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केन्द्रीय विद्यालय संगठन

KENDRIYA VIDYALAYA SANGATHAN

शिक्षा एवं प्रशिक्षण का आं चशिक संस्थान, चंडीगढ़


ZONAL INSTITUTE OF EDUCATION AND TRAINING, CHANDIGARH

अध्ययन सामग्री / Study Material

शैक्षऺक सत्र / Session – 2023-24


कऺा / Class - बारहवीीं
ववषय / Subject - हहन्दी (आधार)
ववषय कोड / Subject Code - 302

तैयारकताा : संतोष कुमार कुशवाहा, सह-प्रशशऺक (हहन्दी)


Prepared By: SANTOSH KUMAR KUSHWAHA, TA (HINDI)

शशऺा एवं प्रशशऺण का आंचशऱक संस्थान, चंडीगढ़


ZONAL INSTITUTE OF EDUCATION AND TRAINING, CHANDIGARH
सेक्टर-33 सी, चंडीगढ़ / SECTOR-33C, CHANDIGARH
वेबसाइट / Website : zietchandigarh.kvs.gov.in
ई-मेऱ / e-mail :kvszietchd@gmail.com दरू भाष / Phone : 0172-2921841, 2921994
ववषय-सच
ू ी
क्रम सं. ववषय ऩष्ृ ठ

1. अऩहठत बोध : गदयांश व कावयांश (वैकल्पऩक प्रश्न) 1

2. अशभवयल्क्त और माध्यम (वैकल्पऩक प्रश्न) 11

3. आरोह भाग -2 : कावय खंड (वैकल्पऩक प्रश्न) 15

4. आरोह भाग -2 : गदय खंड (वैकल्पऩक प्रश्न) 32

5. ववतान भाग -2 (वैकल्पऩक प्रश्न) 48

6. सज
ृ नात्मक ऱेखन (वणानात्मक प्रश्न) 59

7. नए और अप्रत्याशशत ववषयों ऩर ऱेखन (वणानात्मक प्रश्न) 64

8. अशभवयल्क्त और माध्यम (वणानात्मक प्रश्न) 70

9. आरोह भाग -2 : कावय खंड (वणानात्मक प्रश्न) 83

10. आरोह भाग -2 : गदय खंड (वणानात्मक प्रश्न) 94

11. ववतान भाग -2 (वणानात्मक प्रश्न) 100

12. नीऱ ऩत्र : सीबीएसई 110


खंड-‘अ’ - अपठित बोध
अपठित गद्यंश
प्रश्न- ननम्नलिखित गद्यांश को ध््यन पूर्क
व पढ़िए और सही वर्कल्प चुनकर उत्तर दीजिए-
(1)
बड़ी च़ीिें सांकटों में वर्कयस पयत़ी हैं, बड़ी हजतत्याँ बड़ी मस
ु ़ीबतों में पिकर दनु न्य पर कब्िय करत़ी हैं।
अकबर ने तेरह सयि की उम्र में अपने वपतय के दश्ु मन को परयतत कर ढ़द्य थय, जिसकय एकमयत्र कयरण ्ह थय कक
अकबर कय िन्म रे गगततयन में हुआ थय और र्ह भ़ी उस सम्, िब उसके वपतय के पयस एक कततूरी को छोडकर
और कोई दौित नहीां थ़ी। महयभयरत में दे श के प्रय्ः अगिकयांश ऱ्ीर कौरर्ों के पक्ष में थे , मगर किर भ़ी ि़ीत पयांडर्ों
की हुई, क््ोंकक उन्होंने ियक्षयगह
ृ की मुस़ीबत झेिी थ़ी, क््ोंकक उन्होंने र्नर्यस के िोखिम को पयर कक्य थय। वर्ांतटन
चगचवि ने कहय है कक जिांदग़ी की सबसे बड़ी लसफ़त ढ़हम्मत है ।
आदम़ी के और सयरे गुण उसके ढ़हम्मत़ी होने से पैदय होते हैं। जिांदग़ी की दो ही सूरतें हैं। एक तो आदम़ी बडे-
से-बडे मकसद के लिए कोलशश करे , िगमगयत़ी हुई ि़ीत पर पांिय डयिने के लिए हयथ बियए और अगर असिितयएाँ
कदम-कदम पर िोश की रोशऩी के सयथ अाँगि्यिी ्य ियि बन ु रही हों, तब भ़ी र्ह प़ीछे को पयाँर् न हटयए-दस
ू री
सूरत ्ह है कक उन गरीब आत्मयओां कय हमिोिी बन ियए, िो न तो बहुत अगिक सि ु पयत़ी हैं और न जिन्हें बहुत
अगिक दिु पयने कय ही सां्ोग है , क््ोंकक र्े आत्मयएाँ ऐस़ी गोिूलि में बसत़ी हैं, िहयाँ न तो ि़ीत हाँसत़ी है और न
कभ़ी हयर के रोने की आर्यज़ सुनयई दे त़ी है ।
इस गोिूलि र्यिी दनु न्य के िोग बाँिे हुए घयट कय पयऩी प़ीते हैं र्े जिांदग़ी के सयथ िुआ नहीां िेि सकते।
और कौन कहतय है कक परू ी जिांदग़ी को दयाँर् पर िगय दे ने में कोई आनांद नहीां है ? अगर रयततय आगे ही ननकि रहय
हो, तो किर असिी मज़य तो पयाँर् बियते ियने में ही है । सयहस की जिांदग़ी सबसे बड़ी जिांदग़ी होत़ी है । ऐस़ी जिांदग़ी की
सबसे बड़ी पहचयन ्ह है कक र्ह बबिकुि ननडर, बबिकुि बेिौफ़ होत़ी है । सयहस़ी मनुष्् की पहिी पहचयन ्ह है
कक र्ह इस बयत की गचांतय नहीां करतय कक तमयशय दे िने र्यिे िोग उसके बयरे में क््य सोच रहे हैं।
i- बड़ी हजतत्याँ दनु न्य पर ककस प्रकयर कब्िय करत़ी हैं?
(क) रे गगततयन में िन्म िेकर
(ि) िनमत की उपेक्षय करके
(ग) बड़ी मुस़ीबतों में पिकर
(घ) र्नर्यस के िोखिमों को झेिकर
ii- महयभयरत के ्ुदि में ककसकी ि़ीत हुई थ़ी?
(क) बयदशयह अकबर की
(ि) ्ुदि के ऱ्ीरों की
(ग) कौरर् सेनय की
(घ) पयांडर्ों की
iii- “जिांदग़ी की सबसे बड़ी लसफ़त ढ़हम्मत है ” - ्ह कथन ककसकय है ?
(क) ्ुदि में िडने र्यिे ऱ्ीरों कय
(ि) वर्ांतटन चगचवि कय
(ग) रे गगततयन में िन्म िेने र्यिों कय
(घ) िोखिम झेिने र्यिों कय
iv- “िहयाँ न तो ि़ीत हाँसत़ी है और न कभ़ी हयर के रोने की आर्यज़ सुनयई दे त़ी है ” ्ह तथ्् ककससे सांबांगित है ?
(क) जिांदग़ी की पहिी सूरत से
(ि) जिांदग़ी की दस
ू री सरू त से
(ग) क और ि दोनों से

1
(घ) इनमें से कोई नहीां
v- आदम़ी के सयरे गण
ु ककस तरह पैदय होते हैं?
(क) दस
ू रों को वर्द्य लसियने से
(ि) शयांत रहने से
(ग) भ्भ़ीत होने से
(घ) आदम़ी के ढ़हम्मत़ी होने से
vi- कौन िोग बाँिे हुए घयट कय पयऩी प़ीते हैं?
(क) रे गगततयन में िन्मे
(ि) सयहस करने र्यिे
(ग) गोिूलि र्यिी दनु न्य र्यिे
(घ) िोखिम िेने र्यिे
vii- अगर रयततय आगे ननकि रहय हो तो असिी मज़य ककसमें है ?
(क) पयाँर् प़ीछे हटयने में
(ि) पयाँर् बियते ियने में
(ग) चप
ु के से ननकि ियने में
(घ) शोर मचयने में
viii- सयहस की जिांदग़ी की क््य वर्शेषतय है ?
(क) र्ह ननडर होत़ी है
(ि) बबिकुि बेिौफ़ होत़ी है
(ग) सबसे बड़ी होत़ी है
(घ) उप्क्
ुव त सभ़ी
ix- “तमयशय दे िने र्यिे िोग उसके बयरे में क््य सोच रहे हैं” – ्ह कथन ककसके लिए है ?
(क) बयमजु श्कि के लिए
(ि) बेिौफ़ के लिए
(ग) सयहस़ी मनष्ु ् के लिए
(घ) नयमुमककन के लिए
x- सयहस़ी शब्द सयहस + ई से बनय है । इसमें .................. है ।
(क) सांगि
(ि) प्रत्््
(ग) उपसगव
(घ) समयस
उत्तर-
i-(ग) बड़ी मुस़ीबतों में पिकर ii-(घ) पयांडर्ों की iii-(ि) वर्ांतटन चगचवि कय iv-(ि) जिांदग़ी की दस
ू री सूरत से v-(घ)
आदम़ी के ढ़हम्मत़ी होने से vi-(ग) गोिलू ि र्यिी दनु न्य र्यिे vii-(ि) पयाँर् बियते ियने में viii-(घ) उप्क्
ुव त सभ़ी ix-
(ग) सयहस़ी मनष्ु ् के लिए x-(ि) प्रत्््
(2)

सांर्यद में दोनों पक्ष बोिें ्ह आर्श््क नहीां। प्रय्ः एक व््जक्त की सांर्यद में मौन भयग़ीदयरी अगिक ियभकर
होत़ी है । ्ह जतथनत सांर्यदहीनतय से लभन्न है । मन से हयरे दि
ु ़ी व््जक्त के लिए दस
ू रय पक्ष अच्छे र्क्तय के रूप में
नहीां अच्छे श्रोतय के रूप में अगिक ियभकर होतय है । बोिने र्यिे के हयर्भयर् और उसकय सिीकय, उसकी प्रकृनत और

2
सयांतकृनतक-सयमयजिक पष्ृ ठभूलम को पि भर में बतय दे ते हैं। सांर्यद से सांबांि बेहतर भ़ी होते हैं और अलशष्ट सांर्यद
सांबांि बबगयडने कय कयरण भ़ी बनतय है । बयत करने से बडे-बडे मसिे, अांतरयवष्री् समत्यएाँ तक हि हो ियत़ी हैं।
पर सांर्यद की सबसे बड़ी शतव है एक-दस
ू रे की बयतें पूरे मनो्ोग से, सांपूणव िै्व से सुऩी ियएाँ। श्रोतय उन्हें
कयन से सुनें और मन से अनुभर् करें तभ़ी उनकय ियभ है , तभ़ी समत्यएाँ सुिझने की सांभयर्नय बित़ी है और कम-
से-कम ्ह समझ में आतय है कक अगिे के मन की परतों के भ़ीतर है क््य? सच तो ्ह है कक सुननय एक कौशि है
जिसमें हम प्रय्ः अकुशि होते हैं। दस
ू रे की बयत कयटने के लिए, उसे समयियन सुझयने के लिए हम उतयर्िे होते हैं
और ्ह उतयर्ियपन सांर्यद की आत्मय तक हमें पहुाँचने नहीां दे तय।
हम तो बस अपनय झांडय गयडनय चयहते हैं। तब दस
ू रे पक्ष को झांझ
ु ियहट होत़ी है । र्ह सोचतय है व््थव ही इसके
सयमने मुाँह िोिय। रहीम ने ठीक ही कहय थय-“सनु न इढ़ठिैहैं िोग सब, बयाँढ़ट न िैहैं को्।” ध््यन और िै्व से सुननय
पवर्त्र आध््यजत्मक कय्व है और सांर्यद की सिितय कय मूि मांत्र है । िोग तो पेड-पौिों से, नदी-पर्वतों से, पशु-पक्षक्ष्ों
तक से सांर्यद करते हैं। रयम ने इन सबसे पूछय थय क््य आपने स़ीतय को दे िय?’ और उन्हें एक पक्ष़ी ने ही पहिी
सूचनय दी थ़ी। इसलिए सांर्यद की अनांत सांभयर्नयओां को समझय ियनय चयढ़हए।
i- सांर्यद में व््जक्त की कौन-स़ी भयग़ीदयरी अगिक ियभकर होत़ी है ?
(क) चपि
(ि) मौन
(ग) सांर्यदहीन
(घ) ननरुददे श््
ii- अलशष्ट सांर्यद कय क््य पररणयम होतय है ?
(क) र्यद-वर्र्यद होतय है
(ि) सांबांि बेहतर होते हैं
(ग) सांबि
ां बबगड ियते हैं
(घ) ियद-ू सय असर होतय है
iii- सांर्यद की सबसे बड़ी शतव क््य है ?
(क) बयतें पूरे मनो्ोग से सुऩी ियएाँ
(ि) सांपूणव िै्व से सुऩी ियएाँ
(ग) मन से अनुभर् की ियएाँ
(घ) उप्क्
ुव त सभ़ी
iv- हम प्रय्ः ककसमें अकुशि होते हैं?
(क) बयत सन
ु ने में
(ि) बयत सुनयने में
(ग) बयत कयटने में
(घ) बयत बनयने में
v- सांर्यद की आत्मय तक पहुाँचने के लिए हमें क््य नहीां करनय चयढ़हए?
(क) लशष्ट सांर्यद
(ि) बोिने की गांभ़ीरतय
(ग) बयत के लिए उतयर्ियपन
(घ) इनमें से कोई नहीां
vi- दस
ू रे पक्ष को झझ
ुां ियहट कब होत़ी है ?
(क) िब हम लशष्ट सांर्यद करते हैं
(ि) िब हम मौन होकर दस
ू रों को सुनते हैं

3
(ग) िब हम अपनय झांडय उतरनय चयहते हैं
(घ) िब हम अपनय झांडय गयडनय चयहते हैं
vii- -“सुनन इढ़ठिैहैं िोग सब, बयाँढ़ट न िैहैं को्।” ्ह पांजक्त ककस कवर् की है ?
(क) सांत कब़ीर की
(ि) कवर् रहीम की
(ग) तुिस़ीदयस की
(घ) इनमें से कोई नहीां
viii- ध््यन और िै्व से सन
ु नय -
।. पवर्त्र आध््यजत्मक कय्व है
।।. सांर्यद की सिितय कय मूि मांत्र है
(क) केर्ि एक
(ि) केर्ि दो
(ग) एक और दो, दोनों
(घ) इनमें से कोई नहीां
ix- रयम ने ककससे सांर्यद कक्य थय?
(क) पेड-पौिों से
(ि) नदी-पर्वतों से
(ग) पश-ु पक्षक्ष्ों से
(घ) उप्क्
ुव त सभ़ी से
x- ‘आध््यजत्मक’ शब्द में प्रत््् है -
(क) इक
(ि) आजत्मक
(ग) लमक
(घ) आ
उत्तर-
i-(ि) मौन ii-(ग) सांबांि बबगड ियते हैं iii-(घ) उप्क्
ुव त सभ़ी iv-(क) बयत सुनने में v-(ग) बयत के लिए उतयर्ियपन
vi-(घ) िब हम अपनय झांडय गयडनय चयहते हैं vii-(ि) कवर् रहीम की viii-(ग) एक और दो, दोनों ix-(घ) उप्ुक्
व त सभ़ी
से x-(क) इक
(3)

परर्ोिनय लशक्षय कय एक बहुत ही महत्र्पूणव अांग है । इसे तै्यर करने में ककस़ी िेि की तरह कय ही आनांद
लमितय है । इस तरह परर्ोिनय तै्यर करने कय अथव है -िेि-िेि में बहुत कुछ स़ीि ियनय। ्ढ़द आपको कहय ियए
कक दशहरय पर ननबांि लिखिए, तो आपको शय्द उतनय आनांद नहीां आएगय। िेककन ्ढ़द आपसे कहय ियए कक
अिबयरों से प्रयप्त ियनकयरर्ों के अियर्य भ़ी आपको दे श-दनु न्य की बहुत सयरी ियनकयरर्याँ प्रयप्त होत़ी हैं। ्ह
आपको तथ््ों को िुटयने तथय उन पर वर्चयर करने कय अर्सर प्रदयन करत़ी है । इससे आप में नए-नए तथ््ों के
कौशि कय वर्कयस होतय है । इससे आपमें एकयग्रतय कय वर्कयस होतय है । िेिन सांबांि़ी नई-नई शैलि्ों कय वर्कयस होतय
है ।
आपमें गचांतन करने तथय ककस़ी पर्
ू व घटनय से र्तवमयन घटनय को िोडकर दे िने की शजक्त कय वर्कयस होतय है ।
परर्ोिनय कई प्रकयर से तै्यर की िय सकत़ी है । हर व््जक्त इसे अिग ढां ग से, अपने तरीके से तै्यर कर सकतय है ।
ठीक उस़ी प्रकयर िैसे हर व््जक्त कय बयतच़ीत करने कय, रहने कय, ियने-प़ीने कय अपनय अिग तरीकय होतय है । ऐसय

4
ननबांि, कहयऩी कवर्तय लििते ्य गचत्र बनयते सम् भ़ी होतय है । िेककन ऊपर कही गई बयतों के आियर पर ्हयाँ हम
परर्ोिनय को मोटे तौर पर दो भयगों में बयाँट सकते हैं -एक तो र्े परर्ोिनयएाँ, िो समत्यओां के ननदयन के लिए
तै्यर की ियत़ी हैं और दस
ू री र्े, िो ककस़ी वर्ष् की समुगचत ियनकयरी प्रदयन करने के लिए तै्यर की ियत़ी हैं।
समत्यओां के ननदयन के लिए तै्यर की ियने र्यिी परर्ोिनयओां में सांबांगित समत्य से िुडे सभ़ी तथ््ों पर
प्रकयश डयिय ियतय है और उस समत्य के ननदयन के लिए भ़ी ढ़दए ियते हैं। इस तरह की परर्ोिनयएाँ प्रय्: सरकयर
अथर्य सांगठनों दर्यरय ककस़ी समत्य पर कय्व – ्ोिनय तै्यर करते सम् बनयई ियत़ी हैं। इससे उस समत्य के
वर्लभन्न पहिुओां पर कय्व करने में आसयऩी हो ियत़ी हैं। ककां तु दस
ू रे प्रकयर की परर्ोिनय को आप आसयऩी से तै्यर
कर सकते हैं। इसे ‘शैक्षक्षक परर्ोिनय’ भ़ी कहय ियतय है । इस तरह की परर्ोिनयएाँ तै्यर करते सम् आप सांबांगित
वर्ष् पर तथ््ों को िट
ु यते हुए बहुत सयरी नई-नई बयतों से अपने-आप पररगचत भ़ी होते हैं।
i- िेिक के अनुसयर ककसे तै्यर करने में िेि की तरह आनांद लमितय है ?
(क) पिनय-लििनय न पडे बस िेिते रहने में
(ि) िेि के दौरयन ढ़दए गए गह
ृ कय्व को करने में
(ग) लशक्षय के तहत दी गई परर्ोिनय को तै्यर करने में
(घ) िेिनय भ़ी िरुरी है और पिनय भ़ी िरुरी है
ii- आपको ककस कय्व में बहुत आनांद आएगय?
(क) दशहरय वर्ष् पर ननबांि लििने में
(ि) किकेट ्य िुटबयि िेिकर सम् बबतयने में
(ग) अख़बयर के अियर्य भ़ी अपऩी पसांद की बयतें एकबत्रत करने में
(घ) अपने से छोटे बच्चों को गचियने में
iii- ककस कय्व से बच्चों में नए-नए तथ््ों के कौशि कय वर्कयस होतय है ।
(क) लमत्रों के सयथ बैठकर बयतें करने से
(ि) तथ््ों को िट
ु यने तथय उन पर वर्चयर करने से
(ग) घर में बडों दर्यरय कही गई बयत को निरअांदयि करनेसे
(घ) इनमें से कोई नहीां
iv- परर्ोिनय तै्यर करने की क््य शैिी हो सकत़ी है ?
(क) हर व््जक्त इसे अिग ढां ग से, अपने तरीके से तै्यर कर सकतय है
(ि) इसे एक ही ढां ग से दस
ू रों के सयथ लमिकर तै्यर कक्य िय सकतय है
(ग) कुछ िोग इसे सहि ढां ग से समझ नहीां पयते हैं
(घ) कुछ िोग परर्ोिनय कय्व करनय ही नहीां चयहते
v- ननबांि, कहयऩी, कवर्तय लििते ्य गचत्र बनयते सम् कैसय पररणयम होतय है ?
(क) सबकय एक िैसय ही होतय है
(ि) कुछ िोगों कय एक िैसय और कुछ कय अिग-अिग होतय है
(ग) सब िोग ककस़ी एक कय दे िकर लिि ्य बनय िेते हैं
(घ) सबकय अिग-अिग होतय है
vi- ‘एकयग्रतय’ शब्द में ‘तय’ क््य है ?
(क) उपसगव
(ि) प्रत्््
(ग) सांगि
(घ) समयस
vii- हम मोटे तौर पर परर्ोिनय को जिन दो भयगों में बयाँट सकते हैं,र्े हैं-

5
(क) समत्यओां को छोड दे ने के लिए और नई ियनकयरी प्रयप्त करने के लिए
(ि) समत्यओां के ननदयन के लिए और समुगचत ियनकयरी प्रदयन करने के लिए
(ग) समत्यओां के समझने के लिए और वर्शेष ियनकयरी प्रयप्त करने के लिए
(घ) ‘क’ और ‘ि’ दोनों
viii- सरकयर अथर्य सांगठनों दर्यरय ककस़ी समत्य पर तै्यर होने र्यिी कय्व्ोिनय है -
(क) समत्यओां के ननदयन के लिए
(ि) समुगचत ियनकयरी प्रदयन करने के लिए
(ग) ‘क’ और ‘ि’ दोनों
(घ) इनमें से कोई नहीां
ix- ‘परर्ोिनय’ शब्द में ‘परर’ है -
(क) उपसगव
(ि) प्रत्््
(ग) सांगि
(घ) समयस
x- दस
ू रे प्रकयर की परर्ोिनय को कहय िय सकतय है -
(क) शैक्षक्षक परर्ोिनय
(ि) गैरशैक्षक्षक परर्ोिनय
(ग) इनमें से दोनों
(घ) इनमें से कोई नहीां
उत्तर-
i-(ग) लशक्षय के तहत दी गई परर्ोिनय को तै्यर करने में ii-(ग) अख़बयर के अियर्य भ़ी अपऩी पसांद की बयतें
एकबत्रत करने में iii-(ि) तथ््ों को िुटयने तथय उन पर वर्चयर करने से iv-(क) हर व््जक्त इसे अिग ढां ग से, अपने
तरीके से तै्यर कर सकतय है v-(घ) सबकय अिग-अिग होतय है vi-(ि) प्रत््् vii-(ि) समत्यओां के ननदयन के लिए
और समुगचत ियनकयरी प्रदयन करने के लिए viii- (ग) ‘क’ और ‘ि’ दोनों ix-(क) उपसगव x-(क) शैक्षक्षक परर्ोिनय

अपठित कयव्यंश
प्रश्न- ननम्नलिखित कयव््यांश को ध््यन पूर्क
व पढ़िए और सही वर्कल्प चुनकर उत्तर दीजिए-
(1)
नए ्ुग में वर्चयरों की नई गांगय बहयओ तुम,
कक सब कुछ िो बदि दे ऐसे ति
ू याँ में नहयओ तम
ु ।
अगर तुम ठयन िो तो आाँगि्ों को मोड सकते हो,
अगर तुम ठयन िो तयरे गगन के तोड सकते हो
अगर तुम ठयन िो तो वर्श्र् के इनतहयस में अपने-
सु्श कय एक नर् अध््य् भ़ी तुम िोड सकते हो,
तम्
ु हयरे बयहुबि पर वर्श्र् को भयरी भरोसय है –
उस़ी वर्श्र्यस को किर आि िन-िन में िगयओ तुम।
पस़ीनय तुम अगर इस में अपनय लमिय दोगे,
करोडों दीन-हीनों को न्य ि़ीर्न ढ़दिय दोगे।
तुम्हयरी दे ह के श्रम-स़ीकरों में शजक्त है इतऩी
कहीां भ़ी िूि में तुम िूि सोने के खििय दोगे।

6
न्य ि़ीर्न तुम्हयरे हयथ कय हल्कय इशयरय है ।
इशयरय कर र्ही इस दे श को किर िहिहयओ तुम।

i- कवर् ने नए ्ुग में वर्चयरों की नई गांगय बहयने के लिए ककसे प्रेररत कक्य है ?
(क) ्ोदियओां को
(ि) नर््ुर्कों को
(ग) नेतयओां को
(घ) लसपयढ़ह्ों को
ii- ्ढ़द ्ुर्य ठयन िे तो क््य कर सकतय है ?
(क) आाँगि्ों कय रुि मोड सकते हैं
(ि) गगन के तयरे तोड सकते हैं
(ग) वर्श्र् के इनतहयस में न्य अध््य् िोड सकते हैं
(घ) उप्क्
ुव त सभ़ी
iii- करोडों दीन-हीनों को न्य ि़ीर्न ककस तरह से लमि सकेगय?
(क) िननकों से मदद मयाँगकर
(ि) ननिवन को महत्र् दे ने से
(ग) नर््ुर्कों के पररश्रम करने से
(घ) नेतयओां से कहकर
iv- ‘िूि में सोने के िूि खििय दे ने’ कय क््य आश् है ?
(क) लमट्टी से िन-ियन्् उपियनय
(ि) सोने की लमट्टी में िूि िगयनय
(ग) सोने की लमट्टी में सोने कय िूि आनय
(घ) लमट्टी में सोने कय िूि खिियनय
v- उक्त कयव््यांश कय उप्ुक्त श़ीषवक हो सकतय है -
(क) ग़ीत गयओ तुम
(ि) कवर् की स़ीि
(ग) पररश्रम कय िि
(घ) नर््ुर्क
उत्तर-
i-(ि) नर््ुर्कों को ii-(घ) उप्क्
ुव त सभ़ी iii-(ग) नर््र्
ु कों के पररश्रम करने से iv-(क) लमट्टी से िन-ियन्् उपियनय
v-(घ) नर््ुर्क
(2)

परु
ु ष हो, परु
ु षयथव करो, उठो।
पुरुष क््य, परु
ु षयथव हुआ न िो,
हृद् की सब दब ु ि
व तय तिो।
प्रबि िो तम
ु में परु
ु षयथव हो,
सुिभ कौन तुम्हें न पदयथव हो?
प्रगनत के पथ में वर्चरों उठो ।
पुरुष हो, पुरुषयथव करो, उठो।।

7
न पुरुषयथव बबनय कुछ तर्यथव है ,
न पुरुषयथव बबनय परमयथव है ।
समझ िो ्ह बयत ्थयथव है
कक पुरुषयथव ही पुरुषयथव है ।
भर्
ु न में सि
ु -शयांनत भरो, उठो।
पुरुष हो, पुरुषयथव करो, उठो ।।
न पुरुषयथव बबनय तर्गव है,
न परु
ु षयथव बबनय अपर्गव है ।
न पुरुषयथव बबनय कि्त कहीां,
न पुरुषयथव बबनय वप्र्तय कहीां।
सिितय र्र-तल्
ु ् र्रो, उठो ।
पुरुष हो, पुरुषयथव करो, उठो।।
i- परु
ु ष में परु
ु षयथव होने कय क््य मतिब है ?
(क) व््जक्त में पररश्रम होनय
(ि) ि़ीर्न में त््यग होनय
(ग) कय्व में परयर्िांब़ी होनय
(घ) ि़ीर्न में सत्् होनय
ii- ्ढ़द व््जक्त में प्रबि परु
ु षयथव हो तो इसकय क््य पररणयम होगय?
(क) व््जक्त ि़ीर्न में कभ़ी सिि नहीां होगय
(ि) व््जक्त कय ि़ीर्न बहुत कढ़ठन होगय
(ग) व््जक्त को सांसयर की र्यांनछत सभ़ी र्ततए
ु ाँ सि
ु भ हो सकत़ी हैं
(घ) व््जक्त को ि़ीर्न भर पछतयनय पडेगय
iii- ‘कक परु
ु षयथव ही पुरुषयथव है ’- इस पांजक्त कय क््य आश् है ?
(क) व््जक्त चयहे कुछ करे ्य न करे ियभ लमितय ही है
(ि) ि़ीर्न में पररश्रम के अियर्य भ़ी बहुत कुछ है
(ग) ्ह सच्चयई है कक ि़ीर्न में पररश्रम कय ही महत्त्र् है
(घ) ि़ीर्न में पररश्रम कय ही महत्त्र् है , ्ह सही नहीां है
iv- न पुरुषयथव बबनय तर्गव है , न पुरुषयथव बबनय अपर्गव है - इसमें है -
(क) पदमैत्ऱी एर्ां तक
ु कय ननर्यवह
(ि) दोहय एर्ां चौपयई छां द
(ग) रूपक एर्ां श्िेष अिांकयर
(घ) प्रसयद गुण सांपन्न भयषय
v- उक्त कयव््यांश कय उप्क्
ु त श़ीषवक है -
(क) परु
ु षयथव और कवर्
(ि) पुरूषयथी की वर्शेषतय
(ग) पुरुषयथव की महत्तय
(घ) परु
ु षयथव ही परु
ु षयथव
उत्तर-
i-(क) व््जक्त में पररश्रम होनय ii- (ग) व््जक्त को सांसयर की र्यांनछत सभ़ी र्ततुएाँ सुिभ हो सकत़ी हैं iii- (ग) ्ह
सच्चयई है कक ि़ीर्न में पररश्रम कय ही महत्त्र् है iv -(क) पदमैत्ऱी एर्ां तक
ु कय ननर्यवह v- (ग) परु
ु षयथव की महत्तय

8
(3)
गचडड्य को ियि समझयओ
कक वपांिडे के बयहर
िरत़ी बड़ी है , ननमवम है ,
र्हयाँ हर्य में उसे
अपने जितम की गांि तक नहीां लमिेग़ी।
्ाँू तो बयहर समद्र
ु है , नदी है , झरनय है ,
पर पयऩी के लिए भटकनय है ,
्हयाँ कटोरी में भरय िि गटकनय है ।
बयहर दयने कय टोटय है
्हयाँ चुग्गय मोटय है ।
बयहर बहे लि्े कय डर है
्हयाँ ननद्र्र्दर् कांठ-तर्र है ।
किर भ़ी गचडड्य मजु क्त कय गयनय गयएग़ी,
मयरे ियने की आशांकय से भरे होने पर भ़ी
वपांिडे से जितनय अांग ननकि सकेगय ननकयिेग़ी,
हर सू िोर िगयएग़ी
और वपांिडय टूट ियने ्य िि
ु ियने पर उड ियएग़ी।

i- कवर् के अनुसयर गचडड्य के लिए वपांिडे के बयहर क््य कढ़ठनयई है -


(क) वपांिडे के बयहर आरयम और मौि अगिक है
(ि) वपांिडे के बयहर वर्ततयर अगिक है और हमेशय ि़ीर्न कय सांकट है
(ग) िरत़ी ढ़दियई नहीां पडत़ी है
(घ) िोग बहुत ही ननमवम होते हैं
ii- बयहर समद्र
ु , नदी, और झरनय होते हुए भ़ी गचडड्य को पयऩी के लिए क््ों भटकनय पडेगय?
(क) इन पर पहरय होतय है और उसे लशकयरर्ों से भ़ी बचनय पडेगय इसलिए
(ि) समुद्र कय पयऩी ियरय होतय है इसलिए
(ग) नढ़द्ों कय पयऩी सूि ग्य है इसलिए
(घ) झरने कय पयऩी प़ीने िय्क नहीां होतय इसलिए
iii- ्हयाँ चुग्गय मोटय है - इस पांजक्त में ‘्हयाँ’ शब्द ककसके लिए आ्य है ?
(क) गचडड्य के लिए
(ि) िरत़ी के लिए
(ग) वपांिडे के लिए
(घ) लशकयरी के लिए
iv- गचडड्य मुजक्त कय गयनय क््ों गयएग़ी?
(क) उसे सुवर्ियओां से अगिक आियदी वप्र् है
(ि) उसे सवु र्ियएाँ पसांद हैं
(ग) उसे वपांिडे में रहनय पसांद है
(घ) इनमें से कोई नहीां

9
v- उक्त कयव््यांश कय उप्ुक्त सयरयांश है -
(क) िरत़ी और वपांिडय
(ि) गचडड्य कय ग़ीत
(ग) कवर् की गचडड्य
(घ) आियदी महत्त्र्पण
ू व है
उत्तर-
i-(ि) वपांिडे के बयहर वर्ततयर अगिक है और हमेशय ि़ीर्न कय सांकट है ii-(क) इन पर पहरय होतय है और उसे
लशकयरर्ों से भ़ी बचनय पडेगय इसलिए iii-(ग)वपांिडे के लिए iv-(क)उसे सवु र्ियओां से अगिक आियदी वप्र् है v-(घ)
आियदी महत्त्र्पण
ू व है
(4)

होकर बडे िडेंगे ्ों


्ढ़द कहीां ियन मैं िेत़ी
कुि-किांक-सांतयन
सौर में गिय घोंट मैं दे त़ी।
िोग ननपूत़ी कहते पर
्ह ढ़दन न दे िनय पडतय
मैं न बांिनों में सडत़ी
छयत़ी में शूि न गडतय।
बैठी ्ही बबसरू रही मयाँ, ऩीचों ने घर घयिय।
मेरय दे श िि रहय, कोई नहीां बुझयने र्यिय।

भगत लसांह, अशफ़यक़,


ियिमोहन, गणेश बलिदयऩी
सोच रहे होंगे, हम सबकी
व््थव गई क़ुबयवऩी।
जिस िरत़ी को तन की
दे कर ियद, ख़ून से स़ीांचय
अांकुर िेते सम्, उस़ी पर
ककसने ज़हर उिीचय।
हरी भरी िेत़ी पर ओिे गगरे , पड ग्य पयिय।
मेरय दे श िि रहय, कोई नहीां बुझयने र्यिय।

i- दे श के ियडिे बडे होकर िड-मर रहे हैं- इस बयत से कौन बहुत दि


ु ़ी है ?
(क) प्रकृनत मयाँ
(ि) िरत़ी मयाँ
(ग) दे ऱ्ी मयतय
(घ) सांर्ेदनश़ीि मयाँ
ii- ककसकय गिय सौर में घोंट दे ने की बयत कही गई है?
(क) उन िोगों कय िो बडे होकर आपस में िड रहे हैं
(ि) िो दे श की भियई नहीां करते हैं
(ग) िो िोग पररश्रम नहीां करते हैं
10
(घ) िो दस
ू रों कय शोषण करते हैं
iii- “मेरय दे श िि रहय, कोई नहीां बुझयने र्यिय” – कवर् ने ऐसय क््ों कहय है ?
I- दे श में ियनत, िमव, भयषय, क्षेत्र आढ़द को िेकर हर तरि सांघषव है ।
II- दे श में ढ़हांसय, िूटपयट और वर्भयिन को बियर्य ढ़द्य िय रहय है ।

(क) कथन एक सही है


(ि) कथन दो सही है
(ग) दोनों कथन सही है
(घ) कोई कथन सही नहीां है
iv- कवर् ने भगत लसांह, अशफ़यक़, ियि मोहन, गणेश इत््यढ़द बलिदयनन्ों को क््ों ्यद कक्य है ?
(क) र्े एक बयर किर से िन्म िें
(ि) कवर् को िगतय है कक उनकय बलिदयन व््थव हो ग्य
(ग) उन्हें कोई महत्त्र् नहीां दे रहय है
(घ) सब अपने तर्यथव में ि़ी रहे हैं
v- उक्त पांजक्त्ों में कवर् की मुख्् भयर्नय क््य है ?
(क) ककसयनों के प्रनत अत््गिक मोह
(ि) नर्िर्यनों के लिए वर्द्रोह
(ग) दे श की एकतय एर्ां अिांडतय के प्रनत आकुितय
(घ) सरकयर की बेरुि़ी की आिोचनय
उत्तर-
i- (घ) सांर्ेदनश़ीि मयाँ ii-(क) उन िोगों कय िो बडे होकर आपस में िड रहे हैं iii-(ग) दोनों कथन सही है iv- (ि)
कवर् को िगतय है कक उनकय बलिदयन व््थव हो ग्य v-(ग) दे श की एकतय एर्ां अिांडतय के प्रनत आकुितय

अभिव्क्तत और मयध््म

ननम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर के लिए सबसे उगचत वर्कल्प कय च्न कीजिए-


i- समयचयर िेिन की सबसे उप्ोग़ी एर्ां िोकवप्र् शैिी कौन-स़ी है ?
(क) सांक्षेप शैिी
(ि) कथय शैिी
(ग) उल्टय वपरयलमड शैिी
(घ) स़ीिय वपरयलमड शैिी
ii- उिटय वपरयलमड शैिी में -
(क) समयचयर के सबसे महत्र्पूणव तथ्् को सबसे बयद में लििय ियतय है
(ि) समयचयर के सबसे महत्र्पण
ू व तथ्् को मध्् में लििय ियतय है
(ग) समयचयर के सबसे महत्र्पूणव तथ्् को नहीां लििय ियतय है
(घ) समयचयर के सबसे महत्र्पूणव तथ्् को सबसे पहिे लििय ियतय है
iii- समयचयर मयध््मों में पयठकों एर्ां श्रोतयओां तक सूचनयएाँ पहुाँचयने के लिए पत्रकयरों दर्यरय ककए ियने र्यिे
िेिन को क््य कहय ियतय है ?
(क) पत्रकयरी् िेिन
(ि) सांपयदकी् िेिन
(ग) िीचर िेिन

11
(घ) ततांभ िेिन
iv- पत्रकयरी् िेिन के अांतगवत क््य आतय है ?
(क) सांपयदकी्
(ि) समयचयर
(ग) आिेि
(घ) उप्क्
ुव त सभ़ी
v- ककस़ी समयचयर पत्र ्य सांगठन कय नन्लमत र्ेतनभोग़ी पत्रकयर कहियतय है -
(क) पण
ू क
व यलिक पत्रकयर
(ि) अांशकयलिक पत्रकयर
(ग) तर्तांत्र पत्रकयर
(घ) इनमें से कोई नहीां
vi- समयचयर के तत्र्ों में शयलमि है -
(क) नऱ्ीनतय
(ि) प्रभयर्कयररतय,
(ग) ननकटतय
(घ) उक्त त़ीनों
vii- समयचयर िेिन में कुि ककतने ककयरों कय प्र्ोग कक्य ियतय है ?
(क) आठ
(ि) चयर
(ग) छह
(घ) पयाँच
viii- सच
ू नयत्मक एर्ां तथ््ों पर आियररत ककयर कौन-से हैं?
(क) कब, कौन, कैसे, कहयाँ
(ि) कब, कौन, क््य, कहयाँ
(ग) कब, क््ों, क््य, कहयाँ
(घ) कौन, क््य, कहयाँ, कैसे
ix- ककस़ी क्षेत्र वर्शेष से िड
ु ़ी घटनयओां, मुददों एर्ां समत्यओां कय सूक्ष्म वर्श्िेषण करके पयठकों के समक्ष
प्रततुत की ियने र्यिी ररपोटव को कहते हैं -
(क) सयर्विननक ररपोटव
(ि) व््जक्तगत ररपोटव
(ग) वर्शेष ररपोटव
(घ) एकि ररपोटव
x- रयिऩीनत, अपरयि, िेि, कफ़ल्म र् कृवष क्षेत्र के लिए सांर्यददयतयओां के ब़ीच रूगच एर्ां वर्शेज्ञतय के आियर
पर कयम के बाँटर्यरे को क््य कहते हैं?
(क) तयिय िबर
(ि) स़ीिय प्रसयरण
(ग) ब़ीट
(घ) पत्रकयररतय
xi- तर्तांत्र पत्रकयर कहियतय है -
(क) ककस़ी समयचयर सांगठन कय नन्लमत एर्ां र्ेतनभोग़ी कमवचयरी

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(ि) ककस़ी समयचयर सांगठन कय ननजश्चत मयनदे ् पर कय्व करने र्यिय अनन्लमत कमवचयरी
(ग) ककस़ी समयचयर सांगठन के लिए अपने िेि के लिए भुगतयन पयने र्यिय पत्रकयर
(घ) इनमें से ‘क’ और ‘ि’
xii- समयचयर पत्र में सांपयदकी् लििने कय दयन्त्र् ककसकय होतय है ?
(क) प्रकयशक कय
(ि) सांपयदक और उसके सह्ोगग्ों कय
(ग) सांर्यददयतय कय
(घ) मद्र
ु क कय
xiii- ककस़ी वर्शेष वर्ष् पर वर्चयर एर्ां गद् प्रियन अलभव््जक्त को क््य कहय ियतय है ?
(क) सांपयकी्
(ि) समयचयर
(ग) ढ़टप्पण़ी
(घ) आिेि
xiv- इांरो, मि
ु डय और बयड़ी ककसके महत्त्र्पूणव भयग हैं-
(क) समयचयर पत्र के
(ि) टे िीवर्िन के
(ग) उिटय वपरयलमड शैिी के
(घ) इांटरनेट के
xv- ननम्नलिखित में से ककसे समयचयर पत्र की आर्यि मयनय ियतय है ?
(क) िीचर को
(ि) सांपयदकी् को
(ग) ररपोटव को
(घ) आिेि को
xvi- इांटरनेट पत्रकयररतय कय आश् है -
(क) इांटरनेट पर अिबयरों कय प्रकयशन ्य िबरों कय आदयन-प्रदयन
(ि) इांटरनेट पर ऱ्ीडड्ो गेम कय आदयन-प्रदयन
(ग) इांटरनेट पर पैसों कय िेन-दे न
(घ) इनमें से कोई नहीां
xvii- भयरत में सबसे पहिय समयचयर पत्र कब और कहयाँ से प्रकयलशत हुआ?
(क) 1835 ई. में गोर्य से प्रकयलशत हुआ
(ि) 1780 ई. में िेम्स ऑगतट ढ़हकी कय ‘बांगयि गिट’ कोिकयतय से प्रकयलशत हुआ
(ग) 1826 ई. में कोिकयतय से प्रकयलशत हुआ
(घ) 1885 ई. में मुांबई से प्रकयलशत हुआ
xviii- पत्रकयररतय से क््य आश् है ?
(क) अिबयर, रे डड्ो, टे िीवर्िन ्य इांटरनेट के मयध््म से िबरों कय सांचयर ही पत्रकयररतय है
(ि) वर्वर्ि क्षेत्रों से ख़बरों कय सांकिन करनय पत्रकयररतय कहियत़ी है
(ग) सांर्यददयतयओां से प्रयप्त ख़बरों में कयट-छयाँट करनय ही पत्रकयररतय है
(घ) उक्त त़ीनों सही हैं
xix- झूठी अिर्यहों, सनसऩीिेि मुददों को प्रमुितय दे ने र्यिी पत्रकयररतय क््य कहियत़ी है ?
(क) िोि़ी पत्रकयररतय

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(ि) प़ीत पत्रकयररतय
(ग) र्ैकजल्पक पत्रकयररतय
(घ) पेि थ्ऱी पत्रकयररतय
xx- ननम्नलिखित में से मुढ़द्रत मयध््म नहीां है ?
(क) अिबयर,
(ि) रे डड्ो
(ग) पुततक
(घ) बैनर
xxi- सुव््र्जतथत, सि
ृ नयत्मक एर्ां आत्मननष्ठ िेिन को क््य कहते हैं?
(क) समयचयर
(ि) ततांभ
(ग) आिेि
(घ) िीचर
xxii- अनुपिब्ि तथ््ों की गहरी छयनब़ीन करके सयर्विननक की ियने र्यिी ररपोटव कहियत़ी है -
(क) वर्शेष़ीकृत ररपोटव
(ि) वर्श्िेषणयत्मक ररपोटव
(ग) िोि़ी ररपोटव
(घ) वर्र्ेचनयत्मक ररपोटव
xxiii- एक अच्छे और रोचक िीचर िेिन के लिए ननम्नयांककत में ककसे शयलमि कक्य ियतय है ?
(क) रे ियांकन, िोटो, ग्रयकिक्स
(ि) सच
ू नय, मद
ु दे , तथ््
(ग) ररपोटव , ततांभ, आिेि
(घ) इनमें से कोई नहीां
xxiv- पत्रकयरी् िेिन के लिए पत्रकयर ककस स्रोत से कच्चय मयि प्रयप्त करतय है?
(क) िीचर से
(ि) सयक्षयत्कयर से
(ग) समयचयर से
(घ) आिेि से
xxv- ननम्नयांककत में से ततांभ िेिन सांबांगित है ?
(क) सि
ृ न
व यत्मक िेिन से
(ि) वर्र्रणयत्मक िेिन से
(ग) वर्चयरपरक िेिन से
(घ) कथयत्मक िेिन से
उत्तर-
i-(ग) उल्टय वपरयलमड शैिी
ii-(घ) समयचयर के सबसे महत्र्पूणव तथ्् को सबसे पहिे लििय ियतय है
iii-(क) पत्रकयरी् िेिन
iv-(घ) उप्ुक्
व त सभ़ी
v-(क) पण
ू क
व यलिक पत्रकयर
vi-(घ) उक्त त़ीनों

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vii-(ग) छह
viii-(ि) कब, कौन, क््य, कहयाँ
ix-(ग) वर्शेष ररपोटव
x-(ग) ब़ीट
xi-(ग) ककस़ी समयचयर सांगठन के लिए अपने िेि के लिए भग
ु तयन पयने र्यिय पत्रकयर
xii-(ि) सांपयदक और उसके सह्ोगग्ों कय
xiii-(घ) आिेि
xiv-(ग) उिटय वपरयलमड शैिी के
xv-(ि) सांपयदकी् को
xvi-(क) इांटरनेट पर अिबयरों कय प्रकयशन ्य िबरों कय आदयन-प्रदयन
xvii-(ि) 1780 ई. में िेम्स ऑगतट ढ़हकी कय ‘बांगयि गिट’ कोिकयतय से प्रकयलशत हुआ
xviii-(घ) उक्त त़ीनों
xix-(ि) प़ीत पत्रकयररतय
xx-(ि) रे डड्ो
xxi-(घ) िीचर
xxii-(ग) िोि़ी ररपोटव
xxiii-(क) रे ियांकन, िोटो, ग्रयकिक्स
xxiv-(ि) सयक्षयत्कयर से
xxv-(ग) वर्चयरपरक िेिन से

कयव्-खंड

आत्मपररच्, ठिन जल्िी जल्िी ढलतय है - हररवंश रय् बच्चन

कवव पररच्- कवर्र्र हररर्ांश रय् बच्चन कय िन्म 27 नर्ांबर सन 1907 को इियहयबयद में हुआ थय। उन्होंने
इियहयबयद वर्श्र्वर्द्यि् से अांग्रेि़ी वर्ष् में एम०ए० की परीक्षय उत्त़ीणव की तथय 1942-1952 ई० तक ्हीां पर
प्रयध््यपक रहे । उन्होंने कैं बिि वर्श्र्वर्द्यि्, इांग्िैंड से प़ी-एच०ड़ी० की उपयगि प्रयप्त की। अांग्रेि़ी कवर् कीट्स पर
उनकय शोिकय्व बहुत चगचवत रहय। र्े आकयशर्यण़ी के सयढ़हजत््क कय्विमों से सांबांदि रहे और किर वर्दे श मांत्रयि्
में ढ़हांदी वर्शेषज्ञ रहे । उन्हें रयज््सभय के लिए भ़ी मनोऩीत कक्य ग्य। 1976 ई० में उन्हें ‘पदमभूषण’ से अिांकृत
कक्य ग्य।
रचनयएँ- हररर्ांश रय् बच्चन की प्रमुि रचनयएाँ ननम्नलिखित हैं-
1. कयव्-संग्रह-मिुशयिय (1935), मिुबयिय (1938), मिक
ु िश (1938), ननशय-ननमांत्रण, एकयांत सांग़ीत, आकुि-अांतर,
लमिन्यलमऩी, सतरां गगण़ी, आरत़ी और अांगयरे , नए-परु यने झरोिे, टूटी-िूटी कडड्याँ।
2. आत्मकथय-क््य भूिें क््य ्यद करूां, ऩीड कय ननमयवण किर, बसेरे से दरू , दशदर्यर से सोपयन तक।
3. अनुवयि-है मिेट, िनग़ीतय, मैकबेथ।
4. डय्री-प्रर्यस़ी की डय्री।
कयव्गत ववशेषतयएँ- बच्चन हयियर्यद के सर्वश्रेष्ठ कवर््ों में से एक हैं। दोनों महय्ुदिों के ब़ीच मध््र्गव के वर्क्षुब्ि
वर्कि मन को बच्चन ने र्यण़ी दी। उन्होंने छय्यर्यद की ियक्षखणक र्ितय की बिय् स़ीि़ी-सयदी ि़ीर्ांत भयषय और
सांर्ेदनय से ्ुक्त गे् शैिी में अपऩी बयत कही। उन्होंने व््जक्तगत ि़ीर्न में घटी घटनयओां की सहिअनुभनू त की
ईमयनदयर अलभव््जक्त कवर्तय के मयध््म से की है । ्ही वर्शेषतय ढ़हांदी कयव््-सांसयर में उनकी प्रलसदि कय
मूियियर है । कवर् ने अपऩी अनुभूनत्याँ सहि तर्यभयवर्क ढां ग से कही हैं। इनकी भयषय आम व््जक्त के ननकट है ।

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बच्चन कय कवर्-रूप सबसे वर्ख््यत है उन्होंने कहयऩी, नयटक, डय्री आढ़द के सयथ बेहतरीन आत्मकथय भ़ी लिि़ी
है । इनकी रचनयएाँ ईमयनदयर आत्मतऱ्ीकृनत और प्रयांिि शैिी के कयरण आि भ़ी पठऩी् हैं।
आत्मपररच्
प्रततपयि्- कवर् कय मयननय है कक तर््ां को ियननय दनु न्य को ियनने से ज््यदय कढ़ठन है । समयि से व््जक्त कय
नयतय िट्टय-म़ीठय तो होतय ही है । सांसयर से परू ी तरह ननरपेक्ष रहनय सांभर् नहीां। दनु न्य अपने व््ांग््-बयण तथय
शयसन-प्रशयसन से चयहे जितनय कष्ट दे , पर दनु न्य से कटकर मनुष्् रह भ़ी नहीां पयतय। क््ोंकक उसकी अपऩी
अजतमतय, अपऩी पहचयन कय उत्स, उसकय पररर्ेश ही उसकी दनु न्य है । कवर् अपनय पररच् दे ते हुए िगयतयर दनु न्य
से अपने दवर्ियत्मक और दर्ांदर्यत्मक सांबांिों कय ममव उदघयढ़टत करतय चितय है। र्ह परू ी कवर्तय कय सयर एक
पांजक्त में कह दे तय है कक दनु न्य से मेरय सांबांि प्ऱीनतकिह कय है , मेरय ि़ीर्न वर्रुदिों कय सयमांित् है - उन्मयदों में
अर्सयद, रोदन में रयग, श़ीति र्यण़ी में आग, वर्रुदिों कय वर्रोियभयसमूिक सयमांित् सयिते-सयिते ही र्ह बेिुदी,
र्ह मतत़ी, र्ह दीर्यनग़ी व््जक्तत्र् में उत्तर आई है कक दनु न्य कय तिबगयर नहीां हूाँ। बयियर से गुिरय हूाँ, िरीदयर
नहीां हूाँ- िैसय कुछ कहने कय ठतसय पैदय हुआ है । ्ह ठतसय ही छय्यर्यदोत्तर ग़ीनतकयव्् कय प्रयण है । ककस़ी असांभर्
आदशव की तियश में सयरी दनु न्यदयरी ठुकरयकर उस भयर् से कक िैसे दनु न्य से इन्हें कोई र्यततय ही नहीां है ।
सयर- कवर् कहतय है कक ्द्वप र्ह सयांसयररक कढ़ठनयइ्ों से िूझ रहय है , किर भ़ी र्ह इस ि़ीर्न से प््यर करतय है ।
र्ह अपऩी आशयओां और ननरयशयओां से सांतुष्ट है । र्ह सांसयर से लमिे प्रेम र् तनेह की परर्यह नहीां करतय क््ोंकक
सांसयर उन्हीां िोगों की ि्कयर करतय है िो उसकी इच्छयनस
ु यर व््र्हयर करते हैं। र्ह अपऩी िन
ु में रहने र्यिय
व््जक्त है । र्ह ननरथवक कल्पनयओां में वर्श्र्यस नहीां रितय क््ोंकक ्ह सांसयर कभ़ी भ़ी ककस़ी की इच्छयओां को पूणव
नहीां कर पय्य है । कवर् सि
ु -दि
ु , ्श-अप्श, हयनन-ियभ आढ़द दर्ांदर्यत्मक पररजतथनत्ों में एक िैसय रहतय है ।
्ह सांसयर लमथ््य है , अत: ्हयाँ तथय़्ी र्ततु की कयमनय करनय व््थव है । कवर् सांतोष़ी प्रर्वृ त्त कय है । र्ह अपऩी
र्यण़ी के िरर्े अपनय आिोश व््क्त करतय है । उसकी व््थय शब्दों के मयध््म से प्रकट होत़ी है तो सांसयर उसे
गयनय मयनतय है । सांसयर उसे कवर् कहतय है , परां तु र्ह तर््ां को न्य दीर्यनय मयनतय है । र्ह सांसयर को अपने ग़ीतों,
दर्ांदर्ों के मयध््म से प्रसन्न करने कय प्र्यस करतय है। कवर् सभ़ी को सयमांित् बनयए रिने के लिए कहतय है ।
ववशेष-
1. कवर् ने तर््ां के ननि़ी प्रेम को तऱ्ीकयर कक्य है ।
2. सांसयर के तर्यथी तर्भयर् पर ढ़टप्पण़ी की है ।
3. ‘तनेह-सुरय’ र् ‘सयाँसों के तयर’ में रूपक अिांकयर है ।
4. ‘िग-ि़ीर्न’, ‘तनेह-सुरय’ में अनुप्रयस अिांकयर है ।
5. िड़ी बोिी कय तर्यभयवर्क प्र्ोग है ।
6. ‘कक्य करतय हूाँ’, ‘लिए किरतय हूाँ’ की आर्वृ त्त में ग़ीत की मतत़ी है ।
7. तत्सम शब्दयर्िी की बहुितय है ।
8. श्रांग
ृ यर रस की सरस अलभव््जक्त हुई है ।
9. ‘मैं’ शैिी के प्र्ोग से कवर्तय कय सौन्द्व बि ग्य।

एक गीत

प्रततपयि्- कवर् ने ‘तनशय-तनमंत्रण’ से उदित


ृ इस ग़ीत में प्रकृनत की दै ननक पररर्तवनश़ीितय के सांदभव में प्रयण़ी-र्गव के
िडकते हृद् को सुनने की कयव््यत्मक कोलशश की है । कवर् कय मयननय है कक ककस़ी वप्र् आिांबन ्य वर्ष् से
भयऱ्ी सयक्षयत्कयर कय आश्र्यसन ही हमयरे प्र्यस के पगों में गनत भर सकतय है अन््थय हम लशगथितय और किर
िडतय को प्रयप्त होने को अलभलशप्त हो ियते हैं। प्रततुत ग़ीत इस बडे सत्् के सयथ सम् के गुिरते ियने के
एहसयस में िक्ष््-प्रयजप्त के लिए कुछ कर गि ु रने कय िज्बय भ़ी लिए हुए है । ‘ढ़दन िल्दी-िल्दी ढितय है ’ कवर्तय
प्रेम की महत्तय पर प्रकयश डयित़ी है । प्रेम की तरां ग ही मयनर् के ि़ीर्न में उमांग और भयर्नय की ढ़हिोर पैदय करत़ी
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है । प्रेम के कयरण ही मनुष्् को िगतय है कक ढ़दन िल्दी-िल्दी ब़ीतय िय रहय है । इससे अपने वप्र्िनों से लमिने
की उमांग से कदमों में तेि़ी आत़ी है तथय पक्षक्ष्ों के पांिों में तेि़ी और गनत आ ियत़ी है । ्ढ़द ि़ीर्न में प्रेम न
हो तो लशगथितय आ ियत़ी है ।
सयर- कवर् ग़ीत कय आश् तपष्ट करते हुए कहतय है कक सयाँझ नघरते ही पगथक िक्ष्् की ओर तेि़ी से कदम बियने
िगतय है । उसे रयतते में रयत होने कय भ् होतय है । ि़ीर्न-पथ पर चिते हुए िब व््जक्त अपने िक्ष्् के ननकट
होतय है तो उसकी उत्सुकतय और बि ियत़ी है । पक्ष़ी भ़ी बच्चों की गचांतय करके तेि़ी से पांि िडिडयने िगते हैं।
अपऩी सांतयन से लमिने की चयह में हर प्रयण़ी आतुर हो ियतय है । आशय व््जक्त के ि़ीर्न में नई चेतनय भर दे त़ी
है । जिनके ि़ीर्न में कोई आशय नहीां होत़ी, र्े लशगथि हो ियते हैं। उनकय ि़ीर्न ऩीरस हो ियतय है । उनके भ़ीतर
उत्सयह समयप्त हो ियतय है ।
ववशेष-
1. सम् की गनतश़ीितय कय ्थयथव गचत्रण है ।
2. कवर् ने ि़ीर्न की क्षणभांगरु तय र् प्रेम की व््ग्रतय को व््क्त कक्य है ।
3. ‘िल्दी-िल्दी’ में पन
ु रुजक्तप्रकयश तथय ‘मझ
ु से लमिने’ में अनप्र
ु यस अिांकयर है ।
4. भयषय सरि, सहि और भयर्यनुकूि है , जिसमें िड़ी बोिी कय प्र्ोग है ।
5. कवर्तय में बबम्बों कय तर्यभयवर्क प्र्ोग हुआ है ।
6. पगथक के प्रसांग में ऱ्ीर, गचडड्य के प्रसांग में र्यत्सल्् और कवर् (प्रेम़ी) के प्रसांग वर््ोग श्रांग
ृ यर रस की अनभ
ु नू त
है ।
बहुववकल्पी प्रश्न
प्र-1 कवव के ह्रि् रूपी वीणय के तयरों को ककसने झंकृत कर ठि्य?
(क) सयांसयररक िोगों ने
(ि) कवर् की प्रेलमकय ने
(ग) ज्ञयऩी मनुष््ों ने
(घ) ईश्र्र के भक्तों ने
प्र-2 कवव के अनुसयर संसयर अधूरय त्ों है ?
(क) क््ोंकक सयांसयररक िोग प्रेम रढ़हत ि़ीर्न ि़ीते है
(ि) क््ोंकक र्े तर्यथव के प़ीछे भयगते हैं
(ग) क््ोंकक उनमें घण
ृ य कय भयर् है
(घ) उप्ुक्
व त सभ़ी
प्र-3 सयंसयररक लोग िुःु ख रूपी सयगर से बचने के भलए त्य करते हैं?
(क) प्रेम को महत्त्र् दे ते हैं
(ि) तर्यथवपण
ू व ि़ीर्न ि़ीते हैं
(ग) िमव-कमव, पूिय-पयठ और सेर्य-भयर् कय सहयरय िेते हैं
(घ) दस
ू रों से भेदभयर् करते हैं
प्र-4 ‘शीतल वयणी में आग’ होने कय त्य आश् है ?
(क) मिुर र्चनों में िोि
(ि) कोमि र्यण़ी में व््ांग््
(ग) सहि तर्र में प्रेम
(घ) सरस तर्र में वर्रह की त़ीव्रतय
प्र-5 कवव स्व्ं के ववष् में ितु न्य वयलों को त्य बतयतय है ?
(क) र्ह एक ज्ञयनर्यन व््जक्त है

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(ि) र्ह सांन््यलस्ों-सय ि़ीतय है
(ग) र्ह प्रेम करने र्यिय एक दीर्यनय है
(घ) र्ह दनु न्यदयरी को महत्त्र् दे तय है
प्र-6 ठिन िर कय थकय होने पर िी पथथक जल्िी-जल्िी त्ों चलतय है ?
(क) पगथक के ि़ीर्न में अांिेरय है
(ि) उसकी मांजिि ढ़दियई पड रही है और रयत होने र्यिी है
(ग) गचडड्य के बच्चे उसके सयथ हैं
(घ) उसे अपने बच्चों की ्यद आ रही है
प्र-7 थचड़ि्ों के पंखों में तेजी आने कय त्य कयरण है?
(क) र्े बहुत दरू चिे गए हैं
(ि) उनके घोसिों में कोई नहीां है
(ग) गचडड्ों के बच्चे उड गए होंगे
(घ) बच्चे अपने मयतय-वपतय के िौटने की प्रत़ीक्षय कर रहे होंगे
प्र-8 ठिन जल्िी-जल्िी ढलतय है - पंक्तत कय त्य अथथ है ?
(क) सम् जतथर है
(ि) सम् गनतश़ीि है
(ग) सम् न तो जतथर है और न ही गनतश़ीि है
(घ) इनमें से कोई नहीां
प्र-9 कवव के ह्रि् में ककस बयत की वेिनय है ?
(क) उससे लमिने र्यिय कोई नहीां है
(ि) र्ह अपऩी मांजिि से दरू है
(ग) गचडड्ों कय दःु ि दे िकर
(घ) इनमें से कोई नहीां
प्र-10 बच्चे प्रत््यशय में होंगे.... में कौन-सय रस है ?
(क) ऱ्ीर रस
(ि) सां्ोग श्रांग
ृ यर रस
(ग) करुण रस
(घ) र्यत्सल्् रस
उत्तर-
1-(ि) कवर् की प्रेलमकय ने 2-(घ) उप्क्
ुव त सभ़ी 3-(ग) िमव-कमव, पि
ू य-पयठ और सेर्य-भयर् कय सहयरय िेते हैं 4-(घ)
सरस तर्र में वर्रह की त़ीव्रतय 5-(ग) र्ह प्रेम करने र्यिय एक दीर्यनय है 6-(ि) उसकी मांजिि ढ़दियई पड रही है
और रयत होने र्यिी है 7-(घ) बच्चे अपने मयतय-वपतय के िौटने की प्रत़ीक्षय कर रहे होंगे 8-(ि) सम् गनतश़ीि है 9-
(क) उससे लमिने र्यिय कोई नहीां है 10- (घ) र्यत्सल्् रस

पतंग - आलोक धन्वय

जीवन पररच्- आिोक िन्र्य सयतर्ें-आठर्ें दशक के बहुचगचवत कवर् हैं। इनकय िन्म सन 1948 में बबहयर के मुांगेर
जििे में हुआ थय। इनकी सयढ़हत््-सेर्य के कयरण इन्हें रयहुि सम्मयन लमिय। बबहयर रयष्रभयषय पररषद ने इन्हें
सयढ़हत्् सम्मयन से सम्मयननत कक्य। इन्हें बनयरस़ी प्रसयद भोिपुरी सम्मयन र् पहि सम्मयन से नर्यिय ग्य। ्े
वपछिे दो दशकों से दे श के वर्लभन्न ढ़हतसों में सयांतकृनतक एर्ां सयमयजिक कय्वकतयव के रूप में सकि् रहे हैं।
इन्होंने िमशेदपुर में अध्््न मांडलि्ों कय सांचयिन कक्य और रां गकमव तथय सयढ़हत्् पर कई रयष्री् सांतथयनों र्
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वर्श्र्वर्द्यि रचनयएाँ-इनकी पहिी कवर्तय िनतय कय आदम़ी सन 1972 में प्रकयलशत हुई। उसके बयद भयग़ी हुई
िडकक्याँ, िूनो की बेढ़ट्याँ कवर्तयओां से इन्हें प्रलसदि लमिी। इनकी कवर्तयओां कय एकमयत्र सांग्रह सन 1998 में
‘दनु न्य रोि बनत़ी है ’ श़ीषवक से प्रकयलशत हुआ।
कयव्गत ववशेषतयएँ- कवर् की 1972-73 में प्रकयलशत कवर्तयएाँ ढ़हांदी के अनेक गांभ़ीर कयव््-प्रेलम्ों को िबयऩी ्यद रही
हैं। आिोचकों कय मयननय है कक इनकी कवर्तयओां के प्रभयर् कय अभ़ी तक ठीक से मल्
ू ्यांकन नहीां कक्य ग्य है ।
इस़ी कयरण शय्द कवर् ने अगिक िेिन नहीां कक्य। इनके कयव्् में भयरत़ी् सांतकृनत कय गचत्रण है । ्े बयि
मनोवर्ज्ञयन को अच्छी तरह समझते हैं। ‘पतांग’ कवर्तय बयिसुिभ इच्छयओां र् उमांगों कय सुांदर गचत्रण है ।
ियषय-शैली- कवर् ने शद
ु ि सयढ़हजत््क िड़ी बोिी कय प्र्ोग कक्य है । ्े बबांबों कय सांद
ु र प्र्ोग करते हैं। इनकी भयषय
सहि र् सरि है । इन्होंने अिांकयरों कय सुांदर र् कुशितय से प्र्ोग कक्य है ।
प्रततपयि्- ‘पतांग’ कवर्तय कवर् के ‘दनु न्य रोि बनत़ी है ’ व््ांग्् सांग्रह से िी गई है । इस कवर्तय में कवर् ने बयिसुिभ
इच्छयओां और उमांगों कय सुांदर गचत्रण कक्य है । बयि कि्यकियपों एर्ां प्रकृनत में आए पररर्तवन को अलभव््क्त
करने के लिए इन्होंने सुांदर बबांबों कय उप्ोग कक्य है । पतांग बच्चों की उमांगों कय रां ग-बबरां गय सपनय है जिसके
िरर्े र्े आसमयन की ऊाँचयइ्ों को छूनय चयहते हैं तथय उसके पयर ियनय चयहते हैं।
्ह कवर्तय बच्चों को एक ऐस़ी दनु न्य में िे ियत़ी है िहयाँ शरद ऋतु कय चमकीिय इशयरय है , िहयाँ नततलि्ों की
रां ग़ीन दनु न्य है , ढ़दशयओां के मद
ृ ां ग बिते हैं, िहयाँ छतों के ितरनयक कोने से गगरने कय भ् है तो दस
ू री ओर भ्
पर वर्ि् पयते बच्चे हैं िो गगरगगरकर साँभिते हैं तथय पथ्
ृ ऱ्ी कय हर कोनय िद
ु -ब-िद
ु उनके पयस आ ियतय है । र्े
हर बयर नई-नई पतांगों को सबसे ऊाँचय उडयने कय हौसिय लिए औिेरे के बयद उियिे की प्रत़ीक्षय कर रहे हैं।
सयर- कवर् कहतय है कक भयदों के बरसते मौसम के बयद शरद ऋतु आ गई। इस मौसम में चमकीिी िूप थ़ी तथय
उमांग कय मयहौि थय। बच्चे पतांग उडयने के लिए इकट्ठे हो गए। मौसम सयफ़ हो ग्य तथय आकयश मुिय्म हो
ग्य। बच्चे पतांगें उडयने िगे तथय स़ीढ़ट्याँ र् ककिकयरर्याँ मयरने िगे। बच्चे भयगते हुए ऐसे िगते हैं मयनो उनके
शरीर में कपयस िगे हों। उनके कोमि नरम शरीर पर चोट र् िरोंच अगिक असर नहीां डयित़ी। उनके पैरों में
बेचैऩी होत़ी है जिसके कयरण र्े सयरी िरत़ी को नयपनय चयहते हैं। र्े मकयन की छतों पर बेसुि होकर दौडते हैं
मयऩी छतें नरम हों। िेिते हुए उनकय शरीर रोमयांगचत हो ियतय है । इस रोमयांच मैं र्े गगरने से बच ियते हैं। बच्चे
पतांग के सयथ उडते-से िगते हैं। कभ़ी-कभ़ी र्े छतों के ितरनयक ककनयरों से गगरकर भ़ी बच ियते हैं। इसके बयद
इनमें सयहस तथय आत्मवर्श्र्यस बि ियतय है ।
ववशेष-
1. कवर् ने बबांबयत्मक शैिी में शरद ऋतु कय सद
ुां र गचत्रण कक्य है ।
2. बयि-सुिभ चेष्टयओां कय अनठ
ू य र्णवन है ।
3. शरद ऋतु कय मयनऱ्ीकरण कक्य ग्य है ।
4. उपमय, अनुप्रयस, श्िेष, पुनरुजक्त प्रकयश अिांकयरों कय सद
ांु र प्र्ोग है ।
5. िड़ी बोिी में सहि अलभव््जक्त है ।
6. िक्षणय शब्द-शजक्त कय प्र्ोग है ।
7. लमगश्रत शब्दयर्िी है ।
8. मक्
ु त छां द कय प्र्ोग है ।
बहुववकल्पी प्रश्न
प्र-1 पतंग कववतय में कवव ने वषयथ के बयि ककस ऋतु कय मनोहयरी थचत्रण कक्य है ?
(क) र्सांत ऋतु कय
(ि) श़ीत ऋतु कय
(ग) शरद ऋतु कय
(घ) ग्ऱीष्म ऋतु कय

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प्र-2 पतंग के मयध््म से कवव ने त्य थचत्रत्रत त्य है?
(क) बयि-सुिभ उमांगों एर्ां चेष्टयओां कय
(ि) र्षयव ऋतु की घनघोर बयररश कय
(ग) िरत़ी के ि़ीर्-िांतुओां कय
(घ) इनमें से कोई नहीां
प्र-3 पथ्
ृ वी घूमती हुई आती है उनके बेचैन पैरों के पयस- पंक्तत में कौन-सय अलंकयर है ?
(क) उपमय
(ि) मयनऱ्ीकरण
(ग) अनुप्रयस
(घ) रूपक
प्र-4 खरगोश की आँखों जैसय लयल सवेरय- पंक्तत में कौन-सय त्रबम्ब है ?
(क) श्रव्् बबम्ब
(ि) तपशव बबम्ब
(ग) दृश्् बबम्ब
(घ) उप्ुक्
व त सभ़ी
प्र-5 बच्चों के शरीर कय लचीलयपन ककसकी तरह है ?
(क) इन्द्रिनुष की तरह
(ि) कपयस की तरह
(ग) ििियरय की तरह
(घ) पेड की डयि की तरह
प्र-6 घंटी बजयते हुए जोर जोर से – इस पंक्तत में कौन-सय त्रबम्ब है?
(क) श्रव्् बबम्ब
(ि) दृश्् बबम्ब
(ग) तपशव बबम्ब
(घ) इनमें से कोई नहीां
उत्तर-
1-(ग) शरद ऋतु कय 2-(क) बयि-सुिभ उमांगों एर्ां चेष्टयओां कय 3- (ि) रूपक 4-(ग) दृश्् बबम्ब 5-(घ) पेड की
डयि की तरह 6- (क) श्रव्् बबम्ब

कववतय के बहयने - कँु वर नयरय्ण

कवव पररच् - कुँवर नयरय्ण आिनु नक ढ़हांदी कवर्तय के सशक्त हततयक्षर हैं। इनकय िन्म 19 लसतांबर, सन 1927 को
िैियबयद (उत्तर प्रदे श) में हुआ थय। इनकी प्रयरां लभक लशक्षय घर पर ही हुई थ़ी। वर्श्र्वर्द्यि् ततर की लशक्षय
इन्होंने ििनऊ वर्श्र्वर्द्यि् से परू ी की। कँु वर नयरय्ण ने सन 1950 के आस-पयस कयव््-िेिन की शरु ु आत
की। इन्होंने गचांतनपरक िेि, कहयनन्याँ लसनेमय और अन्् कियओां पर सम़ीक्षयएाँ भ़ी लिि़ी हैं। इन्हें अनेक पुरतकयरों
से नर्यिय ग्य है ; िैस-े कब़ीर सम्मयन, व््यस सम्मयन, िोढ़ह्य सम्मयन, सयढ़हत्् अकयदम़ी पुरतकयर, ज्ञयनप़ीठ
पुरतकयर तथय केरि कय कुमयरन आशयन पुरतकयर आढ़द।
रचनयएँ- कुँवर नयरय्ण कय ‘त़ीसरे सप्तक’ के कवर््ों में प्रमुि तथयन है । इनकी प्रमुि रचनयएाँ ननम्नलिखित हैं-
1. कयव््-सांग्रह- चिव््ह
ू , पररर्ेश : हम तम
ु , अपने सयमने, कोई दस
ू रय नहीां, इन ढ़दनों।
2. प्रबांि-कयव््-आत्मि़्ी।
3. कहयऩी-सांग्रह-आकयरों के आस-पयस।
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4. सम़ीक्षय-आि और आि से पहिे।
5. सयमयन््—मेरे सयक्षयत्कयर।
कयव्गत ववशेषतयएँ- कँु वर नयरय्ण ने कवर्तय को अपने सि
ृ न कमव में हमेशय प्रयथलमकतय दी। आिोचकों कय मयननय
है कक उनकी कवर्तय में व््थव कय उिझयर्, अिबयरी सतहीपन और र्ैचयररक िि
ुां की बिय् सां्म, पररष्कयर और
सयि-सथ
ु रयपन है । कँु वर नयरय्ण नगरी् सांर्ेदनय के कवर् हैं। इनके ्हयाँ वर्र्रण बहुत कम हैं, परां तु र्ै्जक्तक
तथय सयमयजिक ऊहयपोह कय तनयर् पूरी व््ांिकतय में सयमने आतय है । भयषय और वर्ष् की वर्वर्ितय इनकी
कवर्तयओां के वर्शेष गण
ु मयने ियते हैं। इनमें ्थयथव कय िुरदरयपन भ़ी लमितय है और उसकय सहि सौंद्व भ़ी।
स़ीि़ी घोषणयएाँ और िैसिे इनकी कवर्तयओां में नहीां लमिते क््ोंकक ि़ीर्न को मक
ु म्मि तौर पर समझने र्यिय एक
िुियपन इनके कवर्-तर्भयर् की मूि वर्शेषतय है ।
प्रततपयि्- ‘कवर्तय के बहयने’ कवर्तय कवर् के कवर्तय-सांग्रह ‘इन ढ़दनों’ से िी गई है । आि के सम् में कवर्तय के
अजततत्र् के बयरे में सांश् हो रहय है । ्ह आशांकय ितयई िय रही है कक ्यांबत्रकतय के दबयर् से कवर्तय कय
अजततत्र् नहीां रहे गय। ऐसे में ्ह कवर्तय, कवर्तय की अपयर सांभयर्नयओां को टटोिने कय एक अर्सर दे त़ी है ।
सयर- ‘कवर्तय के बहयने’ कवर्तय एक ्यत्रय है िो गचडड्य और िूि से िेकर बच्चे तक की है । एक ओर प्रकृनत है
दस
ू री ओर भवर्ष्् की ओर कदम बियतय बच्चय। कवर् कहतय है कक गचडड्य की उडयन की स़ीमय है , िूि के खििने
के सयथ उसकी पररणनत ननजश्चत है , िेककन बच्चे के सपने अस़ीम हैं। बच्चों के िेि में ककस़ी प्रकयर की स़ीमय कय
कोई तथयन नहीां होतय। कवर्तय भ़ी शब्दों कय िेि है और शब्दों के इस िेि में िड, चेतन, अत़ीत, र्तवमयन और
भवर्ष््-सभ़ी उपकरण मयत्र हैं। इस़ीलिए िहयाँ कहीां रचनयत्मक ऊियव होग़ी, र्हयाँ स़ीमयओां के बांिन िुद-ब-िद
ु टूट
ियते हैं। र्ह स़ीमय चयहे घर की हो, भयषय की हो ्य सम् की ही क््ों न हो।
ववशेष–
1. कवर्तय की रचनयत्मक व््यपकतय को प्रकट कक्य ग्य है ।
2. ‘बच्चय ही ियने’ पांजक्त से बयिमन की सरितय की अलभव््जक्त होत़ी है ।
3. गचडड्य क््य ियने?- में प्रश्न अिांकयर है ।
4. कवर्तय कय मयनऱ्ीकरण कक्य ग्य है ।
5. कवर्तय में ियक्षखणकतय तथय शयांत रस वर्द्मयन है
6. मुक्त छां द से ्ुक्त पांजक्त्ों में सरि एर्ां सहि िड़ीबोिी भयर्यनुकूि है ।
7. मुरझयए महकने - में अनुप्रयस अिांकयर तथय ‘िूि क््य ियने?” में प्रश्न अिांकयर है ।

