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* म व तर चार युग के 70 च के बराबर माना जाता है (चतुयुगैकस या म व तरिमहो यते)। कलयुग म 4 लाख 32
हज़ार वष, ापर म इसके दुगुन,े ेता म इसके ितगुने और सतयुग म इसके चार गुना वष होते ह। इस तरह एक च म
ितरालीस लाख बीस हज़ार वष ए।
** जलो व के ज म क कहानी भी मज़ेदार है। जब इ उस झील के कनारे ड़ा कर रहे थे तो सं ह नामक दै य क
नज़र शची पर पड़ी और उसका वीयपात हो गया जो झील म िगर गया। इ और सं ह म साल भर यु चला िजसम
सं ह मारा गया। उसके वीय से ही झील म एक बालक का ज म आ िजसका नाम जलो व रखा गया। उसका लालन-
पालन नाग ने ही कया (नीलमत पुराण, ोक 74-80)।
* बौ धम म अहत उसे कहा जाता है िजसने अि त व क यथाथ कृ ित का अ त ान ा कर िलया हो और िजसे
िनवाण क ाि हो चुक हो।
स दभ
1. देख, पेज 55, क मीर : ए पोिज़ग द िमथ िबहाइं ड द नैरे टव, ख़ािलद बशीर अहमद, सेज पि लके शन इं िडया
ाइवेट िलिमटेड, द ली, 2017
2. देख, वही, पेज 117-118
3. देख, वही, पेज 122
4. देख, पेज 35-276, नीलमत पुराण, डॉ. वेद कु मार घई, ज मू एंड क मीर एके डमी ऑफ़ आट, क चर एंड
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5. देख, पेज 7, क मीर एंड इ स पीपल (स पादक : एम.के . कॉ), ए.पी.एच. पि ल शंग कॉप रे शन, नई द ली,
2004 म टी.एन. ख़ज़ांची का लेख अवर अ लए ट एंसे टस
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2004 म टी.एन. ख़ज़ांची का लेख अवर अ लए ट एंसे टस
9. देख वही, पेज 10-26
10. देख वही, पेज 37
11. देख, पेज 35-36, इं िडयन सपट लोर ऑर द नागाज़ इन िह दू लीजड एंड आट, जे.पी.एच. िवजेल, आथर
ो थेन, ल दन, 1926
12. देख, वही, पेज 230-31
13. वही, पेज 247
14. देख, पेज 299, द वैली ऑफ़ क मीर, वा टर लारस, ऑ सफोड यूिनव सटी ेस, ल दन, 1895
15. देख, पेज 11-12, क मीर : ए पोिज़ग द िमथ िबहाइं ड द नैरे टव, ख़ािलद बशीर अहमद, सेज पि लके शन
इं िडया ाइवेट िलिमटेड, द ली, 2017
16. दे ख , नीलमत पुराण : अ ीफ़ सव, डॉ. वेद कु मार घई, ी परमान द रसच इं टी ूट, ीनगर, क मीर
(http://www.koausa.org/Glimpses/NilmataPurana.html) (आिख़री बार 14/09/2019 को देखा गया)
17. देख, पेज 37-38, क मीर एंड इ स पीपल (स पादक : एम.के . कॉ), ए.पी.एच. पि ल शंग कॉप रे शन, नई
द ली, 2004 म टी.एन. ख़ज़ांची का लेख अवर अ लए ट एंसे टस
18. देख, http://koausa.org/vitasta/2001/1.3.html, पेज 9, क मीर िबहाइं ड द वेल, एम.जे. अकबर, छठा
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19. देख, पेज 42, क मीर एंड इ स पीपल (स पादक : एम.के . कॉ), ए.पी.एच. पि ल शंग कॉप रे शन, नई द ली,
2004 म टी.एन. ख़ज़ांची का लेख अवर अ लए ट एंसे टस
20. देख, पेज 3-4 और 33, अल िह ी एंड क चर ऑफ़ क मीर, सुनील च रे , एिशया टक सोसायटी, कोलकाता,
1957
21. देख, पेज 247, इं िडयन सपट लोर ऑर द नागाज़ इन िह दू लीजड एंड आट, जे.पी.एच. िवजेल, आथर ो थेन,
ल दन, 1926
22. देख, वही, पेज 248-250
23. देख, पेज 15, क मीरी िलटरे चर, ज बी. काच , ए िह ी ऑफ़ इं िडयन िलटरे चर, स पादक : जान ग डा, खंड
8, ऑटो है व ज़, िव बाडेन, 1981
24. देख, क मीर एंड इ स पीपल, स पादक : एम. के . कॉ, ए.पी.एच. पि ल शंग कॉप रे शन, नई द ली, 2004 म डॉ
बैकुंठ नाथ शगा का लेख द जेने टक एिवडस
25. देख, राजतरं िगणी, अनुवाद : ुितदेव शा ी, िबहार रा भाषा प रषद्, पटना, 2016
26. देख, पेज 38, क चरल हेरीटेज ऑफ़ क मीरी पंिड स, (सं) एस एस तोशखानी और के वा रकू म रजनीश िम
का आलेख अिभनवगु एंड द शैवाईट ेडीशन इन शारदा देश, पटागन ेस
अ याय-2
वणकाल का िमथक
िह दू राजा के काल म क मीरी ा ण
राजदेव (1212-1235) के शासनकाल म कु छ ऐसे भ ( ा ण ) ने, िज ह ने पहले उसके
रा यािभषेक म सहायता क थी ले कन बाद म उसके हाथ अपमािनत ए थे, ष ं कर खस म से
कसी को उसक जगह ग ी पर िबठाना चाहा। राज़ खुल गया और राजदेव ने ा ण के िख़लाफ़
लूट और िवनाश का च चला दया। कई ा ण मार दये गए और बाक़ि◌य को िनममता से
कु चल दया गया। हालात ऐसे क पूरा ीनगर ‘ना भ ोहम’ (म भ यानी ा ण नह )ँ क
ची कार से गूँज उठा। यह इितहास म व णत ा ण के िख़लाफ़ पहला बड़ा हमला था।1
—िजयालाल कलाम
क मीर म ा ण का वेश और
मूल िनवासी होने का दावा
क मीर म ा ण के वेश को लेकर कोई एक सव वीकृ त िस ा त नह है। जहाँ एक
तरफ़ नीलमत पुराण म व णत पौरािणक कथा को आधार बनाकर क मीर के ा ण
को क यप ऋिष से जोड़ने क कोिशश होती है तो वह दूसरी तरफ़ उस दौर के इितहास,
क मीरी भाषा और अ य ोत के सहारे क मीर म ा ण के वेश को लेकर अनुमान
लगाये गए ह। सडर, शे रं ग के हवाले से कहते ह क ‘क मीर भारत म ा ण के सबसे
पुराने घर म से एक है, यह बात िबलाशक़ कही जा सकती है। म य एिशया से भारत के
मु यमाग पर अब ि थत होने के कारण यह वाभािवक था क आई आय जाित इस
ख़ूबसूरत थान को अपने िनवास के प म चुनती और यही कारण था क इसक पहािड़य
तथा घा टय म उनक पहली बसाहट ई।’ वह जाज कै पबेल, यूगल आ द के हवाले से
भी क मीरी ा ण के म य एिशया से आए आय होने क बात करते ह।13 पंिडत आन द
कौल ने भी कई हवाल से अपनी कताब म इसी िस ा त को मा यता दी है।14 एक दावा
इजराइल के एक भटके ए क़बीले के क मीर म बस जाने का है15 यहाँ इन दाव - ितदाव
के िव तार म जाना िवषयांतर होगा ले कन उपल ध ोत के आधार पर क मीर म आय
के म य एिशया से आकर बसने क बात सबसे ता कक लगती है। हालाँ क क मीरी पंिडत
क हािलया कताब म अ सर क मीरी पंिडत के म य एिशया क जगह भारत के
िविभ थान से क मीर म जाकर बसने क बात भी क जाती है। ये दावे आय के म य
एिशया से भारत आने के दावे को ख़ा रज कर उनके मूलतः भारत के ही होने के दि णपंथी
दाव के िह सा ह और ज़ािहर है क उ ह क तज़ पर क मीर को भारतीय रा क
ापक प रिध के भीतर रखकर मूलिनवासी के दावे को सािबत करने क यह कोिशश है।
हमने िपछले अ याय म डॉ. शगा का उदाहरण देखा है16 िजसे डॉ. िशबन के . काच भी
उ धृत करते ह।17
इस स दभ म क मीर क थानीय भाषा क मीरी को भी देखा जा सकता है िजसे आम
तौर पर भारतीय-ईरानी समूह क दा दक भाषा समूह का िह सा माना जाता है। इस
समूह क भाषा क मीर, पा क तान के उ री िह स , अफ़ग़ािन तान और ईरान म बोली
जाती है।18 इस भाषा म सं कृ त, फ़ारसी तथा उदू के श द का समावेश ऐितहािसक
या म होना वाभािवक ही था ले कन यह स भव है क मूल भाषा म य एिशया से
आए आय के साथ ही आई थी। भाषायी िववेचना के आधार पर रे एक दलच प िन कष
यह िनकालते ह क शायद नाग वहाँ के ाचीनतम िनवासी ह जो ज़ा नागर (आज के
िगलिगट-बाि ट तान इलाक़े म) म रहते थे और बु शा क भाषा बोलते थे। िपशाच आय
आ मणकारी थे और वे दा दक भाषा बोलते थे। सं कृ त-भाषी आय भारत से आए थे और
चूँ क अ ततः उनका वच व थािपत आ तो उ ह ने नीलमत पुराण म अपनी महानता
थािपत क है।19
क मीर के ा ण उ र भारतीय सार वत ा ण ह। भारत म ा ण का मु य
िवभाजन—पौरािणक काल से िव य पवत शृंखला को िवभाजक रे खा मानते ए—
दि णी िवड़ तथा उ री गौड़ ा ण का है। इन दोन क फर पाँच-पाँच उप ेिणयाँ ह
िजनम से एक सार वत ा ण क है। क मीर के अलावा पंजाब के कु छ े , राज थान
और क कण े आ द म सार वत ा ण पाए जाते ह। इस आधार पर यह मा यता है क
क मीर म ये इ ह थान से आकर बसे। कु े के पास पौरािणक नदी सर वती के
कनारे बसने के कारण इनका नाम सार वत पड़ा था, जहाँ से ये िविभ थान पर गए।20
ि गेिडयर र न कौल का भी मानना है क जो आय म य एिशया से आए थे, उनका एक
बड़ा िह सा सर वती नदी के कनारे बस गया और उसी आधार पर उ ह सार वत ा ण
कहा गया। काला तर म सर वती नदी के लगभग 2000 ईसा-पूव माग बदलने और सूखते
जाने के कारण ये क मीर सिहत देश के अनेक िह स म बस गए।21 हालाँ क क मीरी
ा ण बाक़ सार वत ा ण से ख़द को अलग मानते ए अपनी उ पि िव ा क देवी
सर वती से मानते ह। इसी आधार पर जाितमाला म सार वत ा ण को क मीरी
ा ण से अलग सूिचत कया गया था।22 पहचान को लेकर सावधानी और े ताबोध
क मीरी ा ण क मह वपूण एवं चा रि क िवशेषता है।
इस तरह क मीर म ा ण के थम वेश स ब धी कोई िन या मक बात करना
स भव नह ले कन जैसा क रे कहते ह, इस बात के पया सा य ह क क मीर म दूसरी
जगह से ा ण का ब त आरि भक काल से ही लगातार वास होता रहा है और
क मीरी ा ण का एक बड़ा िह सा इ ह अ वािसय से बनता है।23 राजतरं िगणी ऐसे
संग से भरी पड़ी है िजसम राजा ने अ य े से ा ण को क मीर म आमंि त
कया और बसाया। उनके यहाँ अ हार का िज़ पहले राजा गोन द से ही शु हो जाता
है। अ हार, क हण ज़मीन या गाँव क करमु जागीर के अथ म उपयोग करते ह जो
कसी ि या धा मक सं था को दी जाती है।24 क हण ने आरि भक पौरािणक राजा
के स दभ म अ हार ारा ज़मीन दये जाने का जो वणन कया है, िवज़ेल उसे थानीय
ा ण ारा ज़मीन पर अपनी दावेदारी मज़बूत करने क कोिशश क तरह देखते ह।
हालाँ क इन दाव को वह सही नह मानते ले कन इन अ हार के नाम म अ त निहत
नाम क िववेचना से इस िन कष पर प च ँ ते ह क इनम से कु छ नाम सं कृ त के क मीर म
वेश से पहले के ह।25
अभी इसे यह छोड़ते ए हम क हण के यहाँ क मीर म देश के दूसरे िह स से ा ण
के आकर बसने के िववरण पर यान के ि त करते ह। इस स दभ म ण शासक िमिहरकु ल
का क़ सा मज़ेदार है िजसने शैव धम तो अपनाया था ले कन क हण उसके अ याचार के
कारण उसक ख़ूब लानत-मलामत करते ह। िमिहरकु ल ने अपने ज म थान गांधार से
ा ण को बुलाया था और अ हार दये थे। क हण बताते ह क अके ले िवजये र म
ा ण को एक हज़ार अ हार दये गए थे। िमिहरकु ल से अ हार वीकार करनेवाले
ा ण को िनचले दज का समझा जाता था। इसके बाद लगभग 400 ईसा-पूव के राजा
गोपा द य के समय वै दक स यता के मूल े यानी आज के पि मी उ र देश और
ह रयाणा से ा ण को लाकर क मीर म बसाए जाने का िज़ आता है िज ह खोल,
खिगका, ह द ाम, क दपुरा और सामजस वि क अ हार म दये गए। उसके आयदेश के
ा ण को गोप पवत पर गोपा मठ के िलए अ हार देने का भी िज़ आता है िजसे
आज शंकराचाय पवत के नाम से जाना जाता है। गोपा द य ारा उन ा ण के
देशिनकाले क बात भी सामने आती है जो वै दक ा ण रीितय से भटक गए थे और
लहसुन आ द का सेवन करने लगे थे। इसके बाद भी लगातार ा ण को अ हार दये
जाने का िज़ आता है। इसी म म अि तम गु राजा ारा उ ैन के एक किव मातृगु
को क मीर का सूबेदार बनाकर भेजे जाने का िज़ आता है िजसके साथ उ ैन से कई
ा ण आए थे। कारकोटा वंश के सबसे िस शासक लिलता द य मु पीड (725 से 761
ईसवी) ारा क ौज िवजय के बाद वहाँ से सं कृ त के िव ान पंिडत —भवभूित,
वा पितराज तथा अि गु —को क मीर ले आने का िज़ है। हमने देखा है क िस
क मीरी िव ान अिभनवगु इ ह अि गु के वंशज थे।
आन द कौल क मीर म लगातार अ वािसय के आने के चार कारण बताते ह। पहला
यह क क मीर ाचीन काल से ान के एक के के प म उभरा। अलब नी और
वेनसांग के हवाले से वह बताते ह क उस दौर म क मीर सं कृ त ान का सबसे मुख
के था और यहाँ आकर कु छ वष सीखे िबना कसी को सं कृ त का आिधका रक िव ान
नह माना जाता था। वाभािवक है क इनम से एक िह सा वापस लौटकर नह जाता
होगा। दूसरा कारण क मीर का पहाड़ से िघरे होने और दुगम होने के कारण िवदेशी
आ मण से सुरि त होना था। यह उसे भारी राजनीितक उथल-पुथल से बचाकर
शाि तपूण जीवन के िलए उपयु थान बनाता था। तीसरा कारण कौल चीन और म य
एिशया से क मीर के राजनीितक स ब ध को बताते ह और चौथा कारण क मीर क
धरती का उपजाऊ होना था िजसके चलते वहाँ भोजन चुर मा ा म उपल ध हो जाता
था और समृि बनी रहती थी। वह इस स ब ध म दो सं कृ त कहावत का िज़ करते ह :
1. क मीरं यश यमः त अदानम भ यमः (हम क मीर जा सकते ह जहाँ भोजन चुर
मा ा म उपल ध है) और 2. य ि धा क यपे सुलभम (क मीर म भोजन और व सुलभ
है)।26 यह या बाद तक चलती रही है। मदान क मीर के दो अ य िह दू समुदाय क
बात करते ह—बूहर और पू रब। लॉरस के हवाले से वह बताते ह क बूहर असल म पंजाब
से ापार के िलए आया ख ी समुदाय है जब क पू रब पूव पंजाब से कई सदी पहले
आकर बसे ा ण ह। मदान का कहना है क वे क मीर क पंिडत सं कृ ित म पूरी तरह से
घुल-िमल गए ह।27 िवज़ेल बताते ह क बाहर से ा ण का आना अफ़ग़ान और िसख
शासक के दौर म भी जारी रहा। डोगरा शासन क थापना से पहले आए ा ण क मीरी
ा ण क जनसं या म घुल-िमल गए और क मीरी ा ण क यह मु तिलफ़
भौगोिलक तथा न ली संरचना मूल छह गो (द ा ेय, भार ाज, पालदेव, उपम यु,
मु ल और धौ यन) के 200 गो म िव ता रत हो जाने म पाियत होती है।28
साथ ही, क मीर से ा ण का भारत के अ य थान पर पलायन भी बेहद आरि भक
काल से देखने को िमलता है। जयापीड़ के समय पथ हो चुके ा ण के क मीर से
देशिनकाले का िज़ पहले ही आया है। क हण के यहाँ एक ा ण िवजयराजा का िज़
आता है जो क मीर म भयावह संकट (गढ़दुगत) के कारण बाहर जाने क बात करते ह।
मदुरै के दि ण म प लव राजा ारा बनवाए गए ित वले र मि दर के अिभलेख म
वहाँ क मीरी ा ण के बसने का प उ लेख है। बारहव सदी के नेपाल से ा एक
पांडुिलिप म क मीरी ा ण क वहाँ उपि थित का उ लेख है तो िवजयनगर सा ा य के
एक सेनापित ारा वहाँ 60 क मीरी ा ण के बसाए जाने का िज़ आता है। क हण ने
िजन िव हण का िज़ अपने ोत के प म कया है, वे क मीर से पलाियत होकर
चालु य स ाट िव मा द य ष म् के दरबार म थे29 तो एक और सफल वासी ा ण थे
सोथल, जो बारहव सदी म देविग र (वतमान दौलताबाद) के राजा —जै पाल और
िभ लण—के दरबार म शाही दरबार के मुख— ीकणािधप—थे।30 ब त बाद तक
क मीरी ा ण के भारतीय रजवाड़ म ऊँचे पद पर होने क सूचनाएँ िमलती ह तो
मुग़लकाल और ि टश काल म भी बड़ी सं या म क मीरी ा ण के द ली, लखनऊ,
लाहौर आ द जगह पर बसने के मूल कारण रोज़गार ही रहे ह, िजस पर आगे िव तार से
बात होगी। राजा के साथ सां कृ ितक आदान- दान के प म भी क मीरी ा ण के
गुजरात, के रल और नेपाल जैसी जगह पर जाकर बसने के माण िमलते ह। इसिलए यह
एक ग़लत समझदारी है क क मीर से जो भी ा ण बाहर गए, वे के वल मुि लम शासक
के अ याचार के कारण।
िह दू राजा के काल म ा ण क
सामािजक-राजनीितक अवि थित
क मीर म ा ण का ादुभाव वाभािवक प से वहाँ बौ धम के पतन और वै दक धम
क थापना से जुड़ा आ है। इस स ब ध म क हण के उस दौर के िववरण को सावधानी से
पढ़ना ज़ री है िजसक ऐितहािसकता ामािणक नह । यहाँ क हण ने क पना का ही
सहारा नह िलया है बि क क मीर म बौ धम पर वै दक सं कृ ित क िवजय और उसके
अनु प रा य- व था के उदय क एक बानगी भी दी है। अशोक के काल के तुर त बाद
वह उसके पु जालुक का जो शासन दखाते ह, वह इसका सबसे प उदाहरण है। क हण
ने उसे शूरवीर और यायि य शैव राजा बताया है िजसने का यकु ज तक अपने शासन का
िव तार कया। उनके अनुसार, जालुक ने ीनगरी और न दी े म मशः ये और
भूतेश मि दर का िनमाण कराया तथा क मीर म शैव धम क पुन थापना क । बौ के
ित उसका रवैया आर भ म दु मनाना था, बाद म वह बौ धम के ित सिह णु हो गया
था। इस स ब ध म राजतरं िगणी के थम तरं ग के 131 से 147व ोक म एक रोचक कथा
आती है। एक बार जब जालुक िवजये र मि दर म आराधना करने जा रहा था तो रा ते म
कृ यादेवी नामक एक कमज़ोर-सी मिहला ने उससे भोजन माँगा। उसने उसे मनचाहा
भोजन देने का आ ासन दया। इस पर उस मिहला ने मनु य के मांस क इ छा ज़ािहर
क । राजा ख़द अपनी देह से मांस देने को उ त आ तो मिहला ने उसे बोिधस व का एक
प बताकर शंसा क और बौ मठ के तोड़े जाने तथा बौ पर ए अ याचार क
िशकायत क । उससे भािवत होकर राजा ने बौ िवहार के पुन नमाण का वायदा कया
और उसके ही नाम पर िवहार का नाम कृ या म रखा तथा िवहार म उस मिहला क मू त
भी थािपत क । अब आप जालुक के शासन क व था देख तो क हण के अनुसार उसम
7 मं ी ( यायाधीश, कर िवभाग के मुख, कोषा य , सेनापित, राजदूत, पुजारी और
योितषी) तथा 18 िवभाग थे जो वै दक राजा के रा य के ल ण ह। हमने देखा है क
इसी म म उसने क ौज से ा ण को क मीर म बुलाया और अ हार दये। िसफ़
ा ण को ही नह बि क चार वण के लोग को जालुक ारा क मीर म बसाए जाने का
िज़ है। असल म क हण के यहाँ क मीर के उस दौर का इितहास, िजसक ऐितहािसकता
ामािणक नह है, और नीलमत पुराण के वणन क मीर म वै दक धम क थापना का
क़ सा है। नीलमत पुराण म वै दक धम के आधार पर रा य व था क िश ा तो है ही,
साथ म ा ण को अलग-अलग अवसर पर दये जानेवाले दान के िव तृत अनुदश े भी ह।
इस तरह भारत के कसी दूसरे इलाक़े क तरह यहाँ का इितहास भी, जैसा क
िजयालाल कलाम कहते ह, ा ण- ि य गठब धन का तथा एक-दूसरे के िहत क पू त
का इितहास है।31 क मीर म ि य उस प म थे या नह , इसे लेकर अलग-अलग मत ह
ले कन यहाँ सुिवधा के िलए राजनय वग और ा ण कहा जा सकता है। एक तरफ़
राजा ने ा ण को अ हार आ द देकर समाज म िविश थान दान कया और
दूसरी तरफ़ ा ण ने राजा के प म वैचा रक और सामािजक माहौल बनाया। इस
जुगलब दी से समाज म वै दक सं कृ ित और ा णवाद का वैचा रक वच व थािपत
आ। क मीर म ा ण का सीधा मुक़ाबला था बौ धम से। किन क के शासनकाल म
जब बौ धम रा यधम बना तो ज़ािहर था क ा ण ािधकार पर इसका असर पड़ता।
अिभम यु के शासनकाल म नागाजुन ने न के वल बड़ी सं या म लोग को बौ धम क
दी ा दी बि क ा ण को शा ाथ म परािजत भी कया। इसक प रणित ई एक
गृहयु म िजसम ा ण का नेतृ व कया च ाचाय ने। इस गृहयु म ा ण ने नागा
के साथ िमलकर बौ पर भयावह अ याचार कये। ले कन क मीर म बौ धम का भाव
इतनी आसानी से समा नह हो सकता था और इसक कोिशश लगातार जारी रह । नर
थम नामक राजा के दौर म क हण ने हज़ार बौ मठ को जलाने और बौ मठ से
स ब गाँव को ा ण को दये जाने का िज़ कया है। इसके बाद िमिहरकु ल और
गोपा द य जैसे राजा का समय आते-आते क मीर म वै दक धम का भाव बढ़ता गया
और पाँचव -छठी शता दी आते-आते हम वहाँ सामािजक-राजनीितक व था पर पूरी
तरह वै दक धम का भाव थािपत होते ए देखते ह।
वाभािवक था क बौ धम को ित थािपत करके घाटी म थािपत नई सामािजक-
राजनीितक व था म ा ण का उ तर थान होता। जैसा क रे कहते ह—िनि त तौर
पर ा ण क मीर म सबसे अिधक स मािनत और िवशेषािधकार- ा जाित थी।32
क मीर के सबसे िति त राजा काक ट वंश के लिलता द य के दरबार म िम शमन
नामक ा ण ऊँचे पद पर थे तो जयापीड़ के मं ी देवशमन थे और दामोदरगु उनके
सभासद थे। फा गुन भ ेमगु के दरबार म मं ी थे तो क हण के िपता च पक हष के
दरबार म उ पद थ थे। राजतरं िगणी म एक ा ण राजा यश कर (939-948 ईसवी) का
िज़ आता है तो क मीर के इितहास म िविश थान रखनेवाली रानी द ा भी काबुल के
ा ण शाही प रवार क थ ।33 उदाहरण क भीड़ लगाये िबना कहा जा सकता है क
िह दू राजा के काल म दरबार म ा ण का दबदबा था और इसिलए सामािजक-
आ थक जीवन म उनके िविश थान वाभािवक था। क हण न के वल बाहर से आकर
बसनेवाले बि क िश ा के िलए क मीर आनेवाले ा ण के िनवास आ द के िलए भी
राजा ारा अ हार दये जाने का उ लेख करते ह। इसके अलावा राजभवन के अनु ान
तथा धा मक सं कार के िलए जो ा ण िनयु थे, वे भी मूलतः उ वग म ही शािमल
थे। ा ण के सामािजक मह व का अ दाज़ा उनके िलए उपयोग कये जानेवाले िवशेषण
से लगाया जा सकता है। िवज़ेल िविभ ोत से इन िवशेषण का उ लेख करते ह—िव ,
ि ज, ि जनम, अ जनम, भूिमदेव, वसुधादेव आ द।34 इस सामािजक अवि थित का लाभ
उठाकर ा ण ने िश ा-दी ा को पूरा समय दया और उ लेखनीय उपलि ध भी हािसल
क । साथ ही क मीर के उस दौर म सं कृ त सािह य के सृजन का उ कष देखा जा सकता है।
सातव सदी म भीम भ , दामोदर गु , आठव सदी म ीर वामी, र ाकर, व लभ देव
(िज ह ने कािलदास क अिभनव शांकुतलम् का भा य िलखा); नौव सदी म म मट,
ेमे , सोमदेव से लेकर दसव सदी के िम हण, जय थ और यारहव सदी के क हण जैसे
सं कृ त के िव ान किवय -भा यकार क एक ल बी पर परा है, ले कन जैसा क हमने
पहले भी देखा है, थानीय भाषा के ंथ का कह कोई िज़ नह िमलता।
यहाँ ककर क मीर म िवकिसत शैव धम क थोड़ी चचा समीचीन होगी।
सामािजक संरचना
यहाँ त कालीन क मीर क सामािजक संरचना के बारे म थोड़ा समझ लेना बेहतर होगा।
राजतरं िगणी म कई और जाितय का िज़ है िजनम डोम (या डो ब), िनषाद, वपाक,
चांडाल, करात और कै वत जैसी किथत िनचली जाितय के साथ काय थ और डामर
जाितय का उ लेख आता है। रे िनषाद को क मीर के मूलिनवासी मानते ह। ये िशकार,
मछली पकड़ने और नाव चलाने का काम कया करते थे। करात ित बती-बम मूल के थे
और जंगल म रहकर िशकार आ द कया करते थे। वेनसांग ने अपने सं मरण म क मीर
म ाचीन काल से रहते चले आ रहे क -लो-तू नामक एक जाित का िज़ कया है जो
िनचली जाित के थे और बौ के िख़लाफ़ थे। रे इसे करात का िज़ ही मानते ह। डो ब
जाित के पेशे के बारे म कोई िन कष िनकालना मुि कल है। क हण ने एक जगह डो ब
लोग के िशकार करने का िज़ कया है तो कई जगह पर डो ब गायक क चचा है। अल
ब नी ने भी उ ह बाँसुरीवादक और गायक बताया है।41 राजतरं िगणी म च वमन (924-
935 ईसवी) के डो ब जाित के रं गा क दो बे टय —हा सी और नागलता—से शादी का
िज़ आता है। डामर साम त ने रानी का बिह कार कया और अ ततः च वमन क ह या
तब कर दी गई जब वह हा सी के क के शौचालय म था। क हण ने िलखा है क उसके
शव के साथ दु वहार कया गया और उसक रािनय ने मरने से पहले उसके घुटने तोड़
देने के िलए उकसाया। इस संग म क हण ने वपाक और डो ब को समानाथ के प म
योग कया है। वपाक कु का मांस खानेवाली जाित को कहा जाता था तो ज़ािहर है
क उनक जाित नीची मानी जाती थी। चांडाल एक और िनचली जाित थी जो यु क
जाित के प म जानी जाती है। उ ह एक ू र और भयावह यो ा के प म िचि त कया
गया है जो राजा के अंगर क क भूिमका िनभाते थे तथा कई जगह उनका ष ं के तहत
िवरोिधय के ह यार के प म भी िज़ आया है। रे बताते ह क भारत के अ य इलाक़ के
िवपरीत क मीर म ा ण और िन जाितय के बीच म य जाितय का िवकास नह
आ था।42 हालाँ क क हण के यहाँ दो समुदाय का उ लेख बार-बार आता है—पहला,
डामर और दूसरा, काय थ।
ाचीन क मीर म भी अ य इलाक़ क ही तरह उ पादन तीन ोत थे : कृ िष, ापार
और उ ोग। और वाभािवक है क इनसे जुड़े तीन वग काला तर म उभरे ह गे। क मीर म
ेि वग का िवकास भी आ था ले कन ऐसा लगता है क नौव -दसव सदी म इनका
कोई ख़ास भाव नह था और ये िवदेश से ापार क जगह क मीर म मौ क लेन-देन
के काम म ही संल थे।43 डामर और काय थ को लेकर भी ब त िव तार से कोई वणन
नह िमलता ले कन डामर का उ लेख साम ती मुख के प म ही आता है। डामर को
पहले उ री क मीर म रहनेवाले उप वी क़बीले के प म माना जाता था ले कन अब
आम मा यता है क डामर साम ती मुख के िलए उपयोग कया जानेवाला पद था जो
बाद म उप वी ि य या उनके समूह के समानाथ के प म योग कया जाने लगा।
ये ज़मीन के मािलक होते थे िजनके िहत वाभािवक प से उस समय के समृ
ापा रक वग से टकराते थे जो राजा के क़रीब थे। इस स दभ म लिलता द य के उस
आदेश को याद कया जा सकता है िजसम वह कहते ह क अगर ामीण और कृ षक लोग
को रोज़मरा क ज़ रत से अिधक आय ई तो वे भयावह डामर बन जाएँगे और राजा के
आदेश क अवहेलना शु कर दगे।44 डामर लिलता द य के बाद क मीर क राजनीित म
मह वपूण होकर उभरते ह और दसव सदी तक राजा के कमज़ोर होते जाने के साथ वे
दरबार म कं ग-मेकर क भूिमका म दखाई देते ह। च वमन ( 924-935 ईसवी) के
समय ताि न क़बीले के भय से राजा सं ाम नामक डामर के यहाँ शरण लेता है और
उसक सहायता से फर रा य हािसल करता है ले कन रा य हािसल करने के बाद जब वह
डामर क अवहेलना करना शु करता है तो यही डामर उसक ह या कर देते ह। लोहार
वंश का शासन थािपत होने के बाद डामर का असर लगातार बढ़ता आ दखता है। हष
के समय डामर पर िनयं ण क तमाम कोिशश दखाई देती ह ले कन अ ततः डामर क
सहायता से उ ल और सु सल हष क ह या करने म सफल ए। बारहव सदी तक वे बेहद
मज़बूत और समृ होकर उभरते ह और उनके राजप रवार से वैवािहक स ब ध के भी
उदाहरण िमलते ह। ज़ािहर है क कृ िष व था के मज़बूत होने के साथ-साथ कृ िष से
स ब यह वग मज़बूत होता तो वहाँ भूिमहीन कृ षक क आबादी भी बढ़ती और उनसे
राज व वसूल करनेवाले कमचारी वग क ताक़त भी। क मीर म यह काय काय थ वग के
हाथ म आया और ा ण ािधकार को चुनौती िमली काय थ जाित से। हालाँ क उस दौर
के आम कसान क ि थित का कोई उ लेख क हण के यहाँ नह आता ले कन ेमे के
िववरण से अ दाज़ लगाया जा सकता है क राजा, डामर और काय थ के दु म आम
कसान क ि थित बेहद दयनीय थी। वह िलखते ह क जहाँ दरबारी जन तली ई मछली
खाते ह, शराब पीते ह और इ -फु लेल लगाकर आन द करते ह, वह आम कसान जौ के
िछलके और उ ला (कड़वे वादवाली एक स ज़ी) खाकर जीवन गुज़ारते ह।45
सातव -आठव सदी म क मीर म काय थ वग का असर बढ़ना शु हो गया था।
वेनसांग ने इस वग को राजा का सलाहकार और कोष ब धक के प म व णत कया
है। वाभािवक है क ये भूिमकाएँ क मीर म उनके बढ़ते राजनीितक भाव का सबब बन
और ऐसे म वे ा ण के िलए बड़ी चुनौती बनकर उभरे ।46 जयापीड़ के समय काय थ
को उसके य देने से ा ण क नाराज़गी वाभािवक थी। क हण के यहाँ जयापीड़
ारा अ हार वापस लेने के कारण उससे नाराज़ ा ण के िशकायत करने पर जयापीड़
के मज़ाक़ उड़ाने और फर ा ण ारा उसे ाप देने से एक ख भे के राजा पर िगरने और
उसक मृ यु हो जाने का िज़ है (चौथी तरं ग, ोक 620-655)। ब त स भव है क
ा ण ने ष ं कर राजा क ह या करवा दी हो िजसे क हण इस प म तुत कर रहे
ह ! ेमे ने काय थ ारा राज व एक करने क या म ाचार और इस या
म आततायी राजा के अ याचार का सहभागी होने का वणन आता है।47 सडर क
मा यता है क काय थ ा ण ही थे और वे अपने रोज़गार के चलते काय थ कहलाए,48
हालाँ क राजतरं िगणी का एक सावधान पाठ इस िन कष पर ग भीर खड़े करता है।
यहाँ यह त य मह वपूण है क आगे चलकर क मीर म ा ण ने शाहमीरी के एक िह से,
मुग़लकाल और उसके बाद से राज व िवभाग म यही भूिमका िनभाई। अगर काय थ
ा ण ही होते तो उ ह इसी नाम से पुकारा जाता। साथ ही उ र भारत म म य जाितय
म शािमल काय थ जाित पार प रक प से राज व तथा ऐसे िवभाग म संल रही है
और ब त स भव है क क मीर म भी काय थ जाित ा ण से अलग एक म य जाित
रही हो।
इस तरह सरलीकरण से आगे िह दू राजा का काल क मीर म एक ा णवादी
समाज के प म कमोबेश उ ह ला िणक िवशेषता वाला था, जैसे भारत के दूसरे रा य
थे। ा ण स ा वग के िह सा होने के कारण वाभािवक प से समाज म बेहतर ि थित
म थे ले कन स ा वग के भीतर के ं से अ भािवत वे भी नह रहे। जब दूसरी जाितयाँ
मज़बूत तो उनके ािधकार को चुनौती िमली और जब उनक मह वाकां ाएँ राजा
के िहत से टकरा तो वाभािवक था क राजा उन पर कड़ी कायवािहयाँ करने से नह
चूके। इसी तरह ितकू ल राजा को रा ते से हटाने के िलए ा ण ने ष ं से लेकर
जादू-टोना तक का सहारा िलया। राजतरं िगणी म राजा तुंग के िख़लाफ़ उनके ष ं और
च पीड़ को जादू-टोने से मारने का उ लेख आता है िजसके चलते उसके पु तारापीड़ ने
ा ण क ह या करवाई हालाँ क ा ण उसक भी ह या कराने म सफल रहे।
इस स ब ध म एक मज़ेदार क़ से से बात ख़ म करना उस दौर के समाज म ा ण
के िवशेषािधकार और उससे उपजे ं क एक मानीखेज़ ंजना होगी :
ा ण ने अपनी माँग मनवाने के िलए ‘ योपवेशन’ का तरीक़ा अपनाया था। इसके तहत ा ण
आम तौर पर एक सभा थल ‘गोकु ल’ म एक होकर आमरण अनशन कया करते थे, हालाँ क यह
िनजी तर पर भी कया जा सकता था। राजा सु सल के समय म ा ण ने सेना ारा अ ोसुवा
अ हार को तहस-नहस करने का िवरोध शु कया और ज द ही अ हार- ा अ य ा ण इसम
शािमल हो गए। वे सभी राजनवा टका के िवजये र म आमरण अनशन पर बैठे। उनका नेतृ व
पुरोिहत प रषद के ओजान द कर रहे थे। गोकु ल का पूरा मैदान ा ण से भर गया और वा यं
बजने लगे। राजा के स देशवाहक ारा उ ह शा त कराए जाने क कोिशश हो रही थ ले कन
उ ह ने घमंड म चूर होकर कहा क जब तक वह ल बी दाढ़ी वाला (राजा सु सल) नह आता, यह
जारी रहेगा। इस पर नाराज़ होकर सेना ने उन पर हमला कर दया। पुरोिहत प रषद के सद य इस
पर सब छोड़कर भागे। जो थोड़े से वहाँ बच गए, उ ह सैिनक ने परे शान नह कया य क उ ह ने
अनशन ख़ म करने क घोषणा कर दी (तरं ग 9, ोक 939-40)।
