चरागाह क ज़मीन थी जहाँ पंिडत कॉलोनी बनाई गई। बात
िनजी अनुभव से ही शु होती है। ललगामी का गाँव लालगाम, बडगाम के पास ही है।
वहाँ 15-16 प रवार थे पंिडत के और 1998 म वंधामा म 23 पंिडत क ह या के पहले
तक उ ह ने गाँव छोड़ने के बारे म सोचा भी नह था। गा देरबल के पास वंधामा गाँव म
25 जनवरी, 1998 को 23 क मीरी पंिडत क िनमम ह या कर दी गई थी। इस घटना क
कोई जाँच नह ई और ह यार का कु छ पता नह चला। इसके पहले 21 माच, 1997 को
बडगाम के सं ामपोरा म 7 पंिडत क ह या ई थी। इसके आरोपी अबू हा रस उफ़ अबू
ख़ािलद को दो दन बाद एक इनकाउं टर म मार दया गया ले कन घटना क कोई जाँच
नह ई। पंिडत क आिख़री ह या 23 माच, 2003 को पुलवामा िज़ले के न दीमाग म ई
थी जहाँ औरत और ब सिहत 24 लोग को मार दया गया था। संजय ट कू इस घटना
क ख़बर सुनकर वहाँ प च ँ े थे। वह बताते ह क जब उ ह ने मृतक को पर परा अनुसार
टीका लगाया तो देखा क सभी को गोिलयाँ माथे से ठोड़ी के बीच लगी ह। ट कू कहते ह,
‘यह के वल ए सप स का काम हो सकता है।’ उनका मानना है क इस घटना क जाँच
होनी चािहए थी और िजन लोग पर ह या का आरोप लगाया गया, वे शायद असल
ह यारे नह थे। याय न िमल पाना और ऐसी तमाम ह या क सही जाँच न होना
क मीर म हर तबके के अस तोष का बड़ा कारण है। रे खा चौधरी बताती ह क ह याएँ ऐसे
समय जब पंिडत को वापस लाने क कोिशश हो रही थ ।18 ले कन वापस लौटना तो
दूर, वंधामा क घटना के बाद घाटी से कोई तीन हज़ार और प रवार पलायन कर गए। वह
बताते ह क उस दौर म उन पर तो कोई हमला नह आ था ले कन माहौल बदलने लगा
था—जैसे पंिडत के खेत के िलए मज़दूर नह िमलते थे। कु छेक लोग िमलने-जुलने से
कतराने लगे थे।
ललगामी बताते ह क िस लेखक बशारत पीर के िपता ग़लाम मोह मद पीर उन
दन बडगाम म रा य सरकार के बड़े अिधकारी थे और उ ह ने अपने इलाक़े म पंिडत क
सुर ा के िलए ब त काम कया। वह गाँव से िनकलकर बडगाम म एक पंिडत ारा ख़ाली
घर म रहने आ गए और फर जब यह कॉलोनी बनी तो यहाँ जगह िमली। जब 2011 म
मनमोहन संह सरकार ने पेशल पैकेज दया पंिडत को और उ ह नौकरी िमली तो यहाँ
काफ़ लोग आए। पहले एक–एक ाटर म दो-दो, तीन-तीन लोग रखे गए ले कन अब
सबको एक-एक ाटर िमल गया है। ाचार क िशकायत वह भी करते ह और पंिडत के
साथ भेदभाव क भी। वह बताते ह क ज मू के कै प म भी और ीनगर तथा अनंतनाग
म बनी पंिडत कॉलोिनय म भी जम के ाचार आ है। ललगामी ग़लाम नबी आज़ाद के
मु यमंि व काल को न बे के बाद का सबसे बेहतर दौर बताते ह। इस मामले म यादातर
पंिडत क राय समान है।
इसी कॉलोनी म हम राजीव िमले िज ह धानमं ी पैकेज के तहत िश ा िवभाग म
नौकरी िमली है। अ य चीज़ के अलावा राजीव िश ा के इ लामीकरण क ओर इशारा
करते ह। यह चीज़ ीनगर और दूसरे इलाक़ म साफ़ दखती भी है। कई मुि लम िम ने
बताया क यादातर कू ल म जमा’त का भाव ब त बढ़ा है और िश ा को लगातार
इ लािमक बनाया गया है। सतीश िवमल भी ब त िव तार से इसे बताते ह और सोशल
मीिडया पर इसे मिहमामंिडत कये जाने का िज़ करते ह, ले कन वह शेष भारत म बढ़ते
िह दूवादी दि णपंथ से इसका कोई र ता होने क बात ख़ा रज करते ह। राजीव यहाँ
अके ले रहते ह जब क प रवार ज मू म रहता है। वह कहते ह क अगर मुझे ऑ फस म ही
यह कह दया जाए क आप ज मू चले जाइए तो म यहाँ से सामान उठाए िबना चला
जाऊँगा। उनका दावा है क यहाँ रह रहे तीन सौ लोग म से यादातर लोग यहाँ िबना
प रवार के आए ह, ले कन लगातार ब क आवाज़ और मिहला को देखकर हम ऐसा
लगा नह । हालाँ क, संजय ट कू का मानना है क धानमं ी पैकेज िव थािपत पंिडत के
पुनवास के अपने उ े य म तो नाक़ामयाब रहा है। जो लौटकर आए ह, वे मेहमान जैसे ह।
अ सर प रवार नह लाते। ीनगर म तो यादातर मकान िबक गए ले कन गाँव म तो ह।
वे नह जाना चाहते। क मीरी समाज म उनक कोई िच नह , न लौटने म। 2016 म दो
कै प पर कु छ प थर चले तो ये लोग चले गए। ले कन यहाँ एक त य का िज़ करना बेहद
आव यक होगा। 2010 म दलीप पडगांवकर के नेतृ व म क मीर गए वाताकार समूह क
सद य रही राधा कु मार बताती ह क जब शु आत म पंिडत को वापस बुलाने के िलए
योजना बनाई गई तो िश क क भत क गई। रा य सरकार ने 3000 िश क क भत
क योजना बनाई ले कन भत ई 1,179 पंिडत क । इनम से अिधकतर युवा मिहलाएँ
थ । बडगाम और अनंतनाग के ांिज़ट कै प के अपने दौरे म उ ह ने पाया क इनसे बॉ ड
भरवाए गए थे क ये अपने प रवार को साथ नह लाएँगी। कारण यह बताया गया क
ांिज़ट कै प के वल छह महीने के िलए थे और इसके बाद इनम नये लोग को जगह िमलेगी
तथा पहले आए लोग को अपने िलए िनवास क व था करनी पड़ेगी जहाँ वे प रवार
ला सकते ह। वह कहती ह क इस शासिनक मजबूरी को समझा जा सकता है ले कन
अपनी ही ज़मीन पर पहले से िव थािपत लोग पर एक और ू र अलगाव लाद दया।19
कोई स र बरस के धनाजी भाई के प रवार के सब लोग पलाियत हो गए ले कन वह
नह जा पाए। वह भी इसी ांिज़ट कै प म रहते ह। बात शु करते ही कहते ह क न बे के
पहले पॉवर ब त था हमारा। 35 ितशत आबादी थी हमारी ीनगर म। म जानता ँ क
आबादी के बारे म उनके आँकड़े सही नह ह। ले कन यह आँकड़ा कई बार सुना है मने।
रे िडयो क मीर से जुड़े और सािह यकार डॉ. सतीश िवमल राजबाग़ क
सी.आर.पी.एफ़. ारा सुरि त कॉलोनी म रहते ह। वह 1998 तक ाल के अपने गाँव ओछू
म रहे ले कन जब हालात िबगड़े तो ीनगर आ गए। वह बताते ह क ‘उस दौर म ऐसे
त व थे जो नह चाहते थे क पंिडत यहाँ रह। पा क तान के रे िडयो से घोषणा होती थी
क अगले शु वार को पा क तान म क मीर का िवलय हो जाएगा। तो जो भी रोड़ा था
इस राह का, उसे हटाया गया। पंिडत क वैचा रक ितब ता भारत के साथ थी तो वे
िशकार बने। वह ऐसे आलोचक को लेकर बेहद कटु ह जो कहते ह क उस दौर म
मुसलमान भी मारे गए और कहते ह क पहले चार महीन म के वल पंिडत को मारा
गया।’
िपछले अ याय म मने िव तार से बताया है क यह सही नह है। ले कन यह आपको
क मीर के भीतर-बाहर पंिडत के आ यान म लगातार सुनाई देगा। िवमल कहते ह क
िपछले 20 साल म वह अपने गाँव नह जा पाए। ज़मीन है, बाग़ीचे ह, पर अब पता नह ,
कस हाल म ह।
सडर िजस अिधकि पत सामूिहक मृित क बात करती ह, वह न बे के स दभ म भी
मह वपूण भूिमका िनभाता है। आतंकवाद के िशकार पंिडत क सं या हो, आबादी म
पंिडत क भागीदारी हो या उस दौर म घटी घटनाएँ, यहाँ आँकड़े बेमानी हो जाते ह और
परसे शन मह वपूण। धीरे -धीरे यह ोपेगडा क तरह चा रत होता जाता है और सच क
तरह थािपत।

जब भारत जलेगा तो क मीर भी जलेगा


और क मीर जलेगा तो भारत भी जलेगा
क़ से ब त सारे ह। मने िज़ उनका कया है जो एक तरह क आबादी का ितिनिध व
करते ह। इन अलग-अलग समूह क द क़त, ाथिमकताएँ, उ मीद और क मीर के
हालात को लेकर परसे शन अलग-अलग ह तो कु छ ऐसी चीज़ ह िज ह लेकर लगभग
सहमित है। जगमोहन क भूिमका को ल तो जहाँ अनंतनाग के ामीण इलाक़े म रहनेवाले
रतनलाल तलाशी उनक भूिमका क ओर इशारा करते ह तो ीनगर क उ -म यवग य
रहाइश के डॉ. सतीश िवमल इसे क मीरी मुसलमान नेता क ‘फे स से वंग’ बताते ए
पूरी तरह से ख़ा रज करते ह। ीनगर के म यवग य ापारी प कृ ण कौल कहते ह क
जगमोहन न होते तो क मीर चला गया होता। उस समय सुर ा उपल ध कराना स भव
था ही नह । िव थािपत के िलए बने कै प म रहनेवाले ललगामी कहते ह क जगमोहन ने
सेफ़ ज़ोन का ताव दया था ले कन पंिडत इतना डरे ए थे क चले गए। वह यह भी
जोड़ते ह क जगमोहन ने कम-से-कम ज मू म कै प उपल ध कराए तो उ री क मीर के
एक गाँव क पंच रही आशा देवी इस सवाल को टाल जाती ह। पंिडत के ितिनिध संजय
ट कू सीधे-सीधे कु छ कहने क जगह नेशनल कॉ स क ओर भी उँ गली उठाते ह। उनका
सवाल है, दो दन पहले तक फ़ा क़ स ा म थे, उनके स ा से जाते ही जुलूस य िनकलने
लगे? डॉ. िवमला धर भी जगमोहन के आगमन के तुर त बाद िनकले जुलूस के पीछे
फ़ा क़ के होने क बात करती ह, हालाँ क वह इस सवाल को टाल जाती ह क फर
नेशनल कॉ स के इतने नेता क ह या य ई?
