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मीरा बाई के भजन

१ भु कब रे मलोगे

भु जी तुम दशन बन मोय घड़ी चैन नह


आवड़े॥टे क॥
अ नह भावे न द न आवे वरह सतावे
मोय।
घायल यूं घूमूं खड़ी रे हारो दद न जाने
कोय॥१॥
दन तो खाय गमायो री रैन गमाई सोय।
ाण गंवाया झूरतां रे नैन गंवाया दोनु रोय॥
२॥
जो म ऐसा जानती रे ीत कयां ख
होय।
नगर ढुं ढेरौ पीटती रे ीत न क रयो कोय॥
३॥
प थ नहा ं डगर भुवा ं ऊभी मारग
जोय।
मीरा के भु कब रे मलोगे तुम मलयां
सुख होय॥४॥

२ तुम बन नैण खारा

हारे घर आ ीतम यारा॥


तन मन धन सब भट ध ं गी भजन क ं गी
तु हारा।
हारे घर आ ीतम
यारा॥
तुम गुणवंत सुसा हब क हये मोम औगुण
सारा॥
हारे घर आ ीतम
यारा॥
म नगुणी कछु गुण न ह जानूं तुम सा
बगसणहारा॥
हारे घर आ ीतम
यारा॥
मीरा कहै भु कब रे मलोगे तुम बन नैण
खारा॥
हारे घर आ ीतम
यारा॥

३ हरो जन क भीर
ह र तुम हरो जन क भीर।
ोपद क लाज राखी चट बढ़ायो चीर॥
भगत कारण प नर ह र धर।ह्यो आप
समीर॥
हर याकुस को मा र ली हो धर।ह्यो ना हन
धीर॥
बूड़तो गजराज रा यो कयौ बाहर नीर॥
दासी मीरा लाल गरधर चरणकंवल सीर॥

४ हांरो अरजी

तुम सुणो जी हांरो अरजी।


भवसागर म बही जात ं काढ़ो तो थांरी
मरजी।
इण संसार सगो न ह कोई सांचा सगा
रघुबरजी॥
मात- पता और कुटम कबीलो सब मतलब
के गरजी।
मीरा क भु अरजी सुण लो चरण लगावो
थांरी मरजी॥

५ मेरो दरद न जाणै कोय

हे री म तो ेम- दवानी मेरो दरद न जाणै


कोय।
घायल क ग त घायल जाणै जो कोई
घायल होय।
जौह र क ग त जौहरी जाणै क जन
जौहर होय।
सूली ऊपर सेज हमारी सोवण कस बध
होय।
गगन मंडल पर सेज पया क कस बध
मलणा होय।
दरद क मारी बन-बन डोलूं बैद म या
न ह कोय।
मीरा क भु पीर मटे गी जद बैद सांव रया
होय।

६ राखौ कृपा नधान

अब म सरण तहारी जी मो ह राखौ कृपा


नधान।
अजामील अपराधी तारे तारे नीच सदान।
जल डू बत गजराज उबारे ग णका चढ़
बमान।
और अधम तारे ब तेरे भाखत संत सुजान।
कुबजा नीच भीलणी तारी जाणे सकल
जहान।
कहं लग क ं गणत न ह आवै थ क रहे
बेद पुरान।
मीरा दासी शरण तहारी सु नये दोन कान।

७ कोई क हयौ रे

कोई क हयौ रे भु आवनक

आवनक मनभावन
क।
आप न आवै लख न ह भेजै
बाण पड़ी
ललचावनक ।
ए दो नैण क ो न ह मानै
न दयां बहै जैसे सावन
क।
कहा क ं कछु न ह बस मेरो
पांख नह उड़
जावनक ।
मीरा कहै भु कब रे मलोगे
चेरी भै ं तेरे
दांवनक ।

