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सरल गु थ सािहब

एवं

िसख धम
जगजीत िसंह
अपनी बात
‘गु ंथ सािहब’ पर सरल प रचया मक पु तक सुधी पाठक क सम तुत करने म मुझे एक आ या मक सुख
और संतोष का अनुभव हो रहा ह। ‘गु ंथ सािहब’ कोई जीवनी या कथा अथवा घटना धान ंथ नह ह, ब क
यह िसफ ई र और जीवन-िस ांत क बात करनेवाली एक शु आ या मक कित ह। िसख गु क उ ेख
क िबना ‘गु ंथ सािहब’ का कोई भी उ ेख अधूरा ह। अतः इस पु तक म मने ‘गु ंथ सािहब’ क संरचना,
व प, संगीत, िस ांत और दशन को गु वाणी क उ रण सिहत सारगिभत प म तुत करने क यास क
साथ-साथ दस िसख गु और इस पिव कित क वाणीकार अ य संत -भ का संि प रचय देकर तथा
साथ ही िसख धम क बार म बुिनयादी जानकारी दान करक तुत पु तक को िकिच ठोस प देने का यास
िकया ह। अंितम अ याय म मने गु वाणी-सागर से कछ चुिनंदा र न सरल श दाथ सिहत िवषयवार तुत िकए ह,
िजनसे िज ासु पाठक को और अिधक सरलता से ‘गु ंथ सािहब’ क िस ांत को समझने म मदद िमलेगी।
पु तक क िलए िच आिद उपल ध करवाने क िलए म िद ी गु ारा बंधक सिमित का आभारी । पु तक क
आवरण क िलए अपने िम ी इ जीत और संदभ-साम ी जुटाने म सहयोग क िलए ी जे.पी. िसंह आनंद का भी
म आभारी । िवषय क गूढ़ता तथा गंभीरता क कारण पु तक म कितपय ुिटयाँ अथवा अशु याँ रह गई ह गी।
आशा ह, सुधी पाठक उनक ओर यान िदलाकर मेरा मागदशन करगे।
५९, कलाश िह स, ई ट ऑफ कलाश,
नई िद ी-११००६५
—जगजीत िसंह
िसख धम का िस ांत, व प और यवहार
धम चाह कोई भी हो, हर मनु य का धम उसक जीवन का आधार होता ह। धम मनु य को न कवल शु ,
सा वक और साथक जीवन जीने क यु िसखाता ह ब क सांसा रक सम या का आ या मक समाधान भी
तुत करता ह। दुःख और संकट क घड़ी म धम मनु य को आ मक बल दान करता ह। इसी बल क बल पर
धािमक मनु य बड़ी-से-बड़ी िवपि का सामना करते ए खर सोने क तरह तपकर बाहर िनकलता ह। बेशक
िविभ धम म ई र क नाम और पूजा-पाठ क तरीक अलग-अलग ह; लेिकन सभी धम का उपदेश और
उ े य एक ह—शु कम और नाम सुिमरन ारा ई र क ा । पाँचव िसख गु और ‘गु ंथ सािहब’ क
संकलनकता गु अजनदेवजी अपनी वाणी ‘सुखमनी’ म कहते ह—
‘सरब धरम मिह े ट धरमु।
ह र को नामु जिप िनरमल करमु॥’
—अथा ह र क नाम का जाप और शु कम करना ही सव े धम ह।
िव क सभी धम म अित आधुिनक और अनूठा ह िसख धम। यह धम िसफ एक ई र म आ था रखता ह,
इसिलए एक रवादी ह। ‘िसख’ नाम सं कत क ‘िश य’ श द से हण िकया गया। िस ांत और व प से िसख
धम को माननेवाले य भारत क कल आबादी का दो ितशत से भी कम ह; लेिकन गितशीलता और
उ मशीलता क अपने ज मजात गुण क कारण भारत क अलावा एक सौ बीस से अिधक देश म बसे-फले ए ह
िसख।

थापना और पहचान िच
िसख धम क न व पं हव शता दी क उ रा म रखी गई। ी गु नानकदेवजी इसक सं थापक एवं दस िसख
गु म पहले गु थे। आठव गु ी गु ह रक ण को छोड़कर, जो बा याव था म गु बने और बा याव था म
ही परलोक िसधार गए, दसव गु ी गु गोिबंद िसंह तक सभी नौ गु ने सामािजक एवं गृह थ जीवन जीते ए
अ या म क उ तम तर को ा िकया। स १६९९ क बैसाखी क िदन गु गोिबंद िसंह ने आनंदपुर सािहब म
संगत से िलये पाँच यार को अमृत क दी ा देकर खालसा पंथ सजाया और िसख धम को एक नई पहचान दी।
िसख क िवशेष पहचान ‘क’ वण से शु होनेवाले पाँच ककार (धािमक िच ) से ह। ये ककार ह—कश,
कघा, क छा, कड़ा और कपाण। गु गोिबंद िसंह ारा येक िसख क िलए िनधा रत इन ककार का अपना
िवशेष मह व ह। कश परमा मा क देन और गु क िनशानी ह। इसिलए िसख क िलए कश काटना या कतरना
विजत ह। कघा कश क ितिदन सफाई क िलए िनधा रत िकया गया। क छा शरीर क गु ांग को ढकने और
िसख को सदा शु -सा वक जीवन जीने का मरण करवाने क िलए ह। चौथा ककार कड़ा हमेशा दाएँ हाथ म
पहना जाता ह। चूँिक हम सभी काम दाएँ हाथ से करते ह, अतः दाएँ हाथ म पहना आ कड़ा िसख को सदा अ छ
कम करने क ेरणा और बुर कम से बचने क चेतावनी देता ह। कपाण आ मर ा क साथ-साथ असहाय, दुबल
और पीि़डत क अ याचार से र ा क िलए ह।

अमृतपान
हर िसख क िलए अमृतपान करना अिनवाय ह। अमृतपान करने क िलए कोई यूनतम या अिधकतम आयु िनधा रत
नह ह। कोई भी य या िसख िकसी भी उ म अमृतपान कर सकता ह। इसे आम बोलचाल म ‘अमृत छकना’
कहते ह। अमृतपान क र म अिनवाय प से ‘गु ंथ सािहब’ क जूरी म होती ह। संगत म से कोई भी पाँच
िसख, िज ह ने पहले अमृतपान िकया आ हो और जो पाँच यार कहलाते ह, अिभलाषी िसख को अमृत छकाने
क र म पूरी करा सकते ह। िसख धम क बुिनयादी िस ांत को माननेवाला, िकसी भी देश या जाित का कोई भी
ी या पु ष अमृत छक सकता ह। अमृतपान क इ छक िसख पूण ान करने क बाद ऊपर बताए गए पाँच
ककार धारण करक ‘गु ंथ सािहब’ क जूरी म पाँच यार क स मुख हािजर होते ह और अमृत क याचना
करते ह। ये पाँच यार लोह क एक िवशेष पा , िजसे ‘बाटा’ कहते ह, म ‘खांडा’ (एक तरह क दुधारी कपाण)
चलाते ए जल और बताशे का अमृत तैयार करते ह और इस दौरान पिव गु वाणी का पाठ भी करते जाते ह।
अमृत तैयार होने क बाद अमृतपान क र म क अरदास होती ह। उसक बाद अमृत छकाने क र म आरभ होती
ह। अिभलाषी िसख वीर आसन क मु ा म पाँच यार क सामने बैठते ह। पाँच यार पाँच-पाँच बार अमृत िसख क
मुँह, आँख तथा कश म डालते ह और उसे हर बार कहते ह—‘बोल, वाहगु जी का खालसा, वाहगु जी क
फतह।’ इसे अमृतपान करनेवाला िसख दोहराता ह।
इसक बाद अमृतपान करनेवाले अथा अमृतधारी िसख मूल मं का पाठ करते ह—
‘एक कार सितनामु करता पुरखु िनरभउ िनरवै ।
अकाल मूरित अजूनी सैभं गुर सािद॥’
त प ा पाँच यार म से कोई एक िसख अमृतधारी िसख को िसख धम क बुिनयादी िस ांत बताता ह। उ ह
बताया जाता ह िक आज से आपक िपछली जाित, कल, गो , मजहब समा आ। अब आपक धािमक िपता गु
गोिबंद िसंह और धािमक माता सािहब कौर ह। आपका ज म- थान कशगढ़ सािहब ह और आप आनंदपुर क वासी
ए। आप सभी एक ही िपता क पु होने क नाते आपस म और सभी अमृतधारी िसख क धािमक भाई ह। एक
अकाल पु ष क अलावा आप िकसी भी अ य देवी-देवता, अवतार या पैगंबर क पूजा नह करगे। ितिदन िनयम
से इन वािणय का पाठ करगे—जपुजी, जाप सािहब, सवैये, सोदर रिहरास एवं सोिहला। अमृतधारी िसख को यह
आदेश भी िदया जाता ह िक वे पाँच ककार हमेशा धारण करगे और चार कठोर विजत बात (करिहत ) का स ती
से पालन करगे। ये ह—
१. कश नह काटने।
२. हलाल (कठा) नह खाना।
३. पराई ी या पराए पु ष का गमन नह करना।
४. तंबाक का सेवन नह करना।
उ िनयम म से िसख क हाथ जाने-अनजाने म अगर िकसी िनयम का उ ंघन हो जाए तो वह पुनः पाँच
यार क सम हािजर होकर क गई या ई गलती क िलए मा क याचना कर सकता ह। पाँच यार आपस म
मं णा करक ाथ िसख को उपयु दंड लगाते ह, िजसे ‘तंखाह लगाना’ कहते ह। इसम गु ार क लंगर म जूठ
बतन माँजने, पानी िपलाने आिद जैसी सेवा से लेकर आिथक दंड तक, जो गु ार क गु क म जाता ह, कोई
भी दंड हो सकता ह। सजा पूरी कर लेने पर अरदास करक उसक भूल ब श दी जाती ह और भिव य म ऐसी कोई
भी भूल दोबारा न करने क चेतावनी दी जाती ह।
िसख का जीवन दो कार का माना गया ह—१. वैय क और २. पंिथक।
वैय क जीवन
येक िसख क िलए यह आव यक ह िक वह ातःकाल पौ फटने से पहले जागकर ान कर और एक अकाल
पु ष का सुिमरन करते ए ‘िनतनेम’ (दैिनक िनयम) क वािणय का पाठ कर। इन वािणय म ‘जपुजी’, ‘जाप
सािहब’ और ‘सवैये’ (कल दस) ातःकाल पढ़ी जानेवाली वािणयाँ ह। ‘सोदर रिहरास’ क वाणी का पाठ शाम
को सूरज ढलने क बाद और ‘सोिहला’ का पाठ रात को सोते समय करने का िवधान ह।
वािणय का पाठ संपूण करने क बाद िसख क िलए खड़ होकर और (जहाँ ‘गु ंथ सािहब’ मौजूद ह वहाँ ंथ
सािहब क सम ) दोन हाथ जोड़कर ‘अरदास’ करना अिनवाय ह। अरदास िसख क ाथना का नाम ह। िसख क
अरदास ‘इक कार ी वाहगु जी क फतह’ से आरभ होती ह और ‘नानक नाम चढ़दी कला, तेर भाणे
सरबत दा भला’ वा य से समूची मानव जाित क क याण क कामना क साथ समा होती ह। हर दैिनक
अरदास म सभी दस गु , पाँच यार , गु गोिबंद िसंह क चार सािहबजाद , ऋिषय , शहीद इ यािद को याद
िकया जाता ह। अरदास िसख क आँख क सामने उसक धम क गौरवपूण इितहास क संि झाँक पेश करती ह
और यह बताती ह िक िकस कार गु और उनक यार शहीद ने सबकछ करबान करक अपने धम क र ा
क और हम वािभमान क साथ जीने क ेरणा दी। अरदास का िसख क जीवन म ब त मह वपूण थान ह। कोई
भी शुभ काय आरभ करने से पहले उसक सफलता और िनिव न समा क िलए अरदास क जाती ह। िसख
अपनी अरदास खुद कर सकता ह।

कवल एक गु
िसख दस गु और उनक जागती योित ‘गु ंथ सािहब’ क अलावा अ य िकसी देहधारी य को गु नह
मानता। वह जात-पाँत, छआछत, तं -मं , शकन-अपशकन, ितिथ-मु त, त, ा , तपण इ यािद म िव ास
नह रखता। िसफ गु ार क अलावा िसख िकसी मठ, मसाण ( मशान), समािध इ यािद म पूजा क िलए नह
जाता। वह गु क उपदेश ‘मन नीवां मित उ ी’ को सदा यान म रखता ह और मन से िवन रहते ए म त क
म हमेशा उ िवचार रखता ह।
िसख धम का मूल िस ांत ह—नाम जपो, िकर करो और वंड छको अथा हमेशा भु का नाम जपो, जीवन-
यवसाय म मेहनत से काम करो और अपनी कमाई का एक िह सा गरीब तथा ज रतमंद लोग क िलए दान
करो। गु नानकदेवजी प र म क कमाई और उसम से िदए गए दान क मिहमा तथा मह व का बखान करते ए
कहते ह—‘घाल खाइ िकछ हथ देइ, नानक रा पछाणिह सेइ।’ इसका मतलब ह िक जो य प र म
करक खाता ह और अपनी नेक कमाई का कछ िह सा दूसर क मदद क िलए िनकालता ह वह ई र- ा क
माग को पा लेता ह। िसख क िलए अपने वैय क जीवन म गु क इस िश ा तथा िस ांत पर अमल करना
आव यक ह।

गु , गु ारा और गु वाणी
गु —िसख धम और उसक अनुयायी येक िसख क जीवन म ‘गु ’ का सव थान ह तथा वह ‘सितगु ’ क
नाम से भी जाना तथा पूण आदर-स मान क साथ संबोिधत िकया जाता ह। िसख क िलए गु -सितगु इ भी ह,
आरा य भी। गु कपा का सागर भी ह और भवसागर से मु िदलानेवाला दाता भी। गु िसख क शुभ इ छाएँ भी
पूरी करता ह और उसक िलए वह श का ोत भी ह। उसक िलए गु सुखदाता भी ह और दुःख तथा भय का
नाश करनेवाला भी। गु का अनुयायी िसख कभी िकसी म, अंधिव ास तथा िवषय-वासना का िशकार नह
होता। गु पर अटल और अिडग िव ास रखनेवाला िसख िकसी भी संकट या चुनौती से नह डरता या घबराता।
ब क ‘चढ़दी कला’ (ऊचा मनोबल) म रहकर िह मत, ढ़ता एवं बहादुरी क साथ हर संकट या चुनौती का
डटकर सामना करता ह। गु क इ ह िवशेषता क कारण िसख क आ मा गु क दशन क िलए चाि क
(चकवा) क तरह तड़पती ह। आ या मक तृ णा और यास नह बुझती, मन शांत नह होता और हर पल गु क
दशन-दीदार क िलए लालाियत रहता ह। गु क दशन से मन-तन ही स नह होता ब क ज म-मरण क दुःख
भी समा हो जाते ह; य िक गु ही उसे आ या मक ान और परम स ा को ा करने का माग िदखाता ह।
दस शरीर एक योित— य प से िसख धम म भले ही दस गु ह, लेिकन िस ांत क ि से सभी दस
गु म अखंड और अलौिकक योित एक ही ह। यह योित गु नानकदेव क ह, जो बारी-बारी से उनक बाद
क गु म िव और दी होती रही। िसख धम म य -गु क परपरा स १४६९ म गु नानकदेव क
काश (ज म) से शु होकर गु गोिबंद िसंह तक अनवरत प से जारी रही। स १७०८ म परलोक गमन से पूव
गु जी ने ंथ सािहब को शा त ( थायी) गु क पदवी दान क और य -गु क दो सौ उनतालीस वष
पुरानी परपरा को समा कर िदया। िसख को गु गोिबंद िसंह ने प आदेश िदया—
‘आिगआ भई अकाल क , तभी चलाइओ पंथ।
सब िसखन को कम ह, गु मािनओ ंथ॥
गु ंथ जी मािनओ, गट गुरां क देह।
जो िभ कउ िमलबो चह, खोज शबद मे लेह॥’
—अथा सभी िसख को आदेश ह िक (हमार बाद) वे ‘गु ंथ सािहब’ को ही कट गु मान और जो िसख भु
को िमलना चाह वह ‘गु ंथ सािहब’ क शबद (पिव वाणी) म भु क खोज कर ले।

गु ारा
शा दक प से गु ारा का अथ ह—गु का ार अथवा गु का घर। गु वाणी का पिव कथन ह—‘िज थे
जाए बह मेरा सितगु सु थान सुहावा’, अथा वह हर थान पिव ह जहाँ मेर गु क चरण पड़। िसख गु
का िजस थान पर ज म आ, अपने जीवन काल म महा गु जहाँ-जहाँ गए और संगत को उपदेश िदया, गु
ने जहाँ-जहाँ िकसीका उ ार िकया, जहाँ-जहाँ गु ने अपने जीवन का अंितम समय िबताया और जहाँ-जहाँ वे
वग िसधार वे सभी थान गु क याद से जुड़कर पिव और िसख क िलए पू य हो गए। पर उस समय ऐसे
सभी थान को ‘गु ारा’ नह , ‘धमशाला’ कहा जाता था। इसी कार गु नानकदेव क समय म धम क चार
क िलए जो क थािपत िकए गए, वे क भी धमशाला कहलाए। गु गोिबंद िसंह ारा स १७०८ म ‘गु ंथ
सािहब’ को गु क पदवी देने क बाद िजस िकसी थान पर भी इस पिव ंथ का काश ( थापना) आ, वह
थान गु ारा हो गया।
आज गु ारा से ता पय िसख क उस धािमक क से ह जहाँ ‘गु ंथ सािहब’ का काश होता ह, सुबह-
शाम ‘गु ंथ सािहब’ का पाठ, कथा और क तन होता ह। गु क काश उ सव, शहीदी िदवस, परलोक गमन
िदवस मनाए जाते ह तथा बेसहार को सहारा िदया जाता ह।
वण मंिदर—सारी मानव जाित का महा तीथ
िसख क अनेक गु ार क साथ िसख धम का इितहास जुड़ा आ ह। ऐसे गु ार को ऐितहािसक गु ार
कहा जाता ह। इनका बंधन कानूनी प से बनी ई सिमितयाँ चलाती ह। जैसे—पंजाब क ऐितहािसक गु ार
क बंध यव था िशरोमिण गु ारा बंधक कमेटी (एस.जी.पी.सी.) और िद ी क ऐितहािसक गु ार क
बंध यव था िद ी गु ारा बंधक कमेटी (डी.जी.पी.सी.) करती ह।
भारत तथा भारत से बाहर अ य देश म जहाँ-जहाँ िसख गु गए, उनक याद म वहाँ भ य गु ार कायम ह।
इनम सबसे िस तथा मुख ह अमृतसर का ह रमंिदर सािहब, जो पूर िव म वण मंिदर (गो डन टपल) क
नाम से जाना जाता ह। इसका िनमाण पाँचव गु ी गु अजनदेव ने करवाया। संव १६४० िव मी म गु जी ने
ह रमंिदर सािहब क न व एक मुसलमान पीर साँई िमयाँ मीर से रखवाकर सवधम समभाव क एक आदश और
अनूठी िमसाल कायम क । धमिनरपे ता क दूसरी िमसाल गु अजनदेव ने कायम क ह रमंिदर सािहब क चार
िदशा म चार ार बनवाकर। ये चार ार इस बात क तीक थे िक ह र क इस मंिदर क चार दरवाजे चार
वण (यानी ि य, वै य, शू और ा ण) क लोग क िलए खुले रहगे और धम, जाित, भाषा, वण आिद क
नाम पर यहाँ िकसीक साथ कोई भेदभाव नह होगा। उ ीसव शता दी क ारभ म महाराजा रणजीत िसंह ने
ह रमंिदर सािहब को सोने से मढ़वाया। तभी से यह पिव थल ‘ वण मंिदर’ क नाम से लोकि य हो गया।
िसख धम क कछ अ य िस ऐितहािसक गु ार ह—ननकाणा सािहब (पािक तान म गु नानकदेव का
ज म- थान), डरा सािहब (लाहौर म गु अजनदेव का शहीदी थान), गु क वडाली (अमृतसर म छठ गु ी
गु ह रगोिबंद का ज म- थान), गु क महल (अमृतसर म नौव गु ी गु तेगबहादुर का ज म- थान), शीशगंज
(िद ी म गु तेगबहादुर का शहीदी थान), गु ारा रकाबगंज (िद ी, गु तेगबहादुर क धड़ का अंितम
सं कार यह आ), फतेहगढ़ सािहब (सरिहद, गु गोिबंद िसंह क दो छोट सािहबजाद —बाबा जोरावर िसंह और
बाबा फतेह िसंह—को यहाँ िजंदा दीवार म िचनवा िदया गया) और बाला सािहब (िद ी, बाला ीतम क नाम से
पू य आठव गु गु ह रक णजी क पािथव शरीर का अंितम सं कार यह आ)।

पाँच त त
फारसी भाषा क श द ‘त त’ का अथ ह शाही िसंहासन। िसख धम क पाँच त त ह—अकाल त त, त त ी
पटना सािहब, त त ी कसगढ़ सािहब, त त ी जूर सािहब तथा त त ी दमदमा सािहब।
सभी पाँच त त म सव अकाल त त अमृतसर म वण मंिदर क ठीक सामने थत ह। इसका िनमाण छठ
गु ी गु ह रगोिबंद ने संव १६६५ म आरभ करवाया। गु जी ने भ क साथ श को जोड़ने क िलए
अकाल त त को श क ेरणा देनेवाला क बनाया। िसख धम क सभी मह वपूण सम या का फसला
अकाल त त पर होता ह। इस पिव थल से जारी िकए गए मनामे (धािमक आदेश) पूर िसख पंथ पर लागू
होते ह। िबहार क राजधानी पटना म थत त त ी पटना सािहब दूसरा त त व गु गोिबंद िसंह का ज म- थान
ह। आनंदपुर सािहब म थत कसगढ़ सािहब तीसरा त त ह। इसी थान पर स १६९९ म गु गोिबंद िसंह ने पाँच
यार को

त त ी जूर सािहब (नांदेड़, महारा ) जहाँ गु गोिबंद िसंह परलोक िसधार

अकाल त त सािहब : िसख पंथ का सव त त

त त ी पटना सािहब (िबहार) जहाँ गु गोिबंद िसंह का ज म आ

त त दमदमा सािहब (भिटडा)

त त कसगढ़ सािहब, जहाँ स १६९९ म खालसा पंथ क थापना ई


अमृतपान करवाकर खालसा पंथ क थापना क थी और िसख पंथ को नई िदशा दी। सुदूर महारा म नांदेड़ म
गोदावरी नदी क िकनार पर थत जूर सािहब िसख धम का चौथा त त ह। इसी थान पर स १७०८ म गु
गोिबंद िसंह परलोक िसधार और परम योित म िवलीन ए। यह त त सचखंड तथा अबचल नगर क नाम से भी
जाना जाता ह। पाँचवाँ तथा अंितम त त दमदमा सािहब िजला भिटडा, पंजाब म थत ह और ‘साबो क तलवंडी’
क नाम से भी जाना जाता ह। इस थान पर गु गोिबंद िसंह ने भाई मनी िसंह क सहयोग से गु तेगबहादुर क
वाणी को ‘गु ंथ सािहब’ म दज करक इस पिव ंथ को अंितम प िदया था।

गु वाणी
गु क पिव मुख से उ रत वाणी ही ‘गु वाणी’ ह। िसख धम म गु वाणी का ही दूसरा नाम ‘शबद’ (सबद) या
‘गु -शबद’ ह। गु वाणी वह त व ान ह जो गु ने अकाल पु ष परमिपता परमा मा क साथ अपनी आ मा को
जोड़कर तथा एकाकार होकर ा िकया। ‘गु ंथ सािहब’ म इस त व ान को ‘ िवचार’ कहा गया ह।
िवचार इसिलए, य िक यह कोई साधारण गीत या का य नह , जो िकसी य या यव था (राजतं आिद)
को रझाने क िलए िलखा गया हो। गु वाणी ऐसा का य भी नह ह िजसक रचना आम सांसा रक का य क तरह
क पना क आधार पर क गई हो, ब क यह तो वह शबद (सबद) ह जो सीधे परमा मा लोक से आया। ये शबद
(सबद) भुिपता परमा मा क अपने िवचार ह। भु ने ये िवचार गु क ीमुख से कहलवाए या कट िकए,
जैसािक गु अजनदेव फरमाते ह—
‘हउ आप बोिल न जाणदा।
मै किहआ सभु कमाउ जीउ॥’
इसी कार गु नानकदेवजी भी फरमाते ह िक ये वचन या शबद (सबद) हमार अपने नह , ब क ये तो
‘खसम’ (ई र) क वाणी ह। हम तो कवल उसक आदेश का पालन करते ए उनका उ ारण मा कर रह ह—
‘जैसी मै आवै खसम क बाणी।
तैसड़ा क र िगआनु वे लालो॥’
िसख गु ने कवल वाणी का उ ारण या रचना ही नह क ब क वाणी को अपने जीवन म भी ढाला,
उसपर अमल करक िदखाया। उदाहरण क तौर पर, गु वाणी म अनेक जगह ‘सेवा’ का उ मह व बताते ए
मनु यमा को सेवा का उपदेश तथा ेरणा दी गई ह। गु ने वयं अथक सेवा क कमाई करते ए गु क
उ तम आ या मक पदवी ा क । इसी कार अपनी वाणी म अगर उ ह ने सिह णुता और शांिति यता का
संदेश िदया तो खुद भी सिह णु रहकर गु अजनदेव और तेगबहादुर धम एवं स य क र ा क िलए व क
शासक क हाथ शहीद हो गए। घोर क तथा यातनाएँ िदए जाने पर भी मुँह से उफ तक नह क , ब क ई र
को संबोिधत करते ए कहा—‘तेरा क आ मीठा लागे’।
गु वाणी य क अशांत, चंचल, दुःखी तथा उदास मन को शीतलता, शांित तथा एका ता दान करती ह;
दय म ान का काश और अ ान का िवनाश करती ह। गु वाणी म तीन बात का िवशेष वणन ह—१. सव
साँझी स ाइयाँ, २. नाम, नामी तथा कह -कह नाम का जाप करनेवाल का वणन और ३. शु और सा वक
जीवन जीने क िलए िदशा, िनयम तथा िस ांत।

पंिथक जीवन
िसख धम म य से यादा मह वपूण पंथ ह। पंथ िसख मत म दीि त सभी िसख से िमलकर बना ह। हर िसख
इस पंथ का सद य ह। िसख धम क सभी मसले पंथ ही तय (हल) करता ह। पेचीदा मसले ‘सरबत खालसा’
बुलाकर आम सहमित से हल िकए जाते ह। पंिथक एकता तथा श क बल पर िसख समुदाय ने िपछले चार सौ
से अिधक वष म अ याचारी और दमनकारी शासक क िव कई धमयु लड़ और उनम िवजय हािसल क ।

संगत और पंगत
िव क लगभग सभी धम और धम ंथ म य क च र -िनमाण, पितत क उ ार और मु क िलए ‘संगत’
क मह व पर काफ जोर िदया गया ह। लेिकन िसख धम पहला धम ह िजसने संगत क साथ-साथ ‘पंगत’ को भी
जोड़ा। पंगत का अथ ह गु ार म लंगर (मु त भोजन) वाले थान पर ऊच-नीच, जात-पाँत, अमीर-गरीब का
भेदभाव िकए िबना सभी ालु ारा फश पर एक ही पं (‘पंगत’ श द पं से ही बना ह) म बैठकर
ेम तथा ा भाव से लंगर खाना या ‘छकना’, जैसािक पंजाबी म चिलत प से कहा जाता ह।
पंगत क आव यकता और शु आत क पीछ एक पूरी सामािजक पृ भूिम ह। म य काल म भारतीय समाज
जाितय म बँटा आ था। ऊची जाित क लोग तथाकिथत छोटी जाित क लोग को ितर कार क ि से देखते थे।
उनक साथ खाना तो दूर, उठना-बैठना भी पसंद नह करते थे। मानव-मानव क बीच इस घोर अमानवीय भेदभाव
को िमटाने क िलए गु नानकदेव ने संगत क साथ पंगत क ांितकारी और समाज-सुधारवादी परपरा शु क ।
इसका उ े य था—लोग म इनसानी बराबरी और भाईचार क भावना पैदा तथा िवकिसत करना।
लोग क मन-म त क से अहकार, अमीर-गरीब, ऊच-नीच क भावना पूरी तरह से समा करने क उ े य से
तीसर गु ी गु अमरदास ने गु -दरबार का िनयम बना िदया—पहले पंगत, पीछ संगत। यानी गु जी क दशन
और दरबार म स संग क इजाजत तभी िमलती जब य पहले लंगर म सबक साथ एक ही पं म बैठकर
भोजन कर लेता।
‘साखी’ (स ी घटना) ह िक एक बार बादशाह अकबर ने, जो गु -घर का परम ालु था, आकर गु
अमरदास क दशन करने क इ छा जािहर क । उसे भी कहा गया िक गु -दरबार का सबक िलए एक ही िनयम ह
—पहले पंगत, पीछ संगत। चूँिक अकबर स े मन से गु अमरदास क दशन क िलए आया था, इसिलए कछ देर
क िलए यह भूलकर िक ‘म बादशाह ’, लंगर- थान पर जाकर आम ालु क तरह लंगर हण िकया और
इस यव था से ब त भािवत आ। इसक बाद वह गु जी क दशन करक स मन से राजमहल लौटा।
भारत क सामािजक प रवतन और सुधार म लंगर था का अमू य योगदान ह। म य काल म आरभ ई यह था
आज आधुिनक काल म भी बद तूर कायम ह और गु ार म दोन व अमीर ालु, अपंग, असहाय, गरीब,
साधनहीन य गु क साद क प म लंगर छकते (खाते) ह। लंगर क िलए ालु अपनी साम य क
अनुसार तन, मन और धन से सेवा करते ह। कभी-कभी िवशेष अवसर पर िकसी गु ार म िकसी एक य या
प रवार ारा ावश पूर लंगर क यव था क जाती ह। इसक बावजूद वह ‘गु का लंगर’ कहलाता ह,
यव था करनेवाले य या प रवार िवशेष का नह ।
अब संगत क बात कर। हर मनु य का मन संगत क इ छा रखता ह। संगत म िवचरण करना, उठना-बैठना
मनु य क सहज वृि ह। संगत क रगत मनु य पर ब त ज दी चढ़ती ह। इसिलए सभी धमशा और ंथ
मनु य को अ छी संगत से जुड़ने और बुरी से बचने या उसका याग करने का उपदेश देते ह।
िसख गु ने अपनी वाणी म संगत या साध संगत (साधु जन का संग) क मह व पर काफ जोर िदया ह।
गु वाणी क अनुसार, साधु या संत जन क संगत करने से मनु य क सभी पाप धुल जाते ह, मन गंगाजल क तरह
िनमल हो जाता ह। काम, ोध, लोभ, मोह तथा अहकार नामक पाँच िवकार िनयं ण म आते ह। मन से अह भाव
(घमंड) क मैल उतर जाती ह और उसक थान पर भु क नाम का रग चढ़ना शु हो जाता ह। साधु जन क
संगत से अड़सठ तीथ क ान िजतना पु य ा होता ह, नाम सुिमरन क िविध आती ह और इधर-उधर भटकता
आ मन भु-भ और बंदगी म थर हो जाता ह और इस कार अंततः य भवसागर को पार करक मु
हो जाता ह—
‘क र संगित तू साध क , अिठ सिठ तीरथ नाउ।
जीउ ाण मनु तनु हर, साचा ए सुआउ॥’
लेिकन गे ए अथवा सफद व धारण कर लेन,े संसार छोड़कर जंगल, पवत या गुफा म िनवास करने और
माँगकर खाने से ही कोई साधु या संत नह बन जाता। गु वाणी ऐसे दंभी व पाखंडी साधु-संत क संगत से बचने
क चेतावनी देती ह। तो िफर स े साधु-संत क पहचान या ह? गु वाणी म कहा गया ह—
‘िजनां सािस ास न िवसर, ह रनामा मिन मंत।
धनु िस सेई नानका, पूरन सेई संत॥’
—अथा जो य हर पल ह र क नाम का मरण- यान करता ह, वह ध य ह और वही पूण संत भी ह। इसी
कार वह य साधु तथा वैरागी ह िजसने अपने दय से अहकार का याग करक उसम भु का नाम बसा िलया
ह—
‘सो साधु बैरागी िहरदे नाम वसाए।
×××
िवच आप गवाए॥’
ऐसे साधु क संगत से य को न कवल ज म-मरण क दुःख से छटकारा िमल जाता ह अिपतु वह संसार
पी सागर को भी पार कर जाता ह, जैसािक गु वाणी क िन निलिखत पं याँ समझाती ह—
‘जनम मरन दुखु किटआ, ह र भेिटआ पुरखु सुजाणु।
संत संिग साग तर, जन नानक सचा ताणु॥’

ी जाित का स मान
िसख धम म मिहला को पु ष क बराबर स मान तथा थान हािसल ह।
पं हव शता दी म गु नानक से लेकर अठारहव शता दी म गु गोिबंद िसंह तक सभी दस िसख गु ने
मिहला को सामािजक तथा धािमक आजादी िदलाने और उनक सामािजक ित ा तथा स मान क जमकर
पैरवी क । गु नानक ने तो यह कहकर िक ‘भंिड जँमीअै भंिड िनमीअै, भंिड मंगण िवआ ’— ी क िबना
पु ष क जीवन को अधूरा बताया। नानकजी ने यहाँ तक कहा—‘सो य मंदा आिखए िजत जम राजान’,
अथा महा , तापी राजा को ज म देनेवाली ी जाित को नीच कहना पाप ह। उस जमाने म वेद-शा आिद
पढ़ने तथा हवन आिद म शािमल होने क औरत को मनाही थी। पर नानकजी ने यह फरमाकर िक ‘सुन मंडल
इक जोगी बैसे, ना र न पुरखु कह कोउ कसे’ अमर संदेश िदया िक ई र क योित, जो येक ाणी म
िव मान ह, उसे न नारी कहा जा सकता ह, न पु ष। वह परमा मा का ही अंश ह।
सोलहव शता दी देश क िलए भारी राजनीितक उथल-पुथल का युग था। आ मणकारी बाबर क सेना ने
लाहौर म य पर जो अ याचार िकए, उनसे गु नानक का कोमल दय रो उठा। मासूम य क दुदशा क
िलए नानकजी ने ई र क भी कड़ी आलोचना क और कहा—‘ऐित मार पइ करलाण त क दद न आइआ’,
अथा ह भु, इन मासूम पर इतने अ याचार होते देखकर भी तु ह इनपर तरस नह आया।
गु नानक ने तो यहाँ तक घोषणा कर दी िक ई र क दरगाह म कवल वही य स मान और थान पाते ह
जो ी जाित का स मान-स कार करते ह—
‘िजत मुख सदा सालाहीअै भागां रती चार।
नानक ते मुख उजलै िततु सचै दरबार॥’
मिहला क हक, स मान और आजादी क जो ांितकारी मशाल गु नानक ने जलाई, उसे बाद क गु ने
अपने आँचल क ओट दी और कभी बुझने न िदया। उस व क अनेक सामािजक बुराइय म मुख थी सती था
और िवधवा जीवन क साथ जुड़ा सामािजक लांछन। तीसर गु ी गु अमरदास ने इन दोन क िखलाफ आवाज
बुलंद क । उ ह ने फरमाया िक पित ता ी होने का अथ यह नह िक प नी पित क साथ जल मर। स ी पित ता
वह ह जो िवरह को सह। गु अमरदासजी ने अनेक िवधवा का अपने हाथ से िववाह करवाकर उ ह उपे ा तथा
अपमान क िजंदगी से बाहर िनकाला और उनका सामािजक पुनवास िकया। यही नह , पंजाब म तथा पंजाब से
बाहर धम क चार क िलए गु अमरदास ने जो धािमक पीठ थािपत क , उनम कई पीठ पर मिहला को
िनयु करक उ ह िमशनरी क एक सवथा नवीन तथा उ सामािजक-आ या मक स मानवाली भूिमका दान
क । इसी तरह िसख इितहास म िज आता ह िक छठ गु ी गु ह रगोिबंदजी से एक बार गुजरात क एक जाने-
माने सूफ दरवेश शाह दोलाँ ने पूछा िक ‘औरत या ह?’ इसपर गु जी ने जवाब िदया, ‘औरत ईमान ह।’
म य युग म भारतीय समाज म बि य का जनमते ही गला घ ट देने क अमानवीय था िव मान थी। िसख
गु ने इस था क कड़ी िनंदा क और अपने अनुयाियय को ‘कड़ीमार’ (लड़क का ह यारा) का सामािजक
बिह कार करने तथा उनक साथ रोटी-बेटी का र ता न रखने क िहदायत दी। इस संबंध म गु गोिबंद िसंह का
मनामा प ह—
‘मोणा और मसंदीआ, मोना कड़ी जु मार।
होई िसख वरतण कर, अंत करगु खुआर॥’
(‘रिहतनामा’, भाई ाद िसंह)
इस िस ांत पर अमल करते ए अठारहव शता दी क यो ा ज सा िसंह रामगि़ढया को कड़ीमार होने क दोष
म पंथ से िनकाल िदया गया था। इस अपराध क िलए जब उसने समूचे खालसा पंथ से माफ माँगी तब उसे दोबारा
पंथ म वापस िलया गया।
स १६९९ को बैसाखी क मौक पर पु ष क साथ-साथ िसख य को अमृत क दी ा देकर गु गोिबंद िसंह
ने उ ह एक नई जुझा श दी। उस श से पैदा ई माई भागो जैसी यो ा िसख ी ने चमकौर क यु म
गु गोिबंद िसंह क सेना क ओर से लड़ते ए दु मन क दाँत ख कर िदए। इसी यु म बीबी हरशरण कौर
यु क मैदान म प चकर शहीद िसख क लाश का अंितम सं कार करते ए अंततः शहीद हो गई। इस कार
िसख इितहास क िनमाण म मिहला क शानदार भूिमका का एक और अ याय जुड़ गया।
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संपूण आ काय
१६ अग त, १६०४ का पिव िदन। पाँचव गु ी गु अजनदेव क पं ह वष क तप या पूण ई और आिद ंथ
का संपादन पूण आ। पूर चौदह सौ तीस पृ वाले इस िवशाल और महा आ या मक ंथ को धूमधाम और
पूण धािमक मयादा क साथ ह रमंिदर सािहब ( वण मंिदर, अमृतसर) म थािपत िकए जाने (सामा य िसख
श दावली म िजसे ‘ काश करना’ कहते ह) क सभी तैया रयाँ पूरी हो चुक थ । आिद ंथ को एक जुलूस क
श म ह रमंिदर सािहब ले जाया जा रहा था। गु अजनदेव क िन काम सेवक बाबा बु ाजी ने आिद ंथ को
अपने िसर पर उठा रखा था। उनक पीछ सैकड़ ालु ‘सतनाम वािहगु ’ का जाप और आिद ंथ पर फल क
वषा करते ए चल रह थे। ह रमंिदर सािहब क भीतर प चकर पिव ंथ को मंजी सािहब (छोटा खटोला) पर
स मान क साथ रखा गया और उसपर सुंदर माले (व ) सजाए गए। इसक बाद गु अजन तथा अ य सभी
ालु आिद ंथ को नमन करक उसक सम ा क साथ बैठ गए। गु अजन ने बाबा बु ाजी को आिद
ंथ म से ‘ मनामा’ (पिव ंथ म से एक प पढ़ना) लेने क िलए कहा। बाबा बु ाजी ने आिद ंथ को
खोलकर थम मनामा िलया तो िन निलिखत शबद (प ) आया—
‘संता क कारिज आप खलोइआ
ह र कमु कराविण आइआ राम...।’
इस कार आिद ंथ का ह रमंिदर सािहब म धािमक मयादा क साथ थम काश आ। बाबा बु ाजी को गु
अजन ने ंथ सािहब का पहला ंथी िनयु िकया। आिद ंथ को गु अजनदेव हमेशा ऊचे आसन पर सुशोिभत
करते और वयं नीचे जमीन पर सोते। इतना अिधक स मान देते थे वे इस पिव ंथ को।
भारत ऋिषय , मुिनय और तप वय क धरती ह।ssss यहाँ ‘वेद’, ‘गीता’, ‘रामच रतमानस’ जैसे कई धािमक
ंथ क रचना ई। इनक अित र ‘बाइिबल’ तथा ‘करान’ िव क अ य िस एवं ाचीन धािमक ंथ ह।
िव क मुख धम ंथ म सबसे नवीन ह ‘गु ंथ सािहब’।

आिद ंथ क थम ंथी बाबा बु ा जी


न कवल आकार क िलहाज से, ब क साम ी क िलहाज से भी यह एक लासानी ंथ ह, िजसम ई र और
मो क अलावा जीवन क येक पहलू क बार म य को मागदशन िमलता ह।

उ ेय
‘गु ंथ सािहब’ क रचना क पीछ गु अजनदेव का उ े य संसार क आ या मक भूख को शांत करना और
उसका उ ार करना था। राग मुंदावणी म रिचत अपने िन निलिखत शबद (सबद) म गु जी बताते ह—
‘थाल िविच ितिन व तु पईओ, सतु संतोखु िवचारो।
अमृत नाम ठाकर का पइओ, िजसका सभसु अधारो।
जे को खावै जे को भुंचे, ितसका होइ उधारो।
ऐह व त तजी नह जाई, िनत िनत रखु उ रधारो।
तम संसा चरन लग तरीअै, सभु नानक पसारो॥’
—अथा मने िव क आ या मक भूख क शांित क िलए ‘गु ंथ सािहब’ क प म एक ब मू य थाली म
तीन व तुएँ परोसकर रख दी ह। ये व तुएँ ह—स य, संतोष तथा भु क अमृत नाम का िवचार। जो भी ाणी इन
व तु को खाएगा और पचाएगा (यानी ‘गु ंथ सािहब’ क वाणी को पढ़गा तथा जीवन म उसपर अमल
करगा) उसका उ ार होगा (िजस कार जीवनपयत मनु य भोजन करता ह उसी कार)। ाणी को सदा इन
व तु को दय म बसाना होगा, तभी उसक मन से अ ान का अंधकार दूर होगा और ान का काश होगा।

सबका साँझा ंथ
‘गु ंथ सािहब’ समूची मानव जाित का साँझा गु ह। गु अजनदेव ने इस महा ंथ का संकलन और संपादन
करते समय ‘ख ी, ा ण, सूद, वैस, उपदेसु च वणा कउ साँझा’ क धािमक समता तथा सम वयकारी
उ े य को सामने रखा। उ ह ने अपने पूववत चार िसख गु गु नानकदेव, गु अंगददेव, गु अमरदास और
गु रामदास क अलौिकक वाणी तथा वयं क वाणी क साथ-साथ अपने समकालीन एवं पूववत िहदू, मुसिलम
धम एवं तथाकिथत िन न जाितय से संबंध रखनेवाले तीस संत और भ क चुिनंदा वाणी को भी ‘गु ंथ
सािहब’ म दज करक उ ह िसख गु क बराबर स मान तथा थान दान िकया। इस कार िव का यह
एकमा धम ंथ ह िजसम उसक छह मूल धमगु सिहत छ ीस रचनाकार क ई रीय आराधना एवं तुित का
गायन करनेवाली वाणी क एक साथ दशन होते ह, िजनम शेख फरीद, जयदेव, कबीर, नामदेव, ि लोचन,
परमानंद, रामानंद, रिवदास, ध ा आिद संत -भ क नाम मुख ह।

रामसर म ई रचना
‘गु ंथ सािहब’ क रचना क िलए गु अजनदेव ने अमृतसर म घने वृ क छायावाले एकांत े रामसर को
चुना, क मीर से िवशेष कागज मँगवाया और याही भी खास तैयार करवाई।

गु अजनदेव (दाई ओर) भाई गुरदास से वाणी िलिपब करवाते ए


वाणी को िलिपब यानी िलखने का काय िकया भाई गुरदास ने। वे जो-जो वाणी िलिपब करते जाते, गु
अजनदेव साथ-साथ उसक जाँच करते जाते।
‘गु ंथ सािहब’ म गु नानक या िकसी अ य िसख गु क जीवनी अथवा िसख इितहास का बखान नह ह,
ब क इसम मा एक परम स ा क मिहमा और यावहा रक जीवन-यु का वणन ह। इसम वणन ह ई र क
नाम-िसमरन का, ेमा-भ का, जन सेवा का, जीवन म आडबर व छल-कपट छोड़ने एवं नैितक मू य , पिव ता
और सादगी को अपनाने का। इसम वणन ह मानवीय एकता तथा भाईचार का।
वण नह , वाणी को स मान
गु नानक का िमशन ‘एक िपता एकस क हम बा रक’ तथा ‘सभना जीआं का एको दाता’ क िस ांत पर
वणभेद तथा जाितभेद रिहत समाज क थापना का बल समथक था, िजसम जात-पाँत और कमकांड क िलए
कोई थान नह था। िसख गु ने कवल एक ई र को ही सृि का कता और पालनहार वीकार िकया तथा
उसे सव कहा। अतः ‘गु ंथ सािहब’ क रचना करते समय गु अजनदेव ने इ ह दो िस ांत को सामने रखा
—सामािजक एकता तथा एक रवाद। इ ह िस ांत क अनु प गु जी ने ंथ सािहब क िलए वाणी का संकलन
करते समय उसक रचनाकार क सामािजक-आिथक ित ा या कल और जाित क उ ता को कसौटी मानने क
बजाय उनक रचना क े ता को जाँचा-परखा। अलग-अलग इ और मत को माननेवाले रचनाकार क वाणी
को गु अजनदेव ने बड़ धैय और गौर क साथ पढ़ा। गु देव ने िसफ उसी वाणी को इस महा ंथ म शािमल
िकया जो ई र क एक व, सामािजक बराबरी, िव -बंधु व, गितवािदता जैसे िसख धम क मूल िस ांत क
कसौटी पर खरी उतरती थी। गु अजनदेव ने उन सभी रचना को ‘गु ंथ सािहब’ क िलए अयो य करार दे
िदया िजनम ई र क बजाय य िवशेष का गुणगान था, िजनम सामािजक भेदभाव क साथ-साथ ी जाित क
िनंदा का समथन िकया गया था अथवा िम या कमकांड को बढ़ावा िदया गया था।
छजू, काहना, पीलू तथा शाह सैन क रचना को गु अजनदेव ने इसिलए अ वीकार कर िदया, य िक वे
िसख धम क मानवतावाद और ‘एक कार’ क मूल िस ांत से मेल नह खाती थ । उदाहरण क तौर पर, काहना
क रचना म ई र क स ा का गुणगान नह , अहकार धान था, िजसका सारांश था, ‘म वह परम स ा िजसका
गुणगान वेद और पुराण भी करते आए ह।’
जािहर तौर पर काहना का यह अहवाद गु नानक क उस दशन क िवपरीत था िजसम ई र को सव और
सम त सृि का सजनकता (एक कार सितनामु करतापुरख) माना गया ह। इसी कार छजू क रचना ‘गु
ंथ सािहब’ क िलए इस कारण अयो य मानी गई, य िक उसम ी जाित क घोर िनंदा क गई थी तथा उसे सभी
पाप क जड़ कहा गया था। इसक िवपरीत गु नानक क धम ने तो ी जाित को परम पू य माना और नानकजी
ने तो यहाँ तक फरमाया—‘सो य मंदा आखीअै िजत जमै राजान’, अथा बड़-बड़ तापी राजा को ज म
देनेवाली ी जाित क िनंदा करना सवथा अनुिचत ह।

रा ीय एकता
रा ीय एकसू ता क बेजोड़ िमसाल ह ‘गु ंथ सािहब’। हालाँिक िसख धम का उदय पंजाब म आ और उसक
अिधकतर गितिविधयाँ भी पंजाब म ही कि त रह , लेिकन गु अजन ने ‘गु ंथ सािहब’ को ई रीय वाणी का
वह िवशाल सागर बनाया िजसम उ र-दि ण, पूव-प म चार िदशा से ई र तुित क स रताएँ आकर
समािहत ई। उदाहरण क तौर पर, ‘गु ंथ सािहब’ म अपनी वाणी क प म मौजूद नामदेव और परमानंद
महारा क थे तो ि लोचन गुजरात क। रामानंद दि ण म पैदा ए तो जयदेव का ज म प मी बंगाल क एक
छोट से गाँव म आ। इसी कार ध ा का संबंध राज थान से था तो शेख फरीद प मी सीमांत और सदना िसंध
से ता ुक रखते थे। इनक तथा बाक संत -भ क वाणी को एक माला म िपरोकर गु अजनदेव ने भारत क
भौगोिलक सम वय क बेहतरीन और अभूतपूव िमसाल कायम क ।