‘ज मू-क मीर पंिडत संघष सिमित’ के मा यम से संजय ट कू क मीर म रह रहे
पंिडत के िलए लगातार स य ह और इस प से उ ह घाटी म रह रहे पंिडत का
ितिनिध माना जा सकता है। ट कू कहते ह क 2008 तक हम लगता था क न जाने का
िनणय ठीक था हमारा। जब ज मू म हम अपने र तेदार को यहाँ-वहाँ भटकते और डेढ़-
दो कमर के मकान म मुसीबत झेलते देखते तो लगता क वहाँ ऐसे हालात म जीने से तो
ीनगर म मरना ही बेहतर है। ले कन जब अमरनाथ ज़मीन िववाद आ तो मामला
िबगड़ने लगा। बता दूँ क अमरनाथ या ा को लेकर िववाद तब शु आ जब ग़लाम नबी
आज़ाद ने ी अमरनाथ ाइन बोड को लगभग 800 कै नाल (88 एकड़) ज़मीन देने का
िनणय िलया और या ा के बीच म ही 17 जुलाई, 2008 को रा यपाल के मु य सिचव तथा
ाइन बोड के त कालीन सी. ई. ओ. अ ण कु मार ने एक ेस कॉ स म यह घोषणा कर
दी क ज़मीन का यह अ तरण थायी है। अगले ही दन यह मामला राजनीितक बन गया।
रयत के दोन धड़ ने इसका िवरोध कया तो उस समय कां ेस के साथ स ा क
भागीदार पीडीपी भी थायी भू-अ तरण के िख़लाफ़ मैदान म आ गई। नेशनल कॉ स भी
पीछे नह रही और शेख़ प रवार क तीसरी पीढ़ी के उमर अ दु ला ने घोषणा क , अगर
हमारी एक इं च ज़मीन भी कसी बाहरी को दी गई तो हम अपनी िज़ दगी क़ु बान कर दगे।
दूसरी तरफ़ ज मू म भाजपा ने मोचा खोल दया और यह िववाद एक धा मक िववाद म
त दील हो गया िजसम हंसक झड़प म कई लोग मारे गए। उधर िशवसेना, भाजपा, िव
िह दू प रषद, बजरं ग दल तथा नवग ठत ‘ ी अमरनाथ या ा संघष सिमित’ ने ज मू से
आव यक व तु क आपू त रोक दी तो घाटी के दुकानदार ने ‘चलो मुज़ फराबाद’ का
नारा दया और अ ततः 28 जून, 2008 को पीडीपी ने सरकार से समथन वापस ले िलया।
लालकृ ण आडवाणी ने इसे चुनाव म मु ा बनाने क घोषणा क तो क मीर म पीडीपी ने
इसका उपयोग अपनी अलगाववादी और क र छिव बनाने म कया। अलगाववादी नेता
शेख़ शौक़त अज़ीज़ सिहत 21 से अिधक लोग क जान और ग़लाम नबी सरकार क बिल
लेने के बाद यह मामला 61 दन बाद रा यपाल ारा बनाये गए एक पैनल ारा अ तरण
को अ थायी बताने तथा बोड को इस ज़मीन के उपयोग क अनुमित के बाद ब द तो आ
ले कन क मीर के िवषा माहौल म सां दाियकता का थोड़ा और ज़हर भर गया।20 ट कू
कहते ह क इसके बाद ज मू और क मीर के बीच दू रयाँ बढ़ और एक बार फर घाटी म
वही नारे गूँजने लगे। ले कन यह माहौल लंबा नह चला और इस बार 4 दन म ही शा त
हो गया। हालाँ क कसी पंिडत के घर हमला नह आ ले कन लोग डरे ए तो थे ही
य क अनुभव यही रहा क के और रा य, दोन ही पंिडत को मुसीबत के व त म
सुर ा उपल ध करा पाने म असफल रहे थे।
संजय क मीर क सामािजक सम या को ापक प से देखने क कोिशश करते ह।
वह कहते ह क कोई मुसलमान कसी पंिडत के साथ वैयि क प से कोई भेदभाव नह
करता। ऐसा नह क दूधवाला आपको दूध नह देगा या ऑटो वाला िबठाने से मना
करे गा। ले कन जब सामुदाियक भावनाएँ भड़कती जाती ह तो वे भीड़ म बदल जाती ह।
आप देिखए अयो या म। (नोट : नव बर, 2018 के आिख़री ह ते म जब म उनसे बात कर
रहा था तो अयो या म संत सभा क तैयारी चल रही थी।) अब जब ब सं यक समुदाय क
भीड़ जुट रही है तो अ पसं यक समुदाय के मन म तो डर पैदा होता ही है। हम इसे समझ
सकते ह य क यहाँ जब ब सं य समुदाय उ ेिजत होकर सड़क पर उतरता है तो भले
वह हम पर हमला न करे ले कन एक डर तो पैदा होता है। 2003-2008 के बीच जब
शाि तपूण समय था तो पता ही नह चलता था कु छ। ग़लितयाँ सबने क । सेना ने भी
ग़लितयाँ क और उनसे कु छ सीखा भी नह । इसिलए बार-बार उभरता है यह।
न बे का िज़ करते ए वह कहते ह क ऐसा नह था क 19 जनवरी क रात सारे
पंिडत चले गए थे। उस साल हेराथ* 21 फ़रवरी को मनाई गई थी। इसके िलए िम ी के
कई तरह के बतन क ज़ रत होती है। वे सब आसानी से ह बा कदल म िमल रहे थे। उस
समय दरबार ीनगर से ज मू चला गया था तो ब त सारे पंिडत नौकरी के िसलिसले म
पहले ही बाहर थे। उसके बाद भी लोग धीरे -धीरे गए। 1992 म यहाँ साढ़े चार हज़ार
प रवार थे। 1998 म साढ़े तीन हज़ार प रवार बचे और अब घाटी म 292 जगह पर कु ल
808 िह दू प रवार ह िजनम दि ण क कु छ जगह पर डोगरा प रवार ह और कु छेक ख ी
प रवार भी। इसके अलावा 35,000 के क़रीब िसख और 625 ईसाई भी ह।
संगवश बता दूँ क इसके अलावा कोई दो से ढाई लाख वासी मज़दूर क मीर म
िनयिमत रहते ह। खेती, भवन िनमाण से लेकर शहर -क़ ब म ठे ला लगाये ये आसानी से
िमल जाते ह। ीनगर के करण नगर म भूजे क दुकान लगाने वाले गु डू से जब मने पूछा
क यहाँ कै से आए तो उसने बताया क द ली म लोग ब त परे शान करते थे। यहाँ कोई
परे शान नह करता। जब हड़ताल होती है तब तो कोई नह िनकलता ले कन बाक व त
आराम से धंधा होता है। उ ह ने यह भी बताया क यहाँ मज़दूरी कह से भी यादा है—
एक आम कं शन मज़दूर को 500 पये रोज़ िमलते ह तो िम ी क मज़दूरी 800 से
1000 पए तक है। छु आछू त है नह और 2004 म 7 मज़दूर क एक दुभा यपूण ह या के
बाद कोई ऐसी ख़बर सुनी नह गई। ये लोग आम तौर पर अ ैल म आ जाते ह और फर
दस बर म लौट जाते ह। 370 हटने के बाद इन मज़दूर के वापस लौटने पर कई ख़बर
आई थ । पा पोर से अवि तपोरा जाते ए रा ते म अचानक झुि गय के समूह दखाई
दये। यहाँ झाड़ू बन रहे थे। औरत, मद और ब ।े कोई बीसेक प रवार। बात क तो पता
चला क राज थान के भीलवाड़ा, उदयपुर और दीगर इलाक़ से आए बाघरी समाज के
आ दवासी प रवार ह। बस, रोज़गार क तलाश म भटकते ज मू होते ए यहाँ आ गए ह।
पूछा, ‘कोई परे शान तो नह करता?’ मद से पहले एक अधेड़ मिहला ने हँसकर कहा, ‘हम
या परे शान करे गा कोई साहब? मेहनत करते ह, कमाते-खाते ह।’ जाने या सूझी क मने
पूछ िलया, ‘पूजापाठ कहाँ करते हो? मि दर है कोई आसपास?’ इस बार हँसी और गहरी
थी, ‘हमारे देवता हमारे साथ रहते ह। जहाँ हम जाते ह, देवता भी। इसी झु गी म हम भी
रहते ह और हमारे देवता भी।’ 5 अग त के बाद इनम से यादातर मज़दूर भी लौट आए
और अ टू बर म बंगाली मज़दूर क ह या के बाद तो उनके वापस जाने क उ मीद भी
धूिमल हो गई है।
ट कू बताते ह क उस दौर म हमला िसख पर भी आ था ले कन 1989 म
खािल तान िलबरे शन ं ट और क मीर िलबरे शन ं ट के बीच समझौता हो गया था। यह
तय आ था क कसी िसख को नह छु आ जाएगा। उसी साल िसख ने एक जुलूस िनकाला
था डाउन टाउन से और ह बा कदल और रै नावारी जैसे उन इलाक़ से गुज़रा था जहाँ
क मीरी पंिडत रहते थे। नारा लग रहा था : ‘झटका-हलाल भाई-भाई, मसूर क दाल
कधर से आई!’ डॉ. सतीश िवमल ने बताया था क ाल म िसख पर हमले क कु छ
घटनाएँ ले कन उसके बाद अकाली दल के लोग आ गए और ह त ाल ब द रहा।
उसके बाद िसख को कसी ने नह छु आ।
