Professional Documents
Culture Documents
जबलपुर संभाग
अध्ययन सामग्री
विन्द्दी
कक्षा -10
2023-24
1
संरक्षक
श्री सौवमत श्रीिास्ति
उपायुक्त, के वि सं जबलपुर संभाग
धमेन्द्र भारद्वाज
विन्द्दी विषय समन्द्ियक
प्राचाया
पी एम श्री के वि क्र 3 सागर
2
िांड- क (िैकल्ल्पक प्रश्ि)
अपठित बोध
अपठित बोध का अर्थ – अपठित शब्द का अर्थ है जो पढ़ा हुआ न हो। अर्ाथत ऐसा अवतरण जो पाठ्य पस् ु तक से नह ीं
लिया गया है । यह शब्द ‘अ’ उपसगथ, ‘पठ्’ धातु (क्रिया) तर्ा ‘इत’ प्रत्यय से लििकर बना है । यहााँ ‘अ’ का अर्थ है
‘नह ीं’ और ‘पठित’ का अर्थ है ‘पढ़ा हुआ’ या ‘पढ़ा गया’ अर्ाथत पहिे नह ीं पढ़ा हुआ। ‘बोध’ शब्द का अर्थ है ‘सिझ’।
आशय यह है क्रक ववद्यार्र्थयों को वह गद्याींश अर्वा पद्याींश पढ़कर सिझना है जो उनकी पाठ्य पस्ु तक िें नह ीं है ।
अपठित गद्याींश अर्वा पद्याींश को सिझने के लिए ववद्यार्र्थयों को ननम्नलिखित बबन्दओ
ु ीं पर ध्यान दे ना चाठहए।
✓ िहत्त्वपण
ू थ पींजततयों, वातयाींशों एवीं शब्दों को पेंलसि से रे िाींक्रकत करें ।
✓ अवतरण से सींबर्ीं धत ठदए गए प्रश्नों को पढ़कर उत्तर के लिए सींभाववत पींजततयों को र्चह्नाींक्रकत करें ।
✓ जजन प्रश्नों के उत्तर स्पटि न हों, उनके उत्तर जानने के लिए गद्याींश को पन
ु : ध्यान से पढ़ें ।
धिथ के नाि पर होने वािे जानतगत ववद्वेष, िारकाि और ठहींसा के पीछे िनटु य की यह स्वार्थ-भावना काि करती है ।
सोच कर दे खिए क्रक आदिी का यह दृजटिकोण क्रकतना सीलित, स्वार्थपण
ू थ और गित है । सभी धिथ अपनी-अपनी
भौगोलिक, साींस्कृनतक और ऐनतहालसक आवश्यकताओीं के आधार पर पैदा होते, पनपते और बढ़ते हैं, अतएव उनका
बाह्य स्वरूप लभन्न-लभन्न होना आवश्यक और स्वाभाववक है , पर सबके भीतर िनटु य की कल्याण-कािना है , िानव-
प्रेि है ।
i- सि
ु ी, सफि और उत्तम जीिि जीिे के लिए ककए गए आचरण और प्र्त्िों को ककस िाम से जािते हैं ?
(क) उत्तरदानयत्व
(ि) किथ
1
(ग) धिथ
(घ) आचरण
ii- सांसार में अत््धधक विविधता क््ों है ?
(क) आवश्यक वस्तओ
ु ीं के कारण
(ि) दे श, काि और सािाजजक िल्
ू यों के कारण
(ग) राजनेताओीं के कारण
(घ) धालिथक िान्यताओीं के कारण
iii- ककस बात के लिए मिष्ु ् जोर-जबरिस्ती को भी बरु ा िहीां समझता है ?
(क) अपने धिथ को श्रेटितर िानते हुए उसे अपनाने के लिए कहना
(ि) अपने ववचारों के अनसु ार जीवन जीना
(ग) दस
ू रों को सदै व ह न सिझना
(घ) ववववधता को स्वीकार करके जीवन बबताना
iv- आिमी का कौि-सा दृल्ष्िकोण सीलमत, स्िार्थपण
ू थ और गित है ?
(क) सभी धिों िें एकता का भाव होना
(ि) सबके लिए कल्याण-कािना करना
(ग) अपनी भाषा और िानपान को सवथश्रेटि िानना
(घ) धिथ के नाि पर होने वािे जानतगत ववद्वेष, िारकाि और ठहींसा
v- ‘ऐनतहालसक’ शब्ि में मि
ू शब्ि और प्रत््् का सही रूप कौि-सा है ?
(क) ऐनत + हालसक
(ि) इनतहास + इक
(ग) ऐनतहा + लसक
(घ) ऐ + नतहालसक
उत्तर- i. (ग) धिथ ii. (ि) दे श, काि और सािाजजक िल्
ू यों के कारण iii. (क) अपने धिथ को श्रेटितर िानते हुए
उसे अपनाने के लिए कहना iv. (घ) धिथ के नाि पर होने वािे जानतगत ववद्वेष, िारकाि और ठहींसा
v. (ि) इनतहास + इक
सिद्र
ु -ति से पींद्रह सौ िीिर की ऊाँचाई पर जस्र्त डि एक प्राकृनतक झीि है और कोई पचास हजार साि
परु ानी है । श्रीनगर शहर के पव
ू ी और उत्तर-पव
ू ी ठदशा िें जस्र्त यह जि-ननर्ध पहाडों के बीच ववकलसत हुई
र्ी। सरकार ररकाडथ गवाह है क्रक 1200 ई. िें इस झीि का फैिाव पचहत्तर वगथ क्रकिोिीिर िें र्ा। 1847 ई.
िें इसका िेत्रफि अड़ताि स वगथ क्रकिी आाँका गया। 1983 ई. िें हुए िाप-जोि िें यह िहज साढ़े दस वगथ
क्रकिी रह गई। अब इसिें जि का फैिाव आि वगथ क्रकिी रह गया है । इन ठदनों सार दनु नया िें ग्िोबि
2
वालििंग का शोर है और िोग बेिबर हैं क्रक इसकी िार इस झीि पर भी पड़ने वाि है । इसका लसकुड़ना
इसी तरह जार रहा तो इसका अजस्तत्व केवि तीन सौ पचास साि रह सकता है ।
3
व्यजततत्व िें ववशेषताएाँ साध्य एवीं साधन दोनों ह रूपों िें अर्थपण
ू थ सिझी जाती हैं। वस्तत
ु : सींस्कृनत सािठू हक
उल्िास की किात्िक अलभव्यजतत है । सींस्कृनत व्यजतत की नह ीं, सिजटि की अलभव्यजतत है ।
डॉ० सींपण
ू ाथनद
ीं ने कहा है - “सींस्कृनत उस दृजटिकोण को कहते हैं, जजसिें कोई सिद
ु ाय ववशेष जीवन की सिस्याओीं पर
दृजटि ननिेप करता है ।” सींिेप िें वह सिद
ु ाय की चेतना बनकर प्रकाशिान होती है । यह चेतना प्राणों की प्रेरणा है
और यह भावना प्रेि िें प्रद प्त हो उिती है । यह प्रेि सींस्कृनत का तेजस तत्व है , जो चारों ओर पररिक्षित होता है ।
प्रेि वह तत्व है , जो सींस्कृनत के केंद्र िें जस्र्त है । इसी प्रेि से श्रद्धा उत्पन्न होती है , सिपथण जन्ि िेता है और
जीवन भी सार्थक िगता है ।
i. िेिक के अिस
ु ार सांस्कृनत क््ा है ?
(क) जीवन को आकृनत प्रदान करना,
(ि) उसिें किात्िक सींवेदना जगाना
(ग) प्राण-प्रनतटिा करना
(घ) उपयत
ुथ त सभी
ii. साांस्कृनतक विशेषताएँ ककससे सांबधां धत हैं?
(क) िनटु य की िनोववृ त्तयों से
(ि) ज्ञान से
(ग) ध्यान से
(घ) सिद
ु ाय से
iii. व््ल्क्तत्ि में विशेषताएँ ककि रूपों में अर्थपण
ू थ समझी जाती हैं?
(क) साध्य
(ि) साध्य एवीं साधन दोनों ह
(ग) साधन
(घ) इनिें से कोई नह ीं
iv. िेिक िे ककसे सांस्कृनत के केंद्र में ल्स्र्त मािा है ?
(क) सींस्कृनत को
(ि) सिद
ु ाय को
(ग) प्रेि
(घ) श्रद्धा
v. प्रस्तत
ु गद्ाांश का उधचत शीषथक है -
(क) प्रेि
(ि) सींस्कृनत
(ग) ज्ञान
(घ) श्रद्धा
उत्तर- i. (घ) उपयत
ुथ त सभी ii. (क) िनटु य की िनोववृ त्तयों से iii. (ि) साध्य एवीं साधन दोनों ह iv. (ग) प्रेि
v. (ि) सींस्कृनत
4
अनर्गनत राह गए इस राह से, उनका पता तया,
पर गए कुछ िोग इस पर, छोड़ पैरों की ननशानी,
यह ननशानी िक
ू होकर भी बहुत कुछ बोिती है ,
िोि इसका अर्थ, पींर्ी, पींर् का अनि
ु ान कर िे!
पव
ू थ चिने के बिोह , बाि की पहचान कर िे!
है अननजश्चत क्रकस जगह पर, सररत-र्गरर-गह्वर लििेंग,े
है अननजश्चत क्रकस जगह पर, बाग-बन सद
ुीं र लििेंगे,
क्रकस जगह यात्रा ित्ि हो जाएगी, यह भी अननजश्चत,
है अननजश्चत, कब सि
ु न, कब कींिकों के सर लििेंगे,
कौन सहसा छूि जाएाँगे, लििेंगे कौन सहसा,
आ पड़े कुछ भी, रुकेगा तू न, ऐसी आन कर िे!
पव
ू थ चिने के बिोह , बाि की पहचान कर िे!
i. कवि के अिस
ु ार कौि-सी कहािी पस्
ु तकों में िहीां छापी गई है ?
(क) पैरों की िक
ू ननशाननयों की
(ि) अनर्गनत राहगीरों की
(ग) जीवन रूपी पर् के पहचान की
(घ) इनिें से कोई नह ीं
ii. कौि-सी निशािी मक ू होकर भी बहुत कुछ बोिती है ? -
(क) पैरों की ननशानी
(ि) पर्र्क के जाने की
(ग) सच्चे िागथ पर चिने की
(घ) पस्
ु तकों िें लििी बातों की
iii. जीिि में क््ा-क््ा अनिल्श्चत है -
(क) िजु श्किों (सररत-र्गरर-गह्वर) का लििना
(ि) अनक
ु ू ि पररजस्र्नतयों (बाग-बन सद
ुीं र) का होना
(ग) जीवन का सिाप्त हो जाना
(घ) उपयत
ुथ त सभी
iv. कवि िे ककस पांल्क्त में निरां तर चिते रहिे के लिए प्रेररत कक्ा है ?
(क) पर गए कुछ िोग इस पर, छोड़ पैरों की ननशानी,
(ि) आ पड़े कुछ भी, रुकेगा तू न, ऐसी आन कर िे!
(ग) क्रकस जगह यात्रा ित्ि हो जाएगी, यह भी अननजश्चत,
(घ) पव
ू थ चिने के बिोह , बाि की पहचान कर िे!
v. निम्िलिखित में से प्रस्तत
ु काव््ाांश का उधचत शीषथक हो सकता है -
(क) छापी गई कहानी
(ि) अनर्गनत राह
(ग) पैरों की ननशानी
(घ) बाि की पहचान
उत्तर- i- (ग) जीवन रूपी पर् के पहचान की ii- (क) पैरों की ननशानी iii- (घ) उपयत
ुथ त सभी iv- (ि) आ पड़े कुछ
भी, रुकेगा तू न, ऐसी आन कर िे! v- (घ) बाि की पहचान
5
अपठित काव््ाांश (2)
6
(ि) िनटु य का परु
ु षार्थ
(ग) स्वरुप पाती लिट्ि
(घ) लिट्ि की िनू तथ
उत्तर- i- (क) लिट्ि ii- (ग) धन-धान्य बनकर िातरू
ृ पा हो जाती है iii- (ि) जब िनटु य अपने परु
ु षार्थ से पराजजत
होकर लिट्ि को पक
ु ारता है iv- (घ) लिट्ि v- (ि) िनटु य का परु
ु षार्थ
7
(क) स्वतींत्रता
(ि) नवयव
ु क
(ग) पररश्रि
(घ) राटर यता
उत्तर- i- (घ) उपयत
ुथ त सभी ii- (क) नवयव
ु कों पर iii- (ग) नवयग
ु के पटृ िों पर iv- (क) तयोंक्रक उनके लिए हर
ठदशा से नवीनता का आिींत्रण है v- (ि) नवयव
ु क
िाक््-विचार
ववधानवाचक वातय
सरि वातय
ननषेधवाचक वातय
सींयत
ु त वातय
प्रश्नवाचक वातय
लिश्र या लिर्श्रत वातय
आज्ञावाचक वातय
प्रधान उपवातय
इच्छावाचक वातय
आर्श्रत उपवातय
सींकेतवाचक वातय
सींज्ञा उपवातय
सींदेहवाचक वातय
ववशेषण उपवातय
ववस्ियसच
ू क वातय
क्रिया ववशेषण उपवातय
अभ््ास प्रश्ि
i. सोहि िे पररश्रम कक्ा ककन्तु सफि िहीां हो पा्ा। रचिा के आधार पर िाक््-भेि बताइए।
(क) सरि वातय
(ि) लिश्र वातय
(ग) सींयत
ु त वातय
(घ) इनिें से कोई नह ीं
ii. निम्िलिखित में से सरि िाक्् का उिाहरण है -
(क) क्रकसान बीज बोते हैं और फ़सि उगाते हैं।
(ि) रिेश सड़क पर तेजी से दौड़ सकता है ।
(ग) रिेश जैसे ह बाजार पहुाँचा वैसे ह बबजि चि गई।
घ) क और ि दोनों
iii. जो व््ल्क्त पररश्रम करता है िह सफि होता है । - रचिा के आधार पर िाक््-भेि है -
(क) लिश्र वातय
(ि) सींयत
ु त वातय
(ग) सरि वातय
(घ) इनिें से कोई नह ीं
iv. निम्िलिखित में से लमधश्रत िाक्् है -
(क) आज श्यािा को परु स्कार लििा र्ा।
(ि) श्यािा परु स्कार पाने से िुश र्ी।
(ग) श्यािा को परु स्कार लििा और वह बहुत िुश र्ी।
(घ) श्यािा बहुत िुश र्ी तयोंक्रक उसे परु स्कार लििा र्ा।
9
v. जो सिा सच बोिते हैं िे सज्जि होते हैं। - िाक्् का सरि िाक्् में रूपाांतरण होगा-
(क) सच बोिने वािे और सज्जन व्यजतत दोनों एक ह हैं।
(ि) सदा सच बोिने वािे सज्जन होते हैं।
(ग) सज्जन व्यजतत अिग होते हैं और सच बोिने वािे अिग होते हैं।
(घ) जो सज्जन होगा वह सच बोिेगा।
उत्तर- i- (ग) सींयत
ु त वातय ii- (ि) रिेश सड़क पर तेजी से दौड़ सकता है । iii- (क) लिश्र वातय iv- (घ) श्यािा
बहुत िुश र्ी तयोंक्रक उसे परु स्कार लििा र्ा v- (ि) सदा सच बोिने वािे सज्जन होते हैं।
िाच्् विचार
िाच््- क्रकसी वातय िें क्रिया के जजस रूप से कताथ, किथ अर्वा भाव की प्रधानता का पता चिे वह वाच्य कहिाता
है । जैसे-(1) वह पस्
ु तक पढ़ता है । (2) उसके द्वारा या उससे पस्
ु तक पढ़ जाती है । (3) उससे पढ़ा जाता है । इन
उदाहरणों िें पढ़ता है , पढ़ जाती है , पढ़ा जाता है - क्रिया के तीन अगि-अिग रूप हैं।
िाच्् के भेि- वाच्य के तीन भेद हैं- (1) कतव
थृ ाच्य (2) किथवाच्य (3) भाववाच्य।
कति
थृ ाच््- जब वातय िें क्रिया, कताथ के लिींग, वचन और परु
ु ष के अनस
ु ार होती है अर्ाथत कताथ की प्रधानता होती है
तब वहााँ कतव
थृ ाच्य होता है ।
जैसे (1) र्चड़ड़या आसिान िें उड़ती है । (2) श्यािा र्चत्र बनाती र्ी। (3) वे सब कोिकाता जाएाँगे। इन उदाहरणों िें
उड़ती है , बनाती र्ी और जाएाँगे क्रियाएाँ कताथ के लिींग, वचन, परु
ु ष के अनस
ु ार हैं।
कमथिाच््- जब वातय िें क्रिया, किथ के लिींग, वचन और परु
ु ष के अनस
ु ार होती है अर्ाथत किथ की प्रधानता होती है
तब वहााँ किथवाच्य होता है ।
जैसे (1) सोहन से गीत गाया जाता है । (2) श्यािा से र्चत्र बनाया जाता र्ा। (3) उनसे कोिकाता जाया जाएगा। इन
उदाहरणों िें गाया जाता है , बनाया जाता र्ा और जाया जाएगा क्रियाएाँ कताथ के लिींग, वचन, परु
ु ष के अनस
ु ार हैं।
भाििाच््- जब वातय िें क्रिया न तो कताथ और न ह किथ के लिींग, वचन और परु
ु ष के अनस
ु ार होती है बजल्क भाव
के अनस
ु ार होती है अर्ाथत भाव की प्रधानता होती है तब वहााँ भाववाच्य होता है ।
जैसे (1) र्चड़ड़या से उड़ा जाता है । (2) श्यािा से हाँसा जाता र्ा। (3) उनसे जाया जाएगा। इन उदाहरणों िें - उड़ा
जाता है , हाँसा जाता र्ा और जाया जाएगा क्रियाएाँ भाव के अनस
ु ार पलु िींग, एकवचन, प्रर्ि परु
ु ष िें हैं।
विशेष- वातय िें अकिथक क्रिया होने पर सदै व भाववाच्य िें ह क्रिया का रूप पररवतथन होगा और सकिथक क्रिया होने
पर सदै व किथवाच्य िें ह क्रिया का रूप पररवतथन होगा।
कतव
थृ ाच्य
किथवाच्य भाववाच्य
वाच्य के भेद
10
अभ््ास प्रश्ि
i. ्ह कहािी मेरे दिारा लििी गई है । इस िाक्् में िाच्् है -
(क) कतव
थृ ाच्य
(ि) किथवाच्य
(ग) भाववाच्य
(घ) इनिें से कोई नह ीं
ii. निम्िलिखित में से भाििाच्् का उिाहरण है -
(क) र्चत्रकार ने र्चत्र बनाया है ।
(ि) वह पढ़ने के बाद लििता है ।
(ग) र्चड़ड़या से उड़ा नह ीं जाता।
(घ) रुपाि द्वारा िेि लििा जाता है ।
iii. मजिरू िे गिी में पत्र्र बबछा्ा। - इस िाक्् में िाच्् है -
(क) कतव
थृ ाच्य
(ि) किथवाच्य
(ग) भाववाच्य
(घ) इनिें से कोई नह ीं
iv. पज
ु ारी मांठिर में भजि गाता है । – इस िाक्् का कमथिाच्् में रूपाांतरण होगा-
(क) पज
ु ार िींठदर िें भजन नह ीं गाता है ।
(ि) पज
ु ार िींठदर िें भजन गाएगा।
(ग) पज
ु ार द्वारा िींठदर िें भजन गाया जाता है ।
(घ) पज
ु ार िींठदर िें भजन गा चुका र्ा
v. उससे िौड़ा िहीां जाता। - इस िाक्् का कति
थृ ाच्् में रूपाांतरण होगा-
(क) वह दौड़ नह ीं सकता।
(ि) उससे अवश्य दौड़ा जाएगा।
(ग) वह सड़क पर दौड़ सकता है ।
(घ) इनिें से कोई नह ीं।
उत्तर- i- (ि) किथवाच्य ii- (ग) र्चड़ड़या से उड़ा नह ीं जाता। iii- (क) कतव
थृ ाच्य iv- (ग) पज
ु ार द्वारा िींठदर िें
भजन गाया जाता है v- (क) वह दौड़ नह ीं सकता।
पि-पररच्
11
2. सिथिाम में - उपभेद, लिींग, वचन, परु
ु ष, कारक और क्रिया के सार् सींबध
ीं ।
3. विशेषण में- उपभेद, लिींग, वचन और ववशेटय का ववशेषण।
4. कि्ा में - उपभेद (किथ और काि के आधार पर), लिींग, वचन, परु
ु ष और वाच्य।
5. कि्ा विशेषण- उपभेद, क्रिया सम्पन्न होने की दशा, क्रिया की ववशेषता बताने वािा पद।
6. सांबध
ां बोधक- भेद, जजन पदों से सींबध
ीं बनता हो।
7. समच्
ु च्बोधक- उपभेद, जजन पदों वातयों या उपवातयों को जोड़ता हो।
8. विस्म्ाठिबोधक- उपभेद, जजस भाव का बोध कराता हो।
अन्् पि-
9. प्रविशेषण- पहचान और वह ववशेषण जजसकी ववशेषता बताता हो।
10. निपात- पहचान और वह पद जजस पर जोर दे ता हो।
विशेष ध््ातव््
सांज्ञा- व्यजततवाचक, जानतवाचक और भाववाचक।
सिथिाम- परु
ु षवाचक, ननश्चयवाचक, अननश्चयवाचक, सींबध
ीं वाचक, प्रश्नवाचक और ननजवाचक।
विशेषण- गण
ु वाचक, सींख्यावाचक, पररणािवाचक और सावथनालिक।
कि्ा- किथ के आधार पर- अकिथक और सकिथक। काि के आधार पर- वतथिान काि, भत
ू काि और भववटयकाि।
बिािि (रचिा) के आधार पर- सािान्य क्रिया, सींयत
ु त क्रिया, पव
ू क
थ ालिक क्रिया, प्रेरणार्थक क्रिया और नािधातु क्रिया।
कि्ा विशेषण- र नतवाचक, स्र्ानवाचक, कािवाचक और पररिाणवाचक।
सांबध
ां बोधक- (िख्
ु य रूप से) कािवाचक, स्र्ानवाचक, ठदशावाचक, साधनवाचक और ति
ु नावाचक।
समच्
ु च्बोधक- सिानार्धकरण और व्यर्धकरण।
विस्म्ाठिबोधक- (िख्
ु य रूप से) हषथसच
ू क, शोकसच
ू क, घण
ृ ासच
ू क, आश्चयथसच
ू क, भयसच
ू क और सींबोधन सच
ू क।
अभ््ास प्रश्ि
अिांकार पररच्
13
अिप्र
ु ास अिांकार- काव्य िें जहााँ एक ह वणथ बार-बार दोहराया जाए अर्ाथत ् वणों की आववृ त्त हो वहााँ अनप्र
ु ास अिींकार
होता है ।
जैस-े (1) कि कानन कींु डि िोर पिा, उर पे बनिाि बबराजत है ।
(2) भज
ु बि भलू ि भप
ू बबनु कीन्ह ीं। बबपि
ु बार िठह दे वन्ह द न्ह ीं।।
्मक अिांकार- काव्य िें जहााँ कोई शब्द एक से अर्धक बार आए िेक्रकन उसके अर्थ लभन्न-लभन्न हों वहााँ यिक
अिींकार होता है ।
जैस-े (1) काि घिा का घिींड घिा, नभ िींडि तारक वद
ीं ृ खििे।
(2) तीन बेर िाती र्ीीं वे तीन बेर िाती हैं।
श्िेष अिांकार- काव्य िें जहााँ कोई शब्द एक ह बार आए िेक्रकन उसके अर्थ लभन्न-लभन्न हों वहााँ यिक अिींकार
होता है ।
जैस-े (1) नर की अरु निनीर की गनत एकै करर जोए। जेतो नीचे ह्वै चिै तेतो ऊाँचो होए।।
(2) रावन लसर सरोज बनचार । चि रघव
ु ीर लशिीमि
ु धार ।।
अर्ाथिक
ां ार- जहााँ काव्य िें अर्थ के िाध्यि से काव्य का सौन्दयथ बढ़ जाता है , वहााँ अर्ाथिक
ीं ार होता है ।
जैस-े (1) चरण किि बन्दौ हरर राई।
(2) कोठि कुलिस सि बचन तम् ु हारा। ब्यर्थ धरहु धनु बान कुिारा।।
अर्ाथिक
ां ार के प्रकार- अर्ाथिक
ीं ार के ननम्नलिखित प्रकार हैं-
(1) उत्प्रेिा अिींकार (2) अनतशयोजतत अिींकार (3) िानवीकरण अिींकार
उत्प्रेक्षा अिांकार- जहााँ उपिेय िें उपिान की सींभावना या कल्पना व्यतत की जाय, वहााँ उत्प्रेिा अिींकार होता है ।
इसिें िनु, िानो, िानहु, जनु, जानो, जानहु आठद शब्दों का प्राय: प्रयोग हुआ रहता है ।
जैस-े (1) तम्
ु ह तौ काि हााँक जनु िावा। बार बार िोह िार्ग बोिावा।।
(2) सोहत ओढ़े पीत पि, श्याि सिोने गात।
िानहु नीििखण शैि पर, आतप परयो प्रभात।।
अनतश्ोल्क्त अिांकार- जहााँ क्रकसी व्यजतत या वस्तु का वणथन बहुत बढ़ा-चढ़ाकर क्रकया जाय क्रक वह िोक व्यवहार
िें असींभव िगे वहााँ अनतशयोजतत अिींकार होता है ।
जैस-े (1) हनि
ु ान की पाँछ
ू िें िगन न पाई आग। िींका सार जि गई गए ननशाचर भाग।।
(2) आगे नठदया पड़ी अपार, घोड़ा कै से उतरे पार।
राणा ने सोचा इस पार, तब तक चेतक र्ा उस पार।।
माििीकरण अिांकार- जहााँ काव्य िें प्रकृ नत की वस्तुओीं िें िानवीय कायथ- व्यवहार ठदिाया जाए वहााँ िानवीकरण
अिींकार होता है ।
जैसे- (1) िेघ आए बड़े बन-ढन के साँवर के।
(2) ठदवसावसान का सिय
िेघ आसिान से उतर रह है
वह सींध्या सद
ुीं र पर -सी
अिींकार के भेद
शब्दािींकार अर्ाथिींकार
अनप्र
ु ास यिक श्िेष उत्प्रेिा अनतशयोजतत िानवीकरण
अिींकार
14
अभ््ास प्रश्ि
15
गद् भाग
16
2. बार-बार सोचते तया होगा उस कौि का जो अपने दे श की िानतर घर-गह
ृ स्र्ी-जवानी-जजींदगी सब कुछ होि कर
दे नेवािों पर भी हाँसती है और अपने लिए बबकने के िौके ढूढ़ती है । दि
ु ी हो गए। पींद्रह ठदन बाद क्रफर उसी कस्बे से
गज
ु रे । कस्बे िें घस
ु ने से पहिे ह ियाि आया क्रक कस्बे की हृदयस्र्ि िें सभ
ु ाष की प्रनतिा अवश्य ह प्रनतटिावपत
होगी। िेक्रकन सभ
ु ाष की आाँिों पर चश्िा नह ीं होगा। तयोंक्रक िास्िर बनाना भि
ू गया। और कैप्िन िर गया। सोचा
आज वहााँ रुकेगे नह ीं, पान भी नह िाएाँगे िनू तथ की तरफ दे िेंगे भी नह ीं सीधे ननकि जाएाँगे। ड्राइवर से कह ठदया
चौराहे पर रुकना नह ीं आज बहुत काि है पान आगे कह ीं िा िेंगे ।
िेक्रकन आदत से िजबत ू आाँिे चौराहा आते ह िनू तथ की तरफ उि गई। कुछ ऐसा दे िा क्रक चीिे रोको! जीप स्पीड िें
र्ी ड्राइवर ने जोर से ब्रेक िारे । रास्ता चिते िोग दे िने िगे। जीप रुकते-न-रुकते हािदार साहब जीप से कूदकर
तेज-तेज कदिों से िनू तथ की तरफ िपके और उसके िीक सािने जाकर अिें शन िें िड़े हो गए। िनू तथ की आाँिों पर
सरकींडे से बना छोिा-सा चश्िा रिा हुआ र्ा, जैसा बच्चे बना िेते हैं। हािदार साहब भावक
ु हैं| इतनी-सी बात पर
उनकी आाँिें भर आईं।
i. हाििार साहब िि
ु ी क््ों हो गए ?
