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Translated by
Dr Kedar Nath Dwivedi
Heddington, 2015
य सभी पवचन मा सयामा जी क सवगीय पित, सया जी ऊ िचत ितन दारा
अंगेजी म रिचत तथा डॉ० िविलयम पूइट दारा संपािदत िकय गय थ ।
ितरतन की शरण
कायरकम का एक आवशयक अंग ितरतन की शरण लन की कुछ पारंिभक औपचािरकता ह,
िजसक दारा साधको का समयक जागृित (बुद) की ऊजा एवं शिकतयो स संगत या संपकर हो
सक । ितरतन का अथर तीन रतन ह :- पथम बुद या जागृत, िदतीय बौद धमर या सतय, तथा
तृतीय संघ या वह समुदाय जो उनक पिशकण को जीिवत रख हए ह । पिशकण काल म
सुरका एवं मागरदशरन क िलए, भगवान बुद एवं अाचायर को हमार सवयं क समपरण दारा, इस
संगत या अनुकूलन की सतत िनरंतरता बनी रहती ह ।
अतः हम अपन िशिवर (कोसर) का पारंभ बुद (जागृत) की, धमर (पािल म, धमम या बुद
दारा िसखाय िसदात) की, तथा संघ (उन लोगो क समुदाय, जो इस िशका का पालन कर रह
ह, और िजनहोन पचीस शतािबदयो स अिधक तक इस पथा को बनाए रखा ह) की शरण लकर
करत ह । हम अपन संरकण तथा मागर दशरन क िलए सवयं को बुद एवं अाचायर को समिपत
करत ह । हम नैितक िशकापद या शील गहण करत ह । अंत म हम अाचायर स आनापान
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पथम िदवस, पातः पवचन
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पथम िदवस, पातः पवचन
अनुसार ह, तकर संगत ह, नयाय सममत ह, इसका आकार पकार सुंदर ह, यह हमार
मत क अनुकूल ह, इस कहन वाल का वयिकततव आकषरक ह, कहन वाला शमण
हमारा पूजय ह । यिद तुम सवयं जान जाअो िक य बात कुशल ह, य बात दोषहीन
ह, इन बातो की बुिदमानो दारा पशंसा होती ह; जब इन बातो को वयवहार म
लाया जाता ह तथा इनका पालन िकया जाता ह तो य कलयाण एवं सुख क िलए
अनुकूल होती ह; तब कालामाअो तुमह उनका अभयास कर, उनक अनुसार जीना
चािहय ।'
----------अंगुतर िनकाय, ितक िनपात, महावागग, कसमुितसुतं ६५
उसी पकार, सयाजी ऊ बा खी न अपन संबोधन 'बौद धमर ह कया' (What Buddhism is) म
कहा ह :- 'तो, जब भी म दाशरिनक िवषयो पर कुछ कहता हँ, कृपया आप मुझ पर तब तक
िवशास न कर जब तक मरी बात पूणरत: तकरसंगत न लग अथवा अाप वयावहािरक रप स
अाशसत न हो जाय ।'
इसीिलए हमारा भी यही कहना ह िक जब तक हमारी बात वयावहािरक न लग अथवा
इसस लाभ का अनुभव न हो, तबतक आप हम पर िवशास न कर । िफर भी, पारंभ तो
अाचायर बुद म कुछ शदा या िवशास क साथ ही करना होगा । हम एक कायरवाही पिरकलपना
करत ह िक जागृित संभव ह, िक सतय का जान पापत हो सकता ह तथा, िक ऐस भी वयिकत ह
िजनहोन सतय क जान को जीिवत रखा ह, िजसस अनय लोग लाभािनवत हो सक । तब हम
अपन पयोग िनधािरत करत ह । पहला पयोग पाँच या आठ िशकापदो (शील) का पालन
करना ह । बुद न पाया िक यिद हम िकसी पाणी की हतया, चोरी, यौन दवयरवहार, झूठ तथा
अनय पकार की अनुिचत वाणी और मादक दवयो क सवन स बच, तो हमारा िचत शात और
िसथर होन लगगा । अतः हम पंचशील का पालन बडी ईमानदारी स करत ह िजसस िक हम
दख सक िक इस नैितकता या शील क अभयास स हमार मिसतषक म कया पितिकया होती ह ।
दसर पयोग का उदेशय िचत को कवल एक ही अालमबन पदान करना ह । तथा हमार िलए
यह अालमबन शास ह । यिद हम अपना धयान बारंबार, समभवतः हजारो बार, शास पर
वापस लात रह, तो हमारा िचत धीर धीर इस जागरकता या संजान पर िसथर होन लगगा ।
जैस ही मन एक िवषय स दसर िवषय पर भटकना बंद कर दता ह, वैस ही वह िसथर होन
लगता ह और अंततः संभवतः अलप अविध क िलए ही सही, एकाग-िचत भी ।
जैस जैस हम इस काम म आग बढंग, वैस वैस हम जागृत अवसथा म पहँचन क मागर पर
पगित करन क िलए उपयुकत जान भी पापत होता रहगा । िकतु लकय को पापत करन क बाद
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पथम िदवस, पातः पवचन
अाचायर
तीन रतनो की शरण लन क अितिरकत, हम सवयं को इस पिशकण काल तक क िलय बुद एवं
अाचायर क संरकण म डालत ह । यिद हम वैजािनक स तुलना की बात कर, तो हम एक ऐस
शोध वैजािनक की तरह ह जो पिशकण म ह । हम एक ऐस अाचायर की आवशयकता ह, जो
हम िदखाय िक कैस एक कायरवाही पिरकलपना रची जाय, कैस कोई पयोग िनधािरत िकया
जाय, और कैस पिरणामो का मूलयाकन िकया जाय । यिद हम सीखना ह तो हम सही तरीक स
काम भी करना होगा, और सही तरीक स काम करन िलए, हम ऐस वयिकत की आवशयकता ह,
जो हम उिचत सलाह द सक और हमार पशनो का उतर भी । इसका अथर यह नही ह िक आप
को अंध-भकत होन क िलए कहा जा रहा ह । आप स कुछ भी अनुिचत करन क िलए नही
कहा जाएगा । िकनतु हम यह याद रखना चािहए िक अाचायर हम वही िशका द रह ह, िजसका
असंखय लोगो न अभयास िकया ह और उस दःख स मुिकत क िलए उपयुकत पाया ह । तथा
अाचायर हमस ऐसा कुछ भी करन क िलए नही कह रह ह, जो परीिकत व िवशशनीय न हो ।
तब हमन नैितक िशकापद (पंचशील या अषशील) िलय । आनापान िसखान क िलए
औपचािरक अनुरोध भी िकया । बुदतव पापत करन क तुरंत बाद बुद न सार िवश का सवरकण
िकया और पाया िक जो जान उनहोन पापत िकया था उस दसरो को िसखाना सरल नही था ।
एक जागृत वयिकत क रप म व सारी इचछाआं स पर थ, और यदिप उनम सभी दःखी
पािणयो क िलए असीम करणा और अनुकंपा थी, िकतु यह िशका दसरो को दी जाय या नही,
इसपर बुद को िहचिकचाहट हई । हमार सौभागय स उसी समय बहा सहँपित उनक पास
पहँच, और उनस अनुरोध िकया िक व धमम की िशका दं । उस कण क पशात पुनः व कभी भी
नही िहचिकचाय । बुद न उस पतयक वयिकत को पिशिकत िकया, िजसन उनस हािदक
अनुरोध िकया । यही कारण ह िक आपस भी वही करन क िलए कहा गया ।
आप न दखा िक हमन 'हािदक अनुरोध' की बात कही । सयाजी ऊ बा खी बमा (मयंमा) म
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पथम िदवस, पातः पवचन
पोिटल थर की कथा
सयाजी ऊ बा खी पायः बुद क समय क पोिटल सथिवर (जो अतयिधक सवािभमान स गिसत
थ) की कथा सुनात थ । पोिटल एक अतयंत िवदान िभकु थ१। िपछल जनमो को िमलाकर, व
सात बुदो की छतछाया म पकाड पिणडत िभकु की तरह रह तथा गौतम बुद क समय उनहोन
पाँच सौ िभकुआं को धमरगनथ पढाया । बुद न दखा िक सथिवर (पािल म, थर) अब अपनी
अंितम मुिकत हतु पिरशम क िलए तैयार ह । िकतु उनह यह भी पता चला िक सथिवर पोिटल
न दःख स मुिकत हतु कायर करन क िवषय म कभी िवचार भी नही िकया था । अतः उनह
उकसाना पडेगा । ततपशात् उनहोन उनको तुचछ (अनाडी, बुिदहीन) पोिटल कह कर बुलाना
पारंभ िकया । बुद उनस कहत :- 'आओ तुचछ पोिटल', 'वनदना करो तुचछ पोिटल', 'बैठो
तुचछ पोिटल', 'जाओ तुचछ पोिटल'।
पोिटल न अपन मन म सोचा, ' मुझे बुद क सभी उपदशो (ितिपटक) तथा उनकी
टीकाआं का जान ह; म िभकुआं को पिशिकत करता हँ; िफर भी बुद मुझे तुचछ पोिटल कह
कर बुलात ह ।' अतः उनहोन िनणरय िलया िक अब वन म पवश कर सवयं को साधना म
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पथम िदवस, पातः पवचन
समिपत करन का समय आ गया ह । िकतु, इस हतु उनह धयान क िलए एक कमरसथान (पािल
म, कममथथान) अथात अालमबन या िवषय वसतु की आवशयकता थी, तथा िकसी स उसकी
पदित िसखान क िलए िनवदन करना था । अतः व एक वन िवहार म गय िजसम ३० िभकु
रहत थ । औपचािरकता क अनुसार, उनहोन संघ सथिवर (शेषतम िभकु) को पणाम िकया और
कहा, 'भनत, कृपया मुझे अपनी शरण म लीिजए ।'
िकतु महासथिवर न उतर िदया, 'अायुषमान, आप सवयं एक उपदशक ह । यह तो म हँ
िजस आप स सीखना चािहए ।' तब पोिटल न कहा, 'भनत, कृपया ऐसा मत कीिजए । कृपया
मुझे अपनी शरण म ल लीिजए ।'
ऐसा था िक इस िवहार म सभी तीस िभकु पूरी तरह जागृत अथात् अहरत थ और व भी
पोिटल की समसया को समझन म सकम थ । अत: महासथिवर न सोचा, 'अपन जान क कारण
इस िभकु म अतयिधक गवर ह'। अतः उनहोन पोिटल को अपन अनुसथिवर क पास भजा जो
विरषता म िदतीय थ । िदतीय िभकु न पोिटल को अपन स किनष िभकु क पास भजा, और
इसी तरह यह िसलिसला तबतक चलता रहा जबतक अंत म व एक सातवषीय शामणेर क
पास नही पहँच गय, जो अपन िदवाकक म बैठे कुछ िसलाई कर रह थ । पतयक अिसवकृित
पोिटल क सवािभमान पर बहत बडा पहार थी । यहाँ तक िक सातवषीय शामणेर न भी, जो
सवयं अहरत थ, पोिटल का अनुरोध पहल असवीकार कर िदया, िकतु अंत म बोल, 'भनत, यिद
आप धैयरपूवरक अनुशासन सहन कर, तो म आपको शरण पदान करंगा ।'
पोिटल का उतर था, 'सतपुरष, म वैसा ही करँगा । यिद आप मुझे आग म पवश करन क
िलय कहग तो म उसम भी पवश करँगा'।
शामणेर न दखा िक पोिटल बहत ही मूलयवान वस पहन हए ह और उनस बोल, 'भनत,
आप अपनी पूरी पोशाक म इस पानी क सरोवर म कूद जाय ।' पोिटल तब पानी म कूद गय ।
जब शामणेर न दखा िक सथिवर क वस स पानी टपक रहा ह, तो उनह अपन पास बुलाया ।
पोिटल परीका म सफल हो गय थ और उनहोन यह िसद कर िदया था िक उनका मन अब
िनदरशो को समझन तथा उनक पालन क िलए पयापत लचीला हो गया था ।
शामणेर न कहा, 'भनत, यिद कोई छ छद वाली वलमीक (बाबी) हो और िजसक िकसी
छद स एक गोधा (गोह) अंदर चली गयी हो तथा कोई वयिकत उस गोधा को पकडना चाहता
हो, तो वह पाँच छदो को बंद कर एक छद खुला रखगा । इस पकार वह गोधा को पकड
सकगा । आप को भी इंिदयो क छ दारो स िनपटन क िलए वही करना चािहए । छ म स पाँच
दारो को बंद कर, अपना धयान मन क दार पर समिपत कर दीिजय ।'
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पथम िदवस, पातः पवचन
पोिटल न कहा, 'महोदय, इतना पयापत ह ।' चूँिक व इतन िवदान थ िक शामणेर क
शबद उनक िलए िकसी क दीप पजजविलत करन क समान थ । अतः उनहोन अपन शरीर म
धयान किदत करना शुर कर िदया । भगवान बुद न पोिटल को धयान लगान का अभयास करत
दखा और अपन मन म सोचा, 'इस िभकु को सवयम् को इसम सथािपत करना होगा, िजसस िक
वह महान जानी बन सक ।' बुद न अपना एक जगमग पितरप भजा और वह गाथा कही जो
इस पवचन क आरंभ म दी गयी ह । इस गाथा स पोिटल क हौसल म अथाह बृिद हई,
िजसकी उनको अतयंत आवशयकता थी । गाथा क समापन पर व पूणररपण जागृत , अथात्
अहरत हो गय ।
तो हम इस कथा स दख सकत ह िक छात क िलए िवनमता िकतनी महतवपूणर ह । और
यह भी दख सकत ह िक एक योगय अाचायर पापत करना भी िकतना आवशयक ह । इस कथा म
अाचायर एक सातवषीय शामणेर थ, िकतु व पूणररपण जागृत थ और चूँिक व जागृत थ,
इसिलए उनम िकसी अतयंत िशिकत िभकु स भी अिधक समझ थी ।
िवशास पर एक िटपपणी
इन पवचनो स संबंिधत यहा हम एक िटपपणी जोडना चाहत ह । भगवान बुद क जीवन की
घटनाआं स संबंिधत हम आपको कई कथायं सुनाएँग, और ऐसी अनक घटनाएँ होगी िजन पर
आपक िलए िवशास करना किठन हो । जैस एक अमरीकी िशषया को, उचचतम बहलोक स
लकर िनमनतम नरक तक क ३१ लोको क िवषय म समझात हए, सयाजी ऊ बा खी न
बताया था, 'जब म इन लोको क िवषय म बात करता हँ तो मरा अथर यह नही होता िक आप
इन म िवशास कर । हो सकता ह िक अाप सवगर एवं नरक क अिसततव पर िवशास करती हो ।
िकतु जब आपकी मानिसक शिकत उस सतर तक िवकिसत हो जाएगी िक आप दार खोल कर
सभी ३१ लोको क पािणयो को दख पाएँगी, तब आप को मर िववरण पर िवशास हो ही
जाएगा । मन कई वयिकतयो को ऐसा दखन क िलए पिशिकत भी िकया ह । आप समझ रही ह
न? तब आप को िवशास होगा ।'
सयाजी ऊ बा खी न यह भी कहा, “जब तक उनह सवयं अनुभव न हो या जब तक उनह
साकात िदखाई न पड जाय तब तक म िकसी स िकसी बात पर िवशास करन क िलए नही
कहता । अतः आप यहाँ मर ऊपर िवशास करन क िलए नही ह । बुद न कहा ह: 'मुझ पर भी
िवशास मत करो ।' आप सवयं अनुभव कर । और पता लगाएँ िक कया आपका अनुभव अचछा
ह तथा आपक िलए कलयाणकारी ह । यिद यह आपक िलए कलयाणकारी ह, तो आप इस गहण
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पथम िदवस, पातः पवचन
कर सकत ह । यिद आपक िलए कलयाणकारी नही ह, तो आप इस नही गहण करग । अतः
यहाँ पर सारा पिशकण अनुभव क माधयम स ही होगा ।” सयाजी ऊ बा खी न इसी पकार
लोगो को पिशिकत िकया तथा उसी पकार हम भी यहाँ लोगो को पिशिकत करत ह । िकतु
यह आवशयक ह िक िशका सही तरीक स हो और बुद न जो िसखाया उसक पित हम िनषावान
बन रह । इसीिलए, धमरगंथो की कथाआं क दृषाँतो दारा पवचनो को सपष करत समय, हम
यथासंभव उनक मूल सवरप क पित िनषावान बन रहग । यिद हम उनक कुछ भागो को कवल
इसिलए िनकालन लगं िक हम भय ह िक छात हर बात पर िवशास नही करग, तो हम इन
िशकाआं को िवकृत कर दंग ।
पुककुसाित की कथा
यह एक और कथा ह जो अाचायर तथा िशका क पित उिचत दृिषकोण को चिरताथर करती ह ।
धातुिबभंग सुत पर िटपपणी करत हए आचायर बुदघोष न समाट िबिबसार क समकालीन,
तकिशला अथात गाधार क राजा पुषकरसिरन (पािल म, पुककुसाित) का िववरण पदान िकया
ह ।२ इन दोनो नरशो क बीच एक मतीपूणर गठबंधन सथािपत हो गया था और एक समय
पुककुसाित न उपहार सवरप अमूलय आभूषणो स भरी, रोगन की हई आठ मंजूषाएं अथात
पिटया भंजी । चूँिक, िबिबसार क िवचार म भजन युकत कोई भी अनय सामगी उतनी
मूलयवान नही थी, उनहोन पुककुसाित को इस िवश म ितरतन (बुद, धमम और संघ) क उदय
स पिरिचत करान की कलपना की । उनहोन ४ बाह लंब और एक िबता चौडे सवणरपट पर
ितरतन तथा बुद की िशका क अनय िसदातो जैस , सित (जागरकता) पर पवचन, अषाँिगक
आयर मागर, जागृित क ३७ घटक (बोिध पिकखय धममा) का वणरन खुदवाया । जब राजा
पुककुसाित न उस सवणरपट पर इन िशलालखो को पढा, तो व असीम आनंद स गदगद हो गय
और उनहोन संनयास लन का िनणरय िलया । अपना सर मुडवा कर, और संनयासी क पील वस
पहन कर, उनहोन अपना महल छोड िदया । िफर उनहोन शावसती तक की एक लंबी याता
जतवन दार क बाहर बाहर तंय की, कयोिक उनहोन अपन िमत क पत स यह समझा था िक
बुद राजगृह (पािल म, राजगह, अाधुिनक राजिगर) म होग । इसीिलए व जतवन म पूछ
िबना ही राजगह क िलए चल पडे ।
पुककुसाित न, जो िविधवत उपसंपदा पापतकर पूणररप स िभकु नही बन थ, एक रात
एक कुमहार की झोपडी म िबताई । बुद अपन दौर पर थ और उनहोन उसी झोपडी म रहन
की अनुमित माँगी । उनह भी अनुमित िमली । बुद को लगा िक यह युवा वयिकत सुहावन
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पथम िदवस, पातः पवचन
वयवहार वाला ह, तथा उसस पूछा िक उसन संनयास कयो िलया और उसक अाचायर कौन थ ।
पुककुसाित न कहा िक उनहोन अपना गाहरसथय जीवन गौतम बुद क कारण तयाग िदया था ।
बुद न पुककुसाित स पूछा िक कया व गौतम बुद स कभी िमल ह और पुककुसाित न कहा
'नही'। तब बुद न उनस पूछा िक यिद व बुद स िमल तो कया उनह पहचान पाएँग ।
पुककुसाित न उतर िदया 'नही'। बुद न अपन मन म िवचार िकया, 'एक सममािनत पिरवार स
इस युवा वयिकत न मर कारण संनयास िलया ह । मानो, म इस धमर की िशका दता हं?' अतः
उनहोन उनस कहा, 'िभकखु, म आपको धमर की िशका दँगा । कृपया मन लगाकर धयान स
सुिनए, म बोलता हँ ।' और पुककुसाित न कहा, 'अचछा िमत'।
बुद न पुककुसाित को एक िवसतृत धमोपदश िदया, और उस उपदश क अंत म पुककुसाित
को महसूस हआ िक व सवयं बुद को ही सुन रह थ । उनहोन बुद को नमन िकया और उनस
कहा िक व कृपया उनकी कमा याचना सवीकार कर िक उनहोन उनको (बुद को) 'िमत'
(िजसस तातपयर िनकलता ह िक व दोनो समान सतर क ह) शबद स संबोिधत करन की तुिट की
थी । पुककुसाित अब ऐसी गलती दहरान स बचग । बुद न इस सवीकार िकया ।
पुककुसाित न तब बुद की उपिसथित म उपसंपदा पापत करन (िभकु बनन) का अनुरोध
िकया । यिद पुककुसाित न अपन अतीत म अपन आप को पिरपूणर कर िलया होता, तो बुद
उनह 'एिह िभकखु' ('िभकु, आओ') कह कर उपसंपदा द दत और संघ म सिममिलत कर लत ।
िकतु पुककुसाित क पास पवजया क िलए चीवर तथा पात नही था, अतः बुद न पहल इन
सामिगयो को पापत करन क िलए कहा । जब व इनकी तलाश कर रह थ, एक गाय न उनह
मार डाला । कई िभकुआं न बुद स पूछा िक मृतयु क बाद पुककुसाित का कया हआ, तो बुद न
कहा, चूँिक व जागृित क तीसर (अनागामी) चरण म पहंच गय थ, पुककुसाित अब
उचचसतरीय लोको म स एक म थ और उस लोक स कभी भी वापस आए िबना ही, व पूणर
जागृित (िनवाण, पािल म िनबबाण) पापत कर लग ।
आप दखंग िक पुककुसाित को यह जानन की आवशयकता नही थी िक उनस कौन बात
कर रहा था । उनहोन एक खुल िदमाग स, पूरा धयान दकर, सतय और धमम क िवषय म सुना
और सवयं सतय का साकातकार करन म सकम हो गय । ऐसा ही दृिषकोण आप का भी होना
चािहए । हमार काम म अंध-िवशास क िलए कोई सथान नही ह । जब हम शदा की बात
करत ह, तो हमारा भाव अातमिवशास स होता ह और हमारा अातमिवशास हमार अनुभव पर
िनभरर करता ह । पारंभ म हम कम स कम उतन आतम-िवशास की आवशयकता ह िजसस हम
इस तकनीक का िनषपक परीकण कर सक । और शीघ ही हम सवयं पता चल जाएगा िक यह
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पथम िदवस, पातः पवचन
की िचत एकागता दारा पापत की जाती ह । पहल पाँच िदनो म हम इसी क िलए काम कर
रह ह । अंतदृरिष क िवकास क िलए उचच सतर की शात एकागता अपिरहायर ह । इनका
उपयोग समािध या धयान (पािल म, झान) म पवश करन क िलए संभव ह, िकतु यह झान
हमार िलय आवशयक नही ह । जब हमारा िचत पयापत रप स शात एवं किदत अवसथा तक
पहँच जाता ह, तब हम अंतदृरिष का िवकास कर सकत ह । यह समथ या पशिबध (पािल म,
पसिद) मन को दोष एवं आंतिरक बाधाआं स मुकत करती ह तथा उस अपार वधक शिकत
पदान करती ह । समथ म ऐसी शिकत ह िजसस हमारा िचत एकाग तथा िसथर हो जाता ह,
कयोिक हम सभी कामचछनद एवं देष स मुकत हो जात ह । यह हम पकाश क बोध की अोर,
तथयो (पिकयाआं) की पिरभाषा की अोर, तथा जान एवं आनंद की ओर अगसर करता ह, और
हम उचचसतरीय धयान लगान क िलए तैयार करता ह ।
अंतदृरिष अथात् िवपशयना (पािल म 'िवपससना') पतयक अनुभव क माधयम स नशरता
या अिनतय (पािल म, अिनचच), असंतोष (दःख), तथा अिसततव क सभी भौितक एवं
मानिसक तथयो (पिकयाआं) म अनातम (पािल म, 'अनता') की भदक जानकारी ह । यह
अंतदृरिष ही ह जो जागृित की इिनदयातीत या पारलौिकक अवसथाआं म पवश क िलए एवं
अंितम मुिकत क िलए अगसर करती ह । िकतु हम इन पवचनो म आग चल कर अंतदृरिष
(िवपससना) क िवषय म और िवसतार म जाएँग । इस समय हमारी पाथिमकता एकागता क
िवकास की ह ।
िशका तथा अाचायर क पित उिचत दृिषकोण क दृषात क िलए हमन पुककुसाित का
संिकपत िववरण िदया; और हमन दखा िक बुद दारा िदए गय एक िवसतृत पवचन को सुनन
क बाद, व 'फल' पद क तीसर (अनागमी) चरण म सथािपत हो गय । िकसी भी वयिकत क
िलए 'फल' पद की अवसथाएं पापत करना तब तक आसान नही ह, जब तक िक अतीत म
जागृित की सभी आवशयक तैयािरयाँ पूरी न कर ली गयी हो ।
संदभर सूची
१. कथा क िलय धममपद (खुदक िनकाय) अटकथा, २०: मगगवगगो, ७: पोिटलतथरवतथु
अथवा अंगेजी म 'Buddhist Legends III (XX:7): 157-159' दिखय।
२. मिजझम िनकाय टीका (३़ उपिरपणास टीका), ४: िवभंग वगगो, १० धातु िवभंग सुत
(on the web, translation by Thanissaro Bhikkhu 1997)
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पथम िदवस, पातः पवचन
– संिकपत कथा क िलए 'मािजझम िनकाय' की टीका 'पपंच सूदनी' II, 979f दिखए ।
– Dictionary of Pali Proper Names म 'पुककुसाित' क अंतगरत िवसतृत कथा विणत ह ।
– बुद स भंट क िवषय म The Middle Length Sayings III 285-294 पढ सकत ह.
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पथम िदवस, सायं पवचन
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पथम िदवस, सायं पवचन
जाता ह ।
दसर शबदो म, हम अषाँिगक ओयरमागर पर चलन का अभयास करन जा रह ह; वही मागर
िजस गौतम बुद न पचीस हजार वषर पहल अपन पथम उपदश - िजस पािल म 'धमम चकक
पवतन सुत' (धमर चक पवतरन सूत) क नाम स जानत ह - म िनधािरत िकया था । उनहोन यह
पवचन उन पाँच तपिसवयो को िदया जो उनक जागृित पापत करन क िलए छ वषो क संघषर म
उनक साथ थ । यह अषाँिगक ओयरमागर उदेशय पािपत का माधयम ह; और उदेशय दख का अंत ह ।
इस अषाँिगक ओयरमागर क सार को नैितकता, एकागता, और िववक क तीन चरणो म अिभवयकत
िकया गया ह । छात को इसी मागर का लगन एवं कडाई स पालन करना चािहए ।
एक समय बुद पाँच सौ िभकुओं क साथ दश की याता कर वापस लौट । य िभकु शावसती
क सभागार म बैठ कर उन मागो की चचा कर रह थ िजन पर व चल कर ओए थ १ । व कह रह
थ, 'अमुक अमुक गाँव का रासता अचछा ह, तथा अमुक अमुक गाँव का मागर ऊबड खाबड ह ।' व
कंकड स भर तथा कंकड स मुकत रासतो क बार म बात कर रह थ । यह समझ कर िक य िभकु
पूणर जागृित अथात अहरतव क िलए तैयार ह, बुद उस सभागार म पहँच और उनहोन अपना सथान
गहण िकया । उनहोन िभकुओं स पूछा िक व कया बात कर रह थ तो िभकुओं न उनह बताया ।
तब बुद न कहा, 'िभकुओं, यह मागर हमार िहत क पर ह । एक िभकु को ओयर मागर पर चलना
चािहए, कयोिक सभी दखो स मुिकत पापत करन का वही एक मागर ह ।' और उनहोन
िनमनिलिखत गाथायं कही :-
मगगानटंिगको सटो, सचचानं चतुरो पदा ।
िवरागो सटो धममानं, िदपदानंच चकखुमा ।।
मागो म अषाँिगक मागर, सचचाइयो म चार ओयर सतय, धमो म वीतरागता, (दव,
मनुषय ओिद)
िदपदो म चकुमान बुद शेष ह ।
एसव मगगो नतथञञो, दससनसस िवसुिदया ।
एतिञह तुमह पिटपजजथ, मारससतं पमोहनं ।।
दशरन की िवशुिद (जान की पािपत) क िलय यही मागर ह, (कोई) दसरा नही । तुम
इसी पर अारढ होअो, यह मार (मुिकत म बाधक) को हकका बकका करन वाला,
िककतरवयिवमूढ बनान वाला ह ।
एतिञह तुमह पिटपनना, दकखससनतं किरससथ ।
अकखातो वो मया मगगो, अञञाय सललकनतनं ।।
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पथम िदवस, सायं पवचन
इस मागर पर ओरढ होकर तुम दःख का अंत कर लोग । लालसा रपी तीर को (शलय
दारा) िनकाल फेकन का जान सवयं पापत करन क बाद मन इस मागर का तुमहार िलए
ओखयान िकया ह.
तुमहिह िकचचमातपपं, अकखातारो तथागता ।
पिटपनना पमोकखिनत, झाियनो मारबनधना ।।
इस मागर पर चलना (तपसया, अभयास या पिरशम करना) तो तुमह ही पडेगा,
तथागत तो मात मागर ओखयात (मागर दशरन) करत ह । इस मागर पर ओरढ होकर
धयान करन वाल मार क बंधन स सवरथा मुकत हो जात ह ।
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पथम िदवस, सायं पवचन
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पथम िदवस, सायं पवचन
इसम बलातकार तथा िकसी पुरष का िकसी ऐसी लडकी स जो अपन माता, िपता या िकसी अनय
क संरकण म हो, अनुिचत यौन संबंध भी सिममिलत ह । िकसी अलपवयसक स गलत संबंध या
िकसी ऐस भी स इस पकार का संबंध, जो पित या पतनी न हो, अनुिचत ह । इस संयम म अनय
वासनाएँ भी सिममिलत ह, अथात हम मादक दवयो, ताश क पते या पास स जुओ खलन, इतयािद
स बचना चािहए ।
नैितक कमो का तीसरा भाग समुिचत अाजीिवका ह. समुिचत अाजीिवका का अथर ऐस
वयवसाय दारा जीवन यापन स ह िजसस िकसी भी अनय पाणी की पीडा म बृिद न हो । इसका
अथर ह िक हम दसयुओं क वयापार, शसो क िविनमाण, तथा मादक दवयो या दवाओं क वयापार
न कर । ऐसी अनुिचत ओजीिवका क चार पकार होत ह:-- (१) एक वह जो गलत ओचरण पर
अाधािरत हो, (२) एक वह जो अनुिचत साधनो या तरीको पर अाधािरत हो, (३) एक वह जो
दसरो को धोखा दन (छल-कपट) पर अाधािरत हो, और (४) एक वह जो िनमन अथवा अयोगय
कला या पश पर अाधािरत हो ।
अनुिचत ओचरण क अंतगरत व सभी अनुिचत कायर एवं वाणी सिममिलत ह िजनकी चचा
हम पहल ही कर चुक ह । हम संवदनशील पाणी की हतया करन स बचना चािहए, इतयािद । झूठ
तथा अनय पकार की अनुिचत वाणी दारा अपनी जीिवका चलान स बचना चािहए । ऐस पाँच
पकार क उतपाद ह – हिथयार, पाणी, मास, मादक दवय, और िवष – िजनह बचन स बचना
चािहए । जब हम इस पकार की अनुिचत ओजीिवका स बचत ह, तो समुिचत ओजीिवका का
पालन होता ह ।
बौद िभकुओं या अनय वैरािगयो, जैस भारत वषर और बमा म िशषयो क एक वगर ऋिष या
'इिस', को िजन अनुिचत ओजीिवका का पालन नही करना चािहए उनह 'अनुिचत साधनो' क
अंतगरत विणत ह । िनमन, अयोगय कला या पथायं िवशष रप स िभकखुअो पर लागू होती ह,
िकनतु गृहसवािमयो पर भी लागू की जा सकती ह । इसक अनतगरत हसतरखा शास तथा शरीर क
अनय िचहो की वयाखया दारा भिवषयवाणी, जयोितष, और अनय ऐसी सासािरक कलाएं ह, जो
िभकुओं क धमर पालन क िवपरीत ह ।
बुद न िभकुओं को तथा गृहसथ लोगो को शील (पािल म, सील) पालन म मागर दशरन क
िलए िनयम िदए । िभकुओं क िलए २२७ िनयम ह । िकतु हम यहाँ िभकु नही ह और हम यहाँ
इस साधना म उनह जानन की ओवशयकता भी नही ह । हम गृहसथ लोगो को पाँच या ओठ
िशकापदो (पािल म, िसकखापदो) का पालन करना चािहए । नय छातो क िलए पंचशील पयापत
ह । पुरान छातो को तीन अितिरकत िशकापदो का पालन करना चािहए ।
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पथम िदवस, सायं पवचन
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पथम िदवस, सायं पवचन
महाधन की कथा
हमार िलय यह समझना किठन ह िक हम िकतन भागयशाली ह, कयोिक हम मनुषय जीवन एवं
धयान की साधना का अवसर पापत हअा ह, तथा इसक माधयम स सभी दखो का अंत कर दन की
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पथम िदवस, सायं पवचन
संभावना भी । 'The Real Values of True Buddhist Meditation' (सचच बौद धयान क
वासतिवक मूलयो) म सया जी ऊ बा खी न बताया ह िक जागृित पापत करन क िलय हम िकतनी
अविध तक पिरशम करना होगा । अहरत होन क िलय हम लगभग एक सौ स लकर एक हजार
कलपो (िवश चको) तक पिरशम करना होगा । हम उतन लंब समय तक काम कर सकत ह,
िकनतु यिद हम मुिकत क िलय पिरशम करन का अवसर अान पर उस गंवा दं , तो सार िकय पर
पानी िफर जायगा । महाधन -- जो बुद क समय एक कोषाधयक क पुत थ -- क साथ भी ऐसा
ही हअा ५
। महाधन का वाराणसी क एक अतयंत समृद पिरवार म जनम हअा था । उनक माता-
िपता न िनणरय िलया िक चूंिक व इतन धनी थ, उनका बटा मनचाहा ओनंद उठा सकता ह, और
अधययन क नाम पर उसन कवल कुछ वादयंत बजान ही सीख । उसन उतन ही समृद पिरवार
की एक लडकी स शादी की । उसकी पतनी न भी नाचना अौर गाना सीखा था, िकनतु अनय कुछ
नही ।
नगर क एक युवा वगर न महाधन को भष करन का िनणरय िलया । उनहोन एक ऐस
सथान पर बैठ कर नशील पय पीना और भोज करना पारंभ िकया जहा उनका महल को जान
वाल रासत पर स िदखाई पडना सुिनिशत था । महाधन न अपन सवक स पूछा िक व कया
पी रह थ । कया वह अचछा पय था ? सवक न उतर िदया, 'सवामी, िवश म इस पय की
तुलना म कोई दसरा पय नही' । तो चखन क िलय उनहोन उस थोडा सा मंगवाया । उसक
बाद िफर थोडा अौर; इस तरह शीघ ही यह उनकी ओदत बन गयी । युवक उनक अासपास
मंडरा कर उनका सारा धन भोजन, पय, पुषप, एवं इत पर खचर करन म उनकी मदद करत
रह । जब उनका अपना धन समापत हो गया तो उनहोन अपनी पतनी का भी सारा धन खचर
कर िदया । अपनी सारी संपित बच कर व रंक हो गय । अंत म, व और उनकी पतनी अनय
लोगो की रसोइयो म स बच खुच भोजन करन पर मजबूर हो गय ।
एक िदन, बुद न उनह दखा और मुसकुराय । ऐसा ह िक, जब भी कोई बुद मुसकरात ह
तो उसका अवशय कोई कारण होता ह, अत: उनक पिरचर ओनंद न उनस पूछा िक व कयो
मुसकुराय थ । उनहोन उतर िदया 'जरा महाधन को दखो । उसन दोनो भागय गंवा िदया, और
अब वह और उसकी पतनी भीख माँग रह ह । यिद उसन अपना धन नही गंवाया होता,
अिपतु अपन जीवन क उतकषर म सवयं को वयवसाय म लगाया होता, तो वह मुखय कोषाधयक
बन गया होता । यिद वह एक िभकु बना होता तो उस पूणर जागृित या अहरतव पापत हो गया
होता, तथा उसकी पतनी जागृित क तीसर चरण, अनागामी तक पहँच जाती । यिद वह अपन
जीवन क मधय म सवयं को वयवसाय म लगाता, तो वह िदतीय कोषाधयक बन गया होता, या
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पथम िदवस, सायं पवचन
यिद वह एक िभकु बना होता तो उस जागृित क तीसर चरण, अनागामी का फल पापत हअा
होता, तथा उसकी पतनी जागृित क दसर चरण सकृदागामी (पािल म सकदागामी) म
सथािपत हो जाती । यिद वह अपन जीवन क तीसर भाग म सवयं को वयवसाय म लगाता, तो
वह तृतीय कोषाधयक बन गया होता, या यिद वह एक िभकु बना होता तो उस जागृित क
दसर चरण सकदागामी का फल पापत हअा होता ।' तथा उसकी पतनी जागृित क पहल चरण
शोतापनन (पािल म, सोतापनन) म सथािपत हो जाती । अौर बुद न िनमनिलिखत गाथायं
सुनायी :--
अचिरतवा बहचिरयं, अलदा योबबन धनं ।
िजणणकोञाव झायिनत, खीणमचछव पललल ।।
बहचयर का पालन िकय िबना (अथवा) यौवन म धन कमाय िबना (लोग बृदावसथा म)
मतसयहीन जलाशय म बूढे (जीणर) कौच पकी क समान घुट-घुट कर मरत ह ।
अचिरतवा बहचिरयं, अलदा योबबन धनं ।
सिनत चापाितखीणाव, पुराणािन अनुतथुनं ।।
बहचयर का पालन िकय िबना (अथवा) यौवन म धन कमाय िबना (लोग) बृदावसथा
म धनुष स छोडे गय बाण की भाित पुरानी बातो को याद कर अनुताप करत हए
िबलखत हए सोत ह ।
धममपद, गाथा १५५-१५६
बुद न महाधन क िवषय म जो िटपपणी की उसस हम दख सकत ह िक उसन अौर
उसकी पतनी न जागृित तक पहँचन क िलय जो भी ओवशयक था वह सब कर िलया था ।
िकनतु उनहोन अपन अनैितक ओचरण क कारण अपना अवसर गंवा िदया । अत: हम अपना
अवसर नही गंवाना चािहय और कायररत रहन म कोई समय नही खोना चािहए । िजतना
ही शीघ हम पारमभ करग उतना ही अचछा हम काम कर सकग अौर उतना ही अचछा
पिरणाम होगा ।
बुद न पाटिलगाम क िशषयो को बताया िक जो लोग शील का उललंघन करत ह उनक िलय
पाँच संकट पतीका कर रह ह तथा जो लोग उनका पालन करत ह उनक िलय पाँच ओशीवाद ६।
जो पाच संकट चिरतहीन वयिकतयो की पतीका करत ह, व ह :- असावधानी क कारण धन की
हािन, बुरी पितषा, जन समूह – चाह वह अायो, पुजािरयो, गृहसथो या तपिसवयो का हो – म
सिममिलत होत समय संकोच एवं कायरता, तथा मृतयु क समय िवभानत िचत; मृतयु क पशात
शरीर क िवघटन पर िनमन, पीडािलपत, दख लोक अथात नरक म जनम ।
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पथम िदवस, सायं पवचन
समािध
अब हम अषािगक अायर मागर क दसर भाग म ओत ह । इसम समुिचत पयास, समुिचत संजान
(समृित या पािल म 'सित') तथा िचत-एकागता सिममिलत ह
समुिचत सित पापत करन क िलय हम सही पयास या पिरशम करना होगा । जब तक हम
अपन चंचल एवं अिसथर मन क िवचारो की सीमा को सीिमत करन का दृढ पयास नही करत तब
तक हम उस मानिसक सजगता की अाशा नही कर सकत जो समुिचत कनदण दारा िचत
एकागता एवं समभाव की मनोदशा पापत करन म सहायक होती ह । जब मन पूणर एकागता की
िसथित म होता ह तो वह नीवरण (िवघन) मुकत, शुद, शानत, तथा बाहर अौर भीतर स
जयोितमरय होता ह । ऐसी िसथित म मन शिकतशाली और उजजवल हो जाता ह । बाहरी तौर पर
इसका िनरपण पकाश दारा होता ह, जो मात एक मानिसक पितिबब ह । इस पकाश की माता
एक िसतार क पकाश स लकर सूयर क पकाश तक घट बढ सकती ह । यह ओलोक जो पूर अंधेर
म मन की ओंखो क सामन पिरलिकत होता ह, वह मन की पिवतता, शाित, और धीरता की एक
अिभवयिकत ह ।
इन िशिवरो म साधको को धयान की शिकत िवकिसत कर िचत एकागता तक ल जान
क िलय उनह नाक क नीच, ऊपरी होठ क एक िबनद सथल पर धयान किदत करन, तथा शास
क अनदर अान अौर बाहर जान क साथ साथ उसका मौन संजान लत रहन क िलए
पोतसािहत िकया जाता ह । चाह हम मानत हो िक जीवन िपछल कमो का पिरणाम ह या
मानिसक शिकतयो (संसकारो, पािल म, संखारो) का पिरणाम ह, अथवा हमारा िवशास हो
िक जीवन िकसी ईशर स उपहार सवरप पापत हअा ह, जीवन का पतीक एक ही ह अौर वह
ह मनुषय म ताल, धडकन या कंपन । वासतव म, जीवन क इस पतीक का एक पितिबब शास
ह । अानापान धयान, िजसका हम अब अभयास कर रह ह, इस पदित का सबस बडा लाभ
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पथम िदवस, सायं पवचन
अानापान का अभयास
इन पहल कुछ िदनो म हमारा उदेशय अानापान का अभयास ह । जो तीन बात हम जाननी
ह, व ह :- (१)अाशास अथात नाक म पवश करती शास, (२) पशास अथात नाक स बाहर
जाती शास, (३) और ऊपरी होठ पर नाक क ओधार पर िबनद सथल । यह िबनद सथल ही
हमारा धयान का कनद िबनद या संदभर िबद ह । शास लत समय ओप को पता होना चािहए
िक ओप शास ल रह ह । शास छोडत समय पता होना चािहए िक ओप शास छोड रह ह ।
अपन मन को िसथर करन क िलए, कभी कभी, शास लत समय मन ही मन 'अनदर', तथा
शास छोडत समय मन ही मन 'बाहर' सोचन की अावशयकता पड सकती ह ।
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पथम िदवस, सायं पवचन
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पथम िदवस, सायं पवचन
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िदतीय िदवस, सायं पवचन
िभकखुओं, म ऐसी कोई भी वसतु नही जानता िजस िनयंितत करना उतना ही किठन हो,
िजतना अदमय मन को िनयंितत करना । वासतव म, अदमय मन को िनयंितत नही िकया जा
सकता ।
िभकखुओं, म ऐसी कोई भी वसतु नही जानता िजस िनयंितत करना उतना ही अासान हो,
िजतना वशीभूत मन को िनयंितत करना । वासतव म, वशीभूत मन को अासानी स
िनयंितत िकया जा सकता ह ।
िभकखुओं, म ऐसी कोई भी अनय वसतु नही जानता, जो उतनी ही हािनकारक हो िजतना
अिनयंितत या अदमय मन । वासतव म, अदमय मन अतयंत हािनकारक होता ह ।
िभकखुओं, म ऐसी कोई भी अनय वसतु नही जानता, जो उतनी ही लाभदायक हो िजतना
िक वशीभूत मन । वासतव म, वशीभूत मन अतयंत लाभदायक होता ह ।
िभकखुओं, म ऐसी कोई भी अनय वसतु नही जानता, जो उतनी ही शोकदायी हो िजतना िक
एक अदमय, अिनयंितत, असुरिकत एवं असंयिमत मन । वासतव म, ऐसा मन अतयंत
शोकदायी होता ह ।
किमक पिशकण
एक बार गणक मौदलयायन (पािल म, मोगगललान) नामक एक गृहसथ बाहण भगवान बुद क
पास गय, जब भगवान शावसती क पास माँ िवशाखा दारा िनिमत िवहार म रह रह थ १। गणक
मोगगललान क पास पूछन क िलए एक पशन था । उनहोन पहल यह कहा िक इस जीवन म बहत
सी बात ह, जो धीर - धीर चरणबद तरीक स की जाती ह । माँ िवशाखा क महल का िनमाण
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िदतीय िदवस, सायं पवचन
भगवान बुद न उनह उतर िदया, 'ऐसा संभव ह; जैस एक िनपुण अश पिशकक, जब उसक
पास कोई सुंदर एवं कुलीन अश होता ह तो सबस पहल वह उस लगाम पहनन की अादत
डालता ह, अौर तब उस अाग का पिशकण दता ह । उसी पकार, तथागत जब िकसी वयिकत को
पिशकण क िलय सवीकार करत ह, तो सबस पहल उस अनुशािसत करत ह ।'
सतकरता िवकिसत करन क बाद, वयिकत को, वह जो भी कर रहा ह, उसका सपष संजान
अौर जागरकता बनाय रखन क िलय काम करना चािहए । जागरकता उपलबध हो जान क बाद
उस पाँचो नीवरणो या बाधाओं पर िवजयी होना चािहए । जागरकता क माधयम स, हम लोभ
और दभावना स मन को शुद कर सकत ह । दभावना स मुकत, हम सभी क पित अनुकमपावान
तथा दयालु होग । और हम अालसय एवं तंदा को समापत करत ह । पकाश का अनुभव होन स
हम अालसय एवं तंदा स मुकत हो जात ह । हम वयाकुलता एवं खद को समापत करत ह, िजसस
हमारा मन शात हो जाय । और संदह स छुटकारा पाकर हम लाभदायक मनोदशाओं क पित
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िदतीय िदवस, सायं पवचन
अाशसत हो जात ह ।
पाँचो नीवरणो क उनमूलन क साथ, समािध अथात धयान (पािल म, झान) की अवसथा का
िवकास संभव ह । यह िवशष रप स िभकखुओं क िलय ह, िजनका जीवन अिधक शुद होता ह ।
अपनी महान पिवतता क कारण, व िचत एकागता क इन उचच सतरो को पापत करन म सकम
होत ह । हम गृहसथ लोगो क िलए एकागता का कवल एक अचछा सतर पापत करना ही पयापत
होता ह ।
बुद न अपन उपदश क समापन म कहा िक व लोग जो अभी तक पूणर जागृित नही पापत
कर पाय थ, व अभी भी िवदाथी थ अौर मुिकत पापत करन की अाशा स काम कर रह थ; तथा
जो लोग पूणर जागृित पापत कर चुक थ, व सुख-शािनत स अभी अौर-यही, अथात वतरमान म रह
रह थ ।
बुद न उनस पूछा िक कया उनह राजगृह (पािल म, राजगह, अाधुिनक राजिगर) का मागर
पता ह । तो उतर था, हा । तब बुद न समझाया िक यिद कोई वयिकत उनस राजगह जान का
मागर पूछ, अौर गणक मोगगललान दारा मागर िनदरश िदय जान क बाद भी, बताय हए मागर पर न
जाय, तो वह गलत मागर पर चला जायगा । कोई दसरा वयिकत, िजसन उस मागर िनदरश का
अनुसरण िकया ह, वह राजगह पहंच जायगा । अत:, राजगह ह, वहा जान का मागर ह, अौर कोई
मागर िनदरश करन वाला भी ह । तो ऐसा कयो ह िक कोई सही मागर पर जाता ह अौर कोई गलत?
गणक मोगगललान न कहा 'म कया कर सकता हं? म तो मात मागर दशरक हं' ।
भगवान बुद न कहा, 'इसी पकार, िनबबान िवदमान ह, िनबबान क िलए अगणी मागर
िवदमान ह, और एक सलाहकार क रप म म िवदमान हं । िकनतु, मर दारा िनदरश िदए जान क
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िदतीय िदवस, सायं पवचन
बाद, मर कुछ िशषय परम लकय को पापत कर लत ह, अौर अनय िशषय इस पापत नही कर पात ।
म कया कर सकता हं? म तो कवल मागर दशरक हं?'
और यह बात गणक मोगगललान समझ गय । उनहोन भगवान बुद स कहा, 'ऐस लोग िजनक
पास जीिवका का कोई साधन नही ह; जो िबना शदा क िभकखु बन जात ह; जो, धूतर, कपटी
अौर िवशासघाती ह; जो असंतुिलत और अहंकारी ह; जो कुिटल, अपमानजनक और मुंहफट ह,
िजनह अपनी जानिनदयो पर िनयंतण नही ह; जो भोजन म संयमी नही ह; जो जागरकता क
पित िनषावान नही ह, िकनतु साधना क पित उदासीन ह अौर पिशकण क िलए उतसुक नही ह;
िजनह पचुरता पसंद ह; जो पितत एवं अाचार-भष ह तथा एकानतवास स जी चुरात ह; जो
अालसी, कीण ऊजावान, भिमत, जागरकतािवहीन, एकागतारिहत चंचल मन क ह; जो
कीणिववकवान तथा बकवासी ह – उनम बुद की समानता क योगय कुछ भी नही ह । जो इसक
िवपरीत अचछ गुण वाल ह, व ही बुद की संगत म ह ।' और उनहोन बुद की िशका की सराहना
उचचतम िशका क रप म की तथा ितरतन म शरण लन क िलए अनुरोध िकया ।
गणक मोगगललान स अपन पवचन म, बुद न कहा िक व अपन िशषयो को सित (अथात
जागरकता) िसखात थ, िकनतु उस समय सित क िवषय म उनहोन पूणर िनदरश नही िदय । य
िनदरश बुद क अनय उपदशो म उपलबध ह, जैस िक, अानापानसित सुत२ अथात शास संजान
पवचन म ।
शास संजान
जब बुद न पिशकण दना पारंभ िकया तो अनक लोग उनकी अोर ओकिषत होन लग, और शीघ
ही िसखान क िलय अनक िभकखु हो गय । जो साधना दारा अपना लकय पापत कर चुक थ व
अविसमक अथात नवदीिकत िभकखुओं को पिशिकत करन लग । व नय िभकखुओं को नैितक
पिशकण म सथािपत करत, ततपशात् उनह कैस पशिबध अथात शाित तथा अनतदृरिष पापत हो, यह
िसखात । एक बार, अनक िभकखु बुद क पास एकितत हए । उनहोन उस पूर िभकखु समुदाय को
दखा और बोल, 'िभकखुओं, यह पिरषद िनरथरक शबदो स रिहत ह, इस सभा का कोई भी शबद
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िदतीय िदवस, सायं पवचन
वयथर नही ह । यह शुद मागर पर सथािपत ह । जैसा िभकखु संघ यह ह, वैसा िभकखु संघ शदा,
सममान, उपहार, तथा 'यह िवश क िलय एक अतुलनीय पुणय केत ह' ऐस भाव क साथ लोगो
दारा करबद अिभवादन क योगय ह । िभकखुओं , ऐसा िभकखु संघ जैसा यह ह, उस यिद थोडा
िदया जाय तो अिधक हो जाता ह; अौर अिधक िदया जाय तो अतयिधक हो जाता ह ।' उनहोन
घोषणा की िक उस संघ म ऐस भी िभकखु थ जो लकय क सभी चार चरणो म सथािपत हो गय थ,
तथा अनय िभकखु लकय तक पहंचन क िलय सही पकार स साधना कर रह थ । अौर उनहोन
साधना का िवसतृत िववरण भी िदया ।
यहाँ हमार िलए, जबिक हम शास संजान की साधना कर रह ह, बुद दारा िदय गय अगल
िनदरश अतयंत महतवपूणर ह । बुद न कहा, 'अान (अथात अाशास) एवं अपान (अथात पशास) का
संजान जब िवकिसत हो जाता ह, तथा बारंबार उसका अभयास िकया जाता ह, तो वह महान
पितफल एवं लाभ लाता ह । तो, यह कैस िकया जाता ह?'
