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गुलामिगर    

जोतीराव गो व दराव फुले  


अनुवाद : एल. जी. मे ाम ' वमलक त'  
वाणी काशन (2017) 
 

 
तावना 
सैकड़   साल  से  आज  तक  शू ा द-अितशू   (अछूत)  समाज,  जब  से  इस  देश म  ा ण  क  स ा कायम 
ई  तब  से  लगातार  जु   और  शोषण  से  शकार  ह।  ये  लोग  हर  तरह  क   यातना   और क ठनाइय  म अपने  दन 
गुजार  रहे  ह।  इस लए  इन  लोग   को  इन  बात   क   ओर  यान  देना  चा हए  और  गंभीरता  से  सोचना  चा हए। ये लोग 
अपने  आपको  ा ण-पंडा-पुरो हत   क   जु - ादितय   से  कैसे  मु   कर  सकते  ह, यह  आज हमारे   लए सबसे 
मह वपूण  सवाल  ह।  यह   इस  ंथ  का उ े य है। यह कहा जाता है  क इस देश म  ा ण-पुरो हत  क  स ा कायम 
ए  लगभग  तीन  हजार  साल  से  भी  ादा  समय  बीत  गया  होगा।  वे  लोग  परदेश से यहाँ आए। उ ने इस देश के 
मूल  नवा सय   पर बबर हमले करके इन लोग  को अपने घर-बार से, जमीन-जायदाद से वंिचत करके अपना गुलाम 
(दास)  बना  लया।  उ ने  इनके  साथ  बड़ी  अमावनीयता का रवैया अपनाया था। सैकड़  साल बीत जाने के बाद भी 
इन  लोग   म  बीती  घटना   क   व ृ ितयाँ  ताजी  होती  देख कर  क  ा ण  ने यहाँ के मूल  नवा सय  को घर-बार, 
जमीन-जायदाद  से  बेदखल  कर  इ   अपना  गुलाम  बनाया  है,  इस  बात  के  माण   को  ा ण-पंडा-पुरो हत   ने 
तहस-नहस कर दया। दफना कर न कर दया। 

उन  ा ण   ने  अपना  भाव,  अपना  वच व  इन  लोग   के  दलो- दमाग  पर  कायम  रखने  के  लए,  ता क 
उनक   वाथपू त  होती  रहे,  कई  तरह  के  हथकंडे  अपनाए  और वे भी इसम कामयाब भी होते रहे। चूँ क उस समय ये 
लोग  स ा  क     से  पहले  ह   पराधीन  ए  थे  और  बाद  म  ा ण-पंडा-पुरो हत   ने  उ   ानह न-बु ह न बना 
दया  था,  जसका  प रणाम  यह  आ  क  ा ण-पंडा-पुरो हत   के  दाँव-पच,  उनक   जालसाजी  इनम  से  कसी  के 
भी  यान  म  नह   आ  सक ।  ा ण-पुरो हत  ने इन पर अपना वच व कायम करने के  लए, इ  हमेशा-हमेशा  लए 
अपना  गुलाम  बना  कर  रखने  के  लए,  केवल  अपने  नजी  हत   को  ह   म ेनजर  रख  कर,  एक  से  अ धक  बनावटी 
ंथो  क   रचना  करके  कामयाबी  हा सल  क ।  उन  नकली  ंथो  म  उ ने  यह  दखाने  क   पूर   को शश  क   क, उ  
जो  वशेष  अ धकार  ा त  ह,  वे  सब  ई र  ारा  द   ह।  इस  तरह  का  झूठा  चार  उस  समय  के  अनपढ़  लोग   म 
कया  गया  और  उस  समय  के  शू ा द-अितशू   म  मान सक  गुलामी  के  बीज  बोए  गए।  उन  ंथो  म  यह भी  लखा 
गया  क  शू   को  (   ारा)  पैदा  करने  का  उ े य  बस  इतना  ह   था  क  शू   को  हमेशा-हमेशा  के  लए 
ा ण-पुरो हत   क   सेवा  करने  म  ह   लगे  रहना  चा हए  और  ा ण-पुरो हत   क   मज   के  खलाफ  कुछ  भी  नह  
करना चा हए। मतलब, तभी इ ई र ा त ह गे और इनका जीवन साथक होगा। 

ले कन  अब  इन  ंथो  के  बारे   म  कोई  मामूली  ढं ग  से  भी  सोचे  क,  यह  बात  कहाँ  तक  सह   है,  ा  वे 
सचमुच  ई र  ारा  द   ह,  तो  उ   इसक   स ाई  तुरंत  समझ  म  आ  जाएगी।  ले कन  इस  कार  के  ंथो  से 
सवशि मान,  सृ   का  नमाता  जो  परमे र  है,  उसक   समान ववाद     को  बड़ा  गौण व  ा त  हो गया है। इस 
तरह  के  हमारे   जो  ा ण-पंडा-पुरो हत  वग  के  भाई  ह,  ज   भाई  कहने म भी शम आती है,  क उ ने  कसी 
समय  शू ा द-अितशू   को  पूर   तरह  से तबाह कर  दया था और वे ह  लोग अब भी धम के नाम पर, धम क  मदद 
से  इनको  चूस  रहे  ह। एक भाई  ारा दूसरे  भाई पर जु  करना, यह भाई का धम नह  है।  फर भी हम, हम सभी को 
उ प कता  के  र ते  से,  उ   भाई  कहना  पड़  रहा  है।  वे  भी  खुल े प  से  यह कहना छोड़गे नह ,  फर भी उ  केवल 
अपने  वाथ  का  ह   यान  न  रखते  ए  ायबु   से  भी  सोचना  चा हए।  य द  ऐसा  नह   करगे।  तो उन  ंथो को देख 
कर-पढ़  कर  बु मान  अं ज े ,  च,  जमन,  अमे रक   और  अ   बु मान  लोग  अपना  यह  मत  दए  बना  नह  रहगे 
क  उन  ंथो  को  ( ा ण   ने)  केवल  अपने  मतलब  के  लए  लख  रखा  है।  उन  ंथो  को  म  हर  तरह  से 
ा ण-पुरो हत   का  मह व  बताया  गया  है।  ा ण-पुरो हत   का  शू ा द-अितशू   के  दलो- दमाग  पर 
हमेशा-हमेशा  के  लए  वच व  बना  रहे  इस लए  उ   ई र  से  भी  े   समझा  गया  है।  ऊपर  जनका  नाम  नदश 
कया  गया  है,  उनम  से  कई  अं ज े   लोग   ने  इितहासा द  ंथो  म  कई  जगह  यह  लख  रखा  है  क 
ा ण-पंडा-पुरो हत   ने  अपने  नजी  वाथ  के  लए  अ   लोग   को यानी शू ा द-अितशू  को अपना गुलाम बना 
लया  है।  उन  ंथो  ारा  ा ण-पुरो हत   ने  ई र  के  वैभव  को  कतनी  न   ित  म  ला  रखा  है,  यह  सह   म बड़ा 
शोचनीय  है।  जस  ई र ने शू ा द-अितशू  को और अ  लोग  को अपने  ारा  न मत इस सृ  क  सभी व तु  
को  समान  प  से  उपभोग  करने  क   पूर   आजाद   द   है,  उस  ई र  के  नाम  पर  ा ण-पंडा-पुरो हत   एकदम 
झूठ-मूठ ंथो क रचना करके, उन ंथो म सभी के (मानवी) हक को नकारते ए वयं मा लक हो गए। 

इस  बात  पर  हमारे   कुछ  ा ण भाई इस तरह   उठा सकते ह  क य द ये तमाम  ंथ झूठ-मूठ के ह, तो 
उन  ंथ   पर  शू ा द-अितशू   के  पूवज   ने    आ ा  रखी  थी?  और  आज  इनम से ब त सारे  लोग   आ ा 
रखे  ए  ह?  इसका  जवाब  यह  है  क  आज  के  इस  गित  काल  म  कोई  कसी  पर  जु   नह   कर  सकता।  मतलब, 
अपनी  बात  को  लाद  नह   सकता।  आज  सभी  को  अपने  मन  क   बात,  अपने  अनुभव  क   बात  प   प से  लखने 
या बोलने क छूट है। 

कोई  धूत  आदमी  कसी  बड़े  यि   के  नाम  से  झूठा  प   लख  कर  लाए  तो  कुछ  समय  के  लए  उस  पर 
भरोसा  करना  ह   पड़ता  है।  बाद  म  समय  के  अनुसार  वह  झूठ  उजागर  हो ह  जाता है। इसी तरह, शू ा द-अितशू  
का,  कसी  समय  ा ण-पंडा-पुरो हत   के  जु   और  ादितय   के  शकार  होने  क   वजह  से,  अनपढ़  गँवार  बना 
कर  रखने  क   वजह  से,  पतन  आ  है।  ा ण  ने अपने  वाथ के  लए समथ (रामदास)[2] के नाम पर झूठे-पांखडी 
ंथ  क  रचना करके शू ा द-अितशू  को गुमराह  कया और आज भी इनम से कई लोग  को  ा ण-पुरो हत लोग 
गुमराह कर रहे ह, यह प प से उ कथन क पु करता है। 

ा ण-पंडा-पुरो हत  लोग  अपना  पेट  पालने  के  लए,  अपने  पाखंडी  ंथो  ारा,  जगह-जगह  बार-बार 
अ ानी  शू   को  उपदेश  देत े रहे,  जसक   वजह  से  उनके  दल - दमाग  म  ा ण   के  ित  पू बु   उ प   होती 
रह । इन लोग  को उ ने ( ा ण  ने) इनके मन म ई र के  ित जो भावना है, वह  भावना अपने को ( ा ण  को) 
सम पत  करने  के  लए  मजबूर  कया।  यह कोई साधारण या मामूली अ ाय नह  है। इसके  लए उ  ई र के जवाब 
देना  होगा।  ा ण  के उपदेश  का  भाव अ धकांश अ ानी शू  लोग  के  दलो- दमाग पर इस तरह से जड़ जमाए 
ए  है  क  अमे रका  के  (काले)  गुलाम   क   तरह  जन  दु   लोग   ने हम गुलाम बना कर रखा है, उनसे लड़ कर मु  
(आजाद)  होने  क   बजाए  जो  हम  आजाद   दे रहे ह, उन लोग  के  व   फजूल कमर कस कर लड़ने के  लए तैयार 
ए  ह।  यह  भी  एक  बड़े  आ य  क   बात  है  क  हम  लोग   पर  जो  कोई  उपकार  कर  रहे  ह,  उनसे  कहना  क  हम  पर 
उपकार  मत करो,  फलहाल हम  जस  ित म ह वह   ित ठ क है, यह  कह कर हम शांत नह  होते बि क उनसे 
झगड़ने  के  लए  भी  तैयार  रहते  ह,  यह  गलत  है।  वा तव म हमको गुलामी से मु  करनेवाले जो लोग ह, उनको हम 
आजाद  कराने  से  कुछ  हत होता है, ऐसा भी नह  है, बि क उ  अपने ह  लोग  म से सैकड़  लोग  क  ब ल चढ़ानी 
पड़ती है। उ बड़ी-बड़ी जो खम उठा कर अपनी जान पर भी खतरा झेलना पड़ता है। 

अब  उनका  इस  तरह  से दूसर  के  हत  का र ण करने के  लए अगुवाई करने का उ े य  ा होना चा हए, 
य द इस संबंध म हमने गहराई से सोचा तो हमार समझ म आएगा क हर[i] 

मनु य  को  आजाद  होना  चा हए,  यह   उसक   बु नयाद   ज रत  है।  जब  यि   आजाद  होता  है  तब  उसे 
अपने  मन  के  भाव   और  वचार   को  प   प  से  दूसर   के  सामने  कट  करने  का  मौका  िमलता  है। ले कन जब से 
आजाद   नह   होती  तब  वह  वह   मह वपूण  वचार,  जन हत  म होने के बावजूद दूसर  के सामने  कट नह  कर पाता 
और  समय  गुजर  जाने  के  बाद  वे  सभी  लु त  हो  जाते  ह।  आजाद  होने  से  मनु य  अपने  सभी मानवी अ धकार  ा त 
कर  लेता  है  और  असीम  आनंद  का  अनुभव  करता  है।  सभी  मनु य   को  मनु य  होने  के  जो  सामा   अ धकार,  इस 
सृ   के  नयं क  और  सवसा ी  परमे र  ारा  दए  गए  ह,  उन  तमाम  मानवी  अ धकार   को  ा ण-पंडा-पुरो हत 
वग  ने  दबोच  कर  रखा  है।  अब  ऐसे  लोग   से  अपने  मानवी  अ धकार  छ न  कर  लेन े म  कोई  कसर  बाक   नह   रखनी 
चा हए।  उनके  हक  उ   िमल  जाने  से  उन  अं ज े   को खुशी होती है। सभी को आजाद  दे कर, उ  जु ी लोग  के 
जु  से मु  करके सुखी बनाना, यह  उनका इस तरह से खतरा मोल लेन े का उ े य है। वाह! वाह! यह  कतना बड़ा 
जन हत का काय है! 
उनका  इतना  अ छा  उ े य  होने  क   वजह  से  ह   ई र  उ ,  वे  जहाँ  गए,  वहाँ  ादा से  ादा कामयाबी 
देता रहा है। और अब आगे भी उ  इस तरह के अ छे काम  म उनके  यास सफल होते रहे, उ  कामयाबी िमलती 
रहे, यह हम भगवान से ाथना करते ह। 

द ण  अमे रका  और  अ का  जैस े पृ वी  के  इन दो बड़े  ह ो म सैकड़ो साल से अ  देश  से लोग  को 
पकड़-पकड़  कर  यहाँ  उ   गुलाम  बनाया  जाता  था।  यह  दास   को  खर दने-बेचने  क   था  यूरोप  और  तमाम 
गितशील  कहलाने  वाले  रा   के  लए  बड़ी  ल ा  क   बात थी। उस कलंक को दूर करने के  लए अं ज े , अमे रक  
आ द  उदार  लोग   ने  बड़ी-बड़ी  लड़ाइयाँ  लड़  कर  अपने  नुकसान  क   बात  तो  दर कनार,  उ ने  अपनी  जान  क  
परवाह  नह   क   और  गुलाम   क   मुि   के  लए  लड़ते  रहे।  यह  गुलामी  था  कई  साल   से  चली  आ  रह   थी।  इस 
अमानवीय  गुलामी  था  को  समूल  न   कर  देन े के  लए  असं य  गुलाम   को  उनके  परमि य  माता-िपता  से, 
भाई-बहन   से,  बीवी-ब   से,  दो त-िम   से  जुदा  कर  देन े क   वजह  से  जो  यातनाएँ सहनी पड़ी, उससे उ  मु  
करने  के  लए  उ ने  संघष  कया।  उ ने  जो  गुलाम  एक  दूसरे   से  जुदा  कर  दए  गए  थे,  उ   एक-दूसरे   के  साथ 
िमला  दया।  वाह!  अमे रका  आ द सदाचार  लोग  ने  कतना अ छा काम  कया है! य द आज उ  इन गर ब अनाथ 
गुलाम   क   बदतर  ित  देख  कर  दया  न  आई  होती  तो  ये  गर ब  बेचारे   अपने  ि यजन   से  िमलने  क   इ छा 
मन-ह -मन म रख कर मर गए होते। 

दूसर   बात,  उन  गुलाम   को  पकड़  कर  लानेवाले  दु   लोग  उ   ा अ छ  तरह रखते भी या नह ? नह , 
नह !  उन  गुलाम   पर  वे  लोग  जस  कार  से  जु   ढाते  थे,  उन  जु ,  क  कहानी सुनते ह  प र दल आदमी क  
आँखे  भी  रोने  लगगी।  वे  लोग  उन  गुलाम   को  जानवर  समझ  कर  उनसे  हमेशा  लात-जूत   से  काम लेत े थे। वे लोग 
उ   कभी-कभी  लहलहाती  धूप  म  हल  जुतवा  कर  उनसे  अपनी  जमीन  जोत-बो  लेत े थे  और  इस  काम  म  य द 
उ ने  थोड़ी  सी  भी  आनाकानी  क   तो  उनके  बदन  पर  बैल   क   तरह  छाँटे  से घाव उतार देत े थे। इतना होने पर भी 
ा  वे  उनके  खान-पान  क   अ छ   यव ा  करते  ह गे?  इस  बारे   म  तो  कहना  ह   ा!  उ   केवल  एक  समय  का 
खाना  िमलता  था। दूसरे  समय कुछ भी नह । उ  जो भी खाना िमलता था, वह भी ब त ह  थोड़ा-सा। इसक  वजह 
से  उ   हमेशा  आधे  भूख े पेट  ह   रहना पड़ता था। ले कन उनसे छाती चूर-चूर होने तक, मुँह से खून फकने तक  दन 
भर  काम  करवाया  जाता  था  और रात को उ  जानवर  के कोठे  म या इस तरह क  गंद  जगह  म सोने के  लए छोड़ 
दया जाता था, जहाँ थक कर आने के बाद वे गर ब बेचारे  उस पथर ली जमीन पर मुद  क  तरह सो जाते थे। ले कन 
आँख   म  पया त  नीद  कहाँ  से  होगी?  बेचार   को  आ खर  नीद  आएगी  भी  कहाँ से? इसम पहली बात तो यह थी के 
पता  नह   मा लक को  कस समय उनक  गरज पड़ जाए और उसका बुलावा आ जाए, इस बात का उनको जबरद त 
डर  लगा  रहता  था।  दूसर   बात  तो  यह  थी  क  पेट  म  पया त  मा ा  म  भोजन  नह   होने क  वजह से जी घबराता था 
और  टाँग  लड़खड़ाने  लगती  थी।  तीसर   बात  यह  थी  कइ  दन-भर-बदन  पर  छाँटे  के  वार  बरसते  रहने  से सारा बदन 
ल लुहान  हो  जाता  और  उसक   यातनाएँ  इतनी  जबद त  होती  थी  क  पानी  म  मछली  क   तरह  रात-भर  तड़फड़ाते 
ए  इस  करवट  पर  होना  पड़ता  था।  चौथी बात यह थी  क अपने लोग पास न होने क  वजह से उस बात का दद तो 
और  भी  भयंकर  था।  इस  तरह  बात  मन  म  आने  से  यातना   के  ढेर  खड़े  हो  जाते  थे  और  आँखे  रोने  लगती  थी। वे 
बेचारे   भगवान  से  दुआ  माँगते  थे  क  'हे  भगवान!  अब  भी  तुझको  हम  पर दया नह  आती! तू अब हम पर रहम कर। 
अब  हम  इन  यातना   को  बदा त  करने  के  भी  का बल  नह   रहे  ह।  अब  हमार   जान  भी  नकल जाए तो अ छा ह  
होगा।'  इस  तरह  क   यातनाएँ  सहते-सहते,  इस  तरह  से  सोचते-सोचते  ह   सार   रात  गुजर  जाती  थी।  उन  लोग   को 
जस- जस  कार  क   पीड़ा   को,  यातना   को  सहना  पड़ा,  उनको य द एक-एक करके कहा जाए तो भाषा और 
सा ह   के  शोक-रस  के  श द  भी  फ के  पड़  जाएँगे,  इसम कोई संदेह नह । ता पय, अमे रक  लोग  ने आज सैकड़  
साल  से  चली  आ  रह   इस  गुलामी  क   अमानवीय  परं परा  को  समा त  करके गर ब लोग  को उन चंड लोग  के जु  
से  मु   करके  उ   पूर   तरह से सुख क   जदगी ब शी है। इन बात  को जान कर शू ा द- अितशू  को अ  लोग  
क   तुलना  म  ब त  ह   ादा  खुशी  होगी,  क  गुलामी  क   अव ा  म  गुलाम  लोग   को,  गुलाम  जाितय   को 
कतनी  यातनाएँ बदा त करनी पड़ती ह, इसे  वयं अनुभव  कए  बना अंदाज करना नामुम कन है। जो सहता है, वह  
जानता है 

अब  उन  गुलाम   म  और  इन  गुलाम   म  फक  इतना  ह   होगा  क  पहले  कार  के  गुलाम   को 
ा ण-पुरो हत   ने  अपने  बबर  हमल   से  परा जत  करके  गुलाम  बनाया  था  और  दूसरे   कार  के  गुलाम   को  दु  
लोग   ने  एकाएक  जु   करके  गुलाम  बनाया  था।  शेष  बात   म  उनक   ित  समान  है।  इनक   ित  और गुलाम  
क   ित  म  ब त  फक  नह   है।  उ ने  जस- जस  कार  क   मुसीबत   को  बदा त  कया  है;  वे  सभी  मुसीबत 
ा ण-पंडा-पुरो हत   ारा  ढाए  जु   से  कम  ह।  य द  यह  कहा  जाए  क  उन  लोग   से  भी  ादा  ादितयाँ  इन 
शू ा द-अितशू   को  बदा त  करनी  पड़ी  ह,  तो  इसम  कसी  तरह  का  संदेह  नह   होना  चा हए।  इन  लोग   को  जो 
जु   सहना  पड़ा,  उसक   एक-एक  दा तान  सुनते  ह   कसी भी प र दल आदमी को ह  नह  बि क सा ात प र 
भी  िपघल  कर उसम से पीड़ा  के आँसु  क  बाढ़  नकल पड़ेगी और उस बाढ़ से धरती पर इतना बहाव होगा  क 
जन  पूवज   ने  शू ा द-अितशू   को  गुलाम  बनाया,  उनके  आज  के  वंशज  जो  ा ण, पुरो हत भाई ह उनम से जो 
अपने  पूवज   क   तरह  प र दल  नह ,  बि क  जो  अपने  अंदर  के  मनु य व  को  जा त  रख  कर  सोचते  ह,  उन लोग  
को  यह  ज र  महसूस  होगा  क  यह  एक  जल लय  ह   है।  हमार   दयालु  अं ज े   सरकार  को,  शू ा द-अितशू   ने 
ा ण-पंडा-पुरो हत   से  कस- कस  कार  का  जु   सहा  है  और  आज  भी  सह  रहे  ह,  इसके  बारे   म  कुछ  भी 
मालूमात  नह   है।  वे  लोग  य द  इस  संबंध  म  पू ताछ  करके  कुछ  जानकार  हा सल करने क  को शश करगे तो उ  
यह  समझ  म  आ  जाएगा  क  उ ने  हदु ान  का जो भी इितहास  लखा है उसम एक ब त बड़े, ब त भंयकर और 
ब त  ह   मह वपूण  ह  े को  नजरअंदाज  कया  है।  उन  लोग   को  एक  बार  भी  शू ा -अितशू   के  दुख-दद   क  
जानकार   िमल  जाए  तो  स ाई  समझ  म  आ  जाएगी  और  उ   बड़ी  पीड़ा होगी। उ  अपने (धम)  ंथ  म, भयंकर 
बुर   अव ा  म  प चाए  गए  और  चंड  लोग   ारा  सताए  ए,  जनक   पीड़ा   क   कोई सीमा ह  नह  है, ऐसे लोग  
क   दुराव ा  को  उपमा  देना  हो  तो  शू ा द-अितशू   क   ित  क   ह   उपमा  उिचत  होगी,  ऐसा  मुझ े लगता  है। 
इससे  क व  को  ब त  वषाद  होगा।  कुछ  को अ छा भी लगेगा  क आज तक क वता  म शोक रस क  पूर  तसवीर 
ोता   के  मन  म  ािपत  करने  के  लए  क पना  क   ऊ ँ ची  उड़ाने  भरनी  पड़ती  थी,  ले कन  अब  उ   इस तरह क  
का प नक  दमागी  कसरत  करने  क   ज रत  नह   पड़ेगी,  क अब उ  यह  वयंभोिगय  का  जदा इितहास िमल 
गया  है।  य द  यह   है  तो  आज  के  शू ा द-अितशू   के  दल  और  दमाग  अपने  पूवज  क   दा तान  सुन  कर  पी ड़त 
होते  ह गे,  इसम  कुछ  भी  आ य  नह   होना  चा हए,  क  हम  जनके  वंश  म  पैदा  ए  ह,  जनसे  हमारा  खून  का 
र ता  है,  उनक   पीड़ा  से  पी ड़त  होना  वाभा वक  है।  कसी  समय  ा ण   क   राजस ा म हमारे  पूवज  पर जो भी 
कुछ  ादितयाँ  ,  उनक   याद  आते  ह   हमारा  मन  घबरा  कर  थरथराने  लगता  है। मन म इस तरह के  वचार आने 
शु   हो  जाते ह  क  जन घटना  क  याद भी इतनी पीड़ादायी है, तो  ज ने उन अ ाचार  को सहा है, उनके मन 
क  ित  कस  कार  क   रह   होगी,  यह  तो  वे  ह   जान  सकते  ह।  इसक   अ छ   िमसाल  हमारे   ा ण  भाइय   के 
(धम)  शा   म  ह   िमलती  है।  वह  यह  क  इस  देश  के  मूल  नवासी  ि य  लोग   के  साथ  ा ण-पुरो हत  वग के 
मु खया  परशुराम  जैस े यि   ने  कतनी  ू रता  बरती,  यह   इस  ंथ  म  बताने  का  यास  कया  गया  है।  फर  भी 
उसक   ू रता  के  बारे   म  इतना  समझ  म  आया  है  क  उस  परशुराम  ने  कई  ि य  को मौत के घाट उतार  दया था। 
और  उस  ( ा ण)  परशुराम  ने  ि य   क   अनाथ  ई  ना रय   से,  उनके  छोटे-छोटे  चार-चार  पाँच-पाँच  माह  के 
नद ष  मासूम  ब   को  जबरद ती  छ न  कर  अपने  मन  म  कसी  कार  क   हच कचाहट न रखते  ए बड़ी  ू रता से 
उनको  मौत  के  हवाले  कर  दया  था।  यह  उस  ा ण  परशुराम  का  कतना  जघ   अपराध  था।  वह  चंड  इतना  ह  
करके  चुप  नह   रहा,  अपने  पित  के  मौत  से  य थत कई ना रय  को, जो अपने पेट के गभ क  र ा करने के  लए बड़े 
दु खत  मन  से  जंगल -पहाड़   म  भागे  जा  रह   थी,  वह  उनका  काितल  शकार  क  तरह पीछा करके, उ  पकड़ कर 
लाया  और  सूित  के  प ात  जब  उसे  यह  पता  चलता  क  पु   क   ाि त  ई  है,  तो  वह  चंड  हो  कर  आता  और 
सूितशुदा  ना रय   का  क   कर  देता था। इस तरह क  कथा  ा ण  ंथ  म िमलती है। और जो  ा ण लोग उनके 
वरोधी  दल  के  थे,  उनसे  उस  समय  क   सह   ित  समझ  म आएगी, यह तो हम सपने म भी नह  सोचना चा हए। 
हम  लगता  है  क  ा ण   ने  उस  घटना  का  ब त  बड़ा  ह ा  चुराया  होगा।  क  कोई  भी  यि   अपने  मुँह  से 
अपनी  गलितय   को  कहने  क   ह त  नह   करता।  उ ने  उस  घटना  को  अपने  ंथ म  लख रखा है, यह  ब त बड़े 
आ य  क   बात  है।  हमारे   सामने  यह  सवाल  आता  है  क परशुराम ने इ क स बार  ि य  को परा जत करके उनका 
सवनाश    कया और उनक  अभागी ना रय  के अबोध, मासूम ब  का भी क     कया? शायद इसम उसे 
बड़ा  पु षाथ  दखता  हो  और  उसक   यह  बहादुर   बाद  म  आनेवाली  पी ढ़य   को  भी  मालूम  हो,  इस लए  ा ण 
ंथकार   ने  इस  घटना  को  अपने  शा   म  लख  रखा  है।  लोग   म  एक  कहावत  च लत  है  क हथेली से सूरज को 
नह   ढका  जा  सकता।  उसी  कार  यह हक कत, जब क उनको श मदा करनेवाली थी,  फर भी उनक  इतनी  स  
ई  क  उनसे  क  ा ण   ने  उस  घटना  पर,  जतना  परदा  डालना संभव  आ, उतनी को शश उ ने क , और जब 
कोई  इलाज  ह   नह   बचा  तब  उ ने  उस  घटना  को  लख  कर  रख  दया।  हाँ,  ा ण   ने  इस  घटना  क   जतनी 
हक कत  लख  कर  रख  द ,  उसी  के  बारे   म  य द  कुछ  सोच- वचार  कया जाए तो मन को बड़ी पीड़ा होती है  क 
परशुराम  ने  जब  उन  ि य  गभधा रनी  ना रय   का  पीछा  कया  तब  उन  ग भ नय   को  कतनी  यातनाएँ  सहनी  पड़ी 
ह गी!  पहली  बात  तो  यह  क  ना रय   को  भाग-दौड़  करने क  आदत ब त कम होती है। उसम भी कई ना रयाँ मोटी 
और  कुलीन  होने  क   वजह  से,  जनको  अपने  घर  क   दहलीज  पर  चढ़ना  भी  मालूम  नह   था,  घर  के  अंदर उ  जो 
कुछ  ज रत  होती,  वह  सब  नौकर  लोग  ला  कर  देत े थे।  मतलब  ज ने  बड़ी  सहजता  से  अपने  जीवन  का 
पालन-पोषण  कया  था,  उन  पर  जब  अपने  पेट  के  गभ  के  बोझ  को  ले  कर  सूरज  क   लहलहाती  धूप  म  टेढ़े-मेढ़े 
रा त   से भागने क  मुसीबत आई, इसका मतलब है  क वे भयंकर आपि  के  शकार थी। उनको दौड़-भाग करने क  
आदत  बलकुल  ह   नह  होने क  वजह से पाँव से पाँव टकराते थे और कभी धड़ ले से च ान पर तो कभी पहाड़ क  
खाइय   म  िगरती  ह गी।  उससे  कुछ  ना रय   के  माथे  पर,  कुछ ना रय  क  कुहनी को, कुछ ना रय  के घुटन  को और 
कुछ  ना रय   के  पाँव  को  ठे स-खर च लग कर खून क  धाराएँ बहती ह गी। और परशुराम पीछे-पीछे दौड़ कर आ रहा 
है,  यह सुन कर और भी तेजी से भागने-दौड़ने लगती ह गी। रा ते म भागते-दौड़ते समय उनके नाजुक पाँव  म काँटे, 
कंकड़  चुभते  ह गे।  कंटीले  पेड़-पौध   से  उनके  बदन  से  कपड़े  भी  फट  गए  ह गे और उ  काँटे भी चुभ े ह गे। उसक  
वजह  से  उनके  नाजुक बदन से ल  भी बहता होगा। लहलहाती धूप म भागते-भागते उनके पाँव म छाले भी पड़ गए 
ह गे।  और  कमल  के  डंठल  के  समान  नाजुक  नीलवण  कांित  मुरझा गई होगी। उनके मुँह से फेन बहता होगा। उनक  
आँख   म  आँसू  भर  आए  ह गे।  उनके  मुँह  को  एक  एक- दन,  दो-दो  दन  पानी  भी  नह   छुआ  होगा।  इस लए  बेहद 
थकान  से  पेट  का  गभ  पेट  म  ह   शोर  मचाता  होगा।  उनको  ऐसा  लगता  होगा  क  य द  अब  धरती  फट  जाए  तो 
कतना  अ छा  होता।  मतलब  उसम  वे  अपने-आपको  झ क  देती  और  इस  चंड  से  मु   हो  जाती।  ऐसी  ित  म 
उ ने  आँख  फाड़-फाड़  कर भगवान क   ाथना  न त  प से क  होगी  क 'हे भगवान! तून े हम पर यह  ा जु  
ढाएँ  ह?  हम  वयं  बलह न  ह,  इस लए  हमको  अबला  कहा  जाता  ह।  हम  हमारे   पितय   का  जो  कुछ  बल  ा त था, 
वह  भी  इस  चंड  ने  छ न  लया  है।  यह  सब  मालूम  होने  पर  भी  तू  बुज दल  हो  कर  कायर  क   तरह  हमार   कतनी 
इि तहान  ले  रहा  है!  जसने  हमारे   शौहर  को मार डाला और हम अबला  पर ह थयार उठाए  ए है और इसी म जो 
अपना  पु षाथ  समझता  है,  ऐसे  चंड  के  अपराध   को  देख कर तू समथ होने पर भी मुँह म उँगली दबाए प र जैसा 
बहरा  अंधा    बन  बैठा  ह?'  इस  तरह  वे  ना रयाँ बेसहारा हो कर  कसी के सहारे  क  तलाश म मुँह उठाए ई र क  
याचना  कर  रह  थी। उसी समय चंड परशुराम ने वहाँ प ँ च कर उन अबला  को नह  भगाया होगा?  फर तो उनक  
यातना   क   कोई  सीमा  ह   नह   रह   होगी।  उनम  से  कुछ  ना रय   ने  बे हसाब  िच ला-िच ला  कर, चीख चीख कर 
अपनी  जान  गँवाई  होगी?  और  शेष  ना रय   ने  बड़ी  वन ता  से  उस  चंड परशुराम से दया क  भीख नह  माँगी होगी 
क  'हे  परशुराम,  हम  आपसे  इतनी  ह   दया  क   भीख  माँगना  चाहते  ह  क  हमारे  गभ से पैदा होनेवाले अनाथ ब  
क   जान  ब शो! हम सभी आपके सामने इसी के  लए अपना आँचल पसार रह ह। आप हम पर इतनी ह  दया करो। 
अगर  आप  चाहते  हो  तो  हमार   जान  भी  ले  सकते  हो,  ले कन  हमारे   इन  मासूम  ब   क  जान न लो! आपने हमारे  
शौहर  को  बड़ी  बेरहमी  से  मौत  के  घाट उतार  दया है, इस लए हम बेसमय वैध य  ा त  आ है। और अब हम सभी 
कार  के  सुख   से  कोस   दूर  चले  गए  ह।  अब  हम  आगे  बाल-ब   होने  क   भी  कोई  उ ीद  नह   रह । अब हमारा 
सारा  यान  इन  ब   क   ओर  लगा  आ  है।  अब  हम  इतना  ह   सुख  चा हए।  हमारे   सुख  क   आशा  व प हमारे  ये 
जो  मासूम  ब  े ह,  उनको  भी  जान  से  मार  कर  हम  आप    तड़फड़ाते  देखना  चाहते  हो?  हम  आपसे  इतनी  ह  
भीख  माँगते  ह।  वैस े तो  हम  आपके  धम  क   ह   संतान  ह।  कसी भी तरह से   न हो, आप हम पर रहम क जए। 
इतने  क णापूण,  भावपूण  श द   से  उस  चंड  परशुराम  का  दल  कुछ  न  कुछ  तो  िपघल  जाना  चा हए  था,  ले कन 
आ खर प र-प र ह  सा बत  आ। वह उ   सूत  ए देख कर उनसे उनके नवजात  शशु छ नने लगा। तब ये उन 
नवजात  शशु   क   र ा  के  लए  उन  पर  धी  िगर  पड़ी  ह गी  और  गदन  उठा  कर  कह रह  ह गी के 'हे परशुराम, 
आपको  य द  इन  नवजात  शशु   क   ह   जान  लेनी  है  तो  सबसे  पहले  यह   बेहतर  होगा  क  हमारे   सर  काट  लो, 
फर  हमारे   प ात  आप  जो  करना  चाह सो कर लो,  कतु हमार  आँख  के सामने हमारे  उन न -मु  ब  क  जान 
न  लो!  'ले कन  कहते  ह  न,  कु  े क   दुम  टेढ़ी क  टेढ़ी ह  रहती है। उसने उनक  एक भी न सुनी। यह  कतनी नीचता! 
उन  ना रय   को  गोद  म  खेल  रहे  उन नवजात  शशु  को जबद ती छ न  लया गया होगा, तब उ  जो यातनाएँ  ई 
ह गी,  जो  मान सक  पीड़ाएँ  ई  ह गी,  उस  ित  को  श द   म  य   करने  के  लए  हमारे   हाथ  क   कलम  थरथराने 
लगती  है।  खैर,  उस  ज लाद  ने  उन  नवजात  शशु   क   जान  उनक   माता   क   आँख   के  सामने  ली  होगी। उस 
समय  कुछ  माता   ने  अपनी  छाती  को  पीटना,  बाल   को  न चना  और  जमीन  को  कूदेरना  शु   कर  दया  होगा। 
उ ने  अपने  ह   हाथ  से  अपने  मुँह  म  िम ी  के  ढले  ठूँ स-ठूँ स  कर  अपनी  जान  भी  गँवा  द   होगी।  कुछ  माताएँ  पु  
शोक  म बेहोश हो कर िगर पड़ी ह गी। उनके होश-हवास भूल गए ह गे। कुछ माताएँ पु  शोक के मारे  पागल-सी हो 
गई  ह गी।  'हाय  मेरा  ब ा,  हाय  मेरा  ब ा!'  करते-करते  दर-दर,  गाँव-गाँव,  जंगल-जंगल  भटकती  ह गी।  ले कन 
इस तरह सार हक कत हम ा ण-पुरो हत से िमल सकेगी, यह उ ीद लगाए रहना फजूल क बात ह। 

इस  तरह  ा ण-पुरो हत   के  पूवज,  अ धकार   परशुराम  ने  सैकड़   ि य   को  जान  से  मार  कर  उनके 
बीवी-ब   के  भयंकर  बुरे  हाल  कए और उसी को आज के  ा ण  ने शू ा द-अितशू  का सवशि मान परमे र, 
सार   सृ   का  नमाता  कहने  के  लए कहा है, यह  कतने बड़े आ य क  बात ह! परशुराम के प ात  ा ण  ने इ  
कम  परे शान  नह   कया होगा। उ ने अपनी ओर से  जतना सताया जा सकता है, उतना सताने म कोई कसर बाक  
छोड़ी  नह   होगी।  उ ने  घृणा  से  इन  लोग   म  से  अ धकांश  लोग   के  भयंकर  बुरे  हाल  कए।  उ ने  इनम  से  कुछ 
लोग   को  इमारत -भवन   क   नीव  म  जदा  गाड़  देन े म  भी  कोई  आनाकानी  नह   क ,  इस बारे  म इस  ंथ म  लखा 
गया है। 

उ ने  इन  लोग   को  इतना  नीच  समझा  था  क  कसी समय कोई शू  नद  के  कनारे  अपने कपड़े धो रहा 
हो  और  इि फाक  से  वहाँ  य द  कोई  ा ण आ जाए, तो उस शू  को अपने सभी कपड़े समेट करके ब त दूर, जहाँ 
से  ा ण  के  तन  पर  पानी  का  एक मामूली कतरा भी पड़ने क  कोई संभावना न हो, ऐसे पानी के बहाव के नीचे क  
जगह  पर  जा  कर  अपने  कपड़े  धोना  पड़ता  था।  य द  वहाँ  से  ा ण  के  तन  पर  पानी  क   बूँद  का  एक  कतरा भी छू 
गया,  या  उसको  इस  तरह  का  संदेह  भी  आ,  तो  ा ण-पंडा  आग  के  शोले  क   तरह  लाल  हो जाता था और उस 
समय  उसके  हाथ  म  जो  भी  िमल  जाए  या  अपने  ह   पास  के  बतन  को  उठा  कर,  न  आव  देखा  न ताव, उस शू  के 
माथे  को  नशाना  बना  कर  बड़े जोर से फक कर मारता था उससे उस शू  का माथा खून से भर जाता था। बेहोशी म 
जमीन  पर  िगर  पड़ता  था।  फर  कुछ  देर  बाद  होश  आता  था  तब  अपने  खून  से  भीगे  ए  कपड़   को  हाथ  म  ले  कर 
बना  कसी  शकायत  के,  मुँह  लटकाए  अपने  घर  चला  जाता  था।  य द  सरकार  म  शकायत  करो  तो,  चार   तरफ 
ा णशाह   का जाल फैला  आ था; बि क  शकायत करने का खतरा यह रहता था  क खुद को ह  सजा भोगने का 
मौका न आ जाए। अफसोस! अफसोस!! हे भगवान, यह कतना बड़ा अ ाय है! 

