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स्वदे शी

मुक्त ज्ञानकोश विवकपीविया से


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स्वदे शी का अर्थ है - 'अपने दे श का' अर्िा 'अपने दे श में वनवमथत'। िृहद अर्थ में वकसी भौगोविक क्षेत्र में
जन्मी, वनवमथत या कल्पित िस्तुओ,ं नीवतयों, विचारों को स्वदे शी कहते हैं । िर्थ 1905 के बंग-भंग विरोधी
जनजागरण से स्वदे शी आन्दोिन को बहुत बि वमिा, यह 1911 तक चिा और गााँ धी जी के भारत में पदापथण
के पूिथ सभी सफि अन्दोिनों में से एक र्ा। अरविन्द घोर्, रिीन्द्रनार् ठाकुर, िीर सािरकर, िोकमान्य बाि
गंगाधर वतिक और िािा िाजपत राय स्वदे शी आन्दोिन के मुख्य उद् घोर्क र्े।[1] आगे चिकर यही स्वदे शी
आन्दोिन महात्मा गां धी के स्वतन्त्रता आन्दोिन का भी केन्द्र-वबन्दु बन गया। उन्ोंने इसे "स्वराज की आत्मा"
कहा।

अनुक्रम

 1 स्वदे शी का आधार
 2 स्वदे शी आन्दोिन और वहन्दी
 3 सन्दभथ
 4 इन्ें भी दे खें
 5 बाहरी कव़ियााँ

स्वदे शी का आधार[संपाददत करें ]

हमें यह समझना होगा वक दे श में जो भी विकास अभी तक हुआ है , िह िास्ति में स्वदे शी के आधार पर ही
हुआ है । कुि पूंजी वनिेश में विदे शी पूंजी का वहस्सा २ प्रवतशत से भी कम है और िह भी गैर जरूरी क्षेत्रों
में विदे शी पूंजी वनिेश जाता है । आज वचवकत्सा के क्षेत्र में भारत दु वनया का वसरमौर दे श बन चुका है इसके
विए वजम्मेदार विदे शी पूं जी नहीं, बल्पि भारतीय िाक्टरों की उत्कृष्टता है । आज अंतररक्ष के क्षेत्र में भारतीय
अंतररक्ष अनुसंधान केन्द्र जो पूरी तरह से भारतीय प्रौद्योवगकी के आधार पर विकवसत हुआ है , ने दु वनया में
अपनी कामयाबी के झंिे गा़ि वदये हैं । आज दु वनया के जाने -माने दे श भी अपने अंतररक्ष यानों को अंतररक्ष
की कक्षा में स्र्ावपत करने के विए भारतीय 'पी.एस.एि.िी.' का सहारा िेते हैं । सामररक क्षेत्र में आणविक
विस्फोट कर भारत पहिे ही दु वनया को अचंवभत कर चुका है । उधर अवि प्रक्षेपपास्त्र का वनमाथ ण हमारे दु श्मनों
को दहिा रहा है । दु वनयाभर में भारत के िैज्ञावनकों, िाक्टरों और इं जीवनयरों ने अपनी धाक जमा रखी है ।
सरकार के तमाम दािों के बािजूद आयातों पर वनभथरता बढ़ने के बािजूद हमारे वनयाथ तों में िृल्पि नहीं हो रही,
िेवकन हमारे सॉफ्टिेयर इं जीवनयरों की अर्क मेहनत के कारण हमारे सॉफ्टिेयर के बढ़ते वनयाथ त सरकार की
गित नीवतयों के बािजूद दे श को िाभाल्पित कर रहे हैं ।

इन सभी क्षेत्रों में हमारी प्रगवत वकसी भी दृवष्टकोण से विदे शी वनिेश और भूमंििीकरण के कारण नहीं, बल्पि
हमारे संसाधनों, हमारे िैज्ञावनकों और उत्कृष्ट मानि संसाधनों के कारण हो रही है । अभी भी समय है वक
सरकार विदे शी वनिेश के मोह को त्याग कर, स्वदे शी यानी स्वेदशी संसाधन, स्वदे शी प्रौद्योवगकी और स्वदे शी
मानि संसाधनों के आधार पर विकास करने की मानवसकता अपनाए। आज जब अमरीका और यूरोप सरीखे
सभी दे श भयंकर आवर्थक संकट से गुजर रहे हैं , तब भारत में स्वदे शी के आधार पर आवर्थक विकास ही एक
मात्र विकि है ।
स्वदे शी आन्दोलन और दिन्दी[संपाददत करें ]

