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ु छे द लेखन के उदाहरण
नोट- आजकल पर क्षा में अनुच्छे द लेखन के ललए शीषथक और उससे सींबींधधत सींकेत बबींद ु हदए
गए िोते िैं। इन सींकेत बबींदओ
ु ीं को
ध्यान में रखकर अनुच्छे द लेखन करना चाहिए। इन सींकेत बबींदओ
ु ीं को अनदे खा करके
अनुच्छे द-लेखन करना हितकर नि ीं िोगा। इसस अक कम िान का सभािना बढ़ जाती िै।
• सामान्य धारर्ा
• मानि शर र की रचना के ललए आिश्यक
• जीिन का आधार
• कल्यार्कार रूप
• बच्चों के ललए लमट्ट ।
विलभन्न दे िालयों को निजीिन से भरकर कल्यार्कार रूप हदखाती िै। लमट्ट का बच्चों से
तो अटूट सींबींध िै। इसी लमट्ट में लोटकर, खेल-कूदकर िे बड़े िोते िैं और बललष्ठ बनते िैं।
लमट्ट के खखलौनों से खेलकर िे अपना मनोरीं जन करते िैं। िास्ति में लमट्ट िमारे ललए
विविध रूपों में नाना ढीं ग से उपयोगी िै।
2. आज की आिश्यकता-सींयक्
ु त पररिार
जजस एकल पररिार में पनत-पत्नी दोनों ि नौकर करते िों, ििााँ यि और भी दष्ु कर बन
जाता िै। आज समाज में बढ़ते क्रेच और उनमें पलते बच्चे इसका जीता जागता उदािरर् िैं।
प्राचीनकाल में यि काम सींयुक्त पररिार में दादा-दाद , चाचा-चाची, ताई-बुआ इतनी सरलता से
कर दे ती र्ी कक बच्चे कब बड़े िो गए पता ि नि ीं चल पाता र्ा। सींयुक्त पररिार िर काल
में समाज की ़िरूरत र्े और रिें गे।
भारतीय सींस्कृनत में सींयुक्त पररिार और भी मित्त्िपूर्थ िैं। बच्चों और युिा पीढ़ को ररश्तों
का ज्ञान सींयुक्त पररिार में ि िो पाता िै । यि सामूहिकता की भािना, लमल-जुलकर काम
करने की भािना पनपती और फलती-फूलती िै । एक-दस
ू रे के सुख-दख
ु में काम आने की
भािना सींयुक्त पररिार में ि पनपती िै । सींयुक्त पररिार बुजुगं सदस्यों के ललए ककसी
िरदान से कम नि ीं िै।
पररिार के अन्य सदस्य उनकी आिश्यकताओीं का ध्यान रखते िैं जजससे उन्िें बुढ़ापा
कष्टकार नि ीं लगता िै। सींयुक्त पररिार व्यजक्त को अकेलेपन का लशकार नि ीं िोने दे ते िैं।
आपसी सुख-दख
ु बााँटने, िाँसी-मजाक करने के सार्ी सींयुक्त पररिार स्ितः उपलब्ध कराते िैं।
इससे लोग स्िस्र्, प्रसन्न और िाँसमख
ु रिते िैं।
इससे ध्रुिों पर जमी बरफ़ वपघलने का खतरा उत्पन्न िो गया िै जजससे एक हदन प्राखर्यों के
विनाश का खतरा िोगा, अधधकाधधक पौधे लगाकर उनकी दे ख-भाल करनी चाहिए तर्ा प्रकृनत
से छे ड़छाड़ बींद कर दे ना चाहिए। इसके अलािा जनसींख्या िद्
ृ धध पर ननयींत्रर् करना िोगा।
आइए इसे आज से शुरू कर दे ते िैं, क्योंकक कल तक तो बड़ी दे र िो जाएगी।
4. नर िो न ननराश करो मन को
• आत्मविश्िास और सफलता
• आशा से सींघषथ में विजय
• कुछ भी असींभि नि ीं
• मिापुरुषों की सफलता का आधार।
मानि जीिन को सींग्राम की सींज्ञा से विभूवषत ककया िै । इस जीिन सींग्राम में उसे कभी सुख
लमलता िै तो कभी दख
ु । सुख मन में आशा एिीं प्रसन्नता का सींचार करते िैं तो दख
ु उसे
ननराशा एिीं शोक के सागर में डुबो दे ते िैं। इसी समय व्यजक्त के आत्मविश्िास की पर क्षा
िोती िै । जो व्यजक्त इन प्रनतकूल पररजस्र्नतयों में भी अपना विश्िास नि ीं खोता िै और
आशािाद बनकर सींघषथ करता िै िि सफलता प्राप्त करता िै।
िि विपर त पररजस्र्नतयों में भी उसी प्रकार विजय प्राप्त करता िै जैसा नेपोललयन बोनापाटथ
ने। इसी प्रकार ननराशा, काम में िमें मन नि ीं लगाने दे ती िै और आधे-अधूरे मन से ककया
गया कायथ कभी सफल नि ीं िोता िै । सींसार के मिापुरुषों ने आत्मविश्िास, दृढननश्चय,
सींघषथशीलता के बल पर आशािाद बनकर सफलता प्राप्त की। अब्रािम ललींकन िों या एडडसन,
मिात्मा गाींधी िों या सरदार पटे ल सभी ने प्रनतकूल पररजस्र्नतयों में भी आशािान रिे और
अपना-अपना लक्ष्य पाने में सफल रिे ।
कोयल काको दख
ु िरे , कागा काको दे य।
मीठे िचन सुनाए के, जग अपनो करर लेय।
यूाँ तो कोयल और कौआ दोनों ि दे खने में एक-से िोते िैं परीं तु िार्ी के कारर् दोनों में
़िमीन आसमान का अींतर िो जाता िै । दोनों पक्षी ककसी को न कुछ दे ते िैं और न कुछ लेते
िैं परीं तु कोयल मधुर िार्ी से जग को अपना बना लेती िै और कौआ अपनी ककथश िार्ी के
कारर् भगाया जाता िै। कोयल की मधुर िार्ी कर्थ वप्रय लगती िै और उसे सब सुनने को
इच्छुक रिते िैं। यि जस्र्नत समाज की िै ।
समाज में िे लोग सभी के वप्रय बन जाते िैं जो मधुर बोलते िैं जबकक कटु बोलने िालों से
सभी बचकर रिना चािते िैं। मधुर िार्ी औषधध के समान िोती िै जो सुनने िालों के तन
और मन को शीतलकर दे ती िै । इससे लोगों को सख
ु ानुभूनत िोती िै । इसके विपर त कटुिार्ी
उस तीखे तीर की भााँनत िोती िै जो कानों के माध्यम से िमारे शर र में प्रिेश करती िै और
परू े शर र को कष्ट पिुाँचाती िै।
कड़िी बोल जिााँ लोगों को ़िख्म दे ती िै िि ीं मधुर िार्ी िषों से िुए मन के घाि को भर
दे ती िै। मधरु िार्ी ककसी िरदान के समान िोती िै जो सन ु ने िाले को लमत्र बना दे ती िै ।
मधरु िार्ी सन
ु कर शत्रु भी अपनी शत्रत
ु ा खो बैठते िैं। इसके अलािा जो मधरु िार्ी बोलते
िैं उन्िें खद
ु को सींतजु ष्ट और सख
ु की अनभ
ु नू त िोती िै । इससे व्यजक्त का व्यजक्तत्ि प्रभािी
एिीं आकषथक बन जाता िै। इससे व्यजक्त के बबगड़े काम तक बन जाते िैं।
कोई भी काल रिा िो मधरु िार्ी का अपना विशेष मित्त्ि रिा िै । इस भागमभाग की जजींदगी
में जब व्यजक्त कायथ के बोझ, हदखािा और भौनतक सख
ु ों को एकत्रकर पाने की िोड़ में
तनािग्रस्त िोता जा रिा िै तब मधरु िार्ी का मित्त्ि और भी बढ़ जाता िै । िमें सदै ि मधरु
िार्ी का प्रयोग करना चाहिए।
• लशक्षा और माता-वपता
• लशक्षा की मििा
• उिरदानयत्ि
• लशक्षाविि न नर पशु समान।
सींस्कृत में एक श्लोक िै -
अर्ाथत िे माता-वपता बच्चे के ललए शत्र के समान िोते िैं जो अपने बच्चों को लशक्षा नि ीं
दे ते। ये बच्चे लशक्षक्षतों की सभा में उसी तरि िोते िैं जैसे िीं सों के बीच बगुला। एक बच्चे के
ललए पररिार प्रर्म पाठशाला िोती िै और माता-वपता उसके प्रर्म लशक्षक। माता-वपता यिााँ
अभी अपनी भूलमका का उधचत ननिाथि तो करते िैं पर जब बच्चा विद्यालय जाने लायक
िोता िै तब कुछ माता वपता उनके लशक्षा-द क्षा पर ध्यान नि ीं दे ते िैं और अपने बच्चों को
स्कूल नि ीं भेजते िैं। ऐसे में बालक जीिन भर के ललए ननरक्षर की विशेष मििा एिीं
उपयोधगता िै।
लशक्षा के बबना जीिन अींधकारमय िो जाता िै । कभी िि सािकारों के चींगल में फाँसता िै तो
कभी लोभी दकानदारों के। उसके ललए काला अक्षर भैंस बराबर िोता िै। िि समाचार पत्र.