तो इस ‘ वण काल’ म भी सब सुनहला ही नह था।
स दभ
1. देख, पेज 16, अ िह ी ऑफ़ क मीरी पंिड स, िजयालाल कलाम, उ पल पि लके शन, द ली, थम सं करण,
1951, संशोिधत सं करण, 2003
2. देख, http://www.ikashmir.net/exodus/chapteri.html (आिख़री बार 14/09/2019 को देखा गया)
3. देख, पेज 9-10, खंड 2, कं स ऑफ़ क मीर, जोगेश च द , पहला सं करण 1898, ई. एल. एम. ेस, कलक ा
4. देख, पेज 377, खंड 2, क हण क राजतरं िगणी, एम.ए. टेन, वे टिमिन टर, आ कबा ड कां टेबल एंड क पनी
िलिमटेड, 1900
5. देख, पेज xx, राजतरं िगणी, क हण, अनुवाद : आर.एस. पंिडत, जवाहरलाल नेह क भूिमका, सािह य
अकादमी, द ली, 1935 (पुनमु त 2011)
6. देख, वही, पेज 6
7. देख, पेज 5, अ िह ी ऑफ़ क मीरी पंिड स, िजयालाल कलाम, उ पल पि लके शन, द ली, 1955 (संशोिधत
सं करण, 2003)
8. देख, पेज 141, िह दू िह ी ऑफ़ क मीर, एच.एच. िव सन, सुशील गु ा (इं िडया) ाइवेट िलिमटेड, कोलकाता,
1960 म संकिलत लेख अ नोट ऑन क ह स राजतरं िगणी
9. देख, पेज 31, अल िह ी एंड क चर ऑफ़ क मीर, सुनील च रे , इं िडयन यूिज़यम, कलक ा, 1957
10. देख, वही, पेज 37
11. देख, पेज 4, खंड 2, क हण क राजतरं िगणी, एम.ए. टेन, वे टिमिन टर, आ कबा ड कां टेबल एंड क पनी
िलिमटेड, 1900
12. देख, वही, पेज 6-7
13. देख, पेज 11-12, द क मीरी ा ंस (पंिड स) अपटू 1930 : क चरल चज इन द िसटीज़ ऑफ़ नॉथ इं िडया,
हेनरे ट एम. सडर (िव क िसन मेिडसन िव िव ालय से कया गया शोध-काय)
14. देख, पेज 18-19, द क मीरी पंिड स, पंिडत आन द कौल, थैकर, पंक एंड क पनी, कोलकाता, 1924
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23. देख, पेज 84, अल िह ी एंड क चर ऑफ़ क मीर, सुनील च रे , इं िडयन यूिज़यम, कलक ा, 1957
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25. देख, पेज 49, द वैली ऑफ़ क मीर : मे कं ग एंड अनमे कं ग ऑफ़ अ क पोिज़ट क चर (स पादक : अपणा राव) म
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26. देख, पेज 18-19, द क मीरी पंिड स, पंिडत आन द कौल, थैकर, पंक एंड क पनी, कोलकाता, 1924
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28. देख, पेज 66-67, द वैली ऑफ़ क मीर : मे कं ग एंड अनमे कं ग ऑफ़ अ क पोिज़ट क चर (स पादक : अपणा
राव) म माइकल िवज़ेल का लेख द क मीरी पंिड स : देयर अल िह ी, मनोहर पि लशस, द ली, 2008
29. देख, पेज xxi, अल िह ी एंड क चर ऑफ़ क मीर, सुनील च रे , इं िडयन यूिज़यम, कलक ा, 1957
30. देख, पेज 67-69, द वैली ऑफ़ क मीर : मे कं ग एंड अनमे कं ग ऑफ़ अ क पोिज़ट क चर (स पादक : अपणा
राव) म माइकल िवज़ेल का लेख, द क मीरी पंिड स : देयर अल िह ी, मनोहर पि लशस, द ली, 2008
31. देख, पेज 1, अ िह ी ऑफ़ क मीरी पंिड स, िजयालाल कलाम, उ पल पि लके शन, द ली, ( थम सं करण,
1951) संशोिधत सं करण, 2003
32. देख, पेज 84, अल िह ी एंड क चर ऑफ़ क मीर, सुनील च रे , इं िडयन यूिज़यम, कलक ा, 1957
33. देख, पेज 19-20, अ िह ी ऑफ़ क मीरी पंिड स, िजयालाल कलाम, उ पल पि लके शन, द ली, ( थम
सं करण, 1951) संशोिधत सं करण, 2003
34. देख, पेज 73, द वैली ऑफ़ क मीर : मे कं ग एंड अनमे कं ग ऑफ़ अ क पोिज़ट क चर (स पादक : अपणा राव) म
माइकल िवज़ेल का लेख, द क मीरी पंिड स : देयर अल िह ी, मनोहर पि लशस, द ली, 2008
35. देख, पेज 109, ाचीन भारतीय धम और दशन, िशव व प सहाय, मोतीलाल बनारसीदास, द ली, 2001
36. देख, डेिवड पीटर लारस का शोध-प क मीरी शैव फलासफ़ , http://www.iep.utm.edu/kashmiri/
37. देख, पेज 10-11, क मीर इन ू िसबल, ेम नाथ बज़ाज़, दूसरा सं करण, 1967, पा पोश पि लके शन, नई द ली
38. देख, डेिवड पीटर लारस का शोध-प क मीरी शैव फलासफ़ , http://www.iep.utm.edu/kashmiri/
39. देख, अिभनवगु : द फलासफर, ोफ़े सर के .एल. भान, http://www.koausa.org/Glimpses/abhinava.html
(आिख़री बार 14/09/2019 को देखा गया)
40. देख, पेज 85, वही
41. देख, पेज 85-86, वही,
42. देख, पेज 86, वही
43. देख, पेज 94, अल िह ी एंड क चर ऑफ़ क मीर, सुनील च रे , इं िडयन यूिज़यम, कलक ा, 1957
44. देख, पेज 9, अ िह ी ऑफ़ क मीरी पंिड स, िजयालाल कलाम, उ पल पि लके शन, द ली, ( थम सं करण,
1951) संशोिधत सं करण, 2003
45. देख, पेज 92, अल िह ी एंड क चर ऑफ़ क मीर, सुनील च रे , इं िडयन यूिज़यम, कलक ा, 1957
46. देख, पेज 9-10, अ िह ी ऑफ़ क मीरी पंिड स, िजयालाल कलाम, उ पल पि लके शन, द ली, ( थम सं करण,
1951) संशोिधत सं करण, 2003
47. देख, पेज 92, अल िह ी एंड क चर ऑफ़ क मीर, सुनील च रे , इं िडयन यूिज़यम, कलक ा, 1957
48. देख, पेज 15, द क मीरी ा ंस (पंिड स) अपटू 1930 : क चरल चज इन द िसटीज़ ऑफ़ नॉथ इं िडया, हेनरे ट
एम. सडर (िव क िसन मेिडसन िव िव ालय से कया गया शोध-काय)
अ याय-3
क मीर म इ लाम
ा ण से क मीरी पंिडत तक का सफ़र
[1320-1819]
क मीर क ग ी पर शाहमीर का बैठना रा य म वच व क लड़ाई म इ लामी ताक़त क जीत नह
थी, वा तव म यह जनता के वाधीनता संघष क जीत थी जो िह दू राजा के कु शासन से पीिड़त
थे। िह दू राजनीित एक गितरोध का िशकार हो चुक थी। इसम िवकास क सारी स भावनाएँ ख़ म
हो चुक थ । यह गितहीन हो चुका था, रत हो चुका था और मृत हो चुका था। इितहास ने बार-
बार उ ह नई शु आत का मौक़ा दया ले कन हर मौक़े पर वे अपनी जा को बेहतर शासन देने म
असफल रहे।1
— ेमनाथ बज़ाज़
मृितय और इितहास का ं
सु तान िसक दर और ज़ैनुल आबदीन
सु तान िसक दर क मीर के इितहास का सबसे िववा दत सु तान है—क मीर म तलवार
के ज़ोर से इ लाम क वच व थापना का तीक। जोनाराज िलखते ह—जनता का
सौभा य उनका साथ छोड़ गया, सु तान राजधम भूल गया और दन रात मू तयाँ तोड़ने म
आन द लेने लगा। आम तौर पर गितशील दृि कोण रखनेवाले पा रमू उससे स बि धत
अ याय का शीषक देते ह—‘आतंक का दौर’! कलाम िलखते ह—िसक दर और सैफ़-उद-
दीन, दोन ने क मीर से िह दु के उ मूलन और िह दु व के सभी िच न िमटा देने क
योजना बनाई40 तो ेमनाथ बज़ाज़ उसे ‘क मीर के इितहास का सबसे काला ध बा’
बताते ह।41 बाद के पंिडत आ यान म यह कटु ता और बढ़ती गई है। हालाँ क बज़ाज़
िसक दर क तीखी मलामत के बाद वीकार करते ह :
जैसे क िसक दर क नृशंसता कम नह थी क कई िह दू इितहासकार ने उसके अ याचार को सीमा
से अिधक बढ़ा-चढ़ा के िलखा है और ऐसा करते ए अपनी क पना को उड़ान क पूरी छू ट दी है।
इससे भी बुरा यह है क िसक दर के अ याचार के आधार पर सभी मुि लम शासक को दोषी
ठहराया जाता है और इ लाम को ही एक असिह णु धम के प म िचि त कया जाता है।42
तो दूसरी तरफ़ एम. डी. सूफ़ से लेकर ख़ािलद अहमद बशीर तक िसक दर ही नह ,
मीर हमदानी को भी लगभग सभी आरोप से बरी करके सारी िज़ मेदारी सुहा भ पर
डालने और उसक ख़ूिबयाँ िगनाने वाले इितहासकार क भी कोई कमी नह —ले कन
आम तौर पर इितहास का सच ऐसी अितय के बीच ही कह होता है।
िसक दर के समय क ऐितहािसक और उसक िविश ि थितय को एक बार देख लेना
बेहतर होगा। 1389 म जब क़ु तुब-उद-दीन क मृ यु के बाद उसक िह दू प ी सूरा का पु
शंकर* िसक दर के नाम से ग ी पर बैठा तो वह अभी अ पवय क ही था। रानी सूरा
उसक संरि का बन और राय मा े तथा साहक उस समय दरबार के सबसे ताक़तवर
मं ी थे। सूरा एक यो य, साहसी और मह वाकां ी मिहला मानी जाती है ले कन
ि थितयाँ कु छ ऐसी बन क सूरा और राय मा े ारा िसक दर के युवा होते-होते प रवार
के लगभग सभी अ य लोग क ह या करवा दी गई। िव ोह क आशंका से सूरा ने अपनी
सगी बेटी और दामाद क ह या करवा दी तो अ य त शि शाली हो चुके राय मा े ने
िसक दर के छोटे भाई हैबत और साहक क ह या करवा दी। उसक योजना िसक दर क
ह या कर स ा पर क़ ज़े क थी ले कन तब तक िसक दर स ा क चाल समझने यो य हो
चुका था और उसने स ा सँभालकर अपने नाम का ख़तबा पढ़वा िलया और िस े चलवा
दये। पा रमू का मानना है क सूरा ख़द वतं शासक बनना चाहती थी और राय मा े ने
इसीिलए उसके िव त साहक क ह या करवा दी थी। स ा सँभालने के बाद उसने राय
मा े पर िनयं ण के िलए उसे ल ाख पर आ मण के िलए भेजा। सुलतान का िवचार था
क राय मा े वहाँ मारा जाएगा ले कन वह िवजेता होकर ीनगर लौटा। बाद म सु तान
से उसके र ते और ख़राब हो गए तथा उसने िव ोह कर दया। िसक दर ने पहले तो
समझाने क कोिशश क फर न मानने पर ल ाराजा को सामने से हमला करने के िलए
भेजकर ख़द पीछे से हमला करने के िलए िनकल पड़ा। अपनी हार सुिनि त जान राय
मा े बिनहाल क तरफ से भाग िनकला पर तु बिनहाल के सरदार ने उसे िगर तार कर
िसक दर को स प दया। िसक दर ने उसक जान ब श कर कारावास म डाल दया जहाँ
कु छ ही समय बाद उसने ख़दकशी कर ली।
पा रमू का मानना है क अपने प रवार और साहक क ह या तथा राय मा े के
िव ासघात के बाद यह वाभािवक था क वह राय मशिवरे के िलए दरबार म सैयद के
पास जाता जो अपने रा य से पलाियत थे और राजनीित को ख़ूब समझते थे। उ ह अपनी
ित ा पुनः हािसल करनी थी और रा य पर वच व क़ायम करना था िजसक राह म
सबसे बड़ा रोड़ा पंिडत थे। उ ह ने इस युवा सु तान को अपने भाव म िलया और अपने
इ लामी िजहाद को अंजाम दया। इस समय तक दरबार म िबहाक सैयद का बोलबाला
हो चुका था। िबहाक सैयद मूलतः स ज़वार के थे और तैमूर से पराजय के बाद सैयद
मुह मद िबहाक के नेतृ व म क मीर आ गए थे। इसी दौर म (1393) सैयद हमदानी के पु
मीर सैयद मुह मद हमदानी (1372-1450) क मीर आए। मीर हमदानी अपने िपता क
मृ यु के बाद मा 12 साल क उ म िखलाफ़त हािसल कर धमगु बन गए थे। उनका
क मीर म आना और सुलतान के यहाँ उनके असर का बढ़ते जाना क मीर के इितहास म
एक मील का प थर है। सु तान ने मीर हमदानी का शानदार वागत कया, जागीर द
और उनके िलए ख़ानकाह बनवाई जो ख़ानकाह मौला के नाम से जानी जाती है। मीर
हमदानी पहले से मौजूद िबहाक सैयद के िलए भी आसानी से वीकाय थे। मीर हमदानी
ने सु तान को इ लाम क िश ा क एक कताब िलखकर भट क । अपने िपता के
िवपरीत मीर हमदानी इ लाम क थापना के िलए हर तरह क ज़ोर-ज़बरद ती का हामी
था या य कह क तब तक इसके िलए अनुकूल माहौल बन चुका था। क मीर म उसी समय
स य सैयद िहसारी जैसे सिह णु सू फ़य के िवपरीत उसने इ लामीकरण के िलए
िमशनरी ज बे से काम कये। उसके भाव म सबसे पहले आनेवाला था दरबार का ा ण
मं ी सुहा भ । प है क सैयद के भु व के बावजूद िसक दर के दरबार म ा ण मं ी
थे। हमदानी ने उसका धम प रवतन करवा मिलक सैफ़ु ीन का नाम दया और उसक बेटी
से िववाह कया। पहले िसक दर और फर फ़तेह शाह के समय सुहा भ उफ़ सैफ़ु ीन क
क मीर म धम प रवतन के स दभ म ज़ोर-ज़बरद ती क जो भयावह भूिमका है, उसे
लगभग हर इितहासकार ने दज कया है।
िसक दर क इन कायवािहय को दो िह स म बाँटा जा सकता है—मि दर का वंस
और ा ण का जबरन धम प रवतन। 1398 म तैमूर के भारत पर आ मण से पहले
िसक दर ने हमदानी के भाव के बावजूद जबरन धम प रवतन या मि दर के वंस से
परहेज़ ही कया था। तैमूर ने अपने पोते तम को फ़ौलाद बहादुर और जैन-उद-दीन के
साथ सु तान को अपनी अधीनता वीकारने के ताव के साथ द ली से क मीर भेजा।
तैमूर क ताक़त से आ ा त सु तान ने उनका शाही वागत कया और तैमूर क बादशाहत
को वीकार कया। अपनी तरफ से उसने मौलाना नू ीन ब खाशानी को वक ल के प
म तैमूर के पास भेजा और िभ बेर म उसके वागत के िलए उपि थत रहने का ताव
दया। ले कन जब 24 माच, 1399 को क मीर के ये दूत ज मू के पास प च ँ े तो तैमूर के
लालची मं ी ने उ ह तीस हज़ार घोड़े और एक लाख सोने के िस े पेश करने के िलए कहा।
यह ख़बर जब िभ बेर म ती ारत सु तान के पास प च ँ ी तो वह घबरा गया और क मीर
प च ँ कर कसी भी तरह इ तज़ाम क कोिशश म लग गया। हालाँ क तैमूर को जब यह पता
चला तो उसने मं ी को सज़ा दी और सु तान को 28 दन बाद कसी भी उपहार के िबना
िस धु नदी के कनारे िमलने क ताईद करने के िलए जैन-उद-दीन और सैयद मुह मद
मदनी से स देश िभजवाया। असल म तैमूर अपने रा य म कसी गड़बड़ी का स देश िमलने
के कारण तुर त लौट रहा था। ले कन यह स देश सु तान तक नह प च ँ ा और वह कसी
43
भी तरह उस धनरािश के ब ध के िलए परे शान था। इस परे शानी ने सैयद को क मीर
म िजहाद का मौक़ा दे दया। क मीर म हष के समय से ही आ थक संकट हल करने के िलए
मि दर और ितमा को व त करने क पर परा थी। सुहा भ और सैयद ने सुलतान
को इसके िलए राज़ी कया और मू तय को तोड़ने क जो या शु ई, वह मि दर के
वंस तक प च
ँ ी। जोनराज क मान तो कोई मि दर साबुत नह बचा था!
ले कन अगर त य क स यक् जाँच क जाए तो इस दावे म तमाम झोल दीखते ह। तुजुक-
ए-जहाँगीरी (1623) कहती है—‘क मीर म इ लाम के आगमन के पहले बने शानदार
मि दर अब भी खड़े ह और सभी प थर के बने ह।’ 1834-38 के बीच क मीर क या ा पर
आए िव ेट ने 1842 म िलखे अपने सं मरण म 70 से 80 मि दर क उपि थित क बात
क है।44 दस साल तक क मीर के शासक रहे िमज़ा हैदर दुग़लत ने अपनी कताब
तारीख़-ए-रसीदी म िलखा है :
क मीर के अचरज म सबसे पहली और सबसे शानदार चीज़ है उसके मि दर। क मीर के भीतर और
उसके आसपास डेढ़ सौ से अिधक मि दर ह। बाक़ दुिनया म ऐसी एक इमारत देखने या सुनने को
नह िमलती। कतना आ यजनक है क यहाँ डेढ़ सौ ऐसी ईमारत ह।
आईन-ए-अकबरी म अबुल फ़ज़ल कहते ह क उनम से कई एकदम सही तरीक़े से
संरि त ह।45 मोह मद इशाक ख़ान का मानना है क िसक दर के रा य म मि दर का
वंस तो आ था ले कन मातड और अवि तपुर के मि दर को बा द से तोड़े जाने क बात
इसिलए सच नह हो सकती क उस दौर म क मीर तक बा द प च ँ ा ही नह था। ये
मि दर भूक प म न ए थे।46 टेन भी भूक प जैसी घटना के क मीर म मि दर के
टू टने क वजह बताते ह।47 ज़ािहर है क जोनाराज ने अितशयोि पूण वणन कया है।
सवाल िसफ़ अितशयोि का नह , जैसा क सडर कहती ह :
िसक दर का दौर इसिलए क मीरी ा ण के इितहास और िमथक-कथा म ब त मह वपूण है,
के वल उसके िलए नह जो वा तव म घ टत आ था बि क उसके िलए भी, जो ‘याद कया जाता है।’
जबरन धम प रवतन, भयावह पलायन और ल बे िनवासन ने ख़द को समुदाय क सामूिहक मृित
पर अं कत कर िलया और बाद के वष म पंिडत को जब चयन करने के िलए कहा गया तो उनको
भािवत कया।48
इस तरह वा तिवकता कई-कई गुनी बड़ी और िवकराल होकर वा तिवक इितहास के
सम एक अिधकि पत (Hypothetical) इितहास बनती और फर भावी होती चली
जाती है। उस दौर के उ पीड़न के क़ से आसानी से क मीरी इितहास क कताब म िमल
जाते ह ले कन यहाँ पर सुहा भ पर थोड़ी बात कर लेना बेहतर होगा।
सुहा भ उफ़ सैफ़ु ीन एक ि से आगे एक अवधारणा क तरह सामने आता है।
फ़ र ता ह क जोनाराज, सूफ़ ह क कलाम—सभी ने उस दौर क बबरता के िलए
सुहा भ को िज़ मेदार बताया है। कलाम िलखते ह—िसक दर के दौर म एक सुहा भ
िजसने धमातरण के बाद अपना इ लामी नाम सैफ़-उद-दीन रख िलया था, नये धमात रत
लोग का नेता बन गया।49 एक नये धमात रत का ं दुहरा होता है : एक तरफ नये धम
के धमावलि बय के सम ख़द को उनसे भी अिधक सम पत सािबत करना है और दूसरी
तरफ़ उस घृणा का सामना करना है जो उसके पूव धम के मतावलंिबय के मन म उसके
िलए होती है। ‘नया मु ला याज़ यादा खाता है’ जैसी कहावत ऐसे ही बनी ह गी। सुहा
भ या उसके जैसे उन सभी क मीरी ा ण के िलए यह ं सतत उपि थत रहा होगा
और इसके हल के िलए सहज था क वे ा ण को धमप रवतन के िलए े रत भी करते
और बा य भी। जोनाराज उन ा ण क मलामत करते ह ‘िज ह ने सु तान क कृ पादृि
हािसल करने के िलए अपना धम बदल दया’, तो 1747 म कािशत वाक़यात-ए-क मीर
म इितहासकार वाज़ा मुह मद आज़म दीदमारी िलखते ह क ‘उस समय िज ह ने
इ लाम नह वीकार कया, उनका अपमान कया गया और उ ह जिज़या देने पर बा य
कया गया जब क िज ह ने धमातरण कर िलया उ ह इनाम-ओ-इक़राम देकर समृ कर
दया गया।’ इन ‘ ेरणा ’ पर अ सर कोई बात नह होती जब क ‘बा यता ’ पर
अ सर अितशयोि पूण बात क जाती ह। सडर क मा यता है क ा ण के एक बड़े
िह से ने इस इनाम-ओ-इक़राम के िलए धम प रवतन वीकार कया और स ा वग म
शािमल हो गए।50 धमातरण क इस या म मीर हमदानी या श सु ीन इराक़ जैसे
इ लािमक धमगु क या िसक दर या फ़तेह शाह जैसे सु तान क भूिमका को
नज़रअंदाज़ करना तो इितहास को झुठलाना होगा ले कन इन धमात रत ा ण क
भूिमका को कमतर करके आँकना भी इितहास के साथ वैसी ही बेईमानी होगी। शेख़
अ दु ला क मीरी पंिडत म चिलत शे’र का िज़ करते ह :
मुन अज़ बेगानागन हरिगज़ ना नालम
क बा मुन आंची कद आन आशना कद
[मुझे गैर से कोई िगला नह है/मेरी बद क़ मती क वजह मेरे अपने ह]
लल द और शेख़ नू ीन
क मीरी आ याि मकता का िनमाण और इ लामीकरण
इस दौर म क मीर के आ याि मक जगत क दो मुख प रघटना को यान म रखना
ज़ री है। शैव योिगनी लल द और क मीर म ऋिष सूफ़ पर परा के सं थापक शेख़
नू ीन या नु द ऋिष।
1317 से 1320 के बीच एक क मीरी ा ण प रवार म ज मी लल द के वाख और
कथा म हम त कालीन क मीरी िह दू समाज क िवकृ ितय और िवसंगितय का गहरा
प रचय पा सकते ह। वह एक तरफ़ त कालीन समाज म ी क दोयम दज क ि थितय
का िच ण करती ह तो दूसरी तरफ वह िह दू समाज म ा जाितगत भेदभाव, मू त-
पूजा और पाखंड के चलन का तीखा िवरोध करती नज़र आती ह।* शैव योिगनी लल का
मू तपूजा, आड बर और जाित था का िवरोध और तमाम ा णवादी कु रीित पर यह
हमला वहाँ के हमदानी के साथ आए सूफ़ आ दोलन और इ लामीकरण के िलए
पूवपी ठका बना। इसे समझने के िलए उस दौर के धम प रवतन को हम एक िभ
प र े य म देखना होगा।
धम का प रवतन व तुतः सां कृ ितक े ता क थापना और वच व का सवाल था,
एक नये धम के प म इ लाम के माननेवाल म एक िमशनरी ज बा तो था ही, अिधक से
अिधक लोग को मुसलमान बना लेने का साथ ही अपने तांि क तरीक़ और ा णवादी
आचार से िह दू धम उस समय ऐसी ि थित म प च ँ चुका था क ‘िह दू समाज हो
गया था। पु ष असिह णु, अ याश और पितत थे और ि याँ उससे बेहतर नह थ जैसा
उ ह ने उ ह बनाया था। जादू-टोने और चम कार क भरमार थी।51 हमने िपछले अ याय
म राजा के क़ स म समाज के पतन क इ तेहा देखी है। उस दौर म ि य क दशा
बेहद ख़राब थी और वे यावृि , नैितक ाचार, देवदासी था और सती था जैसी
व थाएँ उनके जीवन को नक बना रही थ । ऐसे म जब लल द मू तपूजा के खंडन,
एके रवाद और योग के तीन सरल आधार पर धम क थापना करती ह तो यह सूफ़
संत के िलए ब त सुिवधाजनक हो जाता है। पहली दो चीज़ तो थ ही इ लाम म, योग के
समक था सूफ़ समाज म चिलत ‘िज़ ’। इस तरह लल क िश ाएँ परो प से
इ लाम के िलए अनुकूल माहौल बनाने म सहायक । आम भाषा म मू तपूजा और
ा णवादी े ता का उनका िवरोध ा ण समाज को सुधारने क जगह इ लाम के
सार म सहायक िस 52
आ। इस प र े य म यह त य समझा जा सकता है क लल द
का िज़ जोनाराज, ीवर, शुक— कसी के यहाँ नह िमलता और पहली बार उ ह
इितहास म दज कया गया बाबा अली क 1563 म कािशत पु तक ताि करत-उल-
आफ़रीन म।
1377 म ज मे शेख़ नू ीन* के बारे म एक बेहद ंजना मक क़ सा लल द से जुड़ा
है। कहा जाता है क नू ीन, िजनका घर का नाम माँ-बाप ने नु द (सु दर और यो य)53
रखा था, ज म के तीन दन बाद भी अपनी माँ का दूध नह पी रहे थे, तब लल द आ
और बालक को गोद म उठाकर कहा—तुम ज म लेने से नह शरमाए, तो संसार के सुख-
आन द लेने से य शरमाते हो? उसके बाद बालक नु द ने लल द के तन से दूध क
पहली बूँद के साथ संसार के पहले सुख का आन द िलया। नवजात िशशु जब तृ आ तो
लल द ने उसक माँ को यह कहते ए लौटाया : ‘लो! मेरे उ रािधकारी का लालन-
पोषण करो।’ यह क़ सा लगभग हर कताब म लगभग इसी प म दज है। इस क़ से क
ामािणकता पर स देह के पया कारण ह ले कन इसक ंजना को समझे जाने क
ज़ रत है। जैसा क हमने देखा, शैव योिगनी लल द ा णवादी कमकांड पर तीखे
सवाल खड़े कर इ लाम क भावी सफलता के िलए माहौल बना चुक थ । क मीर म बेहद
मक़बूल लल क पर परा को नु द ऋिष से जोड़ना सहज ही था। शेख़ नू ीन ारा क मीर
म शु क गई सूफ़ इ लाम क ऋिष पर परा इस प म हमदानी या बाहर से आए अ य
सू फ़य से अलग थी क उनक जड़ क मीर क धरती म थ । अभी एक पीढ़ी पहले ही
उनके प रवार ने धम बदला था और उनक िश ा-दी ा साधारण होने के कारण उ ह ने
भी लल क ही तरह सरल और चिलत क मीरी भाषा म का -रचनाएँ क िज ह ने
क मीरी जन को गहरे भािवत कया। अबुल फ़ज़ल आइन-ए-अकबरी म िलखते ह :
इस देश (क मीर) म सबसे स मािनत लोग का वग ऋिषय का है। हालाँ क उ ह ने इबादत के
पार प रक तरीक़े (तक़लीद) नह छोड़े ह ले कन वे अपनी इबादत म स े ह। वे दूसरे धम के लोग
क भ सना नह करते। वे कामना से मु ह और दुिनयावी चीज़ क फ़ नह करते। वे सबक
भलाई के िलए आम तौर पर फलदार वृ लगाते ह। वे मांस नह खाते और शादी नह करते।54
इस तरह उनका वहार िह दू ऋिषय जैसा ही था और इ लाम के भीतर बराबरी
का जो वादा था, उसने वाभािवक तौर पर क मीर के ग़ैर- ा ण समाज को इ लाम के
ित आक षत कया। जहाँ सैयद ने क मीर के स ा वग को भािवत कया और समाज के
ऊपरी सं तर म इ लाम क थापना म भूिमका िनभाई, वह ऋिष पर परा ने समाज के
ामीण और िनचले सं तर म इ लाम को वीकाय बनाने म अपनी भूिमका िनभाई।
इस तरह हम देखते ह क क मीर के इ लामीकरण के कारण एकांगी नह बि क
ब आयामी ह। इस पूरी या म चौदहव सदी बीतते-बीतते क मीर एक इ लाम-ब ल
रा य म बदल गया और ा ण तथा िह दू समानाथ बनते चले गए। जहाँ िसक दर इस
कहानी म एक खलनायक क तरह इितहास और मृित म दज आ, वह उसका पु ज़ैनुल
आबदीन उस धा मक सिह णुता का तीक िजसे आधुिनक काल म क मी रयत के नाम से
जाना गया। ज़ैनुल आबदीन का दौर क मीर म ा ण के पुन थान का काल था। िजस
तरह िसक दर क भ सना म लगभग सभी पंिडत इितहासकार एकमत ह, वैसे ही ज़ैनुल
आबदीन क तारीफ़ म भी। उसके दरबारी जोनाराज कहते ह : ‘राजा सबको एक दृि से
देखता था। जैसे ापारी अपने बटखरे म कोई भेदभाव नह करता, राजा अपनी जा म
कोई भेद नह करता था।’ आन द कौल का कहना है : ‘उसने (ज़ैनुल आबदीन ने) ापक
और सिह णु दृि कोण पाया था और मानवता के क याण के भाव से संचािलत होकर उसने
समद शता और याय से इस कार रा य कया और जनता क भौितक समृि को बढ़ाने
के िलए ऐसे यास कये क कोई उसक तारीफ़ कये िबना नह रह सकता।’55 यह
लगभग हर क मीरी पंिडत के िलखे म ित विनत होता है। ज़ैनुल आबदीन ने िह दु और
बौ को भी अपने दरबार म जगह दी। िशव भ उसका िनजी िच क सक और
िव ासपा था िजससे अहम् मु पर वह अ सर सलाह िलया करता था। इसके अलावा
कपूर भ भी उसके क़रीबी िच क सक म शािमल थे। ि या भ उसक याय सभा का
अधी क था, िजसक सलाह पर उसने अपने िपता के समय िह दु पर लगाया आ
जि◌ज़या कर भावी प से समा कर दया था।56 जोनाराज ने िलखा है क ि या भ
क जब मृ यु ई तो सु तान ने ब त-सा धन दान कर इसका शोक मनाया। इसके अलावा
उसके दरबार म बौ ितलकाचाय और ा ण संहा तथा य भ सिहत अनेक ग़ैर-
मुि लम थे।57 इस तरह ा ण के िलए शासन के सभी तर पर भत के रा ते खुल गए।
शत बस यह थी क उ ह फ़ारसी सीखना होगा, जो अब राजभाषा थी।58
‘बतलाश-ए-माश आमदम’ और
ा ण से क मीरी पंिडत तक क या ा
इसके अलावा पहली बार एक अिखल भारतीय सा ा य का िह सा बन जाने के बाद
क मीर के ा ण के िलए क मीर के बाहर जाकर अपने िलए नये अवसर तलाशना
आसान हो गया और उ ह ने इसका ख़ूब फ़ायदा उठाया। जब अपनी पहली या ा के बाद
अकबर द ली लौटा तो उसके साथ कई ा ण द ली और आगरा आ गए िजनम
सदान द कौल का नाम सव प र है। उ ह ल बा जीवन िमला था और वह जहाँगीर और
शाहजहाँ के समय भी मुग़ल दरबार म मह वपूण बने रहे। शाहजहाँ ने न के वल उ ह
जागीर और मनसब द बि क उ ह ‘इ माद-उल-स तनत’, ‘मुिश ल-मु क’, ‘िमज़ा राजा’
और ‘ग़म वार’ क उपािधयाँ दी थ । यह प रवार क मीर म ग़म वार प रवार के नाम से
जाना गया। क मीरी ा ण ने द ली, आगरा सिहत कई उ र भारतीय शहर म अपनी
बि तयाँ बना । अवध के नवाब आसफ़ु ौला के समय मु ला, स ,ू िशवपुरी, कचलू जैसे
िति त क मीरी ा ण प रवार उनके दरबार म शािमल ए। फ़ारसी भाषा का ान
और मुि लम सं कृ ित से प रचय ही नह बि क उसके साथ ल बे सहजीवन म उसके काफ़
सम प* हो जाने के कारण अपने उ र भारतीय सजाितय क तुलना म उनके िलए
शासन- व था का िह सा बनना और इ लामी समाज से सहज र ता बनाना आसान था।
क मीरी ा ण अपने वहार से ही नह , खान-पान म भी उ र भारतीय ा ण से
काफ़ अलग थे या य कह क धा मक समानता के बावजूद उनम सां कृ ितक अ तर गहरा
था। सबसे पहला अ तर तो यही था क जहाँ आम तौर से ामीण भारत म रहनेवाले उ र
भारतीय ा ण सं कृ त या थानीय भाषा म िन णात थे, वह क मीरी ा ण फ़ारसी
और सं कृ त म िन णात थे। साथ ही वे मांसाहारी थे और उनके शैव धम के तांि क रीित-
रवाज उ र भारत के ा ण के िलए अ वीकाय थे।90 1977 म कािशत सं मरण म
एक क मीरी पंिडत धनवंती रामाराव (हांडू) कहते ह क ‘वे पंजाब से उ री ा त (अब
उ र देश) तक उ र भारत के सभी िह स म बस गए ले कन कभी भी अपने नये गृह
देश के ा ण के साथ वा तव म जुड़ नह सके ।91
वाभािवक है क क मीर से आए ये ा ण अपनी अलग पहचान थािपत करने का
यास करते। मुह मद शाह (1719-1748) के ज़माने म क मीर से द ली आए पंिडत
जयराम भान को राजा क उपािध िमली थी। उ ह ने बादशाह से माँग क क क मीरी
ा ण को ‘ वाज़ा’ क जगह अलग से ‘क मीरी पंिडत’ के नाम से स बोिधत कया
जाए।92 मुह मद शाह ने उनक यह अज़ मान ली और उसके बाद से क मीर के ा ण
को क मीरी पंिडत कहे जाने का जो रवाज चला,93 वह अब तक जारी है।
बाद के कई िववरण म मुग़लकाल म क मीर से पंिडत के समतल मैदानी इलाक़ म आने
को िसक दर के समय से लेकर न बे के दशक तक के िव थापन से जोड़ते ए इसे मुि लम
शासक के अ याचार के कारण आ ‘पलायन’ बताते ह ले कन न तो िजयालाल कलाम
अपनी कताब म ऐसे कसी ‘पलायन’ का िज़ करते ह, न ही उस दौर के कसी िववरण
म ऐसा िमलता है। हमने अब तक िजन प रवार के क़ से देखे ह, वे सभी क मीर से बाहर
बेहतर भिव य के िलए मैदान म आए थे। इसम नेह प रवार का वह िस क़ सा भी
जोड़ा जा सकता है िजसके अनुसार फ़ क़िसयर के शासनकाल म पंिडत राजकौल द ली
आ गए थे और काला तर म उनका प रवार नेह प रवार* के प म जाना गया। सडर
िचि हत करती ह क क मीर से आए ये ा ण अपनी धा मक पहचान को बचाने के िलए
पुरोिहती या ऐसे कसी काय म नह अिपतु मुग़ल दरबार म नौक रय म गए तथा बनारस
जैसी धा मक जगह क अपे ा इ ह ने द ली, आगरा और इलाहाबाद जैसे स ा के को
चुना। वह लेिलफे ड को उ धृत करते ए कहते ह—यह (शासक य सेवा म भत ) एक
ऐसी सं कृ ित थी िजसम कोई पूव शत नह थी। इसम ब त सारे िह दू शािमल ए और
यादातर मुसलमान बाहर हो गए। शासन के िनचले तर पर ऐसे िह दु क सं या
बढ़ती गई िज ह ने ख़द को मुग़ल तरीक़े क वेशभूषा, आचरण, थाप य, प टंग, सािह य,
एथले टक यो यता और मनोरं जन के अनु प ढाल िलया था। क मीरी पंिडत इनम
शािमल थे।94 क मीरी पंिडत ने इस दौर म ही नह बि क अं ेज़ के आने के बाद भी
मैदानी इलाक़ म मह वपूण सफलताएँ हािसल क और शासक य सेवा म ही नह
अिपतु िविभ रजवाड़ म भी ऊँचे ओहदे हािसल कये। इस स ब ध म एक रोचक
उदाहरण जि टस माकडेय काटजू का है। एक सवाल के जवाब म वह कहते ह :
दो तरह के क मीरी पंिडत ह—क मीरी बोलनेवाले और क मीरी न बोलनेवाले। मेरे जैसे क मीरी न
बोलनेवाले क मीरी पंिडत वे ह िजनके पुरखे कोई 200 साल पहले क मीर से पलायन कर गए थे। ये
सभी क मीरी पंिडत िबलकु ल एक ही तरीक़े से पलाियत ए और वह यह क उ ह कसी रजवाड़े म
यानी क कसी महाराजा या नवाब के दरबार म नौकरी िमल गई (क मीरी पंिडत को ये नौक रयाँ
िमल ग य क वे उदू और फ़ारसी म उ ताद थे जो उन दन दरबार क भाषा होती थी)। पंिडत
नेह , तेज़ बहादुर स ू आ द सभी के पुरखे ऐसे ही क मीर से आए थे। क मीर छोड़ने के बाद वे
लगभग दो पी ढ़य म क मीरी भूल गए और अब के वल िह दी तथा अं ेज़ी जानते ह (मेरे िपता क
पीढ़ी के लोग उदू ब त अ छी तरह जानते थे जब क मेरी पीढ़ी के लोग भूल गए ह)। मेरा अनुमान है
क इनक सं या लगभग दो लाख है। मेरे अपने पुरखे पंिडत मंशा राम काटजू लगभग 200 साल
पहले क मीर से पलाियत ए थे और जौरा के नवाब के यहाँ उ ह नौकरी िमली। जौरा पि मी म य
देश के रतलाम िज़ले म है और राज थान का सीमावत है। मेरा प रवार मेरे बाबा डॉ. के .एन.