महात्मा गााँ धी ने सम्पकथ भार्ा के रूप में वहन्दी के महत्व को प्रवतपावदत करते हुए कहा र्ा–

मैंने सन् 1915 में कां ग्रेस के (एक के अिािा) सभी अवधिेशनों में भाग विया है । इन अवधिेशनों का
मैंने इस अवभप्राय से अध्ययन वकया है वक कायथ िाही को अंग्रेजी की अपे क्षा वहन्दु स्तानी में चिाने से
वकतनी उपयोवगता बढ़ जायेगी। मैंने सैक़िों प्रवतवनवधयों और हजारों अन्य व्यल्पक्तयों से बातचीत की है
और मैंने अन्य सभी व्यल्पक्तयों से अवधक विशाि क्षेत्र का दौरा वकया है और अवधक वशवक्षत तर्ा
अवशवक्षत िोगों से वमिा हाँ – िोकमान्य वतिक और श्रीमती ऐनी बेसेन्ट से भी अवधक। मैं इस दृढ़ वनश्चय
पर पहुाँ चा हाँ वक वहन्दु स्तानी के अिािा संभित: कोई ऐसी भार्ा नहीं है , जो विचार विवनमय या राष्टरीय
कायथिाही के विए राष्टरीय माध्यम बन सके।[2]

यहााँ यह उल्लेखनीय है वक सन 1905 ई. तक कां ग्रेस के अवधिेशनों में भाग िेने िािे सदस्य अवधकतर
अंग्रेजी िेशभूर्ा में रहते र्े और अपने भार्ण अंग्रेजी में ही वदया करते र्े िेवकन सन 1906 ई. के बाद
‘स्वराज्य’, ‘स्वदे शी’ ने इतना जोर पक़िा वक ‘स्वभार्ा’ और वहन्दी भार्ा के विए मागथ प्रशस्त हो गया। िोकमान्य
वतिक ने ‘वहन्द केसरी’ के माध्यम से वहन्दी को प्रचाररत–प्रसाररत करने का प्रयास वकया। पंजाब में िािा
िाजपत राय ने वशक्षण संस्र्ाओं में वहन्दी की पढ़ाई को अवनिायथ बनाने में महत्वपूणथ भूवमका वनभाई। पल्पित
मदनमोहन माििीय ने काशी वहं दू विश्वविद्यािय की स्र्ापना करके एिं पाठ्यक्रम में वहन्दी एक विर्य के रूप
में सल्पम्मवित करके तर्ा ‘अभ्युदय’, ‘मयाथ दा’, ‘वहन्दु स्तान’ आवद पत्रों को प्रारम्भ एिं सम्पादन करके वहन्दी का
प्रचार–प्रसार वकया। राजवर्थ पुरुर्ोत्तमदास टं िन, काका कािेिकर आवद ने वहन्दी को सािथदेवशक बनाकर जन–
जागृवत िाने में महत्वपूणथ भूवमका वनभाई।