पबत्रकाओीं, पस्
ु तकों आहद का लाभ नि ीं उठा पाता िै । उसे कदम-कदम पर कहठनाइयों का
सामना करना पडता िै ऐसे में माता-वपता का उिरदानयत्ि िै कक िे अपने बच्चों के पालन-
पोषर् के सार् ि उनकी लशक्षा की भल प्रकार व्यिस्र्ा करें । किा गया िै कक विद्याविि न
नर की जस्र्नत पशओ
ु ीं जैसी िोती िै , बस िि घास नि ीं खाता िै। लशक्षा से ि मानि सभ्य
इनसान बनता िै। िमें भल
ू कर भी लशक्षा से मींि
ु नि ीं मोड़ना चाहिए।
• त्योिारों का दे श भारत
• नीरसता भगाते त्योिार
• त्योिारों के लाभ
• त्योिारों पर मिाँगाई का असर।
ितथमान समय में त्योिार अपना स्िरूप खोते जा रिे िैं। इनको मिाँगाई ने बरु तरि से
प्रभावित ककया िै। इसके अलािा त्योिारों पर बा़िार का असर पड़ा िै। अब प्रायः बा़िार में
बबकने िाले सामानों की मदद से त्योिारों को जैसे-तैसे मना ललया जाता िै। इसका कारर्
लोगों की व्यस्तता और समय की कमी िै । त्योिार िमार सींस्कृनत के अींग िैं। िमें त्योिारों
को लमल-जल
ु कर िषोल्लास से मनाना चाहिए।
मिाँगाई उस समस्या का नाम िै , जो कभी र्मने का नाम नि ीं लेती िै। मध्यम और ननम्न
मध्यम िगथ के सार् ि गर ब िगथ को जजस समस्या ने सबसे ज्यादा त्रस्त ककया िै िि
मिाँगाई ि िै । समय बीतने के सार् ि िस्तुओीं का मूल्य ननरीं तर बढ़ते जाना मिाँगाई
किलाता िै। इसके कारर् िस्तुएाँ आम आदमी की क्रयशजक्त से बािर िोती जाती िैं और
ऐसा व्यजक्त अपनी मूलभूत आिश्यकताएाँ तक पूरा नि ीं कर पाता िै ।
ऐसी जस्र्नत में कई बार व्यजक्त को भूखे पेट सोना पड़ता िै ।मिाँगाई के कारर्ों को ध्यान से
दे खने पर पता चलता िै कक इसे बढ़ाने में मानिीय और प्राकृनतक दोनों ि कारर् जजम्मेदार
िैं। मानिीय कारर्ों में लोगों की स्िार्थिवृ ि, लालच अधधकाधधक लाभ कमाने की प्रिवृ ि,
जमाखोर और असींतोष की भािना िै। इसके अलािा त्याग जैसे मानिीय मूल्यों की कमी भी
इसे बढ़ाने में आग में घी का काम करती िै।
सूखा, बाढ़ असमय िषाथ, आाँधी, तूफ़ान, ओलािजृ ष्ट के कारर् जब फ़सलें खराब िोती िैं तो
उसका असर उत्पादन पर पड़ता िै। इससे एक अनार सौ बीमार िाल जस्र्नत पैदा िोती िै
और मिाँगाई बढ़ती िै।मिाँगाई रोकने के ललए लोगों में मानिीय मूल्यों का उदय िोना
आिश्यक िै ताकक िे अपनी आिश्यकतानस
ु ार ि िस्तए
ु ाँ खर दें । इसे रोकने के ललए
जनसींख्या िद्
ृ धध पर लगाम लगाना आिश्यक िै ।
अब समाचार पत्र अत्यींत सस्ता और सिथसुलभ बन गया िै । समाचार पत्रों के कारर् लाखों
लोगों को रोजगार लमला िै। इनकी छपाई, ढुलाई, लादने-उतारने में लाखों लगे रिते िैं तो
एजेंट, िॉकर और दक
ु ानदार भी इनसे अपनी जीविका चला रिे िैं। इतना ि नि ीं पुराने
समाचार पत्रों से ललफ़ाफ़े बनाकर एक िगथ अपनी आजीविका चलाता िै। छपने की अिधध पर
समाचार पत्र कई प्रकार के िोते िैं।
प्रनतहदन छपने िाले समाचार पत्रों को दै ननक, सप्ताि में एक बार छपने िाले समाचार पत्रों
को साप्ताहिक, पींद्रि हदन में छपने िाले समाचार पत्र को पाक्षक्षक तर्ा माि में एक बार छपने
िाले को मालसक समाचार पत्र किते िैं। अब तो कुछ शिरों में शाम को भी समाचार पत्र छापे
जाने लगे िैं। समाचार पत्र िमें दे श-दनु नया के समाचारों, खेल की जानकार मौसम तर्ा
बा़िार सींबींधी जानकाररयों के अलािा इसमें छपे विज्ञापन भी भााँनत-भााँनत की जानकार दे ते
िैं।
10. सबसे प्यारा दे श िमारा
अर्िा
विश्ि की शान-भारत
• भौगोललक जस्र्नत
• प्राकृनतक सौंदयथ
• विविधता में एकता की भािना
• अत्यींत प्राचीन सींस्कृनत।
सौभाग्य से दनु नया के जजस भू-भाग पर मुझे जन्म लेने का अिसर लमला दनु नया उसे भारत
के नाम से जानती िै। िमारा दे श एलशया मिाद्िीप के दक्षक्षर्ी छोर पर जस्र्त िै। यि दे श
तीन ओर समुद्र से नघरा िै । इसके उिर में पिथतराज हिमालय िैं, जजसके चरर् सागर पखारता
िै। इसके पजश्चम में अरब सागर और पूिथ में बींगाल की खाड़ी िै। चीन, भूटान, नेपाल,
पाककस्तान, श्रीलींका आहद इसके पड़ोसी दे श िैं।
िमारे दे श का प्राकृनतक सौंदयथ अनुपम िै । हिमालय की बरफ़ से ढीं की सफ़ेद चोहटयााँ भारत के
लसर पर रखे मुकुट में जड़े ि रे -सी प्रतीत िोती िैं।यिााँ बिने िाल गींगा-यमन
ु ा, घाघरा, ब्रह्मपुत्र
आहद नहदयााँ इसके सीने पर धिल िार जैसी लगती िैं। चारों ओर लिराती िर -भर फ़सलें
और िक्ष
ृ इसका पररधान प्रतीत िोते िैं। यिााँ के जींगलों में िररयाल का साम्राज्य िै । भारत
में नाना प्रकार की विविधता दृजष्टगोचर िोती िै।
यिााँ विलभन्न जानत-धमथ के अनेक भाषा-भाषी रिते िै। यिााँ के पररधान, त्योिार मनाने
अनुच्छे द लेखन के ढीं ग और खान-पान ि रिन-सिन में खूब विविधता लमलती िै ।यिााँ की
जलिायु में भी विविधता का बोलबाला िै , कफर भी इस विविधता के मूल में एकता नछपी िै ।
दे श पर कोई सींकट आते ि सभी भारतीय एकजुट िो जाते िैं। िमारे दे श की सींस्कृनत अत्यींत
प्राचीन और समद्
ृ धधशाल िै ।
परस्पर एकता, प्रेम, सियोग और सिभाि से रिना भारतीयों की विशेषता रि िै। ‘अनतधर्
दे िो भिः’ और ‘िसुधैि कुटुम्बकम ्’ की भािना भारतीय सींस्कृनत का आधार िै । िमारा दे श
भारत विश्ि की शान िै जो अपनी अलग पिचान रखता िै। िमें अपने दे श पर गिथ िै।
मनुष्य ज्यों-ज्यों सभ्य िोता गया त्यों-त्यों उसकी आिश्यकताएाँ बढ़ती गईं। बढ़ती जनसींख्या
की भोजन और आिास सींबींधी आिश्यकता के ललए उसने िनों की अींधाधुींध कटाई की जजससे
धरती पर काबथन डाईऑक्साइड की मात्रा बढ़ । कुछ और विषाक्त गैसों से लमलकर काबथन
डाईऑक्साइड ने इस परत में छे द कर हदया जजससे सूयथ की पराबैगनी ककरर्ें धरती पर आने
लगीीं और त्िचा के कैं सर के सार् अन्य बीमाररयों का खतरा बढ़ गया।
इन पराबैगनी ककरर्ों को धरती पर आने से ओजोन की परत रोकती िै। ओजोन की परत
नष्ट करने में विलभन्न प्रशीतक यींत्रों में प्रयोग की जाने िाल क्लोरो प्लोरो काबथन का भी
िार् िै। यहद पथ्
ृ िी पर जीिन बनाए रखना िै तो िमें ओजोन परत को बचाना िोगा। इसके
ललए धरती पर अधधकाधधक पेड़ लगाना िोगा तर्ा काबथन डाईऑक्साइड का उत्सजथन कम
करना िोगा।
• भ्रष्टाचार क्या िै ?
