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ितदश

न प (२०१६ - २०१७)
िह दी ऐ छक
क ा बारहव

िनधा रत समय - 3 घंटे, अ धकतम अंक – 100

खंड क

1. िन न ल खत ग ांश को पढ़कर नीचे िदए गए न के उ र ल खए | 15


वामी िववेकानंद आदश और उ जवल च र के बहत बड़े समथक थे। कठोपिनषद का एक मं है जसका उ ेख वे ायः िकया
करते थे। उित त जागृत वरा बोधत । यानी उठो, जागो और ऐसे े जन के पास जाओ जो तु हारा प रचय परमा मा से करा
सक। इसम तीन बात िनिहत ह। पहली, तुम जो िन ा म बेसुध पढ़े हो, उसका याग करो और उठकर बैठ जाओ। दस
ू री आं खे खोल
दो अथात अपने िववेक को जागृत करो। तीसरी, चलो और उन उ म कोिट के पु ष के पास जाओ, जो ई वर यानी जीवन के चरम
ल य का बोध करा सक। जीवन िवकास के राजपथ पर वग का लोभन और नरक का भय काम नही करता। यहां तो स य क
तलाश म आ था, िन ा, संक प और पु षाथ ही जीवन को नई िदशा दे सकते ह।
महावीर क वाणी है- 'उिटठये णो पमायए’ यानी ण भर भी माद न हो। माद का अथ है - नैितक मू य को नकार देना, अपन से
अपने पराए हो जाना सही गलत को समझने का िववेक न होना। 'म' का संवेदन भी माद है, जो दख
ु का कारण बनता है। माद म
हम अपने आप क पहचान ओर के नज रये से, मा यता से, पसंद से, वीकृित से करते है, जबिक वयं ारा वयं को देखने का
ण ही च र क सही पहचान बनता है। च र का सुर ा कवच अ माद है, जहां जागती आं ख क पहेरदारी म बुराइय क घुसपैठ
संभव ही नह । बुराइयां दबू क तरह फैलती है, मगर उनक जड़ गहरी नह होत , इस लए उ हे थोड़े से यास से उखाड़ फका जा
सकता है। जैसे ही वयं का िव वास और अपनी बुराइय का बोध जागेगा, परत दर परत जमी बुराइय व अपसं कारो म बदलाव आ
जाएगा। च र जतना ऊंचा और सु ढ़ होगा, जीवन मू य उतनी ही तेजी से िवक सत ह गे और सफलताएं उतनी ही तेजी से कदम
को चूमेगी। इस लए प र थतयां बदले, उससे पहले कृित बदलनी ज री है। िबना आदत और सं कार को बदले न सुख संभव है,
न साधना और न ही सा य ।
(क) आदश और उ जवल च र से आप या समझते ह ? (2)
(ख) वामी जी हम े जन के पास जाने के लए य कहते ह? (2)
(ग) िन ा का याग करने से या अिभ ाय है? (2)
(घ) िववेक को जागृत करने से हम या लाभ िमल सकते ह ? (2)
(ङ) जीवन को नई िदशा देने के लए िकन गुण क आव यकता है और य ? (2)
(च) बुराइय क तुलना दबू से य क गई है? (2)
(छ) वयं ारा वयं को देखने का ण ही च र क सही पहचान बनाता है। आशय प क जए | (2)
(ज) उपसग और यय अलग क जए - प र थितयां, नैितक (1)
उ र- (क) * जैसा होना चािहए – आदश

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* समाज म जसका नाम आदर के साथ लया जाए तथा उसके योगदान को याद िकया जाए –उ जवल
(ख) * जीवन क वा तिवकता को समझना
* परमा मा से प रचय कराना
(ग) * आल य का याग करना
* स य के ित सचेत होना
(घ) * स य - अस य का बोध करना
* िनणय लेने क मता िवक सत होना
(ङ) * आ था, िन ा, संक प आिद
* इसे अपनाकर ही जीवन म आगे बढ़ा जा सकता है
(च) * बुराइयां ज दी फैलती ह
* जड़ गहरी नह होती
(छ) * मनु य अपने बारे वयं बहत कुछ जानता है
* अपनी किमय को वयं दरू कर सकता है
(ज) * प र, थित
* नीित, इक

2. िन न ल खत का यांश को पढ़कर पूछे गए न के उ र ल खए | (1×5=5)


का लदास का अमर का य है,
मै तुलसी क रामायण।
अमृतवाणी ह गीता क ,
घर घर होता पारायण।
मै भूषण क िशवा बावनी,
आ हा का हंकारा हं।
सूरदास का मधुर गीत मै,
मीरा का इकतारा हं।
वरदायी क गौरव गाथा,
रण गजन गंभीर हँ।
मातृभूिम पर िमटने वाले,
मतवाले क पीर हँ।
मेरा प रचय इतना है,
म भारत क त वीर हँ।
(क) किवता म िकसके बारे म बात क गई है?
(ख) गीता को अमृतवाणी कहने के कारण को प क जए।