काटजू के उ र देश के इलाहाबाद म जाकर बस जाने के पहले कई पु त तक जौरा म रहा। मेरे
प रवार क ही तरह क मीरी न बोलनेवाले क मीरी पंिडत कसी उ पीड़न के चलते नह बि क
मैदान म नौकरी के अवसर के चलते पलाियत ए थे...। मेरे पुरखे पंिडत मंशा राम काटजू ने
कु े के पंडे के रिज टर म फ़ारसी म िलखा है : ‘बतलाश-ए-माश आमदम’ यानी म रोज़ी क
तलाश म आया ।ँ 95
सडर इसका समाहार करते ए कहते ह :
बाद क कहािनय म कहा गया क पंिडत मैदानी इलाक़ म इसिलए आए य क क मीर म उ ह
अपना ा ण व बचाना स भव नह लग रहा था। ले कन वे द ली और आगरा जैसी मुग़ल
राजधािनय म अिधक सहज थे, बनारस या याग जैसे धा मक शहर म नह । उ ह ने पूजापाठ क
जगह से यूलर रोज़गार अपनाए और फ़ारसी म वीणता हािसल क , सं कृ त (िजसे वे धीरे -धीरे
भूल गए) म नह ।96
ज़ािहर है क बेहतर रोज़गार के िलए ए पलायन को बदली ई प रि थितय म धम
से जोड़ने क कोिशश क गई।
_______________
* बुलबुल शाह का असली नाम सैयद शरफ़ अल दीन था। वह सुहरावद स दाय के सूफ़ संत शाह िनमातु लाह वली
फ़ारसी के िश य थे और सहदेव के समय तु क तान से क मीर आ गए थे।
** सद ीन या सदर अल दीन का अथ है—इ लाम का नायक। यह नाम उसे बुलबुल शाह ने दया था।
* तुक अचल ने जब घाटी पर हमला कया तो उदयनदेव ल ाख भाग गया। कमान पूरी तरह से रानी और शाहमीर के
हाथ म आ गई। उ ह ने चतुराई से चाल चली और अचल को समपण का स देश भेज दया। इससे जब वह िनि त हो
गया और उसने सेना का एक िह सा वापस भेज दया तो रानी, उसके भाई रावणच , भ भी ण और शाहमीर ने सेना
एक कर उस पर हमला कया और बुरी तरह परा त कर िगर तार कर िलया। बीच चौराहे पर शाहमीर ने अचल का
िसर धड़ से अलग कर दया।
* यारहव सदी तक सूफ़ स दाय ने ख़द को बौ और ईसाई िभ ु के ही ढाँचे म ढाल िलया था और उनके मठ क
तरह ख़ानकाह बनवाने लगे थे (ए. यू. रफ़ क -xlvii)।
* पा रमू ने इितहासकार िनज़ामु ीन और फ़ र ता के हवाले से उसका नाम शंकर बताया है।
* लल द के जीवन और रचना के बारे म िव तार के िलए देख : लल द, जयालाल कौल, सािह य अकादमी,
द ली, 2012
* िव तार के िलए देख : ‘क मीरनामा : इितहास और समकाल’, अ याय 3
* िस ा त प म कसी ग़ैर-मुि लम को एक मुि लम रा य क तरफ़ से लड़ने क इजाज़त नह दी जा सकती इसिलए
उसे सेना के अनुर ण के िलए ग़ैर-मुि लम को कर देना ही चािहए। हालाँ क मुग़ल क सेना म राजपूत का होना बेहद
सामा य था तो जिज़या असल म िस ा त से अलग धा मक भेदभाव और ग़ैर-मुि लम के अपमान का ही ज़ रया था।
* पहले भी लाॅरस और नाइट को हमने क मीर के िह दु और मुसलमान म बाहरी तौर पर अ तर न होने क बात
करते देखा है। आईन-ए-अकबरी म अबुल फ़ज़ल ने जहाँगीर के हवाले से िलखा है क बाहर से ा ण को मुसलमान से
अलग नह पहचाना जा सकता है।
* नेह नामकरण को लेकर आम तौर पर जवाहर लाल नेह क आ मकथा के आधार पर नहर के कनारे बसने से जोड़ा
जाता है। ले कन एम.वाय. टग ने काफ़ शोध कर िस कया है क या तो नेह प रवार क मीर म नौ नामक गाँव से
आया था या वह नहर के काम से जुड़े रहने के कारण उनका नाम नेह पड़ गया होगा। बी.के . नेह ने भी अपनी
आ मकथा म लॉरस से ई मुलाक़ात का िज़ करते ए ऐसी स भावना क है और इस उपनाम के कु छ और लोग
का िज़ कया है िजनका उनके प रवार से कोई लेना-देना नह है। ीनगर के छानपोरा इलाक़े म मुझे भी एक नेह
द पती का िज़ िमला जो न बे के दशक के बाद भी क मीर म ही रहते थे। अब उस द पती क मृ यु हो चुक है और ब े
िवदेश म ह।
* मुशी ल हसन क कताब ‘द नेह ज’ से साभार
* अहमद शाह दुरानी हेरात के अ दाली क़बीले के पोपलाजाई वंश के सदोज़ाई शाखा के अ दुल ज़मान ख़ान का बेटा
था। अ दुल ज़मान ख़ान मु तान म आकर बस गए थे जहाँ 1722 या 1724 म अहमद शाह का ज म आ। अ दाली
(आ द-ए-अली यानी ख़लीफ़ा अली के नौकर) के उपनाम से जाने जानेवाले सदोज़ाई पहले िशया थे ले कन बाद म क र
सु ी हो गए। उ ह ने ना दर शाह के िख़लाफ़ बग़ावत क थी और अहमद शाह को उसके बड़े भाई ज़ि फ़कार के साथ
िगर तार कर िलया गया था। बाद म ना दर शाह ने उन दोन भाइय को रहा कर अपने साथ ले िलया। ज़ि फ़कार
हेरात के सूबेदार के ओहदे तक प च
ँ ा जहाँ एक यु म वह मारा गया और अहमद शाह ना दर शाह के िनजी टाफ़ म
शािमल आ। 9 जून, 1747 म जब ना दर शाह क ह या ई तो अहमद शाह ने कोिहनूर सिहत उसक संपि के बड़े
िह से पर क़ ज़ा कर िलया और अफ़ग़ान साम त ने उसे नया बादशाह चुना और कांधार क एक मि जद म उसक
ताजपोशी ई। दुरानी नाम उसे उसके पीर सािबर शाह ने दया था, िजसका अथ होता है : दुर-ए-दौराँ—ज़माने का
नगीना। ले कन अहमद शाह ने दुर-ए-दुरा को वरीयता दी िजसका मानी है—नगीन का नगीना। इस तरह अहमद शाह
अ दाली इितहास म अहमद शाह दुरानी के नाम से जाना गया और शाहानी दुरानी या दुरानी वंश का आर भ आ
(सूफ़ 298-99)।
* नायब सूबेदार, िजसके िलए मुग़ल शासन म आिधका रक नाम ‘कारगुज़ार’ था, उसे अब ‘सािहबकार’ कहा गया।
अफ़ग़ान शासक क सबसे अिधक िच अिधकतम कमाई म थी तो कु छ मह वपूण बदलाव राज व िवभाग म कये गए।
उस दौर म सािहबकार के बाद सबसे मह वपूण पद ‘पेशकार’ का था िजसक भूिमका आ थक ब धन क थी, हालाँ क
अ सर यह दोन पद आम तौर पर एक ही ि के पास आ करते थे।
* खुशवंत संह ने यह रािश 9 लाख पये बताई है (अ िह ी ऑफ़ िसख ल, खंड 1, पेज 229)।
** कोिहनूर का क़ सा भी रोचक है। मूलतः यह गोलकुं डा रा य म को लूर के पास 1665 के आसपास खान से िनकला
था िजसे मिलक जुमला ने शाहजहाँ को भट कया था। उस समय यह साढ़े 787 कै रे ट का था। शाहजहाँ ने इसे अपने मोर
मुकुट पर लगवाया था। बाद म औरं गज़ेब के समय ग़लत तरीक़े से सफ़ाई के कारण इसका वज़न साढ़े 319 कै रे ट का रह
गया। ऐसा लगता है क यह उस के ीय स ा का तीक बन गया िजसके हाथ म क मीर हो। ना दर शाह ने जब द ली
पर हमला कया तो उसक नज़र कोिहनूर को तलाश रही थी। हरम क एक नौकरानी से उसे यह राज़ पता चला क
मुह मद शाह ने उसे अपनी पगड़ी म िछपा िलया है तो जब समझौता होने के बाद उसने मुह मद शाह से पगड़ी बदल कर
दो ती प करने का ताव दया िजसे अ वीकार कर पाना मुह मद शाह के िलए स भव नह था। इस तरह 1739 म
वह अफ़ग़ान के हाथ चला गया और थोड़े दन बाद क मीर भी मुग़ल के हाथ से अफ़ग़ान के हाथ चला गया। वहाँ से
वह रणजीत संह के हाथ गया और उसके बाद क मीर पर िसख का क़ ज़ा आ। अ ततः 1849 म वह अं ेज़ के हाथ
चला गया (सूफ़ -326)।
*** शाह शूजा से काला तर म रणजीत संह ने उसका सारा धन, हीरे -जवाहरात छीन िलये और िगर तार कर िलया।
ले कन वह एक रात सुरंग बनाकर भाग िनकलने म सफल रहा और भटकता आ ि टश सीमा तक जा प च ँ ा। वहाँ जब
उसने अपना प रचय दया तो उ ह ने उसे दयापूवक शेष जीवन गुज़ारने के िलए स माननीय शरण दी (सूफ़ -328)।
* पा रमू ने सहजराम स ू के बारे म एक रोचक क़ से का उ लेख कया है। वह एक घोटाले म पकड़े गए तो सूबेदार
नािज़म ख़ान के यहाँ हािज़री लगी। तक-िवतक क जगह साफ़-साफ़ ग़लती मान ली। सूबेदार ईमानदारी से भािवत
आ पर सज़ा तो देनी ही थी। तो ऑ शन दया—या तो मुसलमान बन जाओ या फर सूली पर चढ़ो। सहजराम ने
इ लाम अपनाया पर कहा—मुसलमान बन के घाटी म नह रह पाऊँगा। उ ह िसयालकोट म एक बड़ा ओहदा दे दया।
बाद म उसी ख़ानदान म सर इक़बाल पैदा ए। शेख़ अ दु ला ने अपनी जीवनी म िज़ कया है क अ लामा इक़बाल
को अपने ‘स ’ू पर परा पर ब त अिभमान था (पेज 52, ले स ऑफ़ िचनार)। हालाँ क बशीर सिहत कई मह वपूण
इितहासकार ने इस बात से नाइ ेफ़ाक ज़ािहर क है क इक़बाल उनके प रवार से थे।
* इस घटना को लेकर अलग-अलग इितहासकार ने अलग-अलग िन कष दये ह। पा रमू, सूफ़ और पी.एन.के . बमजाई
का कहना है क छह साल से फ़सल ख़राब होने के कारण बीरबल धर के िलए वह रािश एक करना स भव नह था तो
मोह मद इशाक ख़ान (पसपेि टव ऑन क मीर) ने उसे सरकारी धन का ग़बन बताया है और मोह मद सुलतान पा पोरी
(क मीर इन चे स, पेज 5) इस सारी घटना को मुि लम अफ़ग़ान के िख़लाफ़ िह दू ष ं बताते ह।
** एम.जे. अकबर और बमजाई ने उनका नाम ज़ि फ़क़ार बताया है।
*** खुशवंत संह ने आिज़म ख़ान के काबुल लौटने क वजह फ़तह मुह मद ख़ान क मदद बताई है जो सही नह लगती।
इसी म म उ ह ने बीरबल धर को ज बार ख़ान के अ याचार से िव थािपत बताया है, जो त य पर आधा रत नह है
(अ िह ी ऑफ़ िस स, खंड 1, पेज 248)।
स दभ
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6. देख, वही, पेज 311
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िलिमटेड, 1900
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25. देख, वही, पेज 106
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63. देख, पेज 21-22, फे िमली एंड कनिशप : अ टडी ऑफ़ द पंिड स ऑफ़ रल क मीर, टी.एन. मदान, ऑ सफ़ोड
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1951) संशोिधत सं करण, 2003
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1969
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जनवरी 2016 म कािशत ज़हीन के लेख क मीर अंडर द अफ़ग़ांस (1752-1819) से
119. देख, पेज 317, अ िह ी ऑफ़ क मीर, डॉ. जी.एम.डी. सूफ़ , खंड 1, लाइट एंड लाइफ़ पि लके शन, नई द ली,
1974
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1969
124. देख, वही, पेज 373
125. देख, वही, पेज 376
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1974
127. देख, वही, पेज 328
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130. देख, पेज 175, अ िह ी ऑफ़ क मीरी पंिड स, िजयालाल कलाम, उ पल पि लके शन, द ली, थम सं करण,
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अ याय-4
_______________
* मु तजीर का शाि दक अथ है—पनाह चाहने वाला। यह एक तरह क प ेदारी क व था थी िजसम अपने िव त
लोग को गाँव म लगान वसूलने का हक़ दया जाता था।
* ‘खांडवाव’ िश ु बुनकर को कहा जाता है िज ह ने इस आ दोलन म सबसे बड़ी सं या म िह सा िलया था।
* िव तार के िलए देख, रॉबट थोप क कताब : क मीर िमसगवनमट : एन अकाउं ट ऑफ़ द इकोनाॅिमक एंड
पॉिल टकल ऑपरे शन ऑफ़ द पीपल ऑफ़ क मीर बाय द महाराजा’ज गवनमट।
* हरकारा या िज़लादार हर गाँव म िनयु कमचारी होता था िजसका मूल काम गाँव पर नज़र रखना और कसी िनयम
का उ लंघन होने पर ख़बर देना होता था। उनको गाँव क उपज का एक िह सा भुगतान के प म दया जाता था।
* िव तार के िलए मृद ु राय क पूव धृत कताब देिखए।
* पहले, मीरवायज़ जािमया मि जद और दूसरे , शाह हमदानी के खानकाह—ल बे समय तक इन दोन मीरवायज़ का
क मीर क राजनीित और समाज म लगभग एक जैसा स मान रहा। हालाँ क सूफ़ वाद का असर कम होने के साथ-साथ
मीरवायज़ हमदानी का भाव लगातार कम होता गया और आज मीरवायज़ के प म जािमया मि जद के मीरवायज़
को ही जाना जाता है।
स दभ
1. देख, वही, पेज 199
2. देख, पेज 191, अ िह ी ऑफ़ क मीरी पंिड स, िजयालाल कलाम, उ पल पि लके शन, द ली, थम सं करण,
1951, संशोिधत सं करण, 2003
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4. देख, वही, पेज 562
5. देख, पेज 54, क मीर िबहाइं ड द वेल, एम.जे. अकबर, रोली बु स, द ली, 2002 (मूर ा ट के हवाले से)
6. देख, पेज 191-193, अ िह ी ऑफ़ क मीरी पंिड स, िजयालाल कलाम, उ पल पि लके शन, द ली, थम
सं करण, 1951, संशोिधत सं करण, 2003
7. देख, वही, पेज 196-97
8. देख, पेज 137, द क मीरी ा ंस (पंिड स) अपटू 1930 : क चरल चज इन द िसटीज़ ऑफ़ नॉथ इं िडया, हेनरे ट
एम. सडर (िव क िसन मेिडसन िव िव ालय से कया गया शोध-काय)
9. देख, वही, पेज 117 से 159
10. देख, पेज 18, क मीर सो ड एंड ै ड, एम.एल. कपूर, ज मू, 1968
11. देख, पेज 7, द गल फ़ॉर क मीर, माइकल ेखर, ऑ सफ़ोड यूिनव सटी ेस, ल दन, 1953 म उ धृत
12. देख , िह ी ऑफ़ गल फ़ॉर डम इन क मीर : क चरल एंड पॉिल टकल, पी.एन. बज़ाज़, पहला सं करण,
क मीर पि ल शंग क पनी, नई द ली, 1954
13. देख, पेज 4, द गल फ़ॉर क मीर, माइकल ेखर, ऑ सफ़ोड यूिनव सटी ेस, ल दन, 1953 म उ धृत
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1954
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30. देख, वही, 176-77
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1951, संशोिधत सं करण, 2003
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40. देख, पेज 15, डम गल इन क मीर, एफ़.एम. हसनैन, रीमा पि ल शंग हाउस, 1988, द ली
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43. देख, पेज 48, हेयर ी ए पायस मीट, इ.एफ़. नाइट, पा पि लके शन ाइवेट िलिमटेड, द ली, 2017
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सं करण, क मीर पि ल शंग क पनी, नई द ली, 1954
47. देख, पेज 19, हेयर ी ए पायस मीट, इ.एफ़. नाइट, पा पि लके शन ाइवेट िलिमटेड, द ली, 2017
48. देख, पेज 151, िह दू लस एंड मुि लम स ज़े स, मृद ु राय, परमानट लैक, 2007 (वा टर लॉरस ारा रे िज़डट
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सं करण, क मीर पि ल शंग क पनी, नई द ली, 1954
53. देख, पेज 86, िच लेखा जु शी, ल वेज ऑफ़ िबलां गंग : इ लाम, रीज़नल आइड टटी एंड मे कं ग ऑफ़ क मीर,
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अ याय-5
बनते-िबखरते आ यान
[1931-1934]
ज मू और क मीर रा य अनेक ितकू ल प रि थितय से जूझ रहा है। मुसलमान क बड़ी जनसं या
पूरी तरह से अिशि त है। ग़रीबी और बेहद ख़राब आ थक हालात से जूझ रही है और शासन उनसे
मूक जानवर क तरह वहार करता है। सरकार और जनता के बीच कोई स पक नह है। जनता
क परे शािनय को सुनने के िलए कोई समुिचत अवसर नह है। ख़द शासिनक मशीनरी को नीचे से
ऊपर तक पूरी तरह से सुधारे जाने तथा आधुिनक और द बनाये जाने क आव यकता है। इसे
जनता क ज़ रत और परे शािनय के ित कोई संवेदना नह है।
पंिडत क मीर के बौि क समाज का िनमाण करते ह ले कन उनका भी इस प म दमन होता
था क न तो सेवा म उनको मह व दया जाता है, न ही उनक ऊजा का उपयोग ापार या
फै ट रय म कया जाता था। इस उपे ा का नतीजा यह आ क वे भी अस तु थे और यह एक
सम या थी िजसका समाधान आव यक था।
रा य म शायद ही कोई जनमत है। जहाँ तक ेस का सवाल है तो उस पर ावहा रक प से
पूरी तरह पाब दी है और इस वजह से रा य- शासन अपनी आलोचना से होनेवाले लाभ से वंिचत
है।1
—एि बयान मुखज
माच, 1929 म क मीर के िवदेश तथा
राजनीितक मामल के मं ी
_______________
* अं ेज़ के िख़लाफ़ भारतीय संघष म मुसलमान क भागीदार पर िव तार से जानने के िलए पाठक शाि तमोय रे ारा
िलिखत और इस लेखक ारा अनू दत आज़ादी क लड़ाई और भारतीय मुसलमान ( काशक : नेशनल बुक िडपो) पढ़
सकते ह।
* लांसी कमीशन क रपोट से
** पाठक ेमनाथ बज़ाज़ क इनसाइड क मीर या द िह ी ऑफ़ गल फ़ॉर डम इन क मीर : क चरल एंड
पॉिल टकल, िजयालाल कलाम, िनमल संह आ द क पूव धृत पु तक के अलावा मेरी कताब क मीरनामा : इितहास
और समकाल म इसे ब त िव तार से पढ़ सकते ह।
*** क मीर म ‘ज़म दार’ का अथ कसान से है, जब क उ र भारत म िज ह जम दार कहा जाता है, उसके समानाथ
वहाँ जागीरदार है।
* उदाहरण के िलए 1931 के आ दोलन के कारण क जाँच पर के ि त अपने बेहतरीन शोध ‘इमरजस ऑफ़ पॉिल टकल
अवेक नंग’ म यू.के . ज़ शी आ थक कारण से लेकर अं ेज़ क सािज़श के साथ-साथ मुि लम सा दाियकता पर भी
बात करते ह ले कन िह दू सा दाियक त व क भूिमका पर कोई बात नह करते।
स दभ
1. देख, पेज 650, अ िह ी ऑफ़ क मीर, पृ वीनाथ कौल बमजाई, मे ोपािलटन बुक क पनी ाइवेट िलिमटेड,
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पि लके शन, ीनगर, 2016
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दूसरा सं करण, स यक् काशन, नई द ली, 2018
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पि लके शन, ीनगर, 2016
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day/story/1/4963.html (आिख़री बार 14/09/2019 को देखा गया)
56. देख, पेज 118, टोरी ऑफ़ क मीर, पृ वीराज ट कू, लाइट एंड लाइफ़ पि लशस, नई द ली, 1979
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61. देख, पेज 580, िच लेखा जु शी, ल वज ऑफ़ िबलां गंग : इ लाम, रीज़नल आइड टटी एंड मे कं ग ऑफ़ क मीर,
परमानट लैक, दूसरा सं करण, 2015
62. देख, पेज 110, टोरी ऑफ़ क मीर, पृ वीराज ट कू, लाइट एंड लाइफ़ पि लशस, नई द ली, 1979
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65. देख, पेज 152-153, डम मूवमट इन क मीर, जी.एच. ख़ान, लाइट एंड लाइफ़ पि लशस, नई द ली, 1980
66. देख, पेज 111, टोरी ऑफ़ क मीर, पृ वीराज ट कू, लाइट एंड लाइफ़ पि लशस, नई द ली, 1979
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68. देख, पेज 226, अ िह ी ऑफ़ क मीरी पंिड स, िजयालाल कलाम, उ पल पि लके शन, द ली, थम सं करण,
1951, संशोिधत सं करण, 2003
69. देख, पेज 168, इनसाइड क मीर, ेमनाथ बज़ाज़, द क मीर पि ल शंग क पनी, ीनगर, 1941
70. देख, पेज 186, डम मूवमट इन क मीर, जी.एच. ख़ान, लाइट एंड लाइफ़ पि लशस, नई द ली, 1980
71. देख, पेज 169, इनसाइड क मीर, ेमनाथ बज़ाज़, द क मीर पि ल शंग क पनी, ीनगर, 1941
72. देख, पेज 130, टोरी ऑफ़ क मीर, पृ वीराज ट कू, लाइट एंड लाइफ़ पि लशस, नई द ली, 1979
73. देख, बज़ाज़, 171-76 और ख़ान, 186-90
74. देख, पेज 196-97, इं टर क यूनल रलेशंस इन जे. एंड के ., िनमल के . संह, जे.के . बुक हाउस, ज मू, 1991
75. देख, वही, पेज 196-97 और 241
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190
77. देख, पेज 190-92, डम मूवमट इन क मीर, जी.एच. ख़ान, लाइट एंड लाइफ़ पि लशस, नई द ली, 1980
78. देख, पेज 571, द ले ज़ंग िचनार, शेख़ अ दु ला, अनुवाद : मोह मद अमीन, दूसरा सं करण, गुलशन
पि लके शन, ीनगर-2016
79. देख, वही, पेज 193
80. देख, पेज 276-77, िह दू लस एंड मुि लम स ज़े स, मृद ु राय, परमानट लैक, द ली-2007 म उ धृत
81. देख, पेज 174, इनसाइड क मीर, ेमनाथ बज़ाज़, द क मीर पि ल शंग क पनी, ीनगर, 1941
82. देख, पेज 269, िह दू लस एंड मुि लम स ज़े स, मृद ु राय, परमानट लैक, 2007
83. देख, पेज 227, अ िह ी ऑफ़ क मीरी पंिड स, िजयालाल कलाम, उ पल पि लके शन, द ली, ( थम सं करण,
1951) संशोिधत सं करण, 2003
अ याय-6
_______________
* मुि लम कॉ स ने 20 सीट पर उ मीदवार खड़े कये थे ले कन एक का पचा तकनीक आधार पर ख़ा रज हो गया
था।
* कताब क िवषयव तु को यान म रखते ए मने ज मू और पुंछ म उस दौरान ए घटना म का िव तार म िज़ नह
कया है, हालाँ क उन इलाक़ म तीस के दशक और उसके बाद भी जो घटनाएँ , उ ह ने ज मू और क मीर क
ता कािलक और भावी राजनीित पर गहरा असर डाला। उ सुक पाठक मेरी कताब ‘क मीरनामा’ या फर ेमनाथ
बज़ाज़, जी.एच. ख़ान, एम.ऍफ़. हसनैन आ द क पूव धृत कताब पढ़ सकते ह।
* शेख़ अ दु ला ने िज़ कया है क िशव नारायण फोतेदार ने एक कताब िलखी िजसम हज़रत मुह मद के ित
घृणा पद ट पिणयाँ क ग ।
* ‘मुजािहद मंिज़ल’ झेलम कनारे हमदानी क ख़ानकाह के पीछे और प थर मि जद के ठीक सामने ि थत है। बाद म
नेशनल कॉ स का द तर यहाँ से ज़ीरो ि ज़ पर चला गया, हालाँ क उसका नाम भी ‘मुजािहद मंिज़ल’ ही रखा गया।
* यह अवधारणा गांधी क थी िजसम िह दू-उदू के आसान और आमफ़हम श द को एक साथ िमलाकर िह दु तानी
भाषा को भारत म चिलत कये जाने क बात थी।
** शेख़ का यह कथन बाद म िजयालाल कलाम के एक अग त, 1940 को ीनगर के अख़बार ‘अल इ लाह’ म छपे एक
बयान के आधार पर अ सर उ धृत कया जाता है। यह बयान उ ह ने नेशनल कॉ स छोड़ने के फ़ै सले को यायसंगत
बताने के िलए दया था। हालाँ क तीन साल बाद ही वह क यप ब धु और फोतेदार के साथ नेशनल कॉ स म लौट आए
थे।
* मुि लम संगठन और नेशनल कॉ स के तीखे िवरोध के बावजूद आयंगर और महाराजा ने यह नीित जारी रखी।
एम.डी. सूफ़ ने िलखा है क करण संह का समय आते-आते राजकाज म उदू क जगह सं कृ तिन िह दी भावी हो
चुक थी। शेरगढ़ी को राजगढ़ कहा जाने लगा। वज़ीर अमा य हो गए। शपथ हण, इरशाद और फ़रमान सं कृ तिन
िह दी म होने लगे थे। आर.एस. पंिडत के हवाले से सूफ़ िलखते ह क ह र संह के समय म जैसे ‘राजतरं िगणी’ क
पर परा जारी थी (सूफ़ 831)।
स दभ
1. देख, पेज-88, डम गल इन क मीर, एफ़.एम. हसनैन, रीमा पि ल शंग हाउस, 1988, द ली
2. देख, पेज 179, इनसाइड क मीर, ेमनाथ बज़ाज़, द क मीर पि ल शंग क पनी, ीनगर, 1941
3. देख, वही, पेज 193
4. देख, पेज 107, क मीर एंड द डम मूवमट, परमान द पाराशर, स प एंड संस, द ली, 2004
5. मृद ु राय ारा राजनीितक िवभाग के द तावेज़ से उ धृत, पेज 273, िह दू लस एंड मुि लम स ज़े स, मृद ु
राय, परमानट लैक, 2007
6. देख, िह दु तान टाइ स के 16 जुलाई, 2017 के अंक म कािशत पारोिमता घोष का लेख
7. देख, पेज 104, क मीर एंड द डम मूवमट, परमान द पाराशर, स प एंड संस, द ली, 2004
8. देख, पेज 187, इनसाइड क मीर, ेमनाथ बज़ाज़, द क मीर पि ल शंग क पनी, ीनगर, 1941
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अहमदाबाद
10. देख, पेज 70, क मीर एंड पॉवर पॉिल ट स, पी.एन.के . बमज़ाई, गुलशन बु स, 2011 (पुन: काशन, पहला
सं करण, 1966)
11. यहाँ डम गल इन क मीर, एफ़.एम. हसनैन के पेज 83 से
12. देख, पेज 323, डम मूवमट इन क मीर, जी.एच. ख़ान, लाइफ़ एंड लाइट पि लशस, द ली, 1980
13. देख, पेज 107, क मीर एंड द डम मूवमट, परमान द पाराशर, स प एंड संस, द ली, 2004
14. देख, पेज 16, शेख़ मोह मद अ दु ला, एस.आर. ब शी, अनमोल पि लके शन ाइवेट िलिमटेड, द ली, 1998
15. देख, पेज 71, क मीर एंड पॉवर पॉिल ट स, पी.एन.के . बमज़ाई, गुलशन बु स, 2011 (पुन: काशन, पहला
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19. देख, पेज 65, डायनािम स ऑफ़ पॉिल टकल चज़ इन क मीर, किन क पि लशस, िड ी यूटस, द ली, 2001
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23. देख, पेज-88, डम गल इन क मीर, एफ़.एम. हसनैन, रीमा पि ल शंग हाउस, 1988, द ली
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34. देख, पेज 71, डायनािम स ऑफ़ पॉिल टकल चज़ इन क मीर, डी.एन. धर, किन क पि लशर, िड ी यूटस,
2001
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39. देख, पेज 208-09, अ याय 5, डोगरा राज एंड द गल फ़ॉर डम इन क मीर, मोह मद यूसुफ़ गनाई,
अ कािशत शोध ब ध, क मीर यूिनव सटी
40. देख, पेज 21, शेख़ मोह मद अ दु ला, एस.आर. ब शी, अनमोल पि लके शन ाइवेट िलिमटेड, द ली, 1998
41. देख, पेज 51, ले स ऑफ़ िचनार, शेख़ अ दु ला, अनुवाद : खुशवंत संह, पि वन, द ली, 1993
42. देख, पेज 357, डम मूवमट इन क मीर, जी.एच. ख़ान, लाइफ़ एंड लाइट पि लशस, द ली, 1980
43. देख, पेज 176, द िह ी फ़ॉर डम इन क मीर, ेमनाथ बज़ाज़, क मीर पि ल शंग क पनी, द ली,1954
44. देख, पेज 159, द ले ज़ंग िचनार, शेख़ अ दु ला, अनुवाद : मोह मद अमीन, दूसरा सं करण, गुलशन बु स,
ीनगर, 2016
45. िह दु तान टाइ स के 16 जुलाई, 2017 के अंक म कािशत पारोिमता घोष का लेख
46. देख, पेज 181-186, डम गल इन क मीर, एफ़.एम. हसनैन, रीमा पि ल शंग हाउस, 1988, द ली
47. देख, पेज 545-46, खंड 1, कि मरीज़ फ़ाइट फ़ॉर डम, एम.वाय. सराफ़, फे रोजूंस िलिमटेड, लाहौर-1977
48. देख, पेज 181, द िह ी फ़ॉर डम इन क मीर, ेमनाथ बज़ाज़, क मीर पि ल शंग क पनी, द ली-1954
49. देख, पेज 266, िच लेखा जु शी, ल वज ऑफ़ िबलां गंग : इ लाम, रीज़नल आइड टटी एंड मे कं ग ऑफ़ क मीर,
परमानट लैक, दूसरा सं करण, 2015
50. देख, वही पेज 270-72
51. देख, वही, पेज 272
52. देख, पेज 107-08, डम गल इन क मीर, एफ़.एम. हसनैन, रीमा पि ल शंग हाउस, 1988, द ली
53. देख, पेज 23, शेख़ मोह मद अ दु ला, एस.आर. ब शी, अनमोल पि लके शन ाइवेट िलिमटेड, द ली, 1998
54. देख, पेज 61, डायनािम स ऑफ़ पॉिल टकल चज़ इन क मीर, डी.एन. धर, किन क पि लशर, िड ी यूटस,
2001
55. देख, पेज 111-12, डम गल इन क मीर, एफ़.एम. हसनैन, रीमा पि ल शंग हाउस, 1988, द ली
56. देख, वही, पेज 116
57. देख, पेज 228, अ याय 5, डोगरा राज एंड द गल फ़ॉर डम इन क मीर, मोह मद यूसुफ़ गनाई, अ कािशत
शोध ब ध, क मीर यूिनव सटी
58. देख, पेज 35, क मीर इन ू िसबल, ेमनाथ बज़ाज़, पा पोश पि लके शन, 1967
59. देख, पेज 253, अ याय 5, डोगरा राज एंड द गल फ़ॉर डम इन क मीर, मोह मद यूसुफ़ गनाई, अ कािशत
शोध ब ध, क मीर यूिनव सटी
60. देख, पेज 63, माय लाइफ◌़, डी.डी. ठाकु र, लेि सस नेि सस, गुडगाँव, 2017
अ याय-7
नई शु आत : शेख़ अ दु ला और आगे
राजतं क समाि के बाद नई शु आत शानदार ई थी। बबर क़बायिलय के िख़लाफ़
क मीरी पूरी ताक़त और एकता के साथ खड़े ए थे। नेशनल कॉ स क िमिलिशया म
सभी धम के पु ष और मिहलाएँ शािमल ई थ , संघष कया था और बिलदान दये थे।
19 वष य नेशनल कॉ स कायकता मक़बूल शेरवानी क कहानी तो बेहद िस है। उस
समय क मीर म उपि थत िव िस फ़ोटो ाफ़र मागरे ट बक हाइट ने अपने सं मरण म
इसे बेहद संजीदगी से दज कया है :
बारामूला म क़ बे के िनवािसय ने मुझे एक युवा दुकानदार के बारे म बताया िजसने धा मक
सिह णुता के अपने िव ास के िलए क़ु बानी दी थी। उसक शहादत लगभग काॅ वट क दीवार के
साये म ई और ालु क मी रय क नज़र म वह तेज़ी से संत का दजा हािसल कर रहे थे।
मीर मक़बूल शेरवानी लोकतांि क आ दोलन म शेख़ अ दु ला के साथी रहे थे और अ दु ला क
तरह उ ह ने भी जनता के अिधकार के संघष के िलए िह दू-मुि लम एकता क ज़ रत पर बल
दया था। क़ बे के लोग ने मुझे जो जानकारी दी, उसके अनुसार वह िनि त प से रॉिबन ड जैसे
होने चािहए िजसने कर क ऊँची दर न अदा कर पानेवाले कसान क लड़ाई लड़ी, कसी ग़रीब
को पीटती पुिलस से िभड़ गए और उनके शोषण के िख़लाफ़ जनता के संघष संग ठत कये।
जब हमलावर ने क मीर पर हमला कया और वहाँ के लोग को आतं कत कर दया तो
शेरवानी ने, िजसे घाटी के हर गली-कू चे के बारे म पता था, परदे के पीछे काम करना शु कया और
भारतीय सेना तथा नेशनल कॉ स क िमिलिशया क मदद का भरोसा दलाकर गाँव के लोग का
मनोबल बढ़ाते ए उ ह धम से ऊपर उठकर एकताब तरीक़े से ितकार करने के िलए े रत
कया। तीन बार उसने चतुराई से फै लाई गई अफ़वाह के सहारे लोभन देकर भारतीय सेना के
हाथ पड़वा दया ले कन चौथी बार वह िवफल ए और पकड़े गए। क़बायली उ ह क़ बे के चौराहे
पर राइफल क बट से पीटते ए एक सेब क दुकान के अहाते म ले गए। लोग के बीच शेरवानी क
लोकि यता से प रिचत हमलावर ने उ ह सावजिनक प से यह कहने के िलए कहा क पा क तान
ही मुसलमान के िलए सव े िवक प है। जब उ ह ने ऐसा करने से मना कर दया तो उ ह रि सय
से मारा गया। उनके हाथ दोन तरफ़ ॉस क तरह फै ले थे।
क़बायिलय ने इसके बाद जो कया, वह आ यजनक चीज़ थी। म नह जानती क इन बबर
ख़ानाबदोश ने ऐसी चीज़ कै से सोच ली! स भव है, उ ह यह ठीक ऊपर क पहाड़ी पर ि थत सट
जोसेफ़ के चैपल म लगी ईसामसीह क ितमा को देखकर सूझा हो। उ ह ने शेरवानी के हाथ के पंज
पर क ल ठ क द और उनके माथे पर टन के एक टु कड़े पर यह िलखकर िचपका दया क ‘एक
ग़ ार क सज़ा मौत है’।
एक बार फर शेरवानी चीख़े : ‘िह दू-मुि लम इि हाद िज़ दाबाद’ और क़बायिलय ने उनक
देह म चौदह गोिलयाँ उतार द ।40
शेरवानी क मीर म एक नायक क तरह िति त ए। भारतीय सेना हर साल उनक
वीरता को याद करती है। उनके नाम से बारामूला म एक मेमो रयल हॉल बनवाया गया
और फ स िडिवजन ने उन पर एक वृ िच भी बनाया है। मु कराज आन द ने उन पर
आधा रत एक उप यास िलखा है—‘डेथ ऑफ़ अ हीरो’, जो 1955 म कािशत आ। ऐसा
ही एक क़ सा बारामूला के मा टर अ दुल अज़ीज़ का है। जब क़बायिलय ने ग़ैर-मुि लम
औरत का बला कार करने क कोिशश क तो अ दुल अज़ीज़ ने क़ु रान हाथ म लेकर क़सम
खाई क उनके जीते-जी कोई उन औरत को छू भी नह पाएगा। ह यार ने अ ततः उ ह
भी मार डाला।41 क़बायिलय के इस आ मण म 274 िह दू, 343 मुसलमान और 7 ईसाई
मारे गए थे।42 बलराज मधोक इस हमले म डोगरा सैिनक के गुणगान के अलावा लगातार
यह बताते ह क क़बायिलय के हाथ एक मक़बूल शेरवानी के अलावा िसफ़ िह दू मारे
गए थे!43 सा दाियक अंध व के िशकार होकर वह न के वल अ दुल अज़ीज़ बि क उन
सैकड़ मुसलमान और िह दु को भूल जाते ह जो इस लड़ाई म क धे से क धा िमलाकर
लड़े थे। क मीर क पहली मिहला आई.ए.एस. सुधा कौल ने अपने सं मरण म अपने चाचा
क भागीदारी और पड़ोस के एक युवा पंिडत क इस संघष म शहादत का िज़ कया है।44
इस आ दोलन म मिहला क भी अलग से एक ि गेड बनी थी िजसम डा बेदी* सिहत
वामपंथ से जुड़ी ढेर मिहला के साथ सामा य मिहलाएँ भी जुड़ी थ ।45 इसे याद करते
ए हाइटहेड ने वाज़ा अहमद अ बास का कहा याद कया है : ‘यह वह व त था जब
लेखक अपनी कताब को जी रहे थे, और किव अपनी किवता के िलए मरने को तैयार
थे।’46
िजस दौर म पूरे भारत म िह दू-मुि लम दंगे हो रहे थे, उस समय क मीर म न तो कसी
पंिडत को अपनी ज़मीन छोड़नी पड़ी, न ही कसी तरह का सा दाियक तनाव झेलना
पड़ा। गांधी उन दन अपनी ाथना सभा म लगातार क मीर को एक उ मीद क
करण क तरह बता रहे थे।47 अपवाद ह गे ही, ले कन इस आरि भक दौर म क मी रय
म एक उ साह का माहौल था, ख़दमु तार होने का एहसास और भिव य से उ मीद। सुधा
कौल उस दौर का िज़ करते ए कहती ह :
...अब सब एक क मीरी मुि लम राजनीितक नेता के हाथ म था। हम शेख़ अ दु ला को ‘क मीर का
शेर’ कहते थे। वह शेर पा क तान क कोई परवाह न करते ए आज़ाद िह दु तान म शािमल आ।
स दय म पहली बार अब हमारे पास अपनी धरती का रा य- मुख था। ले कन शेख़ अ दु ला
िसफ़ इतने ही नह थे, वह एक लोकनायक थे िज ह ने भारतीय सेना को बुलाकर अपनी धरती को
क़बायिलय से बचाया था। थोड़े से उथल-पुथल भरे दन म हमने अ हंसक तौर से राजतं को
लोकतं से ित थािपत कर दया था। हमारे पास अपना लोकतांि क नेता था और अब हम
भारतीय गणतं का िह सा थे।48
ज़ािहर है, इसम ‘भारतीय गणतं का िह सा’ होना क मीरी पंिडत के िलए एक
अित र सुर ा और सुकून का मामला था। पा क तान से क मीर के िवलय क दशा म
उनके िलए उस दौर म पलायन ही एक रा ता हो सकता था, जैसा ज मू के मुसलमान या
फर मीरपुर के िह दु और िसख को करना पड़ा। िह दू बा य वाले भारतीय गणतं के
साथ वे अपनी धा मक पहचान के साथ जुड़ सकते थे, जुड़े भी ले कन उ ह ने अपनी
थानीय पहचान और िविश ता को भी बनाये रखा। शायद एक िविश इलाक़ाई सं कृ ित
वाले अ पसं यक समाज के िलए यह सबसे मुफ़ द ि थित हो सकती थी। यह एक िविश
ि थित थी जहाँ वह रा य के भीतर अ पसं यक थे ले कन देश के ब सं यक समुदाय का
िह सा थे। यह ि थित इसके अलावा िसफ़ पंजाब म थी जहाँ िह दू रा य के भीतर
अ पसं यक और देश के तर पर ब सं यक समुदाय के िह सा थे। हमने देखा क वहाँ भी
आगे चलकर अ सी के दशक म भयावह सम याएँ पैदा । इस ‘ थानीय पहचान और
िविश ता’ को बनाये रखना क मीरी मुसलमान के िलए भी उतना ही मह वपूण था
ले कन इस नये भारतीय गणतं क धा मक ब लता के म ेनज़र क मीर म ब सं यक
और देश म अ पसं यक क मीरी मुसलमान के िलए अपनी धा मक पहचान को लेकर एक
शक-सुबहा और भय वाभािवक था, ख़ास तौर से तब, जब अपने एकदम बग़ल ज मू म वे
िह दू सा दाियकता का भयानक खेल देख-सुन रहे थे। धा मक दंगे और सा दाियकता
नये नह थे ले कन बदली ई भौगोिलक-राजनीितक ि थितय म नये दि ण एिशया म
इनक गितक उ ह आसानी से भारतीय गणरा य के भीतर अपने भिव य के िलए
आशं कत कर सकती थी। इसीिलए पा क तान य कतना भी पराया हो ले कन धम एक
ऐसा कारक था जो क मीरी मुसलमान के िलए वह अजनिबयत पैदा नह करता था जो
क मीरी िह दू के मन म वाभािवक थी। इसका मतलब न िह दु तान से कोई नफ़रत थी,
न आजकल ज़ रत से यादा चिलत हो गया पद ‘देश ोह।’ यह उस दौर के राजनीितक
और सामािजक उथल-पुथल का सहज उ पाद थी जहाँ ‘िह दू’ भारत से और ‘मुसलमान’
पा क तान से जोड़ दया गया था और क मी रय के िलए तो लाहौर या रावल पंडी सहज
प से द ली या लखनऊ से अिधक प रिचत शहर थे। इस कशमकश और असमंजस को
मुि लम कॉ स के नेशनल कॉ स म बदलने के हामी और िह दू-मुि लम एकता के खर
समथक तथा क मीर के रा ीय किव माने जानेवाले महजूर क उस दौर क एक किवता म
देखा जा सकता है :
नेशनल कॉ स क दुकान से नमक ख़रीदने गया
कहा गया िह दु तान म शािमल हो जाओ
इसने मेरे पूरे वजूद को िहला दया
दल मेरा पा क तान के साथ है
िह दु तान पर क़ु बान मेरी ह मेरी जान
दल मेरा पा क तान के साथ है।* 49
इस किवता के िलए महजूर िगर तार भी ए थे ले कन इस कशमकश के बावजूद उस
दौर म कु ल िमलाकर क मीर के भीतर जो भाव बल था, उसे उसी दौर म िलखे महजूर के
इस शेर से समझा जा सकता है :
िह दू थामगे पतवार और मुसलमान च पू चलाएँगे
इस तरह साथ हम इस देश क नाव आगे ले जाएँग*े 50
असल म मुि -संघष के ल बे दौर म क मीर म तीन तरह के रा वाद िवकिसत ए :
पहला, ‘मुि लम रा वाद’ जो 1947 के दौर म कमज़ोर भले दख रहा हो ले कन उसक
जड़ गहरी थ । मुि लम कॉ स के नेशनल कॉ स म प रव तत होने के बावजूद
मीरवायज़ सिहत क मीर और ख़ास तौर पर ीनगर के जािमया मि जद के आसपास के
नये िवकिसत म यवग म इसका एक भाव था। मीरवायज़ तो क़बायली आ मण के पहले
ही उस इलाक़े म चले गए थे िजसे अब ‘पा क तान अिधकृ त क मीर’ कहा जाता है और
बाद म वहाँ के रा पित भी बने। उनके जाने के बाद उनके भतीजे को मीरवायज़ बनाया
गया। बाद के दौर म इस िवचारधारा का नेतृ व ‘जमा’त-ए-इ लामी, क मीर’ के हाथ म
रहा िजसने ख़द को पा क तान और भारत, दोन ही क जमा’त से अलग रखा और
क मीरी समाज म वही भूिमका िनभाई जो आर.एस.एस. ने उ र भारतीय या य कह,
भारतीय समाज म। दूसरा, ‘क मीरी रा वाद’ जो नेशनल कॉ स के इद-िगद िवकिसत
आ था और िजसने ‘क मी रयत’ नाम का एक नया पद िवकिसत कया, जो धा मक
पहचान के ऊपर इलाक़ाई पहचान को तरजीह देता था। अपनी कृ ित म वह काफ़ हद
तक कां ेस के समानांतर था जो समाजवाद के ित मोटा-मोटी झुकाव के बावजूद कसी
एक िवचार या धम के ित पूरी तरह से ितब होने क जगह ऐसे उदारवादी लोग का
एक ढीलाढाला ‘रा वादी’ संगठन था िजसम लगभग दि णपंथी से लेकर वामपंथी तक
शािमल थे ले कन िजसका नेतृ व ब सं यक धा मक समूह के हाथ म ही रहा। इन दो
रा वाद के साथ ‘िह दू रा वाद’ भी िवकिसत आ जो उस दौर म ब त साफ़ दखता तो
नह , ले कन ज मू म जा प रषद और जनसंघ के साथ ख़द को आब करता है और
रा ीय वयंसेवक संघ क िवचारधारा का पोषण करता है। यह रा वाद ख़द को ापक
अिखल भारतीय िह दू रा वाद के साथ धीरे -धीरे जोड़ता जाता है और न बे के दशक के
बाद पूरी तरह से ख़द को उसम समािहत कर देता है। हम देखगे क अपनी इलाक़ाई
पहचान और े ताबोध को िचि नत करने के िलए िजस ‘क मीरी पंिडत’ नाम को
हािसल कया गया था, उसे धीरे -धीरे ापक भारतीय पहचान म िमलाकर ‘ ा ण’ और
िह दू म त दील कया गया।
भारत से जुड़ने के बाद का क मीरी इितहास इ ह तीन के बीच क अ तः या का
इितहास है।
_______________
* 5 नव बर, 1951 को ज मू और क मीर िवधान सभा के पहले अिधवेशन म शेख़ अ दु ला का बयान।
* हालाँ क पा क तान लगातार इस हमले म अपना हाथ होने से इनकार करता रहा है ले कन अब इस बात के पया
सबूत ह क इस हमले म पा क तान क स ाधारी मुि लम लीग और सेना क भूिमका थी। उदाहरण के िलए बडवुड
िलखते ह : ‘कु छ भी हो, म कभी नह समझ पाया क इस सवाल (क़बायली आ मण म पा क तान क भूिमका) को
रह य बना देने म या बुि म ा है! पा क तान म मेरी अपनी जाँच से कु छ िन कष िनकलते ह। पहली बात यह क
कसी ि टश अफ़सर को इसक कोई जानकारी नह दी गई थी। असल म यह एक नीित बनाई गई थी क उनको अँधेरे
म रखा जाए ता क बाद म श मदगी न हो...। दूसरी यह क कु छ व र अिधकारी इस अिभ ाय को अ छी तरह जानते थे
और उ ह ने नज़रअंदाज़ कर दया...। अ त म यह क सीमांत देश के मु यमं ी ने, िजनका क मीर से पा रवा रक
स ब ध था, इसे अपना आशीवाद और अ ेय समथन दया था, िजसके िबना यह कायवाही स भव नह होती। ज़ािहर
तौर पर उनका मानना था क क़बायली हमला क मीर को पा क तान म िवलय करने पर मजबूर कर देगा।’ यही नह ,
पा क तानी सेना के लेि टनट जनरल गुल हसन ख़ान, जो उस समय पा क तानी सेना के कै टन और िज ा के ए.डी.सी.
