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om
3 यथासींभव प्रत्येक खींड के प्रश्नों के उत्तर क्रमर्् दीजिए |
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खींड-‘क’ अींक-15
(अऩहठि अींर्)
od
1 ननम्ननरखित गद्यॊश को ध्मयनऩूर्क
व ऩढ़िए औय ऩूछे गए प्रश्नों के उत्तय नरखिए- (8)
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जीर्न के सबी सुि, सबी सौंदमव, सबी आनॊद स्र्स्थ होने ऩय ही नभरते हैं |
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है , दग
ु ध
ं मुक्त हो जयतय है , ठीक इसी प्रकयय नशनथर औय कभवहीन जीर्न से
स्र्यस््म िो जयतय है | स्र्यस््म औय िेर-कूद कय ऩयस्ऩय गहयय सॊफॊध है | ऩशु-
ऩऺी हो मय भनुष्म, जो िेरतय-कूदतय नहीॊ, र्ह उत्पुल्र औय प्रसन्न यह नहीॊ
सकतय | जफ हभ िेरते हैं तो हभभें नमय प्रयणयर्ेग, नई स्पूनतव औय नई चेतनय
आ जयती है | हभ दे िते हैं ढ़क हर्य के झोंके एक-दस
ू ये कय ऩीछय कयते हुए दयू -
दयू तक दौड़ते हैं , र्ृऺों की शयियओॊ को ढ़हरय-ढ़हरयकय अठिेनरमयॉ कयते हैं |
आकयश भें उड़ते ऩऺी तयह-तयह की िीड़यएॉ कयते हैं | हभें बी जीर्न-जगत ् से
प्रेयणय रेते हुए िुरे भन से िेर-कूद भें बयग रेनय चयढ़हए |
(क) स्र्यस््म औय िेर-कूद ऩयस्ऩय एक दस
ू ये के ऩूयक हैं - कैसे ? (2)
(ि) उदयहयण दे ते हुए नसद्ध कीखजए ढ़क प्रकृ नत बी िेर-कूद ऩसॊद कयती है | (2)
(ग) स्र्यस््म कय कभव से क्मय सॊफॊध है ? (2)
(घ) जीर्न को जर क्मों कहय गमय है ? (1)
(ड) उऩमुक्त
व गद्यॊश के नरए उऩमुक्त शीर्वक नरखिए | (1)
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भुझको अऩने ऩय अदम्म ष्टर्श्वयस यहय है |
भैं िॊडहय को ढ़पय से भहर फनय सकतय हूॉ |
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जफ-जफ बी भैंने िॊडहय आफयद ढ़कए हैं ,
प्ररम-भेघ बूचयर दे ि भुझको शयभयए |
ay
od
भैं भजदयू भुझे दे र्ों की फस्ती से क्मय,
भैंने अगखणत फयय धयय ऩय स्र्गव फनयए |
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उऩमुक्त
व कयवम-ऩॊष्टक्तमों भें ढ़कसकय भहत्र् प्रनतऩयढ़दत ढ़कमय गमय है ? (1)
(1)
di
(2)
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भेये ‘भैं’ की सॊऻय बी इतनी वमयऩक है इसभें भुझ-से अगखणत प्रयणी आ जयते हैं
w
(2)
(4) |
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उऩमुक्त
व ऩॊष्टक्त कय बयर् स्ऩि कीखजए |
(2)
(5)
अऩनी शष्टक्त औय ऺभतय के प्रनत भजदयू ने क्मय कहकय अऩनय आत्भ-ष्टर्श्वयस
प्रकट ढ़कमय है ?
अथवा
गॊध की रकीय सी
आॉिों भें हो गई यॊ गों की फयसयत
अनयमयस कह उठय
र्यह !