८ खण लागे नैन

दरस बन खण लागे नैन।


जबसे तुम बछु ड़े भु मोरे कब ं न पायो
चैन।
सबद सुणत मेरी छ तयां कांपै मीठे लागै
बैन।
बरह था कांसू क ं सजनी बह ग
करवत ऐन।
कल न परत पल ह र मग जोवत भ
छमासी रैन।
मीरा के भु कब रे मलोगे ख मेटण
सुख दे न।

९ कल ना ह पड़त जस

सखी मेरी न द नसानी हो।


पवको पंथ नहारत सगरी रैण बहानी हो।
स खयन मलकर सीख द मन एक न मानी
हो।
बन दे यां कल ना ह पड़त जय ऐसी
ठानी हो।
अंग-अंग याकुल भ मुख पय पय बानी
हो।
अंतर बेदन बरहक कोई पीर न जानी हो।
यूं चातक घनकूं रटै मछली ज म पानी
हो।
मीरा याकुल बरहणी सुध बुध बसरानी
हो।

१० आय मलौ मो ह

राम मलण के काज सखी मेरे आर त उर


म जागी री।
तड़पत-तड़पत कल न परत है बरहबाण
उर लागी री।
नस दन पंथ नहा ं पवको पलक न पल
भर लागी री।
पीव-पीव म रटूं रात- दन जी सुध-बुध
भागी री।
बरह भुजंग मेरो ड यो कलेजो लहर
हलाहल जागी री।
मेरी आर त मे ट गोसा आय मलौ मो ह
सागी री।
मीरा याकुल अ त उकलाणी पया क
उमंग अ त लागी री।

११ लोक-लाज त ज नाची

म तो सांवरे के रंग राची।


सा ज सगार बां ध पग घुंघ लोक-लाज
त ज नाची॥
ग कुम त ल साधुक संग त भगत प भै
सांची।
गाय गाय ह रके गुण नस दन काल यालसूं
बांची॥
उण बन सब जग खारो लागत और बात
सब कांची।
मीरा ी गरधरन लालसूं भग त रसीली
जांची॥

१२ म बैरागण ंगी

बाला म बैरागण ंगी।


जन भेषां हारो सा हब रीझे सोही भेष
ध ं गी।
सील संतोष ध ं घट भीतर समता पकड़
र ंगी।
जाको नाम नरंजन क हये ताको यान
ध ं गी।
गु के यान रंगू तन कपड़ा मन मु ा
पै ं गी।
ेम पीतसूं ह रगुण गाऊं चरणन लपट
र ंगी।
या तन क म क ं क गरी रसना नाम
क ंगी।
मीरा के भु गरधर नागर साधां संग
र ंगी।

१३ बसो मोरे नैनन म

बसो मोरे नैनन म नंदलाल।


मोहनी मूर त सांव र सूर त नैणा बने
बसाल।
अधर सुधारस मुरली राजत उर बैजंती-
माल॥
छु घं टका क ट तट सो भत नूपुर सबद
रसाल।
मीरा भु संतन सुखदाई भगत बछल
गोपाल॥

१४ मोरे ललन

जागो बंसीवारे जागो मोरे


ललन।
रजनी बीती भोर भयो है घर घर खुले
कवारे।
जागो बंसीवारे जागो मोरे
ललन॥
गोपी दही मथत सु नयत है कंगना के
झनकारे।
जागो बंसीवारे जागो मोरे
ललन॥
उठो लालजी भोर भयो है सुर नर ठाढ़े
ारे।
जागो बंसीवारे जागो मोरे
ललन।
वाल बाल सब करत कुलाहल जय जय
सबद उचारे।
जागो बंसीवारे जागो मोरे
ललन।
मीरा के भु गरधर नागर शरण आयाकूं
तारे॥
जागो बंसीवारे जागो मोरे
ललन॥

१५ चतवौ जी मोरी ओर

तनक ह र चतवौ जी मोरी ओर।


हम चतवत तुम चतवत नाह
मन के बड़े कठोर।
मेरे आसा चत न तु हरी
और न जी ठौर।
तुमसे हमकूं एक हो जी
हम-सी लाख
करोर॥
कब क ठाड़ी अरज करत ं
अरज करत भै
भोर।
मीरा के भु ह र अ बनासी
दे यूं ाण अकोर॥