(क) दे श के कुछ िोग दे शभततों का िजाक उड़ाते हैं
(ि) सभ
ु ाष की िनू तथ पर चश्िा नह ीं र्ा
(ग) ड्राइवर ने चौराहे पर रुकने से िना कर ठदया र्ा
(घ) पानवािे की दक
ू ान बींद र्ी
ii. कस्बे की हृि्स्र्िी में ककसकी प्रनतमा र्ी?
(क) शह द भगत लसींह की
(ि) नेताजी सभ
ु ाष चन्द्र बोस की
(ग) िोहनदास करिचींद गााँधी की
(घ) सरदार वल्िभभाई पिे ि की
iii. हाििार साहब िे चौराहे पर ि रुकिे के विष् में क््ा सोचा ?
(क) आज बहुत काि है पान आगे कह ीं िा िेंगे
(ि) चौराहे पर सभ
ु ाष की आाँिों पर चश्िा नह ीं होगा
(ग) िास्िर बनाना भि
ू गया और कैप्िन िर गया
(घ) उपयत
ुथ त सभी
iv. जब जीप स्पीड में र्ी और ड्राइिर िे जोर से ब्रेक मारे तब क््ा हुआ?
(क) रास्ता चिते िोग दे िने िगे
(ि) हािदार साहब अिें शन िें िड़े हो गए
(ग) कैप्िन जीववत हो गया
(घ) हािदार साहब की आाँिों िें आाँसू आ गए
v. हाििार साहब की आँिें क््ों भर आईं?
(क) िनू तथ की आाँिों पर चश्िा नह ीं र्ा
(ि) पानवािा पान िेकर िड़ा र्ा
(ग) िनू तथ की आाँिों पर सरकींडे का चश्िा रिा र्ा
(घ) इनिें से कोई नह ीं
उत्तर-
i. (क) दे श के कुछ िोग दे शभततों का िजाक उड़ाते हैं ii. (ि) नेताजी सभ
ु ाष चन्द्र बोस की iii. (घ) उपयत
ुथ त सभी
iv. (क) रास्ता चिते िोग दे िने िगे v. (ग) िनू तथ की आाँिों पर सरकींडे का चश्िा रिा र्ा
17
बािगोबबि भगत – रामिक्ष
ृ बेिीपरु ी
निम्िलिखित गद्ाांश को पढ़कर िीचे ठिए गए प्रश्िों के उत्तर के विकल्प में से सही छाांिकर लिखिए-
1. कानतक आया नह ीं क्रक बािगोबबन भगत की प्रभानतयााँ शरू
ु हुईं, जो फागन
ु तक चिा करतीीं। इन ठदनों वह सबेरे ह
उिते। न जाने क्रकस वतत जगकर वह नद -स्नान को जाते - गााँव से दो िीि दरू ! वहााँ से नहा-धोकर िौिते और
गााँव के बाहर ह , पोिरे के ऊाँचे लभींडे पर, अपनी िाँजड़ी िेकर जा बैिते और अपने गाने िे रने िगते। िैं शरू
ु से ह दे र
तक सोनेवािा हूाँ, क्रकन्त,ु एक ठदन, िाघ की उस दााँत क्रकिक्रकिानेवाि भोर िें भी, उनका सींगीत िझ ु े पोिरे पर िे गया
र्ा। अभी आसिान के तारों के द पक बझ ु े नह ीं र्े। हााँ, परू ब िें िोह िग गई र्ी जजसकी िालििा को शि ु तारा और
बढ़ा रहा र्ा। िेत, बगीचा, घर - सब पर कुहासा छा रहा र्ा। सारा वातावरण अजीब रहस्य से आवत
ृ िािि
ू पड़ता
े़
र्ा। उस रहस्यिय वातावरण िें एक कुश की चिाई पर परू ब िाँह
ु , काि किि ओढे , बािगोबबन भगत अपनी िाँजड़ी
लिए बैिे र्े। उनके िाँह
ु से शब्दों का तााँता िगा र्ा, उनकी अाँगलु ियााँ िाँजड़ी पर िगातार चि रह र्ीीं। गाते-गाते इतने
िस्त हो जाते, इतने सरू
ु र िें आते, उत्तेजजत हो उिते क्रक िािि
ू होता, अब िड़े हो जाएाँगे। किि तो बार-बार लसर से
नीचे सरक जाती।
i. बािगोबबि भगत की प्रभानत्ाँ कब से शरू
ु होतीां और कब तक चिा करतीां ?
(क) चैत से फागन
ु तक
(ि) फागन
ु से कानतक तक
(ग) सावन से बैसाि तक
(घ) कानतक से फागन
ु तक
ii. िेिक िे आसमाि का िीपक ककसे कहा है जो अभी बझ
ु े िहीां र्े?
(क) सरू ज को
(ि) रोशनी को
(ग) तारों को
(घ) गीतों को
iii. िेत, बगीचा, घर – इि सब पर क््ा छा रहा र्ा ?
(क) सदी
(ि) कुहासा
(ग) धप
ू
(घ) बादि
iv. बािगोबबि भगत ल्जस ििी में स्िाि करिे जाते िह गाँि से ककतिी िरू र्ी ?
(क) दो िीि
(ि) चार िीि
(ग) आि िीि
(घ) दस िीि
v. बािगोबबि भगत के मस्त होिे और सरू
ु र में आिे से कमिी का क््ा होता ?
(क) उन्हें िीं ड िगने िगती।
(ि) िाँजड़ी बजना बींद हो जाती।
(ग) बार-बार लसर से नीचे सरक जाती
(घ) उनके शर र से लिपि जाती
उत्तर-
i. (घ) कानतक से फागन
ु तक ii. (ग) तारों को iii. (ि) कुहासा iv. (क) दो िीि v. (ग) बार-बार लसर से नीचे
सरक जाती
18
2. आषाढ़ की ररिखझि है । सिच
ू ा गााँव िेतों िें उतर पड़ा है । कह ीं हि चि रहे हैं कह रोपनी हो रह है । धान के
पानी भरे िेतों िें बच्चे उछि रहे हैं। औरतें किेवा िेकर िेड़ पर बैिी हैं। आसिान बादि से नघरा धूप का नाि नह ीं
िीं डी परु बाई चि रह है । ऐसे ह सिय आपके कानों िें एक स्वर तरीं ग झींकार सी कर उिी। यह तया है यह कौन हैं
यह पछ
ू ना न पड़ेगा। बाि गोबबन भगत सिच
ु ा शर र कीचड़ िें लिर्ड़े अपने िेत िें रोपनी कर रहे हैं। उनकी अींगि
ु
एक-एक धान के पौधे को पींजततबद्ध िेत िें बबिा रह है । उनका कींि एक-एक शब्द को सींगीत के जीने पर चढ़ाकर
कुछ को ऊपर स्वगथ की ओर भेज रहा है और कुछ को इस पथ्
ृ वी की लिट्ि पर िड़े िोगों के कान की ओर बच्चे
िेिते हुए झूि उिते हैं। िेड़ पर िड़ी औरतों के होंि काींप उिते हैं वे गन
ु गन
ु ाने िगती हैं हिवाहों के पैर ताि से
उिने िगते हैं।
i. समच
ू ा गाँि िेतों में कब उमड़ पड़ता है ?
(क) िीं डी परु वाई िें
(ि) कानतथक की सह
ु ावनी सब
ु ह िें
(ग) फागन
ु की बहार िें
(घ) आषाढ़ की ररिखझि िें
ii. धाि के पािी भरे िेतों में कौि उछि रहे हैं ?
(क) जस्त्रयााँ
(ि) बच्चे
(ग) क्रकसान
(घ) कीड़े-िकोड़े
iii. बाि गोबबि भगत समच
ू ा शरीर कीचड़ में लिर्ड़े अपिे िेत में क््ा कर रहे हैं?
(क) गेहूाँ बो रहे हैं
(ि) फसि काि रहे हैं
(ग) रोपनी कर रहे हैं
(घ) हि चिा रहे हैं
iv. उिके कांि से स्िर निकिकर कहाँ जा रहा है ?
(क) सींगीत के जीने पर चढ़कर स्वगथ की ओर
(ि) धान के पौधों की रोपनी हो रह िेतों की ओर
(ग) बच्चों के उछि-कूद कर रहे पैरों की ओर
(घ) इनिें से कोई नह ीं
v. हििाहों के पैर ताि से क््ों उििे िगते हैं?
(क) बाि गोबबन भगत के सींगीत के कारण।
(ि) बच्चों के िेिकूद करने के कारण।
(ग) औरतों के िेड़ पर िड़ी होने के कारण।
(घ) इनिें से कोई नह ीं
उत्तर- i. (घ) आषाढ़ की ररिखझि िें ii. (ि) बच्चे iii. (ग) रोपनी कर रहे हैं iv. (क) सींगीत के जीने पर चढ़कर स्वगथ
की ओर v. (क) बाि गोबबन भगत के सींगीत के कारण
निम्िलिखित गद्ाांश को पढ़कर िीचे ठिए गए प्रश्िों के उत्तर के विकल्प में से सही छाांिकर लिखिए-
1. गाड़ी छूि रह र्ी। सेकण्ड तिास के एक छोिे ड़डब्बे को िाि सिझकर जरा दौड़कर उसिें चढ़ गए। अनुिान
के प्रनतकूि ड़डब्बा ननजथन नह ीं र्ा। एक बर्थ पर ििनऊ की नवाबी नस्ि के एक सफेदपोश सज्जन बहुत सुववधा
19
से पािर्ी िारे बैिे र्े। सािने दो ताजे-र्चकने िीरे तौलिए पर रिे र्े। ड़डब्बे िें हिारे सहसा कूद जाने से सज्जन
की आाँिों िें एकाींत र्चन्तन िें ववघ्न का असींतोष ठदिाई ठदया। सोचा, हो सकता है , यह भी कहानी के लिए सूझ
की र्चन्ता िें हों या िीरे -जैसी अपदार्थ वस्तु का शौक करते दे िे जाने के सींकोच िें हों। नवाब साहब ने सींगनत
के लिए उत्साह नह ीं ठदिाया। हिने भी उनके सािने की बर्थ पर बैिकर आत्ि-सम्िान िें आाँिें चुरा ि ीं। िाि
बैिे, कल्पना करते रहने की पुरानी आदत है । नवाब साहब की असुववधा और सींकोच के कारण का अनुिान करने
िगे। सम्भव है , नवाब साहब ने बबिकुि अकेिे यात्रा कर सकने के अनुिान िें क्रकफ़ायत के ववचार से सेकण्ड
तिास का ठिकि िर द लिया हो और अब गवारा न हो क्रक शहर का कोई सफ़ेदपोश उन्हें िाँझिे दजे िें सफ़र
करता दे िे।
i- िेिक सेकण्ड क्िास के एक छोिे डडब्बे िौड़कर क््ों चढ़े ?
(क) िेिक अपनी सािथ्यथ ठदिा रहे र्े
(ि) सभी दौड़कर ड़डब्बे िें चढ़ रहे र्े
(ग) गाड़ी छूि रह र्ी
(घ) इनिें से कोई नह ीं
ii- सामिे िो ताजे-धचकिे िीरे कहाँ रिे र्े?
(क) बर्थ पर
(ि) तौलिए पर
(ग) िोिे पर
(घ) अख़बार पर
iii- ककसिे सांगनत के लिए उत्साह िहीां ठििा्ा?
(क) िेिक ने
(ि) िोगों ने
(ग) नवाब साहब ने
(घ) बच्चों ने
iv- आत्म-सम्माि में ककसिे आँिें चुरा िीां?
(क) िेिक ने
(ि) नवाब साहब ने
(ग) िोगों ने
(घ) इनिें से कोई नह ीं
v- िेिक के अिम
ु ाि से ििाब साहब िे सेकण्ड क्िास का ठिकि क््ों िरीिा होगा?
(क) बबिकुि अकेिे यात्रा कर सकने के अनुिान िें ।
(ि) िेिक के सार् यात्रा कर सकने के अनि
ु ान से।
(ग) िोगों के सार् यात्रा कर सकने के अनि
ु ान से।
(घ) इनिें से कोई नह ीं
उत्तर- i- (ग) गाड़ी छूि रह र्ी ii- (ि) तौलिए पर iii- (ग) नवाब साहब ने iv- (क) िेिक ने v- (क) बबिकुि
अकेिे यात्रा कर सकने के अनुिान िें ।
2. नवाब साहब िीरे की तैयार और इस्तेिाि से र्ककर िेि गए। हिें तसि ि िें लसर िि कर िेना पड़ा-यह है
िानदानी तहजीब, नफ़ासत और नजाकत! हि गौर कर रहे र्े , िीरा इस्तेिाि करने के इस तर के को िीरे की
सुगींध और स्वाद की कल्पना से सींतुटि होने का सूक्ष्ि, नफीस या एब्स्रै ति तर का जरूर कहा जा सकता है , परन्तु
तया ऐसे तर के से उदर की तजृ प्त भी हो सकती है ? नवाब साहब की ओर से भरे पेि के ऊाँचे डकार का शब्द
20
सुनाई ठदया और नवाब साहब ने हिार ओर दे िकर कह ठदया, ‘िीरा िजीज होता है , िेक्रकन होता है सकीि,
नािुराद िेदे पर बोझ डाि दे ता है ’ ज्ञान-चिु िुि गए। पहचाना ये हैं नई कहानी के िेिक!
i- ििाब साहब क््ों िेि गए?
(क) उदर तजृ प्त हो जाने के कारण
(ि) िेिक से सींगनत न ठदिाने के कारण
(ग) िीरे की तैयार और इस्तेिाि से र्कने के कारण
(घ) िीरे िा िेने के कारण
ii- िीरे के इस्तेमाि करिे का एब्स्रै क्ि तरीका क््ा र्ा?
(क) िीरे की सुगींध और स्वाद की कल्पना से सींतुटि होना
(ि) िीरे की फााँकें बनाना
(ग) िीरे धोकर इस्तेिाि करना
(घ) िीरे धोकर तौलिए से पोंछना
iii- भरे पेि के ऊँचे डकार का शब्ि ककसे सुिाई ठि्ा?
(क) िेिक को
(ि) िोगों को
(ग) नवाब साहब को
(घ) इनिें से कोई नह ीं
iv- ‘िीरा िजीज होता है - ्ह कर्ि -----?
(क) सत्य है
(ि) असत्य है
(ग) न सत्य, न असत्य
(घ) इनिें से कोई नह ीं
v- पहचािा ्े हैं िई कहािी के िेिक! - इस कर्ि में क््ा व््ांग्् है ?
(क) नवाब साहब नई कहानी के िेिक हैं ।
(ि) बबना घिना और पात्र के कहानी लििी जा सकती है ।
(ग) कहानी के लिए पात्र और घिना की जरुरत होती है ।
(घ) इनिें से कोई नह ीं
उत्तर- i- (ग) िीरे की तैयार और इस्तेिाि से र्कने के कारण ii- (क) िीरे की सुगींध और स्वाद की कल्पना से
सींतुटि होना iii- (क) िेिक को iv- (क) सत्य है v- (ग) कहानी के लिए पात्र और घिना की जरुरत होती है ।
निम्िलिखित गद्ाांश को पढ़कर िीचे ठिए गए प्रश्िों के उत्तर के विकल्प में से सही छाांिकर लिखिए-
1- पर यह वपत ृ गार्ा िैं इसलिए नह ीं गा रह क्रक िझ
ु े उनका गौरव गान करना है बजल्क िैं तो यह दे िना चाहती हूाँ
क्रक उनके व्यजततत्व की कौन सी िूबी और िालियााँ िेरे व्यजततत्व के ताने-बाने िें गर् ु ीीं हुई है या क्रक अनजाने
अनचाहे क्रकए उनके व्यहार ने िेरे भीतर क्रकन कृनतयों को जन्ि दे ठदया। िैं काि हूाँ बचपन िें दब ु ि और िररयि
भी र्ी। गोरा रीं ग वपताजी की किजोर र्ी सो बचपन िें िझ
ु से दो साि बड़ी िब
ू गोर स्वस्र् और हाँसिि
ु बठहन
सश
ु ीिा से हर बात िें ति
ु ना और क्रफर उसकी प्रसींशा ने ह तया िेरे भीतर ऐसे गहरे ह न भाव की ग्रींर्र् पैदा नह ीं
कर द क्रक नाि सम्िान और प्रनतटिा पाने के बावजद
ू आज तक िैं उससे उबर नह ीं पाई? आज भी पररचय करवाते
सिय जब कोई कुछ ववशेषता िगाकर िेरे िेिकीय उपिजब्धयों का जजि करने िगता है तो िैं सींकोच िें लसिि ह
नह ीं जाती बजल्क गड़ने-गड़ने को हो जाती हूाँ।
21
i- िेखिका िे इस अिुच्छे ि में ककसके व््ल्क्तत्ि की चचाथ की है ?
