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उम्र पैंतालीस बतलाई गई थी: कहानी में जातीय एवं दललत संघर्ष

भारत में जातीय संरचना बहुत जटिल है । भारतीय समाज टजतना सरल बाहर से टदखाई देता है, उतनी ही
गढ़ू उसकी जङें हैं । यह जङें सटदयों से पोटषत की जा रही हैं, इन जङों को पोषण टमलने से कुछ उपरी
वगों का फायदा होता है तो टनचले वगों को कममबन्धन व पनु जमन्म का भय टदखाकर उनसे इसका पालन
करवाया जाता है । इन टनचले वगम के लोगों को इस व्यवस्था से कोई लाभ नहीं टमलता बटकक इनका
शोषण ही टकया जाता है । टजनके हाथ में शटि एवं सत्ता थी उन्होंने धमम के नाम पर इस जाल को अटधक
गढ़ू और जटिल बनाये रखा, ताटक यह शटि उनके हाथ से टफसल न जाए । यटद हम भारतीय समाज की
सरं चना को देखें तो हमें यह ज्ञात होगा टक यहााँ प्राचीन समय से दो प्रकार की शटियााँ थीं जो समाज को
अपने अनसु ार टदशा देती गई ं और वे दोनों शटियााँ हैं- 1 धाटममक शटि और दसू री है राजनीटतक शटि ।
इसमें से धमम की शटि सवोपरर रही है । धाटममक शटि जहााँ लोगों के मन को भय द्वारा सचं ाटलत करती है
तो वहीं राजनीटतक शटि उनके दैटनक जीवन को । चाँटू क धाटममक शटि की पहुचाँ बहुत सक्ष्ू म है, जो लोगों
को दसू रे जन्मों के टवषय में भी भय टदखाकर कममबन्धन द्वारा टनयटं ित करती है । इसटलए इसकी गहराई व
टवस्तार दोनों ही अटधक हैं । धमम के अन्तगमत भगवान अथवा ईश्वर नामक एक ऐसी सत्ता है जो सबको
टनयंटित करती है । यटद ईश्वर नाराज़ हो गया तो पररणाम बहुत भयानक हो सकता है, यह डर लोगों के मन
में धमम ने बनाया । धमम की पहुचाँ एवं टवस्तार को देखते हुए राजनीटत भी धमम के अनसु ार अपनी सत्ता का
टवस्तार करने लगी । इन शटियों ने टमलकर एक बङे शोषण तंि का टनमामण टकया जो ज जाटतप्रथा के
रूप में हमारे सामने है ।
जाटतप्रथा का टनमामण इतने सरल रूप में नहीं हु , इसे बनने में हजारों वषों का समय लगा है ।
जाटतप्रथा की जटिलता एवं इसकी टनमामण प्रटिया के टवषय में सवाल करते हुए डॉ. भीमराव अम्बेडकर
टलखते हैं – ‚जाटतप्रथा के मल ू का अ्ययन हमारे प्र्ों का उत्तर दे सकता है टक वह कौन सा वगम है,
टजसने इस पररटध का सिू पात टकया, जो इसका चिव्यहू है ? यह प्र् बहुत कौतहू लजनक है, परंतु यह
बहुत प्रासंटगक है । और इसका उत्तर उस रहस्य पर से परदा हिाएगा टक परू े भारत में जाटतप्रथा कै से पनपी
और दृढ़ होती गई‛।1 जातीयता की पररटध का टनमामण टकसने टकया और यह पररटध इतनी प्रचटलत हो
गई टक कोई अपनी जाटत से बाहर टववाहाटद नहीं करता । डॉ. अम्बेडकर के कथन से यह बात साफ हो

डॉ. भीमराव अम्बेडकर- भारत में जाततप्रथा


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जाती है टक इस पररटध का टनमामण एवं यह व्यवस्था सबसे पहले परु ोटहत अथवा ब्राह्मण वगम द्वारा शरू