धन्म है र्सॊत ऋतु |
रौटने को ऩैय ज्मों फियमे तो
क्मययी के कोने भें दफ
ु कय एक नन्हय पूर अचयनक फोर ऩड़य :
सुनो
एक छोटय-सय सत्म तुम्हें सौंऩतय हूॉ
धन्म है र्सॊत ऋतु, ठीक है
ऩय उसकी धन्मतय उसकी कभयई नहीॊ
om
र्ह हभने यची है ,
हभने
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मयनी भैंने
भुझ जैसे भेये अननगनत सयनथमों ने –
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खजन्होंने इस क्मययी भें अऩने-अऩने ठयॉर् ऩय
धूऩ औय फयसयत,
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ऩय क्मय कबी ऩर बय बी
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तुभ उस रौ को बी दे ि सके
w
खजसके फर
w
खींड-‘ख’ अॊक-15
(व्याविाररक व्याकरण)
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3
(आनश्रत उऩर्यक्म छयॉटकय बेद बी नरखिए)
भेयी भयॉ चयहती हैं ढ़क भैं अच्छय इॊ सयन फनूॉ |
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4
(ये ियॊढ़कत उऩर्यक्म कय बेद नरखिए)
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od
4 ननम्ननरखित र्यक्मों भें से ढ़कन्हीॊ चयय र्यक्मों कय ननदे शयनुसयय र्यच्म ऩरयर्तवन (1x4=4)
कीखजए-
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5 5 ननम्ननरखित र्यक्मों भें से ढ़कन्हीॊ चयय र्यक्मों के ये ियॊढ़कत ऩदों कय ऩद-ऩरयचम (1x4=4)
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नरखिए-
w
om
अनधक छयमयदयय पर-पूर गॊध से बयय औय सफसे अरग, सफकय होकय, सफसे
ऊॉचयई ऩय, भयनर्ीम करुणय की ढ़दवम चभक भें रहरहयतय िड़य थय | खजसकी
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स्भृनत हभ सफके भन भें (जो उनके ननकट थे) ढ़कसी मऻ की ऩष्टर्त्र आग की
ay
आॉच की तयह आजीर्न फनी यहे गी | भैं उस ऩष्टर्त्र ज्मोनत की मयद भें श्रद्धयनत हूॉ
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|
1 नभ आॉिों को नगननय स्मयही पैरयनय है ’ ऐसय रेिक ने क्मों कहय ? (2)
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8 ननम्ननरखित प्रश्नों भें से ढ़कन्ही चयय प्रश्नों के उत्तय सॊऺेऩ भें नरखिए- (2x4=8)
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1
ष्टफनय नहीॊ यह सके ?
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4 उस्तयद ष्टफखस्भल्रय ियॊ कयशी छोड़कय अन्मत्र क्मों नहीॊ जयनय चयहते थे ?
5 नर्यफ सयहफ िीयय ियने के अऩने ढॊ ग के भयध्मभ से क्मय ढ़दियनय चयहते थे ?
10 ननम्ननरखित प्रश्नों भें से ढ़कन्हीॊ चयय प्रश्नों के उत्तय सॊऺेऩ भें नरखिए- (2x4=8)
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3 सयभयखजक ियखन्त भें सयढ़हत्म की बूनभकय भहत्र्ऩूणव होती है | ‘उत्सयह’ कष्टर्तय
4 के आधयय ऩय इस कथन की सभीऺय कीखजए |
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मह ‘दॊ तुरयत भुस्कयन’ कष्टर्तय भें ‘फयॉस औय फफूर’ ढ़कसके प्रतीक फतयए गए हैं ?
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5 इन ऩय नशशु की भुस्कयन कय क्मय असय होतय है ?