जावहर है स्वाधीनता आन्दोिन की सफिता के विए यह आिश्यक र्ा वक उसे सािथदेवशक और अल्पखि भारतीय
बनाया जाए क्ोंवक सन् 1857 के प्रर्म संघर्थ में हमें इसविए असफि होना प़िा क्ोंवक िह अल्पखि दे शीय
नहीं हो सका र्ा। उस प्रर्म स्वाधीनता संग्राम को अल्पखि भारतीय नहीं बनाये जा सकने के अनेक कारणों में
एक कारण राष्टरव्यापी भार्ा का अभाि भी र्ा। एक अल्पखि दे शीय भार्ा के अभाि में सम्पूणथ दे श को नहीं
जो़िकर रखा जा सका और िह आन्दोिन मात्र वहन्दी प्रदे शों तक ही सीवमत होकर रह गया र्ा। अन्य प्रदे शों
में विटपुट घटनाएाँ अिश्य घवटत हुईं िेवकन कोई सार्थक पररणाम नहीं वनकिा। १८५७ का प्रर्म भारतीय
स्वतंत्रता संग्राम असफि जरूर हुआ िेवकन यह वसखा गया वक अल्पखि भारतीय स्तर पर संगवठत हुए वबना
आजादी का स्वप्न दे खना व्यर्थ है । इसविए यह जरूरी समझा गया वक विवभन्न भार्ा–भावर्यों के बीच एक
सम्पकथ भार्ा ही राष्टरव्यापी भार्ा हो तावक योजनाओं का सही वक्रयाियन हो सके और सम्पूणथ दे श को जो़िकर
रखा जा सके। अब प्रश्न यह र्ा वक राष्टरव्यापी भार्ा कौन हो सकती है ? यद्यवप उस समय अल्पखि भारतीय स्तर
पर संस्कृत, फारसी और अंग्रेजी जैसी भार्ाएाँ र्ीं िेवकन इनमें से कोई भी ऐसी नहीं र्ी जो जनता की भार्ा
बन सके। िैसे तो अंग्रेजी के माध्यम से उस समय सम्पकथ–कायथ चि रहा र्ा िेवकन जब बात स्वदे शी,
स्वाधीनता, स्वावभमान और स्वभार्ा की हो तब वकसी विदे शी भार्ा को सम्पकथ भार्ा या राष्टरभार्ा के रूप में
अपनाना उवचत नहीं र्ा। इसविए दे श की एक दजथन से भी अवधक भार्ाओं में से एक को राष्टरीय सन्दे श की
िावहका या अन्तर प्रान्तीय व्यिहार के विए चुनना र्ा। सरिता, सहजता, स्वाभाविकता और बोिने िािों की
संख्या के आधार पर वहन्दी को राष्टर भार्ा और सम्पकथ भार्ा के रूप में अपनाने की जोरदार िकाित की
गई।

सन्दर्भ [संपाददत करें ]


1. ऊपर जायें ↑ क्रान्त, मदनिाि िमाथ (2006) (Hindi में) स्वाधीनता संग्राम के क्राल्पन्तकारी सावहत्य का
इवतहास 1 (1 सं॰) नई वदल्ली: प्रिीण प्रकाशन प॰ 84 आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 81-7783-119-4
http://www.worldcat.org/title/svadhinata-sangrama-ke-krantikari-sahitya-ka-itihasa/oclc/271682218
2. ऊपर जायें ↑ दिन्दी का वैदिक पररदृश्य िॉ॰ पंवित बन्ने, पृष्ठ संख्या 26

इन्हें र्ी दे खें[संपाददत करें ]

 स्वभार्ा
 स्वराज
 स्वदे शी आन्दोिन
 स्वदे शी जागरण मंच
 खादी

बािरी कद़ियााँ [संपाददत करें ]

 स्वदे शी से स्वाििम्बन
 Be-Swdeshi-Buy-Swdeshi (वहन्दी वचट्ठा)
 swdeshi-bano-swdeshi-kharido (वहन्दी वचट्ठा1)
 स्वदे शी और विदे शी उत्पादों की सूची
 मरें भी अगर तो स्वदे शी कफ़न हो (कविता) (स्वामी नारायणानंद ‘अख़्तर’)
 स्वदे शी विज्ञान
 1. स्वदे शी का तात्पयथ समझ में आ जाए।
2. विदे शी कम्पवनयों के र्ड्यन्त्र ि िूट का पररचय कराना।
3. स्वदे शी के प्रवत गौरि ि स्वावभमान के भाि जागृत करना।
4. हस्त वनवमथत स्वदे शी िस्तु ओं के उपयोग और विदे शी िस्तु ओं के बवहष्कार का संकि करना।
5. घर पर तै यार हो सकने िािे उत्पाद-मोमबत्ती, कािा मंजन, प्राकृवतक साबुन आवद का वनमाथ ण विवध वसखाना।

