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ह द

िं ी
परियोजना
कायय

-मनन मलिक
11- ‘सी’
सच
ू ी

1) आतिंकवाद एक वैश्ववक आपदा


2) दे शप्रेम
3) पत्र
ु प्रेम – प्रेमचिंद
4) कबीिदास जी
स्वीकृतत

मैं अपनी अध्यापपका श्रीमती सध


ु ा पािंडेय का
सहृदय धन्यवाद किना चा तआ ूिं की उन् ोंने
मुझे इतनी लशक्षाप्रद परियोजना बनाने का य
अवसि प्रदान ककया। इस परियोजना से मझ
ु े ह द
िं ी
के बािे में ब ु त कुछ सीखने को लमिा। मैं अपने
माता -पपता का भी ाहदय क धन्यवाद किना चा ूिं गा
क्योंकक उनकी स ायता के बबना य परियोजना
बनाना सफि न ी ो पाता। मैं भपवष्य में भी
ऐसी लशक्षाप्रद परियोजना बनाने की आशा किता
ू ूँ।
धन्यवाद,

पवषय-1 (भाषा)

“ककसी ऐसी वैश्ववक आपदा का पवस्ताि से वर्यन कीश्जए


श्जससे सिंपर्
ू य सिंसाि को जूझना पडा कैसे? अपने शब्दों
का शोध पूवक
य सचचत्र वर्यन कीश्जए।”
“आतंकवाद एक वैश्ववक
आपदा”

आतिंकवाद एक अचधतनयम ै, श्जसका उद्दे वय


अवैध तिीकों से आम िोगों में भय पैदा किना ै।
य मानवता के लिए खतिा ै । इसमें ह स
िं ा फैिाने
वािे व्यश्क्त या समू , दिं गे, चोिी, बिात्काि,
अप िर्, िडाई, बमबािी आहद शालमि ैं।
आतिंकवाद कायिता का एक कायय ै । साथ ी,
आतिंकवाद का धमय से कोई िेना-दे ना न ीिं ै । एक
आतिंकवादी केवि एक आतिंकवादी ोता ै, ह द
िं ू या
मुसिमान न ीिं।

आतिंकवाद के प्रकाि

आतिंकवाद दो प्रकाि का ोता ै , एक िाजनीततक


आतिंकवाद ै जो बडे पैमाने पि आतिंक पैदा किता
ै औि दस
ू िा एक आपिाचधक आतिंकवाद ै जो
कफिौती की िकम िेने के लिए अप िर् किता ै।
आपिाचधक आतिंकवाद की ति
ु ना में िाजनीततक
आतिंकवाद ब ु त अचधक म त्वपूर्य ै क्योंकक य
अच्छी ति से प्रलशक्षक्षत व्यश्क्तयों द्वािा ककया
जाता ै । इस प्रकाि कानन
ू प्रवतयन एजेंलसयों के
लिए उन् ें समय पि चगिफ्ताि किना मश्ु वकि ो
जाता ै।

आतिंकवाद िाष्रीय स्ति के साथ-साथ अिंतिायष्रीय


स्ति पि फैि गया। क्षेत्रीय आतिंकवाद सभी के
बीच सबसे अचधक ह स
िं क ै । क्योंकक आतिंकवादी
सोचते ैं कक आतिंकवादी के रूप में मिना पपवत्र
औि पपवत्र ै , औि इस प्रकाि वे कुछ भी किने को
तैयाि ैं। ये सभी आतिंकवादी समू अिग-अिग
उद्दे वयों से बने ैं।

आतिंकवाद के कािर्

आतिंकवाद के पवकास के कुछ मख्


ु य कािर् ैं या
बडी मात्रा में मशीनगन, पिमार्ु बम, ाइड्रोजन
बम, पिमार्ु चथयाि, प्रक्षेपास्त्र आहद का उत्पादन
तेजी से जनसिंख्या वद्
ृ चध, िाजनीतत, सामाश्जक,
आचथयक समस्याएिं, दे श की व्यवस्था से िोगों का
असिंतोष, अभाव। लशक्षा, भ्रष्टाचाि, जाततवाद,
आचथयक असमानता, भाषाई मतभेद, ये सभी
आतिंकवाद के प्रमुख तत्व ैं, औि आतिंकवाद इन
पि पनपता ै । िोग आतिंकवाद को चथयाि के रूप
में साबबत किते ैं औि अपनी बात को स ी
साबबत किते ैं। ह द
िं ू औि मुसिमानों के बीच दिं गे
सबसे प्रलसद्ध ैं िेककन जातत औि आतिंकवाद में
अिंति ै।

आतिंकवाद का प्रभाव

आतिंकवाद से िोगों में भय फैिता ै , दे श में ि ने


वािे िोग आतिंकवाद के कािर् असिु क्षक्षत म सस

किते ैं। आतिंकवादी मिों के कािर् िाखों का
माि नष्ट ो जाता ै, जािों तनदोष िोगों की
जान चिी जाती ै , जानवि भी मािे जाते ैं।
मानवता में अपवववास एक आतिंकवादी गततपवचध
को दे खने के बाद उठता ै , इससे दस
ू िे आतिंकवादी
को जन्म लमिता ै । दे श औि पवदे श के पवलभन्न
ह स्सों में पवलभन्न प्रकाि के आतिंकवाद मौजद
ू ैं।

