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HINDI ASSIGNMENT

“अं धेर नगरी” भारतें दु हरिशचं दर् का एक ऐसा प्रसन्न है जिसमें उन्होंने तत्कालीन
समाज में फैली अने क समस्याओं की ओर ध्यान आकर्षित करने का प्रयत्न किया है ।
भारतें दु हरिशचं दर् जी ने उस समय समाज में फैली हुई कुरीतियां , अं धविश्वास, नारी
कि समाज में दशा, समाज में फैली हुई विषमता, मं दिरों में फैली हुई पाखं ता और
अनाचार के ऊपरअपनी कलम चलाई। भारतें दु हरिश्चं दर् ने अपने नाटक “अं धेर नगरी”
में निम्नलिखित समस्याओं को उठाया है -

1) अंग्रे जों की लूटमार की नीति की समस्या-


अं गर् े जों ने भारत की जनता पर तरह-तरह के कर लगाए । जनता की गाढ़ी कमाई सब
अं गर् े ज ऑफिसर्स के हाथों में चली जाती थी। गरीब जनता हर तरह से त्रस्त थी।
भारतीय जनता का शोषण हो रहा था। उदाहरण –
“चना हाकिम सब जो खाते सब पर दन ू ा टीकस लगाते ।“
“चूरन साहिब लोग जो खाता सारा हिं द हजम कर जाता।“

2) कानून व्यवस्था की समस्या-


अं गर् े जों के समय में कानून व्यवस्था कुछ भी नहीं रह गई थी क्योंकि कोई भी लोग
अं गर् े जों के खिलाफ गर्दन नहीं उठा सकते थे और अं गर् े जी कानून के खिलाफ कोई कुछ
भी नहीं बोल सकते थे । जिसकी लाठी उसकी भैं स वाली कहावत चारों ओर फैली हुई
थी। उदाहरण –
“चूरन पु लिस वाले खाते सब कानून हजम कर जाते ।“

3) रिश्वतखोरी की समस्या-
अं गर् े जों के समय में न्यायालय में रिश्वत का बोलबाला था। न्याय पै से के अधीन हो
गया था । ईमानदारी, सच्चाई की जगह चारों तरफ पै से का बोलबाला हो गया था और
आदमी रिश्वत ले कर झठ ू बोलते थे । आदमी बिकाऊ हो गए थे ।आदमियों ने सच्चाई
का साथ छोड़ दिया tha। पै से के बलबूते पर अमीर आदमी कानून को खरीद रहे थे और
गरीब आदमी को न्याय मिलना असं भव बात हो गई थी। अमीर आदमी न्याय अपने
पक्ष में कर ले ते थे और ईमानदार आदमी अपने को ठगा हुआ महसूस करते थे । उदाहरण
-
"चूर्ण अमले सब जो खावे l  दन ू ी रिश्वत तु रं त पचाव l"

4) फू ट और बैर -
भारतें दु जी कहते हैं कि हिं दुस्तान के लोग एक दस ू रे से बै र की भावना रखते हैं । उनमें
कोई एकता की भावना नहीं है । सबमें एक दस ू रे के प्रति भे दभाव की भावनाएं हैं । एक
दसू रे के प्रति दुश्मनी है । वह आपस में हिं सा और मनमु टाव की भावना रखते हैं ।
उदाहरण-
“ ले हिं दुस्तान का मे वा फू ट और बै र।“

5) जाति व्यवस्था-
जाति पर बात करते हुए भारतें दु जी कहते हैं कि “अं धेर नगरी” में सारे लोग एक दस ू रे
का मूर्ख बनाते हैं और उनका शोषण करते हैं जै से विल्सन मं दिर के लोग (अमीर लोग)
गरीब लोगों का मूर्ख बनाकर उन पर अत्याचार करते हैं और उनसे पै से लूटते हैं । वै से ही
अं धेर नगरी के निवासी सामान्य लोगों का उत्पीड़न करते हैं । अं धेर नगरी का एक
हलवाई बोलता है कि चाहे 36 तरह के हलवाई हो जिसमें अलग-अलग गु ण honge
ले किन एक सामान्य गु ण उनमें यह है कि वह दस ू रों पर अन्याय करें गे और उनका मूर्ख
बनाकर उनका पै सा लूटेंगे । उदाहरण –
“ऐसी जात हलवाई जिसके 36 कौम है भाई जै से कोलकाता के विल्सन मं दिर के भीतर
यह वै से अं धेर नगरी के हम।“