की गई टजसका अनसु रण करते हुए अन्य जाटतयों ने भी उस प्रथा को बढ़ावा टदया ।
इसी जातीय एवं दटलत संघषम की यथाथम टस्थटत बयान करने वाली कहानी है ‘उम्र पैंतालीस
बतलाई गई थी’ । यह कहानी उस छोिे से भारत को अपने अंदर समेिे हुए है जो न के वल जातीय कुचि
को चलने दे रहा है, बटकक उसकी जङों को भी मजबतू ी प्रदान करता है । यह कहानी 21वीं सदी की उन
महत्वपणू म कहाटनयों में से एक है जो यथाथम को उसकी सच्चाई के साथ टदखाती हैं । यह कहानी
शतु ोष द्वारा टलखी गई है ।
जब भी दटलत टवमशम अथवा दटलत साटहत्य की बात होती है तो एक प्र् जरूर हमारे सामने
ता है टक क्या गैर दटलतों को दटलत साटहत्य की रचना करने पर दटलत साटहत्य में सटम्मटलत टकया
जाना चाटहए अथवा नहीं ? यह प्र् इसटलए भी महत्त्वपणू म हो जाता है क्योंटक इस पर दटलत टचंतकों ने
गहन टवचार-टवमशम टकया है । और उस साटहत्य को दटलत साटहत्य की कोटि का मानने से इनकार कर
टदया है, जो दटलतों के द्वारा नहीं टलखा गया है । इस प्र् पर टवचार करते हुए हम यह कथन देख सकते हैं
जो इस प्र् की टनस्सारता को दशामता है – ‚हकीकत तो यह है टक हमारे साटहत्य का अटधकांश टहस्सा
स्वानभु टू त का नहीं बटकक सहानभु टू त का है और इटतहास ने प्रमाटणत कर टदया है टक सहानभु टू त का
साटहत्य स्वानभु टू त के साटहत्य से टकसी भी तरह कमतर नहीं है । हमारे यहााँ अटभनय करने वालों या
साटहत्यकारों के टलए परकाया प्रवेश की ककपना की गई है‛।2 इस कथन से यह तो स्पष्ट हो जाता है टक
साटहत्यकार टजन-टजन पािों एवं कथाओ ं का वणमन अपने कथा संसार में करता है, उसके टलए यह
अटनवायम नहीं टक वह उन सभी पािों के जीवन से गजु रकर अनभु व प्राप्त करे । ऐसा कर पाना टकसी एक
के टलए ही नहीं वरन् सभी के टलए बहुत मटु ककल होगा ।
इस कहानी का रंभ करते हुए शतु ोष टलखते हैं – ‚ये प्रेम कहानी नहीं है, इसके बावजदू यह
बताना जरूरी है टक ये बरगद पाठशाला में टखला सबसे नवोटदत और वटजमत प्रेम कुसमु था । नवोटदत
इसटलए टक अभी इसकी खबर टसफम तीन को थी । एक थी सगु ंधा दसू रा बाकमीटक और तीसरा था वह
गन्ने का खेत टजसमें उस टदन सगु ंधा ने ऐसा-ऐसा कहा था । और वटजमत इसटलए टक बाकमीटक उस
इलाके के सबसे टनरीह, सबसे टनकृ ष्ट व्यटि माँगरू डोम का बेिा था । डोम का क्या प्यार और क्या

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अमरनाथ- दतित ववमर्श के अन्तववशरोध
नफरत, उनका परू ी जीवन ही वटजमत होता है‛।33 यहााँ लेखक और पािों की ककपनाशीलता अपने चरम
पर टदखाई देती है । और इस कहानी का रंभ ही ‘इस’ टवद्रोह से होता है । प्रेम हमेशा से ही टवद्रोह का
कारण रहा है, क्योंटक प्रेम का अथम है व्यटिगत टवकास, व्यटि के हाथ में फै सला लेने की शटि का
जाना । जो टकसी भी जाटत व संकुटचत सामाटजक अवधारणा के टलए हाटनकारक है । क्योंटक कोई भी