(क) स्वयीं के व्यजततत्व की
(ि) अपने वपता के व्यजततत्व की
(ग) अपने बठहन के व्यजततत्व की
(घ) इनिें से कोई नह ीं िन ,
ii- िेखिका बचपि में कैसी र्ी?
(क) गोर , दब
ु ि और िररयि
(ि) गोर , िोि और स्वस्र्
(ग) काि , दब
ु ि और िररयि
(घ) इनिें से कोई नह ीं
iii- गोरी, स्िस्र् और हँसमि
ु कौि र्ी?
क) िेखिका
(ि) िेखिका की बठहन
(ग) िेखिका की िााँ
(घ) इनिें से कोई नह ीं
iv- िेखिका आज तक ककस बात से उबर िहीां पाई?
(क) बठहन सश
ु ीिा के व्यजततत्व से
(ि) वपता के व्यजततत्व से
(ग) िान-सम्िान और प्रनतटिा से
(घ) गहरे ह न भाव की ग्रींर्र् से
v- विशेषता िगाकर पररच् करिाते सम् िेखिका पर क््ा असर होता है ?
(क) िेखिका सींकोच िें लसिि जाती है ।
(ि) िेखिका पर कोई असर नह ीं होता है ।
(ग) िेखिका प्रसन्नता िें डूब जाती है ।
(घ) इनिें से कोई नह ीं
उत्तर- i- (क) स्वयीं के व्यजततत्व की ii- (ग) काि , दब
ु ि और िररयि iii- (ि) िेखिका की बठहन iv- (घ) गहरे ह न
भाव की ग्रींर्र् से v- (क) िेखिका सींकोच िें लसिि जाती है ।
2- वपता जी के जजस शतकी स्वभाव पर िैं कभी भन्ना-भन्ना जाती र्ी, आज एकाएक अपने िींड़डत ववश्वासों की
व्यर्ा के नीचे िझ
ु े उनके शतकी स्वभाव की झिक ह ठदिाई दे ती है .....बहुत ‘अपनों’ के हार्ों ववश्वासघात की गहर
व्यर्ा से उपजा शक। होश साँभािने के बाद से ह जजन वपता जी से क्रकसी -न-क्रकसी बात पर हिेशा िेर ितकर ह
चिती रह , वे तो न जाने क्रकतने रूपों िें िझ
ु िें हैं...........कह ीं कींु िाओीं के रूप िें, कह ीं प्रनतक्रिया के रूप िें तो कह
प्रनतच्छाया के रूप िें । केवि बाहर लभन्नता के आधार पर अपनी परीं परा और पीठढ़यों को नकारने वािों को तया
सचिच
ु इस बात का बबल्कुि अहसास नह ीं होता क्रक उनका आसन्न अतीत क्रकस कदर उनके भीतर जड़ जिाए बैिा
रहता है । सिय का प्रवाह भिे ह हिें दस
ू र ठदशाओीं िें बहाकर िे जाए..........जस्र्नतयों का दबाव भिे ह हिारा रूप
बदि दे , हिें परू तरह उससे ित
ु त तो नह ीं ह कर सकता।
i- िेखिका को वपताजी के ककस व््िहार की झिक ठििाई िे ती र्ी?
(क) उनके शतकी स्वभाव की
(ि) स्वयीं के शतकी स्वाभाव की
(ग) अपनों के ववश्वासघात की
(घ) इनिें से कोई नह ीं
22
ii- वपता जी से ककसी-ि-ककसी बात पर हमेशा िेखिका की िक्कर ही चिती रही, ऐसा कब से?
(क) वपताजी के सिझाने के बाद
(ि) िेखिका के होश साँभािने के पहिे से
(ग) िेखिका के होश साँभािने के बाद से
(घ) वपताजी के शतकी हो जाने के बाद
iii- िे तो ि जािे ककतिे रूपों में मझ
ु में हैं- िेखिका िे ऐसा क््ों कहा?
(क) तयोंक्रक िेखिका पर वपताजी के व्यजततत्व का असर है
(ि) तयोंक्रक िेखिका पर उसकी बठहन सश
ु ीिा के व्यजततत्व का असर है
(ग) तयोंक्रक िेखिका पर उसकी िााँ के व्यजततत्व का असर है
(घ) इनिें से कोई नह ीं
iv- सम् का प्रिाह भिे ही हमें िस
ू री ठिशाओां में बहाकर िे जाए- पर ...?
(क) जीवन के अतीत से व्यजतत परू तरह ित
ु त नह ीं को पाता है
(ि) व्यजतत बीती बातों को परू तरह से भि
ू जाता है
(ग) व्यजतत भववटय की योजनाओीं से ित
ु त हो जाता है
(घ) जीवन िें गहरे ह न भाव जन्ि िे िेते हैं
v- िेखिका मन्िू भांडारी दिारा लिखित पाि का िाम है ...?
(क) एक कहानी ऐसी भी
(ि) िेरे जीवन की कहानी।
(ग) एक कहानी यह भी
(घ) इनिें से कोई नह ीं
उत्तर- i- (क) उनके शतकी स्वभाव की ii- (ग) िेखिका के होश साँभािने के बाद से iii- (क) तयोंक्रक िेखिका पर
वपताजी के व्यजततत्व का असर है iv- (क) जीवन के अतीत से व्यजतत परू तरह ित
ु त नह ीं को पाता है v- (ग) एक
कहानी यह भी
निम्िलिखित गद्ाांश को पढ़कर िीचे ठिए गए प्रश्िों के उत्तर के विकल्प में से सही छाांिकर लिखिए-
1-सचिच ु है रान करती है काशी - पकड्ढा िहि से जैसे ििाई बरफ गया, सींगीत, साठहत्य और अदब की बहुत सार
परीं पराएाँ िप्ु त हो गई। एक सच्चे सरु साधक और सािाजजक की शाींनत बबजस्िल्िा िााँ साहब को इन सबकी किी
ििती है । काशी िें जजस तरह बाबा ववश्वनार् और बबजस्िल्िा िााँ एक-दस
ू रे के परू क रहे हैं, उसी तरह िह
ु रथ ि-
ताजजया और होि -अबीर, गि ु ाि की गींगा-जिन
ु ी सींस्कृनत भी एक-दस
ू रे के परू क रहे हैं। अभी जल्द ह बहुत कुछ
इनतहास बन चक
ु ा है । अभी आगे बहुत कुछ इनतहास बन जाएगा। क्रफर भी कुछ बचा है जो लसफथ काशी िें हैं। काशी
आज भी सींगीत के स्वर पर जागती और उसी की र्ापों पर सोती है । काशी िें िरण भी िींगि िाना गया है । काशी
आनींदकानन है । सबसे बड़ी बात है क्रक काशी के पास उस्ताद बबजस्िल्िा िााँ जैसा िय और सरु की तिीज लसिाने
वािा नायाब ह रा रहा है जो हिेशा से दो कौिों को एक होने व आपस िें भाईचारे के सार् रहने की प्रेरणा दे ता रहा।
i- सचमच
ु है राि करती है काशी- ऐसा क््ों कहा ग्ा है ?
(क) तयोंक्रक सींगीत, साठहत्य और अदब की बहुत सार परीं पराएाँ िप्ु त हो गई हैं
(ि) तयोंक्रक अब वहााँ शहनाई नह ीं बजती है
(ग) तयोंक्रक अब वहााँ िोग लििजुिकर नह ीं रहते हैं
(घ) इनिें से कोई नह ीं
ii- गांगा-जमि
ु ी सांस्कृनत का क््ा अर्थ है ?
23
(क) बाबा ववश्वनार् और बबजस्िल्िा िााँ एक-दस
ू रे के परू क रहे हैं
(ि) िह
ु रथ ि-ताजजया और होि -अबीर एक-दस
ू रे के परू क रहे हैं
(ग) ठहन्द ू और िजु स्िि के त्योहार, सींस्कृनत और परम्पराएाँ एक-दस
ू रे की परू क रह हैं
(घ) ये सभी
iii- कौि सी शहर आज भी सांगीत के स्िर पर जागता और उसी की र्ापों पर सोता है ?
(क) िर्ुरा
(ि) काशी
(ग) अयोध्या
(घ) प्रयागराज
iv- काशी आिांिकािि है - इसका क््ा मतिब है ?
(क) काशी िें हर तरफ शोर-शराबा है
(ि) काशी िें हर तरफ िहि ह िहि हैं
(ग) काशी िें हर तरफ प्रसन्नता रूपी जींगि है
(घ) वहााँ हर तरफ सींन्यासी ह सींन्यासी हैं
v- िो कौमों को एक होिे ि भाईचारे के सार् रहिे की प्रेरणा कौि िे ता रहा?
(क) िेिक
(ि) उस्ताद बबजस्िल्िा िााँ
(ग) बबजस्िल्िा िााँ की शहनाई
(घ) इनिें से कोई नह ीं
उत्तर- i- (क) तयोंक्रक सींगीत, साठहत्य और अदब की बहुत सार परीं पराएाँ िप्ु त हो गई हैं ii- (घ) ये सभी iii- (ि)
काशी iv- (ग) काशी िें हर तरफ प्रसन्नता रूपी जींगि है v- (ि) उस्ताद बबजस्िल्िा िााँ
2- अिीरुद्द न की उम्र अभी 14 साि है । िसिन बबजस्िल्िा िााँ की उम्र अभी 14 साि है । वह काशी है । वह
परु ाना बािा जी का िींठदर जहााँ बबजस्िल्िा िााँ को नौबतिाने ररयाज के लिए जाना पड़ता है । िगर एक रास्ता है
बािाजी िींठदर तक जाने का। यह रास्ता रसि
ू न बाई और बति
ू न बाई के यहााँ से होकर जाता है । इस रास्ते से
अिीरुद्द न को जाना अच्छा िगता है । इस रास्ते न जाने क्रकतने तरह के बोि-बनाव कभी िुिर , कभी िप्पे, कभी
दादरा के िाफ़थत ड्योढ़ तक पहुाँचते रहते हैं। रसि
ू न बाई और बति
ू न बाई जब गाती है तब अिीरुद्द न को िश
ु ी
लििती है । अपने ढे रों सािात्कारों िें बबजस्िल्िा िााँ साहब ने स्वीकार क्रकया है क्रक उन्हें अपने जीवन के आरीं लभक
ठदनों िें सींगीत के प्रनत आसजतत इन्ह ीं गानयका बठहनों को सन
ु कर लिि है । एक प्रकार से उनकी अबोध उम्र िें
अनभ
ु व की स्िेि पर सींगीत- प्रेरणा की वणथिािा रसि
ू न बाई और बति
ू न बाई ने उकेर है ।
i- बबल्स्मल्िा िाँ का बचपि का िाम क््ा र्ा?
(क) यतीींद्र लिश्र
(ि) अिीरुद्द न
(ग) रसि
ू न बाई
(घ) बािाजी
ii- बबल्स्मल्िा िाँ को रर्ाज के लिए कहाँ जािा पड़ता र्ा?
(क) रसि
ू न बाई के घर
(ि) बति
ू न बाई के घर
(ग) काशी
(घ) नौबतिाने
iii- बािाजी मांठिर तक जािे का रास्ता बबल्स्मल्िा िाँ को क््ों अच्छा िगता र्ा?
24
(क) तयोंक्रक यह रास्ता नौबतिाने तक जाता र्ा
(ि) तयोंक्रक यह रास्ता बहुत परु ाना र्ा
(ग) तयोंक्रक यह रास्ता एकदि नया र्ा
(घ) तयोंक्रक यह रास्ता रसि
ू न बाई और बति
ू न बाई के यहााँ से होकर जाता र्ा
iv- बबल्स्मल्िा िाँ को जीिि के आरां लभक ठििों में सांगीत के प्रनत आसल्क्त ककिसे लमिी?
(क) बाबा ववश्वनार् से
(ि) काशी की ड्योढ़ से
(ग) रसि
ू न बाई और बति
ू न बाई से
(घ) इनिें से कोई नह ीं
v- ‘िौबतिािे में इबाित’ पाि के िेिक हैं?
(क) उस्ताद बबजस्िल्िा िााँ
(ि) रसि
ू न बाई और बति
ू न बाई
(ग) यतीींद्र लिश्र
(घ) इनिें से कोई नह ीं
उत्तर- i- (ि) अिीरुद्द न ii- (घ) नौबतिाने iii- (घ) तयोंक्रक यह रास्ता रसि
ू न बाई और बति
ू न बाई के यहााँ से
होकर जाता र्ा iv- (ग) रसि
ू न बाई और बति
ू न बाई से v- (ग) यतीींद्र लिश्र
निम्िलिखित गद्ाांश से पछ
ू े गए प्रश्िों के उत्तर सही विकल्प छाँिकर िील्जए-
1- एक सींस्कृत व्यजतत क्रकसी नयी चीज की िोज करता है क्रकीं तु उसकी सींतान को वह अपने पव
ू ज
थ से अनायास ह
प्राप्त हो जाती है । जजस व्यजतत की बद्
ु र्ध ने अर्वा उसके वववेक ने क्रकसी भी नए तथ्य का दशथन क्रकया, वह व्यजतत
ह वास्तववक सींस्कृत व्यजतत है और उसकी सींतान जजसे अपने पव
ू ज
थ से अनायास ह प्राप्त हो गई है, वह अपने
पव
ू ज
थ की भााँनत सभ्य भिे ह बन जाए, सींस्कृत नह ीं कहिा सकता। एक आधनु नक उदाहरण िें। न्यि
ू न ने
गरु
ु त्वाकषथण के लसद्धाींत का आववटकार क्रकया। वह सींस्कृत िानव र्ा। आज के यग
ु का भौनतक ववज्ञान का ववद्यार्ी
न्यि
ू न के गरु
ु त्वाकषथण से तो पररर्चत है िेक्रकन उसके सार् उसे और भी अनेक बातों का ज्ञान प्राप्त है जजनसे शायद
न्यि
ू न अपररर्चत ह रहा। ऐसा होने पर भी हि आज के भौनतक ववज्ञान के ववद्यार्ी को न्यि
ू न की अपेिा अजध्क
सभ्य भिे ह कह सकें पर न्यि
ू न जजतना सींस्कृत नह ीं कह सकते।
i- िेिक िे सांस्कृत व््ल्क्त ककसे मािा है ?
(क) जो व्यजतत हिेशा सींघषथ करता है
(ि) जो व्यजतत कोई नयी चुनौती स्वीकार करता है
(ग) जो व्यजतत कोई नया काि नह ीं करता है
(घ) जो व्यजतत क्रकसी नयी चीज की िोज करता है
ii- कोई ऐसी चीज ल्जसे अपिे पि
ू ज
थ से अिा्ास ही प्राप्त हो गई है ? िह कहिाता है -
(क) सींस्कृत व्यजतत
(ि) असींस्कृत व्यजतत
(ग) सभ्य व्यजतत
(घ) असभ्य व्यजतत
iii- न््ि
ू ि िे ककस लसदधाांत का आविष्कार कक्ा?
(क) गनत के लसद्धाींत का
(ि) गरु
ु त्वाकषथण के लसद्धाींत का
25
(ग) दाब के लसद्धाींत का
(घ) इनिें से कोई नह ीं
iv- आज के ्ग
ु का भौनतक विज्ञाि का विद्ार्ी न््ि
ू ि की तरह सांस्कृत है ? ्ह कर्ि ...?
(क) असत्य है
(ि) सत्य है
(ग) दोनों है
(घ) इनिें से कोई नह ीं
v- ‘सभ््ता और सांस्कृनत’ पाि के िेिक हैं?
(क) न्यि
ू न
(ि) भदीं त आनींद कौसल्यायन
(ग) यतीींद्र लिश्र
(घ) इनिें से कोई नह ीं
उत्तर- i- (घ) जो व्यजतत क्रकसी नयी चीज की िोज करता है ii- (ग) सभ्य व्यजतत iii- (ि) गरु
ु त्वाकषथण के लसद्धाींत
का iv- (क) असत्य है v- (ि) भदीं त आनींद कौसल्यायन
2- ‘‘भौनतक प्रेरणा, ज्ञानेप्सा’’-तया ये दो ह िानव सींस्कृनत के िाता-वपता हैं? दस
ू रे के िाँह
ु िें कौर डािने के लिए जो
अपने िाँह
ु का कौर छोड़ दे ता है , उसको यह बात तयों और कैसे सझ
ू ती है ? रोगी बच्चे को सार रात गोद िें लिए जो
िाता बैिी रहती है , वह आखिर ऐसा तयों करती है ? सन ु ते हैं क्रक रूस का भाग्यववधाता िेननन अपनी डैस्क िें रिे हुए
डबि रोि के सि ू े िुकड़े स्वयीं न िाकर दस
ू रों को खििा ठदया करता र्ा। वह आखिर ऐसा तयों करता र्ा? सींसार के
िजदरू ों को सि
ु ी दे िने का स्वप्न दे िते हुए कािथ िातसथ ने अपना सारा जीवन दि ु िें बबता ठदया। और इन सबसे
बढ़कर आज नह ीं, आज से ढाई हजार वषथ पव ू थ लसद्दार्थ ने अपना घर केवि इसलिए त्याग ठदया क्रक क्रकसी तरह तटृ णा
के वशीभत
ू िड़ती-किती िानवता सि
ु से रह सके।
i- ‘‘भौनतक प्रेरणा, ज्ञािेप्सा’’-क््ा ्े िो ही मािि सांस्कृनत के माता-वपता हैं?
(क) हााँ
(ि) नह ीं
(ग) कह नह ीं सकते
(घ) इनिें से कोई नह ीं
ii- िस
ू रे के मँह
ु में कौर डाििे के लिए जो अपिे मँह
ु का कौर छोड़ िे ता है , - उसे कहें गे
(क) परिार्ी
(ि) स्वार्ी
(ग) ववनम्र
(घ) असभ्य
iii- रूस का भाग््विधाता ककसे कहा ग्ा है ?
(क) कािथ िातसथ को
(ि) न्यि
ू न को
(ग) िेननन को
(घ) इनिें से कोई नह ीं
iv- सांसार के मजिरू ों को सि
ु ी िे ििे का स्िप्ि ककसिे िे िा?
(क) कािथ िातसथ ने
(ि) िेननन ने
(ग) न्यि
ू न ने
26
(घ) इनिें से कोई नह ीं
v- आज से ढाई हजार िषथ पि
ू थ लसदिार्थ िे अपिा घर क््ों छोड़ ठि्ा र्ा?
