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अांतरज तीय ववव ह तथ अांतरध लमिक ववव ह के सांबांध में सांघ क्य सोचत है ?
उत्तर - रोट -बेट व्यविार िा िम पूरा समथणन िरते िैं। लेकिन जब इसिो िरने जाते िैं
तो रोट व्यविार तो आसान िै । िम आसानी से िर सिते िैं और मजबूरन बिुत लोग
आजिल िर भी रिे िैं, वो मन से िोना चाहिए। इसिी आवश्यिता िै समझदार ठीि
िरनी पड़ेगी। बेट व्यविार थोड़ा िहठन इसललए िै कि उसमें िेवल सामाजजि समरसता
िा ववचार नि ं, दो पररवारों िे लमलन िा भी ववचार िै । वर-वधू िे भी मैचचंग िा ववचार
िै । ये सब दे ख िर िम उसिा समथणन िरते िैं। मिाराष्र में पिला 1942 में अंतरजातीय
वववाि िुआ। पिला ि था और अच्छे सलु शक्षित लोगों िा था इसललए उसिी प्रलसद्धी िुई।
उस समय उसिे ललए जो शुभ संदेश आए थे, उसमें पूजनीय डॉ. बाबा सािब आम्बेडिर
िा भी संदेश था और पूजनीय श्री गुरुजी िा भी संदेश था और गुरुजी ने उस संदेश में
ििा था कि आपिे वववाि िा िारण िेवल शार ररि आिषणण नि ं िै , आप ये भी बताना
चाि रिे िैं कि समाज में िम सब एि िैं, इसललए आप वववाि िर रिे िैं। मैं आपिा इस
बात िे ललए अलभनंदन िरता िूं। और आपिो दाम्पत्य जीवन िी सब प्रिार िी
शुभिामनाएं दे ता िूं।
ये मानव, मानव में भेद नि ं िरना, रुचच और अरुचच प्रत्येि िी अपनी िोती िै । पूरा
जीवन साथ में चलाना िै । वो ठीि से चल सिता िै कि नि ं इतना दे खना चाहिए। तो
बेट व्यविार िे ललए भी िमारा समथणन िै । मैं तो िभी-िभी ििता िूं कि भारत में
अंतरजातीय वववािों िी गणना िरिे असर परसेंटेज तनिाला जाए तो शायद आपिो सबसे
ज्यादा परसेंटेज संघ िे स्वयंसेविों िा लमलेगा, ऐसा िरने वाले। इस रोट -बेट व्यविार
िा चलन बढ़ाने से, यानी िेवल वववाि और िेवल साथ बैठिर खाने िी बात नि ं। जीवन
िे िर िृतत में समाज िो अभैद दृजष्ट से दे खना, मन से उसिो तनिालना। ये जब िरते
िैं तो हिन्द ु समाज जाततयों में नि ं बटे गा। इसिो िम सुतनजश्चत िर सिते िैं। वो बटे गा
नि ं ये मैं जानता िूं इसललए कि प्रत्येि हिन्द ू िी जो आत्मा िै वो आत्मा एिता में ि
ववश्वास िरती िै और मनुष्य िा शर र, मन, बुद्चध आत्मा से अलग िोिर ज्यादा चल
नि ं सिता। तो वो आत्मा जरूर दे श, िाल, पररजस्थतत िे अनुसार आवश्यि नया शर र
धारण िरे गी। इस पर मेरा पूणण ववश्वास िै और इसललए िम लोग सारे हिन्दओ
ु ं िो एित्र
िरने िा प्रयास िर ि रिे िैं। इस ववश्वास िे साथ ि िर रिे िैं। नि ं तो जजस जमाने
में संघ शुरू िुआ, उस जमाने में किसी िा ववश्वास नि ं था ऐसे िो सिता िै । बिुत लोगों
ने डॉ. िे डगेवार िो ििा कि िंधे पर पांचवा न िो तब ति जजस समाज िे चार लोग एि
हदशा में नि ं चल सिते। उस समाज िो िैसे एित्रत्रत िरें गे आप। लेकिन आज आप
दे खते िैं कि िर ि रिे िैं। तो इसललए जरूर िोगा। ये किया जा सिता िै , िमने िरिे
हदखाया गया िै और ये किया जाना चाहिए और िम िरें गे।
उत्तर - जातत व्यवस्था ििते िैं, उसमें गलती िोती िै । आज व्यवस्था ििां िै वो अव्यवस्था
िै । िभी ये जातत व्यवस्था रि िोगी, वो उपयुक्त रि िोगी, नि ं रि िोगी। आज उसिा
ववचार िरने िा िोई िारण नि ं िै वो जाने वाल िै । जाने िे ललए प्रयास िरें गे तो पक्िी
िोगी। उसिो भगाने िे ललए प्रयास िरने िे बजाय जो आना चाहिए उसिे ललए िम प्रयास
िरें तो ज्यादा अच्छा िोगा। अंधेरे िो लाठी मार-मार िर भगाएंगे अंधेरा नि ं जाएगा। एि
द पि जलाओ वो भाग जाएगा। एि बड़ी लाईन खींचो तो सारे भेद ववलुप्त िो जाएंगे। यि
संघ िर रिा िै और िम मानते िैं कि सामाजजि ववषमता िा पोषण िरने वाल सभी
बातें , ‘लॉि स्टॉि एंड बैरल’ बािर जानी चाहिए। िम ववषमता में ववश्वास नि ं िरते। ये
प्रत्यि आचरण में आने वाल अफरा-तफर िै लेकिन वो िरनी ि पड़ेगी। और उस पर
िमने िदम बढ़ाया। संघ िा िाम जैसे-जैसे बढ़े गा और सवणत्र पिुंचेगा, वैसे-वैसे संघ िे
िायणिताणओं में अब ऊपर जातत िा िमने तनजश्चत किया और अनुसूचचत जातत िे कितने
लोग िैं िम पूछ रिे िैं, इसललए उत्तर दे ना जरा िहठन िो रिा िै । लेकिन आज िी दृजष्ट
से दे खें तो जजनिो िम अनस
ु चू चत जातत, जनजातत िे मानते िैं उन बंधओ
ु ं िा भी प्रमाण
हदखने लगेगा। िम संघ में पछ
ू ते नि ं।
एि बार मैं सरिायणवाि चुना गया, पिल बार। िमारे सिसरिायणवाि सुरेश जी सोनी, उनिी
तनयुजक्त िो गई। तो मीडडया ने चलाया कि ये भागवत गुट िी ववजय िो गई लेकिन
ओ.बी.सी. िो ररप्रेजेंटेशन दे ना िै इसललए सोनी जी िो रखा िै । तो मैंने सोनी जी िो पूछा
कि सोनी जी आप ओ.बी.सी. में आते िैं क्या? तो उन्िोंने थोड़ा-सा स्माइल िर हदया और
उत्तर नि ं हदया। तो अभी-भी सोनी जी ििां आते िैं मैं नि ं जानता। ये संघ में वातावरण
िै । तो अगर िम इसी ढं ग से बढ़ते िैं तो ये पररवतणन िोता िै । नागपुर में, मैं पढ़ रिा था,
ववद्याथी था। उस समय नागपुर संघ िे लगभग सब अचधिार एि ि जातत िे थे, ब्राम्िण
जातत िे थे। लेकिन मैं नागपरु िा प्रचारि बनिर 80 िे दशि में जब वापस आया तो
जगि-जगि जजतनी बजस्तयां थीं उस प्रिार िी िायणिाररणी बनी थी। इसललए बनी थी कि
िमार शाखाएं बढ़ ं, िम उस बस्ती में पिुंचे, िमने िाम बढ़ाया, स्वाभाववि उसमें से
िायणिताण तैयार िुए, वो आ गए। िोटा लसस्टम िरें गे तो जातत िा भान रिे गा। सिज
प्रकिया से सबिो लाएंगे तो कफर जात नि ं रिे गी। सिज प्रकिया लाते समय लाने वालों िे
मन में ये भान रिना चाहिए क्योंकि स्वाभाववि प्रववृ त्त मनुष्य िी अपने जैसे िो पिड़ने
िी िोती िै । िमिो अपने जैसे िो नि ं पिड़ना िै , सबिो पिड़ना िै । ये ध्यान रखिर
अगर िाम चलता िै तो ऐसा िोता िै । 50 िे दशि में आपिो ब्राम्िण ि नजर आते थे।
क्योंकि आप पूछते िो तो थोड़ा बिुत ध्यान में आता िै कि जोन स्तर पर, प्रांत और प्रांत
िे ऊपर जोन, जोन स्तर पर सभी जाततयों िे िायणिताण आते िैं। अखखल भारतीय स्तर
पर भी अभी एि ि जातत नि ं रि । वो बढ़ता जाएगा और सम्पूणण हिन्द ू समाज िा
संगठन जजसमें िाम िरने वालों में सभी जातत वगों िा समावेश िै । ऐसी िायणिाररणी
आपिो उस समय हदखने लगेगी। मैंने ििा यात्रा लम्बी िै लेकिन िम उस ओर आगे बढ़
रिे िैं ये मित्व िी बात िै ।
घुमंतु जाततयों िे ललए िमने िाम किया िै । मैं मानता िूं कि स्वतंत्रता िे बाद उनिी
दखल लेिर िाम िरने वाले िम पिले िोंगे। मिाराष्र में ये िाम शुरू िुआ। और उसिे