'एक िभकखु िकसी वन म, एक वृक क अधार पर, या िकसी एकानत सथान पर, पालथी मार
कर बैठता ह तथा शरीर को सीधा रखत हए अपन समक अपना धयान किनदत करता ह । धयान
क साथ वह शास लता ह तथा धयान क साथ वह शास छोडता ह ।.....वह अचछी तरह जानता ह,
'िवचारो की गितिविधयो को शात करत हए म शास ल रहा हं , िवचारो की गितिविधयो को
शात करत हए म शास छोड रहा हं' । इस पकार वह सवयं को पिशिकत करता ह । ' िचत को
एकाग करत हए म शास ल रहा हं, िचत को एकाग करत हए म शास छोड रहा हं ।.....
नशरता का पयरवकण करत हए अथात समझत हए म शास ल रहा हं , नशरता समझत हए म
शास छोड रहा हं ।' इस पकार वह सवयं को पिशिकत करता ह । तो िभकखुओं , इस पकार अान
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िदतीय िदवस, सायं पवचन
एवं अपान का बोध जब िवकिसत हो जाता ह, तथा बारंबार उसका अभयास होता ह, तो उसस
महान पुरसकार एवं लाभ अात ह ।
गंथ म िलखा ह 'स सतो वा असससित, सतो वा पसससित' अथात 'वह सित क साथ शास
लताह, सित क साथ शास छोडता ह' । इसका अथर ह िक धयानी को अपन अानापान क अभयास
म, पतयक अान, अनदर अान वाली शास तथा अपान, बाहर जान वाली शास क पित जागरक
रहना चािहए । िबना जागरकता या संजान क कोई भी शास अान या जान नही दना चािहय ।
पिरमुकखम सितम् उपटपतवा - धयानी अपना धयान अपन समक लाता ह । उपटपतवा िकया
का शािबदक अनुवाद 'वतरमान बनाता ह' भी हो सकता ह । यह सिकयता स वतरमान कण क, एवं
धयान क िवषय वसतु क संजान क महतव को रखािकत करता ह । हम अपना धयान सामन
नािसका दार पर रखना ह, अौर सीधे अान पर, अपान पर तथा उस सथान पर जहा हवा का
सपशर होता ह, मन को िकसी अनय िवषय पर िबना भटकन दत हए, धयान लगाना ह । धयान
सदैव नाक क िनचल भाग पर या ऊपरी होठ पर रखा जाता ह ।
हमारी सित िबना िकसी बाधा क िनरंतर बनी रहनी चािहए 'सितम् अिवजाहनतो', कयोिक
यिद कोई वयिकत भुलककड ह या पूरी तरह स अवगत नही ह तो, शास संजान का िवकास
असंभव ह । धयान की साधना सफलतापूवरक नही हो सकती ।
अाचायर बुदघोष का कहना ह िक अाशास अौर पशास, लंबी नाक वाल वयिकत क नाक म
नीच, तथा छोटी नाक वाल वयिकत क ऊपरी होठ पर पहार करत ह । समरण रखन क िलए,
हमार िलए महतवपूणर बात यह ह िक िजस िबद या सथान पर हवा का सपशर सपष ह, वही हम
अपनी मानिसक एकागता को सथािपत करना ह ।
मानिसक संसकृित, मानिसक पिशकण या धयान की साधना क िलए पािल शबद ह 'भावना' ।
जैसा िक हम पहल ही कह चुक ह, धयान क दो पकार होत ह :- शमथ (पािल म समथ) या
शाित का िवकास जो एकागता क साथ होता ह, तथा अंतदृरिष या िववक का िवकास ।
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िदतीय िदवस, सायं पवचन
बुद न कहा, 'िभकखुओं, रोग दो पकार क होत ह'४ । "कौन दो? शरीर का रोग तथा मन
का रोग । िभकखुओं, ऐस पाणी हो सकत ह जो, शारीिरक रोग की पीडा स एक वषर क िलए
मुकत हो, ... (या यहा तक िक) सौ वषर तक मुकत हो । िकनतु, िभकखुओं, जो िवकारमुकत हो चुक
ह अथात अहरत ह, उनक अितिरकत इस िवश म ऐसा कोई भी पाणी जो एक पल क िलए भी
मानिसक रोग स मुकत हो, ढूंढन स भी पाना किठन ह ।'
पारंभ म तो ओपको लगगा िक अपना धयान शास पर किदत करना अतयनत किठन ह । अाप
अाशयर चिकत हो जाएंग िक ओपका मन कैस भागता ह । यहा तक िक वह कुछ सकंड क िलए
भी नही िटकता! अत: ओपको सािभपाय (जानबूझकर) शास लन की अावशयकता पडेगी तथा
शास पर िनरंतर एवं अिवचल धयान क िलय पयास करना पडेगा । तब, कुछ समय क बाद, ओप
ऐसा अनुभव करग िक एक पल क िलय अापका धयान समपूणर रप स शास पर किदत हो गया ह;
यहा तक िक अासपास की धविनया भी नही सुनाई दंगी; अापक िलय कोई बाहरी दिनया नही
मौजूद होगी । यह कण अापक िलय अाननद, सुख एवं शाित स भरपूर ऐसा अदुत अनुभव होगा
िक ओप इस बनाय रखना चाहग । िकनतु अाप इस िटक रहन क िलए मजबूर नही कर सकत ।
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िदतीय िदवस, सायं पवचन
िफर भी, यिद ओप लगातार और अिवचल अभयास करत रह, तो ओप यह अनुभव बार बार तथा
लंबी लंबी अविध क िलए वापस पापत कर सकत ह ।
सयाजी ऊबा खी क शबदो म हमार िलय 'एक म तीन', अथात सथान, अाशास एवं पशास,
तीनो का संजान लत रहना अावशयक ह । अाज पात:कालीन पवचन म हमन 'एक म तीन' का
दृषानत बुदघोष क िवशुिद मागर क उदरण स िदया था । अाइए अब हम उनकी एक और उपमा,
घंट की उपमा की चचा करत ह ।५
'जब साधक क सथूल अाशास एवं पशास समापत हो जात ह, तब उसकी चतना सूकम
अाशास एवं पशास क संकत क अालमबन पर होती ह । और जब व भी समापत हो जात ह, तो
उसकी चतना उतरोतर सूकमतर संकतो क साथ उपजती ह । कैस ?
मान लीिजए िक िकसी वयिकत न लोह क एक बडे शलाक स कास क घंट पर पहार िकया,
तथा पिरणामसवरप तीव धविन उतपनन हई । वह सकल धविन उसकी चतना की वसतु होगी ।
अौर उस सकल धविन क समापत होन पर, जो सूकम धविन बनी रहती ह, वह उसकी चतना की
वसतु होगी । इस पकार उतरोतर पतयक सूकमतर संकत क साथ उसकी जागरकता उतपनन होती
रहगी । कयोिक, यदिप धयान क अनय पतयक अालमबन अगल सतर पर अौर सपष होत जात ह,
िकनतु इसक साथ ऐसा नही ह । वासतव म, जैस जैस साधक अपना धयान िवकिसत करता ह, वैस
वैस यह अालमबन पतयक उचच सतर पर सूकमतर होता जाता ह । अौर एक ऐसा भी समय अाता
ह जब उसकी अनुभूित नही होती । जब ऐसा हो तो साधक को उठ कर, अपनी अासनी झाडकर
चल नही जाना चािहए । "कया मुझे अपन अचायर स पूछना चािहय?" या "कया मर धयान का
अालमबन लुपत हो गया ह?" ऐसा सोच कर उस उठ जान की अावशयकता नही ह, कयोिक उठ
जान स या अपन अासन की मुदा भंग कर दन स, उस अपन धयान की िवषय वसतु अथात
कमरसथान को पुन: पारंभ करना होगा । अत: उस बैठे रहना चािहय तथा शास की अनुभूित की
जगह शास क सथान की अनुभूित सथािपत करनी चािहए ।'
जब सयाजी ऊबा खी न अानापान धयान की बात की थी तो उनहोन बताया था िक यह
अतयंत सूकम, अतयंत गहन, एवं अतयंत किठन ह । यह उनही क िलय ह िजनम पचुर पारमी हो,
और यह तथय िक ओप यहाँ इसकी साधना कर रह ह, इसस यह इंिगत होता ह िक ओप म भी
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िदतीय िदवस, सायं पवचन
िकसी वयिकत की धयान म पगित तज या धीमी गित स होगी, यह उसन िकतनी तैयारी की
ह, उस पर िनभरर करता ह । जब सयाजी ऊ बा खी पहली बार िवपससना सीखन गय, तो उनहोन
पिशकण क िलय अनुरोध िकया अौर उनह अानापान धयान क िवषय म समझाया गया । उनहोन
पयास िकया और ततकाल उनह पकाश िदखना पारंभ हो गया । जब उनहोन अपना पहला पूरा
िवपससना िशिवर िकया था, तो उनह दसर िदन ही िवपससना द दी गयी थी । उनकी पगित
इतनी तीव थी िक उनह कई िदनो तक अानापान करन की अावशयकता नही पडी । माँ सयामा
जी न भी जब पहली बार अानापान का पयास िकया तो उनह पकाश िदखाई िदया । उनका यह
पहला पयास कवल दस िमनट या उसक ओसपास का था, वह भी एक अनौपचािरक तरीक का ।
परंतु, हम सभी उतनी शीघ पगित नही कर सकत । अत: जो अनुभव हम न हए हो, जब
कुछ ऐस अनुभवो का वणरन हो, तो हम हतोतसािहत नही होना चािहए ।
अानापान साधना म, अाशास अौर पशास क संजान क िलय, पहल अापको सोदेशय शास
लना चािहय । इस पकार, शास का सपशर अौर अिधक सपष हो जाएगा । जब ऐसा होन लग, तो
मन को इसम िवशाम दत हए, अपनी सवाभािवक गित स अात जात अान अौर अपान का संजान
लत रह । जैस जैस अापकी शास हलकी और हलकी होती जाती ह, पहल शास लंबी अौर छोटी
होगी, कयोिक हवा का पवश और िनकास तो रहगा ही । िकनतु अनततोगतवा, लंबाई घटत घटत
लगभग लुपत हो जाती ह तथा अान, अपान एवं एकागता का सथान, य तीनो नािसका क अाधार
ऊपरी होठ पर एक हो जात ह । ऊपरी होठ पर, इस िबद पर, ओपको हलकी उषणता की
अनुभूित होगी जो हवा की िवशषता ह । ओप को अपना िचत इसी पर एकाग करना चािहय,
और जब ओप ऐसा करत ह, तो अापका मन शात हो जाएगा । इस पकार ओपको िचत-एकागता
पापत होगी और िफर समािध ।
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िदतीय िदवस, सायं पवचन
ओप पायंग िक कुछ समय क बाद, एक िबद पर सवाभािवक गित स अान और जान वाली
हवा का पाकृितक लकण बहत सपष हो जाएगा, तथा ओप को इस पर पूरा धयान दना चािहय
िजसस िक यह लुपत न हो जाय । तथािप, यह कम होगा और अंत म लुपत हो जायगा । जब यह
लुपत हो जाय, तो अापको सोदेशय शास लत अौर छोडत हए इस पथ को पुन : खोल कर पूरी
पिकया को दोहराना चािहए । जो वयिकत इस पकार बारंबार कुछ समय तक अभयास करता ह,
उसक िलए पिवतता का पहला संकत उदय होगा । यह संकत सभी क िलए एक जैसा नही हअा
करता । गंथो क अनुसार, यह रई, िसतार, या मोितयो जैसा पतीत हो सकता ह । कुछ वयिकतयो
को यह धुओं, बादल, मकडी क जाल, फूलो की सजावट, चाँद, या सूयर क समान लग सकता ह ।
संभवत: यह एक पकाश की चकाचौध, या ऊषा की तरह पकट हो । िकनतु यह कवल इसिलय
नही पकट होगा िक अाप ऐसा चाहत ह । यह ओपकी इचछा करन या पाथरना करन स नही पकट
होता । यह अापको समरण रखना चािहए िक जैस लोग अपनी अपनी उिचत जीिवकाअो म
कायररत रह कर धन अिजत करत ह, उसी पकार, ओप को भी यह संकत पापत करन क िलए
समुिचत रप स कायररत रहना होगा ।
यिद अाप क मन म इस संकत क उदय होन की इचछा हो, तो ऐसा नही होगा, कयोिक
ओपका मन इचछा या लोभ स मुकत नही होगा । यह संकत तभी उतपनन होता ह जब वयिकत
इचछा स मुकत होता ह और जब तक अासिकत पबल ह, यह नही उतपनन होगा ।
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िदतीय िदवस, सायं पवचन
जैस ही अाप नाक क ओधार पर, अाशास अौर पशास पर, पूरी जागरकता क साथ धयान
किदत करत ह, तो अापका मन लोभ, घृणा एवं अजानता स मुकत हो जाता ह, अौर इस
मनोदशा को समािध कहा जाता ह । िजस कण ही ओपको अाभास हो िक अापकी इस 'एक म
तीन' की जागरकता खो गई ह, तो अाप को जानबूझकर शास लत अौर छोडत हए, इस पथ को
पुन: खोलना चािहए । जैस ही ओप इस पथ को पुन: पापत करत ह, अापकी जागरकता िफर स
पैदा होगी, और उसक बाद गायब हो जायगी; कयोिक िवचार िनिशत रप स उठंग । यह
जागरकता, िजसक िलए ओप इतना संघषर कर रह ह, वह अतयनत मूलयवान ह, और कई लोग
इसी क ओधार पर िनबबान पापत कर चुक ह ।
संदभर सूची
[1]The Middle Length Sayings, III 52–57.
[2]The Middle Length Sayings, III 121–129.
[3]The Gradual Sayings, II 143.
[4]Anguttara-nikaya II 143 (The Gradual Sayings II 146f.).
[5]The Path of Purification, Chap. VIII, ¶¶ 206ff.
11
तृतीय िदवस; पात: पवचन
1
तृतीय िदवस; पात: पवचन
िकनतु इस गाथा म, हम दखत ह िक भगवान बुद दारा परम सतय, अथात धमम क िवषय म
िसखाया गया चार पंिकतयो का एक ही छंद , इन सभी अनय उपहारो म असीम रप स अिधकतम
मूलयवान ह । ऐसा इसिलय ह िक धमम क माधयम स हम सासािरक सुखो क भी ऊपर जा सकत
ह । इस अनुबंिधत संसार म हम िकतन ही सुखी कयो न हो, तथा िकतन समय तक सुखी कयो न
रह, अंततः उस सुख का अंत हो जाएगा । अंततोगतवा हम द:ख भोगना पडेगा । कवल बुद धमम
क माधयम स ही इस द:ख की समािपत हो सकती ह ।
इसस यह सपष हो जाता ह िक धमम का सवाद अनय सभी सवादो म शेषतम कयो ह । इसक
अंतगरत जागृित क व सैतीस घटक भी सिममिलत ह, िजनस िनबबान पापत होता ह, तथा िनबबान
इस अनुबंिधत लोक स पर, अननुबंिधत एवं द:खरिहत ह । तथा िजतना अिधक हम धमम क
सवाद का अाननद लत ह, उतना ही अिधक यह सवािदष होता जाता ह, जबिक समय क साथ
अनय संासािरक सवाद बासी पडन लगत ह ।
धमम का अाननद सभी अाननदो म शेष ह, कयोिक जब हम उसम अानिनदत होत ह, तो द:ख
स मुिकत क िलय पिरशम करन की पेरणा भी िमलती ह । अंत म, तृषणा का िवनाश द:ख का
वासतिवक अंत ह । लकय तक अथात पूणर जागृित, या अहरतव पद तक पहंचन की यही
वासतिवकता ह । और यह िकसी भी अनय वसतु स महानतर ह ।
जब भगवान बुद न दवताओं को धमम िशका दनी पूरी की, तो सकक न उनको नमन कर
उनस अनुरोध िकया, 'भनत! चूंिक धमम दान इतना बहमूलय ह, कयो न अाप इस दान क पुणय को
हम सभी म बाटत? भिवषय म अाप जब भी िभकखु समुदाय को धमम दान दं, तो उसक पुणय को
हमम भी बाट ।' अत: बुद न िभकखु समुदाय को एक साथ बुलाया और उनह बताया, 'िभकखुअो,
2
तृतीय िदवस; पात: पवचन
अाज स अब जब भी िकसी िवशष अवसर पर कोई पवचन हो, या िकसी साधारण अवसर पर
पवचन हो, अथवा अनुमोदन क शबदो का पाठ ही हो, तो अापको चािहय िक उसस अिजत पुणय
को अाप सभी पािणयो म बाटं ।
अत: इसी कारण, हम पवचन या धयान साधना क पशात उसस अिजत पुणय को सब म
बाटत ह, कयोिक धयान भी धमम साधना ह, तथा महान पुणय क योगय ह । ओप को समरण होगा
िक, हमन अचछ या बुर कमो को करन म मन क महतव पर जोर िदया ह । कुछ योिनयो म अचछा
कमर करना अतयंत किठन ह । िकतु दसरो क भल कामो स ओहाद एवं सहानुभूितपूणर ओननद
संभव ह । चूंिक यह एक मानिसक िकया ह, अत: यह बहत ही शिकतशाली होती ह । इस वाणी
दारा सुदृढ िकया जा सकता ह । इसीिलय जब अाचायर पुणय बाटत ह तो छात 'ठीक कहा', या
'अचछा िकया', पािल म 'साधु, साधु, साधु' कह कर अपनी पितिकया दत ह ।
जोितक२ की कथा
िकस पकार धमम का सवाद सभी सवादो म सवोचच ह, इसका एक उदाहरण हम जयोितक (पािल
म, जोितक) की कथा म िमलता ह । जोितक की पारिमताएं महान थी; उनहोन अतीत क बुदो
को बहत बडे बडे उपहार िदय थ । जब व गौतम बुद क समय पैदा हए, तो व अतयंत सममृद थ ।
उनकी पतनी बहत ही सुंदर थी । व बहमूलय हीर जवाहरात स बन महल म रहत थ । समाट
िबिमबसार न जोितक क महल क बार म सुना तो उनम इस अाशयरजनक महल को सवयं दखन
की इचछा हई । समाट अपन बट, राजकुमार अजातसतु क साथ वहा गय । जब उनहोन यह सारा
वैभव दखा, तो अजातसतु म ईषया उतपनन हो गई तथा उनहोन अपन िपता स कहा: 'कैस ओप
एक साधारण नागिरक को राजा स बडे वैभव म जीन क िलए अनुमित द सकत ह? अापको
जोितक क महल को राजयाधीन कर लना चािहए ।' िकतु समाट िबिमबसार भगवान बुद क एक
िनषावान िशषय थ तथा उनहोन सवयं जागृित का पहला चरण पापत कर िलया था । व समझत थ
िक य सारा वैभव जोितक क अतीत क पुणय कमो का पिरणाम था और कोई भी उनस ल नही
सकता ।
3
तृतीय िदवस; पात: पवचन
अपनी पतनी की कमी का अनुभव नही करत । जब उनहोन नकारातमक उतर िदया तो व िभकखु
भगवान बुद क पास गय । अौर उनस बोल, 'भनत! इस िभकखु न एक झूठ बोला ह'। व यह
सोच भी नही सकत थ िक जोितक अपन पूवर जीवन की कमी का अनुभव नही करता था । िकतु
भगवान बुद न उनह बताया, 'िभकखुओं! यह िबलकुल सच ह िक मर पुत को इन बातो की कोई
अाकाका नही ह' । अत: हम दख सकत ह िक धमम का सवाद और अाननद सवरशेष, उचचतम एवं
उतकृष ह ।
4
तृतीय िदवस; पात: पवचन
5
तृतीय िदवस; पात: पवचन
हम संदह ह, उसक बार म हम िजतना ही अिधक सोचत ह, समसया उतनी ही किठन होती
जाती ह । हम अब कोई भी पयास नही करना चाहत । अब हम यह सुिनिशत नही कर पात िक
कया अचछा कायर ह तथा कया बुरा, अौर हम कया करना चािहए । वसतुओं क िवषय म हम अब
उनक सही मूलय क अनुसार िनणरय नही ल पात । हम बुद क िवषय म, अाचायर क िवषय म,
सतय क िवषय म तथा उनक िवषय म जो बुद की िशका को जीिवत रख हए ह, उन सब क
िवषय म संदह होता ह । हम कारणो एवं उनक पिरणाम क बार म संदह होता ह । संकेप म,
हमारी दशा अतयंत दयनीय हो जाती ह ।
तो एक साधक पाचो नीवरणो स छुटकारा कैस पा सकता ह? पािल गंथ हम बतात ह,
"इस संबंध म, साधक िजसम कामचछा, देष, ओलसय एवं अकमरणयता, वयाकुलता एवं पशाताप, या
संदहातमक उलझन ह, वह जानता ह, 'मुझम कामचछा, देष, ओलसय एवं अकमरणयता, वयाकुलता
एवं पशाताप, या संदहातमक उलझन ह' । वह जानता ह िक कैस पतयक नीवरण उतपनन होता ह,
तथा कैस उसम रहता ह । वह जानता ह िक उतपनन होन क पशात कैस पतयक नीवरण का
उनमूलन होता ह । तथा वह यह भी जानता ह िक, भिवषय म एक ऐसी िसथित उतपनन होती ह,
जब य नीवरण उदय ही नही होगं ।"४
6
तृतीय िदवस; पात: पवचन
सपष रप स समझ जात ह, तो अंितम चरण, सित भी सपष हो जाएगा । हमन कई बार कारण-
कायर िवधान का उललख िकया ह । िजस पकार हमारा वतरमान हमार अतीत क कमो स
अनुबंिधत ह, उसी पकार हमारा भिवषय भी हमार वतरमान क कमो स अनुबंिधत होता ह ।
यही-और-इसी-कण की समुिचत एकागता की साधना ही, भिवषय म पाँचो नीवरणो क उतपनन
होन स बचन का एक मात मागर ह ।
िकतु एक अायर िशषय िजसन मन क इन पाच दोषो को दखा ह, वह उनका तयाग कर दगा ।
उस माना जायगा िक वह एक महान जानी, पचुर िववकवान, सपष दषा, तथा अचछी तरह स
पजा संपनन ह ।
अनय सथान पर भगवान बुद न कहा ह िक नीवरण उन पाच अशुिदयो की तरह ह िजनक
कारण सवणर अपना लचीलापन खो दता ह अौर काम करन लायक नही रहता; उसम दमक का
अभाव हो जाता ह; वह भंगुर हो जाता ह तथा उस गढना किठन हो जाता ह । सवणर की य पाच
अशुिदया व धातुएं ह जो उसम िमली होती ह, अथात लोहा, ताबा, िटन, सीसा, तथा चादी ।
िकतु यिद इन हीन धातुओं को सवणर स अलग कर दं , तो वह लचीला, काम करन योगय, दमकीला
एवं दृढ हो जाता ह, तथा उसस कोई भी अाभूषण गढा जा सकता ह । इसी पकार जब मन म
पाँच अशुिदया या नीवरण होत ह तो वह लचीला तथा काम करन योगय नही रहता, उसम
दमकीली सपषता तथा दृढता का अभाव हो जाता ह, वह दषणो क उनमूलन क िलय अचछी तरह
स धयान किदत नही कर पाता । िकतु जब मन पाँच नीवरणो स मुकत होता ह, तो वह लचीला
तथा काम करन योगय होगा, उसम दमकीली सपषता तथा दृढता अायगी, तथा वह दषणो क
उनमूलन क िलय अचछी तरह स धयान किदत करगा । मन को िकसी भी मनोदशा की अोर, िजस
उचच मानिसक संकायो दारा पापत िकया जा सकता ह, िनदरिशत करना संभव हो जाएगा, तथा
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तृतीय िदवस; पात: पवचन
यिद अनय शतर पूरी हो जाय, तो वयिकत म उचच अवसथा पापत करन की कमता उपलबध हो
जायगी ।
व जो अायर हो रह ह
एक अवसर पर ओदरणीय वबू सयादॉ यंगॉन क इंटरनशनल मिडटशन सटर अथात अंतराष्ीय
साधना कनद पर अाय । उनहोन सयाजी ऊबा खी स पूछा, 'िजस पकार बुद क समय होत थ, कया
वैस ही अाज भी पाणी जागृत अथात अायर नही हो रह ह? सयाजी ऊबा खी न हाँ म उतर िदया
। िफर वबू सयादॉ न उनस पूछा 'अिधकाश संखया म अायर कौन हो रह ह; मनुषय या दवता एवं
बहा?' सयाजी ऊबा खी न उतर िदया िक जो अायर होत जा रह ह उनम अिधकाश उचच लोको
क दवता एवं बहा होग । ओप दखंग िक अससी वषर की अायु म भगवान बुद न अपनी मृतयु क
समय पूवानुमान िकया था िक चार असंखयय तथा बीस हजार अरब पाणी अभी भी बच थ, जो
जागृित क पहल चरण तक भी नही पहंच थ, तथा बुद की मृतयु क पशात उन पािणयो क िलय
बुद की िशका पाच हजार वषो तक िवदमान रहगी । इस संखया की कलपना करना भी अतयंत
किठन ह । एक असंखयय एक क पशात एक-सौ चालीस शूनय का होता ह ।
जो अायर होग उन म स अिधकाश िवमुित अथात मुिकत काल म होग । वह काल भगवान
बुद की मृतयु क २५०० वषर पशात पारंभ होता ह । यही कारण ह िक सयाजी ऊबा खी न वबू
सयादॉ क पहल पशन का उतर सकारातमक िदया था ।
8
तृतीय िदवस; पात: पवचन
इस बात को समझन क िलय िक अिधकतम अायर दवता एवं बहा कयो होग, हम िवश की
जनसंखया पर दृिष डालनी होगी, जो म समझता हं िक लगभग सात अरब ह । मानव लोक म
लोगो क एक अलपाश मात की ही अायर बनन की संभावना ह ।
माितकमाता की कथा५
अपनी पुिसतका 'बौद धमर ह कया' (What Buddhism Is ) म सयाजी ऊबा खी न कहा ह, 'दसरो
क असंतुिलत मन को संतुिलत करन क िलय संतुिलत मन की ओवशयकता ह' । उनहोन बुद क
शबदो को उदृत िकया, 'जैस एक तीर बनान वाला अपना वाण िबलकुल सीधा बनाता ह, उसी
पकार एक बुिदमान वयिकत अपन चंचल एवं कंपायमान िवचारो को िजनका पबंधन या िनयंतण
किठन ह, सीधा करता ह'६ ' ओई एम सी या अंतराष्ीय साधना कनद, यंगॉन म बमी िशषयो को
िदय एक पवचन म, सयाजी न बुद क समय की एक गृिहणी की कथा सुनाई, जो समुिचत रप स
साधना करन म सकम थी ।
एक बार साठ िभकखु भगवान बुद क पास गय और उनस धयान लगान क िलए अनुमित
मागी । बुद न उनह िविध िसखा दी, तथा व अभयास क िलए िकसी उपयुकत िनवास सथान की
तलाश क िलए चल पडे । व माितकगाम नामक गाव पहंच तथा उसम िभका पापत करन क िलए
पवश िकया । उस गाव म माितकमाता नामक एक धनी मिहला थी । उनक पास बहत बडी भू-
संपित थी, तथा उनहोन अादरपूवरक िभकखुओं स अनुरोध िकया िक व वहाँ रह कर अपनी साधना
कर । उनहोन िभकखुओं क िलए एक िवहार का िनमाण करवा कर उनह पसतुत िकया तथा उनक
िलय भोजन पदान करन का भी बीडा उठाया ।
अत:, व िभकखु उनक दारा िनिमत िवहार म ठहर गय । िकतु व अापस म इस बात पर
सहमत हए िक बहतर धयान लगान क िलय िकसी भी दो िभकखु को न तो एक साथ रहना
चािहय अौर न एक ही सथान पर धयान लगाना चिहय । कुछ समय बाद, माितकमाता न
िभकखुओं स पूछा िक व कया कर रह थ तो उनहोन उतर िदया िक व धयान लगा रह थ । िफर
माितकमाता न उनस पूछा िक कयो, और जब उनको बताया गया िक धयान लगान स मन शात
होता ह, तो उनहोँन पूछा िक अपन खाली समय म कया व भी इसका अभयास कर सकती ह ।
िभकखुओं न बताया िक हा व भी इसका अभयास कर सकती ह, तथा तदनुसार उसकी िविध भी
समझाई । उनहोन कहा िक जब उनको समािध पापत होगी तब उनका मन शात एवं िसथर हो
जायगा तथा अंतत: उनम समुिचत पजा उदय होगी ।
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तृतीय िदवस; पात: पवचन
अत: उनहोन अपन घर म एक उपयुकत सथान चुना, जहा व घर क कामकाज समापत होन
क तुरंत बाद पतयक िदन राित म धयान लगाती थी । शीघ ही, उनका मन शात हो गया तथा
उनक मन म पीित (पािल म पीित) अथात संतोष, पससिद अथात शाित, सुख अथात ओनंद
तथा िचत एकागता या समािध उतपनन हई । जैस जैस उनकी सित की साधना सतत चलती रही,
उनम िवपससना का जान िबना िकसी अाचायर क मागरदशरन क ही उदय हअा, तथा व सोतापनन,
अथात िनबबान की धारा म पवश करन वाली, बन गइं । बाद म, व एक अनागामी बन गयी,
अथात पथम तीन मागर एवं फल पदो की अवसथा उपलबध कर ली । झानावसथा या समािध क
माधयम स उनम िदवय दृिष, िदवय शवण, िपछल जनमो क िवषय म तथा अनय लोगो क िवचार
जान लन की कमता भी पापत हई । ओप धयान दंग िक िकसी को भी उनको धमम क िवषय पर
वयाखयान दन की अावशयकता नही पडी । उनहोन बस वही िकया जो उनह बताया गया था ।
अनय लोगो क िवचारो को पढन की कमता क साथ, यह सोचत हए िक, िभकखुओं न
िनिशत रप स अौर भी अिधक पगित की होगी, उनहोन िभकखुओं की िसथित जाननी चाही ।
िकतु यह जानकर िक व अभी सोतापनन भी नही हो पाय थ, उनह ओशयर हअा, तथा उनकी
पगित क अभाव क कारण का पता लगाया । उनह पता चला िक व िभकखु अपन सुखद गृहसथ
जीवन स संनयास ल चुक थ, तथा िभकखु जीवन क तमाम अभावो स उनको इतनी िचढ हो रही
थी, िक उनका धयान भंग हो जा रहा था । िफर उनहोन िवचार िकया, 'कया मर इन बटो म
अहरतव पािपत की पवृित ह?' तो उनहोन दखा िक 'हा, उनम ह' । िफर उनहोन सोचा िक 'कया
उनक अावास उपयुकत ह या नही?' ततकाल उनह पता चला िक हा, ह । उसक बाद उनहोन
सोचा, 'कया उनक साथी उिचत ह या नही?" ततकाल उनह पता चला िक हा, ह । अंत म उनहोन
इस पशन पर िवचार िकया, 'कया उनह समुिचत भोजन पापत हो रहा ह या नही?' तो पता चला
िक 'उनह उिचत भोजन नही िमलता' ।
उसक बाद व िभकखुओं को िविभनन पकार की खीर तथा अनक सवादो स भरपूर कडे एवं
मृदल अाहार पदान करन लगी । इस पकार पौिषक भोजन की पािपत क पिरणाम सवरप, उनक
मन शात हो गय, तथा मन की शाित क फलसवरप, उनकी अंतदृरिष िवकिसत हई, एवं अहरतव
पापत हअा । सायंकाल म, एक िभकखु अहरत हो गय तथा साथ म ही अनय लोगो क िवचारो को
जानन की कमता भी पापत की । उनहोन दसरो की पगित क िवषय म जानना चाहा, तो उनह
पता चला िक व भी अहरत हो गय थ । वासतव म, माितकमाता की दसरो क िवचारो को जान
लन की कमता, तथा उनकी इचछाओं को पूरा करन क कारण, व सभी एक साथ अहरत हो गय ।
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तृतीय िदवस; पात: पवचन
िकतु सयाजी ऊ िचत ितन न अपनी संवदनाओं का संजान खो िदया । सयाजी ऊबा खी
बहधा यह कहानी बतात थ िक कैस सया जी ऊिचत ितन तब अपनी ओँखो म ओँसू क साथ उनक
कायालय म ओय थ । तो सयाजी ऊबा खी हँस, और उन खतरो की ओर इशारा िकया जो िबना
अाजा क िशका पािरत करन क पयास स हो सकत ह । उनहोन सयाजी ऊ िचत ितन की साधना
क साथ पयास िकया िजसस संवदनाओं का संजान पुन : जग सक ।
माँ सयामा जी न लगभग दो वषो तक अपन घर पर ही साधना की । तब तक, १९५२ म,
यंगॉन म इंटरनशनल मिडटशन सटर या अंतराष्ीय साधना कनद की सथापना हो गयी थी । मधय
अपैल १९५३ म, बमा म जल महोतसव की छुिटयो क दौरान, सयाजी ऊ ऊबा खी क कायालय म
काम करन वाल वयिकतयो क पिरवारो क िलए ओई एम सी-यंगॉन म पहला िशिवर लगा ।
सयामा जी न उसम चालीस अनय छातो क साथ धयान साधना की । उस पहल कोसर क बाद,
लगभग एक महीन तक व वहा साधना करती रही, तथा उस एक महीन क भीतर सयाजी ऊबा
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तृतीय िदवस; पात: पवचन
संदभर सूची
[1]Buddhist Legends, III 236–239.
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तृतीय िदवस; पात: पवचन
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तृतीय िदवस, सायं पवचन
अचछी लगन वाली चीजो को शुभ ही शुभ दखत िवहार करन वाल, इिनदयो म असंयत, भोजन
की माता क अजानकार, अालसी अौर उदोगहीन को मार ऐस सताता ह जैस दबरल वृक को पवन
।
अशुभ को अशुभ जानकर साधना करन वाल, इिनदयो म सुसंयत, भोजन की माता क जानकार,
शदावान अौर उदोगरत को मार उसी पकार नही िडगा सकता जैस वायु शैल पवरत को ।
य पंिकतया चुललकाल एवं महाकाल क संबंध म भगवान बुद दारा दी गइं थी । वयापार क
िलय याता पर जात हए, इन दो भाइयो न िशषयो को बुद का पवचन सुनन क िलए जात हए
दखा । महाकाल न अपन छोट भाई स कहा, 'बैलगािडयो का खयाल रखना । म जाकर पवचन
सुनूंगा ।' तथा व वहा जाकर सभा क चरम िकनार पर बैठ गय ।
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तृतीय िदवस, सायं पवचन
वहा काली नाम की एक मिहला थी, िजसका काम शवो का दाह संसकार करना था । उसको
लगा िक कोई वहा शमशान म अाकर बैठता ह तथा एक सथान पर चलता ह । अत: इसका पता
लगान क िलय िक वहा कौन अाता ह, उसन एक रात पहरा िदया । अधरराित म महाकाल को
अात दखकर वह उनक पास गई तथा उनका अिभवादन िकया । उसन उनस कहा, 'महोदय, जो
लोग शमशान म रहत ह, उनह सवयं को िनयमो स पिरिचत कराना चािहए ।' आदरणीय महाकाल
न यह नही कहा 'तुमहार िनयमो का पालन करन वाला म कौन होता हँ ?' कयोिक व एक अतयंत
िवनम वयिकत थ । बजाय इसक, उनहोन पूछा, 'भकत, मुझे कया करना चािहए?' काली न उनह
समझाया िक उनह िवहार क विरष सथिवर को, गाव क मुिखया को, तथा शमशान क रखवाल को
सूिचत करना चािहए । नही तो, यिद चोर चोरी का माल शमशान म फेक दं, तथा चोरो का
पीछा करत हए लोगो को व सामान िमल जाय, तो िभकखु क िलय किठनाई होगी । यिद इसका
पता हो िक व वहा रह रह ह, तो कोई भी उनपर एक चोर होन का संदह नही करगा ।
महाकाल न पूछा, 'मुझस और कया करन की अपका ह?' उसन उनको मास, मछली, आटा,
तल, शीरा इतयािद स बचन क िलए कहा, कयोिक इन खाद पदाथो की गंध स भूख पेत आकिषत
हो सकत ह । उनह िदन म सोना या आलसय नही करना चािहए । उनह अनवरत पयास करत
रहना चािहए, उनम कोई भी कपटी तथा िवशासघाती भावना नही होनी चािहए; उनकी नीयत
अचछी रहनी चािहय, जब सभी सो रह हो तब उनह िवहार छोड कर जाना चािहय, तथा िकसी
क भी जागन क पहल वापस अा जाना चािहए । और उसन कहा िक यिद शमशान म कोई मृत
शरीर अाया तो वह उसक अवलोकन क िलए उनह बतायगी । इसस उनक धयान म सहायता
होगी, कयोिक यह शमशान साधना का एक अंग ह ।
2
तृतीय िदवस, सायं पवचन
काली न महाकाल को सूिचत कर िदया । महाकाल न उस युवती को दखा, उसकी अभी अभी
मृतयु हई थी, तथा उसक शरीर का सुनहरा रंग अभी भी बरकरार था । उनहोन काली स कहा िक
जब वह मृत शरीर अिग पर रखा जाय, तो वह उनह बताय । तो इस पकार, उनहोन शरीर क
दाह होत समय अिपय पिरवतरनो का साकातकार िकया, तथा उसका धयान क अालमबन क रप म
उपयोग कर, उनहोन अंतदृरिष िवकिसत की एवं अहरतव पापत िकया ।
उनक अहरत बनन क बाद, जब भगवान बुद उनक घर क शहर, िससपा गय तो व तथा
उनक भाई भी, भगवान क साथ गय । छोट भाई, चुललकाल की दोनो पितनयो न बुद को भोजन
क िलए आमंितत िकया था । ऐसा होता था िक बुद जब भी कही ऐसी जगह जात थ, जहा व
बहधा न गय हो, तो अासन तैयार करवान क िलए पहल व एक िभकखु को भजत थ । मधय म
भगवान बुद क िलय अासन, उनक दािहनी तरफ सािरपुत क िलए, बाइं तरफ मोगगललान क
िलए, तथा अनय िभकखुआं क िलए दोनो ओर अासन तैयार िकय जात थ । इस कायर क िलय
महाकाल न अपन छोट भाई को भजा । घर क लोगो न उनका मजाक उडाया, तथा अासनो को
गलत तरीक स लगाया । उन लोगो न विरष िभकखुआं क िलय नीचा अासन तथा किनष
िभकखुआं क िलए उचच अासन तैयार िकय । जब चुललकाल न इसका िवरोध िकया तो मिहलाआं
न उनकी अनसुनी कर दी ।
उनलोगो न चुललकाल क चीवर खीच कर उतार िदया, तथा उनह शेत वस एवं सर म फूलो
की माला पहना कर भज िदया, 'जाओ, शासता को ल अाओ । हम अासन तैयार कर लग ।' जो
लोग एक लंब समय तक क िलए िभकखु नही हए होत, या जो एक वषर क पहल ही संघ का तयाग
कर दत ह, उनम इस िवषय म शमर का भाव नही होता । तो चुललकाल उसी वशभूषा म िबना
िकसी उपहास क डर स चल गय ।
महाकाल की पितनयो न सोचा िक ऐसा कोई कारण नही ह िक व भी अपन पित को गृहसथ
बनन क िलय कयो न मना ल, जैसा िक उनक भाई न िकया था । अत: उनहोन भगवान बुद स
कहा िक व महाकाल को भोज का अनुमोदन करन क िलय पीछ छोड दं । बुद न कहा 'बहत
अचछा' और व आग चल गय ।
3
तृतीय िदवस, सायं पवचन
बुद न िभकखुआं स पूछा िक कया व ऐसा सोचत ह िक महाकाल अपन भाई चुललकाल की
तरह ह । उनहोन उतर िदया, 'हाँ, भनत । चुललकाल की दो पितनया ह । महाकाल की आठ
पितनया थी । यिद व उनकी पकड म अागय, तब व कया कर पायंग?'
बुद न िभकखुआं को समझाया िक चुललकाल धयान लगान क पशात कामुक सुख क िवचारो
म िलपत होता था, जबिक महाकाल अिपय वसतुआं क िवषय म सोचत थ । भगवान बुद न उनस
कहा, 'वह तो ठोस चटानो क एक पवरत की तरह अटल ह ' तथा उनहोन इस कथा क पारंभ म दी
गयी गाथाअो को सुनाया ।
अचछी लगन वाली चीजो को शुभ ही शुभ दखत िवहार करन वाल, इिनदयो म असंयत, भोजन
की माता क अजानकार, अालसी अौर उदोगहीन को मार ऐस सताता ह जैस दबरल वृक को पवन
।
अशुभ को अशुभ जानकर साधना करन वाल, इिनदयो म सुसंयत, भोजन की माता क जानकार,
शदावान अौर उदोगरत को मार उसी पकार नही िडगा सकता जैस वायु शैल पवरत को ।
महाकाल की पूवर पितनयो न उनह घेर िलया और बोली, 'आप को िभकखु बनन की अनुमित
िकसन दी? अब अाप पुन: गृहसथ बन जायंग' तथा व उनक चीवर खीचन का पयास करन लगी ।
िकतु महाकाल अपनी शिकतयो का उपयोग कर, हवा म उड कर, घर क एक कोन को भदत हए,
आकाश मागर स गय जब भगवान बुद गाथाअो का समापन कर रह थ । तथा उनहोन नीच उतर
कर तथागत का अिभवादन िकया ।
पाच नीवरण 2
आज पात: हमन पाँच नीवरणो की चचा की :- (१) कामचछनद, (२) वयापाद अथात दभावना,
4
तृतीय िदवस, सायं पवचन
(३) सतयान एवं मृद (पािल म, थीन िमद) अथात शारीिरक एवं मानिसक आलसय या
अकमरणयता, (४) अौधतय एवं कौकृतय (पािल म, उडचच कुककुचच) अथात अनविसथता और खद,
तथा अंत म, (५) िविचिकतसा (पािल म, िविचिकचछा) अथात अाशंका अथवा संदह । आइए,
अब हम इस थोडा अौर िवसतार स जान िक व कैस उतपनन होत ह, तथा िकस पकार स इनह हम
दर कर सकत ह ।
१. कामचछनद :- भगवान बुद न कहा ह, 'सुंदर वसतुएं होती ह । उनपर बहधा मूखरतापूणर धयान
दना उन इिनदय सुखो की कामचछा का पोषण करता ह, जो अभी उदय नही हई ह, तथा उन
कामचछाआं को पबल बनाता ह जो पहल स ही उतपनन हो गई ह । ३
बुद क समय ऐस सात वषीय सामनर थ, िजनहोन अपन मुणडन क समय, शरीर क बतीस
घटक भागो को पिरलिकत िकया, एवं अहरत हो गय । आदरणीय दबब मललपुत की जब पहली
लट कटी तो व शोत िवजता (सोतापनन) हो गय, दसरी लट कटन पर मात एक बार वापस अान
वाल सकृदागामी (पािल म, सकदागामी), तीसरी लट पर कभी न लौटन वाल (अनागामी), तथा
चौथी लट कटन पर अहरत हो गय ।४ आदरणीय संिकचच जब सात वषर क थ, तो उनक एक
संबनधी उनह आदरणीय सािरपुत क पास ल गय, अौर सामनर बनन क िलय कहा । सथिवर न
संिकचच को शरीर क पाच अंगो पर धयान लगाना िसखाया, तथा जैस ही उसतर का उनक बालो
स संपकर हअा, उसी कण व अहरत हो गय ।५ आदरणीय चुलल सुमन तथा एक सामनर न जब
कौसामबी क सथिवर ितसस क अनतगरत पवजया ली तो व भी मुणडन क समय ही अहरत हो गय । ६
जानिनदय दारो की चौकसी, साधना िशिवर तथा दैिनक जीवन, दोनो म हमार िलय अतयंत
उपयोगी होगी । आदरणीय सािरपुत न एक साथी िभकखु को जानिनदयो क िनयंतण क िवषय म
परामशर िदया था ।७ उनहोन कहा िक जब भी आप िकसी वसतु की अोर दखत ह, तो आप को
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तृतीय िदवस, सायं पवचन
उसक समग रप स या उसक िववरण स गुमराह नही होना चािहए । ऐसा आवशयक ह, कयोिक
यिद चकु संकाय अिनयंितत ह, तो लोभ, द:ख, तथा बुरी एवं लाभहीन मनोदशाअो स अिभभूत
हो जायंग । अत: आप को अपनी दृिष को िनयंितत रखन का पयास करत रहना चािहए, तथा
इस पर िनयंतण पापत करन क िलए अापको चकु दार पर एक दारपाल बैठा दना चािहय । यही
बात तब भी लागू होती ह जब अाप कोई धविन सुनत ह, कोई गंध सूंघत ह, िकसी सवाद का
सवाद लत ह, तथा जब शरीर िकसी सपशरगोचर वसतु क संपकर म आता ह । आप को पतयक
जानिनदय को िनयंितत करन पर काम करना ह, तथा उन पर दारपाल की सथापना करना ह ।
इस पकार अाप उस पर िनयंतण पापत करग ।
अलपाहार हमार िलए समझना सहज ह । हम िशिवर म कवल शाकाहारी भोजन तथा
सायंकाल म बहत थोडा या िबलकुल नही क बराबर खाकर इसका अभयास करत ह ।
यिद हम अपन धयान म पगित करना चाहत ह, तो हमार िलए अायर िमतता िवशष रप स
महतवपूणर ह । एक समय, आदरणीय आनंद न बुद स कहा िक अचछ िमत, अचछ साथी, तथा
अचछी िमतता की पवृित आधा पिवत जीवन ह । ९ बुद न उतर िदया, 'आनंद, ऐसा मत कहो,
अचछा िमत, अचछा साथी, तथा अचछी िमतता की पवृित आधा नही पूरा पिवत जीवन ह । तब
उनहोन समझाया िक जब हम धमम िसखान वाला हमारा कोई कलयाण िमत होता ह, तभी हम
अषािगक अायर मागर का अनुसरण करन म सकम हो पात ह । तथा बुद न कहा, 'चूंिक म उनका
एक कलयाण िमत हं, जनम क अधीन पाणी जनमो स मुिकत पापत करत ह ।'
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तृतीय िदवस, सायं पवचन
२. वयापाद अथात देष या दभावना :- अाइए अब हम दसर नीवरण, देष या दभावना की चचा
करत ह । पािल गंथो म उललख ह िक पितकूल वसतुआं पर मूखरतापूणर अतयिधक धयान दन स देष
का पोषण होता ह ।११ यिद हम उनक िवषय म सोचत रह, तो इसस देष उतपनन होगा, तथा यिद
देष हमार मन म पहल स ही ह, तो उसकी पबलता म वृिद होगी । देष क पोषण को समापत
करन का उपाय पाय: मता पर बुिदमता पूणर धयान दना ह । यिद हम मता क िवचारो का मनन
करत ह, तो हम देष को उतपनन होन स बचायंग, तथा यिद हमम पहल स ही देष िवदमान ह, तो
उसका नाश करग ।
३. सतयान-मृद अथात शारीिरक एवं मानिसक अालसय :- यिद हम ऊब, थकान, अंगडाई,
भोजनोपरात तंदा तथा मानिसक िशिथलता की अोर मूखरतापूणर धयान दं , तो उसस आलसय एवं
अकमरणयता क तीसर नीवरण का पोषण होगा । १२ इन पर अतयिधक िवचार करन स अालसय एवं
अकमरणयता उतपनन होग, तथा उतपनन होन पर व पबल होग एवं उनकी वृिद होगी । हम ऊजा
जागृित ततव पर, पुरषाथर क ततव पर, तथा िनरंतर पिरशम करन क ततव पर पाय: बुिदमतापूणर
धयान दकर अालसय एवं अकमरणयता को समापत कर सकत ह । इनका अभयास करन स अालसय
एवं अकमरणयता स बचग, तथा उतपनन होन पर उनस छुटकारा पापत कर सकग ।
भगवान बुद न कहा ह िक हम अालसय एवं अकमरणयता पर िवजय पापत करन क िलय सात
बोधयागो (पािल म, बोझागो) म स तीन का उपयोग नही करना चािहए ।१३ जब शारीिरक या
मानिसक िशिथलता हो, तो हम पशाित, िचत एकागता, या समभाव क िवकास करन पर काम
नही करना चािहए । बुद न बताया िक यिद कोई वयिकत एक िचनगारी को आग की जवाला बना
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तृतीय िदवस, सायं पवचन
दना चाहता ह, तो वह उस पर गीली घास, गीला गोबर, तथा गीली लकडी का ढेर नही डालगा;
वह उस तज हवा अौर बािरश म नही ल जायगा, तथा उस पर धूल नही िछडकगा । इसी पकार
जब िशिथलता या अालसय हो तो हम ऐस मानिसक संकायो का िवकास नही करना चािहए, जो
मन को पशात कर ।
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तृतीय िदवस, सायं पवचन
'[एक िभकखु िजसन] अायर नैितकता, इंिदयो का अायर संयम, तथा अायर संतोष अिजत कर
िलया ह, …....वह कोई एकानत वास, कोई वन वृक का मूल, कोई पवरतीय गुफा या तंग घाटी,
कोई शमशान, कोई जंगली झुरमुट, या खुली हवा म िकसी पुआल क ढेर पर सथान पापत
करता ह । िफर, िभकाटन स लौट कर भोजन करन क पशात, शरीर को सीधा रखत हए
पालथी मार कर बैठता ह, तथा सित को अपन समक सथािपत रखन क िलय धयान किदत
करता ह ।
यह उसी पकार ह जैस कोई वयिकत अपना वयापार िवकिसत करन क िलए ऋण लता ह;
उसका वयवसाय सफल होता ह, तथा वह अपन ऋण का भुगतान करन म सकम हो जाता ह ।
शष धन क साथ वह एक पतनी का भी पालन कर सकता ह । तब वह सोचगा, 'पहल मन उधार
क धन स अपना वयापार िवकिसत िकया । अब यह चल िनकला ह ।' तथा वह आनिनदत एवं
अाहािदत होगा ।
यह उसी पकार ह जैस कोई वयिकत रगण हो, पीिडत तथा सखत बीमार हो, भूख मर गई हो,
तथा शरीर दबरल हो गया हो । कुछ समय क बाद, वह सवासथयलाभ करता ह, तथा उसकी भूख
एवं शिकत वापस अा जाती ह । तब वह सोचगा, 'इसक पहल म रोगी था, [िकतु अब म ठीक हं]
...,' तथा वह आनिनदत एवं अाहािदत होगा ।
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तृतीय िदवस, सायं पवचन
यह उसी पकार ह जैस कोई वयिकत िकसी कारागार म बंदी हो । कुछ समय क बाद, मुकत
हो जाता ह तथा अपनी सारी संपित पापत कर लता ह । तब वह सोचगा, 'पहल, म जल म था
[िकतु, अब म सवतंत हँ] ...,' तथा वह आनिनदत एवं अाहािदत होगा ।
यह उसी पकार ह, जैस कोई वयिकत िकसी का दास हो, वह सवयं अपना सवामी न हो,
िकतु िकसी अनय पर िनभरर हो । वह जहा चाह जा न सक । िकतु कुछ समय क बाद, वह गुलामी
स मुकत हो जाता ह, तथा कही भी जहा भी चाह वहा अा जा सकता ह । तो वह सोचगा, 'इसक
पहल, म एक दास था [िकतु अब म सवतंत हं] ...,' तथा वह आनिनदत एवं अाहािदत होगा ।
यह उसी पकार ह जैस कोई वयिकत धन एवं संपित स लदा हो । वह िकसी रिगसतान स
एक लंबी याता पर िनकलता ह । मरसथल म भोजन पापत करना दलरभ ह, तथा चारो ओर
खतरा ह । कुछ समय क बाद, वह रिगसतान क दसर िकनार पर गाव क बाहरी भाग म सुरिकत
पहंचता ह । तो वह सोचगा, 'पहल म असुरिकत था, िकतु अब म एक गाव क बाहरी भाग म
सुरिकत हँ ।' तथा वह आनिनदत एवं अाहािदत होगा ।
संदभर सूची
[1]See Buddhist Legends, I 184-189.
