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िहदू धम म वै ािनक मा यताएँ

क.वी. िसंह
भूिमका
वैिदक धम का जो वतमान व प हम आजकल देखने को िमलता ह, उसे आज का तकशील व वै ािनक
कोण रखनेवाला मानव अंधिव ास, आ था व िढ़वाद क सं ा देता ह। यह िवचारणीय ह िक या वा तव
म हमार धम क पूजा-पाठ िविध, पव- योहार, सां कितक मा यताएँ व रीित- रवाज कवल आ था पर िटक ह या
िफर उनका कोई वै ािनक आधार ह?
ायः देखा गया ह िक पढ़-िलखे लोग, जो अपने को बुि जीवी मानते ह, वे धम क परपरा, प रपाटी व उसक
वतमान व प क या तो उपे ा करते ह या िफर उसक ित यं या मक रवैया अपनाते ह। उनम से कछ का तो
यह भी मानना ह िक हमारी धािमक मा यता का कोई वै ािनक आधार नह ह। परतु उनक यह सोच
वा तिवकता से ब त पर ह, य िक िजन लोग ने िहदू धम क मूल प को जाना व अ ययन िकया ह, वे जानते ह
िक हमार धम का एक सु ढ़ वै ािनक आधार ह। आव यकता कवल उसक मम और मूल व प को समझने क
ह।
परतु एक बात स य ह िक हमार धम का जो व प आजकल देखने को िमल रहा ह, वह इसका वा तिवक
व प नह ह। कालांतर म इसका व प कब बदल गया, हम पता ही नह चला। ऐसे म धम क वतमान व प
को देखकर अगर क यूटर युग का मानव इसक उपे ा करता ह तो इसम आ य कसा?
भारतीय सं कित व धम क िवषय म एक आ यचिकत करनेवाला स य यह ह िक इसक बारीिकय और
गहराइय पर िजतना शोध जमनी, चीन और अमे रका ने िकया ह, उतना हम भारतीय ने नह । जमनी और चीन क
पास भारत क िजतनी ाचीन मूल पांडिलिपयाँ ह, उतनी भारत म नह ह। खेद इस बात का ह िक जो कछ भी
हमार पास ह, हम उस पर भी कोई शोध नह कर रह ह।
सरकार क उदासीनता क साथ-साथ हमार अिधसं य धमगु भी कछ नह कर रह। उनक िवषय म यह कहना
अितशयो न होगा िक वे धमगु न रहकर ‘धम- यापारी’ बन गए ह। बड़-बड़ एयर कडीशन आ म म भ य
यास-पीठ पर बैठकर वे हम धम बेचते ह, पर धम का वै ािनक व प नह बताते।
यहाँ इस पु तक म सनातन धम व भारतीय सं कित से जुड़ी छोटी-छोटी बात व मा यता , िज ह हम
अंधिव ास कहते ह, उनक पीछ जो गहरा िव ान ह, उसे सरल भाषा म आप और अपने आपको बुि जीवी
कहलानेवाले, दोन कार क लोग क िलए सादर तुत िकया गया ह, तािक वे उस िव ान को न कवल जाने
ब क भारत क भावी संतान को समझाएँ, िजससे वे िव म अपनी धािमक धरोहर पर गव कर सक।
—कमवीर िसंह
आभार
यह पु तक उन स े साधु-संत व िव ान क अथाह ान का प रणाम ह, िजसे मने समय-समय पर अपने स र
वष क जीवनकाल म देश क िविभ देश से बटोरा। जो भी दुलभ ान-मोती म इस पु तक म संकिलत कर पाया
, वे सब उ ह महा संत क देन ह। एक और मह वपूण बात यह ह िक वे सभी महा मा व िव ा जहाँ अ य
ान भंडार क वामी थे, वह वे िकसी भी कार क य गत शंसा या चार से दूर रहना चाहते थे। यही कारणा
ह िक म उनक नाम िलखने म असमथ ।
इसक अित र मने अपने जीवनकाल म कई पु तक पढ़ , उनसे भी मुझे बड़ी ेरणा िमली ह। म ‘सनातन
भारतीय सं कित सं था, गोवा’ क डॉ. जयंत बालाजी आठवले क ित अपना िवशेष आभार य करता ,
िजनक पु तक िहदू धम क वै ािनक त य को समझने म मेर िलए बड़ी सहायक िस ।
म उन सभी अनाम संत , िव ान व लेखक का आभारी , िजनक वाणी या पु तक ने य या अ य प
से मेर ान को बढ़ाने म योगदान िदया ह।
—कमवीर िसंह
भारत हजार वष से आ या मक जग ु य रहा

हमारा देश भारत हजार वष से आ या मक जग ु य रहा ह? चार धाम क अवधारणा भारत म ही य ह?
य नौ बार इस भूिम पर भगवान ने ज म िलया? सैकड़ ऋिष-मुिनय ने य वेद-पुराण क रचना यह पर क ?
और य हजार साधु-संत ने अपनी वाणी से इस देश क धरती को गुंजायमान िकया? यह सबकछ या मा एक
संयोग ह या िफर इनक पीछ कोई वै ािनक कारण ह? यह एक िवचारणीय िवषय ह।
अ ययन करने से पता चलता ह िक यह कोई संयोग नह ह, ब क इसक पीछ कई वै ािनक कारण ह। सबसे
मु य कारण भारत क भौगोिलक थित ह। भारत पृ वी क उस िविश भू-भाग पर थत ह जहाँ सूय और
बृह पित ह का िवशेष भाव पड़ता ह। खगोल व योितष शा क अनुसार सूय और बृह पित मनु य क
आ या मकता क कारक माने जाते ह। सूय व बृह पित से आनेवाली िवशेष तरग का िविकरण भारत क भूभाग को
गहन प से भािवत करता ह। इस कारण भारत म आ या मकता का वातावरण बना रहता ह। ऐसे म ेम, दया,
सिह णुता यिद भारत क भूिम म कट-कटकर भरी ह तो आ य कसा?
िव क अिधकतर देश म तीन या चार ऋतुएँ होती ह, पर भारत एक ऐसा देश ह जहाँ छह ऋतुएँ ह— ी म,
वषा, शरद, शीत, वसंत व पतझड़। संभवतः इतनी ऋतुएँ अ य िकसी देश म नह होत । (पािक तान, बँगलादेश भी
कभी इसी भूभाग क अंग थे।) ऋतु का सीधा संबंध सूय और पृ वी क भौगोिलक थित से होता ह। यह त य
वै ािनक भी मानते ह। ऋतु-प रवतन का भाव मनु य क मन, म त क व शरीर तीन पर पड़ता ह। ऋतु प रवतन
क साथ कित अपनी लय बदलती ह और हमार ऋिष-मुिनय ने कित क प रवितत लय से कसे अपने तन-मन
क लय को जोड़कर रखना ह, यह िव ान जान िलया था। वे जानते थे िक ऋतु बदलने क साथ मनु य क शरीर
का रसायन भी बदल जाता ह। इसिलए उ ह ने ऋतु प रवतन क साथ कई पव और योहार जोड़ िदए, िजनक दौरान
मनु य उपवास रखकर अपने शरीर क रसायन पर िनयं ण रखता था। यही नह , उपवास क बाद या खाना चािहए,
इसका भी उ ह ने ावधान िकया। इन सबक पीछ वै ािनक त य यह था िक मनु य अपने शरीर क लय को कित
क लय से जोड़कर रखे। यान देनेवाली बात ह िक िहदू पव और योहार ायः िवशेष िदन पूिणमा, अमाव या या
शु प क दौरान ही मनाए जाते ह।
हमार ऋिष-मुिनय ने एकादशी क िदन उपवास रखने पर ब त जोर िदया ह। इसक पीछ एक बड़ा वै ािनक
कारण ह। मनु य क शरीर म एक महीने क दौरान लगभग दो बार उसका रसायन भािवत होता ह। दस िदन भोजन
करने से जो पौ क रस शरीर म बनता ह, एकादशी क िदन मानव शरीर उसे अपने अलग-अलग अंग को बाँटता
ह। शरीर उस रस को सुचा प से बाँट सक, इसिलए एकादशी क िदन उपवास क मा यता ह। शरीर का इतना
बारीक अ ययन अभी तक आधुिनक वै ािनक ने नह िकया ह, इसिलए वे उपवास क पीछ जो वै ािनक गहराई
ह, उसे नह समझते और इस कार क बात को ‘ यथ’ क सं ा दे देते ह।
ाचीन काल म ऋतु-फल क सेवन पर सनातन प ित म ब त बल िदया जाता था। इसक पीछ का िव ान यह
था िक कित ऋतु प रवतन क समय जो फल देती ह, उसम पैदा होनेवाले फल व स जय म िवशेष कार का
रसायन होता ह, जो वे सूय से लेते ह, वह रसायन मनु य क शरीर और वा य क िलए ब त लाभदायक एवं
मह वपूण होता ह। ऋतु काल म यिद कोई मनु य पं ह िदन लगातार १०-१२ जामुन का सेवन कर तो उसक
अ याशय को श िमलती ह और वह डायिबटीज का रोगी नह बनेगा। इसी कार, ऋतुकाल म यिद कोई
य तीस िदन पीपल क वृ क ५ फल िन य खाए तो उसक मरण-श ती हो जाती ह। ये सब बात
अंधिव ास नह अिपतु वै ािनक त य पर आधा रत ह। आयुवद यह परी ण हजार वष पूव कर चुका था।
खेद क बात तो यह ह िक आजकल तो ऋतु-फल का कोई अथ ही नह रह गया ह, य िक कि म खाद व
इजे शन ारा पूर साल मौसम-बेमौसम क सब कार क फल-स जयाँ उपल ध रहती ह। पहले ाकितक खाद
का इ तेमाल होता था और ऋतु व कित दोन का वाभािवक भाव फल-स जय पर पड़ता था। इसिलए उनक
सेवन से ही लाभ होता था। यह एक वै ािनक स य ह, कोई अंधिव ास नह । यही कारण ह िक िफर से आगिनक
फल-स जयाँ उगाई जाने लगी ह, पर वे इतनी महगी ह िक आम आदमी क प च से दूर ह।
ऋतु प रवतन क समय मनु य क शरीर क रसायन बदलते ह, साथ ही उसक शरीर म थत िवशेष सू म शरीर
क च पर भी असर होता ह। इसिलए ऋिष-मुिन उन िदन उसी च पर अिधक यान देते थे िजस पर ऋतु
िवशेष का भाव पड़ता था और वे इस कार अपना आ या मक िवकास करते थे। इस कार भारत क छह
ऋतुएँ हमार आ या मक िवकास म सहयोगी रही ह।
भारत क आ या मकता क पीछ एक और बड़ा कारण यह ह िक यहाँ दो मह वपूण पवत ंखलाएँ ह—एक
अरावली और दूसरी िहमालय। यह एक अनुमोिदत स य ह िक अरावली िव क ाचीनतम पवत- ंखला ह और
िहमालय िव क सबसे त ण। यह कोई मा संयोग नह ह िक दुिनया क ाचीनतम व त ण दोन ंखलाएँ
भारत म ही ह। इसक पीछ भी कित का अपना योजन ह।
अरावली संसार क सबसे प रप पवत- ंखला होने क कारण कित क ‘अ न-त व’ का ितिनिध व करती
ह, जबिक ‘िहमालय’ कित क जल-त व का ोतक ह। मनु य क शरीर क िलए ये दोन त व अित आव यक ह।
दोन पवत ंखला ने भारत क सं कित को पनपने म अपना िवशेष योगदान िदया ह। िजन लोग ने अपने
आ या मक िवकास क िलए जल-त व को धानता दी, वे जीवन क रह य क खोज म िहमालय क गोद म चले
गए और वहाँ कित क रह य को खोजा व जाना। िजन िज ासु ने अ न-त व को धानता दी, वे अरावली क
आँचल म चले गए और तप या क । िहमालय क मनीषी ऋिष कहलाए और अरावली क मुिन; पर दोन ने ही
जीवन क रह य का िव ान खोजा और जाना।
अरावली और िहमालय क अित र भारत क स निदय ने यहाँ क जनमानस को बड़ा भािवत िकया ह। इन
स निदय म अलग-अलग देवता क त व धान ह, जैसे—गंगा म िशव-त व, गोदावरी म राम, यमुना म
क ण, िसंधु म हनुमान, सर वती म गणेश, कावेरी म द ा य और नमदा म माँ दुगा क त व िव मान ह। स
निदय म गंगा सबसे िविश ह, िजसक मह ा िव तार से पु तक म आगे वणन क गई ह। एक और यान देने
यो य बात यह ह िक सूय और चं हण क समय इन निदय म ान करना आ या मक से उ म माना गया
ह, य िक उस समय सूय व चं मा का पृ वी पर िवशेष गु व आकषण होता ह। िहदू मनीिषय ने उस समय
िवशेष मं का जाप भी बताया ह।
भारत क कछ पेड़-पौध ने भी भारत क आ या मकता म बड़ा योगदान िदया ह। तुलसी का पौधा भारत क घर-
आँगन का एक अिभ अंग रहा ह। वै ािनक भी अब इस त य को वीकारते ह िक तुलसी एक ब त ही
संवेदनशील पौधा ह। यिद तुलसी क आस-पास थोड़ी सी भी नकारा मक या ती गंध हो तो यह पौधा मुरझा जाता
ह। िजन घर म तुलसी का पौधा नह लगता या पनपता या मुरझा जाता ह तो समझ लीिजए िक उस घर का
वातावरण दूिषत ह। इस से तुलसी का पौधा घर क आ या मकता का मापदंड भी ह।
नीम का वृ भी घर क आस-पास क नकारा मकता को दूर करने म सहायक होता ह। पीपल क वृ क तो
बात ही िनराली ह। यह वृ भारतीय सं कित और इितहास दोन का अिभ अंग ह। संभवतः इसीिलए भारत क
सव म पुर कार ‘भारत र न’ को काँ य से बने पीपल क प े क प म दान िकया जाता ह। यह एक वै ािनक
स य ह िक वातावरण क शुि क िलए ऑ सीजन ब त आव यक ह, पर शायद हमम से कई यह नह जानते िक
पीपल एक ऐसा वृ ह जो चौबीस घंट ाणदायी ऑ सीजन छोड़ता ह। संसार क सम त वन पितय क बात कर
तो वृ म पीपल और पौध म कवल तुलसी ही ऐसे ह जो रात-िदन ऑ सीजन देते ह। भारत क ाचीन मनीिषय
ने इसीिलए इन दोन को चुनकर समाज का अंग बनाया। यह चयन कोई संयोग नह था, अिपतु वै ािनक कारण से
उ ह ने ऐसा िकया। यह बात अलग ह िक आज हम इनक मह व को कवल अंधिव ास व दिकयानूसी धारणा
कहते ह।
इन दोन वन पितय का आ या मक से भी काफ मह व ह। तुलसी क सतत उपयोग और पीपल क
आस-पास सतत रहने तथा उसक पश से मनु य क सा वक गुण का िवकास होता ह और शारी रक व मानिसक
मता भी बढ़ती ह। पीपल व तुलसी दोन क मह व को पु तक म अलग से आगे विणत िकया गया ह।
इस कार भारत क आ या मकता क पीछ उसक भौगोिलक िविश थित, अरावली व िहमालय पवत
ंखला , स निदय , छह ऋतु तथा िवशेष वन पितय का ब त बड़ा हाथ ह। इ ह कारण से भारत म
आ या मकता सदा से बनी रही ह। वतमान समय म भी अ य देश क अपे ा भारत म आ या मकता अिधक ह।
ऐसे म यिद अमे रका, इ लड, जमनी, जापान आिद से लोग शांित क खोज म भारत आ रह ह तो आ य कसा?
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वैिदक धम क मूल प से प रचय
आज क इस क यूटर और पुतिनक युग म मानव का जीवन पूणतया िव ान से जुड़ा ह। उसक जीवन क
लगभग सभी काय ऐसी मशीन और यं से होते ह, िजनका सीधा संबंध िव ान से ह। इसिलए जो िव ान क
कसौटी पर खरा नह उतरता, वह उसे ढकोसला और अंधिव ास लगता ह। अपनी इस िवचारधारा व धारणा क
िलए आधुिनक मानव पूण प से दोषी नह ह, य िक इन सबक बार म मोबाइल फोन से बात करनेवाले और
ए.सी. कार म घूमनेवाले न तो आज क पंिडत लोग ही बताते ह और न ही हमार िश ा सं थान म पढ़ानेवाले
िश क। ऐसे म यिद हम अपने धम क मा यता क पीछ जो िव ान ह, उसका पता नह ह तो आ य कसा?
ान क इस अभाव को दूर करने क िलए हम पहले अपने धम क मूल व प से प रिचत होना होगा, तभी हम
अपनी धािमक मा यता क िव ान को भलीभाँित समझ सकगे और आनेवाली पीढ़ी को उसक बार म बता सकगे।
सनातन धम क पहली िवशेषता यह ह िक िव म आज िजतने भी धम ह, यह उनम सबसे ाचीनतम ह। इसक
साथ जो अ य धम जनमे व पनपे, वे या तो लोप हो गए या िफर िछ -िछ । हमार धम क िनरतरता क पीछ जो
कारण ह, वह ह इसक िव यापी सुग यता। इसका आँचल कवल िकसी जाित िवशेष या समाज िवशेष क िलए
नह था। इसक मं म यह भाव िनिहत था िक सारा िव ही एक प रवार ह (वसुधैव कटबक ) और संसार क
सभी ािणय का क याण हो (लोकः सम तः सुखनो भव तु)। ऐसी सुंदर भावनाएँ थ उन मं म। ये मं कवल
भारतभूिम क धम म आ था रखनेवाल क िलए ही नह थे, अिपतु संसार क सम त ािणय क क याण हतु बने
थे। ऐसी यापक िव -क याणकारी िवचाराधारा िव क अ य िकसी धािमक आ था म देखने को नह िमलती।
हमने सभी धम का आदर िकया और सभी को वीकार भी िकया। यही कारण ह िक हमार धम म आज भी
िनरतरता गितमान ह।
दूसरी िवशेषता हमार धम क यह ह िक इसक आधारिशला िकसी एक य िवशेष या एक धम ंथ िवशेष पर
आधा रत नह ह। इसक तो अनिगनत आधार- तंभ ह; जैसे वेद-पुराण, रामायण-गीता और असं य धमशा व
मीमांसाएँ। यिद इनम से हम कछक आधार को हटा द या नकार द, तो भी हमार धम क आधारिशला य -क - य
अिडग बनी रहगी। धम क हमारी यह िवशेषता हम अमर व दान करती ह।
तीसरी मह वपूण िवशेषता हमार धम क यह ह िक इसका ज म कित क भय से या िफर सामािजक
प र थितय क कारण (जैसा िव क अ य धम क इितहास म ायः देखा गया ह) नह आ ह। इसका ज म तो
कित क गूढ़ रह य का गहन अ ययन करक, ांड क िव ान का पूणतया शोध करक और जानने क बाद ही
आ ह। इसक अित र एक और यान देने यो य त य यह ह िक भारत क मुिनय ने कित क रह य का
अ ययन व ांड क िव ान का ान-अजन कछ सीिमत वष म नह िकया, इसे अिजत करने क पीछ कई
पीिढ़य का योगदान व अनुभव रहा ह। यही नह , यह योगदान व अनुभव भी िकसी एक य िवशेष का नह था,
यह ानाजन तमाम ऋिष-मुिनय क िचंतन-मनन का प रणाम ह। धम का इतना िव तृत आधार िव म अ य
देखने को नह िमलता।
भारत क सनातन ऋिष-मुिनय ने कित क हर रह य को गहराई से देखा और कित क घटना क िव ान को
समझा। िफर उस ान को उ ह ने पहले मौिखक प से समाज को िदया और कालांतर म धम ंथ म समािहत
िकया। भारत क मनीिषय ने वन पित, पशु-प ी, जीव-जंतु, ह-न , आ मा-परमा मा व ांड क रह य का
स य अ ययन िकया, िफर मनु य क जीवन पर पड़नेवाले उसक भाव को जाना। यही नह , इस सबक वै ािनक
त य को भी समझा। यही कारण ह िक हमारी धािमक मा यताएँ िव ान क ठोस आधार पर िटक ह, न िक
ढकोसल पर। यह बात अलग ह िक आज हम उस वै ािनक आधार से अनिभ ह। आव यकता इस बात क ह
िक हम उस आधार को खोज।
सच तो यह ह िक िव क अ य िकसी और धािमक आ था म कित व मनु य का इतना गूढ़ अ ययन नह
आ ह। मनु य को या करना और या नह करना चािहए, या खाना और या नह खाना चािहए, या सोचना
और या नह सोचना चािहए—इन सब छोटी-बड़ी बात का हमार धम ंथ म िव तार से वणन िकया गया ह। पशु-
पि य पर अनुसंधान करक मनु य क वा य लाभ क िलए अनेक योगासन बनाए गए और उ ह क नाम पर उन
योगासन का नाम रखा गया; जैसे क कटासन, मयूरासन, सपासन आिद।
यही नह , जब भारत क मनीिषय ने धम क िनयम व मा यता को समाज को िदया तो इस बात का भी पूणतया
यान रखा िक धम आचरण करते समय धम क अनुयाियय से कोई ऐसा काय न हो जो कित क िनयम क
िव हो। उ ह ने इस बात पर बल िदया िक मनु य क सब काय ऐसे ह , िजससे मनु य और कित म सदा
सम वय बना रह तथा धम आचरण करते समय मनु य व कित क लयब ता बनी रह। आज मनु य क कई
सम याएँ इस कारण भी ह िक उसने कित से अपनी लय को तोड़ िदया ह। हमारी कई आधुिनक सम या का
मूल कारण यही ह िक हमने िव ान और आधुिनकता क नाम पर ऐसे कई आिव कार िकए ह, िज ह ने मनु य,
कित व ांड क आपस क संतुलन को िबगाड़ िदया ह।
आज क िव ान ने हम सड़क पर तेज दौड़नेवाली मोटरकार दी, तेज गित से उड़नेवाले हवाई जहाज िदए, पर
साथ म िदया वायु- दूषण, िजसका प रणाम हम सभी जानते ह। परमाणु ऊजा क इ तेमाल क साथ उसका प रणाम
भी जुड़ा आ ह। आज का वै ािनक एक अंत र यान छोड़ता ह तो िकतना धन जलता ह और िकतना वायु
दूषण होता ह, सोचने क बात ह। प रणाम ‘ लोबल वािमग’ क प म हमार सम ह। आज क िव ान ने सुख
तो िदया ह पर दुख उससे कह यादा, िजसका मु य कारण ह उसक ारा क गई गित का कित से िवरोध।
जबिक पहले भारत क सं कित ने कित से अपनी लय को भी बनाए रखा था। यही अंतर ह हमारी सनातन और
आधुिनक गित म। एक म कित का साथ ह तो दूसरी म अलगाव।
सौर मंडल म कौन-कौन से ह ह, उनका पृ वी व सूय से िकतना-िकतना अंतर ह, न क थित व गित
या ह—इन सब जिटल न क उ र जानने क िलए सनातन ऋिष-मुिनय ने उप ह या अंत र यान नह छोड़
थे। इन सब न क उ र उ ह ने अपनी यानाव था म और वैिदक गिणत क आधार पर जान िलये थे। भारत म
आज भी हम गिणत क आधार पर सूय हण व चं हण क ितिथ आज क वै ािनक से पहले लगा लेते ह।
एक कट स य—धम का जो आधुिनक प हम आज देखने को िमलता ह, वह ढकोसला ही ह, य िक
आजकल जो धम क ठकदार, धमगु अैर वचनकता ह, उनम से अिधकतर सनातन धम क मम व मूल को जानते
ही नह , इसीिलए वे अपने अनुयाियय को स य-माग नह िदखा पाते। उ ह तो बस रामायण, महाभारत व वेद-
पुराण क कथाएँ व संग याद ह, िज ह वे चटपटी भाषा म भोली जनता को सुनाकर वाहवाही लूटते ह। एक महीने
का योितष का कोस करक जो योितषी बन जाते ह, वही भारत क सनातन धम क , इस िव ान क िख ी
उड़वाते ह। आज भारत क ८० ितशत राजनेता , बड़ यापा रय और उ अिधका रय क हाथ क अंगुिलय म
र न क मू यवा अँगूिठयाँ ह, पर उ ह ने उन र न को धारण करने क पूरी प रपाटी या िवधान का पालन नह
िकया होता। िफर इन र न से लाभ कसे होगा? ऐसे म यिद कोई यह कह िक ये सब प थर पहनना मा
अंधिव ास ह, तो गलत या ह? र न क िव ान को जाने िबना र न मा एक प थर ही तो ह। टी.वी. पर ३०
सेकड म ज मितिथ पूछकर जो योितषी अमुक र न पहनने को कहते या सलाह देते ह, वे र न-िव ान को उपहास
का पा बनाते ह।
ऊचे-ऊचे भ य िसंहासन जैसे यास-पीठ पर बैठकर टी.वी. पर ‘धम बेचनेवाले’ धमगु धम क नाम पर भोली
जनता को गुमराह कर अंधिव ासी बना रह ह। शरीर को तोड़-मरोड़कर दस योगासन करवा देना पतंजिल का योग
नह ह। उसक िलए मन-शरीर क शुि , बुि पर िनयं ण भी तो ऋिष पतंजिल ने बताए ह, िफर वह सब य नह
बताते? आज बाजार म हवन क िलए न शु साम ी ह, न शु देसी गाय का घी, न शु सिमधाएँ और न ही मं
का शु उ ारण करनेवाले कमकांडी ा ण। ऐसे म यिद हवन करने पर कोई लाभ न हो तो आ य य ? ऐसे
कमकांड को तो ढकोसला व अंधिव ास क ही सं ा दी जाएगी। पर इन सबका यह अथ कदािप नह िक हमारी
धािमक धारणाएँ िबना िकसी वै ािनक आधार क ह। आव यकता इस बात क ह िक हम उ ह सही ढग से समझ
और अपनी युवा पीढ़ी को भी समझाएँ।
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पौरािणक कथा म छपा ह
तािकक गूढ़ ान
लोग ायः अखंड रामायण का पाठ, ीम ागवत स क और ग ड़पुराण आिद का पाठ करवाते ह। इन पाठ
क मा यम से हम अनेक कथा-कहािनयाँ सुनते ह। पर स ाई यह ह िक वे कथा-कहानी मा कथा नह ह। यिद
हम अपने को कहानी क तर तक ही सीिमत रखते ह तो हम उन कथा क िव ान को नह समझ सकगे। इस
त य को और अिधक प करने क से ीम ागवत क एक कथा ‘सात गाँठ का बाँस’ और उसम िछपा
िव ान यहाँ तुत ह।
ीम ागवत म एक पौरािणक कथा ह िक आ मदेव नामक एक ा ण था, िजसक कोई संतान नह थी।
उसक प नी धुंधुली अित सुंदर थी, लेिकन वह सोचती थी िक माँ बनने से उसका स दय नह रहगा। इसिलए वह
माँ बनना नह चाहती थी।
एक िदन आ मदेव तालाब क िकनार उदास बैठा था। वहाँ एक सं यासी से उसक भट ई। आ मदेव ने सं यासी
क पाँव छकर पु क ा का वरदान माँगा। सं यासी ने उसे ब त समझाया िक पु क ा उसक िलए शुभ
नह होगी, लेिकन आ मदेव ने हठ िकया तो सं यासी ने उसे एक फल िदया, िजसक खाने से उसक प नी िचंता म
पड़ गई। उसने पित से कहा िक वह रात म यह फल खा लेगी; लेिकन उसने खाया नह ।
संयोगवश उ ह िदन धुंधुली क बहन उससे िमलने आई ई थी, तो उसने अपने मन क िचंता बहन क सामने
रख दी। बहन गभवती थी, लेिकन ब त गरीब थी। उसने धुंधुली से कहा, ‘‘म अपना ब ा चोरी से तु ह दे जाऊगी,
तुम सबसे यही कहना िक वह तु हार यहाँ पैदा आ ह। बस तुम इतना करो िक अपना ब त सा धन मुझे दे दो,
य िक हम ब त गरीब ह, तािक ब े का लालन-पोषण ठीक से कर सक।’’
धुंधुली ने वही िकया और वह फल अपनी गाय को िखला िदया। समय आने पर अपनी बहन का बेटा लेकर
उसने सबसे कह िदया िक उसक यहाँ पु का ज म आ ह।
कछ समय प ा िजस गाय को वह फल िखलाया था, उसक एक बछड़ा पैदा आ, िजसक काया मनु य
जैसी थी, िकतु कान गाय जैसे थे, िजससे आ मदेव ा ण ने उसका नाम ‘गोकण’ रख िदया।
वे दोन ब े एक ही घर म बड़ होने लगे। गोकण तो िव ा बनता गया, लेिकन धुंधुली ने जो ब ा ब त-सा
धन देकर खरीद िलया था, वह मूख और लंपट बनता चला गया। आ मदेव ने उस बेट से दुःखी होकर घर छोड़
िदया और वन म तप या करने लगा। धुंधुली को जब उस बेट ने ब त सताया तो एक िदन उसने कएँ म कदकर
अपनी जान दे दी।
यह धूत बेटा वे या क माँग पूरी करने क िलए बड़ी-बड़ी चो रयाँ करने लगा। एक िदन उसक सारी दौलत
छीनकर वे या ने उसे मार डाला। मरने क बाद वह ेत-योिन म पड़कर तड़पने लगा।
उधर गोकण ने वन म जाकर घोर तप या क । बाद म जब वह एक बार अपने गाँव लौटा तो उस रात वह वह
ठहरा, जहाँ उसका ज म आ था। वह ेत भी वह उस घर म रहता था। वह गोकण क पास बैठकर रोने लगा।