बहुववकल्पी प्रश्न
प्र-1 ‘कववतय के बहयने’ कववतय में ककसकी महत्तय को स्थयवपत कक्य ग्य है ?
(क) ्यांबत्रक ि़ीर्न को
(ि) वर्ियलसतयपण
ू व ि़ीर्न को
(ग) कवर्तय (सयढ़हत््) को
(घ) गचडड्य और िूि को
प्र-2 ‘थचड़ि्य की उियन’ की त्य ववशेषतय होती है ?
(क) कवर्तय में कल्पनयओां उडयन अस़ीलमत होत़ी है
(ि) गचडड्य की उडयन स़ीलमत होत़ी है
(ग) गचडड्य की उडयन अस़ीलमत होत़ी है
(घ) कवर्तय में कल्पनयओां की उडयन स़ीलमत होत़ी है
प्र-3 ‘त्रबनय मरु झयए महकने के मयने’ पंक्तत से ककसकी ओर संकेत है ?
(क) िूि के मुरझयने की ओर

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(ि) कवर्तय के मुरझयने की ओर
(ग) कवर्तय के शयश्र्त होने की ओर
(घ) िूि के खििने की क्षमतय की ओर
प्र-4 कववतय में ककसके खेल की चचयथ की गई है ?
(क) किकेट के िेि की
(ि) गगल्िी-डांडे के िेि की
(ग) रां गों के िेि की
(घ) बच्चों के िेि की
प्र-5 कववतय एक खेल है बच्चों के बहयने – इस पंक्तत कय त्य आश् है ?
(क) बच्चों के िेि की तरह ही कवर्तय भ़ी शब्दों कय िेि है
(ि) बच्चे भेदभयर् रढ़हत होकर िेिते हैं, र्ही भयर् कवर्तय में भ़ी है
(ग) बच्चों के िेि की तरह ही कवर्तय स़ीमय से परे होत़ी है
(घ) उपरोक्त सभ़ी
उत्तर-
1-(ग) कवर्तय (सयढ़हत््) को 2- (ि) गचडड्य की उडयन स़ीलमत होत़ी है 3- (ग) कवर्तय के शयश्र्त होने की ओर 4-
(घ) बच्चों के िेि की 5- (घ) उपरोक्त सभ़ी

प्रकरण- कैमरे में बंि अपयठहज - रघुवीर सहय्

कवव पररच्- रघुऱ्ीर सहय् समकयिीन ढ़हांदी कवर्तय के सांर्ेदनश़ीि कवर् हैं। इनकय िन्म ििनऊ (उ०प्र०) में सन ्
1929 में हुआ थय। इनकी सांपूणव लशक्षय ििनऊ में ही हुई। र्हीां से इन्होंने अांग्रेि़ी सयढ़हत्् में एम०ए० कक्य। प्रयरां भ
में ्े पेशे से पत्रकयर थे। इन्होंने ‘प्रत़ीक’ अिबयर में सहय्क सांपयदक के रूप में कयम कक्य। किर ्े आकयशर्यण़ी
के समयचयर वर्भयग में रहे । कुछ सम् तक है दरयबयद से ननकिने र्यिी पबत्रकय ‘कल्पनय’ और उसके बयद ‘दै ननक
नर्भयरत टयइम्स’ तथय ‘ढ़दनमयन’ से सांबदि रहे । सयढ़हत््-सेर्य के कयरण इन्हें सयढ़हत्् अकयदम़ी पुरतकयर से
सम्मयननत कक्य ग्य। इनकय दे हयर्सयन सन 1990 में ढ़दल्िी में हुआ।
रचनयएँ- रघुऱ्ीर सहय् नई कवर्तय के कवर् हैं। इनकी कुछ आरां लभक कवर्तयएाँ अज्ञे् दर्यरय सांपयढ़दत दस
ू रय सप्तक
(1935) में प्रकयलशत हुई। इनकी रचनयएाँ महत्र्पण
ू व हैं-
कयव्-संकलन- स़ीढ़ि्ों पर िूप में , आत्महत््य के वर्रुदि, हाँसो-हाँसो िल्दी हाँस़ी, िोग भूि गए हैं आढ़द।
कयव्गत ववशेषतयएँ- रघुऱ्ीर सहय् ने अपने कयव्् में आम आदम़ी की प़ीडय को बड़ी गहरयई से व््क्त कक्य है । ्े
सयठोत्तरी कयव््-िेिन के सशक्त, प्रगनतश़ीि र् चेतनय-सांपन्न रचनयकयर हैं। इन्होंने सडक, चौरयहय, दफ़्तर, अिबयर,
सांसद, बस, रे ि और बयियर की बेिौस भयषय में कवर्तय लिि़ी। घर-मोहल्िे के चररत्रों पर कवर्तय लििकर उन्हें
हमयरी चेतनय कय तथय़्ी नयगररक बनय्य। इन्होंने कवर्तय को एक कहयऩीपन और नयटकी् र्ैभर् ढ़द्य। रघर्
ु ़ीर
सहय् ने बतौर पत्रकयर और कवर् घटनयओां में ननढ़हत वर्डांबनय और त्रयसदी को दे िय। इन्होंने छोटे की महत्तय को
तऱ्ीकयरय और उन िोगों र् उनके अनुभर्ों को अपऩी रचनयओां में तथयन ढ़द्य जिन्हें समयि में हयलशए पर रिय
ियतय है । इन्होंने भयरत़ी् समयि में तयकतर्रों की बित़ी है लस्त र् सत्तय के खिियफ़ भ़ी सयढ़हत्् और पत्रकयररतय
के पयठकों कय ध््यन ि़ीांचय। रघुऱ्ीर सहय् ने अपने कयव्् में अगिकतर बयतच़ीत की सहि शैिी में लििय और
स़ीि़ी, सरि तथय सि़ी भयषय कय प्र्ोग कक्य । ्े अनयर्श््क शब्दों के प्र्ोग से बचते रहे हैं। इन्होंने कवर्तयओां
में अत््ांत सयियरण तथय अनय्यस-स़ी प्रत़ीत होने र्यिी शैिी में समयि की दयरुण वर्डांबनयओां को व््क्त कक्य है ।
प्रततपयि्- ‘कैमरे में बांद अपयढ़हि’ कवर्तय ‘िोग भि
ू गए हैं’ कयव््-सांग्रह से सांकलित है । इस कवर्तय में कवर् ने
शयरीररक चन
ु ौत़ी को झेि रहे व््जक्त की प़ीडय के सयथ-सयथ दरू -सांचयर मयध््मों के चररत्र को भ़ी रे ियांककत कक्य
है । ककस़ी की प़ीडय को दशवक र्गव तक पहुाँचयने र्यिे व््जक्त को उस प़ीडय के प्रनत तर््ां सांर्द
े नश़ीि होने और

22
दस
ू रों को सांर्द
े नश़ीि बनयने कय दयर्ेदयर होनय चयढ़हए। ककन्तु आि वर्डांबनय ्ह है कक िब प़ीडय को परदे पर
उभयरने कय प्र्यस कक्य ियतय है तो कयरोबयरी दबयर् के तहत प्रततुतकतयव कय रर्ै्य सांर्ेदनहीन हो ियतय है । ्ह
कवर्तय टे िीवर्िन तटूडड्ो के भ़ीतर की दनु न्य को समयि के सयमने प्रकट करत़ी है । सयथ ही उन सभ़ी व््जक्त्ों
की तरि इशयरय करत़ी है िो दि
ु -ददव , ्यतनय-र्ेदनय आढ़द को बेचनय चयहते हैं।
सयर- इस कवर्तय में दरू दशवन (म़ीडड्य) के िोग तर््ां को शजक्तशयिी बतयते हैं तथय दस
ू रे को कमिोर मयनते हैं। र्े
शयरीररक चुनौत़ी झेिने र्यिे से पूछते हैं कक क््य आप अपयढ़हि हैं? तो आप अपयढ़हि क््ों हैं? क््य आपको इससे
दि
ु होतय है ? ऊपर से र्ह दि
ु भ़ी िल्दी बतयइए क््ोंकक सम् नहीां है । प्रश्नकतयव इन सभ़ी प्रश्नों के उत्तर अपने
ढ़हसयब से चयहतय है । इतने प्रश्नों से वर्कियांग घबरय ियतय है । प्रश्नकतयव अपने कय्विम को रोचक बनयने के लिए
उसे रुियने की कोलशश करतय है तयकक दशवकों में करुणय कय भयर् िगय सके। इस़ी से उसकय उददे श्् पूरय होगय। र्ह
इसे सयमयजिक उददे श्् कहतय है , परां तु ‘परदे पर र्क्त की कीमत है ’ र्यक्् से उसके व््यपयर की पोि िुि ियत़ी है ।
ववशेष -
1. कवर् ने क्ष़ीण होत़ी मयनऱ्ी् सांर्ेदनय कय गचत्रण कक्य है ।
2. म़ीडड्य की मयनलसकतय पर करयरय व््ांग्् है ।
3. दरू दशवन के कय्विम ननमयवतयओां पर करयरय व््ांग्् है ।
4. कयव््यांश में नयटकी्तय है ।
5. सरि एर्ां भयर्यनक
ु ू ि िड़ी बोिी में सहि अलभव््जक्त है ।
6. व््ांिनय शब्द-शजक्त कय प्र्ोग कक्य ग्य है ।
7. ‘परदे पर’ तथय ‘बहुत बड़ी’ में अनुप्रयस अिांकयर है ।
8. कवर्तय में मक्
ु तक छां द कय प्र्ोग है । कोष्ठकों कय प्र्ोग कक्य ग्य है ।

बहुववकल्पी प्रश्न
प्र-1 ‘हम समथथ शक्ततमयन’ पंक्तत में ककसे सयमथ््थवयन बतय्य ग्य है ?
(क) अपयढ़हि व््जक्त को
(ि) कैमरयमैन कोर
(ग) म़ीडड्यकलमव्ों को
(घ) कवर् ने तर््ां को
प्र-2 ‘कमरे में बंि अपयठहज’ कववतय में मीड़ड्य के ककस मयध््म कय उल्लेख है ?
(क) रे डड्ो
(ि) समयचयरपत्र
(ग) इांटरनेट
(घ) टे िीवर्िन
प्र-3 ‘कमरे में बंि अपयठहज’ कववतय में कय्थक्रम प्रस्तोतय ककससे सवयल करतय है ?
(क) कैमरयमैन से
(ि) शयरीररक चुनौत़ी झेिने र्यिे अपयढ़हि से
(ग) दशवकों से
(घ) इनमें से कोई नहीां
प्र-4 ‘परिे पर वतत कीमत है ’- इसकय सही आश् त्य होगय?
(क) टे िीवर्िन पर सबको मौकय लमितय है
(ि) शयरीररक चुनौत़ी झेिने र्यिे अपयढ़हि को अर्सर ढ़द्य ियतय है
(ग) टे िीवर्िन पर कोई भ़ी ढ़दिय्य िय सकतय है

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(घ) टे िीवर्िन पर लसिव नयम़ी-गगरयम़ी िोगों को ही अर्सर लमितय है
प्र-5 बस थोिी ही कसर रह ग्ी – इस पंक्तत कय त्य मतलब है ?
(क) कय्विम समयप्त हो ग्य
(ि) कय्विम किर से ढ़दिय्य ियएगय
(ग) कय्विम अिरू य रह ग्य
(घ) कय्विम अभ़ी शुरू नहीां हुआ
प्र-6 ‘कमरे में बंि अपयठहज’ कववतय ककस शैली में रथचत है ?
(क) व््ांग्् प्रियन नयटकी् तत्र्ों से ्क्
ु त मक्
ु तक कयव््-शैिी
(ि) तुक प्रियन कथयत्मक कयव््-शैिी
(ग) छां द बदि ि्यत्मक कयव््-शैिी
(घ) इनमें से कोई नहीां
उत्तर-
1-(ग) म़ीडड्यकलमव्ों को 2-(घ) टे िीवर्िन 3- (ि) शयरीररक चुनौत़ी झेिने र्यिे अपयढ़हि से 4- (घ) टे िीवर्िन पर
लसिव नयम़ी-गगरयम़ी िोगों को ही अर्सर लमितय है 5 -(ग) कय्विम अिरू य रह ग्य 6- (घ) व््ांग्् प्रियन नयटकी्
तत्र्ों से ्ुक्त मक्
ु तक कयव््-शैिी
उषय - शमशेर बहयिरु भसंह

जीवन पररच्- नई कवर्तय के कवर््ों में शमशेर बहयदरु लसांह की एक अिग छवर् है । इनकय िन्म 13 िनर्री, सन
1911 को दे हरयदन ू में हुआ थय। इनकी प्रयरां लभक लशक्षय दे हरयदन ू में ही हुई। इन्होंने उच्च लशक्षय इियहयबयद
वर्श्र्वर्द्यि् से प्रयप्त की। गचत्रकिय में इनकी रुगच प्रयरां भ से ही थ़ी। इन्होंने प्रलसदि गचत्रकयर उकीि बांिुओां से
गचत्रकयरी में प्रलशक्षण लि्य। इन्होंने सुलमत्रयनांदन पांत के पत्र ‘रूपयभ’ में कय्व कक्य। 1977 ई. में ‘चुकय भ़ी हूाँ नहीां
मैं’ कयव््-सांग्रह पर इन्हें सयढ़हत्् अकयदम़ी पुरतकयर से नर्यिय ग्य। इन्हें कब़ीर सम्मयन सढ़हत अनेक परु तकयर
लमिे। सन 1993 में अहमदयबयद में इनकय दे हयांत हो ग्य।
रचनयएँ- शमशेर बहयदरु लसांह ने अनेक वर्ियओां में रचनय की। इनकी प्रमुि रचनयएाँ ननम्नलिखित हैं-
कवर्तयसांग्रह— कुछ कवर्तयएाँ, कुछ और कवर्तयएाँ, चक
ु य भ़ी हूाँ नहीां मैं, इतने पयस अपने
सांपयदन-उदव -ू ढ़हांदी कोश
ननबांि-सांग्रह-दोआब
कहयऩी-सांग्रह-प्ियट कय मोचयव
कयव्गत ववशेषतयएँ- र्ैचयररक रूप से प्रगनतश़ीि एर्ां लशल्पगत रूप से प्र्ोगिमी कवर् शमशेर को एक बबांबिमी कवर्
के रूप में ियनय ियतय है । इनकी बबांबिलमवतय शब्दों में मयध््म से रां ग, रे िय, एर्ां सूच़ी की अदभुत कश़ीदयकयरी कय
मयददय रित़ी है । इन्होंने अपऩी कवर्तयओां में समयि की ्थयथव जतथनत कय भ़ी गचत्रण कक्य है । ्े समयि में
व््यप्त गरीब़ी कय गचत्रण करते हैं। कवर् ने प्रकृनत के सौंद्व कय सद
ुां र र्णवन कक्य है । प्रकृनत के निदीक रहने के
कयरण इनके प्रयकृनतक गचत्र अत््ांत ि़ीर्ांत िगते हैं। ‘उषय’ कवर्तय में प्रयत:कयिीन र्यतयर्रण कय सि़ीर् गचत्रण है ।
शमशेर की कवर्तय एक सांगितथि पर िड़ी है । ्ह सांगि एक ओर सयढ़हत््, गचत्रकिय और सांग़ीत की है तो दस
ू री
ओर मूतत
व य और अमूतत
व य की तथय ऐांढ़द्र् और ऐांढ़द्र्ेतर की है ।
ियषय-शैली- शमशेर बहयदरु लसांह ने सयढ़हजत््क िड़ी बोिी कय प्र्ोग कक्य है । कथय और लशल्प-दोनों ही ततरों पर
इनकी कवर्तय कय लमियि अिग है । उदव ू शय्री के प्रभयर् से सांज्ञय और वर्शेषण से अगिक बि सर्वनयमों, कि्यओां,
अव्््ों और मुहयर्रों को ढ़द्य है । सचेत इांढ़द्र्ों कय ्ह कवर् िब प्रेम, प़ीडय, सांघषव और सि
ृ न को गाँथ
ू कर कवर्तय
कय महि बनयतय है तो र्ह ठोस तो होतय ही है, अनुगूांिों से भ़ी भरय होतय है ।
प्रततपयद्- प्रततुत कवर्तय ‘उषय’ में कवर् शमशेर बहयदरु लसांह ने सू्ोद् से ठीक पहिे के पि-पि पररर्नतवत होने र्यिी
प्रकृनत कय शब्द-गचत्र उकेरय है । कवर् ने प्रकृनत की गनत को शब्दों में बयाँिने कय अदभुत प्र्यस कक्य है । कवर् भोर
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की आसमयऩी गनत की िरत़ी के हिचि भरे ि़ीर्न से तुिनय कर रहय है । इसलिए र्ह सू्ोद् के सयथ एक
ि़ीर्ांत पररर्ेश की कल्पनय करतय है िो गयाँर् की सुबह से िुडतय है -र्हयाँ लसि है , रयि से िीपय हुआ चौकय है और
तिेट की कयलिमय पर चयक से रां ग मिते अदृश्् बच्चों के नन्हे हयथ हैं। कवर् ने नए बबांब, नए उपमयन, नए प्रत़ीकों
कय प्र्ोग कक्य है ।
सयरयंश- कवर् कहतय है कक स्
ू ोद् से पहिे आकयश कय रां ग गहरे ऩीिे रां ग कय होतय है तथय र्ह सिेद शांिकी ऩीिी
आभय से ्ुक्त ढ़दियई दे तय है । आकयश कय रां ग ऐसय िगतय है मयनो ककस़ी गढ़ृ हण़ी ने रयि से चौकय िीप ढ़द्य हो।
सू्व के ऊपर उठने पर ियिी िैित़ी है तो ऐसय िगतय है िैसे कयिी लसि पर ककस़ी ने केसर मि कर उसे िो
ढ़द्य हो ्य ककस़ी ने तिेट पर ियि िडड्य चयक से लििकर उसे लमटय ढ़द्य हो। ऩीिे आकयश में स्
ू व ऐसय
िगतय है मयनो ऩीिे िि में तनयन करत़ी हुई ककस़ी गोरी ्ुर्त़ी कय शरीर खझिलमिय रहय है । सू्ोद् होते ही उषय
कय ्ह ियदईु प्रभयर् समयप्त हो ियतय है ।
ववशेष-
1-कवर् ने इस कवर्तय में प्रकृनत कय मनोहयरी गचत्रण कक्य है ।
2-ग्रयम़ीण पररर्ेश की सन्
ु दर झयाँकी प्रततत
ु की गई है जिसमें दृश्् सि़ीर् हो उठय है ।
3-कवर् ने उषय कय सुांदर दृश्् बबांब प्रततुत कक्य है ।
4-प्रकृनत के उपयदयनों कय मनोरम गचत्रण हुआ है ।
5-सरि, सहि िड़ी बोिी में सांदु र अलभव््जक्त हुई है ।
6-नए उपमयनों कय प्र्ोग कक्य ग्य है ।
7-‘शांि िैसे’ में उपमय अिांकयर है ।
8-पूरे कयव््यांश में उत्प्रेक्षय अिांकयर है ।
9-मुक्तक छां द कय प्र्ोग है।
10नए बबांबों र् उपमयनों कय प्र्ोग है ।
11-कवर्तय में मयिु्व गुण वर्द्मयन है ।
बहुववकल्पी प्रश्न
प्र-1 कवव ने िोर के नि के सौन्ि्थ की तुलनय के भलए ककन ककन उपमयनों को चुनय है ?
(क) ऩीिी आभय से ्ुक्त शांि
(ि) रयि से िीपय चौकय
(ग) कयिी लसि पर केसर कय मिनय
(घ) उप्क्
ुव त सभ़ी
प्र-2 रयख से लीपय हुआ चौकय अिी गीलय पिय है - से िोर के नि की ककस ववशेषतय कय पतय चलतय है ?
(क) नम़ी और सौंियपन
(ि) गरम और भुरभुरयपन
(ग) ठां डय और िीकयपन
(घ) इनमें से कोई नहीां
प्र-3 गौर झझलभमल िे ह प्रकृतत के ककस उपयियन की है?
(क) िरत़ी
(ि) चन्द्रमय
(ग) स्
ू व
(घ) िांगि
प्र-4 उषय कववतय में ककस जीवन शैली को थचत्रत्रत कक्य ग्य है ?
(क) शहरी ि़ीर्न शैिी

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(ि) ग्रयम़ीण ि़ीर्न शैिी
(ग) कतबयई ि़ीर्न शैिी
(घ) इनमें से कोई नहीां
प्र-5 िोर के नि कय सौन्ि्थ कब ववनष्ट हो जयतय है ?
(क) स्
ू ोद् से पहिे
(ि) सू्ोद् के दौरयन
(ग) सू्ोद् के बयद
(घ) इनमें से कोई नहीां
उत्तर-
1-(घ) उप्ुक्
व त सभ़ी 2-(क) नम़ी और सौंियपन 3-(ग) सू्व 4-(ि) ग्रयम़ीण ि़ीर्न शैिी 5- सू्ोद् के बयद

कववतयवली (उत्तर कयंड से), लक्ष्मण-मूच््यथ और रयम कय ववलयप (लंकय कयंड) - तुलसीियस

जीवन पररच्- गोतर्यम़ी ति


ु स़ीदयस कय िन्म बयाँदय जििे के रयियपुर गयाँर् में सन 1532 में हुआ थय। कुछ िोग इनकय
िन्म-तथयन सोरों मयनते हैं। इनकय बचपन कष्ट में ब़ीतय। बचपन में ही इन्हें मयतय-वपतय कय वर््ोग सहनय पडय।
गरुु नरहररदयस की कृपय से इनको रयमभजक्त कय मयगव लमिय। इनकय वर्र्यह रत्नयर्िी नयमक ्र् ु त़ी से हुआ। कहते
हैं कक रत्नयर्िी की िटकयर से ही र्े र्ैरयग़ी बनकर रयमभजक्त में िीन हो गए थे। वर्रक्त होकर ्े कयश़ी, गचत्रकूट,
अ्ोध््य आढ़द त़ीथों पर भ्रमण करते रहे । इनकय ननिन कयश़ी में सन 1623 में हुआ।

रचनयएँ- गोतर्यम़ी तुिस़ीदयस की रचनयएाँ ननम्नलिखित हैं-


रयमचररतमयनस, कवर्तयर्िी, रयमििय नहछु, ग़ीतयर्िी, दोहयर्िी, वर्न्पबत्रकय, रयमयज्ञय-प्रश्न, कृष्ण ग़ीतयर्िी,
पयर्वत़ी–मांगि, ियनकी-मांगि, हनुमयन बयहुक, र्ैरयग्् सांदीपऩी। इनमें से ‘रयमचररतमयनस’ एक महयकयव्् है ।
‘कवर्तयर्िी’ में रयमकथय कवर्त्त र् सर्ै्य छां दों में रगचत है । ‘वर्न्पबत्रकय’ में ततुनत के गे् पद हैं।
कयव्गत ववशेषतयएँ- गोतर्यम़ी तुिस़ीदयस रयमभजक्त शयिय के सर्ोपरर कवर् हैं। ्े िोकमांगि की सयिनय के कवर् के
रूप में प्रनतजष्ठत हैं। ्ह तथ्् न लसफ़व उनकी कयव््-सांर्ेदनय की दृजष्ट से, र्रन कयव््भयषय के घटकों की दृजष्ट से
भ़ी सत्् है । इसकय सबसे बडय प्रमयण ्ही है कक शयतत्ऱी् भयषय (सांतकृत) में सिवन-क्षमतय होने के बयर्िद
ू इन्होंने
िोकभयषय (अर्ि़ी र् ििभयषय) को सयढ़हत्् की रचनय कय मयध््म बनय्य। ति
ु स़ीदयस में ि़ीर्न र् िगत की
व््यपक अनुभूनत और मयलमवक प्रसांगों की अचूक समझ है । ्ह वर्शेषतय उन्हें महयकवर् बनयत़ी है । ‘रयमचररतमयनस’
में प्रकृनत र् ि़ीर्न के वर्वर्ि भयर्पण
ू व गचत्र हैं जिसके कयरण ्ह ढ़हांदी कय अनुपम महयकयव्् बनकर उभरय है ।
इसकी िोकवप्र्तय कय कयरण िोक-सांर्द
े नय और समयि की नैनतक बनयर्ट की समझ है । इनके स़ीतय-रयम ईश्र्र
की अपेक्षय तुिस़ी के दे शकयि के आदशों के अनुरूप मयनऱ्ी् िरयति पर पुनः सष्ृ ट चररत्र हैं।
ियषय-शैली- गोतर्यम़ी तुिस़ीदयस अपने सम् में ढ़हांदी-क्षेत्र में प्रचलित सयरे भयर्यत्मक तथय कयव््भयषय़्ी तत्र्ों कय
प्रनतननगित्र् करते हैं। उनमें भयर्-वर्चयर, कयव््रूप, छां द तथय कयव््भयषय की बहुि समद
ृ ि लमित़ी है। ्े अर्ि़ी तथय
ििभयषय की सांतकृनत कथयओां में स़ीतयरयम और रयियकृष्ण की कथयओां को सयगिकयर अपऩी अलभव््जक्त कय मयध््म
बनयते हैं। उपमय अिांकयर के क्षेत्र में िो प्र्ोग-र्ैलशष्ट्् कयलिदयस की पहचयन है , र्ही पहचयन सयांगरूपक के क्षेत्र में
तुिस़ीदयस की है ।
सयरयंश-1 पहले कववत्त में कवर् ने पेट की आग को सबसे बडय बतय्य है । मनुष्् सयरे कयम इस़ी आग को बुझयने के
उददे श्् से करते हैं चयहे र्ह व््यपयर, िेत़ी, नौकरी, नयच-गयनय, चोरी, गप्ु तचरी, सेर्य-टहि, गुणगयन, लशकयर करनय ्य
िांगिों में घम
ू नय हो। इस पेट की आग को बझ
ु यने के लिए िोग अपऩी सांतयनों तक को बेचने के लिए वर्र्श हो
ियते हैं। ्ह पेट की आग समुद्र की बडर्यनि से भ़ी बड़ी है । अब केर्ि रयमरूप़ी घनश््यम ही इस आग को बुझय
सकते हैं।

26
िस
ू रे कववत्त में कवर् अकयि की जतथनत कय गचत्रण करतय है । इस सम् ककसयन िेत़ी नहीां कर सकतय, लभियरी
को भ़ीि नहीां लमित़ी, व््यपयरी व््यपयर नहीां कर पयतय तथय नौकरी की चयह रिने र्यिों को नौकरी नहीां लमित़ी।
िोगों के पयस आि़ीवर्कय कय कोई सयिन नहीां है । र्े वर्र्श हैं। र्ेद-पुरयणों में कही और दनु न्य की दे ि़ी बयतों से
अब ्ही प्रत़ीत होतय है कक अब तो भगर्यन रयम की कृपय से ही कुशि होग़ी। र्ह रयम से प्रयथवनय करते हैं कक अब
आप ही इस दररद्रतय रूप़ी रयर्ण कय वर्नयश कर सकते हैं।
सवै्े में कवर् ने भक्त की गहनतय और सघनतय में उपिे भक्त-हृद् के आत्मवर्श्र्यस कय सि़ीर् गचत्रण
कक्य है । र्े कहते हैं कक चयहे कोई मझ
ु े ित
ू व कहे , अर्िूत ्य िोग़ी कहे, कोई रयिपूत ्य िुियहय कहे , ककां तु मैं
ककस़ी की बेटी से अपने बेटे कय वर्र्यह नहीां करने र्यिय और न ककस़ी की ियनत बबगयडने र्यिय हूाँ। मैं तो केर्ि
अपने प्रभु रयम कय गुियम हूाँ। जिसे िो अच्छय िगे, र्ही कहे । मैं मयाँगकर िय सकतय हूाँ तथय मजतिद में सो सकतय
हूाँ ककां तु मझ
ु े ककस़ी से कुछ िेनय-दे नय नहीां है । मैं तो सब प्रकयर से भगर्यन रयम को समवपवत हूाँ।
सयरयंश-2 ्ुदि में िक्ष्मण के मूगचवछत होने पर रयम की सेनय में हयहयकयर मच ग्य। सब र्यनर सेनयपनत इकट्ठे हुए
तथय िक्ष्मण को बचयने के उपय् सोचने िगे। सुषेण र्ैद् के परयमशव पर हनुमयन ढ़हमयि् से सांि़ीर्ऩी बूटी ियने
के लिए चि पडे। िक्ष्मण को गोद में लिटयकर रयम व््यकुितय से हनम
ु यन की प्रत़ीक्षय करने िगे। आि़ी रयत ब़ीत
ियने के बयद रयम अत््गिक व््यकुि हो गए। र्े वर्ियप करने िगे कक तुम मुझे कभ़ी भ़ी दि
ु ़ी नहीां दे ि पयते थे।
मेरे लिए ही तुमने र्नर्यस तऱ्ीकयर कक्य। अब र्ह प्रेम मुझसे कौन करे गय? ्ढ़द मुझे तुम्हयरे वर््ोग कय पतय
होतय तो मैं तम्
ु हें कभ़ी सयथ नहीां ियतय। सांसयर में सब कुछ दब
ु यरय लमि सकतय है , परां तु सहोदर भयई नहीां। तम्
ु हयरे
बबनय मेरय ि़ीर्न पांिरढ़हत पक्ष़ी के समयन है । अ्ोध््य ियकर मैं क््य िर्यब दाँ ग
ू य? िोग कहें गे कक पत्ऩी के लिए
भयई को गर्य आ्य। तम्
ु हयरी मयाँ को मैं क््य िर्यब दाँ ग
ू य? तभ़ी हनुमयन सांि़ीर्ऩी बूटी िेकर आए। र्ैद् ने दर्य
बनयकर िक्ष्मण को वपियई और उनकी मूच्छी ठीक हो गई। रयम ने उन्हें गिे से िगय लि्य। र्यनर सेनय में
उत्सयह आ ग्य। रयर्ण को ्ह समयचयर लमिय तो उसने परे शयन होकर कांु भकरण को उठय्य। कांु भकरण ने िगयने
कय कयरण पछ
ू य तो रयर्ण ने स़ीतय के हरण से ्द
ु ि तक की सयरी बयत बतयई तथय बडे-बडे ऱ्ीरों के मयरे ियने की
बयत कही। कांु भकरण ने रयर्ण को बुरय-भिय कहय और कहय कक तुमने सयक्षयत ईश्र्र से र्ैर लि्य है और अब
अपनय कल््यण चयहते हो! रयम सयक्षयत हरर तथय स़ीतय ि़ी िगदां बय हैं। उनसे र्ैर िेनय कभ़ी कल््यणकयरी नहीां हो
सकतय।
ववशेष-1 कवर् ने समयि में भूि की जतथनत कय ्थयथव गचत्रण कक्य ग्य है । पेट की आग बुझयने के लिए मनुष््
दर्यरय ककए ियने र्यिे कय्ों कय प्रभयर्पूणव र्णवन है । तत्कयिीन समयि की बेरोिगयरी र् अकयि की भ्यर्ह जतथनत
कय गचत्रण है । तत्सम शब्दयर्िी की प्रियनतय है । ििभयषय कय ियलित्् वर्द्मयन है । रयम घनश््यम’ में रूपक
अिांकयर है । ‘ककसब़ी ककसयन-कुि’, ‘चयकर चपि’, ‘बेचत बेटय-बेटकी’ आढ़द में अनप्र
ु यस अिांकयर की छटय दशवऩी् है ।
अलभिय शब्द-शजक्त है ।
भगर्यन श्ऱीरयम के प्रनत ति
ु स़ीदयस की भजक्त भयर्नय प्रकट हुई है । र्ह समयि की मनोर्वृ त्त से बहुत दि
ु ़ी है ।
समयि में समन्र्् तथयवपत करने कय प्र्यस ढ़दियई पडतय है । कवर् कय दयत्भजक्त भयर् गचबत्रत है । ििभयषय कय
सुांदर प्र्ोग है । सर्ै्य छां द में सुन्दर अलभव््जक्त हुई है । ‘िैबोको एकु न दै बको दोऊ’ मुहयर्रे कय सशक्त प्र्ोग है ।
अनुप्रयस अिांकयर की छटय वर्द्मयन है ।
ववशेष-2 श्ऱीरयम के मयनऱ्ी् रूप एर्ां उनके वर्ियप कय मयलमवक र्णवन है । प्रततत
ु प्रसांग में रयम कय भ्रयत-ृ प्रेम प्रशांसऩी्
है । करुण रस की प्रियनतय है । सरि और सहि अर्ि़ी भयषय कय प्र्ोग है । दोहय, चौपयई और सोरठय छां द कय सुांदर
प्र्ोग है । अनुप्रयस, उत्प्रेक्षय तथय पुनरुजक्त प्रकयश अिांकयर है । ‘लसर िुननय’ र् ‘मुि सूिनय’ मुहयर्रे कय सुांदर प्र्ोग
है ।
बहुववकल्पी प्रश्न
प्र-1 संसयर के सिी लोग तरह-तरह के कयम ककसभलए करते हैं?
(क) मनोरां िन करने के लिए

27
(ि) पेट की भूि शयांत करने के लिए
(ग) शयांनतपूणव ि़ीर्न बबतयने के लिए
(घ) दस
ू रों से आगे बिने के लिए
प्र-2 कवव के अनुसयर पेट की िूख कय शमन ककसकी कृपय से हो सकतय है ?
(क) प्रभु श्ऱी वर्ष्णु की कृपय से
(ि) भगर्यन श्ऱी कृष्ण की कृपय से
(ग) प्रभु श्ऱीरयम की कृपय से
(घ) श्ऱी िह्मय ि़ी की कृपय से
प्र-3 जीववकोपयजथन से ववहीन लोग ककस थचंतय में डूबे हैं?
(क) कोई दस
ू रय व््र्सय् नहीां है
(ि) नगर छोडकर कहयाँ ियएाँ
(ग) रयिय ने कोई प्रबांि नहीां कक्य है
(घ) उप्क्
ुव त सभ़ी
प्र-4 कवव के अनुसयर संकट की घिी में कौन सिी पर कृपय करके िुःु ख िरू करते हैं?
(क) भगर्यन श्ऱीकृष्ण
(ि) प्रभु श्ऱीरयम
(ग) श्ऱी हरर वर्ष्णु
(घ) भगर्यन लशर्
प्र-5 ितत कवव तुलसीियस कय स्वयभिमयन त्य है ?
(क) ऊाँचे कुि कय होनय
(ि) उच्च कुि में बेटे की शयदी करनय
(ग) प्रभु श्ऱीरयम कय परम भक्त होनय
(घ) लभक्षय मयाँगकर भोिन करनय
प्र-6 प्रिु श्रीरयम की आज्ञय पयकर हनुमयनजी त्य लेने के चल पिते हैं?
(क) सांि़ीर्ऩी बूटी
(ि) ढ़हमयि् पर्वत
(ग) गांगयिि
(घ) कठोर लशिय
प्र-7 ‘लक्ष्मण मच्
ू ्यथ और रयम कय ववलयप’ में ककस रस की प्रमख
ु तय है ?
(क) ऱ्ीर रस
(ि) शयांत रस
(ग) हयत् रस
(घ) करुण रस
प्र-8 मक्ु च््थ त पिे लक्ष्मण के त्रबनय श्रीरयम कय जीवन ककस तरह है ?
(क) मखणहीन सपव के समयन
(ि) सूडवर्हीन हयथ़ी के समयन
(ग) पि रढ़हत पक्ष़ी के समयन
(घ) उप्ुक्
व त सभ़ी
प्र-9 ‘भमलठहं न जगत सहोिर भ्रयतय’ ्ह कथन ककसकय है ?
(क) िक्ष्मण कय

28
(ि) श्ऱीरयम कय
(ग) रयर्ण कय
(घ) वर्भ़ीषण कय
प्र-10 जयगने के बयि कंु िकरण कैसय ठिखयई िे रहय थय?
(क) सयक्षयत ् मौत की तरह
(ि) रयक्षस की तरह
(ग) मनुष्् की तरह
(घ) र्यनर की तरह
उत्तर-
1-(ि) पेट की भि
ू शयांत करने के लिए 2- (ग) प्रभु श्ऱीरयम की कृपय से 3-(घ) उप्क्
ुव त सभ़ी 4-(ि) प्रभु
श्ऱीरयम 5-(ग) प्रभु श्ऱीरयम कय परम भक्त होनय 6-(क) सांि़ीर्ऩी बूटी 7-(घ) करुण रस 8-(घ) उप्क्
ुव त सभ़ी
9-(ि) श्ऱीरयम कय 10-(घ) सयक्षयत ् मौत की तरह

्ोटय मेरय खेत, बगल


ु ों के पंख - उमयशंकर जोशी

जीवन पररच्- गुिरयत़ी कवर्तय के सशक्त हततयक्षर उमयशांकर िोश़ी कय िन्म 1911 ई० में गुिरयत में हुआ थय।
20ऱ्ीां सदी में इन्होंने गुिरयत़ी सयढ़हत्् को नए आ्यम ढ़दए। इनको परां परय कय गहरय ज्ञयन थय। इन्होंने गुिरयत़ी
कवर्तय को प्रकृनत से िोडय, आम जिांदग़ी के अनभ
ु र् से पररच् करय्य और ऩ्ी शैिी दी। इन्होंने भयरत की
आियदी की िडयई में भयग लि्य तथय िेि भ़ी गए। इनकय दे हयर्सयन सन 1988 में हुआ।
रचनयएँ- उमयशांकर िोश़ी कय सयढ़हजत््क अर्दयन पूरे भयरत़ी् सयढ़हत्् के लिए महत्र्पूणव है । इन्होंने एकयांकी, ननबांि,
कहयऩी, उपन््यस, सांपयदन र् अनर्
ु यद आढ़द पर अपऩी िेिऩी सिितयपर्
ू कव चियई। इनकी रचनयएाँ ननम्नलिखित हैं-
एकयंकी- वर्श्र्-शयांनत, गांगोत्ऱी, ननश़ीथ, प्रयच़ीनय, आनतथ््, र्सांत र्षयव, महयप्रतथयन, अलभज्ञय आढ़द।
कहयनी- सयपनयभयरय, शहीद।
उपन््यस- श्रयर्ण़ी मेण़ी, वर्सयमो।
तनबंध- पयरकयांिव््य ।
संपयिन- गोष्ठी, उघयड़ीबयरी, क्ियांत कवर्, म्हयरय सॉनेट, तर्प्नप्र्यण तथय ‘सांतकृनत’ पबत्रकय कय सांपयदन।
अनुवयि- अलभज्ञयन शयकांु तिम ् र् उत्तररयमचररत कय गि
ु रयत़ी भयषय में अनुर्यद।
कयव्गत ववशेषतयएँ- उमयशांकर िोश़ी ने गि
ु रयत़ी कवर्तय को न्य तर्र र् ऩ्ी भांगगमय प्रदयन की। इन्होंने ि़ीर्न के
सयमयन्् प्रसांगों पर आम बोिचयि की भयषय में कवर्तय लिि़ी। इनकय सयढ़हत्् की वर्वर्ि वर्ियओां में ्ोगदयन
बहुमूल्् है । हयियाँकक ननबांिकयर के रूप में ्े गि ु रयत़ी सयढ़हत्् में बेिोड मयने ियते हैं। िोश़ी ि़ी की कयव््-भयषय
सरि है । इन्होंने मयनर्तयर्यद, सौंद्व र् प्रकृनत के गचत्रण पर अपऩी किम चियई है । इन्होंने कवर्तय के मयध््म से
शब्दगचत्र प्रततुत ककए हैं।
्ोटय मेरय खेत- इस कवर्तय में कवर् ने िेत़ी के रूप में कवर्-कमव के हर चरण को बयाँिने की कोलशश की है । कवर् को
कयगि कय पन्नय एक चौकोर िेत की तरह िगतय है । इस िेत में ककस़ी अांिड अथयवत भयर्नयत्मक आाँि़ी के प्रभयर्
से ककस़ी क्षण एक ब़ीि बो्य ियतय है । ्ह ब़ीि रचनय, वर्चयर और अलभव््जक्त कय हो सकतय है । ्ह कल्पनय कय
सहयरय िेकर वर्कलसत होतय है और इस प्रकि्य में तर््ां गि ियतय है । उससे शब्दों के अांकुर ननकिते हैं और
अांतत: कृनत एक पण
ू व तर्रूप ग्रहण करत़ी है िो कृवष-कमव के लिहयि से पुजष्पतपल्िवर्त होने की जतथनत है ।
सयढ़हजत््क कृनत से िो अिौककक रस-ियरय िूटत़ी है , र्ह क्षण में होने र्यिी रोपयई कय ही पररणयम है । पर ्ह रस-
ियरय अनांत कयि तक चिने र्यिी कटयई से कम नहीां होत़ी। िेत में पैदय होने र्यिय अन्न कुछ सम् के बयद
समयप्त हो ियतय है, ककां तु सयढ़हत्् कय रस कभ़ी समयप्त नहीां होतय।
ववशेष-
29
1- कवर् ने कल्पनय के मयध््म से रचनय-कमव की गहरयई को व््क्त कक्य है ।
2- कवर् ने िेत़ी र् कवर्तय की तुिनय सूक्ष्म ढां ग से की है।
3- ‘पल्िर्-पुष्प’, ‘गि ग्य’ में अनुप्रयस अिांकयर है ।
4- ‘रस’ शब्द के अथव हैं-कयव्् रस और िि कय रस। अत: ्हयाँ श्िेष अिांकयर है
5- तत्सम शब्दयर्िी्क् ु त िड़ी बोिी में सांद
ु र अलभव््जक्त हुई है ।
6- दृश्् बबांब कय सुांदर उदयहरण है ।
7- प्रत़ीकयत्मकतय कय समयर्ेश है । कवर्-कमव कय सुांदर र्णवन है ।
8- कवर्तय कय आनांद शयश्र्त है ।
9- ‘छोटय मेरय िेत चौकयनय’ में रूपक अिांकयर है ।

बगुलों के पंख- ्ह कवर्तय सुांदर दृश्् बबांब्क्


ु त कवर्तय है िो प्रकृनत के सद
ुां र दृश््ों को हमयरी आाँिों के सयमने
सि़ीर् रूप में प्रततत
ु करत़ी है । सौंद्व कय अपेक्षक्षत प्रभयर् उत्पन्न करने के लिए कवर््ों ने कई ्जु क्त्याँ अपनयई
हैं जिनमें से सर्यवगिक प्रचलित ्ुजक्त है -सौंद्व के ब््ौरों के गचत्रयत्मक र्णवन के सयथ अपने मन पर पडने र्यिे
उसके प्रभयर् कय र्णवन। कवर् कयिे बयदिों से भरे आकयश में पांजक्त बनयकर उडते सिेद बगुिों को दे ितय है । र्े
किरयरे बयदिों के ऊपर तैरत़ी सयाँझ की श्र्ेत कय्य के समयन प्रत़ीत होते हैं। इस न्नयलभरयम दृश्् में कवर् सब
कुछ भूिकर उसमें िो ियतय है । र्ह इस मय्य से अपने को बचयने की गुहयर िगयतय है , िेककन र्ह तर््ां को इससे
बचय नहीां पयतय।
ववशेष-
1- कवर् ने प्रकृनत के उपयदयनों कय मनोरम गचत्रण कक्य है ।
2- पांजक्तबध्द होकर उडते िय रहे बगि ु ों केदृश्् कय मनोहयरी र्णवन हुआ है ।
3- ‘हौिे-हौिे’ में पुनरुजक्त प्रकयश अिांकयर है ।
4- ‘आाँिें चुरयनय’ मुहयर्रे कय सद
ांु र प्र्ोग है ।
5- सयढ़हजत््क िड़ी बोिी है ।
6- बबांब-्ोिनय कय सुांदर प्र्ोग है ।
7- कोमिकयांत पदयर्िी कय प्र्ोग है । िैस-े पयाँत़ी बाँिे, हौिे-हौिे, बगि
ु ों की पयाँिें।

बहुववकल्पी प्रश्न
प्र-1 कववतय में कवव-कमथ की तुलनय ककससे की गई है ?
(क) लशल्प-कमव से
(ि) िौह-कमव से
(ग) कृवष-कमव से
(घ) इनमें से कोई नहीां
प्र-2 कवव कयगज़ के एक पन्ने को ककस रूप में िे खतय है ?
(क) चौकोर िेत के रूप में
(ि) आ्तयकयर आकृनत के रूप में
(ग) हरे -भरे बयग के रूप में
(घ) ननश्छि भयर्नयओां के रूप में
प्र-3 ‘कोई अंधि कहीं से आ्य’ – पंक्तत में ‘अंधि’ से त्य संकेत कक्य ग्य है ?
(क) चौकोर िेत के रूप में
(ि) वर्चयरों एर्ां भयर्नयओां की आाँि़ी
(ग) आाँि़ी और बयररश
30
(घ) गरम हर्यओां की आाँि़ी
प्र-4 ‘शब्ि के अंकुर फूटे ’ इस पंक्तत में कौन-सय अलंकयर है ?
(क) उपमय
(ि) अनुप्रयस
(ग) ्मक
(घ) रूपक
प्र-5 ‘झूमने लगे फल’ इसमें त्य अथथ तनठहत है ?
(क) कवर् की रचनय तै्यर हो ियत़ी है
(ि) ककसयन की िसि पक ियत़ी है
(ग) गचत्रकयर कय गचत्र बन ियतय है
(घ) लशल्प़ी कय लशल्प सयमने आ ियतय है
प्र-6 रस कय अक्ष् पयत्र ककसे कहय ग्य है ?
(क) फ़सि को
(ि) िेत को
(ग) सयढ़हत्् को
(घ) िि को
प्र-7 आसमयन में बगुले ककस तरह उिते जय रहे हैं?
(क) अिग-थिग होकर
(ि) सब एक झुांड में
(ग) पांजक्तबध्द होकर
(घ) र्त्त
ृ यकयर रूप में
प्र-8 पंक्ततबध्ि होकर उिते जय रहे बगुलों के दृश्् में कौन-सय त्रबम्ब है ?
(क) गनतश़ीि बबम्ब
(ि) जतथर बबम्ब
(ग) तपशव बबम्ब
(घ) श्रव्् बबम्ब
प्र-9 उिते जय रहे बगुलों को िे खकर कवव पर त्य प्रियव पिय?
(क) कवर् एक टक उन्हें दे ितय रहय
(ि) कवर् उन्हें पकडनय चयह रहय थय
(ग) कवर् तर््ां उड रहय थय
(घ) कवर् पर कोई प्रभयर् नहीां पडय
प्र-10 ‘बगुलों के पंख’ कववतय के रचनयकयर कय नयम बतयइए।
(क) लशर्मांगि लसांह सुमन
(ि) शमशेर बहयदरु लसांह
(ग) हियरी प्रसयद दवर्र्ेदी
(घ) उमयशांकर िोश़ी
उत्तर-
1-(ग) कृवष-कमव से 2-(क) चौकोर िेत के रूप में 3-(ि) वर्चयरों एर्ां भयर्नयओां की आाँि़ी 4-(घ) रूपक 5-(क) कवर्
की रचनय तै्यर हो ियत़ी है 6-(ग) 7-(ग) पांजक्तबध्द होकर 8-(क) गनतश़ीि बबम्ब 9-(क) कवर् एक टक उन्हें
दे ितय रहय 10- उमयशांकर िोश़ी

31
गद्-खंड
िक्ततन - महयिे वी वमयथ
प्रततपयि्- ‘िक्ततन’ महयदे ऱ्ी ि़ी कय प्रलसदि सांतमरणयत्मक रे ियगचत्र है िो ‘स्मतृ त की रे खयएँ’ में सांकलित है । इसमें
िेखिकय ने अपऩी सेवर्कय भजक्तन के अत़ीत और र्तवमयन कय पररच् दे ते हुए उसके व््जक्तत्र् कय ढ़दिचतप ियकय
ि़ीांचय है । महयदे ऱ्ी के घर में कयम शुरू करने से पहिे उसने कैसे एक सांघषवश़ीि, तर्यलभमयऩी और कमवठ ि़ीर्न जि्य,
कैसे वपतस
ृ त्तयत्मक मयन््तयओां और छि-छदम भरे समयि में अपने और अपऩी बेढ़ट्ों के हक की िडयई िडत़ी रही
और हयरकर कैसे जज़ांदग़ी की रयह पूरी तरह बदि िेने के ननणव् तक पहुाँच़ी, इसकय सांर्ेदनश़ीि गचत्रण िेखिकय ने
कक्य है । सयथ ही, भजक्तन िेखिकय के ि़ीर्न में आकर छय ियने र्यिी एक ऐस़ी पररजतथनत के रूप में ढ़दियई पडत़ी
है , जिसके कयरण िेखिकय के व््जक्तत्र् के कई अनछुए आ्यम उदघयढ़टत होते हैं। इस़ी कयरण अपने व््जक्तत्र् कय
िरूरी अांश मयनकर र्े भजक्तन को िोनय नहीां चयहत़ीां।
सयरयंश- िेखिकय कहत़ी है कक भजक्तन कय कद छोटय र् शरीर दब
ु िय थय। उसके होंठ पतिे थे। र्ह गिे में कांठी-मयिय
पहनत़ी थ़ी। उसकय नयम िक्ष्म़ी थय, परां तु उसने िेखिकय से ्ह नयम प्र्ोग न करने की प्रयथवनय की। उसकी कांठी-
मयिय को दे िकर िेखिकय ने उसकय नयम ‘भजक्तन’ रि ढ़द्य। सेर्य-िमव में र्ह हनम
ु यन से तपदविय करत़ी थ़ी। उसके
अत़ीत के बयरे में ्ही पतय चितय है कक र्ह ऐनतहयलसक झूस़ी के गयाँर् के प्रलसदि अहीर की इकिौत़ी बेटी थ़ी। उसकय
ियिन-पयिन उसकी सौतेिी मयाँ ने कक्य। पयाँच र्षव की उम्र में इसकय वर्र्यह हां डड्य गयाँर् के एक गोपयिक के पुत्र के
सयथ कर ढ़द्य ग्य थय। नौ र्षव की उम्र में गौनय हो ग्य। भजक्तन की वर्मयतय ने उसके वपतय की मत्ृ ्ु कय समयचयर
दे र से भेिय। सयस ने रोने-प़ीटने के अपशकुन से बचने के लिए उसे प़ीहर ्ह कहकर भेि ढ़द्य कक र्ह बहुत ढ़दनों
से गई नहीां है । मय्के ियने पर वर्मयतय के दव्ु ्वर्हयर तथय वपतय की मत्ृ ्ु से व््गथत होकर र्ह बबनय पयऩी वपए ही
घर र्यपस चिी आई। घर आकर सयस को िरी-िोटी सुनयई तथय पनत के ऊपर गहने िेंककर अपऩी व््थय व््क्त
की। भजक्तन को ि़ीर्न के दस ू रे भयग में भ़ी सि
ु नहीां लमिय। उसके िगयतयर त़ीन िडकक्याँ पैदय हुई तो सयस र्
िेठयनन्ों ने उसकी उपेक्षय करऩी शरू
ु कर दी। इसकय कयरण ्ह थय कक सयस के त़ीन कमयऊ बेटे थे तथय िेठयनन्ों
के कयिे-कयिे पुत्र थे। िेठयनन्याँ बैठकर ियत़ीां तथय घर कय सयरय कयम-चक्की चियनय, कूटनय, प़ीसनय, ियनय बनयनय
आढ़द कय्व-भजक्तन करत़ी। छोटी िडकक्याँ गोबर उठयत़ीां तथय कांडे थयपत़ी थ़ीां। ियने के मयमिे में भ़ी भेदभयर् थय।
िेठयनन्याँ और उनके िडकों को भयत पर सिेद रयब, दि
ू र् मियई लमित़ी तथय भजक्तन को कयिे गुड की डिी, मट्ठय
तथय िडकक्ों को चने-बयिरे की घुघरी लमित़ी थ़ी। इस पूरे प्रकरण में भजक्तन के पनत कय व््र्हयर अच्छय थय। उसे
अपऩी पत्ऩी पर वर्श्र्यस थय।
पनत-प्रेम के बि पर ही र्ह पररर्यर से अिग हो गई। अिग होते सम् अपने ज्ञयन के कयरण उसे गय्-भैंस,
िेत, िलिहयन, अमरयई के पेड आढ़द ठीक-ठयक लमि गए। पररश्रम के कयरण घर में समद
ृ ि आ गई। पनत ने बड़ी
िडकी कय वर्र्यह िम
ू ियम से कक्य। इसके बयद र्ह दो कन््यओां को छोडकर चि बसय। इस सम् भजक्तन की आ्ु
29 र्षव की थ़ी। उसकी सांपवत्त दे िकर पररर्यर र्यिों के मुाँह में पयऩी आ ग्य। उन्होंने दस
ू रे वर्र्यह कय प्रश्नततयर्
कक्य तो भजक्तन ने तपष्ट मनय कर ढ़द्य। उसने केश कटर्य ढ़दए तथय गरु
ु से मांत्र िेकर कांठी बयाँि िी। उसने दोनों
िडकक्ों की शयदी कर दी और पनत के चुने दयमयद को घर-िमयई बनयकर रिय। ि़ीर्न के त़ीसरे पररच्छे द में दभ
ु यवग््
ने उसकय प़ीछय नहीां छोडय। उसकी िडकी भ़ी वर्िर्य हो गई। पररर्यर र्यिों की दृजष्ट उसकी सांपवत्त पर थ़ी। उसकय
िेठ अपऩी वर्िर्य बहन के वर्र्यह के लिए अपने त़ीतर िडयने र्यिे सयिे को बि
ु य िय्य क््ोंकक उसकय वर्र्यह हो
ियने पर सब कुछ उन्हीां के अगिकयर में रहतय।
भजक्तन की िडकी ने उस त़ीतरबयि र्र को नयपसांद कर ढ़द्य। मयाँ-बेटी मन िगयकर अपऩी सांपवत्त की दे िभयि
करने िग़ीां। एक ढ़दन भजक्तन की अनप
ु जतथनत में उस त़ीतरबयि र्र ने बेटी की कोठरी में घस
ु कर भ़ीतर से दरर्यिय
बांद कर लि्य और उसके समथवक गयाँर् र्यिों को बुियने िगे। िडकी ने उसकी िूब मरम्मत की तो पांच समत्य में
पड गए। अांत में पांचय्त ने कलि्ुग को इस समत्य कय कयरण बतय्य और अप़ीिहीन िैसिय हुआ कक दोनों को

32
पनत-पत्ऩी के रूप में रहनय पडेगय। अपमयननत बयलिकय र् मयाँ वर्र्श थ़ीां। ्ह सांबि
ां सुिकर नहीां थय। दयमयद ननजश्चत
होकर त़ीतर िडयतय थय, जिसकी र्िह से पयररर्यररक दर्ेष इस कदर बि ग्य कक िगयन अदय करनय भ़ी मुजश्कि हो
ग्य। िगयन न पहुाँचने के कयरण िम़ीांदयर ने भजक्तन को कड़ी िूप में िडय कर ढ़द्य।
्ह अपमयन र्ह सहन न कर सकी और कमयई के वर्चयर से शहर चिी आई। ि़ीर्न के अांनतम पररच्छे द में ,
घट
ु ी हुई चयाँद, मैिी िोत़ी तथय गिे में कांठी पहने र्ह िेखिकय के पयस नौकरी के लिए पहुाँच़ी और उसने रोटी बनयनय,
दयि बनयनय आढ़द कयम ियनने कय दयर्य कक्य। नौकरी लमिने पर उसने अगिे ढ़दन तनयन करके िेखिकय की िुिी
िोत़ी भ़ी िि के छीांटों से पवर्त्र करने के बयद पहऩी। ननकिते सू्व र् प़ीपि को अघव ढ़द्य। दो लमनट िप कक्य
और को्िे की मोटी रे िय से चौके की स़ीमय ननियवररत करके ियनय बनयनय शरू
ु कक्य। भजक्तन छूत-पयक को मयनने
र्यिी थ़ी। िेखिकय ने समझौतय करनय उगचत समझय। भोिन के सम् भजक्तन ने िेखिकय को दयि के सयथ मोटी
कयिी गचत्त़ीदयर चयर रोढ़ट्याँ परोस़ीां तो िेखिकय ने टोकय। उसने अपनय तकव ढ़द्य कक अच्छी सेंकने के प्र्यस में रोढ़ट्याँ
अगिक कड़ी हो गई। उसने सब्ि़ी न बनयकर दयि बनय दी। इस ियने पर प्रश्नर्यचक दृजष्ट होने पर र्ह अमचूरण,
ियि लमचव की चटऩी ्य गयाँर् से ियए गुड कय प्रततयर् रिय।
भजक्तन के िेक्चर के कयरण िेखिकय रूि़ी दयि से एक मोटी रोटी ियकर वर्श्र्वर्द्यि् पहुाँच़ी और न््य्सत्र

पिते हुए शहर और दे हयत के ि़ीर्न के अांतर पर वर्चयर करने िग़ी। गगरते तर्यतथ्् र् पररर्यर र्यिों की गचांतय
ननर्यरण के लिए िेखिकय ने ियने के लिए अिग व््र्तथय की, ककां तु इस दे हयत़ी र्द
ृ िय की सरितय से र्ह इतनय
प्रश्नभयवर्त हुई कक र्ह अपऩी असवु र्ियएाँ नछपयने िग़ी। भजक्तन तर््ां को बदि नहीां सकत़ी थ़ी। र्ह दस
ू रों को अपने
मन के अनुकूि बनयने की इच्छय रित़ी थ़ी। िेखिकय दे हयत़ी बन गई, परां तु भजक्तन को शहर की हर्य नहीां िग़ी।
उसने िेखिकय को ग्रयम़ीण ियनय-ियनय लसिय ढ़द्य, परां तु तर््ां ‘रसगल्
ु िय’ भ़ी नहीां िय्य। उसने िेखिकय को अपऩी
भयषय की अनेक दां तकथयएाँ कांठतथ करय दीां, परां तु िुद ‘आाँ्’ के तथयन पर ‘ि़ी’ कहनय नहीां स़ीिय। भजक्तन में दग
ु ण
ुव ों
कय अभयर् नहीां थय। र्ह इिर-उिर पडे पैसों को ककस़ी मटकी में नछपयकर रि दे त़ी थ़ी जिसे र्ह बुरय नहीां मयनत़ी थ़ी।
पछ
ू ने पर र्ह कहत़ी कक ्ह उसकय अपनय घर ठहरय, पैसय-रुप्य िो इिर-उिर पडय दे िय, साँभयिकर रि लि्य। ्ह
क््य चोरी है ! अपऩी मयिककन को िुश करने के लिए र्ह बयत को बदि भ़ी दे त़ी थ़ी। र्ह अपऩी बयतों को शयतत्र-
सम्मत मयनत़ी थ़ी। र्ह अपने तकव दे त़ी थ़ी। िेखिकय ने उसे लसर घुटयने से रोकय तो उसने ‘तीरथ गए मि
ुँ यए भसदध’
कहकर अपने कय्व को शयतत्र-लसदि बतय्य। र्ह तर््ां पिी-लिि़ी नहीां थ़ी। अब र्ह हततयक्षर करनय भ़ी स़ीिनय नहीां
चयहत़ी थ़ी। उसकय तकव थय कक उसकी मयिककन ढ़दन-रयत ककतयब पित़ी है । ्ढ़द र्ह भ़ी पिने िगे तो घर के कयम
कौन करे गय। भजक्तन अपऩी मयिककन को असयियरणतय कय दियव दे त़ी थ़ी। इस़ी से र्ह अपनय महत्र् सयबबत कर
सकत़ी थ़ी। उत्तर-पजु ततकय के ननरीक्षण-कय्व में िेखिकय कय ककस़ी ने सह्ोग नहीां ढ़द्य। इसलिए र्ह कहत़ी किरत़ी थ़ी
कक उसकी मयिककन िैसय कय्व कोई नहीां ियनतय। र्ह तर््ां सहय्तय करत़ी थ़ी। कभ़ी उत्तर-पुजततकयओां को बयाँिकर,
कभ़ी अिरू े गचत्र को कोने में रिकर, कभ़ी रां ग की प््यिी िोकर और कभ़ी चटयई को आाँचि से झयडकर र्ह िो
सहय्तय करत़ी थ़ी उससे भजक्तन कय अन्् व््जक्त्ों से अगिक बुदगिमयन होनय प्रमयखणत हो ियतय है । िेखिकय की
ककस़ी पुततक के प्रकयशन होने पर उसे प्रसन्नतय होत़ी थ़ी। उस कृनत में र्ह अपनय सह्ोग िोित़ी थ़ी। िेखिकय भ़ी
उसकी आभयरी थ़ी क््ोंकक िब र्ह बयर-बयर के आग्रह के बयद भ़ी भोिन के लिए न उठकर गचत्र बनयत़ी रहत़ी थ़ी,
तब भजक्तन कभ़ी दही कय शरबत अथर्य कभ़ी तुिस़ी की चय् वपियकर उसे भूि के कष्ट से बचयत़ी थ़ी।
भजक्तन में गिब कय सेर्य-भयर् थय। छयत्रयर्यस की रोशऩी बझ
ु ने पर िब िेखिकय के पररर्यर के सदत्-ढ़हरऩी
सोनय, कुत्तय बसांत, बबल्िी गोिूलि भ़ी-आरयम करने िगते थे, तब भ़ी भजक्तन िेखिकय के सयथ ियगत़ी रहत़ी थ़ी। र्ह
उसे कभ़ी पुततक दे त़ी, कभ़ी त्यही तो कभ़ी फ़यइि दे त़ी थ़ी। भजक्तन िेखिकय के ियगने से पहिे ियगत़ी थ़ी तथय
िेखिकय के बयद सोत़ी थ़ी। बदरी-केदयर के पहयड़ी तांग रयततों पर र्ह िेखिकय से आगे चित़ी थ़ी, परां तु गयाँर् की
िूिभरी पगडांड़ी पर उसके प़ीछे रहत़ी थ़ी। िेखिकय भजक्तन को छय्य के समयन समझत़ी थ़ी। ्ुदि के सम् िोग डरे
हुए थे, उस सम् र्ह बेटी-दयमयद के आग्रह पर िेखिकय के सयथ रहत़ी थ़ी। ्ुदि में भयरत़ी् सेनय के पिय्न की
बयत सुनकर र्ह िेखिकय को अपने गयाँर् िे ियनय चयहत़ी थ़ी। र्हयाँ र्ह िेखिकय के लिए हर तरह के प्रबांि करने कय

33
आश्र्यसन दे त़ी थ़ी। र्ह अपऩी पाँूि़ी को भ़ी दयाँर् पर िगयने के लिए तै्यर थ़ी। िेखिकय कय मयननय है कक उनके ब़ीच
तर्यम़ी-सेर्क कय सांबि
ां नहीां थय।
इसकय कयरण ्ह थय कक र्ह उसे इच्छय होने पर भ़ी हटय नहीां सकत़ी थ़ी और भजक्तन चिे ियने कय आदे श
पयकर भ़ी हाँसकर टयि रही थ़ी। र्ह उसे नौकर भ़ी नहीां मयनत़ी थ़ी। भजक्तन िेखिकय के ि़ीर्न को घेरे हुए थ़ी।
भजक्तन छयत्रयर्यस की बयलिकयओां के लिए चय् बनय दे त़ी थ़ी। र्ह उन्हें िेखिकय के नयश्ते कय तर्यद भ़ी िेने दे त़ी थ़ी।
र्ह िेखिकय के पररगचतों र् सयढ़हजत््क बांिुओां से भ़ी पररगचत थ़ी। र्ह उनके सयथ र्ैसय ही व््र्हयर करत़ी थ़ी िैसय
िेखिकय करत़ी थ़ी। र्ह उन्हें आकयर-प्रकयर, र्ेश-भूषय ्य नयम के अपभ्रांश दर्यरय ियनत़ी थ़ी। कवर््ों के प्रनत उसके
मन में वर्शेष आदर नहीां थय, परां तु दस
ू रे के दि
ु से र्ह कयतर हो उठत़ी थ़ी। ककस़ी वर्द्यथी के िेि ियने पर र्ह
व््गथत हो उठत़ी थ़ी। र्ह कयरयगयर से डरत़ी थ़ी, परां तु िेखिकय के िेि ियने पर िुद भ़ी उनके सयथ चिने कय हठ
कक्य। अपऩी मयिककन के सयथ िेि ियने के हक के लिए र्ह बडे ियट तक से िडने को तै्यर थ़ी। भजक्तन कय
अांनतम पररच्छे द चयिू है िेककन िेखिकय इसे पूरय नहीां करनय चयहत़ी।
बहुववकल्पी प्रश्न

प्रश्न-1 िक्ततन कय वयस्तववक नयम त्य थय?


(क) िक्ष्म़ी
(ि) भजक्तन
(ग) िछलमन
(घ) कोककिय
प्रश्न-2 िक्ततन ककससे डरती थी?
(क) िेखिकय से
(ि) रसोईघर से
(ग) बडे सयहब से
(घ) कयरयगयर से
प्रश्न-3 खोटे भसतके की टकसयल ककसे कहय ग्य है ?
(क) िेखिकय को
(ि) िछलमन को
(ग) सेवर्कय को
(घ) भजक्तन के पनत को
प्रश्न-4 लेझखकय ने ल्भमन कय नयम िक्ततन त्य िे ख कर रखय?
(क) गिे में पड़ी कांठी मयिय दे िकर
(ि) उसकी र्द
ृ ियर्तथय दे िकर
(ग) उसकय सेर्य-भयर् दे िकर
(घ) िमव के प्रश्ननत उसकी आतथय दे िकर
प्रश्न-5 लेझखकय िक्ततन की कहयनी को अधरू ी त्ों ्ोिती है ?
(क) भजक्तन के महत्त्र् को बनयए रिने के लिए
(ि) भजक्तन के झूठ बोिने को दे िकर
(ग) पिे -लििों की गुरु बन ियने के कयरण
(घ) िेखिकय को हमेशय मदद लमिे
प्रश्न-6 पतत की मत्ृ ्ु के सम् िक्ततन की उम्र ककतनी थी?
(क) 29 र्षव
(ि) 25 र्षव
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(ग) 30 र्षव
(घ) 27 र्षव
प्रश्न-7 िक्ततन अपने पतत को त्य संबोधन कर ्यि करती थी?
(क) सेर्क
(ि) बि
ु ऊ
(ि) जिठै त
(घ) मयलिक
प्रश्न-8 इस पयि में सेवक धमथ में िक्ततन की तल
ु नय ककससे की गई है ?
(क) िेखिकय से
(ि) मयतय अांिनय से
(ग) हनुमयन ि़ी से
(घ) नौकर से
प्रश्न-9 लगयन न चक
ु य पयने के कयरण िक्ततन को त्य सजय भमली?
(क) उसे िेखिकय के ्हयाँ कयम करनय पडय
(ि) उसे बग़ीचे की रिर्यिी करऩी पड़ी
(ग) उसे िेत में पयऩी िगयनय पडय
(घ) उसे ढ़दन भर िूप में िडय रहनय पडय
प्रश्न-10 ‘भसर घट
ु यनय’ मुहयवरे कय त्य अथथ है ?
(क) लसर में तेि िगर्यनय
(ि) लसर के बयि उतरर्यनय
(ग) लसर के बि िडय होनय
(घ) श़ीषयवसन करनय
उत्तर-
1-(ग) िछलमन 2-(घ) कयरयगयर से 3-(ि) िछलमन को 4-(क) गिे में पड़ी कांठी मयिय दे िकर 5-(क) भजक्तन के
महत्त्र् को बनयए रिने के लिए 6-(क) 29 र्षव 7-(ि) बि
ु ऊ 8-(ग) हनम
ु यन ि़ी से 9-(घ) उसे ढ़दन भर िप
ू में िडय
रहनय पडय 10-(ि) लसर के बयि उतरर्यनय

बयजयर िशथन - जैनेन्र कुमयर

प्रततपयि्– ‘बयियर दशवन’ ननबांि में गहरी र्ैचयररकतय र् सयढ़हत्् के सुिभ ियलित्् कय सां्ोग है । कई दशक पहिे
लििय ग्य ्ह िेि आि भ़ी उपभोक्तयर्यद र् बयियरर्यद को समझयने में बेिोड है । िैनेंद्र ि़ी अपने पररगचतों, लमत्रों
से िड
ु े अनभ
ु र् बतयते हुए ्ह तपष्ट करते हैं कक बयियर की ियदई
ु तयकत मनष्ु ् को अपनय गि
ु यम बनय िेत़ी है ।
्ढ़द हम अपऩी आर्श््कतयओां को ठीक-ठीक समझकर बयियर कय उप्ोग करें तो उसकय ियभ उठय सकते हैं। इसके
वर्परीत, बयियर की चमक-दमक में िाँसने के बयद हम असांतोष, तष्ृ णय और ईष््य से घय्ि होकर सदय के लिए बेकयर
हो सकते हैं। िेिक ने कहीां दयशवननक अांदयि में तो कहीां ककतसयगोई की तरह अपऩी बयत समझयने की कोलशश की है ।
इस िम में इन्होंने केर्ि बयियर कय पोषण करने र्यिे अथवशयतत्र को अऩीनतशयतत्र बतय्य है ।

सयरयंश- िेिक अपने लमत्र की कहयऩी बतयतय है कक एक बयर र्े बयियर में मयमूिी च़ीि िेने गए, परां तु र्यपस बांडिों
के सयथ िौटे । िेिक के पछ
ू ने पर उन्होंने पत्ऩी को दोष़ी बतय्य। िेिक के अनुसयर, पुरयने सम् से पनत इस वर्ष्
पर पत्ऩी की ओट िेते हैं। इसमें मऩीबैग अथयवत पैसे की गरम़ी भ़ी वर्शेष भूलमकय अदय करतय है । पैसय पयर्र है , परां तु
उसे प्रश्नदलशवत करने के लिए बैंक-बैिेंस, मकयन-कोठी आढ़द इकट्ठय कक्य ियतय है । पैसे की पचेजिांग पयर्र के प्र्ोग
से पयर्र कय रस लमितय है। िोग सां्म़ी भ़ी होते हैं। र्े पैसे को िोडते रहते हैं तथय पैसे के िड
ु य होने पर तर््ां को

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गर्ीिय महसूस करते हैं। लमत्र ने बतय्य कक सयरय पैसय िचव हो ग्य। लमत्र की अगिकतर िरीद पचेजिांग पयर्र के
अनुपयत से आई थ़ी, न कक िरूरत के ढ़हसयब से। िेिक कहतय है कक ियितू च़ीि की िरीद कय प्रमुि कयरण बयियर
कय आकषवण है । लमत्र ने इसे शैतयन कय ियि बतय्य है । ्ह आकषवण ऐसय होतय है कक बेह्य ही हो िो इसमें नहीां
िाँसतय। बयियर अपने रूपियि में सबको उिझयतय है । इसके आमांत्रण में आग्रह नहीां है । ऊाँचे बयियर कय आमांत्रण मूक
होतय है । ्ह इच्छय िगयतय है । हर आदम़ी को च़ीि की कम़ी महसस
ू होत़ी है । चयह और अभयर् मनष्ु ् को पयगि कर
दे तय है । असांतोष, तष्ृ णय र् ईष्र््य से मनुष्् सदय के लिए बेकयर हो ियतय है ।
िेिक कय दस
ू रय लमत्र दोपहर से पहिे बयियर ग्य तथय शयम को ियिी हयथ र्यपस आ ग्य। पूछने पर
बतय्य कक बयियर में सब कुछ िेने ्ोग्् थय, परां तु कुछ भ़ी न िे पय्य। एक र्ततु िेने कय मतिब थय, दस
ू री छोड
दे नय। अगर अपऩी चयह कय पतय नहीां तो सब ओर की चयह हमें घेर िेत़ी है । ऐसे में कोई पररणयम नहीां होतय। बयियर
में रूप कय ियद ू है । ्ह तभ़ी असर करतय है िब िेब भरी हो तथय मन ियिी हो। ्ह मन र् िेब के ियिी होने पर
भ़ी असर करतय है । ियिी मन को बयियर की च़ीिें ननमांत्रण दे त़ी हैं। सब च़ीिें िरीदने कय मन करतय है ।
ियद ू उतरते ही िैं स़ी च़ीिें आरयम नहीां, ििि ही डयित़ी प्रश्नत़ीत होत़ी हैं। इससे तर्यलभमयन र् अलभमयन
बितय है । ियद ू से बचने कय एकमयत्र उपय् ्ह है कक बयियर ियते सम् मन ियिी न रिो। मन में िक्ष्् हो तो
बयियर आनांद दे गय। र्ह आपसे कृतयथव होगय। बयियर की असिी कृतयथवतय है -आर्श््कतय के सम् कयम आनय। मन
ियिी रिने कय मतिब मन बांद नहीां करनय है । शून्् होने कय अगिकयर बस परमयत्मय कय है िो सनयतन भयर् से
सांपण
ू व है । मनष्ु ् अपण
ू व है । मनष्ु ् इच्छयओां कय ननरोि नहीां कर सकतय। ्ह िोभ को ि़ीतनय नहीां है , बजल्क िोभ की
ि़ीत है । मन को बियत बांद करनय हठ्ोग है । र्यततर् में मनुष्् को अपऩी अपण
ू त
व य तऱ्ीकयर कर िेऩी चयढ़हए। सच्चय
कमव सदय इस अपूणत
व य की तऱ्ीकृनत के सयथ होतय है । अत: मन की भ़ी सुनऩी चयढ़हए क््ोंकक र्ह भ़ी उददे श््पूणव है ।
मनमयनेपन को छूट नहीां दे ऩी चयढ़हए।
िेिक के पडोस में भगत ि़ी रहते थे। र्े िांबे सम् से चूरन बेच रहे थे। चूरन उनकय सरनयम थय। र्े
प्रनतढ़दन छह आने पैसे से अगिक नहीां कमयते थे। र्े अपनय चरू न थोक व््यपयरी को नहीां दे ते थे और न ही पेशग़ी
ऑडवर िेते थे। छह आने पूरे होने पर र्े बचय चूरन बच्चों को मफ़्
ु त बयाँट दे ते थे। र्े सदय तर्तथ रहते थे।उन पर
बयियर कय ियद ू नहीां चि सकतय थय। र्े ननरक्षर थे। बड़ी-बड़ी बयतें ियनते नहीां थे। उनकय मन अडडग रहतय थय। पैसय
भ़ीि मयाँगतय है कक मझ
ु े िो। र्ह ननमवम व््जक्त पैसे को अपने आहत गर्व में बबिितय ही छोड दे तय है । पैसे में
व््ांग्् शजक्त होत़ी है । पैदि व््जक्त के पयस से िूि उडयत़ी मोटर चिी ियए तो व््जक्त परे शयन हो उठतय है । र्ह
अपने िन्म तक को कोसतय है , परां तु ्ह व््ांग्् चूरन र्यिे व््जक्त पर कोई असर नहीां करतय। िेिक ऐसे बि के
वर्ष् में कहतय है कक ्ह कुछ अपर ियनत कय तत्र् है । कुछ िोग इसे आजत्मक, ियलमवक र् नैनतक कहते हैं।
िेिक कहतय है कक िहयाँ तष्ृ णय है , बटोर रिने की तपह
ृ य है , र्हयाँ उस बि कय ब़ीि नहीां है । सांच् की तष्ृ णय
और र्ैभर् की चयह में व््जक्त की ननबवितय ही प्रमयखणत होत़ी है । र्ह मनष्ु ् पर िन की और चेतन पर िड की
वर्ि् है । एक ढ़दन बयियर के चौक में भगत ि़ी र् िेिक की रयम-रयम हुई। उनकी आाँिें िुिी थ़ीां। र्े सबसे लमिकर
बयत करते हुए िय रहे थे। िेककन र्े भौचक्के नहीां थे और नय ही र्े ककस़ी प्रश्नकयर से ियचयर थे। भयाँनत-भयाँनत के
बढ़ि्य मयि से चौक भरय थय ककां तु उनको मयत्र अपऩी िरूरत की च़ीि से मतिब थय। र्े रयतते के िैं स़ी तटोरों को
छोडकर पांसयरी की दक
ु यन से अपने कयम की च़ीिें िेकर चि पडते हैं। अब उन्हें बयियर शून्् िगतय है । किर चयाँदऩी
बबछी रहत़ी हो ्य बयियर के आकषवण बि
ु यते रहें , र्े उसकय कल््यण ही चयहते हैं।
िेिक कय मयननय है कक बयियर को सयथवकतय र्ह मनुष्् दे तय है िो अपऩी िरूरत को पहचयनतय है । िो
केर्ि पचेजिांग पॉर्र के बि पर बयियर को व््ांग्् दे ियते हैं, र्े न तो बयियर से ियभ उठय सकते हैं और न उस
बयियर को सच्चय ियभ दे सकते हैं। र्े िोग बयियर कय बयियरूपन बियते हैं। ्े कपट को बियते हैं जिससे सदभयर्
घटतय है । सदभयर् नष्ट होने से ग्रयहक और बेचक रह ियते हैं। र्े एक-दस
ू रे को ठगने की घयत में रहते हैं। ऐसे
बयियरों में व््यपयर नहीां, शोषण होतय है । कपट सिि हो ियतय है तथय बयियर मयनर्तय के लिए वर्डांबनय है और िो

36
ऐसे बयियर कय पोषण करतय है िो उसकय शयतत्र बनय हुआ है , र्ह अथवशयतत्र सरयसर औिय है , र्ह मय्यऱ्ी शयतत्र है ,
र्ह अथवशयतत्र अऩीनतशयतत्र है ।
बहुववकल्पी प्रश्न

प्रश्न-1 बयजयर के जयि ू कय प्रियव कब अथधक पितय है?