रहे, 1993 म कािशत अपने सं मरण म िलखते ह : ‘क़ायदे आज़म ने अपनी सूझबूझ से 27 अ टू बर, 1947 को कराची
से लाहौर जाने का िनणय िलया। ज मू और क मीर से नज़दीक के अलावा लाहौर से वह धानमं ी िलयाक़त अली के
स पक म रह सकते थे जो उस समय र ा मं ी भी थे। पंजाब के रा यपाल सर िसस मंडे और धानमं ी के साथ एक
बैठक म क़ायदे आज़म ने िनयिमत सेना ारा क मीर पर क़ ज़े क अपनी योजना बताई थी’ और 1997 म िज ा पर
आयोिजत बी.बी.सी. के एक टेलीिवज़न काय म म शौक़त हयात ख़ान ने दावा कया क ‘क़बायिलय के हमले क
योजना को ख़द क़ायदे आज़म ने सं तुत कया था।’
* अ सर ह र संह के ीनगर से पलायन को लेकर ब त लानत-मलामत क जाती है। ले कन िव टो रया कोफ़ ड ने
महाराजा के एडीसी दीवान संह के हवाले से िलखा है क उ ह मेनन ने कहा : ‘ ीनगर म आपका रहना मूखतापूण
होगा। जब हमलावर इतने क़रीब ह, वे क़ ज़ा कर सकते ह और आपसे कोई भी बयान दलवा सकते ह,’ इसिलए राजा ने
ीनगर छोड़कर ज मू जाना तय कया ( पेज 54, क मीर इन काॅि ल ट)।
* इं लड म ज मी डा बेदी को ऑ सफ़ोड म पढ़ते ए एक भारतीय बी. पी. एल. बेदी से ेम आ और वामपंथ से
भािवत इस युगल ने भारतीय वाधीनता आ दोलन म िह सेदारी क । दोन लाहौर और क मीर म बेहद स य रहे
और शेख़ अ दु ला के क़रीबी। नेशनल कॉ स के ‘नया क मीर डो यूमट’ के िनमाण म ही नह बि क ‘क मीर छोड़ो’
आ दोलन म भी दोन क ब त मह वपूण भूिमका रही। एं यू हाइटहेड ने डा क बेहद रोचक और भावुक जीवनी
िलखी है—द लाइ स ऑफ़ डा।
* यहाँ उस दौर म क मीर क बदहाल अथ व था और ख़ास तौर पर नमक क कमी को भी समझा जा सकता है। नमक
राशन क दुकान पर िमलता था और उन दुकान का िनय ण नेशनल कॉ स के पास था।
* महजूर क दोन किवता का अं ेज़ी से अनुवाद मेरा
स दभ
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3. https://www.boloji.com/articles/16343/author-of-independent-kashmir-rc-kak (आिख़री बार
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4. http://old.himalmag.com/component/content/article/66-forgotten-men-of-kashmir.html (आिख़री
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48. देख, पेज 29, द टाइगर लेडीज़ : अ िमरर ऑफ़ क मीर, र ,ू बो टन, अमे रका-2002
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माइ आइड टटी, प ेव मैकिमलन, यूयाॅक, 2012
अ याय-8
आज़ादी और डोगरा राज क िवदाई के साथ क मीर ने एक नये युग म वेश कया। एक
तरफ़ क मीर क ग ी पर चक सा ा य के अ त के तीन सदी से भी अिधक समय के बाद
कोई क मीरी बैठा था तो दूसरी तरफ़ अब क मीर औपचा रक प से और अपनी सहमित
से भारत का िह सा था। ज़ािहर है, इस िह सा होने म भी वह िविश था। अनु छेद 370
उसे िविश बनाती थी। यहाँ इस पर िव तार से बात करना िवषया तर होगा ले कन कम-
से-कम उस दौर म 370 को लेकर क मीर घाटी के भीतर पंिडत और मुसलमान , दोन म
ही पूरी सहमित दखाई देती है। 35-ए तो बीस के दशक म चले पंिडत के आ दोलन
‘क मीर क मी रय के िलए’ से हािसल कये गए ‘रा य उ रािधकार क़ानून’ का ही नया
प था िजसम क मीरी नौक रयाँ और ज़मीन क मी रय के िलए ही आरि त क गई थ ।
इ लामी िनज़ाम क माँग करनेवाली ‘मुि लम कॉ स’ के अिधकांश बड़े नेता पा क तान
अिधकृ त क मीर म चले गए थे और ‘िह दू-मुि लम इ ेहाद’ का नारा लगानेवाली नेशनल
कॉ स स ा म थी।
चालीस के दशक म बना ‘नया क मीर द तावेज़’* नये शासन के िलए पथ दशक था
और सबसे पहले ज़ोर दया गया ‘भूिम-सुधार’ पर। अपनी जीवनी म शेख़ अ दु ला िलखते
ह:
हमारे शोषण क सबसे प िनशानी देखी जा सकती है हमारे कसान के प म जो दन-रात खेत
म खटता है और जब अनाज पक जाता है तो जागीरदार आकर सारा अनाज ले जाता है और उसे
भूख मरने के िलए छोड़ जाता है। इसक वजह से यादातर कसान जाड़ म पहाड़ और मैदान म
चले जाते थे जहाँ मेहनत करके वे अपने िलए भोजन जुटा पाते थे। हालात को सुधारने के िलए हमने
भूिम-सुधार पर यान दया िजसक संक पना हमने अपने सां थािनक और आ थक संिवधान ‘नया
क मीर’ म क थी।2
बी.एन. जलाली ‘नया क मीर’ के बारे म कहते ह क यह ‘सोिवयत डॉ यूमट का
कॉबन कॉपी’ था3 ले कन क यूिन ट से शेख़ के र ते मज़ेदार थे। जी.एम. सा दक़, ब शी
ग़लाम मोह मद और एन. एन. रै ना वामपंथी राजनीित से के वल भािवत ही नह थे
बि क बेहद स य भी थे। सा दक़ तो ए.आई.एस.एफ़. के पटना स मलेन म िवशेष अितिथ
के प म भी बुलाए गए थे। 1936 म भारत म गितशील लेखक संगठन के गठन के बाद
क मीर म भी इसक इकाई ग ठत ई थी। इससे जुड़े एक मुख लेखक थे ेमनाथ
परदेसी।4 1942 म क मीर म क यूिन ट ने अपने सािह य के चार- सार के िलए एक
दुकान खोली थी और 1945 तक वहाँ पीपु स डेली क ढाई सौ से अिधक ितयाँ िबकती
थ । रै ना घाटी के भीतर क यूिन ट के नेता थे, ले कन सी.पी.आई. ने उ ह वहाँ अलग काम
करने क जगह नेशनल कॉ स के साथ काम करने के िलए कहा। शेख़, िजनका मु य
आधार कसान और बुनकर सिहत िन वग य क मीरी थे, क यूिन ट िवचारधारा के
आ थक प से सहज भािवत ए और इसीिलए ‘नया क मीर’ जैसा संिवधान उनके
अनुकूल था। ले कन शेख़ के िलए सीधे-सीधे उनसे र ता रखना मुि कल था। एक वजह तो
यही रही होगी क शेख़ क यूिन ट के नाि तकता के िवचार से सहमत नह हो सकते थे,
आिख़र क़ु रान क आयत उनके भाषण का एक ज़ री िह सा होती थ । इसके अलावा,
1942 के दौरान शेख़ ने क यूिन ट के ‘एंटी फ़ािस ट टू ड स ं ट’ का खुला समथन
इसिलए नह कया क उन दन कां ेस और सी.पी.आई. के र ते दो ताना नह थे और
शेख़ कां ेस को नाराज़ नह कर सकते थे।5
हालाँ क क मीर के क यूिन ट आ दोलन के मह वपूण करदार रहे पीर गयासु ीन
बताते ह क 1942 म लाहौर के क यूिन ट नेता फ़ज़ल इलाही क़ु बान क सदारत म ई
एक बैठक म, लेिनन क थीिसस के अनुसार, यह िनणय िलया गया था क अलग पाट
बनाने क जगह नेशनल कॉ स के सा ा यवाद िवरोधी आ दोलन से जुड़ा जाए।6
जलाली इसका एक और मज़ेदार कारण बताते ह। उ ह ने कभी अपनी आवाज़ ऊँची करके
नारा नह लगाया क हम क यूिन ट ह, हालाँ क सब जानते थे, यहाँ तक क शेख़ साहब
भी जानते थे ले कन हम शेख़ साहब को ग़लत जगह छेड़ना नह चाहते थे य क वह
कसी अ य समाना तर राजनीितक गितिविध को लेकर बेहद संवेदनशील थे।7 क मीर ने
शेख़ साहब क इस वृि क भी भारी क़ मत चुकाई है। गौहर संिवधान सभा के चुनाव
म नेशनल कॉ स ारा सभी 75 सीट ‘जीत’ लेने पर गौहर ट पणी करते ए कहते ह :
अगर भारतीय क यूिन ट पाट उ रा वाद से ऊपर उठकर इस मह वपूण ऐितहािसक मोड़ पर
क मीर के मनोिव ान का फ़ायदा उठाती और िव क यूिन ट आ दोलन के प म तथा कामगार
वग के िहत म खड़ी होती तो वह इस राजनीितक शू य को भर सकती थी। हालाँ क पाट का कोई
जनाधार नह था ले कन ठीक-ठाक कै डर था। उस समय शायद वह कोई सीट नह जीत पाती ले कन
एक शानदार भारत-समथक और जनप धर ताक़त क तरह उभर सकती थी।8
जब शेख़ ने क मीर का शासन सँभाला तो आ थक मोच पर संकट और बड़े थे। भूिम-
सुधार पर नज़र डालने से पहले थोड़ा उन संकट को देख लेना ज़ री होगा, िजनक
वजह से भूिम-सुधार ने क मीरी समाज पर यादा गहरा और ब आयामी असर डाला।
क़बायली हमल और उसके बाद चले यु ने क मीर म भारी तबाही मचा दी थी। 1950 म
जारी एक आिधका रक रपोट के अनुसार इसम 42,136 लोग बेघर हो गए थे, डेढ़ करोड़
से अिधक क स पि याँ न हो गई थ और 50 लाख के क़रीब जानवर का नुकसान आ
था। साथ ही, कोई 300 शै िणक सं थाएँ इस हमले से भािवत । यही नह ,
पा क तान से क मीर को जोड़नेवाली झेलम घाटी रोड क़बायिलय के हाथ म पड़ने और
उनके ारा सभी स पक माग तोड़ दये जाने से क मीर का िवदेश ापार लगभग ठप हो
गया।
1947-48 म िपछले 25 साल का सबसे भयानक जाड़ा पड़ा और उसने ि थितय को
और बदतर बना दया। इन सबके चलते पयटक ने क मीर का ख़ नह कया और पहले
से बदहाल अथ व था और बदहाल होती गई। िवदेशी माँग ठप होने से कारीगर के िलए
मुि कल पैदा हो गई तो आव यक साम ी क आपू त ब द होने से जनता को बड़ी
परे शािनय का सामना करना पड़ा9 िजसक एक बानगी िपछले अ याय के अ त म महजूर
क किवता म इं िगत ‘नमक क कमी’ के प म आपने देखी है। तनावपूण ि थितयाँ शु म
क मीर म िनवेश क राह म बाधा बन ,10 मामला संयु रा म प च ँ ने के बाद क मीर
लगातार िवदेशी िनगाह म रहा और पा क तान का परो - य ह त ेप भी लगातार
रहा िजसक वजह से भारत के के ीय नेतृ व के िलए क मीर हमेशा एक संवेदनशील
मसला बना रहा। इन सबने िमलकर क मीर म गवनस को लगातार मुि कल बनाया।
भूिम-सुधार और उनके भाव को इस रोशनी म भी देखा जाना ज़ री है।
_______________
* बी.पी.एल. बेदी, डा बेदी सिहत नेशनल कॉ स के वामपंथी धड़े को यह डॉ यूमट तैयार करने का ेय दया जाता
है। यह डॉ यूमट दो िह स म है : रा य का संिवधान और रा ीय आ थक योजना। संिवधान को 7 िह स म बाँटा गया है
: नाग रकता, रा ीय िवधान सभा, मंि मंडल, शासक, याय, थानीय शासन और रा ीय भाषा। जनता को ेस क
बैठक करने तथा संगठन बनाने और धरने दशन क आज़ादी सुिनि त क गई। क़ानून ारा सभी को सै य िश ण देने
तथा क़ानून ारा सै य बल गठन के साथ सभी नाग रक को काम का अिधकार सुिनि त करने क बात कही गई। धम
का भेदभाव न करते ए यह संिवधान सभी नाग रक को िश ा, वा य और सुर ा के साथ सावि क मतदान
अिधकार के तहत रा य क िवधान सभा का चुनाव सुिनि त करने क गारं टी देता है। इस संिवधान क एक बड़ी ख़ूबी
मिहला को वोट देने, चुनाव लड़ने तथा िश ा क व था है। थानीय शासन के िलए इसम जनता ारा चुनी
जनपंचायत क व था है। भाषा के सवाल पर जहाँ क मीरी, डोगरी, बा टी, दादरी, पंजाबी, िह दी और उदू को
रा य क भाषाएँ बनाया गया, वह उदू को स पक भाषा का दजा देने क बात कही गई।
रा ीय आ थक योजना को उ पादन, प रवहन, िवतरण, जनसुिवधा तथा मु ा और िव म िवभािजत कया गया।
इनका उ े य जनता को एक उिचत जीवन तर सुिनि त करना था। कृ िष से स बि धत योजना म जागीरदारी था
समा कर ज़मीन जोतने वाले को देना और जंगल को जनता के िनयं ण म लाना था। रा ीय कृ िष योजना को लागू
करने के िलए रा ीय कृ िष काउं िसल क थापना का ताव कया गया। रा य के आ थक संसाधन पर जनता का
अिधकार दया गया तो एक रा ीय लोक वा य काउं िसल बनाकर जनता के िलए वा य और रा ीय िश ा
काउं िसल बनाकर ाइमरी से उ िश ा तक और तकनीक िश ा का संजाल थािपत करने क बात क गई िजसम
िबना कसी धा मक, लिगक और इलाक़ाई भेदभाव के सबके िलए िश ा सुिनि त करने क बात क गई। यही नह ,
रा ीय गृहिनमाण काउं िसल बनाकर लोग को घर उपल ध कराने, रे िडयो टेशन, ि़फ म इं ड ी और कला तथा सं कृ ित
सं था बनाने जैसे ताव शािमल थे। इसक ाथिमकताएँ इसम संल तीन चाटर से समझी जा सकती ह जो कसान ,
मज़दूर और मिहला से स ब थे। यह क मीर म ही नह , दि ण एिशया के त कालीन माहौल म भी एक आगे बढ़ा
आ क़दम और इस प म िनि त प से ांितकारी था। इसका अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है क मुि लम
लीग तो छोिड़ए कां ेस म भी कई नेता इसके िख़लाफ़ थे। के वल नेह ने इसका समथन कया। घाटी म आम तौर से
इससे समथन िमला ले कन क मीरी पंिडत के दि णपंथी संगठन युवक सभा और दि णपंथी मुसलमान के संगठन
मुि लम कॉ स ने इसका िवरोध कया था (देख, पाचमट ऑफ़ क मीर म गुल मोह मद वानी का लेख—‘पॉिल टकल
एसशन ऑफ़ क मीरी आइड टटी’, पेज 129)।
* मुआफ़ धा मक और ग़ैर-धा मक, दोन तरह क होती थी। धा मक मुआ फ़य म भू-राज व का एक-ितहाई
मुआफ़ दार ारा नक़द म िलया जाता था और दो-ितहाई व तु के प म। ग़ैर-धा मक मुआ फ़य के िलए पूरा भू-राज व
नक़द या व तु प म ली जा सकती थी। सरकार ने ग़ैर-धा मक मुआ फ़य को पूरी तरह ख़ म कर दया और धा मक
मुआ फ़य के िलए व तु के प म लगान वसूलने पर रोक लगा दी।
** िज ह रा य से पशन िमलती थी।
* नेह -शेख़-मुखज क यह ख़तो- कताबत आकाइव डॉट ओआरजी पर उपल ध है।
* िह दू कोड िबल और उस पर चले िववाद को गहराई से समझने के िलए पाठक िच ा िस हा क कताब ‘िडबे टंग
पै याक : द िह दू कोड िबल कं ोवस इन इं िडया’, 1941-56, काशक : ओ.यू.पी. इं िडया-2012 पढ़ सकते ह।
* जमात-ए-इ लामी िह द क थापना मौलाना अबुल अल मौदूदी ने 1941 म इ लामी नैितकता और िश ा के
सार के िलए कया था। मौदूदी औरं गाबाद से 1947 म पा क तान चले गए और 1972 तक जमात-ए-इ लामी,
पा क तान के आिमर रहे। जमात-ए-इ लामी, ज मू और क मीर क थापना 1953 म मौलाना अहरार और ग़लाम
रसूल अ दु ला ने क थी और इसका अलग संिवधान बनाया गया था। 1974 म इसक एक शाखा पा क तान अिधकृ त
क मीर म थािपत क गई। पा क तानी लेखक आ रफ़ जमाल का मानना है क यह उस े म से यूलर िवचार के
सार को रोकने के िलए क गई थी। आज़ाद क मीर कहे जानेवाले इलाक़े म आज़ादी समथक छा संगठन के बीच
समाजवादी िवचार ब त तेज़ी से चिलत ए थे। 1980 म िजया ने अफ़ग़ािन तान म सोिवयत संघ के िव अमे रक
ायोिजत यु म िह सेदारी का फ़ै सला कया तो इसके िलए िमलने वाली अ तररा ीय सहायता का बड़ा िह सा क मीर
म आतंकवादी कायवाही के िलए युवक के िश ण पर ख़च करने का िनणय िलया। इसी योजना के तहत 10 जून, 1980
को जमात-ए-इ लामी ने अपने एक नेता को िहज़बुल मुजािहदीन का नेता बनाया। जमात ने िहज़बुल को
िवचारधारा मक दशािनदश, आ थक संसाधन और कै डर उपल ध कराए। न बे के दशक म उसने एक पि का ‘जेहाद-ए-
क मीर’ का काशन शु कया और मोह मद यूसुफ़ शाह उफ़ सैयद सला ीन को इसका आिमर (कमांडर) बनाया।
जमात के छा संगठन जमात-ए-तुलबा के कई कायकता िहज़बुल मुजािहदीन म शािमल ए। िहज़बुल क स यता और
भाव बढ़ने से पा क तान अिधकृ त क मीर और भारतीय क मीर म भी आज़ादी समथक तहरीक का असर कम आ।
* 27 दस बर, 1963 को हज़रतबल मि जद म रखा मोह मद साहब क दाढ़ी का पिव बाल अचानक ग़ायब हो गया।
सुबह जब यह ख़बर आम ई तो क मीर म जैसे भूचाल आ गया। वतः फू त तरीक़े से हज़ार लोग सड़क पर आ गए
और आम हड़ताल हो गई। अफ़वाह का बाज़ार गम हो गया और उनम से एक अफ़वाह यह थी क ब शी साहब वह
बाल अपनी बीमार माँ के िलए ले गए ह। त कालीन धानमं ी श सु ीन का न तो जनता म कोई भाव था और न ही
कोई शासिनक अनुभव। जनता के ग़ से को देखते ए कोई कायवाही करने क जगह उ ह ने ख़द को घर म क़ै द कर
िलया। पा क तान रे िडयो और वहाँ के नेता ने इस माहौल का फ़ायदा उठाने और उसे भड़काने म कोई क़सर नह
छोड़ी। बाल क बरामदगी के िलए आ दोलन चलाने हेतु मौलवी मोह मद सईद मसूदी क अ य ता म एक ए शन
कमेटी बनाई गई िजसम मीरवायज़ मौलवी फ़ा क़ और फ़ा क़ अ दु ला सद य थे। रा य सरकार क अकम यता और
हालात क गंभीरता को देखते ए नेह ने बी.एन. मिलक को ीनगर भेजा जहाँ ब शी क िगर तारी के साथ-साथ
शेख़ क रहाई क भी माँग उठने लगी थी। हंसा क आग बांगलादेश (त कालीन पूव पा क तान) और कोलकाता तक
प च ँ गई। 4 जनवरी को ब शी ीनगर से ज मू चले आए और करण संह ज मू से ीनगर। करण संह हज़रतबल प च ँ े
तो जनता ने उनका ज़ोरदार वागत कया। करण संह ने सभी मं दर म मो-ए-मुक़ स क बरामदगी के िलए ाथनाएँ
आयोिजत करवा । द ली श सु ीन को हटाकर मीर क़ािसम को ग ी पर िबठाना चाहती थी ले कन मीर इसके िलए
तैयार नह थे। चार जनवरी क रात म मिलक और आई. जी. पुिलस एल.डी. ठाकु र ने मो-ए-मुक़ स ढू ँढ़ िनकाला,
हालाँ क चुरानेवाले का नाम सावजिनक नह कया गया। ले कन हालात सामा य 3 फ़रवरी को ही हो सके जब लाल
बहादुर शा ी, श सु ीन और मिलक क उपि थित म ए शन कमेटी क ओर से फ़क़ र मीराक़ शाह ने इसका िनरी ण
करके ‘अल हक़’ (यह सही है) क घोषणा क ।
* ीनगर से िनकलने वाला अख़बार जो पंिडत का मुखप जैसा माना जाता था।
* क मीर म आज़ादी के बाद से ही चुनाव म धाँधली एक बड़ा मु ा रहा। एक तरफ़ नेशनल कॉ स के अलावा कसी
और पाट को पैर नह जमाने दये गए तो दूसरी तरफ़ िजन लोग ने चुनाव लड़ने क कोिशश क , उनके पच ख़ा रज
करवा दये जाते। हालत यह क 4 माच, 1962 को नेह ने ब शी ग़लाम मोह मद को भेजे एक स देश म कहा :
दरअसल, अगर आप कु छ सीट ामािणक िवप ी उ मीदवार से हार जाते तो यह आपक ि थित को और अिधक
मज़बूत कर देता।’ क मीर के एक िति त वक ल ग़लाम नबी हाग बताते ह क उन दन इन चुने ए िवधायक को
रट नग ऑ फसर अ दुल ख़ािलक़ मिलक के नाम पर ‘मेड बाय खािलक़’ कहा जाता था। खािलक़ कसी भी ितकड़म से
िवप ी उ मीदवार के पच ख़ा रज करा देने म मािहर था (िव तार के िलए देख, अ याय 16, क मीरनामा)।
* 1972 के चुनाव होने से पहले पा क तान म एक बड़ा राजनीितक संकट पैदा आ। वहाँ ए चुनाव म शेख़
मुजीबुरहमान क पाट अवामी लीग ने पूव पा क तान क 169 म से 167 सीट जीत और इस तरह पा क तान क 313
सीट वाली नेशनल असे बली म ब मत हािसल कया। ले कन ज़ि फ़कार अली भु ो सिहत पि मी पा क तान के
नेता ने उ ह स ा स पने से इनकार कर दया और इसक जगह दो धानमंि य क व था का ताव कया। इसके
पहले भी वाज़ा नज़ीमु ीन, मुह मद अली बोगरा और सैन शहीद सुहरावद जैसे पूव बंगाल के धानमंि य को भी
पि मी पा क तान के राजनेता ने बख़ा त कर दया था। जनरल याहया ख़ान ने बंगािलय का दमन शु कया और
भु ो ने इसम साथ दया।
बांगलादेश क िनवािसत सरकार कलक ा म बनी। लाख र यूज़ी पि म बंगाल म आ गए और अ ततः िनवािसत
बंगाली नेता के इसरार पर भारतीय सेना ने मुि दाता के प म उसका वागत कया। पा क तानी सेना ने समपण
कर दया और दस बर, 1971 म बां लादेश का िनमाण आ। भारत और पा क तान के बीच यह पहला िनणायक यु
था िजसके प रणाम व प पा क तान दो िह स म बँट गया। हालाँ क इस यु म क मीर कोई मु ा नह था ले कन इस
पराजय ने न के वल पा क तानी स ा ित ान का मनोबल तोड़ने का काम कया बि क शेख़ सिहत क मीर के नेता
पर भी गहरा असर डाला। जून, 1972 म भारत और पा क तान के बीच िशमला समझौता आ िजसम क मीर मामले
को ि प ीय बातचीत से सुलझाने और सि ध रे खा को िनयं ण रे खा के प म वीकार करने पर सहमित ई।
* िनकोलो मै कयावैली पं हव सदी के इटािलयन राजनीित , इितहासकार व नाटककार थे िज ह आधुिनक राजनीित
िव ान का िपता कहा जा सकता है। अपने नाटक ‘द ंस’ म उ ह ने िजस तरह क अनैितक राजनीित का ताव दया
है, उसके चलते इस तरह क राजनीित के स दभ म ‘मै कयावैिलयन’ कहा जाता है।
* क मीर म शा दय के समय मिहला के समूह ारा गाए जानेवाला गीत। यह गीत कु छ इस तरह से है—स ज़
द तरस नबी चुअई राज़ी; पा क तानुक ग़ाज़ी आव (नबी ख़श ह तु हारी हरी पगड़ी से। तु ह देखकर ऐसा लगता है क
पा क तान से ग़ाज़ी आया है)। मज़ेदार त य यह क जब मोरार जी देसाई मीरवायज़ से िमलने आए तो उनके वागत म
भी यही गाया गया।
** उदाहरण के िलए तीस के दशक से ही शेख़ के साथ रहे व र नेता सोफ़ अहमद अकबर ने कहा—यह धोखा है,
पितत आ मसमपण है और िव ासघाती कारवाई है।
स दभ
1. दोन उदाहरण ख़ािलद अहमद बशीर क कताब क मीर : ए पोिज़ग द िमथ िबहाइं ड नैरे टव के पेज 196 और
183 से
2. देख, पेज 338, द ले जंग िचनार, शेख़ मोह मद अ दु ला, अनुवादक : मोह मद अमीन, दूसरा सं करण, गुलशन
बु स, ीनगर, 2016
3. देख, पेज 163, लाइ ज़ ऑफ़ े डा, एं यू हाइटहेड, पी कं ग टाइगर, द ली, 2019
4. देख, पेज 111, अ िह ी ऑफ़ क मीरी िलटरे चर, टी.एन. रै ना, सािह य अकादमी, द ली, 2002
5. देख, पेज 69, डी.एन. धर, डायनािम स ऑफ़ पॉिल टकल चज इन क मीर, किन का पि लशस, द ली, 2001
6. देख, पेज 55, क यूिन ट मूवमट इन क मीर, पीर गयासु ीन, जे.के . बुक हाउस, ज मू
7. देख, पेज 164, लाइ ज़ ऑफ़ े डा, एं यू हाइटहेड, पी कं ग टाइगर, द ली, 2019
8. देख, पेज 47, इले शंस इन ज मू एंड क मीर, जी.एन. गौहर, मानस पि लके शन, द ली, 2002
9. देख, पेज 150, द गल फ़ॉर क मीर, माइकल ेखर, ऑ सफ़ोड यूिनव सटी ेस, यूयाॅक, 1953
10. देख, पेज 19, हाट हैपे स टू गवनस इन क मीर, एजाज़ अशरफ़ वानी, ऑ सफ़ोड यूिनव सटी ेस, नई द ली,
2019
11. देख , लड रफ़ॉम इन ज मू एंड क मीर, नािसर अहमद गनाई, साउथ एिशयन जनल ऑफ़ म टी िडिसि लनरी
टडीज़, खंड दो, अंक दो
12. देख, पेज 230, ए ेगे रयन रलेशंस इन ज मू एंड क मीर : अ के स टडी ऑफ़ टू िडि स, मीना ी मोज़ा का
अ कािशत शोध ब ध, जवाहरलाल नेह िव िव ालय, 2014
13. देख, पेज 139, क मीर : िबहाइं ड द वेल, एम.जे. अकबर, रोली बु स, छठा सं करण, द ली, 2011
14. देख, पेज vii, ज मू और क मीर : पॉिल ट स ऑफ़ आइड टटी एंड सेपरे ट म, रे खा चौधरी, लेज़ इं िडया,
द ली, 2015
15. देख, पेज 168, द गल फ़ॉर क मीर, माइकल ेखर, ऑ सफ़ोड यूिनव सटी ेस, ल दन, 1953
16. देख, द क मीर लड रफ़ॉम : सम पसनल इ ेशंस, डेिनयल थानर, द इकॉनिमक वीकली, 12 िसत बर, 1953
17. देख, पेज 28, क मीर : स ऑफ़ कि ल ट, पा स टू पीस, सुमां ा बोस, हावड यूिनव सटी ेस, यू.एस.ए.,
2003
18. देख, पेज 80, हाट हैपे स टू गवनस इन क मीर, एजाज़ अशरफ़ वानी, ऑ सफ़ोड यूिनव सटी ेस, नई द ली,
2019
19. देख, पेज 341, द ले जंग िचनार, शेख़ मोह मद अ दु ला, अनुवादक : मोह मद अमीन, दूसरा सं करण, गुलशन
बु स, ीनगर, 2016
20. देख, पेज 79-80, ज मू एंड क मीर (1949-64) : सेले ट करे पांडस िबटवीन जवाहरलाल नेह एंड करण संह,
स पादक : जावेद आलम, पि वन, द ली, 2006
21. देख, पेज 445, माई लाइफ◌़, डी.डी. ठाकु र, लेि सस-नेि सस, गुड़गाँव, 2017
22. देख, पेज 45, माई लाइफ़ एंड माई टाइ स, सैयद मीर क़ािसम, अलाइड पि लशस िलिमटेड, द ली, 1992
23. मीना ी मोजा का अ कािशत शोध- ब ध
24. देख, पेज 161, द गल फ़ॉर क मीर, माइकल ेखर, ऑ सफ़ोड यूिनव सटी ेस, ल दन, 1953
25. देख, पेज 46, नेह -मुखज -अ दु ला करे पांडस, जनवरी-फ़रवरी, 1953
26. देख, वही, पेज 166
27. देख, पेज 38, द टे टामट ऑफ़ शेख़ अ दु ला, वाय.डी. गुंडिे वया, पािलत एंड पािलत पि लशस, द ली, 1974
28. देख, पेज 127, द टाइगर लेडीज़, सुधा कौल, र ,ू बो टन, 2002
29. देख, पेज 545, द िह ी ऑफ़ क मीर’स गल फ़ॉर डम, ेमनाथ बज़ाज़, क मीर पि ल शंग क पनी, पहला
सं करण, द ली, 1954
30. देख, वही, पेज 551
31. देख, वही, पेज 541
32. देख, वही, पेज 545
33. देख,े पेज 11, क मीरी पंिड स : ॉ लम एंड परसे शन, स पादक : अवंित भाटी, पा, द ली, 2015
34. देख, पेज 40, बंग लंग इन क मीर, बलराज मधोक, िह द पाॅकेट बु स, द ली, 1974
35. देख, वही, पेज 112
36. देख, पेज 48-50, ज मू एंड क मीर (1949-64) : सेले ट करे पांडस िबटवीन जवाहरलाल नेह एंड करण संह,
स पादक : जावेद आलम, पि वन इं िडया, द ली, 2006
37. देख, पेज 47, नेह -मुखज -अ दु ला करे पांडस, जनवरी-फ़रवरी, 1953
38. देख, पेज 42, द टे टामट ऑफ़ शेख़ अ दु ला, पािलत एंड पािलत पि लके शन, द ली, 1974
39. देख, पेज 126, बंग लंग इन क मीर, बलराज मधोक, िह द पाॅकेट बु स, द ली, 1974
40. देख, पेज 387-90, यामा साद मुखज : लाइफ़ एंड टाइ स, तथागत रॉय, पि वन, द ली, 2018
41. देख, पेज 14-16, माई डेज़ िवथ नेह , बी.एन. मिलक, अलाइड पि लशस, दूसरा सं करण, द ली, जुलाई,
1971
42. देख, पेज 110, द टे टामट ऑफ़ शेख़ अ दु ला, पािलत एंड पािलत पि लके शन, द ली, 1974
43. देख, पेज 426, डॉ. अ बेडकर : लाइफ़ एंड िमशन, धंनजय क र, पॉपुलर काशन, पुनमु त सं करण, मुंबई,
1990
44. देख, पेज 145, क मीर : िबहाइं ड द वेल, एम.जे. अकबर, रोली बु स, छठा सं करण, द ली, 2011
45. देख, पेज 196, रमे ब रं ग पाट शन, ाने पांडय े , कै ि ज़ यूिनव सटी ेस, नई द ली, 2012
46. देख, पेज 112, ले स ऑफ़ िचनार, शेख़ अ दु ला, शेख़ अ दु ला, अनुवाद : खुशवंत संह, पि वन, द ली, 1993
47. देख, पेज 111, वही
48. देख, पेज 30, क मीर : द अनटो ड टोरी, मरा क़ु रै शी, पि वन, द ली, 2004
49. देख, पेज 111-12, द टे टामट ऑफ़ शेख़ अ दु ला, पािलत एंड पािलत पि लके शन, द ली, 1974
50. देख, पेज 152-53, क मीर : िबहाइं ड द वेल, एम.जे. अकबर, रोली बु स, छठा सं करण, द ली, 2011
51. देख, पेज 123-24, क मीर एंड शेर-ए-क मीर : अ रवो यूशन डीरे ड, पी.एल.डी. पा रमू, िचनार पि ल शंग,
अहमदाबाद, 2012
52. देख, पेज 115, द टे टामट ऑफ़ शेख़ अ दु ला, बी.एस. गुंडिे वया, पािलत एंड पािलत पि लके शन, द ली, 1974
53. देख, पेज 193-197, सेले टेड व स ऑफ़ जवाहरलाल नेह , खंड 22
54. देख, पेज 117-123, ज मू एंड क मीर (1949-64) : सेले ट करे पांडस िबटवीन जवाहरलाल नेह एंड करण
संह, स पादक : जावेद आलम, पि वन इं िडया, द ली, 2006
55. देख, पेज 165, क मीर : ि ल पसेज ऑफ़ िह ी एंड द टोरी ऑफ़ गल, सैफ़ु ीन सोज़, पा, द ली, 2018
56. देख, पेज 166, द गल फ़ॉर क मीर, माइकल ेखर, ऑ सफ़ोड यूिनव सटी ेस, ल दन, 1953
57. देख, पेज 14, द पाचमट ऑफ़ क मीर, स पादक : नायला अली ख़ान, पा ेव-मैकिमलन, यूयाॅक, 2012
58. देख, वही, पेज 18
59. देख, पेज 342, द ले जंग िचनार, शेख़ मोह मद अ दु ला, अनुवादक : मोह मद अमीन, दूसरा सं करण, गुलशन
बु स, ीनगर, 2016
60. देख, पेज 77, ले स इन क मीर, सैयद सनाउ लाह बट, अली मोह मद एंड संस, ीनगर, 1981
61. देख, पेज 140-41, हाट हैपे स टू गवनस इन क मीर, एजाज़ अशरफ़ वानी, ऑ सफ़ोड यूिनव सटी ेस, नई
द ली, 2019
62. देख, पेज 47, िब डंग अ यू क मीर : ब शी ग़लाम मोह मद एंड द पॉिल ट स ऑफ़ टेट फ़ॉमशन इन अ
िड यूटेड टे रटरी (1953-63), हसफ़ा कं जवाल, िमिशगन यूिनव सटी म तुत एक शोध-िनबंध
63. देख, पेज 112, द टाइगर लेडीज़, सुधा कौल, र ,ू बो टन, 2002
64. देख, पेज 30, िब डंग अ यू क मीर : ब शी ग़लाम मोह मद एंड द पॉिल ट स ऑफ़ टेट फ़ॉमशन इन अ
िड यूटेड टे रटरी (1953-63), हसफ़ा कं जवाल, िमिशगन यूिनव सटी म तुत एक शोध-िनबंध
65. देख, वही, पेज 37
66. देख, पेज 61, द टाइगर लेडीज़, सुधा कौल, र ,ू बो टन, 2002
67. दे ख , क मीर पा ट एंड ेजट : अनरे वे लंग द िमि टक, मोहन लाल कौल का यारहवाँ अ याय,
https://www.ikashmir.net/pastpresent/chapter11.html (आिख़री बार 14/09/2019 को देखा गया)
68. देख, पेज 158, िब डंग अ यू क मीर : ब शी ग़लाम मोह मद एंड द पॉिल ट स ऑफ़ टेट फ़ॉमशन इन अ
िड यूटेड टे रटरी (1953-63), हसफ़ा कं जवाल, िमिशगन यूिनव सटी म तुत एक शोध-िनबंध
69. देख, https://www.greaterkashmir.com/news/jammu/pandits-seek-reservation-in-kas-ias/ (आिख़री
बार 14/09/2019 को देखा गया)
70. देख, पेज 142, िब डंग अ यू क मीर : ब शी ग़लाम मोह मद एंड द पॉिल ट स ऑफ़ टेट फ़ॉमशन इन अ
िड यूटेड टे रटरी (1953-63), हसफ़ा कं जवाल, िमिशगन यूिनव सटी म तुत एक शोध-िनबंध
71. देख, पेज 69, क मीर इन ले स, सनाउ लाह बट, अली मोह मद एंड संस, 1981
72. देख, पेज 99-100, माई इयस िवथ शेख़ मोह मद अ दु ला, ग़लाम अहमद, गुलशन बु स, 2008
73. देख, पेज सं या 170, क मीर : एि पोज़ंग द िमथ िबहाइं ड नैरे टव, ख़ािलद अहमद बशीर, सेज इं िडया,
द ली, 2017
74. देख, पेज 283, इले शंस इन क मीर, जी.एन. गौहर, मानस पि लके शन, द ली, 2002
75. देख, पेज 154, ले स ऑफ़ िचनार, शेख़ अ दु ला, शेख़ अ दु ला, अनुवाद : खुशवंत संह, पि वन, द ली,
1993
76. देख, पेज 153-54, क मीर : िबहाइं ड द वेल, एम.जे. अकबर, 197-69, क मीर एंड शेर-ए-क मीर : आ
रवो यूशन डीरे ड, पी.एल.डी. पा रमू
77. देख, पेज 156, ले स ऑफ़ िचनार, शेख़ अ दु ला, शेख़ अ दु ला, अनुवाद : खुशवंत संह, पि वन, द ली,
1993
78. देख, पेज 32, क मीर : इं सरजसी एंड आ टर, बलराज पुरी, ओ रयट लॉ गमैन ाइवेट िलिमटेड, तीसरा
सं करण, द ली, 2008
79. इस मामले म िव तार के िलए वीण वामी क कताब इं िडया पा क तान एंड सी े ट िजहाद पढ़ सकते ह,
लेज़, ल दन, 2007
80. देख, पेज 107, माई इयस िवथ शेख़ मोह मद अ दु ला, ग़लाम अहमद, गुलशन बु स, 2008
81. िव तार के िलए देख, पेज 270-74, क मीर एंड पॉवर पॉिल ट स : ॉम लेक स सेस टू ताशक द, पी.एन.के .
