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इकाई 3

पाठ ठाकु र का कु आँ

1.' कु आँ दूर था। बार-बार जाना मुश्किल था।' यहाँ गंगी की कौन-सी विवशता प्रकट होती है?

यहाँ गंगी की गरीबी का चित्र उभर आता है। गरीबी के कारण उन्हें अपना कु औं नहीं है। गाँव के अन्य दो ही कु ओं से पानी

लेना पड़ता है। वे कु एँ घर से बहुत दूर भी थे।

2. ' खराब पानी से बीमारी बढ़ जाएगी, इतना जानती थी। परंतु यह न जानती थी कि पानी को उबाल लेने से उसकी

खराबी जाती रहती है।' -इससे कौन-सी सामाजिक वास्तविकता प्रकट होती है ?

यहाँ गंगी की अशिक्षा का संके त है। निम्न और गरीब लोग शिक्षा से भी वंचित रह जाते हैं। इसलिए उनमें अनजानी, अंधविश्वास

आदि भी देखे जाते हैं। यह सामाजिक वास्तविकता यहाँ प्रकट होती है।

3. ' ब्राह्मण देवता आशीर्वाद देंगे, ठाकू र लाठी मारेंगे, साहूजी एक के पाँच लेंगे। गरीबों का दर्द कोन समझता है ?' जोखू के

इस कथन का मतलब क्या है?

समाज में गरीब लोग सभी प्रकार के शोषण के शिकार है। चाहे ब्राहमण हो, ठाकु र हो, साहुकार हो सब गरीबों को लुटा रहे हैं।

गरीबों के दुख-दर्द को समझनेवाले कोई नहीं है। कोई सहायता देनेवाले भी नहीं हैं। ये सारी बातें जोखू के कथन से

स्पष्ट होती हैं।

4. 'गंगी का विद्रोही दिल रिवाज़ी पाबंदियों और मज़बूरियों पर चोटें करने लगा।' -यहाँ प्रस्तुत

रिवाज़ी पाबंदी और मज़बूरी क्या-क्या है?

जाति के नाम पर समाज में बड़ा अलगाव था। निम्न कहे जानेवाले लोगों से छु आ पानी पीना, भोजन खाना, कु एँ से पानी भरना,

रास्ते में उनसे मिलना आदि बातों में पाबंदी थी। निम्न वर्ग के लोग ये सब सहकर जीने को विवश थे। उच्च वर्ग के लोगों के

हितानुसार अपनी जिंदगी की प्राथमिकताओं को तय करने के लिए भी वे विवश थे।

5.इन विचारों में गंगी के कौन-कौन से दृष्टिकोण प्रकट होते हैं ?


विचार दृष्टिकोण

● ठाकु र के कु एँ पर कौन चढ़ने देगा? दूर सेडाँट ● सामाजिक पाबंदियों के विरुद्ध विद्रोह एवं अपनी
बताएँगे। विवशता।
● कितनी होशियारी से ठाकु र ने थानेदार को एक
● यह दृष्टिकोण कि कानूनी व्यवस्था उच्च कहे
खास मुकदमे में रिश्वत दी और साफ निकल आए।
जानेवाले लोगों के अनुकू ल काम करती हैं।
कितनी अक्लमंदी से एक मार्के की मुकदमे की
नकल ले आए।
● उँच-नीच की भावनाओं को तोड़कर एक मन से
● हम क्यों नीच है और ये लोग क्यों ऊँ च है ? इसलिए
काम करने से ही सामाजिक उन्नति संभव है।
कि ये गले में ताग डाल देते हैं यहाँ तो जितने हैं
एक-से-एक छँटे हैं ।

6.इन व्यवहारों से गंगी के कौन-कौन से मनोभाव प्रकट होते हैं ?