समाज, वगम, वणम ये सब झंडु टनटममत करते हैं, व्यटित्व नहीं । इसका धार ही एक ऐसी भीड़ होती है
टजसे धममग्रन्थों एवं धममगरुु ओ ं के द्वारा संचाटलत टकया जाता है । दसू री बात यह महत्वपणू म है टक प्रकृ टत
भी इस टवद्रोह और प्रेम के समथमन में टदखाई पड़ती है । यह न के वल प्रकृ टत का मौन समथमन है बटकक इस
बात की उद्घोषणा भी है टक अब बयार बदल गई है । संघषम शरू ु हो चक ु ा है, पररवतमन का समय चक ु ा
है । यह कहानी छोिनपरु ा गााँव की है इस गााँव की राजनीटतक-सामाटजक टस्थटत का वणमन लेखक बड़े ही
सक्ष्ू म रूप से करते हैं । एक-एक जानकारी कथा के साथ इस प्रकार सामने ती है जैसे यह परू ी घिना
हमारी ाँखों के सामने ही घि रही हो । इसका एक उदाहरण प्रस्ततु है – ‚वह जाद भारत के एक गााँव
का समय था । अगर इटं दरा गााँधी की हत्या नहीं हुई होती तो बाकमीटक यह भी नहीं जान पाता टक वह
एक देश में रहता है और उस देश का नाम भारत है । वरना वह अपने गााँव और बहुत हु तो ब्लॉक को
ही परू ी दटु नया समझता था । इससे पहले बाकमीटक ने छोिनपरु ा के बड़का साहेब को हवा में गोली चलाते
देखा था । वे हवेली के हर कायमिम में नात ररकतेदारों के सामने अपनी दनु ाली से हवाई फायर करते थे ।
इसकी स्मृटत बाकमीटक को तब से है जब से वह अपनी अम्मा या बाऊजी के साथ हवेली में बााँस की
िोकरी, सपू ा लेकर जाता था । बंदक ू से टनकली एक तड़ाक की वाज़ बाकमीटक को रोमांटचत करती
थी । पर उसे मरने का ख्याल कभी नहीं या‛।4 इस कहानी में बाकमीटक एक ऐसा पाि है जो न के वल
दटलत वगम का प्रटतटनटध है, बटकक वह उस संघषम और टवद्रोह का भी अगु है जो ज के समाज की
जरूरत है । वह बचपन से ही साहसी व संघषमशील है । अपनी पररटस्थटतयों के गे हार मानना एवं
भाग्यवादी होना उसे टबककुक स्वीकार नहीं । यहााँ उसकी टथमक टस्थटत की बात करें तो उसका पररवार
बााँस की िोकरी बनाता है, सपू ा बनाकर बेचता है, लोग उन्हें पैसे की जगह िा, चावल, लू जो
उनके पास होता बदले में वही दे देते । इसके अटतररि उसका पररवार टववाह तथा अन्य पारंपररक कायों
में भी अपनी जाटत के अनसु ार बाँिे हुए कायों को करता और बदले में उनसे पैसा लेता, टकन्तु इससे भी
उनकी मदनी इतनी नहीं होती थी की पररवार को ठीक तरह से खाना भी टमल पाता ।
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आर्ुतोष- उम्र ऩैंतािीस बतिाई गई थी।
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आर्ुतोष- उम्र ऩैंतािीस बतिाई गई थी।
अब यटद इस गााँव की टशक्षा व्यवस्था पर बात करें तो वहााँ स्कूल पहली से पााँचवीं तक ही है ।
यह स्कूल भी टकसी छत के नीचे नहीं लगता था, बटकक एक बहुत परु ाने बरगद के पेड़ के नीचे लगता था
। टजसकी जड़ें ही स्कूल में कक्षाओ ं का टवभाजन और दीवार का काम करती थीं । लेखक कहते हैं –