आज आतिंकवाद केवि भाित की समस्या न ीिं ै,


बश्कक मािे पडोसी दे श में भी ै , औि दतु नया भि
की सिकािें इससे तनपटने के लिए ब ु त प्रयास कि
ि ी ैं। 11 लसतिंबि 2001 को पववव व्यापाि केंद्र
पि मिा, दतु नया में सबसे बडा आतिंकवादी मिा
माना जाता ै । ओसामा बबन िादे न ने दतु नया के
सबसे शश्क्तशािी दे श में सबसे ऊिंची इमाित पि
मिा ककया, श्जससे िाखों िोग ता त ु ए औि
जािों िोगों की मौत ु ई।

भाित में आतिंकवादी मिे

भाित ने कई आतिंकवादी मिे झेिे, श्जससे


जनता में भय पैदा ु आ औि भािी पवनाश ु आ।
य ाूँ कुछ प्रमख
ु आतिंकवादी मिे ैं जो पपछिे
कुछ वषों में भाित में आए थे: 1991 - पिंजाब
त्याएिं, 1993 - बॉम्बे बम पवस्फोट, चेन्नई में
RSS बम पवस्फोट, 2000 - चचय बम पवस्फोट,
िाि ककिा आतिंकवादी मिा, 2001- भाितीय
सिंसद मिा, 2002 - मिंब
ु ई बस बम पवस्फोट,
अक्षिधाम मिंहदि पि मिा, 2003 - मुिंबई बम
पवस्फोट, 2004 - असम में धेमाजी स्कूि बम
पवस्फोट, 2005 - हदकिी बम पवस्फोट, भाितीय
पवज्ञान सिंस्थान शहू टिंग, 2006 - वािार्सी बम
पवस्फोट, मिंब
ु ई रे न बम पवस्फोट, मािेगािंव यात्रा,
2007 - समझौता एक्सप्रेस बॉश्म्बिंग, मक्का
मश्स्जद बॉश्म्बिंग, ै दिाबाद बॉश्म्बिंग, अजमेि
दिगा बॉश्म्बिंग, 2008 - जयपिु बॉश्म्बिंग, बैंगिोि
सीरियि ब्िास्ट, अ मदाबाद बॉश्म्बिंग, हदकिी
बॉश्म्बिंग, मुिंबई अटै क, 2010 - पुर्े बॉश्म्बिंग,
वािार्सी बॉश्म्बिंग।
ाि ी में 2011 में शालमि ैं - मिंब
ु ई बम
पवस्फोट, हदकिी बमबािी, 2012 - पुर्े बम
पवस्फोट, 2013 - ै दिाबाद पवस्फोट, श्रीनगि
मिा, बोधगया बम पवस्फोट, पटना बम पवस्फोट,
2014 - छत्तीसगढ़ मिा, झािखिंड ब्िास्ट, चेन्नई
रे न बम पवस्फोट, असम ह स
िं ा, चचय स्रीट बम
ब्िास्ट, बैंगिोि, 2015 - जम्मू मिा, गुिदासपुि
मिा, पठानकोट मिा, 2016 - उिी मिा,
बािामि
ू ा मिा, 2017 - भोपाि उज्जैन पैसेंजि
रे न बमबािी, अमिनाथ यात्रा मिा, 2018 सक
ु मा
मिा, 2019- पुिवामा मिा।

भाित में आतिंकवाद से िडने वािी एजेंलसयािं

भाित में कई पुलिस, खुकफया औि सैन्य सिंगठनों


ने दे श में आतिंकवाद से िडने के लिए पवशेष
एजेंलसयों का गठन ककया ै । भाित में आतिंकवाद
के खखिाफ िडने वािी प्रमख
ु एजेंलसयािं आतिंकवाद
तनिोधी दस्ते (एटीएस), अनस
ु िंधान औि पवविेषर्
पविंग (िॉ), िाष्रीय जािंच एजेंसी (एनआईए) ैं।

तनष्कषय

आतिंकवाद एक वैश्ववक खतिा बन गया ै श्जसे


प्राििं लभक स्ति से तनयिंबत्रत किने की आववयकता
ै । आतिंकवाद को केवि कानून िागू किने वािी
एजेंलसयों द्वािा तनयिंबत्रत न ीिं ककया जा सकता ै।
आतिंकवाद के इस बढ़ते खतिे का सामना किने के
लिए दतु नया के िोगों को भी एकजुट ोना ोगा।
पवषय-2 (भाषा)

“दे श प्रेम केवि युद्ध क्षेत्र में िडना ी न ीिं ै । ककसी


दे शभक्त की स ायता भी दे श भश्क्त ी ै । इसलिए
दे शवालसयों के छोटे -छोटे काम भी दे श के पवकास में
स ायक ोते ैं कैसे? उन कायों को पवस्ताि सह त
स्पष्ट कीश्जए।”
“दे शप्रेम”

दे शभश्क्त दतु नया की सबसे शुद्ध भावनाओिं में से


एक ै । एक दे शभक्त अपने दे श के ह त के प्रतत
तनिःस्वाथय भाव म सस
ू किता ै। व अपने दे श के
ह त औि ककयार् को सबसे प िे िखता िखते ै।
व बबना सोचे समझे अपने दे श के प्रतत त्याग
किने के लिए तैयाि भी ो जाता ै।