१६ ाण अधार

ह र मेरे जीवन ाण अधार।


और आसरो नांही तुम बन तीनूं लोक
मंझार॥
ह र मेरे जीवन ाण अधार
आप बना मो ह कछु न सुहावै नर यौ सब
संसार।
ह र मेरे जीवन ाण अधार
मीरा कह म दा स रावरी द यो मती
बसार॥
ह र मेरे जीवन ाण अधार

१७ सरो न कोई

मेरे तो गरधर गोपाल सरो न कोई॥


जाके सर मोर मुकुट मेरो प त सोई।
तात मात ात बंधु आपनो न कोई॥
छां ड द कुलक का न कहा क रहै कोई।
संतन ढग बै ठ बै ठ लोकलाज खोई॥
चुनरी के कये टू क ओढ़ ली ही लोई।
मोती मूंगे उतार बनमाला पोई॥
अंसुवन जल सी च सी च ेम बे ल बोई।
अब तो बेल फैल ग आंणद फल होई॥
ध क मथ नयां बड़े ेम से बलोई।
माखन जब का ढ़ लयो छाछ पये कोई॥
भग त दे ख राजी जगत दे ख रोई।
दासी मीरा लाल गरधर तारो अब मोही॥

१८ हारे घर

हारे घर होता जा यो राज।


अबके जन टाला दे जा सर पर राखूं
बराज॥
हे तो जनम जनमक दासी थे हांका
सरताज।
पावणड़ा हांके भलां ही पधार।ह्या सब ही
सुघारण काज॥
हे तो बुरी छां थांके भली छै घणेरी तुम
हो एक रसराज।
थांने हम सब ही क चता
तुम सबके हो गरीब नवाज॥
सबके मुकुट- सरोम ण सर पर मानो पु य
क पाज।
मीराके भु गरधर नागर बांह गहे क
लाज॥

१९ म अरज क ं

भुजी म अरज क ं छू ं हारो बेड़ो


लगा यो पार॥
इण भव म म ख ब पायो संसा-सोग
नवार।
अ करम क तलब लगी है र करो
ख-भार॥
य संसार सब ब ो जात है लख चौरासी
री धार।
मीरा के भु गरधर नागर आवागमन
नवार॥

२० भु कबरे मलोगे

भुजी थे कहां गया नेहड़ो लगाय।


छोड़ गया ब वास संगाती ेम क बाती
बलाय॥
बरह समंद म छोड़ गया छो हक नाव
चलाय।
मीरा के भु कब रे मलोगे तुम बन र ो
न जाय॥

२१ मीरा दासी जनम जनम क

यारे दरसन द यो आय तुम बन र ो न


जाय॥
जल बन कमल चंद बन रजनी ऐसे तुम
दे यां बन सजनी।
आकुल ाकुल फ ं रैन दन बरह
कालजो खाय॥
दवस न भूख न द न ह रैना मुख सूं कथत
न आवे बैना।
कहा क ं कछु कहत न आवै मलकर तपत
बुझाय॥
यूं तरसावो अ तरजामी आय मलो
करपाकर वामी।
मीरा दासी जनम-जनम क पड़ी तु हारे
पाय॥

२२ आली रे

आली रे मेरे नैणा बाण पड़ी।


च चढ़ो मेरे माधुरी मूरत उर बच आन
अड़ी।
कब क ठाढ़ पंथ नहा ं अपने भवन
खड़ी॥
कैसे ाण पया बन राखूं जीवन मूल
जड़ी।
मीरा गरधर हाथ बकानी लोग कहै
बगड़ी॥