ट कू का मानना है क सारा िव थापन डर क वजह से ही नह आ। कई कारण थे।
आप देिखए 1947 के बाद से ही लोग जा रहे थे। उसके पहले भी गए लोग नौकरी के िलए।
तो बाद के दौर म ब त से लोग अ छे रोज़गार के िलए घाटी छोड़कर गए थे। एक सम या
यह पैदा ई क शादी के वर-वधू नह िमलते। यहाँ इतने कम पंिडत रह गए क र ते
िमलने मुि कल हो गए।
सुर ा के सवाल पर वह कहते ह क हमने भी ब त कु छ सीखा और मुसलमान ने भी
सीखा। दोन ही प रप ए ह। हमने सीखा गांधी जी के तीन ब दर। िजस समय
ब सं यक समाज ग़ से म हो, उसे भड़काने क जगह चुप रहो। न दीमाग आ तो हम
ब त ग़ से म थे। उ ह धम कयाँ भी द हमने। फर अब 90 वाली बात नह । उस समय
कसी को पता ही नह चला कु छ। आज एक क मीरी पंिडत को कु छ आ तो देश भर म
तमाशा मच जाएगा। पाँच लाख से यादा क मीरी मुसलमान अलग-अलग जगह पर
रहते ह, उ ह भी मुि कल पेश आएगी। जो सम या है, वह पूरे देश क है और क मीर क
भी। आज के हालात के िलए िह दु व ुप और मीिडया िज़ मेदार ह। देश का माहौल
िबगड़ेगा तो उसका असर क मीर म भी होगा। मामला माइनाॅ रटी-मेजाॅ रटी का है तो
जब भी तनाव होगा तो माइनाॅ रटी को झेलना पड़ेगा। भीड़ के पास दमाग़ नह होता।
ट कू बताते ह क ‘पलायन न करनेवाले पंिडत को अ सर नज़रअ दाज़ करने क
कोिशश क गई। सं ामपोरा घटना के पहले लोग कहते थे क अब क मीर म पंिडत ह ही
नह । अब भी कु छ लोग कहते ह।’ मुझे अचानक िव थािपत युवा क मीरी पंिडत क
वेबसाइट ‘ स इन क मीर’ पर हाल म छपा एक लेख याद आया िजसम यह दावा कया
गया है क अब ीनगर या पूरे क मीर म एक भी क मीरी पंिडत नह है। 30 अ ैल, 2018
को छपे एक लेख हेन क मीरी पंिडत लेड इ लािमक टेरर म कं चन गु ा िलखती ह—
ीनगर या घाटी के कसी िह से म कोई क मीरी पंिडत नह है; अब वे यहाँ नह रहते।*
ेिसडसी यूिनव सटी, कोलकाता से िह दी म क मीरी सािह य पर शोध कर रही नेहा
चतुवदी ने मुझे बताया था क ज मू म रह रह एक पंिडत उप यासकार से जब उ ह ने
पूछा तब भी यही जवाब िमला क घाटी म अब कोई पंिडत प रवार नह है। शायद उनका
यहाँ होना िव थािपत पंिडत के आ यान म काफ़ वधान पैदा करता है। वह आगे
कहते ह क यहाँ के भी नये लड़के नह जानते क क मीरी पंिडत या होते ह। ट कू कई
कू ल म जाकर ब से बात करते ह और बताते ह क पंिडत और मुसलमान कै से यहाँ
िमलकर रहते थे। वह कहते ह क क मीर क सं कृ ित इन दोन के िबना पूरी ही नह
होती। हेराथ म पर परा है क पड़ोिसय को अखरोट दया जाता है। हम देर हो तो वे ख़द
चले आते ह। ऐसे ही बकरीद म क़ु बानी के बाद मुसलमान पंिडत के घर क ा मांस
प च ँ ाते ह। जो बाहर चले गए, उनका एक िह सा अब इन पर परा को भूलकर
दि णपंथ के साथ हो गया है। जब पंिडत यहाँ से गए तो कोई वागत नह आ उनका।
औरत -बे टय के साथ या नह आ! ले कन चूँ क िह दू ने कया तो कोई बात नह । यहाँ
भी कोई मुसलमान बला कार कर दे, मार दे तो सब चुप रह जाते ह। माहौल और ख़राब
होता जा रहा है। िजस तरह क नीितयाँ लागू क जा रही ह, वे अलगाव बढ़ा रही ह।
ट कू बताते ह क कु छ साल पहले इं टेिलजस ने एक रपोट म बताया क घाटी म रह
रहे पंिडत िहज़बुल मुजािहदीन के लोग ह। ट कू हँस के कहते ह क जब हमने क मीर म
दशहरा मनाया तो एक इं टेिलजस ऑ फसर वहाँ िमल गए। मने कहा क रपोट भेज
दीिजए क यह पुतला सला ीन ने िभजवाया है।
दशहरे के आयोजन को लेकर उनके मज़ेदार अनुभव ह। असल म क मीर म दशहरे क
कोई पर परा नह थी। पंिडत यह योहार नह मनाते थे। जब डोगरा शासन आया तो
दशहरा मनना शु आ और फर उनके जाने के बाद ब द हो गया। जब उ ह ने 2007 म
दुबारा दशहरे का आयोजन कया तो मैदान खचाखच भरा था। ज़ािहर है क 99 फ़ सद
भीड़ मुसलमान क थी। वह बताते ह क जब ‘जय ीराम’ का जयकारा लगा तो
मुि लम ने भी साथ म नारा लगाया। फर पुतले के दहन के बाद कई लड़क ने उसक राख
उठाई तो उ ह ने पूछा क इसका या करोगे? लड़क ने बताया क उनके दादा ने मँगवाई
है। उनक मृितय म डोगरा काल का दशहरा होगा िजसम राख को पिव माना जाता
था। ट कू कहते ह क ‘मने मजाक म पूछा क यह तो इ लाम के मुतािबक है नह ’, तो
बोले, ‘अरे छोिड़ए इ लाम, दादा ने कहा है तो हम ले जाएँग।े ’ मेरी तरफ़ देखकर
मु कु राकर कहा उ ह ने, ‘यह है क मी रयत, जो अब बबाद हो रही है। इसके बाद से हर
साल दशहरा मन रहा है।’ यह बातचीत नव बर, 2018 क थी। अ टू बर, 2019 क
मुलाक़ात म बेहद कटु वर म उ ह ने बताया क 2007 से जारी दशहरा इस बार नह मन
पाएगा। एक तो हालात ठीक नह ; दूसरा, इं टरनेट और फ़ोन न होने से उन लोग से स पक
मुि कल है जो आ थक सहयोग करते थे और तीसरा रा यपाल ने इस बाबत भेजे गए प
का जवाब भी नह दया।
धानमं ी पैकेज पर मेरे सवाल के जवाब म ट कू बताते ह क ‘पैकेज के वल
िव थािपत पंिडत के िलए था। 2013 के दस बर म उ ह ने के स कया क इसम वहाँ रह
रहे पंिडत के िलए भी ावधान हो। इस बीच दो संसदीय सिमितयाँ क मीर आ तो उ ह
पूरा आँकड़ा स पा क यहाँ रह रहे पंिडत के सामािजक-राजनीितक और आ थक हालात
कतने ख़राब ह। संसद म भी इस पर सवाल उठा। 2016 म के स का फ़ै सला उनके हक़ म
आया। के ने रा य से कहा क क मीर म रह रहे पंिडत भी इस पैकेज के िलए हक़दार ह।
ले कन इसी बीच बीजेपी के लोग ने िसख को भड़काया और उ ह ने पैकेज को ही र
करने का के स करके टे ले िलया।’ वैसे इस स दभ म 2003 म क मीरी पंिडत के स मेलन
म मनमोहन संह क मीर म ‘अ पसं यक आयोग’21 बनाने का जो ताव दया था, वह
िसख और पंिडत , दोन के िलए एक आगे बढ़ा आ क़दम हो सकता था।
भिव य के सवाल पर ट कू कहते ह क फ़लहाल तो लगता है, हालात और ख़राब
ह गे। ऐसा ही चलता रहा तो जो 808 प रवार बचे ह, उनम से भी काफ़ चले जाएँग।े जब
वह नह जानते थे क कु छ महीन म 370 हटाने का फ़ै सला होगा तब भी वह रा यपाल से
बेहद िनराश लग रहे थे। उनका कहना था क ऑपरे शन लैक आउट जैसी चीज़ से कु छ
हल नह िनकलेगा और सम या यादा बढ़ती जाएगी। हालात ऐसे ह क आज घाटी म
न बे से भी यादा भारत-िवरोधी भावनाएँ ह। अ त म वह एक बेहद मानीखेज़ ट पणी
करते ह—न बे म जो कु छ आ, वह के वल क मीर म आ। ले कन अब अगर यहाँ कु छ आ
तो उसका असर पूरे देश पर होगा।

उदास व त म ‘किलयाँ’ िखलाने क कोिशश


शु आत वांचू प रवार से क थी और अ त भी उसी प रवार से करना चा ग ँ ा। अिमत वांचू
से मेरी मुलाक़ात नव बर, 2018 म ीनगर म और फर जनवरी, 2019 म जयपुर म ई।
अिमत ने िमिलटसी कू ल म देखी। 1989 म वह शहर के िति त टंडल िब को म पढ़ते
थे। जे.के .एल.एफ़. का पहला कमांडर अशफ़ाक़ मािजद वानी भी वह का छा रहा था।