[2]This discussion of the five hindrances (nivarana) is largely inspired by
10
तृतीय िदवस, सायं पवचन
Nyanaponika Thera’s “The Five Mental Hindrances and Their Conquest,” The Wheel
n° 26 (2nd revised and enlarged ed., 1961). For further discussion of the five
hindrances, see The Dispeller of Delusion, Part 1 (Sammohavinodani), pp. 332-338.
[3]Samyutta-nikaya V 63 (Kindred Sayings V 52).
[4]Mp I 274f., quoted in Udana Commentary II, p. 1119, note 672.
[5]Buddhist Legends II, p. 239. Cf. Th-a II 255, where it is said he attained
Arahatship in the tonsure hall.
[6]Buddhist Legends III 279, Dhp-a II 182ff.
[7]Samyutta-nikaya IV 102 (Kindred Sayings IV 63).
[8]Samyutta-nikaya IV 36 (Kindred Sayings IV 16-18).
[9]KS I 113f.; V 2f.
[10]Majjhima-nikaya n° 122 (Middle Length Sayings III 156f.).
[11]Samyutta-nikaya (Nyanaponika’s reference [46, 51] has not been identified yet).
[12]Samyutta-nikaya V 103.
[13]Samyutta-nikaya V 113 (Kindred Sayings V 95f.).
[14]Samyutta-nikaya V 115 (Kindred Sayings V 98).
[15]Samyutta-nikaya V 103.
[16]Samyutta-nikaya V 106.
[17]Samyutta-nikaya V 114f. (Kindred Sayings V 97f.).
[18]Samyutta-nikaya V 103.
[19]Samyutta-nikaya V 106.
[20]Based on the translation by Maurice Walshe, Thus Have I Heard (pp. 101f.; D I
71f.).
11
चतुथर िदवस, पात: पवचन
मधावी (पुरष) उदोग, अपमाद, संयम तथा (इिनदयो क) दमन दारा (अपन िलय ऐसा) दीप
बना ल, िजस (चार पकार क कलशो की) बाढ अाप्ािवत न कर सक ।
धममपद, गाथा २५
चूलपंथक की कथा१
हमन कई बार इंिगत िकया ह िक हमारी काम करन की कमता तथा हमारी पगित की गित इस
बात पर िनभरर करती ह िक हमन अतीत म िकतनी तैयारी की ह । हमन ऐस साधको की कथा
सुनाई ह जो अित शीघ पगित करन म सफल हए । अब म आपको एक मंद वयिकत की कथा
सुनाता हं । यहा तक िक मंद गित स सीखन वाला वयिकत भी, यिद ठीक स कायर करता ह, तो
धमम की िशका क पालन का अभयास कर सकता ह तथा लकय तक पहंच सकता ह ।
िजस गाथा स हमन पारंभ िकया ह, वह गाथा चूलपंथक क संदभर म दी गयी थी । राजगृह
(पािल म राजगह या अाधुिनक, राजिगर) म एक धनवान वयापारी थ िजनकी एक बटी थी ।
जब वह बडी हई, तो उनहोन उसको रहन क िलए एक सात मंिजला अटािलका का िनमाण
करवाया तथा उस उसम कडे पहर म रखा । िकतु वह अपन दास की ओर आकिषत हो गई, तथा
इस संबंध का पता चल जान क भय स वह बोली, 'हमार िलय अब यहाँ रह पाना असंभव ह ।
यिद मर माता िपता को पता लग गया, तो व मर टुकडे टुकडे कर दंग । हम कही और जाकर
रहना चािहए ।' अत: व वहा स चल गए ।
वह गभरवती हो गई, तथा जब जनम िनकट अा गया तो अपन पित स बोली, 'मरा समय
िनकट अा गया ह, तथा िबना िकसी िमत या संबंधी की सहायता क, जनम दना किठनाई मोल
लना ह । हम मर माता-िपता क घर चलना चािहय।' िकतु दास अपन जीवन क िलए भयभीत
था, अत: उस टालता रहा ।
उसन सोचा, 'यह मूखर अपन िकय की गंभीरता क कारण वहा जान का साहस नही कर पा
रहा ह । िकतु वासतव म माता िपता अपन बचचो क कलयाण की परवाह करत ह । म जाऊंगी
चाह वह आय या नही ।' तो वह चल पडी । जब पित घर आया और पाया िक वह चली गयी ह, तो
वह उसक पीछ गया । वह उसको रासत म िमली, तथा उसन उसी सथान पर जनम िदया । अब
1
चतुथर िदवस, पात: पवचन
अपन माता िपता क घर जाना जारी रखन का कोई अथर नही था, अत: व वापस अा गए । तथा
उनहोन बालक का नाम 'पंथक' अथात 'सडक का' रखा । िफर वही बात शीघ ही एक बार पुन:
हई । तो उनहोन बडे बालक क नाम म महा (बडा) जोड िदया तथा दसर बालक का नाम
'चूलपंथक'(सडक का छोटा) रखा ।
जयष बालक न अपन सािथयो क साथ खलत हए उनको अपन मामाआं तथा नाना नािनयो
क िवषय म बात करत हए सुना, तो उसन अपनी मा स पूछा िक कया गाव म अपन कोई सग
संबंधी नही ह । उसकी माँ न कहा, 'हाँ, यहा तो नही, िकतु राजगह म तुमहार नाना एक धनी
वयापारी ह तथा वहा हमार अनक संबंधी ह ।' तो बालक न कहा िक वह वहाँ जाना चाहता ह ।
माँ न अपन पुत को यह नही बताया िक उसन अपना घर कयो छोड िदया था । अंत म दोनो
बालको न अपनी मा को इतना तंग िकया िक उसन अपन पित स कहा, 'य बालक मुझे िकतना
सता रह ह । अािखरकार, मर माता िपता जब हम दखंग तो हम िजदा नही खा जायंग । हम इन
बचचो को लकर इनक नाना, नानी को दखन चलना चािहय ।'
पित न कहा, 'म उनका सामना नही कर सकता, िकतु म तुमह वहाँ ल जाऊंगा ।' तो व
बचचो क साथ आ गय तथा राजगह क नगर-दार पर एक िवशामगृह म रक । माँ न अपन माता-
िपता को एक संदश िभजवाया । उनकी पितिकया थी, 'पुनजरनमो क इस चक म ऐसा कोई नही ह
जो कभी पुत या पुती न हअा हो, िकतु हमारी इस पुती न तथा इस दास न हम बहत अाहत
िकया ह । हमार िलय उनह दख पाना असंभव ह । हम उनह जीवन यापन क िलय पयापत धन द
दत ह तथा व जहा चाह वहा जाकर रह सकत ह । परनतु , व बालको को हमार पास भज सकत
ह ।' अत: बालक अपन नाना-नानी क साथ रहन अा गय ।
महापंथक इतन बडे हो गय थ िक व अपन नाना-नानी क साथ बुद क पवचन सुनन जात,
िकतु चूलपंथक अभी छोट थ । महापंथक म िनयिमत रप स बुद क पवचन सुनत सुनत, िभकखु
बनन की पवृित िवकिसत हई, तथा उनहोन अपन नाना की अनुमित माँगी । उनक नाना
अाहािदत हो गय, उनहोन कहा, 'िवश म िकसी अौर क बजाय म चाहता हं िक तुमही िभकखु
बनो । यिद तुम िभकखु बन सकत हो, तो बनो ।' ऐसा ह िक िकसी की िभकखु बनन म सहायता
करना अतयंत पुणय का कायर ह । यिद हम सवयं िभकखु बनत ह या ऐसा करन क िलए िकसी और
की सहायता करत ह, तो हम अगल जीवन म पवजया पापत करन म सकम हो जाएंग ।
2
चतुथर िदवस, पात: पवचन
नाखून, दात, और तवचा पर मनन सिममिलत ह । इस पकार का धयान िभकखुआं क िलए िवशष
रप स उपयुकत ह । तथा महापंथक बुद की अनक िशकाआं म दक हो गय एवं जब उनकी पयापत
अायु हई, तो उनहोन उपसंपदा अथात पूणर िभकखु क रप म दीका पापत की ।
तो, वह फल पद को पापत कर उसक आनंद म डूब रहन लग, तथा उनहोन सोचा, 'कया
चूलपंथक को यह आनंद दना संभव नही होगा?' तो वह अपन नाना क पास गय तथा चूलपंथक
क िभकखु-संघ म पवश क िलए उनकी अनुमित माँगी । अनुमित िमल गई । इतनी सरलता स
कोषाधयक क अनुमित दन का एक कारण यह था िक व बुद क एक पिसद गृहसथ िशषय थ, तथा
जब लोग यह पूछत थ िक उनक पौतो की मा कौन ह, तो अपनी पुती क अनैितक कायर क िवषय
म समझान म उनह शमर आती थी ।
िकतु व चार पंिकतया भी नही याद कर सक । िनससंदह, इसक पीछ एक कारण था । गौतम
बुद क पूवरवती काशयप बुद क समय व एक िभकखु थ । उस जनम म व अतयंत बुिदमान थ, तथा
उनहोन एक मंद गित स पगित करन वाल िभकखु का उपहास िकया था । दसर िभकखु न, जो
अपन उपहास क कारण लिजजत थ, अपना पाठ सीखन स इनकार कर िदया था । तो इसी कारण
चूलपंथक इस जनम म मंद हए । जब व अाग सीखत, तो जो पहल सीख थ वह भूल जाता था ।
चार महीन बीत गय, िकतु व एक भी छनद नही सीख पाय । तो महापंथक उनक पास गय
और बोल, 'तुम इस संघ म बन रहन क योगय नही हो । तुम िभकखु जीवन क लकय तक कैस
पहँच सकत हो, यिद तुम चार पंिकतया भी याद नही कर सकत? तुमह अब यहा स िवदा ल लनी
चािहए ।' िकतु चूलपंथक एक साधारण वयिकत का जीवन वयतीत करन क आकाकी कभी नही
थ । व भगवान बुद की िशकाआं स बहत जुडे हए थ ।
3
चतुथर िदवस, पात: पवचन
भगवान बुद एवं उनक साथ रहन वाल पाच सौ िभकखुआं को भोजन पर आन क िलए आमंितत
िकया । महापंथक इस पकार क िनमंतणो की वयवसथा करन क पभारी थ । 'एक िभकखु,
चूलपंथक ह, जो मंद बुिद का ह, वह धमम म आग नही बढ पा रहा ह, उसक अितिरकत म अनय
सभी क िलए आमंतण सवीकार करता हं' उनहोन यह कहत हए सवीकार िकया ।
बुद न पूछा, 'िदन क इस समय तुम कहा जा रह हो?' चूलपंथक न उतर िदया, 'भनत, मर
भाई न मुझे बाहर िनकाल िदया ह । म संघ को छोड कर जा रहा हं ।' भगवान बुद न पूछा,
'तुमहारा संघ म पवश मर िचतन का िवषय ह । तो जब तुमहार भाई न तुमह िवदा कर िदया तब
तुम मर पास कयो नही आय? वापस गृहसथ जीवन म लौटन म कया अचछाई ह? आओ, मर साथ
चलो ।' तो िशकक अपनी शुभ िचहो स अंिकत हथली स चूलपंथक का िसर थपथपाकर, उस
अपन साथ ल गए तथा गंधकुटी क समक बैठा िदया । िफर उस एक सवचछ िपलोितक अथात
वस का टुकडा िदया तथा बोल, 'चूलपंथक, पूवािभमुखी होकर यहा बैठो तथा 'रजोहरणं'
(अथात अशुदता हरण करत हए) बारंबार कहत कहत इस वस को रगडत रहो ।'
4
चतुथर िदवस, पात: पवचन
राग को रज कहा जाता ह । इसका अथर धूल नही ह । इसका अथर ह वासना । इस वासना की
धूल का तयाग कर, िभकखु उनकी िशका का पालन करता ह, िजनहोन वासना स मुिकत पापत
कर ली ह ।
‘‘दोसो रजो न च पन रणु वुचचित, दोसससतं अिधवचनं रजोित।
एतं रजं िवपपजिहतव िभकखवो, िवहरिनत त िवगतरजसस सासन॥
देष (पािल म दोस) को रज कहा जाता ह । इसका अथर धूल नही ह । इसका अथर ह देष । इस
देष की धूल का तयाग कर, िभकखु उनकी िशका का पालन करता ह, िजनहोन देष स मुिकत
पापत कर ली ह ।
‘‘मोहो रजो न च पन रणु वुचचित, मोहससतं अिधवचनं रजोित।
एतं रजं िवपपजिहतव िभकखवो, िवहरिनत त िवगतरजसस सासन’’ित॥ (महािन॰ २०९)।
अजान या मोह को रज कहा जाता ह । इसका अथर धूल नही ह । इसका अथर ह मोह । इस मोह
की धूल का तयाग कर, िभकखु उनकी िशका का पालन करता ह, िजनहोन मोह स मुिकत पापत कर
ली ह ।
गाथा क अंत म, चूलपंथक न िवशलषणातमक जान क साथ अहरतव पापत िकया, तथा व
उसक दारा सभी िशकाआं (ितिपटक, पािल म ितिपटक) क अाशय समझ गय ।
जब जीवक बुद क िलय दान क पतीक क रप म उडेलन हतु जल लाय, तो बुद न उनस
पूछा, 'कया िवहार म अभी भी िभकखु ह?' जब जीवक न उतर िदया िक महापंथक न कहा ह िक
अब कोई भी पीछ नही छूटा ह, तो बुद न उनह बताया िक, वहा ह । तो जीवक न वहा िकसी को
दखन क िलए भजा ।
चूलपंथक को अपन भाई की कही बात याद अा गई, अत: उनहोन एक हजार िभकखुआं की
रचना कर अाम क बगीच को उनस भर िदया, – कुछ चीवरो की मरममत कर रह थ, कुछ उनकी
रंगाई, अनय अधययन, इतयािद । जीवक दारा भजा गया वयिकत लौट आया तथा बोला, 'अाम का
बगीचा तो िभकखुआं स भरा पडा ह ।' बुद न कहा, 'िवहार म जाओ तथा घोषणा करो िक
तथागत न चूलपंथक नामक िभकखु को बुलाया ह ।' िकतु वह वयिकत वापस आकर बोला िक
सभी हजार िभकखुआं दारा घोिषत करती हई धविनया अा रही थी, 'म ही चूलपंथक हं' 'म ही
चूल पंथक हं' । तो बुद न कहा 'जाअो, सबस पहल जो िभकखु बोल िक वह चूलपंथक ह, उसको
पकड लो, तो शष लुपत हो जायंग ।' तथा ऐसा ही हअा । अत; चूलपंथक भी अनय लोगो क साथ
सिममिलत हो गय ।
5
चतुथर िदवस, पात: पवचन
भोजन क पशात, बुद न जीवक स कहा िक ऐस अवसरो पर पाय: िदया जान वाला
पवचन चूलपंथक दंग, तथा चूलपंथक न एक ऐसा पवचन िदया िजसम समसत िशका, अथात
ितिपटक समािवष था ।
संधयाकाल म िभकखुआं क एक वगर म उस िदन जो कुछ भी हअा था, उसकी चचा चल रही
थी । बुद उन क पास गय तथा अपन िलए तैयार िकय गय अासन पर बैठे । उनहोन मतापूणर
कोमल हदय स सभा को दखा तथा सोचा, 'इस सभा का वयवहार इतना सुखद ह िक हाथ या पैर
की कोई गितिविध नही, िकसी की खासी या छीक नही । व बुद क िलय सममान स इतन भर पडे
ह तथा उनक गौरव स इतन िवसमयाकुल ह िक यिद म यहा जीवन पयरत मौन बैठा रहं तो व
पहल बात करक मौनभंग नही करग । तो म ही वातालाप पारंभ करंगा ।' तथा उनहोन पूछा िक
कया चचा चल रही थी । उनहोन उनको बताया, तथा बुद न कहा िक यह पहली बार नही था िक
चूलपंथक को उनहोन अाशय पदान िकया था ।
मन की शाित
हम यह पहल ही कह चुक ह िक जब मन िसथर हो जाता ह, तो वह दृढ एवं शात हो जाता ह,
मन की शाित स कुछ मानिसक संकत पकट होत ह । ऐस संकत इसिलय उदय होत ह, कयोिक
मन असथायी रप स शुद हो चुका होता ह । व वयिकत की पारिमताअो क अाधार पर, तथा
उसक पयास म संतुलन क अाधार पर, दर सबर कभी न कभी अवशय उदय होग । हम कैस काम
करना चािहए, अाचायर बुदघोष न इसका वणरन िवशुिदमागर म िकया ह ।
6
चतुथर िदवस, पात: पवचन
िवषयो पर धयान दन का अादी हो गया था, उनस वंिचत हो जान पर, इधर उधर भागगा । िकतु
सित की सुदृढ रससी की सहायता स वह धयान क अालमबन पर िसथर होन लगगा, तथा उपचार
समािध एवं अपरणा समािध या झान का पभाव अापकी सहायता करगा ।
अाचायर बुदघोष न सपष िकया िक नाना पकार क िनिमत उसी तरह ह जैस अनक िभकखु
एक साथ बैठ कर भगवान बुद क पवचनो का पाठ कर रह हो । जब एक िभकखु पूछत ह, ' आप
कया सोचत ह, यह पवचन कैसा लगता ह?' तो कोई िभकखु कहग, 'मुझे तो यह िवशाल पहाडी
नदी सा जान पडता ह ।' कोई दसर िभकखु कहग, 'मर िलय यह वन म वृक पंिकत क समान ह ।'
िफर, कोई अनय िभकखु कहग, 'मर िलए, यह शीतल छाव दत हए, फलो स भर वृको क एक
िवसतार क समान ह ।' वही सूत िभनन िभनन रप म इसिलय पतीत होता ह, कयोिक इसकी संजा
या संजान उनक िलय िभनन िभनन ह । िनिमत भी इसी पकार िभनन िभनन लोगो को िभनन िभनन
रप म पकट होग, कयोिक उनक संजान िभनन िभनन ह ।४ अाचायर बुदघोष न कहा ह िक,
कमरसथान या िनिमत 'का जनम संजा स होता ह, इसका सोत संजा ह, यह संजा दारा िनिमत ह.
अत: यह समझना चािहय िक जब यह लोगो म अलग अलग तरह स पतीत होता ह, तो यह
उनक संजान म अंतर क कारण ह ।'
अाशास को अालमबन बनान वाला िचत अौर ह, पशास को अालमबन बनान वाला िचत
कोई अौर । तथा िनिमत को अालमबन बनान वाला िचत कोई अौर ही ह । िजस साधक को य
तीनो धमर सपष नही होत, वह न तो उपचार समािध तक, और न ही पूणर अपरणा समािध या झान
तक पहँच पाता ह । जब सभी तीनो का सपष बोध हो, तो उपचार समािध तक, तथा अपरणा
समािध तक पहँचना संभव हो जाता ह । तथा अाचायर बुदघोष िनमनिलिखत गाथा उदिरत करत
7
चतुथर िदवस, पात: पवचन
ह :-
िनिमत, अाशास, (तथा) पशास (य तीनो) एक ही िचत क अालमबन नही ह; िजस इन तीनो
बातो का बोध नही ह, उस िवकास नही पापत होता ।
िनिमत, अाशास, (तथा) पशास (य तीनो) एक ही िचत क अालमबन नही ह; िजस इन तीनो
बातो का बोध ह, उस भावना अथात िवकास पापत होता ह ।
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चतुथर िदवस, पात: पवचन
अिधसील सशकत हो जाता ह, तो मन शात एवं िसथर हो जायगा, तथा अपनी कठोरता खो
दगा । यही अिधिचत कहलाता ह ।
यिद अिधिचत (समािध) सशकत हो जाता ह तथा मन एक लंबी अविध तक एकाग रहता ह,
तो आप अनुभव करग िक एक ही कण म पदाथर अरबो अरबो बार उदय होता एवं नष होता
ह । यिद मन (नाम) पदाथर (रप) को जानता ह, तो यह भी जानता ह िक पलक क एक बार
झपकन क भीतर ही पदाथर अरबो बार उतपनन एवं िवखंिडत होता ह । इस उदय एवं िवघटन
क जान को अिधपञञा कहा जाता ह ।
जब हवा अनदर आती ह, तो सपशर करगी । जब हवा बाहर जाती ह, तो सपशर करगी । यिद
अाप इस सपशर को िनरंतर जानत रह, तो इचछा (लोभ), दभावना (देष) तथा भम (मोह) क
उदय होन का अवसर ही नही अायगा, तथा लोभ, कोध, एवं भम की अिग कीण होती
जायगी ।
वासतव म वायु क सपशर क पहल आप को उसका पता नही चल सकता । उसक चल जान क
बाद, उसका पता नही चल सकता । कवल उसी समय जब हवा अनदर या बाहर जाती ह,
आप उसक सपशर की अनुभूित कर सकत ह । इस हम वतरमान कण कहत ह ।
9
चतुथर िदवस, पात: पवचन
संदभर सूची
[1]Buddhist Stories, I: 299-310; The Dhammapada Commentary, I: 95-100.
[2]Path, Chapter VIII ¶ 214.
[3]Op. cit., Chapter VIII ¶ 215.
[4]Op. cit., Chapter VIII ¶ 216.
[5]From Selected Discourses of Webu Sayadaw, Dhamma Texts Series 3, pp. 59–61.[
6]Kayapasada is the sensitive matter contained in the six sense organs that registers
touch, light (sight), sound waves, smells, tastes, and thoughts.
10
चतुथर िदवस, सायं पवचन
1
चतुथर िदवस, सायं पवचन
अानापान स लाभ
हमन सपष िकया ह िक अानापान म शास का उपयोग एकागता क कमरसथान क रप
म करन का लाभ यह ह िक शास सदैव हमार साथ होती ह । ऐस समय जब हम
शास नही लत, कवल तभी होत ह जब हम अजनम िशशु अथात भूण हो, डूब रह
हो, या मृत हो चुक हो । अनय िसथितया य ह, जब शास िवदमान नही होती :-
जब आप अचतन अिसततव म हो, सूकम भौितक या अभौितक लोक म जनम हो, यिद
आप चतुथर समािध या धयान (पािल म, झान) म हो या िनरोध पापत कर चुक हो ।
िकतु यहाँ हम सभी शास ल रह ह ।
बमा क पूवर राष्पित न जब साधना पारंभ की तो उनह लगा िक उनकी शास
बनद हो गई ह । िकतु जब उनहोन मा सयामा जी स कहा िक उनकी शास बंद हो
गई ह, तथा अपन कक स बाहर जान क िलय जब व उठन लग, तो मा सयामा जी
न उनह समझाया िक उनकी शास बंद नही हई थी, अिपतु अतयंत सूकम हो गई थी ।
तथािप उनहोन यह कहत हए जोर िदया, 'नही, नही, म वासतव म शास नही ल
रहा हँ ।' उसक पशात व सान क िलय चल गय तथा सान क बाद व माँ सयामा
जी क पास चिकत होकर दौडत हए आय अौर बोल, 'अाप ठीक कह रही थी ।
आिखरकार म शास ल रहा हँ! ' शारीिरक गितिविध न शास को पबल कर िदया
था, तथा व उस िफर स अनुभव कर सकत थ । हम शास नही ल रह ह, ऐसी
धारणा क पीछ यह कारण संभव हो िक हमारी शास सूकम हो गई हो तथा हमारी
समझ इसका पता लगान क िलय अतयिधक सथूल हो । अत: हम शास का पता
करत रहन की कमता िवकिसत करन का पयास करना चािहए ।
यिद हम सही ढंग स काम करत रह, तो इसक पुरसकार अतयंत महान हो
सकत ह । जैसा िक सयाजी ऊबा खी न कहा ह, 'कवल उनही की सफलता का
आशासन िदया जा सकता ह, जो उिचत उदेशय स साधना म जुट हए ह । पकृित क
2
चतुथर िदवस, सायं पवचन
परम सतय म अंतदृरिष क अाधार पर, मन की शिकत एवं शुदता क िवकास क साथ,
कोई भी वयिकत मानव जाित क कलयाण क िलए सही िदशा म अनक कायर करन म
सकम हो सकता ह । यह एक आम धारणा ह िक उस वयिकत की तुलना म जो
इतना िवकिसत नही ह, िजस वयिकत की िचत-एकागता की शिकत पबल हो, तथा
जो सवचछापूवरक पूणर मानिसक संतुलन सुरिकत कर सक, उस शेषतर पिरणाम
पापत होग ।
'अत: वह वयिकत जो साधना क एक िशिवर का अथात पिशकण पाठ्कम
का सफल अनुभव करता ह, उस िनिशत रप स अनक लाभ होत ह, चाह वह कोई
धमरपरायण वयिकत हो, पशासक हो, राजनीितज हो, वयवसायी हो, अथवा कोई
छात हो ।'२
िजन सरकारी अिधकारी का पहल उललख िकया गया था, व अपन पद क
कायरकाल क समापन पर धयान लगान क िलए कद पर आय थ । व अभी भी एक
महतवपूणर वयिकत थ तथा अनक सशस अंगरकको क साथ आय थ । उनकी िशका
पिशम म हई थी, तथा दभागय स उनहोन मिदरापान की बुरी आदत पकड ली थी ।
बात यहंा तक पहंच गई िक व अब जल नही, कवल मिदरा पान िकया करत ।
सयाजी एवं सयामा जी क मागरदशरन म काम कर क व डेढ घंट तक सवचछा स गहन
धयान म जान म सकम हो गय । तथा उनहोन कहा िक एक बार धमम म सथािपत हो
जान क बाद उनक िलय पुन: मादक दवय पीना असंभव था । उनहोन कहा, 'यही
वासतिवक सील ह ।' अब तो सवयं को िनयंितत करन क िलय पयास करन या
तनाव मोल लन की बात नही थी । य व ही थ िजनहोन 'सयामा' अथात मिहला
अाचायर शीषरक िदया था, िजस सयाजी न अनुमोिदत िकया । बाद म, व सयामा जी
अथात महान मिहला अाचायर क रप म जानी जान लगी ।
वहा एक उचच नयायालय क नयायमूित भी थ, जो इतन मोट थ िक उनह नीच
बैठन म भी किठनाई होती थी । िकतु जब उनहोन अानापान करना पारंभ िकया तो
व ठीक स बैठन लग, तथा सयाजी एवं मा सयामा जी की सहायता स व सवचछा स
गहन धयान म जान म सकम हो गय । एक अनय वयिकत जो पािल क िवदान थ, व
भी सयाजी एवं मा सयामा जी की सहायता स सवचछा स गहन धयान म जान म
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चतुथर िदवस, सायं पवचन
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चतुथर िदवस, सायं पवचन
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चतुथर िदवस, सायं पवचन
दो पमुख िशषय४
उपितसस एवं कोिलत नाम क दो िमत थ । व दोनो अतयंत समृद थ । एक रात जब
व एक नाटक दख रह थ, तो नाटक क अंत म उनहोन एक मृतयु का दृशय दखा ।
चूंिक व अपन िदन पितिदन क जीवन म ऐसी वासतिवकताआं क अभयसत नही थ,
इसस व अतयंत पभािवत हए । उनह यह बडी गहराई स एहसास हआ िक एक िदन
उनकी भी मृतयु होगी । अत: उनहोन एक दसर स कहा, 'यिद मरण की पिकया
होती ह, तो अमरण की भी पिकया होनी चािहए ।' तथा उनहोन उस पापत करन
का संकलप िलया । व अपनी संपित का तयाग कर िवदान गुरआं की खोज म िनकल
पडे । राजगह या आधुिनक समय क राजिगिर म गुर संजय स उनकी भंट हई, तथा
व उनक िशषय बन गए । बुद की जागृित स पहल, छ: सबस अिधक जात गुरआं म
स संजय भी एक थ । व इस सीमा तक िवकिसत हो गय थ, िक िकसी मृतक की
कवल एक अिसथ दखकर ही बता दत थ, िक उस वयिकत का पुनजरनम कहा हअा ह ।
िकतु उनह दख का, अिनतय (पािल म अिनचच) का तथा अनातम (पािल म अनता)
का जान नही था ।
दोनो िमतो न उनक मागरदशरन म अधययन िकया, तथा कुछ ही समय म उनकी
िशका म पारंगत हो गय, िकतु उनहोन पाया िक संजय उनह अमरतव म पिशिकत
नही कर सकत, अत: उनहोन िकसी शेठतर गुर की खोज करन का िनणरय िलया ।
एक िदन उपितसस की, जो बाद म सािरपुत क नाम स जाना जान लग, अससजी स,
जो बुद दारा सबस पहल पिशिकत पाच तपसवी िशषयो म सबस कम अायु क थ,
भंट हई । अससजी न बुद की िशका स एक गाथा सुनायी, तथा उसक अाधे म ही,
अथात कवल दो पंिकतयो म ही सािरपुत जागृित क पहल चरण क फल की अवसथा
म सथािपत हो गय । व एक सोतापनन हो गय । जो गाथा अससजी न सुनायी थी वह
यह थी :-
य धममा हतुपपभवा, तसं हतुं तथागतो अाह ।
तसं च यो िनरोधो, एवं वािद महासमनो ।।
जो भी धमम अनुबंिधत ह, तथागत न उनक कारणो एवं उनक समापन को सपष कर
िदया ह; महाशमण की यही िशका ह ।
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चतुथर िदवस, सायं पवचन
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चतुथर िदवस, सायं पवचन
बुिदमान वयिकत बुिदमान गौतम क पास जाएंग तथा मंद मर जैस मंद क पास
आएंग ।' तथा उनहोन उनको लौटा िदया ।
जब उनहोन उनह अपनी कहानी सुनाई, तो बुद न घोषणा की, 'िभकखुआं,
अपन गलत दृिषकोण क कारण, संजय अनावशयक को अावशयक तथा अावशयक को
अनावशयक समझता ह । अनावशयक को दर रखत हए, आपन आवशयक को
आयोिजत िकया ह ।'
तो सािरपुत और महामोगगललान न अहरतव क िलए साधना पारंभ कर दी ।
सािरपुत राजगह क िनकट भालू की माद नामक एक गुफा म गय । तथा
मोगगललान मगध म कललवलपुत क िनकट जंगल म चल गय । उनहोन अपनी
साधना म महान पयास डाला िकतु िफर भी, व अपनी तंदा पर िनयंतण पान म
सकम न हो सक । उनहोन अपनी पूरी कोिशश की िक उनह नीद न अाय, िकतु व
अपन शरीर एवं िसर को सीधा रखन म असमथर थ ।
िकतु बुद न अपन िशषयो क िलए एक अाचायर क उतरदाियतव क साथ, उन
पर स अपनी दृिष नही हटाई । अपनी अलौिकक दृिष क दारा, व मोगगललान की
किठनाइयो को जान गय । तथा व उनक समक पकट हए । जैस ही उनहोन अपन
सामन बुद को खडे पाया, तो उनकी अिधकाश तंदा, थकान, तथा वयाकुलता लुपत
हो गई ।
बुद न पूछा, 'मोगगललान ! ऊंघ रह ह न ?' उनहोन कहा, 'भनत ! हाँ' तब बुद
न उनह िनदरश िदया, 'इसिलय, मोगगललान ! िजस संजा स युकत होन पर तंदा आती
हो, उस संजा को मन म सथान न दं । उस संजा को बार बार मन म न लायं । इस
पकार, यह संभव ह िक जो तंदा ह वह दर हो जाय । िकतु यिद वह न जाय, तो जो
उपदश सुन ह, जैस कणठसथ िकया ह, उसी क अनुसार उस धमर पर तकर िवतकर कर,
िवचार कर, मन स मनन करन स यह संभव ह िक यह तंदा चली जाय । यिद तंदा
बनी रहती ह, तो जो भी उपदश सुन एवं कणठसथ िकय ह, उनका िवसतार पूवरक
पाठ करना चािहए । यिद तब भी तंिदल ह, तो दोनो कानो को रगडं तथा अपन
हाथो स अपन शरीर क अंगो को मल । यिद अभी भी तंिदल ह, तो अपन अासन स
उठ कर अपनी आँखो पर पानी क छीट मार कर, चारो ओर सभी िदशाआं म दखं,
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चतुथर िदवस, सायं पवचन
एवं ऊपर तारागण तथा नकतो को दखं । यिद तंदा अभी भी न गई हो, तो रात
अौर िदन दोनो म, अालोक अथात पकाश की संजा को मन म सथान दं । अत:
सवचछ एवं िनमरल िचत स एक ददीपयमान मानस जागृत कर । यिद यह भी काम
नही करता, तो धयान को िबना इधर उधर भटकन दत हए, उस शरीर म बनाए हए,
चंकमण कर, अथात अाग पीछ चल एवं अाग पीछ चलन का बोध बनाए रखं ।
यिद यह सब िवफल होता ह, तो सित क साथ सपष रप स अवगत रहत हए, िसह
मुदा म – अथात दािहन करवट, एक पैर को दसर पैर पर रख कर – मन म उठन
का िवचार रखत हए लट सकत ह । जब जागं तो यह सोचत हए िक 'मुझे शयन
एवं िवशाम क सुख म तथा नीद क अाननद म िलपत नही होना चािहए' शीघ उठ
जाना चािहए ।
अत: आप दख सकत ह िक यहा तक िक पमुख िशषयो क िलए भी अानापान
साधना सरल नही ह । बुद क संरकण तथा मागरदशरन क कारण मोगगललान अपनी
साधना म सकम हए, एवं एक सपताह क भीतर उनहोन अहरतव पापत िकया ।
सािरपुत को एक सपताह और लगा, कयोिक धमम को समझन म बुद क बाद व
दसर थ, और इसक िलय उनह और अिधक पिरशम करन की आवशयकता पडी ।
यिद कोई वयिकत अकमरणय ह, अिधकािधक भोजन करता ह, अपना अिधकाश समय
नीद म िबताता ह, अनाज पर पल एक बडे सूअर की तरह बैठता, लुढकता रहता ह,
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चतुथर िदवस, सायं पवचन
जागृित की तैयारी
हमन कई बार अतीत क कुशल कायो, अथात दस पारिमताआं क िवकास क महतव
का उललख िकया ह । आप म स कुछ लोग इस बात स िचितत हो सकत ह िक आप
म पारिमताअो का अचछा भंडार ह या नही । सयाजी ऊबा खी न कहा ह िक, हम
यह मान सकत ह िक, कवल वही वयिकत जो सदुणो क संचय म पिरपकव ह,
िनवाण का संकलप लन क िलय पेिरत होग, तथा बौद साधना म गंभीरता स
पिशकण लन क िलए इचछुक होग ।
हम एक अहरत बनन क िलए पारिमतायं (पािल म,पारमी) एकत कर रह हो
सकत ह । इसम लगभग एक सौ स एक हजार कलप तक लग सकता ह । ६ िकनतु
यिद कोई इसस भी उचचतर लकय रखता ह तो उस अौर भी लंब समय तक काम
करना होगा । यिद कोई अससी पमुख िशषयो म स एक होना चाहता ह, तो उस दस
हजार कलप लगगा । जो दो पमुख िशषयो म स एक होना चाहता ह, उसक िलए
अौर भी अिधक तैयारी की अावशयकता ह । पतयक बुद (पािल म, पचचक बुद) जो
दसरो को िशका नही दत, बनन क िलय इसस भी अिधक तैयारी लगती ह । तथा
िशकक बुद बनन क िलय तीन सतर की तैयािरया ह :- िशकक बुद िजनकी सबस
िवकिसत गुणवता िववक (पञञा) ह; िशकक बुद जो शदा म सबस पबल ह; अनत
म एक िशकक बुद िजनम सवािधक पुरषाथर या वीयर ह, बनन क िलय सोलह
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चतुथर िदवस, सायं पवचन
असंखय तथा एक सौ हजार कलप लगत ह । अत: इस कलप क भावी बुद मतेय
(पािल म, मतेय) न, जो उस शेणी क बुद ह िजनह तैयारी क िलय सबस अिधक
समय लगता ह, गौतम बुद क पहल स ही अपनी पारिमताआं पर काम करना
पारंभ कर िदया था ।
हमन अाचायर बुदघोष क िवशुिदमागर (पािल म, िवसुिदमगग) स कई बार
उदृत िकया ह । जब व पहली बार भारत स शीलंका गय थ, तो पािल गनथो की
टीकाआं का अधययन करन क िलय । जब उनहोन गंथो को दखन का अनुरोध िकया, तो
शीलंका म िभकखुआं न उनह एक गाथा की दो पंिकतया दी तथा उनकी िनषा एवं
समझ क परीकण क रप म उन पर एक िटपपणी िलखन क िलए कहा । वह गाथा
थी :-
सील पितटाय नरो सपञञो, िचतं पञञं च भावयं ।
अातापी िनपको िभकखु, सो इमं िवजटय जटं ।। (सं० १-१४)
शील सदाचार म पितिषत होकर, जो बुिदमान वयिकत जब समािध अौर पजा
की भावना करता ह, तब वह उदोगी व जानवान पुरष, िभकखु हो कर इस जंजाल
(भवबंधन) को िछनन िभनन कर सकता ह ।
पिरणामसवरप एक पुसतक हई, जो अंगेजी अनुवाद म आठ सौ स अिधक पृषो
की ह तथा पािल गंथो म पायी जान वाली समूची िशका का सार ह । िभकखुआं न
जब यह टीका, िवशुिदमागर, पढी तो व बोल िक बुदघोष को अवशय ही बोिधसतव
(पूणर जागृित क पयोजन वाला) अथात भावी बुद, मतेय होना चािहए ।
सयाजी ऊ बा खी न, इस टीका की चचा करत समय कहा िक यिद हम इस
एक हजार भागो म िवभािजत कर, ततपशात सयाजी की िशका को एक हजार
भागो म िवभािजत कर उनकी तुलना कर तो, व पूरी तरह एक दसर क समान
िनकलगी ।
अब हम काम न करन क िलए एक बहान क रप म िकसी आकाका का
उपयोग नही करना चािहए । कवल एक बुद ही िकसी आकाका की पुिष कर सकत
ह तथा कोई िनिशत भिवषयवाणी कर सकत ह । ऐसा इसिलय िक कवल एक बुद
ही काफी दर तक अतीत एवं भिवषय म दख सकत ह िक कया िकसी वयिकत न
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चतुथर िदवस, सायं पवचन
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चतुथर िदवस, सायं पवचन
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चतुथर िदवस, सायं पवचन
अतीत म उनहोन मुिकत क िलय पयापत पारमी नही अिजत की थी । िकनतु उनकी
समसया यह नही थी ।
बुद न उनस आग पूछा, 'कया तूं गृहसथ जीवन म वीणा वादन म कुशल था?'
'भनत ! हाँ ।' सोण न उतर िदया ।
'जब तुमहारी वीणा क तार अावशयकता स अिधक कस होत थ, तो कया
तुमहारी वीणा स अचछ सवर िनकलत थी, कया वह कमनीय रहती थी?'
उतर था 'भनत ! नही ।'
'जब तुमहारी वीणा क तार बहत ढील होत थ, तो कया उस समय तुमहारी
वीणा स अचछ सवर िनकलत थ, कया वह कमनीय रहती थी?'
तथा पुन: उतर था नही ।
'जब तुमहारी वीणा क तार न तो अवशयकता स अिधक कस होत थ, अौर न
ही बहत ढील होत थ, िकनतु सामानय रप स तन रहत थ, तो कया तब तुमहारी
वीणा स अचछ सवर िनकलत थ तथा कया वह कमनीय रहती थी?'
'भनत ! हाँ ।' सोण न उतर िदया ।
'इसी पकार, ह सोण ! अतयनत पयतनशील होना उदतपन का कारण हो जाता
ह, तथा बहत कम पयास अालसय की ओर ल जाता ह । अत: तुम समुिचत
संतुिलत ऊजा क साथ काम करन का िनशय कर, (शदा अािद) आधयाितमक
इिनदयो म समभाव पापत कर । तथा ऐसा करत हए िनिमत अथात धयान क िवषय
को गहण कर ।'
सोण न उतर िदया, 'भनत ! अचछा ।'
संदभर सूची
१़ Buddhist Legends, III, pp. 5-6.
२़ “The Real Values of True Buddhist Meditation,” in Dhamma Texts,
1985, The Sayagyi U Ba Khin Trust.
३़ Chapter VIII, ¶ 219.
४़ See The Book of the Discipline, IV, pp. 52-56; Buddhist Legends, I, pp.
198-204; and The Gradual Sayings, IV, pp. 50-54.
५़ The Kindred Sayings, I, p. 108 and Buddhist Legends, III, pp. 76-78,
206.
६़ See What Buddhism Is and “A Treatise on the Paramis” (in The All-
Embracing Net of Views), p. 325.
७़ See The Path of Purification, p. xxii (quoting from the Mahavamsa).
८़ Chapter 1, ¶ 135.
९़ The Book of the Discipline, IV, pp. 236-246.
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पंचम िदवस, पात: पवचन
धममपद, गाथा १
चकखुपाल की कथा
बुद क समय, एक िभकखु थ जो अहरत हो गए तथा उसी समय उनहोन अपनी दृिष खो दी । १ यहा
तक िक एक अहरत भी कारण कायर िवधान स अछूता नही होता, तथा जब तक उसका भौितक
शरीर अपनी मानिसक गितिविधयो क साथ िवदमान रहता ह, अतीत म िकय गय अनैितक कमो
का फल, रोग अािद क रप म पकट हो सकता ह । िकसी जागृत वयिकत तथा एक साधारण
वयिकत क बीच अंतर यह ह िक जागृत हो जान क बाद, वयिकत म पीडा या अाननद स कोई संघषर
तथा पितिकया नही होती । अत: कोई मानिसक कष नही होता ।
कुछ िभकखु उस िवहार म अाय जहा य अहरत वास कर रह थ तथा व चारो ओर
दृशयावलोकन करन लग थ, कयोिक बुद एवं अससी महान िशषय भी वही थ । िकनतु भारी वषा न
उनह िभकखु चकखुपाल का दशरन करन स रोक िदया, अत: उनहोन पात: जान का िनणरय िलया ।
रात म बािरश रक गई तथा चकखुपाल चंकमण क िलय बाहर अा गय । वषा क कारण, चंकमण
पथ कीडो स ढंक गया था । चूंिक चकखुपाल दृिषहीन थ, उनक पैर उन कीटको पर पडे तथा
अनक की हतया हो गई । िभकखु जब उनक दशरन क िलय पात: अाय तो उनहोन उन कीटको को
दखा तथा व बुद को सूिचत करन पहंच । उनहोन कहा, 'जब व दृिषवान थ, तो व इधर उधर पडे
रहत थ तथा सभी समय सोत रहत थ । अब जब िक व दृिषहीन ह तो उनहोन चंकमण की ठान
ली ह '
जब उनहोन कहा िक चकखुपाल न अनक कीटो को मार डाला था, तो बुद न उन स पूछा,
'कया तुमन उनह मारत हए दखा था?' उनहोन उतर िदया िक नही । 'जैस तुमलोगो न उनह मारत
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पंचम िदवस, पात: पवचन
हए नही दखा था, उसी पकार, उनहोन उन जीिवत पािणयो को नही दखा था । जो लोग अकुशल
पवृितयो स मुकत हो चुक ह, उनम मृतयु का कारण बनन का कोई इरादा नही होता ।' तो हम
दख सकत ह िक िकसी कमर स जुडी मानिसक इचछा ही कारण तथा उनक पिरणाम क िवधान का
सबस महतवपूणर पहलू ह ।
िभकखुओं न पूछा िक यह कैस हो सकता ह िक कोई वयिकत जो अहरत हो गया हो वह अंधा
हो जाय । उतर था, 'अपन अतीत क संसकारो अथात इचछाधारी कृतयो क पभाव क माधयम स ।'
तथा बुद न िभकखुओं को चकखुपाल क िपछल जनम की कहानी सुनाई िजसक कारण व दृिषहीन
हय थ ।
अपन िपछल जनम म चकखुपाल एक िचिकतसक थ । उनहोन एक मिहला की िचिकतसा की
थी िजसकी ओँखो म कष था । मिहला न वादा िकया िक यिद व उस ठीक कर दं , तो वह अपन
बचचो समत उनकी दासी बन जायगी । उपचार सफल हअा िकनतु मिहला का दासी बनन का
िवचार बदल गया तथा उसन ओँखं न ठीक होन का नाटक िकया ।
िचिकतसक को पता चल गया िक वह झूठ बोल रही थी, अत: उनहोन बदला लन का िनणरय
िलया । उनहोन सोचा, 'मुझे इसक शुलक की अावशयकता नही ह । इसिलय म इस दृिषहीन कर
दंगा ।' तथा उनहोन उस एक लप िदया िजस उसस लगान क िलय कहा, िजसस उसकी दृिष चली
गयी । बुद न अपन सपषीकरण का समापन उस गाथा स िकया िजस हमन धममपद स उदृत
िकया ह; यह बताती ह िक अतीत म िकय गय कमो का फल अिनवायर रप स कभी न कभी
िमलता ही ह :-
मनोपुबङगमा धममा, मनोसटा मनोमया । मनसा च पदटेन, भासित वा करोित वा ।
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पंचम िदवस, पात: पवचन
कयोिक उनहोन अजानता एवं तृषणा रपी जडो को नष कर िदया होता ह, िकनतु अनय सभी
पािणयो की तरह व भी अतीत म िकए गए अचछ या बुर कायो क अपिरहायर पिरणाम स मुकत
नही होत । मन सभी कायो का अगुअा ह । वह कायर िनषपादन तथा कायो की पितिकया, दोनो
पहलुओं म पमुख ततव क रप म भाग लता ह । यह मन ही ह जो कायो को ओकार दता ह तथा
उनह िनयंितत करता ह । वाणी एवं कायर भी मन दारा उतपािदत होत ह ।
मटकुणडली की कथा
धममपद की इस पहली एवं दसरी गाथा म, िजस हम अब दखंग, मनुषय जीवन म मन की अपार
भूिमका को बुद महतव दत ह । उनहोन कहा िक कोई कायर अचछा ह या बुरा, यह मनोदशा की
शुदता अथवा अशुदता पर िनभरर करता ह । तथा व इस तथय की बात करत ह िक ऐस कमो क
पिरणाम अिनवायर होत ह :-
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पंचम िदवस, पात: पवचन
पहल चरण तक पहंचन म सकम होगा, एवं उसक िपता भी अपन बट का भागय दखकर, वही पद
पापत करग ।
पटाचारा की कथा
यो च वसससतं जीव, अपससं उदयबबयं । एकाहं जीिवतं सययो, पससतो उदयबबयं ।।
(पंच सकंध क) उदय-वयय को न दखन वाल वयिकत क सौ वषर क जीवन स, उदय-वयय को दखन
वाल वयिकत का एक िदन का जीवन शेयषकर होता ह ।
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पंचम िदवस, पात: पवचन
पात:काल, यह सोच कर िक उसक पित न उस छोड िदया ह, वह िफर िनकल पडी । शीघ ही
उस अपन पित का शव िमला, तथा उसन कहा, 'मर कारण मर पित का दहानत हो गया ।' तथा
वह अतयंत दखी अवसथा म अपन मायक की िदशा म अाग बढी ।
वह एक नदी पर पहंची, जो तूफान क कारण ऊफान पर थी, तथा कमजोरी क कारण, वह
दोनो बचचो को एक साथ लकर, धारा पार करन म असमथर थी, अत: वह जयष बालक को तट
पर छोड कर नवजात िशशु को उस पार ल गई । उस वहा नीच रख कर बडे बालक क िलए
वापस अान लगी । जब वह मझधार म ही थी, एक िशकारी पकी न नीच अाकर नवजात िशशु
को झपट िलया । माँ हाथ उठा कर िचललायी, 'शू, शू (दर हो जाओ! दर हो जाओ !) ।' बडे
लडक न अपनी माँ को हाथ उठात दखा, तो सोचा िक वह उस बुला रही ह । वह नदी म िगर
गया और बह गया ।
पटाचारा अपन दोनो बटो क शोक म रोती, िबलखती अाग बढी । मागर म शावसती क एक
वयिकत स भंट हई । उसन अपन पिरवार क िवषय म पूछा । उस वयिकत न कहा, 'कृपया मुझस
उनक बार म न पूछं । ओप चाह तो िकसी और क बार म पूछ सकती ह ।' िकनतु वह िजद करन
लगी तो उसको बताया िक तूफान स उसका महल नष हो गया था, तथा उसक माता िपता एवं
भाई मर गय । उस वयिकत न कहा, 'दिखय, अाप वहाँ उनक दाह संसकार स उठे धुएं को दख
सकती ह ।'
यह अितशय हो गया था । पटाचारा िविकपत हो गई । उसन इस संसार म अपन पतयक
घिनष एवं िपय वयिकत को खो िदया था । वह िनवरस इधर उधर भटकती रही, िकनतु अपन नंग
होन स अनिभज थी । वह अपन पित, अपन बटो, अपन माता िपता, तथा अपन भाई क िलए
रोती िबलखती चारो ओर भटकती रही ।
बुद न, जब व िभकखुओं को िशका द रह थ, उस दर स ओत दखा, तथा उनह जात हो गया
िक वह एक लाख कलपो स अपनी पारमी पूरी कर रही थी । वह पदुतर बुद क समय िवदमान
थी, जब उनहोन धमम िनपुणता म अगणी एक िभकखुणी की अोर इंिगत िकया था, तथा उसकी
भी अिभलाषा हई िक भिवषय म एक िदन वह बुद स िमल तथा वही पद पापत कर । पदुतर
बुद न िवचार िकया िक कया उसम इसकी कमता थी, तथा कया भिवषय म ऐसा संभािवत था,
एवं उनहोन एक िनिशत भिवषयवाणी की िक वह गौतम बुद स िमलगी अौर अपनी अाकाका
पूरी करगी । कवल एक बुद की ही दृिष इतनी िवसतृत हो सकती ह तथा व ही इस पकार की
िनिशत भिवषयवाणी कर सकत ह ।
5
पंचम िदवस, पात: पवचन
अत: जब बुद न पटाचारा को दखा, तो उनह जात हो गया िक, वह कवल उनही की शरण म
अा सकती ह । जैस ही िशषयो न उस ओत दखा, व उस दर भगाना चाह, िकनतु बुद न उनस उस
अान की अनुमित दन क िलए कहा । जब वह ओयी तो उनहोन उसस कहा, 'अपनी उिचत
मनोदशा म लौट अाअो ।' तथा उस अकसमात अपनी दशा का बोध हअा एवं वह अपन िनवरस
होन क कारण, लजजा स धरती पर दबक गई । िकसी वयिकत न उस पर अपना अंगरखा उसक
ऊपर फेक िदया । तब वह बुद क िनकट अाई, तथा उनका अिभवादन कर उस अपनी शरण म
लन क िलए उनस कहा, एवं उसक साथ जो भी घिटत हअा था उस बताया ।
बुद न उसस कहा, 'जनम एवं मरण क इस चक म, तुम अपनी संतानो तथा िपयजनो क
हास पर बारंबार रो चुकी हो । चार महासागरो म िजतना जल ह तुमन उसस भी अिधक ओँसू
बहाए ह ।' तथा उनहोन िनमन गाथा दी :-
‘‘चतूसु समुदेसु जलं पिरतकं, ततो बहं अससुजलं अनपपकं।
दकखन फुटसस नरसस सोचना, िक कारणा अमम तुवं पमजजसी’’ित॥
मनुषय न िजतन ओँसू बहाय ह, उसकी तुलना म चार महासागरो म जल की रािश अतयंत अलप ह
।
द: ख एवं पीडा स वयाकुल नारी, तू कयो असावधान रहती हो?