(क) िब ग्रयहक कय मन भरय होतय है
(ि) िब ग्रयहक कय मन ियिी होतय है
(ग) िब ग्रयहक िुश होतय है
(घ) िब ग्रयहक दि
ु ़ी होतय है
प्रश्न-2 बयजयर के जयि ू के प्रियव से बचने कय सबसे सरल उपय् त्य है ?
(क) जब मन ियिी हो तब बयियर ियओ
(ि) िब मन भरय हो तब बयियर न ियओ
(ग) जब मन ियिी हो तब बयियर न ियओ
(घ) िब मन दि
ु ़ी हो तब बयियर मत ियओ
प्रश्न-3 बयजयर कय आमंत्रण कैसय होतय है ?
(क) मूक (मौन) और चयह िगयने र्यिय
(ि) मन को शयांत कर दे ने र्यिय
(ग) मन में वर्रयग पैदय करने र्यिय
(घ) दक ु यनदयर को ियभ पहुाँचयने र्यिय
प्रश्न-4 बयजयर को सयथथकतय कौन िे तय है ?
(क) िो िोग बयियर से कुछ नहीां िरीदते हैं
(ि) िो ्ह ियनते हैं कक उन्हें बयियर से क््य िरीदनय है
(ग) िो ्ह नहीां ियनते हैं कक उन्हें क््य िरीदनय चयढ़हए
(घ) िो बयियर ियकर सब कुछ िरीदनय चयहते हैं
प्रश्न-5 लेखक ने बयजयर के जयि ू की तुलनय ककससे की है ?
(क) चांब
ु क के ियद ू से
(ि) िोहे के ियद ू से
(ग) हयथ के ियद ू से
(घ) दक
ू यन के ियद ू से
प्रश्न-6 लेखक के िस
ू रे भमत्र ने बयजयर से त्य खरीिय?
(क) ढे र सयरय सयमयन
(ि) केर्ि एक सयमयन
(ग) केर्ि दो सयमयन
(घ) कुछ भ़ी नहीां
प्रश्न-7 लोग बयजयर से सयमयन ककस ठहसयब से खरीिते हैं?
(क) अपऩी कमिोरी नछपयने के ढ़हसयब से
(ि) पचेजिांग पयर्र के ढ़हसयब से
(ग) दस
ू रों को ढ़दियने के ढ़हसयब से
(घ) इनमें से कोई नहीां
प्रश्न-8 मन को ककस बयत की ्ूट नहीं भमलनी चयठहए?
(क) मनन करने की
37
(ि) ढ़हसयब िगयने की
(ग) चक्कर ियने की
(घ) मनमयऩी करने की
प्रश्न-9 ्ह आने की कमयई होने के बयि िगत जी चरू न कय त्य करते थे?
(क) अगिे ढ़दन के लिए रि िेते थे
(ि) बच्चों में मफ़्
ु त बयाँट दे ते थे
(ग) दक
ु यन पर दे दे ते थे
(घ) कूडेदयन में िेंक दे ते थे
प्रश्न-10 बयजयर कय पोषण करने वयले अथथशयस्त्र को लेखक ने त्य नयम ठि्य है ?
(क) दशवनशयतत्र
(ि) रयिऩीनत शयतत्र
(ग) अऩीनतशयतत्र
(घ) ज््ोनतष शयतत्र
उत्तर-
1-(ि) िब ग्रयहक कय मन ियिी होतय है 2-(ग) जब मन ियिी हो तब बयियर न ियओ 3-(क) मूक (मौन) और चयह
िगयने र्यिय 4-(ि) िो ्ह ियनते हैं कक उन्हें बयियर से क््य िरीदनय है 5-(क) चुांबक के ियद ू से 6-(घ) कुछ भ़ी नहीां 7-
(ि) पचेजिांग पयर्र के ढ़हसयब से 8-(घ) मनमयऩी करने की 9-(ि) बच्चों में मफ़्
ु त बयाँट दे ते थे 10-(ग) अऩीनतशयतत्र

कयले मेघय पयनी िे - धमथवीर ियरती

प्रततपयि्- ‘कयिे मेघय पयऩी दे ’ सांतमरण में िोक-प्रचलित वर्श्र्यस और वर्ज्ञयन के दर्ांदर् कय गचत्रण कक्य ग्य है ।
वर्ज्ञयन कय अपनय तकव है और वर्श्र्यस कय अपनय सयमथ््व। इनकी सयथवकतय के वर्ष् में लशक्षक्षत र्गव असमांिस में
है । िेिक ने इस़ी दवु र्िय को िेकर पयऩी के सांदभव में प्रसांग रचय है । आषयि कय पहिय पिर्यडय ब़ीत चक
ु य है । ऐसे में
िेत़ी र् अन्् कय्ों के लिए पयऩी न हो तो ि़ीर्न चुनौनत्ों कय घर बन ियतय है । ्ढ़द वर्ज्ञयन इन चुनौनत्ों कय
ननरयकरण नहीां कर पयतय तो उत्सर्िमी भयरत़ी् समयि ककस़ी-न-ककस़ी िग
ु यड में िग ियतय है , प्रपांच रचतय है और
हर कीमत पर ि़ीवर्त रहने के लिए अलशक्षय तथय बेबस़ी के भ़ीतर से उपय् और कयट की िोि करतय है ।
सयरयंश- िेिक बतयतय है कक िब र्षयव की प्रत़ीक्षय करते-करते िोगों की हयित िरयब हो ियत़ी है तब गयाँर्ों में नांग-
िडांग ककशोर शोर करते हुए कीचड में िोटते हुए गलि्ों में घम
ू ते हैं। ्े दस-बयरह र्षव की आ्ु के होते हैं तथय लसफ़व
ियाँनघ्य ्य िांगोटी पहनकर ‘गांगय मै्य की ि्’ बोिकर गलि्ों में चि पडते हैं। ि्कयरय सुनते ही जतत्र्याँ र्
िडकक्याँ छज्िे र् बयरिों से झयाँकने िगत़ी हैं। इस मांडिी को इांदर सेनय ्य मेढक-मांडिी कहते हैं। ्े पुकयर िगयते हैं-
कयिे मेघय पयऩी दे , पयऩी दे गुडियऩी दे , गगरी िूटी बैि वप्यसय, कयिे मेिय पयऩी दे ।
िब ्ह मांडिी ककस़ी घर के सयमने रुककर ‘पयऩी’ की पुकयर िगयत़ी थ़ी तो घरों में सहे िकर रिे पयऩी से
इन बच्चों को सर से पैर तक तर कर ढ़द्य ियतय थय। ्े भ़ीगे बदन लमट्टी में िोट िगयते तथय कीचड में िथपथ हो
ियते। ्ह र्ह सम् होतय थय िब हर िगह िोग गरम़ी में भुनकर त्रयढ़ह-त्रयढ़ह करने िगते थे; कुएाँ सूिने िगते थे;
निों में बहुत कम पयऩी आतय थय, िेतों की लमट्टी में पपड़ी पडकर िम़ीन िटने िगत़ी थ़ी। िू के कयरण व््जक्त
बेहोश होने िगते थे। पशु पयऩी की कम़ी से मरने िगते थे, िेककन बयररश कय कहीां नयमोननशयन नहीां होतय थय। िब
पूिय-पयठ आढ़द वर्िि हो ियत़ी थ़ी तो इांदर सेनय अांनतम उपय् के तौर पर ननकित़ी थ़ी और इांद्र दे र्तय से पयऩी की
मयाँग करत़ी थ़ी। िेिक को ्ह समझ में नहीां आतय थय कक पयऩी की कम़ी के बयर्िद
ू िोग घरों में कढ़ठनयई से
इकट्ठय ककए पयऩी को इन पर क््ों िेंकते थे। इस प्रकयर के अांिवर्श्र्यसों से दे श को बहुत नुकसयन होतय है । अगर
्ह सेनय इांद्र की है तो र्ह िुद अपने लिए पयऩी क््ों नहीां मयाँग िेत़ी? ऐसे पयिांडों के कयरण हम अांग्रेिों से वपछड
गए तथय उनके गि
ु यम बन गए।

38
िेिक तर््ां मेढक-मांडिी र्यिों की उमर कय थय। र्ह आ्वसमयि़ी थय तथय कुमयर-सुियर सभय कय उपमांत्ऱी थय।
उसमें समयिसि
ु यर कय िोश ज््यदय थय। उसे सबसे ज््यदय मुजश्कि अपऩी ि़ीि़ी से थ़ी िो उम्र में उसकी मयाँ से बड़ी
थ़ीां। र्े सभ़ी रीनत-ररर्यिों, त़ीि-त््ोहयरों, पूिय-अनष्ु ठयनों को िेिक के हयथों पूरय करर्यत़ी थ़ीां। जिन अांिवर्श्र्यसों को
िेिक समयप्त करनय चयहतय थय। र्े ्े सब कय्व िेिक को पुण्् लमिने के लिए करर्यत़ी थ़ीां। ि़ीि़ी िेिक से इांदर
सेनय पर पयऩी िेंकर्यने कय कयम करर्यनय चयहत़ी थ़ीां। उसने सयफ़ मनय कर ढ़द्य। ि़ीि़ी ने कयाँपते हयथों र् डगमगयते
पयाँर्ों से इांदर सेनय पर पयऩी िेंकय। िेिक ि़ीि़ी से मह
ुाँ िुियए रहय। शयम को उसने ि़ीि़ी की दी हुई िड्डू-मठरी भ़ी
नहीां ियई। पहिे उन्होंने गत ु सय ढ़दिय्य, किर उसे गोद में िेकर समझय्य। उन्होंने कहय कक ्ह अांिवर्श्र्यस नहीां है ।
्ढ़द हम पयऩी नहीां दें गे तो इांद्र भगर्यन हमें पयऩी कैसे दें गे। ्ह पयऩी की बरबयदी नहीां है । ्ह पयऩी कय
अर्घ्व है । दयन में दे ने पर ही इजच्छत र्ततु लमित़ी है । ऋवष्ों ने दयन को महयन बतय्य है । बबनय त््यग के दयन नहीां
होतय। करोडपनत दो-चयर रुप्े दयन में दे दे तो र्ह त््यग नहीां होतय। त््यग र्ह है िो अपऩी िरूरत की च़ीि को
िनकल््यण के लिए दे । ऐसे ही दयन कय िि लमितय है । िेिक ि़ीि़ी के तकों के आगे पतत हो ग्य। किर भ़ी र्ह
अपऩी जिद पर अडय रहय। ि़ीि़ी ने किर समझय्य कक तू बहुत पि ग्य है । र्ह अभ़ी भ़ी अनपि है । ककसयन भ़ी
त़ीस-चयिीस मन गेहूाँ उगयने के लिए पयाँच-छह सेर अच्छय गेहूाँ बोतय है । इस़ी तरह हम अपने घर कय पयऩी इन पर
िेंककर बुर्यई करते हैं। इस़ी से शहर, कतबय, गयाँर् पर पयऩी र्यिे बयदिों की िसि आ ियएग़ी। हम ब़ीि बनयकर
पयऩी दे ते हैं, किर कयिे मेघय से पयऩी मयाँगते हैं।
ऋवष-मनु न्ों ने भ़ी ्ह कहय है कक पहिे िद
ु दो, तभ़ी दे र्तय चौगन
ु य करके िौटयएाँगे। ्ह आदम़ी कय आचरण
है जिससे सबकय आचरण बनतय है । ‘्थय रयिय तथय प्रश्निय’ सच नहीां है । गयाँि़ी ि़ी महयरयि भ़ी ्ही कहते हैं।
िेिक कहतय है कक ्ह बयत पचयस सयि पुरयऩी होने के बयर्िूद आि भ़ी उसके मन पर दिव है । अनेक सांदभों में ्े
बयतें मन को कचोटत़ी हैं कक हम दे श के लिए क््य करते हैं ? हर क्षेत्र में मयाँगें बड़ी-बड़ी हैं, पर त््यग कय कहीां नयम-
ननशयन नहीां है । आि तर्यथव एकमयत्र िक्ष्् रह ग्य है । हम भ्रष्टयचयर की बयतें करते हैं , परां तु िुद अपऩी ियाँच नहीां
करते। कयिे मेघ उमडते हैं, पयऩी बरसतय है , परां तु गगरी िूटी की िूटी रह ियत़ी है । बैि प््यसे ही रह ियते हैं। ्ह
जतथनत कब बदिेग़ी, ्ह कोई नहीां ियनतय?

बहुववकल्पी प्रश्न

प्रश्न-1 लोग बच्चों की टोली को इन्िर सेनय ्य कफर -----------कहते थे?


(क) गय्क मांडिी
(ख) सेर्क मांडिी
(ग) मेिक मांडिी
(घ) र्यदक मांडिी
प्रश्न-2 लेखक बच्चों की टोली में त्ों नहीं शयभमल थय?
(क) िेिक पयऩी िेंकने को अन्िवर्श्र्यस मयनतय थय
(ि) िेिक को कीचड पसांद नहीां थय
(ग) इस टोिी को िोग गयलि्याँ दे ते थे
(घ) ि़ीि़ी उसे मनय करत़ी थ़ीां
प्रश्न-3 लेखक जीजी की हर बयत मयनतय थय त्ोंकक-
(क) ि़ीि़ी उसे बहुत मयनत़ी थ़ीां और उनके प्रयण िेिक में बसते थे
(ि) ि़ीि़ी अन्िवर्श्र्यस़ी थ़ीां
(ग) ि़ीि़ी उसे ियने के लिए िड्डू-मठरी दे त़ी थ़ीां
(घ) ि़ीि़ी उसे तरह-तरह की कहयनन्याँ सुनय्य करत़ी थ़ीां
प्रश्न-4 जीजी ने अपनी बयत कौन-सय उियहरण िे कर सही सयत्रबत कक्य?
(क) ककसयन और उसकी िेत़ी कय
39
(ि) इांद्र और उसकी सेनय कय
(ग) बच्चों की टोिी कय
(घ) पूि-पयठ और िमव-कमव कय
प्रश्न-5 अंत में लेखक को जीजी की बयत कैसी लगी?
(क) ियितू और अतयककवक
(ि) अन्िवर्श्र्यस से पण
ू व
(ग) सही और तयककवक
(घ) ककसयन के पक्ष में
प्रश्न-6 लेखक समयज की ककस कुरीतत को खत्म करनय चयहतय थय?
(क) अपरयध
(ख) भ्रष्टयचयर
(ग) अंधववश्वयस
(घ) चोरी-डकैती
प्रश्न-7 लेखक बचपन में कुमयर-सुधयर सिय में ककस पि पर थय?
(क) सेनयपतत
(ख) रक्षय मंत्री
(ग) भसपयही
(घ) उपमंत्री
प्रश्न-8 ककसयन तीस-चयलीस मन गेहूँ की फ़सल पयने के भलए त्य करतय है ?
(क) खेत की रखवयली
(ख) खेतों में पयनी िे तय है
(ग) पशुओं को चयरय झखलयतय है
(घ) पयँच-्ह सेर गेहूँ बोतय है
प्रश्न-9 ऋवष-मतु न्ों ने जीवन में ककस आचरण को अथधक महत्व ठि्य है ?
(क) पहिे िुद दो तभ़ी दे र्तय चौगुनय करके िौटयएाँगे
(ख) पहले अपनय िलय िे खनय चयठहए
(ग) िस
ू रों कय ध््यन नहीं रखनय चयठहए
(घ) इनमें से कोई नहीं
प्रश्न-10 लेखक के अनस
ु यर गयँधी जी ककस बयत को सच नहीं मयनते थे?
(क) त््यग और आदशव
(ख) ्थय प्रश्नजय तथय रयजय
(ग) ्थय रयजय तथय प्रश्नजय
(घ) चररत्र और सं्म
उत्तर-
1-(ग) मेिक मांडिी 2-(क) िेिक पयऩी िेंकने को अन्िवर्श्र्यस मयनतय थय 3-(क) ि़ीि़ी उसे बहुत मयनत़ी थ़ीां और
उनके प्रयण िेिक में बसते थे 4-(क) ककसयन और उसकी िेत़ी कय 5-(ग) सही और तयककवक 6-(ग) अांिवर्श्र्यस 7-(घ)
उपमांत्ऱी 8-(घ) पयाँच-छह सेर गेहूाँ बोतय है 9-(क) पहिे िुद दो तभ़ी दे र्तय चौगन
ु य करके िौटयएाँगे 10-(ग) ्थय रयिय
तथय प्रिय

40
पहलवयन की ढोलक - फणीश्वर नयथ रे णु

प्रततपयद्- ‘पहिर्यन की ढोिक’ िण़ीश्र्र नयथ रे णु दर्यरय लिखित एक श्रेष्ठ कहयऩी है । िण़ीश्र्र एक आांचलिक
कथयकयर मयने ियते हैं। प्रततुत कहयऩी उनकी एक आांचलिक कहयऩी है , जिसमें उन्होंने भयरत पर इांडड्य के छय ियने
की समत्य को प्रत़ीकयत्मक रूप से अलभव््क्त कक्य है । ्ह व््र्तथय बदिने के सयथ िोक किय और इसके
कियकयर के अप्रयसांगगक हो ियने की कहयऩी है । ्ह कहयऩी हमयरे समक्ष व््र्तथय की पोि िोित़ी है। सयथ ही
व््र्तथय के कयरण िोक कियओां के िुप्त होने की ओर सांकेत भ़ी करत़ी है तथय हमयरे सयमने ऐसे । अनेक प्रश्न पैदय
करत़ी है कक ्ह सब क््ों हो रहय है ? प्रततुत कहयऩी की भयषय सरि, सरस र् तर्यभयवर्क बोिचयि की है । इसमें
तत्सम, तदभर्, उदव ,ू फ़यरस़ी आढ़द भयषयओां के शब्दों कय प्र्ोग हुआ है । मुहयर्रों एर्ां िोकोजक्त्ों के प्र्ोग से इनकी
भयषय में रोचकतय उत्पन्न हो गई है ।
सयरयंश- श््यमनगर के सम़ीप कय एक गयाँर् सरदी के मौसम में मिेरर्य और है िे से ग्रतत थय। चयरों ओर सन्नयटे से
्ुक्त बयाँस-िूस की झोंपडड्याँ िड़ी थ़ीां। रयबत्र में घनय अांिेरय छय्य हुआ थय। चयरों ओर करुण लससकक्ों और करयहने
की आर्यिें गूांि रही थ़ीां। लस्यरों और पेचक की भ्यनक आर्यिें इस सन्नयटे को ब़ीच-ब़ीच में अर्श्् थोडय-सय तोड
रही थ़ीां। इस भ्ांकर सन्नयटे में कुत्ते समह
ू बयाँिकर रो रहे थे। रयबत्र भ़ीषणतय और सन्नयटे से ्क्
ु त थ़ी, िेककन िट्
ु टन
पहिर्यन की ढोिक इस भ़ीषणतय को तोडने कय प्रश्न्यस कर रही थ़ी। इस़ी पहिर्यन की ढोिक की आर्यि इस
भ़ीषण सन्नयटे से ्ुक्त मत
ृ गयाँर् में सांि़ीर्ऩी शजक्त भरय करत़ी थ़ी।
िुट्टन लसांह के मयतय-वपतय नौ र्षव की अर्तथय में ही उसे छोडकर चिे गए थे। उसकी बचपन में शयदी हो
चुकी थ़ी, इसलिए वर्िर्य सयस ने ही उसकय पयिन-पोषण कक्य। ससुरयि में पिते-बिते र्ह पहिर्यन बन ग्य थय।
एक बयर श््यमनगर में एक मेिय िगय। मेिे के दां गि में िट्
ु टन लसांह ने एक प्रलसदि पहिर्यन चयाँद लसांह को चन
ु ौत़ी
दे डयिी, िो शेर के बच्चे के नयम से ियनय ियतय थय। श््यमनगर के रयिय ने बहुत कहने के बयद ही िुट्टन लसांह को
उस पहिर्यन के सयथ िडने की आज्ञय दी, क््ोंकक र्ह एक बहुत प्रलसदि पहिर्यन थय।
िट्
ु टन लसांह ने ढोिक की ‘गिनय-गिनय, गिकगिनय’, आर्यि से प्रेररत होकर चयाँद लसांह पहिर्यन को बड़ी
मेहनत के बयद गचत कर ढ़द्य। चयाँद लसांह के हयरने के बयद िुट्टन लसांह की ि्-ि्कयर होने िग़ी और र्ह िुट्टन
लसांह पहिर्यन के नयम से प्रलसदि हो ग्य। रयिय ने उसकी ऱ्ीरतय से प्रभयवर्त होकर उसे अपने दरबयर में रि लि्य।
अब िुट्टन लसांह की कीनतव दरू -दरू तक िैि गई। िट्
ु टन लसांह पहिर्यन की पिी भ़ी दो पुत्रों को िन्म दे कर तर्गव
लसियर गई थ़ी।
िट्
ु टन लसांह अपने दोनों बेटों को भ़ी पहिर्यन बनयनय चयहतय थय, इसलिए र्ह बचपन से ही उन्हें कसरत
आढ़द करर्यने िग ग्य। उसने बेटों को दां गि की सांतकृनत कय पूरय ज्ञयन ढ़द्य। िेककन दभ
ु यवग्् से एक ढ़दन उसके
र््ोर्द
ृ ि रयिय कय तर्गवर्यस हो ग्य। तत्पश्चयत वर्िय्त से नए महयरयि आए। रयज्् की गददी सांभयिते ही नए
रयिय सयहब ने अनेक पररर्तवन कर ढ़दए।
दां गि कय तथयन घोडों की रे स ने िे लि्य। बेचयरे िुट्टन लसांह पहिर्यन पर कुठयरयघयत हुआ। र्ह हतप्रभ रह
ग्य। रयिय के इस रर्ै्े को दे िकर िट्ु टन लसांह अपऩी ढोिक कांिे में िटकयकर बच्चों सढ़हत अपने गयाँर् र्यपस िौट
आ्य। र्ह गयाँर् के एक ककनयरे पर झोपड़ी में रहतय हुआ नौिर्यनों और चरर्यहों को कुश्त़ी लसियने िगय। गयाँर् के
ककसयन र् िेनतहर मिदरू भिय क््य कुश्त़ी स़ीिते।
अचयनक गयाँर् में अनयर्जृ ष्ट अनयि की कम़ी, मिेरर्य, है िे आढ़द भ्ांकर समत्यओां कय र्ज्रपयत हुआ। चयरों
ओर िोग भूि, है िे और मिेरर्े से मरने िगे। सयरे गयाँर् में तबयही मच गई। िोग इस त्रयसदी से इतनय डर गए कक
सू्यवतत होते ही अपऩी-अपऩी झोंपडड्ों में घुस ियते थे। रयबत्र की वर्भ़ीवषकय और सन्नयटे को केर्ि िट्टन लसांह
पहिर्यन की ढोिक की तयन ही ििकयरकर चुनौत़ी दे त़ी थ़ी। ्ही तयन इस भ़ीषण सम् में िै्व प्रदयन करत़ी थ़ी।
्ही तयन शजक्तहीन गयाँर्र्यिों में सांि़ीर्ऩी शजक्त भरने कय कय्व करत़ी थ़ी। पहिर्यन के दोनों बेटे भ़ी इस़ी भ़ीषण
वर्भ़ीवषकय के लशकयर हुए। प्रयतः होते ही पहिर्यन ने अपने दोनों बेटों को ननततेि पय्य। बयद में र्ह अशयांत मन से
दोनों को उठयकर नदी में बहय आ्य। िोग इस बयत को सन ु कर दां ग रह गए। इस असह्् र्ेदनय और त्रयसदी से भ़ी
41
पहिर्यन नहीां टूटय। एक ढ़दन गयाँर् र्यिों को िुट्टन पहिर्यन की ढोिक रयत में नहीां सुनयई दी। सुबह उसके कुछ
लशष््ों ने ियकर दे िय तो पहिर्यन की ियश गचत्त पड़ी हुई थ़ी।
बहुववकल्पी प्रश्न

प्रश्न-1 परु यनी और उजिी बयँस-फूस की झोपड़ि्ों में ककसकय सयम्रयज्् थय?
(क) भूतों कय
(ि) अांिकयर और सन्नयटे कय
(ग) रयत कय
(घ) हर्य कय
प्रश्न-2 ककस जयनवर में पररक्स्थतत्ों को तयिने की ववशेष बद
ु थध होती है ?
(क) बबल्िी
(ि) उल्िू
(ग) कुत्तय
(घ) लस्यर
प्रश्न-3 मत
ृ गयँव में ककसकी आवयज संजीवनी शक्तत िरती रहती थी?
(क) कुत्तों की
(ि) पेचक की
(ग) पहिर्यन की ढोिक की
(घ) लस्यरों की
प्रश्न-4 लुट्टन कय पयलन-पोषण ककसने कक्य?
(क) रयिय श््यमयनांद ने
(ि) उसकी वर्िर्य सयस ने
(ग) गयाँर् र्यिों ने
(घ) उसके लशष््ों ने
प्रश्न-5 श््यम नगर के िं गल में लुट्टन ने ककसको चन
ु ौती िी?
(क) चयाँद लसांह को
(ि) बयदि लसांह को
(ग) श््यम लसांह को
(घ) इनमें से कोई नहीां
प्रश्न-6 चयँि भसंह के गुरु कय त्य नयम थय?
(क) कयिय ियां
(ि) पहिर्यन कयकय
(ग) श््यम लसांह
(घ) बयदि लसांह
प्रश्न-7 लुट्टन पहलवयन ककतने वषथ तक रयज िरबयर कय अजे् पहलवयन बनय रहय?
(क) दस र्षव तक
(ि) ब़ीस र्षव तक
(ग) पांद्रह र्षव तक
(घ) पच़ीस र्षव तक
प्रश्न-8 “जीते रहो बहयिरु ! तुमने भमट्टी की लयज रख ली”- ्ह कथन ककसकय है ?
(क) चयाँद लसांह कय
42
(ि) बयदि लसांह कय
(ग) िुट्टन लसांह कय
(घ) रयिय श््यमयनांद कय
प्रश्न-9 ‘पहलवयन की ढोलक’ कहयनी ककस प्रकयर की कहयनी है ?
(क) रयिऩीनतक
(ि) आांचलिक
(ग) सयमयजिक
(घ) उपदे शयत्मक
प्रश्न-10 रयजय की मत्ृ ्ु के बयि कुश्ती के स्थयन पर ककस खेल ने जगह ले ली?
(क) घोडों की रे स
(ि) कबड्ड़ी
(ग) िुटबयि
(घ) शतरां ि
उत्तर-
1-(ि) अांिकयर और सन्नयटे कय 2-(ग) कुत्तय 3-(ग) पहिर्यन की ढोिक की 4-(ि) उसकी वर्िर्य सयस ने 5-(क) चयाँद
लसांह को 6-(घ) बयदि लसांह 7-(ग) पांद्रह र्षव तक 8-(घ) रयिय श््यमयनांद कय 9-(ि) आांचलिक 10-(क) घोडों की रे स

भशरीष के फूल – हजयरी प्रश्नसयि दवववेिी

प्रततपयि्- ‘लशरीष के िूि’ श़ीषवक ननबांि ‘कल्पितय’ से उदित


ृ है । इसमें िेिक ने आाँि़ी, िू और गरम़ी की प्रचांडतय
में भ़ी अर्िूत की तरह अवर्चि होकर कोमि पष्ु पों कय सौंद्व बबिेर रहे लशरीष के मयध््म से मनुष्् की अिे्
जज़ि़ीवर्षय और तुमुि कोियहि किह के ब़ीच िै्प
व ूर्क
व , िोक के सयथ गचांतयरत, कतवव््श़ीि बने रहने को महयन
मयनऱ्ी् मूल्् के रूप में तथयवपत कक्य है । ऐस़ी भयर्ियरय में बहते हुए उसे दे ह-बि के ऊपर आत्मबि कय महत्र्
लसदि करने र्यिी इनतहयस-वर्भूनत गयांि़ी ि़ी की ्यद हो आत़ी है तो र्ह गयांि़ीर्यदी मूल््ों के अभयर् की प़ीडय से भ़ी
कसमसय उठतय है ।
ननबांि की शुरुआत में िेिक लशरीष पष्ु प की कोमि सुांदरतय के ियि बुनतय है , किर उसे भेदकर उसके
इनतहयस में और किर उसके िरर्े मध््कयि के सयांतकृनतक इनतहयस में पैठतय है , किर तत्कयिीन ि़ीर्न र् सयमांत़ी
र्ैभर्-वर्ियस को सयर्ियऩी से उकेरते हुए उसकय िोिियपन भ़ी उियगर करतय है । र्ह अशोक के िूि के भि
ू ियने
की तरह ही लशरीष को निरअांदयि ककए ियने की सयढ़हजत््क घटनय से आहत है । इस़ी में उसे सच्चे कवर् कय तत्त्र्-
दशवन भ़ी होतय है । उसकय मयननय है कक ्ोग़ी की अनयसक्त शून््तय और प्रेम़ी की सरस पूणत
व य एक सयथ उपिब्ि
होनय सत्कवर् होने की एकमयत्र शतव है । ऐसय कवर् ही समतत प्रयकृनतक और मयनऱ्ी् र्ैभर् में रमकर भ़ी चुकतय नहीां
और ननरां तर आगे बिते ियने की प्रेरणय दे तय है ।
सयरयंश- िेिक लशरीष के पेडों के समह
ू के ब़ीच बैठकर िेि लिि रहय है । िेठ की गरम़ी से िरत़ी िि रही है । ऐसे
सम् में लशरीष ऊपर से ऩीचे तक िूिों से िदय है । कम ही िूि गरम़ी में खििते हैं। अमितयस केर्ि पांद्रह-ब़ीस
ढ़दन के लिए िूितय है । कब़ीरदयस को इस तरह दस ढ़दन िूि खििनय पसांद नहीां है । लशरीष में िूि िांबे सम् तक
रहते हैं। र्े र्सांत में खििते हैं तथय भयदों मयह तक िूिते रहते हैं। भ़ीषण गरम़ी और िू में ्ही लशरीष अर्ित
ू की
तरह ि़ीर्न की अिे्तय कय मांत्र पियतय रहतय है । लशरीष के र्क्ष
ृ बडे र् छय्यदयर होते हैं। पुरयने रईस मांगि-िनक
र्क्ष
ृ ों में लशरीष को भ़ी िगय्य करते थे। र्यत्त्य्न कहते हैं कक बग़ीचे के घने छय्यदयर र्क्ष
ृ ों में ही झि
ू य िगयनय
चयढ़हए। पुरयने कवर् बकुि के पेड में झूिय डयिने के लिए कहते हैं, परां तु िेिक लशरीष को भ़ी उप्ुक्त मयनतय है ।
लशरीष की डयिें कुछ कमिोर होत़ी हैं, परां तु उस पर झूिनेर्यलि्ों कय र्िन भ़ी कम ही होतय है । लशरीष के
िूि को सांतकृत सयढ़हत्् में कोमि मयनय ियतय है । कयलिदयस ने लििय है कक लशरीष के िूि केर्ि भौंरों के पैरों कय

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दबयर् सहन कर सकते हैं, पक्षक्ष्ों के पैरों कय नहीां। इसके आियर पर भ़ी इसके िूिों को कोमि मयनय ियने िगय, पर
इसके ििों की मिबूत़ी नहीां दे िते। र्े तभ़ी तथयन छोडते हैं, िब उन्हें िकक्य ढ़द्य ियतय है । िेिक को उन नेतयओां
की ्यद आत़ी है िो सम् को नहीां पहचयनते तथय िक्कय दे ने पर ही पद को छोडते हैं। िेिक सोचतय है कक पुरयने
की ्ह अगिकयर-लिप्सय क््ों नहीां सम् रहते सयर्ियन हो ियत़ी। र्द
ृ ियर्तथय र् मत्ृ ्ु-्े िगत के सत्् हैं। लशरीष के
िूिों को भ़ी समझनय चयढ़हए कक झडनय ननजश्चत है , परां तु सन
ु तय कोई नहीां। मत्ृ ्ु कय दे र्तय ननरां तर कोडे चिय रहय है ।
उसमें कमिोर समयप्त हो ियते हैं। प्रयणियरय र् कयि के ब़ीच सांघषव चि रहय है । ढ़हिने-डुिने र्यिे कुछ सम् के लिए
बच सकते हैं। झडते ही मत्ृ ्ु ननजश्चत है ।
िेिक को लशरीष अर्ित
ू की तरह िगतय है । ्ह हर जतथनत में ठीक रहतय है । भ्ांकर गरम़ी में भ़ी ्ह
अपने लिए ि़ीर्न-रस ढूाँि िेतय है । एक र्नतपनतशयतत्ऱी ने बतय्य कक ्ह र्य्ुमांडि से अपनय रस ि़ीांचतय है तभ़ी तो
भ्ांकर िू में ऐसे सुकुमयर केसर उगय सकय। अर्िूतों के मुाँह से भ़ी सांसयर की सबसे सरस रचनयएाँ ननकिी हैं। कब़ीर
र् कयलिदयस उस़ी श्रेण़ी के हैं। िो कवर् अनयसक्त नहीां रह सकय, िो िक्कड नहीां बन सकय, जिससे िेिय-िोिय
लमितय है , र्ह कवर् नहीां है । कणयवट-रयि की वप्र्य वर्जज्िकय दे ऱ्ी ने िहमय, र्यल्म़ीकक र् व््यस को ही कवर् मयनय।
िेिक कय मयननय है कक जिसे कवर् बननय है , उसकय िक्कड होनय बहुत िरूरी है । कयलिदयस अनयसक्त ्ोग़ी की तरह
जतथर-प्रज्ञ, वर्दग्ि प्रेम़ी थे। उनकय एक-एक श्िोक मुग्ि करने र्यिय है । शकांु तिय कय र्णवन कयलिदयस ने कक्य।
रयिय दष्ु ्ांत ने भ़ी शांकुतिय कय गचत्र बनय्य, परां तु उन्हें हर बयर उसमें कम़ी महसूस होत़ी थ़ी। कयिी दे र बयद
उन्हें समझ आ्य कक शकांु तिय के कयनों में लशरीष कय िूि िगयनय भि
ू गए हैं। कयलिदयस सौंद्व के बयहरी आर्रण
को भेदकर उसके भ़ीतर पहुाँचने में समथव थे। र्े सुि-दि
ु दोनों में भयर्-रस ि़ीांच लि्य करते थे। ऐस़ी प्रकृनत
सुलमत्रयनांदन पांत ब रऱ्ीांद्रनयथ में भ़ी थ़ी। लशरीष पक्के अर्िूत की तरह िेिक के मन में भयर्ों की तरां गें उठय दे तय है ।
र्ह आग उगित़ी िूप में भ़ी सरस बनय रहतय है । आि दे श में मयरकयट, आगिऩी, िूटपयट आढ़द कय बर्ांडर है । ऐसे
में क््य जतथर रहय िय सकतय है ? लशरीष रह सकय है । गयांि़ी ि़ी भ़ी रह सके थे। ऐसय तभ़ी सांभर् हुआ है िब र्े
र्य्मु ांडि से रस ि़ीांचकर कोमि र् कठोर बने। िेिक िब लशरीष की ओर दे ितय है तो हूक उठत़ी है -हय्, र्ह
अर्िूत आि कहयाँ है !
बहुववकल्पी प्रश्न

प्रश्न-1 िीषण गमी और लू के बीच ककस वक्ष


ृ के फूल झखले रहते हैं?
(क) अशोक
(ि) अमितयस
(ग) लशरीष
(घ) र्ट
प्रश्न-2 लेखक ने भशरीष की तुलनय ककससे की है ?
(क) अर्ित
ू से
(ि) गह
ृ तथ से
(ग) अजग्न से
(घ) सेर्क से
प्रश्न-3 संस्कृत सयठहत्् में भशरीष के फूल को त्य मयनय ग्य है ?
(क) कठोर
(ि) ठां डय
(ग) तर्च्छ
(घ) कोमि
प्रश्न-4 कयभलियस ने भशरीष के फूलों के बयरे में त्य भलखय है ?
(क) लशरीष के िूि कठोर होते हैं
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(ि) केर्ि भौरों के पैरों कय दबयर् ही सह सकतय है
(ग) हिके और मिबूत होते हैं
(घ) केर्ि गचडड्ों के पैरों कय दबयर् ही सह सकतय है
प्रश्न-5 लेखक ने जगत के अतत प्रयमयझणक सत्् ककसे मयनय है ?
(क) िरय और मत्ृ ्ु को
(ि) िन और दौित को
(ग) मय्य और मोह को
(घ) गह
ृ तथ और सांन््यस़ी को
प्रश्न-6 संसयर की सबसे सरस रचनयएँ ककनके मुँह से तनकली हैं?
(क) गह
ृ तथों के मुाँह से
(ि) रयियओां के मुाँह से
(ग) अर्िूतों के मुाँह से
(घ) इनमें से कोई नहीां
प्रश्न-7 कणयथट रयज की रयनी ववक्ज्जकय ने ककन्हें सवथश्रेष्ि कवव मयनय है ?
(क) िह्मय ि़ी को
(ि) र्ेद व््यस ि़ी को
(ग) र्यल्म़ीकक ि़ी को
(घ) इनमें से सभ़ी को
प्रश्न-8 रयजय िष्ु ्ंत दवयरय शकंु तलय के बनयए गए थचत्र में त्य कमी रह गई थी?
(क) शकांु तिय की भौहें नतरछी थ़ी
(ि) कयनों में लशरीष कय िूि पहनयनय भि
ू गए
(ग) केश-सज्िय ठीक से नहीां कर पयए
(घ) गिे कय हयर पहनयनय भूि गए
प्रश्न-9 लेखक ने सुभमत्रयनंिन पंत को त्ों महत्व ठि्य है ?
(क) उन्होंने प्रकृनत के सूक्ष्म रूप कय गचत्रण कक्य है
(ि) िेिक से उनकी लमत्रतय थ़ी
(ग) दस
ू रे कवर््ों की तरह ही उन्होंने रचनयएाँ की हैं
(घ) कयलिदयस और सलु मत्रयनांदन पांत एक ही भयषय के कवर् हैं
प्रश्न-10 कयभलियस शकंु तलय कय वणथन करने में त्ों सफल रहे ?
(क) क््ोंकक उन्हें सांतकृत कय ज्ञयन थय
(ि) क््ोंकक र्े िांगि में अकेिे रहते थे
(ग) क््ोंकक उन्हें भगर्त़ी कयिी कय र्रदयन प्रयप्त थय
(घ) क््ोंकक र्े वर्दग्ि, अनयसक्त और जतथर प्रश्नज्ञ प्रेम़ी थे
उत्तर-
1-(ग) लशरीष 2-(क) अर्ित
ू से 3-(घ) कोमि 4-(ि) केर्ि भौरों के पैरों कय दबयर् ही सह सकतय है 5-(क) िरय और
मत्ृ ्ु को 6- (ग) अर्िूतों के मुाँह से 7-(घ) इनमें से सभ़ी को 8-(ि) कयनों में लशरीष कय िूि पहनयनय भूि गए 9-
(क) उन्होंने प्रकृनत के सूक्ष्म रूप कय गचत्रण कक्य है 10-(घ) क््ोंकक र्े वर्दग्ि, अनयसक्त और जतथर प्रज्ञ प्रेम़ी थे

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श्रम-ववियजन और जयतत-प्रथय, मेरी कल्पनय कय आिशथ समयज – डॉ िीमरयव आम्बेडकर

श्रम-ववियजन और जयतत-प्रथय

प्रततपयि्- ्ह पयठ आांबेडकर के वर्ख््यत भयषण ‘एऩीढ़हिेशन ऑफ़ कयतट'(1936) पर आियररत है । इसकय अनुर्यद
ििई लसांह ्यदर् ने ‘ियनत-भेद कय उच्छे द’ श़ीषवक के अांतगवत कक्य। ्ह भयषण ‘ियनत-पयाँनत तोडक मांडि’ (ियहौर) के
र्यवषवक सम्मेिन (1936) के अध््क्ष़ी् भयषण के रूप में तै्यर कक्य ग्य थय, परां तु इसकी ियांनतकयरी दृजष्ट से
आ्ोिकों की पण
ू व सहमनत न बन सकने के कयरण सम्मेिन तथगगत हो ग्य।
सयरयंश- िेिक कहतय है कक आि के ्ुग में भ़ी ियनतर्यद के पोषकों की कम़ी नहीां है । समथवक कहते हैं कक आिुननक
सभ्् समयि कय्व-कुशितय के लिए श्रम-वर्भयिन को आर्श््क मयनतय है । इसमें आपवत्त ्ह है कक ियनत-प्रथय श्रम-
वर्भयिन के सयथ-सयथ श्रलमक वर्भयिन कय भ़ी रूप लिए हुए है । श्रम-वर्भयिन सभ्् समयि की आर्श््कतय हो
सकत़ी है , परां तु ्ह श्रलमकों कय वर्लभन्न र्गों में अतर्यभयवर्क वर्भयिन नहीां करत़ी। भयरत की ियनत-प्रथय श्रलमकों के
अतर्यभयवर्क वर्भयिन के सयथ-सयथ वर्भयजित वर्लभन्न र्गों को एक-दस
ू रे की अपेक्षय ऊाँच-ऩीच भ़ी करयर दे त़ी है ।
ियनत-प्रथय को ्ढ़द श्रम-वर्भयिन मयन लि्य ियए तो ्ह भ़ी मयनर् की रुगच पर आियररत नहीां है । सक्षम समयि को
चयढ़हए कक र्ह िोगों को अपऩी रुगच कय पेशय करने के लिए सक्षम बनयए। ियनत-प्रथय में ्ह दोष है कक इसमें मनष्ु ्
कय पेशय उसके प्रलशक्षण ्य उसकी ननि़ी क्षमतय के आियर पर न करके उसके मयतय-वपतय के सयमयजिक ततर से कक्य
ियतय है । ्ह मनुष्् को ि़ीर्न-भर के लिए एक पेशे में बयाँि दे त़ी है । ऐस़ी दशय में उद्ोग-िांिों की प्रकि्य र्
तकऩीक में पररर्तवन से भि
ू ों मरने की नौबत आ ियत़ी है । ढ़हांद ू िमव में पेशय बदिने की अनुमनत न होने के कयरण
कई बयर बेरोिगयरी की समत्य उभर आत़ी है ।
ियनत-प्रथय कय श्रम-वर्भयिन मनष्ु ् की तर्ेच्छय पर ननभवर नहीां रहतय। इसमें व््जक्तगत रुगच र् भयर्नय कय
कोई तथयन नहीां होतय। पूर्व िेि ही इसकय आियर है । ऐस़ी जतथनत में िोग कयम में अरुगच ढ़दियते हैं। अत: आगथवक
पहिू से भ़ी ियनत-प्रथय हयननकयरक है क््ोंकक ्ह मनुष्् की तर्यभयवर्क प्रेरणय, रुगच र् आत्म-शजक्त को दबयकर उन्हें
तर्यभयवर्क नन्मों में िकडकर ननजष्ि् बनय दे त़ी है ।

मेरी कल्पनय कय आिशथ समयज

प्रततपयि्- इस पयठ में िेिक ने बतय्य है कक आदशव समयि में त़ीन तत्र् अननर्य्वत: होने चयढ़हए-समयनतय, तर्तांत्रतय
र् बांिुतय। इनसे िोकतांत्र सयमूढ़हक ि़ीर्नच्यव की एक रीनत तथय समयि के सजम्मलित अनुभर्ों के आदयन-प्रदयन की
प्रकि्य के अथव तक पहुाँच सकतय है ।

सयरयंश- िेिक कय आदशव समयि तर्तांत्रतय, समतय र् भ्रयतत्त


ृ पर आियररत होगय। समयि में इतऩी गनतश़ीितय होऩी
चयढ़हए कक कोई भ़ी पररर्तवन समयि में तरु ां त प्रसयररत हो ियए। ऐसे समयि में सबकय सब कय्ों में भयग होनय चयढ़हए
तथय सबको सबकी रक्षय के प्रनत सिग रहनय चयढ़हए। सबको सांपकव के सयिन र् अर्सर लमिने चयढ़हए। ्ही िोकतांत्र
है । िोकतांत्र मूित: सयमयजिक ि़ीर्नच्यव की एक रीनत र् समयि के सजम्मलित अनुभर्ों के आदयन-प्रदयन कय नयम है ।
आर्यगमन, ि़ीर्न र् शयरीररक सरु क्षय की तर्यि़ीनतय, सांपवत्त, ि़ीवर्कोपयिवन के लिए िरूरी औियर र् सयमग्ऱी रिने के
अगिकयर की तर्तांत्रतय पर ककस़ी को कोई आपवत्त नहीां होत़ी, परां तु मनुष्् के सक्षम र् प्रभयर्शयिी प्र्ोग की तर्तांत्रतय
दे ने के लिए िोग तै्यर नहीां हैं। इसके लिए व््र्सय् चुनने की तर्तांत्रतय दे ऩी होत़ी है । इस तर्तांत्रतय के अभयर् में
व््जक्त ‘दयसतय’ में िकडय रहे गय।
‘दयसतय’ केर्ि कयनूऩी नहीां होत़ी। ्ह र्हयाँ भ़ी है िहयाँ कुछ िोगों को दस
ू रों दर्यरय ननियवररत व््र्हयर र्
कतवव््ों कय पयिन करने के लिए वर्र्श होनय पडतय है। फ्यांस़ीस़ी ियांनत के नयरे में ‘समतय’ शब्द सदै र् वर्र्यढ़दत रहय है ।
समतय के आिोचक कहते हैं कक सभ़ी मनुष्् बरयबर नहीां होते। ्ह सत्् होते हुए भ़ी महत्र् नहीां रितय क््ोंकक
समतय असांभर् होते हुए भ़ी नन्यमक लसदियांत है । मनष्ु ् की क्षमतय त़ीन बयतों पर ननभवर है : 1- शयरीररक र्ांश परां परय
2- सयमयजिक उत्तरयगिकयर, 3-मनुष्् के अपने प्र्त्न।

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इन त़ीनों दृजष्ट्ों से मनुष्् समयन नहीां होते, परां तु क््य इन त़ीनों कयरणों से व््जक्त से असमयन व््र्हयर
करनय चयढ़हए। असमयन प्र्त्न के कयरण असमयन व््र्हयर अनुगचत नहीां है , परां तु हर व््जक्त को वर्कयस करने के
अर्सर लमिने चयढ़हए। िेिक कय मयननय है कक उच्च र्गव के िोग उत्तम व््र्हयर के मक
ु यबिे में ननश्च् ही ि़ीतें गे
क््ोंकक उत्तम व््र्हयर कय ननणव् भ़ी सांपन्नों को ही करनय होगय। प्र्यस मनुष्् के र्श में है , परां तु र्ांश र् सयमयजिक
प्रनतष्ठय उसके र्श में नहीां है । अत: र्ांश और सयमयजिकतय के नयम पर असमयनतय अनगु चत है । एक रयिनेतय को
अनेक िोगों से लमिनय होतय है । उसके पयस हर व््जक्त के लिए अिग व््र्हयर करने कय सम् नहीां होतय। ऐसे में
र्ह व््र्हय्व लसदियांत कय पयिन करतय है कक सब मनुष््ों के सयथ समयन व््र्हयर कक्य ियए। र्ह सबसे व््र्हयर
इसलिए करतय है क््ोंकक र्गीकरण र् श्रेण़ीकरण सांभर् नहीां है । समतय एक कयल्पननक र्ततु है , किर भ़ी रयिऩीनतज्ञों
के लिए ्ही एकमयत्र उपय् र् मयगव है ।
बहुववकल्पी प्रश्न

प्रश्न-1 जयतत-प्रथय के समथथक ककस कयरण से जयतत-प्रथय कय पोषण करते हैं?


(क) ्ह कय्व-कुशितय के लिए आर्श््क है
(ि) इससे समयि में अव््र्तथय िैित़ी है
(ग) समयि में िोगों की पहचयन बऩी रहत़ी है
(घ) इनमें से कोई नहीां
प्रश्न-2 जयतत-प्रथय स्वस्थ समयज के भलए एक बुरयई त्ों है ?
(क) ्ह श्रलमक वर्भयिन कय भ़ी रूप लिए हुए है
(ि) ्ह मनुष्् को ि़ीर्न-भर के लिए एक पेशे में बयाँि दे त़ी
(ग) ्ह िोगों को अपऩी रुगच कय पेशय करने से रोकत़ी है
(घ) इनमें से सभ़ी
प्रश्न-3 लेखक ने ियरती् समयज में बेरोजगयरी और िुखमरी कय कयरण ककसे बतय्य है ?
(क) श्रम-वर्भयिन को
(ि) ियनत-प्रथय को
(ग) तर्तांत्रतय को
(घ) इनमें से कोई नहीां
प्रश्न-4 लेखक के अनुसयर जयतत-प्रथय कौन-सय पेशय करने की अनुमतत िे ती है ?
(क) ननि़ी पेशय
(ि) तर्तांत्र पेशय
(ग) पैतक
ृ पेशय
(घ) इनमें से कोई नहीां
प्रश्न-5 स्वतंत्रतय, समतय और भ्रयतत
ृ य पर आधयररत समयज को लेखक ने कैसय समयज कहय है ?
(क) लमगश्रत समयि
(ि) तर्तांत्र समयि
(ग) आदशव समयि
(घ) बहुि समयि
प्रश्न-6 लेखक ने ककतने तरह की ियसतय कय उल्लेख कक्य है ?
(क) दो तरह की
(ि) त़ीन तरह की
(ग) चयर तरह की
(घ) पयाँच तरह की
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प्रश्न-7 ‘समतय’ शब्ि कय नयरय ककस क्रयंतत में लगय्य लगय्य ग्य थय?
(क) रूस़ी ियांनत में
(ि) िमवन ियांनत में
(ग) अमेररकन ियांनत में
(घ) फ्यांस़ीस़ी ियांनत में
प्रश्न-8 ‘श्रम-ववियजन’ ककस आधयर पर उथचत है ?
(क) रूगच और क्षमतय के आियर पर
(ि) ियनत के आियर पर
(ग) व््र्सय् के आियर पर
(घ) िन्म के आियर पर
प्रश्न-9 आधुतनक ्ुग में कब अपनय पेशय बिलने की आवश््कतय पिती है ?
(क) िन अजिवत करने के कयरण
(ि) ियनत-प्रथय के कयरण
(ग) अगिक लशक्षक्षत हो ियने कयरण
(घ) तकऩीकी वर्कयस एर्ां बदियर् के कयरण
प्रश्न-10 समयज के सिी लोगों को आरं ि से ही त्य उपलब्ध करयनय चयठहए?
(क) अच्छय घर
(ि) असमयन अर्सर
(ग) समयन अर्सर
(घ) तकऩीकी प्रश्नलशक्षण
उत्तर-
1-(क) ्ह कय्व-कुशितय के लिए आर्श््क है 2-(घ) इनमें से सभ़ी (3)- (ि) ियनत-प्रथय को 4-(ग) पैतक
ृ पेशय 5-(ग)
आदशव समयि 6-(ि) त़ीन तरह की 7-(घ) फ्यांस़ीस़ी ियांनत में 8-(क) रूगच और क्षमतय के आियर पर 9-(घ) तकऩीकी
वर्कयस एर्ां बदियर् के कयरण 10-(ग) समयन अर्सर

भसल्वर वैड़डंग - मनोहर श््यम जोशी

पयि कय सयरयंश

्ह िांब़ी कहयऩी िेिक की अन्् रचनयओां से कुछ अिग ढ़दियई दे त़ी है । आिुननकतय की ओर बितय हमयरय
समयि एक ओर कई नई उपिजब्ि्ों को समेटे हुए है तो दस ू री ओर मनुष्् को मनुष्् बनयए रिने र्यिे मूल्् कहीां
नघसते चिे गए हैं। जो हुआ होगय और समहयउ इंप्रयपर के दो िुमिे इस कहयऩी के ब़ीि र्यक्् हैं। जो हुआ होगय में
्थयजतथनतर्यद ्यऩी ज््ों-कय-त््ों तऱ्ीकयर िेने कय भयर् है तो समहयउ इंप्रयपर में एक अननणव् की जतथनत भ़ी है । ्े
दोनों ही भयर् इस कहयऩी के मुख्् चररत्र ्शोिर बयबू के भ़ीतर के दर्ांदर् हैं। र्े इन जतथनत्ों कय जिम्मेदयर भ़ी
ककस़ी व््जक्त को नहीां ठहरयते। र्े अननणव् की जतथनत में हैं।
दफ़्तर में सेक्शन अफ़सर ्शोिर पांत ने िब आखिरी फ़यइि कय कयम परू य कक्य तो दफ़्तर की घड़ी में पयाँच
बिकर पच्च़ीस लमनट हुए थे। र्े अपऩी घड़ी सुबह-शयम रे डड्ो समयचयरों से लमियते हैं, इसलिए र्े दफ़्तर की घड़ी को
सुतत बतयते हैं। इनके कयरण अि़ीनतथ को भ़ी पयाँच बिे के बयद भ़ी रुकनय पडतय है । र्यपस़ी के सम् र्े ककशन दय
की उस परां परय कय ननर्यवह करते हैं जिसमें िूनन्रों से हल्कय मियक कक्य ियतय है । दफ़्तर में नए अलसतटें ट चड्ढय
की चौड़ी मोहरी र्यिी पतिून और ऊाँच़ी एड़ी र्यिे िूते पांत ि़ी को ‘समहयउ इांप्रयपर’ मयिूम होते हैं। उसने थोड़ी
बदतम़ीि़ीपण
ू व व््र्हयर करते हुए पांत ि़ी की चन
ू ेदयऩी कय हयि पछ
ू य। पांत ि़ी ने उसे िर्यब ढ़द्य। किर चड्ढय ने पांत

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ि़ी की कियई थयम िी और कहय कक ्ह पुरयऩी है । अब तो डडजिटि ियपयऩी घड़ी िे िो। सतत़ी लमि ियत़ी है । पांत
ि़ी उसे बतयते हैं कक ्ह घड़ी उन्हें शयदी में लमिी है। ्ह घड़ी भ़ी उनकी तरह ही पुरयऩी हो गई है । अभ़ी तक ्ह
सही सम् बतय रही है ।
इस तरह िर्यब दे ने के बयद एक हयथ बियने की परां परय पांत ि़ी ने अल्मोडय के रे म्िे तकूि में स़ीि़ी थ़ी। ऐस़ी
परां परय ककशन दय के क्र्यटवर में भ़ी थ़ी िहयाँ ्शोिर को शरण लमिी थ़ी। ककशन दय कांु आरे थे और पहयड़ी िडकों को
आश्र् दे ते थे। पांत ि़ी िब ढ़दल्िी आए थे तो उनकी उम्र सरकयरी नौकरी के लिए कम थ़ी। तब ककशन दय ने उन्हें
मैस कय रसोइ्य बनयकर रि लि्य। उन्होंने ्शोिर को कपडे बनर्यने र् घर पैसय भेिने के लिए पचयस रुप्े
ढ़दए। इस तरह र्े तमनृ त्ों में िो गए। तभ़ी चड्ढय की आर्यि से र्े ियग्रत हुए और मेनन दर्यरय शयदी के सांबांि में
पूछे गए सर्यि कय िर्यब दे ते हुए कहने िगे’नयर् िेट म़ी स़ी, आई र्ॉज़ मैररड ऑन लसक्तथ िरर्री नयइांटीन फ़ोटी
सेर्न।’
मेनन ने उन्हें ‘लसल्र्र र्ैडडांग की बियई दी। ्शोिर िुश होते हुए झेपे और झांपते हुए िुश हुए। किर भ़ी र्े
इन सब बयतों को अांग्रेिों के चोंचिे बतयते हैं, ककां तु चड्ढय उनसे चय्-मट्ठी र् िड्डू की मयाँग करतय है । ्शोिर ि़ी
दस रुप्े कय नोट चय् के लिए दे ते हैं, परां तु उन्हें ्ह ‘समहयउ इांप्रॉपर ियइांड’ िगतय है । अत: सयरे सेक्शन के आग्रह
पर भ़ी र्े चय् पयटी में शरीक नहीां होते है । चडिय के िोर दे ने पर र्े ब़ीस रुप्े और दे दे ते हैं , ककां तु आ्ोिन में
सजम्मलित नहीां होते। उनके सयथ बैठकर चय्-पयऩी और गप्प-गप्पयष्टक में र्क्त बरबयद करनय उनकी परां परय के
वर्रुदि है ।
्शोिर बयबू ने इिर रोि बबडिय मांढ़दर ियने और उसके उद्यन में बैठकर प्रश्नर्चन सुनने ्य तर््ां ही
प्रश्नभु कय ध््यन िगयने की ऩ्ी रीनत अपनयई है । ्ह बयत उनकी पत्ऩी र् बच्चों को अिरत़ी थ़ी। क््ोंकक र्े बुिग
ु व
नहीां थे। बबडिय मांढ़दर से उठकर र्े पहयडगांि ियते और घर के लिए सयग-सब्ि़ी ियते। इस़ी सम् र्े लमिने र्यिों से
लमिते थे। घर पर र्े आठ बिे से पहिे नहीां पहुाँचते थे।
आि ्शोिर िब बबडिय मांढ़दर िय रहे थे तो उनकी निर ककशन दय के त़ीन बेडरूम र्यिे क्र्यटव र पर पड़ी।
अब र्हयाँ छह-मांजििय मकयन बन रहय है । उन्हें बहुमांजििी इमयरतें अच्छी नहीां िग रही थ़ीां। ्ही कयरण है कक उन्हें
उनके पद के अनुकूि एांड्र्ि
ू गांि, िक्ष्म़ीबयई नगर पर ड़ी-2 टयइप अच्छे क्र्यटव र लमिने कय ऑफ़र भ़ी तऱ्ीकय्व नहीां है
और र्े ्हीां बसे रहनय चयहते हैं। िब उनकय क्र्यटव र टूटने िगय तब उन्होंने शेष क्र्यटव र में से एक अपने नयम अियट
करर्य लि्य। र्े ककशन दय की तमनृ त के लिए ्हीां रहनय चयहते थे।
वपछिे कई र्षों से ्शोिर बयबू कय अपऩी पत्ऩी र् बच्चों से हर छोटी-बड़ी बयत पर मतभेद होने िगय है ।
इस़ी र्िह से उन्हें घर िल्दी िौटनय अच्छय नहीां िगतय थय। उनकय बडय िडकय एक प्रश्नमि
ु वर्ज्ञयपन सांतथय में
नौकरी पर िग ग्य थय। ्शोिर बयबू को ्ह भ़ी ‘समहयउ’ िगतय थय क््ोंकक ्ह कांपऩी शुरू में ही डेि हियर रुप्े
प्रश्ननतमयह र्ेतन दे त़ी थ़ी। उन्हें कुछ गडबड िगत़ी थ़ी। उनकय दस
ू रय बेटय आई०ए०एस० की तै्यरी कर रहय थय।
उसकय एियइड सवर्वसि
े में न ियनय भ़ी उनको अच्छय नहीां िगतय। उनकय त़ीसरय बेटय तकॉिरलशप िेकर अमेररकय
चिय ग्य। उनकी एकमयत्र बेटी शयदी से इनकयर करत़ी है । सयथ ही र्ह डॉक्टरी की उच्चतम लशक्षय के लिए अमेररकय
ियने की िमकी भ़ी दे त़ी है। र्े अपने बच्चों की तरक्की से िुश हैं, परां तु उनके सयथ सयमांित् नहीां बैठय पयते।
्शोिर की पत्ऩी सांतकयरों से आिनु नक नहीां है , परां तु बच्चों के दबयर् से र्ह मॉडनव बन गई है । शयदी के
सम् भ़ी उसे सां्क्
ु त पररर्यर कय दबयर् झेिनय पडय थय। ्शोिर ने उसे आचयर-व््र्हयर के बांिनों में रिय। अब र्ह
बच्चों कय पक्ष िेत़ी है तथय िुद भ़ी अपऩी सहूलि्त के ढ़हसयब से ्शोिर की बयतें मयनने की बयत कहत़ी है ।
्शोिर उसे ‘शयि्ि बढ़ु ि्य’, ‘चटयई कय िहाँगय’ ्य ‘बूिी मुाँह माँह
ु यसे, िोग करें तमयसे’ कहकर उसके वर्द्रोह कय
मियक उडयते हैं, परां तु र्े िद
ु ही तमयशय बनकर रह गए। ककशन दय के क्र्यटव र के सयमने िडे होकर र्े सोचते हैं कक
र्े शयदी न करके पूरय ि़ीर्न समयि को समवपवत कर दे ते तो अच्छय होतय।
्शोिर ने सोचय कक ककशन दय कय बुियपय कभ़ी सि
ु ़ी नहीां रहय। उनके तमयम सयगथ्ों ने मकयन िे लिए।
ररटय्रमें ट के बयद ककस़ी ने भ़ी उन्हें अपने पयस रहने की पेशकश नहीां की। तर््ां ्शोिर भ़ी ्ह पेशकश नहीां कर

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पयए क््ोंकक र्े शयदीशुदय थे। ककशन दय कुछ सम् ककरय्े के मकयन में रहे और किर अपने गयाँर् िौट गए। सयिभर
बयद उनकी मत्ृ ्ु हो गई। उन्हें कोई ब़ीमयरी भ़ी नहीां हुई थ़ी। ्शोिर को इसकय कयरण भ़ी पतय नहीां। र्े ककशन दय
की ्ह बयत ्यद रिते थे कक जिम्मेदयरी पडने पर हर व््जक्त समझदयर हो ियतय है ।
र्े मन-ही-मन ्ह तऱ्ीकयर करते थे कक दनु न्यदयरी में उनके ब़ीऱ्ी-बच्चे अगिक सुिझे हुए हैं, परां तु र्े अपने लसदियांत
नहीां छोड सकते। र्े मकयन भ़ी नहीां िेंगे। ककशन दय कहते थे कक मरू ि िोग मकयन बनयते हैं, स्यने उनमें रहते हैं।
ररटय्रमें ट होने पर गयाँर् के पुश्तैऩी घर चिे ियओ। र्े इस बयत को आि भ़ी सही मयनते हैं। उन्हें पतय है कक गयाँर्
कय पुश्तैऩी घर टूट-िूट चक
ु य है तथय उस पर अनेक िोगों कय हक है । उन्हें िगतय है कक ररटय्रमें ट से पहिे कोई
िडकय सरकयरी नौकरी में आ ियएगय और क्र्यटव र उनके पयस रहे गय। ऐसय न होने पर क््य होगय, इसकय िर्यब उनके
पयस नहीां होतय।
बबडिय मांढ़दर के प्रश्नर्चनों में उनकय मन नहीां िगय। उम्र ढिने के सयथ ककशन दय की तरह रोि मांढ़दर ियने,
सांध््य-पूिय करने और ग़ीतय-प्रेस गोरिपुर की ककतयबें पिने कय ्त्न करने िगे। मन के वर्रोि को भ़ी र्े अपने तकों
से ित्म कर दे ते हैं। ग़ीतय के पयठ में ‘िनयदव न’ शब्द सुनने से उन्हें अपने ि़ीिय िनयदव न िोश़ी की ्यद आई। उनकी
गचट्ठी से पतय चिय कक र्े ब़ीमयर है । ्शोिर बयबू अहमदयबयद ियनय चयहते हैं, परां तु पत्ऩी र् बच्चे उनकय वर्रोि
करते हैं। ्शोिर िुश़ी-गम के हर मौके पर ररश्तेदयरों के ्हयाँ ियनय िरूरी समझते हैं तथय बच्चों को भ़ी र्ैसय बनयने
की इच्छय रिते हैं। ककां तु उस ढ़दन हद हो गई जिस ढ़दन कमयऊ बेटे ने ्ह कह ढ़द्य कक “आपको बुआ को भेिने के
लिए पैसे मैं तो नहीां दाँ ग
ू य।”
्शोिर की पत्ऩी कय कहनय है कक उन्होंने बचपन में कुछ नहीां दे िय। मयाँ के मरने के बयद वर्िर्य बआ
ु ने
्शोिर कय पयिन-पोषण कक्य। मैढ़रक पयस करके ढ़दल्िी में ककशन दय के पयस रहे । र्े भ़ी कांु र्यरे थे तथय उन्हें भ़ी
कुछ नहीां पतय थय। अत: र्े नए पररर्तवनों से र्यककफ़ नहीां थे। उन्हें ियलमवक प्रश्नर्चन सुनते हुए भ़ी पयररर्यररक गचांतन
में डूबय रहनय अच्छय नहीां िगय। ध््यन िगयने कय कय्व ररटय्रमेंट के बयद ठीक रहतय है । इस तरह की तमयम बयतें
्शोिर बयबू पैदयइश़ी बि
ु ग
ु र्
व यर है , क््ों में औरउ के हीिबे में कहय कते हैं तथय कहयिउ की ही तह ही स़ी िगनत़ीस
हाँस़ी हाँस दे ते हैं।
िब तक ककशन दय ढ़दल्िी में रहे , तब तक ्शोिर बयबू ने उनके पट्टलशष्् और उत्सयही कय्वकतयव की
भूलमकय पूरी ननष्ठय से ननभयई। उनके ियने के बयद घर में होिी गर्यनय, रयमिीिय के लिए क्र्यटव र कय एक कमरय दे नय,
‘िन््ो पुन््ू’ के ढ़दन सब कुमयऊाँनन्ों को िनेऊ बदिने के लिए घर बुियनय आढ़द कय्व र्े पत्ऩी र् बच्चों के वर्रोि
के बयर्िद
ू करते हैं। र्े ्ह भ़ी चयहते हैं कक बच्चे उनसे सियह िें, परां तु बच्चे उन्हें सदै र् उपेक्षक्षत करते हैं। प्रश्नर्चन
सुनने के बयद ्शोिर बयबू सब्ि़ी मांड़ी गए। र्े चयहते थे कक उनके िडके घर कय सयमयन िुद ियएाँ, परां तु उनकी
आपस की िडयई से उन्होंने इस वर्ष् को उठयनय ही बांद कर ढ़द्य। बच्चे चयहते थे कक र्े इन कयमों के लिए नौकर
रि िें। ्शोिर को ्ही ‘समहयउ इांप्रॉपर’ मयिम
ू होतय है कक उनकय बेटय अपनय र्ेतन उन्हें दे । क््य र्ह ज्र्यइांट
एकयउां ट नहीां िोि सकतय थय? उनके ऊपर, र्ह हर कयम अपने पैसे से करने की िौंस दे तय है । घर में र्ह तमयम
पररर्तवन अपने पैसों से कर रहय है । र्ह हर च़ीि पर अपनय हक समझतय है । सब्ि़ी िेकर र्े अपने क्र्यटव र पहुाँचे।
र्हयाँ एक तख्त़ी पर लििय थय-र्यई०ड़ी० पांत। उन्हें पहिे गित िगह आने कय िोिय हुआ। घर के बयहर एक कयर थ़ी।
कुछ तकूटर, मोटर-सयइककिें थ़ीां तथय िोग वर्दय िे-दे रहे थे। बयहर बरयमदे में रां ग़ीन कयगिों की झयिरें र् गुब्बयरे
िटक रहे थे। उन्होंने अपने बेटे को कयर में बैठे ककस़ी सयहब से हयथ लमियते दे िय। उनकी समझ में कुछ नहीां आ रहय
थय। उन्होंने अपऩी पत्ऩी र् बेटी को बरयमदे में िडय दे िय िो कुछ मेमसयबों को वर्दय कर रही थ़ीां। िडकी ि़ीांस र्
बगैर बयाँह कय टॉप पहने हुए थ़ी। पत्ऩी ने होंठों पर ियिी र् बयिों में खिियब िगय्य हुआ थय। ्शोिर को ्ह सब
‘समहयउ इांप्रयपर’ िगतय थय।
्शोिर चुपचयप घर पहुाँचे तो बडे बेटे ने दे र से आने कय उियहनय ढ़द्य। ्शोिर ने शमीिी-स़ी हाँस़ी हाँसते हुए
पूछय कक हम िोगों के ्हयाँ लसल्र्र र्ैडडांग कब से होने िग़ी है ? ्शोिर के दरू के भयांिे ने कहय, “िबसे तम्
ु हयरय बेटय
डेि हियर महीने कमयने िगय है , तब से।” ्शोिर को अपऩी लसल्र्र बैडडांग की ्ह पयटी भ़ी अच्छी नहीां िग़ी। उन्हें