गोकण को उस पर दया आ गई, इसिलए सुबह होने पर उसने सात िदन का त िलया िक वह ितिदन
ीम ागवत का पाठ करगा और उसने ेत से कहा िक वह हर रोज एक कोने म बैठकर उसे यान से सुन।े इससे
उसक मु हो जाएगी और वह ेत-योिन से छट जाएगा।
गाँव क लोग भी गोकण क घर ितिदन आते और कथा सुनते। वह घर क आँगन म एक बाँस गड़ा आ था।
िजसक सात गाँठ थ । ेत तो वायु प होता ह, इसिलए वह बाँस क एक िछ म से घुसकर बाँस म बैठ जाता
और ितिदन गोकण क या या सुनता। कथा समा होने पर पहले िदन एक िविच घटना ई, जो सब गाँववाल
ने भी देखी। वचन समा होते ही बाँस क एक गाँठ फट गई। दूसर िदन दूसरी गाँठ फट गई, और इस तरह सात
िदन म सात गाँठ फट ग । यह बात कवल गोकण ही जानता था। सातव िदन उसक ेत-योिन से मु हो गई।
गाथा िव ान—इस कथा म िछपा जो गूढ़ ान ह, वह यह ह िक इस कथा म बाँस क सात गाँठ इनसान क
अंतर-चेतना क सात अव थाएँ ह। ान- ा क साथ-साथ अ ान क एक-एक गाँठ का खुलते जाना ही बाँस
क एक-एक गाँठ का फटते जाना ह। हमार भारतीय िचंतन म इ ह महा-चेतना क सात धाराएँ कहा गया ह। इ ह
को योग-शा म मनु य क सात शरीर कहा गया ह— थूल शरीर, सू म शरीर, अित सू म शरीर, मनस शरीर,
आ मक शरीर, शरीर और िनवाण शरीर।
यही मनु य क सात मू छत श याँ ह, िज ह चेतन यं से ि याशील करना होता ह, संक पशील करना होता
ह व संवेदनशील करना होता ह। इस पौरािणक गाथा का उ े य मनु य को अ ान क ेत-योिन से मु कराना
ह। यहाँ मन म एक न उठ सकता ह िक मा कथा सुनने से िकसी ाणी क ेत योिन से मु कसे हो सकती
ह? इसक पीछ जो िव ान ह, वह विन और वण श पर आधा रत ह। सं कत मूल प म वण-भाषा ही थी,
इसीिलए इसे ‘ ुित’ कहा जाता था। इस भाषा क श उ ारण को कवल सुन लेने से ही ाणी पर आंत रक भाव
पड़ता ह। बस इसी िव ान क आधार पर उस दु ेत-आ मा ने मु पाई।
इन सात परत वाली चेतना को ‘स वाणी’ कहते ह। यिद हम इस िचंतन क गहराई म और उतर जाएँ, तो देख
सकते ह िक हमारा ाचीन िचंतन एक-एक चेतना क सात-सात परत मानता ह, िजसे एक स क कहा जाता ह
और यह स क अपनी सात-सात परत को िलये ए उनचास त व बनता ह (७ × ७=४९) िजनका पचासवाँ त व
महाचेतना ह। उसे जोड़कर पूर ांड को पचास त वीय ांड का नाम िदया गया ह।
इस कार यह सात गाँठ वाले बाँस क कथा अपने म पूर ांड क िव ान को समोए ए ह।
पुराण म एक और कहानी कही जाती ह िक शुंभ और िनशुंभ दो भाई थे, जो मृ यु पर िवजय पाना चाहते थे।
उ ह ने देवता क आराधना क । देवता ने उ ह वर माँगने क िलए कहा। उ ह ने वर माँगा िक वे मृ यु को ा
न ह । तब देवता ने कहा, ‘‘आ मा कभी मरती नह , इसिलए यह वरदान तो आपको िमल चुका ह।’’ िकतु ऐसा
कोई वरदान देना देवता क बस म नह था। यह जानने क प ा शुंभ और िनशुंभ ने देवता से कहा, ‘‘िफर
हम यह वरदान दीिजए िक िकसी पु ष श क हाथ से हमारी मृ यु न हो। वह चाह मनु य हो, देवता हो, रा स
हो या पशु-प ी हो।’’
उ ह यह वरदान िमल गया। इसक प ा उ ह ने पृ वीवािसय पर इतने अ याचार िकए िक समाज क यव था
ही चरमरा गई। यह देख देवता ने ी-श को अथा माँ क प म दुगा को जा -अवत रत िकया, िजनक
हाथ शुंभ और िनशुंभ का अंत संभव हो सका।
भारतीय िचंतन क अनुसार ई र अध-नारी र ह, उसका आधा भाग पु ष होता ह और आधा नारी। आधुिनक
िव ान क अनुसार भी मनु य क म त क का बायाँ भाग पु ष और दािहना भाग नारी-श क ओर संकत करता
ह। इन दोन को जा और संतुिलत करक देवता ने समाज को यव थत िकया। यही इस कथा का गूढ़ रह य
ह।

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‘ओ३म’ अब िव उ ार रहा ह
ओ३ (ॐ) सनातन धम क आ मा ह। यह एकाक श द उस अनािद विन क ित विन ह जो सृ क
िनमाण क समय ित विनत ई थी। इस कारण इसे श द- भी कहा गया ह। ांड क िनमाण क समय जो
विन गुंिजत ई थी, ओ३ क विन उस गूँज क िनकटतम ह। जब कोई य एका मन से इस श द का सतत
उ ारण करता ह तो इसक ित विन क गूँज का पंदन उस मनु य क शरीर क चार ओर एक वतुल घेरा बना
देता ह, िजसक फल व प उस य पर अनुकल आ या मक भाव पड़ता ह। इसीिलए वैिदक मं का पहला
अ र या श द ‘ओ३ ’ से ारभ होता ह। इस श द क उ ारण से लयब तरग िनकलती ह, िजनम सृजन श
होती ह और ये मनु य को रचना मक बनाती ह। यही कारण ह िक अमे रका, इ लड, जमनी, जापान म लोग इसका
उ ार कर रह ह।
‘ॐ’ एक एका र मं ह, िजसक पीछ शा दक-श (Acoustic) का िव ान ह। वै ािनक भी अब इस बात
क पु करते ह िक संसार क सृ क समय एक भीषण विन पैदा ई थी, िजसे वे अपनी आधुिनक भाषा म
‘िबग-बग’ (Big bang) क नाम से जानते ह। भारत क मनीिषय ने इस अनािद श द क ित विन हजार वष पूव
अपनी गूढ़ यानाव था म सुनी थी, िजसे उ ह ने बाद म समाज क लोग क क याणाथ मं क प म दे िदया।
य तो ओ३ श द क या या म ब त कछ और िलखा जा सकता ह, पर इस श द क पीछ जो वै ािनक स य
व त य ह, मा उसका ही यहाँ वणन िकया गया ह।
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वा तक का मह व जमनी म भी
ओ३ क भाँित वा तक का िच भी भारतीय सं कित से अनािद काल से जुड़ा ह। यह मा धािमक तीक
नह ह अिपतु एक वै ािनक सश िच ह। इसक पीछ कालच का िव ान ह, पर इसे िनिमत करने व बनाने
क साम ी का िवशेष िवधान ह। यिद वा तक िच िविध क अनुसार और वांिछत साम ी से िनिमत नह होगा तो
यह मा एक रखा िच बनकर ही रह जाएगा।
इसक रचना क सही िविध क िलए पहले आप पाँच सामि य का िम ण तैयार कर—गंगाजल, गोमू ,
कमकम, हलदी एवं कसर। इस िम ण से वा तक का िच पूजा-क या घर क ार पर दोन ओर, शयन-क
म या िफर जमीन पर िकसी उिचत थान पर बनाएँ। इन पाँच पदाथ म शु ीकरण व आकषण श िव मान ह,
जो इस िच को जा करती ह।
वैसे यहाँ यह बताना ासंिगक होगा िक जमनी म भी इस िच का बड़ा मह व रहा ह। नाजी जमनी क समय म
तो यह उनका राजक य िच था।
वा तक बनाते समय पहले एक रखा पूव से प म क ओर तथा दूसरी रखा पहली रखा को म य से काटते
ए उ र से दि ण क ओर समान प से ख चकर धन (+) का िच बनाएँ और िफर उसे वा तक का आकार
द। बाद म वा तक क बीच अथा धन क िच क चार ओर रखा क बाहर बीचोबीच एक-एक िबंदी
लगाएँ। यान रह, वा तक उलटा न बने। उलट वा तक का अथ होगा समय-च को उलटा चलाना, जो
अशुभ ह। िच को यान से देखने पर आपको पता चलेगा िक इसक भुजाएँ घड़ी क सुई क तरह ( ॉक
वाइज) बा ओर से दा ओर घूमती ह। इस कार से बना वा तक िच २७ न क ऊजा को एकि त कर
आपक चार ओर फलाता ह। वा तक का िच बनाकर, उस पर आसन िबछाकर बैठने से मन को शांित ा
होती ह और यान लगाना आसान होता ह, पर शत यह ह िक वा तक िविधपूवक बना हो।
िहदू और जैन धम म आ था रखनेवाले लोग वा तक का योग करते ह। वा तक श द सं कत क श द वा
+ अ त क योग से बना ह, िजसका अथ सौभा य और क याण ह। इसी कारण, आजकल इस िच क साथ शुभ
एवं लाभ श द िलखे देखे जाते ह।
वा तक का िच मोहनजोदड़ो स यता क खुदाई म पाई गई तीक मु ा (Seal) पर भी अंिकत पाया गया
ह। जैन अनुयायी इसे अपने सातव तीथकर का तीक मानते ह और इसक चार िदशा को मनु य क िनवाण क
चार अव थाएँ, जबिक िहदू इनम चार पु षाथ, चार वेद, चार धाम और चार देव— ा, िव णु, महश व गणेश
को देखते ह।
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ऋिष-मुिनय क भाषा सं कत
श द- क अनुसार संसार म िजतनी भी सू म व थूल व तुएँ ह, वे सब विन से ही उ प ई ह। योग सू
का यह मानना ह िक इस संसार म पचास मूल विनयाँ ह, शेष विनयाँ इ ह पचास मूल विनय से िनकली ह।
मूल विनय को माि क कहते ह।
इन माि का को ऋिष-मुिनय ने अपनी यानाव था म सुना और िफर वा -त व (Phonetic-Principle) क
आधार पर एक भाषा का िनमाण िकया, िजसे उ ह ने ‘सं कत’ (अितशोिधत) नाम िदया।
सं कत एक ऐसी भाषा ह िजसम मनु य क कठ, दंत, िज ा, ओ व तालू से िनकलनेवाली सभी विनय को
य का य श द म िलखा जा सकता ह। िव क अ य िकसी और भाषा म ऐसा करना संभव नह ह। सं कत
भाषा म ५१ वण ह िज ह ा ी िलिप म िलखा जाता ह। अ य भाषा क अपे ा सं कत म यह मता ह िक
इसम जैसा बोला जाता ह, वैसा ही उसे िलखा जाता ह। यह मता इस भाषा क वै ािनक आधार पर बनी वणमाला
क कारण ह।
जब कोई सं कत का शु उ ारण करता ह तो उस मनु य क शरीर पर एक अनुकल भाव पड़ता ह। यही
नह , जो इस भाषा क शु उ ारण को सुनते ह, उन पर भी इसका भाव पड़ता ह। यही कारण ह िक पुराण म
िलखा ह िक जो य वेद-पुराण , रामायण व गीता क मूल पाठ का वण करता था, उसका भी क याण हो
जाता था। शायद यही कारण था िक पा ा य गाियका ‘मैडम मडोना’ ने सं कत क उ ारण को सीखने क िलए
एक अ प अविध कोस बनारस म िकया। मडोना का कहना था िक इस भाषा क शु उ ारण को सीखने क बाद
उसने ऐसा महसूस िकया िक सं कत िश ण क बाद उसे सुननेवाले अिधक भािवत ए।
खेद ह िक आज सं कत एक जीिवत भाषा नह ह। गु काल क दौरान सं कत सम त भारत क रा ीय भाषा
थी, पर कालांतर म इसका लोप हो गया। एक सव क अनुसार, देश म सं कत बोलने व समझनेवाले मा छह-सात
हजार ही लोग ह। सं कत भाषा को जीिवत बनाने क िलए जमनी म कई शोध ए ह। पर आज आव यकता इस
बात क ह िक ऐसे शोध भारत म भी होने चािहए। सं कत संबंधी एक आ यजनक बात यह ह िक अमे रका म
रह रह भारतीय ने यू जस शहर म सं कत क एक सं था खोली ह और वे वहाँ सं कत सीखते-िसखाते ह।
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मं श िव ान
श द क समूह िवशेष क संयोजन का नाम मं ह। मं संयोिजत करते समय मं को बनानेवाले ऋिष एक-एक
अ र को बड़ी द ता से संयोिजत करते थे। यही नह , मं को समाज को देने से पहले वे उसका योग वयं पर
करते थे और मं िसि क उपरांत ही वे मं वेद म थान पाते थे। ये वैिदक मं कहलाते थे। वैिदक मं क
अित र और भी मं ह, जो उतने ही मह वपूण ह िजतने िक वैिदक। मं क आिव कार करनेवाले ऋिषय को
‘मं ा’ कहते थे।
मं का िव ान विन, शा दक श (Sound energy) और वा क िस ांत पर आधा रत ह। मं क शु
उ ारण से मनु य क िवशेष अंग पर भाव पड़ता ह, िजससे उसे ऐसी वांिछत ऊजा ा होती ह, जो उसक
इ छापूित कराने म सहायक होती ह। मं िसि क िलए मनु य को एक िन त मा ा और सं या तक उ ारण
करना होता ह। यही नह , मं िसि करते समय उस य को अपनी सम त ऊजा को सँजोकर रखना होता ह।
इसिलए मं िसि क दौरान चय का पालन, भूिम-शयन, ोध पर िनयं ण, वाणी का संयिमत उपयोग करना
आव यक होता ह।
आज मनु य क जो जीवन शैली ह, उसम या वह इन सब िनयम का पालन कर सकता ह? वह मं िसि
कसे भी कर सकता ह? इसिलए वह मं को ढकोसला मानता ह। दोष मं िव ान का नह , उसे ठीक ढग से न
करने का ह। मं श ा करना एक साधना ह, एक तप या ह, जो आज क इस युग म संभव नह । ाचीन
काल म लोग क पास समय व संयम दोन थे, पर आज नह , य िक युग बदल गया ह।
दोष युग का ह, मं का नह । अमे रका क डॉ टर हावड टनगल ने गाय ी मं पर अनुसंधान करक पाया िक
गाय ी मं क शु उ ारण से वायु म ित ण १,१०,००० लयब िव ुतधारा वािहत होती ह। इससे यही िस
होता ह िक मं म अव य ही िव ान ह। मं ारा श द-श से मनु य क आंत रक ऊजा वािहत होती ह और
वह िसि को ा होता ह। मं म देन श का बीज छपा होता ह, जब कोई य मं उ ार करता ह, तो उस
मं क विन देव श को कट कर देती ह। देव श क कटीकरण से मनु य क दुःख, आपदा, संकट व
अ य सभी बाधाएँ दूर हो जाती ह। मं िसि मनु य को ब ांड श से जोड़ देती ह, िजसक कारण मनु य को
कित से वह सब िमलने लगता ह, जो उसक िहत म होता ह।
मं क िवषय म एक और बात मह वपूण ह िक हर मं हर य को नह िदया जा सकता। अलग-अलग मं
अलग-अलग य य क िलए ह, जो इस बात पर िनभर करता ह िक य का आ या मक तर या ह। और
आ या मक तर को जानने क िलए गु का यो य होना ज री ह। िकसी य क आ या मक तर को जाने
िबना मं -दी ा देनेवाले गु क कारण ही हम आज क वै ािनक कोण रखनेवाले लोग क उपहास का
कारण बनते ह। दोष ‘मं ’ का नह , देनेवाले गु का ह।
पर ऐसे भी कछ मं ह, िजनका जाप सभी कर सकते ह। ‘गाय ी मं ’ उनम से एक ह। इस मं क साधना
कोई भी य कर सकता ह। िफर भी, यिद कोई िस गु इस मं क दी ा दे तो मं ा करनेवाले का
आ या मक िवकास अ पकाल म ही संभव ह; य िक िस य ारा िदया मं ज दी िस हो जाता ह।
ाचीन काल म जब िकसी मंिदर या देवालय क िलए कोई देव ितमा बनाई जाती थी तो उस ितमा को
बनानेवाला िश पकार उसे तराशते समय मौन रहकर मन-ही-मन उस देवी या देवता क मं का उ ारण करता
रहता था। इस कार मं जाप से वह मूित जा हो जाती थी। आयुवद म भी जब िकसी बीमार य क िलए
कोई िवशेष औषिध बनाई जाती थी तो भी मं जाप िकया जाता था। ऐसे ही जब िकसी अँगूठी म कोई र न जड़वाते
थे तो उस अँगूठी क र न को मं ारा धारण (जा ) करते थे। ऐसे ही पौरािणक काल म यु क समय जो बाण
मं पढ़कर छोड़ जाते थे, वे उसी ल य पर लगते थे, िजसका नाम लेकर उसे छोड़ा गया था। ऐसी थी मं -श ।
इन सभी था व धारणा क पीछ जो िव ान ह, वह यह िक मं कित का सू म त व ह, जबिक ितमा,
औषिध व र न थूल। मं जाप ारा हम ‘सू म’ को थत कर देते ह। यही इसका िव ान ह और यही मं -श ।
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भारत का नह , अब िव का ह
‘योग’
योग और य भारतीय सं कित क आधारिशला ह। ये दोन इतने पुराने ह, िजतना भारत का इितहास। मनीिषय ने
इनक ारा ही यहाँ क सं कित व स यता को स चा ह। योग वह िव ान ह, िजसक बल पर हमार ऋिष-मुिनय ने
अपनी यानाव था म भूलोक से पर वायुमंडल, आकाशमंडल व तारामंडल आिद िवषम िवषय का ान अजन
िकया। इसी योगश से वे िनिमष मा म एक लोक से दूसर लोक क या ा करते थे। इसी योग क ान-िव ान
क आधार पर वे एक शरीर से दूसर शरीर म वेश कर जाते थे। यही नह , वे छा से वे अपने शरीर को पवत
समान िवशाल या च टी िजतना लघु बना सकते थे। अपने अनुपम गुण क कारण अब योग िव यापी हो गया ह।
योग क ये सब चम कारी ि याएँ कपोल क पना नह ह, अिपतु भारत म एक समय ऐसा होता था। पर यह
सबकछ इतना आसान नह था। पूण योगी बनने क िलए वष क कठोर तप या क आव यकता थी। तप या क
दौरान योगी को शु आहार एवं िवचार क आव यकता होती थी। जरा सी मानिसक भूल उसक वष क तप या
भंग कर सकती थी। योग-साधना म ोध व काम-वासना सबसे बड़ श ु ह। इन दोन क भाव से बड़-बड़ योगी
भी डगमगा जाते ह।
स ा योगी बनने क िलए एक योगी को कई तर से गुजरना पड़ता था। एक बालयोगी पहले ‘ऋिष व सल’
कहलाता था, िफर वह ऋिष बनता था और जैसे-जैसे उसका आंत रक व मानिसक तर उठता था, राजिष या देविष
बन जाता था। योग क अंितम ेणी -ऋिष क थी, िजसक ा किठन थी। इसी कारण सतयुग म भी कवल
दो ही -ऋिष थे। आज क इस युग म इस तर क योिगय क क पना करना भी किठन ह।
इतनी मता ा करने क िलए योगी को अपनी सारी ऊजा संिचत करनी पड़ती थी। चय का अटट पालन,
स य वचन, शु िवचार, शु आहार और वाणी-माधुय व ोध का प र याग सभी अिनवाय थे। इन सबक साथ
यान योग क िलए उसे कछ अ य िनयम का पालन भी करना पड़ना था। यान योग क समय उसे गोबर से िलपी
ई भूिम, कशा क आसन पर सूती या रशमी व पहनकर प ासन क मु ा म बैठ अपने िवचार पर अंकश लगा
एका िच हो यान लगाना होता था।
जब एक योगी इन सब िनयम का पालन करते ए यान करता ह, तो उसक शरीर म एक िवशेष कार क
िव ु का संचार होता ह, उसक शरीर का येक अणु सि य हो उठता ह, म त क म तरग उठती ह और उसका
ास लयब होकर यूनतम हो जाता ह। इन सब त य क पु अब पा ा य देश ने भी क ह। उनका कहना
ह िक योग क अव था म मनु य क मानिसक थित ऐसी हो जाती ह िक उसक शरीर म एक िविश िव ु का
संचार होता ह। उसक म त क म ‘अ फा-वेव’ संचा रत होने लगती ह। अ फा-वेव मनु य म कवल तब उठती ह
जब वह पूण प से शांत व िशिथल अव था म हो। एक साधारण य एक िमनट म १४-१५ ास लेता ह पर,
गहरी यानाव था म योगी क ास गित लगभग आधी होकर ७-८ ित िमनट हो जाती ह, िजसक कारण योगी क
आयु वृि होती थी। योग से हम ास कम खचते ह, इसिलए अिधक जीिवत रहते ह।
योग क शोध साधना म लगे ाचीन मनीिषय को जब इस स य का ान आ िक योग से शरीर म िव ु संचार
होता ह और ऊजा पैदा होती ह, तो उ ह ने इस पर और अिधक शोध िकया। गहन अ ययन करक उ ह ने योग-
ि या क एक प ित तैयार क , िजसम एक योगी को कब- या करना चािहए, कहाँ बैठना चािहए, िकस पर बैठना
चािहए, कसे बैठना चािहए, या खाना चािहए, या नह खाना चािहए आिद सभी त य पर वै ािनक से
काश डाला गया ह।
योग ि या क प ित क अनुसार योगी को कश क आसन या िफर मृगछाला या ऊन से बने आसन पर बैठकर
साधना करनी होती थी। इन आसन क पीछ वै ािनक कारण था िक ये सब योगी क शरीर म उ प ऊजा को
जमीन म जाने से बचाते ह, य िक ये तीन ‘बैड कड टर ऑफ इले िसटी’ (Bad conductor of electricity) ह।
इसिलए िव ु इनसे गुजर नह सकती और योग करक योगी िजतनी ऊजा अिजत करता ह, वह उसक शरीर म ही
रहती ह।
जब एक योगी प ासन लगाकर बैठता ह तो उसक शरीर क सब अंग- यंग एक-दूसर से छते रहते ह।
इसिलए जब योगी क शरीर म ऊजा का संचार होता ह तो वह ऊजा उसक पूर शरीर म ही घूमती रहती ह। िशखा म
गाँठ लगाने और हाथ क उगिलय को िकसी िवशेष मु ा म रखने से पैदा ई ऊजा शरीर क िकसी भी अंग से
बाहर िनकल नह पाती। िसर पर चोटी, उगिलय म मु ा और प ासन म बैठा योगी अं ेजी क आठ (८) अंक क
समान हो जाता ह, िजसम कोई छोर नह होता। इसिलए जो भी ऊजा शरीर म पैदा होती ह, वह घूम-िफरकर शरीर
म ही रहती ह।
योगा यास क िलए धम ंथ म नदी का तट या पहाड़ क चोटी को अिधक उपयु बताया गया ह। नदी क
िकनार या पहाड़ क चोटी पर बैठकर योगा यास करने का वै ािनक कारण यह ह— कित क लय (Cosmic
rythem) से शरीर क लय को त मय करना। हमार दूरदश मनीिषय ने योग िव ान का बड़ी बारीक से अ ययन
िकया था। योगी को सा वकता पैदा करनेवाले सूती व , शरीर क िव ु को िनयंि त रखने क िलए गले म
ा क माला और योग अ यास से शरीर म पैदा होनेवाली अ न को संतुिलत व शांत रखने क िलए गाय क घी-
दूध का सेवन करने का िवधान ह।
योगा यास क बाद योगी लकड़ी से बनी पादुकाएँ इसिलए पहनते थे, तािक योग ारा संिचत ऊजा नंगे पाँव
चलने से भूिम म रसािवत न हो जाए। लकड़ी क पादुका क पीछ का िव ान यह ह िक लकड़ी बैड-कड टर
ऑफ इले ीिसटी ह, इसिलए लकड़ी क पादुकाएँ योगी क ऊजा को उसक शरीर म ही संिचत रखती ह।
जब कोई य लगन से लगातार योगा यास करता ह तो उसका मन, शरीर और म त क तीन ही व थ व
फत हो जाते ह। उसका शरीर नीरोग, मन शांत व म त क ती हो जाता ह। उसका य व िनखर जाता ह और
वह दीघायु होता ह।
आज क युग म सनातन ऋिषय व पतंजिल ारा बताए कड़ िनयम का पालन करना असंभव ह। इसिलए युग
क अनुसार जो कछ भी हम कर सकते ह, उसे ही करना चािहए। यिद ऐसा नह होता तो पा ा य देश म आज
योग पताका नह फहरा रही होती। योग क चम कारी गुण क कारण अनेक देश म इसका अ यास हो रहा ह। यह
बदलाव इस स य क पु करता ह िक योग भारत क िलए ही नह , िव क िलए ह, संपूण मानवजाित क िलए
ह।
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य -िव ान
य (हवन) वैिदक परपरा का एक मह वपूण अंग ह। आय मूल प से अ न पूजक थे। ऋ वेद का थम श द
अ न ह और य अ न-िव ान से जुड़ा ह, िजसक अनुसार अ न म जो भी व तु डाली जाती ह, वह उसे भ म
करक उसका िव तार कर देती ह और सू म प से उसे ऊपरी लोक म भेज देती ह। अमे रका क ‘नासा’
वै ािनक ने भी यह वीकारा ह िक उनक ारा ेिपत ‘रॉक स’ से िनकलनेवाली लपट क कारण रॉक स म
डाली विनय क मा ा वतः बढ़ जाती ह, जो इस ाचीन स य को ितपािदत करती ह िक अ न उसम डाली
व तु का िव तार करती ह।
अ न-पूजा का दशन ह— कित क ित और अ य देव क ित जो हमारा ऋण ह, उसे उतारना और वातावरण
को शु करना। य क सारी ि या क पीछ अ न व मं दो शा िनिहत ह। य क िलए जो अ नकड तैयार
िकए जाते ह, वे शु गिणत व रखागिणत क आधार पर होते ह। वैिदक गिणत और सुलभ सू क अनुसार ाचीन
काल म रखागिणत क िभ -िभ दस आकितय वाली ट का योग अ नकड को बनाने म िकया जाता था। ट
का माप य करानेवाले य क शारी रक डीलडौल पर िनभर करता था। रखागिणत क सुलभ सू ईसा से आठ
शता दी पूव क ह। स १९७५ म, करल म एक वैिदक य का आयोजन िकया गया था, िजसम ाचीन मूल प ित
का अनुसरण िकया गया और पाँच िभ -िभ आकार क एक हजार ट का योग िकया गया था।
इसक अित र य म डाली जानेवाली साम ी, जैसे तरह-तरह क जड़ी-बूिटयाँ, काले ितल, जौ, चावल,
गु गल और गाय का शु घी—सभी का वै ािनक ढग से चयन होता था। ये सभी पदाथ जब अ न म वाहा होते
ह तो सू म और िव ता रत होकर वायुमंडल म िवलीन हो जाते ह। अ न म डालने से पूव मं ो ारण होता ह जो
उन पदाथ को प रलि त कर देता ह अथा अ न म डाले जानेवाले पदाथ को सू म प से िकस दैिवक श
को भेजा जा रहा ह, वह बोले जानेवाले मं से जाना जाता ह। मं क अनुसार अ न उस पदाथ क सू म प को
िनिहत देव या देवी क पास प चा देती ह। बस यही य का िव ान ह।
िवशेष य म हम देवता क मं क साथ आ ित म देवता क पसंद क पदाथ भी अ नकड म डालते ह;
जैसे गणेश हवन म ग े क टकड़, िव णु हवन म चा (दूध क खीर) और िपतृ-हवन म काले ितल। अ न इ ह
जलाकर भ म करक प रवितत प म देवता को प चा देती ह और वे स होकर हम मन-वांिछत फल दान
करते ह।
हवन क अ न जड़ी-बूिटय , मेवा व अ य पदाथ क भ म बना देती ह, जो एक सश औषिध बन जाती ह,
िजसे बाद म साद क प म ालु म बाँट िदया जाता ह।
य करनेवाले और करानेवाले दोन क िलए कछ िनयम होते थे, िजनका उ ह पूण प से पालन करना पड़ता
था। इन िनयम म मन-शुि और शरीर-शुि दोन अिनवाय थ , अ यथा फल- ा म बाधा आती थी। आजकल
हम हवन तो करते ह पर उन सब िनयम का पालन नह । हम भोजन तो चािहए, पर धीर-धीर चू ह क आग पर
बना नह , ब क ओवन पर पका ‘फा टफड’। इसी कार हम य से भी तुरत फल चािहए, पर य क िनयम का
पालन नह । ऐसे म य कसे फलीभूत होगा?