व्याख्यान क्रम :-
स्वदे शी क्या िै ?
महात्मा गााँधी के शब्ों में-‘‘स्वदे शी की भािना का अर्थ है हमारी िह भािना जो हमें दू र का िोिक़र अपने समीपिती पररिे श का ही उपयोग और सेिा करना
वसखाती है । उदाहरण के विए इस पररभार्ा के अनुसार धमथ के सम्बन्ध में यह कहा जाये गा वक मुझे अपनु पू िथजों से प्राप्त धमथ का पािना करना चावहए। यवद मैं उसमें
दोर् पाऊाँ तो मुझे उन दोर्ों को दू र करके उस धमथ की सेिा करनी चावहए। अर्थ के क्षे त्र में मुझे अपने प़िोवसयों द्वारा बनाई गई िस्तुओं का ही उपयोग करना चावहए
और उन उद्योगों की कवमयााँ दू र करके उन्ें ज्यादा सम्पूणथ और सक्षम बनाकर उनकी सेिा करनी चावहए।’’
‘‘स्वदे शी से मेरा मतिब भारत के कारखानों में बनी िस्तु ओं से नहीं है । स्वदे शी से मेरा मतिब भारत के बेरोजगार िोगों के हार् की बनी िस्तु ओं से है । शुरू में
यवद इन िस्तुओं में कोई कमी भी रहती है तो भी हमें इन्ीं िस्तुओं का उपयोग करना चावहए तर्ा स्ने हपूिथक उत्पादन करने िािे से उसमें सुधार करिाना चावहए। ऐसा
करने से वबना वकसी प्रकार का समय और श्रम खचथ वकए दे श और दे श की िोगों की सच्ची सेिा हो सकेगी।’’- महात्मा गााँ धी।

स्वदे शी क्ा-क्ा है ?
स्वदे शी िस्तु नहीं -वचन्तन है ।
स्वदे शी तन्त्र है - ऋवर् जीिन का।
स्वदे शी मन्त्र है -सुख शाल्पन्त का।
स्वदे शी शस्त्र है - यु ग क्राल्पन्त का।
स्वदे शी समाधान है - बे रोजगारी का।
स्वदे शी किच है - शोर्ण से बचने का।
स्वदे शी सम्मान है - श्रमशीिता का।
स्वदे शी संरक्षक है - प्रकृवत पयाथ िरण का।
स्वदे शी आन्दोिन है - सादगी का।
स्वदे शी संग्राम है - जीिन मरण का।
स्वदे शी आग है - अनाचार को भस्म करने का।
स्वदे शी आधार है - समाज की सेिा का।
स्वदे शी उपचार है - मानिता के पतन का।
स्वदे शी उत्थान है - समाज ि राष्टर का।
एक सिाि:-

स्वदे शी क्या िै ?
* जो अपने आसपास ही उत्पन्न हो और उपिब्ध हो जाए।
स्वदे शी क्ों?
* क्ोंवक इसके वबना हमारा आवर्थ क शोर्ण नहीं रुक सकेगा।
स्वदे शी कहााँ ?
* जो कुि हमें प्रकृवत से उपिब्ध हो जाए िहां ।
स्वदे शी कब?
* जब हमें सामावजक सुख शाल्पन्त की चाह हो तब।
स्वदे शी वकतना?
* वजससे हमारी आिश्यकताओं की पूवतथ हो जाए न वक इच्छाओं की उतना।
स्वदे शी कौन?
* जो हमारी चेतना में उपभोग नहीं उपयोग का भाि जागृत करें ।
स्वदे शी कैसे?
* अपने आसपास के हस्त वनवमथत िस्तु ओं को उपयोग का संकि िे कर।
स्वदे शी कब तक?
* जीिन भर।
स्वदे शी में क्ा-क्ा?