२३ भु गरधर नागर
बरसै बद रया सावन क
सावन क मनभावन क ।
सावन म उम यो मेरो मनवा
भनक सुनी ह र आवन क ।
उमड़ घुमड़ च ं द स से आयो
दामण दमके झर लावन क ।
ना ह ना ह बूंदन मेहा बरसै
सीतल पवन सोहावन क ।
मीराके भु गरधर नागर
आनंद मंगल गावन क ।

२४ राख अपनी सरण

मन रे पर स ह रके चरण।
सुभग सीतल कंवल कोमल वध वाला
हरण।
जण चरण हलाद परसे इं पदवी धरण॥
जण चरण ुव अटल क हे राख अपनी
सरण।
जण चरण ांड भेटयो नख सखां सर
धरण॥

जण चरण भु पर स लीने तेरी गोतम


घरण।
जण चरण कालीनाग ना यो गोप लीला-
करण॥
जण चरण गोबरधन धार।ह्यो गव मघवा
हरण।
दा स मीरा लाल गरधर अगम तारण तरण॥

२५ पग घुंघ बांध
पग घुंघ ं बांध मीरा नाची रे॥
म तो मेरे नारायण क आप ह हो गै दासी
रे।
पग घुंघ ं बांध मीरा नाची रे।
लोग कहै मीरा भ बावरी यात कहै
कुलनासी रे।
पग घुंघ ं बांध मीरा नाची रे।
बष का याला राणाजी भे या पीवत मीरा
हाँसी रे।
पग घुंघ ं बांध मीरा नाची रे।
मीरा के भु गरधर नागर सहज मले
अ बनासी रे।
पग घुंघ ं बांध मीरा नाची रे।

२६ आ यो हारे दे स
बंसीवारा आ यो हारे दे स। सांवरी सुरत
वारी बेस॥
आऊं-आऊं कर गया जी कर गया कौल
अनेक।
गणता- गणता घस ग हारी आंग लया री
रेख॥
म बैरा गण आ दक जी थांरे हारे कदको
सनेस।
बन पाणी बन साबुण जी होय ग धोय
सफेद॥
जोगण होय जंगल सब हे ं छोड़ा ना कुछ
सैस।
तेरी सुरत के कारणे जी हे धर लया
भगवां भेस॥
मोर-मुकुट पीता बर सोहै घूंघरवाला केस।
मीरा के भु गरधर म लयां नो बढ़ै
सनेस॥

२७ कब ं मलै पया मेरा

गो ब द कब ं मलै पया मेरा।


चरण-कंवल को हंस-हंस दे खू राखूं नैणां
नेरा।
गो बद कब ं मलै पया मेरा।
नरखणकूं मो ह चाव घणेरो कब दे खूं मुख
तेरा।
गो बद कब ं मलै पया मेरा।
याकुल ाण धरे न ह धीरज मल तूं मीत
सबेरा।
गो बद कब ं मलै पया मेरा।
मीरा के भु गरधर नागर ताप तपन
ब तेरा।
गो बद कब ं मलै पया मेरा।

२८ क जो ीत खरी

बादल दे ख डरी हो याम म बादल दे ख


डरी।
याम म बादल दे ख डरी।
काली-पीली घटा ऊमड़ी बर यो एक घरी।
याम म बादल दे ख डरी।
जत जाऊं तत पाणी पाणी भोम हरी॥
जाका पय परदे स बसत है भीजूं बाहर
खरी।
याम म बादल दे ख डरी।
मीरा के भु ह र अ बनासी क जो ीत
खरी।
याम म बादल दे ख डरी।

२९ मीरा के भु गरधर नागर

गली तो चार बंद ह म ह रसे मलूं कैसे


जाय॥
ऊंची-नीची राह रपटली पांव नह ठहराय।
सोच सोच पग ध ं जतन से बार-बार डग
जाय॥
ऊंचा नीचां महल पया का हांसूं च ो न
जाय।
पया र पथ हारो झीणो सुरत झकोला
खाय॥
कोस कोस पर पहरा बैठया पैग पैग
बटमार।
हे बधना कैसी रच द नी र बसायो लाय॥
मीरा के भु गरधर नागर सतगु द
बताय।
जुगन-जुगन से बछड़ी मीरा घर म लीनी
लाय॥

