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दै निक
क्लास िोट् स
नीतिश स्त्र

Lecture – 33
ग ांधी (भ ग-3)
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ग ांधी (भ ग-3)
सर्वोदय
सर्वोदय का वर्वचार उपयोवितार्वादी नैवतकता के खंडन पर आधाररत है ।
उपयोवितार्वादी नैवतकता के वर्वरुद्ध िााँ धी के क्या तकक है ?
1. सुखर्वादी उपयोवितार्वाद इच्छाओं की तृप्ति से महत्तम लोिों के महत्तम सुख का दार्वा करता है जबवक इच्छाएं अनंत है
और प्रकृवत के पास संसाधन सीवमत। ऐसे में प्रकृवत के सीवमत संसाधनों से महत्तम लोिों की अनंत इच्छाएं कभी पूरी
नहीं हो सकेिी।
2. जब उपयोवितार्वाद की नैवतकता से मनुष्य इच्छाओं की तृप्ति के पीछे भािेिा तो मनुष्यों में प्रवतस्पधाक और संघर्क होिा
इससे दु वनया में वहं सा, लालच, स्वार्क बढ़े िा और वहं सा लालच बढ़ने पर दु वनया में सुख घटे िा।
3. यह वसद्धान्त महत्तम लोिों के सुख पर आधाररत है जो सर्वे भर्वन्तु सुप्तखनः जैसे वसद्धान्त की तुलना में भी हीन है।
उपयोवितार्वादी समार्वेशी नहीं है । उपयोवितार्वाद पूंजीपवतयों की मदद करे िाI
4. उपयोवितार्वादी नैवतकता में सुख के पीछे भािने र्वाले मानर्व सुख प्राि करने के प्रयास में अपनी संर्वेदनशीलता, सत्य के
प्रवत दृढ़ता, चेतना का पररष्करण, कतकव्य पालन जैसे ज्यादा मूल्यर्वान लक्ष्ों को छोड़ दे िा। अतः मानर्व का मानर्वीयता
से अलिार्व हो जाएिा।
सर्वोदय एक िैर-उपयोवितार्वादी वसद्धां त है , वजसमें सभी के लाभ या उदय की संकल्पना की जाती है । इसमें समतामूलक,
समार्वेशी तर्ा मानर्व कल्याण का वर्वचार वनवहत होता है। इन्ीं आलोचनाओं के आधार पर िााँ धी ने सर्वोदय की नैवतकता का
वर्वचार प्रस्तुत वकया। सर्वोदय के वर्वकास या कल्याण के दो आयाम वनम्नवलप्तखत हैं :
1. सभी मिुष्ोों का आध्यात्मिक उदय/नर्वकास (स्वराज की िैनिकिा)
➢ आध्याप्तिक कल्याण से आशय आिा या चेतना का वर्वकास करना है । इसका प्रमुख लक्ष् सभी मनुष्यों को
सद् िुणी एर्वं स्वराजी बनाना तर्ा उनका चाररविक वर्वकास करना है । वजन मनुष्यों में सत्य, अवहं सा, प्रेम, समानता,
श्रम की िररमा का वर्वकास होता है , उनका आध्याप्तिक वर्वकास स्वयं हो जाता है । आध्याप्तिक वर्वकास से मानर्वीय
चेतना का पररष्करण होता है एर्वं इससे मानर्वीय चेतना को पशुर्वत चेतना से आध्याप्तिक उत्कृष्टता की ओर ले
जाने में मदद वमलती है । स्वराज इसी का साधन है । यह िीता के वनष्काम भार्व के समान है।
2. सोंसाधिोों का समिामूलक नर्विरण, सभी मिुष्ोों का भौनिक उदय/नर्वकास
➢ भौवतक कल्याण या वर्वकास आवर्कक न्याय एर्वं अर्कव्यर्वस्था के िैर पूंजीर्वादी मॉडल से जुड़ा हुआ है । संसाधनों के
समतामूलक वर्वतरण से भौवतक कल्याण संभर्व है । प्रकृवत के पास सीवमत संसाधन है । यवद मानर्वीय जरूरतें
सीवमत हो तो प्रकृवत के सीवमत संसाधनों से सभी मानर्वों की सीवमत जरूरतें पूरी हो सकती हैं । इसी संदभक में िां धी
का एक प्रवसद्ध कर्न है - प्रकृनि के पास सभी की जरूरिें पूरी करिे के नलए पयााप्त सोंसाधि है परों िु
लालच को पूरी करिे के नलए िही ों है । यह वसद्धां त अपररग्रह अर्ाक त जरूरतों के अनुसार संसाधनों का प्रयोि से
ही संभर्व है । ग्राम स्वराज जैसी व्यर्वस्था अर्कव्यर्वस्था के िैर-पूंजीर्वादी मॉडल में ही संभर्व है ।
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साध्य - साधि सोंबोंध


साध्य - साधन के संबंध में वर्वचारकों के दो मत प्रस्तुत वकए जाते हैं :
1. क्या साध्य, साधि को उनचि ठहरािा है ?