फा गुनी पूिणमा क िदन मनाए जानेवाला होली का पव एक सामूिहक य ही था। कछ िव ान क अनुसार यह
ाचीन अ न-पूजक क एक अितिविश परपरा ह, िजसका प आज िबलकल बदल गया ह। इस पव को मनाने
क िलए मूल प से कवल गाय क गोबर से बने उपले, मेवा व नवधा य ही अ न म डाला जाता था। इस य क
िलए होिलका-दहन क अ न आज क तरह मािचस से नह अिपतु मं ारा या िफर अगर क लकड़ी को
रगड़कर िलत क जाती थी। इस सामूिहक य म ाचीन सम त समाज भाग लेता था। होली दहन ठीक उस
समय पर िकया जाता था जब चं मा क कला पूण होती थी, िजसका िन य गिणत ारा िकया जाता था। इस
य क एक िवशेषता यह भी थी िक इसे िकसी आ म म नह ब क ाम े म आयोिजत करते थे। इसका एक
बड़ा लाभ यह होता था िक शीत क कारण जो वायुकण ऊपर वायुमंडल म न जाकर भूिम- तर पर ही रहते थे और
ामवािसय क िलए हािनकारक िस हो सकते थे, इस य क अ न क गरमी से हलक होकर ऊपर चले जाते थे
और ाम क वातावरण को शु कर देते थे।
होली का जो प हम आज देखने को िमलता ह, यह मूल प म वैसा नह था। आजकल होली क िलए कोई
भी लकड़ी, गंदे साज-सामान और न जाने या- या इसम जलाते ह। गाय क गोबर क तो हम क पना भी नह कर
सकते। गाँव म भी आज गाय कम भस यादा िदखती ह। वहाँ भी होली का िवकत प ही हम देखने को िमलता
ह। सच तो यह ह िक होली क अपे ा आज हम उ मादवाली दु हडी (होली से अगले िदन) को होली मानते ह, न
िक होली य को। सरकारी छ ी भी दु हडी क होती ह, न िक ‘होली’ क । शायद आज क युग क यही माँग ह।
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बोतल बंद गंगाजल महीन बाद भी दूिषत नह होता
भगीरथ ने ा व िशव क उपासना कर गंगा को पृ वी पर अपने पूवज क क याणाथ उतारा था—ऐसा पुराण
म िलखा ह। गंगा म ान करने से मनु य क पाप कट जाते ह, ऐसा िहदु का िव ास ह। गंगा म अ थयाँ बहाने
से वे शी जलत व म िमल जाती ह, यह स य सविविदत ह। यही नह , गंगाजल महीन बोतल म बंद रखने पर भी
दूिषत नह होता, यह त य अब तो वै ािनक भी वीकारते ह।
भारतवष म अनेक निदयाँ ह, जैसे—यमुना, गोदावरी, क णा, कावेरी, िसंध,ु पु आिद। सभी निदय क
अपने-अपने उ म थल ह और बहने का अपना-अपना माग, िजसे उ ह ने अपने आप अपने वाह क साथ
बनाया ह। वेद-पुराण पढ़ने क बाद हम ऐसा कोई संग नह िमलता, िजसम यह वणन हो िक गंगा क अलावा
िकसी और नदी का उ म व माग िकसी य ने खोजा और बनाया हो। ऐसा कवल गंगा क साथ ही आ ह।
इस से गंगा ‘नदी’ नह ह, य िक एक ाकितक नदी वह होती ह जो वयं बह। सं कत म ‘नद’ का अथ ह
—बहना। नदी श द भी नद से ही बना ह। पर गंगा वयं नह बही, यह बहाई गई ह। इसे भगीरथ ने खोजा और
िफर उसका माग िन त िकया। ऐसा संसार क िकसी और नदी क साथ नह आ। परतु गंगा क पिव ता को
देखते ए ऐसा लगता ह िक गंगा एक ऐसी िविश जलरािश ह जो नदी ही नह , उससे भी उ ेणी क ाकितक
जल-संपदा ह, िजसे भगीरथ ने िकसी िवशेष योजन को यान म रखते ए खोजा होगा।
कथा म आता ह िक किपल मुिन ने भगीरथ क दादा राजा सगर को कहा था िक उनक साठ हजार पु का
क याण तभी होगा जब उनक अ थयाँ पिव जल से बहाकर समु म वािहत क जाएँ। राजा सगर और िफर
उनक पु राजा दलीप दोन का सारा जीवन उस पिव जलरािश को खोजने म बीत गया, पर वे इस जलरािश को
ढढ़ नह पाए। भगीरथ ने अपने िपता व दादा क खोज को आगे बढ़ाया। यिद न कवल िकसी भी जलरािश से
पूवज क अ थय को समु म वािहत करना होता तो िफर भगीरथ को बंगदेश से गंगो री तक जाने क
आव यकता नह होती। वह माग म कह से भी, िकसी पवत ंखला से िकसी भी नदी को लाकर अपने पूवज का
तपण कर देते। परतु किपल मुिन क शाप से मु पाने क िलए भगीरथ को तो िकसी िविश पिव जलरािश क
खोज थी, जो पापनािशनी हो। अतः ऐसी पिव जलरािश क खोज करते-करते भगीरथ गंगो री प चे, य िक माग
म उ ह उनक मतलब क जलरािश कह नह िमली। इसका अथ यह आ िक गंगो री एक िवशेष भौगोिलक
मह ा का थल ह, जहाँ दैिवक श कित क साथ उसे िविश बनाती ह।
यहाँ मन म एक न यह उठता ह िक गंगो री म ऐसा या दैिवक ह, जो कह और नह ह? भगीरथ जब
गंगो री े म प चे तो उ ह ने देखा िक वहाँ चौबीस वग मील क े म ३०० फ ट ऊचा एक िहमखंड ह, जो
सिदय से अचल खड़ा ह। पुराण म इसे ही गंगा को िशव क जटा म बंद कहा गया ह। इस िहमखंड पर सतत
बृह पित ह क तरग िगरती रहती ह, जो गंगो री क िविश भौगोिलक थित क कारण ह। बृह पित ह क ये
तरग यहाँ इस िहमखंड को पिव करती ह और दैिवक बनाती ह, िजस कारण यह एक पिव खंड बन गया ह।
पुराण म इसी बात को गंगा क वग से अवत रत होना बताया गया ह, य िक बृह पित क दैिवक तरग ऊपर
( वग) से ही तो आती ह। बृह पित ह से आनेवाली तरग िव म अ य िकसी अ य थल पर इस कार नह
िगरत । भगीरथ को ऐसे ही थल क खोज थी, जो गंगो री पर पूरी ई।
भगीरथ ने उस िहमखंड क मूल से जल िनकलने का माग बनाया, िजसे गोमुख क सं ा दी गई। पुराण म इसे
ही िशव आराधना करक गंगा को िशव क जटा से धीर-धीर छोड़ना कहा गया ह। भगीरथ ने िफर उस जलधारा
का माग बनाया। माग क सार अवरोध को हटाकर गंगा को देव याग नामक थल पर अलकनंदा नदी से िमला
िदया और आगे का माग श त िकया। इस कार गंगा का अवतरण आ।
गंगा क पिव ता व इसक जल म पापनािशनी त व बृह पित ह क कॉ मक रज (तरग ) व माग क िहमालय
पर पाई जानेवाली खास जड़ी-बूिटय क कारण ह, जो गंगाजल को वष तक दूिषत होने नह देत । गंगा इस कार
आ था क साथ-साथ अपनी वै ािनक थित क कारण पिव व पापनािशनी ह। गंगा क पिव ता और िविश ता
अब तो वै ािनक भी वीकारते ह।
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िव क वै ािनक मानते ह िक गंगाजल
क टाणुनाशक ह
भारत म य तो अनेक निदयाँ ह और सभी पावन ह, पर ‘गंगा’ सव ह। गंगा नदी संसार क सभी निदय म से
िविश ह। यह त य अब िव क वै ािनक भी वीकारते ह। उ ह ने संसार क लगभग सम त निदय क जल का
परी ण िकया और पाया िक गंगाजल क अित र िकसी और नदी क जल म रोगाणु को न करने क श
नह ह। इसी कारण, िहदू अंितम सं कार क बाद अ थयाँ गंगा म वािहत करते ह, तािक यिद उनम िकसी भी
कार क रोग क क टाणु शरीर म शेष रह गए ह तो वे गंगाजल म समािव होकर न हो जाएँ।
स १९४७ म जमनी क जलत व िवशेष कोहीमान भारत आए थे। उ ह ने वाराणसी से गंगाजल िलया और उस
जल पर अनेक परी ण करक एक िव तृत लेख िलखा। िजसका सार था—‘‘इस नदी क जल म क टाणु-
रोगाणुनाशक िवल ण श ह, जो संसार भर क िकसी और नदी क जल म मेर देखने म नह आई।’’ इससे
पहले स १९२४ म बिलन क डॉ. जे.ओ. लीवन ने दुिनया क तमाम निदय क जल का िव ेषण करने क बाद
यही िन कष िनकाला था—‘‘गंगाजल िव का सवािधक व छ और क टाणु-रोगाणुनाशक जल ह।’’ ांसीसी
िचिक सक हरल ने भी यही अनुभव िकया िक गंगाजल से कई रोगाणु न हो जाते ह।
ड़क िव िव ालय क वै ािनक का मानना ह िक ‘‘गंगाजल म जीवाणु-नाशक और हजे क क टाणुनाशक
त व िव मान ह।’’
गंगाजल क इस भौितक लाभ क अित र जो अलौिकक लाभ मनु य को होता ह, उसका वणन पुराण म ह,
िजनक अनुसार इसे सतत पीनेवाले म सा वक वृि का संचार होता ह, आनंद व शांित िमलती ह तथा पाप का
नाश होता ह।
उपयु कारण से हम जब िकसी भी व तु पर गंगाजल िछड़कते ह तो इस क य को धािमक भाषा म
‘पिव ीकरण’ कहते ह और यिद आधुिनक भाषा म कह तो उसे ‘िडसइ फ ट’ करना कहगे। पूजा-पाठ या हवन
आिद करने से पहले उस थान पर गंगाजल िछड़कने का उ े य उस थान को पिव करना होता ह। मरते ए
य क मुख म गंगाजल उसक पाप को कम करने क िलए डाला जाता ह, तािक उसका क कम हो।
गंगो री भारत क ऐसे देशांतर और अ ांश (Longitude and latitude) पर थत ह जहाँ आकाश से िवशेष प
से बृह पित ह क र मयाँ व तरग सतत उस िहमखंड पर पड़ती रहती ह, िजसक कारण उस िहमखंड से
िपघलनेवाला जल पापनाशक व रोगनाशक बन जाता ह और यही कारण ह िक ‘गंगाजल’ अ य निदय क जल से
िभ ह। बृह पित ह क तरग गंगो री िहमखंड को भािवत करक पिव कर देती ह। िदन म सूय क िकरण
िहमखंड को िपघलाती ह और रात म चं मा क र मयाँ (िशव-त व) उसे जमा देती ह। इस कार ितिदन यह
म चलता ह, जो गंगाजल को िविश बना देता ह। यह बात तो अब वै ािनक भी मानते ह िक यिद साधारण जल
को हम सौ बार िड टल (Distil) कर तो वह जल िविश हो जाता ह। यहाँ तो गंगाजल हर रोज कित ारा
ाकितक ढग से िड टल होता रहता ह। तो िफर यह अ ुत व चम कारी ह तो आ य कसा? पर अब लोबल
वािमग क कारण गंगो री का अ त व ही खतर म ह।
हमार ऋिष-मुिनय ने गंगा क जल क इस िविश ता को हजार वष पूव जान िलया था और इसीिलए गंगा को
भारत क जनमानस से पूण प से जोड़ िदया।
पर इस स य से भी मुँह नह मोड़ा जा सकता िक गंगा क जो थित आज देखने को हम िमलती ह, उससे
गंगाजल क पिव ता पर नसूचक िच गंगा का नह , हमारा ह, जो उसे इतना गंदा रखते ह। पर आज भी यिद
ह र ार से ऊपर जाकर गंगाजल िलया जाए तो वह पिव ही होगा।
खेद ह िक हम अपनी इस धरोहर को बचाने का कोई साथक व सकारा मक य न नह कर रह ह। िपछले कई
वष से काँविड़या लाख क सं या म गंगो री तक जा रह ह। इस कारण वहाँ दूषण फला रहा ह, लेिकन
दूषण-िनयं ण क समुिचत यव था नह क जाती। िजससे गंगो री लेिशयर तेजी से िपघल रहा ह। आज ज रत
इस बात क ह िक गंगा क पिव ता को बनाए रखा जाए। इस िदशा म साथक पहल ब त ज री ह।
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खगोल पव ह ‘कभ’
कभ भारत का ाचीनतम पव ह। यह भगवा राम व क ण दोन से ाचीन ह। भारत म संभवतः इतनी बड़ी
सं या म जनमानस िकसी अ य पव म भाग नह लेता िजतना िक कभ म। इतनी बड़ी सं या म भाग लेने का कारण
ह िक यह पव िकसी जाित िवशेष, समुदाय िवशेष या देश िवशेष क िलए नह ह। यह पव तो समूचे जनमानस क
िलए भारत क मनीिषय ने आिव कत िकया था।
पुराण म िलखी कथा को हम यहाँ नह दोहराएँगे अिपतु उस कथा क पीछ जो िव ान व वा तिवक अथ ह उस
पर चचा करगे। हम जानते ह िक ह का पृ वी पर भाव पड़ता ह। कहा गया ह, कभ-पव उसी िव ान पर
आधा रत ह। सभी जानते ह िक पूण कभ बारह वष क अंतराल पर पड़ता ह। इसका कारण यह ह िक बारह वष
क बाद बृह पित ह मेष (Aries) और सूय-चं (Capricorn) रािशय म होते ह। आकाश माग म ह क यह
यु िवशेष ह और जनमानस क िलए िहतकर भी, बशत मनु य इस अवसर का सदुपयोग कर। गिणत क आधार
पर इन ह क यु का समय िन त िकया जाता ह। आधुिनक खगोलशा ी भी इस गिणत को वीकारते ह,
पर पृ वी पर रहनेवाले ािणय पर इन ह क इस यु का कोई भाव पड़ता ह, इस बात को वे पूण प से नह
वीकारते।
कभ म जहाँ ह क यु का मह व ह वह निदय का भी मह व ह। पूण कभ जो गंगा पर थत याग
(इलाहाबाद) म पड़ता ह, महाकभ कहलाता ह। महाकभ क िदन सूय, चं बृह पित तीन का भाव गंगा क
जलरािश पर पड़ता ह जो उसे दैिवक प से श शाली बना देता ह। इस दौरान जो ाणी अपने शरीर को गंगा क
जलरािश म डबोकर पाप-मु ाथना करते ह, पाप-मु हो जाते ह और सांसा रक सुख से यु भी। परतु यहाँ
ज री ह िक गंगा म ान करने से पूव उ ह ने अपने शरीर व मन दोन को पापमु क यो य तैयार िकया आ
हो। यिद ऐसा नह िकया गया ह तो िफर गंगा म कभ ान का कोई वा तिवक लाभ नह होगा। पर वै ािनक
कोण रखनेवाले इस ि या को ढकोसला ही कहगे।
ाचीन काल म ऋिष-मुिन जब कभ क अवसर पर ान करते थे तो कछ िदन पूव नदी क िकनार डरा डालकर
त, जप ारा अपने शरीर व मन क शुि करते थे और िन त समय पर गंगा, गोदावरी या िफर ि ा नदी म
ान करते समय भी वे मं जाप करते थे। शरीर को पूण प से कछ समय तक गंगा क जलरािश म डबोकर
रखते थे, तािक कभ क शुभ मु त पर आ या मक लाभ उठा सक।
कभ का िव ान यह ह िक जब आकाश माग म सूय-चं व बृह पित ह बारह वष क अंतराल क बाद िमलते
ह तब उनक इस यु से उस समय िवशेष तरग िनकलकर भारत क याग भूभाग पर बहती गंगा पर पड़ती ह।
उन िविश तरग क जल से िमलने पर वह जलरािश कछ समय क िलए दैिवक हो जाती ह। यिद कोई य उस
समय उस जल म िविधव ान करता ह तो वह अव य ही पापमु हो जाता ह। िविधव ान न करने पर उसे
मा आंिशक फल ही िमलता ह। आठव सदी म महाराज हषवधन यह पव बड़ी िन ा से मनाते थे और अपनी
सारी धन-संपदा दान कर देते थे। इस स य का उ ेख इितहास म िमलता ह।
कभ का जो प हम आज देखने को िमलता ह, वह युग क अनु प ह, िविध-िवधान क अनुसार नह । ऐसे म
यिद कभ क अवसर पर गंगा म ान करने पर उनक पाप नह कटते तो इसम गंगा या कभ परपरा का या दोष?
यह स य ह िक हर धािमक मा यता को पूरा करने का एक िन त ढग ह। यिद हम वैसा नह करते तो दोष हमारा
ह, न िक परपरा या मा यता का।
परतु आज आव यकता इस बात क ह िक पहले हम गंगा को बचाएँ। यिद हमारी भूल क कारण गंगा ही नह
रहगी तो कभ कसा होगा?

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गौ-पूजन का वै ािनक आधार
ओ३ यिद सनातन धम क आ मा ह तो गौ उसक ाण। भारत म गौमाता क पूजा सदा से होती आई ह। िहदू
धम ंथ क अनुसार गौ भारत क ही नह अिपतु िव माता ह। इसका उ ेख हमार वेद-पुराण , गीता-रामायण
आिद सभी धम ंथ म िमलता ह। वेद का मानना ह िक िव क जड़-चेतन सभी ािणय म कोई-न-कोई देवता
वास करते ह। परतु गौमाता क शरीर म तो सभी देव-त व िव मान ह। इसी कारण गाय को सवदेवमयी एवं
िव पा कहा गया ह। िहदू धम शा क शायद ही कोई ऐसा ंथ होगा, िजसम गौमाता क मिहमा का वणन न
िकया गया हो। पुराण म कामधेन,ु नंिदनी, सुरिभ, सुभ ा, सुशीला, ब ला आिद दैिवक गाय का उ ेख िमलता ह।
गाय का दूध सा वक गुण को जा करता ह। देवता को इसक दूध का अिभषेक व इससे बने पदाथ अ यंत
ि य ह। गाय आय क परम ि य थी, िजसका दूध वे ितिदन सेवन करते थे और आपस म एकता व ेम से रहते
थे। इसक िवपरीत रा स क सं कित म भस को धानता दी जाती थी।
गाय से ा दूध, दही, घी, गोबर और गौमू —ये सभी पदाथ पिव ह। इन पाँच पदाथ को िमलाकर
‘पंचग य’ बनाते ह। पंचग य पाप का नाश करनेवाला व शु करनेवाला माना जाता ह। िशव ि य िब व वृ
गऊमाता क गोबर से उपजा ह। इस वृ म माँ भगवती ल मी का िनवास ह। इसिलए इसे ‘ ीवृ ’ भी कहते ह।
नीलकमल तथा र कमल फल क बीज भी गौ क गोबर से ही उ प ए ह। गौमाता क म तक से उ प पिव
गोरोचन िसि दायक ह। गु गल नाम का सुगंिधत पदाथ गोमू से पैदा होता ह। गु गल देवि य आहार ह, इसिलए
हवन करते समय इसक आ ित दी जाती ह। यह आ ित देवता को स करती ह और मनु य का क याण भी
करती ह।
गाय से संबंिधत ये सभी मा यताएँ कोई ढकोसला नह ह ब क इनक पीछ गूढ़ वै ािनक आधार ह। कित ने
गाय क शरीर को ऐसा बनाया ह िक उसक शरीर से उ प हर पदाथ अपने म िविश गुण रखता ह, जो मनु य क
िलए िहतकर ह। कित गाय क शरीर म ये िविश ताएँ दो कारण से पैदा करती ह। एक तो यह िक गाय क शरीर
क जो चम ह, वह सूयिकरण से िवशेष श और ऊजा हण करने क मता रखती ह, िजसक कारण गाय से
पैदा होनेवाले सभी पदाथ िवशेष गुणकारी होते ह। दूसरी िविश ता यह ह िक गाय क शारी रक आंत रक बनावट
इस कार ह िक उसक शरीर से पैदा ए पदाथ िवशेष होते ह।
ाचीन काल म जब हमार देश क गाँव म िकसी कारण महामारी, लेग आिद फलता था, तब हमार पूवज गाय
क गोबर से घर क दीवार पर चार अंगुल चौड़ी रखा घर क चार तरफ िलपवा देते थे, िजससे रोग क क टाणु घर
म वेश नह कर पाते थे। गोमू अनेक रोग का नाश करता ह। इसम कसर जैसे रोग को भी िनयंि त करने क
मता ह। ऐसा इसिलए संभव ह, य िक गोमू म ‘गंगा’ िनवास करती ह। इस मा यता का अथ ह िक गंगाजल क
तरह गोमू भी पिव और क टाणुनाशक ह।
गाय क दूध को आयुवद म अमृत कहा गया ह। आज वै ािनक ने भी यह िस कर िदया ह िक गौमाता क चम
म वह आकषण श ह, जो सूय क िकरण से एक कार का विणम त व आक करक अपने दूध म
समािव कर लेती ह। इसी कारण गाय क दूध और घी म कछ पीलापान झलकता ह। सूय से ा यही पीलापन
मनु य क िलए ब त लाभदायक ह, जो हमारी आंत रक श को बढ़ाता ह।
वै ािनक भाषा म गाय क घी-दूध का यह पीलापन लै टोज (Lactose) कहलाता ह। इस कारण गाय का दूध माँ
क दूध से िमलता-जुलता ह, य िक माँ क दूध म सबसे अिधक लै टोज होता ह। इसक बाद लै टोज गाय क दूध
म पाया जाता ह। गाय क दूध का यह गुण ब का लगभग माँ क दूध जैसा ही पोषण करता ह।
यिद हम अ य दुधा पशु , जैसे भस, बकरी, ऊट, याक आिद को जंगल म बेरोक-टोक चरने क िलए गाय
क साथ छोड़ द तो देखगे िक गाय जो वन पित खाती ह, वह दूसर पशु क अपे ा अलग होती ह, जो उसक
दूध को मनु य क िलए अिधक गुणकारी व पौ क बना देती ह। भस घास तथा बकरी व ऊट काँटदार वन पित
अिधक पसंद करते ह जबिक गाय घास क साथ कछ िवशेष पौधे भी चरती ह, जो उसक दूध को िविश बनाते ह।
एक और त य यान देने यो य यह ह िक गाय क दूध म गाय क अपने चम का रग भी मह वपूण ह। वै ािनक
अनुसंधान ारा अब यह मािणत हो चुका ह िक लाल रग और काले रग क गाय का दूध सफद रग क गाय से
गुणधम म अलग ह। इस कारण उनक दूध क भाव श भी िभ होती ह। इस गुण-धम क िभ ता का
वै ािनक कारण यह ह िक लाल और काली गाय अपने चम क रग क कारण सूय क श को िभ -िभ मा ा
व ढग से अपने शरीर म हण करती ह, िजसक कारण उनका दूध गुणव ा म अलग होता ह। कमकांड म अलग-
अलग कार क गुणधमवाले दूध क आव यकता होती ह। इसीिलए ा ण पूजा म आपसे काली या लाल गाय
का दूध लाने को कहते ह।
आपको यह जानकर भी आ य होगा िक गाय क िवषय म जो त य बताए गए ह, वे सब भारत क देशी गाय
क िवषय म ह। िवदेशी ‘जस ’ गाय क दूध म ये सब गुण पूण प से िव मान नह होते। इसका वै ािनक आधार
यह ह िक ‘जस ’ गाय क ‘जेनेिटक यूटशन’ (Genetic mutation) देशी गाय से िभ होती ह। ाचीन काल म
देशी गाय क भी कई जाितयाँ थ , पर उन सबका दूध-दही गुण-धम म एक समान था।
अमे रका ने कानपुर क एक फम को ‘गौमू ’ का पेटट िदया ह और यह वीकार िकया गया ह िक गौमू म
कई बीमा रय क रोकथाम और ठीक करने क मता ह।
स क वै ािनक , िवशेषकर डॉ. शीरोिवक क अनुसार गाय क गोबर से लीपे गए घर पर परमाणु रिडएशन का
भाव नह पड़ता। यही नह , गाय क घी क अ न म आ ित देने से जो धुआँ उठता ह, वह परमाणु रिडएशन को
काफ हद तक कम करता ह।
खेद ह, आज भारत म उसी पूजनीय गाय क दुदशा ह, वह सड़क पर गंदी चीज व ला टक क थैिलयाँ खाती
ह। ऐसी थित म गाय क ारा िदया दूध-दही हम पहले जैसा पौ क व नीरोग कसे बना सकता ह? यिद ऐसे दूध
क कारण आज का वै ािनक कोण रखनेवाला आधुिनक मानव गाय क िवषय म िकए गए गुणगान को
ढकोसला या अंधिव ास कह तो आ य कसा?
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गाय क गोबर क वै ािनक त य
गाय क गोबर क उपयोिगता पर िजतना शोध भारत क मनीिषय ने िकया ह, संभवतः िव म उतना अ य कह
नह आ। आधुिनक वै ािनक भी अब इस पिव पदाथ क गुण को वीकारने लगे ह। उनक अनुसार गाय का
गोबर असं ामक (Non-conductor) ह और इसम िव ुत िनरोधक श ह। यह भी देखा गया ह िक आकाश से
िगरनेवाली िबजली गोबर क ढर पर िगरते ही िन य (Freege) हो जाती ह।
गोबर म ‘फा फोरस’ नामक त व ब तायत से पाया जाता ह। इस त व म कई सं ामक रोग क क टाणु को
न करने क श होती ह। वै ािनक अनुसंधान से यह भी पता चला ह िक गोबर से िलपे गए घर म परमाणु
ऊजा क घातक भाव भी न हो जाते ह।
ाचीन भारतीय था क अनुसार िकसी मनु य क मृ यु होने पर घर-आँगन को गोबर से लीपा जाता था, तािक
मृत शरीर क िविभ कार क सं ामक रोग क क टाणु न हो जाएँ और घर क कटबजन क वा य क र ा
हो सक। क रोग क उपचार म भी गोमय लाभ द होता ह। बंदर क काटने पर भी इससे शी ही पीड़ा कम हो
जाती ह।
गाय क गोबर म जीवाणु और िवषाणु को न करने क मता होती ह। ाचीन मा यता क अनुसार यरोग
उपचार करनेवाले सेिनटो रयम म गाय का गोबर रखने से उसक गंध से टी.बी. क क टाणु मर जाते ह। क टाणु
न करने, दुगध दूर करने क िलए गाय का गोबर अ छी-से-अ छी िफनाइल से भी अिधक भावकारी ह। फोड़-
फसी, खुजली, र दोष आिद म भी गोमय ब त भावकारी होता ह। गाय क गोबर से बना साबुन चम रोग म
लाभ द िस आ ह। गोमय से बनी धूप-अगरब ी वातावरण को शु करने म उपयोगी पाई गई ह।
गोबर का एक और भावी उपयोग बायो-गैस ह, िजससे भारत क कई गाँव म सामािजक गित देखी गई ह।
यही नह , गोबर क उपल से उठनेवाला धुआँ दूषण पर िनयं ण रखता ह, साथ ही वायुमंडल म िव मान िवषा
क ड़ को भी न करता ह। पहले होिलका दहन क िलए कवल गाय क उपल का ही उपयोग होता था, िजससे
वातावरण शु हो जाता था। उपल क राख शरीर पर रगड़ने से मृत ाय शरीर म भी र वाह ठीक हो जाता ह।
यह एक दुखद स य ह िक आधुिनकता क नाम पर हम इस पिव पदाथ क गुण को उतनी मा यता नह दे रह,
िजतना वह उपयोगी ह।
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गाय का घी और िव ान
सनातन कमकांड और साधारण पूजा-पाठ म गाय क घी क योग का िवधान ह। ाचीन काल से भारत म गाय क
अित र और भी कई ऐसे पशु थे िजनक दूध से घी बनता था। ऐसे म मन म एक न उठता ह िक गाय क घी म
ऐसा या िवशेष ह िक हमार ऋिष-मुिनय ने इसको इतनी मुखता दी ह?