व्यवहार मनोभाव

● गंगी क्या जवाब देती, किं तु वह बदबूदार पानी पीने ● विवशता में भी पति के स्वास्थ्य को सही रखने का

को न दिया। मनोभाव।

● उसने घटा और रस्सी उठा ली और झुककर चलती ● सामाजिक पाबंदियों को तोड़कर पति की ज़रूरत
हुई एक वृक्ष के अंधेरे छाए में जा खड़ी हुई। को निभाने का मनोभाव।

● ठाकु र ‘कौन है, कौन है? ' पुकारते हुए ● मन में सामाजिक कु रीतियों के प्रति विद्रोह होने पर
कु एँ की तरफ़ आ रहे थे और गंगी जगत से कू दकर भी परिस्थितियों में असहाय होने की भावना।
भागी जा रही थी।'

7. संबंध पहचानें, सही मिलान करें।

उसने गला मज़बूत किया कि हम ऊँ चे हैं, हम ऊँ चे

गली-गली चिल्लाते नहीं तो उसमें बू बिलकु ल न थी

किसीके लिए रोक नहीं और घड़ा कु एँ में डाल दिया।

कल वह पानी लाई। सिर्फ यह बदनसीब नहीं भर सकते।


उसने गला मज़बूत किया और घड़ा कु एँ में डाल दिया।

गली-गली चिल्लाते नहीं कि हम ऊँ चे हैं, हम ऊँ चे

किसीके लिए रोक नहीं सिर्फ यह बदनसीब नहीं भर सकते।

कल वह पानी लाई। तो उसमें बू बिलकु ल न थी।


सूचना : ठाकु र का कु आँ' कहानी का यह अंश पढ़ें और 1 से 3 तक के प्रश्नों का उत्तर लिखें।

कु प्पा का धुधली रोशनी कु एँ पर आ रही थी। गंगी जगत की आड़ में बैठी मौके का इतज़ार करने लगी। इस कएँ का पानी
सारा गाँव पीता है। किसीके लिए रोक नहीं सिर्फ ये बदनसीब नहीं भर सकते।

1.' मौके का इंतज़ार करना ' - इसका अर्थ क्या है ?

(क) अवसर का उपयोग करना (ख) अवसर की योजना करना

(ग) अवसर का दुरुपयोग करना (घ) अवसर की प्रतीक्षा करना

उत्तर..(क) अवसर का उपयोग करना

2.' रोशनी कु एँ पर आ रही थी ' - यहाँ ' रोशनी ' के बदले ' प्रकाश ' शब्द का प्रयोग करके वाक्य

का पुनलेखन करें। (रोशनी - स्त्रीलिंग, प्रकाश – पुल्लिंग)

उत्तर. प्रकाश कु एँ पर आ रहा था।

3.'ठाकु र का कु आँ' कहानी में चर्चित जाति - प्रथा की समस्या पर लघु-लेख लिखें।

(लेख लगभग 80 शब्दों का हो)

● पीने के पानी में तक भेद-भाव भेद-भाव से मुक्ति

● जाति के नाम अत्याचार जाति भेद एक समस्या

अथवा

“जाति प्रथा एक अभिशाप हैं" विषय पर संगोष्ठी होनेवाला है। इस के लिए एक पोस्टर तैयार करें।
जाति प्रथा - एक सामाजिक अभिशाप

जाति प्रथा - एक सामाजिक अभिशाप जाति प्रथा समाज की एक विकट समस्या है। इसके

कारण समाज में असमानता, एकाथिकार, विद्वेष आदि दोष उत्पन्न हो जाते हैं। जाति प्रथा की सबसे बड़ा दोष छु आछू त की

भावना है। इसके कारण संकीर्णता की भाषना का प्रसारे होता है और समाजिक राष्ट्रीय एकता में बाधा आती है।

एक ज़माने में हमारे देश में जातिप्रथा ज़ोरों में था। कानून ने इसे सामाजिक अपराध कहा जाता है,

लेकिन वास्तव में इसे मानवीय अपराध का नाम दिया जाए तो कु छ गलत न होगा। जाति के नाम पर हमारे यहाँ निम्नवर्ग के

लोगों को कई प्रकार की यातनाएँ झेलनी पडी। ऊँ ची जाति के लोग निम्नजाति के लोगों को अपने बराबर में बैठने नहीं देते।

निम्नजाति के लोगों से छु आ पानी नहीं पीते, मंदिर में प्रवेश न करने देता।

कानूनी रोकथाम, शिक्षा में हुई उन्नति आदि के कारण इस कट्टरपन में थोड़ी सी कभी ज़रूर आई।

लेकिन जाति प्रथा नए रूपों में वर्तमान है। विश्वविद्यालयों, शासक वर्गों, राजनीतिज्ञों आदि के बीच आज भी यह नए - नए रूप