खैर,  यह  एक  ददभर   कहानी  है,  इस लए  कहना  पड़  रहा  है।  कतु  इस  तरह  क   और  इससे  भी  भयंकर 
घटनाएँ  घटती  थी,  जसका  दद  शू ा द-अितशू   को  बना  शकायत  के  सहना  पड़ता  था।  ा णवाद   रा   म 
शू ा द-अितशू   को  यापार-वा ण   के  लए  या  अ   कसी  काम  के  लए  घूमना  हो  तो  बड़ी  क ठनाइय   का 
सामना  करना  पड़ता  था,  बड़ी  क ठनाइयाँ  बदा त  करनी  पड़ती  थी।  इनके  सामने  मुसीबत  का ताँता लग जाता था। 
उसम  भी  एकदम  सुबह  के समय तो ब त भार   द कत खड़ी हो जाती थी,  क उस समय सभी चीज  क  छाया 
काफ  लंबी होती है। य द ऐसे समय शायद कोई शू  रा ते म जा रहा हो और सामने से  कसी  ा ण क  सवार  आ 
रह   है,  यह  देख  कर उस  ा ण पर अपनी छाया न पड़े, इस डर से कंिपत हो कर उसको पल-दो-पल अपना समय 
फजूल  बरबाद  करके  रा ते  से  एक  ओर  हो  कर  वह   बैठ  जाना  पड़ता  था।  फर  उस  ा ण  के  चले  जाने  के  बाद 
उसको  अपने  काम  के  लए  नकलना  पड़ता  था।  मान  ली जए,  कभी-कभार  बगैर  खयाल  के  उसक   छाया  उस 
ा ण  पर  पड़ी  तो  ा ण  तुरंत  ो धत  हो  कर  चंड  बन  जाता  था  और  उस  शू   को  मरते  दम  तक  मारता-पीटता 
और उसी व नद पर जा कर ान कर लेता था। 

शू   से  कई  लोग   को (जाितय  को) रा ते पर थूकने क  भी मनाह  थी। इस लए उन शू  को  ा ण  क  
बि तय   से  गुजरना  पड़ा  तो  अपने  साथ  थूकने  के  लए  िम ी  के  कसी  एक  बरतन  को  रखना पड़ता था। समझ लो, 
उसक   थूक  जमीन  पर  पड़  गई  और  उसको  ा ण-पंड   ने देख  लया तो उस शू  के  दन भर गए। अब उसक  खैर 
नह ।  इस  तरह  ये  लोग  (शू ा द-अितशू   जाितयाँ)  अनिगनत  मुसीबत   को  सहते-सहते  म टयामेट  हो  गए।  ले कन 
अब  हम  वे  लोग  इस  नरक  से  भी  बदतर  जीवन  से  कब  मुि   देत े ह,  इसी  का इं तजार है। जैस े कसी  यि  ने ब त 
दन   तक  जेल  के  अंदर  जदगी  गुजार  द   हो,  वह कैद  अपने साथी िम  से बीवी-ब  से भाई-बहन से िमलने के 
लए  या  वतं   प  से  आजाद  पंछ   क   तरह  घूमने  के  लए  बड़ी उ क ु ता से जेल से मु  होने के  दन का इं तजार 
करता  है,  उसी  तरह  का  इं तजार, बेस ी इन लोग  को भी होना  वाभा वक ह  है। ऐसे समय बड़ी खुश क त क हए 
क  ई र  को  उन  पर  दया  आई,  इस  देश  म  अं ज े   क   स ा  कायम  ई  और  उनके  ारा  ये  लोग  ा णशाह   क  
शार रक  गुलामी  के  मु   ए।  इसी लए  के  लोग  अं ज े ी  राजस ा  का शु या अदा करते ह। ये लोग अं ज े  के इन 
उपकार   को  कभी  भूलगे  नह । उ ने इ  आज सैकड़  काल से चली आ रह   ा णशाह  क  गुलामी क  फौलाद  
जंजीर   को  तोड़  करके  मुि   क   राह  दखाई  है। उ ने इनके बीवी-ब  को सुख के  दन  दखाए ह। य द वे यहाँ न 
आते  तो  ा ण   ने,  ा णशाह   ने  इ   कभी  स ान  और  वतं ता  क   जदगी  न  गुजारने  द   होती।  इस  बात पर 
कोई  शायद  इस  तरह  का  संदेह  उठा  सकता  है  क  आज  ा ण  क  तुलना म शू ा द-अितशू  क  सं या कर बन 
दस  गुना  ादा  है।  फर  भी  ा ण   ने  शू ा द-अितशू   को  कैसे  म टयामेट  कर  दया?  कैसे  गुलाम  बना  लया? 
इसका  जवाब  यह  है  क  एक  बु मान, चतुर आदमी इस अ ानी लोग  के  दलो- दमाग को अपने पास िगरवी रखा 
सकता  है।  उन  पर  अपना  वािम व  लाद  सकता  है।  और दूसर  बात यह है  क दस अनपढ़ लोग य द एक ह  मत के 
होते तो वे उस बु मान, चतुर आदमी क  दाल ना गलने देत,े  एक न चलने देत;े   कतु वे दस लोग दस अलग-अलग 
मत  के होने क  वजह से  ा ण -पुरो हत  जैस े धूत, पाखंडी लोग  को उन दस  भ - भ  मतवाद  लोग  को अपने 
जाल  म  फ ँ साने  म  कुछ  भी  क ठनाई  नह   होती।  शू ा द-अितशू   क   वचार  णाली,  मत  मा ताएँ  एक  दूसरे   से 
मेल-िमलाप  न  करे ,  इसके  लए  ाचीन  काल  म  ा ण-पुरो हत   ने  एक  ब त  बड़ी  धूततापूण  और  बदमाशीभर  
वचारधारा  खोज  नकाली।  उन  शू ा द-अितशू   के  समाज  क   सं या  जैस-े जैस े बढ़ने  लगी,  वैस-े वैस े ा ण   म 
डर  क   भावना  उ प   होने  लगी।  इसी लए  उ ने  शू ा द-अितशू   के  आपस  म  घृणा  और  नफरत  बढ़ती  रहे, 
इसक   योजना  तैयार  क ।  उ ने  समाज  म  म े   के  बजाय  जहर  के  बीज  बोए।  इसम  उनक   चाल  यह  थी  के  य द 
शू ा द-आितशू   (समाज)  आपस  म  लड़ते-झगड़ते  रहगे  तब  कह   यहाँ अपने  टके रहने क  बु नयाद मजबूत रहेगी 
और  हमेशा-हमेशा  के  लए उ  अपना गुलाम बना कर बगैर मेहनत के उनके पसीने से  ा त कमाई पर  बना  कसी 
रोक-टोक  के  गुलछर उड़ाने का मौका िमलेगा। अपनी इस चाल,  वचारधारा को कामयाबी देन े के  लए जाितभेद क  
फौलाद   जहर ली  द वार  खड़ी  करके,  उ ने  इसके  समथन  म  अपने  जाित- वाथ स   के  कई  ंथ  लख  डाले। 
उ ने  उन  ंथ   के  मा यम  से  अपनी  बात   को  अ ानी  लोग   के  दल - दमाग  पर  प र  क   लक र  तरह  लख 
दया।  उनम  से  कुछ  लोग  जो  ा ण   के  साथ  बड़ी  कड़ाई  और  ढ़ता से लड़े, उनका उ ने एक वग ह  अलग कर 
दया।  उनसे  पूर   तरह  बदला  चुकाने  के  लए उनक  जो बाद क  संतान  ई, उसको उ  छूना नह  चा हए, इस तरह 
क   जहर ली  बात  ा ण-पंडा-पुरो हत   ने  उ   लोग   के  दलो- दमाग  म  भर  द   फलहाल  ज   माली,  कुनबी 
(कुम   आ द)  कहा  जाता  है।  जब  यह  आ  तब  इसका  प रणाम  यह  आ  क  उनका  आपसी  मेल-िमलाप  बंद  हो 
गया  और  वे  लोग  अनाज  के  एक-एक  दाने  के  लए  मोहताज  हो  गए।  इसी लए  इन  लोग   को  जीने के  लए मरे   ए 
जानवर   का  मांस  मजबूर  हो  कर  खाना  पड़ा।  उनके  इस  आचार- यवहार  को  देख  कर  आज  के  शू   जो  ब त  ह  
अहं कार  से  माली,  कुनबी,  सुनार,  दरजी,  लुहार  बढ़ई  (तेली,  कुम )  आ द  बड़ी-बड़ी  सं ाएँ  अपने  नाम  के  साथ 
लगाते  ह, वे लोग केवल इस  कार का  यवसाय करते ह। कहने का मतलब यह  है  क वे लोग एक ह  घराने के होते 
ए  भी  आपस  म  लड़ते-झगड़ते  ह  और  एक  दूसरे   को  नीच  समझते  ह।  इन  सब  लोग   के  पूवज  वदेश  के  लए 
ा ण   से  बड़ी  नभयता  से  लड़ते  रहे, इसका प रणाम यह  आ के  ा ण  ने इन सबको समाज के  नचले  तर पर 
ला  कर  रख  दया  और  दर-दर  के  भखार   बना  दया।  ले कन  अफसोस  यह  है  क  इसका  रह य  कसी  के  यान  म 
नह   आ  रहा  है।  इस लए  ये  लोग  ा ण-पंडा-परो हत   के  बहकावे  म  आ  कर  आपस  म  नफरत  करना  सीख  गए। 
अफसोस!  अफसोस!!  ये  लोग  भगवान  क   नगाह  म  कतने  बड़े  अपराधी  है!  इन  सबका  आपस  म  इतना  बड़ा 
नजद क   संबंध  होने  पर भी  कसी  ोहार पर ये उनके दरवाजे पर पका-पकाया भोजन माँगने के  लए आते ह तो वे 
लोग  इनको  नफरत  क   नगाह  से  ह   नह  देखते ह, कभी-कभी तो डंडा ले कर इ  मारने के  लए भी दौड़ते ह। खैर, 
इस  तरह  जन- जन  लोग   ने  ा ण-पंडा-पुरो हत   से  जस- जस  तरह  से  संघष  कया,  उ ने  उसके  अनुसार 
जाितय   म  बाँट  कर  एक  तरह से सजा सुना द  या जाितय  का  दखावटी आधार दे कर सभी को पूर  तरह से गुलाम 
बना  लया।  ा ण-पंडा-पुरो हत   सब  म  सव े   और  सवा धकार  संप   हो  गए,  है  न  मजे  क   बात!  तब  से  उन 
सभी  के  दलो  दमाग  आपस  म  उलझ  गए  और  नफरत  से  अलग-अलग हो गए।  ा ण-पुरो हत  अपने ष ं  म 
कामयाब  ए।  उनको  अपना  मनचाहा  यवहार  करने  क   पूर   वंत ता  िमल  गई।  इस  बारे   म एक कहावत  स  है 
क  'दोन   का  झगड़ा  और  तीसरे   का  लाभ'  मतलब  यह  है  क  ा ण-पंडा-पुरो हत  ने शू ा द-अितशू  के आपस 
म नफरत के बीज जहर क तरह बो दए और खुद उन सभी क मेहनत पर ऐशोआराम कर रहे ह। 

सं पे   म,  ऊपर  कहा  ह   गया  है  क  इस  देश  म  अं ज


े   सरकार  आने  भी  वजह  से  शू ा द-अितशू   क  
जदगी  म  एक  नई  रोशनी  आई।  ये  लोग  ा ण  क  गुलामी से मु   ए, यह कहने म  कसी  कार का संकोच नह  
है।  फर  भी  हमको  यह  कहने  म  बड़ा  दद  होता  है  क  अभी  भी  हमार   दयालु  सरकार  के,  शू ा द-अितशू   को 
श त  बनाने  क   दशा  म,  गैर- ज द े ार पूण  रवैया  अि तयार करने क  वजह से ये लोग अनपढ़ ह  रहे। कुछ लोग 
श त,  पढ़े  लखे  बन  जाने  पर  भी  ा ण  के नकली पाखंडी (धम)  ंथ  के शा पुराण  के अंध भ  बन कर मन 
से, दलो- दमाग से गुलाम ह रहे। 

इस लए  उ   सरकार  के  पास  जा  कर  कुछ  फ रयाद  करने,  ाय  माँगने  का  कुछ  आधार  ह   नह   रहा  है। 
ा ण-पंडा-पुरो हत   लोग  अं ज े   सरकार  और  अ   सभी  जाित  के  लोग   के  पा रवा रक  और  सरकार   काम   म 
कतनी  लूट-खसोट  करते ह, गुलछर उड़ाते है, इस बात क  ओर हमार  अं ज े  सरकार का अभी तक कोई  यान नह  
गया  है।  इस लए  हम  चाहते  है  क  अं ज
े   सरकार  को  सभी  जन   के  ित  समानता  का  भाव  रखना  चा हए  और  उन 
तमाम  बात   क   ओर  यान  देना  चा हए  जससे  शू ा द-अितशू   समाज  के  लोग  ा ण   क   मान सक  गुलामी  से 
मु हो सक। अपनी इस सरकार से हमारे यह ाथना है। 

इस  कताब  को  लखते  समय  मेरे  िम   वनायक  राव  बापू  जी  भंडारकर  और  सा0  राज लगू  ने  मुझ े जो 
उ ाह दया, इसके लए म उनको ब त-ब त ध वाद देता ँ । 

जोतीराव गो वदराव 

 
ा णवाद धम क छ छाया म 

गुलामगीर  

[जोतीराव और ध डीराव-संवाद] 

प र छे द : एक 

[ ा क यु प , सर वती और इराणी या आय लोग के संबंध म।] 

ध डीराव  :  प मी  देश  म अं जे ,  च आ द दयालु, स य रा कता  ने इक ा हो कर गुलामी  था पर 
कानूनन  रोक  लगा  द   है।  इसका  मतलब  यह  है  क  उ ने  ा  के  (धम)  नीित- नयम  को ठु करा  दया है।  क 
मनुसं हता  म  लखा  गया  है  क  ा  ( वराट  पु ष)  ने  अपने  मुँह  से  ा ण  वण  को  पैदा  कया  है  और  उसने  इन 
ा ण क सेवा (गुलामी) करने क लए ह अपने पाँव से शू को पैदा कया है। 

जोतीराव  :  अं ज
े   आ द  सरकार   ने  गुलामी  था  पर  पाबंद   लगा  द   है,  इसका  मतलब  ह   यह  है  क 
उ ने  ा  क   आ ा  को  ठु करा  दया  है,  यह   तु ारा  कहना  है  न! इस दु नया म अं ज े  आ द कई  कार के लोग 
रहते  ह,  उनको  ा  ने  अपनी  कौन-कौन  सी  इं य   से  पैदा  कया  है  और  इस  संबंध  म  मनुसं हता  म  ा- ा 
लखा गया है? 

ध डीराव  :  इसके  संबंध म सभी  ा ण, मतलब बु मान और बु ह न यह जवाब देत े ह  क अं ज


े  आ द 
लोग के अधम, दुराचार होने क वजह से उन लोग से बारे म मनुसं हता म कुछ भी लखा नह गया। 

जोतीराव  :  तु ारे  इस तरह के कहने से यह पता चलता है  क  ा ण  म अधम, नीच, दु , दुराचार  लोग 


बलकुल है ह नह ? 

धोडीराव:  अनुभव  से  यह  पता  चलता  है  क  अ   जाितय   क   तुलना  म  ा ण   म  सबसे  ादा अधम, 
नीच, दु और दुराचार लोग ह। 

जोतीराव  :  फर  यह  बताओ  के  इस  तरह  के अधम, नीच, दु ,  ा ण  के बारे  म मनु क  सं हता मे  कस 
कार से लखा गया है? 

ध डीराव  :  इस  बात  से  यह  मा णत  होता  है  क  मनु  ने अपनी सं हता म जो  यु पि   स ांत  ितपा दत 
कया है, वह एकदम त यह न, नराधार है; क वह स ांत सभी मानव समाज पर लागू नह होता। 

जोतीराव  :  इसी लए  अं ज े   आ द  लोग   के  जानकार   ने  ा ण  ंथकार   क   बदमाशी  को  पहचान  कर 
गुलाम  बनाने  क   था  पर  कानूनन पाबंद  लगा द । य द यह  ा तमाम मानव समाज क   यु पि  के  लए सह  म 
कारण  होता  तो  उ ने गुलामी  था पर पाबंद  ह  नह  लगाई होती। मनु ने चार वण  क  उ पि   लखी है। य द इस 
यु पि   को  कुल  िमला  कर  सभी  सृ - म   से  तुलना करके देखा जाए तो वह तुमको पूर  तरह त यह न,  नराधार 
ह दखाई देगी। 

ध डीराव : मतलब, यह कस कार से? 

जोतीराव  :  ा ण   का  कहना है  ा ण  ा के मुख से पैदा  ए ले कन कुल िमला कर सभी  ा ण  क  


आ दमाता  ा णी  ा  के  कस  अंग  से  उ प   ई,  इसके  बारे  म मनु ने अपनी सं हता म कुछ भी नह   लख रखा 
है। आ खर ऐसा ? 
ध डीराव  :  क  वह  उन  व ान  ा ण   के  कहने  के  अनुसार  मूख  दुराचार   होगी।  इस लए  फलहाल 
उसे ले छ [3]​ या वध मय क पंि म रख दया जाए। 

जोतीराव  :  हम  भूदेव  ह,  हम  सभी  वण   म  े  ह, यह हमेशा बड़े गव से कहनेवाले इन  ा ण  को ज  


देनव
े ाली  आ दमाता  ा णी  ह   है  न?  फर  तुम  उसको  ले छ   क   पंि   म  कस लए  रखते  हो?  उसको  वहाँ  क  
शराब और मांस क बदबू कैसे पसंद आएगी? बेट,े तू यह बड़ी गलत बात कर रहा है। 

ध डीराव  :  आपने  ह   कई  बार  सरे आम  सभा   म,  या यान   म  कहा  है  क  ा ण   के  आ दवंशज  जो 
ऋिष  थे,  वे  ा   ​[4]  के  बहाने  गौ  क   ह ा  करके  गाय  के  मांस से कई  कार के पदाथ बनवा करके खाते थे। और 
अब  आप  कहते  है  क  उनक   आ दमाता  को  बदबू  आएगी,  इसका मतलब  ा है? ​आप अं ज े ी राज के द घजीवी 
होने  क   कामना  क जए,  और  कुछ  दन  के  लए  क  जाइए।  तब  आपको  दखाई  देगा  क  आज  के  अ धकांश 
मांग लक[5]  भ क ु   ा ण  इस  तरह  का  यास  करगे  क  रे सडट,  गवनर  आ द  अ धका रय   क   उन  पर 
ादा-से- ादा  मेहरबानी  हो,  इस लए  ये  ा ण  उनक   मेज  पर  के  बचे-खुच े गो त  के टु कड़े बुटल
े र ​[6]  ा ण  
के  नाम  से  अंदर-ह -अंदर  फुसफुसाने  लगे  ह?  मनु  महाराज  ने  आ द ा णी  क   यु पि   के  बारे   म  कुछ  भी  नह  
लखा  है।  इस लए  इस  दोष  क   सार   ज द े ार   उसी  के  सर  पर डाल द जए। उसके बारे  म आप मुझ े  दोष दे 
रहे ह क म गलत-सलत बोल रहा ँ ? छो ड़ए इन बात को, आगे बताइए। 

जोतीराव  :  अ छा,  जैसी  तु ार   इ छा,  वह  सच   ना हो। अब  ा ण को पैदा करनेवाले  ा का जो 


मुँह  है,  वह  हर  माह  मा सक  धम  (माहवार)  आने  पर  तीन-चार  दन  के  लए  अप व   (ब ह क
ृ त)  होता  था  या 
लगायत[7]  ना रय  क  तरह भ  लगा कर प व  (शु ) हो कर घर के काम-धंध े म लग जाता था, इस बारे  म मनु 
ने कुछ लखा भी है या नह ? 

ध डीराव  :  नह ।  कतु  ा ण   क   उ पि   का  आ द  कारण  ा  ह   है।  और  उसको  लगायत  नार   का 
उपदेश  कैसे  उिचत  लगा  होगा?  क  आज  के  ा ण  लोग  लगायत   से  इस लए घृणा करते ह  क वे इसम 
छुआछूत नह मानते। 

जोतीराव  :  इससे  तुम  सोच  ह   सकते  हो  क  ा ण  का  मुँह,  बाँह,  जाँघे  और  पाँव  -  इन  चार  अंग   क  
यो न,  माहवार  (रज वला)  के कारण, उसको कुल िमला कर सोलह  दन के अशु  हो कर दूर-दूर रहना पड़ता होगा। 
फर  सवाल  उठता है  क उसके घर का काम-धंधा कौन करता होगा?  ा मनु महाराज ने अपनी मनु ृ ित म इसके 
संबंध म कुछ लखा भी है या नह ? 

ध डीराव : नह । 

जोतीराव  :  अ छा।  वह  गभ  ा  के  मुँह  म  जस  दन  से  ठहरा,  उस  दन  से  ले  कर  नौ  मह ने  बीतने तक 
कस जगह पर रह कर बढ़ता रहा, इस बारे म मनु ने कुछ कहा भी है या नह ? 

ध डीराव : नह । 

जोतीराव  :  अ छा।  फर  जब  यह  ा ण  बालक  पैदा  आ, उस नवजात  शशु को  ा ने अपने  तन का 
दूध िपला कर छोटे से बड़ा कया, इस बारे म भी मनु महाराज ने कुछ लखा है या नह ? 

ध डीराव : नह । 
जोतीराव  :  सा व ी  ा  क   औरत  होने पर भी उसने उस नवजात  शशु के गभ का बोझ अपने मुँह म नौ 
मह ने  तक  सँभाल  कर  रखने,  उसे  ज   देन े और  उस  क   देखभाल  करने  का झमेला अपने माथे पर   ले  लया? 
यह कतना बड़ा आ य है! 

ध डीराव  :  उसके  ( ा  के)  शेष  तीन  सर  उस  झमेल े से  दूर थे या नह ? आपक  राय इस मामले म  ा 
है? उस रं डीबाज को इस तरह से माँ बनने क इ छा पैदा ई होगी? 

जोतीराव  :  अब  य द  उसे  रं डीबाज  कहा  जाए  तो  उसने  सर वती  नाम  क   अपनी  क ा  से  ह   संभोग 
( य भचार)  कया  था।  इसी लए  उसका  उपनाम  बेटीचोद  हो  गया  है।  इसी बुरे कम के कारण कोई भी  यि  उसका 
मान-स ान (पूजा) नह कर रहा है। 

ध डीराव  :  य द  सचमुच  म  ा  को  चार  मुँह  होते  तो  उसी  हसाब  से  उसे  आठ  तन,  चार  ना भयाँ,  चार 
यो नयाँ  और  चार  मल ार  होने  चा हए।  कतु  इस  बारे   म  सह   जानकार   देनवे ाला  कोई  ल खत  माण  नह   िमल 
पाया  है।  फर,  उसी तरह शेषनाग क  शैया पर सोनेवाले को, ल ी नाम क   ी होने पर भी, उसने अपनी ना भ से 
चार मुँहवाले ब े को कैसे पैदा कया? इस बारे म य द सोचा जाए तो उसक भी ित ा क तरह ह होगी। 

जोतीराव  :  वा तव  म,  हर    से  सोचने  के  बाद  हम  इस  नणय पर प ँ चते है  क  ा ण लोग समु पार 
जो  इराण  नाम  का  देश है, वहाँ के मूल  नवासी है। पहले जमाने म उ  इराणी या आय कहा जाता था। इस मत का 
ितपादन  कई  अं ज े ी  ंथकार   ने  उ   के  ंथ   के  आधार  पर  कया  है।  सबसे  पहले  उन  आय  लोग   ने  बड़ी-बड़ी 
टो लयाँ  बना  करके  देश  म  आ  कर  कई  बबर हमले  कए। यहाँ के मूल  नवासी राजा  के  देश  पर बार-बार हमले 
करके  बड़ा  आतंक फैलाया।  फर (बटू ) वामन के बाद आय ( ा ण) लोग  का  ा नाम का मु य अ धकार   आ। 
उसका  वभाव ब त  ज ी था। उसने अपने काल म यहाँ के हमारे  आ दपूवज  को अपने बबर हमल  म परा जत कर 
उ   अपना  गुलाम  बनाया।  बाद  म  उसने  अपने  लोग  और  इन  गुलाम   म हमेशा-हमेशा के  लए भेद-भाव बना रहे, 
इस लए  कई  कार  के  नीित  नयम  बनवाए।  इन  सभी  घटना   क   वजह  से  ा  क   मृ  ु के बाद आय लोग  का 
मूल नाम अपने-आप लु त हो गया और उनका नया नाम पड़ गया ' ा ण'। 

फर  मनु  महाराज  जैस े ( ा ण)  अ धकार   ए।  पहले  से  बने  ए  और  अपने  बनाए  ए नीित- नयम  का 
य  बाद  म  कोई  न  कर  पाए,  इस  डर  क   वजह  से  उसने  ा  के  बारे   म  नई  नई  तरह  क   क पनाएँ  फैलाई।  फर 
उसने  इस  तरह  के  वचार  उन  गुलाम  लोग   के  दल - दमाग  म  ठूँ स-ठूँ स  कर  भर  दए  क ये बात ई र क  इ छा से 
ई  ह।  फर  उसने  शेषनाग  शैया  क   दूसर   अंधी  कथा  (पुराण  कथा)  गढ़ी  और  समय  देख कर, कुछ समय के बाद, 
उन  सभी  पाखंड   के  ंथशा   बनाए  गए।  उन  ंथ  के बारे  म शू  गुलाम  को नारद जैस े धूत, चतुर, सदा औरत  म 
रहनेवाले  छोरे   के  ताली  पीट-पीट कर उपदेश करने क  वजह से यूँ ह   ा का मह व बढ़ गया। अब हम इस  ा 
के  बारे   म,  शेषनाग  शैया  करनेवाले के बारे  म खोज करने लग तो उससे हम छदाम का फायदा तो होगा नह   क 
उसने  जान  बूझ  कर  उस  बेचारे   को  सीधा  लेटा  आ  देख  कर  उसक   ना भ  से  यह  चार  मुँहवाले  ब  े को  पैदा 
करवाया।  मुझ े ऐसा  लगता  है  क  पहले  से  ह   धािचत  ए गर ब पर ऊपर से पाँव देना, इसम अब कुछ मजा नह  
है। 

प र छे द : दो 

[म य और शंखासुर के संबंध म] 

ध डीराव  :  इस  देश  म  (बटू )  वामन  के  पहले  इराण  से  आय  लोग   के  कुल  िमला  कर  कतने  ज  े आए 
होग? 
जोतीराव : इस देश म आय लोग के कई ज े जलमाग से आए। 

ध डीराव : उनम से पहला ज ा जलमाग से लड़ाकू नौका से आया था या कसी और माग से? 

जोतीराव  : लड़ाकू नौकाएँ उस काल म नह  थी। इस लए वे ज  े छोटी-छोटी नौका  पर आए थे और वे 


नौकाएँ  मि लय   क   तरह  तेजी  से  पानी  के ऊपर चलती थी। इस लए उस ज  े के अ धकार  का उपनाम म य हो 
गया होगा। 

ध डीराव  :  फर  ा ण  इितहासकार   ने  भागवत  आ द  ंथ   म  इस  तरह  लखा  है  क  उस  ज  े का 
मु खया म य से पैदा आ था, इसका ा मतलब होगा? 

जोतीराव  :  उसके  बारे   म  तुम  ह   सोचो  क  मनु य  और  मछली  इनके  इं य  म, आहार म,  न ा म, मैथन
ु  
म  और  पैदा  होने  क   कया  म  कतना  अंतर  है?  उसी  कार  उनके  मि त क  म,  मेधा  म,  कलेज े म,  फफड़े  म, 
अंत डय   म,  गभ  पालने-पोसने  क   जगह  म  और  सूित होने के माग म  कतना चम का रक अंतर है। मनु य जमीन 
पर  रह  कर  अपनी  जदगी  बसर  करनेवाला  ाणी है। वह जरा-सी असावधानी से पानी म िगरने पर तैरना न आए तो 
डू ब  कर  मर  जाता  है;  कतु  मछली  हमेशा  ह   पानी  म  रहती  है। ले कन मछली को पानी से बाहर  नकाल कर जमीन 
पर  रखते  ह   ितलिमला  कर  मर  जाती  है।  नार   वाभा वक  प  म  एक  समय  एक  ह   ब  े को  ज   देती  है। ले कन 
मछली  सबसे  पहले  कई  अंड े देती  है।  उसके  कुछ  दन   बाद  उन  अंड   को  फोड़  कर  उसम  से  अपने  सभी ब  को 
बाहर  नकालती  है।  अब  जस  अंड े म  यह  म य-बालक  था,  उसको  उसने  पानी  से  बाहर  नकाल  कर  जमीन  पर 
फोड़ा  होगा  उस  अंड े से  उसने  उस  म य-बालक  को  बाहर  नकाला  होगा।  य द  यह  कहा  जाए, तो उस मछली क  
जान  पानी  से  बाहर  जमीन  पर  कैसे  बची  होगी?  कोई  आदमी  इस  तरह  का  सवाल  उठा  सकता  है  क  मनु य  म से 
कसी  मँजे  ए  गोताखोर  ने  पानी  के  अंदर  गहर   डु बक   लगा  कर  म य-बालक  जस  अंड े म  था,  उस  अंड े को 
पहचान  कर  उसने  उसको  जमीन  पर  लाया  होगा।  खैर,  यह  भी  सच  मान  ली जए।  ले कन  बाद  म  कस चतुर मद ने 
म ली  के  उस  अंड े को  फोड़  कर  उसम  से  उस  म य-बालक को बाहर  नकाला होगा,  क यूरोप और अमे रक  
देश   म  काफ   वकास  आ  है  और  बड़े-बड़े  याित ा त  व ान  िच क ाशा   म  व   ए  ह,  फर  भी  उनम  से 
कसी  एक ने भी अपनी छाती पर हाथ रख कर यह दावा नह   कया है  क म म ली के अंड े को फोड़ करके उसम से 
ब  े को  जदा  बाहर  नकाल  देता  ँ ।  खैर,  वह  अंडा पानी म है, इस तरह का मह वपूण संदेश  कस अमर मछली ने 
पानी  से  बाहर  आ  कर  उस  गोताखोर को बताया होगा और उस जलचर संदेशवाहक क  भाषा मानव को कैसे समझ 
म  आई  होगी?  इस  कार  क   एक  से  अ धक  शंका   से भरे  उन लेख  म से सह  समाधान होना  बलकुल असंभव 
है।  इस लए  उसके  बारे   म  यह  अनुमान  मा णत  होता  है  क,  बाद  म  कुछ  मूख  लोग   ने  मौका  िमलते  ह   अपने 
ाचीन ंथ म इस तरह क का प नक कथा को घुसड़ े दया होगा। 

ध डीराव  :  अ छा,  फर  सवाल  यह  उठता है  क उस ज  े का नायक अपने लोग  से साथ  कस जगह पर 
आ कर का होगा? 

जोतीराव : प म के समु को पार करते ए वह एक बंदरगाह पर उतरा। 

ध डीराव : उस बंदरगाह पर उतरने के बाद उसने ा कया? 

जोतीराव : उसने शंखासुर नाम के  े पित को जान से मार डाला और उसके रा  को छ न  लया। बाद म 


शंखासुर  का  वह  रा   म य  के  मरते  ह   शंखासुर के लोग  ने अपना रा  वापस लेन े के उ े य से म य के कबीले 
पर बड़ा ह खतरनाक हमला बोल दया। 

ध डीराव : बाद म इस खतरनाक हमले का ा प रणाम आ? 


जोतीराव  :  उस  करार   हमले  म  म य  के  कबीले  क   करार   हार  ई।  इस लए  उसने  यु भूिम  से  ह   भाग 
जाना  बेहतर  समझा  और  भाग  नकला।  बाद  म  शंखासुर  के  लोग   ारा  उसका  पीछा  करने  क  वजह से वह अंत म 
कसी  पहाड़ी  पर  जा  कर घने जंगल म छुप गया। उसी समय इराण से आय लोग  का दूसरा एक बड़ा कबीला कचवे 
से  बंदरगाह  पर  आ  प ँ चा  और  वे  कचवे  मछवे  से  कुछ  बड़े  होने क  वजह से पानी पर कछुए क  तरह धीरे -धीरे  चल 
रहे थे। इसी क वजह से उस कबीले के मु खया का उपनाम क छ हो गया। 

प र छे द : तीन 

[क छ, भूदेव,भूपित, ि य, ज और क प राजा के संबंध म] 

ध डीराव : मछली और कछुवा, इन सभी बात  म तुलना करने पर कुछ बात  म  न त  प से फक  दखाई 


पड़ता  है।  ले कन  कुछ  बात   म  जैस े पानी  म  रहना,  अंड े देना,  उ   फोड़ना आ द म उनम समानता भी  दखाई देती 
है।  इस लए  भागवत  आ द  पुराणकता   ने  यह  लख  रखी  है  क  क छ  कछुए  से  पैदा  आ  है।  इसके  बारे   म  भी 
सोचने  पर  प रणाम  म य  जैसा ह  होगा और अपना सारा समय  यथ म खच होगा, ऐसा मुझ े लगता है। इस लए म 
आपसे आगे क बात पूछना चाहता ँ क क छ ने बंदरगाह पर उतरने के बाद ा कया? 

जोतीराव  :  सबसे  पहले  उस  बंदरगाह  क   जस पहाड़ी पर म य  का कबीला मुसीबत म पड़ गया था, वहाँ 


के  मूल  े वासी  लोग  को भगा कर उसने अपने लोग  को मु   कया और वह  वयं उस  े  का भूदेव यानी भूपित 
बन गया। 

ध डीराव : फर जनको क छ ने खदेड़ा था, वे ि य लोग कस ओर चले गए? 

जोतीराव  :  वदेशी  इराणी  या  आय  लोग   का  कबीला  समु   के  रा ते  से  आया  देख  कर,  घबरा  कर  ' ज 
आए'  िच लाते  ए  पहाड़ी  के  उस  पार  क यप  नाम  के  े पित  के  पीछे-पीछे  नकल पड़े। क छ ने उनको इस तरह 
पीछे-पीछे  जाते  ए  देख  कर  अपने साथ कुछ फौज ले कर उस पहाड़ी के एक छोर से नीचे उतरा। उसने उस पहाड़ी 
को  पीठ  पर  ले  कर,  मतलब  पीछे छोड़ कर क यप के रा  के  ि य  को इराण क  मदद से क  देन े लगा। बाद म 
क यप  ने  उस  पहाड़ी  को  क छ  से  वापस  लेन े के  इरादे से जंग क  तैयार  क , ले कन क छे ने अपनी मृ  ु तक उस 
पहाड़ी को उस े पित के हाथ नह लगने दया और अपनी यु भूिम छोड़ कर एक कदम पीछे भी नह हटा। 

प र छे द : चार 

[वराह और हर यगभ के संबंध म।] 

ध डीराव : क छ के मरने के बाद ज का मु खया कौन आ? 

जोतीराव : वराह। 

ध डीराव  :  भागवत  आ द  इितहासकार   ने  यह  लख  कर  रखा  है  क  वराह  क   पैदाइश  सुअर  से  ई  है। 
इसम आपक ा मा ता है? 

