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क ौन था मै क ाले ?
ांितकारी बदलाव

मैकाले नाम हम अ सर सुनते है मगर ये कौन था? इसके उ े य और िवचार या थे ?

मैकाले: मैकाले का पूरा नाम था ‘थोमस बै ि बं ग टन मै क ाले ’....अगर ि टे न के नज रय से देख...तो अं ेज का ये एक अमू य र न था। एक उ दा
इितहासकार, लेखक बंधक, िवचारक और देशभ .....इस लए इसे लाड क उपा ध िमली थी और इसे लाड मैकाले कहा जाने लगा। अब इसके
मिहमामंड न को छोड़ म इसके एक ि िटश संसद को िदए गए ा प का वणन करना उिचत समझूगं ा जो इसने भारत पर क ज़ा बनाये रखने के
लए िदया था ...२ फ़रवरी १८३५ को ि टे न क संसद म मैकाले क भारत के ित िवचार और योजना मैकाले के श द म:

"म भारत म काफ घुम ा हँ । दाएँ - बाएँ , इधर उ धर मने यह दे श छान मारा और मुझे ए क भी यि ऐसा नह िदखाई िदया , जो
िभखारी हो , जो चोर हो । इस दे श म मने इतनी धन दौलत दे ख ी है , इतने ऊँ चे चा रि क आदश और इतने गुण वान मनु य दे खे ह क
म नह समझता क हम कभी भी इस दे श को जीत पाएँ गे । जब तक इसक रीढ़ क ह ी को नह तोड़ दे ते जो इसक आ या मक
और सां कृ ितक िवरासत है और इस लए म ये ताव रखता हँ क हम इसक पुर ाणी और पुर ातन िश ा यव था , उ सक
सं कृ ित को बदल ड ाल , यूं क अ गर भारतीय सोचने लग गए क जो भी िवदे श ी और अं ेज ी है वह अ छा है और उ नक अ पनी
चीज से बे ह तर ह , तो वे अ पने आ मगौरव , आ म स मान और अ पनी ही सं कृ ित को भुल ाने लगगे और वै से बन जाएं गे जै स ा हम
चाहते ह । ए क पूण प से गुल ाम भारत ।"

कई बंधू इस भाषण क पंि य को कपोल क पत क पना मानते


ह.....अगर ये कपोल क पत पंि या है, तो इन का पिनक पंि य का
काया वयन कैसे हआ ?
मैकाले क ग ार औलाद इस न पर बगल झाकती िदखती ह और
काया वयन कुछ इस तरह हआ क आज भी मैकाले यव था क औलाद
से कुलर भेष म य त िबखरी पड़ी ह। अरे भाई मैकाले ने या नया कह
िदया भारत के लए ?

भारत इतना संप था क पहले सोने चांदी के स के चलते थे कागज क


नोट नह । धन दौलत क कमी होती तो इ लािमक आतातायी वान और
अं ेजी दलाल यहाँ य आते... लाख करोड़ पये के हीरे जवाहरात
ि टे न भेजे गए जसके माण आज भी ह मगर ये मैकाले का बंधन ही है
क आज भी हम लोग दमु िहलाते ह 'अं ेजी और अं ेजी सं कृित' के
सामने। िह द ु थान के बारे म बोलने वाला सं कृित का ठे केदार कहा जाता
है और घृणा का पा होता है।