‚बरगद स्कूल इस मायने में भी ऐटतहाटसक था टक उस इलाके में जो कुछ टगने चनु े साक्षर पाये जाते हैं वह
सब उसी बरगद से पास उि थे । बरगद की जड़ें कुछ उबड़-खाबड़ ढंग से इधर-उधर फै ली हुई ंथीं । पर
लंबे समय से उन जड़ों को बैठक के रूप में इस्तेमाल टकये जाने के कारण वे प्राकृ टतक स्िूलों में बदल
गयी थीं‛।5
इसी प्रकार का एक उदाहरण प्रस्ततु है – ‚उस स्कूल में एक बार में ही एक क्लास पास कर लेना
जैसे गनु ाह था । इसे टवद्या का अपमान माना जाता था । वहााँ नींव मजबतू करने पर ज्यादा जोर था । इस
तरह छोिी गोल से शरू ु कर चौथी तक ते- ते पढ़ने वाले बाल-बच्चेदार हो जाते थे । ऐसे में मेहनत
मजदरू ी कर पेि पाला जाय टक पााँचवीं पास की जाय‛।6 टशक्षा की टस्थटत इस गााँव में कुछ इस प्रकार की
है टक यहााँ भी जाटतप्रथा का ही जाल फै ला है । इसकी जड़ें उस बरगद की जड़ों से भी गहरी हैं जो इस
स्कूल की नींव है । यहााँ देखा जा सकता है टक ऊाँची जाटत के बच्चे अच्छी तरह पढ़ते नहीं क्योंटक उनके
पास जीवन जीने के पयामप्त से अटधक साधन उपलब्ध हैं । टकन्तु जो टपछड़ी जाटत के बच्चे पढ़ने में अच्छे
हैं उन्हें गे बढ़ने नहीं टदया जाता । क्योंटक ये उच्चवगम की जाटतयों के टलए अपमान की बात है टक
उनके रहते कोई नीची समझी जाने वाली जाटत उनसे अटधक ज्ञान प्राप्त करे । टथमक रूप से मजबतू हो
और उनकी गल ु ामी को छोड़कर अपना स्वतंि जीवन टजये । जब बाकमीटक स्कूल में टशक्षक के सवाल
का जवाब देता है तो उसका क्या प्रभाव पड़ता है यह इस उदाहरण से स्पष्ट हो जायेगा – ‚बाकमीटक के
जवाब के साथ पंडी जी और बाबू साहब के माँहु का स्वाद टबगड़ गया । उस टदन स्कूल क्या परू े इलाके
का ररकॉडम िूि गया । एक डोम जाटत का लड़का ज पचहत्तर तक की टगनती बता टदया । जो डोम
सअ ु र चराने और बााँस की िोकररयााँ बनाते अपना सारा जीवन टबता देते हैं, उसी जाटत का एक लड़का
ज ब्राह्मनों...ठाकुरों की तरह ज्ञानी हो गया था । बाबू साहब ने संशय और दखु के साथ पंडी जी को
देखा । पंडी जी ने धीरे से बाबू साहब के कंधे पर हाथ रखा, धैयम रटखये राजन‛!7 यटद हम दोनों टशक्षकों,
बाबू साहब और पंडी जी की मानटसकता पर प्रकाश डालें तो यह साफ हो जायेगा टक ये दोनों ही उस
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राजशाही वाली मानटसकता को बढ़ावा देते हैं जो बहुत पहले ही समाप्त हो चक ु ी है । ये दोनों एक दसू रे
को िमश: राजन और देवता कहकर पक ु ारते हैं एवं जातीय धार पर सामाटजक टस्थटत बनाये रखने के
कठोर पक्षधर हैं । इसी प्रकार का एक और उदाहरण देखा जा सकता है – ‚यद्यटप डोम होने के कारण वह
टकसी को छू नहीं सकता था । और न ही कोई बच्चा उसे छूता था । पर वह तरह-तरह के करतब जानता
था । टजसने उसे बच्चों की नजरों में खास बना टदया था‛।8 बाकमीटक में अद्भुत प्रटतभा होते हुए भी उसे