पाँच शता दय क चुिनंदा वाणी


गु अजनदेव क संक पना म इस महा ंथ का व प और िस ांत शा त था। अतः देश और जाित क बंधन
से मु रखने क तरह उ ह ने ‘गु ंथ सािहब’ क वाणी को काल क बंधन से भी मु रखा। हालाँिक इसका
संपादन स १५८९ से १६०४ क म य आ, लेिकन अ येता और

तलवंडी साबो, दमदमा सािहब म गु गोिबंद िसंह ने आिद ंथ म गु तेग बहादुर क वाणी दज करवाई
भ रस क िज ासु को इसम बारहव शता दी से लेकर स हव शता दी तक क संत और गु क वाणी क
दशन होते ह।
काल मानुसार ‘गु ंथ सािहब’ म सबसे ाचीन वाणी जयदेव (स ११७०) क ह, जबिक नवीनतम वाणी
नौव िसख गु ी गु तेगबहादुर क ह, िजसे उनक शहीदी (स १६७५) क प ा उनक सािहबजादे और दसव
गु ी गु गोिबंद िसंह ने ंथ सािहब म दज िकया। प तः ‘गु ंथ सािहब’ पाँच शता दय से भी अिधक
समय क चुिनंदा भ का यधारा का अलौिकक संगम ही नह , अमू य खजाना भी ह।

धािमक सौहाद
‘गु ंथ सािहब’ क रचना क पीछ गु अजनदेव का येय िकसी खास मत, यव था या दशन क थापना करना
नह था, ब क वे आचार- यवहार क सरल, सीधे और स े माग क मा यम से िज ासु को परम स ा से जोड़ना
और सामािजक सम वय थािपत करना चाहते थे। उस युग म धम-कम एक खास उ वग का एकािधकार बनकर
रह गया था। य का ओहदा उसक सहज गुण क आधार पर नह ब क उसक धम और जाित क आधार पर
तय िकया जाता था। धािमक क रता, दूसर क धम क ित असिह णुता और वैर-िवरोध का जुनून अपने चरम
िशखर पर था। हर धम तथा सं दाय दूसर धम क िस ांत क िनंदा एवं उपहास उड़ाने और अपने िवचार तथा
िस ांत को सव े सािबत करने क होड़ और दौड़ म शािमल था। इस िवषम थित म गु अजनदेव ने कबीर
जैसे मुसलमान जुलाह, रिवदास जैसे यवसाय से चमकार लेिकन िवचार से संत, ि लोचन जैसे वै य, पीपा जैसे
राजपूत, ध ा जैसे जाट और सूरदास, जयदेव, परमानंद जैसे ा ण क वाणी को एक िज द म बाँधकर िविभ
धम और समुदाय क बीच सौहादपूण सहअ त व क ांितकारी परपरा कायम क ।

वाणी क रचना और संकलन


िव क अ य मुख धम क िकसी भी चारक, सं थापक या पैगंबर ने अपने पीछ कोई भी ह तिलिखत िस ांत
या उपदेश नह छोड़ा। उनक दशन और िस ांत क बार म जो कछ भी आज ात ह, वह हम तक या तो बाद क
लेखक क मा यम से प चा या िफर वह चिलत रीितय पर आधा रत ह। भगवा बु ने अपनी िश ाएँ िलिखत
प म नह छोड़ । ईसाई धम क सं थापक ने भी अपने िस ांत को िलिखत प म नह छोड़ा। उनक बार म
मै यू, लूका, जॉन तथा अ य क कितय को आधार माना जाता ह। क यूिशयस ने भी सामािजक तथा नैितक
यव था क बार म अपना िवचार या िस ांत िलिखत प म नह छोड़ा।
इसक िवपरीत ‘गु ंथ सािहब’ म दज िसख गु क वाणी क रचना िविभ गु ने वयं क और उसे
सहज-सँभालकर रखा। गु नानक ने जब गु ग ी भाई लहणा (गु अंगददेव) को स पी तो अपनी सम त वाणी
क पोथी (पु तक) भी उ ह स प दी। गु अंगददेव ने अपने रचे ोक सिहत वह पोथी तीसर गु ी गु
अमरदास को स प दी। गु अमरदास ने िवरासत म िमली पोथी और अपनी वाणी चौथे गु ी गु रामदास को
स पते ए फरमाया—
‘पराई अमाण िकउ रखीअै, िदती ही सुख होइ।
गुर का स दु गुर थै िटक, होर थै परगट न होइ॥’
चिलत परपरा क अनुसार गु रामदास ने अपनी वाणी सिहत उ संपूण वाणी गु अजनदेव क सुपुद कर दी
और गु अजन ने इस सारी वाणी को अपनी वाणी क साथ ‘गु ंथ सािहब’ म थायी प से दज कर िदया।
अ य भ -संत क वाणी का जहाँ तक संबंध ह, कछ वाणी तो गु अजनदेव को गु नानक ारा संकिलत वाणी
क प म परपरा से ा ई और बाक संत-भ वाणी गु जी ने वयं उ म और यास करक एक क ।

िसफ खुदा ( भु) का गुणगान


गु अजनदेव ने जब ‘गु ंथ सािहब’ का संपादन पूरा कर िलया तो उनक बड़ भाई पृथी चंद ने, जो अपने िपता
गु रामदास से उ रािधकार म गु ग ी न िमलने क कारण गु अजनदेव क ित िवरोध तथा ई या का भाव रखते
थे, गु घर क िवरोधी चंदूलाल सिहत बादशाह अकबर क पास जाकर यह िशकायत क िक गु अजनदेव ने एक
ऐसी पु तक तैयार क ह िजसम इसलाम और दूसर धम क िनंदा क गई ह। अकबर ने ‘गु ंथ सािहब’ को
खुलवाकर उसक वाणी सुनी तो िशकायत झूठी िनकली। जो पहला शबद सामने आया उसम खुदा का गुणगान था।
वह शबद था—
‘खाक नूर करदै आलम दुनीआई।
असमान िजमी दरखत आब पैदाइिस खुदाइ॥
बंदे च म दीदै फनाइ।
दुनीआ मुरदार खुरदनी गाफल हवाइ॥
गैबान हवान हराम क तनी मुरदार बखोराइ।
िदल कबज क जा कादरो दोजक सजाइ॥
वलो िनआमित िबरादरा दरबार िमलक खानाइ।
जब अजराईलु बसतनी तब िचकार िबदाइ॥
हवाल मालूमु करदै पाक अ ाह।
बुगो नानक अरदािस पेिस दरवेिस बंदाह॥’
(पृ. ७२३)
खुदा क बंदगी गायन करनेवाला यह शबद सुनकर अकबर संतु हो गया। लेिकन चंदूलाल ने िफर िशकायत
क िक िसख पहले से ही यह शबद सुनाने क िलए तय करक आए थे। इसपर बादशाह ने खुद ‘गु ंथ सािहब’
क कछ प े पलटवाकर एक खास शबद पर हाथ रखा और उसे पढ़ने क िलए कहा। उस शबद म भी अ ाह
का गुणगान और मनु य को नेक कम एवं कमाई करने क िलए पे्र रत िकया गया था। वह शबद था—
‘अ ह अगम खुदाई बंद।े
छोिड िखआल दुनीआ क धंध॥ े
×××
हक हलालु बखोर खाणा।
िदल द रआऊ धोव मैलाणा॥
×××
मुसलमाण मोम िदिल होवै।
अंतर क मलु िदल ते धोवै॥
दुनीआ रग न आवै नेड़।
िजउ कसम पाट िघउ पाक हरा॥’
(पृ. १०८३)
अकबर इस शबद से भी ब त भािवत आ और उसने िशकायत को खा रज कर िदया। चुगलखोर िफर भी
बाज न आए और इस बार उ ह ने यह िशकायत क िक ‘गु ंथ सािहब’ म मूितपूजा का गुणगान िकया गया ह
(इसलाम और िसख धम म मूितपूजा का चलन नह ह। िसख िनराकार परमा मा का उपासक ह)। बादशाह ने एक
बार िफर ंथ सािहब खुलवाया और एक िवशेष शबद पर उगली रखकर उसे पढ़ने क िलए कहा। वह शबद था—
‘घर मिह ठाक नद र न आवै।
गल मिह पाहणु लै लटकावै॥
भरमे भूला साकतु िफरता।
िजसु पाहण कउ ठाक कहता॥
उ पाहणु लै उस कउ डबता॥
गुनहगार लूण हरामी।
पाहण नाव न पार िगरामी॥
गु िमिल नानक ठाक जाता।
जिल थिल महीअिल पूरन िबधाता॥’
(पृ. ७३८)
यह शबद सुनने क बाद ‘गु ंथ सािहब’ क ित अकबर क ा एवं िव ास और ढ़ हो गया। उसने ‘गु
ंथ सािहब’ क सम सोने क इ यावन मोहर भट करक माथा टका और बाबा बु ाजी तथा भाई गुरदास को
‘गु ंथ सािहब’ क साथ बड़ स मान क साथ िवदा िकया। ‘गु ंथ सािहब’ क ित अकबर क गहरी ा
और िव ास का ही फल था िक जब तक उसने िहदु तान पर राज िकया, िसख गु और गु -घर क ित
उसका ेमभाव बना रहा।
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राग म रची गई वाणी
भ म संगीत का वही थान ह जो जीवन म आ मा का। आ मा क िबना शरीर िनज व ह तो संगीत से रिहत
भ वादहीन या अधूरी ह। दुभा यवश म य काल म संगीत का घोर पतन हो चुका था और वह रास-रग क व तु
बन गया था। गु नानक और बाद क गु ने संगीत को ई रीय वाणी क साथ जोड़कर उसे रास-रग क पतन से
िनकाला और उ आ या मक स मान तथा थान दान िकया।
िव -धम क इितहास म ‘गु ंथ सािहब’ ही एकमा ऐसा धम ंथ ह िजसक वाणी िविभ शा ीय राग म
रची गई ह। ‘गु ंथ सािहब’ क वाणी म कल इकतीस मुख राग और कई िमि त राग का योग आ ह। ये
इकतीस राग ह—
१. ीराग,
२. माझ,
३. गउड़ी,
४. आसा,
५. गूजरी,
६. देवगंधारी,
७. िबहागढ़ा,
८. वडहस,
९. सोरठ,
१०. धनासरी,
११. जैतसरी,
१२. टोडी,
१३. बैराड़ी,
१४. ितलंग,
१५. सूही,
१६. िबलावल,
१७. ग ड,
१८. रामकली,
१९. नटनारायण,
२०. माली गउड़ा,
२१. मा ,
२२. तुखारी,
२३. कदार,
२४. भैरव,
२५. बसंत,
२६. सारग,
२७. म हार,
२८. का हड़ा,
२९. क याण,
३०. भाती,
३१. जैजावंती।
‘गु ंथ सािहब’ म दज येक पद क शीष पर सबसे पहले राग का नाम और उसक बाद महला सं या (महला
१ यानी पहले गु क वाणी, महला २ यानी दूसर गु क वाणी, महला ३ अथा तीसर गु क वाणी, महला ४
यानी चौथे गु क वाणी, महला ५ यानी पाँचव गु क वाणी और महला ९ यानी नौव गु क वाणी) आती ह।
जहाँ-जहाँ िसख गु से इतर संत क वाणी आई ह, वहाँ पहचान क िलए (िक यह वाणी िकस संत क ह) पद
क शीष पर संब संत का नाम िदया गया ह।
येक गु क वाणी म एक से अिधक राग का योग आ ह। गु नानक क वाणी उ ीस राग म, गु
अमरदास क वाणी स ह राग म, गु रामदास क वाणी उनतीस राग म, गु अजनदेव क वाणी तीस राग म
तथा गु तेगबहादुर क वाणी पं ह राग म रची गई। इसी कार भ कबीर तथा भ नामदेव क वाणी अठारह-
अठारह राग म तथा भ रिवदास क वाणी सोलह राग क माला म बँधी ई ह। वाणी रचना म राग जैजावंती का
योग कवल गु तेगबहादुर क वाणी म आ ह। येक गु क वाणी म यु राग का िववरण इस कार ह—
गु नानक देव : माझ, ीराग, गउड़ी, आसा, गूजरी, वडहस, सोरठ, धनासरी, ितलंग, सूही, िबलावल, रामकली,
मा , तुखारी, भैरव, बसंत, सारग, म हार और भाती। (१९)
गु अंगददेव : कल ६२ ोक, ‘वार ’ म रचे।
गु अमरदास : ीराग, माझ, गउड़ी, आसा, गूजरी, वडहस, सोरठ, धनासरी, सूही, िबलावल, रामकली, मा ,
भैरव, बसंत, सारग, म हार एवं भाती। (१७)
गु रामदास : ीराग, माझ, गउड़ी, आसा, गूजरी, देवगंधारी, िबहागड़ा, वडहस, सोरठ, धनासरी, जैतसरी, टोडी,
बैराड़ी, ितलंग, सूही, िबलावल, ग ड, रामकली, नट, माली गउड़ा, मा , तुखारी, भैरव, बसंत, सारग, का हड़ा,
म हार, क याण एवं भाती। (२९)
गु अजनदेव : उपयु उनतीस राग तथा राग कदार सिहत तीस राग।
गु तेगबहादुर : गउड़ी, आसा, गूजरी, िबहागड़ा, सोरठ, जैतसरी, धनासरी, टोडी, ितलंग, िबलावल, रामकली,
मा , बसंत, सारग, जैजावंती। (१५)

भाव क अनु प राग


राग क चयन और वाणी म उनक योग क समय भाव िस ांत का पूरा खयाल रखा गया। वाणी क येक शबद
(पद) म य िवचार क दशा क अनुकल ही शा ीय राग का चयन िकया गया। अथा भाव और राग क बीच
पर पर तालमेल रखा गया और कह भी उ ह पर पर िवरोधी नह होने िदया गया। उदाहरण क िलए, हष और
उ ास क भाव क अिभ य क िलए सुही, िबहागड़ा, िबलावल, म हार, बसंत इ यािद राग का इ तेमाल
िकया गया। क ण, शांत और गंभीर भाव क वाणी क िलए गु ने ायः गउड़ी, ीराग, रामकली, भैरव आिद
जैसे राग योग िकए। इसी कार िवशु धािमक भाव क अिभ य क िलए गूजरी, धनासरी, सोरठ तथा
उ साह भाव क िलए आसा, माझ, भाती आिद राग योग िकए गए।
ंगा रक राग को िमला आ या मक स मान
अतीत म सामा य का यकितय म घोर ंगा रक उ े य क िलए यु होनेवाले शा ीय राग को ई रीय
वाणी क साथ यु करक गु ने इन राग को एक अपूव ग रमा तथा स मान दान िकया। संगीत दपण म
ीराग का वणन कामो मादी धीरा नायक क प म आ ह। लेिकन गु वाणी म उसी ीराग को िशरोमिण राग का
परम उदा दजा दान िकया गया ह, जैसािक गु वाणी क िन निलिखत कथन से प ह—
‘रागाँ िवच ीराग ह जो सिच धर िपआ ।’
इसी कार संगीत दपण म राग सोरठ क उपमा एक ऐसी नवयौवना से दी गई ह िजसक चार ओर भ र मँडराते
रहते ह। पर ‘गु ंथ सािहब’ क वाणी म अ या म माग क पिथक क िलए राग सोरठ को राम नाम और मो
ा का साधन बताया गया ह—
‘सोरिठ सो रसु पीजीअै कब न फ का होइ।
नानक रामनाम गुन गाईअिह दरगाह िनरमल सोइ॥’

क रतन यानी भु का यशगान


‘गु ंथ सािहब’ क वाणी क शा ीय संगीतमय गायन को क रतन कहते ह। िसख धम म क रतन का िवशेष
मह व ह। क रतन यानी भु क क ित, मिहमा, यश का गायन। यह क रतन गु ार म तथा खुशी-गमी क िवशेष
मौक पर िसख घर म हारमोिनयम एवं तबला जैसे परपरागत गायन एवं वा यं ारा िकया जाता ह। िसख धम
म शा ीय राग क मधुर और सधी ई लय म ब क रतन का इितहास भी उतना ही पुराना ह िजतना पुराना यह
धम ह। वयं गु वाणी म क रतन को अमू य हीरा और आनंद दान करनेवाला खजाना कहा गया ह—
‘क रतन िनरमोलक हीरा आनंद गुणी गहीरा।’
क रतन म अपार श ह। इसक गायन और वण से दुःख और पाप का नाश होता ह, मन म सुख और शांित
का वास होता ह और परमा मा से सा ा कार होता ह। इसीिलए ‘गु ंथ सािहब’ म क रतन क गायन और वण
क साथ-साथ उसम िनिहत िश ा और उपदेश पर मनन-अमल को भी बार-बार रखांिकत िकया गया ह; य िक
मनन और अमल क िबना गायन और वण दोन यथ और िन फल ह। जपुजी म गु नानकदेव बताते ह िक इन
तीन ि या से दुःख का िवनाश और िच म आनंद का वास होता ह—
‘गावीअै सुणीअै मिन रखीअै भाउ।
दुखु परह र, सुखु घर लै जाइ॥’
क रतन क वण का उ मह व बताते ए गु नानक आगे फरमाते ह िक अगर गु क एक सीख (िश ा) भी
स े मन से सुन ली जाए और उसे मन म बसा िलया जाए तो म त क म

गु वाणी क थम या याकार और उसे िलिपब करनेवाले िव ा भाई गुरदास


परमा मा क अमू य गुण पी र न, जवाहर और मािणक-मोती उपज जाते ह—
‘मत िविच रतन जवाहर मािणक, जे इक गुर क िसख सुणी।’
क रतन क इ ह गुण तथा मह व क कारण गु नानक से लेकर गु गोिबंद िसंह तक सभी िसख गु ने
अपने आ या मक िवचार क चार क िलए क रतन को ही मा यम बनाया। क रतन क ित गु का लगाव
िकतना अिधक था, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता ह िक गु गोिबंद िसंह ने यु क िदन म भी
क रतन का म और वाह टटने नह िदया। भंगाणी यु क दौरान रात को पांउटा सािहब म क रतन दरबार
सजता। एक बार गु जी जब आनंदपुर का िकला छोड़कर जा रह थे तो ‘आसा दी वार’ (पौ फटने से पूव िकया
जानेवाला क रतन) का समय हो गया। वे क गए। पहले उ ह ने हर रोज क तरह ‘आसा दी वार’ का क रतन
वण िकया और उसक बाद ही आगे बढ़ तथा नदी पार क ।
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दस गु दशन
पहले गु ी गु नानकदेव से लेकर दसव गु ी गु गोिबंद िसंह तक िसख धम क दस गु ए। स १४६९ म
गु नानक क ज म से लेकर स १७०८ म गु गोिबंद िसंह क परलोक गमन तक दो सौ उनतालीस वष क
अविध का समय सामािजक बेचैनी, राजनीितक उथल-पुथल, धािमक ि़ढवािदता और चा रि क िगरावट का काला
दौर था। शासक अ याचारी और अ यायी हो गए थे। िहदू धम म गृह थी क याग एवं सं यास पर ब त जोर िदया
जाता था, िजससे धमिन लोग म संसार क ित उदासीन ि कोण एवं एक कार का िनराशावाद पैदा हो गया
था। ितस पर जात-पाँत और वण- यव था, छआछत, कमकांड, अंधिव ास और अकम यता समाज को रसातल
क ओर ले जा रह थे। सामािजक िबखराव एवं पलायनवादी वृि ने बाबर जैसे आ मणका रय को जोर-जु म
एवं अ याचार करने क िलए दु े रत िकया।
िसख गु ने अपनी वाणी, अपने संदेश और उपदेश से अँधेर म भटकते लोग को नई राह और नई रोशनी
िदखाई। जीवन-रसायन से भरपूर गु क अमृत वाणी ने समाज को अकम यता, आडबर, अंधिव ास,
अ ानता क अँधेरी सुरग से बाहर िनकालकर उसक दशा और िदशा ही बदल दी। दस म से सात गु —पहले
से पाँचव, नौव तथा दसव गु ने वाणी क रचना क । ये वाणीकार गु ह—गु नानकदेव, गु अंगददेव, गु
अमरदास, गु रामदास, गु अजनदेव, गु तेगबहादुर और गु गोिबंद िसंह। इनम से िसफ गु गोिबंद िसंह को
छोड़कर शेष सभी छह वाणीकार गु क वाणी ‘गु ंथ सािहब’ म दज ह। गु गोिबंद िसंह क वाणी अलग से
दशम ंथ म संकिलत ह। आइए, जान सभी दस िसख गु का संि जीवन प रचय और उनसे जुड़ कछ
ेरक संग।

१. गु नानकदव
लोग को ेम और भाईचार का संदेश देते ए गु नानकदेव एक ऐसे गाँव म प चे जहाँ क लोग बड़ दु थे। उन
लोग ने नानकजी और उनक दोन सािथय बाला एवं मरदाना पर प थर बरसाए और उ ह गािलयाँ द ।

गु नानकदेव
अगले िदन सुबह होने पर नानकजी जब उस गाँव से िवदा होने लगे तो उ ह ने गाँववािसय को आशीवाद िदया,
‘‘ई र कर, तुम सब यह बसे रहो।’’ यह कहकर वे आगे चल िदए।
मरदाना को बड़ा अजीब लगा। इन दु को बसे रहने का आशीवाद! यह गु जी ने कसा आशीवाद िदया ह?
वह मन-ही-मन सोचने लगा।
शाम होने पर वे सब एक दूसर गाँव म प चे। इस गाँव क लोग ब त परोपकारी और धमा मा थे। यह पता चलने
पर िक उनक गाँव म एक प चे ए महा मा आए ह, सारा गाँव उनक दशन क िलए उमड़ पड़ा। गाँववािसय ने
तन-मन से नानकजी और उनक सािथय क खूब सेवा क , उनक उपदेश को यान से सुना और उनपर चलने का
ण िकया।
दूसर िदन नानकजी अपने सािथय सिहत जब उस गाँव से चलने लगे तो पूरा गाँव उ ह िवदा करने क िलए
आया और सभी लोग ने सजल ने से उ ह िवदाई दी। चलते-चलते नानकजी ने हाथ ऊपर उठाकर आशीवाद क
मु ा म कहा, ‘‘ई र कर तुम सब उजड़ जाओ।’’
अब तो मरदाना को और भी अजीब लगा। आिखर गु जी को हो या गया ह—वह सोचने लगा। उसने नानकजी
से पूछ ही िलया, ‘‘महाराज, यह या? िजन लोग ने हमारा अपमान िकया, हमपर प थर फक उ ह आपने ‘बसे
रहने’ का आशीवाद िदया; पर िजन भले लोग ने हमारी इतनी खाितर क उ ह आपने ‘उजड़ जाने’ का शाप दे
डाला। ऐसा य ?’’
नानकजी मुसकराए और बोले, ‘‘मरदाना, दु लोग जहाँ भी जाएँग,े दु ता और बुराई ही फलाएँग,े इसिलए
उनका एक जगह बसे रहना ही अ छा ह। इसक िवपरीत नेक और भले लोग जहाँ भी जाएँग,े अपनी अ छाई क
खुशबू फलाएँगे। इसिलए उनका उजड़ना अ छा भी ह और ज री भी।’’
मरदाना ने ा से गु जी क आगे िसर झुका िदया।
लाहौर का सेठ था दुनीचंद। एक िदन उसे खबर िमली िक उसक शहर म ई र क पैगंबर गु नानकदेव आए
ह। दुनीचंद भी नानकजी क दशन करने क िलए आया। गु जी क दशन करक िनहाल हो गया सेठ दुनीचंद। उसने
हाथ जोड़कर िनवेदन िकया, ‘‘महाराज, मेर लायक कोई सेवा बताइए।’’
गु जी ने उसे एक छोटी सी सुई दी और बोले, ‘‘भाई, यह सुई अपने पास रख लो। अगले ज म म हम वापस
कर देना।’’
दौलत क नशे म चूर सेठ दुनीचंद गु जी का अिभ ाय समझ न सका। घर आकर उसने सुई प नी को थमा दी
और ताक द कर दी, ‘‘देखो, यह सुई गु नानकदेव क अमानत ह। इसे सँभालकर रख दो। अगले ज म म मुझे
यह सुई गु जी को वापस लौटानी ह।’’
प नी समझदार थी। वह बोली, ‘‘भला मरकर भी कोई य अपने साथ कछ ले गया ह! ज र गु जी क बात
म कोई भेद ह। जाओ और अभी उ ह सुई वापस करक आओ।’’
दुनीचंद का माथा ठनका। वह वापस गु नानकदेवजी क पास प चा। ा क साथ णाम करक बोला,
‘‘महाराज, भला यह सुई म मरकर साथ कसे ले जाऊगा? इसे तो आप अभी वापस ले लीिजए।’’
नानकजी मुसकराए और बोले, ‘‘दुनीचंद, अगर तुम छोटी सी सुई भी अपने साथ नह ले जा सकते तो इतनी
दौलत कसे ले जाओगे, जो तुमने अपनी ितजो रय म भर रखी ह?’’
दुनीचंद क आँख खुल गई। वह नानकजी क चरण म िगर पड़ा। अपनी सारी दौलत उसने गरीब म बाँट दी
और तन-मन से गु नानकदेव का िश य बन गया।
िसख धम क सं थापक गु नानकदेव का ज म स १४६९ म तलवंडी (अब पािक तान)

नानकजी बाला और मरदाना क साथ


म आ। आज यह थान ‘ननकाणा सािहब’ क नाम से िस ह। नानकजी क िपता का नाम मेहता कालू और
माता का नाम तृ ा था। उनक एक बहन थी, िजसका नाम नानक था।
ुव और ाद क तरह नानक भी बचपन से ही परमा मा क भ म लीन रहने लगे। सांसा रक पदाथ और
कमकांड उ ह िबलकल न भाते। सात वष क अव था म जब मेहता कालू क कल-पुरोिहत पंिडत हरदयाल नानक
को जनेऊ पहनाने लगे तो उ ह ने पुरोिहत का हाथ पकड़ िलया और मासूम वर म बोले, ‘‘पंिडतजी, यह तो क े
सूत का जनेऊ ह, जो आिखर म यह रह जाएगा। मुझे तो आप ऐसा जनेऊ पहनाएँ जो दया क कपास और संतोष
क सूत से बना हो, िजसम स य क गाँठ लगी हो। ऐसा जनेऊ न कभी टटता ह, न मिलन होता ह। और जो लोग
ऐसा जनेऊ धारण कर लेते ह वे ध य ह।’’
बालक नानक क ये वचन सुनकर हरदयालजी हरान रह गए। उ ह ने मेहता कालू को बताया िक नानक कोई
सामा य बालक नह ह।
मेहता कालू नानक क साधु वृि से खुश नह थे। वे चाहते थे िक अ य बालक क तरह नानक भी कछ कमाए
और सांसा रक काम म िच ले। यह सोचकर एक िदन उ ह ने नानक को बीस पए िदए और कछ मुनाफवाला
सौदा करक लाने को कहा। नानक घर से चले तो रा ते म उ ह कछ भूखे साधु िमल गए। उ ह ने वे पए साधु
को भोजन करवाने पर खच कर िदए, िजसक िलए उ ह िपता से मार भी खानी पड़ी।
उ ीस वष म नानकजी का िववाह बीबी सुलखनी से आ। उनक ीचंद और ल मीचंद नामक दो पु भी ए।
लेिकन नानक तो मानव जाित क उ ार क िलए जनमे थे। सो प रवार का मोह भी उ ह अपने कत य-पथ से
िवचिलत नह कर पाया। वे शोषण, िहसा, अ याचार और भेदभाव क िशकार लोग को ेह और सां वना देने क
िलए घर से िनकल पड़। उ ह ने उ र म क मीर से लेकर दि ण म रामे र तक सार भारत क या ा क । वे
अफगािन तान, बमा, तुक , ीलंका और िस म भी गए। नानकजी जहाँ भी गए वह उ ह ने जाितय , धम तथा
वण क सीमा को तोड़कर उनम पर पर सम वय तथा संबंध थािपत िकया और सहअ त ववाद पर जोर िदया।
उ ह ने ई या, अहकार तथा मजहब क नाम पर घृणा तथा पर पर िव ेष को अधम और पाखंड बताया। राम-रहीम
और अ ाह-ई र क भेद को आपने उस सच (परमा मा) क माग म श ुता बढ़ानेवाला कमाग कहा। नानकजी
क िलए संपूण मानव सृि एक देश था और सब मानव जाित एक प रवार थी।
गु जी ने तो ‘नानक उ म नीच न कोई’ कहकर छोट-बड़, ऊच-नीच, राजा-रक का फक ही िमटा िदया।
दुिनया िज ह अछत और हय कहकर ितर कत करती थी, अपनी संगत और पंगत म उ ह मान-स मान तथा थान
देकर तथा उनक बार म यह वाणी उ ा रत करक िक ‘नीचा अंदर नीच जाित, नीची अित नीच। नानक
ितनक संग साथ विडआँ िसय या रीस॥’ उ ह ने त कालीन जाित- यव था क िखलाफ न कवल घोर
ांितकारी िव ोह का वर बुलंद िकया, ब क यह कहा िक उ ह भी मानवीय ग रमापूण जीवन जीने का उतना ही
अिधकार ह िजतना तथाकिथत ऊची जाितय क लोग को। यही नह , गु जी ने गरीब और मेहनतकश वग का खून
चूसनेवाले पूँजीपित सामंत मिलक भागो क नानािवध यंजन को ठकराकर एक दिलत बढ़ई भाई लालो का
आित य वीकार िकया और उसक खून-पसीने क कमाई से बनी खी-सूखी रोटी को बड़ ेम और चाव से हण
करक अपने आपको दिलत और वंिचत, लेिकन मेहनतकश और ईमानदार वग क साथ जोड़कर दुिनया क सामने
एक लासानी िमसाल कायम क । उ ह ने धम, कल, जाित, गो , भाषा और वण क अधोगामी और संक ण
मनोवृि य से रिहत एक ऐसे समानतावादी तथा मानवतावादी समाज क िनमाण पर जोर िदया िजसम देवी-देवता
और धम क नाम पर वैर-िवरोध क बजाय ‘सबना जीआँ का एक दाता’ और ‘एक िपता, एकस क हम
बारक’ एवं ‘ना को वैरी, नािह बेगाना, सगल संग हमको बन आई’ क उदा गु िस ांत क अमल और
आचरण क प रक पना थी। गु नानक का यारा भु िकसी मंिदर या मसिजद क चारदीवारी म कद नह था।
उ ह ने लोग को जात-पाँत क भेदभाव से ऊपर उठकर एक-दूसर क साथ िमलकर काम करने का उपदेश िदया।
उनका हर जगह पहला संदेश होता था—‘नानक उ म नीच न कोई’ यानी कोई भी य ज म से महा या नीच
नह होता, ब क अपने कम से होता ह।
गु जी ने य क िनंदा करनेवाल को बुरी तरह से फटकारा और कहा, ‘सो य मंदा आिखअै, िजत जमै
राजान।’ अथा िजस ी जाित ने दुिनया म बड़-बड़ तापी राजा , संत और महापु ष को ज म िदया ह,
उसका अपमान करना पाप ह। गु नानकदेवजी क अनेक वािणय म सबसे मुख ह—‘जपुजी सािहब’, िजसका
संसार क कई भाषा म अनुवाद हो चुका ह। ‘जपुजी सािहब’ का अमर संदेश ह—ई र एक ह, उसका नाम
स य ह, वह इस संसार को रचनेवाला कता ह, वह भय और वैर से रिहत ह, उसे मौत भी नह मार सकती, वह न
जनमता ह, न मरता ह, वह वयंभू ह और वह ई र गु क कपा से ा होता ह। जीवन क अंितम िदन म गु
नानकदेवजी करतारपुर म बस गए। वहाँ वे खेती-बाड़ी करते और ई र का नाम जपते। अपने एक परम िश य भाई
लहणा को उ ह ने अपना उ रािधकारी बनाया और स १५३८ म नानकजी परलोक िसधार। नानकजी समूची मानव
जाित क हरमन यार गु थे। एक किव ने उनक तुित म िलखा ह—
‘गु नानक शाह फक र
िहदु का गु , मुसलमान का पीर।’
गु नानकदेव क वाणी ‘गु ंथ सािहब’ म ‘महला १’ क शीषक से दज ह और ोक सिहत उनक कल
शबद क सं या नौ सौ चौह र ह।

२. गु अंगददव
करीब आधी रात का समय था। कड़ाक क ठड पड़ रही थी और ऊपर से बा रश भी हो रही थी। गु नानकदेव क
घर क एक दीवार िगर गई। नानकजी ने अपने सुपु ीचंद और ल मीचंद को दीवार बनाने क िलए कहा। लेिकन
उ ह ने आनाकानी क और कहा, ‘‘सुबह राजिम ी बुलाकर दीवार बनवा दगे।’’
इसपर गु जी ने अपने कई िश य को दीवार बनाने क िलए बुलाया। पर आधी रात और ठड का बहाना करक
कोई न आया। आिखर म गु नानक ने अपने सेवक लहणा को दीवार बनाने क िलए कहा। लहणाजी तुरत उठ
और दीवार बनाने म जुट गए।
जब करीब आधी दीवार बन चुक तो नानकजी ने कहा, ‘‘दीवार टढ़ी बनी ह। िगराकर दोबारा बनाओ।’’
लहणाजी ने ‘‘जैसी आ ा।’’ कहकर, दीवार तोड़कर दोबारा बनानी शु कर दी। मगर दूसरी बार भी नानकजी
संतु नह ए और िफर से दीवार बनाने का आदेश िदया। पूरी रात बीत गई और लहणाजी ठड तथा बा रश म तब
तक दीवार तोड़-तोड़कर बनाते रह जब तक गु नानक उनक काय से संतु नह हो गए।
एक िदन नानकजी क ताँबे क एक कटोरी क चड़ म िगर गई। उ ह ने बारी-बारी से अपने पु से कटोरी
िनकालने क िलए कहा।
पु ने नाक-भ िसकोड़कर कहा, ‘‘ताँबे क कटोरी ही तो ह, ब तेरी आ जाएँगी। और अगर यही कटोरी चािहए
तो िकसीको बुलाकर िनकलवा दगे। एक कटोरी जैसी तु छ व तु क िलए हम क चड़ म य जाएँ!’’
पु क मुँह से यह जवाब सुनने क बाद गु नानक ने भाई लहणा क ओर देखा। लहणाजी गु का संकत समझ
गए और झट से क चड़ म घुसकर कटोरी िनकाल लाए और गु जी क चरण म रख दी।
ऐसे त पर, िन काम सेवक थे लहणाजी, िजनका ज म स १५०४ म पंजाब क िजला िफरोजपुर क एक गाँव
‘मते दी सराँ’ म भाई फ मल नामक एक यापारी क यहाँ आ। िपता फ मल और माता रामोजी ने बालक का
नाम लहणा रखा, जो िसख गु परपरा म गु अंगददेव क नाम से दूसर गु कहलाए।
एक बार जोिगय और फक र क एक मंडली ालामुखी प ची। भाई लहणा ने बड़ न भाव से उनक सेवा
क । जब धम-चचा ारभ ई तो सभी एक-दूसर से पूछने लगे िक या इस जग म कोई असली पारखी भी ह?
इसपर जवाब िमला—
‘नानक तपा ख ी इक होइया ह कोई।
जो वड़ी (बड़ी) बरकत वाला ह होइया॥’
गु नानकदेव क गुण का वणन सुनकर लहणाजी क दय म उनक दशन क इ छा जाग उठी। खडर सािहब म
जब उ ह ने भाई जोगा क मुख से गु नानकदेवजी क पिव वाणी ‘आसा दी वार’ सुनी तो उ ह लगा िक यही ह
वह स ा आ या मक ान का काश िजसक उ ह अब तक तलाश थी और िजसक िलए वह इधर-उधर मार-
मार िफर रह थे। उ ह पता लगा िक इस वाणी क रचियता बाबा नानक इस समय करतारपुर म बसे ए ह। स े
गु क तलाश म भाई लहणा तुरत करतारपुर क ओर चल िदए।
इधर अंतयामी गु नानक ने जान िलया िक उनका एक परम भ दशन क िलए आ रहा ह। सो उ ह ने वचन
िकया, ‘‘मेर राज का धनी आया ह। म उसे िलवा लाऊ।’’
भाई लहणा से गु जी का मेल राह म ही हो गया। भाई लहणा ने घोड़ी को रोककर गु नानकदेवजी से ही उनक
घर का रा ता पूछा। अंतयामी गु ने फरमाया, ‘‘ह स न पु ष, मेर पीछ-पीछ चले आओ। म तु ह बाबा नानक
क पास ले चलता ।’’ यह कहकर उ ह ने लहणा क घोड़ क लगाम थाम ली। गु जी उ ह घर क बजाय
धमशाला ले गए।
वहाँ प चकर जब उ ह ात आ िक उनका पथ- दशक और कोई नह , वयं बाबा नानक ही थे तो वह गु जी
क चरण म िगर पड़। गु जी ने उ ह उठाया और पूछा, ‘‘ह पु ष, तु हारा नाम या ह?’’
जवाब िमला, ‘‘लहणा।’’
गु नानकदेवजी ने मुसकराकर कहा, ‘‘लहणे तै लैणा। सुन पुरखा हम ने ह देणा।’’ अथा ह लहणा, तु ह
हमसे कछ लेना ह और हम तु ह कछ देना ह।
लहणाजी ने कछ समय बाद खडर सािहब छोड़ िदया और करतारपुर म गु नानकदेव क सेवा म थायी प से
आकर बस गए। भाई लहणा क िन काम और अटट सेवा भावना से गु नानकदेव अ यंत भािवत ए। लहणा क
प म उ ह उ रािधकारी ा हो गया था। अपना अंतकाल िनकट आया जान गु जी ने संव १५९६ म उ ह
गु पद परपरा क िनवहण का दािय व स पकर वयं उनक चरण म माथा नवाया और उ ह ‘गु अंगद’ का नाम
िदया।
आ या मक ान और उपदेश क साथ-साथ गु अंगददेव ने शरीर क तंदु ती क िलए कसरत आिद पर भी
िवशेष बल िदया। इसक िलए उ ह ने अखाड़ इ यािद भी बनवाए। इन अखाड़ म वे सूरज चढ़ने से पहले युवक
को कसरत तथा अ य शारी रक अ यास करवाते। पंजाबी भाषा क िलिप ‘गुरमुखी’ (गु क मुख से िनकली ई)
भी गु अंगददेव ने ही िवकिसत क तथा उसे लोकि य बनाया।
२९ माच, १५५२ क िदन अड़तालीस वष क अव था म गु अंगददेव ने अपने परम सेवक अमरदासजी को
गु ग ी दान क और परलोक िसधार।
‘गु ंथ सािहब’ म ‘महला २’ शीषक क अंतगत गु अंगददेव क बासठ ोक दज ह।

३. गु अमरदास
स र वष क वृ अमरदासजी क िन वाथ व अथक सेवा से गु अंगददेव ब त भािवत ए। अपने परलोक
गमन से पूव गु अंगददेव ने गु क उ पदवी अमरदासजी को स प दी। सेवक अमरदास गु अमरदास बन गए
और िसख पंथ क तीसर गु कहलाए।
अमरदासजी को गु बनाए जाने पर गु अंगददेव क युवा पु दातूजी बड़ िनराश और ोिधत ए, य िक िपता
क बाद वह अपने आपको गु ग ी का असली उ रािधकारी समझते थे।
ई या और ोध क आग म जलते ए दातूजी गु अमरदास क दरबार म प चे और ितर कारपूण वर म गु जी
से बोले, ‘‘कल तक तुम हमार घर म मामूली सेवक थे, आज गु बन बैठ हो।’’ यह कहकर उ ह ने बुजुग गु
अमरदासजी क पीठ पर पाँव से जोरदार हार िकया।
गु अमरदासजी नीचे िगर पड़। िफर भी उ ह ने ोध नह िकया ब क ेहपूण ने से दातूजी क ओर देखा
तथा िवन श द म कहा, ‘‘बूढ़ा होने क कारण मेरी ह याँ व जैसी कठोर हो गई ह। अतः तु हार पाँव को
चोट लग गई होगी। मुझे मा कर देना।’’ यह कहकर गु अमरदास सचमुच दातूजी क पाँव सहलाने लगे। दातूजी
ब त शिमदा ए और चुपचाप दरबार से बाहर चले गए। ऐसे िवन और सिह णु थे गु अमरदास।
गु अमरदास आ या मक आलोक, सामािजक ांित और संगत तथा गु क अवणनीय सेवा क सा ा
व प थे। उनका ज म ८ ये , संव १५३६ क िदन अमृतसर शहर से पाँच मील दूर बासरक गाँव म आ।
उनक िपता बाबा तेजभानजी ने चौबीस वष क उ म अमरदास का िववाह सनख े गाँव क िनवासी देवचंद क
सुपु ी बीबी मंशादेवी से कर िदया। गु जी क चार संतान थ —दो पु —मोहनजी और मोहरीजी तथा दो पुि याँ—
बीबी भानीजी और बीबी िनधानीजी।
दूसर गु ी गु अंगददेवजी से भट होने से पूव अमरदासजी वै णव मत क उपासक थे और उनका अिधकांश
जीवन तीथया ा म यतीत आ। चालीस बार वह गंगा ान क िलए नंगे पाँव ह र ार गए। स र वष क
वृ ाव था म एक छोटी सी घटना से उनक जीवन म ांितकारी बदलाव आ गया। एक िदन पौ फटने से पहले
उ ह ने अपने भतीजे क धमप नी बीबी अमरो क मुख से, जो गु अंगददेवजी क सुपु ी थी, ई रीय तुित क
मधुर और आनंददायक शबद सुन।े बुजुग अमरदासजी ने उस ई रीय गीत म धड़कती जीवनधारा को पहली बार
पहचाना और उ ह ने अमरो से पूछा िक यह िकसक वाणी ह। पता चला िक वह गु नानकदेव क ‘जपुजी’ का
संगीत था।
बीबी अमरो उ ह अपने िपता गु अंगददेव क पास ले गई। गु जी ने अमरदासजी क
गु अमरदास : सेवा से गु पदवी पाई
वृ ाव था क अनुसार उनका यथोिचत आदर-स कार िकया। अमरदासजी गु अंगददेव क दशन से इतने
आनंिदत ए िक उ ह ने अपना सव व गु जी क चरण म अिपत कर िदया और तन-मन से गु क सेवा म जुट
गए। अ राि क बाद जब सारी दुिनया िन ा म लीन होती, बुजुग अमरदासजी यास नदी से जल क गागर भरकर
और उसे अपने िसर पर उठाकर लाते—गु जी क ान क िलए। त प ा वह गु जी क व धोते और लंगर म
गु जी को व अ य ालु को भोजन करवाते। सेवा और नाम सुिमरन क धुन म वह इतने रग गए िक कई
मूख लोग उ ह ‘दीवाना’ तथा उपहास म अमरदास क बजाय ‘अम ’ भी कहने लगे। यहाँ तक िक गु अंगददेव
भी अपने सेवक क परी ा लेने क िलए कभी-कभी उनक साथ िविच यवहार करते। वह पहनने क िलए
अमरदासजी को ख र क मा एक चादर देते। अमरदासजी उसे ा से िसर-म तक पर धारण कर लेत।े गु जी
क ित उनक ा व भ इतनी अगाध थी िक वह कभी उनक ओर पीठ करक भी नह चलते थे—इस
खयाल से िक कह इससे गु का अपमान न हो जाए और वह उनसे ठ न जाएँ।
सेवक क सेवा रग लाई। गु क परी ा म वह खर उतर। अपना अंत समय िनकट आया देखकर स १५५२ म
गु अंगददेव ने ितह र वष य अमरदासजी को गु क पदवी दान करक उ ह उ आसन पर िबठाया और वयं
उनक चरण म माथा नवाकर वचन िकया, ‘‘मेरा अमरदास बेसहार का सहारा और वयं गु नानक का व प
ह।’’
गु अमरदास ने गोइदवाल म अपना मु यालय थािपत िकया। जात-पाँत क उ मूलन तथा सामािजक बराबरी
क थापना क महा उ े य से गु नानकदेवजी ने ‘संगत और पंगत’ क जो ांितकारी था ारभ क थी, गु
अमरदास ने उसे जारी ही नह रखा ब क यह िनयम भी लागू कर िदया िक उनक दशन क आ ा य को तभी
ा होगी जब वह पहले लंगर म सबक साथ एक ही पंगत (पं ) म बैठकर भोजन हण करगा—चाह दशनाथ
िकतना भी बड़ा य य न हो। जब बादशाह अकबर उनक दशन क िलए आया तो उसे भी गु जी क दरबार म
जाने क तब तक आ ा नह दी गई जब तक उसने गु क लंगर म संगत क साथ पंगत म बैठकर भोजन हण
नह कर िलया।
गु अमरदास ने सामािजक सुधार क िदशा म कई ांितकारी काय िकए। िवशेषकर सिदय से सामािजक,
धािमक तथा राजनीितक अ याय व भेदभाव क िशकार ी जाित क उ थान क िलए गु जी का अ यंत मह वपूण
योगदान रहा। उ ह ने पु ष क साथ-साथ य को भी धािमक सभा म शािमल होने क अनुमित तो दी ही,
साथ ही धािमक चार क िलए य को भी िनयु िकया। उ ह ने परदा- था का स त िवरोध िकया और यह
आदेश िदया िक उनक दरबार म याँ िबना परदे क आएँ।
ी जाित क िलए गु जी क सबसे बड़ी देन थी—सती- था का िवरोध और िनषेध। गु जी का कहना था िक
‘‘वा तिवक सती वह ह जो अपने पित क मृ यु क प ा पिव एवं संयत जीवन यतीत करती ह। वे याँ भी
सती ह जो अपने नारी व क र ा करती ह, अपना जीवन संतोष से यतीत करती ह, ितिदन ातः उठकर ई र
क सेवा-सुिमरन करती ह।’’ गु अमरदासजी क ही अनुरोध पर अकबर ने सती- था पर रोक लगाने का आदेश
िदया था।
पंचानबे वष क अव था म गु जी ने अपने एक अन य सेवक भाई जेठाजी (गु रामदास) को गु पद परपरा क
िनवहण का दािय व स प िदया। वे १ िसतंबर, १५७४ क िदन वग िसधार।
गु अमरदास ने कल नौ सौ सात शबद क रचना क और ये सभी शबद ‘गु ंथ सािहब’ म ‘महला ३’
शीषक से संकिलत ह।
४. गु रामदास
चौथे गु और वतमान अमृतसर शहर तथा इस शहर म मानवीय एकता, आ या मक आनंद व शांित क तीक ी
ह रमंिदर सािहब ( वण मंिदर) क सरोवर क िनमाता गु रामदास अपार िवन ता तथा सिह णुता क उ आदश
थे। एक बार गु नानकदेवजी क ये पु बाबा ीचंदजी गु रामदास से िमलने अमृतसर आए।
गु जी क लंबी, घनी और लहराती दाढ़ी को देखकर ीचंदजी ने उनसे यं यपूण वर म कहा, ‘‘इसे इतना बढ़ा
य रखा ह आपने?’’
‘‘आपक पिव चरण पर लगी धूल को साफ करने क िलए।’’ गु रामदासजी ने बड़ ही सहज भाव से उ र
िदया।
सुनकर ीचंदजी ल त हो गए और बोले, ‘‘यही िवशेषता ह िजसने आपको इतना बड़ा (महा ) और मुझे
इतना छोटा बना िदया ह।’’ यही नह , ीचंदजी जब िवदा होने लगे तो गु रामदास ने उ ह पाँच सौ पए तथा एक
घोड़ा भट करक उनका और स कार िकया।
गु रामदासजी का ज म २४ िसतंबर, १५३४ क िदन चूना मंडी, लाहौर म आ। िपता हरदास और माता दया
कौर ने उनका नाम जेठा रखा। बा यकाल से ही उनका मन आ या मक िवचार म वृ हो गया। अतः सांसा रक
काय से उ ह िवर सी हो गई। माता-िपता ारा ब त अिधक जोर देने पर वे लाहौर क एक सड़क क िकनार
बैठकर उबले चने बेचने लगे। कभी-कभी तरग म आकर वे भूखे लोग को चने मु त ही बाँट देते।
एक बार जेठाजी को पता लगा िक लाहौर से याि य का एक ज था गु नानक क गु परपरा क तीसर गु ी
गु अमरदास क दशन क िलए गोइदवाल सािहब जा रहा ह। घर-बार छोड़कर जेठाजी भी ज थे क साथ हो िलये।
गोइदवाल प चकर जेठाजी ने गु अमरदास क दशन िकए तो उ ह अंदर से जैसे यह आवाज आई िक िजस रहनुमा
क उ ह अब तक तलाश थी, वह उ ह आज ा हो गया ह। उ ह ने अपना सव व गु को अिपत कर िदया और
तन-मन से गु दरबार क सेवा करने लगे। जेठाजी क िन काम, िवन सेवा और मधुर वाणी से अिभभूत होकर
लोग उ ह रामदास ( भु का सेवक) क नाम से बुलाने लगे। गु अमरदास भी उ ह इसी नाम से बुलाने लगे और
इस तरह उनका नाम ‘रामदास’ ढ़ हो गया।
िदन-रात क अथक सेवा से रामदास ने गु अमरदासजी का िदल जीत िलया। रामदास क प म उ ह अपनी
दो-दो िचंता का समाधान िमल गया—एक तो अपनी पु ी बीबी भानी क िलए यो य वर और दूसर अपना
उ रािधकारी। गु जी ने रामदास का िववाह बीबी भानी से कर िदया।
गोइदवाल म गु अमरदास ारा बाउली क िनमाण क दौरान रामदासजी िदन-रात िसर पर िम ी और गार क
टोकरी ढोते ए सेवा म जुट रहते। उ ह इस तरह सेवा करते देख उनक गाँव क कछ लोग को ब त बुरा लगा िक
हमारा ाम भाई ससुराल क घर म टोकरी ढो रहा ह। उ ह ने गु अमरदास तक को इसका उलाहना िदया।
इसपर गु जी ने मुसकराकर कहा, ‘‘रामदास क िसर पर िम ी-गार क टोकरी नह ब क दीन-दुिनया का छ
ह।’’
जो योित गु नानकदेव ने गु अंगद म और गु अंगददेव ने गु अमरदास म देखी वही योित गु अमरदास
ने जेठाजी अथा रामदासजी म देख ली। अंत समय िनकट आया देख १ िसतंबर, १५७४ क िदन गु अमरदास ने
रामदास को गु पद परपरा क िनवहण का दािय व स पा और वयं उनक चरण म शीश नवाकर फरमाया, ‘‘आप
मेर प ह। गु नानक क योित आपम िव मान ह।’’
गु अमरदास क ये पु बाबा मोहनजी वयं को गु ग ी का असली उ रािधकारी समझते थे। सो गु जी क
उ िनणय से वे नाराज हो गए। उ ह ने अपनी बाक बची सारी उ इसी ोध म एक कमर म एकांतवास करते
ए िबता दी।
गु पद हण करने क बाद गु रामदास गु अमरदास क ेरणा से उस थान पर चले आए जो बादशाह
अकबर ारा बीबी भानी को भट व प दी गई जागीर का एक िह सा था। गु जी ने इस थान पर सव थम
अमृतसर शहर क न व रखी। गु नानक क ‘िकर करो’ (यानी मेहनत क कमाई करो) क िस ांत क अनु प
गु रामदास एक ऐसे समाज क थापना करना चाहते थे िजसम न कोई मु तखोर हो, न पराि त। अतः उ ह ने
अलग-अलग थान से बावन जाितय क नरमंद को े रत करक अमृतसर म एक क म लाकर बसाया, जो
आज भी ‘गु बाजार’ क नाम से जाना जाता ह। स १५७४ म गु रामदास ने वतमान अमृत सरोवर क खुदाई
आरभ करवाई, जो स १५८९ म पूरी ई। इसक म य म ह र क मंिदर क िनमाण क उनक संक प को आगे
चलकर पाँचव गु गु अजनदेवजी ने पूरा िकया।
अपने तीन पूववत गु क तरह गु रामदास ने भी अनेक शा ीय राग म ई रीय वाणी क रचना क ।
गु जी क वाणी य -त उस िवरिहणी सुहािगन क पीड़ा को य करती ह जो अपने ि य क दशन क िलए
याकल ह। यथा—
‘इक घड़ी न िमलते ताँ कलजुग होता
ण किद िमिलए ि य तुद भगवंता
मोिह रिण न िवहावै न द न आवै
िबनु देखे गु दरबार जीउ
हऊ घोली जीउ घोल घुमाई
ितस सचे गु दरबार जीउ॥’
अपना अंत समय समीप आया देखकर गु रामदास ने संगत क सलाह और सहमित से गु पद का दािय व
अपने तीन पु —ि थीचंद, महादेव और अजनदेव म से सबसे सुयो य अजनदेव को स पने का िन य िकया।
तदनुसार १ िसतंबर, १५८१ को अजनदेव को गु ग ी स पकर उसी िदन गु रामदास परलोक िसधार गए। ‘गु
ंथ सािहब’ म गु जी क ६७९ शबद ‘महला ४’ शीषक से दज ह।

