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• िनबंध:
मेरा िवाथ काल
युवक
का समाज म
थान
िशा का उेय
सयता का रह
य
िशंकु बेचारा
मेरा िवाथ काल –महा मा गाँधी
• लेखक परचय:
परचय: महामा गाँधी जी के बार म चार पंिय
म प रचय दीिजए।
• भूिमका:
मका:
`मेरा िवाथ काल’ रा"िपता महामा गाँधी जी का सं
मरण है। िजसम गाँधी जी ने
िवा%थय
, िशक
और िशा का महव बताया है। पु&षाथ( पर महव देते )ए +ान और
शि का महव मनु,य जीवन म बताया है।
• सारांश:
-
तुत पाठ या सं
मरण `मेरा िवाथ-काल’ महामा गाँधी के .ारा िलिखत है।
िजसम मेरी 7कसी भी 7दन िशकायत नह= क: गई। यहाँ तक 7क पढ़ाई के दौरान इनाम
के साथ-साथ छावृिBयाँ भी मैने हािसल क:।
गाँधी जी कहते ह6 7क मुझे यह अEछी तरह से याद है 7क म6 अपने को ब)त योGय
नह= समझता था। इनाम अथवा छावृिB िमलती तो मुझे आIय( होता परं तु अपने
आवरण का मुझे ब)त 5यान रहता था। मुझे याद है 7क एक बार म6 िपटा भी था, मुझे
इस बात का दुख न )आ 7क िपटा परं तु इस बात का ब)त दुख )आ 7क म6 इस दंड़ का
पा समझा गया। गाँधी जी कहते ह6 7क म6 उस व फू ट-फू टकर रोया था दरअसल यह
घटना पहली या दूसरी का क: है। उस समय हमारे हेडमा
टरदोरावजी एदलजी गीमी
)आ करते थे। वे िवा%थय
से -ेम करते थे Lय
7क वे िनयम
का पालन करवाते,
िविधपूव(क काम करते और काम लेते तथा पढ़ाई अEछी कराते।वे बड़ी का के बN
के
िलए िविभP -कार के खेल-कू द को भी -ोसािहत करते थे। वे जैसे कसरत करवाते,
7Qके ट िखलवाते, फु टबाल िखलवाते थे। गाँधी जी कहते ह6 7क कसरत, खेल-कू द म मेरा
5यान नह= जाता था। पर आगे जाकर म6ने समझा 7क ?ायाम अथा(त् शारी रक िशा के
िलए भी िवा अ5ययन म उतना ही
थान होना चािहए िजतना मानिसक िशा है।
गाँधी जी कहते ह6 एक बार शिनवार के 7दन सुबह
कू ल था। शाम को चार बजे
कसरत म जाना था। मेरे पास घड़ी न थी। आसमान म बादल छा रहे थे। इस कारण मुझे
समय का पता न चला। जब तक कसरत के िलए प)ँचता, तब तक तो सबलोग चले गये
थे। जब दूसरे गीमी साहब ने हािजरी देखी तो मुझे गैरहािजर पाया। जब मुझसे कारण
पूछा गया तो म6ने सबकु छ सही-सही बता 7दया। उSह
ने मेरी बात
को झूठ मानकर मुझ
पर जुमा(ना लगा 7दया। मुझे इस बात से ब)त दुख )आ 7क मुझे झूठा समझा गया। कु छ
7दन बाद कसरत से छु Tी िमल गई। िपताजी क: िचUी जब हेडमा
टर को िमली 7क म6
अपनी सेवा शु;ुषा के िलए
कू ल के बाद इसे अपने पास चाहता Vँ तब जाकर उससे
छु टकारा िमला।
गाँधी जी कहते ह6 7क मुझम एक कमी और थी 7क म6 सुलख
े नह= िलख पाया,
Lय
7क म6 इसे बचपन म ज़Yरी नह= समझता था। खासकर इस बात का एहसास मुझे
3
का ;वण-पठन ना हो पाया।
• उेय:
य:
--X--
• लेखक परचय:
परचय:
`युवक
का समाज म
थान’ क: रचना आचाय( नरे S] देव ने क: है। नरे S] देव का जSम
उBर -देश के सीतापुर नामक गाँव म 31 अLटूबर 1889 को )आ था। उN िशा -ा^
4
करने के बाद नरे S] देव ने वकालत का पेशा -ारं भ 7कया। सन् 1920 म गाँधी जी के