• दे श के ललए घातक
• भ्रष्टाचार का दष्ु प्रभाि
• लोगों की भूलमका।
भ्रष्टाचार दो शब्दों ‘भ्रष्ट’ और ‘आचार’ के मेल से बना िै , जजसका अर्थ िै -नैनतक एिीं
मयाथदापूर्थ आचारर् से िटकर आचरर् करना। इस तरि का आचरर् जब सिा में बैठे लोगों
या कायाथलयों के अधधकाररयों द्िारा ककया जाता िै तब जन साधारर् के ललए समस्या
उत्पन्न िो जाती िै। पक्षपात करना, भाई-भतीजािाद को प्रश्रय दे ना, ररश्ित मााँगना, समय पर
काम न करना, काम करने के बदले अनधु चत मााँग रख दे ना, भ्रष्टाचार को बढ़ािा दे ते िैं।
इससे समाज में विषमता बढ़ रि िै। लोगों में आक्रोश बढ़ रिा िै और विकास का मागथ
अिरुद्ध िोता जा रिा िै । इसके कारर् सरकार व्यिस्र्ा एिीं प्रशासन पींगु बन कर रि गए
िैं। भ्रष्टाचार लमटाने के ललए लोगों में मानिीय मल्
ू यों को प्रगाढ़ करना चाहिए। इसके ललए
नैनतक लशक्षा की विशेष आिश्यकता िै। लोगों को अपने आप में त्याग एिीं सींतोष की भािना
म़िबत
ू करनी िोगी। यद्यवप सरकार प्रयास भी इसे रोकने में कारगर लसद्ध िोते िैं पर
लोगों द्िारा अपनी आदतों में सध
ु ार और लालच पर ननयींत्रर् करने से यि समस्या स्ितः
कम िो जाएगी।
पररितथन प्रकृनत का ननयम िै । यि पररितथन समय के सार् स्ितः िोता रिता िै । मनुष्य भी
इस बदलाि से अछूता नि ीं िै । प्राचीन काल में मनुष्य ने न इतना विकास ककया र्ा और न
िि इतना सभ्य िो पाया र्ा। तब उसकी आिश्यकताएाँ सीलमत र्ीीं। ऐसे में पुरुष की कमाई
से घर चल जाता र्ा और नार की भूलमका घर तक सीलमत र्ी। उसे बािर जाकर काम
करने की आिश्यकता न र्ी।
ितथमान समय में मनुष्य की आिश्यकता इतनी बढ़ िुई िै कक इसे पूरा करने के ललए पुरुष
की कमाई अपयाथप्त लसद्ध िो रि िै और नार को नौकर के ललए घर से बािर कदम बढ़ाना
पड़ा।आज की नार पुरुषों के सार् कींधे से कींधा लमलाकर लगभग िर क्षेत्र में काम करती
हदखाई दे ती िैं। आज की नार दोिर भलू मका का ननिाथि कर रि िै ।
घर में उसे खाना पकाने, घर की सफ़ाई, बच्चों की दे खभाल और उनकी लशक्षा का दानयत्ि िै
तो िि कायाथलयों के अलािा खेल, राजनीनत साहित्य और कला आहद क्षेत्रों में उतनी ि
कुशलता और तत्परता से कायथ कर रि िै । िि दोनों जगि की ज़िम्मेदाररयों की चुनौनतयों
को सिषथ स्िीकारती िुई आगे बढ़ रि िै और दोिर भलू मका का ननिथिन कर रि िै ।
ितथमान में नार द्िारा घर से बािर आकर काम करने पर सुरक्षा की आिश्यकता मिसूस
िोने लगी िै। कुछ लोगों की सोच ऐसी बन गई िै कक िे ऐसी जस्त्रयों को सींदेि की दृजष्ट से
दे खते िैं। ऐसी जस्त्रयों को प्रायः कायाथलय में परु
ु ष सिकलमथयों तर्ा आते-जाते कुछ लोगों की
कुदृजष्ट का सामना करना पड़ता िै। इसके ललए समाज को अपनी सोच में बदलाि लाने की
आिश्यकता िै।
• जनसींख्या िद्
ृ धध बनी समस्या
• सींसाधनों पर असर
• िद्
ृ धध के कारर्
• जनसींख्या रोकने के उपाय।
जनसींख्या िद्
ृ धध के सार् दे श के विकास की जस्र्नत ‘ढाक के तीन पात िाल ’ बनकर रि
जाती िै । प्रकृनत ने लोगों के ललए भूलम िन आहद जो सींसाधन प्रदान ककए िैं, जनाधधक्य के
कारर् िे कम पड़ने लगते िैं तब मनुष्य प्रकृनत के सार् खखलिाड़ शुरू कर दे ता िै । िि
अपनी बढ़ आिश्यकताओीं की पूनतथ के ललए िनों का विनाश करता िै ।
इससे प्राकृनतक असींतुलन का खतरा पैदा िोता िै जजससे नाना प्रकार की समस्याएाँ उत्पन्न
िोती िैं। जनसींख्या िद्
ृ धध के ललए िम भारतीयों की सोच काफ़ी िद तक जजम्मेदार िै । यिााँ
की पुरुष प्रधान सोच के कारर् घर में पुत्र जन्म आिश्यक माना जाता िै । भले ि एक पुत्र
की चाित में छि, सात लड़ककयााँ क्यों न पैदा िो जाएाँ पर पत्र
ु के बबना न तो लोग अपना
जन्म सार्थक मानते िैं और न उन्िें स्िगथ की प्राजप्त िोती हदखती िै।
• विज्ञान की अद्भत
ु खोज
• फ़ोनों की बदलती दनु नया में
• सींचार क्षेत्र में क्राींनत
• स्ता और सल
ु भ साधन
• लाभ और िाननयााँ।
विज्ञान ने मानि जीिन को विविध रूपों में प्रभावित ककया िै। शायद ि कोई ऐसा क्षेत्र िो
जिााँ विज्ञान ने िस्तक्षेप न ककया िो। समय-समय पर िुए आश्चयथजनक आविष्कारों ने
मानि जीिन को बदलकर रख हदया िै । विज्ञान की इन्ि ीं अद्भुत खोजों में एक िै मोबाइल
फ़ोन जजससे मनुष्य इतना प्रभावित िुआ कक आप िर ककशोर ि नि ीं िर आयु िगथ के लोग
इसका प्रयोग करते दे खे जा सकते िैं।
िास्ति में मोबाइल फ़ोन इतना उपयोगी और सुविधापूर्थ साधन िै कक िर व्यजक्त इसे अपने
पास रखना चािता िै और इसका विलभन्न रूपों में प्रयोग भी कर रिा िै । सींचार की दनु नया
में फ़ोन का आविष्कार एक क्राींनत र्ी। तारों के माध्यम से जुड़े फ़ोन पर अपने वप्रयजनों से
बातें करना एक रोमाींचक अनभि र्ा। शरू में फ़ोन मिाँगे और कई उपकर लाना-ले-जाना
सींभि न र्ा।
िमें बातें करने के ललए इनके पास जाना पड़ता र्ा पर मोबाइल फ़ोन जेब में रखकर कि ीं भी
लाया-ले जाया जा सकता िै । अब यि सिथसुलभ भी बन गया िै । िास्ति में मोबाइल फ़ोन
का आविष्कार सींचार के क्षेत्र में क्राींनत से कम नि ीं िै। आज मोबाइल फ़ोन पर बातें करने के
अलािा फ़ोटो खीींचना, गर्नाएाँ करना, फाइलें सुरक्षक्षत रखना जैसे बिुत से काम ककए जा रिे
िैं क्योंकक यि जेब का कींप्यट
ू र बन गया िै ।
इनके आचरर् में त्याग, दया, सिानुभूनत, करुर्ा, स्नेि उदारता, परोपकार की भािना आहद गुर्
विद्यमान िैं। मनुष्य के सादगीपूर्थ जीिन के ललए इन गुर्ों की प्रगाढ़ता आिश्यक िै ।
भारतीयों का जीिन ककसी तप से कम नि ीं रिा िै क्योंकक उनके विचारों में मिानता और
जीिन में सादगी रि िै। प्राचीनकाल से ि यि ननयम बना हदया गया र्ा कक जीिन के
आरीं लभक 25 िषथ को ब्रिमचयथ जीिन के रूप में बबताया जाय।
इस काल में बालक गुरुकुलों में रिकर सादगी और ननयम का पाठ सीख जाता र्ा। इनका
जीिन ऐशो-आराम और विलालसता से कोसों दरू िुआ करता र्ा। यि बाद में भारतीयों के
जीिन का आधार बन जाता र्ा। मिात्मा गाींधी, सरदार पटे ल आहद का जीिन सादगी का
दस
ू रा नाम र्ा। िे एक धोती में जजस सादगी से रिते र्े िि दस
ू रों के ललए आदशथ बन गया।
िे दस
ू रों के ललए अनुकरर्ीय बन गए।
अमेररका के राष्रपनत अब्रािम ललींकन भी सादगीपूर्थ जीिन बबताते र्े। दभ
ु ाथग्य से आज लोगों
की सोच में बदलाि आ गया िै। अब सादा जीिन जीने िालों को गर बी और वपछड़ेपन का
प्रतीक माना जाने लगा िै। अब लोगों की पिचान उनके कपड़ों । लोग उपभोग को ि सख
ु
मान बैठे िैं। सख
ु एकत्र करने की चाित में अब जीिन तनािपर्
ू थ बनता जा रिा िै ।
धमथ के बबगड़े एिीं कट्टर रूप को साींप्रदानयकता की सींज्ञा द जा सकती िै। ‘धारयनत इनत
धमथः’ अर्ाथत ् जजसे धारर् ककया जाए िि धमथ िै । मनुष्य अपने आचरर् और जीिन को
मयाथहदत रखने के ललए धमथ का सिारा ललया करता र्ा। बाद में धमथ ने एक जीिन पद्धनत
का रूप ले ललया। धमथ का यि रूप मनुष्य और समाज के ललए कल्यार्कार माना जाता र्ा।
धीरे -धीरे लोगों की सोच में बदलाि आया और धमथ का उपयोग अपने स्िार्थ के ललए करना
शुरू कर हदया। यि ीं से धमथ में विकृनत आई। लोगों में अपने धमथ के प्रनत कट्टरता आने
लगी और साींप्रदानयकता अपना रीं ग हदखाने लगी। साींप्रदानयकता के िशीभूत िोकर मनुष्य
िार्ी और कमथ से दस
ू रे धमाथिलींबबयों की भािनाएाँ भड़काता िै जो व्यजक्त समाज और राष्र
सभी के ललए िाननकारक िोती िै।
दभ
ु ाथग्य से यि कायथ आज समाज के तर्ा कधर्त ठे केदार और समाज सुधारक किलाने िाले
नेता खुले आम कर रिे िैं जजससे लोगों का आपसी विश्िास घट रिा िै । इसके अलािा