मािे दे श को मािी मातभ


ृ लू म के रूप में जाना
जाता ै औि में अपने दे श से वैसे ी प्याि
किना चाह ए जैसे म अपनी मािं से किते ैं, जो
िोग अपने दे श के लिए व ीिं प्रेम औि भश्क्त
म सस
ु किते ै , जो वो अपने मािं औि परिवाि के
लिए किते ै तो स ीिं मायने में व ीिं असिी
दे शभक्त ोते ैं। दे शभश्क्त एक गुर् ै श्जसे
प्रत्येक व्यश्क्त के अन्दि ोना चाह ए। दे शभक्तों
से भिा दे श, तनश्वचत रूप से उस स्थान की तुिना
में ि ने योग्य एक बे ति जग बन जाता ै ज ािं
िोग धमय, जातत, पिंथ औि अन्य मुद्दों के नाम
पि सदै व एक दस
ू िे के साथ िडा किते ैं। व
जग ज ािं िोगों के पास कम स्वाथय ोगें व ािं
तनश्वचत रूप से कम सिंघषय ोंगा तथा उनके अन्दि
दे शभश्क्त के गर्
ु पवकपषत ोगें ।
जाने हर ककसी के अंदर दे शभश्तत के गुण तयों
होना चाहहए

1. राष्ट्र ननमााण

जब ि कोई िाष्र को ि प िू से मजबत


ू बनाने
की हदशा में समपपयत किता ै , तो ऐसा कोई
िास्ता न ीिं ै जो दे श को आगे बढ़ने औि
पवकलसत ोने से िोके। दे शभक्तों ने िाष्र के ह त
को सबसे प से िखा औि इसके सध
ु ाि के लिए
सदै व समपपयत ि े ।

2. शांनत और सद्भाव बनाए रखना

एक अच्छा िाष्र व ै ज ािं ि समय शािंतत औि


सद्भाव बनाए िखा जाता ै । ज ािं िोगों के अन्दि
भाईचािे की भावना ोती ै तथा वे दस
ू िे की मदद
औि समथयन किने के लिए सदै व तत्पि ि ते ैं।
दे शभश्क्त की भावना दे शवालसयों के बीच भाईचािे
की भावना को बढ़ावा दे ने के लिए जानी जाती ै।

3. एक आम लक्ष्य के ललए काम करना

दे शभक्त, दे श के िक्ष्य तथा उसके सुधाि के लिए


काम किते ैं। जब ि ककसी को एक ी िक्ष्य या
लमशन की तिफ आकपषयत ककया जाता ै तो ऐसा
कोई भी िास्ता न ीिं ोता, जो उन् ें अपने िक्ष्य
को ालसि किने से िोक सके।

4. बबना ककसी स्वार्ा के उद्दे वय से

दे शभक्त बबना ककसी व्यश्क्तगत रुचच के अपने


दे श के लिए तनिःस्वाथय रूप से काम किते ैं। अगि
ि ककसी में दे शभश्क्त की भावना ै औि व
अपने व्यश्क्तगत ह त को सिंतष्ु ट किने के बािे में
न ीिं सोचता ै , तो तनश्वचत रूप से इससे दे श को
िाभ ोंता ै।

5. बबना भ्रष्ट्टाचार के
यहद िाजनीततक नेताओिं के अन्दि दे शभश्क्त की
भावना ै , तो वे वतयमान परिश्स्थतत के पवपिीत
दे श के लिए काम किें गे तथा सत्ता में िोग दे श के
उत्थान के लिए काम किने के बजाय खुद के लिए
पैसे कमाने में व्यस्त ि ते ैं। इसी ति , यहद दे श
के सिकािी अचधकािी औि अन्य नागरिक दे श की
सेवा की हदशा में दृढ़ ि े गें तथा स्वयिं के लिए
स्वाथी बनकि धन कमाने से दिु ि े गें तो तनश्वचत
रुप से भ्रष्टाचाि का स्ति कम ो जाएगा

दे शभक्त ोना एक म ान गर्


ु ै। में अपने दे श
से प्याि औि उसका सम्मान किना चाह ए औि
श्जतना भी म कि सकते ैं दे श के प्रतत उतना
किना चाह ए। दे शभश्क्त की भावना
िखना सकािात्मक बीन्दओ
ु िं को दशायते ैं कक य
कैसे दे श को समद्
ृ ध औि बढ़ने में मदद कि
सकता ै। ािािंकक, कुछ िोग का दे श के प्रतत
अत्यचधक प्रेम औि अपने दे श को श्रेष्ठति औि
सवोपिी मानना अिंधिाष्रीयता को दशायता ै कुछ
भी अत्यचधक ोना बेकाि ोता ै चा े वो दे श के
प्रतत अचधक प्याि ी क्यू न ो। अिंधिाष्रीयता में
अपने दे श की पवचािधािाओिं औि अपने िोगों की
श्रेष्ठता की तकय ीन धािर्ा में दृढ़ पवववास दस
ू िों
के लिए घर्
ृ ा की भावना पैदा किता ै। य
अक्सि दे शों के बीच सिंघषय औि युद्ध को बढ़ावा
दे ती ै साथ ी साथ शािंतत औि सद्भाव को भी
बाचधत किती ैं।