५. गु अजनदव
यास नदी पार करक पाँचव गु ी गु अजनदेव ड े गाँव प चे तो दूर-दूर से ालु उनका उपदेश सुनने क
िलए आए। जालंधर का हािकम सैयद अजीम खाँ भी गु जी क क ित और मिहमा सुनकर उनक दशन-उपदेश क
िलए प चा। गु अजनदेव क चरण म शीश नवाकर अजीम खाँ ने सवाल िकया, ‘‘महाराज, आपक िवचार म
िहदू धम े ह िक इसलाम धम?’’
इसपर गु जी ने उ र िदया, ‘‘राम-रहीम, अ ाह-नारायण आिद सब एक ही कता क नाम ह। िहदू और
मुसलमान दोन म उसीक योित का काश ह।’’
यह सुनकर अजीम खाँ ब त स और भािवत आ।
एक िदन बाला और क णा पंिडत गु अजनदेव क दरबार म हािजर ए और ाथना क , ‘‘महाराज, हम कथा
करक लोग क मन को शांित दान करते ह। लेिकन हमारा अपना मन िफर भी अशांत रहता ह। कपया मन क
शांित का कोई उपाय बताइए।’’
गु जी ने कहा, ‘‘अगर धन इक ा करने क िलए कथा क जाती ह तो उससे मन म कभी भी शांित नह होगी।
यिद आप शांित चाहते ह तो अपनी कथनी (कथा) पर वयं भी अमल िकया करो और िन काम भाव से कथा िकया
करो।’’

गु अजनदेव
बाला और क णा इस उ र से ब त संतु ए।
गु अजनदेव ब आयामी ितभा क धनी थे। वह एक कशल संगठनकता, महा पैगंबर, उ कोिट क
आ या मक किव, अथक धम- चारक, संगीत और कला क मम एवं स य तथा याय क र ा क िलए अपना
जीवन तक करबान कर देनेवाले थम शहीद िसख गु थे। थम चार गु ने िसख धम क न व रखी, तो गु
अजनदेवजी ने न कवल िसख को ब क संपूण मानव जाित को आ या मक ान का परम खजाना ‘ ीगु ंथ
सािहब’ एवं महा क ीय तीथ थल वण मंिदर भट करक उस न व पर धमिनरपे ता तथा सवधम समभाव क
िचर थायी इमारत खड़ी क ।
गु अजनदेव का ज म स १५६३ म आ। वह चौथे गु रामदास क तीन पु म सबसे छोट थे। िपता गु
रामदास ने अजनदेव क बा यकाल म ही उसम भु ीतम क दशन कर िलये थे। िशशु अजन तीसर गु
अमरदासजी का भी लाड़ला था। अकसर जब गु अमरदासजी भोजन कर रह होते तो न हा अजन उनक थाली म
हाथ मारने लगता। इसपर गु जी क वचन होते थे, ‘बेटा, इतना बेस मत हो। एक िदन तू भी इसी थाली म भोजन
करगा।’
उनक भिव यवाणी सच िनकली। स १५८१ म, जब अजनदेवजी क उ िसफ अठारह वष थी, ी गु
रामदासजी ने उ ह धमस मत रीित से गु पद परपरा क िनवहण का दािय व स पा और कहा, ‘‘अजनजी आज
संपूण पृ वी क गु बन गए ह। उनक त त से उ ूत काश समूची सृि को रोशन कर रहा ह।’’
गु पद हण करने क प ा गु अजनदेव ने अपने पूवज गु क आ या मक ान क संदेश क चार एवं
सार क िलए रावी तथा यास क म यवत े क या ा क । इस दौरान वह अमृतसर से करीब बारह मील क
दूरी पर थत एक छोट से थान क िम ी और जलवायु से इतने भािवत ए िक वहाँ उ ह ने एक ब त बड़
सरोवर तथा तीथ थल का िनमाण करवाया और उसका नाम रखा ‘तरणतारण’, अथा वह तीथ िजसक दशन एवं
ान से ालु भवसागर को पार कर जाते ह। इसक बाद गु जी ने करतारपुर और छरहटा क न व रखी।
गु अजनदेवजी ने अ या म क साथ िवकास को जोड़कर भ -परपरा को एक नई िदशा दी। पंजाब क शु क
धरती सदा पानी क िलए तरसती थी। गु अजनदेवजी ने रा य म जगह-जगह क , बावि़डय और सरोवर का
िनमाण करवाकर पंजाब क लोग क ित महा उपकार िकए।
िपता गु रामदासजी ने अमृतसर शहर बसाया तो पु अजनदेव ने वहाँ ‘िसफित दा घर’ यानी ह रमंिदर सािहब
का िनमाण करक अमृतसर को एक नया हानी व प िदया। ह रमंिदर सािहब क न व उ ह ने एक सूफ फक र
साँई िमयाँ मीर से रखवाई और चार िदशा म चार ार रखे। यह एक गहरा और गंभीर संदेश था धम और
जाित- यव था क भेद म बँट भारतीय समाज को, िक भु का यह घर सबका सॉझा ह और िकसी भी जाित या वण
का कोई भी य िकसी भी ार से यहाँ आकर उनक कपा ा कर सकता ह।
ह रमंिदर सािहब क िनमाण क अलावा गु अजनदेवजी क जीवन का सवािधक मह वपूण एवं रचना मक काय
था आिद ंथ यानी ‘ ीगु ंथ सािहब’ का संकलन। उ ह ने एक-एक थान पर जाकर बड़ी ा, यार और
अदब क साथ अपने पूववत चार गु क पिव वाणी को एक िकया और गु -घर क स माननीय िलिपकार
भाई गुरदासजी क हाथ चार गु और वयं क वाणी को िलिपब करवाया। यही नह , आिद ंथ म गु
अजनदेवजी ने तीस अ य संत -भ क आ या मक वाणी भी स मिलत क । ये संत और भ सूरदास जैसे
ा ण भी थे और फरीद जैसे मुसलमान सूफ तथा कबीर, रिवदास जैसे तथाकिथत अ पृ य एवं नीची जाितवाले
महापु ष भी थे। सभी क वाणी को एक ही िज द पी माला म िपरोकर गु अजनदेवजी ने ऊच-नीच, ा ण-
शू का भेदभाव िमटा िदया। आिद ंथ का संकलन और संपादन संप होने पर गु जी ने ह रमंिदर सािहब म पूण
मयादा क साथ उसका ‘ काश’ ( थापन) िकया और बाबा बु ाजी को उसका थम ंथी िनयु िकया।
स १६०५ म जब जहाँगीर अकबर का उ रािधकारी बना तो उसक पु खुसरो ने उसक िखलाफ बगावत कर
दी और शाही सेना से घबराकर वह गु अजनदेव क शरण म आया। इसक िलए मुगिलया स तनत ारा
गु जी पर दो लाख पए का जुमाना िकया गया। पर गु जी ने यह अनुिचत जुमाना देने से इनकार कर िदया। अंततः
उ ह बंदी बनाकर घोर अमानवीय यातनाएँ दी गई और ये क तपती दोपहरी म जलते तवे पर िबठाकर और
ऊपर से उनक शरीर पर तपती रत डालकर बड़ी िनममता से शहीद कर िदया गया। िफर भी गु जी ने उफ तक नह
क , ब क यही फरमाया, ‘तेरा क आ मीठा लागे, ह र नामु पदाथु नानक माँगे।’
‘गु ंथ सािहब’ म गु अजनदेव क कल दो हजार दो सौ अठारह शबद ‘महला ५’ क नाम से दज ह।

६. गु ह रगोिबंद
‘गु ंथ सािहब’ क संकलनकता और पाँचव िसख गु ी गु अजनदेव क धमप नी माता गंगाजी िववाह क
पं ह वष बाद भी संतान न होने से िदन-रात इस िचंता म घुलती रहती थी िक प रवार क वंश-वृ को कौन आगे
बढ़ाएगा। एक िदन उ ह ने अपनी िचंता पित गु अजनदेव से कह सुनाई। गु जी ने माता गंगाजी को सलाह दी िक
वह गु -घर क पुरातन बुजुग बाबा बु ाजी क पास जाकर उनक सेवा कर और आशीवाद ल तो िन त प से
उनक संतान क मनोकामना पूरी होगी।
गु अजनदेव क सलाह क मुतािबक माता गंगाजी ने कई कार क यंजन तैयार करवाए और दास-दािसय क
साथ आलीशान रथ पर सवार होकर बाबा बु ाजी क पास प च । बाबाजी ने भोजन तो हण कर िलया, लेिकन
वह स नह ए। मायूस माता गंगाजी ने लौटकर सारी बात पित अजनदेव को सुनाई।
गु जी ने कहा, ‘‘महापु ष लोग आडबर और तड़क-भड़क से नह , िवन ता से स होते ह।’’
गु जी क कह मुतािबक माता गंगाजी ने अगले िदन ातःकाल अपने हाथ से अनाज पीसकर ठठ घरलू ढग से
िम सी रोटी और ल सी तैयार क तथा साथ म कछ सूखे याज लेकर भरी दोपहरी, तपती गरमी म अकली नंगे
पाँव चलकर बाबा बु ाजी क िनवास पर पुनः प च ।
माता गंगाजी क हाथ का बना आ भोजन खाकर बाबा बु ाजी अ यंत स ए। भोजन क दौरान एक मोट
से याज को मु ा मारकर तोड़ते ए उ ह ने माता गंगाजी को वर िदया, ‘‘आपक घर एक ऐसा परा मी युगपु ष
ज म लेगा जो मीरी और पीरी का मािलक होगा। वह यो ा दु क िसर वैसे ही तोड़गा जैसे हम यह याज तोड़
रह ह।’’
स मन से माता गंगाजी घर लौट । बाबा बु ाजी का वरदान पूरा आ और २१ आषाढ़, संव १६५२ क
िदन वडाली (िजला अमृतसर) म गु अजनदेव क घर बालक ह रगोिबंद का काश (ज म) आ। आगे चलकर
िपता गु अजनदेव क बाद वह िसख धम क छठ गु कहलाए। गु -सुपु होने क कारण गु ह रगोिबंद सािहब का
य व भी भ -भावना, परोपकार, याग, दानशीलता और क णा क उदा सं कारगत गुण से प रपूण था।
य िप बालक ह रगोिबंद का बचपन माता-िपता क लाड़-दुलार और यार म बीता, पर बा याव था म उ ह
अपने ही ताया ि थीचंद और ताई करमो क ई या क हाथ क और यातनाएँ भी सहनी पड़ । ि थीचंद गु
अजनदेव का बड़ा भाई था और चौथे गु ी गु रामदास क बाद, जो गु अजनदेव और ि थीचंद क िपता भी थे,
वयं को गु ग ी का असली उ रािधकारी समझता था। लेिकन ि थीचंद क गु -घर िवरोधी नीितय और बुरी
संगत क कारण गु रामदास ने उससे अपना नाता तोड़ िलया तथा अपने छोट सुपु अजनदेव को गु ग ी स प
दी। तब से ि थीचंद और उसक प नी गु -घर और िवशेषकर गु अजनदेवजी क प रवार क क र वैरी बन बैठ।
अपने दु वभाव क मुतािबक वे हमेशा गु जी को नीचा िदखाने का ष यं रचते रहते।
ि थीचंद खुद तो अपनी किटल हरकत क कारण गु ग ी ा नह कर सका, लेिकन पं ह वष गुजर जाने पर
भी छोट भाई अजनदेव क यहाँ कोई संतान न होती देखकर वह खुश था िक चलो मुझे न सही, मेर लड़क मेहरबान
को गु अजनदेवजी क बाद गु ग ी िमलेगी ही। लेिकन गु अजनदेव क यहाँ पु क ज म क खबर सुनकर
ि थीचंद और करमो जल-भुन गए। अपनी उ मीद पर पानी िफरता देख दोन ने बालक ह रगोिबंद को मरवाने क
कई ष यं रचे। पहले उ ह ने ह रगोिबंद क दाई को लालच देकर खरीद िलया और उसक तन पर जहर
लगवाकर बालक ह रगोिबंद क पास भेजा। दाई क लाख कोिशश क बावजूद बालक ने उसक तन से दूध नह
िपया, उलट जहर क असर से खुद दाई ही मर गई। यह िनशाना खाली जाता देख पापी ि थीचंद और करमो ने एक
सपेर क हाथ बालक ह रगोिबंद क कमर म एक जहरीला साँप छोड़वा िदया। लेिकन ‘जा को राखे साँइया, मार
सक न कोय’ क उ क मुतािबक सेवादार को समय पर पता चल गया और उ ह ने साँप को मार िदया।
इसक बावजूद ि थीचंद और करमो अपनी दु ता से बाज नह आए। तीसरी बार उ ह ने बालक ह रगोिबंद क
एक सेवक क ज रए दही म जहर डालकर उ ह मरवाने का कच रचा। जब वह दु बालक को दही िपलवाने
लगा तो वह रोने लगा। ब े का रोना सुनकर िपता अजनदेव आ गए। पर बालक ने उनक हाथ से भी दही पीने से
इनकार कर िदया। गु जी ने वह दही एक क े को डाल िदया, िजसे पीते ही वह मर गया। इसपर उस ग ार का
सारा भेद खुल गया। ि थीचंद क पूर शहर म बदनामी ई और वह ग ार सेवक भी दूसर िदन शूल से मर गया।
इस भारी बदनामी क बाद ि थीचंद और करमो ने अपनी दु हरकत बंद कर द ।
सवश मा गु अजनदेव ने अपने आ या मक ान से यह अनुभव कर िलया था िक आनेवाले समय म जु म
और अ याय का मुकाबला करने क िलए िसख को संत क साथ-साथ िसपाही भी बनना पड़गा। अतः उ ह ने अपने
सुपु ह रगोिबंद को यु कला और कौशल का िश ण ा करने क िलए बाबा बु ाजी क पास भेजा।
बाबाजी ने ह रगोिबंद सािहब को सव थम गु वाणी क िव ा दी और त प ा उ ह श संचालन, घुड़सवारी,
क ती इ यािद जैसे करतब िसखाए। नतीजतन ह रगोिबंद सािहब एक ऐसे पु ष क प म उभर, जो शूरवीर यो ा
भी थे और ानी भी। गु ह रगोिबंदजी क इस िविश गुण पर भाई गु दासजी ने िलखा ह—
‘दल भंजन गु सूरमा बड जोधा ब परउपकारी।’
मुगल बादशाह जहाँगीर क हाथ िपता गु अजनदेव क शहीदी क प ा िसफ यारह वष क अ पायु म
ह रगोिबंदजी ने गु ग ी का दािय व हण िकया। गु -पदवी का ितलक लगाने क बाद बाबा बु ाजी ने, परपरा
क मुतािबक, जब गु ह रगोिबंद सािहब को सेली टोपी (संत -फक र ारा पहनी जानेवाली रशमी या ऊनी टोपी,
िजसे गु नानकदेवजी से लेकर गु अजनदेवजी तक पाँच गु साफ क साथ पहनते रह) पेश क तो गु जी ने
फरमाया, ‘‘इसका युग अब ख म आ। हम आप द तार (पगड़ी), कलगी और तलवार पहनाइए।’’
ऐसा ही आ। गु जी ने दो तलवार पहन —एक मीरी क और एक पीरी क । पहली आ या मक माग क
तीक थी तो दूसरी सांसा रक मामल म पंथ और समूची मानवता क अगुआई क ।
गु ग ी पर िवराजमान होने क प ा गु ह रगोिबंद सािहब ने अपने अनुयाियय को यह आदेश िदया िक वे
अ य कार क भट-साम ी क साथ-साथ श और घोड़ भी लाएँ, तािक िसख श िव ा सीखकर अ याय तथा
अ याचार क उस आँधी से ट र ले सक, िजसम उनक पू य िपता गु अजनदेव शहीद हो गए थे। िसख कौम
को नई िदशा देने क उ े य से गु जी ने अमृतसर म दो मुख काय िकए। पहला—लौहगढ़ िकले का िनमाण,
जहाँ वे अपने अनुयाियय को शारी रक सौ व-िनमाण और यु कला का िश ण िदया करते थे और दूसरा—
वण मंिदर क ठीक सामने अकाल त त का िनमाण। इसक ज रए गु ह रगोिबंदजी ने पहली बार िसख क
राजनीितक पहचान कायम क । सोहन किव ने अपनी रचना ‘गु िबलास पातशाही छठी’ म अकाल त त क
िनमाण को अकाल पु ष (परमा मा) क आदेश क पूित क सं ा दी ह। किव का कथन ह—
‘अकाल पुरख पुिन बचिन उ ार। ह रगोिबंद सुनीअै िनरधार॥
तुम हमर मिह भेद न कोई। तोिह अवतार हत इह होई॥
तोर िपता को बच कह, पाछ मुिह इिह भाय।
सुत तुमरा तुमर िनकट, मेर त त बनाय॥’
—अथा परमा मा ने वयं गु ह रगोिबंदजी को यह कहा िक मेर और तु हार बीच कोई भेद नह ह और तु हार
िपता से हमने यह वचन िकया था िक तु हारा सुपु तु हार दरबार क पास ( ात य ह िक दरबार सािहब का िनमाण
गु अजनदेवजी ने करवाया था) मेरा त त बनाएगा।
जहाँ दरबार सािहब का वातावरण एकदम शांत और भ मय होता, अकाल त त का वातावरण उतना ही
जोशीला और वीर रस से पूण होता। ितिदन दोपहर क बाद गु ह रगोिबंदजी अकाल त त पर राजसी और
सांसा रक स ा क तीक बनकर बैठते। वे लोग क िशकायत सुनते और उनक झगड़ का िनपटारा करते।
गु ह रगोिबंद क बढ़ती श और तबा देखकर गु -घर क सदा से िवरोधी रह चंदू और मेहरबान (ि थीचंद
का बेटा) ने जहाँगीर क कान भरने शु कर िदए िक ह रगोिबंदजी ने बादशाही त त क मुकाबले म अकाल त त
बना िलया ह, जहाँ िवराजमान होकर वे खुद को ‘स ा पातशाह’ कहलवाते ह। उ ह ने सैिनक श भी संगिठत
कर ली ह और उनक बढ़ती ताकत को अगर रोका न गया तो िकसी िदन वे कमत क िलए खतरा सािबत हो
सकते ह।
कान क क े जहाँगीर ने, जो गु अजनदेव क शहीदी क कारण पहले ही अंदर से डरा आ था, बड़ी चालाक
और धोखे से गु ह रगोिबंद को िगर तार करक वािलयर क िकले म नजरबंद कर िदया, जहाँ बावन राजा पहले से
ही बंदी थे और जेल क यातनाएँ भुगत रह थे।
िहदु और िसख क अलावा कई नेक िदल मुसलमान ने भी गु जी को बंदी बनाए जाने का कड़ा िवरोध
िकया। नतीजतन करीब दो वष बाद बादशाह ने गु जी को रहा करने का फरमान जारी कर िदया। कदखाने म बंद
बावन राजा क दुदशा से िवत गु ह रगोिबंदजी ने कहलवा भेजा िक जब तक इन सभी बावन राजा को भी
रहा नह िकया जाता, वे िकले से बाहर नह जाएँग।े इसपर बादशाह जहाँगीर ने कहा िक ठीक ह, िजतने भी कदी
राजा गु जी का हाथ या प ा थामकर िनकल सकते ह, िनकल जाएँ। गु जी ने चतुराई से काम लेते ए पचास
किलय वाला जामा तैयार िकया और इस कार पचास राजा को अपने जामे क एक-एक कली थमाकर तथा
बाक दो राजा को अपना हाथ थमाकर कद से छड़ा िलया और तब से वे ‘बंदी छोड़ पातशाह’ कहलाए।
गु नानकदेवजी क बाद गु ह रगोिबंद पहले गु थे, िज ह ने धम क चार क िलए पंजाब से बाहर दौरा िकया।
ीनगर (क मीर) म आपक मुलाकात िशवाजी मराठा क धािमक गु ी समथ रामदासजी से ई।
अ -श से लैस और घोड़ पर सवार ह रगोिबंदजी को देखकर समथ रामदासजी बोले, ‘‘हमने सुना था, आप
गु नानकदेव क ग ी पर िवराजमान ह। पर गु नानकदेव तो यागी साधु थे, जबिक आप तो श , घोड़ और
सैिनक रखते ह और ‘स ा पातशाह’ कहलाते ह। आप कसे साधु ह?’’
गु ह रगोिबंदजी ने उ र िदया, ‘‘ ‘बातन फक री, जाहर अमीरी।’ श हमने गरीब क र ा और अ याचारी क
िवनाश क िलए धारण िकए ह। बाबा नानक ने संसार नह यागा था, माया का याग िकया था।’’
समथ रामदासजी इस उ र से अ यंत भािवत ए। और सच भी ह, मजलूम क र ा क िलए गु जी ने चार
लड़ाइयाँ लड़ । पर ये लड़ाइयाँ राजसी नह , धािमक (धमयु ) थ । उ ह ने िवरोधी प क एक इच भूिम पर भी
क जा नह िकया, ब क अपने खच पर मुसलमान क िलए करतारपुर म एक मसिजद बनवाई।
अपने पचास वष य जीवनकाल क अंितम दस वष गु ह रगोिबंद सािहब ने ई र क िचंतन म यतीत िकए।
आपक पाँच सािहबजादे (सुपु ) ए—बाबा गुरिदताजी, ी सूरजमलजी, ी अणीरायजी, बाबा अटलरायजी और
ी तेगबहादुरजी। इनम से तीन बाबा गुरिदताजी, बाबा अटल राय और ी अणीरायजी पहले ही ई र को यार हो
गए थे। ी सूरजमलजी दुिनयादारी म ब त अिधक वृ रहते थे; जबिक तेगबहादुरजी—जो आगे चलकर नौव गु
बने—दीन-दुिनया से िबलकल ही िवर रहनेवाले यागी पु ष थे। अतः अपना अंतकाल िनकट आया महसूस कर
गु ह रगोिबंदजी ने अपने पौ ी ह रराय को गु पद परपरा क िनवहण का दािय व स पा और ६ चै , संव
१७०१ क िदन उसी परम योित म समा गए िजसका वे अंश थे।

७. गु ह रराय
सातव गु ी गु ह रराय वभाव से अ यंत कोमल थे। बचपन म एक बार वे करतारपुर (जालंधर) क एक बाग
म टहल रह थे। अचानक तेज हवा चलने लगी, िजससे उनका खुला, लंबा चोगा लहराकर फल क पौध से उलझ
गया। कछ फल टटकर जमीन पर आ िगर। फल क पंखुि़डयाँ इधर-उधर िबखर गई। यह देखकर ह ररायजी उदास
हो गए और सोचने लगे, ये यार- यार फल टहिनय पर लगे ए िकतने सुंदर लगते थे। लेिकन मेर चोगे से
उलझकर ये टटकर िम ी म िमल गए ह।
बालक ह रराय इसी उदासी म डबे ए थे िक छठ गु ह रगोिबंदजी, जो उनक दादा लगते थे, वहाँ आए। उ ह ने
पोते ह रराय से उदासी का कारण पूछा। बालक ह रराय ने सारी बात बताई।
गु ह रगोिबंद बोले, ‘‘बेटा, जब भी ऐसा चोगा पहनो, िजसक लहराने से कोमल व तुएँ न होने का डर हो,
उसे (चोगे को) सँभालकर चलो।’’
गु ह रगोिबंद क इस िश ा का अथ यह था िक य को अपनी ताकत का इ तेमाल सोच-सँभलकर करना
चािहए और सपने म भी िकसीको क नह देना चािहए।
बालक ह रराय ने दादा-गु क यह िश ा प े बाँध ली और पूरी िजंदगी उसपर अमल िकया। वे शेख फरीद
का िन निलिखत ोक अकसर गुनगुनाया करते—
‘सभना मन मािणक ठाहणु मूिल मचांगवा।
जे तउ िप रआ दी िसक िह आउ न ठाह कहीदा॥’
—अथा सभी मनु य का िदल ब मू य हीर क तरह होता ह। इसे तोड़ना पाप ह। अगर तुम भु-परमा मा से
िमलना चाहते हो तो कभी िकसीका िदल मत तोड़ो।
गु ह रराय का ज म क रतपुर (िजला होिशयारपुर, पंजाब) म १६ जनवरी, १६३० क िदन आ। आपक माता
िनहाल कौर और िपता बाबा गुरिदताजी थे, जो गु ह रगोिबंद क सबसे बड़ सुपु थे। गु ह रगोिबंदजी क
देहावसान क प ा ८ माच, १६४४ को िसफ चौदह वष क आयु म वे िसख धम क सातव गु बने।
अपने दादा गु ह रगोिबंद क तरह गु ह रराय भी िशकार क ब त शौक न थे। लेिकन उनक एक खास
िवशेषता यह थी िक वे िशकार को मारने क बजाय जीिवत पकड़ते और पकड़ गए जानवर को अपने बाग म
लाकर रखते और बड़ चाव से उनका लालन-पालन करते।
एक ओर गु ह रराय लोग को आ या मक ान और उपदेश देत,े दूसरी ओर रोिगय क शारी रक दुःख दूर
करने क िलए अपने दवाखाने से उ ह दवाइयाँ भी देते। गु जी क दवाखाने म कई दुलभ तथा महगी दवाइयाँ हमेशा
उपल ध रहती थ । उनक दवाखाने क िस दूर-दूर तक फली ई थी। एक बार शाहजहाँ का बेटा दारा िशकोह
काफ बीमार हो गया। शाही हक म को उसक इलाज क िलए आव यक जड़ी-बूिटयाँ कह से न िमल । िकसी
य ने उसे गु ह रराय क दवाखाने क बार म बताया। शाहजहाँ ने अपना दूत गु जी क पास भेजा। गु जी क
दवाखाने से दारा िशकोह क इलाज क िलए आव यक सभी जड़ी-बूिटयाँ ा हो गई और शहजादा शी ही ठीक
हो गया। कत शहजादे ने क रतपुर जाकर गु ह रराय का आभार कट िकया।
शाहजहाँ क बेट म िद ी क त त क िलए लड़ाई शु हो गई और दारा िशकोह अपने भाई औरगजेब से
हारकर लाहौर क तरफ भागा। उसे पकड़ने क िलए औरगजेब ने फौज भेजी। दारा िशकोह घबराकर गोइदवाल
सािहब आया, जहाँ गु ह रराय ठहर ए थे, और उनसे मदद माँगी। गु जी ने दादा गु ह रगोिबंदजी क आ ा से
बाईस सौ घुड़सवार रखे ए थे, तािक ज रत पड़ने पर उपयोग म लाए जा सक। गु जी अपने सभी घुड़सवार
लेकर यास नदी क िकनार प च गए और औरगजेब क फौज को नदी पार करने से रोक रखा। दारा िशकोह
सुरि त िनकल गया। इस बात का पता औरगजेब को लग गया। भाइय को क ल करने क बाद वह िद ी क
त त पर बैठा तो उसने गु ह रराय को बुला भेजा। गु जी वयं नह गए और अपनी जगह बड़ पु रामराय को
भेज िदया। रामरायजी ने औरगजेब क सभी सवाल का जवाब बड़ी सूझ-बूझ से िदया।
आिखर म औरगजेब ने पूछा, ‘‘आपक ‘गु ंथ सािहब’ म िलखा ह—
‘िम ी मुसलमान क पेड़ पई किमआर।
घि़ड भांड इटाँ क आँ जलदी कर पुकार॥’
इसका या अथ ह?’’
औरगजेब को खुश करने क िलए रामरायजी कह गए िक ंथ सािहब म ‘िम ी मुसलमान क ’ नह , ब क
‘िम ी बेईमान क ’ िलखा ह।
जब गु ह रराय को पु रामराय क इस कमजोरी एवं झूठ का पता लगा तो उ ह ने रामराय को अपना फसला
सुना भेजा िक वह िजंदगी म कभी अपनी सूरत उ ह न िदखाए। ंथ सािहब क वाणी म हर-फर करनेवाले पु को
उ ह ने सदा क िलए याग िदया।
इकतीस वष क आयु म अपना अंतकाल समीप आया जानकर गु ह रराय ने अपने छोट पु ह रक ण को
गु ग ी स पी और ६ अ ूबर, १६६१ को परलोक िसधार गए।

८. गु ह रक ण
आठव गु ी गु ह रक ण का ज म ७ जुलाई, १६५६ को क रतपुर, िजला रोपड़, पंजाब म आ। आपक िपता
का नाम (गु ) ह रराय अैर माता का नाम क ण कौर था। कवल पाँच वष और तीन माह क छोटी सी अव था म
िपता ह रराय से गु ग ी का उ आ या मक पद होने क कारण ालु और भ गु ह रक णजी को यार से
‘बाला ीतम’ (बाल गु ) क नाम से भी पुकारते।
गु आयु से नह , ान और अपने भीतर दी िद य योित से महा होता ह। अंबाला से आगे पंजोखरा गाँव
का एक घमंडी पंिडत था क ण लाल। क रतपुर से िद ी जाते ए गु ह रक ण पंजोखरा क। पंिडत क ण लाल
ने आकर गु जी से कहा, ‘‘इतनी छोटी सी उ म ही आप वयं को गु कहलाते ह। अगर आपम ई र क श
ह तो आप मुझे ‘गीता’ क अथ करक सुनाएँ। तब म भी आपको गु मान लूँगा।’’
गु ह रक णजी बोले, ‘‘पंिडतजी, अगर आपको ‘गीता’ क अथ सुनने ह तो आप अपने गाँव क िकसी य
को ले आएँ। हम उसक मुँह से आपको ‘गीता’ क अथ सुनवा दगे।’’
यह सुनकर पंिडत क ण लाल एक अनपढ़ छ ू झीवर को ले आया।
गु ह रक ण ने अपनी कपा ि छ ू झीवर पर डाली और कहा, ‘‘पंिडतजी को ‘गीता’ क अथ करक
सुनाओ।’’
सचमुच, गु क कपा से अनपढ़ छ ू िव ान क तरह ‘गीता’ क अथ करने लगा। पंिडत क ण लाल का
घमंड चूर-चूर हो गया और गु जी क चरण म िगरकर उसने मा माँगी।
िद ी प चकर गु ह रक ण राजा जयिसंह क बँगले म ठहर, जहाँ आज गु ारा बँगला सािहब थत ह।
राजा जयिसंह क रानी को गु जी क अ पायु क कारण उनक आ या मक श पर कछ संदेह था। उसने गु जी
क परी ा लेनी चाही। रानी ने बाला ीतम को भोजन क िलए बुलाया और वयं दािसय वाले मामूली व पहनकर
दािसय क साथ बैठ गई। अंतयामी गु आए, सभी दािसय पर एक-एक िनगाह डाली और यह भी रानी नह , यह
भी रानी नह ...’ कहते ए दासी बनी ई रानी क पास जाकर खड़ हो गए तथा बोले, ‘‘यही ह असली रानी।’’
रानी ग द हो गई। गु जी को उसने ा से शीश झुकाकर णाम िकया और बड़ ेम से उ ह भोजन कराया।
उन िदन िद ी म हजे क महामारी फली ई थी। गु जी का िद ी आगमन सुनकर रोगी अपने क िनवारण
क िलए उनक पास प चने लगे। आ या मक गु ने पिव जल का एक कड बनवाया। जो भी इस कड से पिव
जल लेता, उसक सभी रोग दूर हो जाते। िद ी क गु ारा बँगला सािहब म वह कड आज तक कायम ह।
हजा का कोप कम आ तो चेचक क बीमारी फल गई। गु ह रक ण अपने िश य को साथ लेकर ब ती-
ब ती जाते और दुिखय क मदद करते। लगातार रोिगय क संपक म रहने से गु जी को चेचक ने जकड़ िलया।
अपना अंितम समय िनकट आया जानकर गु ह रक ण ने संगत को आदेश िदया—‘बाबा बकाले’, िजसका अथ
था िक हमार उ रािधकारी गु बकाला गाँव म ह। यह कहकर गु ह रक ण ३० माच, १६६४ को परलोक िसधार
गए। िद ी म यमुना क िकनार िजस थान पर गु जी क पािथव शरीर का अंितम सं कार आ, वहाँ उनक मृित
म गु ारा ‘बाला सािहब’ िनिमत ह।
९. गु तेगबहादुर
नौव गु क िलए िसफ ‘बाबा बकाला’ श द कहकर गु ह रक ण परलोक िसधार गए। लेिकन बकाला शहर म तो
पूर बाईस पाखंडी अपने-अपने डर लगाकर बैठ ए थे और हर कोई अपने आपको असली तथा नौवाँ गु कह रहा
था। लेिकन वा तिवक गु तो कोई और था। उसक पहचान कसे ई, इस बार म एक रोचक साखी (स ी घटना)
इस कार ह—
कािठयावाड़ (गुजरात) का एक ब त बड़ा यापारी था मखणशाह लुबाणा। वह गु -घर का अन य सेवक और
ालु भी था।
एक बार मखणशाह समु ी जहाज पर माल-असबाब लादकर दूसर शहर जा रहा था। अचानक तेज तूफान आया
और जहाज डगमगाने लगा। मखणशाह को िचंता सताने लगी। उसने ई र से ाथना क िक अगर जहाज डबने से
बच गया तो वह बकाला (पंजाब) म गु जी क दरबार म पाँच सौ सोने क मुहर भट करगा।
ई र ने मखणशाह क ाथना सुन ली। तूफान थम गया और जहाज बच गया। वचन क मुतािबक मखणशाह ने
मुहर क थैली ली और गु को भट करने क िलए बकाला प चा।
पर यह या! वहाँ तो एक नह , पूर बाईस य आसन लगाकर बैठ थे। हर कोई अपने आपको स ा गु और
बािकय को पाखंडी कह रहा था।
मखणशाह का िसर चकरा गया। ‘गु तो एक ही होता ह, बाईस नह । असली गु का पता कसे चले, िजसे म
पाँच सौ मुहर भट कर सक?’ वह सोचने लगा।
आिखर उसने एक तरक ब ढढ़ ली। वह गु कहलानेवाले उन सभी बाईस य य क आगे दो-दो मुहर रखकर
माथा टकता गया। उसे पता था िक गु अंतयामी होता ह, इसिलए जो स ा गु होगा वह अपनी भट खुद माँग
लेगा।
पर बात िफर भी न बनी। वे बाईस-क-बाईस पाखंडी और धोखेबाज थे। मुहर उठाकर सबने अपनी-अपनी जेब
म डाल ल और झूठा आशीवाद देते गए।
मखणशाह बड़ा मायूस आ। उसने एक गाँववासी से पूछा, ‘‘ य भाई, या यहाँ इनक अलावा भी कोई ह?’’
‘‘हाँ, ह, उसका नाम ह तेगबहादुर। वह उस तंग कोठरी म िपछले कई वष से तप या कर रहा ह। पर िकसीसे
िमलता-जुलता नह ह।’’ जवाब िमला।
मखणशाह जा प चा तंग कोठरी म। तप या म लीन तेगबहादुर का दीदार करक उसे परम शांित िमली। लगा िक
यही ह वह िजसक उसे तलाश ह। िफर भी िनश्ंि◌चत होने क िलए उसने तेगबहादुरजी क चरण म भी दो मुहर
भट क और माथा टका।
तेगबहादुरजी ने आँख खोल और मुसकराकर बोले, ‘‘बस, दो मुहर? तु हारा वायदा तो पाँच सौ मुहर का
था।’’
मखणशाह लुबाणा खुशी से झूम उठा। उसने गु तेगबहादुरजी क चरण म पाँच सौ मुहर अिपत क और बाहर
जाकर िच ाया, ‘‘अर लोगो, ज दी आओ! स ा गु िमल गया, स ा गु िमल गया!’’
स े गु क कट होते ही सभी पाखंडी बकाला से भाग खड़ ए। इस कार नौव गु ी गु तेगबहादुर कट
ए और उ ह गु ग ी स पी गई।
िसख गु परपरा म नौव गु ी गु तेगबहादुर का संपूण जीवन इितहास करबानी, धैय, याग, सहनशीलता,
माशीलता, तप या, िनभयता और सहज वभाव क उदा गुण से प रपूण रहा ह। महज चार वष क अव था म
बालक तेगबहादुर ने अपने तन क बेशक मती व एक िनव गरीब बालक को पहनाकर उसक गरीबी को
ढाँपा। उसी तेगबहादुर ने पचपन वष क अव था म स १६७५ म जब िहदू धम क र ा क िलए िद ी क चाँदनी
चौक म अपने अमर बिलदान पी चादर से भारत क अ मता को ढाँपा तो उसपर किव सेनापित ने िलखा था—
‘ गट भए गु तेगबहादुर। सगल सृि पै ढापी चादर॥
करम धरम क िजिन पत राखी। अटल करी कलजुग म साखी॥’
गु तेगबहादुर परम यो ा एवं छठ िसख गु ी गु ह रगोिबंद क छोट पु और थम िसख शहीद, पाँचव गु
ी गु अजनदेव क पौ थे। गु जी का ज म १ अ ैल, १६२१ को गु क महल अमृतसर म आ और िववाह
करतारपुर क एक ख ी भाई लालचंद क सुपु ी गुजरी से आ। गु जी का मूल नाम यागमल था। तेरह वष क
अ पायु म िजस बहादुरी क साथ उ ह ने करतारपुर क ऐितहािसक जंग म ‘तेग’ (तलवार) का कमाल िदखाया,
उससे भािवत होकर िपता ह रगोिबंद ने उनका नाम ही ‘तेगबहादुर’ रख िदया।
स १६४४ म जब गु ह रगोिबंद का वगवास आ तो तेगबहादुर ने अमृतसर शहर छोड़ िदया और माँ नानक
तथा प नी गुजरी को लेकर बकाला नामक गाँव म आ गए। वहाँ उ ह ने लगातार बीस वष तक एकांत म किठन
तप या करक ान ा िकया। ततालीस वष क अव था म ावण पूिणमा क िदन तेगबहादुरजी ने एकांतवास
यागकर गु पद हण िकया। त प ा उ ह ने भारतीय समाज क मानिसक, धािमक, राजनीितक, आिथक तथा
सामािजक दशा और िदशा क अ ययन क िलए और िवशेषकर लोग म आ या मक जागित पैदा करने क िलए
सव थम पंजाब क , उसक बाद उ री भारत तथा िबहार क अनेक मह वपूण शहर क और अंत म असम तथा
बँगलादेश तक क या ा क । पूव क या ा क दौरान गु जी क माँ तथा प नी भी उनक साथ ही रह। इसी दौरान
पटना म उनक सुपु गोिबंद राय का ज म आ।
न ता, गंभीरता और सौ यता गु तेगबहादुर को अपने दादा गु अजनदेवजी से िवरासत म िमली थी। बचपन से
ही सांसा रक िवषय क ित पु क िवर को देखकर जब माँ नानक ने अपने पित गु ह रगोिबंदजी क सम
िचंता कट क तो उ ह ने माँ नानक को सां वना दी िक उसका पु एक महा धम-पु ष बनेगा और धम-र ा क
िलए अपना शीश तक करबान कर देगा।
यह एक दैवी संयोग ही ह िक गु तेगबहादुर क एक नह ब क पूरी चार पीि़ढयाँ देश अैर पंथ क अ मता क
र ा क िलए करबान ई। सव थम दादा गु अजनदेव, त प ा गु तेगबहादुर वयं और अंततः पु गु गोिबंद
िसंह तथा चार पौ (अथा गु गोिबंद िसंहजी क चार सािहबजादे) अ याय और अ याचार क काली आँधी क
िखलाफ लड़ते ए धम अैर याय क िलए शहीद होकर िव म पीढ़ी-दर-पीढ़ी करबानी क एक अमर एवं
अ तीय िमसाल कायम कर गए।
िवकट और िवषम प र थितय म भी गु तेगबहादुर ने शांिति यता और सौ यता का याग नह िकया। एक बार
जब वह पिव ह रमंिदर सािहब ( वण मंिदर) क दशन क िलए गए तो पुजारी, जो उस समय काफ हो चुक
थे, दरवाजे बंद करक चले गए। मन म दशन क यास िलये गु जी काफ समय तक दरवाजे क बाहर बैठ रह।
पर पुजा रय ने दरवाजे नह खोले। अंततः गु जी ह रमंिदर सािहब क दशन िकए िबना ही लौट गए। जब यह खबर
शहर म प ची तो जैसे समूचा अमृतसर गु जी क चरण म आ िगरा और पुजा रय क इस करतूत क िलए
शहरवािसय ने उनक कड़ी िनंदा क ।
जीवन क अंितम िदन म गु तेगबहादुर आनंदपुर सािहब क सुर य धरती पर आकर बस गए और अपने प रवार
को भी उ ह ने पटना से वह बुलवा िलया। स १६७५ म जब उ री भारत म औरगजेब ारा जोर-जबरद ती क
बल पर लोग का धम-प रवतन िकया जा रहा था, क मीरी पंिडत क एक ज थे ने आनंदपुर सािहब आकर गु
तेगबहादुरजी से उनक धम क र ा क फ रयाद क ।
उनक फ रयाद सुनकर गु जी सोच म पड़ गए। िपता को िवचारम न देखकर बालक गोिबंद ने कारण पूछा।
गु जी ने फरमाया, ‘‘बेटा, इनका धम खतर म ह और यह धम िकसी पु या मा क करबानी से ही बच सकता ह।’’
बालक गोिबंद ने उ र िदया, ‘‘तो िपताजी, आपसे बड़ी पु या मा और कौन हो सकती ह! आप अपनी करबानी
देकर इनका धम बचाइए।’’
पु गोिबंद क इन श द से जैसे उ ह दो सम या का एक साथ समाधान िमल गया—अपने उ रािधकारी क
तलाश अैर िहदू धम क र ा का उपाय। गु जी ने फ रयादी पंिडत को आ त करक िवदा िकया और पु गोिबंद
राय को गु पद परपरा क िनवहण का दािय व स पकर तथा समूह प रवार से िवदा लेकर िद ी क िलए रवाना
ए। रा ते म आगरा म उ ह और उनक साथ आए पाँच िसख को बंदी बना िलया गया और िद ी लाया गया।
औरगजेब ने गु जी क आँख क सामने उनक िसख को शहीद करवाया और गु जी को कठोर यातनाएँ देते ए
इसलाम कबूल करने क िलए कहा, अ यथा मृ युदंड क धमक दी। लेिकन यातनाएँ, डर या धमिकयाँ उ ह स य
माग से िवचिलत न कर सक । सो गु जी को शहीद कर िदया गया। लेिकन स ा और स य क इस लड़ाई म
आिखर स य क जीत ई और जबरन धम-प रवतन क आँधी थम गई। इस अ तीय शहीदी पर किव सेनापित
का कहना ह—
‘सगल सृि जा का जस (यश) भयो। िजह ते सरब धरम ब यो॥
तीन लोक म जै जै भई। सितगु पैज रािख हम लई॥
ितलक जनेऊ अर धरमसाला। अटल करी गु भए दयाला॥
धम हत भ पुरिह िसधाए। गु गोिबंद िसंह कहलाए॥’
गु तेगबहादुरजी ने सवदा एक ऐसे िनभय समाज क थापना पर जोर िदया जहाँ मनु य न तो वयं िकसीसे डर
और न िकसीको डराए। इस िस ांत क स े अनुयायी को ही वह ानी मानते थे—
‘भै का को देत निह, निह भै मानत आन।
क नानक सुिन र मना, ानी तािह बखान॥’
गु तेगबहादुर ने कल उनचास शबद और स ावन ोक क रचना क , जो ‘गु ंथ सािहब’ म ‘महला ९’
क शीषक से दज ह।