धालमथक सद्भाि, सहिष्र्ुता, भाई-चारा, आपसी सौिाद्रथ नष्ट िो रिा िै तर्ा घर्
ृ ा की भािना
प्रगाढ़ िो रि िै। साींप्रदानयकता की रोक र्ाम के ललए धालमथक भािनाओीं को भड़काना बींद
ककया जाना चाहिए।
ऐसा करने िालों को कठोर दीं ड दे ना चाहिए। िमारे नेताओीं को चाहिए कक िे िोट की
राजनीनत बींद करें और लोगों को जानत-धमथ के आधार पर न बााँटें। इस जस्र्नत में िमारा
कतथव्य यि िोना चाहिए कक िम ककसी के बिकािे में न आएाँ और सद्भाि बनाए रखते िुए
दस
ू रों की भािनाएाँ और उनके धमों का भी आदर करें ।
18. सुविधाओीं का भींडार : कींप्यूटर
अर्िा
कींप्यट
ू र : आज की आिश्यकता
विज्ञान ने मनुष्य को जो अद्भुत उपकरर् प्रदान ककए िैं उनमें प्रमुख िै -कींप्यूटर। कींप्यूटर
ऐसा चमत्कार उपकरर् िै जो िमार कल्पना को साकार रूप दे रिा िै। जजन बातों की
कल्पना कभी मनुष्य ककया करता र्ा, उन्िें कींप्यूटर पूरा कर रिा िै । यि बिूपयोगी उपकरर्
िै जजससे मनुष्य की अनेकानेक समस्याएाँ िल िुई िैं। कींप्यूटर में लगा उच्च तकनीकक िाला
मजस्तष्क मनुष्य की सोच से भी अधधक तेजी से कायथ करता िै जजससे मनुष्य का समय
और भ्रम दोनों ि बचने लगा िै।
आज कींप्यूटर का प्रयोग िर छोटे -बड़े सरकार और गैर सरकार कायाथलयों में ककया जाने
लगा िै। इसका प्रयोग इतनी जगि पर ककया जा रिा िै कक इसे शब्दों में बााँधना कहठन िै।
पुस्तक प्रकाशन, बैंकों में खाते का रख-रखाि, फाइलों की सुरक्षा, रे ल और िायुयान के हटकटों
का आरक्षर्, रोधगयों के आपरे शन, बीमाररयों की खोज, विलभन्न पररयोजनाओीं के ननमाथर् आहद
में इसका प्रयोग अत्यािश्यक िो गया िै।
अब तो छात्र अपनी पढ़ाई और लोग अपने व्यजक्तगत प्रयोग के ललए इसका प्रयोग आिश्यक
मानने लगे िैं। कींप्यूटर पर अब पीडीएफ (PDF) फ़ॉमथ में पुस्तकें अपलोड कर द जाती िैं।
अब छात्रों को बस एक बटन दबाने की ़िरूरत िै । ज्ञान का सींसार कींप्यूटर की स्क्रीन पर
प्रकट िो जाता िै। अब उन्िें न भार भरकम बस्ता उठाने की ़िरूरत िै और न मोट -मोट
पुस्तकें।
इसके अलािा कींप्यूटर पर गीत सुनने, कफ़ल्में दे खने और गेम खेलने की सुविधा भी उपलब्ध
रिती िै। कींप्यूटर का अत्यधधक प्रयोग िमें आलसी और मोटापे का लशकार बनाता िै।
इींटरनेट के जुड़ जाने से कुछ लोग इसका दरु
ु पयोग करते िैं। कींप्यूटर का अधधक प्रयोग
िमार आाँखों के ललए िाननकारक िै । िमें कींप्यट
ू र का प्रयोग सोच समझकर करना चाहिए।
19. मनोरीं जन के साधनों की बढ़ती दनु नया
अर्िा
मनोरीं जन का बदलता स्िरूप
• मनोरीं जन की आिश्यकता
• मनोरीं जन के प्राचीन साधन
• मनोरीं जन के साधनों में बदलाि
• आधनु नक साधनों के लाभ-िाननयााँ।
मनुष्य श्रमशील प्रार्ी िै । िि आहदकाल से श्रम करता रिा िै । इस श्रम के उपराींत र्कान
उत्पन्न िोना स्िाभाविक िै। पिले िि भोजन की तलाश एिीं जींगल जानिरों से बचने के
ललए श्रम करता र्ा। बाद में उसकी आिश्यकता बढ़ ीं अब िि मानलसक और शार ररक श्रम
करने लगा। श्रम की र्कान उतारने एिीं ऊजाथ प्राप्त करने के ललए मनोरीं जन की आिश्यकता
मिसूस िुई।
इसके ललए उसने विलभन्न साधन अपनाए। प्राचीन काल में मनुष्य पशु-पक्षक्षयों के माध्यम से
अपना मनोरीं जन करता र्ा। िि पक्षी और जानिर पालता र्ा। उनकी बोललयों और उनकी
लड़ाई से िि मनोरीं जन करता र्ा। इसके अलािा लशकार करना भी उसके मनोरीं जन का
साधन र्ा। इसके बाद ज्यों-ज्यों समय में बदलाि आया, उसके मनोरीं जन के साधन भी बढ़ते
गए।
मध्यकाल तक मनुष्य ने नत्ृ य और गीत का सिारा लेना शुरू ककया। नाटक, गायन, िादन,
नौटीं की, प्रिसन काव्य पाठ आहद के माध्यम से िि आनींहदत िोने लगा। खेल तो िर काल में
मनोरीं जन का साधन रिे िैं। आज मनोरीं जन के साधनों में भरपूर िद्
ृ धध िुई िै । अब तो
मोबाइल फ़ोन पर गाने सुनना, कफ़ल्म दे खना, लसनेमा जाना, दे शाटन करना, कींप्यूटर का
उपयोग करना, धचत्रकार करना, सरकस दे खना, पयथटन स्र्लों का भ्रमर् करना उसके
मनोरीं जन में शालमल िो गया िै।
मनोरीं जन के आधुननक साधन घर बैठे बबठाए व्यजक्त का मनोरीं जन तो करते िैं पर व्यजक्त
में मोटापा, रक्तचाप की समस्या, आलस्य, एकाींतवप्रयता और समाज से अलग-र्लग रिने की
प्रिवृ ि उत्पन्न कर रिे िैं।
20. दिे ज का दानि
अर्िा
दिे ज प्रर्ा : एक सामाजजक समस्या
• दिे ज क्या िै ?
• दिे ज का बदलता स्िरूप
• दिे ज प्रर्ा ककतनी घातक
• दिे ज प्रर्ा की रोकर्ाम।
भारतीय सींस्कृनत के मूल में नछपी िै -कल्यार् की भािना। इसी भािना के िशीभूत िोकर
प्राचीनकाल में कन्या का वपता अपनी बेट की सुख-सुविधा िे तु कुछ िस्त्र-आभूषर् और धन
उसकी विदाई के समय स्िेच्छा से हदया करता र्ा। कालाींतर में यि र नत विकृत िो गई।
इसी विकृनत को दिे ज नाम हदया गया। धीरे -धीरे लोगों ने इसे अपनी सामाजजक प्रनतष्ठा से
जोड़ ललया।
सभ्यता और भौनतकिाद के कारर् लोगों में धन लोलुपता बढ़ िै जजसने इस प्रर्ा को विकृत
करने में िि काम ककया जो आग में घी करता िै। िर पक्ष के लोग कन्या पक्ष से खुलकर
दिे ज मााँगने लगे और समाज की ऩिर बचाकर बलपूिक
थ दिे ज लेने लगे जजससे इस प्रर्ा ने
दानिी रूप ले ललया। आज जस्र्नत यि िै कक समाज में लड़ककयों को बोझ समझा जाने लगा
िै।
लोग घर में कन्या का जन्म ककसी अपशकुन से कम नि ीं समझते िैं। इससे समाज की सोच
में विकृनत आई िै। दिे ज प्रर्ा िमारे समाज के ललए अत्यींत घातक िै । इस प्रर्ा के कारर् ि
जन्मी-अजन्मी लड़ककयों को मारने का चलन शुरू िो गया। आज का समय तो जन्मपूिथ ि
कन्या भ्रूर् की ित्या करा दे ता िै । इसमें असफल रिने के बाद िि जन्म के बाद कन्याओीं
के पालन-पोषर् में दोिरा मापदीं ड अपनाता िै।
िि लड़ककयों की लशक्षा-द क्षा, खान-पान और अन्य सुविधाओीं के सार् ि उनके सार् व्यििार
में ि नता हदखाता िै। दिे ज प्रर्ा के कारर् ि असमय नि वििाहिताओीं को अपनी जान
गिानी पड़ती िै। मनुष्यता के ललए इससे ज़्यादा कलींक की बात क्या िोगी कक अनेक
लड़ककयााँ बबन ब्याि रि जाती िैं या उन्िें बेमेल वििाि के ललए बाध्य िोना पड़ता िै।
दिे ज प्रर्ा रोकने के ललए केिल सरकार प्रयास ि काफ़ी नि ीं िैं। इसके ललए युिा िगथ को
आगे आना िोगा और दिेज रहित-वििाि प्रर्ा की शुरूआत करके समाज के सामने
अनुकरर्ीय उदािरर् प्रस्तुत करना िोगा।
21. त्योिारों का बदलता स्िरूप
अर्िा
त्योिारों पर िािी भौनतकिाद
मनुष्य और त्योिारों का अटूट सींबींध िै । मनुष्य अपने र्के िारे मन को उत्साहित एिीं
आनींहदत करने के सार् ि ऊजाथजन्ित करने के ललए त्योिार मनाने का कोई न कोई बिाना
खोज ि लेता िै। कभी मि ना बदलने पर, कभी नई ऋतु आने पर और कभी फ़सल पकने
की आड़ में मनुष्य प्राचीन समय से त्योिार मनाता आया िै ।
इस कारर् लोग इन त्योिारों को जैसे-तैसे मनाकर इनतश्री कर लेते िैं। त्योिारों को िाँसी-खुशी
मनाने के ललए धालमथक कट्टरता त्यागनी चाहिए तर्ा प्रकृनत से ननकटता बनाने का प्रयास
करना चाहिए। िमें इस तरि त्योिार मनाने का प्रयास करना चाहिए जजससे सभी को खुशी
लमल सके।
22. मानि जीिन पर विज्ञापनों का असर
अर्िा
विज्ञापनों की दनु नया ककतनी लभ
ु ािनी
अर्िा
मानि मन को सम्मोहित करते विज्ञापन
‘ज्ञापन’ में ‘वि’ उपसगथ लगाने से विज्ञापन शब्द बना िै , जजसका शाजब्दक अर्थ िै -सूचना या
जानकार दे ना। दभ
ु ाथग्य से आज विज्ञापन का अर्थ लसमट कर िस्तुओीं की बबक्री बढ़ाकर लाभ
कमाने तक ि सीलमत रि गया िै। ितथमान समय में विज्ञापन का प्रचार-प्रसार इतना बढ़