(क) ताक्रक उन्हें जीवन दुःु ि लिि सके।
(ि) ताक्रक िनटु य का िािच घि सके।
(ग) ताक्रक िोगों की दररद्रता लिि सके।
(घ) ताक्रक तटृ णा के वशीभत
ू िड़ती-किती िानवता सि
ु से रह सके।
उत्तर- i- (ि) नह ीं ii- (क) परिार्ी iii- (ग) िेननन को iv- (क) कािथ िातसथ ने v- (घ) ताक्रक तटृ णा के वशीभत
ू
िड़ती-किती िानवता सि
ु से रह सके।
पद् भाग
पि - सूरिास
पि
प्रनतपाि्- यहााँ सरू सागर के भ्रिरगीत से चार पदों का सींकिन क्रकया गया है । िर्ुरा जाने के बाद श्रीकृटण ने उद्धव
के जररए गोवपयों को अपने शीघ्र ह िौि आने का सींदेश भेजा। िौका पाकर उद्धव ने गोवपयों को ननगण
ुथ ब्रह्ि और
योग का उपदे श दे कर उनकी ववरह वेदना को शाींत करने का प्रयास क्रकया क्रकन्तु गोवपयााँ नीरस ज्ञान िागथ के बजाए
प्रेि िागथ को अपनाना उर्चत सिझा। गोवपयों को शटु क ज्ञान पसींद नह ीं आया। उसी सिय एक भौंरा आ पहुाँचा जजसे
िक्ष्य करके गोवपयों ने उद्धव और उनके ज्ञान पर तीक्ष्ण व्यींग्य बाण छोड़े। यह ीं से ‘भ्रिरगीत’ का प्रारम्भ होता है ।
सार- पहिे पद िें गोवपयों ने उद्धव पर व्यींग्य करते हुए कहा क्रक आप बड़े भाग्यशाि हैं जो श्रीकृटण के सार् रहकर
भी उनके प्रेि रूपी धागे से नह ीं बींधे हैं अन्यर्ा हिार ह तरह आपको भी ववरह वेदना की अनभ ु नू त होती। दस
ू रे पद
िें श्रीकृटण के प्रनत गोवपयों के प्रेि की गहराई व्यतत हुई है । गोवपयााँ स्वीकार करती हैं क्रक उनके िन की अलभिाषाएाँ
िन िें ह रह गईं। तीसरे पद िें वे उद्धव की योग साधना को कड़वी ककड़ी की तरह बताकर उसे स्वीकार करने से
िना कर दे ती हैं और अपने एकननटि प्रेि िें दृढ़ ववश्वास प्रकि करती हैं। चौर्े पद िें गोवपयााँ उद्धव को ताना
िारती हैं और बताती हैं क्रक श्रीकृटण ने अब राजनीनत पढ़ ि है । गोवपयााँ कहती हैं क्रक राजा का धिथ यह है क्रक प्रजा
को सताया नह ीं जाना चाठहए।
विशेष-
बहुविकल्पी प्रश्ि
राम-िक्ष्मण-परशरु ाम सांिाि - ति
ु सीिास
28
ववछोह हो गया। गरु
ु कृपा से उन्हें रािभजतत का िागथ लििा जजस पर वे आजीवन चिते रहे । वे िानवीय िल्
ू यों की
आस्र्ा के कवव र्े। सन ् 1623 ई. िें काशी िें इनका दे हावसान हो गया।
रचिाएँ- रामभल्क्त परां परा में ति
ु सीिास अति
ु िी् हैं। इनकी प्रिि
ु रचनाएाँ ननम्नलिखित हैं-रािचररतिानस,
कववतावि , गीतावि , दोहावि , कृटण गीतावि , ववनयपबत्रका, रािििा नहछू। काव््गत विशेषताएँ- रािचररतिानस
ति
ु सीदास की अनप
ु ि कृनत। इसिें उनकी श्रीराि के प्रनत अनन्य भजतत व्यतत हुई है । उनके प्रभु राि िानवीय
ियाथदाओीं और आदशों के प्रतीक हैं जजनके िाध्यि से उन्होंने शीि, ववनय, त्याग, स्नेह, भजतत एवीं नीनत जैसे
उदात्त आदशों की प्रनतटिा की है । अवधी और ब्रजभाषा दोनों पर उनका सिान अर्धकार है । उन्होंने ‘रामचररतमािस’
की रचना अवधी िें और ‘कविताििी’ तर्ा ‘विि्पबत्रका’ की रचना ब्रजभाषा िें की। उस सिय के प्रचलित सभी
काव्यरूपों को उनकी रचनाओीं िें दे िा जा सकता है । ‘रामचररतमािस’ का िख्
ु य छीं द चौपाई है क्रकन्तु बीच-बीच िें
दोहा, सोरिा, हररगीनतका तर्ा अन्य छीं द भी वपरोए गए हैं। ‘विि्पबत्रका’ की रचना गेय पदों िें हुई है जबक्रक
‘कविताििी’ िें कववत्त और सवैया छीं द की छिा दे िी जा सकती है । उनकी रचनाओीं िें प्रबींध और ित
ु तक दोनों प्रकार
के काव्यों का उत्कृटि रूप ठदिाई पड़ता है ।
प्रनतपाि्- ‘राि-िक्ष्िण-परशरु ाि सींवाद’ प्रसींग ‘रािचररतिानस’ के बािकाण्ड से लिया गया है । सीता स्वयींवर िें गरु
ु
ववश्वालित्र की आज्ञा पाकर श्रीराि ने लशवजी के धनष
ु को तोड़ ठदया। जब यह सिाचार िनु न परशरु ाि को लििा तो
वे कुवपत होकर स्वयींवर सभा िें आते हैं और लशवजी के िींड़डत धनष
ु को दे िकर आपे से बाहर हो जाते हैं। श्रीराि के
ववनय करने तर्ा िनु न ववश्वालित्र के सिझाने पर उनका गस्
ु सा शाींत होता है और क्रफर वे वहााँ से चिे जाते हैं।
सार- इस प्रसींग िें राि-िक्ष्िण और िनु न परशरु ाि के बीच जो सींवाद हुआ है उसका यहााँ िनोरि वणथन क्रकया गया
है । परशरु ाि ने कहा क्रक लशवजी के इस धनष ु को क्रकसने तोड़ा तब श्रीराि ने जवाब ठदया क्रक आपका ह कोई एक
सेवक होगा। क्रफर उन्होंने कहा क्रक सेवक का कायथ सेवा करना होता है न की िड़ाई करना। वह अभी भर सभा से
अिग हो जाए नह ीं तो सभी राजा िारे जाएाँगे। परशरु ाि के िोध भरे वचनों को सन
ु कर िक्ष्िण ने उन पर िब
ू
व्यींग्य क्रकया जजससे वे दोनों राजकुिारों सठहत सम्पण
ू थ िबत्रय सिाज को नटि कर दे ने के लिए उद्धत होते हैं। वीर
रस, रौद्र रस और हास्य रस से पगी और व्यींग्योजततयों से सजी इन काव्य-पींजततयों को पढ़कर िोग आनींदिग्न हो
उिते हैं।
विशेष–
1. काव्य-पींजततयों िें राि-िक्ष्िण और परशरु ाि के सींवाद का िनोरि र्चत्रण क्रकया गया है ।
2. श्रीराि की ववनयशीिता और सहजता की सरस अलभव्यजतत हुई है ।
3. िनु न के िोध िें रौद्र रस और वीर रस की छिा ठदिाई पड़ती है ।
4. ‘बािकु बोलि बधौं’ िें अनप्र
ु ास तर्ा ‘सहसबाहु सि सो ररपु िोरा’ िें उपिा अिींकार है ।
5. चौपाई और दोहा छीं द का प्रयोग क्रकया गया है ।
6. काव्य-पींजततयों िें व्यींजकता तर्ा सरसता ववद्यिान है।
7. अवधी भाषा का भावानक
ु ू ि प्रयोग हुआ है ।
बहुविकल्पी प्रश्ि
29
प्रश्ि-ii भग
ृ क
ु ु िकेतु ककन्हें कहा ग्ा है ?
(क) श्रीराि को
(ि) परशरु ाि को
(ग) ववश्वालित्र को
(घ) िक्ष्िण को
प्रश्ि-iii ‘राम-िक्ष्मण-परशरु ाम सांिाि’ का प्रसांग ‘रामचररतमािस’ के ककस काण्ड से लि्ा ग्ा है ?
(क) िींकाकाण्ड
(ि) बािकाण्ड
(ग) अयोध्याकाण्ड
(घ) उत्तरकाण्ड
प्रश्ि-iv बढ़त िे खि जि सम बचि बोिे रघक
ु ु िभािु –रे िाांककत में कौि-सा अिांकार है ?
(क) उपिा
(ि) रूपक
(ग) अनप्र
ु ास
(घ) यिक
प्रश्ि-v ‘रामचररतमािस’ में प्र्क्
ु त मख्
ु ् छां ि कौि-सा है ?
(क) दोहा
(ि) कववत्त
(ग) सोरिा
(घ) चौपाई
उत्तर- i- (घ) अवधी ii- (ि) परशरु ाि को iii- (ि) बािकाण्ड iv- (क) उपिा v- (घ) चौपाई
कवि पररच्- जयशींकर प्रसाद का जन्ि सन 1889 ईस्वी िें वाराणसी िें हुआ। काशी के प्रलसद्ध तवीींस कॉिेज िें वे
पढ़ने गए परीं तु जस्र्नतयाीं अनक
ु ू ि न होने के कारण आिवीीं से आगे नह ीं पढ़ पाए। बाद िें घर पर ह सींस्कृत, ठहींद ,
पारसी का अध्ययन क्रकया। छायावाद काव्य प्रववृ त्त के प्रिि
ु कववयों िें से एक जयशींकर प्रसाद का सन 1937 ईस्वी
िें ननधन हो गया।
कृनत्ाँ- उनकी प्रिि
ु काव्य कृनतयााँ हैं- र्चत्राधार, कानन-कुसि
ु , झरना, आाँस,ू िहर और कािायनी। आधनु नक ठहींद
की श्रेटिति काव्य-कृनत िानी जाने वाि कािायनी पर उन्हें िींगिाप्रसाद पाररतोवषक ठदया गया। वे कवव के सार्-
सार् सफि गद्यकार भी र्े। अजातशत्र,ु चन्द्रगप्ु त, स्कींदगप्ु त और ध्रुवस्वालिनी उनके नािक हैं तो कींकाि, नतति
और इरावती उपन्यास। आकाशद प, आाँधी और इींद्रजाि उनके कहानी सींग्रह हैं।
काव््गत विशेषताएँ- प्रसाद का साठहत्य जीवन की कोििता, िाधुय,थ शजतत और ओज का साठहत्य िाना जाता है ।
छायावाद कववता क्रक अनतशय काल्पननकता, सौंदयथ का सक्ष्
ू ि र्चत्रण, प्रकृनत-प्रेि, दे श-प्रेि और शैि की िािखणकता
उनकी कववता की प्रिि
ु ववशेषताएाँ हैं। इनतहास और दशथन िें उनकी गहर रुर्च र्ी जो उनके साठहत्य िें स्पटि
ठदिाई दे ती है ।
प्रनतपाद्- प्रेिचींद के सींपादन िें ‘हीं स’ पबत्रका का एक आत्िकर्ा ववशेषाींक ननकिना तय हुआ र्ा। प्रसाद जी के लित्रों
ने आग्रह क्रकया क्रक वे भी आत्िकर्ा लििें । प्रसाद जी इससे सहित न र्े। इसी असहिनत के तकथ से पैदा हुई कववता
है - आत्िकथ्य। यह कववता पहि बार 1932 िें ‘हीं स’ के ‘आत्िकर्ा ववशेषाींक’ िें प्रकालशत हुई र्ी। छायावाद शैि
िें लििी गई इस कववता िें जयशींकर प्रसाद ने जीवन के यर्ार्थ एवीं अभाव पि की िालिथक अलभव्यजतत की है ।
छायावाद सक्ष्
ू िता के अनरू
ु प ह अपने िनोभावों को अलभव्यतत करने के लिए जयशींकर प्रसाद ने िलित, सद
ुीं र एवीं
30
नवीन शब्दों और बबम्बों का प्रयोग क्रकया है । इन्ह ीं शब्दों एवीं बबम्बों के सहारे उन्होंने बताया है क्रक उनके जीवन की
कर्ा एक सािान्य व्यजतत के जीवन की कर्ा है । इसिें ऐसा कुछ भी नह ीं है जजसे िहान और रोचक िान कर िोग
वाह-वाह करें गे। कुि लििाकर इस कववता िें एक तरफ कवव द्वारा यर्ार्थ की स्वीकृनत है तो दस
ू र तरफ एक िहान
कवव की ववनम्रता भी।
सार- ‘आत्िकथ्य’ कववता िें प्रसाद जी ने आत्िकर्ा िेिन के ववषय िें अपनी िनोभावनाएाँ व्यतत की हैं । प्रसाद
जी के लित्रों और प्रशींस कों ने उनसे आत्िकर्ा लििने का अनुरोध क्रक या र्ा। इस अनुरोध के उत्तर िें प्रसाद जी
ने इस कववता की रचना की। यह रचना ’हीं स ’ पबत्रका के आत्िकर्ा ववशेषाीं क िें प्रकालशत हुई र्ी। कवव के
अनुसार आत्िकर्ा लििने की कोई उपयोर्गता नह ीं है । जीवन केवि एक व्यर्ा-कर्ा है । फूि से फूि पर भिकते
भौंरे की गुींजार तया है ? कभी तप्ृ त न होने वाि प्यास की करुण कहानी है । डािों से िुरझाकर र्गरने वाि
पवत्तयााँ जीवन की नश्वरता की कर्ा सुन रह है । एक अनींत आकाश के तिे धरती पर असींख्य जीवन पि रहे है ।
इन सभी की अपनी-अपनी आत्िकर्ाएाँ है । इन आत्िकर्ाओीं को सावथज ननक करने से तया लििता है ? हि इन
कर्ाओीं को सुनाकर अपने ह ऊपर व्यींग्य करते हैं । स्वयीं को उपहास का पात्र बनाते हैं ।
यह सब जानते हुए भी िैं अपनी आत्िकर्ा कै से लििूाँ ? िे रा जीवन दब
ु थि ताओीं एवीं असफिताओीं की कहानी है ।
यह एक िाि गगर के सिान है । उसिें ऐसा कुछ भी उल्िेि नीय नह ीं है जजसे िैं लित्रों और प्रशींस कों से साझा
कर सकाँू । कह ीं ऐसा न हो क्रक िे र आत्िकर्ा सािने आने पर िे रे लित्र िे र दयनीय दशा के लिए स्वयीं को दोषी
सिझने िगें । अपनी भूिों और अपने सार् हुए धोिों की कहानी सुनाकर िैं अपनी सरिता की हाँ सी करना नह ीं
चाहता।
कवव कहता है क्रक वह अपने जीवन के िधुर िणों की कहानी नह ीं सुनना चाहता। उसके सुि के सपने कभी
साकार नह ीं हुए। सुि उसकी बााँ हों िें आते-आते द रू हो गया। आज वह उन िधुर स्िनृ तयों के सहारे ह अपने
जीवन को बबता रहा है । लित्र िोग आत्िकर्ा लििवाकर उसकी किु स्िृनतयों को तयों उधे ङ ना चाहते हैं ?अपनी
कर्ा सुनाने से तो यह अच्छा हैं क्रक वह औरों के जीवन की कर्ाएाँ िौन होकर सुनता रहे । उसकी भोि
आत्िकर्ा सुनकर कोई तया करे गा। वह नह ीं चाहता है क्रक आत्िकर्ा लििकर वह अपनी भूि हुई पीड़ाओीं को
क्रफर से जगाएाँ ।
विशेष:
1) कवव ने जीवन की नश्वरता का यर्ार्थ उल्िेि क्रक या है ।
2) क्रकसी व्यजतत के जीवन की किजोररयों एवीं असफिताओीं को दस
ू रे िोग हाँ सी-िजाक बना दे ते हैं ।
3) कवव ने व्यजततगत जीवन के िधुर पिों की छुअन का िालिथक र्चत्रण क्रक या है ।
4) अनप्र
ु ास, उत्प्रेिा, अन्योजतत, रूपक अिींकार की छिा ववद्यिान है ।
5) छायावाद काव्य-शैि का िनोरि प्रयोग हुआ है ।
6) तत्सि शब्दावि से यत ु त सहज िड़ीबोि का प्रयोग हुआ है ।
7) काव्य-पींजततयों िें िाधुयथ गण
ु ववद्यिान है ।
8) प्रे ि की िधुर भावनाओीं की अलभव्यजतत के कारण ववयोग श्रीं ग
ृ ार रस दशथनीय है ।
बहुविकल्पी प्रश्ि
प्रश्ि-i कवि िे मरु झाकर धगरिे िािी पवत्त्ों के माध््म से क््ा सांकेत कक्ा है?
(क) जीवन अिर है
(ि) जीवन िणभींगरु है
(ग) पेड़ से पवत्तयााँ र्गर जाती हैं
(घ) इनिें से कोई नह ीं
प्रश्ि-ii कवि अपिे जीिि की स्मनृ त्ों को क््ों िहीां बतािा चाहता है ?
(क) कवव ननराशा िें डूबा हुआ है इसलिए
31
(ि) उसके जीवन की बहुत सी यादें हैं
(ग) उसका जीवन िाि घड़ा है
(घ) इनिें से कोई नह ीं
प्रश्ि-iii कवि के लिए मधुर चाँििी रातों की क््ा विशेषता र्ी?
(क) रात िें चााँदनी चारों ओर फैि हुई र्ी
(ि) कवव को अपने जीवन से प्रेि नह ीं र्ा
(ग) कवव को अपने लित्रों से बहुत प्रेि करता र्ा
(घ) कवव ने अपनी प्रेलिका के सार् चााँदनी रातों िें हाँस-हाँसकर बातें की र्ी
प्रश्ि-iv अरुण-कपोिों की मतिािी सि
ुां र छा्ा – इस पांल्क्त में ककसका िणथि कक्ा ग्ा है ?
(क) कवव ने अपनी प्रेलिका की सद
ुीं रता का वणथन क्रकया है
(ि) छाया की सद ुीं रता का र्चत्रण हुआ है
(ग) लित्रों की प्रसन्नता का वणथन क्रकया गया है
(घ) दनु नया के िोगों की चािाकी का वणथन हुआ है
प्रश्ि-v आत्मकथ्् कविता में ककस रस की प्रमि ु ता है ?
(क) वीर रस
(ि) हास्य रस
(ग) शाींत रस
(घ) श्रींग
ृ ार रस
उत्तर- i- (ि) जीवन िणभींगरु है ii-(ग) उसका जीवन िाि घड़ा है iii- (घ) कवव ने अपनी प्रेलिका के सार् चााँदनी रातों
िें हाँस-हाँसकर बातें की र्ी iv- (क) कवव ने अपनी प्रेलिका की सद
ुीं रता का वणथन क्रकया है v- (घ) श्रींग
ृ ार रस
जीिि पररच्- सय ू कथ ाींत बत्रपािी ‘ननरािा’ का जन्ि बींगाि के िठहषादि िें सन 1899 िें हुआ। वह िि
ू त: गढ़ाकोिा
(जजिा उन्नाव) उत्तर प्रदे श के ननवासी र्े। ननरािा की औपचाररक लशिा नौवीीं तक िठहषादि िें ह हुई। उन्होंने
स्वाध्याय से सींस्कृत, बाींग्िा और अींग्रेजी का ज्ञान अजजथत क्रकया। वह सींगीत और दशथनशास्त्र के भी गहरे अध्येता र्े।
रािकृटण परिहीं स और वववेकानन्द की ववचारधारा ने उन पर ववशेष प्रभाव डािा। ननरािा का पाररवाररक जीवन दि
ु ों
और सींघषों से भरा र्ा। आत्िीय जनों के असािनयक ननधन ने उन्हें भीतर तक तोड़ ठदया। साठहजत्यक िोचे पर भी
उन्होंने अनवरत सींघषथ क्रकया। सन 1961 िें उनका दे हाींत हो गया।
प्रमि
ु काव्् रचिाएँ- अनालिका, पररिि, गीनतका, कुकुरित्त
ु ा और नए पत्ते। उपन्यास, कहानी, आिोचना और ननबींध
िेिन िें भी उनकी ख्यानत अववस्िरणीय है । ननरािा रत्नावि के आि िींडों िें उनका सींपण
ू थ साठहत्य प्रकालशत है ।
काव््गत विशेषताएँ- ननरािा ववस्तत
ृ सरोकारों के कवव हैं। दाशथननकता, ववद्रोह, िाींनत, प्रेि की तरिता और प्रकृनत का
ववराि तर्ा उदात्त र्चत्र उनकी रचनाओीं िें उपजस्र्त है । उनके ववद्रोह स्वभाव ने कववता के भाव-जगत और लशल्प-
जगत िें नए प्रयोगों को सींभव क्रकया। छायावाद रचनाकारों िें उन्होंने सबसे पहिे ित
ु त छीं द का प्रयोग क्रकया।
शोवषत, उपेक्षित, पीड़ड़त और प्रताड़ड़त जन के प्रनत उनकी कववता िें जहााँ गहर सहानभ
ु नू त का भाव लििता है , वह ीं
शोषक वगथ और सत्ता के प्रनत प्रचींड प्रनतकार का भाव भी।
प्रनतपाद्- ‘उत्साह’ कववता एक आह्वान गीत है जो बादि को सींबोर्धत है । बादि ननरािा का वप्रय ववषय है । कववता
िें बादि एक तरफ पीड़ड़त-प्यासे जन की आकाींिा को परू ा करने वािा है , तो दस
ू र तरफ वह बादि नई कल्पना
और नए अींकुर के लिए ववध्वींस, ववप्िव और िाींनत चेतना को सींभव करने वािा भी। कवव जीवन को व्यापक और
सिग्र दृजटि से दे िता है । कववता िें िलित कल्पना और िाींनत चेतना दोनों हैं। सािाजजक िाींनत या बदिाव िें
साठहत्य की भलू िका िहत्वपण
ू थ होती है । ननरािा इसे ‘नवजीवन’ और ‘नत
ू न कववता’ के सींदभों िें दे िते हैं।
32
साराांश- इस कववता िें कवव बादि से घोर गजथना के सार् भयींकर बाररश करने की कािना करता है । बादि बच्चों के
कािे घघ
ुीं रािे बािों की तरह हैं। कवव बादि से धरती की प्यास बझ
ु ाने और सभी को सि
ु ी बनाने का आग्रह करता
है । कवव बादि िें नवजीवन दे ने वाि बाररश और तहस-नहस कर दे ने वािा वज्रपात दोनों रूप दे िता है । वह अनरु ोध
करता है क्रक बादि किोर वज्रशजतत को अपने भीतर छुपा कर सभी िें नई स्फूनतथ और नया जीवन डािने के लिए
िस
ू िाधार बाररश करे । आकाश िें उिड़ते-घि
ु ड़ते बादि को दे िकर कवव को िगता है क्रक सिस्त धरती भीषण गिी
से परे शान है इसलिए अनजान ठदशाओीं आकर कािे उसे शीतिता प्रदान करना चाहते हैं।
प्रनतपाद्- ‘अि नह ीं रह है’ कववता फागन
ु की िादकता को प्रकि करती है । कवव फागन
ु की सवथव्यापक सद
ुीं रता को
अनेक सींदभों िें दे िता है । जब िन प्रसन्न हो तो हर तरफ फागन
ु का ह सौंदयथ और उल्िास ठदिाई पड़ता है । सद
ींु र
शब्दों के चयन एवीं िय ने कववता को भी फागन
ु की तरह सद
ुीं र एवीं िलित बना ठदया है ।
साराांश- इस कववता िें कवव ने फागन
ु िह ने का िनोरि र्चत्र प्रस्तत
ु क्रकया है । फरवर -िाचथ के िह ने िें वसींत ऋतु
का आगिन होता है । पेड़ से परु ाने पत्ते झड़ जाते हैं और उन पर नए पत्ते भर जाते हैं। चारों तरफ रीं ग-बबरीं गे फूिों की
बहार छा जाती है । उनकी सग
ु ध
ीं से सारा वातावरण िहक उिता है । इस अनोिी प्राकृनतक सद
ुीं रता से कवव अपनी
आींिें हिा नह ीं पा रहा है । इस िौसि िें बाग-बगीचों और वनों के सभी पेड़-पौधे नए पत्तों से िद गए हैं। कह ीं िाि
रीं ग से, तो कह ीं हरे रीं ग से पेड़ की डालियााँ अनर्गनत फूिों से भर गई हैं जजससे कवव को ऐसा िगता है जैसे प्रकृनत
दे वी ने अपने गिे िें रीं ग-बबरीं गे और सग
ु र्ीं धत फूिों की िािा पहन रिी हो। इस सवथव्यापी सद
ुीं रता का कवव को कह ीं
ओर-छोर नजर नह ीं आ रहा है । इसलिए कवव कहता है क्रक फागन
ु की सद
ींु रता अि नह ीं रह है ।
विशेष:
1) उत्साह कववता िें कवव ने बादिों का िानवीकरण क्रक या है ।
2) बादि का नवजीवन दे ने वािे के रूप िें ह्रदयस्पशी र्चत्रण हुआ है ।
3) ध्वन्यात्िक बबम्ब की छिा ववद्यिान है ।
4) अनप्र
ु ास, उत्प्रेिा, िानवीकरण, रूपक अिींकारों का प्रयोग हुआ है ।
5) ओज गण
ु और वीर भाव का प्रवाह ठदिाई पड़ता है ।
6) तत्सि शब्दावि से यत
ु त सहज िड़ीबोि का प्रयोग हुआ है ।
7) दस
ू र कववता िें प्रकृनत के िनोहार रूप को िनोरि ढीं ग से दशाथया गया है ।
8) इसिें िाधय
ु थ गण
ु ववद्यिान है ।
9) प्रकृनत के अनोिे र्चत्रण के कारण यहााँ अद्भुत रस ववद्यिान है ।
बहुविकल्पी प्रश्ि
33
(ि) शीत ऋतु का
(ग) बसींत ऋतु का
(घ) ग्रीटि ऋतु का
प्रश्ि-iv ‘बाि कल्पिा के-से पािे’- इस पांल्क्त में कौि-सा अिांकार है ?