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्ह मियि थय कक सुबह ऑकफ़स ियते सम् तक ककस़ी ने उनसे इस आ्ोिन की चचयव नहीां की थ़ी। उनके पुत्र
भूषण ने िब अपने लमत्रों-सह्ोगग्ों से ्शोिर बयबू कय पररच् करर्य्य तो उस सम् उन्होंने प्रश्न्यस कक्य कक
भिे ही र्े सांतकयरी कुमयऊाँऩी हैं तथयवप वर्िय्त़ी रीनत-ररर्यि भ़ी अच्छी तरह पररगचत होने कय एहसयस करयएाँ। बच्चों
के आग्रह पर ्शोिर बयबू अपऩी शयदी की सयिगगरह पर केक कयटने के तथयन पर ियकर िडे हो गए। किर बेटी के
कहने पर उन्होंने केक भ़ी कयटय, िबकक उन्होंने कहय-‘समहयउ आई डोंट ियइक आि ढ़दस।” परां तु उन्होंने केक नहीां
िय्य क््ोंकक इसमें अांडय होतय है । अगिक आग्रह पर उन्होंने सांध््य न करने कय बहयनय कक्य तथय पूिय में चिे गए।
आि उन्होंने पूिय में दे र िगयई तयकक अगिकतर मेहमयन चिे ियएाँ। ्हयाँ भ़ी उन्हें ककशन दय ढ़दियई ढ़दए। उन्होंने
पछ
ू य कक ‘िो हुआ होगय’ से आप कैसे मर गए? ककशन दय कह रहे थे कक भयऊ सभ़ी िन इस़ी ‘िो हुआ होगय’ से
मरते हैं चयहे र्ह गह
ृ तथ हो ्य िहमचयरी, अम़ीर हो ्य गरीब। शुरू और आखिर में सब अकेिे ही होते हैं।
्शोिर बयबू को िगतय है कक ककशन दय आि भ़ी उनकय मयगवदशवन करने में सक्षम हैं और ्ह बतयने में भ़ी
कक मेरे ब़ीऱ्ी-बच्चे िो कुछ भ़ी कर रहे हैं, उनके वर्ष् में मेरय रर्ै्य क््य होनय चयढ़हए? ककशन दय अकेिेपन कय रयग
अियप रहे थे। उनकय मयननय थय कक ्ह सब मय्य है । िो भूषण आि इतनय उछि रहय है , र्ह भ़ी ककस़ी ढ़दन इतनय
ही अकेिय और असहय् अनभ
ु र् करे गय, जितनय कक आि तू कर रहय है । इस ब़ीच ्शोिर की पत्ऩी ने र्हयाँ आकर
खझडकते हुए पूछय कक आि पूिय में ही बैठे रहोगे। मेहमयनों के ियने की बयत सन
ु कर र्े ियि गमछे में ही बैठक में
चिे गए। बच्चे इस परां परय के सख्त खिियफ़ थे। उनकी बेटी इस बयत पर बहुत झल्ियई। टे बि पर रिे प्रेिेंट िोिने
की बयत कही। भष
ू ण उनको िोितय है कक ्ह ऊऩी ड्रेलसांग गयउन है । सब ु ह दि
ू ियने के सम् आप िटय हुआ पि ु ोर्र
पहनकर चिे ियते हैं, र्ह बुरय िगतय है । बेटी वपतय कय पयियमय-कुतयव उठय ियई कक इसे पहनकर गयउन पहनें। बच्चों
के आग्रह पर र्े गयउन पहन िेते हैं। उनकी आाँिों की कोर में िरय-स़ी नम़ी चमक गई। ्ह कहनय कढ़ठन है कक
उनको भूषण की ्ह बयत चुभ गई कक आप इसे पहनकर दि
ू िेने िय्य करें । र्ह तर््ां दि
ू ियने की बयत नहीां कर
रहय।

बहुववकल्पी प्रश्न

प्रश्न-1 भसल्वर वैड़डंग पयि के लेखक हैं-


(क) कुाँर्र नयरय्ण
(ि) िैनेन्द्र कुमयर
(ग) मनोहर श््यम िोश़ी
(घ) आनांद ्यदर्
प्रश्न-2 भसल्वर वैड़डंग पयि में ्शोधर पंत के आिशथ परु
ु ष हैं-
(क) ककशन दय
(ि) चन्द्रदत्त नतर्यरी
(ग) भूषण
(घ) इनमें से कोई नहीां
प्रश्न-3 ्शोधर बयबू घर से ऑकफस ककस सयधन से आ्य-जय्य करते थे?
(क) सयइककि से
(ि) कयर से
(ग) तकूटर से
(घ) पैदि ही
प्रश्न-4 ्शोधर बयबू की शयिी ककस वषथ हुई थी?
(क) 1947 ई. में
(ि) 1974 ई. में
(ग) 1946 ई. में
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(घ) 1973 ई. में
प्रश्न-5 ‘भसल्वर वैड़डंग’ पयि में आ्े ‘गधय पच्चीसी’ कय त्य मतलब है ?
(क) बचपन
(ि) बुियपय
(ग) िर्यऩी
(घ) इनमें से कोई नहीां
प्रश्न-6 ्शोधर बयबू की पत्नी ककसकय पक्ष लेती है ?
(क) र्यई ड़ी पांत कय
(ि) ककशन दय कय
(ग) अपने बच्चों कय
(घ) इनमें से कोई नहीां
प्रश्न-7 ककशन िय की मौत ककस कयरण से हुई?
(क) बि ु यपे के कयरण
(ि) िो हुआ होगय से
(ग) अिनब़ीपन से
(घ) बेगयनेपन से
प्रश्न-8 भसल्वर वैड़डंग पयि में चूनेियनी ककसे कहय ग्य है ?
(क) ऑकिस की घड़ी को
(ि) गैस चूल्हे को
(ग) कियई घड़ी को
(घ) ककनयरीदयर सयड़ी को
प्रश्न-9 संध््य की पज
ू य में बैिे ्शोधर बयबू को कौन ठिखयई िे रहय थय?
(क) ककशन दय
(ि) बडय बेटय भूषण
(ग) उनकी बुआ
(घ) उनकी पत्ऩी
प्रश्न-10 ्शोधर बयबू को िूषण ने थगफ्ट में त्य ठि्य थय?
(क) ऊऩी तर्ेटर
(ि) रे शम़ी टोप़ी
(ग) सूत़ी तौलि्य
(घ) ऊऩी गयउन
उत्तर-
1-(ग) मनोहर श््यम िोश़ी 2-(क) ककशन दय 3-(घ) पैदि ही 4-(क) 1947 ई. में 5-(ग) िर्यऩी 6-(ग) अपने बच्चों
कय 7-(ि) िो हुआ होगय से 8-(ग) कियई घड़ी को 9-(क) ककशन दय 10-(घ) ऊऩी गयउन

जझ
ू - आनंि ्यिव

पयि कय सयरयंश

्ह पयठ िेिक के बहुचगचवत आत्मकथयत्मक उपन््यस अांश कय है । ्ह एक ककशोर के दे िे और भोगे हुए


गाँर्ई ि़ीर्न के िुरदरे ्थयथव और उसके रां गयरां ग पररर्ेश की मिेदयर और वर्श्र्सऩी् ि़ीर्ांत गयथय है । इस

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आत्मकथयत्मक उपन््यस में ननम्न मध्् र्गी् मरयठी कृषक ि़ीर्न की अनूठी झयाँकी प्रश्नततुत हुई है । इस अांश में
हर जतथनत में पिने की ियिसय लिए ि़ीरे -ि़ीरे सयढ़हत््, सांग़ीत और अन्् वर्ष्ों की ओर बिते ककशोर के कदमों की
आकुि आहट सुऩी िय सकत़ी है । िेिक के वपतय ने उसे पयठशयिय ियने से रोक ढ़द्य तथय िेत़ी के कयम में िगय
ढ़द्य। उसकय मन पयठशयिय ियने के लिए तडपतय थय, परां तु र्ह वपतय से कुछ कहने की ढ़हम्मत नहीां रितय थय। उसे
वपटयई कय डर थय। उसे वर्श्र्यस थय कक िेत़ी से कुछ नहीां लमिने र्यिय क््ोंकक िमश: इससे लमिनेर्यिय ियभ घट
रहय है । पिने के बयद नौकरी िगने पर उसके पयस कुछ पैसे आ ियएाँगे। दीर्यिी के बयद ईि पेरने के लिए कोल्हू
चिय्य ियतय थय क््ोंकक उसके वपतय को सबसे पहिे गुड बेचनय होतय थय तयकक अगिक कीमत लमि सके। हयियाँकक
पहिे ईि कयटने से उसमें रस कम ननकितय थय। इस र्षव भ़ी िेिक के वपतय ने िल्दी कय्व शरू
ु कक्य। अत: ईि
पेरने कय कयम सबसे पहिे सांपन्न हो ग्य। एक ढ़दन िेिक िूप में कांडे थयप रही थ़ी और र्ह बयल्टी में पयऩी भर-
भरकर उसे दे रहय थय। अच्छय मौकय दे िकर िेिक ने मयाँ से पियई की बयत की मयाँ ने अपऩी ियचयरी प्रश्नकट करते
हुए कहय कक तेरी पियई-लिियई की बयत करने पर र्ह बरहे िय सुअर की तरह गुरयवतय है । िेिक ने सुझयर् ढ़द्य कक
र्ह दत्तय ि़ी रयर् सरकयर से उसकी पियई के बयरे में बयत करे । मयाँ तै्यर हो गई। र्ह बच्चे की तडपन समझत़ी थ़ी।
अत: रयत को िेिक की पियई के सांबांि में बयत करने के लिए दत्तय ि़ी रयर् दे सयई के पयस गई और उनसे
सयरी बयत बतयई। उसने ्ह भ़ी बतय्य कक दयदय सयरे ढ़दन बयियर में रिमयबयई के पयस गि
ु यर दे तय है । र्ह िेत़ी कय
कयम नहीां करतय। उसने बच्चे की पियई इसलिए बांद कर दी तयकक र्ह सयरे गयाँर् भर में आियदी के सयथ घूमतय रहे ।
्ह बयत सन
ु कर दे सयई गचि गए। चिते-चिते िेिक ने ्ह भ़ी कहय कक ्ढ़द र्ह अब भ़ी कक्षय में पिने िगे तो दो
महीने में पयाँचऱ्ीां पयस कर िेगय और इस तरह उसकय सयि बच ियएगय। पहिे ही उसकय एक सयि िरयब हो चुकय थय।
रयर् ने िेिक से कहय कक घर आने पर दयदय को मेरे पयस भेि दे नय और घड़ी भर बयद तुम भ़ी आ ियनय। मयाँ-बेटय ने
रयर् को सचेत कक्य कक हमयरे आने की बयत उसे मत बतयनय। रयर् ने उन्हें ननभव् होकर ियने को कहय। रयत को
दयदय घर पर मयलिक ढ़दियई नहीां ढ़द्य। िेत से आ ियने पर इिर भेिनय।

्ह सुनकर दयदय सम्मयन की बयत समझकर तरु ां त चिय ग्य। आिय घांटे बयद िेिक उन्हें ियने के लिए बुियने
चिय ग्य। रयर् ने िेिक से पूछय कक कौन-स़ी कक्षय में पितय है रे तू? िेिक ने बतय्य कक र्ह पयाँचऱ्ीां में थय, पर
अब तकूि नहीां ियतय क््ोंकक दयदय ने मनय कर ढ़द्य। उन्हें िेतों में पयऩी िगयने र्यिय चयढ़हए थय। रयर् ने दयदय से
पूछय तो उसने िेिक के कथन को तऱ्ीकयर कर लि्य। दे सयई ने दयदय को िूब िटकयर िगयई और कहय कक तुम्हयरय
ध््यन िेत़ी में नहीां है । ब़ीऱ्ी-बच्चों को िेत में िोतकर िुिे सयाँड की तरह घूमतय है तथय अपऩी मतत़ी के लिए िडके
के ि़ीर्न की बलि चिय रहय है । उसने िेिक को कहय कक तू सर्ेरे पयठशयिय िय तथय मन िगयकर पि। ्ढ़द ्ह
मनय करे तो मेरे पयस आनय। मैं तुझे पियऊाँगय। िेिक के वपतय ने उस पर गित आदतों कय आरोप िगय्य-कांडे
बेचनय, चयरय बेचनय, लसनेमय दे िनय ्य िुआ िेिनय, िेत़ी र् घर के कयम पर ध््यन न दे नय आढ़द। िेिक ने अपने
उत्तर से उन्हें सांतुष्ट कर ढ़द्य।
दे सयई ने पूछय कक कभ़ी नयपयसतो नहीां हुआ। िेिक के मनय करने पर उसे पयठशयिय ियने कय आदे श दे कर
घर भेि ढ़द्य। बयद में उसने रतनयप्पय को समझय्य। दयदय ने भ़ी पयठशयिय भेिने की हयम़ी भर दी। घर आकर दयदय
ने िेिक से ्ह र्चन िे लि्य कक ढ़दन ननकिते ही िेत पर ियनय और र्हीां से पयठशयिय पहुाँचनय। । पयठशयिय से
छुट्टी होते ही घर में बततय रिकर स़ीिे िेत पर आकर घांटय भर ढोर चरयनय और िेतों में ज््यदय कयम होने पर
पयठशयिय से गैर-हयजिर रहनय होगय। िेिक ने सभ़ी शतें तऱ्ीकयर कर िीां। िेिक पयाँचऱ्ीां कक्षय में ियकर बैठने िगय।
कक्षय के दो िडकों को छोडकर सभ़ी नए बच्चे थे। र्ह बयहरी-अपररगचत िैसय एक बेंच के एक लसरे पर कोने में िय
बैठय। र्ह परु यऩी ककतयबों को ही थैिे में भर िय्य। कक्षय के शरयरत़ी िडके ने उसकय मियक उडय्य और उसकय गमछय
छीनकर मयतटर की मेि पर रि ढ़द्य। किर उसे लसर पर िपेटकर मयतटर की नकि उतयरऩी शुरू की। तभ़ी मयतटर
ि़ी आ गए। िेिक ने उसे सब कुछ बतय ढ़द्य। ब़ीच की छुट्टी में िडकों ने उसकी िोत़ी िोिने की कोलशश की,
परां तु असिि रहे । र्े उसे तरह-तरह से परे शयन करते रहे । उसकय मन उदयस हो ग्य। उसने मयाँ से ऩ्ी टोप़ी र् दो

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नयड़ी र्यिी चड्ढी मैिियऊ रां ग की मैंगर्य िी। ि़ीरे -ि़ीरे िडकों से पररच् बि ग्य। मांत्ऱी नयमक मयतटर आए। र्े छड़ी
कय उप्ोग नहीां करते थे। र्े िडके की प़ीठ पर घूसय िगयते थे। शरयरत़ी िडके उनसे बहुत डरते थे। र्े गखणत पियते
थे।
इस कक्षय में र्सांत पयटीि नयम कय कमिोर शरीर र्यिय र् होलश्यर िडकय थय। र्ह शयांत तर्भयर् कय थय तथय
हमेशय पिने में िगय रहतय थय। मयतटर ने उसे कक्षय मॉऩीटर बनय ढ़द्य थय। िेिक भ़ी उसकी तरह पिने में िगय
रहय। र्ह अपऩी कयप़ी-ककतयबों को व््र्जतथत रिने िगय। श़ीघ्र ही र्ह गखणत में होलश्यर हो ग्य। दोनों में दोतत़ी हो
गई। मयतटर िेिक को ‘आनांदय’ कहने िगे। अब उसकय मन पयठशयिय में िगने िगय। न०र्य० सौंदिगेकर मयतटर
मरयठी पियते थे। पियते सम् र्े तर््ां रम ियते थे। सरु ीिे कांठ, छद र् रलसकतय के कयरण र्े कवर्तय बहुत अच्छी
पियते थे। उन्हें मरयठी र् अांग्रेि़ी की अनेक कवर्तयएाँ ्यद थ़ीां। र्े कवर्तय के सयथ ऐसे िुडे थे कक अलभन् करके
भयर्बोि करयते थे। र्े तर््ां भ़ी कवर्तय रचते थे। िेिक उनसे बहुत प्रभयवर्त थय। िेत पर पयऩी िगयते सम् ्य ढोर
चरयते सम् र्ह मयतटर के अनुसयर ही कवर्तयएाँ गयतय थय। र्ह उन्हीां की तरह अलभन् करतय। उस़ी सम् उसे
अनुभर् हुआ कक अन्् कवर्तयएाँ भ़ी इस़ी तरह पिी िय सकत़ी हैं। िेिक को महसूस हुआ कक पहिे जिस कयम को
करते हुए उसे अकेियपन िटकतय थय, अब र्ह समयप्त हो ग्य। उसे एकयांत अच्छय िगने िगय। एकयांत के कयरण र्ह
ऊाँचे तर्र में कवर्तय गय सकतय थय, नत्ृ ् कर सकतय थय। उसने कवर्तय गयने की अपऩी पदिनत वर्कलसत की। र्ह
अलभन् के सयथ गयने िगय तथय अब उसके चेहरे पर कवर्तय के भयर् आने िगे। मयतटर को िेिक कय गय्न अच्छय
िगय और उससे छठी-सयतऱ्ीां कक्षय के बयिकों के सयमने गर्य्य। पयठशयिय के एक समयरोह में भ़ी उससे गर्य्य।
मयतटर तर््ां कवर्तय रचते थे। उनके पयस मरयठी कवर््ों के कयव््-सांग्रह थे। र्े उन कवर््ों के सांतमरण भ़ी सुनयते थे।
इस कयरण अब र्े कवर् उसे ‘आदम़ी’ िगने िगे थे।
सौंदिगेकर तर््ां कवर् थे। इस कयरण िेिक को ्ह वर्श्र्यस हुआ कक कवर् भ़ी उसकी तरह ही हयड-मयांस कय
र् िोि-िोभ कय मनुष्् होतय है । िेिक को िगय कक र्ह तर््ां भ़ी कवर्तय कर सकतय है । मयतटर ने अपने दरर्यिे
पर छयई हुई मयित़ी की बेि पर एक कवर्तय लिि़ी। िेिक ने मयित़ी ितय र् कवर्तय दोनों ही दे ि़ी थ़ी। इससे उसे
िगय कक र्ह अपने आस-पयस, अपने गयाँर्, िेतों आढ़द पर कवर्तय बनय सकतय है ।
भैंस चरयते-चरयते र्ह िसिों र् िांगिी िूिों पर तुकबांदी करने िगय। र्ह उन्हें िोर से गुनगुनयतय तथय मयतटर
को ढ़दियतय। कवर्तय लििने के लिए र्ह कयगि र् पेंलसि रिने िगय। उनके न होने पर र्ह िकड़ी के छोटे टुकडे से
भैंस की प़ीठ पर रे िय ि़ीांचकर लिितय ्य पत्थर की लशिय पर कांकड से लिि िेतय। कांठतथ हो ियने पर उसे पोंछ
दे तय। र्ह अपऩी कवर्तय मयतटर को ढ़दियतय थय। कभ़ी-कभ़ी र्ह रयत को ही मयतटर के घर ियकर कवर्तय ढ़दियतय।
र्े उसे कवर्तय के शयतत्र के बयरे में समझयते। र्े उसे छद, अिांकयर, शद
ु ि िेिन, ि् कय ज्ञयन करयते। र्े उसे पुततकें
र् कवर्तय-सांग्रह भ़ी दे ते थे। उन्होंने उसे कवर्तय रचने के अनेक ढरे लसियए। शब्दों कय महत्र् एर्ां उसकय उगचत प्र्ोग
िल्दी ही उसकी समझ में आने िगय। इस प्रश्नकयर िेिक को मयतटर की ननकटतय लमित़ी गई और उसकी मरयठी
भयषय में सुियर आने िगय।
बहुववकल्पी प्रश्न

प्रश्न-1 ‘जझ
ू ’ शब्ि कय अथथ है -
(क) ्यतनय
(ि) सांघषव
(ग) वर्रयम
(घ) मेहनत
प्रश्न-2 ‘जझ
ू ’ पयि में लेखक अपनी पढ़यई के ववष् में ककससे कहतय है ?
(क) अपने वपतय से
(ि) दत्तयि़ी रयर् से
(ग) अपऩी मयाँ से
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(घ) सौन्दिगेकर से
प्रश्न-3 ‘जझ
ू ’ पयि में लेखक को कक्षय में ककसकय सयथ भमलतय है ?
(क) बसांत पयढ़टि कय
(ि) रतनयप्पय कय
(ग) मयतटर रणनर्रे कय
(घ) इनमें से कोई नहीां
प्रश्न-4 न. व. सौन्िलगेकर ककस ववष् के भशक्षक थे?
(क) अांग्रेि़ी
(ि) ढ़हन्दी
(ग) सांतकृत
(घ) मरयठी
प्रश्न-5 बच्चे को भशक्षय िे ने के ववष् में ित्तयजी रयव कय नजरर्य कैसय है ?
(क) अनगु चत है
(ि) उगचत है
(ग) पक्षपयतपूणव है
(घ) वर्रोि में है
प्रश्न-6 जझ
ू कहयनी ककस शैली में भलखी गई है ?
(क) र्णवनयत्मक शैिी में
(ि) भयर्यत्मक शैिी
(ग) उपदे शयत्मक शैिी में
(घ) आत्मकथयत्मक शैिी
प्रश्न-7 लेखक की मयँ उसे ककस कक्षय तक पढ़यनय चयहती थी?
(क) सयतऱ्ीां
(ि) आठऱ्ीां
(ग) पयाँचऱ्ीां
(घ) आठऱ्ीां
प्रश्न-8 लेखक की कक्षय में गझणत पढ़ने वयले मयस्टर कय त्य नयम थय?
(क) आनांद
(ि) सौन्दिगेकर
(ग) मांत्ऱी
(घ) दत्तयि़ी रयर्
प्रश्न-9 लेखक पहले ठिन कक्षय में िीवयर से पीि सटयकर त्ों बैि ग्य थय?
(क) क््ोंकक उसे पिनय अच्छय नहीां िगय
(ि) क््ोंकक शरयरत़ी बच्चे उसकी िोत़ी िोि दे ते थे
(ग) क््ोंकक उसके कपडे गांदे थे
(घ) क््ोंकक उसकी पहचयन कय कोई बच्चय सयथ नहीां थय
प्रश्न-10 लेखक को कब लगय कक कवव िी हयंड-मयंस कय बनय होतय है ?
(क) मयतटर तर््ां एक कवर् थे
(ि) र्े कवर््ों के सांतमरण सुनय्य करते थे
(ग) उनके पयस मरयठी कवर््ों के कयव््-सांग्रह थे

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(घ) इनमें से सभ़ी
उत्तर-
1-(ि) सांघषव 2-(ग) अपऩी मयाँ से 3-(क) बसांत पयढ़टि कय 4-(घ) मरयठी 5-(ि) उगचत है 6-(घ) आत्म- कथयत्मक
शैिी 7-(क) सयतऱ्ीां 8-(ग) मांत्ऱी 9-(ि) क््ोंकक शरयरत़ी बच्चे उसकी िोत़ी िोि दे ते थे 10-(घ) इनमें से सभ़ी

अतीत में िबे पयँव – ओम थयनवी

पयि कय सयरयंश

‘अत़ीत में दबे पयाँर्’ सयढ़हत््कयर ओम थयनऱ्ी’ दर्यरय वर्रगचत एक ्यत्रय-र्त


ृ यांत है। र्े पयककततयन जतथत लसांिु
घयटी सभ््तय के दो महयनगरों। मोहनिोदडो (मुअनिोदडो) और हडप्पय के अर्शेषों को दे िकर अत़ीत के सभ््तय और
सांतकृनत की कल्पनय करते हैं। अभ़ी तक जितने भ़ी पुरयतयजत्र्क प्रश्नमयण लमिे उनको दे िकर सयढ़हत््कयर अपऩी
कल्पनय को सयकयर करने की चेष्टय करते हैं।
िेिक कय मयननय है कक मोहनिोदडो और हडप्पय प्रयच़ीन भयरत के ही नहीां बजल्क वर्श्र् के दो सबसे पुरयने
और ्ोिनयबदि तरीके से बसे शहर मयने ियते हैं। र्े मोहनिोदडो को तयम्रकयि कय सबसे बडय शहर मयनते हैं। िेिक
के अनुसयर मोहनिोदडो लसांिु घयटी सभ््तय कय केंद्र है और शय्द अपने िमयने की रयिियऩी िैसय। आि भ़ी इस
आढ़दम शहर की सडकों और गलि्ों में सैर की िय सकत़ी है । ्ह शहर अब भ़ी र्हीां है , िहयाँ कभ़ी थय। आि भ़ी र्हयाँ
के टूटे घरों की रसोइ्ों में गांि महसस
ू की िय सकत़ी है ।
आि भ़ी शहर के ककस़ी सन
ु सयन रयतते पर िडे होकर बैिगयड़ी की रुन-झुन की आर्यिें सुऩी िय सकत़ी हैं।
िांडहर बने घरों की टूटी स़ीढ़ि्याँ अब चयहे कहीां न िे ियत़ी हों, चयहे र्े आकयश की ओर अिूरी रह गई हों, िेककन
उन अिरू े पय्दयनों पर िडे होकर ्ह अनभ
ु र् कक्य िय सकतय है कक आप दनु न्य की छत पर चि गए हैं। र्हयाँ
चिकर आप इनतहयस को नहीां बजल्क उससे कहीां आगे दे ि रहे हैं।
मोहनिोदडो में सबसे ऊांचय चबूतरय बौदि ततूप है । अब ्ह केर्ि मयत्र एक टीिय बनकर रह ग्य है । इस
चबूतरे पर बौदि लभक्षुओां के कमर भ़ी हैं। िेिक इसे नयगर भयरत कय सबसे पुरयनय िैंडतकेप मयनते हैं। इसे दे िकर
रोमयांगचत होनय तर्यभयवर्क है । ्ह ततूपर्यिय चबूतरय शहर के एक ियस ढ़हतसे में जतथत है । इस ढ़हतसे को पुरयतत्र् के
वर्दर्यन ‘गि’ कहते हैं। ्े ‘गि’ कभ़ी-न-कभ़ी रयिसत्तय ्य िमवसत्तय के केंद्र रहे होंगे ऐसय भ़ी मयनय िय सकतय है । इन
शहरों की िुदयई से ्ह तपष्ट हो ियतय है कक बयकी बड़ी इमयरतें , सभय-भर्न, ज्ञयनशयिय सभ़ी अत़ीत की च़ीिें कही
िय सकत़ी है परां तु ्ह ‘गि उस दवर्त़ी् र्यततक
ु िय कौशि के बयकी बचे नमूने हैं।
मोहनिोदडो शहर की सांरचनय नगर नन्ोिन कय अनूठय प्रश्नमयण है , उदयहरण है । ्हयाँ की सडकें अगिकतर स़ीि़ी हैं
्य किर आड़ी हैं। आि के र्यततुकयर इसे ‘गग्रड प्ियन’ कहते हैं। आि के नगरों के सेक्टर कुछ इस़ी नन्ोिन से मेि
ियते हैं। आिनु नक पररर्ेश के इन सेक्टरर्यदी नयगररकों में रहन-सहन को िेकर ऩीरसतय आ गई है । प्रश्नत््ेक व््जक्त
अपने-आप में िो्य हुआ है ।
मोहनिोदडो शहर में िो ततूप लमिय है उसके चबूतरे के गि के प़ीछे ‘उच्च’ र्गव की बतत़ी है । इस बतत़ी के
प़ीछे पयाँच ककिोम़ीटर दरू लसांि नदी बहत़ी है । अगर इन उच्च र्गी् बतत़ी से दक्षक्षण की तरफ़ निर दौडयएाँ तो दरू
तक िांडहर, टूटे -िूटे घर ढ़दियई पडते हैं। ्े टूटे -िूटे घर शय्द कयरीगरों के रहे होंगे। चूकक ननम्न र्गव के घर इतऩी
मिबूत सयमग्ऱी के नहीां बने होंगे शय्द इस़ीलिए उनके अर्शेष भ़ी उनकी गर्यही नहीां दे ते अथयवत इस परू े शहर में
गरीब बतत़ी कहयाँ है उसके अर्शेष भ़ी नहीां लमिते। टीिे की दयई तरफ़ एक िॉब़ी ढ़दित़ी है । इसके आगे एक महयकांु ड
है । इस गिी को इस िरोहर के प्रश्नबांिकों ने ‘दे र् मयगव’ कहय है ।
्ह महयकांु ड चयिीस िुट िांबय और पच्च़ीस िुट चौडय है । ्ह उस सभ््तय में सयमढ़ू हक तनयन के ककस़ी
अनुष्ठयन कय प्रश्नत़ीक मयनय िय सकतय है । इसकी गहरयई रगत िुट है तथय उत्तर और दक्षक्षण में स़ीढ़ि्याँ उतरत़ी हैं।
इस महयकांु ड के त़ीन तरफ़ सयिुओां के कक्ष बने हुए हैं उत्तर में एक पांजक्त में आठ तनयनघर हैं। ्ह र्यततुकिय कय
एक नमनू य ही कहय ियएगय क््ोंकक इन सभ़ी तनयनघरों के माँह ु एक-दसू रे के सयमने नहीां िि
ु ते। कांु ड के ति में पक्की
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ईंटों कय िमयर् है तयकक कांु ड कय पयऩी ररस न सके और अशुदि पयऩी कांु ड में न आ सके। कांु ड में पयऩी भरने के लिए
पयस ही एक कुआाँ है । कांु ड से पयऩी बयहर ननकयिने के लिए नयलि्याँ बऩी हुई हैं। ्े नयलि्याँ पक्की ईंटों से बऩी हैं
तथय ईंटों से ढकी हुई भ़ी हैं। पुरयतयजत्र्क र्ैज्ञयननकों कय मयननय है कक पयऩी ननकयस़ी कय ऐसय सव्ु ्र्जतथत बांदोबतत
इससे पहिे इनतहयस में दस
ू रय नहीां है ।
महयकांु ड के उत्तर-पर्
ू व में एक बहुत िांब़ी इमयरत के िांडहर बबिरे पडे हैं। इस इमयरत के ब़ीचोंब़ीच एक िि
ु य
आाँगन है । इसके त़ीन तरि बरयमदे हैं। ऐसय अनुमयन िगय्य िय सकतय है कक इसके सयथ कभ़ी छोटे -छोटे कमरे भ़ी
होंगे। ्े कमरे और बरयमदे ियलमवक अनुष्ठयनों में ज्ञयनशयियओां कय कयम दे ते थे। इस दृजष्ट से दे िें तो इस इमयरत को
एक ‘ियलमवक महयवर्द्यि्’ कहय िय सकतय है । गि से थोडय आगे । कुछ छोटे टीिों पर बजतत्याँ हैं। इन बजतत्ों को
‘ऩीचय नगर’ कहकर पुकयरय ियतय है । पूर्व में बस़ी बतत़ी ‘अम़ीरों की बतत़ी’ है । आिुननक ्ुग में अम़ीरों की बतत़ी
पजश्चम में मयऩी ियत़ी है । ्यनन कक बडे-बडे घर, चौड़ी सडकें, ज््यदय कुएाँ। मोहनिोदडो में ्ह उिटय थय। शहर के
ब़ीचोंब़ीच एक तैंत़ीस िुट चौड़ी िांब़ी सडक है । मोहनिोदडो में बैिगयड़ी होने के प्रश्नमयण लमिे हैं शय्द इस सडक
पर दो बैिगयडड्याँ एक सयथ आसयऩी से आ-िय सकत़ी हैं। ्ह सडक बयियर तक ियत़ी है । इस सडक के दोनों ओर
घर बसे हुए हैं। परां तु इन घरों की प़ीठ सडकों से सटी हुई हैं। कोई भ़ी घर सडक पर नहीां िि
ु तय। िेिक के अनस
ु यर,
ढ़दिचतप सां्ोग है कक चांड़ीगि में ठीक ्ही शैिी पचयस सयि पहने िू कयबूजिए ने इततेमयि की।” चांड़ीगि कय कोई
घर सडक की तरफ़ नहीां िुितय। मुख्् सडक पहिे सेक्टर में ियत़ी है किर आप ककस़ी के घर िय सकते हैं। शय्द
चांड़ीगि के र्यततक
ु यर कय—जिए ने ्ह स़ीि मोहनिोदडो से ही िी हों? ऐसय भ़ी अनम
ु यन िगय्य िय सकतय है । शहर
के ब़ीचोंब़ीच िांब़ी सडकें और दोनों तरफ़ समयांतर ढकी हुई नयलि्याँ हैं। बतत़ी में ्े नयलि्याँ इस़ी रूप में हैं। प्रश्नत््ेक
घर में एक तनयनघर भ़ी है । घर के अांदर से मैिे पयऩी की नयलि्याँ बयहर हौदी तक आत़ी हैं और किर बड़ी नयलि्ों में
आकर लमि ियत़ी हैं।
कहीां-कहीां र्े िुिी हो सकत़ी हैं परां तु अगिकतर र्े ऊपर से ढकी हुई हैं। इस प्रश्नकयर सहि ही ्ह अनुमयन
िगय्य िय सकतय है कक मोहनिोदडो के नयगररक तर्यतथ्् के प्रश्ननत ककतने सचेत थे। शहर के कुएाँ भ़ी दरू से ही
अपऩी ओर प्रश्नत््ेक व््जक्त कय ध््यन ि़ीांचते हैं। ्े कुएाँ पक्की-पक्की ईंटों के बने हुए हैं। पुरयतत्र् वर्दर्यनों के
अनुसयर केर्ि मोहनिोदडो में ही सयत सौ के िगभग कुएाँ हैं। इनतहयसकयर ऐसय मयनते हैं कक लसांिु घयटी की सभ््तय
सांसयर में पहिी ज्ञयत सांतकृनत है िो कुएाँ िोदकर भू-िि तक पहुाँच़ी। िेिक ्ह भ़ी प्रश्नश्न उठयते हैं कक नदी, कुएाँ,
: कांु ड तनयनघर और बेिोड पयऩी ननकयस़ी को क््य हम लसांिु घयटी की सभ््तय को िि सांतकृनत कह सकते हैं।
मोहनिोदडो की बड़ी बतत़ी में घरों की दीर्यरें ऊाँच़ी और मोटी हैं। मोटी दीर्यर से ्ह अथव िगय्य िय सकतय
है कक ्ह दो मांजििय घर होगय। इन घरों की एक ियस बयत ्ह है कक सयमने की दीर्यर में केर्ि प्रश्नर्ेश दर्यर है
कोई खिडकी नहीां है । ऊपर की मांजिि में खिडकक्याँ हैं। कुछ बहुत बडे घर भ़ी हैं शय्द इनमें कुछ िघु उद्ोगों के
कयरियने होंगे। ्े सभ़ी छोटे -बडे घर एक ियइन में हैं। अगिकतर घर िगभग त़ीस गण ु य त़ीस िुट के हैं। सभ़ी घरों
की र्यततुकिय िगभग एक िैस़ी है । एक बहुत बडय घर है जिसमें दो आाँगन और ब़ीस कमरे हैं। इस घर को ‘मुखि्य’
कय घर कहय िय सकतय है । घरों की िदु यई से एक दयिीर्यिे ्यिक-नरे श’ और एक प्रश्नलसदि ‘नतवकी’ की मूनतव्याँ भ़ी
लमिी हैं।
‘नतवकी’ की मूनतव अब ढ़दल्िी के रयष्री् सांग्रहयि् में रि़ी हुई है । ्हीां पर एक बडय घर भ़ी है जिसे ‘उपयसनय
केंद्र’ भ़ी समझय िय सकतय है । इसमें आमने-सयमने की दो चौड़ी स़ीढ़ि्याँ ऊपर की मांजिि की ओर ियत़ी हैं। ऊपर की
मांजिि अब बबिकुि ध्र्तत हो चुकी है । नगर के पजश्चम में एक ‘रां गरे ि कय कयरियनय’ भ़ी लमिय है जिसे अब सैियऩी
बडे चयर् से दे िते हैं। घरों के बयहर कुछ कुएाँ सयमूढ़हक प्रश्न्ोग के लिए हैं। शय्द ्े कुएाँ कमवचयरर्ों और कयरीगरों
के लिए घर रहे होंगे। बडे घरों में कुछ छोटे कमरे हैं। इससे अनम
ु यन िगय्य िय सकतय है कक शहर की आबयदी कयफ़ी
रही होग़ी। एक वर्चयर ्ह भ़ी हो सकतय है कक ऊपर की मांजिि में मयलिक और ऩीचे के घरों में नौकर-चयकर रहते
होंगे। कुछ घरों में स़ीढ़ि्याँ नहीां हैं शय्द इन घरों में िकड़ी की स़ीिी रही है िो बयद में नष्ट हो गई होग़ी। छोटे घरों
की बतत़ी में सांकरी स़ीढ़ि्याँ हैं। इन स़ीढ़ि्ों के पय्दयन भ़ी ऊाँचे हैं। शय्द ऐसय िगह की कम़ी के कयरण होतय होगय।

57
िेिक ने अपऩी ्यत्रय के सम् िब ्ह ध््यन ढ़द्य कक खिडकक्ों और दरर्यिों पर छज्िों के ननशयन नहीां
हैं। गरम इियकों में ऐसय होनय आम बयत होत़ी है । शय्द उस सम् इस इियके में इतऩी कड़ी िूप न पडत़ी हो। ्ह
तथ्् भ़ी पूरी तरह से तथयवपत हो चुकय है कक उस सम् अच्छी िेत़ी होत़ी थ़ी। ्हयाँ िोग िेतों की लसांचयई कुओां से
करते थे। नहर के प्रश्नमयण ्हयाँ नहीां लमिते शय्द िोग र्षयव के पयऩी पर अगिक ननभवर रहते होंगे। बयद में र्षयव कम
होने िग़ी हो और िोगों ने कुओां से अगिक पयऩी ननकयिय होगय। इस प्रश्नकयर भ-ू िि कय ततर कयफ़ी ऩीचे चिय ग्य
हो। ्ह भ़ी हो सकतय है कक पयऩी के अभयर् में लसांिु घयटी के र्यस़ी ्हयाँ से उिडकर कहीां चिे गए हों और लसांिु
घयटी की समद
ृ ि सभ््तय इस प्रश्नकयर नष्ट हो गई हो। िेिक के इस अनुमयन से इनकयर नहीां कक्य िय सकतय।
मोहनिोदडो के घरों और गलि्ों को दे िकर तो अपने रयितथयन कय भ़ी ि्यि हो आ्य। रयितथयन और लसांि-
गुिरयत की दृश््यर्िी एक-स़ी है ।
मोहनिोदडो के घरों में टहिते हुए िैसिमेर के मुहयने पर बसे प़ीिे पत्थरों के िूबसूरत गयाँर् की ्यद िेिक
के िहन में तयिय हो आई। इस िूबसूरत गयाँर् में हरदम गरम़ी कय मयहौि व््यप्त है । गयाँर् में घर तो है परां तु घरों में
िोग नहीां हैं। कहय ियतय है कक कोई डेि सौ सयि पहिे रयिय के सयथ तकरयर को िेकर इस गयाँर् के तर्यलभमयऩी
नयगररक रयतोंरयत अपनय घर-बयर छोडकर चिे गए थे। बयद में इन घरों के दरर्यिे, खिडकक्याँ िोग उठयकर िे गए थे।
अब ्े घर िांडहर में पररर्नतवत हो गए हैं।
परां तु ्े घर ढहे नहीां। इन घरों की खिडकक्ों, दरर्यिों और दीर्यरों को दे िकर ऐसय िगतय है िैसे कि की ही बयत
हो। िोग चिे गए िेककन र्क्त र्हीां रह ग्य। िांडहरों ने उसे र्हयाँ रोक लि्य हो। िैसे सब
ु ह गए िोग शयम को
शय्द र्यपस िौट आएाँ।। मोहनिोदडो में लमिी ठोस पढ़ह्ोंर्यिी बैिगयड़ी को दे िकर िेिक को अपने गयाँर् की
बैिगयड़ी की ्यद आ गई जिसमें पहिे दल्
ु हन बैठकर ससुरयि आ्य करत़ी थ़ी। बयद में इन गयडड्ों में आरे र्यिे पढ़हए
और अब हर्यई िहयि से उतरे हुए पढ़ह्ों कय प्रश्न्ोग होने िगय।
बहुववकल्पी प्रश्न

प्रश्न-1 मुअनिो-दडो कय अथव क््य है ?


(क) लमट्टी कय टीिय
(ि) पत्थर और ईंटों कय टीिय
(ग) मत
ृ कों ्य मुदों कय टीिय
(घ) इनमें से कोई नहीां
प्रश्न-2 बौदि ततूप ककतने िुट ऊांचे चबूतरे पर ननलमवत है ?
(क) 40 िुट
(ि) 25 िुट
(ग) 30 िुट
(घ) 50 िुट
प्रश्न-3 मुअनिो-दडो की िद
ु यई ककसके ननदे श पर शुरू हुई थ़ी?
(क) ियन मयशवि
(ि) कयश़ी नयथ दीक्षक्षत
(ग) मयिो तर्रूप र्त्स
(घ) इनमें से कोई नहीां
प्रश्न-4 मुअनिो-दडो नगर ककतने हे क्टे ्र में िैिय हुआ थय?
(क) 100 हे क्टे ्र में
(ि) 200 हे क्टे ्र में
(ग) 300 हे क्टे ्र में
(घ) 400 हे क्टे ्र में
58
प्रश्न-5 मुअनिो-दडो के सबसे ऊांचे चबूतरे में क््य वर्द्मयन है ?
(क) ्यिक नरे श की मूनतव
(ि) कोठयर
(ग) बौदि ततूप
(घ) महयकांु ड
प्रश्न-6 महयकांु ड ककतने िुट गहरय है ?
(क) 7 िुट
(ि) 10 िुट
(ग) 12 िुट
(घ) 8 िुट
प्रश्न-7 महयकांु ड में पयऩी के प्रश्नबांि के लिए क््य व््र्तथय थ़ी?
(क) नहर
(ि) नदी
(ग) तयियब
(घ) कुआाँ
प्रश्न-8 मअ
ु निो-दडो के घरों में टहिते हुए िेिक को ककस गयाँर् की ्यद हो आई?
(क) चांड़ीगि
(ि) कुििरय
(ग) लसांि
(घ) इतियमयबयद
प्रश्न-9 मअ
ु निो-दडो में अनयि की ढुियई के लिए ककस र्यहन कय प्र्ोग कक्य ियतय रहय होगय?
(क) रे िगयड़ी
(ि) मोटरगयड़ी
(ग) बैिगयड़ी
(घ) ऊाँटगयड़ी
प्रश्न-10 मुअनिो-दडो के र्यततुकिय की तुिनय भयरत के ककस नगर के सयथ की गई है ?
(क) अमत
ृ सर
(ि) चांड़ीगि
(ग) मेरठ
(घ) िोिपुर
उत्तर-
1-(ग) मत
ृ कों ्य मुदों कय टीिय 2-(ि) 25 िुट 3- (क) ियन मयशवि 4-(ि) 200 हे क्टे ्र में 5-(ग) बौदि ततप

6-(क) 7 िुट 7-(घ) कुआाँ 8-(ि) कुििरय 9-(ग) बैिगयड़ी 10-(ि) चांड़ीगि

रचनयत्मक-लेखन

• ककस़ी एक भयर्, वर्चयर ्य कथन को वर्ततयर दे ने के लिए 150-200 शब्दों में लििे गए सुसांगत िेि को
रचनयत्मक िेिन कहते हैं।
• इसमें ककस़ी महत्त्र्पण
ू व घटनय, दृश््, समत्य अथर्य वर्ष् को शयलमि कक्य िय सकतय है । इसे सांक्षक्षप्त (कम
शब्दों में) ककन्तु सयरगलभवत (अथवपण
ू )व ढां ग से लििय ियतय है ।

59
• अनुच्छे द एक तरह से ‘ननबांि’ कय ही सांक्षक्षप्त रूप होतय है । इसमें ढ़दए गए वर्ष् के ककस़ी एक पक्ष पर
अपनय वर्चयर प्रततुत करनय होतय है ।
• अनुच्छे द अपने-आप में तर्तन्त्र और पूणव होतय है । अनुच्छे द कय मुख्् वर्चयर ्य भयर् प्रय्: ्य तो आरम्भ
में ्य किर अन्त में होतय है ।
अनच्
ु ्े ि भलखते सम् तनम्नभलझखत बयतों को ध््यन में रखनय चयठहए–
(1) अनुच्छे द ्य ननबांि ्य िेि लििने से पहिे रूपरे िय, सांकेत-बबांद ु आढ़द बनयऩी चयढ़हए। कभ़ी-कभ़ी प्रश्नपत्रों में
पहिे से ही रूपरे िय, सांकेत-बबांद ु आढ़द ढ़दए होते हैं। आपको उन्हीां रूपरे िय, सांकेत-बबांद ु इत््यढ़द को ध््यन में रिते हुए
अनच्
ु छे द लििनय होतय है ।
(2) अनुच्छे द ्य िेि में ढ़दए गए वर्ष् के ककस़ी एक ही पक्ष कय र्णवन करनय चयढ़हए। क््ोंकक ्ह सदै र् स़ीलमत
शब्दों में लििय ियतय है ।
(3) अनुच्छे द की भयषय सरि, सहि और प्रभयर्शयिी होऩी चयढ़हए। तयकक पयठक अनुच्छे द पिकर आपकी बयत को सही
से समझ सके।
(4) एक ही बयत को बयर-बयर नहीां दोहरयनय चयढ़हए। इससे आप अपऩी बयत को कम शब्दों में परू य नहीां कर पयएाँगे।
(5) आपको ्े भ़ी ध््यन रिनय है कक आप अपने वर्ष् से न भटक ियएाँ।
(6) ढ़दए गए ननदे श के अनस
ु यर त् शब्द-स़ीमय को ध््यन में रिकर ही अनुच्छे द लििें।
(7) परू े अनच्
ु छे द में एकरूपतय बनयए रिऩी चयढ़हए।
(8) वर्ष् से सांबगां ित सजू क्त अथर्य कवर्तय की पांजक्त्ों कय प्र्ोग भ़ी कक्य िय सकतय है ।
अनुच््े ि की प्रमख
ु ववशेषतयएँ–
(1) अनुच्छे द में ककस़ी एक भयर्, वर्चयर ्य तथ्् एक बयर ही व््क्त होतय है । इसमें अन्् वर्चयरों कय कोई महत्त्र्
नहीां होतय है ।
(2) अनच्
ु छे द के सभ़ी र्यक्् एक-दस
ू रे से गढ़ठत और सस
ु ांबदि होते है । र्यक्् छोटे तथय एक दस
ू रे से िड
ु े होते हैं।
(3) अनुच्छे द एक तर्तन्त्र और पूणव रचनय है, जिसकय कोई भ़ी र्यक्् अनयर्श््क नहीां होतय।
(4) अनुच्छे द सयमयन््तः छोटय होतय है , ककन्तु इसकी िघुतय ्य वर्ततयर वर्ष्र्ततु पर ननभवर करतय है ।

कफ़ल्में सयमयक्जक जीवन कय िपथण हैं

कफ़ल्में आिनु नक ि़ीर्न में मनोरां िन कय सर्ोत्तम सयिन हैं। ्े समयि के एक बहुत बडे र्गव को प्रभयवर्त
करत़ी हैं। कफ़ल्मों में कियकयरों के अलभन् को िोग अपने ि़ीर्न में उतयरने की कोलशश करते हैं। इस दृजष्ट से
कफ़ल्मों कय सयमयजिक दयन्त्र् भ़ी बनतय है । र्े केर्ि मनोरां िन कय ही नहीां, अवपतु सयमयजिक बुरयइ्ों को दरू करने
कय भ़ी सयिन हैं। कफ़ल्में समयि में व््यप्त वर्लभन्न बुरयइ्ों को दरू करके तर्तथ र्यतयर्रण के ननमयवण में सहय्तय
करत़ी हैं। हयियाँकक समयि में रहते हुए हमें इन बरु यइ्ों की भ्यनकतय कय पतय नहीां चितय। किल्म दे िकर इनकी
बुरयइ्ों से हम दो-चयर होते हैं।
उदयहरणतर्रूप ‘प््यसय’ और ‘प्रभयत’ िैस़ी कफ़ल्मों को दे िकर अनेक नयरर्ों ने र्ेश््यर्वृ त्त त््यगकर तर्तथ
ि़ीर्न ि़ीनय शरू
ु कक्य। ‘पय’ कफ़ल्म असम् र्द
ृ ि होने र्यिे बच्चों की कढ़ठनयइ्ों को दशयवत़ी है । ‘द कश्म़ीर ियइल्स
और ‘केरिय तटोरी’ कफ़ल्में समयि कय सूक्ष्म वर्श्िेषण प्रकट करत़ी हैं। इनतहयसकयर िहयाँ इनतहयस की तथि
ू घटनयओां
को शब्दबदि करतय है, र्हयाँ कफ़ल्में व््जक्त के मन में नछपे उल्ियस और प़ीडय की भयर्नय को व््क्त करत़ी हैं। ‘गदर’
कफ़ल्म में भयरत-पयक ्ुदि तथय 1971 की प्रमि
ु घटनयओां को दशयव्य ग्य है । ‘रां ग दे बसांत़ी’ कफ़ल्म में आियदी के
सांघषव को सांर्ेदनश़ीि तरीके से ढ़दिय्य ग्य है । ‘गोदयन’ में 1930 के सम् के पि
ाँू ़ीपनत्ों के शोषण तथय ककसयनों की
करुण ि़ीर्न-गयथय गचबत्रत है ।आिनु नक समयि श्रेष्ठ सयढ़हजत््क कृनत्ों से दरू होतय िय रहय है । इस दरू ी को कम
करने में कफ़ल्मों की अह भलू मकय है । ‘आाँि़ी’ और ‘मौसम” कफ़ल्में कमिेश्र्र की सयढ़हजत््क कृनत्ों पर आियररत हैं, तो
शरतचांद्र चटिी के ‘दे र्दयस’ उपन््यस पर ढ़हांदी र् बयांग्िय सढ़हत कई भयषयओां में अनेक सिि कफ़ल्में बन चुकी हैं।

60
कफ़ल्मों के ग़ीत भ़ी सुि-दि
ु के सयथ़ी बन ियते हैं। र्े व््जक्त के एकयकीपन, ननरयशय, दि
ु आढ़द को कम करते हैं।
तर्तांत्रतय ढ़दर्स र् गणतत्र ढ़दर्स पर ‘ऐ मेरे र्तन के िोगो’ ग़ीत को सुनकर िोगों में आि भ़ी दे शभजक्त कय िज्बय
ियग उठतय है । वर्दयई के अर्सर पर ‘प़ी के घर आि प््यरी दल्
ु हनन्य चिी’ ग़ीत सुनकर र्िू पक्ष के िोग भयर्ुक हो
उठते हैं। हयियाँकक कफ़ल्मों के केर्ि सकयरयत्मक प्रभयर् ही समयि पर पडते हैं , ऐसय नहीां है । आि के ्ुग में ्ुर्य
कफ़ल्मों से अगिक गम
ु रयह हो रहे हैं।
कफ़ल्मों में अपरयि करने के नए-नए तरीके ढ़दियए ियते हैं, जिनकय अनुसरण ्ुर्य करते हैं। ननत्् प्रनत हत््य
के नए तरीके दे िने में आ रहे हैं। बच्चे इससे सर्यवगिक प्रभयवर्त होते हैं। र्े झूठ बोिनय, चोरी करनय, घर से भयगनय
आढ़द गित आदतें प्रय्: कफ़ल्मों से ही स़ीिते हैं। नयरी दे ह को प्रदशवन की र्ततु कफ़ल्मों ने ही बनयई है । िडकक्याँ
लमऩी तकटव को आिुननकतय कय प्यव् समझने िग़ी हैं तो िडके िटी ि़ीांस र् गिे में तकयिव को आकषवण कय केंद्र
मयनते हैं। आिकि के कफ़ल्म-ननमयवतय पैसय कमयने के लिए सतते ग़ीतों पर अश्िीि नत्ृ ् करर्यते हैं।
छोटे -छोटे बच्चों की िबयन पर चयिू भयषय के ग़ीत होते हैं। आिकि गयनों में भ़ी भददी गयलि्ों कय प्र्ोग
बिने िगय है । कफ़ल्मों के श़ीषवक ‘कम़ीने’ आढ़द बच्चों को गित प्रर्वृ त्त की ओर अग्रसर करते हैं। कफ़ल्मों के इस रूप
की तुिनय कैं सर से की िय सकत़ी है । ्ह कैं सर ि़ीरे -ि़ीरे हमयरे समयि के शरीर को िहरीिय कर रहय है । ननष्कषवत:
कहय िय सकतय है कक कफ़ल्में समयि को तभ़ी ऩ्ी ढ़दशय दे सकत़ी हैं िब र्े कोरी व््यर्सयन्कतय से ऊपर उठे तथय
समयि की समत्यओां को सकयरयत्मक ढां ग से अलभव््क्त करें ।
प्थटन कय महत्त्व

मयनर् अपऩी जिज्ञयसु प्रर्वृ त्त के कयरण दस


ू रे दे शों ्य अिग-अिग तथयनों की ्यत्रय करनय चयहतय है । उसे दस
ू रे
क्षेत्र की सांतकृनत, सभ््तय, प्रयकृनतक सौंद्व, ऐनतहयलसक ियनकयरी के बयरे में ियनने की इच्छय होत़ी है । इस़ी कयरण र्ह
अपनय सुिचैन छोडकर अनियन, दग
ु म
व र् ब़ीहड रयततों पर घूमतय रहतय है । आिुननक ्ुग में इांटरनेट र् पुततकों के
मयध््म से र्ह हर तथयन की ियनकयरी प्रयप्त कर सकतय है , परां तु ्ह सब कयगि के िूि की तरह होते हैं।
आढ़दमयनर् एक ही तथयन पर रहतय तो क््य दनु न्य वर्कलसत हो पयत़ी। एक तथयन पर ढ़टके न रहने के
कयरण ही मयनर् को ‘घुमक्कड’ कहय ग्य है । महयपांडडत रयहुि सयांतकृत््य्न कय कहनय है -‘घुमक्कड दनु न्य की सर्वश्रेष्ठ
वर्भूनत है इसलिए कक उस़ी ने आि की दनु न्य को बनय्य है । अगर घुमक्कडों के कयकििे न आते-ियते, तो सत ु त
मयनर्-ियनत्याँ सो ियत़ीां और पशु ततर से ऊपर नहीां उठ पयत़ीां।”
‘घुमक्कड़ी’ कय आिनु नक रूप ‘प्वटन” बन ग्य है । पहिे घुमक्कड़ी अत््ांत कष्टसयध्् थ़ी क््ोंकक सांचयर र्
्यतय्यत के सयिनों कय अभयर् थय। सांसयिन भ़ी कम थे तथय प्वटन-तथि पर सवु र्ियएाँ भ़ी वर्कलसत नहीां थ़ीां। आि
वर्ज्ञयन कय प्रतयप है कक मनुष्् को बयहर ियने में कोई कढ़ठनयई नहीां होत़ी। आि लसफ़व मनुष्् में बयहर घूमने कय
उत्सयह, िै्,व सयहस, िोखिम उठयने की तत्परतय होऩी चयढ़हए, शेष सुवर्ियएाँ वर्ज्ञयन उन्हें प्रदयन कर दे तय है ।
20ऱ्ीां सदी से प्वटन एक उद्ोग के रूप में वर्कलसत हो ग्य है । वर्श्र् के िगभग सभ़ी दे शों में प्वटन मांत्रयि्
बनयए गए हैं। हर दे श अपने ऐनतहयलसक तथिों, अदभत
ु भौगोलिक तथिों को सिय-साँर्यरकर दनु न्य के सयमने प्रततुत
करनय चयहतय है । मनोरम पहयड़ी तथिों पर प्वटक आर्यस तथयवपत ककए िय रहे हैं।
प्वटकों के लिए आर्यस, भोिन, मनोरां िन आढ़द की व््र्तथय के लिए नए-नए होटिों, िॉिों और प्वटन-गह
ृ ों
कय ननमयवण कक्य िय रहय है । ्यतय्यत के सभ़ी प्रकयर के सुिभ र् आर्श््क सयिनों की व््र्तथय की िय रही है ।
प्वटन आि मन
ु यफ़य दे ने र्यिय व््र्सय् बन ग्य है । प्वटन के लिए रां ग-बबरां ग़ी पजु ततकयएाँ आकषवक पोतटर, प्वटन-
तथिों के रां ग़ीन गचत्र, आर्यस, ्यतय्यत आढ़द सवु र्ियओां कय वर्ततत
ृ ब््ौरय िगभग सभ़ी प्रमि
ु सयर्विननक तथिों पर
लमितय है । प्वटन के प्रनत रुगच िगयने के लिए िघु कफ़ल्में भ़ी तै्यर की ियत़ी हैं।
कई प्वटन-तथिों पर प्वटकों को आकवषवत करने के लिए सांग़ीत, नत्ृ ्, नयटक आढ़द कय आ्ोिन कक्य ियतय
है । प्वटन के अनेक ियभ हैं, िैस-े आनांद-प्रयजप्त, जिज्ञयसय की पूनतव आढ़द। इसके अनतररक्त, प्वटन से अांतरयवष्री्तय की
समझ वर्कलसत होत़ी है । मनष्ु ् कय दृजष्टकोण वर्ततत
ृ होतय है । प्रेम र् सौहयद्र कय प्रसयर होतय है । सभ््तय-सांतकृनत्ों

61
कय पररच् लमितय-बितय है। अांतरयवष्री् सह्ोग की भयर्नय को प्वटन से ही बियर्य लमितय है । प्वटन के दौरयन ही
व््जक्त को ्थयथव ि़ीर्न कय आभयस होतय है तथय ि़ीर्न की एकरसतय भ़ी प्वटन से ही समयप्त होत़ी है ।
्ुवय असंतोष

आि चयरों तरि असांतोष कय मयहौि है । बच्चे-बूिे, ्र्


ु क-प्रौि, तत्ऱी-पुरुष, नेतय-िनतय सभ़ी असांतुष्ट हैं। ्ुर्य
र्गव वर्शेष रूप से असांतष्ु ट ढ़दितय है । घर-बयहर सभ़ी िगह उसे ककस़ी-न-ककस़ी को कोसते हुए दे िय-सन
ु य िय सकतय
है । अब ्ह प्रश्न उठतय है कक आखिर ऐसय क््ों हो रहय है ? इसकय एक ही कयरण निर आतय है नेतयओां के िोििे
आश्र्यसन। ्ुर्य र्गव को लशक्षय ग्रहण करते सम् बडे-बडे सब्ज़बयग ढ़दियए ियते हैं। र्ह मेहनत से डडगग्र्याँ हयलसि
करतय है , परां तु िब र्ह व््यर्हयररक ि़ीर्न में प्रर्ेश करतय है तो िद
ु को परयजित पयतय है । उसे अपऩी डडगग्र्ों की
ननरथवकतय कय अहसयस हो ियतय है । इनके बि पर रोिगयर नहीां लमितय। इसके अियर्य, हर क्षेत्र में लशक्षक्षतों की भ़ीड
ढ़दियई दे त़ी है । र्ह ्ह भ़ी दे ितय है कक िो लसफ़यररश़ी है , र्ह ्ोग््तय न होने पर भ़ी मौि कर रहय है र्ह सब कुछ
प्रयप्त कर रहय है जिसकय र्ह र्यततवर्क अगिकयरी नहीां है ।
र्ततुत: उच्च लशक्षण सांतथयनों में वर्द्यगथव्ों की इच्छयएाँ भडकय दी ियत़ी हैं। रयिऩीनत से सांबांगित िोग
तरह-तरह के प्रिोभन दे कर उन्हें भडकय दे ते हैं। रयिऩीनतज्ञ ्र्
ु यओां कय इततेमयि करते हैं। र्े उन्हें चन
ु यर् िडर्यते हैं।
कुछ र्यततवर्क और नकिी मयाँगों, सुवर्ियओां के नयम पर हडतयिें करर्यई ियत़ी हैं। इन सबकय पररणयम शून्् ननकितय
है । ्ुर्य िक्ष्् से भटक ियते हैं। बेकयरों की अथयह भ़ीड को ननरयशय और असांतोष के लसर्य् क््य लमि सकतय है !
िबकक समयि ्ुर्यओां को ‘कि कय भवर्ष््’ कहतय है । इन्हें उन्ननत कय मूि कयरण मयनतय है , परां तु सरकयरी र् गैर-
सरकयरी क्षेत्र में उन्हें मयत्र बरगिय्य ियतय है ।
उनकी र्यततवर्क िरूरतों पर कोई ध््यन नहीां ढ़द्य ियतय। उन्हें महि सपने ढ़दियए ियते हैं। पियई-लिियई,
लशक्षय, सभ््तय-सांतकृनत, रयिऩीनत और सयमयजिकतय हर क्षेत्र में उन्हें बडे-बडे सपने ढ़दियए ियते हैं, परां तु ्े सपने
हकीकत से बेहद दरू होते हैं। िब सपने पूरे न हों तो असांतोष कय िन्म होनय तर्यभयवर्क है । भ्रष्टयचयर के दर्यरय जिन
्र्
ु यओां के सपने परू े ककए ियते हैं, ऐसे िोग आगे भ़ी अनैनतक कय्ों में लिप्त पयए ियते हैं।
इनकी शयन-शौकत भरी बनयर्टी जिांदग़ी आम ्ुर्य में हीनतय कय भयर् िगयकर उन्हें असांतुष्ट बनय दे त़ी है ।
ऐसे में िब असांतोष, अतजृ प्त, िूट-िसोट, आपयियप़ी आि के व््यर्हयररक ि़ीर्न कय तथय़्ी अांग बन चक
ु े हैं तो ्ुर्य
से सांतुजष्ट की उम्म़ीद कैसे की िय सकत़ी है ? समयि के मूल्् भरभरयकर गगर रहे हैं, अनैनतकतय सम्मयन पय रही है ,
तो ्ुर्य मूल््ों पर आियररत ि़ीर्न ि़ीकर आगे नहीां बि सकते।

बेरोजगयरी की समस््य

आिकि िो समत्यएाँ ढ़दन दन


ू ़ी रयत चौगुऩी गनत से बिी हैं, इनमें िनसांख््य-र्द
ृ गि, महाँगयई, बेरोिगयरी आढ़द
मुख्् हैं। इनमें से बेरोिगयरी की समत्य ऐस़ी है िो दे श के वर्कयस में बयिक होने के सयथ ही अनेक समत्यओां की
िड बन गई है । ककस़ी व््जक्त के सयथ बेरोिगयरी की जतथनत तब उत्पन्न होत़ी है , िब उसे उसकी्ोग््तय, क्षमतय और
कय्व-कुशितय के अनरू
ु प कयम नहीां लमितय, िबकक र्ह कयम करने के लिए तै्यर रहतय है ।
बेरोिगयरी की समत्य शहर और गयाँर् दोनों ही िगहों पर पयई ियत़ी है । नऱ्ीनतम आाँकडों से पतय चिय है कक
इस सम् हमयरे दे श में ढयई करोड बेरोिगयर हैं। ्ह सांख््य प्रनतर्षव बित़ी ही िय रही है । ्द्वप सरकयर और
उद्लम्ों दर्
ु यरय इसे कम करने कय प्र्यस कक्य ियतय है , पर ्ह प्र्यस ऊाँट के माँह
ु में ि़ीरय सयबबत होतय है । हमयरे
दे श में वर्वर्ि रूपों में बेरोज़गयरी पयई ियत़ी है । पहिे र्गव में र्े बेरोिगयर आते हैं िो पि-लििकर लशक्षक्षत और उच्च
लशक्षक्षत हैं। ्ह र्गव मज़दरू ी नहीां करनय चयहतय , क््ोंकक ऐसय करने में उसकी लशक्षय आडे आत़ी है ।
दस
ू रे र्गव में र्े बेरोिगयर आते हैं िो अनपड और अप्रलशक्षक्षत हैं। त़ीसरे र्गव में र् बेरोज़गयर आत्ते हैं िो कयम
तो कर रहे है , पर उन्हें अपऩी ्ोग््तय और अनुभर् के अनुपयत में बहुत कम र्ेतन लमितय है । चौथे और अांनतम र्गव
में उन बेरोिगयरों को रि सकते है , जिन्हें सयि मैं कुछ ही महीने कम लमि मयतय है । िेत़ी में कयम करने र्यिे

62
मज़दरू ों और ककसयनों को इस़ी श्रेण़ी में रिय िय सकतय है । बेरोज़गयरी के कयरणों पर वर्चयर करने से ज्ञयत होतय है कक
इसकय मुख्् कयरण ओदृ्ोग़ीकरण और नऱ्ीनतम सयिनों की िोि एर्ां वर्कयस है । िो कयम हियरों मज़दरू ों दर्यरय
महीनों में पूरे ककए ियते थे, आि मश़ीनों की मदद से कुछ ही मज़दरू ों की सहय्तय से कुछ ही ढ़दनों में पूरे कर लिए
ियते हैं।
उदयहरणतर्रूप जिन बैंकों में पहिे सौ-सौ क्िकव कयम करते थे, उनकय कयम अब चयर-पयाँच कांप््ट
ू रों दर्
ु यरय
कक्य िय रहय है । बेरोिगयरी कय दस
ू रय सबसे बडय कयरण है िनसांख््य-र्द
ृ गू ि। आियदी लमिने के बयद सरकयर ने
रोज़गयर के नए-नए अर्सरों कय सि
ृ न करने के लिए नए पदों कय सि
ृ न कक्य और कि-कयरियनों को तथयपनय की।
इससे िोगों को रोिगयर तो लमिय, पर बढत़ी िनसांख््य के कयरण ्े प्र्यस नयकयिी लसदि हो रहै हैं। बेरोज़गयरी कय
अन्् करण है -गित लशक्षय – ऩीनत, जिसकय रोिगयर से कुछ भ़ी िेनय – दे नय नहीां है ।
िितय बेरोिगयरी ढ़दन-पर ढ़दन बढत़ी िय रही है । बेरोिगयरी एक और िहयाँ पररर्यर, समयि और रयष्र के प्रनत बयिक
है , र्हीीँ ्ह ियिी ढ़दमयग शैतयन कय घर होने की जतथनत उत्पन्न करत़ी है । ऐसै बेरोिगयर ्ुर्य अपऩी ऊियव कय
उप्ोग ममयि एर्ां रयष्र वर्रोि़ी कय्ों में करते हैं। पितः सयमयजिक शयांनत भांग होत़ी है तथय अपरयि कय ग्रयि बितय
है । बेरोज़गयरी की समत्य से छुटकयरय पयने के लिए लशक्षय को रोिगयर से िोडने को आर्श््कतय है । व््यर्सयन्क
लशक्षय को बत्रद्
ू यि्ों में ियगू करने के अियर्य अननर्य्व बनयनय चयढ़हए।
तकूिी पयट््िमों में श्रम की मढ़हमय सांबि़ी पयठ शयलमि कक्य ियनय चयढ़हए तयकक ्ुर्यर्गव श्रम के प्रनत
अच्छी सोच पैदय कर सके। इसके अियर्य एक बयर गन
ु : िघु एर्ां कुटीर उद्
ू ोग की तथयपनय एर्ां उनके वर्कयस के
लिए उगचत र्यतयर्रण बनयने को आर्श््कतय है । ककसयनों को ियिी सम् में दग्ु ि उत्पयदन, मिुमक्ि़ी पयिन, िैसे
कय्ों के लिए प्रोत्सयढ़हत करनय चयढ़हए। इस कयम में सरकयर के अियर्य िऩी िोगों को भ़ी आगे आनय चयढ़हए तयकक
भयरत बेरोिगयर मक्
ु त बन सके और प्रगनत के पथ पर चिते हुए वर्कयस की नई ऊाँचयइ्याँ छू सके।

ववद्यथी जीवन में अनुशयसन की आवश््कतय

वर्द्यथी ि़ीर्न कय सबसे महत्र्पण


ू व कयि है । इस कयि में स़ीि़ी गई बयतों पर ही परू य ि़ीर्न ननभवर है । और
असुांदर बनयने में इस कयि कय सर्यवगिक महत्र् है । जिस प्रकयर ककस़ी प्रयसयद की मिबूत़ी और उसकी ऩीांर् ्य
आियरलशिय की मिबूत़ी पर ननभवर करत़ी है , उस़ी प्रकयर व््जक्त के ि़ीर्न की सुि-शयांनत, वर्चयर और व््र्हयर उसके
वर्द्यथी-ि़ीर्न पर ननभवर करतय है ।
वर्द्यथी-ि़ीर्न में बयिक कय मजततष्क ग़ीिी लमट्टी की तरह होतय है , जिसे मनचयहय आकयर प्रदयन करके
भयाँनत-भयाँनत के खििौने और मूनतव्याँ बनयई िय हैं। उस़ी लमट्टी के सि
ू ियने और पकय लिए ियने पर उसे और कोई
न्य आकयर नहीां ढ़द्य िय सकतय। अत: इस कयि में वर्द्यथी अनुशयसन, सच्चररत्रतय, त््यग सदयचयररतय आढ़द कय
भरपूर पयिन करनय चयढ़हए तयकक र्ह समयि और रयष्र के उत्थयन में अपनय ्ोगदयन दे सके। हयियाँकक आि
वर्द्यगथव्ों में बित़ी के लिए गचांतय कय वर्ष् है ।
अनुशयसनहीनतय के मूि कयरणों पर ्ढ़द वर्चयर करें तो ज्ञयत होतय है कक इसकय वपतय के सांतकयर तथय उसकी
शरयरतों को अनदे िय कक्य ियनय है । बच्चे की अनुशयसनहीनतय की करे ्य वर्द्यि् प्रशयसन मयतय-वपतय अपने बच्चे
के पक्ष में िडे हो ियते हैं तथय उसे ननदोष बतयने हैं। अनश
ु यसनहीन वर्द्यगथव्ों कय मनोबि और भ़ी बि ियतय है ।
अनुशयसनहीनतय बियने में र्तवमयन लशक्षयप्रणयिी भ़ी कम उत्तरदय़्ी नहीां है ।
वर्द्यगथव्ों को रट्टू तोतय बनयने र्यिी लशक्षय से व््यर्हयररक ज्ञयन नहीां हो पयतय। इसके अियर्य, पयठ््िम में
नैनतक एर्ां चयररबत्रक लशक्षय को कोई तथयन नहीां ढ़द्य ग्य है । वर्द्यि्ों में सुवर्वियओां की कम़ी, कुप्रबांिन, अध््यपकों
की कम़ी, उनकी अरुगचकर लशक्षण-वर्गि, िेि-कूद की सुवर्ियओां कय घोर अभयर्, पयठ््िम की अनुप्ोगगतय, लशक्षय कय
रोिगयरपरक न होनय, उच्च लशक्षय पयकर भ़ी रोिगयर और नौकरी की अननश्च्भरी जतथनत वर्द्यगथव्ों के मन में
लशक्षय के प्रनत अरुगच उत्पन्न करत़ी है ।

63
वर्द्यगथव्ों की मनोदशय कय अनुगचत फ़य्दय रयिनैनतक तत्र् उठयते हैं। र्े वर्द्यगथव्ों को भडकयकर तकूि-
कॉिेि बांद करर्यने तथय उनकय बढ़हष्कयर करने के लिए प्रेररत करते हैं। इससे वर्द्यगथव्ों बित़ी है । वर्द्यगथव्ों में
अनुशयसन की भयर्नय उत्पन्न करने के लिए मयतय-वपतय, वर्द्यि्-प्रशयसन और सरकयरी तांत्र त़ीनों को ही अपऩी-
अपऩी भूलमकय कय उगचत ननर्वहन करनय होगय। इसके अियर्य पयठ््िम में नैनतक लशक्षय और चयररबत्रक लशक्षय को
अर्श्् शयलमि कक्य ियनय चयढ़हए।
प्रनतढ़दन प्रयथवनय-सभय में नैनतक लशक्षय दे ने के अियर्य इसे पयठ््िम कय अांग बनयनय चयढ़हए। वर्द्यि्ों में
वर्द्यगथव्ों के लिए इतऩी सुवर्ियएाँ बियऩी चयढ़हए कक वर्द्यि् और र्गवकक्ष में उनकय मन िगे। ननष्कषवत: आि
लशक्षय-प्रणयिी और लशक्षय-व््र्तथय में आमि
ू -चि
ू बदियर् ियने की आर्श््कतय है । लशक्षय को रोिगयरोन्मि
ु बनयकर
तथय उज्ज्र्ि भवर्ष्् के लिए नैनतक स़ीि दे कर अनश
ु यसनहीनतय की बित़ी समत्य पर अांकुश िगय्य िय सकतय है ।

ववधयओं पर आधयररत प्रश्न हे तु

कहयनी - कहयऩी गद् सयढ़हत्् की र्ह सबसे अगिक रोचक एर्ां िोकवप्र् वर्िय है िो ि़ीर्न के ककस़ी वर्शेष पक्ष कय
मयलमवक, भयर्नयत्मक और कियत्मक र्णवन करत़ी है । सयढ़हत्् की सभ़ी वर्ियओ में कहयऩी सबसे परु यऩी वर्िय है ।
िनि़ीर्न में ्ह सबसे अगिक िोकवप्र् वर्िय है । प्रयच़ीन कयि में कहयनन्ों को कथय, आख््यन्कय, गल्प आढ़द कहय
ियतय थय। र्तवमयन दौर में भ़ी कहयऩी सबसे अगिक प्रचलित है । सयढ़हत्् में ्ह अब अत््ांत महत्र्पूणव तथयन बनय
चुकी है । पुरयने सम् मे कहयऩी कय मतिब थय उपदे श दे नय ्य मनोरां िन करनय। आि इसकय िक्ष्् मयनर् ि़ीर्न की
वर्लभन्न समत्यओां और सांर्ेदनयओ को व््क्त करनय है । ्ही कयरण है कक प्रयच़ीन कयि की कहयऩी से आि की
कहयऩी बबल्कुि लभन्न हो ग़्ी है ।आिुननक कयि में इसकी आत्मय और शैिी दोनों बदि गई है ।
कहयनी के स्वरूप कय बोध करयने वयली कु् पररियषयएँ – प्रलसदि अमरीकी िेिक एडगर एिन पो के
अनुसयर “कहयऩी र्ह छोटी आख््यनयत्मक रचनय है , जिसे एक बैठक में पिय िय सके, िो पयठक पर एक समजन्र्त
प्रभयर् उत्पन्न करने के लि्े लिि़ी गई हो, जिसमें उस प्रभयर् को उत्पन्न करने में सहय्क तत्र्ों के अनतररक्त और
कुछ न हो और िो अपने आप में पूणव हो।”
प्रलसदि सम़ीक्षक वर्लि्म हे नरी के अनुसयर, "िघुकथय में केर्ि एक ही मूिभयर् होनय चयढ़हए। उस मूिभयर्
कय वर्कयस केर्ि एक ही उददे श्् को ध््यन मे रिते हुए सरि ढां ग से तकवपूणव ननष्कषों के सयथ करनय चयढ़हए." ियन
ियतटर ने कहयऩी की पररभयषय इस प्रकयर दी है , "असयियरण घटनयओ की र्ह श्रांि ृ िय िो परतपर सम्बदि होकर एक
चरम पररणयम पर पहुाँचयने र्यिी हो।" मांश
ु ़ी प्रेमचांद्र ने कहयऩी के बयरे में लििय है - "कहयऩी कय उददे श्् सम्पण
ू व
मनुष्् को गचबत्रत करनय नहीीँ, अवपतु उसके चररत्र कय एक अांग ढ़दिियनय है ।"
इस प्रकयर कहयऩी “ढ़हन्दी गद् की र्ह वर्िय है जिसमें िेिक ककस़ी घटनय, पयत्र अथर्य समत्य कय िमबदि
ब््ौरय दे तय है , जिसे पिकर एक समजन्र्त प्रभयर् उत्पन्न होतय है , उसे कहयऩी कहते हैं”। प्रयच़ीनकयि में ऱ्ीरों तथय
रयियओां के शौ्व, प्रेम, न््य्, ज्ञयन, र्ैरयग््, सयहस, समुद्री ्यत्रय, अगम्् पर्वत़ी् प्रदे शों में प्रयखण्ों कय अजततत्र् आढ़द
की कथयएाँ ही कहयऩी के रूप होत़ी थ़ीां।
कहयनी के तत्व - कहयऩी के कुछ वर्शेष तत्र् होते हैं िो कहयऩी को पण
ू त
व य प्रदयन करते हैं। कहयऩी के ननम्नलिखित
छह तत्र् होते हैं- 1-कथयर्ततु 2-चररत्र-गचत्रण 3-कथोपकथन 4-दे शकयि 5-भयषय-शैिी 6-उददे श््
कथयवस्तु - कहयऩी के ढयाँचे को कथयनक अथर्य कथयर्ततु कहय ियतय है । इसे कहयऩी कय केंद्र मयनय ियतय है । इसके
अभयर् में कहयऩी की रचनय की कल्पनय भ़ी नहीां की िय सकत़ी है । इसके भ़ी चयर अांग होते हैं - आरम्भ, आरोह, चरम
जतथनत तथय अर्रोह। ्ह कहयऩी कय सर्यवगिक महत्र्पूणव तत्र् है । इसके लिए र्तत,ु वर्ष्र्ततु, कथय तथय कथयनक
आढ़द समयनयथी शब्द हैं। अांग्रेि़ी के ' प्ियट ' तथय ' थ़ीम ' शब्द इस़ी के प्यव् हैं। इस तत्र् में कहयऩीकयर अपने
ि़ीर्न के अनुभर्ों को प्रततत
ु करतय है ।