गया िै कक अब तो कि ीं भी विज्ञापन दे खे जा सकते िैं। इस कारर् से ितथमान समय को
विज्ञापनों का युग किने में कोई अनतशयोजक्त नि ीं िै ।
विज्ञापन मानि मन पर गिरा असर डालते िैं। बच्चे और ककशोर इन विज्ञापनों के प्रभाि में
आसानी से आ जाते िैं। विज्ञापनों का प्रस्तुतीकरर्, उनमें प्रयुक्त नार दे ि का दशथन, उनके
िाि-भाि और अलभनय मानिमन पर जाद-ू सा असर कर सम्मोहित कर लेते िैं। यि
विज्ञापनों का असर िै कक िम विज्ञावपत िस्तुएाँ खर दने का लाभ सींिरर् नि ीं कर पाते िैं।
विज्ञापन उत्पादक और उपभोक ता दोनों के ललए लाभदायी िैं। इसके माध्यम से िमारे
सामने चुनाि का विकल्प, सलभ तो विक्रेताओीं को भी भरपूर लाभ िोता िै । विज्ञापन के
कारर् िस्तुओीं का मूल्य बढ़ जाता िै । इनमें िस्तु के गुर्ों को बढ़ा-चढ़ाकर प्रस्तुत ककया
जाता िै। अतः िमें विज्ञापनों से सािधान रिना चाहिए।
23. मनुष्यता का दस
ू रा नाम : परोपकार
अर्िा
परहित सरलस धमथ नहिीं भाई
उपकार का अर्थ िै -भलाई करना। इसी उपकार में ‘पर’ उपसगथ लगाने से परोपकार बना िै।
इसका अर्थ िै -दस
ू रों की भलाई करना। जब मनुष्य ननस्स्िार्थ भाि से दस
ू रों की भलाई मन,
िार्ी और कमथ से करता िै , तब उसे परोपकार किा जाता िै। परोपकार का सिोिम उदािरर्
िमें प्रकृनत के कायों से लमलता िै।
िक्ष
ृ अपने फल स्ियीं नि ीं खाते िैं, नहदयााँ अपना पानी स्ियीं नि ीं पीती िैं। इसी प्रकार फूल
दस
ू रों के ललए खखलते िैं और बादल जीिों के कल्यार् के ललए अपना अजस्तत्ि तक नष्ट कर
दे ते िैं। परोपकार मनुष्य का सिोिम गुर् िै । िमारे ऋवष-मुनन तो अपना जीिन परोपकार में
अवपथत कर दे ते र्े। उनके कायथ िमें परोपकार की प्रेरर्ा दे ते िैं। किा भी गया िै कक ‘िि
मनुष्य िै कक जो मनुष्य के ललए मरे ।’
परोपकार से व्यजक्त को सुख-शाींनत की अनुभूनत िोती िै तर्ा जजसकी भलाई की जाती िै उसे
अपनी द न-ि न जस्र्नत से मुजक्त लमल जाती िै। परोपकार व्यजक्त को आदशथ जीिन की राि
हदखाते िैं। इससे व्यजक्त को मनुष्य बनने की पूर्त
थ ा प्राप्त िोती िै । िास्ति में परोपकार में
ि जीिन की सार्थकता िै। परोपकार से व्यजक्त को सच्चा आनींद प्राप्त िोता िै।
इसी आनींद के िशीभूत िोकर व्यजक्त अपना तन-मन और धन दे कर भी परोपकार करता िै।
मिवषथ दधीधच ने अपनी िड्डडयााँ दे कर मानिता का कल्यार् ककया तो लशवि ने अपने शर र
का माींस दे कर कबूतर की जान बचाई। िमें भी परोपकार का अिसर िार् से नि ीं जाने दे ना
चाहिए।
24. विपनत कसौट जे कसे तेई सााँचे मीत
अर्िा
विपवि का सार्ी : लमत्र
• लमत्र की आिश्यकता
• लमत्र का स्िभाि
• सन्मागथ पर ले जाते लमत्र
• लमत्र के चयन में सािधाननयााँ।
उसे जल की भााँनत नि ीं िोना चाहिए जो जाल पड़ने पर जाल में फाँसी मछललयों का सार्
छोड़कर दरू िो जाता िै और मछललयों को मरने के ललए छोड़ जाता िै । िास्ति में लमत्र का
स्िभाि श्रीराम और सुग्रीि के स्िभाि की भााँनत िोना चाहिए जजन्िोंने एक-दस
ू रे की मदद
करके अनुकरर्ीय उदािरर् प्रस्तुत ककया। एक सच्चा लमत्र को बुराइयों से िटाकर सन्मागथ
की ओर ले जाता िै।
एक सच्चा लमत्र अपने लमत्र को व्यसन से बचाकर सत्कायथ के ललए प्रेररत करता िै और
उसके ललए घािों पर लगी उस औषधध के समान साबबत िोता िै जो उसकी पीड़ा िरकर
शीतलता पिुाँचाती िै । व्यजक्त के पास धन दे खकर बिुत से लोग नाना प्रकार से लमत्र बनने
की चेष्टा करते िैं। िमें इन अिसरिाद लोगों से सािधान रिना चाहिए। िमार जी िुजूर
और चापलूसी करने िाले को भी सच्चा लमत्र नि ीं किा जा सकता िै ।
िमार गलत बातों का विरोधकर उधचत मागथदशथन कराने िाला ि सच्चा लमत्र िोता िै। िमें
लमत्र के चयन में सािधान रिना चाहिए ताकक लमत्रता धचरकाल तक बनी रिे ।
25. जीिन में व्यायाम का मित्त्ि
अर्िा
स्िास्थ्य के ललए हितकार : व्यायाम
यहद शर र स्िस्र् नि ीं िै तो दनु नया का कोई सुख व्यजक्त को रुधचकर नि ीं लगता िै , तभी
स्िास्थ्य को सबसे बड़ा धन किा गया िै। स्िास्थ्य पाने का एक साधन साजत्िक भोजन,
स्िस्र् आदतें , उधचत हदनचयाथ और दिाईयााँ िैं, पर ये सभी स्िस्र् रिने के साधन मात्र िैं।
स्िास्थ्य का अर्थ केिल शार ररक नि ीं बजल्क इस पररधध में मानलसक स्िास्थ्य भी आता िै।
इसे पाने की मुफ्त की औषधध िै -व्यायाम, जजसे पाने के ललए धन खचथ करने की आिश्यकता
नि ीं िोती िै। व्यायाम करने का सिोिम समय भोर की बेला िै जब िातािरर् में शाींनत, ििा
में शीतलता और सुगींध िोती िै । ऐसे िातािरर् में मन व्यायाम में लगता िै । व्यायाम से
िमारे शर र का रक्त प्रिाि ते़ि िोता िै , िड्डडयााँ म़िबूत और माींसपेलशयााँ लचील बनती िैं।
इससे तन-मन दोनों स्िस्र् िोता िै। िमें भी समय ननकालकर व्यायाम अिश्य करना चाहिए।
• अनुशासन का अर्थ
• अनुशासन की आिश्यकता
• प्रकृनत में अनुशासन
• अनुशासन सफलता की कींु जी।
‘शासन’ शब्द में ‘अनु’ उपसगथ जोड़ने से अनुशासन शब्द बना िै , जजसका अर्थ िै शासन के
पीछे चलना अर्ाथत ् समाज द्िारा बनाए ननयमों का पालन करते िुए मयाथहदत जीिन जीना।
जीिन के िर क्षेत्र और िर काल में अनशु ासन की मििा िोती िै पर विद्यार्ी काल जीिन
की नीींि के समान िोता िै। इस काल में अनश
ु ासन की आिश्यकता और मििा और भी बढ़
जाती िै।
इस काल में विद्यार्ी जो कुछ सीखता िै िि उसके जीिन में काम आता िै । इस काल में
एक बार अनश
ु ासनबद्ध जीिन की आदत पड़ जाने पर आजीिन यि आदत बनी रिती िै ।
मानि मन अत्यींत चींचल िोता िै। िि स्िच्छीं द आचरर् करना चािता िै। इसके ललए
अनश
ु ासन बिुत आिश्यक िै । प्रकृनत अपने कायथ व्यििार से मनष्ु य तर्ा अन्य प्राखर्यों को
अनशु ासन का पाठ पढ़ाती िै ।
सय
ू थ समय पर ननकलता िै । चााँद और तारे रात िोने पर चमकना नि ीं भल
ू ते िैं। ऋतु आने
पर फूल खखलना नि ीं भल
ू ते िैं। िषाथ ऋतु में बादल बरसना और समयानस
ु ार िक्ष
ृ फल नि ीं
भल
ू ते िैं। ऋतए
ु ाँ समय पर आती जाती िैं और मग
ु ाथ समय पर बााँग दे ता िै । ये िमें
अनुशासन का पाठ पढ़ाते िैं।
• समय की पिचान
• समय पर काम न करने पर पछताना व्यर्थ
• समय का सदप
ु योग-सफलता का सोपान
• आलस्य का त्याग।
एक सूजक्त िै–’समय और सूजक्त ककसी की प्रतीक्षा नि ीं करते िैं।’ ये आते और जाते रिते िैं,
चािे कोई इनका लाभ उठाए या नि ीं पर गुर्िान लोग समय की मििा समझकर समय का
लाभ उठाते िैं। एक चतुर मछुआरा अपने जाल और नाि के सार् ज्िार की प्रतीक्षा करता िै
और उसका लाभ उठाता िै। जो लोग समय पर काम नि ीं करते िैं उनके िार् पछताने के
लसिा कुछ भी नि ीं लगता िै ।
समय बीतने पर काम करने से उसकी सफलता का आनींद सूख जाता िै । ऐसे ि लोगों के
ललए गोस्िामी तुलसीदास ने किा िै -‘समय चूकक िा पुनन पछताने।’ का बरखा जब कृवष
सुखाने। अर्ाथत ् समय पर काम करने से चक कर पछताना उसी तरि िै जैसा कक फ़सल
सखने के बाद िषाथ िोने से िि िर नि ीं िो पाती िै । जो व्यकक सदप
ु योग करते िैं िे िर
काम में सफल िोते िैं।
शत्रु आक्रमर् का जो दे श मक
ु ाबला नि ीं करता िि गल
ु ाम िोकर रि जाता िै , समय पर बीज
न बोने िाले ककसान की फ़सल अच्छी नि ीं िोती िै और समय पर िषाथ न िोने से भयानक
अकाल पड़ जाता िै। इस तरि ननस्सींदेि समय का उपयोग सफलता का सोपान िै। समय पर
काम करने के ललए आिश्यक िै -आलस्य का त्याग करना। आलस्य भाि बनाए रखकर समय
पर काम परू ा करना कहठन िै । अतः िमें आलस्य भाि त्यागकर समय का सदप
ु योग करना
चाहिए।
28. दे शाटन
अर्िा
मनोरीं जन का साधन : पयथटन
• दे शाटन क्या िै ?