जोतीराव  :  वा तव  म  सह   बात  यह  ह  क  मनु य  और  सुअर  म  कसी भी   से चम का रक  भ ता है। 
अपनी  बात  को  अ धक  प   करने  के  लए  और  तु ारा  पूरा समाधान हो, इस लए यहाँ उदाहरण के तौर पर  सफ 
एक  ह   बात  कहना  चाहता  ँ   क  वे  अपने  ब   को  पैदा  करने  के  बाद  उनके  कस  तरह  का  यवहार  करते ह, यह  
सफ  हम  देखना  है।  मनु य  जाित  क   नार   अपने  ब   को  पैदा  करते  ह   वह उस ब  े को  कसी भी तरह का क  
नह   होने  देती  और  उसे  बडे  यार  से  पालती-पोसती  है।  ले कन  सुअर  कुितया क  तरह अपने पैदा  कए पहले ब  े
को  एकदम खा लेती है। उसके बाद दूसरे  ब  े को पैदा करती है। इससे यह  स  होता है  क वरह  क सुअर  माता ने 
सबसे  पहले  अपने  सुअर  जाित  के  ब  े को  खा  कर  बाद  म  उस  मानव  सुअर  को  पैदा  कया  होगा।  कतु  भागवत 
आ द  ंथकार   के  अनुसार,  वराह  य द  आ दनारायण  का  अवतार  है  तो  उसक   सव ता  और  समान    को  दाग 
लगा  या  नह ?  क  वराह  आ दनारायण  का  अवतार  होने  क   वजह  से,  उसको  पैदा  करनेवाली सुअर  को उसके 
बड़े  सुअर  भाई  को  मार  कर  नह   खाना  चा हए।  उसने  इसके  पहले  से  ह   कुछ  बंदोब त    नह   करके  रखा  था? 
हाय!  प ा  सुअर   वराह  आ दनारायण  क   माँ ह  तो है न! और उसने इस तरह से अपने न े-मु  े अबोध बालक क  
ह ा    क ?  'बालह ा'  श द  का  अथ  सफ  ब   को  जान  से  मारना  ह   होता  है,  फर वह ब ा  कसी का भी 
  न  हो।  कतु  इसने  अपने  पैदा  कए  ए  अबोध  ब  े क   ह   ह ा  करके  उसको खा  लया। इस तरह के अ ाय 
का अ छा अथबोध हो, ऐसा श द  कसी श दकोश म खोजने से भी नह  िमलेगा। य द इसको डा कनी कहा जाए तो 
डा कनी  भी  अपने  ब   को  नह   खाती,  यह  एक  पुरानी  कहावत  है।  उस  वराह  क   प ा  माता  को  इस  तरह  का 
अघोर कम करने क  वजह से नरक क  यातनाएँ भोगने से मुि  िमले, इस लए उसने ऐसा पाप मुि  का कम  कया, 
इसका कह कोई ज भी नह िमलता, इसका हम बड़ा अफसोस है। 

ध डीराव  :  वराह  क   सुअर   माता  का  नाम  य द  प ा था तो इससे यह  स  होता है  क उसके सुअर पित 


का कुछ ना कुछ नाम होना ह चा हए क नह ? 

जोतीराव : प ा सुअर के पित का नाम ा था। 

ध डीराव  : इससे यह  समझ म आ रहा है  क  ाचीन काल म जानवर मनु य  क  तरह आपस म एक दूसरे  


को  ा,  नारद  और  मनु,  इस  तरह  के  नाम  देत े थे।  उनके  नाम  इन  गपोड़ी  ंथकार   को  कैसे  समझ  म आए ह गे? 
दूसर   बात  यह  क  प ा  सुअर   ने  वराह  को  उसके  बचपन म अपने  तन से दूध िपलाया ह  होगा, इसम कोई संदेह 
नह ।  कतु  बाद  म  उसके  कुछ  बड़ा  होने  पर  गाँव  के  खंड़हर   म  ब त  ह   कोमल  फूल  पौध   का  चारा  चरने  क   उसे 
आदत  लगी  होगी  क  नह ,  यह  तो  वह   वराह  आ दनारायण  ह  जाने। इस तरह से उनके (धम)  ंथ  म कई तरह के 
मह वपूण  सवाल   के  माण  नह   िमलते।  इस लए  मुझ े लगता  है  क  धम ंथ   म  लखा  यह  सब  झूठ  है  क  वराह 
सुअर   से  पैदा  आ  है  और  इस  तरह  क   झूठ-मूठ  क  बात शा  म  लखते समय उन  ंथकार  को ल ा भी नह  
आई होगी? 

जोतीराव  :  यह  कैसी  बेतक


ु   बात  है  क तु ारे  जैस े ह  लोग तरह के झूठ-मूठ के  ंथ  क   श ा क  वजह 
से  ा ण-पंडा-पुरो हत   और  उनक   संतानो  के  पाँव   को  धो  कर  पानी  भी  पीते  ह। अब तुम ह  बताओ, इसम तुम 
नल हो या वे? 

ध डीराव  :  खैर,  इन  सब  बात   को  अब  छोड़  द जए।  आपके  ह   कहने  के  अनुसार,  उस  मु खया  का  नाम 
वराह कैसे पड़ा? 

जोतीराव  :  क  उसका  वभाव, उसका आचार- यवहार, उसका रहन-सहन ब त ह  गंदा था और वहा 


जहाँ  भी  जाता  था,  वह   जंगली  सुअर  क   तरह  झप ा  मार  कर  अपना  काय  स   करता  था।  इसी  क   वजह  से 
महा तापी  हर यगभ  और  हर यक यप  नाम  के  जो  दो  ि य  थे,  उ ने  उसका  नाम  अपनी  नषेध  क   भावना 
य   करने  के  लए  सुअर  अथात  वराह  रखा।  इससे  वह  और  बौखला  गया  होगा  और  उसने  अपने  मन  म  उनके 
ितशोध  क   भावना  रखते  ए  उनके  देश   पर  बार-बार  हमले  करके,  वहाँ  के  सभी  े वा सय   को  तकलीफ  दे 
करके,  अंत  म  उसने  एक  यु   म  ( हर या )  हर यगभ  को  मार  डाला।  इसका  प रणाम  यह  आ  क  देश  के सभी 
े पितय म घबराहट पैदा हो गई और वे कुछ लड़खड़ाने लगे और इसी समय वराह मर गया। 

प र छे द : पाँच 

[नर सह, हर यक प, ाद, व , वरोचन आ द के संबंध म।] 


ध डीराव : वराह के मरने के बाद ज लोग का मु खया कौन आ? 

जोतीराव : नर सह। 

ध डीराव : नर सह वभाव से कैसा था? 

जोतीराव  :  नर सह,  वभाव  से  लालची,  धोखेबाज,  व ासघात  करनेवाला,  वनाशकार ,  ू र  और   
था। वह शर र से ब त मजबूत और बलवान था। 

ध डीराव : उसने ा- ा कया था? 

जोतीराव  :  सबसे  पहले  उसके  मन  म  हर यक यप  क   ह ा  करने  का  वचार  आया।  उसने  यह  अ छ  
तरह  समझ  लया  था  क  उसक   ह ा  कए  बगैर  उसका रा  उसे िमलनेवाला नह  था। उसका अपना दु  उ े य 
सफल  हो,  इसके  लए  उसने  गु त  हरकत  करना  शु   कर  दया।  उसने  अपने  एक  ज  श क  के  मा यम  से 
हर यक यप  के  बेट े ाद  के  अबोध  मन  पर  अपने  धम- स ांत  थोपना  ारं भ  कया।  इसक   वजह  से  ाद  ने 
अपने हर-हर नाम के कुल वामी क  पूजा करना  ाग  दया। बाद म  हर यक यप ने  ाद के    ए मन को पुन: 
अपने  कुल वामी  क   पूजा  करने  के  लए  अनुकूल  करने  क     से  हर  तरह  क   को शश  क ,  ले कन  नर सह  क  
ओर  से  ाद  को  भीतर  से  मदद  होने  के  कारण  हर यक यप  के  सारे   यास  बेकार  गए।  अंत  म  नर सह  ने  उस 
अबोध  बालक  को  अपने बहकावे म ला कर उसका मन इस तरह से   कर  दया  क वह अपने िपता क  ह ा कर 
दे।  ले कन इस तरह का अमानवीय क ृ  करने के  लए उस लड़के क   ह त नह   ई। इस लए नर सह ने मौका देख 
कर  ता जया  से  बाघ  के  बनावटी  वाँग  क   तरह  अपने  सारे   बदन  को  रं गवाया, मुँह म बड़े-बड़े नकली दाँत लगवाए, 
और  लंब-े लंब े वाल   क   दाढ़ी-मूँछे  लगवाई  और  वह  एक  तरह  से  (नकली)  भयंकर  सह  बन  गया।  यह  सारा  वाँग 
छुपाने  के  लए  नर सह  ने  जर   से  बुनी  ई  ऊ
ँ चे  क   क   साड़ी  (पातल)  पहन  लया और सती क  तरह अपने मुँह 
पर  लंबा-च ड़ा  घूँघट  डाल  कर  बड़े ह  नखरै ल ढं ग से झूमते-लहराते  ए ब  े क  मदद से एक  दन उसके िपता  ारा 
बनवाए  वशाल  मं दर  म  जहाँ  खंब   का  ताँता  लगा  आ  था,  वहाँ  जा  कर  चुपके  से  खड़ा  हो  गया।  उसी  दर यान 
हर यक यप  सारे   दन  के  शासन-भार  से  थका  अपने  मं दर  म  आ  कर  आराम  करने के उ े य से   ह  पलंग पर 
लेटा,  नर सह  ने  बड़ी  तेजी  के  साथ  सर  का  घूँघट  खोल  कर,  आँचल  को  कमर  म  लपेट  कर,  उन  खंब  क  ओट से 
नकल  कर  हर यकशप  के  बदन  पर  काितलाने  ढं ग से टू ट पड़ा। उसने अपने हाथ क  मु ी म छुपाए  ए बघनघा से 
उसके  पेट  को  फाड़  दया।  इस  तरह  उसने  हर यक यप क  ह ा कर द । बाद म नर सह वहाँ से सभी  ज  को ले 
कर  रात  और  दन  एक  कर  के  अपने  मु क  म  भाग  गया।  इधर  नर सह  ने  ाद  को  तो  भुलावे  म  रख  दया  था; 
ले कन  जब  ि य   को  यह  यान  म  आया  क  नर सह  ने  अमानवीय  कम  कया  है  तब उ ने आय लोग  को  ज 
कहना  बलकुल  ाग  दया  और  नर सह  को  वि य[8]  कहने  लगे।  इसी  वि य  श द  से  बाद  म  उसका  नाम  व  
पड़ा  होगा।  बाद  म  ि य   ने  नर सह  यानी  सह  क   औरत  कह कर कोसना शु  कर  दया। अंत म  हर यक यप के 
ब   म  से  कइय   ने  नर सह  को  पकड़  कर  उसको  उिचत  दं ड  देन े क   को शश  क ,  कतु  नर सह  हर यक यप  क  
राजस ा  हड़पने  क   इ छा  छोड़  कर  केवल  अपने  मु क  और  अपनी  जान  को  सँभालते  ए,  कसी  कार  का 
पुन: यास न करते ए मर गया। 

ध डीराव  :  फर  नर सह  के  इस  तरह  के  अमानवीय  क


ृ   क   वजह  से उसके नाम को ले कर बाद म कोई 
उसक   छ -थू न करे , इस डर से  व  इितहासकार  ने कुछ समय के बाद उिचत समय को जान कर नर सह के बारे  म 
यह  स   करने  क   को शश  क   क  वह  तो  खंब े से  पैदा  आ।  इस  तरह  उसके  नाम  के  साथ  कई  झूठ-मूठ  क  
क पनाएँ गढ़ कर इितहास म घुसड़ े द गई ह गी। 

जोतीराव  :  हाँ,  इसम  भी  कोई  संदेह  नह ,  क  य द  वह  खंब े से  पैदा  आ, यह कहा जाए, तब उसक  
गभ  क   नाल  दूसरे   कस  यि   ने  काटी  होगी  और  उसके मुँह म दूध का  तन  दए बगैर यह कैसे  जया होगा? बाद 
म  वह  कसी  न  कसी  दाई  का  या  बाहर  का  दूध िपए, बगैर छोटे से बड़ा कैसे  आ होगा? शायद यह भी हो सकता 
है,  य द  यह  कहा  जाए,  ले कन सृ  म इस तरह से कुछ भी घटते  ए नह   दखाई देता। यह तो सृ म के  व  
ह   है।  इन  लापरवाह  व   ंथकार   ने  नर सह  को  एकदम  लक ड़य   के  खंब   से  पैदा  करवाते  ह   बगैर  कसी  क  
सहायता  के  अपने-आप  ह   इतना  शि शाली  दाढ़ी  मूँछवाला,  अ ल  का  दु मन  बना  दया  क  उसने  तुरंत  ह  
हर यक यप  क   ह ा  कर  डाली।  हाय,  जो  िपता  अपनी  समझ  के  अनुसार,  िपतृधम  क   भावना  को  अपने  मन म 
जगा  कर,  केवल  शु   ममता  से  अपने  वयं के पु  का मन स  े धम म लगाने का  यास कर रहा था, उस िपता को 
आ दनारायण  के  अवतार  ारा  मार  दया  जाना  ा  सह   म  उिचत  था?  इस  तरह  का  अमानवीय  कुकम  अ ानी 
मनु य  का  अवतार  भी  शायद  ह   करे गा।  आ दनारायण  का  अवतार  होने  क   वजह  से  उसे  चा हए  था  क  वह 
हर यक यप  को  दशन दे कर यह  व ास  दलाता  क वह आ दनारायण का अवतार है, और वह िपता पु  म सुलह 
करवाने  आया  है;  ले कन  ऐसा  न  कर  उसने  हर यक यप  को  उपदेश  दे  कर  उसको  समझा  नह   पाया  तो  फर  वह 
उस सबक बु का दाता कैसे? इससे यह स होता है क नर सह म कसी सामा ी से भी कम अ ल थी। 

फलहाल  हदु ान  म  अमे रक   और  यूरोिपयन  िमशन रय   ने  यहाँ  के  कई  युवक   को  ती बना  लया; 
कतु उनम से कसी ने भी कसी ( ती) युवक के िपता क ह ा नह क , यह कतना बड़ा आ य है! 

ध डीराव  :  नर सह  क   इस  तरह  दुदशा  होने पर  व  ने  ाद का रा  लेन े के  लए कुछ को शश भी क  
या नह ? 

जोतीराव  :  व   ने  ाद  का  रा   हड़पने  के  लए  कई  तरह  के  लुके- छपे  यास  कए,  कतु  उन लोग  
को  इसम  कोई  कामयाबी  नह   िमली।  चूँ क,  बाद  म  ाद  क  आँखे खुल गई और उसको  व  क  कु टलता  प  
प  से  दखाई  देन े लगी।  तब  से  ाद  ने  व   पर  कसी  भी  तरह  का  भरोसा करना छोड़  दया और सभी लोग  से 
केवल  ऊपर   दखावे  का  हे   रख  कर  अपने  रा  क  उिचत  यव ा, यो य  ितबंध करके मर गया। उसके मरने के 
बाद  उसी  के  बेट े वरोचन  ने  अपने  रा   को  सँभालते  ए,  उस  रा   को  बलशाली  बनाते  ए  अंितम  साँस  ली। 
वरोचन  का  बेटा  'बली'  ब त  ह  यो ा  नकला। उसने सबसे पहले अपने ह  पड़ोस म रहनेवाले छोटे-बड़े  े पितय  
को  धृ   दं गाखोरो  क   ादितय   से  मु   कया  और  उन  पर  अपना  अ धकार  कायम  कया।  बाद  म  उसने  अपने 
रा  को बढ़ाने क   दन दन को शश क । उस समय  व  का मु खया (बटू ) वामन था। उसको यह सब बदा त नह  
हो  रहा  था।  इस लए  उसने बली का रा  लड़-झगड़ कर लेन े के उ े य से ह  गु त  प से ब त फौज तैयार क  ओर 
अचानक बली के रा क सीमा पर आ प ँ चा। वामन ब त ह लोभी, साहसी और अ ड़यल दमागवाला था। 

प र छे द : छह 

[बली राजा, ोितबा, मराठे , खंडोबा, महासूबा, नवखंड का ायी, भैरोबा, सात आ त, डेरा डालना, 
र ववार को प व मानना, वामन, ा करना, व यावली, घट रखना, बली राजा क मृ ु, सती जाना, आराधी 
लोग, शलंगण, ात का बली राजा बनाना, दूसरे बली राजा के आने क भ व यवाणी, बाणासुर, कुजागर , वामन 
क मृ ु, उपा ये, होली, वीर पुरख क भि , ब ल ितपदा, भाई-दूज आ द के संबंध म।] 

ध डीराव : फर बली राजा ने ा कया? 

जोतीराव  :  बली  राजा  ने  अपने  रा   के  कर ब-कर ब  सभी  सरदार   को  पड़ोसी  े पितय   क   ओर  तुरंत 
भेज  दया  और  इस  तरह  क   ताक द  क   क  उन  सभी  लोग   को  कसी  भी  तरह  क   दलील  न देत े ए अपनी सार  
फौज ले कर उसक मदद के लए आना चा हए। 

धोडीराव: इस देश का इतना बड़ा देश बली के अ धकर म था। 


जोतीराव  :  इस  देश  म  कई  देश  बली राजा के अ धकार म थे। इसके अलावा  सहल ीप आ द पड़ोस के 
कई  देश  इसके  अ धकार  म  थे,  ऐसा  भी  कहा  जाता  है।  चूँ क  वहाँ  बली  नाम  का  एक  ीप  भी  है।  इस  देश  के 
द ण  म  को ापुर  क   प म  दशा  म  बली  के  अ धकार  म  क कण  और  मावला  ​[9]  देश  के  कुछ  े   थे। वहाँ 
ोितबा  नाम  का  मु खया  था।  उसके  रहने  का  मु य  ान  को ापुर  के  उ र  म  र िगर   नाम  का  पहाड़  था।  इसी 
कार  द ण  म  बली  के  अ धकार  म  दूसरा  एक  और  देश  था,  उसको महारा  कहा जाता था। और वहाँ के सभी 
मूल  े वा सय  को महारा ी कहा जाता था। बाद म उसी का अप ंश  प हो गया मराठे । यह महारा   देश ब त 
बड़ा  होने  से  बली  राजा  ने  उस  देश  को  नौ  े   म  बाँट  दया  था।  इसी  के कारण उस हर  े  के मु खया का नाम 
खंडोबा  पड़  गया  था,  इस  तरह  का  उ लेख  िमलता  है।  हर  खंड  के  मु खया  को  यो यता,  के  अनुसार  उनके  हाथ  के 
नीचे  कह   एक,  तो  कह   दो  धान  रहते  थे।  उसी  कार  हर  एक खंडोबा के हाथ के नीचे ब त म ल (पहलवान) थे। 
इस लए उसको मलूखान कहते ह। 

उन  नौ  म  जेजोर   का  खंडोबा  एक  था।[10] यह खंडोबा नाम का मु खया अपने पास-पड़ोस के  पितय  


के  अ धकार  म  रहनेवाले  म ल   को  ठ क  करके  उ   अपने  वच व  म  रखता  था।  इस लए  उसका  यह  दूसरा  नाम 
म लअर   पड़  गया  था।  म ार   ​[11]  इसी  का  अप ंश  है।  उसक   यह  वशेषता  थी  क  वह  धम  के  अनुसार  ह  
लड़ता  था।  उसने  कभी  भी  पीठ  दखा  कर  भागनेवाले  कसी  भी  श  ु पर  वार  नह   कया।  इस लए  उसका  नाम 
मारत ड  पड़  गया  था,  जसका  अप ंश  मातड[12]  हो  गया।  उसी  कार  वह  द न  लोग   का  दाता  था।  उसको गाने 
का  बड़ा  शौक  था।  उसके  ारा  ािपत या उसके नाम पर  स  म ारराग है। यह राग इतना अ छा है  क उसी के 
सहारे   से  तानसेन  नाम  का  मुस लम   म  जो  स  गायक  आ है, उसने भी एक दूसरा म ार राग बनाया है। इसके 
अलावा  बली  राजा  ने,  महारा   म  महासूबा  और नौ खंड  के  ायी के  प म दो मु खया वसूली और  ाय करने के 
लए  नयु   कए  थे।  उनके  हाथ  के  नीचे  अ   कई  मजदूर  थे, इस  कार का भी उ लेख िमलता है।  फलहाल उस 
महासूब े का  अप ंश  सोबा  आ  है।  वह  समय-समय  पर  लोग   क   खेती-बाड़ी  क  जाँच-पड़ताल करता था और 
उसी  के  आधार  पर  छूट-स लयत  दे  कर  सभी  को  खुश  रखता  था।  इस लए  मराठ   म  एक भी कुल ( कसान) ऐसा 
नह   िमलेगा  जो  अपनी  खेत -बाड़ी  के  समय  कसी  भी  प र  को  महासूब े के  नाम  पर  सदूर  क   लपा-पोती  कर, 
उसको  धूप  जला कर उसका नाम  लए बगैर खेत बोएगा। वे तो उसका नाम  लए बगैर खेत को है सया भी नह  लगा 
सकते।  उसके  नाम  का  रण  कए  बगैर  ख लहान  म  रखे  अनाज  के  ढेर  को  तौल  भी  नह   सकते।  उस  बली  राजा 
ा ण  सूब े ( देश)  बना  करके  कसान   से  वसूली  करने  का  तर का  यवन  लोग   ने  अपनाया  होगा,  इस  कार  का 
तक  दया  जा  सकता  है।  क  उस  समय  यवन  लोग  ह   नह ,  बि क  िम   से  कई  व ान यहाँ आ कर,  ान पढ़ 
कर  जाते  थे,  उस  तरह  के  भी  माण  िमलते  ह।  तीसर   बात  यह  है  क  अयो या  के  पड़ोस म काशी े  के इद-िगद 
कुछ  े   बली  राजा  के  अ धकार  म  थे।  उस  देश  को  दसवाँ  खंड  कहा  जाता  था।  वहाँ  के  मु खया कुछ  दन पहले 
काशी  शहर  का  कोतवाल  था, इसके भी  माण िमलते ह। वह गायन-कला म इतना कुशल था  क उसने अपने नाम 
पर  एक  वतं   राग  बनाया।  उस  भैरव  राग  को  सुन  कर  तानसेन  जैस े याित ा त  महागायक  भी  नतम तक  ए। 
उसने  अपनी  ह   क पना  से  डौर  नाम  के  एक  वा   का  भी  नमाण  कया।  इस  डौर  नाम  के  वा   क   रचना  इतनी 
वल णीय  है  क  उसके  ताल-सुर  म  मृदं ग,  तबला  आ द  वा   भी  उसक   बराबर   नह   कर  सकते।  ले कन  उसक  
ओर  यान  न  देन े से,  उसको  जतनी  स   िमलनी  चा हए  थी,  उतनी  नह   िमल  सक ।  उसके  जो  सेवक  ह,  उ  
भैरवाड़ी  कहते  ह  जसका  अप ंश  भराड़ी  है।  इसम  इस  बात  का  पता  चलता है  क बली राजा का रा  इस देश म 
आजपाल  या न  राजा  दशरथ  के िपता जैस े कई  े पितय  के रा  से भी बड़ा था। इसी लए सभी  े पित उसी क  
नीित  का  अनुसरण  करते  थे।  इतना  ह   नह ,  उनम  से  सात  े पित  बली  राजा  को  लगान  दे  कर  उसी  के आ य म 
रहते  थे।  इस लए  उसका  नाम  सात-आ त  पड़  गया  था,  इस  कार  का  उ लेख  िमलता  है।  ता पय,  उ   सभी 
कारण   से  बली  का  रा   वशाल  था  और  वह  ब त  बलशाली  था,  इस  बात  को  मा णत  करनेवाली  एक  लोक 
कहावत  भी  है।  यह  कहावत  यह  है  क  ' जसक   लाठ   उसक   भैस'  (बळ   तो  कान  िपळ )  इसका  मतलब  है,  जो 
बलवान  है  उसी  का  राज।  बली  राजा  कुछ  वशेष  मह वपूण  काम  अपने  सरदार   पर  स प  देता  था। उस समय बली 
राजा  अपना दरबार भरवाता था। वहाँ सबके सामने एक उलटी थाली रख देता था। उस थाली म हलद  का चूण और 
ना रयल  के  फल  के  साथ  पान, का बीड़ा रखवा कर कहता था  क  जसम यह काम करने क   ह त है, वह यह बात 
पान  का बीड़ा उठा ले। बली राजा के इस तरह कहने पर  जसम इस तरह के काम  ह त होती थी, वह  'वह  हर-हर 
महावीर'  ​[13]  क   कसम  खा  कर,  हलद   का  ितलक  माथे  पर  लगा  कर, ना रयल और पान के बीड़े को हाथ म उठा 
कर,  अपने  माथे  पर  रख  कर  बाद  म  अपने  दुप  े म  बाँध  लेता  था।  उसी वीर को बली राजा उस काम क   ज द े ार  
स प  देता  था।  बाद  म  वह  वीर  बली  राजा  क  आ ा ले कर अपनी फौज के साथ पूर  शि  लगा कर श  ु क  फौज 
पर  हमला  बोल  देता  था।  इसी  क   वजह  से  उस  सं कार  का  नाम  तड़  उठाना  (तळ  उचलने)  पड़ा  होगा।  उसका 
अप ंश  'तड़ी  उठाना'  (तड़ी  उचलणे)  हो  गया।  ब ल  राजा  के  महावीर   म  भैर बा,  ोितबा  तथा  नवखंडोबा अपनी 
रै यत  क   सुख-सु वधा  के  लए  इसी  तरह  के  श तया  यास करते थे। आज भी मराठ  ने कोई भी अ छा काय  ारं भ 
करने  से  पहले  तड़ी  उठाने  का  सं कार  अपना  रखा  है।  उ ने  अपने  इस  सं कर  के  तहत  ब हरोबा,  जोितबा  और 
खंडोबा  को  देवता- व प  कबूल  कर  लया  और  उनके  नाम  से  तड़ी उठाने लगे। वे लोग 'हर-हर महादेव' ब हरोबाचा 
या  जोितबाचा  चांग  भला  -  इस  कार  का  यु घोष  करते  थे  और  ब हरोबा  अथवा  ोित  का  तुितगान  करते  थे। 
इतना  ह   नह ,  बली  राजा  अपनी  सार   जा  के  साथ  महादेव  के  नाम  से  र ववार  के  दन  को  प व   दन  के  प  म 
मानता  था।  इसक   पृ ाभूिम  म  आज  के  मराठे   या न  मातंग,  महार,  कुनबी  और  माली  आ द  लोग  हर  र ववार  के 
दन,  अपने-अपने  घर  के  उस  कुल वामी  क   ितमा  को  जल ान  करवा  कर,  उसको  भोजन  अपण  कए  बगैर  वे 
अपने मुँह म पानी क एक बूँद भी नह डालते ह। 

ध डीराव : बली राजा के रा क सरहद पर आने के बाद वामन ने ा कया? 

जोतीराव  :  वामन  अपनी  सार   फौज  को  ले  कर  बली  राजा  के रा  म सीधे-सीधे घुस आया। उसने बली 
राजा  क   जा  को  मारते-पीटते,  खदेड़ते  ए  हाहाकार  मचा  दया  था  और  इस  तरह  से  वह  बली  क   राजधानी तक 
आ  प ँ चा।  इस लए  बली  अपनी  देशभर  म  फैली  ई फौज को इक ा करने से पहले ह , बेबस हो कर, अपनी  नजी 
फौज  को  साथ  म  ले  कर  वामन  से  मुकाबला  करने के  लए यु भूिम पर उतर पड़ा। बली राजा (बली) भा पद व  1 
पद  से  व   30  तक,  हर  दन  वामन  और  उसक   फौज  के  साथ  लड़  कर  शाम  को  आराम  के  लए  अपने  महल  म 
आता  था।  इसी  क   वजह  से  दोन   ओर  के  जतने  लोग  उस  पखवाड़े  म  एक-दूसरे   से लड़ते  ए मर गए, उनके मरने 
क   ित थयाँ  यान  म  रह ।  इस लए  हर  साल  भा पद माह म उस ित थ को  ा  करने क  पंरपरा पड़ गई होगी, इस 
तरह  का  तक  नकलता  है।  आ न  शु   1  पद  से  शु   अ मी  तक बली राजा वामन के साथ लड़ाई म इतना  य त 
था  क  वह  सब  कुछ  भूल  गया  था  और  उस  दर यान  अपने  महल  म  आराम  के  लए  भी  नह   आ  सका।  इधर बली 
राजा  क   व यावली  रानी  ने  अपने  हजड़े पंड े सेवक के  ारा एक ग ा खुदवाया। उसने उसम उस पंड े सेवक के  ारा 
जलाव  लक ड़याँ  डलवा   और  वह  उस  ग े  के  पास  आठ  रात  आठ  दन  तक  बना कुछ खाए-िपए बैठ  रह । उसने 
वहाँ  अपने  साथ  पानी  का  एक  कलश  रखा  था।  रानी  इस  तरह  बना  खाए-िपए पानी के सहारे  इस कामना क  पू त 
क   वजय  हो  और  वामन  क   बला  टल  जाए।  इस लए  रानी  यहाँ  बैठ  कर  महावीर  क   ाथना  कर  रह   थी।  इस 
दर यान  आ न  शु   अ मी  क   रात  म  बली  राजा  के  यु   म  मारे   जाने  क   खबर  िमलते  ह   उसने  ग े म पहले से 
रखी  गई  लक ड़य   को  आग  लगा  कर  अपने-आपको  उसम  झ क  दया।  उसी  दन  से  सती  होने  क   ढ़  चल  पड़ी 
होगी,  यह  तक  कया  जा  सकता  है।  जब  रानी  व यावली  अपने  पित  के  बछोह के कारण आग म कूद कर मर गई, 
तब  उसक   सेवा  म  रहनेवाली  औरत   और  हजड़े  पंडो  ने अपने-अपने बदन के कपड़  को न च-न च कर फाड़ डाला 
होगा  और उस आग म जला  दया होगा। उ ने अपनी-अपनी छाती को पीट कर, जमीन पर अपने हाथ  को िपटते 
ए,  ता लयाँ  िपटते  ए,  रानी  के  गुण   का  वणन  करते  ए,  उस  ग े  के  ईद-िगद  घूम  कर अपना शोक  कट  कया 
होगा  क  'हे  रानी,  तेरा  ढढोरा  घमघमाया,  आ द।  दुख  क   िचता  के  ये  शोले  वह   शांत हो जाएँ, फैले नह  इस लए 
ा ण   के  धूत  ंथकार   ने  बाद  म  मौका  तलाश  कर,  उस  ग े  का  होम  (कंु ड)  बनवा  कर  उसके  संबंध  म  कई 
गलत-सलत  बदमाशी-भर   घटनाएँ  गूँथ  कर  अपने  ंथ   म  लख  कर  रखी  ह गी,  इसम  कोई  शक  नह ।  उधर  बली 
राजा  के  यु भूिम  म  मरने  के  बाद  बाणासुर  ने  पूरे  एक  दन  हर  तरह  क   मुसीबत   का  मुकाबला करते  ए वामन क  
फौज ले कर भाग गया। इस यु  म  वजय क  म ती म वामन इतना बदम त  आ  क बली राजा क  मु य राजधानी 
म  कोई  भी  पु ष  नह   है,  यह  सुनहरा  मौका  देख  कर  उस  राजधानी  पर  हमला  बोल  दया।  वामन  अपने  साथ  पूर  
फौज  ले  कर  आ न  शु   दशमी  को  बड़ी  सुबह  ह   उस  शहर  म  प ँ चा।  उसने वहाँ के अंगण  म लगा  आ  जतना 
सोना  था,  सब  लूट  लया।  उस  श द  का  अप ंश  ' शलंगण  का  सोना  लूट  लया',  यह हो गया। इस लूट के बाद के 
वामन  तुरंत  अपने  घर  ( देश)  लौट  गया।  जब  वह  अपने  घर  प ँ चा,  तो  पहले  से  ह   उसक   औरत  ने  मजाक  के 
खाितर  कनक   (चावल)  का  एक  बली  राजा  करके  अपने  दरवाजे  क   दहलीज  पर  रखा  था।  वामन के घर प ँ चने पर 
उसने  वामन  से  कहा  क  यह  देखो,  बली  राजा आपके साथ पुन:यु  करने के  लए आया है। यह सुनते ह  उसने उस 
कनक   के  बली  राजा को अपने लात क  ठोकर से फक  दया और  फर घर के अंदर  व   कया। उस  दन से आज 
तक  ा ण   के  घर   म  हर  साल  आ न  मह ने  म  वजयादशमी  (दशहरा)  को  ा ण  औरत  कनक   या  भात  का 
बली  राजा  बना  कर  अपने-अपने  दरवाजे  क   दहलीज  पर  रखती  ह।  बाद  म  अपना  बायाँ  पाँव  उस  कनक   के  बली 
राजा  के  पेट पर रख कर कचनार क  लकड़ी से उसका पेट फाड़ती ह। बाद म उस मृत बली राजा को लाँघ कर अपने 
घर  म  व  होती ह। यह  उनम स दय  से चली आ रह  प रसाटी है। ( ा ण-पंडा-पुरो हत  के घर  म यह  ोहार 
बडे  उ ाह  के  साथ  मनाया  जाता  है,  इस लए  इस  ोहार  को  ा ण   का  ोहार  कहते  ह।  अनु.)  इसी  तरह 
बाणासुर  के  लोग  आ न  शु   दशमी  क   रात  म  अपने-अपने  घर  गए।  उस  समय  उनक   औरत   ने  उनके  सामने 
दूसर  बली  राजा  क   ितमा  रख  कर  और  यह  भ व यवाणी जान कर  क दूसरा बली राजा ई र के रा  क   ापना 
करे गा,  अपने  घर  क   दहलीज  म  खड़े  हो  कर  उसक   आरती  उतार   होगी  और  यह  कहा  होगा  क   'अला बला जावे 
और  बल   का  राज  आवे  (इडा  िपडा  जावो  आ ण बळ  रा  येवो)।' उस  दन से ले कर आज तक सैकड़  साल बीत 
गए,  फर  भी  बली के रा  के कई  े  म  ि य वंश क  औरत  ने हर साल आ न शु  दशमी को शाम के समय 
अपने-अपने  पित  और पु  क  आरती उतार कर आगे बली का रा  आवे, इस इ छा का  ाग नह   कया है। इसम 
पता  चलता  है  क  आगे  आनेवाला  बली  राजा  कतना  अ छा  होगा।  ध   है  वह  बली  राजा  और  ध   है  वह 
राज न ा।  ले कन  आज  के  तथाक थत  मांग लक  हदू  लोग  अं ज े   शासक   क   मेहरबानी  पाने  के  लए  क  उनको 
अं ज े ी  स ा  म  बड़े-बड़े  पद  और  ित ा  के  ान  िमल,  इस लए  ये  लोग  रानी  के  ज   पर,  आम  सभा   मे 
लंब-े लंब े भाषण  देत े ह।  ले कन  समाचार-प   म  या  आपसी  बातचीत  म उनके  खलाफ अपना रोष  य  करने का 
दखावा करते ह। 

ध डीराव : उस समय बली राजा ारा बुलाए गए सरदार ा उसक मदद के लए आए ह नह ? 

जोतीराव  :  बाद  म  कोई  छोटे-मोटे  सरदार  अपनी-अपनी  फौज  के साथ आ न शु  चौदहवी को आ कर 
बाणासुर  से  िमले।  उनके  बाणासुर  से  िमलने  क   खबर  सुनते  ह   बली  रा   के  कुल  िमला  कर  सभी  ा ण  अपनी 
जान  बचा  कर  वामन  क   ओर  भाग  गए।  उनको  इस  तरह  भाग  कर  आते  देखा तो वामन ब त ह  घबरा गया। उसने 
सभी  ा ण  को इक ा  कया। आ न शु  पं हवी को वे सभी इक ा हो कर सार  रात जाग कर, अपने भगवान के 
सामने  साद  व प दाँव-पच तय करने लगे  क बाणासुर से अपना संर ण कैसे  कया जाए। दूसरे   दन वामन अपने 
बाल-ब   के  साथ  सार   फौज  को  साथ  ले  कर  अपने  देश  क   सीमा  पर  प ँ च  कर  बाणासुर  का  इं तजार कर रहा 
था। 

ध डीराव : बाद म बाणसुर ने ा कया? 