बमजाई, गुलशन बु स, ीनगर, 2011
82. देख, पेज 127, द टाइगर लेडीज़, सुधा कौल, र ,ू बो टन, 2002
83. देख, पेज 160, क मीर एंड शेर-ए-क मीर : अ रवो यूशन डीरे ड, पी.एल.डी. पा रमू, िचनार पि ल शंग,
अहमदाबाद, 2012
84. देख, https://www.ikashmir.net/pastpresent/chapter12.html (आिख़री बार 14/09/2019 को देखा गया)
85. देख, पेज 107, माई इयस िवथ शेख़ मोह मद अ दु ला, ग़लाम अहमद, गुलशन बु स, 2008
86. देख, पेज 173, जे.पी. ऑन क मीर, बलराज पुरी, ान पि ल शंग हाउस, नई द ली, 2005
87. देख, पेज 171-72, क मीर : एि पोज़ंग द िमथ िबहाइं ड नैरे टव, ख़ािलद अहमद बशीर, सेज इं िडया, द ली,
2017
88. देख, https://www.ikashmir.net/pastpresent/chapter12.html (आिख़री बार 14/09/2019 को देखा गया)
89. देख, पेज 124, ले स इन क मीर, सैयद सनाउ लाह बट, अली मोह मद एंड संस, ीनगर, 1981
90. मामले को िव तार से देखने के िलए ख़ािलद अहमद बशीर, ेमनाथ बज़ाज़ और मोहन लाल कौल क पूव धृत
कताब देख।
91. देख, पेज 136, इले शंस इन क मीर, जी.एन. गौहर, मानस पि लके शन, द ली, 2002
92. देख, http://youtube.be/jCF4Mi1sQfl (आिख़री बार 2 अग त को देखा गया)
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अ याय-9
िखलंदड़ फ़ा क़, द ली का दख़ल और
घाटी म पहला सा दाियक तनाव
स ा म आने के बाद फ़ा क़ के रवैये म कोई ख़ास फ़क नह आया और उनका वह िखलंदड़
वभाव अलग-अलग प म सामने आता रहा िजसका िज़ लगभग हर जगह िमल जाता
है। ले कन इसका सबसे बड़ा उदाहरण उ ह ने शपथ- हण के अगले ही दन दया जब एक
िवशाल जनसभा म मंच पर बैठे अपने िपता के सभी मंि य को ‘चोर’ बताते ए बख़ा त
कर दया। इनम उनके वह डी.डी. ठाकु र भी थे िज ह ने उ ह मु यमं ी बनाने म मह वपूण
भूिमका िनभाई थी और उनके जीजा और ित ं ी ग़लाम मोह मद शाह उफ़ गुल शाह भी
िजनक शासन म गहरी पकड़ थी। िजन नये मंि य को शपथ दलाई गई, उनम से
अिधकतर अपने पूवव तय क तुलना म कम यो य थे और उनम से कम-से-कम एक
खु लमखु ला था और कसी भी तरह से ईमानदार नह कहा जा सकता था...। उनम
से एक यारे लाल हांडू नामक क मीरी पंिडत था जो ज दी ही फ़ा क़ के दमाग़ पर छा
गया और उनके िनदशक, िम और दाशिनक क भूिमका म आ गया।17 ज़ािहर है क इस
तरह उ ह ने एक साथ ढेर भावशाली दु मन बना िलये। राजनीित म पगे-पके अनुभवी
लोग मौक़ा िमलते ही पीठ म छु रा भ कने को तैयार रहते ह तो आपका एक अप रप
क़दम उनको पया मौक़े दे सकता है, और फ़ा क़ ने ऐसे कई मौक़े दये।
स ा म आने के बाद फ़ा क़ ने अपनी सरकार को वैधािनकता दान करने के िलए
ज द चुनाव कराने का फ़ै सला कया तो इि दरा गांधी चाहती थ क नेशनल कॉ स और
कां ेस िमलकर चुनाव लड़। क मीर म शासन का िह सा बने रहने क कां ेस क यह िज़द
समझना वाकई मुि कल है। बेगम अ दु ला इसके िलए राज़ी न 18 तो ये चुनाव दोन
पा टय के बीच तनाव का सबब बन गए। फ़ा क़ ने नेशनल कॉ स के पार प रक
ित ं ी रहे मीरवायज़ फ़ा क़ से हाथ िमला िलया। ‘डबल फ़ा क़’ के िलए ीनगर म तो
ख़ूब नारे लगे ले कन द ली से लेकर देश भर म उन पर सा दाियकता से लेकर भारत-
िवरोधी होने के आरोप च पां कये गए। यही नह , इस समझौते ने क मीर म मुि लम
वोट का ुवीकरण कया तो ज मू म िह दू वोट का ुवीकरण* कां ेस के प म आ।
इि दरा गांधी ने इसे ित ा का सवाल बना िलया था तो उ ह ने क मीर म जम कर
सभाएँ क । तीखे चुनाव चार के बीच एक दुभा यपूण घटना म इक़बाल पाक म इि दरा
जी क अि तम सभा के दौरान कु छ युवा ने अपने फरन उठाकर अ ील तरीक़े से
दशन कया।19 आरोप नेशनल कॉ स पर लगा। ठाकु र कहते ह क इस सभा ने फ़ा क़
और ीमती गांधी के म य यु क रे खा ख च दी।20 हालाँ क उस सभा म उपि थत रह
तवलीन संह इस घटना के होने पर ही शंका करती ह21 तो त कालीन रा यपाल
बी.के . नेह का मानना है, यह कु छ गुंडा त व का काम था और फ़ा क़ ऐसा कर ही नह
सकते थे।22
इन चुनाव म कां ेस को ज मू म 26 सीट तथा 30.1 फ़ सदी वोट िमले ले कन घाटी
म कोई उ लेखनीय सफलता नह िमली, वह नेशनल कॉ स न के वल घाटी म अपनी
पकड़ बनाये रखने म सफल ई बि क ज मू म भी उसने िपछली बार से एक सीट अिधक
जीती और 46 सीट के साथ ब मत हािसल कया। भीम संह क पथस पाट और अ दुल
ग़नी लोन क पीपु स कॉ स को एक-एक सीट पर सफलता िमली और बाक़ दो सीट
िनदिलय के खाते म ग । नेशनल कॉ स और कां ेस के बीच िह दू और मुि लम वोट के
ुवीकरण का असर यह आ क न तो भाजपा ज मू े म कोई सीट जीत सक , न
जमात-ए-इ लामी घाटी म।23
चुनाव क जीत से उ सािहत फ़ा क़ ने इससे कोई सबक सीखने क जगह चुनाव के
बाद और कड़ा रवैया अपनाया तो के और रा य के बीच तनाव अपने चरम पर प च ँ ने
लगा। इि दरा गांधी वैसे भी िवरोिधय के ित कसी िवशेष सिह णुता के िलए नह जानी
जात , फर क मीर के मामले म यह उ मीद तो वैसे भी यादा होती। फ़ा क़ ने अपने
िपता क क मीर म के ि त रहने और के से अ छे स ब ध बनाये रखने क नीित को
यागकर ीनगर क जािमया मि जद म घोषणा क क ‘म उनसे (कां ेस से) देश क हर
गली, हर नु ड़ पर लड़ूग ँ ा। मेरी परी ा पूरी ई। ले कन उ ह ज दी ही देश भर म
मतदाता का सामना करना है और देखते ह क वे कै से उनका सामना करते ह।’ 1984 के
लोक सभा चुनाव नज़दीक थे और फ़ा क़ िवप ी दल के साथ हो िलये। 1983 म ए
चुनाव म कां ेस ने दि ण म आं देश और कनाटक म मुँह क खाई। एन.टी. रामाराव
ने िवप ी एकता मज़बूत करने के िलए 28 मई, 1983 को िवजयवाड़ा म 14 मुख िवप ी
नेता क रै ली बुलाई िजसम फ़ा क़ भी शािमल ए। यही नह , 5-7 अ टू बर को उ ह ने
ीनगर म के -रा य र त को लेकर 17 ग़ैर-कां ेसी पा टय का एक स मेलन भी
कया। इि दरा गांधी के िलए यह एक आघात जैसा था।24
तवलीन संह िलखती ह—अगर फ़ा क़ को इस चुनाव के बाद राज करने दया जाता
तो घटनाएँ अलग तरह से घटत । वह इतने अग भीर थे, राजनीितक प से इतने हलके
क ब त दन तक लोकि य नह बने रह सकते थे।25 देख तो देश के बाक़ िह स म यह
आम था। सरकार चुनी जाती थ , फर अलोकि य होकर स ा से बाहर हो जाती थ । यह
लोग को कम-से-कम राजनीितक सश करण का एहसास तो कराता ही है। ले कन,
रा य और के म कां ेस ने िवप ी क भूिमका िनभाने क जगह, फ़ा क़ के स ा म आने
के अगले ही दन से उनक बख़ा तगी के िलए कोिशश करनी शु कर द । बी.के . नेह
बताते ह क तीन लोग द ली के मुख सलाहकार थे— अ ण नेह , मु ती मोह मद
सईद और माखनलाल फोतेदार। अ ण नेह को कसी भी तरह फ़ा क़ सरकार िगराने
क िज़ मेदारी दी गई थी, सईद रा य कां ेस के मुख और कां ेस के वफ़ादार िसपाही थे
और िजनक नज़र मु यमं ी क कु स पर थी। ले कन सबसे मज़ेदार मामला था
माखनलाल फोतेदार का जो कसी आिधका रक पद पर न होते ए भी इि दरा गांधी पर
गहरा भाव रखते थे। क मीरी पंिडत माखनलाल फोतेदार क कु ल राजनीितक पूँजी
डी.पी. धर क कृ पा से ‘जीता’ गया एक िवधान सभा चुनाव और उपमं ी का पद था।
ले कन उनक असली पूँजी थी इि दरा गांधी के ित अ ेय िन ा। वह रायबरे ली के
चुनाव म इि दरा गांधी के चुनाव एजट बने और उनक जीवनी द िचनार ली ज़ पढ़ते ए
उस पूरी या को समझा जा सकता है िजसम एक जनाधारिवहीन नेता द ली के स ा
के म मह वपूण ही नह बनता बि क क मीर जैसे मह वपूण रा य का भिव य तय
करता है।
फ़ा क़ का खेल तब िबगड़ना शु आ जब उ ह ने डी.डी. ठाकु र पर लगे ाचार के
आरोप क जाँच जि टस आई.के . कोतवाल से कराने का िन य कया िजनसे ठाकु र क
वैमन यता जगज़ािहर थी। राजनीित छोड़कर द ली म उ तम यायालय म वकालत
करने आ चुके ठाकु र के ित फ़ा क़ का यह ख़ समझना तब और मुि कल है जब ठाकु र
अपनी आ मकथा म ख़द इस त य को वीकार करते ह क द ली म फ़ा क़ ने उ ह अपना
आवास उपल ध कराया था। इस घटना के बाद ठाकु र फर से क मीर क राजनीित म
स य ए26 और उस गुल शाह के साथ फ़ा क़ को अपद थ करने के खेल म शािमल हो
गए िजनसे उनक कभी नह बनी थी। फ़ा क़ िवरोिधय को एक बड़ा मौक़ा िमला
ीनगर म 13 अ टू बर, 1983 को ए वे ट इं डीज़ और भारत के एक दवसीय मैच के
दौरान। वखलू िलखती ह :
अमर संह लब मैदान पर 75 लाख पये ख़च करके एक टेिडयम बनवाया गया था। बड़ी सं या म
लोग मैच देखने आए ए थे। रा य के के ट एसोिसएशन के अ य होने के नाते डॉ. फ़ा क़ ने
इसम गहरी िच ली थी। दशक म शहर के िव िव ालय, कॉलेज और े ीय इं जीिनय रं ग
कॉलेज के िव ाथ अ छी-ख़ासी सं या म थे।
जैसे-जैसे मैच आगे बढ़ा, भारतीय टीम के िखलािड़य को एक बेहद ितकू ल भीड़ का सामना
करना पड़ा। ये लोग अिधकतर जमा’त-ए-तुलबा के युवा छा थे िज ह ने माहौल ख़राब करना तय
कर िलया था। उ ह ने भारतीय िखलािड़य पर जूते और कू ड़ा फककर उनका अपमान कया। उ ह ने
चाँद-तारे वाले हरे झंडे फहराए...। घरे लू टीम के सद य बुरी तरह परे शान हो गए और वे खेल छोड़
देना चाहते थे ले कन डॉ. फ़ा क़ ने िनजी तौर पर ह त ेप कया और खेल जारी रखने के िलए
िनवेदन कया। एक बड़ी दुघटना टल गई ले कन नुकसान पहले ही हो चुका था।27
इस घटना का िज़ उस समय भारतीय टीम के सद य सुनील गाव कर ने अपनी
आ मकथा रं स एंड यूस म भी कया है। दूरदशन पर सा रत हो रहे इस मैच म घटी
घटनाएँ पूरे देश ने देख । चूँ क जमा’त का झंडा पा क तानी झंडे से िमलता-जुलता है तो
रा ीय ेस म पा क तानी झंडे फहराए जाने क ख़बर फ़ै ल गई। दूरदशन और आल इं िडया
रे िडयो पर भी ीनगर म क़ानून व था क ि थित के िबगड़ने क ख़बर नमक-िमच
लगाकर परोसी ग ।
बी.के . नेह पर फ़ा क़ क बख़ा तगी के िलए दबाव बनाये गए ले कन जब वह इस
खेल म नह शािमल ए तो उ ह हटाकर अ ैल, 1984 म जगमोहन को रा यपाल बनाकर
ीनगर भेजा गया। शाह के साथ जो 13 िवधायक फ़ा क़ के िख़लाफ़ जगमोहन के पास
प च ँ ,े उनम खेमलता वखलू भी थ । बी.के . नेह इस पर अचरज जताते ए बताते ह क
वखलू कस तरह उनसे कहा करती थ क अगर गुल शाह स ा म आए तो िह दु का
जीवन और उनक स पि असुरि त हो जाएँगे और यहाँ तक क द ली जाकर इि दरा
गांधी के सामने घुटन पर बैठकर िगडिगड़ाई थ क अगर उ ह क मीर के िह दु के ित
सहानुभूित है तो गुल शाह को मु यमं ी बनवाने क कोिशश न कर!28 ात है क
ीमती वखलू को फ़ा क़ के कायकाल म नेह ने िवधान प रषद म मिहला के िलए
सुरि त सीट म से एक पर नािमत कया था। वखलू भी अपनी द ली-या ा और ीमती
गांधी से फ़ा क़ के प म अपनी मुलाक़ात का िज़ करती ह, हालाँ क ज़ािहर तौर पर
उनके दये ए िववरण अलग ह। शाह ने सभी 13 िवधायक को कै िबनेट मं ी बना दया।
31 जुलाई को हंगामाखेज़ माहौल म शाह ने ब मत सािबत कर दया और क मीर के
इितहास म शायद सबसे सरकार अगले ढाई साल स ा म रही। शाह काे क मीरी
जनता का तीखा िवरोध झेलना पड़ा। स ा के पहले 90 दन म 72 दन तक क यू लगा
रहा और जनता ने इसे ‘गुल-ए-क यू’ का नाम दया। गुल शाह के जमा’त से गहरे स ब ध
थे और धम के ित उनका ख़ क रपंथी था। अहमद, शाह ारा सिचवालय सिहत अ य
कायालय म मि जद बनवाए जाने का िज़ करते ह। पुरी का मानना है क इसने क मीर
म इ लामी और ज मू म िह दू क रपंथ को बढ़ावा दया।29 अहमद बताते ह क उन दन
क मीर म ाचार इस क़दर हावी था क क मी रय ने उनक सरकार को ‘गुल शाह
और चालीस चोर’ का नाम दया था।30
इस बीच 31 अ टू बर, 1984 को इि दरा गांधी अपने ही अंगर क क गोिलय क
िशकार । देश ने िसख के िख़लाफ़ सा दाियक ह या का एक भयानक दौर देखा और
राजीव गांधी अभूतपूव ब मत से देश के धानमं ी बने। गुल शाह ने इस दौरान सबसे
बड़ी ग़लती क ीनगर लोक सभा से बेगम अ दु ला के िख़लाफ़ अपने बेटे मुज़ फ़र शाह
को टकट देकर। चुनाव म शाह को िजताने के िलए पूरी रा य मशीनरी लगा दी गई
ले कन अ ततः जीत बेगम क ई। इस चुनाव ने बेगम अ दु ला और फ़ा क़ क
लोकि यता सािबत कर दी और इधर फ़ा क़ ने स ा म वापसी के िलए अपने बचपन के
िम राजीव से मेलजोल क कोिशश शु कर द । जनवरी, 1985 म राजीव और फ़ा क़
क मुलाक़ात ई और बफ़ िपघलनी शु ई तो गुल शाह क िवदाई लगभग तय थी।
ले कन गुल शाह क िवदाई से पहले ही आज़ादी के बाद क मीर के आधुिनक इितहास
म पहली बार िह दु के िव सा दाियक हंसा क घटना ई। अयो या म राम मि दर
का ताला खुलने क घटना के बाद फ़रवरी, 1986 म अन तनाग िज़ले म ई इस
सा दाियक हंसा क घटना म कई मि दर और पंिडत के घर को ित प च ँ ाई गई।
जी.एम. शाह के साथ पाट छोड़नेवाले ग़लाम मोह मद मीर के मुतािबक़ : ‘क मीरी
पंिडत के िख़लाफ़ असुर ा का माहौल बनाया गया था। मु ती साहब इसके पीछे थे।’
िव थािपत क मीरी पंिडत के संगठन पनुन क मीर के अ य अजय कु मार चं ू का भी
मानना है क इन दंग के पीछे मु ती थे। उनका कहना है क कां ेस ने इसक जाँच के िलए
एक सिमित भी बनाई थी ले कन उसक रपोट सावजिनक नह क गई। इन सबके पीछे
मु ती क मह वाकां ा थी।31 इस घटना के बाद पंिडत नेता ने एक बार फर सरकार
पर अनदेखी का आरोप लगाते ए क मीर से िव थापन क अपील क । बलराज पुरी इस
घटना के बाद मौलाना अ दुल रहमान और बचन संह पंछी के साथ वहाँ गए थे और
शाि त यास म शािमल ए थे। वह बताते ह क इन घटना के लेकर जब उ ह ने लोग
से बात क तो लुक भवानी म उन लोग क अपील पर मुि लम समुदाय से दस हज़ार पये
मि दर के पुन नमाण के िलए एक कये गए। वह बताते ह क पंिडत ने उ ह बताया क
मुसलमान का दय-प रवतन हो जाने के बाद ही उ ह ने घाटी छोड़कर जाने का िनणय
बदल दया।32 पुरी और वानी, दोन ही यह रे खां कत करते ह क इसम जमा’त का कोई
हाथ नह था (पुरी-39, वानी-313) जब क वखलू (308) और धर इसम जमा’त के भी
शािमल होने क ओर इशारा करते ह। ले कन ठाकु र इसका एक प और बताते ह क
उनके कहने के बावजूद शाह इस घटना के बाद अन तनाग यह कहते ए नह गए थे क
यह ज मू म मुसलमान के िव ई हंसा क ित या थी।33
वखलू इस घटना के बाद उन इलाक़ म गई थ । वह बताती ह :
म उन गाँव के थानीय लोग , युवा , बुज़ग , सामुदाियक नेता और मिहला से िमली।
हालाँ क बड़ी सं या म मि दर और घर जलाए गए थे ले कन लोग उन घटना को लेकर काफ़
दुखी और श म दा थे। कई िह दु ने वीकार कया क उनके पड़ोिसय ने अपनी जान ख़तरे म
डालकर गुंड को उन पर अ याचार करने से रोका था।
वह यह भी बताती ह क इस दौरान ीनगर म मि दर और मि जद पर भड़काऊ
पो टस लगाने क घटनाएँ भी ई थ और इस घटना के बाद िह दू सरकारी कमचारी
िवरोध म मॉस कै ज़अल लीव पर चले गए थे और अगले दन शहर पूरी तरह से ब द रहा
था।34
मु ती को शायद यह उ मीद थी क यह घटना डाँवाँडोल शाह सरकार क ताबूत म
आिख़री क ल सािबत होगी तो कां ेस के स ा म आने क ि थित म उ ह मौक़ा िमल
सकता है।35 वखलू और ठाकु र को पढ़ते ए लगता है क शाह सरकार म शािमल उन दोन
सिहत कई लोग कां ेस के बेहद क़रीब थे तो यह उ मीद ब त असंगत भी नह थी। ले कन
जब 7 माच, 1986 को जी.एम. शाह क सरकार बख़ा त कर दी गई तो उ ह मौक़ा देने क
जगह आज़ादी के बाद पहली बार क मीर म रा पित शासन लगा दया गया। जगमोहन
अगले छह महीने क मीर के शासक रहे। राजीव गांधी ने कां ेस-नेशनल कॉ स
गठब धन का ताव रखा और इस बार फ़ा क़ अ ततः इसके िलए राज़ी हो गए।36
बलराज पुरी िलखते ह : ‘फ़ा क़ क देशभि पर से स देह ज द ही दूर हो गए और
य ही उ ह ने िवप से स ब ध तोड़कर कां ेस से स ब ध सुधार िलये, उ ह देशभि का
माणप जारी कर दया गया।37 रा पित शासन के दौरान जगमोहन के शासन को आम
तौर पर सभी ने ईमानदार और द बताया है ले कन वखलू एक मज़ेदार त य देती ह क
ाचार-िवरोधी अिभयान म जगमोहन ने कई व र इं जीिनयर को बख़ा त कर दया।
उनम से अिधकांश क मीरी पंिडत थे।38 हालाँ क इसी दौरान कई ऐसे िनणय िलये गए
िजसने उन पर इ लाम-िवरोधी होने का ठ पा लगाया, िजसका गहरा असर 1990 म
उनक दुबारा िनयुि के बाद देखा गया।
_______________
* दुलत का कहना है क यह िज़या-उल-हक़ क चाल हो सकती है। हािशम क़ु रै शी ने भी अपने सा ा कार म कहा है क
इस कायवाही क योजना अमानु ला ख़ान ने बनाई थी।
* माच, 1987 म आिशया अ दराबी ने दु तरान-ए-फ़ाितमा का गठन कया था िजसे आगे चलकर दु तरान-ए-िम लत
कहा जाने लगा।
* इस सा दाियक तनाव का कारण बना ‘ज मू एंड क मीर ांट ऑफ़ परिमट फ़ॉर रसेटलमट इन (ऑर परमानट
रटन टू ) द टेट िबल’ (सं ेप म ‘ रसेटलमट िबल’)। शेख़ अ दु ला ारा तुत और ज मू और क मीर िवधान सभा
ारा पा रत इस िबल का उ े य 14 मई, 1954 के पहले क मीर से बाहर गए कसी क मीरी नाग रक या उसके वा रस
(प ी या िवधवा) को भारतीय तथा ज मू और क मीर के संिवधान के ित िन ा क शपथ लेने पर क मीर लौटने का
अिधकार देता था। इस िबल को लेकर िववाद पहले भी आ था। िवधान सभा के भीतर कां ेस और अवामी ए शन
कमेटी के अलावा सभी दल के सद य ने इस पर असहमित ज़ािहर क थी। भारतीय जनता पाट इसे ‘उप वी क़ानून’
कह रही थी तो जनता पाट के त कालीन महासिचव सैयद शहाबु ीन ने कहा क ‘यह क़ानून क सरकार के नाग रकता
दान करने के एकल अिधकार का उ लंघन है।’ कां ेस के डॉ. करण संह ने इस िबल को ‘भयानक संभावना से भरा
आ’ बताया था। असल म इस क़ानून के बाद सबसे बड़ा ख़तरा पा क तान अिधकृ त क मीर से भारत-िवरोधी त व के
आने का था तो एक भय 1947 के बाद ज मू म बसे िव थािपत का भी था क वहाँ से पलाियत मुसलमान क जो
स पि याँ उ ह दी गई ह, वे उनके लौटने पर िछन जाएँगी। इस िबल को िवधान सभा म पास हो जाने के बावजूद रा य
के त कालीन रा यपाल बी.के . नेह क सहमित नह िमली थी और एक तरह से यह ठं डे ब ते म ही पड़ा था। ले कन
फ़ा क़ के शपथ- हण के नौव दन ही रा यपाल ने इसे वापस कर दया और िबल को दोबारा पेश कया गया। टकराव
एकदम सुिनि त था। िवधान सभा म कां ेस के व र नेता मंगतराम ने ‘शाि त और धीरज’ से इस पर िवचार करने क
अपील क और फ़ा क़ ने इसे 4 अ टू बर तक के िलए टाल दया। इस बीच फ़ा क़ द ली गए और इं दरा गांधी से
मुलाक़ात के दौरान एक फ़ामूला िनकला िजसके तहत 4 अ टू बर को यह िबल िवधान सभा म पास कया गया ले कन
साथ ही फ़ा क़ ने घोषणा क क जब तक सु ीम कोट इस स ब ध म फ़ै सला नह सुना देता तब तक यह िबल वैध नह
माना जाएगा। यह मामला उसके बाद से अब तक सु ीम कोट म लंिबत है। चुनाव म इसे नेशनल कॉ स और कां ेस,
दोन ने मु ा बनाया।
* घाटी म मीट के बड़े वसायी
* क मीर म आतंकवादी संगठन के उ व, कायवािहय और पा क तान से स पक के बारे म िव तार से समझने के िलए
पाठक कनल वेद काश क ‘टेर र म इन नॉथ इं िडया : ज मू एंड क मीर एंड द पंजाब’ पढ़ सकते ह और संगठन के
भीतर क उठा-पठक समझने के िलए डेिवड देवदास क ‘द टोरी ऑफ़ क मीर’।
* जहाँ क मीर शासन से जुड़े उ ािधका रय और मु यमं ी सिहत सभी बड़े नेता के बंगले ह।
स दभ
1. देख, पेज 22, क मीर : द के स फ़ॉर डम (स पादक : पंकज िम ा) म ता रक़ अली का लेख द टोरी ऑफ़
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क मीर, वस , ल दन, 2011
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(आिख़री बार 14/09/2019 को देखा गया)
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61. देख, पेज 62, क मीर : रे ज़ एंड रीज़न, गौहर गीलानी, पा, द ली, 2019
62. एजाज़ अशरफ़ वानी ारा उ धृत, पेज 342-43
63. देख, पेज 207, डायनािम स ऑफ़ पॉिल टकल चज इन क मीर, डी.एन. धर, किन क पि लशस, द ली, 2001
अ याय-10
ि थितयाँ लगातार बेक़ाबू होती जा रही थ और शासन इसके बरअ स कोई रचना मक
पहल करने म नाकाम था। शेख़ क भरपूर आलोचना के बावजूद यासीन ने एक जगह
वीकारा है क शेख़ अ दु ला क मीर म पैदा ए सबसे बड़े नेता ह। वे उनसे ेरणा भी ले
रहे थे। 1989 क ग मय म जे.के .एल.एफ़. ने ‘क मीर छोड़ो’ का नारा भी दया। बस,
सम या यह थी क जहाँ शेख़ के सामने गांधी जैसा मॉडल था और ‘नया क मीर’ जैसा
वि थत तथा जनप धर सपना, वह जे.के .एल.एफ़. के पास आज़ादी के नारे को
हक़ क़त म बदलने के िलए िसफ़ पा क तान से िमले एके 47 जैसे हिथयार और ह या का
िश ण थे। िवड बना यह क पा क तान अिधकृ त क मीर म ग़लाम नबी िगलकर के
ज़माने से ही क मीर क आज़ादी क बात करनेवाल के दमन का इितहास जानते ए
जे.के .एल.एफ़. उसी के सहारे आज़ादी के सपने बुन रहा था; या फर मुम कन है क इन
युवा को ग़ से के नशे म इितहास पढ़ने का मौक़ा ही न िमला हो वरना वे समझते क
ऑपरे शन टोपाज़ या भारत को हज़ार ज़ म देने क पा क तानी नीित कसी तरह से
क मीर को पा क तान म शािमल करने क नीित है और वे ‘आज़ादी’ जैसी कोई छू ट देने
को तैयार नह । ज द ही जे.के .एल.एफ़. को भी प रणाम भुगतने पड़े, ले कन उसके पहले वे
क मीर म ब दूक़ ला चुके थे। ह या का जो िसलिसला उस दौर म शु आ, भारत और
क मीर के अप रप राजनीितक नेतृ व के चलते वह एक ऐसे हंसक च ूह म फँ सता
चला गया, िजससे बाहर िनकलना आज तक मुम कन नह आ, और इसक क़ मत सबको
चुकानी पड़ी—ब दूक़ उठाए लोग को, बेगुनाह पंिडत को और बेगुनाह मुसलमान को
भी।
माहौल सुधारने के िलए सरकार ने जुलाई म पा क तान से लौटते ए पकड़े गए ऐसे 72
लोग को रहा कर दया िजन पर कोई ग भीर आरोप नह थे। ले कन इसका भी उलटा
असर आ और अगले ही दन सी.आर.पी.एफ़. कै प पर हमला आ और तीन जवान को
मार दया गया।2 21 अग त, 1989 को ीनगर म पहली राजनीितक ह या ई िजसम
नेशनल कॉ स के एक लॉक अ य मोह मद यूसुफ़ हलवाई को गोली मार दी गई।
सरकार ने मामले क ग भीरता को समझने और ग भीर क़दम उठाने क जगह ेस को
िनयंि त करनेवाला ज मू और क मीर पेशल पॉवर ( ेस) िबल ज दबाज़ी म िवधान
सभा म पेश कर दया। नतीज़ा एक और हड़ताल। फर 14 िसत बर को ह बा कदल म
घाटी के भाजपा अ य और वक ल टीका लाल टपलू तथा 4 नव बर को मक़बूल ब को
फाँसी क सज़ा देनेवाले यायाधीश नीलकांत गंजू क भी ह या कर दी गई। ह या क
िज़ मेदारी जे.के .एल.एफ़. ने ली और दावा कया क ये ह याएँ कसी धा मक कारण से
नह बि क राजनीितक कारण से क गई ह। ले कन इन ह या ने पंिडत के बीच
अस तोष और भय, दोन पैदा कये।3 असल म देखा जाए तो राजनीितक ह याएँ उस दौर
म लगातार ई थ । 1990-92 के बीच नेशनल कॉ स के पूव मंि य िह माउ ीन बांद,े
मोह मद अताउ लाह सुहरावद और अ दुल ग़नी वीराँ, िवधान सभा के पूव अ य वाली
अहमद बट, पूव िवधायक मोहमद सुभान बट, पीर मोह मद शफ़ , शेख़ मंज़ूर, अ दुल
रािशद दार, नािज़र अहमद वानी, ग़लाम क़ा दर मीर, अ दुल मािजद बांद,े नेशनल
कॉ स से जुड़े ग़लाम मोह मद बांद,े अनवर ख़ान, अ दुल ज बार, ग़लाम अहमद क़ारा,
ग़लाम रसूल ल टू, ग़लाम मोह मद वानी, मोह मद यूसुफ़ गनाई, मोह मद अ दुल मीर
और कई बड़े ापा रय , जनता दल के ग़लाम क़ादरी और ग़लाम रसूल ऋिष, धा मक
नेता मु ती जलालु ीन, शेख़ अ दु ला के भतीजे शेख़ सा दक़ क ह याएँ अलग-अलग
आतंकवादी ुप ने कर दी थ । यही नह , कां ेस नेता ग़लाम नबी आज़ाद के साले त सदुग
सैन का अपहरण कया गया था और फर उनके ससुर हाजी मोह मद अ दु ला के घर पर
बम से हमला आ था। 1992 म त कालीन गृह रा य मं ी राजेश पायलट के कारवाँ पर
हमला आ था तो 1994 म मु ती मोह मद सईद के घर पर।4 इसके अलावा कां ेस के
नेता मोह मद शफ़ क़ु रै शी के घर पर भी हमला आ था।5 गूजर समुदाय के सबसे
िति त नेता क़ाज़ी िनसार अहमद क ह या भी उसी दौर म ई तो रा य क क यूिन ट
पाट के पूव महासिचव अ दुल स ार रं जूर, क मीर िव िव ालय के कु लपित ो. मुशीर-
उल-हक़ और उनके सहायक, िति त सजन और जे.के .एल.एफ़. के आइिडयोलाग माने
जानेवाले डॉ. अ दुल अहद गु जैसे सैकड़ लोग भी उसी दौर म मारे गए।6 भारतीय रा य
के िख़लाफ़ यु म आतंकवा दय के िलए राजनीितक कायकता पहला िनशाना होने ही थे
ले कन इस म म पंिडत नेता क ह या ने अ पसं यक वग के भीतर एक असुर ा का
भाव पैदा कया। इसे राजनीितक कायकता क ह या क जगह मुसलमान ारा क मीरी
पंिडत क ह या क तरह देखा गया।