कू ल म खुलेआम ेनेड और ब दूक़ दखाई देते थे। वह कहते ह—एक दन अचानक ढेर
सारे छा अनुपि थत थे। म अपनी लास म अके ला पंिडत बचा था। आठव के ब े ब दूक़
रखते थे। आतंकवा दय के िलए कै रयर का काम करते थे। कू ल म पो टर लगाते थे।
िमिलटट हीरो जैसे होते थे।
जब दादा जी क ह या ई तो उस समय ग़ सा ब त था। दो साल तक घर से नह
िनकले। चार मुि लम दो त उनके घर के पास रहते थे। वे भी कू ल नह गए। हमेशा लगता
था क अब ये मारे जाएँगे, अब वे मारे जाएँग।े फर मौत का डर िनकल गया।
एम.बी.बी.एस. कया, क चरल से े टरी बना, क मीर यूिनव सटी के इितहास म पहला
पंिडत ेिसडट बना।
वह कहते ह—हम िव थािपत नह ए, यह अ छा िनणय था। दादा जी क ह या ई
तो कई लोग आए क अगर आप यहाँ नह रहगे तो हम भी नह रहगे। िशया भी डरे थे।
माइनाॅ रटी का होता है न क पहले एक को, फर दूसरे को टारगेट कया जाएगा। तो
हमारे नह जाने से कई लोग के । आप भाग के कहाँ जाओगे। मेरी िच ता म अब िव थापन
नह है। िव थापन तो हो चुका है। मने देखा है क जो लोग चले गए, उ ह ने कतना झेला
है। लोग कहते थे क इससे अ छा होता क क मीर म गोली खा लेते। यहाँ िसिविलयन
क लं स । आज यह हालत है क युवा क मीर छोड़ रहे ह। कारण या है? यहाँ
इ टी ूशन िब डंग ई ही नह । बाक़ छोिड़ए, राजनीित म भी कोई नया चेहरा देखा
आपने? चाहे रयत हो या मु यधारा क पा टयाँ—तीस साल से वही लोग ह। चुनाव
होते ह, लोग जान का ख़तरा उठाकर वोट देने जाते ह ले कन बदले म िमलता या है?
कसी सरकार ने उनके िलए कु छ कया? उसके वोट क कोई इ ज़त क पा टय ने? ऐसे
लोकतं का या फ़ायदा जहाँ गवनस ही नह हो? अगर आप गवनस नह दे सकते तो
लोकतं का फ़ायदा या है? हालत यह है क िश ा ठे के पर पढ़ा रहे ‘रहबर-ए-तालीम’
पर िनभर है िज ह डेढ़ हज़ार पये िमलते ह। जब दुिनया म भूमंडलीकरण आ तो यहाँ
आतंकवाद शु आ। 1989 के पहले का आप देखगे तो ज मू-क मीर कसी दूसरे रा य से
बेहतर था। िजतना इ ा चर है, सब उसके पहले का बना आ है। उसके बाद कु छ नह
बना। फर भी म िनराशावादी नह ।ँ कसी भी जगह को बदलने म दस साल लगते ह।
यहाँ भारी इं ड ी नह लगा सकते आप। तीन चीज़ मुम कन ह : एक तो यहाँ एजुकेशन
हब बना सकते ह। दूसरा, मेिडकल हब बन सकता है। हाट क चर हो सकता है। फर
टू र म है। इतना ब त है स र लाख लोग के िलए। मुझे लगता है क दस साल अ छा
गवनस िमल जाए तो चीज़ बदल जाएँगी।
उनका मानना है क दो तरह के लोग को पलायन म मुि कल आती है—या तो िजनके
पास ब त ज़मीन-जायदाद हो या िजनके पास ब त कम हो। म यवग तो िनकल जाता है
जहाँ अ छा अवसर देखता है। न बे म भी सरकारी नौकरी वाल के िलए सम या नह थी।
वे गए तो भी उनको तन वाह िमलती रही। आठ सौ क मीरी पंिडत प रवार घाटी क
जनसं या का 0.1 ितशत भी नह ह, तो वे जाएँ या न जाएँ, कसी को कोई फ़क़ नह
पड़ना है। बड़ी बात यह है क यहाँ रहकर वह कतने लोग को लौटने के िलए े रत करते
ह। मान लीिजए, मेरे स पक म 1000 मुि लम प रवार ह तो उन पर क मीरी पंिडत का
अ छा भाव होगा। कोई लौटेगा तो वे उनका वागत करगे। इन 800 प रवार ने
वािहयात से वािहयात समय देखा है, तो इनके जाने का कोई िनणय इस बात से तय नह
होगा क हालात कै से ह। उसे अगर क मीर के अ दर अ छा रोज़गार िमलेगा तो यहाँ
रहेगा और कह बाहर रोज़गार िमलेगा तो बाहर चला जाएगा। असल बात यह है क यहाँ
रहकर उसने समाज म या योगदान कया है सबको जोड़ने के िलए?
और अिमत ने यह कोिशश लगातार क है। उ ह ने कॉलेज के समय म एक बड बनाया
‘इमसन’ िजसम िसख, मुि लम और पंिडत समुदाय के लड़के -लड़ कयाँ शािमल थे। उनका
एक गीत था : बदल दगे दुिनया क तसवीर/वी द यंग टस ऑफ़ क मीर। एम.बी.बी.एस.
के दौरान एक इं टरटेनमट क पनी बनाई ‘ पेस’, जो दूरदशन के िलए काय म भी बनाती
थी। इसने ब के िलए धारावािहक ‘किलयाँ’ बनाया िजसम मीरवायज़ क भतीजी और
मु ती सईद क नाितन एंकर थ । यह धारावािहक दस वष तक चलता रहा। फर
सरकारी नौकरी छोड़कर िपता क दवा फै टरी से जुड़े और स ती दवाएँ बनाने पर ज़ोर
दया िजसके िलए रा ीय पुर कार िमला। रोटरी लब थािपत कया ीनगर म और
उसके अ य भी बने। 2007 म येल यूिनव सटी क फ़े लोिशप िमली। वहाँ से लौटकर एक
इवट मैनेजमट क पनी बनाई िजसम आज दस से बारह हज़ार लोग लगे ए ह। फर लाइन
ोड शन शु क । पहली ि़फ म ‘रॉक टार’ क तो इि तयाज़ अली से वादा िलया क
इसम बंकर नह दखाया जाएगा। इसके बाद ‘हैदर’, ‘बजरं गी भाईजान’, ‘जब तक है
जान’ जैसी क मीर म शूट होनेवाली फ़ म क । अिमत के मज़ेदार क़ सा सुनाते ह—
मातड के आसपास का पूरा इलाक़ा क़ ज़ा हो गया था। लड मा फ़या से सीधा पंगा िलया
नह जा सकता। थानीय मुसलमान भी कु छ नह कर पा रहे थे। मने िबि मल-िबि मल
गाने के िलए िवशाल भार ाज को वहाँ शूट करने क सलाह दी। शू टंग क इजाज़त के
िलए शासन को प प च ँ ा तो सब परे शान ए और अ ततः क़ ज़े ख़ाली कराने पड़े।
अिमत अभी हाल म ही व ड इकोनॉिमक फ़ोरम के व ड लीडर भी चुने गए और संगापुर
से एक फ़े लोिशप भी िमली। ले कन जो सबसे बड़ा काम कया उ ह ने, वह दयनाथ वांचू
ट के तहत ए बुलस स वस शु करके । यह ट बाढ़ के समय शु कया गया था। दो
ए बुलस से शु कया यह का फ़ला अब 8 का हो चुका है। वह बड़े गव से बताते ह क
2016 म जब बवाल आ तो हमने 16000 लोग को सेवाएँ द और हमारी इकलौती
ए बुलस सेवा थी िजस पर एक प थर नह चला।
बात ख़ म करते ए जब अिमत कहते ह क ‘मरने से पहले कु छ तो करके जाऊँगा, इस
जगह को थोड़ा तो बेहतर बनाकर जाऊँगा’—तो मेरी नज़र दीवार पर लगी दयनाथ
वांचू जी क तसवीर पर चली गई। सा दाियक िवभाजन के गहरे होते माहौल म उनक
ह या के आरोप म जेल म ब द फ़क़तू क रहाई के िलए आपको सैकड़ लेख िमल जाएँगे
ले कन न बे के इितहास म दयनाथ वांचू का नाम क मीरी नेता और लेखक के यहाँ
बस कु छेक ांजिलय म िमलेगा तो िव थािपत क मीरी पंिडत के यहाँ उनका िज़ भी
बमुि कल िमलेगा।
उनके घर से लौटते ए जवाहर नगर के ऑटो बस टड का नाम ‘ दय नाथ वांचू बस
टड’ पढ़ते ए आँख भरी भी और उदास भी ई।

संहार क राजनीित के बीच मुि कल है उपसंहार


क मीर पर िह दी के बेहद िति त किव शमशेर बहादुर संह क एक अधूरी किवता है।
क मीर पर िलखी तमाम कताब पढ़ते ए मुझे लगता है क वे पूरी दखती ई भी अधूरी
ह और हज़ारे क प े रं ग देने के बाद भी मुझे लगता है क क मीर पर मेरा िलखा भी अधूरा
ही रह गया है। 70 लाख नाग रक का घर, दो-ढाई लाख िव थािपत लोग और दो मु क
क इसके सहारे राजनीित संचािलत करने क आकां ा ने एक तरफ़ क मीर को बेहद
उलझा दया है तो दूसरी तरफ़ वहाँ के लोग को राजनीितक प से इतना िवभािजत कर