चलते बिुत सार बातें िुईं। उनिो जस्थर िरना, उनिे बच्चों िो लशिा में भेजना, लशिा
प्राप्त िरिे वो समाज में आगे बढ़ें इसिो दे खना। उनिी जो परम्परा से आने वाल रूहढ़यां
िुर ततयां िैं उसिो िटाने िा भाव उनिे ि मन में उत्पन्न िरिे उसिो गि
ृ स्थ िरना
आहद सार बातें िरते-िरते िायण िा पररणाम ऐसा िो गया कि पिले मिाराष्र सरिार ने
और िेन्र सरिार ने भी उनिे ललए यानी अलग िमीशन बनाया िै और वो पायलट
प्रोजेक्ट िमारा चला िै । यमगरवाडी नाम िा स्थान िै । विां उसिी िेन्र यभत
ू जानिार
और िायण िा प्राथलमि स्वरूप आपिो दे खने िो लमलेगा। जजनिो जाना िै जरूर जाइए।
ये जो ववदे शों में यात्रा िरते िैं आप मनोरं जन िे ललए, एि बार विां िी भी यात्रा िीजजए।
कितने पापड़ बेलिर िायणिताणओं ने इस समाज िो बराबर में लाने िा प्रयास चलाया िै ।
ये आप जान सिेंगे। उसिो दे खखए उस िायण िो अब अखखल भारत में जजतनी घुमंतु
ववमुक्त जाततयां िै , उनिे ललए बढ़ाने िा भी िमने उपिम वपछले वषण से प्रारं भ किया िै
और िम उनिे ललए भी िाम िरें गे।
उत्तर- दे खखए धमणपाल जी िा ग्रन्थ आप पढ़ें गे तो आपिो ध्यान में आयेगा कि अंग्रेजों िे
आने िे बाद उन्िोंने जब सवे किया तो उनिो ध्यान में आया कि परम्परा से िमार लशिा
पद्धतत ज्यादा प्रभावी अचधि लोगों िो सािर बनाने वाल , मनुष्य बनाने वाल और अपना
जीवन चलाने िे ललए योग्य बनाने वाल थी। वो अपने दे श में ले गए और ऐसा सब िुछ
एि साथ न िर सिने वाल उनिी पद्धततयां उन्िोंने लाईं। ये इततिास िै । और इसललए
आज िी दतु नयां में आधतु नि लशिा प्रणाल में जो लेने लायि िै वो लेते िुए अपनी
परम्परा से जो लेना िै वो लेिर िमिो एि नई लशिा नीतत बनानी चाहिए। आशा िरता
िूं कि नई लशिा नीतत आने िो िुई िै । उसमें ये सब बातें िोंगी।
नीनत ननय मक सांस्थ ओां में अांग्रेजी क प्रभुत्व दिख ई िे त है । सांघ क भ रतीय भ ष ओां
और दहन्िी के प्रनत क्य ववच र है ?
सांस्कृत के ववद्य लय भी घट रहे हैं। और इसे महत्व भी नहीां दिय ज त । सांघ इस श्स्थनत
को कैसे िे खत है ? ,
उत्तर - अब ये जो अंग्रेजी िे प्रभुत्व िी बात िै वो नीतत में यानी संस्था में ििा वो तो
िमारे मन में िै । आज ये सामान्य अनुभव िै कि भारत िा उच्चभ्रू वगण भारतीय भाषाओं
में जो बोल सिता िै , हिन्द भी जानते िैं दोनों, लेकिन लमलते िैं तो अंग्रेजी में बात िरते
िैं। तो िम अपनी मातभ
ृ ाषाओं िो सम्मान दे ना शुरू िरें । भाषा भाव िी वािि िोती िै ,
संस्िृतत िी वािि िोती िै । और इसललए भाषाओं िा रिना ये अतनवायण बात िै मनष्ु य
जातत िे वविास िे ललए। अपनी भाषा िा परू ा ज्ञान िो, किसी भाषा से शत्रत
ु ा िरने िी
जरूरत नि ं। अंग्रेजी िटाओ नि ं, अंग्रेजी रखों, यथास्थान रखो। अंग्रेजी िा एि िौआ जो
िमारे मन पर िै उसिो तनिालना चाहिए। इंटरनेशनल लैंग्वेज िमेंशा ििते िैं लेकिन
वास्तव में ऐसा िै कि लोगों में अगर िम बात िरते िैं तो यूरोप िे दे शों में दो भारतीय
लमलने िे बाद अंग्रेजी में बात िरें गे तो सबिो समझ में नि ं आएगी, उनिो भारतीय
भाषाओं िा प्रयोग िरना पड़ता िै क्योंकि जिां-जिां अंग्रेजों िा प्रभुत्व रिा ऐसे दे शों में
अंग्रेजी िा एि स्थान िै । अमेररिा भी अंग्रेजी बोलती िै लेकिन वो ििती िै त्रब्रहटश अंग्रेजी
से िमार अंग्रेजी अलग िै । स्पैललंग ति सब अलग-अलग िैं। फ्ांस में जाएंगे फ्ेंच चलेगी।
इसराइल में आपिो पढ़ने जाना िै तो हिब्रू पढ़िर जाना पड़ेगा। रालशया में जाना िै तो
रलशयन सीख िर जाना पड़ेगा। चीन, जापान सब अपनी-अपनी भाषा िा प्रयोग सब अपनी-
अपनी बातों में िरते िैं। उन्िोंने प्रयासपूवि
ण इसिो किया िै । िमिो ये प्रयास िरने पड़ेंगे।
जजतना िम स्वभाषा में िाम चलाएंगे और सबसे समद्
ृ ध भाषाएं िमारे पास िैं। िम ये िर
सिते िैं, िम िरने िो िो जाएं तो ये िो जाएगा। अंग्रेजी से िमार िोई शत्रुता नि ं िै ।
उत्तम अंग्रेजी बोलने वाले चाहिए। और दतु नयां में भी अपने अंग्रेजी व्यजक्तत्व िी छाप बना
सिते िैं ऐसे अंग्रेजी बोलने वाले लोग िमारे दे श िे भी िोने चाहिए। भाषा िे नाते किसी
भाषा से शत्रुता िम नि ं िरते, लेकिन दे श िी उन्नतत िे नाते िमार मातभ
ृ ाषा में लशिा
िो इसिी आवश्यिता िै । कफर आता िै कि िमार तो अनेि भाषाएं िै । एि भाषा िमार
क्यों नि ं िै ? तो किसी एि भारतीय भाषा िो िम सीखे। इसिा मानस िमिो बनाना
पड़ेगा। हिन्द िी बात स्वाभाववि रूप से चल िै , परु ाने समय से चल िै । अचधि लोग
हिन्द बोलते िैं इसललए चल िै । लेकिन ये मन बनाना पड़ेगा। िानून बनाने से नि ं िोगा,
थोपने से नि ं िोगा। आखखर एि भाषा िी बात िम क्यों िर रिे िैं इसललए िमिो दे श
िो जोड़ना िै । एि भाषा बनाने से अगर दे श में यूरोप खड़ा िोता िै आपस में िटुता बढ़ती
िै तो िमिो तो यि सोचना चाहिए कि मन िम िैसा बनाएं। मेरा अनुभव ऐसा ििता िै ,
हिन्द ठीि िै िोई हदक्ित नि ं िै । लेकिन हिन्द में िाम िरना पड़ता दे श में अचधिांश
भाग में इसललए अन्य प्रांतों िे ललए बिुत से लोग हिन्द सीख रिे िैं, हिन्द सीखते िैं।
हिन्द प्रांतों िे लोगों िा हिन्द में चल जाता िै , इसललए दस
ू र भाषा नि ं सीखते। क्यों न
हिन्द बोलने वाले लोगों ने भी दस
ू रे किसी प्रांत िी एि भाषा िो सीखना चाहिए। तो ये
मन लमलाप जल्द िोगा, िमार एि राष्र भाषा और उसमें सारा िारोबार, ये िाम जल्द
ि िो जायेगी। ये िरने िी आवश्यिता िै ।
उत्तर - लड़कियों और महिलाओं िी सुरिा। ये सुतनजश्चत िरने िे ललए दो-तीन बातें िरनी
पड़ेंगी। परु ाने जमाने में जब घर िे अंदर महिलाओं िा बंद रिना तनजश्चत रिता था तब
उसिी जजम्मेदार पररवार पर रिती थी। लेकिन अब महिलाएं भी परू
ु षों िी बराबर से
बािर आिर ितत्णृ व हदखा रि िैं और हदखाना चाहिए उन्िोंने। तो उनिो अपनी सरु िा िे
ललए भी सजग और सिम बनाना पड़ेगा। इसललए किशोर आयु िे लड़िे और लड़िीयां
दोनों िा प्रलशिण िरना पड़ेगा। किशोर वविास, किशोर वविास। ये िाम संघ िे स्वयंसेवि
िर रिे िैं क्योंकि महिला असुरक्षित िब िो जाती िै , जब पुरूष उसिी ओर दे खने िी
अपनी दृजष्ट िो बदलता िै । इस पर बड़ी चचाणएं चल िैं तो एि मीडडया िी पत्रिार महिला
बोल रि थी। मैं सुन रिा था। जब सजा िो गई थी, बलात्िाररयों िो िड़ी सजा िो गई
थी सुप्रीम िोटण से। उसिी चचाण चल रि थी। मैं बैठा था तो वो महिला िि रि थी कि
िेवल अपराचधयों िो सजा िोने से िाम नि ं चलता। मूल समस्या यि िै महिलाओं िो