इस न का उ र यह ह िक इस मा यता क पीछ एक वै ािनक स य ह, िजसक कारण ाचीन मनीिषय ने गाय
क घी को ही चुना। यिद हम पाँच-छह कार क िभ -िभ य क दीये जलाएँ तो हम गाय क घी का वै ािनक
आधार आसानी से समझ आ जाएगा। इस योग क िलए अलग-अलग बंद कमर म एक दीया भस क घी का,
एक ऊट क घी का, एक बकरी क घी का, एक याक क घी का, एक सरस क तेल का, एक ना रयल क तेल
का, एक िम ी क तेल का दीया जलाएँ और हर दीये क सामने एक-एक य को बैठा द और उ ह उन दीय
क लौ पर एकटक देखने क िलए कह। आप देखगे िक कछ समय बाद उन सबक आँख म जलन शु हो
जाएगी। कछ क आँख म पहले तो कछ क आँख म कछ देर बाद जलन अव य पैदा होगी।
परतु जो य गाय क घी क दीये क सामने बैठा होगा, उसक आँख म जलन पैदा नह होगी, अिपतु वह
अपनी आँख म शीतलता महसूस करगा। इसका वै ािनक कारण ह िक गाय क घी क दीये क अलावा दूसर य
से जलनेवाले दीय से जो धुआँ िनकलता ह, उसका उ सजन वातावरण और मनु य क आँख क िलए हािनकारक
ह, कछ का कम तो कछ का यादा। परतु गाय का घी वातावरण व मनु य दोन क िलए िहतकर ह। यह एक
वै ािनक स य ह, िजसे हमार मनीिषय ने हजार वष पूव जान िलया था।
इसक अित र गाय क घी से हवन म दी गई आ ित से वातावरण क शुि होती ह। यही नह , यह परमाणु
रिडएशन से वातावरण क र ा करता ह। गाय क दूध म सूय क िकरण का भाव अिधक होता ह, िजसक कारण
इसका घी सूय क भाँित वातावरण को शु रखने म सहायक होता ह।
गाय क घी क इ ह िवशेषता क कारण ऋिष-मुिनय ने इसका चयन सनातन पूजा-पाठ क िलए िकया। इस
स य क छानबीन यिद आधुिनक मानव करना चाह तो अव य कर। पर इस मा यता को कवल िढ़वाद न कह।

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सबसे पहले गणेश क ही पूजा य
िजस कार िव णु िव णुलोक और िशव िशवलोक क वामी ह, उसी कार ‘गणेश’ पृ वीलोक क वामी ह।
गणेश म पृ वी-त व क धानता ह। इसीिलए आपने ायः देखा होगा िक िकसी भी पूजा-पाठ, िजसम गणेशजी क
कोई ितमा नह रखी होती, वहाँ पंिडतजी िम ी का एक ढला लेकर उस पर ही मौली बाँधकर ‘गणेशजी’ क
थापना कर लेते ह।
पृ वीलोक पर होनेवाले सभी शुभ काय िबना िकसी िव न क संप ह , इसिलए हम गणेशजी का यान कर
ाथना करते ह िक वे अपनी अनुकपा कर। गणेश सभी किठनाइय व अमंगल को दूर करते ह, इसिलए उ ह
िव ने र भी कहते ह।
पृ वीलोक क वामी होने क नाते वे दस िदशा क अिधपित भी ह। पृ वी पर िकसी अ य लोक से आनेवाली
कोई श इ ह िदशा से आती ह। इस कारण, दूसर देवलोक से पृ वीलोक पर प चने क िलए अ य दैिवक
श य को गणेश-श क सहायता क आव यकता होती ह। दूसर देवता क कपा व आशीवाद यहाँ
पृ वीलोक पर हम तक ठीक-ठाक प चे, इसिलए हम गणेशजी से ाथना करते ह िक वे अ य देवता क कपा
व आशीवाद हम तक प चने द।
गणेश-पूजन सव थम करने का एक और कारण यह ह िक हम जो ाथना करते ह, वह श द म होती ह, िजसे
वेद-पुराण म नाद-भाषा कहते ह, जबिक देवता क भाषा ‘ काश-भाषा’ होती ह। गणेशजी हमारी नाद-भाषा को
देवता क काश-भाषा म पांत रत कर देते ह और इस कार से हमारी ाथना गणेशजी क कपा से दूसर
देवता तक प च जाती ह। इ ह कारण से गणेश-पूजन सव थम िकया जाता ह।
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गणेश पर लाल फल व दूब ही
य चढ़ाते ह
मूित-शा क अनुसार, भगवा गणेश का रग लाल ह। हमार शरीर म जो पहला च मूलाधार ह, गणपित उस
च क वामी ह। मूलाधार च का जो कमल ह, उसका रग लाल ह। लाल रग क पु प का पंदन गणेश त व से
मेल खाता ह, इस कारण गणेश पिव ता व पंदन क ओर शी ता से आकिषत होते ह और ज दी ही स हो
जाते ह। गणेश-पूजन म लाल फल क साथ लाल व व र चंदन (लाल) का भी योग िकया जाता ह। इन
सबक पीछ भी यही िव ान ह।
लाल रग क पु प क अित र गणपित पर दूवा (कोमल घास) भी चढ़ाई जाती ह। दूवा म भी गणेश त व को
आकिषत करने क श ह, इसिलए गणेशजी पर १, ३, ५, ७ क सं या म दूब चढ़ाने का िवधान ह।
िजन मूित या िच पर लाल रग क फल व दूवा चढ़ाई जाती ह, वे मूित व िच गणेश त व से शी ही जा हो
जाते ह और घर म सुख-शांित लाते ह। इ ह कारण से गणेशजी क ितमा व िच पर लाल रग क फल, लाल
चंदन, लाल व व दूवा ही चढ़ानी चािहए, तािक गणपित ऋि -िसि तथा ‘ ी’ दान कर।
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कौन से गणेश क मूित घर क
पूजागृह म रखनी चािहए
गणेशु क मूित या िच क ओर सामने से देखते समय िजस मूित म उनका अ भाग हमारी दा ओर मुड़ा आ
हो, ऐसी मूित या िच को ही घर क पूजागृह म रखना चािहए। इस कार क मूित को वाममुखी मूित या िच
कहते ह। ऐसी मूित घर म सुख-शांित लाती ह। इसका कारण यह ह िक गणेश क चं -श इन मूितय या िच
म अिधक सि य- वािहत होती ह। वाममुखी उ र िदशा को दरशाती ह, ऐसी ितमाएँ अ या म क से भी
अपेि त ह। यही कारण ह िक घर क पूजागृह म वाममुखी गणपित ितमा ही थािपत क जाती ह।
गणपित क िजन मूितय व िच म उनक सूँड़ का अगला भाग सामने से हमारी बा ओर मुड़ा िदखे, उ ह
दि णमूित कहते ह। ऐसी मूितय म गणेशजी क सूय नाड़ी सि य व वािहत होती ह। सूय नाड़ी क कारण
वातावरण उ ेिजत रहता ह, जो घर क शांित क िलए िहतकर व अपेि त नह होता। दि णामूित गणपित, दि ण
िदशा, जो यमलोक को दरशाती ह, क ोताक ह। दि णामुखी मूित क पूजा सामा य िविध से नह क जाती,
य िक गृह थ लोग इस कार क मूितय क पूजा का िविध-िवधान नह जानते। अतः घर म दि णामुखी गणपित
नह रखने चािहए।
दि ण िदशा यमलोक क िदशा ह, जहाँ मनु य क पाप-पु य का िहसाब रखा जाता ह। इसिलए यह िदशा अि य
ह। इस कारण ऐसी मूित िबना कमकांड क पूजनी नह चािहए। परतु मंिदर क िलए ऐसी मूितयाँ उपयु ह, य िक
वहाँ पूजा-पाठ िविध-िवधान व समयानुसार होता ह।
मूित क खंिडत या भंग होने पर उस पर अ त (साबुत चावल) डालकर जल म िवसिजत कर देना चािहए या
िफर आदर से पीपल क वृ क नीचे रख देना चािहए।
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ा य मनाएँ हम
भारतीय सं कित क एक बड़ी िवशेषता यह ह िक हम अपने उन िनकट संबंिधय से भी ा भाव से जोड़
रखती ह, जो आज सशरीर न होकर िदवंगत ह और िज ह हम िपतर क नाम से जानते ह।
आ न मास क पूणमासी से अमावस तक क अविध को ा प क नाम से जाना जाता ह। ा का
माहा य एवं िविध का वणन िव णु, वाराह, वायु व म य पुराण एवं महाभारत व मनु मृित आिद सनातन शा म
विणत ह। क णप क िपतृमो अमावस क िदन सूय एवं चं क युित होती ह। सूय क या रािश म वेश करता
ह। इन िदन हमार िपतर यमलोक से अपना िनवास छोड़कर सू म प म मृ युलोक म अपने वंशज क िनवास-
थान पर रहते ह और यह अपे ा करते ह िक उनक वंशज उनक िलए कछ-न-कछ तपण-अपण कर, िजसे पाकर
वे तृ ह । पुराण क अनुसार धमराज यम का यह वरदान ह िक—
‘‘िपतृप क दौरान जो मृता मा क िलए अ -जल, ितल आिद अिपत करगा, वह साम ी मृता मा को, वे
जहाँ भी ह गी, अव य ा होगी।’’
जो आ माएँ िन संतान वगवासी हो जाती ह, उन मृता मा क िलए यिद कोई य इन िदन म उनको ा
तपण करता ह या जलांजिल देता ह तो वह भी उ ह प चती ह। एक अ छी संतान अपने जीिवत माता-िपता क
सेवा तो करती ही ह, उनक शरीर छोड़ने क बाद भी उनक ित ा व आदर क भावना रखती ह। ा -िविध
ारा हम अपने िदवंगत माता-िपता एवं अ य संबंिधय , िज ह ने जीवन भर हम संसार क यो य बनाया, क ित
कत ता कट करते ह। ा िविध ारा हम अपने िपतृऋण को चुकाते ह। यिद हम ऐसा नह करते तो मृता माएँ
अतृ रहती ह और हो जाती ह, िजसक कारण कटब म अिन होने शु हो जाते ह। जैसे प रवार म संतान
का पैदा न होना, बेट-बेिटय का िववाह देर से होना या िफर न होना आिद। घर-प रवार म कलह होना, धन क
कमी होना आिद अिन घटनाएँ िपतर क होने क कारण से होती ह। ा क अविध म आनेवाली पूिणमा
को ‘नाना’ का ा मनाते ह और अमाव या क िदन बाक उन सब िपतर का, िजनक ितिथ हम मालूम नह
होती।
हमार िपतृ तृ व संतु रह, इसिलए िपतृप क दौरान उनक पु य ितिथय पर हम ा करते ह। शा म
यह भी िलखा ह िक हर मास अमाव या क िदन हम अपने िपतर क िनिम कछ-न-कछ तपण-अपण अव य
करना चािहए, तािक वे सदा तृ रह और हम आशीवाद देते रह। िपतृलोक क वामी भगवा द ा ेय ह, िजनम
िव णुत व अिधक ह। ‘ ी गु देव द ’ मं का जाप मनु य को िपतृ-दोष दूर करने म ब त सहायक ह।
मृ यु क बाद जीवा मा को अपने कमानुसार वग या नरक म थान िमलता ह और पाप-पु य क ीण होने पर
वह ाणी पुनः मृ युलोक (पृ वी) पर आता ह। वग जानेवाले माग को िपतृयान-माग कहते ह। िपतृयान-माग से
जानेवाले, िपतृलोक से होकर चं लोक म जाते ह, जहाँ वे ‘अमृता ’ का सेवन करक अपना िनवाह करते ह। यह
अमृता क णप म चं क कला क साथ-साथ ीण होता रहता ह। अमावस तक यह अमृता समा हो
जाता ह और मृता मा क आहार क िलए कछ नह बचता, इसिलए क ण प क अमावस क िदन वंशज को
अपने िपतर क िलए आहार प चाना चािहए, तािक उस िदन वे भूखे न रहकर तृ रह और अपने वंशज को
आशीवाद द। इसिलए हर अमावस क िदन हम िपतृ-तपण अव य करना चािहए। ऐसा करने से मनु य अपने िपतृ-
ऋण से भी मु होता ह।
इसलाम धम म य िप ा नह मनाते, परतु शव-ए-बारात क िदन वे भी अपने पूवज को याद करते ह और
उनक क पर जाकर फल चढ़ाते व रौशनी करते ह तथा करान शरीफ का पाठ करते ह। शव-ए-बारात मुसलमान
क शाहवान महीने म आता ह।
आधुिनक एवं ना तक लोग यह शंका कर सकते ह िक यहाँ पृ वी पर िकया दान या तपण-अपण िपतर को जो
अब िबना शरीर क ह और िकसी अ ात लोक म ह, उन तक कसे प च सकता ह? गु नानक देवजी ने जब इस
था पर नसूचक िच लगाया था, उसक पीछ उनका भाव यह था िक हम कोई भी धािमक काय मा आडबर
से नह करना चािहए, ब क उस काय म ा होनी अिनवाय ह।
हमार इस काय क पीछ कित का सू म िव ान काम करता ह, िजसक अनुसार हमारी ा, भावना, ेम से
यु तपण-अपण सू म प से हमार िपतर तक प चता ह। एक और यान देने यो य बात यह ह िक िजन
आ मा को शरीर ा नह ह, वे िपंड प म आकाशमंडल म या रहती ह। इन िपंडाकार आ मा का कोई
पेट नह होता और न ही देखने क िलए इनक पास च ु होते ह, पर इनक सूँघने क श बड़ी तेज होती ह।
इसिलए हम जो कछ पदाथ खाने-पीने क िलए िपतर को देते ह, ये िपंडाकार आ माएँ उनक सुगंध से अपना पेट
भर लेती ह। कित इस कार हमारी थूल खा साम ी को हमार िपतर क ा करने यो य बनाती ह। इस स य
क जानकारी क िलए भौितक बुि क नह , अिपतु सू म बुि क आव यकता ह।
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नवरा का वै ािनक व आ या मक रह य
‘नवरा ’ श द से िवशेष मह व रखनेवाली नौ राि य का बोध होता ह। इस काल म ‘आिद श ’ क नौ प
क पूजा िदन से राि -पयत क जाती ह। ‘या ’ श द िसि का तीक ह। भारतीय ऋिष-मुिनय ने राि को
आ या मक से अिधक मह वपूण माना ह। यिद राि का कोई वै ािनक रह य न होता, तो ऐसे िवशेष उ सव
को राि न कहकर िदवस कहा जाता। िकतु दीपावली को िदन नह महाराि कहकर संबोिधत िकया जाता ह। इसी
कार अ य महाराि य म होिलका-महाराि और िशव-महाराि भी मह वपूण ह। इसका वै ािनक कारण ह, दैिवक
श य का राि म अिधक सि य होना, य िक िदन म सूय क िकरण दैिवक तरण को िछन-िभ कर देती ह।
भारतीय मनीिषय ने वष म दो बार िवशेष प से नवरा का पव मनाने का िवधान बताया ह। सव थम िव म
संव क ारभ क िदन से अथा चै मास शु प क ितपदा (पहली ितिथ) से नौ िदन अथा नवमी तक
नवरा िन त िकए गए ह। इसी कार ठीक छह मास बाद शारदीय-नवरा हर से अिधक मह वपूण व
फलदायी माने गए ह। इसका कारण ह सौरमंडल म पृ वी क भौगोिलक थित। इन िदन सूय से ेिपत तरग
कोमल होती ह और सा वक तरग को अिधक िछ -िभ नह कर पात ।
यहाँ यान देने यो य बात यह ह िक दोन नवरा ऋतु क संिधकाल म आते ह जब एक ऋतु से दूसरी ऋतु म
प रवतन होता ह। इसका वै ािनक कारण यह ह िक संिधकाल म आकाशमंडल म ह क थित व वातावरण
दोन मनु य क आ या मक िवकास क िलए उपयु होते ह। ऋतु-प रवतन क कारण मनु य क शरीर क
रासायिनक रचना म प रवतन होता ह। यही कारण ह िक इन नौ िदन म त करना िहतकर ह, य िक त करने से
हमार शरीर क ऊजा बढ़ती ह, जो हमार थूल व सू म दोन शरीर पर भाव डालती ह। यही नवरा का
आ या मक रह य ह।
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नव ह और त व-िव ान
इस सृ क रचना कब और कसे ई? ांड क रह य या ह? यह सब जानने क िलए मनु य िनरतर
यासरत रहा ह। हमार ऋिष-मुिनय ने कित का गहन अ ययन कर हमारी धािमक मा यता क वै ािनक रह य
को उ ािटत िकया ह।
उनक ारा रिचत त व-िव ान का अ ययन हम बताता ह िक कौन सा ह िकस देवता क त व को धारण
करता ह, तािक उसक अनुसार उस देवता को पूजा- पदाथ अिपत िकए जा सक। िविधव अपण करने से अिपत
करनेवाले क काया-श और आ मश दोन बढ़ती ह।
सूय—सूय ह म अ न त व क धानता ह। इसिलए इसक देवता -िशव ह। िजस धातु म यह त व पाया
जाता ह—वह ताँबा ह। इसीिलए इस ह का रग ताँबे सा लाल होता ह। सूय देवता को अिपत िकया जानेवाला फल
जवाकसुम होता ह और फल आँवला होता ह। इस जवाकसुम म आ मश को बढ़ानेवाले त व ह। इसक जड़ से
वे औषिधयाँ बनती ह, िजनम मानिसक श को बल िमलता ह। सूय को अिपत िकए जानेवाले फल आँवले म
आँख क रोशनी को बढ़ाने क श होती ह।
चं —चं - ह म जल त व क धानता ह। इसिलए इसक देवी पावती ह। िजस धातु म यह त व पाया जाता ह
—वह चाँदी ह। इस ह का रग ेत शंख सा होता ह। पावती क अचना क िलए दूब अिपत क जाती ह। पैर म
िबछी ई दूब म काया-क प क श होती ह। इसीिलए नंगे पाँव दूब पर चलने का िवधान भी ह। काया-क प क
िलए जो पाँच औषिधय का पंचामरा बनाया जाता ह, उसम तीन गाँठ क दूब ज र डाली जाती ह।
मंगल—मंगल ह म अ न त व धान होता ह। इसक इ गणपित ह। िजस धातु म यह त व पाया जाता ह—
वह सोना ह। इस अ न त व धान ह का रग र म लाल होता ह। गणपित क आराधना क िलए लाल कनेर
अिपत िकए जाते ह, साथ म दूब भी। लाल कनेर म बुि -बल को िवकिसत करने क त व ह। लाल कनेर क छाल
से वचा रोग क औषिधयाँ बनाई जाती ह।
बुध—बुध ह म पृ वी त व धान होता ह। इसक इ िव णु ह, जो जीव क पालनहार ह। िजस धातु म यह
त व पाया जाता ह—वह काँसा ह। पृ वी त व धान ह का रग िविच हरा होता ह। िव णु पूजा म अशोक,
कदंब, पाटल, म गरा, कदकिल और शंखावली क फल होते ह। अशोक, कदंब आिद फल म राजयोग क श
होती ह और शंखावली क फल वाणी-श को बढ़ाते ह।
बृह पित—बृह पित ह म आकाश त व क धानता ह। इसिलए इसक देवता ा और िशव ह। िजस धातु
म यह त व पाया जाता ह—वह चाँदी-सोना ह। आकाश त व धान बृह पित ह का रग पीला ह। इसक देवता
क आराधना क िलए पीला कनेर अिपत िकया जाता ह। पीले कनेर क सुगंिध िववेक-श को बढ़ाती ह। जीव-
र ा का गुण भी इसम समाया रहता ह।
शु —शु ह म जल-त व धान होता ह। इसिलए ल मी और सर वती इसक देिवयाँ ह। िजस धातु म यह
त व पाया जाता ह—वह चाँदी ह। जल त व धान शु ह का रग सफद होता ह। ल मी को लाल रग क गुलाब
अिपत िकए जाते ह और सर वती को सफद गुलाब।
लाल गुलाब म गित त व ह, जो काया को ि याशील और कमशील करता ह। सफद गुलाब क त व अ र
श क रह य खोलते ह, साथ ही परा-िव ा का ान बढ़ाते ह। इन िव ा क िलए सफद फल चढ़ाते ह। लाल
गुलाब क पि य से गुलकद बनाया जाता ह, िजसका आँत क शुि क िलए योग िकया जाता ह।
शिन—शिन ह म वायु त व क धानता होती ह। इसिलए इसक देवता यम और ह। िजस धातु म यह
त व पाया जाता ह—वह लोहा और शीशा ह। वायु त व धान शिन का रग नीला ह। इसक देवता को नील-
अक औैर धतूर क फल अिपत िकए जाते ह। धतूर क प का रस अ थमा जैसे रोग क औषिधय म डाला जाता
ह।
रा —रा एक छाया ह ह, िजसम वायु त व धान होता ह। इसक देवी दुगा ह। िजस धातु म यह त व पाया
जाता ह—वह शीशा ह। वायु-त व धान रा का रग काला ह। दुगा क पूजा क िलए जवाकसुम अिपत िकए जाते
ह।
कतु—कतु भी रा क तरह एक छाया ह ह, िजसम वायु त व धान होता ह। इसक देवता ा ह। पंच धातु
म इसक त व पाए जाते ह। इसका रग िचतकबरा होता ह। इसका पूजन नह होता, पर इसक नाम पर िकसी पवत
पर जाकर काले रग क वजा फहराई जाती ह। यह पतन को रोकने का और नाम को ऊचा करने का संकत ह।
फल म समाए ए त व क गुण-धम तभी भािवत कर पाते ह जब वे ताजा और िखले ए ह । मुरझाए, ढले
और मसले ए फल अपने त व खो देते ह, य िक तब उनक ाणवायु और धनंजयवायु उस अव था म समा
हो जाती ह। इसिलए ताजे और साफ-सुथर फल-पि याँ ही देवता पर चढ़ाने चािहए, तािक उनसे िमलनेवाला
लाभ ा हो सक।
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ह-न का मनु य पर भाव : वै ािनक या
का पिनक
ाचीन िचंतन क अनुसार जो कछ ांड म या ह, वह मनु य क शरीर क भीतर भी ह। सृ क रचना क
समय परमा मा ने मनु य क शरीर क रचना इस कार से क ह, िजसम ई रीय सभी त व िव मान ह । अ न
देवता ने वाणी बनकर मनु य क मुख म वेश िकया और वायु देवता ने ाण बनकर। इसी कार सूय देवता ने
मनु य क आँख म अपना थान बनाया, िदशा देवता ने कान म, बृह पित देव ने काया क रोम-रोम म तथा चं
देव ने उसक मन ( दय) म अपना थान बना िलया।
पृ वी और ांड का सनातन संबंध ह। भारत क मनीिषय ने संपूण ांड को २७ न मे बाँटा ह। ये सभी
न अपने-अपने भाव को िलये ए मनु य क शरीर म भी होते ह। कितका मनु य क िसर म, रोिहणी माथे म,
मृगिशरा भ ह म, आ ा आँख म, पुनवसु नाक म, पु य चेहर म, अ ेषा कान म, मघा ह ठ म, पूवाफा गुनी दाएँ
हाथ म, उ रा फा गुनी बाएँ हाथ म, ह त अँगुिलय म, िच ा गरदन म, वाित सीने म, िवशाखा छाती म, अनुराधा
उदर म, ये ा िजगर म, मूल कोख म, पूवाषाढ़ा पीठ म, उ राषाढ़ा रीढ़ क ह ी म, वण कमर म, शतिभषा
दा टाँग म, रवती टखन म, अ नी पैर म ऊपरी िह से म और भरणी पैर क तलव , घिन ा बाई टाँग म, पूवा
भा पद व उ रा भा पद म त क क दाएँ व बाएँ भाग म थत ह।
हमार सनातन ऋिष-मुिनय ारा ितपािदत काया-तं क अनुसार मनु य क शरीर म एक महीने चं -नाड़ी ( ी)
धान रहती ह और एक महीने सूय-नाड़ी (पु ष)। यही रािश-िव ान ह, िजसक अनुसार पहली रािश मेष पु ष होती
ह तो दूसरी रािश वृषभ नारी। इसी कार अगली िमथुन रािश पु ष तो उससे अगली कक नारी। िसंह पु ष और
क या नारी। तुला रािश पु ष तो उससे अगली वृ क नारी। धनु रािश पु ष तो मकर नारी और इसी कार कभ
पु ष तो मीन रािश नारी।
यही भारतीय िचंतन का अधनारी र प ह, िजसम ई र का आधा िह सा पु ष होता ह और आधा नारी। यही
काया-िव ान ियन और यांग क प म चीन देश का दशन ह और यही आधुिनक िव ान क अनुसार येक मनु य
क िसर का बायाँ और दायाँ िह सा ह—बायाँ पु ष और दायाँ नारी। िसर का बायाँ िह सा नारी िह सा शरीर क बाएँ
िह से म तरिगत होता ह। दोन क एक-दूसर क आकषण से यह काया चलती ह। इ ह का िमलन, इ ह का संगम,
काया-िव ान ह। इ ह क संगम म जब कछ कावट आती ह तो काया म श का संचार क जाता ह और इसी
श को वािहत करने क िलए हम पूजा-पाठ, कमकांड आिद करते ह।
ांड थत हमार सौरमंडल क ह-न जब अपनी थित एक रािश से दूसरी रािश म बदलते ह तो मनु य
क शरीर म थत जो लघु सू म सौरमंडल ह, उसम भी प रवतन होता ह, िजसका ितकल या अनुकल भाव
मनु य क काय व सोच दोन पर पड़ता ह। इन ह-न क बदलती थित से मनु य राजा से रक या रक से
राजा बन जाता ह। यह बदलाव इसिलए होता ह, य िक जब बा जग क ह-न अपना थान बदलते ह तो
मनु य क आंत रक ह-न का भाव भी बदल जाता ह, िजसका असर मनु य क जीवन और उसक प र थित
पर पड़ता ह। यह त य एक स य ह, क पना नह । जब ह का अनुकल भाव पड़ता ह तो उसक फसले सही
होते ह और वह अवसर का पूरा लाभ उठाकर ‘राजा’ बन जाता ह। इसी कार, जब ह ितकल भाव डालते ह
तो मनु य क िनणय गलत हो जाते ह, प रणाम व म वह हािन उठाता ह। जीवन म उठना-िगरना मनु य क उिचत
या अनुिचत िनणय पर िनभर करता ह। इसिलए कहा गया ह िक ई र से जब कछ माँगना हो तो सुबुि माँिगए।
गाय ी मं का सार भी ई र से बुि माँगने का ह। यिद आपक पास सही बुि ह तो आप िम ी को भी सोना
बना दगे। ह क भाव से मनु य क बुि ही तो भािवत होती ह।
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िकसी क िनंदा य नह करनी चािहए
सनातन िश ाचार म एक िनयम यह ह िक हम िकसी क िनंदा नह करनी चािहए। इस मा यता क पीछ ‘श द-
िव ान’ का एक िनयम काय करता ह। श द म अपनी एक आंत रक श होती ह। जब हम बोलते ह तो वायु
ारा श द को तरग क साथ बाहर फकते ह। जब ये वायु-तरग सुननेवाले क कान म पड़ती ह तो वह उन श द
क आंत रक अथ क अनुसार अनुकल या ितकल िति या करता ह। जब हम िकसी क चापलूसी या शंसा
करते ह तो सुननेवाला खुश होता ह। और जब हम िकसी को अपश द कहते ह तो वह दुःखी, आहत या िफर
उ ेिजत हो जाता ह। इस कार कवल श द क योग मा से हम दूसर पर भाव डालते ह।
सूय-िव ान क अनुसार संसार म अड़तालीस कार क वायु ह, िजनम से हमार शरीर म पाँच कार क वायु
वास करती ह, जो हमार शरीर क िविभ अंग म वास करती ह। उड़ान-वायु मनु य क म त क म वास करती ह
और वाणी क अिभ य का काय िनभाती ह। कित क िनयम म एक िनयम यह भी ह िक ‘जो जैसा करगा,
वैसा भरगा’ और कौन कसा कर रहा ह, इसका िहसाब कित अपने आप रखती ह। कौन अ छा कर रहा ह या
बुरा, यह िनणय करने का अिधकार कित या ई र का ह। जब हम िकसी य क बुराई या िनंदा करते ह तो
हमारा यह क य कित क काय म ह त ेप ह, और िफर वह इसक िलए हम दंिडत करती ह।
उड़ान-वायु, जो वाणी ारा हमार मन क भाव क अिभ य करती ह, म अ न-त व होता ह, जो िनंिदत
य क पाप को जलाकर भ म कर देती ह और पलटकर उसका भाव उलटा िनंदा करनेवाले पर डालती ह।
इस कार िनंदक वयं ही अपने श द का िशकार हो जाता ह। इसी िव ान क आधार पर मनीिषय ने कहा ह िक
कभी िकसी क बुराई मत करो, य िक इसका उलटा असर पड़ता ह।
इसी िनयम क आधार पर ईसाई मत म ‘पाप क आ म वीकित’ (Confession) का िनयम ह। जब मनु य से
कोई पाप हो जाए तो उसक भाव से बचने क िलए चच म जाकर मुखर वाणी से अपने पापक य को बोलकर
वीकार करना होता ह। ऐसा करने से कित आपको मा कर देगी। ईसाई धम क इस मा यता म भी उड़ान-वायु
म जो अ न त व ह, वह कायरत होता ह। जब आप बोलकर अपना पाप वीकारते ह तो वाणी उसक भाव को
जलाकर भ म कर देती ह और आप पाप-मु हो जाते ह। ‘क फशन’ क पीछ यही श द िव ान ह।
श द-िव ान से जुड़ी एक और मा यता यह ह िक ‘हम कभी िकसी को अपना गु मं नह बताना चािहए।’
और न ही ‘हम कभी अपने ारा िकए गए शुभ, िहतकर और अ छ काय को िकसी को बताना चािहए’, ऐसा
करने से हमार गु मं क श समा हो जाती ह। गु मं बताने का अथ ह िक आपने अपना ‘पास-वड’
(Password) िकसी को दे िदया—अथा अपनी जमापूँजी दूसर को दे दी। अपने अ छ काय का वणन करक जो
कछ पु य आपने कमाया था, गँवा िदया। इसक पीछ भी उड़ान-वायु का भ म कर देनेवाला िव ान ही ह।
आज क इस िदखावेवाले युग म हम धम को फशन मानते ह। इसिलए स ी ा न होने पर भी िदखाने क िलए
गीता पाठ, स संग आिद म खूब सज-सँवरकर जाते ह। हम दान थोड़ा करते ह पर उसका िढढोरा यादा पीटते ह।
दूसर क बुराई करने म हम आनंद िमलता ह। अपने ारा िकए पाप हम मन क सबसे नीचेवाले लॉकर म छपाते ह
और अपने गुण का बखान करते ह। ऐसे म यिद सबकछ होने पर भी हमार मन म शांित नह ह तो आ य कसा?
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घोड़ क नाल क अँगूठी और शिन ह
शिन नव ह म अपना अलग ही थान रखते ह। पुराण म इ ह कित का यायाधीश कहा गया ह। िच गु
मनु य क अ छ-बुर कम का लेखा-जोखा जो रखते ह, शिनदेव उन पर एक िन प यायाधीश क तरह िनणय
लेते ह और कमानुसार दंड देते ह।
शिन सूय व उनक दूसरी प नी छाया क पु ह। ये नील वण ह, कछ क अनुसार ये याम वण ह। शिन का र न
‘इ नील’ (नीलम) ह। इनका अनाज काले उड़द, व का रग काला, वाहन िग और धातु लोहा ह। सौरमंडल
का यह अि तीय और अनूठा ह िकसी भी य को राजा से रक और रक से राजा बनाने क मता रखता ह।
हमार ाचीन त व-िव ान क अनुसार शिन ह म वायु त व धान होता ह। िजस य क शरीर म वायुदोष होगा,
उस य को वायु िवकार क रोग ह गे, जैसे जोड़ मे दद, पेट म गैस बनना, घुटन और कहिनय म पीड़ा आिद।
त व-िव ान क अनुसार िजस त व क कारण जब कोई िवकार पैदा हो, तब उसी क िवरोधी त व को लेने या
धारण करने से पीड़ा व िवकार का िनदान होता ह। वायु-िवकार दूर करने क िलए और शिन ह क क भावा को
शांत करने क िलए ऋिष-मुिनय ने घोड़ क नाल क अँगूठी या छ ा धारण करना िहतकर माना ह।
ाचीन िव ान इस िवषय म ब त गहर म उतरता ह। िजस घोड़ क नाल से छ ा बनाना होता ह, वह शहर म
ताँगे या टमटम क आगे जुतनेवाले घोड़ क नाल से बना नह होना चािहए। शहर क प क सड़क पर चलनेवाले
घोड़ क नाल म वह असर नह पाया जाता जो शिनदोष व वायु िवकार को दूर कर सक। इसक िलए ऐसा घोड़ा
ढढ़ा जाता ह, जो कई बरस से घने जंगल म दौड़ता रहा हो। जंगल क िम ी से और वहाँ क जंगली घास,
जड़ी-बूिटय से उसक नाल म वे सब त व समा जाते ह, जो शिनदोष को दूर करने म स म होते ह।
जंगल और घास पर दौड़नेवाले घोड़ म एक और िवशेषता यह भी होनी चािहए िक वह रग म काला हो, य िक
काला रग शिन का अपना रग ह। रग-िव ान क अनुसार काला रग सूय क सात रग को अपने म समा लेता ह।
इसका अथ यह आ िक काले घोड़ म सूयश को समािव करने क मता दूसर रग क घोड़ से अिधक होती
ह। सूय क सौर श क कारण काले घोड़ क पैर म लगी नाल लगातार सूय क गरमी हण करती रहती ह। सूय
क गरम क साथ एक और िव ान इस घोड़ क नाल म कायरत रहता ह, वह ह उसका सतत जमीन पर टप-टप
चलना, िजससे उसका लोहा िविश बन जाता ह। उस लोह पर लगातार टप-टप चोट से उसक आंत रक अणु
रचना बदल जाती ह। यानी नाल क लोह का आंत रक एटॉिमक र (Atomic structure) सतत टप-टप चाल
से बदल जाता ह। ऐसे िविश नाल क लोह से बना छ ा या अँगूठी अव य ही शिनदोष िनवारण का अचूक
उपाय ह। पर या ऐसा घोड़ा िमलना आसान ह? ऐसे घोड़ क अगले दािहने पाँव क नाल से बना छ ा धारण
कर तो यह आपको मनोवांिछत फल देगा।
परतु आजकल हर जगह काले घोड़ क नाल आराम से िमल जाती ह; पर यह हमार िकसी काम क नह होती,
य िक इसम वह िविश ता नह होती जो होनी चािहए। अब अगर लोह का छ ा शिनदोष िनवारण नह कर पा
रहा ह, तो इसक पीछ जो िव ान ह उसका दोष या?