➢ साध्य का अर्क लक्ष् है जबवक साधन का अर्क लक्ष् प्राि करने का तरीका है । साध्य साधन को उवचत ठहराता है ,
यह मत मार्क्क द्वारा वदया िया र्ा। इस वर्वचारधारा के अनुसार साध्य के उवचत होने पर साधन स्वतः ही नैवतक या
उवचत हो जाता है । कालक मार्क्क के अनुसार समानता, साम्यर्वाद का लक्ष् नैवतक है । ऐसी प्तस्थवत में वहं सा क्ां वत
व्यर्वस्था पररर्वतकन सभी नैवतक हो जाते हैं ।
2. साध्य साधि को उनचि िही ों ठहरािा है ;
➢ यह मत िां धी द्वारा प्रस्तुत वकया िया है । इस मत के अनुसार साध्य का नैवतक होना एक स्वतंि मामला है जबवक
साधन की नैवतकता भी स्वतंि मामला है । साध्य का नैवतक होना केर्वल साध्य को नैवतक बनाता है साधन को नहीं।
इस वर्वचारधारा के अनुसार साध्य एर्वं साधन दोनों का स्वतंि रूप से नैवतक होना अवनर्वायक है । साधन लक्ष् प्राप्ति
हे तु अपनाया िया रास्ता या तरीका है । साधन या तरीके अपनाने के कारण मानर्व की र्वैसी ही आदत या प्रर्वृवत्त का
वर्वकास होता है । आदत से अवभर्वृवत्त या मनोवर्वज्ञान बनता है।
➢ उदाहरण के िौर पर वकसी व्यप्ति ने उवचत साध्य की प्राप्ति हे तु एक बार वहं सा को अपना वलया ऐसी प्तस्थवत में
साध्य की प्राप्ति हो जाती है हालां वक वहं सा अपनाने के कारण उसकी वहं सा की आदत पड़े िी और उसमें वहं सा का
मनोवर्वज्ञान पैदा हो जाएिा यवद वहं सा का मनोवर्वज्ञान पैदा हुआ ऐसी प्तस्थवत में व्यप्ति को साध्य तो प्राि हो जाएिा
परं तु व्यप्ति अनैवतक बन जाएिा।
➢ िां धी के अनुसार अनुवचत साधन व्यप्ति को अनैवतक बना दे ता है । अनुवचत साधन से व्यप्ति के चररि में स्थाई
बदलार्व आ जाएिा और उनकी अवभर्वृवत्त भी अनैवतक हो जाएिी, सार् ही इस साधन से साध्य के प्राि हो जाने के
कारण उनकी इस अनैवतक साधन में आस्था भी बढ़ जाएिी।
साध्य साधि को उनचि ठहरािा है इस नसद्ाोंि को गाोंधी िे क्योों स्वीकार िही ों नकया? इसके खोंडि के गााँधी के िका
क्या हैं ?