जैस ही उनहोन यह बात कही, उसक शोक की पबलता कम होन लगी । यह दख कर िक
उसक शोक की पचणडता कुछ सीमा तक शात हो गई थी, उनहोन उसस कहा, 'पटाचारा, जो भी
भिवषय क जीवन मागर पर ह, उसक िलय संतान एवं िपयजन ओशय या शरण नही हो सकत ।
तो िकतना कम वतरमान जीवन म । नैितक कायो क माधयम स सवयं को िनयंितत कर बुिदमान
वयिकत को इस पकार िनबबान क िलए मागर िनबाध करना चािहए।' बुद क पवचन क अंत म,
वह जागृित क पहल चरण म सथािपत हो गयी, तथा उसक अनतमरन की मल जो संखया म समूची
पृथवी पर धूल क कणो क समान थी, भसम हो गयी ।
उसन बुद स िभकखुणी संघ म पवश क िलय अनुरोध िकया एवं एक िभकखुणी क रप म
पूणर जागृित क िलए साधना करन म लग गई । एक िदन वह अपन पैर धो रही थी तथा जब
उसन पानी उंडेला तो कुछ जमीन पर िगर गया । जल थोडी दर बह कर रक गया । दसरी बार,
थोडा अौर ओग गया । तीसरी बार अौर भी ओग तक बहा । तथा उसन इसी को अपन धयान क
िवषय क रप म पयोग िकया । उसन सोचा 'िजस पकार मर दारा पहली बार छलका जल थोडी
ही दर तक गया, उसी पकार इस संसार म पाणी अलपायु म ही मृत हो जात ह । तथा िजस
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पंचम िदवस, पात: पवचन
पकार मर दारा छलका पानी दसरी बार थोडा अौर अाग तक बहा, उसी पकार इस संसार म
पाणी अपन जीवन क उतकषर म मृत होत ह । तथा िजस पकार तीसरी बार जल कुछ अौर अाग
तक गया, इस संसार म पाणी अपनी वृदावसथा म मरत ह ।
गंधकुटी म िवराजमान बुद न दखा िक अब वह पूणर मुिकत क िलए तैयार थी । उनहोन
अपना ददीपयमान िबब भजा और उसस कहा, 'पटाचारा, पंच सकंध क उदय-वयय को न दखन
वाल वयिकत क सौ वषर क जीवन स, उदय-वयय को दखन वाल वयिकत का एक िदन का, यहा
तक िक एक कण का, जीवन शेयषकर होता ह । तथा उनहोन उस गाथा क माधयम स िनदरश िदया
िजस हमन पारंभ म उदृत िकया ह ।
यो च वसससतं जीव, अपससं उदयबबयं । एकाहं जीिवतं सययो, पससतो उदयबबयं ।।
(पंच सकंध क) उदय-वयय को न दखन वाल वयिकत क सौ वषर क जीवन स, उदय-वयय को दखन
वाल वयिकत का एक िदन का जीवन शेयषकर होता ह ।
धममपद, गाथा ११३
गाथा क समापन पर पटाचारा को अलौिकक शिकतयो क साथ अहरतव पापत हअा, तथा वह
धमम िनपुण िभकखुिणयो म सवोपिर बन गयी ।
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पंचम िदवस, पात: पवचन
दशरन की वयाखया करत ह, जबिक चौथा अथात अषािगक अायर मागर, जो िक नैितकता व दशरन
की अाचार संिहता ह, लकय पापत करन क िलए एक साधन क रप म कायर करता ह ।
तो चार अायर सतय कया ह? व ह :- (१) द:ख सचच; दख का सतय, (२) समुदय-सचच, दख
की उतपित का सतय, (३) िनरोध-सचच, दख क अंत या दख की समािपत का सतय; तथा (४)
मगग-सचच, दख की समािपत क िलए अगणी पथ का सतय ।
दखसतय क बोध की अावशयकता पर इसिलय बल िदया गया ह, िजसस िक कोई भी वयिकत
बौद दशरन क मूलभूत िसदानतो को पूरी तरह समझ सक । इस तथय क पित िकसी भी संदह को
दर करन क िलय, बुद न दो अलग अलग दृिषकोणो स समसया का समाधान िदया :- तकर दारा
तथा अनुभव की पिकया दारा ।
तकर क दृिषकोण का उपयोग कर, बुद न अपन िशषयो को िदखाया िक जीवन एक संघषर ह,
जीवन द:खद ह, वृदावसथा द:खद ह, रगणावसथा द:खद ह, मृतयु द:खद ह । िकनतु वासना का
पभाव मानव जाित म इतना पबल होता ह िक मनुषय सामानयत: सवयं क िहत को भूल जात ह,
व भूल जात ह िक उनह कामुक सुख क िलए कया मूलय चुकाना पडता ह ।
एक कण क िलय जरा सोिचय िक पट म पसव-पूवर की अविध िशशु क िलय िकतनी
दखदायी होती होगी, तथा उस जनम क समय स अिसततव क िलए कैसा कैसा संघषर करना पडता
होगा । सोिचय िक जीवन का सामना करन क िलए िकतनी तैयािरयो की अावशयकता होती ह,
तथा एक वयसक क रप म भी संघषर ओिखरी शास तक चलता ही रहता ह । जीवन कया ह,
इसकी ओप बहत अचछी तरह स कलपना कर सकत ह । जीवन वासतव म दखमय ह ।
वयिकत अहं स िजतना ही अिधक संबद होता ह, दख उतना ही अिधक होता ह । िकनतु
वयिकत को जो दख एवं पीडा भोगनी पडती ह, उस किणक कामुक सुख क पक म दबा िदया
जाता ह । िकनतु यह किणक कामुक सुख अंधकार म मात यदा कदा चमकत जुगनू क पकाश की
तरह ह । यिद यह िवभम तथा अजान (मोह) जो उस सतय स दर रखता ह, न होता, तो मनुषय
अवशय ही 'जीवन, दख, एवं मृतयु' क चक स मुिकत का मागर िनकाल चुका होता ।
अनुभव की पिकया का उपयोग करत हए, बुद न बताया िक कैस कोई भी यह सवयं दख
सकता ह िक सभी अनुबंिधत अवसथाअो की वासतिवक पकृित कया ह । उनक िशषयो को उनस
जात हअा िक मानव शरीर कलापो (उप परमाणिवक इकाइयो) स रिचत ह, तथा पतयक कलाप
िजस कण बनता ह उसी कण नष भी हो जाता ह । पतयक कलाप पकृित क ओठ ततवो स गिठत
एक पुंज ह । पहल चार महाभूत कहलात ह, अथात वह ओधारभूत भौितक गुण जो एक कलाप
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पंचम िदवस, पात: पवचन
म सवािधक ह । व ह :-पथवी, अापो, तजो तथा वायो, अथात िवसतार ततव (या पृथवी),
सामंजसय ततव (या जल), िविकरण ततव (या शीतलता एवं उषमा), तथा गित ततव (या वायु) ।
अनय चार ततव कवल अनुषंगी ह, जो पहल चार स उतपनन होत ह तथा उनपर िनभरर करत ह ।
व ह वणण, गंध, रस, ओज अथात रंग, गंध, सवाद तथा पोषक सार या अाहार ।
भौितक सतर पर सपषत: कलाप एक सूकमतम कण ह । जब ओठ पकृित ततव, िजनकी
वयवहार मात ही िवशषता ह, एक साथ एकितत होत ह, कवल तभी कलाप की इकाई का गठन
होता ह । दसर शबदो म, एक अतयंत संिकपत पल की अविध म, वयवहार क इन ओठ पकृित
ततवो का सह–अिसततव, जो एक पुंज ह, कलाप क रप म जाना जाता ह । य कलाप सतत
पिरवतरन या पवाह की िसथित म ह । व एक ऊजा की धारा क अितिरकत अौर कुछ भी नही ह,
िजस पकार एक मोमबती का पकाश या िबजली क एक बलब की जयोित ऊजा की एक धारा ह ।
यह िजस हम शरीर कहत ह, कोई इकाई नही ह, जैसी िक पतीत होती ह, अिपतु जीवन शिकत
क सह अिसततव क साथ भौितकता का पवाह ह ।
िकसी सामानय वयिकत क िलए, लोह का एक टुकडा गितहीन होता ह । िकनतु एक वैजािनक
को जात ह िक यह इलकटॉनो (अितसूकम ऋणाणुओं या िवदुतकणो) स गिठत ह, जो सभी सतत
पिरवतरन या पवाह की िसथित म ह । यिद यह एक लोह क टुकडे का सतय ह, तो िकसी जीिवत
जीव जैस मनुषय की िसथित कया होगी? एक मानव शरीर क भीतर हो रह पिरवतरन तो अौर
अिधक पचंड होग । कया मनुषय सवयं क भीतर हो रह उदेग और पकंपन का अनुभव करता ह? कया
वह वैजािनक, जो जानता ह िक, सब कुछ पिरवतरन या पवाह की िसथित म ह, कभी यह भी
अनुभव करता ह, िक उसका सवयं का शरीर मात ऊजा एवं पकंपन ह? उस वयिकत की मनोवृित
की पितिकया कया होगी, जो अनतरावलोकन दारा दखता ह, िक उसका सवयं का शरीर मात
ऊजा एवं पकंपन ह? अपनी पयास बुझान क िलए, कोई वयिकत गाव क िकसी कुएं का एक
िगलास पानी पी सकता ह । िकनतु, मानलीिजय िक उसकी ओंखं एक सूकमदशी यंत की तरह
शिकतशाली हो । तो वह कुएं का पानी िजसम उस अाविधत रोगाणु िदखाई दंग , उस पीन म
िनिशत रप स वह संकोच करगा । उसी पकार, जब वह सवयं क भीतर सतत पिरवतरन (नशरता,
अिनतय, पािल म अिनचच) का अनुभव करन लगता ह तो, वह उसक फलसवरप, अवशय ही दख
क सतय को समझन लगगा । अपन भीतर हो रह िविकरण, पकंपन तथा परमाणिवक इकाइयो क
घषरण क तीकण अनुभव क माधयम स, उस ऐसा बोध होता ह । वासतव म जीवन, अनदर अौर
बाहर दोनो, दखमय ह, सभी पतीितयो म तथा परम सतय क रप म भी ।
तो दख का उदव कया ह? बुद न कहा ह िक, दख की उतपित तृषणा (पािल म तणहा) या
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पंचम िदवस, पात: पवचन
लालसा ह । एक बार इचछा का बीज बो जान पर, वह उगकर लोभ क रप म बढता ह, तथा
सता या अािथक लाभ क िलय लालसा या वासना का पजनन करता ह । वह मनुषय िजस म यह
बीज बो िदया गया ह, इन लालसाओं का दास बन जाता ह तथा वह सवत: ही जीवन पयंत उनक
पीछ अनवरत मानिसक एवं शारीिरक पयास करन क िलए पेिरत हो जाता ह । िनिशत रप स,
इसका अंितम पिरणाम उन बुरी मानिसक शिकतयो का संचय होता होगा, जो उसक सवयं क
कायो, शबदो, तथा उसक भीतर िनिहत इचछा या लोभ तथा कोध या देष (पािल म दोस) दारा
पेिरत िवचारो स उतपनन होत ह ।
दाशरिनक रप स, य संसकार (पािल म, संखार) अथात मानिसक कमर शिकतया ह, जो समय
क साथ कमर करन वाल वयिकत पर पितिकया करती ह, तथा य संखार ही शारीिरक एवं
मानिसक धारा पवाह, अथात भीतर भीतर दख की उतपित क िलय उतरदायी ह ।
तो िफर, वह मागर कया ह जो दख की समािपत की अोर अगणी होता ह? वह मागर बुद क
सवरपथम धमोपदश म बताय गय अषािगक अायर मागर क अितिरकत कोई अनय नही ह । जैसा िक
हम पहल ही कह चुक ह, इस अषािगक पथ को तीन मुखय चरणो, अथात शील (पािल म सील),
समािध, तथा पजा (पािल म पञञा) म िवभािजत िकया गया ह ।
सील (नैितकता) म तीन चरण सिममिलत ह :- समयक वाणी, समयक कायर एवं समयक
अाजीिवका । समयक पिरशम, समयक सजगता, एवं समयक एकागता, य तीन चरण समािध (मन
की समता) म सिममिलत ह । तथा पजा (पञञा) या िववक म दो चरण ह :- समयक संकलप
तथा समयक दृिष । सील एवं समािध क अंतगरत ओन वाल पहल छह चरणो पर हम पहल स ही
िवसतार स चचा कर चुक ह । अब हम पञञा क अंतगरत समयक संकलप (पािल म, सममा संकपपो)
तथा समयक दृिष (पािल म, सममा िदिट) की जाच करत ह ।
सतय का समुिचत जान ही बौद धमर का उदेशय एवं लकय ह, तथा समयक संकलप का अथर ह
अनदर एवं बाहर दोनो केतो म मानिसकता एवं भौितकता का िवशलषणातमक अधययन िजसस
सतय का जान हो सक । कुछ िवदान समयक संकलप का अथर समुिचत िचतन भी बतात ह ।
मन तथा भौितकता क िलय पािल म नाम एवं रप शबद ह । नाम इसिलए कहा जाता ह,
कयोिक इसकी पवृित जानिनदयो की िवषय वसतु की अोर झुकाव या नमन की होती ह । रप
इसिलए कहा जाता ह, कयोिक सतत पिरवतरन क कारण यह नशर होता ह । नाम तथा रप क
िलय अंगेजी म िनकटतम शबद माइणड एवं मटर तथा िहनदी म मन एवं पदाथर ह ।
वासतव म, नाम शबद का पयोग चतना या िवजान (पािल म, िवञञान), संवदना (पािल
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पंचम िदवस, पात: पवचन
म, वदना), संजान या संजा (पािल म, सञञा), तथा इचछाशिकत ऊजा या संसकार (पािल म,
संखार) क िलय होता ह । य तथा पदाथर (रप) िमलकर, पंच सकंध (पािल म, पंच-खंध) बनात
ह । इनही पंच सकंधो म बुद न अिसततव की सभी मानिसक एवं भौितक पकृयाअो, जो वासतव म
मन तथा पदाथर क सह-अिसततव की िनरंतरता ह, का सार अिभवयकत िकया ह, िकनतु जो
सामानय वयिकत क िलय उसका अहं या वयिकततव ह ।
समयक संकलप म, साधक िजसन समािध का शिकतशाली सूकमदशी िवकिसत िकया ह, वह
अपना धयान सवयं म किदत करगा तथा ओतमिवशलषी धयान स पथम भौितकता की पकृित,
ततपशात मन एवं मानिसक गुणो की पकृित का िवशलषणातमक अधययन करगा । वह कलापो को
उनकी वासतिवक िसथित म अनुभव करता ह तथा कभी कभी उनका अवलोकन भी करता ह ।
वह समझन लगता ह िक भौितकता एवं मन दोनो िनरंतर पिरवतरनशील ह । व नशर एवं
कणभंगुर ह । जैस जैस उसकी एकागता बढती ह, उसक भीतर की शिकतयो की पकृित अौर सपष
होती जाती ह ।
यह सपषीकरण सयाजी ऊबा खी क वयाखयान 'बौद धमर ह कया' (What Buddhism Is) म
िदया गया ह ।
संदभर सूची
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पंचम िदवस, सायं पवचन
'सार संसकार अिनतय (नशर) ह' । इस (सतय) को जब कोई पजा (चकु) स दख लता ह,
तब उसको दखो स िनवरद पापत होता ह (अथात दखकेत स अनासिकत हो जाती ह) – यह
िवशुिदमागर ऐसा ह!
‘‘सबब सङखारा दकखा’’ित, यदा पञञाय पससित। अथ िनिबबनदित दकख, एस मगगो
िवसुिदया॥
'सार संसकार द:ख ह' । इस (सतय) को जब कोई पजा (चकु) स दख लता ह, तब उसको
दखो स िनवरद पापत होता ह – यह िवशुिदमागर ऐसा ह!
‘‘सबब धममा अनता’’ित, यदा पञञाय पससित। अथ िनिबबनदित दकख, एस मगगो
िवसुिदया॥
'सभी (लौिकक अथवा लोकोतर) धमर अनातम ह' । इस (सतय) को जब कोई पजा (चकु) स
दख लता ह, तब उसको दखो स िनवरद पापत होता ह – यह िवशुिदमागर ऐसा ह!
धममपद, गाथायं २७७-२७९
इनम स सबस पहली गाथा क िवषय म जो कथा धममपद टीका म पसतुत ह, वह इस
पकार ह :- एक बार पाच सौ िभकुओं न बुद स धयान लगान क िलय कमरसथान पापत िकया
था । उनहोन पूरा पयास िकया िकनतु पूणर जागृित पापत करन म सफल नही हो सक । अत: व
बुद क पास वापस अाय िजसस िक व अपनी अावशयकताअो क अनुरप धयान लगान का
िवषय पापत कर सक । बुद न अपन मन म सोचा, ' इन िभकुअो क िलय धयान लगान का
कौन सा कमरसथान सबस लाभदायी होगा?' अौर उनहोन उनक अतीत को दखा । बुद काशयप
क समय इस िभकु वगर न बीस हजार वषो तक अिनतयता (नशरता) क लकण पर धयान
लगाया था । अत: बुद न उनह अिनतयता पर धयान लगाना िसखाया । उनहोन उनस कहा,
'कामावचर तथा अकामावचर लोको म सभी सकंध नशर (अिनतय) ह । अंतत: उनम कोई
वासतिवकता नही ह ।' अत: उनहोन वह गाथा सुनाई, जो 'सबब संखारा अिनचचा (सभी
संसकार अिनतय ह) स पारमभ होती ह ।
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पंचम िदवस, सायं पवचन
सभी संसकारो क दखमय सवभाव क बार म, दसरी गाथा एक अनय िभकु समुदाय को
दी गयी थी । उनकी कथा भी पहल समूह क समान ही थी, अितिरकत इसक िक उनहोन
अपन िपछल जनम म दख क लकण को अपना धयान लगान का िवषय बनाया था ।
तीसरी गाथा की कहानी भी वैसी ही ह, अितिरकत इसक िक इस िभकु समुदाय न
अपना धयान लगान का कमरसथान िकसी भी िनयंतक या सथायी अातमा क अभाव, अथात
अनातम को चुना था ।
तथा सभी तीनो समूहो न अपन अनुकूल कमरसथानो पर साधना कर, अहरतव पापत
िकया ।
सया जी ऊ बा खी न अपन पवचन 'बौद धमर क वयावहािरक पक की अिनवायरतायं '
(The Essentials of Buddha-Dhamma in Meditative Practice) म अिनचच, दख और
अनता को सही तरीक स समझन की अावशयकता पर जोर िदया । सभी संसकारो क य तीन
लकण ह । सया जी ऊ बा खी न कहा, 'यिद ओप अिनचच को सही तरह स समझत ह, तो
उसक पिरणाम दख, तथा अनता रपी परम सतय को भी समझ जाएँग । िकतु इन तीनो को
एक साथ समझन म काफी समय लगगा ।
'इन सभी म सबस महतवपूणर घटक अिनचच ह, िजस हम सबस पहल अनुभव करना
होगा, िफर अभयास दारा समझना होगा । कवल बौद गंथो को पढ लना या बुद -धमर का
िकताबी जान पापत कर लना ही सचची नशरता को पूणर रप स समझन क िलए पयापत नही
ह, कयोिक उसस अनुभव क पहलू का अभाव रहगा । उस पिरवतरनशील (अिनचच) सवभाव
को, जो सवयं अाप क भीतर िनरंतर बदलन की पिकया क रप म पकट होता ह, उस बुद क
अनुसार िजस पकार स अापको समझना ह, वह मात अनुभव स ही संभव ह । जैसा िक बुद
क समय अनक ऐस लोगो न, िजनह बौद गंथो का कुछ भी िकताबी जान नही था, यह
अिनचच-बोध िवकिसत िकया था, वैस ही अब भी िकया जा सकता ह ।
'अिनचच को समझन क िलए वयिकत को अषािगक अायर मागर का दृढता तथा
पिरशमपूवरक पालन करना पडेगा, जो तीन भागो – सील, समािध एवं पञञा, अथात
सदाचार, िचत एकागता तथा अनतदृरिष - म िवभािजत ह ।
'समािध, अथात एक िबद पर एकागता क िलय िचत िनयंतण, का ओधार सील अथवा
सदाचारपूणर जीवन ह । वयिकत पञञा या िववक तभी िवकिसत कर सकता ह जब उसकी
एकागता उतम हो ।
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पंचम िदवस, सायं पवचन
3
पंचम िदवस, सायं पवचन
पंच सकंध३
अाइय, अब हम पंच सकंध (पािल म, पंच खंध) का िनरीकण कर :-
(१) पदाथर (रप-खंध) वह ह िजस हम भौितक वसतुओं क रप म अपन भीतर एवं बाहर
पात ह ।
(२) संवदनायं (वदना खंध) हमारी व अनुभूितया ह, जो हमार शरीर क पदाथो अथवा
िवचारो क संपकर म ओन स होती ह ।
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पंचम िदवस, सायं पवचन
(३) संजान या संजा (सञञा खनध) अथात रंग, ओकार या धविन ओिद की पहचान या
धारणा ।
(४) इचछाधारी कायर या संसकार (संखार खंध) व मानिसक कायर ह, जो संपकर स उतपनन
होन वाली हमारी पितिकया ह ।
(५) चतना या िवजान (िवञञान खंध) जो िवषयो क पित मात जागरकता ह; इसक पहल
िक हम समझं िक हम कया अनुभव कर रह ह ।
मानस एवं काया. अिसततव क इन पाच सकंधो को दखन पर हम पता चलता ह िक मानस का
कया महतव ह । इन पाच म स कवल एक ही ऐसा ह, िजस हम ठोस पदाथर, या भौितक
अिसततव कह सकत ह । चार ऐस ह िजनह हम मानस या मानिसक कायरकलाप कहत ह ।
अपन अाप को मानस एवं भौितक पदाथर म, जैस व बराबर बराबर हो, िवभािजत करन की
अपका, यह सतय बहत ही िभनन ह । वासतव म, मानस अिधक महतवपूणर ह । हमार िलय
इस पर िवशास करना किठन पतीत होता ह । जो कुछ हम अपन बाहर दखत या अनुभव
करत ह, उसी को हम वासतिवक समझन क अभयसत ह । संभवत:, हम अपन शरीर को अपन
मन स अिधक वासतिवक समझत ह । अाइय, हम इस पर थोडी और बारीकी स गौर कर ।
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पंचम िदवस, सायं पवचन
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पंचम िदवस, सायं पवचन
:- भौितक पदाथर या रप – अथात चार महाभूतो स बनी काया या कोई वसतु , यान दृशय;
जीवन – ओप जीिवत होन पर ही दख पायंग; चकु (या चकु अाधार) – यिद अाप अंधे ह, तो
नही दख सकग; पकाश – यिद िबलकुल अंधेरा ह तो कुछ भी नही दख सकत; तथा धयान
(या चतना) यिद ओप सममूिछत ह या गहन िनदा म ह तो ओप नही दख सकग । दृिष
चतना होन क िलए इन सभी ततवो का उपिसथत होना अावशयक ह । यिद हम कहत ह, 'वह
नही दख रहा ह' तो हम दृिष चतना क अभाव का वणरन कर रह ह । जब इन ततवो म स
कोई एक भी ततव िवदमान नही होता, तब वह नही होती । उदाहरणसवरप, रात क अंधेर
म यिद कोई पकाश का सोत न हो, तो ओंख क अंग म दृिष चतना नही जागगी । यह
असथायी रप स िनलंिबत हो जाती ह । िकनतु यिद वहा अिग का पकाश हो जाय तो वह
उदय हो जायगी । तथा यिद पकाश को बुझा िदया जाय, तो दृिष चतना भी समापत हो
जाएगी ।
िजस पकार भौितक पदाथो म पिरवतरन क पाच मुखय रप ह, ठीक उसी पकार
मानिसक घटनाअो, जैस चतना क भी वही पंाच रप ह । जैस एक लौ स पकाश अिसततव म
ओता ह, संविधत होता ह, बना रहता ह, कय होता ह, तथा बुझ जाता ह, उसी पकार दृिष
चतना, जो पकाश पर िनभरर ह, अिसततव म ओती ह, बढती ह, कय होती ह, तथा बुझ जाती
ह।
िजस चतना की उपिसथित या अनुपिसथित सुनन, सूंघन, चखन और छून पर िनभरर
करती ह, उस भी उसी पकार समझा जा सकता ह, जैस िक हमन दृिष चतना क िवषय म
बताया ह । कणर क िलए धविन उपिसथत होनी चािहय, नािसका क िलए गंध, िजहा क िलए
सवाद, और मन क िलए िवचार तथा कालपिनक िचत होन चािहए । तथा य सब, िन:सनदह,
अामूल पिरवतरन एवं सूकम पिरवतरन, दोनो दृिष स नशर ह । मानिसक चतना की िविभनन
पकार की अनक अिभवयिकतया ह । िविभनन पकार क िवचारो क पिरवतरन क माधयम स
अामूल एवं सूकम पिरवतरन क लकण सपष ह । उदाहरणसवरप, िविभनन पकार की
संवदनाअो क साथ मानिसक चतना म पिरवतरन बहत सपष होत ह, चाह वह पिरवतरन हषर,
पीडा, शोक का हो, या िकसी तटसथ भावना का । कोई भी यह सरलता स दख सकता ह िक,
जब वह अकल बैठा होता ह, तो उसक िचत को िविभनन पकार क अनक भाव, लोभ, अरिच,
घृणा, मता, ईतयािद राग रंिजत करत रहत ह, एक क बाद एक उदय होत रहत ह ।
अब हम अगल सकंध, संजान या संजा पर ओत ह । जब हम कोई बात िविदत होती ह,
जो हमारी जानिदयो क केत म ओयी हो, तब हम उसका संजान या उसक िविशष पहलुओं
की पहचान होती ह, जैस, लाल, नीला या पीला, भडकीला या कोमल, खुरदरा या िचकना,
7
पंचम िदवस, सायं पवचन
इतयािद । चतना की ही तरह, संजान भी, छह जानिदयो पर िनभरर करत हय, छह पकार क
होत ह ।
िवषय क संजान क पशात संवदना (पािल म, वदना) अाती ह । पुन:, उन छह
जानिनदयो क अाधार पर िजनस य उतपनन होती ह, संवदनायं या अनुभूितया भी छह पकार
की होती ह । अत: संवदनायं ह, जो दृशय संपकर, शवण संपकर, ओिद क माधयम स अिसततव म
ओती ह ।
िकनतु यहाँ कुछ नया भी ह; एक और ओयाम जो िवजान या चतना एवं संजान म हम
नही िमलता । य संवदनायं हमार िलय शारीिरक या मानिसक रप स सुखद होती ह ।
अथवा शारीिरक या मानिसक रप स दखद होती ह । अंत म, ऐसी भी संवदनायं ह, जो न
सुखद ह अौर न दखद ।
तटसथ संवदनायं ओसानी स अनदखी हो जाती ह, कयोिक हम रहन दन मात क बजाय,
उनह सवीकारन अथवा असवीकारन क बहत अिधक अभयसत ह । इनम स अिधकाश तटसथ
संवदनायं हमार ऊपर उतनी पबल पभावकारी नही होती, िजतनी िक सुखद या दखद
संवदनायं होती ह ।
िवपससना म, हम संवदनाअो क पित जागरकता िवकिसत करत ह, तथा िपय, अिपय,
एवं तटसथ संवदनाअो का उपका क साथ अनुभव करना सीखत ह । यह छह इंिदयो म स
िकसी भी एक क माधयम स िकया जा सकता ह, िकनतु सपशर की अनुभूित उपका क िवकास
क िलए सबस अचछी ह । अनय पाच इंिदयो को उतेिजत करन वाल िवषय अतयिधक िनबरल
होत ह । ओंख पर पकाश क पभाव अथवा कान पर धविन क पभाव, इतयािद स हम सपष
रप स अवगत नही होत । अिधकाश जानिनदय-िवषयो क पभाव तटसथ संवदनाअो क साथ
उिदत होत ह । उस अलपकाल म, िजसम हम कवल इस तथय स अवगत होत ह िक ओँख
पकाश को गहण कर रही ह – इसक पहल िक हम म उस पकाश दारा पकट की गई छिव क
पित पितिकया उतपनन हो – िकसी छिव िवशष को, न तो हम पसंद अथवा नापसंद करत ह
। पितिकया बाद म होती ह ।
िकनतु, सपशर क साथ, जो नैितक कायो स सुखद संवदना, तथा अनैितक कायो स जो
दखद संवदना जुडी होती ह, वह ततकण होती ह । पािल टीका५ म जो तुलना दी गई ह,
उसक अनुसार पंाच इंिदयो पर जो पभाव पडता ह, वह बहत ही असपष होता ह, जैस िकसी
रई क फाह पर िकसी अनय रई क फाह स पहार करन स होता ह । सपशर की संजा क साथ
ऐसा होता ह, जैस रई क फाह को िकसी िनहाई पर रख कर हथौडे स उसपर पहार िकया
जाय; तो हथौडा रई को कुचल दगा तथा िनहाई टनटन बजन लगगी ।
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पंचम िदवस, सायं पवचन
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पंचम िदवस, सायं पवचन
पिरणामो की अिभलाषा अथवा ितरसकार स पेिरत नही होत । हम उसम कवल सहज कृतय
ही िमलग । सही मायन म सहज कृतय दसरो क िलए सदैव लाभपद होग । हािनकर कृतय
सदैव पितिकया स उतपनन होग । जैसा िक ओप न अनुमान लगाया होगा, सहज या
सवाभािवक कृतय वही वयिकत कर सकता ह जो पूणरतया जागृत , पूणरतया मुकत हो ।
जब हम अपन लकय तक पहँच जायंग तब हम सहज, सवाभािवक कृतय करन म समथर
हो जायंग । इस बीच, हम सीख रह ह । और हमार पास जो कुछ भी ह, हम उसी क साथ
काम करना ह । हम इस समय जहा ह, हम वही स पारंभ करना ह ।
इसका पतयक साकातकार करन क िलए, हम अपन मानस को इतना िवकिसत करना
होगा िक हम पूरी तरह उसका िनयंतण कर सक । ऐसा करन क िलय अानापान तथा
िवपससना माधयम ह । इस बीच, हम अचछ या कुशल कायो को संविधत करना चािहय, भल
ही हमार अचछ कायर िकसी जागृत वयिकत की शुदता क साथ न समपनन होत हो ।
यह एक सुचक ह :- हम िजतन ही अिधक अचछ या कुशल कायर करत ह, अचछा जीवन
जीना उतना ही ओसान हो जाता ह, तथा इसक कारण धयान किनदत करना उतना ही सुगम
हो जाता ह, िजसस हम अंतदृरिष िवकिसत करन म सहायता पापत होती ह, जो हम अचछ
कमर करन क िलए पेिरत करती ह ।
अनुरद की कथा६
अनुरद एक सुकुमार युवक थ िजनह हमशा सभी पकार की िवलािसता पदान की गई थी ।
'नितथ' अथात 'कुछ नही' की अिभवयिकत उनक दारा कभी नही सुनी गई थी । एक िदन, व
अनय शाकय राजकुमारो क साथ कंच खल रह थ । उनकी मा न पुवा (मोदक) बना कर
युवको क िलए भजा, तथा व उनह खा कर अाग खलत रह । अनुरद हार रह थ तथा उनहोन
तीन बार अौर पुव मंगवाय । िकनतु जब उनहोन चौथी बार मंगवाया, तो उनकी माँ न सोचा,
"मुझे इस 'नितथ' अथात 'कुछ नही ह' शबदो का अथर िसखाना चािहए । अत: उनहोन संदश
भजा, 'नितथ पुवा' । अनुरद न सोचा िक यह िकसी नय पकार क पुव का नाम ह, अत:
उनहोन अपनी मा क पास कहला भजा, "कृपया 'नितथ पुवा' भिजय"। उनकी माँ न उनह
'नितथ' का अथर समझान क िलए, एक सवणर पात को एक दसर सवणर पात स ढंक कर भजन
का िनणरय िलया ।
नगर क संरकक दवताओं को यह पता था िक िकसी िपछल जनम म अनुरद न अपन
भाग का भोजन एक पतयक बुद को इस ओकाका क साथ िदया था, िक उनको 'नितथ' शबद
िफर स कभी सुनन को नही िमलगा । यिद उनहोन ऐसा होन िदया तो व दवताअो की
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पंचम िदवस, सायं पवचन
पिरषद म भाग लन म सकम नही हो सकग तथा उनक िसर सात टुकडो म िवभािजत हो
जायंग । अत: उनहोन कटोर को दैवी पुवो स भर िदया । जब ढंकन वाला पात उठाया गया,
तो िमषानन की सुगनध समूच नगर म फैल गई, तथा जब युवको न उस चखा, तब उनक मुंह
की सात हजार सवाद कोिषकाएं पफुिललत हो गइं । जब अनुरद घर गय तो उनहोन अपनी
माँ स पूछा िक कया व उनह पयार करती ह । तो व बोली 'पुत, तुम मर िलए उतन ही िपय
हो, िजतनी िक एक अंाख वाल वयिकत की ओंख पयारी होती ह ।' 'तो अापन इसक पहल मर
िलय 'नितथ पुवा' कभी कयो नही बनाया?' माँ समझ गई िक पुव दवताअो स अाय होग ।
उसक बाद जब तक अनुरद घर पर रह, अौर जब जब उनहोन पुवा मंगवाया, तब तब उनकी
मा एक खाली पात िभजवा दती तथा दवता उस िदवय पुवो स भर दत ।
एक िदन, अनुरद क भाता महानाम न कहा िक या तो अनुरद को या उनह सवयं
िभकखु बनना चािहय, िजसस पिरवार म कम स कम एक पुत उचच जीवन वयतीत कर ।
अनुरद न पूछा िक उसम कया करना होता ह । महानाम न बताया िक िभकखु दाढी तथा
िसर मुिणडत करा कर, पील चीवर पहन कर, टहिनयो स बन शयनासन पर सोत ह, तथा
िभकाटन पर जात ह । अनुरद न िनणरय िलया िक व इसक िलए अतयंत सुकुमार थ । अत:
उनहोन पूछा िक गृहसथ जीवन म कया करना होता ह । व इन सब बातो क बार म इतन
अनिभज थ िक व समझत थ िक भोजन मिणयो स जडी सोन की कटोरी म उगता ह, ठीक
उसी तरह जैस उनह परोसा जाता ह । जब उनको पता चला िक कृिष क िलय कया कया
करना होता ह, तथा यह सब पुन: पुन: पतयक वषर पारंभ करना होता ह तो - यह उनक
िलय बहत जयादा था । अत: उनहोन िभकखु बनन का िनणरय िलया तथा इस पकार, व छह म
स एक राजकुमार थ िजनहोन एक साथ पवजया गहण की ।
उन छह म स, ओदरणीय भिदय न पथम वषावास म ही, जब िभकखु एकानतवास कर
रह थ, पूणर जागृित पापत कर ली । ततपशात, अनुरद न अपना लकय पापत िकया । ओनंद , जो
कालानतर म बुद क पिरचर होग, जागृित क पहल चरण म सथािपत हए । सथिवर भगु एवं
िकिमबल अहरत हए । िकनतु दवदत न कुछ लौिकक शिकतया मात पापत की, बस इसक अाग
कुछ नही । य शिकतया िचत एकागता क माधयम स िवकिसत की जा सकती ह । परनतु हम
दवदत की कथा ओपको कल संधयाकाल म सुनायंग ।
संदभर सूची
१़ The Wheel Nos. 31, 32
२. See Ven Ledi Sayadaw. The Manuals of Buddhism, p.24
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पंचम िदवस, सायं पवचन
३़ For a detailed discussion of the five aggregates, see Ashin Buddhaghosa, The
Path of Purification, Ch. III, ¶¶ 32-230; the Dhammasangani, (translated
by Jagdish Kashyap, Abhidhamma Philosophy {reprinted by Bharatiya Vidya
Prakashan, 1982}; and by Mrs Rhys Davids, A Buddhist Manual of
Psychological Ethics {P.T.S., reprinted 1984}); and Egerton C. Baptist,
Abhidhamma for the Beginner (Colombo, Sri Lanka, ca. 1959).
४़ The Middle Length Sayings, I 315.
५़ Ashin Buddhaghosa, Atthasalini, 263 (The Expositor, 349f.).
६़ धममपद अटकथा, १; १२. दवदतवतथु
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षष िदवस, पात: पवचन
यो च वसससतं जीव, अपससं अमतं पदं । एकाहं जीिवतं सययो, पससतो अमतं पदं ।।
अमृत पद (िनवाण) को न दखन वाल वयिकत क सौ वषर क जीवन स, अमृत पद को दखन वाल
वयिकत का एक िदन का जीवन भी शेयषकर होता ह ।
धममपद, गाथा ११४
िकसा गौतमी की कथा१
कल मन आपको पटाचारा की कथा सुनाई िजसन अपना समसत पिरवार खो िदया था । यह भी
वैसी ही एक कथा ह, जो दशाती ह िक िवश िकतना दखमय ह ।
िकसा गौतमी नामक एक युवा मा थी । वह एक गरीब पिरवार म जनमी थी, तथा लोग
उस ितरषकार की दृिष स दखत थ । उसक नाम 'िकसा' का अथर 'पतली' या 'लघु' होता ह । िफर
िववाह क उपरानत उस एक पुत हअा, अौर इस कारण वह लोकिपय हो गयी । िकनतु उसक पुत
की अलप अायु म ही मृतयु हो गई, तथा िजसस उसक जीवन का महतव था, वह समापत हो गया ।
मृतयु स उसका सामना कभी नही पडा था, अत: वह यह समझ नही पायी । उसन सोचा िक
बचचा गंभीर रप स बीमार ह, अत: वह उसक उपचार की तलाश म, उस कूलह पर रख कर
चारो ओर घूम रही थी । िकसी न उस बुद क पास जान की सलाह दी । तब तक वह लगभग
पागल सी हो गयी थी । लोग उस पर हंस रह थ, एवं वह अतयंत वयाकुल हो रही थी ।
जब वह बुद क पास पहंची, व जतवन कुञज म िनवास कर रह थ तथा उस समय
िभकखुआं को उपदश द रह थ । वह सभागार म खडी हई तथा उसन बुद स उस िचिकतसा क
िलय अनुरोध िकया िजसकी तलाश अबतक वयथर थी । बुद न दखा िक इसक पहल उसन िकसी
मृत वयिकत का सामना नही िकया था तथा वह धमम म सथािपत होन क िलए तैयार थी । उनहोन
उसस कुछ सरसो क बीज लान क िलए कहा । जब वह जान लगी, तो बुद न कहा िक एक कण
पतीका करो और बताया िक 'सरसो का बीज उस घर स आना चािहए जहा कभी कोई मृतयु न
हई हो ।'
अत: िकसा गौतमी अपन मृत बचच को कूलह पर रख नगर म चारो ओर घूमन लगी, इस
अाशा स िक उस वह पापत हो जायगा िजसस उसक बट की िचिकतसा होगी । िकनतु उस शीघ
ही यह पता चल गया िक मृतयु जैसा िनयिमत आगंतुक कोई और नही ह । उस अनुभव होन लगा
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षष िदवस, पात: पवचन
िक मृतयु सावरभौिमक ह । मृतयु की पबलता स वह अिभभूत हो गयी, तथा समझ गयी िक बुद
उस एक सबक िसखाना चाहत थ । वह बचच को शमशान ल गयी । अब वह समझ गयी िक
कवल उसका पुत ही नही था िजसकी मृतयु हई हो ।
वह बुद क पास लौट आई तथा एक िभकखुणी बन गयी । उनहोन पूवर जनमो म जो साधना
की थी उनस उनको लाभ िमला । कुछ भी शाशत नही ह, इस जान का अनुभव करन म उनह
किठनाई नही हई । व समझ गइं िक अिसततव क सभी लोको म, यहा तक िक बह लोको म भी
पािणयो की मृतयु होती ह । कवल एक अहरत ही पूणर रप स चला जाता ह, िफर कभी पैदा नही
होगा, िफर कभी मरगा नही । व अब उचचतम िचिकतसा क िलए तैयार थी िजसस उनका
उपचार सदैव क िलय हो जायगा ।
बुद न उनह चार जलपलावनो (अोघ) पर एक पवचन िदया, जो हम सभी को िवहल कर
दत ह । इनह चार दषणो या मादको (अासवो) क रप म भी जाना जाता ह । य ह :- (१)
कामचछा, (२) अमर अिसततव की इचछा, (३) अनुिचत िवचारो का धारण, व (४) अजानता ।
इन लजप्ावनो को पार करन वाला (अोघितननो) ही एक अहरत होता ह । िकसा गौतमी को वह
सतय समझ म अा गया िजस साधारण मनुषय समझन म असमथर होत ह । जब उनहोन अमर पद
पापत कर िलया तो बुद न वह गाथा सुनायी िक अमृत पद (िनवाण) को न दखन वाल वयिकत क
सौ वषर क जीवन स, अमृत पद को दखन वाल वयिकत का एक िदन का जीवन भी शेयषकर होता
ह।
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षष िदवस, पात: पवचन
बुद न पूछा, 'तो िफर कया आप कभी भी भीग वस एवं भीग बालो क िबना रह पायंगी?'
िवशाखा क उतर िदया, 'नही, भनत, मर पास अब पयापत नाती पोत ह ।'
तथा बुद न उनस कहा िक िजसक एक सौ िपयजन हो उनह एक सौ कष होगा । यहा तक
िक एक िपयजन का अथर होगा पीडा । बुद न कहा 'िजनका कोई िपयजन नही ह, उनह कोई
पीडा नही ह । व शोकरिहत, िनराशा रिहत एवं अावशहीन होत ह ।' तथा उनहोन िनमनिलिखत
गाथायं सुनायी३ :-
‘‘य किच सोका पिरदिवता वा, दकखा च लोकिसममनकरपा।
िपयं पिटचचपपभविनत एत, िपय असनत न भविनत एत॥
‘‘तसमा िह त सुिखनो वीतसोका, यसं िपयं नितथ कुिहिञच लोक।
तसमा असोकं िवरजं पतथयानो, िपयं न कियराथ कुिहिञच लोक’’ित॥
िपयजनो क कारण ही इस संसार म दख एवं शोक, तथा पतयक पकार की पीडा होती ह ।
जब कोई िपयजन न हो तो व समापत हो जाती ह । िजनका कोई िपयजन नही होता, व सुखी
एवं शोकरिहत होत ह । वह वयिकत िजस शोकरिहत आावशहीनता की तलाश ह, उसका कोई
भी िपयजन नही होना चािहय ।
हम याद रखना चािहय िक, यहाँ जब बुद िपय की बात करत ह, तो व अासकत होन क
अथर म करत ह ।
िवशाखा, िमगार की मा क रप म जानी जाती थी । िमगार वासतव म उनक शशुर थ । व
िवशाखा क कारण ही धमम म सथािपत हए थ, तथा उनहोन उनस बताया िक इसी कारण व
उनकी माँ क समान थी । इसी भाव म छात सयामा जी को माँ सयामा जी कहकर संबोिधत
करत ह ।
जब िवशाखा न कहा िक उनक पयापत बचच तथा नाती पोत थ तो वह एक महतवपूणर
िटपपणी थी, कयोिक उनको दस पु्त एवं दस पुितया थी । पतयक संतान को दस पुत एवं दस
पुितया थी । इस पकार चार सौ नाती पोत हए । पतयक नाती को बीस बचच थ । इस तरह
८ 000 परपोत हए । अत: िवशाखा एवं उनक पित को िमलाकर, पिरवार म ८४२२ सदसय थ ।
जब िवशाखा अपनी बिटयो, पोितयो, तथा पर पोितयो क साथ बैठी होती थी, तो यह बताना
असंभव होता था िक उनम िवशाखा कौन ह । अपनी वृदावसथा क कारण उठत समय जब व
अपन घुटनो पर हाथो का दबाव डालती थी, कवल तभी यह अनुमान लगाया जा सकता था िक
उनम स िवशाखा कौन ह । उनकी सुंदरता अतुलनीय थी । तथा व एक सौ बीस वषर तक जीिवत
रही ।
3
षष िदवस, पात: पवचन
द:ख४
कल हमन अिसततव की तीन िवशषताआं क बार म बात की :- नशरता (अिनचच), पीडा
(द:ख), तथा िकसी सथायी सवयं का अभाव (अनता), तथा हम नशरता क िवषय म कुछ
िवसतार म गय । आज पात:, हम और अिधक सूकमता स दख, पीडा या कुणठा की जाच करत ह ।
सयाजी ऊबा खी न कहा ह :- 'नशरता या अिनचच की िवशषताएं, द:ख या कुणठा की
िवशषताआं स अंतरंग रप स बंधी ह । चाह पिरवतरन अाकिसमक हो – जैस मृतयु एवं पुनजरनम –
या एक लंबी अविध म हो, जब तक शरीर जीिवत ह, मृतयु की संभावना की अिनवायरता
िवदमान ह । जब तक पिरवतरन तथा नशरता ह, वहाँ दख एवं कुणठा ह ।'
बुद न अपन सवरपथम उपदश 'धममचकक पवतन सुत' म चार अायर सतय क िवषय म
बताया । चार अयर सतयो म पथम दख सतय ह । हमन यह पवचन अापको दसर िदन पात:काल
म िदया था ।
बुद न कहा, 'तो िभकखुआं, यह दख का अायर सतय ह :- जनम दखद ह, वृदावसथा दखद ह,
रोग दखद ह, मृतयु दखद ह, अिपय का साथ दखद ह, िपय स िवरह दखद ह, इचछानुकूल वसतु
पापत न कर पाना दखद ह – संकेप म, पाँचो सकंध [अथात भौितक रप, संवदना, संजा, संसकार
एवं चतना] जो अिसततव का नवीनीकरण करत रहत ह, दखद ह ।
'तो िभकखुआं, दख की उतपित का अायर सतय यह ह:- वह ह तृषणा (पािल म, तणहा) जो
पुनजरनम की ओर ल जाती ह, जो िविभनन पकार की इचछाआं दारा अाहािदत होती ह, िजसकी
संगत उमंग एवं हषर स होती ह; अथात कामुक इचछा की लालसा, एक शाशत अिसततव की
लालसा, तथा अिसततवहीनता की लालसा ।
'तो िभकखुआं, दख क समापन का अायर सतय यह ह:- वह ह समािपत, तृषणा की पूणर
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षष िदवस, पात: पवचन
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षष िदवस, पात: पवचन
पितरिकत होता ह । यह अापको वह अातिरक शाित दगा िजसस यह संतोष पापत होगा िक
अाप न कवल दैिनक जीवन की किठनाइआं स पर हो रह ह, िकनतु धीर धीर और िनिशत रप स
जीवन, पीडा तथा मृतयु की सीमाआं स भी पर हो रह ह।'
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षष िदवस, पात: पवचन
आकृित दखी, और डॉ. राइट न उस सवयं की अाकृित समझा – उनहोन कहा, 'ऐसा लग रहा था
जैस कोई बंदर की तरह चारो ओर कूद फाद रहा हो ।'
जब उनहोन िवपससना की, तो डॉ. राइट न बहत अचछा िकया । उस समय, धयान क िलय
भूतल कोिशकाआं का िनमाण चल रहा था । उनकी कोिशका स पाच फीट स भी कम की दरी पर
लोग काँकीट की ढलाई कर रह थ । तथा जब व साधना करत थ, तो व डेढ डेढ घंट तक िनमाण
सथल स शोर सुन िबना धयानमग रह सकत थ ।
डॉ. राइट अमरीका वापस चल गय, तथा १९६३ म सयाजी ऊ बा खी न उनह अानापान
िशकण म अिधकृत करन क िलए एक पत भजा । व बमा क बाहर साधना क अाचायर क रप म
अिधकृत िकय जान वाल पहल वयिकत थ । वह पत बमा दतावास, वािशगटन, डीसी म, बमा क
राजदत दारा एक सावरजिनक समारोह म उनह पसतुत िकया गया । डॉ. राइट न सूिचत िकया िक
तीन वषर क भीतर १०,००० लोगो को; महािवदालयो क पुरषो तथा मिहलाआं को एवं अपन
जैस इसाई पादिरयो को, उनहोन उपदश िदय ।
सयाजी ऊ बा खी उस समय की कहानी बडे चाव स सुनात थ जब इंग्ैड की पािल टकसट
सोसायटी की सिचव यंगॉन क कद पर आयी थी । जब उनह पता चला िक अमरीका क एक धमर
पाचायर, िजनहोन पािल गंथो का कभी अधययन नही िकया था, बौद धमर पर वयाखयान दत ह, तो
उनहोन पूछा िक ऐसा कैस संभव हो सकता ह । सयाजी न उनह बताया िक डॉ. राइट को अपन
वयिकतगत अनुभव स बुद धमम का जान पापत हअा था । उनहोन यह भी बताया िक सयामा जी
न भी गंभीरता स गंथो का अधययन कभी नही िकया था, तथािप व िकसी भी पशन का उतर द
सकती ह, चाह व पशन गृहसथ दारा हो या िवदान िभकखुआं दारा । व अपन अनुभव स, तथा
वयिकतगत रप स पापत जान क कारण उनका उतर द सकती ह । यिद आप अपन अनुभव स
उतर दत ह, तो आप कैस गलत हो सकत ह?