दे खने िी परु
ु ष िी दृजष्ट बदलनी पड़ेगी। और ये दृजष्ट िमार परम्परा में िै । मातव
ृ त
परदारे ष।ु अपनी ब्यािता पत्नी छोड़िर बािी सबिो माता िे रूप में दे खना। ये अपना
आदशण िै । उन संस्िारों िो पुरुषों में भी जगाना पड़ेगा। इसललए किशोर और किशोर
वविास िा िम चले और महिलाओं आत्मसंरिण िी िला लसखाने वाले िम भी बढ़ें ।
इसमें भी स्वयंसेविों ने िाम प्रारं भ किया िै । तो बड़ी मात्रा में और स्िूल, िॉलेज िी
छात्राओं िो इसिा प्रलशिण दे ना और कफर प्रलशिण िी स्पधाणएं भी आयोजजत िरना वपछले
वषण से ये उपिम शुरू िुआ िै । दे श िे सब राज्यों में ये शुरू िोगा आगे चलिर। संघ िे
स्वयंसेवि इसिो िरते िैं, राष्र य स्वयंसेवि संघ िेवल शाखा चलाता िै , िुछ नि ं िरता।
लेकिन संघ िे स्वयंसेवि ये िरते िैं तो ववद्याथी पररषद िे द्वारा यि उपिम शुरू किया
गया िै । और उसिे बड़े-बड़े िायणिम िो रिे िैं और यि प्रलशिण हदया जा रिा िै । दे शव्यापी
ये िायणिम वो चलाएंगे। अब िानन
ू िा डर अपराचधयों में िम रिता िै क्योंकि िानून
एि िद ति चल सिता िै । समाज िे धाि संस्िारों िा चलन इसिा पररणाम ज्यादा
िोता िै । िानून िी यशजस्वता समाज िे मानस पर तनभणर िरती िै । लाल बत्ती िै , लेकिन
लाल बत्ती न तोड़ने वाला सामथ्यण आ जाए तो लाल बत्ती िा चलता िै । इसललए िानून तो
िड़े से िड़े बनने चाहिए और उनिा अमल ठीि से िो िर अपराधी िो उचचत सजा
लमलनी चहिए। इसमें िोई दो राय नि ं िो सिती। लेकिन उसिे साथ-साथ समाज भी
इसिी नजर रखे। आंखों िी शमण िो लोगों में। समाज िा वातावरण ऐसा िो जो अपराधों
िो बढ़ावा नि ं दे ता। ये िमार जजम्मेदार िै । उस दृजष्ट से ये संस्िार जागरण िा पि भी
इन मामलों में उतना ि मित्व िा िै । िम दे खते िैं कि िि ं-िि ं पांच, साढ़े पांच बजे िे
बाद महिलाएं बािर जाती नि ं और िि ं-िि ं अपने दे श में ऐसे इलािे िैं, ऐसे राज्य िैं
जिां पर रात िो भी सब अलंिार पिनिर महिला िि ं जाती िै अिेल भी जाती िै तो
भी उसिे मन में िोई भय नि ं िै । ये पररणाम िानून िा नि ं िै , ये पररणाम विां िे
वातावरण िा िै । उस वातावरण िो िमिो बनाना पड़ेगा, प्रयासपूवि
ण । िम सबिो उसिे
ललए िाम िरना पड़ेगा, वो िरना चाहिए।
उत्तर- ववश्व में हिन्दत्ु व िो लेिर आिोश और हिंसा नि ं िै । उल्टा िै । ववश्व में हिन्दत्ु व
िी स्वीिायणता बढ़ रि िै । भारत में िै , आिोश और भारत में जो आिोश िै वो हिन्दत्ु व
ववचार िे िारण नि ं िै , ववचार िो छोड़िर गत 1500, 2000 िजार वषों में िमने जो
आचरण से एि वविृत उदािरण प्रस्तत
ु किया, उसिो लेिर। िमारे मल्
ू यबोध िे अनस
ु ार
जो आचरण िरना चाहिए वो न िरते िुए िम पोथीतनष्ठ बन गए, रूढ़ तनष्ठ बन गए,
िमने बिुत सारा अधमण, धमण िे नाम पर किया। तो आज िी दे शिाल पररजस्थतत िे
अनुसार धमण िा आचार, धमण िा रूप बदलिर िमिो उस आचरण िो िरना पड़ेगा तो
सारा आिोश ववलुप्त िो जाएगा। क्योंकि ववचार िे नाते हिन्दत्ु व िा ववचार श्रेष्ठ, उदात्त,
शुद्ध िै । िमिो ववचार िे अनुसार चलने िा अभ्यास िरना पड़ेगा। और संघ यि िरता
िै । डॉ. िे डगेवार िे प्रारं भ हदनों िे बौद्चधि वगण बिुत िम उपलब्ध िै , लेकिन जो एि
उपलब्ध िै उसमें एि तत्व और व्यविार। उसमें डॉ. िे डगेवार ने ििा कि श्रेष्ठ तत्व िेवल
बोलने से क्या िोता िै , वैसा ि व्यविार िरिे बताओ। जो तत्व व्यविार में आप उतार
नि ं सिते, वो तत्व किस िाम िा। और तत्व आपिा श्रेष्ठ िै लेकिन व्यविार गलत िै
तो भी वो तत्व किस िाम िा। और इसललए हिन्दत्ु व िे मूल्यबोध िे आधार पर पिले
हिन्द ू अच्छा, पक्िा, सच्चा हिन्द ू बनें। इसिे ललए संघ चलता िै । िम इन्ि ं संस्िारों िो
प्रत्येि व्यजक्त में भरने िा प्रयास लगातार 92 साल से िर रिे िैं।
क्य कन्वजिन छल, बल, धन से हो रह है ? क्य इसके ललए र ष्रीय स्तर पर क नून
बनन च दहए। अगर सभी मत पांथ सम न है तो सांघ कन्वजिन क ववरोध क्यों करत है ।
उत्तर- एि गुलाबराव मिाराज िो गए। उनिो भी यि आखखर वाला प्रश्न पूछा गया था।
उन्िोंने जो उत्तर हदया वो ि मैं आपिो दे ता िूं। अगर सभी मतपंथ समान िै तो िन्वजणन
िी आवश्यिता क्यों िै ? क्यों आप इधर से उधर ले जाने िा प्रयास िर रिे िो। सभी
मतपंथ समान िै न, तो जजसमें िै वो उसमें पूणत
ण ाः प्राप्त िरे गा। तपस्या िरे गा तो। आप
उसिो कफर भी इधर ला रिे िो तो आपिा उद्दे श्य उसिा अध्यात्म लसखाना नि ं िै ।
भगवान मािेट में बेचा नि ं जाता, भगवान जबरदस्ती स्वीिार नि ं किया जाता। लेकिन
छल, बल और दल से िोता िै । तो वो िोना ि नि ं चाहिए क्योंकि उसिा उद्दे श्य मनुष्य
िी आध्याजत्म उन्नतत नि ं िै , दस
ू रे िुछ उद्दे श्य तछपे िैं, आप ववद्वान लोग िैं मैं उसिा
वणणन क्यों िरूं। आप दे श-ववदे श िे इततिास पढ़ ल जजए उसमें िन्वजणन िरने वालों िे
क्या रोल रिे िैं। इसिा डाटा तनिाललए, सत्य डाटा। संघ वालों ने न ललखा िुआ डाटा। संघ
िे ववरोधी ववचार रखने वालों ने भी इसिे बारे में ललख िै । वो दे ख ल जजए तो आपिो
पता चलेगा कि इसिा ववरोध क्यों िरना चाहिए। संघ वाले क्यों िरे , पूरे समाज में ऐसे
िन्वजणन िा ववरोध िरना चाहिए। ये मेरा मामला िै मैं किसिी पूजा िरूं। मेरे मन में
आता िै । एि नारायण वामन ततलि थे, ब्राम्िण थे। अच्छा पररवार था, उनिे मन में आ
गया कि ये यीशू िा रास्ता ठीि िै । और उन्िोंने अपने आपिो इसाई बना, वो पास्टर
बने। उनिी पत्नी ने अपना धमण नि ं छोड़ा। वो बने रिे । और संघ वालों सहित सब लोग
मिाराष्र में उनिो बड़े आदर िी दृजष्ट से दे खते िैं। उन्िोंने िन्वसणन किया इसिी बात
िोई नि ं िरता। उन्िोंने दे शभजक्त िी उत्तम-उत्तम िववताएं िमिो द ं। और साजत्वि जीवन
िा अथण अपने जीवन में, समाज में रखा। क्योंकि वो छल-बल से िन्वटण नि ं िुए थे, उनिे
मन में पररवतणन आया। इसिो तो मान्यता िै हिन्दओ
ु ं में। लेकिन ऐसा नि ं िोता िै । चचण
में आने िे ललए इतने रुपये दें गे, ऐसा नि ं िोता िै , उसिा ववरोध िरना ि चाहिए।
अध्यात्म, ये बेचने िी चीज नि ं िै ।
िे श के कई दहस्सों में बिलत जनस ांख्यकीय स्वरूप और दहन्ि ू जनसांख्य के घटते वद्
ृ चध
िर को सांघ कैसे िे खत है ? क्य जनसांख्य ननयांत्रण के ललए क नून बन य ज न च दहए।
50 स ल ब ि भ रत में दहन्िओ
ु ां की श्स्थनत क्य होगी? जनसांख्य से क्य ववक स प्रभ ववत
हो रह है ? सांघ इसे कैसे िे खत है ?