6) आर्थिक विषमता की समस्या-


भारतें दु हरिशचं दर् के समय में अमीर व गरीब आदमी के बीच की खाई काफी चौड़ी थी
और चारों तरफ आर्थिक विषमता फैली हुई थी। अमीर आदमी गरीबों की मे हनत,
मजदरू ी की कमाई पर दिनों- दिन अमीर होता जाते थे और गरीब लोग अपनी दो समय
की रोटी के लिए जी तोड़ मे हनत करते थे । दोनों समय की रोटी के लिए ही पै से कमा
सकते थे और बीमारी आदि के लिए फिर उन्हें महाजन के पास जाना पड़ता था। और
कुछ उधार लिए पै सों के लिए वह अपनी गाढ़ी कमाई ब्याज के माध्यम से महाजन को
दे ते रहते थे । उदाहरण-
“चूरन सभी महाजन खाते जिससे जमा हजम कर जाते ।“

7) भारतीयों में साहस की कमी की समस्या-


हिं दुस्तान के आदमी कमजोर और कायर थे क्योंकि उन्होंने अं गर् े जी सरकार के सामने
घु टने टे क दिए व्यवस्था से अं गर् े जी सरकार का विरोध नहीं करते थे और उनके आदे शों
का आं ख बनकर पालन करते थे । भारत के लोग अक्षम थे क्योंकि वह अं गर् े जी सरकार
के इशारों पर ही चलते थे और खु द की बु दधि ् का प्रयोग नहीं करते जो उन्हें बता दिया
जाता है वह उसका चु पचाप का पालन कर ले ते थे । वह साहस पर बु दधि ् से काम नहीं
ले ते थे । उदाहरण-
“नाहक का रुपया खराब किया बे वकू फ बना। हिं दुस्तान का आदमी लकलक हमारे यहां
का आदमी बूमबूक बूमबूक।“
“ रै यत राजी टके से र भाजी।“

8) अंधविश्वास की समस्या-
अं धविश्वास उस समय एक बहुत बड़ी समस्या थी। किसी भी बात पर बिना तर्क किए,
बिना सोचे समझे विश्वास कर लिया जाता था।आदमी पु जारियों के बहकावे में आकर
अपना सब कुछ लु टा दे ते थे । यहां तक कि अपने जीवन को भी खत्म करने में उन्हें
सं कोच नहीं होता था। पु जारियों की हालत बहुत पै सों वाली थी और वे जनता को मूर्ख
बनाते रहते थे । और जनता भी उन पर आं ख मीच पर विश्वास करती थी। इसी कारण से
चतु र महाजन ने अपने चे ले को वर्धन दास के प्राण तो बचा लिए और उसके बदले शु भ
मु हर्त
ू का उपदे श दे कर राजा को अपने आप ही फांसी पर लटकने के लिए प्रेरित किया
और राजा अं धविश्वास के कारण फांसी पर चढ़ गया। उदाहरण-
“गु रु : कोई चिं ता नहीं नारायण सब समर्थ है । सु नो, मु झको अपने शिष्य को अं तिम
उपदे श दे ने दो, तु म लोग तने किनारे हो जाओ दे खो मे रा कहना ना मानोगे तो तु म्हारा
भला  न होगा।
राजा :  चु प रहो, सब लोग। राजा के आछत और कौन बैं कउठ जा सकता है हम को
फांसी चढ़ाओ जल्दी, जल्दी l”

9) नै तिकता के पतन की समस्या-


एक बहुत बड़ी समस्या नै तिकता के पतन की थी क्योंकि आदमियों का वै चारिक पतन
हो चु का था और हर आदमी पै से में बिक रहा था I
“जाट ले जाट, टके से र जात l एक टका दो l हम अभी अपनी जात बे चते हैं l टके के
वास्ते कहां व्यष्टि व्यवस्था दे l टके के वास्ते झठ ू को सच करें l टके के वास्ते   के वास्ते
धर्म और प्रतिष्ठा दोनों बे चे l  ठे के के वास्ते झठ
ू ी गवाही दे ।“