1. अनुवचत साधन का प्रयोि करने पर अनुवचत साधन के प्रवत समाज में आस्था और स्वीकायकता बन जाती है और विर जब
पूरा समाज अनुवचत साधन को अपनाने लि जाता है तब प्राि वकया िया उवचत साध्य भी समाि हो जाएिा। जैसे रुस,
चीन, लेवटन अमेररकी दे शों का उदाहरण।
2. अनुवचत साधन व्यप्ति की चाररविक उत्कृष्टता को नष्ट कर दे िा तर्ा उसका आध्याप्तिक वर्वकास रोक दे िा। अनुवचत
साधन अपनाने र्वाली चेतना दु िुकणों से भर जायेिी।
3. अनुवचत साधन को अपनाकर उवचत साध्य प्राि करना वर्वरोधाभासी वर्वचार है क्योंवक वजस नैवतकता से साध्य को उवचत
माना िया उसी का साधन में उल्लंघन होिा।
4. अनुवचत साधन से प्राि साध्य प्राि तो जल्दी होिा लेवकन वटकाऊ नहीं होिा वजतनी जल्दी आयेिा उतनी ही जल्दी
जायेिा। ऐसे में मनुष्य के आध्याप्तिक वर्वकास के वलये, चररि की उत्कृष्टता के वलये, उवचत साध्य से प्राि अच्छाई को
वटकाऊ बनाने के वलए, पूरे समाज में नैवतक अवभर्वृवत्त के वर्वकास के वलये, उवचत साध्य प्राि करने के वलये उवचत
साधन ही चुनना चावहये।
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अिर िााँ धी वहं सा, तानाशाही, डर, भय के आधार पर प्राि साध्य के वर्वचार को स्वीकार नहीं करते तो उनके अनुसार उवचत
साध्य को प्राि करने के वलये उवचत साधन क्या होना चावहए?
िााँ धी के अनुसार केर्वल सत्याग्रह ही उवचत साधन है ।
सत्याग्रह
1. सत्याग्रह क्या है ?
2. इसके समर्ाि के गााँधी के िका क्या हैं ?
3. सत्याग्रह होिा कैसे है ?
4. इसकी प्रभार्वशीलिा क्योों गााँधी के अिुसार सबसे अनधक है ?
दु निया में िैनिक बदलार्व के दो प्रमुख साधि हैं -
1. बाह्य दबार्व से अनैवतकता को हटाना
2. आं तररक दबार्व से अनैवतकता को हटाना
अतः सत्याग्रह िां धी की नैवतकता में एकमाि उवचत साधन है । सत्याग्रह को समझने हे तु दो प्रकार के दृवष्टकोण प्रस्तुत वकए
जाते हैं :
1. बाह्य साधि
इस वर्वचारधारा में यह वर्वश्वास वकया जाता है वक मनुष्य मू लतः बुरा है । इस पर भरोसा नहीं वकया जा सकता है । अतः
वकसी भी प्रकार का नैवतक पररर्वतकन बल, भय, दं ड, वहं सा, कानून या बाहरी दबार्वों से प्राि वकया जा सकता है ।
2. आों िररक दबार्व/ मिुष् एक िैनिक एर्वों अच्छा प्राणी है
➢ इस वर्वचारधारा में यह व्याख्या प्रस्तुत की जाती है वक जन्म के समय कोई मनुष्य अपराधी या पापी नहीं होता है ।
जन्म के समय सभी मनुष्यों की चेतना वनमकल होती है एर्वं मनुष्य स्वभार्व से अच्छा होता है । इस वर्वचार के अनुसार
मानर्व के अंदर सारी मानर्वीय बुराइयां समाज, संस्कृवत, र्वातार्वरण एर्वं पररर्वेश से आती है । अतः अच्छे मनुष्य को