उत्तर- संघ िा इसिे बारे में प्रस्ताव िै उसी िा वणणन मैं िरता िूं। जनसंख्या िा ववचार
जैसे एि बोझ िे रूप में िोता िै । मुंि बढ़ें गे तो खाने िो तो दे ना ि पड़ेगा। रिने िो
जगि दे नी पड़ेगी, पयाणवरण िा उपयोग ज्यादा िोगा तो िै लेकिन जनसंख्या िाम िरने
वाले िाथ भी दे ती िै । अभी भारत तरुणों िा दे श िै । 56 प्रततशत तरुण िै और िमिो बड़ा
गवण िै दतु नया में सवाणचधि तरुण भारत में िै । 30 साल बाद यि तरुण जब बढ़
ू े िो जायेंगे
तब इनसे ज्यादा तरुणों िी संख्या नि ं िोगी नि ं तो भारत बढ़
ू ों िा दे श िो जायेगा जैसे
आज चीन िै । इसललये जनसंख्या िा ववचार दोनों दृजष्ट से िरना चाहिए। तात्िाललि नि ं
एि पचास साल िा प्रोजेक्शन मन में लािर यि सोचना चाहिए कि कितने लोगों िो
खखलाने िी िमार िमता िोगी, रोट , िपड़ा, मिान, लशिा, स्वास्थ्य यि जो गि
ृ स्थ िी
आवश्यिताएं छि रिती िैं वि दे ने िी िमता िमार क्या िोगी। उस समय भार िमारा
पयाणवरण कितना सिन िर सिेगा। िैसे उसिी िमता िम बढ़ा सिते िैं। उस समय ये
सारा िाम िरने वाले िाथ िमिो कितने चाहिए और जनसंख्या चचाण तो िम सब िरते िैं
जन्म दे ने िा िाम माताओं िो िरना पड़ता िै । तो वो िमार कितनी सिम िै , कितनी
प्रबद्
ु ध िै , भरण पोषण िी व्यवस्था उसिे िाथ में कितनी िै ये सारा ववचार िरते िुए
और एि मित्व िी बात दस
ू रे प्रश्न में जो पिले प्रश्न में ि आयी िै डेमोग्रैकफि बैलेंस,
अब िम इसिो माने या न माने यि मित्व िी चीज तो सब जगि मानी जाती िै । इसिी
बात न िरने वाले भी लोग िैं लेकिन वि इसिा मित्व भी समझते िैं। तो डेमोग्रैकफि
बैलेंस भी रिना चाहिए। इसिो ध्यान में रखिर एि जनसंख्या िे बारे में नीतत िो, अभी
नीतत िै कफर यि दे खा जाए कि यि सारा उसमें ववचाररत िै कि नि ं, सुववचाररत िै कि
नि ं ये पचास साल िी जस्थतत िी िल्पना िुई क्यों, और उस नीतत में जो तय िोता िै
वि सब पर समान रूप से लागू किया जाए किसी िो उसमें से छुट्ट न िो। जिां समस्या
िै विां पिले उपाय िों यानी जिां बच्चों िो पालन िरने िी िमता नि ं िै लेकिन बिुत
बच्चे िो रिे िैं, परवररश ठीि नि ं िोगी तो अच्छे नागररि नि ं बनेंगे जिाँ नि ं िै विां
लागू तो िरना िै सब पर लेकिन थोड़ा बाद में भी किया तो चलेगा। लेकिन ये िानून
बनािर लागू िरने से स्वीिार िरें गे लोग ऐसा नि ं िै । मैं स्वयं एि साल सरिार नौिर
में था और फैलमल प्लातनंग िैम्पेन िा वि पीि था। िम सब किसी भी डडपाटण मेंट िे िों
िमें िाम िरना पड़ता था। गांव गांव में जािर मैंने इसिा प्रचार किया िै और दे िाततयों
िे प्रश्न सब मैंने सन
ु े िैं। मन बनाना पड़ेगा। सबिा मन बनाना पड़ेगा। धैयण से सोचना,
ठीि से सोचना, जो तय किया िै उसिे बारे में मन बनाना और इसिो समान रूप से सब
पर लागू िरना ये उसिे उपिार ि िोंगे फायदे िोंगे। और इसमें एि बात और ध्यान में
रखना चाहिए कि जन्मदर एि बात िै , अब हिन्दओ
ु ं िा जन्मदर घट रिा िै या बढ़ रिा
िै जो भी आप ििें गे इसिे ललए नीतत जजम्मेवार िेवल नि ं रिती। वि सोच भी रिती िै ।
उचचत सोच क्या िो, पररवार में संतान यहद कितनी िै यि िेवल दे श िा ि प्रश्न नि ं िै ।
यि एि-एि पररवार िा भी प्रश्न िै । तो उसिा संतुललत ववचार िैसे िरना िै इसिा भी
प्रलशिण समाज िो लमलना चाहिए। लेकिन दस
ू र दो बाते िैं। डेमोिेहटि इमबेलेन्स
मतांतरण िे िारण भी िोता िै । घुसपैठ िे िारण भी िोता िै । मतांतरण िे बारे में मैं
बोल चि
ु ा िूँ। घस
ु पैठ सीधा सीधा अपने दे श िी संप्रभत
ु ा िो आह्वान दे ने वाला ववषय िै
उसिा िड़ाई से बंदोबस्त िोना चाहिए।
आरक्षण क मुद्ि
उत्तर- सामाजजि ववषमता िो िटािर समाज में सबिे ललए अवसरों िी बराबर प्राप्त िो
इसललये सामाजजि आरिण िा प्रावधान आरिण में किया िै । संववधान सम्मत सभी
आरिणों िो संघ िा पूरा समथणन िै । बीच बीच में वक्तव्य िोते िैं उन में से अथण तनिाले
जाते िैं। यि बात ध्यान में रखखये सामाजजि ववषमता दरू िे ललए संववधान में जजतना
आरिण हदया गया िै उसिो संघ िा पूरा समथणन िै और रिे गा। आरिण िब ति चलेगा
इस तनणणय जजनिे ललए आरिण हदया गया िै वि िरें गे। उनिो जब लगेगा कि अब
आवश्यिता नि ं िै इसिी तब वो दे खेंगे। लेकिन तब ति इसिो जार रिना चाहिए ऐसा
संघ िा बिुत सवु वचाररत और जब से ये प्रश्न आया िै तब से मत िै । उसमें बदल नि ं
िुआ िै । अब िीमीलेयर िो क्या िरना। और लोग मानते िैं। सामाजजि आधार पर आरिण
संववधान में िै । सम्प्रदायों िे आधार पर नि ं िै । क्योंकि सभी समाज िभी न िभी अग्रणी
वगों में रिे िैं अपने यिां। तो उनिे आरिण िा क्या िरना। अब और भी जाततयां आरिण
मांग रि िै उनिा क्या िरना। इसिा ववचार िरने िे ललए संववधान ने पीठ बनाए िैं।
फोरम बनाये िैं वि उनिा ववचार िरे और उचचत तनणणय दे । आरिण समस्या नि ं िै ।
आरिण िी राजनीतत ये समस्या िै । भई अपने समाज िा एि अंग पीछे िै ऐततिालसि