संदभर सूची
[1]We use the version of this story given in the commentary to the Theri-gatha (see
Psalms of the Sisters, pp. 106-108). A slightly different version is found in Buddhist
Legends, II, 257-260.
[2]For the story of Visakha see Buddhist Legends II 59-84. On the death of her
granddaughter, see op. cit., 84f.
[3]Udana, p. 92 (Verses of Uplift, pp. 111f.; also in The Life of the Buddha, p. 156).
[4]This discussion of dukkha is based on Ledi Sayadaw’s Exposition of Insight
(Burma ed., The Manuals of Buddhism, p. 26; The Wheel 3132, pp. 67-72).
8
षष िदवस, सायं पवचन
िचत जो चंचल ह, चपल ह, किठनता स संरिकत होता ह, तथा किठनता स िजसका िनवारण
होता ह, उस मधावी वयिकत वैस ही सीधा करता ह जैस बाण बनान वाला बाण को । जैस जल
स िनकाल कर धरती पर फेकी गई मछली तडफडाती ह, वैस ही मार क फंद स िनकलन क िलय
यह िचत (तडफडाता ह) ।
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षष िदवस, सायं पवचन
तो उनक मन म तीन पकार क अकुशल िवचार अाय :- कामुक िवचार, देषपूणर िवचार, तथा कूर
िवचार ।
मिघय न सोचा, 'यह बहत अजीब बात ह । जब मन इतन िवशास क साथ संसार तयाग
िकया ह, तो मुझे कयो ऐस दिषत, अकुशल िवचारो स गिसत होना चािहय? तथा व बुद क पास
लौट आए और उनह सूिचत िकया, 'भनत, जब म आम कुञज म धयान लगा रहा था, तो तीन
पकारक अकुशल िवचार मर मन म उतपनन हए :- कामुक िवचार, देषपूणर िवचार, तथा कूर
िवचार ।'
ऐसा था िक, िपछल जनम म मिघय, उस अामकुञज म रहन वाल एक राजा थ, तथा चूंिक
वहा उनका एक सीगृह, अथात अनत:पुर या हरम था, उनक मन को कामुक िवचार गिसत करन
लग; तथा राजा क रप म उनहोन अपरािधयो को पाणदणड का आदश िदया था, िजसक
पिरणामसवरप घृणा स भर कूर िवचार उनह गिसत कर रह थ । बुद न उनह याद िदलाया िक,
उनहोन उनह बगीच म जान स रोकन का पयास िकया था, लिकन व इस अिववकी कायर को करन
पर अड गय थ ।
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षष िदवस, सायं पवचन
क कारण जो उनकी िशका क अनुसार काम करत ह, हम पगित क िलए आवशयक सुरका एवं
मागरदशरन पापत कर पा रह ह । हमन पहल ही कलयाण िमत क रप म धयान क अाचायर क िवषय
म िवशुिद मागर स उदरण िदया ह । बुद स पारंभ कर नीच उतरत हए, सबस अचछा वह कौन
वयिकत ह िजसक पास धयान लगाना सीखन क िलय जाना चािहय? 'वह अाचायर जो गंथो को
जानता ह, परंपरा का पालन करता ह, िवरासत की रका करता ह, तथा जो अपनी राय क बजाय
अपन अाचायर क मत का अनुसरण करता ह ।'२
जोितपाल की कथा३
सवयं बुद क एक अचछ िमत थ, िजनहोन उनक अतीत क जनमो म स एक जनम म उनकी सहायता
की थी । उस जनम म उनका नाम जोितपाल था, तथा वह उनक पहल क बुद, काशयप (पािल म,
काससप) बुद का समय था । जोितपाल को काससप बुद स िनयतिववरण (अंितम सुिनिशत
भिवषयवाणी) पापत करनी थी । उनक िमत, घिटकर न सुझाव िदया िक व बुद क दशरन क िलय
चल, िकनतु जोितपाल न कहा, 'िकसी मुिणडत िभकखु स कौन िमलना चाहता ह!' तथा उस
पितकूल िटपपणी स संबद दिषत संसकार (मानिसक इचछाशिकत) क कारण, जब व बोिधसतव
िसदाथर हय, तो उनह अपनी पूणर जागृित क िलय छह वषो तक काम करना पडा । यिद उनहोन
वैसा न कहा होता, तो उनकी उपलिबध शीघ हो गई होती ।
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षष िदवस, सायं पवचन
समुदाय का पमुख बनना ह । उनहोन बुद को संघ समुदाय क अधयक क रप म दखा तथा सोचा
िक यह भूिमका िकसी और को भी पािरत की जा सकती ह । जब बुद न दवदत को संघ का
पमुख बनान स मना कर िदया, तो उनहोन यह पद बल दारा पापत करन का िनणरय िलया ।
दवदत, राजा िबिमबसार क पुत, राजकुमार अजातशतु (पािल म, अजातसतु) क िमत थ,
तथा उनहोँन राजकुमार स कहा िक व अपन िपता की हतया कर, िसहासन गहण कर ल, एवं
दवदत बुद की हतया कर संघ गहण कर लग । व बुद को तो नही मार सक, यदिप उनहोँन कई
पकार क पयास िकय, िजसम बुद पर एक बडी चटान िगराना, उनक िवरद एक जंगली हाथी
भजना, तथा उनपर बाण चलान क िलय तीरंदाजो को भजना, सिममिलत था । िकनतु अजातसतु
न अपन िपता की अवशय हतया कर दी ।
तो, िपता का वध, पाच पमुख अपराधो म स एक ह, िजसका अिनवायर रप स अथर यह ह
िक अगल ही जीवन म िनमनतम नरक म पुनजरनम तथा एक अिवशसनीय लंबी अविध का वह
जीवन । अत: अपन िमत क कारण अजातसतु अपरंपार दख भोग रह ह ।
िकनतु वासतव म, अजातसतु की पीडा न पारंभ होन क िलय अगल जनम की पतीका नही
की । उनका अंतमरन सवचछ नही था । समाट बनन क बाद, एक पूिणमा की संधया को अजातसतु
बुद क दशरन क िलए गय, तथा उस आम कुंज म पहंचन पर जहा बुद अनक िभकखुआं क साथ
धयान म बैठे थ, व िचितत हो गय कयोिक वहा कोई धविन नही थी । उनहोन सोचा िक इसका
अथर ह िक उनक िवरद कोई षडयंत ह । तथा जब उनहोन बुद का उपदश सुना तो व उस पर
अपना पूरा धयान किदत नही कर पाय, कयोिक व अपनी िचताअो स िवचिलत हो गय थ । उनक
जान क बाद, बुद न िभकखुआं स कहा िक यिद अजातसतु न अपन िपता की हतया न की होती
तो वह धमोपदश उनक सोतापनन होन क िलए पयापत हअा होता ।
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षष िदवस, सायं पवचन
अिनचच) क लकण की भावना करनी चािहय । बुद न कहा, 'मिघय, जो नशरता या अिनचच का
िविशष लकण साकार करता ह, वह सवत: अनातम का िविशष लकण अातमसात करता ह । जो
अनातम का िविशष लकण अातमसात करता ह, वह 'म हँ (अिसम मान)' की अवधारणा का
उनमूलन कर, इसी जीवन म िनबबान उपलबध करता ह ।'
अपन पवचन क समापन पर बुद न वह गाथा दी िजसको हमन इस पवचन क पारंभ म
उदृत िकया ह ।
फनदनं चपलं िचतं, दरकखं दिननवारयं । उजुं करोित मधावी, उसुकारोव तजनं ।।
िचत जो चंचल ह, चपल ह, किठनता स संरिकत होता ह, तथा किठनता स िजसका िनवारण
होता ह, उस मधावी वयिकत वैस ही सीधा करता ह जैस बाण बनान वाला बाण को । जैस जल
स िनकाल कर धरती पर फेकी गई मछली तडफडाती ह, वैस ही मार क फंद स िनकलन क िलय
यह िचत (तडफडाता ह) ।
बुद दारा मिघय को िदय गय परामशर पर हम िकतन खर उतरत ह? यहाँ, हम अचछ िमतो
स संबद ह, जो बुद क बताय मागर पर चल रह ह । हम नैितकता िवकिसत कर रह ह, हम धमम
पर पवचन सुनत ह, हम एकागता क िवकास का अभयास करत ह, तथा हम अंतदृरिष िवकिसत
कर रह ह । अत: हम पाच म स पाचो क पात ह ।
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षष िदवस, सायं पवचन
पािल म, अनता शबद अन एवं अता को जोड कर बना ह । अन िनषेध का संकत ह तथा
अता का साधारण अथर सार या अावशयक पदाथर होता ह । बुद न सपष िकया ह िक भाषा क दो
सतर होत ह ।७ हम अपन दैिनक जीवन म पारंपिरक भाषा का पयोग करत ह, तथा एक भाषा
वह भी ह जो परम सतय क अनुरप ह । यह दसर पकार की भाषा अतीव पिरशुद होती ह तथा
इस अतयंत सटीक एवं अचूक होना चािहए । पािल गंथो क तीसर भाग अिभधमम, िजसका अथर ह
परम सतय, म इसी पकार की भाषा का पयोग ह । हम उन गंथो म वयिकत का उललख नही
िमलगा, अिपतु उसक सथान पर 'शारीिरक एवं मानिसक घटनाअो की पिकया' का । पवचनो क
संगह सूत (पािल म सुत) क अनक गंथो म भी इसी पकार की भाषा का पयोग ह, जो मात
मूलभूत को संबोिधत करती ह । िकनतु बुद न सतय क िवषय म पारंपिरक भाषा का भी उपयोग
कर उपदश िदया था, तथा उनहोन यह अचछी तरह सपष भी िकया िक कोई उनकी बात का गलत
अथर न लगाय । 'म' क सथान पर 'इस शारीिरक-मानिसक घटना पिकया' जैस शबदो का पयोग
यिद व सामानय लोगो को िदय गय उपदशो म करत तो यह अतयंत असुिवधाजनक हअा होता ।
िकनतु बुद न कहा िक जब भी उनहोन 'म' 'मुझे' या 'मरा' जैस शबदो का पयोग िकया, उनक मन
म कोई ऐसा अनुिचत िवचार नही था िक िकसी िनयंतणकारी, सथायी सवयं का अिसततव ह ।
जैस पुजो क समागम स 'रथ' शबद अिभवयकत होता ह, उसी पकार जब सकंध िवदमान होत ह
तो, सामानय भाषा म उस 'वयिकत' कहा जाता ह ।
अाचायर बुदघोष िलखत ह िक जब धुिरया, पिहय, ढाच आिद घटक पुजर जुडत ह तो हम
उस एक रथ कहत ह ।९ िकनतु, मूलभूत अथर म कोई भी भाग रथ नही ह । जब िविभनन
सामिगया सही तरीक स िकसी िरकत सथान को घेरती ह तो हम उस एक घर कहत ह । जब
उंगिलयो एवं अंगूठे को एक िनिशत तरीक स िनयोिजत िकया जाता ह तो हम उस एक मुटी
कहत ह । उसी पकार, जब पंच सकंध अथात भौितक रप, संवदना, संजा, संसकार, तथा चतना
या िवजान एकजुट होत ह, तो हम उस सामानय भाषा म 'एक वयिकत' या 'एक पाणी' कहत ह ।
िकनतु अंितम अथर म, यिद पतयक घटक की अलग अलग जाच की जाय तो 'म' या 'म हँ' की
पूवरधारणा का कोई आधार नही ह।
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षष िदवस, सायं पवचन
करना अौर किठन हो जायगा । इसीिलय हमन सयाजी ऊबा खी को उदृत िकया था, िजनहोन
कहा था िक उनक मागरदशरन म काम करन वाल िकसी भी िशषय स यह अाशा नही की जाती ।
उनहोन कहा, 'जब आप दखंग, तब आप िवशास करग ।'
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िक यह बात इसी पकार कही गई ह, कवल इस िलय मत सवीकार करो िक यह हमार धमर गनथ
(िपटक) क अनुकूल ह, कवल इस िलय मत सवीकार करो िक यह तकर संगत ह, कवल इसिलय
मत सवीकार करो िक यह नयाय (शास) संगत ह, कवल इस िलय मत सवीकार करो िक आकार
पकार सुनदर ह, कवल इस िलय मत सवीकार करो िक यह हमार मत क अनुकूल ह, कवल इस
िलय मत सवीकार करो िक कहन वाल का वयिकततव आकषरक ह, कवल इस िलल मत सवीकार
करो िक कहन वाला शमण हमारा पूजय ह । यदा तुमह, कालामा, अतनाव जानययाथ – ‘इम
धममा अकुसला, इम धममा सावजजा, इम धममा िवञञुगरिहता, इम धममा समता समािदनना
अिहताय दकखाय संवतनती’’’ित, अथ तुमह, कालामा, पजहययाथ। ह कालामो । जब तुम
आतमानुभव स अपन आप ही यह जानो िक य बात अकुशल ह, य बात सदोष ह, य बात िवज
पुरषो दारा िनिनदत ह इन बातो क अनुसार चलन स अिहत होता ह, दख होता ह तो ह
कालामो! तुम उन बातो को छोड दो ।"
तथा पशनोतरो क माधयम स उनहोन कालामो को समझाया िक जब िकसी वयिकत म लोभ
उतपनन होता ह, तो वह उसकी हािन करगा । लोभयुकत वयिकत जब लोभ स इतना मनोगहीत
एवं गिसत हो जाता ह िक वह पािणयो की िहसा, चोरी, तथा वयिभचार करता ह, अौर झूठ
बोलता ह, तथा इस तरह क कृतय करन क िलए अनय लोगो स आगह करता ह तो इसस उस लंब
समय तक हािन एवं दख होगा । बैरभाव क कारण ऐस कृतय करन वाल वयिकत को भी इसी
पकार एक लंब समय तक भुगतना होगा । अजानता क कारण िकय गय अनुिचत कृतयो क
पिरणाम भी वही ह ।
ततपशात बुद न कालामो को समझाया िक जब वयिकत म लोभ अनुपिसथत होगा, तब वह
जीव हतया, चोरी, या वयिभचार नही करगा तथा झूठ नही बोलगा, एवं वह ऐसा करन क िलए
दसरो स कहगा नही । यह उसक िलए अचछा होगा । तथा हम इस पकार की बात सवीकार कर
लनी चािहए िजनका हम सवयं अनुभव करत ह िक व हमार िलय अचछी ह, दोषहीन ह,
बुिदमानो दारा पशंिसत ह, तथा उनक अभयास स अाननद एवं कलयाण होता ह । इस पकार क
अाचार वयवहार को हम अिजत करना चािहय तथा अपन जीवन म हम उनह अपनाना चािहय ।
अत: जब लोभ अनुपिसथत हो, देष अनुपिसथत हो, भम अनुपिसथत हो तो अचछ कमर होग तथा
उन कमो क अचछ पिरणाम आएंग ।
तब बुद न कालामो को चार साधनाअो म पिशिकत िकया जो बह लोक या बह िवहार
की अोर ल जाती ह । हम इनका वणरन पहल ही कर चुक ह, य ह :- मता, करणा, मुिदता एवं
उपका (पािल म, उपकखा) । बुद न कालामो को इस पकार िनदरश िदया, 'मनुषय को अपन देष
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षष िदवस, सायं पवचन
रिहत, उपकखापूणर, पचुर, उतकृष, असीिमत िवचारो स ऊपर, नीच, अारपार, सभी िदशाआं म
चारो ओर, िवश म सवरत भरत हए रहना चािहए ।'
चाह हम कुछ भी िवशास कर, इस साधना क पिरणाम अचछ हो सकत ह । इसस आनंद
पूणर उचच लोक म पुनजरनम हो सकता ह । यिद कोई दसरा संसार नही ह, तथा कारण कायर
िवधान नही ह, तो भी हमारा वतरमान जीवन सुखमय होगा, कयोिक हम शतुता, देष, एवं पीडा
स मुकत होग । यिद बुर काम करन वालो का बुरा होता ह, तो वह सुखमय जीवन क पित
अाशसत ह कयोिक उसन अचछ काम िकय ह । यिद बुर काम करन वालो का बुरा नही होता, तो
भी वह सुखी होगा, कयोिक उसन कुछ बुरा नही िकया ह ।
बुद दारा उनह िदय गय पवचन को समझन म कालामा सकम थ, तथा सतय इतना सपष हो
गया िक उनहोन ितरतन म शरण ली । हम यह अनुमान लगा सकत ह िक बुद न दखा िक व
अंतदृरिष धयान क िलए अभी तैयार नही थ, कयोिक अपन पवचन म व इसका उललख नही करत,
तथा अनय पवचनो स हम जानत ह िक चार बह िवहार हम अंतदृरिष धयान क िलए तैयार करत
ह । इसम कोई संदह नही ह, कयोिक बुद यह जानन म सकम थ िक उनक शोता कया समझ
सकत ह, तथा व अपन पवचन सदैव अपन शोताआं क उपयुकत दत थ ।
संदभर सूची
[1]The Gradual Sayings IV 234-237 (we include the repeated section of the
discourses from IV 231-233).
[2]The Path of Purification, Chap. III, ¶ 64.
[3]Middle Length Sayings IV 243-246. For this and other occasions in past lives
when the Bodhisatta did deeds he had to suffer for in his last life as a Buddha, see the
translation of the Apadana verses in The Udana Commentary 633–635 and the notes
on pp. 713–722.
[4]For references concerning Devadatta, see The Dictionary of Pali Proper Names, I
1106-11. For Ajatasattu’s visit to the Buddha, see Dialogues of the Buddha, I 65-95.
[5]The Group of Discourses, 30f., and The Kindred Sayings I 275-278.
[6]See Nyanatiloka, Buddhist Dictionary, s.v. anatta.
[7]See, for example, Dialogues, I 263.
[8]We use the translation of Bhikkhu Ñanamoli, The Path of Purification, Chapter
XVIII, ¶ 25.
[9]The Path of Purification, Chapter XVIII, ¶ 28.
12
षष िदवस, सायं पवचन
[10]Ledi Sayadaw, Manual of Insight (The Wheel 3132, pp. 77-80) and Manuals of
Buddhism, pp. 29f.
[11]The Gradual Sayings I 170-175.
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सपतम िदवस, पात: पवचन
िवशुिद मागर
सबब सङखारा अिनचचाित, यदा पञञाय पससित ।
अथ िनिबबनदित दकख, एस मगगो िवसुिदया ।।
सार संखार अिनचच ह । इस (सतय) को जब कोई सवयं की पञञा स दख लता ह, तब उसको
दखो स िनवरद पापत होता ह (अथात, दख केत क पित भोकताभाव टूट जाता ह) – ऐसा ह यह
िवशुिद मागर !
सबब सङखारा दकखाित, यदा पञञाय पससित ।
अथ िनिबबनदित दकख, एस मगगो िवसुिदया ।।
सार संखार दख ह । इस (सतय) को जब कोई सवयं की पञञा स दख लता ह, तब उसको दखो स
िनवरद पापत होता ह – ऐसा ह यह िवशुिद मागर !
सबब धममा अनताित, यदा पञञाय पससित ।
अथ िनिबबनदित दकख, एस मगगो िवसुिदया ।।
सभी धमम अनता ह । इस (सतय) को जब कोई सवयं की पञञा स दख लता ह, तब उसको दखो
स िनवरद पापत होता ह – ऐसा ह यह िवशुिद मागर !
धममपद, गाथा २२७-२७९
समूची िशका मुिकत पर आधािरत ह । बुद न कहा ह, 'िजस पकार महासागर का कवल एक ही
सवाद होता ह – नमकीन सवाद, धमम िशका का कवल एक ही सवाद ह – मुिकत का सवाद ।'१
लकय जागृित क चारो चरणो क मागर पदो एवं उनक फल पदो (मगग-फल) की पािपत ह, तथा
उनक माधयम स, अंितम िनबबान । इनह अनतदृरिष साधना अथात िवपससना-भावना क अभयास
क िबना नही पापत िकया जा सकता । गंथो म यह कई सथानो म सपष िकया गया ह । उदाहरण
क िलए, यहाँ धममपद (गाथा २७६) स एक गाथा ह:
तपना तो तुमह ही पडेगा, तथागत तो (मागर को मात) अाखयात करत ह । इस मागर पर अारढ
होकर धयान करन वाल, मार क बंधन स सवरथा मुकत हो जात ह ।
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सपतम िदवस, पात: पवचन
गृहसथ अनाथिपिणडक दारा िदए गए जतवन िवहार म िनवास करत समय बुद न यह पवचन
िदया था । उनहोन िभकखुआं को बताया िक जो भी संसकािरत (अनुबंिधत या िनषपनन) धमो
(घटनाआं) को सथायी या िनतय (पािल म, िनचच) समझता ह, उसक िलय अंतदृरिष जान
(िवपससना ञान) स भर पाना संभव नही ह । अंतदृरिष जान क िबना आशासन पथ (सममत-
िनयम) म पवश असंभव ह । तथा आशासन पथ म पवश िकय िबना, जागृित क चार चरणो,
िजनकी पराकाषा पूणर जागृित म होती ह, अथात सोतापनन, सकदागािम, अनागािम, एवं अहरत
पद का अनुभव करना असंभव ह । अत: आप दख सकत ह िक िनबबान का सवाद चख लन क
बाद भी काफी काम बाकी रहता ह, कमश: अौर भी चढाई चढनी होती ह ।
जो भी यह समझता ह िक सभी संसकािरत धमर अिनतय (अिनचच) ह, तो उसक िलय यह
संभव ह, कारण एवं अौिचतय ह िक वह अंतदृरिष जान स भर जाय, िजसस वह आशासन पथ म
पवश कर, तथा जागृित क चार चरणो क फल पदो का अनुभव कर ।
इसी पकार, यिद कोई संसकािरत धमो को सुख समझता ह, आतमा (पािल म, अता) युकत
समझता ह, तो उसक िलय सफलतापूवरक पिशकण पूरा कर पाना असंभव ह । िकनतु यिद कोई
संसकािरत धमो को असंतोषजनक (द:ख) तथा अनातम (पािल म, अनता) समझता ह तो उसक
िलय यह पिशकण पूरा करना संभव ह ।
अंत म, यिद िनबबान को असंतोषजनक या (द:ख) माना जाता ह, तो ऐसी कोई संभावना
नही ह, कारण एवं अौिचतय नही ह, िक कोई अंतदृरिष जान स भर जाय, िजसस वह आशासन
पथ म पवश कर, तथा जागृित क चार चरणो क फल पदो का अनुभव कर सक । जब िनबबान
को सुख क रप म दखा जाता ह, कवल तभी यह पिशकण पूरा करना संभव ह । जािहर ह िक
िनबबान का सुख दैिनक जीवन क संसकािरत धमो क सुख जैसा नही ह ।
तो हम यह कैस अातमसात कर िक सभी संसकािरत धमर नशर, असंतोषजनक, एवं अनातम
ह? आप को समरण होगा िक य तीनो िवशषताएं एक दसर स घिनषता स जुडी हई ह । यिद
एक समझ म अा गयी तो दसरो को भी समझना सरल हो जाएगा । अत:, हम तीन म स कवल
एक क अनुभव क िलय पयास करना पारंभ कर सकत ह । सही समझ का अथर ह पतयक समझ,
सवयं का अनुभव । इन तीन िवशषताआं म स एक की सचचाई का अनुभव, उसक िवषय म
िसदातो को सवीकार करन स बहत अलग िसद होगा । िसदात एवं मत सरलता स संशोिधत,
पिरवितत, या िवकृत हो जात ह, गलत िसद होत ह, अथवा उनक िमथयाबोध होत ह । पतयक
अनुभव स हम ऐसा जान पापत होता ह जो हमार साथ रहता ह । हम न सवयं कया िसद िकया ह
इस िवषय म हम कोई संदह नही होगा ।
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सपतम िदवस, पात: पवचन
अत: हमारा पयतन होगा िक हमारी संवदनाआं म जैस जैस पिरवतरन हो, हम उनका पता
लगता रह । यह वही कुञजी होगी जो हमार िलए, पतयक जान, अंतदृरिष जान का दार खोलगी ।
3
सपतम िदवस, पात: पवचन
कलाप
अिनचच क िसदात को सपष करन क िलय बुद न भौितक पदाथो क वयवहार स पारंभ िकया,
तथा उनक अनुसार भौितक पदाथर अाधुिनक िवजान दारा पाय गय परमाणु की तुलना म अौर
भी सूकम ह । इस बहाड म िवदमान पतयक वसतु, चतन एवं िनजीव दोनो, कलापो स रिचत ह, जो
उतपनन होन क साथ साथ नष हो जात ह । हम यह पहल ही बता चुक ह िक कलाप चार पमुख
भौितक गुणो तथा उन पर िनभरर चार सहायक गुणो क संिकपत समुचचय ह । िकसी भी कलाप
का जीवन-काल मात एक कण ह । एक मानव की पलक की एक झपकी की अविध म एक खरब
ऐस कण होत ह । व सब सदैव पिरवतरन या पवाह की िसथित म ह । िवपससना साधना म
िवकिसत छात क िलए, व ऊजा की एक धारा क रप म अनुभव िकय जा सकत ह । यदिप ऐसा
पतीत होता ह, िकनतु मानव शरीर म कोई सार ततव नही ह; बिलक यह एक भौितक सकंध (रप)
तथा जीवन बल (नाम) क सह-अिसततव की िनरंतरता ह ।
जब हम जानन लगंग िक हमारा शरीर सूकम कलापो स बना ह, जो सभी पिरवतरन की
िसथित म ह, तो हम पिरवतरन या कय की वासतिवक पकृित को समझन लगंग । कलापो क
िनरंतर िवघटन एवं पितसथापन क पिरणामसवरप पिरवतरन तथा कय होता ह । सभी एक दहन
की िसथित म ह िजनह अावशयकरप स िवसाद की पहचान या दख-सतय समझना चािहय । जब
आप असथाियतव को दख क रप म अनुभव करग, कवल तभी आप चार म स पथम अायर सतय,
अथात दख-सतय का बोध कर पायंग, िजस पर बुद की िशका म इतना जोर िदया गया ह । कयो?
कयोिक जब आप को द:ख की सूकम पकृित का एहसास होगा, तथा यह एहसास होगा िक
संसकािरत होन क नात आप इसस एक पल क िलए भी बच नही सकत, तो आप अपन अिसततव
क पित सही अथर म, भयभीत, घृणापूणर एवं अिनचछुक हो जायंग, तथा ऐस मागर की तलाश करग
जो मुिकत िदला कर दख स बाहर ल जाय । मनुषय जीवन म भी उस िसथित को जान पाना तथा
उसका सवाद चख पाना संभव ह । यह तब होता ह जब कोई जागृित क पहल चरण, सोतापित
(या सोतापनन) पद को पापत करता ह । तब अाप इतन िवकिसत हो सकग िक अातिरक शािनत
या असंसकािरत पद, िनबबान म जा सक ।
िकनतु सकारातमक पिरणाम अतयंत शीघ िदखाई पडंग । जैस ही आप अपन दैिनक जीवन म
अिनचच क पित जागरकता बनाए रखन म सकम होत ह, आप को सवयं पता लगन लगगा िक
शारीिरक एवं मानिसक दोनो रपो म, अाप क भीतर एक शेयषकर पिरवतरन हो रहा ह ।
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सपतम िदवस, पात: पवचन
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सपतम िदवस, पात: पवचन
गृहसथ क रप म साधना
िकनतु अाप म स सभी लोग अलप समय म अंितम लकय तक नही पहंच पायंग । अत: अाइय, हम
गृहसथ क रप म लाभ पापत करन क िलय यही-और-अभी काम करन क तरीक को दखत ह ।
सवरपथम, हम अपन भीतर अिनचच जगाना होगा, अथात अपनी अातिरक अिसमता को अिनचच
म अनुभव करना होगा, तथा अंततः यह हम अपन भीतर और बाहर, शाित और संतुलन की
िसथित म लायगा । यह लकय अिनचच की अनुभूित म तनमयता दारा पापत होगा ।
अाज, जब िवश को गंभीर समसयाआं का सामना करना पड रहा ह, िजनम स अनक मानव
जाित क िलय भयावह ह, अब समय पिरपकव ह, िक पतयक वयिकत िवपससना साधना कर, तथा
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सपतम िदवस, पात: पवचन
यह सीख िक जो कुछ भी हो रहा ह, उसक बीच शाित का एक गहरा कुणड कैस पाया जाय ।
अिनचच पतयक वयिकत क भीतर ह । यह पतयक वयिकत की पहंच क भीतर ह । अिनचच का
अनुभव कर, अिनचच म तनमय हो जाय, तो िवचारो की बाहरी दिनया स कटकर िनकलना संभव
हो जाएगा । अिनचच जीवन की वह मिण होगा, िजस आप एक शात एवं संतुिलत ऊजा क भंडार
क सृजन हतु, िनिध की तरह सजोयंग, िजसस सवयं का तथा समाज का कलयाण हो ।
जब अिनचच को समुिचत रप स िवकिसत िकया जाता ह, तो वह अापक शारीिरक एवं
मानिसक दोषो क मूल पर पहार करता ह तथा शनै: शनै: उन सभी बुराइआं को दर करता ह, जो
अापकी शारीिरक और मानिसक रगणताअो क सोत ह ।
बुद क समय, शावसती (पािल म, सावतथी) तथा अास पास क दहात की जनसंखया लगभग
९ करोड थी । उनम स लगभग ५ करोड अायर थ जो जागृित क पहल चरण म पहंच गय थ । ६
अत: िवपससना करन वाल गृहसथ जनो की संखया िभकुअो की संखया स भी अिधक रही होगी ।
मात उनही वयिकतयो क िलय अिनचच आरिकत नही ह, िजनहोन संसार का तयाग कर िदया हो ।
उन किमयो क बावजूद, जो गृहसथ जीवन को अाजकल वयाकुल बना दती ह, कोई सकम अाचायर
या गुर एक अपकाकृत कम समय म, अिनचच सिकय करान म, छात की सहायता कर सकत ह ।
एक बार सिकय हो जान पर, साधक को मात उस संरिकत रखन का पयास करन की अावशयकता
होगी । िकनतु उस यह बात धयान म रखनी चािहय िक, जब भी उस अवसर पापत हो, वह
िवपससना जान क तीसर सतर क िलए काम कर । पदाथर एवं मन की तीव गित स पिरवतरनशील
पकृित (भंग) क जान क साथ यह िसथित अाती ह । यिद आप इस सतर तक पहँच जात ह, तब
कोई समसया नही होगी या कम स कम होगी, कयोिक तब अापको िबना अिधक पयास क ही
अिनचच का अनुभव, लगभग सवत:, करन म सकम हो जाना चािहए ।
इस िसथित म, अिनचच अापका अाधार बन जाएगा, जहा अाप अपन दैिनक जीवन की
घरलू अावशयकताआं क समापत होत ही, शीघ वापस अा सकत ह । हालािक, यिद आप अभी तक
भंग की अवसथा म नही पहँच ह तो आप क िलय कुछ किठनाई की संभावना ह । आप क िलए,
भीतर का अिनचच तथा शारीिरक एवं मानिसक बाहरी गितिविधयो क बीच, यह कवल एक
रससाकशी की तरह हो जाएगा । अत: आप क िलय इस आदशर वाकय का पालन करना िववकपूणर
होगा, 'जब आप काम कर रह हो तो काम कर; जब आप खल रह हो तो खल ।' आप क िलय
सदैव अिनचच सिकय करना आवशयक नही होगा । यिद आप इस िदन तथा रात म िनयिमत
समय या समयो क िलए सीिमत रखं तो यह पयापत होना चािहए । कम स कम इस अविध म,
मन तथा धयान को शरीर क भीतर, िवशष रप स अिनचच बोध क साथ, रखन का पयास िकया
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सपतम िदवस, पात: पवचन
जाना चािहए । अापका अिनचच बोध कण पितकण होना चािहय; इतना िनरंतर िक आप िकसी
भी तकरमूलक या धयानभंगकारी िवचारो क पकेप की अनुमित न दं , कयोिक व आप की पगित क
िलए िनिशत रप स हािनकारक ह ।
यिद यह संभव नही ह, तो आप को वापस अपन शास क बोध का अथात सित का अभयास
करना होगा, कयोिक अिनचच की कुञजी समािध ह । तथा अचछी समािध क िलए शील उतकृष
होना चािहय, चूंिक समािध शील पर बनी ह । अचछ अिनचच क िलए, समािध अचछी होनी
चािहए । यिद समािध उतकृष ह, तो अिनचच बोध भी उतकृष होगा ।
पूणर रप स संतुिलत मन क उपयोग, तथा साधना की िवषय वसतु पर धयान क पकेपण क
अितिरकत, अिनचच सिकय करन क िलए कोई अनय िवशष तकनीक नही ह । िवपससना म
कमरसथान, अथात धयान का िवषय अिनचच ह । अत: यिद आप शरीर की संवदनाअो पर अपना
धयान वापस लान क अभयसत ह, तो आप सीधे अिनचच का अनुभव करन म सकम हो जाएंग ।
पहल आप शरीर क उस भाग या केत म अिनचच का अनुभव कर, जहा धयान किनदत करना
सरल हो, िफर िसर स पैरो तक तथा पैरो स िसर तक, धयान क केत को बदलत रह । कभी कभी
अपन शरीर क भीतरी अंगो की भी जाच कर । शरीर रचना पर धयान दन की अावशयकता नही
ह । पतयक धयान पदाथर अथात कलापो की उतपित पर तथा उनक िनरंतर पिरवतरनशील सवभाव
पर होना चािहय ।
यिद इन िनदरशो का पालन होता ह, तो पगित िनिशत रप स होगी, िकनतु पगित अतीत
की पारिमताअो या पारमी पर, तथा इस साधना म अापकी िनषा पर भी िनभरर करती ह । यिद
आप जान क उचच सतर को पापत कर लत ह, तो अापकी तीनो िवशषताआं, अथात अिनचच,
द:ख, एवं अनता को समझन की शिकत म वृिद होगी तथा तदनुसार आप लकय क अथात
अायरपद क यान िजसन िनवाण को चख िलया ह, क िनकटतर आत जाएंग । इस लकय को आपको
अवशय धयान म रखना चािहए ।
संदभर सूची
[1]The Gradual Sayings, IV 139.
[2]The Path of Discrimination, pp. 401-404.
[3]The following discussion is based on “The Essentials of Buddha-Dhamma in
Practice,” Dhamma Texts, pp. 89-98
[4]Dialogues of the Buddha, II 173.
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सपतम िदवस, पात: पवचन
[5]The ten are given in Venerable Anuruddha’s Compendium of Philosophy, pp. 210f.
(See also U Shwe Zan Aung’s introductory essay to the translation, pp. 65f.)
[6]See Buddhist Legends, I 147.
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सपतम िदवस, सायं पवचन
धयान का तज
िदवा तपित अािदचचो, रितमाभाित चिनदमा ।
िदन म सूयर तपत ह, रात म चंदमा भासत ह, कवच पहन कितय चमकता ह, धयान लगाता हअा
बाहण चमकता ह, तथा (अपन) तज स सार रात-िदन बुद चमकत ह ।
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सपतम िदवस, सायं पवचन
शतु शतु की अथवा बैरी बैरी की िजतनी हािन करता ह, कुमागर पर लगा हअा िचत, उसस कही
अिधक हािन करता ह ।
धममपद, गाथा ४२
सही समझ३
पहल कुछ िदनो म, जब हम अानापान का अभयास कर रह थ, तब हमन अषािगक अायर मागर क
उन छ: भागो की चचा की जो अानापान पर लागू होत ह । अब जब िक हम पूरी तरह िवपससना
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सपतम िदवस, सायं पवचन
क मागर पर ह, तो दो अंितम चरणो, अथात समयक दृिष (पािल म, सममा िदिट) तथा समयक
संकलप (पािल म, सममा संकपपो) क िवषय म िवसतृत चचा कर सकत ह । यह चचा सयाजी ऊबा
खी क अाचायर क अाचायर आदरणीय लदी सयादॉ दारा रिचत 'अायर मागर क घटको की िनयम
पुिसतका' (The Manual of Constituents of the Noble Path) पर आधािरत होगी।
सही समझ या समुिचत दृिष को तीन पहलुआं म िवभािजत िकया जा सकता ह :- (१)
सही समझ िक कवल दो चीजं ही एक अिसततव स दसर अिसततव म पािणयो का अनुसरण कर
सकती ह - कुशल एवं अकुशल कमर (कममाससकत सममा िदिट); (२) अिसततव चक, सािभपाय
कमो क पिरणाम, एवं मुिकत स संबंिधत दस पकार क िवषयो की सही समझ; तथा (३) चार
अायर सतयो की सही समझ ।
इस संसार म भवन, वाहन, सवणर तथा रजत जैसी संपितया िवदमान ह । इस पकार की
वसतुएं हमार वतरमान अिसततव म हमारी ह । मृतयु क पशात वह संपित हमार साथ नही जा
सकती । इस पकार की संपित उधार संपित की तरह ह । कवल मानिसक, मौिखक और
शारीिरक इचछाशिकतपूणर कमर ही, इस जीवन म व भिवषय क जनमो म हमारा साथ द सकत ह ।
अिग, जल, शासक, चोर, या शतुआं दारा इचछाशिकतपूणर कमो क नष होन की संभावना नही ह ।
सभी जीिवत पाणी जागत समय सदैव तीन पकार क, अथात शारीिरक, मौिखक या
मानिसक कमर िनषपािदत करत ह । उनक सभी कायर इनही कमो दारा होत ह । जब व सो रह होत
ह तो य कमर िनिषकय हो जात ह । जब व मर जात ह, तो जहा तक िक उस शरीर का संबंध ह, य
कमर बंद हो जात ह । य तीन पकार क कमर या तो अचछ होत ह या बुर , तथा व अपना पिरणाम
या तो इस जीवन म, या भिवषय क जीवन म द सकत ह ।
धममपद की दसरी गाथा को उदृत करत समय, हमन दस पकार क अनैितक आचरण क
िवषय म बताया था । हम भौितक वसतुआं को उपलबध करन म, जीिवका अिजत करन म, तथा
जान पापत करन म अनुिचत कमो स बचना चािहए । इसस इस जीवन म कुशल कमर होग । िकनतु
यिद हमारा उदेशय भिवषय म िकसी अचछ लोक म जनम लना ह, तो कवल अनैितक आचरण स
मुकत होना पयापत नही होगा, हम कुछ अौर भी करना होगा । हम अचछ कमर भी करन होग जैस
दान, तथा िवशष िदनो पर आठ िशकापदो का पालन । हम धयान का अभयास करना होगा तथा
ितरतन अथात बुद, धमम, एवं संघ को नमन ।
हम दख सकत ह िक भूिम पर, जल म तथा अाकाश म सभी पकार क पािणयो दारा कैस
मानिसक, मौिखक तथा शारीिरक कमर िकय जा रह ह । सवयं अपनी अाँखो स यह दखन क बाद,
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सपतम िदवस, सायं पवचन
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सपतम िदवस, सायं पवचन
कहा जा सकता ह । िकनतु, मानिसक, मौिखक और शारीिरक कमर हमार सभी जनमो म हमारा
अनुसरण करग । यही हमारी असली िवरासत ह । कुशल कमर जैस कुतो, सूअरो, मुिगयो तथा
अनय पिकयो को भोजन करान क पिरणाम सवरप अनक सुखमय जनम पापत हो सकत ह ।
शीलवान िभकखुआं को भोजन करान स असंखय सुखमय अिसततव पापत हो सकत ह । िकनतु यिद
कोई वयिकत िकसी जानवर की, जैस मछली, पकी, या सूअर की हतया करता ह, तो उसका एक
हजार स अिधक भावी जनमो म बध होगा ।
यिद हम एक ननहा सा सब का बीज बोत ह, तो उसस एक बडा वृक पैदा हो सकता ह,
िजसम असंखय सब होग । उसी पकार, कुशल कमो, जैस िभका दान, नैितकता, या धयान क बीज
भिवषय क अिसततवो म अचछ पिरणाम लायंग । पाणी क कमो क पभाव अनक जनमो म सदैव
उसका अनुसरण करत ह, तथा उपयुकत समय पर अचछ या बुर पिरणाम उपजात ह । इसी कारण,
बुद न कहा ह िक हमार कमर ही हमारी िवरासत म िमली संपित ह (सबब सता कमम दायदा) ।
िकसी पौधे क िवकास क कई कारण होत ह; बीज, पृथवी, तथा जल । पमुख कारण बीज
होता ह । िमटी तथा जल िदतीय कारण ह । िकसी मनुषय क िलए, अतीत क कुशल कमर पाथिमक
कारण ह । माता िपता माधयिमक कारण ह । इसी कारण बुद न कहा ह िक हमार कुशल एवं
अकुशल कमर ही हमार अनक जनमो म भमण क सोत ह (सबब सता कमम योिन) ।
हमार माता िपता, भाई बहन, बट बिटयंा, संबंधी, िमत एवं गुर ह िजनस हम पेम ह तथा
िजनपर हम िनभरर ह, िकनतु अलप समय क िलय ही, जब तक हम जीिवत ह । दसरी अोर, हमार
कमर िनरंतर हमार साथी रहग । कवल हमार कुशल कमर ही हम भिवषय क अिसततव म सुख एवं
समृिद द सकत ह । इसी कारण बुद न कहा ह, िक कवल कमर ही हमार सचच िमत एवं संबंधी ह,
जो पािणयो का उनक सभी जनमो म अनुसरण करत ह (सबब सता कमम-बंधु) ।
हमार वतरमान जीवन म कुशल कमर हमारी संकटो स सुरका करत ह , तथा भिवषय क जनमो
म दख स बचन क िलए हम इनही पर भरोसा कर सकत ह । पतयक जनम म हम इनही कमो की
शरण म होग, कयोिक जो िवधान इस बहाड म लागू होता ह , वही िवधान अनय असंखय बहाडो
म भी लागू होता ह, चाह हम बुद की िशका (बुद शासन) क िवदमान होन क समय म हो या
नही । यही कारण ह िक बुद न कवल कमर का उललख िकया ह , ितरतन का नही, जब उनहोँन
कहा,' पाणी जहा कही भी तमाम जनमो म भटक, मात कमर ही उनकी सचची शरण ह (सबब
सता कममपपितसरण) ।
"शरण" अथात िजस पर िनभरर हो, या संकट तथा किठनाई स बचाव क िलए आशय ल;
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सपतम िदवस, सायं पवचन
इसका अथर मात शदाजिल अिपत करना नही ह । शरण, पािल म सरण, शबद का अथर ह, वह जो
सहारा या संरकण द सक । तथा हम अपन दैिनक जीवन म, संरकण क िलय भौितक सामिगयो
पर िनभरर करत ह । उदाहरणसवरप, भोजन एवं जल दीघायु क अाधार ह; पभावी िचिकतसा क
िलय अौषिध एवं उिचत आहार पर भरोसा िकया जाता ह; पशासन हमारी लुटरो तथा
अपरािधयो स रका करता ह; एक भवन हम शीत एवं वषा स बचाता ह; पृथवी, अिग, जल तथा
वायु सहारा ह ।
वतरमान समय म, जब िक बुद की िशकाएं अभी भी जीिवत ह, तीन और आशय ह :- बुद,
धमम, और संघ ।
यही सही समझ या समुिचत िववक ह िक, मात कुशल एवं अकुशल कमर ही पाणी का एक
जनम स दसर जनम म अनुसरण करत ह ।
जीवन चक, कमो क पिरणाम तथा दख स मुिकत क िवषय म दस पकार की समयक दृिष
(दस वतुक सममा िदिट) होती ह । पथम समयक दृिष यह ह िक, एक अिसततव म परोपकार क
साथ पदिशत दानशीलता, भावी अिसततवो म लाभकारी पिरणाम दगी (अितथ िदननं) । िदतीय
समयक दृिष यह ह िक पापतकताआं क पुणय गुणो क पित शदा एवं सममान क साथ बडे पैमान पर
की गई उदारता, भिवषय क अिसततवो म लाभकारी पिरणाम लाती ह (अितथ ियतथं) । तृतीय
समयक दृिष यह ह िक एक छोट पैमान पर िदया गया उपहार भी, यिद शुभकामना क साथ िदया
गया हो, तो वह भिवषय क अिसततवो म लाभकारी पिरणाम दगा (अितथ हतं) । चतुथर समयक
दृिष यह ह िक एक अिसततव म पािणयो क पित िकय गय कूर कमो क बुर पिरणाम भावी
अिसततवो म होग, तथा इस पकार क बुर कृतयो स बचन स लाभकारी पिरणाम होग (अितथ
सुकत दककतनं कममानं फलं िवपाको) ।
आप दखंग िक इस तथय पर अिधक बल िदया गया ह िक अिधकाश पिरणाम इसी अिसततव
म नही अिपतु भिवषय क जनमो म होत ह । यिद इसका िवपरीत सतय होता, तो पतयक वयिकत
को यह सपष हो जाता िक कुशल एवं अकुशल कमो क पिरणामसवरप पािरतोिषक तथा दख
अपिरहायर ह ।
पाचवी तथा छठी समयक दृिष ह िक अपनी माता अौर अपन िपता क पित िकय गय अचछ
एवं बुर वयवहारो क अचछ और बुर पिरणाम भावी अिसततवो म होग । हम दख सकत ह िक
अपन माता - िपता क िलए हमारा कतरवय इतना महतवपूणर ह िक इस अलग स दो िबनदआं म
बताया गया ह (अितथ माता, अितथ िपता) ।
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सपतम िदवस, सायं पवचन
सातवा िबद वह समयक दृिष ह िक, वासतव म अदृशय योिन म जनम लन वाल भी पाणी
होत ह, जो मनुषय की आंखो को िदखाई नही दत । अदृशय योिनयो म जनम लन वाल अोपपाितक
पाणी व ह िजनका िकसी मा क गभाशय म गभाधान नही होता । अपन पूवर कमो की शिकत क
कारण, व शरीर क पूर िवकिसत अंगो क साथ पैदा होत ह, जो और अिधक िवकिसत नही होग,
अिपतु वैस ही रहग । अदृशय जनम क पाणी, मनुषयो एवं पशुआं की योिनयो क अितिरकत सभी
लोको म होत ह ।
यहा तक िक, जब मनुषय उन पािणयो क िनकट होत ह, तब भी उनकी मानवीय आँखं उनहँ
नही दख पाती (अितथ सता ओपपितका) । जब व अपना रप पकट करत ह, कवल तभी व
मनुषयो को िदखाई पडत ह ।
आठवा तथा नौवा िबद वह समयक दृिष ह िक यह लोक मानव लोक ह (अितथ अयं लोको),
अनय लोको म चार िनमन लोक, दव लोक, एवं बहलोक सिममिलत ह (अितथ परो लोको), तथा
सभी िदशाआं म अनंत संखया म बहाणड ह ।
अंत म, हम समयक दृिष क दसव िबद पर अात ह । वह यह ह िक, सवरज बुद, िभकखु, एवं
बाहण (बुद दारा इस शबद का पयोग 'एक सदाचारी वयिकत' क अथर म िकया गया था) वासतव
म इस मानव लोक म होत ह, जो सचच धमम की साधना करत ह तथा मन की शाित पात ह, एवं
जो अपनी सवयं की अंतदृरिष क माधयम स इस लोक तथा अनय लोको को जात तथा िसद कर
दसरो को इसका जान पदान करत ह (अितथ लोक समन-बाहणा समगगता सममापितपनना य ईमं
च लोकं परं च लोकं सयं आिभञञा सिचचकतवा पवदिनत) ।
चार अायर सतयो की समयक दृिष, दख क सतय, दख क मूल क सतय, दख क िवनाश क सतय,
तथा दख की समािपत क िलए अगणी मागर क सतय की छदक अंतदृरिष ह । इनह हम पूवरवती
पवचनो म बता चुक ह ।
समयक संकलप
अषािगक अायर मागर का अंितम चरण समयक संकलप (पािल म, सममा संकपपो) ह । हम इस तीन
भागो म िवभािजत कर सकत ह :- (१) िनषकाम संकलप (पािल म, नकखाम संकपपो) अथात
लोभ एवं कामुक इचछाआं स मुकत िवचार तथा पुनजरनम क दौर स मुिकत का लकय, (२)
अवयापाद संकलप (पािल म, अबयापाद संकपपो) अथात सभी जीिवत पािणयो क कलयाण का
िवचार, तथा (३) अिविहसा संकपप अथात सभी जीिवत पािणयो क पित अिहसा का िवचार ।
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सपतम िदवस, सायं पवचन
अत: इसम उतेजक कामुक इचछाआं का तयाग, तथा मता, दया, करणा, मुिदता एवं धैयर का
िवकास सिममिलत ह ।
पतीतय समुतपाद
अाइय अब दखत ह िक कमर क साथ साथ कायर -कारण पभाव कैस काम करत ह । इस िसदानत
को पतीतय समुतपाद (पािल म, पटीचच समुपपाद) क नाम स जाना जाता ह । यह बुद की
अाधारभूत िशकाआं म स एक ह । बुद न आदरणीय आनंद स कहा, 'अानंद, पतीतय समुतपाद
वासतव म गहरा ह, तथा गहरा पतीत भी होता ह । इस न समझन क कारण, इसका ममरज न हो
पान क कारण, य पाणी धाग स बनी गंद की तरह या मूंज घास की तरह उलझ गय ह, तथा
दखमय अिसततव स या पुनजरनम (संसार) क चक स बाहर िनकलन म असमथर ह ।'४
यही वह िसदानत ह िजसका अादरणीय अससजी न उललख िकया था, जब उपितसस, िजनह
बाद म सािरपुत क नाम स जाना गया, न उनस अपन गुर क िसदात की वयाखया करन क िलए
कहा था । जैसा िक हमन दखा ह, इस िसदात का उललख करन वाली दो पंिकतया ही, सािरपुत
को जागृित क पहल चरण क फलपद को पापत करान क िलय पयापत थी :-
तथागत न सभी धमो क कारणो की तथा उनक िनरोध की वयाखया कर दी ह, यही महाशमण का
िसदात ह ।
यह कोई ऐसा िसदात नही ह जो बुद दारा आिवषकृत हो, या बडी चतुराई स रिचत कोई
दाशरिनक पणाली हो, िजस संशोिधत िकया जा सक । यह िकसी दैवी शिकत का आिवषकार नही
ह । पतीतय समुतपाद सभी तथयो या धमो अथात संिखत अवसथाआं की उतपित एवं उनकी
समािपत का परम सतय ह । ऐसा होता ही रहता ह, चाह कोई बुद हो या न हो ।
इमिसम सित इदं होित, इमससुपपदा इदं उपजजित, इमिसम असित इदं नो होित, इमससा िनरोधो
इदं िनरजझित ।
इसक होन स यह होता ह; इस क उतपनन होन स यह उतपनन होता ह; इसक न होन स यह नही
होता; इस की समािपत क साथ, यह समापत हो जाता ह ।५
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सपतम िदवस, सायं पवचन
पतीतय समुतपाद का यह परम सतय बुद दारा उनकी जागृित क माधयम स अािवषकृत हअा
था । अपनी जागृित क पशात व गया म बोिध वृक क अाधार पर, मुिकत क परम आनंद का
अनुभव करत हय बैठे रह ।६ जब सात िदन समापत हो गय, तो व अपन गहर धयान स बाहर
िनकल, तथा राित क पहल पहर म उनहोन पतीतय समुतपाद क उतपनन होन वाल पहलू (अनुलोम)
पर िवचार िकया, 'इसक होन स यह होता ह, इसक उतपनन होन स यह उतपनन होता ह ।"
मधय पहर म उनहोन पतीतय समुतपाद पर समािपत क दृिषकोण (पितलोम) स िवचार
िकया:- 'इसक न होन स यह नही होता । इस की समािपत क साथ, यह समापत हो जाता ह ।'
तथा राित क अंितम पहर म, बुद न पतीतय समुतपाद क दोनो, उतपनन होन वाल एवं समापत
होन वाल, पहलुआं को पिरलिकत िकया :- 'यह दख का मूल ह, दख का समुदय ह । यह दख का
अंत ह ।'
पतीतय समुतपाद क गयारह चरण इस पकार ह :-
वतरमान अिसततव म नैितक एवं अनैितक कमो पर िनभरर कर, पुनजरनम की पिकया उतपनन होती ह
।८
पुनजरनम की पिकया पर िनभरर कर, बुढापा, मृतयु, द:ख, िवलाप, पीडा, शोक, तथा हताशा
उतपनन होती ह ।
9
सपतम िदवस, सायं पवचन
10
सपतम िदवस, सायं पवचन
िकनतु, कया यह सब समापत िकया जा सकता ह? इस शृंखला म यिद कोई भी एक कडी टूट
जाय, तो सारी पिकया बंद हो जाएगी । और हम कवल वही करन म सकम होन क िलए यहा
काम कर रह ह । इस शृंखला म एक कडी ऐसी ह जो िवशष रप स गृहसथ जनो क काम करन क
िलए उपयुकत ह, वह ह वदना तथा वदना क पित पितकृया स उतपनन तृषणा क बीच की कडी ।
जब हम अपनी आँखं बंद कर बैठत ह तथा वदनाआं का अनुभव करत ह, तो यह पूरी
पिकया पित कण असंखय बार होती ह । पतयक वदना, अतीत म अिवदा क कारण िकय गय कमर
का पिरणाम ह । यिद हम अिनतयता अथात वदनाआं म पिरवतरनशीलता, क बोध म तललीन हो
सक, तो हम सवत: ऐसा संतुिलत दृिषकोण या समभाव िवकिसत कर सकग, जो हम एक िदन
उस कडी को काटन म सकम करगा, जो कडी हम अगल चरण की अोर ल जाती ह । सामानयत:
जो लालसा हम उदय होन दत ह, उस काटन की िदशा म हम काम करग । जब तक हम मुिकत न
पापत कर ल, तब तक हम इस कडी को तोडन म समथर नही हो सकत, तथा इसक िलय पचुर
तैयारी करनी पडती ह ।
पतीतय समुतपाद (पटीचच समुपपाद) क िवषय म अौर भी बहत कुछ कहा जा सकता ह,
िकनतु म सोचता हं िक इतना ही अापको यह एहसास करान म सहायक होगा िक अपनी साधना
अाप कयो इस पकार स कर रह ह, तथा अापकी साधना का महतव कया ह । यिद अाप वदनाआं
क सवभाव, अथात नशरता या अिनतयता का बोध कर सकत ह, तो आप दख की उतपित का सतय
समझ जाएंग; आप की वदना क पित लालसा छूट जायगी तथा अाप दख िनरोध का सतय साकार
करग । अिवदा समापत हो जायगी तथा पतीतय समुतपाद की पूरी पिकया का अनत हो जाएगा ।
पतीतय समुतपाद का अनुलोमत: अथात उदय क अनुसार िवचार करन क पशात बुद क मुख स
उदान क य वचन िनकल९ :-
जब तपसवी, धयानी बाहण क समक धमर पकट हो जात ह, तो उसकी सारी शंकायं िमट जाती ह,
कयोिक वह हतु सिहत धमर को पजापूवरक जान लता ह ।
पतीतय समुतपाद का पितलोमत: अथात िनरोध क अनुसार िवचार करन क पशात बुद क मुख स
11
सपतम िदवस, सायं पवचन
जब तपसवी, धयानी बाहण क समक धमर पकट हो जात ह, तो उसकी सारी शंकायं िमट जाती ह,
कयोिक वह पतयया क कय को जान लता ह, अथात उस यह बोध हो जाता ह िक कैस कारणो का
अंत होता ह ।
पतीतय समुतपाद का अनुलोमत: एवं पितलोमत: दोनो रप म िवचार करन क पशात बुद क मुख
स उदान क य वचन िनकल :-
जब तपसवी, धयानी बाहण क समक धमर पकट हो जात ह, तो उसकी सारी शंकायं िमट जाती ह,
अौर िजस पकार (अंधकार को िवदीणर कर) सूयर अाकाश को पकािशत करता ह, उसी पकार वह
मार सैिनको को िछनन िभनन कर डालता ह ।
(इस) घर को बनान वाल की खोज म (म) िबना रक अनक जनमो तक (भव-) संसरण करता
रहा, िकनतु बार बार द:ख(-मय) जनम ही हाथ लग ।
12
सपतम िदवस, सायं पवचन
अो घर बनान वाल! (अब) तू दख िलया गया ह, (अब) िफर (तू) (नया) घर नही बना सकता ।
तरी सारी किडया टूट गयी ह तथा घर का िशखर भी िवशृंखिलत हो गया ह । िचत पूरी तरह
संसकाररिहत हो गया ह अौर तृषणाआं का कय (िनवाण) पापत हो गया ह ।
संदभर सूची
[1]Buddhist Legends, III 278f.