दया है क अ सर बातचीत के दौरान वे अपना प चुनते ए के वल स य तक सीिमत
नह रह पाते। ब दूक़ का डर है ही, साथ ही अपने लोग के बीच अके ले पड़ जाने का डर भी
छोटा नह है। दि ण क मीर के एक गाँव म मुझसे बात करते ए ख़ूब उ सािहत रहे पंिडत
ि ने शाम होने के बाद लगातार फ़ोन करके नाम न लेने को कहा तो कई जगह पर
पहले मेरा नाम पूछकर मेरी पहचान साफ़ कर लेने के बाद बात ई। कई बार लगा क
अगर मेरी पहचान कसी मुि लम नाम से होती तो उ र अलग होते। तब शायद यह पढ़ते
ए आपक ित या भी अलग होती। शायद क मीर म पूरा सच कोई नह बोलता या क
क मीर म कोई पूरा सच है ही नह । आप मुि लम बि तय म जाइए, थोड़े बुज़ग लोग से
बात क िजए, ज़रा भरोसा जमने के बाद वे एक तरफ़ आपको ये बताएँगे क पंिडत के
साथ उनका र ता कतना सौहादपूण था, दूसरी तरफ़ राजनीितक तौर पर पंिडत के
िलए िशकायत भी ह गी। आप पंिडत से िमिलए, वे अपने उन मुि लम पड़ोिसय के क़ से
सुनाएँगे िजनके साथ शानदार व त गुज़ारा है और अगले ही पल िशकायत भी करगे क
1947 के बाद मुसलमान ने कै से नौक रय पर क़ ज़े कर िलये या कै से 1989-90 म उ ह
बाहर िनकाल दया गया। इन मृितय और िशकायत म अस य कु छ भी नह है ले कन
जैसा क क मीरी राजनीित को क़रीब से जाननेवाले और ऑ जवर ुप के मुख आर.के .
िम ा कहते ह, ‘न तो पंिडत का, न ही अ य समूह का भिव य दूसर को दोष देते रहने से
सँवर सकता है।’22
मसलन आज़ादी को ले ल। 1947 के बाद से ही ‘आज़ादी’ श द क मीर क राजनीित
म बेहद मह वपूण रहा है। ले कन शेख़ अ दु ला जब 1953 म स ा म आते ह तो आज़ादी
क बात करनेवाले पंिडत अमरनाथ वै णवी जैसे लोग को देश-िवरोधी बताकर जेल म
डाल दया जाता है। तब शायद उनके िलए ‘आज़ादी’ का मतलब भारत के साथ होना हो
गया था। ले कन जब भारत सरकार से अस तु होते ह तो एक बार फर आज़ादी क बात
करने लगते ह और उनके िसपहसालार िमज़ा अफ़ज़ल बेग़ क सरपर ती म लेिबसाइट
ं ट बनता है जो के वल आज़ादी क बात नह करता बि क पा क तान के ित प झुकाव
रखता है। मोइउ ीन कारा जब मंि पद नह पाते तो अचानक पा क तान समथक हो जाते
ह और पॉिल टकल कॉ स बना लेते ह, ले कन 1977 म अचानक उसे छोड़कर जनता
पाट के साथ हो जाते ह! शेख़ इि दरा गांधी से समझौता कर लेने के बाद लेिबसाइट क
माँग भूल जाते ह, ं ट भंग करते ह और िमज़ा साहब ड टिबन म डाल दये जाते ह।
क़ सा है क िमज़ा साहब के बीमार पड़ने पर शेख़ जब उनसे िमलने गए तो वह नीम-
बेहोशी क हालत म थे। शेख़ ने पूछा—मुझे पहचाना? िमज़ा बोले—आपको जब 45 बरस
म न पहचान पाया तो अब या पहचानूँगा! 1989 क लड़ाई शु ई िह दु तान और
पा क तान से आज़ादी क माँग के साथ। कु छ दन म आज़ादी माँगनेवाले या तो मार दये
गए या फर जेल म चले गए और नारा हो गया—क मीर बनेगा पा क तान! गीलानी
साहब एक से अिधक बार कह चुके ह क आज़ादी का मतलब उनके िलए प क तान म
िवलय है। ‘आउटलुक’ का एक सव कहता है क यादातर क मीरी िह दु तान और
पा क तान, दोन से आज़ादी चाहते ह ले कन गीलानी क मीर म सबसे मक़बूल नेता ह
और बुरहान वानी से िन कू तक जो नई पौध आई है आतंक क , वह उसी िहज़बुल
मुजािहदीन के बैनर तले, िजसने नारा दया था—क मीर बनेगा पा क तान! बताइए,
आप कस पर भरोसा करगे?
स ाई यह क सब सच अधूरे ह। क मीरी जानते ह क न िह दु तान उ ह आज़ाद रहने
देगा, न पा क तान। यह भी क पा क तान के साथ जाकर भी कु छ नह िमलनेवाला।
िगलानी के िलए यह फ़ायदेम द हो सकता है, जमा’त के उन नेता के िलए भी िज ह
सऊदी और पा क तान से लगातार पैसे िमलते रहे ह ले कन आम क मीर के िलए आज़ादी
एक यूटोिपया है, पा क तान एक िड टोिपया और सेना के दमन तथा रा य और के
सरकार क लगातार ग़लत नीितय से उपजा ग़ सा, अस तोष एक ऐसा यथाथ—िजसने
इसे ज म दया है। अल फ़तह से रयत तक का सफ़र करनेवाले फज़ल हक़ क़ु रै शी क
कहानी अपने-आपम इस िवड बना का जीता-जागता उदाहरण है। वह उन पहले लोग म
से थे िज ह ने साठ के दशक म ब दूक़ क राह अपनाई और अल फ़तह म शािमल ए। टेट
बक क िव िव ालय शाखा लूटने के यास म 23 लोग के साथ िगर तार ए और फर
जब पुनवास आ तो िश ा िवभाग म नौकरी िमली। न बे के दशक म फर आग लगी तो
रयत के नरमपंथी धड़े म शािमल हो गए। अटल िबहारी बाजपेयी के समय शाि त
यास शु ए तो उसम बढ़-चढ़कर िह सा िलया। अब भी उनक बैठक म अटल िबहारी
बाजपेयी और रयत के दूसरे नेता के साथ एक फ़ोटो लगी है। फर िचद बरम के समय
भी िहज़बुल और सरकार के बीच शाि त यास म स य रहे। एक मैच आ के ट का—
िहज़बुल के लोग और सेना के लोग के बीच। नतीजा यह क उन ताक़त के कोप का
भाजन बने जो यह नह चाहती थ । गोली मारी गई, जान बच गई, ले कन शरीर का एक
िह सा लकवा त हो गया। इस िवड बना के कई चेहरे ह और सब बदसूरत। कभी रयत
के साथ ख़शी-ख़शी फ़ोटो खंचाने वाले बाजपेयी जब स ा से बाहर ए तो मनमोहन संह
के शाि त यास पर हमला करते ए उ ह ने मनमोहन संह को िलखे प म आ यजनक
प से तीन आरोप लगाये : पहला, शाि त- या ब त यादा क मीर-के ि त हो गई है;
दूसरा, यह आतंकवाद पर ख़ामोश है और तीसरा रयत को मह व दया जा रहा है!23
ऐसे ही शाि त यास के एक और स य समथक अ दुल ग़नी लोन क जब ह या कर दी
गई, तो अमे रक से े टरी ऑफ़ टेट कॉिलन पॉवेल ने प श द म कहा क ‘हालाँ क
कसी ने उनक ह या का िज़ मा नह िलया है ले कन यह प है क उनके ह यारे उनम से
ही ह जो नह चाहते क क मीर सम या का शाि तपूण समाधान न हो। 2 जनवरी, 2011
को िवभािजत रयत के नरमपंथी धड़े के मु य व ा अ दुल ग़नी ब ने एक काय म म
वीकार कया क मीरवायज़ मौलवी फ़ा क़, अ दुल ग़नी लोन और जे.के .एल.एफ़. के
िवचारक ो. अ दुल ग़नी वानी क ह या भारतीय सेना ने नह बि क कसी अ दर के
ि ने क थी। क मीर आ दोलन म बुि जीिवय क भूिमका पर आयोिजत इस
सेमीनार म उ ह ने कहा, ‘हमने अपने बुि जीिवय को मार डाला। जहाँ भी हम कोई
बुि जीवी िमला, हमने उसे मार डाला।’24
फज़ल-हक़ अब िब तर तक महदूद ह और चुपचाप सोनी टीवी पर सी.आई.डी. देखते
रहते ह। जब म िमला तो कु छ दन पहले उनक सुर ा म लगे पुिलसकम क ब दूक़ छीन
ली गई थी। अभी जब क मीर के कु छ नेता क सुर ा हटाई गई थी तो उसम उनका भी
नाम था। मने पूछा उनसे आज़ादी का मतलब तो हँसकर बोले—कोई ऐसा समाधान
िजसम क मीरी, िह दु तानी और पा क तानी, तीन ख़श रह और तीन को लगे, इं साफ़
आ है।
इं साफ़ एक ऐसी चीज़ है िजसके मुति लक़ क मीर के हर प को लगता है क उसके साथ
धोखा आ है। पा क तान को लगता है क एकदम सीमा से लगे मुि लम ब ल इलाक़े को
न देकर माउं टबेटन से लेकर ह र संह और यू.एन.ओ. तक ने उसके साथ नाइं साफ़ क है।