जब आदमी का नै तिक पतन हो जाता है तो वै चारिक पतन भी साथ-साथ मैं हो जाता


है । और आदमी की सोचने और समझने की शक्ति खत्म हो जाती है । आदमी अच्छी
बातों पर विचार नहीं करता है और ऐसे में आदमी कामचोर और मिथिला बन जाता है ।
मे हनत करने के बजाय वह बे कार पड़ा रहना अच्छा समझता है और पे ट भरने के लिए
इधर-उधर पड़ा रहता है । या फिर भिक्षावृ त्ति को अपनी आदत बना ले ता है और चारों
तरफ अराजकता फैल जाती है ।
उदाहरण –
“महं त: बच्चा गोबरधनदास,  तू पश्चिम की ओर जा और नारायण दास पूरब की ओर
जाएगा l  दे ख कुछ सीधा सामग्री मिले तो श्री शालिग्रामजी को बाल भोग सिद्ध
हो।“

10) नारी को पर्याप्त सम्मान में मिलने की समस्या-


भारतें दु जी के समय में जनसाधारण में नारी का सम्मान जनक स्थान नहीं था। कुछ
बातों में वह पु रुष के बराबर थी जै से सब्जी बे चना या फिर मजदरू ी करना ले किन
प्रतिष्ठित पदों पर नारी की गिनती कम ही थी। पढ़ाई के मामलों में भी  वे पु रुषों से
काफी पीछे थी। उस समय नारी को पु रुष  की सह धर्म चारिणी  दीया आदर्श रूप में ना
द दे खकर उसे सामान्य वस्तु मात्र मान लिया गया था। घर में भी पत्नी की गरिमामई
स्थिति नहीं थी l उदाहरण- 
"वे श्या जोरू एक समान।मच्छरया 1 टके के बिका l "

भारतें दु हरिश्चं दर् द्वारा लिखा प्रसन्न "अं धेर नगरी" आज के समाज में भी प्रासं गिक
है । जै से-