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या र न वाली अँगूिठयाँ पहनने का मनु य पर भाव
पड़ता ह
सौरमंडल क सम त ह सूय क चार ओर ३६० िड ी क वृ ाकार म प र मा करते ह। सौरमंडल क इस
वृ ाकार को १२ रािशय व २७ न म िवभािजत िकया आ ह। य िक सौरमंडल क ह व न सतत घूमते
रहते ह। इस कारण पृ वी पर रहनेवाल पर उनका भाव समयानुसार बदल-बदलकर पड़ता ह।
सनातन मनीिषय क अनुसार बा ांड मनु य क शरीर म भी सू म प म िव मान ह। इसिलए बा
ांड का आंत रक ांड पर सतत भाव पड़ता रहता ह। यह भाव अनुकल होगा या ितकल, यह य
िवशेष क ज म क समय क ह- थित पर िनभर करता ह।
मनु य क अित र कित क अ य पदाथ पर भी ह का भाव पड़ता ह। िकस पदाथ पर िकतना भाव
पड़गा, यह उस पदाथ क अपनी ाकितक संरचना पर िनभर करता ह। सनातन ऋिष-मुिनय ने अ ययन करक यह
िन कष िनकाला िक कित म भूगभ से िनकलनेवाले कछ िवशेष र न म ह क ारा ेिपत तरग को आकिषत
करने क मता ह। उनक अनुसार मािणक र न सूय क तरग को, नीलम शिन क , पु पराग (पुखराज) बृह पित
क , मोती चं मा क , हीरा शु क , वाल (मूँगा) मंगल क , वै य रा क , गौमेद कतु क तथा प ा बुध क
तरग को आकिषत करने क मता रखते ह। यह इसिलए होता ह, य िक इन र न क वेव लथ (Wavelength)
और ह क वेव लथ एक-दूसर से िमलती ह। इस कारण ये एक-दूसर पर भाव डालते ह।
जब ांड म घूमते ह पृ वी पर अपना अनुकल या ितकल भाव डालते ह तो कई य य पर उनका
वैसा ही भाव पड़ता ह। हमार सनातन ऋिष-मुिनय ने ह क भाव को कम करने क िलए या बढ़ाने क िलए इन
र न को धारण करने का ावधान िकया ह। िकस य िवशेष को कौन सा र न धारण करना चािहए, यह िन त
करने क िलए योितिषय क पास ायः लोग जाते ह। परतु यहाँ यान देने यो य बात यह िक िकस य को
कौन सा र न धारण करना ह और वह भी िकतना बड़ा, कब और कसा धारण करना ह, यह सब अपने म एक
अलग ही िव ान ह। यह िव ान हर योितषी द ता क साथ नह जानता, इसिलए र न धारण करनेवाल को इन
र न का अपेि त प रणाम नह िमलता। इस थित क िलए दोष र न-िव ान का नह , अिपतु इनको धारण
करानेवाले योितिषय का ह, य िक वे उस य क ज मकडली ठीक से नह पढ़ते और र न धारण करने को
कह देते ह।
िकसी र न को धारण करने से पूव उसे शुभ मु त पर खरीदना होता ह और वह भी उस र न से संबंिधत िदन को।
िफर उसे सही समय पर वणकार को जड़ने क िलए देना चािहए। वणकार को भी र न सही समय पर अँगूठी म
जड़ना होता ह। अँगूठी या पेनडल तैयार हो जाने पर ह संबंधी मं जाप कर या करवाएँ और िफर अनुकल मु त
म उसे धारण कर। इस कार से धारण िकया र न अव य ही फलदायी होता ह। र न क शु ता, गुण-ल ण व
वजन भी मह वपूण ह। र निव ान अपने आपम पूण ह, पर इसम िनिहत िनयम का पालन भी ज री ह, जो इतना
आसान भी नह ।
िपछले बीस-प ीस वष म भारत म र न-जिड़त अँगूिठय का चलन ब त बढ़ गया ह। आजकल हर नेता,
सरकारी अिधकारी, बड़ा यापारी या मह वाकां ी य र न-जिड़त अँगूठी पहने िदखता ह। यही नह , गली क हर
मोड़ पर आपको योितषी भी िमल जाएँग।े बस ऐसे ही योितषाचाय क कारण र न-िव ान को ढकोसला व
अंधिव ास कहा जाता ह, वरना र न-िव ान हर कसौटी पर खरा ह। हाँ, इसक िनयम का पालन ज री ह। परतु
आज का मानव हर चीज का तुरत फल चाहता ह, य िक उसे ‘फा ट-फड’ और ‘इन टट’ चीज क आदत हो
गई ह। ऐसे म र न क अँगूिठयाँ मा आभूषण बनकर रह गई ह।
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ा धारण करना वै ािनक
या मा आ था
ा कित क एक ऐसी िवल ण व तु ह िजसका वणन व माहा य हमार अनेक ाचीन ंथ म विणत ह।
ा क वृ पर लगनेवाले फल क बीज को ा कहते ह। यह एक िद य श बीज ह, जो िशवत व से
जुड़ा ह। इसम आ या मक िव पता क साथ-साथ िव ुत चुंबक य गुण भी ह। ा धारक क य व म
बदलाव, आकषण-श म वृि , आ मिव ास तथा भौितक सुख-साधन म ा क योग धना मक प से आने
लगते ह।
जाबालोपिनष , िजसे जाबाल ऋिष ने रचा था, म ा क गुण-धम क बार म िव तार से बताया गया ह। इस
िविच बीज पर गहरा शोध करने क बाद (जगबाल ऋिष) काशी नरश क राजवै बन गए। अपनी िचिक सा म वे
ा का ब त योग करते थे। उन िदन अ य वै भी इसका योग रोग-िनवारण म करने लगे। जाबाल एक
सं यासी थे, इस कारण ा को सं यािसय से जोड़ िदया गया। आज भी आप अिधकतर सं यािसय को ा
क माला धारण करते देखते ह।
ा धारण करनेवाले क जीवन म सुखद बदलाव िकसी जादू-मं क कारण नह अिपतु इसक ाकितक गुण-
धम, िजनका वै ािनक आधार ह, क कारण आता ह। शोध करने क बाद आधुिनक वै ािनक का ऐसा मंत य ह िक
ा माला का शरीर क वचा से घषण होने पर मनु य क शरीर म एक कार का ूमन मैगनेिट म (मानव
चुंबक) एवं ूमन इले ीिसटी (मानव िव ु ) का िनमाण होता ह। शोध क बाद यह भी िस हो गया ह िक
मनु य क शरीर म उ प होनेवाली ाकितक िव ु और ा म िव मान िव ु , दोन म एक जैसी दो
िमिलवो ज (2 Milivolts) क श होती ह। एक जैसी श होने क कारण यह मानव शरीर क अनु प काय
करती ह और उसम मानिसक व शारी रक प रवतन लाती ह।
ा म जो इले ोमैगनेिटक (Electromagnetic) और पैरा-मैगनेिटक श होती ह, वह इसक धारक क
म त क म ऐसी श भेजती ह जो म त क क सकारा मक क को सि य करती ह, िजसक कारण उसक
धारक य क सोच म प रवतन आता ह और उसक अनेक मनोरोग (मानिसक तनाव, उदासी, अ प मरण-
श आिद) दूर हो जाते ह। यही नह , ा से िनकलनेवाली सकारा मक तरग इसक धारक क नकारा मक सोच
ख म करती ह।
मानिसक रोग क अित र ा शारी रक रोग िनवारक औषिध भी ह। यह लड ेशर (र चाप) को िनयंि त
करता ह और दमा, अिन ा, तंि का (Nervous), दय रोग, र, जुकाम आिद यािधय म भी ब त उपयोगी ह।
कछ हद तक यह मधुमेह (डायिबटीज) को भी कम करता ह। इसे धारण करने क अित र इसका योग कई और
कार से भी होता ह, जैसे दूध म उबालकर, िघसकर शहद क साथ लेना, जलाकर इसक भ म खाना आिद।
ा म कई कार क खिनज व धातु पाए जाते ह जैसे—ताँबा, मैगनीिशयम, लोहा, चाँदी, सोना और बे रयम।
आम आदमी क िलए ा म पाए जानेवाले इन खिनज-धातु का कोई मतलब नह ह। परतु डॉ टर क िलए
इसम पाए जानेवाला सोना और बे रयम बा दय रोग को ठीक करने क मता रखते ह।
स १८६० म एक अं ेज ऑिफसर जॉन ेटने ा क िवषय म अनेक मह वपूण जानका रयाँ ा क थ ।
अमे रका क डॉ टर एवं ऐबरािहम जाजु ने ा क औषधीय गुण का गहरा अ ययन िकया। शोध क बाद उसका
मानना था िक ा म िन त प से मानिसक रोग को ठीक करने क मता ह। िवशेष प से तनाव को दूर
करने व मानिसक ि या को सु यव थत करने का गुण ा म ह। कछ वै ािनक का तो मानना ह िक ा
माला एक कार का ‘ऐंिटना’ ह, िजसम सब कार क नकारा मकता को न करने क श ह। इसी कारण
ा माला को धारण करनेवाले य नकारा मक सोच से दूर रहते ह।
आपको यह जानकर आ य होगा िक ा भारत म ही नह अिपतु नेपाल, िस कम, भूटान, मलेिशया,
इडोनेिशया, ाजील, जावा और याँमार म भी पाए जाते ह। इडोनेिशया म ा से इजे शन बनाए जाते ह, िज ह
चीन को िनयात िकया जाता ह। इसी कार, जमनी म ा पर गहन शोध आ ह और उ ह ने भी इस बात का
ितपादन िकया ह िक ा म चुंबक य श होती ह, जो मनु य पर अपना सकारा मक भाव छोड़ती ह।
खेद ह िक भारत म आधुिनक युग म ा पर कोई साथक शोध नह आ ह। परतु य गत प से कछ
लोग ने इस पर अ ययन अव य िकया ह। यहाँ एक आ यजनक बात यह ह िक हजार वष पहले हमार ऋिष-
मुिनय ने ा पर जो शोध िकया था, वह आज क वै ािनक ारा िकए गए शोध से कह अिधक आगे ह,
य िक आधुिनक वै ािनक को तो अभी ा क कई और रह य को जानना बाक ह। अभी तो उ ह यह जानना
शेष ह िक ा का अथ ह—वह श जो मनु य क मन से सब कार क भय को भगा देती ह, यहाँ तक िक
उसे मृ यु का भी भय नह रहता। हदोष भी उसका अिन नह कर पाते। यह एक पापनाशक वन पित ह, िजसे
भगवा िशव का आशीवाद ा ह। ा क माला पर िकए जानेवाले मं का जप कई गुना अिधक होता ह। ये
ऐसे त य ह, िजनक खोज और शोध आज क वै ािनक को अभी करना बाक ह।
ा क फल गु छ म लगते ह और मई-जून म िनकलते ह तथा िसतंबर से नवंबर तक पक जाते ह। ा
िनकालने क िलए इसक फल को कई िदन पानी म िभगोकर रखा जाता ह। िफर बाद म उससे गु छा हटाकर ा
ा िकया जाता ह। ा मिण चार रग क होती ह— ेत, ता , पीत और याम। ा म जो िछ होता ह, वह
ाकितक ही होता ह, बस उसे सूई ारा खोलकर साफ िकया जाता ह। ा क संबंध म एक अ ुत बात यह ह
िक इसक एक ही पेड़ पर एक से चौदह मुखी तक क ा पाए जाते ह, जबिक आँवले क पेड़ पर एक ही तरह
क यानी सात फाँकवाले फल लगते ह। यह भी कित का एक आ य ह। शा म एक मुखी से चौदह मुखी
ा का ही वणन ह, िकतु कित म इ क स मुखी तक क ा पाए गए ह। कई िवशेष का मंत य ह िक
िजस कार २७ न होते ह, उसी तरह २७ मुखी तक ा हो सकते ह। यहाँ यान देने यो य बात यह ह िक
अलग-अलग मुखी ा का अलग-अलग आ या मक व भौितक भाव होता ह। यह इस कारण होता ह, य िक
अलग-अलग मुखी ा क श और चुंबक य मता िभ -िभ होती ह।
तं शा क अनुसार देह क िविवध अंग पर ा मिण क सं याएँ भी िभ -िभ ह, जैसे ीवा कठ म ३२
या २७ ा क माला धारण करनी चािहए, म तक पर ४०, येक कान म ६-६, येक हाथ क मिणबंध म
१२-१२ और येक हाथ पर बाजूबंद म १६-१६ क ।
मं जप क माला म १०८ मिण तथा एक सुमे मिण होनी चािहए। ा मिणय क मुख एक-दूसर क आमने-
सामने होने चािहए, वरना उसका भाव कम हो जाएगा। सुमे मिण का मुख ऊ व (ऊपर क ओर) रखना चािहए।
माला का धागा (डोरा) रशम का मजबूत होना चािहए अथवा सोने या चाँदी क तार म माला गूँथनी चािहए। इस
ावधान का वै ािनक आधार यह ह िक ये सभी मा यम गुड-कड टर ऑफ-इले ीिसटी ह, जो ा क िव ु
श को बनाए रखने म सहायक होते ह।

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जपमाला क कार और १०८ दान वाली माला का
अंक-िव ान
मं -साधना क िलए या नाम जप क िलए माला का योग लगभग सभी धम म ह। अंतर कवल इतना ह िक माला
क दाने अलग-अलग गिणत से िपरोए जाते ह। िहदू धम म १०८ दानेवाली माला का योग ायः होता ह। मुसलमान
माला को ‘त बी’ कहते ह और उसम १०० दाने होते ह, हर ३३ दान क बाद एक ‘जामीन’ नामक दाना होता ह।
त बी म सबसे ऊपर क दाने को ‘ईमाम’ कहते ह। ईसाई धम म माला ‘रोज़री’ कहलाती ह और इसम ६० दाने
होते ह। रोज़री म सबसे ऊपर ‘ सीिफ स’ होता ह। िसख क माला म २७ दाने होते ह। िसख १०८ दान क
माला का भी योग करते ह। वैसे मालाएँ दो कार क होती ह—एक जपमाला और दूसरी धारण करने क माला।
जपमाला १०८ दान क होती ह, जबिक धारण करनेवाली माला ३२, २७, ५ या ३ दान क होती ह। िजस माला से
जप करते ह, उसे धारण या पहनना नह चािहए।
िहदु म १०८ दान क पीछ अंक िव ान ह। सबसे ऊपर क दाने को ‘सुमे ’ कहते ह। सनातन ऋिष-मुिनय ने
१०८ दान का गिणत कित क कई िस ांत को यान म रखकर िन त िकया था। इस अंक का िव ान पूर
ांड को अपने म समाए ए ह। यह अंक सं या नौ ह और बारह रािशय का गुणनफल ह (९ × १२=१०८),
जो पूर ांड को अपने म समािहत िकए ए ह। न सं या म स ाईस ह और हर न क चार-चार चरण ह,
िजनका गुणनफल भी १०८ ह (२७ × ४=१०८)।
वै ािनक से तीन आयाम क इस दुिनया से पर जो चौथा आयाम ह, उसी को अपने म समाए जो अंक
बनता ह, उसी से स ाईस न क गणना को गुणा करने से भी १०८ का अंक बनता ह। इस कार मं विन
उस चौथे आयाम तक प चती ह, जो इन आयाम क दुिनया से पर ह। एक और कारण से भी १०८ का अंक
मह वपूण ह। एक िदवस म चौबीस घंट होते ह, पल, घड़ी और हर घड़ी म साठ पल व हर घंट म साठ, हर पल
म साठ ितपल, इस कार एक िदन म (६० × ६० × ६०=२१६०००) िवपल होते ह, जब हम इसे दो से भाग देते
ह तो १०८००० सं या आती ह, िजसक मूल म १०८ क सं या ह।
िहदू धम म मालाएँ भी कई कार क ह, िजनका उपयोग अलग-अलग कायिसि और देवता क िलए होता
ह। आमतौर पर तुलसी, चंदन व ा क माल होती ह। पर िवशेष मं साधना क िलए मु ा माला (मोती),
वाल माला (मूँगे), हलदी क माला, कमलग क मालाएँ भी होती ह। इन सबक पीछ जो िव ान ह, वह मं
िवशेष या देवी-देवता क ‘तंरग ’ को यान म रखकर िकया गया ह। उदाहरण क िलए, मोती क माला का योग
चं मा ह और ल मी देवी से संबंिधत ह। इसी कार हलदी क माला माँ दुगा से संबंध रखती ह। परतु ा क
माला सव ह और िकसी मं या देवता क पूजा-आराधना म योग क जा सकती ह। अिभ ाय यह ह िक
माला का चयन वै ािनक कारण से ह, िकसी का पिनक या अंधिव ास क कारण नह ।
जपमाला क िवषय म एक मह वपूण बात यह ह िक जपमाला हर य क अपनी अलग होनी चािहए। िकसी
दूसर य क जपमाला का योग नह करना चािहए और न ही अपनी माला जपने क िलए िकसी को देनी
चािहए। आपक माला आपक आ या मक ‘लॉकर’ क तरह होती ह, िजस पर आपने मं क जमापूँजी सू म प
से सँजोई होती ह। इसिलिए जप करते समय आप को अपनी माला गोमुखी म रखकर जाप करना चािहए, तािक
कोई आप को जप करते समय देखे नह ।
माला ारा मं जाप िकए जाने क पीछ वै ािनक प यह ह िक अंगु (अँगूठा) और म यमा अंगुली ारा जब
माला का दाना फरा जाता ह तब इन तीन क संघष से एक िवल ण मानव-िव ु उ प होती ह, जो सीधी हमार
दय-च को भािवत करती ह। इससे मन को एका करने म सहायता िमलती ह।
सनातन िचंतन क अनुसार हमार शरीर म अंगु का संबंध आ मा से और म यमा अंगुली का दय देश से
सीधा संबंध ह, इसीिलए मं जाप माला ारा ही करना चािहए।
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िहदू अपने शव य जलाते ह
मृ यु जीवन का एक कट स य ह। जो जनमा ह, उसक मृ यु भी होगी। हर धम म शव क अं ये करने क
अपनी-अपनी थाएँ ह। िहदू धम म शव का अ नदाह िकया जाता ह। ाचीन मनीिषय ने ब त सोच-समझकर इस
था को ज म िदया। उनका यह मानना था िक मनु य का शरीर, जो पाँच त व से बना ह, अ नदाह करने से
शी तम पाँच त व म िवलीन हो जाता ह। मनु य क पंचत व का कित क त व म िवलय होना कित क
संतुलन को बनाए रखने म सहायक होता ह।
दूसरा एक कारण यह भी ह िक अ नदाह से मृतक शरीर क घातक जीवाणु जलकर न हो जाते ह और इस
कार वातावरण शु रहता ह। एक और कारण यह भी ह िक अ नदाह क िलए शव को अलग से जमीन क
ज रत भी नह होती। िवदेश म बसे िहदु को देखकर कछ पा ा य लोग ने भी अ नदाह को वीकार िकया
ह। एक अनुमान क अनुसार अमे रका म २०१० तक अ नदाह ४० ितशत तक हो जाएगा। भारत म ईसाई धम क
अनुयाियय म भी अब यह था देखी जा रही ह।
िहदु म चौदह मास क बालक क मृ यु पर उसे जल वाह करते ह। भारत म भी िसंधु स यता क दौरान शव
को भूिमगत ही करते थे। पर बाद म अ नदाह िकया जाने लगा। महानगर म िव ुतदाह भी होता ह। िव ुतदाह
अ नदाह का आधुिनक प ह।
िव ुतदाह म िहदु म चिलत ‘कपालि या’ नह हो सकती। कपालि या क िलए जो य शव को अ न
देता ह, वह शव क आंिशक जल जाने पर बाँस ारा शव क खोपड़ी को तोड़ता ह। इसक पीछ यह िव ान ह िक
मनु य क म त क म रहनेवाला जीवाणु पूणतया समा हो जाए और उसम से उप ाण िनकलकर पंचत व म शी
िवलीन हो जाए।
आधुिनक िव ान भी यह मानता ह िक मरने क बाद भी मनु य का म त क कछ समय तक जीिवत रहता ह। यह
स य िहदू मनीिषय ने हजार वष पूव जान िलया था, इसीिलए ‘कपालि या’ क था को उ ह ने ज म िदया। खेद
ह, धम क यह बारीक मशान घाट पर ि या-कम करनेवाले आचाय भी नह जानते, िजसक प रणाम व प हम
इन सब बात को यथ क बात मानते ह, य िक हम इन सब बात क पीछ क िव ान से अनिभ ह।
जीवन क अंितम या ा से जुड़ी कछ और सनातन बात भी यान देने यो य ह। पहले समय म जब यह लगने
लगता था िक अब मरनेवाला अिधक समय और जीिवत नह रहगा तो यह था थी िक उस य को चारपाई से
उतारकर जमीन पर िलटा देते थे, िजसक पीछ यह िव ान था िक जमीन पर उतार लेने से बीमार क ाण आसानी
से िनकल जाते ह, य िक जमीन ाणश को अपने म शी वािहत कर लेती ह। चारपाई क पाए य िक उन
िदन लकड़ी क होते थे, इसिलए ाण िनकलने म किठनाई होती थी, य िक लकड़ी से िव ु ( ाण भी एक कार
क िव ु होते ह) वािहत नह होती; जबिक जमीन से एकदम हो जाती ह। इसी कारण बीमार को जमीन पर उतार
लेते थे।
शवया ा क दौरान िहदू शव को शांत या मौन रहकर मशान नह ले जाते ह, अिपतु उस अवसर पर समाज क
लोग को संदेश देते ह िक िसवाय ‘रामनाम’ क इस िम या संसार म कछ और ‘स य’ नह ह। इसीिलए शवया ा
म ‘ ीराम नाम स य ह’ कहा जाता ह। सनातन धम इस कार मृ यु म भी जीवन को संदेश देता ह।
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िववाह क समय ज मकडली
िमलाने क पीछ िव ान
िववाह िकसी भी ी-पु ष क जीवन का एक मह वपूण कदम ह, अतः इसे उठाते समय हम खूब सोच-
िवचारकर उठाना चािहए। िववाह से हमार जीवन क कई मह वपूण बात जुड़ी ह; जैसे ी-पु ष का यार, यौन-
संबंध, ब े, जीवन क अ य सुख, समाज म थान और जीवन म गित व उ ित। िववाह क बाद ही मनु य पूण
होता ह, य िक पु ष को ी और ी को पु ष िमलता ह। इस कार से वे दोन एक-दूसर क पूरक बनते ह।
ज मकडली िमलाने से यह पता चलता ह िक दोन क िमलने से या उन दोन क संबंध िववाह क बाद ठीक
रहगे या नह । हमार शा म मनु य क वभाव को तीन कार का बताया गया ह; जैसे देवता- वभाव, रा स-
वभाव और मनु य- वभाव। ज मकडली म इसे ‘गण’ कहते ह। देवता- वभाववाले य का िववाह यिद रा स-
वभाववाली ी क साथ होगा तो संभावना यही ह िक वे दोन सारी िजंदगी लड़ाई-झगड़, मन-मुटाव और कलह
म ही िबताएँग।े ी-पु ष एक जैसे वभाव क ह गे तो जीवन ठीक-ठाक चलेगा। यिद दोन म से एक देवता-
वभाव तथा दूसरा मनु य वभाववाला ह तो ठीक-ठाक ही होगा, पर यिद मनु य वभाववाली ी का िववाह
िकसी रा स- वभाववाले य से आ तो वह पु ष सारी उ उस ी पर रोब ही जमाता रहगा और उसे
य गत प से गित नह करने देगा। आजकल अिधक िववाह-िव छद होने का यह एक बड़ा कारण ह।
इसी तरह ज मकडली िमलाने से ी-पु ष क यौन संबंध का भी पता चलता ह; वे दोन एक-दूसर को पूण
यौन-सुख दे पाएँगे या नह ? उन दोन क िमलन से ब े समय पर ह गे या नह ? ब म कोई शारी रक कमजोरी
तो नह होगी? ये सब बात एक अ छा व स ा योितषाचाय ही बता सकता ह, पैसे लेकर ज मकडली िमलानेवाले
योितषी नह ।
ायः देखा गया ह िक ेम-िववाह म िववाह से पूव ी-पु ष क संबंध ठीक-ठाक ही होते ह, पर िववाह क बाद
कई बार संबंध कट होते देखे गए ह, य िक कित क िनयम क अनुसार वे दोन अ छ िम तो रह सकते ह, पर
पित-प नी क प म उनका संबंध ह क अनुसार अनुकल नह होता, इसिलए िववाह क बाद सम याएँ पैदा हो
जाती ह।
एक और मह वपूण जानकारी, जो ज मकडली क िमलाने से मालूम पड़ती ह, वह ह िववाह-सू क आयु।
फिलत ंथ ारा प नी-नाशक या पित-नाशक योग का पता लगाया जा सकता ह। इसिलए ज मप ी िमलाते समय
वैध य योग देखना ब त आव यक ह। ऐसे िववाह का या लाभ जो कछ ही समय म जीवनसाथी का जीवन ही
छीन ले।
एक सफल वैवािहक जीवन क िलए पित-प नी क मानिसक तर म अंतर कवल ५ ितशत ही होना चािहए,
इससे अिधक नह । ये सभी बात ज मप ी िमलाते समय देखी जाती ह।
इस तरह कई कारण से िववाह क समय ज मप ी िमलाना एक समझदारी क बात ह। पर शत यह ह िक दोन
क ज मपि याँ ठीक-ठाक बनी ह और उनक बनानेवाले पंिडत भी ानी रह ह , वरना उस पर िलखी बात का
कोई अथ नह रह जाता। पर आजकल इन सब बात पर लोग यान नह देते। प रणाम हमार सामने टटते घर क
बढ़ती सं या क प म ह।
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िहदू िववाह-िव ान :
दो आ मा का िमलन
पुनज म सनातन िचंतन का एक मह वपूण अंग ह। इस ज म म हम जो एक दूसर से संबंध थािपत करते ह, वे
हम आनेवाले अगले िकसी ज म म जोड़ते ह। संबंध का यह संयोग और िव ह भारतीय दशन म ‘ऋणबंध’
कहलाता ह।
इितहास क पूवकाल म जब समाज यव थत नह था, तो ी-पु ष क बीच कोई िन त संबंध भी नह था।
वह समाज मातृव था, य िक िपता सुिन त नह होता था। उस समय एक सामािजक जाग क य ेतकतु
ने इस अ यव थत थित को यव थत प िदया। बाद म समाज िचंतक ने उस यव था को और िनखारकर
धम सू म बाँध िदया और इन कार मातृव समाज िपतृव बन गया।
वह से आरभ ई आज क कटब यव था। कटब और गृह थी ऐसे दशन ह जो दुिनया म कछक समाज म ही
देखे जाते ह। िववाह िहदू समाज का एक मह वपूण सं कार ह। यह मा सं कार ही नह , एक ब त बड़ा
उ रदािय व भी ह, जो उसे रा , समाज और प रवार क ित िनभाना होता ह। रा , समाज और प रवार क िलए
उ रदािय ववाला दशन िव म अ य नह देखा गया ह।
ी-पु ष म जो वाभािवक अपूणता ह, िववाह उसे पूण करता ह। िववाह ह िमलन दो आ मा का, दो
प रवार का। भारतीय मनीिषय ने िववाह सं कार को एक ऐसी साफ-सुथरी गृह थी देनेवाला माना ह जैसे िकसी
योगी क समािध। एक-दूसर क िलए कत य, ेम, याग, िव ास, समपण और िन ा इस संबंध क न व म होते
ह, और जब इस संबंध म ये भावनाएँ नह ह गी तो वही होता ह जो आजकल समाज म हम देखने को िमल रहा ह।
अब रा , समाज और प रवार क ित युवक का वह उ रदािय व नह देखा जाता। आज मह वपूण ह ‘अहकार’
और ‘म’। फल व प प रवार टट रह ह।
िहदू िववाह क िवधान वैिदक सं कार से िनकले और बने ह। एक-दूसर को िववाह सू म बाँधने से पूव ी-