भार्ा, भू र्ा (पहनािा), भे र्ज (और्वधयााँ ), वशक्षा, रीवत-ररिाज, भौवतक उपयोग की िस्तुएं, कृवर्, न्याय व्यिस्र्ा आवद। वकसी भी दे श को यवद आवर्थ क, सामावजक, तकनीकी,
सुरक्षा आवद क्षे त्र में समर्थ ि महाशल्पक्त बनना है , तो स्वदे शी मन्त्र को अपनाना ही होगा दू सरा कोई मागथ नहीं। जै से:-
अमेररका- िम्बे समय तक अं ग्रेजों का गुिाम रहा, 200 िर्थ पहिे तक कोई अल्पस्तत्व नहीं र्ा। पर जब िहां स्वदे शी का मन्त्र वसखाने िािे जाजथ िावशंगटन ने क्रां वत
वकया तो आज अमेररका विश्व में महाशल्पक्त बना बैठा है । दु वनया के बाजार में अमेररका का 25 प्रवतशत सामान आज वबकता है ।
जापान-तीन बार गुिाम हुआ पहिे अं ग्रज, वफर िच पुतथगािी स्पे वनश का वमिा जु िाके, वफर तीसरी बार अमेररका का गुिाम हुआ वजसने सन् 1945 में जापान के
वहरोवशमा ि नागासाकी में परमाणु बम वगरा वदये र्े । 100 िर्थ पहिे तक जापान का दु वनया में कोई पहचान नहीं र्ा। िे वकन स्वदे शी के जज्बा के कारण जापान वपििे
60 िर्ों में पु न: ख़िा हो गया।

चीन- ये भी अं ग्रेजों का गुिाम र्ा। अंग्रेजों ने चीन के िोगों को अफीम के नशे में िु बो वदया र्ा। सन् 1949 तक चीन वभखारी दे श र्ा। विदे शी कजाथ में िूबा र्ा।
बाद में िहां एक स्वदे शी के क्राल्पन्तकारी नेता माओजे जां ग ने पूरे दे श की तस्वीर ही बदि दी। आज चीन उस ऊंचे पायदान पर ख़िा है , वजससे अमेररका भी घबराता
है । आज दु वनया के बाजार में चीन का 25 प्रवतशत सामान वबकता है ।

मिे वशया- 25 िर्ों में ख़िा हो गया, स्वदे शी के कारण।

विदे शी बै साल्पखयों पर कोई भी दे श ज्यादा वदन तक नहीं वटक सकता। अं गे्रजों के आने के पहिे हमारा भारत हर क्षे त्र में विकवसत ि महाशल्पक्त र्ा।
अं ग्रेजों के शासन काि में ट.बी. मैकािे ने भारत की गुरुकुि वशक्षा व्यिस्र्ा को आमूिचूि बदि वदया। पढ़ाई जाने िािी इवतहास के वकताबों में भारत की
गौरिपूणथ इवतहास में फेरबदि कर वदया गया। भारत को गरीबों का दे श, सपेरों का दे श, अु टेरों का दे श, हर तरह से बदहाि दे श दशाथ या गया। जबवक इं ग्लैि ि
स्कॉटिैि के ही करीब 200 इवतहासकारों ने अपने इवतहास के वकताबों में जो भारत का इवतहास विखा है िह दू सरी ही कहानी कहता है । उसके अनुसार तो भारत
सिथ सम्पन्न दे श, ऋवर्यों का दे श, हीरे जिाहरातों का दे श र्ा।