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(ग) ‘मतवाले क पीर हं’ पंि का भाव प क जए।
(घ) 'वरदायी’ क किवताओं क िवशेषताओं का उ ेख क जए।
(ङ) 'घर घर होता पारायण' - से या अिभ ाय है?
उ र- (क) हमारे देश के बारे म |
(ख) गीता का उपदेश मनु य को जीवन का वा तिवक अथ समझाता है |
(ग) ांितका रय क पीड़ा, योगदान से ही देश को वतं ता िमली |
(घ) ‘च वरदायी पृ वीराज के किव थे। उ होने वीर रस क किवताएं लख |
(ङ) भारतवा सय के घर म इनका पाठ होता रहता है |

खड ख

3. िन न ल खत िवषय म से िकसी एक िवषय पर िनबंध ल खए | (10)


(क) लोकतं और भारत
(ख) सुबह क सैर आज क आव यकता
(ग) ामीण भारत क चुनौितयां
(घ) भारतीय नारी
उ र- भूिमका – 01
िवषयव तु – 6
उपसंहार – 1
भाषा – 2

4. सावजिनक पद पर बने यि य म या ाचार को रोकने के लए कुछ उपाय सुझाते हए िकसी दैिनक प के संपादक को प
ल खए। (5)
उ र- आरंभ और अंत क औपचा रकताएं – 01
िवषय व तु – 03
भाषा – 01

अथवा

सड़क पर होने वाली दघ


ु टना से बचाव के लए प रवहन िवभाग के सिचव को प ल खए |
उ र- आरंभ और अंत क औपचा रकताएं – 01
िवषय व तु – 03
भाषा – 01

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5. िन न ल खत न के उ र सं ेप म ल खए | (1×5=5)
(क) प कार के दो कार ल खए।
(ख) िवशेष लेखन से या ता पय है?
(ग) एं कर बाइट िकसे कहते ह?
(घ) भारत म सबसे पहली िफ म कौन सी बनी थी?
(ङ) वतं ता से पहले के िक ही दो प कार के नाम ल खए।
उ र- (क) * अंशका लक
* पूणकािमक
(ख) िकसी िवषय पर पूण अ धकार के साथ िकया जाने वाला लेखन
(ग) घटना थल से य दिशय ारा माण व प िदखाई जाने वाली बात
(घ) आलम आारा
(ङ) * माखनलाल चतुवदी
* मै थलीशरण गु

6. ‘स दायवाद एक जहर' अथवा ‘बाल िमक क सम या' िवषय पर एक आलेख तैयार क जए| (5)

उ र- िवषयव तु – 03

तुित – 01

भाषा – 01

खंड ग

7. िन न ल खत का याश क स संग या या क जए | (8)


जो है वो सुगबुगाता है
जो नह है वह फकने लगता है पच खयां
आदमी दशा वमेध पर जाता है
और पाता है घाट का आ खरी प थर
कुछ और मुलायम हो गया है
सीिढ़य पर बैठे बंदर क आखो म
एक अजीब सी नमी है।

उ र- संदभ+ संग – 02
या या - 04

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िवशेष – 01
भाषा – 01

अथवा

कुसुिमत कानन हे र कमलमुख,


मूद रहए द ु नयान।
कोिकल कलरव मधुकर सुिन,
कर देइ झांपइ कान।
माधव सुन सुन बचन हमारा।
तुस गुन सु द र अित भेल दबू र
गुिन गुिन ेम तोहारा।
धरिन ध र धािन कत बेर बइसड़,
पुिन पुिन उठई न पाय।

उ र- संदभ+ संग – 02
या या - 04
िवशेष – 01
भाषा – 01

8. िन न ल खत म से िक ही दो न के उ र दी जए | (3+3=6)
(क) गीत गाने दो किवता का ितपा प क जए।
(ख) देवी सर वती क उदारता का गुणगान य नह िकया जा सकता?
(ग) हाथ फैलाने वाले यि को किव ने ईमानदार य कहा है ? प क जए।

उ र- (क) * िनराला ने समय क ओर इशारा िकया है।


* संघष ं से जीवन असानी नह रह गया है।
* संसार जहर से भरा हआ है, मानवता हाहाकार कर रही है।
* िनराशा म आशा ा संचार करना |
(ख) * ऋिष मुिनय और देवताओं ारा उनक उदारता का वणन संभव नह ।
* आम आदमी दवारा किठन।
(ग) * वतं ता के बाद सभी चालाक और धूत यि पैसा कमाकर अमीर बन गए।
* वतं ता के बाद हाथ फैलाने वाला यि ईमानदार, य िक वह धोखाधड़ी म शािमल नह ।

9. िन न ल खत म से िक ही दो का यांशो का का य सौ दय प क जए | (3+3=6)

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(क) भारत सौगुनी सार करत है
अित ि य जािन ितहारे
तदािप िदनिहं िदन होत झांवरे
मनहं कमल िहममारे
(ख) यह मधु है - वयं काल क मौना का युग संचय
यह गोरस - जीवन - कामधेनु का अमृत पूत पथ
(ग) इस पथ पर मेर े काय सकल
हो भ शीत के से शतदल
क ये, गत कम का अपण
कर, करता म तेरा तपण