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11 ‘भयतय कय अॊचर’ ऩयठ भें बोरयनयथ द्वययय चूहे के ष्टफर भें ऩयनी डयरनय फच्चों की (4)
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अथवा
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खींड-‘घ’ अींक-20
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( ऱेखन )
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1 आऩदा प्रबींधन
प्रस्तयर्नय
प्रयकृ नतक आऩदयएॉ
दोर्ी कौन
सयकयय की खजम्भेदययी
नयगरयकों के कतववम
उऩयम
2 सौर ऊिाश
प्रस्तयर्नय
सौय ऊजयव से तयत्ऩमव
सौय ऊजयव कय उत्ऩयदन
रयब
उऩसॊहयय
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भयनर् जीर्न की सयथवकतय
उऩसॊहयय
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13 दयू दशवन के भहयननदे शक को ऩत्र नरिकय ययष्ट्रीम एकतय तथय सयम्प्रदयनमक (5)
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सदबयर् फियने र्यरे कयमविभ प्रसयरयत कयने कय आग्रह कीखजए |
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अथवा
‘सयभयखजक सेर्य कयमविभ’ के अॊतगवत ढ़कसी गयॉर् भें सफ़यई अनबमयन के अनुबर्ों
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14 आऩके भोहल्रे के ऩयकव भें रड़ढ़कमों को आत्भ यऺय के गुण नसियने हे तु एक कैंऩ (5)
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रगयमय जय यहय है , इसके नरए एक ष्टर्ऻयऩन रगबग 20-25 शब्दों भें तैमयय
tu
कीखजए |
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अथवा
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खींड-क अींक-15
(अऩहठि अींर्)
1 अऩहठि गद्ाींर् 8
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(1) स्वास््म औय खेर-कूद का ऩयस्ऩय गहया सॊफॊध है | खेर-कूद से प्राणों भें नई स्पूर्ति (2)
औय प्रसन्नता ऩैदा होती है | ऩरयणाभस्वरूऩ स्वास््म अच्छा यहता है |
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(2) हवा के झोंके एक-दस
ू ये का ऩीछा कयते हुए जान ऩड़ते हैं | आकाश भें उड़ते हुए ऩऺी
ay
बी तयह-तयह की क्रीड़ाएॉ कयते हैं | इससे ऻात होता है कक प्रकृ र्त बी खेर -कूद ऩसॊद
(2)
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कयती है |
(3) कभि कयने वारा व्मक्ति गर्तशीर औय तयोताजा यहता है | उसकी र्शर्थरता सभाप्त हो
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(4) जीवन को जर इसर्रए कहा गमा है क्मोंकक जीवन की प्रकृ र्त जर के सभान है | जर
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(1)
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2 अऩहठि कावयाींर् 7
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1 उऩमुि
ि काव्म ऩॊक्तिमों भें भजदयू की शक्ति का भहत्त्व प्रर्तऩाकदत ककमा गमा है | (1)
2 भजदयू र्नभािता है | वह अऩनी शक्ति से धयती ऩय स्वगि के सभान सुॊदय फस्स्तमाॉ फना (1)
सकता है | इस कायण उसे स्वगि से क्तवयक्ति है |
3 भजदयू ने तूपानों व बूकॊऩों भें बी हाय नहीॊ भानी | वह हय भुसीफत का साभना कयने (1)
को तैमाय है |
4 उऩमुि
ि ऩॊक्तिमों भें 'भैं' श्रर्भक वगि का प्रर्तर्नर्धत्व कय यहा है | कक्तव कहना चाहता है (2)
कक भजदयू वगि भें सॊसाय के सबी कक्रमाशीर प्राणी आ जाते हैं |
भजदयू भें आत्भक्तवश्वास है कक वह खॊडहय को बी आफाद कय सकता है | उसकी शक्ति के
1
अथवा
1 पूर ने कक्तव को मह छोटा-सा सत्म सौंऩा कक वसॊत ऋतु की धन्मता उसकी कभाई नहीॊ (1)
है |
3 पूर औय उसके सार्थमों ने र्भट्टी का अॉधेया पोड़कय सूयज से आॉखें र्भराई हैं |