1. िश ा यव था म मै क ाले भाव : ये तो हम सभी मानते है क


हमारी िश ा यव था हमारे समाज क िदशा एवं दशा तय करती है।
बात १८२५ के लगभग क है जब ई ट इंिडया कंपनी िवतीय प से
सं मण काल से गुजर रही थी और ये संकट उसे िदवा लयेपन क
कगार पर पहंचा सकता था। क पनी का काम करने के लए ि टे न के
नातक और कमचारी अब उसे महंगे पड़ने लगे थे। १८२८ म गवनर
जनरल िव लयम बिटक भारत आया जसने लागत घटने के उ े य
से अब साशन म भारतीय लोग के वेश के लए चाटर ए ट म एक
ावधान जुड़ वाया क सरकारी नौकरी म धम जाती या मूल का कोई
ह त ेप नह होगा। यहाँ से मैकाले का भारत म आने का रा ता
खुला। अब अं ेज के सामने चुनौती थी क कैसे भारितय को उस भाषा म पारंगत कर जससे क ये अं ेज के पढ़े लखे िहंद ु थानी
गुलाम क तरह काय कर सक। इस काय को आगे बढाया जनरल कमेटी ऑफ प लक इं ट शन के अ य 'थोमस बैिबंगटन मैकाले'
ने.... 1858 म लोड मैकोले ारा Indian Education Act बनाया गया। मैकाले क सोच प थी, जो क उसने ि टे न क संसद म
बताया जैसा ऊपर वणन है। उसने पूरी तरह से भारतीय िश ा यव था को ख़ म करने और अं ेजी ( जसे हम मैकाले िश ा यव था भी
कहते है) िश ा यव था को लागू करने का ा प तैयार िकया। मैकाले के श द म:
"हम ए क िह द ु थािनय का ए क ऐसा वग तै य ार करना है जो हम अं ेज शासक ए वं उ न करोड़ भारतीय के बीच द भ ु ािषये का
काम कर सके , जन पर हम शासन करते ह । हम िह द ु थािनय का ए क ऐसा वग तै य ार करना है , जनका रं ग और र भले ही
भारतीय ह ले ि कन वह अ पनी अ िभ िच , िवचार , नै ि तकता और बौि कता म अं ेज ह ।" और दे खये आज िकतने ऐसे मैकाले
यव था क नाजायज वान पी संताने हम िमल जाएं गी... जनक मा भाषा अं ेजी है और धमिपता मैकाले। इस प ित को मैकाले ने सु दर
बंधन के साथ लागू िकया। अब अं ेजी के गुलाम क सं या बढने लगी और जो लोग अं ेजी नह जानते थे वो अपने आप को हीन भावना से
देखने लगे य िक सरकारी नौक रय के ठाठ उ ह िदखते थे, अपने भाइय के ज ह ने अं ेजी क गुलामी वीकार कर ली और ऐसे गुलाम को ही
सरकारी नौकरी क रेवड़ी बँटती थी। कालांतर म वे ही गुलाम अं ेज क चापलूसी करते करते उ त होते गए और अं ेजी क गुलामी न वीकारने
वाल को अपने ही देश म दोयम दज का नाग रक बना िदया गया। िवड बना ये हई क आजादी िमलते िमलते एक बड़ा वग इन गुलाम का बन गया
जो क अब वतं ता संघष भी कर रहा था। यहाँ भी मैकाले िश ा यव था चाल कामयाब हई अं ेज ने जब ये देखा क भारत म रहना असंभव है
तो कुछ मैकाले और अं ेजी के गुलाम को स ा ह तांतरण कर के ि टे न चले गए ..मकसद पूरा हो चुका था.... अं ेज गए मगर उनक नीितय क
गुलामी अब आने वाली पीिढ़य को करनी थी और उसका काया वयन करने के लए थे कुछ िह द ु तानी भेष म बौि क और वैचा रक प से
अं ेज नेता और देश के रखवाले (नाम नह लूँगा यूक ं एडिवना क आ मा को क होगा) कालांतर म ये ही प ित िवक सत करते रहे हमारे स ा
के महानुभाव ..इस ि या म हमारी भारतीय भाषाएँ गौड़ होती गयी और िह द ु थान म िहंदी िवरोध का वर उठने लगा। ि टे न क बौि क
गुलामी के लए आज का भारतीय समाज आ दोलन करने लगा। िफर आया उपभोगतावाद का दौर और िमिशनरी कूल का दौर चूँिक २००
साल हमने अं ेजी को िवशेष और भारतीयता को गौण मानना शु कर िदया था तो अं ेजी का मतलब स य होना, उ त होना माना जाने लगा।
हमारी पीिढयां मैकाले के बंधन के अनुसार तैयार हो रही थी और हम भारत के िशशु मंिदर को सां दाियक कहने लगे यूक ं भारतीयता और
व दे मातरम वहां सखाया जाता था। जब से बहरा ीय कंपिनया आय उ ह ने अं ेजो का इितहास दोहराना शु िकया और हम सभी स य बनने
म, उ त बनने म लगे रहे मैकाले क प ित के अनुसार ..अब आज वतमान म हम नौकरी देने वाली ह अं ेजी कंपिनया जैसे इ ट इंिडया थी। अब
ये ही कंपिनया िश ा यव था भी िनधा रत करने लगी और िफर बात वही आयी कम लागत वाली, तो उसी तरह का अवै ािनक यव था बनाओं
जससे कम लागत म िह द ु थािनय के म एवं बुि का दोहन हो सके।