असहयोग आंदोलन म शािमल होने के कारण वकालत छोड़नी पड़ी। लोकमाSय ितलक
इनके राजनीितक गु& थे। कालाSतर म नरे S] देव ने काशी िवापीठ वाराणसी म
अ5यापक बने तथा बाद म यही के कु लपित भी बने। इनका बौa धम( दश(न \ंथ ब)त
-िसa है।
• भूिमका:
मका:
-
तुत िनबंध म नरे S] देव जी ने युवक
को रा"ीय एवं सामािजक महव को ताbकक ढ़ंग
से -ितपा7दत 7कया है। इनका िनधन 11 फरवरी सन् 1956 म )ई थी।
• सारांश:
-
तुत िनबंध म लेखक नरे S] देव ने युवक
क: िज>मेदारी एवं महव को -ितपा7दत
करने के पहले बृहद् समाज के महव
वीकार करते )ए कहा है 7क िजस समाज म
ि
थरता आ जाती है या िवकास क: गित पहले क: अपेा धीमी हो जाती वहाँ वृa
क:
-ितcा अिधक होती है। भारतीय समाज म तो वृa
के िबना समाज क: शोभा ही नह=
बढ़ती पर िवकास के िलए ि
थरता हमेशा बाधक होती है। ऐसी अव
था म प रवत(न का
होना
वाभािवक हो जाता है। इस प रवत(न म वृa
क: भूिमका कम एवं युवक
क:
भूिमका अिधक होती है। Lय
7क अिधकतर नए प रवत(न एवं नवीन समाज का आरं भक
युवक ही होता है। इसका भी एक बड़ा कारण है। वह यह 7क वृa समाज -ाचीन पaित
को आसानी से छोड़ नह= पाता, पर -ाचीनता के मोह से अलग नह= हो पाता परतु युवा
समाज आसानी से इस मोहपाश से बाहर आ जाता है। नरे S] देव ने िलखा है- “अतीत से
कभी कोई आकि
मक संकट आ जाता है। अथवा समाज को नवीन दृिe क: आवयकता
होती है तब युवक
क: शि भंड़ार का उपयोग करना ही पड़ता है।
बेवकू फ: है। अब वह समय आ गया है युवा पीढ़ी को उनक: िज>मेदारी सkप दी जाये।
लेखक का कहना है 7क – “
थूल सय यह है 7क आज क: 7कसी भी सम
या का समाधान
युवक
के सहयोग के िबना समुिचत Yप से नह= हो सकता।”
• उेय:
य: -
तुत िनबंध म िनबंधकार युवक
को उनक: िज>मेदारी से अवगत करवाते ह6।
--X--
• लेखक परचय:
परचय:
7कया। सािहय के े म ये सबसे पहले किव के Yप म -िसa )ए। lकतु बाद म अिधकतर ग
सािहय क: रचना क: है। इनक: -मुख कृ ितयाँ ह6- कम(वीर, गाँधी, महाराज छसाल, भौितक
िव+ान, mयोित िवनोद, भारतीय सृिeQम िवचार, भारत के देशी रा", ?ि और राज,
• भूिमका:
मका:
सूoम दॄिe से िववेचन करते )ए िशा को भारतीय दृिe से -ितिcत एवं िवकिसत करने पर बल
7दया है।
7
• सारांश:
आज भौितकता क: दौड़ म मनु,य अंधा होकर दौड़ रहा है। उसने िशा के उेय को
अयंत संकुिचत कर 7दया है। िजस देश म िशा को जीवन-िनमा(ण, च र-िनमा(ण एवं
?िव िनमा(ण के उेय से \हण 7कया जाता था,उसे वह भूलता जा रहा है। और मा
उपयोिगतावाद के िसaांत को अपना रहा है। lकतु संपूणा(नंद जी ने इस बात का खंड़न करते )ए
कहा है 7क िशा का मुqय उेय मनु,य को पु&षाथ( िसिa के योGय बनाना है। अथा(त् -येक
मनु,य को चाहे दुख के ण हो, चाहे सुख के ण हो, हर समय िनभ(य होकर हर एक चुनौती
आज समाज म सव( वैमन य क: भावना, अलगाववाद, छल, कपट, आदशh एवं कत(?
िववेकशील मनु,य को कe होता है, वह पग-पग पर धम( संकट म पड़ जाता है। अत: आज
-ितिcत कर सके । ऐसा करने से सभी उोग एक सू म बँध जाते ह6 और आदशh तथा कत(?