३० शरण गही भु तेरी

सुण लीजो बनती मोरी म शरण गही भु


तेरी।
तुम
तो प तत अनेक उधारे भव सागर से तारे॥
म सबका तो नाम न जानूं को कोई नाम
उचारे।
अ बरीष सुदामा नामा तुम प ंचाये नज
धामा।
ुव जो पांच वष के बालक तुम दरस दये
घन यामा।
धना भ का खेत जमाया क बरा का बैल
चराया॥
सबरी का जूंठा फल खाया तुम काज कये
मन भाया।
सदना औ सेना नाईको तुम क हा अपनाई॥
करमा क खचड़ी खाई तुम ग णका पार
लगाई।
मीरा भु तुमरे रंग राती या जानत सब
नयाई॥

३१ भु करपा क जौ

वामी सब संसार के हो सांचे ीभगवान॥


थावर जंगम पावक पाणी धरती बीज
समान।
सबम म हमा थांरी दे खी कुदरत के
कुरबान॥
ब सुदामा को दालद खोयो बाले क
पहचान।
दो मु तं लक चाबी द हय महान।
भारत म अजुन के आगे आप भया
रथवान।
अजुन कुलका लोग नहार।ह्या छु ट गया
तीर कमान।
ना कोई मारे ना को मरतो तेरो यो अ यान।
चेतन जीव तो अजर अमर है यो गीतार
यान॥
मेरे पर भु करपा क जौ बांद अपणी
जान।
मीरा के भु गरधर नागर चरण कंवल म
यान॥
३२ सखी री

हे मेरो मनमोहना आयो नह सखी री।


क क ं काज कया संतन का।
क क ं गैल भुलावना॥
हे मेरो मनमोहना।
कहा क ं कत जाऊं मेरी सजनी।
ला यो है बरह सतावना॥
हे मेरो मनमोहना॥
मीरा दासी दरसण यासी।
ह र-चरणां चत लावना॥
हे मेरो मनमोहना॥

३३ पपैया रे
पपैया रे पवक बा ण न बोल।
सु ण पावेली बरहणी रे थारी रालेली पांख
मरोड़॥
चांच कटाऊं पपैया रे ऊपर कालोर लूण।
पव मेरा म पव क रे तू पव कहै स
कूण॥
थारा सबद सुहावणा रे जो पव मेला
आज।
चांच मंढ़ाऊं थारी सोवनी रे तू मेरे
सरताज॥
ीतम कूं प तयां लखूं रे कागा तूं ले
जाय।
जा ीतम जासूं यूं कहै रे थां र बरहण
धान न खाय॥
मीरा दासी याकुली रे पव- पव करत
बहाय।
बे ग मलो भु अंतरजामी तुम बनु र ौ न
जाय॥

३४ होरी खेलत ह गरधारी

होरी खेलत ह गरधारी।


मुरली चंग बजत डफ यारो।
संग जुबती जनारी॥
चंदन केसर छड़कत मोहन
अपने हाथ बहारी।
भ र भ र मूठ गुलाल लाल संग
यामा ाण पयारी।
गावत चार धमार राग तहं
दै दै कल करतारी॥
फाग जु खेलत र सक सांवरो
बा ौ रस ज भारी।
मीराकूं भु गरधर म लया
मोहनलाल बहारी॥

३५ साजन घर आया हो

सहे लयां साजन घर आया हो।


बहोत दनां क जोवती बर हण पव पाया
हो॥
रतन क ं नेवछावरी ले आर त साजूं हो।
पवका दया सनेसड़ा ता ह बहोत नवाजूं
हो॥
पांच सखी इकठ भ म ल मंगल गावै हो।
पया का रली बधावणा आणंद अंग न मावै
हो।
ह र सागर सूं नेहरो नैणां बं या सनेह हो।
मरा सखी के आगणै धां बूठा मेह हो॥
३६ चाकर राखो जी