एक उदहारण देता हँ: कुकुरमु े क तरह ह इंजीिनय रंग और बंधन सं थान ..मगर िश ा प ित ऐसी है क १००० इले टोिन स इंजीिनय रंग
नातक म से शायद १० या १५ नातक ही रेिडयो या िकसी उपकरण क मर मत कर पाय, नयी शोध तो दरू क कौड़ी है.. अब ये नातक इ ही
अं ेजी बहरा ीय क पिनय के पास जात है और जीवन भर क ितभा ५ हजार पए ित महीने पर िगरवी रख गुलाम सा काय करते है ...िफर
भी अं ेजी क ही गाथा सुनाते है.. अब जापान क बात कर १०व म पढने वाला छा भी योगा मक ान रखता है ...िकसी मैकाले का अनुसरण
नह करता.. अगर कोई सं थान अ छा है जहाँ भारतीय ितभाओं का समुिचत िवकास करने का प रवेश है तो उसके छा को ये कंपिनया िकसी
भी क मत पर नासा और इं लड म बुला लेती है और हम मैकाले के गुलाम खुिशया मनाते ह क हमारा फला अमे रका म नौकरी करता है। इस
कार मैकाले क एक सोच ने हमारी आने वाली िश ा यव था को इस तरह पंगु बना िदया क न चाहते हए भी हम उसक गुलामी म फसते जा
रह है।

इस Indian Education Act क डा टं ग लोड मैकोले ने क थी। लेिकन उसके पहले उसने यहाँ (भारत) के िश ा यव था का सव ण
कराया था, उसके पहले भी कई अं ेज ने भारत के िश ा यव था के बारे म अपनी रपोट दी थी। अं ेज का एक अ धकारी था G.W.Litnar
और दसू रा था T homas Munro, दोन ने अलग अलग इलाक का अलग-अलग समय सव िकया था। 1823 के आसपास क बात है ये
Litnar , जसने उ र भारत का सव िकया था, उसने लखा है िक यहाँ 97% सा रता है और Munro, जसने दि ण भारत का सव िकया था,
उसने लखा िक यहाँ तो 100 % सा रता है और उस समय जब भारत म इतनी सा रता है और मैकोले का प कहना था िक:

"भारत को हमे श ा -हमे श ा के लए अ गर गुल ाम बनाना है तो इसक दे श ी और सां कृ ितक िश ा यव था को पूर ी तरह से व त
करना होगा और उ सक जगह अं ेज ी िश ा यव था लानी होगी और तभी इस दे श म शरीर से िह द ु तानी ले ि कन िदमाग से
अं ेज पै द ा ह गे और जब इस दे श क यू ि नव सटी से िनकलगे तो हमारे िहत म काम करगे ।"

और मैकोले एक मुहावरा इ तेमाल कर रहा है

"िक जै से िकसी खे त म कोई फ सल लगाने के पहले पूर ी तरह जोत िदया जाता है वै से ही इसे
जोतना होगा और अं ेज ी िश ा यव था लानी होगी । "

इस लए उसने सबसे पहले गु कुल को गैरकानूनी घोिषत िकया, जब गु कुल गैरकानूनी हो गए तो


उनको िमलने वाली सहायता जो समाज के तरफ से होती थी वो गैरकानूनी हो गयी, िफर सं कृत को
गैरकानूनी घोिषत िकया और इस देश के गु कुल को घूम घूम कर ख़ म कर िदया उनमे आग लगा दी,
उसम पढ़ाने वाले गु ओं को उसने मारा-पीटा, जेल म डाला। 1850 तक इस देश म 7 लाख 32
हजार गु कुल हआ करते थे और उस समय इस देश म गाँव थे 7 लाख 50 हजार, मतलब हर गाँव म
औसतन एक गु कुल और ये जो गु कुल होते थे वो सब के सब आज क भाषा म Higher Learning
Institute हआ करते थे उन सबमे 18 िवषय पढाया जाता था और ये गु कुल समाज के लोग िमल के
चलाते थे न िक राजा, महाराजा, और इन गु कुल म िश ा िनःशु क दी जाती थी। इस तरह से सारे
गु कुल को ख़ म िकया गया और िफर अं ेजी िश ा को कानूनी घोिषत िकया गया। िफर कलक ा म
पहला कॉ वट कूल खोला गया, उस समय इसे कूल कहा जाता था,
इसी कानून के तहत भारत म कलक ा यूिनव सटी बनाई गयी, ब बई
यूिनव सटी बनाई गयी, म ास यूिनव सटी बनाई गयी और ये तीन गुलामी
के ज़माने के यूिनव सटी आज भी इस देश म ह और मैकोले ने अपने िपता
को एक िच ी लखी थी बहत मशहर िच ी है वो, उसम वो लखता है िक::