१०. गु गोिबंद िसंह


२२ िदसंबर, १६६६ का िदन था। इसलाम धम क बड़ पीर भीखणशाह को समाचार िमला िक पटना म गु
तेगबहादुर क घर बालक ने ज म िलया ह। यह समाचार सुनकर पीर साहब क मुख पर एक अलौिकक तेज उभर
आया। उस िदन उ ह ने अपनी नमाज प म क बजाय पूव िदशा (पटना) क ओर मुँह करक पढ़ी। िश य ने जब
उनसे परपरा से हटकर पूव िदशा क ओर मुँह करक नमाज पढ़ने का कारण पूछा तो पीर साहब ने उ र िदया,
‘‘आज गु तेगबहादुर क घर अ ाह का नूर कट आ ह। म उसीको णाम कर रहा था।’’
पीर भीखणशाह बालक गोिबंद क दशन क िलए पटना प चे। साथ म उ ह ने िमठाई क दो दोने, एक दूध और
एक पानी का कटोरा भी ले िलया। बालक गोिबंद क दशन करक िमठाई क दोने उनक सामने रखे। बालक ने
अपने दोन हाथ उनपर रख िदए। िफर पीर साहब ने पानी और दूध क कटोर आगे रखे तो बालक ने दोन को पैर
मारकर िबखेर िदया।
पीर भीखणशाह ने शीश नवाकर बालक को नमन िकया और भेद खोलते ए कहा, ‘‘िमठाई क दोने पर हाथ
रखकर और दूध तथा पानी को िबखेरकर अ ाह क इस पैगंबर ने प संदेश दे िदया ह िक इसक ि म िहदू-
मुसलमान बराबर ह और यह दोन धम को साथ लेकर चलेगा।’’
नौ वष क छोटी सी उ म अपने िपता गु तेगबहादुर को िहदू धम क र ा क िलए बिलदान क ेरणा देनेवाले
गोिबंद राय ही गु तेगबहादुर क शहीदी क बाद िसख धम क दसव गु बने और गोिबंद िसंह कहलाए।
गु गोिबंद िसंह क माता का नाम गुजरी था। गु जी क चार सािहबजादे (पु ) थे। चार धम और स ाई क
र ा क िलए शहीद हो गए। दो बड़ सािहबजादे—अजीत िसंह और जुझार िसंह चमकौर क यु म श ु से यु
करते ए वीरगित ा कर गए, जबिक दो छोट सािहबजाद —जोरावर िसंह और फतह िसंह को इसलाम धम
वीकार न करने पर मुगल शासक ने दीवार म िजंदा िचनवाकर शहीद कर िदया। शहीदी क समय अजीत िसंह क
उ पं ह साल, जुझार िसंह क तेरह साल, जोरावर िसंह क नौ साल और फतह िसंह क उ कवल सात साल
थी। धम क र ा क

पटना म बालक गोिबंद क दशन करते ए पीर भीखण शाह (एकदम दाएँ)
िलए गु गोिबंद िसंह क पूरी चार पीि़ढय ने करबानी दी—दादा गु अजनदेव, िपता गु तेगबहादुर, चार पु
और गु गोिबंद िसंह वयं ने। पीढ़ी-दर-पीढ़ी करबानी क ऐसी िमसाल िव म कह अ य नह िमलती।
बालक गोिबंद जब अपने सािथय क साथ खेलने क िलए िनकलते तो सभी ब े उ ह अपना नेता मानते। गोिबंद
अ य ब क तरह सामा य खेल नह खेलते थे ब क तीर-कमान, कवायद (फौजी परड), यु आिद जैसे
जोशीले खेल खेला करते थे।
बालक गोिबंद राय पाँच वष पटना म रहने क बाद अपने िपता क पास आनंदपुर सािहब (पंजाब) आ गए। यहाँ
उ ह ने फारसी, िहदी, सं कत, ज आिद भाषा क िश ा ा क । यह पर घुड़सवारी, श आिद चलाने का
भी अ यास उ ह ने िकया।
स १६७५ म िपता गु तेगबहादुर क िद ी म शहीद होने क बाद जब गोिबंद राय गु ग ी पर बैठ तो उन
िदन मुगल शासक क अ याचार जोर पर थे।
कशल सेनापित, महा तप वी, उ किव और सव व दानी गु गोिबंद िसंह
मुगल क अ याचार और अ याय का मुकाबला करने क िलए गु जी ने अपने िश य को सैिनक िश ण देना
आरभ िकया। िश य म वीर रस का संचार करने क िलए उ ह ने रणजीत नगाड़ा बनवाया और अपने दरबार म
बावन किव िनयु िकए। ये किव वीर रस क किवता सुनाकर िश य म जोश पैदा करते। गु गोिबंद राय ने
घोषणा कर दी िक भिव य म अ य कोई भट लाने क बजाय ालु उनक िलए श और घोड़ आिद भट म
लाएँ। सढोरा गाँव क सैयद बु ु शाह ने पाँच सौ पठान गु जी क सेना क िलए अिपत िकए।
गु जी ने कल अठारह यु लड़; लेिकन दौलत और जमीन क िलए नह ब क दु क दमन अैर धम क
र ा क िलए। अपनी आ मकथा ‘िविच नाटक’ म तलवार धारण का प उ े य बताते ए वे कहते ह—
‘खग खंड िवहड खल दल खंड अितरण मंड बरबंड।
भुजदंड अखंड तेज चंड जोित अमंड भान भं॥
सुख संतां करणं दुरमित दरणं िकल िबख हरणं अस सरणं।
जै जै जग कारण ि ि उबारण मम ितपारण जै तेग॥ ं ’
—अथा मेरी तलवार श ु का िवनाश करनेवाली, संत क (दु से) र ा करनेवाली और उ ह सुख देनेवाली तथा
दुरमित का दमन करनेवाली ह। मेरी इस ख ग पी श क जय हो।
मानव और मानवता क ित गु गोिबंद क उदार ि कोण का यह आलम था िक श ु क घायल सैिनक को
पानी िपलाकर जीवनदान देनेवाले सेवक पर होने क बजाय उसे शाबाशी दी। भंगाणी क यु म यह
िशकायत िमलने पर िक उनका सेवक भाई घनइया श ु क घायल सैिनक को पानी िपलाकर जीवनदान दे रहा ह,
गु जी ने घनइया को बुलाकर कारण पूछा।
घनइया ने कहा, ‘‘म तो आपक ही उपदेश ‘मानस क जाित सबै एक पिहचानबो’ पर अमल कर रहा
और सभी घायल म मुझे एक ही ई र का नूर िदखाई दे रहा ह।’’
यह जवाब सुनकर गु जी ने घनइया को गले लगा िलया तथा अपनी ओर से मलहम क िड बी देते ए कहा,
‘‘जाओ घनइया, आहत सैिनक क ज म पर मलहम लगाओ। ई र तु हारी र ा कर।’’
धम, जाित और वण क नाम पर छोट-छोट टकड़ म बँट और जजर हो चुक भारतीय समाज को िफर से एकसू
म िपरोने क जो ांितकारी शु आत गु नानक ने ‘नानक उ म नीच न कोई’ कहकर क थी, उसे स १६९९
क बैसाखी क िदन दसव गु ने आनंदपुर सािहब म पूणता दान क । बैसाखी क पिव अवसर पर उस िदन देश
क कोने-कोने से आनंदपुर सािहब म अ सी हजार लोग का िवशाल जनसमूह जुड़ा था। गु गोिबंद राय ने भर
पंडाल म नंगी तलवार हाथ म लेकर एक क बाद एक करक पाँच िसर क माँग क ।
पाँच यार से अमृत क दी ा लेते ए गु गोिबंद िसंह : आपे गु चेला
गु क आ ान पर एक-एक करक उठ थे पाँच मरजीवड़। गु जी ने पाँच को एक-एक करक तंबू म ले जाकर
शहीद िकया और बाद म अपनी दैवी श से सभी पाँच को पुनः जीिवत करक पंडाल म लाए। वयं अपने हाथ
से अमृत तैयार िकया और उ ह एक ही पा से अमृतपान करवाकर ‘खालसा’ सजाया। वे पाँच मरजीवड़ खालसा
पंथ क ‘पाँच यार’ कहलाए। उनक नाम ह—भाई दया िसंह, भाई धम िसंह, भाई िह मत िसंह, भाई मोहकम िसंह
और भाई सािहब िसंह। पाँच यार म चार तथाकिथत छोटी जाितय —जाट, िभ ती, नाई और छीपा (रगसाज) म से
थे; जबिक िसफ एक यारा तथाकिथत ऊची जाित ( ि य) का था। पाँच यार को अमृतपान करवाकर गु जी ने
वयं भी उनसे एक िवन िश य क तरह अमृत क दी ा ली और गोिबंद राय से गोिबंद िसंह बने। इस कार
अपने ही िश य से अमृत क दी ा लेकर गु गोिबंद िसंह ने गु और िश य क बीच का सिदय पुराना फक िमटा
िदया। गु िश य बन गया और िश य खालसा सजने क बाद गु क उ , उदा एवं आ या मक पदवी तक जा
प चा। यह एक गूढ़ संदेश था जात-पाँत, छआछत और वण- यव था क पैरोकार को िक िजन खुदा क बंद को
तुम अछत, हय, िन न तथा या य समझते हो, वे मेर िलए गु क समान पू य और स मान क अिधकारी ह।
समाज क दिलत अैर शोिषत वग को, जो अपनी थित को ‘भा य का िलखा’ मानकर धम और स ा क धीश क
हाथ हर अ याय, अपमान और अ याचार को चुपचाप झेलते आ रह थे, गु गोिबंद िसंह ने िजस कार झकझोरकर
जगाया और वािभमान क साथ जीना एवं मरना िसखाया उसे इितहास का अपूव चम कार ही कहा जाएगा। जात-
पाँत, कल-गो क बंधन से मु और िसफ एक अकाल पु ष ( भु) क भ करनेवाले खालसा को गु गोिबंद
िसंह ने अपनी सभी उपल धय और सफलता का ेय िदया। और तो और, खालसा क आगे गु जी ने अपनी
स ा भी शू य कर दी तथा कहा, ‘‘हम जो कछ भी ह, इ ह क कपा से ह; वरना मुझ जैसे करोड़ सामा य जीव
इस दुिनया म िवचरण करते ह—
‘इ ह क िकरपा क सजे हम ह,
नह मो सो गरीब करोड़ पर ह।’
गु गोिबंद िसंह का कहना था िक ई र कवल एक ह। कवल उसक नाम, उपासना क थल और ढग अलग-
अलग ह—‘देहरा मसीत सोही, पूजा ओ नमाज ओही। मानुष सबै एक ह, अनेक कोउ माउ ह।’ धािमक
क रता क वे स त िवरोधी थे।
बहादुरशाह ने एक बार भर दरबार म गु गोिबंद िसंह से सवाल िकया था, ‘‘ह दो जहान क मािलक, मजहब
तु हारा खूब िक हमारा खूब?’’ यानी िकसका धम अ छा ह—आपका या हमारा।
जवाब म गु गोिबंद िसंह ने फरमाया था, ‘‘तुमको तु हारा खूब, हमको हमारा खूब।’’
ठीक यही था धािमक सह-अ त व और आजादी का लीर-लीर हो चुका वह िस ांत िजसक पुनः ित ा क
िलए गु गोिबंद िसंह जीवन भर संघष करते रह। उस संघष म पहले उ ह ने िपता ी गु तेगबहादुर क और उसक
बाद चार बेट क आ ित देकर भी उफ तक नह क । ब क खालसा पंथ क ओर इशारा करक कहा, ‘इन पु न
क सीस पर वार िदए सुत चार। चार मुए तो या आ जीिवत कई हजार॥’
गु गोिबंद िसंह वैरा य क घोर िवरोधी थे। उनका मानना था िक मनु य भौितक संसार म रहकर भी सं यासी क
पदवी पा सकता ह, बशत िक वह अ प आहार, अ पिन ा, दया, मा, शील एवं संतोष क सा वक गुण को
धारण कर और काम, ोध, अहकार, लोभ, हठधिमता तथा मोह जैसे अवगुण का याग कर।
गु गोिबंद िसंह एक संत, धमर क िसपाही, जाँबाज सैिनक, कशल सेनापित, महा समाज सुधारक, उ कोिट
क कमयोगी, गुण क पारखी, मानवता क र ा क िलए सव व योछावर कर देनेवाले अ तीय दानी पु ष क
अलावा उ सजना मक ितभा क धनी िव ा रचनाकार भी थे। िहदी, फारसी, सं कत और जभाषा म गु जी
ने अनेक का य रचनाएँ क । गु गोिबंद िसंह का संपूण का य सं ह ‘दशम ंथ’ क नाम से िस ह। कल
बयालीस वष क संि जीवन काल म गु गोिबंद िसंह ने भारतीय जीवन और इितहास को िनणायक मोड़
देनेवाले यु और सािह य रचना क अलावा पंजाब क साथ-साथ दि ण भारत क भी या ा क और लोग को
स य पर अिडग रहने, अ याचार का डटकर मुकाबला करने का उपदेश िदया। जीवन क अंितम िदन गु जी ने
दि ण म नांदेड़ म यतीत िकए। वे िसख क अंितम देहधारी गु थे। ७ अ ूबर, १७०८ को परलोक गमन से पूव
गु गोिबंद िसंह ने देहधारी गु क था का सदा क िलए समापन कर िदया और सभी िसख को आदेश िदया िक
उनक बाद वे कवल ‘गु ंथ सािहब’ को ही कट गु मान। तब से ‘गु ंथ सािहब’ क पिव वाणी न कवल
िसख धम क अनुयाियय का ब क संपूण मानव जाित का जीवन क हर े म मागदशन करती आ रही ह।
q
वाणीकार संत और भ
‘गु थं सािहब’ म कल पाँच हजार आठ सौ चौरानबे शबद ह। इनम से नौ सौ अड़तीस शबद भ , सूिफय ,
संत और फक र क ह। ये महापु ष पंजाब क अलावा िसंध, बंगाल, उ र देश, महारा , गुजरात, राज थान
जैसे दूर-दराज क े क रहनेवाले थे। े ीय िविवधता क अलावा इनक जाित और भाषा भी अलग-अलग थी।
लेिकन संदेश और िस ांत सभी का एक था—एक ई र क भ और सामािजक एकता।
इन भ का संि प रचय इस कार ह—

जयदेव
इनका ज म स ११७० म बंगाल क एक गाँव कदूली म आ, जो वीरभूम िजले म ह। जयदेवजी बंगाल क राजा
ल मण सेन क दरबारी किव थे। वे क ण क उपासक थे। उनक रचना ‘गीतगोिवंद’ क ण भ का य क सबसे
े रचना मानी जाती ह। जाित से ा ण जयदेवजी क ‘गु ंथ सािहब’ म दो शबद गुजरी और मा राग म ह।
इनका देहावसान स १२५० म आ।

शेख फरीद
स ११७३ म प म पंजाब क मु तान िजले क गाँव ख ोवाल (अब पािक तान) म जनमे शेख फरीद
मुसलमान सूफ फक र थे। उनका पूरा नाम फरीद-उ ीन-म सऊद था। वे ‘फरीद शकरगंज’ क लोकि य नाम से
जाने जाते थे। सोलह वष क आयु म फरीदजी अपनी माँ मरीयम और िपता जमालु ीन क साथ हज करने क िलए
म ा शरीफ गए। वापसी पर इसलामी तालीम हािसल करने क िलए उ ह काबुल भेजा गया। तालीम पूरी करक
जब वे मु तान वापस आए तो वहाँ उ ह िद ीवाले वाजा कतबु ीन ब तयार मुंशी क दशन ए और वे
वाजा सािहब क मुरीद बन गए। मुिशद क म क मुतािबक, कछ समय तक फरीदजी हाँसी और सरसे म भी
इसलामी िव ा पढ़ते रह। वाजा सािहब क परलोक गमन क बाद फरीद अजोधन आकर बस गए, जो आज
पाकपटन क नाम से मश र ह।

शेख फरीद
पाकपटन म ही िहजरी ६६४ क महीना मुहरम क ५ तारीख (स १२६६) को फरीद का देहांत आ। शेख
सािहब क छह पु और दो पुि याँ थ । सबसे बड़ पु का नाम शेख बद ीन सुलेमान था, जो फरीदजी क देहांत
क बाद उनक ग ी पर बैठ। पाकपटन म यह ग ी अभी तक कायम ह। शेख फरीदजी यूँ sssतो अरबी, फारसी
क उ कोिट क िव ान थे, पर चूँिक वे पंजाब म जनमे, पले और बड़ ए, अतः सवसाधारण तक अपनी बात
प चाने क िलए उ ह ने अिधकांशतः पंजाबी म का य रचना क । ‘गु ंथ सािहब’ म शेख फरीद क एक सौ तीस
ोक और चार शबद शािमल ह। फरीद-वाणी म ई रीय ेम और भ पर जोर िदया गया ह।
ि लोचन
महारा क रहनेवाले ि लोचनजी भ नामदेवजी क समकालीन थे। उनका ज म स १२६७ म शोलापुर िजले क
बारसी गाँव म आ। वह जाित से वै य थे। भ नामदेव का उनपर काफ भाव था। ‘गु ंथ सािहब’ म उनक
चार शबद दज ह, जो ी, गूजरी और धनासरी राग म ह।

नामदेव
‘गु ंथ सािहब’ म भ नामदेवजी क साठ शबद संकिलत ह। ये शबद अठारह राग म ह। नामदेवजी महारा
क जनि य संत थे। उनका ज म स १२७० म सतारा िजले क नरसी बामनी गाँव म आ। उनक िपता का नाम
दमशेिट था और वे कपड़ पर छपाई का काम करते थे। जीवन क ारिभक वष म नामदेवजी वै णव मत क
उपासक थे; लेिकन बाद म वे िनगुण िवचारधारा से ब त भािवत ए और उसीसे जुड़ गए। उ ह ने भारत क
तीथ थल क यापक या ा क और पंजाब भी आए, जहाँ गुरदासपुर िजले क घुमण गाँव म उनक मृित म एक
मंिदर भी िनिमत ह।

सदना
भ सदनाजी नामदेवजी क समकालीन थे। उनका ज म िसंध ांत क सेहवाँ गाँव म आ। जाित और यवसाय से
सदनाजी कसाई थे। ‘गु ंथ सािहब’ म उनका एक शबद दज ह, िजसम वे बताते ह िक पाखंडी भ क भी भु
लाज रखता ह।

बेनी
भ बेनीजी चौदहव शता दी म ए। उनक बार म िसफ इतना ही मालूम ह िक वे जाित से ा ण थे। ‘गु ंथ
सािहब’ म उनक तीन शबद संकिलत ह।

रामानंद
वे दि ण भारत क िस संत रामानुज क िश य थे। उनका ज म महारा क एक ा ण प रवार म आ। बाद
म वे याग, उ र देश म आकर बस गए। पीपा, सैण, ध ा, रिवदास और कबीर उनक िश य थे। उनका देहांत
बनारस म आ। रामानंदजी का जीवन काल स १२९९ से १४१० क बीच माना जाता ह। ‘गु ंथ सािहब’ म
रामानंदजी का एक ही शबद ह, जो बसंत राग म ह।

कबीर
भ कबीर का ज म स १३९८ म आ। कहा जाता ह िक उनक माँ एक अ याहता ा ण क या थी, िजसने
ज म देने क बाद कबीर को बनारस म एक तालाब क िकनार छोड़ िदया। एक मुसिलम जुलाहा दंपती नी और
नीमा ने उ ह उठाया और उनक परव रश क । ‘गु ंथ सािहब’ म कबीरजी क पाँच सौ इकतालीस शबद और
ोक दज ह। अपनी वाणी म कबीरजी ने ऊच-नीच और कमकांड क कड़ी आलोचना क तथा भ एवं शु
कम क कमाई पर जोर िदया। उनक अनुयायी ‘कबीरपंथी’ क नाम से जाने जाते ह।
ध ा
जाित से जाट भ ध ाजी का ज म स १४१५ म राजपूताना (राज थान) क धुआन गाँव म आ। एक बार एक
ा ण को ठाकर क मूित क पूजा करते देखकर ध ाजी भी ठाकर क उपासक हो गए और एक बार तो वे उससे
भोग लगवाकर ही हट। अपने भजन म उ ह ने परमा मा से भौितक पदाथ क अलावा अ छी प नी भी माँगी। ‘गु
ंथ सािहब’ म ध ाजी क चार शबद दज ह, िजनम भ ध ाजी का आरता काफ िस ह। इसम उ ह ने खास
नाम ले-लेकर भौितक पदाथ परमा मा से माँगे ह।

पीपा
कहा जाता ह िक भ पीपाजी गुजरात रा य क गगरोनगढ़ रयासत क राजा थे। जाित से वे ा ण थे। उनका
ज म स १४२५ म आ। ारभ म वे दुगा क उपासक थे, लेिकन बाद म रामानंदजी क िश य बन गए और
राजपाट याग िदया। ‘गु ंथ सािहब’ म पीपाजी का एक शबद दज ह।

सैण
भ सैणजी का जीवन काल स १३९०-१४४० क बीच माना जाता ह। वह ध ाजी और पीपाजी क समकालीन
थे। वह जाित से नाई थे और रीवा क रहनेवाले थे। वह िबदर क राजा क सेवा करते थे। रामानंदजी क िश य म
वह भी थे। भाई गुरदासजी ने उनक जीवन से जुड़ी एक घटना का िज िकया ह—एक बार वे सारी रात क रतन म
लगे रह और राजा क सेवा क िलए न जा सक। कहा जाता ह िक भगवा वयं सैणजी का प धारण करक राजा
क सेवा करते रह। जब राजा को पता चला िक सैणजी तो आए ही नह तो वह उ ह भगवा तक प चा आ
जानकर उनका िश य बन गया। ‘गु ंथ सािहब’ म सैणजी का एक शबद दज ह, जो राग धनासरी म ह।

परमानंद
वह गु नानकदेवजी क समकालीन थे और महारा क बारसी गाँव क िनवासी थे। जाित से वह ा ण थे। अपनी
वाणी म उ ह ने सदाचारी गुण और भ -भावना पर जोर िदया। ‘गु ंथ सािहब’ म उनका एक शबद संकिलत
ह।

भाई मरदाना
भाई मरदाना गु नानकदेवजी क साथी थे। वह जाित से मुसलमान रबाबी थे। उनका ज म तलवंडी म स १४६०
म आ। उ म नानकजी से करीब दस वष बड़ थे। राग म ये काफ िनपुण थे। नानकजी क साथ ये बचपन से ही
रह और देश-देशांतर क लंबी या ा म भी उनक साथ गए। ज मसाखी क अनुसार, एक बार कौडा रा स ने
उनको तेल म तलकर खाने क कोिशश क ; लेिकन नानकजी क कपा ि से वह बच गए। ‘गु ंथ सािहब’ म
उनक तीन शबद दज ह।

भीखन
संत भीखन काकोरी मुसलमान थे और उ र देश ांत से ता ुक रखते थे। उनका जीवन काल स
१४८०-१५७३ क बीच माना जाता ह। वह लखनऊ क एक क बा करोड़ी म रहते थे। ‘गु ंथ सािहब’ म उनक
दो शबद शािमल ह।

सूरदास
भ सूरदासजी स ा अकबर क समकालीन थे। कछ लोग उ ह ‘सूरसागर’ िहदी का य क रचियता समझते ह,
जबिक कछ लोग अ य भ सूरदास समझते ह। मैकािलफ क अनुसार, सूरदास का असली नाम मदन मोहन था।
जाित से वे ा ण थे और स १५६८ म पैदा ए। कहा जाता ह िक वे अवध क इलाका संदीला क शासक थे;
लेिकन बाद म उ ह ने राजपाट याग िदया। उनक समािध काशी म ह। सूरदासजी क दो पद (एक पूरा और दूसर
क एक पं ) ‘गु ंथ सािहब’ म शािमल ह।

बाबा सुंदर
बाबा सुंदर गु अमरदासजी क पौ और बाबा मोहरीजी क पौ थे। उनका जीवन काल सोलहव शता दी म
रहा। उ ह ने गु अमरदासजी क परलोक गमन पर राग रामकली म एक सद (छह पद) िलखी, जो ‘गु थं
सािहब’ म दज ह।

राय बलवंड और स ा डम
वे दोन जाित क िमरासी थे। वे पंजाब से ता ुक रखते थे। दोन ही गु अंगददेवजी क दरबार म क रतन करते थे।
एक बार क या क िववाह क िलए उ ह ने गु जी से कछ रकम माँगी। गु जी ने कहा िक बैसाखी क िदन सारा
चढ़ावा तु ह दे िदया जाएगा। संयोगवश बैसाखी पर चढ़ावा कम चढ़ा। इससे किपत होकर उन दोन ने गु जी को
अपश द कहकर उनका िनरादर िकया। ई र का कछ ऐसा कोप आ िक दोन को रोग ने आ घेरा। बाद म भाई
लघाजी क ेरणा से दोन ने गु जी क तुित म एक पद रचा और नीरोग ए। वे दोन गु ह रगोिबंदजी क
जीवनकाल तक रह और येक गु क ग ीनशीन होने पर एक-एक पउड़ी उनक तुित म रचते रह। ‘गु ंथ
सािहब’ म उनक पाँच पद शािमल ह।

रिवदास
भ रिवदासजी का ज म िव मी संव १४३३ म माघ पूिणमा क िदन काशी म चमार जाित क प रवार म आ।
उनक िपता का नाम रावधनदास था और उनक माता शांत वभाववाली एक धमपरायण मिहला थ । रिवदासजी क
प नी लोना भी सीधी-सादी धमभी मिहला थ । रामानंदजी क िश य रिवदासजी ने सहज व िवन भाषा म वण-
यव था पर हार िकया। ‘गु ंथ सािहब’ म उनक इकतालीस पद दज ह।
उपयु भ क अलावा ‘गु ंथ सािहब’ म भाट क वाणी भी दज ह। भाट क वा तिवक सं या क बार म
िव ान म मतभेद ह। कछ िव ा उनक सं या यारह मानते ह तो कछ का कहना ह िक भाट क सही सं या
स ह ह। उनक नाम इस कार ह—
१. कल
२. कलसहार
३. टल
४. जालप
५. जलह
६. क रत
७. सल
८. भल
९. नल
१०. भीखा
११. जालान
१२. दास
१३. गयंद
१४. सेवक
१५. मथुरा
१६. बल
१७. हरबंस।
गु क तुित म इन भाट क एक सौ तेईस पद ‘गु ंथ सािहब’ म दज ह, जो इस कार ह—
१ कल—४९ पद
२ कलसहार—४ पद
३ टल—१ पद
४ जालप—४ पद
५ जलह—१ पद
६ क रत—८ पद
७ सल—३ पद
८ भल—१ पद
९ भीखा—२ पद
१० नल—६ पद
११ दास—१४ पद
१२ जालान—१ पद
१३ गयंद—५ पद
१४ सेवक—७ पद
१५ मथुरा—१० पद
१६ बल—५ पद
१७ हरबंस—२ पद
कल—१२३ पद
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िवषय व तु : अ या म से आिथक जीवन तक िश ा
‘गु थं सािहब’ जीवन से जुड़ी और ई र से जोड़नेवाली एक े रचना ह। इस पिव ंथ क वाणी य
क आ या मक यास भी बुझाती ह और जीवन क हर प , हर पहलू म उसका मागदशन भी करती ह। वाणीकार
गु और संत -भ ने यह वाणी आम का य क तरह क पनालोक म नह ब क आ मक मंडल म रहकर
रची। उनक वाणी क आ या मक प म ई र भ , उसक स य प क तुित, माया-मोह क याग क ेरणा,
नाम सुिमरन और उसक मा यम से मो एवं मु क बात कही गई ह। जबिक जीवन-िस ांत प म एक ऐसी
पूरी आचार-संिहता ह, िजसक पालन से न कवल य का च र िनमाण होता ह ब क रामरा य क संक पना
भी साकार हो सकती ह। िवषय व तु क ि से ‘गु ंथ सािहब’ ान का िवशाल सागर ह। य इसम िजतना
गहरा उतरता ह, सतही जीवन से वह उतना ही ऊपर उठता जाता ह। यह पिव ंथ कवल परमा मा, मो और
परलोक सँवारने क ही बात नह करता ब क इस लोक म िदन- ितिदन क जीवन म शुिचता, सादगी, संयम,
अ ोध, सिह णुता, िश ा, याग, अनुशासन, गृह थी म जीवनसाथी क ित िन ा, पराई ी एवं पराई व तु क
ित िवमोह तथा अनास , अिहसा, वािभमान, िवन ता, सामािजक एकता, मेहनत क कमाई, स यापार,
परोपकार, मयािदत खान-पान, आ मिनभरता, याय, िनभयता, िम ता, ी जाित क स मान, मानवािधकार क
र ा, िवषय-िवकार , कमकांड, आडबर, ि़ढय क साथ-साथ पर-िनंदा तथा कबु क याग इ यािद जैसे शु
सांसा रक िवषय क बार म भी ‘गु ंथ सािहब’ क वाणी जीव तथा जग का मागदशन करती ह। आ या मक
तथा सामािजक जीवन क अलावा ‘गु ंथ सािहब’ म आिथक तथा राजनीितक प क बार म भी भरपूर मागदशन
िमलता ह। समाज यव था क साथ-साथ राज यव था कसी होनी चािहए, राजा म या- या गुण होने चािहए, इस
बाबत भी इस पिव ंथ म कई उ ेख िमलते ह। इस ंथ क वाणी म बारहव शता दी से स हव शता दी क
भारतीय जीवन क धािमक, सां कितक, राजनीितक, आिथक तथा सामािजक पहलु क अनेक झलक िमलती ह।
अपने िक म क यह एकमा समकालीन भारतीय ोत रचना ह, िजसम िहदु तान पर बाबर क हमले का उ ेख
िमलता ह और िजसम बाबर क सेना को ‘पाप क बारात’ क सं ा दी गई ह। , अ यायी तथा अ याचारी
शासक को बुरी तरह से फटकारा गया ह।
इस आधार पर ‘गु ंथ सािहब’ क िवषय व तु को मोट तौर पर चार प म बाँटा जा सकता ह—
१. आ या मक प , २. सामािजक प , ३. राजनीितक प तथा ४. आिथक प ।

आ या मक प
‘गु ंथ सािहब’ का यह मुख प ह। इसम ई र, उसक प, अ त व एवं गुण, गु और उसक मिहमा तथा
मह व, जीव, जग , कम, धम, मन, नाम सुिमरन, संसार च , मु , परमा मालोक (सचखंड) इ यािद क बात
क गई ह। आ या मक प का संि प रचय इस कार ह—
ई र एक ह। वह सव यापी ह। इस सृि क रचना वयं ई र ने क । वह िनभय ह। उसका कोई वैरी नह ।
वह ज म-मरण क च म नह आता। वह सवश मा ह और गु क कपा से ा होता ह। वह सभी जीव क
र ा और पालन करता ह। सारी सृि म उसीका म (इ छा) चल रहा ह। वह सृि म सब जगह मौजूद ह और
सृि का तमाशा (काय यापार) देखकर खुश होता रहता ह। हर जीव संसार म सेवा तथा सुिमरन क िलए आया
ह। गु ारा बताए गए माग पर चलकर जो ाणी सेवा और सुिमरन करते ह, उनका ज म और जीवन सफल
होता ह और वे आवागमन क च से मु ा कर जाते ह। परमा मा सव ह, इसिलए जीव अपने अनैितक एवं
पाप-कम को उसक िनगाह से िछपा या बचा नह सकता। लेिकन स े मन से ई र का नाम जपने से पापी और
पितत का भी उ ार हो जाता ह। लोभ तथा तृ णा क वशीभूत होकर ाणी छल-कपट तथा अनैितक यापार करता
ह और इधर-उधर भटकता ह। पर जो ाणी ई र क इ छा म चलते ह उ ह संतोष का मानो परम खजाना िमल
जाता ह और वे तृ हो जाते ह। मनु य जीवन का असली येय ह बंदगी और यह देन सतगु से ा होती ह और
परमा मा से मेल-िमलाप होता ह। िजस कार सूय क िकरण से अंधकार का िवनाश होता ह, उसी कार सतगु
क िश ा पर अमल करने से मनु य क दय से अ ान और मोह-माया का अँधेरा दूर होता ह, ान का काश
होता ह। इसक िवपरीत जो ाणी माया क लोभ म पड़कर िवकार क िशकार हो जाते ह, वे भु से िबछड़ जाते ह
और उ ह अनेक कार क दुःख एवं क भोगने पड़ते ह। ाणी जैसा कम करता ह वैसा ही उसे फल िमलता ह।
उसे पूवज म म िकए गए कम क अनुसार ही सुख-दुःख क ा होती ह। सभी पाप-कम का कारण मन ह, जो
माया म जकड़ा रहने क वजह से कमाग पर चल पड़ता ह और िवकार का संचय करता रहता ह। चंचल वभाव
का होने क कारण वह एक जगह थर नह रहता। मन शरीर का राजा ह, जो सभी इि य का संचालन करता ह।
वह कभी मूख, कभी गँवार और िभखारी भी बन जाता ह। लेिकन भु क भ और तुित ारा मन को वश म
िकया जा सकता ह। िजसने मन को जीत िलया उसने, समझो, जग को जीत िलया। इस संसार म जो पैदा आ ह,
एक िदन उसका मरना भी िन त ह। जब मनु य का अंतकाल समीप आता ह तो उसक जीवन पी खेत को
काटने क िलए यमराज आ जाता ह और िबना बताए उसे पकड़कर ले जाता ह। गु क कपा क िबना मनु य
भवसागर से पार नह हो सकता।
अब हम गु वाणी क माण सिहत इस प क चचा िव तार से करगे।
एक कार (0)—‘गु ंथ सािहब’ म सव एक ई र क बात कही गई ह। उसक समान कोई दूसरा नह ह।
नानकजी का प कथन ह—
‘सािहब मेरा एको ह।
एको ह भाई एको ह॥’
(पृ. ३६०)
वह भु जल, पृ वी तथा आकाश म समान प म िव मान ह और वह ब िवध प म कट हो रहा ह—
‘जल थल मिहअल पू रआ सुआमी िसरजनहार।
अिनक भाँित होई पस रआ नानक एक कार॥’
(पृ. २९६)
सितनाम—उसका नाम स य ह। स य परमा मा ह। वह अतीत क युग म भी स य था, वतमान काल म भी
स य ह और आनेवाले युग म भी सवदा स य बना रहगा—
‘आिद सच जुगािद सच। ह भी सच,
नानक होसी भी सच॥’
(पृ. १)
दुिनया म समय बीतने क साथ-साथ हर व तु पुरानी हो जाती ह। लेिकन भु का स य नाम कभी पुराना नह पड़ता

‘सचु पुराणा होवे नाही।’
करता पुरखु—यह सृि परमा मा क ही बनाई ई ह। सबकछ उस एक ई र क इ छा से अ त व म ह। सृि
क रचना, पालन और िवनाश भी वह वयं करता ह—
‘िजन क आ ितन देिखआ जग धंधड़ लाइआ।’
(पृ. ७६५)
तथा
‘जो उसार सो ढाहसी, ितस िबन अवर ना कोई।’
(पृ. ९३४)
ाजी को सृि का कता, िव णुजी को पालनहार और महश (िशव) जी को संहारक माना जाता ह। ‘गु गं◌थ
सािहब’ क वाणी क मुतािबक इन तीन देवता क उ पि भी परमा मा से ई—
‘ ा िब ु महसु देव उपाइआ।’
(पृ. १२७९)
िनरभउ—परमिपता परमा मा भय रिहत ह। सवश मा होने क कारण वह िकसीक भय म नह ह। ब क पवन,
निदयाँ, अ न, धरती, सूय, चं मा इ यािद सब उसक भय म अथा परमा मा क अधीन ह और उसक इ छा क
अनुसार चल रह ह—
‘भै िविच पवणु वह सदवाउ।
भै िविच चलिह लख दरीआउ।
भै िविच इदु िफर िसर भा र।
भै िविच राजा धरम दुआ ।
भै िविच सूरजु भै िविच चंदु।
कोह करोड़ी चलत न अंत।ु
सगिलआ भउ िलिखआ िस र लेखु॥’
(पृ. ४६४)
वह िनभय परमा मा आकार रिहत (िनराकार) ह। वह स े नामवाला ह और सम त िव का उसीने सजन
िकया ह—
‘िनरभउ िनरकार सच नाम।
जा का क आ सगल जहान॥’
(पृ. ४६५)
िनरवैर—परमा मा क समक या समान कोई दूसरा नह ह। उसक भीतर िवचार , िचंतन या काय आिद का
कोई ं नह ह। वह संपूण यानाव था (सु समािध) म लीन ह। इसिलए उसका िकसीसे कोई वैर-िवरोध नह
ह—
‘जब धारी आपन सु समाध।
तब बैर िबरोध िकस संग कमात॥’
(पृ. २९९)
तथा
‘िनरभउ िनरका िनरवै पूरन जोित समाई।’
(पृ. ५९६)
अकाल मूरत, अजूनी—परमा मा अमर ह। वह शा त ह तथा समय क अधीन नह ह। वह प र थितय क बंधन
से मु ह। वह ज म-मरण क च और योिन म नह आता, इसिलए वह ‘अकाल’ और ‘अजूनी’ ह—
‘तू अकाल पुरखु नाही िस र काला।
तू पुरखु अलेख अगंम िनराला॥’
(पृ. १०३८)
तथा
‘न ओह मर न होवै सोग।’
(पृ. ९)
सैभ—ं ई र वयंभू, वयंिस और वयं अपने काश से कािशत ह। वह वयं अपनी श से अ त व म
ह। उसक थापना नह क जा सकती और न ही उसका िनमाण िकया जा सकता ह—
‘थािपआ न जाइ क ता न होइ।
आपे आिप िनरजन सोई॥’
(पृ. २)
तथा
‘आपीनै आपु सािजउ आपीनै रिचउ नाउ।’
(पृ. ४६३)
गुर सािद—ऐसा भु कवल गु क साद अथा कपा से ही ा हो सकता ह—
‘गुर परसादी ह र पाईअै, मतु को भरिम भुलाइ।’
और जब गु क कपा से अपने दय म परमा मा से िमलाप हो जाता ह तो मन क अशांित तथा िवषय-िवकार
क अ न शांत हो जाती ह—
‘गुर परसािद घर ही िप पाइआ, तउ नानक तपित बुझाई।’
ई र क अ य िवशेषताएँ—उपयु क अलावा ‘गु ंथ सािहब’ म ई र क अ य कई िवशेषता का
उ ेख िकया गया ह। वह ई र सबका िपता, माता, िम , भाई, वामी और संर क ह। परमा मा क इस गुण का
गु अजनदेव इन श द म उ ेख करते ह—
‘तूँ मेरा िपता, तूँ ह मेरा माता।
तूँ मेरा बंधप, तूँ मेरा ाता।
तूँ मेरा राखा सभनी थाँई...॥’
(पृ. १०३)
वह अनाथ का नाथ, बेसहार का सहारा, दयालु, परोपकारी, िनरतर देनेवाला दाता, दु का संहार करनेवाला,
अ छ तथा बुर दोन तरह क मनु य क पीड़ा समझनेवाला, भूल तथा गलितयाँ मा करनेवाला तथा संकट से
उबारनेवाला ह। उसम इतनी साम य ह िक वह खाली पा को भर सकता ह और भर ए पा को पल म खाली
कर सकता ह—
‘हर जन राखे गुर गोिबंद।
कठ लाइ अवगुण सिभ मेट,
दइआल पुरख बखिसंद॥’
(पृ. ६८१)
तथा
‘रीते भर भर सखनावै, यह ताको िबवहार।’
(पृ. ५३७)
तथा
‘घट-घट क अंतर क जानत।
भले-बुर क पीर पछानत॥’
(गु गोिबंद िसंह)
गु —इस श द का संिध िव छद ह—‘गु’ + ‘ ’। ‘गु’ का अथ ह अँधेरा और ‘ ’ का अथ ह काश। अथा जो
अ ान पी अंधकार को ान पी काश से दूर कर, वह ‘गु ’ ह। दूसर श द म, गु वह मागदशक ह जो
मनु य को आ या मक ान दान करता ह, उसे परमा मा से जोड़कर उसक मु का माग श त करता ह। ‘गु
ंथ सािहब’ म ‘गु ’ और ‘सतगु ’ श द एक ही अथ म यु ए ह। ंथ सािहब क आ या मक िवचारधारा
का क ही गु ह। गु देहधारी होते ए भी देह न होकर ‘शबद’ होता ह। ई र जीव क मागदशन क िलए वयं
उसम श द क थापना करता ह। गु उस शबद का ान लोग म बाँटकर उनक दय शांत करता ह—
‘स दु गुर पीरा गिहर गंभीरा, िबनु स दै जगु बउरानं।’
तथा
‘पवन अरभु सितगुर मित वेला।
स दु गु सुरित धुन चेला॥’
मनु य क िलए गु य आव यक ह—इस न का समाधान वार आसा क छठी पउड़ी म गु नानकदेव देते
ह और फरमाते ह िक गु क िबना न पहले िकसीने भु को ा िकया ह और न करगा। भु ने वयं को गु म
रखा ह, िजसे गु ने कट करक सुना िदया ह। गु से िमलाप करक जो ाणी अपने भीतर से मोह-माया का याग
कर देते ह वे सदा क िलए मु हो जाते ह—
‘िबनु सितगुर िकनै न पाइउ, िबनु सितगुर िकनै न पाइआ।
सितगुर िविच आपु रिखउनु, क र परगट आिख सुणाइआ।
सितगुर िमिलअै सदा मु ु ह, िजिन िवच मो चुकाइआ॥’
(पृ. ४६६)
गु क िबना ेम भ क भावना पैदा नह होती और न ही मन से अहकार दूर होता ह—
‘िबनु गुर ीित न उपजै, हउमै मैलु न जाइ।’
(पृ. ५९)
गु क िबना ान ा नह हो सकता। ा, नारद और वेद यास भी इस स य क पुि करते ह—
‘भाई र गुर िबनु िगआनु न होइ।
पूछ ै नारदै बेद िबआसै कोइ॥’
(पृ. ५९)
वही िसख स े अथ म िम ह जो गु क म (इ छा) क अनुसार यवहार करता ह, उसक आ ा और
िश ा का पालन करता ह। जो अपनी इ छा क अनुसार चलता ह, वह गु से िबछड़ जाता ह और उसे क का
सामना करना पड़ता ह—
‘सो िसख सखा बंधप ह भाई, िज गुर क भाणे िविच आवै।
आपणै भाणै जो चले भाई, िवछड़ चोटा खावै॥’
(पृ. ६०१)
स ा गु कौन—इस न का उ र भी ‘गु ंथ सािहब’ क वाणी देती ह। िजस महापु ष क दशन मा से ही
मन िखल उठ, दुिवधा दूर हो जाए और भु क चरण क साथ ीित हो जाए, वही स ा गु ह—
‘िजसु िमिलअै मिन होउ अनंद,ु सो सितगु कहीअै।
मन क दुिबधा िबनिस जाइ, ह र परमपदु लहीअै॥’
(पृ. १६८)
काश का कोई भी अ य ोत गु ारा िदए जानेवाले ान पी काश क बराबरी नह कर सकता। नानकजी
का कथन ह िक अगर सैकड़ चं मा उ प हो जाएँ और हजार सूय भी उग आएँ, तब भी गु क िबना अंधकार
ही रहगा—
‘जे सउ चंदा उगविह सूरज चढ़िह हजार।
ऐते चानण होिदआँ गुर िबन घोर अँधार॥’
(पृ. ४६३)
िजस य का कोई गु नह होता, गु वाणी म उसे ‘िनगुरा’ (गु हीन) कहा गया ह। नानकजी क अनुसार,
िनगुरा मनु य बंजर धरती क समान ह, िजसम (गुण क ) कोई फसल पैदा नह होती—
‘काल र बीजिस दुरमित ऐसी िनगुर क नीसाणी।’
(पृ. १२७५)
जीव—‘गु ंथ सािहब’ म जीव को ई र का प माना गया ह। उसम भी सच क उ ह गुण क क पना क
गई ह जो ई र म मौजूद ह—‘तोही मोही मोही तोही अंत कसा।’ कवल अहकार और मोह-माया क आवरण
क कारण जीव अपने अलौिकक गुण को भूल जाता ह। गु अजनदेव फरमाते ह िक अगर वह गु से ान का
लाभ ा करक अपने यथाथ को पहचान ले तो पुनः वह ई र क साथ एकाकार हो सकता ह—
‘ ै ु िमिलआ, कोई न साक िभ क र बिलराम जीउ।’
(पृ. ७७८)
हर जीव शरीर और आ मा क संयोग से बना ह। शरीर और आ मा का संयोग ई र वयं बनाता ह और िफर
ई र क म से जीव अ त व म आता ह—
‘ किम होविन आकार,
×××
किम होविन जीअ॥’
(पृ. १)
गु वाणी का प कथन ह िक चौरासी लाख योिनय म से मानव जीवन सव े ह। जो मनु य इस जीवन का
नेक काय क िलए उपयोग करने से चूक जाता ह वह िविभ योिनय म भटकता आ क भोगता रहता ह—
‘लख चउरासीह जोन सबाइ,
मानस कउ भु देइ विडआई।
इस पउड़ी ते जो नर चूक,
सो आए जाए दुःख पाइदा॥’
(पृ. १०७५)
मानव शरीर का मह व इतना अिधक ह िक उसे पाने क िलए देवता भी तरसते ह—
‘इस देिह कउ िसमरिह देव।’
(पृ. ११५९)
जग अथवा सृि —इस सृि क रचना ई र ने क , यह बात हम ऊपर ‘करता पुरख’ उपशीषक म जान चुक
ह। अब हम यह जानने का यास करगे िक ‘गु ंथ सािहब’ क वाणी क अनुसार, सृि क रचना कब और
कसे ई।
गु नानकदेव क वाणी से प पता चलता ह िक सृि क रचना से पहले कछ नह था—न धरती, न
आकाश; न िदन, न रात; न चाँद, न सूरज; न पवन, न पानी; न सागर, न नदी; न ी, न पु ष; न जाित, न ज म;
न दुःख, न सुख। और तो और, सृि क िनमाण से पूव ा, िव णु और महश नामक देवता भी नह थे। चार
ओर घनघोर अँधेरा था तथा िसफ भु था, जो समािध ( यान) म था—
‘अरबद नरबद धुंधुकारा,
धरिण न गगना कमु अपारा।
न िदनु रिन न चंदु न सूरजु,
सु समािध लगाइदा।
खाणी ना बाणी पउण न पाणी,
उपि खपित न आवण जाणी।
खंड पताल सपत नह सागर,
नदी न नी वहाइदा।
×××
ा िब ु महसु न कोई,
अव न दीसै एको सोई।
ना र पुरखु नही जाित न ज मा,
न को दुःखु-सुखु पाइदा॥’
(पृ. १०३५)
जब ई र क समािध टटी और उसक इ छा ई तो उसने सृि क रचना कर दी। ा, िव णु और महश को
पैदा िकया और साथ ही माया क मोह का सार िकया। भु ने खंड, ांड, पाताल आिद बनाए और वयं भी
गु थित से कट आ—
‘जा ितसु भाणा ता जगतु उपाइआ,
बाझ कला आडाणु रहाइआ।
ा िब ु महसु उपाई,
माइआ मोह वधाइदा।
×××
खंड ंड पाताल अरभे,
गु परगटी आइआ॥’
(पृ. १०३५)
बड़-बड़ पंिडत, काजी और ऋिष-मुिन भी इस बात का पता नह लगा सक िक सृि क रचना िकस समय,
िकस तारीख को और िकस महीने म ई और उस समय कौन सी ऋतु चल रही थी। कवल वह कता भु ही
जानता ह िक सृि क रचना उसने कब क —
‘िथित वा न जोगी जाणै, ित माह न कोई।
जा करता िसरठी कउ साजे, आपे जाणै सोई॥’
(पृ. १६)
सृि क आकार और अंत क बार म कोई नह जान सका। बस इतना ही कहा जा सकता ह िक लाख पाताल
ह, लाख आकाश ह। असं य ीप ह, सौरमंडल ह और ांड ह। जपुजी का कथन ह—
‘इह अंत न जाणै कोई।
×××
पाताला पाताल लख आगासा आगास।
×××
ितथै खंड मंडल वरभंड॥’
कम—जीवन म हम जो कछ करते ह, उसे ‘कम’ कहते ह। कम दो कार क माने गए ह—अ छ कम और बुर
कम। िवषय-िवकार, झूठ, छल-कपट, िहसा आिद बुर कम ह। सच बोलना, दया, दान, नाम सुिमरन, पु य,
अिहसा आिद अ छ कम क ेणी म आते ह। ‘गु ंथ सािहब’ म शरीर को धरती और कम को बीज कहा गया
ह। उसक आ मा िकसान ह। इस धरती म जैसा कोई बीज बोएगा, उसे वैसा ही फल िमलेगा। मनु य को अपने हर
एक कम का फल भुगतने क िलए बार-बार अलग-अलग योिनय म ज म लेना पड़ता ह—
‘करमु धरती सरी जुग अंत र, जो बोवै सो खाित।
जेहा बीजै सो लुणै करमा संदड़ा खेतु॥’
(पृ. १३४)
कम क िबना कछ ा नह होता। जैसे मनु य क कम ह गे वैसा ही उसे फल ा होगा। नानकजी प
कहते ह—
‘िवणु करमा िकछ पाईअै नाही...’’
(पृ. ७२२)
तथा
‘फलु तेवेहो पाईअै जेवेही कार कमाईअै।’
(पृ. ४६८)
जो कम िकसी कामना या फल को सामने रखकर िकए जाते ह उ ह ‘ वाथ कम’ कहते ह। इसक िवपरीत जो
कम िकसी सांसा रक फल क कामना िकए िबना िन वाथ भाव से िकए जाते ह उ ह ‘िन काम कम’ कहा जाता
ह। ऐसे ही कम को ‘अ या म कम’ कहा जाता ह। ऐसे कम करने से मन से अहकार का नाश होता ह और उसम
भु क योित का िनवास होता ह—
‘अिधआ म करम कर िदनु राती।
िनरमल जोित िनरत र जाती॥’
धम—‘गु ंथ सािहब’ म धम को परपरागत संकिचत प से बाहर िनकालकर एक यापक प दान िकया
गया ह। धम क प रभाषा गु अजनदेव इस कार देते ह—
‘सरब धरम मिह े ट धरमु।
ह र को नामु जिप िनरमल करमु॥’
—अथा ह र का नाम जपना और काय- यवहार म हमेशा नेक कम करना ही सव े धम ह। इस ि कोण से
‘गु ंथ सािहब’ म मु य प से तीन धम वीकार िकए गए ह—सच, संतोष और ान। इस पिव ंथ क
वाणीकार ने िसफ एक स य धम पर ढ़ता से अमल करने का आदेश िदया ह, य िक सच का पालन करने से ही
भु क ा हो सकती ह। कवल सच को अपनानेवाला वयं नाम जपते ए दूसर को नेक राह पर चलने क
िलए े रत कर सकता ह—
‘िजसदै अंद र सचु ह, सो सचा नाम मुिख सचु अलाए।
उ ह र मारिग आिप चलदा, होरना नो ह र मारिग पाए॥’
(पृ. ११८८)
दूसरा मु य धम संतोष ह, िजसे अपनाने से अ या म माग क सबसे बड़ी कावट ‘ममता’ का अंत हो जाता ह।
मन म संतोष आ जाने से काम, ोध, लोभ, मोह, अहकार नामक पाँच िवकार का नाश होता ह और ाणी ई र
क भ म त ीन होता ह। संतोष चंचल मन को काबू म रखने का मुख साधन ह—
‘सतु संतोखु सदा सचु पलै, सचु बोलै िपर भाए॥’
(पृ. ७६४)
धम का तीसरा दरजा ‘गु ंथ सािहब’ म ‘ ान’ को िदया गया ह। ान गु से ा होता ह। यह एक ऐसा
अंजन ह जो योित को इतना िद य बना देता ह िक ाणी अपने भीतर ही ई र का दशन करने म समथ हो जाता
ह। उसक मन से अ ान पी अँधेरा िमट जाता ह—
‘िगआन अंजनु गु र दीआ, अिगआन अँधेर िबनासु।
ह र िकरपा ते संत भेिटआ, नानक मिन परगासु॥’
(पृ. २९३)
मन—‘गु ंथ सािहब’ म एक ओर मन को खोटा, अिव सनीय और म त हाथी आिद कहकर उसक दुगुण क
चचा क गई ह (मन खुटहर तेरा नह िबसासु तू महा उदमादा), तो दूसरी ओर उसे योित व प मानकर
असली सच को पहचानने क सलाह दी गई ह। अपनी साधारण थित म मन काम, ोध, लोभ, मोह, अहकार
जैसे िवकार म लीन रहता ह और गु ारा बताए गए माग से भटक जाता ह। मन को वश म करने क िलए ान
क आव यकता ह और यह ान गु से ही ा होता ह—
‘िगआन का बधा मनु रह, गुर िबनु िगआन न होइ।’
(पृ. ४६९)
मन को वश म कर लेने से सभी िस याँ ा हो जाती ह—
‘मन साधे िस होइ।’
नाम सुिमरन—गु ारा बताए गए रा ते पर चलने क िलए ‘गु ंथ सािहब’ म एक िवशेष अ यास पर जोर
िदया ह। नाम सुिमरन और शबद- वण उसी अ यास का गु वाणी म चिलत नाम ह। ‘जपुजी’ म नानकजी ने नाम
को एक ऐसी आ या मक श माना ह जो समूचे ांड को चलाती ह। नाम क सुिमरन से जीव को सच, संतोष
और ान क ा होती ह। नाम को माननेवाल क गित का श द म वणन नह िकया जा सकता, जैसािक
नानकजी ‘जपुजी’ म बताते ह—‘मनै क गित कही न जाए।’ ‘गु गं◌थ सािहब’ म ‘नाम’ श द परमा मा क
िलए योग िकया गया ह जो अनािद, अनंत, असीम, परम सच और अटल ह। नाम सुिमरन क िबना जीव क
मु नह हो सकती। गु अजनदेव समझाते ह िक यह मानव जीवन दुलभ ह, जो बड़ सौभा य से ा होता ह।
जो मनु य इस जीवन म नाम नह जपते, वे मानो अपना िवनाश (आ मघात) वयं करते ह—
‘दुलंभ देह पाई बडभागी।
नाम न जपिह ते आ मघाती॥’
(पृ. १८८)
नाम का जाप और सुिमरन ही नह , उसपर िचंतन-मनन और अमल भी होना चािहए। िबना िचंतन-मनन और
अमल क नाम का जाप यथ और िन फल ह। गु अमरदास समझाते ह िक िसफ राम-राम (परमा मा) कहने से
िकसीको राम ा नह हो जाता। जब तक शबद क भेद (अथ) को ाणी मन म नह बसाएगा तब तक परमा मा
दय म नह बसेगा—
‘राम-राम करता सभ जग िफर, राम न पाया जाए।
गुर क श द भेिदआ, इन िबध विसआ मन आए॥’
आवागमन—ज म, मरण और पुनज म क च को आवागमन कहा जाता ह। गु वाणी क अनुसार, जीव िमलते ह
और िबछड़ते ह और िबछड़कर िफर िमलते ह। अथा वे जनमते एवं मरते रहते ह। अ ानवश िकए गए कम क
कारण जीव क आ मा आवागमन क च म फसी रहती ह। गु अजनदेव प बताते ह िक क ट, पतंगा, हाथी,
मछली, िहरण, प ी, साँप इ यािद जैसी अनेक योिनय से होकर गुजरने क बाद मानव जीवन िमलता ह। मनु य क
कम से ई र उसक योिन तय करता ह। अगर मनु य योिन म भी ाणी अहकार और अ ान क जाल से बाहर न
िनकल सका तो उसे योिनय म ही भटकना पड़ता ह—
‘कई जनम भए क ट पतंगा।
कई जनम गज मीन करगा॥
कई जनम पंखी सरप होइउ।
कई जनम हवर ि ख जोइउ॥’
(पृ. १७६)
‘गु ंथ सािहब’ क यह भी मा यता ह िक जीव क ा याँ ब त कछ उसक अपनी इ छा-अिन छा पर िनभर
करती ह, जैसािक नानकजी क इस कथन से प ह—
‘साई व तु परापित होई, िजसु िसउ लाइआ हतु।’
(पृ. ७५)
इस पिव ंथ म दज संत ि लोचन क वाणी म तो यहाँ तक कहा गया ह िक मरने क समय जीव यिद धन-
दौलत क बार म सोचता ह तो उसे साँप क योिन िमलती ह। इसी कार अंतकाल म ी क बार म सोचनेवाला
वे या, पु क बार म सोचनेवाला सूअर और महल आिद क बार म सोचनेवाला ेत क योिन म पैदा होता ह—
‘अंितकािल जो लछमी िसमर...
सरप जोिन विल विल अउतर।
अंतकािल जो ी िसमर...
बेसवा जोिन विल विल अउतर।
अंतकािल जो लि़डक िसमर...
सूकर जोिन विल विल अउतर।
अंतकािल जो मंदर िसमर...
ेत जोिन विल विल अउतर॥’
(पृ. ५२६)
स े मन से भु का नाम सुिमरन करने से योिनय क च से छटकारा िमलता ह—
‘अिनक जोिन जनमै म र जाम।
नामु जपत पावै िब ाम॥’
(पृ. २६४)
परमा म लोक—‘गु ंथ सािहब’ क वाणी म परमा म लोक क िलए ायः ‘सचखंड’ श द इ तेमाल िकया
गया ह। सचखंड यानी वह लोक जहाँ ई र सा ा वास करता ह—‘सिचखंिड वसै िनरका ।’ सचखंड म
आनंद-ही-आनंद ह। वहाँ अनंत खंड, मंडल और ंड ह, िजनका श द म वणन नह िकया जा सकता। जीव भी
सचखंड प च सकता ह। लेिकन इसक िलए पहले उसे चार अ य खंड से होकर गुजरना ज री ह। ये चार खंड ह
—धम खंड, ान खंड, म खंड और कम खंड। इन चार खंड को पार करक सचखंड म वेश करनेवाला
य न कवल वयं मो ा कर जाता ह अिपतु अपने साथ कई अ य लोग का भी उ ार कर जाता ह।
माया—‘गु ंथ सािहब’ म अनेक थान पर माया क बुर भाव और उससे बचने का उपाय बताया गया ह।
अस य को स य मान लेना ही माया ह। माया क अनेक प ह और वह मोह का प धारण करक सांसा रक जीव
को डसती ह। पु , भाई, प नी, धन और यौवन, लोभ, अहकार आिद सब माया का ही प ह। जो मनु य माया क
पीछ भागते ह, वे अपना लोक और परलोक दोन िबगाड़ लेते ह—
‘बाबा माइआ रचना धो ।
अंधै नामु िवसा रआ, न ितसु इ न उ ॥’
ान—िजस कार अँधेरा दूर करने क िलए दीपक क आव यकता होती ह उसी कार अ ान का नाश करने क
िलए ान पी काश क ज रत होती ह—
‘जह िगआन गासु अिगआन िमटतु।’
ान क ा िसफ गु से होती ह और जो ाणी ान ा कर लेता ह उसका जीवन और मन पिव हो जाता
ह—
‘िगआनु िधआनु सभु गुर ते होई।
साची रहत साचा मिन सोई॥’
(पृ. ८३१)
अहकार—मनु य का सबसे बड़ा दुगुण अहकार (हउमै) ह और यह अ य दुगुण का मूल कारण ह। गु वाणी का
प कथन ह िक अहकार और भु का नाम एक-दूसर क िवरोधी ह। दोन एक साथ नह रह सकते—
‘हउमै नावै नािल िवरोध ह, दोए न वसिह इक थाई॥’
(पृ. ५६०)
अहकार एक तरह का रोग ह और इसक जड़ काफ गहरी ह। लेिकन गु क शबद क कमाई से इस रोग का
इलाज भी संभव ह—
‘हउमै दीरघ रोग ह दा भी इस मािह।
िकरपा कर जे आपणी ता गुर का स दु कमािह॥’
(पृ. ४६६)