• दे शाटन का मित्त्ि
• दे शाटन के लाभ
• दे श की प्रगनत में सिायक।
‘दे शाटन’ शब्द दो शब्दों ‘दे श’ और ‘अटन’ के मेल से बना िै जजसका अर्थ िै दे श का भ्रमर्
करना अर्ाथत ् ज्ञान और मनोरीं जन के उद्दे श्य से ककया जाने िाला भ्रमर् दे शाटन किलाता
िै। दे शाटन करना मनुष्य की स्िाभाविक विशेषता िै । िि प्राचीनकाल से ि लशकार और
आश्रय के उद्दे श्य से भटकता रिा िै । मनुष्य आज भी भ्रमर् करता िै पर उसके भ्रमर् की
मििा आज अधधक िै।
िि लभन्न-लभन्न लोगों की भाषाओीं से पररधचत िोता िै । इससे राष्र य एकता म़िबूत िोती
िै। दे शाटन से दे श के विकास में सिायता िोती िै। पयथटन उद्योग फलता-फूलता िै और
विदे शी मुद्रा भींडार में िद्
ृ धध िोती िै । लोगों को रोजगार लमलता िै । इस प्रकार व्यजक्त और
राष्र दोनों की आय बढ़ती िै। िमें अिसर लमलते ि दे शाटन अिश्य करना चाहिए।
• यात्रा की तैयार
• रास्ते का सौंदयथ
• पिथतीय सौंदयथ
• यादगार पल।
मनुष्य के मन में यात्रा करने का विचार ़िोर मारता रिता िै। उसे बस मौके की तलाश
रिती िै। मुझे भी यात्रा करना बिुत अच्छा लगता िै । आखखर मुझे अक्टूबर के मि ने में यि
मौका लमल ि गया जब वपता जी ने बताया कक िम सभी िैष्र्ो दे िी जाएाँगे। िैष्र्ो दे िी का
नाम सुनते ि मन बजल्लयों उछलने लगा और मैं तैयार में जुट गया। उधर मााँ भी आिश्यक
तैयाररयााँ करने के क्रम में कपड़े, चादर और खाने के ललए नमकीन बबस्कुट आहद पैक करने
लगी।
आखखर ननयत समय पर िम प्रात: तीन बजे नई हदल्ल स्टे शन पर पिुाँचे और स्िराज
एक्सप्रेस से जम्मू के ललए चल पड़े। लगभग आधे घींटे बाद िम हदल्ल की सीमा पार करते
िुए सोनीपत पिुाँचे। अब तक सिेरा िो चुका र्ा। दोनों ओर दरू तक िरे -भरे खेत हदखाई दे ने
लगे। इसी बीच पूरब से भगिान भास्कर का उदय िुआ। उनका यि रूप मैं हदल्ल में नि ीं
दे ख सका र्ा।
दस बजे तक तो मैं जागता रिा पर उसके बाद चक्की बैंक पिुाँचने पर मेर नीींद खुल । उससे
आगे जाने पर िमें एक ओर पिाड़ ऩिर आ रिे र्े। ििााँ से कटरा जाकर िमने पैदल चढ़ाई
की। पिथतों को इतने ननकट से दे खने का यि मेरा पिला अिसर र्ा। इनकी ऊाँचाई और
मिानता दे खकर अपनी लघुता का अिसास िो रिा र्ा।
अब मुझे समझ में आया कक ‘अब आया ऊाँट पिाड़ के नीचे’ मुिािरा क्यों किा गया िोगा।
िैष्र्ो दे िी पिुाँचकर ििााँ का पिथतीय सौंदयथ िमारे हदलो-हदमाग पर अींककत िो गया। ििााँ से
भैरि मींहदर पिुाँचकर जजस सौंदयथ के दशथन िुए िि आजीिन भल ु ाए नि ीं भल
ू ेगा।
30. पर क्षा का डर
अर्िा
पर क्षा से पिले मेर मनोदशा
• पर क्षा नाम से भय
• पयाथप्त तैयार
• घबरािट और हदल की धड़कनें िुई ते़ि
• प्रश्न-पत्र दे खकर भय िुआ दरू ।
पर क्षा िि शब्द िै जजसे सुनते ि अच्छे अच्छों के मार्े पर पसीना आ जाता िै । पर क्षा का
नाम सुनते ि मेरा भी भयभीत िोना स्िाभाविक िै। ज्यों-ज्यों पर क्षा की घड़ी ननकट आती
जा रि र्ी त्यों-त्यों यि घबरािट और भी बढ़ती जा रि र्ी। जजतना भी पढ़ता र्ा घबरािट
में सब भूला-सा मिसूस िो रिा र्ा। खाने-पीने में भी अरुधच-सी िो रि र्ी।
इस घबरािट में न जाने कब ‘जय िनुमान ज्ञान गुर् सागर’-उच्चररत िोने लगता र्ा पता
नि ीं। यद्यवप मैं अपनी तरफ से पर क्षा का भय भूलने और सभी प्रश्नों के उिर दोिराने की
तैयार कर रिा र्ा और जजन प्रश्नों पर तननक भी आशींका िोती तो उस पर ननशान लगाकर
वपता जी से शाम को िल करिा लेता र्ा पर मन में कि ीं न कि ीं भय तो र्ा ि । पर क्षा का
हदन आखखर आ ि गया।
सार तैयाररयों को समेटे मैं पर क्षा भिन में चला गया पर प्रश्न-पत्र िार् में आने तक मन
में तरि-तरि की आशींकाएाँ आती जाती रि । मैंने अपनी सीट पर बैठकर आाँखें बींद ककए
प्रश्न-पत्र लमलने का इींत़िार करने पर घबरािट के सार्-सार् हदल की धड़कने ते़ि िो गई
र्ी। इसी बीच घींट बजी। कक्ष ननर क्षक ने पिले िमें उिर पुजस्तकाएाँ द कफर दस लमनट
बाद प्रश्न-पत्र हदया।
कााँपते िार्ों से मैंने प्रश्न पत्र ललया और पढ़ना शुरू ककया। शुरू के पेज के चारों प्रश्नों को
पढ़कर मेर घबरािट आधी िो गई क्योंकक उनमें से चारों के जिाब मुझे आते र्े। पूरा प्रश्न
पत्र पढ़ा। अब मैं प्रसन्न र्ा क्योंकक एक का उिर छोड़कर सभी के उिर ललख सकता र्ा।
मेर घबरािट छू मींतर िो चुकी र्ी। अब मैं ललखने में व्यस्त िो गया।
31. दे श-प्रेम
अर्िा
प्रार्ों से प्यारा : दे श िमारा
मनुष्य की स्िाभाविक विशेषता िै कक िि जजस व्यजक्त, िस्तु या स्र्ान के सार् कुछ समय
बबता लेता िै उससे उसका लगाि िो जाता िै। ऐसे में जजस दे श में उसने जन्म पाया िै , जिााँ
का अन्न-जल और िायु ग्रिर् कर बड़ा िुआ िै , उस स्र्ान से लगाि िोना लाजजमी िै। इसी
लगाि का नाम िै दे श-प्रेम। अर्ाथत ् दे श के कर्-कर् से प्रेम िोना उसकी सजीि-ननजीि
िस्तुओीं के अलािा पेड़-पौधे, जीि-जींतुओीं और मनुष्यों से प्यार करना दे श-प्रेम किलाता िै।
पिथ मानि जीिन को मनोरीं जन और ऊजाथ से भरकर मनुष्य की नीरसता दरू करते िैं। इन
पयों को साींस्कृनतक, सामाजजक और राष्र य पयों के रूप में बााँटा जा सकता िै। राष्र य पिथ
िे पिथ िैं जजन्िें राष्र के सारे लोग बबना ककसी भेदभाि के एकजुट िोकर मनाते िैं। इनका
सीधा सींबींध दे श की एकता और अखींडता से िोता िै।
राष्र य पिथ व्यजक्तगत न िोकर राष्र य िोते िैं, इसललए दे शिालसयों के अलािा विलभन्न
प्रशासननक और सरकार कायाथलय, विलभन्न सींस्र्ाएाँ लमल-जुलकर मनाती िैं। इस हदन दे श में
सरकार अिकाश रिता िै । यिााँ तक कक दक
ु ानें और फैजक्रयााँ भी बींद रिती िैं ताकक दे शिासी
इन्िें मनाने में अपना योगदान दें । िमारे राष्र य पिथ िैं-स्ितींत्रता हदिस (15 अगस्त), गर्तींत्र
हदिस (26 जनिर ) और गाींधी जयींती (02 अक्टूबर)।
स्ितींत्रता हदिस और गर्तींत्र हदिस के अिसर पर प्रातःकाल सरकार कायाथलयों एिीं भिनों
पर झींडा फिराया जाता िै और रीं गारीं ग साींस्कृनतक कायथक्रम प्रस्तुत ककया जाता िै । इस हदन