उधर, अमानु ला ख़ान 1989 क शु आत म ल दन से पा क तान चला आया था और
इस बार पा क तान म उसका वागत आ था। अपने क़ ज़े वाले क मीर को पा क तान ने
क मीरी लड़क के िश ण के िलए इ तेमाल कया और जे.के .एल.एफ़. को हिथयार तथा
धन मुहयै ा कराए। घाटी म जे.के .एल.एफ़. क पुन थापना हािमद शेख़, अशफ़ाक मािजद
वानी, जावेद अहमद मीर और यासीन मिलक ने क थी िजसे उनके नाम के पहले अ र के
आधार पर हाजी (HAJY)* ुप कहा जाता था। उस दौर म जे.के .एल.एफ़. का असर और
ख़ौफ़ इसी बात से समझा जा सकता है क जब 1989 म राजीव गांधी ने देश के लोक सभा
चुनाव के साथ क मीर म भी चुनाव कराने के िनणय िलये तो जे.के .एल.एफ़. के बिह कार
क घोषणा के चलते बारामूला म एक भी वोट नह पड़ा, सोपोर म पाँच वोट पड़े। ीनगर
म नेशनल कॉ स के अलावा कसी और पाट से कसी ने पचा ही नह भरा!7
एक स प ापारी प रवार म ज मे इस ुप के पहले कमांडर अशफ़ाक़ क पढ़ाई-
िलखाई क मीर के सबसे िति त टंडल िब को कू ल और फर ी ताप कॉलेज और
क मीर िव िव ालय म ई थी। टंडल िब को म पढ़ते ए ही वह सागर और आज़म
इं कलाबी** के स पक म आ गया था और उसी क ेरणा से उसने इन तीन के अलावा
मु ताक़-उल-इ लाम, शौक़त ब शी, इरशाद अहमद आ द के साथ इ लािमक टू डट लीग
बनाई थी जो आगे चलकर ज मू-क मीर िलबरे शन ं ट म बदल गई।8 इन सभी ने 1987 के
चुनाव म एम.यू.एफ़. के िलए काम कया था और चुनाव के बाद जब एम.यू.एफ़. के
लोग क िगर तारी शु ई तो 24 माच को अशफ़ाक़ भी िगर तार कर िलया गया। नौ
महीने बाद वह पैरोल पर रहा आ और शादी के अगले ही दन पा क तान िनकल गया।
जाने के एक दन पहले शादी म नेशनल कॉ स के व र नेता मोिहउ ीन शाह के यह
कहने पर क सरकार के िख़लाफ़ हो रहे दशन िनरथक ह, उसने कहा था क क मीर क
सरकार ने दो ग़लितयाँ क ह : पहली, भारत म िवलय करके और दूसरी, मुझे पैरोल पर
छोड़कर।9
क मीर म बनी बायनरीज़ म अ सर जे.के .एल.एफ़. को ‘से यूलर’ संगठन कहा जाता है।10
यह इस मानी म सुिवधाजनक हो सकता है क यह इकलौता संगठन है जो भारत और
पा क तान से अलग एक आज़ाद क मीर क बात करता है, और इसने लगातार सभी
स दाय के ितिनिध व का दावा कया, जब क इसके अलावा सभी संगठन के िलए
आज़ादी का नारा पा क तान म िवलय का पयायवाची है और सभी ने इ लामी तीक का
इ तेमाल कया। ले कन या इतने भर से जे.के .एल.एफ़. को एक ‘से यूलर संगठन’ कहना
उिचत होगा? हमने देखा है क घाटी म यह संगठन ‘इ लामी टू डट लीग’ से िनकला था
और 1987 के चुनाव म इ लामी पा टय और संगठन के अ ेला ुप मुि लम यूनाइटेड
ं ट के साथ था। ज़ािहर है, इसक ेरणाएँ से यूलर नह , इ लामी थ । ले कन इसे िसफ़
इ लािमक कहा जाना भी एक सरलीकरण होगा। क मीर िड पैच म छपे पूव धृत लेख म
िज़ है क 14 साल क उ म अशफ़ाक़ ने शेख़ अ दु ला क शवया ा म जाने से मना कर
दया था। गौहर गीलानी इस आ दोलन पर बात करते ए इसे द ली समझौते से उपजे
ग़ से क प रणित बताते ह। 1987 के चुनाव म नेशनल कॉ स और कां ेस के गठब धन
पर राजीव गांधी क बाद क ित या हमने पढ़ी है। कह न कह वह चुनाव द ली
समथक और थानीय भावना के बीच का चुनाव हो चुका था तो जनता का उसे िजस
तरह का समथन िमला, उसके बारे म हम पहले ही पढ़ चुके ह। असल म, लोकतं से
वंचना ने क मीर म जो अस तोष पैदा कया और शेख़ अ दु ला के समय से ही कसी भी
िवप को, यहाँ तक क वामपंथी और समाजवादी दल को भी, नह पनपने देने के कारण
जो शू य भरता चला गया, उसे जमा’त और दूसरी इ लामी ताक़त ने धीरे -धीरे भर
दया। द ली ारा रा य क स ा और राजनीित के िनयं ण, असंतुिलत िवकास,
ाचार और िवरोध क आवाज़ के ू र दमन के इस माहौल म इन ताक़त के िलए इस
या को ‘भारतीय िह दू सा ा यवाद’ का ‘मुि लम क मीर’ पर दमन सािबत कर दया
जाना सहज था और ऐसे म से यूलर े ीय क मीरी अि मता या क मी रयत क जगह
मुि लम अि मता के क मीरी रा वाद ने ले ली। यहाँ जे.के .एल.एफ़. को लेकर डेिवड
देवदास के े ण को देख लेना रोचक होगा :
...इ लामी रे ट रक का न ली सफाए को िछपाने के िलए उपयोग कया गया, ले कन पंिडत क
ह या न गूगा के पैन-इ लािमक लोग ने क , न श बीर शाह के पा क तािनय ने, न गीलानी के
क रवा दय ने। यह ह या जे.के .एल.एफ़. के रा वा दय ने क । अशफ़ाक़ के सबसे िव त लोग म
से एक फ़ा क़ दार उफ़ िब ा कराटे ने बाद म वीकार कया क उसने अके ले 47 पंिडत क ह या
क है।...1990 का सा दाियक िव ष े एक ू र वा तिवकता है। िपछले जाड़ क कई रात म
अशफ़ाक़ यासीन के पास बैठकर गाता था—एस बनाव पा क तान, बटाव तुए बटनावेऊ सान
(इसे हम पा क तान बनाएँगे िजसम पंिडत नह ह गे, के वल पंिडत मिहलाएँ ह गी)। उसके िपता
याद करते ह क वह हािमद और जावेद के साथ कामुक तरीक़े से इस मूखतापूण गाने को गाता था।
पंिडत के िख़लाफ़ क मीरी मुसलमान का सामािजक-आ थक अस तोष डेढ़ स दय से था।
आसान है क 1990 क इस पितत ू रता के िलए अ सी के दशक के इ लामी क रपंथ को िज़ मेदार
ठहराया जाए ले कन यह त य क इसे जे.के .एल.एफ़. ारा अंजाम दया गया है, बताता है क
पंिडत के िख़लाफ़ अस तोष सीमा पार कर चुका था।11
डेिवड के इस े ण को ब त ग़ौर से पढ़े जाने क ज़ रत है। यह तो प है क
जे.के .एल.एफ़. को बस इस मानी म ‘से यूलर’ कहा जा सकता है क वह सीधे पा क तान
म िवलय क बात करने क जगह ‘आज़ाद क मीर’ क बात करता था। हालाँ क वखलू ने
बाद के दौर म जे.के .एल.एफ़. के से यूलर वहार को िचि नत कया है िजसम राशन क
दुकान पर क़ ज़े के बाद दोन समुदाय को बराबरी से अनाज बाँटे जाने आ द का िज़ है।
ले कन फर ऐसे म ‘इसे पा क तान बनाएँग’े को कै से देखा जाए? इसके आधार पर
जे.के .एल.एफ़. को पा क तान समथक मान लेना तो ज दबाज़ी होगी, ख़ास तौर पर इस
त य क रोशनी म क क मीर म आतंकवाद का असर गहरा होते ही पा क तान ने
जे.के .एल.एफ़. क जगह ‘िहज़बुल मुजािहदीन’ को इसक कमान ही नह स पी बि क
िहज़बुल और जे.के .एल.एफ़. के बीच ख़ूनी संघष आ और अ ततः जे.एक.एल.एफ़. का
पूरी तरह सफ़ाया हो गया।12 मुख नेता होने के बावजूद अशफ़ाक़ ं ट का आइिडयोलाग
नह कहा जा सकता। ऐसे तमाम युवा उस समय जे.के .एल.एफ़. से ही जुड़े थे जो भारत के
िख़लाफ़ हिथयारब द संघष के हामी थे। बाद म जब पा क तान समथक त व हावी ए तो
उनम से कई ने पाले बदल िलये। अशफ़ाक़ उसके पहले ही सुर ा बल के हाथ मारा गया।
दूसरा यह कहना क िहज़बुल या दूसरे लोग ने पंिडत को नह मारा, अपने-आप म ब त
सही व नह । ऐसे म जे.के .एल.एफ़. का असर ख़ म हो जाने के बाद न दीमाग और
वंधामा सिहत ई अनेक घटना को कै से ा याियत कया जा सके गा? उदाहरण के
िलए ीनगर म ही 17 जून, 1990 को जे.एल. गंजू और उनके प रवार क तथा 14
अ टू बर, 1990 को यामलाल कौल तथा उनके प रवार के चार सद य सिहत 2 अ य
पंिडत क ह या पा क तान समथक अल-उमर मुजािहदीन ने क थी जब क िहज़बुल के
लोग ने 5 दस बर, 1992 को दयनाथ वांचू क ह या क थी। 10 अ ैल, 1993 को लाल
चौक ि थत सनातन धमशाला और अखाड़ा भवन को जला दया था और इसके अलावा
भी अलग-अलग घटना म कई पंिडत को मारा गया था।13 अनेक लोग ने इस बात का
िज़ कया है क जनवरी म कु छ पंिडत के घर पर जो पच लगाये गए थे या फर थानीय
अख़बार म क मीर छोड़ देने क जो धम कयाँ दी गई थ , वे िहज़बुल मुजािहदीन के
लेटरपैड पर थ । ऐसे ही अगर यह कहा जाए क जे.के .एल.एफ़. या दूसरे संगठन ने िसफ़
पंिडत को मारा तो इसे कै से ा याियत कया जाएगा क पहला हमला क मीर के
डी.आई.जी. एम.ए. वटाली पर आ था और पहली ह या 21 अग त, 1989 को नेशनल
कॉ स के नेता मोह मद यूसुफ़ हलवाई क ई थी, 3 जून को उनके भाई गुलशन वटाली
क ह या कर दी गई?14 कई बार कु छ नया कहने क कोिशश म कये गए सरलीकरण
िववेचना को भटका देते ह।
उस नारे या गीत का दूसरा भाग बेहद आपि जनक है और बताता है क कस तरह
िवचारधाराहीन आ दोलन म फै ली अराजकता सा दाियक नफ़रत से िमल-जुलकर उसे
‘पितत ू रता ’ तक प च ँ ा देती है। ले कन या इसे ‘न ली सफाया’ कहना सही होगा?
यह पद न बे के बाद के िव थािपत क मीरी पंिडत आ यान म भी अ सर सुना जाता है,
हालाँ क वखलू अपनी कताब म इसका कह िज़ नह करत । घाटी म मुसलमान क
आबादी कोई 95 फ़ सद थी और पंिडत आबादी साढ़े चार फ़ सद। अगर सारे मुसलमान
उस व त न ली सफाए के इरादे से आ दोलन म शािमल ए होते तो या मंज़र होता, उसे
सोचा जा सकता है। यहाँ यह िज़ कर देना उिचत होगा क िव थापन क या 1997
तक चली और इस पूरे व फ़े म पंिडत के कोई 800 प रवार ने घाटी न छोड़ने का िनणय
िलया, उनम खेमलता वखलू भी शािमल थ । इन पंिडत का आ यान अगले अ याय म
िव तार से दज कया गया है।
असल म इस ‘पितत ू रता’ के कारण का कोई सरलीकरण ामक ही होगा। क मीर
के इितहास को खंगालते ए हमने देखा है क दोन समुदाय के बीच िववाद और पंिडत
के िवशेषािधकार को लेकर क मीरी मुसलमान म और ख़ास तौर पर आज़ादी के बाद
नौक रय और स ा म मुसलमान के लगातार बढ़ते भाव को लेकर पंिडत म अस तोष
ब त प था और परमे री हांडू मामले जैसे कई मामल म समय-समय पर सामने आता
रहा। ले कन इसके बावजूद इस पूरे दौर म एक ऐसी घटना सामने नह आती है िजसम
मुसलमान क भीड़ ने पंिडत के साथ हंसा क हो, जब क घाटी म पंिडत आबादी कसी
एक इलाक़े म के ि त नह थी बि क वे पूरी घाटी म ब सं यक मुसलमान के साथ िमली-
जुली बि तय म रहते थे। यह पूरी या और गहरी तथा िव तृत िववेचना क माँग
करती है, िजसका यास अगले खंड म कया जाएगा।
डर
पंिडत का डर बेवजह नह था। अ पसं यक समाज के मनोिव ान म डर का एक अंश तो
होता ही है। फर िजस तरह क मीरी पंिडत क ह या ई थी, उससे डर पैदा होना ही था।
ख़ास तौर से तब, जब टीकालाल टपलू, लासा कौल और नीलकांत गंजू जैसे मह वपूण
लोग आतंक के िशकार ए, तो जो पहला भाव बना, वह यही क एक तो पंिडत िनशाने
पर ह और दूसरे यह क उनक सुर ा करने म भारत स म नह था। क मीरी पंिडत के
िलए शि के ोत भारत क सुर ा क आ ि त का टू टना एक अिधक गहरा आघात था
और वाभािवक प से इन जुलूस ने उस भय को और बढ़ा दया। यह यान रखना
चािहए क उस व त तक ीनगर म सेना नह प च ँ ी थी और अ सैिनक बल भी अपया
थे। यह सच है क के ीय सेवा म अपनी बड़ी सं या के कारण आतंकवाद के भारत-
िवरोधी अिभयान का िशकार पंिडत ए ले कन एक प यह भी था क आ दोलन म
सा दाियक वृि य के चलते कई बार क मीरी पंिडत िसफ़ इसिलए मारे गए क वे
पंिडत थे। िब ा कराटे का क़ सा हमने सुना है और उसके नेता अशफ़ाक़ का भी। नाम न
ज़ािहर करने क शत पर एक क मीरी मुि लम िम ने मुझे बताया क उनके मुह ले म य
ही खेल-खेल म मानिसक प से िवकलांग एक पंिडत को गोली मार दी गई थी। जहाँ
ब दूक़ िखलौन क तरह बँटी ई थ और ‘आज़ादी’ के नाम पर कोई भी पा क तान से
पैसे और हिथयार हािसल कर मुजािहद का िख़ताब हािसल कर एक नया संगठन खड़ा कर
ले रहा था, वहाँ वष के तनाव और सा दाियक िव ष े ही नह , िनजी दु मिनय के चलते
भी ऐसा होना नामुम कन तो या, वाभािवक-सा ही था। नतीजा—और अिधक डर!
इस डर के और भी रं ग थे। अनंतनाग के पास वलरहामा गाँव म रह रहे रतनलाल
तलाशी बताते ह क 1989 म माहौल ब त ख़राब हो गया था ले कन पास के कोलर गाँव
म कां ेस के एक बड़े नेता थे ग़लाम नबी। उनके रहते आसपास के गाँव के पंिडत सुरि त
महसूस करते थे। उनक ह या कर दी गई तो पंिडत ने गाँव छोड़ने का िनणय िलया,
जब क गाँव म न कोई पंिडत मारा गया था, न ही कोई दु वहार आ था।
यहाँ से डर का एक और प नज़र आता है और एक बड़े सवाल का जवाब ढू ँढ़ने म
मदद भी िमलती है। मारे पंिडत ही नह , मुसलमान भी जा रहे थे तो डर उस तरफ़ भी था।
अब भारतीय सेना से अिधक डर मुजािहद के नाम पर ब दूक़ लहराते गुंड से था।65
उदाहरण हमने पहले भी देखे ह, फ़लहाल अगर आिधका रक आँकड़ * को ही सही मान ल
तो क मीर म आतंकवाद के 11 वष (1990 से अ ैल 2011) के बीच कु ल 43,460 लोग
मारे गए िजनम नाग रक क सं या 16,686 थी। इनम आतंकवा दय के हाथ मारे गए
क मीरी पंिडत क आिधका रक सं या 319 है।66 लाश का गिणत िनकालना एक ू र
काम है, ले कन तक जैसे िन ु र े म इसके िबना काम भी नह चलता। अगर ितशत
िनकाल तो आिधका रक आँकड़ के मुतािबक़ कु ल नाग रक ह या म क मीरी पंिडत का
ितशत 0.734 आता है; जनसं या म उनक भागीदारी से कम। ज़ािहर है, मौत का डर
उस तरफ़ भी कम नह था। सरला भ क ह या के मामले म ज़ शी ने बताया है क
गाँववाल को प धमक दी गई थी क कसी क मदद न कर, तो वह डर आप समझ
सकते ह िजसने उ ह रोका, जो मदद करना चाहते थे। फर भी ऐसे अनेक उदाहरण यहाँ-
वहाँ िबखरे िमल जाते ह जहाँ पड़ोिसय ने सही समय पर सूचनाएँ द , रोकने क कोिशश
क । उ र क मीर के त मग के पास कुं जर वूसान गाँव क पंच रह आशा देवी ने बताया
क जब उनके गाँव के समृ पंिडत उ ह सूिचत कये िबना गाँव छोड़कर चले गए, तो
अगले दन गाँव के मुसलमान ने उनसे गाँव म ही कने क अपील क और भरोसा
दलाया क वे उ ह हर तरह से सुरि त रखगे। इस घटना के कोई दस साल बाद 2011 के
पंचायत चुनाव म वह एक मुि लम मिहला उ मीदवार को हराकर पंच चुनी ग ।
रतनलाल तलाशी ने भी बताया क जब अपने चाचा क बीमारी क वजह से ज मू जा रहे
अपने बाक़ प रवार के साथ वह नह गए तो गाँव के मुि लम पड़ोिसय ने उ ह भरोसा
दलाया क उनक सुर ा अब उनक िज़ मेवारी है और वह भरोसा आज तक क़ायम है।
संजय ट कू बताते ह क उनके घर पर भी पो टस लगाये गए थे िजनम क मीर छोड़ देने
क धमक थी। उ ह ने पड़ोिसय से स पक कया और सभी ने िमलकर उनसे कने के िलए
कहा। एक भु भोगी क मीरी पंिडत ओ.एन. ि शल कहते ह क 1989 के अ त म जब
घाटी म आतंकवाद क शु आत ई तो आम तौर पर मुसलमान ने पड़ोसी, िम या
सहकम के प म अपने पंिडत भाइय से अपने घर न छोड़ने को कहा और उ ह सुर ा
उपल ध कराई। कई मुसलमान ने उ ह अपने घर म जगह दी क वे आतंकवा दय से बच
सक। ऐसी घटनाएँ भी ह जब मुि लम मिहलाएँ पंिडत क र ा के िलए दरवाज़े पर अड़
ग ।67 ऐसा ही अनुभव अनंतनाग से न बे के दशक म पलाियत ए ो. मनोहर लाल
ट कू का भी है। वह बताते ह क उनक प ी इतना डर गई थ क उ ह ने क मीर छोड़ने
का फ़ै सला िलया जब क उनके मुि लम पड़ोसी यह िबलकु ल नह चाहते थे क वह घर
छोड़।68
जब क इसके िवपरीत िवचार रखनेवाल क भी कोई कमी नह है। ख़ािलद बशीर ने
अपनी कताब म दीप मैगज़ीन का उदाहरण दया है िजनका मानना है क उस दौर म
सारा मामला ‘हम’ और ‘वे’ का हो गया था और मुसलमान से मदद नह िमली। नि दता
ह सर क कताब म क मीर के ेड यूिनयन नेता स पत काश का िज़ है िज ह
धम कयाँ दी ग और घर छोड़ना पड़ा। ह सर बताती ह क जब वे बाद म उनके साथ
रै नावारी का अपना घर देखने गए तो पड़ोस से कई मुसलमान वहाँ आ गए और उनका
रवैया कतई दो ताना नह था।
कसी भी समय म िह दू और मुसलमान मोनोिलथ नह होते। अ छे-बुरे लोग,
से यूलर-सा दाियक लोग दोन ही तरफ़ होते ह और यह एकदम ज़ री नह क उस
समय सभी पंिडत का अनुभव एक जैसा रहा हो या फर सभी मुसलमान का अनुभव एक
जैसा रहा हो। ले कन इतना तो कहा ही जा सकता है क अगर दु मनाना भाव रखनेवाले
लोग थे तो ऐसे लोग क भी कोई कमी नह थी िज ह ने उन िवपरीत प रि थितय म भी
अपने पंिडत पड़ोिसय और सहयोिगय का साथ दया। इसका एक मा मक उदाहरण
जानी-मानी लेिखका, िश ािवद् और उस दौर म क मीर के एक कॉलेज क धानाचाय
रह नीरजा म टू के सं मरण म िमलता है। वह बताती ह क जब क मीरी पंिडत घाटी
छोड़कर जा रहे थे तो उ ह ने वहाँ कने का फ़ै सला कया। एक शादी क पाट म उनक
पुरानी दो त िमली और उसने कहा क अगर वे घाटी छोड़ने के बारे म सोच रही ह तो वह
उनका मकान ख़रीदना चाहगी, वह दूसरी तरफ़ जब िहज़बुल के आतंकवा दय ने उनके
पित का अपहरण करने क कोिशश क तो उनके ाइवर अ दुल ग़नी ने कसी तरह उनके
भागने म मदद क । इस अपराध के िलए बाद म आतंकवा दय ने उसे उठा िलया और जब
उससे पूछा क उसने एक पंिडत क मदद य क तो गनी ने कहा क ‘मने उनका नमक
खाया है और ऐसा कै से हो सकता है क मुसीबत म म उनक मदद न क ँ ?’ यही नह ,
उनके पड़ोसी भी उनके पित के साथ आए। इस सं मरण का अ त एक भयावह ंजना से
होता है—नीरजा और उनका प रवार उ भर ीनगर म रहा था। उनक िज़ दगी दो त
के एक नेटवक के इद-िगद घूमती थी िजसम हर धम के लोग थे। फर भी अब उ ह हर
कसी के इराद पर शक था। आतंकवाद के वष ने भरोसा कर पाने क मता को बुरी
तरह बबाद कर दया था।69 गीलानी कहते ह—जहाँ आपके पुरखे सैकड़ साल से रहते
आए ह, उसे छोड़ना ददनाक है। वहाँ रहना शायद और भयावह था। िव थापन ने
मुसलमान और पंिडत के बीच स दय पुराना ब धन और क मीर के सामािजक ताने-बाने
को बुरी तरह से न कर दया।70
अशोक धर उस दौर म मुसलमान क मानिसक-भौितक अवि थित का सटीक
आकलन करते ह :
कई क मीरी नह समझ पा रहे थे क कै से वहार कर। एक तरफ़ कु छ लोग के िलए वतं क मीर
क छिव एक स मोहक सा य लग रही थी तो दूसरी तरफ़ वे इतने डरे ए थे क अपनी ख़द क
िज़ दगी के बारे म कु छ कहने या कसी और क मदद करने क ि थित म नह थे।71
इन सबका असर यह आ क दोन समुदाय के बीच संवाद क जगह भी ख़ म
और वजह भी िसमटती ग । क मीर म लोग से िमलते-जुलते जो मेरा अनुभव रहा है,
उसम एक बड़े िह से म पंिडत के िव थापन को लेकर एक अपराधबोध-सा दखा है तो
एक िशकायत-भरा लहज़ा भी। गौहर गीलानी इस पूरी या को बड़ी सहजता से समेटते
ह:
म मानता ँ क कु ल िमलाकर घाटी के मुसलमान कसी हद तक िज़ मेदार थे। म यह भी मानता ँ
क पंिडत समुदाय अपने िव थापन के िलए एक हद तक ख़द भी िज़ मेदार है, इस साधारण-सी
वजह से क तब तक दोन समुदाय राजनीितक और िवचारधारा मक िवभेद के बावजूद भाईचारे ,
मेलजोल, धा मक सिह णुता और दो ती के शानदार ब धन के एक ऐसे माहौल म जीते थे िजससे
कसी को भी ई या हो सकती थी...। ऐसा लगता है क पंिडत कह रहे ह—अगर हमने घाटी छोड़ी
तो तुमने हम वापस य नह बुलाया? बस, हम एक या दो फ़ोन कर लेते और हम लौट आते। और
मुि लम कहते ह—तुमने तब य छोड़ा हमारा साथ जब हालात मुि कल थे? या तु ह भी हमारी
तरह मुि कल हालात का सामना नह करना चािहए था? या तु ह यह नह रहना चािहए था?72
एक बार कॉनि ल ट ज़ोन म बदलने के बाद क मीर के इितहास और वतमान क कम
ही चीज़ बचती ह िजनको लेकर कोई एकराय हो, मौत क सं या भी। वहाँ सबका अपना-
अपना टेक है, तो सच का कोई एक जैसा चेहरा ढू ँढ़ पाना मुि कल है। जहाँ तक इस दौर म
मारे गए पंिडत क सं या का सवाल है, ट कू बताते ह क ‘धम कयाँ और हंसा तो
क मीर म आम है। िपछले 20 साल म क मीरी पंिडत के िख़लाफ़ चार बड़ी घटनाएँ
ले कन जैसा पलाियत क मीरी पंिडत कहते ह, सामूिहक ह या या जेनोसाइड जैसा कु छ
नह है। उनका मानना है क पंिडत संगठन ारा िपछले बीस साल म 3000 या 4000
िह दु क ह या क बात दु चार है। वह सरकारी आँकड़े 319 से भी सहमत नह ह और
वा तिवक सं या 650 बताते ह। वह कहते ह, 650 कोई छोटी सं या नह है। हर जान
क़ मती है। ले कन हम आँकड़े सही रखने चािहए।73
ऐसे ही घाटी छोड़कर जानेवाले पंिडत क सं या पर भी कोई एकमत नह है।
क मीरी पंिडत समूह और कु छ िह दू दि णपंथी यह सं या चार लाख से सात लाख तक
बताते ह।74 ले कन यह सं या वा तिवक सं या से ब त अिधक है। असल म क मीरी
पंिडत क आिख़री िगनती 1941 म ई थी और उसी से 1990 का अनुमान लगाया जाता
है।75 इसम 1990 से पहले रोज़गार तथा अ य कारण से क मीर छोड़कर चले गए
क मीरी पंिडत क सं या घटाई नह जाती। पी.एल.डी. पा रमू ने 1947-50 के बीच
क मीर छोड़कर गए पंिडत क सं या कु ल पंिडत आबादी का 20% बताया है।76
िच लेखा ज़ शी ने इस िव थापन क वजह नेशनल कॉ स ारा लागू कये गए भूिम-
सुधार को बताया है।77 इसके बाद भी क मीरी पंिडत का नौक रय आ द के िलए क मीर
से िव थापन जारी रहा। इसका एक उदाहरण अनुपम खेर ह िजनके िपता साठ के दशक म
नौकरी के िसलिसले म िशमला आ गए थे। सुमां ा बोस ने यह सं या एक लाख बताई
है।78 राजनीित िव ानी अले ज़डर इवांस िव थािपत पंिडत क सं या डेढ़ लाख से एक
लाख साठ हज़ार बताते ह।79 पा रमू यह सं या ढाई लाख बताते ह।80 सी.आई.ए. ने एक
रपोट म यह सं या तीन लाख बताई है।81 िव टो रया कोफ़ ड यह सं या 1,40,000
बताती ह।82 अगर 1981 क जनगणना से देख तो पूरे क मीर म िह दु (िजसम पंिडत
के अलावा अ य भी शािमल थे) क सं या 1,24,078 थी। यह सं या कु ल जनसं या क
3.96 फ़ सदी थी। अगर िपछले दशक क िह दु क जनसं या वृि -दर 6.75 ितशत को
देख तो यह सं या 1,32,453 आती है। इसम से पलायन न करनेवाले लगभग 8000
क मीरी पंिडत क सं या घटा दी जाए तो यह सं या लगभग 1,24,453 आएगी।83 वह
भी तब, जब मान िलया जाए क िपछले दशक म नौक रय आ द के िलए एक भी पंिडत
घाटी से बाहर नह गया। एक मह वपूण त य अनंतनाग के त कालीन किम र वजाहत
हबीबु लाह क मीरी पंिडत संघष सिमित ीनगर क 7 अ ैल, 2010 ेस रलीज़ के
हवाले से बताते ह क लगभग 3000 क मीरी पंिडत प रवार ि थितय के सामा य होने के
बाद 1998 के आसपास क मीर से पलाियत ए थे।84 इसक जड़ म शायद वंधामा म
क मीरी पंिडत क ह या रही होगी।
यहाँ एक और त य का उ लेख करना समीचीन होगा। पा रमू ने बताया है क उसी समय
लगभग पचास हज़ार मुसलमान ने घाटी छोड़ी।85 सीमा काज़ी यूमन राइट वाच क
एक रपट के हवाले से बताती ह क 1989 के बाद से पा क तान म 38,000 शरणाथ
क मीर से प च ँ े थे। के ले महमूद ने अपनी मुज़ फ़राबाद या ा म पाया क सैकड़
मुसलमान को मारकर झेलम म बहा दया गया था। इन त य को साथ लेकर वह भी उस
दौर म सेना और सुर ा बल के अ याचार से 48,000 मुसलमान के िव थापन क बात
कहती ह। इन र यूिजय ने सुर ा बल ारा िपटाई, बला कार और लूट तक के आरोप
लगाये ह।86 हांगलू भी बताते ह क उस दौर म बड़ी सं या म ऐसे मुसलमान ने पलायन
क राह चुनी िजन पर मुख़िबर होने का ठ पा लगाया गया था।87 अफ़सोस क 1947 के
ज मू-नरसंहार क तरह इस िव थापन पर भी कोई बात नह होती।
ले कन या इस डर को दूर करने क कोिशश नह क जानी चािहए थ ?
इस सवाल का जवाब हम इस भयावह घटना क िज़ मेदा रयाँ तय करने के म म
शासन क ओर भी ले जाता है और कु छ ज़ री िब दु पर िव तार से चचा क माँग
करता है।
इस मामले म दो अितरे क दृि कोण ह। पहले के अनुसार, यह पूरी तरह से जगमोहन
क योजना थी क पंिडत को घाटी से बाहर िनकाल िलया जाए जब क दूसरे के अनुसार,
जगमोहन इसके िलए कतई िज़ मेदार नह थे और यह पूरी तरह से आतंकवादी संगठन
या मुसलमान क सािज़श थी। उदाहरण के िलए यारे लाल कौल के अनुसार, पंिडत का
घाटी छोड़ने के कारण पूरी तरह से मुसलमान क सा दाियक धम कयाँ थ । मि जद से
लोग को धम कयाँ दी ग । कु छ मुसलमान और आतंकवादी चाहते थे क पंिडत घाटी
छोड़ द।88 पूव सेना अिधकारी और र ा िवशेष मा फ़ रज़ा भी इसे ‘न ली सफाए क
सोची-समझी नीित’ बताते ह।89 यह आ यान रा ल पंिडत सिहत अिधकतर िव थािपत
क मीरी पंिडत क कताब म ही नह बि क भारतीय म यवग के बड़े िह से म भी
भावी है। जगमोहन ने अपनी कताब द ोज़ेन टबुलस म इन आरोप का जवाब देने क
कोिशश ही क है, हालाँ क उन जवाब म ल बे-ल बे आ यान अिधक ह और जवाब
लगभग अनुपि थत।
दूसरा दृि कोण यह है क क मीरी पंिडत को घाटी से बाहर िनकालकर घाटी म दमन
क योजना जगमोहन क थी। इस दृि कोण का समथन करनेवाल म घाटी के मुि लम
और बुि जीवी ही नह , अनेक िव थािपत पंिडत और बुि जीवी भी शािमल ह। इस पर
हम थोड़ा िव तार से बात करगे।
क मीर टाइ स क स पादक अनुराधा भसीन पूछती ह— य के वल दो दन म सारा
प रदृ य बदल गया? य ‘इ लामी आतंकवाद’ अचानक डरावना बन गया य क
ह याएँ तो महीन से चल रही थ ?90 यह सवाल बड़ा है। आिख़र 19 जनवरी, 1990 और
20 जनवरी, 1990 को ही क मीरी पंिडत ने इतनी बड़ी सं या म घाटी य छोड़ी?