उस प्रटतस्पधाम से बटहष्कृ त ही कर टदया गया था जो उसे उसके गणु ों के कारण अच्छी सामाटजक टस्थटत
में ला सकती थी । यह जाटतप्रथा का ज़हर पीढ़ी दर पीढ़ी बच्चों को उनके अटभभावकों द्वारा टदया जाता
था । और यह उन्हीं शटियों द्वारा संचाटलत टकया जाता है टजनकी चचाम हमने पहले भी की है । धाटममक
एवं राजनीटतक शटि, धाटममक शटि से अगले जन्म तक के टलए भी डर पैदा टकया जा सकता है, जो इस
उदाहरण से अटधक स्पष्ट हो जायेगा – ‚दसू रे बच्चों को उसके साथ खेलने में एतराज़ था । बच्चों में वह
ऐतराज भाव उनके मााँ-बाप की ओर से संिटमत हु था । उनको यही बताया गया था टक डोम,
हररजनों, दसु ाध टद जाटतयों से भी टनम्नतर जाटत है । उनको छूने से यह जनम क्या परलोक भी टबगड़
जाता है‛।9 यह धमम का जाल बहुत गहरे तक जा पहुचाँ ा है । टजसे सबके मन से बाहर टनकालना बहुत ही
मटु ककल जान पड़ता है । टकन्तु यह असंभव भी नहीं है ।
बरगद स्कूल में खाना भी जाटतयों में टवभाटजत टदखाई पड़ता है । खाना भी जाटतयों के टहसाब से
ही रखा जाता है – ‚छोिी-छोिी पोिटलयों को बरगद की डाटलयों पर िााँग टदया जाता था । इसमें
पोिटलयों के माटलक की सामाटजक टस्थटत का ख्याल रखा जाता था । सबसे उपर ब्राह्मण बच्चों का
खाना, उसके समानान्तर ही थोड़ी दरू पर राजपतू बच्चों का खाना टफर िमश: यादव, कुरमी, बढ़ई,
लोहार बच्चों का खाना िााँगा जाता था...रोटियों के समाज की यह वणम व्यवस्था बनाई थी पंडी जी ने
और इसे लागू करवाते थे बाबू साहब । पंडी जी की बनाई रोटियों की इस वणम व्यवस्था से दो जन बाहर थे
। एक थी सगु धं ा और दसू रा था बाकमीटक‛।10 इस व्यवस्था से बाकमीटक इसटलए बाहर था क्योंटक उसे
तीन वि का नहीं बटकक दो वि का खाना भी मुटककल से टमल पाता था । और सगु ंधा का खाना दोपहर
के वि ही ता था ।

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बाकमीटक टजस नहर के पास गााँव के बाहर थोड़ी सी जमीन पर झोपड़ी बनाकर रहता था वह
जमीन उससे छीन ली जाती है । गााँव के जमींदार बड़का साहब उसकी झोपड़ी तोड़कर वह जमीन उससे
ले लेते हैं । और उसे वहााँ से थोड़ी दरू पर दसू री झोपड़ी बनानी पड़ती है । वह झोपड़ी उसकी और उसके
पररवार की सारी धन सम्पटत्त, मान मयामदा और परू े जीवन की कमाई होती है उसे भी उससे छीन टलया
जाता है । इस घिना ने उसके मन में एक िूिन पैदा कर दी, टजससे वह टबखरा नहीं बटकक दृढ़संककप के
साथ अपनी पढ़ाई पर ्यान देने लगा । वह स्वयं भी पढ़ता और उस साल पााँचवीं में पहुचाँ े सभी बच्चों
को भी पढ़ाने लगा । इस घिना से पंडी जी और बाबू साहब अपनी न पर ाँच ते देख टतलटमला
गये और टकसी प्रकार से उसे रोकने में लग गये । और इसी उधेड़बनु में लगे हुए इसपर गहन टवचार-टवमशम
टकया । इन दोनों के बीच जो बात होती है उसमें से एक अंश यहााँ प्रस्ततु टकया जा रहा है – ‚टफर एक