इमारत को खड़ी करने से पहले, उसक: न=व को मजबूत बनाये। उनम एका\ता,
उपP करे ।
8
कराते )ए कहा है 7क िशक को भोगी नह= योगी होना चािहए। तथा छा
के साथ -ेम और
?ावहा रक +ान भी देना चािहए। ता7क वे धा%मक संक:ण(ता के बंधन से मु होकर धम( के
सही अथ( को समझ सके और समाज क2याण व देश के िहत म अपना योगदान दे सके ।
• िवशेषता:
ता:
--X--
सयता का रहय-
रहय-ेमचंद
• लेखक परचय:
परचय:
-ेमचंद का जSम 1880 ई. म बनारस के िनकट लमही नामक गाँव म )आ था। मृयु
काशी म सन् 1936 ई. म )ई। िपता का नाम मुंशी अजायब राय और माता का नाम आनंदी
नामक प
का समय-समय पर संपादन काय( का भार भी \हण 7कया। उदू( म नवाब राय (जो
धनपत राय का एक -कार से अनुवाद ही है) के नाम से िलखते थे। अं\ेज सरकार क: धम7कय
के बाद से -ेमचंद नाम से िलखना शुY 7कया। आपने `Yठी रानी’ नामक ऐितहािसक उपSयास
के अित र `-ित+ा, िनम(ला, -ेमा;म, गबन, गोदान, कम(भूिम, रं गभूिम’ आ7द -िसa कृ ितय
क: रचना क:। इसके अित र 300 कहािनयाँ, नाटक, िनबंध, जीवनी लेख
क: भी रचना क:
है।
• भूिमका:
मका:
अिधकारी राय रतन 7कशोर तथा एक िनताSत गरीब आदमी दमड़ी के च र के मा5यम से
िलए मोटी रकम को रtत के Yप म वीकार करने वाले राय साहब ने अपने नौकर दमड़ी को
परदा डालकर )नर के साथ ऐब सयता है और अपराध का खुल जाना असयता है।
• सारांश:
इन दोन
िवचारधाराd के -ित माSयता प रवत(नशील है। -ेमचंद सयता का प रचय -
तुत
लेख म दमड़ी और रायरतन 7कशोर के मा5यम से देते ह6। जहाँ एक ओर दमड़ी परं परागत
आिमक एवं मानवीय िवचारधाराd के आधार पर `सय’ है, तो वह= दूसरी ओर रायसाहब
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अपनी बुिa से बुरे से बुरा काम करते )ए भी उस पर पदा( डालकर समाज म अपने को सय
के सभी लोग उसम काम करने के बावजूद भी दो व क: रोटी तक हािसल नह= होती। दमड़ी
भी भारतीय गरीब 7कसान के समान ही अपने पास दो बैल रखता है, िजSह वह अपना िम एवं
बैल
को बेच देता और खेती छोड़कर प रवार के सभी सद
य
के साथ िमलकर मज़दूरी भी कर
लेता तो, आ%थक सम
याd से मुि पा सकता था lकतु वह ऐसा नह= करता Lय
7क वह अपने
दूसरी ओर रायसाहब है जो अEछे पढ़े-िलखे व िजला मिज uेट है, वे अपने जीवन म
मान-मया(दा को िब2कु ल महव नह= देते ह6। वे के वल धन को ही सव( व मानते ह6। यही कारण है
7क वे सरकारी धन का उपयोग गलत कायh म करते ह6 और हर वष( मनाये जाने वाले जSमाeमी
देते ह6। वे अपने ओहदे के मुतािबक जीने के िलए एक रईस आदमी को जमानत 7दलवाने के िलए
बीस हजार Yपये रtत तक लेते ह6। 7फर भी बाहर से वे सय एवं जेिSटलमैन कहलाते ह6।
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वह= दूसरी ओर दमड़ी जो रात-7दन उनक: सेवा म लगा रहा और िजसने कोई अपराध
नह= 7कया। मा मूक पशुd क: भूख िमटाने के िलए थोड़े से चारे क: चोरी क: 7कSतु
बद7क
मती से वह पकड़ा गया और उसे रायसाहब क: अदालत म पेश 7कया गया। तब राय
साहब ने उसके साथ हमदद के बदले कठोरता से ?वहार 7कया। ऐसा करके उSह
ने अपने आप
को िन,प Sयायाधीश होने का दावा 7कया और वही दूसरी ओर रtत लेकर रईस आदमी को
अब दोन
म कौन सय है और कौन असय? पैस
क: लालच म रtत लेने वाला
रायरतन 7कशोर सय है या मूक पशुd क: ुधा तृि^ के िलए क: गई चोरी के कारण पकड़ा
गया दमड़ी? इसके .ारा -ेमचंद ने िन,कष( िनकाला है 7क सयता के वल )नर के साथ ऐब
करने का नाम है। रtत लेकर उस पर परदा डालकर िछपाने वाला रायरतन सभी के सामने
जेिSटलमैन तथा सय ?ि है और मूक पशुd क: ुधापू%त के िलए चोरी करते )ए पकड़ा
• िवशेषता:
ता:
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िशंकु बेचारा-
ारा-हरशंकर परसाई
• लेखक परचय:
परचय:
ह रशंकर परसाई का जSम म5य -देश के इटारसी के पास जमानी नामक थान पर 22
तक अ5यापन काय( करने के पIात् पूण(तया सािहय सेवा म लगे रहे। जबलपुर से इSह
ने
`वसुधा’ नामक सािहियक पिका का संपादन तथा -काशन शुY 7कया था, lकतु अथा(भाव के
कारण इसे बाद म बंद करना पड़ा। परसाई जी क: मुqय रचनाएँ ह6- रानी के तक: क: कहानी,
तट क: खोज, हँसते ह6 रोते ह6, जैसे उनके 7दन 7फरे , तब बात और थी आ7द।
• भूिमका:
मका:
ह रशंकर परसाई रिचत `िशंकु बेचारा’ एक ?ंGयामक लेख है। लेखक ने िशंकु क:
पौरािणक कथा को आधुिनक यथाथ( से जोड़कर नया अथ( 7दया है।
कू ल मा
टर िजसका नाम
िशंकु है अपने एक िश,य पर अनुिचत कृ पा करके उसके िपता िवtािम जो रे Sट कSuोलर है-
के अनु\ह से उBम आवासीय े िसिवल लाइSस म इं ] नाम का रईस के यहाँ प)ँचता है। इS]
के यहाँ xलैट खाली था। िवtािम ने िशंकु को पूरे सामान के साथ xलैट म जाने के िलए
कहा। िशंकु वहाँ ठे ले पर सामान लेकर गए तो इS] ने उसक: गरीबी पर उसे इतना डाँटा 7क
वह लौटकर िवtािम से िमला। िवtािम ने इस बीच िशंकु का मकान 7कसी अSय ?ि
को एलाट कर 7दया था। बेचारे िशंकु को धम(शाला क: शरण लेनी पड़ी। वही कह= का न रहा।
लेख के .ारा yeाचा रय
क: रईसी तथा ईमानदार ?ि क: गरीबी पर -काश डालकर
?व
था पर करारा ?ंGय 7कया गया है। -जातं के िलए यह दुखद -संग है।
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• सारांश:
ह रशंकर परसाई रिचत `िशंकु बेचारा’ एक ?ंGयामक लेख है। िजसके अंतग(त लेखक
म5यवग( से संबंध रखता है। वह= दूसरी और िवtािम है िजSह लेखक ने र ट कं uोलर के Yप म
7दखाया है जो उNवग( से संबंध रखते ह6। उनका लड़का िशंकु क: पाठशाला म ही पढ़ता है।
यह था 7क शायद कभी कोई मकान-मािलक खुश होकर उसे अEछे मोह2ले म मकान 7दला दे।
िशंकु का यह व{ ज2दी ही पूरा होता है, lकतु उसके िलए िलए उसे अपने अ5यापक होने क:
िवtािम उसे अपने बलबूते पर िसिवल लाइन अथा(त् वग(पुरी म एक अEछा मकान
7दलवाते ह6 जहाँ के कता(धता( इं ] है। वे िशंकु को वहाँ आया देख उस पर िबगड़ते ह6 और उसे
वहाँ मकान देने से इं कार कर देते ह6। जब हताश और िनराश िशंकु िवtािम को सारी बात
तु>हारी -ितcा का नह= मेरी -ितcा का सवाल है। अंत म हम देखते ह6 7क िशंकु सच म अंबर
का िशंकु बन जाता है। अथा(त् अEछे घर के चvर म उसका पुराना घर भी उसके हाथ से
िनकल जाता है और अंत म उसे धम(शाला म रहना पड़ता है। इसी के साथ कहानी का अंत हो
जाता है।
वषh से एक अEछे मकान क: लालसा िलए )ए है। या 7फर अSय पा म िवtािम और इं ]
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पूंजीपती वग( से संबंध रखते ह6, उनके संवाद म अहंकार पe झलकता 7दखाई देता है। िनबंध
का -येक पा सश कलाकार है िजसने अपनी बात को पाठक तक प)ँचाया है। िनबंध क:
कहानी को पौरािणक कथा का आधार बनाकर आधुिनक यथाथ( से जोड़कर िनबंधकार ने अयंत
कु शलता से yeाचा रय
क: रईसी तथा ईमानदार ?ि क: गरीबी यु महानगरीय
वातावरण को इस लेख म िलया गया है। भाषा के िवषय म िनबंध अयंत ही सरल एवं रोचक है
जो खड़ी बोली म हमारे सामने -
तुत 7कया गया है।
• उेय या िनकष:
-
तुत लेख म लेखक ने यह बताया है 7क आज भारत जैसे लोकतांिक देश म 7कस तरह
से धिनक वग( के लोग
का वच(
व बना )आ है। भारत के -येक नाग रक को सभी अिधकार तो
उपलiध है ले7कन धिनक वग( के ह तेप के कारण उसका उपयोग करने म सम नह= है।
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