1)व्यवस्था का पतन और न्याय की समस्या-


आज के समाज में न्याय का पतन हो रहा है क्योंकि सारे लोग जै से बड़े बड़े अफसर जो
अधिकारी पदों पर बै ठे हैं आदि वह लोग अपने पदों का और अपनी शक्तियों का
दुरुपयोग करते हैं । यह लोग भ्रष्टाचारी होते हैं और गरीबों का शोषण करके अपने
पे टओ को भरते हैं l इन लोगों में कोई नै तिकता नहीं होती है l वह बस पै सों के लालच
में समाज के गरीब और कमजोर लोगों का पतन करते हैं l यह लोगों की समस्याओं को 
सु लझाने और उनकी मदद करने की जगह अपने पद का गलत फायदा उठाते हैं l ऐसे
लोगों के दुष्ट कामों के कारण समाज में अव्यवस्था  फैलती है और न्याय की समस्या
आती है l  लोगों को मदद करने की जगह यह लोग अपने कर्तव्य को ठु कराते हैं और
अपने ऊंचे पदों के माध्यम से वह गरीब और कमजोर वर्गों का मूर्ख बनाते हैं । उदाहरण-
आज के समाज में अगर कोई अपना काम करवाने जाता है तो उसे हर  स्तर पर
भ्रष्टाचार और शोषण का सामना करना पड़ता है l एक काम करने के लिए ऊंचे पद के
अधिकारी  रिश्वत ले ते हैं और तभी कोई काम करने के लिए तै यार होते हैं l  पै से खा
कर भी वह एक आदमी को मूर्ख बनाकर उसे जगह-जगह  घु माते रहते हैं l  अफसरों की
जे बों में पै सा भरने के बाद ही वह किसी की  समस्याओं पर सोच विचार करते हैं । इस
प्रकार  एक सामान्य इं सान को।हर स्तर पर अत्याचार और अन्याय  का सामना करना
पड़ता है ।
2) नारी के लिए समस्या-
आज के समाज में नारी की दशा बहुत ही विषम और चिं ताजनक है । एक पु रुष प्रधान
समाज में नारी के स्थान  को कोई कीमत नहीं दी जाती है l वह एक वस्तु की तरह
प्रतीत होती है   जिसकी अपनी स्वयं की कोई पहचान नहीं है l वह एक पु रुष के
सामने  कहीं नहीं ठहरती है l समाज उसे कोई इज्जत नहीं दे ता है और उसकी  पहचान
बस एक वस्तु तक ही सीमित हो कर रह जाती है l उसकी अपनी कोई स्वयं की
आवाज नहीं है जिससे कि वह अपने विचारों को आगे बढ़कर प्रकट कर सके। नारी की
समाज में हालत बहुत खराब है l नारी का समाज में अपना कोई खु द का स्थान नहीं है l
वह समाज में बहुत दुर्व्यवहार  झे लती है । उदाहरण -
आज के समाज में भी नारी को कई विषम परिस्थितियों से गु जरना पड़ता है जै से दहे ज
दे ना आदि। एक नारी की जगह से उसके घर तक सीमित हो जाती है उसके विचारों की
कोई कीमत नहीं है । वह एक लाचार जानवर की तरह महसूस करती है l उसकी समाज
में खु द की कोई स्वयं की पहचान नहीं है l समाज उसे एक डब्बे में बं द कर दे ता है और
उसे बाहर निकलने का अवसर नहीं प्राप्त होता है l उसे अपने पति और बाकी समाज
का दुर्व्यवहार जै से मारपीट, नाम रखना आदि झे लना पड़ता है l  उसका बहुत उत्पीड़न
होता है l समाज में नारी का स्थान ज्यादा महत्व नहीं रखता।
3) फू ट और बैर और जात पात की समस्या-
आज के समाज में लोगों के बीच बहुत विवाद की भावनाएं   फैली हुई है l हर आदमी
एक दस ू रे से जात पात के नाम पर लड़ता है l  सब लोग एक दस ू रे से बै र की भावना
रखते हैं l लोग जाति पाती  के लिए एक दस ू रे को मारने के लिए तै यार हो जाते हैं l  यह
आज के समाज की मूर्खताको झलकता है । भारतें दु जी द्वारा लिखित "अं धेर नगरी"
नामक प्रहसन में यही दिखाया गया है कि किस प्रकार से अं गर् े जी सरकार भारतीयों में
फू ट डालकर अपना उल्लू सीधा कर रही थी l वह भारतीयों को आपस में लड़वाकर यहां
शासन कर रहे थे l कुछ आदमी लालच में आकर अं गर् े जों के आधीन बने हुए थे और
अपने ही आदमियों के ऊपर जु ल्म करते थे । आज के सं दर्भ में भी यह पं क्तियां
प्रासं गिक हैं आज विभिन्न राजनीतिक दल जाती पाती के नाम पर साधारण जनता को
बहला-फुसलाकर अपनी अपनी पार्टी के लिए वोट मां ग ले ती हैं और जनता को आपस
में लड़ाते रहते हैं l यह दल जनता में आपस में घृ णा पै दा करवाते हैं और अपना काम
निकालते रहते हैं ।
4) अंधविश्वास का बोलबाला -
जिस प्रकार भारतें दु जी ने अपने   प्रहसन "अं धेर नगरी" में उस समय के अं धविश्वास
को दिखाया है कि उस समय अं धविश्वास का इतना बोलबाला था कि राजा स्वयं ही
सब को हटाकर शु भ मु हर्त ू वह शु भ लग्न में बै कुंठ जाने के लिए सूली पर चढ़ जाता है l
उसी प्रकार आज के समय में भी अं धविश्वास अपने चरम पर है l धर्म के ठे केदार जनता
में अं धविश्वास फैलाते रहते हैं l  यह आदमी अं धविश्वास फैला कर जनता को मूर्ख
बनाते हैं और आदमी अपने विवे क से कोई काम नहीं ले ता है l  अपनी बु दधि ् से काम
ले ने के बजाय यह भोले भाले आदमी उनके जाल में फंसे रहते हैं और अपना पै सा
बर्बाद करते हैं l विज्ञान की प्रगति के बावजूद भी आदमी चारों तरफ से अं धविश्वासी
हो रहा है ।
5) पैसे का बोलबाला-
जिस प्रकार भारतें दु जी ने अपने नाटक में यह दिखाया है कि किस प्रकार हर कोई
लालच में डूब गया है और अपना ईमान बे च रहा है l उसी तरह आज भी यह सच्चाई है
कि पै से की भूख मिट नहीं रही है बल्कि आदमी के अं दर यह भूख दिनों दिन बढ़ती
जाती है और पै से के लिए लोग एक दस ू रे के साथ मार काट  करते हैं , अपहरण करते हैं ,
चोरी करते हैं और हत्या करते हैं l  लूटपाट, चोरी  आदि यह सब पै से के लिए हो रही है
l पै से के लिए ही आदमी झठ ू ी गवाही दे रहा है , पै से से न्याय खरीद लिया गया है और
पै से की वजह से ही निर्गुण आदमी  चारों ओर सम्मान पा रहा है बिना पै से के गु णवान
और विद्वान आदमी  निराश और हताश होकर बै ठा हुआ है ।

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