उन इदतिासकारों के अनु सार:-


1. भारत के गां िों में जरूरत के सभी सामान तै यार होते र्े , शहरों से केिि नमक आती र्ी।
2. सन् 1835 तक भारत का सामान दु वनया के बाजार में 33 प्रवतशत वबकता र्ा।
3. भारत में तै यारी िोहा दु वनया में सिथ श्रेष्ठ माना जाता र्ा। सरगुजा (ि.ग.) के आसपास िोहे के 1000 कारखाने र्े ।
4. यूरोप के दे शों की तु िना में भारत की फसि प्रवत एक़ि तीन गुना ज्यादा होती र्ी।
5. गुरुकुि वशक्षा पिवत बहुत मजबू त र्ी। िै वदक गवणत के फामूथिों से गणना केिकुिे टर से भी शीघ्र हो जाती र्ी।
6. भारत के गां िों में िोगों के घर में सोने के वसक्ों के ढे र पाए जाते र्े, वजसे ि वगनकर नहीं तौिकर रखते र्े ।
7. गां िों में 36 तरह के उद्योग चिते र्े ।
8. गां िों में ही करीब 2000 प्रकार के प्रार्वमक उत्पाद तै यार होते र्े वजसे 18 प्रकार के कारीगर (जुिाहा, बु नकर, धुनकर, ते िी, कुम्हार, बढ़ई आवद) तै यार करते र्े ।
9. हाईटे क उत्पाद समझा जाने िािा स्टीि भारत में 3000 िर्ों तक बनता रहा है ।
10. यहााँ का कप़िा विदे शों में सोना के िजन के बराबर तौि में वबकता र्ा।
11. यहााँ इतनी अवधक समृल्पि र्ी वक मल्पन्दर भी सोने के बनिा वदये गए।
वमत्रो!भारत का िै भि दे खकर ही अंग्रेजों ने इसे ‘‘सोने की वचविय़ा’’ कहा।
पर एक सिाि उठता है वक इतना शल्पक्तशािी, सम्पन्न भारत की दु दथशा कैसे हुए? इसका संवक्षप्त में जिाब यही है वक अं ग्रेजों ने जान बू झकार अपने शासन काि में
3735 ऐसे कानून बना वदए वजससे हमारी ग्रामीण अर्थव्यिस्र्ा पू णथत: ध्वस्त हो गई। िे सभी कानून आज भी चिते हैं कोई पररितथ न नहीं है ।

भारत को व्यिल्पस्र्त तरीके से िूटने का काम विदे शी कम्पवनयों के द्वारा हुआ। जै सा वक आप जानते हैं ईस्ट इं विया नामक कम्पनी भारत में व्यापार के बहाने आई
र्ी। आजदी के पहिे तक भारत को चूसने िािे 733 बहुराष्टरीय कम्पवनयां सवक्रय र्ी। सत्ता हस्तान्तरण समझौते के तहत वसफथ ईस्ट इं विया कम्पनी को िापस भे जा गया
बाकी 732 कम्पवनयां बाद में भी बनी रहीं।
वजन विदे शी कम्पनीयों ने भारत को खोखिा बनाया और वजन विदे शी कम्पवनयों के बवहष्कार के विए स्वतं त्रता संग्राम के सेनावनयों ने स्वदे शी आन्दोिन चािाते हुए
अपने प्राण न्यौिािर कर दवए, उन्ीं कम्पवनयों को आज भारत सरकार आमल्पन्त्रत करके स्वयं दिािी खाने में मस्त है । आज हमारे दे श में ऐसे 5000 से भी अवधक
बहुराष्टरीय कम्पवनयां अपना सामान बे च रही है ।

विदे शी कम्पवनयों को बु िाने के पीिे हमारी सरकार चार तकथ दे ती है । 1. पूं जी आती है । 2. वनयाथ त बढ़ता है । 3. रोजगार बढ़ता है । 4. नई तकनीकी वमिती है ।

खोजबीन करने पर पता चिा है वक ये तकथ वनराधार है , बल्पि ल्पस्र्वत विपरीत है ।


1. सच्चाई यह है वक विदे शी कम्पवनयां बहुत ही कम पूंजी िे कर आती है और 1 िर्थ में ही तीन गुना पूं जी िापस विदे शी िे जाती है । उदाहरण।
* वहन्दु स्तान (यू नी) िीिन विवमटे ि (विटे न हािैं ि)-1933 में 33 िाख रू. पूं जी िे कर आई। प्रवतिर्थ 217 करो़ि रूपए विदे श िे जाती है ।
* कोिगेट पॉमोिीि (अमेररका)-पूं जी िाई 13 िाख। प्रवतिर्थ 231 करो़ि िे जाती है ।
* नोिावटथ स 40 िर्ों से है - पूं जी वनिेश 15 िाख, प्रवतिर्थ िे जाती है 94 करो़ि।
* फाइजर (अपे ररका) पूं जी वनिे श 2 करो़ि 90 िाख, िे जाती है 338 करो़ि प्रवतिर्थ ।
* वफविप्स (हािैि)-50 िर्ों से है , पूंजी वनिे श 1 करो़ि 50 िाख, िे जाती है 190 करो़ि प्रवतिर्थ ।
* गुवियर (अमेररका) टायर बनाती है । पूं जी वनिे श 2 करो़ि 37 िाख, 240 करो़ि प्रवतिर्थ िे जाती है ।
* ग्लै क्सो 30 िर्ों से है । पूाँ जी वनिे श 8 करो़ि 40 िाख रुपए, प्रवतिर्थ िे जाती है 533 करो़ि 66 िाख रुपए।
* आई.टी.सी. (इं वियन टोबै को कंपनी) असिी काम एटीसी (अमेररका) 20 िर्ों से है । पूाँ जी वनिेश 38 करो़ि, प्रवतिर्थ िे जाती है । 3170 करो़ि।