याम मने चाकर राखो जी


गरधारी लाला चाकर राखो जी।
चाकर रहसूं बाग लगासूं नत उठ दरसण
पासूं।
ब ाबन क कुंजग लन म तेरी लीला गासूं॥
चाकरी म दरसण पाऊं सु मरण पाऊं
खरची।
भाव भग त जागीरी पाऊं तीनूं बाता
सरसी॥
मोर मुकुट पीतांबर सोहै गल बैजंती माला।
ब ाबन म धेनु चरावे मोहन मुरलीवाला॥
हरे हरे नत बाग लगाऊं बच बच राखूं
यारी।
सांव रया के दरसण पाऊं पहर कुसु मी
सारी।
जोगी आया जोग करणकूं तप करणे
सं यासी।
हरी भजनकूं साधू आया ब ाबन के बासी॥
मीरा के भु ग हर गंभीरा सदा रहो जी
धीरा।
आधी रात भु दरसन द ह ेमनद के
तीरा॥

३७ सांचो ीतम

म गरधर के घर जाऊं।
गरधर हांरो सांचो ीतम दे खत प
लुभाऊं॥
रैण पड़ै तबही उठ जाऊं भोर भये उ ठ
आऊं।
रैन दना वाके संग खेलूं यूं त। ं ता ह
रझाऊं॥
जो प हरावै सोई प ह ं जो दे सोई खाऊं।
मेरी उणक ी त पुराणी उण बन पल न
रहाऊं।
जहां बैठाव ततही बैठं ू बेचै तो बक जाऊं।
मीरा के भु गरधर नागर बार बार ब ल
जाऊं॥

३८ सुभ है आज घरी

तेरो कोई न ह रोकणहार मगन हो मीरा


चली॥
लाज सरम कुल क मरजादा सरसै र
करी।
मान-अपमान दो धर पटके नकसी यान
गली॥
ऊंची अट रया लाल कव ड़या नरगुण-सेज
बछ ।
पंचरंगी झालर सुभ सोहै फूलन फूल कली।
बाजूबंद कडू ला सोहै स र मांग भरी।
सु मरण थाल हाथ म ली ह सौभा अ धक
खरी॥
सेज सुखमणा मीरा सौहै सुभ है आज
घरी।
तुम जा राणा घर अपणे मेरी थांरी नां ह
सरी॥

३९ हारो कांई करसी

राणोजी ठे तो हारो कांई करसी


हे तो गो व दरा गुण गा यां हे माय॥
राणोजी ठे तो अपने दे श रखासी
हे तो ह र ां ठे जा यां हे माय।
लोक-लाजक काण न राखां
हे तो नभय नशान गुरा यां हे माय।
राम नाम क जहाज चला यां
हे तो भवसागर तर जा यां हे माय।
ह रमं दर म नरत करा यां
हे तो घूघ रया छमका यां हे माय।
चरणामृत को नेम हमारो
हे तो नत उठ दशण जा यां हे माय।
मीरा गरधर शरण सांवल के
हे ते चरण-कमल लपरा यां हे माय।

४० राम रतन धन पायो


पायो जी हे तो राम रतन धन पायो॥
टे क॥
व तु अमोलक द मेरे सतगु करपा कर
अपनायो॥
जनम जनम क पूंजी पाई जग म सभी
खोवायो॥
खायो न खरच चोर न लेवे दन- दन बढ़त
सवायो॥
सत क नाव खेव टया सतगु भवसागर तर
आयो॥
मीरा के भु गरधर नागर हरस हरस जश
गायो॥