िह दु तान को लगता है क इतने साल तक इतना ख़च करने के बावजूद क मीरी उसके
साथ एक वर म नह खड़े होते तो यह नाइं साफ़ है। महाराजा के िवलय-प पर ह ता र
के बाद भी क मीर के भारत का िह सा होने पर सवाल उठना नाइं साफ़ है। क मीरी
मुसलमान को लगता है क जनमत-सं ह और वाय ता का वादा न िनभाकर, लोकतं
को िनयंि त रखकर उसके साथ नाइं साफ़ क गई है और सवाल उठाने पर सेना से ब दूक़
चलवाकर भी। शेख़ को उ भर लगता रहा क नाइं साफ़ ई है उनके साथ। फ़ा क़ को
लगता ही है क िबना कसी संशय के ितरं गा फहराने के बावजूद उनके साथ नाइं साफ़
ई। बाहर चले गए पंिडत को लगता है क हमेशा िह दु तान के साथ खड़े रहने के
बावजूद न बे म उ ह सुर ा न दलवा पाना नाइं साफ़ है। क मीर म रह रहे पंिडत को
लगता है क उन मुि कल हालात म भी क मीर न छोड़ने के बावजूद सरकार का उन पर
यान न दया जाना एक नाइं साफ़ है।
तो नाइं साफ़ क मीर के राजनीितक-सामािजक िड कोस का एक अिनवाय श द
बनता गया है और देख तो सब अपनी-अपनी जगह सही ह और देख तो सारा मामला
अपने-अपने परसे शन का है। इन सबके बीच एक तरफ़ दोन समुदाय के बीच अिव ास
लगातार बढ़ता चला गया है तो दूसरी तरफ़ क मीर से बड़े पैमाने पर िव थापन के बाद
अलग-अलग शहर म बसते जाने और ापक भारतीय िह दू समाज म घुलते-िमलते जाने
से एक सां कृ ितक समुदाय के प म क मीरी पंिडत समाज का अि त व ही समा होते
जाने का संकट उ प हो गया है।
इन सबके बीच ल बे समय से 370 हटाने को सम या का समाधान बताने वाले
दि णपंथ ने संसद म अपने चंड ब मत का इ तेमाल करते ए यामा साद मुखज का
सपना पूरा तो कर दया है ले कन इन पंि य के िलखे जाने तक क मीर म क यू जैसे
हालात ह, इं टरनेट सेवाएँ ब द ह और िछटपुट िवरोध- दशन तथा सै य कायवािहय के
बीच प क तान से आतंकवा दय के क मीर म ताज़ा घुसपैठ क ख़बर 25 के साथ अमे रक
रा पित प क म य थता का ताव इस िवड बना को एक लैक कॉमेडी म बदल रहा
है या क एक अभूतपूव ेजेडी म, यह तो समय ही बताएगा। हाँ, इतना तय है क चाहे
िव थािपत पंिडत क वापसी हो या फर वहाँ रह रहे पंिडत , दरअसल हर क मीरी का
एक बेहतर भिव य िसफ एक शाि तपूण और लोकतांि क क मीर म ही हो सकता है,
िजसक उ मीद फ़लहाल ब त धुँधली ह।
[यहाँ उ धृत सभी सा ा कार अ ैल-2018, नव बर-2018 और अ टू बर-2019 क
क मीर-या ा के दौरान रकॉड कये गए ह। डॉ. जगत मोिहनी का व
अलग-अलग जगह पर छपे उनके सा ा कार से िलया गया है।]

_______________
* पनुन क मीर का अथ है—‘हमारा क मीर’। िव थािपत पंिडत का यह संगठन अपने िलए एक अलग होमलड क माँग
करता है। िव तार के िलए देख—https://panunkashmir.org।
* नाम उनके अनुरोध पर बदल दया गया है।
* क मीर म िशवराि के दो दन या एक दन पहले फा गुन कृ ण चतुदशी को हेराथ यानी हर राि मनाई जाती है।
* देख, http://kashmiris-in-exile.blogspot.com/2018/04/190/90-kashmiri-pandit-fled.html?m=1 (आिखरी
बार 5/11/2019 को देखा गया)
स दभ
1. देख, पेज 60, क मीर : द अनटो ड टोरी, मरा क़ु रै शी, पि वन बु स, 2004
2. देख, https://www.nytimes.com/1992/12/31/opinion/l-in-india-misery-and-corruption-fuel-
violence-kashmiri-activist-dead-160092.html (20 िसत बर, 2019 को आिख़री बार देखा गया)
3. देख, पेज 132-34, द यूमन राइ स ाइिसस इन क मीर : अ पैटन ऑफ़ इ यूिनटी, एिशया वाच, अ िडिवजन
ऑफ़ यूमन राइ स वाच, जून, 1993
4. देख, पेज 160, द मेनी फ़े सेज़ ऑफ़ क मीरी नेशनिल म, नि दता ह सर, पी कं ग टाइगस, द ली, 2015
5. देख, https://www.thehindu.com/news/national/other-states/jk-separatist-leader-completes-23-
years-in-jail/article8199339|ece
6. देख, पेज, क मीर : द लड ऑफ़ र ेट, मूसा रज़ा, सी ने ट, चे ई, 2019
7. देख, https://epaper|telegraphindia.com/imageview_286959_154110207_4_71_17-08-
2019_1_i_1_sf.html (20 िसत बर, 2019 को आिख़री बार देखा गया)
8. देख , ए देजोलेशन का ड पीस (स पादक : अतहर िजया और जावेद इक़बाल बट) म मोना भान का लेख ऑफ़
स एंड रे िस टस, हापर कॉिल स, नोएडा, 2019
9. देख, https://pdfslide|us/documents/mn-tickoo-on-migration.html (20 िसत बर, 2019 को आिख़री बार
देखा गया)
10. देख, https://www.thehindubusinessline.com/todays-paper/tp-opinion/article28925079|ece# (20
िसत बर, 2019 को आिख़री बार देखा गया)
11. देख, 7 अग त, 2014 के क मीर रीडर म छपी रपोट के .पी. फे िमली रट स होम आ टर 26 इयस, ओपस ेप
कू ल इन ीनगर
12. देख, https://www.business-standard.com/article/pti-stories/kashmiri-pandit-trader-returns-to-
valley-after-29-years-says-no-place-like-kashmir-119050100871_1.html (20 िसत बर, 2019 को
आिख़री बार देखा गया)
13. देख, द वायर म 18 िसत बर, 2019 को छपा किपल काक का सा ा कार (आिख़री बार 14 अ टू बर को देखा
गया)
14. https://anantnag|nic.in/history/ (आिख़री बार 14 अ टू बर को देखा गया)
15. https://kashmirwatch.com/anantnag-islamabad-actual-name-south-kashmir-district/ (आिख़री बार
14 अ टू बर को देखा गया)
16. देख, https://www.mapsofindia.com/assemblypolls/jammu-kashmir/habbakadal.html (20 िसत बर,
2019 को आिख़री बार देखा गया)
17. देख https://www.indiatoday.in/magazine/investigation/story/19930228-damaging-lies-755842-
1993-02-28 (20 िसत बर, 2019 को आिख़री बार देखा गया)
18. देख, पेज 245-247, क मीर : ए पोिज़ग द िमथ िबहाइं ड द नैरे टव, ख़ािलद बशीर अहमद, सेज पि लके शन
इं िडया ाइवेट िलिमटेड, द ली, 2017
19. देख, पेज 297, पैराडाइज़ एट वार, राधा कु मार, अलेफ़ बुक क पनी, द ली, 2018
20. देख , एिपलाग के 1 दस बर, 2009 के अंक म कािशत लेख अंडर ट डंग द अमरनाथ ाइन लड कं ोवस ,
स दीप संह
21. देख,े पेज 2, क मीरी पंिड स : ॉ लम एंड परसे शन, स पादक : अवंित भाटी, द ली, 2015
22. देख,े पेज 5, क मीरी पंिड स : ॉ लम एंड जगमोहन परसे शन (स पादक : अवंित भाटी) म आर.के . िम ा का
लेख ि लय रं ग द माइनफ़ ड ऑफ़ िड ट, पा, द ली, 2015
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काल- म
िमथक क बात कर तो क हण 1184 ईसापूव से शु आत करते ह। ले कन आम तौर पर
इितहासकार क मा यता है क क मीर का ात और िव सनीय इितहास बाद के दौर
का है जहाँ से वह प ितिथयाँ देना शु करते ह। सुिवधा के िलए हम िजयालाल कलाम
क मा यता वीकार करते ए काक ट वंश (627-753 ईसवी) से ात और िनि त
इितहास मान ल तो अब तक क अविध लगभग डेढ़ हजार वष क ई। कमोबेश हर जगह