सामािजक प
आ या मक मागदशक होने क अलावा ‘गु ंथ सािहब’ सामािजक िश क भी ह। म यकाल म भारतीय समाज
अनेक िवकितय , िवकार और िवषमता से त था। लोभ, तृ णा, ोध, वासना, ई या क वशीभूत होकर लोग
भ माग से भटककर पाप-कम म वृ हो रह थे। सादगी और संयम क जगह िदखावा व असंयम धान था।
भूल-े भटक ए लोग को सही रा ते पर लाने और इस कार एक स य, सदाचारी, संयमी तथा नैितक समाज क
थापना क िलए गु और संत -भ ने जो उपदेश तथा संदेश िदए उ ह गु अजनदेव ने ‘गु ंथ सािहब’ म
दज करक शा त बना िदया। समाज म आज भी म य युग जैसी प र थितयाँ िव मान ह। उसक चा रि क और
नैितक उ थान क िलए ये संदेश और उपदेश आज भी उतने ही ासंिगक ह। आइए जान ‘गु गं◌थ सािहब’ क
सामािजक प क मुख त व।
धािमक एकता—म यकाल म भारतीय समाज पूरी तरह से धम और जाित क आधार पर बँटा आ था। धािमक
क रता जोर पर थी। िहदु और मुसलमान क बीच अपने-अपने धम को दूसर से े और महा सािबत करने
क होड़ लगी ई थी। इस कारण देश क इन दोन मुख धम क बीच टकराव और ेश बढ़ता जा रहा था। यही
नह , खुद िहदू धम जाितय और वण म बँटा आ था। य का सामािजक स मान और थान उसक जाित और
वण क आधार पर तय होता था, चाह उसक कम कसे भी ह । समाज म वण धान था, य नह । धम, जाित
और वण क आधार पर बँट और िबखर ए समाज को जोड़ने क िलए गु ने ‘ख ी ा ण सूद वैस उपदेसु
च वणा कउ साँझा’ क अनुसार समूची मानव जाित क िलए एक ही सवसाँझे ई रीय उपदेश क बात क और
प कहा िक य अपनी जाित और वण से नह ब क कम से महा और े होता ह—
‘जाित जनमु नह पुछीअै, सच घ ले बताइ।
सा जाित सा पित ह, जेह करम होइ॥’
(पृ. १३३०)
‘एक नूर ते सब जग उपिजआ’ क समतावादी िस ांत क मुतािबक सभी मनु य एक ही परमा मा क उ पि
होने क कारण ‘गु ंथ सािहब’ ने िहदु और मुसलमान को दो अलग-अलग ेिणयाँ नह माना; ब क ‘राह
दोवै खसमु एको जाणु’ कहकर दोन को एक समान धरातल पर रखकर इस सवाल को ही अथहीन कर िदया
िक िहदू धम े ह या इसलाम।
भारतीय समाज म दिलत को शु से ही अपमािनत और ताि़डत िकया जाता रहा ह। दिलत को स मान देने
और िदलाने क िलए िसख गु ने उ ह अपने साथ और अपने आपको उनक साथ जोड़ा, उ ह अपनी संगत और
पंगत म साथ िबठाया और िखलाया। नानकजी ने तो ऊची जाित क एक अमीर मिलक भागो क शाही यंजन
ठकराकर एक दिलत बढ़ई भाई लालो क सूखी रोटी खाई और डक क चोट पर कहा िक अगर नीच से भी नीच
और उस नीच से भी नीच कोई जाित ह तो नानक उसक साथ ह। बड़ी जाित से मेरा कोई सरोकार नह । नानकजी
ने यहाँ तक कहा िक जहाँ तथाकिथत नीच लोग क सेवा-सँभाल होती ह वहाँ भु क कपा होती ह—
‘नीचा अंद र नीच जाित, नीची अित नीचु।
नानक ितन क संिग सािथ, विडआ िसउ िकआ रीस।
िजथै नीच समािलअन, ितथै नदर तेरी ब सीस॥’
(पृ. १५)
प रवार और र ते-नाते—‘गु ंथ सािहब’ म समाज क लगभग सभी चिलत संबंध और र त का उ ेख
िमलता ह। माता-िपता, भाई-बहन, पु -पु वधू, देवरानी-जेठानी आिद जैसे चिलत र त को ‘गु ंथ सािहब’ ने
सामािजक मा यता दी ह। लेिकन चूँिक इस पिव गं◌थ म अ या म धान ह, अतः इन सभी सांसा रक र त से
बड़ा भ और भगवा का र ता माना गया ह। यहाँ तक िक कह -कह तो ये सार र ते ई र तक सीिमत कर
िदए गए ह और उसे सभी र त का क मानकर बाक सब र त को दरिकनार कर िदया गया ह—
‘तूँ मेरा िपता तूँ ह मेरा माता।
तूँ मेरा बंधपु तूँ मेरा ाता॥’
(पृ. १०३)
गु वाणी म कई जगह पा रवा रक संबंध क नैितक गुण क साथ थापना क गई ह। बु को माता, संतोष को
िपता, स य को भाई व म और सुरित ( यान) को सास-ससुर क पदवी दी गई ह। जीव को इन संबंिधय (गुण )
को धारण करक ई र तक प चने का आ ान िकया गया ह—
‘माता मित िपता संतोखु।
सतु भाई क र ए िवसेख॥ ु
×××
सरम सुरित दुइ ससुर भए।
करिण कामिण क र मन लए॥’
(पृ. १५१-५२)
िववाह और गृह थ जीवन— ी-पु ष क संबंध और उनसे उ प संतान को सामािजक मा यता एवं मान-
स मान देने क िलए हजार वष पहले िववाह सं था कायम क गई। ‘मनु मृित’ म आठ कार क िववाह ( ा
िववाह, दैव िववाह, आष िववाह, ाजाप य िववाह, आसुर िववाह, गांधव िववाह, रा स िववाह और पैशाच
िववाह) क चचा क गई ह। लेिकन ‘गु ंथ सािहब’ म कवल ाजाप य िववाह को मा यता दी गई ह। गु वाणी
म सभी सांसा रक संबंध म गृह थ माग का पालने करनेवाला ी-पु ष संबंध को सबसे े माना गया ह। िववाह
को दो पिव आ मा का िमलन कहा गया ह। गु अमरदास का कथन ह—‘एक जोित दुइ मूरित।’ यही नह ,
‘गु ंथ सािहब’ म पित-प नी क संबंध को उ आ या मक दरजा िदया गया ह और सभी जीव को ी तथा
ई र को उनका पित कहा गया ह—
‘इस जग मिह पुरख एक ह, होर सगली ना र सबाई।’
(पृ. ५९१)
गु वाणी क अनुसार, वर-वधू का संयोग और िववाह संबंधी सार काय ई र वयं संप करता ह—
‘ह र िभ काज रचाइआ, गुरमुिख िवआहिण आइआ...’
(पृ. ७७५)
दहज िववाह से जुड़ी एक ब त बड़ी सामािजक बुराई ह। देश म हर साल हजार मासूम बेिटयाँ और ब एँ इस
बुराई क बिल चढ़ जाती ह। ‘गु ंथ सािहब’ म आ या मक दहज को े बताया गया ह और पदाथवादी दहज
को झूठा तथा आडबरपूण कहा गया ह। सयानी वधू अपने िपता से िवदा होते समय कवल भु क नाम पी दहज
क माँग करती ह—
‘ह र भ मेर बाबुला, ह र देव दान मै दाजो।
×××
होर मनमुख दाज िज रिख िदखालिह, सु कि़ड अहकार कच पाजो॥’
(पृ. ७९)
िसख धम म िववाह को ‘आनंद कारज’ कहा गया ह। इसका शा दक अथ ह—ऐसा काय िजससे आनंद ा
हो। िहदू धम म अ न क सात फर क िवपरीत आनंद कारज ‘गु ंथ सािहब’ क चार फर (प र मा) से संप
होता ह, िज ह ‘लाँवा फर’ भी कहा जाता ह। गु वाणी क अनुसार, पहली लाँव िववाह क र म का आरभ और
कमशीलता (गृह थ जीवन म वेश) क तीक ह। दूसरी लाँव वर और वधू क िमलाप और उनक आपसी पिव
भावना क िमलन क तीक ह। तीसरी लाँव साधु जन क िमलन और ई र क गुणगान से सांसा रक व तु से
वैरा य उ प होने क तीक ह। चौथी लाँव गृह थ जीवन क िस और पित-परमा मा क पूण ा क तीक
ह।
‘गु ंथ सािहब’ क वाणी म िववाह क िलए ल न, मु त, शकन-अपशकन, न क गणना, ज मपि य क
िमलाने आिद क िलए कोई थान नह ह। गु वाणी म ई र पर आ था रखनेवाले क िलए सभी िदन पिव माने
गए ह—
‘साहा गणिह न करिह बीचा ।
साह ऊप र एकका ॥’
(पृ. ९०४)
सुहािगन—सामा य बोलचाल और यवहार म सुहािगन उस याहता ी को कहा जाता ह िजसका पित जीिवत ह।
पर ‘गु ंथ सािहब’ क िवचारधारा इससे कह यापक ह। गु वाणी क अनुसार, सुहािगन वह ी ह जो अपने
पित को िदल म धारण कर, उसक साथ मीठ वचन बोले, न यवहार कर और अपने पित क सेज पर स ता
अनुभव कर, िजसपर पित क कपा और यार बना रह और जो तन-मन से पित को समिपत हो—
‘गु मुिख सदा सोहागणी िप रािखआ उरधा र।
िमठा बोलिह िनिव चलिह सेजै रवै भता ॥’
(पृ. ३१)
तथा
‘से सहीआ सोहागणी िजन कउ नद र करइ।
खसमु पछाणिह आपणा तनु मनु आगै देइ॥’
(पृ. ३८)
पित ता—गु वाणी क अनुसार, स ी पित ता ी अपने पित क अनुप थित म भी अपनी सिखय क साथ
बातचीत म उसक शंसा करती ह और उसक याद म लीन रहती ह—
‘आव भैणे गिल िमलह अंिक सहलड़ीआह।
िमिल क करह कहाणीआ संमथ कत क आह॥’
(पृ. १७)
इसक िवपरीत पित से िवमुख और यिभचा रणी (पराए पु ष क साथ संभोग करनेवाली) ी को ‘गु गं◌थ
सािहब’ म ‘कमजात’ और ‘कलिछनी’ तथा ‘कनारी’ कहा गया ह। ऐसी ी सच, शम, संयम, सदाचार आिद जैसे
उ गुण क हकदार नह कहला सकती—
‘खसमु िवसारिह ते कमजात।’
(पृ. १०)
तथा
‘मनमुख मैली कामणी कलखणी कना र।
िप छोिडआ घ र आपणा पर पुरखै नािल िपआ ॥’
(पृ. ८९)
सती—म ययुग म िवधवा क पा रवा रक और सामािजक थित ब त दयनीय थी। वैध य क साथ अंधिव ास
और सामािजक कलंक क कारण उ ह उपे ा और ितर कार क ि से देखा जाता था। इस अपमान से बचने क
िलए अनेक िवधवाएँ पित क िचता म ही जलकर सती हो जाती थ , या समाज वयं उ ह मृत पित क शव क साथ
जलाकर सती बना देता था। मृ यु क डर से यिद कोई िवधवा सती होने से इनकार करती थी तो उसे बदचलन
कहकर और यादा अपमािनत िकया जाता था।
‘गु ंथ सािहब’ क वाणीकार ने सती था का जमकर िवरोध िकया और िकसी ी को जलकर मरने क िलए
मजबूर करने को घोर अ याचार कहा। गु वाणी क अनुसार, मजबूरी म पित क िचता क साथ जल मरनेवाली ी
सती नह । सती ी तो पित क िवरह क आग म हमेशा जलती ह, और जो ी मन से पित को अपना समझती ही
नह , उसे िचता म जलने से या ा होगा? उसक िलए तो पित िजए या मर, वह उससे दूर ही भागती ह—
‘कता नािल महलीआ सेती अिग जलािह।
जे जाणिह िप आपणा ता तिन दुःख सहािह।
नानक कत न जाणनी से िकउ अिग जलािह।
भावै जीवउ क मरउ दूर ही भिज जािह॥’
(पृ. ७८७)
िम और श — ु मनु य एक सामािजक ाणी ह। िम ता एक उ सामािजक संबंध ह, जो िन वाथ, आपसी
ेह और यार पर आधा रत होती ह। श ुता इसक िवपरीत थित ह, जो अह और िनजी वाथ क टकराव क
कारण पैदा होती ह। मनु य क इन दोन वृि य क बार म ‘गु ंथ सािहब’ म कई उ ेख िमलते ह। गु
अमरदासजी का कथन ह िक दु क साथ दो ती और स न लोग क साथ दु मनी करनेवाला य न कवल
अपना ब क अपने पूर कटब का भी नाश करता ह—
‘दु टा नािल दो ती संता वै करिन।
आिप डबे कटब िसउ सगले कल डोबंिन॥’
(पृ. ७५५)
नासमझ य क साथ दो ती कभी सफल नह होती, न ही ऐसी दो ती कभी थायी होती ह। इस दो ती क
टटने म देर नह लगती और इसम रोजाना अनेक िवकार पैदा होते रहते ह। अतः ‘गु ंथ सािहब’ क वाणी
नासमझ क साथ दो ती न करने क सलाह देती ह—
‘मनमुख सेती दो ती थोड़ि़डआ िदन चा र।
इसु परीित तुटदी िवलमु न होवई,
इतु दो ती चलिन िवकार॥’
(पृ. ५८७)
मनु य का एकमा स ा िम िसफ ई र ह, जो सवश शाली ह और बुर िम तथा उनक दु भाव से
बचाने क साम य रखता ह—
‘नानक िम ाई ितसु िसउ, सभ िकछ िजस क हािथ।
किम ा सेई कांढीअिह, इक ि ख न चलिह सािथ॥’
(पृ. ३१८)
पराई ी क साथ अनैितक संबंध—‘गु ंथ सािहब’ म अगर ी क िलए स य, शील क र ा और मन,
वचन तथा कम से पिव होने का िवधान िकया गया ह तो पु ष क िलए भी अपनी ी क अलावा िकसी अ य
ी क साथ अनैितक संबंध थािपत करने को एकदम विजत करार िदया गया ह। पराई ी क साथ अनैितक
संबंध को गु अजनदेव ने साँप क संगित करने क समान बताया ह—‘जैसा संगु िबसीअर िसउ ह र तैसो ही
इ परि ।’ और तो और, चोरी-िछपे पराई ी क ओर देखना भी पाप माना गया ह और गु वाणी क अनुसार,
ऐसा करनेवाले पु ष को को म ितल क तरह पीसा जाता ह—
‘तकिह ना र पराईआ लुिक अंद र ठाणी।
अज़राईलु फरसता ितल पीड़ घाणी॥’
(पृ. ३१५)
‘गु ंथ सािहब’ को िलिपब करनेवाले भाई गुरदास अपनी वाणी म पराई ी को माँ, बहन और बेटी समझने
का उपदेश देते ह और कहते ह िक म उस पु ष पर बिलहार जाता जो पराई ी से दूर रहते ह—
‘देख पराईआ चंगीआ मावाँ भैणाँ धीआ जाणै।’
तथा
‘हउ ितसु घोिल घुमाइआ पर नारी क नेि़ड न जावै।’
िभ ावृि —वतमान युग क तरह गु क जीवनकाल म भी समाज म आम िभखा रय क अलावा ऐसे अनेक
पाखंडी साधु, जोगी और सं यासी भर पड़ थे जो वयं को गु और पीर कहते तथा कहलवाते थे, लोग से अपने
पाँव पर माथा िटकवाते थे और माँगकर खाते थे। िसख गु ने सदा मेहनत क कमाई करने, खाने और उस
कमाई का कछ िह सा ज रतमंद लोग क िलए िनकालने (घािल खाइ िकछ हथ देइ) का उपदेश िदया और
उसपर वयं भी अमल िकया। अतः गु ने माँगकर खानेवाल क कड़ी आलोचना क । नानकजी ने घर-घर
भीख माँगनेवाल को ‘िनल ’ कहा—‘घ र-घ र माँगत लाज न लागै।’ गु वाणी यहाँ तक आदेश देती ह िक जो
य गु और पीर होने का दावा करता ह और ितसपर माँगकर खाता ह, ऐसे नीच य का कभी भी चरण
पश नह करना चािहए—
‘गु पी सदाए मंगण जाइ।
ता क मूिल न लगीअै पाइ॥’
(पृ. १२४५)
बुजुग का स मान—माँ-बाप ब को पाल-पोसकर बड़ा करते ह, उ ह अ छी-से-अ छी िश ा-दी ा देकर
वावलंबी बनाते ह। बदले म संतान का भी यह परम कत य ह िक वह अपने बड़-बुजुग का पूण स मान कर। पु
ारा िपता क साथ झगड़ा और उसका अपमान करने को महापाप माना गया ह—
‘काह पूत झगरत हउ संिग बाप।
िजन क जणे बडीर तुम हउ, ितन िसउ झगरत पाप॥’
(पृ. १२००)
परोपकार—‘गु ंथ सािहब’ म परोपकार को ब त ऊचा थान िदया गया ह। ‘सुखमनी’ म गु अजनदेव ने
‘िमिथआ तन नही परउपकारा’ कहकर उस य का जीना यथ बताया ह िजसने जीवन म कभी कोई
परोपकार नह िकया। परोपकार कवल कम (दान, सेवा इ यािद) से ही नह ब क मन से भी होता ह। गु वाणी का
प कथन ह िक जो ाणी अिहत क बजाय सबक िहत क सोचता ह, वह सभी दुःख और क से मु रहता
ह—
‘पर का बुरा न राख चीत।
तुम कउ दुखु नही भाई मीत॥’
(पृ. ३८६)
दया, क णा—‘गु ंथ सािहब’ म सभी जीव को समान और एक ही परमा मा से उ प माना गया ह। अतः
िकसीको दुःख देना या क प चाना खुद अपने आपको पीड़ा प चाने क समान ह। स ा धािमक य वही ह
जो िकसीको दुःख नह देता और इस कार दया-धम का पालन करता ह—
‘दूखु न देई िकसै जीअ, पित िसउ घर जावउ।’
(पृ. ३२२)
िवन ता—संसार क सभी महापु ष ने िवन ता को मनु य का सबसे पहला परम आव यक गुण और जीवन म
सफलता क कजी माना ह। ‘गु गं◌थ सािहब’ म िवन ता को समाज क नैितक िनयम क प म वीकार िकया
गया ह तथा उसक िलए अकसर कई जगह ‘गरीबी’ श द इ तेमाल िकया गया ह। िवन य न कवल इस
लोक म िनडर और जीवन क िचंता से मु रहता ह, ब क परलोक म भी सुख ा करता ह—
‘क र िकरपा िजस क िहरदै गरीबी बसावै।
नानक ईहा मु ु आगै सुखु पावै॥’
(पृ. २७८)
सेवा—िसख धम और िचंतन म सेवा िसफ एक ि या नह ब क संपूण जीवन शैली ह। वयं िसख गु ने
िन काम सेवा क अमू य कमाई करक गु क उ और उदा पदवी ा क । सेवा से अहकार समा होता ह,
मन म िवन ता आती ह और य लोक तथा परलोक म स मान पाता ह—
‘आप गवाए सेवा कर ता िकछ पाए मान।’
(पृ. ४७४)
िसख िवचारधारा म सेवा का दािय व और दायरा ब त यापक ह—गु क सेवा, संगत क सेवा, माता-िपता क
सेवा, पीि़डत , अनाथ , अपािहज और गरीब क सेवा। मनु यमा क सेवा आ या मक आनंद क पहली सीढ़ी
ह। सुखमनी म गु अजनदेव प श द म फरमाते ह िक िन वाथ भाव से सेवा करनेवाले य को ई र
ा होता ह—
‘सेवा करत होए िनहकामी।
ितस कउ होत परापित सुआमी॥’
(पृ. २८६-८७)
दान—अपनी नेक अथा प र म ारा अिजत क गई कमाई म से गरीब और ज रतमंद लोग क मदद क िलए
कछ िह सा िनकालना सेवा का ही दूसरा प ह। गु अजनदेव का कथन ह िक जो ाणी अपनी नेक कमाई दूसर
क साथ िमल-बाँटकर खाते और खचते ह उनक जीवन म कभी अभाव नह आता, ब क उनका खजाना हमेशा
बढ़ता जाता ह—
‘खाविह खरचिह रिल िमिल भाई।
तोिट न आवै वधदो जाई॥’
‘गु ंथ सािहब’ म भूखे य को भोजन िखलाने क काय को पुराण का पाठ बाँचने और सुनने से भी अिधक
मह व िदया गया ह—
‘तै नर िकआ पुरानु सुिन क ना।
अनपावनी भगित नही उपजी, भूखै दानु न दीना॥’
(पृ. १२५३)
कोई भी दान-पु य िन फल या बेकार नह जाता। ‘आसा दी वार’ म नानकजी प फरमाते ह िक इस ज म म
प र म क कमाई म से िदए गए दान का फल अगले ज म म अव य िमलता ह—
‘नानक अगै सो िमलै जे खट घालै देइ।’
(पृ. ४७२)
शोषण—मनु य ारा मनु य क शोषण क अमानवीय वृि क गु वाणी म जमकर आलोचना क गई ह।
नानकजी ने तो इसे मानव का खून पीने क रा सी वृि क समान बताया और कहा िक शोषण करनेवाले मनु य
का दय कभी पिव नह हो सकता—
‘जो रतु पीविह माणसा ितन िकउ िनरमलु चीतु।’
(पृ. १४०)
परिनंदा—अपनी शंसा और दूसर क िनंदा मनु य का सहज वभाव ह। इसक बावजूद ‘गु ंथ सािहब’ म िनंदा
को एक घृिणत काय माना गया ह तथा इसे सदाचारहीनता क पराका ा कहा गया ह। िनंदक य सब जगह
दु कार जाते ह। िनंदक न कवल खुद नरक का भागीदार होता ह, ब क उसक संगी-साथी भी उसक साथ नरक
भुगतते ह। नरक म उसे अ न म जलाया जाता ह। जलन क पीड़ा से वह चीखता, िच ाता ह; लेिकन उसपर भु
क कपा कभी नह होती—
‘अरढ़ावै िबललावै िनंदक।
पार परमेस िबस रआ अपणा क ता पावै िनंदक।
जे कोई उसका संगी होवे नाले लए िसधावै।
अणहोदा अजग भा उठाए िनंदक अ न मािह जलावै॥’
(पृ. ३७३)
चुगली—गु वाणी म प िहदायत दी गई ह िक चुगली करनेवाले य क सभी पु य इस एक दुगुण अथा
चुगलखोरी क कारण न हो जाते ह। वह दूसर क िखलाफ झूठी बात कहता ह, इसिलए उसका मुँह काला होता
ह—
‘िजसु अंद र चुगली चुगलो वजै,
क ता करितआ उस दा सभु गइआ।
िनत चुगली कर अणहोदी पराई,
मु किढ न सक उस दा काला भइआ॥’
(पृ. ३०८)
गरीब को दु कारना—ई र क म (इ छा) से इस संसार म कोई य अमीर पैदा होता ह और कोई गरीब।
लेिकन धन-दौलतवाले य को यह अिधकार कतई नह िक वह िनधन को दु कार, फटकार और उसका अपमान
कर। गु वाणी क अनुसार, जो य गरीब का अपमान करते ह, ई र उ ह कठोर सजा देता ह—
‘गरीबा ऊप र िज िखंजै दाढ़ी।
पार सा अ न मिह साढ़ी॥’
(पृ. १९९)
झूठी गवाही— वाथ लोग ारा धन क लालच म अकसर झूठी गवाही देना वतमान काल क तरह म य काल
म भी एक सामा य बात थी। झूठी गवाही देना एक ब त बड़ा पाप ह, य िक इससे असली अपराधी छट जाता ह
और िनरपराध य फस जाता ह। इस नीच काय को ‘गु ंथ सािहब’ म अिववेकपूण कहकर इसक स त
आलोचना क गई ह—
‘लै क विढ देिन उगाही, दुरमित का गिल फाहा ह।’
(पृ. १०३२)
र त— र त लेना अनैितक ही नह , अ यायकारी भी ह; य िक र तखोर य कभी भी स य क आधार पर
याय का िनणय नह करगा। ‘गु ंथ सािहब’ म र तखोरी क कड़ी िनंदा क गई ह और र त खानेवाले को
मनु य खानेवाला (नरभ ी) एवं दूसर क गले पर छरी चलानेवाला (कसाई) कहा गया ह—
‘माणसखाणे करिह िनवाज।
छरी वगाइिन ितन गिल ताग॥’
(पृ. ४७१)
लड़ाई-झगड़ा—मनु य क िलए लड़ाई-झगड़ा ब त बुरी बात मानी गई ह। झगड़ने से न कवल ोध बढ़ता ह
और मानिसक अशांित पैदा होती ह, ब क इससे आपसी दु मनी और सामािजक तनाव भी पैदा होता ह। इसिलए
गु वाणी म कवचन बोलने और लड़ाई-झगड़ से बचने क िहदायत दी गई ह—
‘मंदा िकसै न आिख झगड़ा पावणा।’
(पृ. ५६६)

राजनीितक प
‘गु ंथ सािहब’ क वाणीकार गु और संत -भ क जीवनकाल म राजनीितक अराजकता का बोलबाला था।
उस समय क राजनीितक थित कौिट य क िवधान से एकदम िवपरीत थी, िजसम रा य क क याणकारी और
जा क िलए राजा क िपता समान होने क बात कही गई थी। लेिकन नानक क वाणी क अनुसार, वह काल
तलवार समान तथा शासक कसाई समान थे। दुिनया से धम मानो पंख लगाकर उड़ गया था (किल काित, राजे
कसाई, धरम पंख क र उिड रआ)। शासक और उनक कमचा रय क िनरकश अ याचारवाली दु वृि से
नानकजी ने त कालीन राजा को खूँखार शेर और उनक लालची अिधका रय को क े तक कहने का साहस
िकया, जो जा का संर ण करने क बजाय उसे नोच-नोचकर खा रह थे (राजे सीह मुकदम क े, जाइ
जगाइिन बैठ सुत)े । सोलहव शता दी म आ मणकारी बाबर क सेना ने काबुल क ओर से आकर पंजाब म
अ याचार क काली आँधी चलाई। मासूम ब सिहत हजार ी-पु ष क ह या कर दी गई। गु नानक ने ये सब
अ याचार अपनी आँख से देख।े उनका कोमल िदल रो उठा और उ ह ने ई र तक क आलोचना करते ए क ण
श द म कहा—िनबल पर इतने जु म ए, या तु ह इनपर जरा भी रहम नह आया। यिद कोई बलवा दूसर
बलवा पर आ मण कर तो कोई बात नह ; परतु यिद कोई भयानक शेर कमजोर भेड़ और गऊ पर टट पड़,
जैसे बाबर पंजाब क िनबल लोग पर टट पड़ा ह, तो तुम अपनी जवाबदेही से बच नह सकते। बाबर क जािलम
सैिनक ने क क तरह बबर क य िकए ह और इन संवेदनाहीन सैिनक क िलए इनसान क जान क कोई क -
क मत नह ह—
‘एती मार पई करलाणे त क दद न आइआ।
करता तूँ सबना का सोई।
जे सकता सकते कउ मा र ता मिन रोसु न होई।
सकता सी मार पै व गे, खसमै सा पुरसाई।
रतन िबगाि़ड िबगोए क ी मुइआ सार न काई...’’
(पृ. ३६०)
स १५२४ म बाबर ने पंजाब पर चौथे आ मण क समय लाहौर शहर पर जो कहर बरपाया, उसका भी नानकजी
ने अपनी वाणी म िज िकया ह—
‘लाहौर सह जह कह सवा पह ।’
(पृ. १४१२)
स ा और श क नशे म चूर ए बाबर और उसक सैिनक ने बेबस य क इ त को पाँव तले र द डाला
और उ ह बंदी बनाकर ले गए। य का प और यौवन ही उनका वैरी हो गया—
‘धनु जोबनु दुइ वैरी होए िजनी रखे रगु लाइ।
दूता नो फरमाइआ लै चलै पित गवाइ॥’
(पृ. ४१७)
अनेक औरत क बुरक िसर से पाँव तक फट गए। कई औरत हमले म मर गई। अनेक िवधवा हो गई। उनक
रणबाँकर पित रात को घर वापस नह लौट सक। इन य क तरस यो य हालत को नानकजी ने क पना से पर
कहा—
‘इक िहदवाणी अवर तुरकाणी भिट आई ठकराणी।
इकना पेरण िसर खुर पाट इकना वासु मसाणी।
िजन क बँक घरी न आइआ ितनु िकउ रिण िवहाणी॥’
(पृ. ४१८)
जा को न राजनीितक सूझबूझ थी और न कोई अ य ान। जा क इसी अ ानता क कारण शासक उसपर
अ याचार करते थे और वह ( जा) दुःख भोग रही थी—
‘अंधी रयित िगआन िव णी भािह भर मुरदा ।’
(पृ. ४६९)
देश म अ याय धान था। इनसाफ का मंिदर कह और समझे जानेवाले यायालय म नाइनसाफ और ाचार
का बोलबाला था। काजी र त लेकर सच को झूठ और झूठ को सच सािबत कर देते थे। अगर कोई उनक फसले
को चुनौती देता था तो वे करान क आयत पढ़कर सुना देते थे—
‘काजी होइ क बिह िनआइ फर त बी कर खुदाइ।
वढी लै क हक गवाए जे को पुछ ता पि़ढ सुणाए॥’
(पृ. ९५१)
इितहास गवाह ह िक म यकालीन मुगल शासन यव था म अनेक शासक ने तलवार और जु म-जबरद ती क
जोर पर स ा हािसल क । िसख गु ने इस तरह क शासक और उनक राज यव था क कड़ी आलोचना क
और प कहा िक राजग ी (त त) पर कवल उसी य को बैठने का अिधकार ह जो उसक लायक हो और
िजसे सच तथा झूठ और याय तथा अ याय क बार म वा तिवक ान हो—
‘त त राजा से बह िज त तै लाइक होई।
िजिन सचु पछािणआ सचु राजे सेई॥’
(पृ. १०८८)
‘गु ंथ सािहब’ क वाणी यह भी घोषणा करती ह िक राजा को शासन यो य कवल तब तक माना जाना
चािहए जब तक जा उसक ताकत को माने और उसक अधीन अपने आपको सुरि त महसूस कर। अगर पंचायत
क ि म राजा पितत हो जाए या उसे पापी अथवा अिव सनीय घोिषत कर िदया जाए तो उसे िसंहासन पर बने
रहने का कोई अिधकार नह —
‘राजा त त िटक गुणी भै पंचाइण रतु।’
(पृ. ९९२)
राजकाज क िलए पंचायती राज यव था और िववाद क सौहादपूण एवं शांितपूण समाधान क िलए पंच-िनणय
क यव था भारत म ाचीन काल से चली आ रही ह। भारतीय समाज म पंच को परमे र तक का उ दरजा
और स मान िदया गया ह। ‘गु ंथ सािहब’ म न कवल पंचायती राज यव था का समथन िकया गया ह, ब क
यहाँ तक कहा गया ह िक पंच (समाज म) धान ह, राजदरबार म उनक शोभा होती ह और ई र क दरबार म वे
स मान पाते ह—
‘पंच परवाण पंच परधान।
पंचे पाविह दरगिह मानु।
पंचे सोहिह द र राजानु॥’
(पृ. ३)
राजा म शासक य िनपुणता क साथ आ या मक और धािमक गुण होना भी आव यक ह। कवल तभी वह
सिह णु, दयालु और यायि य होगा। नानकजी का प वचन ह िक चाह कोई ताज, क ेदार पगड़ी और छ
धारण कर ले, चाह वह वयं को ‘खान’ (पठान सरदार), ‘मिलक’ (िहदू और मुसिलम सरदार) या ‘राजा’
कहलवाता िफर; लेिकन गु क िबना उसक सारी शान-शौकत बेकार ह—
‘ताज कलह िस र छ बनावउ।
िबनु जगदीस कहा सचु पावउ॥
खानु मलूक कहावउ राजा।
अबे तबे कढ़ ह पाजा॥
िबनु गुर शबद न सवरिस काजा॥’
(पृ. २२५)