अतीत के कई उदा िर् ैं श्जनमें अिंधिाष्रीयता के


कािर् टकिाव ु ए औि वे दिं गो में परिवततयत ो
गए दे शभश्क्त औि अिंधिाष्रीयता के बीच एक
ब ु त ी पतिी सी िे खा ै । दे शभश्क्त एक
तनिःस्वाथय भावना ै जबकक अिंधिाष्रीयता
कट्टिपिंथी औि तकय ीन ै। िोगों को य
सुतनश्वचत किना चाह ए कक उनकी दे श की प्रतत
भश्क्त औि प्रेम उस समय उनकी अिंधिाष्रीयता में
ना परिवततयत ो जाए।
ककसी का उसके मूि भूलम के प्रतत प्याि उसके
दे श के प्रतत उसका सबसे शुद्धतम रूप ै । एक
व्यश्क्त जो अपने दे श के लिए अपने ह तों का
त्याग किने के लिए तैयाि ि ता ै, में उसे
सिाम किना चाह ए ै । दतु नया के प्रत्येक दे श को
ऐसी भावना िखने वािे िोगों की अत्यचधक
आववयकता ै।

ववषय- 1 (साहहत्य)

“पुत्र प्रेम' क ानी प्रेमचिंद जी की श्रेष्ठ क ातनयों में से


एक ै । प्रेमचिंद जी का परिचय दे ते ु ए बताइए कक इस
क ानी में व्याव ारिकता से ऊिंचा स्थान आदशयवाद को
हदया ै कैसे? क ानी का साि लिखते ु ए स्पष्ट
कीश्जए।”

प्रेमचंद – “जीवन पररचय”


प्रेमचिंद का जन्म ३१ जि
ु ाई १८८० को वािार्स
श़्ििा (उत्ति प्रदे श) के िम ी गाूँव में
एक कायस्थ परिवाि में ु आ था। उनकी माता का
नाम आनन्दी दे वी तथा पपता का नाम मुिंशी
अजायबिाय था जो िम ी में डाकमिंश
ु ी थे। उनका
वास्तपवक नाम धनपत िाय श्रीवास्तव था। प्रेमचिंद
की आििं लभक लशक्षा फािसी में ु ई। प्रेमचिंद के माता-
पपता के सिंबिंध में िामपविास शमाय लिखते ैं कक-
"जब वे सात साि के थे, तभी उनकी माता का
स्वगयवास ो गया। जब पिंद्र
साि के ु ए तब
उनकी शादी कि दी गई औि सोि साि के ोने
पि उनके पपता का भी दे ािंत ो गया।"
इसके कािर् उनका प्राििं लभक जीवन सिंघषयमय ि ा।
प्रेमचिंद के जीवन का साह त्य से क्या सिंबिंध ै इस
बात की पश्ु ष्ट िामपविास शमाय के इस कथन से
ोती ै कक- "सौतेिी माूँ का व्यव ाि, बचपन में
शादी, पिंडे-पुिोह त का कमयकािंड, ककसानों औि
क्िकों का दख
ु ी जीवन-य सब प्रेमचिंद ने सोि
साि की उम्र में ी दे ख लिया था। इसीलिए उनके
ये अनुभव एक जबदयस्त सचाई लिए ु ए उनके
कथा-साह त्य में झिक उठे थे।"[2] उनकी बचपन से
ी पढ़ने में ब ु त रुचच थी। १३ साि की उम्र में ी
उन् ोंने ततलिस्म-ए- ोशरुबा पढ़ लिया औि उन् ोंने
उदय ू के मश ू ि िचनाकाि ितननाथ 'शिसाि', लम़िाय
ादी रुस्वा औि मौिाना शिि के उपन्यासों से
परिचय प्राप्त कि लिया[3]। उनका प िा पववा
पिंद्र साि की उम्र में
ु आ। १९०६ में उनका दस
ू िा
पववा लशविानी दे वी से ु आ जो बाि-पवधवा थीिं। वे
सुलशक्षक्षत मह िा थीिं श्जन् ोंने कुछ क ातनयाूँ
औि प्रेमचिंद घि में शीषयक पुस्तक भी लिखी। उनकी
तीन सिंताने ु ईं-श्रीपत िाय, अमत ृ िायऔि कमिा
दे वी श्रीवास्तव। १८९८ में मैहरक की पिीक्षा उत्तीर्य
किने के बाद वे एक स्थानीय पवद्यािय में लशक्षक
तनयुक्त ो गए। नौकिी के साथ ी उन् ोंने पढ़ाई
जािी िखी। उनकी लशक्षा के सिंदभय में िामपविास
शमाय लिखते ैं कक- "1910
में अिंग्रे़िी, दशयन, फािसी औि इतत ास िेकि इिंटि
ककया औि 1919 में अिंग्रे़िी, फािसी औि इतत ास
िेकि बी. ए. ककया।"[4]१९१९ में बी.ए. पास किने के
बाद वे लशक्षा पवभाग के इिंस्पेक्टि पद पि तनयुक्त
ु ए।
१९२१ ई. में अस योग आिंदोिन के दौिान म ात्मा
गाूँधी के सिकािी नौकिी छोडने के आह्वान पि
स्कूि इिंस्पेक्टि पद से २३ जून को त्यागपत्र दे
हदया। इसके बाद उन् ोंने िेखन को अपना
व्यवसाय बना लिया। मयायदा, माधुिी आहद
पबत्रकाओिं में वे सिंपादक पद पि काययित ि े । इसी
दौिान उन् ोंने प्रवासीिाि के साथ लमिकि
सिस्वती प्रेस भी खिीदा तथा िं स औि जागिर्
तनकािा। प्रेस उनके लिए व्यावसातयक रूप से
िाभप्रद लसद्ध न ीिं ु आ। १९३३ ई. में अपने ऋर्
को पटाने के लिए उन् ोंने मो निाि भवनानी के
लसनेटोन किंपनी में क ानी िेखक के रूप में काम
किने का प्रस्ताव स्वीकाि कि लिया। कफकम नगिी
प्रेमचिंद को िास न ीिं आई। वे एक वषय का अनब
ु िंध
भी पूिा न ीिं कि सके औि दो म ीने का वेतन
छोडकि बनािस िौट आए। उनका स्वास््य तनििं ति
बबगडता गया। िम्बी बीमािी के बाद ८ अक्टूबि
१९३६ को उनका तनधन ो गया।