[2]Buddhist Legends, II 22f. and Dhammapada Commentary, I 140f.
[3]The Manuals of Buddhism, pp. 221-236.
[4]Dialogues of the Buddha, II 50.
[5]This statement occurs in several discourses; for example: Middle Length Sayings,
II 32, III 107; Kindred Sayings, II 23, 66, etc.
[6]Verses of Uplift, pp. 1-3.
[7]According to the Abhidhammatthasangaha, bhava as the result of clinging means
upapatti-bhava (existence through the rebirth process). See Ven. Narada’s translation, A
Manual of Abhidhamma, pp. 358, 364 (revised translation by Bhikkhu Bodhi, A
Comprehensive Manual of Abhidhamma, pp. 298, 301). This includes existence in the
eleven realms of sense desire (kama-bhava), existence in the sixteen fine-material
realms (rupa-bhava), and existence in the four non-material realms (arupa-bhava). See
Ten Suttas from Digha Nikaya, p. 161, note 1.
[8]According to the Abhidhammatthasangaha, bhava as the condition for rebirth
means kamma-bhava (the existence of [volitional] actions)—volitional actions done
in the present leading to future rebirth and the mental phenomena associated with
such actions. See the references in the preceding footnote.
[9]The next three stanzas are from The Book of the Discipline, IV 2f., and Verses of
Uplift, pp. 2f. (more recent translation by Peter Masefield: The Udana, pp. 1–3).
13
अषम िदवस,पात: पवचन
मनुषय सवयं अपना सवामी होता ह, भला दसरा कौन उसका सवामी हो सकता ह? अपन
अापको भली भाित वश म करक (पजा दारा ही) यह दलरभ (सथाियतव) पापत होता ह ।
1
अषम िदवस,पात: पवचन
पुत को जनम िदया ह । उनहोन उस िशशु को गोद ल िलया तथा उस कुमार काशयप नाम िदया ।
बाद म, एक िदन ऐसा अाया िक कुमार काशयप क सखा उनका उपहास करन लग िक उनक कोई
माता िपता नही थ । उनहोन राजा स पूछा िक ईसका अथर कया ह । उनकी माँ कौन ह? राजा न
अपनी बिटयो की ओर िजनहोन कुमार का पालन पोषण िकया था, ईशारा िकया, और कहा, 'य
तुमहारी मायं ह ।' िकनतु बालक जानता था िक उसकी कवल एक ही मा होनी चािहए । अंत म,
राजा न उनह पूरी कहानी सुनाई । जैस ही उनह सतय का पता चला, उनकी ईचछा संसार स
संनयास लकर एक िभकखु बनन की हई ।
कुमार काशयप न पवजया ली तथा उनह एक धयान क िलय िवषय िदया गया, एवं अंत म व
उस लकय तक पहँच गय, िजसक िलय व एक लाख कलपो स काम कर रह थ ।
िकनतु उनकी माँ म अपन पुत क पित ईतनी अिधक अनुरिकत थी िक व बारह वषो तक
रोती िवलखती रही । जब व अहरत हो गय तो एक िदन, िकसी गली म उनह दखा । व उनक पास
िवलाप करती हई दौड कर गईं, 'मर बट! मर बट!' व उनक पैरो पर िगर पडी तथा उनक सतन
स दध पवािहत होन लगा । कुमार काशयप न सोचा, 'यिद म ईनस पेम स बोलता हं, तो उसस
ईनकी हािन होगी । अत: मुझे ईनस बडी दृढता स बात करनी होगी ।' अत: व उनस बोल, 'आप
कया कर रही ह? कया अाप मानवीय सेह की भावुकता स छुटकारा नही पा सकती?' ईसस उनह
वह झटका लगा िजसकी उनह अावशयकता थी, तथा उनहोन सोचा, 'ईसक कारण म बारह वषो
तक अपन आँसुआं को रोक न सकी । िकनतु ईसन मर पित अपना हदय कठोर कर िलया ह । मरा
अब ईसस कया लना दना?' तथा अपन पुत क पित अासिकत समापत करन क माधयम स, व आग
पयास कर सकी एवं अहरतव पापत करन म सकम हईं ।
कुछ समय बाद, िभकखु ईस घटना की चचा कर रह थ । उनहोन कहा, 'दवदत क कारण
कुमार काशयप का, िजनहोन जागृित पापत करन की सभी तैयारी कर ली थी, िवनाश होन वाला
था । तथा उनकी माँ क साथ भी वही होन वाला था । िकनतु तथागत न उनको अपनी शरण दी ।
िवश क िलए बुदो की करणा िकतनी महान ह!' बुद न िभकखुआं को सपष िकया िक यह पहली
बार नही था जब कुमार- काशयप तथा उनकी माँ को उनहोँन अपनी शरण म िलया था । अपन
पुत क पित अपन सेह को िनकाल फेकन क िलय, तथा सवयं को सवयं की शरण म सथािपत करन
क िलए, उनहोँन उसकी पशंसा करत हए वह गाथा कही, िजसस हमन यह पवचन पारंभ िकया
ह:-
2
अषम िदवस,पात: पवचन
मनुषय सवयं अपना सवामी होता ह, भला दसरा कौन उसका सवामी हो सकता ह? अपन अापको
भली भाित वश म करक (पजा दारा ही) यह दलरभ (सथाियतव) पापत होता ह ।
3
अषम िदवस,पात: पवचन
को पापत करना िजसम शारीिरक तथा मानिसक पयास की अिधक अावशयकता नही पडती ।
जब बुद न जागृित क सात कारको को बताना समापत िकया तो महा काशयप बोल, 'सच म
पभु, य ही जागृित क कारक ह!' आनिनदत होत हए, उनहोन बुद क वचनो का सवागत िकया,
तथा व अपन रोग स बाहर िनकल । उनकी बीमारी उसी कण िवलुपत हो गई ।
िनरथरक पदो स युकत सहसो गाथाअो की अपका (वह) एक (अकला साथरक) गाथापद शेयषकर
होता ह, िजस सुनकर (कोई वयिकत) शात हो जाता ह ।
बुद दारा पिशकण क समय बािहय दारचीिरय कम स कम समय म जागृत होन वाल
वयिकत थ । एक लाख कलप पूवर व उस समय िवदमान थ जब पदुतर बुद न तातकािलक बोध म
अगणी िभकखु को ईंिगत िकया था । बािहय दारचीिरय न एक िदन वही पद पापत करन क िलय
अपनी अिभलाषा वयकत की तथा पदुतर बुद न िनिशत भिवषयवाणी की िक एक लाख कलप क
बाद गौतम बुद क समय वह यह पद अवशय पापत करग ।
गौतम बुद क पूवर अंितम बुद, काशयप बुद क पिशकण क समय बािहय दारचीिरय कुमार
काशयप स जुडे थ । काशयप बुद की िशका का हास होना पारंभ हो गया था, तथा व दोनो सात
िभकखुआं क समूह म थ िजनहोन अिधकतम पयास करन का िनणरय िलया । व एक पवरत पर चढ
गए जो ईतना ऊंचा तथा सीधे खडा था िक उसक शीषर पर पहंचन क िलय उनह सीढी का पयोग
करना पडा । जब व शीषर पर पहंच गय तो उनहोन सीढी नीच फेक दी, िजसस व अहरतव पापत
करन क पहल, िशखर न छोड सक । उनक अगुअा पूरी तरह जागृत हो गय, तथा दसर िभकखु न
जागृित का तीसरा चरण पापत िकया । िकनतु अनय पाच िभकखुआं का पवरत पर ही सात िदन क
बाद धयानमग मुदा म िनधन हो गया । उन सभी पाँच का पुनजरनम, गौतम बुद क समय हअा
तथा उनम स एक कुमार काशयप एवं एक बािहय दारचीिरय थ । अनय तीन थ दबब मललपुत ,
सिभय तथा पुककुसाथी, िजनकी कहानी हम आपको पहल ही बता चुक ह ।
बािहय दारचीिरय एक वयापारी पिरवार म उतपनन हए थ तथा उनहोन िसधु नदी स सात
बार वयापािरक याता की थी । आठवी याता पर, सुवणरभूिम क िलए जात समय उनकी जहाज
4
अषम िदवस,पात: पवचन
तब, जो िभकखु पूवर जनम म पवरत पर जागृित क तीसर चरण को पापत कर चुक थ, उनका
पुनजरनम उचच लोक म हअा था, तथा उनह जात हो गया िक उनक पूवर िमत बािहय भिमत होकर
भटक रह ह । उनहोन उनह सीधे मागर पर लान का िनणरय िलया, तथा एक रात व उनह िदखाई
पडे । उनहोन बािहय स कहा िक उनहोन अभी जागृित नही पापत की ह, तथा अभी तो व उस
मागर पर भी नही ह, जो जागृित की अोर ल जाता ह । उनहोन बािहय को बताया िक ईस िवश म
एक बुद िवदमान ह । ईस समाचार स िक एक बुद ह, बािहय ईतन उतेिजत हए िक उनहोन
ततकाल पसथान कर िदया, यदिप अभी अधर राित ही थी । व अित पात: शावसती पहंच । जब व
िवहार म गय तो लोगो न उनको बताया िक बुद तो िभकाटन क िलय िनकल पडे ह तथा अब
उनह िवशाम कर बुद क लौटन की पतीका करनी चािहए ।
िकनतु, बािहय पतीका नही कर सक । व नगर की गिलयो म बुद की तलाश म िनकल पडे ।
अंततः उनह बुद िमल गय तो व उनक चरणो पर िगर पडे तथा बुद क टखनो को पकड िलया ।
उनहोन बुद स िशका क िलय अनुरोध िकया । िकनतु बुद को लगा िक बुद को पाकर बािहय
दारचीिरय ईतन गदद हो गय थ िक बुद की िशकाआं को समझन तथा पालन करन म सकम
होन क िलय उनक िचत म पयापत शाित नही थी । पिशकण क िलय बािहय का अनुरोध बुद न
दो बार असवीकार कर िदया, िजसस बािहय को शात होन क िलए समय िमल सक । िफर,
तीसरी बार, बािहय न बुद स कहा िक जीवन अिनिशत ह तथा वह जलद ही मर सकता ह । बुद
न दखा िक वासतव म बािहय उसी पात: मर जायगा, अत: बुद न बािहय को वही उसी समय
यह कह कर िशका दी, 'बािहय, तुमहार िलय दृशय म दृशयमात होगा, शवण म शवणमात होगा ।
िवचार म तुमहार िलय मात िवचार होगा । जानन म तुमहार िलय कवल जानना होगा ।'
ईस पकार बुद न समरण िदलाया िक य कवल ईंिदयो क कायर ह, िकनतु ईनक पीछ कोई
अातमा, अहं या सथायी कता नही ह । बािहय को, िजनहोन ईतन लंब समय तक अपन मन को
तैयार िकया था, ततकण, सतय का अनुभव हअा, तथा व सभी लोभ, देष एवं मोह स मुकत अहरतो
म स एक हो गय ।
बािहय न िभकु संघ म पिवष होन क िलय अनुरोध िकया । तथािप, बुद न कहा िक पहल
5
अषम िदवस,पात: पवचन
वह अावशयक चीवर तथा अनय अिनवायर वसतुएँ पापत कर । जब िकसी वयिकत म अपिकत
पारमी होती ह तथा वह िभकु बनन की ईचछा वयकत करता ह, तो बुद कवल 'आओ, िभकखु',
'एिह, िभकखु' कहकर संघ म सवीकार कर सकत ह । िकनतु बुद जानत थ िक यदिप बािहय की
अनय पारिमताएं पूरी तरह िवकिसत हो गई थी, िकनतु उसन िभकुआं को चीवर तथा अनय
आवशयक वसतुएँ दान दकर, उनकी कभी सहायता नही की थी, अत: उसन सवयं क िभकखु बनन
क िलए तैयारी नही की थी । ईसक अितिरकत, िकसी िपछल जनम म वह एक डाकू था िजसन
एक पतयक बुद की हतया कर उनक चीवर को सवयं क उपयोग क िलए ल िलया था । अत: बुद
न बािहय स कहा िक यिद वह एक िभकखु बनन क िलय पवजया लना चाहता ह तो उस चीवर
तथा अनय अपिकत वसतुएँ जुटानी होगी । जब बािहय ईन वसतुअो की तलाश म थ तो व एक
पागल गाय दारा मार गय ।
िभकाटन क पशात जब बुद तथा अनय िभकखु वापस िवहार की अोर लौट रह थ तो िवहार
क िनकट एक कूडे क ढेर पर एक शव िमला । बुद न िभकखुआं स कहा िक उस शव का दाह
संसकार कर उसक अवशषो पर एक सतूप बना दं । उनहोन वही िकया जो उनस कहा गया तथा
ततपशात उनहोन मृत वयिकत क भिवषय की िसथित क िवषय म बुद स पूछा । बुद न उनह बताया
िक व अहरतव पापत चुक थ । िभकखुआं न पूछा, 'िकनतु कब?' 'अाज, जब मन उनह िभकाटन क
समय िशका दी ।' ईस बात स आशयरचिकत होकर िक ईतन कम समय म भी कोई अहरतव पापत
कर सकता ह, उनहोन पूछा,'परनतु वह तो अतयंत ही अलप पवचन था, था न?' तब बुद न उसका
उतर उस गाथा क साथ िदया िजस हमन ईस कथा क पारंभ म उदृत िकया ह :-
िनरथरक पदो स युकत सहसो गाथाअो की अपका (वह) एक (अकला साथरक) गाथापद शेयषकर
होता ह, िजस सुनकर (कोई वयिकत) शात हो जाता ह ।
6
अषम िदवस,पात: पवचन
महासीव की कथा४
बुद क जीवनकाल म अहरतव पापत करन क िलए सबस लंबा समय लन वाल वयिकत महािशव
(पािल म, महासीव) थ । व एक अतयंत िवदान िभकखु थ जो िभकखुआं की समसयाआं का सही
समाधान करन म तथा िभकखुआं क पशनो का उतर दन म पिसद थ । महासीव न सहसो
िभकखुआं को पिशिकत िकया तथा उनक िशषयो म स तीस हजार न अहरतव पापत िकया था ।
िशषय न पारलौिकक शिकतया िवकिसत की थी, अत: व वायुमागर स अपन अाचायर क पास
पहंचन म सकम थ । व वहा नीच उतर जहा महासीव अपन िदन क कक म थ । व महासीव क
िनकट अाय, उनका अिभननदन िकया, तथा एक अोर बैठ गए । महासीव न पयार स उनका
सवागत िकया । िशषय न सममानपूवरक अपन अाचायर को संबोिधत िकया, 'भनत, म आप स कुछ
सीखन आया हं ।' िकनतु महासीव न कहा, 'म तुमह साकातकार नही द सकूंगा । मर सभी समय
का अावंटन हो गया ह ।' अत: िशषय न महासीव क काकरम क िवषय म पूछना पारंभ िकया,
िजसस िक वह कही िकसी खाली समय का पता लगा सक । 'वह समय कैसा रहगा जब अाप खडे
होकर िवचार कर रह हो िक अापको िभका क िलय कहा जाना ह?' उनक उतर था, 'वह समय
तो पहल स ही िदया जा चुका ह ।' िशषय न पूछना जारी रखा, 'वह समय कैसा रहगा जब अाप
िभका क िलए मागर पर हो?" उतर आया 'पहल स ही आवंिटत ।' 'वह समय कैसा रहगा जब
आप अपना चीवर पहन रह हो, या नगर स वापस अा रह हो, या अपना भोजन कर रह हो, या
भोजन क बाद सफाई कर रह हो?' िकनतु सब क सब य समय उन छातो को पहल स ही आवंिटत
िकय जा चुक थ, जो अाचायर स िशका संबंधी िबनदआं पर सपषीकरण चाहत थ ।
7
अषम िदवस,पात: पवचन
जब व अपन दात साफ कर रह हो, कैसा रहगा? संभव नही । जब व अपना मुख मणडल धो रह
हो? पतयक बार उतर था, 'नही' ।
तब िशषय न कहा, 'यिद अाप ईतन वयसत ह, तो कया अापको अपनी आंितम शास लन क
िलए भी समय िमल पायगा? आप तो एक कुसी की पीठ क समान ह, जो दसरो को सहारा तो
दती ह, िकनतु सवयं को नही । कया आप िनिशत रप स कह सकत ह िक आप का िनमन लोको म
पुनजरनम नही होगा? वासतव म, मरी सवयं की कोई समसया नही ह िजस म अापक सममुख पसतुत
करं; म तो बस आपको एक समरण िदलान आया था ।' तथा तब व िशषय एक उचच मनोिसथित
म, अथात समािध म, पवश कर वायु क माधयम स उड गय ।
महासीव को लगा िक उनक िशषय का कथन सतय ह । बुद न कहा ह िक जो िभकखु शासो
को तो जानता ह तथा उनकी िशका दता ह, िकनतु उनक अभयास स उतपनन आनंद नही पापत
करता, वह एक ऐस गवाल क समान ह जो अनय लोगो क मविशयो की दखभाल तो करता ह,
परनतु पशु क दध का आनंद नही ल पाता । महासीव न अपन मन म सोचा, 'िकनतु, यहा स जान
का यह उिचत समय नही ह । म अपनी आवशयक वसतुएँ ल कर कल पसथान करंगा ।' अत:
उनहोन अपनी आवशयक वसतुएँ एकितत की तथा रात भर िशका दत रह । भोर म, जब उनहोन
एक समूह क अंितम छात को िशका दनी समापत की, तब उसक बाद उनहोन पसथान िकया ।
महासीव न पहल दृढ पयास नही िकया था कयोिक व सोचत थ, 'मन ईन तमाम छातो को
िशिकत िकया ह जो अरहत हो गय ह । मुझे वह पद पापत करन म अिधक समय नही लगगा । म
यह दो-एक िदनो म ही कर लूंगा ।' अत: उनहोन यह सोचत हए िक व अितशीघ ही वापस अा
जाएंग, िकसी को भी सूिचत िकय िबना, जैसा िक व सामानयतया करत, पसथान कर िदया ।
8
अषम िदवस,पात: पवचन
दी । िफर भी, व पगित नही कर पाय थ । अत: उनहोन तंय िकया िक अपन पयास स समय न
गंवान क िलय अब व सान या पंाव पकालन म भी समय वयथर नही करग ।
िकनतु वषर बीतत गय, और महासीव अभी भी अरहत नही हए थ । जब महा पवारणा
समारोह का तीसवा अवसर आया तो अंत म व िबखर पडे और रोन िससकन लग । जब व कुछ
शात हए तो उनहोन िनकट म ही िकसी और को रोत हए सुना । 'कौन रो रहा ह?' उनहोन पूछा ।
उतर आया 'म ईस वन का ईष दव हँ । म आपका अवलोकन करता रहा हं एवं अाप जो करत ह
उसका अनुकरण करता हं, कयोिक म भी जागृित पापत करना चाहता हं । मन सोचा िक अाज
आपन अपनी िवधा पिरवितत करन का िनणरय िलया ह, अत: मुझे भी संभवत: अपनी तकनीक
बदलनी चािहए ।' जब महासीव न यह सुना तो उनका गवर चूर चूर हो गया तथा उनह अतीव
लजजा का अनुभव हअा । सयाजी ऊ बा खी न कहा ह िक महासीव क भीतर अतयिधक अिभमान
था । महासीव न सोचा था 'म िनबबान पापत करंगा । म किठन पिरशम करंगा ।' उनक भीतर
अतयिधक 'अहं' था । व ईतन तनाव म थ िक व समािधसथ नही हो पात थ । सया जी ऊबा खी न
कहा ह "जब पयास अतयिधक हो जाता ह, तब आप गवािनवत होत ह तथा ईस स मन भटकन
लगता ह । साधना करत समय ईसका धयान रखं ।जकड कर मुटी बाधन या दाँत पीसन की कोई
अावशयकता नही ह । आप को उललासपूणर सरलता क साथ आग बढना चािहए । आप को सजग
एवं सतकर होना चािहय, िकनतु तनाव रिहत भी ।'
9
अषम िदवस,पात: पवचन
संदभर सूची
[1]Buddhist Legends, II 356-359.
[2]This term is translated either as referring to the Buddha’s Doctrine or to
phenomena (e.g., states, mental objects). Ledi Sayadaw (The Requisites of
Enlightenment, p. 97; The Manuals of Buddhsim, p. 202) says this refers to mental
factors associated with wisdom. He says, “Just as cotton seeds are milled, carded,
etc., so as to produce cotton wool, the process of repeatedly viewing the five khandas
with the function of vipassana-ñana is called Dhamma-vicaya.” In the translation of
the Majjhima-nikaya (Middle Length Discourse of the Buddha, BPS, 1995), Bhikkhu
Bodhi translates this term by “investigation-of-states.”
३़ धममपद अटकथा, ८़ सहससवगगो २. बािहयदारचीिरयतथरवतथु
४़ अंगुतर अटकथा, १़एकक िनपात, २़ नीवरणपपहान वगगवणणना
10
अषम िदवस, सायं पवचन
मार क दस सैिनक१
कामा त पठमा सना, दितया अरित वुचचित।
कामुक सुख तुमहारी पथम सना ह; असंतोष तुमहारी दसरी कही जाती ह; तुमहारी तीसरी भूख
तथा पयास ह; चौथी लालसा कही जाती ह ।
‘‘पञचमं िथनिमदं त, छटा भीर पवुचचित।
सतमी िविचिकचछा त, मकखो थमभो त अटमो॥ (४३९)
अालसय एवं अकमरणयता तुमहारी पाचवी; छठी भय कही जाती ह; तुमहारी सातवी शंका ह;
पाखंड तथा हठ तुमहारी आठवी ह ।
लाभ, यश, सममान, तथा जो कुछ भी पितषा िमथया रप स पापत की गयी हो, एवं जो भी सवयं
की सतुित अनय की अवमानना, दोनो करता हो;
नमुिच, यही तुमहारी सना ह; कणह की पहार शिकत ह । जो वीर नही ह, वह इस जीत नही
पाता, िकनतु इस पर िवजय पापत करन क बाद अतीव सुख पापत होता ह. …
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अषम िदवस, सायं पवचन
हाथी पर सवार मार तथा उसक चारो अोर वयूह म रिचत सना को दखकर, म युद म अाग
बढूंगा । दवताअो समत समूची दिनया िजस परािजत नही कर सकती, तुमहारी उस सना को,
पतथर स कचच बतरन को तोडन की तरह, िववक स म िवधवंस कर दंगा ।
अपन िवचारो को िनयंितत कर तथा अपनी सित को अचछी तरह सथािपत कर, म अनक
सामाजयो म िवचरण करता हअा िशषयो को पिशिकत करंगा ।
सुत िनपात, (सुत िपटक/खुदक िनकाय/सुत िनपात/महावगग/पधान सुत) गाथा ४३६-४३९, ४४२-४४४
यंगॉन अनतराष्ीय साधना कनद म सयाजी ऊबा खी दारा पिशिकत िशिवरो म उनक िदय गय
पवचनो क अंश इस पकार ह :-
'जब आप िवपससना लत ह, तो मुझे अतयंत सावधान तथा सतकर रहना पडता ह । लोगो को
धमम पदान करन म म पकपात नही करता । धमम िशकण क समय, म भी युद म पवश कर
किठन लडाई लडता हं, तथा जब मुझे लगता ह िक शरीर और मन म सचचा अिनचच जागृत ह,
तभी धयान अचछा होता ह ।
मुझे अापको बार बार यह चतावनी दनी ह िक जब अिनचचा अचछी होती ह तो िवरोधी
शिकतया उतपनन होगी । िकनतु, आप सफल होग ।
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अषम िदवस, सायं पवचन
और तब पूरा िसर ही लुपत हो जाता । व िशकायत करत, 'सया थत जी, हम पता नही िक
हमारा िसर कहा ह!' तो सया थत जी उनस कहत िक यिद उनह िसर का पता नही चलता, तो व
दोनो हाथो स अपन िसर को पकडे । िफर कुछ समय क बाद, व अपन शरीर को महसूस नही कर
पात । पूरा शरीर ही गायब हो जाता था ।
अिनचच बोध अितिविशष ह, तथा िनबबाण का ततव उसी म िनिहत ह । अत: अिनचच स
अवगत हो जाइय । िकनतु तब मार आता ह । मार क दस सैिनक ह । बुद न पधान सुत म उनक
िवषय म बताया ह । हम मार क दस सैिनको क िवषय म पता होना चािहए तथा हम उनस
सतकर रहना होगा । मार क दस सैिनक कौन ह, जो अापकी साधना को रोकत ह?
पथम ह कामुक लालसा । यदिप यहा आप धयान लगान क िलए आत ह, िकनतु िनबबाण क
िलए पयास करना दर िकनार कर दत ह, 'म सया जी ऊबा खी स िमतता करंगा । व सभी
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अषम िदवस, सायं पवचन
पभावशाली वयिकतयो को जानत ह । म उनस कुछ सहायता मागूंगा ।' िवदालयो की िशका
समापत होन पर तथा परीकाअो म सफल होन क पशात यिद अापको कोई अचछी नौकरी िमल
जाय तो अतयंत उपयोगी होगा । अपन मन म इस उदेशय क साथ यहा आन वाल लोग भी ह ।
उदाहरणसवरप, आप (शदेय महससी सयादा क धयान कनद) थाथना एता म यह सोच कर जात
ह िक यिद अापकी पधानमंती क साथ िमतता हो जाय, तो आप को एक आयात अनुजा पत
(इमपोटर लाइसस) िमल सकगा । इस तरह क लोग भी ह । उनक धयान लगान क पीछ उनकी
पेरणा भौितक लाभ पापत करना ह । भौितक वसतुअो क िलए इस पकार की अाकाका मार पेिरत
करता ह । यिद इस पकार की इचछा रहती ह तो कोई समझ नही उभरगी । मार हमार िलय
िवघन उतपनन करता ह, िजसस हम धमम समझ न सक । अत:, लालसा नही!
"िभकखुअो, मृतयु क पशात िजन लोगो का मनुषय योिन म पुनजरनम होता ह , व इतन कम
ह, जैस मरी उंगली क नख पर रत क कण । जो लोग िनमन लोको म जात ह , व पूरी
पृथवी गह म रत क कणो की तरह असंखय ह । तथा इसका कारण कया ह ? चार अायर
सतयो को न जानना ही इसका कारण ह ।'
अत: यिद आप चार अायर सतय नही समझत, तो आप िनिशत रप स अिसततव क अधो
लोको म जान वाल ह । म अाप को धमम की िशका इसिलय द रहा हँ , िजसस िक आप चार
अायर सतय समझे ।
“सया जी ऊबा खी, म उनह नही समझना चाहता ।' 'हम शनै: शनै: अगसर होना चाहत ह,
तथा यिद हम चार अायर सतय नही समझत, तो कोई बात नही ।' यिद अापकी यही मनोवृित ह,
तो म आपकी सहायता क िलए कुछ भी नही कर सकता । म तो दाता हँ । मर िलय धमम दना
आसान नही ह । जैसा िक मन कहा ह, जब म अापको पिशिकत करता हं तो उसी समय मुझे
मार स संघषर करना पडता ह । संभवत:, समय समय पर मार मुझ पर कोिधत हो जाता हो,
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अषम िदवस, सायं पवचन
उसक भीतर की शिकत क छोडन क ठीक पहल वह वहाँ बैठी थी, तथा को शे बॉन की
पतनी यहा । व एक दसर क सामन वाल कको म बैठ कर धयान लगाती थी । को शे बॉन की
पतनी अमादॉ एक शिकतशाली जाद मणडली की सदसय थी । म एकखा नाम का एक असुर उस
पर चढता था, कभी कभी दो स तीन घंट तक । अमादॉ स संबंिधत समाज काफी बडा ह । खैर ,
जब इनम स कुछ शिकतयो को दर िकया गया तो उसका अिनचच अचछा हो गया । जब अिनचच
की जागरकता पबल हई तो उसक भीतर की दानवी इस सहन नही कर सकी । जब वह दानवी
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अषम िदवस, सायं पवचन
छोडन ही जा रही थी तो, अचानक उसकी बडी बडी चमकीली आंखं िदखाई दी । ऐसा दसरी
कोिषका म बैठी हलन क साथ हआ । हलन कभी बहत सवसथ नही हअा करती थी । वह दबली
पतली थी और उस खाँसी म खून अाता था । उसक भीतर भी एक शिकत थी । तो, दोनो
शिकतया अापस म िमल गइं तथा हलन को एक उजजवल पकाश पुञज िदखाई िदया । वह
िचललाई, 'आह ...।' मन उसस कहा 'आओ, आओ, म तुमहार भीतर की शिकत को भागन क िलय
मजबूर कर दंगा ।' तथा वह शिकत दर चली गई । उसक बाद स उस अब कोई अौषिध नही लनी
पडती । उसन मरी दवा क िलय मुझे एक पैसा भी नही िदया, िकनतु अब वह यहा स छोड कर
जाना नही चाहती थी । शिकतयो की ऐसी ही पकृित होती ह ।
उसक भीतर की शिकत इस एकानत सथान म नही रहना चाहती थी; वह भीतर स पकट हई
तथा भागना चाही । ऐसी शिकतया लोगो स कहती ह, 'चलो चल, चलो चल, चलो चुपक स
िनकल चल ।' और तब वह वयिकत यहा स जाना चाहता ह ।
छोडना चाहन वालो म, एक लडकी थी िजसका नाम 'यू' था । उसक िपता क भीतर की
शिकत चाहती थी िक वह छोड कर चली जाय, और मन उस जान िदया । एक वही ह िजस मन
वापस घर भजा, कयोिक उसन कहा िक वह अपन िपता क भीतर की शिकत स अलग नही होना
चाहती ।
जो भोजन यहा िमलता ह उसस संतुष न होना अौर भूख स तडपना, मार क तीसर सैिनक
क काम का पिरणाम ह । 'म भूखा हं, मुझे भूख लगी ह ।' तो, कया अाप को भी भूख लगनी
पारंभ हो गई ह? मर पास आन वालो म स एक सा शे तै (सवतंत बमा क पहल राष्पित) थ ।
उनका भोजन स लगाव इतना अिधक था िक व खाद सामिगयो स भरी दवदार की संदक लकर
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अषम िदवस, सायं पवचन
अाय । उनहोन मुझस कहा, 'सयाजी, म (शाम को) िबना खाय नही रह सकता ।' 'ठीक ह, यिद
भूख लग तो खा सकत ह, िकनतु पहल दो या तीन िदनो तक न खान का पयास कर क दिखय ।'
'अौर पात: उठत ही म कुछ पीना चाहता हं ।' मन कहा 'ठीक ह, आप पात: कुछ पी सकत
ह ।' म उनक िलए यह सरल बनाना चाहता था, िकनतु मन उनस कहा िक अाप भूख पर धयान
न दन का पयास कीिजय । अत: इस पकार सातवना दन क बाद उनहोन अपना िशिवर पारंभ
'मयंमा एली' समाचार पत क ऊ ितन, जो कैिबनट मंती तथा संसद क अधयक थ तथा बाद
म िजनहोन इन पदो को खो िदया, व भी यहा अाय थ । इस समय व िनवाचन आयुकत ह, ह न?
खैर, जब व अाय तो उनहोन मुझस कहा, 'तीन िदन तक (८ िशकापदो का पालन करन) क बाद
मुझे चककर आन लगता ह । जीवन भर म उपोसथ िशकापदो का ३ िदनो स अिधक पालन करन
म कभी भी सकम नही रहा हं । कृपया इस छोटी सी बात म मुझको छूट द दीिजय ।' मन कहा,
'इस मामल म म अापको अवशय छूट दंगा ।' और इस क बाद व धयान लगान यहा आय । उनहोन
एक िदन धयान लगाया, िफर दसर िदन । उसक बाद व सवयं ही इसम लीन हो गय । उनह भूख
नही लगी ।
जब वयिकत को धमम पापत हो जाता ह तो उस भूख नही लगती । यिद धमम नही पापत
होता तो उस भूख लगती ह । यह जो भूख हमार भीतर ह उसक कारण हम लगता ह िक हम
भूख ह, िकनतु यिद हम इस भूख पर िनयंतण पा ल तब यह नही रह पायगी । अचानक भूख
उभरती ह, भूख, भूख, और जब साधक धमम का अनुभव करता ह तब कोई भूख नही बचती ।
तथा यहा ऊ ितन जी थ िजनह मन बमी िमषानन, मंग जा गव िदया, िजस आप जानत ह िक
खजूरी गुड स बनाया जाता ह । पित िदन म उनक िलय मंग जा गव खरीदता था । यह उनह पसंद
लगन लगा तथा इस खाकर उनहोन आठ िशकापदो का पालन िकया । जब दस िदन बीत गय, तो
व कुछ गोलमटोल एवं सवसथ हो गय थ । व यहाँ वापस आय तथा उपोसथ िशकापदो का पालन
िकया एवं पुन: उनह भूख नही लगी ।
खैर, इस संबंध म सबस खराब पसंग ऊ ए मॉउंग का ह, जो अब बमा रलव बोडर क िवदुत
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अषम िदवस, सायं पवचन
िवभाग क पबंधक ह । मन ऐस िकसी वयिकत क िवषय म कभी नही सुना ह, िजस सदैव भूख
लगी रहती हो जैस इस वयिकत को । उनहोन मुझे बताया, 'सया जी, मुझे पतयक घंट म एक बार
कुछ न कुछ खाना पडता ह ।' अर, अाप लोगो न कभी ऐसी बात सुनी ह? पतयक घंट म एक बार!
रलव बोडर की गोषी क अंतगरत खाना बहत अचछी बात नही ह, ह न? तथा खान क िलय गोषी
छोड कर जाना बहत अचछी बात नही ह । जब य गोिषया होती थी तो उनह अपन पास एक छोट
स कागज क थैल म खजूरी गुड क टुकडे रखन पडत थ तथा व चुपक स उनह चूसत और धीर स
िनगल जात थ । मानो या न मानो, उनह यह गोिषयो क समय भी करना पडता था । कभी कभी
व िचितत होत थ िक उनह लकवा न लग जाय, कयोिक कायालय म कोई खाद सामगी नही थी ।
अत: उनकी पतनी या कोई नौकर सारा िदन वहाँ बैठ कर सवारत रहता था । व इतन िचितत थ
।
अंत म व यहाँ आय तथा मन उसी पकार उनको सातवना दी, अौर मन कहा, 'चिलय दखत
ह, दिखय अाप कया कर सकत ह, पयास कीिजय ।' अब उनको सदैव भूख नही लगती । तो यह
कैस हअा? व एक िदन धयान लगात रह तथा भूख, जो उनक िलय वषो स एक पकार की
शारीिरक बीमारी थी, चली गयी । कहाँ गयी? यह असाधारण ह । हाँ, इस पकार की बात यहाँ
होती ह । वासतव म हमार भीतर यह मार ह, तथा मार का सैिनक हमार अंदर इन शिकतयो को
पुन: सिकय करता ह ।
मार का चौथा सैिनक भोजन एवं पय पदाथो म िविभनन पकार क सवाद अनुभव करन की
इचछा ह । कुछ समय स मुगी खान को नही िमली ह । मुझे लगता ह, आप मासाहार या थोडा
कबाब खाना चाहग । जैस िक व िवदशी िजनक िलय थाथना एता म भीतर रह पाना किठन हो
गया था । उनह बाहर जाकर अपन िलय तल नूडलस खरीदन पडे ।
ऐसी कुछ इचछायं अपितरोधय हो जाती ह । अत: म चाहता हं िक यहाँ भोजन अचछा बन ।
जब आप को अापका भोजन पसतुत िकया जाता ह तो सयामा यह सुिनिशत करन क िलय इतना
पयास करती ह िक पतयक वयिकत भोजन स संतुष हो । कया आपको अपन भोजन का आनंद
िमलता ह? कया आपको मुगी की कमी खलती ह, जो यहाँ नही दी जाती? तथािप, हम आपको
सवोतम (शाकाहारी) भोजन दन का पयास करत ह ।
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अषम िदवस, सायं पवचन
यिद आप िविभनन पकार क सवािदष वयंजन लत ह, तो कया होता ह? कया िविभनन सवादो
की इचछा नही होगी, या िफर भी होगी? हम जो भोजन लत ह, उस हमारी िजहा क संपकर म
आना पडता ह । कया हम इसक सवाद का आनंद िलय िबना इस खा सकत ह? अरहतो क
अितिरकत कोई भी ऐसा नही कर सकता ।
आप यहा अपनी इचछाअो स पूरी तरह छुटकारा पान क िलए आय ह । अाप अपन दोषो
को तयाग रह ह िजसस िक इचछायं कम हो । आप अशुिदयो स छुटकारा पा रह ह ।
जब आप अपनी आँखं बंद करत ह तो शारीिरक सवरप की इचछा नही उतपनन होती, होती
ह कया? आप धविनयो की इचछा को भी समापत कर सकत ह । यहा कोई अाकाशवाणी या
रिडयो लकर नही अाता िजसम 'म िशन' तथा अनय गायको क गीत बज रह हो । यिद आप चाह
तब भी व यहा नही सुनाई दंग । जहा तक सुगंध की इचछा का पशन ह, यहाँ कोई भी इत तथा
सुगंिधया धारण नही करता, अत: वह इचछा भी िनयंितत ह । शारीिरक सपशर क िलए कोई
अवसर नही ह, अत: वह इचछा भी समापत हो जाती ह । िकनतु , कया आप सवाद स बच सकत ह?