इसका एक कारण बताया जाता है क उन दोन रात को जुलूस िनकले थे और मि जद से
घोषणा भी ई। ले कन जैसा क ज मू-क मीर के मु य सिचव रहे िवजय बकाया कहते ह
क जो हज़ार लोग उन रात को सड़क पर आए थे, उ ह ने एक भी पंिडत ि या घर
को कोई नुकसान नह प च ँ ाया था।91 खेमलता वखलू के पूव धृत सं मरण म भी न तो
कसी धमक वाले नारे का िज़ है, न ही घर या कसी ि पर कसी हमले का।
ग़ सा
हालाँ क एक बात तो िनि त प से समझी जानी चािहए क आतंकवादी गितिविधयाँ
बढ़ने और उ ह िनय ण करने के म म सुर ा बल क यादितय से क मीरी
मुसलमान के एक िह से म ग़ सा बढ़ने से पंिडत के भीतर एक भय का मनोभाव (Fear
Psychosis) भरा। यह एक त य है क जगमोहन के आने के साथ ही इस ग़ से और
अस तोष म एकदम से उछाल आया और अिधक से अिधक लोग जुलूस म शािमल होने
लगे। एम.जे. अकबर इसे और प करते ह—19 जनवरी के पहले तक आज़ादी के िलए
जनता का समथन अ य था, 19 जनवरी के बाद य हो गया।92 उस दौर म टाइम
लाइफ यूज़ स वस, टो यो के यूरो चीफ़ एडवड डेसमंड बताते ह क ‘जनवरी, 1990 तक
जे.के .एल.एफ़. ब त भावी ताक़त नह थी...और क मीर के बाहर इसे ब त कम तव ो
िमली थी। क मीर के भीतर भी शहरी म यवग अगर इसका िवरोधी नह था तो काफ़ हद
तक ऊहापोह म था य क उसे अपनी अ जत धन-स पि , फलते-फू लते पयटन उ ोग
और शाि त को खोने का डर था...हालाँ क युवा वग म बेरोज़गारी को लेकर ग़ सा था और
आम मा यता थी क फ़ा क़ ह और द ली के हाथ म खेल रहे ह। ले कन इसका यह
अथ िबलकु ल नह था क लोग एक जोिख़म-भरे िव ोह के िलए तैयार थे...। िबया सईद
क रहाई के बाद जे.के .एल.एफ़. के लोग ने जुलूस िनकाला। सुर ा बल ने उस पर गोली
चलाई और कई लोग मारे गए। उसी समय पुिलस और सी.आर.पी.एफ़. ने ीनगर के
इलाक़ म बड़े पैमाने पर तलाशी शु कर दी। जनता का ितरोध दूना हो गया—इस बार
पुिलस और सी.आर.पी.एफ़. ारा तलाशी के दौरान बला कार, टॉचर और चोरी के किथत
आरोप के कारण। इसक वजह से 21 और 22 जनवरी को जुलूस िनकले, िजन पर
गोलीबारी से 130 लोग क जान चली गई। कु छ मामल म य द शय ने
सी.आर.पी.एफ़. के लोग को घायल लोग को मारते देखा और सी.आर.पी.एफ़. क इस
ू रता के कारण पुिलस वाल म ग़ सा भर गया। कु छ हड़ताल पर चले गए और कु छ उनसे
िभड़ गए।’ इसी लेख म वह ज मू और क मीर के मु य सिचव रहे अशोक जेटली को
उ धृत करते ए कहते ह : ‘जगमोहन ने पाँच महीने म वह कर दया जो आतंकवादी पाँच
साल म नह कर पाते।’93 माच और अ ैल, 1990 म क मीर गए जि टस वी.एम. ताकु डे,
जि टस रा जंदर स र, बलराज पुरी और िश ािवद् अमरीक संह क टीम ने पाया :
वा तिवकता यह है क हाल के महीन म, ख़ास तौर से जनवरी, 1990 म जगमोहन के आने के बाद,
भयावह दमना मक कायवािहय से घाटी क सारी मुि लम आबादी भारत से कट गई है, और उनका
यह अलगाव अब कड़वाहट तथा ग़ से म बदल गया है।94
असल म जगमोहन ने पहले ही दन से आतंकवा दय क जगह जैसे क मीरी
मुसलमान से यु छेड़ दया था। अपने सावजिनक बयान म भी उ ह ने शाि त क कसी
अपील क जगह धमक क भाषा अपनाई। 20 जनवरी को दूरदशन से उ ह ने स देश
ँ ा।’95 19 फ़रवरी को उ ह ने िवधान सभा भंग
दया : ‘सुधर जाओ वरना म ठीक कर दूग
क और उस समय िवधान सभा के सद य गीलानी, अ दुल ग़नी लोन, अ दुल ग़नी बट,
अ बास अंसारी और क़ाज़ी िनसार को िगर तार कर िलया। मई म उ ह ने कहा :
आज क मीर म हर मुसलमान आतंकवादी है। सभी भारत से अलग होना चाहते ह। म ीनगर
दूरदशन के काय म म हेर-फे र इसिलए कर रहा ँ क हर कोई आतंकवादी है...। हालात इतने
िव फोटक ह क म इस राजभवन से बाहर नह जा सकता। ले कन मेरे पास हर िमनट क ख़बर है।
क मीर के िलए बुलेट ही एक हल है। जब तक सारे आतंकवादी नह मारे जाएँग,े क मीर म शाि त
नह लौटेगी।96
इस बयान को ज़रा ग़ौर से प ढ़ए—अब, ‘हर मुसलमान आतंकवादी है’ और ‘जब तक
सारे आतंकवादी नह मारे जाएँगे, क मीर म शाि त नह लौटेगी।’ यानी घाटी म शाि त
के िलए वहाँ के हर मुसलमान को मार डालना था! इस दृि कोण के साथ काम कर रहे
शासक के िलए यह स भव ही नह था क वह आतंकवाद से असहमत या उसके िशकार
क मी रय को साथ लेकर एक तरफ़ शासन को मज़बूत करता तो दूसरी तरफ़ ताक़त का
समुिचत योग करते ए आतंकवा दय का मुक़ाबला करता। हमने देखा है क न के वल
नेशनल कॉ स, कां ेस और जनता दल जैसी मु यधारा क पा टय के लोग
आतंकवा दय के िशकार हो रहे थे बि क िहज़बुल मुजािहदीन के आने के बाद आज़ादी-
समथक और पा क तान-समथक तहरीक के बीच भी तनाव पैदा आ था। सारे
मुसलमान को दु मन और दमन को इकलौता हिथयार मान लेने का प रणाम यह क इन
अ त वरोध का उपयोग कर उ ह कमज़ोर करने क जगह जगमोहन क नीितय ने इन
पर पदा डालकर उ ह एक होने और अपनी ताक़त बढ़ाने का मौक़ा दया। इसका सबसे
बड़ा उदाहरण है मीरवायज़ मौलवी फ़ा क़ क ह या के बाद उनका रवैया, िजसके बाद
अ ततः उ ह क मीर से जाना पड़ा।
21 मई, 1990 को मीरवायज़ क ह या कर दी गई। मीरवायज़ ने िबया सईद के
अपहरण को इ लाम-िवरोधी बताया था। उस समय क मीर मामल के के ीय मं ी जॉज
फनाडीज़ से मुलाक़ात क थी और कसी भी तरह क सुर ा लेने से इनकार कर दया था।
पा क तानी ेस का एक िह सा उ ह भारत का दलाल कह रहा था। जनता का स देह
िहज़बुल मुजािहदीन पर था और उनके अनुयाियय म इसे लेकर भारी रोष था।97 उस
व त तो कसी ने िहज़बुल का नाम नह िलया ले कन बीस साल बाद रयत के एक बड़े
नेता ने सावजिनक प से यह बात कही।* मीरवायज़ के जनाज़े के जुलूस म हज़ार लोग
शािमल ए। मु य सिचव आर.के . ठ र ने जगमोहन को क मीर के इस सबसे बड़े धा मक
नेता क मृ यु पर ख़द जाने या कसी व र अिधकारी को भेजकर रा य सरकार क ओर
से क़ पर फू ल चढ़ाने क सलाह दी। ले कन जगमोहन नह माने। यही नह , उ ह ने जुलूस
के रा ते और जुलूस पर ितब ध को लेकर भी कु छ म पैदा करनेवाले िनदश दये। इ ह
म के चलते ज मू-क मीर के व र पुिलस अिधकारी अ ला ब श के नेतृ व म पुिलस के
एक दल और अ सैिनक बल क एक टु कड़ी ने जुलूस पर तब गोलीबारी शु कर दी जब
वह अपने गंत मीरवायज़ मंिज़ल प च ँ ने ही वाला था। हताहत का आिधका रक आँकड़ा
27 था, भारतीय ेस ने मरने वाल क सं या 47 बताई और बी.बी.सी. ने 100। रउफ़
अहमद नामक एक युवा िपता पर तनी ब दूक़ देख सामने आ गया तो उसक देह म 28
गोिलयाँ िमल ! आलम यह क दो गोिलयाँ मीरवायज़ के शव को भी लग । 1998 तक यह
के स जाँच के दायरे म रहा और फर यह कहकर ब द कर दया गया क कोई भी आरोपी
पहचाना नह जा सका।98 क मीर म ई इन आपरािधक कायवािहय का एक ासद पहलू
यह भी है क चाहे पंिडत मरे ह या मुसलमान, अपरािधय को आम तौर पर कोई सज़ा
नह िमली।
इस तरह एक मौक़ा खो दया गया। जहाँ एक रणनीित के तहत सरकार मीरवायज़ क
क़ पर फू ल चढ़ाकर िह ब के ित जनता के ग़ से को भड़का सकती थी और अपने िलए
थोड़ी सहानुभूित पैदा कर आतंकवादी आ दोलन को कमज़ोर कर सकती थी, वहाँ सारा
ग़ सा अपनी तरफ़ मोड़ िलया गया।
कोफ ड िलखती ह—ह या के िख़लाफ़ ग़ से को सरकार के िख़लाफ़ िह टी रया म
बदल दया गया।99 जहाँ सारी दुिनया िह ब पर सवाल उठाकर माहौल बदल सकती थी,
वह अ तररा ीय ेस इस बबर घटना क तीखी आलोचना से भर गया और भारतीय ेस
जगमोहन क आलोचना से। बुश सरकार ने अपना िवशेष दूत भेजकर भारत से सेना के
योग म संयम करने का स देश िभजवाया तो रा य शासन के 137 कमचा रय ने
खुलेआम इस घटना क आलोचना क ।100 देशभि के नाम ऐसी मूखतापूण कायवाही
अ ततः देश के िख़लाफ़ जाती ही है।
यहाँ एक और मह वपूण बात जोड़ी जानी ज़ री है। द ली म 2003 म ई क मीरी
पंिडत क कॉ स म अशोक भान ने कहा : ‘जब हमने क मीर छोड़ा तो िसफ़ दो लोग थे,
िज ह ने इसका िवरोध कया—मीरवायज़ मौलवी फ़ा क़ और फ़ा क़ अ दु ला। इसके
अलावा राजनीितक जगत से कसी ने कु छ नह कहा।’101
इस डर और ग़ से क अ तः या ने जो माहौल बनाया, उसक एक बड़ी िज़ मेदारी
जगमोहन क बनती ही है। ‘डर’ और ‘गु से’—दोन म से कसी एक को अलग करके देखने
क कोिशश इकहरे िन कष तक प च ँ ने के िलए अिभश है।
साथ ही, योजना हो न हो, ले कन इस बात के तो पया माण ह क उ ह ने इस
िव थापन को रोकने के िलए वह कोिशश नह क , जो क जानी चािहए थी। बलराज पुरी
बताते ह क उस दौर म संयु सिमित बनाई गई थी िजसका उ े य क मीरी पंिडत का
पलायन रोकना था। इसम क मीर के पूव मु य यायाधीश मु ती बहाउ ीन फ़ा क़ ,
एच.एन. ज टू और ग़लाम नबी हा ू थे। कई मुि लम नेता , राजनीितक नेता और
आतंकवादी संगठन तक ने क मीरी पंिडत से पलायन न करने क अपील क । ले कन
ज टू ख़द ही ज मू चले गए। उ ह ने बाद म बताया क इस कमेटी के बनने के तुर त बाद
ही रा यपाल ने एक डी.एस.पी. को ज मू के हवाई टकट के साथ भेजा और ज मू म एक
घर दलाने का आ ासन देते ए तुर त ज मू चले जाने के िलए कहा...सरकार ने ऐसी
कोिशश को कोई मह व नह दया। उसी समय नये-नये आतंकवादी संगठन भी उभर रहे
थे जो सा दाियक घृणा फै ला रहे थे। पंिडत को डरानेवाले पो टर लगाये गए, धम कयाँ
दी ग और इस समुदाय के कु छ लोग क बेवजह ह या क गई। दोन समुदाय के
सा दाियक त व ने इस माहौल का पूरा फ़ायदा उठाया और अ ततः क मीरी पंिडत
घाटी से पलाियत होने पर मजबूर ए।102 ऐसे ही िन कष अकबर ने भी दये ह।103
‘कमेटी फ़ॉर इिनिशए टव ऑन क मीर’ क जुलाई, 1990 क रपोट क मीर इि जंड म
नातीपुरा, ीनगर म रह रहे एक क मीरी पंिडत ने कहा क ‘इस इलाक़े के कु छ लोग ने
दबाव म क मीर छोड़ा। एक क मीरी पंिडत नेता एच.एन. ज टू लोग से कह रहे थे क
अ ैल तक सभी पंिडत को घाटी छोड़ देना है। मने क मीर नह छोड़ा। डरे तो यहाँ सभी
ह ले कन हमारी मिहला के साथ कोई ऐसी घटना नह ई।’ 18 िसत बर, 1990 को
थानीय उदू अख़बार अफ़साना म छपे एक प म के .एल. कौल ने िलखा : ‘पंिडत से कहा
गया था क सरकार क मीर म एक लाख मुसलमान को मारना चाहती है िजससे
आतंकवाद का ख़ा मा हो सके । पंिडत को कहा गया क उ ह मु त राशन,घर, नौक रयाँ
आ द सुिवधाएँ दी जाएँगी। उ ह यह कहा गया क नरसंहार ख़ म हो जाने के बाद उ ह
वापस लाया जाएगा।’104 मेहबूब म दूमी का 27 िसत बर, 2016 को ेटर क मीर म एक
लेख कािशत आ है िजसम उ ह ने 22 िसत बर, 1990 को कु छ िति त िव थािपत
क मीरी पंिडत का उस समय क मीर के मुख दैिनक अख़बार को िलखा एक प अपनी
ट पणी के साथ दया है। मेरे आ ह पर उ ह ने उस प क पी.डी.एफ़. मुझे 17 अ टू बर,
2018 को मेल पर उपल ध करवाई। अं ेज़ी म िलखे इस प पर बृजनाथ भान, एम.एल.
धर, के .एल.कॉ, चु ी लाल रै ना, मोती लाल माम, अशोक कौल, एम.एल. मुंशी, बी.एन.
गंज,ू पु कर नाथ कौल, कमल रै ना, जी.एन. द तरी सिहत 23 पंिडत के ह ता र ह। इस
प म कहा गया है क ‘यह प है क समुदाय के कु छ वघोिषत नेता और अ य
िनिहत वाथ वाले कु छ लोग को जगमोहन ारा बिल का बकरा बनाया गया था िजसम
आडवाणी, वाजपेयी, मु ती और जगमोहन क मु य भूिमका थी। इसम एच.एन. ज टू को
‘मेकैिनक से नेता बना दलाल’ और ‘फ़ा क़ अ दु ला का िप प’ कहा गया है िजसने
पंिडत से िवनती क क वे क मीर छोड़ द और यह धम क र ा तथा अखंड भारत के
व के िलए ब त ज़ री है।’105 संजय ट कू बताते ह क उस दौर म क मीरी पंिडत के
एक ितिनिधमंडल ने जगमोहन से िमलकर अपनी सुर ा के िलए गुहार लगाई थी,
ले कन जगमोहन सुर ा उपल ध कराने क जगह ज मू जाने पर ज़ोर दे रहे थे।
तवलीन संह कहती ह : ‘कई मुसलमान यह आरोप लगाते ह क जगमोहन ने क मीरी
पंिडत को घाटी छोड़ने के िलए े रत कया। यह सच हो या नह , ले कन यह तो सच ही
है क जगमोहन के क मीर म आने के कु छ दन के भीतर वे समूह म घाटी छोड़ गए और
इस बात के पया सबूत ह क जाने के िलए संसाधन भी उपल ध कराये गए।’ वह आगे
कहती ह : ‘अजीब अफ़वाह थ और उन पर भरोसा करना मुि कल था ले कन उन पर
लोग आम तौर पर भरोसा करते थे क जगमोहन का मामला गड़बड़ है। सोपोर के मु य
बाज़ार म मेरे गाइड के प म चल रहे युवा के एक समूह ने मुझे एक िह दू दुकानदार
जय कशन से िमलवाया िजसने घबराते ए मुझसे कहा क यादातर िह दू जगमोहन के
आदेश पर रात के अँधेरे म चले गए ह ले कन वह नह गया य क उसे नह लगता क उसे
अपने मुसलमान पड़ोिसय से कोई ख़तरा है।’106 मुझसे बातचीत म रतनलाल तलाशी
सिहत कई पंिडत ने जगमोहन और ज टू क भूिमका क पुि क है। तलाशी बताते ह क
उनके गाँव के लोग को 2-2 हज़ार पये दये गए थे और साथ म ज मू म अ छी रहाइश
और नौकरी का वादा। वज़ाहत हबीबु लाह बताते ह क उ ह ने जगमोहन से दूरदशन पर
क मीरी पंिडत से एक अपील करने को कहा था क वे यहाँ सुरि त महसूस कर और
सरकार उनक पूरी सुर ा उपल ध कराएगी, ले कन जगमोहन ने मना कर दया। इसक
जगह अपने सारण म उ ह ने कहा क ‘पंिडत क सुर ा के िलए र यूज़ी कै प बनाये
जा रहे ह। जो पंिडत डरा आ महसूस कर, वे इन कै प म जा सकते ह। जो कमचारी घाटी
छोड़कर जाएँग,े उ ह तन वाह िमलती रहगी।’ ज़ािहर है, इन घोषणा ने पंिडत को
पलायन के िलए े रत कया।107 ो. नीरजा म टू ने दस बर, 2012 म गोवा आ स एंड
िलटरे चर फे ि टवल म बोलते ए कहा—उस समय क सरकार ने क मीरी पंिडत म
सुर ा का भाव भरने क जगह उ ह क मीर छोड़ने देने क आसान राह चुनी, और न के वल
उ ह घर छोड़ने दया बि क एक तरह से उ ह इसक सुिवधा दी यानी एक तरह क
र त।108
इन िववरण म इतने उतार-चढ़ाव ह और िनजी अनुभव से लेकर ितब ता तक के
इतने िविवध और िवरोधाभासी आयाम ह क कसी एक तरह क चीज़ को लेकर इकहरा
आ यान रच देना उनके िलए तो लड़ाई का िह सा जैसा हो सकता है िजनके क मीर क
इस कशमकश म टेक ह ले कन हमारे िलए यह तसवीर का एक पहलू देखने जैसा होगा।
न बे के दशक म ए पंिडत के पलायन-िव थापन के िलए आतंकवादी उभार,
सा दाियक तनाव, शासिनक रवैया और वे ऐितहािसक-सां कृ ितक-सामािजक
सं याएँ िज़ मेदार ह िज ह ने उन प रि थितय का िनमाण कया था िजसके म ेनज़र
वह धारणा बनी िजसक अिभ ि शहनाज़ बशीर के इस बयान म होती है क ‘लोग
को लगता था क क मीरी पंिडत हमेशा ही बाहरी शासक वग के साथ रहे।’109 इसम वे
सं याएँ भी शािमल ह िजनसे भारत क मी रय के एक िह से के िलए बाहरी रहा और वे
भी, िजनसे क मीर का राजनीितक संघष धा मक बनकर सामने आया। यह एक भयावह
ि थित थी। इस प रघटना का सार-सं ेप करते ए मृद ु राय कहती ह :
हालाँ क इस बात के कोई संकेत नह ह क क मीरी पंिडत को वहाँ से िनकालने क सरकार क
कोई सोची-समझी योजना थी ले कन इस बात के पूरे संकेत ह क सरकार ने पंिडत का पलायन
रोकने क पूरी कोिशश नह क ।
वा तिवकता शायद इन सब त व (धम कयाँ, ह याएँ, सरकार क ओर से सुर ा का आ ासन
न होना आ द) के संयोजन से बनती है। जो बात यथास भव प े तौर पर कही जा सकती ह, वह यह
क क मीरी पंिडत ने िनि त प से अपनी सुर ा पर ख़तरा महसूस कया होगा—या तो तुर त के
िलए या फर भिव य म अपने प रवार और स पि के सुरि त न होने क ।
ये भाव हर प रवार और हर ि के िलए अलग-अलग ह गे। ले कन अगर उ ह ऐसा ख़तरा
नह महसूस आ होता तो यह िववेिचत कर पाना बेहद मुि कल है क कै से इतनी बड़ी सं या म
उ ह ने वह थान छोड़ दया जो स दय से उनका वतन था।110
िजस घटना से म इस िह से का अ त करना चा ग ँ ा, वह इस पूरी प रघटना का एक
उपसंहार कर सकती है—सुर ा बल ने 1993 म 22 अ टू बर को अनंतनाग के िबजबेहरा
म एक शाि तपूण रै ली पर गोिलयाँ चला । चालीस से अिधक नाग रक मारे गए और डेढ़
सौ से अिधक लोग घायल ए। इनम एक 13 साल का कमलजी कौल नामक क मीरी
पंिडत लड़का भी था। इसके बाद कमल के प रवार ने क मीर छोड़ दया।111
पंिडत के पास क मीर छोड़कर जवाहर टनल से इस पार आने का एक िवक प
उपल ध करा दया गया था; या शायद वह हमेशा से था। मुसलमान को वह रहना था
और आतंकवा दय तथा सुर ा बल के दो पाट के बीच िपसना था। वे अगर इस तरफ़
आए भी तो उनका वागत नह था। वे हमेशा सि द ध क तरह देखे गए। इसके सैकड़
उदाहरण आपको यहाँ-वहाँ िमल जाएँग।े यह हक़ क़त क मीर क भयावह ासदी का एक
अनकहा क़ सा ज़ र है ले कन इसे दर कनार करके क मीर क हक़ क़त को नह समझा
जा सकता। हांगलू कहते ह—हालाँ क यह भी कहानी का एक िह सा है ले कन अ सर इस
पर कसी का यान नह जाता।
_______________
* हालाँ क डेिवड का कहना है क यह HAJI ुप है। अशफ़ाक़ का नाम दरअसल इशफाक़ था और यासीन का मूल नाम
असलम था। वेद गु ा ने भी इशफाक़ ही िलखा है ले कन बाक़ जगह पर अशफ़ाक़ आया है। वैसे इशफाक़ क मीर म
काफ़ चिलत नाम है।
** आज़म इं कलाबी द ली समझौते के बाद सोफ़ मोह मद अकबर क ‘महाज़-ए-आज़ादी’ से जुड़ा था जो मूलतः
जमा’त के संगठन ‘अवामी महाज़’ का नया नाम था। इसके पहले वह अल-फ़तेह से भी जुड़ा रहा और उन पहले क मीरी
आतंकवा दय म से एक है जो सीमा-पार से िश ण और हिथयार लेकर लौटे थे। 1987 के चुनाव के बाद उसे भी जेल
म डाला गया ले कन रहा होने पर 22 जनवरी, 1988 को उसने एकतरफ़ा यु िवराम घोिषत कया, हालाँ क इसका
उपयोग उसने भूिमगत प से नये युवा क भत के िलए कया। पा क तान समथक त व के आ दोलन म दबदबे के
बाद वह 1992 म ल दन भाग गया और फर वहाँ से लौटकर 1993 म पा क तान म रहकर क मीर क आज़ादी के िलए
अिभयान चलाने लगा। उसका टड पा क तानी शासन को नागवार गुज़रा और 1995 म उसे पा क तान छोड़ने पर
मजबूर कर दया गया। भारत आकर 16 जनवरी, 1995 को उसने हिथयार का रा ता छोड़ने क घोषणा क और
फ़लहाल गंभीर बीमारी म वह अलग-थलग जीवन जी रहा है (िव तार के िलए पूव धृत डेिवड देवदास क पु तक द
टोरी ऑफ़ क मीर देख और इं टरनेशनल जनल ऑफ़ सोशल साइं सेज के खंड 5, अंक 1, म छपा ग़लाम रसूल भ का लेख
ोफ़ाइल एंड पॉिल टकल आइिडयोलोजी ऑफ़ आज़म इ क़लाबी, 29-33 माच, 2016)।
* पा क तान क गु चर सं था
* इस क़ से क उपकथा यह क 2014 म म त गुल का नाम आिख़री बार पा क तान के पेशावर म ि़फदाइन हमल के
स दभ म सुना गया और इसके बाद िहज़बुल मुजािहदीन ने घोषणा क क उसे 2001 म ही संगठन से िनकाला जा चुका
है (http://www.hindustantimes.com/india/once-a-poster-boy-of-kashmir-militancy-mast-gul-declared-
villain-by-hizbul/story-c3OAie2h2mK0F0oHlgNZiM.html)।
* वखलू इसी म म अगले दन गौ कदल फाय रं ग का िज़ करती ह जो 21 जनवरी को ई थी। इसिलए लगता है क
वह 20 जनवरी क रात क ही बात कर रही ह।
* अनिधका रक ोत , मानवािधकार संगठन आ द के दावे दोन तरफ़ क आिधका रक सं या से कई-कई गुना ह।
* अगले अ याय म देख
* िववािहत क मीरी पंिडत मिहला के कान म पहने जानेवाला आभूषण
स दभ
1. देख, पेज 54, क मी रयत : द वायस ऑफ़ द पा ट िमसक यूड, र न लाल हांगलू, पाचमट ऑफ़ क मीर,
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2. देख, पेज 80, माई क मीर द डाइं ग ऑफ़ द लाइट, वजाहत हबीबु लाह, पि वन बु स, द ली, 2014
3. देख, वही, पेज 64
4. देख, अ याय 1 और 2, टेर र म इन नॉथ इं िडया : ज मू एंड क मीर एंड द पंजाब, वेद काश, क पाज़
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5. देख, पेज 362, क मीर : िबहाइं ड द हाइट कटन, खेमलता वखलू और ओ.पी. वखलू, कोणाक पि लशस ा.
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6. देख, पेज 210-11, डायनािम स ऑफ़ पॉिल टकल चज इन क मीर, डी.एन. धर, किन क पि लशस, द ली,
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7. देख, पेज 250, क मीर एंड शेर-ए-क मीर : अ रवो यूशन डीरे ड, पी.एल.डी. पा रमू, िचनार पि ल शंग,
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8. देख, http://kashmirdispatch.com/2013/07/30/july-31-1988-the-day-armed-struggle-began-in-
kashmir/117151/(आिख़री बार 14/09/2019 को देखा गया)
9. देख, http://kashmirdispatch.com/2011/03/30/ishfaq-majid-the-raw-clay-of-
resistance/102536/(आिख़री बार 14/09/2019 को देखा गया)
10. देख, https://www.bbc.com/news/world-asia-18738906 (आिख़री बार 14/09/2019 को देखा गया)
11. देख, पेज 289-90, द टोरी ऑफ़ क मीर, डेिवड देवदास, आथस उप ं ट, द ली, 2019
12. देख, यूरोिपयन एके डिमक रसच के खंड ii, अंक 11 (फ़रवरी, 2015) म कािशत बशारत नज़ीर पीर का लेख
च जंग नेचर ऑफ़ इं सरजसी इन क मीर।
13. देख, पेज 51 और 79, खंड, 1, टेर र म इन नॉथ इं िडया : ज मू एंड क मीर एंड द पंजाब, वेद काश, क पाज़
पि लके शन, द ली, 2008
14. देख, वही, पेज 90
15. देख, 31 मई 1993 को इं िडया टु ड◌े म छपा हरी बावेजा का लेख लू जंग कं ोल
16. देख, पेज 170, क मीर : ि ल पसेज ऑफ़ िह ी एंड द टोरी ऑफ़ गल, सैफ़ु ीन सोज, पा, द ली, 2018
17. देख, पेज 176, क मीर : द लड ऑफ़ र ेट, मूसा रज़ा, सी ने ट, चे ई, 2019
18. देख, वही, पेज 170
19. देख, पेज 51-53, क मीर द बाजपेयी इयस, ए.एस. दुलत, हापर कॉिल स पि लशस, नोएडा, 2015
20. देख, पेज 80, माई क मीर द डाइं ग ऑफ़ द लाइट, वजाहत हबीबु लाह, पि वन बु स, द ली, 2014
21. देख, पेज 65, क मीर : इं सरजसी एंड आ टर, बलराज पुरी, ओ रयट लॉ गमैन ाइवेट िलिमटेड, तीसरा
सं करण, द ली, 2008
22. देख, वही, पेज 81
23. देख, https://kashmirlife.net/when-i-wanted-to-go-to-aligarh-my-brothers-said-girls-cant-study-
they-cant-stay-in-a-hostel-10531/(आिख़री बार 14/09/2019 को देखा गया)
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29. देख, वही, पेज 144 पर राजेश भ ारा उ धृत ेस काउं िसल ऑफ़ इं िडया क रपोट ाइिसस एंड
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िलिमटेड, द ली, 1997
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2001
40. देख, पेज 351, क मीर : िबहाइं ड द हाइट कटन, खेमलता वखलू और ओ.पी. वखलू, कोणाक पि लशस ा.
िलिमटेड, द ली, 1997
41. लव पुरी
42. देख, पेज 114, क मीर द बाजपेयी इयस, ए.एस. दुलत, हापर कॉिल स पि लशस, नोएडा, 2015
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44. देख, यूरोिपयन एके डिमक रसच के खंड ii, अंक 11 (फ़रवरी, 2015) म कािशत बशारत नज़ीर पीर का लेख
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46. देख, पेज 68-69, िबटवीन डेमो े सी & नेशन : जडर एंड िमिलटेराइजेशन इन क मीर, सीमा काज़ी, वीमेन
अनिलिमटेड, द ली, 2009
47. देख, 15 फ़रवरी, 2016 को द नेशन म छपा अरशद मिलक का लेख हाई िडड आ ड इं सरजसी ‘फे ल’ इन
क मीर?
48. देख, पेज 175, क मीर : ि ल पसेज ऑफ़ िह ी एंड द टोरी ऑफ़ गल, सैफ़ु ीन सोज, पा, द ली, 2018
49. देख, 2 अग त, 2011 को अल ज़ज़ीरा म छपा सुमा ा बोस का लेख द इवो यूशन ऑफ़ क मीरी रे िस टस
50. देख, पेज 156, फा ट लाइं स ऑफ़ िह ी : द इं िडया पेपस (स पादक : उमा च वत ) म शबा सैन का लेख
से सुअल वायलस एंड इ यूिनटी, ज़बान बु स, द ली, 2016
51. देख, वही, पेज 154
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53. देख, पेज 69, िबटवीन डेमो े सी एंड नेशन : जडर एंड िमिलटेराइजेशन इन क मीर, सीमा काज़ी, वीमेन
अनिलिमटेड, द ली, 2009
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55. देख, वही, पेज 162
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57. देख, पेज 218, क मीर : िबहाइं ड द वेल, एम.जे. अकबर, रोली बु स, छठा सं करण, द ली, 2011
58. देख, पेज 60, क मीर द बाजपेयी इयस, ए.एस. दुलत, हापर कॉिल स पि लशस, नोएडा, 2015
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60. देख, पेज 82, माई क मीर द डाइं ग ऑफ़ द लाइट, वजाहत हबीबु लाह, पि वन बु स, द ली, 2014
61. देख, पेज 131, क मीर : एज आई सी इट, अशोक धर, पा, द ली, 2019
62. देख, पेज 62, क मीर द बाजपेयी इयस, ए.एस. दुलत, हापर कॉिल स पि लशस, नोएडा, 2015
63. देख, पेज 1-3, क मीर : िबहाइं ड द हाइट कटन, खेमलता वखलू और ओ.पी. वखलू, कोणाक पि लशस ा.
िलिमटेड, द ली, 1997
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अहमदाबाद, 2012
86. देख, पेज 118, िबटवीन डेमो े सी एंड नेशन : जडर एंड िमिलटेराइजेशन इन क मीर, सीमा काज़ी, वीमेन
अनिलिमटेड, द ली, 2009
87. देख, पेज 54, क मी रयत : द वायस ऑफ़ द पा ट िमसक यूड, र न लाल हांगलू, पाचमट ऑफ़ क मीर,
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88. देख, पेज 56-57, क मीर : ेल एंड ेवेल, यारे लाल कौल, सुमन पि लके शंस, द ली, 1996
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90. अनुराधा भसीन, ी के स टडीज़, मीिडया कवरे ज़ ऑन फो ड िड लेसमट इन कं टे पर र इं िडया, यहाँ ख़ािलद
अहमद बशीर क कताब से उ धृत, पेज 232
91. 8 जनवरी, 2013 को द िह दू म छपा लेख, ॉम द वैली, अ सेलेि टव रमे स ऑफ़ थं स पा ट, यहाँ ख़ािलद
अहमद बशीर क कताब से उ धृत, पेज 230
92. देख, पेज 218, क मीर : िबहाइं ड द वेल, एम.जे. अकबर, रोली बु स, छठा सं करण, द ली, 2011
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94. देख, पेज 152, क मीर इन काॅि ल ट : इं िडया, पा क तान एंड द अनएं डंग वार, िव टो रया कोफ़ ड,
आई.बी. टा रस एंड क पनी िलिमटेड, ल दन, 2003
95. देख, http://epaper.indianexpress.com/84143/Delhi/22-January-2013#page/7/2 (20 िसत बर, 2019
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98. देख, http://epaper.indianexpress.com/84143/Delhi/22-January-2013#page/7/2 (20 िसत बर, 2019
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99. देख, वही, पेज, 153
100. देख, एम.जे. अकबर, 219, हबीबु लाह, 88, पुरी, 68
101. देख, पेज 77, क मीरी पंिड स : ॉ लम एंड परसे शन (स पादक : अवंित भाटी), के राउं डटेबल म अशोक भान
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102. देख, पेज 70-71, क मीर : इं सरजसी एंड आ टर, बलराज पुरी, ओ रयट लॉ गमैन ाइवेट िलिमटेड, तीसरा
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103. देख, पेज 218-20, क मीर : िबहाइं ड द वेल, एम.जे. अकबर, रोली बु स, छठा सं करण, द ली, 2011
104. देख, http://www.greaterkashmir.com/news/op-ed/kashmiri-pandits-an-incendiary-venomous-
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105. देख, https://www.greaterkashmir.com/news/opinion/were-sorry-we-betrayed-you/ (20 िसत बर,
2019 को आिख़री बार देखा गया)
106. http://www.greaterkashmir.com/news/op-ed/kashmiri-pandits-an-incendiary-venomous-
narrative/225877.html म अ दुल मािजद म टू ारा उ धृत। (20 िसत बर, 2019 को आिख़री बार देखा
गया)
107. देख, पेज 86, माई क मीर द डाइं ग ऑफ़ द लाइट, वजाहत हबीबु लाह, पि वन बु स, द ली, 2014
108. ख़ािलद अहमद बशीर ारा पेज 241 पर उ धृत
109. देख, पेज 199, अ चाइ ड ड टु इं सरजसी, शहनाज़ बशीर, अ िडज़ोलेशन कॉ ड पीस, स पादक : अतहर िज़या
और जावेद इक़बाल भट, हापर कॉिल स इं िडया, नोएडा, 2019
110. देख,
http://www.aljazeera.com/indepth/spotlight/kashmirtheforgottenconflict/2011/07/2011724204546645823.html
(20 िसत बर, 2019 को आिख़री बार देखा गया)
111. 23 अ टू बर 2018 को क मीर लाइफ़ म छपा लेख, गीलानी ारा पेज 192 पर उ धृत
112. देख, पेज 54, क मी रयत : द वायस ऑफ़ द पा ट िमसक यूड, र न लाल हांगलू, पाचमट ऑफ़ क मीर,
स पादक : नायला अली ख़ान, प ेव मैकिमलन, यूयाॅक, 2012
113. देख, पेज 249, क मीर : ए पो ज़ंग द िमथ िबहाइं ड द नैरे टव, ख़ािलद बशीर अहमद, सेज पि लके शन इं िडया
ाइवेट िलिमटेड, द ली, 2017
114. देख, https://www.greaterkashmir.com/news/opinion/were-sorry-we-betrayed-you/ (20 िसत बर,
2019 को आिख़री बार देखा गया)
115. देख, https://factly.in/this-is-what-the-government-claims-it-has-done-for-the-kashmiri-pandits-
kashmiri-pandits-rehabilitation/ (20 िसत बर, 2019 को आिख़री बार देखा गया)
116. देख, गृह मं ालय क आदेश सं या 15030/14/07-KV
117. देख, वही, 12013/3/2012-KV
118. देख, वही 12013/6/2014-KV
119. देख, पेज 99-100, क मीरी पंिड स : ॉ लम एंड परसे शन, स पादक : अवंित भाटी, पा, द ली, 2015
120. देख, पेज 62-63, सोिशयो-इकाॅनोिमक ॉ ल स ऑफ़ क मीरी पंिडत, डॉ. जी.जी.पॉल एस., बुक पैलेस, ीनगर,
2015
121. देख, पेज 65, वही
122. http://www.aljazeera.com/indepth/opinion/2017/07/kashmir-communalisation-political-
dispute.170725082030871.html (20 िसत बर, 2019 को आिख़री बार देखा गया)
अ याय-11
िज ह ने घर नह छोड़ा
घाटी म रह रहे क मीरी पंिडत
ना। मुझे डर नह लगा। पूरे दो साल मने सोचा क पंिडत भाग य रहे ह! मेरा बेटा ब त परे शान
था ले कन मुझे कोई डर नह लगा य क म तमाम आतंकवादी लड़क को जानती थी। उनम से कई
मेरे हाथ ही पैदा ए थे...। मुझे दुःख आ उनके हिथयार उठाने का...। जो वे कर रहे ह, वह ग़लत है
ले कन रा य क सरकार और द ली के रवैये और क मीर पर उनक ग़लत नीितय ने सािबत
कया है क जब एक देश अपने युवा क ि़फ नह करता तो वे िव ोह म उठ खड़े ह गे और
हिथयार उठा लगे। क मीर एक ऐसी जगह है जहाँ स दय या पी ढ़य से हम ग़लाम ह। जब म ‘हम’
कहती ँ तो म इसम शािमल ।ँ 1947 के बाद से के सरकार क ग़लत नीितय ने इसे बबाद कर
दया है। जब म यहाँ आई तो मने अपने पित से पूछा क क मीरी इतने कायर य ह? वे ये सब य
बदा त करते ह? इसके िख़लाफ़ खड़े य नह होते? उ ह यह महसूस भी नह होता क वे कस
क़दर वंचना के िशकार ह। वह मुझसे कहते थे, क मीरी म कहते ह : ‘अगर हम लड़ नह सकते तो
या भाग भी नह सकते?’ हम पी ढ़य से ग़लाम रहे ह।
—डॉ. जगत मोिहनी
कहानी वांचू प रवार से शु करना चाहता ।ँ क मीर का इितहास पढ़ते दयनाथ वांचू
के नाम से प रिचत आ। 25 मई, 1925 को ीनगर के ह बा कदल के मािलयार म एक
म यवग य प रवार म ज मे वांचू छा जीवन म ही डोगरा शासन के िख़लाफ़ आज़ादी क
लड़ाई म शािमल हो गए थे और दो बार जेल हो आए थे। ‘क मीर छोड़ो’ आ दोलन म
उ ह एक साल क जेल ई थी। एस.पी. कॉलेज से ातक क परी ा पास कर उ ह ने
समाजसेवा के िलए रे ड ॉस सोसायटी चुनी और ज मू-क मीर म व र िच क सक के
साथ िमलकर अनेक योजनाएँ लागू करवाने म मुख भूिमका िनभाई, फर 1952 म
ीनगर नगरपािलका म मुलािज़म ए। वहाँ ेड यूिनयन गितिविधय के चलते सफ़ाई
कमचा रय क यूिनयन बनवाई और उनके अिधकार क लड़ाई लड़ी। जब उनक बात
का सरकार पर कोई असर नह पड़ा तो सफ़ाई कमचा रय के साथ सिचवालय पर उ ह ने
बड़ा दशन कया। वहाँ जब कमचा रय ने शहर क सारी ग दगी डाल दी तो शासन
चेता और न के वल िसर पर मैला ढोने क पर परा ख़ म ई बि क िनयिमत नौकरी से
लेकर इं योरस तक क सुिवधाएँ िमल । बटमालू म सफ़ाई कामगार के ब के िलए कू ल
खोला और इसके बाद उ ह ने ‘ ीनगर यूिनिसपल इ लाइज़ यूिनयन’ ग ठत क िजसक
शाखाएँ पूरे देश म फै ली थ । यह एटक से जुड़ी यूिनयन थी। वांचू काला तर म
महासिचव बने और इं डो-यू.एस.एस.आर. डिशप सोसायटी सिहत कई सं था म
मह वपूण भूिमकाएँ िनभा । इसके साथ ही उ ह ने साठ के दशक म समाज के ग़रीब वग
के िलए एक कं यूमर सोसायटी बनाई जो नो ॉ फट, नो लॉस के आधार पर उिचत मू य
पर लोग को ज़ रयात के सामान उपल ध कराती थी। 1989 म जब क मीर म
आतंकवाद शु आ तो क मीर छोड़ने क जगह उ ह ने वहाँ सुर ा बल ारा
क मी रय के मानवािधकार के हनन के मु े पर लड़ाई छेड़ दी। 65 साल के होते ए भी
वे उन मुि कल हालात म घर से िनकलकर दूर-दराज के गाँव म जाते, पुिलस और सुर ा
बल ारा ग़ैर-क़ानूनी तरीक़े से िगर तार कये और मार दये लोग के आँकड़े जुटाते और
हेिबयस कापस मुक़दमे दायर कर उनका िहसाब माँगते। बलराज पुरी िलखते ह क
क मीर म मानवािधकार उ लंघन के द तावेज़ीकरण का काम िजतनी िन प ता और
िजतने वि थत तरीक़े से दयनाथ वांचू ने कया, उतना कसी और ने नह ।
उस व त के हालात पर वांचू कतने खर थे, यह उनके इस बयान से समझा जा
सकता है :
यहाँ खुला दमन है। आज बीजेपी और आर.एस.एस. लॉबी खुलेआम कह रहे ह क जगमोहन को
उ ह ने भेजा है। क मीर पर कोई प सरकारी नीित नह है। नेशनल कॉ स और कां ेस के लोग
भाग गए ह। िवप को ख़ म कर दया गया है। म यमा गय के िख़लाफ़ वारं ट जारी कये गए ह।
राजनीितक कारवाइयाँ ितबि धत कर दी गई ह तो सरकार बात कससे करे गी? आज मु ती, जॉज
फनाडीज़, वी.पी. संह और रा यपाल अलग-अलग भाषा म बात कर रहे ह। मु ती ज मू म कहते ह
क क मीरी पंिडत को वापस भेजा जाएगा ले कन जगमोहन वहाँ उनके राशन काड क िमयाद
बढ़ा देते ह। ेस नोट राजभवन म तैयार कये जाते ह और वे सीधे दूरदशन और आल इं िडया रे िडयो
पर जाते ह। त य को तोड़ा-मरोड़ा जा रहा है। एक पूरी बारात क ह या कर दी गई ले कन आप
इसे अख़बार म नह पाएँगे य क इस ख़बर को फै लने नह दया जाएगा।’1
वह िविभ देश के दूतावास , धानमंि य और रा पित को मानवािधकार के हनन
के बारे म प िलख रहे थे और वहाँ आकर क मीर के ज़मीनी हालात को देखने क अपील
कर रहे थे। वह पहले ि थे िज ह ने कु नान पोषपुरा मामले म बला कार पीिड़त के
मामले दज कराए थे। अ पसं यक क मदद के िलए उ ह ने ‘िह दू वेलफे यर फोरम’ भी
बनाई थी जहाँ वह भय त अ पसं यक समुदाय क सहायता के िलए सदा त पर रहते
थे। ज़ािहर है, सरकार उ ह पस द नह करती थ । आज के दौर म भी तो ऐसे लोग को
एंटी नेशनल कहे जाने का चलन है ही।
5 दस बर, 1992 को जब अयो या म िह दूवादी ताक़त ने बाबरी मि जद के चार
ओर घेरा डाला आ था, ीनगर के जवाहरनगर और करण नगर के बीच का क़ सा
मु तसर-सा है। तीन लोग आए—दो ऑटो म और एक कू टर पर। उस दन दयनाथ जी
जोड़ के दद से परे शान थे ले कन जब उ ह बताया गया क एक सफ़ाई कमचारी के बेटे को
पुिलस उठा ले गई है तो वह िनःशंक ऑटो म बैठकर चल दये। आधे घंटे बाद जब सवा दस
बजे घर का फ़ोन बजा तो उनके पु कु मार वांचू के िलए ही नह , कसी के िलए भी
भरोसा करना मुि कल था क वह अब दुिनया म नह रहे। देखते-देखते ख़बर आग क तरह
फै ल गई। अगले दन जब अयो या म बाबरी मि जद तबाह क जा रही थी तो दयनाथ
जी के घर के सामने लाख लोग का जूम उ ह ांजिल देने प च
ँ ा। प रवार को लगा
क शवया ा िनकालने पर लोग का ग़ सा बाहर आ सकता है तो घर के पास डी.ए.वी.