(1)
पूरों औय उसके जैसे अनर्गनत सार्थमों ने धूऩ, फयसात, जाड़ा, औय ऩारा झेरा तथा
4 (2)
सूयज को ऩूयी आमु तऩा है |
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हॉ सते स्खरस्खराते पूरों को दे खकय कक्तव का ह्रदम तृप्त हो गमा, उसकी आॉखों भें यॊ गों की (2)
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5
फयसात हो गई औय खुशफू औय प्रसन्नता से उसका जीवन बय गमा |
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खींड-ख
(वयाविाररक वयाकरण)
अींक-15
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3. र्नदे शानुसाय उत्तय र्रस्खए- (कोई तीन) (1x3=3)
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4. र्नम्नर्रस्खत वाक्मों भें र्नदे शानुसाय वाच्म ऩरयवतिन कीस्जए- (कोई चाय) (1x4=4)
w
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(ऩाठ्य ऩुस्िक एवीं ऩूरक ऩाठ्य ऩुस्िक)
7. र्नम्नर्रस्खत गद्याॊश को ध्मानऩूवक
ि ऩढ़कय नीचे कदए गए प्रश्नों के उत्तय र्रस्खए- (5)
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रेखक ने दे खा कक फ़ादय के अॊर्तभ सॊस्काय के अवसय ऩय अनेक साकहत्मकाय, कहन्दी (2)
(1)
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बाषा के क्तवद्वान, साकहत्म प्रेभी, ईसाई सभुदाम के रोग औय ऩादयी गण उऩस्स्थत थे |
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उस अवसय ऩय सबी की आॉखें नभ थीॊ | रेखक ने इतने रोगों को दे खकय सोचा कक
महाॉ उऩस्स्थत रोगों की गणना कयना स्माही पैराने जैसा है |
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रेखक ने फ़ादय के र्रए सफसे अर्धक छामादाय, पर-पूर गॊध से बया सफसे अरग, (2)
di
(2)
सफसे ऊॉचाई ऩय औय भानवीम करुणा की कदव्म चभक जैसे क्तवशेषणों का प्रमोग ककमा
tu
(1)
w
गद्याॊश भें फ़ादय की माद को मऻ की ऩक्तवत्र ज्मोर्त के सभान फतामा गमा है , स्जसके
(3)
w
उस्ताद क्तफस्स्भ्रा खाॊ काशी से असीभ रगाव यखते थे | फाफा क्तवश्वनाथ औय फाराजी
(4)
भें उनकी गहन आस्था थी | उनके ऩूवज
ि ों ने काशी भें यहकय शहनाई फजाई |
क्तफस्स्भ्रा खाॊ ने काशी भें ही यहकय शहनाई फजाना सीखा औय सॊस्काय अस्जित ककए |
उनके नाना औय भाभा का जुड़ाव बी काशी से यहा था, इसर्रए वे काशी छोड़कय अन्मत्र
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नहीॊ जाना चाहते थे |
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(5) नवाफ साहफ खीये की सुगॊध का यसास्वादन कयके तृप्त होने के अऩने क्तवर्चत्र ढॊ ग के
ay
भाध्मभ से अऩनी यईसी औय नवाफी का प्रदशिन कयना चाहते थे | वे रेखक को मह बी
फताना चाह यहे थे कक नवाफ जैसे यईस रोग खीया जैसी साधायण-सी खाद्य वस्तु का
od
आनॊद इसी तयह रेते हैं | इसभें उनकी कदखावा कयने की प्रवृक्तत्त कदख यही थी |
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9. र्नम्नर्रस्खत काव्माॊश को ध्मानऩूवक
ि ऩढ़कय नीचे कदए गए प्रश्नों के उत्तय र्रस्खए- (5)
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(1) गोक्तऩमों ने मोग साधना का सॊदेश राने वारे उद्धव को ‘फड़बागी’ कहकय व्मॊग्म ककमा है 1
di
|
tu
(2)
इसका कायण मह है कक ऩानी भें डू फा यहने ऩय कभर का ऩत्ता गीरा नहीॊ होता है |
w
इसी प्रकाय तेर की गागय बी ऩानी भें गीरी नहीॊ हो ऩाती है , उसी प्रकाय श्रीकृ ष्ण का
w
प्रेभ उद्धव ऩय अऩना असय न डार सका औय वह श्रीकृ ष्ण के प्रेभ से वॊर्चत यह गए |
w
कराकाय के साथ छर-प्रऩॊच कयके आगे र्नकरना र्नताॊत अनुर्चत सभझते हैं | वे