यवद सरकार के इस तकथ को मान भी विया जाए वक विदे शी कम्पवनयों के आने से पूाँ जी आती है तो इसका मतिब है वक हमारी गरीबी कम होनी
चावहए। सन् 1949 में सरकार ने 126 विदे शी कम्पवनयों को बुिाया तब भारत में गरीबों की संख्या गरीब साढ़े चार करो़ि र्ी। आज भारत में 5000 विदे शी कम्पवनयााँ आ
चु की हैं । तो सरकार के तकथ के अनुसार बहुत पूाँ जी आ गई, तो इसका सीधा सा मतिब है वक गरीबी िगभग समाप्त हो गई। पर आज भारत सरकार के ही आाँ क़िे
बताते हैं वक भारत में आज गरीबों की संख्या 84 करो़ि से भी ज्यादा है । अर्ाथ त् गरीबी 21 गुना बढ़ा है । तो स्पष्ट हो जाता है वक विदे शी कम्पवनयााँ पूाँ जी िाती नहीं
बल्पि पूाँ जी िे जाती है , िह भी बहुत ज्यादा।

2. दू सरा तकथ भी गित सावबत होता है जब हम यह आाँ क़िा दे खते हैं ।

1840 में जब भारत अं ग्रेजों का गुिाम र्ा एक विदे शी कम्पनी ईष्ट इल्पिया कम्पनी र्ी। उस समय भारत का वनयाथ त विदे शों में 33 प्रवतशत र्ा। भारत के कुि वनयाथत
में ईष्ट इल्पिया कम्पनी 3.6 प्रवतशत ही वनयाथ त करती र्ी।

1936 में भारत का वनयाथ त घटकर 4.5 प्रवतशत रह गया।

1950-2.2 प्रवतशत 1955-1.5 प्रवतशत


1960-1.2 प्रवतशत 1965-1 प्रवतशत
1970-0.7 प्रवतशत 1975-0.5 प्रवतशत
1980-0.1 प्रवतशत 1990-0.5 प्रवतशत
1991-0.4 प्रवतशत 2009-0.5 प्रवतशत
1840 में एक विदे शी कम्पनी र्ी जो भारत के वनयाथ त में 3.6 प्रवतशत मदद करती र्ी। आज 5000 कम्पवनयााँ वमिकर केिि 5.52 प्रवतशत मदद करती है ।

स्पष्ट है वक विदे शी कम्पवनयााँ भारत का वनयाथ त नहीं बढ़ाती बल्पि आयात बढ़ाती है । ऊपर से ये कम्पवनयााँ भारत सरकार पर बराबर दबाि िािती रहती है वक
भारतीय मुद्रा रुपए की कीमत घटे । 1950 में 1 िािर-1 रु. र्ा। आज 1 िािर=50 रु.इससे तो हम अमेररका से 50 िर्थ ऐसे ही वपि़ि गए।
3. विदे शी कम्पवनयााँ कोई हाईटे क िे कर नहीं आतीं। 90 प्रवतशत कम्पवनायाँ तो शून्य तकनीकी का ही काम करती है । जै से साबु न बनाना, यह घर पर भी बनाया जा
सकता है । साबु न बनाने में कोई मशीन की जरूरत नहीं प़िती। मशीन तो कवटं ग ि पै वकंग में िगती है । साबु न बनाने में करीब 50 विदे शी कम्पवनयााँ काम कर रही हैं ।