जोतीराव : बाणासुर ने न आव देखा न ताव, उसने एकदम वामन पर हमला बोल  दया। बाणासुर ने बाद म 
उसको  परा जत  कर  दया  और  उसके  पास  जो  कुछ था वह सब लूट  लया।  फर उसने वामन को उसके सभी लोग  
के  साथ  अपनी  भूिम  से  खदेड़  कर  हमालय  क   पहाड़ी  पर  भगा  दया।  फर उसने उस वामन को दाने-दाने के  लए 
इतना  मोहताज  बना  दया  क उसके कई लोग केवल भूख से मरने लगे। अंत म इसे िचता म वह  पर वामन-अवतार 
का  सवनाश  आ।  मतलब,  वामन  भी  मर गया। वामन के मरने से बाणसुर के लोग  को बड़ी खुशी  ई। वे कहने लगे 
क   सभी  ा ण   म  वामन  एक  ब त बड़ा संकट था। उसके मरने से, उसके न  हो जाने से हमारा शोषण, उ पीड़न 
समा त  हो  गया।  उसी  समय  से  ा ण   को  उपा य  कहने  क   पा रपाटी  चली  आ  रह   होगी,  इस  तरह  का  तक 
नकाला  जा  सकता  है।  बाद म उन उपा य  ने अपने-अपने घर  म यु  म मरे  अपने सभी  र तेदार  के नाम से िचता 
( जसको  आजकल  होली  कहा  जाता  है)  जला  कर  उनक   दाह या  क ;  क उनम पहले से ह  मृत आदमी को 
जलाने  का  रवाज  था।  उसी  कार  बाणासुर  और  अ  तमाम  ि य इस यु  म मरे  अपने-अपने सभी  र तेदार  के 
नाम  से  फा न ु  व  1 पद को वीर बन कर, हाथ म नंगी तलवार  लए बड़े उ ाह म नाचे, कूदे और उ ने मृत वीर  
का स ान  कया।  ि य  म मृत आदमी के शर र को जमीन म दफनाने क  ब त पुरानी परं परा  दखाई देती है। अंत 
म  बाणासुर  ने  उस  उपा ये  के  र ण  के  लए  कुछ  लोग   को  वहाँ  रखा।  शेष  सभी  को  अपने  साथ  ले  कर  अपनी 
राजधानी  म  प ँ चा।  बाणासुर  के  अपनी  मु य  राजधानी  म  प ँ चने  के  बाद  जो  खुशी  ई, उसका वणन करने से  ंथ 
का  व तार  होगा,  इस  डर  क   वजह  से  यहाँ  म  उस  घटना  का  सं त  इितहास  दे  रहा  ँ ।  बाणासुर  अपने  सारे  
जायदाद  क   िगनती  करके  आ न  व   यादेशी  को  उसक   पूजा  क ।  फर  उस  नेव   चतुदशी  और  व   30  को 
अपने  सभी  सरदार   को  ब ढ़या-ब ढ़या  खाना  खलाया  और  सभी  ने  मौज  मनाई।  बाद  म  का तक  शु   1  को  अपने 
कई  सरदार   को  उनक   यो यता  के  अनुसार  इनाम  और  उनको  अपने-अपने  मु क  म  जा  कर  काम  म  लग जाने का 
  भी  दया  गया।  इससे  वहाँ  क   सभी  य   को  भी  खुशी  ई।  उ ोन  का तक  शु  2 को अपने-अपने भाइय  
को  यथासाम य  भोजन  खलाया।  उ ने  उनको  भोजन  खला  कर  उनका  पूर   तरह  से  समाधान  कया।  बाद  म 
उ ने  उनक   आरती  उतार   और  कहा  क,  'अला  बला  जावे  और  बली  का  रा   आवे  (इडा  िपडा  जावो  आ ण 
बळ चे  रा   येवो)।' इस तरह उ ने आनेवाले बली[14] के रा   रण  दलाया। उस समय से आज तक हर साल 
द वाली  को,  भैयादूज  (भाउबीज)  के  दन  ि य लड़ कयाँ अपने-अपने भाई को आनेवाले बली रा  का ह   रण 
दलाती ह। ले कन उपा ये कुल म इस तरह का रण दलाने का रवाज बलकुल ह नह है। 

ध डीराव  :  ले कन  बली  राजा  को  पाताल  म  गाड़ने  के  लए  आ दनारायण  ने  वामन  अवतार  लया।  उस 
वामन  ने  भखार   का  प  धारण  कया  और  उसने  बली  राजा  को  अपने  लकपट  म  फ ँ साया।  उसने  बली  राजा  से 
तीन  कदम  धरती  का  दान  माँगा।  बली  राजा  ने  अपने  भोलेपन  म  उसको  दान  देन े का  वचन दे  दया। दान का वचन 
िमलने  के  बाद  उसने  भखार   का  प  ाग  कया और इतना  वशाल आदमी बन गया  क उसने बली राजा से पूछा 
क  अब  मुझ े तीसरा  कदम  कहाँ  रखना  चा हए?  उसका  यह  वशालकाय  प  देख  कर  बली राजा बेबस  आ। उसने 
उस  वामन  को  यह  जवाब  दया  क अब तुम अपना तीसरा पाँव मेरे  सर पर रख दो। बली राजा का यह कहना सुनते 
ह   उस  गलीजगडे  ने  अपना  तीसरा  पाँव बली राजा के  सर पर रख  दया और उसने बली राजा को पाताल म दफना 
कर  अपना इरादा पूरा कर  लया। इस तरह क  बात  ा ण उपा य  ने भागवत आ द पुराण  म  लख रखी है। ले कन 
आपने  जस  हक कत  का  वणन  कया  है,  उससे  यह  पुराण-कथा  झूठ  सा बत  होती है। इस लए इस बारे  म आपका 
मत ा है, यह हम जानना चाहते ह। 

जोतीराव  :  इससे  अब  तु   सोचो  क जब उस गलीजगडे ने अपने दो कदम  से सार  धरती और आकाश 


को  घेर  लया  था,  तब उसके पहले ह  कदम के नीचे कई गाँव, गाँव के लोग दब गए ह गे और उ ने अपनी  नद ष 
जान  गँवाई  ह गी  क  नह ?  दूसर  बात यह  क उस गलीगगडे ने जब अपना दूसरा कदम आकाश म रखा होगा, उस 
समय  आकाश  म  सतार   क   ब त  भीड़  होने  से  कई  सतारे   एक  दूसरे   से  टकरा गए ह गे  क नह ? तीसर  बात यह 
क  उस  गलीजगडे  ने  अपने  दूसरे   कदम  से  य द  सारे   आकाश  को  हड़प  लया  होगा,  तब  उससे  कमर  के  ऊपर  के 
शर र  का  ह ा  कहाँ  रहा  होगा?  इस  लीजगडे  को  कमर  के  ऊपर  माथे  तक  आकाश  शेप  बचा  होगा।  तब  उस 
गलीजगडे  को  अपने  ह   माथे  पर  अपना  तीसरा  कदम  रखना  चा हए  था  और  अपना  इरादा  पूरा  करना  चा हए  था। 
ले कन  उसने  अपना  इरादा  पूरा  करने  क   बात  अलग  रख  द   और  उसने  केवल  लकपट  से  अपना  तीसरा  कदम 
बली राजा के माथे पर रख दया और उसको पाताल म दफना दया, उसक इस नीित को ा कहना चा हए! 

ध डीराव  :  ा  सचमुच  म  वह  गलीजगडा  आ दनारायण  का  अवतार  है?  उसने  इस  तरह  क   सरे आम 
धोखेबाजी  कैसे  क ?  जो  लोग  ऐसे  धूत,  दु   आदमी  को  आ दनारायण  मानते  ह,  उस  इितहासकार   को  छ :  छ : 
करते  ए,  हम  उनका  नषेध  करते  है:  क  उ   के  लेख  से वामन छली, धोखेबाज,  वनाशकार  और हरामखोर 
सा बत  होता  है।  उसने  अपने  दाता  को  ह ,  जसने  उस  पर  उपकार  कया  था,  दया  दखाई  थी,  उसी को पाताल म 
दफना दया! 

जोतीराव  :  चौथी  बात  यह  है  क  उस  गलीजगडे  का  सर  जब  आकाश  को  पार  करके  वग म गया होगा, 
तब  उसको  वहाँ  बड़े  जोर  से  िच लाते  ए  बली  से  पूछना  पड़ा  होगा  क  अब  मेरे  दो  कदम   म  सार   धरती  और 
आकाश  समेट  गए,  फर  अब  आप  ह   बताइए  क  म  तीसरा  कदम  कहाँ  रखूँ  और  अपना  इरादा  तथा  आपके  इरादे 
को  कैसे पूरा कँ ?  क आकाश म उस गलीजगडे का मुँह और पृ वी पर बली राजा - इसम अनग नत कोस  का 
फासला रहा ह  होगा, और आ य क  बात यह है  क र शयन,  च, अं ज े  और अमे रक  आ द लोग  म  कसी एक 
को  भी  उस  संवाद  का  एक  श द  भी  सुनाई  नह   दया,  यह  कैसी  अजीब  बात  है!  उसी  कार  धरती  के  मानव  बली 
राजा  ने  उस वामन नाम के गलीजगडे को उ र  दया  क तुम अपना तीसरा कदम मेरे माथे पर रख दो,  फर यह बात 
उसने  सुनी  होगी, यह भी बड़े आ य क  बात है।  क बली राजा उसके जैसा बेढंगा आदमी बना नह  था। पाँचवी 
बात यह है क उस गलीजगडे के बोझ से धरती क कुछ भी हा न नह ई, यह कैसी आ य क बात है! 

ध डीराव  :  य द  धरती  क   हा न  ई  होती तब हम यह  दन कहाँ से देखते! उस गलीजगडे ने  ा- ा खा 


कर  अपनी  जान  बचाई  होगी?  फर  जब  वह  गलीजगडे  मरा  होगा  तब  उसके  उस  वशाल  लाश  को  मशान  म  ले 
जाने  के  लए  कंधा  देनव
े ाले  चार  लोग कहाँ से िमले ह गे? वह उसी जगह मर गया होगा, यह कहा जाए, तब उसको 
जलाने  के  लए  पया त  लक ड़याँ  कहाँ  से  िमली  होगी? य द उस तरह क   वशालकाय लाश को को जलाने के  लए 
पया त  लक ड़याँ  नह   िमली  होगा,  यह  कहा  जाए,  तब  उसको  वह  के वह  कु  े सयार  ने न च-न च कर खा  लया 
होगा  और  उसका हलवा प त  कया होगा  क नह ? ता तय यह  क भागवत आ द सभी (पुराण)  ंथ  म उ   कार 
क   शंका  का  समाधान  नह   िमलता  है।  इसका  मतलब  प   है  क  उपा य   ने  बाद  म  समय  देख  कर  सभी  पुराण 
कथा के इस तरह के ंथ क रचना क होगी, यह स होता है। 

जोतीराव  :  तात,  आप  इस  भागवत  पुराण  को  एक  बार  पढ़  ल।  फर  आपको  ह   उस  भागवत  पुराण  से 
ादा इसप नीित अ छ लगेगी। 

प र छे द : सात 

[ ा,  ताड़  के  प   पर  लखने  का  रवाज,  जादूमं ,  सं क ृ त  का  मूल,  अटक  नद   के  उस  पार  जाने  पर 
रोक,  ाचीन  काल  म  ा ण  लोग  घोड़ी  आ द जानवर  का मांस खाते थे, पुरो हत, रा स, य , बाणासुर क  मृ ु, 
अछूत  (परवार ),  धागे  क   गडली  का  नशान  मूलमं ,  महार,  शू ,  कुलकण ,  कुनबी,  शू   से  नफरत,  अ पशनीय 
भाव,  मांग   (सोवळे ),  धमशा ,  मनु, पुरो हत  क  पढ़ाई- लखाई का प रणाम,  जापित क  मृ ु,  ा ण आ द 
के संबंध म।] 

ध डीराव : वामन क मृ ु के बाद उपा य का मु खया कौन आ? 

जोतीराव  :  वामन  क   मृ  ु के  बाद  उन  लोग  को कुलीन मु खया क   नयुि  के  लए समय ह  नह  िमला 
होगा।  इस लए  ा  नाम  का  एक  चतुर-चालाक  द तर   था,  वह   सारा  रा   शासन  सँभालने  लगा  :  वह  ब त  ह  
क पना-बहादुर  था।  उसको  जैस-े जैस े मौका िमलता था, वह उस तरह से काम करके अपना मतलब साध लेता था। 
उसके  कहने  पर,  उसक   बात  पर  लोग   का  बलकुल  ह   व ास  नह   था।  इस लए  उसको  चौमुँहा  कह  कर  पुकारने 
का चलन चल पड़ा। मतलब यह क ब त ह चतुर हठ ला, धूत, दु ाहसी और नदयी था। 

ध डीराव : ा ने सबसे पहले ा कया होगा? 

जोतीराव  :  ा  ने  सबसे  पहले  ताड़वृ   के  सूख े प   पर  क ल  से  कुरे द  कर  लखने  को  तरक ब  खोज 
नकाली  और  उसको  जो कूछ इराणी जादूमं  और  यथ क  नीरस कहा नयाँ याद थी, उनम से कुछ कहा नयाँ उसम 
िमला  कर,  उस  काल  क   सवकृ त  ( जसका  अप ंश  'सं क
ृ त'  श द  है)  चालू  भाषा  म  आज  क   पारसी  बयती जैसी 
छोटी-छोटी  क वता   (छं द )  क   रचना  क   और  सबका  सार  ताड़वृ   के  प   पर  लख  दया। बाद म इसक  ब त 
शंसा  भी  ई।  उसी  क   वजह  से  यह  धारणा  च लत  ई  क  ा  के  मुँह  से  ा ण   के  लए  जादूमं   व ा  का 
ादुभाव  आ  है।  उस  समय  उपा ये  लोग  बना  भोजन  पानी  के  मरने  लगे  थे।  इसी  क   वजह से वे लोग लुके- छपे 
इराण  म  भाग  गए।  इसके  बाद  उ ने  यह  नयम  बना  लया  था  क  अटक  नद   या  समु   को  लाँघ  कर  उस  पार 
कसी को नह जाना चा हए, और इसका उ ने पूरा बंदोब त कर लया था। 

ध डीराव : फर उ ने उस जंगल मे ा- ा खा कर अपनी जान बचाई? 

जोतीराव  :  उ ने  वहाँ  के  फल,  प ी,  कंदमूल  और  उस  जंगल  के  कई तरह के पंछ  और जानवर  को ह  
नह ,  बि क  कई  लोग   ने  अपने  पालतू  घोड़ी  क   भी  ह ा  करके  उ   भून  करके  खाया  और  अपनी  जान  बचाई। 
इसी लए  उनके  र क  उ     कहने  लगे।  बाद  म  उन  पंड   ने  कई  तरह  क   क ठनाइय   म  फ ँ स  जाने  क  वजह से 
कई  तरह  के  जानवर   के  मांस  खाए।  ले कन जब उ  उस बात  क ल ा आने लगी तब उ ने  कसी भी  कार का 
मांस  खाने  पर  रोक  लगा  द   होगी।  ले कन  जन  ा ण  को पहले से ह  मांस खाने क  आदत लगी थी, उस आदत 
को  एकदम  से  छुड़ाना  बड़ी  मुि कल  बात  थी।  उ ने  कुछ  समय बीत जाने के बाद समय देख कर उस  न  कम का 
दोष  छुपाने के  लए पशु  क  ह ा करके उनका मांस खाने म सबसे बड़ा पु य मान  लया और खाने यो य पशु  
क   ह ा  को  पशुय ,  अ मेध  य   आ द  ित त  नाम   से संबो धत कर उनके बारे  म उ ने अपने  ंथ  म  लख 
कर  रखा।  (उसम  उ ने  य   का  पूर   तरह  से  समथन  कया।  उनका  धम  अथात्  ा ण-धमवाद बाद म 'य  का 
धम'  कहलाया।  उनके  य   पूर   तरह  से  हसक  ह   थे।  बना  हसा  के  वै दक   का  ा ण   का  य   होता  ह   नह  
था-अनु.)। 

ध डीराव : बाद म ा ने ा कया? 

जोतीराव  :  बली  राजा  के  पु  बाणासुर के मरने के बाद उसके रा  म कोई मु खया नह  रहा।  जा पर जो 


नयं ण  था,  वह  भी  ढीला  पड़  गया।  जधर  दे खए,  उधर  बेबसी  का  वातावरण  था।  हर  कोई  अपने-आपको  राजा 
समझ  कर  चल  रहा  था।  सभी  लोग  ऐशोआराम  क   जदगी  म  पूर   तरह  से  मगशूल  थे।  यह   सुनहरा,  उिचत  समय 
समझ  कर  ा  ने  अपने  साथ  उन  सभी  भूख  से  त  थे,  याकुल  ा ण  प रवार   को  ( जसका  अप ंश  आज 
'प रवार '  है)  लया।  फर  उसने  रा स   पर  (र क-जो  अ ा ण  के यहाँ के मूल  नवा सय  के र क थे, उ  रा स 
कहा  गया  होगा।  रा स  श द  मूलत:  र क  अथात  र ण करनेवाला होना चा हए-अनु.) रात म एकाएक हमला बोल 
दया  और  उनका  पूर   तरह  से  वनाश  कया।  बाद म उसने बाणसुर के रा  म घुसने के पहले इस तरह सोचा होगा 
क  आगे  न  जाने  कस  तरह  क   मुसीबत  अपने  पर  आ  जाए  और  हम  सभी  को  इधर-उधर  िततर- बतर  होना  पड़े, 
उसम  हमको  अपने-अपने  प रवार  को  पहचानने  म  क ठनाई  हो  जाएगी  ले कन  िततर- बतर  होने  के  बाद  भी  हम 
अपने-अपने  प रवार  के  लोग   को  पहचान  सक,  इस लए  ा ने अपने प रवार के सभी लोग  के गले म छह सफेद 
धाग   से  बने  र  े को  अथात  जाित नद शत  नशान,  मतलब,  जसको  आज  ( ा ण  लोग)  -सू   कहते  ह 
(जनेऊ) उसको उसने हर  ा ण के गले म पहना  दया। उस जनेऊ के  लए उसने उनको एक जाित नद शत मूलमं  
दया,  जसको  गाय ी  मं [15]  कहा  जाता  है।  उन  पर  कसी  कार  क   मुसीबत  आने  पर  भी उ  उस गाय ी मं  
को  ि य   को  नह   बताना  चा हए,  इस तरह क  शपथ  दलाई। इसी क  वजह से  ा ण लोग अपने-अपने प रवार 
के लोग को बड़ी आसानी से पहचान कर अलग-अलग करने लगे। 

धोडीराव: उसके बाद ा ने और ा- ा कया? 

जोतीराव  :  ा  ने  अपने  उन  सभी  पा रवा रक  ा ण   को  साथ  म  ले  कर  बाणासुर  के  रा   म  घुसपैठ 
क ,  फर  हमला  कया।  उसने  वहाँ  के  कई  छोटे-बड़े  सरदार   के  हौसले  नाउ द
े   कर  दया।  उसने  अ धकांश  भू े  
अपने  अ धकार  के  लए  लया  और  यु   म  कमर  कस  कर  लड़नेवाले  महाअर   (आज  उस  श द  का  अप ंश  प 
महार  है)  ि य   के  अलावा  जो  लोग  उसक   चंगल ु   म  आ  गए  थे, उनका सब कुछ उसने छ न  लया। बाद म उसने 
स ा  क   गरमी  म  उस  सब  ु   लोग   ( जसका अप ंश  प 'शू ' है) को अपना गुलाम बनाया। उसने उनम के कई 
लोग   को  गुलाम व प  सेवा  के  लए  अपने  लोग   के  घर-घर  बाँट  दया।  फर  उसने  गाँव-गाँव  म  एक  एक 
ा ण-सेवक  भेज  कर  उनके  ारा  भू े   वभाजन  करवाया  और  उन  शेष  सभी  शू   को  क ृ िषकाय  करने  के  लए 
मजबूर  कया।  उसने  इन  क ृ षक-शू   को  जदा  रहने के  लए जमीन क  उपज का कुछ  ह ा  वयं ले कर शेष भाग 
इन  वािमय   को  दे  देन े का  नयम बनाया। इसी क  वजह से उन  ाम सेवक  ा ण कमचा रय  का नाम कुले करणी 
( जसका  अप ंश  प  है  कुलकण )  हो  गया  और  उसी  कार  उन  शू   कुल   का  ( कसान) नाम कुलवाड़ी ( जसका 
अप ंश  श द  है  कुलंबी,  कुळं बी  या कुनबी ​[16]​) हो गया। ले कन उन दास कुन बय  औरत  को हमेशा ह  खेती का 
काम  नह   िमल  पाता  था।  उनको  कभी-कभी  ा ण   के  घर  का  काम करने के  लए, मजबूर हो कर ह    न सह  
ले कन  जाना  पड़ता  था।  इस लए  कुनबी  और  दासी  इन  दो श द  म कोई अथ  भ ता नह   दखाई देती। उ   कार 
के  बु नयाद   आधार  के  अनुसार  बाद  म  सभी  ा ण  दन-ब- दन  म ती  म  आ  कर  शू  को इतना नीच मानने लगे 
क उसके संबंध म य द सार  हक कत  लखी जाए तो उसका अलग से  ंथ हो जाएगा। इस तरह क  कुछ बात आज 
भी  समाज  म  च लत  ह।  ंथ  व तार  के  डर  के  उन  बात   क   चचा  यहाँ  म  सं प े   म  ह   कर  रहा  ँ ।  उसी  कार 
आजकल  के  ा ण  भी  (चाहे  वे  झाड़ू  लगानेवाले  मांतग-महार   क   तरह  अनपढ़  ह     न  ह ।)  भूख े मरने  लगे, 
इस लए  जो  नह   करना  चा हए,  वह  नीचकम  करने  पर  आमादा  ए  ह।  वे  लोग  पाप-पु य  क   क पना  कसी  भी 
कार  का  व ध- नषेध  नह   रखते  ह  अ ानी  शू   को  अपने  जाल  म  फ ँ साने  के  लए  हर  तरह  क   तरक ब  खोजते 
रहते  ह।  अंत  म  जब  उनका  बस  न  चलता  है  तब  वे  शू   के  दरवाजे-दरवाजे  पर  धम  के  नाम  पर  भीख  माँग  कर 
जैस-े तैस े अपना  पेट  पालते  ह।  ले कन  शू   के  घर  के  नौकर  (सेवक)  बन  कर  उनके  खेत  के  जानवर   क   देखभाल 
करने के  लए राजी नह  ह गे। जानवर  के कोठे  म पड़े गोबर को उठाने के  लए, कोठे  क  साफ सफाई करने के  लए, 
गोबर  क   टोकर   सर  पर  उठाने  के  लए तैयार नह  ह गे। गोबर क  टोकर  उठा कर ग े म डालने के  लए तैयार नह  
ह गे।  वे  लोग  कसान  के  खेत  म  हल  जोतने  के  लए,  मोट  को  जोत  कर  खेत  को, फल स य  के बाग  को पानी 
देन े के  लए  तैयार  नह   ह गे।  वे  लोग  ख लहान  म  काम  करने  के  लए  राजी  नह   ह गे।  वे  लोग  खेत   को  खोदने, 
कुदाली-फावड़ा  चलाने  के  लए  खेत  से  घास  सर  पर  ढोने  के  लए  तैयार  नह   ह गे।  वे  लोग  हाथ  म  लठ  ले  कर 
रात-रात  भर  खेत   म  हँ सया  से  घास  काट  कर  बैल   के  लए  खेत  से  घास  सर पर ढोने के  लए तैयार नह  ह गे। वे 
लोग  हाथ  म  लठ  ले  कर  रात-रात  भर  खेत   क   देख-रे ख करने के  लए राजी नह  ह गे। वे लोग  कसी भी  कार का 
शार रक  म करने के  लए शरमाते ह। वे लोग शू  के घर  म नौकर बन कर, उनक  घो ड़य  क  साफ सफाई करने 
के  लए,  दाना  खलाने  के  लए,  घोड़   को  आगे-पीछे  दौड़ने  के  लए  शरमाते ह। वे लोग शू  क  जूितय  को बगल 
म  दबा  कर,  सँभाल  कर  रखने  के  लए  राजी  नह   ह गे।  वे  लोग  शू   से  घर   क   साफ-सफाई  करने के  लए, उनके 
घर  से  जूठे  बतन   क   साफ-सफाई  करने  के  लए,  उनके  घर  क   लालटेन  साफ  करके  जलाने  के  लए  तैयार  नह  
ह गे।  वे  शू   के  घर  पर  लीपा-पोती  का  काम  करने  के  लए तैयार नह  ह गे। वे लोग रे लवे  टेशन  पर, बस  टेशन  
पर, माल-ध के पर कुली, कबाड़ी का काम करने के  लए शरमाते ह। इसी  कार  ा ण औरत शू  क  नौकरा नयाँ 
हो  कर  शू नय  को नहलाएँगी नह , उनके बाल कंघी नह  कर दगी। शू  के घर साफ-सफाई का काम नह  करे गी। 
शू ा नय   के  लए  बछाना  नह   लगा  कर  दगी।  उनक   सा ड़याँ,  उनके  कपड़े  धोने  के  लए  राजी  नह   ह गी।  उनक  
जूितयाँ सँभालने के लए तैयार नह ह गी, शरमाती ह। 

फर  जब  वे  महाअ र  (महार)  लोग  अपने  शू   भाइय   को  ा ण   के  जाल  से  मु   करने  क   इ छा  से 
ा ण   से  ितवाद  करने  लगे,  उन  पर  हमले  करने  लगे  क  वे  शू   का  छुआ  आ भोजन भी खाने से इनकार करते 
थे।  उसी  नफरत  क   वजह  से  आजकल  के  ा ण  शू   ारा  छुआ  आ  भोजन  तो  ा,  पानी  भी  नह   पीते  ह। 
ा ण   क   कसी  शू   के  ारा  छुई  ई  कोई  भी  व तु  नह   लेनी  चा हए,  इस लए  मांग लक  (सोवळे -ओवळे )  होने 
क   संक पना  को  ज   दया  गया  और  उनम  यह  आम  रवाज  हो  गया।  फर  अ धकांश  शू - वरोधी  ा ण 
ंथकार   ने,  दूसर   क   बात  छो ड़ए,  अपने  मन  म  भी  थोड़ी  ल ा  नह   रखी।  उ ने  मांग लक  होने  के  रवाज  का 
इतना  मह व बढ़ाया  क मांग लक  ा ण  कसी शू  का  पश होते ह  अप व  (नापाक), अमांग लक हो जाता था। 
इसके  समथन  के  लए  उ ने  धमशा   जैसी  कई  अप व ,    कताबे  लखी ह।  ा ण  ने इस बात क  भी पूर  
सावधानी  रखी  क  शू   को  कसी  भी  तरह  पढ़ना- लखना नह   सखाना चा हए। उ   ान- यान नह  देना चा हए, 
क  कुछ  समय  बीत  जाने  के  बाद  यद   शू   को  अपने  बीते  ए  काल  के  े व  क   ृ ितयाँ  हो  गई  तब  वे 
कभी-न-कभी  उनक   छाती  न चने  के  लए  कोई  भी  कसर  बाक   नह   रखगे।  उनके  खलाफ  बगावत,  व ोह  करगे, 
इस लए  उ ने  शू   को  पढ़ने- लखने  से,  ान  यान  क   बात   से  दूर  रखने  के  पूरा  ष ं   रचा  था।  उ ने  अपने 
धमशा   म  शू   के  पढ़ने- लखने के  खलाफ  वधान बनाया। उ ने इतना ह  नह   कया बि क कोई  ा ण य द 
धम ंथ  का  अ ययन  कर  रहा  हो,  तो  उसके  अ ययन  का  एक  श द  भी  शू   के  कान  तक नह  प ँ चना चा हए, इस 
बात  क   भी पूर   यव ा उ ने क  थी और इस तरह का  वधान भी उ ने अपने धमशा  म  लख रखा था। इस 
बात  के  कई  माण  मनु ृ ित  म  मौजुद  ह।  इसी  आधार  पर  आजकल  के  मांग लक  ा ण  भी  उसी  तरह  क  
अप व ,    कताब   को  शू   के  सामने  नह   पढ़ते।  ले कन  अब  समय म कुछ प रवतन आ गया है। अब जब  क 
इसाई  समझी  जानेवाली  अं ज े   सरकार  क   धाक  से  श ा  वभाग  के  पेटू  ा ण   को  अपने  मुँह  से  यह  कहने  क  
ह त  ह   नह   होगी  क  वे  शू   को  पढ़ना- लखना  नह   सखाएँगे।  फर  भी  वे  लोग  अपने  पूवज   का  लु ापन, 
हरामखोर   लोग   के  सामने  रखने  क   ह त  नह   दखाएँगे।  उनम  आज  भी  यह  ह त  नह   है  क  शू   को  सह  
समझ  दे  कर  अपने  पूवज   क   गलितय   को  वीकार  कर  और  अवा त वक  मह व  न  बताएँ।  उनको  आज  भी अपने 
झूठे  इितहासकार  पर  गव  है।  वे  कूल   म  शू   के  ब   को  सफ  काम  चलाऊ  यावहा रक  ान  क   बात  भी  नह  
पढ़ाते,  ले कन  वे  शू   के  ब   के  मन  म  हर  तरह  क   फालतू  देश  अ भमान,  देश  गव  क   बात  पढाते रहते ह और 
उनको  प के  अं ज े   'राजभ '  बनवाते ह।  फर वे अंत म उन शू  के ब  को  शवाजी जैस े धमभोले, अ ानी शू  
राजा  के  बारे   म  गलग-सलत  बात  सखाते  रहते  ह।  शवाजी  राजा  ने  अपना देश  ले छ  से (मुसलमान) मु  करवा 
कर  गौ- ा ण   का  कैसे  र ण  कया,  इस  संबंध  म  झूठ ,  मनगढ़ी  कहा नयाँ  पढ़ा  कर  उ   खोखले  वधम 
( ा ण-धम)  के  अ भमानी  बनाते  ह।  ा ण   के  इसी  ष ं   क   वजह  से  शू -समाज  क   शि   के  अनुसार 
जो खम  के  काम  करने  लायक  व ान  नह   बन  पाते।  इसका  प रणाम  यह  होता  है  कई  सभी  सरकार   वभाग   म 
ा ण  कमचार ,  अ धका रय   क   ह   भीड़  समा  जाती  है।  सभी  सरकार   सेवा   का  लाभ  इ   ा ण   को  िमल 
जाता  है।  और  शू   समाज  के  लोग  इन  सरकार   नौक रय   म, सरकार  सेवा  म न आ पाएँ, इस लए इतनी सफाई 
से,  चतुराई  से  जु - ादाितयाँ  करते  ह  क  य द  इस  संबंध  म  पूर -पूर   हक कत  लखी जाए, तो कलक  े म नील 
क   खेती  के  बागान   म  काम  करनेवाले  मजदूर   पर  अं ज े  लोग जो जु  करते ह, वह हजार म एक अध ा भी नह  
भर  पाएगा।  अं ज े ी राज म भी चार  ओर  ा ण  के हाथ म (नाम मा  के  लए टोपीवाले) स ा होने क  वजह से वे 
अ ानी  और  शू  रै यत को ह  नह  बि क सरकार को भी नुकसान प ँ चाते ह। और वे लोग आगे सरकार को नुकसान 
नह   प ँ चाएँगे,  इसके  बारे   म  न त  प  से  भी  नह  कहा जा सकता।  ा ण  के इस  यवहार के बारे  म सरकार को 
भी  जानकार   है,  फर  भी  अं ज े   सरकार  अंध े का  वाँग  ले  कर  केवल  ा ण  अ धकार   कमचा रय   के  कंध   पर 
अपना  हाथ  रख  कर  उनक   नीित  से  चल  रह   है।  ले कन  अं ज े   सरकार  को  ा ण   को  इसी  नीित  से  गंभीर खतरा 
पैदा  होने  क   संभावना  है, इस बात को कोई नकार नह  सकता। ता पय यह  क  ा ने यहाँ के मूल  े वा सय  को 
अपना  गुलाम  बना  लेन े के  बाद  इतनी  म ती  म  चढ़  गया  था  क  उपहास  करने  क     से  महाआ रय   का  नाम 
' जापित'  रखा  दया,  यह  तक  नकाला  जा  सकता  है।  कतु  ा  के  बाद  आय  लोग   का  मूल  नाम  'भ ' लु त हो 
गया और बाद म उनका नाम ' ा ण' हो गया। 

प र छे द : आठ 

[  परशुराम,  मातृह ा,  इ क स  बार  हमले,  रा स,  खंडरे ाव  ने  रावण  क   मदद  ली,  नवखंड   क   जाणाई, 
सात  दे वयाँ  (स त  आसरा),  महार   के गले का काला धागा, अितशू , अछूत, मातंग, चांडाल, महार  को पाँव  तले 
र दना,  ा ण   को  गंधव  याह  करने  क   मनाह ,  ि य  ब   क   ह ा,  भु,  रामोशी,  जनगर  आ द  लोग, 
परशुराम क हार हो जाने पर उसने अपनी ह जान दे द , और िचरं जीव परशुराम को नमं ण आ द के संबंध म।] 
ध डीराव : जापित ( ा) के मरने के बाद ा ण का मु खया कौन था? 

जोतीराव : ा ण का मु खया परशुराम था। 

ध डीराव : परशुराम वभाव से कैसा था? 

जोतीराव  :  परशुराम  वभाव  से  उप वी,  साहसी,  वनाशी,  नदयी,  मूख  और  नीच  वृि   का  था।  उसने 
ज   देनव
े ाली  अपनी  माता  रे णक
ु ा  क   गरदन  काटने  म  भी  कोई  संकोच  महसूस  नह   कया।  परशुराम  शर र  से 
मजबूत और ितरं दाज था। 

ध डीराव : उसके शासनकाल म ा आ? 

जोतीराव  :  जापित  ( ा)  के मरने के बाद शेष महाअ रय  ने  ा ण  के जाल म फ ँ से  ए अपने भाइय  


को  गुलामी  से  मु   करने  के  लए  परशुराम  से  इ क स  बार  यु   कया।  वे  इतनी  ढ़ता से यु  लड़ते रहे  क अंत म 
उनका  नाम  ैती  पड़  गया  और  उस  श द  का  बाद  म  अप ंश  'दै '  हो  गया। जब परशुराम ने सभी महाअ रय  को 
परा जत  कया  तब  उनम  से  कई  महावीर   ने  नराश  हो  कर,  अपने  े हय   के  देश   म जा कर अपने आ खर   दन 
बताए।  मतलब,  जेजोर   के  खंडरे ाव  ने  जस  तरह  रावण  का  सहारा  लया,  उसी  कार  नवखंड   के  ायी और सात 
आ य  आ द  सभी  क कण  के  नचले भू देश म जा कर छुप गए और उ ने वहाँ अपने आ खर   दन  बताए। इसम 
ा ण   म  नफरत  क   भावना  और  भी गहर  हो गई। उ ने नवखंड  का जो  ायी था, उसका नाम  ी के नाम पर 
नदासूचक  अथ  म  'नव  िचथड़ वाली  देवी'  (नऊ  खणाची  जानाई)[17]  रख  दया  और  सात  आ य   का  नाम  'सात 
पु वाली  माता'  (साती असरा) ​[18] रख  दया। शेष  जतने महाअ रय  को परशुराम ने यु  भूिम म कैद करके रखा, 
उन  पर  उसने  कड़े  ितबंध  लगा  कर  रखा  था।  उन  महअ रय   को  कभी  भी  ा ण   के  व   कमर  नह   कसनी 
चा हए,  ऐसी  शपथ  उनको  दलाई  गई।  उसने  सभी  के  गले  म  काले  धागे  क   नशानी  बँधवाई  और उ  अपने शू  
भाइय  को छूना नह  चा हए ऐसा सामा जक  ितबंध लगाया। बाद म परशुराम ने उन महाअर   ि य  को अितशू , 
महार,  अछूत,  मातंग  और  चांडाल  आ द  नाम   से  पुकारने  क   था  च लत  क ।  इस  तरह  के  गंदे  चलन  के  लए 
दु नया  म  कोई  िमसाल  ह   नह   है।  इस  श त ु ापूण  भावना  से  महार,  मातंग  आ द  लोग   से  बदला  चुकाने  के  लए 
उसने  हर  तरह  से  घ टया से घ टया तरक ब अपना । उसने अपने जाित- बरादर  के लोग  क  बड़ी-बड़ी इमारत  क  
नीव  के  नीचे  कई  मातंग   को  उनक   औरत   के  साथ  खड़ा  करके,  उनके  बेसहाय  िच लाने  से  कसी  क   अनुकंपा 
होगी,  इसके  लए  उनके  मुँह  म  तेल  और  सदूर  डाल कर उन लोग  को  जदा अव ा म ह  दफनाने क  परं परा शु  
क ।  जैस-े जैस े मुस लम   क   स ा  इस  देश  म  मजबूत  होती  गई,  वैस-े वैस े ा ण   ारा शु  क  गई यह अमानवीय 
परं परा  समा त  होती  गई।  ले कन  इधर  महाअ रय   से  लड़ते-लड़ते  परशुराम  के  इतने  लोग  मारे   गए  क  ा ण  क  
अपे ा  ा ण  वधवा   क   यव ा  कस  तरह  से  क   जाए,  इसक   भयंकर  सम या  ा ण   के  सामने  खड़ी  हो 
गई।  तब  कह   जा  कर  उनक   गाड़ी  रा ते  पर  आई।  परशुराम  अपने  ा ण  लोग   क  ह ा से इतना पागल हो गया 
था  क  उसने बाणासुर के सभी रा  के  ि य  को समूल न  करा देन े के इरादे से अंत म उन महाअर   ि य  क  
नराधार  गभवती  वधवा  औरत   को,  जो  अपनी  जान  बचाने  के  लए  जहाँ-तहाँ  छुप  गई  थी,  उन  औरत   को 
पकड़-पकड़  कर  लाने  क   मु हम  शु   कर  द ।  इस  अमानवीय श त ु ापूण मु हम से नजर बचा कर बचे  ए न  ब  
ारा  न मत  कुछ  कुल  (वंश)  इधर  भु[19]  लोग   म  िमलते  ह।  इसी  तरह  परशुराम  क   इस  धूमधाम  म  रामोशी, 
जनगर,  तुंबडीवाले  और  कु ार  आ द  जाित  के  लोग  होने  चा हए,  क  कई  र - रवाज  म  उनका  शू   के मेल 
होता  है।  ता पय,  हर यक यप से बली राजा के पु  का  नवश होने तक उस कुल को  न तेज करके उनके लोग  को 
पूर   तरह  से  तहस-नहस  कर  दया  था।  इससे  अ ानी  े पितय   के  दमाग  पर  इस  तरह  क  धाक  जम  गई  क 
ा ण  लोग  जादू  व ा  म  मा हर  ह।  वे  लोग  ा ण   के मं  से ब त ह  डरने लगे।  कतु इधर परशुराम क  मुखता 
क   वजह  से,  उसके  धीगाम ती  से  ा ण   क   बड़ी  हा न  ई।  इसक  वजह से, सभी  ा ण लोग परशुराम के नाम 
से  घृणा  करने  लगे।  यह  नह , उस समय वहाँ के एक  े पित के रामचं  नाम के पु  ने परशुराम के धनुष को जनक 
राजा  के  घर  म  भर   सभा  म  तोड़  दया।  इससे  परशुराम  के  मन  म उस रामचं  के  ित  ितशोध क  भावना घर कर 
गई।  उसने  रामचं   को  अपने  घर  जानक   को  ले  जाते  ए  देखा  तो  उसने रामचं  से रा ते म ह  यु  छेड़  दया। उस 
यु   म  परशुराम  क   करार   हार  ई। उस पराजय से परशुराम इतना श मदा हो गया  क उसने अपने सभी रा  का 
ाग  करके  अपने  प रवार   तथा  कुछ  नजी  संबं धय   को  साथ  लया  और  क कण  के  नचले  भाग  म  जा  कर  रहने 
लगा।  वहाँ  प ँ चने  के  बाद उसको उसके  ारा  कए गए सभी बुरे कम  का प ाताप  आ। उस प ाताप का प रणाम 
उस  पर  इतना  बुरा  आ  क  उसने  अपनी  जान  कहाँ,  कब,  और  कैसे  खो  द ,  इसका  कसी  को  कोई  पता नह  लग 
सका। 

ध डीराव  :  सभी  ा ण-पं डत-पुरो हत  अपने  धमशा   (धम ंथ)  के  आधार  पर  यह  कहते  ह  क 
परशुराम  आ दनारायण  का  अवतार  है।  वह िचरं जीवी है। वह कभी भी मरता नह । और आप कहते ह  क परशुराम ने 
आ ह ा क है। इसका अथ ा है? 