आिथक प
‘गु ंथ सािहब’ म दज भ कबीर क वाणी क अनुसार, ‘भूखे भगित न क जै’ अथा भूखे पेट भ करना
असंभव ह। भूख एक आिथक सम या ह, जो आज क तरह म यकाल म भी िव मान थी। देश छोट-छोट रा य म
बँटा आ था, समाज जाितय और वण म बँटा आ था। इन थितय का फायदा उठाकर िवदेशी आ मणकारी
अकसर भारत पर आ मण करक यहाँ क धन-संपि लूट ले जाया करते थे। इससे देश म कभी भी आिथक गित
नह हो सक । बाबर क हमले ने तो बड़ी-बड़ी जायदाद क मािलक को िम ी म िमला िदया और उनक ब को
रोटी क एक-एक टकड़ क िलए मोहताज बना िदया; जैसािक नानकजी क इस कथन से प ह—
‘साहाँ सुरित गवाइआ रिग तमासै चाइ।
बाबरवाणी िफ र गई कइ न रोटी खाइ॥’
(पृ. ४१७)
देश क इस शोचनीय आिथक हालत, समाज म या अमीरी-गरीबी, आिथक लूट-खसूट और शोषण,
आजीिवका क त कालीन चिलत साधन और यवसाय को वाणीकार गु एवं संत -भ ने सू मता से देखा
और महसूस िकया तथा एक ऐसी आदश आिथक यव था कायम करने का उपदेश िदया िजसम लूट-खसोट और
शोषण क बजाय य अपनी मेहनत से कमाए और खून-पसीने क कमाई म से कछ िह सा (गु गोिबंद िसंह
क िनदशानुसार, आय का कम-से-कम दसवाँ अंश) गरीब और ज रतमंद लोग क सहायताथ दान-पु य कर—
‘घाल खाए िकछ हिथ देइ। नानक राह पछाणिह सेइ॥’
‘गु ंथ सािहब’ क वाणी म अनेक थान पर त कालीन आिथक यव था का िच ण िमलता ह। ीराग म
उ रत वाणी म गु नानक प बताते ह िक यापार म झूठ, फरब, छल, कपट एक आम बात थी और यापारी
लोग झूठ क ही कमाई खाते थे—
‘कढ़ी रािस कढ़ा वापा ।
क बोिल करिह आहा ॥’
(पृ. ४७१)
आिथक प से म यकालीन समाज दो ेिणय म बँटा आ था—अमीर और गरीब। यादा धन थोड़ से अमीर
क जेब म चला जाता था और थोड़ा धन ब त गरीब क िह से आता था। अमीर भोग-िवलास म डबे ए थे तो
गरीब कज क बोझ से दबे ए थे और रोटी क िलए तरसते थे। अमीर इस बात से िचंितत था िक कह उसका धन
चोरी न हो जाए, तो गरीब अभाव क कारण िचंितत था—
‘िजसु ि िह ब तु ितसै ि िह िचंता।
िजसु ि िह थोरी सु िफर मंता।
दु िवव था ते जो मु ा सोइ सुहला भालीअै॥’
(पृ. १०१९)
अमीर घमंडी हो चुक थे और गरीब मायूस तथा िनराश। कछ मदद पाने क उ मीद म गरीब अगर िकसी अमीर
क पास जाता था तो वह (अमीर) उससे पीठ फर लेता था। कबीरजी का कथन ह—
‘जउ िनरधनु सरधन क जाइ।
आगे बैठा पीिठ िफराइ॥’
(पृ. ११५९)
त कालीन मुगल राज म कर (ट स) णाली घोर भेदभावपूण थी। िहदु को उ पीि़डत करने क िलए उनक
धािमक काय पर कर (जिजया) वसूल िकया जाता था। ‘आसा दी वार’ म उ ेख आता ह िक नदी पार करने क
िलए भी ा ण और उसक गाय पर कर लगाया जाता था। यहाँ तक िक देवता और मंिदर पर भी कर लगता
था—
‘देवल देवितआ क लागा ऐसी क रित चाली।’
(पृ. ११९१)
उस समय भी खेतीबाड़ी मुख आिथक यवसाय और आजीिवका का मु य साधन थी। इसम भी दो ेिणयाँ थ
—जम दार और िकसान। पहला पूँजीपित एवं शोषक था और दूसरा गरीब एवं शोिषत, जो जम दार क जमीन पर
खेती करता था। हर फसल पर जम दार को जमीन का कर चुकाने क िलए िकसान को समय पर फसल काटनी ही
पड़ती थी, चाह फसल क ी हो या पक —
‘जैसे िकरसाणु बोवै िकरसानी।
कािच पक बािढ परानी॥’
(पृ. ३७५)
अथशा म किष क बाद यापार को मुख आिथक गितिविध माना गया ह। यापा रक णाली म एक बड़ा
यापारी होता ह िजसक आगे कई छोट यापारी होते ह। बड़ यापारी का गोदाम माल से भरा रहता ह, लेिकन
िकसी िव त य क िसफा रश पर ही वह अपना माल िब क िलए छोट यापारी को देता ह। आिथक े
क इस भौितक यथाथ का ‘गु ंथ सािहब’ म ब त सुंदर आ या मक पांतरण िकया गया ह। इसम बड़ा यापारी
ई र ह और जीव छोट यापारी। िबचौला गु ह और भु का नाम बड़ यापारी का माल ह—
‘मनु मंद तनु साजी बा र।
इस ही मधे बसतु अपार॥
इस ही भीत र सुनीअत मा ।
कवनु बापारी जा का ऊहा िवसा ॥
नाम रतन को को िबउहारी।
अंमृत भोजन कर आहारी॥
मनु तनु अरपी सेव करीजै।
कवन सु जुगित िजतु क र भीजै॥
पाइ लगउ तिज मेरा तेर।
कवनु सु जनु जो सउदा जोर॥
महलु साह का िकन िबिध पावै।
कवन सु िबिध िजतु भीत र बुलावै॥
तूँ वड सा जा क कोिट वणजार।
कवनु सु दाता ले संचार॥’
(पृ. १८०-८१)
जो य धम क माग पर चलते ए ईमानदारी से ा क गई धनरािश से यापार करता ह, उसका यापार
िदन-रात फलता-फलता ह और उसक कमाई भी सची होती ह—
‘सचा सा सचे वणजार। सचु वणंजिह गुर हित अपार॥
सचु िवहाझिह सचु कमाविह सचो सचु कमाविणआ॥’
(पृ. ११७)
िनठ े लोग ारा उदरपूित और िवलािसता क िलए चोरी करने और जुआ खेलने क आदत क गु वाणी म
कड़ी िनंदा क गई ह। ये दु कम इनसान क नैितक िगरावट क तीक ह। नानकजी क अनुसार, चोर और जुआरी
मृ यु क बाद घानी म पीसे जाने क भयंकर सजा क भागीदार होते ह—
‘चोर जार जूआर पीढ़ घाणीअै।’
(पृ. १२८८)
इन चार मुख प क अलावा ‘गु ंथ सािहब’ म कित और पयावरण तथा सां कितक जीवन का भी अनेक
थान पर उ ेख िमलता ह। आज दुिनया म पवन (वायु), जल और धरती पर आए िदन घातक हार हो रह ह।
कदरत क इन सबसे बड़ी और मू यवा देन क अ त व पर खतरा मँडरा रहा ह। अतः दुिनया क सभी वै ािनक,
सरकार तथा सं थाएँ धरती, वायु व जल को बचाने क अपील तथा आ ान कर रह ह। पर गु नानक ने तो पाँच
सौ वष पूव पवन को गु , पानी को िपता एवं धरती को माता का सव स मानजनक दरजा देकर मानव जाित क
िलए मानो यह अमर संदेश छोड़ िदया था िक इनका स मान तथा संर ण भी तु ह वैसे ही करना ह जैसे माँ, बाप
और गु का—
‘पवन गु पाणी िपता माता धरित महतु।
िदवसु राित दुइ दाई दाइआ खेलै सगल जगतु॥’
(जपुजी)
कालगणना म दो महीन क एक ऋतु और छह ऋतु का एक वष माना गया ह। ‘गु ंथ सािहब’ म भी सभी
छह ऋतु और बारह देशी महीन (बारहमाह) का उ ेख आ ह और हर महीने क उ ेख म उस समय क
आ या मक वातावरण का भी िज िकया गया ह। उदाहरण क िलए, ये -आषाढ़ क ी म ऋतु म जब धूप
और गरमी अपने चरम िशखर पर होती ह, जीवा मा भु पी पित क िवयोग म तड़पती और याकल होती ह—
‘ ी म ित अित गाखड़ी जेठ अखाड़ घाम जीउ।
ेम िबछो दुहागड़ी ट न करी राम जीउ॥’
(पृ. ९२८)
ऋतु क उपयु मवार वणन क अित र वषा और वसंत ऋतु का ‘गु ंथ सािहब’ म िवशेष एवं अ यंत
मनमोहक वणन आ ह। राग गउड़ी माझ म उ रत िन निलिखत शबद म गु रामदास फरमाते ह िक सावन क
फहार पड़ते ही मानो चार ओर अमृत बरस जाता ह, मन पी मोर ककने लगता ह, भ पी चाि क (चकवे)
क मुँह म नाम पी वाित बूँद पड़ जाती ह और उसे सहज ही भु क ा हो जाती ह—
‘साविण वरसु अमृंतु जगु छाइआ जीउ।
मनु मो क िकअड़ा स दु मुिख पाइआ।
ह र अंमृत वुठढ़ा िमिलआ ह र गाइआ जीउ।
जन नानक ेिम रतंना॥’
(पृ. १७३)
सभी ऋतु म वषा ऋतु का सबसे अिधक आिथक मह व ह। िकसान क सारी मेहनत का फल वषा ऋतु पर
िनभर करता ह। वषा अ छी हो तो अनाज, कपास आिद क फसल भी भरपूर होती ह। धरती पर वषा का पानी
पड़ता ह तो गाय-भस क िलए घास-फस का चारा भी पया मा ा म पैदा होता ह और दूध-दही, घी-म खन
पया मा ा म ा होने क संभावना बल हो जाती ह। सं ेप म कहा जाए तो इनसान क आजीिवका और
अ त व दोन वषा ऋतु पर िनभर करते ह। ‘गु ंथ सािहब’ म वषा क इस मह वपूण पहलू का भी ब त सुंदर
वणन आ ह—
‘वुठ (वषा होने पर) होइअै होइ िबलावलु जीआ जुगित समाणी।
वुठ अंनु कमादु कपाहा सभसै पड़दा होवै।
वुठ घा चरिह िनित सुरही साधन दही िबलोवै॥’
(पृ. १५०)
इसी कार वसंत ऋतु का भी आ या मक संदभ म कई जगह वणन आ ह। गु अमरदास का कथन ह िक जो
ाणी सदा गु क िश ा पर मनन करता ह और हरदम ई र का मरण करता ह उसका जीवन सदा वसंत ऋतु
क तरह फ त रहता ह—
‘सदा बसंतु गुर स दु वीचार।
राम नामु राखै उरधार॥’
(पृ. ११७३)
िजस कार वसंत ऋतु क आने पर वन पितयाँ िखल उठती ह उसी कार भु-परमा मा म अपना यान लगाने
पर जीव क मन म आनंद छा जाता ह—
‘बसंतु चि़ढआ फली बनराइ।
एिह जीअ जंत फलिह ह र िचतु लाइ॥’
(पृ. ११७७)
कित क वन पित वणन म चंदन का काफ गुणगान िकया जाता ह; य िक वह अपने संपक म आनेवाली
येक व तु को सुगंिधत कर देता ह। संभवतः उसक इसी गुण क कारण आ या मक का य क रचनाकार ने साधु
क उपमा अकसर चंदन से दी ह। गु अजनदेव का कथन ह िक िजस कार आ रड और पलाश जैसे मामूली और
सुगंधरिहत वृ भी चंदन क संपक म आकर सुगंिधत हो जाते ह, उसी कार संत-महा मा क शरण म आने पर
पापी भी िनमल हो जाता ह—
‘ह र ह र नामु सीतल जलु िधआव ,
ह र चंदन वासु सुगंध गंधईआ।
िमिल सत संगित परम पदु पाइआ,
मै िहरड पलास संिग ह र बुहीआ॥’
(पृ. ८३४)
पशु-पि य क वभाव को मा यम बनाकर मानव वभाव क गुण-अवगुण का िच ण भी ‘गु ंथ सािहब’ म
कई जगह िमलता ह। उदाहरण क िलए, राग सुही म उ रत एक शबद म गु अमरदास बताते ह िक िजस कार
साँप को दूध िपलाने पर भी उसका जहर समा नह होता, उसी कार दु वभाववाला य साधु जन क
संगित म आकर भी अपना बुरा वभाव नह बदलता—
‘सपै दुधु पीआईअै अंद र िवसु िनकोर।’
(पृ. ७५५)
सां कितक प म देश क िविभ पव और योहार , खेल-कद एवं मनोरजन क साधन , पहनावे आिद का
उ ेख भी ‘गु गं◌थ सािहब’ म िविभ आ या मक संदभ म िमलता ह। ाचीन काल से ही पव और योहार
भारतीय सां कितक जीवन का अिभ अंग रह ह। पव- योहार न कवल उनसे जुड़ िद य पु ष क िश ा को
पुनः याद करने और उनपर अमल करने का संक प लेने का अवसर दान करते ह ब क सामािजक एकता और
मेल-िमलाप को भी बढ़ावा देते ह। अिधकांश योहार का ‘गु ंथ सािहब’ म आदश करण िकया गया ह।
उदाहरण क िलए, वसंत क पव को आदश प देते ए गु अंगददेव का कथन ह िक वसंत का पव तो कवल
उन य क िलए आनंदमय ह िजनक पित उनक साथ ह। िजन य क पित िवदेश म ह, वे (वसंत ऋतु म भी)
िदन-रात िवरह क आग म जलती ह—
‘नानक ितना बसंतु ह िजिन घर विसआ कतु।
िजन क कत िदसापुरी से अहिनिस िफरिह जलंत॥’
(पृ. ७९१)
इसी कार रग-गुलाल क पव होली का भी गु वाणी म उ ेख आया ह। गु अजनदेव का कथन ह िक संत क
सेवा ही स ी होली ह—
‘होली क नी संत सेव रगु लागा अित लाल देव।’
(पृ. ११८०)
गु से ा होनेवाले ान को ‘गु ंथ सािहब’ म ब त ऊचा थान िदया गया ह। गु नानकदेव फरमाते ह िक
गु - ान म न कवल तीथया ा जैसा मह व ह, ब क यह दस पव (अ मी, चौदस, अमावस, पूिणमा, सं ांित,
उ रायण, दि णायण, सूय हण, चं हण, यितपात) और दशहरा (िवजयादशमी) भी ह—
‘गुर िगआनु साचा थानु तीरथु दस पुरब सदा दसाहरा।’
(पृ. ६८७)
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मुख वािणयाँ
‘गु थं सािहब’ का संपादन करते समय गु अजनदेव ने वाणी को ब त ही सु यव थत ढग से मब
िकया। सव थम गु जी ने वयं अपने पिव हाथ से ंथ सािहब क थम पृ पर मूल मं (जपुजी का ारिभक
अंश) ‘0 सितनामु करता पुरखु िनरभउ िनरवै अकाल मूरित अजूिन सैभं गुर सािद’ िलखा। इसक बाद
सारी वाणी भाई गुरदास ने िलिपब क । जपुजी क बाद ‘सोदर’ शीषक क अधीन ‘रिहरास’ क वाणी को रखा।
इसक बाद ‘सोिहला’ क वाणी दज क गई। इसम पाँच शबद ह।
इसक प ा तीस राग म वाणी दज क गई। इकतीसव जैजावंती राग को, िजसम गु तेगबहादुर क वाणी
रिचत ह, गु गोिबंद िसंह ने ‘गु ंथ सािहब’ म शािमल िकया। राग म ीराग को सबसे पहले रखा गया।
राग क प ा ोक सहसकित रखे गए। इसक बाद गाथा फ ह और चौबोल दज िकए गए। त प ा भ
कबीर और शेख फरीद क ोक रखे गए। ोक क बाद गु अजनदेव क सवैये और भाट (पंजाबी उ ारण
भ ) ारा दूसर, तीसर, चौथे और पाँचव गु क उपमा म उ ारण िकए गए सवैये अंिकत ह। इसक प ा
‘ ोक वारां ते वधीक’ शीषक क अधीन गु नानक, गु अमरदास, गु रामदास, गु अजनदेव और गु
तेगबहादुर क ोक दज ह। िफर मुंदावणी महला पाँच रखकर भोग डाला गया और ोक दज करक (परमा मा
क ित) कत ता भाव कट िकया गया। सबसे अंत म रागमाला दज क गई और इस कार ‘गु ंथ सािहब’ क
रचना संपूण ई।
‘गु ंथ सािहब’ म कल एक हजार चार सौ तीस पृ ह। पृ ानुसार इसम वाणी क संयोजन क यव था और
म िन निलिखत कार से ह—
पृ १ से ८ : जपुजी
पृ ८ से १२ : सोद रिहरास
पृ १२ से १३ : सोिहला
पृ १४ से १३५३ : राग म रची गई िसख गु , अ य भ तथा संत क वािणयाँ
पृ १३५३ से १३६० : ोक सहसकित महला १ (४ ोक) एवं ोक सहसकित महला ५ (६७ ोक)
पृ १३६० से १३६१ : गाथा, महला ५ (२४ पद)
पृ १३६१ से १३६३ : फ ह महला ५ (२३ पद)
पृ १३६३ से १३६४ : चौबोल महला ५ (११ पद)
पृ १३६४ से १३७७ : ोक भ कबीर (२४३ ोक)
पृ १३७७ से १३८४ : ोक शेख फरीद (१३० ोक)
पृ १३८५ से १३८९ : सवैये ी मुखवाक (महला ५, २० सवैये)
पृ १३८९ से १४०९ : भाट क सवैये (१२३ सवैये, िजसम गु नानक तथा गु अंगददेव क मिहमा म १०-१०,
गु अमरदास क मिहमा म २२, गु रामदास क मिहमा म ६० तथा गु अजनदेव क मिहमा म २१ सवैये शािमल
ह)
पृ १४१० से १४२६ : ोक वारां ते वधीक। इसम गु नानक क ३३, गु अमरदास क ६७, गु रामदास क ३०
तथा गु अजनदेव ारा उ ारण िकए गए २२ ोक सिहत कल १५२ ोक दज ह।
पृ १४२६ से १४२९ : इसम ोक महला ९ शीषक क अधीन गु तेगबहादुर क कल ५७ ोक दज ह।
पृ १४२९ : मुंदावाणी महला ५ शीषक क अधीन २ ोक।
पृ १४३० : रागमाला। इसम ‘गु ंथ सािहब’ म यु सभी राग को सुंदर प ब शैली म सूचीब िकया
गया ह।

जपुजी सािहब
‘गु ंथ सािहब’ का शुभारभ गु नानकदेव ारा रिचत वाणी ‘जपुजी’ से होता ह। यह अड़तीस पउि़डय (पद)
क एक उ क रचना ह। इसम दो ोक ह। जपुजी म िसख धम और दशन का सार-त व िनिहत ह। जपुजी को
‘गु ंथ सािहब’ म सव थम थान िदया गया ह। अमृतपान क दी ा क िलए अमृत तैयार करते समय पढ़ी
जानेवाली पाँच वािणय म जपुजी क वाणी सबसे पहले पढ़ी जाती ह। रचना क ारभ म भु क गुण का बड़
सुंदर, सरल, संि और प श द म वणन िकया गया ह—
‘‘0(एक कार) सितनामु करता पुरखु िनरभउ,
िनरवै अकाल मूरित अजूिन सैभं गुर सािद॥’’
—अथा ई र एक ह और वह सभी ािणय म समान प से या ह। उसका नाम सदा क िलए अटल ह। वह
इस सृि का कता ह। वह िनभय ह, यानी उसे िकसीका डर नह । उसका िकसीक साथ वैर-िवरोध नह । वह काल
क बंधन से मु ह। यानी वह शा त ह और मौत उसे नह मार सकती। वह योिन (गभ) म नह आता। वह
वयंभू ह और अपने ही काश से कािशत ह। ऐसा ई र कवल गु क कपा से ा होता ह।
जपुजी का उ े य ई र को पाने क िलए य न करना और अंततः उसे ा करना ह। रचना म गु नानकदेव
वयं ही िज ासु क िलए पहले यह न करते ह िक स य क ा कसे होगी और अगली पं य म वयं ही
उसका उ र भी दे देते ह। यथा—
‘िकव सिचआरा होईअै, िकव कड़ तुट पािल।’
( न)
—अथा अपने भीतर भु-परमा मा क काश क िलए म यो य कसे बनूँ, अपने अंदर बने ए झूठ क आवरण को
कसे हटाऊ? अगली पं म इसका जवाब देते ए नानकजी फरमाते ह—
‘ किम रजाई चलणा, नानक िलिखआ नािल।’
—अथा भु क इ छा क अनुसार चलने से ही झूठ का आवरण दूर हो सकता ह। यह इ छा जीव क ज म क
समय ही िलख दी जाती ह।
जपुजी क पहली से सातव पउड़ी म गु नानकदेव तीथया ा, तीथ ान आिद जैसे बाहरी आडबर को यथ
बताते ह और फरमाते ह िक इन ि या से सच क ा नह हो सकती। नानकजी का कथन ह िक यिद म
(जीव) परमा मा को भा गया तो समझो, मने (जीव ने) सभी तीथ का ान कर िलया—
‘तीरथ नावा जे ितस भावा।’
परमा मा को पाने क िलए गु नानकदेव संसार को छोड़कर वन , पहाड़ , गुफा या कदरा म जा बसने क
िसफा रश नह करते। वे पलायनवाद क िव ह और कहते ह िक ई र को पाने क िलए संसार छोड़कर जाने
क कोई ज रत नह । तु हारी सुरित परमा मा से जुड़ गई तो तु ह सभी लोक का ान हो जाएगा और आवागमन
क च से भी मु िमल जाएगी—
‘मँनै सुरित होवै मिन बु ।
मँनै सगल भवण क सुिध॥
मँनै मुिह चोटा न खाई।
मँनै जम क सािथ न जाइ॥’
यही नह , ह र क भ नाम वण से िस , पीर, देवता तथा नाथ क पदवी ा कर लेते ह। नाम वण से
मौत का डर समा हो जाता ह। नाम वण से स य, संतोष और ान क ा होती ह और अड़सठ तीथ क
ान का फल िमलता ह—
‘सुिणअै िस पीर सु र नाथ।
सुिणअै धरित धवल आकास॥
सुिणअै दीप लोअ पाताल।
सुिणअै पोिह न सक कालु॥
नानक भगता सदा िवगास।
सुिणअै दूख पाप का नासु॥’
नानकजी का ई र एक ह, लेिकन उसक नाम असं य ह। उसक घर तथा वास भी असं य ह। उसक असं य
खंड तथा देश, सागर तथा निदयाँ अपार ह। उसक उपासक भी असं य ह। वह परमा मा िकसीक इ छा क
अधीन नह ह। संसार म सबकछ उसक आदेश से होता ह। वह परमा मा सदा अटल रहनेवाला ह—
‘असंख नाव, असंख थाव।
अगंम अगंम, असंख लोअ।
असंख कहिह िस र भा होइ॥
×××
जो तुधु भावै, साई भली कार।
तू सदा सलामित, िनरकार॥’
नानकजी का परमा मा ब त िवशाल दयवाला ह। उसक देन का कोई अंत नह । वह युग -युग से जीव को
देता आ रहा ह। जीव लेते-लेते थक जाते ह, लेिकन वह देते ए कभी नह थकता। देता जाता ह, देता जाता ह—
‘देदा दे लैदे थिक पािह।
जुगा जुगंत र खाही खािह॥’
जपुजी म नानकजी यह भी बताते ह िक अगर तु हार पास सतयुग से लेकर किलयुग तक चार युग क उ से
भी दोगुनी उ हो, नव खंड क लोग तु ह जानते ह , तु हार साथ चलते ह , चाह तु हारा िकतना ही सुंदर नाम हो
और सार जग म तु हारी क ित हो, िफर भी अगर उसक ि म तुम न जँचे तो सबकछ बेकार ह—
‘जे जुग चार आरजा, होर दसूणी होइ।
नवा खंडा िविच जाणीअै, नािल चलै सभु कोइ।
चंगा नाउ रखाइक, जसु क रित जिग लेइ।
जे ितसु नद र न आवई, त वात न पूछ क॥’
जपुजी म नानकजी इस संसार म मनु य क अ छ-बुर कम क फल को भी बड़ सुंदर श द म प करते ह। वे
फरमाते ह िक मनु य जो बीज (कम) बोता ह, उसक फसल (फल) भी वह खुद काटता ह। यानी हर ाणी को
उसक कम क अनुसार फल िमलता ह—
‘आपे बीिज, आपे ही खा ।’
सृि क आकार क बार म भी नानकजी जपुजी म सभी न और शंका का समाधान तुत करते ह। वे
बताते ह िक इस धरती क नीचे भी लाख धरितयाँ ह और यमान आकाश से ऊपर भी कई आकाश ह। इन ात
एवं अ ात खंड को जानने क यास म ाणी थककर हार गए—
‘पाताल पाताल लख, आगासा आगास।
ओड़क ओड़क भािल थक वेद कहिन इक वात॥’
िजस परमा मा ने इस सृि क रचना क ह, वही इसे जान सकता ह। और िकसीम यह साम य नह —
‘जा करता िसरठी कउ साजे, आपे जाणै सोई।’
ऐसे प रपूण परमा मा का नाम सुिमरन करनेवाले य इस संसार म अपनी मेहनत सफल कर जाते ह। परमा मा
क घर न कवल वे खुद उ ल मुख लेकर प चते ह ब क अपने संग रहनेवाले कई अ य लोग का भी वे
उ ार कर जाते ह। यही जपुजी का अंितम संदेश ह—
‘िजिन नामु िधआइआ, गए मसकित घािल।
नानक ते मुख उजले, कती छ ी नािल॥’

सुखमनी सािहब
इस वाणी क रचना पाँचव गु ी गु अजनदेव ने क । ‘गु ंथ सािहब’ म यह वाणी ‘गउड़ी सुखमनी महला ५’
शीषक क अधीन दज ह, अथा गउड़ी राग म पाँचव गु क रचना सुखमनी।
सुखमनी म कल चौबीस अ पिदयाँ ह। हर अ पदी म आठ-आठ पउि़डयाँ ह। येक अ पदी से पूव एक-
एक ोक दज ह। इस रचना म स यं, िशवं और सुंदर का बड़ सुंदर ढग से संयोजन िकया गया ह। रचना म उस
स य का बखान ह जो अमर ह, भु प ह, क याणकारी ह, मंगलमयी ह, अिवनाशी ह, वयं मु और संसार
को मु िदलानेवाला ह।
येक अ पदी क शीष म दज ोक सुखमनी क संपूण आशय क अनु प ह। थम ोक म ही यह बताया
गया ह िक िजस य क मन और मुख दोन म सच बसता ह और जो परम सच क अलावा िकसी और पर टक
नह रखता, वह य स ा ानी और पूण मनु य ह—
‘मिन साचा मुिख साचा सोइ।
अवर न पेखै ऐकस िबन कोइ।
नानक इह ल ण िगआनी होइ॥’
सुखमनी क पहली अ पदी म गु अजनदेव नाम सुिमरन का मह व बताते ह। दूसरी अ पदी म वे मनु य क
मृ यु क बाद िदवंगत आ मा क शांित क िलए िकए जानेवाले ि या-कम आिद को यथ बताते ह और फरमाते ह
िक आिखर म कवल ई र का नाम ही मनु य क काम आएगा और उसक साथ जाएगा। तीसरी अ पदी म गु जी
ने ‘जाप ताप िगआन सिभ िधआन...नही तुिल राम नाम बीचार’ कहकर ई र क नाम को सव और
अतु य बताया ह। चौथी अ पदी म अकत मनु य को भु क उसपर कपा से अवगत करवाया गया ह।
पाँचव अ पदी का भावाथ ह िक जो मनु य ई र से िवमुख हो जाता ह वह हर जगह िवफल होता ह। छठी
अ पदी म मनु य को कत ता भाव म जीवन जीने का संदेश िदया गया ह। अ पदी सं या सात और तेरह म
स संगित क मिहमा बताई गई ह। दसव अ पदी म परमा मा क यापकता और उसक ि क िविवधता का
वणन िकया गया ह। यारहव अ पदी म गु अजनदेव ई र क श य का वणन करते ह और बताते ह िक
उसक श य क कोई सीमा नह ह। बारहव से बीसव अ पदी म गु जी उस ि या (अथा आ मसमपण)
का िव तार से वणन करते ह िजसक मा यम से य गु क कपा ा कर सकता ह। और आिखर म अ पदी
सं या इ स से चौबीस म क िनगुण व प से सगुण (सृि जो उसी क रचना ह) प धारण करने
का िज ह, लेिकन उसका वा तिवक और थायी प वह िनगुण प ही ह िजसक बार म नानकजी ने जपुजी म
कहा ह—
‘थािपआ न जाइ क ता न होई, आपे आिप िनरजन सोइ।’
—अथा वह परमा मा न तो थािपत िकया जा सकता ह और न िकसी अ य ारा बनाया जा सकता ह। वह
वयंभू और माया क भाव से मु ह।
नाम सुिमरन का मह व, साधु, गु और ानी क तुित, संत क िनंदक और िवरोिधय क आलोचना,
अहकार और उसक दु प रणाम, सृि का अनंत प सुखमनी क मु य िवषय ह। इन मु य िवषय क पुि क
िलए गु अजनदेव इस कित म कई सहायक िवषय को भी साथ लेकर चले ह।
सुखमनी म भ माग क साधक-आराधक क िलए साधु, ानी, वै णव, संत, सेवक, भगत, ह रजन इ यािद
जैसे कई नाम योग िकए गए ह। गु जी ने हरक नाम क चा रि क गुण क प या या क ह। जैसे—संत क
ल ण बताते ए वे फरमाते ह िक उसे हरदम परमे र याद रहता ह िजसक कारण वह अटल और सदा सुखी
रहता ह—
‘िजस कउ ह र भु मिन िचित आवै।
सो संतु सुहला नही डलावै॥’
उसका जीवन हर प और पहलू से स य होता ह। वह िम या ढ ग नह रचता। वह य क बजाय परमा मा
का आ ाकारी होता ह। वह मन म तु छ लालसा नह रखता। िन काम भ उसका येय होता ह। अपने इ ह गुण
क कारण वह परमा मा क िनकटता ा कर लेता ह—
‘मनु बेचै सितगुर क पािस।
ितसु सेवक क कारिज रािस।
सेवा करत होइ िनहकामी।
ितस कउ होत परापित सुआमी॥’
सुखमनी म आगे चलकर गु अजनदेव फरमाते ह िक इस अव था को ा आ साधक अपनी साधना क बल
पर वयं तो ज म-मरण क बंधन से मु होता ही ह, अपनी संगत म आए अ य ािणय को भी मु करवा लेता
ह—
‘आिप मु ु मु ु कर संसा ।’
‘पंिडत’ का परपरागत प से चिलत अथ ह धमशा का ाता। लेिकन सुखमनी म गु अजनदेव पंिडत क
एकदम नई प रभाषा देते ह और फरमाते ह िक पंिडत वह ह जो सव थम अपने मन को जगाता ह तथा अपने भीतर
ही राम को खोजता ह और उसका अमृत रस पीता ह। वह कवल िकताबी ानवाला पंिडत नह होना चािहए।
ब क उसम इतनी सूझ होनी चािहए िक वह सू म से थूल क यापकता को समझ सक, अथा सृि क कता
और उसक रचना को एक करक देख।े ान का चार- सार करते समय वह धम-जाित, कल-गो क आधार पर
मनु य-मनु य क बीच भेदभाव न कर; ब क चार वण ( ि य, वै य, शू और ा ण) को सम ि और
स मान क साथ िश ा दान कर। ऐसा आचरण करनेवाला पंिडत हमेशा स मान का पा होता ह और आवागमन
क च से मु हो जाता ह—
‘सो पंिडतु जो मनु बोधै।
राम नामु आ म मिह सोधै॥
राम नाम सा रस पीवै।
उसु पंिडत क उपदेिस जग जीवै॥
ह र क कथा िहरदै बसावै।
सो पंिडतु िफ र जोिन न आवै॥
बेद पुरान िसिमित बूझै मूल।
सूखम मिह जाने अ थूल॥ ु
च वरना कउ दे उपदेस।ु
नानक उस पंिडत कउ, सदा आदेस॥ ु ’
इसी कार सुखमनी म गु अजनदेव ‘वै णव’ क भी िव तृत या या करते ह। वे बताते ह िक स ा वै णव
वही ह िजसपर ह र स ह। वह माया क लोभ-लालसा से हमेशा िनिल रहता ह। वह िन काम भाव से कम
करता जाता ह और कभी फल क इ छा नह रखता। वह कवल भु-परमा मा क भ और क तन म म न रहता
ह। वह सबक ित न और िवनीत रहता ह। वह खुद भी नाम जपता ह और दूसर को भी नाम जपाता ह तथा परम
पद को ा करता ह—
‘बै ो सो िजसु ऊप र सु स ।
िब क माइआ ते होइ िभ ॥
करम करत होवै िनहकरम।
ितसु बै ो का िनरमल धरम॥
का फल क इ छा नह बाछ।
कवल भगित क रतन संिग राचै॥
मन तन अंत र िसमरन गोपाल।
सभ ऊप र होवत िकरपाल॥
आिप ढ़ अवरह नामु जपावै।
नानक उ बै ो परमगित पावै॥’
सुखमनी म ‘ भु क िसमरन’, ‘ह र का नाम’, ‘िजह सािद’, ‘साध क संिग’, ‘ िगआनी’, ‘संत क दूखन’,
‘संत का िनंदक’, ‘संत का दोखी’ इ यािद श द का बार-बार योग करक गु अजनदेव ने िसमरन, साधु और संत
क उ मिहमा और ‘िसमरउ िसम र िसम र सुख पावउ, किल ेस तन मािह िमटावउ’ क आनंदाव था
तक प चने म उनक मह व को रखांिकत िकया ह। सं ेप म, सुखमनी का मूल संदेश यह ह िक हर मानव म
परमा मा बसा आ ह। लेिकन माया क मोह म फसा-धँसा एवं अहकार म अकड़ा-जकड़ा मनु य उसे देख नह
पाता। नाम सुिमरन से जब अ ान का कोहरा छट जाता ह और अहकार पी मैल उतर जाती ह तो परमा मा से
सा ा कार हो जाता ह।
आसा दी वार
‘गु ंथ सािहब’ म संकिलत गु नानकदेव क वािणय म ‘आसा दी वार’ का मुख थान ह। चूँिक ारभ से ही
यह वाणी राग ‘आसा’ म गाई जाती रही ह, इसिलए इसका नाम ‘आसा दी वार’ पड़ा।
आसा दी वार म कल चौबीस पउि़डयाँ ह। हर पउड़ी से पहले ोक दज ह। ोक तथा पउि़डयाँ दोन को
िमलाकर कल ितरासी पद ह। येक गु ार म आसा दी वार का क तन ितिदन ातःकाल रागी ज थ (यानी
क तन का गायन करनेवाली मंडली) ारा रागमय ढग से िकया जाता ह। वाणी क भाषा पंजाबी ह। आसा दी वार
का गायन-क तन गु नानकदेव क समय से ही ारभ हो गया था। वाणी क साथ गायन िकए जानेवाले ोक म
उस समय क समाज म या पाखंड, अंधिव ास, कमकांड, ि़ढय और दिकयानूसी िवचार तथा था क
कड़ी भ सना क गई ह।
आसा दी वार म गु नानकदेव ने जपुजी क तरह एक सव यापक परमा मा का प िचि त िकया ह। इस वाणी
का शुभारभ भी िसख धम क मूल मं 0(एक कार) सितनामु करता पुरखु िनरभउ िनरवै अकाल मूरित
अजूनी सैभं गुर सािद से होता ह। आसा दी वार म नानकजी क परमा मा क नाम चाह अनेक ह , पर व प म
वह एक ह। यह परमा मा राजा का राजा, सवश मा और जनसाधारण का साथी ह। वह अपने ही काश से
कािशत होता ह। वयं ही परमा मा ने कदरत क रचना क और िफर उस कदरत म आसन लगाकर वह अपने ही
हाथ से रची कदरत का रग-तमाशा देख रहा ह—
‘आपीनै आपु सािजउ, आपीनै रिचउ नाउ।
दुयी कदरित साजीअै, क र आसणु िडठो चाउ॥’
वह परमा मा सवश मा ह और वायु, लाख निदयाँ, अ न, धरती, चाँद, सूरज इ यािद सभी उसक भय म
रहकर अपना-अपना काय करते ह। येक जीव परमा मा क यान म ह और वह हर जीव को काम-धंधे म लगाए
रखता ह। उस परमा मा क कहर क िसफ एक ि बादशाह और सुलतान को दर-दर का िभखारी बना सकती ह

‘वड वडा वड मेदनी, िस र िस र धंधे लाइदा।
नद र उपठी जे कर, सुलताना घा कराइदा।
द र मंगिन िभख न पाइदा॥’
उस असीम परमा मा क गुण भी असीम ह। अ पबु वाला मनु य उसक गुण का बखान नह कर सकता—
‘वड क आँ विडआईआँ, िकछ कहणा कहणु न जाइ।’
भारतीय दशन म ान और मु क िलए गु को सव थान और मह व िदया गया ह। आसा दी वार म भी
गु नानकदेव इस बात पर जोर देते ह िक सतगु क िबना परमस ा और स य क ा नह हो सकती। मनु य क
भटकते मन को िसफ गु क ान से ही थरता ा होती ह। सतगु क शरण म आने पर मनु य क मन से मोह
आिद िवकार दूर हो जाते ह और िच परमा मा क साथ जुड़ जाता ह। और इस कार उसक मु का माग
श त हो जाता ह—
‘सितगु िमिलअै सदा मु ह, िजिन िवच मोह चुकाइआ।
उ म इह बीचा ह, िजिन सचे िसउ िचतु लाइआ।
जग जीवनु दाता पाइआ॥’
जो मनु य गु क िश ा को अपने जीवन म नह उतारते और अहकार क वशीभूत होकर अपने आपको चतुर
और सयाना समझते ह, उनक थित ऐसी होती ह जैसे खेत म जले ए ितल क पौधे पड़ ए होते ह। ऐसे पौधे
फलते भी ह और फलते भी ह, पर इनक फिलय म ितल क जगह राख ही होती ह—
‘नानक गु न चेतनी, मिन आपणै सुचेत।
छट ितल बूआड़ िजउ, सुंवे अंद र खेत।
खेतै अंद र छिटआ, क नानक सउ नाह।
फलीअिह फलीअिह बपुड़, भी तन िविच सुआह॥’
नानकजी गु पर बार-बार बिलहार जाते ह, जो साधारण मनु य को अपना उपदेश देकर (मनु य से) देवता बना
देता ह। संसार म अगर सौ चं मा और हजार सूय चढ़ जाएँ तो भी वे गु क ान क काश क बराबरी नह कर
सकते। गु क िबना संसार म घनघोर अँधेरा ह—
‘बिलहारी गुर आपणे, िदउहाड़ी सद वार।
िजिन माणस ते देवते क ए, करत न लागी वार॥
जे सउ चंदा उगविह, सूरज चढ़िह हजार।
ऐते चानण होिदआँ, गुर िबनु घोर अँधार॥’
आसा दी वार म गु नानकदेव यह भी बताते ह िक इस संसार म एक ई र क अलावा राजा, जा, महल,
सोना, चाँदी, काया (शरीर), कपड़ा, सगे-संबंधी और दो त िम या तथा नाशवा ह। लेिकन यह जानकर भी जीव
अटल परमा मा को भूलकर इन िम या व तु म िल रहता ह और उनम डब जाता ह—
‘कढ़ राजा कढ़ परजा, कढ़ सभु संसा ।
कढ़ मंडप, कढ़ माढ़ी, कढ़ बैसणहा ।
कढ़ सुइना, कढ़ पा, कढ़ पैनणहा ।
कढ़ काइआ, कढ़ कप , कढ़ पु अपा ।
कढ़ मीआ, कढ़ बीबी, खिप होए खा ।
कि़ढ कढ़ ने लगा, िवस रआ करता ।
िकस नािल क चै दो ती, सभु जगु चलणहा ।
कढ़ िमठा, कढ़ मािखउ, कढ़ डोबै पू ।
नानक वखाणै बेनती, तुधु बाझु कढ़ो कढ़॥’
तो िफर झूठ क बोलबालेवाली इस थित म स य या ह? उसक पहचान तथा ा कसे हो? इसका समाधान
नानकजी आगे चलकर देते ह और फरमाते ह िक न र व तु क बजाय भु-परमा मा क साथ नेह लगाने से,
सम त जीव पर दया करने और अपनी नेक कमाई म से ज रतमंद लोग क िलए दान-पु य करने से बाहरी तीथ
क बजाय अपनी आ मा क तीथ म मन िटकाने से सच क ा होती ह। और जो य इस िविध से सच को
ा कर लेते ह, उनक सभी रोग और दुःख का इलाज ई र वयं बन जाता ह और उनक दय से सभी पाप-
िवकार धो डालता ह।
जीव और जग क िलए जो कछ भु-परमे र ने तय िकया ह, वह घिटत होकर रहगा। संसार म सभी जीव
अपने-अपने ल य और उ े य को ा करने क िलए जोर लगाते ह। लेिकन उ ह हािसल वही होता ह जो ई र
को मंजूर ह। उस ई र क दरबार म न ऊची जाित क दलील काम आती ह और न िकसी कार का जोर चलता
ह। ब क वहाँ तो वही े सािबत होते ह िजनका जीवन धािमक रहा ह—
‘वदी सु वजिग नानका, सचा वैखै सोइ।
सभनी छाला मारीआ, करता कर सु होइ।
अगै जाित न जो ह, अगे जीउ नवे।
िजन क लेखै पित पवै, चंगे सेई कइ॥’
आसा दी वार म ‘िसंमल खु सराइरा...’ ोक म गु नानकदेव सेमल क वृ का उदाहरण देकर िवन ता
को प करते ह। वे फरमाते ह िक िवन ता कवल िदखावे क िलए नह , ब क मन से होनी चािहए। नानकजी
बताते ह िक सेमल का पेड़ ब त सीधा, ऊचा और मोटा होता ह। पर या कारण ह िक जो प ी उसका फल खाने
क आशा म उसपर आकर बैठते ह वे िनराश होकर िबना फल खाए ही उड़ जाते ह। कारण यह ह िक उसका फल
फ का और वादहीन होता ह और उसक प े भी िकसी काम नह आते। गु देव फरमाते ह िक िवन ता म ही
असली िमठास ह—और िवन ता सभी गुण एवं अ छाइय का सार ह। इसी ोक म नानकजी आगे बताते ह िक
संसार म हर जीव अपने वाथ क िलए झुकता ह। दूसर क िहत क िलए कोई नह झुकता। कवल िसर झुकाने से
कछ नह होगा। झुकना वही वीकाय ह जहाँ मन झुक। लेिकन झुकने-झुकने म भी अंतर ह। दोषी य दोगुना
झुकता ह, ठीक वैसे ही जैसे िशकारी िहरण को मारने क िलए झुकता ह। मनु य एक ओर तो खोट तथा अशुभ
काय कर लेिकन दूसरी ओर धम थान पर जाकर शीश नवाए और माथा टक, यह सब िन फल ह और इससे कछ
भी हािसल नह होने वाला—
‘सीिस िनवाइअै िकआ थीअै, जा रदै कसुधे जािह।’
नानकजी क काल म देश ा णी रीितय और नीितय क जाल म फसा आ था। आ मक ान क बजाय
आडबर और ितलक, जनेऊ जैसे बाहरी तीक का यादा जोर था। लोग इन तीक को ही धम-कम समझ बैठ
थे। नानकजी ने इसका खंडन िकया। आसा दी वार क पं हव पउड़ी क पूव ‘लख चोरीआ लख जारीआ लख
कढ़ीआ लख गिल...’ नामक ोक म वे जनेऊ धारण क िनरथकता का वणन करते ए फरमाते ह िक चोरी,
झूठ, गाली, ठगी और पाप-कम से भर ए शरीर को जनेऊ धारण करने से भला या आ मक आनंद ा होगा।
भु का यश गायन ही असली जनेऊ ह। कपास का काता आ और ा ण ारा धारण करवाया गया जनेऊ जब
पुराना पड़ जाता ह तो उसे उतारकर फक िदया जाता ह तथा उसक जगह दूसरा जनेऊ धारण िकया जाता ह।
गु देव आगे फरमाते ह िक अगर इस जनेऊ म जोर होता अथा अगर वह आ मा क िलए उपयोगी होता तो इस
कार न टटता—
‘...होई पुराणा सुटीअै, भी िफ र पाईअै हो ।
नानक तगु न तुटई, जे तिग होवै जो ॥’
इसी कार ‘जे मोहाका घ मुह...’ ोक म गु नानकदेव िपतृदान जैसी ि या को िन फल बताते ए
फरमाते ह िक परलोक म मनु य को जीवन म कमाए ए कम का ही फल िमलता ह। अगर कोई य ठगी या
चोरी से हािसल िकए गए धन से ा ण को दान देकर अपने िपतर का उ ार करवाने क बात सोचता ह तो यह
उसक भूल ह; ब क ऐसा करक वह अपने िपतर को भी चोर बनाता ह।
आसा दी वार म नानकजी यह भी बताते ह िक मन से झूठ और कपटी य अगर अड़सठ तीथ का ान भी
कर ले तो भी उसक मन से कपट क मैल दूर नह होगी। िसफ शारी रक ान से मनु य पिव नह हो सकता।
असली पिव वह ह िजसक मन म ई र का िनवास हो गया ह।
गु नानकदेव ने भारतीय समाज म ब े क ज म क समय ‘सूतक’ (एक तरह क अपिव ता) मानने क
अंधिव ासी परपरा क भी आलोचना क और फरमाया िक मनु य क िलए असली सूतक तो लोभ, झूठ, पराई ी
का संग-साथ, िनंदा और चुगली ह। िजस य ने गु क िश ा को समझ िलया, वह सूतक क मजाल म
नह फसता।
ई र क दरबार म वीकार होने क िलए नानकजी वाणी क िमठास को आव यक मानते ह। वे फरमाते ह िक
फ क या ेमहीन वचन बोलने से मनु य का तन और मन भी फ का ( ेमहीन) हो जाता ह। खे मनु य को लोग
खा कहकर ही बुलाते ह और उनम उसक बार म राय भी खी ही बनती ह। ऐसे मनु य ई र क दरबार म भी
दु कार जाते ह और उनक मुँह पर लानत पी थूक पड़ती ह। फ क वचन बोलनेवाला य मूख कहलाता ह
और हर जगह उसे िनरादर िमलता ह।
आसा दी वार म गु नानकदेव यह भी बताते ह िक इस न र संसार म कोई भी य थायी नह ह। हर
य को अपनी बारी आने पर संसार से जाना (मरना) पड़ता ह। इसिलए िजस मािलक ने हम ज म और जीवन
िदया उसे हम कभी नह भूलना चािहए। इसी पउड़ी म नानकजी मनु य को आ मिनभर बनने का उपदेश देते ए
कहते ह िक ाणी को अपने सभी काय खुद अपने हाथ से सँवारने अथा पूर करने चािहए—
‘जो आइआ सो चलसी, सभु कोई आई वारीअै।
िजसक जीअ ाण हिह, िकउ सािहबु मन िवसारीअै।
आपण हथी आपणा, आपे ही काज सवारीअै॥’
अंितम पउड़ी ‘वड क आ विड आईआ...’ म नानकजी फरमाते ह िक उस सव ई र क गुण का वणन
नह िकया जा सकता। वह सृि का मािलक ह और सभी जीव को रोजी देता ह। इसिलए उस परमे र क
अलावा िकसी और क आगे अरदास ( ाथना) करना यथ ह। वह परमा मा अपनी इ छा क अनुसार काय करता
ह।
आनंद सािहब
इस वाणी क रचना तीसर गु ी गु अमरदास ने क । ‘गु ंथ सािहब’ म यह वाणी राग रामकली म दज ह।
इसम कल चालीस पद ह। गु अमरदास ने इस वाणी म ‘आनंद’ श द क िव तृत या या क ह। िसख ारा
रोजाना िनयम से पढ़ी जानेवाली (िनतनेम) पाँच वािणय म आनंद सािहब भी शािमल ह। अ य चार वािणयाँ ह—
जपुजी, जाप सािहब, सवैये और रिहरास।
मोह-माया और िवषय-िवकार क बंधन म जकड़ा मनु य सगे-संबंिधय और िम से हास-प रहास, सांसा रक
क ित और झूठी वाहवाही, सुंदर व तु और वािद यंजन क भोग-उपभोग को ही असली आनंद समझता ह।
लेिकन ये सब भौितक पदाथ ह। इनसे शारी रक तृ तो हो सकती ह, आ मा क आ या मक यास नह िमट
सकती। गु अमरदास बताते ह िक जब तक सांसा रक पदाथ से मनु य का मोह नह छटता और टटता तब तक
उसक आ मा तृ नह हो सकती। और जब तक आ मा तृ नह होगी तब तक उसम ई र से िमलन करानेवाला
आ मक रस पैदा नह होगा। जो मनु य काम, ोध, लोभ, मोह तथा अहकार नामक पाँच दु िवकार का गुलाम
ह, उसम आ मक रस पैदा नह हो सकता। आ मक रस क ा क िलए इन िवकार से छटकारा पाना ज री
ह।
भु क नाम सुिमरन और सेवा से मन क िवकार का नाश होता ह, उसम फ ता आती ह और अंतरा मा म
वसंत ऋतु क तरह सुगंध महक उठती ह तथा खुशी क बाजे बजने लगते ह—
‘आनंद भइआ मेरी माअे, सितगु म पाइआ।
सितगु त पाइआ सहज सेती, मिन वजीआ वाधाईआ।
राग रतन परवार परीआ, शबद गावण आईआ॥’
गु अमरदास फरमाते ह िक आनंद क दाता परमा मा से िमलन का एकमा तरीका यह ह िक मनु य अपने
आपको गु क आगे अिपत कर दे, गु क बताए गए माग पर चले और परमा मा का गुणगान करता रह। गु देव
यह भी बताते ह िक चतुराई और चालाक से िकसी भी य ने आ मक आनंद को ा नह िकया। अथा
भीतर से तो मनु य का मन िवषय-िवकार म जकड़ा रह और बाहर से वह भु भ का ढ ग कर, ऐसा नह हो
सकता। यिद कोई िसख दोषमु प म गु क सम हािजर होना चाहता ह, यिद िसख यह चाहता ह िक िकसी
दोष क कारण उसे गु क सामने शिमदा न होना पड़ तो उसका एकमा तरीका यही ह िक वह स े िदल से गु
क चरण म टक लगाए—
‘जे को िसखु, गु सेती सनमुखु होवै।
होवै त सनमुखु िसखु कोई, जीअ रह गुर नालै॥’
मौका चाह खुशी का हो या गमी का, िसख धम क हर धािमक अनु ान का समापन आनंद सािहब क छह
पउि़डय (पहली पाँच और अंितम चालीसव ) क साथ होता ह। आनंद सािहब क थम पउड़ी म गु से िमलन क
खुशी अंिकत ह। दूसरी पउड़ी म आनंद देनेवाले समथ ह र क साथ रहने क िलए मन को समझाया गया ह और यह
बताया गया ह िक ह र क साथ रहने से दुःख का िवनाश होता ह और सभी काय उसक कपा से संप होते ह।
तीसरी पउड़ी म परमे र से िमलाप करवानेवाले गुण क ब शश क िलए िवनती ह। चौथी पउड़ी म संत जन को
शबद म लीन रहने क सलाह दी गई ह। पाँचव पउड़ी म बताया गया ह िक नाम जपनेवाल को यह सौभा य
परमा म लोक से ही ा होता ह।
अगली पउि़डय म समु य प म यह बताया गया ह िक नाम क कपा कसे ा होती ह। मनु य म स ी
लगन हो तो गु वयं मनु य का माया-मोह पी जाल काटकर उसका आचरण सँवारता ह। परमे र क म को
मानने क िलए तन, मन और धन सबकछ स पने का समपण भाव उ प होता ह।
आनंद सािहब का िनचोड़ यह भी ह िक ह र अग य और अगोचर ह। कोई भी य उसका अंत नह पा अथवा
जान सका। गु क कपा से उस ह र क नाम को ा कर लेनेवाले भ क चाल आम सांसा रक लोग से िभ
हो जाती ह। ह र क माग पर चलना एक किठन काय ह। लेिकन गु क िश ा पर अमल करक मनु य ह र क माग
को ा कर लेता ह—
‘भगता क चाल िनराली।
चाला िनराली भगताह करी, िबखम मारिग चलणा।
लबु लोभु अहका तिज तृ ा, ब तु नाही बोलणा॥’
ह र ही मनु य क शरीर म योित रखता ह और तब मनु य संसार म आता ह। इस योित क वेश करने से शरीर
वयं ह रमंिदर हो जाता ह। इस मंिदर म ह र का यश गायन करने से रोग, शोक और दुःख का नाश होता ह। यह
योित सदा ह र का दीदार करती रह। इसक िबना बाक सब दीदार यथ ह। कान सदा ह र का नाम सुनते रह,
य िक इससे जीवन पिव होता ह—
‘ऐ ने मे रहो, ह र तुम मिह जोित धरी,
ह र िबनु अव न देख कोई।
ह र िबनु अव न देख कोई,
नदरी ह र िनहािलआ।
×××
ऐ वण मे रहो,
साचै, सुनणै नो पठाए।
साचै, सुनणै नो पठाए,
सरी र लाए, सुण सित बाणी॥’