पु ष दोन क ज मकडली िमलाना ज री ह। इसी कार यिद दोन क ‘योिन’ एक कार क ह गी तो संतान
उ पि म ब त किठनाई आएगी। एक गो म िववाह होने पर संतान शारी रक प से दुबल होगी। कडली िमलाते
समय वैवािहक जीवन क अनेक पहलु पर िवचार िकया जाता था। कडली िमल जाने पर सगाई होती ह। इस
अवसर पर वर का ितलक और वधू क गोद धराई होती ह। शादी से पहले क या बहन और बेटी होती ह। अब उसे
प नी व माँ बनना ह, इसिलए गोद भराई क ारा आशीवाद क प म पाँच शुभ पदाथ उसक आँचल म देकर गोद
भरते ह।
शादी से पहले एक और र म होती ह—‘हलदी’। यह वर-वधू दोन को लगाई जाती ह। इसका लेप आकषण क
अलावा वर-वधू को उ ेजना भी देता ह। क यादान क समय भी िपता पु ी क हाथ म हलदी लगाता ह। इसक पीछ
क याप का भाव यह ह िक अब तक हमारी बेटी क या थी, अब से गृहल मी होगी।
िववाह क समय गठबंधन एक और र म होती ह। इस र म म वधू क साड़ी क एक कोने को एक पीले दुप
से बाँध िदया जाता ह और दुप को वर क कधे पर रख िदया जाता ह। इसका आशय ह दोन शरीर और मन को
एक संयु इकाई का प देना। बंधन क गाँठ म पाँच व तुएँ रखकर बाँधी जाती ह—पु प, हलदी, अ त, दूवा
और पैसा। इन पाँच व तु क अपने आशय होते ह।
पु प—ये तीक होते ह, पु प क भाँित सदैव स व िखले-िखले रहने क कामना क।
हलदी—हलदी से आशय ह एक-दूसर क शारी रक और मानिसक वा य क ित सजग रह, सहयोगी रह
और घर-गृह थी चलाएँ।
दूवा—दूवा कभी िनज व नह होती, अतः इसम िनिहत कामना ह िक ेम भावना कभी न मुरझाए। एक-दूसर क
मन म ेम व आ मीयता बनी रह।
अ त—यह दांप य जीवन म अ ु णता और सामािजक कत य को िनभाने का तीक ह।
पैसा—पैसा (िस का) रखने से आशय ह िक धन पर िकसी का एकािधकार नह होगा। दोन िमलकर प रवार क
िलए धन का यय करगे।
हवन क बाद वर-वधू अ न क बा से दा ओर चार या िफर सात फर (प र मा) लगाते ह। शा म चार
और परपरा म सात फर का िवधान ह। ये सात वचन एक अ छ वैवािहक जीवन क िलए आधारभूत होते ह। वर
एवं क या िन त मु त म एक-दूसर का हाथ पकड़कर ‘पािण हण’ क र म पूरी करते ह। परतु आज क बदले
ए युग म यह सबकछ यथ लगता ह। ेम-िववाह का चलन बढ़ता जा रहा ह। परतु इसका प रणाम तलाक क
प म सामने आ रहा ह।
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तुलसी क पौधे व प का
वै ािनक मह व
तुलसी एक दैिवक वन पित ह, इसिलए तुलसी का सनातन समाज म ब त मह व था। आज भी पूजा-पाठ म
तुलसी क प क ज रत पड़ती ह। पंचामृत व चरणामृत, दोन म तुलसी क प े अिनवाय ह। एक समय था जब
भारत क हर घर-आँगन म तुलसी का चौरा (तुलसी लगाने का थान) होता था, य िक पिव ता म तुलसी का
थान गंगा से भी ऊचा ह।
धम क से तुलसी म अिधक मा ा म िव णु त व होते ह, जो पिव ता क तीक ह। इसिलए िजन पदाथ म
तुलसी डालते ह, वे पिव हो जाते ह और य िक इसक प म ई रीय तरग को आकिषत करने क मता होती
ह और वे दैवी श दान करते ह। तुलसी क माला िव णु प रवार से जुड़ देवी-देवता क मं जाप क िलए
योग म लाई जाती ह। तुलसी क माला धारण करने से एक र ा कवच बन जाता ह। तुलसी क प -शाखा से
एक ऐसा रोगनाशक तेल वायुमंडल म उड़ता ह िक इसक आसपास रहने, इसे छने, इसे पानी देने और इसका पौधा
रोपने से ही कई रोग न हो जाते ह। इसक गंध दस िदशा को पिव करक कवच क तरह ािणय को बचाती
ह। इसक बीज से उड़ते रहनेवाला तेल त व वचा से छकर रोम-रोम क िवकार हर लेता ह।
आयुवद क अनुसार तुलसी एक रामबाण पौधा ह, िजसका योग कई कार क शारी रक क को दूर करने म
होता ह। तुलसी दो कार क होती ह—एक साधारण हर प वाली तथा दूसरी यामा-तुलसी, िजसक प े छोट व
काले रग क होते ह। यामा तुलसी पूजा क िलए अिधक उपयु मानी जाती ह। इसका औषिध क प म एक
और लाभ यह ह िक तुलसी क प म कछ मा ा म पारा (मरक र) होता ह। मरक र एक सीिमत मा ा म शरीर क
िलए ब त िहतकारी ह, पर दाँत क िलए हािनकारक। इस कारण तुलसी क प को साबुत ही िनगला जाता ह,
दाँत से चबाया नह जाता। ‘तुलसी’ नीम और शहद से भी अिधक गुणकारी ह।
एक और िविश ता तुलसी क यह ह िक जहाँ और फल-पि य क श मुरझाने पर समा हो जाती ह, वह
तुलसी क प क श सूखने पर भी बनी रहती ह और ये वातावरण को सा वक बनाए रखते ह। अगर घर-
आँगन म, सड़क-िकनार या कह और तुलसी क बगीची लगा द तो साँप-िब छ अपने आप वहाँ से भाग जाते ह।
इसी कारण, तुलसीवाले घर-आँगन को तीथ समान माना जाता ह।
िब वप (बेल क प े) भी तुलसी क ही भाँित सदा शु रहते ह। जहाँ तुलसी म िव णु त व होता ह, वह
िब व प म िशव त व होता ह। इनम भी सूखने क बाद देवता त व सदैव िव मान रहता ह और उसे ेिपत
करता रहता ह। िब वप क िचकने भाग को नीचे क तरफ रखकर िशव िपंडी पर चढ़ाते ह।
तुलसी का एक नाम वृंदा भी ह अथा िव ु -श । इसिलए तुलसी क लकड़ी से बनी माला, करधनी, गजरा
आिद पहनने क था सिदय से चली आ रही ह, य िक इनसे िव ु क तरग िनकलकर र -संचार म कोई
कावट नह आने देत । इसी कार गले म पड़ी तुलसी क माला फफड़ और दय को रोग से बचाती ह।
आप म से कछ को यह जानकर आ य होगा िक मलेिशया ीप म क पर तुलसी ारा पूजन- था चली आ
रही ह, िजसका वै ािनक आधार यह ह िक मृत शरीर वायुमंडल म दु भाव और दुगध नह फलाता। शव को
तुलसी-िवटप क पास रखने का एक मा वै ािनक रह य यही ह िक शव देर तक सुरि त रहता ह और मृत शरीर
क गंध तुलसी क दुगध से दबी रहती ह।
इजराइल म भी तुलसी क बार म ऐसी ही धारणाएँ ह। सूय-चं क हण क दौरान बड़-बुजुग अ -स जय म
तुलसीदल (प े) इसिलए रखते थे िक सौर मंडल से उस समय आनेवाली िवनाशक िविकरण तरग खा ा को
दूिषत न कर। इस कार हण क समय तुलसीदल एक र क आवरण का काय करता ह।
तुलसी क प े रात होने पर नह तोड़ने का िवधान ह। िव ान यह ह िक इस पौधे म सूया त क बाद इसम
िव मान िव ु -तरग कट हो जाती ह, जो पि याँ तोड़नेवाले क िलए हािनकारक ह। इससे उसक शरीर म िवकार
आ सकता ह।
तुलसी सेवन क बाद दूध नह पीना चािहए। ऐसा करने से चम रोग हो जाने का डर ह। इसी कार, तुलसी सेवन
क बाद पान भी नह चबाना चािहए, य िक तुलसी और पान दोन ही पदाथ तासीर म गरम ह, जो सेवन करनेवाले
क िलए हािनकारक हो सकते ह।
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दान य देना चािहए
िव क सभी धम म दान देने पर जोर िदया गया ह। वैिदक धम म ‘दान’ पर ब त कछ िलखा व कहा गया ह।
दान देना एक ऐसा धािमक क य ह, िजसम मनु य और समाज दोन का िहत िनिहत ह। य गत तर पर दान देने
से मनु य आ या मक से ऊपर उठता ह, जबिक सामािजक से वह सामािजक िवषमता को दूर करने म
समाज क सहायता करता ह।
दान देने क पीछ कित का जो िव ान काम करता ह, वह बड़ा सरल ह। जब कोई य दान देता ह तो वह
ई र का काय करता ह, य िक ई र का काम देना ह। कित का सहज वभाव भी देना ह। सूय हम िबना माँगे
ितिदन काश व ताप देता ह। नदी, तालाब, कप आिद हम िबना मू य क जल देते ह और वायु हम िनःशु क
ाणदाियनी हवा देती ह, वृ िबना कछ माँगे हमार वातावरण को व छ बनाते ह और फल देते ह। धम ंथ म
िलखा ह िक हम कित क ित कत होकर उसक सेवा करनी चािहए। वृ ारोपण, पेड़-पौध को जल देना, नदी,
तालाब, कप आिद को साफ रखना कित सेवा ह और उसे दान देने क समान ह। दान देने म कित का एक और
िनयम कायरत होता ह—‘िजतना दोगे, उससे अिधक पाओगे।’ मनु य ारा िकया गया कोई भी काय न नह
होता, चाह वह अ छा हो या बुरा। उस काय क तरग ऊपर आकाश त व म िवलीन होकर कालच क साथ
प रवितत होकर िफर पृ वी पर लौटती ह और उस काय को करनेवाले को भािवत कर दंिडत या स मािनत करती
ह। ‘ऋ वेद’ म लगभग चालीस ‘गानमं ’ ह, िज ह सामूिहक प से ‘दान ुित’ कहते ह, िजनम दान क मिहमा
का वणन ह। उपिनषद म अनेक दानवीर राजा क नाम क सूची ह। ‘छांदो योपिनष ’ म धम क तीन शाखाएँ
बताई गई ह, िजनम से दान एक ह। इन धम ंथ क अनुसार जो य दान देता ह, उसे कभी भौितक पदाथ क
कमी नह होती, य िक कित अपने सू म िनयम क अनुसार उसक ारा िदए गए दान को िकसी-न-िकसी प म
वापस कर देती ह।
‘गीता’ म भी इसी स य का ितपादन िकया गया ह और साथ ही दान क तीन व प का वणन भी िकया ह।
गीता क अनुसार दान तीन कार क होते ह—सा वक, राजस व तामिसक। सा वक दान वह होता ह जो सहज
भाव से िबना िकसी फल क अपे ा िकए िदया जाता ह। इसका एक आधुिनक प ‘गु दान’ कहलाता ह। राजस-
दान वह जो िकसी फल (नाम, यश, धन, पु - ा आिद क कामना) क इ छा से िदया जाता ह। तामस-दान वह
दान ह जो िकसी कपा को ितर कत करते ए िदया जाता ह। गीता क अनुसार सा वक-दान े ह, पर
आधुिनक युग म राजस-दान का ही बोलबाला ह।
कमपुराण म दान क चार ेिणयाँ ह—िन य दान, नैिम य दान, का य दान और िवमल दान। िन य दान वह
अ पदान ह जो हम ितिदन जाने-अनजाने म करते ह, जैसे पि य को दाना देना, पेड़-पौध को जल देना या िफर
घर क नौकर को चाय-पानी देना आिद। नैिम य दान वह दान ह जो हम अपने पूवज म क पाप से मु पाने क
िलए करते ह, जैस— े बीमार होने पर िकसी मंिदर म ‘तुला-दान’ करना (बीमार क शरीर क वजन क बराबर सात
कार का अ तौलकर दान करना) या िफर शिन ह दोष-िनवारण क िलए शिनवार क िदन टील या लोह क
कटोरी म उड़द क काली दाल, एक िस का और सरस या ितल अपनी छाया उसम देखकर शिनदेव क ितमा
पर चढ़ाना आिद। का य दान वह दान ह जो िकसी कामना क पूित क िलए िकया जाता ह, जैसे—धन- ा क
िलए, पु - ा क िलए, पु ी क िववाह क िलए या िफर मृ यु क बाद वग- ा क िलए; परतु िवमल-दान
सव े ह। यह वह दान ह जो िनमल मन से िबना िकसी इ छा या कामना से परोपकार क िलए िकया जाता ह।
िवमल-दान और गीता म बताया सा वक-दान दोन े ह। इन दोन म मनु य अपना धन, सुख, साम य व
संपदा परोपकार क से ई र क तरह दूसर म बाँटता ह। चूँिक मनु य का यह कम इ छा-रिहत ह, इसिलए
यह कित क सू म तर पर कायरत होता ह, िजसका फल कालांतर म कित कई गुना उस य को लौटाती ह।
इस कारण यह दान देना अिधक िहतकर ह।
‘महाभारत’ क अनुशासनपव क कई अ याय म दान पर चचा ह। इसी पव म सूतपु कण को िन न जाित का
होने क बावजूद ‘दानवीर’ क सं ा से संबोिधत िकया गया ह। इसी पव म कहा गया ह िक मनु य को वृ का
पालन अपनी संतान क तरह करना चािहए। महाभारत क शांितपव म कहा गया ह िक मनु य को अपनी पहली
आय का दसवाँ भाग दान देने से उसक आय सदा बनी रहती ह।
चं हण और सूय हण क अवसर पर दान देने का बड़ा मह व ह। उस समय िदया दान अिधक फलदायी होता
ह, य िक आकाशमंडल म पृ वी का संबंध सूय-चं मा से िविश होने क कारण मनु य ारा िकए कम का सू म
भाव अिधक व अ पकाल म कायरत हो जाता ह। ऐसा कित क सू म अ य िनयम क कारण होता ह।
कमकांड क पूजा क उपरांत जो दान पूजा करानेवाले पंिडत को िदया जाता ह, उसे दि णा कहते ह। इस दान
क पीछ याग व कत ता का भाव होता ह, िजसम पूजा करवानेवाले क ा व साम य दोन होती ह। परतु
आजकल तो पंिडतजी माँग कर दि णा लेते ह। ऐसा करने से दि णा दान न होकर कमकांड क ‘फ स’ बनकर
रह जाती ह। इस कार क पंिडत दि णा लेकर पूजा करानेवाले को आशीवाद भी नह देते और न ही पूजा
करानेवाला दि णा देकर पंिडत क चरण ही छता ह। यह युग का भाव ह।
इसलाम धम म भी ‘जकात’ (दान) पर जोर िदया गया ह। रमजान क महीने म मुसलमान को उदारता से दान
देने क िहदायत दी गई ह।
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मंिदर म ना रयल य चढ़ाते ह
ना रयल को सवािधक शुभ फल माना जाता ह, इसी कारण इसका एक नाम ‘ ीफल’ ह। ना रयल म िशव,
गणपित, ीराम व ीक ण—इन पाँच देवता क दैिवक तरग को अपनी ओर आक करने और उ ह
आव यकतानुसार ेिपत करने क मता ह। इसे सवािधक सा वकता दान करनेवाला फल कहा गया ह।
ना रयल क ारा हम अिन श य क क दूर कर सकते ह। इसक ारा बुरी नजर भी उतारते ह, य िक
ना रयल म अिन कारी तरग को ख चने क मता ह। अिन श से पीिड़त य क क दूर करने क िलए
ना रयल से उसक नजर उतारी जाती ह।
इसी कार जब हम मंिदर म या िकसी अ य अवसर पर ना रयल फोड़ते ह, तो उस समय उसम से मारक मं
‘ॐ फट’ जैसी विन िनकलती ह, िजससे अिन श याँ दूर भाग जाती ह।
एक मत क अनुसार मानव खोपड़ी क स य ‘ना रयल’ क रचना िष िव ािम ने लोक-क याण क िलए
अपने संक प से क थी। जब हम ना रयल िकसी देव को अिपत करते ह तो हमारा यह क य एक कार से अपना
म तक ही अपण करने क समान होता ह। इसी उ े य को यान म रखते ए ऋिषवर िव ािम ने इस फल क
उ पि क थी। िजस कार हमार शरीर म तीन आँख होती ह (तीसरी आँख जो बा प से नह िदखती, पर
अ य प म हमार म त क म होती ह) वैसे ही ना रयल म भी तीन आँख होती ह। और इसम अंदर भरा जल
हमार िसर म िव मान र क समान होता ह। ना रयल देवालय म चढ़ाने क पीछ िव ान यही ह िक जब हम
िकसी मंिदर म िकसी देवी या देवता को ना रयल चढ़ाते ह तो एक कार से हम अपना िसर, अपना अहकार,
अपना अ त व इस ना रयल क प म अपण करते ह और बदले म सुबुि वाला म तक माँगते ह।
ना रयल अपण करते समय उसका आँखवाला भाग देवता क तरफ होना चािहए, िजसका िव ान यह ह िक
आँखवाली ओर से ही ना रयल देवश हण करता ह और हम दान करता ह।
इसी कार ना रयल फोड़ते समय ‘फट’ क जो आवाज आती ह, वह मं क समान श शाली होती ह, िजससे
अिन श याँ दूर रहती ह और हमार आस-पास क वातावरण को िनमल रखती ह। इसक अित र ना रयल क
पानी को गंगाजल और गौमू क समान शु एवं पिव माना गया ह। इस कारण फोड़ गए ना रयल क जल को
वेश ार क दोन ओर या िजस थल पर पूजा हो रही ह, उस थान पर चढ़ाया जाता ह, तािक उस जगह क
शुि हो जाए। इसक उपरांत ना रयल क गरी साद प म सबको बाँटी जाती ह। गरी हण करने से सभी को
दैिवक आशीवाद ा होता ह। इ ह कारण से ना रयल चढ़ाने और ना रयल फोड़ने क था हमार सनातन
कमकांड म स मिलत ह।
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पूजा-पाठ म चंदन का योग
य करते ह
पूजा-पाठ म देवता को ितलक लगाने क िलए िविवध कार क य का योग िकया जाता ह, उनम से
अ गंध व चंदन सबसे अिधक सा वक ह। देव क माथे पर ितलक लगाने क पीछ यह िव ान ह िक देवता क
सुषु ना नाड़ी सि य होकर मनु य यानी पूजक क आ या मक व भौितक उ ित कर।
कमकांड क अनुसार, सकाम साधना म दोन हाथ से चंदन िघसने क ि या को मह व िदया ह। िकसी भी
काय क संपूण िसि क िलए उस िशव (बाएँ) व श (दाएँ) को जोड़ना आव यक ह। जब हम दोन हाथ से
चंदन िघसते ह तो िशव व श दोन क त व अपने म जा कर लेते ह। दोन हाथ से चंदन िघसने पर शरीर क
सुषु ना नाड़ी सि य हो जाती ह, जो मनु य क िलए िहतकर ह।
इसक िवपरीत, मृत य क िलए दाएँ हाथ से चंदन िघसने का िवधान ह। दाएँ हाथ से चंदन िघसकर दािहनी
नाड़ी (िपंगला नाड़ी) ारा मृत शरीर क िलंगदेह को ि याश दान कर उसक आगे क अनंत या ा क िलए
गित देना ह। हमार ाचीन शरीर-िव ान क अनुसार ाण िनकल जाने क बाद भी मृत शरीर म कछ मा ा म सु
उप ाण कछ समय तक शेष रहते ह। आधुिनक वै ािनक भी अब यह मानते ह िक मरने क बाद कछ समय तक
मनु य का म त क जीिवत रहता ह। यही कारण ह िक िहदु म मृतक को िचता पर अ नदाह क समय कपाल-
ि या क जाती ह, तािक उसक खोपड़ी म थत उप ाण शी मु होकर पंचत व म िवलीन हो जाएँ। चंदन क
इस गुण क कारण िचता पर चंदन क लकड़ी क टकड़ चढ़ाए जाते ह। दाएँ हाथ से चंदन िघसनेवाले य क
सूयनाड़ी (दा ) सि य होती ह और इस कार उसक शरीर से रजोगुणी तरग िनकलकर मृत य क देह को
ा होती ह, जो उसक उप ाण को शी उसक मृत शरीर से िनकलने म सहायक बनती ह।
चंदन म सा वकता होती ह, जो मनु य क आ या मकता क िलए ब त मह वपूण ह। इसीिलए दोन भृकिट क
बीच माथे पर चंदन का ितलक लगाने क था ह। परतु यिद हम सफद चंदन म हलदी या ककम िमलाकर िघस
तो उसक सा वकता कम हो जाती ह, य िक हलदी व ककम म रजोगुणी तरग होती ह, जो चंदन क स वकण
का िवघटन कर देती ह। इसिलए चंदन िघसते समय उसम हलदी या कमकम नह िमलाना चािहए।
जब हम िकसी देव ितमा या िच पर देव क ूम य म चंदन का ितलक लगाते ह तो उस देवता क सूयनाड़ी
जा हो जाती ह। इससे देवता का त व उस ितमा अथवा िच क ओर आक होता ह और वे जा हो जाते
ह तथा आस-पास क वातावरण को आ या मक बनाते ह। चंदन क योग क पीछ यही िव ान ह।
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घर म गाय क उपले व नीम
क प े य जलाते ह
वा तुशा क अनुसार जब िकसी थान का पाँच मूल त व का संतुलन िबगड़ जाता ह तो उस घर म बीमारी या
कलह बढ़ जाती ह। उपाय क प म घर क वामी को घर म नीम क प या गाय क गोबर से बने उपल का
धुआँ करने या कपूर जलाने को कहा जाता ह। बीमारी या कलह का एक कारण घर म अिन श य का वास
होना ह, जो घर म नकारा मक वातावरण (नैगेिटव वाइ ेशन) पैदा करती ह। इन नकारा मक श य का कोई
थूल शरीर तो होता नह , परतु इसक सू म शरीर क सूँघने क श ब त ती होती ह। इसक अित र उ ह
बदबूदार, गंदी, मैली-कचैली, टटी-फटी अँधेरी जगह और घर अ छ लगते ह। इस कारण िजन घर म बदबू,
गंदगी, अँधेरा आिद रहता ह, वहाँ ऐसी ऊपरी हवाएँ (Astral boby) वास करती ह और उस घर म बीमारी, कलह
आिद फलाती ह।
इन नकारा मक श य अथा ऊपरी हवा को घर से भगाने का एक अ छा और सरल उपाय ह िक घर म
ऐसी सुगंध पैदा कर, िजसे वे पसंद न करती ह , जैसे नीम क पि य , गाय क गोबर से बने उपल का धुआँ या
िफर कपूर क सुगंध। जहाँ इन त व का धुआँ होगा, ये उसे बरदा त नह कर पात और वहाँ से भाग जाती ह।
परतु यह उपाय हम लगातार कछ िदन करना चािहए। एक या दो बार म इस उपाय का कोई थायी असर नह
होता। इसक अित र घर क साफ-सफाई भी करनी चािहए, जैसे घर से मकड़ी क जाले चीज पर पड़ी धूल
आिद क सफाई करना। हवन क धुएँ क पीछ भी यही िव ान व कारण ह। हवन साम ी क खुशबू वातावरण को
शु तो करती ही ह, साथ म अिन श य को घर से बाहर भी िनकाल देती ह। परतु यह यान रह िक हवन
साम ी शु होनी चािहए और उसम डाला जानेवाला घी भी देसी गाय का ही होना चािहए, य िक देसी गाय और
दूसरी गाय क घी क गुण-धम िभ होते ह, साथ ही भाव म भी अंतर होता ह। जब हम सू म बात पर यान न
देकर अपने ही ढग से धािमक काय करते ह तो उनका मनोवांिछत फल नह िमलता। िफर हम उन काय को
आडबर का नाम दे देते ह, जबिक दोष होता ह हमार अपने अपूण एवं गलत ढग से िकए ए िविध-िवधान का।
शु साम ी, घी व अ य सुगंिधत व तु क योग क मा यम से घर का वातावरण शु हो जाता ह और दैिवक
श याँ घर म सा वकता बढ़ाती ह, िजससे नकारा मक श याँ वहाँ से दूर रहती ह।
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िशविपंडी क दि णा अपूण
य क जाती ह
आपने देवालय म भ को देवी-देवता क ितमा क दि णा करते ए देखा होगा। दि णा क पीछ
जो िव ान ह वह यह ह िक जब कोई य िकसी जा ितमा क चार ओर घूमता ह, तब देव-श उसक
शरीर म सू म प से वेश करती ह और उसे क वहन करने क श देती ह। यहाँ यान देने यो य बात यह ह
िक जा ितमा िकसी िस थल क हो। आम मंिदर म थािपत ितमा क िवषय म यह त य स य ह,
इसका दावा संभवतः नह िकया जा सकता।
जहाँ अ य देवी-देवता क ितमा क पूण प र मा उनक चार ओर घूमकर पूरी क जाती ह, वह िशविपंडी
क दि णा कवल आधी (अपूण) ही क जाती ह, िजसका िवधान इस कार ह— दि णा करते समय बा ओर
से जाएँ और जहाँ तक अिभषेक क जल- णािलका (िशविपंडी का आगे िनकला आ भाग) होती ह, वहाँ तक
जाकर उसे न लाँघते ए पुनः लौटना चािहए तथा पुनः णािलका तक उलट आकर दि णा पूण करनी चािहए।
यह िनयम कवल मानव थािपत अथवा मानव िनिमत िशविलंग पर ही लागू होता ह; वयंभू िलंग या चल-िलंग
(घर म थािपत िलंग) पर नह । शालुंका क ोत को लाँघते नह , य िक वहाँ श - ोत होता ह। िपंडी लाँघते
समय पैर को फलाना पड़ता ह, अतः वीय िनमाण पर िवपरीत भाव पड़ता ह। इससे शरीर क देवद व धनंजय
वायु क वाह म भी बाधा पैदा हो जाती ह, जो शरीर क िलए क दायी ह। भारतीय मा यता क अनुसार मनु य क
शरीर म कई कार क वायु होती ह, िजनका अपना-अपना काय होता ह। देवद व धनंजय वायु मनु य क यौन
इि य से संबंध रखती ह। िपंडी लाँघने पर मनु य को श पात क कारण शारी रक क हो सकता ह। इसिलए
िशविपंडी क पूण दि णा नह क जाती और यही इसका िव ान ह।
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पूजा-पाठ म योग होनेवाले िवशेष पदाथ का
िव ान
संसार म य तो हजार पदाथ ह, पर सनातन ऋिष-मुिनय ने कछ िगने-चुने पदाथ ही पूजा-पाठ क िलए उपयु
माने ह। उनक चयन क पीछ वै ािनक कारण व आधार था। जब कभी भी घर म पूजा-पाठ होता ह तो पूजा क
िलए पंिडतजी आपसे हलदी क गाँठ, ककम, चंदन (सफद या र ), कसर, धूप, अगरब ी, पान-सुपरी, ल ग,
कपूर, चावल, जौ, काले ितल, अ गंध, तुलसी, दूब, गंगाजल, ना रयल, आम क नौ या यारह प े, गाय का घी
आिद साम ी मँगवाते ह।
न उठता ह िक चावल क जगह गे , हलदी क गाँठ क बजाय जीरा, कसर क थान पर कछ और, पान-
सुपारी क जगह क था-चूना य नह योग करते?