उ र- (क) भाव सौ दय – 1½
िश प सौ दय - 1½
(ख) भाव सौ दय – 1½
िश प सौ दय - 1½
(ग) भाव सौ दय – 1½
िश प सौ दय - 1½

10. िन न ल खत ग ांश क स संग या या क जए | (6)


िशवा लक क सूखी नीरस पहािड़य पर मु कराते हए ये वृ ंदातीत है, अलम त है। म िकसी का नाम नही जानता, कुल नही
जानता, शील नही जानता पर लगता है ये जैसे मुझे अनािद काल से जानते ह। इ ही म एक छोटा सा, बहत ही िठगना पेड़ है, प े
चौड़े भी ह, बड़े भी ह। फूल से तो ऐसा लदा है िक कुछ पूिछए नह । अजीब सी अदा है, मु कराता जान पडता है।
उ र- संदभ+ संग – 01
या या – 03
भाषा + िवशेष – 02

अथवा

वातं यो र भारत क सबसे बड़ी टेजेडी यह नह है िक शासक वग ने औ ोगीकरण का माग चुना, टेजेडी यह रही है िक प चम क
देखा देखी और नकल म योजनाएं बनाते समय कृित, मनु य और सं कृित के बीच का नाजुक संतुलन िकस तरह न होने से
बचाया जा सकता है - इस ओर हमारे प चम िशि त स ाधा रय का यान कभी नह गया। हम िबना प चम को मॉडल बनाए
अपनी शत और मयादाओं के आधार पर औ ोिगक िवकास का भारतीय व प िनधा रत कर सकते ह, कभी इसका याल भी
हमारे शासक को आया हो, ऐसा नही जान पड़ता।

उ र- संदभ+ संग – 01

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या या – 03
भाषा + िवशेष – 02

11. िन न ल खत म से िक ही दो न के उ र दी जए | (4+4=8)
(क) संविदया क या िवशेषता होती है उसके लए गांववाले क धारणा प क जए।
(ख) ‘चार हाथ’ लघुकथा पूंजीवादी यव था म मजदरू के शोषण को उजागर करती है। इस कथन को ितपािदत क जए।
(ग) ‘संभव को दस
ू रा देवदास' य कहा गया है प क जए।

उ र- (क) * वह पेट भर खाता है, खूब सोता है।


* संवाद य का य हाव भाव के साथ सुनाता है।
* गांव के लोग उसे पेटू िक म का समझते ह।

(ख) * पूंजीपितय ारा मजदरू से अ धक काम लेने के लए अलग अलग तरीक को अपनाना।
* मजदरू का शोषण करना।

(ग) * देवदास क तरह संभव का पारो के लए मन म ेम रखना।


* संभव से पहले देवदास ेम के उदाहरण प म तुत |
* संभव देवदास के बाद के समिपत ेमी के तौर पर तुत।

12. ‘भी म साहनी' अथवा 'रामच शु ल के जीवन और रचनाओं का संि प रचय देते हए उनक भाषा शैली क दो मुख
िवशेषताएं प क जए | (6)

उ र- जीवन प रचय – 02
िक ही दो रचनाओं का उ ेख – 02
भाषा शैली – 02

अथवा

‘जायसी’ अथवा 'रघुवीर सहाय' के जीवन और रचनाओं का संि प रचय देते हए उनक दो मुख का यगत िवशेषताओं को प
क जए |

उ र- जीवन प रचय – 02
िक ही दो रचनाओं का उ ेख – 02
भाषा शैली – 02

13. ‘ कृित सजीव नारी बन गई’ - इस कथन के आलोक म िनिहत जीवन मू य को िब कोहर क ‘माटी' पाठ के संदभ म प

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क जए | (5)

अथवा

'तो हम सौ लाख बार बनाएं गे' - इस कथन के आलोक म सूरदास के जीवन मू य को प क जए जनसे जीवन का यु जीता जा
सकता है |

उ र- िव ा थय के िचंतन एवं अिभ यि के आधार पर मू यांकन वकाय |

14. (क) भूप संह प र म, साहस और धैय के तीक थे – कैसे ? (5)


(ख) हमारी वतमान स यता निदय को गंदे पानी के नाले बना रही है - य और कैसे ? (5)

उ र- (क) * पहाड़ काटकर खेत बनाना |


* ऊंची चोटी पर रहना |
* िवपरीत प र थितय म भी धैय से काम करना |
* िबना िकसी सहारे पहाड़ पर चढ़ना | (अ य िब द ु भी वीकाय)

(ख) * वतमान स यता निदय के मह व को नह समझ रही।


* फै टय , ना लय का पानी नदी मे िगराती है।
* नाले के पानी से नदी नाले म बदल रही है।
* उपयोग करने वाली स यता नदी के मह व को नह समझ पा रही । (अ य िब द ु भी वीकाय)

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