सोद रिहरास
‘सोद ’ गु नानकदेव क एक िस वाणी ह, जबिक रिहरास िनतनेम क एक संपािदत क ई वाणी ह। ‘गु
ंथ सािहब’ म सोद क वाणी मामूली शबद भेद क साथ तीन थान पर दज ई िमलती ह। सव थम यह वाणी
जपुजी क स ाईसव पउड़ी क प म, दूसरी बार गु अजनदेव ारा सं या-पाठ क िलए संपािदत रिहरास क
वाणी क प म और तीसरी बार आसा राग क आरभ म िमलती ह। ऐसा माना जाता ह िक पहले गु अजनदेव ने
‘गु ंथ सािहब’ का संपादन करते समय सोद क साथ आठ शबद और जोड़कर सं या-पाठ म वृ क और
िफर गु गोिबंद िसंह क समय म या उनक बाद पंथ- मुख ने सोद को िनतनेम क या गु योित क ितिनिध
एवं ामािणक वाणी िन त करने क िलए गु गोिबंद िसंह ारा रिचत ‘चौपाई’ को भी इसम शािमल कर िदया।
सोद का यह िव तृत और वतमान प ही आज रिहरास क वाणी कहलाती ह। इसका पाठ ितिदन सं याकाल म
सूय ढलने क बाद िकया जाता ह।
सोद का अथ ह—परमा मा का दरबार और रिहरास का भाव ह—आ या मक माग क पूँजी। इस पूँजी को
ा करक जीव संसार पी अंधकार से बच सकता ह और ई र क कपा ा करक अपने तन-मन को
फ त कर सकता ह।
‘सोद रिहरास’ का समूचा भाव और संदेश यह ह िक ई र क िवशाल और यापक अ त व को वीकार
करक अगर जीव उस परमा मा क म और इ छा क आगे वयं को समिपत करक अपने आपको आ या मक
सं कार क ा क िलए पा सािबत करता ह तो उस मनु य का तन और मन आनंद से िखल उठता ह।
सोद क ारभ म ही वाणी क नाम क अनु प गु नानकदेव ने परमा मा क भ य दरबार का िच ण िकया ह।
इस दरबार म संगीत और उसक सभी साज, देवतागण, साधु, सदाचारी, पंिडत, ऋिष-मुिन, सुंदर ना रयाँ, भ ,
यो ा, सूरमे और अ य त व मौजूद ह, जो उसक दरबार क शोभा बढ़ाते ह और उसक मिहमा का गुणगान
करते ह—
‘सो द तेरा कहा सो घ कहा, िजत बिह सरब सँभाले।
वाजे तेर नाद अनेक असंखा, कते तेर वावण हार।
कते तेर राग परी िसउ कहीअिह, कते तेर गावणहार।
गाविन तुधनो पवणु पाणी बैसंत , गावै राजा धरमु दुआर।
गाविन तुधनो िचतु गु ु िलिख जाणिन िलिख िलिख धरमु बीचार।
×××
होर कते तुधनो गाविन, से मै िचित न आविन,
नानक िकआ बीचार॥’
‘सो द ’ (उसका दरबार) क बाद ‘सो पुरखु’ (यानी अकाल पु ष परमा मा) रिहरास क वाणी का दूसरा मुख
अंग ह। ‘सो द ’ म परमा मा क दरबार का वणन ह तो ‘सो पुरखु’ म खुद परमा मा क गुण का िज ह। यह
शबद गु रामदास ारा रिचत ह। वह पु ष (परमा मा) ‘िनरजन’ अथा माया से मु ह। वह ‘दातारा’ अथा
धन, मान, पद, ित ा देनेवाला ह। वह अग य ह। वह िनभय और भ का भांडार ह। वह सृि को बनानेवाला
और अटल ह। वह सभी दुःख का िवनाश करता ह। सब जीव म िव मान होने क कारण वह वयं मािलक भी ह
और सेवक भी। िकसी जीव को दाता और िकसीको िभखारी बना देना भी उसका अजब तमाशा ह। उसे पाने क
िलए अनिगनत जीव तप-साधना करते ह, अनेक जीव मृितयाँ और शा पढ़ते ह। वह परमा मा सब जीव क
दय क बात जानता ह—
‘सो पुरखु िनरजनु, ह र पुरखु िनरजनु, ह र अगमा अगम अपारा।
सिभ िधआविह सिभ िधआविह तुधु जी, ह र सचे िसरजणहारा॥
सिभ जीअ तुमार जी, तूँ जीआ का दातारा।
ह र िधआव संत जी, सिभ दूख िवसारण हारा॥
तूँ घट घट अंत र, सरब िनरत र जी, ह र एको पुरखु समाणा।
इिक दाते, इिक भेखारी जी, सिभ तेर चोज िवडाणा॥’
रिहरास म राग आसा म महला ५ क अधीन दज शबद ‘भअी परापित मानुख दे रीआ...’ म जीव को भु
सुिमरन ारा मानव जीवन को सफल करने का उपदेश िदया गया ह। इस शबद म गु अजनदेव फरमाते ह िक ह
भाई, तु ह सुंदर मानव शरीर ा आ ह। परमा मा से िमलने का तेर पास यही अवसर ह। अगर तूने उससे िमलने
का कोई उ म नह िकया तो तेर सभी काय बेकार ह। माया क वश होकर तेरा ज म यथ जा रहा ह। न तूने जप-
तप िकया, न धम क कमाई क , न सेवा क और न भु को जाना। भु क चरण म ाथना कर और कह—ह
ई र, म नीचकम जीव और तु हारी शरण म आया । मेरी लाज रखो।
रिहरास क चौपाई शबद म गु गोिबंद िसंह ने परमा मा क उस अिसधुज और खड़गकत प का वणन िकया ह
जो अपने भ क र ा और दु , श ु तथा ले छ का संहार करता ह—
‘दीन बंधु दु टन क हता। तुम हो पुरी चतुर दस कता॥’
वाणी क अंितम दो ोक म गु अजनदेव भ क उ िवन ता का वणन करते ए फरमाते ह िक ह भु, म
तेर उपकार क क नह जान सका। म गुणहीन और मुझम कोई गुण नह । िफर भी तेरी कपा- ि से मुझे गु
ा आ और मेरा तन-मन िखल उठा।

सोिहला
इस वाणी क तीन नाम चिलत ह—सोिहला, क रतन सोिहला और आरती सोिहला। इसम कल पाँच शबद ह। इनम
थम तीन शबद महला १ शीषक क अधीन गु नानकदेव क ह। महला ४ क अधीन चौथा शबद गु रामदास का
ह। अंितम शबद महला ५ शीषक क अधीन गु अजनदेव का ह।
सोिहला क वाणी का पाठ रात को सोने से पहले िकया जाता ह। इसक अलावा िकसी य क मृ यु हो जाने
पर उसक पािथव शरीर क अंितम सं कार क बाद भी सोिहला क वाणी का पाठ िकए जाने क मयादा ह।
‘जै घर क रित आखीअै, कत का होइ बीचारो...’ रिहरास क वाणी का पहला शबद ह। इस शबद म गु
नानकदेव जग क चलायमान प का िच पेश करते ए समझाते ह िक इस संसार म कोई भी य थायी नह
ह। सबको एक-न-एक िदन जाना ह। इसिलए ाणी को स संग म जाकर िनभय होकर ई र क मिहमा का गायन
करना चािहए।
‘िछअ घर, िछअ गुर, िछअ उपदेस...’ नामक दूसर शबद म परमा मा क अखंडता का वणन ह। इसम बताया
गया ह िक भले ही ई र क क ित का बखान करनेवाले छह शा (सां य, याय, वैशेिषक, योग, मीमांसा और
वेदांत) क कता (क प, गौतम, कणाद, पतंजिल, जैिमनी और यास) और उनका उपदेश अलग-अलग ह। भले ही
ई र क प अलग ह, पर अंितम स ा एक ही ह।
तीसरा शबद ‘‘गगन मै थालु, रिव चंदु दीपक बने, ता रका मंडल, जनक मोती...’ ह। इसम गु जी ने
थाली म दीपक जलाकर आरती करने क ाचीन और चिलत परपरा से हटकर आरती का नया प िचि त िकया
ह। गु देव का कथन ह िक सारा आकाश ही ई र क आरती का थाल ह। सूय और चाँद उस थाल म सजे ए
दीपक ह। तार क समूह थाल म रखे ए बेशक मती मोितय क समान ह। मलय पवत क ओर से आनेवाली वायु
मानो धूप-अगरब ी का काय कर रही ह। पवन चँवर डला रहा ह और समूची वन पित मानो योित पी भु क
आरती म फल बरसा रही ह। आवागमन क च से मु िदलानेवाले ह ई र, कित म तेरी िकतनी सुंदर आरती
हो रही ह और ऐसा लगता ह मानो नगाड़ बज रह ह।
इसी शबद म आगे गु देव सभी जीव म एक ई र क योित या होने का वणन करते ह और फरमाते ह िक
ह ई र, तु हार चरण कमल पी मकरद को पाने क िलए मेरा मन ललचाता ह। इस पपीह को अपनी कपा का
जल दान करो, िजसे पाकर मेर मन म तु हार नाम का वास हो जाए।
सोिहला का चौथा शबद ह, ‘कािम ोिध, नग ब भ रआ, िमिल साधु खंडल खंडा ह...’। गु रामदास
इस शबद म बताते ह िक मनु य का शरीर काम, ोध, अहकार जैसे िवकार से भरा आ ह और कवल भु का
नाम सुिमरन ही उसे इन िवकार और आवागमन क च से मु िदला सकता ह।
‘करउ बेनंती सुण मेर मीता, संत टहल क बेला...’ नामक पाँचव और अंितम शबद म इसक रचियता गु
अजनदेव मनु य को जैसे िझंझोड़कर कहते ह िक िदन-रात बीतने क साथ-साथ तु हारी उ भी घटती जा रही ह।
संतजन क सेवा और भु का नाम सुिमरन करक अगला ज म सँवारने का यही समय ह। इसिलए िजस काय
(सेवा और सुिमरन) क िलए तुम इस संसार म आए हो, उसे पूरा करो।
q
पौरािणक नाम और संदभ
गु पद परपरा क ि से ‘गु ंथ सािहब’ भले ही िसख का धािमक गु ह, पर व प, संदेश और ई र क
संबोधन क ि से वह संपूण मानव जाित क आ या मक िवरासत ह। यह एक सवसाझा गं◌थ ह। इस पिव
ंथ क धमिनरपे व प क एक अ ुत िवशेषता यह ह िक इसम परमा मा क िलए िवशु िसख संबोधन
‘वािहगु ’ िसफ सोलह बार आया ह। इसक िवपरीत िहदू धम ारा संबोिधत ई र क िविभ चिलत नाम
सैकड़ से लेकर हजार क सं या म आए ह। उदाहरण क िलए, इसम ‘ह र’ नाम सबसे अिधक यानी आठ हजार
तीन सौ चौवालीस बार आया ह। दूसर नंबर पर ‘राम’ का नाम ह, जो दो हजार पाँच सौ ततीस बार यु आ ह।
इसी कार ‘ भु’ श द एक हजार तीन सौ इकह र बार, ‘गोपाल’ श द चार सौ इ यानबे बार, ‘ठाकर’ श द दो
सौ सोलह बार, ‘मुरा र’ श द स ानबे बार और ‘सितनाम’ श द उनसठ बार इ तेमाल आ ह। इसक अलावा
गोिवंद, माधव, पार , परमे र, िनरकार, िनगुण, चतुभुज, जगदीश, गुसया (गोसाई), करतार, कता जैसे अ य
िहदू संबोधन क अित र गरीबनवाज, अ ाह, करीम, रहीम, रब, खुदा जैसे इसलामी संबोधन भी अनेक जगह
यु ए ह।
िहदू पुराण और अ य धम ंथ से जुड़ी महा िवभूितय तथा अ य िविश पा और संग का भी ‘गु ंथ
सािहब’ म अनेक थान पर उ ेख आया ह। इसम उ िखत कछ मुख पौरािणक नाम ह—धु्रव, ाद,
पांचाली ( ौपदी), क ण, राम, ल मण, सीता, बाली, हनुमा , अह या, अजािमल, िवदुर, जरासंध, दुय धन, रावण,
परशुराम, नारद, िहर यकिशपु, गिणका, र बीज, सुदामा इ यािद। वाणीकार गु अथवा संत -भ ने इन नाम
अथवा इनसे संबंिधत संग को अपनी वाणी म उपयु थान पर पक अथवा उदाहरण क प म यु िकया
ह। इसक पीछ उनका उ े य एक ही था—भ क र ा, दु का संहार, पितत का उ ार करनेवाले परमा मा
क सवश मा , सव यापक, क णामय और भ व सल प का िच ण।
भारत क पौरािणक सािह य म रामायण और महाभारत दो सबसे अिधक लोकि य गं◌थ ह, िजनक पा और
संग अ छाई और बुराई दोन ही संदभ म भारतीय जनमानस और लोक जीवन को सिदय से भािवत करते आए
ह। इन दोन ंथ से ‘गु ंथ सािहब’ म अनेक पा और संग का सुंदर उ ेख आ ह। राजा जनक क कल-
पुरोिहत गौतम ऋिष क प नी अह या का ीरामचं जी ारा उ ार ‘रामायण’ का एक मुख संग ह। भु क
उ ारक और मु दाता गुण क वणन म इस संग का ‘गु ंथ सािहब’ म कई जगह वणन आया ह। उदाहरण
क िलए, पृ ९८८ पर दज नामदेव क वाणी म उ ेख ह—
‘गौतम ना र अहिलआ तारी, पावन कतक तारीअले।’
लंका नरश रावण क कद से सीता को मु करवाने क िलए ीरामचं जी ारा समु पर पुल बनाने, लंका पर
चढ़ाई करने, रावण का संहार करने और उसक भाई िवभीषण को राज देने क घटना का भी ‘गु ंथ सािहब’ म
वणन आया ह। इसी िवशेष संदभ म समु पर पुल िनमाण क दौरान प थर क तैरने का भी वणन भु क कपा क
प म आ ह—
‘गुरमुिख बािधउ सेतु िबधातै।
लंका लूटी दैत संतापै॥
रामचंिद मा रउ अिहरावणु।
भैदु बभीखण गुरमुिख परचाइणु॥
गुरमुिख साइ र पाहण तार।
गुरमुिख कोिट तेतीस उ ार॥’
(पृ. ९४२)
राजस ा क नशे म चूर रावण को तीक बनाकर नानकजी अपनी वाणी म ािणमा को समझाते ह िक अगर
उसने अहकार नह छोड़ा तो उसका भी वही दुःखद प रणाम होगा जो रावण का आ—
‘भूलो राविण मु धु अचेित।
लूटी लंका सीस समेित॥’
(पृ. २२४)
आम मनु य वभाव से डाँवाँडोल कितवाला होता ह। मामूली सा दुःख या िवपि आने पर ही घबरा जाता ह
और ई र क ित उसका िव ास डगमगाने लगता ह। ऐसे मनु य को सां वना देने क िलए नानकजी अपनी वाणी
म इ , परशुराम, ीरामचं जी, सीता, ल मण, रावण, पांडव , जनमेजय, बाली आिद का उदाहरण देकर समझाते
ह िक इ ह भी िविभ कारण से दुःख भोगने पड़। तुम अकले ही दुःखी नह हो। सारा संसार दुःखी ह—
‘सहसर दाम दे इ रोआइआ।
परसुराम रोवै घ र आइआ॥
×××
रोवै रामु िनकाला भइआ।
सीता लखमणु िवछि़ड गइआ॥
रोवै दहिस लंक गँवाइ।
िजिन सीता आदी डउ वाइ॥
रोविह पाडव भए मजूर।
िजन क सुआमी रहत हदू र॥
रोवै जनमेजा खुई गइआ।
एक कारिण पापी भइआ॥
×××
बाली रोवै नािह भता ।
नानक दुखीआ सभु संसा ॥’
(पृ. ९५४)
क णावतार ‘महाभारत’ का एक अित िस च र ह। ‘गु ंथ सािहब’ क वाणी म ीक ण क जीवन से
जुड़ अनेक संग का उ ेख आया ह। क ण और गोिपय क लीला का इस पिव ंथ म खास िज आया ह
और ीक ण क िलए भ व सल, अनाथ क नाथ गोिवंद तथा गोपीनाथ संबोधन योग िकए गए ह—
‘ह र आपे कान उपाइदा मेर गोिवदा, ह र आपे गोपी खोजी जीउ।’
(पृ. १७४)
तथा
‘भगित वछलु अनाथह नाथे, गोपीनाथु सगल ह साथे।’
(पृ. १०८२)
ीक ण ारा दुय धन क आमं ण को ठकराकर गरीब िवदुर क घर लवण रिहत साग खाना ‘महाभारत’ क
एक अित िस कथा ह। इस कथा का संकत भी ‘गु गं◌थ सािहब’ म इस पं म आया ह—
‘िबद दासी सुतु भइउ, पुनीता सगले कल उजार।’
(पृ. ९९९)
इसी कार ज क र ा क िलए ीक ण ारा गोवधन पवत को धारण करने का संग भी ‘गु ंथ सािहब’ म
िन निलिखत प म दज ह—
‘गुरमित क गोवरधन धार।
गुरमित साइ र पाहण तार॥’
(पृ. १०४१)
कौरव क भरी सभा म दुःशासन ारा ौपदी (पांचाली) का चीरहरण संग ‘महाभारत’ क एक खास कथा
ह। असहाय और बेबस ौपदी सहायता क िलए गुहार करती रही; लेिकन िकसीम इतना साहस नह था िक वह
सामने आकर दुःशासन क कक य को रोकता। िनराश ौपदी ने अंत म ीक ण को सहायता क िलए पुकारा। भु
क ऐसी कपा ई िक ौपदी क साड़ी लंबी होती चली गई। साड़ी ख चते-ख चते दुःशासन थक गया और उसक
साँस फल गई, लेिकन वह ौपदी को िनव न कर सका। ई र क कपा से उसक लाज बच गई। ‘गु ंथ
सािहब’ म इस संग का वणन िन निलिखत श द म आ ह, जो परमा मा को भ क लाज क र क क प म
िचि त करता ह—
‘पंचाली कउ राज सभा मिह रामनाम सुिध आई।
ता को दूखु ह रउ क णामै अपनी पैज बढाई॥’
(पृ. १००८)
तथा
‘दुहसासन क सभा ौपती अंबर लेत उबारीअले।’
(पृ. ९८८)
रा स एवं देवता ारा सागर मंथन भारतीय पौरािणक सािह य क एक मह वपूण कथा ह। ‘महाभारत’ तथा
‘रामायण’ म इस कथा का िव तृत वणन िमलता ह। इस कथा से जुड़ कई संग यथा मंदराचल क मथानी से
समु का मंथन, चौदह र न क ा , समु से िनकलने क कारण ल मी को सागर पु ी होने का गौरव ा
होना, रा क उप-कथा आिद का ‘गु ंथ सािहब’ म भी उ ेख आ ह। लेिकन उसम ये संग िसफ
आ या मक िवषय व तु क पुि क िलए पक तथा ांत क प म िलये गए ह—
‘पाणी िवच रतन उपंने मे क आ माधाणी।’
(पृ. १५०)
तथा
‘िजिन समुंदु िवरोिलआ क र मे मधाणु।
चउदह रतन िनकािलअनु क तोनु चानाणु॥’
(पृ. ९६८)
बालक धु्रव और ाद ‘िव णुपुराण’ और ‘भागवतपुराण’ क दो मुख पा रह ह, िजनक अडोल भ को
आज भी धािमक वचन आिद म ांत क प म तुत िकया जाता ह। ‘गु ंथ सािहब’ म दज भ कबीर
क वाणी म साधक को उसी तरह भु का नाम जपने क सलाह दी गई ह िजस तरह धु्रव और ाद ने जपा—
‘राम जपउ जीअ ऐसे ऐसे।
धू्र िहलाद जिपउ ह र जैसे॥’
(पृ. ३३७)
इसी कार गु अजनदेव क वाणी म भी संकत आता ह िक िकस कार पाँच वष का अनाथ बालक अपनी
भ क बल पर अटल और अमर हो गया—
‘पाँच बरख को अनाथ ू बा रक, ह र िसमरत अमर अटार।’
(पृ. ९९९)
ाद क र ा क िलए ई र का जलते तंभ म नरिसंह प म कट होने और िहर यकिशपु का संहार करने
का लोकि य संग भी ‘गु ंथ सािहब’ म भु क भ र क गुण क वणन क संदभ म िन निलिखत श द म
आया ह—
‘संत ाद क पैज िजिन राखी, हरनाखसु नख िबद रउ।’
(पृ. ८५६)
तथा
‘ भु नाराइण गरब हारी।
ाद उ ार िकरपा धारी॥’
(पृ. २२४)
िहर यकिशपु क अलावा रावण, सह बा , मधु-कटभ, जरासंध, मिहषासुर, कालयवन, र बीज और कालनेिम
इ यािद भारतीय पौरािणक सािह य क मुख आसुरी (रा सी) पा ए ह, िज ह ने अपनी स ा या श क घमंड
और नशे म चूर होकर लोग पर काफ अ याचार िकए। दुःखी दय क पुकार सुनकर ई र अलग-अलग प म
कट ए और उन दु का संहार करक लोग को उनक अ याचार से छटकारा िदलाया। ‘गु ंथ सािहब’ क
वाणी म अहकार क गंभीर प रणाम क चेतावनी क संदभ म इन सबक नाम का उ ेख िमलता ह—
‘दुरमित हरणाखसु दुराचारी।
भु नाराइण गरब हारी॥
×××
सहसबा मधुक ट मिहखासा।
हरणाखसु ले नख िबधासा॥
×××
जरासंिध कालजमुन संहार।
र बीजु कालुनेमु िबदार॥’
(पृ. २२४)
नाम सुिमरन क ारा ा होनेवाली भु क कपा क उ मिहमा और मह व को भावशाली ढग से दरशाने
क िलए ‘गु ंथ सािहब’ म दज गु और संत-भ क वाणी म ऐसे कई पौरािणक च र का वणन आया ह
िजनक पाप अिधक थे, पु य कम या शू य। िफर भी संकट क घड़ी म स े मन से जब उ ह ने ई र को याद
िकया तो ई र ने उनक र ा क और वे मु को ा ए। गिणका (काशी क एक वे या िजसका नाम चं वती
था), क जा (कस क मािलनी, जो ीक ण क िलए फल आिद लाती थी), अजािमल (एक ा ण, जो वे या क
जाल म फसकर हो गए थे), िवदुर, उ सेन इ यािद ऐसे मुख पौरािणक पा ह िजनका ‘गु थं सािहब’ म
कई थान पर उ ेख आ ह—
‘देवा पाहन तारीअले, राम कहत जन कस न तर।
तारीले गिनका िबनु प किबजा।
िबआिध अजामलु तारीअले।
चरन बिधक जन तेऊ मुकित भए, हउ बिल बिल िजन राम कह।
दासी सुत जनु िबद सुदामा, उ सैन कउ राज दीए।
जपहीन तपहीन कलहीन कमहीन, नामे क सुआमी तेऊ तर॥’
(पृ. ३४५)
तथा
‘ह र को नामु सदा सुखदाई।
जा कउ िसम र अजामलु उध रउ, गनका गित पाई॥’
(पृ. १००८)
तथा
‘सूआ पढ़ावत गिनका तरी।’
(पृ. ८७४)
तथा
‘किबजा उ री अंगु ट धार।’
(पृ. ११९२)
राजा क संग म अगर बुर तथा अ यायी शासक क िलए िहर यकिशपु, कस अथवा रावण को ांत क प
म पेश िकया गया ह तो अ छाई, स यवािदता और दानशीलता क िलए राजा ह र ं का उ ेख िकया गया ह।
दानी, धम और स यवादी राजा होने क बावजूद ह र ं को एक चंडाल क घर िबकना पड़ा तथा गुलामी करनी
पड़ी। राजा ह र ं क संदभ म गु वाणी बताती ह िक कम क फल से िकसीका छटकारा नह ह। वह तो भुगतना
ही पड़ता ह—
‘ितिन हरीचंिद ि थमी पित राजे कागिद क म न पाई।’
(पृ. १३४४)
तथा
‘हरीचंदु दानु कर जसु लेवै।
िबनु गुर अंत न पाइ अभेवै॥’
(पृ. २२४)
‘ कदपुराण’, ‘नारदपुराण’ और ‘महाभारत’ का एक अित चिचत एवं लोकि य पा ह िच गु , िजसक बार म
यह मा यता ह िक वह मनु य क पाप-पु य का िहसाब-िकताब रखता ह। पुराण म उसक उ पि ाजी क शरीर
से मानी गई ह और उसे काय थ भी कहा गया ह। ‘गु ंथ सािहब’ म दो संदभ म िच गु का उ ेख आ ह।
पहले संदभ म बुर तथा अनैितक काय करनेवाले मनु य को चेतावनी दी गई ह िक मानव जीवन म वह भले ही
सबसे िछपकर परदे क ओट म अनैितक काय कर ले, पर मरने क बाद वह इन कम को िच गु से नह िछपा
सकगा—
‘देइ िकवाड़ अिनक पड़दे मिह, परदारा संग फाक।
िच गु ु जब लेखा मागिह, तब कउणु पड़दा तेरा ढाक॥’
(पृ. ६१६)
अ य भु क भ का िच गु से बचाव क क पना क गई ह और यह बताया गया ह िक अगर ाणी पर
ई र क कपा हो जाए तो उसक पाप भी पु य म बदल जाते ह—
‘िच गु ु सभ िलखते लेखा।
भगत जना कउ ट न पेखा॥’
(पृ. ३९३)
आम पौरािणक मा यता ह िक संसार से पाप व पािपय क िवनाश क िलए तथा धम क र ा क िलए परमा मा
मनु य क प म सृि म अवतार धारण करता ह और िपछले तीन युग —सतयुग, ेता और ापर म ई र ने
आठ बार धरती पर अवतार धारण िकया। नौव बार किलयुग म भु गौतम बु क प म धरती पर आए। उनक
बाद दसव बार ई र क क अवतार क प म धरती पर कट ए। ये दस अवतार ह—
१. म य अवतार, २. कम अवतार, ३. वराह अवतार, ४. नृिसंह अवतार, ५. वामन अवतार, ६. परशुराम
अवतार, ७. ीरामचं अवतार, ८. ीक ण अवतार, ९. बु अवतार तथा १०. क क अवतार।
िस ांत प म ‘गु ंथ सािहब’ क वाणी अवतारवाद क धारणा का समथन नह करती, य िक उसका
परमा मा ‘अजूनी’ ह, अतः वह ज म-मरण क च म नह आता। परतु ई र क इ छा ( म) को सव प र
दरशाने क िलए ‘गु ंथ सािहब’ क वाणी म ‘चौबीस अवतार’ एवं ‘दस अवतार’ क कछ संग आए ह।
चौबीस अवतार म दस अवतार तो उपयु ही ह जो गु वाणी क अनुसार, भु क इ छा से धरती पर मानव प
म कट ए। बाक चौदह अवतार अपनी भ अथवा श क ारा इस पदवी तक प चे—
‘ किम उपाअे दस अवतारा।
देव दानव अगणत अपारा॥’
(पृ. १०३७)
तथा
‘अिनक पुरख अंसा अवतार।
अिनक इ ऊभे दरबार॥’
(पृ. १२३५)
इसक अलावा ‘गु ंथ सािहब’ क पृ १०८२ पर गु अजनदेव क िन निलिखत शबद म अवतार क चचा
करते ए बताया गया ह िक सभी अवतार उसी अिवनाशी और अगोचर परमा मा क ही अंश ह और उसीक म
से वे अवत रत ए—
‘धरणीधर ईस नरिसंह नाराइण,
दाड़ा अ े ि थिम धराइण।
बावन पु क आ तुधु करते,
सभ ही सेती ह चंगा।
ी रामचं िजसु पु न रिखआ,
बनवाली च पािण दरिस अनूिपआ।
सहस ने मूरित ह सहसा,
इक दाता सभ ह मंगा॥
×××
अमोध दरसन आजूनी संभउ,
अकाल मूरित िजसु कदे नाही खउ।
अिबनासी अिबगत अगोचर,
सभु िकछ तुझ ही ह लगा॥’
तथा
‘ ी रग बैकठ क वासी।
मछ कछ करमु आिगआ अऊतरासी॥’
q
स मान और मयादा
‘गु ंथ सािहब’ कोई साधारण का य नह और न ही इसक वाणी साधारण किवता अथवा गीत ह। यह वाणी
देवलोक से आई िजसे गु और संत ने ई र क आदेश पर उ रत िकया। इसिलए ‘गु ंथ सािहब’ क वाणी
‘धुर’ (ई र लोक) क वाणी, ‘स ी वाणी’, ‘महापु ष क वाणी’ कहलाई। गु अजनदेव प बताते ह िक यह
वाणी ई र लोक (धुर) से आई और मने भु क आदेश पर इसका उ ारण िकया—‘धुर क बाणी आई, ितिन
सगली िचंत िमटाई’ तथा ‘हउ आप बोिल न जाणदा, मै किहआ सभु कमाउ जीउ।’
अतः ई रीय वाणी क िवशाल सागर ‘गु ंथ सािहब’ का पूण स मान करना, उसे पूण धािमक मयादा तथा
स मान क साथ रखना येक ाणी का परम कत य ह। वयं गु अजनदेव ने इस पिव ंथ क संकलन क बाद
ह रमंिदर सािहब ( वण मंिदर, अमृतसर) म जब इसका ‘ काश’ (धािमक मयादा क साथ थापना) िकया तो उस
िदन से वे गु ग ी क बजाय नीचे फश पर बाक संगत क साथ बैठते और पिव ंथ का काश ऊचे आसन पर
करते।
‘गु ंथ सािहब’ को ऊचे थल पर मंजी सािहब (खटोला) पर या धातु क बनी पालक म धािमक मयादा एवं
स मान क साथ सुंदर चौकोर व (आम बोलचाल म इसे ‘ माला’ कहा जाता ह) से आवृत करक रखने को
‘गु ंथ सािहब का काश’ कहते ह। येक गु ार क अलावा कई िसख घर म भी अलग कमर म ‘गु ंथ
सािहब’ का काश होता ह। काशवाले थान पर चंदोआ तानना आव यक ह। ‘गु ंथ सािहब’ क स मान क
िलए उसपर चँवर झुलाया जाता ह।
िसख धम धािमक काय क िलए उपयु िदशा, थान, समय आिद क चयन जैसे अंधिव ास को नह मानता।
इसिलए संगत क सुिवधावाली िकसी भी िदशा म घर क िकसी भी व छ, खुल,े हवादार कमर म ‘गु ंथ
सािहब’ का काश िकया जा सकता ह। गु ार म तथा िजन घर म यह पिव ंथ ह, ितिदन तड़क शबद-
गु वाणी का उ ारण करते ए ‘गु ंथ सािहब’ का काश िकया जाता ह। काश क अव था म गु ंथ को
खुला लेिकन माले से आवृत करक रखा जाता ह। गु ार म ‘गु ंथ सािहब’ क जूरी म िदन भर कथा और
क रतन होता ह। िसफ पाठ क िलए अलग क तन क समा पर ‘ मनामा’ लेने क िलए ‘गु ंथ सािहब’ पर
से माला हटाया जाता ह। पाठ करने अथवा मनामा लेने क बाद पिव ंथ को पुनः माल से आवृत कर
िदया जाता ह।
राि क समय (करीब नौ-दस बजे) गु वाणी क शबद का उ ारण करते ए ‘गु ंथ सािहब’ क ‘सुखासन’
क पिव ि या आरभ होती ह। इस समय माले को हटा िलया जाता ह और तह करक एक ओर रख िदया
जाता ह। गु वाणी का उ ारण करते ए ंथीजी इस पिव ंथ को बड़ी ा से बंद करते ह। इसक बाद िदवस
क आिखरी अरदास क जाती ह। अरदास क बाद ंथीजी ‘गु ंथ सािहब’ को अपने िसर पर धारण करक इस
पिव ंथ क सुखासन क तक ले जाते ह। उस व उप थत सभी ालु भी गु वाणी का गायन करते ए
उनक साथ-साथ चलते ह। सुख आसन क म पूण ा क साथ ‘गु ंथ सािहब’ को रखा जाता ह और सभी
ालु घर क िलए िवदा लेते ह।
खुशी, गमी या संकट क समय कई िसख तथा गु वाणी म आ था एवं ा रखनेवाले गैर-िसख घर म या
गु ार म िबना क ‘गु ंथ सािहब’ का अखंड पाठ करवाते ह। यह पाठ लगभग अड़तालीस घंट म पूण होता
ह।
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गु वाणी क कछ अनमोल र न
१. अकत न
‘अिकरतघणा का कर उ ार।
भु मेरा ह सद दिअआ ॥’
(पृ. ८९८)
—दयालु भु अकत न य य का भी उ ार करता ह।
❉❉❉
‘अिकरतघणै कउ रखै न कोई...’
(पृ. १०८६)
—अकत न य को कोई भी मनु य शरण नह देता।
❉❉❉

२. अ ानी
‘गु िजना का अंधुला िसख भी अंधे करम करिन।’
(पृ. ९५१)
—जहाँ गु वयं अ ानी ह, वहाँ उसक िश य क काय भी अंधे ह गे।
❉❉❉

३. अरदास ( ाथना)
‘िबरथी कदी न होवई जन क अरदािस।’
(पृ. ८१९)
—भ क अरदास कभी यथ नह जाती।
❉❉❉
‘सभु को तेरा तू सभसु दा तूँ सभना रािस।
सिभ तुधै पास मंगदे िनत क र अरदािस॥’
(पृ. ८१)
—ह ई र, सब ाणी तु हारी संतान ह, तुम सबक पालनकता हो। सभी जीव अरदास करक तु हारी कपा क
याचना करते ह।
❉❉❉

४. अवगुण
‘क र अउगण पछोतावणा।’
(पृ. ४७१)
—बुर काय करनेवाले य को हमेशा अंत म पछताना पड़ता ह।
❉❉❉
‘फरीदा िजिन कमी नािह गुण ते कमंड़ िवसा र।
मतु सरिमंदा थीवही साई दै दरबा र॥’
(पृ. १३८१)
—फक र फरीद कहते ह, िजन काय म कोई अ छाई नह ह उ ह मत कर, तािक तुझे ई र क दरबार म शिमदा
न होना पड़।
❉❉❉

५. अहकार
‘तीरथ त अ दान क मन मिह धरिह गुमान।
नानक िनहफल जात ितह िजउ कचर इ ान॥’
(पृ. १४२८)
—तीथ, त और दान करक उसक िलए घमंड करने से ये सभी धािमक काय उसी कार यथ हो जाते ह िजस
कार हाथी ान करने क बाद अपने शरीर पर धूल-िम ी डालकर उसे दुबारा मिलन बना लेता ह।
❉❉❉
‘कबीर गरबु न क जीअै रक न हसीअै कोइ।
अज सु नाउ समु मिह िकआ जानउ िकआ होइ॥’
(पृ. १३६६)
—कबीरजी कहते ह िक (अपनी अमीरी का) घमंड नह करना चािहए और न ही गरीब का उपहास उड़ाना चािहए;
य िक अभी तो जीवन पी नाव संसार पी समु म ह। न जाने कब या हो जाए।
❉❉❉

६. आचार
‘क र आचा सच सुखु होई।’
(पृ. ९३१)
—स य आचरण से सदा सुख ा होता ह।
❉❉❉

७. आल य
‘संत संिग िमिल ह र ह र जिपआ।
िबनसे आलस रोगा जीउ॥’
(पृ. १०८)
—संत क संगत म ई र का नाम जपने से आल य पी रोग दूर होता ह।
❉❉❉

८. आवागमन
‘जमणु मरणा कम ह भाणै आवै जाइ।’
(पृ. ४७२)
—संसार म जीव का ज म और मरण ई र क म (इ छा) से होता ह तथा उसक इ छा से ही जीव आवागमन
क च म आता ह।
❉❉❉
‘उदम करिह अनेक ह र नाम न गावही।
भरमिह जोिन असंख मर ज मिह आवही॥’
(पृ. ७०५)
—जो ाणी तरह-तरह क उ म करता ह लेिकन ई र का भजन-बंदगी नह करता, वह असं य योिनय म
भटकता ह और बार-बार पैदा होता तथा मरता ह।
❉❉❉

९. कपट
‘िजना अंत र कपट िवकार ह ितना रोइ िकआ क जै।’
(पृ. ४५०)
—िजन य य क मन म छल-कपट भरा आ ह उनक िलए (िवपि म) रोना यथ ह।
❉❉❉
‘िहरदै िजनक कपट बाहर संत कहािह।
तृ ा मूिल न चुकई अंित गए पछतािह॥’
(पृ. ४९१)
— दय से कपटी और बाहर से वयं को संत कहनेवाले य क तृ णा कभी शांत नह होती। अंतकाल म ऐसे
य य को पछताना पड़ता ह।
❉❉❉

१०. कम
‘िवणु करमा िकछ पाईअै नाही जे ब तेरा धावै।’
(पृ. ७२२)
— ाणी चाह िकतनी ही भाग-दौड़ कर ले, कम िकए िबना उसे कछ भी ा नह होगा।
❉❉❉
‘जेह करम कमाइ तेहा होइिस।’
(पृ. ७३०)
—जो जैसा कम करगा उसे वैसा ही फल ा होगा।
❉❉❉

११. कलह
‘कलह बुरी संसा र...’
(पृ. १४२)
—कलह (झगड़ा) संसार म बुरी चीज ह।
❉❉❉
‘झग क ए झगरउ ही पावा।’
(पृ. ३४१)
—झगड़ा करने से झगड़ा ही हािसल होता ह।
❉❉❉

१२. काजी
‘सोई काजी िजिन आप तिजआ इक नामु क आ आधारो।’
(पृ. २४)
—वही य स ा काजी ह िजसने अहकार का याग करक िसफ एक परमा मा पर िव ास रखा ह।
❉❉❉

१३. काम और ोध
‘कामु ोध काइआ कउ गालै।’
(पृ. ९३२)
—काम और ोध से शरीर का य होता ह।
❉❉❉
‘उना पािस दुआिस न िभटीअै िजन अंत र ोधु चंडालु।’
(पृ. ४०)
—िजन य य क दय म ोध पी चंडाल बसता ह, उनक संगत नह करनी चािहए।
❉❉❉

१४. काल
‘जो उपिजउ सो िबनस ह परो आज िक काल।’
(पृ. १४२९)
—इस संसार म जो भी पैदा आ ह एक िदन उसका िवनाश भी अव य होगा।
❉❉❉
‘कालु िबआलु िजउ प रउ डोलै मुखु पसार मीत।’
(पृ. ६३१)
—ह िम , काल (मृ यु) भयानक साँप क तरह मुँह खोलकर घूम रहा ह।
❉❉❉

१५. क रतन
‘जो जो कथै सुनै ह र क रतन ता क दुरमित नासु।
सगल मनोरथ पावै नानक पूरन होवै आसु॥’
(पृ. १३००)
—जो य क रतन गाते और सुनते ह उनक कबु दूर होती ह और सभी मनोकामनाएँ तथा इ छाएँ पूरी होती
ह।
❉❉❉
‘कलजुग मिह क रतन परधाना।’
(पृ. १७८)
—किलयुग म िसफ क रतन ही धान (सबसे मुख चीज) ह।
❉❉❉
‘क रतन िनरमोलक हीरा...’
(पृ. ८९३)
—क रतन एक अमू य हीरा ह।
❉❉❉

१६. कदरत ( कित)


‘बिलहारी कदरित विसआ, तेरा अंतु न जाई लिखआ।’
(पृ. ४६९)
— कित (क कण-कण) म बसे ए ह ई र! म तुझपर बिलहार जाता । तेरा अंत नह पाया जा सकता।
❉❉❉
‘अिनक प िखन मािह कदरित धारदा।’
(पृ. ५१९)
— कित एक ण म कई प धारण करती ह।
❉❉❉

१७. कसंगित
‘कसंगित बहिह सदा दुखु पाविह...’
(पृ. १०६८)
—बुरी संगत म बैठने से हमेशा दुःख ा होता ह।
❉❉❉

१८. खान-पान
‘सो िकउ मन िवसारीअै जाक जीअ पराण।
ितसु िवणु सभु अपिवतु ह जेता पिहनणु खाणु॥’
(पृ. १६)
—िजस ई र ने हम जीवन और ाण िदए उसे भूलना अनुिचत ह। उसक मरण क िबना सब खाना और पहनना
अपिव ह।
❉❉❉

१९. गुण
‘सिभ गुण तेर मै नाही कोई।
िवणु गुण क ते भगित न होइ॥’
(पृ. ४)
—ह ई र, सभी गुण तु हार ह। मुझम कोई गुण नह ह। और गुण क िबना भ नह हो सकती।
❉❉❉
‘गुण का गाहक नानका िवरला कोई होइ।’
(पृ. १०९२)
—नानकजी कहते ह, इस संसार म गुण का ाहक कोई िवरला ही होता ह।
❉❉❉

२०. गु वाणी
‘लोग जानै इ गीतु ह इ तउ बीचा ।’
(पृ. ३३५)
—साधारण लोग गु वाणी को गीत समझते ह; लेिकन यह तो ई र का िवचार ह।
❉❉❉
‘दूख रोग संताप उतर सुणी सची बाणी।’
(पृ. ९२२)
—स ी वाणी सुननेवाले य क सभी दुःख, रोग और संताप दूर हो जाते ह।
❉❉❉

२१. चतुराई
‘र मनु माधउ िसउ लाईअै।
चतुराई न चतुभुज पाईअै॥’
(पृ. ३२४)
—ह मन, परमा मा क साथ िच जोड़। चतुराई से ई र ा नह होता।
❉❉❉
‘सहस िसआणपा लख होिह त इक ना चलै नािल।’
(पृ. १)
—मनु य म चाह हजार -लाख चतुराइयाँ ह , अंत म उनम से एक भी उसक साथ नह जाती।
❉❉❉

२२. चरण कमल


‘चरन कमल िहरदै वसिह संकट सिभ खोवै।’
(पृ. ३२२)
—िजस ाणी क दय म भु क चरण कमल बस जाते ह उसक सभी सकट दूर हो जाते ह।
❉❉❉
‘राज न चाहउ मु न चाहउ मिन ीित चरन कमलार।’
(पृ. ५३४)
—मुझे न राजपाट क इ छा ह, न मु क । मुझे तो कवल भु क चरण कमल से यार क कामना ह।
❉❉❉

२३. चाकर (सवक)


‘चाक लगे चाकरी, जे चलै खसमै भाइ।
रमित ितसनो अगली, उ वज िभ दूणा खाइ॥
खसमै कर बराबरी, िफ र गैरित अद र पाइ।
वज गवाए अगला, मुह मिह पाणा खाइ॥’
(पृ. ४७४)
—उसी सेवक क सेवा सफल ह जो अपने मािलक ( भु) क इ छा क अनुसार चले। ऐसे सेवक को मािलक से
स मान तथा दोगुना इनाम िमलता ह। जो सेवक अपने मािलक से बराबरी करने लगता ह वह अपनी सेवा का पहला
इनाम भी गँवा बैठता ह और मुँह क खाता ह।
❉❉❉

२४. िचंता
‘आज हमार महा आनंद िचंत लथी भेट गोिबंद।’
(पृ. ११८०)
—ई र से िमलन होने पर मेरी सब िचंताएँ िमट गई और दय को महा आनंद क ा ई।
❉❉❉
‘िचंता ता क क जीअै जो अनहोनी होइ।
इ मारगु संसार को नानक िथ नही कोइ॥’
(पृ. १४२८)
—िचंता उस घटना क करनी चािहए जो अनहोनी हो। नानकदेव कहते ह, संसार का राह ही ऐसा ह िक यहाँ से हर
िकसीको जाना (मरना) ह। कोई भी यहाँ थर नह ह।
❉❉❉
‘सो करता िचंता कर िजिन उपाइआ जगु।’
(पृ. ४६७)
िजस ई र ने सृि क रचना क ह, वह अपने जीव क पालन-पोषण क भी िचंता करता ह।
❉❉❉

२५. जग
‘जग रचना सब झूठ ह जािन ले र मीत।
किह नानक िथ न रह िजउ बालू क भीित॥’
(पृ. १४२८)
—ह िम , यह बात अ छी तरह जान लो िक जग का सारा खेल-तमाशा नाशवा ह। नानक का कथन ह, यह
जग रचना सदा थर नह रहती, ब क रत क दीवार क तरह धराशायी हो जाती ह।
❉❉❉
‘र नर इह साची जीअ धा र।
सगल जग ह जैसे सुपना िबनसत लगत न बार॥’
(पृ. ६३३)
—ह ाणी, इस अटल स ाई को अपने मन म बसा ले िक यह संसार सपने क तरह ह और इसका िवनाश होने म
जरा भी देर नह लगती।
❉❉❉
‘िकसु नािल क चै दो ती सभु जगु चलणहा ।’
(पृ. ४६८)
—इस जग म िकसक साथ ( थायी) दो ती क जाए। सभी को एक-न-एक िदन यहाँ से चले जाना ह।
❉❉❉

२६. जन
‘ह र जनु ऐसा चाहीअै जैसा ह र ही होए।’
(पृ. १३७२)
—वही य ह र का स ा जन ह िजसम ह र क समान गुण ह।
❉❉❉
‘ह र जनु राम नाम गुन गावै।
जे कोई िनंद कर ह र जन क अपुना गुनु न गवावै॥’
(पृ. ७२०)
—ह र क जन राम क नाम का गुणगान करते ह। ह र क ऐसे जन क िनंदा करनेवाला कभी यश ा नह करता।
❉❉❉

२७. जनऊ
‘दइआ कपाह संतोखु सूत,ु जतु गंढी सतु वट।
ए जनेऊ जीअ का, हई त पाड घतु॥
ना ए तुट न मलु लगै, ना ए जलै न जाइ।
धंनु सु माणस नानका, जो गिल चले पाइ॥’
(पृ. ४७१)
—ह पंिडत, िजसम दया क कपास हो, संतोष का धागा हो, व िनयं ण क गाँठ लगी हो और स य क ऐंठन हो,
अगर तु हार पास आ मा का ऐसा कोई जनेऊ हो तो मुझे पहना दो। यह जनेऊ न टटता ह, न मैला होता ह, न
जलता ह और न कभी गुम होता ह। नानक, वे मनु य ध य ह जो ऐसा जनेऊ गले म धारण करते ह।
❉❉❉