गहरी सााँस छोड़ते हुए कहा और टजस टदन एक डोम टशक्षक बनेगा उस टदन सरोसती मैइया के वीणा का
तार िूि जायेगा । महाराज कोटशश करते रहना है टक कोई भी असली ज्ञानी व्यवस्था में न
जाय‛।11अंत में वे बाकमीटक को पास तो कर देते हैं टकन्तु उसकी उम्र सोलह वषम की बजाय पैंतालीस
टलख देते हैं । उम्र ज्यादा होने से वह अब कोई सरकारी नौकरी नहीं कर सकता । इस बात को जानकर
वह घर लौिकर ही नहीं ता । उसका पररवार टबखर जाता है । ऐसी दयनीय टस्थटत हमें बार-बार सोचने
को मजबरू करती है टक हम अब भी उस टपछड़े और टदम समाज में रह रहे हैं टजसमें जीने के टलए कोई
भी टनयम सही माना जाता है । इस प्रकार की सोच को बदलने की वकयकता है ।
टनष्कषम रूप में हम कह सकते हैं टक भारत में जो जाटत व्यवस्था का जाल है उसे तोड़ना इतना
सरल नहीं है टकन्तु यह हम सभी के टहत में है टक इसे तोड़ा जाय । यह भार हमारे कन्धों पर है टक हमारे
समाज में एक भी बाकमीटक पढ़ाई से वंटचत ना रह जाए । जाटत व्यवस्था के टवषय में डॉ. अम्बेडकर का
कथन इस दृटष्ट से बहुत महत्त्वपणू म है – ‚मैं मनु के टवषय में कठोर लगता ह,ाँ परन्तु यह टनटित है टक मझु में
इतनी शटि नहीं टक मैं उसका भतू उतार सकाँू । वह एक शैतान की तरह टजन्दा है, टकन्तु मैं नहीं समझता
टक वह सदा टजन्दा रह सके गा‛।12 इस कथन में उनका गस्ु सा साफ देखा जा सकता है, टकन्तु उनके कथन
में शा की झलक भी टदखाई देती है ।

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आर्ुतोष- उम्र ऩैंतािीस बतिाई गई थी।
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डॉ. भीमराव अम्बेडकर- भारत में जाततप्रथा
सन्दर्ष सच
ू ी-
1. लेखक- डॉ. भीमराव अम्बेडकर, लेख- भारत में जाटतप्रथा hindisamay.com 23/11/2020.
2. लेखक- अमरनाथ, लेख- दटलत टवमशम के अतं टवमरोध hindisamay.com 23/11/2020.
3. लेखक- शतु ोष, कहानी- उम्र पैंतालीस बतलाई गई थी gadyakosh.org 15/11/2020
4. लेखक- शतु ोष, कहानी- उम्र पैंतालीस बतलाई गई थी gadyakosh.org 15/11/2020
5. लेखक- शतु ोष, कहानी- उम्र पैंतालीस बतलाई गई थी gadyakosh.org 15/11/2020
6. लेखक- शतु ोष, कहानी- उम्र पैंतालीस बतलाई गई थी gadyakosh.org 15/11/2020
7. लेखक- शतु ोष, कहानी- उम्र पैंतालीस बतलाई गई थी gadyakosh.org 15/11/2020
8. लेखक- शतु ोष, कहानी- उम्र पैंतालीस बतलाई गई थी gadyakosh.org 15/11/2020
9. लेखक- शतु ोष, कहानी- उम्र पैंतालीस बतलाई गई थी gadyakosh.org 15/11/2020
10. लेखक- शतु ोष, कहानी- उम्र पैंतालीस बतलाई गई थी gadyakosh.org 15/11/2020
11. लेखक- शतु ोष, कहानी- उम्र पैंतालीस बतलाई गई थी gadyakosh.org 15/11/2020
12. लेखक- डॉ. भीमराव अम्बेडकर, लेख- भारत में जाटतप्रथा hindisamay.com 23/11/2020.

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