दे शभक्तों और शि दों के योगदान को याद करते िुए स्ितींत्रता बनाए रखने की प्रनतबद्धता
दोिराई जाती िै। गाींधी जयींती के अिसर पर कृतज्ञ दे शिासी गाींधी जी के योगदान को याद
करते िैं और उनके बताए रास्ते पर चलने की प्रनतज्ञा करते िैं।
दे श की एकता अखींडता बनाए रखने में राष्र य त्योिार मित्त्िपूर्थ भूलमका ननभाते िैं।
राष्रपनत और प्रधानमींत्री दे शिालसयों से एकता बनाए रखने का आह्िान करते िैं। ये पिथ िमें
एकजुट रिकर दे श की स्ितींत्रता की रक्षा करने तर्ा दे श के ललए तन-मन और धन न्योछािर
करने का सींदेश दे ते िैं। िमें इस सींदेश को सदा याद रखना चाहिए।
33. गााँिों का दे श भारत
अर्िा
गााँिों की दयनीय दशा
िमारे गााँिों में। अगर िमें अपने दे श की सच्ची तसिीर दे खनी िै तो िमें गााँिों की ओर रुख
करना पड़ेगा। िमारे दे श की आत्मा इन्ि ीं गााँिों में ननिास करती िै। दे श की जनसींख्या का
70 प्रनतशत से अधधक भाग इन्ि ीं गााँिों में बसता िै। इनमें से अधधकाींश लोगों की आजीविका
का साधन कृवष िै । यिााँ रिने िाले चािे खुद भूखे सो जाएाँ पर दे शिालसयों को पेट भरने का
दानयत्ि यि गााँि ननभाते िैं।
यिााँ के ककसानों का श्रम और कायथ दे खकर श्री लाल बिादरु शास्त्री ने ‘जय जिान जय
ककसान’ का नारा हदया र्ा। गााँिों में चारों ओर िररयाल का साम्राज्य िोता िै। ये पेड़-पौधे
ग्रामिालसयों को शुद्ध िायु उपलब्ध कराते िैं। यिााँ कारखाने और औद्योधगक इकाइयों का
अभाि िै। यिााँ मोटर गाडड़यों का न धुआाँ िै और न शोर। यिााँ का िातािरर् शुद्ध और
स्िास्थ्यिधथक िै।
गााँिों की धूलभर गललयााँ, कच्चे घर, घास-फूस की झोपडड़यााँ, नाललयों में बिता गींदा पानी,
मैले-कुचैले कपड़े पिने बच्चे और अधनींगे बदन िाले ककसान की दयनीय दशा दे खकर गााँिों
की अभाि ग्रस्तता का पता चल जाता िै । यिााँ रिने िालों की कृवष मानसून पर आधाररत िै ।
मानसून की कमी िोने पर फ़सल अच्छी नि ीं िोती िै जजससे उन्िें सािूकारों से कजथ लेने पर
वििश िोना पड़ता िै और िे ऋर् ग्रस्तता के जाल में फाँस जाते िैं।
प्रकृनत ने भारत को अनेक उपिार प्रदान ककए िैं। इन उपिारों में एक िै -छि ऋतुओीं का
उपिार । ये ऋतुएाँ एक के बाद एक बार बार से आती िैं और मुक्त िार्ों से सौंदयथ बबखरा
जाती िैं। ऋतओ
ु ीं के जैसा मनभािन मौसम का समन्िय भारत में बना रिता िै िैसा अन्यत्र
दल
ु भ
थ िै । िमारे दे श में छि ऋतुएाँ पाई जाती िैं। ये छि ऋतुएाँ िैं ग्रीष्म, िषाथ, शरद, लशलशर,
िे मींत और िसींत।
भारतीय मि नों के अनुसार बैसाख और जेठ ग्रीष्म ऋतु के मि ने िोते िैं। इस समय छोट -
छोट िनस्पनतयााँ सूख जाती िैं। धरती तिे-सी जलने लगती िै। आम, कटिल, फालसा, जामुन
आहद फल इस समय प्रचुरता से लमलते िैं। इसके बाद अगले दो मि ने िषाथ ऋतु के िोते िैं।
इस समय िषाथ िोती िै जो मुरझाई धरती और प्राखर्यों को निजीिन दे ती िैं।
अधधक िषाथ बाढ़ के रूप में प्रलय लाती िै । िषाथ ऋतु के उपराींत शरद ऋतु का आगमन िोता
िै। यि ऋतु दो मि ने तक रिती िै । दशिरा और द पािल इस ऋतु के प्रमुख त्योिार िैं।
इस समय सरद और गरमी बराबर िोती िै , जजससे मौसम सुिाना रिता िै। लशलशर और
िे मींत ऋतओ
ु ीं में कड़ाके की सरद पड़ती िै । िे मींत पतझड़ की ऋतु मानी िै। इस समय पेड़-
पौधे अपनी पवियााँ धगरा दे ते िैं।
इसके बाद ऋतुराज िसींत का आगमन िोता िै । इस से मौसम सुिािना िोता िै । चारों ओर
खखले फूल और सुगींधधत ििा इस समय को सुिािना बना दे ते िैं। स्िास्थ्य की दृजष्ट से यि
सिोिम ऋतु िै। विलभन्न ऋतुओीं का अपना अलग-अलग प्रभाि िोता िै। इस कारर् िमारा
खान-पान और रिन-सिन प्रभावित िोता िै। तरि-तरि की फ़सलों के उत्पादन में ऋतुएाँ
मित्त्िपूर्थ योगदान दे ती िैं। सचमुच ये ऋतुएाँ ककसी िरदान से कम नि ीं िैं।
35. भारतीय समाज में नार की जस्र्नत
अर्िा
भारतीय समाज में नार की बदलती जस्र्नत
स्त्री और पुरुष जीिन रूपी गाड़ी के दो पहिए िैं। इनमें जस्त्रयों की जस्र्नत में दे श काल और
पररजस्र्नत के अनुसार समय-समय पर बदलाि आता रिा िै। प्राचीनकाल में िमारे दे श में
जस्त्रयों को सम्मानजनक स्र्ान प्राप्त र्ा। िि यज्ञ कायों, िेद-पुरार् और ऋचाओीं की रचना
में सिभागी रिती र्ी। िि पुरुषों के कींधे से कींधा लमलाकर चलती र्ी।
उस समय किा जाता र्ा कक ‘यत्र नायाथस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र दे िता’ अर्ाथत जिााँ नाररयों
की पूजा िोती िै िि ीं दे िता ननिास करते िैं। इससे नार की उच्च जस्र्नत का अनुमान स्ियीं
लगाया जा सकता िै। मध्यकाल तक नाररयों की जस्र्नत में बिुत धगरािट आ चुकी र्ी। पुरुष
प्रधान समाज ने नाररयों को परदे की िस्तु बनाकर घर की चारद िार तक सीलमत कर
हदया।
धचककत्सा, लशक्षा, पुललस सेिा, प्रशासन आहद में िि अपनी योग्यता से पुरुषों से आगे ननकलती
जा रि िै। ‘बेट बचाओ बेट पढ़ाओ’, ‘लाडल योजना’ जैसी योजनाओीं के कारर् उनकी
जस्र्नत में सुधार िो रिा िै। नार त्याग, ममता, सिानुभूनत, स्नेि की मूनतथ िै । िमें नाररयों का
सम्मान करना चाहिए।
36. िन रिें गे-िम रिें गे
अर्िा
िनों की मििा
प्रकृनत ने मनुष्य को जो नाना प्रकार के उपिार हदए िैं, िन उनमें सबसे अधधक उपयोगी और
मित्त्िपूर्थ िैं। मनुष्य और प्रकृनत का सार् अनाहदकाल से रिा िै । पथ्
ृ िी पर जीिन योग्य जो
पररजस्र्नतयााँ िैं उन्िें बनाए रखने में िनों का विशेष योगदान िै । मनुष्य अन्य जीि-जींतुओीं
के सार् इन्ि ीं िनों में पैदा िुआ, पला, बढ़ा और सभ्य िोना सीखा।
िनों ने मनुष्य की िर जरूरत को पूरा ककया िै । िन िमें लकड़ी, छाया, फल-फूल, कोयला,
गोंद, कागज, नाना प्रकार की औषधधयााँ दे ते िैं। िे पशुओीं तर्ा पशु-पक्षक्षयों के ललए आश्रय-
स्र्ल उपलब्ध करते िैं। इससे जैि विविधता और प्राकृनतक सींतुलन बना रिता िै । िन िषाथ
लाने में सिायक िैं जजससे प्रार्ी निजीिन पाते िैं। िन बाढ़ रोकते िैं और भूक्षरर् कम
करते िैं तर्ा धरती का उपजाऊपन बनाए रखते िैं।