४१ भजन बना नर फ को

आज मो ह लागे वृ दावन नीको॥


घर-घर तुलसी ठाकुर सेवा दरसन गो व द
जी को॥१॥
नरमल नीर बहत जमुना म भोजन ध
दही को।
रतन सघासण आपु बराज मुकुट धर।ह्यो
तुलसी को॥२॥
कुंजन कुंजन फरत रा धका सबद सुणत
मुरली को।
मीरा के भु गरधर नागर भजन बना नर
फ को॥३॥

४२ तुमरे दरस बन बावरी

र नगरी बड़ी र नगरी-नगरी


कैसे आऊं म तेरी गोकुल नगरी
र नगरी बड़ी र नगरी
रात को आऊं का हा डर माही लागे
दन को आऊं तो दे खे सारी नगरी। र
नगरी॥।
सखी संग आऊं का हा शम मोहे लागे
अकेली आऊं तो भूल जाऊं तेरी डगरी। र
नगरी॥॥।
धीरे-धीरे चलूं तो कमर मोरी लचके
झटपट चलूं तो छलका गगरी। र नगरी॥॥
मीरा कहे भु गरधर नागर
तुमरे दरस बन म तो हो ग बावरी। र
नगरी॥॥

४३ भजो रे मन गो व दा

नटवर नागर न दा भजो रे मन गो व दा


याम सु दर मुख च दा भजो रे मन
गो व दा।
तू ही नटवर तू ही नागर तू ही बाल
मुकु दा
सब दे वन म कृ ण बड़े ह यूं तारा बच
चंदा।
सब स खयन म राधा जी बड़ी ह यूं
न दयन बच गंगा
ुव तारे हलाद उबारे नर सह प धरता।
कालीदह म नाग य नाथो फण-फण
नरत करता
वृ दावन म रास रचायो नाचत बाल मुकु दा।
मीरा के भु गरधर नागर काटो जम का
फंदा॥

४४ लाज राखो महाराज


अब तो नभायां सरेगी बांह गहे क लाज।
समरथ शरण तु हारी सैयां सरब सुधारण
काज॥
भवसागर संसार अपरबल जामे तुम हो
जहाज।
गरधारां आधार जगत गु तुम बन होय
अकाज॥
जुग जुग भीर हरी भगतन क द नी मो
समाज।
मीरा शरण गही चरणन क लाज रखो
महाराज॥

४५ हारो णाम

हारो णाम बांके बहारीको।


मोर मुकुट माथे तलक बराजे।
कु डल अलका कारीको हारो णाम
अधर मधुर कर बंसी बजावै।
रीझ रीझौ राधा यारीको हारो णाम
यह छ ब दे ख मगन भ मीरा।
मोहन गरवरधारीको हारो णाम

४६ मीरा क वनती छै जी

दरस हारे बे ग द यो जी
ओ जी अ तरजामी ओ राम खबर हारी
बे ग ली यो जी
आप बन मोहे कल ना पडत है जी
ओजी तडपत ं दन रैन रैन म नीर ढले
है जी
गुण तो भुजी म म एक नह छै जी
ओ जी अवगुण भरे ह अनेक अवगुण हारां
माफ करी यो जी
भगत बछल भु बड़द कहाये जी
ओ जी भगतन के तपाल सहाय आज
हांरी बे ग करी यो जी
दासी मीरा क वनती छै जी
ओजी आ द अ त क ओ लाज आज
हारी राख ली यो जी

47- कोई याम मनोहर ले ले रे

सर धर मट कया फोड़ी रे,


कोई याम मनोहर ले ले रे ।
द ध को नाम बस र ग वा लन,
ह र लो ह र लो बोल रे ।
कोई याम मनोहर ले ले रे ।
कृ ण के प धरी ह वा लन,
और ह और ह बोलै रे ।
कोई याम मनोहर ले ले रे ।
मीरा के भु ग रधर नागर,
हे र भई फ र हेरो रे ।
कोई याम मनोहर ले ले रे ।
सर धर मट कया फोड़ी रे,
कोई याम मनोहर ले ले रे ।

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Last edited 10 months ago by Ankry

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