समझा-बुझाकर नैवतक बनाया जा सकता है । िां धी के अनुसार मनुष्य पशुओं से अलि वचंतनशील प्राणी है ।
➢ सत्याग्रह के वर्वचार के अनुसार मनुष्य मूलतः नैवतक एर्वं अच्छा प्राणी है । अतः उसमें आई अनैवतकता को हटाकर
उसे नैवतक बनाया जा सकता है । अनैवतकता को हटाने का तरीका ह्रदय पररर्वतकन है । हृदय पररर्वतकन चेतना की
वचवकत्सा है । प्राचीन भारतीय इवतहास में र्वाल्मीवक एर्वं अंिुवलमाल इसके प्रमुख उदाहरण में से एक हैं ।
➢ िां धी के अनुसार हृदय पररर्वतकन का साधन सत्याग्रह है । स्वपीड़ा के माध्यम से दू सरे व्यप्ति को संप्रेर्ण ही इस
संदभक में सत्याग्रह है । पीड़ा का तरीका भूख हड़ताल, अनशन आवद हो सकता है। इसके माध्यम से साध्य की
प्राप्ति होिी एर्वं दू सरे व्यप्ति द्वारा सत्य की समझ के आधार पर हृदय पररर्वतकन होिा।
➢ उदाहरणस्वरूप ईसा मसीह वजन्ोंने वर्वपरीत पररप्तस्थवतयों में पीड़ा सही एर्वं सदै र्व सत्य पर डटे रहे , पररप्तस्थवत
वर्वकट होने के बार्वजूद लोि उनके अनुयायी बने एर्वं उनका हृदय पररर्वतकन हुआ। भारतीय संदभक में बुद्ध एर्वं
महार्वीर का उदाहरण भी हृदय पररर्वतकन से संबंवधत है ।
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गााँधी बाह्य दबार्व र्वाली दों ड, भय की क़ािूिी िैनिकिा का नर्वरोध क्योों करिे हैं ?
1. यह मनुष्य का हृदय पररर्वतकन नहीं करती।
2. यह बुराई को केर्वल रोकती है उसका स्थायी समाधान या ईलाज नहीं करती।
3. डर या भय का प्रयोि करके बताई िई बात से व्यप्ति में कभी भी अपराध बोध, ग्लावन बोध या शवमिंदिी उत्पन्न नहीं
होती।
4. यह साधन एक बार कायक करता है लेवकन बार-बार प्रयोि करने पर प्रभार्वशीलता खो दे ता है ।
5. यह साधन व्यप्ति को पशु की तरह मान लेता है क्योंवक पशुओं को भी दं ड और भय से वनयंवित करते है ।
6. इस साधन का प्रयोि करने से मनुष्य की आध्याप्तिक चेतना का वर्वकास रुक जाता है ।
7. यह साधन बड़े पैमाने पर बड़े समूह पर कायक नहीं करता।
8. यह साधन दं ड दे ने र्वाले, भय उत्पन्न करने र्वाले मनुष्यों का नैवतक पतन कर दे ता है । जैसे भारत में पुवलस।
इन्ीं कारणों से िााँ धी कानूनी दं ड, भय की नैवतकता की जिह आन्तररक हृदय पररर्वतकन पर आधाररत मनुष्य का आध्याप्तिक
वर्वकास करने र्वाली सत्याग्रह की नैवतकता को चुनते हैं ।
सत्याग्रह अर्ाक त सत्य पर आग्रह करके दू सरों का हृदय पररर्वतकन करना। जैसे ईसा मसीह ने प्रेम, करुणा के सत्य पर अवडि
रह कर करोड़ों, अरबों लोिों का हृदय पररर्वतकन वकया।
प्रश्न है नक:
1. सत्याग्रह कैसे होिा?
2. कौन हृदय पररर्वतकन करा सकेिा?
3. इस नैवतकता का मॉडल कैसे काम करे िा?

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