"इन कॉ वट कू ल से ऐसे ब चे िनकलगे जो दे ख ने म तो भारतीय


ह गे ले ि कन िदमाग से अं ेज ह गे और इ ह अ पने दे श के बारे म
कु छ पता नह होगा , इनको अ पने सं कृ ित के बारे म कु छ पता नह
होगा , इनको अ पने पर पराओं के बारे म कु छ पता नह होगा ,
इनको अ पने मुह ावरे नह मालूम ह गे , जब ऐसे ब चे ह गे इस दे श म
तो अं ेज भले ही चले जाएँ इस दे श से अं े जयत नह जाए गी " और उस समय लखी िच ी क स चाई इस देश म अब साफ़-साफ़
िदखाई दे रही है और उस ए ट क मिहमा दे खये िक हम अपनी भाषा बोलने म शम आती है, अं ेजी म बोलते ह िक दस
ू र पर रोब पड़े गा, अरे
हम तो खुद म हीन हो गए ह जसे अपनी भाषा बोलने म शम आ रही है, दस ू र पर रोब या पड़े गा।

लोग का तक है िक अं ेजी अं तरा ीय भाषा है, दिु नया म 204 देश ह और अं ेजी सफ 11 देश म बोली, पढ़ी और समझी जाती है, िफर ये कैसे
अं तरा ीय भाषा है। श द के मामले म भी अं ेजी समृ नह द र भाषा है। इन अं ेज क जो बाइिबल है वो भी अं ेजी म नह थी और ईशा
मसीह अं ेजी नह बोलते थे। ईशा मसीह क भाषा और बाइिबल क भाषा अरमेक थी। अरमेक भाषा क लिप जो थी वो हमारे बंगला भाषा से
िमलती जुलती थी, समय के कालच म वो भाषा िवलु हो गयी। संयु रा संघ जो अमे रका म है वहां क भाषा अं ेजी नह है, वहां का सारा
काम च म होता है। जो समाज अपनी मातृभाषा से कट जाता है उसका कभी भला नह होता और यही मैकोले क रणनीित थी।

2. समाज यव था म मै क ाले भाव : अब समाज यव था क बात कर तो िश ा से समाज का िनमाण होता है। सन् 1836 म लाड मैकाले
अपने िपता को लखे एक प म कहता है:

"अ गर हम इसी कार अं ेज ी नीितया चलाते रहे और भारत इसे अ पनाता रहा तो आने वाले कु छ साल म 1 िदन ऐसा आए गा क
यहाँ कोई स चा भारतीय नह बचे गा ।" (स चे भारतीय से मतलब......च र म ऊँ चा, नैितकता म ऊँ चा, धािमक िवचार वाला, धम के र ते
पर चलने वाला)।

भारत को जय करने के लए, च र िगराने के लए, अं ेजो ने 1758 म कलक ा म पहला शराबखाना खोला, जहाँ पहले साल वहाँ सफ अं ेज
जाते थे। आज पूरा भारत जाता है। सन् 1947 म 3.5 हजार शराबखानो को सरकार का
लाइसस। सन् 2009-10 म लगभग 25,400 दक ु ान को मौत का यापार करने क इजाजत। च र से िनबल बनाने के लए सन् 1760 म भारत
म पहला वे याघर 'कलक ा म सोनागाछी' म अं ेज ने खोला और लगभग 200 य को जबरद ती इस काम म लगाया गया। आज अं ेज के
जाने के 64 साल के बाद, आज लगभग 20,80,000 माताएँ , बहन इस गलत काम म ल ह। अं ेज के जाने के बाद जहाँ इनक सं या म कमी
होनी चािहए थी वह इनक सं या म िदन दनु ी रात चौगुनी वृि हो रही है ।