पत्र
ु प्रेम – “सार”
मिंश
ु ी प्रेमचिंद जी ने पत्र
ु - प्रेम क ानी में बाबू
चैतन्य की मन की कमजोरियों को हदखाया गया
ै। वे वककि थे ,दो तीन गाूँव में उनकी जमीिंदािी
थी। धनी ोने के बावजद
ू वे कफजूिखची में पवववास
न ीिं िखते थे। ककसी भी खचय को वे सोच समझ
पि ी किते थे।
उनके दो बेटे थे - प्रभुदास औि लशवदास।बडे बेटे पि
उनका स्ने अचधक था। उन् ें प्रभुदास से बडी - बडी
आशाएूँ थी। प्रभद
ु ास को वे इिंग्िैंड भेजना चा ते
थे।िेककन सिंयोगवस से बी.ए किने के बाद प्रभद
ु ास
बीमाि ि ने िगा।डॉक्टिों की दवा ोने िगी।एक
म ीने तक तनत्य डॉक्टि सा ब आते ,िेककन ज्वि
में कुछ कमी न ीिं आती।अतिः कई डॉक्टििों को
हदखाने के बाद एक डॉक्टि ने सिा दी कक साये द
प्रभुदास को टी.बी (तपेहदक ) ो गया ै। य अभी
फेफडों तक न ीिं प ुिं चा। अतिः इसे ककसी अच्छे
सेनेटोरियम में भेजना ी उचचत ोगा।साथ ी डॉक्टि
ने मानलसक परिश्रम से बचने की सिा दी।य सन

कि चैतन्यदास ब ु त दखु ी ो गए।
कई म ीनों के बीतने के बाद प्रभुदास की दशा हदनों
-हदन बबगडती चिी गयी। व अपने जीवन कके
प्रतत उदासीन ो गया।अतिः चचश्क्तसक ने उसे इटिी
के ककसी अच्छे सेनेटोरियम में जाने की सिा दी।
इस पि तीन ़िाि का खचाय का सकता ै । इस पि
घि में चैतन्यदास जी द्वािा पववाद ु आ।
माूँ द्वािा प्रभद
ु ास का पक्ष लिया गया िेककन
चैत्यान्डास अपनी अथयशाष्त्री बश्ु ध्द द्वािा ऐसे ककसी
कायय में खचय न ीिं किना चा ते थे श्जसमें िाभ ोने
की शिंका ो। अतिः उन् ोंने प्रभुदास को इटिी न ीिं
भेजा।
समय बीतता गया। ६ मॉस बाद लशवदास बी.
ए। पास ो गया। अतिः चैतीनदास जी ने जमीिंदािी
बिंधक िखकि लशवदास को पढ़ाई के लिए इिंग्िैंड भेज
हदया औि एक सप्ता बाद ी प्रभद
ु ास की मत्ृ यु ो
जाती ै।
अिंततम सिंस्काि के लिए मखर्कखर्यका घात पि
अपने सम्बश्न्धयों के साथ जाते ैं। उस समाय व
ब ु त दख
ु ी थे। उनके अथयशास्त्र पि उनका पुत्र प्रेम
ावी ो ि ा था। वे बाि - बाि सोच ि े थे कक
यहद वे ३ ़िाि रुपये खचय कि हदए ोते तो सिंभव
ै ,प्रभुदास स्वस्थ ो जाता। अतिः वे ग्िातन ,शोक
औि पस्चताप से सिंतप्त ो गए।
अकस्मात ् उनके कानों में श नाइयों की आवाज
सन
ु ाई आयी। उन् ोंने दे खा की मनष्ु यों को एक
समू गाते ,बजाते ु ए पष्ु प की वषाय किते ु ए आ
ि े ैं।वे घाट पि प ु ूँच कि अथी उतािी औि
चचता सजाने िगे। चैतीनदास ने एक युवक से
पछ
ू ा तो उसने उसने बताया कक य मािे पपता जी
ै । अिंततम इच्छा के अनस
ु ाि उन् ें म मखर्कखर्यका
घाट पि िे आये ैं। य ाूँ तक आने पि सैकडों रुपये
खचय ो गए ,िेककन बढ़
ू े पपता की मुश्क्त ो गयी।धन
ककसलिए ोता ै ।यव
ु क ने बताया कक तीन साि
तक इिा़ि चिा।जमीन तक बेंच दे नी पडी ,िेककन
चचत्रकूट , रिद्वाि ,प्रयाग सभी स्थानों के बैद्यों को
हदखाया कोई कोई कसाि न ीिं छोडी। युवक ने क ा
कक पैसा ाथ का मेि ै ,कफि कमा िूिंगा िेककन
मनुष्य के जाने पि वापस न ीिं आता ै । धन से
ज्यादा प्यािा इिंसान ै।