क मीर म वै दक धम क थापना और इस तरह ा ण के वेश का समय छठी से
आठव शता दी का माना गया है। यह कताब इसी अविध म क मीर म ा ण के बसने
और िबखरने क कहानी है। हालाँ क इसके पहले क कथा भी उपल ध ोत के सहारे
कही गई है िजसम बौ से लेकर शैव धम क थापना तक क कथा शािमल है।
छठी से आठव शता दी : बौ धम का पतन, वै दक धम का वच व थािपत, ा ण का वेश, चातुव य व था
थािपत, नीलमत पुराण का लेखन
510 ईसवी : ण स ाट िमिहरकु ल का शासन, गांधार से ा ण का आगमन
627-753 ईसवी : काक ट वंश, लिलता द य के काल (725 से 761 ईसवी) म अि गु गु सिहत अनेक िव ान का देश
के अलग-अलग िह स से क मीर म आगमन
635 ईसवी : बौ या ी वेनसांग का आगमन
950-960 ईसवी : अिभनव गु का ज म। यह दौर क मीर म शैव धम के बौि क और सां कृ ितक भाव के उ ज़ का था
1148-1150 : क हण ारा राजतरं िगणी का लेखन
1128-1155 : जयिस हा का शासनकाल, िह दू राजा के पतन के बीच आिख़री शि शाली िह दू राजा
1212-1235 : राजदेव के काल म ा ण पर भयावह अ याचार, ‘ना भ ोहम’ (म ा ण नह )ँ के नारे गूँजे
1320 : आ मणकारी जु चू का अ याचार और राजा सहदेव का पलायन
6 अ टू बर, 1320 : बौ रं चन का क मीर क स ा पर क़ ज़ा। कोटा रानी महारानी बन और शाहमीर मं ी। रं चन
धम-प रवतन कर सुलतान सद ीन बना
1323 : रं चन क मृ यु, उदयनदेव का रा यारोहण, कोटा रानी से िववाह
1338 : उदायनदेव क मृ यु, कोटा रानी और शाहमीर म स ा-संघष, शाहमीर का ग ी पर क़ ज़ा और शाहमीरी क
थापना
1373-1389 : सुलतान क़ु तुबु ीन के शासनकाल म शाह हमदानी का आगमन, पहली खानकाह क थापना, चम कार
क ितयोिगता से धम-प रवतन के यास और राजस ा का साथ, ा ण म अस तोष और शाह हमदानी क
वापसी
1317-1320 : शैव योिगनी लल द का ज म, अपने वाख से िह दू धम म ा कु रीितय पर कड़ा हार
1377 : शेख़ नू ीन उफ़ नुंद ऋिष का ज म, ऋिष सूफ़ पर परा का आर भ, इ लामीकरण का शाि तपूण दौर
1389-1420 : सुलतान िसक दर का रा यारोहण, मीर हमदानी का आगमन, सुहा भ का धम-प रवतन, मि दर के
वंस और ज़बरन धम-प रवतन का दौर, ा ण के भाव का ास और सैयद का दरबार म दबदबा
1420–1470 : सुलतान ज़ैनुल आबदीन का शासनकाल, क मीर का अि तम वणयुग, ा ण का दरबार म पुन : वेश,
कारकू न वग का उदय, जोनाराज ारा राजतरं िगणी के म म राजावलीपतक का लेखन। ह तिश प के उ ोग का
िवकास
1477 : शमसु ीन इराक़ के आगमन के साथ क मीर म िशया स दाय क थापना
1470-1561 : शाहमीरी का पतन। िशया-सु ी संघष। ज़ैनुल आबदीन के समय का सा दाियक स ाव लगभग न
1561-1586 : चक सा ा य, ा ण मु य धारा से लगभग बाहर
1586-1753 : क मीर म मुग़ल शासन का आिधप य, पंिडत क दरबार म वापसी और स ा-संघष, जिज़या समा ,
राज व िवभाग म धीरे -धीरे दबदबा, मैदानी इलाक़ म नौकरी क तलाश म िव थापन। मुग़ल दरबार के साथ-साथ
अलग-अलग रजवाड़ म वेश
1719-1748 : मुह मद शाह के दौर म क मीर से आए राजा जयराम भान के आवेदन पर क मीरी ा ण के िलए
‘क मीरी पंिडत’ स बोधन का आदेश
1624-1718 : पा भवानी का ज म, लल द क पर परा क शैव योिगनी
1753-1820 : अफ़ग़ान का क़ ज़ा, भारी लूट और अ याचार, राज व िवभाग म पंिडत का क़ ज़ा बरक़रार ले कन आम
िह दू और मुसलमान उ पीड़न और लूट के िशकार, धर प रवार मह वपूण होकर उभरा, कै लाश धर वज़ीर बने, बीरबल
धर के बुलावे पर िसख महाराजा रणजीत संह का हमला
1788-92 : पंिडत कविय ी अ नमाल का ज म, ह बा ख़ातून क पर परा म लोल िलखने वाल आिख़री किव
1824-1846 : िसख सा ा य थािपत, भारी लूट और अ याचार, राज व िवभाग म पंिडत का क़ ज़ा बरक़रार ले कन
आम िह दू और मुसलमान उ पीड़न और लूट के िशकार, शाल-उ ोग का पतन, बीरबल धर क िगर तारी और गणेश जू
धर का दबदबा, लाहौर दरबार म पंिडत का वेश और दबदबा, ि टश भारत के अनेक रजवाड़ म पंिडत ऊँचे पद तक
प च
ँ े; लखनऊ, इलहाबाद, कानपुर सिहत कई जगह पर क मीरी पंिडत बसे और द ली के बाज़ार सीताराम म
क मीरी पंिडत क बसाहट
1828 : द ली के ‘ द ली कॉलेज’ म अं ेज़ी क पढ़ाई शु , क मीरी पंिडत का वेश
1831 : द ली कॉलेज के पहले बीच के छा मोहनलाल ज़ शी, क छ के राजा के मुलािजम ए, िवदेश-या ा करनेवाले
पहले क मीरी पंिडत
1839 : महाराजा रणजीत संह क मृ यु और पंजाब म स ा संघष
1846 : सोबरांव के यु म अं ेज़ के हाथ िसख सेना परािजत, 16 माच को अमृतसर समझौते के तहत पचह र लाख
पय के बदले ज मू, क मीर, िगलिगट, बाि ट तान, पुंछ, ल ाख का े डोगरा शासक गुलाब संह के आिधप य म;
आधुिनक ज मू और क मीर रा य क थापना। दरबार के उ पद पर पंिडत क जगह पंजािबय और डोगरा का
क़ ज़ा ले कन राज व िवभाग के िनचले पद पर दबदबा जारी
1857 : जनिव ोह के दमन म डोगरा शासन का अं ेज़ को समथन
1865 : शॉल-उ ोग का पतन जारी, िश ु बुनकर का दाग़शाली िवभाग के मुख पंिडत राजाकाक धर के िख़लाफ़
िव ोह, भारी दमन
1877-79 : भयावह अकाल, एक भी पंिडत िशकार नह जब क मुि लम आबादी का भारी य
1880 : क मीर म पहला काॅ वट कू ल टंडल िब को कू ल (पूव नाम ि यन िमशन कू ल) थािपत
1890 : दाग़शाली िवभाग ब द, शॉल-उ ोग का पूरी तरह पतन
1891 : तीसरे डोगरा शासक ताप संह के रा यारोहण के साथ ही रा य म ि टश रे िजडसी क थापना
1894 : हरगोपाल कौल ारा सनातन धम सभा क थापना
1910 : घाटी म आयसमाज का वेश। आयकु मार सभा थािपत
1912 : क मीरी पंिडत ारा नौक रय म पंजािबय और अ य बाहरी लोग के भु व के िख़लाफ़ क मीर क मी रय के
िलए आ दोलन के फल व प पहली बार रा य नाग रक क प रभाषा तय क गई ले कन ढु लमुल प रभाषा से पंिडत
स तु नह और आ दोलन जारी
1919-24 : िख़लाफ़त आ दोलन म पंिडत क भागीदारी, मांस क बढ़ी क़ मत के िख़लाफ़ आ दोलन
31 जनवरी, 1927 : महाराजा ह र संह के शासनकाल म मज़बूत रा य नाग रकता क़ानून बना िजसम बाहरी लोग के
क मीर म नौकरी और ज़मीन ख़रीदने के अिधकार ख़ म कर दये गए, बाद म यह 35 ए का आधार बना
1929 : मुसलमान ारा नौक रय म भागीदारी क माँग
1930 : क मीरी पंिडत के बीच जारी समाज-सुधार आ दोलन के तहत महाराजा से िवधवा िववाह क अनुमित क
माँग, क यप ब धु इस आ दोलन के मु य नेता के प म उभरे , इसी वष फ़तेह कदल म युवा मुि लम छा ारा री डंग
म पाट का गठन
1931 : खुतबा पढ़ने से रोकने और क़ु रआन के अपमान के सवाल पर हंसक आ दोलन, दमन और दंगे
12 नव बर, 1931 : मुसलमान क माँग पर िवचार करने के िलए लांसी आयोग का गठन
12 जनवरी, 1932 : िह दु ारा लांसी आयोग का बिह कार
अ टू बर, 1932 : मुि लम कां स का गठन, इसी साल पंिडत कां स का भी गठन आ
22 माच, 1932 : लांसी आयोग क रपोट जारी। नौक रय म मुसलमान क भागीदारी को लेकर सं तुितयाँ, पंिडत