यिद आप भोजन करना ही बंद कर दं, तो कवल तभी आप अपनी िजहा स सवाद क अनुभव स
बच सकत ह । आप डॉकटर बुला कर उनस ग्ूकोज आिद की सूई लगवा सकत ह । अनयथा, अपन
शरीर को ऊजा दन का एक ही उपाय भोजन ह तथा वह ह िजस अापक मुख स होत हए िजहा
क ऊपर स गुजरना पडता ह । यिद हम भोजन की सवािदषता कुछ कम कर दं [िकनतु मासाहार
पसतुत िकय िबना] तो कया तब उसस सवादो की लालसा कम नही होती? यिद म सूअर क मास
क पकाय टुकडे की बात करं तो, अापक भीतर तुरंत इसकी इचछा उतपनन हो जाती ह । िकनतु
हम यहा इस लालसा क, इस दोष क उनमूलन क िलए आए ह तथा आप बस ऐसा ही करन की
पिकया म ह । मुझे यहाँ पर िनयंतण रखना पडता ह, िजसस आप क भीतर यह लालसा पबल न
होन पाय । यिद आप इतनी पूणरता क साथ इन दषणो को दर करन का पयास करत ह िक
उनका पूरी तरह उनमूलन हो जाय तो शष पतयक बात स अाप को मुख मोडना पडेगा । मार
आपकी अानतिरक गहराई म भोजन की तृषणा उतपनन कर रहा ह ।
हम यहाँ सायंकाल का भोजन नही पदान करत, इसस बहत सुिवधा होती ह । आप दख
सकत ह िक व िकस पकार पितिदन पात: भोजन पकात ह तथा रसोइयो को राहत का अनुभव
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अषम िदवस, सायं पवचन
होता ह िक उनह सायंकालीन भोजन नही बनाना ह । अापक िलय भी यह शेयषकर ह, कयोिक
यिद आप रात म भोजन करत ह, तो आप िनिशत रप स िनदालु हो जाएंग । कया आप (दोपहर
क बाद) खाय िबना संतुष नही हो सकत? िन:सनदह हो सकत ह । यिद आप िदन म दो बार
भोजन करत ह, तो शरीर उस स संतुष हो जाएगा ।
जब मन धयान लगाना पारंभ िकया था, तो मर साथ एक वृद वयिकत आया करत थ ।
उनका नाम सया जा था । हर बार जब म वहा जाता था, तो उनह अपन साथ ल जाता था । व
एक फेरी वाल वयापारी, बढई थ । उन िदनो म िजस मकान म रहता था वह ठॉमपसन सटीट म
था तथा उसम कुछ मरममत की अावशयकता थी । मन उनस उसम कुछ छोट छोट काम करन क
िलए कहा । व मर घर आय, हमन एक साथ चाय पी तथा अंततः िमतवत बन गय ।
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अषम िदवस, सायं पवचन
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अषम िदवस, सायं पवचन
थोडी दर आराम का अाननद लीिजय । ऐसा कीिजय िक य शिकतया शात हो जाय । आपक मन
क भीतर की धूम और धुंध जब बैठ जाय तो िफर काम म लग जाइय । सोन मत चल जाइय ।
इस िसथित स पूरी तरह िनपटन क यही दो तरीक ह । वासतव म य वयावहािरक तथा अतयंत
महतवपूणर ह । धयान लगान की साधना क साथ यह तंदा सदैव आती ह ।
अचछा, उस िचत म मनुषय लोक क नीच कया ह? नरक, जानवरो का लोक, पेतलोक, एवं
असुरलोक ह । पतयक वयिकत क भीतर अकुसल कमम ह िजनक पिरणामसवरप नरक, पशुयोिन,
पेतयोिन या असुरयोिन म पुनजरनम होगा । यिद अाप अब स अपन आप म इन अकुसल शिकतयो
का अवलोकन करत रह, तो व समापत हो जाएंगी, तथा उसक बाद ही कुसल शिकतया पकट
होगी । अकुसल कमम की जो शिकतया नरक म पुनजरनम की कारण ह, व नरक की अिग क समान
गमर होती ह । यिद जानवरो की योिन म पुनजरनम करान वाली शिकतया पकट होती ह, तो अाप
सुसती, भारीपन और मूखरता का अनुभव करत ह । कमम की जो शिकतया अापको पेत योिन म ल
जाएंगी व अापको भूख भूत की तरह अनुभव कराती ह । आप सोचत होग िक आप क साथ ऐसा
नही होगा, िकनतु ऐसा हो सकता ह । यह मत सोिचय िक ऐसा नही हो सकता ।
मार क छठे सैिनक क कारण आप अकल म नही रहना चाहत, भयभीत एवं अातंिकत अनुभव
करत ह । कुछ लोग तो इस कक म बैठन का भी साहस नही कर पात । उनह वहाँ उस कमर म
सथानानतिरत होना पडता ह । कभी कभी व अपन साथ होन क िलए िकसी साथी की तलाश
करत ह । ऐसी बात होती ह । वयिकत अकारण भयभीत हो जाता ह । यह भावना अंदर स
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अषम िदवस, सायं पवचन
उभरती ह ।
अकल म डरन वालो म एक िफलम अिभनती िविमता ह, िजनहोन 'द पपरल पलन ' चलिचत
बनाया था । व िवडरमयर रोड पर एक िवशाल घर म रहती ह । उनक पित बो सचा ह ।
अपन मकान क िपछल भाग का अिभसंसकार कर उस अौर उतकृष बनान क िलए उनहोन
लगभग एक लाख चैट खचर िकया था । बमा म कोई ऐसा नही ह िजसक पास उनक जैसा
पकालन गृह (बाथरम) हो । व अतयंत अाधुिनक ह । उनका घर तो बहत बडा ह, िकनतु उस
िवशाल भवन म उनह अकल रहन का साहस नही ह । उनक साथ सदैव कोई न कोई होना
चािहय । अंततोगतवा व यहा धयान लगान आयी, िकनतु साथ म अपना नौकर भी ल आयी । यहा
तक िक नौकर को इस कमर म यहा पतीका करन क िलए भी ल अायी । उनहोन कहा, 'सया जी,
मुझे पकाश म धयान लगान की अनुमित दीिजय ।' अत: उनक िलय मुझे कमर को पकािशत
रखना पडा, िकनतु तब िकसी को उनक ठीक पीछ बैठना पडता था । धयान लगात समय कभी
कभी भयभीत हो जाना समझ म आता ह, िकनतु यह अिभनती तो शौचालय जात समय
शौचालय का दार भी अधखुला छोड कर रखती थी । िकसी को दार क िनकट बैठ कर पतीका
करनी पडती थी ।
जब वह यहा धयान लगान क िलए आयी तथा मन उस धमम िदया, तो मुझे उस वहाँ का
वह कमरा दना पडा । जो अिधकािधक सामान वह अपन घर स अपन साथ लायी थी, उसक
िलय उस एक ठेल (टॉली) की अावशयकता पडी थी । वह एक मज और अनक पकार की वसतुएं
तथा एक पिरचािरका भी साथ लायी । दसर िशिवर म कुछ कम वसतुएं ल अायी । िफर वह
तीसरी बार आयी अौर उस छोटी सी कोिषका म रकी । इतना ही नही िक वह छोट स कमर म
रकी, अिपतु उस िकसी पिरचािरका की भी अावशयकता नही पडी । वह उस अंधेरी कोिषका म
अकली रकी थी । बाद म वह पितिदन सायं कनद पर अान लगी । पित माह िबना नागा िकय,
वह दस िदवसीय िशिवर म अायी । उस इस धयान स बहत लाभ हआ । मुझे लगता ह िक अब
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अषम िदवस, सायं पवचन
मार का सातवा सैिनक संदह ह । 'कया मुझे धमम िमल पायगा या नही?' मुझे लगता ह िक
पतयक वयिकत म इस पकार का संशय होता ह । 'कया मुझे इस साधना स कुछ पापत होगा?' वहाँ
पर वह लडकी हँस रही ह । िन:सनदह आपको कुछ पापत होगा । यदिप आपको कुछ पापत हो
जाता ह, िकनतु कुछ समय बाद आप जागृित क मगग एवं फल पदो को भी पापत कर लना चाहत
ह । ऐसा पतीत होता ह, मानो आप को यहा बहत ससत म यह सब िमल सकता ह । आप समूच
बमा म ढूंढ सकत ह; वबू सयादॉ स पूिछय िक इस दश म िकतनो को यह उपलबध हअा ह । जब
आप यहा आत ह, तो आप पारंभ करन क पहल ही उस पापत कर लना चाहत ह । एे ? हा, हा ।
ठीक ह, यिद आप सीधे डॉप करना अथात िनबबाण ही पापत कर लना चाहत ह, तो मुझे लगता
ह िक मुझे आपको ऐस साधना कनदो म भज दना चािहए, जहा बडी सरलता स ऐसा कराया
जाता ह । जाइए अाप वही ।
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अषम िदवस, सायं पवचन
की ।
ऊ ला मॉङग क िपता जमरन थ और ऊ ला मौग बडे बलवान एवं उग थ । िकनतु िफर भी, व
धयान लगात थ तथा उनकी धमम म पगित अचछी थी । कभी कभी जब व धयान लगात अथवा
अपनी कोिषका म लट होत थ तो उनह अपन शरीर स नीली िकरण िनकलती िदखाई दती थी ।
ऊ मौग जी न शाित अौर लगन स काम िकया तथा बडी अचछी समािध िवकिसत की, एवं ऊ सैन
िनयनत न भी अचछा पयास िकया । ऊ ला मौग अचानक और तीवता स िवकिसत हए । इस धमम
कक का अिसततव उस समय तक नही था । वहाँ पर एक छोटी सी पुरानी झोपडी थी । हमन जब
यह जमीन खरीदी थी तब वह वहाँ पहल स ही थी । एक िदन पात: हम वहा बैठ कर वातालाप
कर रह थ जब ऊ ला मॉङग अपनी धयान कोिषका स बाहर िनकल । उनहोन कहा, 'सया जी,
दिखय' तथा उनहोन अपनी लुंगी ऊपर अपनी जाघो तक उठायी । वहा उनकी जाघो स लकर
नीच िपणडिलयो तक बडे बडे सूज हए िपणड थ । अातिरक शिकतया उछल रही थी । उनहोन कहा,
'सयाजी, दिखय! दिखय! य आंतिरक शिकतया िकतनी ऊगता क साथ बाहर आयी ह । दख रह
ह?' उनहोन अनय साधको को बताया, 'आप को भी मरी तरह कडा पिरशम करना होगा!'
इसी कारण म अापको चतावनी द रहा हँ । आप को चारो ओर जाकर धमम क बार म बात
नही करनी चािहए । यिद आप क पशन ह, तो मुझस पूिछय । यिद आप िकसी िवषय पर चचा
करना चाहत ह, तो मर पास आइए । यिद अाप जाकर अपनी उपलिबधयो क िवषय म दसरो स
बात करत ह, तो उसम सदैव गवर, अत: अहंकार समािहत होगा । तो, उस वयिकत न सोचा िक
वह बहत अचछा हो गया था और दसरो को उसकी सहायता की अावशकता थी । अभी तक
वासतिवक अहरत अिधक नही ह ।
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अषम िदवस, सायं पवचन
सहज भाव स कर रहा हं ।' मन उसस कहा, 'यह तो उस खरगोश और कछुए की कहानी की
तरह ह । तुम खरगोश की तरह अपन आप को बहत तीव समझत हो । िकनतु कछुआ धीर धीर
तथा िसथरतापूवरक पकड लगा ।'
म इन लोगो क बार म आपको इसिलय बता रहा हँ िक अाप शिकतयो क सवभाव क िवषय
म समझे । दिखय, ऐसी चीजं होती ह । जब धमम आप म पिरपकव होन लग तब अाप नम बन
कर रह । एक शात और शालीन जीवन जीन क साथ अपनी सवयं की साधना जारी रखं ।
मार का नौवा सैिनक पितषा एवं पिसिद ह । जब कोई अाचायर पिसद हो जाता ह तो उस
उपहार पापत होन लगत ह । मुझको भी काफी सममान तथा उपहार अािद िमलता ह । मुझे इस
बहत सीिमत करना पडा, िजसस मुझम गवर न उतपनन हो । अचछा, बताइए िक यहा हमारी
उपलिबधया तथा जान कया गवर क िवषय नही ह? िकनतु वयिकत को अपन आप पर िनयंतण तथा
गवर का दमन करना चािहय । जब मन पिशकण दना पारंभ िकया था, तो कवल कुछ ही लोग
यहा आय जो मर कायालय स सीधे संबद थ । यह कद कायालय क कमरचािरयो को उनक
अवकाश क समय यहा धयान लगान क िलए िनिमत िकया गया था । इसको पारंभ करन क िलय,
पहल मन पैस क बार म नही सोचा, िकनतु पहल धमम िदया । कायालय क कमरचािरयो म स
िजसन िजसन दस िदनो तक धयान साधना की वह हमार संघ का सदसय बन गया । पवश शुलक
दस िदनो का धयान ह । ऐसा अचछा ह न? पवश पान क िलए आपको एक भी पैसा दन की
अावशयकता नही ह । बस िनयिमत रप स धयान लगायं और अपना धमम सुरिकत रखं । अपन
धमम को पुन: कीण न होन दं । इसी पकार इस कद की सथापना की गई थी । आप पैस मुिदत
नही कर सकत, िकनतु आप धमम का अभयास कर सकत ह । म इसी म िवशास करता हं । अत:
इसी कारण, मर सवयं क पास कोई पैसा नही ह । यहा कोई भी समृद नही ह । अाहा! यह ऊ बा
खी साधना कद कहलाता ह, तब तो ऊ बा खी को अतयंत गिवत वयिकत होना चािहए! खैर, म
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अषम िदवस, सायं पवचन
अाचायर हं, इसका सवामी नही । यिद महालखाकार कायालय का िवपससना संघ मुझे िनषकािसत
कर दता ह, तो मुझे यहा स जाना पडेगा । अब अाप समझ सकत ह िक म इस कद का सवामी
नही हं । वषर म एक बार मुझे इस पद का तयाग करना पडता ह । यिद व मुझे पुन : िनवािचत
करत ह तो म पद संभालता हं । यिद व िकसी अनय को मुझ स शेयषकर पात ह तथा उस
िनवािचत करत ह तो भी मर िलय अचछी बात ह । यिद सिमित म कोई ऐसा ह जो मुझे पसंद
नही करता अौर कहता ह, 'सया जी बहत जयादा बात करत ह, बहत जयादा चीखत ह । हम कोई
और चािहय,' तो मुझे जाना ही होगा । अािखरकार, यह मरा नही ह । तथा मन यह पारंभ म ही
सपष कर िदया था । म अमरीका या िकसी अनय सथान पर भी जा सकता हं तथा वहा धमम की
िशका द सकता हं ।
भौितक लाभ क िलए शुद धमम क साथ अनुिचत धमम का िमशण करना मार का दसवा
सैिनक ह । जब धमम की िशका दन क कारण िकसी अाचायर को उपहारो क माधयम स भौितक
लाभ होता ह, तब इस पकार का खतरा उतपनन होता ह । अनुिचत धमम क माधयम स लाभभोग
होता ह । वह सवयं की पशंसा तथा दसरो क िवषय म िननदा वयकत करत हए वाता करता ह ।
एक िदन एक िवदशी मिहला मर पास आयी तथा उसन दसरो क िवषय म बात करना शुर कर
िदया । मन उस तुरंत चुप कराया । व हमार बार म कुछ भी कह सकत ह, िकनतु हम दसरो क
बार म बात नही करत ।
भंट एवं उपहार िमलना पारंभ होन क पशात कुछ लोग शुद तथा असली धमम की िशका
जारी नही रख पात । अनक िशषय पान क िलय तथा उनह पसनन करन क िलय व िमथया धमम
का उपदश एवं पिशकण पारंभ कर दत ह, िजस बुद न नही िदया था । यह भौितक लाभ क
िलए लोभ क कारण होता ह ।
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अषम िदवस, सायं पवचन
जीिवतं (तथा जीवन) भगवतो (बुद को) पिरचछा जािम (समिपत करता हं)।भंत (शदेय) इमाहं
(यह म) अतभावं (शरीर) जीिवतं (तथा जीवन) अचिरयसस (अाचायर को) पिरचछा जािम
(समिपत करता हं) ।'
आप को सवयं को बुद को समिपत करना पडता ह तथा उसी पकार अपन आप को अाचायर
को सौपना पडता ह । यिद आप ऐसा करत ह, तो अाचायर अापका सवामी हो जाता ह । यिद आप
पूणररप स सवयं को अाचायर को समिपत करत ह तो अाचायर दारा िदया गया संरकण और अिधक
पभावशाली होता ह । ऐस वयिकत को अाचायर कैस संरकण पदान कर सकता ह, जो उनका िशषय
होन क िलए बहत उतसुक न हो ?
संरकण दन का यहा यह अथर नही ह िक अाचायर अापकी रका क िलए अाप को अपनी एक
बडी बाह स घेर लत ह । संरकण उन अायर दवताअो स पापत होता ह िजनकी पारमी मर साथ
मर दृढ संकलप क माधयम स िवकिसत हई ह तथा िवकिसत हो रही ह । य दवता जानत ह िक
कब कौन बमन स साधना कर रहा ह तब व उसकी सहायता नही करत ।
संदभर
[1]This talk is based on informal talks given by Sayagyi U Ba Khin during his ten-day
courses at IMC-Yangon in the early 1960 is. The talks were transcribed from tape and
then translated into English. The original talk was first published in the Vipassana
Newsletter, Vol. 9, no. 4 (Nov. 1992).
[2]Based on K.R. Norman’s translation in The Group of Discourses.
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नवम िदवस, पात: पवचन
िकसी वयिकत को दसर क कलयाण क िलय, चाह वह िकतना भी महतवपूणर कयो न हो, अपन
कलयाण की अनदखी नही करनी चािहय । अपना कलयाण कैस होगा यह समझ कर उसक िलय
उदमशील रहना चािहय ।
अतदतथ की कथा१
यह गाथा बुद दारा िभकखु अतदथर (पािल म, अतदतथ) क संबंध म दी गयी थी िजनक नाम का
अथर 'सवयं की भलाई' या सवयं का कलयाण' ह । अपन जीवन क अंत म बुद न िभकखुअो को
सूिचत िकया िक व तीन महीनो म पिरिनवाण पापत करग । सात सौ िभकखु जो अभी तक पूरी
तरह जागृत नही हो पाय थ, व गंभीर रप स िवचिलत हो गय । व बुद क समीप रक तथा एक
दसर स फुसफुसाए, 'अब हमारा कया होगा?'
िकनतु अतदतथ न अपन मन म सोचा, 'म अभी तक अावगो स मुकत नही हो सका हँ । म
बुद क जीवन काल म ही अहरतव पापत करन क िलय अपनी पूरी शिकत क साथ पयास करंगा ।'
अनय िभकखुअो न दखा िक अतदतथ अब उनक संग नही होत, तो उनस पूछा, 'अाप हमार साथ
होन स कयो कतरात ह, तथा हमस बात चीत नही करत?' और व उनह बुद क पास ल गय तथा
सारी बात उनक सामन रखी । बुद न अतदतथ स पूछा िक व इस पकार का वयवहार कयो कर
रह थ । जब अतदतथ न समझाया तो बुद न उनकी बडी पशंसा की अौर कहा, 'िभकखुअो, जो भी
सचमुच म मुझे पयार करता ह, उस थर अतदतथ की तरह होना चािहए । कवल वही जो उचच
और िनमन धममो का पालन करता ह, वही मरा अादर करता ह, अिपतु वह जो इत एवं हार स
मरा सममान करता ह । आप को थर अतदतथ क उदाहरण का अनुसरण करना चािहए ।'
जब सयाजी ऊ बा खी जीिवत थ तो उनक घिनष िशषय, वषावास क पूवर एवं पशात तथा
1
नवम िदवस, पात: पवचन
अनय महतवपूणर अवसरो पर, जैस उनक जनमिदन पर उनकी वंदना क िलए जाया करत थ । तथा
व अपन साथ उनक िलय िविभनन भंट ल जात थ । सयाजी ऊ बा खी को अतदतथ की कथा
कहना अचछा लगता था तथा व इंिगत करत थ िक िशकण का अभयास करना वंदना करन का
सबस अचछा तरीका था । व कहत थ, 'म कवल अिधषान (पािल म अिधटान) क साथ एक घंट
बैठ कर धयान लगान क संकलप की ही पशंसा करता हं ।' अत: उनक घिनष िशषय एक घंट उनक
साथ बैठ कर धयान लगात, और कवल तभी व अपना आशीवाद दत ।
ितितर जातक२
तथािप, यह कहना उिचत नही ह िक अाचायो एवं बडो क पित समुिचत सममान अनावशयक ह ।
यिद हम सही ढंग स धमम का अभयास कर रह ह, तो हमार मन म सवाभािवक रप स अपन
अाचायो एवं जयषो क पित सममान होगा तथा हम उनकी सलाह का अनुसरण करग । जातक,
अथात बुद क अतीत क जनमो की कथाअो म एक ऐसी कथा ह, जो इस बात को दशाती ह ।
ितितर जातक (सं०३७) क संबंध म बुद दारा दी गई गाथा इस पकार ह:-
[जा॰ १.१.३७]
बुद न यह पवचन अपन सवरपमुख िशषय सािरपुत की अधयकता वाल िभकखु समुदाय को
िदया था । यह उस समय की बात ह जब बुद वैशाली म िनवास क पशात कई चरणो म
शावसती की अोर जा रह थ । तब कोई छह क िवशष अनुयािययो (सबगगी) का एक दल बुद की
अधयकता वाल िभकखु समुदाय क पहंचन क पहल ही वहा पहंच गया । और 'यह हमार
उपाधयाय क िलए, यह हमार अाचायर क िलए, तथा यह हमार िलए होगा' यह कहत हए, उनहोन
आवास तथा शयनासन ल िलया ।
बाद म जब आदरणीय सािरपुत वहा पहंच, तो उनहोन पाया िक सभी आवास एवं
शयनासन पहल ही ल िलय गय थ । चूंिक उनक अनुयायी उनक िलए कोई शयनासन नही पापत
कर सक, उनहोन बुद क आवास क समीप एक वृकमूल पर ही रात िबताई । बुद भोर म ही जग
गय, तथा व बाहर आय अौर खास । आदरणीय सािरपुत न भी खासा । बुद न पूछा, 'कौन ह
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नवम िदवस, पात: पवचन
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नवम िदवस, पात: पवचन
की बात याद ह?' हाथी न उतर िदया, 'जब म एक बछडा था, तो म इस वटवृक क ऊपर स
चला जाता था अौर इसकी शीषरसथ शाखा मर उदर को खरोचती थी ।'
तब तीतर और हाथी न बंदर स पूछा, 'तुमह कया याद ह?' बंदर न उतर िदया, 'जब म एक
बचचा था, तो म भूिम पर बैठ कर इस वटवृक की शीषरसथ टहिनयो को कुतरता था '
अंत म, बंदर और हाथी न तीतर स पूछा, 'तुम को कहा तक याद ह?' तथा तीतर न कहा,
'अमुक सथान पर एक िवशाल वटवृक था । मन उसका एक बीज खाकर उस इसी सथान पर
पिरतयाग िकया था, तथा यह वटवृक उसी बीज स हअा ह । अत: म तुम दोनो स बडा हं ।'
तब बंदर और हाथी न तीतर स कहा, 'अाप हमस बडे ह । हम अाप का अादर, सममान,
तथा अापको नमन करग और आपक परामशर का पालन करग ।' तीतर न बंदर और हाथी को
शील सदाचार क पाच िशकापद िदलवाय एवं उनह सवयं भी िलया । िफर, व एक दसर क पित
िवनमता एवं सममान क साथ रहन लग तथा एक दसर का पूरा खयाल रखन लग । जब उनका
िनधन हअा तो उनका पुनजरनम एक सुखमय गित म अथात सवगर लोक म हअा ।
कथा क अंत म, बुद न कहा िक यह 'तीतर क दैवी जीवन' क रप म जाना जान लगा तथा
उनहोन वह गाथा सुनाई िजसस हमन यह कथा पारंभ की ह:-
‘‘य वुडमपचायिनत, नरा धममसस कोिवदा।
िदटे धमम च पासंसा, समपराय च सुगगती’’ित॥
जातक १़१़३७
व जो अायु का अादर करत ह, सतय म िनपुण होत ह । उनकी इस जीवन म पशंसा होती ह
तथा व भिवषय क िलय आनंद अिजत करत ह ।।
बुद न िनषकषर बताया, 'तो िभकखुअो, य जानवर एक दसर क पित िवनमता, अादर एवं
आपसी सामंजसय क साथ रह सकत ह । उनका अनुसरण करन का पयास करो ।'
इस पकार की कहािनया बौद दशो म पाय: सुनाई जाती ह । उदाहरण सवरप बमा म युवा
इनह िवदालयो म सीखत ह, तथा उन क माधयम स, व सही आचरण सीखत ह ।
इस कथा क समापन क पशात, बुद न तीनो िमतो का पिरचय िदया । बंदर अब सािरपुत
थ, हाथी अब अनय मुखय िशषय मोगगललान थ, तीतर अब सवयं बुद थ ।
बुद दारा दी गयी गाथा म, व समुिचत आचरण का वयिकत क िलए पिरणाम क िवषय म
बतात ह । िकनतु हम यह बताया गया ह िक जब सािरपुत न उनको बताया िक कयो उनहोन
बाहर रात िबतायी तो बुद न सोचा, 'इस समय, जब िक म अभी जीिवत हँ, िभकखुअो म
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नवम िदवस, पात: पवचन
िशषाचार तथा अनुशासन का अभाव ह । मर िनधन क पशात य कया नही करग?' अत: हम दख
सकत ह िक व धमम क िवषय म भी सतकर थ । जब नैितक आचरण का अभाव होता ह, तो यह न
कवल वयिकतयो क िलए हािनकारक होता ह, अिपतु यह धमम िशका क िलए भी हािनकारक
होता ह ।
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नवम िदवस, पात: पवचन
दीघावु की कथा६
एक समय जब बहदत वाराणसी क राजा थ, तो उनहोन कौशल राजय को अिधकृत कर उस
अपन सामाजय म सिममिलत कर िलया तथा कौशल क राजा एवं रानी को मौत क घाट उतार
िदया । िनषपादन सथान की अोर जात समय, कौशल क राजा न भीड म भष बदल अपन पुत
राजकुमार दीघावु को दखा । अपन बट को दखकर राजा न कहा, 'िपय दीघावु, दृिष न तो लंबी
अविध तक अौर न तो थोडी अविध तक डालो, कयोिक कोध की भावना अकोध स दर होती ह ।'
लोगो न सोचा िक व िविकपत हो गय ह, तथा बकवास कर रह ह ।
बाद म, राजकुमार दीघावु राजा बहदत क सवक का पद पापत करन म सफल हो गए ।
एक िदन, वन म अाखट करत समय, राजा अपना मागर भूल गय । उनक साथ मात एक ही
वयिकत अभी भी था, वह था राजकुमार दीघावु । थकान अनुभव करत हए राजा, राजकुमार की
गोद म अपना िसर रखकर आराम स सो गय । राजकुमार न अपन माता िपता की मृतयु का
बदला लना चाहा, तथा दो बार उनहोन मयान स अपनी तलवार खीची । िकनतु पतयक बार अपन
िपता क शबद उनह याद अा गय, और उनहोन अपनी तलवार दर रख दी ।
तब राजा बहदत न सवपन दखा िक कौशलपित क पुत न उनपर तलवार स अाकमण िकया
ह, तथा व भयभीत होकर हडबडा कर जाग उठे । उनहोँन अपन सवक स अपन सवपन क िवषय म
बताया । तब राजकुमार न उनस कहा, 'म ही राजकुमार दीघावु, कौशल क राजा का पुत हँ ।
आप न हमारी अितशय हािन की ह । आप न हमारा राजय अिधकृत कर िलया । तथा मर माता
िपता की हतया कर दी । म अब अापको अपना कोध िदखा सकता हं ।' राजा न कहा, ' िपय
दीघावु, मुझे मर जीवन का अनुदान द दो ।' तथा युवराज न राजा क अनुरोध का पालन िकया ।
बदल म, राजा न उस कित न पहंचान का वचन िदया ।
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नवम िदवस, पात: पवचन
जब व महल म वापस लौट आय, तो राजा न युवराज स उसक िपता क शबदो का अथर सपष
करन क िलए कहा । युवराज दीघावु न कहा, “'लंबी अविध तक दृिष न डालो' का अथर ह शतुता
को लिमबत न करो । 'अलपाविध तक ही दृिष न डालो' का अथर ह जलदबाजी म िकसी िमत स
संबंध न तोड दो । 'कोध की भावना अकोध स दर होती ह' का अथर ह िक मर माता िपता एक
राजा क हाथो मार गए थ, िकनतु यिद म राजा को उसक जीवन स वंिचत कर दं, तो व लोग
िजनह उनका कलयाण वािछत ह, मुझे मर जीवन स वंिचत कर दंग । िकनतु अब जब िक म अाप
को अापका जीवन दता हं, तो अाप बदल म मुझे मरा जीवन अनुदान करत ह । इस पकार कोध
अकोध स शानत होता ह ।"
राजा बहदत इतन पसनन हए िक उनहोन राजकुमार दीघावु को कौशल राजय वापस द
िदया, तथा साथ म अपनी पुती का हाथ भी । कथा का समापन करत हए बुद न कहा, 'यिद
तलवार चलान वाल तथा पभुतव वाल राजाअो म ऐसा धैयर एवं शालीनता ह, तो िभकखुअो,
पकाशमय हो िजसस यह समुिचत रप स पिशिकत शासन तथा अनुशासन भी उतना ही धैयरवान
एवं कोमल हो ।' तथा तीसरी बार बुद न िभकखुअो क गुटो को कहा, 'बहत हो गया िभकखुअो,
अब कोई संघषर, कोई झगडा, कोई तकर, कोई िववाद नही ।' िकनतु िभकखुअो न बुद की बात नही
सुनी । तो बुद न अपन मन म सोचा, 'ऐसा लगता ह िक जैस य मूखर सममोिहत हो गय ह; इनह
मनाना सरल नही ह ।' तथा व वहा स चल गय ।
अगल िदन, बुद न िभकखु समूह को अधोिलिखत गाथाएं सुनाइं७
‘‘पुथुसदो समजनो, न बालो कोिच मञञथ।
सङघिसम िभजजमानिसम, नाञञं िभययो अमञञरं॥
सामानय वयिकतयो क िविभनन मतो को कोई मूखरतापूणर नही समझ रहा ह । जब िक संघ
िवभािजत हो गया ह िफर भी कोई इस िवभािजत नही समझ रहा ह ।
‘‘पिरमुटा पिणडताभासा, वाचागोचरभािणनो।
यािवचछिनत मुखायामं, यन नीता न तं िवद॥
पिणडतो क वचनो क माधयम स भिमत करत हए पाठक, उन शबदो स अपनी जीिवका चला रह
ह । व अपना मुंह खोल कर लालाियत रहत ह अौर यह नही जानत िक व िकधर ल जाय जा रह
ह।
‘‘अककोिचछ मं अविध मं, अिजिन मं अहािस म।
य च तं उपनयहिनत, वरं तसं न सममित॥
7
नवम िदवस, पात: पवचन
'उसन मुझे गाली दी, उसन मुझे मारा, उसन मुझे परासत िकया, उसन मुझे लूट िलया ।' इस
पकार की िशकायत जो वहन करत ह उनका देष शात नही होता ।
‘‘अककोिचछ मं अविध मं, अिजिन मं अहािस म।
य च तं नुपनयहिनत, वरं तसूपसममित॥
'उसन मुझे गाली दी, उसन मुझे मारा, उसन मुझे परासत िकया, उसन मुझे लूट िलया ।' इस
पकार की िशकायत जो वहन नही करत, उनका देष शात होता ह ।
‘‘न िह वरन वरािन, सममनतीध कुदाचनं।
अवरन च सममिनत, एसधममो सननतनो॥
कयोिक इस संसार म घृणा क िवचार, घृणा क माधयम स कभी शात नही होत । अिपतु , उनकी
शाित घृणा स मुिकत क माधयम स होती ह । यही सिदयो पुरानी िशका ह ।
‘‘पर च न िवजानिनत, मयमतथ यमामस।
य च ततथ िवजानिनत, ततो सममिनत मधगा॥
हमारा यहीँ अनत ह, यह जान अनय लोगो को भी नही ह, िकनतु िजनको इसका जान ह, उनक
झगडे इसस समापत हो जात ह ।
‘‘अिटिचछनना पाणहरा, गवाससधनहािरनो।
रटं िवलुमपमानानं, तसिमप होित सङगित॥
‘‘कसमा तुमहाक नो िसया।
व जो दसरो की हिडया तोडत ह, जो जान ल लत ह, जो गाय, घोडे, एवं धन चुरात ह, राजय
लूटत ह, -- व भी एकजुट हो कर रहत ह । कयो, तुम इतना भी नही कर सकत?
‘‘सच लभथ िनपकं सहायं। सिदचरं साधुिवहािर धीरं।
अिभभुयय सबबािन पिरससयािन। चरयय तनतमनो सतीमा॥
यिद एक ऐसा साथी पापत कर सको जो उतसाही हो, अचछ सवभाववाला सहयोगी हो,
कृतसंकलप हो, संकटो पर काबू पान वाला हो, तो उसक साथ पसनन िचत स सितपूवरक िवचरण
करना चािहए ।
‘‘नो च लभथ िनपकं सहायं। सिद चरं साधुिवहािर धीरं।
राजाव रटं िविजतं पहाय। एको चर मातङगरञञेव नागो॥
यिद ऐसा साथी न पापत कर सको जो उतसाही हो, अचछ सवभाववाला सहयोगी हो, कृतसंकलप
हो, तो एक राजा की तरह जो िवजय पापत िकय हए राजय को छोड दता ह, या हाथी क वन म
िकसी हाथी की तरह एकाकी िवचरण करना चािहए ।
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नवम िदवस, पात: पवचन
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नवम िदवस, पात: पवचन
सवयं की सुरका दारा वयिकत दसरो को सुरिकत करता ह । दसरो की सुरका दारा, वयिकत
सवयं को सुरिकत करता ह ।
दो कलाबाजो की कथा१०
बुद न िभकखुअो को अधोिलिखत कथा सुनाई :- एक समय दो कलाबाज थ जो एक वणु सतंभ
अथात बास क खंभ का उपयोग कर अपनी कलाबाजी या अिभनय िदखात थ । एक िदन सवामी
न अपन िशषय मदकथािलक स कहा, 'अब मर कंधो पर होत हए वणु सतंभ पर चढ जाअो ।' जब
िशषय न, उसस जो कहा गया था कर िलया तो सवामी न कहा, 'अब तुम अचछी तरह मरी रका
करो और म तुमहारी रका करंगा । इस पकार एक दसर का धयान रखत हए तथा रका करत हए,
हम अपना कौशल िदखान म तथा अचछा लाभ पापत करन म सकम होग, तथा तुम सुरिकत रप
स वणु सतंभ स नीच उतर जाअोग ।'
िकनतु मदकथािलक न कहा, 'सवामी, ऐस नही । अाप को अपनी रका सवयं करनी चािहए,
तथा म भी अपनी रका सवयं करंगा । अपन आप को सुरिकत रखत हए म आप की रका करंगा ।
इस पकार सव-संरिकत एवं सवसुरिकत होकर हम आतम-रका क माधयम स एक दसर की रका
करग तथा सुरिकत रप स अपन कौशल का पदशरन करग ।'
यह पवचन हमार एवं अनय वयिकतयो या पािणयो क बीच क संबंधो क िवषय म तथा
समाज एवं वयिकत क बीच क संबंधो क िवषय म ह । यह एक सराहनीय तरीक स वयिकतगत एवं
सामािजक तथा अहंभाव एवं परोपकािरता की समसयाअो क िवषय म बौद दृिषकोण का साराश
ह । 'सवयं की सुरका दारा वयिकत दसरो को सुरिकत करता ह । दसरो की सुरका दारा, वयिकत
सवयं को सुरिकत करता ह ।' य दो वाकय जो िशका का साराश पसतुत करत ह व एक दसर क
पूरक ह, और इनह अलग अलग नही दखना चािहए ।
आजकल, सामािजक गितिविधयो पर अिधक जोर िदया जाता ह, अत: लोग अपन िवचारो
क समथरन म कवल दसर वाकयाश को ही उदृत करना चाहत ह :- 'दसरो की सुरका दारा,
वयिकत सवयं को सुरिकत करता ह' । िकनतु, इस पकार का एकतरफा उदरण बुद की िशका को
गलत रप स पसतुत करगा । बुद न सपषरप स िशषय की पदित की पशंशा की ह । यिद कोई
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नवम िदवस, पात: पवचन
दसरो को हािन स बचाना चाहता ह तो उस पहल अपन कदमो पर सावधानी स धयान दना
चािहय ।
'सवयं की सुरका दारा वयिकत दसरो को सुरिकत करता ह ।' इस कथन का सतय एक बहत
ही सरल एवं वयावहािरक सतर पर पारंभ होता ह । भौितक सतर पर यह सपष ह िक हमार
सवासथय की सुरका स हमार पयावरण क सवासथय की सुरका भी बढेगी । अपन सभी कायो एवं
गितिविधयो म सतकरता तथा सावधानी दारा दसरो की हािन स रका होगी, हािन जो हमारी
लापरवाही या असावधानी क कारण हो सकती ह ।
एक अनय सतर पर, नैितक आतम सुरका, हमार अपन अिनयंितत भावावश क िवरद अनय
वयिकतयो एवं समाज की रका करगी । यिद सभी अकुशल कृतयो क तीन मूल - लालच (लोभ),
घृणा (दोष), तथा भम (मोह) हमार हदयो म पनपन लगं, तो जो कुछ इन जडो स उगगा वह
दर दर तक वयापक रप स फैल जाएगा, एवं एक जंगली लता की तरह आस - पास क सवसथ
िवकास को िनगल जायगा ।
दसरी ओर, यिद हम अकुशल कृतयो क इन तीन मूलो स अपनी रका कर, तो हमार साथी
मानव हमारी संपित या शिकत मोह क लोभ, हमारी अिनयंितत वासना, तथा ईषया एवं जलन
स सुरिकत होग; व हमारी घृणा एवं शतुता क तथा हमार कोिधत िवसफोटो क िवनाशकारी तथा
िहसक पिरणामो स एवं आसपास क लोगो क िलए जीवन असहनीय बनान वाल कलहपूणर तथा
बदिमजाजी क वातावरण स सुरिकत होग ।
लोभ एवं देष म संकामक शिकत भी होती ह । यिद हम कवल अिधक पा लन की ही सोचत
ह, तो हम इस पकार की सवतवबोधक पवृित को दसरो म भी जगायंग या सबल करग । हमारा
बुरा उदाहरण हमार पयावरण क िलए तथा हमार बचचो एवं युवा पीढी क िलए मानक बन
सकता ह । अपनी इचछाअो को अिधकािधक रप स संतुष करन म हम भी दसरो को अपन साथ
सिममिलत करन क िलए राजी करन का पयास कर सकत ह । यिद हम कामुक इचछाआं स भर
हए ह, तो हम दसरो म भी काम वासना की आग लगा सकत ह । यिद हम घृणा क साथ कायर
करत ह, तो बदल म, हम दसरो म भी घृणा उतपनन करग । लोभ एवं देष संकामक रोगो की
तरह ह । यिद हम सवयं को यथासंभव पितरिकत बना ल, तो हम अपनो की तथा दसरो की
उतनी ही रका करग ।
जहा तक अकुशल कृतयो क तीसर मूल का पशन ह, हम सब यह जानत ह िक कैस िकसी
एक वयिकत की मूखरता, िवचारशूनयता, भम, अजान तथा िवभम क माधयम स दसरो की अपार
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नवम िदवस, पात: पवचन
कित हो सकती ह ।
बुिद एवं जान क िबना, अपनी अौर दसरो की रका क पयास अिधकाशत: िवफल ही होग ।
संकट सपष होन तक बहत दर हो चुकी होगी । भिवषय क िलए पावधान नही कर सकग । रका
तथा सहायता क िलए सही, एवं पभावी उपाय का पता नही होगा । अत:, िववक और जान क
माधयम स आतमरका सबस महतवपूणर ह ।
इितहास स हम पता चलता ह िक बडे बडे िवनाशकारी पकृित क जन िवभम पाय: िकसी
एक वयिकत या वयिकतयो क एक छोट स समूह दारा पारंभ या पजजविलत होत ह ।
यिद हम अपन भीतर की सामािजक बुराईयो क वासतिवक या संभािवत सोतो को अछूता
छोड दत ह, तो हमारी कोई भी बाह सामािजक गितिविध वयथर या सपषत: अधूरी ही रहगी ।
अत: यिद हम सामािजक दाियतव की भावना स पेिरत ह तो, हम आतम रका क किठन कायर स
नही मुकर सकत, तथा इसका तातपयर ह िक हम नैितक और आधयाितमक आतम िवकास क िलए
काम करना चािहए ।
अब हम अपन उदरण की वयाखया क अगल सतर पर आत ह । यह सुत क इन शबदो म
वयकत िकया ह :- 'तो कैस कोई अपनी रका दारा दसरो की रका करता ह? लगातार अभयास स,
धयान क िवकास स, तथा नैितक आतम सुरका क बार बार अभयास स ।'
जब नैितक आतम सुरका कवल उदेशयो क साथ लंब समय तक संघषर क बाद ही कायररत
होती ह अथवा परसपर िवरोधी आदतो क िवरद पुष होती ह तो, उसकी िवशसनीयता म कमी
होगी । संघषर क पिरणाम कभी कभी हमार अचछ इरादो क िवरद जा सकत ह, या हम उनह
अपन भीतर आदतो की गहरी जडो पर लागू करन म िवफल हो सकत ह । कवल जब यह नैितक
आतम सुरका एक सहज रप स कायािनवत होती ह, तभी यह सवयं को तथा अनय को असली
सुरका पदान करगी । यह सहजता सवगर स एक उपहार सवरप नही िमलती । इस इस जीवन म
या िपछल अिसततव म, बार बार अभयास क दारा अिजत िकया जाया ह । अत: सुत क अनुसार
यह बारंबार का अभयास ह जो आतम सुरका को पबल बनाता ह, तथा पयापत पबलता स दसरो
की रका करन म हम सकम होत ह ।
िकनतु, वयावहािरक, भावनातमक और बौिदक सतर पर अभयास पयापत नही होगा । जब
तक अभयास म धयान भी सिममिलत न हो, तब तक जडं पयापत रप स गहरी एवं सुदृढ नही
होगी । धयान क माधयम स, आतम - सुरका की वयावहािरक, भावनातमक और बौिदक पेरणाएं
एक मानिसक संपित बन जाएंगी, जो आसानी स िफर खो नही पायंगी ।
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नवम िदवस, पात: पवचन
अब हम दसर वाकयाश पर िवचार करत ह 'दसरो की रका दारा वयिकत सवयं की रका
करता ह ।' बुद न इसका अथर सपष िकया :- 'खिनतया, अिविहसाय, मतिचतताय, अनुदयताय
अथात धैयर क माधयम स, एक अिहसक और हािनरिहत जीवन क माधयम स, तथा मता एवं
करणा क माधयम स ।'
जो वयिकत इन चार िसदातो स दसरो क साथ अपन संबंधो को िनयंितत रखता ह, वह
शस तथा शारीिरक शिकत की तुलना म अपनी रका बहतर करगा । धैयर या सिहषणुता उस
अनक संघषो तथा िववादो स बचन म सहायता करग । उसक िलय अनक िमत बनाना सरल हो
जायगा, िजनक पित उसन धैयरपूणर दृिषकोण पदिशत िकया ह । बल या दबाव का पयोग न करन
क कारण वह शायद ही कभी सवयं िहसा का पात बनगा, कयोिक वह िकसी को भडकाता नही ।
अत: नैितक आतम सुरका आधार ह । िकनतु यह तभी संभव ह यिद इसस दसरो की सुरका
क साथ टकराव न हो । अनयथा, यह वयिकत म िवकार लान क साथ उस संकट म भी डालगा ।
तथा दसरो की सुरका का टकराव धैयर, अिहसा, मता एवं करणा क चार िसदातो क साथ नही
होना चािहए । उस वयिकत क आधयाितमक िवकास क साथ हसतकेप नही करना चािहए ।
आतम सुरका तथा दसरो की सुरका क य दो िसदात वयिकतगत और सामािजक नैितकता म
समान रप स महतवपूणर ह, तथा उन दोनो क बीच सामंजसय पदान करत ह । व धमम की भरपूर
अनुभूित क िलय वयिकत को अाग बढात ह, तथा साथ ही समाज क िलए एक मजबूत आधार
पदान करत ह ।
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नवम िदवस, पात: पवचन
- िसर स पैर तक और पैर स िसर तक, एक भाग स दसर भाग म जात हए, िजसस िक वयिकत
पतयक भाग को समझन म सकम हो । यह भी जब स अापन िवपससना साधना सीखी ह, कर रह
ह।
३. िचतानुपससना सितपटान का तातपयर ह, सित जो िचत म या मानिसक पकृयायो म दृढता स
सथािपत हो, जैस संवगयुकत िचत या संवगरिहत िचत म । सयाजी ऊ बा खी न बताया ह िक
िवपससना साधना म यह कैस िकया जाता ह१२ :- 'िवपससना साधना म वयिकत न कवल रप की
बदलती पकृित का िनरीकण करता ह, अिपतु, धयान क िवचार-ततव को रप म पिरवतरन की
पकृया पर पकेिपत कर नाम क पिरवतरनशील सवरप का भी मनन करता ह । कभी कभी धयान
िवचार ततवो (नाम) की अिनतयता पर हो सकता ह । जब वयिकत रप की अिनतयता पर िवचार
करता ह तो, उस पता चलता ह िक रप या पदाथर की अिनतयता की जागरकता क साथ उतपनन
होन वाल िवचार ततव भी पिरवतरनशील ह । उस िसथित म अाप रप एवं नाम दोनो की
अिनतयता को जान रह ह ।' अत: अाप इसका भी अभयास करत रह ह, तथा जब भी अाप
साधना कर रह हो, इसका सदैव धयान रखं, चाह यहा अथवा अपन िनवास पर ।
४. धममानुपससना सितपटान का तातपयर ह, सित जो धममो म, जैस नीवरण इतयािद म, दृढता स
सथािपत हो । य िपछल पवचनो म िवसतार स समझाय गय ह । जहा तक मनोदशाअो क
अवलोकन का पशन ह , तो आपको पता होना चािहए िक कब पाच बाधाअो म स कोई वाधा
िवदमान ह और कब नही । अापको पता होना चािहय िक व कैस उदय होती ह, उनह कैस दर
िकया जाता ह, तथा भिवषय म व कैस अब उदय नही होगी । अाप िदन भर इस का भी अभयास
कर रह ह ।
अत: हमन सही शदा, सही संरकण, और सही सित क महतव को दखा, अौर समझा िक य
तीनो कैस एक साथ िमलकर काम करत ह । अाइए, हम सित की सथापना क माधयम स अपनी
सुरका तथा पुन: सित की सथापना क माधयम स ही दसरो की सुरका का, संकलप ल ।
संदभर सूची
[1]See Buddhist Legends, II 366.
[2]This story is also given in The Book of the Discipline, V 224-227.
[3]This discussion is from “What Leads Them On They Know Not” by Myanaung U
Tin (Light of the Dhamma, VI 3, pp. 14-16).
[4]The Gradual Sayings, I 141-143.
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नवम िदवस, पात: पवचन
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नवम िदवस, सायं पवचन
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नवम िदवस, सायं पवचन
सवोतम ह । यिद हमन अधोलोको म जनम िलया होता, तो हमार भीतर ईतनी बुिद नही होती
िक हम तथयो को समझ सक, अथवा हम ईतना अिधक तथा ईतनी िनरंतरता स दख भोगत
रहत िक कुशल िवचार तथा कुशल कमर करना असंभव होता । यिद हम उचच लोको म जनम
होत तो, या तो हम वहा सुखो म ईतन वयसत होत िक यह िवशास नही होता िक दख भी हो
सकता ह, अथवा हम ईतनी लंबी अायु तक जीत िक मृतयु क तथय स िवमुख हो जात । तथा कुछ
बह लोको म तो सोचना भी असंभव हो जाएगा ।
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नवम िदवस, सायं पवचन
िजतना ही अचछा हमारा धयान लगगा, उतना ही बहतर हम ईन पारिमताअो को पूरा करन म
सकम होग ।
यिद हमारा धयान किदत हो, तो हम लोभ, कोध, और अजान स संलग पीडा को और
अिधक सपष रप स दखंग । जब हम कोध म चीख रह होत ह, तो उस कोध क साथ अिपय
संवदनाएं होती ह । अब हम ईस और अिधक सपष रप स दखंग । अौर हम ईस पकार की
नकारातमक भावनाआं स बचना चाहग । तथा ऐस दखदायी िवचारो, कायो एवं वयवहार स
िवरत होकर, हम ऐस िवचार, शबद, एवं कायर िवकिसत करन का पयास करग िजनस हम तथा
दसरो को भी सुख िमल ।
किमक िशकण
यदिप हम मुखय रप स सासािरक सुखो म रिच रखत हो, तो भी हम ईन पारिमताअो को
िवकिसत करन का पयास करना चाहग । जब भगवान बुद कोई पवचन दत थ, तो वह एक
किमक िशकण होता था । व पारिमताअो म स सवरपथम पारिमता, दान स पारंभ करत थ ।
कयोिक हम नैितकता क केत म कुशल कायो को दान शबद म िनचोड सकत ह । तथा यह दान
या उदारता ही ह जो उचचतर लोको म पुनजरनम िदलाती ह । आप न ईस तरह की अनक कथाएं
सुनी ह िजनम पुककुसाित तथा बािहय दारचीिरय जैस वयिकतयो क उदाहरण की चचा ह । जब
य दोनो बुद क सािननधय म अाय तो िभकु बनन क िलय आठ आवशयक वसतुएँ अपन िलय नही
पापत कर सक, कयोिक उनहोँन अपन िपछल जनमो म चीवर, िभकापात ईतयािद िभकखुअो की
आठ आवशयक वसतुअो का दान नही िदया था, अथवा उनहोन साथी िभकखुअो की सहायता नही
की थी, या िकसी पतयक बुद को कित पहंचायी थी; अत: व िभकखु नही बन सक । ईसक
िवपरीत, व दोनो एक पागल गाय दारा मार गय, कहा जाता ह िक एक ही गाय न ईन दोनो
अायो को मार डाला ।२ ईस पकार, बुद लोगो की उदारता या दान म सथापना क साथ पारंभ
करत थ । ईस आधारिशला क िबना, आग असंभव होगाबढना ।
ईसक बाद, व अपन दशरको को नैितकता क िवषय म िसखात थ, कयोिक जब हम उदार
होत ह तो मन अिधक लचीला हो जाता ह । हम गलत कायो को करन स बचन म तथा सही
कायो क संवधरन म ही बुिदमता समझन म अचछी तरह पवृत हो जात ह ।
तब बुद अपन शोताआं को चार बह िवहारो म सथािपत करत थ । अंत म, यिद व यह
दखत थ िक सामथयर िवदमान ह तो व एकागता तथा अंतदृरिष िसखात थ । ईसी कारण बौद
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नवम िदवस, सायं पवचन
दशो म अपन िशषयो को िभकखु दान, शील, एवं भावना िसखात ह । शील दारा लंबी अायु
पापत होगी, तथा दान स भौितक लाभ । अनुरद, िवशाखा, अनाथिपिणडक, तथा कई अनय
लोगो क उदाहरण क रप म आप दखंग िक िकस पकार दान न उनक भव चक म एक बडी
भूिमका िनभाई थी ।
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नवम िदवस, सायं पवचन
िवशास िवकिसत करगा । हम पहल ही ईन गुणो को बता चुक ह, तथा शदा क गहनतर सतर क
अथर का सपषीकरण भी द चुक ह ।
बुद न वलुदार क लोगो को अपना पवचन यह कह कर समापत िकया िक नैितकता क
माधयम स व समािध पापत करन योगय हो जायंग, जो उनह सोतापनन पद की अोर ल जायगी ।
तथा जो जागृित क पहल चरण म सथािपत हो जाता ह, उसका अधोगित म कोई पुनजरनम नही
होता ।
तो यह पवचन उन लोगो क िलए होगा, जो पारिमताअो को दसर सतर पर िवकिसत कर
रह हो । बुद सवयं ऐस वयिकत थ िजनहोन ईनह सवोचच सतर तक िवकिसत िकया था । पािल
गंथो म, जातक नामक एक संगह ह, िजसम बुद क िपछल जनमो की, जब व बोिधसतव थ,
लगभग ५५ 0 कहािनया ह, तथा उनको िकतनी सारी तैयािरया करनी पडी थी, उस सराहन म
व हमारी सहायता करती ह । िन:संदह, व उनक अनक जनमो म स कवल कुछ ही जनमो क
िवषय म ह ।
वैशानतर की कथा
बौद दशो म, ईन जातक कहािनयो म स बुद बनन क पहल की, ईस मनुषय लोक म उनक पूवर
जनम की कथा सबस अचछी जानी जाती ह।४ उस जीवन म उनका नाम वैशानतर था, और उस
जीवनकाल म उनहोन दानशीलता की पारमी भरपूर िवकिसत की । व एक राजकुमार थ, िकनतु
उनकी उदारता ईतनी थी िक यथासंभव अपना सबकुछ, जो दान कर सकत थ, उस दान कर
िदया । राजसी हाथी िजसम यह शिकत थी िक वह िजस दश म रह उसम अचछी वषा हो, उस
भी उनहोन द िदया । ईस कारण, व अपन राजय स िनवािसत कर िदय गय । उनकी पतनी और
बचचो न उनक साथ जान पर जोर िदया, और चूंिक व िकसी की याचना असवीकार नही कर
सकत थ, उनहोन अंत म अपन बचचो तथा पतनी को भी द िदया । दवताअो क राजा ईनद या
शक (पािल म, सकक) न एक मनुषय क रप म सवयं को पचछनन कर उनकी पतनी को माग िलया,
कयोिक व बोिधसतव की पारिमताअो क िवकास म सहायता करना चाहत थ, तथा उनहोन
सुिनिशत िकया िक उनकी पतनी को कोई कित न पहंच । बचच एक बाहण दारा माग िलय गय
िजस अपनी पतनी क िलए सवको की अावशयकता थी । िकनतु वैशानतर क िपता, अथात राजा
न, बाहण को उनक बदल धन दकर बचचो को वापस ल िलया ।
तो, हो सकता ह िक हम उस उचच सतर तक पारिमताअो को िवकिसत करन क िलय काम
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नवम िदवस, सायं पवचन
न कर रह हो, अत: हम ईस बात क िलय बाधय नही महसूस करना चािहय िक हम अपनी सभी
वसतुअो को तथा अपन सभी िनकट एवं िपय लोगो को दान म द दं । िकनतु हम अौर अिधक
सहज उदारता का पयास कर सकत ह, यह समरण करत हय िक बुद न गृहसथो को बुिदमानी क
साथ अपन धन का उपयोग करन की सलाह दी थी, न कवल अपन पिरवार क बाहर क लोगो
को दकर, अिपतु उतरदायी पित, पतनी, पुत, पुती, िपता तथा माता बनकर ।
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नवम िदवस, सायं पवचन
अत: उनहोन उस िवलािसता का जीवन पदान िकया । वषर क तीन मौसमो क अनुरप तीन महल
बनाय गय । वह सब िकया गया िजसस राजकुमार वासनाअो म अोतपोत हो जाय । महाराज न
अादश िदया िक राजकुमार का कोई भी सवक या सहयोगी कभी भी वृदावसथा, रगणता, तथा
मृतयु क िवषय म एक शबद भी न बोल । व अपना वयवहार ऐसा रखं िजसस यह लग िक संसार
म कोई अिपय बात होती ही नही । पिरचारक एवं सवक िजनम रंचमात भी वृद , कमजोर, या
बीमार होन का संकत िमलता था, उनह बदल िदया जाता था । ईसक अितिरकत, नृतय, संगीत,
तथा अाननदमय समारोह होत रहत थ ।
तथािप, समय क साथ, एकरसता क कारण कामुक पिरवश की पकड शनै: शनै: राजकुमार
िसदाथर क मन पर ढीली पडन लगी । अपन असंखय जनमो म बुदतव क महान लकय क िलए
संरिकत पुणय की सारी मानिसक ऊजा सवचािलत रप स जागी । समय समय पर, जब वासना
क संसार का िनयंतण उनक मानस पर स ढीला पडता, तो उनक अातिरक वयिकततव की
उदीरणा होती, तथा उनका मानस समािध की शिकत क साथ शात एवं पिवत हो जाता, जैस
िक उनक शैशव म उनह तपसवी कालदवल क िसर क ऊपर उठाया था ।
महान तयाग
साहस की परीका पारंभ हई । व जानना चाहत थ िक राजमहल की दीवारो क बाहर कया ह?