64
चररत्र थचत्रण- कहयऩी कय सांचयिन उसके पयत्रों के दर्यरय ही होतय है तथय पयत्रों के गुण-दोष को ‘चररत्र गचत्रण’ कहय
ियतय है । कहयऩी में िेिक की दृजष्ट प्रमि
ु पयत्र के चररत्र पर अगिक रहत़ी है । इसलिए अन्् पयत्रों के चररत्र कय
वर्कयस मुख्् पयत्र के सहयरे ही होतय है । एक अच्छी कहयऩी में पयत्रों की सांख््य अगिक नही होत़ी है ।
कथयर्ततु के बयद कहयनन्ों में पयत्र और उनके चररत्र-गचत्रण कय महत्र्पूणव तथयन है । एक अच्छय कहयऩीकयर अपऩी
कथयर्ततु में घटनयओां और दृश््ों के अनक
ु ू ि ही पयत्रों की रचनय करतय है तथय उनके चररत्र कय वर्कयस करतय है । बयबू
गुियबरय् ने कहयऩी में चररत्र-गचत्रण के महत्र् पर प्रकयश डयिते हुए लििय है - "आिकि कथयनक को उतनय महत्र्
नहीां ढ़द्य ियतय, जितनय कक चररत्र-गचत्रण और अलभव््जक्त को।“ चररत्र -गचत्रण कय सम्बन्ि पयत्रों से है । कहयऩी में
पयत्रों की सांख््य कम से कम होत़ी है । कहयऩी में पयत्रों के चररत्र कय पण
ू व वर्कयस िम नहीां ढ़दिय्य ियतय, र्रन ् प्रय्ः
बने बनयए चररत्र के ऐसे अांश पर प्रकयश डयिय ियतय है, जिसमें व््जक्त कय व््जक्तत्र् झिक उठे । कहयऩी में पयत्र और
कथयर्ततु कय अन््ोन््यगश्रत सम्बन्ि होतय है । दोनों लमिकर कहयऩी के केन्द्री् भयर् को व््क्त करते हैं। कहयऩी में
कुछ पयत्र सयमयन्् होते हैं और कुछ प्रत़ीकयत्मक। कहयऩी कय किेर्र छोटय होतय है , इसलिए उसमें केर्ि नय्क के
चररत्र को ही उभयरय ियतय है । ककस़ी वर्शेष पररजतथनत में रिकर कहयऩीकयर नय्क के चररत्र कय उदघयटन करनय
अपनय उददे श्् समझतय है। चररत्र- गचत्रण की सिितय के लिए पयत्रों कय गनतश़ीि होनय आर्श््क होतय है । जतथर
पयत्रों कय चररत्रयांकन ननिीर्-सय प्रत़ीत होतय है ।
कथोपकथन ्य संवयि- कहयऩी में सांर्यद कय भ़ी वर्शेष महत्त्र् है । इनके दर्यरय पयत्रों के मयनलसक अन्तदवर्न्द एर्ां अन््
मनोभयर्ों को प्रकट कक्य ियतय है । पयत्रों के पयरतपररक र्यतयवियप को कथोपकथन कहते हैं। कथोपकथन के दो कय्व
होते हैं- पयत्रों की चयररबत्रक वर्शेषतयओां को उदघयढ़टत करनय और कथय की गनत को वर्कलसत करनय। सांक्षक्षप्त एर्ां
सां्त कथोपकथन कहयऩी में आकषवण उत्पन्न करने के सयथ-सयथ पयठकों की जिज्ञयसय को शयन्त करते हैं।
कथोपकथन कय प्रत््ेक शब्द सयथवक और सोददे श्् होनय चयढ़हए तयकक र्ह पयठकों पर अपनय प्रभयर् उत्पन्न कर
सके। बयबू गुियबरय् के शब्दों में "कथोपकथन ्य र्यतयवियप दर्यरय ही हम पयत्रों के हृद्गत भयर्ों को ियन सकते हैं।
्ढ़द र्यतयवियप पयत्रों के चररत्र के अनक
ु ू ि न हो, तो हम उनके चररत्र कय मल्
ू ्यांकन करने में भि
ू कर ियएांगे।“ कहयऩी
की रोचकतय में र्द
ृ गि करने के लिए कथोपकथन अननर्य्व होते हैं। बौदगिक और शब्दयडम्बरों से िकडे हुए
कथोपकथन कहयऩी की तर्यभयवर्क गनत में बयिय उत्पन्न करते हैं।
िे शकयल ्य वयतयवरण- ककस़ी कहयऩी को असरदयर बनयने के लिए ज़रूरी है कक दे श कयि कय परू य ध््यन रिय िय्े,
्ह कहयऩी में र्यततवर्कतय ियतय है । कहयऩी को सि़ीर् एर्ां तर्यभयवर्क बनयने में दे शकयि ्य र्यतयर्रण कय सर्यवगिक
महत्र् है । प्रत््ेक कहयऩी में ककस़ी तथयन, सम् और पररजतथनत कय गचत्रण होतय है , इस़ी गचत्रण को र्यतयर्रण की
सांज्ञय प्रदयन की ियत़ी है । सिि र्यतयर्रण पयठक के मन पर सांर्ेदनयत्मक प्रभयर् डयितय है । डॉ. िक्ष्म़ीनयरय्ण ियि
ने इस सम्बन्ि में लििय है "र्यततवर्क ि़ीर्न दे श, कयि और ि़ीर्न की वर्लभन्न सत ्-असत ् पररजतथनत्ों से ननलमवत
होतय है । अतएर् इन तत्र्ों कय एक तथयन पर सांच्न और गचत्रण करनय कहयऩी में र्यतयर्रण उपजतथत करतय है ।
कहयऩी की कथयर्ततु और उसके सांचयिक पयत्रों कय सम्बन्ि उक्त जतथनत्ों से होतय है । " कहयऩी में दे शकयि और
र्यतयर्रण कय गचत्रण सरि, सांक्षक्षप्त और पयत्रों की मयनलसक पररजतथनत्ों के अनुकूि होनय चयढ़हए। र्यतयर्रण कय
अत््गिक वर्ततयर कहयऩी में लशगथितय उत्पन्न कर दे तय है । एक श्रेष्ठ कहयऩी में त़ीनों प्रकयर के र्यतयर्रण कय
समन्र्् होनय आर्श््क होतय है । इस प्रकयर कहयऩी में दे शकयि और र्यतयर्रण र्ह तत्र् होतय है िो कहयऩी के
सौन्द्व में ही र्द
ृ गि नहीां करतय र्रन ् पयठक को ननरन्तर आकवषवत और प्रेररत करतय है । दे शकयि कय सर्यवगिक
उप्ोग आांचलिक कहयनन्ों में कहयऩीकयर करतय है । ऐनतहयलसक कहयनन्ों में भ़ी दे शकयि ्य र्यतयर्रण की महत़ी
भूलमकय होत़ी है । एक सिि कहयऩीकयर र्ही है िो दे शकयि कय सूक्ष्म, सटीक एर्ां उप्ुक्त गचत्रण कर पयठक को
उस र्यतयर्रण कय मयनलसक प्रत््क्ष़ीकरण करय दे तय है ।
ियषय-शैली- कहयऩी के प्रततत
ु ़ीकरण में कियत्मकतय ियने के लिए दे शकयि के अनुसयर अिग-अिग भयषय र् शैिी से
सिय्य ियतय है । भयषय भयर्ों की अलभव््जक्त कय सयिन होत़ी है । कहयऩी िनसयमयन्् की वर्िय है , इसलिए कहयऩी की
भयषय ऐस़ी होऩी चयढ़हए, िो सरि, सि़ीर् और प्रर्यहपण
ू व हो। सिि भयषय र्ही होत़ी है िो कहयऩी की कथयर्ततु, पयत्र-

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्ोिनय, शैिी और र्यतयर्रण के अनक
ु ू ि हो। ननरथवक शब्द ्ोिनय और कढ़ठन र्यक्् सांरचनय कहयऩी के सौन्द्व तथय
तर्यभयवर्क गनत को नष्ट कर दे त़ी है । इसलिए कहयऩी की भयषय में प्रर्यह, भयर्यनुभूनत, आिांकयररकतय और
बबम्बयनुभूनत आढ़द गण
ु ों कय होनय अननर्य्व होतय है । उसमें आर्श््कतयनुरूप िोकोजक्त्ों एर्ां मुहयर्रों कय प्र्ोग भ़ी
होनय चयढ़हए।
कहयऩी किय के समतत तत्र्ों कय उप्ोग करने की रीनत शैिी कहियत़ी है । बयबू गि
ु यबरय् ने शैिी कय
वर्र्ेचन करते हुए लििय है "शैिी कय सम्बन्ि कहयऩी के ककस़ी एक तत्र् से नहीां र्रन ् सब तत्र्ों से है और उसकी
अच्छयई और बुरयई कय प्रभयर् पूरी कहयऩी पर पडतय है । कहयऩी की प्रेषण़ी्तय अथयवत ् दसू रों को प्रभयवर्त करने की
शजक्त शैिी पर ही ननभवर करत़ी है ।" ककस़ी बयत के कहने ्य लििने के वर्शेष ढां ग ्य प्रकयर को शैिी कहते हैं। शैिी
कय सम्बन्ि केर्ि शब्दों से ही नहीां अवपतु वर्चयरों और भयर्ों से भ़ी होतय है । शैिी की कियत्मकतय ही कहयऩी के
प्रनत पयठक की रोचकतय में र्द
ृ गि करत़ी है ।
उदिे श््- हर कहयऩी कय अपनय एक अिग उददे श्् होतय है , ्ह केर्ि मनोरां िन हे तु ही नहीां होतय, इससे िोगों को
प्रेरणय भ़ी ियत़ी है । िमव प्रचयरक अपने उददे श्् को िोगों तक पहुाँचयने के लिए कहयऩी कय ही सहयरय िेते हैं। प्रत््ेक
कहयऩी की रचनय कय एक उददे श्् होतय है । मनोरां िन से िेकर गम्भ़ीर समत्य-ननरूपण तक कहयऩी कय उददे श्् हो
सकतय है । कहयऩी की रचनय के प़ीछे एक ऐसय उददे श्् नछपय रहतय है जिससे पयठक अलभभूत होकर कुछ सोचने के
लिए वर्र्श हो ियतय है । ककस़ी वर्शेष प्रर्वृ त्त को ियग्रत करके हृद् सांर्ेद् बनयनय, ककस़ी वर्चयरभयर् ्य लसदियन्त कय
प्रनतपयदन करनय अथर्य सन्
ु दर मयनऱ्ी् भयर्ों कय गचत्रण करनय कहयऩी कय उददे श्् हो सकतय है । आि कहयऩी में
अनेक प्रकयर की बौदगिक, सयमयजिक, सयांतकृनतक रयिऩीनतक, मनोर्ैज्ञयननक समत्यओां कय ननदशवन भ़ी कक्य ियने
िगय है । मयनर्-मूल््ों की व््यख््य करनय तथय मयनर् के शयश्र्त भयर्ों, अनुभूनत्ों और समत्यओां पर प्रकयश डयिनय
ही कहयऩी कय उददे श्् है । कहयऩीकयर के व््जक्तत्र् की प्रनतष्ठय आिुननक कहयऩी की सबसे बड़ी वर्शेषतय है । बयबू
गुियबरय् ने कहयऩी के उददे श्् के सम्बन्ि में लििय है "प्रत््ेक कहयऩी में कोई उददे श्् ्य िक्ष्् अर्श्् रहतय है ।
कहयऩी कय ध््े् केर्ि मनोरां िन ्य िम्ब़ी रयतों को कयट कर छोटय करनय नहीां है , र्रन ् ि़ीर्न सम्बन्ि़ी कुछ तथ््
दे नय ्य मयनर् मन कय ननकट पररच् करयनय है ।
कहयनी के लक्षण:
1. कहयऩी मयनऱ्ी् सांर्ेदनयओ की अलभव््जक्त है ।
2. कहयऩी में कथयर्ततु कय आकयर िघु होतय है ।
3. कहयऩी कय एक ननजश्चत उददे श्् होतय है ।
4. मनोरां िन के सयथ-सयथ ि़ीर्न की समत्यओां कय गचत्रण करनय भ़ी कहयऩी कय िक्ष्् होतय है ।
5. कहयऩी को एक बैठक में सरितय से पिय िय सकतय है ।
6. कहयऩी में एक ही केंद्री् सांर्ेदनय होत़ी है तथय उसके सभ़ी तत्र् इस़ी सांर्ेदनय को उभयरने में सहय्तय दे ते हैं।
7. कहयऩी मूितः मयनर् ि़ीर्न से सम्बदि होत़ी है । उसमें केर्ि कल्पननकतय न होकर ्थयथव कय भ़ी पुट रहतय है ।
कहयनी में शीषथक कय महत्व है
कहयऩी में श़ीषवक कय भ़ी वर्लशष्ट महत्र् है । ्ह सांक्षक्षप्त, आकषवक एर्ां कथयर्ततु से सम्बदि होनय चयढ़हए। श़ीषवक
ऐसय हो जिससे पयठक कहयऩी पिने के लिए उत्सुक हो िय् तभ़ी उसे सिि श़ीषवक कहय िय सकतय है ।
कहयनी में कथोपकथन कय महत्व है
डॉ. िक्ष्म़ीनयरय्ण ियि ने इस सम्बन्ि में लििय है “कथोपकथन कय तयरतम्् ऐसय हो िैसे नदी में िहरों की गनत
और उस पर र्य्ु कय सह सांग़ीत, जिसके सहयरे पयठक के हृद् में उत्तरोत्तर कहयऩी पिने की आकयांक्षय और जिज्ञयसय
दोनों बऩी रहें । कथोपकथन कय प्रत््ेक शब्द सयथवक और सोददे श्् होनय चयढ़हए। एक श्रेष्ठ कहयऩी र्ही है जिसके
सांर्यद छोटे -छोटे , पयत्रयनुकूि एर्ां चररत्र अलभव््ांिक हों।
कहयनी में वयतयवरण कय महत्व
1- पयठक की इजन्द्र्ों को प्रभयवर्त करने र्यिय

66
2- सौन्द्व र्वृ त्त को तप्ृ त करने र्यिय
3- पयठक में सच्च़ी सहयनुभूनत ियग्रत करने र्यिय।
कहयनी में उदिे श्् कय महत्व-
कहयऩी कय मूि उददे श्् मयनर्तय के शयश्र्त मूल््ों की व््यख््य करनय तथय ि़ीर्न और िगत के मन पर पडे प्रभयर्
को अलभव््क्त करनय है । कहयऩी कय उददे श्् मनोरां िन, उपदे शयत्मकतय, कौतह
ू ि सजृ ष्ट, आदशवर्यद, समत्य, सि
ु यर,
प्रभयर्यत्मकतय, मनोर्ैज्ञयननकतय आढ़द कुछ भ़ी हो सकतय है ।
कहयनी में कथयवस्तु कय महत्व
कथयर्ततु को घटनयओां कय आिेि भ़ी कहय ियतय है क््ोंकक कहयऩी की सिितय उसमें ननढ़हत घटनयओां की
कियत्मकतय पर आियररत होत़ी है । मौलिकतय, सांक्षक्षप्ततय, रोचकतय, िमबदितय, उत्सुकतय, लशल्पगत नऱ्ीनतय, और
वर्श्र्सऩी्तय आढ़द कथयर्ततु के प्रमुि गण
ु होते हैं। कथयर्ततु के सयमयजिक, ऐनतहयलसक, ियलमवक, रयिऩीनतक और
मनोर्ैज्ञयननक आढ़द अनेक वर्ष् हो सकते हैं। कहयऩी की सरसतय कथयनक के वर्कयस पर ननभवर करत़ी है वर्कयस की
पयाँच जतथनत्याँ होत़ी हैं- 1.आरम्भ 2. आरोह 3. अर्रोह 4. चरमस़ीमय 5. अन्त

नयटक- नयटक नट शब्द से बनय है जिसकय आश् है - सयजत्त्र्क भयर्ों कय अलभन्। नयटक दृश्् कयव्् के अांतगवत
आतय है । इसकय प्रदशवन रां गमांच पर होतय है । भयरतें द ु हररशचन्द्र ने नयटक के िक्षण दे ते हुए लििय है - नयटक शब्द कय
अथव नट िोगों की कि्य है। दृश््-कयव्् की सांज्ञय-रूपक है । रूपकों में नयटक ही सबसे मख् ु ् है इससे रूपक मयत्र को
नयटक कहते है । ढ़हन्दी मे नयटक लििने कय प्रयरां भ पदम के दर्यरय हुआ। िेककन आि के नयटकों मे गद् की प्रमुितय
है । नयटक गद् कय र्ह कथयत्मक रूप है , जिसे अलभन् सांग़ीत, नत्ृ ्, सांर्यद आढ़द के मयध््म से रां गमांच पर
अलभऩीत कक्य िय सकतय है ।
नयटक कयव्् कय ही एक रूप है । िो रचनय श्रर्ण दर्यरय ही नहीां अवपतु दृजष्ट दर्यरय भ़ी दशवकों के हृद् में
रसयनभ
ु नू त करयत़ी है उसे नयटक ्य दृश््-कयव्् कहते हैं। नयटक में श्रव्् कयव्् से अगिक रमण़ी्तय होत़ी है । दृश््
कयव्् होने के कयरण ्ह िोक चेतनय से अपेक्षय कृत अगिक घननष्ठ रूप से सांबदिहै ।
नयटक की पररियषय- बयबू गुियबरय् के अनुसयर "नयटक में ि़ीर्न की अनुकृनत को शब्दगत सांकेतों में सांकुगचत करके
उसको सि़ीर् पयत्रों दर्यरय एक चिते-किरते सप्रयण रूप में अांककत कक्य ियतय है ।“ नयटक में िैिे हुए ि़ीर्न व््यपयर
को ऐस़ी व््र्तथय के सयथ रिते हैं कक अगिक से अगिक प्रभयर् उत्पन्न हो सके। नयटक कय प्रमुि उपयदयन है उसकी
रां गमांच़ी्तय। ढ़हन्दी सयढ़हत्् मे नयटकों कय वर्कयस र्यततर् मे आिुननक कयि मे भयरतें द ु ्ुग में हुआ।
नयटक के तत्व- पयश्चयत्् वर्दर्यनों के मतयनुसयर नयटक के प्रमि ु तत्र् हैं:
1. कथयवस्तु 2. पयत्र चररत्र-थचत्रण 3. संवयि ्य कथोपकथन 4. िे शकयल और वयतयवरण (संकलनत्र्)
5. ियषय-शैली 6. उदिे श््
ियरती् ववदवयनों के अनुसयर नयटक के तत्व इस प्रकयर है :
1. कथयवस्तु 2. नेतय (नय्क) 3. अभिन् 4. रस 5. ववृ त्त
[1] कथयवस्तु- इससे तयत्प्व कथयर्ततु से है । कथयर्ततु नयटक कय प्रियन तत्र् है। भयरत़ी् आचय्ो ने र्ततु के स्रोत
सांगठन की दृजष्ट से नयट्् र्ततु कय वर्ततत
ृ वर्र्ेचन कक्य है । नयट्र्ततु कय समुगचत वर्कयस हो इसलिए भयरत़ी्
नयट्शयतत्र में र्ततु के भेद आढ़द कय वर्ततयर से वर्र्ेचन कक्य ग्य है । सयथ ही नयट्र्ततु जिन सांर्यदों के मयध््म
से प्रकट होत़ी है , उस पर भ़ी ध््यन ढ़द्य है ।
[2] नेतय- भयरत़ी् नयट्शयतत्र के अनुसयर दस
ू रय महत्र्पूणव तत्र् है - नेतय। इसके अांतगवत नयटक कय नय्क तथय उसके
सह्ोग़ी चररत्र ्ोिनय कय वर्श्िेषण कक्य ियतय है । भयरत़ी् नयट्शयतत्र में नेतय ्य नय्क सभ़ी दृजष्ट्ों से वर्शेष
मयनय ियतय है । उसके कय्व व््यपयर की कल्पनय उदयत्त, उदयर दृजष्ट्ों से की गई है ।
ियरती् आचय्ों ने चयर प्रकयर के नय्क ्य नेतय मयने हैं-
1- ि़ीरोदयत्त 2- ि़ीरिलित 3- ि़ीरप्रशयांत 4- ि़ीरोदित।

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ियरती् आचय्ों ने नयत्कय के तनम्न गण
ु मयने है -
1- रूपर्त़ी 2- गण
ु र्ांत़ी 3- श़ीिर्त़ी 4- ्ौर्नय 5- मयिु्व आढ़द
[3] रस- भयरत़ी् नयट्शयतत्र में रस की लसदगि ही नयटक कय उददे श्् मयऩी गई है । भरतमुनन के अनुसयर रस के
अभयर् में नयटक में कोई प्र्ोिन लसदि नहीां होतय। नयटक में श्रांग
ृ यर रस, ऱ्ीर, शयांत में से कोई एक रस प्रमि
ु होनय
चयढ़हए और शेष रसों की ननष्पनत अांग़ी रस के अगश्रत रूप में होऩी चयढ़हए। भयरत़ी् नयट्् शयतत्र में रस प्रकि्य कय
वर्ततत
ृ वर्र्ेचन कक्य ग्य है ।
[4] अभिन्- नयट्् के समगु चत वर्ष् कय ्य र्ततु वर्ियन कय प्रेक्षयगह
ृ ों में बने रां गमांच पर अलभनेतयओां दर्यरय
प्रततत
ु ़ीकरण अलभन् कहियतय है । भयरत़ी् नयट्् शयतत्र में अलभन् के भेद तथय रां गमांच कय वर्ततयर से वर्र्ेचन
कक्य ग्य है । अलभन् मख्
ु ्त: चयर प्रकयर कय होतय है – आांगगक, र्यगचक, आहय्व, सयजत्र्क।
[5] ववृ त्त- नय्क (पयत्र) के कय्व-व््यपयर को नयटक में र्वृ त्त कहय ियतय है । र्वृ त्त्याँ चयर प्रकयर की होत़ी हैं – कौलशकी,
सयजत्र्त़ी , आरभटी और भयरत़ी
पयश्चयत्् सयठहत््शयस्त्र के अनुसयर नयटक के तत्व- पयश्चयत्् सयढ़हत््शयतत्र के अनुसयर नयटक के ननम्न तत्र् होते हैं-
[1]- कथयवस्तु ्य कथयनक- ्ह नयटक कय प्रयणतत्र् है। कथयर्ततु ऐनतहयलसक, पौरयखणक, कजल्पत, लमगश्रत ककस़ी भ़ी
प्रकयर की हो सकत़ी है । आिकि ऐनतहयलसक, पौरयखणक कथय प्रसांगों कय प्रत़ीकयत्मक तथय लमथकी् प्र्ोग कथयर्ततु
के रूप में कक्य िय रहय है । कथयर्ततु दो प्रकयर की होत़ी है – आगिकयररक कथय और प्रयसांगगक कथय। पयश्चयत््
ियरणय के अनस
ु यर कथय वर्कयस में सांघषव तत्र् प्रियन होतय है तथय नयटक कय अांत प्रय्ः दि
ु यांत होतय है ।
[2]- चररत्र थचत्रण- पयत्र ्ोिनय तथय चररत्र गचत्रण के प्रनत पयश्चयत्् दृजष्ट तर्यभवर्क और ्थयथव रही है । अतः
भयरत़ी् आचय्ों के समयन नय्क तथय अन्् चररत्रों के प्रनत आदशवर्यदी दृजष्ट पयश्चयत्् वर्दर्यनों की नहीां है । अरततु
के अनुसयर चररत्र गचत्रण में नयटककयर को चयर बयतों की ओर वर्शेष ध््यन रिनय चयढ़हए। अच्छय चररत्र, चररत्र कय
औगचत््, ि़ीर्न के अनुरूप और चररत्र में सुसांगनत। चररत्र गचत्रण से तयत्प्व उसके आांतररक व््जक्तत्र् और बयह्
व््जक्तत्र् के प्रकटन से है । ्ह प्रकटन नयट्् व््यपयर तथय सांर्यदों के मयध््म से हो सकतय है । पयत्रों को व््जक्त पयत्र
तथय प्रनतननगि पयत्र दो भयगों में वर्भयजित कक्य िय सकतयहै ।
[3]- कथोपकथन ्य संवयि- नयटक सांर्यदों के दर्यरय लििय ियतय है । पयत्र के चररत्र गचत्रण कय वर्कयस,
रोचकतय, र्यतयर्रण सि
ृ न सांर्यदों के मयध््म से होतय है । इस तत्र् के अभयर् में नयटक की कल्पनय ही सयकयर नहीां हो
सकत़ी। सांर्यद जितने सयथवक, सांक्षक्षप्त, र्ि, शजक्त सांपन्न होते हैं, नयटक उतनय ही सिि होतय है । अतः सांर्यदों की
भयषय, सरि, सुबोि और प्रर्यहपूणव होऩी चयढ़हए।
[4]- िे शकयल वयतयवरण- नयटक में जिस दे शकयि कय दृश्् उपजतथत कक्य ियतय है, उसे सयकयर करने के लिए नेपथ््,
र्ेषभूषय, रां गभूषय, भयषय, सयांतकृनतक सांकेत आढ़द पर ध््यन दे नय अननर्य्व है । पयश्चयत्् नयट््- वर्दों ने दे शकयि कय
ननर्यवह करते सम् सांकिन त्र् कय प्रनतपयदन कक्य है। सांकिन त्र् अथयवत ् तथि, सम्, कयि की एकतय। नयटक में
कथय के ्ुग के अनुसयर हो और उसमें समयि और रयिऩीनत की पररजतथनत्ों कय अांकन कक्य ग्य हो। ऐनतहयलसक
नयटकों में तो इन तत्र्ों कय ननर्यवह अत््ांत अपररहय्व है। सिि नयटककयर दृश्् वर्ियन, मांच-व््र्तथय र्ेषभूषय,
अलभन् आढ़द के दर्यरय सि़ीर् र्यतयर्रण की सजृ ष्ट कर िेतय है ।
[5]- ियषय-शैली- सांर्यदों को सरस एर्ां प्रभयर्शयिी बनयने के लिए भयषय शैिी कय आश्र् िेनय अननर्य्व है । नयटक की
भयषय सहि, सरि, सि़ीर्, अलभन्यनक
ु ू ि होऩी चयढ़हए। गांभ़ीर तथय हयत्-व््ांग्् प्रियन शैिी तो सर्वमयन्् है। ्ह
मयनय ियतय है कक सिि शैिी के लिए सरितय अननर्य्व शतव है । सयथ ही र्ह कियत्मक एर्ां प्रभयर्शयिी भ़ी होऩी
चयढ़हए। भयषय के अिांकृत, ियक्षखणक, र्ि और प्रभयर्पण
ू व होने पर नयटक कय सौंद्व अगिक बि ियतय है ।
[6]- उदिे श््- पयश्चयत्् परां परय के अनस
ु यर ि़ीर्न ्थयथव, ि़ीर्न सांघषव को सयमने ियनय नयटक कय उददे श्् है । नयटक
मयत्र मनोरां िन के सयिन नहीां है । ्थयथव से िझ
ु ते हुए अपने समयि की सयथवक प्रततुनत नयटक कय िक्ष्् रहय है ।
नयटकी् भशक्षण कय महत्त्व- नयटक ककस़ी घटनय को हमयरी कल्पनय से ननकयि कर मांच पर सयकयर करत़ी है । जिसके
वर्लभन्न आ्यम एर्ां महत्र् इस प्रकयर हैं-

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1- कवर्तय के चरमोत्कषव की भयषय 2- अनेकयनेक रुगच्ों की सांतुजष्ट कय मयध््म 3- ्थयथव की पष्ृ ठभूलम पर मयनर्-
मन की सयकयर प्रततुनत 4- नयटक गद्, पद् कय लमगश्रत रूप है
5- सर्विन ढ़हतय् तथय सर्विन बहुतय् से पररपण
ू व 6- सयमयन्् िन की भयवषक अलभव््जक्त
7- लशक्षण कय प्रभयर्कयरी मयध््म
[1]- कववतय के चरमोत्कषथ की ियषय- नयटक की प्रततनु त में कवर्तय की भयषय अपने परू े उत्कषव को प्रयप्त करत़ी है ।है ।
कयव्् में र्खणवत दृश्् ्य मयनलसक अर्तथय को कल्पनय में रुपयकयर कक्य ियतय है ।
[2]- अनेकयनेक रुथच्ों की संतुक्ष्ट कय मयध््म- नयटक एक ऐसय सयढ़हजत््क सयिन है जिसके दर्यरय मयनर् की
वर्लभन्न रुगच्ों की सांतजु ष्ट होत़ी है । भरत से िेकर र्तवमयन कयव्् शयतत्ऱी्ों तक सभ़ी ने इसकी पजु ष्ट की है । जिसकय
तयत्प्व है “ऐसय कोई ज्ञयन, ्ोग, वर्द्य, किय अथर्य लशल्प नहीां है , जिसे नयटक के मयध््म से प्रततुत न कक्य िय
सके।
[3]- ्थयथथ की पष्ृ ििूभम पर मयनव- मन की सयकयर प्रस्तुतत- नयटक में कल्पनय के तथयन पर र्यततवर्कतय अगिक
होतय है । ्ही कयरण है कक नयटक ि़ीर्न के अगिक ननकट होतय है । सच तो ्ह है ि़ीर्न को रूपयन्त करने कय सबसे
सटीक मयध््म है
[4]- नयटक गद्, पद् कय भमथश्रत रूप है - नयटक की रचनय गद्, पद् के लमगश्रत रूप में ही सम्भर् है । भरत नें
‘नयन्दी पयठ’ से जिस परम्परय की ऩीांर् डयिी र्ो आि भ़ी भयरत़ी् नयट् में ककस़ी न ककस़ी रूप में मौिद
ू है ।
[5]- सवथजन ठहतय् तथय सवथजन बहुतय् से पररपण ू -थ नयटक में िोकरां िन के सयथ ही समयि के िोकढ़हत की भयर्नय
प्रमुि होत़ी है । इससे दशवकों तथय पयठकों कय तर्तथ मनोरां िन कय उददे श्् तो होतय ही है , उससे लशक्षय तथय प्रेरणय भ़ी
लमित़ी है ।
[6]- सयमयन््जन की ियवषक अभिव्क्तत- नयटक िन सयमयन्् की भयर्नयओां को प्रततुत करने कय सबसे सशक्त
मयध््म है । रां गमांच पर प्रततुत ककए ियने पर ही नयटक ि़ीर्ांत र् सप्रयण हो पयतय है ।
[7]- भशक्षण कय प्रियवकयरी मयध््म- मनौर्ैज्ञयननकों ने ्ह लसदि कर ढ़द्य है कक श्रव््-दृश्् मयध््म के लशक्षण को
सर्ोत्तम रूप से प्रभयर्कयरी बनय्य िय सकतय है । नयटक एक ि़ीर्ांत श्रव््-दृश्् उपयदयन है । इस महत्त्र् को आिुननक
लशक्षय शयजतत्र्ों ने भ़ी तऱ्ीकयर कक्य है ।
नयटक अभिन् के आ्यम- नयटक अलभन् के 04 आ्यम होते हैं -
[1]- आांगगक आ्यम [2]- र्यगचक आ्यम [3]- आहय्व आ्यम [4]- सयजत्र्क आ्यम
[1] आंथगक आ्यम- आांगगक अलभन् कय अथव है शरीर, मुि और चेष्टयओां से कोई भयर् ्य अथव प्रकट करनय। लसर,
हयथ, कढ़ट, र्क्ष, पयश्र्व और चरण दर्यरय कक्य ियनेर्यिय अलभन् ्य आांगगक अलभन् कहियतयहै ।
[2] वयथचक आ्यम- अलभनेतय रां गमांच पर बोिकर िो कुछ व््क्त करतय है र्ह सब र्यगचक अलभन् कहियतय है ।
[3] आहय्थ आ्यम- आहय्व अलभन् र्यततर् में अलभन् कय अांग न होकर नेपथ्् कमव कय अांग है और उसकय सांबांि
अलभनेतय से उतनय नहीां है जितनय नेपथ्् सज्िय करने र्यिे से है ।आि के सभ़ी प्रमुि अलभनेतय और नयट्् प्र्ोक्तय
्ह मयनने िगे हैं कक प्रत््ेक अलभनेतय को अपऩी मुिसज्िय और रूपसज्िय तर््ां करऩी चयढ़हए।
[4] सयक्त्वक आ्यम- सयजत्र्क अलभन् तो उन भयर्ों कय र्यततवर्क और हयढ़दव क अलभन् है जिन्हें रस लसदियांत र्यिे
सयजत्र्क भयर् कहते हैं और जिसके अांतगवत, तर्ेद, ततांभ, कांप, अश्रु, र्ैर्ण््व, रोमयांच, तर्रभांग और प्रि् की गणनय
होत़ी है । इनमें से तर्ेद और रोमयांच को छोड शेष सबकय सयजत्र्क अलभन् कक्य िय सकतय है । अश्रु के लिए तो
वर्शेष सयिनय आर्श््क है , क््ोंकक भयर् मग्न होने पर ही उसकी लसदगि हो सकत़ी है ।
ठहंिी के प्रभसदध नयटकों के नयम- अांिेर नगरी- भयरतें द ु हररश्चांद, ध्रुर्तर्यलमऩी- ि्शांकर प्रसयद, अांिय ्ुग- िमवऱ्ीर
भयरत़ी, आषयि कय एक ढ़दन- मोहन रयकेश, बकरी- सर्ेश्र्र द्यि सक्सेनय, एक और द्रोणयचय्व- शांकर शेष, कब़ीरय
िडय बयज़यर में- भ़ीष्म सयहऩी, महयभोि- मन्नू भांडयरी
रे ड़ड्ो रूपक/नयटक - रे डड्ो श्रव्् मयध््म है । नयटक की जिस वर्िय को रे डड्ो पर सुनने से उसकय कयल्पननक गचत्र
उत्पन्न होतय है और उससे आनांदयनुभूनत होत़ी है उसे रे डड्ो रूपक ्य नयटक कहय ियतय है । रे डड्ो नयटक को अाँिेरे कय

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नयटक भ़ी कहय ियतय है क््ोंकक इसकय मांचन अदृश्् होतय है अथयवत इसे दे िय नहीां ियतय बजल्क लसिव सन
ु य ियतय है ।
नयटक िेिकों दर्यरय रे डड्ो पर प्रसयरण के लिए िो नयटक लििे ियते हैं उन्हें रे डड्ो नयटक कहते हैं। भयषय, सांर्यद,
ध्र्नन एर्ां सांग़ीत रे डड्ो नयटक के उपकरण होते हैं।
र्तवमयन सम् में रे डड्ो नयटक वर्िय तर्तांत्र रूप से प्रनतजष्ठत हो गई है । रे डड्ो नयटक ध्र्नन और शब्दों कय नयटकी्
सयमांित् है । रे डड्ो नयटकों में श्रोतय कय सहि सांबांि पयत्रों के अन्तमवन से िड
ु ियतय है । रे डड्ो श्रव्् मयध््म है ।
अत: रे डड्ो नयटक भ़ी श्रव्् होते हैं। इसमें ध्र्नन की प्रियनतय होत़ी है । डॉ. रयम कुमयर र्मयव ने रे डड्ो नयटक को
ध्र्नन नयटक भ़ी कहय है । इसे अांिे कय लसनेमय भ़ी कहय ियतय है क््ोंकक इसे मयत्र सुनकर ही आनांद की अनुभनू त होत़ी
है । रे डड्ो नयटक ध्र्नन और सांग़ीत कय समजन्र्त रूप है । पयत्रों कय कय्व व््यपयर, ध्र्नन्ों कय प्रभयर्, सांर्यदों की गनत
और सांग़ीत को कथय सूत्र में वपरोकर रे डड्ो पर जिसकय प्रततुत़ीकरण कक्य ियतय है , र्ही रे डड्ो रूपक है ।
कहयनी कय नयट्् रूपयंतर करते सम् इन महत्वपूणथ बयतों पर ध््यन िे नय चयठह्े-
कहयऩी एक ही िगह पर जतथत होऩी चयढ़ह्े। कहयऩी कय सांर्यद नयटक के सांर्यद से लभन्न होतय है । नयटक सांर्यद के
आियर पर आगे बढतय है । इसलि्े सांर्यद कय समयर्ेश करनय िरूरी होतय है । कहयऩी कय नयट्् रूपयांतर करने से पहिे
उसकय कथयनक बनयनय बहुत िरूरी है । नयटक में हर एक पयत्र कय वर्कयस कहयऩी की ही तरह होतय है । इसलि्े
कहयऩी कय नयट्् रूपयांतर करते र्क्त पयत्र कय वर्र्रण करनय बहुत िरूरी होतय है । कहयऩी कयगि़ी होत़ी है । एक
व््जक्त कहयऩी लिि सकतय है पर िब नयट्् रूपयांतरण की बयत आत़ी है , तब एक समूह ्य टीम की िरूरत होत़ी है ।
कहयऩी कय नयट्् रूपयांतरण करने में ननदे शक कय सबसे बडय और महत्र्पण
ू व कयम होतय है ।
अभिव्क्तत और मयध््म पर आधयररत प्रश्न
वप्रंट (मठु रत) मयध््म- वप्रांट ्यऩी मढ़ु द्रत मयध््म िनसांचयर के आिनु नक मयध््मों में सबसे पुरयनय है । असि में
आिुननक ्ुग की शरु
ु आत ही मुद्रण ्यऩी छपयई के आवर्ष्कयर से हुई। हयियाँकक मुद्रण की शुरुआत च़ीन से हुई, िेककन
आि हम जिस छयपेियने को दे िते हैं, उसके आवर्ष्कयर कय श्रे् िमवऩी के गट ु े नबगव को ियतय है । छयपयियनय ्यऩी
प्रेस के आवर्ष्कयर ने दनु न्य की तसऱ्ीर बदि दी। ्ूरोप में पुनियवगरण ‘रे नेसयाँ’ की शुरुआत में छयपेियने की अहम
भलू मकय थ़ी। भयरत में पहिय छयपयियनय सन 1556 में गोर्य में िि
ु य। इसे लमशनरर्ों ने िमव-प्रचयर की पत
ु तकें छयपने
के लिए िोिय थय। तब से अब तक मुद्रण तकऩीक में कयफ़ी बदियर् आ्य है और मुढ़द्रत मयध््मों कय व््यपक
वर्ततयर हुआ है ।
वप्रंट (मठु रत) मयध््मों की ववशेषतयएँ- वप्रांट मयध््मों के र्गव में अिबयरों, पबत्रकयओां, पत
ु तकों आढ़द को शयलमि कक्य
ियतय है । हमयरे दै ननक ि़ीर्न में इनकय वर्शेष महत्र् है । वप्रांट मयध््मों की वर्शेषतयएाँ ननम्नलिखित हैं - 1- वप्रांट
मयध््मों के छपे शब्दों में तथयन्त्र् होतय है । 2- हम उन्हें अपऩी रुगच और इच्छय के अनुसयर ि़ीरे -ि़ीरे पि सकते हैं।
3- पिते-पिते कहीां भ़ी रुककर सोच-वर्चयर कर सकते हैं। 4- इन्हें बयर-बयर पिय िय सकतय है । 5- इसे पिने की
शुरुआत ककस़ी भ़ी पष्ृ ठ से की िय सकत़ी है । 6- इन्हें िांबे सम् तक सुरक्षक्षत रिकर सांदभव की भयाँनत प्र्ुक्त कक्य
िय सकतय है ।
्ह लिखित भयषय कय वर्ततयर है , जिसमें लिखित भयषय की सभ़ी वर्शेषतयएाँ ननढ़हत हैं। लिखित और मौखिक भयषय में
सबसे बडय अांतर ्ह है कक लिखित भयषय अनुशयसन की मयाँग करत़ी है । बोिने में एक तर्त:तिूतवतय होत़ी है िेककन
लििने में भयषय, व््यकरण, र्तवऩी और शब्दों के उप्क्
ु त इततेमयि कय ध््यन रिनय पडतय है । इसके अियर्य उसे एक
प्रचलित भयषय में लििनय पडतय है तयकक उसे अगिक-से-अगिक िोग समझ पयएाँ। मुढ़द्रत मयध््मों की अन्् वर्शेषतय
्ह है कक ्ह गचांतन, वर्चयर और वर्श्िेषण कय मयध््म है । इस मयध््म से आप गांभ़ीर और गि
ू बयतें लिि सकते हैं
क््ोंकक पयठक के पयस न लसफ़व उसे पिने, समझने और सोचने कय सम् होतय है बजल्क उसकी ्ोग््तय भ़ी होत़ी है ।
असि में , मुढ़द्रत मयध््मों कय पयठक र्ही हो सकतय है िो सयक्षर हो और जिसने औपचयररक ्य अनौपचयररक लशक्षय के
िरर्े एक वर्शेष ततर की ्ोग््तय भ़ी हयलसि की हो।
वप्रंट (मठु रत) मयध््मों की सीमयएँ ्य कभम्यँ- मुढ़द्रत मयध््मों की कलम्याँ ननम्नलिखित हैं-

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1- ननरक्षरों के लिए मढ़ु द्रत मयध््म ककस़ी कयम के नहीां हैं। 2- मुढ़द्रत मयध््मों के लिए िेिन करने र्यिों को अपने
पयठकों के भयषय-ज्ञयन के सयथ-सयथ उनके शैक्षक्षक ज्ञयन और ्ोग््तय कय वर्शेष ध््यन रिनय पडतय है । 3-पयठकों की
रुगच्ों और िरूरतों कय भ़ी पूरय ध््यन रिनय पडतय है । 4- ्े रे डड्ो, टी०ऱ्ी० ्य इांटरनेट की तरह तुरांत घटी घटनयओां
को सांचयलित नहीां कर सकते। ्े एक ननजश्चत अर्गि पर प्रकयलशत होते हैं। 5- िैसे अिबयर 24 घांटे में एक बयर ्य
सयप्तयढ़हक पबत्रकय सप्तयह में एक बयर प्रकयलशत होत़ी है । 6- अिबयर ्य पबत्रकय में समयचयरों ्य ररपोटव को प्रकयशन
के लिए तऱ्ीकयर करने की एक ननजश्चत सम्-स़ीमय होत़ी है इसलिए मढ़ु द्रत मयध््मों के िेिकों और पत्रकयरों को
प्रकयशन की सम्-स़ीमय कय पूरय ध््यन रिनय पडतय है।
वप्रंट (मठु रत) मयध््म में लेखन के भलए ध््यन रखने ्ोग्् बयतें - मढ़ु द्रत मयध््मों में िेिक को िगह (तपेस) कय भ़ी
पूरय ध््यन रिनय चयढ़हए। िैसे ककस़ी अिबयर ्य पबत्रकय के सांपयदक ने अगर 250 शब्दों में ररपोटव ्य फ़ीचर लििने
को कहय है तो उस शब्द-स़ीमय कय ध््यन रिनय पडेगय। इसकी र्िह ्ह है कक अिबयर ्य पबत्रकय में अस़ीलमत िगह
नहीां होत़ी। मुढ़द्रत मयध््म के िेिक ्य पत्रकयर को इस बयत कय भ़ी ध््यन रिनय पडतय है कक छपने से पहिे आिेि
में मौिूद सभ़ी गिनत्ों और अशुदि्ों को दरू कर ढ़द्य ियए क््ोंकक एक बयर प्रकयशन के बयद र्ह गित़ी ्य
अशद
ु ि र्हीां गचपक ियएग़ी। उसे सि
ु यरने के लिए अिबयर ्य पबत्रकय के अगिे अांक कय इांतियर करनय पडेगय। भयषय
सरि, सहि तथय बोिगम्् होऩी चयढ़हए। शैिी रोचक होऩी चयढ़हए। वर्चयरों में प्रर्यहम्तय एर्ां तयरतम््तय होऩी
चयढ़हए।
रे ड़ड्ो- रे डड्ो श्रव्् मयध््म है । इसमें सब कुछ ध्र्नन, तर्र और शब्दों कय िेि है । इन सब र्िहों से रे डड्ो को
श्रोतयओां से सांचयलित मयध््म मयनय ियतय है । रे डड्ो पत्रकयरों को अपने श्रोतयओां कय पूरय ध््यन रिनय चयढ़हए। इसकी
र्िह ्ह है कक अिबयर के पयठकों को ्ह सुवर्िय उपिब्ि रहत़ी है कक र्े अपऩी पसांद और इच्छय से कभ़ी भ़ी और
कहीां से भ़ी पि सकते हैं। अगर ककस़ी समयचयर/िेि ्य फ़ीचर को पिते हुए कोई बयत समझ में नहीां आई तो पयठक
उसे किर से पि सकतय है ्य शब्दकोश में उसकय अथव दे ि सकतय है ्य ककस़ी से पछ ू सकतय है , िेककन रे डड्ो के
श्रोतय को ्ह सवु र्िय उपिब्ि नहीां होत़ी।
र्ह अिबयर की तरह रे डड्ो समयचयर बुिढ़े टन को कभ़ी भ़ी और कहीां से भ़ी नहीां सुन सकतय। उसे बुिढ़े टन के प्रसयरण
सम् कय इांतियर करनय होगय और किर शुरू से िेकर अांत तक बयरी-बयरी से एक के बयद दस
ू रय समयचयर सुननय होगय।
इस ब़ीच, र्ह इिर-उिर नहीां आ-िय सकतय और न ही उसके पयस ककस़ी गूि शब्द ्य र्यक््यांश के आने पर शब्दकोश
कय सहयरय िेने कय सम् होतय है । अगर र्ह शब्दकोश में अथव ढूाँिने िगेगय तो बि
ु ेढ़टन आगे ननकि ियएगय।
1-रे डड्ो में अिबयर की तरह प़ीछे िौटकर सुनने की सुवर्िय नहीां है । 2-अगर रे डड्ो बुिेढ़टन में कुछ भ़ी भ्रयमक ्य
अरुगचकर है , तो सांभर् है कक श्रोतय तुरांत तटे शन बांद कर दे । 3-रे डड्ो मूित: एकरे ि़ी् (िीनन्र) मयध््म है और
रे डड्ो समयचयर बुिेढ़टन कय तर्रूप, ढयाँचय और शैिी इस आियर पर ही त् होत़ी है । 4-रे डड्ो की तरह टे िीवर्िन भ़ी
एकरे ि़ी् मयध््म है, िेककन र्हयाँ शब्दों और ध्र्नन्ों की ति
ु नय में दृश््ों कय महत्र् सर्यवगिक होतय है । 5-टे िीवर्िन
में शब्द दृश््ों के अनुसयर और उनके सह्ोग़ी के रूप में चिते हैं। िेककन रे डड्ो में शब्द और आर्यि ही सब कुछ
हैं।
रे ड़ड्ो समयचयर की संरचनय- रे डड्ो के लिए समयचयर-िेिन अिबयरों से कई मयमिों में लभन्न है । चाँकू क दोनों मयध््मों
की प्रकृनत अिग-अिग है , इसलिए समयचयर-िेिन करते हुए उसकय ध््यन िरूर रिय ियनय चयढ़हए। रे डड्ो समयचयर
की सांरचनय अिबयरों ्य टे िीवर्िन की तरह उिटय वपरयलमड (इांर्टें ड वपरयलमड) शैिी पर आियररत होत़ी है । चयहे आप
ककस़ी भ़ी मयध््म के लिए समयचयर लिि रहे हों, समयचयर-िेिन की सबसे प्रचलित, प्रभयऱ्ी और िोकवप्र् शैिी उिटय
वपरयलमड शैिी ही है । सभ़ी तरह के िनसांचयर मयध््मों में सबसे अगिक ्यऩी 90 प्रनतशत िबरें ्य तटोरीज़ इस़ी शैिी
में लिि़ी ियत़ी हैं।
उिटय वपरयलमड शैिी में समयचयर के सबसे महत्र्पूणव तथ्् को सबसे पहिे लििय ियतय है और उसके बयद घटते हुए
महत्त्र्िम में अन्् तथ््ों ्य सूचनयओां को लििय ्य बतय्य ियतय है । इस शैिी में ककस़ी घटनय/वर्चयर/समत्य कय
ब््ौरय कयियनुिम की बिय् सबसे महत्र्पूणव तथ्् ्य सूचनय से शुरू होतय है । तयत्प्व ्ह है कक इस शैिी में कहयऩी

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की तरह क्ियइमेक्स अांत में नहीां, बजल्क िबर के बबिकुि शुरू में आ ियतय है । उिटय वपरयलमड शैिी में कोई ननष्कषव
नहीां होतय।
इस शैिी में समयचयर को त़ीन भयगों में बयाँट ढ़द्य ियतय है - 1-इांरो-समयचयर के इांरो ्य िीड को ढ़हांदी में ‘मुिडय’ भ़ी
कहते हैं। इसमें िबर के मूि तत्र् को शुरू की दो-त़ीन पांजक्त्ों में बतय्य ियतय है । ्ह िबर कय सबसे अह ढ़हतसय
होतय है । 2-बॉड़ी-इस भयग में समयचयर के वर्ततत
ृ ब््ौरे को घटते हुए महत्त्र्िम में लििय ियतय है । 3-समयपन-इस
शैिी में अिग से समयपन िैस़ी कोई च़ीि नहीां होत़ी। इसमें प्रयसांगगक तथ्् और सचू नयएाँ दी िय सकत़ी हैं। अकडने
समय्य औ िहक कमय क दे तेहुएआि़ी कुठिों ्य पैमयिक हर्यक समयचरसमयप्त कर ढ़द्य ियतय है ।
रे ड़ड्ो के भलए समयचयर-लेखन संबंधी बतु न्यिी बयतें- रे डड्ो के लिए समयचयर-कॉप़ी तै्यर करते हुए कुछ बनु न्यदी
बयतों कय ध््यन रिनय बहुत िरूरी है ।
सयफ़-सुथरी और टयइप्ड कॉपी- रे डड्ो समयचयर कयनों के लिए ्यऩी सुनने के लिए होते हैं, इसलिए उनके िेिन में
इसकय ध््यन रिनय िरूरी हो ियतय है । िेककन एक महत्र्पूणव तथ्् नहीां भि
ू नय चयढ़हए कक सुने ियने से पहिे
समयचयर-र्यचक ्य र्यगचकय उसे पिते हैं और तब र्ह श्रोतयओां तक पहुाँचतय है । इसलिए समयचयर-कॉप़ी ऐसे तै्यर की
ियऩी चयढ़हए कक उसे पिने में र्यचक/र्यगचकय को कोई ढ़दक्कत न हो। अगर समयचयर-कॉप़ी टयइप्ड और सयफ़-सथ
ु री
नहीां है तो उसे पिने के दौरयन र्यचक/र्यगचकय के अटकने ्य गित पिने कय ितरय रहतय है और इससे श्रोतयओां कय
ध््यन बाँटतय है ्य र्े भ्रलमत हो ियते हैं। इससे बचने के लिए-
1. प्रसयरण के लिए तै्यर की िय रही समयचयर-कॉप़ी को कांप््ट
ू र पर ढ़रपि तपेस में टयइप कक्य ियनय चयढ़हए।
2. कॉप़ी के दोनों ओर प्यवप्त हयलश्य छोडय ियनय चयढ़हए।
3. एक ियइन में अगिकतम 12-13 शब्द होने चयढ़हए।
4. पांजक्त के आखिर में कोई शब्द वर्भयजित नहीां होनय चयढ़हए।
5. पष्ृ ठ के आखिर में कोई ियइन अिूरी नहीां होऩी चयढ़हए।
6. समयचयर-कॉप़ी में ऐसे िढ़टि और उच्चयरण में कढ़ठन शब्द, सांक्षक्षप्तयक्षर (एि़ीवर््ेशन्स), अांक आढ़द नहीां लििने
चयढ़हए, जिन्हें पिने में िबयन िडिडयने िगे।
रे ड़ड्ो समयचयर लेखन में अंकों को भलखने के मयमले में खयस सयवधयनी रखनी चयठहए-
िैस-े एक से दस तक के अांकों को शब्दों में और 11 से 999 तक अांकों में लििय ियनय चयढ़हए। 2837550 लििने की
बिय् ‘अट्ठयइस ियि सैंत़ीस हियर पयाँच सौ पचयस’ लििय ियनय चयढ़हए अन््थय र्यचक/र्यगचकय को पिने में बहुत
मुजश्कि होग़ी। अिबयरों में % और $ िैसे सांकेत-गचहनों से कयम चि ियतय है, िेककन रे डड्ो में ्ह पूरी तरह र्जिवत
है । अत: इन्हें ‘प्रनतशत’ और ‘डॉिर’ लििय ियनय चयढ़हए। िहयाँ भ़ी सांभर् और उप्ुक्त हो, दशमिर् को उसके निदीकी
पूणयवक में लििनय बेहतर होतय है । इस़ी तरह 2837550 रुप्े को रे डड्ो में , िगभग अट्ठयइस ियि रुप्े, लििनय
श्रोतयओां को समझयने के लिहयि से बेहतर है । वर्त्त़ी् सांख््यओां को उनके निदीकी पण
ू यवक में लििनय चयढ़हए। िेिों के
तकोर को उस़ी तरह लििनय चयढ़हए। सगचन तें दि
ु कर ने अगर 98 रन बनयए हैं तो उसे ‘िगभग सौ रन” नहीां लिि
सकते। मुद्रय-तिीनत के आाँकडे निदीकी पण
ू यवक में नहीां, बजल्क दशमिर् में ही लििे ियने चयढ़हए। र्ैसे रे डड्ो समयचयर
में आाँकडों और सांख््यओां कय अत््गिक इततेमयि नहीां करनय चयढ़हए क््ोंकक श्रोतयओां के लिए उन्हें समझ पयनय कयफ़ी
कढ़ठन होतय है । रे डड्ो समयचयर कभ़ी भ़ी सांख््य से नहीां शुरू होनय चयढ़हए। इस़ी तरह नतगथ्ों को उस़ी तरह लििनय
चयढ़हए िैसे हम बोिचयि में इततेमयि करते हैं-‘ 15 अगतत उन्ऩीस सौ पचयस़ी’ न कक ‘अगतत 15, 1985’।
डेडलयइन, संििथ और संक्षक्षप्तयक्षर कय प्र्ोग- रे डड्ो में अिबयरों की तरह डेडियइन अिग से नहीां, बजल्क समयचयर से
ही गुांथ़ी होत़ी है । अिबयर ढ़दन में एक बयर और र्ह भ़ी सुबह (और कहीां शयम) छपकर आतय है िबकक रे डड्ो पर
चौब़ीसो घांटे समयचयर चिते रहते हैं। श्रोतय के लिए सम् कय फ्ेम हमेशय ‘आि’ होतय है । इसलिए समयचयर में आि,
आि सुबह, आि दोपहर, आि शयम, आि तडके आढ़द कय इततेमयि कक्य ियतय है ।

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इस़ी तरह ‘.बैठक कि होग़ी’ ्य ‘.कि हुई बैठक में ..’ कय प्र्ोग कक्य ियतय है । इस़ी सप्तयह, अगिे सप्तयह, वपछिे
सप्तयह, इस महीने, अगिे महीने, वपछिे महीने, इस सयि, अगिे सयि, अगिे बि ु र्यर ्य वपछिे शि ु र्यर कय इततेमयि
करनय चयढ़हए।
सांक्षक्षप्तयक्षरों के इततेमयि में कयफ़ी सयर्ियऩी बरतऩी चयढ़हए। बेहतर तो ्ही होगय कक उनके प्र्ोग से बचय ियए और
अगर िरूरी हो तो समयचयर के शरू
ु में पहिे उसे परू य ढ़द्य ियए, किर सांक्षक्षप्तयक्षर कय प्र्ोग कक्य ियए।
टे िीवर्िन में दृश््ों की महत्तय सबसे ज््यदय है । ्ह कहने की िरूरत नहीां कक टे िीवर्िन दे िने और सुनने कय
मयध््म है और इसके लिए समयचयर ्य आिेि (जतिप्ट) लििते सम् इस बयत पर ियस ध््यन रिने की िरूरत
पडत़ी है - 1- शब्द परदे पर ढ़दिने र्यिे दृश्् के अनक
ु ू ि हों। 2- टे िीवर्िन िेिन वप्रांट और रे डड्ो दोनों ही मयध््मों
से कयफ़ी अिग है । इसमें कम-से-कम शब्दों में ज््यदय-से-ज््यदय िबर बतयने की किय कय इततेमयि होतय है । 3-
टी०ऱ्ी० के लिए िबर लििने की बुनन्यदी शतव दृश्् के सयथ िेिन है । दृश्् ्यऩी कैमरे से लिए गए शॉट्स, जिनके
आियर पर िबर बुऩी ियत़ी है । अगर शॉट्स आसमयन के हैं तो हम आसमयन की ही बयत लििेंग,े समांदर की नहीां।
अगर कहीां आग िग़ी हुई है तो हम उस़ी कय जिि करें गे, पयऩी कय नहीां।
िेककन टी०ऱ्ी० में इस िबर की शरु
ु आत कुछ अिग होग़ी। दरअसि टे िीवर्ज़न पर िबर दो तरह से पेश की ियत़ी
है । इसकय शुरुआत़ी ढ़हतसय, जिसमें मुख्् िबर होत़ी है, बगैर दृश्् के न््ूज़ रीडर ्य एांकर पितय है । दस
ू रय ढ़हतसय र्ह
होतय है , िहयाँ से परदे पर एांकर की िगह िबर से सांबांगित दृश्् ढ़दियए ियते हैं। इसलिए टे िीवर्िन पर िबर दो
ढ़हतसों में बाँटी होत़ी है । अगर िबरों के प्रततनु तकरण के तरीकों पर बयत करें तो इसके भ़ी कई तकऩीकी पहिू हैं।
ढ़दल्िी में आग की िबर को टी०ऱ्ी० में पेश करने के लिए प्रयरां लभक सच
ू नय के बयद हम इसे इस तरह लिि सकते हैं-
आग की ्े िपटें सबसे पहिे शयम चयर बिे ढ़दि़ीां, किर तेि़ी से िैि गई…….।
टी०वी० खबरों के ववभिन्न चरण- ककस़ी भ़ी टी०ऱ्ी० चैनि पर िबर दे ने कय मि
ू आियर र्ही होतय है िो वप्रांट ्य
रे डड्ो पत्रकयररतय के क्षेत्र में प्रचलित है , ्यऩी सबसे पहिे सूचनय दे नय। टी०ऱ्ी० में भ़ी ्े सूचनयएाँ कई चरणों से होकर
दशवकों के पयस पहुाँचत़ी हैं। ्े चरण हैं-
1-फ़्िैश ्य िेककां ग न््ूि 2-ड्रयई एांकर 3-फ़ोन-इन 4-एांकर-वर्िअ
ु ि 5-एांकर-बयइट 6-ियइर् 7-एांकर-पैकेि
1. फ़्लैश ्य ब्रेककं ग न््ूज- सबसे पहिे कोई बड़ी िबर फ़्िैश ्य िेककां ग न््ूि के रूप में तत्कयि दशवकों तक
पहुाँचयई ियत़ी है । इसमें कम-से-कम शब्दों में महि सच ू नय दी ियत़ी है ।
2. ड्रयई एंकर- इसमें एांकर िबर के बयरे में दशवकों को स़ीिे-स़ीिे बतयतय है कक कहयाँ, क््य, कब और कैसे हुआ। िब
तक िबर के दृश्् नहीां आते तब तक एांकर दशवकों को ररपोटव र से लमिी ियनकयरर्ों के आियर पर सूचनयएाँ
पहुाँचयतय है ।
3. फोन-इन- इसके बयद िबर कय वर्ततयर होतय है और एांकर ररपोटव र से फ़ोन पर बयत करके सूचनयएाँ दशवकों तक
पहुाँचयतय है । इसमें ररपोटव र घटनय र्यिी िगह पर मौिूद होतय है और र्हयाँ से उसे जितऩी ज््यदय-से-ज््यदय
ियनकयरर्याँ लमित़ी हैं, र्ह दशवकों को बतयतय है ।
4. एंकर-ववजअ
ु ल- िब घटनय के दृश्् ्य वर्िुअि लमि ियते हैं, तब उन दृश््ों के आियर पर िबर लिि़ी ियत़ी
है , िो एांकर पितय है । इस िबर की शुरुआत भ़ी प्रयरां लभक सूचनय से होत़ी है और बयद में कुछ र्यक््ों पर प्रयप्त
दृश्् ढ़दियए ियते हैं।
5. एंकर-बयइट- बयइट ्यऩी कथन। टे िीवर्िन पत्रकयररतय में बयइट कय कयफ़ी महत्र् है । टे िीवर्िन में ककस़ी भ़ी
िबर को पुष्ट करने के लिए इससे सांबांगित बयइट ढ़दियई ियत़ी है । ककस़ी घटनय की सच
ू नय दे ने और उसके
दृश्् ढ़दियने के सयथ ही उस घटनय के बयरे में प्रत््क्षदलशव्ों ्य सांबांगित व््जक्त्ों कय कथन ढ़दिय और
सन
ु यकर िबर को प्रयमयखणकतय प्रदयन की ियत़ी है ।
6. लयइव- ियइर् ्यऩी ककस़ी िबर कय घटनयतथि से स़ीिय प्रसयरण। सभ़ी टी०ऱ्ी० चैनि कोलशश करते हैं कक
ककस़ी बड़ी घटनय के दृश्् तत्कयि दशवकों तक स़ीिे पहुाँचयए िय सकें। इसके लिए मौके पर मौिूद ररपोटव र और
कैमरयमैन ओ०ब़ी० र्ैन के िरर्े घटनय के बयरे में स़ीिे दशवकों को ढ़दियते और बतयते हैं।

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7. एंकर-पैकेज- एांकर-पैकेि ककस़ी भ़ी िबर को सांपूणत
व य के सयथ पेश करने कय एक िरर्य है । इसमें सांबांगित
घटनय के दृश््, उससे िुडे िोगों की बयइट, ग्रयकफ़क के िरर्े िरूरी सूचनयएाँ आढ़द होत़ी हैं। टे िीवर्िन िेिन
इन तमयम रूपों को ध््यन में रिकर कक्य ियतय है । िहयाँ िैस़ी िरूरत होत़ी है , र्हयाँ र्ैसे र्यक््ों कय इततेमयि
होतय है । शब्द कय कयम दृश्् को आगे िे ियनय है तयकक र्ह दस
ू रे दृश््ों से िुड सके, उसमें ननढ़हत अथव को
सयमने ियए, तयकक िबर के सयरे आश् िि
ु सकें।
रे ड़ड्ो और टे लीववजन समयचयर की ियषय तथय शैली-
रे डड्ो और टी०ऱ्ी० आम आदम़ी के मयध््म हैं। भयरत िैसे वर्कयसश़ीि दे श में उसके श्रोतयओां और दशवकों में पिे -
लििे िोगों से ननरक्षर तक और मध््म र्गव से िेकर ककसयन-मिदरू तक सभ़ी होते हैं। इन सभ़ी िोगों की सच
ू नय की
िरूरतें पूरी करनय ही रे डड्ो और टी०ऱ्ी० कय उददे श्् है । ियढ़हर है कक िोगों तक पहुाँचने कय मयध््म भयषय है और
इसलिए भयषय ऐस़ी होऩी चयढ़हए कक र्ह सभ़ी की समझ में आसयऩी से आ सके, िेककन सयथ ही भयषय के ततर और
उसकी गररमय के सयथ कोई समझौतय भ़ी न करनय पडे।
रे ड़ड्ो और टे लीववज़न के समयचयरों में बोलचयल की सरल ियषय कय प्र्ोग करनय चयठहए। इसके भलए-
1- र्यक्् छोटे , स़ीिे और तपष्ट लििे ियएाँ। 2- िब भ़ी कोई िबर लििऩी हो तो पहिे उसकी प्रमि
ु बयतों को ठीक
से समझ िेनय चयढ़हए। 3- हम ककतऩी सरि, सांप्रेषण़ी् और प्रभयऱ्ी भयषय लिि रहे हैं, ्ह ियाँचने कय एक बेहतर
तरीकय ्ह है कक हम समयचयर लििने के बयद उसे बोि-बोिकर पि िें। 4- भयषय प्रर्यहम़्ी होऩी चयढ़हए।
सयवधयतन्यँ
रे डड्ो और टी०ऱ्ी० समयचयर में भयषय और शैिी के ततर पर कयफ़ी सयर्ियऩी बरतऩी पडत़ी है -
1. ऐसे कई शब्द हैं, जिनकय अिबयरों में िडल्िे से इततेमयि होतय है िेककन रे डड्ो और टी०ऱ्ी० में उनके प्र्ोग
से बचय ियतय है । िैसे-ननम्नलिखित, उप्ुक्त, अिोहततयक्षररत और िमयक आढ़द शब्दों कय प्र्ोग इन मयध््मों
में बबिकुि मनय है । इस़ी तरह ‘ दर्यरय ‘शब्द के इततेमयि से भ़ी बचने की कोलशश की ियत़ी है क््ोंकक इसकय
प्र्ोग कई बयर बहुत भ्रयमक अथव दे ने िगतय है ; िैस-े ‘पलु िस दर्यरय चोरी करते हुए दो व््जक्त्ों को पकड लि्य
ग्य।’ इसकी बिय् ‘पुलिस ने दो व््जक्त्ों को चोरी करते हुए पकड लि्य।’ ज््यदय तपष्ट है ।
2. तथय, एर्, अथर्य, र्, ककां तु, परतु, ्थय आढ़द शब्दों के प्र्ोग से बचनय चयढ़हए और उनकी िगह और, ्य, िेककन
आढ़द शब्दों कय इततेमयि करनय चयढ़हए।
3. सयफ़-सुथरी और सरि भयषय लििने के लिए गैरिरूरी वर्शेषणों, सयमयलसक और तत्सम शब्दों, अनतरां जित
उपमयओां आढ़द से बचनय चयढ़हए। इनसे भयषय कई बयर बोखझि होने िगत़ी है ।
4. मुहयर्रों के इततेमयि से भयषय आकषवक और प्रभयऱ्ी बनत़ी है , इसलिए उनकय प्र्ोग होनय चयढ़हए। िेककन
मुहयर्रों कय इततेमयि तर्यभयवर्क रूप से और िहयाँ िरूरी हो, र्हीां होनय चयढ़हए अन््थय र्े भयषय के तर्यभयवर्क
प्रर्यह को बयगित करते हैं।
5. र्यक्् छोटे -छोटे हों। एक र्यक्् में एक ही बयत कहऩी चयढ़हए।
6. र्यक््ों में तयरतम्् ऐसय हो कक कुछ टूटतय ्य छूटतय हुआ न िगे।
7. शब्द प्रचलित हों और उनकय उच्चयरण सहितय से कक्य िय सके। ि्-वर्ि् की िगह िरीदयरी-बबिी,
तथयनयांतरण की िगह तबयदिय और पांजक्त की िगह कतयर टी०ऱ्ी० में सहि मयने ियते हैं।
इंटरनेट- इांटरनेट को इांटरनेट पत्रकयररतय, ऑनियइन पत्रकयररतय, सयइबर पत्रकयररतय ्य र्ेब पत्रकयररतय िैसे वर्लभन्न
नयमों से ियनय ियतय है । नई प़ीिी के लिए अब ्ह एक आदत-स़ी बनत़ी िय रही है । िो िोग इांटरनेट के अभ््तत हैं
्य जिन्हें चौब़ीसो घांटे इांटरनेट की सवु र्िय उपिब्ि है , उन्हें अब कयगि पर छपे हुए अिबयर उतने तयिे और
मनभयर्न नहीां िगते। उन्हें हर घांटे-दो घांटे में िद
ु को अपडेट करने की ित िगत़ी िय रही है ।
भयरत में कांप््ूटर सयक्षरतय की दर बहुत तेि़ी से बि रही है । पसवनि कांप््ूटर इततेमयि करने र्यिों की सांख््य में भ़ी
िगयतयर इियफ़य हो रहय है । हर सयि करीब 50-55 फ़ीसदी की रफ़्तयर से इांटरनेट कनेक्शनों की सांख््य बि रही है ।

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इसकी र्िह ्ह है कक इटरनेट पर आप एक ही झटके में झुमरीतिै्य से िेकर होनोिूिू तक की िबरें पि सकते हैं।
दनु न्यभर की चचयवओ-ां पररचचयवओां में शरीक हो सकते हैं और अिबयरों की पुरयऩी फ़यइिें िांगयि सकते हैं।
इंटरनेट एक टूल ही नहीं और िी बहुत कु् है -
इांटरनेट लसफ़व एक टूि ्यऩी औियर है , जिसे आप सच
ू नय, मनोरां िन, ज्ञयन और व््जक्तगत तथय सयर्विननक सांर्यदों के
आदयन-प्रदयन के लिए इततेमयि कर सकते हैं। िेककन इांटरनेट िहयाँ सच
ू नयओां के आदयन-प्रदयन कय बेहतरीन औियर है ,
र्हीां र्ह अश्िीितय, दष्ु प्रचयर और गांदग़ी िैियने कय भ़ी िरर्य है । इांटरनेट पर पत्रकयररतय के भ़ी दो रूप हैं।
पहिय तो इांटरनेट कय एक मयध््म ्य औियर के तौर पर इततेमयि, ्यऩी िबरों के सांप्रेषण के लिए इांटरनेट कय
उप्ोग। दस
ू रय, ररपोटवर अपऩी िबर को एक िगह से दस
ू री िगह तक ईमेि के िरर्े भेिने और समयचयरों के
सांकिन, िबरों के सत््यपन तथय पुजष्टकरण में भ़ी इसकय इततेमयि करतय है । ररसचव ्य शोि कय कयम तो इांटरनेट ने
बेहद आसयन कर ढ़द्य है ।
टे िीवर्िन ्य अन्् समयचयर मयध््मों में िबरों के बैकग्रयउां डर तै्यर करने ्य ककस़ी िबर की पष्ृ ठभलू म तत्कयि
ियनने के लिए िहयाँ पहिे ढे र सयरी अिबयरी कतरनों की फ़यइिों को ढूाँिनय पडतय थय, र्हीां आि चांद लमनटों में
इांटरनेट वर्श्र्व््यप़ी सांियि के भ़ीतर से कोई भ़ी बैकग्रयउां डर ्य पष्ृ ठभलू म िोि़ी िय सकत़ी है । एक िमयनय थय िब
टे िीवप्रांटर पर एक लमनट में 80 शब्द एक िगह से दस
ू री िगह भेिे िय सकते थे, आि जतथनत ्ह है कक एक सेकेंड
में 56 ककिोबयइट ्यऩी िगभग 70 हियर शब्द भेिे िय सकते हैं।
इंटरनेट पत्रकयररतय
इांटरनेट पर अिबयरों कय प्रकयशन ्य िबरों कय आदयन-प्रदयन ही र्यततर् में इांटरनेट पत्रकयररतय है । इांटरनेट पर ककस़ी
भ़ी रूप में िबरों, िेिों, चचयव-पररचचयवओां, बहसों, फ़ीचर, झिकक्ों, डय्रर्ों के िरर्े अपने सम् की िडकनों को
महसूस करने और दिव करने कय कयम करते हैं तो र्ही इांटरनेट पत्रकयररतय है । आि तमयम प्रमुि अिबयर परू े -के-पूरे
इांटरनेट पर उपिब्ि हैं। कई प्रकयशन-समूहों ने और कई ननि़ी कांपनन्ों ने िद
ु को इांटरनेट पत्रकयररतय से िोड लि्य
है । चाँकू क ्ह एक अिग मयध््म है , इसलिए इस पर पत्रकयररतय कय तरीकय भ़ी थोडय-सय अिग है ।
इंटरनेट पत्रकयररतय कय इततहयस
वर्श्र् ततर पर इांटरनेट पत्रकयररतय के तर्रूप और वर्कयस कय पहिय दौर थय 1982 से 1992 तक, िबकक चिय 1993 से
2001 तक। त़ीसरे दौर की इांटरनेट पत्रकयररतय 2002 से अब तक की है । पहिे चरण में इांटरनेट िुद प्र्ोग के िरयति
पर थय, इसलिए बडे प्रकयशन-समूह ्ह दे ि रहे थे कक कैसे अिबयरों की सप
ु र इन्िॉमेशन-हयईर्े पर दिव हो। तब
एओएि ्यऩी अमेररकय ऑनियइन िैस़ी कुछ चगचवत कांपनन्याँ सयमने आई। िेककन कुि लमियकर प्र्ोगों कय दौर थय।
सच्चे अथों में इांटरनेट पत्रकयररतय की शुरुआत 1983 से 2002 के ब़ीच हुई। इस दौर में तकऩीक ततर पर भ़ी इांटरनेट
कय िबरदतत वर्कयस हुआ। नई र्ेब भयषय एचटीएमएि (हयइपर टे क्तट मयक्र्डअप िैंग्र्ेि) आई, इांटरनेट ईमेि आ्य,
इांटरनेट एक्सप्िोरर और नेटतकेप नयम के ियउिर (र्ह औियर जिसके िरर्े वर्श्र्व््यप़ी ियि में गोते िगयए िय
सकते हैं) आए। इन्होंने इांटरनेट को और भ़ी सुवर्ियसांपन्न और तेि-रफ़्तयर र्यिय बनय ढ़द्य। इस दौर में िगभग सभ़ी
बडे अिबयर और टे िीवर्िन समूह वर्श्र्ियि में आए।
‘न््ू्ॉकव टयइम्स’, ‘र्यलशांगटन पोतट’, ‘स़ीएनएन’, ‘ब़ीब़ीस़ी’ सढ़हत तमयम बडे घरयनों ने अपने प्रकयशनों, प्रसयरणों के
इांटरनेट सांतकरण ननकयिे। दनु न्यभर में इस ब़ीच इांटरनेट कय कयफ़ी वर्ततयर हुआ। न््ू म़ीडड्य के नयम पर डॉटकॉम
कांपनन्ों कय उफ़यन आ्य, पर उतऩी ही तेि़ी के सयथ इसकय बि ु बिु य िूटय भ़ी। सन 1996 से 2002 के ब़ीच अकेिे
अमेररकय में ही पयाँच ियि िोगों को डॉटकॉम की नौकरर्ों से हयथ िोनय पडय। वर्ष् सयमग्ऱी और प्यवप्त आगथवक
आियर के अभयर् में ज््यदयतर डॉटकॉम कांपनन्याँ बांद हो गई।
िेककन ्ह भ़ी सही है कक बडे प्रकयशन-समह
ू ों ने इस दौर में भ़ी िद
ु को ककस़ी तरह िमयए रिय। चाँकू क िनसांचयर के
क्षेत्र में सकि् िोग ्ह ियनते थे कक और चयहे िो हो, सच
ू नयओां के आदयन-प्रदयन के मयध््म के तौर पर इांटरनेट कय
कोई िर्यब नहीां। इसलिए इसकी प्रयसांगगकतय हमेशय बऩी रहे ग़ी। इसलिए कहय िय रहय है कक इांटरनेट पत्रकयररतय कय
2002 से शुरू हुआ त़ीसरय दौर सच्चे अथों में ढ़टकयऊ हो सकतय हैं।