(क) अनप्र
ु ास अिींकार
(ि) उपिा अिींकार
(ग) रूपक अिींकार
(घ) अनतशयोजतत अिींकार
प्रश्ि-v ‘अि िहीां रही है ’ कविता की ‘पाि पाि शोभा श्री’ पांल्क्त में - पाि-पाि का क््ा अर्थ है ?
(क) जगह-जगह
(ि) घर-घर
(ग) द्वार-द्वार
(घ) बार-बार
उत्तर- i- (घ) बादि का ii- (क) बादि वषाथ करके धरती को तप्ृ त करते हैं iii- (ग) बसींत ऋतु का iv- (ि) उपिा अिींकार
v- (क) जगह-जगह
जीिि पररच्- नागाजन ुथ का जन्ि बबहार के दरभींगा जजिे के सतििा गााँव िें सन 1911 िें हुआ। उनका ििू नाि
वैद्यनार् लिश्र र्ा। प्रारीं लभक लशिा सींस्कृत पािशािा िें हुई क्रफर अध्ययन के लिए बनारस और कोिकाता गए। सन
1936 िें वे श्रीिींका गए और वह ीं बौद्ध धिथ िें द क्षित हुए। दो साि प्रवास के बाद स्वदे श िौि आए। घि ु तकड़ी
और अतिड़ स्वभाव के धनी नागाजुन थ ने अनेक बार सींपण ू थ भारत की यात्रा की। सन 1998 िें उनका दे हाींत हो गया।
कृनत्ाँ- नागाजन
ुथ की प्रिि
ु काव्य कृनतयााँ हैं- यग
ु धारा, सतरीं गे पींिों वाि , हजार-हजार बाहों वाि , ति
ु ने कहा र्ा,
परु ानी जूनतयों का कोरस, आखिर ऐसा तया कह ठदया िैंने, िैं लिलिर का बढ़
ू ा घोड़ा। नागाजन
ुथ ने कववता के सार्-
सार् उपन्यास और अन्य गद्य ववधाओीं िें भी िेिन क्रकया है । उनका सींपण
ू थ कृनतत्व नागाजन
ुथ प्रश्नावि के सात
िींडों िें प्रकालशत है । राजनैनतक सक्रियता के कारण उन्हें अनेक बार जेि जाना पड़ा। ठहींद और िैर्र्ि िें सिान रूप
से िेिन करने वािे नागाजन
ुथ ने बाींग्िा और सींस्कृत िें भी कववताएाँ लििीीं। िातभ
ृ ाषा िैर्र्ि िें वे ‘यात्री’ नाि से
प्रनतजटित हैं।
साठहजत्यक योगदान के लिए उन्हें अनेक परु स्कारों से सम्िाननत क्रकया गया जजनिें प्रिि
ु हैं- ठहींद अकादिी, ठदल्ि
का लशिर सम्िान, उत्तर प्रदे श का भारत भारती परु स्कार एवीं बबहार का राजेंद्र प्रसाद परु स्कार। िैर्र्ि भाषा िें
कववता के लिए उन्हें साठहत्य अकादिी परु स्कार प्रदान क्रकया गया।
काव््गत विशेषताएँ- िोक जीवन से गहरा सरोकार रिने वािे नागाजन
ुथ भ्रटिाचार, राजनीनतक स्वार्थ और सिाज की
पतनशीि जस्र्नतयों प्रनत अपने साठहत्य िें ववशेष सजग रहे । वे व्यींग्य िें िाठहर हैं, इसलिए उन्हें आधनु नक कबीर भी
कहा जाता है । छायावादोत्तर दौर के वे ऐसे अकेिे कवव हैं, जजनकी कववता गााँव की चौपािों और साठहजत्यक दनु नया िें
सिान रूप से िोकवप्रय रह । वे वास्तववक अर्ों िें जनकवव हैं। सािनयक बोध से गहराई से जुड़े नागाजन
ुथ की
आींदोिनधिी कववताओीं को व्यापक िोकवप्रयता लिि । नागाजन
ुथ ने छीं दों िें काव्य रचना की और ित
ु त छीं द िें भी।
प्रनतपाद्- ‘यह दीं तरु रत िस्
ु कान’ कववता िें छोिे बच्चे की िनोहार िस्
ु कान दे िकर कवव के िन िें जो भाव उिड़ते
हैं उन्हें कववता िें अनेक बबम्बों के िाध्यि से प्रकि क्रकया गया है । कवव का िानना है क्रक इस सद
ुीं रता िें ह जीवन
का सींदेश है । इस सद
ींु रता की व्याजप्त ऐसी है क्रक किोर से किोर िन भी वपघि जाए। इस दीं तरु रत िस्
ु कान की िहत्ता
तब और बढ़ जाती है जब उसके सार् नजरों का बााँकपन भी जुड़ जाता है ।
34
साराांश- इस कववता िें कवव ने छोिे बच्चे की अनप
ु ि िस्
ु कान का बहुत ह िनोहार वणथन क्रकया है । धि
ू से सने
बच्चे के शर र की शोभा झोपड़ी िें खििे हुए किि के सिान है । कवव बताता है क्रक उस छवव को दे िकर उसका
किोर हृदय भी वपघि गया। अगर कवव पहि बार अपररर्चत-सा होकर बच्चे को छूता है तो वह उसे अनर्ु चत िानता
है । अपररर्चत व्यजतत से बच्चा असहज हो उिता है । कवव िााँ के िाध्यि से ह बच्चे की दीं तरु रत िस्
ु कान दे ि पाया,
इसलिए वह बच्चे और उसकी िााँ दोनों को धन्य िानता है । प्रवास िें रहने के कारण कवव का सींपकथ बच्चे से नह ीं हो
पाया। िााँ की उीं गलियााँ ह उसे िधुपकथ कराती रह हैं इसी बीच जब कवव की आींिें बच्चे से लििती हैं तो उस छवव
से कवव प्रसन्नता से भर उिता है ।
प्रनतपाद्- फसि शब्द सन
ु ते ह िेतों िें िहिहाती फसि आाँिों के सािने आ जाती है । परीं तु फसि है तया और उसे
पैदा करने िें क्रकन-क्रकन तत्वों का योगदान होता है , इसे बताया है नागाजन
ुथ ने अपनी कववता फसि िें । कववता यह
भी रे िाींक्रकत करती है क्रक प्रकृनत और िनटु य के सहयोग से ह सज
ृ न सींभव है । बोिचाि की भाषा की गनत और िय
कववता को प्रभावशाि बनाती है । कहना न होगा क्रक यह कववता हिें उपभोतता-सींस्कृनत के दौर िें कृवष- सींस्कृनत के
ननकि िे जाती है ।
साराांश- ‘फसि’ कववता के िाध्यि से कवव ने प्रकृनत और िनटु य के सहयोग से सज
ृ नशीिता को स्पटि क्रकया है ।
ननिाथण िें क्रकसी एक तत्व की भलू िका नह ीं होती बजल्क कई तत्वों का सींयोजन होता है । फसि के तैयार होने िें
नठदयों के पानी का योगदान होता है । उसिें एक दो नह ीं बजल्क िािों-करोड़ों िोगों का श्रि िगा होता है । इसी तरह
कई प्रकार की लिट्ि की ववशेषताएाँ फ़सि िें सिायी होती हैं। सरू ज की क्रकरणों की ऊटिा और िचिती हवा की
फसि तैयार होने िें िहत्त्वपण
ू थ भलू िका होती है ।
विशेष:
1) ‘यह दीं तुररत िुस्कान’ कववता िें छोिे बच्चे की िुस्कान के सौन्दयथ का िनोहार र्चत्रण हुआ है ।
2) बबम्बों के प्रभावशाि प्रयोग से यह कववता जीवींत बन पड़ी है ।
3) अपररर्चत के सार् बच्चे के व्यवहार का वणथन हृदयस्पशी है ।
4) िााँ के िित्व और स्ने हपूणथ दे ि भाि को बड़े ह सहज ढीं ग से दशाथया गया है ।
5) अनप्र
ु ास, उत्प्रेिा, रूपक अिींकारों का प्रयोग हुआ है ।
6) िाधुयथ गणु और िद ृ ि
ु भाव के उल्िेि से कववता िें सरसता ववद्यिान है ।
7) तत्सि शब्दावि से यत ु त सहज िड़ीबोि का प्रयोग हुआ है ।
8) दस
ू र कववता िें प्रकृनत और िनटु य के योगदान से सजृ न को िनोरि ढीं ग से दशाथया गया है ।
9) इस कववता िें प्राकृनतक तत्वों एवीं िानवीय श्रि को िहत्त्व ठदया गया है।
10) इसिें प्राकृनतक तत्वों को सुरक्षित रिने का सींदेश भी ननठहत है ।
बहुविकल्पी प्रश्ि
जीिि पररच्- सिकाि न ठहन्द कववयों िें िींगिेश डबराि का नाि सबसे चर्चथत है । इनका जन्ि 16 िई 1948 को
ठिहर गढ़वाि, उत्तरािण्ड के काफिपानी गााँव िें हुआ र्ा। इनकी लशिा-द िा दे हरादन
ू िें हुई। कववता के अनतररतत वे
साठहत्य, लसनेिा, सींचार िाध्यि और सींस्कृनत के ववषयों पर भी िेिन करते हैं।
कृनत्ाँ- िींगिेश डबराि के पााँच काव्य-सींग्रह प्रकालशत हुए हैं। पहाड़ पर िाििे न, घर का रास्ता, हि जो दे िते हैं,
आवाज भी एक जगह है और नये यग ु िें शत्र।ु
इनकी रचनाओीं के लिए इन्हें कई परु स्कारों से सम्िाननत क्रकया गया है । जजनिें िख्
ु य रूप से साठहत्य अकादिी
परु स्कार, कुिार ववकि स्िनृ त परु स्कार एवीं ठदल्ि ठहन्द अकादिी का साठहत्यकार सम्िान है ।
काव््गत विशेषताएँ- िींगिेश जी की कववताओीं िें सािींती बोध एव पाँज
ू ीवाद छि-छद्ि दोनों का प्रनतकार है । वे यह
प्रनतकार क्रकसी शोर-शराबे के सार् नह ीं बजल्क प्रनतपि िें एक सद
ुीं र सपना रचकर करते हैं। उनका सौंदयथबोध सक्ष्
ू ि है
और भाषा पारदशी।
प्रनतपाद्- प्रस्तत
ु कववता िें कवव ने उन िोगों की चचाथ की है , जो कभी प्रलसद्र्ध का स्वाद नह ीं चिते।
क्रफर भी ननरीं तर कायथ करते चिे जाते हैं। उन्हें कभी उनके काि के लिए तार फ़ सुनने को नह ीं लििती। वे
हिेशा अींधकार िें जीते हैं , क्रफर भी वे बबना क्रकसी स्वार्थ के ननरीं तर अपना काि करते चिे जाते हैं। जजस
तरह क्रकसी गायक के सार् गाने वािे सींगतकार होते हैं। सभी िोग गायक को जानते हैं , उसी की तार फ़
करते हैं, परन्तु कोई यह नह ीं जानता क्रक उसके सार् क्रकतने सींगतकार हैं। जो बबना क्रकसी स्वार्थ के उसकी
आवाज को दब
ु ि
थ नह ीं होने दे ते।
जब-जब गायक की आवाज िड़िड़ाने िगती है , तब-तब सींगतकार अपनी आवाज से गायक की आवाज को
बााँध िेते हैं और उसे बबिरने नह ीं दे ते। कभी-कभी तो उन्हें जान-बझ
ू ख़राब गाना पड़ता है क्रक कह ीं उनकी
आवाज गायक से अच्छी न हो जाए। वह ऐसा लसफथ इसलिए करता है तयोंक्रक िुख्य गायक की प्रलसद्र्ध िें
36
कोई किी ना आए। उसे कोई नह ीं पहचानता। न ह उसे िान-सम्िान लििता है । क्रफर भी वह ननरीं तर बबना
क्रकसी स्वार्थ के अपना काि करता रहता है ।
साराांश- कवव बताता है क्रक जब िख्
ु य गायक अपने चट्िान जैसे भार स्वर िें गाता है , तब सींगतकार हिेशा
उसका सार् दे ता है । सींगतकार की आवाज बहुत ह किजोर, कापींती हुई प्रतीत होती है । िेक्रकन क्रफर भी वह
बहुत ह िधरु र्ी, जो िुख्य गायक की आवाज के सार् लििकर उसकी प्रभावशीिता को और बढ़ा दे ती है ।
कवव को ऐसा िगता है क्रक यह सींगतकार गायक का कोई बहुत ह कर ब का ररश्तेदार या जान-पहचान
वािा है , या क्रफर ये उसका कोई लशटय है , जो क्रक उससे गायकी सीि रहा है । इस प्रकार, वह बबना क्रकसी की
नजर िें आए ननरीं तर अपना कायथ करता रहता है।
जब कोई िहान सींगीतकार अपने गाने की िय िें डूब जाता है , तो उसे गाने के सुर-ताि की भनक नह ीं
पड़ती और वह कभी-कभी अपने गाने िें कह ीं भिक-सा जाता है । आगे सुर कैसे पकड़ना है , यह उसे सिझ
नह ीं आता और वह उिझ-सा जाता है । तब वह िुख्य गायक को कह ीं भिकने नह ीं दे ता और सींगीत के सुर-
ताि को वापस पकड़ने िें उसकी सहायता करता है । इस दौरान ऐसा िगता है , िानो िुख्य गायक अपना
कुछ सािान पीछे छोड़ते हुए चिा जाता है और सींगतकार उसे सिेिते हुए उसके सार् आगे बढ़ता है ।
विशेष-
1) कवव ने सींगतकार की वास्तववक जस्र्नत का सहज र्चत्रण क्रक या है ।
2) िुख्य गायक की सफिता िें सींगतकार की भूलिका का उल्िेि क्रक या गया है ।
3) सींगतकार के लिए सािाजजक ररश्तों के बींध न को बािू बी ढीं ग से प्रस्तुत क्रकया गया है ।
4) अनप्र
ु ास, उपिा, उदाहरण,एवीं पन ु रुजतत अिींकारों का स्वाभाववक प्रयोग हुआ है ।
5) ियपण ू ,थ अतक
ु ाींत, छीं दित
ु त काव्य-शैि का िनोरि प्रयोग हुआ है ।
6) तत्सि-तद्भव शब्दावि से यत ु त सहज िड़ीबोि का प्रयोग हुआ है ।
7) बबम्ब प्रधान काव्य-पींजततयों िें प्रसाद गण
ु ववद्यिान है ।
8) शाीं त रस रस से युतत पींजततयों िें पूणथ अर्थवत्ता दशथनीय है ।
बहुविकल्पी प्रश्ि
प्रश्ि-i मख्
ु ् गा्क के चट्िाि जैसे भारी स्िर को कौि मधुरता िे ता है ?
(क) सींगतकार
(ि) कवव
(ग) ढोिकबाज
(घ) उस्ताद
प्रश्ि-ii जब गा्क जठिि तािों के जांगि में िो जाता है तब सांगतकार क््ा करता है ?
(क) प्रसन्नता से भर उिता है
(ि) स्र्ायी (िख्
ु य तान) को सींभािे रहता है
(ग) परे शान हो जाता है
(घ) चप
ु चाप दे िता रहता है
प्रश्ि-iii कविता में िौलसखि्ा ककसे बता्ा ग्ा है ?
(क) सींगतकार को
(ि) स्वयीं को
(ग) िख्
ु य गायक को
(घ) बच्चे को
37
प्रश्ि-iv सांगतकार का स्िर गा्क को ढाढस कब बँधाता है ?
(क) जब तार सप्तक में गा्क का गिा बैििे िगता है
(ि) जब गा्क का उत्साह अस्त होिे िगता है
(ग) जब गा्क की आिाज से राि जैसा कुछ धगरता हुआ िगता है
(घ) उपयत
ुथ त सभी
प्रश्ि-v सांगतकार दिारा अपिी आिाज को िबािा उसकी विफिता है - ्ह कर्ि
(क) सत्य है
(ि) असत्य है
(ग) क और ि दोनों है
(घ) इनिें से कोई नह ीं
उत्तर- i- (क) सींगतकार ii- (ि) स्र्ायी (िख्
ु य तान) को सींभािे रहता है iii- (क) सींगतकार को iv- (घ) उपयत
ुथ त सभी
v- (ि) असत्य है
िांड- ि (िणथिात्मक प्रश्ि)
38
ध्यान नह ीं दे पाएाँगे। इसलिए वह सेवा-भाव से उनके चरणों िें अपने ठदन बबताना चाहती र्ी। वह उनके लिए भोजन
और दवा-पानी का प्रबींध करना चाहती र्ीीं।
प्रश्ि-2 बािगोबबि भगत की ठििच्ाथ िोगों के अचरज का कारण क््ों र्ी?
उत्तर- बािगोबबन भगत की ठदनचयाथ का प्रत्येक कायथ आश्चयथजनक होता र्ा। उस ठदनचयाथ िें कह ीं भी कोई चूक
उनके द्वारा सींभव नह ीं र्ी। उनकी ठदनचयाथ िोगों को है रान कर दे ती र्ी। िोग भगत जी की सरिता, सादगी और
ननस्वार्थता पर है रान होते र्े। भगत जी भि
ू कर भी क्रकसी से कुछ नह ीं िेते र्े। वे बबना पछ
ू े क्रकसी भी चीज को छूते
नह ीं र्े। यहााँ तक क्रक क्रकसी दस
ू रे के िेत िें शौच भी नह ीं करते र्े। िोग उनके इस व्यवहार से िग्ु ध र्े। िोग
भगत जी पर तब और भी आश्चयथ करते र्े जब वे भोरकाि िें उिकर दो- तीन िीि दरू जस्र्त नद िें स्नान कर
आते र्े। वापसी पर वे गााँव के बाहर जस्र्त पोिर के क्रकनारे प्रभ-ु भजतत के गीत िे रा करते र्े। उनके इन प्रभावी
गानों को सन
ु कर िोग सचिच
ु है रान रह जाते र्े।
प्रश्ि-3 भगत िे अपिे बेिे की मत्ृ ्ु पर अपिी भाििाएँ ककस प्रकार अलभव््क्त की ?
उत्तर- अपने बेिे की ित्ृ यु पर भगत की भावनाएाँ चि आ रह परीं परा से लभन्न र्ीीं। उन्होंने अपनी भावनाएाँ इस प्रकार
अलभव्यतत की -
1-ित
ृ क पत्र
ु को आाँगन िें चिाई पर लििाकर सफ़ेद कपड़े से ढाँ क ठदया।
2-ित
ृ क पत्र
ु के ऊपर फूि और ति
ु सी के पत्ते बबिेर ठदए और लसरहाने एक द पक जिाकर रि ठदया।
3-उसके सिीप आसन पर बैिकर हिेशा की तरह कबीर के पदों को गाने िगे और पतोहू को सिझाने िगे, आत्िा
का परिात्िा से लििन हो गया है । ववरठहणी अपने प्रेिी (ईश्वर) से जाकर लिि गई है ।
4-पतोहू को सिझाने िगे क्रक यह वतत रोने का न होकर उत्सव िनाने का है ।
प्रश्ि-4 िेतीबारी से जुड़े गहृ स्र् बािगोबबि भगत अपिी ककि चाररबत्रक विशेषताओां के कारण साधू कहिाते र्े?
उत्तर- बािगोबबन भगत िेतीबार से जुड़े गह
ृ स्र् र्े। उनका साफ़-सर्
ु रा िकान र्ा, क्रफर भी सवथर्ा वे साधत
ु ा की श्रेणी
िें आते र्े। वे कबीर को अपना साहब िानते र्े। वे कबीर के पदों को ह गाते र्े और उनके आदे शों पर चिते र्े। वे
सभी से िरा व्यवहार रिते र्े। दो िूक बात कहने िें न कोई सींकोच करते र्े, न क्रकसी से झगड़ते र्े। भगत जी
सरिता, सादगी और ननस्वार्थ जीवन जीते र्े। वे अन्य क्रकसी की चीज को बबना पछ
ू े व्यवहार िें नह ीं िाते र्े। वह
अपनी प्रत्येक वस्तु पर साहब का अर्धकार िानते र्े। पररश्रि से पैदा की गई फ़सि को पहिे साहब को अवपथत करते
र्े, उसके बाद स्वयीं प्रयोग करते र्े। इस प्रकार त्याग की प्रववृ त्त और साधुता का व्यवहार उन्हें साधु की श्रेणी िें िड़ा
कर दे ता है ।
प्रश्ि-5 पाि के आधार पर बताइए कक बािगोबबि भगत की कबीर पर श्रदधा ककि-ककि रूपों में प्रकि हुई है?