इन सब बातों का चैत्यन्य दास पि ग िा प्रभाव


पडा. वे अपनी हृदय ीनता ,आत्म ीनता औि
भौततकता के कािर् दबे जा ि े थे। .अतिः वे इतने
परिवततयत ो गए कक प्रभुदास की अिंत्येश्ष्ट में ़िािों
रुपये खचय कि डािे। अब उनके सिंतप्त ह्रदय की
शाश्न्त के लिए अब एक मात्र य ी उपाय ि गया।

“ य स ी ै की इस क ानी में व्याह्वारिकता

से ऊूँचा स्थान आशीवायद को हदया ै “


ववषय-2 (साहहत्य)

“कबीि दास जी अपने समय के न केवि


कपव थे बश्कक एक समाज सुधािक एविं
आध्याश्त्मक गरु
ु भी थे। कबीिदास जी का
जीवन परिचय तथा उनका साह श्त्यक
योगदान लिखते ु ए कथन को उदा िर्
सह त पवस्ताि से लिखखए।”
कबीरदास जी - “जीवन पररचय”

जीवन-पररचय - भाित के म ान सिंत औि


आध्याश्त्मक कपव कबीि दास का जन्म
वषय 1440 में ु आ था। इस्िाम के
अनस
ु ाि ‘कबीि’ का अथय म ान ोता
ै । इस बात का कोई साक्ष्य न ीिं ै कक
उनके असिी माता-पपता कौन थे िेककन
ऐसा माना जाता ै कक उनका िािन-
पािन एक गिीब मश्ु स्िम परिवाि में ु आ
था। उनको नीरु औि नीमा (िखवािा) के
द्वािा वािार्सी के एक छोटे नगि से
पाया गया था। वािार्सी के ि ितािा में
सिंत कबीि मठ में एक तािाब ै ज ाूँ
नीरु औि नीमा नामक एक जोडे ने कबीि
को पाया था।
ये शािंतत औि सच्ची लशक्षर् की म ान
इमाित ै ज ाूँ पिू ी दतु नया के सिंत
वास्तपवक लशक्षा की खातति आते
ै ।कबीि के माूँ-बाप बे द गिीब औि
अनपढ़ थे िेककन उन् ोंने कबीि को पिू े
हदि से स्वीकाि ककया औि खुद के
व्यवसाय के बािे में लशक्षक्षत ककया।
उन् ोंने एक सामान्य ग ृ स्वामी औि एक
सफ
ू ी के सिंतलु ित जीवन को जीया।
ऐसा माना जाता ै कक अपने बचपन में
उन् ोंने अपनी सािी धालमयक लशक्षा
िामानिंद नामक गरु
ु से िी। औि एक हदन
वो गरु
ु िामानिंद के अच्छे लशष्य के रुप
में जाने गये। उनके म ान कायों को पढ़ने
के लिये अध्येता औि पवद्याथी कबीि
दास के घि में ठ िते ै । ये माना जाता
ै कक उन् ोंने अपनी धालमयक लशक्षा गरु

िामानिंद से िी। शरु
ु आत में िामानिंद
कबीि दास को अपने लशष्य के रुप में
िेने को तैयाि न ीिं थे। िेककन बाद की
एक घटना ने िामानिंद को कबीि को
लशष्य बनाने में अ म भलू मका तनभायी।
एक बाि की बात ै , सिंत कबीि तािाब
की सीहढ़यों पि िेटे ु ए थे औि िामा-
िामा का मिंत्र पढ़ ि े थे, िामानिंद भोि में
न ाने जा ि े थे औि कबीि उनके पैिों
के नीचे आ गये इससे िामानिंद को अपनी
गिती का ए सास ु आ औि वे कबीि को
अपने लशष्य के रुप में स्वीकाि किने को
मजबिू ो गये। ऐसा माना जाता ै कक
कबीि जी का परिवाि आज भी वािार्सी
के कबीि चौिा में तनवास किता ै।

ह न्द ू धमय, इस्िाम के बबना छपव वािे


भगवान के साथ व्यश्क्तगत भश्क्तभाव
के साथ ी तिंत्रवाद जैसे उस समय के
प्रचलित धालमयक स्वाभाव के द्वािा कबीि
दास के लिये पूवायग्र था, कबीि दास
प िे भाितीय सिंत थे श्जन् ोंने ह न्द ू औि
इस्िाम धमय को सावयभौलमक िास्ता हदखा
कि समश्न्वत ककया श्जसे दोनों धमय के
द्वािा माना गया। कबीि के अनुसाि ि
जीवन का दो धालमयक लसद्धातों से रिवता
ोता ै (जीवात्मा औि पिमात्मा)। मोक्ष
के बािे में उनका पवचाि था कक ये इन
दो दै वीय लसद्धािंतों को एक किने की
प्रकिया ै।

उनकी म ान िचना बीजक में कपवताओिं


की भिमाि ै जो कबीि के धालमयकता पि
सामान्य पवचाि को स्पष्ट किता ै।
कबीि की ह न्दी उनके दशयन की ति ी
सिि औि प्राकृत थी। वो ईववि में
एकात्मकता का अनुसिर् किते थे। वो
ह न्द ू धमय में मतू तय पज
ू ा के घोि पविोधी
थे औि भश्क्त तथा सफ
ू ी पवचािों में पिू ा
भिोसा हदखाते थे।