सामाजजि िारणों से। शर र पूरा स्वस्थ तब ििा जाता िै उसिे सब अंग जब आगे जाना
िै तो आगे जाते िैं। मैं आगे जाने िो िोता िूं िाथ हिलने लगते िैं लेकिन पैर पीछे रि
जाते िैं तो मझ
ु े पैराललहटि ििा जाता िै । इसललये उसिो बराबर में लाने िी आवश्यिता
िै । तो समाज मे ये बराबर िब आएगी। तो जो उपर िै वो नीचे झि
ु ें गे और जो नीचे िैं
वो उपर उठें गे, िाथ से िाथ लमलािर गड्डे में जो चगरे िैं उनिो ऊपर लाया जाएगा। समाज
िो आरिण ् िा ववचार इस मानलसिता से िरना चाहिए। आज िमिो लमल रिा िै या नि ं
लमल रिा िै यि नि ं सोचना चाहिए। सबिो लमलना चाहिए। सामाजजि िारणों से िजारों
वषों से लगभग जस्थतत िै कि िमारे समाज िा एि अंग पूणत
ण ाः तनबणल िमने बना हदया िै
उसिो ठीि िरना आवश्यि िै । िजारों वषों िी बीमार िो ठीि िरने में अगर िमिो
100-150 साल नीचे झुििर रिना पड़ता िै तो ये िोई मिं गा सौदा त्रबल्िुल नि ं िै । यि
तो ितणव्य िै िमारा। ऐसा सोचिर इसिा ववचार िरना चाहिए तो इन सारे प्रश्नों िे िल
लमलेंगे और इस प्रश्न िो लेिर राजनीतत नि ं िरनी चाहिये। ये समाज िी स्वस्थता िा
प्रश्न िै । इसमें सबिो एिमत से चलना चाहिए। ऐसा संघ िो लगता िै ।
एससीएसट एक्ट
उत्तर- स्वाभाववि अपने सामाजजि वपछड़ेपन िे िारण और अपनी जाततगत अिं िार िे
िारण एि अत्याचार िी पररजस्थतत तो िै । उस पररजस्थतत से तनपटने िे ललए अत्याचार
तनरोधि िानन
ू बना। वो ठीि से लागू िोना चाहिए। उसिा दरु
ु पयोग नि ं िोना चाहिए।
ये दोनों बाते िैं। ये ठीि से लागू नि ं िोता, दरु
ु पयोग भी िोता िै । ये भी िै । और इसललये
संघ मानता िै कि उस िानून िो ठीि से लागू िरना चाहिए और उसिा दरु
ु पयोग नि ं
िोना चाहिए। लेकिन ये िोगा िैसे। ये िेवल िानून से नि ं िोगा। समाज िी सद्भाव
समाज िी समरसता िी भावना इसमें िाम िरती िै । क्यों आज िे युग में लशिा िा
इतना प्रसार िोने िे बाद भी आपिो दे खने िे बाद मेरे मन में प्रश्न आता िै कि आप
िौन िैं। यानी नाम वाम मालूम िै लेकिन आप ििां से आते िैं यि क्यों आता िै मेरे मन
में। और अत्याचार अत्याचार िै । वो इस पर िुआ इसललए जायज िै उस पर िुआ तो
नाजायज िै ऐसा नि ं िै । तो ये सद्भावना जागत
ृ िरने िी बिुत आवश्यिता िै । बािी
सप्र
ु ीम िोटण ने क्या ििा? और सरिार ने क्या किया इसिे बारे में मैं नि ं बोलंग
ू ा। संघ
िी इच्छा यि िै कि िानन
ू िा संरिण रिे । उसिा दरु
ु पयोग न िो और इस समस्या िो
समाज में आपसी सद्भाव बढ़ािर ठीि िरना चाहिए। िानून िुछ िरे न िरे । िोई
अस्पश्ृ यता िानून से नि ं आई समाज िे। वि समाज िे रूहढ़ िे िारण आई िै । शास्त्रों
से भी नि ं आई िै । यि िमार दभ
ु ाणवना िे िारण आई िै । तो िमार सद्भावना ि उसिा
प्रततिार िरने िा िाम िर सिेगी। उस सद्भावना िो बढ़ाने िा िाम स्वयंसेवि ि
चलायें िैं। समरसता मंच िे रूप में स्वयंसेवि जो िाम िरते िैं सद्भावना बैठिें चलािर
इन सार बातों िो ठीि िरने िा उनिा प्रयास रिता िै ।
समलैंचगकत
प्रश्न- ह ल में आये फैसले के ब ि ध र 377 और समलैंचगकत क मुद्ि चच ि क ववषय
बन हुआ है । सांघ क इस पर क्य मत है । इसके स थ ही ककन्नरों की भी स म श्जक
श्स्थनत यह एक प्रश्न है । इस पर आपक क्य ववच र है ।
उत्तर- समाज िा प्रत्येि व्यजक्त अपनी भाषा मानते िैं तो जातत अपने सम्प्रदाय िे साथ
समाज िा एि अंग िै । तो ये जो ववलशष्टता िै उसिे साथ ऐसी िुछ बातें भी समाज में
िुछ लोगों में िै , लेकिन वो िै तो समाज िे अंग। उनिी व्यवस्था िरने िा िाम ये कफर
से मैं ििता िूं समाज में िरना चाहिए और अपनी परम्परा में अपने समाज में ये िाम
िुआ िै । अब समय बदला िै तो अलग प्रिार िी व्यवस्था िरनी पड़ेगी। िरनी चाहिए।
उसिो बड़ा चचाण जैसे वि समस्या िै प्रमुख दे श िी इतना बनािर िो िल्ला से िाम नि ं
िोगा। ये सहृदयता से दे खने िी बाते िैं। जजतना उपाय िो सिता िै वैसा िरना नि ं तो
जैसा िै वैसा िरना उनिी िोई न िोई व्यवस्था बने ताकि सारा समाज स्वस्थ मन से
चल सिे और किसी िारण ऐसी अस्वस्थता किसी िे मन में िै या अलगपन िै तो उसिे
समाज से अलग-थलग पड़ जाने िा और अपने जीवन में आगे न बढ़ पाने िा िारण न
बने। ये इस सारे समाज िो दे खना पड़ेगा। समय बिुत बदला िै । इसललये इसिी सामाजजि
टे िललंग िे बारे में ववचार िमिो िरना पड़ेगा। बािी िानन
ू अपनी जगि शब्दों िे क्या
क्या अथण तनिालिर िरता िै वि िरता िै । उसिा इलाज नि ं। उसमें िम चचाण िरने
जाएँगे तो बिुत सार बातें तनिलेंगी। समस्या वि ं िी वि ं रिे गी। इसललये सहृदयता से
इन सब लोगों िो दे खते िुए और समाज स्वस्थ रिे इस तरि से उनिी व्यवस्था िैसे िी
जाए ताकि वो भी िेवल अपने अलगपन िे िारण आइसोलेट िोिर किसी गतण में न चगर
जायें ये िरने िी आवश्यिता मुझे लगती िै ।
प्रश्न- सांघ की नीनत में प्रमुख आांतररक सुरक्ष क्य है और उसक सम ध न क्य है ?