िश ा अं ेजी म हए तो समाज खुद ही गुलामी करेगा, वतमान प रवेश म 'MY HINDI IS A LIT T LE BIT WEAK' बोलना टे टस स बल बन
रहा है जैसा मैकाले चाहता था क हम अपनी सं कृित को हीन समझे ...म अगर कह या ा म िहंदी बोल द,ँ ू मेरे साथ का सहया ी सोचता है क ये
िपछड़ा है ..लोग सोचते है ुटी िहंदी म हो जाए चलेगा मगर अं ेजी म नह होनी चािहए ..और अब िहंग लश भी आ गयी है बाज़ार म.. या ऐसा
नह लगता क इस यव था का िहंद ु थानी 'धोबी का कु ा न घर का न घाट का' होता जा रहा है। अं ेजी जीवन म पूण प से नह सख पाया
यूक
ं िवदेशी भाषा है...और िहंदी वो सीखना नह चाहता यूक ं बेइ जती होती है। हम अपने ब चे क पढाई अं ेजी िव ालय म करानी है यूक ं
दौड़ म पीछे रह जाएगा। माता िपता भी या कर ब चे को ांित के लए भेजगे या ?? यूक आज अं ेजी न जानने वाला बेरोजगार है
.. वरोजगार के संसाधन ये बहरा ीय कंपिनया ख़ म कर दगी िफर गुलामी तो करनी ही होगी..तो या हम वीकार कर ल ये सब?? या िहंदी या
भारतीय भाषा पढ़कर समाज म उपे ा
के पा बने?? शायद इसका एक ही उ र है हम वतमान प रवेश म हमारे पूवज ारा थािपत उ च आदश ं को थािपत करना होगा। हम
िववेकानंद का " व" और ांितका रय का देश दोन को जोड़ कर वदेशी क क पना को मूत प देने का यास करना होगा, चाहे भाषा हो या
खान पान या रहन सहन पोशाक। अगर मैकाले क यव था को तोड़ने के लए मैकाले क यव था म जाना पड़े तो जाएँ ....जैसे म 'अं ेजी गूगल'
ं क चड़ साफ करने के लए हाथ गंदे करने ह गे। हर
का इ तेमाल करके िहंदी लख रहा हँ और इसे 'अँ ेजी फ़ेसबुक' पर शेयर कर रहा हँ ..... यूक
कोई छ से कुलर बनकर सफ़ेद पोशाक पहन कर मैकाले के सुर म गायेगा तो आने वाली पीिढयां िह द ु थान को ही मैकाले का भारत बना दगी।
उ ह िकसी ई ट इंिडया क ज रत ही नह पड़े गी गुलाम बनने के लए और शायद हमारे आदश 'राम और कृ ण' को एक काटू न मनोरंजन का
पा । आज हमारे सामने पैसा चुनौती नह ब क भारत का चा रि क पतन चुनौती है। इसक र ा और इसको वापस लाना हमारी ाथिमकता
होनी चािहए।

3. कानून यव था म मै क ाले भाव : मैकाले ने एक कानून हमारे देश म लागू िकया था जसका नाम है Indian Penal Code (IPC). ये
Indian Penal Code अं ेज के एक और गुलाम देश Ireland के Irish Penal Code क फोटोकॉपी है, वहां भी ये IPC ही है लेिकन
Ireland म जहाँ "I" का मतलब Irish है वह भारत म इस "I" का मतलब Indian है, इन दोन IPC म बस इतना ही अं तर है बािक कौमा और
फु ल टॉप का भी अं तर नह है।

मैकोले का कहना था िक भारत को हमेशा के लए गुलाम बनाना है तो इसके िश ा तं और याय यव था को पूरी तरह से समा करना होगा
और आपने अभी ऊपर Indian Education Act पढ़ा होगा, वो भी मैकोले ने ही बनाया था और उसी मैकोले ने इस IPC क भी डा टं ग क
थी। ये बनी 1840 म और भारत म लागू हई 1860 म। डा टं ग करते समय मैकोले ने एक प भेजा था ि िटश संसद को जसमे उसने लखा था
िक::

"मने भारत क याय यव था को आधार दे ने के लए ए क ऐसा कानून बना िदया है जसके लागू होने पर भारत के िकसी आदमी
को याय नह िमल पाये ग ा । इस कानून क जिटलताएं इतनी है िक भारत का साधारण आदमी तो इसे समझ ही नह सके गा और
जन भारतीय के लए ये कानून बनाया गया है उ ह ही ये सबसे यादा तकलीफ दे ग ी और भारत क जो ाचीन और परं प रागत
याय यव था है उ से जड़ मूल से समा कर दे ग ा ।“ वो आगे लखता है िक
"जब भारत के लोग को याय नह िमले ग ा तभी हमारा राज मजबूत ी से भारत पर थािपत होगा । "

ये हमारी याय यव था अं ेज के इसी IPC के आधार पर चल रही है और आजादी के 64 साल बाद हमारी याय यव था का हाल दे खये िक
लगभग 4 करोड़ मुक़दमे अलग-अलग अदालत म पिडं ग ह, उनके फै सले नह हो पा रहे ह। 10 करोड़ से यादा लोग याय के लए दर-दर क
ठोकर खा रहे ह लेिकन याय िमलने क दरू -दरू तक स भावना नजर नह आ रही है, कारण या है? कारण यही IPC है। IPC का आधार ही
ऐसा है।

॥ अं ेिज़यत और मान सक गुलामी छोड़ो, वािभमानी बनो, सं कृित क र ा करो ॥

आइये एक बार गुनगुनाये भारतद ु जी को...बोलो भईया दे दे तान...

॥ िहंदी िह द ू िह द ु थान ॥

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