ारा ‘रोटी आ दोलन’
1935 : शेख़ अ दु ला और ेमनाथ बज़ाज़ ने हमदद नामक अखबार िनकाला
1936 : िज मेदार सरकार का आ दोलन शु । िह दू, मुि लम तथा िसख क भागीदारी
1936-38 : ज मू एंड क मीर यूथ लीग, कसान और मज़दूर सभा, कां ेस पाट और िह दू ो ेिसव पाट क थापना।
साझा संघष क शु आत
1939 : मुि लम कां स के अिधवेशन म इसका नाम बदलकर ‘नेशनल कां स’ कया गया. सभी धम के िलए वेश
खुला, सरदार बुध संह, क यप ब धु, िजयालाल कलाम और ेमनाथ बज़ाज़ जैसे लोग जुड़,े इसी साल भाषा-िववाद से
सा दाियक तनातनी भी
30 मई, 1940 : जवाहरलाल नेह क क मीर-या ा
1944 : िज ा क क मीर-या ा, शेख़ अ दु ला से िववाद
जून, 1945 : रामचं काक डोगरा राज के पहले क मीरी-भाषी पंिडत धानमं ी बने
1946 : ‘क मीर छोड़ो’ आ दोलन क शु आत, शेख़ अ दु ला के साथ क यप ब धु और सरदार बुध संह सिहत अनेक
लोग िगर तार
18 जून, 1947 : माउं टबेटन क ीनगर या ा, ह र संह िमलने से टालमटोल करते रहे
1 अग त, 1947 : गाँधी क क मीर-या ा और थोड़े समय बाद रामचं काक क बख़ा तगी
15 अग त, 1947 : बँटवारा और आज़ादी। महाराजा ह र संह का कसी भी देश से िमलने से इनकार
अ टू बर, 1947-1948 : पा क तान ारा क़बायली हमले क आड़ म क मीर पर क़ ज़े का यास, िह दु और
मुसलमान का क़बायली हमले का साझा मुक़ाबला। महाराजा का ीनगर से पलायन और भारत से संिध-प पर
ह ता र, शेख़ क रहाई, भारतीय सेना का क मीर म वेश और भारत-पा क तान का पहला यु और सीजफ़ायर,
क मीर के एक िह से पर पा क तान का क़ ज़ा
20 जून, 1949 : शेख़ अ दु ला क मीर के शासक बने, इसी वष संिवधान सभा ने क मीर के िलए एक िवशेष अनु छेद
370 बनाया
1950 : शेख़ ारा ‘िबग लडेड ए टे स अबोिलशन ए ट’ (ख़ा मा-ए-चकदारी) के तहत भूिम सुधार लागू और क़ज़माफ़ ,
ज मू म इसके बाद 370 का िवरोध शु
19 जून, 1953 : यामा साद मुखज क ीनगर म दयाघात से मृ यु
9 अग त, 1953 : शेख़ क िगर तारी, क यप ब धु और क मीरी पंिडत के भी कई मुख नेता िगर तार। ब शी ग़लाम
मोह मद क मीर के धानमं ी बने
1956 : रा य क संिवधान सभा ारा रा य का संिवधान पास, उ िश ण सं थान म वेश के िलए घाटी म 70 फ़ सद
सीट मुसलमान और 30 फ़ सद सीट ग़ैर-मुसलमान के िलए तो ज मू म 70 फ़ सद सीट ग़ैर-मुसलमान तथा 30 फ़ सद
सीट मुसलमान के िलए आरि त, पंिडत ारा इसका िवरोध
1958 : शेख़ क रहाई और फर िगर तारी
18 फरवरी, 1962 : ब शी ग़लाम मोह मद का इ तीफ़ा, शमसु ीन नए धानम ी बने
27 दस बर, 1963 : मो-ए-मुक़ स क चोरी के बाद भारी बवाल। शमसु ीन क जगह सा दक़ ग़लाम मोह मद 29
फरवरी, 1964 को धानमं ी बने
1 जून, 1964 : घाटी म जनसंघ क थापना
5 अ ैल, 1964 : शेख़ अ दु ला क रहाई, नेह ने कसी समझौते क संभावना तलाशने पा क तान भेजा
27 मई, 1964 : जवाहरलाल क मृ यु, लाल बहादुर शा ी धानमं ी बने, 370 म लागातार बदलाव जारी, सा दक़ के
समय धानमं ी और सदर-ए- रयासत स बोधन समा , नेशनल कां स का कां ेस म िवलय
8 मई, 1965 : शेख़ फर िगर तार
1965 : पा क तान का आ मण, क मी रय का साथ नह िमला, ताशकं द-समझौता और लाल बहादुर शा ी क दल
का दौरा पड़ने से मृ यु
28 जुलाई, 1967 : परमे री हांडू नामक एक मिहला ारा धम-प रवतन कर िववाह करने पर घाटी म सा दाियक
तनाव
1968 : क मीर म अल फ़तेह नाम से पहला आतंकवादी संगठन बना
1 मई, 1970 : वज़ीर किमटी क अनुशंसा के आधार पर नई आर ण नीित घोिषत िजसके तहत दिलत को 8 ितशत
और िपछड़ को 42 ितशत (िजसम 2 ितशत ल ाख के िलए था) आर ण, ले कन पंिडत अस तु
11 दस बर, 1971 : सा दक़ क मृ यु, सैयद मीर क़ािसम नये मु यमं ी बने
5 जून, 1972 : शेख़ क रहाई
13 नव बर, 1974 : द ली समझौता; 25 फ़रवरी, 1975 को शेख़ फर क मीर म मु यमं ी बने, बाद म कां ेस का
समथन वापस होने पर चुनाव
12 जून, 1975 : क मीरी राजनीित के चाण य डी.पी. धर क मृ यु
9 जुलाई, 1977 : िवधान सभा चुनाव म भारी जीत के बाद शेख़ मु यमं ी बने, जमात-ए-इ लामी पर ितबंध और
उसके कायकता का स त दमन
9 माच, 1981 : अनंतनाग म जमात के कायकता ारा शराब क दुकान क लूट, दुकान अिधकतर पंिडत क थ ।
8 िसत बर, 1982 : शेख़ अ दु ला क मृ यु, फ़ा क़ अ दु ला मु यमं ी बने
10 फ़रवरी, 1984 : जि टस नीलकांत गंजू ारा मक़बूल भ को िवमान अपहरण और ह या के आरोप म फांसी क सज़ा
2 जुलाई, 1984 : रा यपाल जगमोहन ारा फ़ा क़ क सरकार बख़ा त, कां ेस के समथन से गुल मोह मद शाह
मु यमं ी बने, अफ़रातफ़री का माहौल
31 अ टू बर, 1984 : इं दरा गांधी क ह या, राजीव गाँधी नये धानमं ी बने
फरवरी, 1986 : अयो या म राम मि दर का ताला खुलने क घटना के बाद अन तनाग िज़ले म सा दाियक हंसा
7 नव बर, 1986 : कां ेस के साथ चुनाव लड़कर फ़ा क़ दुबारा मु यमं ी बने, ले कन चुनाव म भारी धांधली का
आरोप और अस तोष
1988-89 : घाटी म अस तोष, कई आ दोलन, िछटपुट हंसक घटनाएँ, पा क तान ारा क मीरी लड़क का िश ण
21 अग त, 1989 : क मीर म पहली राजनैितक ह या, नेशनल कां स के मोह मद यूसुफ हलवाई को गोली मारी गई
14 िसत बर, 1989 : भाजपा नेता टीकालाल टपलू क ह या, 4 नव बर को नीलकांत गंजू क ह या, पंिडत म भय ा
2 दसंबर, 1989 : िव नाथ ताप संह के नेतृ व म क म रा ीय मोचा सरकार, मु ती मोह मद सईद गृहमं ी बने
7 दस बर, 1989 : मु ती मोह मद सईद क पु ी िबया सईद का अपहरण, घाटी म बवाल, आतंकवा दय क रहाई,
ह या का दौर जारी
18 जनवरी, 1990 : फ़ा क़ का इ तीफ़ा और जगमोहन क मीर के रा यपाल बने, भारी जुलूस, गोलीबारी, ह याएँ;
पंिडत ने बड़ी सं या म घाटी छोड़ी
1990-1997 : घाटी म भयानक अफ़रातफ़री, दोन धम के हज़ार लोग मारे गए, पंिडत का पलायन, मुि लम भी
बाहर गए
21 माच, 1997 : बडगाम के सं ामपोरा म 7 पंिडत क ह या
1998 : वंधामा म 23 पंिडत क ह या
23 माच, 2003 : पुलवामा िजले के न दीमाग म 24 पंिडत क ह या
2000 : पंिडत के िलए लै स बने और नौक रय का आवंटन
2007 : घाटी म रह रहे पंिडत ारा दशहरा उ सव क शु आत
2008 : अमरनाथ िववाद से फर सा दाियक तनाव
2011 : मनमोहन संह सरकार ारा िव थािपत पंिडत के िलए पेशल पैकेज, घाटी म रह रहे पंिडत ारा पैकेज म
िह से क माँग, 2016 म कोट का फ़ै सला हक़ म, ले कन िसख ारा टे
5 अग त, 2019 से अब तक : 370 हटाने और ज मू और क मीर को दो क शािसत देश म बाँटने का फ़ै सला, सूचना
पर बं दश, भारी मा ा म सुर ा बल तैनात, चार महीन बाद भी ितब ध जारी, सरकार का दावा क सब नामल है,
लोग का कहना क यह यू नॉमल है, मामला उ तम यायालय म।

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