इसी प्रकार वबल्पस्कट, चाकिे ट, सौन्दयथ प्रसाधन, बोति बन्द पानी, िबि रोटी, आचार, गेहाँ का आटा, आिू वचप्स आवद। इनमें से कोई भी उत्पाद हाई टे क्रोिॉजी का नहीं
है । 10 प्रवतशत कम्पवनयााँ ही कुि काम की चीजों में काम करती है । जै से मोटर, इं जन आवद। पर उसमें भी िे इं जन भारत में नहीं बनाते , अपने दे श से बनाकर िाते हैं
यहााँ केिि वफवटं ग कर दे ते हैं । टे क्रोिॉजी टर ां सफर नहीं करते ।

हाईटे क काम तो है -सेटेिाईट बनाना, वमसाइि बनाना, परमाणु बम, सुपर कम्प्यूटर बनाना, िे वकन इस काम के विए कोई भी विदे शी कम्पनी नहीं आती। इन क्षे त्रों में
भारत ने बहुत प्रगवत वकया है , िे वकन स्वदे शी िै ज्ञावनकों के द्वारा। अमेररका में जो तकनीकी 20-30 िर्थ पु रानी हो गई है , वजसे िहााँ िम्प कर वदया गया है , उसे िे भारत
में िा दे ते हैं जै से-जहरीिी कीटनाशक बनाने की तकनीकी, रासायवनक खाद बनाने िािी तकनीकी। भोपाि में यू वनयन काबाथ इि कम्पनी में 777 नमक रसायन बनता र्ा।
1984 की दु घथटना के बारे में आप सभी जानते हैं । ऐसे 56 कारखाने भारत में स्र्ावपत है ।

एिोपै र्ी दिाओं के क्षे त्र में भी विदे शी कम्पवनयााँ वबना काम की हजारों दिाएाँ भारत में बेचकर करो़िों रुपये कमा रही है । जल्पस्टस हाती कमीशन के अनुसार एिोपै र्ी
की 117 दिाएै ही भारत में काम की है , बावक बे कार हैं बल्पि कुि तो घातक भी हैं । आपको जानकर आश्चयथ होगा वक भारत में एिोपै र्ी के 84 हजार से भी अवधक
प्रकार की दिाएाँ ध़िल्ले से वबकती हैं । ऐसी दिाईयााँ जो विदे शों में 20 िर्ों से बै न है , िे भी भारत में वबकती है ।

4. सरकार की चौर्ी तकथ वक यहााँ रोजगार के अिसर बढ़ते हैं स्पष्ट वदख रहा है वक गित है । बेरोजगारी का आाँ क़िा विदे शी कम्पवनयों के आने के सार्-सार् बढ़ती
ही जा रही है । साधारण सी बात है वक जब वकसी काम को मशीनों के द्वारा वकया जाएगा तो जहााँ 100 िोगों की जरूरत र्ी िहााँ 10 से ही काम चि जाता है 90 तो
बे रोजगार हो गए।
तो वमत्रों! अब जरूरत है वक स्वदे शी आन्दोिन को हम सब ते ज गवत से आगे बढ़ाएाँ । इस हे तु व्यल्पक्तगत स्तर पर हम यह जरूर करें -
1. स्वदे शी ि विदे शी कम्पवनयों की सूची अपने पास रखें और स्वदे शी िस्तु एाँ ही खरीदें ।
2. यवद हस्त वनवमथत स्वदे शी िस्तु एाँ उपिब्ध हो तो िही िस्तुएाँ उपयोग करें , गुणित्ता में कमी हो तो वनमाथ णकताथ ओं से वनिे दन करें सुझाि दें प्रोत्साहन दें ।
3. यवद व्यिस्र्ा बन सके तो आप स्वयं कुि कुटीर उत्पाद तै यार करें ।
वस्तु दनमाभण प्रदशक्षण
1. मोमबत्ती 2. काला दन्त मंजन 3. प्राकृदतक साबुन
नोट:- यह प्रायोवगक वशक्षण है ।

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