जोतीराव  :  दो  साल  पहले  मने  शवाजी  महाराज  के  नाम एक पँवाड़ा[20]  लखा था। उस पँवाड़े के पहले 
छं द  म  मने  कहा  था  क  सभी  ा ण   को  अपने परशुराम को  ोता दे कर बुलाना चा हए और उसक  उप ित म 
मेरे  सामने  इस  बात  का  खु लमखु ला  खुलासा  करना  चा हए  क  आजकल  के  मातंग-महार   के  पूवज  परशुराम  से 
इ क स बार लड़नेवाले महाअर   ि य थे या नह । इसक  सूचना  ा ण  को द  गई, ले कन वा त वकता यह है  क 
उ ने  परशुराम  को  ोता  दे  कर  नह   बुलाया  था।  इससे  यह  बात  प   होती  है  क  परशुराम  सचमुच  म 
आ दनारायण  का  अवतार  होता  और  िचरं जीवी  होता  हो  ा ण  ने  उसको  कब  का  खोज  नकाला  होता।  और  मेर  
बात  तो  ा,  सार   दु नया  के  ती  और  मह द   लोग   के  मन  का समाधान करके, सभी  ले छ लोग  के  व ोह 
को अपनी मं व ा क साम य से तहस-नहस करने म कोई कसर नह छोड़ता। 

धोडीराव:  मेरे  वचार  से  आपको  वयं ह  एक बार परशुराम को यहाँ बुलाना चा हए। य द परशुराम सचमुच 


म  जदा  है  तो  वह  न त  प  से  चला  आएगा।  आजकल  के  ा ण  अपने-आपको  कतना  भी  व वध  ानी  होने 
का  दावा  करते  ह ,  फर  भी  उनको  परशुराम  के  मतानुसार,    और  पितत  ह   मानना  चा हए।  इस  बात  के  लए 
माण  यह  है  क  अभी  अभी  कई  ा ण   ने  शा व ध  के  अनुसार  करे ल े खाने  का  नषेध  कया  है।  ले कन 
धम-शा   ारा  निष   ठहराए  गए  मा लय   के  ारा  सीचे  गए  पानी  से  उ प   गाजर   को  छुप-छुप  कर  खाने  क  
होड़ ा ण ने लगा द थी। 

जोतीराव : ठ क है। जो भी कुछ न हो। 

मुकाम सब जगह 

चरं जीव परशुराम अथात आ दनारायण के अवतार को 

तात, परशुराम! 

तुम  ा ण  के  ंथ  क  वजह से िचरं जीवी हो। करे ला कड़वा   न हो,  कतु तुमने  व धपूवक करे ल े खाने 
का  नषेध  नह   कया  है।  परशुराम,  तुमको  पहले जैस े मछु  क  लाश से दूसरे  नए  ा ण पैदा करने क  गरज नह  
पड़ेगी,  क  आज  यहाँ  तु ारे   ारा  पैदा  कए  गए  जो  ा ण  ह,  उनम  कई  ा ण  व वध ानी  हो  गए  ह। अब 
तु   उनको  ब त  ादा  ान  देन े क   भी  आव यकता  नह   रहेगी।  इस लए  हे  परशुराम!  तुम  यहाँ  आ  जाओ  और 
जन  ा ण   ने  शू   मा लय   ारा  खेत  म  उ प   गाजर   को  छुप-छुप  कर  खाया  है,  उन  सभी  ा ण  को चं ायन 
ाय त  दे  कर,  उन  पर  तुम  वेदमं   के  जादू  क   साम य  से पहले जैस े कुछ चम कार अं ज
े ,  च आ द लोग  का 
दखा  दो,  बस  हो  जाएगा।  हे  परशुराम,  तुम  इस  तरह  मुँह  छुपा कर, भगोड़ा बन कर मत घूमा करो। तुम इस नो टस 
क  तार ख से छह माह के भीतर-भीतर यहाँ पर उप त हो सके, तब म ह  नह , सार  दु नया के लोग, तुम सचमुच 
म  आ दनरायण  के  अवतार  हो,  ऐसा  समझगे  और  लोग  तु ारा  स ान  करगे।  ले कन य द तुम ऐसा न कर सके तो 
यहाँ  के  महार-मातंग  हमारे   सोबा[21]  के  पीछे  छुप  कर  बैठे  ह।  वे  लोग  तु ारे   व वध ानी  कहलानेवाले  ा ण 
ब   को  खीच  कर  बाहर  ले  आएँगे  और  उनके  भांडो  के  इकतारा  (तुनतुना,  एकतार  वा )का तार टू ट जाएगा औरा 
उनक   झोली  म  प र  िगर  जाएँगे।  फर  उ   व ािम   जैस े भूख,े   कंगाल रहने पर इतनी मजबूर  का सामना करना 
पड़ेगा  क  उनको  कु  े का  मांस  भी  खाना  पड़  सकता  है।  इस लए  हे  परशुराम,  तुम  अपने  व वध ानी  ा ण   पर 
रहम खाओ, ता क उन पर वपि के पहाड न टू ट पड़े। 

तु ारा स प देखनेवाला 

जोतीराव गो वदराव फुले 

तार ख 1 ली 

मह ना अग त 

सन 1872 

पूना, जूनागंज 

मकान नं. 527 

प र छे द : नौ 

[वेदमं ,  जादू  का  भाव,  अनछर  पढ़  कर  मारना,  भि   का  दखावा  करना,  जप,  चार  वेद,  जाल, 
नारदशाह , नया ंथ, शू को पढ़ने-पढ़ाने पर पाबंद , भागवत और मनुसं हता म असमानता आ द के संबंध म।] 

ध डीराव  :  सचमुच  म  आपने  उनके  मूल पर ह   हार  कया है। आपके कहने के अनुसार परशुराम मर गया 


और े पितय के मन पर ा ण के मं का भाव कैसे पड़ा, क ृ पया आप इस बात को हम जरा समझाइए। 

जोतीराव  :  क  उस  समय  ा ण लोग यु  म हर एक श  पर मं व ध करके उन श  म  हार क  


मता  लाए  बगैर  उनका  योग  श  ु पर  करते  नह   थे।  उ ने  इस  तरह  से  जब कई दाव-पच लड़ा कर बाणासुर क  
जा  और  उसके  राजकुल  को  धुल  म  िमला  दया,  उस  समय  बड़ी  आसानी  से  शेष  सभी भोले-भाले  े पितय  के 
दलो- दमाग  पर  ा ण   क   व ा  का  डर  फैल  गया  था।  इसका  माण  इस  तरह  से  दया  जा  सकता  है  क  'भृगु 
नाम  के  ऋिष  ने  जब  व णु  क  छाती पर लात मार , तब  व णु ने (उनके मतानुसार आ दनारायण) ऋिष के पाँव को 
तकलीफ  हो  गई  होगी,  यह  समझ कर उसने ऋिष के पाँव क  मा लश करना शु   कया। अब इसका सीधा-सा अथ 
वाथ  से  जुड़ा  आ  है। वह यह है  क, जब सा ात आ दनारायण ह , जो  वयं  व णु है,  ा ण क  लात को बदा त 
करके  उसके  पाँव  क   मा लश  क   अथात  सेवा  क ,  तब  हम  जो  शू   लोग  ह,  (उनके  कहने  के  अनुसार  शू   ाणी) 
य द ा ण अपने हाथ से या लात से मार-पीट कर हमार जान भी ले ले, तब भी हम वरोध नह करना चा हए। 

ध डीराव  :  फर आज  जन नीची जाित के लोग  के पास जो कुछ जादूमं   व ा है, उसको उ ने कहाँ से 


सीख लया होगा? 

जोतीराव  :  आजकल  के  लोग   के  पास  जो  कुछ  अनछर  पढ़ने  क ,  मो हनी  देन े क  बंगाली जादूमं   व ा 
है,  उसको  उ ने  केवल  वेद   के  जादूमं   व ा  से  नह   लया  होगा,  ऐसा  कोई  भी नह  कह सकता है:  क अब 
जब  उसम  ब त  हेर-फेर  ई  है,  ब त  श द   के  उ ारण   का  अप ंश  आ  है,  फर  भी उसके अ धकांश मं ो और 
तं   म  'ओम्  नमो, ओम् नम: ओम्  ी  ी नम:' आ द वेदमं  के वा  क  भरमार है। इससे यह  मा णत होता है 
क  ा ण   के  मूल  पूवज   ने  इस  देश  म  आने  के  बाद  बंगाल  म सबसे पहले अपनी ब ती बसाई होगी। उसके बाद 
उनक   जादू  मं - व ा  वहाँ से चार  ओर फैली होगी। इस लए इस  व ा का नाम बंगाली  व ा पड़ा होगा। इतना ह  
नह ,  बि क  आय   के  पूवज  आज  के  अनपढ़  लोग   क   तरह  अलौ कक  (चम कार)  शि   का  (दे हारा  घुम वणारे ) 
दशन  करनेवाले  लोग   को  ा ण  कहा  जाता  था।  ा ण-पुरो हत  लोग  सोमरस  नाम  क  शराब पीते थे और उस 
शराब  के  नशे  म  बड़बड़ाते  थे  और  कहते  थे  क  'हम  लोग   के  साथ  ई र  (परमा ा, देव) बात करता है।' उनके इस 
तरह  के  कहने  पर  अनाड़ी  लोग   का  व ास  जम  जाता  था,  उनके  ित  ा  उ प   होती  थी,  थोड़ा  डर  भी  उ प  
होता  था।  इस  तरह  वे इन अनाड़ी लोग  को डरा-धमका कर उनको लूटते थे। इस तरह क  बात उनके ह  वेद-शा  
से  स   होती  है।  ​[22]  उसी  अपराधी  व ा  के आधार पर इस  गितशील, आधु नक युग म आज के  ा ण पं डत 
पुरो हत  अपना  और  अपने  प रवार  का  पेट  पालने  क  लए  जप,  अनु ान,  जादू−मं   व ा  के  ारा अनाड़ी माली, 
कुन बय   को  जादू  का  धागा  बाँध  कर  उनको  लूटते  ह,  फर  भी  उन  अनाड़ी  अभागे  लोग   को  उन  पाखंडी,  धूत 
मदा रय   क   ( ा ण-पं डत-पुरो हत   क )  जालसाजी  पहचानने  के  लए  समय  भी  कहाँ  िमल  रहा  है।  क  ये 
अनाड़ी  लोग  दन-भर  अपने  खेत  म  काम  म  जुत े रहते  ह  और  अपने  बाल-ब   का  पेट  पालते  ए  सरकार  को 
लगान देत-े देते उनक नाक म दम चढ़ जाता है। 

ध डीराव  :  मतलब,  जो  ा ण  यह  शेखी  बघारते  ह  क  मुँह  से  चार  वेद  नकले  ह,  वेद  वयंभ ू है,  उनके 
कहने म और आपके कहने म कोई तालमेल नह है? 

जोतीराव  :  तात,  इन  ा ण   का  यह  मत  पूर   तरह  से  िम या  है;  क  य द  उनका  कहना  सह   मान 
लया  जाए,  तब  ा  के  मरने  के  बाद  ा ण   के  कई  ा षय   या  देवा षय   ारा  रचे  गए  सू   ा  के  मुँह  से 
वयंभ ू नकले  ए  वेद   म    िमलते  ह?  उसी  कार चार वेद  क  रचना एक ह  कता  ारा एक ह  समय म  ई है, 
यह बात भी स नह होती। इस बात का मत कई यूरोिपयन परोपकार ंथकार ने स करके दखाया है। 

ध डीराव : तात, फर ा ण पं डत ने यह घोटाला कब कया है? 

जोतीराव  :  ा  के  मरने  के  बाद  कई  षय   ने  ा  के  लेख  को  तीन  ह   म  वभा जत  कया। 
मतलब,  उ ने  उसके  तीन  वेद बनाए।  फर उ ने उन तीन वेद  म भी कई  कार क  हेराफेर  क । उनको पहले क  
जो  कुछ  गलग-सलत  यथ  क   बात  मालूम  थी,  उन  पर  उ ने  उसी  रं ग-ढं ग  क   क वताएँ  रच  कर उनका एक नया 
चौथा  वेद  बनाया।  इसी  काल  म  परशुराम  ने  बाणासुर क   जा को बेरहमी से धूल  खलाई थी। इसी लए  वाभा वक 
प  से  ा ण-पुरो हत   के  वेदमं ा द  जादू  का  भाव  अ   सभी  े पितय   के  दलो- दमाग  पर  पड़ा। यह  मौका 
देख  कर  नारद  जो  हजड़   क   तरह औरत  म ह  अ र बैठता उठता था, उसने रामचं  और रावण, क ृ ण और कंस 
तथा  कौरव  और  पांडव  आ द  सभी  भोले-भाले  े पितय  के घर-घर म रात और  दन च कर लगाना शु  कर  दया 
था।  उसने  उनके  बीवी  ब   को  कभी  अपने  इकतारे   (वीणा) से आक षत  कया तो सभी इकतारे  के तार को तुनतुन 
बजा  कर  और  उनके  सामने  थइ  थइ  नाचते  ए  ता लयाँ  बजाई  और  उनको आक षत  कया। इस तरह का  वाँग रच 
कर  और  इन  े पितय   को,  उनके  प रवार   को  ान  का  उपदेश देन े का  दखावा करके अंदर ह  अंदर उनम आपस 
म  एक  दूसरे   क   चुग लयाँ  लगा  कर  झगड़े  लगवा  दया  और  सभी  ा ण  पुरो हत   को  उसने  आबाद-आजाद  करा 
दया।  इसका  प रणाम  यह  आ  क  ा ण  ंथकार  ने उस काल म सभी लोग  क  नजर  म धूल झ क कर वेदमं  
के  जादू  और  उससे  संबं धत  सार   यथ  बात   का िमलाप करवा कर कई  ृ ितयाँ, सं हताएँ, धमशा , पुराण आ द 
बड़े-बड़े  ंथ   म  उ ने  अपने  घर   क   चारद वार   के  अंदर  बैठ  कर  के  ह   लख डाला और उन  ंथ  म उ ने शू  
पर  ा ण  लोग   के  वािम व  का  समथन  कया  है।  उ ने  उन  ंथ   म  हमारे   खानदानी  सपाहगर   के  रा ते  म 
कटीला  खंबा  गाड़  दया  और  अपनी  नकली  धा मकता  का  लेप  लगा  दया।  फर उ ने यह सारा  छल बाद म 
फर  कभी  शू   के  यान  म  भी  न  आने पाए, इस डर से उन  ंथ  म मनचाहे प रवतन करने क  सु वधा हो, इस लए 
शू   को  ान- यान  से  पूर   तरह  दूर  रखा।  पाताल  म  दफनाए  गए शू ा द लोग  म से  कसी को भी पढ़ना- लखना 
नह   सखाना  चा हए,  इस  तरह  का  वधान  मनुसं हता  जैस े ंथ   म ब त ह  सूझ-बूझ और  भावी ढं ग से  लख कर 
रखा है। 

ध डीराव : तात, ा भागवत भी उसी समय म लखा गया होगा? 

जोतीराव  :  य द  भागवत  उसी  समय  लखा  गया  होता  तो  सबके  पीछे  ए  अजुन  के  ज ज
े य  नाम  के 
पड़पोते क हक कत उसम कभी न आई होती। 

ध डीराव  :  तात,  आपका  कहना  सह   है।  क  उसी  भागवत  म  कई  पुरातन  कि पत  यथ  क  
पुराणकथाएँ  ऐसी  िमलती  ह  क उससे इसप-नीित हजार  गुणा अ छ  है, यह मानना पड़ेगा। इसप नीित म ब  के 
दलो- दमाग को करनेवाली एक भी बात नह िमलेगी। 

जोतीराव : उसी तरह मनुसं हता भी भागवत के बाद लखी गई होगी, यह स कया जा सकता है। 

ध डीराव : तात, इसका मतलब यह कैसे होगा क मनुसं हता भागवत के बाद म लखी गई होगी? 

जोतीराव  :  क  भागवत  के  व श   ने,  इस  तरह  क  शपथ ली  क मने ह ा नह  क  है। सुदामन राजा 
के  सामने  लेन े क   शपथ  मनु  ने  अपने  ंथ  के  8व  अ याय  के  110  व  ोक  म  कैसे  ली  है?  उसी  कार  व िम   ने 
आपातकाल  म  कु  े का  मांस  खाने  के  संबंध म जो कहा है, उसी  ंथ के 10व अ याय के 108व  ोक म    लखा 
है? इसके अलावा भी मनुसं हता म कई असंगत बात िमलती ह। 

प र छे द : दस 

[दूसरा  ब ल  राजा,  ा ण  धम  क   दद


ु शा,  शंकराचाय  क   बनावटी  बात,  नाि तक  मा ता,  नदयता, 
ृ त  ंथकता,  कम  और  ानमाग,  बाजीराव  पेशवा,  मुस लम   से  नफरत  और  अमे रक   तथा  कॉच 
ाक
उपदे शक ने ा ण के क ृ ि म कले क द वार तोड़ द , आ द के संबंध म।] 

ध डीराव  :  तात,  अब  तो  चरम  सीमा हो गई,  क आपने  शवाजी के पँवाड़े क   तावना म यह  लखा 
था  और  स   कया  था  क चार घर क  चार  ंथकता  ा ण लड़ कय  ने िमल कर घर क  कोठर  म झूठ-फरे बी का 
खेल खेला। 

जोतीराव  :  कतु  आगे  जब  एक  दन  (द लत )  का  दाता;  समथक,  महाप व , स ानी, स व ा ब ल 
राजा  इस  दु नया  म  पैदा  आ,  तब  उसने  हम  सभी  को  पैदा  करनेवाला,  हम  सबका  नमाणकता  महािपता  जो  है, 
उसका  उ े य  जान  लया।  नमाणकता  ारा  दए  गए  स मय  प व   ान  और  अ धकार  को  उपभोग  करने  का 
समान  अवसर  सबको  ा त  हो,  इस लए  उस  ब ल  राजा  ने अपने द न, दुबल और शोिषत भाइय  को सभी  ा ण  
क   अथात  बनावटी,  दु ,  धूत,  मतलबी  बहे लय   क   गुलामी  से  मु   करके,  ाय पर आधा रत रा  क   ापना 
करके  अपनी  जे   म हला   के  भ व य  क  आकां ा  को कुछ हद तक पूरा  कया, यह कहा जा सकता है। तात, 
जहाँ  िम टर  टॉ स  पस  जैस े बड़े-बड़े  व ान   के  पूवज   ने  इस  ब ल  राजा  के  भाव  म  आ  कर अपने पीछे क  सार  
बलाएँ  दूर  करके  सुखी  ए,  अंत  म  जब  उस  ब ल  राजा  को  (ईसा  मसीह)  चार  दु   लोग   ने  सूली  पर  चढ़ाया,  उस 
समय  सारे   यूरोप  म  बड़ा  तहलका  मच  गया  था।  करोड़   लोग  उसके  अनुयायी  हो  गए  और  वे  अपने  नमाणकता के 
शासन  के  अनुसार  इस  दु नया  म केवल उ  का स ा कायम हो, इस  दशा म रात और  दन  य शील रहे। ले कन 
इसी  समय  इस  े   म  कुछ  व   वातावरण  होने  क   वजह  से  यहाँ  के  कई  बु मान  खेितहर  और  कसान  ने उस 
घर  क   कोठर   के  अंदर  क   नादान  लड़ कय   के  झूठ-फरे बी  खेल  को  ह   तहस-नहस  कर  दया।  मतलब  सां यमु न 
जैस े बु मान  स पु ष   ने  ा ण   के  वेदमं ,  जादू व ध  के  अनुसार  चम कार  का  दशन  कया। उसने उन  ा ण  
को  भी  अपने  धम  का  अनुयायी  बनाया  जो  पशु   क   ब ल  चढ़ा  करके  उ व  या ा के बहाने गोमांस-भ ण करते 
थे।  उसी  कार  जो  ा ण  घमंडी,  पाखंडी,  वाथ ,  दुराचार   आ द  दुगण ु  से यु  थे और  जन  ंथ  म जादूमं  के 
अलावा  और  कुछ  नह   था,  ऐसे  ंथ   पर  तेल  काजल  का  लेप  लगा  कर  अथात्  उन  ंथ   को  नकारते  ए  उसने 
अ धकांश  ा ण   को  होश  म  लाया।  ले कन  उनम  से  बचे-खुच े शेष  कुतक   ा ण  कनाटक  म  भाग जाने के बाद 
उन  लोग   म  शंकराचाय  नाम  अपना  कर  एक  तरह  से  वतंडावाद   व ा  जाननेवाला  महापं डत  पैदा  आ।  उस 
ा णवाद   पं डत  ने  जब  यह  देखा  क  अपने  ा ण  जाित  के  दु   कम  क   धूतता  क   सभी  ओर  नदा हो रह  है, 
थ-थू  हो  रह   है  और  बु   के  धम  का  चार   ओर  चार  हो  रहा  है,  तो  उसने  यह  भी  देखा  क  अपने  लोग   का 
( ा ण-पं डत-पुरो हत)  पेट  पालने  का  धंधा  ठ क  से  नह   चला  रहा  है,  इस लए  उसने  नया  जाल  खोज 
नकाला।  जन  दु   कम   क   वजह  से  उनके  वेद   स हत  सभी  ंथ  का बौ  जनता ने  नषेध  कया था, उसका उस 
शंकराचाय  ने  बड़ी  गहराई  से  अ ययन  कया  और  बौ   ने  जन  बात   के  लए  ा ण  क  आलोचना क  थी, उसने 
उनम  केवल  गोमांस  खाना  और शराब पीना  निष  मान  लया। ले कन उसने बाद म अपने सभी  ंथ  म थोड़ी ब त 
हेराफेर   करके  उन सभी म मजबूती लाने के  लए एक नए मत-वाद क   ापना क । शंकाराचाय क  उस  वचारधारा 
को वेदांत का ानमाग कहा जाता है। 

बाद  म  उसने  वहाँ  शव लग  क   ापना  क ।  इस  देश  म  जो  तुक  आए  थे,  उसने  हदु   के  एक  वण 
ि य   म  उ   शािमल  कर  लया।  फर  उसने  उनक   मदद  से  मुस लम   क   तरह  तलवार  के  बल  पर  बौ   को 
परा जत  कया  और  फर  पुन:  उसने  अपनी  उस  शेष  जादू-मं   व ा  और  भागवत  क   यथ क  पुराण कथा  का 
भाव  अ ानी  शू   के  दल - दमाग  पर  थोप  दया।  शंकराचाय  के  इस  हमले  म  उसके  लोग   ने  बौ   धम  के  कई 
लोग   को  तेली के को  म ठूँ स-ठूँ स करके मौत के घाट उतार  दया। इतना ह  नह , शंकराचाय के लोग  ने बौ  के 
असं य  मौ लक और अ छे-अ छे  ंथ  को जला  दया। उसने उनम से केवल अमरकोश जैसा  ंथ अपने उपयोग के 
लए  बचाया।  बाद  म  जब उस शंकराचाय के डरपोक चेल े पं डत-पुरो हत  क  तरह  दन म ह  मशाल  को जला कर, 
डोली  म  सवार  हो  कर,  चार   ओर  सधवा  नार   क   तरह  नोक-झ क  करके  नाचते  ए घूमने लगे तो  ा ण  को नंगा 
नाच  करने  क   पूर   वतं ता  िमल  गई।  उसी  समय  मुकंु दराज,  ाने र,  रामदास  आ द  जैस े पायली  के  पचास 
ंथकार  ए  और  बे हसाब,  बेभाव  बक  गए।  ले कन  उन  ा ण  ंथकार   म  कसी  एक  ने  भी शू ा द-अितशू  के 
गले  क   गुलामी  क   जंजीरे   तोड़ने  क   ह त  नह   दखाई,  क  उनम  उन  सभी  दु   कम   का  खुलआ े म  ाग 
करने  क   ह त  नह   थी।  इस लए  उ ने  उन  सभी  दु   कम   को कम माग और नाि तक मत  का  ानमाग - इस 
तरह  के  दो  भेद  करके  उन  पर  कई  पाखंडी,  नरथक  ंथ   क  रचना क । इस तरह उ ने अपनी जाित के  वाथ  का 
जी-जान  से  र ण  कया  और  अ ानी  शू   से  लूट-खसोट  करके  अपनी  जाित  को  खूब  खलाया-िपलाया।  ले कन 
बाद  म  उ ने  पूर   ल ा-शम  छोड़  द   और  हर  रात  को  जो  कुकम  नह   करना  चा हए,  उसको  भी  करने लगे।  फर 
ा ण  लोग   को  दन  के  एक  चौथाई  समय  गुजरने  तक  मुस लम   का  मुँह न देखना चा हए, रज वला  ी क  तरह 
घर  म  ह   मांग लक  अव ा  म  रहनेवाले  ऐसे  लोग  बाजीराव  के  दरबार म इक े होते थे। ले कन अब समय ने करवट 
ले  ली  थी।  पहले  दन  के  बीतने  और  दूसरे   दन के  ारं भ म सभी मेहनतखोर  ा ण  को ऐयाशी और गुलछर उड़ाने 
के  लए  जो  सुख−सु वधाएँ  िमलनेवाली  थी,  उसके  पहले  ह   अं ज े   बहादुर   का  झंडा  चार  ओर लहराने लगा। उसी 
समय  उस  ब ल  राजा  के  अ धकांश  अनुयायी  अमे रक   और  कॉच  उपदेश  ने  (िमशनर )  अपने-अपने  देश  क  
सरकार   क   कसी  भी  कार  क   परवाह  न  करते  ए इस देश म आए। ब ल राजा ने जो सह  उपदेश  दया था, उसे 
सभी  नकली,  दु ,  धूत  ा ण   को  माण  ारा  स   करके  दखाया  और  उ ने  कई  शू   को  ा ण   क   इस 
अ ंत  अमानवीय  गुलामी  से  मु   कया।  उ ने  शू   के  (शू ा द  अितशू )  गले  म  ा ण   ारा  स दय   से टाँगी 
ई  गुलामी  क   बे ड़य   को  तोड़  दया  और  उन  गुलामी  क   बे ड़य   को  ा ण   के  मुँह  पर  फक  मारा।  उस  समय 
अ धकांश  ा ण  समझ  गए  क,  अब  वे  ती  उपदेशक  (िमशनर )  उनका  भाव  अ  शू  पर  बलकुल  टकने 
नह   दगे।  वे  उनके  सारे   ढोल  के  पोल  खोल  के  रख  दगे,  यह  उनक   प क   समझ  हो  गई  थी।  इसी  डर  क   वजह से 
उ ने  ब ल  राजा  के  अनुयायी  उपदेशक   और  अ ानी  शू   म  साँठ-साँठ,  मेल-िमलाप  हो और उन दोन  म गहर  
पहचान  बने,  इससे  पहले  ह   ब ल  राजा  के  अनुयायी  उपदेशक   और  अं ज े   सरकार  को  इस  देश  से ह  भगा देन े के 
इरादे  से  कई  हथकंडे  अपनाए।  कई  ा ण   ने  अपनी  खानदानी  पाखंडी  (वेद)  व ा  क  मदद  से  अ ानी  शू   को 
उपदेश  देना  शु   कर  दया,  जससे  उनके  मन  म  अं ज
े   सरकार  के  ित  घृणा  और  नफरत  क   भावना  जाग  जाए। 
ले कन दूसर  तरफ कुछ  ा ण  ने  व ा  ा त क  और उसके मा यम से  ा ण  के कुछ लोग बाबू,  लक  ए और 
अ   अ   सरकार   सेवा   म  गए।  इस  तरह  से  ा ण  लोग  कई  कार  का  सरकार   काम  अपना कर सभी  कार 
क सरकार नौक रय म प ँ चे। अं ज े का सरकार या घरे लू ऐसा एक भी काम नह है जहाँ ा ण न प ँ चे ह । 

प र छे द : यारह 

[पुराण  सुनाना,  झगड़ाखोर   का  प रणाम,  शू ,  सं ा नक,  कुलकण ,  सर वती  क   ाथना,  जप, 
अनु ठान, दे व ान, द णा, बड़े कुलनाम क सभाएँ आ द के संबंध म] 

ध डीराव  :  तात,  यह  बात  पूर   तरह  स   है  क  इन  अधम   मदा रय   के  ( ा ण   के)  झगड़ालू  पूवज   ने 
इस  देश  म  आ  कर  हमारे   आ द  पूवज   को  (मूल  नवा सय   को)  परा जत  कया।  फर  उ ने उनको अपना गुलाम 
बनाया।  फर  उ ने  अपनी  बा   को  जापित  बनाया  और  उनके  मा यम  से  उ ने  जहाँ-तहाँ  दहशत  फैलाई। 
इसम उ ने अपना कोई ब त बड़ा पु षाथ  दखाया है, इस बात को म कदािप  वीकार नह  कर सकता। य द हमारे  
पूवज   ने  ा ण   के  पूवज   को  परा जत  कया होता, तब हमारे  पूवज  ा ण  के पूवज  को अपना गुलाम बनाने म 
ा  सचमुच  म  कुछ  आनाकानी  करते?  तात,  छोड़  द जए  इस  बात  को।  बाद  म  फर  जब  ा ण   ने  अपने  उन 
पूवज   क   धीगाम ती  को,  मौका  देख  कर ई र  धम का  प दे  दया और उस नकली धम क  छाया म कई  ा ण  
ने  तमाम  अ ानी  शू   के  दलो- दमाग  म  हमार   दयालु,  अं ज े   सरकार  के  ित  पूर   तरह से नफरत पैदा करने क  
को शश क , मतलब वे कौन सी बात थी? 

जोतीराव  :  कई  ा ण   ने  सावज नक  ान   पर  बनवाए  गए  हनुमान  मं दर   म  रात-रात  बैठ  कर  बड़ी 
धा मकता  का  दशन  कया।  वहाँ  उ ने  दखावे  के  लए  भागवत  जैस े ंथ   क   द कयानुसी बात अनपढ़ शू  को 
पढ़ाई  और  उनके  दलो- दमाग  म  अं ज े   के  ित  नफरत  क ,  घृणा  क   भावना  पैदा  क । इन  ा ण पं डत  ने उन 
अनपढ़  शू   को  मं दर  के मा यम से यह  पढ़ाया  क ब ल के मतानुयाियय  क  छाया म भी खड़े नह  रहना चा हए। 
उनका  इस  तरह  का  नफरत  भरा  उपदेश  ा  सचमुच  म  अकारण था? नह ,  बलकुल अकारण नह  था; बि क उन 
ा ण   ने  समय  का  पूरा  लाभ  उठा कर उसी  ंथ क  बेतकु  बात पढ़ा कर सभी अनपढ़ शू  के मन म अं ज े ी राज 
के  ित  नफरत  क   भावना  के  बीज  बो  दए।  इस  तरह  उ ने  इस देश म बड़ी-बड़ी धीगाम ती को पैदा  कया है या 
नह ? 

ध डीराव  :  हाँ,  तात,  आपका  कहना सह  है।  क आज तक  जतनी भी धीगाम ती  ई है, उसम भीतर 
से  कहो  या  बाहर  से,  ा ण-पं डत-पुरो हत  वग  के लोग अगुवाई नह  कर रहे थे, ऐसा हो ह  नह  सकता। इस  ोह 
का  पूरा  नेतृ व  वे  ह   लोग  कर  रहे  थे।  दे खए,  उमा  जी  रामोशी  ​[23]  क   धीगाम ती  म  काले  पानी  क   सजा 
भोगनेवाले  ध डोपंत  नाम  के  एक  ( ा ण)  यि   का  नाम  आता  है।  उसी  कार  कल-परस   के  चपाती  सं ाम  म 
परदेशी ा ण पांड,े क कण का नाना (पेशवे), ता ा टोपे आ द कई देश [24]​ ा ण के ह नाम िमलते ह। 

जोतीराव  :  ले कन  उसी  समय  शू   सं ा नक  शदे,  होलकर  आ द  लोग  नाना  फड़णीस  से  कुछ  हद तक 
सेवक  क   है सयत  से  संबं धत  थे।  उ ने  उस  धीगाम ती  करनेवाल   क  कुछ भी परवाह नह  क  और उस मुसीबत 
म  हमार   अं ज
े   सरकार  को  कतनी  सहायता  क ,  इस  बात  को  भी  दे खए।  ले कन अब इसे छोड़ द जए। इन बात  
से  हमार   सरकार  को  ा ण   क   उस  धीगाम ती  को  तहस-नहस करने क   लए बड़े भार  कज का बोझ भी उठाना 
पड़ा  होगा  और  उस  कज  के  बोझ को चुकाने के  लए पवती ​[25] जैस े फजूल सं ान क  आय को हाथ लगाने क  
बजाय  हमार   सरकार  ने  नए  कर   का  बोझ  कस  पर  डाल  दया?  अपराधी  कौन  ह  और  अपराध  न  करनेवाले  लोग 
कौन  ह?  इसक   पहचान  कए  बगैर  ह   सरकार  ने  सार   जनता  पर  कर  (लगान)  लगा  दया;  कतु  यह  इन  बेचारे  
अनपढ़  शू   से  वसूल  करने  का  काम हमार  इस मूख सरकार ने  कसके हाथ  म स प  दया, इस बात पर भी हमको 
सोचना  चा हए।  ा ण लोग अंदर ह  अंदर शू  सं ा नक  से जी-जान से इस लए गाली-गलौज कर रहे थे  क 
उ ने  इनक   जाित  के  नाना  फड़णीस  को  उिचत  समय पर मदद नह  क ,  जसक  वजह से उसक  अं ज े  के साथ 
लड़ते  ए  पराजय  ई।  अं ज े   सरकार  ने  उन  लोग   के  हाथ  म  कर-वसूली का काम स प  दया, जो शू  सं ा नक  
से  जी  भर  कर  गाली-गलौज  करनेवाले  थे,  दन  म  तीन  बार  ान  करके  मांग ता  का  ढढ रा  िपटनेवाले  थे, 
धनलोलुप  और  न   ा ण  कुलकण   थे।  अरे ,  इन  कामचोर  ामरा स   को  ( ा ण  कमचार ),  इन  मूल 
रा स   को  जस  दन  से  सरकार   काम  क   ज द े ार   दे  द   गई,  उस  दन  से  उ ने  शू   क  कोई परवाह नह  
क ।  कसी  समय  मुस लम  राजा   ने  गाँव  के  सभी  पशु   प य   क   गरदन   को  छुर   से  काट  कर  उनको हलाल 
करने  का    अपनी  जाित  के  मौलाना   को  स प  दया  था।  ले कन  उनक   तुलना  म  देखा जाए तो  प   प से 
पता  चल  जाएगा  क  ा ण-पं डत   ने  अपने  कलम  क   नोक  पर  शू   क   गरदन  छाँटने  म  उस  मौलाना  को  भी 
काफ   पीछे  धकेल  दया  है,  इसम  कोई  दो  राय  नह   है।  इसी लए  तमाम  लोग  ने सरकार क   बना परवाह  कए इन 
ामर स  को ( ा ण ) को 'कलम कसाई' क  जो उपा ध द  है, वह आज भी  च लत है। और अपनी मूख सरकार 
उनका  अ   सभी  कामगार   क   तरह  तबादला  करने  क   बजाय  उनक   राय  ले  कर  अ ानी  लोग   पर  लगान  (कर) 
मुकरर  करने  क   कारण  नो टस  तैयार  करती  है।  बाद  म  उसी  कुलकण   को सभी शू   कसान  के घर-घर प ँ चाने के 
बाद  उनसे  िमलनेवाले  कुलक णय   क   सफ  वीक ृ ित  ले कर सरकार उनम से कई नो टस  को खा रज कर देती और 
अनपढ़ लोग पर लगान बहाल कर देती है। अब इसको कह भी ा? 

ध डीराव : ा, ऐसा करने से कुलक णय को कुछ लाभ भी होता होगा? 