इन सभी न का एक ही उ र ह िक पूजा क हर पदाथ क अपनी एक िविश ता होती ह, जो वै ािनक ह।
यहाँ सब पदाथ पर िवचार न करक कछक पर ही काश डालगे। सव थम पान का िव ान समझने का य न
करते ह। पान कित का एक अित संवेदनशील पदाथ ह। यह एक मािणत स य ह िक यिद कोई अशु व
अ व छ मिहला पान क खेती म वेश कर तो उस खेत क पान जल (काले पड़) जाएँगे। इसी कार, तुलसी का
पौधा भी संवेदनशील ह। पान और तुलसी क प म ई रीय तरग को अपनी ओर आकिषत करने क मता होती
ह। यही गुण सुपारी म भी ह। तुलसी क प े म सा वकता ब त होती ह, जो दैिवक श य को पसंद ह। गंगाजल
पूजा क थान को पिव करता ह (Disinfect), इसीिलए गंगाजल िछड़का जाता ह। अ गंध अपनी गंध से दैिवक
श य को पूजा थल पर आकिषत करती ह, य िक सुगंध देवता को ि य ह और वे उस ओर िखंचते ह तथा
हमार ारा क जानेवाली पूजा म सू म प से भाग लेते ह।
ककम को हलदी से तैयार िकया जाता ह। हलदी को चूने क पानी म िभगोने से वह लाल बन जाती ह, और इस
कार हलदी से ककम तैयार होता ह। हलदी जमीन क नीचे पैदा होती ह, इस कारण जमीन क ऊपर उगनेवाली
व तु क अपे ा हलदी म भूिम लह रयाँ अिधक मा ा म होती ह। जब हम देवी-देवता को हलदी-कमकम
चढ़ाते ह तो उससे ेिपत भूिम-लह रयाँ देवता क लह रय क साथ सव फलती ह। इस कारण, हम पृ वी क
िविवध लहर को िबना िकसी कावट क हण कर लेते ह। सं ेप म यही कहा जा सकता ह िक पूजा-पाठ म
योग आने-वाले सभी पदाथ का कोई-न-कोई वै ािनक आधार अव य ह।
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आरती उतारने क पीछ का िव ान
हम जब िकसी देव या देवी क ितमा, िकसी स े संत या प चे ए गु क आरती उतारते ह, तो उनम िव मान
पिव कण सि य होकर ेिपत होने लगते ह, िजनका लाभ आरती उतारनेवाले को िमलता ह। यही इसका सू म
िव ान ह।
भगवा क दशन क िलए य तो आप कभी भी मंिदर जा सकते ह, पर आरती क समय देवता या दैिवक
श य का वहाँ आगमन अिधक रहता ह, िजस कारण मंिदर म उस समय दैिवक भाव ब त अिधक रहता ह।
अतः उस समय मंिदर क सा वकता बढ़ जाती ह, िजसक फल व प दशनािथय को लाभ िमलता ह। इस कारण
आरती क समय मंिदर, देवालय तथा अ य पिव थल पर उप थत रहने से अिधक पु य ा होता ह।
इसक अित र आरती उतारने क पीछ एक और कारण भी ह, िजसका संबंध मनु य से ह। िववाह क िदन वर-
वधू क , नामकरण क िदन नवजात िशशु क , ज मिदन पर ब क , करवाचौथ क िदन पित क , भैयादूज क िदन
भाई क , िवजयी वीर क या िफर िकसी िवशेष कारण से िकसी भी य क आरती उतारी जाती ह। यह एक
ितपािदत स य ह िक हर य क चार ओर एक आभामंडल होता ह, जो नकारा मक श य से उसक र ा
करता ह। इस आभामंडल पर ‘ई या’ (िकसी क खुशी से जलन) का ितकल भाव पड़ता ह। आरती उतारने क
पीछ नकारा मक भावना यानी ई या क दु भाव को दूर रखना ह। भूत, काला जादू इ यािद अिन श य क
क से भी आरती उतारने से मनु य का र ण होता ह।
आरती उतारने क सही प ित—आरती क थाली म हलदी-ककम, पान-सुपारी, अ गंध, अ त, दूध से
बनी िमठाई, िमसरी या श कर व दीया होना चािहए। थाली भी कां य क होनी चािहए। िजसक आरती उतारनी ह,
उसे थम ककम, अ गंध इ यािद का ितलक लगाकर अ त ितलक पर लगाएँ और िफर कछ अ त उसक िसर
क चार ओर बा से दा ओर (Clockwise) घुमाना चािहए। यह ि या उस य क शरीर क चार ओर िकसी
भी नकारा मक श को अपने म समािव कर लेती ह। िफर उसक िसर क चार ओर घड़ी क िदशा म दीपक
को तीन बार गोल-गोल घुमाएँ। यह उस य क आभामंडल को सश बना देता ह।
एक और यान देनेवाली बात यह ह िक देवी-देवता क आरती क थाली म घी का और मनु य क आरती
क थाली म तेल का दीया होना चािहए। आरती तीन बार करनी होती ह और आरती का ारभ उस य या देवता
क दाएँ पाँव से होता ह। यही बारीिकयाँ ह जो आरती क िव ान से जुड़ी ह, िजनका पूण पालन आज का आधुिनक
मानव नह करता और िफर जब प रणाम ठीक नह िमलता तो इन मा यता को ढकोसला व अंधिव ास बता
देता ह, जबिक दोष उसक अपनी अ ानता का होता ह।
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पूजा म पान-सुपारी का
वै ािनक मह व
पान—िकसी भी सनातन पूजा-पाठ म पान-सुपारी उसक अिभ अंग ह। इन दोन पदाथ म अपने-अपने िविश
गुण ह, िजनक कारण इ ह हर पूजा-प ित म योग िकया जाता ह।
पान क बेल को ‘नागर बेल’ भी कहते ह। पान क बेल ब त सा वक होती ह। यिद रजः ाव थित म कोई
ी नागर बेल क प े तोड़ लेती ह तो वह बेल जल जाती ह—अथा उसक प पर काले दाग उभर आते ह।
अपनी संवेदनशीलता क कारण नागर बेल क आस-पास सा वक वायुमंडल ऐसी ी क देह से ेिपत रज-
तमा मक तरग क भाव क कारण वहाँ क वायुमंडल क सा वकता का िवघटन हो जाता ह और वह जल जाती
ह।
इसक िवपरीत, पान क प े क ारा हम वायुमंडल से दैिवक तरग को अपनी ओर ख च सकते ह। इन दैिवक
तरग को हण करने क िलए पान क प े म उसका डठल ब त ज री ह। िबना डठल का पान का प ा उपयोगी
नह रहता। इसीिलए पान क प े क डठल को देवी-देवता क तरफ करक ही अपण िकया जाता ह, य िक डठल
क ारा ही पान का प ा देव कण को अपने म समािव करता ह। पान का प ा भूलोक व लोक को जोड़ने
क कड़ी का काय करता ह। नागर बेल म भूिम-तरग व -तरग आक करने क मता ह।
पान का प ा औषिध क प म भी योग िकया जाता ह। इसम पौ क गुण ह, इसीिलए िववाह क समय वर-
वधू को पान िखलाने क था भी चिलत ह।
सुपारी—सुपारी दो कार क होती ह—एक लाल, जो गोल सी होती ह और दूसरी ेत, जो अंडाकार होती ह।
अंडाकार ेत सुपारी पूजा क िलए अिधक उपयु ह। सुपारी म पृ वी व आप (जल) त व क कण का सुंदर
संयोग होता ह। सुपारी म िव मान आप त व (जल त व) क कण उसम िव मान देव कण को वाही बनाते ह।
लाल सुपारी क अपे ा ेत सुपारी का योग अिधक फलदायक माना गया ह, य िक ेत सुपारी म देवता क
त व आक करने क और सा वक तरग को ेिपत करने क अिधक मता होती ह। पान-सुपारी क इ ह
िवशेष गुण क कारण ये दोन पूजा-पाठ क अिभ अंग ह।
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पूजा-पाठ म शहद का मह व
ाचीन काल म कमकांड या पूजा-पाठ क दौरान िजन पदाथ का उपयोग होता था, उ ह ऋिष-मुिनय ने ब त
सोच-िवचार व शोध क बाद चुना था। धातु म सोना और खा पदाथ म शहद िवशेष थान रखते ह। सोना
अगर सैकड़ साल तक समु क खार पानी म पड़ा रह तो भी उसक चमक-दमक वैसी ही रहती ह, जैसे िक पानी
म डबने क समय थी। इस बात क पु सैकड़ साल पहले समु म डबे जहाज से िनकाले गए सोने और सोने
क िस क से क गई ह।
खा पदाथ म ऐसा चम कारी गुण शहद या मधु म ह। आ य क बात ह िक यह न तो बासी होता ह, न
सड़ता ह और न इस पर अ य पदाथ क तरह फफद लगती ह। बरतन म रखा आ शहद जब एक िपरािमड म से
िनकाला गया तब उसक वाद व गुण म कोई प रवतन नह आया था और वह पूणतया शु व खाने यो य था।
शु शहद क टाणु-रिहत होता ह।
शहद क इ ह गुण क कारण इसे पूजा-पाठ क साम ी म शािमल िकया गया ह। िकसी देव-देवी क ितमा क
अिभषेक क समय उस पर शहद चढ़ाया जाता ह। घी, दूध, दही क साथ शहद एक अिनवाय पदाथ ह, यह इसक
शु ता का प रचायक ह। इस शु ता का कारण ह कित का वह ढग, िजसक ारा शहद का िनमाण होता ह। सच
तो यह ह िक शहद-िनमाण म मनु य का कोई हाथ नह होता, इसे कित वयं मधुम खय क िवल ण तकनीक
ारा िनमाण करती ह। इसीिलए यह इतना शु और पिव होता ह।
मधुम खयाँ नाना कार क फल क पराग और मकरद को चूसकर, छ े म अपनी रानी क यौवन एवं मद को
बनाए रखने क उ े य से, िन ापूवक एकि त करती ह। ऋिषय ने इस िचरयौवनदायी रस को भगवा को अपण
करने हतु पंचामृत िनमाण म तथा नवयुवक वर क वीय-वृि हतु मधुपक तैयार करने म धानता दी ह। आयुविदक
ही नह , एलोपैिथक िचिक सा म भी इसक उपयोग तथा सेवन को श वधक माना गया ह। इसम अनेक िवशेषताएँ
ह। वैिदक काल क िस िचिक सक अ नीकमार रोग क िनदान क िलए शहद का चुरता से योग करते थे।
उसी काल म किष म भी शहद का उपयोग होता था। खेत म बीज बोने से पहले िकसान उ ह शहद और दूध म
िभगोता था, िजसम उनसे उपजा अ मधुर व पौ क होता था।
नीम क फल से तैयार िकया गया शहद रोगी क िलए सुपा य व श -वधक होता ह। सफद फल से ा
शहद का रग सफदी िलये रहता ह। सरस , कसर, आम आिद फल से एकि त शहद सुनहरा रग िलये होता ह।
शहद िजन फल क अिधकता से िनिमत होता ह, उनक गंध तथा वाद भी देता ह।
रासायिनक से शहद म ५० ितशत लूकोज तथा अ प मा ा म टोज, सू ोज, मा टोज आिद िमठास
होती ह। इसम िवटािमन ए, बी तथा ई चुर मा ा म होते ह। िवटािमन ‘डी’ भी कछ अंश म रहता ह। इसक
अित र लोहा, क सयम, चूना, मैगनीज, गंधक, फा फोरस, सोिडयम तथा आयोडीन भी इसम पाया जाता ह।
रोग-िनवारण क मतायु ताँबा भी होता ह। शु शहद क टाणु-रिहत होता ह।
शरीर क सभी नािड़य म र क साथ वािहत होते रहने क कारण यह शरीर को सश एवं स म बनाता ह।
दय-रोिगय क िलए यह संजीवनी जैसा ह।
िदमागी काम करनेवाले लोग को सुबह-शाम शहद का सेवन अव य करना चािहए। शहद से मरण-श तेज
होती ह। परतु शहद को कभी गरम नह करना चािहए। ऐसा करने से उसम िवषैले ल ण पैदा हो जाते ह। इसी
कार समान मा ा म शहद व घी का िम ण भी उसे िवषैला बना देता ह।
शु शहद क पहचान हतु पानी से भर िगलास म एक बूँद शहद टपकाएँ। यिद िबना घुले बूँद नीचे तक जाए तो
शु , अगर बीच म ही घुल जाए तो िमलावटी समझ। शु शहद को क ा नह चाटता। यह भी शहद क शु ता
क पहचान क एक कसौटी ह।
भारत क सनातन मा यता क अनुसार ई र व देव को सव े पदाथ ही अपण करने चािहए। इसी कारण
हम मंिदर व देवालय म मू यवा -से-मू यवा व तुएँ तथा शु -से-शु पदाथ ही अपण करते ह। शहद क
शु ता इस कसौटी पर पूण प से खरी उतरती ह। इसी कारण इसका योग देवालय म तथा पूजा-पाठ म होता ह।
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पु प-िव ान : िकस देवी-देवता पर कौन सा पु प
चढ़ाएँ
देवी-देवता आकाश लोक म रहते ह और वायुत व धान होते ह। उनक भाषा काश-भाषा ह। वायुत व धान
होने क कारण वे गंधि य होते ह। गंध-तरग पृ वी लोक से संबंिधत ह। देवी-देवता जब भूलोक पर िवचरण करते ह
तो सुगंधमय थल क ओर अिधक आकिषत होते ह। कमकांड म इसीिलए सुगंिधत पदाथ का ावधान िकया गया
ह। येक देवी-देवता क गंध-पसंद अलग-अलग होती ह, िजसक कारण वे अपनी पसंद क गंध क ओर शी ही
आक हो जाते ह। देवी-देवता क गंध-पसंद को यान म रखकर ही देवी-देवता क पूजा करते समय उनक
पसंद क गंधवाले पु प, इ आिद पूजा म योग िकए जाते ह। यही नह , िकस देव-श को िकतनी पु प-पि याँ
अिपत करनी ह, यह गिणत भी हमार ऋिष-मुिनय ने िनधा रत कर रखा ह।
पूजा-पाठ करनेवाले का ा भाव भी ब त मह वपूण होता ह। य िक ा से अिपत पदाथ उस गंध पदाथ क
गुणव ा को और बढ़ा देते ह, जब हम देवी-देवता पर पु प-पि याँ या इ आिद अपण करते ह तो उन पु प-पि य
क तरग देवश को आक करती ह, िजसका लाभ पूजा करनेवाले को प चता ह।
िकस देवता को िकस सुगंध का इ अपण करना चािहए

पु प का नाम : मोगरा (बेला)


िकस देवी-देवता को अिपत : दुगा देवी
अिधकािधक तरग आकिषत करने हतु आव यक पु प क यूनतम सं या : १ अथवा ९
पु प का नाम : रजनीगंधा
िकस देवी-देवता को अिपत : िशव
अिधकािधक तरग आकिषत करने हतु आव यक पु प क यूनतम सं या : ९ अथवा १०
पु प का नाम : कनेर
िकस देवी-देवता को अिपत : महाकाली
अिधकािधक तरग आकिषत करने हतु आव यक पु प क यूनतम सं या : ९
पु प का नाम : तगर
िकस देवी-देवता को अिपत : ा
अिधकािधक तरग आकिषत करने हतु आव यक पु प क यूनतम सं या : ६
पु प का नाम : व तका
िकस देवी-देवता को अिपत : सर वती ( ेत)
अिधकािधक तरग आकिषत करने हतु आव यक पु प क यूनतम सं या : ९ (आिदश क हर प को
९ अंक से पूजा जाता ह)
पु प का नाम : गुलदाऊदी या गदा या कमल
िकस देवी-देवता को अिपत : महाल मी व ल मी
अिधकािधक तरग आकिषत करने हतु आव यक पु प क यूनतम सं या : 9 वही
पु प का नाम : कोई भी र पु प
िकस देवी-देवता को अिपत : गणेश
अिधकािधक तरग आकिषत करने हतु आव यक पु प क यूनतम सं या : १, ३, ५, ७
पु प का नाम : तुलसी
िकस देवी-देवता को अिपत : िव णु
अिधकािधक तरग आकिषत करने हतु आव यक पु प क यूनतम सं या : वही
पु प का नाम : जाई (चमेली का एक दूसरा कार)
िकस देवी-देवता को अिपत : ीराम
अिधकािधक तरग आकिषत करने हतु आव यक पु प क यूनतम सं या : ४
पु प का नाम : चमेली
िकस देवी-देवता को अिपत : हनुमा
अिधकािधक तरग आकिषत करने हतु आव यक पु प क यूनतम सं या : ५
पु प का नाम : जूही
िकस देवी-देवता को अिपत : द ा ेय
अिधकािधक तरग आकिषत करने हतु आव यक पु प क यूनतम सं या : ७
पु प का नाम : क णकमल
िकस देवी-देवता को अिपत : ीक ण
अिधकािधक तरग आकिषत करने हतु आव यक पु प क यूनतम सं या : ३
िकस देवी-देवता पर िकस तरह का पु प-पि याँ व इ चढ़ाएँ
देवता, देवी, : ीराम
िकस सुगंध क इ : जाई (एक कार क चमेली)
देवता, देवी, : हनुमा
िकस सुगंध क इ : चमेली
देवता, देवी, : िशव
िकस सुगंध क इ : कवड़ा
देवता, देवी, : ीदुगा देवी
िकस सुगंध क इ : मोगरा
देवी देवता : ील मी
िकस सुगंध क इ : गुलाब
देवी देवता : गणपित
िकस सुगंध क इ : िहना
देवी देवता : द ा ेय
िकस सुगंध क इ : खस
देवी देवता : ीक ण
िकस सुगंध क इ : चंदन
पु प व इ क अित र कछ िवशेष पि य को भी देवपूजा म शािमल िकया जाता ह। जैसे िव णु पर तुलसी क
प े, िशव पर िब वप (बेल क प े) और गणेश पर दूब अिपत क जाती ह। देवी-देवता को पाँच प े चढ़ाने
चािहए, जो ांड क पृ वी, जल, तप, वायु व आकाश पंचत व क ोतक ह। प ,े पु प, फल आिद अपनी
ाणवायु ारा ांड क स व तरग व देव त व को हण करक पूजा करनेवाले जीव का क याण करते ह। इस
कारण इ ह, जब ये ताजा व साफ-सुथर ह , तभी अिपत करना चािहए, य िक उस समय तक इनक अपनी
ाणवायु देवश ा रखने क मता रखती ह। बासी फल-फल कागज क फल क तरह होते ह।
कमल का फल व आँवला तीन िदन तक शु रहने क मता रखते ह, य िक इन दोन म ाणवायु व
धनंजयवायु तीन िदन तक रज-तम से लड़ने क मता रखती ह। इसी कार तुलसी व बेलप सूखने क बाद भी
शु बने रहते ह। ये वै ािनक त य ह। तुलसी म ५० ितशत िव णुत व और िब वप म ७० ितशत िशवत व
िव मान होता ह।
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फल-प क बंदनवार लगाने का वै ािनक कारण
पूजा-पाठ व अ य शुभ अवसर पर आपने ायः वहाँ फल-प क बंदनवार लगी देखी होगी। महानगर म तो
िववाह आिद क अवसर पर हजार पय क फल सजाए व लगाए जाते ह। कित का अंग होने क कारण जब तक
फल-पि याँ ताजा रहती ह, उनम वातावरण से मनु य क िलए अनुकल तरग ख चने क मता होती ह। इसी कार
जब हम पूजा करते ह, तब पूिजत देवता क सू म-लह रय को भी ख चकर उ ह वातावरण म ेिपत करने क
मता फल व प म होती ह। इस कारण वेश ार पर फल-प का बंदनवार लगाया जाता ह। यही इन फल-
पि य का िव ान ह। बड़ी-बड़ी कोिठय और फाम हाउस आिद म जो उपवन बनाए जाते ह, उनका भी यही लाभ
होता ह।
बंदनवार म लगे फल से ेिपत गंध-लह रयाँ देवता का वागत करती ह, िजससे देवता स होते ह,
िजससे उनक सा वकता का हम लाभ ा होता ह। आम क प म अ य वृ क प क अपे ा देवता क
लह रय को ख चने तथा ेिपत करने क मता अिधक होती ह। इस कारण बंदनवार म आम क प का योग
होता ह। गदे क फल अिधक समय क िलए ताजा रहते ह। इस से उनका उपयोग भी ायः होता ह। परतु
बंदनवार म लगे प े व फल व छ होने चािहए, इसिलए उ ह पहले व छ जल से धोकर व प छकर साफ करना
चािहए। बंदनवार लगाते समय उसक प क डठल आगे क ओर होनी चािहए। प क सं या भी जगह क
रचनानुसार होनी चािहए।
मुरझाए व अपिव फल-प े ला टक क फल जैसे ही होते ह, िजनम दैिवक सू म-लह रय को अपनी ओर
ख चने क मता नह होती। इसिलए बासी, मुरझाए व ला टक क फल-पि य का योग पूजा आिद म विजत
ह। वा तुशा व ‘फगशुई’ क अनुसार भी घर म ला टक क फल का लगाना विजत ह।
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घर-आँगन म रगोली सजाने क
पीछ का िव ान
िकसी भी शुभ अवसर पर घर-आँगन म रगोली सजाने क बड़ी ाचीन था रही ह। रगोली सजाने क पीछ
पृ वी-त व से जुड़ा िव ान ह। इसिलए इसे िविधपूवक और सही पदाथ से ही बनाना चािहए, कवल स दय या
सजावट क िलए नह , जैसा िक आजकल ायः देखने को िमलता ह।
रगोली का मूल सं कत श द ‘रगव ी’ ह। िविश चावल का सफद चूण चुटक म लेकर जमीन पर उसक
ारा िनमाण क गई आकित को रगोली कहते ह। रगोली मूितकला व िच कला से भी ाचीन ह।
िकसी भी धािमक अथवा मंगलकारी काय म रगोली का िनमाण होता ह। ाचीन काल म हर घर क दरवाजे क
समाने ितिदन पानी िछड़ककर रगोली बनाने क था थी। महारा व दि ण भारत म आज भी यह था चिलत
ह। जमीन पर झा लगाकर पानी िछड़कने क बाद उस पर रगोली क चार रखाएँ ख ची जाती ह। साफ क गई
जमीन िबना रगोली क अशुभ मानी जाती ह। रगोली म जो आकितयाँ िनकाली जाती ह, वे तीक क तौर पर होती
ह। उदाहरण क िलए, शंख, वा तक, चं , सूय, कमल ल मी का व जनन-श का तीक ह। वै णव उपासना
म उसका िवशेष मह व ह। रगोली को चावल क चूण से बनाया जाता ह। चावल म नकारा मक त व को न
करने क ाकितक मता होती ह। यही कारण ह िक जब िकसी को ितलक लगाते ह तब भी चावल का ही योग
होता ह। चावल नकारा मकता को दूर करता ह और िजसका ितलक करते ह, उसक र ा होती ह।
जमीन पर झा लगाते समय तथा पानी िछड़कते समय जमीन पर सू म-रखाएँ बन जाती ह, िजनक ारा जमीन
म एक कार का कपन पैदा होता ह, य िक ये रखाएँ अिनयिमत होती ह, इसिलए उनसे होनेवाले कपन भी
अिनयिमत होते ह। ये अिनयिमत कपन शरीर, ने व मन क िलए हािनकारक होते ह। इनसे बचने क िलए साफ क
गई जमीन पर रगोली क मा यम से कोण व अ य शुभ िच यव थत प से उसक ऊपर बनाए जाते ह, िजससे
अशुभ प रणाम दूर हो जाते ह और शुभ प रणाम क ा होती ह। यही ह रगोली सजाने क पीछ का िव ान। पर
आजकल तो घर-आँगन क े होते ही नह । ऐसे म रगोली का या योजन रह जाता ह, यह शोध का िवषय ह।
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कित का सनातन धम म
थान व िव ान
कित अथा वन पित का हमार धम म ाचीन काल से अटट संबंध रहा ह। सच तो यह ह िक सनातन धम क
जड़ कित से ही जुड़ी ह। वैिदक ोक व मं म कित को माँ माना गया ह। ऋिष-मुिनय ने सदा से ही कित
से गहरा संबंध रखा ह। इसीिलए हमार रीित- रवाज म इसक ित लगाव छलकता ह। मं म वन पित-पूजन भी
शािमल था। देवता क ेणी म वनदेवता भी थे। ‘य ’ वन क र ा करते ह, ऐसा िव ास ह।
ऋिष-आ म घने जंगल क बीच सुंदर उपवन जैसे होते थे, जहाँ जीवनदाियनी जड़ी-बूिटयाँ उगाई जाती थ और
पशु-पि य को संर ण िमलता था, जो आज क सुरि त वन जैसे थे। ये आ म उस समय क अनुसंधान क व
िश ा सं थान भी थे। आ मवािसय क िदनचया कित क अनुकल होती थी। वहाँ िकए जानेवाले िन य य
वातावरण व वायुमंडल दोन को शु करने व रखने क िलए होते थे। इन िन य य म गाय क घी क आ ित देने
से परमाणु रिडएशन से वातावरण क र ा भी होती थी।
आ म क भाँित देश का ामीण जीवन कित क अनु प व अनुकल ही होता था। रहने क िलए िम ी व घास
क बने घर थे, जो सिदय म गरम व ी म काल म ठड रहते थे। गाँव क बीच पीपल, नीम व जामुन क वृ लगे
होते थे और घर-घर म तुलसी क पौधे थे। उ सव व पव सब िमलकर मनाते थे। िकसी कार का जाित भेदभाव
नह था। पर कालांतर म समाज म बुराइयाँ आ ग और भेदभाव िदखने लगा। परतु सनातन धम अपने िवशु प
म िन कलंक था।
घर-आँगन साफ-सुथरा व गोबर-िम ी से िलपा आ रहता था। स क एक अनुसंधान क अनुसार गाय क
गोबर से िलपा आ घर क टाणु-रिहत होता ह। कएँ का और बहती नदी का पानी वा यवधक होता था। खेती म
ाकितक खाद पड़ती थी। इसीिलए जो भी उपजता था, वह आजकल क पदाथ क भाँित हािनकारक नह था।
फल पेड़ पर ही पकाए जाते थे, आजकल क तरह कि म प से उ ह नह पकाया जाता था। जब कोई य
पेड़ काटता था तो पहले उससे मा-याचना करता था, िफर उस पेड़ क ठठ (शेष भाग) पर घी लगाता था और
बाद म दस पौधे लगाता था। कछ वृ को जैसे पीपल और वट वृ आिद को तो काटना विजत था। वृ क पूजा
होती थी। आज जो हम ‘वातावरण बचाओ’ अिभयान क बात करते ह, वह हमार अपने मूल सनातन िनयम क
उ ंघन क ही कारण ह।
सं ेप म यिद कहा जाए तो यही ह िक सुखी जीवन क िलए जीवन का कित क साथ िनकटता एवं संतुलन
बनाए रखना ज री ह। कित को यिद हम माँ मानगे तो वह हम ब क तरह संर ण देगी और यिद हम उसे
दासी मानकर वश म करगे तो प रणाम िवनाशक ही ह गे। बाढ़ आएगी, सुनामी आएगी और सुखा पड़गा आिद।
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पीपल-पूजन य
पीपल सिदय से हमारी सं कित का एक मह वपूण और अिभ अंग रहा ह। इसीिलए भारत का सव म
पुर कार ‘भारत र न’ काँसे से बने पीपल क प े क प म दान िकया जाता ह। िव णुपुराण क अनुसार, पीपल म
ा, िव णु व महश तीन महादेव क अंश िव मान ह। पीपल क जड़ म ा, तने म िव णु तथा इसक ऊपर
क भाग म िशव का वास माना जाता ह। इसिलए सिदय से भारत म पीपल क ठडी छाँव हमार ामीण समाज का
िह सा रही ह। मंिदर क ांगण, गाँव क चौराह , चबूतर आिद को पीपल का पेड़ सदा ही न कवल शु करता
था, अिपतु उसका एक मह वपूण अंग भी था, िजसक शीतल छाँव तले बैठकर गाँव क बड़-बूढ़ पंचायत करक
गाँव क सम या का हल ढढ़ते और याय करते थे।
पेड़-पौध क िलए िम ी-पानी ब त आव यक ह, िबना इन दोन क वह पनप ही नह सकते, पर पीपल सबसे
िनराला ह। यह घर क पथरीली दीवार , उनक दरार , कएँ क अंदर, ऊचे गुंबज क चोिटय पर, यहाँ तक िक
खँडहर म उग आता ह। ऐसा इसिलए संभव ह, य िक पीपल क जड़ जब तक जमीन म अपनी पकड़ नह
बनात तब तक इसक प े अपना आहार हवा क नमी व वषा क पानी से ही ा कर लेते ह और जीिवत रहते ह।
बरगद क पेड़ क तरह पीपल को भी बोने क आव यकता नह होती। प ी इसक फल खाकर जहाँ-कह भी
बीट कर देते ह, पीपल वह िबना खाद-पानी क उगकर आकाश छने लगता ह। कित ने पीपल क जड़ को इतना
सश बनाया ह िक वे पथरीली भूिम व प थर तक को भेदकर जमीन क बीच दूर-दूर तक फल जाती ह। यही
कारण ह िक पीपल क पेड़ को बड़-बुजुग घर क अंदर लगाने से मना करते ह, य िक इसक लोह जैसी मजबूत
जड़ मकान क न व को उखाड़कर ित प चा सकती ह। ाचीन िस योितषाचाय एवं खगोलशा ी
वराहिमिहर क अनुसार, पीपल घर क बाहर सामने लगाना शुभ होता ह। परतु वा तुशा क अनुसार घर क
प म िदशा क ओर पीपल का वृ शुभ माना जाता ह। पीपल का घर क पूव भाग म होना अशुभ ह।
वै ािनक से पीपल वृ म सव े ह। परी ण ारा अब यह िस हो चुका ह िक िजतनी अिधक
ऑ सीजन पीपल का वृ छोड़ता ह, उतनी संसार का और कोई वृ नह छोड़ता। हाँ, पौध म यह गुण कवल
तुलसी म ह, इसिलए तुलसी भी पूजनीय ह। ायः पेड़ िदन म ऑ सीजन और रात म ाणघातक नाइ ोजन छोड़ते
ह। पर पीपल तो चौबीस घंट ही ाणदाियनी ऑ सीजन देता ह। पीपल क पेड़ क सबसे बड़ी िवशेषता यह ह िक
अंत र और पृ वी क बीच सभी िवषैली गैस को शु करक उ ह ऑ सीजन क प म ािणय क िलए छोड़ता
ह। पीपल को कित ने ऐसी मता दी ह िक वह िवषैली वायु जैसे काबन डाइ-ऑ साइड को शु करक
ऑ सीजन क प म ािणय क क याण क िलए छोड़ता ह और उसका िवषैला भाग अपने पास रख लेता ह या
पचा जाता ह। वायु क िवषैले भाग को अपने पास रखना ही पीपल का िशव प ह। यह गुण भी िकसी अ य वृ
म नह ह। अपने इ ह गुण क कारण पीपल को वृ का राजा कहा गया ह और यह एक क याणकारी वन पित
माना गया ह।
पीपल क पेड़ क यह िविश ता उसक प क बनावट क कारण ह। कित ने पीपल क प को बड़ी द ता
से बनाया ह। इसक ऊपरी भाग को देखने से ऐसा लगता ह मानो िकसी बिल पु ष क चौड़ कधे ह और िजनका
िनचला भाग यो ा क ण क पतली मजबूत कमर क समान हो। प का अंितम छोर सूई क तरह नुक ला होता ह,
जो कित क इजीिनय रग का एक अ ुत नमूना ह। प पर जब भी वषा का पानी िगरता ह तो वह तुरत ही
िफसलकर उस सूई क नोकवाले िह से से नीचे िगर जाता ह और प ा सूखा रहता ह। प का सूखा रहना वृ क
िलए अ छा होता ह। इस कार क बनावट अ य िकसी वृ क प म नह देखी जाती।
यिद आप पीपल क प े को सुखाएँ तो देखगे िक उसम अनिगनत बारीक नस का एक जाल-सा ह। ये नस ही
पीपल को ऑ सीजन उ प व वािहत करने म सहायक होती ह। पीपल क प े वृ क टहनी क साथ एक
लंबे-पतले डठल क साथ बारीक से जुड़ होते ह। यह लंबी डठल कित ने िवशेष योजन से पीपल क प को
दान क ह। इस पतली डठल क कारण पीपल क प े थोड़ी सी हवा चलने पर एकदम ऐसे नाचने लगते ह मानो
कोई संगीतकार तबले पर ुतलय म थाप दे रहा हो। प क इस कार हलक सी हवा से डोल पड़ने क कारण
पीपल को चलदल या चलप भी कहा जाता ह। प े एक नतक क भाँित चार ओर घूमते ह, या डोलते ह तो वे
ऐसा करक अपने आस-पास हवा म जो जलकण होते ह उ ह अपनी ओर ख चकर अपने म समािव कर लेते ह
और इस कार वे वृ क पोषण म भी भाग लेते ह। यह एक गहरा िव ान ह, जो पीपल से जुड़ा ह। शायद
इसीिलए गीता म क ण ने वृ म ‘म ही पीपल ’, ऐसा कहा ह। इसे वृ म सव े कहा गया ह, और शायद
इसी कारण धम ंथ म पीपल क हर प े पर देवता का वास बताया गया ह।
पीपल म एक अ य िवशेषता यह ह िक इसक प े िकतने भी घने य न ह िफर भी इसक नीचे िदन म कभी
अँधेरा नह होता, य िक इसक प े ायः जरा सी हवा म भी िहलने-डलने लगते ह। इस कारण सूय क िकरण
छन-छनकर पीपल तले धरती पर सतत उतरती रहती ह और वहाँ कभी अँधेरा नह होने देत । एक बात और, वह
यह ह िक सूय क िकरण जब उसक प पर आती ह तो यह ठडा करक ही उ ह धरती पर आने देता ह, िजसक
कारण पीपल क छाँव सदा ठडी होती ह और उसक नीचे बैठकर ाणी अपनी थकान शी ही िमटा सकते ह।
ायः यह देखा गया ह िक पेड़-पौध पर फल लगने से पहले फल आते ह, पर पीपल पर सीधे ही फल आते ह,
फल नह ; य िक इसका फल फल म िछपा आ होता ह। इसी कारण पीपल का एक और नाम ‘गु मपु पक’ भी
ह। फल बरगद क फल क ही तरह गरमी क िदन म पकता ह।
पीपल क कई जाितयाँ ह, िजनक कारण उनक बनावट व प क रग म अंतर होता ह। कछ पेड़ सीधे और
लंबे होते ह, जबिक कछ अिधक लंबे न होकर फलाव म अिधक होते ह और छतरी क तरह नीचे को झुक रहते