कबीि के द्वािा िचचत सभी कपवताएूँ औि


गीत कई सािी भाषाओिं में मौजद
ू ै।
कबीि औि उनके अनय
ु ातययों को उनके
काव्यगत धालमयक भजनों के अनस
ु ाि नाम
हदया जाता ै जैसे बतनस औि बोिी।
पवपवध रुप में उनके कपवताओिं को साखी,
विोक (शब्द) औि दो े (िमेनी) क ा
जाता ै । साखी का अथय ै पिम सत्य
को दो िाते औि याद किते ि ना। इन
अलभव्यश्क्तयों का स्मिर्, कायय किना
औि पवचािमग्न के द्वािा आध्याश्त्मक
जागतृ त का एक िास्ता उनके अनय
ु ातययों
औि कबीि के लिये बना ु आ ै।
कबीरदास जी – “साहहश्त्यक पररचय”
[साखी]
कबीि सन्त कपव औि समाज सध
ु ािक थे।
उनकी कपवता का एक-एक शब्द पाखिंडडयों के
पाखिंडवाद औि धमय के नाम पि ढोंग व स्वाथयपतू तय
की तनजी दक
ु ानदारियों को ििकािता ु आ आया
औि असत्य व अन्याय की पोि खोि धश्ज्जयाूँ
उडाता चिा गया। कबीि का अनुभूत सत्य
अिंधपवववासों पि बारूदी पिीता था। सत्य भी ऐसा
जो आज तक के परिवेश पि सवालिया तनशान बन
चोट भी किता ै औि खोट भी तनकािता ै।

कबीिदास ने बोिचाि की भाषा का ी प्रयोग


ककया ै । भाषा पर कबीर का जबरदस्त अधिकार
र्ा। वे वाणी के डितटे टर र्े। श्जस बात को उन्होंने
श्जस रूप में प्रकट करना चाहा है , उसे उसी रूप में
कहलवा ललया– बन गया है तो सीिे–सीिे, नह ं
दरे रा दे कर। भाषा कुछ कबीर के सामने लाचार–सी
नज़र आती है । उसमें मानो ऐसी हहम्मत ह नह ं
है कक इस लापरवाह फतकड़ की ककसी फ़रमाइश
को नाह ं कर सके। औि अक क ानी को रूप
दे कि मनोग्रा ी बना दे ने की तो जैसी ताकत कबीि
की भाषा में ै वैसी ब ु त ी कम िेखकों में पाई
जाती ै।

असीम–अनिंत ब्रह्मानन्द में आत्मा का साक्षीभूत


ोकि लमिना कुछ वार्ी के अगोचि, पकड में न
आ सकने वािी ी बात ै । पि 'बे द्दी मैदान में
ि ा कबीिा' में न केवि उस गम्भीि तनगढ़
ू तत्त्व
को मतू तयमान कि हदया गया ै , बश्कक अपनी
फक्कडाना प्रकृतत की मु ि भी माि दी गई ै।
वार्ी के ऐसे बादशा को साह त्य–िलसक काव्यानिंद
का आस्वादन किाने वािा समझें तो उन् ें दोष
न ीिं हदया जा सकता। कफि व्यिंग्य किने में औि
चुटकी िेने में भी कबीि अपना प्रततद्वन्द्वी न ीिं
जानते। पिंडडत औि का़िी, अवधु औि जोचगया,
मक
ु िा औि मौिवी सभी उनके व्यिंग्य से ततिलमिा
जाते थे। अत्यन्त सीधी भाषा में वे ऐसी चोट
किते ैं कक खानेवािा केवि धि
ू झाड के चि दे ने
के लसवा औि कोई िास्ता न ीिं पाता।

कबीरदास जी के कुछ कर्न:-


पीछे लागा जाई र्ा, लोक वेद के साधर्।
आगैं र्ैं सतगरु
ु लमल्या, द पक द या साधर्॥

व्याख्या - कबीिदास जी क ते ैं कक मैं जीवन में


प िे सािंसारिक माया मो में व्यस्त था . िेककन
जब मझ
ु से इससे पविश्क्त ु ई ,तब मझ
ु े सद्गरुु के
दशयन ु ए .सद्गुरु के मागयदशयन से मझ ु े ज्ञान रूपी
दीपक लमिा इससे मुझसे पिमात्मा की म त्ता का
ज्ञान ु आ .य सब गरु
ु की कृपा से ी सिंभव ुआ
.

२.कबीर बादल प्रेम का, हम पर बरष्ट्या आइ।


अंतरर भीगी आत्मां, हर भई बनराइ॥

व्याख्या - कबीिदास जी प्रस्तत


ु दो े में प्रेम के म त्व
के बािे क ते ैं कक मेिे जीवन में प्रेम बादि के रूप
में वषाय की . इस बारिश से मझ
ु े अपनी आत्मा का
ज्ञान ु आ . जो आत्मा अभी मेिे अिंत स्थि में सोयी
ु ई थी ,जाग गयी .अतिःउसमें एक प्रकाि की नवीनता
आ गयी .मेिे जीवन िा - भिा ो गया .