उत्तर- भगत कबीर को ह अपना साहब िानते र्े। उनके ह ननदे शों का यर्ा-सींभव पािन करते र्े। कबीर के प्रनत
उनकी श्रद्धा ननम्नलिखित रूपों िें प्रकि हुई है -
1- भगत लसर पर सदै व कबीर-पींर्ी िोपी पहनते र्े, जो कनपि तक जाती र्ी।
2- कबीर के रर्चत पदों को ह गाते र्े।
3- कबीर को ह अपना ईश्वर िानते र्े।
4- वे उन्ह ीं के बताए आदशों पर चिते र्े।
5- उनकी किाई से जो कुछ पैदा होता र्ा उसे पहिे कबीर के दरबार िें भें ि करते र्े और वहााँ से जो
प्रसाद के रूप िें प्राप्त होता र्ा उससे ह ननवाथह करते र्े।
39
6- भगत पर कबीर-ववचार-धारा इतना प्रभाव क्रक उन्ह ीं की तरह रुठढयों का ववरोध करते र्े।
8- उनकी वेश-भष
ू ा भी कबीर की तरह र्ी। किर िें एक िात्र िींगोि , लसर पर िोपी और सठदथ यों िें
काि किि ओढ़ते र्े।
40
पर वपता जी के िोध से बच सके परन्तु जब वे कॉिेज से िौिे तो बहुत प्रसन्न र्े, चेहरा गवथ से चिक रहा र्ा। वे
घर आकर बोिे क्रक उसका कॉिेज की िड़क्रकयों पर बहुत रौब है । परू ा कॉिेज तीन िड़क्रकयों के इशारे पर िाि हो
जाता है । वप्रींलसपि को कॉिेज चिाना असींभव हो रहा है । वपताजी को उस पर गवथ होने िगा क्रक वह दे श की पक
ु ार के
सिय दे श के सार् चि रह है , इसलिए इसे रोकना असींभव र्ा। यह सब सन
ु कर िेखिका को न अपनी ओीँ िों पर
ववश्वास हुआ न ह अपने कानों पर।
प्रश्ि 3. िेखिका का ‘पड़ोस कल्चर’ से क््ा तात्प्थ है? आधुनिक जीिि में ‘पड़ोस कल्चर’ विल्च्छन्ि होिे का हमारे
जीिि पर क््ा प्रभाि पड़ा है ?
उत्तर- ‘पड़ोस कल्चर’ से िेखिका का तात्पयथ है - घर के आसपास रहने वािों की सींस्कृनत। आधनु नक जीवन िें
अत्यर्धक व्यस्तता के कारण िहानगरों के फ्िैि िें रहने वािों की सींस्कृनत ने परम्परागत ‘पड़ोस कल्चर’ से बच्चों को
अिग करके उन्हें अत्यर्धक सींकीणथ, असहाय और असरु क्षित बना ठदया है ।
प्रश्ि 4. माँ के धै्थ और सहिशल्क्त को िेखिका िे धरती से भी ज््ािा क््ों बता्ा है ?
उत्तर- िेखिका ने िााँ के धैयथ और सहनशजतत को िेखिका ने धरती से भी ज्यादा बताया है तयोंक्रक पथ्
ृ वी की
सहनशजतत और धैयथ तब जवाब दे दे ते हैं जब वह भक
ू ीं प बाढ़ आठद के रूप िें अपनी प्रनतक्रिया व्यतत करती है ।
िेक्रकन िेखिका की िााँ वपताजी की प्रत्येक ज़्यादती को चुपचाप सहन कर जाती है और बच्चों को प्रत्येक उर्चत-
अनर्ु चत फरिाइश और जजद को अपना कतथव्य िानकर सहज भाव से स्वीकार कर िेती र्ी ।
प्रश्ि 5. िेखिका िे ्ह क््ों कहा कक वपताजी ककतिी तरह के अांतविथरोधों के बीच जीते र्े?
उत्तर- िेखिका के वपताजी िें ववलशटि बनने और बनाने की प्रबि िािसा र्ी, दस
ू र ओर उनिें अपनी सािाजजक
प्रनतटिा को िेकर भी सजगता र्ी। वे आधनु नकता और परीं परा दोनों का ननवाथह करना चाहते र्े। एक ओर िेखिका के
जिसे-जुिस
ू ों िें नारे िगवाने-िगाने, हड़ताि करवाने और भाषण दे ने के ववरुद्ध र्े तो दस
ू र ओर िेखिका के इन्ह ीं
कायों पर गवथ से फूि उिते र्े इसलिए िेखिका ने कहा क्रक वपताजी एक सार् क्रकतनी तरह के अींतववथराधों िें जीते र्े।
प्रश्ि 6. िेखिका मन्िू भांडारी की चाररबत्रक विशेषताओां का िणथि कील्जए।
उत्तर- िेखिका स्वतींत्र ववचारों की पिधर र्ी जजन्होंने स्वतींत्रता आींदोिन िें सक्रिय योगदान ठदया। वह साहसी और
जुझारू व्यजततत्व की घनी र्ी।
प्रश्ि 7. िेखिका की साठहत्् के प्रनत रूधच जागत
ृ होिे का प्रमि
ु कारण क््ा है ?
उत्तर -िेखिका की अध्यावपका शीिा अग्रवाि के प्रोत्साहन व िागथदशथन िें उन्होंने ठहन्द के प्रिि
ु साठहत्यकारों की
कृनतयों का अध्ययन क्रकया। सार् ह वे अपनी अध्यावपका के सार् साठहजत्यक चचाथएाँ भी करती रह ीं।
प्रश्ि 8. भारत के स्ितांत्रता आांिोिि में िेखिका का क््ा सकि् ्ोगिाि रहा?
उत्तर- िेखिका स्र्ानीय स्तर पर धरने, प्रदशथन, हड़ताि कराती व अींग्रेजी सरकार के खििाफ ववरोध प्रदशथन करती व
सावथजननक सभाओीं िें भाषण प्रस्तत
ु करती।
प्रश्ि 9. िेखिका के वपता के िोधी और शक्की होिे के क््ा कारण र्े?
उत्तर- िेखिका के वपता िहत्वाकाींिी र्े, उनिें नवाबी आदतें र्ीीं तर्ा वे सािाजजक स्तर पर प्रनतटिा पाने व शीषथ पर
रहना चाहते र्े। इस िेत्र िें असफि रहने व आर्र्थक रूप से वपछड़ने पर वे िोधी हो गए। सार् ह अपनों ह के
द्वारा ववश्वासघात क्रकए जाने पर वे शतकी हो गए।
प्रश्ि 10. िेखिका के वपता उन्हें सामान्् िड़कक्ों से कैसे लभन्ि बिािा चाहते र्े?
उत्तर- िेखिका के वपता चाहते र्े क्रक उनकी बेि सािान्य िड़क्रकयों की तरह गह
ृ स्र्ी के कायों िें अपनी प्रनतभा धूलिि
न कर रचनात्िक, सज
ृ नात्िक कायों एवीं सािाजजक, राजनैनतक आींदोिनों िें सक्रिय भागीदार करें तर्ा जजम्िेदार
नागररक के रूप िें अपनी छवव स्र्ावपत करें ।
41
िौबत िािे में इबाित - ्तीांद्र लमश्र
प्रश्ि 1. सांसार में ककसी भी चीज को पकड़कर िहीां बैिा जा सकता क््ों?
उत्तर- प्रनतिण बदिते सींसार िें कोई भी वस्तु स्र्ायी अर्वा अिुण्ण नह ीं है । सिय पररवतथन के सार्-सार् उनिें
बदिाव आता रहता है और आना भी चाठहए। इसलिए सींसार िें क्रकसी भी चीज को पकड़कर नह ीं बैिा जा सकता।
प्रश्ि 2. आश् स्पष्ि कील्जए- ल्जि साधिों के बि पर िह ठिि-रात आत्म-वििाश में जि
ु ा हुआ है , उन्हें हम उसकी
सभ््ता समझें ्ा असभ््ता।
उत्तर- आशय िनटु य ने अपनी योग्यता, प्रववृ त्त अर्वा प्रेरणा के द्वारा अपने आत्ि-ववनाश के अनेक साधन जुिा लिए
हैं और वह ऐसे अन्य साधनों को जुिाने के लिए ठदन-रात िगा हुआ है । िेिक-प्रश्न करता है क्रक उन्हें हि उसकी
सभ्यता सिझें या असभ्यता? वास्तव िें हिें यह उनकी असभ्यता ह सिझनी चाठहए तयोंक्रक उनिें िानव कल्याण
की अपेिा िानव के अठहत की भावना है ।
प्रश्ि 3. िेिक के अिस
ु ार सभ््ता और सांस्कृनत में क््ा अन्तर है ?
उत्तर- िेिक के अनस
ु ार व्यजतत की वह योग्यता, प्रववृ त्त अर्वा प्रेरणा सींस्कृनत है जजसके बि पर वह आववटकार करता
है जबक्रक उसके द्वारा अपने लिए तर्ा दस
ू रों के लिए क्रकया गया आववटकार सभ्यता है ।
प्रश्ि 4. ककस सांस्कृनत को कूड़े-करकि का ढे र कहा ग्ा है ? और क््ों?
उत्तर- उस सींस्कृनत को कूडे-करकि का ढे र कहा गया है जजसिें जानतवाद ऊाँच-नीच, छुआछूत, अिीर-गर ब, अनेक
रूठढ़यााँ, अींधववश्वास, धलिथक किथकाींड, परम्पराएाँ आदशथ और जीवन िल्
ू य, कुर नतयााँ सजम्िलित हैं। तयोंक्रक पररवनतथत
सिय िें इनका कोई अर्थ नह ीं रह गया है ।
प्रश्ि 5. लसदिार्थ िे अपिा घर क््ों त््ाग ठि्ा?
उत्तर- आज से ढाई हजार वषथ पव
ू थ लसद्दार्थ ने अपने घर का त्याग इसीलिए क्रकया ताक्रक तटृ णा के वशीभत
ू िड़ती-
किती िानवता सि
ु से रह सके। इसके लिए उन्होंने किोर तपस्या की और सत्य की िोज भी की।
प्रश्ि 6. सांस्कृनत निबांध ् का प्रनतपाद् / उदिे श्् स्पष्ि कील्जए।
उत्तर- सींस्कृनत ननबींध ् का उद्दे श्य सभ्यता और सींस्कृनत शब्दों की व्याख्या करना है । सभ्यता और सींस्कृनत शब्दों का
अर्थ स्पटि करना तर्ा िानव सींस्कृनत को अववभाज्य बताकर उसे िनटु य के लिए कल्याणकार बताना है ।
प्रश्ि 7. िास्तविक अर्ों में ‘सांस्कृत व््ल्क्त’ ककसे कहते है ?
उत्तर- अपनी बद्
ु र्ध अर्वा वववेक के आधर पर क्रकसी भी नए तथ्य का दशथन करने वािा व्यजतत वास्तववक अर्ो िें
‘सींस्कृत व्यजतत’ है । उदाहरणतया न्यि
ू न सींस्कृत िनटु य है , तयोंक्रक उसने अपनी बद्
ु र्ध के बि पर गरु
ु त्वाकषथण
लसद्धाींत िोजा।
43
प्रश्ि 8. ककि महत्िपण
ू थ आिश््कताओां की पनू तथ के लिए सईु -धागों का आविष्कार हुआ होगा?
उत्तर- ननम्नलिखित िहत्वपणू थ आवश्यकताओीं की पनू तथ के लिए सई ु -धागों का आववटकार हुआ होगा- 1. तन ढकने के
लिए 2. शीत तर्ा उटणता से बचने के लिए 3. शर र सजाने की प्रववृ त्त के कारण। आज कि यह तकनीक बहुत
उपयोगी लसद्ध हो रह है । जूते लसिने से िेकर शल्य र्चक्रकत्सा तक िें इसका उपयोग हो रहा है ।
प्रश्ि 9. िेिक िे सिथस्ि त््ाग करिे िािी सांस्कृनत को स्पष्ि करिे के लिए ककि-ककि महामाििों के उिाहरण ठिए
हैं?
उत्तर- ननम्नलिखित िहािानवों के उदाहरण ठदए हैं -
1- रूस के भाग्य ववधता िेननन द्वारा डैस्क िें रिे हुए डबिरोि के सि
ू े िुकड़ों को स्वयीं न िाकर दस
ू रों को
खििा दे ने का उदाहरण।
2- सींसार भर के िजदरू ों को सि
ु ी दे िने की इच्छा िें स्वयीं के जीवन को कटि पण
ू थ बनाने वािे कािथ िातसथ का
उदाहरण।
3- दि
ु ी िानवता को सि
ु ी करने की इच्छा से लसद्दार्थ द्वारा गह
ृ त्याग दे ने का उदाहरण।
प्रश्ि 10. िेिक की दृल्ष्ि में सभ््ता और सांस्कृनत की सही समझ अब तक क््ों िहीां बि पाई है ?
उत्तर- सभ्यता और सींस्कृनत की सह सिझ इसलिए नह ीं बन पाई तयोंक्रक हि इन दोनों बातों को एक ह सिझते हैं।
यह जानना जरूर है क्रक दोनों एक नह ीं हैं, क्रफर भी इनिें इतनी नजद की है क्रक इनिें स्पटि अींतर सािान्य िोगों को
नह ीं सिझ आते हैं।
प्रश्ि 11. िेिक के अिस
ु ार सभ््ता क््ा है?
उत्तर- िेिक के अनस
ु ार सभ्यता सींस्कृनत का पररणाि है । िनटु य के िाने-पीने के तर के पहनने ओढ़ने के तर के
हिारे यातायात के साधनों का उपयोग जीवन जीने का तर के ह सभ्यता है ।
(काव््-िांड)
पि – सूरिास
44
उत्तर- भ्रिरगीत िें ननगण
ुथ ब्रह्ि का ववरोध, सगण
ु की सराहना, ववयोग श्रींग
ृ ार का िालिथक र्चत्रण है । इसिें गोवपयों
की स्पटिता, वाकपिुता, सह्रदयता, व्यींग्यात्िकता सराहनीय है और एकननटि प्रेि, योग से पिायन, स्नेहालसतत-उपािींभ
अविोकनीय हैं।
प्रश्ि 7 – गोवप्ों को राजधमथ की ्ाि क््ों ठििािी पड़ी?
उत्तर- प्रेि आठद की पववत्र नीनतपरक बातें भि
ू कर कृटण अनीनत पर उतार आए हैं। अत: योग-सींदेश को भेजकर प्रेि
की ियाथदा के ववरूद्ध कायथ कर रहे हैं। इसलिए गोवपयों ने उन्हें राजधिथ की याद ठदिाकर प्रेि-नीनत पर िाने का
प्रयास क्रकया गया।
प्रश्ि 8 – सरू िास के पढ़े गए पिों के आधार पर सरू िास की काव््गत विशेषताएँ बताइए।
उत्तर- क- एकननटि प्रेि ि- वातपिुता ग- गीत शैि घ- व्यींग्यात्िक शैि ।
प्रश्ि 9 – गोवप्ों के िाक-चात्
ु थ की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर- स्पटिता व व्यींग्यात्िक प्रयोग।
प्रश्ि 10 – ्ोग सांिेश का गोवप्ों पर क््ा प्रभाि पड़ा?
उत्तर- गोवपयों की ववरहाजग्न बढ़ गई। उनका िन द:ु िी हो गया। उद्धव को उिाहने दे ने िगीीं।
45
प्रश्ि 7-ककस कारण िक्ष्मण िोध को रोककर परशरु ाम के िचिों को सहि कर रहे र्े?
उत्तर- िक्ष्िण िोध को रोककर परशरु ाि के वचनों को इसलिए सह रहे र्े तयोंक्रक उनके कुि की परम्परा है । उनके
यहाीं गाय, ब्राह्िण, हररभतत और दे वताओीं पर वीरता नह ीं ठदिाई जाती ।
प्रश्ि 8- िक्ष्मण की बढ़ती हुई उच्छां िि
ृ ता पर अब तक मौि रहे राम िे अांत में िक्ष्मण को क््ों रोक लि्ा?
उत्तर- यद्यवप िक्ष्िण की उच्छीं िि
ृ ता रघवु श
ीं के अनक
ु ू ि नह ीं र्ी क्रफर भी राि सिझ रहे र्े क्रक िनु नवर को हिार
वास्तववकता का ज्ञान हो जाए। परन्तु उपजस्र्त िोगों की पक
ु ार से जस्र्नत बबगड़ती दे ि उन्होंने िक्ष्िण को आाँिों के
सींकेत से रोका।
47
* िानव श्रि
प्रश्ि 9- ककसािों के हार्ों के स्पशथ को मठहमा क््ों मािा ग्ा है ?
उत्तर-फसिों को उगाने के लिए क्रकसान ठदन-रात कड़ी िेहनत करते हैं तब कह ीं जाकर िेतों िें फसि िहिहाती है ।
क्रकसानों के इसी श्रि को सम्िान दे ने के लिए फसि को क्रकसान के हार्ों के स्पशथ की िठहिा िाना गया है।
प्रश्ि 10- कवि िे फसि को जाि ू क््ों कहा है?
उत्तर- कवव ने फसि को जाद ू इसलिए कहा है तयोंक्रक फसि लिट्ि , हवा, पानी, धूप और िानव श्रि के िेि से बनी
है ।
प्रश्ि 11- ककि-ककि तत्िों के ्ोगिाि से फसि की उत्पवत्त होती है ?
उत्तर- लिट्ि , पानी, धूप, हवा और िानव श्रि से फसि की उत्पवत्त होती है ।
प्रश्ि 12- फसि कविता का ितथमाि सांिभथ में महत्ि बताइए?
उत्तर- प्रकृनत और िानव श्रि का साकार और सार्थक रूप फसि है । आज भी पररश्रि का िहत्व और प्रकृनत का
योगदान अपेक्षित है ।
प्रश्ि 1- सांगतकार के माध््म से कवि ककस तरह के व््ल्क्त्ों की ओर सांकेत करिा चाह रहा है ?
उत्तर- सींगतकार के िाध्यि से कवव सहायक किाकारों के िहत्त्व की ओर सींकेत कर रहा है । ये सहायक किाकार िद
ु
को पीछे रिकर िख्
ु य किाकार को आगे बढ़ने िें योगदान दे ते है । यह बात जीवन के हर िेत्रा िें िागू होती है ।
प्रश्ि 2- सांगतकार की आिाज में एक ठहचक क््ों सि
ु ाई िे ती है ?
उत्तर- सींगतकार की आवाज िें एक ठहचक साफ सन
ु ाई दे ती है तयोंक्रक वह जान बझ
ू कर अपनी आवाज को िख्
ु य
गायक से ऊपर नह ीं उिने दे ता। तयोंक्रक उसका कत्तथव्य िख्
ु य किाकार को सहारा प्रदान करना है , अपनी किा का
प्रदशथन करना नह ीं।
प्रश्ि 3- सफिता के चरम-लशिर पर पहुँचिे के िौराि ्ठि व््ल्क्त िड़िड़ाता है , तब उसे सह्ोगी ककस तरह
सांभािते हैं?
उत्तर- सफिता के चरि-लशिर पर पहुाँचने के दौरान िड़िड़ाते व्यजतत को उसके सहयोगी ववषि पररजस्र्नतयों िें
उसके सार् रहने का ववश्वास दे कर उसका आत्िबि बनाए रिने का भरसक प्रयास करते हैं। स्वयीं आगे आकर
सरु िा-कवच बनकर उसके पौरुष की प्रशींसा करते हैं। उसके िड़िड़ाने का कारण ढूाँढ़ते हैं और उन कारणों का सिाधन
करने के लिए सहयोगी अपनी परू शजतत िगा दे ते हैं। आत्िीयता से पण
ू रु
थ पेण सहयोग करते हैं।
प्रश्ि 4- ‘सांगतकार’ कविता के आधर पर स्पष्ि कील्जए कक सांगतकार जैसे व््ल्क्त सिथगण
ु सम्पन्ि होकर भी समाज
में अधिम ि आकर प्रा्ः पीछे ही क््ों रहते हैं?
उत्तर- ‘सींगतकार’ प्रववृ त्त के िोग छि-प्रपींच से दरू होते हैं। वे िख्
ु य किाकार के सहयोगी होते हैं।
अपने प्रनत ववश्वास को ित्ि नह ीं करना चाहते हैं। दस
ू रे की ववशेषताओीं को तराशने और सध
ु ारने िें िगे रहते हैं और
इसे ह अपना कतथव्य सिझते हैं।
प्रश्ि 5- ‘सांगतकार’ कविता में कवि क््ा सन्िे श िे िा चाहता है ?
उत्तर- कवव की सींगतकार के प्रनत सहानभ
ु नू त है । उसकी दृजटि िें सींगतकार िख्
ु य गायक के सिान ह सराहनीय है ।
िख्
ु य-गायक की सफिता िें सींगतकार का श्रेय कि करके नह ीं दे िना चाठहए। यद्यवप िख्
ु य गायक के बबना
सींगतकार का अजस्तत्व नह ीं है । क्रकन्तु िख्
ु य गायक की सफिता अर्धकाींशत: सींगतकार के सफि सहयोग पर ननभथर
है । िख्
ु य गायक के ननराश होने पर, ववश्वास िड़िड़ाने पर, स्वर बबगड़ने पर, उसके तारसप्तक िें िो जाने पर
सींगतकार ह उसे सींभािता है । सींगतकार के बबना िख्
ु य-गायक की सफिता सींठदग्ध ् रहती है ।
48
माता का आँचि - लशिपज
ू ि सहा्
प्रश्ि 1- माँ के प्रनत अधधक िगाि ि होते हुए भी विपवत्त के सम् भोिािार् माँ के आँचि में ही प्रेम और शाांनत पाता
है ? इसका आप क््ा कारण मािते हैं?
उत्तर- यह बात सच है क्रक बच्चे (िेिक) को अपने वपता से अर्धक िगाव र्ा। उसके वपता उसका िािन-पािन ह
नह ीं करते र्े बजल्क उसके सींग दोस्तों जैसा व्यवहार भी करते र्े। परीं तु ववपदा के सिय उसे िाड़ की जरूरत र्ी।
उसे अत्यर्धक ििता और िााँ की गोद की जरूरत र्ी। उसे अपनी िााँ से जजतनी कोििता लिि सकती है , वपता से
नह ीं। यह कारण है क्रक सींकि िें बच्चे को िााँ या नानी की याद आती है , बाप या नाना की नह ीं। िााँ का िित्व घाव
भर दे ने वािे िरहि का काि करता है ।
प्रश्ि 2- भोिािार् और अपिे साधर््ों के िेि और िेििे की सामिी आपके िेि और िेििे की सामिी से ककस
प्रकार लभन्ि है?