आतांकव ि आज सबसे बड़ी चुनौती बन गय है । इसक सम ध न क्य है ? िे शद्रोह क कोई
धमि नहीां है । क्य कोई सख्त क नन
ू नहीां होन च दहए क्य आतांकव ि से जड़
ु े मद्
ु िों के
ललए फ स्ट रै क नहीां होने च दहए।
उत्तर- आंतररि सरु िा में आंतररि फसाद खड़ा िरने वालों में समाज आिवषणत न िो।
इसललये समाज में वविास िी धारा सवणत्र पिुंचाना, शासन प्रशासन अपना िै , जवाबदे ि िै ,
ऐसा लगना, और इस दे श में अपन जीवन चल सिता िै , उन्नत िो सिता िै ये ववश्वास
उसिे मन में रिना। ये िाम शासन प्रशासन िो भी िरना िोता िै समाज िो भी िरना
िोता िै । क्योंकि इसमें िलमयों िा लाभ लेिर सुरिा िे ललए आव्िान उत्पन्न िरने वाले
लोग सवणत्र िैं। यिां भी िैं। उनिी न चले इच्छा तो ये िरना पड़ता िै । और दे श िे संववधान
िानून िो लागू िरने िे विां मामले में उसिे ववरोध में खुला चलने वालों िा बन्दोबस्त
िड़ाई से िोना चाहिए। तो अपने समाज िी जस्थतत ये भी एि चुनौती आंतररि सुरिा िा
ववचार िरते िैं तब सामने आती िै । और शासन िी िायणवाि पयाणप्त सत्य िो, पयाणप्त
सीधी िो, गोल से बात नि ं िोगी बोल से िो सिती िै और बोल इस तरफ जानी चाहिए
कि भारत दे श एि तरफ रिे । भारत दे श अखंड रिे । इस रवैये से सबिो चलना चाहिए।
इसमें जो िभी िभी आगे पीछे िोता िै उसिे पररणाम घाति िोते िैं। और इसललये सरिार
िी दृढ़ नीतत समाज और सरिार िा सब लोगों ति पिुंचना, सब ति वविास िा पिुंचाना
और अपनत्व िा एि भरोसा सबमें उत्पन्न िरना ये बात िै और उसिो लेिर जो िानून
बने िैं और सख्त िानून आवश्यिता िै ये सब मैं बात िरता िूं लेकिन िानूनों िे अमल
में सरु िा िो खतरा उत्पन्न िरने वाले, िानून तोड़ने वाले, दे शरोि िी भाषा िरने वालों
िी तरफ से अपने ि समाज से उनिा समथणन िरने वाले खड़े न िों, यि भी आवश्यिता
िै । तो समाज िा मन ऐसा बने कि ऐसी बात िरने वाले आइसोलेट िो जायें। यि भी साथ
साथ िोना चाहिए। यि दोनों बात जब िोती िै तो कफर आन्तररि सुरिा मजबूत रिती िै ।
सम न न गररक सांदहत
प्रश्न- नोट के प्र वध न को सांघ ककस तरह िे खत है । क्य अमेररक व रूस की तरह
र ष्रपनत चुन व प्रण ली भ रत में भी होनी च दहए तथ सांववध न की नीनत से यदि सभी
सम न है तो अल्पसांख्यकों के ललए ववशेष प्र वध न क्यों हैं।
उत्तर- संववधान सभा में चचाण चल तो िुछ, आज जजनिो िम अल्पसंख्यि ििते िैं उनिे
प्रतततनचधयों में भी ये बात चल थी कि अल्पसंख्यि शब्द तनिाल दो आप। क्योंकि इसी
बात िो लेिर दे श िा ववभाजन िुआ था और आगे और बंटना िोई नि ं चािता। लेकिन
मझ
ु े लगता िै कि ये बात संववधान तनमाणताओं िे मन में आती िोगी कि जजनिी संख्या
ऐसी िम िै , उनिो जरा ववशेष अवसर हदये जायें। इसललये ऐसा प्रावधान किया गया।
लेकिन जैसा मैं िि रिा िूं कि अल्पसंख्यि ये शब्द बिुत संहदग्ध िै तो िश्मीर में
अल्पसंख्यि िौन िै । दे श में िर जगि अलग अलग बात िै न। अब िानून में जो िोगा,
सो िोगा तो ये न िरें । ऐसी बातें तनिालते िैं तो कफर से मनमुटाव शुरू िो जाता िै ।
समाज में ये प्रयोग चलना चाहिए कि िोई अल्पसंख्यि बिुसंख्यि नि ं िै । िम सब एि
दे श में एि-दस
ू रे िे भाई-भाई िैं और अलग-अलग प्रिार रिना ये िमार ववशेषता िै उसिो
साथ लेिर चलें। भाई जैसे चलें । एि मागण में लमलिर चलें ये िोना चाहिए। बिुत िरना
पड़ेगा उसिे ललए। अमेररिा और रूस िी तरि प्रणाल िी बात िम िरते िैं। तो भारत
िी प्रणाल भारत जैसे िो, अमेररिा जैसे क्यों िो? तो भारत िे सब लोग लमलिर जो तय
िरते िैं वैसा िो। क्यों कि िैसी प्रशासन िी पद्धतत लागू िरने से मैं उसिा लाभ लेिर
अपने जीवन िो बना सिता िूं ये भारत िा सामान्य व्यजक्त जानता िै उससे बात िरनी
चाहिए और जो िान्सेंसेस तनिलता िै वैसा ि चलना चाहिये। अभी ति तो ठीि ि चला
िै । सार दतु नया यि ििती िै कि अपेिा नि ं थी लेकिन सवाणचधि यशस्वी प्रजातंत्र दतु नया
िा भारत िै । अब जानने वाले, सोचने वाले लोग ववचार िरते िैं और िुछ ररफामणस िी
बात िरते िैं जरूर उस पर ववचार िोना चाहिए और जो स्वीिृत िोता िै वि िरना चाहिए।
इसमें िमार भी इच्छा िै , सभी िी इच्छा िै , हिस्सा िै । तो उसिे ललए सुझाव आये िैं
बिुत प्रिार िे। लेकिन पद्धतत में ि बदलाव िरो ऐसा सुझाव िि ं से नि ं आया िै ।
चन
ु ाव िी पद्धतत में सध
ु ार िरो ऐसा सुधार िरो वैसा सध
ु ार िरो ऐसा आया िै । ये िोना
चाहिये और ये यतू नफामण िोने चाहिए ऐसा मुझे लगता िै । इसमें एि बात नोटा िी िै कि
खड़े िुए पांच लोग और एि भी मेरा पसंद नि ं िै । तो इसमें से िोई भी मुझे पसंद नि ं
िै ऐसा ििना अब एि तो बात िै कि प्रजातांत्रत्रि राजनीततमें िमेशा अवेलेबल बेस्ट िो
ि चुनना पड़ता िै िं डरे ड पसेंट बेस्ट ये बिुत िहठन बात िै । आिाश पुष्प जैसी बात िै ।
मैं आज िी बात नि ं िर रिा िूं यि मिाभारत िे समय से िै । िौरव पांडवों िा युद्ध िो
गया तो यादवों िी सभा में चला कि किसिा समथणन िरना। िुछ लोग िौरवों िे पि में
थे और िुछ लोग पांडवों िे पि में थे और िौरवों िे अधमण िी चचाण चल रि थी तो लोग
िि रिे थे कि पांडव िौन से धुले चावल िे िैं। िोई अपनी पत्नी िो दांव पर लगाता िै
क्या इन्िोंने बिुत गलततयां िी िैं। इनिो िैसे धालमणि ििा जाए। बलराम जी ने ििा कि
िैसे आप चचाण िर रिे िो और आप सबिो मालम
ू िै कि िृष्ण जो ििे गा वि िरें गे। और
वो तो चुप िै उसिो पूछो। तो कफर िृष्ण िो पूछा गया। उसिे बाद िृष्ण ने कफर भाषण
हदया राज्यसभा में। उसमें यिां से शुरू किया उन्िोंने कि राजनीतत ऐसी चीज िै कि यिां
तो आपिो सौं प्रततशत अच्छे लोग लमलना ये बड़ी िहठन बात िै । लमल जाए तो द नदयाल
जी जैसा िोई, (यि उन्िोंने नि ं ििा यि मैं िि रिा िूं) तो अच्छी बात िै । लेकिन इसललये
लोगों िे सामने एि ि चारा रिता िै कि अवेलेवल बेस्ट िो चुनो। कफर उन्िोंने पाण्डवों
िे पि में अपना मत हदया। अब जब िम नोटा िरते िैं तो िम अवेलेवल बेस्ट िो भी
किनारे िर दे ते िैं और इसिा लाभ जो अवेलेवल वस्टण िैं उनिो ि लमलता िै । इसललये
यद्यवप नोटा िा प्रावधान िै । मेरा प्रावधान िै कि नोटा िा प्रयोग त्रबल्िुल नि ं िरना
चाहिए। अवेलेबल बेस्ट िे पि में जाना चाहिए।
प्रश्न- यदि सांघ और र जनीनत क सम्बन्ध नहीां है तो भ जप में सांगठन मांत्री हमेश सांघ
ही क्यों िे त है ? क्य सांघ ने िस
ू रे िलों को य अन्य सांगठनों को आज तक कभी समथिन
ककय है । क्य सांघ क उपयोग र जनीनत में आगे बढ़ने के ललए करते हैं। धमि ज नत के
आध र पर जो र जनीनत चल रही है उसको लेकर सांघ की क्य र य है ?