२८. जप-तप
‘जपु तपु संजमु सभु गुर ते होवै...’
(पृ. ६०२)
—जप, तप और संयम गु से ा होता ह।
❉❉❉
‘सो जपु सो तपु िज सितगुर भावै।’
(पृ. ५०९)
—वही जप और वही तप अ छा ह जो गु को भाए।
❉❉❉

२९. जागना
‘जागना जागनु नीका ह र क रतन मिह जागना।’
(पृ. १०१९)
— भु क क रतन गायन म जागना ही उ म जागना ह।
❉❉❉

३०. जाित, वण
‘जाित का गरबु न क र मूरख गवारा।
इस गरब ते चलिह ब तु िवकारा॥’
(पृ. ११२८)
—ह मूख, गँवार ाणी, (ऊची) जाित का होने का घमंड मत कर। इस घमंड से कई िवकार पैदा होते ह।
❉❉❉
‘हमरी जाित पाित गुर सितगु ...’
(पृ. ७३१)
—हमारा जात-पाँत तो कवल गु ह।
❉❉❉
‘सा जाित सा पित ह जेह करम कमाइ।’
(पृ. १३३०)
—य जैसे कम कमाता ह वैसी ही (वही) उसक जाित ह।
❉❉❉

३१. जीवन-यु
‘आपणे हथी आपणा आपे ही काजु सवारीअै।’
(पृ. ४७४)
—अपना काय अपने ही हाथ से सँवारना (करना) चािहए।
❉❉❉
‘ऐसी कला न खेडीअै िजतु दरगह गइआ हारीअै।’
(पृ. ४६९)
—संसार म रहते ए बुर काय वाला ऐसा कोई खेल नह खेलना चािहए िजससे ई र क दरबार म जीवन क बाजी
हार जाएँ।
❉❉❉
‘घाल खाइ िकछ हथ देइ।
नानक रा पछाणिह सेइ॥’
(पृ. १२४५)
—जो ाणी प र म करक खाता ह और अपनी नेक कमाई म से कछ दान-पु य करता ह, जीवन म वही ई र
ा क सही माग को पहचान सकता ह।
❉❉❉
‘मंदा िकसै न आखीअै पि़ढ अख एहो बुझीअै।
मूरखै नािल न लुझीअै॥’
(पृ. ४७३)
—िकसीक ित बुरा न कहना ही ान ा का सार-त व ह। ानहीन य क साथ बहस म न उलझना ही े
ह।
❉❉❉

३२. जूठ
‘अंत र जूठा िकउ सुिच होइ।
स दी धोवै िवरला कोइ॥’
(पृ. १३४४)
—िजनका मन जूठा ह वे पिव कसे हो सकते ह। इस संसार म कोई िवरला ही य गु क शबद (उपदेश) से
मन को धोता ह।
❉❉❉

३३. योित
‘सभी मिह जोित जोित ह सोइ।
ितसक चानिण सभ मिह चानणु होइ॥’
(पृ. ६६३)
—सब जीव म एक ही परमा मा क योित िव मान ह और सभी उसीक काश से कािशत होते ह।
❉❉❉
‘ऐ सरीरा मे रआ ह र तुम मिह जोित रखी
ता तूँ जग मिह आइआ॥’
(पृ. ९२१)
—ह मेर शरीर, ई र ने जब तुझम अपनी योित रखी तब तू इस संसार म आया।
❉❉❉

३४. ान
‘िजउ अँधेर दीपक बालीअै,
ितउ गुर िगआिन अिगआनु तजाइ।’
(पृ. ३९)
—िजस कार दीपक क रोशनी से अंधकार दूर होता ह उसी कार गु से ा ान ारा अ ान दूर होता ह।
❉❉❉
‘साध क संिग गट सुिगआनु।’
(पृ. २७१)
—साधु क संगत से उ म ान ा होता ह।
❉❉❉

३५. ानी
‘भै का को देत निह निह भै मानत आिन।
क नानक सुिन र मना िगआनी तािह बखािन॥’
(पृ. १४२७)
—जो य न िकसीको डराता ह और न वयं िकसीसे डरता ह वह ानी कहलाता ह।
❉❉❉

३६. त व ान
‘सुखु दुखु दोन सम क र जानै अउर मानु अपमाना।
हरख सोग ते रह अतीता ितिन जिग ततु पछाना॥’
(पृ. २१९)
—जो ाणी सुख और दुःख तथा आदर और िनरादर क थित म एक समान रहता ह, जो खुशी क समय अहकार
म नह आता और गम म घबराता नह , उसने संसार म जीवन का त व ान पहचान िलया ह।
❉❉❉
‘ततु िगआनु ह र अमृतु नामु।’
(पृ. ११४६)
—ह र का अमृत नाम ही त व ान ह।
❉❉❉

३७. तीथ
‘तीरथ नाता िकआ कर मन मिह मैल गुमान।’
(पृ. ६१)
—मन म अहकार क मैल रखकर तीथ का ान यथ ह।
❉❉❉
‘कबीर गंगा तीर जु घर करिह पीविह िनरमल नी ।
िबनु ह र भगित न मु होइ इउ किह रमे कबीर॥’
(पृ. ८९०)
—कबीरजी कहते ह, चाह कोई गंगा क िकनार घर बना ले और िन य उसका िनमल जल भी पीता रह, लेिकन भु
क िबना उसक मु नह हो सकती।
❉❉❉
‘अठसिठ तीरथ जह साध पग धरिह।
तह बैकठ जह नामु उ रिह॥’
(पृ. ४९०)
—साधु-संत क जहाँ चरण पड़ते ह, वह थान अड़सठ तीथ िजतना महा हो जाता ह। जहाँ भु क नाम का
उ ारण होता ह वह थान बैकठ क समान होता ह।
❉❉❉

३८. तृ णा
‘वड वड राजन अ भूपन ता क तृ न बुझी।’
(पृ. ६७२)
—बड़-बड़ राजा और भूपितय क भी तृ णा कभी शांत नह ई।
❉❉❉
‘अिगआनु तृ ा इसु तनिह जलाए।
ितस क बुझै िज गुर स दी कमाए॥’
(पृ. १०६७)
—अ ान और तृ णा िमलकर मनु य क शरीर को जलाते रहते ह। यह आग उसी य क बुझती ह जो गु क
शबद क कमाई करता ह।
❉❉❉
‘िकआ गभ िकआ िबरिध ह मनमुख तृ ा भुख न जाइ।’
(पृ. ६४९)
—जवान हो या वृ , िकसीक भी तृ णा क भूख नह मरती।
❉❉❉

३९. याग
‘िबन हउ ितआग कहा कोऊ ितआगी।’
(पृ. ११४०)
—अहकार का याग िकए िबना कोई यागी नह हो सकता।
❉❉❉
‘साधो मन का मान ितआगउ।
काम ोध संगित दुरजन क ता ते अिहिनिस भागउ॥’
(पृ. ११८२)
—ह साधना करनेवाले पु षो, मन का अहकारी वभाव छोड़ दो। काम, ोध और बुर य क संगित से सदा
दूर रहो।
❉❉❉
४०. दया
‘सचु तां प जाणीअै जा िसख सची लेइ।
दइआ जाणै जीअ क िकछ पुंन दान करइ॥’
(पृ. ४६०)
—सच क ा तभी होती ह जब मनु य गु से स ा उपदेश ा कर, सब जीव पर दया करने क यु सीख
ले और ज रतमंद लोग को अपनी कमाई म से कछ दान-पु य कर।
❉❉❉
‘सतु संतोखु दइआ धरमु सीगार बनावउ।’
(पृ. ८१२)
—ह ाणी, स य, संतोष, दया और धम को अपना गं ार बनाओ।
❉❉❉
‘फरीदा जो तै मारिन मु आँ ितना न मार घुंिम।
आपनड़ घ र जाईअै पैर ितनाँ दे चुंिम॥’
(पृ. १३७८)
—फरीद साहब कहते ह, जो तुझपर मु से हार कर तू उन लोग पर बदले म हार मत करना, ब क उनक
पाँव चूमकर अपने घर वापस लौट जाना।
❉❉❉

४१. दरवश (फक र)


‘आिप लीअे लि़ड लाए द र दरवेस से।
ितन धंनु जणेदी माउ आए सफलु से॥’
(पृ. ४८८)
—वे मनु य ही ई र क ार पर दरवेश ह िजनपर ई र ने अपनी कपा क ह। उ ह ज म देनेवाली माँ ध य ह
और उनका संसार म आना सफल ह।
❉❉❉

४२. दशन
‘ठाकर तुम सरणाई आइआ।
उत र गइउ मेर मन का संसा जब ते दरसन पाइआ॥’
(पृ. १२१८)
—ह ई र, म तु हारी शरण म आया । जब से मने तु हारा दशन पाया ह, मेर सभी संशय दूर हो गए ह।
❉❉❉
‘दरसिन परसीअै गु क जनम मरण दुखु जाइ।’
(पृ. १३९२)
—गु क दशन से ज म-मरण क दुःख दूर हो जाते ह।
❉❉❉
४३. दुःख
‘फरीदा मै जािनआ दुखु मुझ क दुखु सबाइअै जिग।
ऊचै चि़ढ क देिखआ ता घ र घ र एहा अिग॥’
(पृ. १३८२)
—ह फरीद, म समझता था िक कवल म ही दुःखी , पर दुःख तो सार संसार म या ह। जब मने अपने दुःख से
ऊपर उठकर देखा तो पाया िक घर-घर म दुःख क आग लगी ई ह, अथा सभी जीव दुःखी ह।
❉❉❉
‘नानक दुखीआ सभु संसा ।’
(पृ. ९५४)
—ह नानक, सारा संसार दुःखी ह।
❉❉❉
‘जब लगु कमु न बूझता तब ही लउ दुखीआ।
गुर िमिल कमु पछािणआ तब ही ते सुखीआ॥’
(पृ. ४००)
—जब तक ाणी ई र क इ छा को नह समझता, वह दुःख से पीि़डत रहता ह। गु से िमलन होने पर जब वह
म क पहचान कर लेता ह, तो सुखी हो जाता ह।
❉❉❉
‘दुखु तदे जा िवस र जावै।’
(पृ. ९८)
—दुःख तभी आते ह जब ाणी ई र को भूल जाता ह।
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४४. दन (दाित)
‘दाित िपआरी िवस रआ दातारा।’
(पृ. ६७६)
—मनु य भु क देन से यार करता ह, लेिकन देनेवाले (दातार) को भूल जाता ह।
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४५. धन-दौलत
‘भाई र तनु धनु सािथ न होइ।’
(पृ. ६२)
—ह भाई, तन और धन िकसीक साथ नह जाता।
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‘इ धनु करते का खेल ह कदे आवै कदे जाइ।
िगआनी का धनु नामु ह सद ही रह समाइ॥’
(पृ. १२८२)
—सांसा रक धन ई र का खेल ह, जो कभी आता ह और कभी जाता ह। ानी पु ष का धन तो भु का नाम ह
जो हमेशा उसक मन म समाया रहता ह।
❉❉❉
‘दारा मीत पूत सनबंधी सगर धन िसउ लागै।
जब ही िनरधन देिखउ नर कउ संिग छािड सभ भागै॥’
(पृ. ६३३)
—प नी, िम , पु और संबंधी—ये सब वा तव म धन क कारण य क साथ होते ह। िजस िदन वे उसे िनधन
पाते ह, सभी साथ छोड़कर भाग जाते ह।
❉❉❉

४६. धन-यौवन
‘धन जोबन का गरबु न क जै कागद िजउ गिल जािहगा।’
(पृ. ११०६)
—ह ाणी, धन-यौवन का अहकार मत कर। यह कागज क तरह गल जाएगा।
❉❉❉

४७. धम
‘संत का मारगु धरम क पउड़ी को वडभागी पाए।’
(पृ. ६२२)
—संत का माग धम क सीढ़ी ह, िजसे कोई भा यशाली य ही पाता ह।
❉❉❉
‘कबीरा जहा िगआनु तह धरम ह जहा झूठ तह पापु।
जहा लोभु तह कालु ह जहा िखमा तह आिप॥’
(पृ. १३७२)
—संत कबीर कहते ह, जहाँ ान ह वहाँ धम ह, जहाँ झूठ ह वहाँ पाप ह, जहाँ लोभ ह वहाँ काल ह और जहाँ
मा ह वहाँ वयं भु ह।
❉❉❉
‘नह िबल ब धरमं िबल ब पाप ।’
(पृ. १३५४)
—धम क काय म कभी देर नह करनी चािहए और पापवाले काय को टालते रहना चािहए, अथा उससे बचना
चािहए।
❉❉❉
‘सरब धरम मिह े ट धरमु।
ह र को नामु जिप िनरमल करमु॥’
(पृ. २६६)
—ई र का नाम जपना और उ ल काय करना ही सबसे े धम ह।
❉❉❉
४८. धमराज
‘चंिगआईआ बु रआईआ वाचै धरमु हदू र।
करमी आपो आपणी क नेड़ क दू र॥’
(पृ. ८)
—धमराज ई र क जूरी म जीव क अ छ और बुर कम पर िवचार करता ह। अपने-अपने कम क अनुसार
कई जीव भु क िनकट और कई उससे दूर हो जाते ह।
❉❉❉

४९. न ता
‘आपस कउ जो जाणै नीचा।
सोउ गनीअै सभ ते ऊचा॥’
(पृ. २६६)
—अपने आपको नीच समझनेवाले य क गणना सबसे ऊचे लोग म होती ह।
❉❉❉
‘कबीर सभ ते हम बुर हम तिज भलो सभ कोइ।
िजिन ऐसा क र बूिझआ मीतु हमारा सोइ॥’
(पृ. १३६४)
—कबीर कहते ह—संसार म हम सबसे बुर ह, हम छोड़कर बाक सब अ छ ह। िजसने यह सच जान िलया, वह
हमारा िम ह।
❉❉❉
‘आपस कउ जो भला कहावै।
ितसिह भलाई िनकिट न आवै॥’
(पृ. २७८)
—जो य अपने आपको अ छा कहता ह, अ छाई उससे हमेशा दूर रहती ह।
❉❉❉

५०. नशा
‘कबीर भाँग माछली सुरा पािन जो जो ानी खािह।
तीरथ बरत नेम क ए ते सभे रसातल जािह॥’
(पृ. १३७७)
—संत कबीर कहते ह—जो मनु य भाँग, मछली और मिदरा का सेवन करते ह उनक तीथ, त आिद से कमाए
गए पु य न हो जाते ह।
❉❉❉
‘िजतु पीतै खसमु िवसर दरगह िमलै सजाइ।
झूठ मदु भूिल न पीचई...’
(पृ. ५५४)
—िजसक पीने से भु िबसर जाए और उसक दरबार म सजा िमले, ऐसी झूठी मिदरा भूलकर भी नह पीनी चािहए।
❉❉❉

५१. न रता
‘जो आइआ सो चलिस सब कोई आई वारीअै।’
(पृ. ४७४)
—संसार म जो आया ह, वह जाएगा भी। सबक यहाँ से जाने (मृ यु) क बारी आएगी।
❉❉❉
‘सेख हयाती जिग न कोई िथ रिहआ।
िजसु आसिण हम बैठ कते बैिस गइआ॥’
(पृ. ४८८)
—शेख फरीद कहते ह, जग म कोई भी सदा जीिवत नह रहा। िजस थान पर हम आज बैठ ह, यहाँ कई लोग
बैठकर चले गए।
❉❉❉
‘जो उपिजउ सो िबनिस ह परो आजु क कािल।
नानक ह र गुन गाइ ले छािड सगल जंजािल॥’
(पृ. १४२९)
—इस संसार म जो भी पैदा आ ह, वह अव य ही आज या कल मृ यु को ा होगा। नानकजी कहते ह—संसार
क सभी झंझट छोड़कर ह र का गुणगान करो।
❉❉❉

५२. नाच-गाना
‘निचअै टिपअै भगित न होइ।
स द मर भगित पाए जन सोइ॥’
(पृ. १४९)
—नाचने-कदने से भ नह होती। गु क शबद (उपदेश) पर मर-िमटनेवाला य ही भ को ा कर
सकता ह।
❉❉❉

५३. नाम
‘िडठा सभु संसा सुख न नाम िबनु।’
(पृ. ३२२)
—सारा संसार देख िलया। भु क नाम क िबना कह सुख नह ह।
❉❉❉
‘मूत पलीती कप होइ। दे साबूण लईअै उ धोइ॥
भरीअै मित पापा क संिग। उ धोपै नावै क रिग॥’
(पृ. ४)
—मल-मू से मिलन व साबुन से धोने से साफ हो जाते ह। जब मन म पाप भर जाएँ तो उ ह ई र क नाम से
ही धोया जा सकता ह।
❉❉❉
‘अंत र नामु कमलु परगासा।
ितन कउ नाही जम क ासा॥’
(पृ. ४१२)
—िजनक भीतर नाम का काश हो जाता ह उ ह यम (मृ यु) का भय नह रहता।
❉❉❉
‘अंमृत नामु परमेसुर तेरा जो िसमर सो जीवै।’
(पृ. ६१६)
—ह ई र, तेरा नाम अमृत ह। जो इसका सुिमरन करता ह वही जीवन को सही अथ म जीता ह।
❉❉❉
‘ह र को नािम सदा सुखदाई।
जा कउ िसम र अजामलु उध रउ गिनका गित पाई।
पंचाली कउ राजसभा मिह रामनाम सुिध आई।
ता को दूखु ह रउ क णामै आपनी पैज बढाई॥’
(पृ. १००८)
—ई र का नाम सदा सुखदायक ह, िजसक सुिमरन से अजािमल का उ ार आ और गिणका भी ज म-मरण क
च से मु ा कर गई। दुय धन क राजदरबार म (चीरहरण क समय) ौपदी ने ई र को याद िकया और
क णामय भु ने उसका संकट दूर करक अपने भ क लाज बचाई।
❉❉❉

५४. नाम िवहीन य


‘धृगु जीवणु संसार सचे नाम िबनु।’
(पृ. ९५६)
—स े ई र क नाम क िबना संसार म जीना िध ार ह।
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५५. िनंदा, िनंदक


‘मुह काले ितना िनंदका िततु सचै दरबा र।’
(पृ. ६४९)
—ई र क दरबार म िनंदक का मुँह काला होता ह।
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५६. िनधन
‘किह कबीर िनरधन ह सोई।
जाक िहरदै नामु न होई॥’
(पृ. ११५९)
—कबीरजी कहते ह, िनधन वह य ह िजसक दय म भु का नाम नह ह।
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५७. िनमल
‘सो िकछ क र िजतु मैल न लागे।’
(पृ. १९९)
—ह ाणी, ऐसे कम कर जो िनमल ह ।
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५८. पढ़ाई
‘पि़ढआ मूरखु आखीअै िजसु लबु लोभु अहकार।’
(पृ. १४०)
—वह पढ़ा-िलखा भी मूख कहा जाएगा िजसक मन म लोभ और अहकार ह।
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५९. पराई व तु
‘पराई व तु िकउ रखीअै िदती ही सुखु होइ।’
(पृ. १२४९)
—पराई व तु को अपने पास रखना ठीक नह ह। उसे उसक मािलक को स पने म ही सचा सुख ह।
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६०. पराई ी
‘अखी सूतक वेखणा परि य परधन पु।’
(पृ. ४७२)
—पराई ी क प और पराए धन को बुरी नजर से देखना आँख क िलए अपिव ह।
❉❉❉
‘देइ िकवाड़ अिनक पड़दे मिह परदारा संिग फाक।
िच गु ु जब लेखा मागिह तब कउण पड़दा तेरा ढाक॥’
(पृ. ६१६)
—बंद िकवाड़ म पराई ी क साथ यिभचार करनेवाले ह ाणी, जब िच गु तुझसे तेर कम का िहसाब माँगेगा
तब तू उससे अपने बुर कम कसे िछपाएगा।
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६१. परोपकार
‘िमिथआ तन नह परउपकारा।’
(पृ. २६९)
—जो तन िकसी पर उपकार नह करता, वह िम या ह।
❉❉❉

६२. पाप
‘नर अचेत पाप ते ड र।’
(पृ. २२०)
—ह अ ानी जीव, पाप करने से डर।
❉❉❉
‘साधु क जउ लेिह उट।
तेर िमटिह पाप सभ कोिट कोिट॥’
(पृ. ११९६)
—जो ाणी (पापी) साधु क शरण लेता ह उसक करोड़ पाप िमट जाते ह।
❉❉❉
‘पुंनी पापी आखणु नािह।
क र क र करणा िलिख लै जा ॥’
(पृ. ४)
—िसफ िकसीक कह देने से कोई य पु यी या पापी नह हो जाता। य जैसे कम करगा वैसे सं कार साथ
लेकर जाएगा।
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६३. पूण
‘नानक से जन पूरन होइ।
िजन ह र भाणा भाइ॥’
(पृ. १२७६)
—नानकजी कहते ह—वे जन ही पूण ह जो भु क इ छा म रहते ह।
❉❉❉

६४. म
‘जाक ीित गोिबंद िसउ लागी।
दूरतु दरदु मु ता का भागी॥’
(पृ. ३९१)
—िजस ाणी क ीित ई र से लग जाती ह, उसक सभी दुःख, दद और म दूर हो जाते ह।
❉❉❉
‘िबन िपआर भगित न होवई...’
(पृ. ४२९)
—ि य भु क साथ ीित क िबना भ नह हो सकती।
❉❉❉

६५. बु
‘सा बु दीजै िजतु िवसरिह नाही।’
(पृ. १००)
—ह ई र, मुझे ऐसी बु दो िजससे म आपका नाम सदा मरण करता र ।
❉❉❉

६६. बुराई
‘फरीदा िजिन कमी नािह गुण ते कमड़ िबसा र।
मतु सरिमंदा थीवई साँई दै दरबा र॥’
(पृ. १३८१)
—फक र फरीद कहते ह—िजन काम म कोई अ छाई नह ह उ ह मत कर, तािक ई र क दरबार म तुझे शिमदा
न होना पड़।
❉❉❉
‘पर का बुरा न राख चीत।
तुम कउ दुखु नही भाई मीत॥’
(पृ. ३८६)
—ह भाई, ह िम ! मन म िकसीक ित बुरा मत सोचो। इससे तुम सदा सुखी रहोगे।
❉❉❉

६७. ा ण
‘सो ा णु जो िबचार।
आिप तर सगले कल तार॥’
(पृ. ६६२)
—ई र का िचंतन करनेवाला य ही स ा ा ण ह, जो खुद भी भवसागर से पार उतरता ह और अपने कल
का भी उ ार करता ह।
❉❉❉

६८. भ
‘से भगत से भगत भले जन नानकजी
जो भाविह मेर ह र भगवंता।’
(पृ. ३४८)
—नानकजी कहते ह—वे भ े ह जो मेर भु क मन को भाते ह।
❉❉❉
‘िजसनो इको रगु भगतु सो जानणो।’
(पृ. ९६३)
—िसफ एक परमा मा क रग म रगे ए ाणी ही भ ह।
❉❉❉
‘भगत जना कउ राखदा आपणी िकरपा धा र।’
(पृ. ४६)
— भु अपने भ पर कपा करक सदा उनक र ा करता ह।
❉❉❉

६९. भ
‘मानस ते देवते भए सची भगित िजसु देइ।’
(पृ. ८५०)
—ई र क स ी भ से मनु य भी देवता हो जाते ह।
❉❉❉
‘िवणु गुण क ते भगित न होइ।’
(पृ. ४)
—गुण क िबना भ नह हो सकती।
❉❉❉
‘क कबीर जन भए खालसे ेम भगित िजह जानी।’
(पृ. ६५५)
—कबीरजी कहते ह—िजस ाणी ने भु- ेम क भ को समझ िलया वह पिव हो गया।
❉❉❉

७०. भाषा
‘िजत बोिलअै पित पाईअै सो बोिलआ परवाणु।’
(पृ. १५)
—भाषा वही उ म ह िजसक बोलने से स मान िमले।
❉❉❉
‘टिट परीित गई बुर बोिल।’
(पृ. १४३)
—अि य भाषा बोलने से यार का र ता टट जाता ह।
❉❉❉
‘गंढ ीती िमठ बोल।’
(पृ. १४३)
—ह ाणी, मीठी और ि य भाषा क साथ ेम कर।
❉❉❉

७१. म
‘हमरा भरम गइआ भउ भागा।
जब राम नाम िचतु लागा॥’
(पृ. ६५५)
—जब से ई र क नाम म मन लगा ह, हमार म और भय दूर हो गए ह।
❉❉❉
‘जाक िबनिसउ मन ते भरमा।
ताक कछ नाही डर जमा॥’
(पृ. १८६)
—िजस ाणी क मन से म िमट जाते ह उसे यम का डर नह रहता।
❉❉❉

७२. मन
‘मिन मैले सभ िकछ मैला तिन धोतै मनु हछा न होइ।’
(पृ. ५५८)
—िजसका मन मैला ह उसका सबकछ मैला ह। तन को धोने से मन पिव नह होगा।
❉❉❉
‘मिन जीतै जगु जीतु।’
(पृ. ६)
—िजसने मन को जीत िलया मानो उसने सारी दुिनया जीत ली।
❉❉❉
‘कबीर मनु पंखी भइउ उिड उिड दह िदस जाइ।
जो जैसी संगित िमलै सो तैसो फल खाइ॥’
(पृ. १३६९)
—संत कबीर कहते ह—यह मन प ी क समान दस िदशा म उड़ता िफरता ह। जो (मन) जैसी संगत करगा
वैसा ही उसे फल खाने को िमलेगा।
❉❉❉

७३. मनु य
‘कबीर मानस जनमु दुलभु ह होइ न बार बार।
िजउ बन फल पाक भुइ िगरिह ब र न लागिह डार॥’
(पृ. १३६६)
—कबीर कहते ह—िजस कार वृ से टटकर जमीन पर िगरा आ फल दोबारा वृ से नह लग सकता, उसी
कार यह दुलभ मनु य जीवन बार-बार नह िमलता।
❉❉❉
‘माटी को पुतरा कसे नचतु ह।
देखै देखै सुनै बोलै दउ रउ िफरतु ह।
जब कछ पावै तब गरबु करतु ह।
माइआ गई तब रोवन लगतु ह॥’
(पृ. ४८७)
—मनु य िम ी का पुतला ह। यह देखता, सुनता, बोलता और दौड़ा िफरता ह। कछ पा लेने पर यह घमंड से
इतराता ह और माया (धन-दौलत) चली जाने पर रोने लगता ह।
❉❉❉

७४. ममता
‘जब लग मेरी मेरी कर। तब लिग काज एक नही सर॥
जब मेरी मेरी िमट जाइ। तिब भु काज सवारिह आइ॥’
(पृ. ११६०)
—जब तक ाणी ‘मेरी, मेरी’ करता ह तब तक उसका कोई भी काय िस नह होता। जब ‘मेरी, मेरी’ िमट जाती
ह तो परमा मा वयं आकर उसक काय िस करता ह।
❉❉❉

७५. मानव एकता


‘एक िपता एकस क हम बा रक।’
(पृ. ६११)
—सब जीव का एक ही िपता ( भु) ह और हम सब उसक बालक ह।
❉❉❉
‘नानक उ म नीच न कोई।’
(जपुजी)
—नानकदेव कहते ह—इस संसार म कोई भी े अथवा नीच नह ह, अथा सभी ाणी बराबर ह।
❉❉❉

७६. मु
‘से मु ु से मु ु भए िजन ह र िधआइआ जीउ।
ितन टटी जम क फासी॥’
(पृ. ३४८)
—ई र का नाम सुिमरन करनेवाले जीव संसार च से मु हो जाते ह और उनक गले म यम क फाँसी नह
पड़ती।
❉❉❉
‘हरख सोग जा क नह बैरी मीत समान।
क नानक सुिन र मना मुकित तािह तै जान॥’
(पृ. १४२७)
—जो ाणी सुख और दुःख से िनिल रहता ह और िम तथा श ु िजसक िलए एक समान ह, नानकजी कहते ह
—ऐसे ाणी को संसार से मु समझो।
❉❉❉

७७. मु
‘मुकित दुआरा सोई पाए िज िवच आपु गवाइ।’
(पृ. १२७६)
—अपने भीतर से अहकार का याग करनेवाला य ही मो ा करता ह।
❉❉❉

७८. मूख
‘मूरखा िस र मूरख ह िजनै नाही नाउ।’
(पृ. १०१५)
—िजसक दय म भु का नाम नह , वह मूख का भी मूख ह।
❉❉❉

७९. यम
‘जमदूतु ितसु िनकिट न आवै।
साध संिग ह र क रतनु गावै॥’
(पृ. १०७९)
—जो ाणी साधु-संत क संगित म ई र क क ित का गायन करते ह, यमदूत उनक िनकट नह आते।
❉❉❉
‘जा क िबनिसउ मन ते भरमा।
ता क कछ नाही ड जमा॥’
(पृ. १८६)
—िजस ाणी क मन से म दूर हो जाते ह उसे िफर यम का भय नह रहता।
❉❉❉
‘राम नािम मनु लागा।
जमु लजाइ कर भागा॥’
(पृ. ६२६)
— ाणी का राम नाम म मन लगते ही यम उससे ल त होकर भाग जाता ह।
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८०. योग
‘जोगु न भगवी कपड़ी जोगु न मैले वेिस।
नानक घ र बैिठआ जोगु पाईअै सितगुर क उपदेिस॥’
(पृ. १४२०)
—भगवे कपड़ या मैला वेश धारण कर लेना योग नह ह। ह नानक, गु क उपदेश पर चलते ए घर म ही योग
धारण िकया जा सकता ह।
❉❉❉

८१. योगी
‘सो जोगी जो जुगित पछाणै।’
(पृ. ६६२)
—िजसने जीवन-यु को पहचान िलया, वही योगी ह।
❉❉❉
‘परिनंदा उ तित नह जाक कचन लोह समान।
हरख सोग ते रह अतीता जोगी तािह बखानो॥’
(पृ. ६८५)
—िजस मनु य म पराई िनंदा सुनने या करने का अवगुण नह , जो न खुशामद करता ह न करवाता ह, िजस मनु य
क िलए सोना और लोहा एक समान ह और जो खुशी और गमी से िनिल रहता ह, वही स ा योगी कहलाता ह।
❉❉❉

८२. रस भोग
‘खसमु िवसा र क ए रस भोग।
ता तिन उठ खलोए रोग॥’
(पृ. १२५६)
—ई र को भूलकर रस भोग करनेवाले य का तन रोगी हो जाता ह।
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‘भोगी कउ दुखु रोग िवआपै।’
(पृ. ११८९)
—भोगी य को दुःख और रोग जकड़ लेते ह।
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८३. राजा
‘कोउ ह र समान नह राजा।’
(पृ. ८५६)
—ई र क समान कोई दूसरा राजा नह ह।
❉❉❉
‘त त राजा सो बह िज त तै लाइक होई।
िजनी सचु पछािणआ सचु राजे सोई॥’
(पृ. १०८८)
—िसंहासन पर कवल उसी राजा को बैठना चािहए जो उसक यो य हो। िजसने स े भु को जान िलया वही स ा
राजा ह।
❉❉❉

८४. रोग
‘हउमै दीरघु रोगु ह।’
(पृ. ४६६)
—संसार म अहकार सबसे बड़ा रोग ह।
❉❉❉
‘संसार रोगी नाम दा ...’
(पृ. ६८७)
—यह सारा संसार रोगी ह और भु का नाम दवा ह।
❉❉❉

८५. लालच
‘फरीदा जा लब त ने िकआ लबु त कढ़ा ने ।
िकच झित लघाइअै छ पर तुट मे ॥’
(पृ. १३७८)
—संत फरीद कहते ह—अगर िकसी लालच क मकसद से ई र क बंदगी क जाती ह तो बंदगी करनेवाले का
ई र क ित यार स ा नह ह। टट ए छ पर से बरसात का पानी कब तक कगा? भावाथ यह ह िक सांसा रक
वाथ पूरा न होने पर मनु य का ई र से ेम टट जाएगा।
❉❉❉

८६. वनवास
‘काह र बिन खोजन जाई।
सरब िनवासी सदा अलेपा तोिह संिग समाई॥’
(पृ. ६८४)
—ह भाई, तू ई र को ढढ़ने क िलए जंगल य जाता ह? सभी जीव म बसा आ वह िनिल परमा मा तेर भीतर
ही समाया आ ह।
❉❉❉

८७. िव ा
‘माइआ कारिन िबिदआ बेच जनमु अिबरथा जाइ।’
(पृ. ११०३)
—धन क िलए िव ा बेचनेवाले लोग का ज म यथ जाता ह।
❉❉❉
८८. िवरह
‘फरीदा िजस तिन िबर न उपजै सो तनु जाण मसाण।’
(पृ. १३७९)
—फरीद कहते ह—िजस शरीर म िवरह क पीड़ा नह ह, उस शरीर को मशान समझो।
❉❉❉
‘मेरा मन लोचै गुर दरसन ताई।
िबलिप कर चाि क क िनआई॥’
(पृ. ९६)
—मेरा मन गु क दशन क िलए तड़प रहा ह और चाि क (चातक) क तरह िवलाप कर रहा ह।
❉❉❉

८९. िव ास
‘घ र बाह र तेरा भरवासा तू जन क ह संिग।’
(पृ. ६७७)
—ह ई र, हर जगह मुझे तेरा ही भरोसा ह। तू सदा अपने सेवक क साथ ह।
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९०. वला (समय)


‘अमृत वेला सचु नाउ विडआई वीचा ।’
(पृ. २)
—ह जीव, भातकाल म उस परमा मा क स े नाम तथा उसक महानता पर िवचार करो।
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‘िदनु रिण सभ सुहावणे िपआर िजतु जपीअै ह र नाउ।’
(पृ. ४३२)
—वे सभी िदन और रात सुहावने ह जब मन ई र क नाम का जाप करता ह।
❉❉❉

९१. वै
‘मेरा बैदु गु गोिबंदा।
ह र ह र नाम अउखध मुिख देवै काट जम क फधा॥’
(पृ. ६१८)
—गु ही मेरा वै ह, जो मेर मुख म ह र क नाम क ओषिध (दवा) डालता ह और यम क बंधन से मु करता
ह।
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९२. वैर-िवरोध
‘िबस र गई सभ ताित पराई।
जब ते साध संगत मोिह पाई।
न कोई बैरी नही िबगाना सगल संिग हिम कउ बिन आई॥’
(पृ. १२९९)
—जब से म साधु-संत क संगित म आया , मेर मन से दूसर क ित बेगानेपन क भावना िमट गई ह। अब मेर
िलए न कोई वैरी ह और न बेगाना। सबक साथ हमारी ीत जुड़ गई ह।
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‘...काह जनम गवाव वै र वाद।’
(पृ. ११७६)
—ह ाणी, वैर-िवरोध म अपना ज म य गँवाते हो।
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‘वैर िवरोध िमट तन मन ते।
ह र क रतनु गुरमुिख जो सुनते॥’
(पृ. २५९)
—जो गु क अनुयायी ह र का क रतन सुनते ह उनक तन-मन से वैर-िवरोध क भावना िमट जाती ह।
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९३. यापार
‘खोट वणिज वणिजअै मनु तनु खोटा होइ।’
(पृ. १३)
—खोटी व तु क यापार से मन और तन दोन खोट होते ह।
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९४. त
‘...तिजअै अ न िमलै गुपालु।’
(पृ. ८७३)
—अ का याग करने से ई र नह िमलता।
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‘सचु वरतु संतोखु तीरथु िगआनु िधआनु इ ानु।
दइआ देवता िखमा जपमाली ते माणस परधान॥’
(पृ. १२४५)
—जो मनु य सच का त, संतोष का तीथ और ान का यान एवं ान करते ह, दूसर क ित दया िजनका देवता
और मा िजनक जपमाला ह, वे मनु य े ह।
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९५. शकन-अपशकन
‘सगुन अपसगुन ितस कउ लगिह िजसु चीित न आवै।’
(पृ. ४०१)
—शकन-अपशकन उस य को लगता ह िजसक दय म ई र का वास नह ह।
❉❉❉
९६. शबद (गु का उपदेश)
‘ितस िकआ दीजै िज शबद सुणाए...’
(पृ. ४२४)
—गु का अमू य शबद सुनानेवाले क िलए कोई भी भट तु छ ह।
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‘गुर का शबद अंमृत रसु पीउ।
ता तेरा होइ िनरमल जीउ॥’
(पृ. ८९१)
—ह ाणी, गु क श द पी अमृतरस का पान कर। इससे तेरा मन पिव होगा।
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‘इ भवजलु जगतु स द गुर तरीअै।’
(पृ. १०४२)
—इस संसार पी सागर से गु क शबद ारा ही मु होती ह।
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९७. शरण
‘ भु क सरिण सगल भै लाथे दुःख िबनसे सुख पाइआ।’
(पृ. ६१५)
— भु क शरण म आने से सभी डर दूर होते ह, दुःख का िवनाश और सुख क ा होती ह।
❉❉❉
‘अब हम चिल ठाकर पिह हा र।
जब हम सरिण भु क आई।
राखु भु भावै मा र।
×××
कोई भला क भावै बुरा क हम तनु दीउ ह डा र॥’
(पृ. ५२७-२८)
—हमने अपने आपको भु क हवाले कर िदया ह और उसक शरण म आ गए ह। ह भु, अब तुम चाह हमारी
र ा करो या मारो। हमारी अब कोई िनंदा कर या तुित, हमने तो अपना शरीर भु क आगे अिपत कर िदया ह।
❉❉❉
‘तू मेरी उट बल बु धनु तुमही तुमिह मेर परवार।
जो तुम कर सोई भल हमर पेिख नानक सुख चरनार॥’
(पृ. ८२०)
—ह ई र! मेरा सहारा, बल, बु , धन और प रवार सबकछ आप ही ह। आप जो कछ भी करगे, उसीम हमारा
क याण ह। नानकजी कहते ह— भु क चरण म ही स ा सुख ह।
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९८. शु
‘सूचे एिह न आखीअिह बहिन िज िपंडा धोइ।
सूचे सेई नानका िजन मिन विसआ सोइ॥’
(पृ. ४७२)
—तन का ान कर लेने से ही कोई य शु या पिव नह हो जाता। नानकजी कहते ह—शु वे ाणी ह
िजनक मन म ई र का नाम बसा आ ह।
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९९. ंगार
‘सतु संतोखु दइआ धरमु सीगा बनावउ।’
(पृ. ८१२)
—ह ाणी, स य, संतोष, दया और धम को अपना गं ार बनाओ।
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१००. संत
‘संत न छाड संतई जउ कोिटक िमलिह असंत।’
(पृ. १३७३)
—संत चाह असं य दु से िघरा हो, वह अपने गुण कभी नह छोड़ता।
❉❉❉
‘संता कउ मित कोई िनंद संत रामु ह एको।’
(पृ. ७९३)
—संत क िनंदा कभी नह करनी चािहए। संत और ई र म कोई भेद नह ।
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१०१. संतोष
‘िबना संतोख नह कोउ राजै।’
(पृ. २७९)
—संतोष क िबना कोई राजा नह हो सकता।
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१०२. सं यासी
‘आस िनरासी तउ संिनयासी।’
(पृ. ३५६)
—जो मन म िकसी पदाथ क आशा नह रखता वही सं यासी ह।
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१०३. सग-संबंधी
‘का क माई का को बाप।
नाम धारीक झूठ सिभ साक॥’
(पृ. १८८)
—यहाँ कौन िकसक माँ और कौन िकसका िपता ह? सभी संबंध झूठ और िसफ नाम क ह।
❉❉❉
‘जो संसार क कटब िम भाई दीसिह मन मेर
ते सिभ अपने सुआइ िमलासा,
िजतु िदिन उन का सुआउ होइ न आवै
िततु िदिन नेड़ को न ढकासा।
मन मेर अपना ह र सेिव िदनु राती
जो तुिध उपकर दुिख सुखासा॥’
(पृ. ८६०)
—ह मेर मन! संसार म तु ह जो प रवार, िम , भाई िदखाई देते ह वे सब अपने-अपने वाथ क कारण तु हार साथ
ह। िजस िदन उनका वाथ पूरा नह होगा उस िदन कोई भी तु हार समीप नह आएगा। इसिलए ह मेर मन! सदा
ई र क सेवा कर, जो तेर दुःख दूर करक सुख देनेवाला ह।
❉❉❉

१०४. सच
‘सच पुराणा होवे नाही...’
(पृ. ९५५)
—सच कभी भी पुराना नह होता।
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‘सचु ता प जाणीअै जा रदै सचा होइ।
कढ़ क मलु उतर, तनु कर हछा धोइ॥’
(पृ. ४६८)
—जग क सच को तभी जाना जा सकता ह जब दय म भु का वास हो जाए। ऐसा होने पर मन से छल और
झूठ क मैल उतर जाती ह और मन क साथ ही तन भी सुंदर हो जाता ह।
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१०५. सचखंड (बैकठ)


‘सचखंिड वसै िनरका ,
क र क र वेखै नद र िनहाल।’
(पृ. ८)
—सचखंड म उस िनराकार ई र का वास ह। वह सृि क रचना करता ह, उसे देखता ह और जीव पर अपनी
कपा ि करता ह।
❉❉❉
‘िसम र िसम र सुआमी भु अपुना िनकिट न आवै जाम।
मु बैकठ साध क संगित जन पाइउ ह र का धाम॥’
(पृ. ६८२)
— भु क सुिमरन से यम िनकट नह आता और साधुजन क संगित से जीव मु और बैकठ ा करता ह।
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१०६. स न-िम
‘उइ साजन उइ मीत िपआर। जो हम कउ ह रनामु िचतार॥’
(पृ. ७३९)
—वे स न, वे िम ि य लगते ह जो हम ह र का नाम सुिमरन करवाते ह।
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‘िकसु नािल क चै दो ती सभु जगु चलणहा ।’
(पृ. ४६८)
—इस संसार म िकससे दो ती क जाए, सबको एक-न-एक िदन यहाँ से चले जाना ह।
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‘सभु को मीतु हम आपन क ना हम सभना क साजन।’
(पृ. ६७१)
—सबको हमने अपना िम बनाया ह, हम सबक साजन ह।
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१०७. सितगु (गु )


‘िजसु िमिलअै मिन होइ अनंदु सो सितगु कहीअै।
मन क दुिबधा िबनिस जाइ ह र परम पदु लहीअै॥’
(पृ. १६८)
—िजसक िमलन से मन को आनंद िमले, दुिवधा दूर हो जाए और परम पद क ा हो, वही सतगु ह।
❉❉❉
‘गु सागरो र नागु िततु र न घणेर राम।’
(पृ. ४३७)
—गु सागर ह, गु र नाकर ह, िजसम असं य ब मू य र न ( ान का भांडार) ह।
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‘गुर समािन तीरथ निह कोइ।’
(पृ. १३२८)
—गु क समान कोई तीथ नह ह।
❉❉❉
‘बिलहारी गु आपणे िदउहाड़ी सद वार।
िजिन माणस ते देवते क ए करत न लागी वार॥’
(पृ. ४६३)
—म अपने गु पर िदन म सौ-सौ बार बिलहार जाता िजसने साधारण मनु य को अपना क याणकारी उपदेश
देकर देवता बना िदया और ऐसा करने म उसे जरा भी देर नह लगी।
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१०८. सती
‘सतीआ एिह न आखीअिन जे मड़ीआ लग जलंिन।
नानक सतीआ जाणीअिन िज िबरह चोट मरिन॥’
(पृ. ७८७)
—उन य को सती मत कहो जो पित क िचता म जल मरती ह। नानकदेवजी कहते ह, वे याँ ही स ी सती
ह जो पित क िवरह म ही मर जाती ह।
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‘भी से सतीआ जाणीअिन सील संतोख रहिन।
सेविन साई आपणा िनत उिठ संमालंिन॥’
(पृ. ७८७)
—वे याँ भी सती ह जो शील और संतोष क साथ रहती ह तथा िन य अपने वामी क सेवा-सँभाल करती ह।
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१०९. समपण
‘हउ मनु अरपी सभु तनु अरपी अरपी सिभ देसा।
हउ िस अरपी ितसु मीत िपआर जो भ देइ सदेसा॥’
(पृ. २४७)
—म उस यार िम क आगे अपना मन, तन, देश और िसर भी अिपत करता जो मुझे भु का संदेश सुनाता ह।
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११०. सयाना
‘िजन अंत र ह र ह र ीित ह ते जन सुघड़ िसआणे राम राजे।’
(पृ. ४५०)
— दय म भु क ीित रखनेवाले य ही सयाने ह।
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१११. साधु क संगित


‘सत संगित कसी जाणीअै।
िजथै एको नामु वखाणीअै॥’
(पृ. ७२)
—जहाँ िसफ भु क नाम का बखान होता ह उसे साधु क संगित जानो।
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‘साध क संिग िमट अिभमानु।
साध क संिग गट सुिगआनु॥’
(पृ. २७१)
—साधु क संगित से अहकार दूर होता ह और मन म ान का काश होता ह।
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‘साध क संिग आवै बिस पंचा।’
(पृ. २७१)
—साधु क संगित से पाँच िवकार (काम, ोध, लोभ, मोह एवं अहकार) वश म आते ह।
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‘महा पिव साध का संगु।
िजस भेटत लागै भु रगु॥’
(पृ. ३९२)
—साधु क संगित महापिव होती ह। साधु से भट होते ही मन भु क रग म रग जाता ह।
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११२. सुख
‘िडठा सभ संसा सुखु न नाम िबनु।’
(पृ. ३२२)
—सारा संसार घूमकर देख िलया, ई र क नाम क िबना कह भी सुख नह ह।
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‘सुखु नाही ब तै धिन खाट। सुखु नाही पेखे िनरित नाट।
सुख नाही ब देस कमाए। सरब सुखा ह र गुण गाए॥’
(पृ. ११४७)
—ब त अिधक धन कमा लेने या नृ य अथवा नाटक देखने या अनेक देश का मण कर लेने से सुख ा नह
होता। स ा सुख ह र क गुण का गायन करने म ह।
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११३. सुिमरन
‘िजसु नीच कउ कोई न जानै।
नामु जपत उ च कट मानै॥’
(पृ. ३८६)
—िजस नीच य को कोई नह जानता, ई र क नाम का जाप करने से चार िदशा म उसे ित ा िमलती ह।
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‘ितस क तृ ा भुिख सभ उतर जो ह र नाम िधआवै।’
(पृ. ४५१)
—ह र का नाम सुिमरन करनेवाले य क तृ णा और भूख िमट जाती ह।
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११४. सृि रचना


‘ कमी होविन आकार...’
(पृ. १)
—ई र क म (इ छा) से यह सृि अ त व म आई।
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‘सगली बणत बणाई आपे...
इकसु ते होइउ अनंता नानक एकसु मािह समाए जीउ।’
(पृ. १३१)
—नानकजी कहते ह—यह सारी सृि भु ने वयं बनाई...एक ई र से असं य ाणी ए। अंत म जीव उसी
ई र म समा जाते ह।
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११५. सवक
‘नानक सेवक सोई आखीअै जो िस धर उता र।
सितगुर का भाणा मिन लए स दु रखै उरधा र॥’
(पृ. १२४७)
—नानकदेवजी कहते ह, सेवक वही य कहलाता ह जो अपना शीश गु क आगे अिपत कर देता ह और
उसक हर इ छा को वीकार करते ए शबद को दय म धारण करता ह।
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११६. सवा
‘सेवा करत होइ िनहकामी। ितस कउ होत परापत सुआमी॥’
(पृ. २८६)
—िन वाथ मन से सेवा करनेवाले य को ही ई र ा होता ह।
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‘िबनु सेवा फलु कब न पाविस।’
(पृ. ९९२)
—सेवा क िबना फल कभी ा नह होता।
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११७. ान
‘मिन मैले सभु िकछ मैला,
तिन धोते मनु हछा न होइ।’
(पृ. ५५८)
—िजस य का मन मिलन ह उसका सबकछ मिलन ह। तन क ान से मन क मैल दूर नह होगी।
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‘िगआनु े ऊतमु इ ानु।’
(पृ. ७९६)
—ई र का ान सबसे े एवं उ म ान ह।
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‘सूचे इ न आखीअै बहिन िज िपंडा धोइ।
सूचे सेई नानका िजन मिन विसआ सोइ॥’
(पृ. ४७२)
—िसफ तन का ान कर लेने से य शु नह हो जाता। नानक का कथन ह, वही य शु ह िजनक मन
म भु का नाम बसा आ ह।
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