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ियरत में इंटरनेट पत्रकयररतय
भयरत में इांटरनेट पत्रकयररतय कय अभ़ी दस
ू रय दौर चि रहय है । भयरत के लिए पहिय दौर 1993 से शुरू मयनय िय सकतय
है , िबकक दस
ू रय दौर सन 2003 से शुरू हुआ है । पहिे दौर में हमयरे ्हयाँ भ़ी प्र्ोग हुए। डॉटकॉम कय ति
ू यन आ्य
और बुिबुिे की तरह िूट ग्य। अांतत: र्ही ढ़टके रह पयए िो म़ीडड्य उद्ोग में पहिे से ही ढ़टके हुए थे। आि
पत्रकयररतय की दृजष्ट से ‘टयइम्स ऑफ़ इांडड्य’, ‘ढ़हांदत
ु तयन टयइम्स’, ‘इांडड्न एक्सप्रेस’, ‘ढ़हांद’ू , ‘ढ़रब््न
ू ’, ‘तटे ट्समैन’,
‘पॉ्नन्र’, ‘एनड़ी टी०ऱ्ी०’, ‘आईब़ीएन’, ‘ि़ी न््ूज़’, ‘आितक’ और ‘आउटिक
ु ‘ की सयइटें ही बेहतर हैं। ‘इांडड्य टुडे” िैस़ी
कुछ सयइटें भुगतयन के बयद ही दे ि़ी िय सकत़ी हैं।
िो सयइटें नन्लमत अपडेट होत़ी हैं, उनमें ‘ढ़हांद’ू , ‘टयइम्स ऑफ़ इांडड्य’, ‘आउटिक
ु ’, ‘इांडड्न एक्सप्रेस’, ‘एनड़ी टी०ऱ्ी० ‘,
‘आितक’ और ‘ि़ी न््ूज़’ प्रमुि हैं। िेककन भयरत में सच्चे अथों में ्ढ़द कोई र्ेब पत्रकयररतय कर रहय है तो र्ह
‘रीडडफ़ डॉटकॉम’, ‘इांडड्यइांिोियइन’ र् ‘स़ीिी’ िैस़ी कुछ ही सयइटें हैं। रीडडफ़ को भयरत की पहिी सयइट कहय िय सकतय
है िो कुछ गांभ़ीरतय के सयथ इांटरनेट पत्रकयररतय कर रही है । र्ेब सयइट पर वर्शुदि पत्रकयररतय शुरू करने कय श्रे्
‘तहिकय डॉटकॉम’ को ियतय है ।
ठहंिी नेट संसयर
ढ़हांदी में नेट पत्रकयररतय ‘र्ेब दनु न्य’ के सयथ शुरू हुई। इांदौर के ‘नई दनु न्य समूह’ से शुरू हुआ ्ह पोटवि ढ़हांदी कय
सांपूणव पोटव ि है । इसके सयथ ही ढ़हांदी के अिबयरों ने भ़ी वर्श्र्ियि में अपऩी उपजतथनत दिव करयऩी शरू ु की।
‘ियगरण’, ‘अमर उियिय’, ‘नई दनु न्य’, ‘ढ़हांदत
ु तयन’, ‘भयतकर’, ‘रयितथयन पबत्रकय’, ‘नर्भयरत टयइम्स’, ‘प्रभयत िबर’ र्
‘रयष्री् सहयरय’ के र्ेब सांतकरण शुरू हुए। ‘प्रभयसयक्ष़ी’ नयम से शुरू हुआ अिबयर, वप्रांट रूप में न होकर लसफ़व इांटरनेट
पर ही उपिब्ि है । आि पत्रकयररतय के लिहयि से ढ़हांदी की सर्वश्रेष्ठ सयइट ब़ीब़ीस़ी की है । ्ही एक सयइट है , िो
इांटरनेट के मयनदां डों के ढ़हसयब से चि रही है । र्ेब दनु न्य ने शुरू में कयिी आशयएाँ िगयई थ़ीां, िेककन ि़ीरे -ि़ीरे तटयफ़
और सयइट की अपडेढ़टांग में कटौत़ी की ियने िग़ी, जिससे पत्रकयररतय की र्ह तयिग़ी ियत़ी रही िो शुरू में निर
आत़ी थ़ी।
ढ़हांदी र्ेबिगत कय एक अच्छय पहिू ्ह भ़ी है कक इसमें कई सयढ़हजत््क पबत्रकयएाँ चि रही हैं। अनुभूनत, अलभव््जक्त,
ढ़हांदी नेतट, सरय् आढ़द अच्छय कयम कर रहे हैं। कुि लमियकर ढ़हांदी की र्ेब पत्रकयररतय अभ़ी अपने शैशर् कयि में ही
है । सबसे बड़ी समत्य ढ़हांदी के फ़ौंट की है । अभ़ी भ़ी हमयरे पयस कोई एक ‘की-बोडव’ नहीां है । डय्नलमक फ़ौंट की
अनुपिब्ितय के कयरण ढ़हांदी की ज््यदयतर सयइटें िि
ु त़ी ही नहीां हैं। इसके लिए ‘की-बोडव’ कय मयनकीकरण करनय
चयढ़हए।
पत्रकयरी् लेखन-
अिबयर पयठकों को सूचनय दे ने, उन्हें ियगरूक और लशक्षक्षत बनयने तथय उनकय मनोरां िन करने कय दयन्त्र् ननभयते हैं।
िोकतयांबत्रक समयिों में र्े एक पहरे दयर, लशक्षक और िनमत ननमयवतय के तौर पर बहुत महत्र्पण ू व भलू मकय अदय करते
हैं। अपने पयठकों के लिए र्े बयहरी दनु न्य में िुिने र्यिी ऐस़ी खिडकी हैं, जिनके िरर्े असांख्् पयठक हर रोि सब ु ह
दे श-दनु न्य और अपने पयस-पडोस की घटनयओां, समत्यओां, मुददों तथय वर्चयरों से अर्गत होते हैं।
अिबयर ्य अन्् समयचयर मयध््मों में कयम करने र्यिे पत्रकयर अपने पयठकों, दशवकों और श्रोतयओां तक सूचनयएाँ
पहुाँचयने के लिए िेिन के वर्लभन्न रूपों कय इततेमयि करते हैं। इसे ही पत्रकयरी् िेिन कहते हैं।
पत्रकयर तीन प्रकयर के होते हैं-
1. पण
ू क
व यलिक
2. अांशकयलिक
3. फ्ीियांसर ्यऩी तर्तांत्र।
1. पूणक
थ यभलक पत्रकयर- इस श्रेण़ी के पत्रकयर ककस़ी समयचयर सांगठन में कयम करने र्यिे नन्लमत कमवचयरी होते
हैं। इन्हें र्ेतन, भत्ते एर्ां अन्् सुवर्ियएाँ प्रयप्त होत़ी हैं।

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2. अंशकयभलक पत्रकयर- इस श्रेण़ी के पत्रकयर ककस़ी समयचयर सांगठन के लिए एक ननजश्चत मयनदे ् पर एक
ननजश्चत सम्यर्गि के लिए कय्व करते हैं।
3. फ्रीलयंसर पत्रकयर- इस श्रेण़ी के पत्रकयरों कय सांबि
ां ककस़ी वर्शेष समयचयर-पत्र से नहीां होतय, बजल्क र्े भुगतयन के
आियर पर अिग-अिग समयचयर-पत्रों के लिए लििते हैं।
सयठहक्त््क और पत्रकयरी् लेखन में अंतर
1. पत्रकयरी् िेिन कय सांबि
ां तथय दय्रय समसयमन्क और र्यततवर्क घटनयओां, समत्यओां तथय मुददों से होतय
है । ्ह सयढ़हजत््क और सि
ृ नयत्मक िेिन-कवर्तय, कहयऩी, उपन््यस आढ़द-इस मय्ने में अिग है कक इसकय
ररश्तय तथ््ों से होतय है , न कक कल्पनय से।
2. पत्रकयरी् िेिन सयढ़हजत््क और सि
ृ नयत्मक िेिन से इस मय्ने में भ़ी अिग है कक ्ह अननर्य्व रूप से
तयत्कयलिकतय और अपने पयठकों की रुगच्ों तथय िरूरतों को ध््यन में रिकर कक्य ियने र्यिय िेिन है ,
िबकक सयढ़हजत््क और सि
ृ नयत्मक िेिन में िेिक को कयिी छूट होत़ी है ।
पत्रकयरी् लेखन के स्मरणी् तथ््- पत्रकयरी् िेिन करने र्यिे वर्शयि िन-समुदय् के लिए लििते हैं, जिसमें
पयठकों कय दय्रय और ज्ञयन कय ततर वर्ततत
ृ होतय है । इसके पयठक मिदरू से वर्दर्यन तक होते हैं, अत: उसकी
िेिन-शैिी और भयषय-
1. सरि, सहि और रोचक होऩी चयढ़हए।
2. अिांकयररक और सांतकृतननष्ठ होने की बिय् आम बोिचयि र्यिी होऩी चयढ़हए।
3. शब्द सरि और आसयऩी से समझ में आने र्यिे होने चयढ़हए।
4. र्यक्् छोटे और सहि होने चयढ़हए।
समयचयर-लेखन की शैली- अिबयरों में प्रकयलशत अगिकयांश समयचयर एक ियस शैिी में लििे ियते हैं। इन समयचयरों में
ककस़ी भ़ी घटनय, समत्य ्य वर्चयर के सबसे महत्र्पूणव तथ््, सूचनय ्य ियनकयरी को सबसे पहिे पैरयग्रयफ़ में लििय
ियतय है । उसके बयद के पैरयग्रयफ़ में उससे कम महत्र्पण
ू व सच
ू नय ्य तथ्् की ियनकयरी दी ियत़ी है । ्ह प्रकि्य तब
तक ियरी रहत़ी है िब तक समयचयर ित्म नहीां हो ियतय।
उलटय वपरयभमड शैली
समयचयर-िेिन की एक वर्शेष शैिी है , जिसे उिटय वपरयलमड शैिी (इन्र्टे ड वपरयलमड टी ्य तटयइि) के नयम से ियनय
ियतय है । ्ह समयचयर-िेिन की सबसे िोकवप्र्, उप्ोग़ी और बुनन्यदी शैिी है । ्ह शैिी कहयऩी ्य कथय-िेिन की
शैिी के ठीक उिटी है , जिसमें क्ियइमेक्स बबिकुि आखिर में आतय है । इसे ‘उिटय वपरयलमड शैिी’ इसलिए कहय ियतय
है क््ोंकक इसमें सबसे महत्र्पूणव तथ्् ्य सूचनय ्यऩी ‘क्ियइमेक्स’ वपरयलमड के सबसे ननचिे उिटय वपरयलमड में
ढ़हतसे में नहीां होत़ी, बजल्क इस शैिी में वपरयलमड को उिट ढ़द्य ियतय है ।

हयियाँकक इस शैिी कय प्र्ोग 19ऱ्ीां सदी के मध्् से ही शुरू हो ग्य थय िेककन इसकय वर्कयस अमेररकय में
दौरयन हुआ। उस सम् सांर्यददयतयओां को अपऩी िबरें टे िीग्रयफ़ सांदेशों के ि ् ्ूाँ महाँग़ी, अनन्लमत और दि
ु भ
व थ़ीां। कई
बयर तकऩीकी कयरणों से सेर्य ठप्प हो ककस़ी घटनय की िबर कहयऩी की तरह वर्ततयर से लििने की बिय् सांक्षेप में
वपरयलमड शैिी कय वर्कयस हुआ और ि़ीरे -ि़ीरे िेिन और सांपयदन की सवु र्िय के की मयनक (तटैंडडव) शैिी बन गई।
समयचयर लेखन और ्ह ककयर
ककस़ी समयचयर को लििते हुए जिन छह सर्यिों कय िर्यब दे ने की कोलशश की ियत़ी है , र्े हैं-1-क््य हुआ? 2-ककसके
(्य कौन) सयथ हुआ? 3-कब हुआ? 4-कहयाँ हुआ? 5-कैसे हुआ? 6-क््ों हुआ?
्े क््य, ककसके (्य कौन), कब, कहयाँ, कैसे और क््ों को ही छह ककयर हैं।
समयचयर के मि
ु डे (इांरो) ्यऩी पहिे पैरयग्रयफ़ ्य शरु
ु आत़ी दो-त़ीन पांजक्त्ों में आमतौर पर त़ीन ्य चयर ककयरों को
आियर बनयकर िबर लिि़ी ियत़ी है । ्े चयर ककयर हैं-क््य, कौन, कब और कहयाँ? इसके बयद समयचयर की बॉड़ी में और
समयपन के पहिे बयकी दो ककयरों-कैसे ‘ और क््ों-कय िर्यब ढ़द्य ियतय है । इस तरह छह ककयरों के आियर पर समय-

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चयर तै्यर होतय है । इनमें से पहिे चयर ककयर-क््य, कौन, कब और कहयाँ-सच
ू नयत्मक और तथ््ों पर आियररत होते हैं
िबकक बयकी दो ककयरों-कैसे और क््ों-में वर्र्रणयत्मक, व््यख््यत्मक और वर्श्िेषणयत्मक पहिू पर िोर ढ़द्य ियतय
है ।
फीचर- समकयिीन घटनय ्य ककस़ी भ़ी क्षेत्र वर्शेष की वर्लशष्ट ियनकयरी के सगचत्र तथय मोहक वर्र्रण को फ़ीचर
कहय ियतय है । इसमें तथ््ों को मनोरां िक ढां ग से प्रततत
ु कक्य ियतय है । इसके सांर्यदों में गहरयई होत़ी है । ्ह
सुव््र्जतथत, सि
ृ नयत्मक र् अदगि न है जिक उददे श्् पयठकों को तचनय ने तथय उह शतकने के सयथ मुष््रूप सेउक
मोिनय करनय होतय है । फ़ीचर में वर्ततयर की अपेक्षय होत़ी है । इसकी अपऩी एक अिग शैिी होत़ी है । एक वर्ष् पर
लििय ग्य फ़ीचर प्रततनु त वर्वर्ितय के कयरण अिग अांदयि प्रततत
ु करतय है । इसमें भत
ू , र्तवमयन तथय भवर्ष्् कय
समयर्ेश हो सकतय है । इसमें तथ््, कथन र् कल्पनय कय उप्ोग कक्य िय सकतय है । फ़ीचर में आाँकडे, िोटो, कयटूवन,
चयटव , नक्शे आढ़द कय उप्ोग उसे रोचक बनय दे तय है ।
फीचर व समयचयर में अंतर-
1. फ़ीचर में िेिक के पयस अपऩी रय् ्य दृजष्टकोण और भयर्नयएाँ ियढ़हर करने कय अर्सर होतय है । िबकक
समयचयर-िेिन में र्ततनु नष्ठतय और तथ््ों की शद
ु ितय पर िोर ढ़द्य ियतय है ।
2. फ़ीचर-िेिन में उिटय वपरयलमड शैिी कय प्र्ोग नहीां होतय। इसकी शैिी कथयत्मक होत़ी है ।
3. फ़ीचर-िेिन की भयषय सरि, रूपयत्मक र् आकषवक होत़ी है , परां तु समयचयर की भयषय में सपयटब्यऩी होत़ी है ।
4. फ़ीचर में शब्दों की अगिकतम स़ीमय नहीां होत़ी। ्े आमतौर पर 200 शब्दों से िेकर 250 शब्दों तक के होते हैं,
िबकक समयचयरों पर शब्द-स़ीमय ियगू होत़ी है ।
5. फ़ीचर कय वर्ष् कुछ भ़ी हो सकतय है , समयचयर कय नहीां।
फ़ीचर के प्रकयर-
फ़ीचर के प्रकयर ननम्नलिखित हैं : 1- समयचयर िीचर 2- घटनयपरक िीचर 3- व््जक्तपरक िीचर
4- िोकयलभरुगच फ़ीचर 5- सयांतकृनतक फ़ीचर 6-सयढ़हजत््क िीचर 7-वर्श्िेषण िीचर 8- वर्ज्ञयन फ़ीचर।
फीचर-लेखन संबंधी मुख्् बयतें -
1. फ़ीचर को सि़ीर् बनयने के लिए उस वर्ष् से िुडे िोगों की मौिद
ू ग़ी िरूरी होत़ी है ।
2. फ़ीचर के कथ्् को पयत्रों के मयध््म से बतयनय चयढ़हए।
3. अांदयि ऐसय हो कक पयठक ्ह महसूस करें कक र्े घटनयओां को िुद दे ि और सन
ु रहे हैं।
4. फ़ीचर मनोरां िक र् सूचनयत्मक होनय चयढ़हए।
5. फ़ीचर शोि ररपोटव नहीां है ।
6. इसे ककस़ी बैठक ्य सभय के कय्वर्यही वर्र्रण की तरह नहीां लििय ियनय चयढ़हए।
7. फ़ीचर कय कोई-न-कोई उददे श्् होनय चयढ़हए। उस उददे श्् के इदव -गगदव सभ़ी प्रयसांगगक सच
ू नयएाँ तथ्् और वर्चयर
गुांथे होने चयढ़हए।
8. फ़ीचर तथ््ों, सूचनयओां और वर्चयरों पर आियररत कथयत्मक वर्र्रण और वर्श्िेषण होतय है ।
9. फ़ीचर-िेिन कय कोई ननजश्चत ढयाँचय ्य फ़ॉमूि
व य नहीां होतय। इसे कहीां से भ़ी अथयवत प्रयरां भ, मध्् ्य अांत से शरू

कक्य िय सकतय है ।
10. फ़ीचर कय हर पैरयग्रयि अपने पहिे के पैरयग्रयि से सहि तरीके से िड
ु य होनय चयढ़हए तथय उनमें प्रयरां भ से अांत
तक प्रर्यह र् गनत रहऩी चयढ़हए।
11. पैरयग्रयि छोटे होने चयढ़हए तथय एक पैरयग्रयि में एक पहिू पर ही िोकस करनय चयढ़हए।
ररपोटथ - ररपोटव समयचयर-पत्र, रे डड्ो और टे िीवर्िन की एक वर्शेष वर्िय है । इसके मयध््म से ककस़ी घटनय, समयरोह ्य
आाँिों-दे िे ककस़ी अन्् कय्विम की ररपोटव प्रततुत की ियत़ी है । चाँकू क दरू दशवन दृश्् एर्ां श्रव्् दोनों ही उददे श्् पूरय
करने र्यिय मयध््म है , अत: इसके लिए आाँिों-दे ि़ी घटनय की ररपोटव तै्यर की ियत़ी है िबकक रे डड्ो के लिए केर्ि

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सुनने ्ोग्् ररपोटव तै्यर करने से कयम चि ियतय है। कभ़ी सांचयिक दर्यरय दी िय रही कय्वर्यही कय वर्र्रण दे िकर
ही उसे ररपोटव कय आियर बनयकर ररपोटव तै्यर कर िी ियत़ी है ।
ररपोटथ की ववशेषतयएँ- ररपोटव की पहिी मुख्् वर्शेषतय उसकी सांक्षक्षप्ततय है । सांक्षक्षप्त ररपोटव को ही िोग पि पयते हैं।
ज््यदय वर्ततत
ृ ररपोटव पिी नहीां ियत़ी, अत: उसे तै्यर करनय उददे श््हीन हो ियतय है ।ररपोटव की दस
ू री मुख्् वर्शेषतय
उसकी ननष्पक्षतय है । ररपोटव को प्रभयर्शयिी बनयने के लिए ननष्पक्ष ररपोटव तै्यर करऩी चयढ़हए। ररपोटव की त़ीसरी प्रमि

वर्शेषतय उसकी सत््तय है । इस तथ्् से रढ़हत ररपोटव अप्रयसांगगक और ननरुददे श्् हो ियत़ी है । असत्् ररपोटव पर न
कोई वर्श्र्यस करतय है और न कोई पिनय पसांद करतय है । ररपोटव की अगिी वर्शेषतय उसकी पण
ू त
व य है । आि़ी-अिूरी
ररपोटव से ररपोटव र कय न उददे श्् परू य होतय है और न र्ह पयठकों की समझ में आत़ी है । ररपोटव की अगिी वर्शेषतय है -
उसकय सांतुलित होनय। अथयवत इसे सभ़ी पक्षों को समयन महत्र् दे ते हुए तै्यर करनय चयढ़हए।
ववशेष ररपोटथ के प्रकयर- वर्शेष ररपोटव कई प्रकयर की होत़ी है - 1- िोि़ी ररपोटव (इन्र्ेजतटगेढ़टर् ररपोटव ) 2- इन-डेप्थ
ररपोटव 3- वर्श्िेषणयत्मक ररपोटव 4- वर्र्रणयत्मक ररपोटव।
खोजी ररपोटथ (इन्वेक्स्टगेठटव ररपोटथ)- इस प्रकयर की ररपोटव में ररपोटव र मौलिक शोि और छयनब़ीन के िरर्े ऐस़ी
सच
ू नयएाँ ्य तथ्् सयमने ियतय है िो सयर्वियननक तौर पर पहिे से उपिब्ि नहीां थ़ीां। िोि़ी ररपोटव कय इततेमयि
आमतौर पर भ्रष्टयचयर, अनन्लमततयओां और गडबडड्ों को उियगर करने के लिए कक्य ियतय है ।
इन-डेप्थ ररपोटथ - इस प्रकयर की ररपोटव में सयर्वियननक तौर पर उपिब्ि तथ््ों, सच
ू नयओां और आाँकडों की गहरी
छयनब़ीन की ियत़ी है और उसके आियर पर ककस़ी घटनय, समत्य ्य मद
ु दे से िड
ु े महत्र्पण
ू व पहिओ
ु ां को सयमने
िय्य ियतय है ।
ववश्लेषणयत्मक ररपोटथ- इस तरह की ररपोटव में पत्रकयर ककस़ी वर्शेष वर्ष् पर वर्शेषज्ञतय हयलसि करतय है और आांकडों
को एकबत्रत करके िोगों को उन घटनयओां की पहचयन करयतय है िो तपष्ट नहीां होत़ी हैं।
वववरणयत्मक ररपोटथ- इस तरह की ररपोटव में ककस़ी घटनय ्य समत्य के वर्ततत
ृ और बयरीक वर्र्रण को प्रततुत करने
की कोलशश की ियत़ी है । वर्लभन्न प्रकयर की वर्शेष ररपोटों को समयचयर-िेिन की उिटय वपरयलमड-शैिी में ही लििय
ियतय है िेककन कई बयर ऐस़ी ररपोटों को फ़ीचर शैिी में भ़ी लििय ियतय है । चाँकू क ऐस़ी ररपोटव सयमयन्् समयचयरों की
तुिनय में बड़ी और वर्ततत
ृ होत़ी हैं, इसलिए पयठकों की रुगच बनयए रिने के लिए कई बयर उिटय वपरयलमड और फ़ीचर
दोनों ही शैलि्ों को लमियकर इततेमयि कक्य ियतय है । ररपोटव बहुत वर्तततृ और बड़ी हो तो उसे श्रांि
ृ ियबदि करके
कई ढ़दनों तक ककततों में छयपय ियतय है । वर्शेष ररपोटव की भयषय सरि, सहि और आम बोिचयि की होऩी चयढ़हए।
ररपोटथ -लेखन की ववशेषतयएँ- ररपोटव-िेिन की भयषय सरि र् सहि होऩी चयढ़हए। उसमें सांक्षक्षप्ततय कय गुण भ़ी होनय
चयढ़हए।
आलेख- ककस़ी एक वर्ष् पर वर्चयर प्रियन एर्ां गद् प्रियन अलभव््जक्त को ‘आिेि’ कहय ियतय है । आिेि र्ततुत:
एक प्रकयर के िेि होते हैं िो अगिकतर सांपयदकी् पष्ृ ठ पर ही प्रकयलशत होते हैं। इनकय सांपयदकी् से कोई सांबांि
नहीां होतय। ्े िेि ककस़ी भ़ी क्षेत्र से सांबांगित हो सकते हैं , िैस-े िेि, समयि, रयिऩीनत, अथव, किल्म आढ़द। इनमें
सूचनयओां कय होनय अननर्य्व है ।
आलेख के मुख्् अंग- आिेि के मुख्् अांग हैं-भूलमकय, वर्ष् कय प्रनतपयदन, ति
ु नयत्मक चचयव र् ननष्कषव। सर्वप्रथम,
श़ीषवक के अनकु ू ि भूलमकय लिि़ी ियत़ी है । ्ह बहुत िांब़ी न होकर सांक्षेप में होऩी चयढ़हए। वर्ष् के प्रनतपयदन में
वर्ष् कय र्गीकरण, आकयर, रूप र् क्षेत्र आते हैं। इसमें वर्ष् कय िलमक वर्कयस कक्य ियतय है । वर्ष् में तयरतम््तय
र् िमबदितय अर्श्् होऩी चयढ़हए। तुिनयत्मक चचयव में वर्ष्र्ततु कय तुिनयत्मक वर्श्िेषण कक्य ियतय है और अांत
में , वर्ष् कय ननष्कषव प्रततत
ु कक्य ियतय है ।
आलेख रचनय के संबंध में प्रमख
ु बयतें -
1. िेि लििने से पूर्व वर्ष् कय गचांतन-मनन करके वर्ष्र्ततु कय वर्श्िेषण करनय चयढ़हए।
2. वर्ष्र्ततु से सांबांगित आाँकडों र् उदयहरणों कय उप्ुक्त सांग्रह करनय चयढ़हए।
3. िेि में श्रि
ां ृ ियबदितय होनय िरूरी है ।

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4. िेि की भयषय सरि, बोिगम्् र् रोचक होऩी चयढ़हए। र्यक्् बहुत बडे नहीां होने चयढ़हए। एक पररच्छे द में एक
ही भयर् व््क्त करनय चयढ़हए।
5. िेि की प्रततयर्नय र् समयपन में रोचकतय होऩी िरूरी है ।
6. वर्रोियभयस, दोहरयपन, असांति
ु न, तथ््ों की असांढ़दग्ितय आढ़द से बचनय चयढ़हए।
ववचयरपरक लेखन- अिबयरों में समयचयर और फ़ीचर के अियर्य वर्चयरपरक सयमग्ऱी कय भ़ी प्रकयशन होतय है । कई
अिबयरों की पहचयन उनके र्ैचयररक रुझयन से होत़ी है । एक तरह से अिबयरों में प्रकयलशत होने र्यिे वर्चयरपूणव िेिन
से उस अिबयर की छवर् बनत़ी है । अिबयरों में सांपयदकी् पष्ृ ठ पर प्रकयलशत होने र्यिे सांपयदकी् अग्रिेि, िेि और
ढ़टप्पखण्याँ इस़ी वर्चयरपरक पत्रकयरी् िेिन की श्रेण़ी में आते हैं । इसके अियर्य, वर्लभन्न वर्ष्ों के वर्शेषज्ञों ्य
र्ररष्ठ पत्रकयरों के ततांभ (कॉिम) भ़ी वर्चयरपरक िेिन के तहत आते हैं। कुछ अिबयरों में सांपयदकी् पष्ृ ठ के सयमने
ऑप-एड पष्ृ ठ पर भ़ी वर्चयरपरक िेि, ढ़टप्पखण्याँ और ततांभ प्रकयलशत होते हैं।
संपयिकी् लेखन- सांपयदकी् पष्ृ ठ पर प्रकयलशत होने र्यिे सांपयदकी् को उस अिबयर की आर्यि मयनय ियतय है ।
सांपयदकी् के िरर्े अिबयर ककस़ी घटनय, समत्य ्य मुददे के प्रनत अपऩी रय् प्रकट करते हैं। सांपयदकी् ककस़ी
व््जक्त-वर्शेष कय वर्चयर नहीां होतय, इसलिए उसे ककस़ी के नयम के सयथ नहीां छयपय ियतय। सांपयदकी् लििने कय
दयन्त्र् उस अिबयर में कयम करने र्यिे सांपयदक और उनके सह्ोगग्ों पर होतय है । आमतौर पर अिबयरों में
सहय्क सांपयदक ही सांपयदकी् लििते हैं। कोई बयहर कय िेिक ्य
स्तंि लेखन- ततांभ-िेिन भ़ी वर्चयरपरक िेिन कय एक प्रमि
ु रूप है । कुछ महत्र्पण
ू व िेिक अपने ियस र्ैचयररक
रुझयन के लिए ियने ियते हैं। उनकी अपऩी एक िेिन-शैिी भ़ी वर्कलसत हो ियत़ी है । ऐसे िेिकों की िोकवप्र्तय को
दे िकर अिबयर उन्हें एक नन्लमत ततांभ लििने कय जिम्मय दे दे ते हैं। ततांभ कय वर्ष् चुनने और उसमें अपने
वर्चयर व््क्त करने की ततांभ िेिक को पूरी छूट होत़ी है । ततांभ में िेिक के वर्चयर अलभव््क्त होते हैं। ्ही कयरण
है कक ततांभ अपने िेिकों के नयम पर ियने और पसांद ककए ियते हैं। कुछ ततांभ इतने िोकवप्र् होते हैं कक अिबयर
उनके कयरण भ़ी पहचयने ियते हैं।
सयक्षयत्कयर (इंटरव्)ू - समयचयर मयध््मों में सयक्षयत्कयर कय बहुत महत्र् है । पत्रकयर एक तरह से सयक्षयत्कयर के िरर्े
ही समयचयर, फ़ीचर, वर्शेष ररपोटव और अन्् कई तरह के पत्रकयरी् िेिन के लिए कच्चय मयि इकट्ठय करते हैं।
पत्रकयरी् सयक्षयत्कयर और सयमयन्् बयतच़ीत में ्ह फ़कव होतय है कक सयक्षयत्कयर में एक पत्रकयर ककस़ी अन्् व््जक्त
से तथ््, उसकी रय् और भयर्नयएाँ ियनने के लिए सर्यि पूछतय है । सयक्षयत्कयर कय एक तपष्ट मकसद और ढयाँचय होतय
है । एक सिि सयक्षयत्कयर के लिए आपके पयस न लसफ़व ज्ञयन होनय चयढ़हए बजल्क आपमें सांर्दे नश़ीितय, कूटऩीनत, िै्व
और सयहस िैसे गुण भ़ी होने चयढ़हए।
सफल और अच््य सयक्षयत्कयर कैसे भलखें- एक अच्छे और सिि सयक्षयत्कयर के लिए ननम्नलिखित बयतें आर्श््क हैं-
1. जिस वर्ष् पर और जिस व््जक्त के सयथ सयक्षयत्कयर करने आप िय रहे हैं , उसके बयरे में आपके पयस प्यवप्त
ियनकयरी होऩी चयढ़हए।
2. आप सयक्षयत्कयर से क््य ननष्कषव ननकयिनय चयहते हैं, इसके बयरे में तपष्ट रहनय बहुत िरूरी है ।
3. आपको र्े सर्यि पूछने चयढ़हए िो ककस़ी अिबयर के एक आम पयठक के मन में हो सकते हैं।
4. सयक्षयत्कयर को अगर ररकॉडव करनय सांभर् हो तो बेहतर है , िेककन अगर ऐसय सांभर् न हो तो सयक्षयत्कयर के
दौरयन आप नोट्स िेते रहें ।
5. सयक्षयत्कयर को लििते सम् आप दो में से कोई भ़ी एक तरीकय अपनय सकते हैं। एक आप सयक्षयत्कयर को
सर्यि और किर िर्यब के रूप में लिि सकते हैं ्य किर उसे एक आिेि की तरह से भ़ी लिि सकते हैं।
संपयिकी् कय समयचयर-पत्र के भलए महत्व- सांपयदकी् को ककस़ी समयचयर-पत्र की आर्यि मयनय ियतय है । ्ह एक
ननजश्चत पष्ृ ठ पर छपतय है । ्ह अांश समयचयरपत्र को पठऩी् तथय अवर्तमरण़ी् बनयतय है । सांपयदकी् से ही
समयचयर-पत्र की अच्छयइ्याँ एर्ां बुरयइ्याँ (गुणर्त्तय) कय ननियवरण कक्य ियतय है । समयचयर-पत्र के लिए इसकी महत्तय
सर्ोपरर है ।

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वर्शेष िेिन से एक ओर समयचयर-पत्र में वर्वर्ितय आत़ी है तो दस
ू री ओर उनकय किेर्र व््यपक होतय है । र्यततर् में
पयठक अपऩी व््यपक रुगच्ों के कयरण सयढ़हत््, वर्ज्ञयन, िेि, लसनेमय आढ़द वर्वर्ि क्षेत्रों से िुड़ी िबरें पिनय चयहतय
है , इसलिए समयचयर-पत्रों में वर्शेष िेिन के मयध््म से ननरां तर और वर्शेष ियनकयरी दे नय आर्श््क हो ियतय है ।
ववशेष लेखन- वर्शेष िेिन कय अथव है -ककस़ी ियस वर्ष् पर सयमयन्् िेिन से हटकर कक्य ग्य िेिन। अगिकयांश
समयचयर-पत्रों और पबत्रकयओां के अियर्य टी०ऱ्ी० और रे डड्ो चैनिों में वर्शेष िेिन के लिए अिग डेतक होतय है और
उस वर्शेष डेतक पर कयम करने र्यिे पत्रकयरों कय समह
ू भ़ी अिग होतय है । िैसे समयचयर-पत्रों और अन्् मयध््मों में
बबिनेस ्यऩी कयरोबयर और व््यपयर कय अिग डेतक होतय है , इस़ी तरह िेि की िबरों और फ़ीचर के लिए िेि डेतक
अिग होतय है । इन डेतकों पर कयम करने र्यिे उपसांपयदकों और सांर्यददयतयओां से अपेक्षय की ियत़ी है कक सांबांगित
वर्ष् ्य क्षेत्र में उनकी वर्शेषज्ञतय होग़ी।
िबरें भ़ी कई तरह की होत़ी हैं-रयिऩीनतक, आगथवक, अपरयि, िेि, कफ़ल्म, कृवष, कयनून, वर्ज्ञयन ्य ककस़ी भ़ी और वर्ष्
से िुड़ी हुई। सांर्यददयतयओां के ब़ीच कयम कय वर्भयिन आमतौर पर उनकी ढ़दिचतप़ी और ज्ञयन को ध््यन में रिते हुए
कक्य ियतय है । म़ीडड्य की भयषय में इसे ब़ीट कहते हैं। एक सांर्यददयतय की ब़ीट अगर अपरयि है तो इसकय अथव ्ह
है कक उसकय कय्वक्षत्र
े अपने शहर ्य क्षेत्र में घटने र्यिी आपरयगिक घटनयओां की ररपोढ़टव ग करनय है । अिबयर की ओर
से र्ह इनकी ररपोढ़टव ग के लिए जिम्मेदयर और िर्यबदे ह भ़ी होतय है ।
वर्शेष िेिन के लिए ककस़ी व््जक्त (सांर्यददयतय) को उस़ी क्षेत्र-वर्शेष से सांबांगित िेिन-कय्व सौंपय ियतय है , जिसमें
उसकी रुगच होत़ी है । इसके अियर्य उसे वर्ष्-सांबि
ां ़ी गहरी ियनकयरी होत़ी है । िैसे-िेि िगत की ियनकयरी एर्ां रुगच
रिने र्यिे को िेि ब़ीट लमि ियत़ी है । वर्शेष िेिन केर्ि ब़ीट ररपोढ़टव ग न होकर उससे भ़ी आगे एक तरह की
वर्शेष़ीकृत ररपोढ़टव ग है, जिसमें न लसफ़व उस वर्ष् की गहरी ियनकयरी होऩी चयढ़हए बजल्क उसकी ररपोढ़टव ग से सांबांगित
भयषय-शैिी पर भ़ी पूणव अगिकयर होनय चयढ़हए।
बीट ररपोठटथ ग के भलए तै्यरी- ब़ीट ररपोढ़टवग के लिए भ़ी एक पत्रकयर को कयफ़ी तै्यरी करऩी पडत़ी है । उदयहरण के
तौर पर िो पत्रकयर रयिऩीनत में ढ़दिचतप़ी रिते हैं ्य ककस़ी ियस रयिऩीनतक पयटी को कर्र करते हैं, उन्हें पतय
होनय चयढ़हए कक उस पयटी कय इनतहयस क््य है , उसमें सम्-सम् पर क््य हुआ है , आि क््य चि रहय है , पयटी के
लसदियांत ्य ऩीनत्याँ क््य हैं, उसके पदयगिकयरी कौन-कौन हैं और उनकी पष्ृ ठभूलम क््य है , बयकी पयढ़टव ्ों से उस पयटी
के ररश्ते कैसे हैं और उनमें आपस में क््य फ़कव है , उसके अगिर्ेशनों में क््य-क््य होतय रहय है , उस पयटी की कलम्याँ
और िूबब्याँ क््य हैं, आढ़द-आढ़द।
पत्रकयर को उस पयटी के भ़ीतर गहरयई तक अपने सांपकव बनयने चयढ़हए और िबर हयलसि करने के नए-नए स्रोत
वर्कलसत करने चयढ़हए। ककस़ी भ़ी स्रोत ्य सूत्र पर आाँि मद
ूाँ कर भरोसय नहीां करनय चयढ़हए और ियनकयरी की पुजष्ट
कई अन्् स्रोतों के िरर्े भ़ी करऩी चयढ़हए। तभ़ी र्ह उस बयरे में वर्शेषज्ञतय हयलसि कर सकतय है और उसकी ररपोटव
्य िबर वर्श्र्सऩी् मयऩी िय सकत़ी है ।
बीट ररपोठटथ ग और ववशेषीकृत ररपोठटथ ग में अंतर
ब़ीट ररपोढ़टव ग और वर्शेष़ीकृत ररपोढ़टव ग के ब़ीच सबसे महत्र्पूणव अांतर ्ह है कक अपऩी ब़ीट की ररपोढ़टव ग के लिए
सांर्यददयतय में उस क्षेत्र के बयरे में ियनकयरी और ढ़दिचतप़ी कय होनय प्यवप्त है । इसके अियर्य एक ब़ीट ररपोटव र को
आमतौर पर अपऩी ब़ीट से िुड़ी सयमयन्् िबरें ही लििऩी होत़ी हैं। िेककन वर्शेष़ीकृत ररपोढ़टव ग कय तयत्प्व ्ह है कक
आप सयमयन्् िबरों से आगे बिकर उस वर्शेष क्षेत्र ्य वर्ष् से िड
ु ़ी घटनयओां, मद
ु दों और समत्यओां कय बयरीकी से
वर्श्िेषण करें और पयठकों के लिए उसकय अथव तपष्ट करने की कोलशश करें ।
वर्शेष िेिन के अांतगवत ररपोढ़टव ग के अियर्य उस वर्ष् ्य क्षेत्र वर्शेष पर िीचर, ढ़टप्पण़ी, सयक्षयत्कयर, िेि, सम़ीक्षय
और ततांभ-िेिन भ़ी आतय है । इस तरह कय वर्शेष िेिन समयचयर-पत्र ्य पबत्रकय में कयम करने र्यिे पत्रकयर से िेकर
फ्ी-ियांस (तर्तांत्र) पत्रकयर ्य िेिक तक सभ़ी कर सकते हैं। शतव ्ह है कक वर्शेष िेिन के इच्छुक पत्रकयर ्य
तर्तांत्र िेिक को उस वर्ष् में ननपुण होनय चयढ़हए।

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मतिब ्ह कक ककस़ी भ़ी क्षेत्र पर वर्शेष िेिन करने के लिए िरूरी है कक उस क्षेत्र के बयरे में आपको ज््यदय-से-
ज््यदय पतय हो, उसकी तयि़ी-से-तयि़ी सूचनय आपके पयस हो, आप उसके बयरे में िगयतयर पिते हों, ियनकयरर्याँ और
तथ्् इकट्ठे करते हों और उस क्षेत्र से िुडे िोगों से िगयतयर लमिते रहते हों।
इस तरह अिबयरों और पत्र-पबत्रकयओां में ककस़ी ियस वर्ष् पर िेि ्य ततांभ लििने र्यिे कई बयर पेशेर्र पत्रकयर न
होकर उस वर्ष् के ियनकयर ्य वर्शेषज्ञ होते हैं। िैसे रक्षय, वर्ज्ञयन, वर्दे श-ऩीनत, कृवष ्य ऐसे ही ककस़ी क्षेत्र में कई
र्षों से कयम कर रहय कोई प्रोफ़ेशनि इसके बयरे में बेहतर तरीके से लिि सकतय है क््ोंकक उसके पयस इस क्षेत्र कय
र्षों कय अनुभर् होतय है, र्ह इसकी बयरीकक्याँ समझतय है और उसके पयस वर्श्िेषण करने की क्षमतय होत़ी है ।
हो सकतय है उसके लििने की शैिी सयमयन्् पत्रकयरों की तरह न हो िेककन ियनकयरी और अांतदवजू ष्ट के मयमिे में
उसकय िेिन पयठकों के लिए ियभदय्क होतय है । उदयहरण के तौर पर हम िेिों में हषव भोगिे , िसदे र् लसांह ्य
नरोत्तम पुरी कय नयम िे सकते हैं। र्े वपछिे चयिीस सयिों से हॉकी से िेकर किकेट तक और ओिांवपक से िेकर
एलश्यई िेिों तक की कमेंरी करते रहे हैं।
ववशेष लेखन की ियषय और शैली- वर्शेष िेिन कय सांबांि जिन वर्ष्ों और क्षेत्रों से है , उनमें से अगिकयांश क्षेत्र
तकऩीकी रूप से िढ़टि हैं और उनसे िड
ु ़ी घटनयओां तथय मद
ु दों को समझनय आम पयठकों के लिए कढ़ठन होतय है ।
इसलिए इन क्षेत्रों में वर्शेष िेिन की िरूरत पडत़ी है, जिससे पयठकों को समझने में मुजश्कि न हो। वर्शेष िेिन की
भयषय और शैिी कई मयमिों में सयमयन्् िेिन से अिग होत़ी है । उनके ब़ीच सबसे बुनन्यदी फ़कव ्ह होतय है कक
हर क्षेत्र-वर्शेष की अपऩी वर्शेष तकऩीकी शब्दयर्िी होत़ी है िो उस वर्ष् पर लििते हुए आपके िेिन में आत़ी है ।
िैसे कयरोबयर पर वर्शेष िेिन करते हुए आपको उसमें इततेमयि होने र्यिी शब्दयर्िी से पररगचत होनय चयढ़हए। दस ू रे ,
अगर आप उस शब्दयर्िी से पररगचत हैं तो आपके सयमने चुनौत़ी ्ह होत़ी है कक आप अपने पयठक को भ़ी उस
शब्दयर्िी से इस तरह पररगचत करयनय चयढ़हए तयकक उसे आपकी ररपोटव को समझने में कोई ढ़दक्कत न हो।
उदयहरणयथव-‘सोने में भयरी उछयि’, ‘चयाँदी िुिकी’ ्य ‘आर्क बिने से ियि लमचव की कडर्यहट घटी’ ्य ‘शे्र बयियर ने
वपछिे सयरे ररकॉडव तोडे, सेंसेक्स आसमयन पर’ आढ़द के अियर्य िेिों में भ़ी ‘भयरत ने पयककततयन को चयर वर्केट से
प़ीटय’, ‘चैंवप्ांस कप में मिेलश्य ने िमवऩी के आगे घट
ु ने टे के’ आढ़द श़ीषवक सहि ही ध््यन ि़ीांचते हैं।
वर्शेष िेिन की कोई ननजश्चत शैिी नहीां होत़ी। िेककन अगर हम अपने ब़ीट से िुडय कोई समयचयर लिि रहे हैं तो
उसकी शैिी उिटय वपरयलमड शैिी ही होग़ी। िेककन अगर आप समयचयर िीचर लिि रहे हैं तो उसकी शैिी कथयत्मक
हो सकत़ी है । इस़ी तरह अगर आप िेि ्य ढ़टप्पण़ी लिि रहे हों तो इसकी शरु
ु आत भ़ी फ़ीचर की तरह हो सकत़ी
है । िैसे हम ककस़ी केस तटड़ी से उसकी शुरुआत कर सकते हैं, उसे ककस़ी िबर से िोडकर ्यऩी न््ूिपेग के िरर्े
भ़ी शुरू कक्य िय सकतय है । इसमें पुरयने सांदभों को आि के सांदभव से िोडकर पेश करने की भ़ी सांभयर्नय होत़ी है ।
मीड़ड्य की ियषय में बीट कय अथथ- समयचयर कई प्रकयर के होते हैं; िैस-े रयिऩीनत, अपरयि, िेि, आगथवक, कफ़ल्म तथय
कृवष सांबि
ां ़ी समयचयर आढ़द। सांर्यददयतयओां के ब़ीच कयम कय बाँटर्यरय उनके ज्ञयन एर्ां रुगच के आियर पर कक्य ियतय
है । म़ीडड्य की भयषय में इसे ही ब़ीट कहते हैं। ब़ीट ररपोटव र को अपने ब़ीट (क्षेत्र) की प्रत््ेक छोटी-बड़ी ियनकयरी एकत्र
करके कई स्रोतों दर्यरय उसकी पुजष्ट करके वर्शेषज्ञतय हयलसि करनय चयढ़हए। तब उसकी िबर वर्श्र्सऩी् मयऩी ियत़ी
है ।
ववशेष लेखन- अिबयरों के लिए समयचयरों के अियर्य िेि, अथव-व््यपयर, लसनेमय ्य मनोरां िन आढ़द वर्लभन्न क्षेत्रों और
वर्ष्ों सांबांगित घटनयएाँ, समत्यएाँ आढ़द से सांबांगित िेिन वर्शेष िेिन कहियतय है । इस प्रकयर के िेिन की भयषय
और शैिी समयचयरों की भयषय-शैिी से अिग होत़ी है ।
ववशेष लेखन की ियषय-शैली- वर्शेष िेिन ककस़ी वर्शेष वर्ष् पर ्य िढ़टि एर्ां तकऩीकी क्षेत्र से िुडे वर्ष्ों पर
कक्य ियतय है, जिसकी अपऩी वर्शेष शब्दयर्िी होत़ी है। इस शब्दयर्िी से सांर्यददयतय को अर्श्् पररगचत होनय
चयढ़हए। उसे इस तरह िेिन करनय चयढ़हए कक ररपोटव को समझने में परे शयऩी न हो।

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उलटय वपरयभमड शैली- ्ह समयचयर-िेिन की सबसे िोकवप्र्, उप्ोग़ी और बुनन्यदी शैिी है । ्ह कहयऩी ्य कथय
िेिन शैिी की ठीक उिटी होत़ी है । इसमें आियर ऊपर और श़ीषव ऩीचे होतय है । इसमें शुरू में समयपन, मध्् में बॉड़ी
और अांत में मुिडय होतय है ।
संपयिक के कय्थ- सांपयदक सांर्यददयतयओां तथय ररपोटव रों से प्रयप्त समयचयर-सयमग्ऱी की अशुदि्याँ दरू करते हैं तथय उसे
त्रढ़ु टहीन बनयकर प्रततनु त के ्ोग्् बनयते हैं। र्े ररपोटव की महत्र्पण
ू व बयतों को पहिे तथय कम महत्र् की बयतों को
अांत में छयपते हैं तथय समयचयर-पत्र की ऩीनत, आचयर-सांढ़हतय और िन-कल््यण कय वर्शेष ध््यन रिते हैं।
पत्रकयरी् लेखन- पत्रकयर अिबयर ्य अन्् समयचयर मयध््मों के लिए िेिन के वर्लभन्न रूपों कय इततेमयि करते हैं ,
इसे पत्रकयरी् िेिन कहते हैं। पत्रकयरी् भयषय स़ीि़ी, सरि, सयफ़-सथ
ु री परां तु प्रभयर्पण
ू व होऩी चयढ़हए। र्यक्् छोटे , सरि
और सहि होने चयढ़हए। भयषय में कढ़ठन और दरू
ु ह शब्दयर्िी से बचनय चयढ़हए, तयकक भयषय बोखझि न हो।
खोजपरक पत्रकयररतय- सयर्वियननक महत्र् के भ्रष्टयचयर और अनन्लमततय को िोगों के सयमने ियने के लिए िोिपरक
पत्रकयररतय की मदद िी ियत़ी है । इसके अांतगवत नछपयई गई सूचनयओां की गहरयई से ियाँच की ियत़ी है । इसके प्रमयण
एकत्र करके इसे प्रकयलशत भ़ी कक्य ियतय है ।
वॉचडॉग पत्रकयररतय- िो पत्रकयररतय सरकयर के कयमकयि पर ननगयह रित़ी है और कोई गडबड़ी होते ही उसकय
परदयफ़यश करत़ी है , उसे र्ॉचडॉग पत्रकयररतय कहते हैं।
एडवोकेसी पत्रकयररतय- िो पत्रकयररतय ककस़ी वर्चयरियरय ्य वर्शेष उददे श्् ्य मुददे को उठयकर उसके पक्ष में िनमत
बनयने के लिए िगयतयर और िोर-शोर से अलभ्यन चियत़ी है , उसे एडर्ोकेस़ी पत्रकयररतय कहते हैं।
वैकक्ल्पक पत्रकयररतय- िो म़ीडड्य तथयवपत व््र्तथय के वर्कल्प को सयमने ियने और उसके अनक
ु ू ि सोच को
अलभव््क्त करते हैं, उसे र्ैकजल्पक पत्रकयररतय कहते हैं।
पेज थ्री पत्रकयररतय- पेि श्ऱी पत्रकयररतय कय आश् उस पत्रकयररतय से है , जिसमें फ़ैशन, अम़ीरों की बड़ी-बड़ी पयढ़टव ्ों,
महकफ़िों तथय िोकवप्र् िोगों के ननि़ी ि़ीर्न के बयरे में बतय्य ियतय है । ऐसे समयचयर सयमयन््त: समयचयर-पत्र के
पष्ृ ठ त़ीन पर प्रकयलशत होते हैं।
पीत पत्रकयररतय- इस तरह की पत्रकयररतय में झठू ी अिर्यहों, सनसऩीिेि मुददों तथय िबरों को बहुत बिय-चियकर कर
प्रततुत कक्य ियतय है । इसमें सही समयचयरों की उपेक्षय करके ध््यन-ि़ीांचने र्यिे श़ीषवकों कय बहुतय्त में प्र्ोग कक्य
ियतय है ।
आत्मपररच्, एक गीत – हररवंशरय् बच्चन
प्रश्न- 1 कववतय एक ओर जग-जीवन कय मयर भलए घूमने की बयत करती है और िस
ू री ओर ‘मैं किी न जग कय
ध््यन कक्य करतय हूँ’- ववपरीत से लगते इन कथनों कय त्य आश् हैं?
उत्तर- िग-ि़ीर्न कय भयर िेने से कवर् कय अलभप्रय् ्ह है कक र्ह सयांसयररक दयन्त्र्ों कय ननर्यवह कर रहय है । आम
व््जक्त से र्ह अिग नहीां है तथय सि
ु -दि
ु , हयनन-ियभ आढ़द को झेिते हुए अपऩी ्यत्रय पूरी कर रहय है । दस ू री तरि
कवर् कहतय है कक र्ह कभ़ी सांसयर की तरि ध््यन नहीां दे तय। ्हयाँ कवर् सयांसयररक दयन्त्र्ों की अनदे ि़ी की बयत नहीां
करतय। र्ह सांसयर की ननरथवक बयतों पर ध््यन न दे कर केर्ि प्रेम पर केंढ़द्रत रहतय है । आम व््जक्त सयमयजिक बयियओां
से डरकर कुछ नहीां कर पयतय। कवर् सयांसयररक बयियओां की परर्यह नहीां करतय। अत: इन दोनों पांजक्त्ों के अपने
ननढ़हतयथव हैं। ्े एक-दस
ू रे के वर्रोि़ी न होकर पूरक हैं।
प्रश्न- 2 जहयँ पर ियनय रहते हैं, वहीं नयियन िी होते हैं- कवव ने ऐसय त्ों कहय होगय?
उत्तर- नयदयन ्यऩी मि
ू व व््जक्त सयांसयररक मय्यियि में उिझ ियतय है । मनुष्् इस मय्यियि को ननरथवक मयनते हुए
भ़ी इस़ी के चक्कर में िैसय रहतय है । सांसयर असत्् है । मनुष्् इसे सत्् मयनने की नयदयऩी कर बैठतय है और मोक्ष
के िक्ष्् को भि
ू कर सांग्रहर्वृ त्त में पड ियतय है । इसके वर्परीत, कुछ ज्ञयऩी िोग भ़ी समयि में रहते हैं िो मोक्ष के
िक्ष्् को नहीां भूिते। अथयवत सांसयर में हर तरह के िोग रहते हैं।
प्रश्न- 3 मैं और, और जग और कहयँ कय नयतय- पंक्तत में ‘और’ शब्ि की ववशेषतय बतयइए।
उत्तर- ्हयाँ ‘और’ शब्द कय त़ीन बयर प्र्ोग हुआ है । अत: ्हयाँ ्मक अिांकयर है । पहिे ‘और’ में कवर् तर््ां को आम

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व््जक्त से अिग बतयतय है । र्ह आम आदम़ी की तरह भौनतक च़ीिों के सांग्रह के चक्कर में नहीां पडतय। दस
ू रे ‘और’
के प्र्ोग में सांसयर की वर्लशष्टतय को बतय्य ग्य है । सांसयर में आम व््जक्त सयांसयररक सि
ु -सुवर्ियओां को अांनतम
िक्ष्् मयनतय है । ्ह प्रर्वृ त्त कवर् की वर्चयरियरय से अिग है । त़ीसरे ‘और’ कय प्र्ोग ‘सांसयर और कवर् में ककस़ी तरह
कय सांबांि नहीां’ दशयवने के लिए कक्य ग्य है ।
प्रश्न- 4 शीतल वयणी में आग’ के होने कय त्य अभिप्रय् हैं?
उत्तर– कवर् ने ्हयाँ वर्रोियभयस अिांकयर कय प्र्ोग कक्य है । कवर् की र्यण़ी ्द्वप श़ीति है , परां तु उसके मन में
वर्द्रोह, असांतोष कय भयर् प्रबि है । र्ह समयि की व््र्तथय से सांतष्ु ट नहीां है । र्ह प्रेम-रढ़हत सांसयर को अतऱ्ीकयर
करतय है । अत: अपऩी र्यण़ी के मयध््म से अपऩी असांतजु ष्ट को व््क्त करतय है । र्ह अपने कवर्त्र् िमव को
ईमयनदयरी से ननभयते हुए िोगों को ियग्रत कर रहय है ।
प्रश्न- 5 बच्चे ककस बयत की आशय में नीिों से झयँक रहे होंगे?
उत्तर– पक्ष़ी ढ़दन भर भोिन की तियश में भटकते किरते हैं। उनके बच्चे घोंसिों में मयतय-वपतय की रयह दे िते रहते हैं
कक मयतयवपतय उनके लिए दयनय ियएाँगे और उनकय पेट भरें गे। सयथ-सयथ र्े मयाँ-बयप के तनेढ़हि तपशव पयने के लिए
प्रत़ीक्षय करते हैं। छोटे बच्चों को मयतय-वपतय कय तपशव र् उनकी गोद में बैठनय, उनकय प्रेम-प्रदशवन भ़ी अस़ीम आनांद
दे तय है । इन सबकी पूनतव के लिए र्े ऩीडों से झयाँकते हैं।
प्रश्न- 6 ठिन जल्िी-जल्िी ढलतय हैं- की आवतृ त से कववतय की ककस ववशेषतय कय पतय चलतय हैं?
उत्तर– ‘ढ़दन िल्दी-िल्दी ढितय है ’-की आर्वृ त्त से ्ह प्रकट होतय है कक िक्ष्् की तरि बिते मनष्ु ् को सम् ब़ीतने
कय पतय नहीां चितय। पगथक िक्ष्् तक पहुाँचने के लिए आतुर होतय है । इस पांजक्त की आर्वृ त्त सम् के ननरां तर
चिय्मयन प्रर्वृ त्त को भ़ी बतयत़ी है । सम् ककस़ी की प्रत़ीक्षय नहीां करतय। अत: सम् के सयथ तर््ां को समय्ोजित
करनय प्रयखण्ों के लिए आर्श््क है ।
प्रश्न- 7 कौन-सय ववचयर ठिन ढलने के बयि लौट रहे पंथी के किमों को धीमय कर िे तय हैं? ‘बच्चन’ के गीत के
आधयर पर उत्तर िीक्जए।
उत्तर- कवर् एकयकी ि़ीर्न व््त़ीत कर रहय है । शयम के सम् उसके मन में वर्चयर उठतय है कक उसके आने के
इांतियर में व््यकुि होने र्यिय कोई नहीां है । अत: र्ह ककसके लिए तेि़ी से घर ियने की कोलशश करे । शयम होते ही
रयत हो ियएग़ी और कवर् की वर्रह-व््थय बिने से उसकय हृद् बेचैन हो ियएगय। इस प्रकयर के वर्चयर आते ही ढ़दन
ढिने के बयद िौट रहे पांथ़ी के कदम ि़ीमे हो ियते हैं। प्रश्न- 8 कवव को संसयर अपूणथ त्ों लगतय है ?
उत्तर- कवर् भयर्नयओां को प्रमुितय दे तय है । र्ह सयांसयररक बांिनों को नहीां मयनतय। र्ह र्तवमयन सांसयर को उसकी
शुष्कतय एर्ां ऩीरसतय के कयरण नयपसांद करतय है । सयांसयररक िोग मय्य-मोह और अपने तर्यथव की पूनतव के प़ीछे दौडते
हैं जिसे कवर् व््थव मयनतय है । सयांसयररक िोग प्रेम को महत्र् नहीां दे ते हैं। इसलिए कवर् को सांसयर अपण
ू व िगतय है ।

पतंग - आलोक धन्वय

प्रश्न- 1 ‘सबसे तेज बौ्यरें ग्ीं, ियिो ग्य’ के बयि प्रकृतत में जो पररवतन कवव ने ठिखय्य हैं, उसकय वणथन अपने
शब्िों में करें ।
उत्तर- इस कवर्तय में कवर् ने प्रयकृनतक र्यतयर्रण कय सुांदर र्णवन कक्य है । भयदों मयह में तेि र्षयव होत़ी है । इसमें
बौछयरें पडत़ी हैं। बौछयरों के समयप्त होने पर शरद कय सम् आतय है । मौसम िि
ु ियतय है । प्रकृनत में ननम्नलिखित
पररर्तवन ढ़दियई दे ते हैं-
1- सर्ेरे कय सरू ि िरगोश की आाँिों िैसय ियि-ियि ढ़दियई दे तय है ।
2- शरद ऋतु के आगमन से उमस समयप्त हो ियत़ी है । ऐसय िगतय है कक शरद अपऩी सयइककि को तेि गनत
से चियतय हुआ आ रहय है ।
3- र्यतयर्रण सयफ़ र् िि
ु य हुआ-सय िगतय है ।
4- िूप चमकीिी होत़ी है ।

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5- िूिों पर नततलि्याँ मांडरयत़ी हुई ढ़दियई दे त़ी हैं।
प्रश्न- 2 पतंग के भलए सबसे हलकी और रं गीन चीज, सबसे पतलय कयगज, सबसे पतली कमयनी जैसे ववशेषणों कय
प्र्ोग त्ों कक्य ग्य है ?
उत्तर- कवर् ने पतांग के लिए सबसे हिकी और रां ग़ीन च़ीि, सबसे पतिय कयगि, सबसे पतिी कमयऩी िैसे वर्शेषणों
कय प्र्ोग कक्य है । र्ह इसके मयध््म से पतांग की वर्शेषतय तथय बयि-सि
ु भ चेष्टयओां को बतयनय चयहतय है। बच्चे भ़ी
हिके होते हैं, उनकी कल्पनयएाँ रां ग़ीन होत़ी हैं। र्े अत््ांत कोमि र् ननश्छि मन के होते हैं। इस़ी तरह पतांगें भ़ी
रां गबबरां ग़ी, हल्की होत़ी हैं। र्े आकयश में दरू तक ियत़ी हैं। इन वर्शेषणों के प्र्ोग से कवर् पयठकों कय ध््यन आकवषवत
करनय चयहतय है ।
प्रश्न- 3 जन्म से ही वे अपने सयथ लयते हैं कपयस- कपयस के बयरे में सोचें कक उससे बच्चों कय त्य संबंध बन सकतय
हैं?
उत्तर- कपयस र् बच्चों के मध्् गहरय सांबांि है । कपयस हिकी, मुिय्म, गददे दयर र् चोट सहने में सक्षम होत़ी है ।
कपयस की प्रकृनत भ़ी ननमवि र् ननश्छि होत़ी है । इस़ी तरह बच्चे भ़ी कोमि र् ननश्छि तर्भयर् के होते हैं। उनमें
चोट सहने की क्षमतय भ़ी होत़ी है । उनकय शरीर भ़ी हिकय र् मि
ु य्म होतय है । कपयस बच्चों की कोमि भयर्नयओां र्
उनकी मयसूलम्त कय प्रत़ीक है ।
प्रश्न- 5 पतगों के सयथ-सयथ वे िी उि रहे हैं- बच्चों कय उियन से कैसय संबंध बनतय हैं?
उत्तर- पतांग बच्चों की कोमि भयर्नयओां की पररचय्क है । िब पतांग उडत़ी है तो बच्चों कय मन भ़ी उडतय है । पतांग
उडयते सम् बच्चे अत््गिक उत्सयढ़हत होते हैं। पतांग की तरह बयिमन भ़ी ढ़हिोरें िेतय है । र्ह भ़ी आसमयन की
ऊाँचयइ्ों को छूनय चयहतय है। इस कय्व में बच्चे रयतते की कढ़ठनयइ्ों को भ़ी ध््यन में नहीां रिते।
प्रश्न- 6 ठिशयओं को मि
ृ ं ग की तरह बजयने कय त्य तयत्प्थ हैं?
उत्तर- इसकय तयत्प्व है कक पतांग उडयते सम् बच्चे ऊाँच़ी दीर्यरों से छतों पर कूदते हैं तो उनकी पदचयपों से एक
मनोरम सांग़ीत उत्पन्न होतय है । ्ह सांग़ीत मद
ृ ां ग की ध्र्नन की तरह िगतय है । सयथ ही बच्चों कय शोर भ़ी चयरों
ढ़दशयओां में गि
ाँू तय है ।
प्रश्न- 7 जब पतंग सयमने हो तो ्तों पर िौिते हुए त्य आपको ्त किोर लगती हैं?
उत्तर- िब पतांग सयमने हो तो छतों पर दौडते हुए छत कठोर नहीां िगत़ी। इसकय कयरण ्ह है कक इस सम् हमयरय
सयरय ध््यन पतांग पर ही होतय है । हमें कूदते हुए छत की कठोरतय कय अहसयस नहीां होतय। हम पतांग के सयथ ही िद

को उडते हुए महसूस करते हैं।
प्रश्न- 8 आसमयन में रं ग-त्रबरं गी पतगों को िे खकर आपके मन में कैसे ख्यल आते हैं? भलझखए
उत्तर- आसमयन में रां ग-बबरां ग़ी पतांगों को दे िकर मेरय मन िुश़ी से भर ियतय है । मैं सोचतय हूाँ कक मेरे ि़ीर्न में भ़ी
पतांगों की तरह अनगगनत रां ग होने चयढ़हए तयकक मैं भरपरू ि़ीर्न ि़ी सकांू । मैं भ़ी पतांग की तरह िि
ु े आसमयन में
उडनय चयहतय हूाँ। मैं भ़ी ऩ्ी ऊाँचयइ्ों को छूनय चयहतय हूाँ।
प्रश्न- 9 ‘रोमयंथचत शरीर कय संगीत और जीवन की ल् में त्य संबंध है ?
उत्तर- ‘रोमयांगचत शरीर कय सांग़ीत’ ि़ीर्न की ि् से उत्पन्न होतय है । िब मनुष्् ककस़ी कय्व में पूरी तरह िीन हो
ियतय है तो उसके शरीर में अदभुत रोमयांच र् सांग़ीत पैदय होतय है । र्ह एक ननजश्चत ढ़दशय में गनत करने िगतय है ।
मन के अनक
ु ू ि कय्व करने से हमयरय शरीर भ़ी उस़ी ि् से कय्व करतय है ।
प्रश्न- 10 ‘महि एक ियगे के सहयरे , पतांगों की िडकत़ी ऊाँचयइ्याँ” उन्हें (बच्चों को) कैसे थयम िेत़ी हैं?
उत्तर- पतांग बच्चों की कोमि भयर्नयओां से िुड़ी होत़ी है । पतांग आकयश में उडत़ी है , परां तु उसकी ऊाँचयई कय नन्ांत्रण
बच्चों के हयथ की डोर में होतय है । बच्चे पतांग की ऊाँचयई पर ही ध््यन रिते हैं। र्े तर््ां को भि
ू ियते हैं। पतांग की
बित़ी ऊाँचयई से बयिमन और अगिक ऊाँचय उडने िगतय है । पतांग कय ियगय पतांग की ऊाँचयई के सयथ-सयथ बयिमन को
भ़ी नन्ांबत्रत करतय है ।

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कववतय के बहयने, बयत सीधी थी पर – कंु वर नयरय्ण

प्रश्न- 1 ‘कववतय के बहयने’ कववतय के मयध््म से बतयएँ कक ‘सब घर एक कर िे ने के मयने’ त्य है ?