िास्ति में िन मानिजीिन का सींरक्षर् करते िैं। िन परोपकार लशि के समान िैं जो
विषाक्त िायु का स्ियीं सेिन करते िैं और बदले में प्रार्दायी शुद्ध ऑक सीजन दे ते िैं।
दभ
ु ाथग्य से मनुष्य की जब ़िरूरतें बढ़ने लगी तो उसने िनों की अींधाधुींध कटाई शुरू कर द ।
नई बजस्तयााँ बनाने, कृवष योग्य भूलम पाने, सड़कें बनाने आहद के ललए पेड़ों की कटाई की गई,
जजससे पयाथिरर् असींतुलन बढ़ा और िैजश्िक ऊष्मीकरर् में िद्
ृ धध िुई।
इससे असमय िषाथ, बाढ़, सूखा आहद का खतरा उत्पन्न िो गया। धरती पर जीिन बचाने के
ललए पेड़ों को बचाना आिश्यक िै। आओ िम जीिन बचाने के ललए अधधकाधधक पेड़ लगाने
और बचाने की प्रनतज्ञा करते िैं।
37. प्रदष
ू र् की समस्या
अर्िा
जीिन खतरे में डालता प्रदष
ू र्
• प्रदष
ू र् का अर्थ
• प्रदष
ू र् के कारर्
• प्रदष
ू र् के प्रभाि
• प्रदष
ू र् से बचाि के उपाय।
स्िस्र् जीिन के ललए आिश्यक िै कक िम जजन िस्तुओीं का सेिन करें , जजस िातािरर् में
रिें िि साफ़-सुर्रा िो। जब िमारे पयाथिरर् और िायुमींडल में ऐसे तत्ि लमल जाते िैं जो
उसे दवू षत करते िैं तर्ा इनका स्तर इतना बढ़ जाता िै कक स्िास्थ्य के ललए िाननकारक िो
जाते िैं तब यि जस्र्नत प्रदष
ू र् किलाती िै । आज सभ्यता और विकास की इस दौड़ में
मनुष्य के कायथ व्यििार ने प्रदष
ू र् को खूब बढ़ाया िै ।
मोटर-गाडड़यों और फैजक्रयों के शोर के कारर् स्िास्थ्य बुर तरि प्रभावित िुआ िै । अनत
िजृ ष्ट, अनािजृ ष्ट और असमय िषाथ प्रदष
ू र् का ि दष्ु पररर्ाम िै । इस प्रदष
ू र् से बचने का
सिोिम उपाय िै अधधकाधधक िन लगाना। पेड़ लगाकर प्रकृनत में सींतुलन लाया जा सकता
िै। इसके अलािा िमें सादा जीिन उच्च विचार िाल जीिन शैल अपनाते िुए प्रकृनत के
कर ब लौटना चाहिए।
38. बाल म़िदरू
अर्िा
बाल मजदरू : समाज के ललए अलभशाप
समाज शाजस्त्रयों ने मानिजीिन को आयु के विलभन्न िगों में बााँटा िै । इसके अनुसार
सामान्यतया 5 से 11 साल के बच्चे को बालक किा जाता िै। इसी उम्र में बालक विद्यालय
जाकर पढ़ना-ललखना सीखता िै और लशक्षक्षत जीिन की नीींि रखता िै परीं तु पररजस्र्नतयााँ
प्रनतकूल िोने के कारर् जब बच्चे को पढ़ने-ललखने का मौका नि ीं लमलता िै और उसे अपना
पेट पालने के ललए न चािते िुए काम करना पड़ता िै तो उसे बाल मजदरू किते िैं।
मजदरू की भााँनत काम करने िाले इन बालकों को बाल म़िदरू किते िैं। बाल मजदरू के मूल
में िै -गर बी। गर ब माता-वपता जब बच्चे को विद्यालय भेजने की जस्र्नत में नि ीं िोते िैं
और िे पररिार की मूलभूत आिश्यकताओीं की पूनतथ नि ीं कर पाते िैं तो िे अपने बच्चों को
भी काम पर भेजना शुरू कर दे ते िैं। इसका एक कारर् समाज के कुछ लोगों की शोषर् की
प्रिवृ ि भी िै।
िे अपने लाभ के ललए कम मजदरू दे कर इन बच्चों से काम करिाते िैं। बाल मजदरू के
कुछ विशेष क्षेत्र िैं जिााँ बच्चों से काम कराया जाता िै । हदयासलाई उद्योग, पटाखा उद्योग,
अगरबवियों के कारखाने, काल न बुनाई, चूड़ी उद्योग, बीड़ी, गुटखा फैजक्रयों में बच्चों से काम
ललया जाता िै।
बाल मजदरू रोकने के ललए सरकार को कड़े कदम उठाने की ़िरूरत िै । बाल मजदरू ों को
म़िबूर से मुक्त कराकर उन्िें लशक्षक्षत और प्रलशक्षक्षत ककया जाना चाहिए। इसके अलािा
स्िार्ी लोगों को अपनी स्िार्थिवृ ि त्यागकर इन बच्चों पर दया करना चाहिए और इनसे काम
नि ीं करिाना चाहिए।
39. मिानगरों की यातायात को सुखद बनाती-मैरो रे ल
अर्िा
यात्रा सख
ु द बनाती-मैरो रे ल
मिानगर सुख-सुविधा के केंद्र माने जाते िैं। इसी सुख-सुविधा का आकषथर् लोगों को अपनी
ओर खीींचता िै जजससे लोग मिानगरों की ओर पलायन करते िैं। इसका पररर्ाम यि िोता िै
कक मिानगर भीड़भाड़ का केंद्र बनते जा रिे िैं। यिााँ भीड़ के कारर् यातायात कहठन िो गया
िै। यिााँ काम-काज के लसललसले में लोगों को लींबी यात्राएाँ करनी पड़ती िैं जो भीड़ के कारर्
दष्ु कर िो जाती िैं। र्ोड़ी दरू की यात्रा भी पिाड़ पार करने जैसा िो जाती िै ।
ऐसे में आिागमन को सरल, सुगम और सुखद बनाने के ललए ऐसे साधन की आिश्यकता
मिसूस िोने लगी जो इनका समाधान कर सके। मिानगरों में आिागमन की समस्या को िल
ककया िै मैरो रे ल ने। आज मैरो रे ल हदल्ल के अलािा अन्य मिानगरों जैसे-मुींबई, जयपुर,
लखनऊ, चेन्नई आहद में सींचाललत करने की योजना िै जजन पर जोर-शोर से काम िो रिा िै।
मैरो रे ल का सींचालन खींभों पर पटररयााँ बबछाकर ़िमीन से काफ़ी ऊाँचाई पर ककया जाता िै।
इस कारर् जाम की समस्या से मुजक्त तो लमल िै तीव्र गनत से यात्रा भी सींभि िो गई िै।
इसके अलािा िातानुकूललत मैरो रे ल की यात्रा लोगों को र्कान, धचड़धचड़ेपन और रक्तचाप
बढ़ने से बचाती िै । इस यात्रा के बाद भी र्कान की अनुभूनत नि ीं िोती िै। मैरो में लोगों की
बढ़ती भीड़ इसका स्ियीं में प्रमार् िै। िमें मैरो रे ल के ननयमों का पालन करते िुए स्टे शन
और रे ल को साफ़-सुर्रा बनाना चाहिए ताकक यि सुखद यात्रा सदा िरदान जैसी बनी रिे ।
40. जल िै तो जीिन िै
अर्िा
जल ि जीिन िै
अर्िा
जल सींरक्षर्-आज की आिश्यकता
• जीिनदायी जल
• जल प्रदष
ू र् के कारर्
• जल सींरक्षर् ककतना ़िरूर
• जल सींरक्षर् के उपाय।
पथ्
ृ िी पर प्राखर्यों के जीिन के ललए ििा के बाद सबसे आिश्यक िस्तु िै -जल। यद्यवप
भोजन भी आिश्यक िै पर इस भोजन को तरल रूप में लाने और सुपाच्य बनाने के ललए
जल की आिश्यकता िोती िै। मानि शर र में लगभग 70 प्रनतशत जल िोता िै। किा भी
गया िै -क्षक्षनत, जल, पािक, गगन, समीरा। पींच तत्ि से बना शर रा। िनस्पनतयों में तो 80
प्रनतशत से ज़्यादा जल पाया जाता िै। इस जल के बबना जीिन की कल्पना करना कहठन िै।
पथ्
ृ िी पर यूाँ तो तीन चौर्ाई भाग जल ि िै पर इसमें पीने योग्य जल की मात्रा बिुत कम
िै। यि पीने योग्य जल कुओीं, तालाबों, नहदयों और झीलों में पाया जाता िै जो मनुष्य की
स्िार्थपूर्थ गनतविधधयों के कारर् दवू षत िोता जा रिा िै । मनुष्य नद , तालाबों में खुद निाता
िै और जानिरों को निलाता िै।