उत्तर - ग्राम वविास िा िाम तो िम िरते ि िैं। गांव िा वविास िोना ि चाहिए। गांवों
िा गांवपन िायम रखिरिे गांवपन यानी मनोववृ त्त िा, बातों िा नि ं, स्िूल नि ं िैं गांवों
में ये गांव नि ं िै । वविास विां पूरा िोना चाहिए। लेकिन विां िी जो ववृ त्त िै विां प्रिृतत
िे प्रतत लमत्रता िै उसमें परस्पर सियोग िै सद्भाव िै ये सार बातें िायम रखिर गांव
िा वविास िोना चाहिए। गांव िे वविास में भारत िा वविास िै ऐसा िम मानते िैं और
ग्राम वविास िे ललए अपने स्वयंसेवि िाम भी िरते िैं। हदखाने लायि िाम आज िमारे
दे श में जो संघ िे प्रयासों से िुए उनिी संख्या 500 िे आसपास पिुंची िोगी और िम
बढ़ा रिे िैं। स्वदे श आधाररत अथणनीतत सबिी ि िोनी चाहिए। क्योंकि अथणनीतत में
अथणसुरिा स्वावलंबन िे आधार पर िोती िै तो जब ति िम स्वेदशी िा अनुगमन नि ं
िरें गे तब ति वास्तववि वविास िोगा ि नि ं। लेकिन स्वदे शी क्या िै , स्वदे शी यानी
दतु नया िो दे श से बन्द िर लेना नि ं िै । आ नो भरााः िृतवो यन्तु ववश्वताः तो जो मेरे
घर में बन सिता िै वि मैं बाजार से नि ं लाउं गा। मेरे गांव िे बाजार में जो लमलता िै
उससे मेरे गांव िा रोजगार बनता िै मैं बािर से नि ं लाउं गा। ऐसे िमशाः जाते िैं तो जो
अपने दे श में बनता िै वि बािर से नि ं लाना। लेकिन अपने दे श में बनता ि नि ं िै और
जीवन िे ललए आवश्यि िै तो बािर से भी लाउं गा। ज्ञान िी बात िै , तिनीिी िी बात
िै , परू दतु नया से लेंगे िम लेकिन लेने िे बाद िमारे दे श िी प्रिृतत और िमारे दे श िे
आिांिा िे अनुरूप उसिो बदल िर लें गे और िम प्रयास िरें गे कि उसिा िमारे दे श में
िुछ बने। ये स्वदे शी ववृ त्त िै इस स्वदे शी पद्धतत िे त्रबना िोई अथण तंत्र अपने दे श िो
सबल नि ं बना सिता। दतु नया पास में आई िै और पास में नि ं थी तब से अंतरराष्र य
व्यापार चलता िै और वि लेन दे न िे तत्वों पर ि चलता िै और वि तो चलेगा ि चलेगा।
लेकिन लेन दे न में िेवल दे न दे न ि िमारे तरफ आए और लेन लेन न आए ऐसा नि ं
िै । तो िां लेन दे न भी चलेगी लेकिन िमार शतें िम मनवायेंगे। इस ववृ त्त से उसिो िरना
चाहिए। तो त्रबल्िुल व्याविाररि यि बात िै सब जगि चलेगी तभी दे श बलवान िोगा। अब
2014 िे बाद ऐसा िुआ िै क्या तो आप यि ववचार िीजजये कि किसी भी, आप 2014
िी बात िीजजये, 1947 में ऐसा िुआ िै क्या आप ऐसा भी पूछो। मेरा उत्तर एि ि िै कि
ये जो आदशण िी बात िै जमीन पर उतारने िी बात िै । एि पररजस्थतत जो ववरासत में
लमल िै उसिो लेिर उनिो िाम िरना पड़ेगा। मान ल जजये सरिार आ गई आओ चलो
अब स्वदे शी लागू िरनी िै और ततजोर खोलिर दे खते िैं तो उसमें एि पैसा नि ं िै । तो
िि ं से तो पैसा लाना पड़ेगा पिले उसिा प्रावधान िरना िोगा तब स्वदे शी में आगे बढ़
सिते िैं। और इसललये 1947 िो, 1952 िो, 1957 िो िोई भी साल ल जजये 100 प्रततशत
उसमें िोई आगे गया क्या? शासन-प्रशासन िी चौखट में आज िी तार ख में एिदम यि
संभव नि ं िोता िै परन्तु उस हदशा में िुआ िै क्या? िां उस हदशा में िुआ िै ऐसा मुझे
लगता िै क्योंकि समाज में िवा बदल िै । आज िमारे दे श िे ज्यादातर लोग समझ रिे िैं
कि िम अपने दे श में बनाएंगे। आज िमारे दे श िी िंपतनयां स्पद्णधा िरने िे ललए आगे
जा रि िैं। रामदे व बाबा जैसे संत भी आगे जा रिे िैं। उद्यलमता बढ़ िै जस्िल रे तनंग
बढ़ा िै । ववदे शों में जािर लशिा लेिर वापस आिर िाम िर रिे िैं। खेती में िाम िर रिे
िैं। जस्िल रे तनंग में िाम िर रिे िैं तो िुछ आशा बनी िै । दे श अपने पैरों पर खड़ा िरना
िै इसललये तो िुआ िै और आशा बनी िै । वि िमारे भाषणों से थोड़े ि बनी िै । उसिो जो
अनुभव आ रिे िैं उसिे िारण बनी िै । तो िम ऐसा िि सिते िैं कि सौ प्रततशत ऐसा
िो नि ं सिता। जब िोगा तो सुवणण हदन िोगा। लेकिन आज िी तार ख में यि तो िि
सिते िैं कि िां इस हदशा में अपने दे श ने िदम तो बढ़ाये िैं।
प्रश्न- आस्था िा प्रश्न राममंहदर िा िै । क्या इस ववषय पर शाि प्रिरण िी भांतत अध्यादे श
लाया जा सिता िै । और या कफर संघ िे इस व्याख्यान माला िे आयोजन िी भांतत किसी
बड़े सामाजजि संवाद िा आयोजन किया जा सिता िै ।
प्रश्न- पय िवरण के न म पर दहांि ू त्यौह रों में परां पर ओां क ववरोध करने क जो प्रचलन चल
पड़ है इस पर सांघ क क्य मत है ?
अब सरसंघचालि िा चन
ु ाव क्यों नि ं िोता, क्योंकि सरसंघचालि डॉ. िे गडेवार रिे िैं,
उसिे बाद गुरुजी रिे , ऐसे लोग रिे िैं। इसललए वो श्रद्धा िा स्थान िै । उसिी तनयुजक्त,
मेरे बाद सरसंघचालि िौन िोगा, ये मेरे मजी पर िै और मैं सरसंघचालि िब ति रिूंगा,
ये भी मेरे मजी पर िै । लेकिन मैं ऐसा िूं तो संघ ने एि िोलशयार बरती कि मेरा अचधिार
संघ में क्या िै , िुछ नि ं िै । मैं िेवल फ्ेंड, गाइड एंड कफलॉसफर िूं। सरसंघचालि िो
और िुछ िरने िा अचधिार नि ं िै । संघ िा चीफ एग्जीक्यहु टव अचधिार सरिायणवाि िै ।
उसिे िाथ में सब अचधिार िै , वो अगर मुझे ििे गा कि ये बंद िरो और तुरंत नागपुर
चलो तो अभी मुझे उठिर जाना पड़ेगा। और वो जो िै उसिा चुनाव ववचधवत प्रतत 3 साल
िोता िै । संघ ने सरिार िो अपना ललखखत संववधान हदया तब से आज ति िमारा एि
भी चुनाव, एि हदन भी पोस्टपोंड नि ं िुआ िै । नीचे शाखाएं प्रांतों िो प्रतततनचध बनाती िैं
और अन्य स्तर िे संघ चालिों िा चुनाव जजला और िेत्र िे प्रांत िे िोता िै । और अखखल
भारतीय प्रतततनचध चुने जाते िैं वो िर तीन साल में सरिायणवाि िो चुनते िैं। ये प्रकिया
िमारे यिां ववचधवत उसिे भाव िो पूवण ध्यान में रखिर एिदम ठीि से िोती िै । सबसे
तनयलमत चन
ु ाव वाला संगठन, शायद दतु नयां में भी संघ िै । िेवल जब संघ पर प्रततबंध
था, उस समय चुनाव िा वषण एमरजेंसी में आया था। उस साल चुनाव नि ं िुए, लेकिन
िाम प्रतत सभा बंद उठने िे बाद जो पिल िुई उसमें िमने चुनाव िरवाया। िम इस
मामले में बिुत तनयलमत िैं और सूचना लमल तो सूचनाबंध ये बात सि िै । लेकिन सूचना
लमलने िे पिले िा मामला इसमें नि ं िै । सूचना बिुत चचाण िे बाद ि लमलती िै । अब
मैं ये दो हदन िा भाषण दे रिा िूं। मैं अपना एक्सटे म्पोर दे रिा िूं। आपिो लगता िै कि
मेरे मन से मैं बोल रिा िूं, मैंने इसिे पिले सब प्रमुख अचधिाररयों से, इसमें क्या रखना,
क्या नि ं रखना, इसिी चचाण िी िै । मैंने ििा कि ये रखूंगा तो वो उनिा नि ं-नि ं इसिी
जरूरत नि ं िै । और मैं जो बोल रिा िूं वो संघ िी सिमतत बोल रि िै । अब मेरे इस
बोलने िा संघ में िोई प्रततपाद नि ं िरे गा। सच
ू ना लमल , सोचना बंद, लेकिन सच
ू ना िे
पिले बिुत सोचना िो गया। और मेरा अपना ववचार िुछ भी रिे , मैं उस सोचने िे अनस
ु ार
बोल रिा िूं। ये संघ िी पद्धतत िै । आपिो लगता िै आप में लसरफुटव्वल िोना, ये