उत्तर- आज जिाना बदि चुका है । आज िाता-वपता अपने बच्चों का बहुत ध्यान रिते हैं वे उसे गि िोहल्िे िें
बेक्रफि िेिने घि
ू ने की अनि
ु नत नह ीं दे त।े जब से ननिार जैसे काींड होने िगे हैं, तब से बच्चे भी डरे -डरे रहने िगे
हैं। न तो हुल्िड़बाजी, शरारतें और तक
ु बींठदयााँ रह हैं न ह नींग-धड़ींग घि
ू ते रहने की आजाद । अब तो बच्चे प्िाजस्िक
और इिेतरोननतस के िहीं गे खििौनों से िेिते हैं। बरसात िें बच्चे बाहर रह जाएीं तो िााँ-बाप की जान ननकि जाती
है । आज न कुएाँ रहे , न रहि, न िेती का शौक। इसलिए आज का यग
ु पहिे की ति
ु ना िें आधुननक, बनावि , रसह न
हो गया है ।
प्रश्ि 3- बच्चे माता-वपता के प्रनत अपिे प्रेम को कैसे अलभव््क्त करते हैं? अपिे जीिि की कोई बात बताइए ल्जसमें
आपिे अपिे माता-वपता के प्रनत प्रेम अलभव््क्त कक्ा हो?
उत्तर- बच्चे िाता-वपता के प्रनत अपने प्रेि को उनके सार् रहकर, उनकी लसिाई हुई बातों िें रुर्च िेकर, उनके सार्
िेि करके, उन्हें चूिकर और उनकी गोद िें या कींधे पर बैिकर प्रकि करते हैं।
िेरे िाता-वपता की बीसवीीं वषथगााँि र्ी। िैंने बीस वषथ परु ाने यग
ु ि र्चत्र को सन्
ु दर से फ्रेि िें सजाया और उन्हें भेंि
क्रकया उसी ठदन िैं उनके लिए अपने हार्ों से सजब्जयों का सप
ू बनाकर िाई और उन्हें आदर पव
ू क
थ ठदया। िाता-वपता
िेरा वह प्रेि दे िकर बहुत प्रसन्न हुए।
प्रश्ि 4- आपके विचार से भोिािार् अपिे साधर््ों को िे िकर लससकिा क््ों भि
ू जाता है ?
उत्तर- घर िें िाि िना करने पर भी भोिानार् की िााँ लसर िें कड़वा तेि िगाकर ह छोड़ती है । िार्े पर काजि की
बबींद िगाकर फूिदार िट्िू बााँधकर कुताथ-िोपी पहना दे ती है । इस प्रकार िााँ के हि से तींग आकर भोिानार् लससकने
िगता है । घर से बाहर आने पर जब बािकों का झड ुीं लिि जाता है तब वह सार्र्यों की हुल्िड़बाजी, शरारतें और
िस्ती दे िकर सब कुछ भि
ू जाता है । हिारे ववचार से भोिानार् िेिने का अवसर पाकर लससकना भि ू जाता है ।
प्रश्ि 5- ‘माता का आँचि’ पाि में बच्चों की जो िनु ि्ा रची गई है िह आपके बचपि की िनु ि्ा से ककस तरह लभन्ि
है ?
उत्तर- इस पाि िें बच्चों की जो दनु नया रची गई, वह 1930 के आसपास की है , तब बच्चे घर के सािान से और
साधारण सी चीजों से िेिने का काि चिा िेते र्े। वे प्रकृनत की गोद िें रह कर िुश र्े। आज हिार दनु नया परू
तरह से लभन्न है । हिें ढे र सार चीजें चाठहए। िेि सािग्री िें भी बदिाव आ गया है । िाने-पीने की चीजों िें भी
काफी बदिाव आया है । हिार दनु नया ि .वी., कोल्डड़ड्रींग, पीजा, चॉकिेि के इदथ-र्गदथ घि
ू ती है ।
प्रश्ि-6 ्हाँ माता-वपता का बच्चे के प्रनत जो िात्सल्् व््क्त हुआ है उसे अपिे शब्िों में लिखिए।
उत्तर- वपताजी का अपने सार् लशशु को भी नहिा-धुिाकर पज ू ा िें बैिा िेना, िार्े पर भभत
ू िगाना क्रफर कागज िें
राि-राि लिि कर आिे की गोलियााँ बनाना, उसके बाद िेिक को कन्धे पर बैिा कर गींगाजी तक िे जाना और
वापस आते सिय पेड़ पर बैिा कर झूिा झुिाना, यह सब क्रकतना सद
ुीं र दृश्य उत्पन्न करता है । िेिक का अपने वपता
जी के सार् कुश्ती िड़ना, वपताजी का बच्चे के गािों िें चम्
ु िा िेना, बच्चे के द्वारा िछ
ाँू े पकड़ने पर वपताजी का
बनावि रोना रोने का नािक करना और लशशु का उस पर हाँस पड़ना, यह सब अत्यींत जीवींत िगता है । िााँ के द्वारा
49
गोरस-भात, तोता-िैना आठद के नाि पर खििाना, उबिना, लशशु का शग
ींृ ार करना और लशशु का लससक-लससक कर
रोना, बच्चों की िोि को िेिते दे िकर लससकना बन्द कर तरह-तरह के िेि िेिना और िस
ू न नतवार को र्चढ़ाना
आठद। ये सभी अद्भत
ु दृश्य पाि िें उभारे गए हैं। ये सभी दृश्य अपने शैशव अवस्र्ा की याद ठदिाते हैं।
50
उत्तर- लसजतकि िें एक जगह का नाि है - ‘कवी-िोंग स्िाक’। कहा जाता है क्रक यहााँ गाइड क्रफल्ि की शठू िींग हुई र्ी।
वह ीं एक घिू ते हुए चि को दे िकर िेखिका ने उसके बारे िें पछ
ू ा तो पता चिा क्रक यह धिथचि है । इसे घि ु ाने पर
सारे पाप धुि जाते हैं। जजतेन की यह बात सन
ु कर िेखिका को ध्यान आया क्रक परू े भारत की आत्िा एक ह है । इस
जस्र्नत को दे िकर िेखिका को िगता है क्रक धालिथक आस्र्ाओीं, पाप-पण्
ु य और अींधववश्वासों के बारे िें सारे भारत िें
एक जैसी िान्यताएाँ है ।
प्रश्ि 6- कभी श्िेत तो कभी रां गीि पताकाओां का फहरािा ककि अिग-अिग अिसरों की ओर सांकेत करता है ?
उत्तर- यहााँ पहाड़ी रास्तों पर कतार िें िगी श्वेत (सफेद) पताकाएाँ ठदिाई दे ती हैं। ये सफेद बौद्ध पताकाएाँ शाींनत और
अठहींसा की प्रतीक हैं। इस पर िींत्र लििे होते हैं। ऐसी िान्यता है क्रक श्वेत पताकाएाँ क्रकसी बौद्र्धटि की ित्ृ यु पर
फहराई जाती हैं उसकी आत्िा की शाींनत के लिए शहर से बाहर क्रकसी पववत्र स्र्ान पर108 श्वेत पताकाएाँ फहरा द
जाती है , जजन्हें उतारा नह ीं जाता। वे धीरे -धीरे स्वयीं नटि हो जाती हैं। क्रकसी शभ
ु कायथ को आरम्भ करने पर रीं गीन
पताकाएाँ फहराई जाती हैं।
प्रश्ि 7- िोंग स्िॉक में घमू ते हुए चि को िे िकर िेखिका को परू े भारत की आत्मा एक-सी क््ों ठििाई िी?
उत्तर- िोंग स्िॉक िें घि ू ते हुए चि को दे िकर िेखिका को परू े भारत की आत्िा एक-सी ठदिाई द तयोंक्रक िोंग
स्िॉक िें घि
ू ते हुए चि को दे िकर िेखिका ने जब जजतेन नागे से उसके बारे िें पछ
ू ा। तो पता चिा क्रक यह धिथ-
चि है । इसे घि ु ाने पर सारे पाप धुि जाते हैं। यह सब जानकर िेखिका सोचती भारत िें िोग अब भी िानलसक
सींकीणथता तर्ा अींधववश्वासों से ित
ु त नह ीं हुए हैं। उसे िगा क्रक परू े भारत की आत्िा एक-सी है । और सार वैज्ञाननक
प्रगनत के बावजूद उनके अींध-ववश्वास और पाप-पण् ु य की अवधारणाएाँ एक-सी हैं।
51
प्रश्ि 7- ठहरोलशमा की घििा विज्ञाि का भ्ािकतम िरू
ु प्ोग है । आपकी दृल्ष्ि में विज्ञाि का िरू
ु प्ोग कहाँ-कहाँ
और ककस तरह से हो रहा है ?
उत्तर- आजकि ववज्ञान का दरू
ु पयोग अनेक जानिेवा कािों के लिए क्रकया जा रहा है । आज आतींकवाद सींसार भर िें
आतींकी घिनाओीं को अींजाि दे रहे हैं। कह ीं बि-ववस्पफोि क्रकए जा रहे हैं। कह ीं गाड़ड़यों िें आग िगाई जा रह है ।
कह ीं शजततशाि दे श, दस
ू रे दे शों को दबाने के लिए उन पर आििण कर रहे हैं तर्ा वहााँ के जनजीवन को तहस
नहस कर रहे हैं। ववज्ञान के दरू
ु पयोग से र्चक्रकत्सक गभथ िें ह भ्रण
ू पर िण कर रहे हैं। इससे जनसींख्या का सींति
ु न
बबगड़ रहा है । ववज्ञान के दरू
ु पयोग से क्रकसान कीिनाशक और जहर िे रसायन नछड़क कर अपनी फसिों को बढ़ा रहे
हैं। इससे िोगों का स्वास्थ्य िराब हो रहा है । ववज्ञान के उपकरणों के कारण ह वातावरण िें गिी बढ़ रह है , प्रदष
ू ण
बढ़ रहा है और बफथ वपघिने का ितरा बढ़ रहा है तर्ा रोज-रोज भयींकर दघ
ु ि
थ नाएाँ हो रह हैं।
प्रश्ि 8- िेिक िे अपिे आपको ठहरोलशमा के विस्फोि का भोक्ता कब और ककस तरह महसस
ू कक्ा?
उत्तर- िेिक ठहरोलशिा की घिनाओीं के बारे िें सन
ु कर तर्ा उनके कुप्रभावों को प्रत्यि दे िकर भी ववस्पफोिका
भोतता नह ीं बन पाया। एक ठदन वह जापान के ठहरोलशिा नगर की एक सड़क पर घि
ू रहा र्ा। अचानक उसकी नजर
एक पत्र्र पर पड़ी। उस पत्र्र पर एक िानव की छाया छपी हुई र्ी। वास्तव िें परिाणु -ववस्पफोि के सिय कोई
िनटु य उस पत्र्र के पास िड़ा होगा। रे ड़डयो-धिी क्रकरणों ने उस आदिी को भाप की तरह उड़ाकर उसकी छाया
पत्र्र पर डाि द र्ी। उसे दे िकर िेिक के िन िें अनभ
ु नू त जग गई। उसके िन िें ववस्पफोि का प्रत्यि दृश्य
साकार हो उिा। उस सिय वह ववस्फोि का भोतता बन गया।
प्रश्ि 9- ठहरोलशमा पर लििी कविता िेिक के आांतररक िबाि का पररणाम है । ्ह आप कैसे कह सकते हैं?
उत्तर:- ठहरोलशिा पर लििी िेिक की कववता को हि उसके आींतररक दबाव का पररणाि कह सकते हैं। इसके लिए
उन्हें न तो क्रकसी सींपादक ने आग्रह क्रकया, न क्रकसी प्रकाशक ने तकाजा क्रकया। न ह उन्होंने इसे क्रकसी आर्र्थक
वववशता के लिए लििा। इसे उन्होंने शद्
ु ध रूप से िन की अनभ
ु नू त से प्रेररत होकर लििा। जब पत्र्र पर वपघिे
िानव को दे िकर उसके िन िें अनभ
ु नू त जाग गई तो कववता स्वयीं बन गई। इसीलिए हि इस कववता को आींतररक
दबाव का पररणाि कह सकते हैं। क्रकसी बाहर दबाव का नह ीं।
प्रश्ि 10- िेिक के अिस
ु ार प्रत््क्ष अिभ
ु ि की अपेक्षा भीतरी अिभ
ु नू त उिके िेिि में अधधक मिि करती है क््ों?
उत्तर- िेिक की िान्यता है क्रक सच्चा िेिक भीतर वववशता से पैदा होता है । यह वववशता िन के अींदर से उपजी
अनभ
ु नू त से जगती है , यह बाहर की घिनाओीं को दे िकर नह ीं जागती है । जब तक कवव का हृदय क्रकसी अनभ
ु व के
कारण परू तरह सींवेदनापण
ू थ नह ीं होता और इसिें अलभव्यतत होने की पीड़ा नह ीं अकुिाती, तब तक वह कुछ लिि
नह ीं पाता।
प्रश्ि 11- क््ा बाह्् िबाि केिि िेिि से जुड़े रचिाकारों को ही प्रभावित करते हैं ्ा अन्् िस
ू रे क्षेत्रा से जुड़े िोगों
को भी प्रभावित करते हैं, कैसे?
उत्तर - बाह्य दबावों का प्रभाव प्रत्येक प्रकार के किाकार पर सिान रूप से होता है । हर प्रकार का किाकार सिाज
िें हो रह ववलभन्न घिनाओीं, व्यर्ाओीं को अपने ढीं ग से प्रकि करने के लिए वववश होता है । भिे ह कोई नाट्यकिी
हो या िनू तथकार। यठद उसे एक बार ज्योनत लिि जाती है तो वह अपना िेत्रा नह ीं छोड़ पाता। उसे प्रशींसकों, दशथकों
तर्ा िर ददारों के दबाव के कारण अपना रचना कायथ करते रहना पड़ता है । आर्र्थक दबाव भी प्रत्येक िेत्रा के
किाकारों को प्रभाववत करते हैं।
प्रश्ि 12- कुछ रचिाकारों के लिए आत्मािभ
ु नू त / स्ि्ां के अिभ
ु ि के सार्-सार् बाह्् िबाि भी महत्िपण
ू थ होता है , ्े
बाह्् िबाि कौि-कौि से हो सकते हैं?
उत्तर- रचनाकारों पर स्वयीं के अनभ
ु व के अनतररतत बाह्य दबाव भी होते हैं। यश प्राप्त करने के बाद लििना वववशता
हो जाता है । कई बार सींपादक प्रकाशक आठद िेिकों पर अपनी पसींद का लििने का दबाव डािते हैं। कभी-कभी
आर्र्थक वववशता भी दबाव का कारण होती है ।
52
अिच्
ु छे ि-िेिि
• क्रकसी एक भाव, ववचार या कर्न को ववस्तार दे ने के लिए 100-150 शब्दों िें लििे गए सस
ु ग
ीं त िेि को
अनच्
ु छे द-िेिन कहते हैं।
• इसिें क्रकसी िहत्त्वपण
ू थ घिना, दृश्य, सिस्या अर्वा ववषय को शालिि क्रकया जा सकता है । इसे सींक्षिप्त (कि
शब्दों िें) क्रकन्तु सारगलभथत (अर्थपण
ू )थ ढीं ग से लििा जाता है ।
• ठहन्द भाषा का ‘अनच्
ु छे द’ शब्द अींग्रज
े ी भाषा के ‘Paragraph’ शब्द का ठहींद पयाथय है । अनच्
ु छे द एक तरह से
‘ननबींध’ का ह सींक्षिप्त रूप होता है । इसिें ठदए गए ववषय के क्रकसी एक पि पर अपना ववचार प्रस्तत
ु करना
होता है ।
• अनच्
ु छे द अपने-आप िें स्वतन्त्र और पण
ू थ होता है । अनच्
ु छे द का िख्
ु य ववचार या भाव प्राय: या तो आरम्भ िें
या क्रफर अन्त िें होता है ।
अनच्
ु छे द लििते सिय ननम्नलिखित बातों को ध्यान िें रिना चाठहए –
(1) अनच्
ु छे द लििने से पहिे रूपरे िा, सींकेत-बबींद ु आठद बनानी चाठहए। कभी-कभी प्रश्नपत्रों िें पहिे से ह रूपरे िा,
सींकेत-बबींद ु आठद ठदए होते हैं। आपको उन्ह ीं रूपरे िा, सींकेत-बबींद ु इत्याठद को ध्यान िें रिते हुए अनच्
ु छे द लििना होता
है ।
(2) अनच्
ु छे द िें ठदए गए ववषय के क्रकसी एक ह पि का वणथन करना चाठहए। तयोंक्रक यह सदै व सीलित शब्दों िें
लििा जाता है ।
(3) अनच्
ु छे द की भाषा सरि, सहज और प्रभावशाि होनी चाठहए। ताक्रक पािक अनच्
ु छे द पढ़कर आपकी बात को सह
से सिझ सके।
(4) एक ह बात को बार-बार नह ीं दोहराना चाठहए। इससे आप अपनी बात को कि शब्दों िें परू ा नह ीं कर पाएाँगे।
(5) आपको ये भी ध्यान रिना है क्रक आप अपने ववषय से न भिक जाएाँ।
(6) ठदए गए ननदे श के अनस
ु ार तय शब्द-सीिा को ध्यान िें रिकर ह अनच्
ु छे द लििें ।
(7) परू े अनच्
ु छे द िें एकरूपता बनाए रिनी चाठहए।
(8) ववषय से सींबर्ीं धत सजू तत अर्वा कववता की पींजततयों का प्रयोग भी क्रकया जा सकता है ।
अनच्
ु छे द की प्रिि
ु ववशेषताएाँ –
(1) अनच्
ु छे द िें क्रकसी एक भाव, ववचार या तथ्य एक बार ह व्यतत होता है । इसिें अन्य ववचारों का कोई िहत्त्व
नह ीं होता है ।
(2) अनच्
ु छे द के सभी वातय एक-दस
ू रे से गठित और सस
ु ब
ीं द्ध होते है । वातय छोिे तर्ा एक दस
ू रे से जड़
ु े होते हैं।
(3) अनच्
ु छे द एक स्वतन्त्र और पण
ू थ रचना है, जजसका कोई भी वातय अनावश्यक नह ीं होता।
(6) अनच्
ु छे द सािान्यतुः छोिा होता है , क्रकन्तु इसकी िघत
ु ा या ववस्तार ववषयवस्तु पर ननभथर करता है ।
53
सिय का एक-एक पि बहुत िल् ू यवान है और बीता हुआ पि वापस िौिकर नह ीं आता। इसलिए सिय का िहत्व
पहचानकर प्रत्येक ववद्यार्ी को ननयलित रूप से अध्ययन करना चाठहए और अपने िक्ष्य को प्राप्त करना चाठहए। जो
सिय बीत गया उस पर वतथिान सिय िें सोच कर और अर्धक सिय बबाथद न करके आगे अपने कायथ पर ववचार
कर-िेना ह बद्
ु र्धिानी है ।
अभ््ास का महत्त्ि
िानव जीवन िें कई चुनौनतयााँ हैं। उन चुनौनतयों पर ववजय पाने के लिए सतत अभ्यास की जरुरत पड़ती है । इससे
कोई भी कायथ जल्द और आसानी से हो जाता है । यठद ननरीं तर अभ्यास क्रकया जाए तो कठिन से कठिन कायथ को
करने िें सग
ु िता होती है । ईश्वर ने सभी िनटु यों को बद्
ु र्ध द है । उस बद्
ु र्ध का इस्तेिाि तर्ा अभ्यास करके
िनटु य कुछ भी सीि सकता है । दनु नया िें अनेक ऐसे उदाहरण हैं जजनसे अभ्यास करने की प्रेरणा प्राप्त की जा
सकती है । अजन
ुथ तर्ा एकिव्य ने ननरीं तर अभ्यास करके धनवु वथद्या िें ननपण
ु ता प्राप्त की। एक िींदबद्
ु र्ध बािक
वरदराज ने ननरीं तर अभ्यास द्वारा ववद्या प्राप्त की और कई ग्रींर्ों की रचना की। उन्ह ीं पर एक प्रलसद्ध कहावत बनी
–
”करत-करत अभ्यास के, जड़िनत होत सज ु ान।
रसर आवत जात तें, लसि पर परत ननसान।।”
जब रस्सी की रगड़ से किोर पत्र्र पर भी ननशान बन सकता है तो ननरीं तर अभ्यास से िि
ू थ व्यजतत भी ववद्वान
बन सकता है । यठद ववद्यार्ी प्रत्येक ववषय का ननरीं तर अभ्यास करें , तो उन्हें कोई भी ववषय कठिन नह ीं िगेगा और
वे सरिता से उस ववषय िें कुशिता प्राप्त कर सकेंगे। कई ओिजम्पक खििाड़डयों ने अभ्यास के बि पर अपने दे श
का नाि रोशन क्रकया है ।
िेरे लित्र रोठहत का जन्ि-ठदन र्ा। उसने अन्य लित्रों के सार् िझु े भी बि
ु ाया। रोठहत के कुछ ररश्तेदार भी आए हुए
र्े, क्रकन्तु अर्धकतर लित्र ह उपजस्र्त र्े। घर के आाँगन िें ह सिारोह का आयोजन क्रकया गया र्ा। उस स्र्ान को
बहुत ह सद
ींु र ढीं ग से सजाया गया र्ा। हर जगह झजण्डयााँ और गब्ु बारे र्े। आाँगन िें िगे एक पेड़ पर रीं ग-बबरीं गे बल्ब
जगिग कर रहे र्े। जब िैं पहुाँचा तो िेहिान आने शरूु ह हुए र्े। िेहिान रोठहत के लिए कोई-न-कोई उपहार िेकर
आते, उसके ननकि जाकर बधाई दे ते और रोठहत उनका धन्यवाद करता। ििशुः िोग छोि -छोि िोलियों िें बैिकर
गपशप करने िगे। सींगीत की िधरु ध्वननयााँ गाँज