जोतीराव  :  उससे  उन कुलक णय  को कुछ फायदा होता होगा या नह , यह वे ह  जानते ह। ले कन उनको 


य द  कसी  वा हयात  फतू रया  से कुछ लाभ न भी होता हो,  फर भी वे उन पर इस तरह क  नो टस  भजवा कर कम 
से  कम  चार  आठ  दन  क   कावट  न त  प  से  पैदा  करते  ह गे  और  आने  जाने  म सार  शि  खच करवाते ह गे, 
इसम  कोई  संदेह  नह ।  वे  उन  पर  अपना  तबा  जमा  करके  काम   क   उपे ा  करते  ह गे।  बाद  म  उ ने  शेष  सभी 
काम  बगुला  भगत  क  तरह  पूर   आ ीयता  से  कया  होगा।  इस लए  सभी  अनपढ़  छोटे-बड़े  लोग   और शंकराचाय 
जैस े लोग   ने  ल ी  क   तुित  क   क  'हे  हमार   सरकार   सर वती  मैया,  तू  अपने  कानून  से  रोकती  है  और  लाच 
खानेवाल   को  और  उसी  तरह  लाचार  हो  कर  लाच  देनवे ाले  को  दं ड  देती  है,  इस लए  तू  ध   है।' इस लए कई लोग 
स   ए  और  उ ने  कुछ  कुलक णय   के  घर   पर  कई  दन   तक  लगातार  पैस   क   बा रश  बरसाई।  कुछ लोग  ने 
इसके  खलाफ  शोर  मचाया।  य द  यह  बात  सच  है  तब  उसक   पूर   जाँच-पड़ताल  करनी  चा हए  और ऐसे हरामखोर 
कुलक णय को कसी गधे पर बैठा कर उनको गाँव के तमाम रा त से घुमाने का काम अपनी सरकार का है। 

ध डीराव  :  तात,  सु नए।  ा ण   ने  जो  टेढ़ी-मेढ़ी  हलचल  शु   क   थी,  उसको  कुछ  बु मान  गृह   ने 
अब  अ छ   तरह  पहचान  लया  है,  और  उस  ब ल  राजा  (अं ज े   सरकार)  को  अ धका रय   को,  मु खया  को  इस 
चालबाजी  से  अवगत  कराया  गया।  फर  भी  सरकार  उन  पहरे दार   क   आँख  म धूल झ क कर ऐसे कलम-कसाइय  
को  स   करने  म  लगी  ई  है।  आज के  ा ण  म कई लोग ऐसे ह जो शू  के  म प लगान क  वजह से बड़े-बड़े 
व ान  ए  ह।  ले कन  वे  इस  उपकार  के  लए  शू   के  ित  कसी भी  कार क  क ृ त ता  द शत नह  करते; बि क 
उ ने  कुछ  दन   तक  मनचाहे  मौजम ती क  है और अंत म अपनी मांग ता का  दखावा करके यह भी  स  करने 
क   को शश  क   है  क  उनक   वेदमं ा द  जादू व ा  सह  है। इस तरह  क झूठ  बात  से उ ने शू  के  दलो  दमाग 
पर  भाव  कायम  कया।  शू  को उनका िपछल गू बनना चा हए, इसके  लए न जाने  कस- कस तरह के पाँसे फके 
ह गे।  उ ने  शू   को  अपने  िपछल गू  बनाने  क   इ छा से उ  के मुँह से यह कहलवाया  क शादावल के  लगिपड 
के  आगे  या  पीछे  बैठ  कर  कराए  पर  बुलाए  गए  ा ण  पुरो हत   के  ारा  जप,  अनु ान  करवाने  क   वजह  से  इस 
साल  ब त  बा रश  ई,  और  महमार   का  उप व  भी  ब त  कम  आ।  इस  जप,  अनु ान  के  लए  आपस  म  पया 
पैसा  भी  इक ा  कया  था।  इस  तरह  उ ने  जप,  अनु ान  के  आ खर   दन  बैलबंडी  पर  भात  का  बली  राजा बनवा 
कर  सभी  कार  के  अ ानी  लोग   को  बड़ी-बड़ी,  लंबी  चौड़ी  झूठ   खबर  दलवा  कर,  बड़ी  या ा   का  आयोजन 
करवाया।  फर  उ ने  सबसे  पहले  अपनी  जाित  के  इ लतखोर  ा ण  पुरो हत   को  बे हसाब  भोजन  खलाया और 
बाद  म  जो  भोजन  शेष  बचा  उसको  सभी  कार  के  अ ानी  शू   क   पंि याँ  बठा  कर  कसी  को  केवल  मु ी  भर 
भात,  कसी  को  केवल  दाल का पानी, और कइय  को केवल फा न ु  क  रो टयाँ ह  परोसी ग ।  ा ण  को भोजन 
से  तृ त  कराने  के  बाद  उनम  से  कई  ा ण पुरो हत  ने उन अ ानी शू  के  दलो  दमाग पर अपने वेदमं  जादू का 
भाव  कायम  रखने  के  लए  उपदेश  देना  शु   कया  हो,  तो  इसम  कोई  संदेह  नह ।  ले कन  वे  लोग  ऐसे  मौके  पर 
अं ज े लोग को साद लेने के लए आमंि त नह करते? 

जोतीराव  :  अरे ,  ऐसे  पाखंडी  लोग   ने  इस  तरह  चावल  के  चार  दाने फक  दए और थू-थू करके इक े  कए 
ए  ा ण-पुरो हत   ने  य द  हर  तरह  का   नृ  करके भ  भ   कया, तब उ  अपने अं ज े  बहादुर  को  साद देन े
क ह त होगी? 

ध डीराव  :  तात,  बस  रहने  द जए।  इससे  ादा  और  कुछ  कहने  क  आव यकता नह  है। एक कहावत है 
क 'दूध का जला छाँछ भी फ ँ ू क-फ
ँ ू क कर पीता है।' उसी तरह इस बात को भी समझ ली जए। 

जोतीराव  :  ठ क  है।  समझ  अपनी-अपनी,  खयाल  अपना-अपना।  ले कन  आजकल  के  पढ़े  लखे  ा ण 
अपनी  जादूमं   व ा  और  उससे  संब धत  जप  अनु ान  का  कतना  भी  चार    न  कर,  उस  मटमैल े को  कलई 
चढ़ाने  का  कतना भी  यास   न कर और तमाम गली कूच  म से भ कते  ए   न  फरते रह. ले कन अब उनसे 
कसी  का  कुछ  भी  कम  ादा  होनेवाला  नह   है।  ले कन  अपने  मा लक  के  खानदान  को  सातारा  के  कले  म  कैद 
करके  रखनेवाले  नमकहराम  बाजीराव(पेशवे)  जैस े हजड़े  ा ण   ने  रात  और  दन  खेती  म काम करनेवाले शू  क  
मेहनत  का  पैसा  ले  कर  मुँहदेखी  पहले  दज  के  जवांमद  ा ण  सरदार  को सरं जाम बनाया। उन जैस े लोग  को  दए 
ए  अ धकारप   (सनद)  के  कारण   को  देख  कर  फ ट सॉट टर कांड साहब जैस े प व  नेक किमशनर को भी खुशी 
होगी,  फर  वहाँ  दूसरे   लोग   के  बारे   म  कहना  ह   ा?  उ ने  पावती  जैस े कई  सं ान   का  नमाण  करके,  उन 
सं ान   म  अ   सभी  जाितय   के  अंध,े   दुबल  लोग   तथा  उनके  बाल-ब   क   बना  परवाह  कए,  उ ने 
( ा ण )  अपनी  जाित  के  मोटे-ताजे  आलसी  ा ण   को  हर  दन  का मीठा अ छा भोजन  खलाने क  पंरपरा शु  
क ।  उसी  कार  ा ण   के  वाथ   नकली  ंथ   का  अ ययन  करनेवाले  ा ण  को हर साल यथायो य द णा देन े
क   भी  पंरपरा  शु  कर द । ले कन खेद इस बात का है  क  ा ण  ने जो पंरपराएँ शु  क  ह, केवल अपनी जाित के 
वाथ  के  लए।  उन  सभी  पंरपरा   को  अपनी  (अं ज े )  सरकार  ने  जस  के  तस  अभी  तक  कायम  रखा  है।  इसम 
हमको  यह कहने म  ा कोई आपि  हो सकती है  क उसने अपनी  ौढ़ता और राजनीित को बड़ा ध बा लगा  लया 
है?  उ   कार  के  फजूल  खच  से  ा ण   के  अलावा  अ   कसी  भी  जाित  को  कुछ  भी  फायदा  नह   ह;  बि क 
उनके  बारे   म  यह  कहा  जा  सकता  है  क  वे  हराम  का  खा  कर  म ताए  ए  क ृ त  साँड़ ह। और ये लोग हमारे  अनपढ़ 
शू   दाता  को अपने चुड़ल ै  धम के गंदे पानी से अपने पाँव धो कर वह  पानी िपलाते ह। अरे , कम न   ा ण  के 
पूवज  ने अपने ह  धमशा  और मनु ृ ित के कई वा  को काजल पोत कर ऐसे बुरे कम कम कैसे  कए? ले कन 
अब  तो  उ   होश  म  आना चा हए और इस काम के  लए अपनी भोली-भाली सरकार कुछ न सुनते  ए पावती जैस े
सं ान   म  इन  वाथ   ा ण   म  से  कसी  को  भी  शू   के  पसीने  से  पकनेवाली  रो टयाँ  नह   खानी  चा हए। इसके 
लए  एक  जबद त  सावज नक  ा ण  सभा  क   ापना  करके  उनक   सहायता  से  इस  पर  नयं ण  रखना  चा हए; 
जससे  उनके  ंथ   का  कुछ  न  कुछ  दबाव पुन ववाह उ ज े क मंडली पर पड़ेगा, यह  हमार  भावना थी।  कतु उ ने 
इस  तरह  क   बड़े-बड़े  उपनाम   क  सभाएँ  ािपत करके उनके मा यम से अपनी आँख  का मोितया बद ठ क करना 
तो  छोड़  दया  और  अ ानी  लोग   को  सरकार  क  आँख  के दोष  दखाने क  को शश म लगे रहे। यह  ई न बात  क 
'उलटा  चोर  कोतवाल  को  डाँटे'  इसको  अब  ा  कह  सकते  ह!  अब  हमारे  अ ानी सभी शू  क  उस बली राजा के 
साथ  गहर   दो ती  होनी  चा हए,  इसका  यास  करना  चा हए  और  उस  बली  राजा  के सहारे  से ह  इनक  गुलामी क  
जंजीर  टू टनी  चा हए।  ा ण   क   गुलामी  से  शू   को  मुि   करने  के  लए  अमे रक   कॉच  और  अं ज े   भाइय   के 
साथ  जो  दो ती  होने  जा  रह   है,  उसम  उ   कुछ  दखलंदाजी  करने  क   को शश  नह   करनी  चा हए।  अब  उनक  
दौड़धूप ब त हो गई है। अब हम उनक गुलामी का नषेध करते ह। 
प र छे द : बारह 

[इनामदार  ा ण  कुलकण ,  यूरोिपयन  लोग   ने उप नवेश  क  आव कता,  श ा  वभाग के मुँह पर 


काला ध बा, यूरोिपयन कमचा रय का दमाग कंु ठा त य होता है, आ द के संबंध म] 

ध डीराव  :  तात,  ले कन  आपने  पहले  कहा  था  क  ऐसा  कोई  वभाग  नह   है  जसम  ा ण  न  हो,  फर 
चाहे वह सरकार वभाग हो या गैरसरकार और इन सबम मु खया ा ण कौन है? 

जोतीराव  :  ये  सरकार   पटवार   (वतनदार)  ा ण  कुलकण [26]  ह  और  इनक   जालसाजी  के  बारे   म 
अ धकांश  दयालु  यूरोिपयन  कले टर   को  पूर   जानकार   है।  इस लए  जब  उसको  अ ानी  शू   पर  दया  आई  तो 
उ ने  सरकार  को  रपोट  के  बाद  रपोट  भेज  करके  सभी  कानून   के  ारा  कुलक णय  के कदम-कदम पर बंधन  म 
बाँधने  क   को शश  क ।  उनको  कानून   के  मा यम  से  नयंि त रख कर उनके अ नयंि त  यवहार को  नयंि त  कया 
गया।  फर  भी  इन  कलम-कसाइय   का  उनके  मतलबी  धम  से  शू   के  संबंध  होने  क   वजह से शू  पर  भाव था। 
इस लए  ये  शैतान  क   तरह  अपने  वाथ   झूठे  धम क  छ छाया म खुल े प म चौपाल म बैठ कर उस ब ल राजा के 
वचार   क   आलोचना  करके  बेचार  अनपढ़  शू   के  मन  को  ा वे लोग दूिषत नह  करते ह गे? अगर ऐसा ना कह, 
तो  शू   को  तो  बलकुल  ह   न  लखना  आता  है  और  न  पढ़ना,  फर  वे  कस  वजह  से  या  कस  कारण  सरकार  से 
इतनी  नफरत  करने  लगे  ह?  इससे  बारे   म  य द  तु   कुछ  अ   कारण  मालूम  हो  तो  मुझ े जरा  समझ  दो।  इतना ह  
नह ,  तो  वे  लोग  मौका  देख  कर  उसी चौपाल म (चावड़ी) बैठ करके  कसी गैरवाजबी सरकार  कानून को ले कर उस 
पर  कई  तरह  के  पैन े कुतक  नह   देत े ह गे?  और  शू   को  सरकार  से  नफरत  करनी  चा हए,  इस लए  उनको  ा 
चोर -चोर   पाठ  नह   पढ़ाते  ह गे?  और  उनका  एक  श द  भी  अपनी  सजग  सरकार  के कान म डाल देन े के  लए शू  
लोग  ा  क ँ पक
ँ पाते[27]  नह   ह गे?  चूँ क  सभी  ऊपर   द तर   के  कमचार   ा ण  जाित  के  ह,  इस लए  अब  तो 
अपनी  सरकार  को  सँभालना  चा हए।  सबसे  पहले  हर  एक  गाँव  म  इनाम  दे  कर, उ  उपदेशक  का काम स प देना 
चा हए,  साथ म यह  हदायत भी  क वे उस उस गाँव क  हक कत के बारे  म कर ब-कर ब साल म एक  रपोट सरकार 
को  भेजते  रह।  य द  इसके  अनुकूल  कानून  बनवा  कर  बंदोब त  कया  गया,  तब  आगे  कसी  समय  नाना  पेशवे  जैस े
ा ण  को  पुन:  जब  कसी  पीर  ने  िम त  माँगी या उसने  कसी  शव लग  क या ा करके उसके  ारा रसीला भोजन 
खलाने  क   बजाय  चम का रक  ढं ग से तैयार क  गई रो टयाँ  न त समय पर गाँव-गाँव म एक साथ प ँ चा कर, वह 
साद  अनपढ़  शू   को  खला  कर  सरकार  के  व   व ोह  करवाने  क   बात  सूझी  तो  इन  पटवार   (वतनदार) 
कुलक णय   क   एकता  बलकुल  कसी  काम  नह   आएगी।  इस  तरह  कए  बगैर  सभी  अनपढ़  शू   का  अि त व  ह  
नह   रहेगा,  उनके  पाँव  उस  धरती  पर  नह   टके रहगे। इतना ह  नह , जब वे यूरोिपयन उपदेशक सभी शू  को सह  
ान  दगे  और  इनक   आँखे  खोल  दगे,  तब  ये  लोग  इन  ामरा स  के नजद क भी खड़े नह  रहगे। दूसर  बात यह है 
क  सरकार  को  अपने  ाम  कमचार   (नौकर),  पटेल  (चौधर )  से  ले  कर  कुलक णय   तक  के  काम  क   पर ा  लेनी 
चा हए  और  इस  तरह  के  मह वपूण  काम   को एक ह  जाित या  व श  जाित के लोग  के हाथ नह  स पना चा हए। 
इसका  प रणाम  यह  होगा  क  फौज  क   तरह  इस  काम  म  कुछ  वशेष  अ धकार  क   बात  पैदा  नह   होगी;  बि क 
उसका  पूर   तरह  से  बंदोब त  हो  जाएगा  और  सभी  लोग   को  पढ़ने- लखने  क   इ छा  अपने-आप  पैदा  होगी।  य द 
आव यकता  हो  तो  सार   हमार  दयालु सरकार को चा हए  क  श ा  वभाग का  फजूल खच एकदम बंद कर दे और 
यह  सारा  पैसा  कले टर  के  खाते  म  जमा कर देना चा हए।  फर एक यूरोिपयन कले टर क  ओर से, जॉर वस साहब 
क   तरह  कसी  भी  कार  का  प पात न करते  ए, सभी जाित के हो शयार छा  म से कुछ छा  का चुनाव करके, 
उनको  केवल  खा-सूखा  खाना  और  छोटे-मोटे  कपड़   क   यव ा  करके,  उनके  लए  हर  कले टर साहब के बंगले 
के  कर ब  पाठशाला  चालानी  चा हए  और  उन  छा   को  पटेल,  कुलकण   तथा  पंतोजी'  (पटवार ,  पु लस,  पटेल, 
ामसेवक  आ द)  के  नाम  क   े नग  दे  कर,  फर पर ा ले कर, इस तरह के काम स प देन े चा हए। इसका प रणाम 
यह  होगा  क  ये  लोग  सभी  ( ा ण)  कुलक णय   क  एकता के  लए बदनाम नाना पेशवे जैस े ा ण  के काम नह  
आएँगे,  बि क  जो  लोग  अ ानी  शू   को  फ ँ सा  करके  उनके  खेत  (वतन)  हड़पते  ह गे  और उन लोग  से हर तरह के 
झगड़े फसाद करवाते ह गे, उनको वैसा करने के  लए व  ह  नह  िमलेगा। आज तक लाख   पया  श ा  वभाग के 
मा यम  से  खच  आ  है,  फर  भी उससे शू  समाज क  सं या क  तुलना म उनम  व ान  क  सं या नह  बढ़ सक । 
इतना  ह   नह ,  महार,  मातंग  और  चमार  आ द  जाितय   म  से  एक  भी  पढ़ा  लखा  कमचार   नह   दखाई  दे  रहा  है। 
फर  यहाँ  एम.ए.  या  बी.ए.  पढ़े  लखे लोग दवा के  लए भी नह  िमलगे। अरे -रे ! अपनी इस सरकार के इतने  वशाल 
श ा  वभाग  के  गोरे   चेहरे   पर  इन काले मुँहवाले  ा ण पं डत  ने यह  कतना बड़ा काला दाग लगाया है? अरे , यह 
कड़वे  करे ल े हमार   सरकार  ने  इतने घी म तल कर, श कर म घोल कर पकाए,  फर भी उ ने अपने जाित,  वभाव 
छोड़ा नह और अंत म वे कड़वे करे ले क तरह कड़वे ह रहे। 

ध डीराव  :  तात,  आपका  कहना  सह   है।  ले कन  ये  कुलकण   अनपढ़  शू   क   भूिम  (वतन)  को  कस 
कार का फाँसा डाल कर हड़पते ह गे? 

जोतीराव :  जन शू  को पढ़ना  लखना  बलकुल ह  नह  आता, ऐसे अनपढ़ शू  को ये कुलकण  खोजते 


रहते  ह  और  फर  वयं  उनके  सा कार  हो  कर  वे  उनसे  जब  िगरवी  खाता  लखवा लेत े ह, उस समय वे अपनी जाित 
के  अजनवीस  से  मेल-िमलाप  करके  उनम  एक  तरह  क   शत  लखवा  लेत े है  जो  उन  शू   कसान   के  खलाफ  ह  
और  इस  कुलकण   सा कार  के  फायदे  क   ह ।  फर  जो शत  लखी जाती ह, उनको न पढ़ने  ए गलती-सलती बात 
पढ़  कर  सुनाई  जाती  ह।  फर  उस  कागज  पर  उनके  हाथ  के  अगूंठे  के  नशान  लगा  कर  अपना  वह   खाता  पूरा  कर 
लेत े ह।  फर  कुछ  दन  के बाद जालसाजी से उन शू  क  जमीन-जायजाद  लखी गई शत  के अनुसार हड़पते ह गे 
क नह ? 

ध डीराव  :  तात,  आपका  कहना  बलकुल  सह   है।  ये  लोग  जाित  से  ह   कलम-कसाई  ह।  ले कन  ये लोग 
अनपढ़ शू म कस कार के झगड़े पैदा करते ह गे? 

जोतीराव  :  खेती-बाड़ी,  जमीन-जायदाद  आ द  के  संबंध  म,  सन- ोहार,  पोला  आ द  म  और  होली  के 
दन  होली  के  बाँस  को  पहले  पूर   आ द  कौन  बाँधेगा,  इस  संबंध  म  शू   के  आपस  म  जो  झगड़े-फसाद  होते  ह, 
इनम  ा ण  कुलक णय   का  हाथ  नह   होता  ह,  वे  लोग  इन  झगड़े-फसाद   को  करवाने म  ज द े ार नह  होते, इस 
तरह के कुछ उदाहरण तुम वा तव म दखा पाओगे? 

ध डीराव  :  तात,  आपक   बात  से  म  इनकार  नह   कर  सकता,  ले कन  शू   के  आपस  म  इस  तरह  के 
झगड़े-फसाद करवाने म इन ा ण कुलकण आ द कलम-कसाइय को ा िमलता होगा? 

जोतीराव  :  अरे ,  जब  कई  घरं दाज  अनपढ़  शू   के  घराने  मन-ह -मन  ेष  क   अि   म  जल  कर आपस म 
एक  दूसरे  से लड़ते ह गे, तब अंदर ह  अंदर से इन कलम-कसाइय  स हत अ   ा ण  कमचा रय  के घर इस आग 
म  तपते-तपते  जल  कर  ा  न   नह   ए  ह गे?  अरे ,  इन  कलम-कसाइय   के  नारदशाह   क   वजह  से  ानीय 
(मु क )  फौजदार   और  दवाणी  वभाग  (खाता)  का  खच  बेहद  बढ़  गया  है  और  वहाँ  के  अ धकांश  कमचार , 
मामलेदार  से  ले  कर  ामसेवक  तक, सभी अपने 'त वतुवरे यम् भग  देव य धीमा ह  धयो यो न:  चोदयात' इस 
असली  गायं ी  मं   से  बेईमानी  करते  ह।  इसके संबंध म 'िचर  िमर  देव, िचर  िमर  देव' इस यवनी ( वदेशी) गाय ी 
का  उपदेश  उन  प व   पुरो हत   के  अपनाने  क   वजह  से  ा ण  वक ल   क   दलाली  काफ   बढ़  गयी  है।  फर  यह 
बताओ  क  क  वे  बड़ी-बड़ी  कोट-कचह रय   म  बैठ  कर  जोर-जोर  से  हँसी  के  फ वारे   छोड़ते  ए  घूमते  है  क नह ? 
इसके  अलावा  मुं सफ  नवाब  के  सरं जाम  कतने  बड़े  ह,  इसका  हसाब दो। इतना बंदोब त होने के बावजूद भी गर ब 
लोग   को  ाय  स ता  और  आसानी  से  िमलता  भी  या  नह ?  इसी वजह से गाँव-खेड़  के सभी लोग  को िमला कर 
एक  कहावत  स   ई  है।  वह  कहावत  यह  है  क  'सरकार   वभाग  से अपना काम करवाना हो तो काम करनेवाले 
ा ण   कमचा रय   के हाथ म अमुक-तमुक  दए बगैर वे हम जैस े गर ब  के काम हाथ ह  नह  लगाते। उनक  झोली 
म डालने के लए घर से कुछ न कुछ साथ म ले लो, तब कह काम के लए बाहर नकलो।' 
ध डीराव  :  तात,  य द  ऐसा  ह  होता हो, तब तो गाँव-खेड़  के तमाम शू  लोग  को यूरोिपयन कले टर  से 
अकेले म िमल कर उनको अपनी शकायत नह बतानी चा हए? 

जोतीराव  :  अरे ,  जनको  बेर  क   गांड़  कधर होती है, यह मालूम नह , ऐसे डरपोक  खलौन  को ऐसे महान 


कमचा रय   के  सामने  खड़े  होने  क   ह त  कैसे  होगी? और ये लोग अपनी  शकायत सह  ढं ग से उनके सामने  ा 
बता  पाएँगे?  ऐसी हालत म  कसी लँगोट बहादुर ने बड़ी  ह त से,  कसी बुटलेर क  मदद से, यूरोिपयन कले टर से 
अकेले  म  िमल  कर  और  उनके  सामने  खड़े  हो  कर  यह  कहे  क  ' ा ण  कमचा रय   के  सामने  हमार   कोई  सुनवाई 
नह   होती',  तब  इतने  चार  श द  कहने  क   इन  कलम-कसाइय  को भनक भी लग गई तो समझ लो, हो गया इसका 
काम  तमाम।  फर  उस  अभागे  आदमी  के  नसीब ह  फूट गए, समझ लेना चा हए,  क वे लोग कले टर, कचहर  
के  अपनी  जाित  के  ा ण  कमचार   (बाबू) से ले कर रे हे  ू के या जज के  ा ण कमचार  तक सभी के सभी अंदर 
ह  अंदर उस यवनी गाय ी क  वरद  घुमा देत े ह,  फर आधे कलम-कसाई तुरंत हर तरह के द तावेज  के साथ पुरावे 
ले  कर  वाद   के  (सा ीदार)  गवाहदार  बन  जाते  ह।  ये  लोग  उनके  झगड़े  म  इतनी  उलझन  पैदा  कर  देत े ह  क उसम 
स   ा  है,  यह  पहचान  पाना  भी  मुि कल  हो  जाता  है।  इस  स -अस   को  खोज  नकालने  के  लए  बड़े-बड़े 
व ान  यूरोिपयन  कले टर  और  जज  लोग  अपनी  सार   अ ल  खच  कर  देत े ह,  फर  भी  उनको  छपे  ए  रह य  का 
कुछ  भी  पता  नह   चलता,  और  न  ह   कुछ  हाथ  लगता  है;  बि क  वे  उस  शकायत  करनेवाले  लँगोटीधार   को  यह 
कहने  म  ल ा  का  अनुभव  नह   करते  क  'तू  ह   बड़ा  शरारती  है'।  और  अंत  म  उसके  हाथ  म  ना रयल  क  खाली 
टोकर  दे कर उसको फजीहत होने के  लए घर पर भेज देत े ह गे  क नह ? अंत म  ा ण कमचा रय  क  इसी  कार 
क   वृि   क   वजह  से  कई  गर ब  कसान  शू   के  मन  म  यह  बात  आती  होगी  क  यहाँ  हमारे   कसी  शकायत  पर 
कोई सुनवाई नह  है। इनम से कई लोग  ने डाकू और लुटरे  का जीवन अपनाया होगा और अपनी ह  जान को तबाह 
कया  होगा  क  नह ?  इनम  से  कइय   के  दलो  दमाग  म  असंतोष  क   भावना  भड़क  उठ   होगी  और  फर  वे 
पागलपन  के  शकार  बन  गए  ह गे  क नह ? और इनम से कइय  ने अपनी दाढ़ी-मूँछे बढ़ाई ह गी और अधपगले हो 
कर रा ते म जो भी कोई िमल जाए उसको अपनी शकायत सुनाते कहते फरते ह गे क नह ? 

प र छे द : तेरह 

[तहसीलदार, कले टर, रे हे ू, जज और इंजी नय रग वभाग के ा ण कमचार आ द के संबंध म] 

ध डीराव  :  तात,  इसका  मतलब  यह  आ  क  ा ण  लोग  मामलेदार  आ द  होने  क   वजह  से  अनपढ़, 
अ ानी शू को नुकसान प ँ चाते ह? 

जोतीराव  :  आज तक जो भी  ा ण मामलेदार  ए ह, उनम से कई मामलेदार अपने बुरे करतूत  क  वजह 


से  सरकार  क  नजर म अपराधी  स   ए ह और सजा पाने के का बल  ए ह। वे  ा ण मामलेदार काम करते समय 
इतनी  दु ता  से  बताव  करते  थे  और  गर ब  लोग   पर  इतना  अमानवी  जु   ढाते  थे  क  उन  दा तान   का  एक  ंथ 
लखा  जा  सकता  है।  अरे ,  इस  पूना  जैस े शहर  म  ा ण  मामलेदार  कुलकण   से  लखवा  कर  लाई  ई  लायक  
दखाए  बगैर  बड़े-बड़े  सा कार   क   भी  जमानत  वीकार  नह   करते।  फर  लोग  लायक   का  माणप   देत े समय 
च कर  चलाते  ह गे  क  नह ?  उसी  कार  इस  शहर  क   यु न सपा लटी  कसी  मकान  मा लक  को  उसके  पुराने 
मकान  क   जगह  पर  नया  मकान  बनाने क  तब तक अनुमित नह  देती जब तक  ा ण मामलेदार  ारा उस नगर के 
कुलकण   का  अ भ ाय  समझ  नह   लया  जाता।  अरे ,  उस  कुलकण   से  पास  उस  नगर  का  न ा  होने  के  बावजूद 
नई  खर द   करनेवाल   के  नाम  िमला  करके  हर  साल  उसक   एक  नकल  मामलेदार के द तर म  लखवा कर रखने का 
कोई  रवाज  ह   नह   है  और  न  कोई  कारण  भी।  फर  उस  जगह  के  संबंध  म कुलकण  का अ भ ाय आव यक और 
सच  है,  यह  कैसे  मानना  चा हए?  इन  तमाम  बात   से  इस  तरह  क   शंका  पैदा  होती  है  क  ा ण  मामलेदार   ने 
अपनी  जाित  के  कलम-कसाइय   का  हत  साधने  के  लए  इस  यव ा  को  बरकरार  रखा  होगा।  इससे  तुम ह  सोच 
करके  देखो  क  जहाँ  यूरोिपयन  लोग   क   बि तय   के  कर ब  पूना  जैस े शहर  म  ा ण  मामलेदार  इस  कार  क  
बेपरवाह   से  अपनी  जाित  के  कलम-कसाइय   क   रोटी  पकाते  ह,  तब  गाँव-खेड़   म  उनका  जबद त  जु   रहता 
होगा?  य द  इस  बात को हम लोग सच न माने तब ये जो अ धकांश देहात  के अ ानी, अनपढ़ शू  के समूह अपने 
बगल  म  अपने  कपड़े-ल  े दबा  कर  ा ण  कमचा रय   के  नाम  से  िच लाते  ए  घूमते  दखाई  देत े ह,  ा यह सब 
झूठ  है?  इ   लोग   म  से  कुछ  लोग  कहते  ह  क  ' ा ण  कुलकण   क   वजह से ह   ा ण मामलेदार  ने मेरा अज 
समय  पर  वीकार  नह   कया।  इसी लए  ितवाद   ने मेरे प  के सभी गवाह बदल  दए और मेर  ह  जमानत करवाई 
गई।'  कुछ  लोग  कहते  ह  क  ' ा ण  मामलेदार  ने  मेर   अज   ले  ली  और  कुछ  समय  के  लए उसने मेर  अज  दूसरे  
दन  ले  कर  मेरे  चल  रहे  काम  से  मुझ े उजाड़  दया।  और इस तरह उसने मुझ े भखार  बना  दया।' कोई कहता है  क 
' ा ण  मामलेदार  ने,  म जैसा बोल रहा था, उस  कार से  लखा ह  नह  और बाद म उसी जबानी से मेरे सारे  झगड़े 
को  इस  तरह  खाना  खराब  कर  दया  क  अब  म  पागल  होने  क   ित  म  प ँ च  गया  ँ ।'  कोई  कहता  है  क  'मेरे 
ितवाद   ने  ा ण  मामलेदार  क   सलाह  पर  मेरे  अ छ   तरह  चल  रहे काम को बंद करवा  दया और उसके मेरे खेत 
म  अपना  हल  जोतने  का  काम  शु   करते  ह   म  केवल  उसके  हाथ  म  अपनी  अज   दे  द   और  तुरंत  चार-पाँच कदम 
पीछे  हट  गया।  म  उसके  सामने  अपने  दोन  हाथ जोड़ कर बड़े ह  द न सुखी भाव म काँपते  ए खड़ा रहा।  फर कुछ 
ह   देर  म  उस  दु   ने  मेर   ओर  ऊपर-नीचे  देख  कर  झट  से  उस  अज   को मेर  ओर फक  दया यह कारण  दखा कर 
क  मने  कोट  का  अपमान  कया  है,  उसने  मुझ े ह   दं डत  कया।  ले कन  उस  दं ड  रा श  को  देन े क   मेर   मता  नह  
होने  क   वजह  से  मुझ े कुछ  दन  के  लए  जेल  म  बंद  रहना  पड़ा।  इधर  ितवाद   ने  बोने  के  लए तैयार  कए  ए मेरे 
खेत  म  अपना अनाज बो  दया और उस खेत को अपने अ धकार म ले  लया,  जसक  वजह से मने बाद म कले टर 
साहब  को  दो  तीन  अ जयाँ  द   और  उनको  हर  बात  से  सूिचत  कया,  ले कन  सभी  अ जयाँ वहाँ के  ा ण  लक ने 
कहाँ  दबा  करके  रख  द   क  कुछ  पता  ह   नह  चल रहा है। अब इसका  ा  कया जा सकता है?' कोई कहता है  क 
' ा ण  लक  ने  मेर   अज   कले टर  को  पढ़  कर  दखाते  समय  वहाँ  क   मु य  बात   को  हटा  करके,  ा ण 
मामलेदार  ारा  द   गई  अज   नकाल  कर  वहाँ  जस  का  तस  रखवा  दया।'  कोई  कहता  है  क  'मेर   अज  के आधार 
पर  कले टर  ने  मौ खक  प  म  जो  बात  लखने  के  लए  उस  ा ण  लक  को  कहा  था,  उसने  कले टर  के  बताए 
आदेश  के  व   आडर  लखा।  ले कन  उस  आडर  को  कले टर  के  सामने  पढ़ते  समय  उसने  कले टर  के  बताए 
अनुसार  ह   बराबर  पढ़  कर  सुना  दया और  फर उस  नकालप  पर उसके ह ता र ले कर, वह  नकालप  जब मुझ े
मामलेदार  के  ारा  ा त  आ,  तब  उस  प   को  देख कर म अपने माथे को पीटता ह  रह गया और मने मन-ह -मन 
म  कहा  क  हे  ा ण  कमचार ,तुम  लोग  अपना  ल   पूरा  कए  बगैर  चुप  नह   रह  सकते।'  कोई  कहता  है  क 'जब 
मेर   कले टर  साहब  के  पास  कुछ  भी  सुनवाई  नह   ई,  तब  मने  रे हे  ू साहब को दो-तीन अ जयाँ भेज द । ले कन 
मेर   वे  सभी  अ जयाँ  वहाँ  के  ा ण  लक  लोग   ने  को शश करके  फर उस साहब  क ओर से पुन: कले टर के ह  
अ भ ाय  के  लए  लौटा  द ।  बाद  म  कले टर  के  ा ण कमचा रय  ने मेर  सभी कागजात घुमा- फरा कर कले टर 
साहब  को  पढ़  कर  सुना  दए  और  यह  कह कर  क म बड़ा  शकायतखोर आदमी  ँ , उ ने मेर  अज  के िपछले प  े
पर  उस  कले टर  से  अ भ ाय  लखवा  कर  रे हे  ू साहब  को  गलत  जानकार   द ।  अब  तुम  ह   बताओ,  ऐसे 
करनेवाल   के  साथ  ा  करना  चा हए?'  कोई  कहता है  क 'मेरा केस शु  होते ह , अटनी  ारा बीच म ह  मुँह मारने 
क   वजह  से  जज  साहब  कहने  लगे,  'चुप  रहो  बीच  म  मत  बोलो'।  बाद  म  उ ने  वयं  ह   मेरे  सभी  कागजात  पढ़ 
लए।  ले कन  कागजात  को वह बेचारे   ा करगे?  क पहले  क कले टर कचहर  के सभी  ा ण कमचा रय  ने 
कुलक णय   क   सूचना  के  अनुसार  मेरे  पूरे  केस  का  व प  ह   बदल  दया  था।'  कोई  कहता  है  क  'आज  तक सभी 
ा ण  कमचा रय   के  देवपूजा  के  कमरे   के  मं ो ार   के  अनुसार  उनके  घर  भरते-भरते  हमारे   घर  उजड़  गए,  हम 
बबाद  हो  गए।  हमारे  खेत नीलाम  कए गए। हमार  जमीन-जायजाद चली गई। हमारा अनाज गया, हमारा अनाज से 
भरा  बारदाना  लूट  गया।  हमारे   घर  क   हर  चीज  लूट  ली  गई  और  हमारे   बीवी-ब   के  बदन  पर  सोने  का  फुटा  भी 
नह   बचा।  अंत  म  हम  सब  लोग  भूख  और  यास  से  मरने  लगे।  तब  मेरे  छोटे  भाइय   ने  िम ी-गाड़े  का  काम  खोजा 
और  हम  सभी  सड़क  के  काम  पर  जा  कर  हा जर   देत े थे। बाद म  कसी घ टया मराठ  अखबार म अं ज े  सरकार या 
उसके  धम  क   य द  आलोचना,  नु ाचीनी  क   गई  हो,  तो  उसका  मतलब  जाते-जाते  हम  अ ानी,  अनपढ़  शू  
मजदूर   को  समझाया  करते  और  बाद  म  अपने  घर  लौट  जाते  थे।  और  सरकार  भी  ऐसे  घ टया  लोग   क  मेहनत 
करनेवाले  मजदूर   से  भी  ादा,  डबल  तन याह  देती  है,  फर  भी  मजदूर  ने  तन याह  (मजदूर )  लेन े के  बाद  उस 
ा ण  कमचार   के  हाथ  पर  कुछ  पया-पैसा  रख  दया,  तब  तो  कोई बात नह , य द उसने उसके हाथ पर कुछ भी 
पया  पैसा न छोड़ा तो उसक  खैर नह । वह  ा ण कमचार  दूसरे   दन से ह  अपने से बड़े साहब को उस मजदूर के 
बारे   म  गलत-सलत  बात  बता  करके  उस  मजदूर  के  नाँगे  लगाए  जाते  ह।  इतना  ह   नह ,  कोई  ा ण कमचार  उस 
मजदूर  से  कहता  है  क,  तू  सरकार   काम  करने  के  बाद  प ा लय   के  लए  बड़े  और  पलस  के  पान  या  पान  क  
डा लयाँ  शाम  को  घर  लौटते  समय  ला  कर  मेरे घर पर डाल देना । कोई  ा ण कमचार  कहता है  क आम डा लयाँ 
शाम  को  मेरे  घर  डाल देना। कोई कहता है  क मुझ े प  े ला कर देना। कोई कहता है  क आज रात को म गाँव म उस 
लेन−देन  करनेवाली  वधवा  के  घर  म  ना ता-पानी करने के  लए जानेवाला  ँ । इस लए, तू खाना खा कर मेरे  नवास 
पर  आ  कर  मेरे  प रवार  के  साथ  सार   रात  रह  कर,  वह   सो  जाना;  ले कन  दूसरे   दन  काम  पर  जाने  के  लए भूलना 
नह ;  क  कल  शाम  को  ह   बड़े  इं जी नयर  साहब  यहाँ  अपना  काम  देखने  के  लए  आनेवाले  ह,  इस  कार  का 
इि ला  राव  साहब  ने  लख  कर  भेजा  है।'  इस  तरह  से  ा ण   ारा  अंदर-ह -अंदर  जो परे श नयाँ भोगनी पड़ती ह, 
उससे बारे म मुझे मेरे भाई मेरे घर आ कर बताते रहते ह और आँख म आँसू बहाते रहते ह। 

वे  कहते  है  क  'तात,  हम  ा  कर!  ये  सभी  ा ण  अठारह  जाित के गु  ह। ये लोग अपने-आपको सभी 
वण   के  गु   समझते  ह।  इस लए  ये  जैसा  भी बताव कर, हम शू  को उनको एक भी श द नह  कहना चा हए। शू  
को  उनक   नु ाचीनी  नह   करनी चा हए। यह अ धकार उनको नह  है, यह  उनके धमशा  का कहना है। धमशा  
कुछ  भी  कहे,  ले कन  हमारे   पास  इस  मज  का  कोई  इलाज  नह   है।  य द  म  अं ज
े ी  बोलना  सीख  गया  होता  तो  म 
ा ण   से  सभी  कारनाम,  करतूत,  ल फाजी  ठगी आ द सभी बात अं ज े  साहब के लोग  को बोल  दया होता और 
उनके ारा इन लोग को मजा चखाया होता।' 

इसके  अलावा  इं जी नयर  वभाग  के  सभी  ा ण  कमचा रय   क   लु ागीर  के बारे  म ठे केदार लोग इतना 
कुछ बताते है क उस पर एक वतं कताब लखी जा सकती है। इस लए इस बात को म यह समा त कर देता ँ । 

ता पय,  ऊपर  लखी  गई  तमाम  दलील   म  जो  भी  आपको  सच  लगे,  उसके  बारे   म  गंभीर  प  से  सोचना 
चा हए  और  उसका  पूर   तरह  से  बंदोब त  भी  करना  चा हए  तथा  उन  तमाम  कुर ितय   को  जड़-मूल  से,  सामा जक 
जीवन से समा त कर देना चा हए, यह हमार सरकार का धम है। 

प र छे द : चौदह 

[यूरोिपयन  कमचा रय   का  नि य  बनना,  सामं त   ( ा ण  खोत)  का  वच व,  पशन  ले  कर  सरकार  
नौकर   से  मु   ए  यूरोिपयन  कमचा रय   ारा  सरकार  के  दरबार  म  गाँव-गाँव  क   हक कत  बताए  जाने  क  
आव कता, धम और जाित के अहं कार आ द के संबंध म] 

ध डीराव  :  तात,  य द  इस  कार का अथ सभी सरकार   वभाग  के  ा ण कमचा रय  का वच व होने क  


वजह  से  हो  रहा  हो,  तब  यूरोिपयन  कले टर  वहाँ  बैठ  कर  ा  कर  रहे  ह?  वे  ा ण   क   लु ागीर   के  संबंध  म 
सरकार को रपोट नह कर रहे ह? 