डेमोिेसी िै । अरे डेमोिेसी िा ऐसेंस िै सवणसिमतत। जैसे अपना संववधान बना, संघ में िर
बात ऐसे ि सवणसिमतत बनािर िोती िै । इसललए िम िि सिते िैं कि सूचना िो गई,
सोचना बंद। किसी आदमी िो ििो आप वो िरे गा क्या, नि ं िरे गा। ये िो नि ं सिता,
सोचना बंद नि ं िर सिते आप। िब िर सिते िैं, जब सबिा ववचार लेिर एि समजन्वत
सवणसिमतत बनी रिे । िम िरते िैं इसललए िम ऐसा िि सिते िैं ऐसा ििने पर उसिा
पालन भी िोता िै , वो मन से िोता िै तानाशाि िे िारण नि ं िोता िै ।
बस तीन-चार छोट बातें ििनी िैं। क्योंकि िल दो भाषण मैं पिले ि दे चुिा और प्रश्नों
िे उत्तर भी दे चुिा िूं। पिल बात िै संघ िे बारे में िौन, क्या ििता िै इस पर ववश्वास
मत रखखए। अब चािते तो मैंने जो बोला उस पर भी ववश्वास मत रखखए। आप आप संघ
िो अंदर से दे खखए। और कफर संघ िे बारे में अपना जो मत बनाना िै वो बनाइए। मैं ये
नि ं ििता कि आप िन्वेंस िोइए, िन्वेंस िोने िे ललए मैंने िुछ ििा नि ं। वो आपिा
िरना िै , लेकिन संघ िो पिले तनिट से दे खखए, समझ ल जजए। और कफर आपिो जो
ििना िै िहिए, आपिो जो िरना िै वो आप िीजजए।
ये जो उपिम िमारा चला उसमें िन्वें स िरने िी बात नि ं थी, िम फेक्ट्स बताना चािते
िैं और जो फेक्ट्स िै वि मैंने बताए िैं। अब इसिे बाद अगर आप में से किसी िी इच्छा
िुई कि संघ िे िायण में प्रत्यि जुड़ेंगे। शाखा में जाइए, नि ं शाखा में जाना नि ं िोगा
मेरा। तो ठीि िै । संघ िे स्वयंसेवि अनेि अच्छे िाम िरते िैं, उसमें जुडड़ये। समाज
पररवतणन िे िाम िरते िैं। सब प्रिार िे िेत्रों में िाम िरते िैं उसमें आप जुड़ सिते िैं।
नि ं लेकिन यिां संघ िे स्वयंसेविों से लमलिर मैंने एि अच्छा िाम चलाया, वि मैं
िरना चािता िूं, जरूर िीजजए। नि ं मैं किसी से जुड़ना नि ं चािता, मैं अपना िाम िरूंगा,
जरूर िीजजए। बस िमार एि ि अपेिा िै , आप तनजष्िय मत रहिए, इसिे बाद। जैसे भी
आपिो समझ में आता िै । इस राष्र िो अपने स्वत्व पर खड़ा िरने िे ललए और परम
वैभव सम्पन्न बनाने िे ललए इस राष्र िो समझिर सारे दे श िो एि िरने िी हदशा में
जो भी छोटा-बड़ा िाम आप अपने पद्धतत से िरना चािते िैं, वो िीजजए। जिां संघ विां
उनिी जजतनी ताित िै वो उतना आपिो सिायता वो जरूर िरें गे। िेवल आपिो सम्पिण
रखना पड़ेगा। िई लोगों िो लगता िै कि मुझे ििने से िो जाएगा। संघ में उल्टा िै , ऊपर
से िाम नि ं िोता िै , जमीन पर जो िै , उनिे साथ आप सम्पिण रखो, आपिो पेढ़ भी
ऊपर आने िी जरूरत नि ं पड़ेगा। वि ं परस्पर सब िो जायेगा। तो आप स्थानीय तौर पर
सम्पिण रखें। आपिो सिायता िोगी, और िमिो भी आपसे िोई सिायता चाहिए तो मांगने
िे ललए िमारा पररचय रिे गा। िमार जजतनी शजक्त िै िम िरें गे, आपिी जजतनी शजक्त
िै आप िरो। लेकिन इस दे श िो िमिो खड़ा िरना िै । क्योंकि सम्पूणण दतु नयां िो आज
एि तीसरा रास्ता चाहिए। और दतु नया जानती िै , िम भी जानें कि तीसरा रास्ता दे ने िी
अंतरतनहित शजक्त िेवल और िेवल भारत िी िै । ये भारत हित िा िाम िै क्योंकि िम
भारत में िैं और भारत िे नागररि िै , ये मेरे आपिे व्यजक्तगत और पाररवाररि हित िा
भी िाम िै । और ये दतु नयां िे िल्याण िा िाम िै । इसिो नि ं िरें गे तो तीनों पर खतरा
िै , िम जागें , भारत िा यि ितणव्य िै । भारत ने जब-जब दतु नयां में पदापणण किया किसी
िो जीतने िे ललए नि ं किया सबिे हृदय जीते और सब जगि जो था उससे अच्छा किया।
गुरुदे व रवीन्रनाथ अपने गीत में ििते िैं ए िमार दे श जेहदन तोमाय बोइभो मोय भाण्डार
ओबेझी िोई ववश्व जनाए शिोल िामना पूरण िरे लशव मिाद नरे मिाइततिास तनत्य वणण
जुवणण िरर। िे मिान दे श िे िमारे मिान दे श जजस हदन तुम अिूत ज्ञान भण्डार और
सम्पवत्त भण्डार सारे ववश्व िे ललए खुला िो गया और उन सिल लोगों िी िामना पूणण
िरने लगा उस मिाहदन िा स्मरण िरो, उसिो अपने जीवन में वरण िरो। ये आवाह्न
सािात अपने सामने खड़ा िै , उसिो पूरा िरने िी ताित िमिो समाज िी बनानी पड़ेगी।
और इसिे ललए समाज िो जोड़ने वाला एिमात्र सत्र
ू जो िै उसिा आलम्बन ले िर सम्पूणण
समाज िो इससे जोड़ना पड़ेगा। अपने ितणव्यबोध पर खड़ा िरना पड़ेगा। और उनिे
गण
ु वत्ता िो बढ़ािर उनिे सामहू िि प्रयास िो आगे बढ़ाना पड़ेगा। ये अत्यंत पववत्र िायण
िै । सारे दतु नया िे जीवन में एि अथण और समद्
ृ चध उत्पन्न िरने वाला ये िाम िै । ये
िम सबिो िरना िै , िरना ि िै क्योंकि िम भारत माता िे पुत्र ििलाते िैं, िम भारत
दे श िे नागररि ििलाते िैं। भारत िा अजस्तत्व ि इस प्रयोजन िे िारण उत्पन्न िुआ
िै । आप िल्पना िरो ये सत्य लमलने िे बाद, िमारे उस समय िे पूवज
ण ों ने कितना
पररश्रम किया िोगा। गांव-गांव में, झोपड़ी-झोपड़ी ति ये अपने दे श िा स्वभाव इस स्तर
ति पिुंचा िै । घुमंतु जमात िी बात तनिल , ये घुमंतु लोग िौन िैं जजन लोगों स्वेच्छा
से अपने जीवन िा ये संदेश सबिे जीवन में उतारने िे ललए घर, गांव छोड़ हदया। एि
जगि रिना अस्वीिार िरिे, घम
ु ंतु जीवन स्वीिार िरिे प्रचार वो गांव-गांव िरने वाले
लोग िैं। जमाना बदल गया, उनिे शास्त्र िमारे ध्यान में नि ं आते लेकिन एि जमात िै
जो िसरत िरती िै और डोंबार ििते िैं उनिो। वो कफजजिल िल्चर िा समाज में प्रचार
िरने वाले लोग थे। जड़ी बूट िो जानने वाले लोग थे। धातु िला उस समय प्रिषण उस
समय धातु युग था। तो धातु िा िाम लसखाने वाले, सीखने वाले लोग थे। ऐसे िई प्रिार
िै उनमें और आज भी वो लोग जाते िै ये िाम िरने िे ललए तो घर में परम्परागत ववचार
िरिे जाते िैं। ये क्यों, ये छोड़ दो आज िे जमाने में नि ं चलेगा, ऐसा ििना िै तो बिुत
बार उत्तर लमलता िै ये िमारा धमण िै । इतना पररश्रम िरना ये दे श बना िै दतु नयां िे ललए।
उसिा ईश्वर प्रद प्त ितणव्य पण
ू ण िरने िे लायि उसिो िोना चाहिए। इसललए ये बात िम
िरते िैं। आपिो ये सब बताने िे पीछे संघ िे बारे में गलतफिलमयां ठीि िों ये तो िै
ि , लेकिन अिेला संघ बड़ा िो गया तो िौन-सी बड़ी बात िै । इततिास में िम ये ललखा
दे ना नि ं चािते कि राष्र य स्वयंसेवि संघ िे िारण दे श िा उद्धार िुआ। िम ये ललखा
दे ना चािते िैं कि इस दे श में एि ऐसी पीढ़ तनमाणण िुई, उन्िोंने उद्यम किया और अपने
दे श िो पूर दतु नयां िा गुरु बनाया। उस पववत्र ितणव्य िे प्रारम्भ िे ललए मैं आपिा
आवाह्न िरता िूं। और इन दो हदनों में आपने बिुत धेयण से सुना लम्बा-लम्बा भाषण।
मैंने प्रश्नों िे उत्तर हदये वो आपने सुने उसमें िुछ चूि भूल रि िो तो आप सबसे िमा
मांगता िुआ ितणव्य िा िम बोध जागत
ृ िरें । सारे समाज में इस एि बात िो ििता िुआ
और मेरा तनवेदन समाप्त िरता िूं बिुत-बिुत धन्यवाद।