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न प (२०१६ - २०१७)
िह दी ऐ छक
क ा बारहव
खंड क
खड ख
4. सावजिनक पद पर बने यि य म या ाचार को रोकने के लए कुछ उपाय सुझाते हए िकसी दैिनक प के संपादक को प
ल खए। (5)
उ र- आरंभ और अंत क औपचा रकताएं – 01
िवषय व तु – 03
भाषा – 01
अथवा
6. ‘स दायवाद एक जहर' अथवा ‘बाल िमक क सम या' िवषय पर एक आलेख तैयार क जए| (5)
उ र- िवषयव तु – 03
तुित – 01
भाषा – 01
खंड ग
उ र- संदभ+ संग – 02
या या - 04
अथवा
उ र- संदभ+ संग – 02
या या - 04
िवशेष – 01
भाषा – 01
8. िन न ल खत म से िक ही दो न के उ र दी जए | (3+3=6)
(क) गीत गाने दो किवता का ितपा प क जए।
(ख) देवी सर वती क उदारता का गुणगान य नह िकया जा सकता?
(ग) हाथ फैलाने वाले यि को किव ने ईमानदार य कहा है ? प क जए।
9. िन न ल खत म से िक ही दो का यांशो का का य सौ दय प क जए | (3+3=6)
उ र- (क) भाव सौ दय – 1½
िश प सौ दय - 1½
(ख) भाव सौ दय – 1½
िश प सौ दय - 1½
(ग) भाव सौ दय – 1½
िश प सौ दय - 1½
अथवा
वातं यो र भारत क सबसे बड़ी टेजेडी यह नह है िक शासक वग ने औ ोगीकरण का माग चुना, टेजेडी यह रही है िक प चम क
देखा देखी और नकल म योजनाएं बनाते समय कृित, मनु य और सं कृित के बीच का नाजुक संतुलन िकस तरह न होने से
बचाया जा सकता है - इस ओर हमारे प चम िशि त स ाधा रय का यान कभी नह गया। हम िबना प चम को मॉडल बनाए
अपनी शत और मयादाओं के आधार पर औ ोिगक िवकास का भारतीय व प िनधा रत कर सकते ह, कभी इसका याल भी
हमारे शासक को आया हो, ऐसा नही जान पड़ता।
उ र- संदभ+ संग – 01
11. िन न ल खत म से िक ही दो न के उ र दी जए | (4+4=8)
(क) संविदया क या िवशेषता होती है उसके लए गांववाले क धारणा प क जए।
(ख) ‘चार हाथ’ लघुकथा पूंजीवादी यव था म मजदरू के शोषण को उजागर करती है। इस कथन को ितपािदत क जए।
(ग) ‘संभव को दस
ू रा देवदास' य कहा गया है प क जए।
(ख) * पूंजीपितय ारा मजदरू से अ धक काम लेने के लए अलग अलग तरीक को अपनाना।
* मजदरू का शोषण करना।
12. ‘भी म साहनी' अथवा 'रामच शु ल के जीवन और रचनाओं का संि प रचय देते हए उनक भाषा शैली क दो मुख
िवशेषताएं प क जए | (6)
उ र- जीवन प रचय – 02
िक ही दो रचनाओं का उ ेख – 02
भाषा शैली – 02
अथवा
‘जायसी’ अथवा 'रघुवीर सहाय' के जीवन और रचनाओं का संि प रचय देते हए उनक दो मुख का यगत िवशेषताओं को प
क जए |
उ र- जीवन प रचय – 02
िक ही दो रचनाओं का उ ेख – 02
भाषा शैली – 02
13. ‘ कृित सजीव नारी बन गई’ - इस कथन के आलोक म िनिहत जीवन मू य को िब कोहर क ‘माटी' पाठ के संदभ म प
अथवा
'तो हम सौ लाख बार बनाएं गे' - इस कथन के आलोक म सूरदास के जीवन मू य को प क जए जनसे जीवन का यु जीता जा
सकता है |