जोतीराव : अरे , इन  ा ण कमचा रय  के इस रवैय े के कारण उनक  टेबल पर इतना काम पड़ा  आ रहता 


है  क  वे  लोग  उसम  कुछ  ज र   काम  कर  लेत े ह?  केवल  मराठ   कागजात   पर  द तखत करते-करते उनक  नाक म 
दम  आ  जाता  है।  इस लए  उन  बेचार   को  इन  तमाम  अनथ   क   खोज-बीन  करके  उस  संबंध  म  सरकार  को  रपोट 
करने  के  लए  समय  भी  कहाँ  ह?  इतना  सब  होने  पर  भी,  म  यह  सुन  रहा  ँ   क  क कण  के  अ धकांश  दयालु 
यूरोिपयन  कले टर   ने  अ ानी  शू   पर  ा ण  जमीदार   (खोत)  ​[28]  क   ओर  से  जो  जु   ढाए  जा  रहे  ह,  उ  
समा त  करने  के  लए  अ ानी  शू   के  प   म  वयं  ा ण  जमीदार   के  (खोत)  ितवाद   हो  कर  वे  सरकार म उस 
संबंध  म  यास  कर  रहे  ह।  ले कन  इसी  समय  सभी  ा ण जमीदार  ने (खोत) अमे रक   ले ह (गुलाम) हो र का 
अनुकरण  करते  ए  अपने  मतलबी  धम  क   सहायता  से  अ ानी,  अनपढ़  शू   म  सरकार  के  वरोध म गलत-सलत 
बात  च लत  क ।  इसक   वजह  से  अ धकांश  अ ानी  शू   ने  यूरोिपयन  कले टर   के  वरोध  म  संघष  करने  क  
तैयार   क ।  उ ने  सरकार  को  कहा  क  हम  लोग   पर  ा ण  जमीदार   का  (खोत) जो अ धकार है, उसको वैस े ह  
रहने  दया  जाए।  यहाँ  के  ा ण  जमीदार   ने  अ ानी,  अनपढ़  शू   को  शैतान   क   तरह  अपनी  मु ी  म  रखा  और 
अपनी  इस  भोली-भाली  सरकार  को  अ ानी,  अनपढ़  शू   के  वरोध  म  मान सक  प  म  खड़ा  कर  दया।  ा ण 
खोत   क   इस  तरह  क   चालबाजी  क   वजह  से  उस  पर हतकार   यूरोिपयन  कले टर  पर  कस तरह क   ित गुजर 
रह है, वह दे खए। 

ध डीराव  :  इस  तरह  अ ानी  शू   ा ण   के  बहकावे  म  आ  कर अपना चार  ओर से नुकसान कर लेत े ह, 


यह  अ छ   बात  नह   है।  इसी  तरह  से  आगे  कसी  समय  उ ने  ा ण   के  बहकावे  म आ कर सरकार के  वरोध म 
अपना  हाथ  खड़ा  कया  तब  उनक   बड़ी  हा न  होगी,  क  शू   को  ा ण-पं डत-पुरो हत   क   दासता  से  मु  
होने का इससे अ छा मौका पुन:  ा त होना ब त ह  मुि कल है। इस लए शू  के हाथ से इस तरह का अनथ न हो, 
इस लए  आपको  कुछ  उपाय  सूझ  रहे  ह ,  तो  एक  बार  जा  कर अपनी दयालु सरकार को समझा कर दे खए,  क 
अ ानी  अनपढ़ शू  को बताने से कोई फायदा नह । य द इसके उपरांत भी शू  समाज के लोग मूख के मूख ह  बने 
रहना चाहते ह तो उसके लए आप भी ा करगे? 

जोतीराव  :  इसके  लए  उपाय  के  तौर  पर  मेरा  यह  भी  कहना  नह   है  क  अपनी  दयालु  सरकार  को  सबसे 
पहले  ा ण  समाज  क   (जन)  सं या  के  अनुपात  म  सभी  वभाग   म  ा ण  कमचा रय   क   नयुि   नह   करनी 
चा हए, ले कन मेरा कहना यह है  क य द उसी अनुपात म शेष सभी जाितय  के कमचा रय  न िमलते ह  तो सरकार 
को  चा हए  क  वह  उनके  ान  पर  केवल  यूरोिपयन  कमचा रय   क   नयुि याँ करे । मेरे कहने का मतलब यह है  क 
फर  सभी  ा ण  कमचा रय   को  सरकार  और  अ ानी  शू   का  नुकसान  करने  का  मौका  भी  नह   िमलेगा।  दूसर  
बात  यह  है  क  सरकार  को  केवल  उन  यूरोिपयन  कले टर   को,  ज   अ छ   तरह  से महारा  भाषा (मराठ  भाषा) 
बोलना  आता  है,  उन  सभी  को  उ   भर  के  लए  पशन  दे  कर  वह   तमाम  गाँव-खेड़   म  रहनेवाले  अ ानी,  अनपढ़ 
डरपोक  और  ा ण-पं डत-पुरो हत   के  हाथ  के  खल ने  बने  ए  शू   म  िमल-जुल  कर  रहने  के  लए  े रत  करना 
चा हए  और  फर  उ   सभी  ा ण  कुलकण   आ द  कमचा रय   क   चालाक   पर  कड़ी  नजर  रखनी  चा हए।  पशन 
ा त  आ द  अ धका रय   के  ारा  हमेशा  वहाँ  क   छोटी-मोटी  गित व धय   क   रपोट  मँगवानी  चा हए।  इसका 
प रणाम  यह  होगा  क  वहाँ  के  सरकार   श ा  वभाग के  ा ण कमचा रय  क  लुभावनी चालाक  का तो पदाफाश 
हो  ह   जाएगा,  साथ  ह   िपछले  कुछ  दन   म  सारे   श ा  वभाग  क   जो  भी  दुदशा  ई  है,  उसका  भी  पूर   तरह  से 
बंदोब त  हो  जाएगा।  इस  तरह  तमाम  अ ानी  शोिषत  शू   को  यथाथ  का  पता  चलते  ह   वे  लोग  इन  ा ण 
पुरो हत   के  कुतक   अ धकार   का  पूर   तरह  से  नषेध  करगे  और  ये  अ ानी  शू   लोग  अपनी  अं ज े ी  सरकार  के 
उपकार   को  कभी  भूलगे  नह ,  इस  बात  का  मुझ े पूरा  व ास  है।  क  हम  शू   के  गले  म  स दय   से  इन 
ा ण-पं डत-पुरो हत ारा बाँधी गई गुलामी क जंजीरे ज द ह कसी के ारा खुल जाना संभव नह है। 

ध डीराव  :  तात,  फर  आप  अपने  बचपन  म  अखाड़े  खेलने  और  नशाने  पर  गोली  दागने  क   कसरत 
कस लए कर रहे थे? 

जोतीराव : अपनी दयालु अं ज


े सरकार को मार भगाने के लए। 

ध डीराव : तात, ले कन आपने इस तरह क दु मसलहत कहाँ से सीखी? 

जोतीराव  :  दो-चार  पढ़े- लखे,  सुधरे   ए  ा ण  व ान   से  ले  कर  आज  के  सुधारणावाद   (ले कन घर म 
चू े  के  पास)  ा ण   तक  सभी  लोग इसका इसका कारण यह बताते ह  क 'अपने म ह  अ धकांश जाित के लोग 
अना द  स   धम  के  बारे   म  अ ानी  ह।  इस लए  अपने  सभी  लोग   क   एकता  समा त  हो  गई  है। इसी क  वजह से 
अपने  ह  कई  कार के जाित भेद पैदा हो गए। अपने म ह  इस तरह का  बखराव आने क  वजह से अपना राजकाज 
अं ज
े   के  हाथ  म  चला  गया  और  वे लोग अब हमारे  अ ानी भोले-भाले लोग  का अपने देश के  ित जो अ भमान 
है,  वह  समा त  हो,  इस लए  उनको  अपने  मतलबी  धम  का  आधार  दखा  कर  अपने  गु भाई  (धमबंध)ु   बना  रहे  ह। 
इस लए  हम  सभी  जाित  के  लोग   म  अपनी  एकता कायम होनी चा हए। इसके बगैर इन अं ज े  लोग  को अपने देश 
से  नकाल  बाहर  करने  क   शि   हम  लोग   म  आएगी  नह   और  इस  तरह  कए  बगैर हम लोग  का अमे रक ,  ांस 
और  र शयन  लोग   क   बराबर   म आना कदािप संभव नह  है।' यह उ ने मुझ े टॉ स पे  ​[29] आ द  ंथकार  क  
कताब   के  कई  वा   उ रण  व प दे कर  स  करके  दखाया है। इसी क  वजह से इस तरह से मूखतापूण आचार 
कुछ  दन   तक  अपने  बचपन  म  करता  रहा  था।  ले कन  बाद  म  उ   ंथ   के  सहारे   गंभीर  प  से  सोचने  लगा,  तब 
कह   इन  पढ़े- लखे  ा ण   से  मतलबी  मलहमप ी  का सह  अथ मेरे  यान म आया। वह  सह  अथ यह है  क 'हम 
सभी  शू   लोग  अं ज े   के  गु भाई  (धमबंध)ु   होते  ह   उनके  पूवज   के  तमाम  ंथ   का (धमशा ) का  नषेध करगे 
और  उससे  उनके  जाित  अहं कार  को  ठे स  प ँ चेगी।  इस  तरह  का  उसका  तुरंत  प रणाम  यह  होगा  क  उनके  हरामी 
लोग   को  हम  शू   के  म  क   रो टयाँ  खाने  को  नह   िमलगी।  इस  कार  ा के बाप को भी यह कहने  क  ह त 
नह   होगी  क  शू   से  ा ण  ऊ ँ चे  वण  के  ह।  अरे ,  जन  लोग   के  पूवज   को  ह  देशा भमान श द  बलकुल मालूम 
नह   था,  उन  लोग   ने  उस  श द  का  इस तरह से अथ  कया, इसके  लए हमको ब त आ य करने क  आवशयकता 
नह   है।  अं ज
े   लोग   ने  वा तव  म  ब ल  राजा  के  आने  के  पहले  देशा भमान  श द  का  अथ  ीक  लोग   से  पढ़ा था। 
ले कन  बाद  म  जब  वे  उस  ब ल  राजा  के  अनुयायी  ए,  तब  से  उनम  यह  स ण ु   इतना  बढ़ा  क उनक  बराबर  अ  
कसी  भी  धम  का  वा भमानी  यि   नह   कर  सकता  था।  य द  उनको  देखना  ह   है  तो  अमे रका  के  ब ल  राजा  के 
मतानुयायी  जॉज वा शगटन क  तुलना (यो यता) का आदमी देखना चा हए। य द ऐसे महापु ष क  यो यता आदमी 
देखना  संभव  न  हो  तो  तब  उ   ांस  के  ब ल  राजा  के  मतानुयायी  लफेटे  क   यो यता  का  आदमी  देखना  चा हए। 
अरे ,  य द  इन  पढ़े- लखे  व ान   के  पूवज   को  वदेशा भमान  वा तव  म  मालूम  होता,  तो अपनी  कताब  म, अपने 
धमशा   म  अपने  ह   देशबंधु   (शू )  को  पशु  से  भी  नीच  समझने  के  बारे   म  लेख  नह   लखे  होते।  वे 
ा ण-पं डत-पुरो हत  वग  के  लोग  मैला  खानेवाले  पशु  का  गोमू   पी  कर  प व   होते  ह,  ले कन  शू   के  हाथ का 
साफ-सुथरा  झरने  का  पानी  पीने  से  अपने-आपको  अप व   समझते  ह।  दे खए,  इन  पढ़े- लखे  व ान   के  पूवज  
ारा  यन  लोग   के  प व   देशा भमान  के  व   उप त  कया  आ  अप व   देशा भमान! हमको य द  कसी 
क   बदौलत  समझा  होगा,  तो  वह  अं ज े   क  बदौलत। और ऐसे परोपकार  लोग  को मतलब, हम सबी को  ा ण  
क   गुलामी  से  मु   करनेवाले  लोग   को,  अपने  देश  से  भगा  देन े क   उन  ा ण   क   कसरत  म  ऐसा  कौन  है  जो 
शािमल  होना  चाहेगा?  अरे ,  ऐसा  कौन  मूख  आदमी  है  जो  अपने  र क   के  व   ह   अपना हाथ उठाने क   ह त 
करे गा?  ले कन  म  तुमको  इतना  प   प  से  बता  देना  चाहता  ँ   क  अं ज े   लोग  आज  ह,  कल  नह  रहगे। वे लोग 
हमेशा-हमेशा  के  लए  हम  लोग   का  साथ  दगे,  ऐसी  बात  नह   है।  इस लए जब तक उन अं ज े  लोग  क  स ा इस 
देश  म  है,  तब  तक  हम  सभी  शू   लोग   को  जतनी  ज द   हो  सक   उतनी  ज द   ा ण-पं डत-पुरो हत   क  
पंरपरागत  (धा मक-सामा जक-सां क ृ ितक)  गुलामी  से  मु   होना  चा हए,  और  इसी  म  हम  सभी  क   बु मानी  है। 
भगवान ने एक बार शू  पर दया करके अं ज े  बहादुर  के हाथ से  ा ण नाना साहेब पेशवा के  व ोह को चकनाचूर 
करवा  दया, यह अ छा  आ, वरना उन शादावल के  लग के इद-िगद   करनेवाले पढ़े- लखे  ा ण  ने आज तक 
कई  महार   को  ा णी  ढं ग  क   धोती  पहनने  क   वजह  से  या  क तन   म  सं क ृ त  ोक   का  पठन-पाठन  करने  क  
वजह से काला पानी दखा दया होता, इसम कोई संदेह नह । 

प र छे द : पं ह 

[सरकार   श ा  वभाग,  यु न सपा लटी, द णा  ाइज क मटी और  ा ण अखबार वाल  क  एकता 


तथा  शू −अछुत   के  ब   को  लखना−पढ़ना  नह   सीखना  चा हए,  इस लए  ा ण   ारा  रचाए  गए  ष ं  
आ द के संबंध म।] 

ध डीराव  :  सरकार   बु नयाद   श ा  वभाग  के  ा ण  कमचार   गुलाबी  बेईमानी  करते  ह,  इसका  ा 
मतलब है? 
जोतीराव  :  फलहाल  जस  कताब  क   वजह  से  ा ण   के  सभी  ंथ   म,  शा   म,  सा ह   म  जो 
बेईमानीपूण  बात  लखी  गई  ह,  उसका  रह य  खुल  जाएगा  और  उनके  पूवज   का  भंडाफोड़  होगा;  उनक   बेइ ती 
होगी,  इस  बात  से  वे  लोग  भय त  हो  गए  ह।  उ ने  अपनी  भोली−भाली  सरकार  से  कभी−कभी  अकेले  म  िमल 
कर  और  कभी−कभी  अखबार   के  ारा  तरह−तरह  क   गुलाबी,  रं गीन  मसलन  दे  कर  उनके  अ धकार  म  जतनी 
सरकार   पाठशालाएँ  ह,  उन  सभी  म  सरकार   बु नयाद   श ा  वभाग  से  उस  तरह  क   मह वपूण  कताब  को 
पा म  के  नकाल  बाहर  कया,  तब  हम  ा  कह?  पहले  के  जमाने  म  क   अ ानी  अ धका रय   ने  चार 
धम ,  पाखंडी  पुरो हत   के  आ ह  के  खाितर  उस  तरह का उपदेश देनव े ाले उपदेशक को सूली पर चढ़ा  दया था, 
इस लए  ा ण−पंडा−पुरो हत   क ,  ब ल  धमशा   क   पोल  खोलनेवाली  कताब  को  कूल   के  पा म  से 
बहक ृ त करा दया, तब हम भी आ य लगना चा हए? 

ध डीराव : तात, ले कन इसम सरकार का ा दोष है, इसके बारे म जरा समझाए। 

जोतीराव  :  इस  बात  को  हम  कैसे  माने  क  इसम  सरकार  का  कुछ  भी  दोष  नह   है?  सरकार  ने  जन 
तथाक थत  गितशील  ा ण   क   दलील  पर  उस  तरह  के  स   को  कहनेवाली  कताब को  कूल  के पा म से 
नकाल  बाहर  कया,  उस  कताब  का  वरोध  करनेवाले  लोग   ारा  तैयार  क   ई  कताब  सरकार   श ा  वभाग  के 
ारा  कूल   के  अ यास म   म  लगवा  कर,  फर  उ   लोग   को  ह   शू   के  कूल   म  श क  के  प  म  नयु  
करना,  ा  यह  उिचत है? चूँ क इसके बारे  म सोच− वचार करने के बाद यह  स  होता है  क कल तक उस  कताब 
को  जन  ितवा दय   ने  सरकार   श ा  वभाग  से  ब ह क ृ त  करवाई,  उ   लोग   को  ह   सभी  सरकार   कूल   म 
श क के  प म  नयु  करके उनको उस प व   कताब के  व  शू  के मुँह से उपदेश देन े का अवसर   दे रह  
है?  इस लए  हमार   भोली−भाली  सरकार  के  लए  उस  प व   सरकार   श ा  वभाग  के  उन  सभी  ितभािगय   को 
उनक   कताब   के  साथ  नकाल  बाहर  करना  संभव न हो तो हमार  सरकार को क ृ पया सभी  श ा  वभाग एक साथ 
बंद  कर  देना चा हए।  जससे ये लोग अपने-अपने घर  म जा कर आराम से बैठ जाएँगे और कम−से −कम यह होगा 
क  हम  शू   पर  जो  कर   का बोझ लदता जाता है, वह कम हो जाएगा।  क  श ा  वभाग के एक  मुख  ा ण 
कमचार   को  हर  साल  कम−से−कम  सात  हजार  पया  तन याह  देनी  पड़ती  है।  अब  सुलतानी  रह   नह ;  कतु 
असमानी  मेहर  ई  तब  बताइए  क  इतनी  रकम  तैयार  करने  के  लए  शू के  कतने  प रवर   को  एक  साल  तक 
दन-रात खेती म जुते रहना पड़ता होगा? कम-से-कम एक हजार शू प रवार इसम जुतते ह ह गे! 

दूसर   बात,  इस  मुआवजे  के  माण  म  इस  बृह पित ( ा ण) से शू  को सह  म कुछ लाभ भी होता है? 
अरे ,  हर  दन  चार  पैसा  कमानेवाले  शू   मजदूर  को लहलहाती धूप म सूरज के  नकलने के समय से ले कर सूरज के 
डू बने  तक  सड़क  पर  िम ी  को  टोक रयाँ  सर  पर ढोनी पड़ती ह। उस बेचारे  को कह  बाहर जाने के  लए एक पल क  
भी  फुरसत  नह   िमलती  और  दूसर   ओर  बना  काम  कए,  बगैर  शार रक  म  के  हर  दन  बीस  पए  िमलनेवाले 
ा ण  कमचा रय   को  कूल   मे  खुली  जगह  पर कुस  म बैठने का काम करना पड़ता है। वे लोग  यु न सपा लटी के 
मेहमान  बन  कर  हर  दन  सुबह  और  शाम  को  धूप,  गरमी  का  माहौल  समा त  हो  जाने  के  बाद  बाहर  घूमने  के  लए 
नकल  पड़ते  ह।  उनके  बाहर  घूमने  के  लए  नकलने  का  उ े य  उ   अपने  सभी  प रिचत   से  मेल-िमलाप  के  लए 
जाना  होता  है।  इस लए  वे  लोग  सज-धज  के,  बड़े  नखरे   म  घोड़े  क   गाड़ी  म  सवार  हो  कर शहर के रा त  पर लोग  
क   दहलीज−ख लहान  देखते  ए  अपनी  अकड़  दखाते  रहते  ह।  ले कन  उनको  यह  सब  अकड़  दखाने  के  लए 
फुरसत  कहाँ  से  िमल  जाती  है?  अरे ,  उ ने  शहर  के  लोग   को  अभी  तक  यह  नह   बताया  क  श ा से  ा− ा 
लाभ  होते  ह;  ले कन  घूमने  म  बड़ा  मजा आता है, बड़ा गौरव लगता है। ले कन  फर भी िमशन रय  का हर माह दस 
पए  माहवार  पानेवाला  उपदेशक  इन  ा ण−पं डत−पुरो हत   से  हजार  गुना  अ छा  है।  ये  लोग  उस  िमशनर  
उपदेशक  के  पाँव  क   धूल  क   भी  बराबर  करने यो य नह  ह;  क  जस शहर म वह ( ती) िमशनर  उपदेशक 
रहता  है,  उस  शहर  के  सभी  छोटे-बड़े  को  यह  मालूम  रहता  है  क  वह  एक  धम पदेशक  है। कतु  यह  ा ण  श क 
जस  मकान  म  रहता  है,  उस  मकान  के  नीचे  के  मकान  म  रहनेवाले  कराएदार  को भी मालूम नह  रहता है  क कौन 
ित ारखाँ  है।  अरे ,  ा ण  श क  अपने  ऊपरवाले  यूरोिपयन  कमचार   के  पास  हर  दन  इधर−उधर  क   चार  ग प 
लगा  कर,  मन  चाहे  तब  घंटा−दो−घंटा  कूल  म  ब  को पढ़ा कर, उनको साल म दो−चार  ल खत  रपोट कर देता 
है।  मतलब, उसका काम हो गया। और ऐसे लोग  को ह  चार पढ़े  लखे लोग ईनामदार नौकर और देशभ  कहते ह। 
अरे ,  इन  बकाऊ  ा ण  नौकर   ने  आज तक  श ा  वभाग के लाख   पए खा  लए ह। ले कन सच कहता  ँ , उनके 
हाथ  से  न  तो  कसी  अछूत  को  श ा  िमली  और  न  शू   को।  उ ने  उनम  से  कसी  एक  को  भी  आज  तक 
यु न सपा लटी  का  सद य  नह   बनाया।  इससे  अब  तुम  ह   सोचो  क  इस  श ा  वभाग  म  जतने  ा ण कमचार  
ह,  वे  सभी  वफादार  नौकर  अपने  देश  के  अ ानी  अछूत   के  ित  कतनी  हमदद   दखात  ह।  इतना  ह   नह ,  ये 
देशभ ,  यु न सपा लटी  म  मु य  अ धकार   होने  पर  भी,  िपछले  साल  के  पानी  के  अकाल  म  अछूत   को  पीने  के 
लए  सरकार   बावली  का  पानी  भरने  म  कोई  मदद  नह   क ।  इस लए  अछूत   का  यु न सपा लटी  म  सद य  होना 
कतना आव यक है, इसके म अब तु सोच सकते हो। 

ध डीराव  :  तात,  आपका  कहना  एकदम  सच।  इसम  कोई  दो  राय  नह   हो  सकती।  कतु  मने  सुना  है  क 
यु न सपा लटी  म  फलहाल  शू   म  से  कई  सद य  इतने  व ान  ह  क  वे  अपना मत देत े समय 'अरे  गो वदा'[30] 
कहलानेवाले  यं   क   तरह  अपनी  गरदन  हला  कर  उनक   हाँ  म  हाँ  िमला  देत े ह,  क  वहाँ  खुद  के  ह ता र 
करनेवाल   क   ह   पहले  कमी,  फर  वहाँ  शेष  सभी  इने−िगने  पू   कहे  जानेवाले  लोग  रहे।  फर  शू   सद य   क  
किमटी म कुरसी पर बैठ कर अपनी गरदन हला कर ह ता र करने यो य कुछ लोग ा अछूत म िमल जाएँगे? 

जोतीराव  :  ऐसे  शू   सद य   से  भी  कई  गुना  अ छ   तरह  लखने−बोलनेवाले  कई  अछूत  लोग  िमलगे। 
ले कन  ा ण   के  वाथ ,  नकली,  पाखंडी  धम ंथ ,  धमशा   क   वजह  से  सभी  अछूत   को  छूना  पाप  समझा 
गया।  इसक   वजह  से  वाभा वक  प  ने  उन  वचार   को  शू   सद य   क   तरह  सभी लोग  म िमल−जुल कर अमीर 
होने  क   सु वधा  कहाँ  उपल   हो  सकती  है!  उनको  आज भी गध  पर बोझ लाद कर अपना, अपने प रवार का पेट 
पालना पड़ रहा है। 

ध डीराव  :  तात,  सभी  जाितय   का अलग−अलग सं या  माण देखने से  यु न सपा लटी म  वशेष  प से 
कस जाित के सद य क सं या ादा दखाई देती है? 

जोतीराव : ा ण जाित क । 

ध डीराव  :  तात,  इसी लए  इस  यु न सपा लटी  म  बेग रय   और  भांिगय   को  छोड़  कर  ा ण कमचा रय  
क   ह   सं या  ादा  है।  इनम  से  कुछ  जल दाय  वभाग  म  काम  करनेवाले  ा ण कमचार  थे। वे भयंकर गरमी के 
दन   म  अपनी  जाित  के  ा ण   के  घर  के टं कय  म (हौद) मनचाहे पानी भरते थे और उस पानी का उपयोग वहाँ 
से  इद−िगद  के  सभी  पड़ सी  ा ण   के धोती−कपड़े बतन आ द धोने के  लए होता था और ढेर सारा पानी  यथ म 
ह   बहता  था।  ले कन  जहाँ−जहाँ  गर ब   क   बि तयाँ  ह  जन- जन  मोह ल म  गर ब  शू   क   बि तयाँ  ह,  उन  सभी 
मौह ल   क   टं कय   म  (हौद)  दोहपर  के  बाद  भी  पानी  क   बूँद  नह   िगरती  थी।  दोहपर  म  राह  चलते  राहगीर  को 
अपनी  यास  बुझाने  के  लए  पानी  वहाँ  िमलना  भी  दर कनार।  फर  वहाँ  के  लोग   को  कपड़ा−ल ता  धोने  के  लए, 
बाल−  ब   स हत  नहाने  के  लए  पानी  कहाँ  िमलेगा?  इसके  अलावा  ा ण   क   बि तय   म  नई  टां कयाँ  कतनी 
गई  ह!  उधर  जूनागंज पेठ ​[31] (मंडी) आ द मोह ल  के लोग  ने कई साल  से माँग कर रहे थे  क उनके मोह ले म 
पानी  क   टंक   बनवाई  जाए,  ले कन  यु न सपा लटी  ने  उनक   बात  पर,  उनके  िच लाने  पर  कोई  यान  नह   दया। 
यहाँ  ा ण सद य  क  सं या  ादा होने क  वजह से उन बेचारे  गर ब  क  कई वष  तक कुछ सुनवाई ह  नह   ई। 
ले कन  अंत  म,  मतलब,  िपछले  साल जब पानी का अकाल पड़ा, तब मीठगंज के महार−मातंग  ने काले हौद को छू 
कर  वहाँ  से  पानी  भरना  शु   कर  दया।  तब  कह  उस  यु न सपा लटी को होश आया और उसने इन लोग  क  सु ध 
ली।  इस  यु न सपा लटी  ने  इतना  बेलगामी  खच  उस  काम  पर  कया  क  वह  उस  यु न सपा लटी  के  मु खया  क  
समझबूझ  को  और  उसके  हालात  को  शोभा  ह   नह   देता।  छो ड़ए  इन  बात   को,  ले कन  यु न सपा लटी  म  इतनी 
बेबंदशाह होने पर भी उसके बारे म मराठ अखबार के प कार सरकार को आगाह नह कर रहे ह?। 
जोतीराव  :  अरे ,  सभी  मराठ   अखबार   के  संपादक  ा ण  होने क  वजह से उनको अपनी जाित के लोग  
के  व   लखने  के  लए  हाथ  नह   चल  रहा  है।  जब  यूरोिपयन  मु खया  था,  उस  समय  वह  इन  ा ण   क चतुराई 
चलने  नह   देता  था! उस समय सभी  ा ण संग ठत हो कर उन पर यह आरोप लगाने लगते थे  क उनके ऐसा करने 
से  सभी  जा  का  इस  तरह  से  नुकसान  आ  है।  इस  कार  ये  ा ण  लोग  उनके  व   इस  तरह  गलत−सलत 
अफवाएँ  फैला  कर उनको इतना  त कर देत े थे  क उनको अपने मु खया−पद से इ तीफा देन े के  लए मजबूर होना 
पड़ता  था  और  वे  आगे  इस  यु न सपा लटी  का  नाम  लेना  भी  छोड़  देत े थे।  ले कन  अपनी  दयालु  सरकार  भी  उन 
सभी  ा ण  अखबार   क   बात  सुन  करके,  उन  खबर   को  सच  मान  करके  कह  देती  थी  क  उस  लेख  म  शू   और 
अछूत   क   बात  य   हो  गई  ह।  ले कन  ऐसा  समझने  म  हमार   भोली−भाली  सरकार  क   ब त  बड़ी  गलती  है। 
उसको  इतना  भी मालूम नह   क सभी  ा ण अखबारवाल  और शू  तथा अछूत  क  जनम−जनम म भी ऐसे काम 
म  मुलाकात  नह   होती।  उनम  से  अ धकांश  अछूत  ऐसे  ह  जनको  यह   नह   मालूम  क आ खर अखबार  कस बला 
का  नाम है,  सयाल या कु ा, या बंदर, यह सब कुछ भी मालूम नह ।  फर ऐसे अप रिचत अनजान अछूत  के  वचार 
इन  सभी  मांग लक  अखबार   को  कहाँ  से  और  कैसे  मालूम  होते  ह?  उ ने  सरकार  का मजाक करके अनपढ़ लोग  
के  दलो  को  आक षत  करने के  लए, उनके  ित झूठ  हमदद   दखा कर, अपने पेट पालने के  लए उ ने इस तरह 
का  नया  तर का  खोज  नकाला  है!  य द  ऐसा न कह, तब तमाम सरकार   वभाग  म  ा ण जाित के कमचा रय  क  
ह   भरती  होने  क   वजह  से  सभी  शू   और  अछूत   का  भयंकर  नुकसान  हो  रहा  है।  ले कन  उनको  इसके  बारे   म 
जाँच−पड़ताल  करने  क   फुरसत  ह   नह   िमल  रह   है,  इस  बात  को  ा हम सच मान सकते ह? नह ।  क सात 
समु   पार  लंदन  शहर  क   रानी  सरकार  के  मु य  धान  अपने  सपने  म  हदु ान  के  बारे   म  कस- कस  कार  क  
बात  बरगलाते  रहे ह, इस संबंध म छोटी−मोटी खबर अखबार  म  पती रहती ह। हमारा कहने का मतलब यह है  क 
यह  सब  कहने  के  लए  उनको  कहाँ  से  फुरसत  िमलती  है!  छो ड़ए  इन  बात   को  भी  फर  भी  कसी  मराठ   ईसाई 
अखबारवाल   ने  यह  लखा  क  यु न सपा लटी  म  गर ब   को  दाद  नह   द   जाती,  उनक   वहाँ  कोई  सुनवाई  नह  
होती।  इस  तरह  क   खबर  खबर  पने  के  बाद  सभी  मराठ   अखबार  क  इस तरह क  खबर सारांश  प म अंगज े ी म 
अनुवाद  करके  सरकार  को  दखाने  का  काम  यु न सपा लटी के ह   कसी एक  ा ण सद य को स प  दया गया है। 
ले कन  वे  लोग  इस  तरह  क   रपोट  को  यु न सपा लटी  म  अपने  कंधे−से−कंधा  िमला  कर  बैठनेवाले  जाित  भाइय  
क परवाह न करते ए उनके (अपनी जाित के लोग के) व सरकार के सामने ा रख पाएँगे? 

ध डीराव  :  तात,  इस  चार   ओर  सभी  े   म  ा ण   का  वच व,  ब लता  होने क  वजह से ह  शेष सभी 
जाित  क  लोग   का  नुकसान  हो  रहा  है।  इस लए  य द  आप  इस  संबंध  म  एक  छोटी−सी  कताब  लख  कर 
'द णा ाइज' किमटी को पेश कर द जए। मतलब, उस कताब क वजह से सरकार क बंद आँख खुल जाएँगी। 

जोतीराव  :  ा ण−पंडा−पुरो हत  (जोशी)  अपने  मतलब,  धम  के  गपोड़े  से  अ ानी  शू   क  कस− कस 
तरह  बहकावे  म  ला  कर,  फुसला  करके  खाते−पीते  ह  और  ईसाई  िमशनर   अपने  न वाथ  धम  क   सहायता  से 
अ ानी  शू   सह   ान  दे  कर  उनको  कस  कार से स  के माग पर चलने क   रे णा देत े ह, आ द तमाम बात  के 
बारे  म मने एक छोटा−सा नाटक  लखा है। वह नाटक सन 1855 म 'द णा  ाइज' किमटी को भेजा था; ले कन वहाँ 
भी  इसी  कार  के  ज ी  ा ण  सद य  के दुरा ह क  वजह से यूरोिपयन सद य  क  एक भी न चल सक । तब उस 
किमटी ने मेरे इस नाटक को नापसंद  कया। अरे , इस 'द णा− ाइज' किमटी को  यु न सपा लटी क  ह  छोटी बहन 
कहने  म  मुझ े कोई  आपि   नह   होगी।  उस  'द णा− ाइज'  किमटी  को  शू   को  े रत करना चा हए था। शू  को 
लखने  क   रे णा िमले इस लए  कतनी जगह पर सहयोग  दया, यह खोजने के  लए आप िचराग ले कर भी जाएँ तो 
कुछ  िमलनेवाला  नह   है।  अंत  म  मने  उस  कताब  को  अलग  रख  दया  और  कुछ  साल  बीत  जाने  के  बाद  दूसर  
छोटी−सी  कताब  म  मने  ा ण   क   चालाक   के  संबंध  म  लखा  था  और  मने  वयं  के पैस  से ह  उस  कताब को 
छपवा  कर  स   कया  था।  उस  समय  पूना  के  मेरे  एक  िम   ने  अ धका रय   को,  उस  पु तक  क   खर द  के  लए, 
सूचना  प   के  साथ  भजवाई;  ले कन  उनम  से  कसी  एक  भी  अ धकार   ने  ा ण−पं डत   के  डर  क   वजह से एक 
भी कताब खर द कर अपने नाम को कसी भी कार दोषारोपण नह लगने दया। 
ध डीराव  :  तात,  सच  बात  यह  है  क  आपको  अपने  लए  लोग   के  आगे−पीछे  करने  क   आदत  है  नह , 
इस लए आपक कताब बकती नह । 

जोतीराव  :  अरे ,  मेरे  बाप,  अ छे  काम  को  सफल  बनाने  के  लए बुरे इलाज नह  खोजने चा हए, वरना इस 
काम  के  अ छेपन  को  ह   ध बा  लग  जाता  है।  उ ोन  मेर   एक  कताब  नह   खर द ,  इस लए  ा  उससे  मेरा  ब त 
कुछ  नुकसान  आ  है?  नह ,  ले कन  अब  इसके  बाद  म  इस  तरह  के  घ टया  लोग   के  सामने  कसी  भी  कार  क  
अज   करना पसंद नह  कँ गा। म उनका  नषेध कँ गा। मने पढ़ा है  क तरह से हम अपने उ प कता िपता पर  नभर 
रहना चा हए। इस लए म उसका तीन बार ध वाद करता ँ । 

ध डीराव  :  तात,  आपने  जब  ा ण  जाित  क   लड़ कय   के  कूल  क   ापना क  थी, उस समय सरकार 


ने  मेहरबान  हो  कर  आपको  बड़े  स कार  के  साथ  एक शॉल भट क  थी। बाद म उसी तरह आपने अछूत  के  लए भी 
कूल  क   ापना  करके  उसके  लए  कई  ा ण   क   सहायता  ली  थी।  और  उन  सभी  कूल   म  बड़े  जोर-शोर  के 
साथ  पढ़ाई− लखाई  शु   हो  गई  थी।  ले कन  बीच  म  ह   वह  अचानक  बंद  हो  गया।  कुछ  साल  बीत  जाने  के  बाद 
आपने  यूरोिपयन  लोग   के  घर  म  आना−जाना  भी  एक  तरह  से  बंद  जैसा  ह   कर  दया  था।  इसक   वजह  ा  हो 
सकती है? 

