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िं ी
परियोजना
कायय
-मनन मलिक
11- ‘सी’
सच
ू ी
पवषय-1 (भाषा)
आतिंकवाद के प्रकाि
आतिंकवाद के कािर्
आतिंकवाद का प्रभाव
तनष्कषय
1. राष्ट्र ननमााण
5. बबना भ्रष्ट्टाचार के
यहद िाजनीततक नेताओिं के अन्दि दे शभश्क्त की
भावना ै , तो वे वतयमान परिश्स्थतत के पवपिीत
दे श के लिए काम किें गे तथा सत्ता में िोग दे श के
उत्थान के लिए काम किने के बजाय खुद के लिए
पैसे कमाने में व्यस्त ि ते ैं। इसी ति , यहद दे श
के सिकािी अचधकािी औि अन्य नागरिक दे श की
सेवा की हदशा में दृढ़ ि े गें तथा स्वयिं के लिए
स्वाथी बनकि धन कमाने से दिु ि े गें तो तनश्वचत
रुप से भ्रष्टाचाि का स्ति कम ो जाएगा
ववषय- 1 (साहहत्य)
पत्र
ु प्रेम – “सार”
मिंश
ु ी प्रेमचिंद जी ने पत्र
ु - प्रेम क ानी में बाबू
चैतन्य की मन की कमजोरियों को हदखाया गया
ै। वे वककि थे ,दो तीन गाूँव में उनकी जमीिंदािी
थी। धनी ोने के बावजद
ू वे कफजूिखची में पवववास
न ीिं िखते थे। ककसी भी खचय को वे सोच समझ
पि ी किते थे।
उनके दो बेटे थे - प्रभुदास औि लशवदास।बडे बेटे पि
उनका स्ने अचधक था। उन् ें प्रभुदास से बडी - बडी
आशाएूँ थी। प्रभद
ु ास को वे इिंग्िैंड भेजना चा ते
थे।िेककन सिंयोगवस से बी.ए किने के बाद प्रभद
ु ास
बीमाि ि ने िगा।डॉक्टिों की दवा ोने िगी।एक
म ीने तक तनत्य डॉक्टि सा ब आते ,िेककन ज्वि
में कुछ कमी न ीिं आती।अतिः कई डॉक्टििों को
हदखाने के बाद एक डॉक्टि ने सिा दी कक साये द
प्रभुदास को टी.बी (तपेहदक ) ो गया ै। य अभी
फेफडों तक न ीिं प ुिं चा। अतिः इसे ककसी अच्छे
सेनेटोरियम में भेजना ी उचचत ोगा।साथ ी डॉक्टि
ने मानलसक परिश्रम से बचने की सिा दी।य सन
ु
कि चैतन्यदास ब ु त दखु ी ो गए।
कई म ीनों के बीतने के बाद प्रभुदास की दशा हदनों
-हदन बबगडती चिी गयी। व अपने जीवन कके
प्रतत उदासीन ो गया।अतिः चचश्क्तसक ने उसे इटिी
के ककसी अच्छे सेनेटोरियम में जाने की सिा दी।
इस पि तीन ़िाि का खचाय का सकता ै । इस पि
घि में चैतन्यदास जी द्वािा पववाद ु आ।
माूँ द्वािा प्रभद
ु ास का पक्ष लिया गया िेककन
चैत्यान्डास अपनी अथयशाष्त्री बश्ु ध्द द्वािा ऐसे ककसी
कायय में खचय न ीिं किना चा ते थे श्जसमें िाभ ोने
की शिंका ो। अतिः उन् ोंने प्रभुदास को इटिी न ीिं
भेजा।
समय बीतता गया। ६ मॉस बाद लशवदास बी.
ए। पास ो गया। अतिः चैतीनदास जी ने जमीिंदािी
बिंधक िखकि लशवदास को पढ़ाई के लिए इिंग्िैंड भेज
हदया औि एक सप्ता बाद ी प्रभद
ु ास की मत्ृ यु ो
जाती ै।
अिंततम सिंस्काि के लिए मखर्कखर्यका घात पि
अपने सम्बश्न्धयों के साथ जाते ैं। उस समाय व
ब ु त दख
ु ी थे। उनके अथयशास्त्र पि उनका पुत्र प्रेम
ावी ो ि ा था। वे बाि - बाि सोच ि े थे कक
यहद वे ३ ़िाि रुपये खचय कि हदए ोते तो सिंभव
ै ,प्रभुदास स्वस्थ ो जाता। अतिः वे ग्िातन ,शोक
औि पस्चताप से सिंतप्त ो गए।
अकस्मात ् उनके कानों में श नाइयों की आवाज
सन
ु ाई आयी। उन् ोंने दे खा की मनष्ु यों को एक
समू गाते ,बजाते ु ए पष्ु प की वषाय किते ु ए आ
ि े ैं।वे घाट पि प ु ूँच कि अथी उतािी औि
चचता सजाने िगे। चैतीनदास ने एक युवक से
पछ
ू ा तो उसने उसने बताया कक य मािे पपता जी
ै । अिंततम इच्छा के अनस
ु ाि उन् ें म मखर्कखर्यका
घाट पि िे आये ैं। य ाूँ तक आने पि सैकडों रुपये
खचय ो गए ,िेककन बढ़
ू े पपता की मुश्क्त ो गयी।धन
ककसलिए ोता ै ।यव
ु क ने बताया कक तीन साि
तक इिा़ि चिा।जमीन तक बेंच दे नी पडी ,िेककन
चचत्रकूट , रिद्वाि ,प्रयाग सभी स्थानों के बैद्यों को
हदखाया कोई कोई कसाि न ीिं छोडी। युवक ने क ा
कक पैसा ाथ का मेि ै ,कफि कमा िूिंगा िेककन
मनुष्य के जाने पि वापस न ीिं आता ै । धन से
ज्यादा प्यािा इिंसान ै।
३.बासरु र सख
ु , नााँ रै णण सख
ु , ना सख
ु सवु पनै माहहं।
कबीर बबछुटया राम सं,ू ना सख
ु िप
ू न छााँह॥
४.मव
ू ां पीछे श्जनन लमलै, कहै कबीरा राम।
पार्र घाटा लौह सब, पारस कोणें काम॥