उत्तर- ‘[कवर्तय के बहयने’ कवर्तय में ‘सब घर एक कर दे ने के मय्ने’ कय अथव है - स़ीमय कय बांिन समयप्त हो ियनय।
जिस प्रकयर बच्चों के िेि में ककस़ी प्रकयर की स़ीमय कय ध््यन नहीां रिय ियतय, उस़ी प्रकयर कवर्तय में तथयन की कोई
स़ीमय नहीां है । ्ह शब्दों कय िेि है । कवर् बच्चों की तरह परू े समयि को एक मयनतय है । र्ह अपने परयए कय भेद
भूिकर कवर्तय की। रचनय करतय है । कवर्तय समयि को बयाँित़ी है , एक करत़ी है ।
प्रश्न- 2 ‘उिने’ और ‘झखलने’ कय कववतय से त्य संबध
ं बनतय हैं?
उत्तर- कवर्तय कय ‘उडने’ र् ‘खििने’ से स़ीिय सांबांि है । गचडड्य एक तथयन से दस
ू रे तथयन तक उडकर ियत़ी है , परां तु
कवर्तय कल्पनय के सहयरे बहुत ऊाँचे तक उडत़ी है । ्ह कयि की स़ीमय तक को ियाँघ ियत़ी है । इस़ी तरह कवर्तय िूि
की तरह वर्कलसत होत़ी है । िूि अपऩी सुांदरतय र् गांि से समयि को प्रसन्न रितय है , उस़ी तरह कवर्तय भ़ी मयनऱ्ी्
भयर्ों से वर्कलसत होकर तरह-तरह के रां ग ढ़दियत़ी है तथय उसकी िुशबू सनयतन है । र्ह हर ्ुग में मयनर् को आनांद
दे त़ी है ।
प्रश्न- 3 कववतय और बच्चे को समयनयंतर रखने के त्य कयरण हो सकते हैं?
उत्तर- कवर् ने बच्चे और कवर्तय को समयनयांतर रिय है। बच्चों में रचनयत्मक ऊियव होत़ी है । उनके िेिने की कोई
ननजश्चत स़ीमय नहीां होत़ी। उनके सपने अस़ीम होते हैं। इस़ी तरह कवर्तय भ़ी रचनयत्मक तत्र्ों से ्ुक्त होत़ी है ।
उसकय क्षेत्र भ़ी वर्ततत
ृ होतय है । उनकी कल्पनय शजक्त अदभुत होत़ी है ।
प्रश्न- 4 कववतय के संििथ में ‘त्रबनय मुरझयए महकने के मयने’ त्य होते हैं?
उत्तर- कवर् कय मयननय है कक कवर्तय कभ़ी मरु झयत़ी नहीां है । ्ह अमर होत़ी है तथय ्ग
ु -्ग
ु यांतर तक मयनर्-समयि
को प्रभयवर्त करत़ी रहत़ी है। अपऩी ि़ीर्ांततय की र्िह से इसकी महक बरकरयर रहत़ी है । कवर्तय के मयध््म से
ि़ीर्न-मूल्् प़ीिीदर-प़ीिी चिते रहते हैं।
प्रश्न- 5 ियषय को ‘सहूभल्त’ से बरतने से त्य अभिप्रय् हैं?
उत्तर- कवर् कहतय है कक मयनर् मन में भयर्ों कय उद् होतय है । ्ढ़द र्ह भयषय के चमत्कयर में उिझ ियतय है तो र्ह
अपने भयर्ों को सही ढां ग से अलभव््क्त नहीां कर पयतय। र्ह तभ़ी उन्हें प्रकट कर सकतय है िब भयषय को र्ह सयिन
बनयए, सयध्् नहीां। सयिन बनयने पर भयषय सहितय से इततेमयि हो सकत़ी है । र्ह िोगों तक अपऩी बयत कह सकतय
है ।
प्रश्न- 6 बयत और ियषय परस्पर जि
ु े होते हैं, ककं तु किी-किी ियषय के चतकर में ‘सीधी बयत िी टे ढ़ी हो जयती है ,
कैसे?
उत्तर- बयत और भयषय परतपर िुडे होते हैं, परां तु कभ़ी-कभ़ी भयषय के चक्कर में स़ीि़ी बयत भ़ी टे िी हो ियत़ी है । इसकय
कयरण उप्ुक्त शब्दों कय प्र्ोग न करनय होतय है । मनुष्् अपऩी भयषय को कढ़ठन बनय दे तय है तथय आडांबरपूणव ्य
चमत्कयरपूणव शब्दों से अपऩी बयत को कहने में तर््ां को श्रेष्ठ समझतय है । इससे र्ह अपऩी मूि बयत को कहने में
असिि हो ियतय है । मनुष्् को समझनय चयढ़हए कक हर शब्द कय अपनय वर्लशष्ट अथव होतय है , भिे ही र्ह समयनयथी
्य प्यव्र्यच़ी हो। शब्दों के चक्कर में उिझकर भयर् अपनय अथव िो बैठते हैं।
प्रश्न- 7 ‘कववतय के बहयने’ कववतय में कवव की त्य आशंकय है और त्ों?
उत्तर- इस कवर्तय में कवर् को कवर्तय के अजततत्र् के बयरे में सांदेह है । उसे आशांकय है कक औद्ोग़ीकरण के कयरण
मनुष्् ्यांबत्रक होतय िय रहय है । उसके पयस भयर्नयएाँ व््क्त करने ्य सुनने कय सम् नहीां है । प्रगनत की अांि़ी दौड
से मयनर् की कोमि भयर्नयएाँ समयप्त होत़ी िय रही हैं। अत: कवर् को कवर्तय कय अजततत्र् ितरे में ढ़दियई दे रहय
है ।
प्रश्न- 8 कवव के अनुसयर कोई बयत पेचीिय कैसे हो जयती हैं?
उत्तर- कवर् कहतय है कक िब अपऩी बयत को सहि रूप से न कहकर तोड-मरोडकर ्य घम
ु य-किरयकर कहने कय प्र्यस

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कक्य ियतय है तो बयत उिझत़ी चिी ियत़ी है । ऐस़ी बयतों के अथव श्रोतय ्य पयठक समझ नहीां पयतय। र्ह मनोरां िन
तो पय सकतय है , परां तु कवर् के भयर्ों को समझने में असमथव होतय है । इस तरीके से बयत पेच़ीदय हो ियत़ी है ।
प्रश्न- 9 प्रशंसय कय व्क्तत पर त्य प्रियव पितय हैं? ‘बयत सीधी थी पर’ कववतय के आधयर पर बतयइए।
उत्तर- प्रशांसय से व््जक्त तर््ां को सही र् उच्च कोढ़ट कय मयनने िगतय है । र्ह गित-सही कय ननणव् नहीां कर पयतय।
उसकय वर्र्ेक कांु ढ़ठत हो ियतय है । कवर्तय में प्रशांसय लमिने के कयरण कवर् अपऩी सहि बयत को शब्दों के ियि में
उिझय दे तय है । िित: उसके भयर् िनतय तक नहीां पहुाँच पयते।
प्रश्न- 10 ‘बयत स़ीि़ी थ़ी पर’ कवर्तय में भयषय के वर्ष् में व््ांग्् करके कवर् क््य लसदि करनय चयहतय है ?
उत्तर- ‘बयत स़ीि़ी थ़ी पर’ कवर्तय में कवर् ने भयषय के वर्ष् में व््ांग्् करके ्ह लसदि करनय चयहय है कक िोग ककस़ी
बयत को कहने के िम में भयषय को स़ीिे, सरि और सहि शब्दों में न कहकर तोड-मरोडकर, उिट-पिटकर, शब्दों को
घुमय-किरयकर कहते हैं, जिससे भयषय जक्िष्ट होत़ी ियत़ी है और बयत बनने की बिय् बबगडत़ी और उिझिी चिी
ियत़ी है । इससे हमयरय कथ्् और भ़ी िढ़टि होतय ियतय है क््ोंकक बयत सरि बनने की िगह पेच़ीदी बन ियत़ी है ।

कैमरे में बंि अपयठहज - रघुवीर सहय्

प्रश्न- 1 कववतय में कु् पंक्तत्यँ कोष्िकों में रखी गई हैं। इनकय त्य औथचत्् है?
उत्तर- कवर् ने कुछ पांजक्त्याँ कोष्ठकों में रि़ी हैं। ्े कोष्ठक कवर् के मख्
ु ् भयर् को व््क्त करते हैं। इनमें लिि़ी
पांजक्त्ों के मयध््म से अिग-अिग िोगों को सांबोगित कक्य ग्य है । ्े एक तरह से सांचयिन करने के लिए हैं;
िैस-े
कैमरयमैन के भलए-
• कैमरय ढ़दियओ इसे बडय-बडय
• कैमरय ……. की कीमत है ।
िशथकों के भलए
• हम िुद इशयरे से बतयएाँगे क््य ऐसय?
• ्ह प्रश्न पछ
ू य नहीां ियएगय
अपंग व्क्तत के भलए
• र्ह अर्सर िो दें गे ?
• बस थोड़ी कसर रह गई।
्े कोष्ठक कवर्तय के मुख्् उददे श्् को अलभव््क्त करने में सहय्क होते हैं।
प्रश्न- 2 ‘कैमरे में बंि अपयठहज’ करुणय के मख
ु ौटे में त्पी क्रूरतय की कववतय है -ववचयर कीक्जए।
उत्तर- ्ह कवर्तय मयनऱ्ी् करुणय तो प्रततुत करत़ी ही है सयथ ही इस कवर्तय में उन िोगों की बनयर्टी करुणय कय
र्णवन भ़ी लमितय है िो दि
ु दररद्रतय को बेचकर ्श प्रयप्त करनय चयहते हैं। एक अपयढ़हि व््जक्त के सयथ झठ
ू ी
सहयनुभनू त ितयकर उसकी करुणय कय सौदय करनय चयहते हैं। एक अपयढ़हि की करुणय को पैसे के लिए टी.ऱ्ी. पर
दशयवनय र्यततर् में िूरतय की चरमस़ीमय है ।
प्रश्न- 3 ‘हम समथथ शक्ततवयन और हम एक िब
ु ल
थ को लयएँगे’ पंक्तत के मयध््म से कवव ने त्य व्ंग्् कक्य है ?
उत्तर- ‘हम समथथ शक्ततमयन’ पांजक्त के मयध््म से म़ीडड्य की तयकत र् कय्विम सांचयिकों की मयनलसकतय कय पतय
चितय है । म़ीडड्य कम़ी ्य म़ीडड्य-सांचयिक अपने प्रचयर-प्रसयर की तयकत के कयरण ककस़ी कय भ़ी मियक बनय सकते
हैं तथय ककस़ी को भ़ी ऩीचे गगरय सकते हैं। चैनि के मन
ु यफ़े के लिए सांचयिक ककस़ी की करुणय को भ़ी बेच सकते हैं।
कय्विम कय ननमयवण र् प्रततुनत सांचयिकों की मिी से होतय है । ‘हम एक िब
ु ल
थ को लयएँग’े पांजक्त में ियचयरी कय भयर्
है । म़ीडड्य के सयमने आने र्यिय व््जक्त कमिोर होतय है । म़ीडड्य के अटपटे प्रश्नों से सांतुलित व््जक्त भ़ी वर्चलित
हो ियतय है । अपांग ्य कमिोर व््जक्त तो रोने िगतय है । ्ह सब कुछ उसे कय्विम-सांचयिक की इच्छयनस
ु यर करनय
होतय है ।

87
प्रश्न- 4 ्ठि शयरीररक रूप से चुनौती कय सयमनय कर रहे व्क्तत और िशथक िोनों एक सयथ रोने लगें गे? तो उससे
प्रश्नकतयथ कय कौन-सय उदिे श्् पूरय होगय?
उत्तर- ्ढ़द सयक्षयत्कयर दे ने र्यिय अपांग व््जक्त और दशवक दोनों एक सयथ रो दें गे तो प्रश्नकतयव सहयनुभूनत प्रयप्त करने
में सिि हो ियएगय। उसकय ्ह भ़ी उददे श्् पूरय हो ियएगय कक हमने सयमयजिक कय्विम ढ़दिय्य है । एक ऐसय
कय्विम जिसमें अपांग व््जक्त की व््थय कय मयलमवक गचत्रण हुआ है । उस व््जक्त की सोच और र्ेदनय कय हू-ब-हू गचत्र
हमने ढ़दिय्य है ।
प्रश्न- 5 ‘परिे पर वतत की कीमत है ’ कहकर कवव ने पूरे सयक्षयत्कयर के प्रतत अपनय नजरर्य ककस रूप में रखय है ?
उत्तर- इस पांजक्त के मयध््म से कवर् ने परू े सयक्षयत्कयर के प्रनत व््यर्सयन्क निरर्य प्रततत
ु कक्य है । परदे पर िो
कय्विम ढ़दिय्य ियतय है , उसकी कीमत सम् के अनुसयर होत़ी है । दरू दशवन र् कय्विम-सांचयिक को िनतय के ढ़हत
्य प़ीडय से कोई मतिब नहीां होतय। र्े अपने कय्विम को कम-से-कम सम् में िोकवप्र् करनय चयहते हैं। अपांग की
प़ीडय को कम करने की बिय् अगिक करके ढ़दिय्य ियतय है तयकक करुणय को ‘नकदी’ में बदिय िय सके। सांचयिकों
की सहयनुभूनत भ़ी बनयर्टी होत़ी है ।
प्रश्न 6 शयरीररक चन
ु ौती कय सयमनय कर रहे ककसी भमत्र कय पररच् ककस तरह करयनय चयठहए?
उत्तर- शयरीररक चुनौत़ी कय सयमनय कर रहे लमत्र कय पररच् करते सम् उसकी अपांगतय कय मियक नहीां उडयनय चयढ़हए
और न ही उसकी अपांगतय कय एहसयस ढ़दियनय चयढ़हए। िोगों से उसकी िबू ब्ों के वर्ष् में बतयनय चयढ़हए और अपऩी
लमत्रतय को महत्त्र् दे नय चयढ़हए है । बचपन की बयतों कय जिि करते हुए उसकी प्रशांसय करऩी चयढ़हए। पियई और तकूि
की अन्् गनतवर्गि्ों में उसकी उपिजब्ि के बयरे में बतयनय चयढ़हए।
प्रश्न- 7 ‘सयमयक्जक उदिे श्् से ्ुतत’ ऐसे कय्थक्रम को िे खकर आपको कैसय लगेगय?
उत्तर- सयमयजिक उददे श्् से ्ुक्त ऐसे कय्विम को दे िकर मझ ु े बहुत दि
ु होगय। ऐसे कय्विम ककस़ी की सहय्तय
नहीां करते। ्े लसफ़व अपऩी िोकवप्र्तय बियनय चयहते हैं तयकक र्े अगिक से अगिक िन कमय सकें। ऐसे कय्विम
बनयने र्यिों कय उददे श्् समयि-सेर्य नहीां होतय। र्े मयत्र सांर्ेदनय बेचनय ियनते हैं। ऐसे कय्विमों पर तरु ां त रोक िगयऩी
चयढ़हए। दशवकों को भ़ी ऐसे कय्विमों को लसरे से नकयर दे नय चयढ़हए।
प्रश्न- 8 कय्विम को सिि बनयने के लिए प्रश्नकतयव क््य सोचतय है ?
उत्तर- प्रश्नकतयव सोचतय है कक ्ढ़द अपांग व््जक्त के सयथ-सयथ दशवक भ़ी रो दें गे तो उनकी सहयनुभूनत हमयरे चैनि को
लमि ियएग़ी। तब हम इस़ी प्रकयर के और कय्विम ढ़दिय्य करें गे, जिस कयरण हमें िुब िय्दय लमिेगय। हमयरय
चैनि ढ़दन दग
ु ुऩी रयत चौगन
ु ़ी तरक्की करतय ियएगय। िोग हर सम् हमयरे चैनि को दे िेंगे।
प्रश्न-9 प्रश्नकतयथ अपयठहज व्क्तत को उसके अपयठहजपन कय अहसयस त्ों ठिलयनय चयहतय है ?
उत्तर- प्रश्नकतयव चयहतय है कक र्ह रो दे तयकक उसकय रोनय दे िकर िोगों की करुणय ियग उठे । ्ढ़द ऐसय हो ग्य तो
कय्विम ननजश्चत रूप से सिि हो ियएगय। इस़ीलिए र्ह अपयढ़हि व््जक्त को उसके अपयढ़हिपन कय अहसयस ढ़दियतय
है ।
प्रश्न-10 ‘्ह अवसर खो िें ग’े पंक्तत से त्य आश् है?
उत्तर- प्रश्नकतयव अपयढ़हि व््जक्त से कई तरह के प्रश्न करतय है । ्ह उससे पूछतय है कक आपको अपयढ़हि होकर कैसय
िगतय है । इस प्रश्न कय उत्तर सोचकर बतयइए। ्ढ़द आपने इस सम् इस प्रश्न कय उत्तर नहीां ढ़द्य तो आप ियिों
दशवकों के सयमने अपनय अनभ
ु र् बतयने कय सन
ु हरय अर्सर िो दें गे।
प्रश्न-11 ‘कैमरे में बंि अपयठहज’ कववतय कय कयव्-सौंि्थ बतयइए।
उत्तर- प्रततुत कवर्तय में म़ीडड्य के िोगों पर व््ांग्् कक्य ग्य है । म़ीडड्य के र्यिों को दनु न्य के दःु ि-ददव से कुछ
िेनय-दे नय है । टे िीवर्िन पर अपांग व््जक्त को दशवकों के सयमने प्रततत
ु करके र्े अपनय कयरोबयर और अपऩी टीआरप़ी
बियते हैं। कवर् ने कुछ वर्शेष शब्दों कय वर्शेष अथों में प्र्ोग कक्य है । इस पद कय प्रत््ेक शब्द अथव की गांभ़ीरतय
लिए हुए है । कवर् ने भयर्ों के अनुकूि अिांकयरों कय सद
ुां र एर्ां सयथवक प्र्ोग कक्य है । अनुप्रयस, पुनरुजक्तप्रकयश, प्रश्न,

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उदयहरण आढ़द अिांकयरों कय तर्यभयवर्क प्र्ोग हुआ है । अिांकयर ्ोिनय की दृजष्ट से कवर्तय अनठ ू ी बन पड़ी है ।
दै ननक बोिचयि के शब्दों से ्ुक्त सहि िड़ीबोिी कय प्र्ोग कक्य ग्य है । कवर्तय मक्
ु त छां द में रच़ी गई है ।

उषय – शमशेर बहयिरु भसंह

प्रश्न-1 कववतय के ककन उपमयनों को िे खकर ्ह कहय जय सकतय है कक ‘उषय’ कववतय गयँव की सुबह कय गततशील
शब्ि-थचत्र है ?
उत्तर- कवर् के ऩीिे शांि, रयि से िीपय हुआ ग़ीिय चौकय, लसि, तिेट, ऩीिय िि और गोरी ्ुर्त़ी की मिमिी दे ह
आढ़द उपमयनों को दे िकर ्ह कहय िय सकतय है कक उषय कवर्तय गयाँर् की सुबह कय गनतश़ीि शब्द गचत्र है । इन्हीां
उपमयनों के मयध््म से कवर् ने सू्ोद् कय गनतश़ीि र्णवन कक्य है । ्े उपमयन भ़ी कवर्तय को गनत प्रदयन करते हैं।
प्रश्न-2 ऩ्ी कवर्तय में कोष्ठक, वर्रयम-गचह्नों और पांजक्त्ों के ब़ीच कय तथयन भ़ी कवर्तय को अथव दे तय है । उप्क्
ुव त
पांजक्त्ों में कोष्टकों से कवर्तय में वर्शेष अथव पैदय हुआ है , कैसे ?
उत्तर- ऩ्ी कवर्तय के कवर््ों ने नए-नए प्र्ोगों से तर््ां को अिग ढ़दियनय चयहय है । शमशेर बहयदरु लसांह ने कोष्ठकों
कय प्र्ोग कक्य है । कोष्ठकों में दी गई सयमग्ऱी मुख्् सयमग्ऱी से सांबगां ित है तथय पूरक कय कयम करत़ी है। र्ह कथन
को तपष्टतय प्रदयन करत़ी है । ्हयाँ (अभ़ी ग़ीिय पडय है ) र्यक्् कोष्ठकों में ढ़द्य ग्य है िो प्रयत:कयिीन सुबह की नम़ी
र् तयिग़ी को व््क्त करतय है । कोष्ठकों से पहिे के र्यक्् से कयम की पण
ू त
व य कय पतय तो चितय है , परां तु जतथनत
तपष्ट नहीां होत़ी। ग़ीिय पडने से कथन अगिक प्रभयर्पण
ू व बन ियतय है ।
प्रश्न-3 अपने पररर्ेश के उपमयनों कय प्र्ोग करते हुए सू्ोद् और सू्जतत कय शब्द-गचत्र ि़ीांगचए।
उत्तर- सबु ह के सम् स् ू व उढ़दत होते सम् ऐसय िगतय है मयनो कोई ऩीिे सरोर्र में तनयन करके बयहर आ रहय हो।
सू्व की ककरणें ि़ीरे -ि़ीरे आकयश पर छय ियत़ी हैं। ओस के कणों पर सू्व की ककरणें अदभुत दृश्् उत्पन्न करत़ी हैं
तथय प्रकृनत के दृश्् पि-पि में बदिते हैं। पक्ष़ी चहचहयने िगते हैं। पशुओां र् मयनर्ों में ऩ्ी शजक्त कय सांचयर हो
ियतय है । ि़ीर्न सि़ीर् हो उठतय है । िैस-े िैसे शयम होत़ी है , सू्व एक थके हुए पगथक की भयाँनत ि़ीम़ी गनत से अतत
होने िगतय है । पक्ष़ी अपने घरों की तरि िौटने िगते हैं। सू्व कय रां ग ियि हो ियतय है मयनो र्ह वर्श्रयम करने िय
रहय हो। सयरय ि़ीर्-िगत भ़ी आरयम करने की तै्यरी शरू
ु कर दे तय है ।
प्रश्न-4 सू्ोद् से पहिे आकयश में क््य-क््य पररर्तवन होते हैं? ‘उषय’ कवर्तय के आियर पर बतयइए।
उत्तर- सू्ोद् से पहिे आकयश कय रां ग शांि िैसय ऩीिय थय, उसके बयद आकयश रयि से िीपे चौके िैसय हो ग्य।
सब
ु ह की नम़ी के कयरण र्ह ग़ीिय प्रत़ीत होतय है । स्
ू व की प्रयरां लभक ककरणों से आकयश ऐसय िगय मयनो कयिी लसि
पर थोडय ियि केसर डयिकर उसे िो ढ़द्य ग्य हो ्य किर कयिी तिेट पर ियि िडड्य लमट्टी मि दी गई हो।
सू्ोद् के सम् सू्व कय प्रनतबबांब ऐसय िगतय है िैसे ऩीिे तर्च्छ िि में ककस़ी गोरी ्ुर्त़ी कय प्रनतबबांब खझिलमिय
रहय हो।
प्रश्न-5 ‘उषय’ कवर्तय के आियर पर उस ियद ू को तपष्ट कीजिए िो सू्ोद् के सयथ टूट ियतय है ।
उत्तर- स्
ू ोद् से पर्
ू व उषय कय दृश्् अत््ांत आकषवक होतय है । भोर के सम् स्
ू व की ककरणें ियद ू के समयन िगत़ी हैं।
इस सम् आकयश कय सौंद्व क्षण-क्षण में पररर्नतवत होतय रहतय है । ्ह उषय कय ियद ू है । ऩीिे आकयश कय शांि-सय
पवर्त्र होनय, कयिी लसि पर केसर डयिकर िोनय, कयिी तिेट पर ियि िडड्य मि दे नय, ऩीिे िि में गोरी नयन्कय
कय खझिलमियतय प्रनतबबांब आढ़द दृश्् उषय के ियद ू के समयन िगते हैं। सू्ोद् होने के सयथ ही ्े दृश्् समयप्त हो
ज़यते हैं।
प्रश्न-6 स्लेट पर ्य लयल खड़ि्य चयक मल िी हो ककसी ने - इसकय आश् स्पष्ट कीक्जए।
उत्तर- कवर् कहतय है कक सब
ु ह के सम् अाँिेरय होने के कयरण आकयश तिेट के समयन िगतय है । उस सम् सू्व की
ियलिमय-्क्
ु त ककरणों से ऐसय िगतय है िैसे ककस़ी ने कयिी तिेट पर ियि िडड्य लमट्टी मि ढ़द्य हो। कवर्
आकयश में उभरे ियि-ियि िब्बों के बयरे में बतयनय चयहतय है ।

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प्रश्न-7 िोर के नभ को ‘ रयि से िीपय, ग़ीिय चौकय ‘ की सांज्ञय दी गई है । क््ों ?
उत्तर- कवर् कहतय है कक भोर के सम् ओस के कयरण आकयश नम़ी्ुक्त र् िुांििय होतय है । रयि से लिपय हुआ चौकय
भ़ी मटमैिे रां ग कय होतय है। दोनों कय रां ग िगभग एक िैसय होने के कयरण कवर् ने भोर के नभ को ‘रयि से िीपय,
ग़ीिय चौकय’ की सांज्ञय दी है । दस
ू रे , चौके को िीपे ियने से र्ह तर्च्छ हो ियतय है । इस़ी तरह भोर कय नभ भ़ी पवर्त्र
होतय है ।
प्रश्न-8 लसि और तिेट कय उदयहयरण दे कर कवर् ने आकयश के रां ग के बयरे में क््य कहय है ?
उत्तर- कवर् ने लसि और तिेट के रां ग की समयनतय आकयश के रां ग से की है । भोर के सम् आकयश कय रां ग गहरय
ऩीिय-कयिय होतय है और उसमें थोड़ी-थोड़ी स्
ू ोद् की ियलिमय लमिी हुई होत़ी है ।
प्रश्न-10 ‘उषय’ कववतय में िोर के नि की तुलनय ककससे की गई हैं और त्ों?
उत्तर- ‘उषय’ कवर्तय में प्रयत:कयिीन नभ की तुिनय रयि से िीपे गए ग़ीिे चौके से की गई है । इस सम् आकयश नम
एर्ां िुांििय होतय है । इसकय रां ग रयि से लिपे चल्
ू हे िैसय मटमैिय होतय है । जिस प्रकयर चूल्हय-चौकय सूिकर सयफ़ हो
ियतय है उस़ी प्रकयर कुछ दे र बयद आकयश भ़ी तर्च्छ एर्ां ननमवि हो ियतय है ।

कववतयवली, लक्ष्मण मूच््यथ और रयम कय ववलयप – तुलसीियस

प्रश्न-1 तल
ु सीियस के कववत्त के आधयर पर तत्कयलीन समयज की आथथथक ववषमतय पर प्रकयश डयभलए।
उत्तर- तुिस़ीदयस अपने ्ुग के स्रष्टय एर्ां द्रष्टय थे। उन्होंने अपने ्ुग की प्रत््ेक जतथनत को गहरयई से दे िय एर्ां
अनुभर् कक्य थय। िोगों के पयस चाँकू क िन की कम़ी थ़ी इसलिए र्े िन के लिए सभ़ी प्रकयर के अनैनतक कय्व करने
िग गए थे। उन्होंने अपने बेटय-बेटी तक बेचने शरू
ु कर ढ़दए तयकक कुछ पैसे लमि सकें। पेट की आग बझ
ु यने के लिए
हर अिमी और ऩीचय कय्व करने के लिए तै्यर रहते थे। िब ककसयन के पयस िेत़ी न हो और व््यपयरी के पयस
व््यपयर न हो तो ऐसय होनय तर्यभयवर्क है ।
प्रश्न-2 पेट की आग कय शमन ईश्वर (रयम) िक्तत कय मेघ ही कर सकतय है-तुलसी कय ्ह कयव्-सत्् त्य इस
सम् कय िी ्ुग सत्् है ? तकथसंगत उत्तर िीक्जए।
उत्तर- पेट की आग कय शमन ईश्र्र (रयम) भजक्त कय मेघ ही कर सकतय है - ति
ु स़ी कय ्ह कयव््-सत्् कुछ हद तक
इस सम् कय भ़ी ्ुग-सत्् हो सकतय है । ककां तु ्ढ़द आि व््जक्त ननष्ठय भयर्, मेहनत से कयम करे तो उसकी सभ़ी
समत्यओां कय समयियन हो ियतय है । ननष्ठय और पुरुषयथव-दोनों लमिकर ही मनुष्् के पेट की आग कय शमन कर
सकते हैं। दोनों में एक भ़ी पक्ष असांतलु ित होने पर र्यांनछत िि नहीां लमितय। अत: परु
ु षयथव की महत्तय हर ्ग
ु में रही
है और आगे भ़ी रहे ग़ी।
प्रश्न-3 धूत कहौ, अवधूत कहौ, रयजपूतु कहौ जोलहय लहय कहौ कोऊ
कयहू की बेटीसों बेटय न ब््यहब कयहूकी जयतत त्रबकयर न सोऊ।
इस सवै्य में ‘कयहू के बेटय सों बेटी न ब््यहब’ कहते तो सयमयक्जक अथथ में त्य पररवतथन आतय?
उत्तर- ति
ु स़ीदयस ियनत-पयाँनत से दरू थे। र्े इनमें वर्श्र्यस नहीां रिते थे। उनके अनस
ु यर व््जक्त के कमव ही उसकी
ियनत बनयते हैं। पुरुष प्रियन समयि में वर्र्यह होने पर िडकी की ियनत ्य िमव िडके के ियनत ्य िमव के अनुसयर
हो ियत़ी है । ्ढ़द र्े कयहू के बेटयसों बेटी न ब््यहब कहते हैं तो उसकय सयमयजिक अथव में ्ही पररर्तवन होतय कक बेटय
्य बेटी में उन्हें कोई अांतर नहीां ढ़दियई दे तय। ्द्वप उन्हें बेटी ्य बेटय को ब््यहनय नहीां है , िेककन र्े दोनों की
बरयबर कद्र करते हैं।
प्रश्न-4 धत
ू कहौं ’ वयले ्ं ि में ऊपर से सरल व तनरीह ठिखयई पिने वयले तल
ु सी की िीतरी असभल्त एक
स्वयभिमयनी ितत हृि् की हैं। इससे आप कहयँ तक सहमत हैं ?
उत्तर- तुिस़ीदयस ने इस छां द में अपने तर्यलभमयन को व््क्त कक्य है । र्े सच्चे रयमभक्त हैं तथय उन्हीां के प्रनत
समवपवत हैं। उन्होंने ककस़ी भ़ी कीमत पर अपनय तर्यलभमयन कम नहीां होने ढ़द्य और एकननष्ठ भयर् से रयम की
अरयिनय की। समयि के कटयक्षों कय उन पर कोई प्रभयर् नहीां है । उनकय ्ह कहनय कक उन्हें ककस़ी के सयथ कोई

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र्ैर्यढ़हक सांबांि तथयवपत नहीां करनय, समयि के मुाँह पर तमयचय है । र्े ककस़ी के आश्र् में भ़ी नहीां रहते। र्े लभक्षयर्वृ त्त
से अपनय ि़ीर्न-ननर्यवह करते हैं तथय मजतिद में ियकर सो ियते हैं। र्े ककस़ी की परर्यह नहीां करते तथय ककस़ी से
िेने-दे ने कय व््र्हयर नहीां रिते। र्े बयहर से स़ीिे हैं, परां तु हृद् में तर्यलभमयऩी भयर् को नछपयए हुए हैं।
प्रश्न-5 भ्रयतश
ृ ोक में हुई रयम की िशय को कवव ने प्रिु की नर-लीलय की अपेक्षय सच्ची मयनवी् अनुिूतत के रूप में
रचय है । त्य आप इससे सहमत हैं? तकथपण
ू थ उत्तर िीक्जए।
उत्तर- िक्ष्मण के मूगचवछत होने पर रयम को जिस तरह वर्ियप करते ढ़दिय्य ग्य है , र्ह ईश्र्री् िीिय की बिय्
आम व््जक्त कय वर्ियप अगिक िगतय है । रयम ने अनेक ऐस़ी बयतें कही हैं िो आम व््जक्त ही कहतय है , िैस-े ्ढ़द
मझ
ु े तम्
ु हयरे वर््ोग कय पहिे पतय होतय तो मैं तम्
ु हें अपने सयथ नहीां ियतय। मैं अ्ोध््य ियकर पररर्यरिनों को क््य
मुाँह ढ़दियऊाँगय, मयतय को क््य िर्यब दाँ ग
ू य आढ़द। ्े बयतें ईश्र्री् व््जक्तत्र् र्यिय नहीां कह सकतय क््ोंकक र्ह तो सब
कुछ पहिे से ही ियनतय है । उसे कय्ों कय कयरण र् पररणयम भ़ी पतय होतय है । र्ह इस तरह शोक भ़ी नहीां व््क्त
करतय। रयम दर्यरय िक्ष्मण के बबनय िुद को अिूरय समझनय आढ़द वर्चयर भ़ी आम व््जक्त कर सकतय है । इस तरह
कवर् ने रयम को एक आम व््जक्त की तरह प्रियप करते हुए ढ़दिय्य है िो उसकी सच्च़ी मयनऱ्ी् अनुभूनत के
अनरू
ु प ही है । हम इस बयत से सहमत हैं कक ्ह वर्ियप रयम की नर-िीिय की अपेक्षय मयनऱ्ी् अनभ
ु नू त अगिक है ।
प्रश्न-6 शोकग्रस्त मयहौल में हनुमयन के अवतरण को करुण रस के बीच वीर रस कय आववियथव त्ों कहय ग्य हैं?
उत्तर- िब सभ़ी िोग िक्ष्मण के वर््ोग में करुणय में डूबे थे तो हनुमयन ने सयहस कक्य। उन्होंने र्ैद् दर्यरय बतयई
गई सांि़ीर्ऩी ियने कय प्रण कक्य। करुणय के इस र्यतयर्रण में हनम
ु यन कय ्ह प्रण सभ़ी के मन में ऱ्ीर रस कय
सांचयर कर ग्य। सभ़ी र्यनरों और अन्् िोगों को िगने िगय कक अब िक्ष्मण की मूच्र्छय टूट ियएग़ी। इस़ीलिए कवर्
ने हनुमयन के अर्तरण को ऱ्ीर रस कय आवर्भयवर् बतय्य है ।
प्रश्न-7 जैहउँ अवध कवन महु ु ँ लयई। नयरर हे तु वप्र् ियइ गवयई।
बरु अपजस सहतेऊँ जग मयहीं। नयरर हयतन त्रबसेष ्तत नयहीं।
ियई के शोक में डूबे रयम के इस प्रलयप-वचन में स्त्री के प्रतत कैसय सयमयक्जक दृक्ष्टकोण संियववत हैं?
उत्तर- भयई के शोक में डूबे रयम ने कहय कक मैं अर्ि क््य मह
ुाँ िेकर ियऊाँगय? र्हयाँ िोग कहें गे कक पत्ऩी के लिए वप्र्
भयई को िो ढ़द्य। र्े कहते हैं कक नयरी की रक्षय न कर पयने कय अप्शतय में सह िेतय, ककन्तु भयई की क्षनत कय
अप्श सहनय मुजश्कि है । नयरी की क्षनत कोई वर्शेष क्षनत नहीां है । रयम के इस कथन से नयरी की ननम्न जतथनत कय
पतय चितय है ।उस सम् परु
ु ष-प्रियन समयि थय। नयरी को पुरुष के बरयबर अगिकयर नहीां थे। उसे केर्ि उपभोग की
च़ीि समझय ियतय थय। उसे असहय् र् ननबवि समझकर उसके आत्मसम्मयन को चोट पहुाँचयई ियत़ी थ़ी।
प्रश्न-8 कयभलियस के ‘रघुवंश’ महयकयव् में पत्नी (इंिम
ु त) के मत्ृ ्ु-शोक पर अज तथय तनरयलय की ‘सरोज-स्मतृ त’ में
पुत्री (सरोज) के मत्ृ ्ु-शोक पर वपतय के करुण उदगयर तनकले हैं। उनसे भ्रयतश
ृ ोक में डूबे रयम के इस ववलयप की
तल
ु नय करें ।
उत्तर- रघुर्ांश महयकयव्् में पत्ऩी की मत्ृ ्ु पर पनत कय शोक करनय तर्यभयवर्क है । ‘अि’ इांदम
ु त़ी की अचयनक हुई
मत्ृ ्ु से शोकग्रतत हो ियतय है । उसे उसके सयथ बबतयए हर क्षण की ्यद आत़ी है । र्ह वपछिी बयतों को ्यद करके
रोतय है , प्रियप करतय है । ्ही जतथनत ननरयिय ि़ी की है । अपऩी एकमयत्र पत्र
ु ़ी सरोि की मत्ृ ्ु होने पर ननरयिय ि़ी को
गहरय आघयत िगतय है । ननरयिय ि़ी ि़ीर्नभर ्ही पछतयर्य करते रहे कक उन्होंने अपऩी पुत्ऱी के लिए कुछ नहीां
कक्य। उसकय ियिन-पयिन भ़ी न कर सके। िक्ष्मण के मनू छव त हो ियने पर रयम कय शोक भ़ी इस़ी प्रकयर कय है । र्े
कहते हैं कक मैंने तत्ऱी के लिए अपने भयई को िो ढ़द्य, िबकक तत्ऱी के िोने से ज््यदय हयनन नहीां होत़ी। भयई के
घय्ि होने से मेरय ि़ीर्न भ़ी िगभग ित्म-सय हो ग्य है ।
प्रश्न-9 ‘पेट ही को ्चत, बेचत बेटय-बेटकी’तल
ु सी के ्ग
ु कय ही नहीं आज के ्ग
ु कय िी सत्् हैं/ िख
ु मरी में
ककसयनों की आत्महत््य और संतयनों (खयसकर बेठट्ों) को िी बेच डयलने की हृि्-ववियरक घटनयएँ हमयरे िे श में
घटती रही हैं। वतमयन पररक्स्थतत्ों और तुलसी के ्ग
ु की तुलनय करें ।
उत्तर- गरीब़ी के कयरण तुिस़ीदयस के ्ुग में िोग अपने बेटय-बेटी को बेच दे ते थे। आि के ्ुग में भ़ी ऐस़ी घटनयएाँ

91
घढ़टत होत़ी है । ककसयन आत्महत््य कर िेते हैं तो कुछ िोग अपऩी बेढ़ट्ों को भ़ी बेच दे ते हैं। अत््गिक गरीब र्
वपछडे क्षेत्रों में ्ह जतथनत आि भ़ी ्थयर्त है । तुिस़ी तथय आि के सम् में अांतर ्ह है कक पहिे आम व््जक्त
मुख््त्य कृवष पर ननभवर थय, आि आि़ीवर्कय के लिए अनेक रयतते िुि गए हैं। आि गरीब उद्ोग-िांिों में मिदरू ी
करके िब चि सकतय है पांतुकटु सब बयह है ककगबकीदतय में इस ्ु” और र्यतवमयन में बयहु अांत नयह आ्य हैं ।
प्रश्न-10 तल
ु सी के ्ग
ु की बेकयरी के त्य कयरण हो सकते हैं ? आज की बेकयरी की समस््य के कयरणों के सयथ उसे
भमलयकर कक्षय में पररचचय करें ।
उत्तर- तुिस़ी ्ुग की बेकयरी कय सबसे बडय कयरण गरीब़ी और भुिमरी थ़ी। िोगों के पयस इतनय िन नहीां थय कक र्े
कोई रोिगयर कर पयते। इस़ी कयरण िोग बेकयर होते चिे गए। ्ही कयरण आि की बेकयरी कय भ़ी है । आि भ़ी
गरीब़ी है , भुिमरी है । िोगों को इन समत्यओां से मजु क्त नहीां लमित़ी, इस़ी कयरण बेरोिगयरी बित़ी िय रही है ।
प्रश्न-11 रयम कौशल््य के पुत्र थे और लक्ष्मण सभु मत्रय के। इस प्रकयर वे परस्पर सहोिर (एक ही मयँ के पेट से जन्मे)
नहीं थे। कफर, रयम ने उन्हें लक्ष्् करके ऐसय त्ों कहय—‘भमलह न जगत सहोिर भ्रयतय’2 इस पर ववचयर करें ।
उत्तर- रयम और िक्ष्मण भिे ही एक मयाँ से पैदय नहीां हुए थे, परां तु र्े एक ही वपतय दशरथ के पुत्र थे और हमेशय एक-
दस
ू रे के सयथ रहते थे। रयम अपऩी मयतयओां में कोई अांतर नहीां समझते थे। िक्ष्मण सदै र् परछयई की तरह रयम के
सयथ रहते थे। उनके िैसय त््यग सहोदर भयई भ़ी नहीां कर सकतय थय। इस़ी कयरण रयम ने कहय कक िक्ष्मण िैसय
सहोदर भयई सांसयर में दस
ू रय नहीां लमि सकतय।
प्रश्न-12 ्हयँ कवव तल
ु सी के िोहय, चौपयई, सोरिय, कववत, सवै्य-्े पयँच ्ि प्र्त
ु त हैं। इसी प्रकयर तल
ु सी सयठहत््
में और ्ि तथय कयव्-रूप आए हैं। ऐसे ्िों व कयव्-रूपों की सच
ू ी बनयएँ।
उत्तर- तुिस़ी सयढ़हत्् में अन्् छां दों कय भ़ी प्र्ोग हुआ है िो ननम्नलिखित हैं- बरर्ै, छप्प्, हररग़ीनतकय। तुिस़ी ने
इसके अनतररक्त जिन छां दों कय प्र्ोग कक्य है उनमें छप्प्, झूिनय मतांग्द, घनयक्षरी र्रर्ै, हररग़ीनतकय, चौपय््य,
बत्रभांग़ी, प्रमयखणकय तोटक और तोमर आढ़द के नयम उल्िेिऩी् हैं। कयव्् रूप-ति
ु स़ी ने महयकयव््, प्रबांि कयव्् और
मक्
ु तक कयव््ों की रचनय की है । इस़ीलिए अ्ोध््यलसांह उपयध््य् लििते हैं कक “कवर्तय करके ति
ु स़ी न िसे, कवर्तय
िस़ी पय तुिस़ी की किय।”
प्रश्न-13 तुलसी ने अपने ्ग
ु की क्जस िि
ु थ शय कय थचत्रण कक्य हैं, उसकय वणथन अपने शब्िों में कीक्जए।
उत्तर- तुिस़ीदयस के ्ुग में िनसयमयन्् के पयस आि़ीवर्कय के सयिन नहीां थे। ककसयन की िेत़ी चौपट रहत़ी थ़ी।
लभियरी को भ़ीि नहीां लमित़ी थ़ी। दयन-कय्व भ़ी बांद ही थय। व््यपयरी कय व््यपयर ठप थय। नौकरी भ़ी िोगों को नहीां
लमित़ी थ़ी। चयरों तरि बेरोिगयरी थ़ी। िोगों को समझ में नहीां आतय थय कक र्े कहयाँ ियएाँ क््य करें ?
प्रश्न-14 तुलसी के सम् के समयज के बयरे में बतयइए।
उत्तर- तुिस़ीदयस के सम् कय समयि मध्््ुग़ीन वर्चयरियरय कय थय। उस सम् बेरोिगयरी थ़ी तथय आम व््जक्त की
हयित द्ऩी् थ़ी। समयि में कोई नन्म-कयनन
ू नहीां थय। व््जक्त अपऩी भि
ू शयांत करने के लिए गित कय्व भ़ी
करते थे। ियलमवक कट्टरतय व््यप्त थ़ी। ियनत र् सांप्रदय् के बांिन कठोर थे। नयरी की दशय हीन थ़ी। उसकी हयनन को
वर्शेष नहीां मयनय ियतय थय।
प्रश्न-15 तुलसी ्ुग की आथथथक क्स्थतत कय अपने शब्िों में वणथन कीक्जए।
उत्तर- तुिस़ी के सम् आगथवक दशय िरयब थ़ी। ककसयन के पयस िेत़ी न थ़ी, व््यपयरी के पयस व््यपयर नहीां थय। ्हयाँ
तक कक लभियरी को भ़ीि भ़ी नहीां लमित़ी थ़ी। िोग ्ही सोचते रहते थे कक क््य करें , कहयाँ ियएाँ? र्े िन-प्रयजप्त के
उपय्ों के बयरे में सोचते थे। र्े अपऩी सांतयनों तक को बेच दे ते थे। भुिमरी कय सयम्रयज्् िैिय हुआ थय।
प्रश्न-16 लक्ष्मण के मथू चथ्त होने पर रयम त्य सोचने लगे?
उत्तर- िक्ष्मण शजक्तबयण िगने से मगू चवछत हो गए। ्ह दे िकर रयम भयर्क
ु हो गए तथय सोचने िगे कक पत्ऩी के
बयद अब भयई को िोने िय रहे हैं। केर्ि एक तत्ऱी के कयरण मेरय भयई आि मत्ृ ्ु की गोद में िय रहय है । ्ढ़द तत्ऱी
िो ियए तो कोई बड़ी हयनन नहीां होग़ी, परां तु भयई के िो ियने कय किांक ि़ीर्नभर मेरे मयथे पर रहे गय। र्े सयमयजिक
अप्श से घबरय रहे थे।

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प्रश्न-17 त्य तुलसी ्ुग की समस््यएँ वतथमयन में समयज में िी ववद्मयन हैं? अपने शब्िों में भलझखए।
उत्तर- तुिस़ी ने िगभग 500 र्षव पहिे िो कुछ कहय थय, र्ह आि भ़ी प्रयसांगगक है । उन्होंने अपने सम् की
मूल््हीनतय, नयरी की जतथनत, आगथवक दरु र्तथय कय गचत्रण कक्य है । इनमें अगिकतर समत्यएाँ आि भ़ी वर्द्मयन
हैं। आि भ़ी िोग ि़ीर्न-ननर्यवह के लिए गित-सही कय्व करते हैं। नयरी के प्रनत नकयरयत्मक सोच आि भ़ी वर्द्मयन
है । अभ़ी भ़ी ियनत र् िमव के नयम पर भेदभयर् होतय है । इसके वर्परीत, कृवष, र्यखणज््, रोिगयर की जतथनत आढ़द में
बहुत बदियर् आ्य है । इसके बयद भ़ी तुिस़ी ्ुग की अनेक समत्यएाँ आि भ़ी हमयरे समयि में वर्द्मयन हैं।
प्रश्न-18 कंु िकरण ने रयवण को ककस सच्चयई कय आइनय ठिखय्य?
उत्तर- कांु भकरण रयर्ण कय भयई थय। र्ह िांबे सम् तक सोतय रहतय थय। उसकय शरीर वर्शयि थय। दे िने में ऐसय
िगतय थय मयनो कयि आकर बैठ ग्य हो। र्ह मुाँहिट तथय तपष्ट र्क्तय थय। र्ह रयर्ण से पछ
ू तय है कक तुम्हयरे मुाँह
क््ों सूिे हुए हैं? रयर्ण की बयत सुनने पर र्ह रयर्ण को िटकयर िगयतय है तथय उसे कहतय है कक अब तम्
ु हें कोई
नहीां बचय सकतय। इस प्रकयर उसने रयर्ण को उसके वर्नयश सांबांि़ी सच्चयई कय आईनय ढ़दिय्य।

्ोटय मेरय खेत, बगुलों के पंख- उमयशंकर जोशी

प्रश्न- 1 ्ोटे चौकोने खेत की कयगज़ कय पन्नय कहने में त्य अथथ तनठहत है ?
उत्तर- छोटे चौकोने िेत को कयगज़ कय पन्नय कहने में ्ही अथव ननढ़हत है कक कवर् ने कवर् कमव को िेत में ब़ीि
रोपने की तरह मयनय है । इसके मयध््म से कवर् बतयनय चयहतय है कक कवर्तय रचनय सरि कय्व नहीां है । जिस प्रकयर
िेत में ब़ीि बोने से िेकर फ़सि कयटने तक कयफ़ी मेहनत करऩी पडत़ी है , उस़ी प्रकयर कवर्तय रचने के लिए अनेक
प्रकयर से मेहनत करऩी पडत़ी है ।
प्रश्न- 2 रचनय के संििथ में ‘अंधि’ और ‘बीज’ त्य है?
उत्तर- रचनय के सांदभव में ‘अांिड’ कय अथव है -भयर्नय कय आर्ेग और ‘ब़ीि’ कय अथव है -वर्चयर र् अलभव््जक्त। भयर्नय
के आर्ेग से कवर् के मन में वर्चयर कय उद् होतय है तथय रचनय प्रकट होत़ी है ।
प्रश्न- 3 ‘रस कय अक्ष् पयत्र’ से कवव ने रचनय कमथ की ककन ववशेषतयओं की ओर इंथगत कक्य है ?
उत्तर- अक्ष् कय अथव है - नष्ट न होने र्यिय। कवर्तय कय रस इस़ी तरह कय होतय है । रस कय अक्ष् पयत्र कभ़ी भ़ी
ियिी नहीां होतय। र्ह जितनय बयाँटय ियतय है , उतनय ही भरतय ियतय है । ्ह रस गचरकयि तक आनांद दे तय है । िेत कय
अनयि तो ित्म हो सकतय है , िेककन कयव्् कय रस कभ़ी ित्म नहीां होतय। कवर्तय रूप़ी रस अनांतकयि तक बहतय है ।
कवर्तय रूप़ी अक्ष् पयत्र हमेशय भरय रहतय है ।
प्रश्न- 4 व्यख््य करें -
(1) शब्द के अांकुर िूटे
पल्िर्-पुष्पों से नलमत हुआ वर्शेष।
उत्तर- कवर् कहनय चयहतय है कक िब र्ह छोटे िेतरूप़ी कयगि के पन्ने पर वर्चयर और अलभव््जक्त कय ब़ीि बोतय है
तो र्ह कल्पनय के सहयरे उगतय है । उसमें शब्दरूप़ी अांकुर िूटते हैं। किर उनमें वर्शेष भयर्रूप़ी पष्ु प िगते हैं। इस
प्रकयर भयर्ों र् कल्पनय से र्ह वर्चयर वर्कलसत होतय है ।
(2) रोपयई क्षण की,
कटयई अनांततय की
िुटते रहने से ज़रय भ़ी नहीां कम होत़ी।
उत्तर- कवर् कहतय है कक कवर्-कमव में रोपयई क्षण भर की होत़ी है अथयवत भयर् तो क्षण-वर्शेष में बो्य ियतय है । उस
भयर् से िो रचनय सयमने आत़ी है , र्ह अनांतकयि तक िोगों को आनांद दे त़ी है । इस िसि की कटयई अनांतकयि तक
चित़ी है । इसके रस को ककतनय भ़ी िूटय ियए, र्ह कम नहीां होतय। इस प्रकयर कवर्तय कयिि़्ी होत़ी है ।
प्रश्न- 5 ‘्ोटय मेरय खेत’ कववतय में कवव ने खेत को रस कय अक्ष् पयत्र त्ों कहय है ?
उत्तर- कवर् ने िेत को रस कय अक्ष् पयत्र इसलिए कहय है क््ोंकक अक्ष् पयत्र में रस कभ़ी ित्म नहीां होतय। उसके

93
रस को जितनय बयाँटय ियतय है , उतनय ही र्ह भरतय ियतय है । िेत की िसि कट ियत़ी है , परां तु र्ह हर र्षव किर उग
आत़ी है । कवर्तय कय रस भ़ी गचरकयि तक आनांद दे तय है । ्ह सि
ृ न-कमव की शयश्र्ततय को दशयवतय है ।
प्रश्न- 6 ‘्ोटय मेरय खेत’ कववतय कय रूपक स्पष्ट कीक्जए?
उत्तर- इस कवर्तय में कवर् ने कवर्-कमव को कृवष-कमवके समयन बतय्य है । जिस तरह कृषक िेत में ब़ीि बोतय है , किर
र्ह ब़ीि अांकुररत, पल्िवर्त होकर पौिय बनतय है तथय किर र्ह पररपक्र् होकर िनतय कय पेट भरतय है । उस़ी तरह
भयर्नयत्मक आाँि़ी के कयरण ककस़ी क्षण एक रचनय, वर्चयर तथय अलभव््जक्त कय ब़ीि बो्य ियतय है । ्ह वर्चयर
कल्पनय कय सहयरय िेकर वर्कलसत होतय है तथय रचनय कय रूप ग्रहण कर िेतय है । इस रचनय के रस कय आतर्यदन
अनांतकयि तक लि्य िय सकतय है । सयढ़हत्् कय रस कभ़ी समयप्त नहीां होतय।
प्रश्न- 7 कवव को खेत कय रूपक अपनयने की ज़रूरत त्ों पिी?
उत्तर- कवर् कय उददे श्् कवर्-कमव को महत्तय दे नय है । र्ह कहतय है कक कयव््-रचनय बेहद कढ़ठन कय्व है । बहुत गचांतन
के बयद कोई वर्चयर उत्पन्न होतय है तथय कल्पनय के सहयरे उसे वर्कलसत कक्य ियतय है । इस़ी प्रकयर िेत़ी में ब़ीि
बोने से िेकर िसि की कटयई तक बहुत पररश्रम कक्य ियतय है । इसलिए कवर् को िेत कय रूपक अपनयने की
िरूरत पड़ी।
प्रश्न- 8 ‘बगुलों के पंख’ कववतय कय प्रततपयद् बतयइए।
उत्तर- ्ह सुांदर दृश्् कवर्तय है । कवर् आकयश में उडते हुए बगुिों की पांजक्त को दे िकर तरह-तरह की कल्पनयएाँ
करतय है । ्े बगि ु े किरयरे बयदिों के ऊपर तैरत़ी सयाँझ की सिेद कय्य के समयन िगते हैं। कवर् को ्ह दृश््
अत््ांत सुांदर िगतय है । र्ह इस दृश्् में अटककर रह ियतय है । एक तरि र्ह इस सौंद्व से बचनय चयहतय है तथय
दस
ू री तरि र्ह इसमें बाँिकर रहनय चयहतय है ।
प्रश्न- 9 ‘पयँती-बँधी’ से कवव कय आवश्् स्पष्ट कीक्जए।
उत्तर- इसकय अथव है -एकतय। जिस प्रकयर ऊाँचे आकयश में बगुिे पांजक्त बयाँिकर एक सयथ चिते हैं। उस़ी प्रकयर मनुष््ों
को एकतय के सयथ रहनय चयढ़हए। एक होकर चिने से मनष्ु ् अदभत
ु वर्कयस करे गय तथय उसे ककस़ी कय भ् भ़ी नहीां
रहे गय।

िक्ततन - महयिे वी वमयथ

प्रश्न -1 िक्ततन अपनय वयस्तववक नयम त्ों ्ुपयती थी ?


उत्तर -भजक्तन कय र्यततवर्क नयम िक्ष्म़ी थय। ढ़हन्द ू िमव की मयन््तय के अनस
ु यर िक्ष्म़ी िन की दे ऱ्ी हैं। िक्ष्म़ी
िगत-पयिक भगर्यन वर्ष्णु की पत्ऩी है , िन-ऐश्र््व की दे ऱ्ी है । भजक्तन को अपने नयम के अथव और ्थयथव में
वर्रोियभयस िगतय है क््ोंकक र्ह ननिवन एर्ां दभ
ु यवग््शयिी है । अत: र्ह तर््ां को िक्ष्म़ी नहीां कहिर्यनय चयहत़ी थ़ी।
इसलि्े र्ह अपनय र्यततवर्क नयम छुपयत़ी थ़ी।
प्रश्न -2 लेझखकय ने लक्ष्मी कय नयम िक्ततन त्ों रखय?
उत्तर- िब र्ह शहर में िेखिकय के ्हयाँ ि़ीवर्कय िोिने के उददे श्् से आई तो उसके गिे में पड़ी कांठी-मयिय, उसके
घुटे हुए लसर एर्ां सयदग़ीपण
ू व र्ेशभूषय को दे िकर िेखिकय ने उसकय नयम भजक्तन रि ढ़द्य।
प्रश्न -3 िक्ततन के जीवन को ककतने पररच््े िों में ववियक्जत कक्य ग्य है ?
उत्तर- भजक्तन के ि़ीर्न को चयर भयगों में बयांटय ग्य है । पहिय पररच्छे द- भजक्तन कय बचपन, दस
ू रय पररच्छे द-
र्ैर्यढ़हक ि़ीर्न, त़ीसरय पररच्छे द- सांघषवम् ि़ीर्न और चौथय पररच्छे द- महयदे ऱ्ी र्मयव की सेवर्कय।
प्रश्न -4 िक्ततन कय बचपन कैसय थय ?
उत्तर -बचपन में ही मयां की मत्ृ ्ु होने से भजक्तन कय बचपन दि
ु म् रहय, सौतेिी मयां ने पयांच र्षव की आ्ु में ही
उसकय वर्र्यह कर ढ़द्य ग्य और नौ र्षव की उम्र में भजक्तन कय गौनय कर उसे ससुरयि भेि ढ़द्य।
प्रश्न 5- िक्ततन (लक्ष्मी) की ववमयतय ने उसे वपतय की बीमयरी कय संिेश त्ों नहीं िेजय?

94
उत्तर- भजक्तन के वपतय उस पर अगयि तनेह रिते थे। वपतय की सांपवत्त में से िक्ष्म़ी अपनय ढ़हतसय न मयांगे इसलि्े
वर्मयतय ने उसे वपतय की ब़ीमयरी कय समयचयर तब भेिय िब र्ह मर चक
ु य थय।
प्रश्न 6- िक्ततन के जीवन कय िस
ू रय पररच््े ि कैसय रहय?
उत्तर- भजक्तन के ि़ीर्न के दस
ू रे पररच्छे द में सि
ु कम और दि
ु अगिक रहय। भजक्तन कय पनत, उसके सांतकयर, तेि,
पररश्रम़ी तर्भयर् और कय्व कुशितय से प्रभयवर्त थय, र्ह अपऩी पत्ऩी को बहुत चयहतय थय परां तु त़ीन-त़ीन बेढ़ट्ों को
िन्म दे ने के कयरण भजक्तन को अपऩी सयस और जिठयनन्ों की घोर उपेक्षय सहऩी पड़ी।
प्रश्न 7- िक्ततन और उसकी बेठट्ों के सयथ त्य िेिियव होतय थय?
उत्तर- भजक्तन को घर भर के सयरे कयम करने पडते थे िबकक सयस और जिठयनन्यां आरयम से बैठकर बयतें करत़ी
रहत़ी थ़ीां भजक्तन की बेढ़ट्यां ढ़दनभर गोबर पयथत़ी थ़ीां जिठयनन्ों के कयिे-किट
ू े बेटे दि
ू मियई ियकर िेिते रहते
थे। भजक्तन और उसकी बेढ़ट्ों को कयिे गुड की डिी के सयथ चनय बयिरय ढ़द्य ियतय थय।
प्रश्न 8- िक्ततन कय िि
ु यथग्् िी कम हिी नही थय, लेझखकय ने ऐसय त्ों कहय है?
उत्तर-
1- बचपन में ही मयां की मत्ृ ्।ु
2- वर्मयतय की उपेक्षय।
3- भजक्तन (िक्ष्म़ी) कय बयिवर्र्यह।
4- वपतय कय ननिन।
5- त़ीन-त़ीन बेढ़ट्ों को िन्म दे ने के कयरण सयस और जिठयनन्ों के दर्यरय भजक्तन की उपेक्षय।
6- पनत की असम् मत्ृ ्ु।
7- दयमयद कय ननिन और पांचय्त दर्यरय ननकम्मे त़ीतरबयि ्ुर्क से भजक्तन की वर्िर्य बेटी कय िबरन वर्र्यह।
8- िगयन न चुकय पयने पर िम़ीांदयर दर्यरय भजक्तन कय अपमयन।
प्रश्न 9- िक्ततन ने महयिे वी वमयथ के जीवन पर कैसे प्रियववत कक्य?
उत्तर- भजक्तन के सयथ रहकर महयदे ऱ्ी की ि़ीर्न शैिी सरि हो ग़्ी, र्े अपऩी सुवर्ियओां की चयह को नछपयने िग़ीां
और असुवर्ियओां को सहने िग़ीां। भजक्तन ने उन्हें दे हयत़ी भोिन खिियकर उनकय तर्यद बदि ढ़द्य। भजक्तन मयत्र एक
सेवर्कय न होकर महयदे ऱ्ी की अलभभयर्क और आत्म़ी् सांगगऩी बन ग़्ी।
प्रश्न 10- िक्ततन के चररत्र की ववशेषतयओं कय उल्लेख कीक्जए।
उत्तर- महयदे ऱ्ी र्मयव की सेवर्कय भजक्तन के व््जक्तत्र् की वर्शेषतयएां ननम्नयांककत हैं-
1-समवपवत सेवर्कय 2-तर्यलभमयऩी 3-तकवश़ीिय 4-पररश्रम़ी 5-सांघषवश़ीि
प्रश्न 11- िक्ततन के िग
ु ण
ुथ ों कय उल्लेख करें ।
उत्तर- भजक्तन में कई अर्गण
ु भ़ी हैं-
1- र्ह घर में पडे रुपए पैसे को भांडयर घर की मटकी में छुपय दे त़ी है । अपने इस कय्व को चोरी नहीां मयनत़ी।
2- महयदे ऱ्ी के िोि से बचने के लि्े भजक्तन बयत को इिर-उिर करके बतयने को झूठ नही मयनत़ी। अपऩी बयत
को सही लसदि करने के लिए र्ह तकव-वर्तकव करत़ी है ।
3- र्ह दस
ू रों को अपऩी इच्छयनुसयर बदि दे नय चयहत़ी है पर तर््ां बबिकुि नही बदित़ी।
प्रश्न 12- तनम्नयंककत ियषय-प्र्ोगों कय अथथ स्पष्ट कीक्जए-
उत्तर-
(क) पहली कन््य के िो और संस्करण कर डयले- भजक्तन ने अपऩी पहिी कन््य के बयद दो और कन््यएां पैदय की।
(ि) खोटे भसतकों की टकसयल जैसी पत्नी- आि भ़ी अलशक्षक्षत ग्रयम़ीण समयि में बेढ़ट्ों को िोटय लसक्कय कहय ियतय
है । भजक्तन ने एक के बयद एक त़ीन बेढ़ट्यां पैदय कर दी इसलिए उसे िोटे लसक्के को ढयिने र्यिी मश़ीन कहय ग्य।
प्रश्न-13 िक्ततन पयि में लेझखकय ने समयज की ककन समस््यओं कय उल्लेख कक्य है ?
उत्तर- भजक्तन पयठ के मयध््म से िेखिकय ने भयरत़ी् ग्रयम़ीण समयि की अनेक समत्यओां कय उल्िेि कक्य है -

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1- िडके-िडकक्ों में कक्य ियने र्यिय भेदभयर् 2-वर्िर्यओां की समत्य 3- न््य् के नयम पर पांचय्तों के दर्यरय
जतत्र्ों के मयनर्यगिकयर को कुचिनय 4- अलशक्षय और अांिवर्श्र्यस

बयजयर िशथन – जैनेन्र कुमयर

प्रश्न-1 पचेक्जंग पयवर ककसे कहय ग्य है और बयजयर पर इसकय त्य प्रियव पितय है ?
उत्तर- पचेजिांग पयर्र कय अथव है िरीदने की शजक्त। पचेजिांग पयर्र के घमांड में व््जक्त ढ़दियर्े के लिए आर्श््कतय
से अगिक िरीदयरी करतय है और बयियर को शैतयऩी एर्ां व््ांग्् की शजक्त दे तय है । पचेजिांग पयर्र कय इततेमयि करने
र्यिे िोग बयियर कय बयियरूपन बियते हैं।
प्रश्न-2 लेखक ने बयजयर कय जयि ू ककसे कहय है और इसकय लोगों पर त्य प्रियव पितय है ?
उत्तर- बयियर की चमक-दमक के चांब
ु की् आकषवण को बयियर कय ियद ू कहय ग्य है । ्ह ियद ू आांिों की रयह कय्व
करतय है । बयियर के इस़ी आकषवण के कयरण ग्रयहक आर्श््कतय न होने पर भ़ी सि़ी-िि़ी च़ीिों को िरीदने के लिए
वर्र्श हो ियते हैं।
प्रश्न-3 आश् स्पष्ट करें ।
मन ियिी होनय, मन भरय होनय, मन बांद होनय
उत्तर- मन खयली होनय- मन में कोई ननजश्चत र्ततु िरीदने कय िक्ष्् न होनय। ननरुददे श्् बयियर ियनय और ब््थव की
च़ीिों को िरीदकर ियनय।
मन िरय होनय- मन िक्ष्् से भरय होनय। जिसकय मन भरय हो र्ह भिी-भयांनत ियनतय है कक उसे बयियर से कौन स़ी
र्ततु िरीदऩी है । र्ह अपऩी आर्श््कतय की च़ीि िरीदकर बयियर को सयथवकतय प्रदयन करतय है ।
मन बंि होनय- मन में ककस़ी भ़ी प्रकयर की इच्छय को न आने दे नय। बिपूर्क
व अपऩी इच्छयओां को दबय दे नय।
प्रश्न-4 ‘जहयं तष्ृ णय है , बटोर रखने की स्पह
ृ य है , वहयं उस बल कय बीज नहीं है ।’ ्हयं ककस बल की चचयथ की ग्ी है ?
उत्तर- िेिक ने सांतोष़ी तर्भयर् के व््जक्त के आत्मबि की चचयव की है । दस
ू रे शब्दों में ्ढ़द मन में सांतोष हो तो
व््जक्त ढ़दियर्े और ईष््यव से दरू रहतय है उसमें सांच् करने की प्रर्वृ त्त नहीां होत़ी।
प्रश्न-5 अथथशयस्त्र कब अनीततशयस्त्र बन जयतय है ?
उत्तर- िब बयियर में कपट और शोषण बिने िगे। िरीददयर और दक
ु यनदयर एक दस
ू रे को ठगने की घयत में िगे रहें ।
एक की हयनन में दस
ू रे को अपनय ियभ ढ़दियई दे तब बयियर कय अथवशयतत्र, अऩीनतशयतत्र बन ियतय है । ऐसे बयियर
मयनर्तय के लिए वर्डांबनय हैं।
प्रश्न-6 िगत जी बयजयर और समयज को ककस प्रकयर सयथथकतय प्रियन कर रहे हैं?
उत्तर- भगति़ी के मन में सयांसयररक आकषवणों के लिए कोई तष्ृ णय नहीां है । र्े सांच्, ियिच और ढ़दियर्े से दरू रहते
हैं। बयियर और व््यपयर उनके लिए आर्श््कतयओां की पूनतव कय सयिन मयत्र है । भगति़ी के मन कय सांतोष और
ननतपह
ृ भयर्, उनको श्रेष्ठ उपभोक्तय और वर्िेतय बनयते हैं।
ननम्नयांककत बबांद ु उनके व््जक्तत्र् के सशक्त पहिू को उियगर करते हैं।
1-पांसयरी की दक
ु यन से केर्ि ि़ीरय और नमक िरीदनय। 2-ननजश्चत सम् पर चूरन बेचने के लि्े ननकिनय। 3-छह
आने की कमयई होते ही चूरन बेचनय बांद कर दे नय। 4-बचे हुए चूरन को बच्चों को मुफ़्त बयांट दे नय। 5- सभ़ी कय ि्
ि् रयम कहकर तर्यगत करनय। 6-बयियर की चमक दमक से आकवषवत न होनय। 7- समयि को सांतोष़ी ि़ीर्न की
लशक्षय दे नय।
प्रश्न-7 बयजयर की सयथथकतय ककसमें है ?
उत्तर- मनुष्् की आर्श््कतयओां की पूनतव करने में ही बयियर की सयथवकतय है । िो ग्रयहक अपऩी आर्श््कतयओां की
च़ीिें िरीदते हैं र्े बयियर को सयथवकतय प्रदयन करते हैं। िो वर्िेतय, ग्रयहकों कय शोषण नहीां करते और छि-कपट से
ग्रयहकों को िभ
ु यने कय प्र्यस नही करते र्े भ़ी बयियर को सयथवक बनयते हैं।

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कयले मेघय पयनी िे – धमथवीर ियरती

प्रश्न- 1 इन्िर सेनय घर-घर जयकर पयनी त्ों मयंगती थी?


उत्तर- गयांर् के िोग बयररश के लिए भगर्यन इांद्र से प्रयथवनय कक्य करते थे। िब पूिय-पयठ, व्रत आढ़द उपय् असफ़ि हो
ियते थे तो भगर्यन इांद्र को प्रसन्न करने के लिए गयांर् के ककशोर, बच्चे कीचड में िथपथ होकर गिी-गिी घूमकर
िोगों से पयऩी मयांगते थे।
प्रश्न- 2 इन्िरसेनय के संबध
ं में लेखक कय त्य दृक्ष्टकोण है ?
उत्तर- इन्दरसेनय कय कय्व िेिक को अांिवर्श्र्यस िगतय है , उसकय मयननय है कक ्ढ़द इांदरसेनय दे र्तय से पयऩी ढ़दिर्य
सकत़ी है तो तर््ां अपने लिए पयऩी क््ों नहीां मयांग िेत़ी? पयऩी की कम़ी होने पर भ़ी िोग घर में एकत्र कक्े हुए
पयऩी को इांदरसेनय पर फ़ेंकते हैं। िेिक इसे पयऩी की ननमवम बरबयदी मयनतय है ।
प्रश्न- 3 जीजी ने लेखक को ककस प्रकयर समझय्य?
उत्तर- ि़ीि़ी ने िेिक को ननम्न तकव दे कर समझय्य-
1- त््यग कय महत्र्- कुछ पयने के लिए कुछ िोनय पडतय है ।
2- दयन की महत्तय- ॠवष-मनु न्ों ने दयन को सबसे ऊांचय तथयन ढ़द्य है ।
3- इांद्रदे र् को िि कय अध््व चियनय- इांदरसेनय पर पयऩी फ़ेंकनय पयऩी की बरबयदी नहीां बजल्क इांद्रदे र् को िि कय
अध््व चियनय है ।
4- पयऩी की बुर्यई करनय- जिस प्रकयर ककसयन फ़सि उगयने के लिए िम़ीन पर ब़ीि डयिकर बुर्यई करतय है र्ैसे
ही पयऩी र्यिे बयदिों की फ़सि पयने के लिए पहिे पयऩी की बुर्यई की ियत़ी है ।
प्रश्न- 4 इंिर सेनय सबसे पहले गंगय मै्य की ज् त्ों बोलती थी ?
उत्तर- गांगय भयरत़ी् समयि में सबसे पज्
ू ् नदी है । र्ह भयरत़ी्ों के लिए केर्ि एक नदी नहीां अवपतु मयाँ है , तर्गव की
स़ीिी है , मोक्षदयन्ऩी है । गांगयिि पयर्न है , पवर्त्र करने र्यिी है । उसमे पयऩी नहीां अवपतु िि बहतय है िो अमत

तल्
ु ् है । ऐसे पररर्ेश मे उत्पन्न िडके सबसे पहिे गांगय मै्य की ि् ही बोिेंगे। गांगय भ़ी तो तर्गव से उतरकर
सयगर के सयठ हियर पत्र
ु ों को अपने िि के तपशव से मोक्ष दे ने आई थ़ी।
प्रश्न- 5 नठि्ों कय ियरती् सयमयक्जक, सयंस्कृततक पररवेश में त्य महत्व है ?
उत्तर- भयरत़ी् सयमयजिक पररर्ेश में नढ़द्ों कय महत्र्पूणव तथयन है । नढ़द्ो की महत्तय ननम्न बयतों से प्रकट होत़ी है -
1. इस दे श मे अनेक नढ़द्ों को मोक्षदयन्ऩी कहय है ।
2. सयत पवर्त्र नढ़द्यां-गांगय, ्मन
ु य, सरतर्त़ी, नमवदय, लसांिु, कयर्ेरी, गोदयर्री के पवर्त्र िि में डुबकी िगयने की
कयमनय प्रत््ेक भयरत़ी् में रहत़ी है ।
3. हमयरे दे श के अगिकयांश पवर्त्र तथयन नढ़द्ों के तट पर जतथत है । ्थय-हररदर्यर, ऋवषकेश, प्र्यग, बनयरस,
उज्िैन, नयलसक, मथुरय, आढ़द।
4. हमयरय दे श कृवष प्रियन है । नढ़द्ों के िि से ही ्ह समयि ि़ीवर्त रहय है और तभ़ी सांतकृनत पनप़ी है ।
प्रश्न- 6 लेखक िख
ु ी त्ों है , उसके मन में कौन से प्रश्न उि रहे है ?
उत्तर- आियदी के कई र्षव बयद भ़ी भयरत़ी्ों की सोच में सकयरयत्मक बदियर् न दे िकर िेिक दि
ु ़ी है । उसके मन में
कई प्रश्न उठ रहे हैं - क््य हम सच्चे अथों में तर्तन्त्र हैं? क््य हम अपने दे श की सांतकृनत और सभ््तय को समझ
पयए हैं? रयष्र ननमयवण में हम प़ीछे क््ों हैं, हम दे श के लिए क््य कर रहे हैं? हम तर्यथव और भ्रष्टयचयर में लिप्त रहते
हैं, त््यग में क््ों नहीां? सरकयर दर्यरय चियई िय रही ्ोिनयएां गरीबों तक क््ों नहीां पहुांचत़ी है ?