अपनी पहली बाहर की याता क िलए उनहोन राजसी उपवन म जान का िनणरय िलया, यथाभूत
पकृित न िक मानव रिचत को दखन का यह उनका पहला पयास था । मागर म कोई भी अिपय
दृशय न हो, ईसक िलय महाराज दारा ली गई सभी सावधािनयो क उपरात भी, उपवन जात
समय िसदाथर न एक वृद वयिकत को दखा । ईसक बाद, उनहोन िकसी घातक रोग स गिसत एक
रोगी को दखा । िफर उनह एक शव का सामना करना पडा । अंत म, उनहोँन एक िभकखु को
दखा । अत: व सोचन लग । उनका मानिसक दृिषकोण बदल गया था । उनका मानस दोष मुकत
हो गया तथा संसकार लोक म, अथात मानिसक शिकतयो की भूिम म संरिकत उनक सवयं क
पुणय की शिकतयो क साथ गूंजन लगा । तब तक, उनका िचत नीवरणो स मुकत, पशात, शुद,
एवं सुदृढ हो गया था । उनहोन बुढापा, बीमारी, और मृतयु की वासतिवकता को दखा िलया था,
तथा िभकखु क चहर पर शात अिभवयिकत क माधयम स उनह एक संकत िमला िक ईन सभी
दखो का कोई िवकलप भी हो सकता ह ।
उनक दृिषकोण म यह पिरवतरन उस रात को हअा जब उनकी पतनी न एक पुत को जनम
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नवम िदवस, सायं पवचन
िदया । िकनतु मन को डावाडोल करन वाली िकसी भी बात स व पितरिकत थ । उनक भीतर क
अिधषान क सदुण बाहर उभर कर अाय, िजसक माधयम स व दृढ संकलप क िलए सकम हए,
तथा उनहोन जनम, जरा, दख, तथा मृतयु स बचन क िलय मागर का अनवषण करन का अपना मन
बना िलया ।
यह पिवत दृढ संकलप उनहोन आधी रात को िलया । उनहोन अपन पिरचर छनना स अपन
घोडे खिणडक को तैयार करन क िलय कहा । व अपन पुत की एक झलक दखन क िलय गय ।
उनहोन पुत का नाम राहल अथात बाधक रखा था, कयोिक व समझत थ िक पुत उनक
राजकुमार क रप म बन रहन क िलए एक पलोभन होगा । जब व अपनी पतनी क कक म गय,
तो दखा िक उनकी पतनी की बाह स िशशु िछपा ह, िकनतु व िफर बाहर अा गय, यह सोचत हए
िक यिद व अपन पुत को दखन क िलय अपनी पतनी को छूत ह, तो वह जाग सकती ह, अौर
उनस बात कर क उनका संकलप िवचिलत कर सकती ह । अत: उनहोन पािरवािरक जीवन तथा
संसार स सभी संबंध तोड िदय और एक महान तयाग िकया । व नगर स बाहर अनोमा नदी पर
गय । उनहोँन वह नदी पार की, यह ठान कर िक जब तक उनको अपना लकय नही पापत होता, व
वापस नही लौटंग ।
व अपन हाथ म एक िभकापात लकर तपसवी क रप म रहन लग । तथा उनका पहला
कदम अपन अाप को दो पिसद बाहण िशकको, अालार एवं उदक क आधयाितमक मागरदशरन म
पसतुत करना था । अालार आतमा म िवशास पर जोर दत थ तथा यह िसखात थ िक भौितक
सीमाआं स मुकत होन पर ही आतमा पूरी तरह स मुकत होती ह । ईसस बोिधसतव संतुष नही
हए । ईसक बाद व उदक क यहा गय, जो कमर क पिरणामो पर तथा आतमा क अावागमन पर
अिधक जोर दत थ । उनम स कोई भी 'आतमा' की अवधारणा स पर नही जा सका, तथा
बोिधसतव को लगा िक जानन क िलए कुछ और भी ह । जब उनक दोनो गुरअो म स पतयक न
अपन पद क सतर पर उनह भी रखन का पसताव िदया तो उनहोन असवीकार कर िदया तथा व
सवयं ही मुिकत का मागर ढूंढ िनकालन िनकल पडे ।
अब तक, व रपावचर एवं अरपावचर क अाठ धयानो (समापित) म पारंगत हो गय थ
तथा अलौिकक शिकतयो म िनपुण भी, िजसक कारण व अतीत और भिवषय क कई िवश चको
की घटनाआं को जानन म सकम भी हो गय । िकनतु यह सब सासािरक केत क अंतगरत ही था
तथा ईनस बोिधसतव संतुष नही थ, उनकी महतवाकाका जनम, दख, और मृतयु क ईस भवचक स
बाहर िनकलन की थी ।
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नवम िदवस, सायं पवचन
तपसया
बोिधसत क साथ पाच तपसवी भी जुड गय, और उनम स एक कोणडञञ थ, िजनहोन यह
भिवषयवाणी की थी िक िसदाथर जागृित पापत करग । छ वषो तक, बोिधसतव न दख की
समािपत क अनवषण क िलय अनक तपसयाअो का पयास िकया । उस समूची अविध म पाच
तपिसवयो न उनकी अचछी तरह सवा की । उनहोन उपवास िकया तथा िविभनन अनुशासनो क
साथ घोर तपसया की, जबतक व दबल होकर लगभग एक कंकाल मात नही हो गय । वासतव म,
एक िदन व थकावट क कारण मूिछत होकर नीच िगर गय । जब उनह होश आया तब उनहँ
एहसास हआ िक चरम तपसया सही मागर नही ह । उनहोन अपनी पदित बदल दी और व एक
मधयम मागर का अनुसरण करन लग, तथा उनहोन पाया िक अब उनकी जागृित का पथ सपष हो
गया ह । पाँचो तपिसवयो न, जो ऐसा मानत थ िक कठोर तपसया ही शेयषकर ह, यह िनणरय
िलया िक अब िसदाथर न गंभीरता स काम करना छोड िदया ह । अत: व िनराश होकर, उनह
वही छोड कर चल गय ।
जागृित
ढाई हजार स अिधक वषो पूवर वैशाख पूिणमा (बमी पंचाग म, कासो की पूिणमा) की संधया को,
बोिधसतव िसदाथर उरवला वन म, िनरंजरा नदी क तट पर, वतरमान बोधगया म, एक बोिध वृक
क नीच पयंक बद (पालथी मार कर) बैठ गय । उनहोन कठोरतम संकलप िलया - िक व उस
अासन स िकसी भी कारणवश तबतक नही उठंग जब तक उनह जागृित का सतय, बुदतव न पापत
हो जाय, भल ही ईस पयास म उनका जीवन ही न चला जाय ।
सतय क अनवषण क िलए अतयंत आवशयक, िचत एकागता सुरिकत करन क िलए, जैस ही
उनहोन अपनी सारी मानिसक शिकतयो को एकत करन का पयास िकया, तो उनहोन पाया िक
पहल की अपका ईस अवसर पर मन को संतुिलत करना उतना सरल नही था । उनक चारो ओर
िनमन लोको एवं उधवर लोको की शिकतयो क संयोजन क अितिरकत, उनक मन क संतुलन को
िवचिलत करन म सकम अनय शिकतया भी सबल थी । उनक दारा सामानयतया सुरिकत पकाश
िविकरण क िवरद अभद शिकत पुञजो दारा असामानय पितरोध था । संभवत: ईस कारण िक
यह बुदतव पािपत क िलए उनका अंितम पयास था, अत: अशुभ शिकतयो का सवोचच िनयंतक
मार, ईस दृशय क पीछ था । यहा धयान दन योगय रोचक बात यह ह िक मार उस दव लोक म
ह, जहा दसरो की रचनाअो म आनंद िलया जाता ह – उसकी यह गलत धारणा ह िक सभी
9
नवम िदवस, सायं पवचन
अनुबंिधत वसतुएं उसी की ह । तथािप, बोिधसतव न शनै: शनै: िकनतु िनिशत रप स पगित की
अौर ईसम उनक पुणयो क मानिसक बलो स सहायता पापत हई, िजनह सही समय पर अिनवायर
रप स सहायक होना ही था । उनहोन एक पण िलया तथा अपन वचरसव क िलए संघषर म हाथ
बंटान हतु उन सभी दवताअो एवं बहाअो का अाहान िकया, िजनहोन उनको दस महान
पारिमताअो की पूित करत दखा था । आप न दखा होगा िक बमा की बुद की पितमाआं म बुद
एक हाथ स पृथवी का सपशर करत िदखाई दत ह । पारिमताअो की अापूित क िलय िकय गय,
उनक सभी िपछल कमो क साकी क रप म, पृथवी को अामंितत करन का यह एक पतीक ह ।
ऐसा करन स, बहाअो तथा दवताअो की िवशुद एवं उतकृष मानिसक शिकतयो क संयोजन
का पभाव अचछा पडा । कुछ समय क िलए अभद लग रह सबल शिकत पुञज िवघिटत होन लग,
तथा मन पर िनयंतण म िनरंतर सुधार क साथ, उनका सदैव क िलय उनमूलन हो गया । सभी
नीवरण अिभभूत हो गय, ततपशात व अपनी िचत एकागता की शिकत का संवधरन करन म
सकम तथा अपन िचत को संपूणर पिवतता, शाित, एवं समभाव की िसथित म ल जान म सफल
हए । धीर धीर, उनकी चतना सचची अंतदृरिष स अिभभूत हो गई । एक पेरणा सवरप उनकी
चतना म उनकी महतवपूणर समसयाआं क समाधान पकट हए ।
अंतमुरखी साधना क माधयम स सवयं क भीतर की वासतिवकताआं की पकृित का अधययन
करन पर उनह सपष हअा िक मानव शरीर म कोई सार नही ह जैसा िक पतीत होता ह । यह
एक असंखय कोिट कलापो क संयोजन क अितरकत अौर कुछ भी नही ह । कलाप िजनको हम
पहल ही सपष कर चुक ह, अिसततव की नयूनतम ईकाई ह । अौर अिधक िवसतार स अधययन
करन पर उनह पता चला िक य कलाप भी िनरंतर पिरवतरनशील या पवाहमय ह । यही बात
मानस क िवषय म भी सतय ह । मन तो बिहगामी मानिसक शिकतयो, सृजनातमक शिकतयो,
तथा अंतगामी शिकतयो अथात भवचक क असंखय जनमो म िकसी वयिकत की पणाली म िनरंतर
पवश करती हई सृिजत शिकतयो का पतीक मात ह ।
तो, बुद न घोिषत िकया िक उनम पजा चकु का उदय तब हअा जब उनहोन अहं की
सारततव संबंधी िमथया दृिष को दर िकया; कयोिक उनहोन कलापो को एकागता (समािध) क
सूकमदशी स दखा अौर उनह नशरता (अिनतयता) क िवधान स सतवहीन, तुचछ या मात
वयवहार क रप म पाया । बौद धमर म, िजस हम पञञित कहत ह, अथात अवधारणा, िवचार,
या पदवीकरण, उसका उनहोन पिरतयाग कर िदया । जब उनहोन ईस अवधारणा पिकया या
पदवीकरण का पिरतयाग कर िदया तब उनहोन सतय की िसथित (परमथर, पािल म, परमतथ)
अथात शिकतयो क सवभाव क सतय या परम सतय को पापत िकया ।
10
नवम िदवस, सायं पवचन
सवयं क भीतर सतत मानिसक एवं भौितक पिरवतरन (अिनतयता, पािल म अिनचच) का
अनुभव करत हए, उनहोन अगली कडी, द:ख क सतय को अातमसात िकया । ततपशात उनका
अहंभाव िवघिटत हो गया, शूनय ही शष रहा, तथा व दख स पर क पद (द:ख-िनरोध) म पहंच
जहा अातम या सवयं स िकसी पकार क लगाव का भाव शष नही बचता । उनक िलय मानस एवं
भौितकता, िनरंतर अावती तथा पतीतय समुतपाद या कारण कायर िवधान क अंतगरत शूनय
पकृयायं मात थी । सतय का साकातकार हो गया । भूण बुद क अंतिनिहत गुण तब िवकिसत हए,
तथा वैशाख पूिणमा िदवस क उषाकाल म उनह पूणर जागृित पापत हई ।
िसदाथर न सही अथर म पूणर जागृित या समयक संबोिध पापत कर ली, तथा एक जागृत, एक
पबुद, एक सवरज बुद हो गय । व ऐस जागृत थ िजसकी तुलना म अनय सभी मनुषय नीद म थ
तथा सवपन दख रह थ । व ऐस पबुद थ िजनकी तुलना म अनय सभी मनुषय अंधेर म भटक एवं
टटोल रह थ । व ऐस जान क साथ सब कुछ जानत थ िजसकी तुलना म अनय सभी मनुषयो का
जान अजानता मात था ।
हमन बुद की जीवनी का यह िववरण सयाजी ऊबा खी की पुिसतका 'बौद धमर कया ह'६ स
िलया ह । बुदतव क महतव को तथा बुदतव पापत करन म किठनाईयो को समझान म सहायता
क िलए, ईसक पहल उनहोन बौद अवधारणा क अनुसार बहाड का िववरण िदया ह । चूंिक
हमन ईन पवचनो म बहधा अिसततव की ईकतीस भूिमयो या लोको का उललख िकया ह, अाईए
हम थोडी और सूकमता स उन पर दृिषपात करत ह ।
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नवम िदवस, सायं पवचन
म रहत ह । हमारी िनकटतम दस हजार िवश पणािलया जाित केत (पािल म, जाित खत)
कहलाती ह, कयोिक व िकसी बुद की उतपित का केत ह । जब बुद न किपलवसतु क िनकटवती
वन म महासमय नाम का पवचन िदया था, तो उस सभा म हमारी अपनी िवशपणाली क
बहाअो एवं दवताअो क अितिरकत, उन सभी दस हजार िवश पणािलयो क बहा एवं दवता
भी िवदमान थ ।
भगवान बुद ईतन अतयिधक िवकिसत ह िक व अपनी असीम मता एवं करणा स युकत
िवचार तरंगो को अरबो िवश पणािलयो क पािणयो को भज सकत ह, कयोिक व उनक पभाव
केत (अञञा खत) क अंतगरत ह । शष असंखय िवश पणािलया जो बुद क पभावी िवचार
तरंगो की पहंच स बाहर ह, व अनंत अंतिरक (िवषय खत) कह जात ह ।
ईस बहाड म हमार िवश की तुचछता भयावह मात ह । समूचा मानव लोक ईस बहाड म
एक कण मात ह ।
अाईए, अब हम अपनी िवश वयवसथा या चकवाल म, अिसततव की ईकतीस भूिमयो या
लोको की बात करत ह । िन:संदह, अनय सभी िवश पणािलयो म भी, वैस ही ह । ईनह तीन
शेिणयो म ईस पकार िवभािजत िकया जा सकता ह :- उचचतम शेणी म बहाअो क अरप-लोक
ह, उसक नीच सूकम भौितकी वाल बहाअो क रपलोक तथा सबस नीच कामावचर लोक
िजनम दवलोक, मनुषय लोक, तथा िनमन लोक समािहत ह । बहाअो क चार अरप लोक ह तथा
ईन लोको क पाणी िनमन लोको क पािणयो क संपकर म नही अा सकत । ईसी कारण जब साधु
िशकक अिसत को पता चला िक व बुद क उपदशो को नही सुन सकग, कयोिक उनकी गित ईनही
लोको की ह, तो व िचितत हो गय । उन लोको म, व सवोतम िचत एकागता म होग, िकनतु व
जनम एवं मृतयु क चक स पर जान का अवसर नही पा सकग ।
सूकम भौितकी बहाअो की सोलह भूिमया अथात रप लोक ह । यहा पर पुनजरनम लन वाल
बहा ईतन लंब समय तक जीिवत रहत ह िक व सवयं को अमर समझत ह, तथा जब व चाहत ह
िक उनक लोक म अनय पाणी भी हो तो ततकण अनय बहा वही पुनजरनम लत ह, अत: व सवयं
को सृजनकता समझत ह ।
ईन बहलोको म समािधयो क माधयम स पहँचा जाता ह; जैस िक य अंतिरक म हो ।
अकामावचर लोको म कामुकता या अशुदता का कोई दोष नही होता । ऐसा कह िक य
दीिपतमान होत ह । वहाँ, कोई भी पाणी एक पिरपूणर, अतीिनदय शाित का अाननद पापत करता
ह । अत: जब हम अपन िचत को शुदता की आदशर िसथित तक िवकिसत करन का पयास करत
12
नवम िदवस, सायं पवचन
ह, तो हम अपन िचत को पथम धयान की पकृित क अनुरप लान का पयास करत ह । हमारा
पयास होता ह िक कम स कम अधोगितयो क िनमन चुंबकीय केत तथा कामावचर लोको क
ऊधवर चुंबकीय केत स बाहर िनकल ।
बह लोको क नीच, सभी पाणी कामावचर लोको म ह । छह दव लोको म िदवय पाणी
रहत ह, जो वासनाअो का सवोतम अाननद लत ह । वयिकत एक नैितक जीवन जीन तथा पुणय
कायर करन क माधयम स ईन लोको म जाता ह । वहाँ जीवन का आनंद लत लत, जब पुणय कमो
का अवशष समापत हो जाता ह, तथा जीवन की अविध का अंत, तो पुनजरनम िकसी भी लोक म
हो सकता ह ।
हम दव लोको तथा अधो लोको क बीच म, मनुषय लोक म रहत ह । चार अधो लोक ह :-
भूिमगत दानवो का असुर लोक, भूतो का पेत लोक (पािल म, पत लोक), जानवरो का
ितिरचछन लोक, तथा नारकीय नीरय लोक ।
मानस स उतपनन मानिसक शिकतयो क, एवं िवचार, शबद तथा कृतय रपी संसकारो क,
चिरत पर िनभरर करत हए, य सभी ईकतीस लोक, शुद या अशुद, शीत या उषण, उजवल या
अंधकारपूणर, हलक या भारी, सुखद या अितदखद होत ह । ईस बात क आधार पर िक, हमार
दारा उतपनन मानिसक शिकतया कुशल ह या अकुशळ, व ईन लोको म सथािपत हो जाती ह, जैस
िक हमार भिवषय क जीवन क िलय एक सथान आरिकत िकया जा रहा हो । यिद हम अपन
वतरमान सथान का सवोतम उपयोग करत ह, यिद हम जैसा पयास करना चािहय हम वैसा करत
ह, आवशयक पृषभूिम म ह, तथा ईस एक म तीन िवश पणाली को भद कर िनवाण (पािल म,
िनबबाण) पापत कर लत ह, तो कोई भी अचछी या बुरी मानिसक शिकत हम जनम और मृतयु क
चक म बाधन म सकम नही हो सकगी ।
संदभर सूची
[1]Buddhist Legends, III 60f.
[2]Buddhist Legends, II 120.
[3]The Kindred Sayings, V 307-311. संयुत िनकाय, ५़ महावगग; ११़ सोतापित संयुतं;
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नवम िदवस, सायं पवचन
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दशम िदवस, पात: पवचन
इस शरीर को िमटी क घडे क समान (भंगुर) जान, अौर इस िचत को गढ क समान (रिकत तथा
दृढ) बना, पजारपी शस क साथ मार स युद कर । (उस) जीत लन पर भी (िचत की) रका कर
अौर अनासकत बना रह ।
धममपद, गा० ४०
मता भावना
बुद जब शावसती (पािल म सावतथी) म िवहार कर रह थ, तब उनहोन पाच सौ िभकखुअो क
संदभर म, जो वन म साधना क िलए गय थ, यह गाथा दी थी, ।१
बुद न उन पाच सौ िभकखुअो को एक कमरसथान अथात धयान का िवषय िदया, िजसस िक
व अहरतव क िलए काम कर सक, तथा िभकखु एक सौ लीग चलकर एक बडे गाव म पहंच । गाम
वािसयो न उनह भोजन कराया अौर तब पूछा, 'भनत, आप लोग कहा जा रह ह?'
िभकखुअो न कहा 'िकसी सुखद सथान पर ।' तब गामीणो न कहा, 'भनत, अाप सभी इन
तीन महीनो तक यही िनवास कर । अापक िनदरशन म हम ितशरणो का तथा सदाचार क
िशकापदो का दृढता स पालन करग । जब िभकखुअो न सहमित पकट की, तो गामीणो न
समीपवती वन क िवषय म बताया और उनस कहा, 'वही अपना अावास बनाइय ।'
उस वन म पुणयवान भूिमगत दवता िनवास करत थ, तथा िभकखुअो को अाता दखकर,
उनहोन सोचा, 'एक िभकखु समुदाय हमार वन म अाया ह । यिद व यहा रहत ह, तो हमार िलय
अपनी संतान एवं पतनी को लकर पहल की तरह वृको पर चढ कर वहा रहना अनुिचत होगा ।'
अत: 'िभकखु तो कवल रात भर रकग । कल पात: व िनिशत रप स चल जायंग ।' यह िवचार
करत हए व वृको स नीच आ गय तथा धरती पर बैठ गय, िकनतु अगल िदन, िभकखु गाव म
िभकाटन क िलय गय अौर पुन: वन म लौट आए । तो दवताअो न सोचा, 'इस िभकखु समुदाय
को िकसी न कल क िलए आमंितत िकया होगा । इसी कारण व लौट आए ह । व आज नही
1
दशम िदवस, पात: पवचन
बुद न उतर िदया, 'म आपको एक शस दंगा, तथा जो शस म अापको दंगा, जब अाप वहा
जाय तो आप उस अपन साथ लकर जाय ।' तथा बुद न उनह मत सुत का पवचन िदया ।२
2
दशम िदवस, पात: पवचन
इिनदया शानत हो, वह चतुर हो, अलप भाषी हो अौर कुलो म अासिकत रिहत हो ।।२।।
न च खुदं समाचर िकिञ, यन िवञञूं पर उपवदययुं ।
सुिखनो वा खिमनो होनतु, सबब सता भवनतु सुिखतता ।।३।।
ऐसा कोई छोटा स भी छोटा कायर न कर, िजसक िलय दसर जानकार लोग उस दोष दं ।
(अौर इस पकार मती कर िक) सभी पाणी सुखी हो, केमी हो अौर सुिखतातमा हो ।।३।।
य किच पाणभूतितथ, तसा वा थावरा व अनवससा ।
दीघा वा य महनता वा, मिजझमा रससका'णुकथूला ।।४।।
िदटा वा य वा अिदटा, य च दर वसिनत अिवदर ।
भूता वा समभवसी वा, सबब सता भवनतु सुिखतता ।।५।।
जंगम या सथावर, दीघर या महान, मधयम या हसव, अणु या सथूल, िदखाई दन वाल या न
िदखाई दन वाल, िनकट क या दर क, उतपनन हए या भिवषय म उतपनन होन वाल, िजतन
भी पाणी ह, व सभी सुखपूवरक रह ।।४-५।।
न परो परं िनकुबबथ, नाितमञञे थ कतथिच नं किञ ।
बयारोसना पिटघसञञा, नाञञमञञसस दकखिमचछयय ।।६।।
कोई दसर की बुराई या वंचना न कर । कभी िकसी का अपमान न कर । वैमनसय या िवरोध
क कारण एक दसर क दख की इचछा न कर ।।६।।
माता यथा िनयं पुतं, अायुसा एकपुत मनुरकख ।
एविमप सबब-भूतसु, मानसं भावय अपिरमाणं ।।७।।
िजस पकार एक माँ अपनी जान की परवाह िकय िबना अपनी इकलौती संतान की रका
करती ह, उसी पकार सभी पािणयो क पित अपार पेम -भाव बढाव ।।७।।
मतञ सबब-लोकिसम, मानसं भावय अपिरमाणं ।
उदं अधो च ितिरयञ, असमबाधं अवरं असपतं ।।८।।
िबना बाधा, िबना वैर व िबना शतुता क, ऊपर-नीच, अाडे-ितरछ, सार संसार क पित असीम
पेम-भाव व मती बढाव ।।८।।
ितटं चरं िनिसननो वा, सयानो वा यावतसस िबगतिमदो ।
एतं सित अिधटेयय, बहमतं िवहारं इधमाह ।।९।।
3
दशम िदवस, पात: पवचन
खडे रहत हए, चलत हए, बैठे हए, लट हए, जबतक जागृत रह, तब तक इसी पकार की
समृित बनाए रह । इसी को बह-िवहार कहत ह ।।९।।
िदिट च अनुपगमम सीलवा, दससनन समपननो ।
कामसु िवनयय गधं, न िह जातु गबभ सययं पुनरती'ित ।।१०।।
ऐसा नर कभी िमथया दृिष म न पड कर, शीलवान हो, िवशुद-दशरन स युकत हो, काम-तृषणा का
नाश कर पुनजरनम स मुकत हो जाता ह ।।१०।।
सुत िनपात, गाथा १४३-१५२
यह पवचन दन क बाद, बुद न िभकखुअो स कहा, 'वन म अपन अावासो क चारो ओर इस
सुत का पाठ कीिजय, और तब अाप अपन अावासो म वापस जा सकत ह ।' तथा उनहोन उनह
वापस भज िदया ।
उनहोन बुद को नमन िकया तथा वापस वन म चल गय । अब जब िक व मत सुत स
सशस थ, उनक पित पृथवी दवो का दृिषकोण बहत िभनन हो गया । उनक इसका पाठ करन क
बाद, पृथवी दवो क मन म िभकखुअो क पित मती भावना अनुभूत होन लगी । व उनस िमलन क
िलए बाहर अात, उनक चीवर एवं पात लकर रखत, उनक हाथ पाव की मािलश करन क िलय
पसतुत होत, चारो अोर सबल रकक तैनात करत, तथा िभकखुअो क साथ िमलजुल कर बैठत ।
एक भी दानवी धविन नही सुनाई पडती । िभकखुअो का िचत शात हो गया, तथा व रात िदन
िवपससना क पयास म सकम हो गय । व एक ऐसी तकनीक का उपयोग कर रह थ जो िवशष
रप स िभकुअो क िलय अनुकूल ह, िजसम उनकी काया म िनिहत कय एवं मृतयु का पतयवकण
सिममिलत ह । भगवान बुद न दखा िक उनहोन अंतदृरिष िवकिसत करना पारंभ कर िदया था,
अत: उनहोन सवयं का एक तजसवी पितरप भजा और ऐसा पतीत हए जैस व सवयं छह रंगो की
पकाश िकरणो का िविकरण करत हए उनक समक बैठे हो । तथा उनहोन वह गाथा उद्घोिषत
की िजसको हमन पारंभ म उदृत िकया ह :-
कुमभूपमं कायिममं िविदतवा, नगरपमं िचतिमदं ठपतवा ।
इस शरीर को िमटी क घडे क समान (भंगुर) जान, अौर इस िचत को गढ क समान (रिकत तथा
दृढ) बना, पजारपी शस क साथ मार स युद कर । (उस) जीत लन पर भी (िचत की) रका कर
अौर अनासकत बना रह ।
4
दशम िदवस, पात: पवचन
धममपद, गा० ४०
यह कथा हम दशाती ह िक मता की सवर पथम िशका दसरो की भलाई मात क िलए ही
नही दी गई थी, अिपतु आतम-सुरका क िलय भी । तथा, इसक पहल िक हम मता भाव क
िवचार भज सक, हम नैितक जीवन क माधयम स एवं सरलता स संतोष पापत करन क माधयम स
अपन आप को तैयार करना होगा । आप न धयान िदया होगा िक पारंभ म, िजस वयिकत न पूणर
जागृित नही पापत की ह, उसक िलय मता भाव का अिभपाय िनवाण पापत करना ह । पूणर
जागृित पापत करन क बाद ही, मता को पूरी तरह िन:सवाथर भजा जा सकता ह ।
बुद जो िक सवजागृत थ, सभी को मता, िकसी भी अनय स शेषतर रप म, भजन म, सकम
थ । तथा जो हम तक पहंची ह, उनक जीवन की सारी कथाअो म, हम दख सकत ह िक उनक
पतयक िवचार, शबद, और कृतय मता, धैयर, करणा, और समभाव स िकस पकार अोत पोत थ ।
हम दो उदाहरण दखत ह ।
(पजा चकु क अभाव म) यह लोक अंधे जैसा ह, यहा िवपससना करन वाल थोडे ही ह । जाल स
मुकत हए पकी की भाित िवरल ही सुगित अथवा िनवाण को जात ह । (बाकी तो जाल म ही
फंस रहत ह ।)
मरण अनुसमृित अथात मृतयु पर धयान की साधना कर । अपन आप स कह, 'मरा जीवन
अिनिशत ह । मरी मृतयु िनिशत ह । म िनिशत रप स मरंगा । मौत मर जीवन की समािपत
होगी । जीवन अिसथर ह । मौत सुिनिशत ह ।' िजनहोन मृतयु पर धयान का अभयास नही िकया
ह, व अपना अंितम समय अान पर भय स काप उठेग , तथा व आतंिकत हो चीतकार करत
मरग, जैस कोई वयिकत एक साँप दख, िकनतु उसक पास सवयं को बचान क िलय कोई छडी न
5
दशम िदवस, पात: पवचन
हो, वह भय स तसत होगा । िकनतु व जो मरण अनुसमृित का अभयास करत ह, मृतयु अान पर
भयभीत नही होग । व एक सुदृढ वयिकत की तरह होग, जो दर स कोई साँप दखता ह, तो
अपनी छडी लता ह, तथा साँप को एक तरफ उछाल कर फेक दता ह । अत: मरण अनुसमृित
का अभयास कर ।
एक को छोडकर, अालिव क सभी लोग पहल की तरह, अपन सासािरक कायो म िलपत हो
गय । कवल एक जुलाह या बुनकर की सोलह साल की पुती न सवयं स कहा, 'बुद का पवचन
वासतव म अदुत ह । मुझे मरण अनुसमृित की साधना करनी चािहए ।' तथा तीन वषो तक रात-
िदन वह इस भावना का अभयास करती रही । बुद न अालिव स िवदा ली तथा व शावसती क
जतवन म िनवास करन चल गय ।
एक िदन जब बुद न उषाकाल क पारंभ म िवश का सवरकण िकया, तो उनहोन पाया िक
वह बािलका उनक जान जाल म पवश कर चुकी थी । उनहोन दखा िक वह मृतयु पर तीन वषो
तक धयान लगा चुकी ह, तथा वह उन चार पशनो क उतर दन म सकम हो सकगी, िजनह व
उसस पूछंग । व उसको उसक उतरो पर बधाई दंग तथा वह गाथा जो 'अनधभूतो अयं लोको... '
स पारंभ होती ह, उस उद्घोिषत करग; और इस गाथा क समापन पर, वह बािलका जागृित क
पहल चरण म सथािपत हो जाएगी । तथा अनय कई लोग इस पवचन स लाभािनवत होग ।
अत:, भगवान बुद पाच सौ िभकखुअो क साथ तीस लीग की दरी चलकर पुन : अगगालव
िवहार पहंच । तथा अालिव िनवािसयो न उनह पुन: आमंितत िकया । जब बािलका न सुना िक
भगवान बुद आय ह तो उसका हदय हषोललास स भर गया । 'लोग कह रह ह िक गौतम बुद
महान अा गय ह, व जो मर िपता, मर सवामी, मर गुर ह, िजनका मुख मणडल पूिणमा क चाद
जैसा ह ।' तब उसन मन म िवचार िकया, 'तो, म तीन वषो म पहली बार शासता को दखूंगी
अौर धमम पर उनक िशकण को सुनूंगी, जो उदात ह अौर माधुयर स पूणर ह ।'
िकनतु उसक िपता न, अपनी कायरशाला की अोर जात हए उसस कहा, 'बटी, एक गाहक क
िलए एक पिरधान करघे पर ह, तथा अभी अपूणर ह । मुझे आज ही उस पूरा करना होगा । तुम
ढरकी यान शटल को भर कर मर पास ल आओ ।' बािलका िझझकी, िकनतु उसन सोचा, 'यिद म
अपन िपता क पास ढरकी भर कर नही ल जाती, तो व मुझ पर पहार करग और मुझे पतािडत
करग । अत: म वही करंगी जो उनहोन कहा ह, अौर बाद म धमम सुनन की पतीका करंगी ।'
अालिव क लोगो न भगवान बुद एवं उनक िभकखु समुदाय को भोजन कराया, ततपशात
उनका पात लकर उनक अनुमोदन की पतीका म व एक अोर खडे हो गय ।
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दशम िदवस, पात: पवचन
िकनतु बुद न उनस कहा, 'म तीस लीग की याता करक यहाँ एक बुनकर की अमुक पुती क
िलय अाया हं । म उसक आन की पतीका करंगा, और जब उस यहा उपिसथत होन का अवकाश
िमलगा, तब म अनुमोदन करंगा ।”
जब बािलका न ढरकी भर ली, तो वह उस अपनी टोकरी म रख कर अपन िपता की
कायरशाला की अोर चल पडी । मागर म, वह जनसमूह की बाह पिरिध पर रकी तथा शासता को
िनहारन लगी । उनहोन अपना िसर ऊपर उठाया और उसकी अोर दखा । उसन सोचा, 'व चाहत
ह िक म उनक पास जाऊं,' अौर उनक िनकट चली गई ।
बुद न उसकी अोर दखा कयोिक व जानत थ िक अनयथा वह पास नही अायगी । उसक उसी
िदन मृतयु स िकसी भी पकार बचन का कोई उपाय नही था, िकनतु यिद वह उनह िशका दत हए
सुन लती ह, तो वह एक सोतापनन क रप म सथािपत हो जाएगी तथा उसका तुिषत दव लोक म
पुनजरनम होगा ।
उनक मात दृिषपात क संकत स वह बािलका उनक िनकट अा गई, उनको नमन िकया, तथा
अादरपूवरक एक अोर खडी हो गई । तब बुद न उस चार पशनो दारा संबोिधत िकया :-
उनहोन पूछा, 'कुमारी, तुम कहाँ स आई हो?'
उसन कहा, 'भनत, मुझे पता नही'
उनहोन पूछा, 'तुम कहाँ जा रही हो?'
उसन कहा, 'म नही जानती ।'
उनहोन पूछा, 'तुम नही जानती?'
'म जानती हं, भनत' उसन उतर िदया ।
'तुम जानती हो?' उनहोन पूछा ।
'भनत, म नही जानती' उसन उतर िदया.
इसस लोग अाहत हो गय और बोल, "दखो, यह बुनकर की बटी जो जी चाह तथागत स
बोल दती ह । जब उनहोन पूछा, 'तुम कहा स आयी हो?' तो उस उतर दना चािहए था 'बुनकर
क घर स' जब उनहोन पूछा, 'तुम कहा जा रही हो?' तो उस कहना चािहए था, 'बुनकर की
कायरशाला को ।' "
तब बुद न उसस पूछा, "कुमारी, जब मन तुमस पूछा, 'तुम कहा स आयी हो?' तो तुमन
कयो कहा, 'म नही जानती'?” तो बािलका न कहा, 'भनत, आप जानत ह िक म अपन िपता क
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दशम िदवस, पात: पवचन
(पजा चकु क अभाव म) यह लोक अंधे जैसा ह, यहा िवपससना करन वाल थोडे ही ह । जाल स
मुकत हए पकी की भाित िवरल ही सुगित अथवा िनवाण को जात ह । (बाकी तो जाल म ही
फंस रहत ह ।)
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दशम िदवस, पात: पवचन
गई ।
तब वह मंजूषा म ढरकी लकर अपन िपता क पास गई । व अपन करघे पर बैठे , सो रह थ ।
उसन यह धयान नही िदया िक व सो रह ह, और उनह टोकरी द दी । टोकरी करघे की छोर स
टकराई और खटपट करती नीच िगर पडी । उसक िपता जाग उठे , और उनहोँन करघे को पकड
कर झटक स खीचा । करघे का एक छोर अकसमात झूल कर बािलका क वकसथल म जा लगा ।
उसकी ततकण मृतयु हो गई तथा तुिषत दव लोक म उसका पुनजरनम हअा । जब िपता को पता
चला िक कया हो गया, तो व शोकगसत हो गय । व बुद क पास गय तथा अपनी बटी की मृतयु क
िवषय म उनह बताया । उनहोन अनुरोध िकया, 'भनत, मर द:ख का अंत कीिजय ।'
बुद न उनस कहा, 'शोक मत करो । इस अजात अािद क भवचक म, अपनी बटी की मृतयु
क द:ख म, िजतना जल चार महासागरो म ह, तुमन उसस भी अिधक आँसू बहाए ह ।' तब
उनका द:ख समापत हो गया, अौर उनहोन िभकखु संघ म सिममिलत होन का अनुरोध िकया ।
तथा कालोपरानत उनहोन अहरतव पापत िकया ।
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दशम िदवस, पात: पवचन
सुनन?' तथा उसन िनणरय िलया, 'पहल म बैल ढूढूंगा तब िफर धमम सुनन जाऊंगा ।' तथा वह
अपन वृषभ को खोजन िनकल पडा ।
अालिव िनवािसयो न बुद एवं पाच सौ िभकखुअो क िलए अासन तैयार िकय तथा उनह
भोजन परोसा । भोजनोपरानत, उनहोन बुद का पात िलया, तािक व अनुमोदन कर सक । िकनतु
उनहोन कहा, 'िजस वयिकत को िशका दन म तीस लीग आया हं, वह अपन खोय हए को ढूंढन वन
म गया ह । जब वह लौटगा, तब म पवचन दंगा ।'
रात होन स पहल, उस वयिकत को उसका बैल िमल गया, और उस हाँक कर वापस झुंड म
िमलान ल अाया । अौर तब उसन सोचा, 'यिद म और कुछ नही कर सकता, तो कम स कम
शासता की वनदना ही कर सकता हं ।' तथा यदिप वह बहत भूखा था, उसन घर न लौटन का
अिपतु सीधे बुद क पास जान का िनणरय िलया । जब वह आया, तो उसन वनदना की तथा एक
अोर बैठ गया । तब बुद न भोजन क िलए उतरदायी वयिकत स पूछा, 'िभकखु संघ को परोस गय
भोजन म स कया कुछ बचा ह?'
उतर था, 'भनत, उन खाद पदाथो को तो अभी िकसी न छुआ भी नही ह ।'
बुद न िनदरश िदया, 'तो ठीक ह, इस गरीब वयिकत को कुछ भोजन परोसा जाय ।'
अत: पबनधक न गरीब िकसान को भोजन परोसा, और जैस ही वह शारीिरक पीडा स मुकत
हअा, उसका िचत शात हो गया । तब बुद न किमक पवचन दारा, एक क बाद एक सभी चार
अायर सतयो की वयाखया करत हए, धमोपदश िदया । पवचन क समापन पर, वयिकत सोतापनन
फल पद म सथािपत हो गया । तब बुद न अनुमोदन क शबद कह तथा अासन स उठ कर िवदा
ली ।
ऐसा कहा जाता ह िक, कवल यही एक अवसर था जब बुद न कभी भी भोजन क िवषय म
पूछा था । और जब व िभकखुअो क साथ वापस लौट रह थ, तो कुछ िभकखु अतयिधक रष थ । व
बोल, 'दिखय, शासता न कया िकया! ऐसा कुछ पहल कभी नही हआ ह । एक गरीब आदमी को
दखकर उनहोन अाहार की आपूित क िवषय म पूछा, और उस भोजन परोसन का आदश िदया ।'
बुद रक, पलट अौर उनहोन िभकखुअो स पूछा िक व कया वातालाप कर रह थ । जब
उनहोन बताया तो बुद न सपष िकया, "जब म तीस लीग की एक लंबी और दगरम याता करक
यहाँ आया, तो मरा एकमात उदेशय इस वयिकत को सोतापनन पद म सथािपत करना था । अित
पात: वह वयिकत भूख पट, जंगल म गया तथा अपन खोय हए बैल की तलाश म उसन पूरा िदन
िबताया । अत: मन सोचा, 'इस समय जब िक वह भूखा ह, यिद म उस िशका दं, तो वह समझन
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दशम िदवस, पात: पवचन
म सकम नही हो सकगा ।' इसी कारण मन जो िकया, वह िकया । िभकखुअो, भूख की पीडा जैसी
कोई पीडा नही ह ।" तथा बुद न वह गाथा सुनाई िजस हमन इस कथा क पारंभ म उदृत िकया
ह :-
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दशम िदवस, पात: पवचन
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दशम िदवस, पात: पवचन
अपन िकसी िपय वयिकत क पित मता भाव का अभयास कर सकत ह । अाग हम अपन िवचारो
को िपय क रप म िकसी तटसथ वयिकत क पित पेिषत कर सकत ह जैस वह िपय हो । अनत म,
हम तटसथ वयिकत क सथान पर िकसी शतु को रख कर, उसक पित अपन मता युकत िवचारो को
पेिषत कर सकत ह ।
करणा िवकिसत करन क िलए, हम करणा क अभाव म होन वाल संकटो का तथा करणा स
होन वाल लाभ का पतयवकण अथात समीका स पारंभ करना चािहए । जैसा िक मती भावना क
साथ करत ह, वैस ही हम िकसी ऐस वयिकत िजसक पित हम तटसथता का, वैर या देष का
अनुभव करत ह, िवपरीत िलगीय वयिकत िवशष या मृत वयिकत क पित करणा पेिषत करन स
नही पारंभ करना चािहय ।
जैसा िक िवभंग म कहा गया ह,८ 'करणायुकत िचत को कैस कोई एक िदशा म िवसतार कर
िवहार करता ह? िजस पकार िकसी अशुभ, दभागयपूणर वयिकत को दख कर कोई करणा का
अनुभव करता ह, उसी पकार वह करणा क साथ सभी पािणयो म अपन िचत को वयापत करता
ह ।'
पारंभ स ही, करणा भावना का िवकास िकसी दयनीय वयिकत को धयान का िवषय बना कर,
िकया जाना चािहए । हम िकसी अभाग, दभागयपूणर, कुरप, अतयंत दखी, सभी पकार स दया क
पात जैस वयिकत क िवषय म सोचत ह । हम इस पकार िवचार करना चािहय, 'यह वयिकत
वासतव म दखी हो गया ह । िकतना अचछा होता िक वह इस दख स मुकत हो जाता ।'
बुद न नगरवधू अामपािल एवं हतयार अंगुिलमाल जैस वयिकतयो क पित अपार करणा
िदखाई । दोनो उनक िशषय बन गय तथा उनक चिरत म संपूणर सुधार हअा ।
मुिदता अथात सहानुभूितशील हषर िवकिसत करन क िलय हम िकसी अित िपय िमत, िजस
टीकाअो म 'शौणड सहायक' अथात 'िजगरी दोसत' या 'लंगोिटया यार' कहा गया ह, स पारंभ
करना चािहय । वह ऐसा होगा जो सदैव पसनन रहता हो, जो पहल हंसता ह, अौर बाद म
बोलता ह । िवभंग म िलखा ह९ 'कैस कोई साधक मुिदतायुकत िचत को एक िदशा म िवसतार
कर िवहार करता ह? जैस कोई िकसी सुंदर, मनोरम वयिकत को दखकर मुिदता स भर जाता ह,
उसी पकार वह सभी पािणयो म मुिदता युकत िचत वयापत करता ह ।'
हमारा िपय वयिकत, वतरमान समय म भल ही अभागा एवं दभागयपूणर हो, िफर भी उसकी
अतीत की खुिशयो का समरण कर, मुिदता जगाई जा सकती ह । हम अपन मन म सोचना चािहय,
'अतीत म वह अतुल संपित वाला, िशषयो वाला था, तथा सदैव पसनन रहता था ।' तथा भिवषय
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िकसी ऐस वयिकत को चुनना ह, िजसका गला काट िदया जाएगा, कयोिक लुटर उस खून की बिल
दना चाहत ह । यिद वह अनय तीनो म स िकसी एक की अोर इंिगत करता ह, तो उसन अवरोधो
को धवसत नही िकया ह । यिद वह सवयं को पसतुत करता ह, तो भी उसन अवरोधो का
अितकमण नही िकया ह । कयो? कयोिक उस िसथित म वह सवयं की कित तथा दसरो का कलयाण
चाहता ह । कवल तभी जब वह चारो म स िकसी को भी उन डाकुअो को दन क िलए उपयुकत
नही पाता, तथा अपन िचत को सवयं क पित एवं दसरो क पित िनषपक भाव स लगाता ह, तभी
उसन अवरोधो का अितकमण िकया ह ।
य चार बह िवहार ह । हम अपन दैिनक जीवन म उनह सहायक पायंग । तथा िजतना
अिधक हम उनको िवकिसत करग, उतनी ही अचछी तरह हम अपनी साधना म सकम होग ।
िवपससना साधना क समय उपकखा का िवकास िवशष रप स उपयोगी होगा ।
यिद हम पतयक सदुणो का बारंबार अभयास कर, िजसस िक हम सवयं क पित, उनक पित
जो हमार िपय ह, िजनक पित हम तटसथ ह, तथा अपन शतुअो क पित, मानिसक िनषपकता म
पवीण हो, तो चार बह िवहारो की भावना का िवकास हमारी सहायता करगा ।
मता समसत संवदनशील पािणयो को अंगीकार करती ह । करणा सभी अभागो को
अंगीकार करती ह । मुिदता सुखी एवं समृद लोगो को अंगीकार करती ह । उपकखा अचछ-बुर,
िपय-अिपय तथा सुखद-दखद, सभी को अंगीकार करती ह ।
आप सभी की मता, करणा, मुिदता, एवं उपकखा म पगित हो ।
आप का सील, समािध, एवं पञञा म संवधरन हो ।
अाप लोभ एवं अासिकत स मुकत हो, देष व घृणा स मुकत हो, अजानता तथा िमथया दृिष स
मुकत हो ।
संदभर सूची
[1]See Buddhist Legends, II 17-19, (DpA 3,6) and The Illustrator of Ultimate
Meaning, pp. 265-294.
[2]This translation is based on K.R. Norman’s in The Group of Discourses, p. 24.
[3]See Buddhist Legends, III 14-18. (DpA 13,7)
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