अऩनी ऩयोऩकाय औय त्माग की बावना के कायण ऩीछे ही फने यहते हैं |
(2) सबा भें ऩयशुयाभ औय रक्ष्भण के भध्म फहुत तीखी नोक-झोंक हो गई | ऩयशुयाभ तो
स्वबाव से क्रोधी थे ही | रक्ष्भण ने फारक होने ऩय बी अऩने व्मॊग्म-वचनों से उनके
क्रोध को बड़का कदमा | रक्ष्भण द्वाया फहुत तीखे कटाऺ कयने ऩय सबा भें एकक्तत्रत रोग
‘हाम-हाम’ कहने रगे |
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अनुर्चत दफाव फनामा जाता है | भाॉ नहीॊ चाहती है कक उसकी फेटी की सयरता का
गरत पामदा उठामा जाए | इसर्रए मह सीख मुग के अनुकूर है |
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‘उत्साह’ कक्तवता भें कक्तव ने फादर से गयजने का अनुयोध ककमा है तथा साभास्जक
(4) चेतना की नूतन कक्तवता र्रखने वारे कक्तवमों से कहा है कक वे अऩने ह्रदम भें क्तवद्युत -सी
od
छक्तव धायण कय रें | कक्तवता भें ऐसे कक्तवमों को आह्वान कयते हुए कहा गमा है कक वे
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अऩनी नूतन कक्तवता भें क्तवद्युत-सी तेजी का सॊचाय कयें | इस प्रकाय कक्तवमों को मह
es
सॊदेश कदमा गमा है कक वे अऩनी कक्तवताओॊ भें क्तवध्वॊस, क्तवप्रव औय क्रास्न्त चेतना का
di
स्वय बय दें | स्ऩष्ट है कक कक्तवता भें इस त्म को ये खाॊककत ककमा गमा है कक साकहत्म,
tu
मह दॊ तुरयत भुस्कान कक्तवता भें ‘फाॉस औय फफूर’ कठोय औय र्नष्ठु य ह्रदम वारे रोगों का
w
प्रतीक हैं | ऐसे रोगों ऩय भानवीम सॊवेदनाओॊ का कोई असय नहीॊ होता है | र्शशु की
w
‘भाता का अॊचर’ ऩाठ भें बोरानाथ एवॊ उसके सार्थमों द्वाया चूहे के क्तफर भें ऩानी
डारना ऩशु-ऩस्ऺमों के प्रर्त फच्चों की शयायती प्रवृक्तत्त को प्रकट कयता है जो प्रकृ र्त के
र्रए कतई उर्चत नहीॊ है | ऩशु-ऩऺी हभाये र्भत्र हैं उनका होना हभाये र्रए अर्त
आवश्मक है | ऩशु-ऩऺी नहीॊ यहें गे तो ऩमािवयण सॊतर
ु न क्तफगड़ जाएगा | प्रकृ र्त ने
सफके र्रए अऩना-अऩना कामि र्नधािरयत ककमा है उसी के अनुरूऩ सभस्त प्राणी वगि
अऩना व्मवहाय र्नस्ित कयते हैं | हभाये प्राणी वगि भें से ककसी बी वगि के न यहने ऩय
5
प्रकृ र्त असॊतुर्रत हो जाएगी | अत् हभें अऩने र्भत्र ऩशु-ऩस्ऺमों का सॊयऺण कयना
चाकहए | इसके र्रए फच्चों को क्तवद्यारमी स्तय ऩय ऩशु-ऩऺी सॊयऺण का भहत्त्व फताना
चाकहए | प्राथर्भक स्तय ऩय ऩरयवाय फच्चों को ऩशु-ऩस्ऺमों के प्रर्त जागरूक कयें तबी
फच्चे प्राणी जगत के सबी जीवों का भहत्त्व सभझेंगे तथा उन्हें भायने मा सताने का
प्रमत्न नहीॊ कयें गे |
अथवा
सभाचाय-ऩत्र जान-जागयण भें भहत्वऩूणि बूर्भका र्नबाते हैं | दे श की सभस्माओॊ से
जनता को अवगत कयाना सभाचाय-ऩत्रों का भुख्म कामि है | सभाचाय-ऩत्रों भें आजकर
जानी-भानी हस्स्तमों के ऩहनावे, खान-ऩान की खफयें अर्धक छऩती हैं स्जससे मुवा ऩीढ़ी
भागि से बटक जाती है | याष्ड को सही कदशा भें राने का कामि सभाचाय-ऩत्र ही कय
सकते हैं | सभाचाय-ऩत्रों का कामि है सभाज को जाग्रत कयना, उनके कहतों की यऺा
om
कयना है |
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खींड-‘घ’ अींक-20
( ऱेखन )
12 तनबींध-ऱेखन
ay (10)
od
प्रस्तुर्त -1 अॊक
बाषा-शुद्धता -2 अॊक
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वाक्म-क्तवन्मास -1 अॊक
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13 ऩत्र-ऱेखन (5)
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क्तवषमवस्तु अॊक
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बाषा-शुद्धता 2 अॊक
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1 अॊक