ह। ऐसे पेड़ बड़-बूढ़ क तरह आशीवाद देते-से लगते ह। ायः ऐसे ही पीपल क पूजा होती ह।
पीपल क पेड़ का काटना या िगराना पाप माना जाता ह। पीपल क मह व को यान म रखते ए ऋिष-मुिनय ने
इसे न काटने का िवधान बनाया और धािमक मा यता दी। इसक अित र पीपल लगाना एवं इस वृ क र ा
करना व साफ-सफाई करना भी पु य का काय माना जाता ह। इसक िलए लोग पीपल क पेड़ क चार ओर गोलाई
म चबूतरा बना देते ह और पीपल क पूजा करते ह। यिद हम पीपल को काटते ह तो उस थान का वातावरण
असंतुिलत हो जाएगा और वायु दूषण को बढ़ाएगा। इस कारण पीपल को काटना िनषेध ह।
सनातन काल से पीपल क पेड़ का बुि व बुि म ा से संबंध रहा ह। निदय क िकनार पीपल क छाँव तले
ऋिष-मुिन यान लगाते और दैिवक ान अिजत करते थे। पीपल क नीचे का वायुमंडल मन को शांत करने म
सहायक होता ह, इसी कारण म त क ि या शी एका हो जाती ह, जो यान योग म सहायता करती ह। संभवतः
इसी कारण पीपल क पेड़ को बोिधवृ भी कहा गया ह। गौतम बु को पूण ान पीपल क पेड़ क नीचे ही ा
आ था। स ा ान व सुख कसे ा हो, इस स य क खोज म वे जगह-जगह देश म घूम;े पर उ ह इस स य का
ान न आ। अंत म जब वे मगध रा य क गया नामक नगर म प चे तो एक पीपल क पेड़ क नीचे इस संक प
से िक वे जब तक पूण ान ा नह कर लेत,े वहाँ से नह उठगे और वह यान थ हो गए। कई िदन यानम न
रहने क बाद पूणमासी क िदन उनक तप या सफल ई और उ ह उस न का उ र ा हो गया, िजसक
तलाश वे वष से कर रह थे। तभी से गौतम ‘बु ’ कहलाए जाने लगे। उ ह का चलाया गया बौ धम आज चीन,
जापान, याँमार, मलाया, ीलंका, थाईलड, ित बत, भूटान आिद एिशया क अनेक देश म चिलत ह।
भगवा बु ने पूण ान पीपल क वृ क नीचे ा िकया था, अतएव बौ देश म यह वृ पिव माना जाता
ह। जहाँ उ ह ान ा आ था, वह थान अब ‘बोधगया’ क नाम से जाना जाता ह। आज भी वहाँ यह वृ
मौजूद ह, िजसक नीचे भगवा बु बैठ थे। इस वृ से उ प कई पौधे तथा इसक टहिनयाँ बौ -काल से अब
तक कई देश को भेजी गई ह। स ा अशोक ने जो पौधा अपने पु -पु ी ारा ीलंका भेजा था, वह इसी बोिध-
वृ का ही था।
पीपल क छाँव और इसक प से छनी ई हवा म त क को चेतना और ताजगी देती ह। अथववेद म िलखा ह
‘या ा था... ितबु अभूतन’ अथा जहाँ अ थ (पीपल) क वृ होते ह वह ितबु ता होती ह। ाचीन ंथ
क अनुसार यिद कोई य वसंत क मौसम म कल पाँच पक पीपल-फल ितिदन सेवन कर तो उसक मरण-
श ती होती ह। महिष दयानंद, िज ह याकरण, िन , छद व अनेक धमशा कठ थ थे, ऋतु क समय
पीपल क फल का सेवन करते थे। ाचीन काल म गु कल क क ाएँ पीपल क पेड़ क नीचे लगती थ , जहाँ
िव ाथ उसक शु व मरण-श वधक वायु म वेद-पाठ कठ थ करते थे। ीक ण पीपल क मिहमा से भली-
भाँित प रिचत थे, शायद इसीिलए उ ह ने जब अपनी जीवन-लीला पृ वी पर समा करने क सोची तो मृ यु क
िलए उ ह ने पीपल क छाँव को ही चुना और उसक नीचे ही अपने ाण यागे।
पीपल का एक आ यजनक त य यह ह िक इसका िन य पश शरीर म रोग- ितरोध क मता िबना िकसी
टॉिनक क बढ़ा देता ह। यही नह , इससे अंतमन क शुि होती ह और मनु य क द बूपन का नाश होता ह, साथ
ही उसका आ मिव ास भी बढ़ता ह। िनरतर पीपल-पूजन से मनु य क शरीर क आभामंडल का शोधन होता ह
तथा उसक िवचारधारा म धना मक प रवतन होता ह। पीपल का पश करते समय मन म ऐसी मंगल भावना करनी
चािहए िक ‘हम तेज वी हो रह ह और हमारी बुि का िवकास हो रहा ह।’ मंद बुि वाले य व ब क िलए
पीपल का शा त पश िवशेष लाभदायी ह। पीपल का पश मनु य का आल य भी दूर करता ह।
शायद इ ह कारण से रावण जैसे ानी व रा सराज ने लंका म पीपल क वृ लगवा रखे थे। स ा अशोक ने
भी असं य पीपल वृ पूर भारत म सड़क क दोन ओर लगवाए थे। सड़क क िकनार पीपल क वृ को लगवाने
का अशोक का एक बड़ा कारण यह था िक उनक घनी व ठडी छाँव राहगीर क थकान शी दूर कर देती थी
और उ ह उ र भारत क गरमी क कड़ी धूप से भी बचाती थी। इसक अित र पीपल से सड़क का र ण भी
होता था, य िक पीपल क जड़ दूर-दूर तक जमीन म नीचे गहरी फली रहती ह, इसिलए वृ क आसपास क
भूिम का वषा ऋतु म कटाव कम होता ह। स ा अशोक ने पीपल क धािमक मह ा क अलावा इसक सामािजक
पहलू को भी यान म रखकर इसक पेड़ सड़क क दोन ओर लगवाए।
पीपल न कवल भारत म अिपतु अ य कई देश — याँमार, ीलंका, नेपाल, चीन, जापान, मलाया, भूटान,
थाईलड आिद म एक पूजनीय वन पित ह, िजसका मु य कारण इस वृ का भगवा बु क जीवन से जुड़ा होना
ह।
पीपल से संबंिधक मा यताएँ—पीपल से संबंिधत कई मा यताएँ भी ह। एक तो यह िक िनरतर पीपल पूजन से
मनु य क शरीर का आभा मंडल का शोधन हो जाता ह। पीपल क नीचे बैठकर दीया जलाने व काले ितल अपण
करने से शिन व रा गृह का क भाव भी दूर होता ह। नीचे न तो कभी झूठ बोलना चािहए और न ही िकसी को
धोखा देना चािहए। ऐसा करनेवाले का अिन होता ह, य िक पीपल म वास करनेवाली पिव आ मा उस झूठ या
धोखे क सा ी बन जाती ह और कित उसे तुरत दंिडत करती ह। पहले लोग अिन क डर से बाजार म पीपल
क पेड़ नह लगाते थे।

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शर पूिणमा क राि म चं िकरण से भीगी खीर
खाने का िव ान
सूय क िकरण व चं मा क र मय म रोगनाशक श होती ह, ऐसी भारत क मनीिषय क हजार साल पुरानी
मा यता ह। सूय क िकरण का भाव मनु य क शरीर पर पड़ता ह। इस स य को तो आज का मानव भी मानता ह।
चं मा का मनु य क म त क पर असर होता ह, यह त य भी वह वीकारता ह। पर चं मा क र मयाँ पेड़-पौध
पर असर करती ह, यह बात वह पूण प से नह वीकारता। इसक िवपरीत, आयुवेद क अनुसार चं मा क र मय
का वन पित पर ब त गहरा भाव पड़ता ह। चं मा क घटने व बढ़ने क साथ-साथ पेड़-पौध क अंदर जो रसायन
होता ह, वह भी घटता-बढ़ता रहता ह और उनका भाव भी िभ होता ह। इस कारण आयुवद म औषिधय को
तैयार करने क िलए पेड़-पौध से फल व पि याँ चं मा क थित क अनुसार तोड़ने का िवधान ह।
भारतीय मनीिषय का ऐसा मानना ह िक शर पूिणमा क चं मा क र मयाँ भौगोिलक थित क कारण भारत
क भू-भाग पर िवशेष भाव रखती ह। इसिलए इस राि म देशी गाय क दूध व चावल से बनी चा (खीर) ब त
लाभदायक होती ह। यह िवशेष कार से तैयार क जाती ह। शु िम ी, इलायची िमलाकर उसको मलमल क
कपड़ से ढककर राि म ८-९ बजे से अधराि क बाद तक चं मा क शीतल व आरो य द र मय म रख।
त प ा भगव मरण करते ए उस खीर को उसी राि को सकटब खाएँ। ऐसा करने से आप वष भर रोग-
ितरोधक श ा करते ह। चं मा क र मयाँ अपने भाव से खीर को एक अचूक टॉिनक क तरह बना देती
ह। ऐसी भी मा यता ह िक शु प म यिद िकसान बीज बोते ह तो उनक फसल अिधक लाभदायक होगी,
य िक चं मा का भाव उस समय बीज पर अपना भाव डालता ह और वह सश होकर अंक रत होता ह।
परतु वायु दूिषत इस युग म चं मा क िकरण भी हम आज शु प म महानगर म नही िमलत । ऐसे म शर
पूिणमा क खीर िकसी शु थान पर बनाना िहतकर ह।
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गु पूिणमा य मनाते ह
आषाढ मास म जो पूिणमा आती ह, उसे गु पूिणमा कहते ह। पूिणमा य तो हर मास ही आती ह, पर आषाढ
मास क पूिणमा क िदन आकाश म ह क जो थित बनती ह, उस समय बृह पित यानी गु - ह (Jupitor) क
त व दूसरी अ य पूिणमा क अपे ा सबसे अिधक िव मान होते ह। इस कारण इस िदन गु का आशीवाद तथा
कपा हम कई गुना अिधक ा हो सकती ह। अतः इस अवसर पर िश य गु क ित कत ता य करक उनक
आशीवाद को अिधक-से-अिधक मा ा म ा कर सकते ह। यही ह इसका िव ान।
यहाँ ‘गु ’ का अथ िव ा पढ़ानेवाले कल या कॉलेज क ा यापक से नह ह, य िक वे तो कवल िश क ह,
शु प से ‘गु ’ नह । गु का अथ उस आ या मक य िवशेष से ह जो को जानता ह और हमारी
आ या मक उ ित करा सकता ह। इसिलए कवल भगवा व पहननेवाल को या लंबी दाढ़ी रखनेवाल को गु
क सं ा नह दे सकते, उ ह हम कवल आ या मक बात करनेवाले बुि जीवी तो कह सकते ह, पर ‘गु ’ नह ।
भारतीय दशन क अनुसार, सच तो यह ह िक ‘गु ’ को ढढ़ा नह जाता, अिपतु जब आप िश य बनने यो य हो
जाएँगे और अ या म क या ा क िलए तैयार ह गे, तब गु आपको ढढ़ता आ वयं आपने पास आ जाएगा। पर
ऐसा होने क िलए कई ज म क ती ा करनी पड़ती ह।
गु ढढ़ने से नह िमलते, कारण गु त व सू मतम ह। अ या म म िश य गु को धारण नह करता, अिपतु गु ही
िश य को चुनते ह, आगे का माग बताते ह। भिव य म कौन उनका िश य होगा, यह एक स े गु को पहले से ही
ात होता ह। गु कपा िबना गु ा नह होती ह। एक आ य क बात यह ह िक आज तीन युग क तुलना म
कलयुग म गु ा व गु कपा ा करना किठन नही ह। बस आप म इस ा क िलए स ी लगन होनी
चािहए। गु एक िदन आपक उ ार क िलए आपक ार पर ह गे।
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मौन त रखने क पीछ या िव ान ह
वाणी श द-श (Sound energy) ह। छांदो योपिनष क अनुसार वाणी तेजोमयी ह और इसक रचना अ न क
थूल भाग, ह ी क म य भाग (Bone marrow) तथा म ा क सू म भाग से होती ह। वाणी क देवता अ नदेव
ह।
जब कोई य बोलता ह तो इस श को खच करता ह और जब कोई य यादा बोलता ह तो इस श
को यादा खच करता ह। अिधक बोलने से य चंचल बनता ह। अतः जो य यथ या ज रत से यादा
बोलते ह, उनक िच म ठहराव नह होता, िजस कारण उनक एका ता ीण तथा िवचार-श कम होती ह।
वैखरी वाणी क कारण मनु य क मन क क पनाएँ उसक श को यथ प से कम करती ह।
आज तक िजतने भी महापु ष एवं िवभूितयाँ ई ह, वे िमतभाषी व मधुरभाषी थ । उ ह ने अपने जीवन म वाणी-
श का उपयोग बड़ संयम से िकया। उनक जीवन म मौन व एकांतवास का िवशेष मह व था। मौन से श क
सुर ा, संक प-श म वृि तथा वाणी क आवेग पर िनयं ण रहता ह। ोध क दमन म मौन ब त ही सहायक
ह। इसिलए जो य अपने ोध पर िनयं ण रखना चाहते ह, उनक िलए ‘मौन’ एक अचूक साधन ह।
मौन क दौरान आप अंतिनरी ण तथा आ मिव ेषण (Self Analysis) अ छी तरह से कर सकते ह और अपने
िवचार का सू मता से िव ेषण कर सकते ह। यही नह , मौन से आपक एका ता-श का भी िवकास होता ह।
एक और लाभ मौन का यह ह िक मनु य ब त सार पाप और दोष से बच जाता ह। मौन से मनु य क ाण
तालब होकर सू म होने लगते ह तथा मन क दोष दूर होते ह, िजससे उसक शरीर क िव ु श बढ़ती ह और
शरीर नीरोग रहता ह।
िजन लोग क ब े अिधक चंचल होते ह या उनक एका -श ीण ह, उ ह अपने ब को एक घंटा मौन
रखने का अ यास कराना चािहए। मौन रखने का िनयम अ या म क उ ित क िलए अित उ म ह।
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चातुमा य का माहा य
वषाकाल क चार महीन को चातुमा य क नाम से जाना जाता ह। इन चार महीन म भगवा िव णु योगिन ा म
शेषश या पर शयन करते ह, इसिलए यह समय जलत व क िव ान से जुड़ा ह। योितष क अनुसार इन िदन सूय
कक रािश पर थत रहता ह। चातुमा य का समय आषाढ शु एकादशी से लेकर काितक शु एकादशी तक
होता ह। ी ह र क आराधना क िलए यह समय उ म ह। सब तीथ, देव थान, दान और पु य चातुमा य आने पर
भगवा िव णु क शरण लेकर थत होते ह। जो मनु य चातुमा य म नदी म ान करता ह, िवशेष प से तीथ
निदय म, उस य क अनेक पाप का नाश हो जाता ह, य िक वषा का जल थान- थान से धरती क िम ी
से ाकितक श को सँजोकर नदी क बहाव क साथ समु क ओर ले जाता ह। वषाकाल म निदय का जल
कई रोग का नाश करता ह।
चातुमा य म भगवा नारायण जल पर शयन करते ह। अतः जल म भगवा िव णु क तेज, त व व ओज तीन
का अंश भी या रहता ह। इसिलए उस तेज से यु जल का ान सम त तीथ क पु य से भी अिधक
फलदायी ह। चातुमा य म बालटी म एक-दो िब वप डालकर ‘ॐ नमः िशवाय’ मं का ४-५ बार जप करक
ान कर तो िवशेष लाभ होता ह। इससे शरीर का वायु दोष दूर होता ह और वा य क र ा होती ह।
चातुमा य म काला और नीला व पहनना हािनकारक ह, य िक वातावरण इन िदन िनमल होता ह, अतः सूय
क िकरण ती होती ह। ये दोन रग सूय क िकरण से अ य सभी रग को समािव कर लेते ह। वषा ऋतु म सूय
िकरण क ती ता अिधक मा ा म होती ह, जो शरीर क िलए हािनकारक ह, इसीिलए इन दोन रग क व विजत
ह। इन चार महीन म भूिम पर शयन, चय-पालन, प ल म भोजन, मौन, यान, दान-पु य और उपवास आिद
िवशेष लाभ द ह। चातुमा य म परिनंदा का िवशेष प से याग करना चािहए। परिनंदा को सुननेवाला भी पाप का
भागी होता ह। परिनंदा एक महा पाप ह। इस दोष का फल अगले ज म म मनु य को यश से वंिचत रखता ह।
जो य पं ह िदन म एक िदन संपूण उपवास कर, उसक शरीर क अनेक दोष न हो जाते ह और चौदह
िदन म उसक शरीर म भोजन से जो रस बनता ह, वह ओज म बदल जाता ह। इसिलए एकादशी क उपवास का
मह व ह।
चातुमा य म चूँिक भगवा नारायण योगिन ा म होते ह, इसिलए इन महीन क दौरान िहदू शादी-िववाह और
दूसर सकाम य आिद नह करते। ये चार मास नाम-जप व तप या क िलए उपयु ह।
इसलाम धम म भी रमजान क महीने म एक माह का त रखने का ावधान ह। त क अित र ‘करान’ क
अनुसार, इस पिव मास म एक स ा मुसलमान अपने ारा वष भर म िकए पाप का ाय करता ह, परिनंदा
से दूर रहता ह, दान करता ह और पाँच व क नमाज पढ़ता ह। इन सब बात का अथ यह आ िक दोन धम
म शारी रक त क साथ-साथ मानिसक त भी करना ज री ह। मानिसक त क िबना आ या मक उ ित नह
हो सकती।
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सनातन- वजा कस रया य
हमने भारत क ितरगे को मा य कर उसे भारत क रा ीय वज क प म वीकारा तो इसम हमने सव थम
कस रया रग को डाला। इस रग को इतनी मह ा देने का कारण था िक यह रग भारत क मूल सं कित से जुड़ा ह
और इसक पीछ एक गहरा ‘दशन’ ह।
कस रया रग दो ाथिमक रग लाल व पीला का िम ण ह। पुरातन मा यता क अनुसार लाल रग माँ दुगा,
गणेश और हनुमान से जुड़ा ह। यह रग श का ोतक ह। यह रग कमठता को इिगत करता ह। यह रग पौ ष
को दरशाता ह। यह रग हम कमशील होने को कहता ह। दूसरी ओर पीला रग िव णु और बृह पित दोन का
प रचायक ह। िव णु को सदा से शांत रहनेवाले, पर हर सम या का समाधान िनकालनेवाले िववेकशील देव क प
म माना गया ह। बृह पित को तो ान- व प ही कहते ह। वे बुि म ा क सागर ह।
इस कार कस रया रग जो लाल और पीले रग का िम ण ह, जहाँ हम सि य, कमठ और पौ ष होने क
पे्ररणा देता ह, वह यह भी संदेश देता ह िक हम सि य रहते ए िववेक से भी काम ल। ऐसा कम जो बुि और
िववेक क साथ न िकया गया हो, क याणकारी नह हो सकता। इसीिलए इन दोन रग क यु वाला कस रया रग
मह वपूण ह। यही इसका ‘दशन’ ह।
हमार ऋिष-मुिन भगवा इसी कारण पहनते थे, तािक उ ह दोन रग क तरग ा होती रह। वे हमार ाचीन
समाज क सि य अंग थे, कवल उपदेशक नह । जो लोग यह समझते ह िक साधु-संत समाज क िन य अंग ह,
तो वे इनक योगदान को नह पहचानते। सनातन ऋिष-मुिनय से ेरणा लेनी चािहए। वैसे आजकल क साधु-संत
अिधकतर पुरातन कसौटी पर खर नह उतरते।
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वा तुशा का िव ान
वा तुशा एक ाचीन िव ान ह। वतमान काल म इसका मह व और भी बढ़ गया ह, य िक जनसं या क
वृि , भौितक साधन क चुरता और महानगर म आवासीय सम याएँ िदन- ितिदन बढ़ती जा रही ह। आज
सीिमत भू-भाग म बने आवास और गगनचुंबी अ ािलकाएँ ककरमु सी फल रही ह। िवडबना ह िक भौितक
समृि क बावजूद मनु य क मानिसक शांित और वा तिवक सुखानुभूित कम होती जा रही ह, िजसका एक कारण
यह भी ह िक हमने भौितकता क दौड़ म पा ा य जीवन-शैली का अंधानुकरण करना शु िकया ह, जबिक
पा ा य शैली भारतीय जीवन-प ित क िलए िबलकल ितकल ह।
भारतीय पूण पेण वैिदक सं कित और परपरा क प धर रह ह। भौितकतावादी िचंतन और अनुकरण हम
मानिसक अशांित, िहसा, उ माद और शारी रक असंतोष क ओर ले जा रह ह। इन सभी दु प रणाम का मु य
कारण ह हमार दोषपूण आवास, यावसाियक सं थान और िव िव ालय आिद।
िपछले तीन-चार दशक म भारत ने भौितक जग म तो आशातीत उ ित क ह, पर दूसरी ओर सां कितक-
आ या मक मू य का िजतना स आ ह, उसक तो क पना ही नह क जा सकती।
ाचीन काल म भारत िव म अ या म म कई े म अ णी रहा, य िक हमार ाचीन िव िव ालय क
न व वैिदक वा तु क आधार पर रखी गई थी। हमार देवालय, उपवन और आ म िन य ही आ या मक शांित
और श का संचार करते थे। य िप आज ाचीन महल, मंिदर और उपवन क कवल अवशेष रह गए ह, िफर
भी वे हम अपनी ओर आकिषत करते ह। इसक िवपरीत, आधुिनक वा तुिश प म बा ाकषण तो ह, परतु आंत रक
सुख और शांित का पूणतः अभाव होता ह।
आचाय वराहिमिहर और ऋिष विस जैसे िव ान ने ब त पहले ही िस कर िदया था िक िकसी भी भूखंड या
भवन का आकार- कार का अभाव उसम िनवास करनेवाले प रवार पर िवशेष प से पड़ता ह। इसी स य पर ही
वा तुशा क न व आधा रत ह।
वा तुशा क पीछ िव ान यह ह िक कित क पाँच त व—जल, वायु, अ न, आकाश व पृ वी नव ह क
साथ िमलकर जब एक अनुकल दबाव या भाव िकसी थान पर बनाते ह तो उस थान क चार ओर सुख-शांित
का एक वतुल बन जाता ह और वहाँ सुख क साथ वैभव आता ह। इसक िवपरीत, जब कित क इन त व म
सामंज य नह होता तो वहाँ सबकछ िवपरीत होता ह।
हमार ऋिष-मुिनय ने इस िव ान का गहन अ ययन िकया और कई सू बनाए, िजनक अनुसार यह िन त
िकया िक िकसी भी मकान को बनाते समय उसका कौन सा भाग िकस िदशा म हो, घर क िकस भाग म घर क
िकस य को रहना चािहए, तािक कित क त व से हम अिधक-से-अिधक लाभ िमले और सुख-शांित ा
हो। जब हम मकान या दुकान बनाते समय इन सू या िनयम का पालन नह करते तब हमार जीवन म गड़बड़
शु हो जाती ह।
आज क इस युग म वा तुशा क सार सू या िनयम हम पूण प से पालन नह कर सकते, परतु जो कछ भी,
िजतना भी पालन कर सकते ह, उनका पालन अव य कर।
हर य यही चाहता ह िक उसक पास खूब धन-दौलत और घर म सुख-शांित हो। उसका यवसाय, दुकान,
फ टरी या िफर कायालय ऐसा हो जहाँ वह िदन दुगुनी व रात चौगुनी गित कर। ऐसा तभी हो सकता ह जब
उसक भा य म ऐसा िलखा हो। भा य कवल ह से या आदमी क अपनी मेहनत से ही नह बनता। वह थान,
जहाँ वह रहता ह या काम करता ह, क आंत रक श याँ भी भा य म योग देती ह। यिद वह थान, जहाँ वह
य रहता ह, वा तुशा क अनुसार िनिमत नह ह तो उस य क अ छ भा य क होते ए भी उसक उतनी
उ ित नह होगी िजतनी िक हो सकती या िफर पैसा तो उसक पास ब त होगा, पर खच इतने ह गे िक बचत शू य
होगी या िफर घर म शांित नह होगी और बीमा रयाँ घेर लगी। हो सकता ह—मकान म आग लग जाए, चोरी हो
जाए, या िफर िबजली क उपकरण म अकसर खराबी आती रह। ऐसे कई क हो सकते ह, िजनका संबंध य
क भा य से अिधक उस थान क वा तु से होता ह, जहाँ वह रहता ह अथवा काय करता ह।
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मंगलवार को नाखून व बाल
य नह काटने चािहए
समाज को यव थत प देते समय जब सा ािहक िदन को ह से जोड़कर उनका नामकरण िकया गया तब
यह यान रखा गया िक िकस िदन कौन सा ह पृ वी पर अपना अिधक भाव रखेगा, िजसक कारण मनु य पर
भी उस ह का भाव पड़गा।
मंगलवार को मंगल ह का पृ वी पर भाव अ य ह क अपे ा अिधक होता ह। खगोलशा क अनुसार
मंगल एक उ ह ह, इसिलए स ाह क इस िदन उसक तरग मनु य को अिधक भािवत करती ह, िजस कारण
मनु य क शरीर म अिधक ऊजा या गरमी पैदा होती ह। इससे मनु य क शरीर क आंत रक श व ताप बढ़ जाता
ह। कित ने हमार शरीर क संरचना इस कार से क ह िक वह अपने आप ही आव यकता क अनुसार शरीर क
गरमी-सद को संतुिलत कर लेता ह। इस संतुलन को बनाने म हमार शरीर क यथ माने जानेवाले अंग नाखून व
बाल दोन क बड़ी भूिमका होती ह, िवशेष प से मंगलवार क िदन, य िक मंगलवार को शरीर म उ प
होनेवाली अित र ऊजा व मानव-िव ु (Human electricity) को ये दोन अंग अपने म संिचत करक रखते ह
और इस कार से शरीर क आंत रक ऊजा या मानव-िव ु को संतुिलत बनाए रखने म सहायक होते ह।
मंगलवार क िदन जब हम बाल या नाखून काटते ह तो शरीर क मानव-िव ु का य हो जाता ह और उसका
आंत रक संतुलन िबगड़ जाता ह, जो हमार शरीर क िलए हािनकारक ह। इसी वै ािनक स य क कारण हमार पूवज
ने इस िदन बाल व नाखून काटने को अनुिचत बताया ह। आधुिनक िव ान का यान शायद अभी तक शरीर क इस
वै ािनक त य भी ओर नह गया ह। िन य ही इस पर शोध करने क आव यकता ह।
आज ऐसे अनेक लोग ह, िजनका मानना ह िक इस मा यता म कोई स यता नह ह, ये सब बात मा
अंधिव ास ह। परतु वे यह नह समझते िक ऐसा करने से उनका जो शारी रक नुकसान होता ह, वह एक बार म
इतना यून होता ह िक उस नुकसान का एकदम भाव महसूस नह होता, पर अंततः होता ज र ह। वह भाव
कछ समय बाद, िजसक िकसी िवकार को पैदा कर देता ह, वा तिवक कारण का पता ही नह चलता। इसी कारण,
पहले जब आधुिनक हयर सैलून नह थे तब नाई क दुकान मंगलवार को बंद रहती थ । आज भी मंगलवार को
ऐसी कछ दुकान बंद रहती ह।
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मंिदर म शंख व घंटा
बजाने का िव ान
यह एक वै ािनक त य ह िक विन िव तार म सूय क िकरण बाधक होती ह। इसी कारण रिडयो सारण िदन
क अपे ा रात को अिधक प होता ह। ायः सायंकाल व सूय िकरण जब िन तेज होती ह तब शंख फकने व
घंटा-घिड़याल बजाने का िवधान ह। एक बार शंख फकने पर जहाँ तक उसक विन जाती ह, वहाँ तक बीमा रयाँ
क क टाणु, जो वातावरण म िव मान होते ह, िन य हो जाते ह। इसी कार क विन क भाव से वे क टाणु या
तो न हो जाते ह या िफर िन य। जाने-माने वै ािनक ी जगदीशचं बसु ने इस स य को यं ारा मािणत
िकया था। िनयिमत शंख व घिड़याल क विन वायुमंडल को िवशु बनाने व पयावरण को संतुिलत करने म
अ यंत सहायक होती ह। इस वै ािनक स य क खोज हजार वष पूव हमार ऋिष-मुिनय ने क थी।
शंख और घंट-घिड़याल क विन से थूल पदाथ म से भी उनक नकारा मकता (Negativity) न हो जाती ह।
यही कारण ह िक मंिदर क दीवार भी शांित दान करती ह। इसक अित र , मूकता और हकलापन दूर करने क
िलए शंख विन वण करना एक महौषिध ह। िनरतर शंख फकनेवाले य को ास क बीमारी, दमा एवं
फफड़ का रोग नह होता, य िक शंख फकने से फफड़ से शरीर क सारी दूिषत वायु बाहर िनकल जाती ह और
साथ ही उनक वायु-धारण मता भी बढ़ती ह।
आपने देखा होगा िक ायः मंिदर आिद म आरती क प ा शंख म जल भरकर उप थत जन पर उसे िछड़का
जाता ह। इसी कार शंख क जल से देवालय म रखी सम त पूजा साम ी का ालन करते ह। ऐसा करने से वे
सब व तुएँ सुवािसत एवं रोगाणु-रिहत होकर शु हो जाती ह। शंख म जल रखने से उस जल म रोगाणु को न
करने क मता आ जाती ह, य िक शंख म गंधक, फा फोरस और क सयम क मा ा होती ह। इस कारण शंख
म रखा जल िवसं ामक (Disinfect) हो जाता ह।
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सोते समय पाँव दि ण िदशा क ओर य नह
रखने चािहए
सनातन मा यता क अनुसार हमारा शरीर म त क उ र और पाँव दि ण िदशा क ोतक ह। सौरमंडल म ुव
(Palastar) उ र िदशा म थत ह। यिद कोई य दि ण क ओर पाँव और िसर उ र िदशा क ओर करक
सोएगा तो ुवाकषण क िस ांतानुसार उसक पेट का भोजन पचने क बाद मल-अंश क प म नीचे गुदा क ओर
जाने क बजाय ऊपर दय क ओर िखंचेगा, िजससे उस य क दय व म त क पर हािनकारक भाव पड़गा।
यिद वह य िनरतर अपने पाँव दि ण िदशा क ओर रखकर सोएगा तो कछ समय बाद बीमार हो जाएगा। िहदू
धमशा म दि ण िदशा को यम (मृ यु) का थान माना जाता ह, इस कारण दि ण िदशा क ओर िनरतर पाँव
करक सोनेवाले य क आयु घटती ह। इसीिलए दि ण िदशा क ओर पाँव रखकर न सोने को कहा गया ह।
इसक िवपरीत, यिद हम उ र िदशा क ओर पाँव करक सोएँगे तो चुंबक य िस ांत (Magnetic principle) क
अनुसार पेट म पड़ा भोजन ठीक तरह से पचकर नीचे गुदा क ओर जाएगा। उस य को अ छी न द आएगी
और सुबह वह चु त-दु त होकर उठगा, य िक ुवाकषण क िस ांतानुसार दि ण से उ र िदशा क ओर चल
रहा ाकितक िव ु वाह हमार म त क से गुजरता आ पाँव क रा ते शरीर से बाहर वािहत हो जाएगा।
फलतः उस य का वा य ठीक रहगा और उसक आयु भी बढ़गी।
हमारी यह ाचीन मा यता िकतनी वै ािनक ह, इसे आधुिनक मानव जब चाह िव ान क कसौटी पर कसकर
देख ले। वैसे वा तुशा म िव ास रखनेवाले इस मा यता को पूण प से मानते ह।
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ाचीन काल म पु ष क दोन कान को छदा जाता
था, य ?
हमार ाचीन ऋिषय -मुिनय को मानव शरीर क आंत रक रचना का पूरा व गहरा ान था। आयु बढ़ने पर ायः
शौच करते समय जोर लगाने से मू क साथ अ ात प से वीय खिलत होने लगता ह और यिद इस पर यान न
िदया जाए तो यह एक भयंकर रोग का प धारण कर सकता ह। परतु यिद कान को िबंधवा िलया जाए तो वीय
खिलत होने का भय नह रहता। यह एक कार का उपचार ह। ाचीन काल म कान का या य ोपवीत क समय
छदना िकया जाता था, तािक कान क नािड़याँ जा होकर संचे हो जाएँ। इस कार ऋिष-मुिन स मिलत प
से अपना वीय संर ण करते थे और साथ ही य ोपवीत क पिव ता भी बनाए रखते थे।
कान क भेदन से य डायिबटीज, मेह एवं मल-मू संबंिधत अनेक बीमा रय से बच सकता ह। आजकल
तो कान िबंधवाना और उनम सुंदर ल ग पहनना पु ष क िलए भी एक फशन बन गया ह। उनका यह फशन
अनजाने म उनक िलए िकतना िहतकर ह, वे यह नह जानते।
आपने कई लोग को लघुशंका करते समय कान पर जनेऊ लपेट देखा होगा, उनक इस मा यता क पीछ भी इसी
कार का एक वै ािनक स य ह। आयुवद क अनुसार ‘लोिहितका’ नामक एक िवशेष नाड़ी मनु य क दािहने कान
से होकर उसक मल-मू ार पर प चती ह। यिद इस कान क नाड़ी को पीछ से थोड़ा सा हाथ से दबाएँ तो
य का मू ार वतः ही पूण प से खुल जाएगा और उसक लैडर म िजतना भी मू होगा, वह सारा बाहर
िनकल जाएगा। जमीन पर बैठकर लघुशंका करने से भी पूरा मू बाहर िनकलने म सहायता होती ह। खड़ होकर
लघुशंका करने से सारा मू सरलता से बाहर नह िनकलता।
शरीर क इस नाड़ी का संबंध अंडकोष से भी ह। इस स य को वीकारते ए आजकल डॉ टर हिनया जैसी
बीमारी क रोकथाम क िलए इस नाड़ी को छद देते ह। इसका एक और लाभ यह ह िक ऐसा करने से य का
मू शरीर क िवषैले अंश लेकर सरलता से अंितम बूँद तक उतर जाता ह और उसे मू संबंधी कोई रोग नह होता।
आधुिनक डॉ टर जो अब कर रह ह, हमार ऋिष-मुिनय ने इन उपाय को हजार वष पूव जानकर मनु य क जीवन
म स मिलत कर िलया था।
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