जोतीराव  :  ा ण  जाित  क   लड़ कय   के  लए  कूल  शु   कर  देन े क   वजह  से  सरकार  को  बड़ा  आनंद 
आ  और  उसने  मुझ े एक  शॉल  भट  क ,  यह  बात  बलकुल  सच  है,  ले कन  मुझ े जब  अछूत  के लड़के लड़ कय  के 
लए  कूल  शु  करने क  आव यकता महसूस  ई, तब मने उस काम के  लए कई  ा ण  को सद य बनाया और वे 
सभी  कूल  ा ण   के  हाथ   म  स प  दए। जब मने अछूत  के लड़के−लड़ कय  के  लए  कूल शु   कए, उस समय 
सभी  यूरोिपयन  गृह   म  रे हे  ू किमशनर  र हज्  साहब  ने  जो  अथ-सहायता  क ,  उसको  म  कभी  भी  भूल  नह  
सकता।  उन  उदार  गृह   ने  मुझ े सफ  अथ  क   सहायता  ह   क   है,  ऐसी  भी  बात नह ; बि क वे अपना मह वपूण 
धंधा  सँभालत  ए  भी  उन  अछूत   के  कूल  म  बार-बार  आ  कर  इस  बारे   म  बार-बार  पू ताछ  करते  थे  क छा  ने 
पढाई- लखाई  म  कतनी  तर क   क   है।  उसी  कार छा  को पढ़नेके लए  े रत करने क  वे बड़ी को शश करते थे। 
इस लए  उनके  उपकार  अछूत   के  छा   के  रग-रग  म  समाए  ए ह। उनके इन उपकार  से मु  होने के  लए य द वे 
अपने चमड़े क जूितयाँ बना कर भी उनके पाँव म पहनाएँ, तब भी वे उनके उपकार से मु नह हो सकते। 

इसी  कार  अ   कुछ  यूरोिपयन  गृह   ने  मुझ े इस  काम  के  लए  काफ   सहायता  क   है,  इस लए  म 
उनका  आभार   ँ ।  उस  समय  उस  काम म मुझ े ा ण सद य  को लेन े क  ज रत महसूस  ई। इसके अंदर क  बात 
कसी  समय  म  ज र  बताऊ ँ गा।  ले कन  बाद  म  जब  मने  उन  कूल   म  ा ण   के  पूवज   के  बनावटी  धमशा   म 
लखी  गई  धूततापूण  बात   के  संबंध  म  उन  छा   को  पढ़ाना−समझाना  शु   कर  दया,  तब  उन  ा ण   और  मेरे 
अंदर−ह −अंदर  बोलचाल  म  खापन  बढ़ता  गया।  उनके  कहने  का  ख  इस  तरह  दखाई  दया  क  उन  अछूत   के 
ब   को  बलकुल  ह   नह   पढ़ना− लखना− सखाना  चा हए।  ले कन  य द  उनको पढ़ना− लखना− सखाना ज र  है 
तब  उनको  केवल  अ र   का  ान  हो,  बस!  इतना  ह  पढ़ना− लखना− सखाना चा हए, इससे  ादा  बलकुल नह । 
ले कन  मेरा  कहना  यह  था  क  उन  अछूत ब  को अ छे दज तक पढ़ना− लखना− सखा कर उनम  मता पैदा कर 
देनी  चा हए  क  वे  अपना  हत  अ हत  वयं  जान  सके।  अब  अछूत   को  पढ़ना− लखना  नह   सखाना  चा हए,  यह 
कहने  म  उनका  वाथ  ा  हो  सकता  है?  उनके  मन  क  बात को  न त  प से समझ लेना आसान नह  है। ले कन 
यह  हो  सकता  है  क  ये  लोग  पढ़− लख  कर  बु मान बनगे, ऐसा उनको लगता होगा। और यह भी लगता होगा  क 
'हमार   तरह  ह   इनको  भी  पढ़ने− लखने  का  मौका िमला, सह   ान  ा त  आ, और उनको सच और झूठ म फरक 
समझ  म  आया  तब  वे  लोग  हमारा  नषेध  करगे।  और  सरकार  के  वफादार  अनुयाई  बन  कर  हमारे   पूवज   ने  उन  पर 
और  उनके  पूवज   पर  जो  जु   कए,  जो  ाितयाँ  क   ह,  उस  इितहास  के  प  े पढ़  कर  हमारा  पूर  तरह से  नषेध 
करगे।'  यह   उनक   भावना  हो  सकती  है।  इस  तरह  जब  उनके  और  मेरे  वचार   म  फक  पड़ने  लगा  तब  मने  उन 
ा ण−पं डत   के  नकली,  वाथ   व प  को  पहचान  लया  और  उन  दोन   सं ा   से  एक  ओर  हट  गया।  इसी 
दर यान  ा ण  पांड े (मंग़ल  पांड,े   1857  का  व ोह)  का  व ोह  शु   हो  गया।  उसी  समय  से  सभी  यूरोिपयन  स य 
लोग मेरे साथ पहले क  तरह खुल कर बातचीत नह  करते; बि क मुझ े देखते ह  उनके चेहरे  पर मायूसी छाने लगती। 
तब से मने भी एक तरह से उनके घर पर आना−जाना एकदम बंद कर दया। 

ध डीराव  :  तात,  ा ण  पांड े ह   बदम ती  क   वजह  से  उन  यूरोिपयन  लोग   ने  हम  जैस े नरपरा धय   को 
नजरअंदाज  कया  ह  और  वे  लोग  हमको  देखते  ह   अपने  चेहरे   पर  मायूसी  लाने लगे ह। यह उनक  उदारवाद    
और  उनक   बु मानी  को  शोभा  नह   देता।  उसी  कार  हम  ा ण   क   वधवा  ना रय   के  गभपात  आ द  जघ  
अपराधी  कृ   नह   करना चा हए। उन  ा ण  वधवा गभधा रनी ना रय  को गु त से पसूत होना चा हए, इसके  लए 
हमने  अपने  घर  म  ह   पूर   यव ा  क   है  और  उस  काम  के  लए  हमने  अपनी  सरकार  से  कसी  भी  कार  क  
सहायता  नह   माँगी।  उस  काम  म  नाममा   के  लए  भी  ा ण  सद य   से  कुछ  न  लेत े ए,  यह  काय  हमने  अपने 
वयं के खच से चलाया है। 

जोतीराव  :  अपनी  सरकार  के  बारे   म  कहा  जा  सकता  है  क  जधर दम, उधर हम।  क अछूत  को छूने 
का  अ धकार  नह   होने  क   वजह  से  वाभा वक  प  से  ह   उनके  सभी  कार के काम−धंध  करने के दरवाजे बंद हो 
गए  ह  और  उसी  क   वजह  से  उसके  सामने  पेट  क   आग  को  बुझाने  के  लए  चोर −डकैती  आ द  अवैध  काम   को 
करने  क   नौबत  आती  है।  ले कन  उ   चोर   डकैती  आ द  अवैध  काम  नह   करने  चा हए,  इस लए  हमार   सरकार  ने 
उनको  नजद क  के  पु लस  थाने  म  जा  कर  हा जर   लगाने  का  द तूर शु   कया है, यह अ छा काम  कया है। ले कन 
ा ण   क   अनाथ,  नराधार  वधवा  य   को  दूसरा  ववाह  करने  क   मनाह   होने  क   वजह  से  उन  ा ण  य  
को  य भचार  करने  के  लए  मजबूर  होना  पड़ता  है।  इसका  प रणाम  कभी−कभी  यह  भी  होता  है  क  गभपात  और 
ूणह ा (बालह ा) भी करने के  लए मजबूर होना पड़ता है। इन तमाम बात  को हमार   ायी सरकार अपने खुली 
आँख   से  देखती  रहती  है।  फर  भी  मातंग−रामो शय   क   तरह  उन  पर  नगरानी  नह   रख  रह   है,  यह  कतना  बड़ा 
आ य  है!  ा  यह  अ ाय  नह   है?  हमार   सरकार  गभपात  और  ूणह ा  करनेवाली  वधवा  य   क   अपे ा 
चोर −डकैती  करनेवाले  मातंग़−महार  लोग  ादा  दोषी  दखाई  देत े ह।  दूसर   बात  यह  क  ा ण   क   'काम  कम 
और  बकवास  ादा'  रहती  है।  अरे ,  जो  लोग  समझदार  हो  कर  अपनी  छोटी  नासामझ  बहन  क  हजामत करनेवाले 
ह ाम  के  हाथ  को  रोकने  के  लए  अपना  हाथ  आगे  नह   बढ़ा सकते, बुज दल लोग  को ऐसे रोकने के  लए सद य 
बना करके ा फल होगा? 

ध डीराव  :  तात,  कोई  बात  नह ।  ले कन  आपने  पहले  कहा  था  क  सभी  सरकार   श ा  वभाग   म  कुछ 
अ यव ा फैली ई है, उसका ा मतलब है? 

जोतीराव  :  इन  सरकार   श ा  आ द  वभाग   म  जो  हर  तरह  क   अ यव ा  है,  उसके  बारे   म  य द  लखा 
जाए, तब उसक  एक  वतं   कताब ह  हो जाएगी। इसी डर क  वजह से उसम से एक-दो बात उदाहरण  व प यहाँ 
ले  रहा  ँ ।  पहली  बात यह है  क शू  और अछूत  के ब  के  कूल  के  लए  श क तैयार करने क  कोई  दलच पी 
नह है, उनको इस काम म पूर अना ा है। 

ध डीराव  :  तात,  ऐसा  कैसे  कहा  जा  सकता  है?  सरकार  ने सभी जाित के ब  को पढ़ाने के  लए  श क 
(पं डत)  श त करने के  लए एक  वतं   श ण  कूल शु   कया है। सरकार के मन म कोई भेदभाव क  भावना 
नह दखाई देती। 

जोतीराव  :  य द  तुम  ऐसा  कहते  हो,  तब  यह  बताओ  क  आज  तक  उन  श त  श क   ने  (पं डत) 
अछूत के कतने ब को पढ़ना− लखना− सखाया है? अब तुम नीचे देख रहे हो? इसका मुझे जबाब दो। 
ध डीराव  :  तात,  सभी  ा ण पं डत लोग ऐसा कहते ह  क अछूत के ब  को  कूल म दा खल करते ह , 
हदु ान म बड़ी अ यव ा पैदा होगी। बड़ा असंतोष पैदा होगा। इस लए सरकार घबराती है। 

जोतीराव  :  अरे ,  सरकार  अपनी  फौज  म  सभी  जाित  के  लोग   को  भरती करती है।  फर  हदु ान के लोग 
  अ यव ा  पैदा  नह   कर  रहे ह? यह सब सरकार  फर क  लापरवाह  है।  क सभी जाित के लोग  को फौज 
म  भरती  करते  समय  सरकार  उस  काम  को  वयं  कर  लेती  है  और  श क  (पं डत)  श त  करने  का  काम  उस 
फालतू  कसी हरामी गोबरगणेश को स प देती है, और य द उसको इस काम क  कुछ भी जानकार  होती, तब उसने 
सबसे  पहले  अछूत   के  ब   को  श क  के  प  म  तैयार  ( श त)  करने का काम  कसी भी  कार से आनाकानी 
न क होती। उसी कार उन कूल म केवल ा ण के ब क ह इतनी फालतू भरती न क होती। 

ध डीराव : तात, फर सरकार को इसके लए ा करना चा हए? 

जोतीराव  :  इसका  एक  ह   पयाय है  क सरकार मेहरबान हो कर इस काम को सभी यूरोिपयन कले टर  के 


हाथ  म  स प  दे।  तब  ह   यह  श ा  के  चार  का  काय  सफल  होगा,  वरना  नह ।  क  इ   लोग   का  शू   और 
अछूत   से  नकट  का  संबंध  होने  क   वजह  से  ा ण कमचा रय  पर  कसी भी  कार का भरोसा नह  करना चा हए। 
उ   हर  गाँव−खेड़   म  एक−एक  बार  जा  कर  वहाँ  यह  समझाना  चा हए  क  कुलक णय   क   बना  मदद  से  गाँव  के 
सभी  बुजग ु −बाल−ब   को  पढ़ना− लखना  सखाने  से  ा− ा  लाभ  होते  ह।  उनके  इस  तरह  से  समझाने  से 
गाँव−खेड़ े के  लोग  अपने  सभी हो शयार ब  को पढ़ना− लखना  सखाने के  लए ब त ह  खुशी से कले टर साहब 
के  हवाले  कर  दगे।  इस  तरह  यूरोिपयन  कले टर   के  कहने  से  श ा  से  चार  सार  का  काम  जतना  सफल होगा, 
उस  तरह  ऐसे  नासमझ ( ा ण पं डत) कमचा रय  से न सफल  आ और न होगा, यह  हमार  धारणा है। इस संबंध 
म  एक  कहावत  है  क  'जेनो  काम  तेनो  थाय,  बजा  करे   तो  गोता  खाय'। इससे अब तु  सोचो  क शू  और अछूत 
जाित  के  पढ़े− लखे  लोग   क   आज  कतनी  ज रत  है।  क  जब  उस  जाित  के  लोग  पढ़− लख  कर  तैयार  ह गे, 
तब  उनको  अपनी  जाित  का  अ भमान  होगा  और  वे  लोग  अपनी−अपनी  जाित  के  ब   को  पढ़ना− लखना 
सखाएँगे,  उनको  पढ़ने− लखने  के  लए  े रत  करगे।  वे  लोग  अपनी−अपनी  जाित  के  ब   को हाथ म डंडा ले कर 
जानवर   को  हाँकते  ए  उनके पीछे−पीछे जाने से पहले,  श ा के  ित उनके मन म इतना  म े  पैदा करगे  क जब वे 
ब  े बड़े  हो  जाएँगे  तब  वे अपने म से एक ब  े को बार -बार  खेत पर जानवर  को सँभालने के  लए रखगे और शेष 
सभी  लड़क   को  गाँव के मैदान पर िग ली−डंडा खेलने से रोकगे। उनको गाँव म ला कर, अ यापक के पास बैठा कर 
पढ़ना− लखना  सीखने  के  लए,  कोई कसर बाक  नह  रखगे। दु नया म सबसे  गितशील रा  अमे रका के लोग  म 
आधे  से  ादा  लोग   ने  अपने  वण  के  बंधु   के  वरोध म तीन साल तक लगातार जंग करने के बाद अपने हाथ के 
गुलाम   को  छोड़  दया  था।  तब  ऐसे  मुख  ा ण  कूल   म  शू ा द  अछूत   को  सह   ान  पढ़ा  कर  उनको  अपनी 
गुलामी  से  मु   होने क   रे णा कैसे दे सकगे? अरे ,  जस एक  ा ण  ोफेसर क  तन याह म छ: शू  या नौ अछूत 
ोफेसर  कम  तन वाह  म  ा त होने क  पूर  संभावना होने पर भी अपनी सरकार इस काम के  लए  ा ण  के पीछे 
लगी  ई  है  और  अपने  अ ानी  भाइय  क  कमाई का  पया−पैसा इस तरह बे हसाबी खच कर रह  है। इस लए य द 
हमने  अपने  सरकार  को  भर   नीद  से  जगाया  नह ,  तब  तो  इस  अनथ  का  दोष  हमारे   माथे  पर  लगेगा।  इसी  कार 
चौध रय क हवे लय के रसोईघर म अछूत के कतने ब े काम करते ह, इसके संबंध म जरा कुछ बताइए। 

ध डीराव  :  तात,  जहाँ  शू   के  ब   को  ह   कोई  देखने  सँभालनेवाला  नह   है,  वहाँ  अछूत   के  ब  क  
बात ह दर कनार। 

जोतीराव  :  आ खर  ऐसा  ?  तुम  ह   कहते  हो  न  क,  सरकार भेदभाव नह  करती,  फर यह जो कुछ हो 
रहा है, इसक वजह ा है? 

ध डीराव  :  इसका  कारण  वहाँ  सभी  ा ण  कमचा रय   का  होना  ह   तीत  होता है। आपने एक बात मुझ े
एक  दन    प  से  बताई  थी। वह बात यह थी  क जो  ा ण  यि  पहले आपके पास नौकर  के  लए था, वह 
अछूत   के  कूल  म  आ  कर  कसी  भी  कार का छुआछूत नह  मानता था और  कूल के सभी छा  को अ छ  तरह 
पढ़ना− लखना  सखाता  था।  ले कन  वह   ा ण  जब  रसोइया  बना,  तब  वह  इतना  छुआछूत  मानता  था  क  उसने 
एक  गर ब  सुनार  को  चौराहे  पर  खीच ले आया था;  क उस सुनार ने गरमी के  दन  मे उस टंक  से पानी  नकाल 
कर िपया था और अपनी यास बुझाई थी। 

जोतीराव  :  अरे ,  इन  महामूख  ा ण   ारा रचे गए गीत  को आज भी सभी नए समाज  मे गाया जाता है, 


और  उ ने  अब  तक  अपने  मतलबी  धम  के  अनुसार  प र  के भगवान को पूजना छोड़ा नह  है। वह   ा ण अपने 
घर  क   टंक   को  शू   को  नह   छुना  चा हए  इस लए  उसे  ढाँक  कर  काशी  जा  कर  वह   ायी होने क  बात कर रहा 
है।  ले कन  हमारे   न प   यु न सपा लटी  म  ा ण  सद य   क   सं या  सबसे  ादा  होने  क   वजह  से  उ ने  उस 
टंक   के  इद−िगद  के  घेरे  को  वैस े ह   कायम  रखा है। ले कन उ ने  बना सोच− वचार  कए ह  शु वार  के दज  क  
टंक   के  घेरे  को  एकदम  िगरा  दया।  वहाँ  के  कई  ा ण  ने  सफ अपने उपयोग के  लए उस टंक  के ऊपर  भाग म 
और  उससे लगा कर एक छोटी−सी चोर टंक  बाँध द  है और उसका पानी अपने  ान के  लए, अपने पाप  को धोने 
के  लए  मनमानी  खच  करते  ह।  ा ण  जाित  म  ज   ले  कर  इस तरह क  पाखंडी हरकत न कर, तब उस जाित क  
क मत ह ा है? 

प र छे द : सोलह 

[ ारा स के उ पीड़न क य] 

ध डीराव  :  तात,  आपके  साथ  जो  संवाद  आ,  उससे  यह  स  होता है  क सभी  ा ण  ने अपने नकली 
धम  के  नाम पर हमार  भोली−भाली सरकार क  आँख  म धूल झ क  है और हम सभी शू ा द−अछूत  का अमे रका 
के  (काले)  गुलाम   से  ादा  शोषण  कया।  वे  आज  भी  कर  रहे  ह।  इस लए  हम  सभी  लोग   को  िमल  कर  इन 
ा ण   के  बनावटी  धम  का  नषेध  करना  चा हए  और  अपने  अनपढ़  भाइय   को  भी  इस  संबंध  म  जागृत  करना 
चा हए। आप इस बारे म नह सोच रहे ह? ओर इन लोग म जाग़ृित लाने का काय नह कर रहे ह? 

जोतीराव  :  मने  कल  ह   शाम  को  इसके  लए एक पचा तैयार  कया है। मने उसे अपने एक साथी को स प 


कर  उससे  यह  कहा  है  क  उस पच म  व−द घ क  जो भी गलितयाँ ह , उनको ठ क कर के, उसक  एक-एक  ित 
तैयार  कर  के  सभी  ा ण  और  ईसाई  अखबारवाल   के  अ भ ाय  के  लए  भेज  द जए।  उस  पच  का  व प  इस 
कार है; 

शू को रा स क गुलामी से 

इस कार मु होना चा हए 

मूल  ा ण   के  (इराणी)  पूवज   ने इस देश के मूल  नवा सय  पर हमला  कया। उ ने यहाँ के हमारे  मूल 
े वासी पूवज  को यु  म परा जत  कया और उनको अपना गुलाम बना  लया। बाद म उनको  जस तरह का मौका 
ा त  होता  रहा, उस तरह उ ने अपनी स ा क  म ती म कई तरह के मतलबी−नकली धम  ंथ  लखवाए और उन 
सबक   एक  मजबूत  कला  बना  कर  उसम  उन  सभी  परा जत   को  वंश−परं परा  से  बंद   बना  कर  के  रखा  दया। वहाँ 
उ ने  उनको  कई  तरह  क   यातनाएँ  दे  कर  आज  तक  वे  ा ण-पंडा-पुरो हत   बड़ी  मौज−म ती  म  अपना  जीवन 
गुजार  रहे  ह।  इसी  दर यान  जब  अं ज
े   बहादुर   का  राज  इस  देश  म  कायम  आ तब से अ धकांश दयालु यूरोिपयन 
और  अमे रक   भले  लोग   को  हमारा  उ पीड़न  अपनी  आँख   से  देखा  नह   गया।  तब  उ ने  हमारे   इस  जेलखाने  म 
बार-बार आ कर हम लोग  को इस  कार का उपदेश  दया  क 'ऐ मेरे भाइयो, आप सभी लोग हमार  तरह ह  इं सान 
है।  आपका  और हमारा ज दाता और पालनकता एक ह  है। इस लए आप सभी लोग हमार  तरह ह  तमाम मानवी 
हक   के  हकदार  होने  के  बावजूद,  आप  लोग इन  ा ण  के नकली वच व को   मान रहे ह?' आ द इस तरह क  
कई  मह वपूण  सूचना   का  अ ययन  करने  पर  मुझ े मेरे  वाभा वक  और  सह   मानवी  अ धकार  समझ  म  आते  ह  
मने  उस  जेलखाने  के  नकली मु य   दरवाजे के  कवाड़  को लात मारा और उस जेकखाने से बाहर  नकल आया। 
इस ा ण कैदखान से नकलने के बाद मने अपने नमाता के ित आभार य कया। 

अब  म  उन  परोपकार   यूरोिपयन  उपदेशक   के  आँगन  म  अपना  डेरा  डाल  कर  कुछ  आराम  करने से पहले 
यह ित ा करता ँ क : 

ा ण   के  जन  मुख  धम ंथ   के  आधार  पर  हम  (शू ा द−अितशू )  लोग  ा ण   के  गुलाम  है  और 
उनके  अ   कई  ंथ −शा   म  हमार   गुलामी  का  समथन  म  लेख  लखे  ए  िमलते  ह,  उन  सभी  ंथ   का, 
धमशा   का  और  उसका  जन− जन  धमशा  के संबंध म होगा, उन सभी धम ंथ  का हम  नषेध करते ह। उसी 
तरह  जन  धम ंथ   के  आधार  पर  ( फर  वह  कसी  भी  देश  का  या  धम  के  वचारवान  यि   ारा तैयार  कया  आ 
  न  हो)  सभी  लोग   को  समान  प  से  सभी  व तु   का,  सभी  मानवी अ धकार  का समान  प से उपभोग लेन े
क   इजाजत  हो,  उस  तरह  के  ंथकता  को  म  अपने  नमाता  के  संबंध  म  छोटा  भाई  समझ  कर  उस  तरह  अपना 
आचरण रखुँगा। 

दूसर   बात  यह  है  क  लोग  अपनी  एकतरफ   सोच  के  अहं कार  म  जबद ती  कसी  को  भी  नीच  समझने 
लायक  आचरण  करने  लगते  ह,  उन  लोग   को  उस  तरह  का  आचरण  करने  का  मौका  दे  कर  म  अपने  नमाता  ारा 
न मत प व अ धकार के नयम को ध बा नह लगाऊ ँ गा। 

तीसर   बात  यह  है  क  जो  गुलाम  (शू ,  दास,  द यु)  केवल  अपने  नमाता  को  मान  कर  नीित  के  अनुसार 
साफ-सुथरा  उ ोग  कर  ने  का  न य  कर  के  उसके  अनुसार  आचरण  कर  रहे  ह,  इस  बात  का  मुझ े पूरा  यक न  होने 
पर,  म  उनको  केवल  प रवार  के  भाई  क  तरह मान कर उनके साथ  यार से खाना−पीना कँ गा,  फर वह आदमी, वे 
लोग कसी भी देश के रहनेवाले न ह । 

आगे  कसी समय अ ान के अंधकार म सताए  ए मेरे शू  भाइय  म से  कसी को भी  ा ण  क  गुलामी 


(दासता)  से  मु   होने  क   इ छा  होने  पर,  एक  बार  भी    न  हो,  क
ृ पया  अपना  नाम−पता  प   के  ारा  लख कर 
मुझे भेज द। मुझे इस काम म बड़ी ताकत िमलेगी और म उनका ब त ह शु गुजार र ँ गा। 

- जोतीराव गो वदराव फुले 

तार ख[32]​: 5 दसबर, 1872 

पून, जूनागंज नं0 527 

जनक ाण क कामना से 

हमारे   अपने  स  महा ानी, महािचतक और महान संशोधक, दाश नक जोतीराव गो वदराव फुले ने एक 


बड़े  गृह   क   सफा रश  पर  एक  अ योजक,  आ तुितयु   और  ा ण   क   बदनामी करनेवाला एक प  हमार  
ओर  भेजा  है।  उनके  उस  प   को  हमारे   अखबार  म  ान  िमलने  क   कोई  संभावना नह  है। इस लए हम  तुत प  
के लेखक फुले से मा चाहते ह। 

को ापुर, ता0 1 फरवर , 1873 

शुभ वतमान दशक और चच के संबंध म व भ सं ह 


पूना  के  अखबारवाले  उ   प र छेद  को  अपने  अखबार  म  का शत  नह   कर  रहे  ह,  इस लए  इस  प   को 
हमार   ओर  भेजा  गया  है।  यह  प र छेद  चार   ओर  स   करना  चा हए,  इस  तरह  क   जोतीराव गो वदराव फुले क  
इ छा  होनी  क   वजह  से  उनके  इस  प र छेद  को  हम  अपने  अंक  म  का शत  कर  रहे  ह।  हमारे   हदू  िम   को  यह 
प र छेद  कुछ  मा ा  म  बदनामी  करनेवाला  लगेगा,  फर  भी  इसम  जो  अ भ ाय  य   आ  है,  वह  ब त  ह  
शंसनीय  है,  ऐसा  मुझ े लगता  है।  क  वा वव  म  देखा जाए तो  ा ण  क  मा ता के अनुसार जाित−भेद नह  
है,  इस  बात  को  'जो  भी  यि   हमारे   यान  म  ला  कर  देगा,  उस  यि   से  म  तुरंत  प   के  ारा  संपक  ािपत 
कँ गा,'  'इस  बात  को उ ने बड़ी  ह त के साथ कह  है और इस तरह क   ह त रखनेवाले लोग इस देश म ब त 
बड़ी सं या म होने चा हए।' 

ध डीराव  :  तात,  आपने  ऊपर  जो  सुचनाप   दया  है,  उसक   सभी  धाराएँ  ब त  ह   पसंद  आई  ह  और  म 
उसी  के  अनुसार  अपना  आचरण  रखुँगा।  म आज हजार  साल के  ा ण  के बनावटी और ददनाक धम के जेलखाने 
से  पूर   तरह  मु   आ  ँ ।  इसी लए  आज  मुझ े ब त  खुशी  हो  रह   है।  म  सचमुच  म  आपका  क ृ त   ँ ।  सं प
े   म, 
आपके  हर  तरह  के  व ष े ण  को  सुनने  के  बाद  हदु धम ( ा ण धम) के पाखंडी, बनावटी  व प के बारे  म मेरा यह 
प   मत  बन  चुका  है।  ले कन  हम  लोग  जस  एक  परमे र  को,  जो सबको देखनेवाला और सव  होने पर भी, हम 
शू ा द−अितशू क यातनाएँ, हमारा शोषण−उ पीड़न उसको आज तक ा सचमुच म नह दखाई दया होगा? 

जोतीराव  :  इसके  संबंध  म  बाद  म  कसी  ऐसे  ह   मौके  पर  तुमको  सारा  खुलासा  करके  बता  दूँगा,  जससे 
तुमको पूरा व ास हो जाएगा और मन का समाधान भी। 

[1]  A  most  remarkable  and  striking corroboration of these views is to be found 


in  the  religious  rites  observed  on  some  of  the  grand  festivals  which  have  a  reference 
to  Bali  Raja,  the  great  king  who  appears  to  have  reigned  once  in  the  hearts  and 
affection  of  the  Shoodras  and  whom  the  Brahmin  rulers  displaced.  On  the  day  of 
Dushhara,​   the  wife  and  sisters  of a Shoodra, when he returns from his worship of the 
Shumi  Tree  a​ nd  after  the  distribution  of  its  leaves,  which  are regarded on that day as 
equivalent  to  gold,  amongst  his  friends,  relations  and  acquaintances,  he  is  greeted at 
home  with  a  welcome  "  अला  बला  जावे  और  बली  का  राज  आवे"  "Let  all  troubles  and  misery 
go,  and  the  kingdom  of  Bali  come."  Whereas  the  wife  and sisters of a Brahmins place 
on  that  day  in  the  foreground  of  the  house  an  image  of  Bali,  made  generally  of 
wheaten  or  other  flour,  and  when  the  Brahmin returns from his worship of the Shumi 
Tree  he  takes  the  stalk  of  it, pokes with it the belly of the image and then passes into 
the  house.  This  contrariety,  in  the  religious  customs  and  usages  obtaining  amongst 
the  Shoodras  and  the  Brahmins  and  of which many more examples might be adduced, 
can  be  explained  on  no  other  supposition  but  that  which  I  have  tried  to  confirm  and 
elucidate in these pages 

[2]  .  समथ  रामदास  −  मराठ   संत  क व।  ा ण  जाित  म  पैदा  ए  और  बे  ा णवाद  के  क र  समथक 
थे। 
[3]​ अनाय, वह मानव-समाज, जो ा ण के चातुव य समाज से बाहर का है। 

[4]  हदु   म  ( ा ण   म)  िपतर   के  स ान  और  उनक   तृि त  के  लए  शा   के  अनुसार  या  धा मक 
र - रवाज   के  अनुसार  कया  जानेवाला  धा मक  अनु ान,  जैस-े तपण,  िपडदान,  ा ण   को  भोजन कराना। यह 
ा   सां क
ृ ितक  परं परा  नह ,  बि क  हदु   क   धा मक  व ध  है।  इसका  ारं भ  ा ण-पुरो हत  ने अपने  वाथ के 
लए कया था। 

[5]​ मांग लक − मराठ म इसके लए, 'स वळे ओवळे ' श द का योग कया जाता है। 

[6]​ बुटल
े र - अं ज
े के घर म खाना पकानेवाला - खानसामा। 

[7]​ लगायत - एक शैव सं दाय, जसका सार द ण भारत म आ है। 

[8]​ वि य - अि य, धोखेबाज, छली-कपटी, दु । 

[9]​ मावला - मराठ म मावळा। महारा के अंतगत पूना के इद-िगद का देश। 

[10]  जेजोर   का  खंडोबा  −  महारा   का  एक  स   देव ान  है।  यह  ान  पूना  क   आ य े   दशा  म 
कर बन  तीस  मील  क   दूर   पर  है।  जेजोर   क   पहाड़ी  पर  कई  पठार  और  गढ़कोट  ह।  इन  दो  जगह   पर  खंडोबा  के 
मं दर  ह।  इनम  कई  शलालेख  है।  यहाँ सबसे पुराना  शलालेख ई0 सं0 1246 का है। जेजोर  म चंपाष , सोमवती 
अमाव या,  चै ी,  ावणी,  पौपी  और  माघी  पू णमा  को  वशेष  उ व होते है। चंपापं  यहाँ का सबसे बड़ा उ व 
है। 

[11]​ म ार − शव का एक अवतार माना जाता है। एक देवता। 

[12]  मातड  −  इस  देवता  को  'म ार   मातड'  नाम  से भी जानते पुकारते है। महारा  क  लोककला  म 
यह नाम ब त ह च लत है। 

[13]  हर-हर  -  इस  श द  का  अप ंश  ' रा- रा'  है,  यह  नकलता  है,  क  अँ ज े   लोग   म  एक  पुराना 
रवाज  है  क  वे  ' रा- रा'  करके  िच लाए  बगैर  दु मन  पर  टूँ ट  पड़ने क  आ ा ह  नह  देत।े  यह बात उनके इितहास 
म कह गई है। "Hurrah Boys! Loose the saddle or win the horse!" 

[14]  . बली − (ब र, बेदगु) बली क ड़ श द है। इसका तािमल अनुवाद 'ब र' तथा तेलुग ु 'बेरगु' है। इसका 


अथ  है  बाहर   जाित।  ब ल  का  उ लेख  अनेक   बार ऋ वेद म एक देवता तथा एक राजा के  प म  आ है। ब ल एक 
स   दानव  राजा  था। उसने तीन  लोक  को जीत  लया था। देवता ( ा ण) उसने  त थे। पुराण  म कहा गया है 
क  बली  राजा  दान  देन े के  लए  स   था।  व णु  दया  करके  क यप  और  आ द  से  वामन  प  म  उ प   ए  और 
ा ण का प धारण कर बली राजा के पास गए। वामन ने छल-कपट से बली राजा से तीन पग भूिम माँगी। 

[15]  गाय ी  मं   −  'गाय ी'  ऋ वेद म एक छं द का नाम है। गाय ी का अथ है 'गायंत  ायते इित' अथात 


'गानेवाले  क   र ा  करनेवाली'।  सभी  ज   के  लए  ात:  और  सं याकाल  क   ाथना  म  इस  मं   का  पाठ  करना 
अ नवाय माना गया है। 

[16]​ कुनबी - हदु क एक शू जाित जो ाय: खेती करती है। 

[17]  भराडी  के  पूँगी  और  वा या  के  भंडार   को  काला  धागा  है,  उसे  दे खए।  जाणाई  देवी  को  सटवाई, 
मायराणी, कालकाई क तरह शू देवी कहते ह। 
[18]​ आसरा - जलदेवी। ये सात ह। 

[19]  बाणासुर  क   क ा  उषा  क


ृ ण  के  ु   नाम  के  पु   को  द   गई  थी।  परभू  या  भु,  गैर  ा ण   क  
एक  जाित  -  जसको  महारा   म सी. के. पी. कहते ह। यह  उ र-पूव भारत क  काय  जाित है।  ा ण लोग इस 
जाित के लोग से भी शू जैसा ह यवहार करते थे। 

[20]​ पँवाड़ा - गीरगाथा। 

[21]  सोबा  −  अथात  षासुर,  म हषासुर।  देवी  ारा  मारा  गया  एक  दै ।  म हष  एक  असुर  का  नाम, 
जो तमोगुण का तीक है और दुगा अपनी शि से इसी का छे दन करती है। 

[22]​ कई यूरोिपयन ंथकार क भी यह मा ता है। 

[23]  उमा  जी  रामोशी  -  महारा   नाईक नाम का एक आदमी था। वह बड़ा लड़वैया था। उसने अं ज


े  से 
भी मुकाबला  कया था। ले कन उमा जी नाईक रामोशी शू  जाित म पैदा  आ था, इस लए उसको कोई शह द नह  
मानता। ले कन जो ा ण सह म डाकू थे और अँ ज े से लड़े, उ शह द माना गया। 

[24]​ देश - महारा के ा ण म देश ा ण नाम क एक उपजाित है। 

[25]  पावती  -  पूना  का  पावती  देव ान,  एक  सं ान।  इसक   पूजा  ारा  ा त  आय  केवल  ा ण   पर 
खच होती थी। यहाँ हमेशा ा ण को दान दया जाता था। यहाँ हमेशा ा ण भोज-चलता था। 

[26]  कुलकण   -  कुलकण ,  क णक,  पटवार ,  तला ट  आ द  श द  समानाथक  ह।  गाँव  के  चौधर   या 
धान  का  कारकुन।  गाँव  क   जमीन  और  उसके  लगान  का  हसाब रखनेवाला एक छोटा सरकार  कमचार । कुल का 
मतलब  जमीन  (खेत)  का  ह ा  और  कारण का मतलब है मेहनताना। उस समय ऊ ँ ची जाित के ह  लोग कुलकण , 
पटवार आ द होते थे। आज ा ण तथा काय म कुलकण , क णक सरनेम (कुलनाम) ह। 

[27]​ Chapter IV, The Sepoy Revolt by Henry mead. 

[28]  महारा   म  मराठा  शासनकाल  म  और  खास  तौर  पर  पेशवाई  के  काल  म  खोती-प ित  का  उदय 
आ  है।  इसम  खोत  ा ण  होता  था  जो  एक  गाँव  या  इस  तरह  कई  गाँव   क   भूिम  का  वामी होता था। इस खोत 
का  काम यह  था  क शू  को जमीन जोतने-बोने के  लए देना और फसल के समय  कसान  से तीन चौथाई अनाज 
जबरन  ले  लेना।  शू   कसान   पर  इसका  अपना  वच व  चलता  था।  इतना  ह   नह ,  बि क  यह भी कहा जाता है  क 
शू   कसान   क   ब   को  शाद   के  बाद  क   पहली  रात  इसी  खोत  के  बंगले  पर  गुजारनी  पड़ती  थी। इस लए इस 
अमानवीय  खोती- था  के  व   म.  जोतीराव  फुले  से  ले  कर  शा  महाराज तक सभी ने आवाज बुलंद क  थी और 
डॉ. बाबासाहेब अंबडे कर ने बंबई असबली म इस खोती- था के व कानून बनवाया था। 

[29] टॉ स पेन एक ब त बड़ा  ांितकार   वचारक। उनके 'मनु य के हक (राइट ऑफ मॅन) नाम के  ंथ से 


म. जोतीराव फुले ब त ह भा वत थे। 

[30]​ गरदन हलानेवाले नंद बैल क तरह। 

[31]​ पूना शहर क एक ब ती का नाम। 

[32]  तुत  प   के  संबंध  म  अखबारवाल   के  जो−जो  अ भ ाय  ा त  ए  ह,  उनक   यो यता  जानने  के 
लए उनको हम अपने पाठक के लए यहाँ दे रहे ह: पूना, श नवार, ता0 4 जनवर , 1873 
 

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