धारकर मौजूद है। अगर हम इसे सलल रूप से रोक न पाएँ तो हमारी सामाजिक उन्नति संभव नहीं होगी।

सरकारी हाईस्कू ल

कोषिक्कोड़

संगोष्ठि

विषय : जाति - प्रथा एक अभिशाप है।

15 जनवरी 2017

समय : सबेरे 10 बजे

स्थान : स्कू ल सभागृह

प्रस्तुति : दसवीं कक्षा के छात्र।

सबका स्वागत
8.गंगी के चरित्र पर टिप्पणी लिखें।

गंगी : रिवाज़ी पाबंदियों पर विद्रोह की आवाज़

गंगी प्रेमचंद की की विख्यात कहानी 'ठाकु र का कु आँ' की पात्र है। वह एक साधारण गृहिणी है। गरीब परिवार की

सदस्या है। जाति से निम्न वर्ग की है। वह कई प्रकार की सामाजिक कु रीतियों की शिकार है। पति बीमार है। वह पानी के लिए तरसता है।

लेकिन पीने के लिए के वल बदबूदार पानी है। यह पानी पिलाने को गंगी तैयार नहीं है। वह सारी पाबंदियों को तोड़कर, ठाकु र के कु एँ से

पानी भर लाने का साहस करती है। रात के अंधेरे में वह पानी लेने जाती है। उसकी चिंताएँ उसके मन के विद्रोह को व्यक्त करी हैं। अंत

में वह कु एँ के जगत तक आ जाती है। उस समय उसका मन एक विजेता जैसा अनुभव करता है। लेकिन परिस्थितियाँ उलटती हैं, ठाकु र

जग जाते हैं और गंगी को विवश भागना पड़ता है। गंगी एक ही समय परिस्थितियों से विवश औरत, विद्रोह मन रखनेवाली नारी एवं पति के

प्रति प्यार रखनेवाली गृहिणी आदि का प्रतिनिधित्व करती है।

9.' जाति प्रथा एक अभिशाप है ' - विषय पर आलेख तैयार करें और संगोष्ठी चलाएँ।

जाति प्रथा : एक सामाजिक अभिशाप

जाति प्रथा समाज की एक विकट समस्या है। इसके कारण समाज में असमानता,

एकाधिकार, विद्वेष आदि दोष उत्पन्न हो जाते हैं। जाति प्रथा की सबसे बड़ा दोष छु आछू त की भावना है। इसके कारण

संकीर्णता की भावना का प्रसार होता है और सामाजिक राष्ट्रीय एकता में बाधा आती है।

जाति के नाम पर निम्न वर्ग के लोगों को कई प्रकार की यातनाएँ सहनी पड़ती हैं। उन्हें अपनी जिंदगी स्वतंत्र रूप से

जीने में बाधा होती है। आम जगहों को इस्तेमाल करने से उनके लिए पाबंदी है। निम्न वर्ग के लोगों से छु आ पानी पीना, उनका

बना भोजन खाना, रास्ते में दूसरों के सामने पड़ना आदि बातों को बुरा समझा जाता है।

कई लोगों ने जाति प्रथा को समाप्त करने की बात की। भारत संविधान में जाति के आधार पर अवसर में भेदभाव

करने पर रोक भी लगाई है। पिछली कई सदियों से पिछडी रही कई जातियों के उत्थान के लिए आरक्षण की व्यवस्था की गई।

निम्न वर्ग के लोगों को इससे कई फायदा हुए। लेकिन जहाँ जाति व्यवस्था कायम है वहाँ नीच जाति वालों को एक तरह से

आरक्षण के नाम पर उनकी नीचता की याद दिलाई जा रही है। असल में आर जहाँ पिछड़ी जातियों को अवसर दे रहा है, वहीं

वे उन्हें ये एहसास भी याद करवाता है कि वे उपेक्षित हैं।

कानूनी रोकथाम, शिक्षा में हुई उन्नति आदि के कारण इस कट्टरपन में थोड़ी सी की जरूर आई। लेकिन जाति प्रथा

नए रूपों में वर्तमान है। विश्वविद्यालयों, शासक वर्गा राजनीतिज्ञों आदि के बीच आज भी यह नए-नए रूप धरकर मौजूद है।

अगर हम इसे सफल रूप से रोक न पाएँ तो हमारी सामाजिक उन्नति संभव नहीं होगी।

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