ू रह र्ी। एक-दो लित्र उिकर नत्ृ य करने िगे। कुछ लित्र तालियों
बजा कर अपना योगदान दे ने िगे। चारों ओर उल्िास का वातावरण र्ा।
रात के आि बजे के िगभग केक कािा गया। सब लित्रों ने तालियााँ बजाई और लििकर जन्िठदन की बधाई का गीत
गाया। िााँ ने रोठहत को केक खििाया। अन्य िोगों ने भी केक िाया। क्रफर सभी िाना िाने िगे। िाने िें अनेक
प्रकार की लििाइयााँ और निकीन र्े। तब हिने रोठहत को एक बार क्रफर बधाई द , उसकी द घाथयु की कािना की और
अपने-अपने घर को चि ठदए। वह कायथिि इतना अच्छा र्ा क्रक अब भी स्िरण हो आता है ।
िि और प्ाथिरण का सम्बन्ध
54
सींरिण सबसे िहत्वपण
ू थ काि है । इसिें हर व्यजतत को अपनी जजम्िेदार सिझनी पड़ेगी और अपना योगदान दे ना
होगा। अपने घर-िोहल्िे, नगर िें अत्यर्धक सींख्या िें वि
ृ ारोपण को बढ़ाकर इसको एक आींदोिन के रूप िें आगे
बढ़ाना होगा। तभी हि अपने पयाथवरण को स्वच्छ रि पाएाँगे।
आज का यग
ु ववज्ञान का यग
ु है । वतथिान सिय िें ववज्ञान ने हिें कम्प्यि
ू र के रूप िें एक अनिोि उपहार ठदया है।
आज जीवन के हर िेत्र िें कींप्यि
ू र का उपयोग हो रहा है । जो काि िनटु य द्वारा पहिे बड़ी कठिनाई के सार् क्रकया
जाता र्ा, आज वह काि कींप्यि
ू र द्वारा बड़े ह आराि से क्रकया जा रहा है । कींप्यि
ू र का उपयोग ठदनोंठदन बढ़ता जा
रहा है । कींप्यि
ू र ने दनु नया को बहुत छोिा कर ठदया है । इींिरनेि द्वारा गग
ू ि, याहू एवीं बबींग आठद वेबसाइि पर
दनु नयाभर की जानकार घर बैिे ह प्राप्त की जा सकती है । इींिरनेि पर ई-िेि के द्वारा ववश्व िें क्रकसी भी जगह बैिे
व्यजतत से सींपकथ क्रकया जा सकता है । इसके लिए केवि ई-िेि अकाउीं ि और पासवडथ का होना आवश्यक होता है ।
कींप्यि
ू र िनोरीं जन का भी िहत्वपण
ू थ साधन है । इस पर अनेक िेि भी िेिे जा सकते हैं। कुि लििकर कहें तो
कींप्यि
ू र ने िानव जीवन को बहुत सरि बना ठदया है । कींप्यि
ू र सचिच
ु एक जादईु वपिारा है ।
ग्िोबि िालमिंग
पत्र-िेिि
55
(2) अिौपचाररक पत्र - जो पत्र सगे सींबर्ीं धयों, ररश्तेदारों, पाररवाररक िोगों एवीं लित्रों को यर्ावसर लििे जाते हैं, वे
अनौपचाररक पत्र कहिाते हैं।
इन पत्रों िें व्यजततगत (ननजी), पाररवाररक और सािाजजक पत्र शालिि होते हैं।
अपिे विद्ाि् के प्राचा्थ को सांध््ाकािीि िेि की उधचत व््िस्र्ा के लिए पत्र लिखिए।
ठदनाींक 10.04.2023
सेवा िें
श्रीिान प्राचायथ
केन्द्र य ववद्यािय ि.-1,
अींबािा छावनी, अींबािा।
िहोदय,
आपसे सववनय ननवेदन है क्रक िैं रोठहत कुिार इस ववद्यािय िें अध्ययनरत किा दसवीीं का छात्र हूाँ। इस ववद्यािय
के कई छात्र और छात्राएाँ सींकुि एवीं राज्य स्तर य प्रनतयोर्गताओीं िें ववद्यािय का प्रनतननर्धत्व कर चुके हैं। अब वे
सभी राटर य स्तर की प्रनतयोर्गताओीं िें ठहस्सा िेना चाहते हैं क्रकन्तु ववद्यािय िें शाि को अभ्यास करने और िेिने
की कोई उर्चत व्यवस्र्ा नह ीं है । कुछ छात्र-छात्राएाँ क्रिकेि, हॉकी, िो-िो, बास्केिबॉि, वॉि बॉि आठद िेिों िें भाग
िेना चाहते हैं जबक्रक कुछ छात्रों की अलभरुर्च एर्िेठितस िींबी दौड़, ऊींची दौड़, बाधा दौड़ इत्याठद िें है । िेरा ववश्वास
है क्रक कुशि प्रलशिक और िेिों की सिर्ु चत व्यवस्र्ा लििने से बच्चे ववद्यािय का गौरव बढ़ा सकते हैं।
अत: आपसे आग्रह है क्रक ववद्यािय िें सींध्याकाि न िेिों की उर्चत व्यवस्र्ा कराने की िहती कृपा करें । उतत
िहत्त्वपण
ू थ कायथ के लिए िैं आपका सदै व आभार रहूाँगा।
धन्यवाद सठहत।
आपका ववश्वासी
द पाींशु
किा दसवीीं
परीक्षा में प्रर्म स्र्ाि प्राप्त करिे पर अपिे लमत्र को बधाई पत्र लिखिए।
ठदनाींक 12.04.2023
3/15 िै गोर नगर,
प्रयागराज (उत्तर प्रदे श)
56
प्रर्ि स्र्ान आने पर तम्
ु हें बहुत बहुत बधाई। िझ ु े पण
ू थ ववश्वास र्ा क्रक ति
ु पर िा िें प्रर्ि श्रेणी से जरुर उत्तीणथ
होगे िेक्रकन आगरा िींडि िें भी प्रर्ि स्र्ान प्राप्त करोगे यह उम्िीद से बढ़कर है और बहुत ह अच्छा है । तम् ु हार
िेहनत और ननयलित अध्ययन ने ह तम् ु हें इस सफिता तक पहुींचाया है । िझ ु े परू ा ववश्वास है क्रक इससे आगे भी
तम्
ु हार िेहनत रीं ग िाएगी और ति
ु िेरे अनि
ु ान को सच साबबत करोगे। ति
ु ने प्रर्ि स्र्ान प्राप्त कर यह लसद्ध
कर ठदया क्रक दृढ़ सींकल्प और कठिन पररश्रि से जीवन िें कोई भी सफिता प्राप्त की जा सकती है ।
िैं सदा यह कािना करूींगा क्रक तम्
ु हें जीवन िें हर पर िा िें प्रर्ि आने का सौभाग्य प्राप्त हो और ति
ु इसी प्रकार
पररवार और ववद्यािय का गौरव बढ़ाते रहो। इतना ह नह ीं ति
ु पढ़-लििकर अच्छी नौकर प्राप्त करो और दे श की
सेवा करते हुए अच्छा जीवन व्यतीत करो। दसवीीं पर िा और आगरा िींडि िें प्रर्ि स्र्ान प्राप्त करने पर एक बार
पन
ु : तम्
ु हें हाठदथ क बधाई और शभ
ु कािनाएाँ।
तम्
ु हारा लित्र
ननश्चि
विज्ञापि-िेिि
विज्ञापि का महत्त्ि : वतथिान दौर िें उत्पादों की बबिी बढ़ाने एवीं उनके उपभोग पर भरपरू जोर ठदया जा रहा है । एक
ओर उत्पादक अपनी वस्तओ
ु ीं की बबिी करके अर्धकार्धक िाभ किाना चाहते हैं तो दस
ू र ओर उपभोतता उनका
प्रयोग कर सि
ु एवीं सींतजु टि पाना चाहते हैं। उपभोतताओीं की इसी प्रववृ त्त का फायदा उिाने के लिए उत्पादक तरह-तरह
के साधनों का सहारा िेते हैं। आज वस्तओ
ु ीं की बबिी बढ़ाने का प्रिि
ु हर्र्यार ववज्ञापन है ।
विज्ञापि का अर्थ : ववज्ञापन शब्द ‘ज्ञापन’ िें ‘वव’ उपसगथ िगाने से बना है , जजसका अर्थ है - ववशेष जानकार दे ना।
यह जानकार उत्पाठदत वस्तओ
ु ीं एवीं सेवाओीं आठद से जुड़ी होती है । ववज्ञापन िें वस्तु के गण
ु ों को बढ़ा-चढ़ाकर प्रस्तत
ु
क्रकया जाता है, जजससे उपभोतता िािानयत हों और इन्हें िर दने के लिए वववश हो जाएाँ। ववज्ञापन के कारण
उत्पादकों को अपनी वस्तओ
ु ीं के अच्छे दाि लिि जाते हैं तो उपभोतता को वस्तओ
ु ीं की जानकार , ति
ु नात्िक दाि एवीं
चयन का ववकल्प लिि जाता है । आजकि ि .वी., रे ड़डयो के कायथिि, सिाचार-पत्र, पबत्रकाएाँ एवीं भवनों की द वारें
ववज्ञापनों से रीं गी ठदिाई पड़ती हैं।
विज्ञापि िेिि का तरीका :
1. एक बातस-सा बनाकर ऊपर िध्य िें ववज्ञावपत वस्तु का नाि िोिे अिरों िें लििना चाठहए।
2. दायें व बायें क्रकनारों पर सेि धिाका, िश
ु िबर , िहाबचत जैसे िभ
ु ावने शब्दों को लििना चाठहए।
3. बाईं ओर िध्य िें ववज्ञावपत वस्तु के गण
ु ों का उल्िेि करना चाठहए।
4. दाठहनी ओर या िध्य िें वस्तु का बड़ा-सा र्चत्र दे ना चाठहए।
5. स्िॉक सीलित या जल्द करें जैसे प्रेरक शब्दों का प्रयोग क्रकसी ड़डजाइन िें होना चाठहए।
6. िफ़्
ु त लििने वािे सािानों या छूि का उल्िेि अवश्य क्रकया जाना चाठहए।
7. ऊपर ह जगह दे िकर कोई छोि -सी तक
ु बींद , जजससे पढ़ने वािा आकवषथत हो जाए।
8. सींपकथ करें या फोन नीं. का उल्िेि करें । जैस-े 011-23456789 आठद। ननजी फोन नीं. दे ने से बचना चाठहए।
‘िीरा पस्
ु तक सदन’ पस्
ु तक की बबिी बढ़ाने हे तु ववज्ञापन तैयार करवाना चाहता है । आप उसके लिए एक ववज्ञापन
तैयार कीजजए।
57
मीरा पुस्तक सिि
‘श्री दग्ु ध उत्पाद’ अपनी बबिी बढ़ाने के लिए एक ववज्ञापन तैयार करवाना चाहते हैं। इस सींबध
ीं िें आप उनके लिए
ववज्ञापन िेिन कीजजए।
सांिेश िेिि
सांिेश का महत्ि : सींदेश के िाध्यि से सिाज के िोग आपस िें जुड़ते हैं। वे अपनी भावनाओीं को एक दस
ू रे से
साझा करते हैं। सिाज को जागरूक बनाने िें सींदेश की िहत्वपण
ू थ भलू िका होती है । क्रकसी भावना, ववचार अर्वा तथ्य
को सिझने के लिए सींदेश की भलू िका अनत िहत्वपण ू थ है । कायाथियों की कायथ-सींस्कृनत को जानने िें सींदेश बहुत
उपयोगी होते हैं। सि
ु -दुःु ि, पवथ-त्यौहार तर्ा नववषथ इत्याठद के िौके पर सींदेश सींजीवनी की तरह काि करते हुए
उिींग-ऊजाथ का सींचार करते हैं। सींदेशों का उपयोग आिींत्रण के लिए भी क्रकया जाता है ।
सांिेश की आिश््कता : जब कोई व्यजतत क्रकसी कारणवश क्रकसी दस
ू रे व्यजतत से सीधे बात नह ीं कर पाता है तब वह
अपनी बात, सच
ू ना या िबर उस दस
ू रे व्यजतत तक अन्य िाध्यिों से पहुाँचाता है , जजसे सींदेश कहा जाता है । क्रकसी
व्यजतत या सिह
ू का सींदेश अन्य िाध्यिों से क्रकसी दस
ू रे व्यजतत या सिह
ू को भेजा जाता है ।
सांिेश की प्रकृनत : सींदेश लिखित, िौखिक या दोनों रूपों िें हो सकते हैं। ये सि
ु द और दि
ु द दोनों तरह के होते हैं।
कोई भी सींदेश व्यजततगत या सािठू हक हो सकता है । सींदेश भत
ू काि, वतथिान काि व भववटय काि िें लििे जा
सकते हैं। इसी तरह सींदेश औपचाररक और अनौपचाररक दोनों तरह के हो सकते हैं।
58
औपचाररक सांिेश : जो सींदेश सरकार कायाथिय के क्रकसी अर्धकार या किथचार , सींस्र्ा या ननगि के कायथकताथ तर्ा
नेता या अलभनेता द्वारा आि जनिानस िें जागरूकता फ़ैिाने एवीं उन्हें प्रभाववत करने के लिए सावथजननक रूप से
लििे जा सकते हैं, उन्हें औपचाररक सींदेश कहते हैं।
अिौपचाररक सांिेश : जो सींदेश क्रकसी व्यजतत द्वारा अपने पररजनों, लित्रगणों, कर बी ररश्तेदारों या घर के सदस्यों को
सि
ु -दुःु ि के िौके पर लििे जाते हैं, उन्हें अनौपचाररक सींदेश कहते हैं।
आजकि व्हाट्सएप, एसएिएस, ई-िेि, फेसबक
ु , तर्ा ट्वविर जैसे अनेक सोशि िीड़डया प्िेिफॉिथ उपिब्ध हैं जजनके
जररए सींदेश भेजा जाता है ।
सांिेश के प्रकार : सींदेश के ननम्नलिखित प्रकार होते हैं-
(1) शभ
ु कामिा सांिेश
जो सींदेश िख्
ु य रूप से क्रकसी व्यजतत के जन्िठदन, सािर्गरह, पर िा िें सफिता प्राप्त करने, पदोन्ननत होने तर्ा
पवथ-त्यौहार के अवसर पर भेजे जाते हैं, उन सींदेशों को शभ
ु कािना सींदेश कहा जाता है ।
(2) शोक सांिेश
जो सींदेश क्रकसी व्यजतत की ित्ृ य,ु पण्
ु यनतर्र् या दि
ु द घिना पर िोगों के बीच एक-दस
ू रे को को भेजे जाते हैं, उन्हें
शोक सींदेश कहते हैं।
(3) व््ल्क्तगत सांिेश
जो सींदेश ननजी तौर पर लसफथ अपने नजद की पररजनों, लित्रों को बधाई, शभ
ु कािना, कह ीं आने-जाने या शालिि होने
का सींदेश भेजा जाता है , उसे व्यजततगत सींदेश कहा जाता है ।
(4) सामाल्जक सांिेश
धालिथक या सािाजजक कायथििों से जुड़े आयोजनों के सींदभथ िें ठदए जाने वािे सींदेश को सािाजजक सींदेश कहा जाता
है । जैसे ‘पयाथवरण ठदवस’ पर सींदेश, ‘जि बचाओ’ सींदेश, ‘बेि बचाओ बेि पढ़ाओ’ इस तरह के सींदेश सवाथर्धक
िहत्वपण
ू थ होते हैं।
(5) लमधश्रत सांिेश
लिर्श्रत सींदेश िें तात्कालिक सिय िें चि रह ववववध आपदाओीं से बचाव व सरु िा तर्ा जनचेतना फ़ैिाने के ववषय
शालिि होते हैं। जैस-े कोरोना िहािार , डेंग,ू ििेररया, बाढ़, भक
ू ीं प, क्रकसान आींदोिन आठद से सींबर्ीं धत सींदेश।
सांिेश िेिि का तरीका :
1. सबसे पहिे सींदेश को क्रकसी सीिा रे िा जैसे बॉतस या गोिे के अींदर लििा जाना चाठहए।
2. शीषथक के रूप िें ‘सींदेश’ शब्द अवश्य लििें । उसके बाद ठदनाींक व सिय अवश्य लििें ।
3. िख्
ु य ववषय को सींक्षिप्त रूप से प्रभावशाि शब्दों िें वणथन करें ।
4. सींदेश लििने वािे का नाि अींत िें लििें ।
5. सींदेश िेिन 30 से 40 शब्दों िें होना चाठहए।
6. ववषयानस
ु ार र्चत्रों का उपयोग क्रकया जा सकता है ।
7. शायर , दोहे , श्िोक या कववता की पींजततयों का प्रयोग कर सकते हैं।
8. सींदेश िें रचनात्िकता और सज
ृ नात्िकता होनी चाठहए।
9. ववषय के अनस
ु ार रीं गों का भी प्रयोग क्रकया जा सकता है ।
59
सांिेश िेिि का प्रारूप
सांिेश
ठििाांक : …….
सम् : ……
विष् (जजस ववषय हे तु सन्दे श दे रहे हैं, लििें )
…………………………………………………………….
…………………………………………………………….
अपिा िाम
शभ
ु कामिा सांिेश
ठििाांक : 16.03.2022
सम् : अपराह्ि 5.00 बजे
आपका जीिि िलु श्ों के िीप से सिा जगमगाता रहे। आपके घर में सि
ु -सौभाग््
की िे िी िक्ष्मीजी का सिा नििास करें ।
िीपाििी के पािि पिथ पर आप सभी को हाठिथ क शभ
ु कामिाएँ।
सौरभ
60
अपिे लमत्र के जन्मठिि के अिसर पर एक बधाई सांिेश लिखिए।
बधाई सांिेश
ठििाांक : 16.05.2022
सम् : पि
ू ाथह्ि 8.00 बजे
वप्र् लमत्र आशीष, ईश्िर तम्
ु हें िीघाथ्ु बिा्े और
तम्
ु हारा जीिि सि
ु -समद
ृ धध और अच्छे स्िास्थ््
से पररपण
ू थ रहे । तम
ु हमेशा अपिे जीिि में सफि
रहो। तम्
ु हें जन्मठिि की बहुत-बहुत बधाई।
गणेश राज
प्रश्ि 1- स्िित्त
ृ क््ा है ? उसमें क््ा विशेषताएँ होिी चाठहए ?
उत्तर- स्ववत्त
ृ िेिन एक ववशेष प्रकार का िेिन है जजसिें कोई व्यजतत स्वयीं के बारे िें क्रकसी ववशेष प्रयोजन को
ध्यान िें रिकर लसिलसिेवार ढीं ग से सच
ू नाओीं का सींकिन करता है । इसिें सींबर्ीं धत व्यजतत अपने व्यजततत्त्व, ज्ञान
और अनभ
ु व के सबि पि को इस प्रकार प्रस्तत
ु करता है क्रक ननयोतता के िन िें उम्िीदवार के प्रनत अच्छी व
सकारात्िक छबब प्रस्तत
ु हो सके।
प्रश्ि 2- स्िित्त
ृ में ककि-ककि बातों का समािेश होिा चाठहए।
उत्तर- स्ववत्त
ृ िें अपना परू ा पररचय, पता, सम्पकथ सत्र
ू (िे ि फोन, िोबाइि, ई-िेि आठद), शैिखणक व व्यावसानयक
योग्यताओीं के लसिलसिेवार वववरण के सार्-सार् अन्य सींबर्ीं धत योग्यताओीं, उपिजब्धयों, कायेत्तर गनतववर्धयों व
अलभरुर्चयों का उल्िेि होना चाठहए। एक-दो ऐसे सम्िाननत व्यजततयों के वववरण, जो उम्िीदवार के व्यजततत्व व
उपिजब्धयों से पररर्चत हों, का सिावेश भी होना चाठहए।
स्िित्त
ृ (बा्ोडािा) िेिि का उिाहरण-
61
ई-मेि
प्रश्ि-1 ई-मेि िेिि क््ा है ?
उत्तर- ई-िेि का अर्थ है- इिेतरॉननक सींदेश। अर्ाथत ् कींप्यि
ू र और इींिरनेि की सहायता से एक ई-िेि आईडी से अन्य
िोगों की ई-िेि आई डी पर सच
ू नाएाँ भेजना ह ई-िेि कहिाता है ।
प्रश्ि-2 ई-मेि के लिए क््ा-क््ा आिश््क होता है ?
उत्तर- कींप्यि
ू र या स्िािथ फोन, इींिरनेि, ब्राउजर, सवथर, िेि एड्रेस, वप्रींिर एवीं पावर सप्िाई एवीं अन्य इिेतरॉननक
चीजों की जरूरत होती है ।
प्रश्ि-3 ई-मेि ककतिे प्रकार के होते हैं?
उत्तर- ई-िेि दो प्रकार के होते हैं। एक होता है personal email और दस
ू रा होता है official email
Personal Email - इसे िोग अपने लिए काि के लिए बनाते हैं। इसके लिए बहुत सार वेबसाइि हैं जो ई-िेि की
सवु वधा दे ती हैं। पसथनि ई-िेि िें उन वेबसाइि का डोिेन यज
ू होता है ।
Official Email - इन ई-िेि का यज
ू ऑक्रफलसयि वेबसाइि या कींपनी के लिए क्रकया जाता है इसके लिए आपके पास
िुद की वेबसाइि या डोिेन होना चाठहए जैसे िेर कींपनी है example तो िेर वेबसाइि का डोिेन है example.xyz तो
िेर कींपनी का ऑक्रफलसयि िेि इस डोिेन पर होगा जैसे info@example.xyz
प्रश्ि-4 ई-मेि का उिाहरण :
सझ
ु ाि (छात्र-छात्राएँ कांप््ि
ू र लशक्षक की सहा्ता से ई-मेि करिा सीिें ।)
62
63
64
65
सांिभथ एिां आभार
1- www.learncbse.in>ncert-solutions- for class 12-hindi
2- https://keepinspringme.in>question
3- www.studyrankers.com>ncert
4- www.cbsetuts.com>ncert-solutions
5- cbseacademic-nic.in
6- ncert.nic.in/textbook
66