पहलवयन की ढोलक - फणीश्वरनयथ रे णु

प्रश्न-1 महयमयरी से ग्रस्त गयँव की रयत्रत्र की वविीवषकय कय वणथन कीक्जए।


उत्तर- गयाँर् में गरीब़ी थ़ी। मिेरर्य और है िे से िोग मौत के मुांह में िय रहे थे। रोि दो-त़ीन ियशें उठत़ी थ़ी। रयत को
सन्नयटय रहतय थय, जिसे लस्यरों और उल्िुओां की आर्यिें और भ़ी भ्यनक बनय दे त़ी थ़ी। ब़ीमयर िोगों के करयहने,

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उल्टी करने और बच्चों के कमिोर कांठ से ननकिी मयाँ-मयाँ की करुण पुकयर भ़ी रयबत्र की वर्भ़ीवषकय को कम नही
करत़ी थ़ी।
प्रश्न-2 ढोलक की आवयज कय पूरे गयंव पर त्य असर होतय थय?
उत्तर- ढोिक की आर्यि से रयत की वर्भ़ीवषकय और सन्नयटय कम होतय थय महयमयरी से प़ीडडत िोगों की नसों में
बबििी स़ी दौड ियत़ी थ़ी, उनकी आांिों के सयमने दां गि कय दृश्् सयकयर हो ियतय थय और र्े अपऩी प़ीडय भि

िुश़ी-िुश़ी मौत को गिे िगय िेते थे। इस प्रकयर ढोि की आर्यि, मत
ृ प्रय् गयांर्र्यिों की नसों में सांि़ीर्ऩी शजक्त को
भर ब़ीमयरी से िडने की प्रेरणय दे त़ी थ़ी।
प्रश्न-3 लट्
ु टन ने अपनय गरु
ु ककसे मयनय और त्ों?
उत्तर- िट् ु टन ने कुश्त़ी के दयांर्-पें च ककस़ी गरु
ु से नहीां बजल्क ढोि की आर्यि से स़ीिे थे। ढोि से ननकिी हुई
ध्र्नन्यां उसे दयांर्-पेच लसियत़ी हुई और आदे श दे त़ी हुई प्रत़ीत होत़ी थ़ी। िब ढोि पर थयप पडत़ी थ़ी तो पहिर्यन की
नसें उत्तेजित हो ियत़ी थ़ी र्ह िडने के लिए मचिने िगतय थय।
प्रश्न-4 लुट्टन भसंह रयज पहलवयन कैसे बनय?
उत्तर- श््यमनगर के रयिय कुश्त़ी के शौकीन थे। उन्होंने दां गि कय आ्ोिन कक्य। पहिर्यन िट्
ु टन लसांह भ़ी दां गि
दे िने पहुांचय। नयमक पहिर्यन िो शेर के बच्चे के नयम से प्रलसदि थय, कोई भ़ी पहिर्यन उससे लभडने की ढ़हम्मत
नहीां करतय थय। चयाँद लसांह अियडे में अकेिय गरि रहय थय। िुट्टन लसांह ने चयाँद लसांह को चुनौत़ी दे दी और उससे
लभड ग्य। िोि की आर्यि सन
ु कर िट्
ु टन के नस-नस में िोश भर ग्य। उसने चयाँद लसांह को चयरों ियने गचत कर
ढ़द्य। रयिय सयहब ने िट्
ु टन की ऱ्ीरतय से प्रभयवर्त होकर उसे रयि पहिर्यन बनय ढ़द्य।
प्रश्न-5 लुट्टन को िरबयर त्ों ्ोिनय पिय?
उत्तर- रयिय की मत्ृ ्ु के बयद उसके बेटे ने गददी सांभयिी। उसे घोडों की रे स कय शौक थय । मैनेिर ने न्े रयिय को
भडकय्य, पहिर्यन और उसके दोनों बेटों के भोिनिचव को भ्यनक और कफ़िूििचव बतय्य। फ़ितर्रूप नए रयिय ने
कुश्त़ी को बांद करर्य ढ़द्य और पहिर्यन िट्
ु टनलसांह को उसके दोनों बेटों के सयथ महि से ननकयि ढ़द्य।
प्रश्न-6 ककन घटनयओं से पहलवयन लुट्टन के संघषथशील व्क्ततत्व और ठहम्मती होने कय पररच् भमलतय है ?
उत्तर- पहिर्यन िुट्टन बहुत ढ़हम्मत़ी थय। अपने दिु ों की परर्यह न करते हुए दस
ू रों को ढ़हम्मत बांियनय बहुत ढ़हम्मत
कय कयम है । उसने ननम्नयांककत अर्सरों पर अपऩी ढ़दिेरी और ढ़हम्मत कय पररच् ढ़द्य।
1- श््यम नगर के दां गि में चयांदलसांह से लभडते सम्।
2- अपने बेटों की मत्ृ ्ु पर उनकय अांनतम सांतकयर करते सम्।
3- बेटों की मत्ृ ्ु के बयद भ़ी गयांर् र्यिों कय हौंसिय बियने के लिए रयत-रयत भर ढोिक बियते रहनय।

भशरीष के फूल - आचय्थ हजयरी प्रसयि दवववेिी

प्रश्न-1 हृि् की कोमलतय को बचयने के भलए व्वहयर की किोरतय िी किी-किी जरूरी हो जयती है - भशरीष के फूल
के आधयर पर स्पष्ट करें ?
उत्तर- सज्िनों की पररभयषय दे ते हुए कहय ियतय है कक र्े र्ज्र से भ़ी कठोर तथय पष्ु प से भ़ी कोमि होते हैं। लशरीष के
िूि को सांतकृत सयढ़हत्् में बहुत कोमि मयनय ग्य है । र्ह इतनय कोमि है कक केर्ि भौंरों के पदों कय दबयर् ही सह
सकतय है । लशरीष की िकड़ी इतऩी मिबूत अर्श्् होत़ी है कक इस पर झूिय डयिय िय सके। उसके िि इतने कठोर
होते है कक नए िि आने तक भ़ी अपनय तथयन नहीां छोडते। लशरीष र्य्ुमण्डि से रस ि़ीांचकर ही इतनय कोमि और
इतनय कठोर बनय है । लशरीष के आियर पर ्ह कहनय उगचत ही है कक हृद् की कोमितय को बचयने के लिए व््र्हयर
की कठोरतय भ़ी कभ़ी कभ़ी िरूरी हो ियत़ी है ।
प्रश्न-2 दवववेिी जी ने भशरीष के मयध््म से कोलयहल व संघषथ से ियरी जीवन क्स्थतत्ों मे अववचल रह कर
क्जजीववषु बने रहने की सीख िी है- स्पष्ट करें ।

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उत्तर- लशरीष को गरम़ी, िप
ू , र्षयव आाँि़ी, िू, प्रभयवर्त नहीां करत़ी। र्ह तब भ़ी िहिहयतय है , िब पथ्
ृ ऱ्ी अजग्न के
समयन तप रही होत़ी है । लशरीष से स़ीि िेते हुए िेिक सोचतय है कक हमयरे दे श में िो मयर कयट, अजग्नदयह, िूट-
पयट, िून-िच्चर कय बर्ांडर है , क््य र्ह दे श को जतथर नहीां रहने दे गय। गि
ु यम़ी, अशयांनत और वर्रोि़ी र्यतयर्रण के
ब़ीच अपने लसदियांतों की रक्षय करते हुए गयांि़ी ि़ी जतथर रह सके थे तो दे श भ़ी रह सकतय है । ि़ीने की प्रबि
अलभियषय के कयरण वर्षम पररजतथत्ों मे भ़ी ्ढ़द लशरीष खिि सकतय है तो हमयरय दे श भ़ी वर्षम पररजतथनत्ों में
जतथर रह सकतय है ।
प्रश्न-3 हय् वह अवधूत आज कहयँ है ? ऐसय कहकर लेखक ने आत्मबल पर िे ह बल के वचथस्व की वतथमयन सभ््तय
के ककस संकट की ओर संकेत कक्य है ?
उत्तर- ्हयाँ अर्िूत ‘गयाँि़ी ि़ी’ के लिए प्र्क्
ु त हुआ है । उन्होंने अपने आत्मबि से दे ह बि को परयजित कक्य। आि
आत्मबि पर दे ह बि कय र्चवतर् ढ़दियई दे रहय है । आि गयाँि़ी ि़ी के अभयर् में र्तवमयन सभ््तय के सांकट में िेिक
को भ्ांकर कष्ट कय अनुभर् हो रहय है ।
प्रश्न-4 आधुतनक कयल के ककस कवव को कयभलियस के समकक्ष रखय जय सकतय है?
उत्तर- िेिक के अनस
ु यर आिनु नक कयि के कवर् रऱ्ीांद्रनयथ ठयकुर और सलु मत्रयनांदन पांत को कयलिदयस के समकक्ष रिय
िय सकतय है क््ोंकक ्े भ़ी उन्हीां के समयन अनयसक्त एर्ां उन्मुक्त हृद् के हैं। प्रश्न- 5 भशरीष को िे खकर लेखक के
मन में कैसी तंरगें उिती हैं?
उत्तर- िेिक सोचने िगतय है कक इस गचिगचियत़ी िप
ू में र्ह इतनय सरस कैसे रह पयतय है ? क््य ्े िू आाँि़ी, िप
ू ,
अपने आप में सत्् नहीां है ? ्ह अपनय ि़ीर्न रस कहयाँ से िे पयतय है ।
प्रश्न-5 भशरीष के समयन ककसे बतय्य ग्य है , और त्ों?
उत्तर- लशरीष की भयाँनत महयत्मय गयाँि़ी को बतय्य ग्य है । जिस प्रकयर लशरीष गचिगचियत़ी िूप, अजग्न कांु ड बऩी िरत़ी
में तर््ां को कठोर होते हुए सुकोमि बनय रहतय है ठीक र्ैसे ही दे श में मच़ी मयर-कयट, अजग्नदयह और िून-िच्चर के
ब़ीच महयत्मय गयाँि़ी इतने कोमि और कठोर बने रह सके थे। सत्् और अढ़हांसय के अपने लसदियांतों के प्रनत अडडग
थे।

श्रम ववियजन और जयतत प्रथय, मेरी कल्पनय कय आिशथ समयज - डॉ. िीमरयव अम्बेिकर

प्रश्न-1 जयतत प्रथय ियरती् समयज में बेरोजगयरी व िख


ु मरी एक कयरण कैसे बनती रही है ?
उत्तर- ियनत प्रथय भयरत़ी् समयि में बेरोिगयरी एर्ां भि
ु मरी कय एक कयरण हमेशय बनत़ी रही है । इसके मख्
ु ् कयरण
ननम्नर्त हैं –
1- मनुष्् के पेशे कय पूर्व ननियवरण
2- प्रनतकूि पररजतथनत्ों में भ़ी पेशय बदिने की अनुमनत न दे नय।
3- अपने पूर्व ननियवररत पेशे के प्रनत व््जक्त की अरूगच।
5. ियनत प्रथय ककस़ी भ़ी व््जक्त को ऐसय पेशय चन
ु ने की अनम
ु नत नहीां दे त़ी है , िो उसकय पैतक
ृ पेशय न हो, भिे
ही र्ह उसमें पयरां गत हो।
प्रश्न-2 आिशथ समयज की स्थयपनय कय आधयर त्य है ?
उत्तर- ननम्नयांककत त़ीन बबांदओ
ु ां के आियर पर आदशव समयि की तथयपनय की िय सकत़ी है -
1-समतय 2-तर्तांत्रतय 3-भयईचयरय
प्रश्न-3 शयरीररक वंश-परं परय और सयमयक्जक उत्तरयथधकयर की दृक्ष्ट से मनष्ु ्ों की असमयनतय संियववत रहने के बयवजि

‘समतय‘ को एक व्वहय्थ भसदधयन्त मयनने कय आग्रह त्ों हैं ?
उत्तर- डॉ0 आम्बेडकर ्ह ियनते हुए भ़ी कक शयरीररक र्ांश परां परय की दृजष्ट से मनुष््ों की असमयनतय कय होनय सांभर्
है समतय के व््र्हय्व लसदियन्त को मयनने कय आग्रह करते हैं-

99
इसके प़ीछे िेिक कय तकव ्ह है कक समयि को ्ढ़द अपने सदत्ों से अगिकतम उप्ोगगतय प्रयप्त करऩी है , तो
समयि के सभ़ी सदत्ों को आरम्भ से ही समयन अर्सर एर्ां समयन व््र्हयर उपिब्ि करयए ियएाँ। रयिऩीनतज्ञों को भ़ी
सब मनुष््ों के सयथ समयन व््र्हयर करनय चयढ़हए। प्रत््ेक व््जक्त को अपऩी क्षमतय कय वर्कयस करने के लिए
अर्सर दे ने चयढ़हए। उनकय तकव है कक र्ांश में िन्म िेनय ्य सयमयजिक परां परय व््जक्त के र्श में नहीां है । अतः इस
आियर पर ननणव् िेनय उगचत नहीां है ।
प्रश्न-4 समतय कय औथचत्् कहयँ तक है ?
उत्तर- समतय कय औगचत्् बहुत आगे तक ियतय है , िो ियनत, िमव, सांप्रदय् से ऊपर उठकर मयनर्तय अथयवत ् मयनर्
मयत्र के प्रनत समयन व््र्हयर है ।
प्रश्न-5 रयजनीततज्ञ पुरूष के संििथ में समतय को कैसे स्पष्ट कक्य ग्य है ?
उत्तर- रयिनेतय के पयस अनेक िोग आते हैं, उसकी उनके पयस प्यवप्त ियनकयरी नहीां होत़ी है । अतः उसे समतय और
मयनर्तय के आियर पर व््र्हयर करनय चयढ़हए।
प्रश्न-6 रयजनीततज्ञ समयन व्वहयर त्ों नहीं करते ?
उत्तर- सभ़ी िोगों के समयन होते हुए भ़ी समयि में उनकय र्गीकरण और श्रेण़ीकरण करनय आर्श््क होतय है ।
इसलिए रयिऩीनतज्ञ समयन व््र्हयर नहीां करते हैं।

ववतयन ियग-2

भसल्वर वैड़डंग

प्रश्न-1 ्शोधर बयबू की पत्नी सम् के सयथ ढल सकने में सफल होती है , लेककन ्शोधर बयबू असफल रहते हैं।
ऐसय त्ों?
उत्तर- ्शोिर बयबू बचपन से ही जिम्मेदयरर्ों के बोझ से िद गए थे। बचपन में ही उनके मयतय-वपतय कय दे हयांत हो
ग्य थय। उनकय पयिन-पोषण उनकी वर्िर्य बुआ ने कक्य। मैढ़रक होने के बयद र्े ढ़दल्िी आ गए तथय ककशन दय
िैसे कांु आरे के पयस रहे । इस तरह र्े सदै र् उन िोगों के सयथ रहे जिन्हें कभ़ी पररर्यर कय सुि नहीां लमिय। र्े सदै र्
परु यने िोगों के सयथ रहे , पिे, बिे । अत: उन परां परयओां को छोड नहीां सकते थे। उन पर ककशन दय के लसदियांतों कय
बहुत प्रभयर् थय। इन सब कयरणों से ्शोिर बयबू सम् के सयथ बदिने में असिि रहते हैं। दस ू री तरि, उनकी
पत्ऩी ्द्वप पुरयने सांतकयरों की थ़ीां और एक सां्क् ु त पररर्यर में आई थ़ीां िहयाँ उन्हें सि
ु द अनुभर् हुआ। उनकी
इच्छयएाँ अतप्ृ त रहीां। र्े मयत ृ सुिभ प्रेम के कयरण अपऩी सांतयनों कय पक्ष िेत़ी हैं और बेटी की बयतों कय समथवन
करत़ी हैं। र्े बेटों के ककस़ी मयमिे में दिि नहीां दे त़ी हैं। इस प्रकर र्े तर््ां को श़ीघ्र ही बदि िेत़ी हैं।
प्रश्न-2 पयि में ‘जो हुआ होगय’ वयत् की आप ककतनी अथथ ्वव्यँ खोज सकते/सकती हैं?
उत्तर- ‘िो हुआ होगय’ र्यक््यांश कय प्र्ोग ककशन दय की मत्ृ ्ु के सांदभव में होतय है । ्शोिर ने ककशन दय के ियनत
भयई से उनकी मत्ृ ्ु कय कयरण पूछय तो उसने िर्यब ढ़द्य- िो हुआ होगय अथयवत ् क््य हुआ, पतय नहीां। इस र्यक्् की
अनेक छवर््याँ बनत़ी हैं –
1. पहिय अथव िुद कहयऩीकयर ने बतय्य कक पतय नहीां, क््य हुआ।
2. दस
ू रय अथव ्ह है कक ककशनदय अकेिे रहे । ि़ीर्न के अांनतम क्षणों में भ़ी ककस़ी ने उन्हें नहीां तऱ्ीकयरय। इस
कयरण उनके मन में ि़ीने की इच्छय समयप्त हो गई।
3. त़ीसरय अथव समयि की मयनलसकतय है । ककशनदय िैसे व््जक्त कय समयि के लिए कोई महत्त्र् नहीां है । र्े
सयमयजिक नन्मों के वर्रोि में रहे । िितः समयि ने भ़ी उन्हें दरककनयर कर ढ़द्य।
प्रश्न-3 ‘समहयउ इंप्रयपर’ वयत्यंश कय प्र्ोग ्शोधर बयबू लगिग हर वयत् के प्रयरं ि में तकक्य कलयम की तरह
करते हैं? इस कयव्यंश कय उनके व्क्ततत्व और कहयनी के कथ्् से त्य संबंध बनतय है ?
उत्तर- ्शोिर बयबू ‘समहयउ इांप्रॉपर’ र्यक््यांश कय प्र्ोग तकक्य कियम की तरह करते हैं। उन्हें िब कुछ अनुगचत
िगतय ्य उनके निररए से कोई भ़ी कम़ी निर आत़ी हैं तो र्े इस र्यक््यांश कय प्र्ोग करते हैं। र्े नए के सयथ

100
तयिमेि नहीां बैठय पयते हैं। अत: ्ह र्यक््यांश उनके असांतुिन एर्ां व््जक्तत्र् को प्रकट करतय है । कहयऩी के अांत में
्शोिर के व््जक्तत्र् की सयरी वर्शेषतय सयमने उभर आत़ी है । र्े िमयने के ढ़हसयब से अप्रयसांगगक हो गए हैं।
प्रश्न-4 ्शोधर बयबू की कहयनी को ठिशय िे ने में ककशनिय की महत्त्वपण
ू थ िूभमकय रही है । आपके जीवन को ठिशय िे ने
में ककसकय महत्त्वपूणथ ्ोगियन है और कैसे?
उत्तर- मेरे ि़ीर्न को ढ़दशय दे ने में सबसे महत्त्र्पण
ू व ्ोगदयन मेरे गरु
ु ओां कय रहय है। उन्होंने हमेशय मझ
ु े ्ही लशक्षय दी
कक सत्् बोिो। सत्् बोिने र्यिय व््जक्त हर तरह की परे शयऩी से मक्
ु त हो ियतय है िबकक झठ
ू बोिने र्यिय अपने
ही ियि में िाँस ियतय है । उसे एक झूठ छुपयने के लिए सैकडों झठ
ू बोिने पडते हैं। अपने गुरुओां की इस बयत को
मैंने हमेशय ्यद रिय। र्यततर् में उनकी इस़ी लशक्षय ने मेरे ि़ीर्न की ढ़दशय बदि दी।
प्रश्न-5 वतथमयन सम् में पररवयर की संरचनय, स्वरूप से जुिे आपके अनुिव इस कहयनी से कहयँ तक सयमंजस्् त्रबिय
पयते हैं?
उत्तर- इस कहयऩी में दशयवए गए पररर्यर के तर्रूप र् सांरचनय आि भ़ी िगभग हर पररर्यर में पयई ियत़ी है । सां्ुक्त
पररर्यर प्रथय समयप्त हो रही है । पुरयऩी प़ीिी की बयतों ्य सियह को ऩ्ी प़ीिी लसरे से नकयर रही है । नए ्र्
ु य कुछ
न्य करनय चयहते हैं, परां तु बि
ु ग
ु व परां परयओां के ननर्यवह में वर्श्र्यस रिते हैं। ्शोिर बयबू की तरह आि कय मध््-
र्गी् वपतय वर्र्श है । र्ह ककस़ी वर्ष् पर अपनय ननणव् नहीां दे सकतय। मयतयएाँ बच्चों के समथवन में िड़ी निर
आत़ी हैं। आि बच्चे अपने दोततों के सयथ पयटी करने में अगिक िश
ु रहते हैं। र्े आिुननक ि़ीर्न शैिी को ही सब
कुछ मयनते हैं। िडकक्याँ फ़ैशन के अनस
ु यर र्तत्र पहनत़ी हैं। ्शोिर की िडकी उस़ी कय प्रनतननगि है । अत: ्ह
कहयऩी आि िगभग हर पररर्यर की है ।
प्रश्न-6 कहयनी की मूल संवि
े नय पीढ़ी अंतरयल है , कैसे?
उत्तर- ‘लसल्र्र र्ैडडांग’ श़ीषवक कहयऩी की मूि सांर्ेदनय है । ्शोिर बयबू और उसके पुत्रों में एक प़ीिी को अांतरयि है ।
इस़ी कयरण ्शोिर बयबू अपने पररर्यर के अन्् सदत्ों के सयथ सयमांित् नहीां बबठय पयते हैं। ्ह लसदियांत और
व््र्हयर की िडयई है । ्शोिर बयबू लसदियांतर्यदी हैं तो उनके पत्र
ु व््र्हयरर्यदी। आि लसदियांत नहीां व््यर्हयररकतय
चित़ी है । ्शोिर बयबू के वर्चयर पूरी तरह से पुरयने हैं िो ऩ्ी प़ीिी के सयथ कहीां भ़ी तयिमेि नहीां रिते। प़ीिी कय
अांतरयि और उनके वर्चयरों कय अांतरयि ्शोिर बयबू और उनके पररर्यर के सदत्ों में र्ैचयररक अिगयर् पैदय कर दे तय
है ।
प्रश्न-7 अपने घर और ववद्यल् के आस-पयस हो रहे उन बिलयवों के बयरे में भलखें जो सवु वधयजनक और आधुतनक
होते हुए िी बुजुगों को अच््े नहीं लगते?
उत्तर- हमयरे घर र् वर्द्यि् के आस-पयस ननम्नलिखित बदियर् हो रहे हैं जिन्हें बुिुगव पसांद नहीां करते हैं-
1. ्ुर्यओां दर्यरय मोबयइि कय प्र्ोग करनय।
2. ्र्
ु यओां दर्यरय पैदि न चिकर त़ीव्र गनत से चियते हुए मोटर-सयइककि ्य तकूटर कय प्र्ोग।
3. िडकक्ों दर्यरय ि़ीन्स र् शटव पहननय।
4. िडके-िडकक्ों की दोतत़ी र् पयकव में घूमनय।
5. िडे होकर भोिन करनय।
6. तेि आर्यि में सांग़ीत सुननय।
प्रश्न-8 न्य ्ोकरय चड्ढय ्शोधर बयबू से ककस प्रकयर की धष्ृ टतय करतय थय?
उत्तर- चड्ढय अलसतटें ट ग्रेड में आ्य थय। चूांकक र्ह नौिर्यन थय, इसलिए र्ह पांत बयबू के सयथ िष्ृ टतय कक्य करतय
थय। उनकी उम्र कय लिहयि भ़ी र्ह नहीां करतय थय। उनकी घड़ी को र्ह चूनद
े यऩी कहतय; कभ़ी उनकी कियई पकड
िेतय। उसे इस बयत कय िरय भ़ी ि्यि नहीां होतय थय कक पांत बि
ु ग
ु व व््जक्त हैं। र्ह तो अपऩी िर्यऩी के िोश में िो
कुछ करतय उसे अच्छय िगतय है । ि़ीरे -ि़ीरे ्शोिर पांत ने इन बयतों की ओर ध््यन दे नय छोड ढ़द्य। र्े ककस़ी तरह
कय वर्रोि भ़ी नहीां करते थे।

101
प्रश्न-9 ककशनिय कय बुढ़यपय सुखी त्ों नहीं रहय?
उत्तर- बयि-ित़ी ककशनदय कय बुियपय सि
ु ़ी नहीां रहय। उनके तमयम सयगथ्ों ने हौिियस, ग्ऱीनपयकव, कैियश कहीां-न-कहीां
ज़म़ीन िी, मकयन बनर्य्य, िेककन उन्होंने कभ़ी इस ओर ध््यन ही नहीां ढ़द्य। ररटय्र होने के छह महीने बयद िब
उन्हें क्र्यटव र ियिी करनय पडय तब उनके दर्यरय उपकृत िोगों में से एक ने भ़ी उन्हें अपने ्हयाँ रिने की पेशकश नहीां
की। तर््ां ्शोिर बयबू उनके सयमने ऐसय कोई प्रततयर् नहीां रि पयए क््ोंकक उस सम् तक उनकी शयदी हो चक
ु ी थ़ी
और उनके दो कमरों के क्र्यटव र में त़ीन पररर्यर रहय करते थे। ककशनदय कुछ सयि रयिेंद्र नगर में ककरयए कय क्र्यटव र
िेकर रहे और किर अपने गयाँर् िौट गए िहयाँ सयि भर बयद उनकी मत्ृ ्ु हो गई। वर्गचत्र बयत ्ह है कक उन्हें कोई
भ़ी ब़ीमयरी नहीां हुई। बस ररटय्र होने के बयद मरु झयते-सि
ू ते ही चिे गए। अकेिेपन ने उनके अांदर की ि़ीर्नशजक्त
को समयप्त कर ढ़द्य थय।
प्रश्न-10 आज पयररवयररक संबंध आथथथक संबंधों पर ज््यिय तनिथर रहते हैं, स्पष्ट करें ।
उत्तर- वर्ज्ञयन के इस ्ुग में आि सांबांिों कय मयनक आगथवक जतथनत बन गई है । आि पयररर्यररक सांबांि तभ़ी सही
रहते हैं िब आगथवक जतथनत बेहतर हो। ्शोिर पांत की पयररर्यररक जतथनत इस़ी अथव पर ननभवर करत़ी है । बच्चे चयहते
हैं कक वपतय ककस़ी न ककस़ी ढां ग से ऊपरी कमयई करें और उनकय ि़ीर्न सि
ु ़ी बनयएाँ िेककन लसदियांतर्यदी पांत ने ऐसय
कभ़ी सोचय भ़ी नहीां। और तो और अपने कोटे कय ननियवररत फ्िैट भ़ी उन्होंने नहीां लि्य। इन सभ़ी बयतों से उनके
बच्चे सदय उनसे खिन्न रहे। ्द्वप बडय बेटय भूषण एक वर्ज्ञयपन एिेंस़ी में पांद्रह सौ रुप्े मयलसक की नौकरी करतय
है तथयवप वपतय और पत्र
ु के ब़ीच की र्ैचयररक ियई बनयने में पैसे की महत्त्र्पण
ू व भलू मकय रही है । कहीां न कहीां पैसय ही
इन सांबांिों को प्रभयवर्त कर रहय है ।
प्रश्न-11 गीतय की मठहमय सुनते-सुनते जनयिथ न शब्ि सुनते ही ्शोधर पंत त्य सोचने लगते हैं?
उत्तर- ग़ीतय की मढ़हमय सुनते-सुनते अचयनक ्शोिर पांत के कयनों में ‘िनयदव न’ शब्द सुनयई पडय। ्ह सुनते ही उन्हें
अपने ि़ीिय िनयदव न िोश़ी की ्यद आ गई। उन्हें ्यद आ्य कक परसों ही गचट्ठी आई है कक उनके ि़ीिय ि़ी ब़ीमयर
हैं। र्े अहमदयबयद में रहते हैं। ऐसे सम् में उनकय हयि-चयि ियनने के लिए अहमदयबयद ियनय ही होगय। ्शोिर पांत
एक लमिनसयर व््जक्त हैं। हर ककस़ी के सि
ु -दि
ु में र्े ियते हैं। र्े चयहते हैं कक उनके बच्चे भ़ी पयररर्यररकतय के प्रनत
उत्सयही बनें। िेककन ऐसय नहीां हो पयतय। पत्ऩी और बच्चों कय तो ्ह मयननय है कक पुरयने ररश्तों के प्रनत िगयर्
रिनय मूित
व य है ? क््ोंकक इन्हें ननभयने के लिए सम् और पैसय दोनों की हयनन होत़ी है । अपने ि़ीिय िनयदव न िोश़ी
कय हयि-चयि ियनने के लिए र्े अहमदयबयद ियने के लिए उतयर्िे हैं िब बडय बेटय उन्हें पैसे दे ने से मनय कर दे तय है
तो र्े उियर पैसे िेकर अहमदयबयद ियने कय ननणव् करते हैं।
प्रश्न-12 ्शोधर बयबू ककशनिय की ककन परं परयओं को अिी तक तनिय रहे हैं?
उत्तर- ्शोिर बयबू ककशनदय के भक्त हैं। र्े उनके वर्चयरों कय अनुसरण करते हैं, िो ननम्नलिखित हैं
(क) उन्होंने कभ़ी मकयन नहीां लि्य क््ोंकक ककशनदय ने कहय कक मि
ू व मकयन बनयते हैं, समझदयर उसमें रहते हैं।
(ख) उन्होंने कभ़ी अपने लसदियांतों को नहीां छोडय।
(ग) उन्हें हर नई च़ीज़ में कम़ी नज़र आत़ी थ़ी।
(घ) र्े ककशनदय की उस बयत को मयनते हैं कक िर्यऩी में व््जक्त गिनत्याँ करतय है , परां तु बयद में समझदयर हो ियतय
है ।
(ङ) र्े ‘िन््ो पन्
ु ्’ू के ढ़दन सब कुमयउाँ नन्ों को िनेऊ बदिने के लिए अपने घर बि
ु यते थे, होिी गर्यते थे तथय
रयमिीिय की तयिीम के लिए क्र्यटव र कय एक कमरय दे ते थे।
प्रश्न-13 ्शोधर बयबू की पत्नी ने मॉडनथ बनने के पी्े त्य तकथ ठिए थे?
उत्तर- ्शोिर बयबू की पत्ऩी अपने मूि सांतकयरों से ककस़ी भ़ी तरह आिनु नक नहीां है , परां तु बच्चों की तरिदयरी करने
की मयतसृ ि
ु भ मिबरू ी ने उन्हें भ़ी मॉडनव बनय डयिय है । जिस सम् उनकी शयदी हुई थ़ी ्शोिर बयबू के सयथ गयाँर् से
आए तयऊि़ी और उनके दो वर्र्यढ़हत बेटे भ़ी रहय करते थे। इस सां्ुक्त पररर्यर में प़ीछे ही प़ीछे बहुओां में गज़ब के
तनयर् थे िेककन तयऊि़ी के डर से कोई कुछ कह नहीां पयतय थय। ्शोिर बयबू की पत्ऩी को लशकय्त है कक सां्ुक्त

102
पररर्यर र्यिे उस दौर में पनत ने हमयरय पक्ष कभ़ी नहीां लि्य, बस जिठयनन्ों की चिने दी। उनकय ्ह भ़ी मयननय है
कक मझ
ु े आचयर-व््र्हयर के ऐसे बांिनों में रिय ग्य मयनो मैं िर्यन औरत नहीां, बुढ़ि्य थ़ी। जितने भ़ी नन्म इनकी
बुढ़ि्य तयई के लिए थे, र्े सब मुझ पर भ़ी ियगू करर्यए – ऐसय कहत़ी है घरर्यिी बच्चों से। बच्चे उससे सहयनुभूनत
व््क्त करते हैं। किर र्ह ्शोिर ि़ी से उन्मि
ु होकर कहत़ी है -मैं भ़ी इन बयतों को उस़ी हद तक मयनूांग़ी जिस हद
तक सभ
ु ़ीतय हो। अब मेरे कहने से र्ह सब ढोंग-ढकोसिय हो नहीां सकतय।
प्रश्न-14 ‘भसल्वर वैड़डंग’ के आधयर पर बतयइए कक ्शोधर बयबू ककशनिय को अपनय आिशथ त्ों मयनते थे?
उत्तर- ‘लसल्र्र र्ैडडांग’ कहयऩी में ्शोिर बयबू ककशनदय के मयनस पुत्र िगते हैं। उनकय व््जक्तत्र् ककशनदय की
प्रनतच्छ्य है । कम उम्र में ्शोिर पहयड से ढ़दल्िी आ गए थे तथय ककशनदय ने ही उन्हें आश्र् ढ़द्य थय। उन्हें
सरकयरी वर्भयग में नौकरी ढ़दिर्यई। इस तरह ि़ीर्न में महत्त्र्पूणव ्ोगदयन करने र्यिे व््जक्त से प्रभयवर्त होनय
तर्यभयवर्क है । ककशनदय की ननम्नलिखित आदतों कय ्शोिर बयबू ने ि़ीर्न भर ननर्यवह कक्य
• ऑकिस में सह्ोगग्ों के सयथ सांबांि
• सुबह सैर करने की आदत
• पहनने-ओिने कय तरीकय
• ककरयए के मकयन में रहनय
• आदशव बयतें करनय
• ककस़ी बयत को कहकर मस
ु करयनय
• सेर्यननर्वृ त्त के बयद गयाँर् ियने की बयत कहनय आढ़द
्शोिर बयबू ने रयमिीिय करर्यनय आढ़द भ़ी ककशनदय से ही स़ीिय। र्े अांत तक अपने लसदियांतों पर गचपटे रहे ।
ककशनदय के उत्तरयगिकयरी होते हुए भ़ी उन्होंने पररर्यर नयमक सांतथय को बनय्य।
प्रश्न-15 ्शोिर पांत की त़ीन चयररबत्रत वर्शेषतयएाँ सोदयहरण बतयइए।
उत्तर- ्शोिर पांत गह
ृ मांत्रयि् में सेक्शन अफ़सर हैं। र्ह पहयड से ढ़दल्िी आए थे और ्हयाँ ककशन दय के सयथ रहे ।
उनकय ्शोिर बयबू पर असर थय। ्शोिर के चररत्र की ननम्नलिखित वर्शेषतयएाँ हैं-
1. िौततक सख
ु के ववरोधी – ्शोिर भौनतक सांसयिनों के घोर वर्रोि़ी थे। उन्हें घर ्य दफ्तर में पयटी करनय पसांद
नहीां थय। र्े पैदि चिते थे ्य सयइककि पर चिते थे। केक कयटनय, कयिे बयि करनय, मेकअप, िन सांग्रह आढ़द
पसांद नहीां थय।
2. असंतुष्ट वपतय – ्शोिर ि़ी एक असांतुष्ट वपतय भ़ी थे। अपने बच्चों के वर्चयरों से सहमत नहीां थे। बेटी के
पहनयर्े को र्े सही नहीां मयनते थे। उन्हें बच्चों की प्रगनत से भ़ी ईष्र््य थ़ी। बेटे उनसे ककस़ी बयत में सियह नहीां
िेते थे क््ोंकक उन्हें सब कुछ गित नज़र आतय थय।
3. परं परयवयिी – ्शोिर परां परय कय ननर्यवह करते थे। उन्हें सयमयजिक ररश्ते ननबयहने में आनांद आतय थय। र्े अपऩी
बहन को नन्लमत तौर पर पैसय भेिते थे। र्े रयमिीिय आढ़द कय आ्ोिन करर्यते थे।
4. अपररवतथनशील – ्शोिर बयबू आदशो से गचपके रहे । र्े सम् के अनुसयर अपने वर्चयरों में पररर्तवन नहीां िय
सके। र्े रूढ़िर्यदी थे। उन्हें बच्चों के नए प्र्यसों पर सांदेह रहतय थय। र्े सेक्शन अफ़सर होते हुए भ़ी सयइककि से
दफ्तर ियते थे।

जूझ

प्रश्न-1 जझ
ू ’ शीषथक के औथचत्् पर ववचयर करते हुए ्ह स्पष्ट करें कक त्य ्ह शीषथक कथय नय्क की ककसी
केंरी् चयररत्रत्रक ववशेषतय को उजयगर करतय है ?
उत्तर- श़ीषवक ककस़ी भ़ी रचनय के मुख्् भयर् को व््क्त करतय है । इस पयठ कय श़ीषवक ‘िझ
ू ’ पूरे अध््य् में व््यप्त
है । ‘िझ
ू ’ कय अथव है - सांघषव। इसमें कथय नय्क आनांद ने पयठशयिय ियने के लिए सांघषव कक्य। ्ह एक ककशोर के
दे िे और भोगे हुए गयाँर्ई ि़ीर्न के िुरदरे ्थयथव र् पररर्ेश को वर्श्र्सऩी् ढां ग से व््क्त करतय है । इसके अियर्य

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आनांद की मयाँ भ़ी अपने ततर पर सांघषव करत़ी है । िेिक के सांघषव में उसकी मयाँ, दे सयई सरकयर, मरयठी र् गखणत के
अध््यपक ने सह्ोग ढ़द्य। अत: ्ह श़ीषवक सर्वथय उप्ुक्त है । इस कहयऩी के कथयनय्क में सांघषव की प्रर्वृ त्त है ।
उसकय वपतय उसको पयठशयिय ियने से मनय कर दे तय है । इसके बयर्िूद, कथय नय्क मयाँ को पक्ष में करके दे सयई
सरकयर की सहय्तय िेतय है । र्ह दयदय र् दे सयई सरकयर के समक्ष अपनय पक्ष रितय है तथय अपने ऊपर िगे आरोपों
कय उत्तर दे तय है । आगे बिने के लिए र्ह हर कढ़ठन शतव मयनतय है । पयठशयिय में भ़ी र्ह नए मयहौि में ढिने, कवर्तय
रचने आढ़द के लिए सांघषव करतय है । इस प्रकयर ्ह श़ीषवक कथय-नय्क की केंद्री् चयररबत्रक वर्शेषतय को उियगर
करतय है ।
प्रश्न-2 स्व्ं कववतय रच लेने कय आत्मववश्वयस लेखक के मन में कैसे पैिय हुआ?
उत्तर- िेिक को मरयठी कय अध््यपक बडे आनांद के सयथ पियतय थय। र्ह भयर् छां द और ि् के सयथ कवर्तयओां कय
पयठ करतय थय। बस तभ़ी िेिक के मन में भ़ी ्ह वर्चयर आ्य कक क््ों न र्ह भ़ी कवर्तयएाँ लििनय शुरू करें । िेतों
में कयम करते-करते और भैंसे चरयते-चरयते उसे बहुत-सय सम् लमि ियतय थय। इस कयरण िेिक ने कवर्तयएाँ लििऩी
आरां भ कर दी और अपऩी सयरी कवर्तयओां को र्ह मरयठी के अध््यपक को ढ़दियतय थय तयकक उसकी कलम्ों को दरू
कक्य िय सके।
प्रश्न-3 श्री सौंिलगेकर के अध््यपन की उन ववशेषतयओं को रे खयंककत करें क्जन्होंने कववतयओं के प्रतत लेखक के मन
में रुथच जगयई?
उत्तर- श्ऱी सौंदिगेकर मरयठी के अध््यपक थे। िेिक बतयतय है कक पियते सम् र्े तर््ां में रम ियते थे। उनकय
कवर्तय पियने कय अांदयि बहुत अच्छय थय। सुरीिय गिय, छद की बढ़ि्य ि्-तयि और उसके सयथ ही रलसकतय थ़ी
उनके पयस। पुरयऩी-ऩ्ी मरयठी कवर्तयओां के सयथ-सयथ उन्हें अनेक अांग्रेि़ी कवर्तयएाँ भ़ी कांठतथ थ़ीां। पहिे र्े एकयि
कवर्तय गयकर सुनयते थे-किर बैठे-बैठे अलभन् के सयथ कवर्तय कय भयर् ग्रहण करयते। उस़ी भयर् की ककस़ी अन्् की
कवर्तय भ़ी सुनयकर ढ़दियते। र्े तर््ां भ़ी कवर्तय लििते थे। ्यद आई तो र्े अपऩी भ़ी एकयि कवर्तय ्ह सब सुनते
हुए, अनभ
ु र् करते हुए िेिक को अपनय भयन ही नहीां रहतय थय। िेिक अपऩी आाँिें और | प्रयणों की सयरी शजक्त
िगयकर दम रोककर मयतटर के हयर्-भयर्, ध्र्नन, गनत आढ़द पर ध््यन दे तय थय। उससे प्रभयवर्त होकर िेिक भ़ी
तुकबांदी करने कय प्र्यस करतय थय। अध््यपक िेिक की तुकबांदी कय सांशोिन करते तथय उसे कवर्तय के ि्, छद,
अिांकयर आढ़द के बयरे में बतयते। इन सब कयरणों से िेिक के मन में कवर्तयओां के प्रनत रुगच िग़ी।
प्रश्न-4 कववतय के प्रतत लगयव से पहले और उसके बयि अकेलेपन के प्रतत लेखक की धयरणय में त्य बिलयव आ्य?
उत्तर- िब िेिक को कवर्तय के प्रनत कोई िगयर् नहीां थय तो उसे अपनय अकेियपन कयटने को दौडतय थय। इस़ी
अकेिेपन ने उसके मन पर ननरयशय की छय्य डयि दी थ़ी। इस़ी कयरण र्ह ि़ीर्न के प्रनत ननमोही हो ग्य थय।
िेककन िब उसकय िगयर् कवर्तय के प्रनत हुआ तो उसकी ियरणय एकदम बदि गई। उसे अकेियपन अब अच्छय िगने
िगय थय। र्ह चयहतय थय कक कोई उसे कवर्तय रचते सम् न टोके। र्यततर् में कवर्तय के प्रनत िगयर् होने के बयद
िेिक के लिए अकेियपन ज़रूरी हो ग्य थय। इस़ी अकेिेपन में र्ह कवर्तयएाँ रच सकतय थय।
प्रश्न-5 आपके ख्यल से पढ़यई-भलखयई के संबध
ं में ित्तयजी रयव कय रवै्य सही थय ्य लेखक के वपतय कय?
उत्तर- पियई-लिियई के सांबि
ां में दत्तय ि़ी रयर् कय रर्ै्य सही थय। िेिक कय दृजष्टकोण पियई के प्रनत ्थयथवर्यदी थय।
उसे पतय थय कक िेत़ी से गि
ु यरय नहीां होने र्यिय। पिने से उसे कोई-न-कोई नौकरी अर्श्् लमि ियएग़ी और गरीब़ी
दरू हो ियएग़ी। र्ह सोचतय भ़ी है -पि ियऊाँगय तो नौकरी िग ियएग़ी, चयर पैसे हयथ में रहें गे, वर्ठोबय आण्णय की तरह
कुछ िांिय-कयरोबयर कक्य िय सकेगय। दत्तय ि़ी रयर् कय रर्ै्य भ़ी सही है । उन्होंने िेिक के वपतय को िमकय्य तथय
िेिक को पयठशयिय लभिर्य्य। ्हयाँ तक कक िुद िचयव उठयने तक की िमकी िेिक के वपतय को दी। इसके वर्परीत,
िेिक के वपतय कय रर्ै्य एकदम अनगु चत थय। उसकी ्ह सोच, ‘तेरे ऊपर पिने कय भत ू सर्यर हुआ है । मझ
ु े मयिम

है बयलितटर नहीां होने र्यिय है तू”-एकदम प्रनतगयम़ी थय। र्ह िेत़ी के कयम को ज््यदय बढ़ि्य समझतय थय तथय तर््ां
ऐ्यश़ी करने के लिए बच्चे की िेत़ी में झोंकनय चयहतय थय।

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प्रश्न-6 ित्तयजी रयव से वपतय पर िबयव डलवयने के भलए लेखक और उसकी मयँ को एक झि
ू कय सहयरय लेनय पिय। ्ठि
झूि कय सहयरय न लेनय पितय तो आगे कय घटनयक्रम त्य होतय? अनुमयन लगयएँ।
उत्तर- ्ढ़द झठ
ू कय सहयरय न िेते तो िेिक अनपि रह ियतय और र्ह ि़ीर्नभर िेतों में कोल्हू के बैि की तरह
िुतय रहतय। उसे लसर्य् भैंसे चरयने अथर्य िेत़ी करने के और कोई कयम न होतय। र्ह ढ़दन-भर िेतों पर कयम करतय
और शयम को घर िौट आतय। उसकय वपतय अय््यश़ी करतय रहतय। िेिक के सयरे सपने टूट ियते। र्ह अपनय ि़ीर्न
और प्रनतभय ऐसे ही व््थव ियने दे तय। बबनय झठ
ू कय सहयरय लिए उसकी प्रनतभय कभ़ी भ़ी न चमक पयत़ी। केर्ि एक
झूठ ने िेिक के ि़ीर्न की ढ़दशय ही बदि दी।
प्रश्न-7 जझ
ू ’ उपन््यस में लेखक ने त्य संिेश ठि्य है ? त्य लेखक अपने उदिे श्् में सफल रहय है ?
उत्तर- इस उपन््यस के मयध््म से िेिक ने ्ही सांदेश दे नय चयहय है कक व््जक्त को सांघषों से िझ
ू ते रहनय चयढ़हए।
समत्यएाँ तो ि़ीर्न में आत़ी रहत़ी हैं। इन समत्यओां से भयगनय नहीां चयढ़हए बजल्क इनकय मुकयबिय करनय चयढ़हए।
इसके लिए आत्मवर्श्र्यस कय होनय िरूरी है । बबनय आत्मवर्श्र्यस के व््जक्त सांघषव नहीां कर सकतय। िो व््जक्त सांघषव
करतय है उसे एक न एक ढ़दन सिितय अर्श्् लमित़ी है । सांघषव करनय तो मयनर् की नन्नत है । प्रत््ेक व््जक्त
ककस़ी न ककस़ी रूप में ि़ीर्नभर सांघषव करतय है । ्ढ़द सांघषव नहीां कक्य तो मयनर् ि़ीर्न एकयकी एर्ां ऩीरस बन
ियएगय। इन सांघषों से िझ ू कर व््जक्त सिितय के ऊाँचे लशिर पर पहुाँच सकतय है । िेिक कय ि़ीर्न भ़ी बहुत
सांघषवश़ीि रहय है । इन सांघषों से दो चयर होकर ही उसने ि़ीर्न के उददे श्् को प्रयप्त कर लि्य। इस तरह हम कह
सकते हैं कक िेिक अपनय उददे श्् प्रततत
ु करने में सिि रहय है ।
प्रश्न-8 लेखक कय पयिशयलय में पहलय अनुिव कैसय रहय?
उत्तर- िेिक किर से पयाँचऱ्ीां कक्षय में ियकर बैठने िगय। र्हयाँ उसे पुनः नयम लििर्यने की ज़रूरत नहीां पड़ी। ‘पयाँचऱ्ीां
नय पयस’ की ढ़टप्पण़ी उसके नयम के आगे लिि़ी हुई थ़ी। पहिे ढ़दन गिी के दो िडकों को छोडकर कोई भ़ी िडकी
उसकय ियनकयर नहीां थय। िेिक को बहुत बुरय िगय। र्ह सोचने िगय कक उसे अब उन िडकों के सयथ बैठनय पडेगय
जिन्हें र्ह मांद बगु ि समझतय थय। उसके सयथ के सभ़ी िडके तो आगे की कक्षयओां में चिे गए थे। इसलिए र्ह कक्षय
में तर््ां को बहुत अकेिय महसूस कर रहय थय।
प्रश्न-9 ‘जझू ’ उपन््यस की संवयि ्ोजनय की समीक्षय करें ।
उत्तर- सांर्यद ्ोिनय की दृजष्ट से ्ह उपन््यस बहुत सिि रहय है । इस उपन््यस के सांर्यद रोचक, मयलमवक, छोटे ककां तु
प्रभयर्शयिी हैं। उपन््यसकयर ने पयत्रों के अनुकूि सांर्यद प्रततुत ककए हैं। इस़ीलिए उनकी सांर्यद ्ोिनय पयत्रों की
चयररबत्रक वर्शेषतयएाँ भ़ी प्रततुत करत़ी हैं। इस उपन््यस के सभ़ी पयत्र अपने ततर और जतथनत के अनुसयर सांर्यद बोिते
हैं। िगभग सभ़ी सांर्यद पयत्रों की मनोजतथनत को प्रततत
ु करते हैं। छोटे सांर्यद अगिक प्रभयर्शयिी हैंटेबि पर मटमैिय
गमछय दे िकर उन्होंने पूछय “ककसकय है रे ?” “मेरय है मयतटर।” “तू कौन है ?” “मैं िकयते। “वपछिे सयि िेि होकर इस़ी
कक्षय में बैठय हूाँ।”
प्रश्न-10 कववतयएँ पढ़ते हुए लेखक को ककतनी शक्तत्यँ प्रयप्त हुई?
उत्तर- िेिक बतयतय है कक कवर्तयएाँ पिते हुए अथर्य कवर्तयओां के सयथ िेिते हुए उसे दो बड़ी शजक्त्याँ प्रयप्त हुई।
पहिी िेिक को डोि पर चिते हुए अकेियपन और ऊबयऊपन महसूस होतय थय िेककन कवर्तयएाँ पिने से िेिक कय
्ह ऊबयऊपन बबिकुि दरू हो ग्य। िेिक अपने आप ही िेिने िगय। िेिक को ऐस़ी, िगने िगय कक ्ढ़द र्ह
अकेिय रहे तो ही अच्छय है क््ोंकक अकेिे रहने से र्ह ज््यदय कवर्तयएाँ लिि सकतय थय। दस
ू रे िेिक को कवर्तय
गयनय आ ग्य। अब र्ह कयव्् पयठ करते-करते नयचने-गयने िगतय। उसे ि् तुकबांदी और छां द कय ज्ञयन होने िगय।
गयने के सयथ-सयथ अलभन् करनय भ़ी िेिक स़ीि ग्य। कवर्तय पयठ ने िेिक को न केर्ि श्रेष्ठ कवर् बनय ढ़द्य
बजल्क उसकी कयव्् प्रनतभय को कई िोगों ने पहचयनय।
प्रश्न-11 लेखक कववतय ककस ढं ग से भलखतय थय और कववतय बंिी के प्रतत उसकी लगन कैसी थी?
उत्तर- िब िेिक मरयठी अध््यपक सौंदिगेकर से प्रभयवर्त हुआ तो उसने िेतों में कयम करते-करते कवर्तयएाँ लििने
अथर्य रचन कय ननश्च् कक्य। भैंस चरयते-चरयते िेिक िसिों पर, िांगिी िूिों पर तुकबांदी करतय। ज़ोर-ज़ोर

105
गुनगुनयतय। कवर्तयएाँ लिितय किर उन्हें मयतटर ि़ी को भ़ी ढ़दियतय। कवर्तय रचने के लिए िेिक ि़ीसे में कयगि और
पें लसि भ़ी रिने िगय। कभ़ी ्ढ़द उसके पयस कयगि और पें लसि नहीां होतय तो िेिक िकड़ी के छोटे से टुकडे से भैंस
की प़ीठ पर रे िय ि़ीांचकर लिितय थय। कभ़ी-कभ़ी तो र्ह पत्थर पर भ़ी कांकडों से कवर्तय लिि ढ़द्य करतय थय। िब
कवर्तय ्यद हो ियत़ी तो र्ह कवर्तय को लमटय दे तय। र्यततर् में कवर्तय के प्रनत िेिक की िगन बहुत ज््यदय थ़ी।
कवर्तय के लिए र्ह अपनय परू य ि़ीर्न बबतय दे नय चयहतय थय।
प्रश्न-12 ित्तयजी रयव ने ियिय की झखंचयई ककस प्रकयर की?
उत्तर- सरकयर ने आनांदय की पियई के मयमिे पर दयदय पर िूब गुतसय कक्य। उन्होंने दयदय की िूब हियमत बनयई।
दे सयई के मफ़य (िेत) को छोड दे ने के बयद दयदय कय ध््यन ककस तरह कयम की तरि नहीां रहय। मन िगयकर र्ह िेत
में ककस तरह श्रम नहीां करतय है ; िसि में ियगत नहीां िगयतय है , िुगयई और बच्चों को कयम में िोतकर ककस तरह
िुद गयाँर् भर में िुिे सयाँड की तरह घूमतय है और अब अपऩी मतत़ी के लिए ककस तरह छोरय के ि़ीर्न की बलि
चिय रही है ।
प्रश्न-13 पहले ठिन शरयरती लिके चवहयण ने लेखक के सयथ त्य कक्य?
उत्तर- िब पहिे ढ़दन िेिक तकूि आ्य तो र्ह सहमय हुआ थय। उसके पयस ढां ग के कपडे तथय बततय भ़ी नहीां थय।
उसकी ियन-पहचयन भ़ी नहीां थ़ी। शरयरत़ी चव्हयण ने पछ
ू य कक र्ह न्य िगतय है ्य किर र्ह गित़ी से आ बैठय है ।
िेिक बयिुगड़ी की ियि मयटी के रां ग में मटमैिी िोत़ी र् गमछय पहने हुए थय। चव्हयण ने उसकय गमछय छीन लि्य
और उसे अपने लसर पर िपेट कर मयतटर की चकि की। उसने उसे उतयरकर टे बि पर रिय और अपने लसर पर हयथ
िेरते हुए हुश्श की आर्यज़ की। मयतटरि़ी के आने पर र्ह चुपचयप अपऩी िगह पर िय बैठय।
प्रश्न-14 जझ
ू ’ कहयनी मुख्् पयत्र की ककस चयररत्रत्रक ववशेषतय को उजयगर करतय है ?
उत्तर- श़ीषवक ककस़ी रचनय कय मुख्् आियर होतय है । इससे पयठक को वर्ष्र्ततु कय बोि होतय है । ‘िूझ’ श़ीषवक अपने
आप में अपऩी बयत को प्रकट करतय है । िझ
ू ’ कय अथव है - सांघषव। इस कहयऩी में िेिक कय सांघषव ढ़दिय्य ग्य है ।
्ह श़ीषवक आत्मकथय के मि
ू तर्र के रूप में सर्वत्र ढ़दियई दे तय है । कथयनय्क को लशक्षय प्रयप्त करने के लिए कई
ततरों पर सांघषव करनय पडय। पररर्यर, समयि, आगथवक, वर्द्यि् आढ़द हर ततर पर उसकय सांघषव ढ़दियई दे तय है । ्ह
श़ीषवक कथयनय्क के पियई के प्रनत िझ
ू ने की भयर्नय को उियगर करतय है ।
प्रश्न-15 जझ
ू ’ कहयनी में आपको ककस पयत्र ने सबसे अथधक प्रियववत कक्य और त्ों?
उत्तर- ‘िूझ’ कहयऩी में दत्तय ि़ी रयर् दे सयई एक प्रभयर्शयिी चररत्र के रूप में हैं। र्े आम िोगों के कष्ट दरू करने की
कोलशश भ़ी करते हैं। उनके चररत्र की ननम्नलिखित वर्शेषतयएाँ हैं-
1. तकथशील – दत्तय ि़ी रयर् तकव के मयढ़हर हैं। िेिक की पियई के सांबि
ां में र्े िेिक के वपतय से तकव करते हैं।
जिसके कयरण र्ह उसे पियने की मांिूरी दे तय है ।
2. मििगयर – दत्तय ि़ी रयर् िोगों की मदद करते हैं। र्े िेिक की पियई कय िचव भ़ी उठयने को तै्यर हो ियते हैं।
3. प्रेरक – दत्तय सयहब कय व््जक्तत्र् प्रेरणयदय्क है । र्े अच्छे कय्ों के लिए दस
ू रों को प्रोत्सयढ़हत भ़ी करते हैं। इस़ी
की प्रेरणय से िेिक कय वपतय बेटे को पियने को तै्यर होतय है ।
4. समझियर – दत्तय बेहद सझ
ू बूझ र्यिे व््जक्त थे। िेिक उसकी मयाँ की बयत कय अथव र्े श़ीघे ही समझ ियते हैं। र्े
िेिक के वपतय को बुियकर उसे समझयते हैं कक र्ह बेटे की पियई करर्यए। र्ह मयाँ-बेटे की बयत को भ़ी गुप्त ही
रितय है ।
अतीत में िबे पयँव

प्रश्न-1 भसंधु सभ््तय सयधन-संपन्न थी, पर उसमें िव्तय कय आडंबर नहीं थय, कैसे?
उत्तर- लसांि-ु सभ््तय के शहर मुअनिो-दडो की व््र्तथय, सयिन और नन्ोिन के वर्ष् में िूब चचयव हुई है । इस बयत
से सभ़ी प्रभयवर्त हैं कक र्हयाँ की अन्न-भांडयरण व््र्तथय, िि-ननकयस़ी की व््र्तथय अत््ांत वर्कलसत और पररपक्र्
थ़ी। हर ननमयवण बड़ी बद
ु िमयऩी के सयथ कक्य ग्य थय; ्ह सोचकर कक ्ढ़द लसांिु कय िि बतत़ी तक िैि भ़ी ियए
तो कम-से-कम नुकसयन हो। इन सयरी व््र्तथयओां के ब़ीच इस सभ््तय की सांपन्नतय की बयत बहुत ही कम हुई है ।
106
र्ततुत: इनमें भव््तय कय आडांबर है ही नहीां। व््यपयररक व््र्तथयओां की ियनकयरी लमित़ी है , मगर सब कुछ
आर्श््कतयओां से ही िुडय हुआ है , भव््तय कय प्रदशवन कहीां नहीां लमितय। सांभर्त: र्हयाँ की लिवप पि िी ियने के बयद
इस वर्ष् में अगिक ियनकयरी लमिे।
प्रश्न-2 ‘भसंध-ु सभ््तय की खूबी उसकय सौंि्थ-बोध है जो रयज-पोवषत ्य धमथ-पोवषत न होकर समयज-पोवषत थय।’
ऐसय त्ों कहय ग्य?
उत्तर- लसांिु घयटी के िोगों में किय ्य सुरुगच कय महत्त्र् ज््यदय थय। र्यततक
ु िय ्य नगर-नन्ोिन ही नहीां, ियतु और
पत्थर की। मूनतव्याँ, मद
ृ -भयांडे, उन पर गचबत्रत मनुष््, र्नतपनत और पशु-पक्षक्ष्ों की छवर््याँ, सुननलमवत मुहरें , उन पर
बयरीकी से उत्कीणव आकृनत्याँ, खििौने, केश-वर्न््यस, आभष
ू ण और सबसे ऊपर सघ
ु ड अक्षरों कय लिवपरूप लसांिु
सभ््तय को तकऩीक-लसदि से ज््यदय किय-लसदि ियढ़हर करतय है । िुदयई के दौरयन िो भ़ी र्ततुएाँ लमिीां ्य किर िो
भ़ी ननमयवण शैिी के तत्र् लमिे, उन सभ़ी से ्ही बयत ननकिकर आत़ी है कक लसांिु सभ््तय समयि प्रियन थ़ी। ्ह
व््जक्तगत न होकर सयमूढ़हक थ़ी। इसमें न तो ककस़ी रयिय कय प्रभयर् थय और न ही ककस़ी िमव वर्शेष कय। इतनय
अर्श्् है कक कोई-न-कोई रयिय होतय होगय िेककन रयिय पर आगश्रत ्ह सभ््तय नहीां थ़ी। इन सभ़ी बयतों के आियर
पर ्ह बयत कही िय सकत़ी है कक लसांिु सभ््तय कय सौंद्व समयि पोवषत थय।
प्रश्न-3 पुरयतत्व के ककन थचह्नों के आधयर पर आप ्ह कह सकते हैं कक-“भसंधु सभ््तय तयकत से शयभसत होने की
अपेक्षय समझ से अनुशयभसत सभ््तय थी।”
उत्तर- लसांि-ु सभ््तय से िो अर्शेष प्रयप्त हुए हैं उनमें औियर तो हैं, पर हगथ्यर नहीां हैं। मअ
ु निो-दडो, हडप्पय से
िेकर हरर्यणय तक समूच़ी लसांिु-सभ््तय में हगथ्यर उस तरह नहीां लमिे हैं िैसे ककस़ी रयितांत्र में होते हैं। दस ू री
िगहों पर रयितांत्र ्य िमवतत्र
ां की तयकत कय प्रदशवन करने र्यिे महि, उपयसनय-तथि, मूनतव्याँ और वपरयलमड आढ़द
लमिते हैं। हडप्पय सांतकृनत में न भव्् रयिप्रयसयद लमिे हैं, न मांढ़दर, न रयियओां र् महतों की समयगि्याँ। मुअनिो-दडो
से लमिय नरे श के लसर कय मुकुट भ़ी बहुत छोटय है । इन सबके बयर्िूद ्हयाँ ऐसय अनुशयसन िरूर थय िो नगर-
्ोिनय, र्यतत-ु लशल्प, मह
ु र-ठप्पों, पयऩी ्य सयफ़-सफ़यई िैस़ी सयमयजिक व््र्तथयओां में एकरूपतय रिे हुए थय। इन
आियरों पर वर्दर्यन ्ह मयनते हैं कक ्ह सभ््तय समझ से अनुशयलसत सभ््तय थ़ी, न कक तयकत से।
प्रश्न-4 ‘्ह सच है कक ्हयँ ककसी आँगन की टूटी-फूटी सीठढ़्यँ अब आप को कहीं नहीं ले जयतीं; वे आकयश की तरफ़
अधूरी रह जयती हैं, लेककन उन अधूरे पय्ियनों पर खिे होकर अनुिव कक्य जय सकतय है कक आप ितु न्य की ्त
पर हैं, वहयँ से आप इततहयस को नहीं उस के पयर झयँक रहे हैं।’ इस कथन के पी्े लेखक कय त्य आश् है ?
उत्तर- इस कथन के प़ीछे िेिक कय आश् ्ही है कक िांडहर होने के बयद भ़ी पय्दयन ब़ीते इनतहयस कय परू य पररच्
दे ते हैं। इतऩी ऊाँच़ी छत पर तर््ां चिकर इनतहयस कय अनुभर् करनय एक बढ़ि्य रोमयांच है । लसांिु घयटी की सभ््तय
केर्ि इनतहयस नहीां है बजल्क इनतहयस के पयर की र्ततु है । इनतहयस के पयर की र्ततु को इन अिूरे पय्दयनों पर िडे
होकर ही दे िय िय सकतय है। ्े अिरू े पय्दयन ्ही दशयवते हैं. कक वर्श्र् की दो सबसे प्रयच़ीन सभ््तयओां कय इनतहयस
कैसय रहय।
प्रश्न-5 टूटे -फूटे खंडहर, सभ््तय और संस्कृतत के इततहयस के सयथ-सयथ धिकती क्जंिथग्ों के अन्ुए सम्ों को िी
िस्तयवेज़ होते हैं-इस कथन कय ियव स्पष्ट कीक्जए।
उत्तर- ्ह सच है कक टूटे -िूटे िांडहर, सभ््तय और सांतकृनत के इनतहयस के सयथ-सयथ िडकत़ी जिांदगग्ों के अनछुए
सम्ों कय भ़ी दततयर्ेि होते हैं। मअ
ु निो-दडो में प्रयप्त िांडहर ्ह अहसयस करयते हैं कक आि से पयाँच हियर सयि
पहिे कभ़ी ्हयाँ बतत़ी थ़ी। ्े िांडहर उस सम् की सांतकृनत कय पररच् करयते हैं। िेिक कहतय है कक इस आढ़दम
शहर के ककस़ी भ़ी मकयन की दीर्यर पर प़ीठ ढ़टकयकर सुततय सकते हैं चयहे र्ह एक िांडहर ही क््ों न हो, ककस़ी घर
की दे हरी पर पयाँर् रिकर आप सहसय सहम सकते हैं, रसोई की खिडकी पर िडे होकर उसकी गांि महसस
ू कर सकते
हैं ्य शहर के ककस़ी सुनसयन मयगव पर कयन दे कर बैिगयड़ी की रुन-झुन सुन सकते हैं। इस तरह ि़ीर्न के प्रनत
सिग दृजष्ट होने पर पुरयतयजत्र्क िांडहर भ़ी ि़ीर्न की िडकन सुनय दे ते हैं। ्े एक प्रकयर के दततयर्ेि होते हैं िो
इनतहयस के सयथ-सयथ उस अनछुए सम् को भ़ी हमयरे सयमने उपजतथत कर दे ते हैं।

107
प्रश्न-6 निी, कुएँ, स्नयनयगयर और बेजोि तनकयसी व्वस्थय को िे खते हुए लेखक पयिकों से प्रश्न पू्तय है कक त्य
हम भसंधु घयटी सभ््तय को जल-संस्कृतत कह सकते हैं? आपकय जवयब लेखक के पक्ष में है ्य ववपक्ष में ? तकथ िें ।
उत्तर- लसांिु घयटी सभ््तय में नदी, कुएाँ, तनयनयगयर र् बेिोड ननकयस़ी व््र्तथय के अनुसयर िेिक इसे ‘िि-सांतकृनत’
की सांज्ञय दे तय है । मैं िेिक की बयत से पण
ू त
व : सहमत हूाँ। लसांिु-सभ््तय को िि-सांतकृनत कहने के समथवन में ननम्न
लिखित कयरण हैं –
1. ्ह सभ््तय नदी के ककनयरे बस़ी है । मुअनिो-दडो के ननकट लसांिु नदी बहत़ी है ।
2. ्हयाँ प़ीने के पयऩी के लिए िगभग सयत सौ कुएाँ लमिे हैं। ्े कुएाँ पयऩी की बहुतय्त लसदि करते हैं।
3. मअ
ु निो-दडो में तनयनयगयर हैं। एक पांजक्त में आठ तनयनयगयर हैं जिनमें ककस़ी के भ़ी दर्यर एक-दस
ू रे के
सयमने नहीां िुिते। कांु ड में पयऩी के ररसयर् को रोकने के लिए चूने और गचरयड़ी के गयरे कय इततेमयि हुआ है ।
4. िि-ननकयस़ी के लिए नयलि्याँ र् नयिे बने हुए हैं िो पकी ईटों से बने हैं। ्े ईटों से ढाँ के हुए हैं। आि भ़ी शहरों
में िि-ननकयस़ी के लिए ऐस़ी व््र्तथय की ियत़ी है ।
5. मकयनों में अिग-अिग तनयनयगयर बने हुए हैं।
6. मह
ु रों पर उत्कीणव पशु शेर, हयथ़ी ्य गैडय िि-प्रदे शों में ही पयए ियते हैं।
प्रश्न-7 भसंधु घयटी सभ््तय कय कोई भलझखए सयक्ष्् नहीं भमलय है । भसफ़थ अवशेषों के आधयर पर ही धयरणय बनयई है ।
इस लेख में मुअन-जोििो के बयरे में जो धयरणय व्तत की गई है । त्य आपके मन में इससे कोई भिन्न धयरणय ्य
ियव िी पैिय होतय है ?
उत्तर- ्ढ़द मोहनिोदडो अथयवत ् लसांिु घयटी की सभ््तय के बयरे में ियरणय बबनय सयक्ष््ों के बनयई गई है तो ्ह गित
नहीां है । क््ोंकक िो कुछ हमें िुदयई से लमिय है र्ह ककस़ी सयक्ष्् से कम नहीां। िुदयई के दौरयन लमिे बतवनों, लसक्कों,
नगरों, सडकों, गलि्ों को सयक्ष्् ही कहय िय सकतय। सयक्ष्् लिखित हों ्ह िरूरी नहीां है । िो कुछ हमें सयमने
ढ़दियई दे रहय है र्ह भ़ी तो प्रमयण है । किर हम इस तथ्् को कैसे भुिय दें कक ्े दोनों नगर वर्श्र् की प्रयच़ीनतम
सांतकृनत और सभ््तय के प्रमयण हैं। इन्हीां के कयरण अन्् सभ़ी सांतकृनत्याँ वर्कलसत हुईं। मअ
ु न-िोदडो के बयरे में िो
ियरणय व््क्त की गई है । र्ह हर दृजष्ट से प्रयमयखणक है । उसके बयरे में अन्् कोई ियरणय मेरे मन में नहीां बनत़ी।
प्रश्न-8 मुअनजोििो की बिी बस्ती के बयरे में ववस्तयर से बतयइए।
उत्तर- िेिक बतयतय है कक बड़ी बतत़ी के घर बहुत बडे होते थे। इस़ी प्रकयर इन घरों के आाँगन भ़ी बहुत िुिे होते थे।
इन घरों की दीर्यरें ऊाँच़ी और मोटी होत़ी थ़ीां। जिस आियर पर कहय िय सकतय है कक मोटी दीर्यरों र्यिे घर दो मांजििे
होते होंगे। कुछ दीर्यरों में छे द भ़ी लमिे हैं िो ्ही सांकेत दे ते हैं कक दस
ू री मांजिि को उठयने के लिए शय्द शहत़ीरों
के लिए ्ह िगह छोड दी गई होग़ी। सभ़ी घर पक्की ईंटों के हैं। एक ही आकयर की ईंटे इन घरों में िगयई गई हैं।
्हयाँ पत्थर कय प्र्ोग ज््यदय नहीां हुआ। कहीां-कहीां नयलि्ों को अनगि पत्थरों से ढक ढ़द्य है तयकक गांदग़ी न िैिे।
इस प्रकयर मअ ु निोदडो की बड़ी बतत़ी ननमयवण किय की दृजष्ट से सांपन्न एर्ां कुशि थ़ी।
प्रश्न-9 त्य भसन्धु सभ््तय में रं गयई कय कयम होतय थय?
उत्तर- लसन्िु सभ््तय में भ़ी रां गयई कय कयम होतय थय। िोग बडे चयर् से ्ह कयम कक्य करते थे। आि भ़ी मअ
ु न-
िोदडो में एक रां गरे ि कय कयरियनय मौिूद है । ्हयाँ ज़म़ीन में गोि गड्ढे उभरे हुए हैं। इससे ्ह अनुमयन िगय्य
ियतय है कक इसमें रां गयई के लिए बतवन रिे ियते होंगे। पजश्चम में ठीक गिी के प़ीछे ्ह कयरियनय लमिय है । अतः
इस बयत को बबनय ककस़ी शांकय के कहय िय सकतय है कक प्रयच़ीन िोग रां गयई कय कयम कक्य करते थे।
प्रश्न-10 खि
ु यई के िौरयन मुअनजोििो से त्य-त्य भमलय?
उत्तर- मुअनिोदडो से ननकिी र्ततुओां की पांि़ीकृत सांख््य पचयस हियर है । अहम च़ीिें तो आि करयच़ी, ियहौर,
ढ़दल्िी और िांदन में रि़ी हुई हैं। मठ्ु ठीभर च़ीिें ्हयाँ के अिय्बघर में रि़ी हुई हैं जिनमें गेहूाँ, तयाँबे और कयाँसे के
बतवन, मुहरें , र्यद् ्ांत्र, चयक पर बने बडे-बडे लमट्टी के मटके, चौपड की गोढ़ट्याँ, दी्े, मयप तौि के पत्थर, तयाँबे कय
श़ीशय, लमट्टी की बैिगयड़ी, दो पयटों र्यिी चक्की, लमट्टी के कांगन, मनकों र्यिे पत्थर के हयर प्रमि
ु हैं। इस प्रकयर
िुदयई के दौरयन बहुत-स़ी र्ततुएाँ लमिीां जिनमें कुछ तो सांग्रहयि्ों में चिी गई और बयकी बच़ी चोरी हो गईं।

108
प्रश्न-11 भसंधु घयटी की सभ््तय कैसी थी? तकथ सठहत उत्तर िें ।
उत्तर- िेिक के मतयनुसयर लसांिु घयटी की सभ््तय ‘िो-प्रोियइि’ सभ््तय थ़ी। दस
ू रे तथयनों पर िुदयई करने से रयितांत्र
को प्रदलशवत करने र्यिे महि िमव की तयकत ढ़दियने र्यिे पूिय तथि, मूनतव्याँ और वपरयलमड लमिे हैं िबकक
मुअनिोदडो की िुदयई के दौरयन न तो रयिप्रसयद ही लमिे और न ही मांढ़दर। ्हयाँ ककस़ी रयिय अथर्य महां त की
समयगि भ़ी नहीां लमिी। ्हयाँ िो नरे श की मनू तव लमिी है उनके मक
ु ु ट कय आकयर बहुत छोटय है । इतनय छोटय कक इससे
छोटे लसरपांच की कल्पनय भ़ी नहीां की िय सकत़ी। इन िोगों की नयर्ों कय आकयर भ़ी ज््यदय बडय नहीां थय। इन आियरों
पर कहय िय सकतय है कक लसांिु घयटी की । सभ््तय आडांबर हीन सभ््तय थ़ी। ऐस़ी सभ््तय िो छोटी होते हुए भ़ी
महयन थ़ी। िो वर्श्र् की प्रयच़ीनतम सांतकृनत थ़ी।
प्रश्न-12 ककन आधयरों पर कहय जय सकतय है कक भसंधु सभ््तय में रयजतंत्र नहीं थय?
उत्तर- मुअनिोदडो के अिय्बघर में प्रदलशवत च़ीज़ों में औज़यर तो हैं, पर हगथ्यर कोई नहीां है । मुअनिोदडो क््य,
हडप्पय से िेकर हरर्यणय तक समूच़ी लसांिु सभ््तय में हगथ्यर उस तरह कहीां नहीां लमिे हैं िैसे ककस़ी रयितांत्र में
होते हैं। इस बयत को िेकर वर्दर्यन लसांिु सभ््तय में शयसन ्य सयमयजिक प्रबांि के तौर-तरीके को समझने की
कोलशश कर रहे हैं। र्हयाँ अनश
ु यसन ज़रूर थय, पर तयकत के बि पर नहीां। र्े मयनते हैं कोई सैन्् सत्तय शय्द ्हयाँ न
रही हो। मगर कोई अनुशयसन ज़रूर थय िो नगर ्ोिनय, र्यततुलशल्प, मुहर-ठप्पों, पयऩी ्य सयफ़-सफ़यई िैस़ी
सयमयजिक व््र्तथयओां आढ़द में एकरूपतय तक को कय्म रिे हुए थय।
दस
ू री बयत, िो सयांतकृनतक िरयति पर लसांिु घयटी सभ््तय को दस
ू री सभ््तयओां से अिग िय िडय करत़ी है ,
र्ह है प्रभुत्र् ्य ढ़दियर्े के तेर्र कय नदयरद होनय। दस
ू री िगहों पर रयितांत्र ्य िमवतांत्र की तयकत कय प्रदशवन करने
र्यिे महि, उपयसनय-तथि, मूनतव्याँ और वपरयलमड आढ़द लमिते हैं। हडप्पय सांतकृनत में न भव्् रयिप्रसयद लमिे हैं, न
मांढ़दर। न रयियओां, महां तों की समयगि्याँ। ्हयाँ के मूनतवलशल्प छोटे हैं और औज़यर भ़ी। मुअनिोदडो के नरे श’ के लसर
पर िो ‘मुकुट’ है , शय्द उससे छोटे लसरपांच की कल्पनय भ़ी नहीां की िय सकत़ी। और तो और, उन िोगों की नयर्ें
बनयर्ट में लमस्र की नयर्ों िैस़ी होते हुए भ़ी आकयर में छोटी रहीां। आि के मह
ु यर्रे में कह सकते हैं र्ह ‘िो-प्रोियइि’
सभ््तय थ़ी।
प्रश्न-13 मुअनजोििो और हिप्पय के बयरे में लेखक त्य बतयतय है ?
उत्तर- मुअनिोदडो और हडप्पय प्रयच़ीन भयरत के ही नहीां, दनु न्य के दो सबसे पुरयने नन्ोजित शहर मयने ियते हैं। ्े
लसांिु घयटी सभ््तय के परर्ती ्यऩी पररपक्र् दौर के शहर हैं। िुदयई में और शहर भ़ी लमिे हैं। िेककन मुअनिोदडो
तयम्र कयि के शहरों में सबसे बडय है । र्ह सबसे उत्कृष्ट भ़ी है । व््यपक िुदयई ्हीां पर सांभर् हुई। बड़ी तयदयद में
इमयरतें , सडकें, ियतु-पत्थर की मूनतव्याँ, चयक पर बने गचबत्रत भयांडे, मुहरें , सयिोसयमयन और खििौने आढ़द लमिे।
सभ््तय कय अध्््न सांभर् हुआ। उिर सैकडों म़ीि दरू हडप्पय के ज््यदयतर सयक्ष्् रे िियइन बबछने के दौरयन वर्कयस
की भें ट चि गए।’ मअ
ु निोदडो के बयरे में ियरणय है कक अपने दौर में र्ह घयटी की सभ््तय कय केंद्र रहय होगय। ्यऩी
एक तरह की रयिियऩी। मयनय ियतय है ्ह शहर दो सौ हे क्टर क्षेत्र में िैिय थय। आबयदी कोई पचयस़ी हियर थ़ी।
ियढ़हर है , पयाँच हियर सयि पहिे ्ह आि के ‘महयनगर’ की पररभयषय को भ़ी ियांघतय होगय।
प्रश्न-14 लेखक के मअ
ु नजोििो की नगर ्ोजनय की तल
ु नय आज के नगरों से ककस प्रकयर की है ?
उत्तर- नगर नन्ोिन की मोहनिोदडो अनूठी लमसयि है; इस कथन कय मतिब आप बडे चबूतरे से ऩीचे की तरि
दे िते हुए सहि ही भयाँप सकते हैं। इमयरतें भिे िांडहरों में बदि चक
ु ी हों, मगर शहर की सडकों और गलि्ों के
वर्ततयर को तपष्ट करने के लिए ्े िांडहर कयफ़ी हैं। ्हयाँ की कमोबेश सयरी सडकें स़ीि़ी हैं ्य किर आड़ी। आि
र्यततुकयर इसे ‘गग्रड प्ियन’ कहते हैं। आि की सेक्टर-मयकयव कॉिोनन्ों में हमें आडय-स़ीिय ‘नन्ोिन’ बहुत लमितय है ।
िेककन र्ह रहन-सहन को ऩीरस बनयतय है । शहरों में नन्ोिन के नयम पर भ़ी हमें अरयिकतय ज़््यदय हयथ िगत़ी है ।
ियस़ीलि्य ्य चांड़ीगि और इतियमयबयद ‘गग्रड’ शैिी के शहर हैं िो आिुननक नगर नन्ोिन के प्रनतमयन ठहरयए ियते
हैं, िेककन उनकी बसयर्ट शहर के िुद वर्कयस करने कय ककतनय अर्कयश छोडत़ी है इस पर बहुत शांकय प्रकट की
ियत़ी है ।

109
प्रश्न-15 महयकंु ड में जल तनकयसी व्वस्थय कैसी थी?
उत्तर- महयकांु ड ततूप के टीिे से ऩीचे उतरने पर लमितय है । िरोहर के प्रबांिकों ने गिी कय नयम दै र् मयगव रिय है ।
मयनय ियतय है कक उस सभ््तय में सयमूढ़हक तनयन ककस़ी अनुष्ठयन कय अांग होतय थय। कांु ड करीब चयिीस िुट िांबय
और पच्च़ीस िुट चौडय है । गहरयई सयत िुट। कांु ड में उत्तर और दक्षक्षण से स़ीढ़ि्याँ उतरत़ी हैं। इसके त़ीन तरि
सयिओ
ु ां के कक्ष बने हुए हैं। उत्तर में दो पयांत में आठ तनयनघर हैं। इनमें ककस़ी कय दर्यर दस ू रे के सयमने नहीां िुितय।
लसदि र्यततुकिय कय ्ह भ़ी एक नमन ू य है । इस कांु ड में ियस बयत पक्की ईंटों कय िमयर् है ।
कांु ड कय पयऩी ररस न सके और बयहर कय ‘अशुदि पयऩी कांु ड में न आए, इसके लिए कांु ड के ति में और
दीर्यरों पर ईंटों के ब़ीच चन
ू े और गचरोड़ी के गयरे कय इततेमयि हुआ है । पयश्र्र् की दीर्यरों के सयथ दस
ू री दीर्यर िड़ी
की गई है जिसमें सफ़ेद डयमर कय प्र्ोग है । कांु ड के पयऩी के बांदोबतत के लिए एक तरि कुआाँ है । दोहरे घेरे र्यिय
्ह अकेिय कुआाँ है । इसे भ़ी कांु ड के पवर्त्र ्य आनुष्ठयननक होने कय प्रमयण मयनय ग्य है । कांु ड से पयऩी को बयहर
बहयने के लिए नयलि्याँ हैं। इनकी ियलस्त ्ह है कक ्े भ़ी पक्की ईंटों से बऩी हैं और ईंटों से ढकी भ़ी हैं।
प्रश्न-16 प्थटक मुअनजोििो में त्य-त्य िे ख सकते हैं? ‘अतीत में िबे पयँव’ पयि के आधयर पर वणथन कीक्जए।
उत्तर- प्वटक मअ
ु निोदडो में ननम्नलिखित च़ीिें दे ि सकते हैं-
1. बौदध स्तप
ू – मुअनिोदडो में सबसे ऊाँचे चबूतरे पर बडय बौदि ततूप है । ्ह ततप
ू मुअनिोदडो के बबिरने के
बयद बनय थय। 25 िुट ऊाँचे चबूतरे पर बनय है । इसमें लभक्षुओां के रहने के कमरे भ़ी बने हैं।
2. स्नयनयगयर – ्हयाँ पर 40 िुट िांबय तथय 25 िुट चौडय कांु ड बनय हुआ है । ्ह सयत िुट गहरय है । कांु ड के उत्तर
और दक्षक्षण से स़ीढ़ि्याँ उतरत़ी हैं। उत्तर में आठ तनयनयगयर एक पांजक्त में हैं। इसमें एक तरि त़ीन कक्ष हैं।
3. अजय्बघर – ्हयाँ कय अिय्बघर छोटय ही है । ्हयाँ कयिय पड ग्य गेहूाँ, तयाँबे और कयाँसे के बतवन, मुहरें , र्यद्,
चयक पर बने वर्शयि मद
ृ भयांड, दी्े, तयाँबे कय आईनय, दो पयटन र्यिी चक्की आढ़द रिे हैं।

110
111
संििथ एवं आियर

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2- https://keepinspringme.in>question

3- www.studyrankers.com>ncert

4- www.cbsetuts.com>ncert-solutions

5- cbseacademic-nic.in

6- ncert.nic.in/textbook

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