कू ल के मैदान म उनक अि तम या क गई। उस जगह पर ही उनक समािध बनी ई
है। यूयाॅक टाइ स म पी.एम. वरदराजन ने िलखा—5 दस बर को जब अयो या म िह दू
क रपंथ और फ़ज़ रा वाद क ताक़त के अयो या क मि जद पर हमले के एक दन
पहले क मीर के सबसे मुख मानवतावादी दयनाथ वांचू क तीन अनजान
ब दूक़धा रय ने ह या कर दी।2 यूमन राइ स वाच क एक रपोट म आरोप लगाया
गया है क वांचू क ह या त कालीन रा यपाल िगरीश स सेना के कहने पर एक भारतीय
अिधकारी ारा करवाई गई थी य क वे ग़ैरक़ानूनी ह या के अनेक मामल क पैरवी
अ तररा ीय सं था म कर रहे थे3 ले कन नि दता ह सर का मानना है क उनक ह या
आतंकवा दय ने क य क वे नह चाहते थे क कोई पंिडत क मीर के ितिनिध के प
म सामने आए।4 ऐसे लोग सबके अि य होने के िलए अिभश ह शायद। उनक ह या के
जुम म आिशक़ सैन फ़क़तू उफ़ डॉ. क़ािसम को 1993 म आजीवन कारावास क सज़ा ई
और उसके बाद से वह जेल म है। संगवश बताता चलूँ, फ़क़तू दु तरान-ए-िम लत क
लीडर आिशया अ दराबी का पित है।5
ख़ैर, प कृ ण कौल पर लौटते ह। मेरा सवाल उनको मृितय म ले गया था। बताने
लगे क संयु प रवार था उनका। िपता के बड़े भाई घर के मुिखया। ेह ऐसा क मै क
के फॉम म िपता क जगह उनका नाम िलखवा आए। िश क प रिचत थे तो सही कया।
1989 म जब बलवा शु आ तो मागरमल बाग़ के उनके तीन मंिज़ले मकान से ज़रा दूर
ही बस लगती थ िजनम लड़के पा क तान जाते थे। जे.के .एल.एफ़. के कतने ही कमांडर
को बचपन से देखा था उ ह ने। हािमद शेख़, अशफ़ाक़ वानी, यासीन मिलक—सब
आसपास रहते थे। रोज़ ‘ए शन’ होते थे। कौल कहते ह—कु ल 8-10 लड़के ही थे उस समय
िमिलटट। ले कन जब छोड़ा गया िबया सईद को तो उ ह इतना मिहमामंिडत कया गया
क झुंड के झुंड लड़के पा क तान जाने लगे।
ले कन न जाने क असल वजह यह थी क ताया-ताई बुज़ग थे और कह न जाने क
िज़द पर अड़े थे। माँ-िपता-बहन—सब लोग गए। ले कन उनक देखभाल के िलए वह क
गए। 1994 म शादी ई। ससुराल के लोग पलायन कर ज मू म बसे ए थे। प ी से सगाई
के समय कहा क अगर परे शानी हो क मीर लौटने म तो म मना कर दूग ँ ा। वह सोपोर से
गई थ डेढ़ साल पहले ही। उ ह ने देखा नह था वह दौर इसिलए शायद वह डर नह था
उनम। ले कन शादी के बाद उ ह ने भी ब त झेला। उसी साल उनका अपहरण हो गया
था। हालाँ क जब घर के हालात बताए तो छोड़ दया गया। वह हँसते ए कहते ह—उस
व त ग़ज़ब हाल था। कह चार लड़के इक ा ए। ‘अल’ के आगे कु छ भी िलख के पच
छपवा ली और बन गया संगठन। पैसे कमाने का ज़ रया बन गया था। अपहरणकता उनसे
एक लाख पया महीने क ोटे शन फ स माँग रहे थे।
2016 म भी जब बुरहान वानी क मौत के बाद माहौल ख़राब आ तो कु छ उप िवय
ने घर म आग लगाने क कोिशश क ले कन सफल नह ए। दो ब े ह। बारहव तक यह
पढ़े, अब एक द ली म पढ़ता है, दूसरा पूना म। क मीर म यह चलन आम है। म िजतने
पंिडत प रवार से िमला, अिधकतर के ब े बाहर पढ़ते ह, रयत से जुड़े फ़ज़ल-हक़
अंसारी के लड़के द ली म पढ़ते ह। वहाँ रहनेवाले कई म यवग य मुि लम िम के यहाँ
भी मने यही पाया। कारण वही जो कौल कहते ह—क मीर म कसी का भिव य नह ।
कौल बताते ह क ‘सुर ा अब कोई सम या नह है और असुरि त तो यहाँ सब ह।
न बे के शु आती साल म लगता था डर ले कन अब डर नह लगता। ले कन क मीर म
कसी का कोई भिव य नह है। मानिसक शाि त कसी को नह है।’ मुझे जावेद शाह क
बात याद आई—‘क मीर म इन दो दशक से अिधक के तनाव ने कसी को नॉमल नह
रहने दया है।’ जब मने और कसी तरह क परे शानी के बारे म पूछा तो उ ह ने एक घटना
बताई—उनका टेट रे िज़डट का काग़ज़ खो गया था। जब बनवाने गए तो पूछा गया क
वह ज मू य नह गए! काफ़ दौड़ाया फर दस हज़ार पये माँगे। भेदभाव होता है
िह दु के साथ।’ हालाँ क ाचार के मामले म क मीर म शायद ही कसी से िबना पैसा
माँगे काम होता ले कन वह सवाल चोट प च ँ ाने वाला है ही। और यह सवाल क मीर म
रह गए पंिडत से बार-बार पूछा जाता है—क मीर म भी, ज मू म भी और कई बार
प रवार म भी। साथ ही अके ले पड़ जाने का एक दुःख है जो क मीर म रह रहे लगभग
सभी पंिडत म साझा है। तीज- योहार , शादी- याह म र तेदार क कमी खलती है।
िव थापन ने समुदाय के प म क मीरी पंिडत के अि त व को ही जैसे ख़तरे म डाल दया
है। जो बाहर ह, वे उन रीित- रवाज को नह िनभा सकते जो पर परा से चले आ रहे थे
और जो नह गए, वे अपने र तेदार , वजातीय बांधव के अभाव म उन रीित- रवाज
को िनभाना मुि कल पाते ह। वह बाहर गए पंिडत क नई पीढ़ी के अ तजातीय िववाह
पर भी िच ता जताते ह और कहते ह—यह चलता रहा तो क मीरी पंिडत समुदाय का
अि त व ज द ही ख़ म हो जाएगा।
कु मार साहब क तरह कौल भी ‘पनुन क मीर’ के अलग रा य बनाने क बात को
बेवकू फ़ बताते ह और कारण वही देते ह—‘पंिडत समाज िमडल लास का समाज है।
नाई से लेकर धोबी तक के िलए हम मुसलमान पर आि त थे। आज िजनसे भाग रहे ह,
कल अलग रा य बना तो उ ह बुलाना पड़ेगा।’ भिव य को लेकर क मीर म कोई आ त
नह ले कन कौल कहते ह क पहले भी पंिडत लौटे ह, अब भी लौटगे। एक-दो के आने से
कु छ नह होगा। पचीस-पचास हज़ार लौटगे तभी कोई फ़क़ पड़ेगा। ले कन कब और कै से,
यह कहना मुि कल है। फर लौटकर रहगे कहाँ? घर तो रहे नह अब। जब गए तो अपने
पड़ोसी मुसलमान को चाभी दे गए थे। सबको उ मीद थी क दो-एक साल म हालात
सामा य हो जाएँग।े 1994-95 तक घर सही-सलामत थे। पड़ोिसय ने ख़याल रखा।
हालात िबगड़े तो पुिलस हम यहाँ से डल गेट के पास होटल म ले गई। तब 5-6 प रवार थे
इलाक़े म। एक-एक प रवार को एक-एक कमरा िमला और कचन कॉमन। दुकान-धंधा सब
ब द। उस समय लगा क ऐसे यहाँ रहने से बेहतर है, ज मू चले जाएँ। काफ़ लोग चले भी
गए। ले कन फर कसी तरह से टल गया और यह रह गए। इस दौर के बाद सबको समझ
आ गया क पंिडत का लौटना अब मुम कन नह । काफ़ लोग ने मकान बेच दये। पंिडत
के मकान ख़रीदना एक धंधे जैसे बन गया। िजतनी बाज़ार क़ मत थी उसके ितहाई पर
लोग ने मकान बेचे। चोरी वग़ैरह क भी घटनाएँ । िमिलटट भी हाइड आउट क तरह
उपयोग करते थे इनका। तो अब ीनगर म यादातर मकान िबक चुके ह। इसिलए जो
बाहर 4-5 लाख महीने कमा रहे ह, वे य लौटगे यहाँ?
उ री क मीर के रहनेवाले और ीनगर म संचाई िवभाग म काम करनेवाले रिव
धर* भी कहते ह, न जाकर बेवकू फ़ क । उनके िपता ने जाने से मना कर दया था।
पड़ोिसय ने भी कहा था कने को। अ ततः कना पड़ा। सुर ा का मामला वह भी गौण
बताते ह ले कन भेदभाव क बात करते ह। पंिडत के िलए नौकरी नह यहाँ। ब े छोटे ह
तो यह पढ़ रहे ह ले कन बड़े होने पर बाहर भेजना पड़ेगा। पनुन क मीर क माँग पर
हँसते ए कहते ह—यह सब पॉिल ट स है।
वैसे पलायन का एक असर तो यह भी पड़ा क ज मू और क मीर क राजनीित से
पंिडत बाहर हो गए। न बे से पहले ह बा कदल और रै नावारी, दो जगह थ जहाँ िवधान
सभा चुनाव म पंिडत मत काफ़ थे। इसके अलावा माखनलाल फोतेदार जैसे लोग दि णी
इलाक़ से भी जीते थे, जहाँ पंिडत क अ छी-ख़ासी आबादी थी। यहाँ यह जान लेना भी
रोचक होगा क ह बा कदल से भाजपा के टीकालाल टपलू कभी चुनाव नह जीत सके ।
यहाँ तक क उनक ह या के बाद जब 1996 म उनक प ी सरला टपलू चुनाव लड़ तो
वह भी नेशनल कॉ स के यारे लाल हांडू से हार गई थ । इसके अलावा िवधान प रषद
म भी खेमलता वखलू जैसे कई लोग समय-समय पर मनोनीत होते ही थे। ले कन पलायन
के बाद ीनगर या घाटी से कसी पाट ने कसी पंिडत को टकट नह दया तो ज मू म
उनके नाम पर राजनीित करनेवाले दल ने भी कसी पंिडत को िवधान सभा तक भेजने म
कोई िच नह दखाई। 2002 म आिख़री बार ह बा कदल से एक क मीरी पंिडत रमन
म टू ने चुनाव जीता।16 आज नेशनल कॉ स म स य और फ़ा क़ अ दु ला के
राजनीितक सलाहकार पूव यूरो े ट िवजय बकाया के अलावा कोई क मीरी पंिडत रा य
क राजनीित म मुख भूिमका म नह दखता। कम-से-कम नेशनल कॉ स, पीडीपी या
कां ेस यह तो कर ही सकती थी क तीक के तौर पर ही सही, इन इलाक़ से कसी पंिडत
को टकट दया जाता। इसके अलावा पंिडत के िलए िवधान सभा म मनोनयन भी कये
जा सकते थे, ता क इस समुदाय के मु े िवधान सभा म उठाए जा सक। ले कन इ ह
छोिड़ए, दन-रात क मीरी पंिडत क बात करनेवाली बीजेपी ने भी रा य और के क
स ा म रहते इस बारे म कोई पहल नह क ।
ऐसे म त मग के कुं जर वुसन गाँव म मुि लम-ब ल वाड से पंच का चुनाव जीतने वाली
आशा देवी का मामला िवशेष है ही। 2018 के नव बर क सुबह हम जब उनके घर प च ँ े
तो कहवा के साथ उ ह ने रोटी और मूली का साग िखलाया। मूली का उतना वा द साग
मने कभी नह खाया था। उनके घर प च ँ कर सच कह तो आ य आ। पंच सुनकर लगा
था—आलीशान न सही, एक शानदार घर तो होगा ही। ले कन वह दो-तीन कमर का
अध-प ा मकान था। सामने छोटा-सा खेत और कु छ पेड़। जब हम प च ँ े तो उनके पित
अपने बाग़ीचे म जा रहे थे और आशा जी घरे लू काम म लगी थ । ज म भदरवाह म आ
था उनका एक बेहद ग़रीब घर म। शादी लगभग उसी समय जब बवाल शु आ क मीर
म। पहला सवाल वही पूछा मने क आप लोग य नह गए। जो कहानी सुनाई उ ह ने वह
सच का एक नया रं ग दखाने वाली है।
म फर से पूछता —
ँ ज मू और दीगर जगह पर जो पंिडत रह रहे ह, वे तो ब त तरह
क बात करते ह। देश भर म फै लाया जाता है क क मीर म एक भी मि दर नह बचा है।
सब जला दये गए। वह थोड़ा उ ेिजत से हो उठते ह—ज मू वाल का तो काम है यह। वे
तो कहग ही। आपको बताऊँ क बाहर से जो िमिलटट आते ह, उ ह भी यही कहकर भेजा
जाता है क क मीर म मुसलमान को अजान नह करने दी जाती। जब वह यहाँ आता है तो
देखता है, सब झूठ है। 1986 के बाद यहाँ तो कोई मि दर नह जलाया गया। आप हमारे
गाँव म जाकर देख लो। पुराना मि दर है। अब भी पूजा-पाठ होती है। म शिश से मुख़ाितब
होता ,ँ ‘आपको लगता है, ये लोग लौटकर आएँग?े ’ वह मु कु राती ह। वही फ क
मु कु राहट, ‘जो गए, वे बूढ़े हो गए ह। ब े सब ज मू, द ली, अहमदाबाद म सेटल हो
गए। यहाँ के लड़के ही रोज़गार के िलए बाहर जा रहे ह। वहाँ से कौन लौटेगा अब? ब त से
लोग ने खेत-मक़ान—सब बेच दये। िजनके ह, वे आते ह कभी-कभार। क़ ज़े नह ए
यहाँ। सब सुरि त ह। ले कन यहाँ आकर करगे या?’
मि दर का क़ सा क मीर म पुराना है। 1986 से ही िह दु ववादी दि णपंथ क मीर
म मि दर के तोड़े और जलाए जाने क बात करता रहा है और इसका उपयोग एक तरफ़
से यूलर प क मलामत करने म, तो दूसरी तरफ़ बाबरी जैसी घटना को यायसंगत
ठहराने म कया जाता रहा है। 1993 क शु आत म ह रं दर बावेजा ने क मीर म मि दर
क ि थित को लेकर एक मह वपूण रपोट क थी जो 28 फ़रवरी, 1993 को इं िडया टु डे म
‘डैमे जंग लाइज’ के नाम से छपी थी। बावेजा बताती ह क फ़रवरी, 1991 म लालकृ ण
आडवाणी ने कहा—वे सभी पा टयाँ जो बाबरी मि जद बचाने को अपना फ़ज़ मानती ह,
क मीर म तोड़े गए 55 मि दर के बारे म कु छ नह कहत । कु छ समय बाद उ ह ने यह
सं या 40 कर दी। भाजपा महासिचव के दारनाथ साहनी ने एक सूची उपल ध कराई और
कहा क इसम वे मि दर ह जो 1986 के बाद तोड़े गए, जब क उपा य के .आर. मलकानी
का कहना है क इसम वे मि दर ह जो 1989 के बाद मुि लम क रपंिथय ारा तोड़े गए।
बीजेपी का के ीय नेतृ व 1986 म तोड़े गए 46 मि दर क सूची देता है जब क भाजपा के
ही ज मू कायालय से 82 मि दर क सूची जारी ई और 1991 म एक व र
आर.एस.एस. नेता ने प कार बी.जी. वग स को 1989 के बाद तोड़े गए 62 मि दर क
सूची दी। मज़ेदार यह है क कई मि दर के नाम इन दोन सूिचय म ह। अब जो मि दर
1986 म तोड़े गए थे, वे 1989 के बाद दुबारा कै से टू ट सकते थे? इसके बाद मदनलाल
खुराना ने 52 मि दर क एक सूची जारी क िजसके बारे म दावा कया गया क वे 6
दस बर, 1992 को बाबरी मि जद के तोड़े जाने क ित या म तोड़े गए ह।
_______________
* पनुन क मीर का अथ है—‘हमारा क मीर’। िव थािपत पंिडत का यह संगठन अपने िलए एक अलग होमलड क माँग
करता है। िव तार के िलए देख—https://panunkashmir.org।
* नाम उनके अनुरोध पर बदल दया गया है।
* क मीर म िशवराि के दो दन या एक दन पहले फा गुन कृ ण चतुदशी को हेराथ यानी हर राि मनाई जाती है।
* देख, http://kashmiris-in-exile.blogspot.com/2018/04/190/90-kashmiri-pandit-fled.html?m=1 (आिखरी
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काल- म
िमथक क बात कर तो क हण 1184 ईसापूव से शु आत करते ह। ले कन आम तौर पर
इितहासकार क मा यता है क क मीर का ात और िव सनीय इितहास बाद के दौर
का है जहाँ से वह प ितिथयाँ देना शु करते ह। सुिवधा के िलए हम िजयालाल कलाम
क मा यता वीकार करते ए काक ट वंश (627-753 ईसवी) से ात और िनि त
इितहास मान ल तो अब तक क अविध लगभग डेढ़ हजार वष क ई। कमोबेश हर जगह
क मीर म वै दक धम क थापना और इस तरह ा ण के वेश का समय छठी से
आठव शता दी का माना गया है। यह कताब इसी अविध म क मीर म ा ण के बसने
और िबखरने क कहानी है। हालाँ क इसके पहले क कथा भी उपल ध ोत के सहारे
कही गई है िजसम बौ से लेकर शैव धम क थापना तक क कथा शािमल है।
छठी से आठव शता दी : बौ धम का पतन, वै दक धम का वच व थािपत, ा ण का वेश, चातुव य व था
थािपत, नीलमत पुराण का लेखन
510 ईसवी : ण स ाट िमिहरकु ल का शासन, गांधार से ा ण का आगमन
627-753 ईसवी : काक ट वंश, लिलता द य के काल (725 से 761 ईसवी) म अि गु गु सिहत अनेक िव ान का देश
के अलग-अलग िह स से क मीर म आगमन
635 ईसवी : बौ या ी वेनसांग का आगमन
950-960 ईसवी : अिभनव गु का ज म। यह दौर क मीर म शैव धम के बौि क और सां कृ ितक भाव के उ ज़ का था
1148-1150 : क हण ारा राजतरं िगणी का लेखन
1128-1155 : जयिस हा का शासनकाल, िह दू राजा के पतन के बीच आिख़री शि शाली िह दू राजा
1212-1235 : राजदेव के काल म ा ण पर भयावह अ याचार, ‘ना भ ोहम’ (म ा ण नह )ँ के नारे गूँजे
1320 : आ मणकारी जु चू का अ याचार और राजा सहदेव का पलायन
6 अ टू बर, 1320 : बौ रं चन का क मीर क स ा पर क़ ज़ा। कोटा रानी महारानी बन और शाहमीर मं ी। रं चन
धम-प रवतन कर सुलतान सद ीन बना
1323 : रं चन क मृ यु, उदयनदेव का रा यारोहण, कोटा रानी से िववाह
1338 : उदायनदेव क मृ यु, कोटा रानी और शाहमीर म स ा-संघष, शाहमीर का ग ी पर क़ ज़ा और शाहमीरी क
थापना
1373-1389 : सुलतान क़ु तुबु ीन के शासनकाल म शाह हमदानी का आगमन, पहली खानकाह क थापना, चम कार
क ितयोिगता से धम-प रवतन के यास और राजस ा का साथ, ा ण म अस तोष और शाह हमदानी क
वापसी
1317-1320 : शैव योिगनी लल द का ज म, अपने वाख से िह दू धम म ा कु रीितय पर कड़ा हार
1377 : शेख़ नू ीन उफ़ नुंद ऋिष का ज म, ऋिष सूफ़ पर परा का आर भ, इ लामीकरण का शाि तपूण दौर
1389-1420 : सुलतान िसक दर का रा यारोहण, मीर हमदानी का आगमन, सुहा भ का धम-प रवतन, मि दर के
वंस और ज़बरन धम-प रवतन का दौर, ा ण के भाव का ास और सैयद का दरबार म दबदबा
1420–1470 : सुलतान ज़ैनुल आबदीन का शासनकाल, क मीर का अि तम वणयुग, ा ण का दरबार म पुन : वेश,
कारकू न वग का उदय, जोनाराज ारा राजतरं िगणी के म म राजावलीपतक का लेखन। ह तिश प के उ ोग का
िवकास
1477 : शमसु ीन इराक़ के आगमन के साथ क मीर म िशया स दाय क थापना
1470-1561 : शाहमीरी का पतन। िशया-सु ी संघष। ज़ैनुल आबदीन के समय का सा दाियक स ाव लगभग न
1561-1586 : चक सा ा य, ा ण मु य धारा से लगभग बाहर
1586-1753 : क मीर म मुग़ल शासन का आिधप य, पंिडत क दरबार म वापसी और स ा-संघष, जिज़या समा ,
राज व िवभाग म धीरे -धीरे दबदबा, मैदानी इलाक़ म नौकरी क तलाश म िव थापन। मुग़ल दरबार के साथ-साथ
अलग-अलग रजवाड़ म वेश
1719-1748 : मुह मद शाह के दौर म क मीर से आए राजा जयराम भान के आवेदन पर क मीरी ा ण के िलए
‘क मीरी पंिडत’ स बोधन का आदेश
1624-1718 : पा भवानी का ज म, लल द क पर परा क शैव योिगनी
1753-1820 : अफ़ग़ान का क़ ज़ा, भारी लूट और अ याचार, राज व िवभाग म पंिडत का क़ ज़ा बरक़रार ले कन आम
िह दू और मुसलमान उ पीड़न और लूट के िशकार, धर प रवार मह वपूण होकर उभरा, कै लाश धर वज़ीर बने, बीरबल
धर के बुलावे पर िसख महाराजा रणजीत संह का हमला
1788-92 : पंिडत कविय ी अ नमाल का ज म, ह बा ख़ातून क पर परा म लोल िलखने वाल आिख़री किव
1824-1846 : िसख सा ा य थािपत, भारी लूट और अ याचार, राज व िवभाग म पंिडत का क़ ज़ा बरक़रार ले कन
आम िह दू और मुसलमान उ पीड़न और लूट के िशकार, शाल-उ ोग का पतन, बीरबल धर क िगर तारी और गणेश जू
धर का दबदबा, लाहौर दरबार म पंिडत का वेश और दबदबा, ि टश भारत के अनेक रजवाड़ म पंिडत ऊँचे पद तक
प च
ँ े; लखनऊ, इलहाबाद, कानपुर सिहत कई जगह पर क मीरी पंिडत बसे और द ली के बाज़ार सीताराम म
क मीरी पंिडत क बसाहट
1828 : द ली के ‘ द ली कॉलेज’ म अं ेज़ी क पढ़ाई शु , क मीरी पंिडत का वेश
1831 : द ली कॉलेज के पहले बीच के छा मोहनलाल ज़ शी, क छ के राजा के मुलािजम ए, िवदेश-या ा करनेवाले
पहले क मीरी पंिडत
1839 : महाराजा रणजीत संह क मृ यु और पंजाब म स ा संघष
1846 : सोबरांव के यु म अं ेज़ के हाथ िसख सेना परािजत, 16 माच को अमृतसर समझौते के तहत पचह र लाख
पय के बदले ज मू, क मीर, िगलिगट, बाि ट तान, पुंछ, ल ाख का े डोगरा शासक गुलाब संह के आिधप य म;
आधुिनक ज मू और क मीर रा य क थापना। दरबार के उ पद पर पंिडत क जगह पंजािबय और डोगरा का
क़ ज़ा ले कन राज व िवभाग के िनचले पद पर दबदबा जारी
1857 : जनिव ोह के दमन म डोगरा शासन का अं ेज़ को समथन
1865 : शॉल-उ ोग का पतन जारी, िश ु बुनकर का दाग़शाली िवभाग के मुख पंिडत राजाकाक धर के िख़लाफ़
िव ोह, भारी दमन
1877-79 : भयावह अकाल, एक भी पंिडत िशकार नह जब क मुि लम आबादी का भारी य
1880 : क मीर म पहला काॅ वट कू ल टंडल िब को कू ल (पूव नाम ि यन िमशन कू ल) थािपत
1890 : दाग़शाली िवभाग ब द, शॉल-उ ोग का पूरी तरह पतन
1891 : तीसरे डोगरा शासक ताप संह के रा यारोहण के साथ ही रा य म ि टश रे िजडसी क थापना
1894 : हरगोपाल कौल ारा सनातन धम सभा क थापना
1910 : घाटी म आयसमाज का वेश। आयकु मार सभा थािपत
1912 : क मीरी पंिडत ारा नौक रय म पंजािबय और अ य बाहरी लोग के भु व के िख़लाफ़ क मीर क मी रय के
िलए आ दोलन के फल व प पहली बार रा य नाग रक क प रभाषा तय क गई ले कन ढु लमुल प रभाषा से पंिडत
स तु नह और आ दोलन जारी
1919-24 : िख़लाफ़त आ दोलन म पंिडत क भागीदारी, मांस क बढ़ी क़ मत के िख़लाफ़ आ दोलन
31 जनवरी, 1927 : महाराजा ह र संह के शासनकाल म मज़बूत रा य नाग रकता क़ानून बना िजसम बाहरी लोग के
क मीर म नौकरी और ज़मीन ख़रीदने के अिधकार ख़ म कर दये गए, बाद म यह 35 ए का आधार बना
1929 : मुसलमान ारा नौक रय म भागीदारी क माँग
1930 : क मीरी पंिडत के बीच जारी समाज-सुधार आ दोलन के तहत महाराजा से िवधवा िववाह क अनुमित क
माँग, क यप ब धु इस आ दोलन के मु य नेता के प म उभरे , इसी वष फ़तेह कदल म युवा मुि लम छा ारा री डंग
म पाट का गठन
1931 : खुतबा पढ़ने से रोकने और क़ु रआन के अपमान के सवाल पर हंसक आ दोलन, दमन और दंगे
12 नव बर, 1931 : मुसलमान क माँग पर िवचार करने के िलए लांसी आयोग का गठन
12 जनवरी, 1932 : िह दु ारा लांसी आयोग का बिह कार
अ टू बर, 1932 : मुि लम कां स का गठन, इसी साल पंिडत कां स का भी गठन आ
22 माच, 1932 : लांसी आयोग क रपोट जारी। नौक रय म मुसलमान क भागीदारी को लेकर सं तुितयाँ, पंिडत
ारा ‘रोटी आ दोलन’
1935 : शेख़ अ दु ला और ेमनाथ बज़ाज़ ने हमदद नामक अखबार िनकाला
1936 : िज मेदार सरकार का आ दोलन शु । िह दू, मुि लम तथा िसख क भागीदारी
1936-38 : ज मू एंड क मीर यूथ लीग, कसान और मज़दूर सभा, कां ेस पाट और िह दू ो ेिसव पाट क थापना।
साझा संघष क शु आत
1939 : मुि लम कां स के अिधवेशन म इसका नाम बदलकर ‘नेशनल कां स’ कया गया. सभी धम के िलए वेश
खुला, सरदार बुध संह, क यप ब धु, िजयालाल कलाम और ेमनाथ बज़ाज़ जैसे लोग जुड़,े इसी साल भाषा-िववाद से
सा दाियक तनातनी भी
30 मई, 1940 : जवाहरलाल नेह क क मीर-या ा
1944 : िज ा क क मीर-या ा, शेख़ अ दु ला से िववाद
जून, 1945 : रामचं काक डोगरा राज के पहले क मीरी-भाषी पंिडत धानमं ी बने
1946 : ‘क मीर छोड़ो’ आ दोलन क शु आत, शेख़ अ दु ला के साथ क यप ब धु और सरदार बुध संह सिहत अनेक
लोग िगर तार
18 जून, 1947 : माउं टबेटन क ीनगर या ा, ह र संह िमलने से टालमटोल करते रहे
1 अग त, 1947 : गाँधी क क मीर-या ा और थोड़े समय बाद रामचं काक क बख़ा तगी
15 अग त, 1947 : बँटवारा और आज़ादी। महाराजा ह र संह का कसी भी देश से िमलने से इनकार
अ टू बर, 1947-1948 : पा क तान ारा क़बायली हमले क आड़ म क मीर पर क़ ज़े का यास, िह दु और
मुसलमान का क़बायली हमले का साझा मुक़ाबला। महाराजा का ीनगर से पलायन और भारत से संिध-प पर
ह ता र, शेख़ क रहाई, भारतीय सेना का क मीर म वेश और भारत-पा क तान का पहला यु और सीजफ़ायर,
क मीर के एक िह से पर पा क तान का क़ ज़ा
20 जून, 1949 : शेख़ अ दु ला क मीर के शासक बने, इसी वष संिवधान सभा ने क मीर के िलए एक िवशेष अनु छेद
370 बनाया
1950 : शेख़ ारा ‘िबग लडेड ए टे स अबोिलशन ए ट’ (ख़ा मा-ए-चकदारी) के तहत भूिम सुधार लागू और क़ज़माफ़ ,
ज मू म इसके बाद 370 का िवरोध शु
19 जून, 1953 : यामा साद मुखज क ीनगर म दयाघात से मृ यु
9 अग त, 1953 : शेख़ क िगर तारी, क यप ब धु और क मीरी पंिडत के भी कई मुख नेता िगर तार। ब शी ग़लाम
मोह मद क मीर के धानमं ी बने
1956 : रा य क संिवधान सभा ारा रा य का संिवधान पास, उ िश ण सं थान म वेश के िलए घाटी म 70 फ़ सद
सीट मुसलमान और 30 फ़ सद सीट ग़ैर-मुसलमान के िलए तो ज मू म 70 फ़ सद सीट ग़ैर-मुसलमान तथा 30 फ़ सद
सीट मुसलमान के िलए आरि त, पंिडत ारा इसका िवरोध
1958 : शेख़ क रहाई और फर िगर तारी
18 फरवरी, 1962 : ब शी ग़लाम मोह मद का इ तीफ़ा, शमसु ीन नए धानम ी बने
27 दस बर, 1963 : मो-ए-मुक़ स क चोरी के बाद भारी बवाल। शमसु ीन क जगह सा दक़ ग़लाम मोह मद 29
फरवरी, 1964 को धानमं ी बने
1 जून, 1964 : घाटी म जनसंघ क थापना
5 अ ैल, 1964 : शेख़ अ दु ला क रहाई, नेह ने कसी समझौते क संभावना तलाशने पा क तान भेजा
27 मई, 1964 : जवाहरलाल क मृ यु, लाल बहादुर शा ी धानमं ी बने, 370 म लागातार बदलाव जारी, सा दक़ के
समय धानमं ी और सदर-ए- रयासत स बोधन समा , नेशनल कां स का कां ेस म िवलय
8 मई, 1965 : शेख़ फर िगर तार
1965 : पा क तान का आ मण, क मी रय का साथ नह िमला, ताशकं द-समझौता और लाल बहादुर शा ी क दल
का दौरा पड़ने से मृ यु
28 जुलाई, 1967 : परमे री हांडू नामक एक मिहला ारा धम-प रवतन कर िववाह करने पर घाटी म सा दाियक
तनाव
1968 : क मीर म अल फ़तेह नाम से पहला आतंकवादी संगठन बना
1 मई, 1970 : वज़ीर किमटी क अनुशंसा के आधार पर नई आर ण नीित घोिषत िजसके तहत दिलत को 8 ितशत
और िपछड़ को 42 ितशत (िजसम 2 ितशत ल ाख के िलए था) आर ण, ले कन पंिडत अस तु
11 दस बर, 1971 : सा दक़ क मृ यु, सैयद मीर क़ािसम नये मु यमं ी बने
5 जून, 1972 : शेख़ क रहाई
13 नव बर, 1974 : द ली समझौता; 25 फ़रवरी, 1975 को शेख़ फर क मीर म मु यमं ी बने, बाद म कां ेस का
समथन वापस होने पर चुनाव
12 जून, 1975 : क मीरी राजनीित के चाण य डी.पी. धर क मृ यु
9 जुलाई, 1977 : िवधान सभा चुनाव म भारी जीत के बाद शेख़ मु यमं ी बने, जमात-ए-इ लामी पर ितबंध और
उसके कायकता का स त दमन
9 माच, 1981 : अनंतनाग म जमात के कायकता ारा शराब क दुकान क लूट, दुकान अिधकतर पंिडत क थ ।
8 िसत बर, 1982 : शेख़ अ दु ला क मृ यु, फ़ा क़ अ दु ला मु यमं ी बने
10 फ़रवरी, 1984 : जि टस नीलकांत गंजू ारा मक़बूल भ को िवमान अपहरण और ह या के आरोप म फांसी क सज़ा
2 जुलाई, 1984 : रा यपाल जगमोहन ारा फ़ा क़ क सरकार बख़ा त, कां ेस के समथन से गुल मोह मद शाह
मु यमं ी बने, अफ़रातफ़री का माहौल
31 अ टू बर, 1984 : इं दरा गांधी क ह या, राजीव गाँधी नये धानमं ी बने
फरवरी, 1986 : अयो या म राम मि दर का ताला खुलने क घटना के बाद अन तनाग िज़ले म सा दाियक हंसा
7 नव बर, 1986 : कां ेस के साथ चुनाव लड़कर फ़ा क़ दुबारा मु यमं ी बने, ले कन चुनाव म भारी धांधली का
आरोप और अस तोष
1988-89 : घाटी म अस तोष, कई आ दोलन, िछटपुट हंसक घटनाएँ, पा क तान ारा क मीरी लड़क का िश ण
21 अग त, 1989 : क मीर म पहली राजनैितक ह या, नेशनल कां स के मोह मद यूसुफ हलवाई को गोली मारी गई
14 िसत बर, 1989 : भाजपा नेता टीकालाल टपलू क ह या, 4 नव बर को नीलकांत गंजू क ह या, पंिडत म भय ा
2 दसंबर, 1989 : िव नाथ ताप संह के नेतृ व म क म रा ीय मोचा सरकार, मु ती मोह मद सईद गृहमं ी बने
7 दस बर, 1989 : मु ती मोह मद सईद क पु ी िबया सईद का अपहरण, घाटी म बवाल, आतंकवा दय क रहाई,
ह या का दौर जारी
18 जनवरी, 1990 : फ़ा क़ का इ तीफ़ा और जगमोहन क मीर के रा यपाल बने, भारी जुलूस, गोलीबारी, ह याएँ;
पंिडत ने बड़ी सं या म घाटी छोड़ी
1990-1997 : घाटी म भयानक अफ़रातफ़री, दोन धम के हज़ार लोग मारे गए, पंिडत का पलायन, मुि लम भी
बाहर गए
21 माच, 1997 : बडगाम के सं ामपोरा म 7 पंिडत क ह या
1998 : वंधामा म 23 पंिडत क ह या
23 माच, 2003 : पुलवामा िजले के न दीमाग म 24 पंिडत क ह या
2000 : पंिडत के िलए लै स बने और नौक रय का आवंटन
2007 : घाटी म रह रहे पंिडत ारा दशहरा उ सव क शु आत
2008 : अमरनाथ िववाद से फर सा दाियक तनाव
2011 : मनमोहन संह सरकार ारा िव थािपत पंिडत के िलए पेशल पैकेज, घाटी म रह रहे पंिडत ारा पैकेज म
िह से क माँग, 2016 म कोट का फ़ै सला हक़ म, ले कन िसख ारा टे
5 अग त, 2019 से अब तक : 370 हटाने और ज मू और क मीर को दो क शािसत देश म बाँटने का फ़ै सला, सूचना
पर बं दश, भारी मा ा म सुर ा बल तैनात, चार महीन बाद भी ितब ध जारी, सरकार का दावा क सब नामल है,
लोग का कहना क यह यू नॉमल है, मामला उ तम यायालय म।