३.बासरु र सख
ु , नााँ रै णण सख
ु , ना सख
ु सवु पनै माहहं।
कबीर बबछुटया राम सं,ू ना सख
ु िप
ू न छााँह॥

व्याख्या - कबीिदास जी प्रस्तुत दो े में क ते ैं कक


मनष्ु य सािंसारिक भाव भाधाओिं में उिझा ि ता ै
.उसे सख
ु की तिाश मेशा ि ती ै . व हदन -
िात सुख की तािाश किता ि ता ै .िेककन कफि में
उसे सच्चे सुख की प्राश्प्त न ीिं ोती ै , व सपने
में भी सख
ु - शाश्न्त की तिाश किता ि ता ै
.वास्तव में मनष्ु य की आत्मा ,िाम रूपी पिमात्मा
से जब बबछुडती ै ,तो तभी से उसे दिःु ख प्राप्त ो
जाता ै . उसके दिःु ख दिू किने का एकमात्र उपाय
िाम रूपी पिम्तामा की प्राश्प्त ै .

४.मव
ू ां पीछे श्जनन लमलै, कहै कबीरा राम।
पार्र घाटा लौह सब, पारस कोणें काम॥

व्याख्या - कबीिदास जी प्रस्तुत दो ें में क ते ैं कक


मत्ृ यु के बाद पिम्तामा की प्राश्प्त ककसी काम की
न ीिं ै .यहद में जीपवत ि ते ी भगवत प्राश्प्त ो
जाए तो जीवन सफि ो जाएगा .इसीलिए में
चाह ए कक इसी जीवन में पिमात्मा प्राश्प्त का उपाय
किें . जब तक िो ा पािस को न ीिं प्राप्त किता ,तब
टक व िो ा ी ि ता ै .पािस से स्पशय के बाद
ी व सोना बन पाटा ै .

५.अंखडड़यााँ झाईं पड़ी, पंर् ननहारर-ननहारर।


जीभडड़या छाला पडया, राम पुकारर-पुकारर॥

व्याख्या - कबीिदास जी प्रस्तुत दो ें में क ते ैं कक


मनुष्य की आत्मा अपने प्रेमी पिमात्मा को प्राप्त
किने के लिए हदन िात बाट जो ते -जो ते उसकी
आखें थक जातत ै .मूँु से अपने प्रेमी रूपी पिमात्मा
का नाम िेते िेते उसके जीभ में छािे पड जाते ैं
.इस प्रकाि व अपने पिमात्मा रूपी प्रेमी िाम को
पुकािता ि ता ै .

६.जो रोऊाँ तो बल घटै , हाँसौं तो राम ररसाइ।


मनहह मांहह बबसरू णां, जयाँू घण
ंु काठहह खाइ॥

व्याख्या - कबीिदास जी प्रस्तुत दो ें में क ते ैं कक


उनकी आत्मा की दशा ऐसी ो गयी ै कक वे न ूँस
सकते ैं क्योंकक इससे प्रभु नािा़ि ोंगे ,िोयेंगे तो
बि घटे गा .इस प्रकाि वे अपने पिमात्मा रूपी प्रेमी
को याद किके घुटते ि ते ैं .श्जस प्रकाि िकडी के
अन्दि का घन
ु उसे खा जाती ै ,उसी प्रकाि वे अपने
पिमात्मा रूपी प्रेमी को याद किके घट
ु ते ि ते ैं .

७.परवनत-परवनत मैं कफरया, नैन गाँवाये रोइ।


सो बट
ू पााँऊ नह ं, जातैं जीवनन होइ॥

व्याख्या - कबीिदास जी प्रस्तुत दो ें में क ते ैं कक


मैं पवयत - पवयत घूमता ि ा ,मैं िोते - िोते अपनी
दृश्ष्ट गूँवा बैठा ,िेककन पिमात्मा रूपी सिंजीवनी बट
ू ी
मझ
ु े क ीिं न ीिं लमिी .इस प्रकाि जीवन अकािथ ी
गया .

८.आया र्ा संसार मैं, दे षण कौं बहु रूप।


कहै कबीरा संत हौ, पडड़ गयां नजरर अनप ू ॥

व्याख्या - कबीिदास जी प्रस्तुत दो ें में क ते ैं कक


मैं इस सिंसाि की मायावी जीवन में िमा ी था
.सिंसाि की पवपवधता को दे ख ि ा था ,िेककन
पिमात्मा की कृपा से मेिा जीवन ी बदि गया .अब
मैं आत्मा में ी िम गया .अब मुझे जीवन के बा िी
सौन्दयय में कोई हदिचस्पी न ीिं बची .

९.जब मैं र्ा तब हरर नहहं, अब हरर हैं मैं नाहहं।


सब अाँधियारा लमहट गया, जब द पक दे ख्या माहहं॥
व्याख्या - कबीिदास जी प्रस्तत
ु दो ें में क ते ैं कक
जब टक मेिे मन के द्वेष , ईष्याय ,िोध ,मो आहद
की भावनाएूँ थी ,तब तक पिमात्मा मुझसे दिू थे
,िेककन जब जीवन से अन्धकाि लमटा तो मझ
ु े प्रभु
हदखाई पडे औि मेिे जीवन का अ िं काि लमट गया .

१०.तन कौं जोगी सब करैं, मन कौं ववरला कोइ।


सब ववधि सहजै पाइए, जे मन जोगी होइ॥

व्याख्या - कबीिदास जी प्रस्तुत दो ें में क ते ैं कक


िोग बा िी हदखावें के लिए साधू का वेश धािर्
किते ैं ,िेककन मन से साधू न ीिं ोते ैं .अतिः में
वेश भूषा से साधू न ीिं बश्कक मन से साधू ोना
चाह ए .मन से साधू ोने पि ी पिमात्मा की प्राश्प्त
ोती ै .

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